Love Story: कामरान की शादी उस की चचेरी बहन सदफ से बचपन में ही तय हो गई थी, चाचाचाची भी तैयार थे, अंत में ऐसा क्या हुआ कि उस की शादी सदफ से होने के बजाए किसी और से हो गई, जो उसे जरा भी पसंद नहीं करती थी…
चाय का पहला घूंट लेते हुए मैं ने सदफ से फरमाइश की, ‘‘दुआ करो कि मैं कामयाब हो जाऊं.’’ उस ने गुलाबी होंठों पर शरमीली मुसकराहट लाते हुए कहा, ‘‘आप को यह कहने की जरूरत नहीं है. मैं रातदिन आप के लिए, आप की कामयाबी के लिए दुआ करती रहती हूं.’’
यह सच भी था. मुझे उस से कहने की जरूरत नहीं थी. वह मेरी मंगेतर थी. मेरी दादी ने सदफ के पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही ऐलान कर दिया था, ‘‘यह मेरे कामरान की दुलहन बनेगी.’’
दादी की इस बात को भले किसी बंधन में नहीं बांधा गया था, पर सब के दिलों में यह बात बैठ गई थी कि कामरान की शादी सदफ से होगी. मंगनी वगैरह इसलिए नहीं की गई थी, क्योंकि चाचा और हमारा परिवार एक ही मकान में रहता था. हमारे उस पुश्तैनी मकान में ऊपर वाले हिस्से में चाचा रहते थे और नीचे वाले हिस्से में हम लोग. दोनों घरों में बच्चे बराबर थे. हम दो 2 भाई और एक बहन थी. जबकि चाचा की सिर्फ 3 बेटियां थीं. सदफ चाचा की बड़ी बेटी थी. हमारा गुजरबसर आराम से हो रहा था. लेकिन इधर साल भर से हमारे घर के हालात बिगड़ रहे थे. अचानक हार्टअटैक से अब्बा की मौत हो गई थी. वह सरकारी हाईस्कूल में टीचर थे. फंड की रकम और पेंशन मिलने में समय लग रहा था.
घर के हालात रोजबरोज बिगड़ते जा रहे थे. नौकरी की दौड़धूप करने के साथसाथ मैं एक कोचिंग सेंटर में अंग्रेजी और अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था, जिस से थोड़ी मदद मिल जाती थी, थोड़ीबहुत मदद चाचा कर देते थे. 8-9 महीने की दौड़भाग के बाद पेंशन मिलने लगी. फंड भी मिल गया था. पर ढेरों खर्च मुंह बाए खड़े थे. छोटा भाई मैट्रिक में था और बहन मिडिल क्लास में थी. किसी तरह काम चल रहा था कि अम्मी बीमार हो गईं. उन्हें बे्रस्ट कैंसर हुआ था. फंड से मिलने वाली रकम उन के इलाज में खर्च हो गई. औपरेशन होने के बाद भी सेहत में कोई खास फर्क नहीं पड़ा. हालात बद से बदतर होते जा रहे थे. चाचा भी परेशान रहते थे. आखिर वह कितनी मदद करते. उन पर भी 3 बेटियों की जिम्मेदारी थी. इस के बावजूद इस मुसीबत में वह पूरा साथ दे रहे थे. चाची ज्यादा वक्त अम्मी के पास ही बिताती थीं. खाना पकाने का काम सदफ संभाल रही थी.
उस रोज नौकरी का इंटरव्यू देने जाना था. सदफ की दुआओं के साथ मैं घर से निकल रहा था तो उस की नजर मेरे जूतों पर पड़ी. उस ने कहा, ‘‘शूज तो बड़े शानदार हैं, ब्रांडेड लगते हैं?’’
मैं बौखला सा उठा. सच था, इतने कीमती ब्रांडेड शूज मेरे पास कहां से आ सकते थे? मैं ने कहा, ‘‘इंटरव्यू के लिए एक दोस्त से मांग कर लाया हूं.’’
यह कहते हुए मेरी नजरें झुक गई थीं. आंख मिला कर झूठ बोलना मेरे बस की बात नहीं थी. एच.एच. बिल्डर्स के औफिस में दाखिल होते हुए मैं उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच झूल रहा था. मैं ने एकाउंट विभाग के लिए आवेदन किया था. 4-5 लोग वहां पहले से बैठे थे. मेरा नाम पुकारा गया. केबिन में पहुंचने पर थ्रीपीस सूट पहने एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘प्लीज सिट डाउन.’’
उस की पर्सनालिटी कुछ खास नहीं थी, पर कपड़े व स्टाइल शानदार थी. कुरसी पर बैठ कर मैं ने फाइल उस की ओर बढ़ा दी. उस की नजरें मेरे ऊपर ही टिकी थीं. उस की तेज निगाहों से मुझे घबराहट सी हो रही थी. उस ने ठहरी हुई आवाज में कहा, ‘‘मि. कामरान अहमद, आप ने जो शूज पहने हैं, इन्हें कहां से हासिल किए हैं?’’
मुझे लगा, मेरे कानों में किसी ने बम फोड़ दिया है. पहले की ही तरह मैं उस से झूठ नहीं बोल सका. लेकिन सच बोलना भी आसान नहीं था. मैं ने इंटरव्यू की खूब तैयारी कर रखी थी, पर पहले ही सवाल ने मुझे लाजवाब कर दिया था. मेरे दिमाग में धमाका सा हुआ कि यहां सच बोलना ही बेहतर है. मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘सर, आप का यह सवाल हैरान करने वाला है. क्योंकि आप ने मेरी हैसियत और जूतों के फर्क को समझ लिया. इन्हें खरीदना मेरे वश की बात नहीं है. सर, मैं झूठ नहीं बोलूंगा कि मैं ने दोस्त से मांगे हैं. क्योंकि दोस्त भी हैसियत के मुताबिक ही होते हैं.’’
जूतों की हकीकत बताने से पहले मैं ने अपनी गरीबी, बाप की मौत, मां की बीमारी और भाईबहन की जिम्मेदारी के बारे में सब संक्षेप में बता कर कहा, ‘‘सर, यह नौकरी मेरे लिए बेहद जरूरी है. विज्ञापन के हिसाब से योग्यता भी थी और तैयारी भी अच्छी थी. बस मुझे अपने आप को सलीके से पेश करना था.’’
‘‘जब हालात ठीक थे, तब का यह सूट था, लेकिन जूते फट चुके थे. कल मैं जुम्मे की नमाज पढ़ने मसजिद गया था, वहां मुझे ये जूते नजर आ गए. मेरा मसला हल हो गया. किसी बुरी नीयत से नहीं, सिर्फ इंटरव्यू के लिए मैं ने ये जूते उठाए थे. इरादा यही था कि इंटरव्यू के बाद इन्हें वहीं रख आऊंगा. पता नहीं था कि अल्लाह के घर से की गई पहली चोरी का हिसाब इतनी जल्दी और इस जगह देना होगा.’’
इंटरव्यू लेने वाले ने मेरी पूरी बात ध्यान से सुनी. कुछ देर खामोशी से मुझे परखता रहा. मैं नजरें झुकाए बैठा था. अचानक उस ने कहा, ‘‘तुम्हारे इस सच ने मुझे खुश कर दिया. तुम कितना भी झूठ बोलते, मुझे धोखा नहीं दे सकते थे. मैं कोई नमाजी आदमी नहीं हूं. लेकिन कल मैं एक पार्टी को प्रोजेक्ट दिखाने गया था, रास्ते में नमाज का समय हो गया. वह नमाज के पाबंद थे, उन के साथ मुझे भी नमाज पढ़ने मसजिद जाना पड़ा. वापस आया तो मेरे जूते गायब थे.’’
वह दोस्तों की तरह अपनी परेशानी बता रहे थे. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘सौरी सर, मैं ने बड़ी मजबूरी में आप के जूते चुराए थे.’’
‘‘इट्स ओके, जो हुआ सो हुआ. शायद इसी तरह हमारी मुलाकात होनी थी. इस में तुम्हें समझने का मौका तो मिल गया. तुम्हारे सच से मैं प्रभावित हूं. क्या तुम पाबंदी से नमाज पढ़ते हो?’’
‘‘नहीं सर, जुम्मेजुम्मे हाजिरी लगा देता हूं.’’ मैं ने कहा.
