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सुबह के 10 बज रहे थे. झारखंड के गुमला शहर थाने के इंसपेक्टर राजू कुमार गुप्ता अपने औफिस में मौजूद थे और थाने के दीवान दयाराम महतो उन से फाइलों पर दस्तखत करवा रहे थे. तभी संतरी ने औफिस में प्रवेश किया और कहा, ‘‘जयहिंद सर, बाहर एक औरत खड़ी है. कब से रोए जा रही है. कहती है, साहब से मिलना है. बहुत परेशान है.’’

‘‘ठीक है, उस औरत को अंदर भेज दो.’’ फाइलों के बीच नजर गड़ाए इंसपेक्टर ने उत्तर दिया.

‘‘जी सर,’’ सैल्यूट मार कर संतरी औफिस से बाहर निकला और उस औरत को अंदर भेज दिया.

गंदलुम साड़ी में दुबकी डरीसहमी परेशान औरत औफिस में आई और इंसपेक्टर गुप्ता ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया तो वह एक कुरसी पर बैठ गई.

थोड़ी देर बाद जब इंसपेक्टर गुप्ता काम से खाली हुए तो दुखियारी महिला की ओर मुखातिब हुए, ‘‘क्या बात है और आप ऐसे क्यों रोए जा रही हो?’’

‘‘साहब...’’ कहती हुई महिला भावुक हो गई और उस की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे, ‘‘साहब, मेरा नाम पूनम है और पतिया की रहने वाली हूं.’’

‘‘सो तो ठीक है. पहले आप रोना बंद करो और ठीकठीक से बताओ आखिर बात क्या है? तभी तो मैं आप की कोई मदद कर पाऊंगा.’’

‘‘नहीं रोऊंगी साहब,’’ अपने आंसू पोछते हुए पूनम चुप हो कर आगे बोली, ‘‘साहब, मेरा पति रविंद्र महतो उर्फ रवि 3 महीने से गायब है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है, आप कुछ कीजिए.’’

‘‘पति 3 महीने से गायब है और आप अब तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं?’’

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