Hindi Crime Story: बिरमा को अनुज यादव से प्यार हुआ तो वह पुराने प्रेमी राजकुमार से पीछा छुड़ाने के बारे में सोचने लगी. प्रेमी से पीछा छुड़ाने के लिए बिरमा ने जो रास्ता अपनाया, क्या वह उचित था?
फिरोजाबाद से मैनपुरी की ओर जाने वाली सड़क पर स्थित थानाकस्बा घिरोर के नजदीकी गांव नंगला केहरी के शिव मंदिर के पास जब गांव वालों ने 2-2 लाशें पड़ी देखीं तो परेशान हो उठे. उन्होंने तुरंत इस की सूचना थाना घिरोर पुलिस को दी. गांव नंगला केहरी थाना घिरोर के अंतर्गत ही आता था. वह थाने के नजदीक ही था, इसलिए थानाप्रभारी देवेश कुमार जल्दी ही घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतकों की उम्र 35-40 साल रही होगी. शक्लसूरत और पहनावे से दोनों ही ठीकठाक घरों के लग रहे थे. लाशों के आसपास खून नहीं था, इस से पुलिस समझ गई कि इन्हें कहीं दूसरी जगह मार कर लाशें यहां फेंकी गई हैं.

गांव वाले भी उन्हें नहीं पहचान पाए थे. इस का मतलब वे इस इलाके के रहने वाले नहीं थे. पुलिस को लाशों की तलाशी में भी कुछ नहीं मिला था, जिस से उन की पहचान हो पाती. पुलिस को लगा कि इन की शिनाख्त में परेशानी होगी. लेकिन जब उन्हें एक लाश की कमीज पर सिलने वाले दरजी का स्टिकर दिखाई दिया तो मन को थोड़ा संतोष हुआ कि शायद इस से कुछ मदद मिल जाए. पुलिस ने कोशिश की तो उस स्टिकर से मदद ही नहीं मिली, बल्कि मृतकों के घर तक पहुंच गई. कमीज पर जो स्टिकर लगा था, वह आगरा के फतेहाबाद के एक दरजी का था. थाना घिरोर पुलिस दरजी के यहां पहुंची तो उस ने तुरंत मृतक की शिनाख्त कर दी. उस ने बताया कि यह कमीज गांव छहबिस्वा के रहने वाले राजकुमार की है.
थाना घिरोर पुलिस ने राजकुमार के घर पहुंच कर उस के बारे में पूछा तो घर वालों ने कहा कि वे खुद ही राजकुमार और लक्ष्मीकांत को ढूंढ रहे हैं. दोनों एक दिन पहले फिरोजाबाद में रहने वाली अपनी बहन के यहां जाने की बात कह कर घर से निकले थे, लेकिन वे बहन के यहां पहुंचे ही नहीं. चिंता की बात यह है कि उन का फोन भी बंद है. जब पुलिस ने घर वालों को बताया कि राजकुमार और लक्ष्मीकांत की हत्या हो गई है तो घर वाले हैरान होने के साथसाथ रोनेबिलखने लगे. घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि उन की हत्या क्यों की गई?
क्योंकि उन की ऐसी किसी से दुश्मनी भी नहीं थी. लेकिन जब पुलिस ने पूछा कि दोनों का किसी महिला से कोई चक्कर वगैरह तो नहीं था तो घर वालों ने बताया कि राजकुमार का फिरोजाबाद में रह रही बिरमा से संबंध था. उस का यह संबंध तब से था, जब वह इसी गांव में रहती थी. 2 भाइयों की हत्या को ले कर पुलिस गंभीर थी. बिरमा की ससुराल आगरा के थाना फतेहाबाद के गांव खिसवा में थी. राजकुमार का तभी से उस के यहां आनाजाना था. लेकिन इधर उस का पति प्रहलाद सिंह उसे और बच्चों को ले कर फिरोजाबाद में रहने लगा था. पुलिस ने सबूत जुटाने के लिए राजकुमार के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.
काल डिटेल्स के अनुसार राजकुमार की घटना वाले दिन एक नंबर पर कई बार बात हुई थी. उस नंबर के बारे में पुलिस ने पता किया तो वह नंबर फिरोजाबाद में झील की पुलिया की रहने वाली ऊषा का निकला. पुलिस ऊषा के घर पहुंची तो वह घर से गायब थी. उस के घर से गायब होने पर पुलिस को उस पर शक हुआ. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि ऊषा देहधंधा करने के अलावा लड़कियां भी सप्लाई करती थी. ऊषा के मिलने पर ही स्थिति साफ हो सकती थी. पुलिस ऊषा के पीछे लग गई. वह जहांजहां मिल सकती थी, पुलिस ने छापा मारा. उस के पति बलबीर पर भी शिकंजा कसा गया, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. इस के बाद मुखबिरों की मदद ली गई. तब जा कर मैनपुरी बसअड्डे से उसे गिरफ्तार किया गया.
