Crime News: नटवर लाल को गुजरे हुए जमाना हो गया, लेकिन उस के जैसी कहानी को आगे बढ़ाने वालों की अब भी कमी नहीं है. ऐसी ही महाठगी की कहानी सामने आई है गाजियाबाद से. दिल्ली में करीब डेढ़ सौ से ज्यादा देशों के दूतावास या उच्चायोग मौजूद हैं, लेकिन हर्षवर्धन जैन नाम के एक नटवर लाल ने गाजियाबाद में एक नहीं, बल्कि 4-4 फरजी दूतावास खोल डाले. इन फरजी दूतावासों के जरिए उस ने ऐसेऐसे गैरकानूनी कार्य किए कि…
राजधानी दिल्ली में दुनिया भर की करीब डेढ़ सौ एंबेसी, दूतावास या उच्चायोग मौजूद हैं. राजधानी दिल्ली की सीमा से सटा है यूपी का गाजियाबाद शहर. इसी शहर के पौश इलाके कविनगर में एक नहीं, बल्कि 4 देशों की एंबेसी खुली है और वहां हाई कमिश्नर साहब भी रहते हैं, कुछ समय पहले तक ये किसी को नहीं पता था.सलेकिन 22 जुलाई, 2025 की दोपहर कविनगर के केबी ब्लौक की 45 नंबर की आलीशान कोठी में अचानक पुलिस की गाडिय़ों का काफिला देख कर हड़कंप मच गया. शुरुआत में लोगों ने समझा कि यहां कोई वीआईपी आया है या कोई बड़ा राजनयिक. क्योंकि वह कोठी किसी आम इंसान की नहीं थी, बल्कि वहां एक नहीं 4 देशों का कांसुलेट था और वहां बाकायदा एक दूतावास चलता था.
क्योंकि कोठी के बाहर हाईप्रोफाइल नंबर प्लेट्स और बोनट के कोने पर अलगअलग देशों के झंडे लगी एक से बढ़ कर एक चमचमाती हुई लग्जरी गाडिय़ां खड़ी होती थीं. जबकि कोठी में अकसर सूटेडबूटेड लोगों आनाजाना भी लगा रहता था. और तो और कोठी की दीवार पर बाकायदा एंबेसी औफ वेस्ट आर्कटिक का ब्रास बोर्ड लगा हुआ था. ऐसे में हर किसी को लगता था कि शायद इस कोठी में किसी देश का दूतावास है, जहां से डिप्लोमेटिक एक्टिविटीज चलती हैं.
पुलिस की गाडिय़ों के आने के थोड़ी देर बाद ही पता चल गया कि इस कोठी में हर्षवर्धन जैन नाम का व्यक्ति 4-4 फरजी दूतावास चला रहा था. यूपी एसटीएफ की नोएडा टीम ने उस कोठी में चलने वाले नकली दूतावास का भंडाफोड कर दिया. जिस किराए की कोटी में हर्षवर्धन जैन दूतावास चला रहा था, उस की नेमप्लेट पर सुशील अनूप सिंह का नाम लिखा था. जांच से पता चला कि जैन का रैकेट विदेश में व्यापार और नौकरी के अवसरों में मदद का वादा कर के लोगों और कंपनियों को ठगने में शामिल था. वह फरजी कंपनियों के जरिए हवाला नेटवर्क भी चलाता था.
एसटीएफ का शिकंजा

कोठी के बाहर दूसरी नेमप्लेट, जो सुनहरे रंग की थी, उस पर एच.वी. जैन का नाम लिखा था और उस के आगे अंगरेजी में ‘ही’ लिखा था. ‘ही’ का मतलब ‘महामहिम’ होता है, जो एक औपचारिक सम्मानसूचक शब्द है, जो आमतौर पर राष्ट्रमंडल देशों में राजदूतों या उच्चायुक्तों जैसे उच्च पदस्थ अधिकारियों के लिए आरक्षित होता है. हर्षवर्धन जैन खुद को वेस्ट आर्कटिका का डिप्लोमैट बताता था. हालांकि दिल्ली का चाणक्यपुरी इलाका और दक्षिणी दिल्ली के कुछ इलाके में डिप्लोमैटिक एरिया है, जहां बहुत सारे देशों के दूतावास हैं और कांसुलेट रहते हैं. लेकिन दिल्ली से सटे गाजियाबाद के कविनगर में पिछले कई सालों से ये दूतावास चल रहा था और प्रशासन को भनक तक नहीं लगी, ये जान कर लोग दांतों तले अंगुलियां दबा रहे थे.
