Crime Story: मानो ने देह की कमाई से जो रुपए कमाए थे, उस पर उस की एक परिचित कीर्ति देवी की नजर पड़ गई. फिर उन रुपयों को हड़पने के लिए उस ने जो किया, बेचारी मानो जान से गई…

मनजीत कौर उर्फ मानो पति शीशपाल सिंह को छोड़ कर अंबाला शहर के काजीवाड़ा में अकेली ही रहती थी. आसपड़ोस के लोग उसे एक धार्मिक और समाजसेवी औरत के रूप में जानते थे. इस की वजह यह थी कि वह गरीबों की काफी मदद करती थी और पीर की मजार पर भी नियमित जाती थी. मानो के घर के ठीक सामने वाली गली में रहते थे बलदेव राज. 13 दिसंबर, 2012 की सुबह 9 बजे बलदेव राज बगीचे से घूम कर लौट रहे थे तो उन्हें मानो के घर के सामने कुछ लोग खड़े दिखाई दिए. पूछने पर पता चला कि मानो का कत्ल हो गया है और उस की लाश घर के अंदर पड़ी है.

उत्सुकतावश बलदेव राज भी उस के घर चले गए. अंदर वाले कमरे में बिछी चारपाई पर मानो का शव पड़ा था. उस के बाएं कान, नाक और मुंह से खून रिस रहा था. गले पर नीला निशान था. कमरे का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. बलदेव राज मोबाइल लिए थे. उन्होंने तुरंत इस की सूचना पुलिस को दे दी. थोड़ी ही देर में चौकी नंबर 3 से एसआई महावीर सिंह 2 सिपाहियों के साथ वहां आ पहुंचे. घटनास्थल की स्थिति देख कर उन्होंने इस घटना की जानकारी थाना सिटी को दे दी. चौकी नंबर 3 इसी थाने के अंतर्गत आती थी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंचते ही उन्होंने सब से पहले बलदेव राज के बयान के आधार पर तहरीर भिजवा कर अपराध क्रमांक 509 पर भादवि की धाराओं 302, 20 व 120 बी के तहत अज्ञात अपराधियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद घटनास्थल की अन्य तमाम काररवाई निपटा कर मौके पर मौजूद लोगों के बयान दर्ज किए गए. उस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया, जहां डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद मौत की वजह दम घुटना बताया.

मानो के 2 बेटे थे, जिन में से एक नशामुक्ति केंद्र में दाखिल था तो दूसरा देवेश हत्या के एक मामले में अंबाला जेल में सजा भुगत रहा था. दरअसल अंबाला शहर के जगाधरी गेट पुली से कुमाहार मोहल्ला को जाने वाली सड़क पर सरकारी अनाज का डिपो था. डिपो पर बलदेव उर्फ बल्ली निवासी काजीवाड़ा नौकरी करता था. 23 अक्टूबर, 2010 की बात है. दोपहर में डिपो पर सरकारी गेहूं आया था, जिसे बल्ली करीने से रखवाने लगा. तभी देवेश वहां आ गया. बल्ली उस के पड़ोस में रहता था, इसलिए उस पर वह अपना काफी अधिकार मानता था. आते ही उस ने कहा कि उसे 50 किलोग्राम गेहूं तुरंत चाहिए. बल्ली ने उस से डिपो के मालिक से बात करने को कहा. उस ने मालिक से बात की तो डिपो के मालिक हिमांशु ने उसे समझाया कि सरकारी गेहूं ऐसे नहीं दिया जाता, यह राशनकार्ड पर दर्ज सदस्यों के हिसाब से दिया जाता है.

