ऐसा नहीं है कि फिल्मी कलाकार केवल बड़ेबड़े शहरों में पैदा होते हैं, गांवकस्बों के रंगमंचों से भी अदाकारी की बारीकियां सीख कर कलाकार फिल्म इंडस्ट्री में अपना मुकाम बना सकते हैं. इस बात को बौलीवुड के मशहूर ऐक्टर आशुतोष राना ने साबित कर के दिखा दिया है. हजारों कलाकारों की भीड़ से निकल कर आशुतोष राना ने आखिर किस तरह बौलीवुड में अपनी जगह बनाई?

बौलीवुड के सफल अभिनेता और विलेन का जानदार रोल निभाने वाले आशुतोष राना का जन्म मध्य प्रदेश के जिला  नरसिंहपुर के एक छोटे से कस्बे गाडरवारा में 10 नवंबर, 1967 को हुआ था. एक छोटे से कस्बे से मायानगरी तक का सफर तय करने वाले आशुतोष की प्राथमिक स्तर की शिक्षा गाडरवारा के गंज स्कूल में हुई थी. उस के बाद जबलपुर और अहमदाबाद में उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा ली.

अहमदाबाद से लौट कर गाडरवारा के सब से पुराने बीटीआई स्कूल में नौवीं कक्षा में दाखिला ले कर उन्होंने 11वीं पास की थी. स्कूली जीवन से जुड़ी यादों को साझा करते हुए आशुतोष के भाई प्रो. नंदकुमार नीखरा बताते हैं कि आशुतोष की पढ़ाई को ले कर परिवार के लोग ज्यादा उम्मीद नहीं रखते थे. जब वह मैट्रिक पास हुए तो मार्कशीट को एक हाथ ठेला पर सजा कर बैंडबाजे के साथ अपने दोस्तों के साथ नाचतेगाते जुलूस ले कर घर पहुंचे थे.

आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि आशुतोष राना ने अपना नाम खुद रखा था. बचपन में जब उन के घर में भगवान शिव का अभिषेक चल रहा था, तभी पंडितजी के द्वारा बोले गए मंत्र ‘ॐ आशुतोषाय नम:’ को सुन कर उन्होंने पंडितजी से पूछा, ‘‘पंडितजी, आशुतोष का मतलब क्या होता है?’’

तब पंडितजी ने उन्हें बताया, ‘‘आशुतोष का मतलब है जो शीघ्र प्रसन्न है जाए. भगवान शिव भी जल्दी खुश हो जाते हैं.’’

पंडितजी की बात सुन कर उन्होंने मां से कहा था, ‘‘मां आज से मेरा नाम आशुतोष होगा.’’

इसी तरह स्कूल पढ़ते समय आशुतोष की छवि एक दबंग युवा के रूप में बन चुकी थी. गाडरवारा में रोज ही उन के कारनामों के किस्से सुनाई देने लगे थे. एक दिन उन के भाई ने उन से कहा था, ‘‘ये तुम्हारे नाम के आगे जो नीखरा लगा है, इस कारण लोग तुम्हारा लिहाज करते हैं, तुम्हारे पावर के कारण नहीं.’’

आशुतोष को यह बात चुभ गई, उस के बाद उन्होंने परिवार की प्रतिष्ठा व पद का लाभ न लेने के लिए अपने नाम के आगे लगा सरनेम ‘नीखरा’ हटा कर ‘राना’ कर लिया. आशुतोष बताते हैं कि अपने पिता के नाम राम नारायण के पहले अक्षर ‘रा’ और ‘ना’ को मिला कर उन्होंने अपना सरनेम राना कर लिया था.

स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1984 में ग्रैजुएशन करने मध्य प्रदेश की सागर यूनिवर्सिटी में चले गए थे. उस समय वह यूनिवर्सिटी टौप यूनिवर्सिटी में शुमार थी, जिस में प्रदेश के 128 कालेज जुड़े हुए थे. आशुतोष राना सागर यूनिवर्सिटी गए तो वहां नेतागिरी करने लगे.