असल में हुआ यूं कि उत्तर प्रदेश के डीजीपी को एक बहुत प्रभावशाली व्यक्ति ने मिल कर शिकायत की थी कि गाजियाबाद के कविनगर में केबी 45 नंबर की 2 मंजिला किराए की आलीशान कोठी में वेस्ट आर्कटिका, पौल्विया, सबोर्गा और लोडोनिया जैसे काल्पनिक या माइक्रो नेशंस यानी स्वघोषित देशों का एक दूतावास चल रहा है. जहां का तामझाम तो दूतावासों जैसा ही है, लेकिन असल में काम लोगों को नौकरी के नाम पर विदेश भेजने और विदेश में व्यापार और नौकरी के अवसरों में मदद का होता था.

वह फरजी कंपनियों के जरिए हवाला नेटवर्क भी चलाता था. शिकायत करने वाले के किसी परिचित को विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर लाखों रुपए ले कर इस कथित अंबेसडर हर्षवर्धन जैन ने ठग लिया था. शिकायत चूंकि गंभीर थी, इसलिए डीजीपी ने इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंपते हुए एसएसपी सुशील घुले से अपनी निगरानी में जांच कराने को कहा.
बस, उसी दिन से जांच का सिलसिला शुरू हो गया. पहले कविनगर में बने इस कथित दूतावास के बारे में जानकारियां जुटाई गईं. इस के बाद मिनिस्ट्री औफ एक्सटर्नल अफेयर्स में जांच हुई, जहां पता लगा वेस्ट आर्कटिका नाम से कोई देश लिस्ट में है ही नहीं. न ही भारत सरकार ने देश के किसी हिस्से में इस तथाकथित देश को दूतावास खोलने की मंजूरी दी है.
बस फिर क्या था, एसटीएफ ने हर छोटीबड़ी जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी. एसटीएफ के एसएसपी घुले के नेतृत्व में नोएडा एसटीएफ के डिप्टी एसपी राजकुमार मिश्रा ने 22 जुलाई, 2025 को एक बड़ी टीम बना कर स्थानीय पुलिस की मदद से कविनगर की कोठी नंबर 45 की घेराबंदी कर दी. तब लोगों को वहां हुई छापेमारी में बाकी जानकारियां सामने आईं. बाद में पता चला कि हर्षवर्धन जैन का ठगी का ये पहला मामला नहीं था. इस से पहले भी वह ऐसा कर चुका है. कितने हैरत की बात थी कि फरजी दूतावास न सिर्फ खुला, बल्कि सालों तक बेरोकटोक चलता रहा. उसे पहचानने में जांच एजेंसियों को सालोंसाल लग गए.
दूतावास की आड़ में ठगी के इस पूरे औपरेशन के पीछे हर्षवर्धन जैन यानी कथित महामहिम का मुख्य उद्देश्य विदेशों में फरजी नौकरियों का झांसा दे कर लोगों से पैसे वसूलना, शेल कंपनियों के माध्यम से हवाला कारोबार और नकली पासपोर्ट और विदेशी मुद्रा का अवैध व्यापार के साथ निजी कंपनियों को विदेशी कनेक्शन दिलाने के नाम पर दलाली करना था. हैरान करने वाली बात यह है कि आरोपी हर्षवर्धन खुद को वेस्ट आर्कटिका, पौल्विया, सबोर्गा और लोडोनिया जैसे काल्पनिक या माइक्रो नेशंस यानी स्वघोषित देशों का राजदूत बता कर पिछले 3 सालों से 4 देशों का फरजी दूतावास चला रहा था.
