
परिवार बढ़ा तो जावेद ने स्वयं को पूरी तरह काम में डुबो दिया. उसे लगा कि काम अधिक होगा तो लाभ भी उसी तरह होगा. जावेद मोटर मैकेनिक था. सुबह 9 बजे घर से निकलता तो देर रात 8-9 बजे ही वापस घर लौटता था.
जब वह पूरे दिन काम में व्यस्त रहने लगा तो सिकंदर की बांछें खिल गईं. उस के लिए यह सुनहरा अवसर था, शहजादी के दिल में जगह बनाने का.
उस ने जावेद के घर में आवाजाही बढ़ा दी. जावेद की पत्नी शहजादी सिकंदर के हवास पर छाई थी और वह उसे किसी भी कीमत पर पाना चाहता था. जावेद की अनुपस्थिति में मौका पाते ही वह शहजादी के पास पहुंच जाता और उसे रिझाने का प्रयास करता.
उस दिन भी पूर्वाहन में सिकंदर शहजादी के घर पहुंचा तो वह हरी मटर छील रही थी. सिकंदर ने मटर के कुछ दाने उठाए और मुंह में डालते हुए बोला, ‘‘मटर तो एकदम ताजा और मिठास से भरी हुई है, इस का कौन सा व्यंजन बनाने जा रही हो?’’
‘‘तहरी बनाऊंगी,’’ शहजादी मुस्कराई, ‘‘सर्दी में आलूमटर की गरमागरम तहरी हरी मिर्च और लहसुन की चटनी से अच्छा व्यंजन कोई दूसरा नहीं होता.’’ वह सिकंदर की आंखों में देखते हुए बोली, ‘‘तहरी खाओगे?’’
‘‘भाभी, मेरा ऐसा नसीब कहां, जो तुम्हारे हाथों का पका स्वादिष्ट खाना खा सकूं.’’ सिकंदर मटर के दाने चबाता शहजादी के पास बैठ गया, ‘‘नसीब तो जावेद भाई का है, खाना भी टेस्टी मिलता है और पत्नी भी सुंदर व टेस्टी मिली है.’’ सिकंदर और शहजादी में देवरभाभी का रिश्ता था.
इस रिश्ते के चलते उन में स्वाभाविक हंसीठिठोली और नोकझोंक होती रहती थी. शहजादी ने भी मुस्करा कर पलटवार किया, ‘‘मुझ से शादी कर के तुम्हारे भाई ने किस्मत चमका ली तो तुम भी किसी से शादी कर के किस्मत चमका लो.’’ फिर उस ने शोखी से मुसकरा कर बोली, ‘‘बीवी बनाने के लिए ऐसी लड़की चुनना जो खाना भी टेस्टी पकाती हो और खुद भी टेस्टी हो.’’
सिकंदर थोड़ा पास खिसक आया और भेदभरे स्वर में बोला, ‘‘भाभी, ऐसी एक लड़की है मेरी नजर में.’’
‘‘कौन है वह खुशनसीब, मुझे भी तो बताओ.’’
सिकंदर कुछ देर शहजादी की आंखों में देखता रहा, फिर बोला, ‘‘वह तुम हो.’’
‘‘अच्छा मजाक कर लेते हो,’’ शहजादी खिलखिला कर हंसी, ‘‘बुद्धू, मैं लड़की नहीं, औरत हूं. 3 बच्चों की मां.’’
‘‘मेरे लिए तो तुम कुंवारी जैसी हो,’’ सिकंदर ने शहजादी की कलाई पकड़ ली, ‘‘मेरी बात मजाक में मत लो भाभी. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. छोड़ो जावेद भाई को मुझ से शादी कर लो. कसम से, पलकों से तुम्हारे नाज उठाऊंगा.’’
शहजादी गंभीर हो गई. कोई जवाब दिए बगैर उस ने सिकंदर से कलाई छुड़ाई, फिर छिली मटर की थाली उठाई और रसोई में चली गई.
सिकंदर भी उस के पीछे जाने वाला था कि एक पड़ोसन आ गई. सिकंदर को लगा कि अब उस का वहां रूकना फिजूल है. उस ने शहजादी से अपने मन की बात खुले शब्दों में कह दी थी. अब निर्णय शहजादी को करना था. इसलिए वह भी उठ कर बाहर चला गया.
30 वर्षीय शहजादी का मायका पश्चिम बंगाल के हावड़ा स्थित अमांता थाना क्षेत्र में था. पिता का नाम मो. सुलेमान और मां का नाम नजमा. 4 भाइयों की एकलौती बहन थी शहजादी.
जवानी की पहली बहार आते ही शहजादी के कदम बहक गए थे. वह घर से घंटों लापता रहने लगी थी. मातापिता सोचते थे कि अभी बच्ची है, नादान है. थोड़ा घूमटहल ले तो अच्छा है. शादी हो जाएगी तब उसे ऐसी आजादी फिर कहां मिलेगी?
सुलेमान के कान तब खड़े हुए, जब एक दोस्त ने शहजादी के चरित्र का आईना दिखाया ‘लड़केलड़कियों के पीछे मंडराते हैं, उन्हें पटाने की कोशिश में रहते हैं. मगर मैं ने एक शहजादी ही ऐसी देखी है जो लड़के पटाती घूमती है.’
सुलेमान को काटो तो खून नहीं. उस ने अपने स्तर से पता किया तो मालूम हुआ कि दोस्त ने गलत नहीं कहा था. अपनी रंगरलियों के चलते शहजादी काफी बदनाम थी.
घर लौट कर सुलेमान ने यह बात अपनी बेगम नजमा को बताई. इस के बाद दोनों ने मिल कर उस की खबर ली. सुलेमान ने उसे मारापीटा तो नजमा ने गालीगलौज के बाद समझाया, ‘‘मुझ पर भी जवानी आई थी, मगर तेरी तरह इज्जत हथेली पर ले कर नहीं घूमती थी. आइंदा कोई गंदी हरकत की तो जमीन में जिंदा दफन कर दूंगी.’’
शहजादी को नएनए लड़कों का जो चस्का लगा था, वह पिता की पिटाई और मां की धमकी से छूटने वाला नहीं था. सुलेमान और नजमा अपनी तरफ से लाख कोशिशें कर के हार गए, लेकिन शहजादी ने नेकचलनी की राह अख्तियार नहीं की. तब नजमा पति से बोली, ‘‘जितनी जल्दी हो, अपनी इस बिगड़ैल लड़की को मजबूत खूंटे से बांध दो.’’
सुलेमान ने युद्ध स्तर पर शहजादी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. इस दिशा में उन को सफलता भी मिली. भावी दामाद के रूप में जावेद खां उन के मन को भा गया.
जावेद खां हावड़ा के अमांता थाना क्षेत्र के जोका गांव नवासी शाहजहां का बेटा था. दोनों पक्षों की बातचीत तथा भावी वरवधू देखने के बाद रिश्ता तय हो गया. फिर निश्चित तिथि पर दोनों का निकाह हो गया. मायके से विदा हो कर शहजादी ससुराल आ गई.
ससुराल में शहजादी के भटकाव को ठहराव मिला. ठहराव तो मिलना ही था, जिस चीज की तलाश में वह लड़कों के पीछे भागती थी, अब वह चीज उसे चौबीसों घंटे घर में मुहैया रहने लगी. शहजादी की कामनाओं के तूफान को संभालने में भी जावेद सक्षम था. फलस्वरूप शहजादी शादी से पहले का अपना शौक भूल गई.
निकाह के कुछ समय बाद जावेद उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में आ कर बस गया. वह गाजीपुर के थाना कोतवाली क्षेत्र के बड़ीबाग चुंगी पर स्थित कांशीराम आवासीय कालोनी में रहने लगा.
वह एक गैराज में मोटर मैकेनिक का काम करने लगा. यह काम वह पहले से ही करता आ रहा था. बीतते समय के साथसाथ शहजादी 3 बच्चों की मां बन गई. दो बेटी नर्गिस, (10 वर्ष) नेहा परवीन, (8 वर्ष) और बेटा इब्राहिम (3 वर्ष).
सिकंदर शहजादी के घर के सामने मोहल्ले में रहने वाले करीम का बेटा था. सिकंदर अविवाहित था और कार ड्राइवर था. सिकंदर का शहजादी के घर आनाजाना था.
आयु में सिकंदर जावेद से 5 साल छोटा था. इस नाते जावेद को भाई और शहजादी को भाभी कह कर बुलाता था. सिकंदर का स्वभाव ऐसा था कि शहजादी उस से जल्द हिलमिल गई.
बदलते वक्त के साथ शहजादी के प्रति सिकंदर की नीयत बदलने लगी. वह मन ही मन उसे चाहने लगा. उस की चाहत में शहजादी को पाने की तमन्ना सिर उठाने लगी. सिकंदर यह भी भूल गया कि शहजादी शादीशुदा और 3 बच्चों की मां है.
जावेद तो पूरे दिन गैराज में काम में लगा रहता था. इस से सिकंदर की चांदी हो गई. शहजादी को पटाने के लिए वह अकसर उस के घर में घुसा रहने लगा. अपनी लच्छेदार बातों से वह उसे लुभाने की कोशिश करता रहता.
एक दिन सिकंदर को सही मौका मिला तो उस ने खुले शब्दों में शहजादी से कह दिया कि वह उस से प्यार करता है. वह अपने पति जावेद को छोड़ कर उस से निकाह कर ले, वह उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखेगा.
उस दिन के बाद से सिकंदर अकसर शहजादी से प्यार के दावे करने लगा. प्यार के बदले उस का प्यार मांगने लगा. अकेले में उस ने भाभी के बजाय उसे शहजादी कह कर पुकारना शुरू कर दिया. वह पहले प्यार की दुहाई देता, फिर कहता, ‘‘शहजादी, जावेद का जोश और प्यार खत्म हो चुका है. उसे छोड़ो और मेरा हाथ थाम लो. दोनों मिल कर मौज करेंगे.’’
एक ही बात बारबार, रोजाना कही जाए तो वह असर छोड़ती ही है. सिकंदर की मनुहार शहजादी पर असर करने लगी. उस का पुराना शौक भी अंगड़ाई लेने लगा. वैसे भी जावेद उस से प्यार से कम गुस्से से ज्यादा बात करता था, झगड़ा करता था और मारतापीटता भी था. वह उस से परेशान रहने लगी थी. इसलिए उसे सिकंदर की प्यार भरी बातें भाने लगीं.
एक दिन शहजादी ने सिकंदर से पूछा, ‘‘सहीसही बताओ, तुम्हारी मंशा क्या है. तुम चाहते क्या हो?’’
‘‘शहजादी, कितनी बार बताऊं, मैं तुम्हें चाहता हूं.’’
‘‘मेरी चाहत पा कर क्या करोगे?’’
‘‘सीने से लगा कर रखूंगा.’’
‘‘मेरा अपना बसाबसाया घर है, पति है, बच्चे हैं,’’ शहजादी ने सिकंदर को समझाया, ‘‘तुम से आशिकी कर के मैं अपना घरसंसार दांव पर नहीं लगाना चाहती.’’
‘‘मुहब्बत से घर बनते है, दुनिया आबाद होती है. बर्बादी की बात मत किया करो.’’
‘‘सिकंदर, जब तुम प्यार की बात करते हो तो मैं कमजोर पड़ने लगती हूं.’’
‘‘इस का मतलब यह कि तुम्हारे दिल में भी मुहब्बत जाग चुकी है,’’ सिकंदर मुस्कराया, ‘‘छोड़ो जावेद को और हमेशा के लिए मेरी हो जाओ.’’
शहजादी जानती थी कि वह सिकंदर का कहना मान लेती है तो बच्चों का भविष्य खराब हो जाएगा. वह असमंजस में थी कि बच्चे साथ ले जाए या जावेद के पास छोड़ दे. दोनों परिस्थिति में उन्हें सौतेलेपन का दंश लगना ही है. सिकंदर से पीछा छुड़ाने के लिए एक दिन उस ने प्रस्ताव रख दिया, ‘‘ सिकंदर, मुझ से निकाह के बाद जो तुम्हें चाहिए, वह मुझ से बिना निकाह किए ही ले लो. उस के बाद मुझ से निकाह का ख्याल छोड़ देना.’’
सिकंदर मुस्कराया, ‘‘मंजूर है.’’
‘‘शर्त यह है कि एक बार ही तुम्हे प्यार दूंगी. दूसरी बार के लिए मत कहना.’’
‘‘भाभी, एक बार जन्नत दिखा दो, फिर कोई ख्वाहिश बाकी नहीं रह जाएगी. मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है.’’ सिकंदर चहका.
उस वक्त घर में कोई नहीं था. अत: शहजादी ने उसे अपने कमरे में जाने को कहा. फिर खुद पहुंची और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. शहजादी का इरादा व नीयत भांप कर सिकंदर ने उसे आलिंगनबद्ध कर लिया. शहजादी भी उस से लिपट गई. कुंवारे और जोशीले बादल खूब उमड़े, खूब गरजे और अंत में तेजतेज बरसे. इस बरसात से शहजादी की देह मानो तृप्त हो गई.
शहजादी की तरफ से शर्त एक बार की थी, मगर सिकंदर ने अपने पौरूष का ऐसा जबरदस्त प्रदर्शन किया कि वह उस की दिवानी हो गई. पुराना शौक भी सिर उठा चुका था. इसलिए वह खुद ही बारबार सिकंदर को बुला कर उसे देह का संगीत सुनाने लगी.
बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है. अवैध संबंध की इस कहानी का अंत भी बुरा ही हुआ.
24 अप्रैल को सुबह 6:30 बजे का समय था. कांशीराम कालोनी के सामने कृषि विभाग के फार्म हाउस में कटे गेंहू के खेत में किसी ने एक युवक की लाश पड़ी देखी. उस ने लाश की सूचना थाना कोतवाली पुलिस को दे दी.
कोरोना वायरस के चलते लौकडाउन चल रहा था तो सभी पुलिस अधिकारी मुस्तैद थे. सूचना मिलते ही इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा मय पुलिस टीम के घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद डीएम ओमप्रकाश मौर्या, एसपी ओमप्रकाश सिंह व अन्य पुलिस अधिकारी भी वहां आ गए.
मृतक की उम्र 30-35 वर्ष के बीच रही होगी. उस के गले पर दबाए जाने के निशान मौजूद थे. शिनाख्त के लिए आसपास के लोगों को बुला कर मदद ली जाती कि तभी एक औरत अपनी एक बच्ची के साथ वहां पहुंची. उस ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उसका नाम शहजादी है, वह कांशीराम कालोनी में रहती है. यह उस के पति जावेद खां की लाश है.
एक दिन पहले 23 तारीख को सुबह वह गैराज में काम करने गए थे लेकिन देर रात तक वापस नहीं लौटे. एसपी ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि लौकडाउन में सब बंद है तो मृतक काम करने क्यों और कैसे जाएगा?
इस के जवाब में शहजादी ने कहा कि शटर बाहर से बंद रहता है, अंदर काम होता रहता है.
उस से कुछ आवश्यक पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारी इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए. इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.
फिर शहजादी को साथ ले कर कोतवाली आ गए. वहां शहजादी की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के विरूद्ध भा.द.वि. की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया.
इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा का शक बारबार शहजादी पर जा रहा था. पति की मौत का जो गम चेहरे पर दिखाई देना चाहिए था, वह शहजादी के चेहरे पर नहीं था. वह रो जरूर रही थी लेकिन उस के आंसू बाहर नहीं आ रहे थे. लगता था जैसे रोने का नाटक कर रही हो.
इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा ने शहजादी के बारे में कालोनी में उस के पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला उस का प्रेमप्रसंग सिकंदर नाम के युवक से चल रहा था. पति जावेद से शहजादी को कोई लगाव नहीं था, वजह यह थी जावेद उसे मारतापीटता था.
इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने शहजादी के मोबाइल नंबर की कालडिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि शहजादी एक नंबर पर दिन में कई बार लंबीलंबी बातें करती थी. घटना वाली रात भी उस ने उसी नंबर पर साढ़े ग्यारह बजे तक बात की थी.
जिस नंबर पर शहजादी की बात होती थी, वह सिकंदर के नाम पर था.
26 अप्रैल को इंस्पेक्टर धनंजय मिश्रा पूछताछ के लिए शहजादी को हिरासत में ले कर कोतवाली आ गए.
वहां महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.
उस से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने उसी दिन दोपहर 12:30 बजे छावनी लाइन स्थित एक ढाबे के पास से सिकंदर और उस के दोस्त रहीस गोरख को गिरफ्तार कर लिया.
शहजादी सिकंदर की मुरीद हो गई थी. उस के बिना शहजादी को अपनी जिंदगी सूनीसूनी लगती थी. वह सिकंदर के साथ भाग कर अपनी नई दुनिया बसाना चाहती थी. लेकिन बच्चों की वजह से उस के कदम आगे नहीं बढ़ते थे.
दूसरी ओर जावेद ने उस की जिंदगी को नर्क से बदतर बना दिया था. इसलिए उस ने फैसला किया कि जावेद को ही रास्ते से हटा दे तो सिकंदर भी उसे मिल जाएगा और बच्चों को भी उसे नहीं छोड़ना पडे़गा.
इस संबंध में शहजादी ने सिकंदर से बात की. सिकंदर तो शहजादी का गुलाम था और गुलाम शहजादी की बात को नकार नहीं सकता था. वैसे वह भी कई दिनों से यही तरीका सोच रहा था.
शहजादी ने उस के तरीके पर अपनी मोहर लगा दी तो सिकंदर तैयार हो गया. उस ने इस संबंध में वंशीबाजार में रहने वाले दोस्त रहीस गोरख से बात की और जावेद की हत्या करने में सहयोग मांगा. रहीस ने हां कर दी. रहीस भी जावेद से अपना एक हिसाब चुकता करना चाहता था.
रहीस ने जावेद के जरीए एक सैकंड हैंड मोटर साइकिल खरीदी थी. इस के बाद पुलिस ने उसे बाइक चोरी में गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. साढे़ चार साल की सजा काटने के बाद वह बीते 4 अप्रैल को जेल से रिहा हुआ था.
रहीस को लगता था कि जावेद ने उसे चोरी की मोटर साइकिल खरीदवा कर पुलिस से उस को पकड़वा दिया था. इसलिए वह जावेद से उस का बदला लेना चाहता था.
रहीस तैयार हुआ तो तीनों ने मिल कर जावेद की हत्या की योजना बनाई.
योजनानुसार 23 अप्रैल की रात जब जावेद काम से लौट रहा था तो सिकंदर और रहीस ने उसे रास्ते में ही रोक लिया और शराब दिखा कर शराब पीने के लिए चलने को कहा तो उस ने मना कर दिया लेकिन उन की जिद पर जावेद उन के साथ हो लिया.
सरकारी फार्म हाउस पर पहुंच कर तीनों एक खेत में शराब पीने बैठ गए. दोनों ने जावेद को ज्यादा शराब पिलाई.
खुद कम पी. जावेद के नशे में बेसुध होने पर उन दोनों ने साथ लाए तौलिया से उस का गला घोंट दिया, जिस से जावेद की मौत हो गई.
जावेद को मारने के बाद इन लोगों ने उस की जेब से मोबाइल निकाल लिया. वहां से दोनों ईदगाह के पीछे पहुंचे वहां एक जगह जावेद का तौलिया और मोबाइल छिपा दिया. फिर सिकंदर ने शहजादी को जावेद की मौत की सूचना दे दी और उस से काफी देर तक बात करने के बाद अपने घर चला गया. रहीस भी वहां से अपने घर लौट गया.
तीनों बड़ी असानी से पुलिस के जाल में फंस गए. इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा ने अभियुक्तों की निशानदेही पर ईदगाह के पीछे से हत्या में इस्तेमाल तौलिया और जावेद का मोबाइल बरामद कर लिया. इस के बाद आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद तीनों को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. द्य
(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)
27 वर्षीय नेहा सिंह मूलरूप से बिहार के बेगूसराय जिले के थाना लोहिया नगर स्थित कस्बा आनंदपुर की रहने वाली थी. उमाशंकर प्रसाद सिंह की 6 संतानों में नेहा सब से बड़ी थी. 5 बेटियों के बाद एक बेटा था. उन की सारी बेटियां एक से बढ़ कर एक थीं.
उमाशंकर ने बेटियों को पढ़ा कर इस काबिल बना दिया कि कभी मुश्किल की घड़ी आए तो डट कर उस का मुकाबला कर सकें.
नेहा बड़ी हुई तो उन्होंने योग्य वर देख कर उस के हाथ पीले कर दिए क्योंकि अभी उन की 4 बेटियां और थीं ब्याहने के लिए.
बड़े अरमानों के साथ उमाशंकर ने बड़ी बेटी नेहा का विवाह लखीसराय के मिंकू सिंह के साथ किया था. उन्होंने शादी में दिल खोल कर खर्च किया था.
शादी के बाद एक साल तक नेहा और उस के पति के बीच संबंध बहुत मधुर रहे. इस दौरान नेहा एक बेटे की मां भी बनी.
इसे समय का तकाजा कहें या नेहा की किस्मत, 2 साल बाद नेहा और उस के पति के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर किचकिच होने लगी. यह विवाद आगे चल कर बढ़ता गया. स्थिति ऐसी बन गई कि एक छत के नीचे दोनों अजनबियों की तरह जिंदगी जी रहे थे. पतिपत्नी के विवाद के बीच में मासूम बेटा पिस रहा था.
इस बीच ससुराल छोड़ कर नेहा अपने मायके आनंदपुर बेटे को ले कर चली आई और मांबाप के साथ रहने लगी. मगर दोनों के बीच तलाक नहीं हुआ था फिर भी दोनों एक नहीं हुए थे. शायद नियति को तो कुछ और ही मंजूर था. उमाशंकर प्रसाद सिंह ने अपनी दूसरी बेटी निशा की भी शादी अपने ही जिले के महमदपुर गौतम में श्याम के साथ कर दी थी. उस के बाद बड़ी बेटी नेहा मायके आई थी.
एक बाप के लिए तब जीना कितना मुश्किल होता है जब उन की आंखों के सामने ब्याहता बेटी या बेटे की गृहस्थी उजड़ती है. नेहा के पिता के साथ भी यही हुआ. बेटी का घर टूटते ही उमाशंकर से देखा नहीं गया और वह सदमे के चलते दुनिया से ही चले गए.
पिता की मौत के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराने वाली नेहा ने उसी दिन कसम खाई कि अपने जीते जी भाईबहनों को कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने देगी. वह इतना कमाएगी कि उन की हर जरूरतों को पूरा कर सके. सचमुच नेहा अपनी कसम पर खरी उतरी और शहर के तनिष्क ज्वैलर्स शोरूम में बतौर सेल्सगर्ल की नौकरी कर ली.
मझली बहन के पति को दे बैठी दिल
जिम्मेदारियों की चक्की में पिसती नेहा जब कभी एकांत में बैठती थी तो अतीत की यादों की बरसात से उस का दामन भीग जाता था. आखिर वह भी हाड़मांस की थी. उस के भी सीने में दिल था, जो कभी किसी के लिए धड़कता था. अब किसी और के लिए धड़कने को बेताब हो रहा था.
निशा के पति श्याम को नेहा ने जब से देखा था, उस के दिल में उन के लिए एक खास जगह बन गई थी. आंखों की भाषा पढ़ने वाले श्याम को यह समझते देर नहीं लगी कि नेहा अपने दिल पर राज करने के लिए उसे आमंत्रित कर रही है. बहनोई जानता था कि उस का पति के साथ करीबकरीब संबंध विच्छेद हो चुका है.
धीरेधीरे श्याम नेहा के करीब और करीब आता गया तो नेहा ने उसे अपने दिल का राजकुमार बना लिया. रिश्तों को ताख पर रख कर दोनों एकदूसरे की बाहों में झूलते प्यार की पींगें भरने लगे. अपने स्वार्थ में नेहा यह भूल चुकी थी कि वह अपनी सगी बहन के प्यार पर डाका डाल रही है. उस ने यह भी नहीं सोचा कि बहन को जब यह सच्चाई पता चलेगी तो उसे कितना दुख पहुंचेगा.
आखिरकार वही हुआ. निशा को बड़ी बहन और पति के बीच पनपे अनैतिक रिश्तों की जानकारी हो गई थी. उसे ऐसा लगा जैसे उस के शरीर से किसी ने आत्मा ही निकाल ली हो और पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.
निशा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की अपनी सगी बड़ी बहन ही उस का घर उजाड़ देगी. उस के पति पर डोरे डालेगी. वह यह हरगिज बरदाश्त नहीं कर सकती थी कि बड़ी बहन के चलते उस की बसीबसाई गृहस्थी उजड़ जाए. वह अपने जीते जी उसे अपनी सौतन नहीं बनने देगी.
श्याम ने पत्नी के सामने उस की बड़ी बहन से शादी करने का प्रस्ताव भी रख दिया था. इस बात को ले कर निशा और उस के पति श्याम के बीच खूब घमासान हुआ था. अपनी गृहस्थी बचाने के लिए वह पति से लड़ पड़ी थी और उसे सौतन बनाने के लिए हरगिज तैयार नहीं हुई, जबकि नेहा सौतन बनने की जिद पर अड़ी थी.
उस दिन के बाद निशा नेहा का नाम सुनते ही जलभुन जाती थी. उसे पति के आसपास देखती या पति को फोन पर बातें करती सुनती तो उस के बदन में आग सी लग जाती थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्या करे, जिस से नेहा नाम की बला से उसे हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए.
छोटी बहन अर्पिता का भी प्रेम प्रसंग आया सामने
बात इसी साल के शुरुआत की है. नेहा के फोन का बैलेंस खत्म हो गया था और उसे किसी को अर्जेंट काल करनी थी. अर्पिता के अलावा घर पर कोई था नहीं तो उस ने उस का फोन मंगवाया और उस से कहा कि काल करने के बाद फोन उसे लौटा देगी.
नेहा को पता नहीं क्या सूझा कि फोन कर के जब वह फारिग हुई तो उस की फोटो गैलरी खोल कर देखने लगी. उस में अर्पिता की विविध मुद्राओं में खींची गई अनेक तसवीरें कैद थीं.
उन्हीं तसवीरों में कुछ ऐसी भी तसवीरें सामने आईं जिसे देख कर वह चौंक गई. जब उस ने उस फोन के वीडियो देखे तो उस के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. वीडियो में अर्पिता निशा के देवर कुंदन के साथ प्यार करती हुई दिख रही थी. फोटो में भी दोनों लिपटे हुए थे.
यह सब देख नेहा आगबबूला हो गई. उस ने अर्पिता को अपने पास बुला कर उस से सारी बातें पूछीं तो अर्पिता ने सारी सच्चाई बड़ी बहन के सामने बता दी. वह बहन के देवर कुंदन से प्यार करती थी और कुंदन भी उस से प्यार करता था. दोनों के बीच यह प्रेम का खेल महीनों से चल रहा था.
दोनों के बीच में प्यार का खेल तब श्ुरू हुआ था, जब अर्पिता निशा की ससुराल उस से मिलने जाया करती थी. चूंकि अर्पिता और कुंदन के बीच जीजा और साली का रिश्ता था, ऊपर से वह बला की खूबसूरत थी, सो कुंदन अर्पिता को दिल दे बैठा था.
अर्पिता और कुंदन के फोटो ऐसी पोजीशन में खींचे गए थे कि कोई बाहर वाला देख ले तो उस से कभी शादी न करे. नेहा ने अर्पिता से कहा कि अब तुम्हारी शादी कुंदन से ही होगी. यह बात नेहा ने अपने तक सीमित रखी और अर्पिता को भी समझाया कि किसी से मत बताना.
कुंदन मुकर गया शादी से
नेहा ने कुंदन को फोन कर के पहले दोनों के बीच के रिश्ते के बारे में पूछा. फिर उसे बहन से शादी करने के लिए कहा तो कुंदन एकदम पलट गया. उस ने साफ कह दिया कि जो करते बन पड़े कर लेना, मुझे अर्पिता से शादी नहीं करनी.
कुंदन के ये तेवर देख कर नेहा की आंखों में खून उतर आया. उस ने भी दोटूक जवाब दिया, ‘‘बहन की जिंदगी बरबाद कर के तुझे गुलछर्रे नहीं उड़ाने दूंगी कुंदन. फोटो और वीडियो वायरल कर के तेरी जिंदगी बरबाद कर दूंगी. तू अभी मुझे जानता नहीं है. तुझे तो अर्पिता से शादी करनी ही पड़ेगी.’’
उस दिन के बाद नेहा कुंदन को बहन से शादी करने के लिए डरानेधमकाने लगी और बात न मानने पर वीडियो वायरल करने की धमकी देने लगी.
बात यहीं खत्म नहीं हुई. उसे सबक सिखाने के लिए अपने कुछ परिचितों को भेज कर एक दिन बाजार में उसे बुरी तरह पिटवा दिया. रोजरोज की धमकी और सरेबाजार की गई बेइज्जती से कुंदन बुरी तरह परेशान हो गया था. उस से बदला लेने के लिए वह फड़फड़ा रहा था.
नेहा से बदला लेने के लिए कुंदन ने रास्ता निकाल लिया और भाभी निशा को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. वह जानता था कि निशा भाभी नेहा से बदला लेने के लिए कैसे बेताब है और अपनी गृहस्थी बचाने के लिए भी.
कुंदन ने नेहा को रास्ते से हटाने के लिए भाभी का साथ मांगा तो वह तैयार हो गई. फिर कुंदन ने गांव के अपने दोस्त मुकेश सिंह को पैसे दे कर नेहा की हत्या की सुपारी दे दी.
योजना के मुताबिक, 11 जून, 2022 की रात करीब साढ़े 9 बजे निशा ने नेहा को फोन कर जानकारी ली कि वह कहां है. शोरूम से घर के लिए कब तक निकलेगी. उस ने बता दिया कि बस 2-4 मिनट का काम और बचा है. उस के बाद निकल जाएगी.
निशा ने कुंदन को फोन कर के यह बात बता दी कि तुम तैयार हो जाना नेहा निकलने ही वाली है. निशा की ओर से नेहा की लोकेशन मिलते ही कुंदन शूटर मुकेश को ले कर पन्हास और आनंदपुर चौक के बीच से हो कर आनंदपुर जाने वाली सड़क किनारे छिप कर खड़ा हो गया.
कुंदन अपनी बाइक से था. बाइक वही चला रहा था जबकि मुकेश पीछे बैठा था. नेहा जैसे ही घर जाने वाली सड़क के लिए मुड़ी कि घात लगाए कुंदन बाइक ले कर उस का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. फिर क्या हुआ, कहानी में ऊपर बताया जा चुका है.
कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपी निशा सिंह और उस का देवर कुंदन जेल की सलाखों के पीछे थे. शूटर मुकेश अभी भी फरार था, जिसे पकड़ने के लिए पुलिस ने उस के कई ठिकानों पर दबिश भी दी लेकिन फिर भी उस का पता नहीं चल सका था. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अर्पिता परिवर्तित नाम है
रंजिशन हत्या का हुआ अंदेशा
जांच से एक बात साफ हो चुकी थी कि इसे लूट अथवा छिनैती के लिए अंजाम नहीं दिया गया था और न ही मृतका और हत्यारों के बीच कोई लड़ाईझगड़े के निशान ही मिले थे. इस का मतलब साफ था कि हत्यारों का निशाना सिर्फ नेहा ही थी.
इस बाबत जब पुलिस ने मृतका के घर वालों से पूछा तो उन्होंने किसी से झगड़ा या दुश्मनी की बात से इंकार कर दिया. उन्होंने आगे कहा कि मिलनसार स्वभाव की नेहा पलभर में किसी को भी अपना बना लेती थी. ऐसे में भला किसी से उस की क्या दुश्मनी हो सकती है.
पुलिस की काररवाई रात के 2 बजे तक चली. नेहा सिंह की मां रिंकू देवी की लिखित तहरीर पर लोहिया नगर के एसएचओ अजीत प्रताप सिंह ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.
मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने जांच की काररवाई शुरू कर दी. इस के लिए सब से पहले नेहा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई.
नेहा की हत्या की खबर सुन कर उस के वहां शोक संवेदना जताने के लिए नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा लग गया. बहन की हत्या की खबर सुन कर उस की मझली बहन निशा, उस का देवर कुंदन और निशा का पति श्याम कुमार भी आए थे. निशा का तो रोरो कर बुरा हाल था. आंखें सूज कर बड़ी हो गई थीं और लाल भी.
मृतका नेहा छोटी बहन निशा से बहुत प्यार करती थी, इसीलिए उस के गम में उस का रोरो कर बुरा हाल था.
बहन के देवर कुंदन पर हुआ शक
घटना के 10 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा था. नेहा के फोन की काल डिटेल्स में बड़ेबड़े व्यापारियों, बड़े अफसरों और तमाम प्रभावशाली लोगों के नंबर निकल कर सामने आए थे.
चूंकि नेहा जिस शोरूम में काम करती थी, वहां सोने, चांदी, हीरे और रत्नजडि़त गहने खरीदने बडे़बड़े लोग आते थे, इसलिए उसे अपने कस्टमरों के नंबर सेलफोन में सेव करने पड़ते थे. फिर भी पुलिस हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी थी.
काल डिटेल्स के अलावा पुलिस ने मुखबिर भी लगा दिए थे. इधर नेहा की बहन निशा का देवर कुंदन लोहिया नगर थाने में हर 2-4 दिन बाद हत्यारों के बारे में पता लगाने जरूर पहुंच जाता था कि हत्यारों की शिनाख्त हुई या नहीं. एसएचओ अजीत प्रताप सिंह हत्यारों को जल्द पकड़ लेने का आश्वासन दे कर उसे घर भेज देते थे.
कुंदन का बारबार थाने पहुंचना और नेहा के हत्यारों के बारे में बारबार पूछना पता नहीं क्यों एसएचओ को अटपटा सा लगने लगा था. उन की आंखों में वह शक के रूप में चढ़ गया था.
इसी बीच पुलिस के हाथों नेहा की सब से छोटी बहन अर्पिता का मोबाइल फोन लग गया. उस में कुछ आपत्तिजनक तसवीरें भी थीं और कुंदन की भी तसवीर दिखी, जो बारबार थाने पहुंच कर नेहा के हत्यारों के बारे में पूछता था.
काल डिटेल्स, अर्पिता के मोबाइल फोन से प्राप्त तसवीरों और कुछ वीडियो क्लिप्स से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि नेहा की हत्या प्रेम प्रसंग का नतीजा है. नेहा मझली बहन निशा के देवर कुंदन पर छोटी बहन अर्पिता से शादी का दबाव बना रही थी.
जांच के जरिए पुलिस को एक और चौंकाने वाली बात पता चली थी कि शादी से इंकार करने पर नेहा ने अपने कुछ परिचितों से कुंदन को पिटवाया भी था.
यही नहीं, उस ने उसे धमकी दी थी कि अगर उस ने अर्पिता से शादी नहीं की तो उस की तसवीरों और आपत्तिजनक वीडियो को सोशल मीडिया पर डाल देगी. इस से कुंदन बुरी तरह डर गया था. यह बात पुलिस ने छिपाए रखी ताकि कुंदन को पुलिस पर शक न हो और वह अपना काम करता रहे.
घटना के 24वें दिन पुलिस को बड़ी कामयाबी हाथ लगी. 2 जुलाई, 2022 को करीब 11 बजे कुंदन लोहिया नगर थाने में नेहा के हत्यारों के बारे में फिर से पता लगाने पहुंचा था. उस वक्त वह शराब के नशे में धुत था. उस के पैर लड़खड़ा रहे थे.
इत्तफाक से एसएचओ अजीत प्रताप सिंह थाने में मौजूद थे और गश्त पर निकलने ही वाले थे कि वह पहुंच गया. कुंदन एसएचओ के उपस्थित होने के बारे में थाने के गेट पर तैनात प्रहरी से पूछ कर सीधा उन के औफिस में पहुंच गया.
‘‘नमस्कार साहब.’’ उन्हें देख कर उस ने कहा था.
‘‘नमस्कार…नमस्कार. आज इतनी जल्दी कैसे आना हुआ?’’ एसएचओ बोले.
खाली पड़ी कुरसी की ओर बैठने का इशारा किया तो वह कुरसी पर बैठ गया. एसएचओ अजीत सिंह ने उसे गौर से देखते हुए पूछा, ‘‘और बताइए, साहब. कैसे आना हुआ?’’
‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही. इधर से निकल रहा था तो सोचा आप से मिलता चलूं और यह भी पता लगा लूं कि नेहा के कातिलों के बारे में कोई क्लू मिला या नहीं?’’
‘‘अच्छा किया जो आप ने याद दिला दिया मुझे. हां जी, नेहा के हत्यारों के बारे में क्लू मिल गया है. ऐसा समझो कि कातिल मेरे सामने बैठा है.’’
एसएचओ की बात सुन कर कुंदन ऐसे उछला मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.
‘‘क…क्या मतलब है सर, आप का?’’ हकलाते हुए बोला था कुंदन, ‘‘नेहा के मर्डर में मेरा हाथ है?’’
‘‘ऐसा ही समझो,’’ अचानक से थानप्रभारी अजीत प्रताप सिंह के तेवर तल्ख हो गए थे, ‘‘बड़ी मुश्किल से फंदे में फंसे हो कुंदन. सारे सबूत तुम्हारे खिलाफ बोल रहे हैं.’’ सच उगलवाने के लिए उन्होंने एक पासा फेंका, ‘‘अब सच सीधी तरह उगल दो वरना सच उगलवाने के मेरे पास और भी तरीके हैं. अगर मैं ने उन हथकंडों को अपनाया तो तुम्हारे शरीर की हड्डियों के लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी.’’
दन ने उगल दी सच्चाई
एसएचओ अजीत प्रताप सिंह का इतना कहना था कि कुंदन का सारा नशा हिरन हो गया. माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. कुंदन समझ गया कि अब बचना मुश्किल होगा. अगर सच नहीं बताया तो सचमुच उस के साथ सख्ती होगी.
फिर क्या था, उस ने एसएचओ के सामने घुटने टेक ही दिए, ‘‘हां, नेहा की मौत का मुझे कोई मलाल नहीं है. निशा भाभी और मैं ने मिल कर उसे मारा है. नेहा ने भाभी का पति छीन कर उन की सौतन बनना चाहा था और मुझे सरेराह बाजार में पिटवा कर ब्लैकमेल करना चाहा. बस हम ने मिल कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हम ने अपने रास्ते के कांटे को हमेशा के लिए खत्म कर दिया.’’
फिर उस ने नेहा की हत्या की पूरी कहानी पुलिस के सामने उगल दी, जो करीब 22 दिनों से उलझी हुई थी.
कुंदन की निशानदेही पर बेगूसराय जिले के ही नयागांव थाने के ही एक गांव महमदपुर गौतम से उस की भाभी निशा को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में निशा ने बहन की हत्या कराने का अपना जुर्म कुबूल लिया.
तनिष्क ज्वैलर्स शोरूम की सेल्सगर्ल नेहा सिंह हत्याकांड का परदाफाश हो चुका था. सनसनीखेज हत्याकांड के 2 आरोपी कुंदन और निशा गिरफ्तार कर लिए गए थे. इस में तीसरा आरोपी मुकेश सिंह, जिस ने नेहा को गोली मारी थी, फरार था.
3 जुलाई, 2022 को एसपी योगेंद्र कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की, जिस में मृतका की बहन निशा और कुंदन ने अपना अपराध कुबूल कर लिया.
इस के बाद दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. पुलिस पूछताछ में नेहा सिंह हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई, जहां रिश्तों की उलझी हुई कमजोर कडि़यां मजबूती के लिए बेकरार थीं.
पति से मतभेद हो जाने पर शादी के 2 साल बाद ही नेहा मायके में रहने लगी. उसी दौरान उसे मझली बहन निशा सिंह के पति श्याम से प्यार हो गया. वह छोटी बहन की सौतन बनने को बेताब थी. बहन का मंसूबा रोकने के लिए निशा ने जो कदम उठाया वह…
11जून, 2022 की रात करीब 10 बजे नेहा सिंह अपनी स्कूटी से घर जा रही थी. बेहद खूबसूरत दिखने वाली नेहा बिहार के बेगूसराय में स्थित तनिष्क ज्वैलर्स के शोरूम में बतौर सेल्सगर्ल काम करती थी. अकसर वह इसी समय के आसपास ड्यूटी से घर लौटती थी.
उस दिन भी वह अपने समय पर घर लौट रही थी, अचानक उस की स्कूटी के सामने आड़ेतिरछी कर के एक बाइक आ कर रुकी, जिस पर 2 युवक थे. सामने बाइक आते ही नेहा ने तेजी से ब्रेक ले कर अपनी स्कूटी रोक दी और बाइक से टकरातेटकराते बची.
‘‘दिखता नहीं, अंधे हो क्या तुम?’’ नेहा गुस्से से चिल्लाई. उस की सांसें तेजतेज से चल रही थीं, ‘‘अभी एक्सीडेंट हो जाता तो..?’’
‘‘दिखता भी है और मैं अंधा भी नहीं.’’ बाइक सवार नीचे उतरते हुए तल्ख हो कर बोला, ‘‘रही बात एक्सीडेंट की तो मैडम, बता दूं कि मैं एक्सपर्ट रेसर हूं. कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं कि बाइक ठोक दूं.’’
‘‘तुम एक्सपर्ट रेसर हो या अनाड़ी, इस से मुझे क्या लेनादेना. लेकिन तुम ने मेरी स्कूटी के सामने अपनी बाइक क्यों रोकी, ये बताओ?’’
‘‘मेरी मरजी, मैं जहां चाहूं वहां बाइक रोकूं. तुम पूछने वाली कौन होती हो?’’
‘‘एक तो गलती कर रहे हो ऊपर से आंखें भी दिखा रहे हो. तुम्हारी हेकड़ी से डरने वाली नहीं हूं मैं, समझे?’’
‘‘साऽऽली…’’ युवक गालियां देता हुआ नेहा के करीब जा पहुंचा और गुर्राते हुए बोला, ‘‘डरने वाली नहीं है तू…’’ कहते हुए कमर में खोंस रखा पिस्टल बाहर निकाला और नेहा के सीने से सटा दिया.
पिस्टल देख नेहा बुरी तरह डर गई. उस के चेहरे का रंग उड़ गया और अभी वह कुछ समझ पाती, तब तक युवक ने ट्रिगर दबा दिया. और बाइक पर सवार हो कर दोनों वहां से फरार हो गए.
गोली लगते ही नेहा स्कूटी सहित लहराती हुई धड़ाम से जा गिरी और तड़पने लगी. चूंकि रात का समय था और चारों ओर सन्नाटा फैला था, गोली चलने की आवाज आनंदपुर मोहल्ले तक साफ सुनाई दी.
इधर नेहा के घर वाले दीवार पर टंगी घड़ी को देखते रहे. रात के जब 11 बज गए और नेहा घर नहीं पहुंची तो मां रिंकू देवी को चिंता हुई. उन्होंने बेटे पवन से कहा कि शोरूम के मैनेजर को फोन कर के पूछो कि नेहा घर क्यों नहीं पहुंची.
पवन ने वैसा ही किया जैसा उस की मां ने करने को कहा था. उधर से जवाब मिला कि नेहा तो अपने टाइम पर शोरूम से घर के लिए रवाना हुई थी जैसे रोज जाती है.
यह सुन कर मां रिंकू ही नहीं घर के सारे लोग परेशान हो गए कि नेहा ऐसा तो कभी नहीं करती. फिर आज उसे क्यों देर हो रही है. मां तो मां होती है. उस ने बेटे से कहा, ‘‘जा तू देख, वह किसी परेशानी में तो नहीं है. उसे साथ ले कर ही आना.’’
‘‘मां, तुम बेकार में परेशान हो रही हो. दीदी कोई छोटी बच्ची नहीं हैं, जो रास्ता भटक जाएंगी. अरे आती होंगी. थोड़ी देर उन का और वेट कर लो.’’
‘‘बेटा, मेरा दिल घबरा रहा है. तू मेरी बात क्यों नहीं सुनता?’’ रिंकू देवी बेटे पर झुंझलाई, ‘‘तू जाता है पता करने या मैं जाऊं?’’
‘‘तुम्हारी यही जिद मुझे अच्छी नहीं लगती मां. जाता हूं, आप यहीं बैठो.’’ कहते हुए पवन बाइक ले कर बड़ी बहन नेहा को तलाशने अकेला ही निकल पड़ा.
खून से लथपथ मिली नेहा
घर से पवन बमुश्किल 200 मीटर आगे बढ़ा था क एक स्कूटी रास्ते में गिरी पड़ी दूर से ही नजर आई. स्कूटी के पास एक युवती भी पड़ी थी. दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. स्कूटी के पास पहुंच कर उस ने अपनी बाइक रोक दी.
मोबाइल की टौर्च जला कर उस की रोशनी में देखा तो स्कूटी उस की बहन नेहा की थी और वह उस के ऊपर गिरी पड़ी थी. यह देख कर उस के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकली. ध्यान से देखा तो उस के कपड़े खून से सने हुए थे और शरीर से खून अभी भी बह रहा था.
उस ने तुरंत बहन के ऊपर से स्कूटी हटाई और बहन को आवाज दे कर हिलायाडुलाया लेकिन नेहा के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई. तब पवन जोरजोर से रोने लगा. उस के रोने की आवाज सुन कर उधर से गुजरने वाले लोग रुक गए. उसी दौरान किसी जानने वाले ने पवन के घर जा कर नेहा के मर्डर की खबर दे दी.
घर में कोहराम मच गया और जो जैसे था, उसी हालत में मौके पर जा पहुंचा. आननफानन में उसे कार में लाद कर बेगूसराय जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया.
नेहा की हत्या की सूचना किसी ने लोहिया नगर थाने में दे दी थी. सूचना मिलते ही एसएचओ अजीत प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ जिला अस्पताल पहुंच गए और लाश अपने कब्जे में ले ली.
एसएचओ अजीत प्रताप सिंह ने इस की जानकारी अपने सीनियर एसडीपीओ अमित कुमार और एसपी योगेंद्र कुमार को दे दी थी. जानकारी मिलते ही दोनों अधिकारी जिला अस्पताल पहुंच गए.
