वेब सीरीज : आखिरी सच
कलाकार: तमन्ना भाटिया, अभिषेक बनर्जी, शिवांग नारंग, कृति सेन, राहुल बग्गा, दानिश इकबाल, निशु दीक्षित, संजीव चोपड़ा
निर्देशक: रौबी ग्रेवाल
लेखक: सौरव डे
तमन्ना भाटिया की यह सीरीज साल 2018 में दिल्ली में हुए बुराड़ी कांड से प्रेरित है. बुराड़ी में घटे इस मामले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. पहली जुलाई, 2018 की सुबह एक ही परिवार के 10 लोगों के शव घर के आंगन की ग्रिल से लटके मिले थे. जबकि दादी का शव कमरे में मिला था. फंदे से लटकी लाशों के हाथ पीछे बंधे थे और उन के मुंह पर कपड़ा बंधा था.
इस घटना पर नेटफ्लिक्स ने साल 2021 में ‘हाउस आफ सीक्रेट्स: द बुराड़ी डेथ्स’ नाम से डाक्युमेंटरी सीरीज जारी की थी, जिस में जांच अधिकारियों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों से की गई मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ के बाद इस रहस्यमयी घटना के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हुए इस के पीछे की सच्चाई को समझाने की कोशिश की गई थी.
अब डिज्नी प्लस हौटस्टार ने इस घटना से प्रेरित हो कर काल्पनिक इनवैस्टिगेशन को आधार बना कर ‘आखिरी सच’ वेब सीरीज के 6 एपीसोड रिलीज किए हैं. बुराड़ी वाली घटना को आधार बना कर एक कहानी को दिखाया गया है. इस वेब सीरीज के लेखक सौरव डे हैं तो निर्देशन रौबी ग्रेवाल ने किया है.
इस सीरीज में अभिनय की बात करें तो अभिषेक बनर्जी का अभिनय औसत है, बाकी तो सभी का अभिनय नौटंकी लगता है. इतनी अधिक फिल्मों में काम कर चुकी तमन्ना भाटिया तो एक इंसपेक्टर की भूमिका में बिलकुल ही फिट नहीं बैठीं. उन का इंसपेक्टर होते हुए मेकअप में रहना आंखों को चुभता है. उसी तरह पुलिस की भूमिका में जितने भी लोग हैं, ऐसा लगता है कि वे नाटक कर रहे हैं.
इस में दोष लेखक और डायरेक्टर का है. लेखक ने भी शायद अपराध कथाएं नहीं पढ़ीं. अगर उस ने मनोहर कहानियां या सत्यकथा ही पढ़ी होतीं तो उसे पता चल जाता कि पुलिस अपराधों का इनवैस्टीगेशन कैसे करती है.
इस वेब सीरीज में इनवैस्टीगेशन जैसा तो कहीं कुछ दिखाई ही नहीं देता. ऐसा लगता है जैसे पुलिस इनवैस्टीगेशन न कर के सिर्फ यह पता लगा रही है कि इन लोगों ने आत्महत्या क्यों की है. यानी उसे पहले से ही पता है कि इन लोगों ने आत्महत्या की है.
पहले एपीसोड की शुरुआत दिल्ली के किशननगर में रहने वाले राजावत परिवार के 11 लोगों की मौत के समाचार से होती है. 10 लोगों की लाशें आंगन में लगी ग्रिल से लटके थे तो दादी की लाश कमरे में पड़ी थी.
इस सनसनीखेज मामले की जांच क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर अन्या को सौंपी जाती है. इंसपेक्टर अन्या का रोल तमन्ना भाटिया ने किया है. अपना रोल अच्छी तरह निभाने वाली तमन्ना भाटिया ने अपनी भूमिका के साथ यानी एक इंसपेक्टर के रूप में जिस तरह न्याय करना चाहिए था, उस तरह नहीं किया है.
वह घटनास्थल पर भी जाती हैं तो इस तरह मेकअप किए हुए होती हैं, जैसे किसी पार्टी में गई हों. हां, घटना को देख कर उन के चेहरे पर जो भाव आते हैं, वह किसी पुलिस वाले के चेहरे पर नहीं आते, क्योंकि पुलिस वालों की संवेदना मर चुकी होती है. उन का शौक होना वहां अच्छा नहीं लगा, इसलिए उस समय वह पुलिस वाली बिलकुल नहीं लगतीं. इस पर शायद डायरेक्टर का ध्यान न गया हो.
