मीडिया टाइकून इंद्राणी मुखर्जी ने स्टैप बाय स्टैप बनाया अपने ही बेटी का मर्डर प्लान

साल 2012 में हुए शीना बोरा हत्याकांड की गूंज पूरे देश में फैली थी. इस हाईप्रोफाइल केस ने सरकार तक की नींद उड़ा दी थी. सीबीआई ने हत्या के आरोप में उस की मां इंद्राणी मुखर्जी, उस के पूर्वपति संजीव खन्ना और ड्राइवर श्यामवर राय को गिरफ्तार किया. इस वेब सीरीज में आप भी जानिए कि इंद्राणी मुखर्जी ने आखिर क्यों की थी अपनी होनहार बेटी की हत्या?

शीना बोरा हत्याकांड की पूरी कहानी नेटफ्लिक्स पर प्रसारित डाक्यूड्रामा वेब सीरीज द इंद्राणी मुखर्जी स्टोरी: बरीड ट्रुथमें शामिल करने के लिए चारों अभियुक्तों को प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन 3 अभियुक्त पीटर मुखर्जी, संजीव खन्ना और श्यामवर राय ने साफ इनकार कर दिया. डाक्यूमेंट्री को अजीबोगरीब तरीके से फिल्माया गया है. इस में ऐसी काल रिकौर्ड, जो पुलिस को भी उपलब्ध नहीं हुई थी, दिखाई गई है. 

शीना बोरा और उस के परिवार के अनुपलब्ध फोटो भी दिखाए गए हैं. बीचबीच में अभियुक्तों की गिरफ्तारी की वीडियो भी शामिल की गई है. सीरीज देख कर यह समझ नहीं आता कि यह स्टोरी क्या है और क्यों बनाई गई है. सीरीज देखनी है तो इस के लिए सब से जरूरी है कि सन 2012 में महाराष्ट्र के मुंबई नगर में हुए शीना बोरा हत्याकांड को समझा जाए.

इंद्राणी का जन्म गुवाहाटी में एक असमिया परिवार उपेंद्र कुमार बोरा मां दुर्गा रानी बोरा के घर 1972 में औन रिकौर्ड दिखाया गया है. जबकि असली जन्मतिथि 1965 से 1968 के बीच की बताई जाती है. यह अपने परिवार के साथ गुवाहाटी की कालोनी सुंदरपुर में रहती थी. इंद्राणी के घर का नाम पोरी बोरा था. उपेंद्र कुमार बोरा कभी पेंट के कारखाने में मैनेजर की नौकरी करते थे. बोरा परिवार का गुवाहाटी में कभी चाणक्य इननाम का एक गेस्टहाउस भी हुआ करता था.

इन्होंने अपनी इकलौती बेटी इंद्राणी को सेंट मेरीज, गुवाहाटी में पढऩे के लिए भेजा था, जो राज्य के प्रतिष्ठित महिला स्कूलों में एक था. बताया जाता है कि इंद्राणी जब नौवीं क्लास में थी, तब एक नेपाली युवक के साथ प्रेम प्रसंग हो गया था, जिस के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया था.

दसवीं के बाद इंद्राणी ने गुवाहाटी के काटन कालेज में दाखिला लिया. कालेज में ही इंद्राणी की मुलाकात विष्णु चौधरी से हुई, जो वहां कानून की पढ़ाई कर रहा था और गुवाहाटी के मशहूर चिकित्सक बी.एल. चौधरी का बेटा था. चौधरी का कहना है कि उन के और इंद्राणी के बीच संबंध जरूर था, लेकिन उन्होंने कभी भी शादी नहीं की. जबकि चर्चा थी कि इंद्राणी से विष्णु चौधरी ने शादी कर ली है.

इंटरमीडिएट के बीच में ही इंद्राणी शिलौंग के लेडी कीन कालेज चली आई और 1985 में बारहवीं की बोर्ड परीक्षा यहां से पास की. यहां वह अकसर एक लोकप्रिय रेस्तरां चिराग में जाया करती थी, जहां उस की मुलाकात सिद्धार्थ दास से हुई, जो एक निजी फर्म में नौकरी करता था.

ऐसा लगता है कि मीडिया में खुलासे से पहले सिद्धार्थ की पत्नी बबली को इंद्राणी के साथ रिश्तों की कोई जानकारी नहीं थी. सिद्धार्थ ने वादा किया कि वह इंद्राणी मुखर्जी की बेटी शीना को अपना नाम देगा. सिद्धार्थ दास से एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम मिखाइल रखा गया. इंद्राणी ने 1986 में अपने परिवार को बता दिया था कि सिद्धार्थ दास उस का पति है और उसे ले कर वह सुंदरपुर में अपने मांबाप के साथ रहने आ गई थी.

इंद्राणी के पिता ने सिद्धार्थ दास के लिए गणेशगुरी में एक रेस्तरां खोला, लेकिन वह चल नहीं सका. इंद्राणी को बेरोजगार पति मंजूर नहीं था. उस की महत्त्वाकांक्षा ने फिर अंगड़ाई ली. जून 1990 में इंद्राणी यह कह कर कोलकाता चली गई कि वह अब अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती है. 

बताया जाता है कि उस के 3 दिनों के भीतर सिद्धार्थ दास को उस के गुवाहाटी वाले मकान से बाहर निकाल दिया था. इंद्राणी के उस समय 2 बच्चे शीना और मिखाइल थे. इंद्राणी के मातापिता ने दोनों बच्चे अपने ही पास रख लिए. शीना को जब 1992 में स्कूल में डालने का वक्त आया तो बोरा परिवार ने तय किया कि दोनों बच्चों के कानूनी अभिभावक उन के नानानानी को ही होना चाहिए. अगले साल इंद्राणी ने कामरूप न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में एक हलफनामा दाखिल कर के अपने दोनों बच्चों की देखभाल कानूनी रूप से अपनी मां को सौंप दी.

शीना का नाम डिज्नीलैंड स्कूल में लिखवाया गया, जो आज सुदर्शन पब्लिक स्कूल के नाम से जाना जाता है. यह गुवाहाटी के खानपाड़ा में स्थित है. शांत स्वभाव की शीना ने दसवीं की परीक्षा 80 फीसदी से ज्यादा अंकों से पास की और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा फैकल्टी हायर सेकेंडरी स्कूल से पास की. मिखाइल पढ़ाई में उतना तेज नहीं था. नौवीं कक्षा में डिज्नीलैंड स्कूल से उस का नाम कट गया और दसवीं की परीक्षा उस ने प्राइवेट छात्र के रूप में पास की.

कोलकाता में इंद्राणी एक मामूली पीजी आवास में रहती थी. 1993 में संजीव खन्ना से मुलाकात हुई. संजीव खन्ना का एक सम्मानित शिक्षित और प्रभावी परिवार था. उन की आर्थिक हालात मजबूत थी. अच्छाखासा कारोबार था. थोड़े ही दिन प्रेमप्रसंग चला. जल्दबाजी में इंद्राणी ने संजीव खन्ना से विवाह कर लिया. दोनों की 1997 में एक बेटी हुई, जिस का नाम विधि है. इन दिनों तक इंद्राणी कारोबार से जुड़ चुकी थी.

इंद्राणी ने आइएनएक्स 1996 के आसपास खोला था. वह रेस्तरां, छोटे होटलों और इवेंट वगैरह में अपनी सेवाएं देती थी. बुनियादी रूप से उस का काम कालेज से निकली नई लड़कियों को काम पर रखवाना था.  कुछ साल में उस का नेटवर्क काफी फैल गया. इंद्राणी कामयाबी की सीढिय़ां चढ़ती गई. वह हर क्षेत्र में सक्षम हो चुकी थी. उस ने इस की एक ब्रांच मुंबई में स्थापित की. अब उसे संजीव खन्ना की कोई जरूरत नहीं थी. फलस्वरुप इंद्राणी और खन्ना में धीरेधीरे दूरियां बढऩे लगीं और अंत में वे अलग हो गए. 

इस के बाद इंद्राणी ने कोलकाता शहर छोड़ दिया. संजीव खन्ना को छोड़ कर और अपनी सारी दौलत बटोर कर इंद्राणी अपनी बेटी विधि के साथ मुंबई में रहने लगी. मुंबई में आ कर इंद्राणी की किस्मत बदल गई. यहां उस की मुलाकात स्टार टीवी के सीईओ पीटर मुखर्जी से हुई. कुछ महीने बाद इंद्राणी पीटर के साथ रहने लगी. 3 महीने बाद दोनों ने शादी कर ली.

इन दोनों का नाम एक चर्चित युगल के रूप में मुंबई में प्रसिद्ध हुआ. पहले इंद्राणी बोरा प्रथम शादी कर के इंद्राणी दास और दूसरी शादी करने के बाद इंद्राणी खन्ना हुई फिर तीसरी शादी कर के वह इंद्राणी मुखर्जी हो गई. तीसरे पति से भी तलाक हो चुका है. अब आगे क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता. असम की इस मामूली लड़की ने महत्त्वाकांक्षाओं के चलते मुंबई में अपना यह नया अवतार लिया था. अब वह बहुत कुछ बन चुकी थी. मुखर्जी दंपति के लिए मुंबई के पैसे वाले तबके ने अपने दरवाजे खोल दिए. इंद्राणी अब दौलत से मालामाल हो चुकी थी.  

इंद्राणी की नई शादी की खबर जब 2002 में गुवाहाटी तक पहुंची तो उस के मातापिता ने तकरीबन एक दशक में उसे पहली बार चिट्ठी लिखी. उन्होंने उसे बताया कि उन्हें पैसों की दिक्कत है और वे बच्चों का खयाल अब नहीं रख सकते. उन्होंने इंद्राणी से हर महीने कुछ पैसे भेजने का आग्रह किया. इंद्राणी को डर था कि इस पत्र से कहीं उस का अतीत पीटर के सामने खुल न जाए, इंद्राणी को विश्वास था कि पीटर मुखर्जी उस के प्यार के जाल में इतना फंसा हुआ है कि वह जो कुछ कहेगी, उसे आसानी से स्वीकार कर लेगा. इसलिए उस ने अपने मातापिता और बेटेबेटी की मदद करने का फैसला किया. 

दोनों बच्चों के प्रति या तो उस के दिल में प्रेम फूट पड़ा था या वह पश्चाताप करना चाहती थी, कारण जो भी हो. अब उस पर दौलत की कोई कमी भी नहीं थी. 2008 में वाल स्ट्रीट जर्नल ने इंद्राणी को दुनिया की 50 उद्यमियों में 41वें स्थान पर रखा था. फिर तो रातोंरात उस के घर की रंगत ही बदल गई. मकान की साजसज्जा कराई गई. 2 नई कारें खरीद ली गईं. इतना ही नहीं, इंद्राणी 2006 में गुवाहाटी गई और शीना को मुंबई ले आई. शीना को यहां उस ने अपनी बहन बताया. मुखर्जी परिवार ने उस का दाखिला सेंट जेवियर कालेज में करवा दिया और शीना की दोस्ती विधि के साथ हो गई. 

अकसर सामाजिक आयोजनों में उसे मुखर्जी परिवार के साथ देखा जाने लगा. मिखाइल को आगे की पढ़ाई के लिए पुणे भेज दिया गया. पीटर की पहली पत्नी शबनम सिंह थी. पीटर के उस से 2 बेटे थे. शबनम सिंह से पीटर मुखर्जी का तलाक हो गया. बड़ा बेटा राहुल था, जो पिता के साथ रहता था. छोटा बेटा राबिन अपनी मां के साथ देहरादून में रहने लगा. 

राहुल कभी भी इंद्राणी से अच्छे रिश्ते नहीं बना सका, लेकिन शीना के साथ उस की दोस्ती हो गई. दोस्ती प्यार में बदल गई. बाद में दोनों डेट करने लगे. यह वही एक अजीबोगरीब रिश्ता था, जिस  ने मुखर्जी परिवार में काफी तनाव पैदा कर दिया. इस जटिल पारिवारिक जाल के बीच ही पीटर और इंद्राणी ने 2007 में आईएनएक्स मीडिया की शुरुआत करने का फैसला किया.

‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसे कार्यक्रमों से भारतीय टीवी की दुनिया बदल देने वाले सीईओ पीटर मुखर्जी को 2006 में निकाल दिया गया था. जब स्टार चैनल को जी नाम के चैनल ने खरीद लिया था. चैनल 9 एक्स और संगीत चैनल 9 एक्सएम के लौंच होने के कुछ समय बाद ही 9 एक्स की रेटिंग गिर रही थी. आईएनएक्स के साथ अपना रिश्ता खत्म हो जाने के बाद मुखर्जी दंपति मुंबई के अमीर तबके में हाशिए पर चले गए और बाद में विदेश में जा कर बस गए. वे ब्रिस्टल चले गए, जहां विधि पड़ रही थी. इस दौरान शीना ने 2011 में रिलायंस एडीएजी की इकाई मुंबई मेट्रो वन में सहायक प्रबंधक की नौकरी कर ली.

कहानी जून 2012 से शुरू होती है. राकेश मारिया मुंबई पुलिस कमिश्नर थे. उन के पास एक काल आती है. काल करने वाला कहता है कि शीना बोरा नाम की लड़की लापता है. वह हाईप्रोफाइल लोगों का हवाला देते हुए इस की जांच करने की मांग करता है. पता चलता है कि शीना बोरा इंद्राणी मुखर्जी की बहन है. इंद्राणी मुखर्जी पीटर मुखर्जी की पत्नी है. ये दोनों मीडिया जगत के बहुत शक्तिशाली लोग हैं. 

पुलिस कमिश्नर इस केस की सीक्रेट जांच कराते हैं. पता चला कि इंद्राणी और पीटर दोनों इंडिया में नहीं हैं. पुलिस कमिश्नर को पता चला कि इंद्राणी मुखर्जी का ड्राइवर श्यामवर राय है. श्यामवर राय ने कुछ साल पहले नौकरी छोड़ दी थी. 21 अगस्त, 2015 को श्यामवर राय को अरेस्ट कर लिया. उस के पास से एक तमंचा बरामद हुआ.

