Gangster : अधूरी रह गई डौन बनने की चाहत

Gangster : ‘‘है लो, एसएचओ कानूनगो साहब बोल रहे हैं?’’ मोबाइल पर आई काल पर किसी अनजान आदमी ने पूछा.

‘‘हां, मैं एसएचओ बोल रहा हूं.’’ फतेहपुर थाने के थानेदार मुकेश कानूनगो ने जवाब दिया.

‘‘एसएचओ साहब, आप के मतलब की एक सूचना है.’’ दूसरी ओर से काल करने वाले ने कहा.

‘‘आप कौन बोल रहे हो और सूचना क्या है?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘एसएचओ साहब, आप आम खाओ, पेड़ मत गिनो.’’ काल करने वाला बोला, ‘‘सूचना यह है कि बदमाश अजय चौधरी, जगदीप उर्फ धनकड़ और कैलाश नागौरी वगैरह फतेहपुर में मंडावा रोड स्थित बेसवा गांव के पास पर आ रहे हैं.’’

सूचना देने वाले ने अपनी बात कह कर बिना नाम, परिचय बताए फोन काट दिया. थानेदार कानूनगो ने पलट कर उसी नंबर पर काल की, लेकिन किसी ने काल रिसीव नहीं की.

यह बात बीते 6 अक्तूबर की रात 11 बजे के आसपास की है. उस समय राजस्थान में सीकर जिले के थाना फतेहपुर के थानेदार मुकेश कानूनगो अपने मातहतों को निर्देश दे कर रात की गश्त पर निकलने वाले थे. निकलने से कुछ देर पहले ही उन के मोबाइल पर यह काल आई थी.

कानूनगो को पता था कि अजय चौधरी गैंगस्टर है और कई बड़ी वारदातें कर चुका है. अजय को फेसबुक पर हथियारों के साथ फोटो डालने का शौक था. कुछ समय पहले अजय की हिस्ट्रीशीटर मनोज स्वामी से खटपट हो गई थी. उस ने मनोज स्वामी को देख लेने की धमकी दी थी. तभी से अजय उस की हत्या करने की फिराक में था.

मनोज ने पुलिस को अपनी जान पर मंडराते खतरे के बारे में बता दिया था. पुलिस ने बदमाशों की तलाश के लिए मनोज जैसी दिखने वाली स्कौर्पियो प्राइवेट गाड़ी किराए पर ले रखी थी. यह गाड़ी थाने के बाहर ही खड़ी थी.

दरअसल, पुलिस को अजय चौधरी और उस के साथियों के फतेहपुर में होने की सूचना 2-3 दिन से मिल रही थी. पुलिस लगातार भागदौड़ कर उन की तलाश भी कर रही थी, लेकिन वे पकड़ में नहीं आ पा रहे थे.

थानाप्रभारी ने सोचा कि अजय चौधरी के फतेहपुर इलाके में घूमने की सूचना सही है तो वह कोई अपराध भी कर सकता है, इसलिए उस की तलाश की जाए. अगर वह पकड़ में आ गया तो कोई बड़ा अपराध नहीं हो सकेगा.

यही सोच कर थानाप्रभारी कानूनगो ने अपनेसाथ 4 कांस्टेबल रामप्रकाश, रमेश, शिव भगवान और सांवरमल को लिया और थाने के बाहर खड़ी स्कौर्पियो गाड़ी से बदमाशों की तलाश में चल दिए. सभी सादे कपड़ों में थे.

मंडावा रोड पर बेसवा गांव के पास पुलिस को एक बोलेरो आती दिखाई दी. बोलेरो जब पुलिस की स्कौर्पियो के पास से आगे निकली तो ड्राइवर ने बताया कि बोलेरो में अजय है. यह सुन कर इंसपेक्टर ने ड्राइवर से पीछा करने को कहा. पुलिस की स्कौर्पियो बोलेरो का पीछा करने के लिए आगे बढ़ती, उस से पहले ही बोलेरो पलट कर वापस आई और पुलिस की गाड़ी के पास रुक गई.

यह देख कोतवाल मुकेश कानूनगो और सिपाही रामप्रकाश गाड़ी से नीचे उतर गए. इसी दौरान बोलेरो में सवार बदमाशों ने फायरिंग शुरू कर दी. फायरिंग में मुकेश कानूनगो और रामप्रकाश गंभीर रूप से घायल हो गए.

कानूनगो की गरदन में और रामप्रकाश की छाती में गोली लगी थी. फायरिंग होती देख कानूनगो के साथ आए शेष तीनों कांस्टेबल कुछ करते, इस से पहले ही बदमाश फायरिंग करते हुए बोलेरो से भाग गए.

तीनों कांस्टेबल खून से लथपथ थानाप्रभारी और सिपाही को फतेहपुर स्थित अस्पताल ले कर गए, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. कांस्टेबलों ने पुलिस कंट्रोल रूम और अपने थाने को वारदात की सूचना दे दी. थाने से पुलिस अधिकारियों को घटना की जानकारी दी गई.

कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या की सूचना से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. सीकर एसपी प्रदीप मोहन शर्मा सहित जिले के तमाम अफसर मौके पर पहुंच गए. जयपुर से आईजी वी.के. सिंह भी रात को ही फतेहपुर आ गए. पुलिस ने बदमाशों को पकड़ने के लिए सीकर, चुरू और झुंझुनू जिले में कड़ी नाकेबंदी करा दी.

इस बीच कोतवाल और कांस्टेबल पर फायरिंग करने के बाद बदमाश बोलेरो से फतेहपुर शहर में नायकों के मोहल्ले में पहुंचे और वहां अब्दुल हन्नान के मकान का दरवाजा खटखटाया.

काफी देर तक दरवाजा नहीं खुलने पर बदमाशों ने परिवार के लोगों को धमकी दी. इस के बाद उन्होंने पहले हवाई फायर किया और फिर दरवाजे पर गोली चलाई. फायरिंग की आवाज सुन कर आसपास के लोग जाग गए तो बदमाश भाग खड़े हुए.

राजस्थान में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के दूसरे दिन हुई इस घटना ने पूरी पुलिस फोर्स के साथ सरकार को भी झकझोर दिया था. इस घटना से शेखावटी में फिर गैंगवार होने की आशंका बढ़ गई थी. इस का कारण यह था कि पुलिस जो प्राइवेट स्कौर्पियो ले कर गैंगस्टर अजय चौधरी और उस के साथियों को पकड़ने के लिए निकली थी, उस गाड़ी को संभवत: अजय ने मनोज स्वामी की समझा था. अजय ने पुलिस के सहयोग से मनोज द्वारा उसे पकड़वाए जाने की आशंका से ही फायरिंग की थी.

दूसरे दिन इस घटना के विरोध में फतेहपुर कस्बा बंद रहा. राजस्थान के डीजीपी ओ.पी. गल्होत्रा, एटीएस के एडीशनल डीजीपी उमेश मिश्रा सहित जयपुर से आला पुलिस अफसर फतेहपुर पहुंच गए.

कोतवाल मुकेश कानूनगो और कांस्टेबल रामप्रकाश के घर वालों ने दोनों को शहीद का दर्जा देने और बदमाशों की गिरफ्तारी की मांग को ले कर शव लेने से इनकार कर दिया. जयपुर के आईजी वी.के. सिंह के आश्वासन पर वे लोग शव लेने पर राजी हुए.

कोतवाल मुकेश कानूनगो का परिवार जयपुर में थाना मुरलीपुरा के पास रहता है. वे मूलत: जयपुर जिले के गोविंदगढ़ के रहने वाले थे. कांस्टेबल रामप्रकाश झुंझुनू जिले में मुकंदगढ़ के घोड़ीवारा के रहने वाले थे. रामप्रकाश के पिता राजेंद्र सिंह सीकर जिले में थाना सदर में एएसआई हैं.

फतेहपुर में पोस्टमार्टम वगैरह की आवश्यक काररवाई पूरी होने के बाद पुलिस अफसरों ने कोतवाल मुकेश कानूनगो और कांस्टेबल रामप्रकाश के तिरंगे में लिपटे शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कोतवाल के शव को आईजी और एसपी ने कंधा दे कर जयपुर के लिए रवाना किया. इस से पहले पुलिस अधिकारियों और सीकर कलेक्टर नरेश ठकराल ने उन के शव पर पुष्पचक्र अर्पित किए. दोनों को गार्ड औफ औनर भी दिया गया.

कोतवाल मुकेश कानूनगो का शव जयपुर में मुरलीपुरा की रामेश्वरम धाम कालोनी स्थित उन के मकान पर पहुंचा, तो परिवार में कोहराम मच गया. दरअसल, मुकेश ने पत्नी मीरा से 7 अक्तूबर को जयपुर स्थित घर आने की बात कही थी, क्योंकि उस दिन ससुराल में उन की सास का श्राद्ध था. यह अलग बात है कि मुकेश 7 अक्तूबर को ही घर पहुंचे, लेकिन तिरंगे में लिपटे हुए.

अंत्येष्टि की तैयारी के दौरान मुकेश के बैच के साथी पुलिस अधिकारियों और रिश्तेदारों ने सरकार से शहीद का दरजा देने और विशेष सहायता पैकेज देने की मांग की. लोगों में इस बात का भी गुस्सा था कि कोई मंत्री या प्रशासनिक अधिकारी संवेदना जताने तक नहीं आया था.

बाद में विधायक हनुमान बेनीवाल वहां पहुंचे. उन्होंने दोनों पुलिसकर्मियों को वीरता अवार्ड, अनुकंपा नियुक्ति और स्पैशल पैकेज की मांग की. सीकर एसपी प्रदीप मोहन और जयपुर के डीसीपी वेस्ट अशोक कुमार गुप्ता ने लोगों को समझाबुझा कर शांत किया.

कांस्टेबल सांवरमल की रिपोर्ट पर थाने में मुकेश कानूनगो व कांस्टेबल रामप्रकाश की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया था. इस में फतेहपुर निवासी अजय चौधरी, खांजी का बास निवासी जगदीप उर्फ धनकड़, फतेहपुर निवासी दिनेश उर्फ लारा और जलालसर निवासी ओमप्रकाश उर्फ ओपी को नामजद किया गया था. इन के अलावा 3-4 अज्ञात बदमाश बताए गए थे.