इस फरजी दूतावास से एक नहीं, बल्कि 4-4 ऐसे देशों के राजनयिक औफिसों का संचालन किया जा रहा था. उदाहरण के लिए वेस्ट आर्कटिका नाम के इस देश को ही लीजिए, जिस की एंबेंसी होने का बोर्ड इस कोठी की दीवार पर लगा था. जब इस नाम को गूगल पर सर्च किया गया तो पता चला कि ये वेस्ट आर्कटिका दरअसल एक ऐसा एनजीओ है, जो पर्यावरण सुरक्षा के लिए काम करता है. लेकिन कमाल ये है कि यहां एनजीओ को ही मुल्क का नाम दे कर उस का दूतावास खोल कर ठगी का धंधा बदस्तूर चल रहा था.
उस ने सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को भी चौंका दिया. वो खुद को ऐसे देशों का राजदूत बताता था, जो असल में दुनिया के नक्शे पर अस्तित्व ही नहीं रखते. अगर गूगल पर सबोर्गा सर्च करें तो पता चलेगा कि ऐसा कोई देश ही नहीं है, बल्कि एक गांव और माइक्रो नेशन है, जिसे देश का दरजा नहीं मिला है. दूसरा नाम था पौल्विया जिसे सर्च करने पर कुछ लोगों के नाम का टाइटल मिलता है. इसी तरह जब लोडोनिया सर्च किया जाता है तो ये एक लैब का नाम निकला.
हर्षवर्धन जैन खुद को ऐसे ही ‘माइक्रो नेशन’ या फरजी देशों का राजदूत बताता था. हर्षवर्धन ने पूरा सेटअप कविनगर स्थित किराए की कोठी में खड़ा कर रखा था, जिस की बनावट और साजसज्जा किसी असली दूतावास से कम नहीं थी. सफेद रंग की इमारत, नीली नंबर प्लेट वाली लग्जरी गाडिय़ां और आलीशन घर के बाहर लगे अलगअलग देशों के झंडे देख कर कोई भी धोखा खा सकता था कि यह कोई वैध विदेशी दूतावास है. 47 साल का हर्षवर्धन जैन कोई मालूमी आदमी नहीं है. वह काम बेशक ठगी का कर रहा था, लेकिन उस का ताल्लुक एक अच्छे परिवार से है. उस के पिता जे.डी. जैन एक जानेमाने इंडस्ट्रियलिस्ट रहे हैं, जो गाजियाबाद के जैन रोलिंग मिल के मालिक थे.
जैन परिवार का राजस्थान समेत कई राज्यों में मार्बल और माइनिंग का भी काम था. उन की अचानक मौत होने से बिजनैस को काफी नुकसान हुआ और आर्थिक स्थिति खराब हो गई. हर्षवर्धन जैन का ट्रैक तब चेंज हो गया, जब उस की मुलाकात विवादास्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी से हुई. वो चंद्रास्वामी से साल 2000 में मिला, जिस ने उस की मुलाकात आम्र्स डीलर अदनान खशोगी और लंदन के रहने वाले एहसान अली सैयद से करवाई.
जिस के साथ मिल कर हर्षवर्धन जैन ने लंदन में 12 फरजी कंपनियां बनाईं और लाइजनिंग यानी दलाली का काम शुरू कर दिया. वह चंद्रास्वामी के काले धन को ठिकाने लगाने लगा. वहीं चंद्रास्वामी की मौत के बाद हर्षवर्धन टूट गया. इस के बाद गाजियाबाद लौट आया. इस के बाद वह ऐसे ही संदिग्ध लोगों के साथ मिलताजुलता रहा और दलाली के जरिए पैसे कमाता रहा. साल 2012 में उस के पास से पुलिस ने एक सैटेलाइट फोन बरामद किया था. तब भी उस ने खुद को एक सबोर्गा नाम के फरजी देश का एडवाइजर और वेस्ट आर्कटिक समेत कई ऐसे ही काल्पनिक देशों का एंबेसेडर बताया था.
