बेखौफ गैंगस्टर : दो पुलिस अफसरों की हत्या

पंजाब का लुधियाना शहर हौजरी और गर्म कपड़ों के थोक व्यापार के लिए पूरे भारत में जाना जाता है. लुधियाना और उस के आसपास गर्म कपड़े बनाने के सैकड़ों छोटेबड़े उद्योग हैं. हर साल सर्दियों की शुरुआत से पहले ही खरीदारी के लिए यहां देश भर के व्यापारी आते हैं. इसी लुधियाना शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर एक शहर जगराओं है.

इसी साल 15 मई की बात है. पुलिस के सीआईए स्टाफ के एएसआई दलविंदर सिंह और भगवान सिंह को शाम को करीब 6 बजे सूचना मिली कि जगराओं की नई दाना मंडी में एक ट्र्रक में नशे की बड़ी खेप आई है. इस सूचना पर दोनों एएसआई एक होमगार्ड जवान राजविंदर के साथ अपनी निजी स्विफ्ट कार से मौके पर रवाना हो गए.

15-20 मिनट बाद जब वह वहां पहुंचे तो उन्होंने वहां एक कैंटर ट्र्रक खड़ा देखा. पुलिस वाले अपनी गाड़ी एक तरफ साइड में खड़ी कर उस ट्र्रक के पास पहुंचे और आसपास खड़े लोगों से पूछताछ करने लगे.

वहां मौजूद लोगों से उन्हें कुछ पता नहीं चला, तो एएसआई भगवान सिंह ट्र्रक में आगे बने ड्राइवर केबिन में चढ़ गए. भगवान सिंह ने ट्र्रक में ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स को पहचान लिया. उसे देखते ही बोले, ‘‘ओए पुत्तर, तू तो जयपाल भुल्लर है.’’

वह शख्स भी भगवान सिंह की बात सुन कर समझ गया कि यह पुलिसवाला है. उस ने फुरती से अपने कपड़ों में से पिस्तौल निकाली और उस की कनपटी पर गोलियां मार दीं. गोलियां लगने से भगवान सिंह ट्र्रक से नीचे गिर गए. उन के सिर से खून बह निकला. गोली की आवाज सुन कर ट्र्रक के पास खड़े दूसरे एएसआई दलविंदर सिंह तेजी से ट्र्रक में चढ़ने लगे, तो पास में खड़ी एक आई-10 कार में सवार कुछ लोग बाहर निकल आए.

वे लोग उन पुलिस वालों से मारपीट करने लगे. मारपीट के दौरान एक शख्स ने दलविंदर सिंह को भी गोली मार दी. गोली लगने से वह भी लहूलुहान हो गए. इस के बाद भी बदमाश नहीं रुके बल्कि दलविंदर और होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह से मारपीट करते रहे. राजविंदर जैसेतैसे बदमाशों से अपनी जान बचा कर भाग निकला.

जब यह घटनाक्रम चल रहा था तो मंडी में कुछ युवक क्रिकेट खेल रहे थे. उन युवकों ने गोलियां चलने की आवाज सुनी तो वे वीडियो बनाने लगे और बदमाशों को पकड़ने के लिए दौड़े. इस पर बदमाशों ने गोलियां चला कर उन युवकों को धमकाया.

उन युवकों के डर कर रुक जाने पर बदमाशों ने ट्र्रक से सामान निकाल कर अपनी आई-10 कार में रखा. इस के बाद बदमाशों ने वहां लहूलुहान पड़े पुलिस के दोनों अधिकारियों की पिस्तौलें निकालीं और उस ट्र्रक व कार में सवार हो कर भाग गए.

पुलिस के दोनों एएसआई गोलियां लगने से तड़प रहे थे. बदमाशों के भागने के बाद वहां लोगों की भीड़ जुट गई. पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने घायल पड़े दोनों एएसआई को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

सरेआम दिनदहाड़े पुलिस के 2 अधिकारियों की गोलियां मार कर हत्या कर देने की घटना से पूरे शहर और आसपास के इलाकों में सनसनी फैल गई. अफसरों ने पहुंच कर मौकामुआयना किया. जांच शुरू कर दी गई. बदमाशों की तलाश में शहर के सभी रास्तों पर नाके लगा दिए. पूरे पंजाब में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया.

बदमाशों की तलाश में भागदौड़ कर रही पुलिस को कुछ ही देर बाद मोगा रोड पर एक ढाबे के बाहर वह ट्र्रक खड़ा मिल गया, जिसे बदमाश भगा ले गए थे. ट्र्रक में अफीम और चिट्टा बरामद हुआ. ट्र्रक के पिछले हिस्से में तलाशी के दौरान पुलिस को कई ब्रांडेड कपड़े मिले. इस से यह अंदाज लगाया गया कि ट्र्रक में कई लोग सवार थे. पुलिस ने वह ट्र्रक जब्त कर लिया.

ट्र्रक के नंबर की जांचपड़ताल की, तो वह फरजी निकला. यह नंबर फरीदकोट के एक जमींदार की मर्सिडीज कार का निकला. जांच में पता चला कि यह ट्र्रक मोगा के गांव धल्ले के रहने वाले एक शख्स के नाम पर था. उस ने ट्र्रक दूसरे को बेच दिया. इस के बाद भी यह ट्र्रक 2 बार आगे बिकता रहा.

पुलिस अधिकारियों ने बदमाशों के चंगुल से जान बचा कर भागे होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह से पूछताछ की तो पता चला कि ड्रग्स की सूचना पर वे मौके पर गए थे. वहां ट्र्रक की चैकिंग के दौरान एएसआई भगवान सिंह ने जयपाल भुल्लर को पहचान लिया था. इस पर जयपाल ने उसे गोलियां मार दी थीं.

बाद में एएसआई दलविंदर आगे बढ़े तो जयपाल के साथी बदमाशों ने उन पर भी गोलियां चला दीं. होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह के परचा बयान पर पुलिस ने जयपाल भुल्लर और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.  दूसरे दिन पुलिस ने दोनों शहीद एएसआई भगवान सिंह और दलविंदर सिंह के शवों का पोस्टमार्टम कराया. इस के बाद शव उन के घरवालों को सौंप दिए. दलविंदर का शव

उन के घर वाले अपने पैतृक गांव तरनतारन ले गए.

भगवान सिंह का अंतिम संस्कार जगराओं में शेरपुरा रोड पर राजकीय सम्मान से किया गया. उन के 11 साल के बेटे ने मुखाग्नि दी. भगवान सिंह के अंतिम संस्कार में डीजीपी (रेलवे) संजीव कालड़ा, आईजी नौनिहाल सिंह, डीसी वरिंदर शर्मा आदि मौजूद रहे. डीजीपी ने ट्वीट कर दोनों शहीद पुलिसकर्मियों के परिवार वालों को एकएक करोड़ रुपए और आश्रित को नौकरी देने का ऐलान किया.

पुलिस ने जांचपड़ताल के लिए मौके के आसपास और बदमाशों के भागने के रास्तों की सीसीटीवी फुटेज देखी. इन से साफ हो गया कि दोनों पुलिसकर्मियों की हत्या कुख्यात गैंगस्टर जयपाल भुल्लर और उस के साथियों ने की थी.

पुलिस ने जयपाल के 3 साथियों की पहचान खरड़ निवासी जसप्रीत सिंह जस्सी, लुधियाना के सहोली निवासी दर्शन सिंह और मोगा के माहला खुर्द निवासी बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी के रूप में की.

हमलावरों पर किया ईनाम घोषित

जगराओं पुलिस ने इन चारों के पोस्टर जारी कर ईनाम भी घोषित कर दिया. पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने जयपाल पर 10 लाख रुपए, बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी पर 5 लाख रुपए, जसप्रीत सिंह उर्फ जस्सी और दर्शन सिंह पर 2-2 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया.

जयपाल भुल्लर का नाम पंजाब पुलिस के लिए नया नहीं है. पुलिस का हर नयापुराना मुलाजिम उस के नाम से परिचित है. जयपाल पर हत्या, अपहरण, डकैती, तसकरी, फिरौती आदि संगीन अपराधों के 45 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. बलजिंदर उर्फ बब्बी के खिलाफ हत्या का केस दर्ज है. जस्सी और दर्शन कुख्यात तसकर हैं. जयपाल पंजाब सहित कई राज्यों का मोस्टवांटेड अपराधी है.

जयपाल का दोनों एएसआई की हत्या की वारदात से 5 दिन पहले ही पुलिस से आमनासामना हुआ था. 10 मई को लुधियाना के दोराहा में जीटी रोड पर नाकेबंदी के दौरान पुलिस ने कार में सवार 2 युवकों को रोका था. चैकिंग के दौरान बहसबाजी होने पर दोनों युवकों ने वहां तैनात एएसआई सुखदेव सिंह और हवलदार सुखजीत सिंह को हमला कर घायल कर दिया था. बाद में दोनों युवक कार से भाग गए थे.

हुलिया बदलने में माहिर था जयपाल

भागते समय ये युवक एएसआई सुखदेव सिंह से पिस्तौल भी छीन ले गए थे. पुलिस वालों से मारपीट करने वाले दोनों युवक करीब 25-30 साल के पगड़ीधारी सिख थे. उन्होंने सफेद कुरतापायजामा पहन रखा था. हाथापाई के दौरान एक युवक का पर्स गिर गया था. इस पर्स में गुरप्रीत सिंह के नाम से ड्राइविंग लाइसैंस मिला था.

पुलिस को बाद में जांच में पता चला कि इस घटना में हमलावरों में एक युवक जयपाल था. पर्स भी उसी का गिरा था. पर्स में मिले ड्राइविंग लाइसैंस पर फोटो जयपाल की लगी थी, लेकिन फरजी नाम गुरप्रीत सिंह लिखा हुआ था.

खास बात यह थी कि जगराओं में दोनों एएसआई की हत्या की वारदात के वक्त जयपाल क्लीन शेव था. यानी उस ने 5 दिन में ही अपना हुलिया बदल लिया था. वह बारबार हुलिया बदल कर ही पुलिस को चकमा देता रहता था.

पुलिस ने जयपाल और उस के साथियों की तलाश में छापे मारे, तो पता चला कि गैंगस्टर जयपाल भुल्लर जोधां के गांव सहोली में अपने साथी कुख्यात तसकर दर्शन सिंह के खेतों में पिछले डेढ़ महीने से रहा था. दोराहा नाके पर हुई घटना से पहले वह केशधारी सरदार के रूप में रहता था. बाद में उस ने अपना रूप बदल कर चेहरा क्लीन शेव कर लिया.

जयपाल की तलाश में पुलिस ने सर्च अभियान शुरू किया. पुलिस को इनपुट मिले थे कि वारदात से पहले और बाद में जयपाल लुधियाना के आसपास के गांवों में आताजाता रहा है. इन गांवों में उस के ठिकाने हैं.

