Family Dispute: शफीक की तीसरी बीवी नगमा उस के निकम्मेपन से तो परेशान थी ही, उस ने उस की मां के 5 लाख रुपए भी हड़प लिए थे. ऐसे पति से छुटकारा पाने के लिए उस ने जो किया, क्या वह उचित था?
24 वर्षीया नगमा खान अपने मातापिता की एकलौती संतान थी. नगमा के पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही पिता का साया उस के सिर से उठ गया था. मां ने छोटामोटा काम कर के उस की परवरिश की. बिना बाप की बेटी नगमा पर मोहल्ले के तमाम लड़कों की नजरें टिकी रहती थीं. बेटी के साथ कहीं कुछ ऐसावैसा न हो जाए, यह सोच कर मां ने जल्दी ही उस का निकाह आसिफ खान से करा दिया. आसिफ खान अशफाक खान का बेटा था. परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे और बेटियां थीं. सभी बेटों और बेटियों का उन्होंने निकाह कर दिया था. परिवार में सुमति थी, लेकिन परिवार बड़ा होने की वजह से सभी अपनेअपने बालबच्चों के साथ अलगअलग घरों में रहते थे.
अशफाक खान के बेटों में पहला तौकीर खान, दूसरा तौफीक खान, तीसरा शफीक खान और चौथा बेटा आसिफ खान था. उन के चारों बेटों में शफीक खान अन्य भाइयों से अलग था. वह कोई कामधंधा करने के बजाय अपने आवारा दोस्तों के साथ दिनभर इधरउधर आवारागर्दी किया करता था. रंगीनमिजाज होने की वजह से शफीक ने 3-3 शादियां की थीं. उस के व्यवहार से तंग आ कर उस की पहले की दोनों बीवियां उसे छोड़ कर अपनेअपने मायके में रह रही थीं. 6 महीने से वह अपनी तीसरी बीवी नगमा के साथ किराए के मकान में रह रहा था. नगमा शफीक के छोटे भाई आसिफ की बीवी थी. लेकिन उस से उस का तलाक हो चुका था. तब शफीक ने उस से तीसरी शादी कर ली थी.
नगमा और आसिफ खान का जब निकाह हुआ था, तब कुछ दिनों तक तो दोनों ठीकठाक, हंसीखुशी से रहे. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे नगमा की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती गईं. अकसर वह पति से किसी न किसी महंगे समान या खानेपीने की चीजों की फरमाइश करने लगी. जबकि आसिफ को यह सब पसंद नहीं था. नगमा की इन्हीं हरकतों से तंग आ कर आखिर एक दिन उस ने नगमा को तलाक दे दिया. आसिफ से आजादी मिलने के बाद कुछ दिनों तक नगमा इधरउधर भटकती रही. इस के बाद उस ने अपने ही मोहल्ले के रहने वाले अपनी उम्र से 5 साल छोटे सरवर उर्फ मोनू से निकाह कर लिया. कुछ दिनों तक तो नगमा सरवर के साथ हंसीखुशी से रही. सरवर ने भी नगमा के हर सुखदुख का ध्यान रखा था. उसी बीच वह एक बेटे की मां बनी.
कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चला, लेकिन कुछ दिनों के बाद नगमा का आकर्षण सरवर के प्रति कम होता गया. दोनों के बीच छोटीछोटी बातों और घरेलू खर्च को ले कर कहासुनी होने लगी थी. इस क्लेश से परेशान हो कर नगमा सरवर का घर छोड़ कर अपनी मां के साथ आ कर रहने लगी. नगमा मां के साथ रह रही थी, तभी उस की मुलाकात पहले शौहर आसिफ के बड़े भाई शफीक से हुई. रंगीनमिजाज शफीक ने अपनी लच्छेदार और मीठीमीठी बातों से नगमा का मन मोह लिया. इस के बाद उस ने यह कह कर नगमा को अपने साथ रख लिया कि वह जल्दी ही उस से निकाह कर लेगा.
इस मामले में नगमा की मां ने उसे बहुत समझाया, लेकिन उस पर शफीक के प्रेम का भूत इस तरह सवार था कि उस ने मां की बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया. बिना निकाह किए ही वह शफीक के साथ रहने लगी थी. इस बात का शफीक की दोनों बीवियों ने ही नहीं, घरवालों ने भी विरोध किया, लेकिन शफीक ने सभी के विरोध को नजरअंदाज कर दिया. कुछ दिनों तक शफीक ने नगमा को खूब अच्छी तरह रखा. बाद में एकएक पैसे के लिए मोहताज रहने लगी. अब उसे सरवर को छोड़ कर शफीक के साथ आने का पछतावा होने लगा.
