लेखक – मृणालिका दुबे, Suspense Story: प्रिया अपने करोड़पति बाप की बहुत ही लाडली थी. इस के बावजूद उस ने अपनी सौतेली मां अंजलि को सगी मां की तरह ही मानसम्मान दिया, लेकिन लालची अंजलि के मनमस्तिष्क में तो एक खतरनाक योजना बन चुकी थी. प्रिया की शादी के मौके पर उस ने उस योजना को अंजाम तो दिया, लेकिन इस में वह अपनी सगी बेटी मीनू का ही मर्डर कर बैठी. आखिर क्या थी उस की योजना?

घर के सभी लोग शादी की तैयारियों में बिजी थे. तभी अंजलि ने बेटी को आवाज दी, ”प्रिया… प्रिया..! किधर हो बेटा तुम?’’

मम्मी की आवाज सुनते ही प्रिया ने फटाफट मोबाइल फोन स्विच औफ किया और दौड़ती हुई अपने रूम से बाहर आ कर थोड़ा झुंझलाहट से बोली, ”क्या हुआ मम्मी? क्यों परेशान हो रही हैं आप?’’

”अरे तू बस दिनरात मोबाइल पर ही चिपकी रह! अरे, कुछ वक्त हमारे साथ भी तो बिता ले.’’ अंजलि ने उसे प्यार से झिड़कते हुए कहा.

यह सुनते ही प्रिया बड़े प्यार से मम्मी के गले में झूल गई, ”ओ मम्मी, आप कितनी अच्छी हो.’’

अंजलि ने प्यार से उसे चूमते हुए कहा, ”मेरी प्रिंसेस! कितनी सुंदर लग रही है तू, किसी की नजर न लगे मेरी लाडो को.’’

”अरे नजर तो लग चुकी है मम्मी प्रिया दी को,’’ प्रिया की छोटी बहन मीनू ने हंसते हुए कहा.

अंजलि चौंक कर बोली, ”क्या बोल रही है तू? किस की नजर लग गई मेरी प्रिया को..?’’

”राज जीजू की नजर,’’ मीनू खिलखिला कर बोली.

तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई और प्रिया के पापा यानी धनराज मित्तल अपने भाइयों विजय, रमेश और शंकर के साथ अंदर आए. धनराज एक बड़े बिजनैसमैन थे और उन के तीनों भाई अलगअलग शहरों में बड़े सरकारी ओहदे पर थे. धनराज मित्तल का ध्यान बचपन से ही पढ़ाई में नहीं लगा और इसीलिए उन्होंने बिजनैस पर अपना फोकस किया और सफल रहे.

”आइएआइए. और आप सब की फेमिली किधर रह गई?’’ अंजलि यानी धनराज मित्तल की वाइफ ने सब का स्वागत करते हुए पूछा.

”यहां हैं हम!’’ कहते हुए तीनों भाइयों की पत्नियां सरिता, रूपा और वीणा अपने बच्चों समेत आ खड़ी हुईं.

अंजलि ने सब का वेलकम करते हुए नौकरों को चायनाश्ता लाने को बोला और फिर मेहमानों से कहने लगीं, ”अब लगा है घर मे शादीब्याह जैसा माहौल! आप सब के आने से घर की रौनक में चारचांद लग गए जी.’’

वीणा हंसते हुए बोली, ”अजी भाभीजी, हम आते कैसे नहीं! हमारी प्रिया बिटिया की शादी है.’’

तभी धनराज बोले, ”अब आप सब चायनाश्ता कर के अपनेअपने रूम में जा कर रेस्ट कर लीजिए! अंजलि तुम ने सब व्यवस्था करवा दी है न?’’

”जी हां, सब इंतजाम करवा दिया है.’’ अंजलि मेहमानों के सामने हाथ जोड़ कर मुसकराते हुए बोली.

रूपा और सरिता बोलीं, ”क्या भैयाभाभी, हम कोई मेहमान नहीं, घरपरिवार के ही हैं.’’

अंजलि उन को गले लगाते हुए बोली, ”अरे तो तुम सब परिवार ही हो हमारा, पर बच्चे भी थक गए होंगे न और तुम सब को भी अब कल से काम में लगना है. इसलिए आज जी भर कर रेस्ट कर लो सब.’’

सब चायनाश्ता करते हुए बातचीत में लग गए. फिर रिया, सानिया और मीनू तीनों प्रिया के ही रूम में जा कर उसे तंग करते हुए उस के मंगेतर राज का नाम लेले कर छेडऩे लगे और सारी लेडीज बैठ कर शादी के प्रोग्राम को फाइनल टच देने लगीं. तभी धनराजजी का मोबाइल बज उठा और वह बातें करते हुए बहुत उत्साहित लग रहे थे.

कौल खत्म होते ही विजय ने उन से पूछा, ”क्या बात है भाई साहब, बड़े खुश नजर आ रहे हो!’’

”बात है ही इतनी बढिय़ा, आज शाम ही हम सब खंडाला के लिए रवाना हो जाएंगे, वहां इवेंट मैनेजर ने पूरी व्यवस्था कर ली है.’’ धनराजजी बोले.

वीणा बोली, ”वाह! ये तो सच ही बहुत खुशी की बात है, पर भाई साहब लड़के के घर वाले मीन्स राज के रिश्तेदार? क्या वो भी कल तक पहुंच जाएंगे?’’

अंजलि हंसते हुए कहने लगी, ”अरे, कल तक नहीं, बल्कि वो तो आज ही वहां पहुंच गए हैं. उन का पूरा इंतजाम एक बड़े होटल में कर दिया है.’’