अफसरों ने नेहा की बौडी की जांच की. हत्यारों ने उसे पिस्टल सटा कर गोली मारी थी. जांचपड़ताल में ऐसा पता चला था, क्योंकि गोली लगने वाले स्थान के उतनी दूरी के कपड़े जले हुए थे. ऐसा तभी होता है जब किसी को पिस्टल सटा कर गोली मारी जाती है. उस के बाद पुलिस मृतका के घर वालों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंची, जहां नेहा को गोली मारी गई थी. वह इलाका आनंदपुर चौक और पन्हास के बीच था. घटनास्थल से मृतका का घर महज 200 मीटर दूर था.
खून से सनी स्कूटी मौके पर सड़क पर गिरी थी. पुलिस ने मौके से खून सनी मिट्टी आदि जांच के लिए कब्जे में ले लिए. मौके से पुलिस को पिस्टल के 2 खोखे बरामद हुए थे. वह सबूत के लिए पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए.
लालच की भी एक हद होती है, लेकिन पैसे के लिए अनुज ने सारी हदें पार कर दी थीं. उस ने शालिनी की हत्या की ही योजना नहीं बनाई बल्कि एक तीर से 2 निशाने लगाने की सोची. लेकिन…
8 जनवरी, 2021 की बात है. सुबह के करीब 5 बजे थे. गुजरात के सूरत जिले के पुणा पुलिस थाने को एक अहम सूचना मिली. सूचना देने वाले व्यक्ति ने इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया को फोन पर बताया कि कुमारियां गांव के सर्विस रोड स्थित रघुवीर सिलियम मार्केट के सामने बुरी तरह जख्मी एक महिला पड़ी है. उस के सिर पर गहरी चोट है. मामला सड़क दुर्घटना का लगता है. आप शीघ्र काररवाई करें.
इस जानकारी को इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया ने गंभीरता से लिया. अपने सहायकों को साथ ले कर वह तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.
घटनास्थल पुणा पुलिस थाने से लगभग एक किलोमीटर दूर था. पुलिस वहां मुश्किल से 10 मिनट में पहुंच गई. इस बीच घटना की जानकारी पूरे इलाके में फैल चुकी थी और वहां अच्छाखासा मजमा लग गया था.
पुलिस टीम जब वहां पहुंची तो खून ही खून फैला हुआ था. खून के अलावा वहां कुछ नहीं था. पुलिस टीम ने जब वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि उन के आने के पहले एक एंबुलैंस आई और उसे उठा कर इलाज के लिए पास ही के स्मीमेर अस्पताल ले गई.
इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया को मामला गंभीर लगा. उन्होंने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.
निरीक्षण करने के बाद वह सीधे स्मीमेर अस्पताल पहुंचे. वहां पता चला कि उस महिला की उपचार के दौरान ही मौत हो गई थी. महिला को उस की ससुराल के लोग अस्पताल लाए थे. वह भी अस्पताल में ही मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि मृतक महिला का नाम शालिनी था. उस की मौत अस्पताल लाने के 20 मिनट बाद हुई थी.
शालिनी के पति अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू ने बताया कि वह अपनी पत्नी शालिनी के साथ सुबह 5 बजे अकसर उस रोड पर मौर्निंग वाक के लिए जाता था. एक घंटे की वाक के बाद वे अपने घर आ जाते थे.
घटना के समय टहलते हुए जब वह अपनी पत्नी से कुछ दूर आगे चल रहा था, तभी अचानक रेत से भरा एक ट्रक तेजी से आया और शालिनी को रौंदता हुआ वड़ोदरा की तरफ निकल गया. घबराहट में जब तक वह कुछ समझ पाता, तब तक ट्रक उस की आंखों से ओझल हो गया था.
सुनसान सड़क होने के कारण उसे जल्दी कोई मदद भी नहीं मिली. वह अपना फोन घर भूल आया था. जिस की वजह से मजबूरन उसे शालिनी को घायलावस्था में वहीं छोड़ कर एंबुलैंस लाने के लिए जाना पड़ा.
अस्पताल के डाक्टरों के बयानों के बाद पुलिस ने शालिनी के शव का बारीकी से मुआयना किया और उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया.
थानाप्रभारी थाने लौट आए. शुरुआती जांचपड़ताल में जहां एक तरफ मामला हिट ऐंड रन का बन रहा था, वहीं दूसरी तरफ शालिनी की हत्या की साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता था. बहरहाल, शालिनी के पति अनुज यादव की शिकायत पर पुलिस ने ड्राइवर और ट्रक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.
दूसरी ओर जब इस हादसे की खबर शालिनी के मायके वालों को मिली तो उन के पैरों तले से जमीन सरक गई. उन की बेटी शालिनी किसी हादसे का शिकार हो गई, यह बात उन के गले नहीं उतर रही थी. उन के पूरे परिवार में बेटी को ले कर कोहराम मच गया. उस की मां, बहनों और भाइयों का रोरो कर बुरा हाल था. शालिनी के पिता धनीराम यादव ने फोन पर इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया से बात की और दूसरे दिन शाम होतेहोते वह आगरा जिले में स्थित अपने गांव से सूरत आ गए.
साजिश का संदेह
शालिनी के पिता धनीराम यादव ने शालिनी की मौत को एक सोचीसमझी साजिश बता कर उस की ससुराल वालों को संदेह के राडार पर खड़ा कर दिया. मायके वाले शालिनी के शव पर अपना दावा करते हुए उस का दाह संस्कार अपने गांव ले जा कर करना चाहते थे. साथ ही वे शालिनी की 2 वर्षीय बेटी को भी अपने संरक्षण में लेना चाहते थे. लेकिन इस के लिए शालिनी के ससुराल वाले तैयार नहीं थे. ससुराल वाले उस का शव हासिल करने की कोशिश में लगे थे.
जिस प्रकार शालिनी के पिता धनीराम यादव ने उस के पति और ससुराल वालों को शालिनी की मौत का जिम्मेदार ठहरा कर उन पर आरोप लगाया था, उस से मामला उलझ गया था. दोनों तरफ बातों में कितनी सच्चाई है, पुलिस अधिकारी इस का अध्ययन कर अपनी जांच की रूपरेखा तैयार कर ही रहे थे कि सूरत की सीबीसीआईडी के हाथों में चला गया.
पोस्टमार्टम के बाद शालिनी का शव उस के पिता धनीराम यादव को सौंप दिया गया. जो उसे अपने गांव ले गए. अपनी बेटी का दाह संस्कार करने के बाद धनीराम यादव ने सूरत के नए पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर से मुलाकात कर बेटी की मौत के मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की.
पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर इस मामले पर पहले से ही नजर बनाए हुए थे. उन्होंने शालिनी के केस को गंभीरता से लेते हुए उन्हें इंसाफ दिलाने का भरोसा दिया.
इस के पहले कि पुलिस अधिकारी केस की जांच को ले कर कोई काररवाई करते, शालिनी की मौत को ले कर पूरे शहर में सनसनी फैल गई.
हुआ यह कि शालिनी की मौत को ले कर कई दैनिक अखबारों ने दिलचस्पी लेते हुए उसे हाईलाइट कर दिया. जिस से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा भर गया.
पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह लोगों को समझाया.
सीबीसीआईडी के प्रमुख आर.आर. सरवैया मामले की जांच करने में जुट गए. सरवैया काफी सुलझे हुए तेजतर्रार अधिकारी थे. उन की अपनी अलग पहचान थी.
मामले की जिम्मेदारी लेते ही उन्होंने अपने स्टाफ के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह बाला को साथ ले कर केस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने अपने स्तर पर अस्पताल और घटनास्थल का दोबारा निरीक्षण किया. उन्होंने वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने के साथसाथ वहां के निवासियों के बयान लिए.
उन के बयानों का क्राइम ब्रांच अधिकारियों ने जब बारीकी से अध्ययन किया तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. जब उन्होंने मामले की जांच की तो पूरी दाल ही काली निकली. सुबहसुबह जिस रोड पर वह वाक करने जाते थे, उस समय वह रोड एकदम सुनसान रहती थी.
फिर इतनी सुबह उन के वहां मौर्निंग वाक पर जाने का क्या मतलब था. इस का मतलब शालिनी के पति अनुज कुमार यादव का बयान संदिग्ध था. जो आरोप शालिनी के पिता ने उस पर लगाया था, वह अपराध की श्रेणी में आता था. इस के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी रहस्यमय थी.
क्राइम ब्रांच अधिकारियों ने जब इस की तह में जाना शुरू किया तो शालिनी के ससुराल वाले कुछ इस प्रकार उलझे कि उन के हौसले पस्त हो गए और शालिनी हत्याकांड का सच बाहर आ गया. साजिश कितनी गहरी थी, यह जान कर जांच अधिकारी भी सन्न रह गए. पैसों की भूख ने शालिनी के ससुराल वालों को अपराध की दलदल में धकेल दिया था.
25 वर्षीय अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के रहने वाले सोहन सिंह यादव का एकलौता बेटा था. सोहन सिंह यादव कई साल पहले काम की तलाश में गुजरात के शहर सूरत आए थे और सूरत की एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी करने लगे. जब वह सारे नियमकायदे जान गए तो उन्होंने खुद की सेवा सिक्योरिटी एजेंसी खोल ली.
थोड़े ही दिनों में उन की सिक्योरिटी एजेंसी अच्छी चल निकली और उन के पास 100-150 गार्ड हो गए. सूरत शहर में उन की कई शाखाएं खुल गईं. अच्छा पैसा आया तो उन्होंने अपने रहने के लिए कुमारियां
गांव स्थित सारथी रेजीडेंसी में अच्छा सा फ्लैट ले लिया.
सूरत में उन की और सिक्योरिटी एजेंसी की प्रतिष्ठा थी. वह सूरत के सम्मानित नागरिक बन गए थे. परिवार में उन की पत्नी और बेटे के अलावा एक बेटी पूजा उर्फ नीरू थी, जिस की शादी बुलंदशहर के सरपंच के बेटे रघुवेश यादव से हो गई थी. शादी के बाद भी पूजा अपनी ससुराल में कम और मायके में ज्यादा रहती थी.
अनुज उर्फ मोनू महत्त्वाकांक्षी था, वह पैसों का लोभी था. पढ़ाई खत्म करने के बाद उस का मन पिता की सिक्योरिटी एजेंसी में नहीं लगा. उस ने अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी खोल ली. उसे यह लुभावना सपना उस के नौकर मोहम्मद नईम उर्फ पप्पू ने दिखाया था, जो 5 साल पहले उस केपिता की सिक्योरिटी एजेंसी में गार्ड की सर्विस करता था. सिक्योरिटी की नौकरी छोड़ कर वह ट्रांसपोर्ट की लाइन में चला गया था.
लालच की हद
अनुज उर्फ मोनू का ट्रांसपोर्ट का कारोबार जब ठीकठाक चलने लगा तो पिता सोहन सिंह यादव ने दिसंबर, 2017 में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के गांव जाफरापुर निवासी धनीराम यादव की बेटी शालिनी के साथ उस की शादी कर दी. धनीराम यादव गांव के जानेमाने काश्तकार थे. उन्होंने बेटी की शादी में अपनी हैसियत के अनुसार दानदहेज दिया.
शालिनी जिन सपनों को ले कर ससुराल आई थी, उस के उन सपनों की हकीकत जल्दी ही सामने आ गई. शादी के 4 महीने बाद ही ससुराल वाले उस के मायके वालों से 5 लाख रुपयों की मांग करने लगे. कुछ दिनों बाद वह शालिनी को प्रताडि़त भी करने लगे थे.
यह बात शालिनी के मायके वालों को पता लगी तो उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने अनुज को बुला कर 2 लाख रुपए दे दिए और बाकी 3 लाख रुपए आलू की फसल बेच कर देने का वादा कर लिया.
इतना करने के बाद भी शालिनी के प्रति जब ससुराल वालों का व्यवहार नहीं बदला तो वह जा कर शालिनी को मायके ले आए. लेकिन एक महीने बाद ही उस की ससुराल वाले उसे वापस अपने घर ले गए.
इस बीच शालिनी मां बनी और एक बच्ची को जन्म दिया. अनुज के परिवार वालों को बेटी पैदा होने की जरा भी खुशी नहीं हुई. शालिनी को बेटी होने की भी प्रताड़ना भी सहनी पड़ती थी. यहां तक कि शालिनी को अपने पास फोन तक रखने की इजाजत नहीं थी.
अनुज तो दहेज को ले कर शालिनी को तरहतरह से प्रताडि़त करता था. उस की बहन पूजा उर्फ नीरू, पिता सोहन सिंह यादव और उस के 2 चचेरे भाई गोपाल और गंगाराम यादव भी इस में पीछे नहीं रहते थे.
पैसों का भूखा अनुज अपने परिवार के साथ शालिनी पर अत्याचार तो करता ही था, उन की योजना बीमा कंपनियों को भी चूना लगाने की थी. ट्रांसपोर्ट के कारोबार में होने के कारण बीमे का फंडा उसे अच्छी तरह मालूम था. इसीलिए उस ने अपने पूरे परिवार के लिए नकली दस्तावेज दे कर जीवन बीमा पौलिसी करा ली थीं. पिता, बहन और पत्नी की पौलिसियों का वह स्वयं नौमिनी था और अपनी पौलिसी का नौमिनी उस ने अपने पिता को बनाया था.
परफेक्ट प्लानिंग
जीवन बीमा की 3-4 किस्तें के बाद अनुज अपने पिता और बहन का फरजी डेथ सर्टिफिकेट लेने के लिए अपनी बहन के सरपंच ससुर के पास बुलंदशहर गया. मगर वहां पूजा के पति रघुवेश की वजह से वह अपनी योजना में सफल नहीं हुआ. इस पर भाईबहन ने मिल कर रघुवेश यादव को दहेज के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया.
समय अपनी गति से चल रहा था. धीरेधीरे शालिनी की शादी को 2 साल से अधिक समय हो गया. बेटी एक साल की हो गई थी. फिर भी शालिनी के प्रति उस की ससुराल वालों का व्यवहार नहीं बदला. इस से नाराज शालिनी के घर वालों ने सन 2019 में शालिनी के ससुराल वालों पर धावा बोल दिया और उन की अच्छी तरह पिटाई कर दी.
इस के बाद शालिनी का व्यवहार भी बदल गया. उस ने अपनी ससुराल वालों से डरना छोड़ दिया. ससुराल वालों का जबजब सुर बदलता, तबतब शालिनी उन्हें अपने मायके वालों की धमकी दे देती थी. इस का प्रतिकूल असर उस के पति अनुज पर पड़ता था, जिसे अनुज अपना अपमान समझता था.
इस अपमान की आग अनुज के दिल में ऐसी लगी कि उस ने शालिनी का अस्तित्व ही मिटा डालने का फैसला कर लिया. उस ने शालिनी और उस के मायके वालों से एक खौफनाक अंदाज में अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली.
इस के लिए उस ने शालिनी के प्रति एक खतरनाक साजिश रच डाली. इस साजिश में उस ने अपने पुराने कर्मचारी सिक्योरिटी गार्ड और ट्रक ड्राइवर मोहम्मद नईम उर्फ पप्पू को भी शामिल कर लिया.
उस ने शालिनी की 30 लाख की जीवन बीमा पौलिसी तो पहले से ही करवा रखी थी. इस के बाद उस ने अपने कारोबार के लिए नवंबर में शालिनी के नाम पर 33 लाख का एक डंपर खरीद लिया. उस डंपर का भी उस ने बीमा करा लिया था.