‘‘मि. कामरान अहमद, तुम से बात कर के मुझे लग रहा है कि तुम ही वह व्यक्ति हो, जिस की मुझे जरूरत है. मैं ने नौकरी के लिए तुम्हें सिलेक्ट कर लिया है. 3 महीने तुम टे्रनिंग पर रहोगे. तुम्हारा काम अच्छा हुआ तो तुम परमानेंट कर दिए जाओगे. तब तुम्हारी तनख्वाह बढ़ने के साथ अन्य सुविधाएं भी मिलने लगेंगी.
मुझे लगा, खुशी से कहीं मेरी धड़कनें न रुक जाएं. जिन जूतों की वजह से मुझे यह नौकरी मिली थी, मेरी नजर उन जूतों पर पड़ी तो मैं ने कहा, ‘‘सर, ये शूज…’’
‘‘अब इन्हें तुम रख लो, तुम्हारे पैरों में ये बहुत जंच रहे हैं.’’ उस ने लापरवाही से कहा.
‘‘तुम थोड़ी देर बाहर बैठो, मैं तुम्हारा अपाइंटमेंट लेटर तैयार कराए देता हूं. लेटर ले कर ही घर जाना.’’
उस दिन एच.एच. बिल्डर्स के औफिस से अपाइंटमेंट लेटर ले कर निकला तो मैं हवा में उड़ रहा था. घर में इस खुशखबरी ने मुसकानें बिखेर दीं. चाचा ने उसी समय मिठाई मंगाई. सदफ का चेहरा खुशी से खिला हुआ था. अम्मी भी खुदा का शुक्र अदा कर रही थीं. रात को हम सभी की चाचा के यहां दावत थी, क्योंकि शाम को चाचा की दूसरे नंबर की बेटी सफिया को देखने कुछ लोग आ रहे थे. वह पूरा दिन बड़े हंगामे और खुशी में गुजरा. अब्बा के मरने के बाद पहली बार हम सभी ने इस तरह खुशी मनाई थी. एच.एच. बिल्डर्स के औफिस में पहला दिन बहुत अच्छा गुजरा. चीक एकाउंटैंट सुहैल साहब बड़े दोस्ताना अंदाज में काम समझाते रहे. तसल्ली भी देते रहे कि आगे भी उन का सहयोग मिलता रहेगा. मैं उन फाइलों को देखनेसमझने में लगा रहा, जो मुझे दी गई थीं. 12 बजे के करीब इंटरकौम बजा. बौस मुझे याद कर रहे थे. मेरे बौस वही थे, जिन के जूते चुरा कर मैं पहने बैठा था.
मैं केबिन में पहुंचा तो उन के बगल में एक 20-21 साल की लड़की बैठी थी. बौस ने हमारा परिचय कराया, ‘‘यह एच.एच. बिल्डर्स की औनर और मेरी भतीजी हानिया हसन हैं.’’
मैं ने जल्दी से सलाम किया. वह लापरवाही से सिर हिला कर खिड़की से बाहर देखने लगी. बौस फसील साहब ने आगे कहा, ‘‘हानिया बीकौम कर रही है. आगे एमबीए करने का इरादा है. अपनी पढ़ाई की वजह से औफिस को ज्यादा समय नहीं दे पाती, इसलिए फिलहाल यहां की सारी जिम्मेदारी मुझे ही संभालनी पड़ती है.’’
मैं मुलाजिम था, मुझे औपचारिकता तो निभानी ही थी. मैं ने कहा, ‘‘आप से मिल कर बड़ी खुशी हुई.’’
उस ने मेरी बात का जवाब देने की कौन कहे, मेरी ओर देखा तक नहीं. बौस ने कहा, ‘‘हानिया, यह कामरान अहमद हैं. इन्हें मैं ने एकाउंट डिपार्टमेंट में रखा है. इन्होंने आज ही ज्वाइन किया है.’’
उस ने बेमन से कहा, ‘‘गुड, अच्छा अंकल अब मैं चलूंगी. मुझे काम से कहीं जाना है.’’
‘‘ठीक है बेटा, जाओ.’’ फसील साहब ने कहा. हानिया चली गई.
उस के जाने के बाद फसील साहब ने कहा, ‘‘मेरे बड़े भाई इनायत हसन की 2 साल पहले एक रोड एक्सीडैंट में मौत हो गई थी. उन की पत्नी हानिया के पैदा होते ही गुजर गई थी. भाई साहब ने दूसरी शादी नहीं की थी. बड़े लाडप्यार से हानिया की परवरिश की. यही वजह है कि उन की मौत के 2 साल के बाद भी हानिया अभी तक संभल नहीं पाई है. उन्हीं की याद में डूबी रहती है. इसलिए हमेशा उखड़ीउखड़ी रहती है. इसे ले कर मैं बहुत परेशान रहता हूं.’’
हानिया ने मेरे साथ जो रूखा व्यवहार किया था, उसी की वजह से वह यह सब बता रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘सौरी सर, यह सुन कर बड़ा अफसोस हुआ. हानिया मैडम के लिए मांबाप दोनों को खो देने का बहुत बड़ा सदमा है. लेकिन समय बड़ा मरहम होता है, धीरेधीरे सारे जख्म भर देगा. आप परेशान न हों.’’
‘‘तुम ठीक ही कह रहे हो. मैं सोचता हूं कि कोई अच्छा सा लड़का देख कर इस की शादी कर दूं, ताकि शौहरबच्चों में अपना दुख भूल जाए.’’ फसील साहब ने कहा. इस के बाद हम कामकाज और एकाउंट की बातें करने लगे.
शाम को घर पहुंचा तो सभी ने मुझे अच्छी नौकरी की मुबारकबाद दी. अम्मी बहुत खुश थीं. मैं ने कहा, ‘‘आप सभी दुआएं करें कि मैं खूब तरक्की करूं.’’
रात के खाने के बाद मैं ने चाची से पूछा, ‘‘जो लोग सफिया को देखने आए थे, उन का क्या जवाब आया?’’
कुछ देर चुप रहने के बाद चाची बोलीं, ‘‘बेटा उस में एक पेच फंस गया है.’’
मैं ने कहा, ‘‘चाची, अगर लंबेचौड़े दहेज की डिमांड हो तो आप साफ मना कर दें.’’
‘‘नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है. खातेपीते खानदानी लोग हैं. दरअसल बात कुछ और है. वे हमारे घर रिश्ता करने को तैयार तो हैं, लेकिन उन्हें सफिया के बजाय सदफ ज्यादा पसंद है.’’
चाची की बात सुन कर मैं सन्न रह गया. अम्मी के चेहरे पर भी परेशानी झलकने लगी. चाची ने कहा, ‘‘बड़ी होने की वजह से पहला हक सदफ का ही है, पर हम लोग इसलिए सोच में पड़ गए, क्योंकि बड़ी अम्मा ने सदफ का रिश्ता बचपन में तुम्हारे साथ जोड़ दिया था. लेकिन उस के बाद इस बात पर कोई चर्चा ही नहीं हुई. बच्चों के बड़े होने पर उन के खयाल भी बदल जाते हैं, इसलिए हम उलझन में है कि क्या जवाब दें?’’
मेरी अम्मी तड़प उठीं. उन्होंने जल्दी से कहा, ‘‘बच्चों के बड़े होने पर भले रुझान बदल जाते हैं, पर मुझे तो सदफ बहू के रूप में कल भी पसंद थी, आज भी पसंद है. रही बात कामरान की तो सामने बैठा है, अभी पूछ लेते हैं. क्यों कामरान तुम्हारा इस बारे में क्या खयाल है?’’
मैं ने कहा, ‘‘मैं आप बड़ेबुजुर्गों की रजा में राजी हूं. सदफ आप को पसंद है तो वह मेरी भी खुशी है.’’
‘‘जीते रहो बेटा, तुम ने मेरा मान रख लिया. तुम मेरे मरहूम भाई की निशानी हो, किसी और के मुकाबले तुम्हें दामाद बना कर मुझे ज्यादा खुशी होगी.’’ इतना कहते हुए चाचा ने भावुक हो कर मुझे गले लगा लिया.
चाची ने कहा, ‘‘अब साफ हो गया कि सदफ की शादी कामरान से ही होगी. हम उन्हें मना कर देते हैं. कामरान सैटल हो जाए तो मंगनी भी कर देते हैं ताकि सब को इस बात का पता चल जाए.’’