इस पर देवेश हिमांशु से झगड़ा करने लगा. जरा ही देर में झगड़ा इतना बढ़ गया कि देवेश ने कपड़ों में छिपा कर रखा चाकू निकाल कर हिमांशु पर हमला कर दिया. बल्ली ने किसी तरह बीचबचाव कर के हिमांशु को बचाया. उसी बीच मौका पा कर देवेश भाग खड़ा हुआ. हिमांशु बुरी तरह घायल हो गया था. पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने उसे सिविल अस्पताल में भरती करवा कर उस के बयान के आधर पर थाना अंबाला सिटी में भादंवि की धाराओं 323, 324, 307 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर देवेश को गिरफ्तार कर लिया. बाद में हिमांशु की मौत हो गई तो इस मुकदमें में धारा 302 भी जोड़ दी गई.

देवेश पर कत्ल का मुकदमा चला, जिस में उसे सजा हो गई. वह अंबाला की जेल में सजा भुगत रहा है. जब उसे अपनी मां की हत्या की सूचना मिली तो मां का अंतिम संस्कार करवाने के लिए जेल प्रशासन से अनुमति मांगी, क्योंकि उस का भाई नशामुक्ति केंद्र में था. पुलिस उसे साथ ले कर आई और अंतिम संस्कार करा कर साथ ले कर चली गई. मानो की हत्या का मामला पुलिस के लिए सिरदर्द था, क्योंकि इस मामले में उस के पास कोई सुराग नहीं था. हत्यारों का पता लगाने की पुलिस ने काफी कोशिश की, मगर पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लग पाया. इस से मीडिया में पुलिस की काफी किरकिरी हो रही थी. स्थानीय लोग भी इस बात से काफी खफा थे कि पुलिस के हाथ मानो के हत्यारों तक क्यों नहीं पहुंच पा रहे हैं.

मानो के पड़ोसियों ने एक बात नोट की थी कि उस की मौत के बाद उस के यहां आनेजाने वाले तमाम लड़केलड़कियां न जाने कहां गायब हो गए थे. वह एक धार्मिक एवं सामाजिक महिला के रूप में मशहूर थी, जबकि अब उस के यहां कोई नहीं आजा रहा था. यह बात पुलिस को भी बताई गई थी. इस के बावजूद तमाम रहस्य वहीं के वहीं थे. मैं उन दिनों अंबाला और पंचकूला जिले का संयुक्त रूप से पुलिस कमिश्नर था. थाना पुलिस मामलों को हल करने में असमर्थ रही तो मैं ने इस केस को हल करने का जिम्मा सीआईए (क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) को सौंप दिया.

सीआईए के इंचार्ज इंसपेक्टर कुलभूषण ने मामले की जांच की जिम्मेदारी मिलते ही फाइल मंगा कर अब तक की जांच को गौर से अध्ययन किया. उस के बाद अपनी एक विशेष टीम बना कर मानो हत्याकांड की जांच में जुट गए. उन्होंने जेल में बंद मानो के बेटे देवेश से संपर्क किया और उस से यह जानने की कोशिश की कि किसी पर शक तो नहीं है. उस ने 4 लोगों के नाम लिए, जिन में एक उस हिमांशु का सगा भाई आशीष था, जिस की हत्या के आरोप में वह सजा काट रहा था. दूसरा था इनायत अहमद, निवासी रामनगर कालोनी अंबाला शहर, जो स्मैक के केस में जेल में बंद था. जेल में ही एक बार उस का देवेश से काफी झगड़ा हुआ था. तब उस ने उसे धमकी दी थी कि वह चाहे तो जेल में बैठेबैठे उस का खानदान तबाह कर सकता है.

तीसरा आदमी था जूनियर जौनी, निवासी जग्गी कौलोनी, अंबाला शहर और चौथा महेश निवासी कैथमाजरी, अंबाला शहर. पुलिस ने इन चारों लोगों को सीआईए के पूछताछ केंद्र में बुला कर मनोवैज्ञानिक तरीके से गहन पूछताछ की. पूछताछ में चारों निर्दोष पाए गए. अब मानो हत्याकांड का मामला फिर वहीं का वहीं आ कर अटक गया था. सीआईए के पास गए इस केस को 3 महीने से ज्यादा का समय गुजर गया. इस बीच शक के आधार पर जाने कितने लोगों से पूछताछ कर ली गई, लेकिन अपराधियों का कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा. जो मुखबिर इस काम पर लगाए गए थे, वे भी किसी काम के नहीं निकले. जो थोड़ीबहुत सूचनाएं लाए भी, वे सब गलत साबित हुईं.

