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रामानंद विश्वकर्मा 6 अप्रैल, 2023 को जब दुबई से गोरखपुर के गांव मल्हीपुर में स्थित अपने घर आया तो घर वालों की खुशियों का ठिकाना ही नहीं था. वह पूरे 2 साल 2 महीने के बाद लौटा था, इसलिए सब के चेहरे खुशी के मारे खिले हुए थे. कोई दौड़ कर उसे बिसकुट पानी ला रहा था तो कोई उस के हाथ से अटैची ले कर उस के कमरे में रख रहा था. घर वाले जानते थे कि वह सब के लिए कुछ न कुछ कीमती गिफ्ट जरूर लाया होगा.

लेकिन झील सी गहरी एक जोड़ी आंखें परदे की ओट से छिप कर रामानंद को देख रही थीं. उसे ऐसा लगा था, जैसे उसे कोई परदे के पास खड़ा एकटक देखे जा रहा हो. पलट कर उस ने जब परदे की ओर देखा तो वहां कोई नहीं था. फिर उस ने सोचा कि ये उस का कोई भ्रम रहा होगा. वहां कोई खड़ा हो कर भला उसे क्यों देखेगा. उस से मिलने भी तो आ सकता है.

थोड़ी देर मांबाप के पास बैठने और पानी पीने के बाद रामानंद उठ क र अपने कमरे में चला गया, जहां उस की पत्नी सीतांजलि, जिसे वह प्यार से सीता कहता था. वह उस के इंतजार में कब से पलकें बिछाए बैठी थी. परदे की ओट से छिप कर वही पति को निहार रही थी.

पति को देखते ही सीता का चेहरा खुशियों से खिल उठा था. वह इतनी खुश थी कि उस के मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहे थे. रामानंद भी कम खुश नहीं था पत्नी को देख कर. सालों बाद दोनों का मिलन हुआ था.

दरअसल, शादी के 6 महीने बाद ही रामानंद पत्नी सीता को मांबाप की सेवा के लिए घर पर छोड़ कर दुबई कमाने चला गया था. उस ने पत्नी से वायदा किया था कि जब वह दुबई से लौट कर आएगा तो उसे भी विदेश अपने साथ ले जाएगा. बाकी जीवन के सुखी पल दोनों वहीं साथ बिताएंगे.

घर में उस शाम रामानंद की पसंद का खाना बनाया था. लंबा सफर तय कर रामानंद भी घर पहुंचा था, इसलिए वह भी थक कर चूर हो गया था. इसलिए बिस्तर पर लेटते ही खर्राटे भरने लगा.

इधर सीता रसोई के काम में लगी रही. चौकाबरतन से निबट कर वह भी बिस्तर की ओर हो ली. एक नजर बिस्तर पर सो रहे पति पर डाली और प्यार से उस के गाल को स्पर्श किया. वह हौले से मुसकराई फिर वह भी सो गई.

अगली सुबह यानी 7 अप्रैल की सुबह जब सीता की आंखें खुलीं तो देखा पति उस के पास बिस्तर पर नहीं था तो उठ कर बैठ गई. कमरे का दरवाजा भिड़ा हुआ था और सिटकनी खुली थी. बिस्तर पर बैठी सीता कुछ देर तक कुछ सोचती रही, फिर बिस्तर से उतर कर नित्यक्रिया में जुट गई.

विदेश से लौटा रामानंद कैसे हुआ लापता

सुबह के 8 बज चुके थे. रामानंद अभी तक कहीं नहीं दिखा तो पत्नी सीता को चिंता हुई और उस ने ससुर रामप्रीत से पति के बारे में पूछा, ”पापाजी, आप ने उन्हें देखा है? क्या आप से कुछ बोल कर कहीं गए हैं? आखिर इतना समय हो गया, वह कहीं नजर नहीं आ रहे हैं?’‘

”नहीं बहू?’‘ राममप्रीत ने आगे कहा, ”सुबह से मैं ने रामानंद को घर से बाहर कहीं जाते हुए नहीं देखा, आखिर कहां चला गया?’‘ रामप्रीत के चेहरे पर परेशानी की लकीरें उभर आई थीं.

”पापाजी, पता करिए कहां गए वो? घबराहट के मारे दिल बैठा जा रहा है.’‘

”घबराओ मत बहू,’‘ ससुर ने आगे कहा, ”बरसों बाद लौटा है, कहीं बैठा यार दोस्तों के साथ गप्पें लड़ा रहा होगा, थोड़ी देर में आ ही जाएगा.’‘

”ठीक है, पापाजी.’‘ कह कर सीता रसोई की ओर बढ़ गई और सभी के लिए नाश्ता बनाने लगी.