”हां, मैं कोई भी कमी नहीं रखना चाहता अपनी बेटी की शादी में. वो लोग ऊपर के 2 फ्लोर पर रहेंगे और हम सब नीचे के फ्लोर पर.’’ धनराजजी ने बताया. कुछ देर बाद सब अपनेअपने रूम में चले गए और धनराज व अंजलि दोनों कुछ काम से बाहर चले गए. शंकर और रूपा को इतने आरामदायक बैड पर भी आराम नहीं मिल रहा था और वो बैचेनी से रूम में टहल रहे थे, तभी रूपा बोली, ”आप देख रहे हैं, अंजलि भाभी के तो पैर अब जमीन पर ही नहीं पड़ रहे.’’

शंकर चेयर पर बैठते हुए बोला, ”भाभी की छोड़ो, भाई साहब के रंगढंग ही निराले हो गए हैं. लगता है बेटी की शादी में करोड़ों रुपए स्वाहा कर देंगे.’’

रूपा चिढ़ कर बोली, ”अब करेंगे ही, कमाया भी तो उन्होंने करोड़ों रुपया है. तुम्हारी तरह सर्विस तो कर नहीं रहे कि बंधीबंधाई सैलरी मिले.’’

रमेश अपने रूम में लेटा हुआ छत को एकटक देख रहा था, तभी उस की पत्नी सरिता बोली, ”क्यों जी, किधर ध्यानमग्न हो?’’

रमेश अनमना सा उठा और कहने लगा, ”भैया की प्लानिंग तो करोड़ों रुपए खर्च करने की दिख रही है इस शादी में.’’

सरिता मुंह बना कर बोली, ”तो अब करोड़पति हैं वो, कोई हमारी तरह थोड़ी हैं. हुंह!’’

रमेश गुस्से से बोला, ”देखो, कुछ भी बकवास मत करो, मैं भी एक आईएएस औफीसर हूं, कोई क्लर्क नहीं, जो इस तरह रिएक्ट कर रही हो.’’

सरिता तेज स्वर में बोली, ”ओह हो! आईएएस औफीसर! पर आज देखा कुछ भाई साहब का रौब और ये महल जैसा बंगला और अंजलि भाभी के जेवर! ये सब तो सपने में भी अफोर्ड नहीं कर सकते हम.’’

विजय अपने रूम में आराम से लेटा हुआ मोबाइल में कुछ देख रहा था कि वीणा ने उस का मोबाइल छीनते हुए गुस्से से कहा, ”बस, तुम इस मोबाइल में ही लगे रहो जिंदगी भर.’’

विजय ने चिढ़ते हुए अपना मोबाइल मांगा, ”देखो वीणा, मुझे ये बेकार की बकबक बिलकुल पसंद नहीं! मेरा मोबाइल वापस करो.’’

वीणा तुनक कर बोली, ”इस मोबाइल को तो आग लग जाए कमबख्त! अरे, कभी तो कुछ अपने बच्चों का भी सोचो. भाई साहब को देखो कि कैसी राजसी शादी का प्लान बनाया है अपनी बेटी का.’’

विजय उस की ओर चिढ़ कर देखने लगा, फिर बोला, ”जो भी करें तुम्हें क्या प्रौब्लम हो रही है प्रिया की शादी से?’’

वीणा बोली, ”क्यों? क्या ये पूरी प्रौपर्टी सिर्फ अकेले भाई साहब की ही है? तुम्हारे पिताजी की भी तो जमापूंजी लगी होगी आखिर इस में?’’

विजय ने अब पत्नी की तरफ गुस्से से देखा और कहा, ”हां, लगी थी पिताजी की जमापूंजी! पर यही कोई 10 या 15 लाख! बाकी तो सब भाई साहब की मेहनत का फल है.’’

उधर प्रिया अपने रूम में लेटी हुई सोच रही थी, ‘काश… जल्दी वो दिन आ जाए, जब राज और वो हमेशा के लिए एक डोर में बंध जाएं.’

वह अपने बैड पर लेटी खयालों में गुम थी कि अचानक उस के मोबाइल की रिंग बज उठी.

”ओफ्फोह किस की कौल है अब!’’ कहते हुए प्रिया ने जैसे ही हैलो कहा, उधर से एक तेज आवाज सुनाई दी, ”मूर्ख लड़की, शादी के सुनहरे ख्वाब देख रही है.’’

प्रिया गुस्से से चिल्लाई, ”कौन है? स्टौप दिस नानसेंस!’’ और अचानक ही कौल कट गई.

प्रिया एकदम से उठ बैठी. नंबर देखा तो अननान नंबर आ रहा था.

प्रिया सोच ही रही थी कि तभी उस के यहां की मेड वहां आ कर बोली, ”प्रिया बेबी, आप का पार्सल आया है.’’

प्रिया ने दरवाजा खोल कर पार्सल लिया और फिर से दरवाजा बंद कर दिया. वह पार्सल देख सोचने लगी कि मैं ने तो कुछ मंगवाया नहीं था अभी, ‘ओह शायद राज ने कुछ गिफ्ट भेजा होगा!’

सोचते ही प्रिया खुशी से पार्सल खोलने लगी. पर ये क्या…उस में तो एक गुडिय़ा दुलहन के वेश में थी और जिस की गरदन कटी हुई थी. प्रिया की चीख पूरे घर में गूंज उठी. प्रिया की चीख सुन कर सब के सब दौड़ते हुए आए और प्रिया को आवाज देने लगे. तभी धनराजजी और अंजलि भी वापस आ गए और यह नजारा देख भागते हुए प्रिया के रूम के पास आए.

”प्रिया… बेटा दरवाजा खोलो प्लीज!’’ सब आवाजें दे रहे थे. तभी प्रिया ने दरवाजा खोला और बुत बनी पथराई आंखों से सब को देखने लगी. उस की हालत देख सब घबरा गए और उस की मम्मी अंजलि तो रोरो कर उस से पूछने लगी, ”क्या हुआ है?’’

