आरोपियों की तलाश में जुटीं 5 पुलिस टीमें
इधर पुलिस कमिश्नर आर.के. स्वर्णकार तथा जौइंट पुलिस कमिश्नर आनंद प्रकाश तिवारी ने किसान बाबू सिंह यादव की आत्महत्या के मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कानपुर शहर के तेजतर्रार इंसपेक्टरों को चुन कर 5 टीमें बनाईं.
राहुल जैन की गिरफ्तारी के लिए एक टीम को नोएडा भेजा गया. दूसरी टीम शुभम चौहान की गिरफ्तारी के लिए मैनपुरी भेजी गई. तीसरी टीम को मधुर पांडेय, बबलू यादव व जितेंद्र यादव की गिरफ्तारी के लिए कानपुर तैनात किया गया.
चौथी टीम को रसूखदार नेता प्रियरंजन आशू दिवाकर की गिरफ्तारी के लिए लगाया गया. पांचवीं टीम को रिजर्व रखा गया, ताकि सूचना मिलने पर उसे कहीं भी भेजा जा सके. इन टीमों ने आरोपियों के घरों तथा संभावित ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन कोई भी आरोपी गिरफ्त में नहीं आया.
इन टीमों ने लखनऊ, कानपुर, मैनपुरी, प्रयागराज, फतेहपुर, उन्नाव व जबलपुर के विभिन्न होटलों, आरोपियों के रिश्तेदारों व यारदोस्तों के आवासों पर छापेमारी की, लेकिन एक भी आरोपी हाथ नहीं आया.
आरोपी रसूखदार नेता डा. प्रियरंजन आशू दिवाकर को पकडऩे के लिए पुलिस टीम ने उन के श्याम नगर स्थित घर पर छापा मारा, लेकिन वह घर से फरार था. पुलिस टीम ने उस की पत्नी अनामिका, मां उर्मिला, भाभी रेनू तथा बेटे से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन वे आशू दिवाकर के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सके. टीम उस की तलाश में जबलपुर तक गई, पर उस का पता न चला.
जांच के नाम पर होती रही खानापूर्ति
एक भी गिरफ्तारी न होने से नाराज बिटान देवी का गुस्सा योगी सरकार पर फूट पड़ा. वह बोली, ‘‘मेरा सुहाग लुट गया… बेटियां अनाथ हो गईं… जमीन छिन गई… रुपया भी नहीं मिला. योगीजी, इन हत्यारों, लुटेरों पर आप का बुलडोजर कब चलेगा? इतना बड़ा अपराध करने वाले आराम से कहीं छिपे बैठे है. योगीजी, आप की पुलिस जांच कर रही है कि लीपापोती के खिलवाड़ में लगी है. अपराधी गिरफ्तार न हुए और हड़पी गई जमीन वापस न मिली तो बेटियों के साथ मैं भी ट्रेन से कट कर जान दे दूंगी.’’
बिटान देवी व उस की बेटियों के आंसू पोंछने सत्ता पक्ष का कोई सांसद या विधायक नहीं आया. लेकिन समाजवादी पार्टी के आर्यनगर (कानपुर) क्षेत्र के विधायक अमिताभ बाजपेई तथा कैंट क्षेत्र के विधायक मोहम्मद हसन रूमी बिटान देवी के घर पहुंचे. उन्होंने पीडि़त परिवार को धैर्य बंधाया और न्याय दिलाने का भरोसा दिया. इन्होंने बिटान देवी व उस की बेटियों रूबी व काजल को आश्वासन दिया कि वह कंधे से कंधा मिला कर उन का साथ देंगे.
गिरफ्तारी न होने से बिटान देवी व उस की बेटियों ने आरोपियों की फोटो जला कर आक्रोश जताया. पुलिस कमिश्नर आर.के. स्वर्णकार और जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी से मुलाकात कर आरोपियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी की मांग की.
इस के बाद उन्होंने जा कर डीएम विशाखजी को ज्ञापन सौंपा और मांग की कि उन की जमीन का दाखिल खारिज रद्ïद कर के जमीन उन्हें वापस कराई जाए और आरोपी भाजपा नेता के घर बुलडोजर चलाया जाए. बेटियों ने मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन भी उन्हें सौंपा. डीएम विशाखजी ने जल्द ही उचित काररवाई का उन्हें आश्वासन दिया.
धोखाधड़ी और आत्महत्या मामले की जांच थाना चकेरी के एसएचओ अशोक कुमार दुबे को सौंपी थी. उन्होंने जब मृतक बाबू सिंह के बैंक खाते को चैक किया तो पता चला कि उस के बैंक खाते में 2 चैक 5 लाख तथा 1 लाख 85 हजार के जमा हुए थे. ये दोनों चैक पास हुए और खाते में पैसा आया. ये दोनों चेक मधुर पांडेय ने दिए थे. इस के बाद उस के खाते में कोई पैसा नहीं आया.
स्पष्ट था कि उस के साथ 6 करोड़ 29 लाख की फाइनेंशियल धोखाधड़ी की गई और जमीन हड़प ली गई. शातिरों ने जो चैक दिए थे, वे रजिस्ट्री होने के बाद छीन लिए थे और फोटोकापी उसे थमा दी थी. इस के बाद जांच अधिकारी ने सभी आरोपियों के 13 बैंक खातों को सीज करा दिया ताकि लेनदेन की पूरी जानकारी मिल सके.
