Illicit Relationship: अवैध संबंधों की वजह से राजकुमार की हत्या 6 साल पहले हुई थी. पुलिस ने राजकुमार के घर वालों की शिकायत पर अपहरण का केस तो दर्ज कर लिया, लेकिन काररवाई कुछ नहीं की. लेकिन राजकुमार के घर वालों ने हार नहीं मानी और 6 साल बाद ही सही, पत्नी और प्रेमी को बेनकाब कर दिया…

गुडि़या का कुछ ही देर पहले अपने पति राजकुमार से झगड़ा हुआ था. यह उस दिन की ही नहीं, हर रोज की बात थी. राजकुमार एक नंबर का पियक्कड़ था. उस दिन भी सुबह होते ही अद्धा ले कर बैठ गया था. गुडि़या ने उसे टोका, लेकिन वह कहां मानने वाला था. कुछ देर तक तो वह पत्नी की बातें सुनता रहा, लेकिन 4 पैग हलक से नीचे उतरते ही उस का दिमाग घूम गया. बिना कुछ कहे उस ने गुडि़या की चोटी पकड़ कर उसे रूई की तरह धुन दिया. मां को मार खाते देख कर बच्चे भय से चिल्लाने लगे तो राजकुमार ने उन को भी थप्पड़ों का स्वाद चखा दिया. फिर गंदीगंदी गालियां देते हुए अद्धा बगल में दबाए घर से बाहर निकल गया.

राजकुमार बरेली जनपद के भमोरा थानाक्षेत्र के गांव सिंघा में रहता था. उस के पिता ऋषिराज सिंह के पास खेती लायक थोड़ी जमीन थी, जिस पर खेती कर के वह किसी तरह परिवार का भरणपोषण करते थे. परिवार में राजकुमार की मां रूषमा देवी, 2 भाई व 4 बहनें थीं. चारों बहनें विवाहित थीं. राजकुमार के दोनों भाई प्रेमप्रकाश और बबलू उस से छोटे थे. वह खुद चौकीदारी का काम करता था. प्रेमप्रकाश रामपुर जिले में आबकारी विभाग में नौकरी करता था, जबकि बबलू दिल्ली में रह कर प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा था. 18 वर्ष पहले राजकुमार का विवाह रामपुर जनपद के रमपुरा गांव की रहने वाली गुडि़या से हुआ था. वक्त के साथ गुडि़या एकएक कर के 3 बच्चों की मां बनी.

परिवार बढ़ा तो राजकुमार की जिम्मेदारियां भी बढ़ीं. परिवार चलाने के लिए उस ने अपने लिए नौकरी ढूंढनी शुरू की तो जल्दी ही उसे एक निजी कंपनी में सुरक्षागार्ड की नौकरी मिल गई. नौकरी मिल गई तो वह अपनी पत्नी गुडि़या और तीनों बच्चों को ले कर शहर आ गया और बारादरी थानाक्षेत्र के शहामतगंज में हरीलाल जैन के प्लौट में बने कमरे में किराए पर रहने लगा. नौकरी से राजकुमार को इतनी आमदनी हो जाती थी कि दालरोटी चल सके. दिक्कत तब आई, जब उसे शराब की लत लग गई. गुडि़या कुशल गृहिणी थी. कम आय में भी उसे गृहस्थी चलाना आता था. लेकिन राजकुमार की शराब की लत ने घर का बजट गड़बड़ा दिया. फलस्वरूप गुडि़या परेशान रहने लगी.

उस ने राजकुमार को हर तरह से समझाने का प्रयास किया, बच्चों की भी दुहाई दी. लेकिन उसे बीवीबच्चों से ज्यादा शराब प्यारी थी. राजकुमार सुधरता तो क्या, उलटा ढीठ बन गया. नतीजा यह हुआ कि पहले केवल शाम को पीने वाला राजकुमार रातदिन शराब में डूबा रहने लगा. उसे न पत्नी की फिक्र थी, न बच्चों की चिंता. वेतन के पैसों को वह शराब की बोतलों पर उड़ा देता था. नशे में राजकुमार इतना डूब चुका था कि नौकरी में भी लापरवाही करने लगा. पैसों की किल्लत होती तो घर के कीमती बरतन शराब की भेंट चढ़ जाते. गुडि़या रोकती तो पिटती, उस स्थिति में बदकिस्मती पर आंसू बहाने के अलावा उस के पास कोई चारा न रहता.