दूसरी एक बात उसे इस से भी ज्यादा परेशान कर रही थी. दरअसल शफीक ने नगमा की मां से 5 लाख रुपए यह कह कर ले लिए थे कि वह उसे एसआरए में चल रही योजना के अंतर्गत घर दिला देगा. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. उस ने वे पैसे भी मौजमस्ती में उड़ा दिए. नगमा जब भी अपनी मां के पैसे लौटाने को कहती, वह उस के साथ मारपीट करने लगता. इस स्थिति में वह जब कभी सरवर से मिलती, उस से सारी परेशानियां बता कर मन का बोझ हलका कर लेती. इसी के साथ उसे छोड़ देने का अफसोस भी जाहिर करती. क्योंकि अब उसे लगता था कि सरवर जैसा भी था, शफीक से तो ठीक ही था.
30 जनवरी की रात साढ़े 10 बजे शफीक घूम कर लौटा तो बैडरूम में नगमा को सरवर के साथ हंसहंस कर बातें करते देखा. इस बात से उस का खून खौल उठा. वह सरवर को गालियां देते हुए उस से मारपीट करने लगा. नगमा को शफीक की यह हरकत अच्छी नहीं लगी. वह दोनों को अलग करने लगी तो शफीक ने उसे भी गाली दे कर गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया. तमाचा इतना जोरदार था कि नगमा के मुंह से खून निकल आया. नगमा को यह बात बरदाश्त नहीं हुई और वह भी आपा खो बैठी. क्योंकि वह पहले से ही शफीक की हरकतों से परेशान थी. उसी का नतीजा था कि उस ने तुरंत एक क्रूर फैसला ले लिया. वह दौड़ कर बाथरूम में गई और वहां रखी कपड़ा धोने वाली मुंगरी उठा लाई.
शफीक सरवर से उलझा था इसलिए उस ने नगमा की ओर ध्यान नहीं दिया. इसी का फायदा उठा कर नगमा ने पीछे से उस के सिर पर मुंगरी से जोरदार वार कर दिया. वार इतना जोरदार था कि शफीक संभल नहीं सका और लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ा. इस के बाद सरवर को मौका मिल गया और वह शफीक पर पिल पड़ा. सरवर ने शफीक को इतना मारा कि वह बेहोश हो गया. नगमा और सरवर ने शफीक के साथ जो किया था, होश आने पर वह उन के साथ कुछ भी कर सकता था. इस से बचने के लिए दोनों ने उस के गले में रस्सी लपेट कर कस दी, जिस से शफीक की मौत हो गई.
शफीक को दोनों ने गुस्से में मार तो दिया, लेकिन गुस्सा शांत हुआ तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ. अब उन्हें जेल जाने का डर सताने लगा. अब उन्हें शफीक की लाश को ठिकाने लगाने की चिंता सताने लगी. काफी सोचविचार कर सरवर शेख ने अपने दोस्त सोहेल मिर्जा को फोन कर के वहां बुलाया और लाश को ठिकाने लगाने में मदद मांगी. सोहेल ने मदद के लिए हामी भर दी तो सरवर और नगमा ने शफीक की लाश को एक चादर में लपेट दिया. इस के बाद सरवर उस लाश को उसी की मोटरसाइकिल से, जो वह अपने भाई की मांग कर लाया था, से रफीकनगर डंपिंग यार्ड में ले आए. लाश की शिनाख्त न हो सके, इस के लिए उन्होंने उस पर पहले मिट्टी का तेल, उस के बाद पेट्रोल डाल कर आग लगा दी.
31 जनवरी की सुबह 8 बजे महानगर मुंबई के उपनगर चेंबूर थाना शिवाजीनगर के सीनियर इंसपेक्टर बाला साहेब जाधव को पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि रफीकनगर के डंपिंग यार्ड में एक लाश जल रही है, जिस के आसपास आग फैली है. सूचना मिलते ही वह तुरंत हरकत में आ गए. तुरंत सारी औपचारिकताएं निभा कर वह सहायक इंसपेक्टर संजय दलवी, विकास भुजबल, नितिन भाट, सबइंसपेक्टर आनंद वागड़े, कांस्टेबल सुनील कलपीकट्टे, जनार्दन इंदुलकर, नारायन धड़म, संभाजी पोटे और सुनील निवालकर को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.