फतेहपुर में पुलिस ने जांचपड़ताल की तो पता चला कि पुलिस दल पर फायरिंग कर के बेसवा गांव की तरफ तेज गति से भागे बदमाशों की गाड़ी थोड़ी दूर आगे जा कर पलट गई थी. वहां उन्होंने अपने साथियों से 3 मोटरसाइकिलें मंगाईं.

इन मोटरसाइकिलों पर अजय और उस के साथी फतेहपुर पहुंचे और नायकों के मोहल्ले में फायरिंग की. पुलिस ने सड़क पर पलटी मिली बोलेरो बरामद कर ली. बोलेरो के अंदर खून के निशान मिले. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि गाड़ी पलटने से बदमाशों को चोटें आई होंगी.

अजय और उस के साथियों को बाइक मुहैया कराने वाले नारीबारी गांव के 2 युवकों को पुलिस ने दूसरे दिन हिरासत में ले कर पूछताछ की तो पता चला कि अजय चौधरी अपने गैंग के साथ चुनाव के लिए आने वाले अवैध पैसे लूटने की फिराक में था. इसीलिए वह फतेहपुर आया था. पैसा लूट कर वह हथियार खरीदना चाहता था.

पुलिस का स्पैशल औपरेशन ग्रुप और आतंकवाद निरोधक दस्ता भी बदमाशों की तलाश में जुटा था. कई संदिग्ध लोगों से पूछताछ की गई. पुलिस की 10 से ज्यादा टीमें लगातार छापे मारती रहीं, साथ ही कड़ी नाकेबंदी कर के जांचपड़ताल भी करती रहीं. लेकिन हत्यारों का कोई ठोस सुराग नहीं मिला.

सरकार के निर्देश पर 9 अक्तूबर की रात करीब साढ़े 10 बजे से सीकर, चुरू व झुंझुनू जिले में इंटरनेट बंद करवा दिया गया. इस के पीछे कारण यह था कि पुलिस को जांच में पता चला था कि अजय चौधरी के गिरोह के बदमाश वाट्सऐप कालिंग, मैसेजिंग और वीडियो कालिंग के जरिए एकदूसरे से बात कर रहे थे.

इस वजह से पुलिस उन की लोकेशन ट्रेस नहीं कर पा रही थी. पुलिस का अनुमान था कि बदमाश शेखावटी इलाके में ही कहीं छिपे हैं, इसलिए आईजी ने संभागीय आयुक्त से बात कर के 3 जिलों में इंटरनेट बंद करवा दिया था.

पुलिस ने थानाप्रभारी व कांस्टेबल की हत्या वाली रात फतेहपुर शहर में नायकों का मोहल्ला में अब्दुल हन्नान के घर फायरिंग करने के मामले में 10 अक्तूबर को 2 बदमाशों दिनेश लारा और कैलाश नागौरी को गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में अब्दुल हन्नान के बेटे मुख्तियार ने अजय चौधरी, दिनेश उर्फ लारा और कैलाश उर्फ नागौरी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

दूसरी ओर, 3 जिलों में इंटरनेट बंद किए जाने के बाद तरहतरह की अफवाहों का बाजार गर्म हो गया. सोशल मीडिया पर पुलिस द्वारा 2 बदमाशों का एनकाउंटर किए जाने की सूचना वायरल होती रही. बाद में एनकाउंटर की सूचनाओं को गलत बताते हुए पुलिस ने लोगों से अपील की कि सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वाली बातें शेयर न करें.

पुलिस की जांचपड़ताल में 11 अक्तूबर को यह खुलासा हुआ कि अजय चौधरी और उस के गिरोह ने कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या में जिस बोलेरो का इस्तेमाल किया था, वह चुरू जिले के श्रवण के नाम थी. श्रवण ने यह गाड़ी चुरू के ही एक व्यक्ति को बेच दी थी.

इस तरह यह गाड़ी 9 बार बिक चुकी थी, लेकिन किसी भी खरीदार ने गाड़ी के कागजात व आरसी अपने नाम ट्रांसफर नहीं करवाए थे. केवल स्टांप पेपर पर इकरारनामे के आधार पर गाड़ी की खरीदफरोख्त होती रही. फिलहाल यह बोलेरो फतेहपुर के एक व्यक्ति के पास थी. पुलिस ने उस की तलाश की तो वह फरार हो गया.

अब्दुल हन्नान के घर फायरिंग वाले मामले में गिरफ्तार दिनेश उर्फ लारा और कैलाश उर्फ नागौरी को पुलिस ने 11 अक्तूबर को अदालत में पेश कर के 5 दिन के रिमांड पर ले लिया. पूछताछ में इन के हरियाणा सहित राजस्थान के कई जिलों के अपराधियों से संपर्क का पता चला.

कोतवाल व कांस्टेबल की हत्या के आरोपी पकड़ में न आए तो सीआईडी अपराध शाखा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने 12 अक्तूबर को 4 आरोपियों पर इनाम घोषित कर दिया.

इन में मुख्य आरोपी अजय चौधरी और जगदीप उर्फ धनकड़ पर 40-40 हजार रुपए और ओमप्रकाश उर्फ ओपी व अनुज उर्फ छोटा पांडिया पर 20-20 हजार रुपए का इनाम रखा गया. इसी के साथ इन बदमाशों के पोस्टर सीकर, चुरू व झुंझुनू जिलों के अलावा कई अन्य स्थानों पर लगवाए गए.

इन में झुंझुनू जिले के मंडावा निवासी अनुज उर्फ छोटा पांडिया का नाम गिरफ्तार आरोपी दिनेश उर्फ लारा से पूछताछ में सामने आया था.

कोतवाल व कांस्टेबल की हत्या की वारदात में अनुज मुख्य आरोपी अजय के साथ था. अनुज का पहला भी आपराधिक रिकौर्ड था. आजकल वह फतेहपुर में अपनी ननिहाल में रहता था. पहले वह पांडिया गैंग से जुड़ा हुआ था, लेकिन बाद में अजय चौधरी के साथ जुड़ गया था. वह अजय का खास गुर्गा और हथियार चलाने में माहिर था.

दिनेश उर्फ लारा से पूछताछ में पुलिस को अजय, जगदीप और अनुज के कई ठिकानों का पता चला. इस पर पुलिस ने दिल्ली, हरियाणा सहित राजस्थान के शहरों से ले कर गांव ढाणी तक विभिन्न स्थानों पर छापे मारे, लेकिन घटना के एक सप्ताह बाद भी पुलिस के हाथ खाली ही रहे.

बदमाशों के संबंध में सूचना मिलने पर राजस्थान एटीएस के एडिशनल एसपी बजरंग सिंह अपनी टीम के साथ 12 अक्तूबर की शाम जयपुर से पुणे के लिए रवाना हुए. जयपुर स्थित एटीएस मुख्यालय से पुलिस इंसपेक्टर मनीष शर्मा और राजेश दुनेजा लगातार उन को तकनीकी सहयोग दे रहे थे.

पुणे पहुंच कर 3-4 जगह दबिश देने के बाद 14 अक्तूबर को तड़के पुलिस टीम ने रामपाल जाट को पकड़ लिया. रामपाल जाट भी मुकेश कानूनगो और रामप्रकाश की हत्या में शामिल था. पूछताछ में उस ने बताया कि अजय और जगदीप नेपाल जाने की बात कह कर 13 अक्तूबर की रात मुंबई चले गए थे.

यह जानकारी मिलने पर एडिशनल एसपी बजरंग सिंह बिना समय गंवाए पुणे से रवाना हो कर 14 अक्तूबर की सुबह करीब 8 बजे मुंबई पहुंच गए. मुंबई में रामपाल को उन्होंने पहले से आई हुई जयपुर रेंज की पुलिस टीम के हवाले कर दिया. फिर सीकर जिले के नवलगढ़ के डीएसपी रामचंद्र मूंड और सीआई महावीर को ले कर मुंबई एटीएस व क्राइम ब्रांच के साथ दादर रेलवे स्टेशन पहुंच गए. अजय व जगदीप को दादर स्टेशन पर कोलकाता जाने वाली ट्रेन से पकड़ा गया.

तीनों आरोपियों को पुलिस मुंबई व पुणे से ले कर 15 अक्तूबर को जयपुर पहुंची. बाद में पुलिस इन्हें कड़े सुरक्षा घेरे में सीकर लाई. इधर पुलिस ने एक अन्य आरोपी आमिर को फतेहपुर के कोलीड़ा गांव से पकड़ा. वह अजय के गैंग का मुख्य चालक था. उस दिन भी वह अजय के साथ था और बोलेरो चला रहा था. पुलिस पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह थी—

अजय चौधरी राजस्थान में शेखावटी का डौन बनने के लिए हिस्ट्रीशीटर मनोज स्वामी की हत्या करना चाहता था. 6 अक्तूबर की रात मनोज की स्कौर्पियो देख कर ही अजय अपने साथियों के साथ बोलेरो से वापस लौट आया था. स्कौर्पियो में मनोज के होने की संभावना के चलते अजय और उस के साथियों ने स्कौर्पियो से उतरे फतेहपुर इंसपेक्टर मुकेश कानूनगो व कांस्टेबल रामप्रकाश पर फायरिंग की थी. अजय को यह पता नहीं था कि वे लोग पुलिस वाले हैं.

उस समय सभी पुलिस वाले सादे कपड़ों में थे और मनोज स्वामी जैसी ही स्कौर्पियो में थे. अजय और उस के साथियों को दूसरे दिन पता चला कि उन्होंने जिन लोगों को गोली मारी थी, वे पुलिस वाले थे.

इंसपेक्टर और कांस्टेबल को गोली मारने के बाद अजय अपने साथियों के साथ बोलेरो से तेजीसे भागा तो इन लोगों की गाड़ी पलट गई. इस से जगदीप के हाथ में फ्रैक्चर आ गया और रामपाल को चोटें आईं. अजय व लारा बाइक मंगवा कर वहां से फतेहपुर चले गए.