वह सागर यूनिवर्सिटी के विवेक हौस्टल में रहते थे. यूनिवर्सिटी में राना की छवि रौबिनहुड की तरह थी. उस दौरान वह पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की हरसंभव मदद करते थे, भले ही इस के लिए उन्हें प्रशासन से टकराव करना पड़े.

सागर यूनिवर्सिटी में आशुतोष राना के सहपाठी रह चुके शिक्षक व साहित्यकार सुशील शर्मा बताते हैं, ‘‘उस समय हम एमटेक के छात्र थे. आशुतोष विवेक हौस्टल के कमरा नंबर 65 में रहते थे. गाडरवारा के होने के चलते हमारी अकसर मुलाकात उन से होती थी. वह उस समय दृश्य और श्रव्य विभाग के छात्र हुआ करते थे. हमें देख कर आशुतोष अकसर बुंदेली भाषा में कहा करते थे, ‘बड्डे, तुम तो बड़े पढ़ने वाले हो और हम से जा पढ़ाई होत नैया. कछु जड़ीबूटी दे दो हमें भी.’

आज भी आशुतोष राना जब गाडरवारा आते हैं तो अपने दोस्तों और परिचितों से उसी सहजता से मिलतेजुलते हैं और उन की बोलती आंखें आज भी बिना कुछ कहे संवाद करती हैं.

आशुतोष राना को कालेज के दिनों से ही अदाकारी से बेहद लगाव हो गया था और दशहरे पर वह पुरानी गल्ला मंडी, गाडरवारा में होने वाली रामलीला में रावण का किरदार निभाने लगे थे. रावण का ही किरदार चुनने की खास वजह बताते हुए आशुतोष कहते हैं, ‘‘रामलीला में राम व रावण के किरदार ही अहम हैं. सपाट किरदार कभी मेरी पसंद नहीं रहे. चूंकि उस समय राम का किरदार ब्राह्मण जाति के कलाकारों को मिलता था तो फिर रावण का किरदार मेरी पहली पसंद था.’’

संस्कार मिले हैं परिवार से

आशुतोष राना के पिता रामनारायण नीखरा इलाके के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. आशुतोष 7 भाई और 5 बहनों में सब से छोटे थे. इस वजह से सभी के लाडले और हठीले भी थे. बड़ों के प्रति आदर रखने का पाठ उन्हें बचपन में ही पढ़ाया गया था.
राना बताते हैं कि मिडिल स्कूल पढ़ने के लिए उन्हें उन के अन्य 2 भाइयों के साथ जबलपुर के एक अंगरेजी मीडियम स्कूल में भेजा गया. 2 भाइयों के साथ वह वहीं हौस्टल में रहा करते थे. कुछ दिन बाद रविवार को मां और बाबूजी मिलने के लिए आए थे. इंग्लिश मीडियम स्कूल में अनुशासन सिखाया गया था तो दौड़ कर सीधे मिल भी नहीं सकते थे.

खैर, कुछ देर बाद हम लोग टाईवाई लगा कर और अपने हाथ पीछे बांध कर अनुशासन में खड़े हो गए. जैसे ही मांबाबूजी मिलने आए तो उन को इंप्रैस करने के लिए मैं ने कहा, ‘‘गुडमौर्निंग बाबूजी. गुडमौर्निंग मम्मी.’’
स्कूल में सिखाए अनुशासन के कारण हम तीनों भाइयों ने बाबूजी और मां के लपक कर पैर भी नहीं छुए. बाबूजी और मां ने उस समय तो कुछ नहीं कहा केवल मुसकरा कर रह गए.

खाने के बाद बाबूजी ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘चलिए रानाजी, अपना सामान बांध लीजिए. अब आप वहीं पढ़ेंगे.’’

हम सब लोग तो सोच रहे थे कि बाबूजी शाबाशी देंगे, पर यहां तो बाबूजी का रुख देख कर पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसकने लगी. हम सभी भाइयों ने परेशान हो कर बाबूजी से पूछा, ‘‘बाबूजी, आखिर हम लोगों से क्या गलती हो गई, जो आप स्कूल छोड़ कर घर चलने को कह रहे हैं?’’