प्राप्त सूचना के अनुसार लाश आग में जल रही थी, इसलिए चलने से पहले उन्होंने मामले की जानकारी फायरब्रिगेड को भी दे दी थी. फायरब्रिगेड की गाडि़यों ने घटनास्थल पर पहुंच कर आग को काबू में कर लिया था. पुलिस टीम के पहुंचने तक लाश इस तरह जल चुकी थी कि उसे पहचाना नहीं जा सकता था. इंसपेक्टर बाला साहब जाधव सहायकों के साथ लाश का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर परिमंडल-7 के एडिशनल सीपी संग्राम सिंह निशायदार, एसीपी प्रकाश निलवाड़ आदि पुलिस फोटोग्राफर और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के साथ वहां पहुंच गए.
प्रेस फोटोग्राफर और क्राइम टीम का काम खत्म हो गया तो इन पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल एवं लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद उन्होंने बाला साहेब जाधव से विचारविमर्श कर के उन्हें कुछ निर्देश दिए. अधिकारियों के जाने के बाद बाला साहेब जाधव सबूत जुटाने में जुट गए. लेकिन लाश की स्थिति ऐसी थी कि वह कुछ कर नहीं सके. मदद के लिए उन्होंने शहर के ही सायन अस्पताल के डा. ढेरे को बुला कर उन्हीं की मदद से लाश को पोस्टमार्टम के लिए मुंबई उपनगर घाटकोपर के राजावाड़ी अस्पताल भिजवाया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला मृतक पुरुष था और उसे गला घोंट कर मारा गया था. सबूत नष्ट करने के लिए लाश पर पेट्रोल और मिट्टी का तेल डाल कर जलाया गया था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर बाला साहेब जाधव ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करा कर मामले की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर संजय दलवी और विकास भुजबल को सौंप दी थी. इस मामले में सब से बड़ी समस्या थी लाश की शिनाख्त. बिना शिनाख्त के जांच एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकती थी. इस के लिए संजय दलवी ने शहर के सभी पुलिस थानों में संदेश भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. जब किसी थाने से कोई सूचना नहीं मिली तो मामला पेचीदा हो गया. दिन बीत रहे थे और अधजली लाश के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था.
जब कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो संजय दलवी और विकास भुजबल ने अपने सभी साथियों को मृतक के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. उन की यह कोशिश रंग लाई. घटनास्थल के आसपास पूछताछ में उन्हें एक व्यक्ति ने बताया कि रात के 3-4 बजे के बीच वह डंपिंग यार्ड में शौच के लिए बैठा था तो वहां सफेद रंग की एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. उस से 2 लोग आए थे. पीछे बैठे आदमी के कंधे पर एक बड़ी गठरी थी. उसे वे डंपिंग यार्ड में ले आए और उसे एक जगह रख कर उस पर मिट्टी का तेल या पेट्रोल डाल कर आग लगा दी.
यह सब वह इसलिए चुपचाप बैठा देखता रहा, क्योंकि उस समय उस के पास काफी पैसे और महंगा मोबाइल फोन था. उसे डर लग रहा था कि पता नहीं वे किस तरह के आदमी हैं. उन के जाने के बाद वह भी चुपचाप वहां से चला गया था. थाना शिवाजीनगर पुलिस तो इस मामले की जांच में रातदिन एक किए ही थी, दूसरी ओर क्राइमब्रांच यूनिट-6 की टीम भी इस मामले से रहस्यों का परदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी. मगर कामयाबी शिवाजीनगर पुलिस के हाथ लगी.
संजय दलवी की टीम सफेद रंग की उस मोटरसाइकिल की खोज में लग गई, जिस से लाश को डंपिंग यार्ड तक लाया गया था. संयोग देखो, जिस मोटरसाइकिल के बारे में पुलिस पता कर रही थी, उस मोटरसाइकिल को थाना चेंबूर पुलिस बरामद कर चुकी थी. चेंबूर के किसी दुकानदार ने फोन कर के सूचना दी थी कि सफेद रंग की एक मोटरसाइकिल कुछ दिनों से उस की दुकान के सामने लावारिस खड़ी है. दुकानदार की सूचना पर थाना चेंबूर पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले कर उस के नंबर के आधार पर जब उस के मालिक को बुलाया तो वह अपनी मोटरसाकिल को थाने में देख कर चौंका. उस का नाम तौफीक खान था. उस ने पुलिस को बताया कि उस की इस मोटरसाइकिल को उस का छोटा भाई शफीक एक सप्ताह पहले मांग कर ले गया था.