पुलिस ने थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो श्यामवर राय ने कहा कि 24 अप्रैल, 2012 को मैं, संजीव खन्ना और इंद्राणी मुखर्जी हम तीनों ने मिलक शीना बोरा का मर्डर कर दिया था. उस ने बताया कि उस के बाद हम लोग मुंबई से करीब 100 किलोमीटर दूर रायगढ़ पहुंचे. वहां पहुंचने के बाद इंद्राणी ने 3 जोड़ी जूते निकाले. तीनों ने वह जूते पहने, ताकि सुनसान जंगल की मिट्टी केस खोलने के लिए कोई सबूत न बन जाए. 

उस के बाद डैडबौडी को नीचे उतार कर साथ ले कर आए 20 लीटर पैट्रोल डाल दिया. फिर इंद्राणी ने माचिस से बौडी को आग लगा दी. वहां से तीनों लौट आए. यह कार किराए पर ली गई थी. इंद्राणी ने कहा कि कार धुलवा कर कार वापस कर देना. गाड़ी के अंदर एक पार्सल रखा है, उस पार्सल को अपने साथ ले जाना. उस के साथ क्या करना है, वो मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी. 

3 साल बाद श्यामवर राय ने उस पार्सल को खोल कर देखा तो उस में तमंचा था. जिस दिन वह उस तमंचे को ठिकाने लगाने जा रहा था, वह 21 अगस्त, 2015 का दिन था. क्योंकि पुलिस उस पर निरंतर निगरानी रख रही थी, अत: उसी दिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया. 25 अगस्त, 2015 को पूर्व ड्राइवर के खुलासे के बाद इंद्राणी मुखर्जी को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया. पुलिस ने इंद्राणी से पूछताछ की, लेकिन इंद्राणी काफी समय तक शीना को अपनी बेटी के बजाय बहन बताती रही और कहती रही कि शीना अमेरिका में है. फिर ड्राइवर का आमनासामना कराए जाने पर इंद्राणी ने शीना को मारा जाना स्वीकार कर लिया. 

उस के बाद इंद्राणी को शीना मर्डर केस में गिरफ्तार कर लिया गया. इंद्राणी मुखर्जी के पूर्व पति संजीय खन्ना को भी दूसरे दिन कोलकाता से गिरफ्तार कर लिया गया. इंद्राणी मुखर्जी उस वक्त एक बहुत ही बड़ी हस्ती थी, क्योंकि वह एक बहुत बड़ी कंपनी की सीईओ थी. पत्रकार जगत में जलजला आ गया. सारी मीडिया इस मामले की कवरेज में जुट गई. 

जैसेजैसे जांच आगे बढ़ी है, चौंकाने वाले खुलासे होते गए. पता चला है कि शीना, इंद्राणी की बहन नहीं, बल्कि बेटी थी. एक बेटा मिखाइल भी है. वह कौन से पति से है, यह भी खुलासा बाद में इंद्राणी करती है. एक और खुलासा यह भी हुआ कि इंद्राणी के पति पीटर के बेटे राहुल के साथ शीना का अफेयर चल रहा था.

संजीव खन्ना और इंद्राणी की जो बेटी थी, उस का नाम विधि था. उन के डिवोर्स के बाद विधि इंद्राणी के साथ ही रहा करती थी. बच्ची को ले कर दोनों के बीच मुकदमेबाजी भी चली, लेकिन इंद्राणी मुकदमा जीत गई. जिस की वजह से पीटर भी विधि को गोद लेने के लिए राजी हो गया था. वह विधि को अपनी ही बेटी की तरह मानता था. उसे जरा भी भेदभाव नहीं करता था. शीना बोरा का एक भाई भी था, जिस का नाम मिखाइल बोरा था. 

पुलिस शीना बोरा की लाश की तलाश में जुट गई. पुलिस को पता चला कि जब शीना गायब हुई थी तो उस के ठीक एक महीने बाद एक आटो चालक जब मुंबई के एक रोड से जा रहा था तो उसे कुछ आम गिरे हुए नजर आए. जब वह गाड़ी रोक कर आम को उठाने लगा तो उसे वहां पर एक लाश का हाथ नजर आया. यह देख कर वो चौंक गया. उस ने तुरंत पुलिस को इस बारे में सूचित किया. क्योंकि वह पुलिस का इनफौर्मर भी था.

जब पुलिस वहां पर पहुंची तो उस लाश को देख कर तुरंत उन लोगों ने उसे वहीं गड्ढा खोद कर गाड़ दिया. पुलिस के अनुसार यह वही स्थान था, जो इंद्राणी मुखर्जी के ड्राइवर श्यामवर राय ने बताया था. यह पहली बार हो रहा था कि पुलिस ने रिपोर्ट नहीं लिखी, बल्कि उस लाश को ही गायब कर दिया. मामला इतना तूल पकड़ा कि सरकार को भी उस में हस्तक्षेप करना पड़ा. इस केस को लीड कर रहे मुंबई पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया का स्थानांतरण हो गया. इस से मामला और भी तूल पकड़ गया. सरकार ने केंद्र सरकार से शीना बोरा प्रकरण की जांच सीबीआई से करने की सिफारिश की. 

18 सितंबर, 2015 मामला सीबीआई को स्थानांतरित हो गया. केंद्रीय एजेंसी ने इंद्राणी मुखर्जी, संजीव खन्ना और श्यामवर राय के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. 19 नवंबर, 2015 इंद्राणी के तत्कालीन पति पीटर मुखर्जी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया. जनवरी 2016 सीबीआई ने इंद्राणी मुखर्जी और श्यामवर राय के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया. बाद में पूरक आरोपपत्र में पीटर मुखर्जी का भी नाम भी शामिल किया गया.

सीबीआई के अनुसार, इंद्राणी ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह राहुल मुखर्जी के साथ रिश्ते को ले कर शीना से नाराज थी. सीबीआई ने यह भी कहा कि शीना बोरा ने उन के बीच वित्तीय विवाद के बाद अपनी मां को बेनकाब करने की धमकी दी थी. ड्राइवर के बयान के आधार पर शीना की अधजली लाश को मुंबई से लगभग 100 किलोमीटर दूर रायगढ़ के जंगल से निकाला गया था. पुलिस ने उस गड्ढे को खोद कर अधजली लाश के अवशेष को निकाल कर फोरैंसिक टीम को सौंप दिया, ताकि वह पता लगा सके कि आखिर यह किस की बौडी है. 

पुलिस का कहना है कि डीएनए टेस्ट में साबित हुआ कि वह इंद्राणी मुखर्जी की बेटी शीना की ही लाश है. जांच में रायगढ़ में लाश के आसपास इंद्राणी की लोकेशन पाई गई. खन्ना की लोकेशन भी मुंबई में इंद्राणी के निवास के आसपास सामने आई. कड़ी से कड़ी और सबूत दर सबूत मिलने पर सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की थी. 2017 में शुरू हुए मुकदमे में करीब 60 गवाहों ने अपने बयान दर्ज किए.

सीबीआई ने इस डाक्यूमेंट्री को रिलीज करने से रोकने के लिए पहले एक विशेष अदालत में याचिका दायर की. वहां से रिट खारिज हो जाने पर हाईकोर्ट मुंबई में गुहार लगाई गई. हाईकोर्ट ने डाक्यूमेंट्री का अध्ययन करने के बाद उसे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इस तरह द इंद्राणी मुखर्जी स्टोरी: बरीड ट्रुथनाम की वेब डाक्यूमेंट्री रिलीज हुई.

एपिसोड नंबर 1

द इंद्राणी मुखर्जी स्टोरी: बरीड ट्रुथके पहले एपिसोड की शुरुआत मुंबई के उलटे अक्षरों से होती है. पीटर मुखर्जी और राहुल मुखर्जी बापबेटों के बीच फोन पर आडियो काल की आवाज सुनाई जाती है, जिस में राहुल अपने पिता से पूछ रहा है कि शीना कहां है? जब इंद्राणी से शीना के बारे में बात की जाती, तब वह चिढ़ जाती और यही कहती है कि यूएई चली गई है. किसी से कोई संपर्क रखना नहीं चाहती. जबकि राहुल मुखर्जी का दावा है कि शीना का पासपोर्ट उस के पास था तो वह विदेश कैसे चली जाएगी. इस के बाद इंद्राणी मुखर्जी के घर पुलिस की दबिश दिखाई जाती है. 

उस के बाद दिखाया जाता है कि गणेश गने नाम का एक व्यक्ति रायगढ़ से गुजरते वक्त आम के पेड़ से गिरे हुए आम उठाने पहुंचता है. उसे कोई जली हुई लाश का हाथ दिखाई देता है. वह पुलिस का मुखबिर भी है. उस की सूचना पर पुलिस वहीं पास में ही गड्ढा खुदवा कर उस में लाश को दबा देती है. 

इस एपिसोड में इंद्राणी के पति संजीव खन्ना की गिरफ्तारी के सीन दिखाए गए हैं. श्यामवर राय का जिक्र भी है, जिस ने पुलिस को 3 साल पहले शीना के मर्डर के बारे में जानकारी दी थी. यह अपराध की दुनिया में अकसर होता रहता है लेकिन 3 सालों तक इंद्राणी ने इस बात को आखिर छिपाए कैसे रखा? यह सवाल इंद्राणी मुखर्जी के सपोर्ट में दिखाई देता है. कोलकाता के सीन और दूसरे पति की गिरफ्तारी दिखाई जाती है. 

विधि को दिखाया जाता है कि इस के 3 पैरेंट हैं. इंद्राणी मुखर्जी, पीटर मुखर्जी और संजीव खन्ना तीनों जेल में है. इन लोगों की गिरफ्तारी दिखाई जाती है. इस के आगे डाक्यूमेंट्री में इंद्राणी की बहन है शीना या बेटी है, इस मामले को दिखाया गया है. वेब डाक्यूमेंट्री में दिखाया जाता है कि शीना को जब इंद्राणी ने एक व्यावसायिक केंद्र पर बुलाया था. राहुल ही उसे वहां तक छोडऩे गया था. यहां ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिलाया गया, फिर उस की हत्या कर के उस की लाश को पिछली सीट पर रखा था. उस का मेकअप किया गया. इस के बाद इंद्राणी के जेल से छूटने के सीन दिखाए गए हैं और पहला एपिसोड यहीं खत्म हो जाता है. पहले एपिसोड से कुछ पता नहीं चलता कि इस सीरीज की कहानी क्या है?

एपिसोड नंबर-2

दूसरे एपिसोड की शुरुआत में इंद्राणी को जेल से बाहर निकलने पर पत्रकारों की भीड़ के साथ घिरा हुआ दिखाया गया है. एपिसोड की शुरुआत में राहुल और उस के पिता पीटर मुखर्जी के बीच फोन पर बातचीत दिखाई गई है. वैहयासी पांडे डेनियल पत्रकार, राजदीप सरदेसाई पत्रकार इंद्राणी के परिचित अभिजीत सेन, सना रईस खान वकील, कावेरी बांमजई पत्रकार अमृता माधुकले पौलिटिकल रिपोर्टर को दिखाया गया है.

इंद्राणी मुखर्जी सहानुभूति हासिल करने के लिए कह रही है कि उस पर हत्या के आरोप लगाए गए. गालियां दी गईं. बुराभला कहा गया. लेकिन यह सब झूठ है. उस ने अपनी बेटी का कत्ल नहीं किया.  वह बताती है कि शीना सिद्धार्थ की बेटी नहीं है, बल्कि 1985 में उस के पिता ने उस के साथ बलात्कार किया. वह अपने पिता की अकेली संतान है. उस समय उस की उम्र 14 साल की थी. परिवार के फोटो दिखाए गए हैं. 

इंद्राणी मुखर्जी कहती है 16 वर्ष की हुई तो दूसरी बार उस के साथ रेप उस के पिता ने किया. मातापिता में झगड़ा हुआ, फिर पिता घर छोड़ कर चले गए. 4 महीने बाद पता चला कि वह प्रेग्नेंट है. अबौर्शन की गुंजाइश नहीं थी. डाक्टर ने इनकार कर दिया. कितनी बेशरमी से पिता पर आरोप लगा रही है. उस समय के पिता उपेंद्र कुमार बोरा के साथ फोटो दिखाए गए हैं. पिता उपेंद्र कुमार का बयान दिखाया गया, वह कह रहे हैं कि शीना उस की नहीं सिद्धार्थ राय की बेटी है. 

इंद्राणी मुखर्जी अपने प्रेमी सिद्धार्थ से मुलाकात और शादी की कहानी सुनाती है. सिद्धार्थ को दिखाया जाता है कहते हैं कि 11 फरवरी, 1987 को शीना और 9 सितंबर, 1988 को मिखाइल का जन्म हुआ. ये दोनों बच्चे उस के ही हैं. उन के बचपन के फोटो दिखाए गए. उस के बाद इंद्राणी सिद्धार्थ को ले कर गुवाहाटी अपने घर आ जाती है. उस की मम्मी उस के पापा को घर वापस बुलाने के लिए कहती है, जिन्हें दूसरी बार इंद्राणी से रेप करने पर घर से निकाल दिया गया था. तब इंद्राणी इसलिए घर छोड़ कर चली गई कि उस के पिता तीसरी बार बलात्कार न कर सकें. 

दूसरे एपिसोड में भी कभी कहीं की बात तो कहीं कभी की घटना दिखाई जाती है. इसे देख कर भी कोई नहीं समझ सकता कि आखिर शीना हत्याकांड क्या है? पीटर मुखर्जी से मुलाकात और उस से शादी का पूरा अफसाना सुनाया जाता है. पुलिस का कहना है कि संजीव खन्ना हत्या में शामिल हुआ. क्योंकि बेटी विधि को, शीना व राहुल की शादी हो जाने पर पीटर मुखर्जी की संपत्ति से वंचित होना पड़ता. बीचबीच में विधि को भी दिखाया जाता है. विधि अधिकतर मामलों में इंद्राणी मुखर्जी की पैरवी करती है. 