सीआईए जिला पुलिस की एक ऐसी अहम इकाई होती है, जहां पर न केवल सुयोग्य पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाता है, पूछताछ के तमाम वांछित साधन भी थानों के मुकाबले काफी ठीकठाक मुहैया कराए जाते हैं. यही वजह है कि किसी केस को हल करने में जब थाना पुलिस फेल हो जाती है तो केस सीआईए के हवाले कर दिया जाता है. ऐसे में सीआईए मामले को चुनौती की तरह लेती है और हर हाल में मामले को हल कर लेती है. मानो मर्डर केस एक ऐसी चुनौती बन गया था कि फिलहाल सीआईए के पास भी इस चुनौती का कोई तोड़ नहीं था. समूचा सीआईए विभाग हैरान था कि मानो को कत्ल करने वाले आखिर कौन लोग थे, जिन के बारे में पुलिस को कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल रही थी.

उस दिन संयोग ही था कि एसआई गुरदयाल सिंह एक समारोह में गए थे और कुछ शराबियों ने खुद ही मानो मर्डर केस से पर्दा उठाने की बात कर दी. मजे की बात यह थी कि मानो मर्डर केस हल करने के लिए जिस विशेष टीम का गठन किया गया था, गुरदयाल सिंह उस टीम के वरिष्ठ सदस्य थे. फरवरी, 2013 के अंतिम सप्ताह में गुरदयाल सिंह अपने किसी रिश्तेदार के यहां किसी समारोह में गए थे. वहां ज्यादातर लोगों को मालूम नहीं था कि वह पुलिस में हैं. उन्होंने वरदी भी नहीं पहन रखी थी. शगुन डालने के बाद उन का कौफी पीने का मन हुआ तो वह बेयरे से कौफी मंगवा कर पीने के लिए एक किनारे खाली जगह पर जा कर बैठ गए.

वहीं से कुछ दूरी पर कुछ लोग शराब पीते हुए आपस में बातें कर रहे थे. अचानक गुरदयाल सिंह का ध्यान शराब पी रहे लोगों की बातों पर चला गया. बातें उन के कानों में क्या पड़ीं, उन्होंने उन की बातें सुनने के लिए कान खड़े कर लिए. उन में से एक कह रहा था, ‘‘यार, मानो के मरने से ऐश के सारे रास्ते बंद हो गए, क्या एक से बढि़या एक लड़की सप्लाई करती थी. मजे की बात यह कि उस पर किसी को शक नहीं होता था. वह एक धार्मिक और दयालु औरत थी, सोशल वर्कर थी, अपने भले के लिए लड़केलड़कियां उस के यहां आते हैं, आम लोग उस के बारे में यही सब जानते थे.’’

‘‘अपने ग्राहकों के अलावा अन्य किसी को अहसास नहीं होने देती थी कि वह देहधंधे से जुड़ी लड़कियां सप्लाई करती है.’’ दूसरे आदमी ने कहा.

इस के बाद तीसरे ने कहा, ‘‘जो भी था, उस के पास एकदम मस्त लड़कियां थीं, मस्ती का खेल खेलने के सब गुर जानती थीं. मानो का मर्डर क्या हुआ, साली सब की सब भाग कर न जाने कहां छिप गईं. अरे अपना धंधा तो मत चौपट करो, कहीं और अड्डा जमा कर पहले जैसी कमाई करती रहो, हम रंगीनमिजाजों का काम चलता रहे, कहीं कोई टकर जाए तो उसे समझाऊं. लेकिन पता नहीं सब कहां गायब हो गईं’’‘‘दरअसल, मानो हत्याकांड का रहस्य न खुल पाने से वे घबरा गई हैं. कहीं शक की वजह से पुलिस उन्हें पकड़ न ले, यही सोच कर वे इधरउधर भाग गई हैं. वैसे है न कमाल की बात कि दुनिया जानती है कि मानो की हत्या किस ने की? लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है.’’ पहले वाले ने कहा.