राजकुमार का एक दोस्त था ज्ञानप्रकाश. वह बरेली के कस्बा थाना फरीदपुर के कानूनगोयान मोहल्ले में मुकुंद सिंह के मकान में रहता था. वह मकान मालिक की बोलेरो जीप चलाता था. ज्ञानप्रकाश के पिता का देहांत हो चुका था. उस की 2 बहनें थीं, जिन का विवाह हो चुका था. दोनों में दोस्ती तो काफी दिन से थी, लेकिन बाद में जब दोस्ती गहरी हुई तो वह राजकुमार के कमरे पर भी आनेजाने लगा. ज्ञानप्रकाश को गुडि़या से हमदर्दी थी. उस ने राजकुमार को शराब पीना छोड़ कर गृहस्थी पर ध्यान देने की सलाह दी, लेकिन उस ने ज्ञान प्रकाश की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. पतिपत्नी के झगड़े की वजह से ज्ञानप्रकाश कभीकभार ही राजकुमार के घर जाता था.

एक दिन ज्ञानप्रकाश कई दिनों के बाद राजकुमार के घर गया. उस के पहुंचने के कुछ देर पहले ही राजकुमार गुडि़या के साथ मारपीट कर के बाहर गया था. जब वह पहुंचा तो गुडि़या रो रही थी. उस की नजर ज्यों ही ज्ञानप्रकाश पर पड़ी, वह आंसू पोंछने लगी. फिर मुसकराने का प्रयास करती हुई बोली, ‘‘अरे ज्ञान तुम, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘सच पूछो तो भाभी मैं आज भी नहीं आता.’’ ज्ञानप्रकाश ने गुडि़या की नम आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारा दर्द मुझ से देखा नहीं जाता, इसलिए आ जाता हूं. लगता है, राजकुमार अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा.’’

‘‘जब अपनी ही किस्मत खोटी हो तो किसी को क्या दोष देना ज्ञान.’’ कहते हुए गुडि़या की आंखों में आंसू भर आए. ज्ञानप्रकाश और गुडि़या हमउम्र थे, इसलिए एकदूसरे की भावनाओं को अच्छी तरह समझते थे. गुडि़या जहां ज्ञानप्रकाश की सादगी और भोलेपन पर फिदा थी, वहीं ज्ञानप्रकाश उस की कोमल काया पर मोहित था.

दरअसल, 3 बच्चों की मां होने के बावजूद गुडि़या की जवानी अभी ढली नहीं थी. उस की कटीली मुसकान किसी को घायल करने में सक्षम थी. लेकिन शराबी राजकुमार को प्यालों की गहराई मापने से इतनी फुरसत नहीं थी कि पत्नी की आंखों में झांक कर उस की चाहत को जान पाता. ऐसी स्थिति में उस का झुकाव ज्ञानप्रकाश की ओर होने में ज्यादा समय नहीं लगा. इधर ज्ञानप्रकाश की भी दिली हालत गुडि़या से जुदा नहीं थी. गुडिया को रोता देख ज्ञानप्रकाश तड़प उठा. उस ने भावावेश में गुडि़या का हाथ थाम कर कहा, ‘‘ऐसा मत कहो भाभी, मैं सारी दुनिया की बातें तो नहीं जानता, पर अपनी गारंटी देता हूं, अगर तुम साथ दो तो कसम से मैं सारी जिंदगी तुम पर वार दूंगा.’’

यह सुन कर गुडि़या ज्ञानप्रकाश से लिपट कर रोने लगी. ज्ञानप्रकाश उसे कस कर भींचते हुए बोला, ‘‘असल में तुम गलत आदमी से बंध गई. खैर अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, तुम चाहो तो सब कुछ फिर से बदल सकता है.’’