एपिसोड नंबर-3

एपिसोड 3 की शुरुआत में इंद्राणी शीना के फोटो दिखाती है. फोटो एलबम लिए बैठी है. यही साबित करना चाहती है कि तीनों बच्चों को वह बराबर प्रेम करती थी. मिखाइल बताता है कि इंद्राणी इस शर्त पर मदद करती थी कि तुम पीटर को नहीं बताओगे कि इंद्राणी उन की मां है. विधि को भी नहीं पता चलना चाहिए. मिखाइल कहता है. यह सब हमें अच्छा नहीं लगा, लेकिन नानानानी ने समझा दिया कि अपने भविष्य के लिए इंद्राणी की बात मान ली जाए. यही उस की गलती थी कि वह शीना को साथ ले कर इंद्राणी के पास मुंबई आया, यदि नहीं जाता तो उस की बहन शीना जीवित होती.

वेब डाक्यूमेंट्री में मीडिया कारोबार की बातें दिखाई जाती हैं. इंद्राणी को सीईओ बनाए जाने पर जो समारोह हुआ, वह दिखाया जाता है. इंद्राणी अपनी बेटी शीना की तारीफ करती है. मुंबई लाने की वजह बताती है. कहती है सब कुछ ठीक था. तीनों बच्चे एक साथ हंसीखुशी से रहते थे. जरमनी और अन्य विदेश में तफरी के लिए गए उस की तसवीर दिखाती है.

मिखाइल बताता है कि मुंबई आने पर संजीव खन्ना उसे एक अस्पताल में ले गए. वहां एक इंजेक्शन लगाया. उस के बाद वह बेहोश हो गया. होश में आया तो हाथ व पैर बैड से बंधे हुए थे. वार्ड बौय ने आ कर उस की जम कर पिटाई की. डाक्टर आया, उस ने बताया कि ड्रग्स पीने से छुटकारा दिलाने के लिए उस की बहन इंद्राणी ने उसे यहां भरती कराया है. करीब डेढ़ महीने बाद इंद्राणी मिलने आई. शिकायत की तो बोली पागल हो गया है और डाक्टर लोग मुझे खींच कर ले गए. एक साल तक मेरा उत्पीडऩ किया गया. इसलिए किया गया क्योंकि मुंबई में उस ने कुछ लोगों को बता दिया था कि इंद्राणी मेरी मां है.

आगे दिखाया जाता है कि पीटर जब अपने बेटे राहुल को भारत ले कर आया तो वह इंद्राणी से की गई शादी से खुश नहीं था. उस की इंद्राणी से नाराजगी रहती, लेकिन इंद्राणी की बहन शीना से उस की खूब दोस्ती हो गई. विधि बताती है कि अचानक वह कमरे में गई तो ये दोनों एक साथ लेटे हुए थे. दोनों रिश्ता करने को तैयार हुए. इंद्राणी इस रिश्ते के खिलाफ नहीं थी. वह कहती है कि राहुल कुछ नहीं करता और शीना को उस के खिलाफ भड़काती है. सीबीआई ने भी शीना की हत्या का कारण राहुल शीना के प्रेम प्रसंग को ही बताया है. डाक्यूमेंट्री में इंद्राणी ने इस कारण को गलत बताने की कोशिश की है. विधि स्वीकारती है कि राहुल की अपने पिता से बातचीत बंद थी और शीना की अपनी मां इंद्राणी से. दोनों का दोनों से खूब मनमुटाव व झगड़ा था. 

एपिसोड नंबर-4

चौथा एपिसोड इंद्राणी मुखर्जी के वकील रंजीत सिंगल से शुरू होता है. इंद्राणी की अपने वकील से बातचीत दिखाई गई है. बात 2012 से शुरू होती है. विद्या पत्रकार को दिखाया जाता है. इंद्राणी की फोन पर राहुल से बात दिखाई जाती है. शीना के मैसेज के बारे में बताता है जिस मैसेज के बारे में इंद्राणी राहुल को समझती है कि शीना से ब्रेकअप हुआ है. ऐसा होता रहता है. इंद्राणी ने दावा किया कि 24 अप्रैल, 2012 के बाद भी शीना को जम्मू कश्मीर में देखा गया है.

एक सवाल उठाया गया है कि श्यामवर राय तमंचा ठिकाने लगाने इतनी दूर क्यों जाएगा. उस के घर के पास एक नदी बहती है. पुलिस ने इस मामले की कड़ी से कड़ी मिलाई है. इंद्राणी कहती है कि उस दिन टाइम से घर आ गई थी, क्योंकि मिखाइल घर पर था. मिखाइल कहता है कि घर पहुंचा तो इंद्राणी घर पर नहीं थी. उस ने फोन किया तो इंद्राणी ने बताया कि वह आने वाली है. उसे लगता है कि इसी समय शीना की हत्या हुई थी. शीना की हत्या के सीन को फिर दिखाया जाता है. 

मिखाइल आगे बताता है कि इंद्राणी और संजीव खन्ना जब रात घर पर आए तो वह संजीव को देख कर डर गया. क्योंकि पागलखाने में भी संदीप खन्ना ही उसे पहुंचा कर आया था. फिर उस को ड्रिंक करने को दिया गया. एक घूंट में ही उसे चक्कर आने लगा. वह समझ गया कि जरूर दाल में काला है. उस समय रात के लगभग 2 बजे थे. किसी तरह से जान बचा के घर से भागा वरना मारा जाता. 

आरोप है कि इंद्राणी ने बेटी की हत्या के बाद शीना बनकर राहुल को मैसेज किया, जिस में राहुल से ब्रेकअप करने की जानकारी दी गई. नौकरी से इस्तीफा दिए जाने का मैसेज भी इंद्राणी ने शीना के दफ्तर भेजा. इंद्राणी इस से इंकार करती रही. अपने परिवार को इंद्राणी उल्लेख करती है कि मैं शीना को क्यों ढूंढूं. जब मैं ने घर छोड़ा था तो मुझे किसी ने नहीं ढूंढा था. इस बात से इंद्राणी का बचाव नहीं हो सकता, क्योंकि 3 साल तक शीना की किसी ने गुमशुदगी तक दर्ज नहीं कराई. अंतिम सीन इंद्राणी का यह है कि कोई सवाल करता है कि आप ने अपनी बेटी की हत्या क्यों की?

वह कहती है कि यह कैसा बेतुका सवाल है और एपिसोड खत्म हो जाता है. इस तरह कहा जा सकता है कि इंद्राणी ने ऐसे सवालों को खड़ा किया है, जिस से उस के बचाव में समाज खड़ा हो जाए और उस की खोई हुई इज्जत और शोहरत वापस आ सके. लेकिन पुलिस रिपोर्ट से तो स्पष्ट है कि इंद्राणी व संजीव खन्ना ने ही शीना की हत्या की थी. 

यह पूरा मामला इंद्राणी के ड्राइवर श्यामवर राय ने बताया है. श्यामवर राय सरकारी गवाह बन चुका है. पीटर मुखर्जी भी इस में पूरा दोषी है. कानून के जानकारों का कहना है कि पुलिस ने पर्याप्त सबूत दिखाए हैं. ये तीनों सजा से बच जाएं, कहा नहीं जा सकता.

प्रेमिका का सिर कलम कर नहर में फेंका

अरुण और शीबा की छोटी सी मुलाकात पहले बौयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड में बदली, फिर वे आपस में बेइंतहा मोहब्बत के सफर पर निकल पड़े. इसी मस्ती के बीच न जाने कब किस ने 2 जिस्म एक जान बने रहने का वादा तोड़ डाला. और फिर जो हुआ, उस में एक की जान चली गई और दूसरे की जिंदगी कोर्ट, कानून, पुलिस के जांचमुकदमे और सजा के पचड़े में फंस गई…

बहराइच जिले के थाना नानपारा के अंतर्गत हांडा बसेहरी गांव के पास झाडिय़ों में 23 जुलाई, 2024 को मिली एक युवती की सिरकटी लाश की पहचान अगर पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती थी तो उस इलाके के लिए यह एक सनसनीखेज दिल दहला देने वाली घटना थी.

पुलिस ने शव की पहचान के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन सिर कटा होने के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था, सिर्फ इस के कि लाश बेहद खूबसूरत और कमसिन लड़की की थी. वह निर्वस्त्र थी और उस की शारीरिक सुंदरता में उन्नत और सुडौल उरोज के अनुसार उम्र करीब 20-22 साल आंकी गई थी. सुंदर मांसल देह पर खून की महीन और मोटी लकीरें ही परिधान बन गई थीं.  

बहराइच के एसपी वृंदा शुक्ला ने इस मामले की जांच के लिए प्रशिक्षु पुलिस सीओ हर्षिता तिवारी की अगुवाई में एक टीम गठित करवा दी थी. जांच में तेजी थी, फिर भी लाश की पहचान नहीं हो पा रही थी, जिस की सूचना किसी राहगीर ने पुलिस दी थी.

जब पुलिस ने 22 जुलाई को गुमशुदगी की रिपोर्ट पर ध्यान दिया तो पता चला कि 20 वर्षीय शीबा नाम की युवती उसी इलाके से लापता थी. लाश की पहचान शीबा के रूप में हुई. यह गुमशुदा शीबा की तसवीर और शव के दाहिने पैर में बंधे काले धागे के मिलान करने पर संभव हो पाया.

इस पहचान की शीबा के परिजनों ने भी पुष्टि कर दी. इस पहचान के सिलसिले में पुलिस को मालूम हुआ कि शीबा की फोन पर अकसर एक हिंदू लड़के अरुण सैनी से बात होती थी. वह श्रावस्ती जिले के थाना मल्हीपुर अंतर्गत मल्हीपुर खुर्द का रहने वाला था.

पुलिस ने बरामद लाश के बारे में सब कुछ पता करने के लिए आपनी जांच की सूई पूरी तरह से शीबा के लापता होने के मामले और अरुण की तरफ घुमा दी थी. हालांकि शीबा के बारे में तहकीकात करने पर पुलिस को पता चला कि वह अपने मामा हशमत अली के घर जमोग गांव में रहती थी और अरुण अपने मामा के पास बगल के गांव में रहता था.

दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे और पिछले एक साल से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. इस दोस्ती को लेकर भी गहन छानबीन करने पर पुलिस को मालूम हुआ कि शीबा के मामा उन के बीच की दोस्ती से बेहद खफा थे. 

अरुण की शादी तय हो गई थी. शीबा का मामा नहीं चाहता था कि दोनों का किसी भी तरह से मेलजोल बने. यहां तक कि उन के बीच फोन पर भी बातचीत नहीं हो. मामा एक तरह से मोहब्बत में खलनायक बन गए थे. वह बातबात पर शीबा को टोकते रहते थे और अरुण को भी उस से दूर रहने की हिदायत दिया करते थे. यह घोर विरोध धर्म के अंतर की वजह से था. पुलिस को जब मालूम हुआ कि शीबा और अरुण के बीच मामा कबाब में हड्डी की तरह घुसा हुआ था, तब अपनी जांच और भी गहनता से करने लगी.

इलाके में पूछताछ पर पता चला कि एक बार शीबा के मामा ने अरुण की पिटाई तक कर दी थी, जिस से अरुण काफी गुस्से में आ गया था और उस ने मामा को काफी खरीखोटी सुनाई थी. पुलिस को समझने में देर नहीं लगी कि शीबा की हत्या का पूरा मामला प्रेम कहानी, धार्मिक अंतर और परिवार की प्रतिष्ठा के साथ जुड़ा हुआ है. शीबा के मामा का पक्ष तो सामने आ गया था, लेकिन अरुण की तरफ से किसी भी तरह की सच्चाई सामने नहीं आ पाई थी.

इस मामले में पुलिस की जांच टीम अज्ञात हत्यारोपियों पर नजर रखे हुए थी. लाश बरामदगी के हफ्ते भर बाद 29 जुलाई, 2024 को केस दर्ज कर लिया गया था. एसओजी यानी स्पेशल औपरेशन ग्रुप के प्रभारी दिवाकर तिवारी और सर्विलांस सहित पुलिस की टीमों ने घटनास्थल पर सक्रिय मोबाइल नंबरों और कई संदिग्धों को उठा कर पूछताछ करने के बाद अरुण सैनी को पकड़ लिया था. 

बहराइच की मिलीजुली जातियों की आबादी वाले जमोग गांव में मुसलिम परिवारों की भी अच्छीखासी संख्या थी. उन्हीं में एक परिवार हशमत अली का भी है. शीबा उन्हीं की भांजी थी. गिरफ्तार किया गया अरुण भी पास के गांव में अपने ननिहाल में ही रहता था. वह भी उसी स्कूल में पढ़ता था, जहां शीबा पढ़ती थी. लेकिन उन की कक्षाएं अलगअलग थीं. शीबा आठवीं में पढ़ती थी, जबकि अरुण नौंवी में पढ़ता था. दोनों जब स्कूल से निकलते थे, तब अपनेअपने गांव जाने के दौरान कुछ दूरी पर साथ होते थे. उस के बाद शीबा को खेतों के रास्ते जाना होता था और वह सड़क के नीचे पगडंडियों से होते हुए अपने ननिहाल चली जाती थी.

हालांकि सड़क उस के गांव से हो कर गुजरती थी, लेकिन उस रास्ते जाने पर शीबा को अधिक पैदल चलना होता था. इस कारण शीबा पगडंडियों के छोटे रास्ते से गुजरती हुई अपने मामा के घर जाती थी. वहां तक जाने में उसे 5 से 7 मिनट का समय लगता था. अरुण उसे पगडंडियों पर कमर लचकाती जाती हुई सड़क पर खड़ेखड़े तब तक देखता रहता था, जब तक कि वह उस की आंखों से ओझल हो नहीं जाती थी.