तब बाबूजी ने हम लोगों को स्नेह से समझाते हुए कहा, ‘‘हम ने तुम लोगों को यहां कुछ नया सीखने भेजा है न कि पुराना भूलने के लिए. शिक्षा वही होती है जब हम अपने संस्कार उस में समाहित रखें.’’

उसी समय हम लोगों ने कान पकड़ कर बाबूजी से माफी मांगी और बाबूजी की दी गई सीख हम लोगों की समझ में आ गई. और तभी से हम नया तो सीख लेते हैं पर पुराना कभी नहीं भूलते. शिक्षा में ज्ञान के साथ संस्कार और संस्कृति का होना बहुत आवश्यक है.

बचपन से ही थे शरारती

आशुतोष राना बचपन के दिनों से ही शरारती थे. घर वालों के लाडप्यार का फायदा उठा कर वह शरारतों में अव्वल रहते थे. सोहागपुर डिग्री कालेज में प्रिंसिपल व उन के भाई डा. नंदकुमार नीखरा एक किस्सा सुनाते हुए कहते हैं कि इन्हीं शरारतों की वजह से जब राना 6 साल के थे, तब उन के कमर में चोट लग गई थी. उस समय सिर से पैर तक उन्हें प्लास्टर चढ़ा था. गरमी का मौसम था. आशुतोष ने मां से कहा, ‘‘मुझे कमरे से आंगन की खुली जगह में ले चलो.’’

तब घर के लोग पलंग सहित उन्हें आंगन में ले आए. उस के बाद राना ने कहा, ‘‘मुझे बरसात देखनी है.’’

राना की जिद से सभी परेशान हो गए. फिर हम सभी भाईबहनों ने घर के ऊपर के टीन की छत पर चढ़ कर बाल्टियों से पानी उड़ेलना शुरू कर दिया. इस तरह कृत्रिम बारिश का नजारा आशुतोष के सामने पेश कर दिया. राना इस पर भी खुश नहीं हुए और उन्होंने कहा सभी लोग डांस करें. फिर क्या था उन की जिद पूरी करने आधे लोग आंगन में डांस करने लगे.

स्कूल पढ़ते वक्त भी उन की शरारतें कम नहीं हुई थीं. बीटीआई स्कूल में उन के टीचर रहे सुदामा प्रसाद सोनी बताते हैं कि जब आशुतोष 11वीं कक्षा में पढ़ते थे, तब एक बार स्कूल के प्रिंसिपल साहब के साथ हमें पास के गांव चीचली जाना था तो मैं ने आशुतोष से कहा कि तुम अपने घर से जीप ले कर आ जाओ.

राना ने मेरी बात मानते हुए जीप स्कूल के सामने ला कर खड़ी कर दी. कुछ समय बाद जब हम जाने के लिए तैयार हो गए तो राना ने शरारती अंदाज में कहा, ‘‘सर, जीप स्टार्ट नहीं हो रही.’’

स्कूल के चपरासी ने धक्का लगाया, मगर फिर भी जीप स्टार्ट नहीं हुई तो आशुतोष ने कहा, ‘‘सर, आप लोगों को भी मिल कर धक्का लगाना पड़ेगा.’’

जैसे ही प्रिंसिपल साहब के साथ हम लोगों ने धक्का लगाया तो आशुतोष ने जीप स्टार्ट कर दी. बाद में पता चला कि जीप में कोई खराबी नहीं थी, आशुतोष ने मजा लेने के लिए हम से जबरन धक्का लगवाया था.

छठीं क्लास में पढ़ते लिखा लव लेटर

आशुतोष राना का बचपन उन की खास तरह की शरारतों के बीच बीता है. अहमदाबाद के स्कूल में पढ़ाई के दौरान एक लड़की उन्हें पसंद आ गई. एक दिन उन्होंने लव लेटर लिखा और उस लड़की की बेंच की ओर उछाल दिया, मगर वह लव लेटर उस लड़की की बेंच पर न पड़ कर दूसरी लड़की की बेंच पर गिर गया.
उस लड़की ने लव लेटर पढ़ते हुए इशारे से पूछा, ‘ये मेरे लिए है?’ आशुतोष ने इशारे से ही कहा, ‘नहीं, आप के लिए नहीं आगे वाली सीट पर बैठी लड़की के लिए है.’

