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तबरेज इलाहाबाद के विवेकानंद मार्ग पर चमेलीबाई धर्मशाला के पास स्थित प्रभात सिंह की मशीनरी पार्ट्स की दुकान पर नौकरी करता था. वह रोजाना सुबह 10 बजे के करीब दुकान पर पहुंचता तो कुछ देर बाद प्रभात भी वहां पहुंच जाता था. इस के बाद ही तबरेज दुकान खोल कर उस की साफसफाई करता था. 30 नवंबर, 2016 को भी जब तबरेज निर्धारित समय पर दुकान पर पहुंचा तो दुकान का शटर खुला मिला. यह देखते ही उस के मुंह से निकला, ‘‘लगता है भैया आज सुबहसुबह ही दुकान आ गए हैं.’’

लेकिन जब दुकान के भीतर गया तो वहां प्रभात नहीं दिखा. वह मन में बुदबुदाने लगा, ‘‘ऐसे दुकान खोल कर कहां चले गए भला?’’

दुकान के अंदर आड़ातिरछा रखा सामान निकाल कर उस ने दुकान के बाहर लगा दिया. फिर दुकान की साफसफाई कर के वह दुकान में बैठ कर प्रभात के लौटने का इंतजार करने लगा. आधे घंटे से ज्यादा बीत गया पर प्रभात नहीं लौटा तो तबरेज पास की दुकान पर चाय पीने चला गया. प्रभात का जिनजिन दुकानों पर उठनाबैठना था, तबरेज वहां भी गया पर उसे उस का मालिक दिखाई नहीं दिया तो बुदबुदाते हुए वह वापस दुकान पर आ कर बैठ गया.

उसी समय चित्रा दौड़ती हुई बदहवास सी दुकान पर आई. जिस मकान में प्रभात की दुकान थी, चित्रा उसी मकान मालिक सत्येंद्र सिंह की बेटी थी. उस के साथ उस का चचेरा भाई गोलू भी था. वह बोली, ‘‘त…तब… तबरेज…’’

‘‘हां बताओ, तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है. आओ मेरे साथ, खुद ही चल कर देख लो.’’

किसी अनहोनी की आशंका के साथ तबरेज चित्रा और गोलू के पीछेपीछे उस के घर पहुंच गया. घर दुकान के एकदम पीछे ही था. जैसे ही वह कमरे में पहुंचा तो उस का मालिक प्रभात फांसी के फंदे पर झूला हुआ दिखा. यह देख कर उस की चीख निकल गई, ‘‘यह कैसे हो गया?’’

तभी चित्रा बोली, ‘‘पता नहीं, इन्होंने आत्महत्या क्यों कर ली? इन के हाथ में सुसाइड नोट भी है. तबरेज तुम इन के घर वालों को फोन कर के जानकारी दे दो.’’

तबरेज ने तुरंत अपने मोबाइल से प्रभात के पिता वीरेंद्र प्रताप सिंह को फोन कर के उस की आत्महत्या की जानकारी दे दी. प्रभात का घर वहां से कुछ ही दूरी पर था इसलिए थोड़ी ही देर में वीरेंद्र प्रताप सिंह अपने घर वालों और पड़ोसियों के साथ वहां पहुंच गए. अब तक वहां काफी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी.

उस समय भी प्रभात रसोईघर के बगल वाले कमरे में फांसी पर लटका पड़ा था. खबर मिलने पर अनेक व्यापारी भी वहां पहुंच गए. घर के जवान आदमी की मौत पर घर वाले बिलखबिलख कर रो रहे थे. किसी ने सूचना थाना कोतवाली पुलिस को भी दे दी.

चूंकि घटनास्थल से थाना कोतवाली महज आधा एक किलोमीटर की दूरी पर है, इसलिए 10 मिनट में ही एसपी (सिटी) विपिन कुमार टांडा व कोतवाली प्रभारी अनुपम शर्मा मय फोर्स घटनास्थल पर पहुंच गए.

अब तक सत्येंद्र सिंह के मकान के बाहर भारी संख्या में भीड़ मौजूद हो चुकी थी, जिस के कारण रोड पर जाम लग गया था. पुलिस ने फांसी पर लटके प्रभात सिंह को नीचे उतारा. उस की मौत हो चुकी थी. शव की बारीकी से जांच की तो पहली ही नजर में मामला संदिग्ध नजर आया. प्रभात के सिर व शरीर पर चोटों के निशान थे.

यह देख प्रभात के घर वाले और अन्य व्यापारी हंगामा करने लगे. उन का आरोप था कि प्रभात की हत्या करने के बाद उसे फांसी पर लटकाया गया है, जिस से मामला आत्महत्या का लगे. मृतक के हाथ में 2 पेज का एक सुसाइड नोट भी था.