दरवाजे के पीछे सदफ के गुलाबी हुए चेहरे को देख कर मैं निहाल हो गया. एच.एच. बिल्डर्स में मेरी नौकरी बढि़या चल रही थी. मैं अच्छी तरह से ऐडजस्ट हो गया था. काम भी मेहनत और लगन से कर रहा था. मेरे प्रति फसील साहब का व्यवहार अच्छा और नरम था. दिन में एक बार उन से मुलाकात जरूर हो जाती थी. हम दोनों एकदूसरे के हालात से अच्छी तरह वाकिफ थे. मुझे पता चल गया था कि कंपनी में फसील साहब के 10 प्रतिशत शेयर थे. 90 प्रतिशत शेयर के मालिक उन के भाई इनायत हसन थे. दरअसल इनायत हसन को हानिया की मां की ओर से काफी दौलत मिली थी. वह चाहते तो करोबार अलग कर लेते, लेकिन उन्होंने इसी कारोबार में पैसा लगाया, जिस से उन के शेयर बढ़ गए थे. भाई के मरने के बाद वही उन की कंपनी संभाल रहे थे.
उन्हें अपनी भतीजी हानिया से बेहद प्यार था. जल्द ही अच्छा लड़का देख कर वह उस की शादी करना चाहते थे. हानिया जैसी दौलतमंद लड़की से शादी के लिए कोई भी तैयार हो सकता था. खैर, मुझे इन बातों से क्या मतलब था? मेरी अच्छीभली नौकरी चल रही थी, जिस से मेरी जिंदगी खुशी से गुजर रही थी. उस दिन मैं अपनी केबिन में बैठा रोज के काम निपटा रहा था. छुट्टी होने में कुछ ही पल बाकी थे कि फसील साहब ने मुझे अपनी केबिन में बुला कर कहा, ‘‘आओ कामरान, इस वक्त मैं ने तुम्हें एक जरूरी काम से बुलाया है. तुम्हें जरा हानिया के साथ इस के घर तक जाना होगा. दरअसल इस का ड्राइवर आज छुट्टी पर है. वह गाड़ी ड्राइव कर के यहां तक तो आ गई, पर अचानक उस की तबीयत खराब हो गई है, इसलिए मैं नहीं चाहता कि यह अकेली घर जाए. तुम्हें तकलीफ तो होगी, लेकिन…’’
‘‘नो सर, इस में तकलीफ कैसी. मैं इन के साथ चला जाता हूं.’’ मैं ने कहा.
‘‘जाओ बेटा हानिया, कामरान के साथ चली जाओ. अब मुझे चिंता नहीं होगी.’’
बिना कुछ कहे हानिया उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ गई. मैं उस के पीछेपीछे चल रहा था. ड्राइविंग मुझे आती थी, मगर उस ने मुझे मौका नहीं दिया. खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गईं और सपाट चेहरे से मुझे पीछे बैठने का हुक्म दिया. मुझे गुस्सा तो बहुत आया, पर क्या करता. हानिया ने झटके से गाड़ी आगे बढ़ा दी. साफ लग रहा था कि चाचा के कहने पर मजबूरी में वह मुझे अपने साथ ले जा रही थी. 7-8 मिनट के बाद उस ने गाड़ी रोक दी और दोनों हाथों से सिर थाम कर इस तरह बैठ गई, जैसे उसे चक्कर आ रहे हों. मैं ने कहा, ‘‘आर यू ओके मैम?’’
उस की तरफ से कोई जवाब नहीं आया. मैं जल्दी से नीचे उतरा और खिड़की से उसे देखा. उस के चेहरे पर पसीना और तकलीफ साफ झलक रही थी. मैं ने कहा, ‘‘मैम, आप को क्या हो रहा है?’’
उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मैं ड्राइव नहीं कर सकूंगी. तुम कार चलाओ.’’
वह पिछली सीट पर चली गई. मैं ने ड्राइविंग सीट संभाल ली. मैं ने हमदर्दी से पूछा, ‘‘आप को किसी डाक्टर के पास ले चलूं?’’
उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘नहीं, मैं सीधे घर जाना चाहती हूं.’’
कोठी का रास्ता उस ने गाइड कर दिया. घर पहुंच कर उस ने मुझे जाने की इजाजत दे दी. बाहर निकल कर मैं ने फसील साहब को फोन कर के हालात बता दिए. उन्होंने कहा, ‘‘हानिया का बीपी अकसर लो हो जाता है, इसलिए मैं उसे गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं देता. कामरान तुम्हारा बहुतबहुत शुक्रिया. तुम ने उसे खैरियत से घर पहुंचा दिया. अब तुम अपने घर चले जाओ.’’
मुझे कोई आटो वगैरह नहीं मिला तो मैं पैदल चल कर बसस्टाप पर पहुंचा ही था कि मेरे छोटे भाई जिबरान का फोन आ गया, ‘‘भाई, अम्मी की तबीयत खराब हो गई है. हम उन्हें अस्पताल ले आए हैं. आप सीधे यहीं आ जाइए.’’
भाई की आवाज में घबराहट थी. उस ने अस्पताल का नाम बता दिया था. अम्मी की बीमारी का सुन कर मैं परेशान हो गया. आटो पकड़ा और सीधे अस्पताल जा पहुंचा. मेरी छुट्टी के 2 दिन बड़ी मुश्किल में गुजरे, अम्मी की हालत काफी खराब थी. डाक्टर के मुताबिक उन का मर्ज एक बार फिर फैलने लगा था. उन्हें तकलीफ काफी दिनों से थी, पर उन्हें पता था कि फंड का पैसा पहले ही खत्म हो चुका है, इसलिए वह अपना दर्द हम सभी से छिपाती रहीं. जब वह बेसुध हो गईं तो उन्हें अस्पताल लाना पड़ा. उन के इलाज के लिए काफी ज्यादा पैसों की जरूरत थी, जबकि हमारे पास मुश्किल से 4-5 हजार रुपए थे. किसी से कर्ज भी नहीं मिल सकता था. चाचा भी हम जैसे ही थे. नौकरी नई थी. लाखों रुपए एडवांस में कौन देता? जायदाद कुछ नहीं थी, गहने भी ज्यादा नहीं थे. एक यही घर था, जिस में हम रहते थे और उस का ऊपर का हिस्सा चाचा का था.
अगर मैं घर बेचने की सोचता तो चाचा के भी सिर से छत छिन जाती. जवान बेटियों को ले कर वह कहां जाते? इस परेशानी में कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. चाचा ने अस्पताल पहुंच कर मुझे जबरदस्ती घर भेज दिया. मैं चुपचाप जा कर लेट गया. सदफ दूध और खाना ले कर आई, पर मेरी तो भूखप्यास जैसे मर चुकी थी. उस के बहुत आग्रह पर 2-4 निवाले खा सका. सदफ ने कहा, ‘‘मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं, पर आप वादा करें कि मेरी बात मान लेंगे. मैं ताई अम्मा के इलाज के लिए कुछ देना चाहती हूं.’’
यह कहते हुए उस ने एक पोटली मेरे सामने रख दी. मैं ने पोटली खोली तो उस में कुछ हजार रुपए, सोने की 4 चूडि़यां और एक सेट था. उस ने ट्यूशन की कमाई से यह सब जमा किया था. उस ने कहा, ‘‘यह सब बेच कर आप ताई अम्मा का औपरेशन करा दीजिए.’’
‘‘सदफ, तुम पागल हो गई हो क्या? मैं तुम्हारी इतनी मेहनत से जोड़ी गई ये चीजें कैसे ले सकता हूं? ट्यूशन के अलावा सिलाईकढ़ाई कर के तुम ने एकएक पाई जोड़ कर यह सब बनवाया है. तुम इसे संभाल कर रखो, चाची ने यह तुम्हारे दहेज के लिए रखा है.’’
‘‘मुझे दहेज का क्या करना है? मुझे कौन सा ब्याह कर के बाहर जाना है? भले रकम कम है, पर कुछ तो मदद मिल ही जाएगी.’’
मुझे उस की मासूमियत पर बड़ा प्यार आया. कितनी ईमानदारी से अपनी सारी पूंजी मेरे हवाले कर रही थी. मैं ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘सदफ, मैं तुम्हारे जज्बों और ईमानदारी की कद्र करता हूं. पर मेरी मोहब्बत में इस हद तक मत जाओ कि रुसवा हो जाओ. मैं तुम्हारे ये गहने नहीं ले सकता.’’
‘‘तो क्या ताई अम्मा का औपरेशन नहीं कराओगे. मुझ से उन की तकलीफ देखी नहीं जाती.’’ सदफ रोते हुए बोली.
अगले दिन औफिस पहुंचा तो मैं काफी परेशान था. फसील साहब ने मुझे देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है कामरान, आज तुम काफी परेशान लग रहे हो? कोई परेशानी है तो मुझे बताओ.’’