बस, फिर क्या था उस लड़की ने लव लेटर क्लास में मौजूद टीचर को दे दिया. टीचर उन्हें मैथ और अंगरेजी पढ़ाते थे, उन्होंने आशुतोष को खड़ा कर के पूछा, ‘‘माय डार्लिंग का क्या मतलब होता है?’’

आशुतोष ने बड़े ही मासूमियत से जबाब देते हुए कहा, ‘‘सर माय डार्लिंग का मतलब होता है मेरे प्रिय.’’

फिर क्या था, टीचर ने आशुतोष को झापड़ रसीद कर दिया. आशुतोष को उस समय यह समझ नहीं आया कि उन्हें गलत आंसर के लिए मार पड़ी है या कुछ और वजह से. इस वजह से आशुतोष को मैथ और अंगरेजी से नफरत सी हो गई थी.
स्कूल के प्रिंसिपल ने उन के भाई मदन मोहन नीखरा को बुला कर आशुतोष की इस हरकत की शिकायत की तो राना दुखी हो गए थे. बाद में उन के भाई ने उन्हें स्कूटर से अहमदाबाद घुमाया और उन को समझाते हुए आगे से पढ़ाई पर ध्यान देने की बात कह कर उन का मन बहलाया था.

गुरु के आशीर्वाद से पाया मुकाम

सागर यूनिवर्सिटी में जब आशुतोष कालेज की पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान उन के बहनोई ने उन्हें पंडित देव प्रभाकर शास्त्री से मिलवाया था. देव प्रभाकर शास्त्री को दद्दाजी के नाम से जाना जाता था. जब आशुतोष राना उन से मिले तो दद्दाजी ने उन की अभिनय क्षमता की परख करते हुए उन्हें ऐक्टिंग कोर्स करने के लिए प्रेरित किया.
आशुतोष ने अपने गुरु की सलाह से साल 1994 में दिल्ली के एनएसडी यानी नैशनल स्कूल औफ ड्रामा में दाखिले के लिए गए और फर्स्ट अटेंप्ट में ही उन का सिलेक्शन हो गया.

एनएसडी में पढ़ाई करने के बाद वह काम की तलाश में मुंबई चले गए और महेश भट्ट के टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ से टेलीविजन पर एंट्री की.

‘जख्म’, ‘दुश्मन’ और ‘संघर्ष’ जैसी बेहतरीन फिल्मों में अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुके आशुतोष राना की जिंदगी में एक दिन ऐसा भी आया, जब महेश भट्ट ने उन्हें सैट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इस की वजह सिर्फ यह थी कि आशुतोष ने उन के पैर छू लिए थे.

आशुतोष राना ने एक रोचक किस्सा सुनाते हुए कहा, ‘‘मुझे फिल्मकार और डायरेक्टर महेश भट्ट से मिलने को कहा गया. मैं उन से मिलने गया और जा कर भारतीय परंपरा के मुताबिक उन के पैर छू लिए. पैर छूते ही वह भड़क उठे, क्योंकि उन्हें पैर छूने वालों से बहुत नफरत थी. उन्होंने मुझे अपने फिल्म सैट से बाहर निकलवा दिया और असिस्टैंट डायरेक्टरों पर भी काफी गुस्सा हुए कि आखिर उन्होंने मुझे कैसे फिल्म के सैट पर घुसने दिया.’’

आशुतोष राना ने आगे बताया कि इतनी बेइज्जती के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जब भी महेश भट्ट मिलते या कहीं दिखते तो वे लपक कर उन के पैर छू लेते और वे बहुत गुस्सा होते.

आखिरकार एक दिन महेश भट्ट ने आशुतोष राना से पूछ ही लिया, ‘‘तुम मेरे पैर क्यों छूते हो जबकि मुझे इस से नफरत है?’’
आशुतोष ने जवाब दिया, ‘‘बड़ों के पैर छूना मेरे संस्कार में है, जिसे मैं नहीं छोड़ सकता.’’

