Hindi Stories: सड़क दुर्घटना को देख कर आलमजीत के सिर पर समाजसेवा का ऐसा जुनून सवार हुआ कि वह दिनरात लोगों की सेवा में लग गए. इसी सेवा ने उन्हें आम से खास बना दिया. कभीकभी कोई घटना किसी व्यक्ति के मन पर इतना गहरा असर डाल देती है कि उस व्यक्ति का काम या काम करने का नजरिया ही बदल जाता है.

आलमजीत के साथ भी यही हुआ. आंखों के सामने घटी एक घटना ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा के लिए अर्पित कर दिया. लुधियाना के एक स्कूल के एथलेटिक्स कोच आलमजीत एक दिन सुबहसुबह अपनी मोटरसाइकिल से ड्यूटी जा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि आरती थिएटर के सामने एक स्कूटर वाले को बचाने की कोशिश में एक जीप फुटपाथ पर चढ़ कर पलट गई. जीप में ड्राइविंग सीट पर बैठा शख्स बुरी तरह जख्मी हो कर स्टीयरिंग के बीच फंस गया. उसे देखने के लिए वहां अच्छीखासी भीड़ इकट्ठी हो गई, लेकिन ड्राइवर की मदद को कोई आगे नहीं आया. सब तमाशाबीन बने खड़े थे.

आलमजीत से यह मंजर देखा न गया. उन्होंने आगे बढ़ कर किसी तरह अकेलेदम पर जीप की स्थिति ठीक की. फिर बड़ी कठिनाई से उस में फंसे घायल शख्स को बाहर निकाला. उस शख्स की उम्र करीब 27-28 साल थी. उसे आटोरिक्शा से दयानंद अस्पताल ले गए. अपनी मोटरसाइकिल को वह घटनास्थल पर ही छोड़ आए थे. सिर में गहरी चोट लगने की वजह से वह बेहोश था. उस की हालत गंभीर थी. डाक्टरों ने ढेर सारी दवाओं, इंजेक्शंस और अन्य सामान की लिस्ट आलमजीत के हाथ पर रख दी. आलमजीत अपने पैसों से दवाएं और अन्य सामान खरीद लाए.

काफी कोशिश के बाद वह युवक होश में आ गया. होश में आते ही उस ने अपनी पत्नी और बच्चों को याद किया. इस के बाद वह फिर से बेहोश हो गया. डाक्टर उसे फिर से होश में लाने की कोशिश करने लगे. डाक्टरों ने आलमजीत से कहा कि इस युवक के फिर से होश में आने से पहले ही इस के बीवीबच्चे इस के सामने खड़े मिलें तो अच्छा रहेगा, वरना बिगड़ती जा रही मानसिक हालत इस के लिए घातक सिद्ध हो सकती है. आलमजीत को उस की जेब से एक ड्राइविंग लाइसेंस मिला था. उस से पता चला कि युवक का नाम किशोरचंद है और वह गुरुद्वारा के पास गिल नामक गांव का रहने वाला है. डाक्टरों की बात को ध्यान में रख कर आलमजीत उस के गांव चले गए.

गांव गिल काफी बड़ा था. इतने बड़े गांव में आलमजीत को ड्राइवर का घर तलाशना आसान नहीं था. फिर भी वह गांव में घूमघूम कर किशोरचंद का घर ढूंढते रहे, लेकिन सफलता नहीं मिली. उन्होंने गांव के गुरुद्वारे में पहुंच कर माइक से इस की घोषणा करवाई. 6 घंटे की कोशिश के बाद आलमजीत की मुलाकात किशोर की पत्नी से हुई. उस की गोद में एक नन्हा बच्चा भी था. आलमजीत उसे थोड़ाबहुत बता कर अस्पताल ले आए. गांव के कुछ लोग भी उन के साथ हो लिए थे. अस्पताल में पति की हालत देख कर किशोर की पत्नी सन्न रह गई. डाक्टर किशोर को होश में लाने का प्रयास कर रहे थे, मगर सफलता नहीं मिल रही थी.

उस की पत्नी के साथ गांव के जो लोग आए थे वे भी उस की मदद को आगे आ गए, आलमजीत भी तब तक वहीं रहे. 3 दिनों बाद किशोर की बेहोशी टूटी तो पत्नी और बच्चे को सामने पा कर उस की खुशी का ठिकाना न रहा. किशोर के होश में आने के बाद आलमजीत बहुत खुश हुए. इस के बाद उन्हें अपनी मोटरसाइकिल का ध्यान आया. वह घटनास्थल पर पहुंचे तो मालूम पड़ा कि पुलिस वाले जीप के साथ मोटरसाइकिल भी उठा ले गए थे. थाने जाने पर पता चला कि पुलिस ने जीप के साथ उन की मोटरसाइकिल को भी केस प्रौपर्टी बना कर अपने कब्जे में ले लिया था. बड़ी मशक्कत के बाद आलमजीत ने अपनी मोटरसाइकिल पुलिस के कब्जे से छुड़वाई.