बीते कुछ दिनों से उस ने महसूस किया था कि शीबा जब पगडंडी पर संभलती हुई तेजी से चलती थी, तब उस की कमर कुछ ज्यादा ही लचकती थी. यह देखना उसे बहुत अच्छा लगता था. कई बार उस ने देखा था कि शीबा पगडंडी से गिरनेगिरने को हो… इच्छा होती थी कि जा कर पीछे से उस की कमर को सहारा दे दे. उसे दिल में गुदगुदी का एहसास होने लगता था.

करीब एक साल पहले की बात है. एक बार अरुण स्कूल जाते वक्त उसी पगडंडी के पास सड़क के किनारे खड़ा शीबा के आने का इंतजार कर रहा था. कुछ सेकेंड बाद ही उस ने देखा, शीबा दौड़ती हुई आ रही है. असल में उस रोज स्कूल का समय करीबकरीब हो चुका था. जैसे ही शीबा सड़क के पास आई, उस का पैर पगडंडी से फिसल गया और नीचे खेत में लुढ़क गई. अरुण कुछ दूरी पर ही था. वह दौड़ कर उस के पास गया. अपना बैग रखा और उसे उठाने के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया. 

शीबा भी संभलती हुई उस के हाथ के सहारे से उठी और संभलते हुए उस के कंधे को पकड़ लिया. अरुण उसे संभालते हुए उस का हाथ पकड़ कर उठाने लगा. जब वह नहीं उठ पाई, तब उस ने दूसरे हाथ से उस की कमर पकड़ कर खेत से पगडंडी तक ले आया.

अरे छोड़ो, मेरी कमर छोड़ो.’’ शीबा बोल पड़ी.

छोड़ दूंगा तब तुम फिर गिर जाओगी. नहीं दिख रहा नीचे कितना गड्ढा है.’’ अरुण बोला.

अरे मैं कह रही हूं…छोड़ो न, गुदगुदी हो रही है.’’ शीबा बोली.  

अच्छा तो यह बोलो न.’’ यह कहते हुए अरुण ने उसे तुरंत छोड़ दिया और अपने कंधे पर लग आई मिट्टी को साफ करने लगा. शीबा ने भी अपने कपड़े झाडऩे के बाद पास गिरे स्कूल बैग को उठा लिया. अरुण उसे गौर से देखने लगा.

अब क्या देख रहे हो? चलो, रास्ता छोड़ो स्कूल को देर हो रही है.’’ शीबा बोली. 

लेकिन अरुण को अचानक शरारत सूझी, उस ने उस की पेट के बगल में एक बार फिर गुदगुदाने के लिए हाथ लगा दिया.

”अरे, क्या करते हो. मैं लड़की हूं, तुम्हें नहीं पता क्या?’’ यह कहती हुई शीबा ने एक तरह से अरुण को डपट दिया था और उसे धक्का दे कर सड़क पर तेजी से चली आई थी. पीछेपीछे अरुण भी उस के पास आ गया. बोला, ”एक तो मैंने तुम्हें बचाया और तुम मुझे थैंक्यू बोलने के बजाए गुस्सा हो रही हो.’’

नाराज होने वाली हरकत ही तुम ने की तो मैं क्या करती?’’ शीबा नरमी से बोली. 

अरुण भी चुप रहा और साथसाथ स्कूल पहुंच गया. उस रोज दोनों के बीच दोस्ती की बुनियाद पड़ गई थी. स्कूल से छुट्टी होने पर शीबा ने देखा कि अरुण सड़क के एक किनारे उस का इंतजार कर रहा है. शीबा अपनी सहेलियों से विदा ली और अरुण के पास आ कर बोली, ”मेरा इंतजार कर रहे हो?’’

नहीं तो!’’

तो फिर यहां क्यों खड़े हो?’’ शीबा बोली और मुसकराने लगी.

सुबह तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी थी?’’ अरुण हमदर्दी के साथ पूछा.

तुम्हें मेरा बड़ा खयाल है!’’ शीबा मजाकिया अंदाज में बोली.

क्यों न हो, तुम लड़की जो हो और वह भी सुंदर लड़की.’’अरुण बोला. 

अपनी सुंदरता की बात सुन कर शीबा शरमा गई. बोली, ”अच्छाअच्छा चलो.’’

उन के बीच न केवल दोस्ती हो गई थी, अरुण को शीबा की सुंदरता और देह से फूटती सैक्स की गंध लुभाने लगी थी. गाहेबगाहे उस के शरीर की मांसलता, कमर की लोच और स्तन के उभार पर उस की नजर टिक जाती थी. इस का एहसास शीबा को भी हो चुका था, लेकिन इस बारे में अरुण को जरा भी पता चलने नहीं देती थी. सच तो यह था कि शीबा भी मन ही मन अरुण से प्रेम कर बैठी थी.

दोनों के बीच मोहब्बत की लौ जल चुकी थी. वे आपस में मिले बगैर नहीं रह पाते थे. स्कूल में मुलाकात हुई तब ठीक, नहीं तो फोन पर बातें करने लगे थे. समय अपनी गति से चलता रहा, लेकिन उन के बीच के प्रेम को पंख लग चुके थे और गंध भी फैल चुकी थी. शीबा को एक दिन मामा ने ही डपट दिया था और उस का स्कूल जाना बंद करवा दिया.

एक तरह से शीबा पर कहीं भी बाहर आनेजाने से ले कर फोन करने पर पाबंदी लगा दी गई थी. शीबा के मामा अरुण के साथ भांजी के प्रेम संबंध का पता चलने पर और भी चिंतित हो गए थे. वह मुसलिम थे और अरुण का परिवार हिंदू था. दोनों के बीच शादीब्याह तो बहुत दूर की बात थी. 

वह जानते थे कि ऐसे रिश्ते का दोनों समाज के लोग घोर विरोधी थे. इस के खतरनाक अंजाम की आशंका से शीबा के मामा ने अरुण को प्यार से समझाया. उसे शीबा से संबंध खत्म करने के लिए कहा. यहां तक कि उसे धमकी दी. पारिवारिक विरोध और बंदिशों के चलते शीबा कुछ समय तक अपने मन को काबू में रखे रही. अरुण भी पढ़ाई, करिअर अपने कामकाज में व्यस्त हो गया. एक दिन उसे बाजार में शीबा मिल गई. शिकायती लहजे में 5-6 महीने से नहीं मिलने का कारण पूछ बैठी. 

कुछ देर तक उन के बीच इधरउधर की बातें होती रहीं. इसी सिलसिले में अरुण ने बताया कि उस की शादी तय हो चुकी है. इसलिए वह उसे भूल जाए. अरुण की बात सुन कर शीबा को झटका लगा. वह बिफरती हुई बोली, ”तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं. मैं तुम्हारे अलावा और किसी से निकाह नहीं कर सकती. ऐसा होने से पहले मैं अपनी जान दे दूंगी.’’

अरुण ने उसे समझाने की कोशिश की. अपनी जाति, धर्म और समाज की बात समझाते हुए तमाम बाध्यताओं की बातें की, लेकिन शीबा के दिलोदिमाग पर इस का कोई असर नहीं हुआ. उस रोज तो बात आईगई हो गई, लेकिन शीबा का दिल यह मानने को कतई तैयार नहीं था कि वह अरुण से संबंध तोड़ ले. वह उस से फोन पर बातें करने लगी.

कभी भी वह अरुण को काल कर देती थी. कभी वाट्सऐप मैसेज भेज देती तो कभी वीडियो काल कर देती थी. शीबा का फोन आने पर अरुण न चाहते हुए भी उस से बात करने को मजबूर हो जाता था. वह बातोंबातों में धमकी तक दे डालती थी. काल रिकार्डिंग और पुरानी बातों के हवाले से उसे बदनाम करने तक की बातें करने लगती थी.

एक दिन तो शीबा ने फोन पर हद ही कर दी. रात का वक्त था. सभी गहरी नींद में सो रहे थे. जबकि शीबा फोन पर लगी हुई थी. वह बेहद गुस्से में थी. अरुण नरमी से बातें कर रहा था, जबकि शीबा बारबार बोले जा रही थी, ”मैं देख लूंगी, सब को देख लूंगी! जिसजिस ने मुझे सताया है, जिस ने भी धोखा देने का काम किया है, जो भी ऐसा करेगा, मैं सब को फंसा दूंगी. उन को जेल नहीं भिजवाया तो मेरा नाम शीबा नहीं…’’

यह सुन कर अरुण तिलमिला गया, जबकि शीबा की ये बातें उस के मामा ने भी सुनीं. वह अरुण के प्रति आगबबूला हो गए. वह गलतफहमी में आ गए… उन्हें लगा कि अरुण उस के मना करने के बावजूद शीबा को अपनी मोहब्बत के रंग में रंगे हुए है. उस के दिमाग से मोहब्बत का फितूर उतरा नहीं है. फिर क्या था, उन्होंने उसे सबक सिखाने के लिए उस की जम कर पिटाई करवा दी. अरुण दोहरे तनाव से घिर गया था. एक तरफ शीबा थी, जो उसे अपने प्रेम के जाल में फांसे हुए थी और बारबार शादी करने का दबाव बना रही थी, कानूनी जाल में फंसाने की धमकी देती थी, जबकि दूसरी तरफ उस के परिवार वाले भी धमकियां देते रहते थे. 

अरुण से शादी करने की जिद पर शीबा अड़ी थी. अरुण को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे उस से छुटकारा पाए. वही अरुण पुलिस हिरासत में था. उसे शीबा की मौत का जिम्मेदार माना जा रहा था. शीबा के परिजनों के मुताबिक उस की हत्या उसी ने करवाई थी. किंतु पुलिस के सामने यह सवाल था कि जब दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे, तब एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को क्यों मारेगा?

इस बाबत पुलिस ने जब सख्ती के साथ उस से पूछताछ की, तब उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि अपने एक दोस्त कुलदीप के साथ मिल कर उस ने शीबा का बेरहमी के साथ कत्ल किया था. उस ने यह कबूल कर लिया कि कत्ल के बाद हत्या के सबूत मिटाने के मकसद से उस का सिर और हाथ काट कर नहर में फेंक दिए थे. शीबा की लाश पहचानी न जा सके, इस के लिए अरुण ने उस के शरीर से सारे कपड़े उतार कर नहर में फेंक दिए थे.

अब सवाल था कि जिस के प्यार में शीबा सब कुछ छोडऩे को तैयार थी, उसी अरुण ने उसे क्यों मार डाला? पुलिस पूछताछ में पता चला कि दोनों के प्रेम प्रसंग करीब सालभर तक चले. उन के प्यार के बारे में जब दोनों के परिजनों को पता चला, तब उन्होंने इस रिश्ते को अपनाने से मना कर दिया. 

ऐसे में अरुण ने किनारा करना शुरू कर दिया, लेकिन शीबा उस के साथ शादी की जिद पर अड़ी रही. जबकि शीबा ने अरुण से कहा कि वो उस के लिए अपना घर और धर्म दोनों छोडऩे के लिए तैयार है. फिर भी अरुण को यह सब ठीक नहीं लगा और वह शीबा से छुटकारा पाने का उपाय तलाशने लगा.

उस ने एक योजना बनाई और 21 जुलाई को शीबा से कहा कि वो दोनों भाग कर शादी कर लेंगे. शीबा मान गई थी और बैग में अपने कुछ कपड़े रख कर अरुण की बताई जगह पर पहुंच गई थी. वहां अरुण के साथ उस का दोस्त कुलदीप भी था. अरुण ने शीबा को बातों में उलझाया और मौका देख कर उस का गला घोंट दिया. इस के बाद अरुण और कुलदीप ने शीबा का सिर और एक हाथ काट कर अलग कर दिए. दोनों ने उस के शरीर से सारे कपड़े उतारे और काटे गए अंगों के साथ ही सरयू नहर में फेंक दिया. लाश को वहीं पुल के पास छोड़ कर दोनों ने खून से सने अपने कपड़े उतारे और उन्हें कुछ दूरी पर झाडिय़ों में छिपा दिया.

इस की पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हो गई. किंतु शीबा के शरीर पर कई जगह धारदार हथियार से काटे जाने के निशान भी मिले. इस बारे में पूछने पर अरुण ने बताया कि उस की प्लानिंग शीबा की लाश के टुकड़ेटुकड़े करने की थी, लेकिन किसी वजह से वह ऐसा नहीं कर पाया था. 

पुलिस ने उस की निशानदेही पर शीबा की लाश को काटने वाला हथियार भी बरामद कर लिया. कातिलों पर संबंधित धाराओं में केस दर्ज कर जेल भेज दिया गया. उस के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. लिखे जाने तक जांच जारी थी.

  7 साल पहले दौड़ में हराया, अब डेढ़ करोड़ की चोरी करते पकड़ा

आपराधिक पृष्ठभूमि वाले रऊफ और हैदर ने एक टूल फैक्ट्री से कर्मचारियों के वेतन की डेढ़ करोड़ की रकम लूटने की योजना बनाई. लेकिन इस के लिए उन्हें तेज धावक की जरूरत थी, जो 500 गज के मैदान को दौड़ कर जल्दी से पार कर सके. उन्हें अपना पुराना क्लासफेलो तेज धावक आजम मिल भी गया. लेकिन क्या वे डेढ़ करोड़ की रकम लूट पाएएक रोमांचक कहानी     

जम, हैदर और रऊफ एक मिडिल क्लास के कौफी हाउस में बैठे कौफी की चुस्कियां ले रहे थे. तीनों दसवीं क्लास तक साथसाथ पढ़े थे. हैदर और रऊफ पहले से कौफी हाउस में थे, जबकि आजम थोड़ी देर पहले वहां पहुंचा था. तीनों की भेंट कभीकभार ही होती थी.

‘‘तो तुम आजकल टैक्सी चला रहे हो?’’ हैदर ने आजम से पूछा.