आमिर व ओमप्रकाश उर्फ ओपी नवलगढ़ की तरफ गए, जबकि रामपाल व जगदीप पास में ही रामपाल की बहन के घर छोटी बिड़ौदी चले गए. बहन के घर से दोनों नवलगढ़ पहुंचे और अपना इलाज कराया. बाद में बाइक पर कच्चे रास्तों से सीकर जिले के नीमकाथाना पहुंचे. नीमकाथाना से ट्रेन द्वारा ये लोग अहमदाबाद गए और फिर पुणे. पुणे से जगदीप अजय के साथ मुंबई चला गया और रामपाल वहीं रह गया. रामपाल को पुलिस ने पुणे से पकड़ा.

दूसरी तरफ अजय 7 अक्तूबर को फतेहपुर से बस से सीकर आया. सीकर से जयपुर हो कर वह बस से पहले दिल्ली फिर फरीदाबाद पहुंचा. उस ने फरीदाबाद में पढ़ाई की थी, इसलिए फरीदाबाद में उस के कई दोस्त थे. फरीदाबाद से वह पुणे गया.

पुलिस उन के मोबाइल नंबर ट्रेस न कर सके, इस के लिए वे वाट्सऐप कालिंग करते थे. मोबाइल में सिम का इस्तेमाल करने के बजाए ये लोग इंटरनेट के लिए डोंगल का इस्तेमाल करते थे. इस के अलावा ट्रेन में यात्रियों या सड़क पर राहगीरों से मोबाइल मांग कर वाईफाई का इस्तेमाल करते थे.

पुणे में ये लोग दिन में मंदिरों में रहते थे और रात को किराए के फ्लैट में चले जाते थे. अजय ने अपना हुलिया भी बदल लिया था. उस ने अपने बाल छोटे करवा लिए थे और क्लीन शेव रहने लगा था.

बाद में पुलिस ने 16 अक्तूबर को एक अन्य आरोपी ओमप्रकाश उर्फ ओपी को गिरफ्तार कर के उस से एक पिस्टल बरामद की. वह घटनास्थल से 5 किलोमीटर दूर जलालसर गांव में खेतों में छिपा रहा था. यहां तक कि वह अपने घर पर भी गया था, जबकि पुलिस उसे पूरे राजस्थान और हरियाणा में ढूंढ रही थी. वह अपने पास मोबाइल नहीं रखता था, इसलिए पुलिस को उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी.

इसी दिन अनुज उर्फ छोटा पांडिया को पुलिस ने भीलवाड़ा से गिरफ्तार कर लिया. वह अहमदाबाद से भीलवाड़ा आया था. अहमदाबाद में उस के परिवार का ट्रांसपोर्ट का काम है. वारदात के बाद वह फतेहपुर से सीकर आया और वहां से जयपुर चला गया. जयपुर से ट्रेन द्वारा वह अहमदाबाद चला गया था.

मुख्य आरोपी अजय ने सीकर की मोहन कालोनी में अपने मामा बलबीर के घर हथियार छिपा कर रखे थे. पुलिस ने इस मकान से 2 देसी कट्टे और 14 कारतूस बरामद किए. साथ ही बलबीर को भी गिरफ्तार कर लिया गया. लारा के घर से भी हथियार बरामद किए गए. रामपाल और अनुज उर्फ छोटा पांडिया के ठिकानों से भी 2 देसी कट्टे व कारतूस बरामद किए गए.

सवाल यह है कि कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या की घटना के बाद राजस्थान की पूरी पुलिस फोर्स सक्रिय हो गई थी. जगहजगह कड़ी नाकेबंदी और जांचपड़ताल की जा रही थी. इस के बावजूद आरोपी फतेहपुर से नवलगढ़ चले गए, जहां उन्होंने इलाज करवाया. फिर नीमकाथाना में घूमते रहे.

वे आराम से सीकर, जयपुर, दिल्ली, फरीदाबाद, पुणे व मुंबई पहुंच गए. लेकिन पुलिस ने उन्हें कहीं भी रोकाटोका नहीं. उन की मोबाइल पर भी आपस में बातचीत होती रही, फिर भी पुलिस उन की लोकेशन एक सप्ताह तक नहीं ढूंढ सकी.

Smuggling : शराब तस्करी से कमाए करोड़ों रुपए

Smuggling  गुजरात पुलिस में कांस्टेबल नीता चौधरी शाही जिंदगी जीने की शौकीन है. उस के पास अनेक लग्जरी गाडिय़ां हैं. एक मामूली सिपाही के पास आखिर कहां से आई करोड़ों रुपए की संपत्ति?

गुजरात पुलिस की भचाऊ लोकल क्राइम ब्रांच को शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा की तलाश थी, जो कच्छ क्राइम ब्रांच के एसआई डी.जे. झाला की वाचलिस्ट में था. एसआई झाला जब से भचाऊ आए थे, तब से उन्होंने युवराज सिंह जडेजा के खिलाफ 5 प्रोहिबिशन (शराब तस्करी) के अपराध दर्ज किए थे, जिन में वह वांटेड था.

उसी बीच 30 जून, 2024 दिन रविवार को एसआई डी.जे. झाला रोज की तरह अपने रूटीन काम में लगे थे, तभी शाम पौने 7 बजे एक सिपाही ने सूचना दी कि साहब, युवराज सिंह जडेजा सफेद रंग की थार से समखियाणी से गांधीधाम की ओर जा रहा है. थोड़ी देर में वह भचाऊ के चोपडवा ब्रिज से गुजरने वाला है.

युवराज क्यों चढ़ाना चाहता था पुलिस पर थार

एसआई झाला ने यह जानकारी पूर्वी कच्छ के एसपी सागर बागमार को दी तो उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि जैसे भी हो, युवराज सिंह बच कर नहीं जाना चाहिए. फिर तो पल भर में एसआई झाला ने 6 पुलिसकर्मियों की 3 टीमें बना कर जांच करना शुरू कर दिया.

ये पुलिस टीमें भचाऊ के चोपड़वा ब्रिज के नीचे प्राइवेट कार से चोपड़वा ब्रिज पर पहुंच गए और युवराज सिंह की उस थार के आने का इंतजार करने लगे. रात के ठीक सवा 8 बजे पुलिस को सफेद रंग की थार आती दिखाई दी. उस थार को आते देख कर पुलिस टीमें चौकन्नी हो गईं. पूरी रफ्तार से आ रही थार को रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड्स लगा कर रास्ता ब्लौक कर दिया. पुलिस के पास 3 प्राइवेट वाहन थे. बैरिकेड्स पर रुकने के बजाय युवराज सिंह ने बैरिकेड्स को तोड़ते हुए पुलिस के एक खाली वाहन को टक्कर मारी.

अब तक युवराज सिंह ब्रिज के बीचोबीच पहुंच चुका था. तब तक पुलिस के वाहनों ने उसे आगे और पीछे से घेर लिया. एसआई डी.जे. झाला कांस्टेबल भवानभाई के साथ उतर कर सड़क के बीचोबीच खड़े थे. युवराज सिंह की थार को आते देख सिपाही भवानभाई ने अपना डंडा दिखा कर चिल्लाते हुए उसे गाडी रोकने को कहा. युवराज सिंह ने अपनी गाड़ी रोकने के बजाय सीधे एसआई झाला और सिपाही भवानभाई की ओर मोड़ दी.

उसे डराने के लिए युवराज सिंह की थार के बोनट पर फायर कर दिया.

गोली बोनट पर लगने के बजाय बम्पर लगी थी. फिर भी गोली चलाने से युवराज सिंह घबरा गया था और थार रोक दी. पुलिस टीमों ने दौड़ कर थार को घेर लिया. युवराज सिंह ने थार तो रोक दी थी, पर वह न तो दरवाजा खोल रहा था और न ही शीशा खोल रहा था. थार के शीशे काले थे. तब एक पुलिस वाले ने ड्राइवर के बगल वाले कांच को अपने डंडे से शीशा तोड़ दिया. शीशा तोड़ कर पुलिस वाले युवराज सिंह को पकड़ कर बाहर खींच रहे थे, तभी एसआई झाला की नजर ड्राइविंग सीट की बगल वाली सीट पर बैठी एक महिला पर पड़ी. उन्हें पता नहीं था कि यह महिला कौन है. वह उस से कुछ पूछते, तभी एक सिपाही ने कहा, ”अरे यह तो लेडी कांस्टेबल नीताबेन चौधरी है. इस की ड्यूटी तो इस समय सीआईडी क्राइम ब्रांच में है.’’

डीजे झाला ने नीता चौधरी को थार से उतरने के लिए कहा. वह उस समय शराब के नशे में धुत थी. थार से बाहर आते ही नीता चौधरी ने एसआई झाला से कहा, ”साहब, मुझे जाने दीजिए.’’

जब एसआई झाला ने कोई जवाब नहीं दिया तो नीता चौधरी ने विनती करते हुए कहा, ”साहब, मेरी युवराज सिंह से दोस्ती थी. मैं आ रही थी तो यह रास्ते में मिल गया, इसीलिए हम दोनों साथ थे.’’

एसआई झाला ने तुरंत पुलिस अधिकारियों को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी थी. शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला सुरेंद्रनगर की तहसील पालनपुर के नजदीक के गांव बादरपुर की रहने वाली थी. नौकरी से छुट्टी ले कर वह अपने गांव गई थी.

नीता की थार गाड़ी में कहां से आई थी शराब

पुलिस ने जब नीता चौधरी और युवराज सिंह को पकड़ा तो तलाशी में उन की थार से भारतीय शराब (Smuggling) की 16 बोतलें मिली थीं. चूंकि गुजरात में शराब बंदी है, इसलिए शराब लाना तो क्या, वहां शराब पीना भी अपराध है. युवराज सिंह और नीता चौधरी को शराब तस्करी और पुलिस पर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से नीता चौधरी को जमानत मिल गई थी, जबकि युवराज सिंह पर तो वैसे भी तमाम केस थे, इसलिए उस की जमानत होने का सवाल ही नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने दौड़भाग कर के सेशन कोर्ट में नीता की जमानत रद करने की अरजी दी तो सेशन कोर्ट ने पुलिस वालों पर थार चढ़ाने की कोशिश और एक सिपाही द्वारा शराब की तस्करी को गंभीर मानते हुए नीता चौधरी की भी जमानत रद कर दी. जमानत रद होने के बाद नीता चौधरी फरार हो गई. इस के बाद कच्छ पुलिस उस की तलाश में लग गई. पुलिस जब एक सप्ताह तक उसे नहीं खोज पाई तो यह मामला जांच एजेंसी एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वायड) को सौंपा गया.