इसे देखते हुए 17 मई को एडिशनल डीपीसी जसकिरणजीत सिंह तेजा, एसीपी जश्नदीप सिंह और डेहलो थानाप्रभारी सुखदेह सिंह बराड़ के नेतृत्व में पुलिस ने करीब डेढ़ दरजन गांवों में एकएक घर की तलाशी ली. इस दौरान किराएदारों का भी रिकौर्ड जुटाया गया.

दूसरी ओर, कुछ सूचनाओं के आधार पर लुधियाना और जगराओं पुलिस ने चंडीगढ़ में छापे मारे. इन छापों में कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया. इन लोगों से पता चला कि जयपाल फरजी ड्राइविंग लाइसैंस दिखा कर कई महीने तक चंडीगढ़ में एक एनआरआई के मकान में किराए पर भी रहा था.

जयपाल के छिपने के ठिकानों का पता लगाने के लिए पुलिस की आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्र्रोल यूनिट (ओक्कू) टीम ने उस के भाई अमृतपाल को बठिंडा जेल से प्रोडक्शन वारंट पर हासिल किया. उस से पूछताछ की, लेकिन कोई पते की बात मालूम नहीं हो सकी. बाद में पुलिस ने उसे वापस जेल भेज दिया.

बदमाशों की तलाश में पुलिस ने लुधियाना, अमृतसर और मालेरकोटला सहित कई शहरों में छापे मारे और कई लोगों से पूछताछ की. विभिन्न जेलों में बंद जयपाल के साथियों से भी पूछताछ की.

इन में पता चला कि दोनों पुलिस मुलाजिमों की हत्या की वारदात तक जयपाल करीब 6 महीने से जगराओं के गांव कोठे बग्गू में किराए के मकान में रह रहा था. वह इसी मकान से नशीले पदार्थों की तसकरी का धंधा चला रहा था.

पुलिस ने 19 मई, 2021 को जयपाल के साथी ईनामी बदमाश दर्शन सिंह के मकान की तलाशी ली. इस में जिम की एक किट बरामद हुई. इस किट में हथियार और 300 कारतूस मिले.

इस के अलावा अलगअलग वाहनों की 8-10 आरसी भी मिलीं. ये आरसी उन वाहनों की थीं, जो हाईवे पर लूटे या चोरी किए

गए थे. पुलिस ने दर्शन सिंह की पत्नी सतपाल कौर को हिरासत में ले कर उस से पूछताछ की. 8 राज्यों की पुलिस जुटी तलाश में   पुलिस ने पंजाब और राजस्थान के उस के छिपने के संभावित ठिकानों पर भी छापे मारे. इस के अलावा ओक्कू टीम ने जयपाल के साथी गगनदीप जज को बठिंडा जेल से प्रोडक्शन वारंट पर हासिल किया.

गगनदीप ने जयपाल के साथ मिल कर फरवरी 2020 में लुधियाना में एक कंपनी से 32 किलोग्राम सोना लूटा था. गगनदीप को जयपाल के लगभग हर राज पता थे. इसी उम्मीद में उस से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस उस से भी कुछ नहीं उगलवा सकी. गगन से मिली कुछ जानकारियों के आधार पर पुलिस ने जयपाल की तलाश में उत्तर प्रदेश और राजस्थान के 8-10 गांवों में छापे मारे, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ.

2 पुलिसकर्मियों की हत्या की वारदात के एक सप्ताह बाद भी जयपाल और उस के साथियों का कोई सुराग नहीं मिलने पर पंजाब पुलिस ने अन्य राज्यों की पुलिस से संपर्क किया. इस के बाद 8 राज्यों की पुलिस की कोऔर्डिनेशन टीम बनाई गई. इस में पंजाब के अलावा हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनिंदा पुलिस अफसरों को शामिल किया गया.

जयपाल के साथ फरार उस के साथी खरड़ निवासी जसप्रीत सिंह उर्फ जस्सी की पत्नी लवप्रीत कौर को मोहाली की सोहाना थाना पुलिस ने 20 मई को गिरफ्तार कर लिया. मोहाली में पूर्वा अपार्टमेंट में उस के फ्लैट से करीब 8 बैंकों की पासबुक और दूसरे अहम दस्तावेज मिले. पुलिस ने बैंकों से स्टेटमेंट निकलवाई, तो पता चला कि इन खातों में करोड़ों रुपए का लेनदेन हो रहा था.

कहा जाता है कि लवप्रीत इस फ्लैट में अकेली रहती थी जबकि उस की ससुराल खरड़ गांव में है.

लोगों को गुमराह करने के लिए जसप्रीत उस से अलग रहता था, लेकिन असल में उस का पत्नी लवप्रीत से लगातार संपर्क था. वह इसी फ्लैट में आ कर पत्नी से मिलता था.

लगातार चल रहे तलाशी अभियान के दौरान पुलिस ने जयपाल को शरण देने और उस की मदद करने वाले 5 लोगों को 21 मई को गिरफ्तार कर लिया. इन से कई हथियार और कारतूसों के अलावा 29 वाहनों की फरजी आरसी, 8 खाली आरसी कार्ड, टेलीस्कोप, पंप एक्शन गन आदि भी बरामद हुए.

गिरफ्तार आरोपियों में कैंटर मालिक मोगा के गांव धल्ले का रहने वाला गुरुप्रीत सिंह उर्फ लक्की और उस की पत्नी रमनदीप कौर, दर्शन सिंह का दोस्त सहोली गांव निवासी गगनदीप सिंह, जगराओं के आत्मनगर का रहने वाला जसप्रीत सिंह और सहोली गांव के रहने वाले नानक चंद धोलू शामिल रहे.

इन से पूछताछ में पता चला कि जयपाल और उस के साथी गाडि़यां लूटने और चोरी करने के बाद उन की फरजी आरसी और नंबर प्लेट तैयार करते थे. फरजी आरसी तैयार करने के लिए उन्होंने एक माइक्रो मशीन ले रखी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयपाल और जसप्रीत सिंह के सोशल मीडिया अकाउंट ब्लौक करवा दिए. पता चला था कि ये बदमाश अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए युवाओं को जोड़ते और गैंग में शामिल होने के लिए तैयार करते थे.फिरोजपुर निवासी जयपाल भुल्लर पंजाब ही नहीं कई राज्यों में खौफ का पर्यायवाची नाम है. जिस जयपाल के पीछे 8 राज्यों की पुलिस लगी हुई थी, उस जयपाल के पिता भूपिंदर सिंह पंजाब पुलिस में इंसपेक्टर थे. कहा जाता है कि पिता के कारण ही जयपाल के पुलिस महकमे में कई मुलाजिम अच्छे जानकार हैं. इसलिए वह पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहता था.

पुलिस को जांच में यह भी पता लग गया था कि इस वारदात में जयपाल और उस का साथी जस्सी शामिल था. इसी का नतीजा रहा कि जयपाल ने 5 दिन बाद ही 15 मई को जगराओं में 2 एएसआई को मौत की नींद सुला दिया.

बदमाश दर्शन सिंह कुख्यात तसकर है. उस के खिलाफ भी कई मामले दर्ज हैं. उस के नजदीकी रिश्तेदार पंजाब पुलिस में एसपी के पद पर हैं. दर्शन सिंह जेल भी जा चुका है.

करीब 5 साल पहले हत्या के मामले में अच्छा चालचलन बता कर लुधियाना की ब्रोस्टल जेल से 2 साल 4 महीने की उस की सजा माफ कर दी गई थी. जेल से बाहर आने के बाद वह जयपाल के साथ मिल कर

नशा तसकरी और लूटपाट की बड़ी वारदातें करने लगा.

पंजाब पुलिस की ओक्कू टीम ने दोनों एएसआई की हत्या की वारदात में शामिल गैंगस्टर दर्शन सिंह और बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी को 29 मई, 2021 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले से गिरफ्तार कर लिया. इन को पनाह देने वाले हरचरण सिंह को भी पकड़ लिया गया है.

अपराध की दुनिया में जयपाल भले ही ऊंची उड़ान भर रहा था, लेकिन उस का हश्र भी वही हुआ, जो ऐसे अपराधियों का होता है. पकड़े गए उस के सहयोगियों से पुलिस को जयपाल का सुराग मिल गया. इस के बाद 9 जून, 2021 को पश्चिम बंगाल

के कोलकाता में हुए एक एनकाउंटरमें जयपाल भुल्लर और उस का साथी जसप्रीत जस्सी मारा गया.

ये लोग फरजी नाम से कोलकाता के पास बीरभूम के सिगुरी इलाके के शापूरजी हाउसिंग कौंप्लैक्स में छिपे हुए थे. इन के किराए के इस फ्लैट में लाखों रुपए नकद, आधुनिक हथियार, ड्रग्स के पैकेट, फरजी ड्राइविंग लाइसैंस, पासपोर्ट आदि बरामद हुए. पंजाब पुलिस को जयपाल का सुराग मध्य प्रदेश के एक टोलनाके के सीसीटीवी कैमरों से मिला था. इन बदमाशों के मारे जाने से इन के आतंक का अंत हो गया.

दाऊद इब्राहिम से जुड़ी ये बातें क्या जानते हैं आप

आतंक का पर्याय और 1993 में मुंबई में हुए धमाके का मुख्य आरोपी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम भारत के मोस्ट वांटेट आतंकवादियों की सूची में पहले नंबर पर है और विश्व के सबसे खूंखार आतंकवादियों की सूची में तीसरे नंबर पर है. कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ाने में भी दाऊद की सक्रियता मानी जाती है. दाऊद आज भी पाकिस्तान में रहकर भारत में अपने नापाक इरादों को अंजाम दे रहा है.

डॉन दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान के कराची में है. इस बार यह दावा इंडिया टुडे ने डॉन की नई फोटो छापकर अपनी खबर में किया है. 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के बाद यह दाऊद की पहली फुल लैंथ फोटो है. रिपोर्ट की माने तो ये फोटो भारतीय पत्रकार विवेक अग्रवाल ने खींची थी, जो कुछ साल पहले कराची गए थे.

दाऊद वह नाम है जिसे भारत में आतंक के रुप में पहचाना जाता है. आपको बता दें कि दाऊद वहीं शख्‍स है जिसने मुंबई को 90 के दशक की शुरुआत में सीरियल बम धमाकों से हिला दिया था. उस दर्द को आज भी मुंबई के लोग नहीं भूल सके हैं.

फोटो में दाऊद का पूरा चेहरा

जिस फोटो को इंडिया टुडे ने खबर में जगह दी है वह 1985 के बाद दाऊद इब्राहिम की पहली ऐसी तस्वीर है जिसमें वह पूरा दिखाई दे रहा है. इस फोटो में दाऊद बिना मूछ के नजर आ रहा है. उसने अपना चेहरा छुपाने के लिए किसी भी तरह की कोई प्लास्टिक सर्जरी नहीं करवाई है. उसने तस्वीर में काला और सफेद रंग का कुर्ता पायजामा पहन रखा है.