‘‘नहीं यार, ऐसा कैसे हो सकता है. तुम्हें शायद पता नहीं कि यह मामला पुलिस के लिए भारी सिरदर्दी बना हुआ है. पुलिस के बड़े अफसरों ने यह केस थाना से ले कर दूसरी किसी एजेंसी, मेरा ख्याल है सीआईए को दे रखा है. पुलिस की तो नींद उड़ा रखा है इस केस ने और तुम कह रहे हो कि कातिलों के बारे में दुनिया जानती है. 4 महीने हो गए हैं मानो का कत्ल हुए.’’

‘‘तो तुम्हें क्या लग रहा है कि मैं झूठ बोल रहा हूं? मैं जो कह रह हूं, एकदम सही कह रहा हूं.’’

‘‘ऐसा है तो बताओ जरा कौन हैं मानो के कातिल?’’

अपने इस साथी के सवाल पर उस आदमी ने गर्दन घुमा कर इस बात का जायजा लिया कि आसपास कोई उन की बातें तो नहीं सुन रहा. गुरदयाल सिंह अंधेरे में बैठे थे, शायद इस वजह से वह उन्हें दिखाई नहीं दिए. आश्वस्त हो कर उस ने कहा, ‘‘पीर की मजार पर जाते रहते हो न?’’

‘‘हां… हां, वहां तो हम लोग अक्सर जाया करते हैं. मानो भी तो वहां की परम भक्तिन थी, मजार पर जा कर लंगर लगवाया करती थी, गरीबों को कपड़े व पैसे भी दान किया करती थी. वहीं एक औरत आती है, जिसे सब माई कहते हैं.’’

‘‘हां… हां, माई के साथ उस का बेटा रहता है, वह भी अपनी मां के साथ वहां आने वालों की सेवा करता है.’’

‘‘बिलकुल सही पहचाना. उन्हीं लोगों ने मारा है मानो को.’’

‘‘इस का मतलब माई और उस के बेटे ने मानो को मारा है?’’

‘‘और लोग भी हो सकते हैं, लेकिन मेरी जानकारी के हिसाब से ये दोनों इस कत्ल में शामिल थे.’’

यह सुन कर गुरदयाल सिंह के हाथ जैसे बटेर आ गई. उन्होंने अंधेरे में ही एक किनारे जा कर धीमी आवाज में इंसपेक्टर कुलभूषण के मोबाइल पर बात की. इंसपेक्टर ने डीसीपी अशोक कुमार के नोटिस में बात लाई और डीसीपी ने दिशानिर्देश के लिए मेरा फोन मिला दिया. मैं ने सुझाव दिया कि शराबियों पर अभी बिलकुल हाथ मत डालना. मजारों पर अच्छे लोगों के अलावा बुरे लोग भी आते हैं, स्वार्थ की खातिर वह डेरा भी डाल देते हैं. मगर ऐसी जगहें पवित्र होती हैं और वहां का माहौल बड़ा नाजुक होता है. वहां पर पुलिस न भेज कर मुखबिरों का सहारा लिया जाए. मुखबिर जो जानकारियां ला कर दें, पहले उन की जांच की जाए, उस के बाद आगे की योजना बनाई जाए.