गुडि़या ने जवाब में कुछ कहने के बजाय ज्ञानप्रकाश को चूम लिया. उस के ऐसा करते ही ज्ञानप्रकाश भी उतावला हो कर उसे चूमने लगा. कुछ ही देर में वह उस से भी आगे निकलता गया. फलस्वरूप दोनों के बीच जिस्मानी संबंध बन गए. उस दिन दोनों के बीच एक नए रिश्ते की बुनियाद रखी गई. उस दिन के बाद गुडि़या और ज्ञानप्रकाश की दुनिया ही बदल गई. दोनों एकदूसरे से पतिपत्नी जैसा व्यवहार करने लगे. अब ज्ञानप्रकाश गुडि़या का खयाल तो रखता ही था, उस की घरगृहस्थी का सारा खर्च भी उठाने लगा था. गुडि़या की बेजान दुनिया में फिर से जीवन लौट आया. अब घर में बढि़या खाना पकता और ज्ञानप्रकाश राजकुमार के साथ बैठ कर खाना खाता. ऐसा नहीं था कि राजकुमार ज्ञानप्रकाश और गुडि़या के रिश्तों से अनजान रहा हो, उसे सब कुछ पता था.

लेकिन वह इस बात से खुश था कि अब उसे कोई शराब पीने से नहीं रोकता था. इतना ही नहीं, पैसा कम पड़ जाने पर ज्ञानप्रकाश उस की मदद भी कर दिया करता था. इन सब के एवज में उस ने ज्ञानप्रकाश और गुडि़या के रिश्ते को मौन स्वीकृति दे दी थी. राजकुमार की मूक सहमति मिलने के बाद गुडि़या और ज्ञानप्रकाश की बांछें खिल उठीं. इस के बाद दोनों बाजार वगैरह साथ घूमने जाने लगे. रातें भी एक छत के नीचे गुजरने लगीं, उधर शराब ने राजकुमार को बिलकुल बेगैरत बना दिया था.

फिर अचानक एक दिन नशे की हालत में ही उस की गैरत जाग उठी. उस ने गुडि़या से साफसाफ कहा, ‘‘बस बहुत हो चुका रासरंग, अब और नहीं. आज के बाद तुम ज्ञानप्रकाश से कोई रिश्ता नहीं रखोगी. बेहयाई की भी हद होती है.’’

राजकुमार के इस बदले हुए रूप ने गुडि़या को हैरान कर दिया. उस ने पूछा, ‘‘आज अचानक क्या हो गया तुम्हें?’’

राजकुमार गुडि़या को घूरते हुए बोला, ‘‘क्यों, समझ में नहीं आ रहा क्या या बेगैरती ने भेजा बिलकुल ही चाट लिया है?’’

‘‘गैरत या बेगैरती की बातें तुम्हारे मुंह से अच्छी नहीं लगतीं. अच्छा होगा, अब इस मामले में न ही पड़ो.’’ कहते हुए आवेश में गुडि़या की सांसें फूलने लगीं. वह क्षण भर रुक कर बोली, ‘‘सोच कर बताओ, बेगैरती का यह रास्ता मुझे किस ने दिखाया? तुम ने… अगर तुम अच्छे पति, अच्छे पिता और सच्चे इंसान होते तो मैं राह से क्यों भटकती? अब कुछ नहीं हो सकता, तीर कमान से निकल चुका है.’’

‘‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहता, आइंदा वही होगा, जो मैं चाहूंगा.’’ राजकुमार कड़े स्वर में बोला.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता.’’

गुडि़या के दो टूक जवाब से राजकुमार पागल हो उठा. वह चीखते हुए उस पर झपटा, ‘‘ठहर, अभी बताता हूं कि क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता.’’

राजकुमार ज्यों ही गुडि़या को पीटने दौड़ा, संयोग से ज्ञानप्रकाश वहां आ गया. पल भर में वह सारा माजरा समझ गया. उस ने आगे बढ़ कर राजकुमार को गिरा दिया. अचानक लगे धक्के से राजकुमार चारों खाने चित गिरा. उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह खड़ा हो कर बोला, ‘‘ज्ञानप्रकाश खबरदार, अगर तुम हम दोनों के बीच आए, तुम्हारा सिर तोड़ दूंगा.’’