खुली पोल की पाकिस्तान

जिस अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद को भारत की सरकार खोज रही है. जिसकी तलाश में इंटरपोल की पुलिस बेचैन है. वह दाऊद इब्राहिम और कहीं नहीं पाकिस्तान की गोद में बैठा हुआ है. ‘जी हां’ वह पाकिस्तान में ही है. इंडिया टुडे ने जो दाऊद इब्राहिम की तस्वीर छापी है वह कराची की है, यानी वह कराची में है. इस तस्वीर के जारी होने के बाद पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हो गया है, हालांकि पाकिस्तान हमेशा से यह कहता रहा है कि दाऊद पाकिस्तान में नहीं है.

पिछले साल रॉ को मिली थी एक फोटो

भारत की खुफिया एजेंसी रॉ को पिछले साल 22 अगस्त को दाऊद की एक फोटो मिली थी. फोटो के साथ ही उसके पाकिस्तानी पासपोर्ट की कॉपी भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) ने जुटाई थी ये डॉक्युमेंट्स भारत ने दाऊद के खिलाफ पाकिस्तान को अपने डोजियर में सौंपे थे.

दाऊद को दो पासपोर्ट कराची से जारी किए गए थे, जबकि बाकी दो रावलपिंडी से. एक टीवी चैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कराची के ही क्लिफ्टन इलाके में दाऊद ने एक और बंगला खरीदा है. यह बंगला यहां के मशहूर जियाउद्दीन हॉस्पिटल के पास है.

उस समय रिपोर्ट आई थी कि दाऊद और उसकी पत्नी मेहजबीन, दोनों ही बीमार रहते हैं और इमरजेंसी के लिए यह बंगला लिया गया है, ताकि जरूरत पड़ने पर जल्द हॉस्पिटल पहुंचा जा सके. 59 साल के हो चुके दाऊद की फैमिली से जुड़े ट्रैवल डॉक्युमेंट्स रॉ और दूसरी एजेंसियों ने हासिल किए थे.

दाऊद कब भारत से भागा था?

दाऊद कानून से बचने के लिए 1986 में ही दुबई चला गया था. वह शारजाह में होने वाले क्रिकेट मैच के दौरान भी स्टेडियम में दिखाई देता था. लेकिन 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद उसकी कोई फोटो सामने नहीं आई. वह पब्लिक फंक्शन्स में भी जाने से बचने लगा. पाकिस्तान ने बाद में उसे अपने मुल्क में रहने की इजाजत दी.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उसे आईएसआई से भी सिक्युरिटी मिली. पाकिस्तान 23 साल से इस आतंकी को अपने यहां पनाह देने की बात नकारता रहा है. उसकी पहली पासपोर्ट साइज फोटो पिछले साल अगस्त में और पहली फुल लेंथ फोटो शुक्रवार को सामने आई.

कैसा दिखता है दाऊद?

पिछले साल सामने आई एक फोटो में दाऊद क्लीन शेव्ड नजर आ रहा है. उसके चेहरे पर झुर्रियां हैं. फोटो से यह भी पता चलता है कि दाऊद ने प्लास्टिक सर्जरी नहीं कराई है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया था कि दाऊद ने सर्जरी से अपना चेहरा बदल लिया है. भारत की खुफिया एजेंसियों के पास दाऊद के दुबई जाने की टिकट और फैमिली फोटोज भी हैं.

पुख्ता सबूतों में क्या-क्या मिला था? दाऊद के किस ऐड्रेस का है जिक्र?

भारत की खुफिया एजेंसी रॉ को दाऊद की 2012 की एक फोटो मिली थी. दाऊद के 3 पाकिस्तानी पासपोर्ट मिले हैं. लेकिन तीनों में दाऊद ने अलग-अलग ऐड्रेस लिखवाया है.

दाऊद की पत्नी मेहजबीन शेख के नाम पर बिजली का बिल मिला है. बिल अप्रैल 2015 का है. इस बिल पर D-13, ब्लॉक-4, कराची डेवलपमेंट अथॉरिटी, सेक्टर- 5, क्लिफ्टन का पता दर्ज है.

दाऊद की फैमिली के ट्रैवल डॉक्युमेंट्स में क्या मिला?

रा के अलावा भारत की बाकी खुफिया एजेंसियों के हाथ जो सबूत लगे हैं, उनके मुताबिक दाऊद का परिवार पाकिस्तान से दुबई के बीच कई बार ट्रैवल कर चुका है. डॉक्युमेंट्स के मुताबिक, दाऊद की पत्नी मेहजबीन और बेटी माजिया 4 जनवरी 2015 को एमिरेट्स एयरलाइन्स की फ्लाइट से कराची से दुबई गए थे.

वहां से वे दाऊद की दूसरी बेटी माहरुख और दामाद जुनैद मियांदाद (पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर जावेद मियांदाद का बेटा) के साथ 11 जनवरी को वापस लौटे. इसके बाद, दाऊद की पत्नी एक बार फिर 19 फरवरी 2015 को दुबई गई और 26 फरवरी 2015 को वापस लौटी.

दाऊद का बेटा मोइन, उसकी बीवी सानिया और उसके बच्चों ने भी मार्च से मई 2015 के बीच कई बार कराची से दुबई के बीच ट्रैवल किया. मोइन पत्नी सानिया और बच्चों के साथ 30 मई 2015 को दुबई से फिर कराची आया. भारतीय एजेंसियों के पास दाऊद की फैमिली के सभी लोगों के पासपोर्ट नंबर और एयर टिकट के डिटेल्स हैं.

कैसे बना अंडरवर्ल्ड डॉन

दाऊद इब्राहिम का जन्‍म 27 दिसंबर 1955, महाराष्‍ट्र में रत्नागिरी जिले के मुमका में एक पुलिस कांस्टेबल के यहां हुआ. दाऊद और पाकिस्‍तानी सरकार दोनों एक-दूसरे के सहयोगी थे. एक तरफ आईएसआई ड्रग्‍स तथा अन्‍य मादक पदार्थों की तस्‍करी का कारोबार करता था, उसके बदले में दाऊद पाकिस्‍तान सरकार की तरफ से उस पाकिस्‍तानी कोर ग्रुप का हिस्‍सा था जो विदेशों में आंतकवाद के खिलाफ जंग करता था.

दाऊद इब्राहिम अंडरवर्ल्ड में 1984 में आया. इससे पहले वो डोंगरी इलाके में चोरी, डकैती, लूटपाट इत्‍यादी करता था. उसी दौरान पठान बासु दादा के गैंग ने उसके बड़े भाई की गोली मारकर हत्‍या कर दी. इसके बाद वह पठान के पीछे पड़ गया और हाज़ी मस्‍तान की गैंग में शामिल हो गया.

दाऊद का असली नाम

दाऊद इब्राहिम का पूरा नाम दाऊद इब्राहिम कासकर है. उसने 1985 में डोंगरी पुलिस के इशारे पर पठान को मारा. उस समय पठान पूरे इलाके में होटलों, व्‍यवसाइयों, पत्रका‍रों के साथ-साथ पुलिस को भी परेशान कर रखा था. पठान के आदमियों ने दाऊद के दोस्‍त एवं पत्रकार मोहम्‍मद इकबाल नातिक को रिपोर्टिंग करते समय धमकाया और मारा था जिससे दाऊद गुस्‍से में था.

दाऊद के पसंदीदा हथियार

1985 में मुंबई में हाज़ी मस्‍तान के बाद दाऊद का प्रभाव बढ़ा और उसने हथियारों को विदेशों से खरीदने का काम शुरू किया. उस समय उसका पसंदीदा हथियार तलवारें, चाकू तथा देशी रिवॉल्‍वर तमंचा शामिल है, जो रामपुर में बनाया जाता था. इसके बाद उसने एके 56ए तथा एके 47 का प्रयोग शुरू कर दिया.

अमेरिकी आतंकवादी रोधी दस्ते का हिस्सा

दाऊद अमेरिका के नेतृत्‍व वाली आंतकवाद रोधी दस्‍ते का पाकिस्‍तान सरकार की तरफ से हिस्‍सा रह चुका है. इसके लिए अमेरिका, पाकिस्‍तान में फंड मुहैया कराती थी. दाऊद इब्राहिम का नाम पाकिस्‍तानी मिसाइल वैज्ञानिक अयूब खान के साथ भी जोड़ा गया था. माना जाता है कि नॉर्थ कोरिया से मिसाइल मंगाने में दाऊद ने अयूब खान का साथ दिया था.

भारत में नेता बनना चाहता है दाऊद

दाऊद इब्राहिम पाकिस्‍तान सेंट्रल बैंक द्वारा दिए गए डॉलर में लोन को नहीं चुका पाया था, जिसके कारण बैंक ने उसका नाम डिफॉल्‍टर की लिस्‍ट में डाल दिया. दाऊद की इच्‍छा है कि वह भारत में आकर राजनीति में अपना भाग्‍य आजमाए तथा अबु सलेम के वकील की पार्टी को अपने साथ शामिल करना चाहता है. दाऊद भारतीय ससंद में हथियारों के दम पर सभी तरह के बिल पास कराना चाहता है.

बॉलीवुड में दाऊद का पैसा

2001 में बनी बॉलीवुड की फिल्‍म ‘चोरी-चोरी चुपके-चुपके’ में दाऊद ने शकील की मदद से पैसे लगाए थे. जांच के बाद सीबीआई ने फिल्‍म के प्‍वांइट कम कर दिए थे. इस पूरे प्रकरण को ‘द भरत शाह केस’ के नाम से जाना जाता है.

और दाऊद इब्राहिम को कपिल ने डांटकर भगा दिया

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान दिलीप वेंगसरकर ने चौंकाने वाला खुलासा किया था, जिसमें उन्होंने कहा कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम ने 1986 में भारतीय टीम के शाहरजाह दौरे पर खिलाड़ियों को मैच फिक्स करने के लिए कार देने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन उस समय टीम के कप्‍तान रहे कपिल देव ने न सिर्फ दाऊद की इस पेशकश को ठुकरा दिया था बल्कि दाऊद को डांट कर भगा भी दिया था.

वेंगसरकर ने कहा कि कपिल देव ने दाऊद से पूछा कि तुम कौन हो? जब कपिल देव ने दाऊद को डांटकर प्रेस कॉन्फ्रेंस से भगा दिया उसके बाद मजबूर होकर दाऊद को अपने उस प्रस्ताव को रद्द करना पड़ा जिसमें उसने टीम इंडिया को कार देने की पेशकश की थी. कपिल ने दाऊद को डांटकर भगाया और कहा- चल निकल बाहर.

