कलाकार: सिद्धार्थ मल्होत्रा, विवेक ओबेराय, शिल्पा शेट्टी, मुकेश ऋषि, मयंक टंडन, ईशा तलवार, वैदेही परशुराम, शरद केलकर आदि.
निर्देशक: रोहित शेट्टी और खुशवंत प्रकाश
लेखक: विधि घोडग़ांवकर, अनुषा नंदकुमार, संदीप साकेत, संचित बेदरे और आयुष त्रिवेदी.
निर्माता: रोहित शेट्टी.
ओटीटी: अमेजन प्राइम वीडियो
लेखक हों या निर्माता निर्देशक, सभी को लगता है कि लोगों को अपराध कथाएं या अपराध आधारित फिल्में या वेब सीरीज अधिक पसंद हैं. एक तरह से देखा जाए तो यह सच भी है, क्योंकि अपराध से हर वह आदमी घबराता है, जो सीधीसादी जिंदगी जीने वाला होता है. बाकी तो अपराध करने वाला भी उसी समाज का हिस्सा है, जिस में सीधीसादी जिंदगी जीने वाला रहता है.
यही वजह है कि लोग समाज में होने वाले अपराधों के बारे में जानना चाहते हैं. लेकिन इस से ज्यादा रुचि उन्हें इस में होती है कि पुलिस ने उस अपराध करने वाले को पकड़ा कैसे? यह जानने की जिज्ञासा ही उन्हें अपराध कथाओं की ओर आकर्षित करती है.
वेब सीरीजों का भी लगभग वही हाल है. हर ओटीटी पर अपराध कथाओं की भरमार है, पर दर्शक जो देखना चाहता है, वही किसी भी वेब सीरीज में देखने को नहीं मिलता. इस की वजह है लेखकों, निर्माताओं और निर्देशकों की अपनी मनमानी. उन्हें यही लगता है कि हम जो दिखाएंगे, दर्शकों को वही देखना होगा.
दिल्ली के ‘बाटला हाउस’ की असली घटना को ध्यान में रख कर उस के पहले और बाद में कुछ काल्पनिक कहानियां जोड़ कर करीब आधा दरजन लोगों ने औसतन 45 से 50 मिनट के 7 एपिसोड वाली (Web Series) वेब सीरीज लिखी है, ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ (Indian Police Force). सितारे, तलवारें और अशोक की लाट देखने से लगता है कि हैदराबाद की पुलिस अकादमी से निकले आईपीएस अफसरों से सीरीज के लेखकों ने कभी ठीक से बैठ कर बात नहीं की.
भीड़ भरे इलाके में आतंकवादियों से लडऩे निकली दिल्ली पुलिस की यह कौन सी छवि सीरीज का निर्देशक गढऩा चाह रहा है. इसे देख कर लगता है कि यह पुलिस की सीरीज नहीं, बल्कि मजाक चल रहा है.
‘इंडियन पुलिस फोर्स’ सीरीज (Indian Police Force Series) कहानी के मामले में ही नहीं, संवाद के मामले में भी काफी कमजोर है. पूरी फोर्स को औफिस की बालकनी में खड़े हो कर संबोधित करने वाले विवेक ओबेराय (Vivek Oberoi) जब अमिताभ बच्चन बनने की कोशिश करता है तो सीरीज की एक और कमजोर परत खुलती है.
ईशा तलवार के पास चमकने का काम है, लेकिन नफीसा बनी वैदेही का काम नोटिस करने लायक है. बाकी कामों में निकितन धीर ने अपना डीलडौल दिखाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है. एक कलाकार ऐसा भी रखा गया है, जो खुद को हरियाणवी दिखाने की नाकाम कोशिश करता रहता है.
‘इंडियन पुलिस फोर्स’ को देखने का एकलौता कारण इस के साथ जुड़ा रोहित शेट्टी (Rohit Shetty) का नाम है, लेकिन जब वह खुद ही अपने नाम और काम को गंभीरता से न ले रहा हो तो फिर बाकियों से क्या उम्मीद की जा सकती है. स्टूडियो में बनाए गए पुरानी दिल्ली के इस के सेट भी काफी कमजोर लगते हैं.
इस सीरीज में न तो कहीं सस्पेंस दिखता है न ही कहीं रोमांच और न ही कहीं पुलिस की वह कार्यशैली दिखती है, जो दर्शकों को आकर्षित करे तो ऐसी सीरीज को देखना ही बेकार है.
पहला एपिसोड
पहले एपिसोड की शुरुआत में ही दिल्ली के एक स्थान पर बम विस्फोट का दृश्य दिखाया जाता है, जहां लाशें पड़ी थीं और बचे लोग भाग रहे थे. तभी दिल्ली पुलिस के डीसीपी कबीर मलिक और उन की टीम दिखाई देती है. कबीर मलिक एक बच्चे को देखते हैं. उन्हें लगा कि उस बच्चे के बैग में बम है. उस बैग से टाइमर की आवाज भी आ रही थी. सभी लोग उस बच्चे पर पिस्तौल तान देते हैं.
कबीर मलिक की भूमिका सिद्धार्थ मल्होत्रा (Siddharth Malhotra) ने निभाई है. अपनी भूमिका के साथ उस ने न्याय करने की बहुत कोशिश की है, पर जब लेखक और डायरेक्टर ने ही उस की भूमिका के साथ न्याय नहीं किया तो अपने अभिनय से वह भूमिका के साथ न्याय कैसे कर पाता.