इंसपेक्टर पीयूष देसाई की टीम उस की तलाश में गांधीधाम की ओर लगी थी, पर वहां उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. उसने अपने मोबाइल फोन का यूज करना बंद कर दिया था. तब एटीएस ने मुखबिरों की मदद ली, जिस में उसे सफलता मिल भी गई. एटीएस को सूचना मिली कि नीता जिला सुरेंद्रनगर की तहसील लींमडी के गांव भलगामडा में हो सकती है. यह सूचना मिलने के बाद एक गुप्त औपरेशन शुरू हुआ, जिस के बारे में केवल एटीएस के उच्च अधिकारियों को ही मालूम था.

इस के लिए सब से पहला काम था नीता की लोकेशन का पता करना. एटीएस ने दूसरी एक टीम इंसपेक्टर पीयूष देसाई के नेतृत्व में बनाई, जिस में 2 एसआई, एक महिला कांस्टेबल सहित 3 कांस्टेबल शामिल थे.

नीता को किस ने दी थी पनाह

इंसपेक्टर देसाई अपनी टीम को साथ ले कर प्राइवेट कार से निकल पड़े. कार अहमदाबाद-राजकोट हाइवे पर चली जा रही थी. उन्हें सूचना मिल गई थी कि नीता चौधरी भलगामडा के किसी घर में छिपी है. पर उस घर के बारे में किसी को पता नहीं था. इसलिए पहले तो यह पता करना था कि वह घर कौन सा है. इस बात का भी ध्यान रखना था कि नीता को इस बारे में पता न चले, वरना वह वहां से भाग सकती थी. किसी को यह भी पता न चले कि वे पुलिस वाले हैं, इस के लिए इंसपेक्टर देसाई और उन की टीम के लोग साधारण कपड़ों में वहां पहुंचे थे.

भलगामड़ा पहुंचने पर इंसपेक्टर देसाई को पता चला कि नीता चौधरी अपने दोस्त शराब तस्कर युवराज सिंह के किसी जानपहचान वाले की मदद से यहां छिपी है. जल्दी ही एटीएस को पता चल गया कि युवराज सिंह के साले आदित्य राणा के दोस्त मयूर ने नीता को शरण दी है. पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो एक और परेशानी खड़ी हो गई. भलगामड़ा में मयूर के 2 घर थे. जिन में से एक घर गांव में था तो दूसरा गांव से बाहर खेतों था, जो 2 बीएचके था. एटीएस टीम के सामने अब सवाल यह था कि उसे पता नहीं था कि नीता चौधरी मयूर के किस घर में है. मयूर के दोनों घरों के बीच एक किलोमीटर का अंतर था. तब एटीएस टीम 2 भागों में बंट गई. आधे लोग एक घर पर नजर रखने लगे तो आधे लोग दूसरे घर पर.

इस बीच एटीएस ने देखा कि मयूर सुबह-शाम फूड पैकेट ले कर गांव के बाहर खेतों वाले घर पर जाता है. खेतों वाले उस घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता था. जब मयूर फूड पैकेट ले कर जाता था, तभी दरवाजा खुलता था. यह देख कर एटीएस टीम को लगा कि नीता यहीं होगी. उस घर के पास से एक रास्ता गुजरता था. वह रास्ता एटीएस के लिए उपयोगी साबित हुआ. उसी रास्ते पर आटो, बाइक और इसी तरह के वाहनों से एटीएस उस घर पर और ज्यादा नजर रखने लगी. उस घर में कौनकौन जाता है? घर से कोई बाहर आता है या नहीं? घर में कहां क्या हो रहा है? इन सभी बातों पर एटीएस ने अपना ध्यान केंद्रित किया.

एटीएस इसी तरह लगातार 3 दिनों तक उस घर पर नजर रखे रही. आखिर तीसरे दिन अंत में तय हो गया कि नीता चौधरी मयूर के इसी खेत वाले घर में ही रह रही है. नीता की पक्की लोकेशन मिल जाने के बाद एटीएस ने राहत की सांस ली. इंसपेक्टर देसाई ने मयूर के घर पर नजर रखने वाली टीम को भी वहीं बुला लिया और उस की गिरफ्तारी के लिए टीम आगे बढ़ी. 16 जुलाई, 2024 की शाम लगभग साढ़े 5 बजे एटीएस की टीम ऐक्शन में आ गई. टीम के सभी सदस्यों ने पहले से तय की गई रणनीति के अनुसार उस घर को चारों ओर से घेर लिया, जिस में नीता के होने की संभावना थी. क्योंकि अगर नीता को पता चल जाता कि एटीएस उसे पकडऩे आई है तो वह भाग सकती थी.

घर का मुख्य दरवाजा लोहे का था, जिसे खोल कर एटीएस की टीम अंदर घुसी. अंदर जा कर घर का दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर में दरवाजा खुला तो एटीएस की टीम ने देखा कि सामने नीता खड़ी थी. पिछले एक सप्ताह से नीता मीडिया और पुलिस विभाग में चर्चा का विषय बनी हुई थी, इसलिए उसे पहचानने में एटीएस को जरा भी देर नहीं लगी. अचानक घर के दरवाजे पर अनजान लोगों को देख कर नीता को भी झटका सा लगा. क्योंकि शायद उसे भरोसा था कि कोई उसे खोज नहीं पाएगा. उस के मन में तमाम सवाल उठे. पर उन तमाम सवालों का जवाब महिला कांस्टेबल को एक ही वाक्य में दे दिया, ”हम लोग एटीएस से हैं.’’

सामने खड़े लोगों की पहचान जान कर नीता चौंक उठी. इस के बाद एटीएस की टीम घर के अंदर गई. नीता अभी तक अचंभित थी. टीम के एक सदस्य ने कहा, ”मैडम शांति से बैठ जाइए.’’

नीता टीम की महिला कांस्टेबल के पास खड़ी थी. टीम के बाकी लोगों ने घर की फटाफट तलाशी ली. तलाशी में एटीएस को कुछ खास नहीं मिला. सिर्फ एक बैग मिला. जिसे खोल कर देखा गया तो उस में नीता के कपड़े थे.

एटीएस ने नीता से कोऔपरेट करने के  लिए कहा तो नीता चुपचाप पुलिस द्वारा लाई कार में बैठ गई. इस के बाद एटीएस टीम तुरंत वहां से रवाना हो गई. एटीएस नीता को सुरेंद्रनगर के भलगामड़ा गांव से सीधे अहमदाबाद ले आई, जहां से उसे कच्छ पुलिस को सौंप दिया गया.

लग्जरी कारों की शौकीन थी नीता

अब सवाल यह था कि नीता भचाऊ से सुरेंद्रनगर कैसे पहुंची? नीता का तो कहना था कि वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट से वहां आई थी. लेकिन पुलिस का कहना है कि सेशन कोर्ट से जमानत रद होने के बाद वह जिस शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, उस का साला आदित्य सिंह राणा उसे यहां पहुंचा गया था. यहां वह जिस मयूर के घर छिपी थी, वह आदित्य सिंह राणा का दोस्त था. नीता का इरादा ऊपरी अदालत से जमानत मिलने तक फरार रहने का था.

नीता चौधरी ने सेशन कोर्ट के जमानत रद करने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. नीता की अरजी देख कर हाईकोर्ट ने कहा था, ”अरजी देने वाले पर गंभीर आरोप है. वह अपनी जिंदगी में क्या करती है, कोर्ट को बताया जाए. अगर अपीलकर्ता निर्दोष थी तो भाग क्यों गई. आरोपी की जमानत रद कर के सेशन कोर्ट ने ठीक किया है. अगर अपीलकर्ता अपनी अपील को वापस नहीं लेता तो कोर्ट उस पर 5 लाख रुपए से अधिक का जुरमाना कर सकता है. अपीलकर्ता पुलिस में रहते हुए शराब तस्कर को सेफ पैसेज दे रही थी.’’

नीता चौधरी के वकील का कहना था कि अपीलकर्ता सीआईडी क्राइम में कांस्टेबल है. वह सीनियर अधिकारियों के कहे अनुसार काम कर रही थी. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग में होते हुए इस ने शराब (Smuggling) तस्कर की मदद की. पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार कर पुलिस कर्मचारियों को मारने की कोशिश की. यह चाहती तो अपराधी को रोक कर पुलिस की मदद कर सकती थी. नीता चौधरी जब से पकड़ी गई, तब से सोशल मीडिया पर शोर सा मच गया था. क्योंकि शायद उस ने वरदी इसलिए पहनी थी कि कानून को ठेंगा दिखा कर हवा में उडऩे वाले अपराधियों को जमीन पर ला सके.

लेकिन पैसों के लालच में वह अपना फर्ज निभाने के बजाय अपने फर्ज के साथ गद्ïदारी कर के शानोशौकत वाली जिंदगी जीते हुए हवा में उडऩे लगी. जैसे ही नीता चौधरी को गिरफ्तार किया गया, उस के किस्से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे. फिर तो सोशल मीडिया ने उस की पूरी कुंडली ही खोल कर रख दी. फटाफट इस खूबसूरत कांस्टेबल की जो तसवीरें सामने आईं, देख कर लोग अचंभे में पड़ गए. सोशल मीडिया से ही पता चला कि यह लेडी कांस्टेबल फर्ज निभाने से कहीं ज्यादा अपनी लग्जरी लाइफस्टाइल से सुर्खियां बटोरती है. तसवीरों में जो दिखाई दे रहा है, वह किसी को भी दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दे. आखिर एक सिपाही इतने महंगे शौक कैसे पूरे करती है?