‘‘हां, क्या तुम ने यही पूछने के लिए बुलाया था?’’ आजम ने खुश्क स्वर में कहा और हैदर के कीमती सूट की तरफ देखा. हैदर उस के चेहरे को ताकतेहुए बोला, ‘‘और तुम्हारी टांगें? क्या तुम पहले की तरह अब भी तेज दौड़ सकते हो?’’

‘‘टांगें भी ठीक हैं, लेकिन इस बात का मुझे यहां बुलाने से क्या संबंध है?’’ आजम ने उसे घूरते हुए कहा.

‘‘इस बारे में तुम्हें रऊफ बताएगा.’’ हैदर ने रऊफ की ओर इशारा करते हुए कहा, जो अब तक बिलकुल चुपचाप बैठा था. वह दुबलापतला युवक था, लेकिन उस का सिर एक तरफ झुका हुआ था, जैसे वह कान लगा कर कोई आवाज सुन रहा हो. उस के बारे में यह मशहूर था कि वह पचास गज के फासले से ही पुलिस वालों के कदमों की आहट सुन लेता था. हैदर और रऊफ आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रहते थे. वे कभीकभी बड़ा हाथ भी मार लेते थे.

रऊफ बोला, ‘‘तुम्हें स्कूल में सब से तेज दौड़ने वाला छात्र कहा जाता था. मैं ने अपनी जिंदगी में किसी को इतना तेज दौड़ते हुए नहीं देखा. तुम ने एक किलोमीटर दौड़ने का क्या रिकौर्ड बनाया था आजम?’’

‘‘4 मिनट 10 सेकेंड. लेकिन यह स्कूल के जमाने की बात है. बाद में तो मैं 24 सेकेंड में 220 गज का फासला तय कर के स्टेट चैंपियन बन गया था. लेकिन उस के बाद कमबख्त शकील ने 22 सेकेंड में यह फासला तय कर के मेरा रिकार्ड तोड़ दिया. कोई सोच सकता है कि सिर्फ 2 सेकेंड के फर्क से मैं दूसरे नंबर पर गया.’’ आजम निराश स्वर में बोला. हैदर धीरे से हंसा, ‘‘मुझे यकीन था कि तुम उस मनहूस शकील को पराजित करने में कामयाब हो जाओगे? वह बड़ा मगरूर और बददिमाग लड़का था.’’

‘‘शकील कहां है आजकल?’’ रऊफ ने पूछा.

‘‘पता नहीं, किसी बड़ी कंपनी में ऊंची पोस्ट पर नौकरी कर रहा होगा. वह पढ़ने में भी तो काफी तेज था.’’ आजम ने कहा.

‘‘शकील ऊंची पोस्ट पर और तुम टैक्सी ड्राइवरयहां भी तुम उस से मात खा गए.’’ रऊफ आंखें बंद कर के मुस्कराया.

आजम की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘‘अब यह सब बातें छोड़ो. बताओ, मुझे यहां क्यों बुलाया है.’’

‘‘50 लाख रुपए. क्या तुम यह रकम लेना पसंद करोगी.’’

आजम का चेहरा पीला पड़ गया. वह कुछ देर चुप रहने के बाद बोला, ‘‘क्या तुम लोग कहीं डाका डालना चाहते हो.’’

‘‘तुम्हें हम दोनों के कामों के बारे में तो मालूम ही होगा. इसलिए ताज्जुब करने की कोई जरूरत नहीं है. अगर तुम्हें 50 लाख रुपए कमाने में दिलचस्पी हो तो बोलो. नहीं तो कोई बात नहीं.’’ हैदर ने उस के चेहरे पर निगाहें गड़ाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मैं ही क्यों?’’ आजम बोला.

‘‘हमें एक तेज दौड़ने वाले आदमी की जरूरत है. काम बहुत आसान है, जिस में नाकामी का सवाल ही नहीं पैदा होता और आमदनीतुम सुन ही चुके हो. तीसरा हिस्सा 50 लाख रुपए बनता है. क्या खयाल है?’’ रऊफ ने कहा. ‘‘पूरी बात सुने बगैर मैं क्या जवाब दे सकता हूं.’’ आजम को अब 50 लाख रुपए लहराते हुए दिखाई देने लगे थे.

रऊफ ने सिर हिलाया और मेज पर आगे की तरफ झुकता हुआ बोला, ‘‘नाजिमाबाद में एक बहुत बड़ी टूल फैक्ट्री है. हैदर पिछले 2 महीने से वहीं नौकरी कर रहा है. हर माह की 5 तारीख को वहां के कर्मचारियों को तनख्वाह दी जाती है. यह धनराशि लगभग एक सौ पचास लाख होती है.’’ रऊफ ने जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाल कर मेज पर फैला दिया. आजम ने उस पर खिंची हुई टेढ़ी तिरछी लकीरों को देखा, लेकिन उस की समझ में कुछ नहीं आया.

‘‘ये देखो, यह है फैक्ट्री की चारदीवारी और यह है प्रवेश द्वार. इस के पास ही एक छोटा सा दरवाजा है. बड़े दरवाजे से फैक्ट्री के कर्मचारी आतेजाते हैं. इसलिए यह दिन में 4 बार ही खुलता है. लेकिन छोटा दरवाजा खुला रहता है, जहां से फैक्ट्री के दफ्तर के लोग आतेजाते हैं. दरवाजे के अंदर दाखिल हो तो खुला मैदान आता है जो सीमेंट का बना हुआ है. यह मैदान पार करने के बाद फैक्ट्री का औफिस है

‘‘फैक्ट्री के मुख्य प्रवेश द्वार और औफिस के बीच करीब 5 सौ फुट की दूरी है. पहले यह मैदान औफिस के कर्मचारियों द्वारा अपनी गाडि़यां खड़ी करने के काम आता था, लेकिन अब फैक्ट्री के मालिकों ने सामने वाला प्लाट भी खरीद लिया है, जहां सभी गाडि़यां खड़ी की जाती हैं. मैदान में सुबहशाम ट्रकों पर माल लादा और उतारा जाता है. बाकी समय यह खाली पड़ा रहता है.’’ हैदर ने विस्तार से आजम को बताते हुए कहा, ‘‘अब तुम समझे कि हमें तुम्हारी मदद की क्यों जरूरत पड़ी.’’

आजम हैरानी से उन दोनों को बारीबारी से देखता रहा. रऊफ बोला, ‘‘फैक्ट्री के प्रवेश द्वार से गाड़ी अंदर नहीं जा सकती. फैक्ट्री के औफिस में एक सौ पचास लाख की धनराशि होती है. तुम्हें औफिस के अंदर से धनराशि का थैला उठा कर फैक्ट्री के प्रवेश द्वार तक दौड़ लगानी है-बहुत तेज. बाहर हम लोग गाड़ी में बैठे तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे. जैसे ही तुम गाड़ी में बैठोगे, गाड़ी दस सेकेंड में वहां से एक मील दूर पहुंच जाएगी. सारा मामला 500 फुट मैदान पार करने का है.’’

‘‘यानी मैं…’’ आजम ने कुछ कहना चाहा. ‘‘हां, तुमतुम्हारे जैसा तेज दौड़ने वाला आदमी ही यह काम कर सकता है. 5 तारीख को सुबह ठीक साढ़े 10 बजे एकाउंटेंट तिजोरी में से एक सौ पचास लाख रुपए निकालता है. उस की मदद के लिए 3 औरतें होती हैं. वे कमरा बंद कर के रकम गिनते हैं और हर कर्मचारी की तनख्वाह के अनुसार रकम को लिफाफों में बंद करते जाते हैं

रकम प्राप्त करना कोई मसला नहीं है. एकाउंटेंट एक बूढा आदमी है. रिवाल्वर देख कर वह कोई विरोध नहीं करेगा. और तीनों औरतें तो डर के मारे कांपने लगेंगी. बस, तुम्हें रुपयों का थैला उठा कर फैक्ट्री के प्रवेश द्वार तक दौड़ लगानी है-तेज, खूब तेज. तुम्हें सारे रिकौर्ड तोड़ देने हैं.’’ हैदर ने आजम को उत्साहित करते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं.’’ आजम ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं यह काम नहीं कर सकता, चाहे तुम मुझे कितने ही रुपए दो. इस काम में बहुत खतरा है. फिर सवाल यह भी है कि मुझे प्रवेश द्वार के अंदर कौन जाने देगा. फैक्ट्री के कर्मचारियों को पहचान पत्र जारी किए जाते हैं, जिन्हें दिखा कर अंदर जाने की अनुमति मिलती है.’’

रऊफ बोला, ‘‘पहचान पत्र पर फोटो नहीं होती. तुम हैदर का पहचान पत्र दिखा कर अंदर जा सकते हो. तुम्हें कोई नहीं रोकेगा. फैक्ट्री में रोजाना नए कर्मचारी भर्ती किए जाते हैं, क्योंकि 1-2 कर्मचारी नौकरी छोड़ कर चले जाते हैं. फैक्ट्री काफी बड़ी है, इसलिए कोई भी गार्ड या गेटमैन इतने कर्मचारियों या मजदूरों के चेहरे याद नहीं रख सकता. आजम, यह बड़ा आसान काम है और तुम जैसे तेज दौड़ने वाले आदमी के लिए तो यह कोई काम ही नहीं है.’’

‘‘मैं तेज दौड़ सकता हूं लेकिन गोली की रफ्तार से मुकाबला नहीं कर सकता.’’ आजम ने हकबकाते हुए कहा. ‘‘गोली चलने की नौबत नहीं आएगी. बूढे़ एकाउंटेंट को गोली चलानी नहीं आती. वह कमरे का दरवाजा बंद रखने का आदी है.’’ हैदर बोला. लेकिन आजम फिर भी नहीं तैयार हुआ. उस ने कहा कि वह बंद दरवाजा कैसे तोड़ेगा. इस पर हैदर ने कहा, ‘‘मैं रिपेयरिंग विभाग में कार्यरत हूं. मैं घटना से एक दिन पहले उस दरवाजे की कुंडी कुछ ढीली कर दूंगा, जिस से वह एक धक्के में खुल जाएगा.’’

लेकिन तब भी आजम यह काम करने को तैयार नहीं हुआ. इस पर रऊफ बोला, ‘‘आजम अब दौड़ने के काबिल नहीं रहा.’’

 ‘‘ये बात नहीं है.’’ आजम ने विरोध किया.

‘‘हमें मालूम है, तुम दौड़ सकते हो, लेकिन तुम्हारे अंदर हौसले की कमी है. यही वजह है कि तुम शकील से शिकस्त खा गए.’’ रऊफ जोर से हंसा, ‘‘50 लाख से तो तुम कई टैक्सियों के मालिक बन सकते हो. लेकिन तुम इस के लिए कोशिश करना ही नहीं चाहते.’’ फिर वह हैदर से बोला, ‘‘चलो हैदर, किसी दूसरे की तलाश करें, जो तेज दौड़ने के साथसाथ शानदार भविष्य का इच्छुक हो.’’

रऊफ और हैदर उठ खड़े हुए. रऊफ जाते समय आजम से बोला कि अगर वह अपना फैसला बदले तो हैदर को फोन कर दे. आजम ने कहा, ‘‘मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगा.’’ लेकिन अगली रात आजम ने अपना फैसला बदल दिया और उन के साथ काम करने को तैयार हो गया. फिर दूसरे ही दिन से आजम ने मैदान में दौड़ लगाने का अभ्यास शुरू कर दिया. उसे यह देख कर बहुत तसल्ली हुई कि वह अब भी उतना ही तेज दौड़ सकता है. फर्क सिर्फ यह पड़ा था कि अभ्यास छूटने से उस की सांस अब जल्दी फूलने लगी थी. 

लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं थी, उसे फैक्ट्री के औफिस से प्रवेश द्वार तक सिर्फ एक ही बार दौड़ लगानी थी. फिर तो उसे गाड़ी में बैठ कर वहां से निकल भागना था. रविवार के दिन आजम ने जब मैदान में दौड़ लगाई तो वह आश्चर्यचकित रह गया. उस की रफ्तार पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई है.

शीघ्र ही 5 तारीख गई, जिस दिन टूल फैक्ट्री में तनख्वाह बंटनी थी और आजम को रऊफ एवं हैदर के साथ नाजिमाबाद पहुंचना था. एक घंटे के बाद वे लोग फैक्ट्री के पास पहुंच गए. रऊफ ने फैक्ट्री के मुख्य प्रवेश द्वार से कुछ दूर पहले ही अपनी गाड़ी रोक दी. वहां से आजम पैदल ही फैक्ट्री तक पहुंचा. ठीक 10 बजे फैक्ट्री का दरवाजा खुला और कर्मचारी कतारबद्ध हो कर अंदर जाने लगे.

आजम भी लाइन में लग गया. नंबर आने पर उस ने चौकीदार को हैदर का पहचान पत्र दिखाया, जिस ने सरसरी तौर से उस पर नजर डाली और आगे बढ़ने का इशारा किया. दरवाजे से घुसने पर उस ने अंदर का निरीक्षण किया. रऊफ ने वहां का जो नक्शा बनाया था, वह एकदम ठीक था

आजम ने फैक्ट्री के औफिस से छोटे दरवाजे तक का फासला नजरों से मापा, वह लगभग, 500 फुट ही था. यानी 150 गज. आजम यह फासला 15-16 सेकेंड में तय कर सकता था. अब उसे यह इत्मीनान हो गया कि यह काम वाकई ज्यादा मुश्किल नहीं है

इस से पहले आजम, रऊफ और हैदर इस योजना पर कई बार बात कर चुके थे तथा हर मामले पर अपनी दृष्टि डाल चुके थे. यही नहीं, आजम हैदर से मिलने के बहाने पूरी फैक्ट्री बाहर से देख चुका था.आजम आगे बढ़ता जा रहा था. लेकिन वह अन्य कर्मचारियों के साथ फैक्ट्री के अंदर नहीं गया, बल्कि कुछ दूरी पर बने शौचालय की ओर बढ़ गया. उसे अपना काम ठीक साढ़े 10 बजे अंजाम देना था. 10:25 पर वह शौचालय से बाहर निकला और फैक्ट्री के औफिस के पास पहुंच कर रुक गया. उस ने जेब में रिवाल्वर टटोला जिसे रऊफ ने दिया था. फिर वह औफिस के अंदर पहुंचा.