ननिहाल से मिली थी 10 बीघा जमीन
बाबू सिंह यादव मूलरूप से नर्वल (कानपुर) का रहने वाला था. उस के 2 अन्य भाई रामसिंह व अमर सिंह थे. तीनों भाइयों के बीच 12 बीघा जमीन थी. सभी के हिस्से में 4-4 बीघा जमीन आई. राम सिंह के 2 बेटे मुन्ना सिंह व विनय सिंह थे जबकि अमर सिंह के भी 2 बेटे धर्मेंद्र सिंह व जितेंद्र थे. तीनों भाइयों के बीच कोई विवाद नहीं था.
तीनों भाइयों में सब से छोटा बाबू सिंह था. बाबू सिंह का ननिहाल कानपुर नगर के चकेरी थाने के अहिरवां गांव में था. इस गांव में बाबू सिंह के नाना सुखदेव यादव अपनी पत्नी पूसा देवी के साथ रहते थे. उन के पास 10 बीघा जमीन थी. खेतीकिसानी से उन का जीवनयापन होता था.
सुखदेव यादव संपन्न तो थे, लेकिन उन के कोई बेटा नहीं था. अत: अपने बुढ़ापे का सहारा बनाने के लिए उन्होंने किसी बच्चे को गोद लेने तथा उसे अपना घरजमीन वसीयत करने का निश्चय किया. उन्हीं दिनों पूसा देवी की निगाह अपने नाती बाबू सिंह पर पड़ी. उस समय बाबू सिंह की उम्र 5 साल थी. पूसा देवी ने बाबू सिंह को ही गोद लेने तथा अपनी वसीयत सौंपने का निश्चय किया. इस के लिए उन्होंने अपने पति सुखदेव को भी राजी कर लिया.
22 जुलाई, 1978 को पूसा देवी ने विधि सम्मत गोदनामा कर बाबू सिंह को गोद ले लिया. गोदनामा का पंजीकरण उप निबंधक कानपुर के कार्यालय में बही संख्या 4, जिल्द संख्या 782 के पेज संख्या 150-151 की क्रमांक संख्या 532 पर दर्ज किया गया. इस के बाद बाबू सिंह नानानानी के साथ अहिरवां गांव में रहने लगा. नानानानी ने घर और जमीन की वसीयत भी उसे कर दी.
कालांतर में पति सुखदेव की मौत के बाद पूसा देवी अपने मायके चली गईं. उन का मायका कानपुर की नर्वल तहसील के गांव घरूवा खेड़ा में था. बाबू सिंह भी उन के साथ चला गया. पूसा देवी ने बाकी का जीवन मायके में ही गुजारा. 14 नवंबर, 1997 को पूसा देवी का निधन हो गया.
नानी के निधन के बाद बाबू सिंह अपनी पत्नी बिटान देवी व दोनों बेटियों रूबी व काजल के साथ अहिरवां गांव में रहने लगा और वसीयत में मिली 10 बीघा जमीन पर खेती कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगा. समय बीतता रहा और समय के साथ उस की बेटियों की उम्र भी बढ़ती गई.
अहिरवां गांव पहले शहर की चकाचौंध से दूर था. लेकिन जैसेजैसे कानपुर शहर का विकास होता गया, वैसेवैसे गांव की अहमियत बढ़ती गई. अहिरवां गांव की जमीन भी अब कीमती हो गई. जो जमीन लाखों की थी, वह करोड़ों में तब्दील हो चुकी थी.
बाबू सिंह का एक रिश्तेदार था नरेंद्र सिंह यादव. वह अहिरवां गांव में ही रहता था. वह दिखावे के तौर पर तो बाबू सिंह का सगा था, लेकिन पीठ पीछे उस से जलता था. यह जलन उसे बाबू सिंह को वसीयत में मिली जमीन को ले कर थी. धीरेधीरे उस ने वसीयत वाली जमीन पर आंखें जमानी शुरू कर दीं. उस ने बाबू सिंह को शराब पीने का भी आदी बना दिया. वर्ष 2018 में नरेंद्र ने फरजी वसीयत बनवा कर अपनी दबंगई के बल पर बाबू सिंह की जमीन पर कब्जा जमा लिया.
प्रियरंजन ने सहयोग कर के भरोसा जीता बाबू सिंह का
रिश्तेदार के घात से बाबू सिंह तिलमिला उठा. उसे जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो जमीन वापसी के लिए उस ने कोर्ट में मुकदमा कर दिया. यही नहीं उस ने भतीजे जितेंद्र यादव से भी मदद मांगी. जितेंद्र भी अहिरवां में ही रहता था और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस ने चाचा को मदद का आश्वासन दिया.
जितेंद्र का साढ़ू था बबलू यादव. वह चकेरी थाने के टटियन झनाका में रहता था और भाजपा के रसूखदार नेता प्रियरंजन आशू दिवाकर की कार चलाता था. जितेंद्र ने बबलू को अपने चाचा बाबू सिंह की समस्या बताई और प्रियरंजन आशू दिवाकर के मार्फत चाचा की मदद करने को कहा. बबलू ने तब बाबू सिंह की मुलाकात आशू दिवाकर से कराई. आशू दिवाकर ने उसे मदद करने का भरोसा दिया.