यह सुन कर महेश भट्ट ने उन्हें गले से लगा लिया और साल 1995 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ में एक गुंडे ‘त्यागी’ का रोल दिया. बाद में तो उन्होंने महेश भट्ट द्वारा निर्देशित कई फिल्मों में काम किया, जिन में ‘जख्म’ और ‘दुश्मन’ खास हैं.

एनएसडी के 1994 बैच के छात्र रहे आशुतोष राना कहते हैं कि प्रशिक्षण के बाद उन्हें एनएसडी में ही नौकरी का औफर हुआ और वह भी मोटी तनख्वाह पर, लेकिन
उन्होंने फिल्म जगत में जाने का रास्ता चुना.

रेणुका शहाणे से प्रेम की दिलचस्प कहानी

कभी जी टीवी के फेमस रिएलिटी गेम शो ‘अंताक्षरी’ में अन्नू कपूर की कोहोस्ट रही और फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ में सलमान खान की भाभी के रोल से मशहूर हुई रेणुका शहाणे से आशुतोष राना ने शादी की.

आशुतोष राना की रेणुका से पहली मुलाकात फिल्म ‘जयति’ की शूटिंग के समय हुई थी. रेणुका और आशुतोष की दोस्ती मेल मुलाकात के बाद प्यार में बदल गई और उन्होंने साल 2001 में शादी कर ली.

रेणुका से शादी करना आशुतोष के लिए आसान नहीं था. इस की वजह यह थी कि रेणुका तलाकशुदा थीं और दूसरी शादी के लिए तैयार नहीं थीं. हालांकि, आशुतोष राना ने भी ठान लिया था कि रेणुका को मजबूर कर देंगे कि वह उन्हें आई लव यू बोलें और ऐसा ही हुआ.

आशुतोष और रेणुका की पहली मुलाकात डायरेक्टर हंसल मेहता की एक फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थी. यह मुलाकात सिंगर राजेश्वरी सचदेव ने कराई थी. उस वक्त तक आशुतोष तो रेणुका के बारे में थोड़ाबहुत जानते थे, लेकिन रेणुका के लिए वह पूरी तरह अंजान थे.

पहली मुलाकात में ही आशुतोष रेणुका को दिल दे बैठे थे. हालांकि, इस मुलाकात के बाद दोनों कई महीनों तक नहीं मिले, फिर धीरेधीरे दोनों मे बातचीत शुरू हुई. रेणुका शहाणे की पहली शादी टूट चुकी थी. उन्होंने मराठी थिएटर के डायरेक्टर विजय केनकरे से शादी की थी. ऐसे में रेणुका के मन में शादी को ले कर कुछ संदेह था.

रेणुका की मां मशहूर लेखिका शांता गोखले भी अपनी बेटी की शादी को ले कर थोड़े असमंजस में थीं. दरअसल, रेणुका के घर वालों को रेणुका की दूसरी शादी के बजाय इस बात को ले कर संशय था कि आशुतोष मध्य प्रदेश के छोटे से गांव से थे और उन की फैमिली में 12 लोग थे.

उस समय डायरेक्टर रवि राय आशुतोष और रेणुका के साथ एक शो करना चाहते थे. इस मौके का फायदा उठाते हुए आशुतोष ने रवि से रेणुका का नंबर मांग लिया. रवि ने नंबर देते हुए साफतौर पर बता दिया कि रेणुका रात को 10 बजे के बाद किसी के फोन का जवाब नहीं देतीं और न ही अनजान नंबर की काल उठाती हैं. आंसरिंग मशीन पर मैसेज छोड़ना पड़ता है.

बस, फिर क्या था आशुतोष ने रेणुका की आंसरिंग मशीन पर अपना नंबर न देते हुए एक मैसेज छोड़ा, जिस में उन्हें दशहरे की बधाई दी थी. उन्होंने अपना नंबर जानबूझ कर नहीं दिया था. आशुतोष का मानना था कि अगर रेणुका को मुझ से बात करनी होगी तो वो खुद कोशिश करेंगी और कहीं न कहीं से मेरा नंबर तलाश ही लेंगी.
कुछ दिनों बाद आशुतोष को अपनी बहन से मैसेज मिला कि रेणुका का फोन आया था और उन्होंने उन्हें दशहरा की शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद दिया है.