बीमा की पौलिसी के अनुसार अगर डंपर मालिक की किसी दुर्घटना में मौत हो जाती तो डंपर का पूरा पैसा माफ हो जाता. इस तरह योजना को अंजाम देने पर अनुज को 63 लाख रुपए का फायदा होता.
साजिश को दिया अंजाम
इस साजिश को सफल बनाने के लिए अनुज ने पहले शालिनी और उस के ससुराल के लोगों के प्रति अपना व्यवहार ठीक किया. फिर घटना के 15 दिन पहले से अनुज शालिनी को साथ ले कर मौर्निंग वाक के लिए कुमारियां गांव के सर्विस रोड पर जाने लगा.
अपनी तरफ धीरेधीरे बढ़ती हुई मौत से अनभिज्ञ शालिनी अपने पति अनुज का साथ देने लगी. इस साजिश में शामिल मोहम्मद नईम को अनुज ने ढाई लाख रुपए देने का वादा किया था. मोहम्मद नईम की अपनी मजबूरी थी. उसे अपनी बेटी की शादी करनी थी. इसलिए वह राजी हो गया था.
साजिश के तहत घटना के दिन मोहम्मद नईम ने घटना से 5 घंटे पहले बालू भरी अपनी ट्रक ला कर घटनास्थल से कुछ दूरी पर खड़ी कर दी.
अपने तय समय के अनुसार सुबह साढ़े 4 बजे जब अनुज अपनी पत्नी शालिनी के साथ उस सर्विस रोड पर आया तो मोहम्मद नईम सावधान हो गया . अनुज और शालिनी आपस में बातें करते हुए जब रघुवीर सैलियम मार्केट के पास आए, उसी समय अनुज ने सुनसान माहौल देख कर शालिनी का कस कर गला दबा दिया.
शालिनी उस का विरोध भी न कर पाई और बेहोश हो गई. उस ने शालिनी को गिरने नहीं दिया, वह उसे पकड़े रहा. शालिनी के बेहोश होते ही अनुज का इशारा पा कर मोहम्मद नईम तेजी से अपनी ट्रक उन के पास से ले कर गुजरा तो अनुज ने शालिनी को ट्रक की तरफ धक्का दिया.
इस के पहले कि शालिनी के चिथड़े उड़ जाते, मोहम्मद नईम का मन बदल गया. वह अपने ट्रक को कट मार कर निकाल ले गया. लेकिन फिर भी ट्रक की टक्कर से शालिनी लहूलुहान हो गई.
अनुज कुछ दूर जा कर खड़ा हो गया. कुछ देर बाद रोड पर जब हलचल बढ़ी तो वह हरकत में आ गया. उस दिन वह जानबूझ कर अपना फोन घर छोड़ आया था. किसी का फोन मांग कर उस ने फोन कर के एंबुलैंस बुलाई और शालिनी को अस्पताल ले गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.
पूछताछ में पुलिस को गुमराह करने के लिए अनुज ने शालिनी की मौत की एक मनगढ़ंत कहानी सुना दी थी.
अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू से पूछताछ के बाद पुलिस ने शालिनी की हत्या में शामिल ससुर सोहन सिंह यादव, ननद पूजा उर्फ नीरू यादव, गोपाल और गंगाराम यादव को गिरफ्तार कर लिया.
उन की निशानदेही पर फरार ट्रक ड्राइवर मोहम्मद नईम को भी क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने छापा मार कर सूरत के फाल आरटीओ के पास से गिरफ्त में ले लिया और आगे की जांच के लिए सूरत के पुणा थानाप्रभारी को सौंप दिया.
कथा लिखे जाने तक शालिनी के मायके वाले उस की 2 वर्षीय बेटी को अपने संरक्षण में लेने के लिए कानूनी सलाह ले रहे थे. वह अनुज के रिश्तेदारों के पास रह रही थी.
23मार्च, 2021 की शाम 5 बजे चकेरी थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को सूचना मिली कि चंदारी स्थित 60 साइंटिस्ट हौस्टल की पांचवीं मंजिल से कूद कर रक्षा शोध संस्थान की अवर अभियंता रजनी त्रिपाठी ने खुदकुशी कर ली है. यह खबर उन्हें कृष्णानगर चौकी इंचार्ज आर.जे. गौतम द्वारा मिली थी. चूंकि मौत का यह मामला हाईप्रोफाइल था, अत: थानाप्रभारी सूचना मिलते ही घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जाने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचना दे दी थी.
दधिबल तिवारी पुलिस बल के साथ चंदारी स्थित 60 साइंटिस्ट हौस्टल पहुंचे तो वहां कर्मचारियों की भीड़ जुटी थी. जेई रजनी त्रिपाठी का शव हौस्टल के बाहर खून से तरबतर पड़ा था. उन का सिर फट गया था और शरीर के अन्य भाग चकनाचूर हो गए थे.
कर्मचारियों ने उन्हें बताया कि रजनी त्रिपाठी डीएमएसआरडीई (डिफेंस मटीरियल ऐंड स्टोर रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट) में अवर अभियंता थी. उन के पास 60 साइंटिस्ट हौस्टल के देखरेख की भी जिम्मेदारी थी. उन्होंने पांचवीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या की है.
दधिबल तिवारी अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि खबर पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह तथा एसपी (पूर्वी) शिवाजी भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया, फिर वे हौस्टल की पांचवीं मंजिल की छत पर पहुंचे, जहां से रजनी त्रिपाठी ने छलांग लगाई थी.
वहां पर पुलिस अधिकारियों को उन की चप्पलें, मोबाइल फोन और बैग मिला. बैग को खंगाला गया तो बैग में नींद की 15 गोलियों का पैकेट मिला, जिस में 6 गोलियां नहीं थीं. साथ ही फिनायल की बोतल मिली, जिस का ढक्कन खुला था. बैग में एक पर्स भी मिला जिस में नकदी थी. इसी बैग में सुसाइड नोट भी था. बैग को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.
पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि मौत को गले लगाने से पहले जेई रजनी त्रिपाठी ने नींद की गोलियां खाई थीं और एकदो ढक्कन फिनायल भी पिया था. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल की बारीकी से जांच की. टीम ने बैग से बरामद सामान की भी जांच की तथा साक्ष्य एकत्र किए.
एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी शिवाजी ने मृतका के मोबाइल को खंगाला तो उस में रजनी के पिता का मोबाइल नंबर सेव था. अत: उन्होंने उन के पिता परमात्मा शरण को उन की मौत की सूचना दी तथा शीघ्र घटनास्थल पर आने को कहा. बेटी की मौत की सूचना पा कर वह घबरा गए. इस के बाद तो उन के घर परिवार में सनसनी फैल गई.
बैग में मिला सुसाइड नोट
मृतका के पिता को सूचना देने के बाद पुलिस अधिकारियों ने बैग से बरामद रजनी के सुसाइड नोट का अवलोकन किया. सुसाइड नोट अंगरेजी में लिखा गया था, जिस में उन्होंने लिखा था, ‘पति शिवम मुझे प्रताडि़त करता है. रुपयों की मांग करता है. सास, जेठ, देवर भी धमकाते हैं. हमारी मासूम बेटी का इलाज भी पति नहीं कराना चाहता. वह चाहता है कि बेटी मर जाए.’
सुसाइड नोट पढ़ने के बाद पुलिस अधिकारी समझ गए कि रजनी त्रिपाठी ने पति व ससुरालीजनों की प्रताड़ना से आजिज आ कर आत्महत्या की है. उन की मौत का जिम्मेदार उन का पति व ससुराल के अन्य लोग हैं. उन्हें कानून के शिकंजे में कसना होगा.
इसी समय मृतका रजनी के परिवार के लोग आ गए. बेटी का शव देख कर परमात्मा शरण त्रिपाठी फफक पड़े. भाई निखिल भी रो पड़ा. पुलिस अधिकारियों ने उन्हें धैर्य बंधाया तथा घटना के संबंध में पूछताछ की.
परमात्मा शरण ने उन्हें बताया कि वह आईआईटी नानकारी में रहते हैं. उन्होंने मई, 2019 में बड़ी बेटी रजनी का विवाह गुजैनी निवासी शुभम पांडेय के साथ किया था. शादी के चंद माह बाद ही वह बेटी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने लगा.
रजनी की सास शशि पांडेय तथा जेठ सत्यम व देवर हिमांशु उर्फ सनी भी उसे दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे. उन की मांग थी कि मायके से 10 लाख रुपए ला कर दे तथा गांव की जमीन में भी हिस्सा दो. मांग पूरी न होने पर उन्होंने रजनी को जान से मारने की धमकी दी थी.
धमकी से डर कर रजनी मायके में आ कर रहने लगी थी. मार्च 2020 में जब लौकडाउन लगा तो दामाद शुभम पांडेय भी आ कर बेटी के साथ रहने लगा. यहां भी वह रजनी को प्रताडि़त करता था और वेतन का रुपया छीन लेता था. विरोध करने पर वह घर वालों से मारपीट पर उतारू हो जाता था.
ससुरालियों पर लगाया आरोप
26 फरवरी, 2020 को रजनी ने अस्पताल में बेटी को जन्म दिया था. बेटी पैदा होने से शुभम नाराज था क्योंकि वह बेटा चाहता था. जन्म के बाद मासूम को इंफैक्शन हो गया था. इलाज के लिए उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया था. लेकिन शुभम बेटी का इलाज नहीं कराना चाहता था. वह चाहता था कि वह मर जाए.
इलाज को ले कर वह रजनी तथा घर के लोगों को प्रताडि़त करता था. एक सप्ताह पहले वह रजनी से लड़झगड़ कर अपने घर गुजैनी चला गया था. तब से रजनी बेहद परेशान थी.
आज सुबह 10 बजे रजनी कार से ड्राइवर के साथ अस्पताल का बिल पास कराने अपने औफिस के लिए निकली थी. 11 बजे हमारी रजनी से बात भी हुई थी. लेकिन उस के बाद मुझे शाम को उस की मौत की सूचना मिली. रजनी की मौत का जिम्मेदार उस का पति शुभम पांडेय तथा उस के घर वाले हैं. उन दहेजलोभियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर कानूनी काररवाई की जाए.
निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका रजनी के शव को पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. चूंकि मृतका के सुसाइड नोट में उत्पीड़न की बात कही गई थी तथा मृतका के पिता ने भी दहेज उत्पीड़न की बात कही थी. अत: एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने चकेरी थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को तुरंत रिपोर्ट दर्ज करने तथा आरोपियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.
आदेश पाते ही दधिबल तिवारी ने मृतका रजनी के पिता परमात्मा शरण त्रिपाठी की तहरीर पर भादंवि की धारा 304 के तहत मृतका के पति शुभम पांडेय, जेठ सत्यम पांडेय, देवर हिमांशु तथा सास शशि पांडेय के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उन की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए.
24 मार्च, 2021 को जब रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान की अवर अभियंता रजनी त्रिपाठी की मौत की खबर अखबारों में छपी तो शुभम पांडेय व उस के घर वाले घबरा उठे. उन की बेचैनी तब और बढ़ गई, जब उन्हें पता चला कि उन के खिलाफ दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज हो चुका है और पुलिस उन की तलाश में जुटी है. वे अपने बचाव में घर से फरार हो गए और गिरफ्तारी से बचने के लिए सत्तापक्ष के नेताओं के तलवे चाटने लगे.
24 मार्च को ही कड़ी सुरक्षा के बीच मृतका रजनी के शव का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम हाउस के बाहर उमड़ी भीड़ के बीच कल्याणपुर से विधायक एवं उच्च शिक्षा राज्यमंत्री नीलिमा कटियार भी पहुंचीं. उन्होंने बिलखते मृतका के पिता परमात्मा शरण त्रिपाठी को धैर्य बंधाया और कहा कि दुख की इस घड़ी में वह उन के साथ हैं. वह उन की हरसंभव मदद करेगी. दहेजलोभियों को बख्शा नहीं जाएगा. उन की गिरफ्तारी जल्द ही होगी.
चूंकि राज्यमंत्री का बयान पुलिस के जेहन में था. अत: पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर मृतका रजनी के पति शुभम पांडेय व जेठ सत्यम पांडेय को नाटकीय ढंग से 25 मार्च को गिरफ्तार कर लिया.
पुलिस पूछताछ में शुभम व सत्यम पांडेय ने खुद को निर्दोष बताया. उन्होंने मृतका के पिता द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत बताया. उन्होंने कहा कि उन लोगों ने कभी भी रजनी का उत्पीड़न नहीं किया. उस ने प्रेम विवाह किया था. दहेज की बात कहां से आर्. रजनी जिद्दी व घमंडी थी. वह हमारे परिवार को हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश करती थी.
जेई रजनी ने किया था प्रेम विवाह
कानपुर शहर का एक मोहल्ला नानकारी पड़ता है. आईआईटी से नजदीक होने के कारण इसे आईआईटी नानकारी के नाम से जाना जाता है. यह कल्याणपुर थाना अंतर्गत आता है. इस मोहल्ले में ज्यादातर धनाढ्य लोगों का निवास है. इसी नानकारी में परमात्मा शरण अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुड्डी के अलावा 3 बेटियां रजनी, अंशुल, रोषी तथा एक बेटा निखिल था. परमात्मा शरण त्रिपाठी कानपुर के मुख्य डाकघर में वरिष्ठ सहायक के पद पर थे. उन का अपना आलीशान मकान था. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.
परमात्मा शरण त्रिपाठी स्वयं पढ़ेलिखे थे, अत: उन्होंने अपने बच्चों को भी उच्चशिक्षा दिलाई थी. अंशुल पढ़लिख कर बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थी, जबकि बेटा निखिल आईआईटी कानपुर से पीएचडी कर रहा था. बड़ी बेटी रजनी की तमन्ना इंजीनियर बनने की थी. वह खूब मेहनत कर रही थी और इंजीनियरिंग की कोचिंग भी जाती थी.
रजनी त्रिपाठी जिस कोचिंग सेंटर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जाती थी, उसी में शुभम पांडेय भी पढ़ने आता था. शुभम पांडेय कानपुर के गोविंदनगर थानांतर्गत गुजैनी मोहल्ले में रहता था. उस का बड़ा भाई सत्यम पांडेय प्राइमरी स्कूल में शिक्षक था, जबकि छोटा भाई हिमांशु उर्फ सनी लेखपाल था. मां शशि पांडेय घरेलू महिला थीं. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी.
शुभम और रजनी हमउम्र थे. दोनों साथसाथ कोचिंग कर रहे थे, अत: उन में दोस्ती थी. दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. प्यार का रंग गहरा हुआ तो दोनों एकदूसरे के बिना अपने को अधूरा समझने लगे. एक रोज प्यार के क्षणों में शुभम ने अपनी मोहब्बत का इजहार कर दिया तो रजनी ने उस के प्यार पर मोहर लगा दी. दोनों में तय हुआ कि डिग्री हासिल करने के बाद जब वे नौकरी करने लगेंगे, तब ब्याह रचा लेंगे.
समय बीतने के साथ शुभम ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली और वह एक निजी कंपनी में इंजीनियर बन गया. रजनी त्रिपाठी भी डिग्री हासिल करने के बाद डीएमएसआरडीई (रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान) में अवर अभियंता के पद पर नौकरी करने लगी. उसे 60 साइंटिस्ट हौस्टल के देखरेख की जिम्मेदारी भी दी गई. हर रोज विभागीय कार ड्राइवर के साथ वह औफिस आतीजाती थी.
नौकरी लग जाने के बाद शुभम ने रजनी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे रजनी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों ने परिवार वालों को अपने प्यार के बाबत बताया और शादी की इच्छा जताई. दोनों परिवारों की सहमति के बाद 2 मई, 2019 को रजनी और शुभम शादी के बंधन में बंध गए. शुभम की दुलहन बन कर रजनी ससुराल आ गई.