इतना सुनना था कि ज्ञानप्रकाश राजकुमार पर टूट पड़ा. उस ने मुक्कों और लातों से राजकुमार की बुरी गत बना दी. जिंदगी भर पति से पिटने वाली गुडि़या ने जब पति को पिटते देखा तो उस के प्रतिशोध ने सिर उठा लिया. उस ने भी ज्ञानप्रकाश के साथ राजकुमार पर हाथ आजमाए. उस दिन के बाद से उलटी गंगा बहने लगी. राजकुमार जरा भी चूंचपड़ करता गुडि़या और ज्ञानप्रकाश उसे पीटपीट कर हाथों की खुजली मिटा लेते. इतना ही नहीं, ज्ञानप्रकाश ने उसे शराब के पैसे देने भी बंद कर दिए थे. अब राजकुमार गुडि़या और ज्ञानप्रकाश की आंखों में खटकने लगा था. वैसे भी उस के रहते वह एक साथ सुकून की जिंदगी नहीं जी सकते थे. इसलिए उन्होंने राजकुमार को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

ज्ञानप्रकाश ने इस के लिए अपने बहनोई हरिशंकर उर्फ शंकर, अपने दोस्त सतीश और शंकर के चचेरे भाई टीकाराम को अपनी योजना में शामिल कर लिया. ये तीनों गांव प्रेमराजपुर, थाना भमोरा, जिला बरेली के रहने वाले थे. योजनानुसार ज्ञानप्रकाश जनवरी, 2009 में एक दिन देर रात राजकुमार को गुडि़या और बच्चों के साथ एक धार्मिक आयोजन में चलने के बहाने अपने बहनोई शंकर के गांव प्रेमराजपुर ले गया. शंकर ने बच्चों को गांव में अपने घर छोड़ दिया. इस के बाद ज्ञानप्रकाश और उस के साथियों ने गांव के पास ही सहासा के जंगल में ले जा कर राजकुमार को दबोच लिया. शंकर घर से कपड़ों में छिपा कर बांका ले आया था.

उसी बांके से ज्ञानप्रकाश और शंकर ने बारीबारी से राजकुमार पर वार किए, जिस से कुछ ही पलों में राजकुमार जमीन पर गिर कर ढेर हो गया. गुडि़या यह सब अपनी आंखों से देखती रही. राजकुमार की हत्या करने के बाद सतीश और टीकाराम चले गए. इस के बाद शंकर घर जा कर फावड़ा ले आया और फिर ज्ञानप्रकाश और उस ने वहीं 2 फुट गहरा गड्ढा खोद कर राजकुमार की लाश को दफना दिया. तत्पश्चात सब वहां से लौट आए, लेकिन गुडि़या अपने घर वापस नहीं गई. वह ज्ञानप्रकाश के साथ चली गई.

दूसरी ओर जब कई दिनों तक राजकुमार गुडि़या और बच्चों के साथ घर नहीं लौटा तो उस की तलाश शुरू हो गई. काफी प्रयास के बाद भी उस का पता नहीं चला तो राजकुमार की मां रूषमा देवी और भाई प्रेमप्रकाश की समझ में आ गया कि राजकुमार के साथ कोई अनहोनी हो गई है. उन्हें गुडि़या और ज्ञानप्रकाश के अवैधसंबंधों की जानकारी थी. ज्ञानप्रकाश का भी कोई अतापता नहीं था. इसलिए रूषमा देवी ने फरीदपुर थाने में गुडि़या और ज्ञानप्रकाश के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. लेकिन फरीदपुर पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की. इस पर उस के घर वालों ने यह मुकदमा थाना बारादरी में स्थानांतरित कराने के लिए पुलिस अधिकारियों के पास कई चक्कर लगाए. लेकिन अधिकारियों ने इस में कोई रुचि नहीं ली.

