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उत्तर प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव का मौका था. अचानक यूपी की वाराणसी जेल में बंदियों से मुलाकात और उन से मिलने वालों की आमद बढ़ गई थी. बंदियों से मुलाकात करने वाले लोग कोई साधारण इंसान नहीं थे. राजनीतिक दलों से जुड़े नेता और प्रभावशाली लोग अचानक फलों और मिठाइयों के टोकरे ले कर जिस शख्स से मिलने के लिए आ रहे थे, वह भी कोई साधारण इंसान नहीं था.

साढ़े 6 फुट से भी ज्यादा ऊंचाई और विशालकाय शरीर वाले उस अधेड़ कैदी के सिर के घने बाल पक कर पूरी तरह सफेद हो चुके थे.

चेहरे पर बढ़ी लंबी सफेद दाढ़ी और मूंछ उस के व्यक्तित्व को और भी ज्यादा संजीदा बना रही है. उस के लंबे घने बालों को संवारने के लिए बांधा गया लंबा पटकेनुमा रुमाल उसे रुआबदार बना रहा था.

झक सफेद कपड़े पहने वह रुआबदार कैदी जब हाथों की अंगुलियों में महंगी सिगरेट दबाए उस खास बड़ी सी बैरक में आता है तो वहां पहले से इंतजार में बैठे मुलाकाती और दूसरे कैदी सम्मान में खडे़ हो जाते हैं.

इन में से कुछ तो इस तरह उस के पैरों में झुक कर सजदा करते हैं, मानो उन के लिए वह भगवान हो. आरामदायक सोफेनुमा कुरसी पर बैठने के बाद वह करिश्माई शख्स सुनवाई शुरू कर देता है.

एक के बाद एक सामने बैठे लोग अपनी फरियाद सुनाते हैं. वहां कुछ ऐसे कैदी भी मौजूद होते हैं, जो देखने से ही खतरनाक किस्म के प्रभावशाली लगते हैं. लेकिन वह शख्स उन सभी को हिदायतें देता है.

एकदो घंटे तक ये दरबार चलता है. इस दौरान जेल के अधिकारी व कर्मचारी भी बीच में आते रहते हैं. आगंतुकों के आनेजाने का सिलसिला चलता रहता है. खानेपीने के लिए फल, ड्राईफ्रूट और चायकौफी आते रहते हैं. एकदो घंटे के बाद ये दरबार खत्म हो जाता है.

ऐसे दृश्य आमतौर पर हिंदी फिल्मों में देखने और सुनने को मिलते हैं. लेकिन ये किसी फिल्म का दृश्य नहीं, बल्कि यूपी के बनारस जेल की ऐसी हकीकत है जो हर रोज दिखाई देती है. हां, ये अलग बात है कि जब प्रदेश में चुनाव हुए तो जेल में लगने वाले इस दरबार की रौनक कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी.

बनारस की इस जेल में बंद जिस खास बंदी का हम जिक्र कर रहे हैं, उस शख्स का नाम है सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा उर्फ बाबा ठाकुर. ये वो शख्स है, जो कई जेलों में रहने के बाद पिछले 2 सालों से बनारस की जेल में अपनी उम्रकैद की सजा काट रहा है.

जेल में ही लगता है दरबार

वैसे तो बाबा ठाकुर इस जेल में बंदी की हैसियत से रहता है. लेकिन उस की शख्सियत  और रसूख कुछ ऐसा है कि वह इस जेल का राजा है. जिस का हर रोज दरबार लगता है.

लंबी दाढ़ी व बाल अब सुभाष सिंह ठाकुर की पहचान बन चुकी है. लोग उसे अब बाबाजी कहते हैं. जरायम की दुनिया के लोग हों या राजनीतिक जगत की हस्तियां, हर कोई बाबा ठाकुर का सम्मान करता है. जेल के अंदर और बाहर रहने वाले लोगों के लिए जेल के अंदर सुभाष ठाकुर का दरबार लगता है.

इस दरबार में जेल के अधिकारी से ले कर कर्मचारी तक मौजूद होते हैं. बाहर से मिलने आने वाले कारोबारी से ले कर नेता और फरियादी इस दरबार में पहुंच कर बाबा ठाकुर को अपनी फरियाद सुनाते हैं.

हर फरियादी की समस्या का समाधान होता है दरबार में

दिलचस्प बात यह है कि लोगों की फरियाद सुनी ही नहीं जाती, बल्कि उस का निदान भी किया जाता है. मामला चाहे दिल्ली, यूपी का हो या मायानगरी मुंबई का. बाबा ठाकुर के एक इशारे पर लोगों के काम हो जाते हैं. हो भी क्यों न, इस देश में आज जितने भी डौन, गैंगस्टर और माफिया हैं, बाबा ठाकुर एक तरह से उन सब का महागुरु है.

देश का सब से बड़ा माफिया डौन दाऊद इब्राहिम जो इन दिनों पाकिस्तान में है, वह भी बाबा ठाकुर का ही शागिर्द रहा है. यूपी के सब से बड़े डौन बाहुबली मुख्तार अंसारी से ले कर अतीक अहमद तक सुभाष ठाकुर से अदावत नहीं लेना चाहते.

अब राजनीति का लबादा ओढ़ चुके यूपी के बृजेश सिंह भी कभी इसी बाबा ठाकुर की शागिर्दी में काम कर के यूपी का सब से बड़ा डौन बना था.

वैसे तो यूपी के पूर्वांचल में बाहुबलियों का बोलबाला रहा है. चाहे सियासत हो या फिर ठेकेदारी, हर जगह किसी न किसी तरह से बाहुबली शामिल हैं.

