Aarushi Murder case : तलवार दंपति पर क्यों हुआ बेटी की हत्या का शक

अदालत ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को आधार मान कर भारत की सब से बड़ी मर्डर मिस्ट्री माने जाने वाले आरुषि और हेमराज मर्डर केस में डा. राजेश तलवार और उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार को सजा तो सुना दी है, लेकिन अभी भी कई सवाल ऐसे हैं जिन का जवाब किसी के पास नहीं है.

25 नवंबर, 2013 को गाजियाबाद की कचहरी में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. अदालत के बाहर और अंदर भारी संख्या में पुलिस तैनात की गई थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन कचहरी परिसर स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में देश के सब से चर्चित आरुषि मर्डर केस का फैसला सुनाया जाना था. यह ऐसा मामला था, जिस पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई थीं. आरुषि मर्डर केस विशेष सीबीआई अदालत के विशेष न्यायाधीश श्याम लाल की अदालत में चल रहा था. उन की अदालत के बाहर भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. वकीलों और आरोपी तलवार दंपति के परिजनों के अलावा किसी अन्य को विशेष सीबीआई कोर्ट में नहीं जाने दिया जा रहा था. मीडियाकर्मियों को भी अदालत में जाने की मनाही थी. फिर भी अदालत खचाखच भरी थी. माननीय न्यायाधीश श्याम लाल जब अदालत में आ कर अपनी कुरसी पर बैठे तो माहौल एकदम शांत हो गया.

इस अदालत में आरुषि मर्डर केस की सुनवाई 5 साल 6 महीने 10 दिन चली थी और केस की 212 तारीखें पड़ी थीं. केस से जुड़े 46 लोगों ने कोर्ट में पेश हो कर गवाहियां दी थीं, जिस में 7 गवाहियां बचाव पक्ष की थीं. सीबीआई ने कोर्ट में जो चार्जशीट दाखिल की थी, उस में आरुषि की हत्या का इशारा डा. राजेश तलवार और उन की पत्नी नूपुर तलवार की ओर था. कोर्ट में अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के वकीलों की जिरह पूरी होने के बाद माननीय न्यायाधीश ने 25 नवंबर को केस का फैसला सुनाने का दिन मुकर्रर किया. अदालत में मौजूद सभी लोगों की निगाहें जज साहब की तरफ लगी हुई थीं. अदालत में मौजूद आरोपी डा. राजेश तलवार और उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार भी थे. माननीय न्यायाधीश श्याम लाल ने जब फैसला सुनाना शुरू किया तो लोगों की उत्सुकता और भी बढ़ गई.

माननीय न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि मांबाप अपने बच्चों के सब से बड़े रक्षक होते हैं. किसी की जिंदगी से किसी को भी खिलवाड़ करने का हक नहीं है. सीबीआई की जांच और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से यह साबित हो चुका है कि तलवार दंपति ने ही अपनी उस बेटी की जिंदगी छीन ली, जिस ने बमुश्किल 14 बसंत देखे थे. इतना ही नहीं, उन्होंने नौकर को भी मार डाला. ऐसा कर के इन्होंने धर्म और कानून दोनों का उल्लंघन किया है. माननीय न्यायाधीश ने 204 पेज के अपने आदेश में डा. तलवार दंपति को दोषी ठहराने की 26 वजहें बताई थीं. उन्होंने धर्मग्रंथों का भी जिक्र किया. कुरान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अल्लाह ने जो पवित्र जिंदगी बख्शी है, उसे छीना नहीं जाना चाहिए. अगर हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा. इसी तरह अगर हम कानून की हिफाजत करेंगे तो कानून हमारी हिफाजत करेगा. दोनों ही आरोपियों ने देश के कानून का उल्लंघन किया है.

जज ने डा. राजेश और नूपुर को अपनी बेटी और नौकर हेमराज की हत्या के साथसाथ सुबूत नष्ट करने का भी दोषी माना. पतिपत्नी को दोषी करार देने के बाद उन्होंने सजा सुनाने के लिए अगला दिन यानी 26 नवंबर तय कर दिया. फैसला सुनते ही अदालत में मौजूद डा. राजेश तलवार और डा. नूपुर तलवार के चेहरों पर मुर्दनी छा गई. डा. नूपुर की आंखों में आंसू छलक आए. कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने डा. राजेश और डा. नूपुर को हिरासत में ले लिया. दोपहर बाद 3 बज कर 25 मिनट पर जज द्वारा सुनाए गए फैसले की खबर न्यूज चैनलों पर प्रसारित होने लगी. जरा सी देर में पूरी दुनिया को पता चल गया कि डा. तलवार दंपति ने ही अपनी एकलौती बेटी आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या की थी.

आरुषि की हत्या के बाद से ही इस केस में कई उतारचढ़ाव आए थे. उत्तर प्रदेश पुलिस से जांच सीबीआई तक पहुंची. कई जांच अधिकारी बदले. आरुषि मर्डर केस आखिर शुरू से ही इतना पेचीदा क्यों रहा, यह जानने के लिए इस केस की थोड़ी पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है. उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) के सेक्टर-25, जलवायु विहार के फ्लैट नंबर एल-32 में रहने वाले डा. राजेश तलवार के परिवार में पत्नी डा. नूपुर तलवार के अलवा एक ही बेटी थी आरुषि. तलवार दंपति जानेमाने दंत चिकित्सक थे. आरुषि उन की शादी के 8 साल बाद 24 मई, 1993 को टेस्टट्यूब तकनीक से पैदा हुई थी, इसलिए वह मांबाप की बहुत लाडली थी.

दिल्ली पब्लिक स्कूल की छात्रा आरुषि का जन्मदिन हालांकि 24 मई को था, लेकिन वह अपना जन्मदिन 15 मई को मनाती थी. इस की वजह यह थी कि 15 मई को उस के स्कूल की गरमी की छुट्टियां शुरू हो जाती थीं और उस के ज्यादातर दोस्त जन्मदिन के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आ जाते थे. सन 2008 में आरुषि के स्कूल की छुट्टियां 16 मई से हुईं तो उस ने डा. तलवार से 16 मई को ही जन्मदिन मनाने की बात कही. वह इस के लिए तैयार हो गए. डा. तलवार जन्मदिन के मौके पर बेटी को कोई न कोई महंगा गिफ्ट जरूर देते थे. जिज्ञासावश आरुषि ने इस बारे में उन से पूछा तो उन्होंने एक डिजिटल कैमरा दिखाते हुए कहा कि यही तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट है.

कैमरा देख कर आरुषि बहुत खुश हुई. उस ने उसी समय उस से कई फोटो खींचे. डा. राजेश तलवार ने भी उसी कैमरे से आरुषि के कई फोटो लिए. 15 मई, 2008 की देर शाम बर्थडे कार्यक्रम की प्लानिंग के बाद डा. राजेश तलवार अपने कमरे में चले गए. आरुषि भी अपने कमरे में जा कर सो गई. अगले दिन 16 मई की सुबह डा. तलवार दंपति को पता लगा कि उन की 14 साल की बेटी आरुषि की हत्या हो गई है. डा. राजेश तलवार ने बेटी की हत्या की खबर पड़ोसियों को दी तो वे हैरान रह गए. पौश कालोनी में फ्लैट के अंदर हत्या हो जाना चौंकाने वाली बात थी. तलवार दंपति का रोरो कर बुरा हाल था. लोग उन्हें ढांढस बंधा रहे थे. बहरहाल, डा. राजेश तलवार ने थाना सैक्टर-20 को फोन कर के बेटी की हत्या की खबर दी. उस समय थानाप्रभारी दाताराम नौनेरिया थे.

डा. राजेश तलवार का फ्लैट सेकेंड फ्लोर पर था. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो देखा आरुषि की लाश कमरे में उस के बेड पर पड़ी थी. उस का गला किसी तेज धारदार हथियार से कटा हुआ था. साथ ही उस के सिर पर भी गहरा घाव था. आरुषि के बगल वाले कमरे में डा. राजेश तलवार और डा. नूपुर तलवार सोते थे. जबकि दूसरे कमरे में नौकर हेमराज सोता था. तलवार दंपति ने बताया कि उन्हें बेटी के चीखने की कोई आवाज नहीं सुनाई दी. हेमराज अपने कमरे में नहीं था. उस के कमरे में बीयर की खाली बोतल और 3 गिलास रखे थे. जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि फ्लैट के अंदर एंट्री जबरदस्ती नहीं हुई थी. वैसे भी किसी बाहरी व्यक्ति को आरुषि के कमरे तक पहुंचने के लिए 3 दरवाजों से गुजरना पड़ता. फ्लैट में आरुषि, उस के मातापिता के अलावा नौकर हेमराज रहता था.

जबकि डा. तलवार के अनुसार हेमराज फरार था. फरार होने की वजह से उस पर शक स्वाभाविक ही था. वैसे भी वह डा. तलवार के यहां 6-7 महीने से ही काम कर रहा था. शक की एक वजह यह भी थी कि दिल्ली और एनसीआर में घरेलू नौकरों द्वारा तमाम घटनाओं को अंजाम दिया गया था. घर का सारा सामान अपनी जगह था अलावा आरुषि के मोबाइल फोन के. हेमराज ने सिर्फ मोबाइल के लिए कत्ल किया होगा, यह बात गले उतरने वाली नहीं थी. हत्या की दूसरी वजह क्या हो सकती है, यह बात पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल सकती थी. इस बीच मौके पर जिले के सभी बड़े पुलिस अधिकारी पहुंच गए थे. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने आरुषि की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

डा. राजेश तलवार ने हेमराज के खिलाफ आरुषि की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए कहा कि वह मर्डर कर के नेपाल भाग गया है. उस की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम नेपाल रवाना हो गई. इस के अलावा संभावित स्थानों पर भी उस की खोज की जाने लगी. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया था. चूंकि डा. राजेश तलवार मैडिकल क्षेत्र से थे, इसलिए उन्होंने अपने ताल्लुकात का फायदा उठाते हुए 16 मई को दोपहर 12 बजे ही डा. सुनील डोगरे से लाश का पोस्टमार्टम करा कर आरुषि का अंतिम संस्कार करा दिया और अगले दिन अस्थियां विसर्जित करने के लिए हरिद्वार चले गए. उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व उपाधीक्षक के.के. गौतम नोएडा में ही रहते थे. वह डा. राजेश तलवार के भाई डा. दिनेश तलवार के मित्र थे. 17 मई, 2008 को वह भी डा. राजेश तलवार के यहां पहुंचे तो अचानक उन की नजर जीने पर पड़ी.

वहां उन्हें कुछ खून के धब्बे दिखाई दिए तो उन्होंने जीने के पास आ कर देखा. खून के धब्बे उन्हें ऊपर तक दिखाई दिए. लेकिन जीने के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. के. के. गौतम तेजतर्रार पुलिस अधिकारी रहे थे. उन का पुलिसिया दिमाग घूमने लगा. वहां नोएडा पुलिस भी थी. पुलिस ने डा. नूपुर तलवार से जीने का दरवाजा खोलने को कहा तो उन्होंने बताया कि उन के पास चाबी नहीं है. जब काफी खोजने के बाद भी जीने की चाबी नहीं मिली तो पुलिस ने दरवाजे पर लगा ताला तोड़ दिया. पुलिस छत पर पहुंची तो वहां भी खून के धब्बे मिले. खोजबीन में पुलिस की नजर कूलर के पास पहुंची तो वहां एक आदमी की लाश पड़ी थी. उस के ऊपर कूलर की जाली रखी हुई थी. डा. नूपुर तलवार से जब उस लाश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. बाद में दूसरे लोगों ने लाश की शिनाख्त तलवार दंपति के नौकर हेमराज के रूप में की.