किसी हमदर्द को पा कर मेरी बरदाश्त की हद जवाब दे गई. मैं ने उन से अम्मी की हालत और इलाज की समस्या के बारे में बताया तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कामरान, तुम्हें मुझ से पहले ही बात करनी चाहिए थी. बेकार ही 2 दिन परेशानी उठाते रहे.’’
मैं उन की इस बात पर हैरान रह गया. उन्होंने मुझे हैरान देख कर कहा, ‘‘हैरान क्यों हो रहे हो? तुम्हारी समस्या हमारी समस्या है. तुम परेशान रहो, यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’
‘‘बहुतबहुत शुक्रिया सर, 20-25 दिनों की नौकरी में मैं एडवांस मांगने की हिम्मत कैसे कर सकता था? आप ने मेरे दुख को समझ कर मदद के लायक समझा, आप बहुत महान हैं सर.’’
‘‘तुम्हें इतने दिनों में अंदाजा हो जाना चाहिए था कि हमारी नजरों में तुम्हारा एक खास महत्त्व है. दूसरे लोगों के मुकाबले मेरे दिल में तुम्हारी जगह खास है.’’ फसील साहब ने प्यार से कहा.
‘‘यह तो आप की मेहरबानी है सर, वरना मैं किस काबिल हूं?’’ मैं ने बड़ी नम्रता से कहा.
‘‘कामरान, इंटरव्यू में तुम से ज्यादा काबिल लोग थे, पर मैं ने तुम्हें तुम्हारी सच्चाई, ईमानदारी और शराफत की वजह से चुना था. तुम ने सच बोला था, जो मुझे बहुत अच्छा लगा था. मुझे लगा कि तुम वही इंसान हो, जिस की मुझे तलाश है. नौकरी देने का मकसद यह था कि मैं तुम्हें अच्छी तरह से परख सकूं, वरना पहली मुलाकात में ही मैं ने तुम्हें अपनी भतीजी हानिया के लिए पसंद कर लिया था.’’
उन्होंने जैसे मेरे सिर पर बम फोड़ दिया था. मैं बौखला गया, ‘‘सर… सर, आप यह क्या कह रहे हैं?’’
‘‘गलत नहीं कह रहा हूं,’’ हानिया मुझे बहुत प्यारी है. मैं उस का जीवनसाथी एक ऐसे आदमी को बनाना चाहता हूं, जो उस का खूब खयाल रखे और उस की कद्र करे, प्यार करे. ये सारे गुण मुझे तुम्हारे अंदर नजर आए. मुझे यकीन है कि हानिया तुम्हारे साथ बहुत खुश रहेगी.’’
‘‘सर, मैं किसी तरह भी मिस हानिया के काबिल नहीं हूं. मुझ से कहीं ज्यादा अच्छे लोग उन से शादी करने को तैयार हो जाएंगे. उन के आगे मेरी क्या हैसियत है?’’
‘‘मैं जानता हूं, पर उन सब की नजर हानिया से ज्यादा उस की दौलत पर रहेगी. भाई साहब की मौत के बाद वह मानसिक रूप से काफी परेशान रहती है. उसे मैं ने बड़े प्यार से पाला है. बड़ा खयाल रखा है उस का. मुझे तुम्हारे जैसा लड़का चाहिए, जो उस के नाजनखरे उठा सके. इस सब के बदले उस का सब कुछ तुम्हारा है.’’
मैं समझ गया कि उन्हें ऐसा दामाद चाहिए, जो उन की भतीजी के पीछे हाथ बांधे गुलामों की तरह उस का हुक्म बजाता रहे. मेरी स्थिति उन के सामने थी. अम्मी के इलाज के लिए मुझे एक बड़ी रकम की जरूरत थी. मेरी मजबूरी वह जान गए थे. मैं पढ़ालिखा, स्मार्ट, शरीफ और खानदानी था. आसानी से वह मुझे अपने सोशल सर्किल में शामिल कर सकते थे.
‘‘किस सोच में डूब गए कामरान. यह एक बहुत अच्छी औफर है. तुम्हारी सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी. हानिया दौलतमंद और खूबसूरत लड़की है. उस की जिंदगी में आते ही तुम्हारी सारी मुसीबतें खत्म हो जाएंगी. मां का इलाज, भाई की पढ़ाई और बहन की शादी शानदार तरीके से हो जाएगी. तुम खुद ऐश की जिंदगी जियोगे.’’
‘‘सर, मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए.’’ आखिर मैं ने हिम्मत कर के कह दिया.
‘‘जितनी मोहलत चाहो, ले सकते हो. लेकिन जितनी देर करोगे, तुम्हारी मां की तकलीफ उतनी ही बढ़ेगी.’’
मैं अपनी केबिन में आ कर बैठ गया. अजीब उलझन थी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. एक ओर मां का इलाज था, दूसरी ओर मेरी मोहब्बत. एक ओर मेरी गरीबी थी, दूसरी ओर दौलत और ऐशभरी जिंदगी. मैं क्या फैसला करूं? औफिस से सीधे अस्पताल पहुंचा. अम्मी की तकलीफ उसी तरह थी. डाक्टरों का कहना था कि ट्रीटमेंट जल्द से जल्द शुरू होना चाहिए. जिस में लाखों रुपए लगने थे. अम्मी की हालत देख कर दिमाग कह रहा था कि फसील साहब का औफर मान लेना चाहिए. पर दिल सदफ के प्यार में रो रहा था. अगर मैं ने राह बदल ली तो उस पर कयामत टूट पड़ेगी. उस की मोहब्बत अनमोल थी.
अस्पताल से घर आ कर मैं सारी रात जागता रहा. दिमागी उलझनों से तंग आ कर मैं ने सुबह चाचा के सामने बैठ कर उन्हें शुरू से अंत तक की सारी बात यानी फसील साहब का औफर, दौलत की रेलमपेल, अम्मी का इलाज, ऐश भरी जिंदगी सब कुछ बता दिया. पूरी बात सुन कर चाचा गंभीर हो गए. काफी देर बाद उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारा क्या फैसला है?’’
मैं ने आंसू भरी आंखों से कहा, ‘‘चाचा, मैं कोई फैसला नहीं कर पा रहा हूं, इसलिए सब कुछ आप से बता दिया है. सदफ से मैं ने जो वादा किया है, उसे तोड़ना बड़ा मुश्किल है. मेरे इस फैसले से वह टूट जाएगी.’’
‘‘कामरान बेटे, सदफ की चिंता तुम बिलकुल मत करो. वह बहादुर लड़की है, सब बरदाश्त कर लेगी. भाभी के इलाज के लिए वह घर बेचने की बात कर रही थी, वह यह सदमा आसानी से सह लेगी. भाभी की जान बचाने के लिए वह कोई भी कुरबानी दे सकती है. भाभी के भले के लिए तुम निश्चिंत हो कर हानिया के हक में फैसला कर दो.’’
‘‘चाचा मैं बहुत मजबूर हूं. अगर मैं ने फसील साहब को मना कर दिया तो मेरी नौकरी भी जाएगी. मैं जानता हूं कि सदफ जान दे देगी, पर उफ न करेगी.’’
‘‘इसीलिए तो मैं कह रहा हूं कि तुम सब भुला कर उन की बात मान लो. हमारी तरफ से बेफिकर हो जाओ. हमें कोई शिकायत नहीं है. वक्त सारे जख्म भर देगा. तुम्हारे और सदफ के रिश्ते की बात अभी घर में ही है, बाहर किसी को मालूम नहीं है, कोई कुछ नहीं कहेगा.’’
फसील साहब ने ‘हां’ सुनते ही शादी की जल्दी मचा दी. एक हफ्ते के अंदर की तारीख तय कर दी गई. मेरे पास इनकार की गुंजाइश नहीं थी. मेरे हां करते ही अम्मी के इलाज के लिए मनचाहा पैसा फसील साहब ने दे दिया था, जिस से उन का इलाज शुरू हो गया था. इस से इतना फायदा हुआ था कि मेरी शादी में वह घंटे भर के लिए आई थीं. उन की आंखों में खुशी के बजाय उदासी थी, क्योंकि उन्होंने तो सदफ को बहू के रूप में देखा था. सभी दुखी थे, पर मजबूरी ऐसी थी कि कोई भी खुल कर ऐतराज नहीं कर सकता था.