ससुराल में चंद माह बाद ही रजनी को प्रताडि़त किया जाने लगा. पति, सास, जेठ व देवर उस पर 10 लाख रुपया मायके से लाने का दबाव बनाने लगे. गांव की जमीन में भी हिस्सा देने की बात कहने लगे. रजनी ने जब बात मानने से इनकार कर दी तो उसे प्रताडि़त किया जाने लगा. उसे जानमाल की धमकी भी दी जाने लगी. प्रताड़ना से आजिज आ कर रजनी ससुराल छोड़ कर मायके आ गई.
मार्च, 2020 में जब लौकडाउन घोषित हुआ तो शुभम का काम प्रभावित हुआ. अत: वह भी रजनी के साथ नानकारी आ कर रहने लगा. ससुराल में रहते हुए भी शुभम पत्नी को प्रताडि़त करता और उस का वेतन छीन लेता. रजनी व उस के मातापिता विरोध करते तो शुभम उन के साथ मारपीट करता. लोकलाज और बेटी के भविष्य को देखते हुए परमात्मा शरण, शुभम के खिलाफ कोई काररवाई न करते.
26 फरवरी, 2021 को रजनी ने प्राइवेट अस्पताल में एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म से शुभम का मूड खराब हो गया.
उस ने खूब हंगामा किया और रजनी को भी प्रताडि़त किया. बेटी बीमार पड़ी तो वह उस का इलाज भी नहीं कराना चाहता था. वह चाहता था कि बेटी मर जाए. लेकिन रजनी ने इलाज कराया तो वह 12 मार्च को लड़झगड़ कर तथा तरहतरह की धमकियां दे कर अपने घर गुजैनी चला गया.
पांचवीं मंजिल से लगाई छलांग
पति की प्रताड़ना से रजनी टूट चुकी थी. उसे अपना जीवन नीरस लगने लगा था. वह दिनरात अपने व अपनी मासूम बेटी के भविष्य के बारे में सोचती. वह कई दिनों तक इन्हीं झंझावात में उलझी रही.
आखिर उस ने हताश जिंदगी का अंत करने का निश्चय किया. इस के लिए उस ने 15 गोलियों वाले नींद की गोली के पत्ते को खरीदा तथा फिनायल की एक बोतल खरीदी. इसे उस ने अपने बैग में सुरक्षित कर लिया. इस के बाद रात में उस ने अंगरेजी में सुसाइड नोट लिखा और उसे भी बैग में रख लिया.
23 मार्च, 2021 की सुबह 10 बजे रजनी कार से ड्राइवर के साथ घर से निकली. लगभग 11 बजे पिता ने उस से बात की तो उस ने बताया कि वह हौस्पिटल का बिल पास कराने चंदारी स्थित औफिस जा रही है. उस के बाद रजनी शहर में घूमती रही. शाम 4 बजे वह औफिस पहुंची. कार उस ने सड़क किनारे खड़ी करा दी और 60 साइंटिस्ट हौस्टल पहुंची. फिर वह सीढि़यां चढ़ कर हौस्टल की पांचवीं मंजिल की छत पर पहुंची. यहां उस ने चप्पलें उतारीं और नींद की 6 गोलियां फिनायल के साथ निगल लीं. उस के बाद छलांग लगा दी.
हौस्टल के कर्मचारियों ने रजनी की बौडी को देखा तो वह सहम गए. उन में से एक कर्मचारी ने भाग कर कृष्णानगर चौकी इंचार्ज आर.जे. गौतम को सूचना दी. चौकी इंचार्ज ने तुरंत थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को घटना से अवगत कराया. उस के बाद पुलिस व अधिकारी घटनास्थल पहुंचे.
26 मार्च, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त शुभम व सत्यम पांडेय को कानपुर कोर्ट में मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक शशि व हिमांशु पांडेय को पुलिस गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
कुछ इंसानों की फितरत ही धोखे और फरेब की होती है. वह अपने साथ अच्छा करने वालों के साथ भी बुरा करने से नहीं चूकते. ऐसे लोगों को अपनी करनी का फल तो जरूर भुगतना पड़ता है. लेकिन अपनी फितरत से वे दूसरों के लिए भी खतरा बन जाते हैं.
फिरोजाबाद का रहने वाला ब्रजमोहन भी इसी तरह का व्यक्ति था. उस ने रेलवे में 5 साल नौकरी की. जिस इंजीनियर पुनीत कुमार के घर पर वह काम करता था, जिन के कहने पर उस की नौकरी स्थाई हुई. उस ने उसी के घर चोरी करने की योजना बना ली.
ब्रजमोहन लालची स्वभाव का था. उस ने पुनीत कुमार की मदद करने की नहीं सोची, बल्कि उस की नजर उन के घर में आ रहे रुपयों पर थी. यह लालच ब्रजमोहन के लिए जानलेवा साबित हुआ. जिन लोगों को उस ने चोरी के लिए बुलाया. वे ही उस की जान के दुश्मन बन बैठे.
26 मार्च, 2021 को लखनऊ के कैंट थानाक्षेत्र के बंदरियाबाग में रहने वाले इंजीनियर पुनीत कुमार के सरकारी आवास पर सरकारी नौकर ब्रजमोहन की हत्या कर दी गई.
पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर जांच की तो पता चला कि बिजली के तार से पहले उस के गले को कसा गया, बाद में चाकू से रेत दिया गया था. उस के हाथ और पांव बंधे थे. पुनीत के घर का सामान बिखरा हुआ था. पता चला कि पुनीत कुमार के बैडरूम से 15-20 लाख रुपए कैश और कुछ जेवरात गायब थे.
पहली नजर में मामला चोरी के लिए हत्या का लग रहा था. पुनीत ने अपने नौकर की हत्या का मुकदमा कैंट थाने में लिखाया.
इंजीनियर का सरकारी आवास लखनऊ के बहुत ही सुरक्षित बंदरियाबाग इलाके में था. इसलिए इस केस को सुलझाना पुलिस के लिए ज्यादा चुनौती भरा काम था. लखनऊ पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर ने जौइंट पुलिस कमिश्नर (अपराध) निलब्जा चौधरी की अगुवाई में एक टीम का गठन किया.
इस टीम में डीसीपी (पूर्वी) और एडीशनल डीसीपी (पूर्वी) को भी अहम जिम्मेदारी दी गई. इस के साथ ही कैंट थाने की इंसपेक्टर नीलम राणा, एसआई जनीश वर्मा को मामले के परदाफाश की जिम्मेदारी सौंपी गई.
इंजीनियर पुनीत के घर नौकर की हत्या के समय पुनीत के फूफा चंद्रभान घर के दूसरे कमरे में टीवी देख रहे थे. उन को किसी बात का पता नहीं था. ऐसे में पुलिस को लग रहा था कि हो न हो नौकर ब्रजमोहन इस चोरी में हिस्सेदार रहा हो.
पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि अगर नौकर चोरी में शामिल था तो उस की हत्या क्यों हो गई? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए पुलिस ने ब्रजमोहन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स चैक करनी शुरू की. साथ ही पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज भी देखे. पता चला कुछ लोग एक टैक्सी से आए थे.
पुलिस ने छानबीन शुरू की. पुनीत कुमार 2008 बैच के भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग सर्विस (आईआरएसई) के अधिकारी हैं. उत्तर रेलवे की चारबाग स्थित निर्माण इकाई में उन का दबदबा है.
उन के पास इस समय 800 करोड़ रुपए से अधिक के रेलवे के प्रोजेक्ट्स हैं. पहले वह इसी कार्यालय में अधीक्षण अभियंता थे, बाद में प्रमोशन पा कर यहीं पर उप मुख्य निर्माण अभियंता के रूप में काम करने लगे. नौकर ब्रजमोहन उन के घर के कामकाज देखता था.
फिरोजाबाद के कोलामऊ महरौना का रहने वाला ब्रजमोहन करीब 5 साल से पुनीत के यहां काम कर रहा था. एक साल पहले पुनीत ने ही ब्रजमोहन की नौकरी स्थाई की थी. वह पुनीत के ही आवास में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहता था.
उस का अपने गांव से बराबर संपर्क बना हुआ था. वह अपने साहब के घर रुपयोंपैसों की आवाजाही होते देखा करता था. उसे यह भी पता होता था कि वहां कितना पैसा रखा रहता है. यह पैसा देख कर उस के मन में लालच आ गया.
ब्रजमोहन की डोली नीयत
इंजीनियर पुनीत के घर नकद रुपए देख कर नौकर ब्रजमोहन की नीयत डोलने लगी. एक दिन उसने अपने भांजे बहादुर को इस बारे में जानकारी दी और कहा कि यदि उस के मालिक पुनीत के यहां चोरी की जाए तो भारी मात्रा में नकदी के अलावा अन्य कीमती सामान मिल सकता है.
बहादुर भी फिरोजाबाद के कोलमाई मटसैना का रहने वाला था. उसे अपने मामा की सलाह अच्छी लगी. लिहाजा बहादुर ने अपने साथ मैनपुरी जिले के भोजपुरा के रहने वाले अजय उर्फ रिंकू, ऊंची कोठी निवासी मंजीत और एक अन्य दोस्त अनिकेत के साथ मिल कर चोरी की योजना तैयार की.
योजना के अनुसार, ये लोग किराए की गाड़ी ले कर 25 मार्च को इंजीनियर पुनीत के घर पहुंच गए. नौकर ब्रजमोहन की मिलीभगत से इन को चोरी के लिए घर में घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मंजीत घर के बाहर सीढि़यों पर खड़ा हो कर बाहर से आने वालों की निगरानी करने लगा.
ब्रजमोहन, बहादुर और अजय घर के अंदर चले गए. इन लोगों ने जेवर और सारे पैसे एक जगह रख लिए. वहां पर नकदी और ज्वैलरी उम्मीद से ज्यादा मिली तो ब्रजमोहन ने अपने भांजे बहादुर से कहा, ‘‘देखो जितना हम ने बताया था, उस से अधिक पैसा मिल गया है. इसलिए जो ज्यादा पैसा मिला है, इस में कोई बंटवारा नहीं होगा. यह सब मेरा होगा. बाकी तुम सब बांट लेना.’’
‘‘जी मामाजी, जैसा आप कह रहे हो वैसा ही होगा. अब हम लोग जा रहे हैं. आप भी पुलिस को कुछ नहीं बताना,’’ बहादुर बोला.
‘‘हां ठीक है. पुलिस सब से पहले हम पर ही शक करेगी. इस से बचने के लिए तुम लोग मुझे कुरसी से बांध कर बेहोश कर दो. जिस से लगे कि चोरों ने नौकर को बांध कर चोरी की और बेहोश कर के भाग गए.’’ ब्रजमोहन ने सलाह दी.
बहादुर और अजय ने ब्रजमोहन को कुरसी से बांध कर बेहोश कर दिया. इस के बाद दोनों जब रुपया रख रहे थे, तभी अजय बोला, ‘‘बहादुर, तू तो जानता है कि तेरे मामा डरपोक किस्म के हैं. कहीं ऐसा न हो कि पुलिस के आगे सब बक दे.’’
‘‘बात तो सही है, पर क्या किया जाए?’’ बहादुर ने कहा.
‘‘समय की मांग है कि हम अपने को बचाने के लिए मामा को ही रास्ते से हटा दें. इस से मामा को पैसा भी नहीं देना होगा और पुलिस हम तक भी नहीं पहुंच पाएगी.’’ अजय ने सलाह दी.
दोनों ने मिल कर सब से पहले ब्रजमोहन का गला कस दिया. वह पहले से ही बेहोश था तो कोई विरोध नहीं कर पाया. न ही कोई आवाज हुई. दोनों को लगा कि कहीं वह जिंदा न बच जाए. इसलिए चाकू से उस का गला भी रेत दिया.
ब्रजमोहन को मारने के बाद तीनों वापस मैनपुरी चले गए. मैनपुरी में ये लोग बहादुर के जानने वाले उदयराज की दुकान पर पहुंचे. उदयराज की कपडे़ की दुकान थी. यहां सभी ने अपने कपडे़ बदले. वहीं पर इन लोगों से मोहन नाम का आदमी मिला, जिसे इन लोगों ने सारे रुपए दे दिए. वह रुपए ले कर अपने घर चला गया.
इस के बाद चारों मोहन के घर गए और वहां पर रुपयों का बंटवारा हुआ. मंजीत रुपए ले कर अपने घर चला गया. उस ने रुपए अपनी पत्नी निशा को दिए और उसे इस बारे में बताया. निशा ने रुपए गमले और जमीन में दबा दिए, जिस से किसी को पता न चल सके.
पुलिस गंभीरता से केस की जांच में जुटी थी. सीसीटीवी फुटेज में जो टैक्सी दिखी थी, उसी के नंबर के सहारे वह टैक्सी चालक तक पहुंच गई. उस ने पुलिस को पूरी बात बताई. टैक्सी चालक से पूछताछ कर के पुलिस सब से पहले मंजीत के घर पहुंची. पुलिस ने मंजीत के पास से 40 लाख, उस की पत्नी निशा के पास से 16 लाख, उदयराज और मोहन के पास से 7-7 लाख रुपए बरामद किए.
कहानी लिखे जाने तक मुख्य आरोपी बहादुर फरार था. पुलिस के लिए चौंकाने वाली बात यह थी कि इंजीनियर पुनीत कुमार ने अपने घर में चोरी के मामले में 15 से 20 लाख नकद और जेवर चोरी होने का जिक्र किया था. जबकि पुलिस आरोपियों के पास से 70 लाख बरामद कर चुकी थी. मुख्य आरोपी के पास अलग से पैसा बरामद होना था.
आरोपियों ने पुलिस को बताया कि उन्हें इंजीनियर पुनीत के यहां करीब ढाई करोड़ रुपए मिले थे. पुलिस इस बारे में छानबीन कर रही है. पुलिस अजय, बहादुर और उस के लंबे बाल वाले साथी को तलाश रही है.
पूरे मामले में जिस पुलिस टीम ने सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, उस में इंसपेक्टर नीलम राणा. एसआई अजीत कुमार पांडेय, रजनीश वर्मा, संजीव कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप शर्मा, रामनिवास शुक्ला, आनंदमणि सिंह, ब्रजेश बहादुर सिंह, अमित लखेड़ा, विनय कुमार, पूनम पांडेय, सोनिका देवी और चालक घनश्याम यादव प्रमुख थे.
पुलिस ने इंजीनियर पुनीत कुमार के घर ढाई करोड़ रुपयों की चोरी की सूचना रेलवे विभाग और आयकर विभाग को भी दे दी. पुलिस का कहना है कि घर में ढाई करोड़ नकद रखने के मामले की जांच होगी.
इस बात का अंदेशा है कि यह रकम रिश्वत की रही होगी. इसीलिए हत्या की रिपोर्ट लिखाते समय इंजीनियर पुनीत कुमार ने चोरी की रकम को कम कर के लिखाया था. शुरुआत में पुनीत कुमार ने कहा था कि 15 से 20 लाख की चोरी हुई है.
पुलिस ने जब चोरों से 70 लाख नकद बरामद कर लिया तो पता चला कि कुल रकम ढाई करोड़ थी.
ब्रजमोहन को भी यही पता था कि चोरी की बात पूरी तरह से पुलिस को बताई नहीं जाएगी. ऐसे में यह लोग पुलिस के घेरे में नहीं आएंगे. लेकिन ब्रजमोहन से भी ज्यादा लालची उस के साथी निकले जिन्होंने ब्रजमोहन की हत्या कर दी. हत्या की विवेचना में चोरी दब नहीं सकी और अपराध करने वाले पकडे़ गए.