दिलीप वेंगसरकर के अनुसार यह पूरा मामला 1986 में भारतीय टीम के शारजाह दौरे का है. वेंगसरकर ने कहा, ‘प्री-मैच प्रेस कांफ्रेंस के बाद दाऊद ड्रेसिंग रूम में घुसा. उस वक्‍त महमूद भी उसके साथ था. महमूद ने भारतीय टीम के खिलाडि़यों से दाऊद का परिचय एक बिजनेसमैन के तौर पर कराया. दाऊद ने कहा कि अगर टीम इंडिया फाइनल मैच में पाकिस्‍तान को हरा देती है तो कप्‍तान सहित भारतीय टीम के सभी खिलाडि़यों को एक-एक कार दी जाएगी.’ वेंगसरकर के अनुसार, इसके बाद कपिल ने दाऊद को डांटकर भगा दिया.

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 1

उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर 2 मायनों में खास है. पहला उद्योग के मामले में. यहां का चमड़ा उद्योग दुनिया में मशहूर है और दूसरा जरायम के लिए. कानपुर में दरजनों गैंगस्टर हैं, जो शासनप्रशासन की नींद हराम किए रहते हैं. ये गैंगस्टर राजनीतिक छत्रछाया में फलतेफूलते हैं. हर गैंगस्टर किसी न किसी पार्टी का दामन थामे रहता है. पार्टी के दामन तले ही वह शासनप्रशासन पर दबदबा कायम रखता है.

जघन्य अपराध के चलते जब गैंगस्टर पकड़ा जाता है और जेल भेजा जाता है, तब पार्टी के जन प्रतिनिधि उसे छुड़ाने के लिए पैरवी कर पुलिस अधिकारियों पर दबाव डालते हैं. ऐसे में पुलिस की लचर कार्य प्रणाली से गैंगस्टर को जमानत मिल जाती है. जमानत मिलने के बाद वह फिर से जरायम के धंधे में लग जाता है.

कानपुर शहर का ऐसा ही एक कुख्यात गैंगस्टर है आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट. जुर्म की दुनिया का वह बादशाह है. उस के नाम से जनता थरथर कांपती है. पप्पू स्मार्ट थाना चकेरी का हिस्ट्रीशीटर अपराधी है.

पुलिस रिकौर्ड में पप्पू स्मार्ट का एक संगठित गिरोह है, जिस में अनेक सदस्य हैं. पुलिस अभिलेखों में यह गिरोह डी 123 के नाम से पंजीकृत है. इस के साथ ही उस का नाम चकेरी थाने की भूमाफिया सूची में भी दर्ज है.

पप्पू स्मार्ट और उस के गिरोह के खिलाफ कानपुर के अलावा प्रदेश के विभिन्न जिलों में 35 केस दर्ज हैं जिन में हत्या, हत्या का प्रयास, रंगदारी, अवैध वसूली, मारपीट, जान से मारने की धमकी, सरकारी जमीनों पर कब्जे, गुंडा एक्ट तथा गैंगस्टर एक्ट के मुकदमे हैं.

पप्पू स्मार्ट की दबंगई इतनी थी कि उस ने अपने गिरोह की मदद से जाजमऊ स्थित महाभारत कालीन ऐतिहासिक राजा ययाति का खंडहरनुमा किला कब्जा कर के बेच डाला और अवैध बस्ती बसा दी. वर्तमान समय में पप्पू स्मार्ट अपने दोस्त बसपा नेता व हिस्ट्रीशीटर नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर की हत्या के जुर्म में कानपुर की जेल में बंद है.

आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट कौन है, उस ने जुर्म की दुनिया में कदम क्यों और कैसे रखा, फिर वह जुर्म का बादशाह कैसे बना? यह सब जानने के लिए उस के अतीत में झांकना होगा.

कानपुर महानगर के चकेरी थानांतर्गत एक मोहल्ला है हरजेंद्र नगर. इसी मोहल्ले में मोहम्मद सिद्दीकी रहता था. उस के परिवार में बेगम मेहर जहां के अलावा 4 बेटे आसिम उर्फ पप्पू, शोएब उर्फ पम्मी, तौसीफ उर्फ कक्कू तथा आमिर उर्फ बिच्छू थे.

मोहम्मद सिद्दीकी मोची का काम करता था. हरजेंद्र नगर चौराहे पर उस की दुकान थी. यहीं बैठ कर वह जूता गांठता था. चमड़े का नया जूता बना कर भी बेचता था. उस की माली हालत ठीक नहीं थी. बड़ी मुश्किल से वह परिवार को दो जून की रोटी जुटा पाता था.

आर्थिक तंगी के कारण मोहम्मद सिद्दीकी अपने बेटों को अधिक पढ़ालिखा न सका. किसी ने 5वीं दरजा पास की तो किसी ने 8वीं. कोई हाईस्कूल में फेल हुआ तो उस ने पढ़ाई बंद कर दी. पढ़ाई बंद हुई तो चारों भाई अपने अब्बूजान के काम में हाथ बंटाने लगे.

बेटों की मेहनत रंग लाई और मोहम्मद सिद्दीकी की दुकान अच्छी चलने लगी. आमदनी बढ़ी तो घर का खर्च मजे से चलने लगा. कर्ज की अदायगी भी उस ने कर दी और सुकून की जिंदगी गुजरने लगी.

मामा से सीखा जुर्म का पाठ

चारों भाइयों में आसिम उर्फ पप्पू सब से बड़ा तथा शातिरदिमाग था. उस का मन दुकान के काम में नहीं लगता था. वह महत्त्वाकांक्षी था और ऊंचे ख्वाब देखता था. उस के ख्वाब छोटी सी दुकान से पूरे नहीं हो सकते थे. अत: उस का मन भटकने लगा था. उस ने इस विषय पर अपने भाइयों से विचारविमर्श किया तो उन्होंने भी उस के ऊंचे ख्वाबों का समर्थन किया.

लेकिन अकूत संपदा अर्जित कैसे की जाए, इस पर जब आसिम उर्फ पप्पू ने मंथन किया तो उसे अपने मामूजान की याद आई. पप्पू के मामा रियाजुद्दीन और छज्जू कबूतरी अनवरगंज के हिस्ट्रीशीटर थे और अपने जमाने में बड़े ड्रग्स तसकर थे.

आसिम उर्फ पप्पू ने अपनी समस्या मामू को बताई तो वह उस की मदद करने को तैयार हो गए. उन्होंने पप्पू से कहा कि साधारण तौरतरीके से ज्यादा दौलत नहीं कमाई जा सकती. इस के लिए तुम्हें जरायम का ककहरा सीखना होगा.

मामू की बात सुन कर आसिम उर्फ पप्पू राजी हो गया. उस के बाद छज्जू कबूतरी से ही पप्पू एवं उस के भाइयों ने अपराध का ककहरा सीखा. सब से पहले इन का शिकार हुआ हरजेंद्र नगर चौराहे पर रहने वाला एक सरदार परिवार, जिस के घर के सामने पप्पू की मोची की दुकान थी.

चारों भाइयों ने अपने मामा छज्जू कबूतरी की मदद से उस सरदार परिवार को प्रताडि़त करना शुरू किया. मजबूर हो कर सरदार परिवार घर छोड़ कर पंजाब पलायन कर गया.

इस मकान पर पप्पू और उस के भाइयों ने कब्जा कर लिया और जूते का शोरूम खोल दिया. जिस का नाम रखा गया स्मार्ट शू हाउस. दुकान की वजह से आसिम उर्फ पप्पू का नाम पप्पू स्मार्ट पड़ गया.

पप्पू स्मार्ट के खिलाफ पहला मुकदमा वर्ष 2001 में कोहना थाने में आईपीसी की धारा 336/436 के तहत दर्ज हुआ. इस में धारा 436 गंभीर है, जिस में किसी भी उपासना स्थल या घर को विस्फोट से उड़ा देना या आग से जला देने का अपराध बनता है. दोषी पाए जाने पर अपराधी को आजीवन कारावास की सजा हो सकती है.

इस मुकदमे के बाद पप्पू स्मार्ट ने मुड़ कर नहीं देखा. साल दर साल उस के जुर्म की किताब के पन्ने थानों के रोजनामचे में दर्ज होते रहे.

hindi-manohar-gangster-crime-story

पप्पू स्मार्ट ने एक संगठित गिरोह बना लिया, जिस में 2 उस के सगे भाई तौसीफ उर्फ कक्कू तथा आमिर उर्फ बिच्छू शामिल थे. इस के अलावा बबलू सुलतानपुरी, वसीम उर्फ बंटा, तनवीर बादशाह, गुलरेज, टायसन जैसे अपराधियों को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. पूर्वांचल के माफिया सऊद अख्तर, सलमान बेग, साफेज उर्फ हैदर तथा महफूज जैसे कुख्यात अपराधियों के संपर्क में भी वह रहने लगा.

सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा : अंडरवर्ल्ड डौन का भी महागुरु – भाग 1

उत्तर प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव का मौका था. अचानक यूपी की वाराणसी जेल में बंदियों से मुलाकात और उन से मिलने वालों की आमद बढ़ गई थी. बंदियों से मुलाकात करने वाले लोग कोई साधारण इंसान नहीं थे. राजनीतिक दलों से जुड़े नेता और प्रभावशाली लोग अचानक फलों और मिठाइयों के टोकरे ले कर जिस शख्स से मिलने के लिए आ रहे थे, वह भी कोई साधारण इंसान नहीं था.

साढ़े 6 फुट से भी ज्यादा ऊंचाई और विशालकाय शरीर वाले उस अधेड़ कैदी के सिर के घने बाल पक कर पूरी तरह सफेद हो चुके थे.

चेहरे पर बढ़ी लंबी सफेद दाढ़ी और मूंछ उस के व्यक्तित्व को और भी ज्यादा संजीदा बना रही है. उस के लंबे घने बालों को संवारने के लिए बांधा गया लंबा पटकेनुमा रुमाल उसे रुआबदार बना रहा था.

झक सफेद कपड़े पहने वह रुआबदार कैदी जब हाथों की अंगुलियों में महंगी सिगरेट दबाए उस खास बड़ी सी बैरक में आता है तो वहां पहले से इंतजार में बैठे मुलाकाती और दूसरे कैदी सम्मान में खडे़ हो जाते हैं.

इन में से कुछ तो इस तरह उस के पैरों में झुक कर सजदा करते हैं, मानो उन के लिए वह भगवान हो. आरामदायक सोफेनुमा कुरसी पर बैठने के बाद वह करिश्माई शख्स सुनवाई शुरू कर देता है.

एक के बाद एक सामने बैठे लोग अपनी फरियाद सुनाते हैं. वहां कुछ ऐसे कैदी भी मौजूद होते हैं, जो देखने से ही खतरनाक किस्म के प्रभावशाली लगते हैं. लेकिन वह शख्स उन सभी को हिदायतें देता है.

एकदो घंटे तक ये दरबार चलता है. इस दौरान जेल के अधिकारी व कर्मचारी भी बीच में आते रहते हैं. आगंतुकों के आनेजाने का सिलसिला चलता रहता है. खानेपीने के लिए फल, ड्राईफ्रूट और चायकौफी आते रहते हैं. एकदो घंटे के बाद ये दरबार खत्म हो जाता है.