ऐसा ही किया गया. हालांकि इस बीच गुरदयाल सिंह ने किसी तरह उन शराबियों के नामपते और वे क्या काम करते हैं की तमाम जानकारी जुटा ली थीं. अंबाला में गुरदयाल सिंह के कुछेक ऐसे खास मुखबिर थे, जिन पर उन्हें काफी भरोसा था. सारी स्थिति समझा कर उन्होंने अपने उन मुखबिरों को मजार पर लगा दिया. वे वहां सेवा करने का दिखावा करते हुए माई और उस के बेटे की जासूसी करने लगे. वहां के लोगों से मुखबिरों को पता चला कि माई पहले बहुत खुश रहते हुए काफी जोश में काम किया करती थी. लेकिन मानो के कत्ल के बाद से वह बहुत सहमी सी रहने लगी है. मानो की बात छिड़ जाने पर वह एकदम से खामोश हो जाती है.

मुखबिरों की समझ में आ गया कि माई के भीतर ऐसा कुछ है, जो अंदर ही अंदर उसे खाए जा रहा है. मगर ऐसी कोई पुख्ता जानकारी अभी तक सामने नहीं आई थी कि जो यह साबित करती कि वाकई मानो का कत्ल उन्हीं लोगों ने किया था. ऐसी स्थिति में हम उन पर हाथ नहीं डाल सकते थे. ऐसे में शक हो जाने पर वे कहीं भाग कर भूमिगत भी हो सकते थे. उन की गिरफ्तारी का कोई सीधा रास्ता न देख कर हम ने एक योजना बनाई. अब तक मैं भी इस मामले से पूरी तरह जुड़ गया था. अपनी योजना के अनुसार, एसआई गुरदयाल सिंह से उन शराबियों से संपर्क किया, जिन्होंने समारोह में मानो के कत्ल में माई और उस के बेटे का हाथ होने की बात कही थी. उन्हें समझाया गया कि एक सच्चे नागरिक की तरह अपराध की पूरी कहानी बता कर पुलिस और कानून की मदद करना उन का फर्ज बनता है.

बात उन लोगों की समझ में आ गई तो उन से पूछा गया कि मानो मर्डर केस में वे पुलिस की क्या और कैसे मदद कर सकते हैं? इस से पहले कि वे इस संबंध में कुछ कहते, गुरदयाल सिंह ने कहा, ‘‘मेरी बात जरा गौर से सुनो, अगर माई और उस का बेटा वाकई मानो मर्डर केस में शामिल है तो उन्हें समझाओ कि वे किसी के माध्यम से पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दें. ऐसे में पुलिस उन से मारपीट करने के बजाय उन की मदद करेगी. इस केस में और लोग भी शामिल हुए तो माई और उस के लड़के को वादा माफ गवाह बना कर रिहा भी किया जा सकता है. हां, उन्होंने ऐसा नहीं किया और उन के खिलाफ सबूत हाथ लग जाने पर पुलिस ने उन्हें उठा लिया तो फिर न उन्हें कोई पुलिस के कहर से बचा सकता है और न ही इस केस में सजा होने से. तब पुलिस यही कोशिश करेगी कि उन्हें हर हाल में सजा हो.’’

गुरदयाल सिंह की इन बातों के जवाब में एक शराबी ने कहा, ‘‘ऐसा है साहब, मानो के कत्ल में माई और उस का बेटा बिलकुल शामिल है. माई से मेरा अच्छा परिचय है और उस ने खुद मुझ से यह बात बता कर अपने बचाव के लिए सलाह मांगी थी. तब मैं ने उसे समझाया था कि कानून के हाथ बड़े लंबे होते हैं, अपराध किया है तो एक न एक दिन पुलिस के हत्थे चढ़ेगी ही. आप की नसीहत जंच रही है, कहे तो मैं उस से बात कर के देखूं.’’