उस के साथ एक औरत और थी. दोनों दिल्ली जाने की फिराक में थीं. पूछताछ में पता चला कि ऊषा के साथ जो औरत थी, वह बिरमा थी. पुलिस उस से भी पूछताछ करना चाहती थी. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो उन के बताए अनुसार, राजकुमार और उस के चचेरे भाई लक्ष्मीकांत की हत्या की जो कहानी सामने आई, सुन कर पुलिस भी सन्न रह गई. हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी: आगरा के थाना फतेहाबाद के गांव छहबिस्वा के रहने वाले राजेंद्र सिंह का बेटा था राजकुमार. उस के 2 भाई और थे, भोले और पूरन. राजेंद्र सिंह गांव का खातापीता किसान था.
राजकुमार की शादी मुरैना के जनकपुर की रहने वाली गुड्डी के साथ हुई थी, जिस से उसे एक बेटी और 2 बेटे थे. राजकुमार के पड़ोस के गांव में रहता था प्रहलाद सिंह, जो ब्याज पर पैसे देने का काम करता था. राजकुमार अकसर प्रहलाद सिंह के घर जाया करता था. वह उस की पत्नी बिरमा को भाभी कहता था. न जाने क्यों बिरमा उस की खूब आवभगत करती थी. राजकुमार को भी वह अच्छी लगती थी. एक तो बिरमा का अच्छा लगना, दूसरे उस के द्वारा आवभगत करना, राजकुमार उस की ओर आकर्षित हो गया. फिर वह उसे अपनी बनाने के चक्कर में रहने लगा. दूसरी ओर बिरमा ब्याही भले प्रहलाद सिंह के साथ थी, लेकिन कभी उस ने उसे पसंद नहीं किया, इस की वजह यह थी कि प्रहलाद सिंह कमजोर दिमाग का था.
बिरमा उस के साथ बिलकुल खुश नहीं थी. इसीलिए राजकुमार के आने पर वह उस की खूब आवभगत करती थी. क्योंकि वह उसे पसंद करती थी. दोनों ओर से आकर्षण की डोर बढ़ी तो उसे जुड़ने में ज्यादा देर नहीं लगी. दोनों की मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. लेकिन यह सब चोरीछिपे हो रहा था. बिरमा भी 1 बेटी और 2 बेटों की मां थी. वह रहती भले प्रहलाद सिंह के साथ थी, लेकिन वह पति राजकुमार को ही मानती थी. कोई बात आखिर कितने दिनों तक छिपी रह सकती है. धीरेधीरे गांव वालों को बिरमा और राजकुमार के संबंधों का पता चल गया.
कुछ लोगों ने प्रहलाद सिंह को आगाह भी किया, लेकिन उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह बिरमा को रोक सकता. दूसरी ओर राजकुमार भी दबंग किस्म का युवक था. इसलिए सब कुछ जानते हुए भी उसे कोई रोक नहीं सका. इस तरह राजकुमार और बिरमा बिना किसी रुकावट के एकदूसरे से मिलते रहे. लेकिन जब पति के इन संबंधों की जानकारी गुड्डी को हुई तो वह तनाव में रहने लगी. बिरमा की वजह से पतिपत्नी के बीच दूरियां पैदा होने लगीं. उस ने कई बार सास से शिकायत भी की, लेकिन मां भी बेटे को नहीं रोक पाई. लिहाजा इसी गम और चिंता में एक दिन गुड्डी चल बसी.
गुड्डी जब मरी थी, बच्चे छोटेछोटे थे. लेकिन राजकुमार ने दूसरी शादी नहीं की, क्योंकि उस का काम तो बिरमा से चल ही रहा था. अब वह पूरी तरह से आजाद था. प्रहलाद सिंह की गांव में ज्यादा बदनामी होने लगी तो उस ने अपना गांव छोड़ दिया और फिरोजाबाद के थाना लाइन पार के रामनगर गांव में अपना मकान बनवा कर परिवार के साथ रहने लगा. जिस बदनामी की वजह से प्रहलाद सिंह ने गांव छोड़ा था, उस ने यहां आने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ा. बिरमा और राजकुमार के संबंध उसी तरह बने रहे. वह यहां भी लगातार आता रहा. फिरोजाबाद में बिरमा की दोस्ती ऊषा से हो गई तो वह उस के घर भी आनेजाने लगी.