इस के बाद 2 घंटे पहले का अशोक बाग का दृश्य दिखाया जाता है, जहां लोग अपनेअपने काम में लगे थे. तभी बम का जोरदार धमाका होता है, जिस में तमाम लोग मारे जाते हैं. फिर डीसीपी कबीर मलिक को दिखाते हैं, जो अपनी मां रुखसाना मलिक के साथ रहता है. उस की पत्नी भी थी रश्मि मलिक, जिस की मौत हो चुकी है. कबीर अकसर उसी की यादों में खोया रहता है.
कबीर अपनी मां से बातें कर रहा होता है, तभी उस के पास फोन आता है और उसे दिल्ली में हुए बम विस्फोट के बारे में बताया जाता है. कबीर तुरंत अपनी गाड़ी से निकल जाता है.
कबीर की मां रुखसाना की भूमिका मृणाल कुलकर्णी ने निभाई है तो पत्नी रश्मि मलिक की भूमिका ईशा तलवार ने निभाई है. इन दोनों अभिनेत्रियों की इस सीरीज में कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं है.
आगे के दृश्य में विक्रम बख्शी को दिखाते हैं, जो एक जांबाज पुलिस अधिकारी है. उस की पत्नी का नाम श्रुति बख्शी है. इन का एक बेटा है आयुष. श्रुति अपने बेटे को स्कूल छोडऩे जा रही होती है, तभी कबीर फोन कर के अपने अधिकारी जौइंट पुलिस कमिश्नर विक्रम को दिल्ली में हुए बम विस्फोट के बारे में बताता है.
विक्रम अपनी पत्नी और बेटे को घर पर ही रहने के लिए कह कर खुद चला जाता है. जौइंट पुलिस कमिश्नर के रोल में विवेक ओबेराय है तो उस की पत्नी श्रुति बख्शी का रोल श्वेता तिवारी ने किया. दोनों ही जानेमाने और पुराने कलाकार हैं, पर सीरीज में अपना स्थान बनाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं.
अब इंडिया गेट को दिखाया जाता है, जहां एक बेंच पर 2 बच्चे खेल रहे थे. उन में से एक बच्चा बेंच के नीचे बम देखता है. वह उसे अपने हाथ में ले लेता है. जैसे ही इस की जानकारी पुलिस वालों को होती है, सभी को वहां से भगा कर इस की सूचना विक्रम सर को देते हैं. विक्रम सीधे इंडिया गेट के लिए चल पड़ता है.
दूसरी ओर कबीर को जिस बच्चे के बैग में बम होने का शक था, उस में से बम नहीं निकलता. पर वह बच्चा उस से कहता है कि उस ने उस आदमी को देखा था, जिस ने कचरे के डिब्बे में बम वाला बैग डाला था.
कबीर उस बच्चे को पुलिस स्टेशन भिजवा देता है, जिस से उस आतंकी का स्केच बनवाया जा सके. तभी एक सिपाही कबीर को बताता है कि इंद्रलोक यूनिवर्सिटी के पास एक बम मिला है. यह जान कर कबीर वहां के लिए चल देता है.
विक्रम इंडिया गेट पहुंच कर देखता है कि एक बच्चे के हाथ में बम है. पहले वह अपने सिपाही को डांटता है कि बच्चे के हाथ से बम क्यों नहीं लिया? सिपाही ने डरने की बात की तो वह खुद बच्चे के पास जाता है और उस के हाथ से बम ले कर बच्चे को भगा देता है. इस के बाद बम निरोधक दस्ता आ जाता है और बम को डिफ्यूज कर देता है.
विक्रम मुसकराते हुए सभी को बताता है कि बम डिफ्यूज हो गया, तभी वहां से कुछ दूरी पर धमाका होता है. इस पर सभी डर जाते हैं. इस के बाद मीडिया वालों को एक मेल मिलता है, जिस में दिल्ली में 6 बम धमाकों की खबर थी. इन सभी बम धमाकों की जिम्मेदारी इंडियन जेहादी नाम के टेररिस्ट संगठन ने ली थी. मीडिया वाले इस खबर को दिखा कर सभी को अलर्ट कर देते हैं.
कबीर इंद्रलोक यूनिवर्सिटी पहुंचता है तो वहां देखता है कि एक कार में बम लगा है, जिसे कार के स्टार्टिंग प्लग से जोड़ा गया था. इस का मतलब बम को कार खोल कर नहीं निकाला जा सकता था. जबकि बम डिफ्यूज करने वालों को आने में काफी समय लग सकता था.
तब डीसीपी कबीर अपनी कार से उस कार को ठेलते हुए सामने के खाली गोडाउन में ले जाता है. वहां बम विस्फोट तो होता है, पर कबीर के इस साहसिक कार्य से सभी बच जाते हैं.
इस के बाद दिल्ली पुलिस हैडक्वार्टर में पुलिस वालों की एक मीटिंग होती है, जहां कबीर और विक्रम कहते हैं कि वे हर हाल में उन आतंकवादियों को पकड़ कर रहेंगे, जिन्होंने दिल्ली का यह हाल किया है. जब तक आतंकवादी पकड़े नहीं जाते, तब तक कोई पुलिस वाला न घर जाएगा और न आराम से बैठेगा.