पर प्रिया इस हालत में नहीं थी कि कुछ बोल सके. धनराजजी ने तुरंत फेमिली डौक्टर को कौल कर बुलाया.

तभी अचानक मीनू की नजर बैड के नीचे गिरे पार्सल पर पड़ी तो वह बोली, ”अरे, ये क्या है?’’

कहते हुए उस ने जैसे ही उस में देखा तो वह भी डर के मारे चीख पड़ी और वह पार्सल नीचे फेंक दिया.

रूपा उस गुडिय़ा को उठाते हुए कहने लगी, ”ओह, ये तो लगता है किसी बदमाश की शरारत है.’’

”शरारत! ये शरारत नहीं, कोई बड़ी बदमाशी है, जो मेरी बेटी को डराने के लिए की गई है…’’ अंजलि गुस्से से बोली.

धनराजजी ने अपनी बेटी को संभाल कर बिठाया और मीनू ने उसे पानी पिलाया, तब जा कर प्रिया थोड़ी होश में आई और फिर मम्मी से लिपट कर रोने लगी, ”मम्मी…मम्मी, वो न अभी मुझे थोड़ी देर पहले एक अननान नंबर से कौल भी आया था, किसी लेडी का! वो मुझे न अजीब सी बातें बोल रही थी.’’

धनराज जी सोचते हुए बोले, ”मेरे खयाल से अब हमें प्रिया बेटी को अकेली नहीं छोडऩा चाहिए. अंजलि तुम इस का सही से ध्यान रखो और बाकी सब बाहर आ जाइए.’’

इस के बाद सब चुपचाप बाहर हाल में आ कर बैठ गए. तभी डौक्टर भी आ गया और प्रिया को चैक कर के धनराजजी से कहने लगा, ”देखिए, घबराने की कोई बात नहीं, पर प्रिया मेंटली बहुत डिस्टर्ब हो गई है. इसलिए मेरी राय है कि आप लोग जल्दी ही खंडाला के लिए रवाना हो जाइए. वहां का वातावरण और शादी का माहौल उसे ठीक कर देगा पूरी तरह.’’

धनराजजी ने उसी समय सब को खंडाला के लिए रेडी होने के लिए कहा और बोले, ”हम 3 घंटे बाद ही निकल चलेंगे यहां से, ओके.’’

और फिर वो भी अपने रूम में जा कर तैयारियों में बिजी हो गए. अंजलि प्रिया के ही साथ थी और उस का सामान पैक कर रही थी. कुछ ही देर में सब के सब रेडी हो कर हाल में आ गए और सर्वेंट्स उन के बैग्स गाडिय़ों में ला कर रखने लगे. सानिया और मीनू प्रिया के साथ ही अंजलि और धनराजजी की गाड़ी में बैठ गए. गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि इतने में धनराजजी का मोबाइल बज उठा.

मोबाइल पर बात करते ही धनराजजी एकदम परेशान से दिखने लगे. अंजलि पूछ बैठी, ”क्या हुआ जी! सब ठीक तो है न?’’

धनराजजी मोबाइल रखते हुए बोले, ”नहीं, परेशानी की कोई बात नहीं! बस बिजनैस की थोड़ी उलझन और कुछ नहीं. चलो, अब चलें हम खंडाला.’’ कहते हुए उन्होंने ड्राइवर को इशारा किया और गाड़ी स्पीड में चल पड़ी. पीछेपीछे सभी गाडिय़ां भी रवाना हो गईं, जिन में अन्य रिश्तेदार बैठे थे. शाम होने ही वाली थी. सूरज भी ढल रहा था. धीरेधीरे तभी अचानक धनराजजी की गाड़ी के ड्राइवर ने एकदम गाड़ी के ब्रेक लगाए और गाड़ी झटके से रुक गई.

”क्या हुआ? अचानक से ब्रेक क्यों लगाया?’’ धनराजजी ने पूछा.

”सर, वो जरा सामने देखिए न आप! रोड पर कोई अचानक ही सामने आ गया था, इसलिए ब्रेक लगाया मैं ने.’’ ड्राइवर बोला.

धनराजजी और ड्राइवर नीचे उतर कर देखने लगे. ड्राइवर ने उस शख्स को पलटा तो धनराजजी के मुंह से चीख निकल गई. वह बेहोश शख्स और कोई नहीं राज था, उन का होने वाला दामाद.

”राज…! क्या हुआ बेटा, उठो!’’ धनराजजी घबरा कर उसे होश में लाने लगे.

तब तक अंजलि और प्रिया भी गाड़ी से उतर कर बाहर आ गईं और राज को यूं सड़क पर बेहोश देख चिल्लाने और रोने लगीं.

”राज… राज! उठो न प्लीज..!’’ प्रिया रोती हुई उसे उठाने लगी.

तभी मीनू और सानिया पानी की बोतल ले कर आईं और राज के मुंह पर पानी छिड़क कर होश में लाने की कोशिश करने लगीं.

राज ने धीरेधीरे आंखें खोलीं और प्रिया को सामने देख खुश होता हुआ बोला, ”प्रिया! तुम!’’

राज को सहारा दे कर प्रिया और धनराज गाड़ी तक लाए और अंदर बिठाया. फिर सानिया और मीनू से कहा कि वे पीछे आ रही विजय की गाड़ी में बैठ जाएं. तब तक सब रिश्तेदार भी गाडिय़ों से उतर कर हालात समझने की कोशिश करने लगे. इतने में धनराजजी ने सब को कहा, ”देखिए, अब खड़े हो कर यूं टाइम वेस्ट करना ठीक नहीं, हमें जल्दी ही खंडाला पहुंचना चाहिए. वहां डौक्टर भी मौजूद है और राज के परिवार वाले भी.’’