आरुषि की तरह हेमराज की हत्या भी सांस की नली काट कर की गई थी. पुलिस ने डा. राजेश तलवार को हेमराज की हत्या की सूचना दे कर जल्द लौटने को कहा. उस समय वह हरिद्वार के रास्ते में थे. पुलिस के बुलाने के बाद भी वह वापस नहीं लौटे. हेमराज की लाश मिलने से आरुषि की हत्या के मामले ने नया मोड़ ले लिया. हेमराज की लाश चूंकि दूसरे दिन मिली थी, इसलिए पुलिस पर अंगुलियां उठना स्वाभाविक था. इस की गाज गिरी इस केस के जांच अधिकारी दाताराम नौनेरिया और एसपी सिटी महेश कुमार मिश्रा पर. 18 मई, 2008 को दोनों का तबादला कर दिया गया.

दाताराम की जगह नए थानाप्रभारी संतराम यादव ने इस दोहरे हत्याकांड की जांच करनी शुरू की. आरुषि की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उस का गला सर्जिकल इक्विपमेंट से काटा गया था. उस के सिर पर भी किसी नुकीली चीज का जख्म था. रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि उस की हत्या करीब 12 घंटे पहले हुई थी. इस का मतलब यह था कि आरुषि का कत्ल 15-16 मई की रात को 12-1 बजे के बीच हुआ था. रिपोर्ट में दुष्कर्म की बात से इनकार किया गया था. हेमराज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की हत्या भी सांस की नली काट कर की गई थी. उस के सिर पर भी पीछे से किसी भारी चीज से वार किया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई थी कि आरुषि और हेमराज की हत्या एक ही तरीके से की गई थी और हत्यारा भी संभवत: एक ही था.

जांच अधिकारी ने डा. राजेश तलवार से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वह सोते समय आरुषि के कमरे में बाहर से ताला लगा कर अपने कमरे में सोते थे, लेकिन 15 मई की रात को वह ताला लगाना भूल गए थे. वहीं उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार ने बताया कि बेटी की लाश देखने के बाद वह सीधे हेमराज के कमरे में गईं. जब वह कमरे में नहीं मिला तो उन्होंने घर के लैंडलाइन फोन से उस के मोबाइल का नंबर ट्राई किया. उस समय सुबह को 6 बज रहे थे. फोन किसी ने रिसीव तो किया, पर बात किए बिना ही काट दिया. पुलिस ने हेमराज के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो वास्तव में 16 मई को सुबह 6 बज कर 3 मिनट पर काल रिसीव हुई थी और उस समय उस का फोन जलवायु विहार स्थित मोबाइल फोन टावर के संपर्क में था. पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि जब हेमराज की हत्या हो गई थी तो उस का फोन किस ने रिसीव किया?

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि हत्यारा चाहे जो भी रहा हो, वह तलवार परिवार का करीबी रहा होगा. पुलिस ने डा. राजेश तलवार के कंपाउंडर किशन उर्फ कृष्णा से पूछताछ की और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई. लेकिन कोई नतीजा हासिल नहीं हुआ. तलवार दंपति के यहां 4 लोग रहते थे. उन में से 2 का मर्डर हो गया था. वह भी उस स्थिति में जबकि कोई बाहरी आदमी फ्लैट में नहीं आया था. ऐसी स्थिति में पुलिस को डा. तलवार दंपति पर ही शक हो रहा था. इसी बीच इस केस की जांच संतराम यादव की जगह थाना सेक्टर-20 के इंचार्ज जगवीर सिंह को सौंप दी गई. उन्होंने केस की फाइल का अध्ययन करने के बाद घटनास्थल का मुआयना किया. केवल शक के आधार पर डा. राजेश तलवार को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था, इसलिए पुलिस उन के खिलाफ सुबूत जुटाने की कोशिश करने लगी. इस के लिए पुलिस ने उन के क्लीनिक, फ्लैट, कार, गैरेज आदि की जांच की, लेकिन कोई सुबूत नहीं मिला.

पुलिस ने डा. राजेश तलवार का मोबाइल फोन भी इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया, ताकि फोन पर होने वाली उन की बात सुनी जा सके. पुलिस द्वारा बारबार पूछताछ के बाद डा. राजेश तलवार को लगने लगा था कि पुलिस हत्या के आरोप में कहीं उन्हें ही गिरफ्तार न कर ले. इसलिए उन्होंने अपने दोस्त वकील को फोन कर के अपनी अग्रिम जमानत के बारे में बात की. पुलिस डा. राजेश तलवार की फोन पर हो रही बातचीत को सुन रही थी. अग्रिम जमानत की बात सुन कर पुलिस को यकीन हो गया कि दोनों की हत्या में डा. राजेश तलवार का हाथ रहा होगा, इसलिए उन्होंने अपनी अग्रिम जमानत के बारे में बात की. फिर क्या था, पुलिस ने आननफानन में डा. राजेश तलवार को उठा लिया.

उन से पूछताछ करने के बाद मेरठ जोन के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर खुलासा किया कि आरुषि और हेमराज की हत्या और किसी ने नहीं, बल्कि डा. राजेश तलवार ने ही की थी. वजह थी आरुषि और हेमराज के बीच अवैध संबंध. डा. राजेश तलवार ने उन्हें आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने डा. राजेश तलवार को दोहरे मर्डर केस में गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश किया और 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. लेकिन रिमांड की अवधि में नोएडा पुलिस डा. राजेश तलवार से कत्ल में इस्तेमाल किए गए हथियार, खून सने कपड़े व आरुषि और हेमराज के मोबाइल फोन वगैरह बरामद नहीं कर सकी. पुलिस यह भी पता नहीं लगा सकी कि जीने पर खून के जो धब्बे मिले थे, वे कैसे लगे थे.

डा. राजेश तलवार चीखचीख कर कह रहे थे कि उन्होंने आरुषि और हेमराज की हत्याएं नहीं कीं, लेकिन नोएडा पुलिस ने उन की एक नहीं सुनी. उन के परिवार वाले भी उन की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे. उन का कहना था कि पुलिस ने डा. राजेश तलवार को झूठा फंसाया है. इसलिए वह इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहे थे. चूंकि पुलिस ने हत्या से संबंधित एक भी सुबूत बरामद नहीं किया था, इसलिए कई राजनैतिक पार्टियों के नेताओं और सामाजिक संगठनों ने भी पुलिस के खुलासे पर अंगुली उठानी शुरू कर दी थी. वे भी सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे. यह आवाज प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कानों तक पहुंची तो उन्होंने इस दोहरे हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश कर दी.

इस के अलावा उन्होंने मेरठ जोन के पुलिस महानिरीक्षक गुरुदर्शन सिंह, पुलिस उपमहानिरीक्षक पी.सी. मीणा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ए. सतीश गणेश के भी ट्रांसफर के आदेश दिए, ताकि वे जांच को प्रभावित न कर सकें. 1 जून, 2008 को जांच का आदेश मिलते ही सीबीआई जांच में जुट गई. सीबीआई की 25 सदस्यीय टीम फोरेंसिक एक्सपर्ट्स के साथ जलवायु विहार पहुंच गई. चूंकि सब से पहले घटनास्थल पर पहुंची नोएडा पुलिस ने वहां से सुबूत इकट्ठे नहीं किए थे, इसलिए तब तक सारे सुबूत नष्ट हो चुके थे. सीबीआई टीम ने आरुषि की मां डा. नूपुर तलवार, डा. राजेश तलवार के कंपाउंडर कृष्णा, डा. अनीता दुर्रानी, हेमराज के दामाद जीवन शर्मा, डा. दुर्रानी के नौकर राजकुमार, एक अन्य नौकर विजय मंडल, ट्रांसफर हुए एसपी सिटी महेश मिश्रा, पूर्व डीएसपी के.के. गौतम, डा. तलवार की नौकरानी भारती के अलावा सब्जी बेचने वालों, गार्डों और पड़ोसियों तक से पूछताछ की.

फोरेंसिक टीम ने इन्फ्रारेड कैमिकल इमेजिंग के जरिए खून के कुछ नमूने भी उठाए.  इन्फ्रारेड कैमिकल इमेजिंग एक ऐसी तकनीक है, जिस से किसी जगह या कपड़े पर पड़ा खून का पुराने से पुराना धब्बा भी खोजा जा सकता है. सीबीआई टीम ने छत पर जा कर भी कई बार जांच की. सीबीआई ने डा. राजेश तलवार का 2 बार लाई डिटेक्टर टेस्ट, साइको एनालिसिस टेस्ट व नारको एनालिसिस टेस्ट कराया. इस के अलावा उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार का भी लाई डिटेक्टर टेस्ट व साइको एनालिसिस टेस्ट कराया गया. इस के अलावा सीबीआई ने डा. दुर्रानी के नौकर राजकुमार और डा. राजेश तलवार के पड़ोस में काम करने वाले नौकर विजय मंडल के भी पौलीग्राफिक टेस्ट कराए. इन सब टेस्ट रिपोर्टों और तफ्तीश के बाद सीबीआई ने कहा कि आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या डा. राजेश तलवार ने नहीं, बल्कि उन के कंपाउंडर किशन उर्फ कृष्णा, डा. अनीता दुर्रानी के नौकर राजकुमार और एक अन्य नौकर विजय मंडल ने मिल कर की थी. सीबीआई के खुलासे के बाद डा. राजेश तलवार के परिजन और समर्थक खुश हुए.

सीबीआई की जांच ने नोएडा पुलिस द्वारा किए गए खुलासे की हवा निकाल दी थी और 50 दिन डासना जेल में रहने के बाद डा. राजेश तलवार घर आ गए थे. एक तरह से सीबीआई ने उन के ऊपर लगे हत्या के दाग को धो दिया था. लेकिन सीबीआई की यह थ्यौरी और पेश किए गए सुबूत अदालत के सामने टिक नहीं सके और गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने तीनों नौकरों, कृष्णा, राजकुमार और विजय मंडल को 12 सितंबर, 2008 को रिहा करने के आदेश दे दिए. नौकरों की रिहाई के बाद मीडिया में इस हत्याकांड को ले कर फिर से सवाल उठने लगे. न्यूज चैनलों पर फिर से इस मर्डर मिस्ट्री की कथाएं प्रसारित की जाने लगीं. जनमानस के भीतर फिर वही सवाल हिलोरें मारने लगा कि आखिर आरुषि और हेमराज का हत्यारा कौन है?

कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने फिर से मामले की गहनता से जांच शुरू कर दी. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर, फोरेंसिक जांच रिपोर्ट देने वाले अधिकारियों आदि के अलावा डा. तलवार दंपति से फिर से पूछताछ की गई. घूमफिर कर जांच एजेंसी को तलवार दंपति पर ही शक हो रहा था, लेकिन हत्या का कोई सुबूत नहीं मिल रहा था. जांच में जब कोई नतीजा नहीं निकला तो सीबीआई ने 29 दिसंबर, 2010 को विशेष सीबीआई अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा, ‘‘अब तक की जांच के बाद आरुषि और हेमराज की हत्या का पूरा शक डा. राजेश तलवार और डा. नूपुर तलवार पर ही जाता है. लेकिन उन के खिलाफ हमारे पास पर्याप्त और पुख्ता सुबूत नहीं हैं. लिहाजा इस केस को बंद करने की अनुमति दी जाए.’’

लेकिन अदालत ने इसे स्वीकार करने के बजाए क्लोजर रिपोर्ट को ही चार्जशीट मान कर तलवार दंपति को इस हत्याकांड में आरोपी बनाया. इस के बाद 9 फरवरी, 2011 से इस मामले की फिर से सुनवाई शुरू हो गई. इस मामले के विवेचनाधिकारी ए.जी.एल. कौल ने अपनी गवाही में कोर्ट के सामने साफ तौर पर कहा कि डा. राजेश तलवार हेमराज और आरुषि को आपत्तिजनक स्थिति में देख कर आपा खो बैठे थे और उन्होंने अपनी गोल्फ स्टिक से उन की हत्या कर दी थी. जबकि बचाव पक्ष ने दुनिया के जानेमाने डीएनए विशेष डा. आंद्रे सेमीखोस्की के अलावा एम्स के पूर्व फोरेंसिक एक्सपर्ट डा. आर.के. शर्मा सहित 7 लोगों की गवाही कराई. डा. सेमीखोस्की ने सीबीआई द्वारा पेश डीएनए रिपोर्ट को आधाअधूरा बताते हुए डीएनए जांच रिपोर्ट का रा डाटा मांगा.

उन्होंने कहा कि खुखरी और दीवार के टुकड़े जिस पर सीबीआई ने खून के दाग बरामद किए, उन की लंदन में दोबारा डीएनए जांच होनी चाहिए. लेकिन अदालत ने उन की इस मांग को खारिज कर दिया. अप्रैल, 2013 में सीबीआई की तरफ से इंस्टीट्यूट औफ फोरेंसिक साइंस के उपनिदेशक महेंद्र दहिया को कोर्ट में बतौर गवाह पेश किया गया. डा. दहिया ने अदालत से कहा कि आरुषि और हेमराज दोनों पर हमला आरुषि के कमरे में ही हुआ था. दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया गया था. हेमराज की लाश को हत्या के बाद छत पर ले जाया गया था. उन्होंने अदालत से यह भी कहा कि 9 अक्तूबर, 2009 को वह सीबीआई की टीम के साथ घटनास्थल पर गए थे तो फ्लैट का नजारा देख कर लग रहा था कि उस वक्त फ्लैट की पुताई कर दी गई थी.

मकान की स्थिति देख कर जांच में पता चला कि आरुषि-हेमराज की हत्या एक ही समय पर और एक ही जगह पर की गई थी. उन की हत्या में डा. राजेश तलवार ने अपनी गोल्फ स्टिक का इस्तेमाल किया था. बाद में दोनों के गले सर्जिकल औजार से काटे गए थे. उन्होंने आगे बताया कि जांच में यह भी पता चला कि हेमराज को मारने के बाद लाश को छत पर ले जाया गया. उस का गला छत पर ही काटा गया था. हत्यारे का पैर जीने के दरवाजे के पास पडे़ पाइप में उलझ गया था, इसलिए उस का खूनी पंजा दीवार पर लग गया था. दोनों के गले एक कान से दूसरे कान तक काटे गए थे और यह काम उन के लेटे होने की अवस्था में किया गया था. आरुषि के सिर में प्रेशर से चोट पहुंचाई गई थी, इसलिए उस के खून के छींटे दीवार पर आए. सभी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए डा. दहिया ने स्पष्ट किया था कि घटना में कोई बाहरी व्यक्ति शामिल नहीं था.

तमाम गवाहों और परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर विद्वान न्यायाधीश श्याम लाल ने 25 नवंबर, 2013 को सुनाए गए 204 पेज के अपने आदेश में डा. राजेश तलवार और उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार को आरुषि और हेमराज की हत्या का दोषी ठहराया. सजा के लिए उन्होंने 26 नवंबर का दिन मुकर्रर कर दिया. चूंकि अदालत ने डा. तलवार दंपति को दोहरे हत्याकांड का दोषी ठहराया गया था, इसलिए लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी थी कि उन्हें फांसी दी जाएगी या फिर उम्रकैद. 26 नवंबर को दोपहर 2 बज कर 20 मिनट पर सीबीआई के वकील आर.के. सैनी व बी.के. सिंह और बचाव पक्ष के वकील तनवीर अहमद, मनोज सिसौदिया व सत्यकेतु सिंह के बीच सजा के बिंदु पर 10 मिनट तक बहस हुई. सीबीआई के वकीलों ने हत्याकांड को रेयरेस्ट औफ रेयर करार देते हुए दोनों दोषियों को सजाएमौत देने की मांग की. जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि दोनों ही चिकित्सक हैं, इन का कोई पुराना आपराधिक रिकौर्ड भी नहीं है, लिहाजा उन्हें कम से कम सजा दी जाए.

दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद न्यायाधीश ने डा. राजेश तलवार व डा. नूपुर तलवार पर आईपीसी की धारा 302, 201 (समान मकसद से हत्या करने) पर आजीवन कारावास और 10 हजार रुपए का जुर्माना, आईपीसी की धारा 201 (साक्ष्यों को मिटाना) पर 5 साल की सजा और 5 हजार रुपए का जुर्माना तथा डा. राजेश तलवार पर आईपीसी की धारा 203 (झूठी रिपोर्ट दर्ज करा कर पुलिस को गुमराह करना) पर 1 साल की सजा और 2 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई. उन्होंने यह भी आदेश दिया कि सभी सजाएं एक साथ चलेंगी. सजा सुनने के बाद डा. तलवार दंपति को डासना जेल भेज दिया गया. अब जेल में डा. नूपुर तलवार का नया पता कैदी नंबर 9343 और बैरक नंबर 13 है, जबकि डा. राजेश तलवार को बैरक नंबर 11 के कैदी नंबर 9342 के रूप में जाना जाएगा.

हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आरुषि-हेमराज हत्याकांड मामले में गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में सीबीआई की विशेष अदालत का निर्णय रद्द करते हुए राजेश राजेश तलवार और नुपुर तलवार को निर्दोष करार दिया. अदालत ने इस तरह से दोनों अपीलकर्ताओं को संदेह का लाभ देते हुए विशेष सीबीआई अदालत का 26 नवंबर, 2013 का फैसला निरस्त कर दिया.  अदालत ने तलवार दंपति की अपील स्वीकार करते हुए उन्हें तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया

घर वालों को रास न आया बेटी का प्यार

घर वालों को रास न आया बेटी का प्यार – भाग 3

बाप बेटे क्यों बने जल्लाद

बेटी की इस गुहार पर भी पिता कृपाराम व भाई राघवराम का दिल नहीं पसीजा. आरती जब बीच में आई तो राघव ने डंडे से उसे भी मारना शुरू कर दिया. सिर में डंडा लगने से वह बेहोश हो गई. फिर रस्सी से बापबेटे ने उस का गला कस दिया.

आरती को मारने के बाद उन दोनों ने सतीश को भी पीटपीट कर अधमरा कर दिया. आपत्तिजनक हालत में आरती व सतीश  के पकड़े जाने से दोनों का गुस्सा सातवें आसमान पर था. गुस्से में उन्होंने रस्सी से सतीश का गला भी कस दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद सतीश ने वहीं दम तोड़ दिया.

इस सनसनीखेज डबल मर्डर के बाद दोनों पुलिस की गिरफ्त से बचने की जुगत करने लगे. वहीं लाशों को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. सतीश के शव को जंगल में छिपाने व आरती के शव को अयोध्या ले जा कर दफनाने की योजना बनाई गई. तय किया गया कि आरती के बारे में कोई पूछेगा तो कह देंगे कि रिश्तेदारी में गई है.

दोनों बापबेटे रात में ही एक चारपाई पर सतीश के शव को रख कर गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर एक गन्ने के खेत में ले गए. दोनों ने शव को गन्ने के खेत में छिपा दिया. जिस रस्सी से सतीश का गला कस कर हत्या की थी, उसे भी चारपाई के साथ ही खेत में फेंक आए.

सतीश के शव को छिपाने के बाद अब रात में ही आरती का शव ठिकाने लगाना था. कृपाराम और राघवराम आरती के शव को कार से ले कर गांव से 20 किलोमीटर दूर अयोध्या पंहुचे. अयोध्या में सरयू नदी के किनारे श्मशान घाट पर एक बालू के टीले में शव को दफन कर गांव वापस आ गए और घर में शांत हो कर बैठ गए. ताकि किसी को दोहरे हत्याकांड का पता न चल सके.

लेकिन मंगलवार 21 अगस्त को सुबह सतीश के नहीं मिलने पर उस के घर वालों ने उसे बहुत तलाशा. जब उन्हें जानकारी हुई कि आरती भी घर पर नहीं है तो उन लोगों ने पुलिस को सूचना दे दी. क्योंकि वे लोग भी आरती और सतीश के रिश्ते के बारे में जानते थे.

थाने में आरती के पिता कृपाराम चौरसिया ने कहा कि हमारे यहां गांव के लड़के से शादी नहीं होती है. सतीश भले ही हमारी जाति का था, लेकिन वह था तो हमारे गांव का ही. ऊपर से वह आरती का भाई लगता था. आरती किसी दूसरे गांव के लड़के से बोलती तो हम लोग उसकी शादी करवा देते.

हमारे घर से 20 मीटर की दूरी पर ही सतीश का घर था. रोज का आमनासामना होता था. वह बचपन से घर आताजाता था. दोनों साथ खेले, हम लोग उसे आरती का बड़ा भाई कहते थे. हम लोग आरती के साथ उस का रिश्ता कैसे मंजूर कर लेते?

3-4 महीने पहले दोनों को गांव के एक युवक ने साथसाथ देख लिया था. दोनों बाहर कहीं साथ में बैठे थे. इस बात की जानकारी उस ने हमें दी थी. जब आरती की घर पर बहुत पिटाई की थी. उस को सख्ती से मना किया था कि वह कभी सतीश से न मिले, लेकिन हफ्ते भर पहले वह सतीश से मिलने फिर चली गई.

इस के बाद आरती के घर से  निकलने पर  पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी, लेकिन उस ने सतीश को 20-21 अगस्त की रात को घर बुला लिया. अगर हम अपनी बेटी को नहीं मारते तो वह हमें मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ती.

सतीश की निर्मम हत्या किए जाने पर उस के घर में कोहराम मच गया. मां प्रभावती और भाई बहनों का रोरो कर बुरा हाल हो गया. सतीश के घर वाले और रिश्तेदार गम के साथ गुस्से में दिखे.