ऐसे दृश्य आमतौर पर हिंदी फिल्मों में देखने और सुनने को मिलते हैं. लेकिन ये किसी फिल्म का दृश्य नहीं, बल्कि यूपी के बनारस जेल की ऐसी हकीकत है जो हर रोज दिखाई देती है. हां, ये अलग बात है कि जब प्रदेश में चुनाव हुए तो जेल में लगने वाले इस दरबार की रौनक कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी.

बनारस की इस जेल में बंद जिस खास बंदी का हम जिक्र कर रहे हैं, उस शख्स का नाम है सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा उर्फ बाबा ठाकुर. ये वो शख्स है, जो कई जेलों में रहने के बाद पिछले 2 सालों से बनारस की जेल में अपनी उम्रकैद की सजा काट रहा है.

जेल में ही लगता है दरबार

वैसे तो बाबा ठाकुर इस जेल में बंदी की हैसियत से रहता है. लेकिन उस की शख्सियत  और रसूख कुछ ऐसा है कि वह इस जेल का राजा है. जिस का हर रोज दरबार लगता है.

लंबी दाढ़ी व बाल अब सुभाष सिंह ठाकुर की पहचान बन चुकी है. लोग उसे अब बाबाजी कहते हैं. जरायम की दुनिया के लोग हों या राजनीतिक जगत की हस्तियां, हर कोई बाबा ठाकुर का सम्मान करता है. जेल के अंदर और बाहर रहने वाले लोगों के लिए जेल के अंदर सुभाष ठाकुर का दरबार लगता है.

इस दरबार में जेल के अधिकारी से ले कर कर्मचारी तक मौजूद होते हैं. बाहर से मिलने आने वाले कारोबारी से ले कर नेता और फरियादी इस दरबार में पहुंच कर बाबा ठाकुर को अपनी फरियाद सुनाते हैं.

हर फरियादी की समस्या का समाधान होता है दरबार में

दिलचस्प बात यह है कि लोगों की फरियाद सुनी ही नहीं जाती, बल्कि उस का निदान भी किया जाता है. मामला चाहे दिल्ली, यूपी का हो या मायानगरी मुंबई का. बाबा ठाकुर के एक इशारे पर लोगों के काम हो जाते हैं. हो भी क्यों न, इस देश में आज जितने भी डौन, गैंगस्टर और माफिया हैं, बाबा ठाकुर एक तरह से उन सब का महागुरु है.

देश का सब से बड़ा माफिया डौन दाऊद इब्राहिम जो इन दिनों पाकिस्तान में है, वह भी बाबा ठाकुर का ही शागिर्द रहा है. यूपी के सब से बड़े डौन बाहुबली मुख्तार अंसारी से ले कर अतीक अहमद तक सुभाष ठाकुर से अदावत नहीं लेना चाहते.

अब राजनीति का लबादा ओढ़ चुके यूपी के बृजेश सिंह भी कभी इसी बाबा ठाकुर की शागिर्दी में काम कर के यूपी का सब से बड़ा डौन बना था.

वैसे तो यूपी के पूर्वांचल में बाहुबलियों का बोलबाला रहा है. चाहे सियासत हो या फिर ठेकेदारी, हर जगह किसी न किसी तरह से बाहुबली शामिल हैं.

पूर्वांचल में कई माफिया गैंगस्टर रहे हैं, लेकिन सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा को यूपी का सब से बड़ा और पहला माफिया डौन कहा जाता है. उम्रकैद की सजा काट रहे बाबा ठाकुर के खिलाफ 50 से ज्यादा मामले दर्ज हैं, जिन में से कई मामलों में उसे दोषी करार दिया जा चुका है.

उम्रकैद की सजा मिलने के बाद सुभाष ठाकुर ने अपनी दाढ़ीमूंछें बढ़ा लीं, जिस कारण लोग उसे बाबाजी के नाम से पुकारने लगे. जेल में लगने वाले बाबा सुभाष ठाकुर के दरबार में हर समस्या का समाधान होता है.

चाहे किसी से पुरानी रंजिश या जमीन के लेनदेन का विवाद, कारोबार, झगड़ा हो या बदमाशों से मिलने वाली धमकी, बाबा के दरबार में जिस ने भी आ कर अपनी समस्या रखी, उस का समाधान जरूर होता है.

लेकिन हर काम की फीस ली जाती है. चुनाव में तो बाबा ठाकुर का खास दखल रहता है, खासकर पूर्वांचल की बात करें तो वहां की कई सीटों पर सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा का सीधा प्रभाव होता है. इसीलिए पूर्वांचल में हर छोटेबड़े राजनीतिक दलों के नेता बाबा सुभाष ठाकुर से जीत का आशीर्वाद लेने के लिए जेल में आते हैं.

पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव जब एक वैवाहिक कार्यक्रम में भाग लेने वाराणसी गए थे तो बीएचयू अस्पताल में बाबा ठाकुर से उन की मुलाकात के खूब चर्चे हुए थे.

दरअसल, बाबा सुभाष ठाकुर की ताकत का सभी को पता है, इसलिए सभी नेता उन के दरबार में आशीर्वाद लेने जाते हैं. पूर्वांचल में युवाओं का एक बड़ा वर्ग, खासतौर से ठाकुर लौबी के युवा बाबा ठाकुर को अपना हीरो मानते हैं. बाबा ठाकुर के एक इशारे पर वे कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं.

सुभाष सिंह ठाकुर कैसे बना डौन

सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा इतना बड़ा गैंगस्टर कैसे बना, बड़ेबड़े भाई लोग उस से खौफ क्यों खाते हैं, इस की कहानी एकदम फिल्मी है.

70 से 80 के दशक के मध्य की बात है, जब वाराणसी के फूलपुर थानांतर्गत मंगारी गांव का रहने वाला 17 साल का नौजवान सुभाष ठाकुर काम की तलाश में छोटे से गांव से निकल कर सपनों की नगरी मुंबई गया था.

एक साधारण किसान परिवार का युवक सुभाष 5 बहनभाइयों में सब से बड़ा था. बहुत ज्यादा तो पढ़ नहीं सका, क्योंकि परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. लेकिन सुभाष के सपने काफी बड़े थे. बचपन से ही वह बौलीवुड की हिंदी फिल्में देख कर उन में गुंडों के सरदारों के किरदार देख कर उन के जैसे रौबदार इंसान बनने के ख्वाब देखता था.

70 से 80 के दशक का यह वो दौर था, जब मुंबई में पूर्वांचल में रहने वाले बेरोजगार नौजवान तेजी से काम की तलाश में मुंबई जा रहे थे. इन में कोई टैक्सी चलाने लगा तो कोई ढाबों पर काम करने लगा तो कुछ ने पावभाजी बेचनी शुरू कर दी.

17 साल की उम्र में सुभाष भी ऐसे ही किसी छोटेमोटे काम को कर के बड़ा आदमी बनने के लिए मुंबई गया था.

नए काम की तलाश में जब सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा ने पहली बार मायानगरी मुंबई में कदम रखा, तो शुरू में उसे काफी धक्के खाने पड़े. उस ने देखा कि मुंबई में लोकल मराठी गुंडे और दक्षिण भारतीय गुंडों के कुछ ऐसे छोटेछोटे गुट हैं, जो कोई काम नहीं करते. बल्कि अपनी दबंगई के बल पर दुकानदारों, छोटेमोटे कारोबारियों और टैक्सी वालों से हफ्तावसूली कर के ऐश की जिंदगी बसर करते हैं.

कुछ महीनों में जीतोड़ मेहनत के कई काम करने के बाद सुभाष को लगने लगा कि इस तरह के काम से वह अपना पेट तो भर सकता है, लेकिन कभी अपने उन सपनों को पूरा नहीं कर सकता, जिसे ले कर वह मायानगरी में आया है.

संयोग से उन दिनों एक ऐसा वाकया हो गया, जिस ने सुभाष की जिदंगी बदल दी. विरार इलाके में पावभाजी का ठेला लगाने वाले उस के एक दोस्त से हफ्तावसूली को ले कर मराठी गुंडों का झगड़ा हो गया. सुभाष कदकाठी और ताकत में ऐसा था कि किसी को भी पहली नजर में डरा देता था. सुभाष ने उस दिन पहली बार उन मराठी गुंडों की जम कर पिटाई कर दी.

अंजाम ये हुआ कि लोकल मराठी लड़कों ने पुलिस में अपनी सेटिंग के बूते सुभाष के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी. पुलिस ने सुभाष को उठा लिया और जम कर पिटाई कर के उसे जेल भेज दिया.

पूर्वांचल के नौजवानों का बनाया गुट

कुछ दिन बाद उस की जमानत तो हो गई, लेकिन जेल से बाहर आने के बाद भी पुलिस ने सुभाष को परेशान करना नहीं छोड़ा. लोकल मराठी लड़कों को स्थानीय नेताओं की शह थी, जिन के दबाव में पुलिस आए दिन सुभाष को झूठी शिकायत के आधार पर पकड़ लाती और परेशान करती.

विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर – भाग 3

यूपी के कई जिलों में विकास दुबे के खिलाफ 60 मामले चल रहे थे. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार का इनाम रखा हुआ था. लेकिन सामने होने पर भी उसे कोई नहीं पकड़ता था.

कानपुर नगर से ले कर देहात तक में विकास दुबे की सल्तनत कायम हो चुकी थी. पंचायत, निकाय, विधानसभा से ले कर लोकसभा चुनाव के वक्त नेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना उस का पेशा बन गया था. विकास दुबे के पास जमीनों पर कब्जे, रंगदारी, ठेकेदारी और दूसरे कामधंधों से इतना पैसा एकत्र हो गया था कि उस ने एक ला कालेज के साथ कई शिक्षण संस्थाएं खोल ली थीं.

बिकरू, शिवली, चौबेपुर, शिवराजपुर और बिल्हौर ब्राह्मण बहुल क्षेत्र हैं. यहां के युवा ब्राह्मण लड़के विकास दुबे को अपना आदर्श मानते थे. गर्म दिमाग के कुछ लड़के अवैध हथियार ले कर उस की सेना बन कर साथ रहने लगे थे. आपराधिक गतिविधियों से ले कर लोगों को डरानेधमकाने में विकास इसी सेना का इस्तेमाल करता था.

अपने गांव में विकास दुबे ने एनकाउंटर के डर से पुलिस पर हमला कर के 8 जवानों को शहीद तो कर दिया लेकिन वह ये भूल गया कि पुलिस की वर्दी और खादी की छत्रछाया ने भले ही उसे संरक्षण दिया था, लेकिन जब कोई अपराधी खुद को सिस्टम से बड़ा मानने की भूल करता है तो उस का अंजाम मौत ही होती है.