‘‘देख लो.’’ कहने के साथ ही गुरदयाल सिंह के चेहरे पर चमक आ गई. वह आशावान हो गए कि उन का तीर सही निशाने पर लगा है. सुखद परिणाम यह रहा कि अगले ही दिन माई अपने बेटे के साथ सीआईए औफिस आ पहुंची. जरा ही देर में उस ने अपने अपराध की पूरी कहानी सुना दी, जिस से मानो हत्याकांड का रहस्य इस तरह से खुला:

मनजीत कौर उर्फ मानो पहले ऐसी नहीं थी. लेकिन पति का सहारा उठ गया तो आमदनी का कोई साधन नहीं रहा. इस के बाद वह देहधंधा से जुड़ गई. इस से उसे अच्छी कमाई होने लगी. बच्चों की ठीकठाक परवरिश होने लगी. उम्र ढलने लगी तो वह अपने साथ अन्य लड़कियों को जोड़ कर उन की कमाई से कमीशन खाने लगी. उस के संपर्क में काफी अच्छीअच्छी कमसिन लड़कियां थीं, जिन की वजह से उसे पहले से भी ज्यादा कमाई होने लगी. इस बीच उस ने रहने का ठिकाना बदल कर अपनी बढि़या छवि बना ली.

पीर की मजार की काफी मान्यता थी. दूरदूर से लोग वहां शीश नवाने आते थे. सुबह से शाम तक भीड़ लगी रहती थी. मानो भी वहां आनेजाने लगी. दिखावे के लिए वह एक भक्तिन की तरह शीश नवाने और सेवा करने जाया करती थी. गरीबों में कपड़ेपैसे भी बांटा करती थी, जबकि असलियत में वह अपने धंधे को बढ़ाने में लगी रहती थी. माई का नाम था कीर्ति देवी. उस के पति का नाम खैरातीलाल था. वह मजार पर हर वक्त रहती थी, हमेशा रहने की वजह से मानो की उस से जानपहचान हो गई. धीरेधीरे माई को उस के धंधे के बारे में पता चल गया तो वह उस से रुपएपैसे ले कर उसे ब्लैकमेल करने लगी.

12 अक्टूबर, 2012 को मानो फल्गु मेले पर माई के यहां आई तो उस के साथ सिमरन, आशा बंगालन और लवली पंजाबन नामक लड़कियां थीं. उन्हें साथ ले कर मानो कुछ दिनों से इधरउधर घूम रही थी. जब वह माई के यहां आई थी तो उस के पास बहुत बड़ा बैग था, जो नोटों से भरा हुआ था. उस ने काफी गहने भी पहन रखे थे, जिन्हें देख कर माई के मन में कुछ लालच आ गया. इस के बाद माई ने अपने बेटे प्रदीप से बात की तो उस ने कहा कि मानो से उस का पैसा और गहने छीन लेते हैं. उस ने यह काम अपने घर में करने से मना करते हुए कहा कि मानो इन लड़कियों को हिस्सा देने के बाद अकेली अपने घर जाएगी, तब वहीं जा कर यह काम किया जाएगा. रात में मानो लौट गई तो प्रदीप ने अपने दोस्तों, सुल्तान और राजेश को बुला कर लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

रात में प्रदीप ने 9 सौ रुपए में इंडिका कार टैक्सी के रूप में बुक कराई और रात के साढे़ 12 बजे सभी मानो के घर पहुंचे. टैक्सी उन्होंने उस के मकान से थोड़ी दूरी पर खड़ी करा दी थी. मानो के घर पहुंच कर माई ने आवाज लगा कर दरवाजा खुलवाया. मानो जाग रही थी. उस ने माई से इस तरह अचानक आने के बारे में पूछा तो माई बोली, ‘‘प्रदीप का झगड़ा हो गया है. जिन के बेटे को पीट कर आया है, वे रात में इसे मारने आ सकते हैं. इसलिए इसे आप के पास छोड़ने आई हूं, मैं अभी लौट जाऊंगी.’’

‘‘अरे रात को कैसे वापस जाएगी और हां, ये 2 लड़के कौन हैं?’’

‘‘प्रदीप के दोस्त हैं सुल्तान और राजेश. ये दोनों भी इस के साथ रहेंगे. जब तक खतरा टल नहीं जाता, लड़के को अकेला नहीं छोड़ सकती.’’