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सतीश की मां प्रभावती का कहना था कि आरती के पिता कृपाराम चौरसिया, भाई राघवराम के साथ ही उस का चाचा आज्ञाराम और उस का बेटा विजय भी इस हत्याकांड में शामिल हैं. कृपाराम व राघवराम ने भी थाने में पुलिस को उन के नाम बताए थे. लेकिन पुलिस ने केवल बापबेटे को ही गिरफ्तार किया है.

आरती के पिता व भाई ने जुुर्म कुबूल कर लिया. इस से आरती के चाचा आज्ञाराम और उस के बेटे विजय को राहत मिली है. मगर सतीश की मां अपने बेटे को न्याय दिलाने की खातिर अभी भी मामले में आज्ञाराम व विजय को आरोपी बनाए जाने की मांग कर रही है.

उस का आरोप है कि जिस तरह से दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया गया है और दोनों की लाशों को घटनास्थल से हटाया गया है, उस में सिर्फ 2 लोग ही शामिल नहीं हो सकते. प्रभावती अंतिम सांस तक सभी दोषियों के खिलाफ कड़ी काररवाई के लिए संघर्ष करने की बात कहती है.

गांव में हुए दोहरे हत्याकांड के खुलासे व आरती के पिता व भाई द्वारा हत्या करने का जुर्म कुबूल करने तथा दोनों की गिरफ्तारी से गांव के लोग सन्न रह गए. गिरफ्तारी के बाद आरती के अन्य परिजन घर में ताला लगा कर भाग गए थे. पूरे गांव में इसी घटना की चर्चा हो रही थी.

वहीं सतीश की हत्या की सूचना सोमवार को ही मोबाइल से पिता बिंदेेश्वरी प्रसाद चौरसिया को दी गई. वे ट्रेन से मुंबई से गांव पहुंच गए. वे अपने बेटे की हत्या पर फफकते हुए बोले, ”पता होता कि उस की हत्या कर दी जाएगी तो उसे भी अपने साथ मुंबई ले जाते. बेटे को तो न खोना पड़ता.’’

बिंदेश्वरी ने रोते हुए कहा कि फांसी की सजा देने का अधिकार तो सिर्फ अदालत को है, लेकिन बाप बेटे ने मिल कर जल्लाद की तरह मेरे जिगर के टुकड़े सतीश को फांसी दे दी.

औनर किलिंग के हत्यारों कृपाराम व राघवराम को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में एसएचओ सत्येंद्र वर्मा, एसआई विजय प्रकाश, हैडकांस्टेबल दया यादव, कुषार यादव, आशुतोष पांडे, अमरीश मिश्रा व कांस्टेबल रिषभ शामिल थे. एसपी अंकित मित्तल ने 24 घंटे में डबल मर्डर का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को पुरस्कृत किया.

गुमशुदगी की रिपोर्ट को भादंवि की धारा 302, 201 में तरमीम कर प्रेमी युगल आरती चौरसिया व सतीश चौरसिया की हत्या के आरोपी कृपाराम चौरसिया व उस के बेटे राघवराम चौरसिया को गिरफ्तार कर 23 अगस्त, 2023 को पुलिस ने न्यायालय में पेश किया. जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

एएसपी शिवराज

हंसते खेलते युवा प्रेमी युगल को मौत की नींद सुला दिया गया, जहां आदमी चांद पर पहुंच रहा है. जमाना चाहे कितना भी आगे बढ़ गया हो, लेकिन दकियानूसी सोच उन्हें आगे नहीं बढऩे दे रही. कृपाराम और राघवराम जैसे लोग समाज में नासूर बने हुए हैं, जो झूठी आन, बान और शान के लिए औनर किलिंग जैसे अपराध करते हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घर वालों को रास न आया बेटी का प्यार – भाग 2

गन्ने के खेत में मिला सतीश का शव

हत्या का जुर्म कुबूल करने के बाद पुलिस ने आरती के भाई राघवराम की निशानदेही पर गन्ने के खेत से सतीश का शव, चारपाई व रस्सी बरामद कर ली. फोरैंसिक टीम व डौग स्क्वायड को भी बुला लिया गया था. खोजी कुत्ता गन्ने के खेत के बाद दौड़ता हुआ राघवराम के घर पर जा पहुंचा.

फोरैंसिकटीम ने भी घटनास्थल से कुछ साक्ष्य जुटाए. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. वहीं आरती को बालू के टीले में दफन किए जाने की जानकारी पर एसएचओ सत्येंद्र वर्मा ने डीएम से अनुमति ली.

इस के बाद पुलिस टीम के साथ अयोध्या जा कर वहां के अधिकारियों से बात कर के सरयू नदी के किनारे बालू के टीले में दफन आरती का शव निकलवाया. मौके की काररवाई के बाद उस का अयोध्या में ही पोस्टमार्टम कराया गया.

सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड का पुलिस ने 24 घंटे के अंदर ही परदाफाश कर दिया. इस डबल मर्डर की दिल दहलाने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

19 वर्षीय सतीश चौरसिया का गांव की ही रहने वाली 18 साल की आरती चौरसिया से पिछले लगभग 2 सालों से अफेयर चल रहा था. दोनों एक ही जाति के थे. गांव के नाते सतीश का आरती के घर आनाजाना था. दोनों ही जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे.

सतीश कदकाठी का कसा हुआ नौजवान था. वह सुंदर भी था. आरती उस की ओर आकर्षित हो गई. जब भी सतीश घर पर आता, आरती उसे कनखियों से देखा करती थी. इस बात का आभास सतीश को भी था. वह भी मन ही मन आरती को चाहने लगा था.

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अब दोनों का बचपन का प्यार जवान हो गया था. जब कभी दोनों की नजरें मिलतीं तो दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. दोनों के बीच घर वालों के सामने सामान्य बातचीत होती थी.

धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. अब दोनों की मोबाइल पर प्यार भरी बातें होने लगीं. फिर उन की अकसर गांव के बाहर चोरी छिपे मुलाकातें होने लगीं. प्रेमीयुगल एकदूसरे का हाथ थाम कर शादी करने का फैसला भी ले चुके थे.

सतीश ने आरती से साफ लहजे में कह दिया था, ”आरती, दुनिया की कोई ताकत हम दोनों को शादी करने से नहीं रोक सकती है. मैं ने तुम से सच्चा प्यार किया है और आखिरी सांस तक करता रहंूगा.’’

आरती ने भी मरते दम तक साथ निभाने का वादा किया.

आरती और सतीश खुश थे. दोनों अपने भावी जीवन के सपने देखते. दुनिया से बेखबर वे अपने प्यार में मस्त रहते थे. पर गांवदेहात में लव स्टोरी ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पाती. यदि किसी एक व्यक्ति को भी इस की भनक लग जाती है तो कानाफूसी से बात गांव भर में जल्द ही फैल जाती है.

किसी तरह आरती के घर वालों को भी इस बात का पता चल गया कि आरती का सतीश के साथ चक्कर चल रहा है. इस बात की जानकारी मिलने के बाद आरती के घर वाले कई बार विरोध कर चुके थे. विरोध के बाद सतीश का आरती के घर जाना बंद हो गया, लेकिन मौका मिलने पर दोनों चोरीछिपे मुलाकात जरूर कर लेते थे.

घर से निकलने पर क्यों लगाई पाबंदी

20-21 अगस्त, 2023 की रात को जब राघवराम घर आया, उस समय आरती और उस की मम्मी खाना बना रही थीं. पिता पास ही बैठे हुए थे. राघव पिता के पास जा कर बैठ गया. दोनों बाप बेटे कामकाज की बातें करने लगे. कुछ देर बाद खाना बन कर तैयार हो गया. तब मां ने आवाज लगा कर राघव व अपने पति को बुला लिया. दोनों खाना खाने किचन के पास पहुंच गए. किचन के पास ही बैठ कर चारों ने खाना खाया. ये लोग आपस में बात कर रहे थे, लेकिन आरती कुछ बोल नहीं रही थी.

आरती उन लोगों से नाराज थी. क्योंकि घर वाले एक हफ्ते से उसे घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे थे. दरअसल, आरती अपने प्रेमी सतीश से चोरीछिपे मिलती थी. जिस की जानकारी होने पर उस पर रोक लगाई गई थी.

आरती और सतीश के प्रेम प्रसंग की वजह से गांव में उन की बदनामी हो रही थी. जो घर वालों को बरदाश्त नहीं थी, लेकिन यह बात आरती नहीं समझ पा रही थी. वह तो सतीश के साथ शादी करने की जिद पर अड़ी हुई थी.

करीब एक हफ्ते से आरती घर वालों के डर से अपने प्रेमी सतीश से मिलने नहीं जा पा रही थी. उसे उन का यह फरमान नागवार गुजर रहा था. उधर सतीश भी आरती से मिलने के लिए बेचैन था. दोनों ही जल बिन मछली की तरह एकदूसरे के लिए तड़प रहे थे.

इस के चलते आरती ने फोन कर के सतीश को 20-21 अगस्त की रात को मिलने के लिए अपने घर के पीछे बुला लिया.

रंगेहाथों पकड़ा गया प्रेमी युगल

अपनी प्रेमिका आरती से मोबाइल पर बात होने के बाद सतीश ने घर वालों के सोने का इंतजार किया. रात साढ़े 12 बजे जब घर वाले सो गए तो वह बाहर की बैठक (कमरे) से निकल कर आरती के घर जा पहुंचा. उस समय आरती के घर वाले भी गहरी नींद में सोए हुए थे. आरती बेसब्री से उसी के आने की बाट जोह रही थी. उसे एकएक पल काटना भारी हो रहा था.

सतीश जैसे ही आरती के घर के पास पहुंचा, फोन करने पर आरती दरवाजा खोल कर बाहर आ गई. दोनों एकदूसरे का हाथ थामे वहीं घर के पीछे झाडिय़ों की आड़ में चले गए. वहां पहुंचते ही दोनों ने एकदूसरे को अपनी बांहों के घेरे में कस लिया. दोनों एकदूसरे से पूरे एक हफ्ते बाद मिले थे.

घर वालों से बेपरवाह हो कर युगल प्रेमी कानाफूसी में इतने मगन हो गए कि उन्हें किसी बात का अहसास ही नहीं हुआ. दोनों ही तनमन से प्यासे थे. वे अपने जज्बातों पर काबू नहीं कर पाए और दो तन एक हो गए.

रंगेहाथों पकड़े जाने पर डर की वजह से सतीश प्रेमिका के घर वालों से अपनी गलती की माफी मांगने लगा. मगर आरती के पिता व भाई के सिर पर खून सवार था. घर वाले दोनों को पकड़ कर पीटते हुए घर में ले आए. बापबेटे डंडे  से सतीश की जम कर पिटाई करने लगे.

अपने प्रेमी की हालत देख कर आरती रो पड़ी. प्रेमी के साथ पकड़े जाने पर आरती ने पिता और भाई से उसे छोडऩे की काफी विनती की. आरती ने उन के सामने हाथ जोड़ कर कहा, ”मैं सतीश के साथ ही जीना और मरना चाहती हंू. इसलिए मारना है तो हम दोनों को ही मार दो, एक को नहीं.’’