बिकरू गांव में पुलिस पर हमले के बाद थाना चौबेपुर में 3 जुलाई को ही धारा 147/148/149/302/307/394/120बी भादंवि व 7 सीएलए एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. साथ ही विकास दुबे के साथ उस के गैंग का खात्मा करने के लिए लंबीचौड़ी टीम बनाई गई थी. इस टीम को जल्द से जल्द औपरेशन विकास दुबे को अंजाम तक पहुंचाने के आदेश दिए गए.

पुलिस की कई टीमों ने इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के सहारे काम शुरू कर दिया. दूसरी तरफ पुलिस ने अगले 2 दिनों के भीतर विकास दुबे की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित करने के बाद 3 दिन के भीतर उसे बढ़ा कर 5 लाख का इनामी बना दिया.

विकास दुबे के गांव बिकरू में बने किलेनुमा घर को बुलडोजर चला कर तहसनहस कर दिया गया था. गांव में विकास गैंग के दूसरे सदस्यों के घरों पर भी बुलडोजर चले. साथ ही विकास के गांव तथा लखनऊ स्थित घर में खड़ी कारों को बुलडोजर से कुचल दिया गया.

पुलिस की छापेमारी में सब से पहले विकास के साथियों की गिरफ्तारियां और मुठभेड़ में मारे जाने का सिलसिला शुरू हुआ. विकास के मामा प्रेम प्रकाश और भतीजे अतुल दुबे को उसी दिन मार गिराने के बाद एसटीएफ ने सब से पहले कानपुर से विकास के एक खास गुर्गे दयाशंकर अग्निहोत्री को गिरफ्तार किया.

पुलिस अभियान

उसी से मिली सूचना के बाद एसटीएफ ने 5 जुलाई को कल्लू को गिरफ्तार किया, जिस ने एक तहखाने और सुरंग में छिपा कर रखे हथियार बरामद करवाए. 6 जुलाई को पुलिस ने नौकर कल्लू की पत्नी रेखा तथा पुलिस पर हुए हमले में मददगार विकास के साढू समेत 3 लोगों को गिरफ्तार किया.

7 जुलाई को पुलिस ने विकास के गैंग में शामिल उस के 15 करीबी साथियों के पोस्टर जारी किए. इसी दौरान पुलिस को विकास की लोकेशन हरियाणा के फरीदाबाद में मिली. लेकिन एसटीएफ के वहां पहुंचने से पहले ही विकास गायब हो गया. लेकिन उस के 3 करीबी प्रभात मिश्रा, शराब की दुकान पर काम करने वाला श्रवण व उस का बेटा अंकुर पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

8 जुलाई को एसटीएफ ने हमीरपुर में विकास के बौडीगार्ड व साए की तरह साथ रहने वाले उस के साथी अमर दुबे को मुठभेड़ में मार गिराया. उस पर 25 हजार का इनाम था. अमर दुबे की शादी 10 दिन पहले ही हुई थी. उस की पत्नी को भी पुलिस ने साजिश में शामिल होने के शक में गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस को सूचना मिली थी कि उस रात पुलिस पर हुए हमले में अमर भी शामिल था. उसी दिन चौबेपुर पुलिस ने विकास के एक साथी श्याम वाजपेई को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया.

9 जुलाई को एसटीएफ जब फरीदाबाद में गिरफ्तार अंकुर, श्रवण तथा कार्तिकेय उर्फ प्रभात मिश्रा को ट्रांजिट रिमांड पर कानपुर ला रही थी, तो रास्ते में पुलिस की गाड़ी पंक्चर हो गई. मौका देख कर प्रभात मिश्रा ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने की कोशिश की. प्रभात को पकड़ने के प्रयास में मुठभेड़ के दौरान एनकाउंटर में उस की मौत हो गई.

उसी दिन इटावा पुलिस ने बिकरू गांव शूटआउट में शामिल विकास के एक और साथी 50 हजार के इनामी प्रवीण उर्फ बउआ दुबे को भी एनकाउंटर में मार गिराया. विकास के साथियों की ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां व एनकाउंटर हो रहे थे, लेकिन एसटीएफ को जिस विकास दुबे की तलाश थी, वह अभी तक पकड़ से बाहर था.

फरीदाबाद के एक होटल से फरार होने के बाद पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उसे पूरे एनसीआर में तलाश रही थी, जबकि विकास दुबे पुलिस को चकमा दे कर मध्य प्रदेश के उज्जैन पहुंच गया था. वहां 9 जुलाई की सुबह उस ने नाटकीय तरीके से महाकाल मंदिर में अपनी पहचान उजागर कर दी और खुद को पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवा दिया.

इस नाटकीय गिरफ्तारी की सूचना चंद मिनटों में मीडिया के जरिए न्यूज चैनलों के माध्यम से देश भर में फैल गई. उत्तर प्रदेश एसटीएफ की टीम उसी रात उज्जैन पहुंच गई. उज्जैन पुलिस ने बिना कानूनी औपचारिकता पूरी किए विकास दुबे को यूपी पुलिस की एसटीएफ के सुपुर्द कर दिया.

विकास का अंतिम अध्याय

मगर इस बीच एमपी और यूपी पुलिस ने विकास दुबे से जो औपचारिक पूछताछ की थी, उस में उस ने खुलासा किया कि उसे डर था कि गांव बिकरू आई पुलिस टीम उस का एनकाउंटर कर देगी. चौबेपुर थाने के उस के शुभचिंतक पुलिस वालों ने उसे यह इत्तिला पहले ही दे दी थी. तब उस ने अपने साथियों को बुला कर पुलिस को सबक सिखाने का फैसला किया.

विकास दुबे ने यह भी बताया कि वह चाहता था कि मारे गए सभी पुलिस वालों के शव कुएं में डाल कर जला दिए जाएं, ताकि सबूत ही खत्म हो जाएं. इसीलिए उस ने पहले ही कई कैन पैट्रोल भरवा कर रख लिया था.

विकास दुबे के साथियों ने शूटआउट में मारे गए 5 पुलिस वालों के शव कुएं के पास एकत्र भी करवा दिए थे, लेकिन जब तक वह उन्हें जला पाते तब तक कानपुर मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ गया और उन्हें भागना पड़ा.

यह बात सच थी, क्योंकि पुलिस को 5 पुलिस वालों के शव विकास के घर के बाहर कुएं के पास से मिले थे. विकास ने पूछताछ में बताया कि वह सीओ देवेंद्र मिश्रा को पसंद नहीं करता था. चौबेपुर समेत आसपास के सभी थानों के पुलिस वाले उस के साथ मिले हुए थे. लेकिन न जाने क्यों देवेंद्र मिश्रा हमेशा उस का विरोध करते थे.

ताकत और घमंड के नशे में चूर कुछ लोग यह भूल जाते हैं कि कुदरत हर किसी को उस के गुनाहों की सजा इसी संसार में देती है. यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को ले कर 4 अलगअलग वाहनों से सड़क के रास्ते उज्जैन से कानपुर के लिए रवाना हुई. मीडिया चैनलों की गाडि़यां लगातार एसटीएफ की गाडि़यों का पीछा करती रहीं. हांलाकि एसटीएफ ने लोकल पुलिस की मदद से कई जगह इन गाडि़यों को चकमा देने का प्रयास किया.

10 जुलाई की सुबह 6 बजे के आसपास कानपुर देहात के बारा टोल प्लाजा पर एसटीएफ का काफिला आगे निकल गया, काफिले के पीछे चल रहे मीडियाकर्मियों की गाडि़यों को सचेंडी थाने की पुलिस ने बैरीकेड लगा कर रोक दिया. मीडियाकर्मियों ने पुलिस से बहस की तो कहा गया कि रास्ता अभी के लिए बंद कर दिया गया है. इस के साथ ही हाइवे पर बाकी वाहन भी रोक दिए गए थे.

इस काफिले को रोके जाने के 15 मिनट बाद सूचना आई कि विकास दुबे को ले जा रही एसटीएफ की गाड़ी बारिश व कुछ जानवरों के सामने आने से कानुपर से 15 किलोमीटर पहले भौती में पलट गई.

पता चला कि गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने का प्रयास किया था. तब तक पीछे से दूसरी गाडियां भी पहुंच गईं और विकास दुबे का पीछा कर आत्मसर्मपण के लिए कहा गया, लेकिन वह नहीं रुका और पुलिस पर फायरिंग कर दी.

लिहाजा पुलिस की जवाबी काररवाई में वह घायल हो गया, उसे हैलट अस्पताल भेजा गया. लेकिन वहां पहुंचते ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

विकास दुबे आदतन खतरनाक अपराधी था, जिस के सिर पर कई लोगों की हत्या का आरोप था, ऐसे अपराधी की मौत से किसी को भी हमदर्दी नहीं हो सकती. लेकिन अहम सवाल यह है कि खाकी और खादी के संरक्षण में गैंगस्टर बने विकास दुबे का अंत होने के बाद क्या उन लोगों के खिलाफ कोई काररवाई होगी, जिन्होंने उस के हौसलों को खूनी हवा दी थी?

– कथा पुलिस के अभिलेखों में दर्ज मामलों और पीडि़तों व जनश्रुति के आधार पर एकत्र जानकारी पर आधारित

विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर – भाग 2

1990 में गांव नवादा के चौधरियों ने विकास के पिता की बेइज्जती कर दी थी. उसे पता चला तो उस ने उन्हें उन के घर से निकालनिकाल कर पीटा. ऐसा कर के उस ने चौबेपुर क्षेत्र में अपनी दबंगई का झंडा बुलंद कर दिया.

करीब 20 साल पहले विकास ने मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बुढ़ार कस्बे की रिचा निगम उर्फ सोनू से कानपुर में लव मैरिज की थी. रिचा के पिता और घर वाले इस शादी के खिलाफ थे. उन के विरोध करने पर विकास ने गन पौइंट पर शादी की. फिलहाल उस की पत्नी रिचा जिला पंचायत सदस्य थी.

बुलंद हौसलों के बीच 1991 में उस ने अपने ही गांव के झुन्ना बाबा की हत्या कर दी. इस हत्या का मकसद था बाबा की जमीन पर कब्जा करना.

इस के बाद विकास ने कौन्ट्रैक्ट किलिंग वगैरह शुरू की. उस ने 1993 में रामबाबू हत्याकांड को अंजाम दिया.

झगड़ा, मारपीट, लोगों से रंगदारी वसूलना और कमजोर लोगों की जमीनों पर कब्जे करना उस का धंधा बन चुका था. उस के रास्ते में जो भी आता, वह उसे इतना डरा देता कि वह उस के रास्ते से हट जाता. अगर कहीं कुछ परेशानी होती तो हरिकृष्ण श्रीवास्तव का एक फोन उस का कवच बन जाता.

नेताओं की छत्रछाया में पला गैंगस्टर विकास

1996 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने बीजेपी छोड़ कर बीएसपी का दामन थाम लिया और उन्हें पार्टी ने चौबेपुर विधानसभा सीट से टिकट दे दिया. जबकि भाजपा ने संतोष शुक्ला को टिकट दिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ.