‘‘कोई बात नहीं, तीनों लड़के ऊपर जा कर सो जाएंगे. तुम मेरे साथ सो जाना. इतनी रात गए अकेली कहां जाएगी.’’

इस के बाद तीनों लड़के ऊपर की मंजिल में चले गए और माई नीचे मानो के पास लेट गई. तभी किसी का फोन आया, जिसे रिसीव करते हुए मानो ने कहा, ‘‘हां सिमरन, तू पूरी रात लगा ले, मालदार आसामी है, जितना खुश रखेगी, उतनी मोटी कीमत देगा. घबराने वाली कोई बात नहीं है, पुराना जानकार है मेरा. तड़के सूरज निकलने से पहले लौट आना.’’

इस के बाद मानो ने लाइट बंद कर दी. जरा ही देर में प्रदीप, सुल्तान और राजेश अंधेरे में रास्ता टटोलते हुए नीचे आ गए. उन्होंने मोबाइल की रोशनी में देखने का प्रयास किया कि मानो कहां लेटी है. रोशनी पड़ते ही मानो हड़बड़ा कर उठ बैठी. वह कुछ बोल पाती, उन लोगों ने उस के मुंह पर हाथ रख कर उसे दबोच लिया. सुल्तान ने उस का मुंह दबोचा तो प्रदीप और राजेश ने गला दबाना शुरू कर दिया. माई ने उस के पैरों को पकड़ लिया. खुद को छुड़ाने की खातिर मानो हाथपैर चलाने लगी. लेकिन जल्दी ही वह शिथिल पड़ गई. उस के मर जाने के बाद भी उन लोगों ने माई की चुन्नी मानो के गले में डाल जोरों से कस दिया. इस के बाद तकिया मुंह पर रख कर भी दबाया.

पूरा इत्मीनान हो गया कि मानो मर गई है तो उन्होंने उस के घर की तलाशी ली. बैड के नीचे बौक्स में नोटों से भरा बैग मिल गया. सोनेचांदी के काफी गहने भी उन के हाथ लगे. मानो के पास 3 मोबाइल थे, वे भी उन्होंने ले लिए. कुल 15 मिनट में एक कत्ल और लाखों की लूटपाट कर के वे इत्मीनान से वहां पहुंचे, जहां टैक्सी वाले को खड़ा कर के आए थे. टैक्सी से सभी अपने घर पहुंचे. पहुंचते ही सारा सामान और रुपए आपस में बराबरबराबर बांट लिया. नकद पैसों में सब के हिस्से में कुल 11-11 हजार रुपए ही आए, गहने उन्होंने अंदाजे से बांट लिए थे. उन की कीमत लाखों में थी. मानो के मोबाइल फोन बंद कर के प्रदीप ने कहीं छिपा दिए थे.

माई और प्रदीप से पूछताछ कर के उन की निशानदेही पर लूट का उन के हिस्से का सामान बरामद कर के हम ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 2 मार्च, 2013 को इस मामले के सहअभियुक्त राजेश पुत्र नारायणीराम, निवासी इंदिरा कालोनी, पाई रोड, पुंडरी को भी गिरफ्तार कर के उस के पास से लूट का हिस्सा बरामद कर उसे भी जेल भेज दिया गया. इस केस का अन्य अभियुक्त सुल्तान पुत्र लज्जा सिंह, निवासी पुंडरी के बारे में हमें पता चला कि वह चोरी के एक अन्य मामले में न्यायिक हिरासत के तहत कैथल की जिला जेल में बंद था. मानो मर्डर केस में ट्रांजिट रिमांड पर ला कर व्यापक पूछताछ करने के बाद उसे वापस जेल भेज दिया गया.

निर्धारित अवधि के भीतर इस केस का चालान अदालत में पेश कर दिया गया था. इन दिनों यह केस अंबाला की सेशन कोर्ट में चल रहा है. Crime Story

 

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