सब के सब गाड़ी में बैठ फिर से खंडाला की ओर चल पड़े.

राज चुपचाप आंखें बंद किए सीट पर सिर टिका कर बैठा था और प्रिया उस का सिर सहला रही थी. पीछे आ रहे विजय शंकर और रमेश के मन में हलचल सी मची थी. उन सब की पत्नियों के मन भी कुलबुला रहे थे कि क्या हो रहा ये सब?

आखिर रात के 9 बजे के करीब सब खंडाला पहुंच गए. उन की गाडिय़ां रुकते ही होटल का स्टाफ और इवेंट मैनेजमेंट क्रू दौड़ा चला आया. सब उतर कर रूम की ओर चल पड़े. धनराजजी और अंजलि राज को ले कर उस के पैरेंट्स के रूम की ओर चल पड़े, जो सेकेंड फ्लोर पर था. प्रिया भी उन्हीं के साथ पीछेपीछे आ रही थी. राज अब तक बिलकुल खामोश था. न तो उस ने कोई बात की थी, न प्रिया की ही तरफ देखा था. जैसे ही राज के मम्मीपापा यानी सुधीर सहवाल और रुचा सहवाल ने अपने बेटे राज को देखा तो एकदम से ‘बेटा’ कह कर उस से लिपट गए. जब धनराजजी ने बताया कि वह अचानक उन की गाड़ी के सामने आ गया था तो सुधीरजी एकदम हैरान हो गए.

”क्या..? पर राज तो इवनिंग वाक कर के घंटे भर में आ रहा हूं कह कर निकला था. ये कब और क्यों उतनी दूर आप की गाड़ी के रास्ते मे पहुंच गया? हम यहां कब से इसे ढूंढ रहे हैं.’’ वे लोग बोले.

”ओके! अभी डौक्टर आ रहा है, वो राज का चैकअप कर के मैडिसिन दे देगा और फिर कल हम बात करेंगे आराम से.’’ धनराजजी बोले.

”नहींनहीं, मुझे कोई चैकअप नहीं कराना है.’’ राज ने एकदम ठंडे स्वर में कहा.

उस की आवाज सुन सब एकदम से चौंक से गए. फिर धनराज, अंजलि और प्रिया बाहर आ गए और अपने रूम की तरफ चल पड़े. प्रिया अपने रूम में पहुंच कर शावर लेने के इरादे से जैसे ही बाथरूम में घुसी तो देखा कि शावर में एक लंबी डोरी बांध कर एक दुलहन बनी डौल फांसी जैसे लटकी पड़ी थी. उसे देखते ही प्रिया चीखते हुए बाहर भागी और अपनी मम्मी के कमरे के बाहर दरवाजा पीटने लगी, ”मम्मी, जल्दी आओ आप. देखो कोई मुझे मारना चाह रहा है.’’

अंजलि जब तक बाहर निकली, प्रिया डर से बदहवास हो गई थी. धनराजजी ने तुरंत होटल मैनेजर को बुला कर डांट पिलाई और सिक्योरिटी पर ध्यान देने को कहा. मैनेजर ने अपने पूरे स्टाफ को सख्ती से वार्निंग देते हुए चौकन्ना रहने की हिदायत दी. प्रिया दूसरे रूम में शिफ्ट हो गई. वह अभी  बैग ओपन कर ही रही थी कि उस का मोबाइल बज उठा, वही अनजान नंबर था. प्रिया ने डरतेडरते ‘हैलो’ बोला तो उधर से आवाज गूंज उठी, ”वेलकम टू खंडाला प्रिया! अब तुम आ तो गई हो पर दुलहन के लिबास में नहीं, कफन में जाओगी यहां से. हा… हा… हा.’’ वही भयानक हंसी गूंजने लगी.

प्रिया के हाथ से मोबाइल छूट कर फर्श पर जा गिरा. प्रिया कुछ देर तक तो बुत बनी मोबाइल को घूरती रही फिर उसे उठाया और मीनू को कौल लगाने लगी. मीनू ने दीदी का कौल देखी तो वह फौरन प्रिया के रूम में ही पहुंच गई, ”क्या हुआ दी! सब ठीक तो है न? आप ने कौल क्यों किया था?’’ मीनू एक सांस में पूछने लगी.

”ओह मीनू, मैं बहुत डिस्टर्ब हो गई हूं. लग रहा है कि कोई मेरी जान लेना चाहता है.’’ प्रिया सहमी हुई बोली.

मीनू एकदम तैश में आ गई, ”आप की जान कोई नहीं ले सकता दीदी, हम सब आप की हर पल हिफाजत करेंगे यहां.’‘‘

प्रिया उस का हाथ पकड़ते हुए बोली, ”देख, मैं तुझ से ज्यादा किसी पर यकीन नहीं कर सकती, इसलिए मेरी बात ध्यान से सुन…’’ और फिर प्रिया मीनू के कान में कुछ कहने लगी. कुछ देर बाद ही प्रिया के रूम का दरवाजा खुला और स्कार्फ लपेटे हुए मीनू वापस अपने रूम में आ कर सो गई. सानिया ने उस से पूछना चाहा कि इतनी देर किधर थी, पर मीनू को सीधे बैड पर जा सोते हुए देख उस ने कुछ न पूछना ही ठीक समझा. करीब एक घंटे बाद अचानक ही अंजलि उठ बैठी और फिर रूम का दरवाजा खोल कर बाहर जाने लगी कि धनराजजी की आंखें भी खुल गईं. वह बोले, ”अरे इतनी रात में कहां जा रही हो तुम?’’