कौसर बेगैरत इंसान था, उस ने पहले दोस्त उस्मान की पत्नी मुकीश बानो से 10 सालों तक अवैध संबंध बनाए रखा. जब मुकीश की बेटी उस्मा जवान हुई तो उस ने निकाह करने के नाम पर उस से भी संबंध बना लिए. निकाह की बात टालने पर जब उस्मा ने उसे धमकी दी तो उस ने मुकीश बानो की तरफ देखा…
उस्मान और उस की पत्नी मुकीश बानो के बीच काफी समय से मनमुटाव चल रहा था. बोलचाल भी लगभग बंद थी.
मुकीश बानो की तमाम कोशिशों के बाद भी वह शराब छोड़ने को राजी नहीं था. उस्मान आरोप लगाता कि उस के आचरण से आहत हो कर उस ने ज्यादा नशा शुरू किया था.
मुकीश बानो ने कहा भी कि उस का चरित्र एकदम पाकसाफ है. वह नाहक उस पर शंका कर अपनी जमीजमाई गृहस्थी चौपट कर रहा है, लेकिन उस्मान पर कोई असर नहीं हुआ. उस के मन में शक का कीड़ा जन्म ले चुका था, वह जबतब कुलबुलाने लगता था.
उस रोज मुकीश ने शाम से ही सजना शुरू कर दिया था, अपने शौहर उस्मान को मनानेरिझाने के लिए. बनठन कर रात 8 बजे मुकीश बानो उस्मान के पास पहुंची. उस की आंखें नशे से सुर्ख थीं, उस ने मुकीश बानो की तरफ नजर उठा कर भी नहीं देखा. मुकीश बानो मुसकराई और उस्मान के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘इतना गुस्सा! मुझ से बात भी नहीं करोगे?’’
‘‘चल हट, मुझे अपना त्रियाचरित्र मत दिखा. मैं सब समझता हूं.’’ उस्मान ने मुकीश बानो को झिड़कते हुए कहा.
‘‘ठीक है बाबा, मैं चली जाऊंगी, तुम खाना तो खा लो. गुस्सा मुझ से हो, खाने ने क्या बिगाड़ा है, जो मुंह फुला कर बिस्तर पर पड़े हो.’’ मुकीश बानो ने उसे मनाने का प्रयास करते हुए उसे हाथ पकड़ कर उठाया.
‘‘मैं ने कहा न, मेरी आंखों के सामने से दूर हट जा. मुझे तुझ से नफरत है.’’ उस्मान सख्त लहजे में बोला.
‘‘यह तुम क्या कह रहे हो. अगर तुम्हारा व्यवहार इसी तरह रहा तो एक दिन यह घर नर्क बन जाएगा.’’ फिर वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘तुम्हें पत्नी नहीं, नशे का साथ चाहिए. तुम नहीं जानते कि यह कितना नुकसानदेह है. इस ने कितनों का घर बरबाद किया है. अगर तुम शराब छोड़ दो तो मैं कसम खाती हूं कि आज के बाद मैं कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगी.
‘‘मैं बिलकुल पाकसाफ हूं, पर तुम शक के जाल में उलझ कर रह गए हो. इसलिए आज के बाद कौसर इस घर में नहीं आएगा. लेकिन मेरी भी एक शर्त है, तुम्हें भी कौसर से अपनी दोस्ती तोड़नी पड़ेगी. उस से बात तक नहीं करोगे, उस के साथ बैठ क र शराब नहीं पीओगे. इसी बहाने वह घर आता है. इसी बहाने पड़ोसी तुम्हारे कान भरते हैं.’’
मुकीश बानो की इस बात का उस्मान पर कुछ असर हुआ. वह थोड़ा नरम पड़ा तो मुकीश ने अपने स्त्री अस्त्र से उसे हरा दिया. दोनों के गिलेशिकवे दूर हो गए. मुकीश बानो खुश थी. जहां पतिपत्नी के बीच कई दिनों से चली आ रही दूरी सिमट गई थी, वहीं उसे पति का सान्निध्य भी मिल गया.
उस्मान महानगर बरेली के थाना सुभाषनगर क्षेत्र के गांव करैली में रहता था. 22 वर्ष पहले उस का विवाह मुकीश बानो से हुआ था. विवाह के बाद दोनों एकदूसरे से खुश थे. उस्मान तो मुकीश बानो का दीवाना हो गया था. सब उसे बीवी का गुलाम कहने लगे थे.
मुकीश बानो ने भी अपने व्यवहार से उस्मान का दिल जीत लिया था. कुछ माह बाद मुकीश बानो ने जब उसे पिता बनने की खुशखबरी दी तो वह मारे खुशी के नाच उठा. समय पूरा होने पर मुकीश बानो ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने उम्मेद रखा. 2 साल बाद उस ने एक बेटी को जन्म दिया. उस्मान ने उस का नाम अपने नाम पर रखा-उस्मा.
उस्मान की दोस्ती करैली गांव में ही रहने वाले कौसर से थी. कौसर शादीशुदा था और उस के 2 बेटे थे. कौसर भी उस्मान के साथ काम करता था. कौसर शराब का शौकीन था. उस ने उस्मान को भी शराब का शौकीन बना दिया. उस्मान का नशा करना मुकीश बानो को नागवार लगता था.
पति नशे में पस्त पत्नी त्रस्त
मुकीश बानो ने उस्मान को काफी समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. नशा उस के कमजोर शरीर से बरदाश्त नहीं हो पाता था. लेकिन शरीर को नजरअंदाज कर वह नशे के पीछे भागता था. यही बात वजह मुकीश बानो को कचोटती थी. कमजोर शरीर जब नशे में बहकता, तो उस्मान की रही सही ताकत भी खत्म हो जाती थी. ऐसे में मुकीश को उस के प्यार से वंचित रहना पड़ता था.
इधर कौसर का उस के घर आनाजाना शुरू हुआ तो उस की नजरें मुकीश बानो के बदन पर टिकने लगीं. उस की कामनाएं मुकीश बानो में अपना ठौर तलाशने लगीं. वह किसी न किसी बहाने उस्मान के घर आनेजाने लगा.
बातोंबातों में वह मुकीश बानो के सौंदर्य की प्रशंसा शुरू कर देता. औरत में एक बड़ी कमजोरी होती है कि अगर कोई उस की खुबसूरती की तारीफ करे तो वह फूली नहीं समाती. यही मुकीश बानो के साथ हुआ. उस के मन में खोट आने लगा. मुकीश बानो ने कौसर में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. अब वह कौसर के घर आने पर उस की ज्यादा खातिरदारी करने लगी. वक्त के साथ दोनों एकदूसरे के नजदीक आते गए. अब कौसर उस्मान की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आने लगा. कौसर मुकीश बानो से उम्र में 4 वर्ष छोटा था.
कौसर की नजरें मुकीश बानो के खूबसूरत तन पर गड़ने लगी थीं. उस के निहारने का अंदाज कुछ ऐसा होता जैसे वह मुकीश बानो को निर्वस्त्र देख रहा हो. ऐसी हरकत भला किसी औरत से छिपी रह सकती हैं. मुकीश बानो से भी न छिप सकी.
उस्मान का उस की हसरतों से मुंह फेर लेना उसे पहले ही नागवार लग रहा था, ऐसे में उस ने कौसर को अपनी तरफ आकर्षित होते देखा तो उस के कदम भी गलत राह पर बढ़ चले.
जब भी कौसर मुकीश बानो से हंसीमजाक करता तो वह शरमा कर वहां से हटने के बजाय वहीं खड़ी हंसती रहती. कभीकभी मजाक के बदले खुद भी मजाक कर लेती थी. कौसर भी समझने लगा था कि मुकीश बानो के दिल में भी वही चाहत है, जो उस के दिल में है. लेकिन चाहतों का मेल तभी संभव है, जब उस का इजहार किया जाए. कौसर ने इस के लिए एक तरीका भी सोच लिया. अगले दिन कौसर मुकीश बानो के घर आया तो वह चारपाई पर लेटी आराम कर रही थी. कौसर को आया देख वह उठ कर बैठ गई. कौसर भी चारपाई पर बैठ गया और साथ में लाया गुलाबी रंग का सूट मुकीश के हाथों में दे दिया.
सूट को हाथों में ले कर मुकीश तारीफ करती हुई वह बोली, ‘‘बहुत खूबसूरत सूट है, किस के लिए लाए हो?’’
‘‘जाहिर है, खूबसूरत चीज खूबसूरत इंसान को ही दी जाती है और तुम से खूबसूरत तो यहां कोई है ही नहीं.’’
‘‘ओह तो यह मेरे लिए लाए हो, लेकिन इस की जरूरत क्या थी?’’
‘‘लगता है तुम मुझे पराया मानती हो.’’
‘‘अरे नहीं, मैं तो ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती.’’
इस पर कौसर मुकीश बानो का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला, ‘‘मुझे अपना मानती हो तो मेरी बांहों में आ कर मेरे सीने से क्यों नहीं लग जातीं.’’
कौसर की आतुरता देख कर मुकीश बानो बोली, ‘‘बड़े बेसब्र हो रहे हो. यह जानते हुए भी कि मैं तुम्हारे दोस्त की बीवी हूं.’’
‘‘दोस्त की बीवी हो तो क्या, यह कमबख्त दिल है, सब इस दिल की मुश्किल है. जब दिल जिस पर आ जाए तो फिर किसी की चिंता नहीं करता. सारी दरोदीवार तोड़ कर मिलन को व्याकुल हो उठता है.’’
‘‘लेकिन यह तो उस्मान के साथ धोखा होगा.’’
‘‘कोई धोखा नहीं, कुछ पलों के लिए हम दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लें तो इस में किसी का क्या जाएगा.’’ अपनी चाहत को पूरा करने के लिए वह मुकीश बानो को शब्दों के जाल में उलझाते हुए बोला.
‘‘कहते तो तुम ठीक हो, फिर भी हमें होशियार रहना होगा. केवल अधूरी हसरतों को पूरा करने के लिए मैं तुम्हारा साथ देने को तैयार हुई हूं.’’ मुकीश बानो ने सहमति दी तो कौसर खुश हो गया.
उस ने मुकीश बानो को बांहों में भर लिया और उसे प्यार करने लगा. उस दिन दोनों के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं और दिल के साथसाथ तन भी एक हो गए. यह 10 साल पहले की बात है.
इस के बाद दोनों के नाजायज संबंध अनवरत चलने लगे. उस्मान को दोनों के संबंधों पर शक हुआ, लेकिन मुकीश बानो ने अपने हथकंडों से उस का शक खत्म कर दिया.
समय गुजरता गया. मुकीश बानो के दोनों बच्चे बालिग हो गए. बेटा उम्मेद काम करने के लिए हैदराबाद चला गया.
10 साल पहले जब मुकीश बानो और कौसर के संबंध बने थे, तब मुकीश बानो की बेटी उस्मा 8 साल की थी. वह कौसर को चाचा कहती थी. अब वह जवान हो गई थी. 18 साल की उम्र में वह काफी आकर्षक दिखती थी. उस के यौवन की चमकदमक में कौसर के अरमान अंगड़ाई लेने लगे. उस के अंदर का शैतान जाग उठा.
कौसर उन लोगों में था, जो औरत के जिस्म को भोग का साधन समझते हैं. उन के लिए सारे रिश्ते बेमानी होते हैं. हवस में अंधे हो कर कौसर यह भी भूल गया कि वह उस की प्रेमिका की बेटी है, उसे बेटी की ही नजर से देखना चाहिए. लेकिन हवस के शैतान कौसर को तो सिर्फ उस का जिस्म दिख रहा था.
कौसर ने उस्मा को अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया. वह उस से हंसीमजाक करता और खानेपीने की चीजें और बढि़या से बढि़या कपड़े दिलाता. उस्मा ने जब कौसर को अपने ऊपर मेहरबान देखा तो वह भी उस की बातें मानने लगीं.
बातोंबातों में कौसर ने उस्मा के साथसाथ छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी. कभीकभी तो वह सारी हदें पार कर देता. उस्मा भी समझ गई कि कौसर की मेहरबानियों की वजह क्या है, पर वजह जान कर भी वह पीछे नहीं हटी, उस के कदम आगे बढ़ते गए. फिर एक दिन वह भी आया, जब वह कौसर की बांहों में समा गई. यह एक साल पहले की बात है.
उस ने कौसर जैसे इंसान को पहचानने में बहुत बड़ी भूल कर दी. कौसर लगभग हर रोज उस के जिस्म से खेलने लगा. इस के बदले में वह उस्मा की खुशियों का खयाल रखता. कौसर की इस घिनौनी करतूत का मुकीश बानो को भी पता लग गया, लेकिन वह कुछ नहीं बोली.
उस्मा अपनी मां और कौसर के संबंधों से वाकिफ थी. मुकीश बानो जानती थी कि उस ने बेटी उस्मा से कुछ कहा तो वह उस के संबंधों का राज अपने पिता के सामने खोल देगी. इसलिए उस ने चुप रहना ही मुनासिब समझा. कौसर ने उस्मा से संबंध इसी शर्त पर बनाए थे कि वह उस से निकाह कर लेगा. उस्मा उस के बहकावे में आ गई थी.
समय के साथ उस्मा कौसर पर निकाह के लिए दबाव बनाने लगी. जबकि कौसर पहले से शादीशुदा था. उस ने उस्मा को फांसने के लिए निकाह कर लेने का जाल फेंका था, जिस में उस्मा फंस गई थी. उस्मा से निकाह का उस का कोई इरादा नहीं था.
जब उस्मा ने कौसर को निकाह के लिए टालमटोल करते देखा तो वह उसे धमकी देने लगी कि वह उस के और मां के संबंधों के बारे में अपने पिता उस्मान और कौसर की पत्नी को बता देगी. साथ ही दुष्कर्म के आरोप में उसे जेल भिजवा देगी.
इस धमकी से कौसर और मुकीश बानो सहम गए. 10 साल पुराने संबंधों के खुलने के डर से दोनों ने उस्मा को सबक सिखाने की ठान ली. मुकीश बानो अपने संबंधों को छिपाने के लिए अपने प्रेमी कौसर के साथ अपनी बेटी की हत्या की योजना बनाने लगी. 19 अगस्त की शाम कौसर उस्मान को ले कर ढाबे पर दावत खाने गया. दोनों रात 10 बजे वापस लौट कर आए. उस्मान आते ही घोड़े बेच कर सो गया.
योजनानुसार रात 2 बजे कौसर उस्मान के घर आया. मुकीश बानो ने पहले से मेन गेट खोल दिया था. कौसर घर के अंदर आ गया तो मुकीश बानो उस का इंतजार करती मिली. उस्मा आराम से सो रही थी.
कौसर और मुकीश बानो ने एकदूसरे की ओर देखा और इशारा कर पलंग के नजदीक पहुंच गए. मुकीश बानो ने उस्मा के पैर पकड़े तो कौसर ने उस्मा के गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया, उस्मा की मौत हो गई.
इतना सब हो गया लेकिन उस्मान सोता रहा, उसे भनक तक नहीं लगी. बनाई गई योजना के तहत कौसर ने चाकू से मुकीश बानो के गले पर कई निशान बना दिए. फिर वह अपने घर चला गया.
हकीकत सामने आ ही गई
3 बजे के करीब मुकीश बानो ने शोर मचाना शुरू कर दिया. शोर सुन कर उस्मान और आसपड़ोस के लोग जग गए. उन के आने पर मुकीश बानो ने बताया कि एक आदमी लूट के मकसद से घर में घुस आया, उस ने उस की बेटी उस्मा की हत्या कर दी और उसे भी घायल कर दिया. यह कहने के साथसाथ उस ने अपने गले में चाकू के निशान भी दिखाए.