घर वालों को रास न आया बेटी का प्यार – भाग 1

उस रात सभी लोग खाना खाने के बाद सोने चले गए. आधी रात को राघव को कुछ उलझन महसूस हुई  तो वह बाहर आ गया. बाहर टहलने के बाद राघव आरती के कमरे की ओर गया तो वह वहां नहीं थी. तब राघव मम्मी के पास गया, आरती वहां भी नहीं थी. इस के बाद राघव ने घर में सभी को उठा दिया. लेकिन बदनामी के डर से घर वालों ने शोर नहीं मचाया.

पहले तो आरती की घर में ही तलाश की फिर बाहर गांव में निकल गए, लेकिन  आरती कहीं नहीं मिल रही थी. घर वाले समझ गए कि वह सतीश चौरसिया के साथ ही होगी. उसे तलाशता हुआ राघव जब अपने घर के पीछे पहुंचा तो वहां का दृश्य देख कर उस का खून खौल उठा. आरती और सतीश आपत्तिजनक स्थिति में थे. राघव इसे बरदाश्त नहीं कर पाया. उस ने अपने पापा मम्मी को मौके पर बुला लिया.

उत्तर प्रदेश के जनपद गोंडा का एक थाना है धानेपुर. इस थाना क्षेत्र के अंतर्गत गांव मेहनौन आता है. इसी गांव के रहने वाले हैं बिंदेश्वरी चौरसिया. उन के 5 बेटे व एक बेटी थी. अपने 3 बेटों लवकुश, संजय और हरिश्चंद्र के साथ बिंदेश्वरी मुुंबई में रहते थे.

संजय व हरिश्चंद्र अपने पिता के साथ वहां पावरलूम में काम करते थे, जबकि लवकुश चाय की दुकान चलाता था. बिंदेश्वरी के 2 बेटे सतीश व विशाल गांव में ही अपनी मां के साथ रह रहे थे. जबकि बेटी की वह शादी कर चुके थे.

गांव में सब कुछ ठीक चल रहा था. अचानक बिंदेेश्वरी  का 19 वर्षीय बेटा सतीश चौरसिया 20-21 अगस्त, 2023 की रात घर से अचानक लापता हो गया. घर वाले सारी रात उस का इंतजार करतेे रहे. सुबह होने पर उन्होंने अपने तरीके से खोजबीन की, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. इस पर सतीश की मां प्रभावती ने थाना धानेपुर में 21 अगस्त की सुबह सतीश की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

गुमशुदगी दर्ज हो जाने के बाद 22 अगस्त, 2023 को थाना धानेपुर के एसएचओ सत्येंद्र वर्मा जांच के लिए  पुलिस टीम के साथ गांव मेहनौन पहुंचे. सतीश के घर वालों से उन्होंने पूछताछ की.

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एसएचओ सत्येंद्र वर्मा

सतीश की मां प्रभावती ने उन्हें बताया कि 20-21 अगस्त की देर रात खाना खा कर सतीश घर के बाहरी हिस्से में बनी बैठक (कमरे) में सोने चला गया था. आधी रात को जब उस की आंखें खुलीं तो सतीश बैठक में नहीं दिखाई दिया.

उस ने सोचा कि शायद वह टायलेट के लिए खेत में गया होगा. लेकिन काफी देर बाद भी वह नहीं लौटा. सुबह होते ही सतीश को सभी ने गांव में तलाशना शुरू किया, लेकिन वह कहीं नहीं मिला.

पुलिस ने गांव में अपने स्तर से जांचपड़ताल करने के साथ ही सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि रात को सतीश की गांव की रहने वाली एक युवती से फोन पर बात हुुई थी. वह रात को उस से मिलने गया था. इस के बाद से ही वह लापता हो गया था.  सतीश की मां ने बताया कि उसे पता चला है कि गांव की आरती भी अपने घर पर नहीं है.

सतीश और आरती अपने घरों में नहीं थे. दोनों के इस तरह गायब हो जाने पर गांव में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया. सभी दबी जुबान से कह रहे थे कि दोनों गांव से भाग गए हैं. अब कहीं जा कर शादी कर लेंगे. कोई कह रहा था कि आरती सतीश पर जान छिड़कती थी. 2 साल से चल रहे उन के प्रेम प्रसंग के बारे में कौन नहीं जानता. जितने मुंह उतनी बातें.

घर वालों ने पुलिस को क्यों उलझाया

इस जानकारी के बाद पुलिस आरती के घर पहुंची. घर पर आरती के पिता कृपाराम चौरसिया और भाई राघवराम चौरसिया मिले. आरती के घर वाले शांति से अपने घर पर बैठे थे. आरती के पिता कृपाराम से एसएचओ ने आरती के बारे में पूछताछ की.

पहले तो उन लोगों ने पुलिस को अपनी बातों में उलझाया. कई तरह की बातें बनाईं. कृपाराम चौरसिया ने बताया कि गांव का सतीश चौरसिया उन की बेटी आरती को बहलाफुसला कर रात को अपने साथ भगा ले गया है. जिस से गांव में उन की बहुत बदनामी हो रही है.

तब एसएचओ सत्येंद्र वर्मा ने कहा कि आप लोग दोनों की तलाश क्यों नहीं कर रहे? अब तक थाने में रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं कराई?

बापबेटे इस बात पर बगलें झांकने लगे. अपनी बातों से पुलिस को उन्होंने हरसंभव उलझाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस के तर्कों के आगे उन की एक नहीं चली.

पुलिस को पहले ही इस मामले में मुखबिर से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल गई थी. सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स से यह पता चल गया था कि रात को सतीश आरती के घर गया था.

पुलिस ने अनहोनी का शक होने पर कृपाराम व उस के बेटे राघवराम को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने दोनों से कहा, ”सीधेसीधे सच बता दो, नहीं तो पुलिस फिर अपने तरीके से पूछेगी.’’

तब दोनों कहने लगे कि आरती की कई दिनों से तबियत खराब चल रही थी. हम लोग इलाज के लिए उसे अयोध्या ले जा रहे थे. रास्ते में उस की मौत हो गई. तब हम ने अयोध्या में ही उस का अंतिम संस्कार कर दिया. सतीश के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.

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एसपी अंकित मित्तल

बापबेटे पलपल में बयान बदल रहे थे. तब पुलिस ने दोनों से सख्ती की इस पर वे टूट गए और सतीश और आरती की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.  इस के बाद एसएचओ एएसपी शिवराज व सीओ शिल्पा वर्मा को घटना से अवगत करा दिया. दोनों पुलिस अधिकारी गांव पहुंच गए. दोनों ने पूछताछ कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी एसपी अंकित मित्तल को दी.

बीता वक़्त वापिस नहीं आता

बदचलन बीवी और दगाबाज दोस्त

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना बिछवां के गांव मधुपुरी के रहने वाले परशुराम का परिवार बढ़ने से खर्च तो बढ़ गया था, लेकिन कमाई उतनी की उतनी ही थी. पतिपत्नी थे ही, 3-3 बच्चों की पढ़ाईलिखाई, कपड़ेलत्ते और खानाखर्च अब खेती की कमाई से पूरा नहीं होता था. गांव में हर कोशिश कर के जब इस समस्या का कोई हल नहीं निकला तो उस ने किसी शहर जाने की सोची.

गांव के तमाम लोग दिल्ली में रहते थे. उन की माली हालत परशुराम को ठीकठाक लगती थी, इसलिए उस ने सोचा कि वह भी दिल्ली चला जाएगा. उस ने अपने एक दोस्त से बात की और दिल्ली आ गया. यह करीब 10 साल पहले की बात है. दोस्त की मदद से उसे दिल्ली में एक एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. लेकिन कुछ दिनों बाद उस ने वह नौकरी छोड़ दी और अपने एक परिचित के यहां गाजियाबाद चला गया. क्योंकि वहां ज्यादा पैसे की नौकरी मिल रही थी.

गाजियाबाद की जिस कंपनी में परशुराम नौकरी करता था, उसी में खोड़ा गांव का रहने वाला भारत सिंह भी नौकरी करता था. एक साथ नौकरी करने की वजह से दोनों की अक्सर मुलाकात हो जाती थी. कुछ ही दिनों में दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई. भारत सिंह की शादी नहीं हुई थी, इसलिए उसे कोई चिंताफिक्र नहीं रहती थी. वह मौज से रहता था.

परशुराम की बीवी और बच्चे गांव में रहते थे, इसलिए उन्हें ले कर वह परेशान रहता था. उस ने सोचा कि अगर बीवीबच्चे साथ रहें तो उसे खानापानी भी समय से मिल जाएगा और वह निश्चिंत भी रहेगा. शहर में रह कर बच्चे भी ठीक से पढ़ लेंगे. उस ने भारत सिंह से किराए का मकान दिलाने को कहा तो उस ने अपने पड़ोस में उसे मकान दिला दिया.

मकान मिल गया तो परशुराम अपना परिवार ले आया. भारत सिंह परशुराम का दोस्त था, दूसरे उसी ने उसे मकान दिलाया था, इसलिए परशुराम ने उसे एक दिन अपने घर खाने पर बुलाया. खाना खाने के बाद भारत सिंह खाने की तारीफ करने लगा तो परशुराम की पत्नी शारदा ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप मेरे खाने की इतनी तारीफ क्यों कर रहे हैं?’’

‘‘क्यों…?’’ भारत सिंह ने पूछा.

‘‘कहते हैं, खाने वाला खाने की तारीफ इसलिए करता है कि उसे फिर से खाने पर बुलाया जाए.’’

‘‘लेकिन मैं तो बिना बुलाए ही आने वालों में हूं. आप को एक बात बताऊं भाभीजी, आदमी बड़ा चटोरा होता है. जहां का खाना उस के मुंह लग जाता है, वह वहां बारबार जाता है. मेरे मुंह आप का बनाया खाना लग गया है, इसलिए जब मन होगा, मैं यहां आ जाऊंगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

शारदा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यह भी तो आप का ही घर है. जब मन हो, आ जाना.’’

‘‘भाभीजी, आप तो जानती हैं, मैं अकेला आदमी हूं. ज्यादातर बाहर ही खाता हूं. घर का खाना इसी तरह कभीकभार ही नसीब होता है. इसलिए जब कभी इस तरह का खाना मिलता है तो इच्छा तृप्त हो जाती है.’’ भारत सिंह ने थोड़ा उदास हो कर कहा.

‘‘मैं तो कहूंगी, तुम भी शादी कर लो. रोज दोनों जून घर का खाना खाओ. इच्छा भी तृप्त होगी और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा. अपने दोस्त को देखो और खुद को देखो. खैर, जब तक खाना बनाने वाली नहीं आती, तब तक जब कभी घर का खाना खाने का मन हो, अपने दोस्त के साथ चले आना. इतने लोगों का खाना बनाती ही हूं, तुम्हारा भी बना दूंगी.’’ शारदा ने कहा.

उस दिन के बाद भारत सिंह परशुराम के यहां अक्सर जाने लगा. अकेले होने की वजह से भारत सिंह के ऊपर कोई जिम्मेदारी तो थी नहीं, इसलिए वह ठाठ से रहता था. कभीकभार पार्टी भी कर लेता था. उस पार्टी में परशुराम को भी शामिल करता था. पीनेपिलाने के बाद खाने की बात आती तो परशुराम कहता, ‘‘अब बाहर खाना खाने कहां जाओगे. चलो तुम्हारी भाभी ने खाना बनाया ही होगा, वहीं खा लेना.’’