नीता चौधरी एक बेहद ग्लैमरस और आलीशान जिंदगी जीने की आदी है. उस की पसंद वाली चीजों में महंगी कारें, महंगी बाइक्स के अलावा, हेलीकौप्टर, याट के साथ अरबी घोड़े हैं. इस के पहले भी वह इसी तरह इंस्टग्राम पर वीडियो डालने लिए सस्पेंड हो चुकी है, लेकिन सस्पेंड होने के बाद भी न उस पर कोई फर्क पड़ा था और न उस की लाइफस्टाइल में कोई अंतर आया था. अगर नीता चौधरी के कारों के शौक के बारे में देखा जाए तो उस के पास खुद का लग्जरी कारों का अच्छाखासा कलेक्शन है. उसके विभाग वाले हंसीहंसी में कहते भी हैं कि अगर जिंदगी जीनी है तो नीता चौधरी की तरह, जो गुजरात पुलिस में एक सिपाही होते हुए भी राजसी शानोशौकत के जीती है. लेकिन हर कोई नीता चौधरी की तरह अपने फर्ज से गद्ïदारी नहीं कर सकता. इसलिए  वे लोग सिर्फ नीता को देख कर जलते हैं.

एटीएस ने दौड़भाग कर के नीता चौधरी को भलगामड़ा गांव से गिरफ्तार किया था. नीता को गिरफ्तार कर के एटीएस ने थाना भचाऊ पुलिस के हवाले किया तो भचाऊ पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

नीता और वीरसंग की कैसे शुरू हुई लव स्टोरी

कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला बनासकांठा की तहसील पालनपुर के गांव मोरिया की रहने वाली है. 15 साल पहले उस ने वीरसंग चौधरी से लवमैरिज की थी. वह भी पालनपुर के पास के गांव बादरपुर का रहने वाला है. वीरसंग खेतीबाड़ी करने के अलावा प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. वह अपने गांव का सरपंच भी रह चुका है. इस समय उस की भाभी गांव की सरपंच हैं. नीता ने वीरसंग के साथ लवमैरिज कर ली तो उस के मम्मीपापा से संबंध पहले जैसे नहीं रहे.

नीता और उस का पति वीरसंग चौधरी एक ही स्कूल में पढ़ते थे. वहीं दोनों में प्यार हुआ था. इसलिए दोनों का आपस में मिलनाजुलना होता रहता था. 15 साल पहले दोनों ने कोर्ट में प्रेमविवाह कर लिया था. जिस के साथ कांस्टेबल नीता चौधरी पकड़ी गई है, वह शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा गुजरात के जिला कच्छ के चिरई गांव का रहने वाला है. उस ने मात्र 9वीं तक पढ़ाई की है. वह शादीशुदा है. उस का मुख्य धंधा शराब तस्करी का है. उस के पिता भी उसी की तरह शराब तस्कर थे. काफी समय से गांधीधाम में रहने की वजह से अन्य पुलिसकर्मियों की तरह वह नीता चौधरी को भी जानता था.

नीता चौधरी की तैनाती जिन दिनों गांधीधाम लोकल क्राइम ब्रांच में थी, उन्हीं दिनों सोशल मीडिया के जरिए वह नीता चौधरी के संपर्क में आया था. कहा जाता है कि युवराज सिंह खुद शराब पीने का शौकीन नहीं है. वह सिर्फ शराब बेचता है. सामान्य रूप से युवराज सिंह जब भी शराब मंगाता था, शराब की डिलीवरी हो जाती थी. उसे कभी भी शराब लेने जाना नहीं पड़ा. पर इस बार उस के पास से शराब मिली है. कहा जाता है कि उस की कई नेताओं से अच्छी पटती है. पटेगी क्यों नहीं, शराब की जरूरत तो नेताओं को भी पड़ती है.

युवराज सिंह सालों से गांधीधाम और भुज में बड़े पैमाने पर शराब का धंधा कर रहा था. उस पर प्रोहिबिशन के 16 मामले दर्ज हैं. एकदो बार झगड़ा भी हुआ था, पर इन झगड़ों में वह सीधे इनवौल्व नहीं था. ये झगड़े उस के आदमियों ने किए थे. बीच में पड़ कर उसने इन झगड़ों को शांत करा दिया था. उस का फोकस अपने शराब के धंधे पर रहता था. नीता चौधरी पर केस हुआ और वह चर्चा में आई तो सोशल मीडिया पर उस के फालोअर्स बढ़ गए. इंस्टाग्राम पर उस के पहले लगभग 41 हजार फालोअर्स थे, केस होने के बाद वह संख्या 1 लाख 14 हजार हो गई. 73 हजार फालोअर्स एकाएक बढ़ गए हैं.

कच्छ पुलिस ने जब नीता चौधरी को गिरफ्तार कर के मीडिया के सामने पेश किया था तो उस के चेहरे पर किसी तरह का पछतावा नहीं था. वह जिस युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, वह गुजरात का मोस्टवांटेड शराब तस्कर है.

जिस सफेद थार से शराब की 16 बोतलें पकड़ी गई थीं, कहा जाता है कि वह नीता की ही थी. उस के पीछे चौधरी लिखा भी था. मजे की बात यह है कि इस सफेद थार में नंबर प्लेट भी नहीं थी. नीता चौधरी की तसवीरें और कारनामे तमाम सवाल खड़े कर रहे हैं कि आखिर गुजरात पुलिस कब सुधरेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Gangster काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया

हरियाणा के जिला सोनीपत में 1984 में जन्मे संदीप उर्फ काला जठेड़ी को दिल्ली पुलिस बेसब्री से तलाश रही थी. उस पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) लगा हुआ था, जिस में जमानत नहीं मिलती है. उसे पहली फरवरी, 2020 को फरीदाबाद अदालत में पेशी के लिए ले कर आई थी. पेशी के बाद वापस ले जाने के दौरान गुड़गांव मार्ग पर उस के गुर्गों ने पुलिस की बस को घेर लिया था.

ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और काला जठेड़ी को छुड़ा ले भागे थे. सारे बदमाश उस के गैंग के थे. यह पूरी वारदात एकदम से फिल्मी अंदाज में काफी तेजी से घटित हुई थी. इस मामले को ले कर तब डबुआ थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था. तभी से वह फरार था. पुलिस को आशंका थी कि वह नेपाल के रास्ते दुबई भाग निकला है. पुलिस का यह भी मानना था कि ऐसा उसे भ्रमित करने और उस पर से ध्यान हटाने के लिए किया गया है कि वह दुबई में है. यानी काला जठेड़ी की तलाश में जुटी पुलिस टीम अच्छी तरह से समझ रही थी कि उन्हें अपने निशाने से हटाने की उस की यह एक चाल हो सकती है.

इस बारे में दिल्ली के डीसीपी (काउंटर इंटेलिजेंस, स्पैशल सेल) मनीषी चंद्रा का कहना था कि जठेड़ी एक भूत की तरह रहता था, क्योंकि वह 2020 में पुलिस हिरासत से भागने के बाद कभी नहीं दिखा. कानून प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान हटाने के लिए ही जठेड़ी गैंग के सदस्यों ने इस अफवाह को बढ़ावा दिया कि वह विदेश से ही गिरोह को संचालित कर रहा है. इस पर गौर करते हुए पुलिस ने जठेड़ी की कमजोर नस का पता लगाने की पहल की. इस में पुलिस को अनुराधा चौधरी के रूप में सफलता भी मिल गई. वह जठेड़ी की बेहद करीबी थी और गोवा में रह रही थी. पुलिस ने सब से पहले उसे ही अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई.

अनुराधा चौधरी के बारे में दिल्ली की स्पैशल सेल ने कई जानकारियां जुटा ली थीं. पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार, अनुराधा चौधरी का जन्म राजस्थान के सीकर में हुआ था, लेकिन दिल्ली के एक कालेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और उस की शादी दीपक मिंज से हुई थी. दोनों एक समय में शेयर ट्रेडिंग का काम करते थे, जिस में उन्हें लाखों रुपए का नुकसान हुआ था. वे कर्ज में दबे होने के उस की वापसी कर पाने असमर्थ थे. इसी परेशानी से जूझते हुए उस का संपर्क एक गैंगस्टर आनंद पाल सिंह से हुआ. वह राजस्थान का एक शातिर और फरार अपराधी था. उस पर राजस्थान पुलिस ने ईनाम रखा हुआ था.

आनंद पाल सिंह ने ही उसे अनुराधा को अपराध की दुनिया में घसीट लिया था और जल्द ही उस की पहचान मैडम मिंज की बन गई थी. 2017 में पुलिस मुठभेड़ में आनंद पाल सिंह की मौत हो जाने के बाद वह काला जठेड़ी के संपर्क में आ गई थी, वह उसे ‘रिवौल्वर रानी’ कहता था.  वह उस के गिरोह की एकमात्र अंगरेजी बोलने वाली सदस्य थी. उस ने काला जठेड़ी से हरिद्वार में शादी कर ली थी. शादी के बाद वे कनाडा शिफ्ट होने की फिराक में थे. उन की योजना वहीं से अपराध का काला कारोबार चलाने की थी.

जठेड़ी को दबोचने के लिए ‘औप डी24’

जठेड़ी को दबोचने के लिए दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने अनुराधा तक पहुंचने की योजना बनाई. सेल ने कुल 30 पुलिसकर्मियों को शामिल किया और एक अभियान के तहत औपरेशन का कोड नाम दिया ‘औप डी24’, इस का अर्थ ‘अपराधी पुलिस से 24 घंटे आगे था.’ सर्विलांस सीसीटीवी फुटेज से ले कर मोबाइल फोन ट्रैकिंग तक की थी. करीब 4 महीने की मेहनत के बाद 30 जुलाई, 2021 को तब सफलता मिली, जब सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे तक ट्रैक किया गया.