अंजलि थोड़ी चौंक गई. फिर बोली, ”पता नहीं क्यों मेरा जी थोड़ा घबरा सा रहा है! बस प्रिया बेटी को देखने जा रही थी मैं.’’

धनराजजी उसे समझाते हुए कहने लगे, ”अरे, वो थक कर सो रही होगी अभी, कहां उसे फालतू डिस्टर्ब करने जा रही हो?’’

अंजलि बोली, ”बस एक नजर तसल्ली कर लूं.’’ और वह बाहर निकल गई. पीछेपीछे धनराजजी भी आ गए. दोनों जब प्रिया के रूम के पास पहुंचे तो देखा कि दरवाजा खुला हुआ था.

अंजलि बड़बड़ाई, ”बताओ… हद है लापरवाही की. दरवाजा भी बंद नहीं किया इस ने.’’

धनराजजी भी परेशान हो उठे. फिर उन्होंने अंदर जा कर लाइट औन कर दी. लाइट औन होते ही दोनों पागलों की तरह चीख उठे. पूरा बैड खून से लाल हो रहा था और प्रिया की गरदन कटी लाश एक किनारे पर पड़ी थी. उस के लंबे बालों ने आधे चेहरे को ढंक रखा था. अंजलि तो बेहोश हो कर गिर पड़ी और धनराजजी ने किसी तरह होश काबू में करते हुए मैनेजर को फोन लगाया और तुरंत आने को कहा.

कुछ ही देर में जंगल की आग की तरह यह बात दूर तक फैल गई और लगभग सभी रिश्तेदार और होटल स्टाफ वहां इकट्ठा हो गया. राज के मम्मीपापा भी दौड़ते हुए आए तो उन्हें देखते ही धनराजजी का सब्र जवाब दे गया और वे फूटफूट कर रो पड़े. उन की यह हालत देख सब के दिल रो पड़े. तभी वीणा बोली, ”अरे, सानिया और मीनू बिटिया नहीं दिख रहीं, क्या उन्हें किसी ने खबर नहीं की?’’

तभी रूपा सानिया को लिए हुए आई और बोली, ”कमाल है! ये मीनू आधी रात को रूम से किधर गायब हो गई है.’’

अंजलि सानिया को झकझोर कर पूछने लगी, ”सानिया, बताओ बेटा, क्या तुम्हें कुछ बता कर गई है मीनू?’’

परेशान सहमी सानिया बोली, ”नहीं, मुझे तो कुछ भी नहीं पता कि वह कब रूम से बाहर गई. हां, कोई 3 घंटे पहले जरूर मैं ने मीनू को रूम से बाहर जाते देखा था. कुछ देर बाद वह वापस आई और चुपचाप चादर ओढ़ कर सो गई.’’

तभी पुलिस वहां आ गई और सब को रूम से बाहर जाने के लिए कहा. सब गलियारे में इकट्ठे हो कर चर्चा करने लगे. इतने में विजय ने कहा, ”राज दिखाई नहीं दे रहा यहां. क्या उसे अब तक इस बुरी खबर का पता नहीं चला है?’’

राज की मम्मी दुखी स्वर में बोली, ”पता नहीं किस की मनहूस नजर बच्चों को लग गई? हम यहां आए थे शादी कर के बहू ले जाने और हमारी बहू बनने से पहले ही…’’ कह कर वह रोने लगी. राज के पापा ने उन्हें संभालते हुए कहा, ”अब कमजोर मत बनो तुम, नहीं तो फिर राज को कौन संभालेगा? अभी तक तो उसे कुछ बताया तक नहीं, क्योंकि वह खुद कल शाम को बहुत ही अजीब सी मानसिक हालत में था.’’

तभी पुलिस रूम के अंदर से लाश को स्ट्रेचर पर ले कर बाहर आई और धनराजजी को बताया, ”पोस्टमार्टम के बाद आप को बौडी सौंप दी जाएगी.’’

अंजलि चीख मार कर रोने लगी और साथ में सभी रिश्तेदारों के भी आंसू बह निकले. तभी वीणा ने रोते हुए कहा, ”एक बार तो हमें प्रिया का चेहरा देखने दो.’’

पुलिसकर्मियों ने स्ट्रेचर नीचे रख दिया. वीणा और सरिता रोती हुई प्रिया के चेहरे पर से चादर हटाने लगीं, ”ये क्या?’’

उन की चीखें तो हलक में अटक गईं. स्ट्रेचर पर पड़ी लाश का चेहरा जो अब तक बालों में छिपे होने की वजह से स्पष्ट नहीं दिख रहा था, अब एकदम सामने था. वह लाश प्रिया की नहीं, बल्कि मीनू की थी. सब का मुंह एकदम बंद हो गया. सिर्फ अंजलि ही ‘मीनू’ कह कर दहाड़ें मार कर रोने लगी. पुलिस औफीसर भी हैरत में पड़ गया कि ये क्या माजरा है? किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि प्रिया के रूम में मीनू की लाश कैसे? और फिर प्रिया कहां गई आखिर?

तभी पुलिस औफीसर की नजर गलियारों में लगे सीसीटीवी कैमरों पर पड़ी तो वह तुरंत बोला, ”ओह… गुड, मैनेजर साहब आप ये पूरा सीसीटीवी फुटेज मुझे अभी दिखाने का इंतजाम करें.’’