ऐसे हुआ ट्रैक चेंज
हर्षवर्धन जैन की शुरुआती पढ़ाई और निजी जिंदगी के बारे में पुलिस को ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन उस ने पुलिस को बताया कि गाजियाबाद के इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी ऐंड साइंस (आईटीएस) से उस ने एमबीए किया. इस के अलावा लंदन के कालेज औफ अप्लाइड साइंस से भी उस ने एमबीए किया है. उस ने फ्रांस से पीएचडी की डिग्री हासिल की है. हर्षवर्धन जैन ने अपनी एक मायावी दुनिया बना ली थी. वह खुद को वेस्ट आर्कटिका का कांसुलेट जनरल बताता था. छापा पडऩे से कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया अकाउंट पर क्लेम किया गया कि वह साल 2017 से कांसुलेट चला रहा है और लगातार चैरिटी करता है.
हकीकत यह थी कि हर्षवर्धन एक उच्चश्रेणी का नटवर लाल ठग था, जिस ने ठगी के लिए ही फरजी दूतावास खोला और खुद को राजनयिक घोषित किया. वह महंगी कारों पर फेक डिप्लोमेटिक नंबरों की वजह से वह लगातार सिक्योरिटी चैक से बचता रहा. उस के ठगी और हवाला कारोबार के काले धंधे की मौडस आपरेंडी भी गजब थी. फरजी दूतावास के बाहर खड़ी गाडिय़ां और गाडिय़ों में लगी डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट अपनी कहानी खुद बयान करते थे. गाडिय़ों में जो जेनुइन नंबर प्लेट थी, वो तो थी हीं, लेकिन उस के साथसाथ एक दूतावासनुमा नंबर प्लेट भी लगा दी गई थी. जबकि सचमुच के नंबर को प्रौपर प्लेट की जगह ब्लू कलर की प्लेट पर लिखा गया, ताकि लोगों को देखते ही ये गुमान हो जाए कि ये गाडिय़ां किसी दूतावास की हैं.
और तो और, प्रभाव जमाने के लिए गाडिय़ों पर अलगअलग फरजी देशों के झंडे भी लगा दिए गए. एक बार जब शिकार हर्षवर्धन जैन की इन्हीं तामझाम को देख कर उस के झांसे में फंस जाता था तो फिर उसे लूटना उस के लिए आसान हो जाता था.
हस्तियों के साथ फर्जी फोटो
हर्षवर्धन के पास से 4 डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट लगी लग्जरी गाडिय़ां, 12 फरजी डिप्लोमैटिक पासपोर्ट और विदेश मंत्रालय की नकली मोहरें बरामद की गईं. यही नहीं, उस के पास 34 अलगअलग विदेशी कंपनियों और देशों की मोहरें, फरजी प्रैस कार्ड, पैन कार्ड मिले हैं. इस के अलावा कई फारेन करेंसी और कुल 18 डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट भी बरामद की गईं. हर्षवर्धन के घर की एक अलमारी से यूपी एसटीएफ को 5 करोड़ रुपए की 12 घडिय़ां मिली हैं. घर के बाहर जो 4 लग्जरी कारें खड़ी हुई थीं, उन में मर्सिडीज, हुंडई की सोनाटा कारें शामिल थीं. उस के पास से 44 लाख रुपए की नकदी भी बरामद हुई.
हर्षवर्धन लोगों को झांसे में लेने के लिए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और अन्य वीआईपी हस्तियों के साथ मार्फ की हुई तसवीरों का इस्तेमाल करता था. ये तसवीरें उस ने दीवारों पर और अलबम में लगा रखी थीं. सोशल मीडिया और वेबसाइट्स पर इन्हीं फरजी फोटोज के जरिए लोगों को बातों में फंसाता था और उन्हें झांसे में ले कर विदेशों में काम दिलाने के नाम पर बड़ी दलाली करता था. हर्षवर्धन ने फरजी दूतावास वाली इस कोठी को किराए पर ले रखा था, जबकि वो इसी कविनगर इलाके में थोड़ी ही दूरी पर एक दूसरी कोठी में रहता था. पुलिस को छापेमारी के दौरान अंदर से जो चीजें मिलीं, उस ने इस का इशारा दे दिया कि आखिर वो यहां से कर क्या रहा था.