इस औपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्पैशल सेल की टीम टुकडि़यों में बंट कर कुल 12 राज्यों तक अलर्ट हो गई थी. राज्य सरकार की पुलिस को भी इस की जानकारी दे दी गई थी और जरूरत पड़ने पर उन से मदद करने का अनुरोध किया जा चुका था. जठेड़ी और अनुराधा के संबंध में हर तरह की मिली सूचना की दिशा में सर्विलांस का सहारा लिया गया था. टीम को अनुराधा और जठेड़ी गैंग के सदस्यों के गोवा में होने की तकनीकी जानकारी मिली. हालांकि तब पुलिस की निगाह में यह निश्चित नहीं था, इसलिए उस जानकारी को जांचने के लिए एक टीम गोवा भेजी गई.

टीम के सदस्यों को वहां कुछ सुराग मिले. उन्हें 2 वाहन मिले, जिस पर हरियाणा के नंबर लिखे थे. फिर क्या था पुलिस टीम ने उन गाडि़यों का पीछा करना शुरू कर दिया. इस सिलसिले में टीम को गोवा से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली तक का सफर करना पड़ा. पीछा करने के सिलसिले में ही टीम को तिरुपति से एक सीसीटीवी फुटेज मिला. उस में अनुराधा चौधरी को जठेड़ी गैंग के कुछ सदस्यों के साथ देखा गया था. उस के बाद कई टीमें उन वाहनों का पीछा करने लगीं, जो उन के द्वारा उपयोग किए जा रहे थे. लगभग 10,000 किलोमीटर तक उन का पीछा करने के बाद टीम को एक और खास इनपुट मिली. सूचना थी कि चौधरी और जठेड़ी एक एसयूवी में पंजाब की यात्रा पर हैं. पुलिस टीम ने उन का पीछा जारी रखा.

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे पर दोनों उसी वाहन से दबोच लिए गए. वहां से दोनों को दिल्ली लाया गया.

मोबाइल स्नैचर से माफिया तक

बात 2004 की है. तब फीचर मोबाइल फोन के बाद टचस्क्रीन का स्मार्टफोन आया था. वे फोन काफी महंगे हुआ करते थे. काला जठेड़ी और उस के साथियों ने दिल्ली के समयपुर बादली में शराब की दुकान पर एक व्यक्ति से टचस्क्रीन का स्मार्टफोन छीन लिया था.

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इस का मामला थाने में दर्ज करवाया गया था. वह इस स्नैचिंग में पकड़ा गया और जेल भेज दिया गया. तब उस की उम्र करीब 19 साल की थी. उस के खिलाफ दर्ज मामले में नाम संदीप जठेड़ी और निवासी सोनीपत का लिखवाया गया था. रंग काला होने के कारण मीडिया में उसे नया नाम काला जठेड़ी का मिल गया. मोबाइल स्नैचिंग की छोटी सी सजा काट कर जेल से छूटने के बाद उस ने अपराध की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ा लिया. कई तरह के अपराध करने लगा, जिस में स्नैचिंग के साथसाथ हिंसा भी शामिल हो गई. उस की पढ़ाई 12वीं के बाद छूट गई, किंतु जल्द ही वह शार्पशूटर बन गया. वह एक गैंग में शामिल हो गया और अपना आदर्श लारेंस बिश्नोई को मान लिया.

पुलिस के अनुसार वर्ष 2006 में गांव के कुछ लोगों के साथ वह दिल्ली के डाबड़ी इलाके में आया. उस ने यहां विवाद में पीट कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी. उसे इस मामले में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. जेल में उस की अनिल रोहिल्ला उर्फ लीला से दोस्ती हो गई. अनिल रोहिल्ला ने ही उसे बताया कि रोहतक स्थित उस के गांव में एक परिवार से दुश्मनी चल रही है. उस परिवार में 7 भाई हैं और उन्होंने उस के पिता की हत्या की है. इस का बदला लेने के लिए उस ने गैंग बनाया है. इस परिवार के 5 भाइयों सहित 8 लोगों को काला जठेड़ी ने मार डाला. इस हत्याकांड से ही संदीप का नाम काला जठेड़ी के रूप में अपराध की दुनिया में मशहूर हो गया.

फिर कुछ साल बाद ही हरियाणा के सांपला और फिर गोहाना में हुई हत्याओं में उस का नाम आ गया. उस के बाद उस ने मुड़ कर नहीं देखा. और फिर जठेड़ी का नाम 2012 में हरियाणा पुलिस के मोस्टवांटेड अपराधियों की सूची में तब जुड़ गया, जब उस ने 3 सहयोगियों के साथ मिल कर हरियाणा के झज्जर जिले में दुलिना गांव के पास एक जेल वैन को ट्रक से टक्कर मार दी थी. यह टक्कर जानबूझ कर मारी गई थी. उस का मकसद उस में सवार कैदियों को मारना था. इस वारदात में उस ने 3 कैदियों की गोली मार कर हत्या कर दी थी और 2 पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे. बताते हैं कि वे कैदी उस के दुश्मन थे. बाद में जठेड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.

दरअसल, वर्ष 2012 में काला जठेड़ी को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था. जेल में उस की मुलाकात गैंगस्टर नरेश सेठी से हो गई. उस ने काला जठेड़ी को राजू बसोडी से मिलवाया. राजू बसोडी ने उक्त परिवार के छठे भाई को 2018 में मरवा दिया. उस समय काला जठेड़ी जेल में ही था. गैंगस्टर नरेश सेठी के जीजा को उस ने इसलिए मार डाला, क्योंकि उस ने नरेश की बहन को मार दिया था. जेल में रहने के दौरान ही काला जठेड़ी की दोस्ती लारेंस बिश्नोई से हो गई थी.  वह उस के गैंग में शामिल हो गया था. लारेंस ने ही उसे पुलिस हिरासत से फरवरी, 2020 में फरार करवाया था. उस के बाद से ही वह लगातार फरार चल रहा था और उस के नाम साल भर में 20 से ज्यादा हत्याओं को अंजाम देने का आरोप लग चुका था.

हत्या समेत अपहरण की वारदातों को तो काला जठेड़ी जेल में रह कर ही अंजाम दे दिया करता था. जेल से बाहर उस ने अपना जबरदस्त गिरोह बना रखा है. उन में 100 से अधिक शूटर हैं. गैंग के लोग दिल्ली समेत हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान में सक्रिय हैं. वे एक इशारे पर मरनेमारने को तैयार रहते हैं.

रंगदारी वसूलने में भी माहिर

वे बड़े ही सुनियोजित तरीके से अपराध को अंजाम देने में माहिर हैं. रंगदारी का एक मामला मोहाली के कारोबारी का सामने आया, जिसे उस ने जेल में रहते हुए अंजाम दिया. वह पंजाब के लारेंस बिश्नोई के 7 सहयोगियों में एक खास बदमाश है. बात  2021 की है. पंजाब की मोहाली पुलिस को एक ईंट भट्ठा कारोबारी कुदरतदीप सिंह ने शिकायत लिखवाई कि 8 अक्तूबर को काला जठेड़ी ने उस से एक करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी है. इस शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और 387 के तहत मोहाली पुलिस ने काला जठेड़ी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. तब तक काला जठेड़ी एक कुख्यात अपराधी घोषित हो चुका था. उस के खिलाफ जबरन वसूली और हत्या के करीब 40 मामले दर्ज थे.

काला जठेड़ी गैंग के गुर्गे भी कुछ कम शातिर नहीं हैं. एक गुर्गे अक्षय अंतिल उर्फ अक्षय पलड़ा की हिम्मत देखिए, उस ने जेल में एक सिपाही से सिमकार्ड मांगा. वहां से ही एक कारोबारी को फोन कर उस से 5 करोड़ की रंगदारी मांग ली. दिल्ली पुलिस जब इस मामले में सक्रिय हुई तब काला जठेड़ी गैंग से जुड़े अक्षय अंतिल को गिरफ्तार कर लिया गया. हैरानी की बात यह थी कि 22 साल का अक्षय दिल्ली की मंडोली जेल में बंद था और वहीं से काला जठेड़ी का भय दिखा कर दिल्ली के करोलबाग के एक कारोबारी से 5 करोड़ की रंगदारी मांगी थी.

उस के बाद पुलिस ने मंडोली जेल से फिरौती के लिए इस्तेमाल किए गए सिम कार्ड के साथ एक एप्पल आईफोन12 मिनी फोन भी बरामद किया है. इस का खुलासा तब हुआ, जब करोलबाग के एक कारोबारी ने 30 मई, 2021 को शिकायत दे कर बताया कि उसे 5 करोड़ रुपए की रंगदारी के लिए धमकी भरे काल आ रहे हैं. फोन करने वाले ने खुद को लारेंस बिश्नोई गैंग का शार्पशूटर बताया था. जांच में पता चला कि काल बीएसएनएल सिम वाले फोन का उपयोग कर मंडोली जेल दिल्ली से की गई थी. ब्यौरा लेने के बाद मेरठ के एक दुकानदार और सिम जारी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली आईडी वाले ग्राहक का पता लगाया गया.

उन से गहन पूछताछ में पता चला कि थाना कंकड़खेड़ा, मेरठ, यूपी में तैनात एक कांस्टेबल ने एक सीएनजी मैकेनिक के नाम से यह सिम लिया था. तकनीकी जांच में पता चला कि काल मंडोली जेल से अक्षय पलड़ा द्वारा की गई थी. इस मामले के संदर्भ में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला मर्डर केस को ले कर भी कान खड़े हो गए. उस में बिश्नाई जठेड़ी गैंग की भूमिका होने की आशंका जताई है. पूछताछ के दौरान इस बात का भी खुलासा हुआ कि पूरी साजिश अक्षय और नरेश सेठी ने मिल कर रची थी. दोनों काला जठेड़ी गैंग से जुड़े हैं.

इस के लिए उन्होंने काला जठेड़ी गैंग के एक अन्य सदस्य राजेश उर्फ रक्का के माध्यम से 2 सिम कार्ड (बीएसएनएल और वोडाफोन) और 2 मोबाइल एप्पल के मिनी और छोटे चाइनीज कीपैड वाले फोन हासिल किए थे. बीएसएनएल सिमकार्ड को एप्पल आईफोन12 मिनी में और वोडाफोन सिम को चाइनीज फोन में लगाया गया था. अक्षय हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला है और काला जठेड़ी गिरोह का शातिर शार्प शूटर है. उस पर कत्ल, अपहरण और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं. उस का नाम मूसेवाला हत्याकांड में भी एक संदिग्ध के रूप में सामने आया है.