सदफ समेत चाचा के परिवार के सभी लोग शादी में शामिल हुए थे. सभी मेरा हौसला बढ़ाते रहे, सदफ भी आंसू पी कर मुसकराती रही. सचमुच वह बड़ी सब्र और हिम्मत वाली थी. शादी में शहर के तमाम बड़ेबड़े लोग आए थे. मैं ने अपने कुछ ही दोस्तों को भी बुलाया था, क्योंकि हानिया का ताल्लुक जिस क्लास से था, उस में मेरे रिश्तेदार मिसफिट होते. विदाई का वक्त आया तो दुलहन के बजाय दूल्हे की विदाई हुई. विदा हो कर मैं हानिया की शानदार कोठी में आ गया. फसील साहब ने मुझ से कहा था कि मेरी ख्वाहिश पर मेरे परिवार के लिए शानदार मकान का इंतजाम हो जाएगा, क्योंकि मेरे परिवार का उस कोठी में रहना हानिया के नाजुक मिजाज को पसंद नहीं आएगा. इसलिए मुझे अकेले ही उस कोठी में रहना होगा.
कोठी रोशनी से जगमगा रही थी. हानिया की कीमती कार, जिसे शोफर चला रहा था, से उतर कर मैं पोर्च में खड़ा हो गया. दूसरी गाड़ी में फसील साहब, उन की बीवी और खूबसूरत बेटी तूबा थी. तूबा हानिया से एकदम अलग थी. वह हंसमुख और मिलनसार थी. वह मुझ से हंसीमजाक भी कर रही थी. वही हानिया का हाथ पकड़ कर उसे बैडरूम में ले गई. अंदर आ कर फसील साहब ने कहा, ‘‘कामरान, मेरी लाडली भतीजी तुम्हारे हवाले है. तुम इस का खयाल रखना. इस की हर गलती को अनदेखा कर देना. यह घर, कंपनी अब तुम दोनों की है. हम तो मेहमानों की तरह आएंगे और चले जाएंगे. हर काम के लिए नौकर मौजूद हैं. बस तुम्हारी वजह से हानिया को कोई तकलीफ न पहुंचे.’’
‘‘सर, आप तसल्ली रखें. मैं पूरा खयाल रखूंगा.’’
तूबा हंस कर बोली, ‘‘आप अब हमारे रिश्तेदार हैं, सर न कहें. पापा आप के भी अंकल हैं, आप मेरे दूल्हाभाई हैं.’’
उन के जाने के बाद एक नौकरानी मुझे हानिया के बैडरूम में ले गई. कीमती फरनीचर और फूलों से सजा कमरा बेहद रोमांटिक लग रहा था, पर उस खूबसूरत कमरे में दुलहन नहीं थी. 10-12 मिनट बाद वह बाथरूम से बाहर आई. मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. उस की सारी सजधज गायब थी. वह नहाईधोई कौटन की नाइटी पहने हुए थी. उस ने मेरी तरफ देखा तक नहीं. डे्रसिंग टेबल के सामने बैठ कर चेहरे व हाथों पर क्रीम लगाने लगी. इस के बाद उठी और बेडरूम से जुड़े दूसरे कमरे में चली गई. उस ने न मुझे देखा, न मुझ से बात की. ऐसा व्यवहार शायद ही किसी दुलहन ने अपने दूल्हे के साथ किया होगा. वह बारबार मेरी तौहीन कर रही थी. अपमान से मैं तिलमिला उठा, पर क्या करता. यह सोच कर दिल को समझाया कि मांबाप के मरने की वजह से ऐसी हो गई है. मुझे ही इसे डिप्रेशन से निकालना है.
मैं ने उठ कर बगल वाला दरवाजा खोला. अंदर हलका उजाला था. वह स्टडीरूम था, जिस में पडे़ सोफे पर हानिया हाथ में एक तसवीर लिए बैठी थी. मैं ने इतने धीरे से दरवाजा खोला था कि उसे पता नहीं चला था. वह तसवीर देखदेख कर रोते हुए उसे प्यार कर रही थी. मुझे लगा कि यह उस के पापा की तसवीर होगी. दिल चाहा कि उसे बांहों में भर कर तसल्ली दूं. मैं आगे बढ़ा तो मेरी आहट पा कर वह ऐसी चौंकी, जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो. हानिया ने मेरा बढ़ा हाथ तेजी से झटकते हुए कहा, ‘‘बिना इजाजत मेरे कमरे में आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’
वह गुस्से में बहुत जोर से चिल्लाई थी. तसवीर उस ने सीने से लगा ली थी. मैं ने भी तुनक कर जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारा शौहर हूं हानिया, जिस से मेरा हक बनता है कि मैं तुम्हारी इजाजत के बिना तुम्हारे कमरे में आ सकता हूं.’’
‘‘किसी गलतफहमी में मत रहिएगा मिस्टर. यह मेरा घर है, जिस पर सिर्फ मेरा हक है. जो यहां रहेगा, मेरी मरजी के मुताबिक रहेगा. जिसे यह न कुबूल हो, वह यहां से जा सकता है.’’ हानिया ने बड़े तैश में बदतमीजी से कहा. अपमान का घूंट पी कर मैं बाहर लौन में चला गया. मेरे वश में होता तो उसी पल मैं हानिया हसन और उस की कोठी को लात मार कर चला आता. पर मेरे पैरों में मजबूरी की जंजीर पड़ी थी. काफी देर तक लौन में टहलता रहा. दिल को समझाया कि अगर अम्मी का इलाज कराना है तो इस बददिमाग, बदमिजाज लड़की को बरदाश्त करना ही पड़ेगा. थोड़ा सह कर कुछ होशियारी से काफी माल समेट कर हानिया को छोड़ दूंगा. उस के बाद अच्छी जिंदगी गुजारूंगा. हो सकता है सदफ भी मुझे मिल जाए.
शाम को फसील साहब परिवार के साथ आए तो उन के सामने हानिया बिलकुल नौर्मल थी, हंसबोल रही थी. फसील साहब ने मुझ से कहा कि मुझे हानिया को अपने घर वालों से मिलाने ले जाना चाहिए. मेरे घर जाते हुए हानिया के चेहरे पर बेजारी थी. रास्ते में ही उस ने कह दिया था, ‘‘मैं वहां ज्यादा देर नहीं ठहरूंगी.’’
जब हम वहां पहुंचे तो कुछ मेहमान आए हुए थे. शीमा, सफिया हमें देख कर बहुत खुश हुईं. आवाज सुन कर चाचा बाहर आए और बड़े मानसम्मान से हमें ड्राइंगरूम में ले गए. वहां 3 औरतें, 2 मर्द बैठे थे, जिन में एक अधेड़ था और एक जवानस्मार्ट युवक. चाचा ने परिचय कराते हुए कहा, ‘‘ये वही लोग हैं, जो सदफ से रिश्ता करने का इसरार कर रहे थे. इन लोगों ने दोबारा फोन कर के आग्रह किया तो मैं ने इन्हें बुला लिया. भाभी की मरजी पूछ ली है, उन का भी कहना है कि आज ही सदफ की मंगनी सादगी से कर दी जाए.’’
मैं सोच रहा था कि हानिया से छुटकारा पा कर सदफ को पा लूंगा, लेकिन मेरा यह ख्वाब टूट कर चकनाचूर हो गया था. अम्मी ने कहा, ‘‘यह सदफ के लिए बहुत अच्छा रिश्ता है. देर करने से क्या फायदा, आज ही मंगनी की रस्म कर लेते हैं.’’
सदफ को ड्राइंगरूम में लाया गया. वह गुलाबी सूट में गजब ढा रही थी. उसे उस खूबसूरत नौजवान, जिस का नाम आतिफ विकास था, के पास बिठा दिया गया. आतिफ की अम्मी ने सदफ को अंगूठी पहना कर मंगनी की रस्म पूरी की. चाचा आतिफ को कैश का लिफाफा देने लगे तो उस ने मना करते हुए कहा, ‘‘मैं मिठाई के सिवा और कुछ नहीं लूंगा.’’
इस के बाद जोरदार खातिर शुरू हुई. मुझे छोड़ कर बाकी सभी खुश थे. मैं वापसी के लिए उठ गया, हानिया तो तैयार ही बैठी थी. एक तसल्ली थी कि सदफ को अच्छा लड़का, तथा शरीफ और बढि़या घरपरिवार मिल गया था. दिन हानिया की बदतमीजी व रुखाई के साथ गुजर रहे थे. मेरे पास 2 ही काम थे, औफिस के काम देखना और अम्मी के इलाज के लिए दौड़धूप करना. मैं ने अम्मी से घर बदलने के बारे में कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया था. वह चाचा के साथ उसी पुराने मकान में रहना चाहती थीं. फसील साहब पहले की ही तरह मेहरबान थे. मैं ने उन्हें हानिया के रूखे और बदतमीजी भरे रवैये के बारे में नहीं बताया था कि अभी हम अजनबी की तरह थे. कभी मुझे लगता कि वह किसी को पसंद करती है. लेकिन वह पूरे दिन अपने कमरे में बंद रहती थी. अचानक एक दिन बिना कुछ बताए वह तूबा के साथ अपनी सहेली की शादी अटैंड करने दुबई चली गई.