इस चुनाव में विकास दुबे ने इलाके के एकएक प्रधान, ग्राम पंचायत और ब्लौक के सदस्यों को डराधमका कर अपने गौडफादर हरिकृष्ण श्रीवास्तव के पक्ष में मतदान करने को मजबूर कर दिया. इसी चुनाव के दौरान संतोष शुक्ला और विकास दुबे के बीच कहासुनी भी हो गई थी, कड़े मुकाबले के बावजूद हरिकृष्ण श्रीवास्तव इलेक्शन जीत गए.

विकास और उस के गुर्गे जीत का जश्न मना रहे थे, तभी संतोष शुक्ला वहां से गुजरे. विकास ने उन की कार रोक कर गालीगलौज शुरू कर दी. दोनों तरफ से जम कर हाथापाई हुई. इस के बाद विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली.

5 साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही. इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान गई. 1997 में कुछ समय के लिए बीजेपी के सर्मथन से बसपा की सरकार बनी और मायावती मुख्यमंत्री बन गईं. हरिकृष्ण श्रीवास्तव को स्पीकर बनाया गया.

बस फिर क्या था विकास दुबे की ख्वाहिशों को पंख लग गए. उस ने हरिकृष्ण श्रीवास्तव को राजनीतिक सीढ़ी बना कर बसपा और भाजपा के कई कद्दावर नेताओं से इतनी नजदीकियां बना लीं कि उस के एक फोन पर ये कद्दावर नेता उस की ढाल बन कर सामने खड़े हो जाते थे, क्योंकि उन सब ने देख लिया था कि विकास राजनीति करने वाले लोगों के लिए वोट दिलाने वाली मशीन है.

विकास ने साल 2000 में ताराचंद इंटर कालेज पर कब्जा करने के लिए शिवली थाना क्षेत्र में कालेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस मामले में गिरफ्तार हो कर जब वह कुछ दिन के लिए जेल गया तो उस ने जेल में बैठेबैठे कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में रामबाबू यादव की हत्या करा दी. लेकिन जेल में बंद होने के कारण पुलिस इस मामले में उसे दोषी साबित नहीं कर सकी.

सिद्धेश्वर केस में विकास को उम्रकैद की सजा हुई लेकिन उस ने हाईकोर्ट से जमानत हासिल कर ली, जिस के बाद उस की अपील अभी तक अदालत में विचाराधीन है.

दुश्मनी ठानने के बाद विकास गोली से बात करता था

शिवली विकास के गांव बिकरू से 3 किलोमीटर दूर है. यहां के लल्लन वाजपेई 1995 से 2017 तक पंचायत अध्यक्ष रहे. जब उन का कार्यकाल समाप्त हुआ तो उन्होंने अगला चुनाव लड़ने का फैसला किया.

विकास इस चुनाव में अपने किसी आदमी को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़वाना चाहता था. उस ने लल्लन के लोगों को डरानाधमकाना शुरू किया. लल्लन ने उसे रोका तो वह विकास की आंखों में चढ़ गए और उस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में पिछड़ों की हनक को कम करने के लिए विकास कई नेताओं की नजर में आ गया था और वे उसे संरक्षण देने लगे थे.

इसी क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्व विधायक थे नेकचंद पांडेय. विकास की दबंगई देख कर उन्होंने उसे राजनीतिक संरक्षण देना शुरू कर दिया. तब वह खुल कर अपनी ताकत दिखाने लगा. उस की दबंगई का कायल हो कर भाजपा के चौबेपुर से विधायक हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने भी उस के सिर पर हाथ रख दिया.

हरिकृष्ण श्रीवास्तव उसी इलाके में जनता दल, जनता पार्टी से भी विधायक रह चुके थे. इलाके में उन का दबदबा था. उन्होंने चौबेपुर में अपनी राजनीतिक धमक मजबूत करने के लिए विकास दुबे को अपनी शरण में ले लिया.

हरिकृष्ण श्रीवास्तव के खिलाफ चुनाव लड़ने के दौरान बीजेपी के नेता संतोष शुक्ला विकास के दुश्मन बन गए. लल्लन और संतोष शुक्ला के करीबी संबंध थे. उन्हीं दिनों भाजपा और बसपा की मिलीजुली सरकार बनी तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह. कल्याण सिंह ने संतोष शुक्ला को श्रम संविदा बोर्ड का चेयरमैन बना कर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया था, जिस से संतोष शुक्ला और लल्लन वाजपेई दोनों की ही इलाके में हनक बढ़ गई थी.

हालांकि लखनऊ के कुछ प्रभावशाली भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. दरअसल, संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर विकास का एनकाउंटर कराने की योजना बना ली थी. एक तो लल्लन वाजपेई की मदद करने के कारण दूसरे अपने एनकाउंटर की साजिश रचने की भनक पा कर विकास को खुन्नस आ गई. उस ने संतोष शुक्ला को खत्म करने का फैसला कर लिया.

नवंबर 2001 में जब संतोष शुक्ला शिवली में एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ वहां आ धमका और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. जान बचाने के लिए वह शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और इंसपेक्टर के रूम में छिपे बैठे संतोष को बाहर ला कर मौत के घाट उतार दिया.

जिस तरह पुलिस की मौजूदगी में संतोष शुक्ला की हत्या की गई थी, उस ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी, इस के बाद पूरे इलाके में विकास की दहशत फैल गई.

संतोष शुक्ला के मर्डर के बाद पुलिस विकास दुबे के पीछे पड़ गई. कई माह तक वह फरार रहा. सरकार ने उस के सिर पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया था. पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर से उस ने एक बार फिर अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल किया. वह अपने खास भाजपा नेताओं की शरण में चला गया. उन्होंने उसे अपनी कार में बैठा कर लखनऊ कोर्ट में सरेंडर करवा दिया.

कुछ माह जेल में रहने के बाद विकास की जमानत हो गई. बाहर आते ही उस ने फिर अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया. विकास के गैंग के लोगों तथा राजनीतिक संरक्षण देने वालों ने संतोष शुक्ला हत्याकांड में चश्मदीद गवाह बने सभी पुलिसकर्मियों को इतना आतंकित कर दिया कि सभी हलफनामा दे कर गवाही से मुकर गए.

अगला निशाना लल्लन वाजपेई पर

फलस्वरूप विकास दुबे संतोष शुक्ला हत्याकांड से साफ बरी हो गया. लेकिन इस के बावजूद विकास दुबे के मन में लल्लन वाजपेई को सबक ना सिखा पाने की कसक रह गई थी. क्योंकि उस के साथ शुरू हुई राजनीतिक रंजिश में ही उस ने संतोष शुक्ला की हत्या की थी, इसीलिए वह मौके का इंतजार करने लगा.

hindi-manohar-social-crime-story

जल्द ही उसे यह मौका भी मिल गया. 2002 में पंचायत चुनाव से पहले एक दिन लल्लन के घर पर चौपाल लगी थी. 5 लोग बैठे थे. शाम 7 बजे का समय था. अचानक घर के बगल वाले रास्ते से और सामने से कुछ लोग मोटरसाइकिल से आए और बम फेंकना शुरू कर दिया.

साथ ही फायरिंग भी की. दरवाजे की चौखट पर बैठे लल्लन जान बचाने के लिए अंदर भागे. उन की जान तो बच गई लेकिन इस हमले में 3 लोगों की मौत हो गई. गोली लगने से लल्लन का एक पैर खराब हो गया था.

इस हमले में कृष्णबिहारी मिश्र, कौशल किशोर और गुलाटी नाम के 3 लोग मारे गए. पुलिस में हत्या का मामला दर्ज हुआ, जिस में विकास दुबे का भी नाम था. लेकिन आरोप पत्र दाखिल करते समय पुलिस ने उस का नाम हटा दिया था.

विकास दुबे ने इस हत्याकांड को जिस दुस्साहस से अंजाम दिया था, सब जानते थे. फिर भी वह अपने रसूख से साफ बच गया था. जबकि अन्य लोगों को सजा हुई. इस के बाद तो उस के कहर और डर के सामने सब ने हथियार डाल दिए.

बिकरू और शिवली के आसपास के क्षेत्रों में विकास की दहशत इस कदर बढ़ गई थी कि उस के एक इशारे पर चुनाव में वोट डलने शुरू हो जाते थे. सरकार बसपा, भाजपा या समाजवादी पार्टी चाहे किसी की भी रही  विकास को राजनीतिक संरक्षण देने वाले नेता खुद उस के पास पहुंच जाते थे.

2002 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार थी, तो उस का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रिनयां, चौबेपुर के साथसाथ कानपुर नगर में भी चलने लगा था. विकास ने राजनेताओं के संरक्षण से राजनीति में एंट्री की और जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव जीत लिया.

इस से उस के हौसले और ज्यादा बुलंद हो गए. राजनीतिक संरक्षण और दबंगई के बल पर आसपास के 3 गांवों में उस के परिवार की ही प्रधानी कायम रही. विकास ने राजनीतिक जड़ें मजबूत करने के लिए लखनऊ में भी घर बना लिया, जहां उस की पत्नी रिचा दुबे के अलावा छोटा बेटा रहता था, जो लखनऊ के एक इंटर कालेज में पढ़ रहा था जबकि उस का बड़ा बेटा ब्रिटेन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है.

विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर – भाग 1

पुरानी कहावत है कि पुलिस वालों से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी, लेकिन विकास दुबे ने दोनों ही कर ली थीं. कई थानों के पुलिस वाले उस के दरबार में जीहुजूरी करते थे, तो कुछ ऐसे भी थे जिन की वरदी उस की दबंगई पर भारी पड़ती थी. ऐसे ही थे बिल्हौर के सीओ देवेंद्र मिश्रा.

विकास ने अपने ही गांव के राहुल तिवारी की जमीन कब्जा ली थी. इतना ही नहीं, उस पर जानलेवा हमला भी किया था. राहुल अपनी शिकायत ले कर थाना चौबेपुर गया, लेकिन चौबेपुर थाने के इंचार्ज विनय तिवारी विकास के खास लोगों में से थे. उन्होंने राहुल की शिकायत सुनने के बजाय उसे भगा दिया.

इस पर राहुल बिल्हौर के सीओ देवेंद्र मिश्रा से मिला. उन्होंने विनय तिवारी को फोन कर के रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया तो उस की रिपोर्ट दर्ज हो गई. लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया. बाद में राहुल तिवारी ने सीओ देवेंद्र मिश्रा को खबर दी कि विकास दुबे गांव में ही है.

देवेंद्र मिश्रा ने यह सूचना एसएसपी दिनेश कुमार पी. को दी. विकास दुबे कोई छोटामोटा अपराधी नहीं था. अलगअलग थानों में उस के खिलाफ हत्या सहित 60 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. ऊपर से उसे राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ था.