आजम ने खिड़की से देखा कि तनख्वाह बांटने वाले कमरे में बूढ़ा एकाउंटेंट और 3 औरतें थीं. एकाउंटेंट तिजोरी से रुपए निकाल कर थैले में डाल चुका था. आजम ने दरवाजे का हैंडल घुमाया और दरवाजे को धक्का दिया. मगर दरवाजा टस से मस न हुआ. एक क्षण के लिए उस के होश उड़ गए. 

लेकिन जब उस ने थोड़ा जोर से धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. बूढे़ एकाउंटेंट ने सिर उठा कर उस की ओर देखा, फिर उस के माथे पर बल पड़ गए. उस ने प्रश्नवाचक नजरों से आजम को देखा, जो अब तक रिवाल्वर निकाल चुका था. रिवाल्वर देख कर तीनों औरतों की चीखें निकल गईं.

‘‘खामोश!’’ आजम ने सख्त स्वर में कहा, ‘‘चुपचाप रुपयों का थैला मेरे हवाले कर दो, नहीं तो तुम लोग बेमौत मारे जाओगे.’’

 ‘‘नहीं.’’ बूढ़े एकाउंटेंट की सांसें फूलने लगीं, ‘‘इस में हमारी तनख्वाहें हैं.’’

 ‘‘जल्दी करो.’’ आजम ने कठोर स्वर में कहा. बूढे एकाउंटेंट ने डर के मारे नोटों से भरा थैला आजम की ओर बढ़ा दिया. आजम ने झपट कर थैला ले लिया. थैला बहुत भारी था. उसे पहली बार महसूस हुआ कि नोटों में भी काफी वजन होता है. वह सोचने लगा कि थैला ले कर दौड़ लगाने में उसे जरूर परेशानी होगी. लेकिन फिर भी वह 500 फुट का फासला 15-16 सेकेंड में तय कर सकता था

आजम दरवाजे की ओर कदम बढ़ाते हुए बोला, ‘‘शोर मचाने की जरूरत नहीं है. अगर किसी ने शोर मचाया या मेरा पीछा करने की कोशिश की तो मैं गोली चला दूंगा.’’ फिर शीघ्र ही वह कमरे से बाहर निकला और दरवाजे की कुंडी लगा कर दौड़ना शुरू कर दिया.

7 साल पहले का जमाना लौट आया, जब आजम दर्शकों के सामने दौड़ लगाता था. आज भी वह अपनी योग्यता का भरपूर प्रदर्शन कर रहा था. उस के कानों में तेज हवाओं की सीटियां गूंज रही थीं. आजम को अपने पीछे दौड़ते कदमों का एहसास हो रहा था. ऐसे में उस के पैरों में मानो पंख लग गए थे

वह जीजान से तेज दौड़ रहा था. उस की नजरों के सामने छोटा दरवाजा तेजी से पास आता जा रहा था. उस दरवाजे के बाहर रऊफ और हैदर गाड़ी में बैठे उस का इंतजार कर रहे थे. तभी उसे एहसास हुआ कि वह जिंदगी में कभी पहले इस से ज्यादा तेज नहीं दौड़ा था.

अचानक उसे किसी ने पीछे से पकड़ने का प्रयास किया. खतरे का एहसास होते ही क्षण भर के लिए उस का बदन टेढ़ा हो गया. आजम का कंधा पूरी ताकत के साथ सीमेंट के पक्के फर्श से टकराया लेकिन रुपयों का थैला उस के हाथ से फिर भी नहीं छूटा. ऐसे में उस के चेहरे के अंग सुरक्षित रहे. अगर वह सीधा गिरता तो शायद काफी समय तक कोई उसे पहचान न पाता.

जमीन से टकराते ही आजम के फेफड़ों में भरी हुई हवा निकल गई. उस ने एक गहरी सांस ले कर जल्दी से उठने की कोशिश की. लेकिन किसी ने उस की टांगें बड़ी मजबूती से पकड़ रखी थीं. उस के गले से एक तेज चीख निकल गई.

यह कैसे संभव हो सकता था. वह तो अपनी जिंदगी में कभी इतना तेज नहीं दौड़ा था. आखिर कोई आदमी उसे किस तरह पकड़ने में सफल हो गया. उस ने सिर घुमा कर पीछे देखा-एक युवक उस के टखने पकडे़ हुए था. वह युवक बोला, ‘‘माफ करना मित्र, इस थैले में मेरी तनख्वाह है. इसलिए मैं तुम्हें यह थैला ले कर भागने की इजाजत नहीं दे सकता.’

पहले तो आजम को अपनी आंखों पर यकीन नहीं आया. फिर धीरेधीरे उस ने उस युवक को पहचान लिया. उस ने छोटी सी दाढ़ी बढ़ा रखी थी. उसे पकड़ने वाला युवक शकील था, जिस ने 7 साल पहले कालेज में उसे दौड़ प्रतियोगिता में हराया था.

‘‘शकील!’’ आजम के हलक से एक दर्दभरी कराह निकली, ‘‘तुमतुम यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘मैं इस टूल फैक्ट्री का कर्मचारी हूं.’’ शकील ने कठोर स्वर में जवाब दिया, ‘‘एक विभाग का मैनेजर.’’

फिर पलक झपकते ही वहां फैक्ट्री के बहुत से कर्मचारी इकट्ठा हो गए. उन्होंने पहले रुपयों का थैला उठाया, फिर आजम को उस के पैरों पर खड़ा किया. वे आपस में जोरजोर से बातें कर रहे थे. रऊफ और हैदर को भी पकड़ लिया गया था.

आजम को उन दोनों की कोई परवाह नहीं थी. उसे रुपए हाथ से निकल जाने का भी कोई दुख नहीं हुआ. आजम को बस एक ही बात का अफसोस था कि इस बार भी वह दौड़ में शकील के मुकाबले दूसरे नंबर पर रहा.

गर्लफ्रेंड के लिए करनी पड़ी ढाई करोड़ की चोरी

रविंद्र, विकास और आशीष ने सोना लूटने के लिए योजना तो अच्छी बनाई थी, जिस में वे कामयाब भी रहे. लेकिन अपराधी कितना भी सतर्क क्यों हो, कोई कोई भूल कर ही जाता है. रविंद्र और उस के साथियों से भी ऐसी भूल हुई और पकड़े गए.    

र्जुन लाल मीणा ने दीवार घड़ी पर नजर डाली, सुबह के 5 बजे थे. मोबाइल की रिंगटोन सुन कर गहरी नींद से जागे अर्जुन लाल मीणा ने दीवार घड़ी की ओर देखने के बाद करवट बदल कर तकिए में मुंह गड़ा लिया. रविवार 22 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश की वजह से मीणा लंबी तान कर सोए हुए थे. नींद में खलल डालने वाली मोबाइल रिंगटोन के प्रति मीणा ने भले ही लापरवाही बरती, लेकिन जब रुकरुक कर बजने वाली रिंगटोन का सिलसिला थमता नजर नहीं आया तो उन का माथा ठनके बिना नहीं रहा

तमाम अंदेशों से घिरे मीणा ने कौर्नर स्टैंड पर रखा मोबाइल उठा लिया. स्क्रीन पर उन के अधीनस्थ इंसपेक्टर रामजीलाल बैरवा का नंबर था. हैरानी और परेशानी में डूबते उतराते मीणा ने फोन कानों से सटा लिया, ‘‘हैलो.’’

दूसरी ओर की आवाज सुन कर उन का अलसाया चेहरा तन गया. हाथ से छूटते मोबाइल सैट को बमुश्किल थामते हुए उन के मुंह से अनायास निकल गया, ‘‘क्या कह रहे हो?’’ एकाएक उन की भौंहें सिकुड़ गईं. उन्होंने अटकते हुए कहा, ‘‘तुम होश में तो हो?’’

जवाब में मीणा ने दूसरी तरफ से जो कुछ सुना, वह उन के कानों में पिघला शीशा उडे़लने जैसा था. रामजीलाल कह रहे थे, ‘‘सर, आप के चैंबर के लौकर में रखे ढाई करोड़ के जेवर गायब हैं. वारदात बीती रात को हुई.’’ 

मीणा में कुछ और सुनने की ताकत नहीं बची थी. उन का चेहरा बर्फ की तरह सफेद हो चुका था. वह बोले, ‘‘मैं फौरन पहुंच रहा हूं.’’

अर्जुन लाल मीणा कोटा स्थित आयकर महकमे के डिप्टी डायरेक्टर (इनवैस्टीगेशन) पद पर थे. बीते 3 दिन के दौरान महकमे के खोजी दल ने कोटा के 3 सर्राफा व्यवसायियों के ठिकानों पर छापे डाल कर सर्वे की काररवाई की थी और 2 करोड़ 94 लाख रुपए के जेवर और 90 लाख की नकदी जब्त की थी

शनिवार 21 अप्रैल को सरकारी छुट्टी होने के कारण नकदी तो बैंक में जमा करा दी गई थी, लेकिन जेवरात सरकारी खजाने में जमा नहीं कराए जा सके थे. ये जेवरात मीणा के चैंबर की अलमारी में ही रखे हुए थे. मीणा लगभग 5 मिनट में ही सीएडी सर्किल स्थित आयकर भवन पहुंच गए. उन का चैंबर इमारत की दूसरी मंजिल पर था. उन के मातहत पहले ही वहां पहुंचे हुए थे. मीणा को फोन से खबर करने वाले इंसपेक्टर रामजीलाल बैरवा के अलावा चौकीदार बनवारीलाल, कर्मचारी नीरज कुमार, प्रवीण सिन्हा, राजेश भाटी और सिक्योरिटी गार्ड दुर्गेश मीणा ऊपरी तल के टूटे हुए मेन गेट पर ही खड़े थे

इंसपेक्टर रामजीलाल ने चौकीदार बनवारीलाल सुमन की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘मुझे वारदात की खबर सुमन ने ही दी थी.’’  मीणा अपने चैंबर की तरफ बढ़े तो एंट्री डोर टूटा हुआ नजर आया. इस से पहले कि वे भीतर दाखिल होते, उन की नजर दूसरी मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरों की तरफ गई, जो लगभग उखड़े हुए थे. कमरे में रखी गोदरेज की अलमारी का गेट खुला हुआ था और लौकर खाली था. 

निस्संदेह अलमारी से चाबी बरामद करने के बाद लौकर को खोला गया था. उस में रखे जेवरात के दोनों डिब्बे गायब थे. अलमारी में रखी फाइलें फर्श पर बिखरी पड़ी थीं और उन के पास ही फैले हुए थे बीते दिनों किए गए सर्वे के दस्तावेज. सभी दस्तावेज फटे हुए थे.

मीणा अनुभवी अधिकारी थे, जेवरात के वही डिब्बे गायब थे, जिन्हें पिछले 3 दिनों में जब्त किया गया था. जबकि दूसरे लौकर में रखा बौक्स यथावत मौजूद था. इस बौक्स में 69 लाख के जेवरात सुरक्षित थे. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बिना घर के भेदी के यह वारदात हो ही नहीं सकती. 

उन्होंने तत्काल मोबाइल पर जोधपुर स्थित मुख्यालय पर अपने उच्चाधिकारियों को वारदात की जानकारी दे दी तो उन्हें कहा गया कि फौरन पुलिस को इत्तला करें और अपने स्तर पर अधिकारियों को साथ ले कर पूरी छानबीन करें. मीणा ने एक पल चौकीदार बनवारीलाल सुमन की तरफ देखा तो वो बुरी तरह सकपका गया

‘‘साबसाब…’’ कह कर उस ने हांफते हुए सफाई देने की कोशिश की, ‘‘मैं ने  तो पूरी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी पूरी की, लेकिन पता नहीं कैसे और कब चोरों को वारदात करने का मौका मिल गया.’’ एक पल रुकते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे तो सिक्योरिटी गार्ड दुर्गेश मीणा के बताने पर पता चला. इमारत के भीतर की जिम्मेदारी तो सिक्योरिटी गार्ड की ही है.’’ 

मीणा ने असहाय भाव से सुमन की तरफ देखा. फिर निरीक्षक बैरवा को जरूरी निर्देश दे कर मोबाइल पर आईजी विशाल बंसल से संपर्क किया.

पिछले कुछ दिनों से कोटा में आपराधिक वारदातों का ग्राफ बढ़ने से पुलिस की मुस्तैदी में तेजी आई तो आईजी विशाल बंसल ने भी अपना रूटीन बदल दिया था. वह सुबह को जल्दी औफिस में बैठने लगे थेरविवार 22 अप्रैल छुट्टी का दिन था तो भी उन की दिनचर्या में कोई खास फर्क नहीं आया था. जब आयकर विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अर्जुनलाल मीणा ने उन्हें फोन किया, उस समय बंसल औफिस में ही मौजूद थे. मीणा ने अपना परिचय देने के साथ सारा माजरा बताया तो बंसल हैरान रह गए. उन्होंने पलट कर सवाल किया, ‘‘कब हुई वारदात? और आप कहां से बोल रहे हैं?’’

मीणा ने घटना का संक्षिप्त सा ब्यौरा देते हुए कहा, ‘‘सर, संभावना है कि वारदात रात को एक और 3 बजे के बीच हुई होगी. सर्वे की काररवाई के कुछ दस्तावेजी काम निपटा कर हम रात करीब 12 बजे फारिग हुए थे. दिन भर की थकान के बाद रात को करीब एक बजे मैं घर जा कर सो गया था. अगले दिन रविवार के अवकाश की वजह से मैं निश्चिंत हो कर सो गया था.’’ 