चूंकि मोटरसाइकिल लावारिस खड़ी मिली थी, यह जान कर तौफीक का पूरा परिवार घबरा गया. किसी अनहोनी की चिंता में सभी बुरी तरह डर गए. पता नहीं शफीक कहां और किस स्थिति में है. उस के बारे में पता करने के लिए जब उस की पत्नी नगमा को फोन किया गया तो उस ने बताया कि वह 4-5 दिनों से घर नहीं आए हैं. घरवाले चिंता में पड़ गए कि वह घर नहीं आया तो गया कहां? उस की जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों से पता किया गया. जब कहीं से उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो घर वाले थाना नेहरूनगर जा पहुंचे. जब सारी बात वहां के थानाप्रभारी को बताई गई तो उन्होंने शफीक की गुमशुदगी दर्ज कर के बताया कि थाना शिवाजीनगर पुलिस ने बुरी तरह से जली एक लाश बरामद की है, जो अस्पताल की मोर्चरी में है. वे चाहें तो वहां जा कर उसे देख सकते हैं.
4 फरवरी, 2015 की शाम शफीक के पिता अशफाक खान अपने बेटों के साथ थाना शिवाजीनगर पहुंचे और विकास भुजबल तथा संजय दलवी से मिल कर शफीक के गायब होने के बारे में बता कर लाश देखने की इच्छा जाहिर की. संजय दलवी असफाक और उन के बेटों को राजावाड़ी अस्पताल ले गए और उन्हें वह लाश दिखाई, जो डंपिंग यार्ड से मिली थी. चूंकि लाश इस तरह जली थी कि उसे वे पहचान नहीं पाए. लेकिन सफेद रंग की मोटरसाइकिल का जो मामला था, उस से साफ हो गया कि वह लाश शफीक की ही थी. इस के बाद संजय दलवी ने शफीक के बारे में पता किया तो पता चला कि उस की 3 बीवियां थीं. वह मनमौजी और रंगीनमिजाज आदमी था. उस की पहली पत्नी का नाम शबाना था, जिस की 2 बेटियां थीं और वह उन के साथ जिला ठाणे के उपनगर मुंब्रा में रहती थी.
दूसरी पत्नी का नाम आसमा था और वह कुर्ला की पाइप लाइन में अपनी एक बेटी के साथ रहती थी. तीसरी पत्नी का नाम नगमा था, जो उस के साथ निसर्ग कौआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के मकान नंबर 6 के रूम नंबर 701 में रहती थी. शफीक के बारे में मिली इस जानकारी से जांच अधिकारियों को लगा कि शफीक की हत्या के पीछे उस की पत्नियों का हाथ हो सकता है. ईर्ष्यावश उन्हीं में से किसी ने उसे मरवा दिया है. उस की तीनों बीवियों से पूछताछ की गई तो इन में से आसमा और शबाना तो साफ निकल गईं, लेकिन नगमा फंस गई. वह पुलिस के किसी भी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी. मजबूर हो कर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और फिर शफीक की हत्या की पूरी कहानी सुना दी.
नगमा के बयान के आधार पर संजय दलवी और विकास भुजबल की टीम ने 5 फरवरी, 2015 को शिवाजीनगर स्थित दुर्गा सेवा संघ के औफिस में छापा मार कर सरवर को गिरफ्तार कर लिया. मगर उस का साथी सोहेल मिर्जा उन के हाथ नहीं लगा. क्योंकि उसे एक दिन पहले क्राइम ब्रांच यूनिट-6 के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटिल की टीम ने पकड़ लिया था. पूछताछ के बाद उन्होंने सोहेल को शिवाजीनगर पुलिस के हवाले कर दिया था. पूछताछ में उन्होंने बताया था कि लाश को आग के हवाले कर के वे मोटरसाइकिल से चेंबूर स्थित मकवाना कंपाउंड पहुंचे और वहां एक दुकान के सामने मोटरसाइकिल खड़ी कर के अपनेअपने घर चले गए.
उन्हें लगा कि उन्होंने जिस तरह सारे काम निपटाए हैं, वे कतई नहीं पकड़े जाएंगे. लेकिन उन्होंने वह मोटरसाइकिल जिस दुकान के सामने खड़ी की थी, उस दुकान के मालिक ने थाना चेंबूर पुलिस को फोन कर के लावारिस खड़ी उस मोटरसाइकिल की सूचना दे दी थी, जिस से इस बात की सूचना शफीक के घर तक पहुंच गई थी. उस के बाद उस की खोज शुरू हुई तो उस की हत्या की जानकारी शफीक के घरवालों को हो गई और पुलिस नगमा तक पहुंच गई, जिस के बाद शफीक की हत्या का मामला खुल गया. पूछताछ के बाद नगमा, सरवर और शोहेल मिर्जा को पुलिस ने कुर्ला की अदालत में मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Family Dispute
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