सुबह 4 बजे करैली गांव के प्रधान के ससुर मतीन खां ने सुभाषनगर थाने में घटना की सूचना दे दी. थाने का चार्ज एसएसआई खुर्शीद अहमद के पास था. सूचना पा कर खुर्शीद अहमद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.
हत्याकांड की खबर एसएसपी शैलेश पांडेय तक पहुंची तो उन्होंने किला और सीबीगंज थाना पुलिस को भी मौके पर जाने को कहा और स्वयं भी वहां पहुंच गए.
19 वर्षीय उस्मा की लाश पलंग पर पड़ी थी. उस के गले में कसे जाने के निशान थे. दुपट्टा उस्मा के गले में पड़ा था. शायद उसी से गला कसा गया था. मृतका की मां मुकीश बानो के गले पर चाकू लगने के निशान थे.
मुकीश बानो से पूछताछ की गई तो उस ने रात में लूट के मकसद से किसी बदमाश के घर में घुस आने की बात बताई. उस का कहना था कि उस्मा की हत्या उसी ने की थी. वह उस से उलझी तो वह चाकू मार कर उसे घायल कर के भाग गया. उस से बदमाश का हुलिया पूछा गया तो वह ठीक से नहीं बता पाई. फिलहाल लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया.
थाने लौट कर एसएसआई खुर्शीद अहमद ने मतीन खां की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/324 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.
लगभग 11 बजे एसएसआई अहमद को एक मुखबिर से कौसर के बारे में पता चला कि वह उस्मान का दोस्त है और उसी के घर में ही पड़ा रहता है. इस का मतलब यह था कि मामला अवैध संबंधों का था, जिसे लूट बता कर बरगलाया जा रहा था.
एसएसआई अहमद ने कौसर को उस के घर से उठा लिया और थाने ला कर जब कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया.
साथ ही हत्या की वजह भी बयान कर दी. इस के बाद मुकीश बानो को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दुपट्टा उस्मा के गले में मिल गया था, मुकीश बानो को घायल करने वाले चाकू को पुलिस ने कौसर की निशानदेही पर बरामद कर लिया.
दोनों का डाक्टरी परीक्षण कराने के बाद पुलिस ने उन को सीजेएम कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
सौजन्य: मनोहर कहानियां, अक्टूबर 2020
लौैकडाउन में जहां लोगों का बाहर निकलना प्रतिबंधित है वहीं अपराधियों के हौसले और भी बुलंदी पर हैं. लौकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर न निकलने को मजबूर हैं, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो बिना निकले पेट नहीं पाल सकते. ऐसे ही लोगों में हैं अपराधी. दरअसल, अपराधियों की सोच यह होती है कि पुलिस तो कोरोना के चलते व्यवस्था ठीक करने में लगी है, क्यों न इस मौके का फायदा उठाया जाए.
जनपद मथुरा के राया कस्बे की परशुराम कालोनी में रहने वाले लेखपाल राजेंद्र प्रसाद की बीवी कुसुम घर के कामों में व्यस्त थीं. सुबह 11 बजे फुर्सत मिलने पर उन्हें घर के बाहर चबूतरे पर खेल रहे अपने 3 वर्षीय बेटे युवान उर्फ गोलू ॒की याद आई.
वे उसे बुलाने घर के बाहर आईं. चबूतरे पर उन की दोनों बेटियां खेल रहीं थीं. उन्होंने पूछा, ‘‘गोलू कहां है.’’ इस पर बेटियों ने कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम.’’
गोलू अक्सर पड़ौसी अमित के घर उन के बच्चे के साथ खेलने चला जाता था. यह सोच कर कि गोलू वहीं होगा. कुसुम अमित के घर पहुंची.
उन्होंने अमित की बीवी मधु से गोलू के बारे में पूछा तो मधु ने बताया, गोलू व दोनों बहनें आईं थीं सभी बच्चे खेल कर चले गए. कुसुम ने घबराते हुए कहा, ‘‘गोलू कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं कहां चला गया है.’’
मधु ने कहा किसी के घर खेल रहा होगा. कुसुम ने उसे मौहल्ले में तलाश किया, लेकिन कोई पता नहीं लगा.
कुसुम ने यह जानकारी पति राजेंद्र को दी. राजेंद्र और पड़ौसी गोलू को मोहल्ले के साथसाथ कालोनी के आसपास भी तलाशने लगे. तभी कुसुम को घर के पास गोलू की चप्पलें मिल गईं. चप्पलों में एक पर्ची लगी थी. पर्ची में लिखा था, आप का बेटा सही सलामत है, 20 लाख रुपए ले कर हाथिया आ जाना.
पर्ची पढ़ते ही हड़कंप मच गया. बेटे के अपहरण से राजेंद्र और कुसुम का बुरा हाल था. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. यह 8 मई, 2020 की बात है.
सूचना पर थाना राया के थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा मौके पर पहुंच गए. उन की सूचना पर एसपी देहात श्रीश चंद्र और सीओ (महावन) विजय सिंह चौहान भी आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथ ही चप्पलों में लगी पर्ची भी कब्जे में ले ली.
पुलिस ने घटनास्थल से थोड़ी दूर लगे शिवकुमार लेखपाल के यहां के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी खंगाली, लेकिन उस में कोई भी आताजाता नहीं दिखा. पुलिस ने गोलू के घरवालों के साथ मौहल्ले का एकएक घर छान मारा, लेकिन गोलू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस के बाद पिता राजेंद्र प्रसाद ने थाना राया में अज्ञात के विरूद्ध अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.
सर्विलांस टीम से भी मदद ली गई, लेकिन समस्या यह थी कि अपहरणकर्ताओं ने अभी तक बच्चे के घरवालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया था. घटना के बाद से पुलिस कई स्थानों पर दबिश भी दे चुकी थी.
लौकडाउन के कारण पुलिस ने राया से ले कर मथुरा एनएच-2 और एक्सप्रेस-वे तक को सील कर रखा था. ऐसे में बच्चे का अपहरण और फिरौती पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी. क्योंकि गाड़ी में बच्चे को ले जाने के लिए पुलिस के हर बैरियर पर चैकिंग से गुजरना पड़ता था. इस के साथ ही एक्सप्रेस वे से ले कर एनएच-2 पर भी वाहन चैकिंग हो रही थी, वहां जा कर भी खोजबीन की गई. पुलिस ने लौकडाउन में ड्यूटी पर लगे पुलिसकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा.
गोलू के अचानक अपहरण हो जाने की खबर पूरी कालौनी में फैल चुकी थी. लौकडाउन होने के बावजूद तमाम पुरूष, महिलाएं व बच्चे राजेंद्र के घर पर जुटने लगे. सब की जुबान पर एक ही बात थी कि आखिर 3 साल के गोलू का अपहरण कौन कर ले गया? गोलू के अपहरण से मां कुसुम और दोनों बहनों का रोरो कर बुरा हाल था.
थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा ने राजेंद्र से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से रंजिश वगैरह तो नहीं हैं? या तुम्हें किसी पर कोई शक है तो बताओ. राजेंद्र के इनकार करने पर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के पास अपहरणकर्ताओं का कोई फोन आए तो बताना.’’
कालोनी में बच्चे के अपहरण के बाद तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गई थी. पुलिस ही नहीं लोगों को डर सता रहा था कि लौकडाउन के चलते बदमाश फिरौती की रकम न मिलने पर कहीं बच्चे की हत्या न कर दें. गोलू के घरवालों की पूरी रात आंखों में कटी. घर में चूल्हा भी नहीं जला.
दूसरे दिन शनिवार की सुबह अपहर्त्ता लेखपाल राजेंद्र के बच्चे गोलू को कालोनी से 15 किमी दूर राया सादाबाद रोड पर गांव तंबका के पास छोड़ गए. ग्रामीणों को बालक रोता हुआ मिला. इस पर उन्होंने पुलिस को सूचना दी. सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पहुंची और गोलू को कब्जे में ले लिया. बालक की बरामदगी की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
पुलिस ने गाड़ी भेज कर बच्चे के मातापिता को पुलिस चौकी बिचपुरी पर बुला लिया.
गोलू को देखते ही मां की आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. मां की गोद में आते ही गोलू मां से लिपट गया.
उन्होंने उसे सीने से लगा लिया. बदमाशों ने 20 लाख की फिरौती मांगी थी, जो नहीं दी गई. जल्द ही बदमाशों को गिरफ्तार कर पूरे मामले कर खुलासा कर दिया जाएगा.
परशुराम कालोनी से राया सादाबाद रोड पर जाने के 3 रास्ते हैं. मुख्य मार्ग मांट रोड, फिर हाथरस रोड और फिर यहां से सीधा राया सादाबाद रोड है. इस दौरान रेलवे फाटक, नेहरू पार्क आदि स्थानों पर भी लौकडाउन के चलते पुलिस मौजूद रहती है. यहां से राया सादाबाद रोड पर जाने के लिए 2 रास्ते और भी हैं. बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस ने इन सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. इस के बावजूद बदमाशों ने सुबह 5 बजे तंबका गांव के मंदिर पर बालक को छोड़ दिया.
पुलिस इस क्षेत्र के आगे तथा पीछे मौजूद थी परंतु उसे बदमाशों की गतिविधि की भनक तक नहीं लग सकी थी. अपहर्त्ताओं ने बालक के अपहरण में चौपहिया वाहन का इस्तेमाल किया था. इस की पुष्टि बच्चे गोलू ने भी की. साथ ही बताया कि बदमाशों ने उस के सिर पर कपड़ा डाला और गाड़ी में ले गए.
सवाल यह था कि चौपहिया वाहन लौकडाउन के चलते इतनी दूर कैसे चला गया? बालक तो बरामद हो गया लेकिन सघन चैकिंग का दावा कर रही पुलिस बदमाशों को नहीं पकड़ सकी थी.
इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी. अपहरणकर्ताओं की चुनौती को पुलिस ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. पुलिस अधिकारियों ने वारदात के तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि यह किसी संगठित गिरोह की गतिविधि नहीं थी. इसलिए पुलिस ने अब लेखपाल राजेंद्र के नजदीकी लोगों की छानबीन शुरू करने का निर्णय लिया.
पुलिस मान रही थी कि फिरौती के लिए जिन्होंने पर्ची लिखी, वे बहुत कम पढ़ेलिखे थे. क्योंकि पर्ची में पहले 10 और बाद में 20 लाख की फिरौती लिखी गई थी. एसपी देहात श्रीश चंद्र ने बताया कि इस संबंध में जहां लेखपाल के नजदीक रहे लोगों की जानकारी ले रहे हैं, वहीं मामले की जांच गहनता से फिर से की जाए. ताकि बच्चे के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा जा सके.
पुलिस ने गोलू की मां से पर्ची मिलने के बारे में पूछताछ की. उस से जानकारी मिली कि गोलू की चप्पलों को उठाते वक्त नीचे दबी फिरौती की पर्ची उड़ गई थी, उस समय उस ने गौर नहीं किया था. बाद में पर्ची पड़ौस में रहने वाले अमित की पत्नी मधु ने ला कर दी थी. इस पर पुलिस ने मधु से पूछताछ की, मधु इनकार करने लगी. मधु की हरकत से पुलिस को उस पर शक हो गया. पुलिस ने 12 मई को मधु को हिरासत में लेने के बाद उस से सख्ती से पूछताछ की.
इस पर मधु ने फिरौती की पर्ची कुसुम को देने की बात स्वीकार करते हुए गोलू के अपहरण में अपने पति अमित, सगे देवर विनय उर्फ वीनू तथा ममेरे देवर विशाल के शामिल होने की बात बताई.
पुलिस ने इस संबंध में अमित, मधु, विशाल निवासी तिरवाया, थाना राया को गिरफ्तार कर लिया. अमित का भाई विनय निवासी टोंटा, हाथरस फरार था. गिरफ्तार तीनों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पूछताछ करने पर गोलू के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.—
अमित मैजिक चालक था. महाराष्ट्र की मधु नाइक मथुरा में गोवर्धन की परिक्रमा के लिए आई थी. अमित ने मधु को अपनी मैजिक में बैठा कर गोवर्धन की परिक्रमा कराई.
इस मुलाकात के बाद दोनों का झुकाव एकदूसरे के प्रति हो गया. बाद में उस ने 2015 में मधु से प्रेम विवाह कर लिया. उस ने मधु से खुद को बहुत पैसे वाला बताया था. जबकि वह टेंट की सिलाई का काम करने के साथ ही मैजिक भी चलाता था. शादी के बाद शानोशौकत में धीरेधीरे उस पर 5 लाख रुपए का कर्जा हो गया.
इस वारदात से 2 माह पहले ही अमित ने परशुराम कालोनी में रामबाबू का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले वह भोलेश्वर कालोनी में किराए पर रहता था. वह मूल रूप से टोंटा, हाथरस का रहने वाला था. पड़ोसी होने के नाते गोलू व उस की बहनें उस के यहां खेलने आती थीं.
कर्जा चुकाने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. इस योजना में अमित ने पत्नी मधु के साथ ही अपने छोटे भाई विनय उर्फ वीनू व मामा के लड़के विशाल को भी शामिल कर लिया था. गोलू रोजाना की तरह 8 मई को भी अपनी 2 बहनों के साथ पड़ोसी अमित के घर खेलने आया था.
उस दिन दोनों बहनें घर के अंदर लूडो खेलती रहीं और योजना के मुताबिक मधु ने गोलू को अपने पति अमित के साथ मैजिक में बैठा दिया और कहा, ‘‘अंकल तुम्हें घुमाने ले जा रहे हैं. बच्चे को बहलाफुसला कर अमित गोलू को कच्चे रास्ते से होता हुआ छोटे भाई
वीनू के पास नगला टोंटा, हाथरस ले गया. वहां वीनू को बच्चा देने के बाद कहा, ‘‘जब विशाल फोन करे बच्चे को तभी छोड़ना.’’
बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस का दवाब बढ़ा तो अपहरणकर्ता डर गए. पकड़े जाने के भय से उन्होंने बालक को दूसरे दिन बिना फिरौती वसूले ही छोड़ दिया. यह बालक गांव तंबका के पास ग्रामीणों को रोता हुआ मिला था. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने प्रैस वार्ता में बताया, शादी के बाद अमित पर 5 लाख का कर्जा हो गया था उसे उतारने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी.
पुलिस का दवाब बढ़ा तो इन लोगों ने बच्चे को अगले दिन ही सड़क पर छुड़वा दिया था. प्रोत्साहन के लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने टीम में शामिल एसपी देहात श्रीश चंद्र, सीओ विनय चौहान, थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा, स्वाट व सर्विलांस टीम को 50 हजार रुपए के इनाम की घोषणा की है. गिरफ्तार तीनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.
दंपति का एक साल का बेटा भी उन के साथ जेल में है क्योंकि उस की सुपुर्दगी लेने वाला कोई नहीं था. जबकि चौथे आरोपी विनय उर्फ वीनू की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है. अपने को अमीर दिखाने के चक्कर में यदि अमित ने अपने सिर पर कर्ज का बोझ न चढ़ाया होता तो आज उस की हंसती खेलती जिंदगी होती लेकिन पैसे की झूठी शान दिखाने में उसे जुर्म का सहारा लेना पड़ा, जिस के चलते परिवार सहित जेल की हवा खानी पड़ी.
(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)
सौजन्य- मनोहर कहानियां, जून 2020