यहीं ऊषा की मुलाकात राजकुमार से हुई. राजकुमार को पता चला कि ऊषा देहधंधा तो करती ही है, लड़कियां भी सप्लाई करती है तो उसे खुशी हुई. इस के बाद वह ऊषा के घर जा कर अपने लिए लड़कियां मंगवाने लगा. इस तरह शारीरिक सुख की चाह में वह ऊषा के घर भी जाने लगा. बिरमा को इस की जानकारी थी, लेकिन उसे इस से कोई मतलब नहीं था, क्योंकि राजकुमार अब भी उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करता था. लेकिन जब बिरमा की मुलाकात चिलवा गेट के रहने वाले अनुज यादव से हुई तो राजकुमार उसे खटकने लगा. अनुज भी सूदखोरी का काम करता था. वह भी बिरमा पर दिल खोल कर रुपए खर्च करने लगा था. था तो वह भी शादीशुदा और बालबच्चेदार, लेकिन जैसा कहा जाता है कि आदमी को घर की मुर्गी दाल बराबर लगती है, वैसा ही कुछ अनुज के साथ भी था.
इस नए प्रेमी के जिंदगी में आने के बाद बिरमा राजकुमार से दूरियां बनाने लगी. उस ने राजकुमार का फोन रिसीव करना भी बंद कर दिया. बिरमा के इस व्यवहार से राजकुमार को परेशानी होने लगी, क्योंकि उसी से मिल कर उस के दिल को तसल्ली मिलती थी. जब उसे बिरमा से कुछ ज्यादा ही उपेक्षा मिलने लगी तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘बिरमा, इधर तुम बदल नहीं गई हो, लगता है मैं तुम्हें भारू लगने लगा हूं?’’
‘‘नहीं तो, यह तुम्हारा वहम है. मैं तुम्हें अभी भी उसी तरह चाहती हूं. लेकिन अब परेशानी की बात यह है कि बच्चे बड़े हो गए हैं. उन के सामने यह सब अच्छा नहीं लगता.’’
बिरमा राजकुमार से ये बातें कह ही रही थी कि तभी उस की बेटी आ गई. उसे देख कर राजकुमार मुसकराते हुए बोला, ‘‘तुम सही कह रही हो, बच्चे बड़े हो गए हैं. मैं ने तो इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया.’’
राजकुमार ने बिरमा की बेटी को जिस तरह देखा था, उस की नजरों में खोट था, जिसे बिरमा ने ताड़ लिया था. उस ने तुरंत बेटी को अंदर जाने का इशारा करते हुए राजकुमार से धीरे से कहा, ‘‘अब हम घर के बाहर मिले तो ज्यादा ठीक रहेगा.’’
बिरमा की बेवफाई राजकुमार की समझ में नहीं आ रही थी. उस की उपेक्षा से वह चिंतित था. उसे लगा, इस के पीछे जरूर कोई बात है. उस ने कोशिश की तो सच्चाई सामने आ गई. बिरमा और अनुज यादव के संबंधों की उसे जानकारी हो गई. बिरमा ने उसे शारीरिक सुख दिया था तो उस ने भी उस के बदले उस के लिए कम नहीं किया था. अब उसे चिंता थी कि अगर बिरमा हाथ से निकल गई तो उसे शारीरिक सुख कैसे मिलेगा? वह किसी भी कीमत पर उसे छोड़ना नहीं चाहता था. इसलिए उस ने बिरमा से पूछा, ‘‘अनुज यादव तुम्हारा कौन लगता है?’’
‘‘अनुज यादव से मेरा क्या संबंध? बस मोहल्ले में रहता है?’’ बिरमा ने कहा.
‘‘बिरमा, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. इसलिए कान खोल कर सुन लो, अगर हमारे बीच कोई आया तो मैं न तुम्हें जिंदा छोड़ूंगा और न उसे.’’ राजकुमार ने धमकी दी.
राजकुमार की इस धमकी से बिरमा परेशान जरूर हो गई, लेकिन अब वह अनुज को कतई नहीं छोड़ सकती थी. वह उसी की बदौलत राजकुमार से पीछा छुड़ाना चाहती थी. जबकि यह इतना आसान नहीं था. इसी वजह से दोनों के बीच तनाव बढ़ने लगा. जब राजकुमार को लगा कि बिरमा उस के बजाय अनुज को ज्यादा महत्त्व दे रही है तो उस ने अपनी लायसेंसी पिस्तौल से बिरमा के घर फायरिंग करते हुए धमकी दी कि अगर उस ने अनुज से संबंध खत्म नहीं किए तो अच्छा नहीं होगा. राजकुमार के तेवर देख कर बिरमा डर गई. बिरमा को लगने लगा कि राजकुमार कभी भी उस की बेटी पर हाथ डाल सकता है. यह बात उस ने अनुज से बता कर कहा, ‘‘अगर तुम मुझ से संबंध बनाए रखना चाहते हो तो राजकुमार नाम के इस कांटे को तुम्हें निकालना होगा.’’