पूर्वांचल में कई माफिया गैंगस्टर रहे हैं, लेकिन सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा को यूपी का सब से बड़ा और पहला माफिया डौन कहा जाता है. उम्रकैद की सजा काट रहे बाबा ठाकुर के खिलाफ 50 से ज्यादा मामले दर्ज हैं, जिन में से कई मामलों में उसे दोषी करार दिया जा चुका है.

उम्रकैद की सजा मिलने के बाद सुभाष ठाकुर ने अपनी दाढ़ीमूंछें बढ़ा लीं, जिस कारण लोग उसे बाबाजी के नाम से पुकारने लगे. जेल में लगने वाले बाबा सुभाष ठाकुर के दरबार में हर समस्या का समाधान होता है.

चाहे किसी से पुरानी रंजिश या जमीन के लेनदेन का विवाद, कारोबार, झगड़ा हो या बदमाशों से मिलने वाली धमकी, बाबा के दरबार में जिस ने भी आ कर अपनी समस्या रखी, उस का समाधान जरूर होता है.

लेकिन हर काम की फीस ली जाती है. चुनाव में तो बाबा ठाकुर का खास दखल रहता है, खासकर पूर्वांचल की बात करें तो वहां की कई सीटों पर सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा का सीधा प्रभाव होता है. इसीलिए पूर्वांचल में हर छोटेबड़े राजनीतिक दलों के नेता बाबा सुभाष ठाकुर से जीत का आशीर्वाद लेने के लिए जेल में आते हैं.

पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव जब एक वैवाहिक कार्यक्रम में भाग लेने वाराणसी गए थे तो बीएचयू अस्पताल में बाबा ठाकुर से उन की मुलाकात के खूब चर्चे हुए थे.

दरअसल, बाबा सुभाष ठाकुर की ताकत का सभी को पता है, इसलिए सभी नेता उन के दरबार में आशीर्वाद लेने जाते हैं. पूर्वांचल में युवाओं का एक बड़ा वर्ग, खासतौर से ठाकुर लौबी के युवा बाबा ठाकुर को अपना हीरो मानते हैं. बाबा ठाकुर के एक इशारे पर वे कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं.

सुभाष सिंह ठाकुर कैसे बना डौन

सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा इतना बड़ा गैंगस्टर कैसे बना, बड़ेबड़े भाई लोग उस से खौफ क्यों खाते हैं, इस की कहानी एकदम फिल्मी है.

70 से 80 के दशक के मध्य की बात है, जब वाराणसी के फूलपुर थानांतर्गत मंगारी गांव का रहने वाला 17 साल का नौजवान सुभाष ठाकुर काम की तलाश में छोटे से गांव से निकल कर सपनों की नगरी मुंबई गया था.

एक साधारण किसान परिवार का युवक सुभाष 5 बहनभाइयों में सब से बड़ा था. बहुत ज्यादा तो पढ़ नहीं सका, क्योंकि परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. लेकिन सुभाष के सपने काफी बड़े थे. बचपन से ही वह बौलीवुड की हिंदी फिल्में देख कर उन में गुंडों के सरदारों के किरदार देख कर उन के जैसे रौबदार इंसान बनने के ख्वाब देखता था.

70 से 80 के दशक का यह वो दौर था, जब मुंबई में पूर्वांचल में रहने वाले बेरोजगार नौजवान तेजी से काम की तलाश में मुंबई जा रहे थे. इन में कोई टैक्सी चलाने लगा तो कोई ढाबों पर काम करने लगा तो कुछ ने पावभाजी बेचनी शुरू कर दी.

17 साल की उम्र में सुभाष भी ऐसे ही किसी छोटेमोटे काम को कर के बड़ा आदमी बनने के लिए मुंबई गया था.

नए काम की तलाश में जब सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा ने पहली बार मायानगरी मुंबई में कदम रखा, तो शुरू में उसे काफी धक्के खाने पड़े. उस ने देखा कि मुंबई में लोकल मराठी गुंडे और दक्षिण भारतीय गुंडों के कुछ ऐसे छोटेछोटे गुट हैं, जो कोई काम नहीं करते. बल्कि अपनी दबंगई के बल पर दुकानदारों, छोटेमोटे कारोबारियों और टैक्सी वालों से हफ्तावसूली कर के ऐश की जिंदगी बसर करते हैं.

कुछ महीनों में जीतोड़ मेहनत के कई काम करने के बाद सुभाष को लगने लगा कि इस तरह के काम से वह अपना पेट तो भर सकता है, लेकिन कभी अपने उन सपनों को पूरा नहीं कर सकता, जिसे ले कर वह मायानगरी में आया है.

संयोग से उन दिनों एक ऐसा वाकया हो गया, जिस ने सुभाष की जिदंगी बदल दी. विरार इलाके में पावभाजी का ठेला लगाने वाले उस के एक दोस्त से हफ्तावसूली को ले कर मराठी गुंडों का झगड़ा हो गया. सुभाष कदकाठी और ताकत में ऐसा था कि किसी को भी पहली नजर में डरा देता था. सुभाष ने उस दिन पहली बार उन मराठी गुंडों की जम कर पिटाई कर दी.

अंजाम ये हुआ कि लोकल मराठी लड़कों ने पुलिस में अपनी सेटिंग के बूते सुभाष के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी. पुलिस ने सुभाष को उठा लिया और जम कर पिटाई कर के उसे जेल भेज दिया.

पूर्वांचल के नौजवानों का बनाया गुट

कुछ दिन बाद उस की जमानत तो हो गई, लेकिन जेल से बाहर आने के बाद भी पुलिस ने सुभाष को परेशान करना नहीं छोड़ा. लोकल मराठी लड़कों को स्थानीय नेताओं की शह थी, जिन के दबाव में पुलिस आए दिन सुभाष को झूठी शिकायत के आधार पर पकड़ लाती और परेशान करती.

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