एसएसपी दिनेश कुमार पी. ने देवेंद्र मिश्रा को निर्देश दिया कि आसपास के थानों से फोर्स मंगवा लें और छापा मार कर विकास दुबे को गिरफ्तार करें. इस पर देवेंद्र मिश्रा ने बिठूर, शिवली और चौबेपुर थानों से पुलिस फोर्स मंगा ली. गलती यह हुई कि उन्होंने चौबेपुर थाने को दबिश की जानकारी भी दी और वहां से फोर्स भी मंगा ली. विकास दुबे को रात में दबिश की सूचना थाना चौबेपुर से ही दी गई, जिस की वजह से उस ने भागने के बजाय पुलिस को ही ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.

इस के लिए उस ने फोन कर के अपने गिरोह के लोगों को अपने गांव बिकरू बुला लिया. सब से पहले उस ने जेसीबी मशीन खड़ी करवा कर उस रास्ते को बंद किया जो उस के किलेनुमा घर की ओर आता था. फिर अंधेरा घिरते ही अपने लोगों को मय हथियारों के छतों पर तैनात कर दिया. विकास खुद भी उन के साथ था.

योजनानुसार आधी रात के बाद सरकारी गाडि़यों में भर कर पुलिस टीम के 2 दरजन से अधिक जवान तथा अधिकारी बिकरू गांव में प्रविष्ट हुए. लेकिन जैसे ही पुलिस की गाडि़यां विकास के किले जैसे मकान के पास पहुंचीं तो घर की तरफ जाने वाले रास्ते में जेसीबी मशीन खड़ी मिली, जिस से पुलिस की गाडि़यां आगे नहीं जा सकती थीं. निस्संदेह मशीन को रास्ता रोकने के लिए खड़ा किया गया था.

सीओ देवेंद्र मिश्रा, दोनों थानाप्रभारियों कौशलेंद्र प्रताप सिंह व महेश यादव और कुछ स्टाफ को ले कर विकास दुबे के घर की तरफ चल दिए. बाकी स्टाफ से कहा गया कि जेसीबी मशीन को हटा कर गाडि़यां आगे ले आएं.

सीओ साहब जिस स्टाफ को ले कर आगे बढ़े थे, उस के चंद कदम आगे बढ़ाते ही अचानक पुलिस पर तीन तरफ से फायरिंग होने लगी. गोलियां विकास के मकान की छत से बरसाई जा रही थीं. अचानक हुई इस फायरिंग से बचने के लिए पुलिस टीम के लोग इधरउधर छिपने की जगह ढूंढने लगे.

पूरा गांव काफी देर तक गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजता रहा. काफी देर बाद जब गोलियों की तड़तड़ाहट बंद हुई तो पूरे गांव में सन्नाटा छा गया.

सीओ देवेंद्र मिश्रा सहित 8 पुलिस वाले शहीद

दबिश देने पहुंची पुलिस टीम पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई थीं, उस में से बिल्हौर के सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा, एसओ (शिवराजपुर) महेश यादव, चौकी इंचार्ज (मंधना) अनूप कुमार, सबइंस्पेक्टर (शिवराजपुर) नेबूलाल, थाना चौबेपुर का कांस्टेबल सुलतान सिंह, बिठूर थाने के कांस्टेबल राहुल, जितेंद्र और बबलू की गोली लगने से मौत हो गई थी.

hindi-manohar-social-crime-story

अचानक हुई ताबड़तोड़ गोलीबारी में बिठूर थाने के एसओ कौशलेंद्र प्रताप सिंह को जांघ और हाथ में 3 गोली लगी थीं. दरोगा सुधाकर पांडेय, सिपाही अजय सेंगर, अजय कश्यप, चौबेपुर थाने का सिपाही शिवमूरत और होमगार्ड जयराम पटेल भी गोली लगने से घायल हुए थे.

खास बात यह कि चौबेपुर थाने के इंचार्ज विनय तिवारी और उन की टीम में एक सिपाही शिवमूरत के अलावा कोई घायल नहीं हुआ था. शिवमूरत को भी उस की गलती से गोली लगी. दरअसल, पहले से जानकारी होने की वजह से चौबेपुर की टीम जेसीबी से आगे नहीं बढ़ी थी.

बदमाशों की इस दुस्साहसिक वारदात की जानकारी रात में ही एसएसपी दिनेश कुमार को दी गई. वे एसपी (पश्चिम) डा. अनिल कुमार समेत 3 एसपी और कई सीओ की फोर्स के साथ बिकरू पहुंच गए.

एसओ (बिठूर) समेत गंभीर रूप से घायल 6 पुलिसकर्मियों को रात में ही रीजेंसी अस्पताल में भरती कराने के लिए कानपुर भेज दिया गया. इस वारदात की सूचना मिलते ही आईजी जोन मोहित अग्रवाल और एडीजी जय नारायण सिंह तत्काल लखनऊ से कानपुर के लिए रवाना हो गए. गांव में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए 4 कंपनी पीएसी भी बुलवा ली गई थी.

दूसरी तरफ घटना के बाद कानपुर, कानपुर देहात, कन्नौज, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया की सभी सीमाएं सील कर के पुलिस ने कौंबिंग औपरेशन शुरू कर दिया. कौंबिंग के दौरान बिठूर के एक खेत में छिपे 2 बदमाश पुलिस को दिखाई दे गए. दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं.

एनकाउंटर में दोनों बदमाश ढेर हो गए. इन में एक हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का मामा प्रेम प्रकाश पांडेय था और दूसरा उस का चचेरा भाई अतुल दुबे. सीओ देवेंद्र मिश्रा का क्षतविक्षत शव प्रेम प्रकाश के घर में ही मिला था. लूटी गई 9 एमएम की पिस्टल भी प्रेम प्रकाश की लाश के पास मिली.

प्रदेश ही नहीं, पूरा देश हिल गया था

सुबह का उजाला बढ़ते ही प्रदेश के एडीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार तथा स्पैशल टास्क फोर्स के आईजी अमिताभ यश भी अपनी सब से बेहतरीन टीमों को ले कर बिकरू गांव पहुंच गए. विकास दुबे के बारे में मिली सभी जानकारी ले कर एसटीएफ की कई टीमें उसी वक्त कानपुर, लखनऊ तथा अन्य शहरों के लिए रवाना कर दी गईं.

प्रदेश के डीजीपी एच.सी. अवस्थी के लिए यह घटना बड़ी चुनौती थी. उन्होंने विकास दुबे को जिंदा या मुर्दा लाने वाले को 50 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. फिर वह लखनऊ से सीधे कानपुर के लिए रवाना हो गए.

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों को सख्त आदेश दिए कि किसी भी हालत में इस घटना के लिए जिम्मेदार अपराधियों को उन के अंजाम तक पहुंचाया जाए.

मुख्यमंत्री ने सभी शहीद 8 पुलिस वालों के परिवारों को एकएक करोड़ रुपए की आर्थिक मदद देने की भी घोषणा की.

दूसरी तरफ इस घटना के बाद गुस्से में भरी पुलिस की टीमों ने विकास दुबे की तलाश में ताबड़तोड़ काररवाई शुरू कर दी थी. पुलिस की एक टीम ने सुबह 7 बजे विकास के लखनऊ के कृष्णानगर स्थित घर पर दबिश दी.

आसपास के लोगों से पता चला कि विकास यहां अपनी पत्नी रिचा दुबे, जो जिला पंचायत सदस्य थी, 2 बेटों आकाश और शांतनु के साथ रहता था.

पुलिस को 24 घंटे की पड़ताल के बाद बहुत सारी ऐसी जानकारियां हाथ लगीं, जिस से एक बात साफ हो गई कि विकास दुबे ने उस रात बिकरू गांव में उसे गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस पार्टी पर हमला अचानक ही नहीं किया था, बल्कि चौबेपुर थाने के अफसरों की शह पर उस ने पुलिस टीम को मार डालने की पूरी तैयारी की थी.

घायल पुलिसकर्मियों ने जो बताया, उस से एक यह बात भी पता चली कि अचानक हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने जहां भी छिप कर जान बचाने की कोशिश की उन्हें ढूंढढूंढ कर मारा गया. इसलिए पुलिस को बिकरू के हर घर की तलाशी लेनी पड़ी.

पुलिस पार्टी पर हमला करने वाले बदमाशों ने हमले के बाद वारदात में मारे गए पुलिसकर्मियों की एके-47 राइफल, इंसास राइफल, दो 9 एमएम की पिस्टल तथा एक ग्लोक पिस्टल लूट ली थीं.

छानबीन में यह बात सामने आ रही थी कि चौबेपुर के थानाप्रभारी विनय कुमार तिवारी ने विकास दुबे को दबिश की सूचना दी थी. तह तक जाने के लिए अधिकारियों ने चौबेपुर एसओ विनय तिवारी की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी. पता चला विनय तिवारी के विकास दुबे से बेहद आत्मीय रिश्ते थे. 2 दिन पहले भी वे विकास दुबे से मिलने उस के गांव आए थे.

वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम ने भी विनय तिवारी से विकास दुबे के रिश्तों को ले कर पूछताछ की.

इसी थाने के एक अन्य एसआई के.के. शर्मा समेत थाने के सभी कर्मचारियों की विकास दुबे से सांठगांठ का पता चला तो पुलिस ने विकास दुबे के मोबाइल की सीडीआर निकलवा कर उस की जांचपड़ताल शुरू की.

पता चला घटना वाली रात चौबेपुर एसओ विनय तिवारी की विकास दुबे से कई बार बात हुई थी. लिहाजा उच्चाधिकारियों के आदेश पर विनय तिवारी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया, जबकि एसएसपी ने इस थाने के सभी 200 पुलिस वालों को लाइन हाजिर कर दूसरा स्टाफ नियुक्त कर दिया.

विकास दुबे हालांकि इतना बड़ा डौन नहीं था कि पूरे प्रदेश या देश में लोग उस के नाम को जानते हों. लेकिन उस की राजनीतिक पैठ और दुस्साहस ने उसे आसपास के इलाके में इतना दबंग बना दिया था, जिस से उसे पुलिस को घेर कर उन पर हमला करने का हौसला मिला.

किशोरावस्था में ही बन गया था गुंडा

विकास ने गुंडागर्दी तभी शुरू कर दी थी जब वह रसूलाबाद में चाचा प्रेम किशोर के यहां रह कर पढ़ता था. जब उस की शिकायत घर तक पहुंची तो प्रेम किशोर ने उसे वापस बिकरू जाने को कह दिया. उसे चाचा ने घर से निकाला तो वह मामा के यहां जा कर रहने लगा.

यहीं रहते उस ने ननिहाल के गांव गंगवापुर में पहली हत्या की. तब वह मात्र 18 साल का था. लेकिन इस हत्याकांड में वह सजा से बच गया. यहीं से विकास के आपराधिक जीवन की शुरुआत हुई और वह दिनबदिन बेकाबू होता गया.