कुछ समय तक दोनों के बीच संदेशों का सिलसिला चलता रहा और फिर रेणुका ने उन्हें अपना पर्सनल नंबर दे दिया. जैसे ही आशुतोष को रेणुका का नंबर मिला, उसी दिन रात साढ़े 10 बजे रेणुका को काल किया और कहा, ‘थैंक्यू रेणुकाजी, आप ने अपना नंबर दे दिया.’

इस के बाद करीब 3 महीने तक उन की यूं ही फोन पर बात होती रही. आशुतोष राना के मुताबिक, एक बार रेणुका गोवा में शूटिंग कर रही थीं तो मैं ने उन्हें फोन पर एक कविता सुना दी. इस कविता में मैं ने इकरार, इनकार, खामोशी, खालीपन और झुकी निगाहें… सब कुछ लिखा था.

इस कविता को सुनने के बाद रेणुका अपने आप को रोक नहीं पाईं और उन्होंने फोन पर ही ‘आई लव यू’ कहा. यह सुन कर आशुतोष खुशी से पागल हो गए और अपने आप को संभालते हुए बोले, ‘‘रेणुकाजी, मिल कर बात करते हैं.’’
शादी के बाद आशुतोष राना जब रेणुका को ले कर गाडरवारा आते थे तो रेलवे स्टेशन से घर तक की दूरी उस समय चलने वाले घोड़ा तांगे से तय करते थे. आज उन के 2 बेटे शौर्यमान और सत्येंद्र हैं.

अभी भी जब आशुतोष गाडरवारा आते हैं तो अपने बंगले पर दोस्तों और प्रशंसकों से दिल खोल कर मिलते हैं. उन से मिलने वालों को वह इस बात का तनिक भी आभास नहीं होने देते कि वह बौलीवुड के स्टार हैं.

आशुतोष का फिल्मी सफर

साल 1996 में आशुतोष राना की पहली फिल्म ‘संशोधन’ थी. इस के बाद उन्होंने ‘कृष्ण अर्जुन’, ‘तमन्ना’, ‘जख्म’, ‘गुलाम’ समेत कई फिल्मों में भी काम किया, लेकिन उन्हें असली पहचान साल 1998 में आई काजोल स्टारर फिल्म ‘दुश्मन’ ने दिलाई.
‘बादल’, ‘अब के बरस’, ‘कर्ज’, ‘कलयुग’ और ‘आवारापन’ जैसी फिल्मों में विलेन के किरदार के लिए आशुतोष को जाना जाने लगा.

फिल्म ‘दुश्मन’ में आशुतोष राना ने साइकोकिलर गोकुल पंडित का किरदार निभाया था. इस किरदार से आशुतोष ने दर्शकों का दिल जीत लिया था. उन्हें 1999 में फिल्म ‘दुश्मन’ और ‘संघर्ष’ के लिए बेस्ट विलेन के फिल्मफेयर अवार्ड से भी नवाजा गया था. बायोपिक फिल्म ‘शबनम मौसी’ के किरदार को भी लोगों ने काफी पसंद किया था.

आशुतोष राना एक ऐसे ऐक्टर हैं,जो निगेटिव रोल में भी जान फूंक देते हैं. जब उन्होंने फिल्म ‘संघर्ष’ में लज्जाशंकर पांडे का रोल निभाया तो दर्शकों की चीख निकल गई थी. बच्चों की बलि देने वाले कैरेक्टर को इस तरह निभाया कि थिएटर में बैठे दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए थे.

और खौफ का ऐसा तिलिस्म आशुतोष जैसे कलाकार ही कर सकते हैं. ‘संघर्ष’ फिल्म में आशुतोष राना ने एक ऐसे किन्नर का रोल किया था, जो बच्चों की बलि दे कर अमर हो जाना चाहता है.