बहरहाल, 2-3 हफ्तों में किशोरचंद पूरी तरह ठीक हो कर अपने घर लौट गया. आलमजीत की वजह से उसे एक तरह से नया जीवन मिला था. उस के ठीक हो जाने के बाद आलमजीत को बड़ी आत्मसंतुष्टि मिली थी. यह बात सन 1988 की है. इस के बाद आलमजीत के भीतर सेवाभाव का एक अनोखा जज्बा पैदा हो गया. फिर उन्होंने मन ही मन प्रण लिया कि वह दुर्घटना में घायल हुए लोगों की जान बचाने की पूरी कोशिश करेंगे. मानवीय उपकार से जुड़े इस रास्ते पर उन्होंने कदम रखा तो पीछे मुड़ कर नहीं देखा. सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोगों के बचाव के लिए वह सब काम छोड़ कर आगे आने लगे. अपने इन प्रयासों में उन्होंने अनेक लोगों की जानें बचाने में अभूतपूर्व सहयोग दिया.

आलमजीत का जन्म हरियाणा-उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसे गांव माजरा में हुआ था. उन के पिता सुरजीत सिंह ने देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान से आ कर इसी गांव में शरण ली थी. फिर सुरजीत सिंह वहां से काम की तलाश में लुधियाना चले आए थे. लुधियाना में उन्होंने ठेकेदारी शुरू कर दी. वहीं पर बच्चों की पढ़ाई हुई. ग्रैजुएशन और नेशनल इंस्टीट्यूट औफ स्पोर्ट्स से डिप्लोमा करने के बाद आलमजीत की नौकरी एक स्कूल में एथलेटिक कोच के रूप में लग गई. इस बीच लुधियाना की कमलजीत कौर से उन की शादी हो गई. पति की सेवाभावना देख कर वह भी खुश हुईं और वह भी पति के सेवाभाव के काम में सहयोग करने लगी.

एक दफा आलमजीत की यह सेवा भावना उन पर ही भारी पड़ गई. हुआ यह था कि फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र के गांव साहनेवाल में टैंपो व मारुति कार की टक्कर हो गई. आमनेसामने की सीधी टक्कर में दोनों गाडि़यां तो क्षतिग्रस्त हो गईं लेकिन उन के भीतर बैठे किसी शख्स को खरोंच तक नहीं आई. किसी को चोट भले ही न लगी, लेकिन उन की गाडि़यों को तो नुकसान पहुंचा ही था. इस बात को ले कर दोनों गाडि़यों के लोग निकल कर एकदूसरे को गालियां देते हुए आपस में गुत्थमगुत्था होने लगे. जरा ही देर में वे गाडि़यों से लोहे की रौड और हौकियां निकाल लाए.

इत्तफाक से आलमजीत अपनी बाइक से उधर से गुजर रहे थे. उन्हें जब पता चला कि दुर्घटना के बाद दोनों पक्ष आपस में झगड़ रहे हैं तो उन्होंने आगे बढ़ कर दोनों को समझाते हुए उन का बीचबचाव कराने की कोशिश की. लेकिन यहां उलटा हुआ. उन लोगों ने उलटे आलमजीत को ही पीटना शुरू कर दिया. उन की इतनी जबरदस्त पिटाई की कि उन की बाजू टूट गई. 4 महीनों तक उन्हें बाजू पर प्लास्टर चढ़ाए रखना पड़ा. इस दौरान भी वह चैन से घर नहीं बैठे, बल्कि अपने मिशन में लगे रहे. एक हाथ पर प्लास्टर चढ़ा होने की वजह से वह मोटरसाइकिल चला नहीं सकते थे. इसलिए उन्होंने मोटरसाइकिल का एक्सलेटर व क्लच एक ही तरफ करवा लिया. फिर वह एक ही हाथ से बाइक को संभालने लगे.

लोकसेवा का ऐसा फल हासिल होते देख घर में सब परेशान हो उठे. कुछ लोगों ने उन्हें यह सेवा छोड़ देने की सलाह तक दे डाली. लेकिन आलमजीत की उच्चशिक्षित पत्नी ने उन का उत्साह बनाए रखा. दूसरी ओर आलमजीत जैसे बने ही अलग मिट्टी के थे. इस तरह की बातों की उन्होंने कभी कोई परवाह नहीं की, बल्कि हंसते हुए कहा करते कि परेशानियां तो अच्छेबुरे हर काम में आया करती हैं. इसी का नाम जिंदगी है. परेशानियों को झेलते हुए आगे बढ़ते जाना ही जिंदादिली है. अपना टूटा हुआ हाथ ठीक हो जाने के बाद वह फिर से उसी सेवा में जुट गए. पंजाब में जब गहन आतंकवाद पनपा तो वह आतंकी हमलों में घायल हुए लोगों की चिकित्सा करवाने लगे. यह बात आतंकियों को बुरी लगी तो उन्होंने उन्हें धमकी दी कि वह हमलों में घायल लोगों की सहायता न करें, वरना अंजाम बुरा होगा.