कोठी से जो 20 जोड़ी फरजी डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट मिले, उस से साबित होता है कि वो इन नंबर प्लेट्स को जरूरत के मुताबिक किसी भी गाड़ी में लगा कर उस का इस्तेमाल लोगों पर प्रभाव डालने के लिए करता था. ठीक इसी तरह जब जहां जैसी जरूरत होती, फरजी काड्र्स, दस्तावेज और मार्फ की गई तसवीरों के जरिए वैसे ही लोगों को प्रभाव में ले लिया जाता था. यानी साफसीधे शब्दों में कहें तो ये ठगी की वो प्राइवेट लिमिडेट कंपनी थी, जिस में हर्षवर्धन जैन जब जैसा जी चाहे, करता था.
एसटीएफ के अनुसार, आरोपी हर्षवर्धन का मुख्य काम विदेश में नौकरी के नाम पर दलाली, फरजी दस्तावेज बनवाना और शेल कंपनियों के माध्यम से हवाला ट्रांजैक्शन करना है. एसटीएफ की काररवाई के बाद कविनगर थाने में आरोपी हर्षवर्धन के खिलाफ बीएनएस की ठगी की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया गया है. और यह पता लगाने के लिए पूछताछ शुरू हुई कि उस का नेटवर्क कहां तक फैला हुआ है और अब तक कितने लोगों को वह अपने जाल में फंसा चुका है.
पुलिस और जांच एजेंसियां अब इस पूरे नेटवर्क को खंगालने में जुट गई हैं. यूपी एसटीएफ की नोएडा यूनिट यह पता लगाने में जुटी है कि यह पूरा रैकेट अकेले हर्षवर्धन जैन चला रहा था या इस के पीछे कोई संगठित गैंग भी शामिल है. एसटीएफ के छापे के दौरान फरजी दूतावास से टीम को एक डायरी बरामद हुई है, जिस में आरोपी हर्षवर्धन के जीवन का लेखाजोखा मिला. उस में कई देशों के लोगों के नाम और फोन नंबर भी लिखे हैं. विदेशों में कितनी कंपनियां हैं और कितने बैंक खाते हैं, पैसों का लेनदेन और निजी जानकारी भी इस डायरी में हर्षवर्धन ने लिख रखी है.
इस डायरी में 2 दरजन से अधिक स्थानीय लोगों के नाम और नंबर हैं. इन में से कुछ सफेदपोश और कुछ ऐसे आपराधिक प्रवृत्ति के लोग हैं, जो धोखाधाड़ी के मामले में जेल जा चुके हैं. डायरी में हर्षवर्धन जैन और उस की पत्नी डिंपल जैन के बैंक अकाउंट की भी जानकारी मिली है.
विदेशों से मिला फंड
साथ ही विदेशियों के नाम, नंबर, देश, पता आदि भी दर्ज हैं. इस में मिली तमाम जानकारी खुद हर्षवर्धन ने लिखी है. पुलिस की मानें तो हर्षवर्धन द्वारा विदेशों में धोखाधड़ी करने और कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से भी संबंध उजागर हुए हैं. बैंक अकाउंट से कौन से देश से कितनी धनराशि आई, किस ने भेजी इस का भी हवाला इस डायरी में है. डायरी में किराए की कोठी का भी उल्लेख है. पुलिस जांच के मुताबिक 5 महीने पहले सुशील अनूप सिंह से 1000 गज की कोठी का किराया 80 हजार रुपए प्रतिमाह तय है. इस एग्रीमेंट में हर्षवर्धन के साले और शहर के एक नामचीन व्यक्ति के हस्ताक्षर हैं. पत्नी डिंपल जैन के खाते से सुशील अनूप सिंह को किए गए किराए के भुगतान का भी विवरण दर्ज है.