अनुज को पता चल गया था कि राजकुमार दबंग किस्म का आदमी है. बिरमा के लिए वह उस की भी जान ले सकता है. इसलिए उस ने सोचा कि राजकुमार उस के साथ कुछ गड़बड़ करे, उस के पहले ही वह उसे ठिकाने लगा दे. इस के बाद उस ने ऊषा और बिरमा के साथ बैठ कर राजकुमार को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. योजना बनने के बाद ऊषा ने राजकुमार को फोन किया, ‘‘एक अच्छी लड़की आ गई है. अगर चाहो तो आ जाओ. लेकिन पैसा थोड़ा ज्यादा लगेगा.’’
राजकुमार ने कहा, ‘‘पैसे की कोई चिंता नहीं है. बस लड़की अच्छी होनी चाहिए.’’
‘‘लड़की अच्छी है, तभी तो फोन किया है.’’
‘‘फिर रात में मैं पहुंच रहा हूं.’’ कह कर राजकुमार ने फोन काट दिया.
शाम को राजकुमार ने घर वालों से कहा कि वह बहन के यहां जा रहा है. वह घर से निकला तो चचेरा भाई लक्ष्मीकांत दिखाई दे गया. लड़की के बारे में बता कर उस ने उसे भी साथ ले लिया. लक्ष्मीकांत भी विधुर था. शारीरिक सुख की लालसा से वह भी राजकुमार के साथ चल पड़ा. दोनों ऊषा के घर पहुंचे तो वहां बिरमा भी मौजूद थी. बिरमा और लड़की को देख कर राजकुमार ने कहा कि वह बिरमा के साथ मौजमस्ती करेगा और लक्ष्मीकांत लड़की के साथ. ऊषा ने लड़की के साथ लक्ष्मीकांत को संतनगर भेज दिया तो राजकुमार को बिरमा के साथ तिलकनगर के अन्य मकान में. राजकुमार अपनी पिस्तौल लिए था.
लेकिन जब वह बिरमा के साथ उस घर में पहुंचा तो वहां पहले से घात लगाए बैठे अनुज यादव, लाला पंडित और विजय सिंह उस पर टूट पड़े. अनुज यादव ने राजकुमार की हत्या के लिए उन दोनों को 2 लाख रुपए दिए थे. राजकुमार को पिस्तौल निकालने का मौका ही नहीं मिला. उन लोगों ने ईंटपत्थर से राजकुमार की हत्या कर दी. लक्ष्मीकांत लड़की के साथ संतनगर स्थित जिस मकान में आया था, थोड़ी देर बाद टाटा मैजिक से राजकुमार की लाश ले कर तीनों वहां पहुंचे. उन्हें देख कर वह हक्काबक्का रह गया. वह कुछ समझ पाता, गोली मार कर उस की भी हत्या कर दी गई.
इस के बाद उस की लाश को भी उसी टाटा मैजिक में डाल कर वे मैनपुरी को जाने वाली सड़क पर चल पड़े. रोड पर ही स्थित थानाकस्बा घिरोर के पास गांव नंगला केहरी के शिवमंदिर के पास दोनों लाशें फेंक कर अपनेअपने घर चले गए. थाना घिरोर पुलिस ने ऊषा और बिरमा को गिरफ्तार कर हत्या का खुलासा तो कर दिया, लेकिन अभी मुख्य अभियुक्त उन के हाथ नहीं लगे थे. देवेश कुमार मुख्य अभियुक्तों तक पहुंचते, उस के पहले ही उन का तबादला हो गया. उस के बाद आए नए थानाप्रभारी दिवाकर सिंह यादव. उन्होंने काफी कोशिश कर के अनुज यादव को गिरफ्तार कर लिया.
पूछताछ में अनुज यादव ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया, लेकिन वह राजकुमार की मोटरसाइकिल, पिस्तौल और मोबाइल नहीं बरामद कर सके. उस का कहना था कि इन चीजों के बारे में लाला पंडित और गुन्नू यादव उर्फ विजय सिंह ही कुछ बता सकते हैं. अनुज यादव की गिरफ्तारी के बाद लाला पंडित और विजय सिंह को लगा कि वे कभी भी पकड़े जा सकते हैं. पकड़े जाने के डर से दोनों ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस पूछताछ तथा सामान की बरामदगी के लिए उन्हें रिमांड पर लेने की कोशिश कर रही थी. लेकिन कथा लिखे जाने तक उन्हें रिमांड पर नहीं लिया जा सका था. Hindi Crime Story
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