एक पल रुकने के बाद मीणा ने कहना शुरू किया, ‘‘मुझे मेरे अधीनस्थ इंसपेक्टर बनवारी लाल बैरवा ने तड़के 5 बजे फोन कर के वारदात की इत्तला दी. उन्हें भी वारदात की बाबत चौकीदार के बताने पर पता चला. उस के बाद से ही मैं औफिस में हूं.’’

‘‘लेकिन मीणा साहब, इस वक्त तो सवा 6 बजने वाले हैं,’’ बंसल ने उलाहना देते हुए कहा, ‘‘आप वारदात की खबर सवा घंटे बाद दे रहे हैं.’’ 

थोड़ा हिचकते हुए मीणा ने सफाई देने की कोशिश की, ‘‘सर, मुझे इस के लिए हायर अथौरिटीज की इजाजत और निर्देश लेने थे. मुझे अपने स्तर पर भी छानबीन करनी थी कि आखिर क्या कुछ हुआ था और कैसे हुआ था?’’ बंसल की पेशानी पर मीणा की इस लेटलतीफी पर सलवटें पड़े बिना नहीं रहीं. लेकिन उन्होंने मौके की नजाकत को तवज्जो देना ज्यादा जरूरी समझा. अगले ही पल उन्होंने एडीशनल एसपी समीर कुमार को तलब कर पुलिस टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंचने के लिए निर्देश दिए. आईजी विशाल बंसल के सक्रिय होते ही कोटा पुलिस हरकत में गई

वारदात का क्षेत्र जवाहर नगर था, इसलिए थानाप्रभारी नीरज गुप्ता जब अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे उस वक्त सुबह के 7 बज कर 20 मिनट हो चुके थे. नीरज गुप्ता ने घटनास्थल का जायजा लेना शुरू किया. तब तक फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड टीम भी वहां पहुंच चुकी थी. कोटा में जहां आयकर औफिस की इमारत है, उसे सीएडी रोड कहा जाता है. दरअसल, नए कोटा की सरहद यहीं से शुरू होती है. इस मार्ग पर कमांड एरिया डवलपमेंट का परियोजना भवन होने के कारण इस का नाम सीएडी रोड पड़ गया है. आयकर भवन की इमारत इसी लाइन में तीसरी है. इस से पहले कोटा नगर विकास न्यास का कार्यालय भवन है

आयकर भवन के पिछवाड़े निचली बस्ती है, जिसे दुर्गा बस्ती के नाम से जाना जाता है. आयकर कार्यालय पुलिस कंट्रोल रूम और अभय कमांड सेंटर से महज चंद कदमों की दूरी पर है. आयकर भवन वाली कतार में चंद कदमों के फासले पर ही अभय कमांड सेंटर आमनेसामने हैं

आयकर महकमे की टोली ने डिप्टी डायरेक्टर (इनवैस्टीगेशन) अर्जुनलाल मीणा के निर्देशन में पिछले 3 दिनों में क्रमश: 18, 19 और 20 अप्रैल को सर्राफा व्यवसाइयों के 3 ठिकानों पर सर्वे के दौरान रेड डाल कर 2 करोड़ 94 लाख के जेवरात और 90 लाख की नकदी जब्त की थी. शीर्ष अधिकारियों के निर्देशानुसार पुलिस के पहुंचने तक अर्जुनलाल मीणा ने अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल की छानबीन करनी शुरू की. उन्होंने आयकर भवन के दूसरे तल के समूचे ब्लौक की जांच की. इस ब्लौक में 14 कमरे थे, लेकिन वारदात उसी कमरे में हुई, जिस में मीणा बैठते थे. 

मीणा ने एक बार पीछे लौट कर दूसरे तल में दाखिल होने वाले गेट का मुआयना किया. उन्होंने ध्यान से देखा. जिस तरह दरवाजे की कुंडी टूटी नजर आई, उस से उन के लिए समझना मुश्किल नहीं था कि कुंडी को तोड़ने के लिए किसी नुकीले औजार का इस्तेमाल किया गया था

इस के बाद ही चोर ब्लौक में दाखिल हुए थे. मीणा को अचानक कुछ याद आया तो वह अपने चैंबर में दाखिल हो कर नए सिरे से अलमारी की जांच करने लगे. उन्होंने अलमारी को ध्यान से देखा तो पता चला कि अलमारी को चाबी से खोला गया था. उन की समझ में नहीं रहा था कि जब अलमारी चाबी से खुल गई थी तो उसे डैमेज क्यों किया गया? काफी सोचविचार के बावजूद मीणा समझ नहीं पाए कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?

ब्लौक में टूट कर लटके हुए सीसीटीवी कैमरों को देख कर निराश हो चुके मीणा ने बेनतीजा कोशिश के बावजूद एक बार उन की फुटेज पर सरसरी निगाह डाल लेना जरूरी समझा. अपनी टीम के साथ जैसे ही मीणा ने सीसीटीवी फुटेज खंगालने शुरू किए. उन की आंखें चमकने लगीं. उस में नकाब पहने 3 बदमाश नजर आए. अब तक लगभग निढाल से मीणा एकाएक जोश में गए

उन्होंने अपने सहयोगियों को झिंझोड़ दिया, ‘‘देखो, यह शख्स क्या तुम्हें हमारे संविदा कर्मचारी रविंद्र सिंह की तरह नहीं लगता?’’ मीणा ने उस शख्स की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘जरा इस की चालढाल पर गौर करो, मुझे तो यह रविंद्र ही लग रहा है?’’

सहयोगियों के सिर सहमति में हिले, इस से पहले मीणा ने अपनी बात की तस्दीक में सवाल उछाला, ‘‘सर्वे में जब्त किए गए जेवरातों के बारे में जिन 5-7 लोगों को पता था, उस में रविंद्र सिंह भी एक था?’’

‘‘सर, चोर तो घर का भेदी निकला.’’ इंसपेक्टर बनवारीलाल ने मीणा के तर्क पर सहमति जताते हुए हैरानी जताई, ‘‘लेकिन अब क्या किया जाए?’’

मीणा का चेहरा खुशी से दमक रहा था. उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण सबूत हासिल कर लिया था. लेकिन जटिल प्रश्न यह था कि अब क्या किया जाए.‘‘ऐसा करो…’’ एकाएक जैसे मीणा को उपाय सूझ गया. उन्होंने बैरवा को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘रविंद्र समेत स्टाफ के सभी लोगों को फोन कर के यहां आने को कहो?’’

 ‘‘लेकिन सर,’’ झिझकते हुए बैरवा की बात काटते हुए मीणा ने समझाया, ‘‘सब को सिर्फ इतना कहना कि साब को अर्जेंट काम से अभी जोधपुर जाना है, इसलिए फौरन औफिस पहुंचो.’’

अब मीणा को बेताबी से इंतजार था, तो कारस्तानी करने वाले का और पुलिस का भी. अब उन के लिए जयपुर स्थित प्रादेशिक मुख्यालय को भी इत्तला देनी जरूरी थी. वे तुरंत इस काम में जुट गए. रविवार 22 अप्रैल की सुबह 10 बजे तक आईजी विशाल बंसल समेत उच्च अधिकारी भी मौके पर पहुंच चुके थे. एडीशनल एसपी समीर कुमार पहले ही अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे हुए थे

आईजी बंसल की अनुमति से उन्होंने डीएसपी बने सिंह, राजेश मेश्राम, सर्किल इंसपेक्टर नीरज गुप्ता, लोकेंद्र पालीवाल आदि को अपनी टीम में शामिल किया था.अर्जुनलाल मीणा ने अपनी अब तक की पड़ताल और शकशुबहा को ले कर रविंद्र सिंह की बाबत बताया, ‘‘मुझे इस आदमी पर संदेह हो रहा है. यह हमारे यहां संविदा पर तैनात कंप्यूटर औपरेटर है.’’

पुलिस अधिकारियों ने सीसीटीवी कैमरे खंगाले तो मीणा की शंका की तस्दीक होती नजर आई. मीणा के शक पर मुहर लगाई सीसीटीवी कैमरे के उस दृश्य ने जिस में पिछले शनिवार 21 अप्रैल की रात के 8 बजे रविंद्र दफ्तर में पहुंचा तो जरूर, लेकिन भीतर दाखिल होने के बजाए ताकझांक कर के वापस लौट गया

समीर कुमार ने जब मीणा से पूछा कि क्या इसे आप ने बुलाया था, मीणा के इनकार पर समीर कुमार ने उन पर पैनी निगाहें गड़ाते हुए कहा, ‘‘मीणा साहब, मैं दावे से कह सकता हूं कि यही हमारा शिकार है, कल यह रैकी करने आया था, और आप लोगों की मौजूदगी देख कर उलटे पांव वापस लौट गया. आखिर बिना बुलाए रात 8 बजे औफिस आने का क्या मतलब?’’

समीर कुमार सारा माजरा समझ चुके थे. उन्होंने रविंद्र सिंह की तसवीर की तरफ इशारा करते हुए सर्किल इंसपेक्टर नीरज गुप्ता से कहा, ‘‘इसे उठा कर लाओ, यही है मुलजिम?’’ नीरज गुप्ता ने एक पल की भी देर नहीं लगाई. समीर गुप्ता ने मीणा के आगे सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा, ‘‘आप के यहां कितने संविदा कर्मचारी हैं? और क्या उन का पुलिस वेरिफिकेशन हो चुका है.’’ 

मीणा ने बताया कि औफिस में रविंद्र सिंह ही एकलौता संविदा कर्मचारी था और पिछले 2 सालों से कंप्यूटर औपरेटर का काम कर रहा था. उन्होंने यह भी बताया सुकेत का रहने वाला रविंद्र सिंह दुर्गा बस्ती में रहता है.

‘‘मीणा साहब.’’ समीर कुमार ने उन की तरफ गहरी नजर से देखते हुए कहा, ‘‘सीसीटीवी कैमरे खंगालते समय आप ने एक बात नोट नहीं की, वरना उसी वक्त समझ जाते कि करतूत तो घर के भेदी की ही है.’’

‘‘जी, मैं समझा नहीं?’’ अर्जुन लाल मीणा ने हैरानी जताते हुए कहा.

समीर मुसकराते हुए बोले, ‘‘फुटेज में बदमाश सीधा आप के कमरे में ही पहुंच रहा था, जाहिर है, उसे पता था कि उस का टारगेट क्या है? वारदात करने वाला यहीं का आदमी था, तभी तो उसे मालूम था कि उसे कहां पहुंचना है. फाइलें फाड़ने का काम तो उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए किया?’’

लगभग एक घंटे बाद ही रविंद्र सिंह एडीशनल एसपी के सामने खड़ा था. एडीशनल एसपी समीर कुमार कुछ क्षण अपने सामने खड़े रविंद्र सिंह को पैनी निगाह से देखते रहे. समीर कुमार उस के बदन पर टीशर्ट और पैरों के जूतों पर सरसरी निगाह दौड़ाते हुए चौंके. लेकिन संयम बरतते हुए उन्होंने उस के कंधों पर हाथ रखा, ‘‘देखो, जो कुछ हुआ सो हुआ, लेकिन सच बोलने से तुम्हारी सजा कम हो सकती है.’’

रविंद्र लगभग 23-24 वर्षीय युवक था. उस ने हाथ झटकते हुए कहा, ‘‘साब, मैं ने कुछ किया हो तो बताऊं? मैं तो पिछले 2 सालों से यहां कंप्यूटर औपरेटर हूं. मैं अपनी नौकरी खतरे में क्यों डालूंगा?’’

‘‘हां, तुम्हारी बात तो ठीक है. कोई अपनी नौकरी कैसे खतरे में डाल सकता है. चलो, तुम इतना तो बता सकते हो कि कल शाम को 8 बजे तुम दफ्तर क्यों आए थे? और आए थे तो बिना किसी से मिले बाहर से ही क्यों लौट गए?’’

‘‘साब, जिस दफ्तर में नौकरी करता हूं, वहां आना कोई गुनाह तो नहीं. मुझे तो यहां अपनी स्कूटी खड़ी करनी थी. ऐसे में किसी से मिलने ना मिलने का कोई औचित्य नहीं था.’’

समीर कुमार ने तुरंत कहा, ‘‘बिलकुल ठीक कहते हो तुम, खैर यह बताओ कि कल रात को तुम कहां थे?’’

‘‘साब, कल रात को मैं कहां था, इस से क्या फर्क पड़ता है? अपने यारदोस्तों के साथ था और कहां था?’’

  ‘‘यारदोस्त कौन थे और क्या कर रहे थे? यह सब बताए बिना तुम्हारा पीछा छूटने वाला नहीं है?’’ एडीशनल एसपी ने डपटते हुए कहा.

अब तक हौसला दिखाने की कोशिश कर रहे रविंद्र की पेशानी पर पसीना छलक आया था. थोड़ा अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘साब, विकास के घर पर हम 3-4 दोस्त उस की बर्थडे पार्टी मना रहे थे.’’

‘‘लगे हाथ उन दोस्तों के नाम और ठौरठिकाने भी बता दो?’’

‘‘लेकिन साब, मेरे दोस्तों से क्या मतलब?’’ अब रविंद्र पर घबराहट तारी होने लगी. वह एडीशनल एसपी की घूरती निगाहों का ज्यादा देर सामना नहीं कर पाया और जल्दी ही बोल पड़ा, ‘‘विकास नर्सिंग का कोर्स कर रहा है और मेरे गांव का ही रहने वाला है. कोटा में महावीर नगर विस्तार योजना में रहता है.’’

‘‘औरऔर…’’ समीर कुमार की आवाज में सख्ती का पुट था. ‘‘और कौन था?’’

‘‘और आशीष था, वह फ्लिपकार्ट कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी करता है, वो भी सुकेत का ही रहने वाला है. मेरा हमउम्र ही है.’’ उस ने हड़बड़ाते हुए बात पूरी की, ‘‘2-3 लड़के और थे, उन्हें मैं नहीं जानता… वे आशीष और विकास के मिलने वाले थे. उन्हें ही पता होगा?’’