इसी तरह आनेजाने में स्त्रीसुख से वंचित भारत सिंह को शारदा अच्छी लगने लगी. इस के बाद वह कुछ ज्यादा ही परशुराम के यहां आनेजाने लगा. वह जब भी परशुराम के यहां आता, खाली हाथ नहीं आता. खानेपीने की ढेर सारी चीजें ले कर आता. वह बातें तो अच्छीअच्छी करता ही था, शारदा पर दिल आ जाने की वजह से उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखने लगा था, इसलिए शारदा को उस का आना अच्छा लगने लगा था.

परशुराम में एक आदत यह थी कि वह शराब देख कर पागल हो जाता था. अगर उसे शराब मिल जाए तो वह तब तक पीता रहता था, जब तक बेहोश नहीं हो जाता था. उस स्थिति में भारत शारदा से कहता, ‘‘भाभी, मैं इसे मना करता हूं कि तू इतनी मत पिया कर, लेकिन यह मानता ही नहीं. पहली बात तो इसे पीनी ही नहीं चाहिए. क्योंकि यह बालबच्चों वाला है, इस के ऊपर तमाम जिम्मेदारियां हैं. रही बात मेरी तो मेरे ऊपर कौन जिम्मेदारी है. फिर मेरा कोई मन बहलाने वाला भी तो नहीं है. अकेले में घुटन सी होने लगती है तो पी लेता हूं. शराब पीने से जल्दी नींद आ जाती है.’’

‘‘अगर कोई मन बहलाने वाला मिल जाए तो आप पीना छोड़ दोगे? क्योंकि आप नहीं पिएंगे तो यह भी नहीं पिएंगे. यह पीते तो आप के साथ ही हैं,’’ शारदा ने कहा.

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं रोज कहां पीता हूं. मैं तो साथ मिलने पर ही पीता हूं. अगर आप कह दें तो मैं बिलकुल शराब नहीं पीऊंगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

‘‘शराब कोई अच्छी चीज तो है नहीं, मैं तो यही चाहूंगी कि न आप पिएं और न अपने दोस्त को पिलाएं. यही पैसा किसी और चीज में खर्च करें, जो आप लोगों के काम आए.’’ शरदा ने समझाते हुए कहा.

शारदा को प्रभावित करने के लिए भारत सिंह ने सचमुच शराब पीना छोड़ दिया. लेकिन परशुराम नहीं माना. एक दिन शराब पी कर परशुराम लुढ़का पड़ा था तो भारत सिंह ने कहा, ‘‘भाभी, ऐसे पति से क्या फायदा, जो पत्नी के सुखदुख, हंसीखुशी का खयाल न रखे.’’

‘‘क्या करूं भइया, सब भाग्य की बात है. मेरे भाग्य में ऐसा ही पति लिखा था. एक आप हैं. मैं आप की कोई नहीं, फिर भी आप मेरा इतना खयाल रखते हैं. जिस की खयाल रखने की जिम्मेदारी है, वह शराब पी कर लुढ़का पड़ा है.’’

‘‘भाभी, ऐसा मत कहो कि मैं आप का कोई नहीं. कुछ रिश्ते बनाए जाते हैं तो कुछ अपनेआप बन जाते हैं. अपने आप बने रिश्ते भी कम मजबूत नहीं होते. बात तो मन से मानने वाली है. आप भले ही मुझे अपना न मानें, लेकिन मैं आप को अपनी मानता हूं. आप मुझे कितना मानती हैं, यह आप जानें,’’ भारत सिंह ने शारदा की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘आप को क्या लगता है? मैं भी आप को उतना ही मानती हूं, जितना आप मानते हैं. अब आप समझ न पाएं तो मैं क्या करूं.’’ शारदा ने नजरें नीची कर के कहा.

शारदा का इतना कहना था कि भारत सिंह ने उस का एक हाथ थाम लिया. उसे सीने से लगा कर कहा, ‘‘आज लगा कि मेरा भी कोई है. अब मैं अकेला नहीं रहा. भाभी, सही बात तो यह है कि मैं आप को अपनी समझने लगा हूं. इधर कुछ दिनों से आप हर पल मेरे खयालों में बसी रहती हैं. मुझे उम्मीद है कि आप मेरे दिल की बात समझेंगी.’’

‘‘मैं आप के दोस्त की पत्नी हूं,’’ शारदा ने अपना हाथ छुड़ाए बगैर कहा, ‘‘क्या यह सब अच्छा लगेगा.’’

‘‘भाभी, अच्छा लगे या खराब, अब मैं आप के बिना नहीं रह सकता. अगर आप ने मना कर दिया तो कल से मेरा भी वही हाल होगा, जो परशुराम का है. क्योंकि आप नहीं मिलीं तो मैं चैन से नहीं रह पाऊंगा. इस के बाद बेचैनी दूर करने के लिए शराब का ही सहारा लेना होगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

भारत सिंह के स्पर्श ने शारदा की धड़कन बढ़ा दी थी. इन बातों से लगा कि अब उस का खुद पर काबू नहीं रह गया है. वह विरोध तो पहले ही नहीं कर रही थी, भारत सिंह की बातें सुन कर नजरें झुका लीं. उस की इस अदा से उसे समझते देर नहीं लगी कि शारदा भी वही चाहती है जो वह चाहता है.

दरअसल, शारदा का दिल भारत सिंह पर तभी डोल गया था, जब उसे पता चला था कि उस ने शादी नहीं की. वह अच्छाखासा कमाता था, जबकि खाने वाला कोई नहीं था. शारदा ने सोचा था कि अगर इसे वह फांस ले तो वह अपनी कमाई उस पर लुटाने लगेगा. और सचमुच उस ने उसे अपने रूप के जादू से फांस लिया था.

भारत सिंह ने शारदा से कहा था कि वह उन लोगों में नहीं है, जो मजा ले कर चले जाते हैं. वह उस के हर सुखदुख में उस का साथ देगा. भारत सिंह की इन्हीं कसमों और वादों पर विश्वास कर के शारदा ने उसे अपनी देह सौंप दी थी.

भारत सिंह से संबंध बनाने के बाद उदास और परेशान रहने वाली शारदा में अपनेआप बदलाव आने लगे थे. उस का रहनसहन भी काफी बदल गया था. भारत सिंह उसे ढंग के कपड़ेलत्ते तो ला कर देता ही था, खर्च के लिए पैसे भी देता था. इसलिए उस ने परशुराम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया था. अब वह उस से कुछ मांगती भी नहीं थी.

पत्नी में आए बदलाव से परशुराम हैरान तो था, लेकिन वजह उस की समझ में नहीं आ रही थी. जब बदलाव कुछ ज्यादा ही दिखाई देने लगे तो उस ने पत्नी पर नजर रखनी शुरू की. तब उस ने देखा कि पत्नी उस के दोस्त से कुछ ज्यादा घुलमिल ही नहीं गई, बल्कि उस का खयाल भी उस से ज्यादा रखने लगी है.

परशुराम इतना भी बेवकूफ नहीं था, जो इस का मतलब न समझता. बदलाव का मतलब समझते ही उस ने शारदा से कहा, ‘‘इधर भारत सिंह कुछ ज्यादा ही हमारे घर नहीं आने लगा है?’’

‘‘वह तुम्हारा दोस्त है, तुम्हीं उसे घर लाते हो. अगर कभी तुम्हारे न रहने पर आ जाता है तो उसे घर में बैठाना ही नहीं पड़ेगा, बल्कि चायपानी भी पिलानी पड़ेगी. अब इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ शारदा ने तुनक कर कहा.

शारदा ने पति से बहाना तो बना दिया, लेकिन इस के बाद वह खुद भी सतर्क हो गई और भारत सिंह को भी सतर्क कर दिया. पर ऐसे संबंध कितने भी छिपाए जाएं, छिपते नहीं हैं. कुछ पड़ोसियों ने भी जब उस की अनुपस्थिति में भारत सिंह के घर आने की शिकायत की तो परशुराम छुट्टी ले कर पत्नी की चौकीदारी करने लगा.

भारत सिंह से भी उस ने कई बार कहा कि वह जो कर रहा है, वह ठीक नहीं है. तब भारत सिंह ने हंस कर यही कहा कि जैसा वह सोच रहा है, वैसा कुछ भी नहीं है. वह बेकार ही शक करता है. शारदा को वह भाभी कहता ही नहीं है, बल्कि उसी तरह सम्मान भी देता है.

पत्नी भी कसम खा रही थी और दोस्त भी. जबकि परशुराम को अब तक पूरा विश्वास हो गया था कि दोनों के बीच गलत संबंध है. लेकिन उस के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं था कि वह दोनों के सामने दावे के साथ कह सकता. लेकिन जब एक दिन उस ने शारदा के बक्से में नईनई साडि़यां देखी तो हैरानी से पूछा, ‘‘इतनी साडि़यां तुम्हारे पास कहां से आईं?’’

‘‘तुम ने तो ला कर दीं नहीं, फिर क्यों पूछ रहे हो?’’ शारदा ने कहा.

‘‘मैं यही तो जानना चाहता हूं कि तुम्हें ये साडि़यां किस ने ला कर दी हैं?’’

‘‘मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो. यही न कि ये साडि़यां भारत सिंह ने ला कर दी हैं?’’ शारदा थोड़ा तेज आवाज में बोली, ‘‘अगर उसी ने ला कर दी हैं तो तुम क्या कर लोगे?’’

परशुराम सन्न रह गया. वह समझ गया कि यह लेनेदेने का खेल इस तरह चल रहा है. उस ने पहले तो शारदा की जम कर पिटाई की, उस के बाद घर का सामान समेटने लगा. शारदा ने पूछा, ‘‘यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘हम गांव चल रहे हैं.’’ परशुराम ने कहा.

परशुराम ने कहा ही नहीं, बल्कि जहां नौकरी करता था, वहां से अपना हिसाबकिताब करा कर गांव चला गया. गांव में परशुराम तो अपने कामधाम में लग गया, लेकिन शारदा भारत सिंह के लिए बेचैन रहने लगी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने उसे फोन किया कि वह उस के बिना नहीं रह सकती.

भारत सिंह भी उस के लिए उसी की तरह तड़प रहा था, इसलिए उस ने उसे आने का आश्वासन ही नहीं दिया, बल्कि उस से मिलने उस के गांव पहुंच भी गया. परशुराम से मिल कर उस ने कहा कि उस से जो गलती हुई है, उस के लिए वह माफी मांगने आया है.  इस तरह होशियारी से एक बार फिर भारत सिंह ने परशुराम की सहानुभूति प्राप्त कर ली. इस के बाद उस का जब मन होता, वह परशुराम से मिलने के बहाने गांव पहुंच जाता.