पुलिस अधिकारी के रूप में फेल हुईं तमन्ना भाटिया
घटना को देख कर एक आम आदमी की ही तरह इंसपेक्टर अन्या हिल जाती हैं. अन्या घटनास्थल का निरीक्षण करते हुए वहां जमा लोगों से तथा पड़ोसियों से पूछताछ कर सच्चाई जानने का प्रयास करती हैं. इसी पूछताछ में पता चलता है कि राजावत परिवार की एक लडक़ी अंशिका की अमन से इंगेजमेंट हुई थी.
पूछताछ में पता चलता है कि इस इंगेजमेंट में किसी पड़ोसी या रिश्तेदार को नहीं बुलाया गया था. यहीं से अमन भी संदेह के घेरे में आ जाता है. यहां बच्चा कुछ बताना चाहता है, पर पुलिस वाले उस का मजाक उड़ाते हैं. यह दृश्य भी हजम नहीं होता. यहां अंशिका की भूमिका कृति सेन ने की है तो अमन की भूमिका शिविन नारंग ने की है. एक नशेड़ी के जो हावभाव होते हैं, वैसा अमन में दिखाई नहीं देता. नशेड़ी दब्बू स्वभाव का होता है, लेकिन अमन तो सब पर हावी होने की कोशिश करता है.
यहां अंगरेजी में किया गया वार्तालाप भी बेकार लगता है, जो वेब सीरीज देखने वाला हर आदमी समझ नहीं सकता. दिल्ली पुलिस या कहीं की भी पुलिस जिस लहजे में पूछताछ करती है, वह लहजा भी यहां कहीं नहीं दिखता, इसलिए दर्शकों को जो आनंद आना चाहिए, वह आनंद नहीं आता. संदेह के घेरे में आने की वजह से अन्या अमन के पीछे अपना एक आदमी लगा देती है.
दूसरे एपीसोड की शुरुआत पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद से होती है. इस के बाद राजावत की डेयरी में दूध पहुंचाने वाला दूधिया बताता है कि एक दिन उस ने देखा था कि 2 आदमी राजावत परिवार के बड़े बेटे यानी आदर्श के गले पर चाकू लगा कर धमका रहे थे. दूधवाला यह भी दावा करता है कि वह उन लोगों को पहचान लेगा. आदर्श की भूमिका दानिश इकबाल ने की है.
इस के बाद अंशिका का मंगेतर परिवार की एकमात्र बची बेटी यानी अंशिका की मौसी से मिलने जाता है. यहां कहानी फ्लैशबैक में चलती है. अंशिका की मौसी यानी आदेश की एक बहन बबीता, जो अलग रहने की वजह से इस हादसे से बच गई थी, से पता चलता है कि उन के पिता अपने एक दोस्त दौलतराम के साथ राजस्थान से दिल्ली आए थे. उन के पिता जवाहर सिंह पुलिस की नौकरी कर लेते हैं तो वहीं दौलतराम दुकान खोल लेता है.
अभिषेक का रोल दिखा बनावटी
जवाहर सिंह की भूमिका में संजीव चोपड़ा हैं, जो एक वरिष्ठ कलाकार हैं. राजावत परिवार के दूसरे बेटे भुवन की गलती से हादसे में पिता जवाहर सिंह की मौत हो जाती है तो वह हर वक्त पिता की यादों में खोया रहने लगता है. पिता की मौत के लिए वह खुद को जिम्मेदार मानता है. उसे लगता है कि पिता घर में ही हैं. भुवन का रोल अभिषेक बनर्जी ने किया है. रोल तो उस ने ठीक किया है, पर उस के रोल में कहींकहीं बनावटीपन नजर आता है.
दूसरी ओर इंसपेक्टर अन्या दूधवाले के बताए अनुसार आदेश और गुंडों के एंगल से जांच करती है तो अंशिका का मंगेतर बबीता के बताए अनुसार अपने हिसाब से जांच करता है. क्योंकि बबीता ने उसे बताया था कि पिता के दोस्त दौलतराम का परिवार उन लोगों को पहले से ही परेशान करता था. दौलतराम ने घोटाले का आरोप लगा कर भुवन को मारा भी था, जिस की वजह से उस के सिर में चोट लग गई थी और उसे अस्पताल में भरती होना पड़ा था. अस्पताल में उस ने सुसाइड की भी कोशिश की थी.
इसी के साथसाथ अन्या दूधवाले को कुछ फोटो दिखा कर उस गुंडे की शिनाख्त कराती है, जिस ने आदेश को धमकी दी थी. पहचान होने के बाद अन्या उस गुंडे का पीछा कर पकड़ लेती है. इस के बाद अमन की दौलतराम के बेटे से झड़प होती है, क्योंकि अंशिका को वह अकसर फोन कर के परेशान करता था.