हर्षवर्धन की पत्नी डिंपल जैन दिल्ली के चांदनी चौक में चांदी और उस की ज्वैलरी का कारोबार करती है. इस डायरी में इस का भी उल्लेख किया गया है. डिंपल जैन के बैंक खाते और लेनदेन का ब्यौरा भी दर्ज है. कविनगर पुलिस अब पत्नी के कारोबार की भी जांच करेगी. कविनगर में स्थित यह कोठी रालोद से 2 बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अनूप सिंह के बेटे सुशील की है. शहर के धनाढ्य लोगों में शामिल समाजसेवी सुशील कुमार ने एसटीएफ को बताया कि जैन ने कोठी को किराए पर एग्रीमेंट से लिया था.
हर्षवर्धन जैन ने खुद को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने और प्रभाव जमाने के लिए माइक्रो नेशंस (स्वघोषित देशों) का सहारा लिया. असल में माइक्रो नेशन देश एक फलसफा, जिस में असल कुछ भी नहीं होता. साल 2001 में एक अमेरिकी नागरिक ने अंटार्कटिका के एक कोने को अपना देश बनाने का दावा किया और नाम दिया वेस्ट आर्कटिका. लेकिन यूनाइटेड नेशंस समेत भारत के लिए ये कोई देश नहीं. जैन ने इसी क्लेम का फायदा उठाते हुए खुद को वेस्ट आर्कटिका का राजनयिक घोषित कर दिया.
परतदरपरत ऐसे खुले राज
वर्ष 2012 में सबोर्गा नामक एक माइक्रो नेशन यानी स्वघोषित देश ने हर्षवर्धन को भारत में अपना एडवाइजर नियुक्त किया था. इस के बाद 2016 में ऐसे तथाकथित देश वेस्ट आर्टिका ने भी हर्षवर्धन को अवैतनिक एंबेसडर बनाया. इसी तरह पौल्बिया और लोडोनिया नामक अन्य माइक्रो नेशंस ने भी उसे राजनयिक पद दिया. इन तथाकथित पदों का इस्तेमाल कर हर्षवर्धन ने लोगों को विदेशों में काम दिलाने का झांसा दे कर मोटी रकम वसूली के लिए शुरू कर दिया.
कुल मिला कर कहें तो वह फरजी दूतावास की आड़ में हवाला कारोबार और दलाली का रैकेट चला रहा था. एसटीएफ के इंसपेक्टर सचिन कुमार, जो इस मामले की जांच कर रहे हैं, ने बताया कि जैन के फरजी दूतावास में लगे कई देशों के झंडे सिर्फ कल्पना लोक में है. उन्हें किसी देश या यूएन से कोई मान्यता नहीं मिली हुई है. हां, स्वघोषित देश ने जरूर इसे अपना फ्लैग घोषित किया हुआ है. असली वाणिज्य दूतावास का आभास देने के लिए परिसर में नियमित रूप से इन झंडों को फहराया जाता था.
एसटीएफ को अब तक उस की 25 शेल कंपनियों और बैंक खातों की जानकारी मिल चुकी है. इन कंपनियों का संबध एहसान अली सैयद से भी है, जो हैदराबाद का निवासी है. इस ने तुर्किश नागरिकता ले ली है. चंद्रास्वामी ने हर्षवर्धन जैन को एहसान अली सैयद के पास ही लंदन भेजा था. हर्षवर्धन ने इस के साथ मिल कर लंदन में कई शेल कंपनियां बनाईं. एसटीएफ को इस मामले की जांच के दौरान मिले दस्तावेजों से अब तक उस की 25 से अधिक कंपनियों के बारे में

जानकारी मिली है, जिन का डाटा हर्षवर्धन के पास था. जिस में यूके में स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन लिमिटेड, ईस्ट इंडिया कंपनी यूके लिमिटेड तथा यूएई आईसलैंड जनरल ट्रेडिंग कंपनी एलएलसी तथा मारिशस में इंदिरा ओवरसीज लिमिटेड, अफ्रीकी देश कैमरून में कैमरून इस्पात सरल होना ज्ञात हुआ है. हर्षवर्धन जैन के दुबई (यूएई) में 6, मारिशस में एक तथा यूके में 3 तथा भारत में एक बैंक खातों की भी जानकारी मिली है. इन बैंक खातों में हुए लेनदेन के संबंध में भी जानकारी जुटाई जा रही है.