सदफ की शादी हो गई थी. आतिफ ने दहेज लेने से साफ मना कर दिया था. हानिया की गैरहाजिरी में मैं ने दुबई में बिजनैस डील का बहाना बनाया. अम्मी का इलाज जारी था. अम्मी के इलाज के अलावा कुछ लाख मैं ने अपने एकाउंट में जमा कर लिए थे. फसील साहब मुझ पर अंधा यकीन करते थे. मैं जी खोल कर पैसे खर्च कर रहा था. अपनी बेइज्जती भुलाने और तनहाई का गम गलत करने के लिए मैं ने शराब पीनी शुरू कर दी थी. आवारागर्दी करते हुए उस रात मैं करीब एक बजे घर पहुंचा तो खास नौकरानी सोनिया जाग रही थी. उस ने खाने के लिए पूछा तो मैं ने कौफी लाने को कहा. जाते हुए सोनिया एक डायरी दे कर बोली, ‘‘यह हानिया बीबी की डायरी है, इसे वह एक सहेली के घर भूल आई थीं. उस ने वापस भेजी है. उन का कमरा बंद है, आप संभाल कर रख दें.’’
पता नहीं मेरे दिल में क्या आया कि मैं डायरी खोल कर पढ़ने लगा. शुरू में हानिया का डैडी से लगाव, उन की मौत के बाद उन के गम में डूबे रहने का विवरण था. सच में वह बाप से बहुत प्यार करती थी. उस के बाद कामरान नाम के किसी लड़के का जिक्र था. वह उस के डैडी के वकील और दोस्त रुस्तम मलिक का बेटा था. कामरान ने उस के दुख में उस का बहुत साथ दिया था. उसे गम से बाहर निकाल कर नई जिंदगी की राह पर लाया था. यही हमदर्दी धीरेधीरे मोहब्बत में बदल गई थी और हानिया कामरान को टूट कर चाहने लगी थी. मोहब्बत इतनी बढ़ी कि जल्दी ही दोनों सारी हदें पार कर गए.
इस का परिणाम यह निकला कि हानिया गर्भवती हो गई. हानिया इस बारे में कामरान से कोई बात कर पाती, कामरान एक रोड एक्सीडेंट में मारा गया. सदमे ने हानिया को दीवाना बना दिया. वह अपने महबूब की जुदाई सह नहीं पा रही थी. उस की कजिन तूबा उस के इस मोहब्बत की राजदार थी. उस के जरिए यह इत्तला चाची को मिली तो उन्होंने अबार्शन की सलाह दी, पर हानिया किसी कीमत पर अपनी मोहब्बत की निशानी मिटाने को तैयार नहीं थी. इस के बाद तय किया गया कि खानदान की इज्जत बचाने के लिए किसी काठ के उल्लू की तलाश की जाए. और उल्लू वही बन सकता था, जो हालात और मजबूरी का मारा हो. चाचा ने लाडली भतीजी का गुनाह छिपाने के लिए बड़ी आसानी से मुझे ढूंढ लिया. इत्तफाक से मेरा नाम भी कामरान था. उस के होने वाले बच्चे को वही नाम मिलता, जो उस के असली बाप का था. इसलिए हानिया मुझ से शादी के लिए राजी हो गई थी.
वह अभी तक अपने महबूब के गम में तड़प रही थी. उस रात तसवीर भी उसी की थी. कितनी आसानी से चाचाभतीजी ने एक ‘गुलाम’ शौहर खरीद लिया था. इस तरह उल्लू बनाए जाने पर मुझे बेहद गुस्सा आया. मैं ने उसी वक्त फसील साहब को फोन किया. फोन उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘इतनी रात को फोन, कामरान तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’
‘‘रात होगी तुम्हारे लिए, मेरी तो अभी आंख खुली है. मैं तुम चाचाभतीजी का दिमाग ठीक करना चाहता हूं. तुम ने मुझे धोखा दिया, बदकिरदार लड़की मुझे पकड़ा दी.’’
गुस्से और नशे से मेरी आवाज फट रही थी. इस के बाद नशे में ही मैं बिस्तर पर ढेर हो गया. सुबह मेरी आंख मुंह पर पानी पड़ने से खुली. कुछ देर तो मामला मेरी समझ में ही नहीं आया. मैं पलकें झपकाझपका कर पुलिस वालों को देख रहा था, जो मुझे घेरे खड़े थे. उन्हीं के साथ गम में डूबे फसील साहब भी थे.
‘‘इसे गिरफ्तार कर लो.’’ मुझे होश में देख कर पुलिस इंसपेक्टर ने कहा.
मैं ने घबरा कर जल्दी से कहा, ‘‘मुझे किस जुर्म में गिरफ्तार किया जा रहा है, अंकल आप मुझे अरैस्ट क्यों करवा रहे हैं? घर की बात घर में ही सुलझ जाती.’’
मुझे रात की बदतमीजी याद आ गई थी.
‘‘बकवास बंद कर कमीने. मैं अपनी भतीजी हानिया का कत्ल किसी सूरत में माफ नहीं कर सकता.’’ फसील साहब मुझे नफरत से देखते हुए दहाड़े. मुझ पर जैसे आसमान टूट पड़ा. हानिया दुबई में थी, यहां उस का कत्ल कैसे हो गया? मैं ने कुछ कहना चाहा, पर पुलिस वाले मुझे घसीटते हुए बाहर ले आए. हवालात के फर्श पर पड़ा मैं बुरी तरह से कराह रहा था. यहां मेरी अच्छीखासी पिटाई की गई थी. यहीं मुझे पता चला कि हानिया आज सुबह ही दुबई से वापस आई थी. मुझ पर इलजाम था कि मैं ने गुस्से और नशे में छुरे से उसे कत्ल कर दिया था, क्योंकि मुझे पता चल गया था कि वह शादी से पहले से गर्भवती थी. किसी और का गुनाह मेरे सिर थोपा जा रहा था. मैं पुलिस वालों से लाख दुहाइयां देता रहा कि कत्ल मैं ने नहीं किया, पर मेरी किसी ने नहीं सुनी. जबकि मैं तो यह भी नहीं जानता था कि वह आज आने वाली थी.
मैं दिन भर भूखाप्यासा, चोटें सहलाता फर्श पर पड़ा रहा. देर रात जब सन्नाटा हो गया तो एक हवलदार ने मेरे पास आ कर धीरे से कहा, ‘‘तुम्हारे चाचा ससुर ने कहा है कि तुम्हारे खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई की जाए. तुम्हारे खिलाफ साजिश रची गई है. कल अदालत में पेश करने के लिए पक्के सुबूत तैयार कर लिए गए हैं, तुम्हें फंसाने की पूरी योजना बना ली गई है.’’
‘‘हवलदार साहब, मैं बेकुसूर हूं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मेरे साथ यह क्या हो रहा है? मुझ पर झूठा इलजाम लगाया जा रहा है.’’
‘‘मैं जानता हूं. कल अदालत में पेशी के बाद तुम्हें बचाने की योजना बन गई है, उसे मैं तुम्हें कल बताऊंगा. अभी मैं तुम्हारे लिए खाना लाता हूं.’’
उस ने मुझे भरपेट खाना खिलाया और एक सिगरेट भी पिलाई. चाय और दर्द की गोलियां भी दीं. मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर वह मुझ पर इतना मेहरबान क्यों है? अदालत में जब मेरे मामले की सुनवाई शुरू हुई तो हालात इस तरह से बयान किए गए. एच.एच. बिल्डर्स के शेयर होल्डर फसील हसन ने मुझे एक शरीफ, मेहनती और ईमानदार आदमी समझ कर मुझे नौकरी दी और मेरे साथ भतीजी की शादी कर दी कि मैं हानिया का बहुत खयाल रखूंगा, पर हालात बहुत खराब हो गए. लालच में आ कर मैं मां के इलाज के नाम पर रकम अपने एकाउंट में डालता रहा. हानिया के साथ मेरा व्यवहार बहुत बुरा था. वह तंग आ कर दुबई चली गई. बीवी की गैरमौजूदगी में मैं आवारागर्दी करने लगा और खूब शराब पीने लगा.