उस सुसाइड नोट में एक लड़की से प्रेम संबंध और उस की बेवफाई का जिक्र था. प्रभात और उस की तथाकथित प्रेमिका का कितना पुराना रिश्ता था, इस बात का उल्लेख उस नोट में किया गया था. सुसाइड नोट में कितनी सच्चाई है, यह बात जांच के बाद ही पता चलती.

मृतक के परिजनों ने सीधे तौर पर दुकान मालिक सत्येंद्र सिंह की बेटी चित्रा सिंह पर आरोप लगाया कि उस ने ही अपने सहयोगियों के साथ मिल कर प्रभात की हत्या की है. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए.

प्रभात की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद उस के भाई प्रदीप की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया. पोस्टमार्टम के बाद शाम को जब पुलिस को रिपोर्ट मिली तो उस में भी बताया गया कि प्रभात के सिर पर लोहे की रौड जैसी किसी चीज से वार किया गया था, जिस से उस की मौत हुई थी.

मकान मालिक सत्येंद्र सिंह घटना से एकदो दिन पहले अपनी पत्नी राशि के साथ प्रतापगढ़ चले गए थे. वहां उन के किसी रिश्तेदार की मौत हो गई थी. घर पर उन की बेटी चित्रा और उस का चचेरा भाई कौशिक उर्फ गोलू मौजूद था.

एसपी (सिटी) विपिन कुमार टांडा के समक्ष चित्रा सिंह से पूछताछ की गई तो उस ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा, ‘‘सर, प्रभात सिंह का उस के प्रति एकतरफा प्यार था. वह मुझ से उम्र में भी दोगुना बड़ा था. भला मैं उस से कैसे प्रेम कर सकती हूं. मेरा उस की हत्या या आत्महत्या से कोई वास्ता नहीं है.’’

‘‘जिस वक्त प्रभात तुम्हारे कमरे में घुस कर फांसी पर लटका, उस वक्त तुम कहां थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं रोज सुबह नहाने के बाद पूजा करती हूं. बुधवार को भी रोजाना की तरह नहाने के बाद मैं पूजा करने चली गई थी. पूजा के बाद मैं ने बालकनी से नीचे की ओर देखा तो नीचे प्रभात की कार दिखी. मैं यह सोचते हुए सीढि़यों से नीचे उतरी कि प्रभात आज दुकान पर इतनी जल्दी कैसे आ गए. तभी देखा कि वह हमारी रसोई के बगल वाले कमरे में लटका हुआ था. मैं समझ नहीं पाई कि यह काम करने के लिए उस ने मेरा घर ही क्यों चुना?’’ वह बोली.

घर में फर्श पर जो खून का धब्बा मिला था, उस के बारे में पुलिस ने उस से पूछा तो उस ने उसे चुकंदर का रस बताया.

पुलिस को लग रहा था कि यह झूठ बोल रही है इसलिए उस से और उस के चचेरे भाई गोलू से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने ही अपना जुर्म कबूल कर लिया. उन्होंने कहा कि प्रभात की हत्या करने का उन का कोई इरादा नहीं था. पर हालात ऐसे बन गए जिस से उस का कत्ल हो गया.

प्रभात सिंह इलाहाबाद शहर के कीडगंज थाना क्षेत्र के कृष्णानगर निवासी वीरेंद्र प्रताप सिंह का बेटा था. कारोबारी वीरेंद्र प्रताप सिंह के 4 बेटे और एक बेटी थी. उन की पत्नी कनकलता का देहांत हो चुका था. मांगलिक होने की वजह से प्रभात की शादी नहीं हुई थी.

वीरेंद्र प्रताप सिंह के एक दोस्त थे सत्येंद्र सिंह, जो प्रतापगढ़ में एक सरकारी मुलाजिम थे. कोतवाली थानाक्षेत्र के विवेकानंद मार्ग पर रहते थे. वीरेंद्र प्रताप ने सन 2003 में उन की एक दुकान किराए पर ली थी, जहां उस ने बंधु ट्रेडर्स के नाम से मशीनरी पार्ट्स बेचने का काम शुरू कर दिया. उस दुकान को प्रभात संभालता था.

दोस्ती के नाते सत्येंद्र उन से दुकान का किराया तक नहीं लेते थे. प्रभात का सत्येंद्र सिंह के घर में खूब आनाजाना था. दुकान के पीछे ही सत्येंद्र सिंह का आवास था. उन की एक बेटी चित्रा थी, घर में आनेजाने के कारण उन दोनों के बीच प्रेमसंबंध स्थापित हो गए. उस समय प्रभात की उम्र 36 साल और चित्रा की 16 साल थी.