मैनेजर उन को ले कर तुरंत अपने केबिन में आ गया और सीसीटीवी की फुटेज दिखाने लगा. फुटेज में दिख रहा था कि पहले मीनू प्रिया के रूम में आई, फिर कुछ देर बाद वो स्कार्फ बांधे वापस निकल गई. इस के करीब 20 मिनट बाद एक काले कंबल में ढंका हुआ एक साया वहां आया और नौक किया. कुछ ही देर में डोर खुला और वो साया लपक कर अंदर चला गया. फिर 5 मिनट बाद ही वह बाहर आ कर चला गया गलियारे की तरफ. पुलिस औफीसर मैनेजर के ही साथ वापस प्रिया के रूम के पास पहुंचा और बोला, ”अब समझ आ गया कि जरूर प्रिया ने मीनू को कौल कर के अपने रूम में बुलाया होगा और फिर खुद मीनू की ड्रेस पहन कर स्कार्फ बांध कर वो मीनू के रूम में चली गई और मीनू यहां प्रिया के रूम में रुक गई.’’

तभी अंजलि बोली, ”पर आखिर प्रिया ने ऐसा क्यों और किसलिए किया? मुझे क्यों नहीं बुलाया उस ने?’’ और वो फिर रोने लगीं.

पुलिस औफीसर बोला, ”इन सब का जवाब तो प्रिया ही दे सकती है, पर वो है कहां? किधर गायब हो गई वो?’’

”कौन गायब हो गया? यहां पुलिस क्यों आई है?’’ कहते हुए अचानक राज वहां आ पहुंचा.

राज को देखते ही अंजलि और धनराज दोनों ही रोते हुए बोले, ”बेटा, देखो न ये क्या हो गया? हमारी मीनू का किसी ने बेदर्दी से कत्ल कर दिया और प्रिया बिटिया लापता है.’’

राज हैरान होते हुए बोला, ”क्या? ऐसा कैसे हो सकता है?’’

”प्रिया ने तो अभी कुछ देर पहले ही मुझे कौल लगाया था. इस से ही तो मेरी नींद टूटी.’’

पुलिस औफीसर ने पूछा, ”तो कहां है प्रिया? क्या बोला उस ने?’’

”मेरे कौल पिक करने से पहले ही कट हो गई और मैं ने जब उसे कौल किया तो फोन स्विच औफ आ रहा था. इसीलिए मैं खुद उस से बात करने नीचे आ रहा था और ये सब पता चला.’’ राज उलझे स्वर में बोला.

”ओके! हम जल्दी ही सब पता लगा लेंगे, फिलहाल होटल से कोई भी बाहर नहीं जाएगा.’’ कहते हुए पुलिस औफीसर वहां से चला गया.

सब रिश्तेदार दुख और उलझन में डूबे थे. किसी की भी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वीणा, सरिता और रूपा तीनों ही अंजलि को सांत्वना देने का प्रयास कर रही थीं.

राज के पिता बोले, ”धनराजजी, मैं आप का दुख समझ सकता हूं. आखिर मैं भी एक पिता हूं.’’

धनराजजी राज को पकड़ कर रो पड़े, ”बेटा, मुझे तो कुछ नहीं समझ रहा कि क्या करूं मैं? कल तक कितना खुश था मैं और आज…’’ कह कर वह बिलख पड़े. राज उन्हें शांत करते हुए बोला, ”प्लीज अंकल, आप यूं हिम्मत न हारिए. आप को देख कर ही तो बाकी सब में संभलने का साहस आएगा.’’

दिन के उजाले में सब के उदास और दुखी चेहरे और भी जर्द दिखने लगे. धीरेधीरे सब अपनेअपने रूम की ओर चल पड़े. तभी राज का मोबाइल बज उठा, उस ने कौल रिसीव किया और तुरंत अपने रूम की ओर चल पड़ा. धनराजजी अपने रूम में बैठे हुए रोते हुए पछता रहे थे कि क्यों यहां आ कर शादी का प्लान बनाया.

अंजलि रोते हुए बोली, ”काश! मैं ने अपनी प्रिया को अकेले रूम में नहीं छोड़ा होता…’’

इतने में धनराजजी बोले, ”अब तक मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि आखिर प्रिया ने अपनी जगह मीनू को क्यों सुलाया रूम में? वो हमारे रूम में भी तो आ सकती थी न…’’

अंजलि सिर पीटते हुए बोली, ”हमारा दुर्भाग्य और क्या.’’

अचानक बाहर कुछ शोर सा हुआ…

”अरे क्या हुआ! इतना शोर क्यों मच रहा है?’’ कहते हुए धनराजजी बाहर आए तो देखा कि रमेश अपने रूम का दरवाजा पीट रहा है जोरजोर से. और अपनी बीवी सरिता को पुकार रहा था.

धनराजजी ने पूछा, ”क्या हुआ रमेश? बात क्या है?’’

रमेश बोला, ”देखिए न भाई साहब, सरिता अंदर से कुछ जवाब नहीं दे रही और न दरवाजा खोल रही है.’’

इतने में मैनेजर डुप्लीकेट चाबी ले कर आ गया और दरवाजा खोल दिया. रमेश और धनराजजी तेजी से रूम में गए और देखा तो सरिता रूम में नहीं थी, अंदर थी प्रिया, जो बैड पर बेहोश पड़ी थी. सब के सब स्तब्ध से हो गए और फिर धनराजजी ‘प्रिया…प्रिया…’ पुकारते हुए उसे होश में लाने लगे.

तभी पुलिस भी वहां आ पहुंची अपनी इन्वैस्टिगेशन करने. खबर मिलते ही डौक्टर भी आ गया और प्रिया को होश में लाने की कोशिश करने लगा. फिर उस ने चैक कर के बताया कि प्रिया किसी दवाई की वजह से गहरी बेहोशी में है. उसे होश में आने में 3 से 4 घंटे लगेंगे, तब तक उसे डिस्टर्ब न किया जाए. और वो उसे इंजेक्शन लगा कर चला गया. प्रिया को अपने रूम में ही रख लिया था अंजलि ने, अब वो पल भर के लिए उसे अपनी आंखों से ओझल नहीं करना चाहती थी. अब पुलिस के साथ ही सब सरिता को खोजने में जुट गए. हर रूम, टेरेस, गलियारे सब की तलाशी हो गई पर सरिता का पता ही नहीं चल रहा था. पुलिस औफीसर ने मोबाइल लोकेशन देखी तो वह होटल की ही आ रही थी.