शुरूशुरू में तो परशुराम सतर्क रहा, लेकिन जब उसे लगा कि भारत सिंह सचमुच सुधर गया है तो वह उस की ओर से लापरवाह हो गया. इस के बाद शारदा और भारत सिंह फिर मिलने लगे.  गांव वालों को शक हुआ तो उन्हें भारत सिंह का आना खराब लगने लगा. लोगों ने परशुराम को टोका तो उसे होश आया. भारत सिंह को ले कर गांव में लोग परशुराम के बेटों का भी मजाक उड़ाते थे. इन सब बातों से दुखी हो कर परशुराम ने गुस्से से कहा, ‘‘भारत, तुम क्यों हमारे पीछे हाथ धो कर पड़ गए हो. क्यों आते हो हमारे घर, आखिर हमारा तुम्हारा रिश्ता क्या है?’’

भारत सिंह तो कुछ नहीं बोला, पर पति की इस बात पर शारदा आपा खो बैठी. उस ने कहा, ‘‘घर आए मेहमान से कोई इस तरह बात करता है. अगर यह हमारे यहां आता है तो क्या गलत करता है. कान खोल कर सुन लो, यह इसी तरह आता रहेगा, देखती हूं कौन रोकता है.’’

शारदा के तेवर देख कर परशुराम डर गया, लेकिन दोनों की यह बातचीत सुन कर पड़ोसी आ गए. उन्होंने भारत सिंह को लताड़ा तो उस ने वहां से चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन परेशानी यह थी कि शारदा उस के बिना रह नहीं सकती थी, इसलिए जब उसे पता चला कि 15 मई को परशुराम किसी शादी में जाने वाला है तो उस ने फोन कर के यह बात भारत सिंह को बता दी.

15 मई को परशुराम दोनों बेटों के साथ शादी में चला गया. उस के जाते ही भारत सिंह गांव वालों की नजरें बचा कर शाम को उस के घर जा पहुंचा. प्रेमी के लिए शारदा ने बढि़या खाना पहले से ही बना कर रख लिया था. पहले दोनों ने खाना खाया, उस के बाद मौजमस्ती में लग गए.

दोनों मस्ती में इस तरह डूब गए कि उन्हें समय का पता ही नहीं चला. रात 1 बजे के करीब परशुराम लौटा तो दोनों बेटे घेर में सोने चले गए, जबकि परशुराम ने हाथ डाल कर बाहर से दरवाजे की कुंडी खोली और घर के अंदर आ गया. अंदर आंगन में पड़ी चारपाई पर शारदा और भारत सिंह रंगरलियां मना रहे थे.

पत्नी और दोस्त को उस हालत में देख कर परशुराम का खून खौल उठा. कोने में रखी लाठी उठा कर वह दोनों को पीटने लगा. उस की इस पिटाई से दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए. चीखपुकार सुन कर पड़ोसी आ गए. मामला गंभीर होते देख परशुराम भाग खड़ा हुआ.

शारदा और भारत सिंह की हालत गंभीर थी. गांव वालों ने दोनों को जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें सैफई रैफर कर दिया.

18 मई को शारदा ने दम तोड़ दिया. गांव वालों के अनुसार शारदा की मौत की सूचना उन्होंने थाना बिछवां पुलिस को दे दी थी. लेकिन शाम तक पुलिस नहीं आई तो उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.  जब कहीं से शारदा की मौत की जानकारी पुलिस अधीक्षक श्रीकांत को हुई तो उन्होंने थाना बिछवां के थानाप्रभारी वी.पी. सिंह तोमर को फटकार लगा कर इस मामले की तत्परता से जांच करने को कहा.

थाना बिछवां पुलिस गांव मधुपुरी पहुंची तो शारदा की चिता ठंडी पड़ चुकी थी. इस के बाद चौकीदार की ओर से परशुराम के खिलाफ अपराध संख्या 119/2014 पर भादंवि की धारा 308, 304, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और उस की तलाश में जगहजगह छापेमारी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप परशुराम बसअड्डे से पकड़ में आ गया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने कहा कि शारदा मर गई अच्छा ही हुआ. भारत सिंह भी मर जाता तो और अच्छा होता. उस ने जो किया है, उस से बदचलन बीवियों और धोखेबाज दोस्तों को सबक मिलेगा.

पूछताछ के बाद पुलिस ने परशुराम को मैनपुरी की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. भारत सिंह का इलाज चल रहा था. थानाप्रभारी वी.पी. सिंह तोमर का तबादला हो चुका था. अब इस मामले की जांच नए थानाप्रभारी राजेंद्र सिंह कर रहे थे.

चाची का इश्किया भतीजा

बीता वक़्त वापिस नहीं आता – भाग 3

पुलिस की सूचना पर रोक्सेन भी वहां पहुंच गई थी. बेटी की लाश देख कर उस का कलेजा फटा जा रहा था. आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. वह उस पल को कोस रही थी, जब उस ने वाकर पर विश्वास किया था. उस ने उस के साथ विश्वासघात ही नहीं किया, उस की जिंदगी वीरान कर दी थी. पुलिस ने वाकर की लाश को नीचे उतारा. उस के कपड़ों की तलाशी ली गई, तो पैंट की जेब से एक कागज निकला.

उसे खोला गया, तो वह सुसाइड नोट था. वाकर ने उस में लिखा था, ‘‘मैं इंसान नहीं, जानवर से भी गया गुजरा हूं. मैं ने रोक्सेन से प्यार किया. मेरा प्यार सच्चा था. उस ने भी मुझ पर भरोसा किया और मुझे अपना सब कुछ मान लिया. उस ने मुझे दिल से पति माना, तो मैं ने भी उसे पत्नी माना.

‘‘उस के बच्चों को अपना बच्चा मान लिया. मैं ने पूरी कोशिश की कि रोक्सेन को दिया वादा निभाऊं और स्टेसी एवं रौबर्ट का पिता बनूं. लेकिन मैं अपना वादा निभा नहीं पाया. मैं ने जो किया, उस से रोक्सेन को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. इसलिए अपने गुनाह की सजा मैं ने खुद चुन ली.

‘‘स्टेसी को मैं बेटी की तरह प्यार करता था. मगर उस के शरीर में आए बदलावों से मेरी नीयत खराब हो गई. मैं उसे बेटी नहीं, औरत समझने लगा. मैं एकांत में उस से छेड़छाड़ करने लगा. जिस का वह कोई विरोध नहीं करती थी. शायद वह उसे पिता का स्नेह समझती थी. रोक्सेन ने मेरी हरकत देख ली और मेरी नीयत को समझ गई. उस ने मुझे टोका, तो एक बार फिर मैं ने वादा किया कि कभी कोई गलत काम नहीं करूंगा.

‘‘लेकिन मैं अपने आप को रोक नहीं सका. कल स्टेसी ने लौरी पर चलने की जिद की, तो मैं खुश हो गया. मैं ने ठान लिया कि हर कीमत पर आज अपनी चाहत पूरी कर लूंगा. मैं ने जल्दीजल्दी माल सप्लाई किया और लौरी को जंगल में ले गया. तब तक अंधेरा हो चुका था. मैं ने रोक्सेन को फोन किया कि हम लौट नहीं पाएंगे. स्टेसी से मैं ने कहा कि सुबह उसे एक नई जगह ले चलूंगा और उस की पसंद के कपड़े खरीद कर दूंगा.

‘‘मेरी नीयत से बेखबर स्टेसी बेहद खुश थी. खाना मैं साथ में पैक करवा कर लाया था. अपने लिए शराब की बोतल भी खरीद ली थी. मैं शराब पीने बैठ गया. स्टेसी लौरी में टीवी देख रही थी. मुझे नशा चढ़ा, तो मेरी आंखों के सामने स्टेसी का जिस्म घूमने लगा. मैं खुद पर नियंत्रण खो बैठा और जो नहीं करना चाहिए था, वह कर डाला. मेरे वहशीपन से स्टेसी बेहोश हो गई थी.

‘‘स्टेसी मुझ से छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ा रही थी. उस समय मैं शैतान बन गया था. मनमानी करने के बाद नशा कम हुआ, तो मुझे एहसास हुआ कि मैं ने बहुत बड़ा गुनाह कर डाला है. अगर स्टेसी जिंदा रही, तो मुझे जेल जाना पड़ेगा. जेल जाने के डर से मैं ने एक गुनाह और कर डाला. उसे गला घोंट कर मार डाला.

इस के बाद रोक्सेन को दिए वादे की याद आई. अब मुझे अपने गुनाह पर पछतावा होने लगा. तब मैं ने सोचा कि रोक्सेन मेरे मुंह पर नफरत से थूक कर मुझे जेल भिजवाए, उस से पहले ही मैं खुद को क्यों न खत्म कर दूं. मेरी मौत का जिम्मेदार मेरे अंदर का शैतान है. मुझे दुख है कि मैं ने एक पल के सुख के लिए अपने प्यार और अपनी बेटी को खो दिया. रोक्सेन, हो सके तो मेरी लाश पर थूक देना. मैं इसी के काबिल हूं- वाकर.’’

रोक्सेन ने वाकर की लाश पर थूका तो नहीं, लेकिन उसे नफरत से देखते हुए चीखी, ‘‘मैं ने तुम पर भरोसा कर के अपना सब कुछ सौंप दिया था. मैं तुम्हें अपना चार्मिंग प्रिंस समझती थी, लेकिन तुमने…? तुम मुझे इतना प्यार करते थे, मेरे बच्चों का इतना खयाल रखते थे. तुम ऐसा भी कर सकते थे, विश्वास नहीं होता. तुम गंदे आदमी निकले. अच्छा किया जो आत्महत्या कर ली, वरना मैं तुम्हारी हत्या करने से न हिचकती.’’

पुलिस ने 5 जून, 2013 को पूरा प्रकरण कोर्ट में पेश किया, जहां से इस केस की फाइल बंद कर देने का हुक्म दिया गया. आखिर सजा किसे दी जाती, दुष्कर्मी ने खुद ही मौत को गले लगा लिया था.  उस समय कोर्ट में रोक्सेन भी मौजूद थी. उसे तसल्ली देने के लिए उस का पूर्व पति कोरोनट और बेटी एमा हेमंड भी आई थी. दोनों उस समय भी उस के साथ थे, जब पोस्टमार्टम के बाद स्टेसी की लाश को कब्र में दफन किया जा रहा था.

फूल के साथ रोक्सेन के आंसू भी स्टेसी की कब्र पर पड़े थे, जो कह रहे थे कि कहीं न कहीं इस में वह खुद भी गुनहगार है, अपनी इच्छा पूरी करने के लिए अगर वह वाकर से प्यार न करती, तो आज उस की बेटी की यह हालत न होती. लेकिन अब उस के पास पछताने के अलावा कुछ भी नहीं था. सच है, बीता वक्त कभी वापस नहीं आता.

रोक्सेन ने वाकर पर आंखें मूंद कर विश्वास किया, यह उस की सब से बड़ी भूल थी. ऐसे बहुत कम मामले होते हैं, जिन में प्रेमी या सौतेले पिता अपनी प्रेमिका या दूसरी पत्नी के बच्चों, खास कर बेटियों को दिल से अपना बेटा या बेटी मानते हैं.

बात अगर शादीशुदा महिलाओं के वाचाल किस्म के प्रेमियों की करें, तो उन की निगाह प्रेमिका की जवान हो रही बेटी पर जाते देर नहीं लगती. स्टेसी के साथ भी यही हुआ.