लज्जाशंकर पांडे का चीखना, सनकीपन और जीभ को ट्विस्ट करने वाली आवाज
ने थिएटर में बैठे दर्शकों में सिहरन पैदा कर दी थी.
खतरनाक विलेन बन कर रहे चर्चा में

इस रोल के बाद तो आशुतोष बौलीवुड के सब से खतरनाक विलेन बन गए. कहते हैं कि महेश भट्ट ने इस फिल्म को बनाने के बारे में जब सोचा था तो उन के दिमाग में सिर्फ आशुतोष ही थे और उन्होंने कहा भी था कि इस फिल्म जैसा विलेन आज तक बौलीवुड में नहीं देखा गया होगा. यह बात सच निकली और ‘संघर्ष’ जब रिलीज हुई तो खौफनाक अभिनय के लिए आशुतोष को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.

आशुतोष राना बौलीवुड के ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें अभिनय करते हुए देखते वक्त लोग नजरें नहीं हटा पाते. उन के चेहरे के एक्सप्रैशन ऐसे होते हैं कि उस के सामने अच्छेअच्छे साउंड इफेक्ट भी फीके पड़ जाते हैं. वैसे तो वो एक वर्सेटाइल ऐक्टर हैं लेकिन उन्होंने विलेन के कुछ किरदार ऐसे निभाए हैं जिन्हें देखते ही थिएटर में दर्शक भी भौचक्के रह जाते हैं.

बौबी देओल की सुपरहिट फिल्म ‘बादल’ में आशुतोष राना ने डीआईजी जय सिंह राना का किरदार निभाया था. जय सिंह एक ऐसा बेहरम इंसान था, जिस ने अपने फायदे के लिए पूरे गांव तक को जला डाला था.

इमरान हाशमी स्टारर फिल्म ‘आवारापन’ में आशुतोष ने जुर्म की दुनिया के बादशाह भरत दौलत मलिक का रोल किया था. उन के इस किरदार को लोगों ने बहुत सराहा था. फिल्म ‘अब के बरस’ में इन्होंने एक राजनीतिज्ञ तेजेश्वर सिंघल का किरदार निभाया था. एक ऐसा शख्स जो 2 प्यार करने वालों को जुदा करने की कसम खाता है.
आशुतोष राना ने फिल्म ‘हासिल’ में मेन विलेन गौरीशंकर पांडे का रोल किया था. जिम्मी शेरगिल और इरफान खान जैसे कलाकारों के बीच इस फिल्म में उन्हें नोटिस किए बिना नहीं रहा जा सकता. मोहित सूरी की फिल्म ‘कलयुग’ में उन्होंने जौनी नाम के एक दलाल का रोल किया था. उन के इस कैरेक्टर की भी लोगों ने ख़ूब तारीफ की थी.

चंबल के बागी डाकुओं पर बनी फिल्म ‘सोन चिरैया’ में आशुतोष राना ने एक खतरनाक पुलिस अफसर वीरेंद्र सिंह गुर्जर का किरदार निभाया था. ऐसा निर्दयी पुलिस वाला जो डाकुओं से खार खाता है और उन्हें मार कर ही दम लेता है. उन के इस रोल की क्रिटिक्स ने ख़ूब सराहना की थी. इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत भी थे.
के.सी. बोकाडिया की फिल्म ‘डर्टी पौलीटिक्स’ में आशुतोष ने ओमपुरी, नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, राजपाल यादव, गोविंद नामदेव और मल्लिका शेरावत के साथ काम किया था.

मनोहर कहानियां का शो भी किया होस्ट

आशुतोष राना ने जहां जैसा रोल मिला, उसी में संतोष कर अपने अभिनय की यात्रा को जारी रखा. जब हिंदी फिल्मों में काम नहीं मिला तो कई तेलुगू, मराठी, तमिल , कन्नड़ जैसी भाषाओं की फिल्मों में काम किया. आशुतोष बताते हैं कि दक्षिण भारत की 2-3 फिल्मों में काम कर के जो पैसा मिलता था, उस से एक साल का कोटा पूरा हो जाता था.