घरेलू नौकरानी सोनिया का बयान था कि हादसे की रात मैं नशे में धुत घर आया. जब वह कौफी देने बैडरूम में आई तो उस ने मुझे हानिया की डायरी पढ़ते देखा, जो उस ने रखने को दी थी. वह खामोशी से चली गई. सुबह की फ्लाइट से हानिया लौटी तो उस ने हमारे बैडरूम से लड़नेझगड़ने की आवाजें सुनीं. फिर उसे हानिया की 2 चीखें सुनाई दीं, डर के मारे वह अंदर नहीं आई, पर उस ने फसील साहब को फोन कर दिया. उन के आने पर सभी दरवाजा खोल कर अंदर पहुंचे तो उन्होंने मुझे जूते समेत बिस्तर पर सोता पाया. बेडरूम बुरी तरह अस्तव्यस्त था. फसील साहब ने स्टडीरूम में जा कर देखा तो वहां खून में लथपथ हानिया की लाश पड़ी थी. उन्होंने फौरन पुलिस को फोन किया और पुलिस ने आ कर मुझे गिरफ्तार कर लिया.
मेरे खून की जांच से पता चला कि मैं ने खूब शराब पी रखी थी, इसलिए भागने के बजाय वहीं सो गया था. पुलिस ने डायरी भी सुबूत के रूप में पेश की थी. मैं पत्थर बना सब सुन रहा था. अदालत ने सुबूतों के आधार पर मुझे एक हफ्ते के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया था. पुलिस मुझे बाहर ले आई. वह हमदर्द हवलदार मेरे साथ था. उस ने मेरा हाथ पकड़ कर जोर से कहा, ‘‘मुलजिम को पेशाब करने के लिए टायलेट जाना है.’’
इस के बाद सिपाही मुझे टायलेट की ओर ले कर चल पड़े. उस ने धीरे से कहा, ‘‘टायलेट के रोशनदान की सलाखें निकाल दी गई हैं. उस से पीछे की ओर निकल जाना. बाहर नीले रंग की कार तुम्हारा इंतजार कर रही है. बचने का यही एक मौका है.’’
मैं अंदर चला गया. पर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? फिर खयाल आया कि फरार हो कर शायद मैं खुद को बचा सकूं. बाहर नीले रंग की कार खड़ी थी. मेरे बैठते ही वह हवा से बातें करने लगी. मेरे लिए यह पहेली थी कि मुझे कौन भगा रहा था और क्यों? पर यह भी सच था कि मेरे खिलाफ भरपूर साजिश रची गई थी. सजा ही मेरा नसीब थी. मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘‘भाई, तुम मुझे कहां लिए जा रहे हो?’’
‘‘आप के एक हमदर्द के पास. वहां पहुंच कर आप को सब पता चल जाएगा.’’
अलगथलग इलाके में एक घर के आगे जा कर कार रुकी. दरवाजा एक स्मार्ट सी औरत ने खोला. उस ने शोख रंग की साड़ी पहन रखी थी. माथे पर बिंदिया और मांग में सिंदूर था. वह मुझे ड्राइंगरूम में ले आई, जहां एक स्मार्ट आदमी बैठा पाइप पी रहा था. उस ने मुझे देख कर कहा, ‘‘आओ कामरान अहमद बैठो, मैं हूं रुस्तम मलिक, बैरिस्टर, बदनसीब कामरान मलिक का दुखियारा बाप. मेरे ही कहने पर आप को मुसीबत से निकाल कर यहां लाय गया है.’’
‘‘आप ने मेरी मदद क्यों की, मैं यह जानना चाहता हूं?’’ मैं ने पूछा.
‘‘इंसानियत के नाते, हमदर्दी की वजह से. मैं नहीं चाहता था कि कोई और बेगुनाह फसील के जाल में फंस कर मेरे बेटे की तरह मारा जाए.’’
‘‘आप के मुताबिक यह सब फसील साहब ने करवाया है?’’
‘‘उस के सिवा और कौन करवाएगा? उसे ही कुरबानी के लिए एक बकरे की जरूरत थी. मेरे दोस्त इनायत हसन की एकलौती बेटी हानिया कंपनी के 90 प्रतिशत शेयर की मालकिन थी. वसीयत के अनुसार हानिया की औलाद कुल जायदाद की मालिक होती. मैं उस का लीगल एडवाइजर था. भतीजी की जायदाद पर कोई हक न मिलने से फसील बहुत गुस्से में था.
‘‘अगर उस का बेटा होता तो वह हानिया की शादी उस से करवा देता. मेरे बेटे कामरान मलिक की बचपन की दोस्ती मोहब्बत में बदल गई. हानिया और कामरान एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. फसील ने इलजाम लगाया कि हानिया को बेटे की मोहब्बत में फंसा कर मैं उस की दौलत पर कब्जा करना चाहता हूं.
‘‘मेरा बेगुनाह बेटा एक रोड एक्सीडेंट में मारा गया. वह बहुत ज्यादा नशे में था. बाद में मुझे पता चला कि एक्सीडेंट के पहले वह फसील के घर पर था, जहां उसे बहुत ज्यादा शराब पिलाई गई थी. पर मैं कुछ नहीं कर सकता था. हानिया कामरान की मौत से पागल सी हो गई. वह कामरान की निशानी को जन्म देना चाहती थी. उस का बच्चा सारी दौलत का मालिक होता. हानिया से तुम्हारी शादी हो गई. हानिया ने शादी सिर्फ इसलिए की थी कि इज्जत के साथ बच्चा इस दुनिया में आ सके. लेकिन तुम्हारे हाथों हानिया के कत्ल का सुन कर मैं हैरान रह गया.
‘‘मुझे पता है कि यह झूठ और साजिश है, इसीलिए मैं ने तुम्हें बाहर निकाला है. पुलिस तुम्हारे पीछे लगी है. अब एक ही रास्ता है कि तुम फसील से सच्चाई निकलवाओ. उस से अपना जुर्म किसी भी सूरत में उगलवाओ. इस काम में मैं तुम्हारी हर तरह से मदद कर सकता हूं, आगे तुम जानो.’’
जब मैं ने सुकून से सोचा तो फसील की सारी साजिश मेरी समझ में आ गई. अब मुझे उस से सच उगलवाना था. मेरी जरूरत का सारा सामान रुस्तम मलिक ने मंगवा दिया, जिस में एक पिस्तौल भी था. रात 12 बजे मैं उस के घर से निकला. मैं फसील के घर 3-4 बार जा चुका था. मैं पीछे की ओर से गया. कुत्तों की हलकी सी आवाज सुन कर मैं ने जहर लगे गोश्त के टुकड़े अंदर उछाल दिए. फिर मैं लौन में कूद गया. कुत्ते जमीन पर पड़े दर्दनाक आवाजें निकाल रहे थे. चौकीदार कुत्तों के पास आया तो उस के पीछे पहुंच कर मैं ने पिस्तौल के हत्थे से मार कर उसे बेहोश कर दिया. उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. लौन के पास की ग्लासवाल काट कर मैं अंदर पहुंच गया.
पहले मैं तूबा के कमरे में गया. वह सो रही थी. क्लोरोफौर्म में डूबा रूमाल उस की नाक पर रख दिया. इस के बाद फसील के बैडरूम के सामने पहुंचा. दरवाजा लौक था. पिस्तौल की नाल दरवाजे पर रख कर ट्रिगर दबा दिया. दरवाजा खोल कर अंदर घुसा तो दोनों हड़बड़ा कर उठ बैठे. मैं ने पिस्तौल तान दी. वह घबरा कर बोला, ‘‘यह क्या बदतमीजी है कामरान?’’
‘‘तू ने अपनी मासूम भतीजी का जो खून किया है, उस का हिसाब तुझे अभी देना होगा?’’
‘‘बकवास मत करो. हानिया का खून मैं ने नहीं, तू ने किया है. मसजिद से जूते चुराने वाला दो कौड़ी की औकात वाला आदमी मुझ पर इलजाम लगाता है.’’
मैं गुस्से से चीखा, ‘‘यह सारा ड्रामा तेरा रचा है कमीने. तू ने जानबूझ कर सोनिया के हाथों हानिया की डायरी भिजवाई थी. जिस से सुबह उस का कत्ल हो जाए तो पुलिस मुझे कातिल समझे. मुझे तो यह भी पता नहीं था कि हानिया कब दुबई से लौटी? मुझे तो नींद से जगा कर गिरफ्तार किया गया था. तू सच बोल दे, वरना…’’
‘‘बेवकूफ, मैं उसे क्यों मारूंगा?’’