बहरहाल, पिछले साल फरवरी में भागने के बाद काला जठेड़ी विदेशों के दूसरे गैंगस्टरों के साथ जुड़ा रहा. उन में वीरेंद्र प्रताप उर्फ काला राणा (थाईलैंड से संचालित), गोल्डी बराड़ (कनाडा में स्थित) और मोंटी (यूके से संचालित) हैं. उन के साथ वह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अपराध गठबंधन का नेतृत्व कर रहा था.

अनुराधा का मिला साथ

पुलिस के अनुसार उन का गठबंधन हाईप्रोफाइल जबरन वसूली, शराब के प्रतिबंधित राज्यों में शराब का अवैध,  अंतरराज्यीय व्यापार, अवैध हथियारों की तसकरी और जमीन पर कब्जा करना शामिल था.

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काला जठेड़ी के साथ सक्रियता के साथ काम करने वालों में शिक्षित युवती अनुराधा भी थी. उस के काला जठेड़ी के साथ लिवइन रिलेशन थे.  पूछताछ में काला जठेड़ी ने अनुराधा के संपर्क में आने का कारण बताया. दरअसल, लारेंस बिश्नोई ने काला जठेड़ी को निर्देश दिया कि वह लेडी डौन अनुराधा की मदद करे. आनंदपाल सिंह की दोस्त अनुराधा से उस की मुलाकात कब प्यार में बदल गई उसे भी नहीं पता चला.

हालांकि बताते हैं दोनों ने हाल में ही शादी भी कर ली थी. लेडी डौन के नाम से कुख्यात अनुराधा के खिलाफ भी कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो काला जठेड़ी के नाम पर करती रही. यहां तक कि भारत से भागने की कहानी भी उसी ने फैलाई. कहने को तो उस की योजना काला जठेड़ी के साथ कनाडा में शिफ्ट होने की थी, किंतु इस में सफलता नहीं मिल पाई. गैंगस्टर काला जठेड़ी के साथ लेडी डौन अनुराधा की गिरफ्तारी के बाद कई नए खुलासे हुए. वैसे तो कई ऐसे राज का परदाफाश होना अभी बाकी है, लेकिन दोनों के संबंधों और कुख्यात साजिशों के बारे में जो कुछ सामने आया, वह काफी चौंकाने वाला है. उसे सुन कर सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं.

दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल को उन्होंने बताया कि दोनों बतौर पतिपत्नी कनाडा में शिफ्ट होने के लिए नेपाल से पासपोर्ट बनवाने की तैयारी में थे. इस के लिए उन्होंने शादी रचाई थी. पुलिस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए अनुराधा पूछताछ के दौरान जांच अधिकारियों से सिर्फ फर्राटेदार अंगरेजी में ही बात करती है. खाली वक्त में अंगरेजी की किताब मांगती है. पूछताछ में अनुराधा ने बताया कि उसी ने काला जठेड़ी को हुलिया बदलने के लिए कहा था. उल्लेखनीय है कि जब काला जठेड़ी पकड़ा गया था, तब वह सिख के वेश में था. उस के कहने पर ही जठेड़ी ने सरदार का हुलिया बना लिया था.

मंदिर में शादी के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे और अपनी पहचान बदल कर फरजी आईडी पर दोनों ने अपना नाम पुनीत भल्ला और पूजा भल्ला रख लिया था. स्पैशल सेल के सूत्रों के अनुसार, जब अनुराधा राजस्थान के गैंगस्टर आंनदपाल सिंह के साथ काम करती थी, तब उस समय उस का भी हुलिया उस ने ही बदलवाया था. आंनदपाल के कपड़े पहनने, रहनसहन और बौडी लैंग्वेज के अनुसार बोलचाल आदि की भी ट्रेनिंग दी थी. यहां तक कि अपना जुर्म का काला धंधा कैसे चलाए, इस का फैसला भी अनुराधा ही करती थी.

बताते हैं कि अनुराधा की ही प्लानिंग थी कि पुलिस की नजरों में काला जठेड़ी का ठिकाना विदेश बताया जाए. उस ने ही काला जठेड़ी के गैंग के सभी सदस्यों को यह कह रखा था कि अगर वह पुलिस के हत्थे चढ़ जाएं तो पुलिस को यही बताएं कि काला जठेड़ी अब विदेश में है और वहीं से अपना गैंग औपरेट कर रहा है. यह सब एक सोचीसमझी प्लानिंग थी. अनुराधा जानती थी कि जुर्म की दुनिया में अगर पुलिस को थोड़ी सी भी भनक लग गई तो काला जठेड़ी का हाल भी आंनदपाल जैसा हो सकता है.

गैंगस्टर ने पूछताछ में बताया है कि उस के गुर्गे दिल्ली और देश के कई अन्य राज्यों में फैले हुए हैं. उस के बाद से दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल अब राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत अन्य राज्यों में इन गुर्गों की तलाश में जुट गई है. उन में हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला मनप्रीत राठी व बच्ची गैंगस्टर, गोल्डी बरार, कैथल निवासी मंजीत राठी और झज्जर का रहने वाला दीपक है.

पिछले दिनों ओलंपिक में मेडल जीतने वाले सुशील कुमार पर भी हत्या का आरोप लगा था और उस का नाम भी गैंगस्टर में शामिल हो गया था. गिरफ्तारी से पहले सुशील कुमार ने भी दिल्ली में जमीन की खरीदफरोख्त सहित अन्य काले कारनामों के लिए जठेड़ी के साथ हाथ मिला लिया था. बाद में दोनों में दुश्मनी हो गई. दिल्ली के स्टेडियम में पहलवान सागर धनखड़ की पिटाई के बाद मौत के मामले में सुशील गिरफ्तार हो गया. सागर के साथ सोनू महाल नामक शख्स की भी पिटाई हुई थी, जो रिश्ते में काला जठेड़ी का भांजा होने के साथ ही दाहिना हाथ भी माना जाता है.

बनना चाहता था सिपाही

पूछताछ में काला जठेड़ी ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया. उस ने बताया कि वह दिल्ली पुलिस का सिपाही बनना चाहता था. इस के लिए उस ने परीक्षा भी दी थी, लेकिन पास नहीं हो पाया था. उस ने हरियाणा पुलिस में भी सिपाही का आवेदन किया था, लेकिन सेलेक्शन नहीं हुआ. उस ने बताया कि अगर उस का सपना न टूटा होता तो वह अपराधी भी नहीं होता. उस के बाद ही वह बदमाशों के संपर्क में आ गया और कई राज्यों का वांछित बदमाश बन गया.

इस बारे में उस ने स्पैशल सेल को बताया कि वर्ष 2002 में सोनीपत आईटीआई से सर्टिफिकेट कोर्स कर रहा था. उसी दौरान उस ने पुलिस में सिपाही बनने के लिए आवेदन किया था. इस के लिए उस ने दिल्ली और हरियाणा पुलिस में सिपाही भरती में हिस्सा लिया. दोनों ही जगह परीक्षा पास नहीं कर सका. सिपाही में भरती न हो पाने के बाद वह परिजनों से कुछ रुपए ले कर दिल्ली आ गया. यहां आ कर वह छोटेछोटे अपराध में लिप्त हो गया.

वर्ष 2004 में दिल्ली के समयपुर बादली थाना पुलिस ने पहली बार मोबाइल झपटमारी में काला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. झपटमारी में जमानत मिलने पर वह वापस गांव लौट आया. वहीं खेती में पिता का हाथ बंटाने के साथ केबल कारोबार में लग गया.

बहरहाल, काला जठेड़ी भले ही जेल में हो, लेकिन उस के गैंग के कई राज्यों में फैले हुए गुर्गे उस के इशारे पर कब किसी अपराध को अंजाम दे दें कहना मुश्किल है.

Top 10 Gangster Crime Story In Hindi : टॉप 10 गैंगस्टर क्राइम स्टोरी हिंदी में

Top 10 Gangster Crime Story of 2022 : इन गैंगस्टर क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि समाज में कैसे ये लोग अपने नाम को बढाने और समाज में अपना नाम बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते है. ऐसे ही कुछ लोग है जो फिल्म इंडस्ट्री में प्रसिद्द है और अंडरवर्ल्ड डौन, विकास दुबे जैसे कुछ लोगों के कारण समाज में डर पैदा हो रहा है इन सब से जागरूक होने और अपने आप को सुरक्षित करने के लिए पढ़े ये मनोहर कहानियां की ये Top 10 Gangster Crime story in Hindi

  1. गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई : जेल से ही दुश्मनों को मिटाने में माहिर

लारेंस किसी भी सूरत में अपने चचेरे भाई के हत्यारे की तलाश कर उन से बदला लेना चाहता था. नेपाल से लौट कर जब विरोधी गुट के सदस्यों की तलाश कर रहा थादुर्भाग्य से फिर पंजाब की फरीदकोट पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

दूसरी बार जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद लारेंस एक बात अच्छी तरह समझ गया कि अगर आप चालाकी से काम करो तो जेल के बाहर निकलने की जगह जेल में रह कर ही अपराध करो. इस के लिए बस आप को अपने गैंग की नेटवर्किंग को फैलाना होगा.

लारेंस अभी अपराध की दुनिया में कच्चा खिलाड़ी थालेकिन उस के सपने बड़ा डौन बनने के थे. वह लोगों के बीच अपने नाम का खौफ देखना चाहता था. अपराध की दुनिया का मंझा हुआ खिलाड़ी बनने के लिए उसे एक ऐसे गुरु की जरूरत थीजो उस की पसंद भी हो और जुर्म की दुनिया में लोग उसे मानते भी हों.