हर्षवर्धन जैन के 2 पैन कार्ड भी संज्ञान में आए हैं, जिन के आधार पर खोले गए बैंक खातों एवं विदेशों में जो खाते प्रकाश में आए हैं, उन के संबंध में भी जांच की जा रही है. पासपोर्ट से मिले रिकौर्ड के अनुसार, खुलासा हुआ है कि उस ने वर्ष 2005 से 2015 के बीच 10 सालों में 162 बार विदेश की यात्रा की. इस दौरान वह 19 देशों में गया. वह सब से अधिक 54 बार यूएई गया. इस के अलावा 22 बार यूके की यात्रा की. इस के साथ ही उस ने मारीशस, फ्रांस, कैमरून, पोलैंड, श्रीलंका, टर्की, इटली, सबोर्गा, इंडोनेशिया, सऊदी अरब, सिंगापुर, मलेशिया, जर्मनी और थाइलैंड आदि देशों की यात्रा की.
इस जानकारी के बाद पासपोर्ट और उस के बाद हुई विदेश यात्राओं का डाटा जुटाने में एसटीएफ की टीमें लगी हैं. एसटीएफ की टीमें 300 करोड़ से अधिक के एक घोटाले की भी जांच कर रही हैं, जिस में हर्षवर्धन की संलिप्तता रही है. यह घोटाला विदेश में लोन दिलाने के नाम पर किया गया. इस के अलावा भी कुछ अन्य घोटालों को ले कर जांच चल रही हैं.
एसटीएफ के डीएसपी राजकुमार मिश्रा ने बताया कि हर्षवर्धन जैन के खिलाफ उन्होंने इंटरपोल को ब्लू कार्नर नोटिस जमा कराया है. इसके जरिए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ पूरी दुनिया में कहीं भी दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी हासिल की जाती है. उसी आधार पर उससे आगे जांच और पूछताछ भी की जानी है. फिलहाल दूतावास के नाम पर ठगी का मास्टरमाइंड हर्षवर्धन जैन डासना जेल में बंद है.
फरजी दूतावास चलाने में स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत या लापरवाही
लंबे समय तक किसी देश में फरजी दूतावास चलाना वाकई गंभीर बात है. लेकिन सवाल है कि ऐसा क्यों हो जाता है. क्या सिस्टम को बायपास कर दूतावास जैसी संस्था भी बनाई जा सकती है? क्या किसी देश में दूतावास खोलने के कोई नियम नहीं या फिर खुलने के बाद उस की जांच नहीं होती? और जब नकली पासपोर्ट जैसी चीजें पकड़ में आ जाती हैं तो पूरा का पूरा फरजी दूतावास कैसे टिका रह गया?
दरअसल, दूतावास किसी देश की तरफ से दूसरे देश में खोला गया आधिकारिक दफ्तर होता है, जहां गेस्ट नेशन के प्रतिनिधि काम करते हैं. यह एक बेहद औपचारिक प्रक्रिया होती है, जिसमें दोनों देशों के विदेश मंत्रालय शामिल होते हैं. दूतावास के मुख्य अधिकारी राजनयिक कहलाते हैं, जिन्हें डिप्लोमेटिक इम्युनिटी मिली होती है. एंबेसी 2 देशों के बीच पुल का काम करता है. यहीं से वीजा जारी होता है. इस के अलावा अगर होस्ट देश में कोई समस्या आ जाए तो दूतावास अपने नागरिकों को मदद करता है.