इधर रामप्रीत भी यह सोच कर हैरान हुए जा रहे थे कि सचमुच बेटा सुबह से कहीं नहीं दिख रहा है. न तो उसे कहीं घर से बाहर जाते हुए देखा और न आते हुए ही. आखिर वह कहां गया. वाकई ये तो चिंता वाली बात है. इतना सोच कर रामप्रीत का मन घर पर नहीं लगा और वह पत्नी से बता कर बेटे को ढूंढ़ने गांव में निकल गए.

बेटे के जो भी दोस्त उन्हें रास्ते में मिले, सब से वह बेटे रामानंद के बारे में पूछते. लेकिन किसी ने भी उन से यह नहीं कहा कि वह उस से मिला है, बल्कि उन्हें तो यह भी पता नहीं था कि रामानंद दुबई से कब घर वापस आया है. बेटे के दोस्तों का जवाब सुन कर रामप्रीत हैरान रह गए कि बेटा न घर में है, न ही दोस्तों से ही मिला तो वह गया कहां? यह सोच कर रामप्रीत का माथा चकरा गया था.

रामप्रीत यही सोच रहे थे कि अब वो कहां जाएं और किस से बेटे के बारे में पूछें. तभी गांव का किशोर नाम का एक लड़का दौड़ता हुआ सीधा रामप्रीत के पास आ कर रुका. उस के चेहरे के हावभाव से ऐसा लग रहा था, जैसे वह कोई जरूरी बात बताना चाहता है.

किशोर ने उन से कहा, ”चाचा… चाचा…’‘ जोरजोर से हांफते हुए दुबलेपतले किशोर ने सामने दाईं ओर हाथ दिखाते हुए कुछ कहना चाहा, ”उधर तालाब…’‘

”हांहां बेटा, क्या कहना चाहते हो. थोड़ा सांस तो ले लो, फिर बताओ जो कहना चाहते हो.’‘ रामप्रीत ने किशोर का ढांढस बंधाते हुए कहा.

थोड़ी देर में जब वह सामान्य स्थिति में हो गया तो किशोर ने कहा, ”चाचा, गांव के बाहर वाले तालाब के किनारे एक लाश पड़ी है. वह लाश आप के बेटे रामानंद की है.’‘

”क्या?’‘ चौंक कर रामप्रीत बोले, ”मेरे बेटे रामानंद की लाश है! मुझे तेरे कहे पर विश्वास नहीं हो रहा है बेटा, ले चलो मुझे वहां, जहां लाश पड़ी है.’‘

”भला मैं आप से मजाक क्यों करने लगा चाचा, जो मैं ने देखा, वही मैं ने कहा. मेरी बातों पर आप को यकीन नहीं है तो खुद चल कर देख लीजिए, तब तो आप को मेरी बातों पर यकीन हो जाएगा, मैं झूठ नहीं बोल रहा.’‘ किशोर ने रामप्रीत को सफाई देते हुए कहा और उन्हें अपने साथ ले कर गांव के बाहर स्थित तालाब के पास गया.

तालाब के किनारे लोगों का मजमा लगा हुआ था और तमाशबीन बन कर लोग पानी में तैर रही लाश देख रहे थे.

भीड़ देख कर रामप्रीत का कलेजा जोरजोर से धड़कने लगा था. वह भीड़ को चीरते हुए सीधे तालाब के किनारे पहुंचे, जहां लाश पड़ी हुई थी. लाश देख कर उन का शरीर थरथर कांपने लगा और वह धम्म से जमीन पर जा गिरे. मौके पर जमा भीड़ ने उन्हें संभाला और टांग कर तालाब के पास से थोड़ी दूर ला कर बैठा दिया.

कैसे हुई रामानंद की मौत

रामप्रीत सिर पर दोनों हाथ रख बिलखबिलख कर रोने लगे. लाश उन के बेटे रामानंद विश्वकर्मा की ही थी. मौके पर जमा लोग उस की तालाब में डूब कर मरने की बात कर रहे थे. यह सुन कर रामप्रीत हैरान थे कि बेटा जब घर में सो रहा था तो वह कब तालाब के पास आया कि उस की पानी में डूबने से मौत हो गई. तमाशबीन लोग भी यही सोचसोच कर हैरान थे कि अभी तो कल ही विदेश से लौट कर आया था और कैसे? क्या हुआ कि इस की मौत हो गई.

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