कुछ दिनों बाद ही उन के संबंधों की खबर उन के घर वालों को भी हो गई. घर वालों ने उन्हें लाख समझानेबुझाने की कोशिश की लेकिन इस का उन पर कोई असर नहीं हुआ. बल्कि उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों की उम्र में काफी अंतर था. लेकिन प्यार का भूत जिन के सिर पर सवार होता है, उन के बीच उम्र आड़े नहीं आती.

धीरेधीरे समय आगे बढ़ने लगा. चित्रा जहां जवान थी तो दूसरी ओर प्रभात की उम्र ढलान की ओर बढ़ रही थी. शायद यही कारण था कि उस पर जान छिड़कने वाला प्रभात अब उसे नीरस नजर आने लगा था. वह उस से इतना प्यार करता था कि वह उसे कालेज तक छोड़ने और लेने जाने लगा था.

लेकिन चित्रा प्रभात से दूरी बनाने लगी थी और अपनी उम्र के लड़कों से मोबाइल पर घंटों बतियाती थी. प्रभात जब भी उसे फोन करता तो वह उस का फोन रिसीव नहीं करती. बारबार फोन करने के बाद वह उस का फोन उठाती तो बेमन से बात करती.

प्रभात समझ नहीं पा रहा था कि पिछले 10 सालों से प्यार करने वाली चित्रा के अंदर यह बदलाव कैसे आ गया. प्रभात के मना करने के बावजूद भी वह वाट्सऐप और फेसबुक पर पता नहीं किसकिस से चैटिंग करती रहती थी. किसी भी तरह वह प्रभात से अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी, लेकिन प्रभात उसे किसी भी हाल में छोड़ने या भुलाने को तैयार नहीं था.

29 नवंबर, 2016 की रात को प्रभात ने चित्रा से बात करने के लिए कई बार उस का नंबर मिलाया. पहले तो उस का मोबाइल व्यस्त आ रहा था पर बाद में वह स्विच्ड औफ हो गया. प्रभात ने सुबह उठ कर फिर से उस का मोबाइल नंबर डायल किया. घंटी बजने के बावजूद चित्रा ने फोन नहीं उठाया.

गुस्से में वह सुबह 8 बजे ही अपने घर से निकल गया और दुकान खोलने के बाद सीधे चित्रा के कमरे में पहुंचा. वहां चित्रा बिलकुल अकेली थी. मोबाइल रिसीव न करने की बात को ले कर वह उस से झगड़ने लगा. उन का शोर सुन कर चित्रा का चचेरा भाई कौशिक उर्फ गोलू उठ गया.

उस ने देखा कि गुस्से से लालपीला प्रभात चित्रा के साथ मारपीट कर रहा है तो उस ने बीचबचाव करने की कोशिश की. उस समय प्रभात चित्रा का गला दबाए हुए था. गोलू ने बताया कि उस ने चित्रा दीदी को बचाने की कोशिश की. तब प्रभात उस से उलझ गया और हाथापाई करने लगा.

उसी दौरान गोलू की नजर दीवार से सटा कर रखे सरिए पर गई. किसी तरह उस ने प्रभात के चंगुल से खुद को छुड़ाया तो प्रभात चित्रा से भिड़ गया. तभी गोलू ने सरिया उठा कर पीछे से प्रभात के सिर पर दे मारा. एकदो वार और करने पर प्रभात नीचे गिर गया और मर गया.

इस के बाद दोनों ने एक रस्सी गले में बांध कर उसे कुंडे से लटका दिया ताकि मामला आत्महत्या का लगे. जहांजहां उस का खून गिरा था, उसे साफ कर के चुकंदर का जूस डाल दिया. फिर दोनों रोने का नाटक करने लगे. चित्रा को जब पता चला कि दुकान पर नौकर तबरेज आ चुका है तो वह घबराई हुई उस के पास गई और उसे कमरे में ला कर बताया कि प्रभात ने आत्महत्या कर ली है.

इधर मृतक के छोटे भाई सुधीर सिंह ने बताया कि प्रभात ने चित्रा के नाम लाखों रुपए की प्रौपर्टी और जायदाद कर दी थी. प्रभात उस से प्रौपर्टी वापस न मांग ले, इसलिए उस ने अन्य लोगों के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी. उधर चित्रा का कहना है कि वह प्रभात से प्यार नहीं करती थी. प्रभात एकतरफा उसे चाहता था.

पुलिस ने चित्रा और उस के चचेरे भाई गोलू को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अभी यह पता नहीं लग सका है कि मृतक के हाथ में जो सुसाइड नोट मिला, वह किस ने लिखा था. फोरैंसिक जांच के बाद ही यह स्थिति साफ हो सकेगी. केस की विवेचना कोतवाली प्रभारी अनुपम शर्मा कर रहे हैं.

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