अगर कोई फरजी देश के नाम पर एंबेसी बना ले तो क्या वो तुरंत शक में नहीं आएगा? असल में दूतावास के लिए जो तामझाम चाहिए, अगर शख्स वो सब जुटा सके तो तुरंत किसी को शक नहीं होगा. जैसे एंबेसी हमेशा पौश इलाके में होती है. नकली झंडा चाहिए होता है, जो असल जैसा लगे. नकली आईडी, डिप्लोमैटिक नंबर वाली गाडिय़ां और कुछ स्टाफ, जो कनविंसिंग लगे. कई बार लोग नकली देश के डिप्लोमैट बन जाते हैं तो कई बार असल देश के नाम पर भी झांसा देने लगते हैं.
ऐसा एक बेहद चर्चित केस घाना में आया था. लगभग एक दशक पहले राजधानी अक्रा में फरजी अमेरिकी दूतावास चल रहा था. ये कुछ दिन या महीनों नहीं, बल्कि पूरे दस सालों तक चलता रहा. यहां से नकली वीजा जारी किए जाते थे. ठगी का काम एक इंटरनैशनल गिरोह कर रहा था, जिस में वकील और जाली दस्तावेज बनाने वाले भी शामिल थे. मजेदार बात ये है कि गिरोह ने असली वीजा भी जारी किए थे, मतलब असल अमेरिकी दूतावास में भी उन के कुछ लोग थे.
भारत में भी 2022 में कोलकाता के पास एक नकली बांग्लादेशी एंबेसी का पता लगा था. खुद को कांसुलेट जनरल बताने वाला एक स्थानीय शख्स बांग्लादेश से भारत और भारत से बांग्लादेश भेजने के लिए नकली दस्तावेज बनाता और आर्थिक घपले भी करता था. वैसे एंबेसी नकली है या असली, इस की जांच 2 स्तरों पर होती है. एक तो खुद होस्ट देश की जिम्मेदारी है कि वो अपने यहां काम कर रहे सभी दूतावासों और मिशनों पर नजर रखे.
मिनिस्ट्री औफ एक्सटर्नल अफेयर्स और इंटरनेशनल सिस्टम जैसे यूएन या वीजा वैरिफिकेशन सिस्टम के पास भी वैलिड दूतावासों की लिस्ट होती है. इस के बाद भी फरजी एंबेसी लंबे समय तक इसलिए बची रहती है, जब लोकल स्तर पर कुछ भ्रष्ट अधिकारी उस के साथ हों. कई बार अधिकारियों या स्थानीय पुलिस को भी खास जानकारी नहीं होती कि दूतावासों का सिस्टम कैसे काम करता है. इसके अलावा नकली दस्तावेज भी इतने असली लगते हैं कि पहली नजर में शक की गुंजाइश कम ही रहती है.
दूतावास का क्लेम करने वाले लोग बात करते हुए बड़े नाम लेते हैं, बड़े संपर्कों का हवाला देते हैं. यह सब इतना पेशवेर लगता है कि लोग इन पर आसानी से हाथ नहीं डालते और फरजी एंबेसी भी सालों टिक जाती है. विएना कन्वेंशन आन डिप्लोमेटिक रिलेशंस 1961 के मुताबिक, कोई भी दूतावास तभी वैध माना जाएगा, जब होस्ट देश की सहमति से खोला गया हो. इसी तरह से किसी को डिप्लोमैट या कांसुलेट जनरल तब माना जाता है, जब उसे गेस्ट देश ने खुद अधिकृत किया हो.
ऐसे में अगर कोई खुद ही दूतावास खोल ले तो ये गंभीर अपराध है. इस पर जालसाजी की धाराएं तो लगेंगी ही, साथ ही अगर वो लोगों को धोखे से विदेश भेज रहा हो तो मानव तस्करी का आरोप भी लग सकता है. अगर शख्स के साथ विदेशी लोग मिले हों तो देश की सुरक्षा पर खतरा भी माना जा सकता है. Crime News