अपनी शुद्ध हिंदी बोलने और ऐक्टिंग के अंदाज की वजह से उन्होंने कई टीवी शो ‘बाजी किस की’, ‘सरकार की दुनिया’ में होस्ट के रूप में काम किया है.
दिल्ली प्रैस की मनोहर कहानियां की अपराध कथाओं पर बने टीवी शो ‘अद्भुत कहानियां’ को होस्ट करने की जिम्मेदारी भी आशुतोष ने निभाई है.

आशुतोष ने डिजिटल प्लेटफार्म पर भी अपनी धमाकेदार एंट्री की है . एमएक्स प्लेयर पर दिखाई जाने वाली हिस्टोरिकल ड्रामा वेब सीरीज ‘छत्रसाल’ में उन्होंने औरंगजेब का किरदार निभाया है.

आशुतोष ने ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हुई एक फिल्म ‘पगलैट’ में भी काम किया है. ‘पगलैट’ का निर्माण सीखिया फिल्म्स और बालाजी मोशन पिक्चर ने मिल कर किया है व इस के निर्देशक उमेश बिष्ट हैं.

फिल्म भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी बताती है, जो संकट में आ जाता है. निर्माता गुनीत मोंगा की इस फिल्म को फ्रांस का सब से बड़ा सिविलियन अवार्ड मिल
चुका है.
पहली जुलाई, 2022 को आशुतोष राना की जैकी श्राफ और आदित्य राय कपूर के साथ एक फिल्म ‘ओम’ रिलीज हुई है. एक्शन से भरपूर इस फिल्म में आशुतोष राना जैकी श्राफ के भाई जय की भूमिका में हैं.

राना का साहित्य प्रेम

आशुतोष राना अपनी लाजवाब हिंदी के लिए भी काफी लोकप्रिय हैं. साहित्य का माहौल उन्हें अपने घर से ही मिला है. 7 भाई और 5 बहनों के परिवार में उन से बड़े भाई प्रभात नीखरा ‘दादा भैया’ बुंदेली भाषा के जानेमाने कवि हैं. अमरावती, महाराष्ट्र के हास्य व्यंग्य कवि किरण जोशी एक किस्सा साझा करते हुए बताते हैं कि कविताओं से आशुतोष का बहुत लगाव रहा है.

1991 में जब गाडरवारा में कवि सम्मेलन हुआ था तो उन्होंने मंच पर आ कर सभी कवियों से आटोग्राफ लिए थे, जबकि आज
बौलीवुड में वह जिस मुकाम पर हैं तो
लोग उन से आटोग्राफ लेने की ख्वाहिश
रखते हैं.

आशुतोष राना अच्छे कवि होने के साथ साथ अच्छे लेखक भी हैं. उन के लिखे व्यंग्य ‘मौन मुसकान की मार’ नामक पुस्तक में प्रकाशित हुए हैं. उन की लिखी दूसरी पुस्तक ‘रामराज्य’ भी साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय हुई है.

हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति आशुतोष के लगाव की वजह से उन को बड़ेबड़े साहित्यिक मंचों पर बुलाया जाता है. उन की कविताओं में नारी के प्रति प्रेम और सम्मान के भाव साफ दिखाई देते हैं. उन की कविताओं की बानगी देखिए—

प्रिय! लिख कर
नीचे लिख दूं नाम तुम्हारा
कुछ जगह बीच में छोड़
नीचे लिख दूं सदा तुम्हारा..
और लिखा बीच में क्या? ये तुम को पढ़ना है
कागज पर मन की भाषा का अर्थ समझना है
और जो भी अर्थ निकालोगी तुम, वो मुझ को स्वीकार है
मौन अधर.. कोरा कागज.. अर्थ सभी का प्यार है..
देश के हालात पर लिखी उन की पंक्तियां देखिए—
देश चलता नहीं, मचलता है,
मुद्दा हल नहीं होता सिर्फ उछलता है,
जंग मैदान पर नहीं, मीडिया पर जारी है
आज तेरी तो कल मेरी बारी है.
आशुतोष का फिल्मी सफर अभी जारी है. उन के प्रशंसकों को पूरा भरोसा है कि आने वाले वक्त में गांव की मिट्टी में जन्मा यह ऐक्टर बुलंदियों के शिखर पर अपनी पताका मजबूती से जमाए रखेगा. द्य

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