रमेश बारबार बोल रहे थे, ”कितनी मनहूस जगह है ये! जब से आए हैं, हमें चैन नहीं. काश! मेरी बीवी जल्दी सहीसलामत मिल जाए तो मैं अभी अपने घर निकल पड़ूं.’’

धनराजजी उसे घूरते हुए बोले, ”तो क्या तुम प्रिया और राज की शादी में शामिल नहीं होगे? ठीक है कि मेरी छोटी बेटी का कत्ल हो गया, पर उस दुख के बाद भी ये शादी तो पहले तय मुहूर्त पर ही करनी होगी. नहीं तो राज चला जाएगा वापस लंदन.’’

”अजी चला जाएगा तो चला जाए…’’ भड़क कर रमेश और शंकर चिल्लाए.

इतने में पुलिस औफीसर ने टोका, ”मुझे अभी राज का बयान लेना है, किधर है वो?’’

राज के पिता बोले, ”औफीसर, वो अपने रूम में ही है. पर मेंटली बहुत डिस्टर्ब है.’’

औफीसर ने मुसकरा कर कहा, ”मुझे मेरे काम के बारे अच्छे से पता है, इसलिए आप चिंता न करें.’’

औफीसर ने जैसे ही डोर नौक किया, राज ने दरवाजा खोला और बोलने लगा, ”क्या आप बाद में नहीं पूछताछ कर सकते सर! एक्चुअली मैं अभी बहुत ही डिस्टर्ब हूं.’’

औफीसर ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ”डोंट वरी! बी रिलैक्स! आओ हम कौफी पीते हैं.’’ कहते हुए औफीसर ने  इंटरकाम पर कौफी का और्डर दिया.

तब तक औफीसर सोफे पर बैठते हुए राज से बोला, ”अरे, आओ न बैठो भी, इतने टेंशन में क्यों हो आखिर?’’

राज बैठ ही रहा था कि अचानक ही अंदर के रूम से कुछ आवाज आई.

”क्या है! कौन है अंदर?’’ कहता हुआ औफीसर उठ के अंदर रूम की ओर चल पड़ा.

राज एकदम उसे रोकते हुए बोला, ”प्लीज, आप ऐसा नहीं कर सकते! आप जो पूछने आए हैं, वो पूछ कर जाइए यहां से.’’

औफीसर ने सख्त लहजे में कहा, ”देखिए, मुझे अपना काम करने दें.’’

अंदर एक कुरसी पर सरिता रस्सी से बंधी हुई बैठी थी और उस के मुंह पर पट्टी बंधी थी.

तभी राज एकदम पीछे से आया और हाथ जोड़ कर बोलने लगा, ”प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए सर, मेरी बात तो सुन लीजिए एक बार.’’

औफीसर ने पहले सरिता को रस्सी से आजाद किया और मुंह पर बंधी पट्टी हटाई. हटते ही सरिता गुस्से से राज की ओर लपकी, पर तभी औफीसर ने सरिता को रोक दिया फिर राज से कहा, ”जल्दी से बताओ, आखिर ये सब क्या माजरा है?’’

राज कुछ पल चुप रहा फिर कहने लगा, ”सर, एक्चुअली जब मैं कालेज में था, तब बुरी संगत में पड़ कर ड्रग्स के चक्कर में पड़ गया. समय के साथ ये लत बढ़ती गई और मुझे हर समय ज्यादा से ज्यादा पैसों की जरूरत पडऩे लगी. अब मम्मीपापा को न मालूम हो, इसलिए मैं ने ड्रग्स की स्मगलिंग तक की और एक बार गल्फ कंट्री में पकड़ा भी गया. बड़ी मुश्किल से किसी तरह मैं वहां से आजाद हुआ और पेरेंट्स को यही बताया कि मैं स्टडी के सिलसिले में बाहर गया था.’’

औफीसर बोला, ”पर इन सब में सरिताजी और प्रिया ये सब कहां से आ गईं?’’

राज बोला, ”सर, अब मैं सब कुछ छोड़ चुका हूं और एक शरीफ जिम्मेदार इंसान बन कर अपनी लाइफ बिताना चाहता हूं. प्रिया को मैं दिलोजान से प्यार करता हूं. पर पता नहीं कैसे किसी को मेरे पास्ट के बारे में पता चल गया. जब मैं लंदन से इंडिया के लिए  निकलने ही वाला था कि मुझे कौल आया एक अनजान नंबर से. उसे मेरे बारे में सब पता है सर! और वो यह बात मेरे पेरेंट्स और मीडिया में लीक करने की धमकी दे रहा था. मैं ने बहुत रिक्वेस्ट की तो वो इस शर्त पर माना कि मैं किसी भी तरह प्रिया को रास्ते से हटा दूं. अब आप ही सोचिए सर, कि मैं कितनी मजबूरी में तैयार हुआ होऊंगा.’’

औफीसर ने घूरते हुए पूछा, ”तो क्या मीनू को तुम ने ही मारा है?’’