बात प्रेमी या दूसरे पति की ही नहीं, बल्कि बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वाले 80 प्रतिशत लोग रिश्तेदार या करीबी लोग ही होते हैं. ऐसे लोगों से सतर्क रहना जरूरी है. खासकर जब रिश्ते स्वार्थों पर टिके हों.

बीता वक़्त वापिस नहीं आता – भाग 2

इस के बाद उन की मुलाकातें होने लगीं. वे जब भी मिलते, घंटों एकदूसरे के साथ रहते. रोक्सेन को वाकर की नजदीकी बेहद सुकून देती थी. उस के मिलने से मन तो तृप्त हो जाता था, लेकिन तन की प्यास वैसी ही बनी रहती थी. वाकर एकांत में रोक्सेन के किसी अंग को छू लेता या होंठों को चूम लेता, तो उस की देह में आग सी लग जाती. मन करता कि वाकर की बांहों में समा जाए और उस से कहे कि वह उस के प्यासे तन को तृप्त कर दे. लेकिन वह ऐसा इसलिए नहीं कह पाती थी, क्योंकि वह जगह इस के लिए सुरक्षित नहीं होती थी.

पति की बेरुखी से विचलित वाकर की नजदीकी पा कर रोक्सेन ज्यादा दिनों तक अपनी इच्छा दबाए नहीं रह सकती थी. उस ने वाकर से सीधे तो नहीं कहा, लेकिन एक दिन घुमाफिरा कर अपने मन की बात कह ही दी, ‘‘वाकर, कहीं ऐसी जगह चलते हैं, जहां हम दोनों के अलावा कोई और न हो.’’

‘‘ठीक है, हम कल सुबह किंगस्टन झील पर पिकनिक मनाने चलते हैं.’’ वाकर ने रोक्सेन के दिल की मंशा भांप कर कहा.

अगले दिन पति काम पर चला गया और बच्चे स्कूल चले गए, तो रोक्सेन वाकर के साथ पिकनिक पर निकल गई. शहर से किंगस्टन झील लगभग 30 किलोमीटर दूर थी. वाकर अपनी लौरी से रोक्सेन को वहां ले गया. किंगस्टन एक छोटी सी झील थी. उस के दोनों ओर छोटेबड़े पहाड़ थे. वहां इक्कादुक्का लोग ही नजर आ रहे थे. वे भी प्रेमी युगल थे, जो इन्हीं की तरह एकांत की तलाश में यहां आए थे. रोक्सेन और वाकर भी एक छोटी सी पहाड़ी के पीछे जा पहुंचे. वहां से झील के आसपास का नजारा तो देखा जा सकता था, लेकिन उन तक किसी और की नजर नहीं पहुंच सकती थी. इसी का फायदा उठा कर वे एकदूसरे की बांहों में समा गए.

एकांत का पहला दिन रोक्सेन और वाकर के लिए यादगार बन गया. इस के बाद तो उन का मिलना आम हो गया. वाकर बेखौफ रोक्सेन के घर भी आनेजाने लगा. लेकिन वह इस बात का ध्यान जरूर रखता था कि उस का पति कोरोनट घर पर न हो. वह रोक्सेन की बेटियों की भी वह परवाह नहीं करता था. बेटा रौबर्ट अभी छोटा ही था. रोक्सेन को भी अब कोई खौफ नहीं था. उस ने बच्चों से वाकर का परिचय कराते हुए कहा था कि ये तुम्हारे अंकल हैं. वाकर जब भी आता था, बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर आता था, इसलिए बड़ी बेटी को छोड़ कर बाकी के दोनों बच्चे उस से खुश रहते थे. वे उस के आने का इंतजार भी करते थे.

धीरेधीरे रोक्सेन वाकर के इतने नजदीक आ गई कि उसे पति कोरोनट फालतू की चीज लगने लगा. अब वह वाकर को ही अपना पति मानने लगी थी. वाकर भी उस से सिर्फ शारीरिक सुख ही नहीं हासिल करता था, बल्कि उस की और उस के बच्चों की हर जरूरत का भी पूरा खयाल रखता था. यही वजह थी कि रोक्सेन को अब पति कोरोनट की जरा भी परवाह नहीं रह गई थी. वह वाकर को उस के सामने ही घर बुलाने लगी थी.

कोरोनट और उस की बड़ी बेटी को वाकर का आना बिलकुल पसंद नहीं था. क्योंकि रोक्सेन और उस के बातव्यवहार से उसे अंदाजा हो गया था कि इन के बीच गलत संबंध है. फिर एक दिन उस ने उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देख भी लिया. कोरोनट ने इस पर ऐतराज जताया, तो रोक्सेन ने उसे खरीखोटी सुनाते हुए कहा, ‘‘तुम न तो पेट की आग ठीक से बुझा पाते हो और न तन की. अब ऐसे पति से तो बिना पति के ही ठीक हूं. मैं ने अपना रास्ता खोज लिया है. अच्छा यही होगा कि तुम भी अपना रास्ता खोज लो. अब हम एक राह पर एक साथ नहीं चल सकते.’’

‘‘बच्चों का तो खयाल करो?’’ कोरोनट ने रोक्सेन को समझाना चाहा.

‘‘तुम्हें उन की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं जल्दी ही उन्हें वाकर को डैडी कहना सिखा दूंगी.’’ रोक्सेन ने तल्खी से कहा.

कोरोनट को लगा कि अब रोक्सेन से उम्मीद करना बेकार है. वह अपनी राह पर इतनी आगे बढ़ चुकी है कि उस का लौटना मुमकिन नहीं है. इसलिए अब उसे अपना रास्ता अलग कर लेना चाहिए. कोरोनट ने रोक्सेन को तलाक दे कर उसे अपनी जिंदगी से अलग कर दिया. मां की हरकतों से नाखुश बड़ी बेटी एमा हेमंड भी बाप के साथ चली गई थी. रोक्सेन को इस का जरा भी अफसोस नहीं हुआ, क्योंकि वह तो यही चाहती थी. उस की मुराद पूरी हो गई थी. अब उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं रहा, तो वाकर का अधिकतर समय उसी के घर गुजरने लगा.

जल्दी ही रोक्सेन की बेटी स्टेसी लारैंस और बेटे रौबर्ट ने वाकर को पिता के रूप में स्वीकार कर लिया था. रौबर्ट 4 साल का था, तो स्टेसी 9 साल की. संयोग से समय से पहले ही स्टेसी के शरीर में बदलाव आने लगा था. इसी बदलाव की वजह से उसे बनियान की जगह ब्रा पहननी पड़ रही थी. हारमोंस की गड़बड़ी की वजह से इसी उम्र में उसे मासिक भी शुरू हो गया था. रोक्सेन जो अब तक उसे बच्ची समझती थी, ऊंचनीच समझाने लगी. कुछ भी रहा हो, स्टेसी बेहद समझदार थी. अच्छेबुरे का उसे पूरा खयाल था.

स्कूल की छुट्टी के दिन अकसर स्टेसी वाकर की लौरी में बैठ कर घूमने चली जाती थी. लेकिन रोक्सेन को यह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह बेटी को रोकती थी. क्योंकि वह औरत थी और मर्दों की निगाहों को भलीभांति पहचानती थी. उसे वाकर की निगाहों में खोट नजर आने लगा था.

यही वजह थी कि वह वाकर पर नजर रखने लगी थी. ऐसे में ही एक दिन उस ने वाकर को स्टेसी के शरीर से ऐसी छेड़छाड़ करते देख लिया, जो एक पिता नहीं, मर्द कर सकता है. उस ने तुरंत वाकर को टोका, ‘‘वाकर, तुम्हें मैं ने अपना मन ही नहीं, तन भी सौंपा है. तुम्हें वे अधिकार दिए हैं, जो सिर्फ पति को दिए जाते हैं. तुम ने भी वादा किया है कि मेरे बच्चों को अपने बच्चे समझ कर वह सब दोगे, जो एक पिता का कर्तव्य होता है. लेकिन अब तुम्हारी नीयत ठीक नहीं दिख रही है.’’

‘‘ऐसा नहीं है रोक्सेन. मैं न वादे को भूला हूं और न कभी अपने फर्ज भूलूंगा. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा, जिस से तुम्हें आहत होना पड़े. अगर गलती से मुझ से कुछ गलत हो गया है तो मैं तुम्हें अपना मुंह नहीं दिखाऊंगा.’’ वाकर ने एक बार फिर रोक्सेन से वादा किया.

गलतफहमी दूर हुई, तो रोक्सेन ने वाकर को बांहों में भर लिया, ‘‘मैं ने तुम पर पूरा भरोसा किया है और करती रहूंगी.’’

इस के बाद रोक्सेन ने स्टेसी को छूट दे दी. वह वाकर के साथ घूमने जाने लगी. उस का नईनई जगहों पर घूमना तो होता ही, वाकर उसे तरहतरह की चीजें भी खिलाता. एक तरह से स्टेसी की पिकनिक हो जाती.

3 अप्रैल, 2013 को भी स्टेसी वाकर के साथ लौरी पर घूमने गई थी. वाकर को कई जगह माल सप्लाई करना था. फिर भी उसे शाम तक लौट आना था. लेकिन वह नहीं लौटा, तो रोक्सेन को चिंता हुई. वह फोन करने ही जा रही थी कि वाकर का फोन आ गया. उस ने कहा कि काम की वजह से वह आज लौट नहीं पाएगा, कल आएगा. लेकिन वह अगले दिन भी नहीं लौटा, तो रोक्सेन को वाकर और बेटी स्टेसी की चिंता हुई. उस ने सैकड़ों बार फोन किया, लेकिन एक भी बार फोन नहीं उठा. मजबूर हो कर उस ने पुलिस को फोन किया.

पुलिस फौरन हरकत में आ गई. वाकर जिस कंपनी का माल सप्लाई करता था, वहां पता किया गया. जानकारी मिली कि उस की लौरी में सभी तरह की सुविधाएं हैं. उस में वायरलेस फोन भी लगा है, जो कंपनी से चलता था. वायरलेस औपरेटर से पुलिस ने लौरी की लोकेशन पता की. ट्रैकिंग डिवाइस से पता चला कि लौरी की लोकेशन वेस्ट मिडलैंड्स के जंगल की है. पुलिस वहां पहुंची. काफी ढूंढने पर जंगल के बीच खड़ी लौरी मिल गई. लौरी के अंदर का दृश्य चौंकाने वाला था. उस के अंदर स्टेसी की लाश पड़ी थी.

कमर के नीचे से वह निर्वस्त्र थी. वहां खून भी पड़ा था. देख कर ही लग रहा था कि स्टेसी के साथ जबरदस्ती की गई थी. कमर के नीचे के हिस्से पर वहशीपन के निशान स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. गरदन पर भी अंगुलियों के नीले निशान थे. दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी गई थी.

वाकर वहां नहीं था. अनुमान लगाया गया कि यह अमानवीय कृत्य वाकर ने ही किया होगा. वाकर की तलाश में पुलिस जंगल में फैल गई. लौरी से कुछ दूरी पर वाकर एक पेड़ से लटका मिल गया. शायद उस ने भी आत्महत्या कर ली थी.