इस धमकी से परिवार वाले डर गए. सभी ने उन्हें सलाह दी कि या तो वह अपने इस खतरनाक जुनून से तौबा कर लें या फिर अपने परिवार को किसी सुरक्षित जगह पर छोड़ आएं. लेकिन आलमजीत किसी तरह की धमकी, किसी तरह के हमले या विरोध से कभी विचलित नहीं हुए. आलमजीत ने जो भी किया, एकदम खामोश रह कर अपने सुकून के लिए किया. एक रोज जब मीडिया को इस की खबर हो गई तो उन लोगों ने इन्हें सर आंखों पर बिठाने में कसर न छोड़ी. इस से आलमजीत चंडीगढ़ व आसपास के क्षेत्र में नायक की तरह प्रसिद्ध होने लगे. अब आलमजीत की सेवाभावना की स्थिति ऐसी बन गई कि आम आदमी की तो बात ही छोडि़ए, नगर के उच्चाधिकारी भी इस तरह की कोई परेशानी आ जाने पर उन्हें ही याद करने लगे थे.

इस के बाद लावारिस लाशों का अपने खर्चे पर दाहसंस्कार कराना आलमजीत के सेवाभाव का अगला पड़ाव बन गया. एक दफा तो उन की सेवा उन्हीं के लिए आफत बनतेबनते बची. बात यह थी कि मोहाली की एक लड़की को फोन पर कोई लड़का परेशान कर रहा था. लड़की के पिता ने आलमजीत से मदद की दरकार की. तब आलमजीत ने लड़की से फोन करने वाले लड़के को बसअड्डे पर बुलवाने को कहा. इस के पीछे उन की सोच यह थी जैसे ही लड़का बसअड्डे पर पहुंचेगा, वह उसे अपने हिसाब से समझाएंगे. अगली बार उस लड़के ने लड़की को फोन किया तो लड़की ने कुछ देर बात करने के बाद उस लड़के को बसअड्डे पर मिलने के लिए कह दिया.

वह लड़का खुश हुआ. वह अपने दोस्त के साथ नियत समय से पहले ही बसअड्डे पर पहुंच गया. लड़की अपनी स्कूटी से बसअड्डे की तरफ चल दी. आलमजीत अपनी कार में लड़की के पिता व भाई को बिठा कर पीछेपीछे चल पड़े. योजना लड़के को रंगेहाथों पकड़ने की थी. जैसे ही लड़की बसअड्डा पहुंची, वह लड़का अपने साथी की मदद से उस लड़की को ही अपहृत कर के ले जाने लगा. यह देख कर आलमजीत भी घबरा गए. उन्होंने अपनी जान पर खेल कर न केवल उस लड़की को बचाया, बल्कि उस के अपहर्ताओं को भी हवालात की हवा खिलाई.

एक बार एक जरमन युवती इर्मगार्ड भारत घूमने आई. हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के पास मेटाडोर दुर्घटनाग्रस्त हो गई. उसी मेटाडोर में वह बैठी थी. इस दुर्घटना में उस के सिर में गंभीर चोटें आईं. तब उसे चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल भिजवाया गया. 3 हफ्तों बाद उस की मौत हो गई. इस दौरान आलमजीत ही उसे मंडी के छोटे से अस्पताल से रेफर करा कर चंडीगढ़ लाए थे. उन्होंने उस की जान बचाने की काफी कोशिश की थी. उस की मौत के बाद आलमजीत ने ही इर्मगार्ड के घर वालों को फोन कर के इस की सूचना दी थी.

40 देशों की यात्रा कर चुके समाजसेवी आलमजीत सिंह का जीवन इस तरह की रोचक और रोमांचक गाथाओं से अटा पड़ा है. भारतीय लोगों को मदद एवं न्याय दिलाने को वह विदेशों में भी जाते रहते हैं. उन से जुड़ी इस तरह की कितनी ही प्रेरक गाथाएं विदेशी रिसालों में भी छपी हैं. विश्वभर की संस्थाएं उन्हें इस सब के लिए सम्मानित करती रही हैं. 3 बेटों, रतन किरण सिंह, अनमोल रतन सिंह व अनमोल किरण सिंह को अपनी जिंदगी के बड़े पुरस्कार मानते हुए आलमजीत सिंह का यही कहना है कि उन्हें कभी किसी अन्य सम्मान वगैरह की लालसा नहीं रही. अपने लिए वह सब से बड़ा पुरस्कार इसी बात को मानते हैं कि उन की कोशिश से अनगिनत लोगों को नया जीवनदान मिला.

आलमजीत के अनुसार इंसान चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, वह चाहे तो मुसीबतजदा लोगों की किसी न किसी तरीके से निश्चित मदद कर सकता है और उसे ऐसा करना चाहिए भी. Hindi Stories

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