राज बोला, ”नहींनहीं सर! जिस दिन प्रिया और उस की फेमिली वाले यहां आने के लिए रवाना हुए थे, उसी दिन मुझे भी कौल आया कि मैं आधे रास्ते में ही प्रिया को किसी तरह मार दूं, पर मेरी हिम्मत न हुई और मैं ने बेहोशी का ड्रामा किया. बाद में फिर कब मीनू को किस ने मारा, मुझे नहीं पता. वह तो मुझे प्रिया का कौल आया कि मैं मुसीबत में हूं, मुझ से टेरेस पर आ कर मिलो तो मैं वहां जा कर उसे चुपचाप ले कर आ रहा था कि मैं ने सोचा कि क्यों न इसे बेहोश कर छिपा दूं कहीं पर, ताकि कातिल इस तक न पहुंच सके. मैं इसे अपने रूम तक लाने वाला था कि अचानक शोर मच गया और इसे सरिता के रूम में खाली देख सुलाने लगा कि सरिता बाथरूम से बाहर आई और मुझे यूं देख शोर मचाने लगी. तब मैं इतना डर गया था सर कि इन को पकड़ कर अपने रूम में ला कर बांध दिया.’’

औफीसर ने सोचते हुए कहा, ”कातिल जरूर प्रिया के ही परिवार से है. अब एक ही तरीका है उसे पकडऩे का कि हम ये सब बातें अभी छिपा के रखें. सरिताजी, आप प्लीज अभी इसी रूम में रहिए, आप को कुछ नहीं होगा और राज तुम भी यहीं रहोगे, ओके.’’ कह कर औफीसर नीचे आ गया, जहां सब सरिता को खोज रहे थे.

तभी धनराजजी बोले, ”हम सब इधर व्यस्त हैं, कहीं प्रिया को न कुछ हो जाए.’’

वीणा बोली, ”नहींनहीं, वहां पर तो अंजलि भाभी हैं.’’

औफीसर चुपचाप प्रिया के रूम की ओर दबे पांव चल पड़ा.

उस ने बिना आवाज किए एक विंडो के कर्टन से देखने की कोशिश की. अंदर का नजारा बड़ा ही भयानक था.

प्रिया बेहोश थी और उस के पास ही अंजलि दांत पीसते हुए अपने हाथों में रस्सी का फंदा तैयार कर रही थी.

वह फंदा डालती, इस के पहले ही औफीसर ने वहीं से उस के हाथ पर गोली चला दी. वह चीख के नीचे गिर पड़ी और इसी बीच औफीसर ने डोर लौक पर भी फायर कर दरवाजा खोला और अंदर चला गया.

उस ने कौल कर के तुरंत सब को यहां बुलाया.

सब वहां पहुचे तो देख कर दंग रह गए. अंजलि को रिवौल्वर की नोक पर रखा था औफीसर ने.

धनराजजी चिल्लाए, ”क्या हो रहा है ये?’’

औफीसर बोला, ”ये तो अंजलिजी बताएंगी हमें, क्यों बताएंगी न?’’

सख्त लहजे में कहते ही अंजलि जैसे फूट पड़ी, ”तो और क्या करती मैं? तुम्हारे पिताजी ने प्रिया के नाम 70 परसेंट जायदाद करने की शर्त पर तुम्हें पैसे दिए थे. शादी होते ही ये सब वो समेट कर ससुराल ले जाती. फिर मेरे और मेरी बेटी के पास क्या बचता.’’

औफीसर बोला, ”पर प्रिया भी तो आप की ही बेटी है.’’

अंजलि जहरीली हंसी हंसते हुए बोली, ”हां, सौतेली बेटी. मैं तो उसे बचपन में ही खत्म कर देती, पर वसीयत के हिसाब से इस के 21 वर्ष पूरे होने से पहले ही अगर ये मर जाती तो जायदाद ट्रस्ट के नाम हो जाती. इसीलिए इतना लंबा इंतजार किया. जब मुझे मेरी फ्रेंड के पति ने जो गल्फ में काम करते हैं, ने बताया कि राज ड्रग्स केस में मुजरिम है तो बस मैं ने सब सोच लिया कि कैसे राज को ब्लैकमेल कर के काम करवाना है. मैं ही प्रिया और राज को अनजान नंबर से कौल करती थी. वो तो उस मनहूस प्रिया को जाने क्या सूझा कि उस ने मीनू से अपना कमरा एक्सचेंज कर लिया. उफ्फ! मैं ने अपने ही हाथों अपनी बेटी मीनू का कत्ल कर दिया…’’ कह कर अंजलि रोने लगी.

यह सब सुन कर सब अंजलि को हिकारत भरी नजरों से देख रहे थे. विश्वास करना मुश्किल था कि कोई मां इस हद तक गिर सकती है.

धनराजजी बोले, ”मेरे पिताजी शुरू से तुम से शादी करने के खिलाफ थे. उन को शायद तुम्हारी बदनीयती का आभास हो गया था, इसीलिए उन्होंने प्रिया के नाम 70 परसेंट जायदाद रखवाई.’’

इतने में राज और सरिता भी नीचे आ गए.

राज ने सब से हाथ जोड़ कर माफी मांगी और बोला, ”मैं अपने अपराध की सजा तो पहले ही काट चुका था, पर सिर्फ अपने परिवार की बदनामी न हो, इस कारण ब्लैकमेल का शिकार बन गया.’’

औफीसर के इशारा करने पर साथ में मौजूद पुलिस फोर्स ने अंजलि को हिरासत में ले लिया.

शाम तक प्रिया को पूरी तरह होश आ गया था, जब उसे सब पता चला तो वह एकदम शौक्ड हो गई, ”ओह माम! आप ने ऐसा क्यों किया? काश! मुझ से सब अपने नाम पर करवा लेती तो आज मीनू जिंदा रहती.’’

धनराजजी ने उसे सांत्वना दी और बोले, ”अब ये सब भूल जाओ बेटी, नया सवेरा तुम्हारी राह देख रहा है, राज तुम्हें खुश भी रखेगा और महफूज भी! क्यों राज?’’

राज ने अपने हाथ जोड़ कर सिर झुका दिया और सब इसे बुरे सपने की तरह भूल कर प्रिया की शादी में लग गए

 

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