लेखक - रुखसाना, Stories in Hindi Love: कागज का पुर्जा मेरे हाथों में फड़फड़ा रहा था. मेरी रगों में भयानक बेचैनी दौड़ने लगी थी. दिल में दहकती हुई आग भर गई थी. बड़े घरों में बसने वाले लोग कितने बेबस और मजबूर होते हैं, यह अब मेरी समझ में अच्छी तरह आ रहा था. आ पी ने खीर की प्लेट अपनी तरफ सरका कर चोर नजरों से बारीबारी सबकी तरफ देखा. मैं अनजान बन गई, लेकिन जिम्मी भाई ने मम्मी से बात करतेकरते तेज नजरों से आपी को घूर कर तल्ख लहजे में कहा, ‘‘ज्यादा खाने ने तुम्हें तबाह कर दिया है आपी जान! पता नहीं तुम वाकई नासमझ हो या जानबूझ कर ऐसा करती हो. अगर तुम्हें अपने पर तरस नहीं आता तो कम से कम हम पर तो तरस खाओ.’’

लेकिन

‘‘तुम ने तो जहां मुआपी ने जिम्मी भाई की तरफ नजर उठा कर भी न देखा. वह उसी तरह अपने दिलबहलाव यानी खाने में यों मगन रहीं, जैसे जिम्मी भाई ने किसी और से कहा हो.

मम्मी ने उन्हें टोका, ‘‘फरजाना, यह जमशेद तुम से कुछ कह रहा है. क्या तुम उस की बात सुन नहीं रही हो?’’झे खाते देखा, टोकना शुरू कर दिया,’’ कह कर खाली प्याली मेज पर पटक कर आपी उठ खड़ी हुईं और धपधप करती खाने के कमरे से बाहर चली गईं. उन के बाहर जाते ही जिम्मी भाई अपना सिर दोनों हाथों में थाम कर बोले, ‘‘इस का क्या होगा मम्मी? मैं तो इसे समझासमझा कर हार गया हूं. अगर यह खुद अपनी जिंदगी संवारना नहीं चाहती तो हम सब क्या कर सकते हैं इस के लिए?’’

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