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2. नीरज बवाना : ऐसे बना जुर्म का खलीफा

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नीरज बवाना ने साल 2004 में जुर्म की दुनिया में पहला कदम रखा. उस के बाद साल 2005 आतेआते उस ने सुरेंद्र मलिक उर्फ नीतू दाबोदा गैंग से हाथ मिला लिया. कहा जाता है उस समय तक नीतू दाबोदा गैंग ने जुर्म की दुनिया में अच्छाखासा मुकाम हासिल कर लिया था. नीतू दाबोदा गैंग का मुख्य काम होता था, लूट डकैती और हत्या जैसी वारदातों को अंजाम देना.

साल 2010 तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा. तब तक नीरज बवाना जुर्म की दुनिया में एक फ्रैशर की तरह था. लेकिन साल 2011 आतेआते सूरत बदल गई. 2011 में नीरज के दोस्त सोनू पंडित की दाबोदा गैंग में एंट्री हुई. गैंग में सोनू पंडित के आने के बाद नीतू दाबोदा और नीरज बवाना के बीच दूरियां बढ़ती गईं.

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3. काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया

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पुलिस के अनुसार वर्ष 2006 में गांव के कुछ लोगों के साथ वह दिल्ली के डाबड़ी इलाके में आया. उस ने यहां विवाद में पीट कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी. उसे इस मामले में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. जेल में उस की अनिल रोहिल्ला उर्फ लीला से दोस्ती हो गई.

अनिल रोहिल्ला ने ही उसे बताया कि रोहतक स्थित उस के गांव में एक परिवार से दुश्मनी चल रही है. उस परिवार में 7 भाई हैं और उन्होंने उस के पिता की हत्या की है. इस का बदला लेने के लिए उस ने गैंग बनाया है.

इस परिवार के 5 भाइयों सहित 8 लोगों को काला जठेड़ी ने मार डाला. इस हत्याकांड से ही संदीप का नाम काला जठेड़ी के रूप में अपराध की दुनिया में मशहूर हो गया.

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4. जुर्म की दुनिया की लेडी डौन

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राजस्थान के सीकर के गांव अलफसर के एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्मी अनुराधा का घर का नाम मिंटू रखा गया था. जब वह बहुत छोटी थी तभी उस की मां चल बसी. पिता रामदेव की कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह दिल्ली आ गए. मिंटू जैसेजैसे बड़ी और समझदार होती गई, उसे यह एहसास होता गया कि जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो पढ़ाईलिखाई बहुत जरूरी है. लिहाजा उस ने दिल लगा कर पढ़ाई की और वक्त रहते बीसीए और फिर एमबीए की भी डिग्री ले ली.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह स्थाई रूप से सीकर वापस आई तो वही हुआ जो इस उम्र में लड़कियों के साथ होना आम बात है. अनुराधा को फैलिक्स दीपक मिंज नाम के युवक से प्यार हो गया और उस ने घर और समाज वालों के विरोध और ऐतराज की कोई परवाह नहीं की और दीपक से लवमैरिज कर ली.

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5. सूरत की ब्यूटी लेडी डौन : अस्मिता ने मचाया आतंक

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13 मार्च, 2017 के इस वीडियो में जहां सूरत के वराछा इलाके में लोग होली का त्यौहार मनाने में मस्त थे तो वहीं अस्मिता गोहिल अपने कारनामों में व्यस्त थी. वह अपने प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला और गोपाल विट्ठल जाधव के साथ हाथों में नंगी तलवार और चाकू लिए उन के बीच पहुंची थी. फिर उस ने भागीरथी मार्केट की गलियों में वहां के लोगों को डरातेधमकाते हुए वहां भय का माहौल बना दिया था. उस के डर से लोग सहम गए थे.

इस वीडियो के वायरल होते ही सूरत के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए थे. वे पता लगाने लगे कि ये कौन सी डौन थी, जिस के आतंक से वहां के लोग इतने सहमे हुए थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए सीनियर पुलिस अधिकारियों ने वराछा के थानाप्रभारी मयूर पटेल से उस वीडियो की सच्चाई जानने के निर्देश दिए. सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी मामले की जांच में जुट गए.

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6. बदन सिंह बद्दो : हौलीवुड एक्टर जैसे कुख्यात गैंगस्टर

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1994 में बदन सिंह बद्दो ने प्रकाश नाम के एक युवक की गोली मार कर हत्या कर दी. साल 1996 में बदन सिंह ने वकील राजेंद्र पाल की हत्या की. इस के बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया. वह सुपारी ले कर हत्याएं करवाने का धंधा भी करने लगा.

बद्दो के बारे में कहा जाता है कि उस का गुस्सा तभी शांत होता था, जब वह अपने दुश्मन से बदला ले लेता था. कहते हैं कि उसे टोकाटाकी कतई बरदाश्त नहीं है. वकील राजेंद्र पाल की हत्या ने बद्दो को खूब मशहूर किया.

दरअसल, वकील राजेंद्र पाल भी कुछ कम दबंग नहीं था. एक पार्टी में बदन सिंह बद्दो ने किसी बात से चिढ़ कर वकील राजेंद्र पाल के पारिवारिक मित्र की पत्नी के बारे में अनुचित टिप्पणी कर दी थी, जिस से नाराज राजेंद्र पाल ने उसे सरेआम थप्पड़ जड़ दिया. बस फिर क्या था, राजेंद्र को मौत के घाट उतार कर बद्दो ने बदला पूरा किया और फरार हो गया.

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7. सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा : अंडरवर्ल्ड डौन का भी महागुरु

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सुभाष के पास ताकत भी थी और हिम्मत भी और साथ में लीडरशिप वाले गुण भी थे. इसलिए उस ने आए दिन होने वाले पुलिस के उत्पीड़न से बचने के लिए पूर्वांचल के ऐसे नौजवान लड़कों का गुट बनाना शुरू कर दिया, जो दिलेर थे और उन के सपने बडे़ थे.

सुभाष की मेहनत रंग लाई. उस ने 20-25 ऐसे नौजवानों का गुट बना लिया जो उस के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार थे. इस के बाद सुभाष ने पहले वसई और विरार इलाके में सक्रिय मराठी गुंडों के खिलाफ लड़ना शुरू किया, जो लोकल मार्केट में उगाही करते थे. सुभाष ठाकुर ने उन दुकानदारों से पहले हफ्ता वसूली शुरू की, जिन से पहले मराठी गुंडे वसूली करते थे.

मुंबई उन दिनों तेजी से आबाद हो रही थी. बड़ीबड़ी इमारतें बन रही थीं. बिल्डिंग बनाने और प्रौपर्टी के धंधे में बड़ा मुनाफा था. लेकिन जमीन से जुड़े विवाद के कारण बिल्डरों को सब से ज्यादा नेता, पुलिस और गुंडों की मदद लेनी पड़ती थी.

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8. लेडी डौन बनने की चाहत : कैसा जाल बिछाती थी प्रिया

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प्रिया की उन्मुक्तता में प्रोफेसर बनने का सपना धुंधला सा गया. वह रिश्तेदार का घर छोड़ कर मानसरोवर में ही पेइंगगेस्ट के रूप में रहने लगी. वैसे तो मातापिता उसे जयपुर में रहनेखाने और पढ़ाई के खर्च के लिए पैसे भेज देते थे, लेकिन उन पैसों से उस की मनचाही आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती थीं. अपने शौक पूरे करने के लिए प्रिया को पैसों की जरूरत महसूस होने लगी. अकेले रहते हुए दौलत की चाह में वह कब अनैतिक काम करते हुए अपराध की दलदल में उतर गई, उसे खुद पता नहीं चला.

आज प्रिया के हाथ खून से रंगे हुए हैं. उस ने जयपुर में रहते हुए 5 साल के दौरान हर तरह के हथकंडे अपनाए. आलीशान फ्लैट में रहना, लग्जरी कार में घूमना, महंगी शराब पीना, गांजे की सिगरेट का नशा और मौजमस्ती. उस ने सब तरह की ऐश की. अपने हुस्न की झलक दिखाने के लिए वेबसाइट भी बनाई.

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9. अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी

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माफिया डौन अतीक अहमद का इतना आतंक है कि उत्तर प्रदेश की 4-4 जेलें उसे संभाल नहीं सकीं. इन जेलों के जेलरों ने स्वयं सरकार से कहा कि हम इस डौन को नहीं संभाल सकते.

इस का कारण यह था कि अतीक जब उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की जेल में बंद था, तब उस ने अपने गुंडों से लखनऊ के एक बिल्डर मोहित जायसवाल को जेल में बुला कर बहुत मारापीटा था और उस से उस की प्रौपर्टी के कागजों पर दस्तखत करा लिए थे.

अतीक अहमद ने अपना आतंक फैलाने के लिए इस मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था, जिस से लोगों में उस की दहशत बनी रहे. इस वीडियो को देखने के बाद राज्य में हड़कंप मचा तो अतीक अहमद को देवरिया की जेल से बरेली जेल भेजा गया. पर बरेली जेल के जेलर ने स्पष्ट कह दिया कि इस आदमी को वह नहीं संभाल सकते.

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10. विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर

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इस चुनाव में विकास दुबे ने इलाके के एकएक प्रधान, ग्राम पंचायत और ब्लौक के सदस्यों को डराधमका कर अपने गौडफादर हरिकृष्ण श्रीवास्तव के पक्ष में मतदान करने को मजबूर कर दिया. इसी चुनाव के दौरान संतोष शुक्ला और विकास दुबे के बीच कहासुनी भी हो गई थी, कड़े मुकाबले के बावजूद हरिकृष्ण श्रीवास्तव इलेक्शन जीत गए.

विकास और उस के गुर्गे जीत का जश्न मना रहे थे, तभी संतोष शुक्ला वहां से गुजरे. विकास ने उन की कार रोक कर गालीगलौज शुरू कर दी. दोनों तरफ से जम कर हाथापाई हुई. इस के बाद विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली.

5 साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही. इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान गई. 1997 में कुछ समय के लिए बीजेपी के सर्मथन से बसपा की सरकार बनी और मायावती मुख्यमंत्री बन गईं. हरिकृष्ण श्रीवास्तव को स्पीकर बनाया गया.

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शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर : ड्रग सामाज्य की मल्लिकाशार्ट स्टोरी