‘‘हानिया के कत्ल के बाद एक तू ही तो उस का सगा चाचा बचता, मुझे फांसी पर लटकवाने के बाद तू ही उस की सारी दौलत और जायदाद का वारिस होता.’’
‘‘नहीं, हानिया के कत्ल के बाद मुझे कुछ नहीं मिल सकता. अगर वह अपने बच्चे के जन्म तक जिंदा रहती तो मुझे फायदा होता, क्योंकि मैं उस के बच्चे का संरक्षक होता. बच्चे और प्रापर्टी की देखभाल मुझे ही करनी होती. अब तो सिवाए 10 प्रतिशत के मुझे कुछ नहीं मिल सकता.’’
मैं सोच में पड़ गया. यानी कि फसील का कत्ल से कोई ताल्लुक नहीं था. तो फिर कातिल कौन हो सकता है? एकदम मुझे सोनिया का खयाल आया. उसी ने उस रात मुझे डायरी दी थी, मेरे खिलाफ झूठा बयान भी दिया था. मैं उस के बारे में सोचने लगा. फसील ने कहा, ‘‘कोठी तो सील है, वह अपने घर पर होगी. और जो कुछ मैं ने किया था, अपने खानदान की इज्जत बचाने को किया था.’’
जैसे ही मैं बंगले से बाहर निकला, चारों ओर से पुलिस ने मुझे घेर लिया. मजबूरन मुझे सरेंडर करना पड़ा. पुलिस वैन की आगे की सीट पर सादा लिबास में चाचा का दामाद यानी सदफ का शौहर आतिफ विकास बैठा था. उसे देख कर मैं दंग रह गया. आतिफ विकास के हाथों गिरफ्तार हो कर मैं थाने पहुंचा. मुझे अलग कमरे में ले जा कर बड़ी नम्रता से उन्होंने कहा, ‘‘आप को इस तरह गिरफ्तार करने के लिए मुझे बड़ा अफसोस है, पर कानूनी तकाजे पूरे करने थे. चाचा आप के लिए बहुत परेशान थे. उन्हीं के कहने पर मैं ने यह केस अपने हाथों में लिया है कि आप पर कत्ल का झूठा इलजाम लगा कर जो साजिश की गई है, उस से आप को बाहर निकाल सकूं.
‘‘लेकिन आप ने अदालत से फरार हो कर केस को खराब कर लिया है. मैं ने मुखबिरों से पता कर लिया था कि आप कहां मिल सकते हैं? मैं फसील के यहां पहुंच गया. आप का केस गौर से स्टडी करने के बाद मुझे नौकरानी सोनिया पर संदेह हो रहा है. आखिर वह आप के खिलाफ क्यों बोल रही थी?
‘‘आप की उस से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. उस की गवाही आप को कातिल साबित कर सकती थी. नशे में आप ने बीवी का कत्ल कर दिया और नशे की ज्यादती की वजह से भाग नहीं सके. मैं इस बात को नहीं मानता. कातिल सब से पहले घटनास्थल से दूर भागता है, पर आप तो पुलिस वालों को अपने बैडरूम में सोए हुए मिले थे.
‘‘बस इसी बुनियाद पर मैं ने सोनिया को गिरफ्तार करवा लिया है. पहले तो वह झूठ बोलती रही, पर उस ने देखा कि बचने का कोई रास्ता नहीं है तो उस ने सच उगल दिया. वह हानिया की खास नौकरानी थी. उसे मालूम था कि हानिया कब दुबई से आ रही है. उसी ने उस आदमी को खबर कर दी थी, जिस से पैसे लिए थे.
‘‘हानिया कत्ल कर दी गई. उस के बाद झूठी गवाही देने पर उसे मजबूर किया गया, तब वह घबराई. इधर आप फसील को कातिल समझ कर उस के बंगले पर पहुंच गए और वहां से मैं ने आप को गिरफ्तार कर लिया, मेरे आदमी आप की तलाश में वहां तैनात थे.’’ आतिफ ने सारी बात डिटेल से बता दी.
‘‘सोनिया को बहकाने वाला आदमी कौन है?’’ मैं ने पूछा.
‘‘अभी यह पता नहीं चला है. सोनिया के अनुसार सारी बात फोन पर हुई थी, रकम एक खास जगह पर रख कर बता दी गई थी. एक बात और बताऊं, हानिया के कत्ल का फैसला बहुत पहले हो चुका था. कुरबानी का बकरा तुम्हें बनाया गया. यह कत्ल बच्चा पैदा होने के बाद होना था, इस से किसे फायदा हो सकता था?’’
‘‘इस में हानिया के अंकल को फायदा था.’’ मैं ने कहा.
‘‘बिलकुल सही, पर उस से पहले किसी और ने काम कर दिखाया. फसील का प्लान फेल हो गया. यह बात मुझे तूबा ने बताई थी कि फसील हानिया को रास्ते से हटा कर बच्चे के जरिए सारी दौलत हासिल करना चाहता था. पर बच्चे के दुनिया में आने से पहले कत्ल किसी और ने कर दिया.’’
‘‘आप के खयाल से उस की मौत से किसे फायदा हो सकता था?’’
‘‘पहले आप यह बताइए कि आप को फरार किस ने करवाया? आप खुद फरार नहीं हो सकते थे.’’ आतिफ ने पूछा.
‘‘मेरी मदद रुस्तम मलिक, जो हानिया के वकील हैं, ने की थी. वह नहीं चाहता था कि उस के बेटे कामरान मलिक की तरह मैं भी बेगुनाह किसी साजिश में फंस कर मारा जाऊं.’’ मैं ने बताया.
‘‘यानी वह अपने बेटे के कातिल को तुम्हारे हाथों सजा दिलवाना चाहता था?’’ आतिफ ने सोच कर कहा.
इस के बाद आतिफ केस सुलझाने में जीजान से जुट गए. उन्होंने मेरे लिए थाने में काफी अच्छा इंजताम करवा दिया था. केस का खुलासा करने के बाद आतिफ ने मुझे जो बताया, वह इस तरह था. हानिया की दौलत के लालच में बैरिस्टर रुस्तम मलिक ने ही अपने बेटे कामरान मलिक को उस के पीछे लगाया था. उस ने उसे मोहब्बत के जाल में फंसा लिया. फसील उस की चालाकी समझ गया था. वह इस शादी के लिए कतई राजी नहीं था. संयोग से वह एक्सीडेंट में मर गया. इस में फसील का हाथ नहीं था.
कामरान की मौत के बाद फसील को सच्चाई का पता चला तो उसने यह योजना बनाई कि हानिया मर जाती है तो मैं फांसी चढ़ जाता. बच्चे के संरक्षक के तौर पर सारी जायदाद वह हासिल कर लेता. यह रुस्तम से बरदाश्त नहीं हुआ. उस ने साजिश रच कर हानिया का पत्ता कटवा दिया. मुझ से हमदर्दी जता कर फसील नाम का कांटा निकालने को भेजा. अगर उस रात मैं फसील को मार देता तो 2 कत्लों के इलजाम में जेल में होता. हानिया के बेऔलाद मरने पर सारी प्रौपर्टी ट्रस्ट में जाती, जिस की देखभाल रुस्तम मलिक करता और उस से पूरा फायदा उठाता. क्योंकि वह बहुत कमीना और शातिर आदमी था. उसे अपने बेटे की निशानी से भी कोई प्यार नहीं था. दौलत के लिए उस ने हानिया का कत्ल करवा दिया था. उस बेचारी ने दौलत की वजह से ही धोखा खाया और मारी भी गई.
मैं अपनी अम्मी को भी नहीं बचा सका. वह कैंसर से नहीं मरी, मेरे ऊपर कत्ल का इलजाम लगने से हार्टफेल की वजह से मरी. आतिफ विकास की मेहनत और केस की सच्चाई के सामने आने से मैं रिहा हो गया. रुस्तम मलिक ने किराए के कातिल से हानिया का कत्ल करवाया था. इस के सुबूत भी मिल गए थे. सोनिया ने भी सच उगल दिया था. शुक्र था कि मैं रुस्तम के जाल में नहीं फंसा. इस घटना को घटे 4 साल हो गए हैं. आतिफ की मदद से मुझे अच्छी नौकरी मिल गई है. सदफ 2 प्यारेप्यारे बच्चों की मां है. मेरा भाई स्कौलरशिप पर मैडिकल कालेज में है. बहन की मंगनी हो गई है. मैं चाचा के साथ हूं, जो पहले की ही तरह मुझ से मोहब्बत करते हैं. शादी करने पर जोर देते हैं, पर अब किसी को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है. Love Story