राजकुमार के घर वालों ने हार नहीं मानी. उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिस के बाद अदालत ने मुकदमे को बारादरी थाने में स्थानांतरित करने का आदेश दिया. इसी बीच इसी साल फरवरी में गुडि़या राजकुमार के घर वालों के हत्थे चढ़ गई. उस से जब पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि राजकुमार दिल्ली में रह कर नौकरी कर रहा है, लेकिन वह दिल्ली में कहां है, उसे नहीं मालूम. घर वालों को बरगला कर गुडि़या उन की आंखों में धूल झोंक कर फिर गायब हो गई. जब ज्ञानप्रकाश को पता चला कि गुडि़या को उस के घर वालों ने पकड़ लिया है तो उस ने 20 फरवरी, 2015 को फरीदपुर के ही पीतांबरपुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली.

8 मार्च, 2015 को राजकुमार के अपहरण का मुकदमा फरीदपुर से बारादरी थाने स्थानांतरित कर दिया गया था. बारादरी थाने के इंसपेक्टर मोहम्मद कासिम ने इस केस की जांच का जिम्मा सबइंसपेक्टर ओमवीर सिंह को सौंप दिया. 20 अप्रैल को एक बार गुडि़या फिर राजकुमार के घर वालों की पकड़ में आ गई. परिजनों ने उसे बारादरी पुलिस के सुपुर्द कर दिया. सबइंसपेक्टर ओमवीर सिंह ने महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में गुडि़या से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने पूरी घटना बयान कर दी. पूछताछ के बाद 20 अप्रैल, 2015 को ही ओमवीर सिंह ने पुलिस टीम के साथ सतीश को सैटेलाइट बसअड्डे से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के बाद ओमवीर सिंह उसे ले कर सहासा के जंगल में गए और राजकुमार की लाश बरामद करने के लिए एक खेत में खुदाई करवाई. लेकिन सफलता नहीं मिली. चूंकि सतीश लाश दफनाते समय मौजूद नहीं था, इसलिए वह सही जगह नहीं बता सका. इस के बाद पुलिस ने सतीश व गुडि़या को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. 28 अप्रैल को शंकर ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. इस की जानकारी मिलते ही एसआई ओमवीर सिंह ने अदालत से अनुमति ले कर जेल  में शंकर के बयान लिए. इस के बाद उन्होंने शंकर की पुलिस रिमांड के लिए अदालत में प्रार्थनापत्र दिया. 5 मई को पुलिस को शंकर का 24 घंटे का रिमांड मिल गया.

इस के बाद एसआई ओमवीर सिंह पुलिस टीम के साथ शंकर को ले कर सहासा के जंगल में गए. वहां राजकुमार के घर वालों, रिश्तेदारों व ग्रामीणों की मौजूदगी में शंकर की निशानदेही पर एक गड्ढा खुदवाया गया. 2 फुट की खुदाई होते ही कपड़े फावड़े में फंस गए. जब मिट्टी हटाई गई तो एक नरकंकाल मिला. कंकाल के साथ ही कोटपैंट, स्वेटर, मफलर, मौजे और जूते भी बरामद हुए. उन कपड़ों को देख कर प्रेमप्रकाश ने उस नरकंकाल की शिनाख्त अपने भाई राजकुमार के रूप में की. मां अपने बेटे का कंकाल देख कर फफक कर रो पड़ी. उसे किसी तरह सांत्वना दे कर चुप कराया गया. इस के बाद कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया.

तत्पश्चात पुलिस शंकर को ले कर थाने लौट आई. अपहरण के मुकदमे में हत्या और साक्ष्य छिपाने की धाराएं और बढ़ाने के साथ ही इस केस में शंकर, सतीश और टीकाराम का नाम भी जोड़ लिया गया. इस के बाद शंकर की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से हत्या में इस्तेमाल बांका भी बरामद कर लिया. अगले दिन रिमांड अवधि खत्म होने से पहले शंकर को न्यायालय में पेश कर दिया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक टीकाराम फरार था, पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश कर रही थी. Illicit Relationship

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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