‘‘रविंद्र, तुम शायद अपनी मुक्ति नहीं चाहते. लेकिन याद रखो पुलिस तो गूंगे को भी बुलवा लेती है. खैर, तुम्हारी मरजी?’’ समीर कुमार ने रविंद्र सिंह को काफी कुरेदा, पर वह इस बात से बराबर इनकार करता रहा कि उस का इस वारदात में कोई हाथ है. अचानक समीर कुमार के दिमाग में युक्ति आई उन्होंने रविंद्र से कहा, ‘‘ठीक है, तुम आराम से बैठो और ठीक से सोच लो. आधे घंटे बाद तुम से फिर पूछताछ होगी.’’ 

रविंद्र के जातेजाते समीर कुमार ने पूछा, ‘‘तुम कौन से शूज पहनते हो?’’

रविंद्र इत्मीनान से बोला, ‘‘स्पोर्ट्स शूज साब, लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘तुम्हारी पसंद पूछ रहा हूं?’’ रविंद्र का जवाब सुनते ही एडीशनल एसपी के चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ गई.

अब तक दोपहर के 2 बज चुके थे. रविंद्र को सिपाहियों के हवाले करते ही एडीशनल एसपी समीर कुमार ने सर्किल इंसपेक्टर लोकेंद्र पालीवाल की तरफ मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘रविंद्र के जूतों के निशान ले कर बस्ती की दीवार के पीछे बने जूतों के निशान से उन का मिलान करो?’’

रविंद्र जिस तरह भटकाने की कोशिश कर रहा था, समीर कुमार का गुस्सा खौलने लगा था. लेकिन संयम बरतते हुए वह सीओ राजेश मेश्राम और बने सिंह की तरफ मुखातिब हुए, ‘‘विकास और आशीष बोलेंगे तो यह भी बोलने लगेगा. क्रौस इंटेरोगेशन में तीनों बोलेंगे.’’

इस बीच सर्किल इंसपेक्टर मुनींद्र सिंह, महावीर यादव, आनंद यादव, घनश्याम मीणा और रामकिशन की अगुवाई में अलगअलग हिस्सों में तहकीकात के लिए बंटी पुलिस टीमों ने आयकर महकमे की सर्च टीम में पहले शामिल रहे अधिकारियों, कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मचारियों तथा इमारत के आसपास रहने वालों से भी पूछताछ कर ली.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए चालानशुदा अपराधियों को भी टटोला, 50 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों को भी खंगाला गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच पुलिस रविंद्र के दोस्तों विकास और आशीष को उठा लाई थी.

जूतों के निशान के मामले में एडीशनल एसपी समीर कुमार का अंदेशा सही निकला, सर्किल इंसपेक्टर पालीवाल ने लौट कर जो बताया उसे सुन कर समीर कुमार की बांछें खिल गईं. दुर्गा बस्ती की दीवार के पीछे की नमी वाली जमीन पर बने स्पोर्ट्स शूज के निशान रविंद्र के जूतों से मिल रहे थे. 

पूछताछ में रविंद्र ने शनिवार की रात अपनी मौजूदगी बर्थडे पार्टी में बताई थी, लेकिन पुलिस ने जब उस के घर वालों से उस के कथन की तसदीक की तो उन का कहना था कि वह घर से खाना खा कर गया था. एडीशनल एसपी ने जब उसे उस के घर वालों के कथन का हवाला दे कर दोबारा बर्थडे पार्टी पर सवाल किया तो वह हड़बड़ा गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया और टांगें कांपने लगीं. वह समझ गया था कि उस के शूज का नाप क्यों लिया गया था और उस से शूज के ब्रांड के बारे में क्यों पूछा गया था

इस बार रविंद्र एडीशनल एसपी समीर कुमार की आंखों में झलकते क्रोध को सहने की हिम्मत नहीं जुटा सका और नजरें चुराने लगा. रविंद्र फिर भी खामोश रहा तो समीर कुमार ने उस के चेहरे पर नजरें जमाते हुए कहा, ‘‘अभी वक्त है, तुम चाहो तो सच्चाई उगल सकते हो, तुम चालू दोस्तों के बहकावे में गए? हम तुम्हें बचाने की पूरी कोशिश करेंगे.’’ 

आखिर रविंद्र टूट गया. उस ने जो कुछ बताया वो मौजमस्ती और हालात से निजात पाने की गुनहगार कोशिश थी…’’ गुनाह में पिरोई गई सारी योजना रविंद्र सिंह ने तैयार की थी, लेकन इस के पीछे थे उन के अपने छोटेमोटे स्वार्थ. रविंद्र सिंह आयकर महकमे में ठेकेदार के जरिए 2 साल के लिए लगा हुआ संविदाकर्मी था

यह अवधि पूरी होने जा रही थी और ठेकेदार अब अपना कोई नया आदमी लगने का मंसूबा पाले हुए था. नौकरी जाने के डर से रविंद्र वारदात कर के बड़ी रकम जुटाने की कोशिश में था. विकास और आशीष भी उसी के गांव सुकेत के रहने वाले थे, तीनों में गहरा दोस्ताना था. विकास नर्सिंग कोर्स की पढ़ाई कर रहा था. लेकिन 2 वजह से उसे बड़ी रकम की जरूरत थी. उस की एक जरूरत तो कालेज की फीस भरने की थी और दूसरे गर्लफ्रैंड के तकाजे उस पर ज्यादा भारी पड़ रहे थे. 

प्यार और फीस में उलझा विकास हालात से उबरने के लिए रविंद्र की योजना में शामिल हो गया. आशीष उर्फ आशु हालांकि फ्लिपकार्ट कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी करता था, लेकिन महंगे शौक मामूली नौकरी से पूरे नहीं हो पा रहे थे. इसलिए वारदात में शामिल हुआ. पुलिस ने विकास और आशीष से क्रौस इंट्रोगेशन की तो दोनों टूट गए. उस के बाद तो वारदात की कडि़यां जुड़ती चली गईं.

एसपी (सिटी) अंशुमान भोमिया के सामने एडीशनल एसपी समीर कुमार द्वारा की गई पूछताछ में रविंद्र कुमार ने बताया कि एक दिन पहले भी उन्होंने वारदात करने की योजना बनाई थी. लेकिन गार्ड दुर्गेश के चौकन्ना रहने के कारण अंजाम नहीं दे सके. सीसीटीवी कैमरों की जानकारी लेने के लिए उस ने शनिवार की दोपहर को कार्यालय के चारों तरफ चक्कर लगाया

इमारत के पीछे सब से कम कैमरे थे, इसलिए दुर्गा बस्ती के पीछे से दीवार लांघ कर वे आयकर महकमे की बिल्डिंग में घुसे थे. रविंद्र ने बताया कि ऐहतियात बरतने के लिए वे नकाब पहन कर औफिस में दाखिल हुए थे. ज्वैलर के यहां से जब्त की गई फाइलें फाड़ने की वजह क्या थी, पूछने पर रविंद्र का कहना था, ‘‘हम पुलिस को भटकाना चाहते थे ताकि शक सर्राफा फर्मों की तरफ जाए.’’

तीनों को इस बात पर हैरानी थी कि जब उन्होंने कैमरों की जद में आने से बचने के लिए दूसरे तल पर लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिया था तो सीसीटीवी की फुटेज में उन की तसवीर कैसे गई? असल में वापस लौटते समय उन्होंने ऐहतियात नहीं बरती और कैमरों में कैद हो गएपुलिस ने 12 घंटों में ही वारदात का खुलासा करते हुए चोरों को गिरफ्तार कर के सारा सोना बरामद कर लिया

वारदात के बाद सोना तीनों ने आपस में बांट लिया था. पुलिस ने विकास के घर की पानी की टंकी में से सोना बरामद किया. जबकि रविंद्र ने अपने दुर्गा बस्ती स्थित घर में सोना छिपा कर रखा था, पुलिस ने उसे भी जब्त कर लिया

आशीष से उस के वीर सावरकर नगर स्थित घर से जेवर बरामद किए गए. कथा लिखे जाने तक आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

महिला इंस्पेक्टर का खूनी इश्क

सरकारी विभाग में बड़े बाबू विनोद कुमार की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. इसी बीच एक पुलिस इंसपेक्टर मंजू ठाकुर से उस के अवैध संबंध हो गए. इन अवैध संबंधों ने विनोद के घर में ऐसा जलजला खड़ा कर दिया कि…

30 जनवरी, 2018 की बात है. झारखंड के जिला हजारीबाग के थाना बड़ा बाजार के थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद शाम के समय अपने औफिस में बैठे थे तभी एक व्यक्ति उन के पास आया. थानाप्रभारी ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए आने का कारण पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मेरा नाम विनोद पाठक है.’’ मैं जयप्रभा नगर कालोनी में किराए के मकान में बीवीबच्चों के साथ रहता हूं. आज मेरी बीवी अन्नू पाठक सुबह किसी काम से बाहर गई थी. वह अभी तक नहीं लौटी है. मैं ने अपने स्तर पर उसे सब जगह तलाशा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. मैं बहुत परेशान हूं, प्लीज मेरी मदद कीजिए.’’

‘‘क्या? बीवी कहीं चली गई?’’ नथुनी प्रसाद आश्चर्य से बोले, ‘‘पर कहां चली गई?’’ ‘‘नहीं जानता सर, कहां चली गई.’’ विनोद बोला. ‘‘कहीं पत्नी से झगड़ा वगैरह तो नहीं हुआ था. जिस से वह नाराज हो कर कहीं चली गई.’’ थानाप्रभारी ने पूछा. ‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरे और पत्नी के बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ था.’’ विनोद ने बताया.

‘‘एक काम करिए. पत्नी की गुमशुदगी की एक तहरीर लिख कर दे दीजिए. मैं दिखवाता हूं कि मामला क्या है?’’ थानाप्रभारी ने कहा. ‘‘मैं एक दरख्वास्त लिख कर लाया हूं सर.’’ थानाप्रभारी की ओर एक पेपर बढ़ाते हुए वह बोला. थानाप्रभारी ने उस की दी हुई दरख्वास्त पर एक नजर डाली और वह मुंशी को गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए दे दी. इस के बाद उन्होंने विनोद को आश्वस्त कर घर जाने के लिए कह दिया

पत्नी की गुमशुदगी की सूचना दे कर विनोद पाठक जैसे ही थाने से निकल कर कुछ दूर गया होगा. तभी एक गोरीचिट्ठी, बेहद खूबसूरत लड़की जिस की उम्र यही कोई 16-17 साल के करीब रही होगी. थानाप्रभारी के पास पहुंची. उस के साथ मोहल्ले के कई संभ्रांत लोग भी थे.

उस लड़की ने अपना नाम कीर्ति पाठक पुत्री विनोद पाठक निवासी जयप्रभा नगर बताया. उस ने थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद को बताया कि उस की मां अन्नू पाठक आज सुबह से घर से गायब है. उन का अब तक कहीं पता नहीं चला है. उसे आशंका है कि कहीं उस के पापा विनोद पाठक ने ही मां के साथ कोई अनहोनी न कर दी हो.

कीर्ति के मुंह से इतना सुनते ही थानाप्रभारी उस लड़की की तरफ गौर से देखने लगे. क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही उस के पिता भी पत्नी की गुमशुदगी लिखाने आए थे. अब बेटी ही पिता पर मां को गायब करने का शक कर रही है. इस से यह मामला तो बड़ा गंभीर और पेचीदा लगने लगा. थानाप्रभारी ने कीर्ति से पिता पर लगाए जाने वाले आरोप की वजह पूछी तो उस ने विस्तार से मां और पिता के बीच के संबंधों के बारे में और उन के बीच सालों से चले आ रहे झगड़े के बारे में बता दिया. कीर्ति की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए कि एक महिला पुलिस इंसपेक्टर के साथ बने अवैध संबंधों की वजह से विनोद पाठक अपनी पत्नी को मारतापीटता था.

थानाप्रभारी ने एसआई श्याम कुमार को विनोद पाठक के घर मामले की जांच के लिए भेज दिया. एसआई श्याम कुमार जांच के लिए विनोद पाठक के यहां पहुंच गए. उन्होंने विनोद के बच्चों के अलावा पड़ोसियों से भी पूछताछ की. प्रारंभिक जांच कर के एसआई श्याम कुमार ने थानाप्रभारी को बता दिया कि विनोद पाठक की पत्नी अन्नू पाठक वास्तव में गायब है. इस के अलावा विनोद पाठक भी थाने में सूचना देने के बाद से लापता है. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है.

अगले दिन 31 जनवरी की सुबह 10-11 बजे के करीब थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद विनोद पाठक के घर पहुंच गए. पुलिस को देख कर मोहल्ले के लोग वहां जमा हो गए. अन्नू के साथसाथ विनोद पाठक घर पर नहीं था. घर में उन के तीनों बच्चे कीर्ति, वाणी और वंश ही थे. पूछने पर बच्चों ने पुलिस को बताया कि पापा बीती रात से ही घर नहीं लौटे हैं.

यह जान कर थानाप्रभारी को विनोद पर ही शक हो गया कि जरूर पत्नी के गायब होने में उस का हाथ रहा होगा. तभी वह फरार है. जैसे ही वह उस के घर में घुसे तभी हल्कीहल्की बदबू आती हुई महसूस हुई. पुलिस ने घर का कोनाकोना छान मारा लेकिन बदबू कहां से आ रही थी पता नहीं चला. एक कमरे में दरवाएजे पर ताला लटका मिला. पुलिस ने कीर्ति से तालाबंद होने की वजह पूछी तो उस ने बताया कि वह कमरा मां का है. उस में मां रहती हैं. जब से वह गायब हैं तब से उस कमरे पर नया ताला लगा है. पापा ने उसे बताया था कि अन्नू मायके जाते समय कमरे में ताला लगा कर चाबी अपने साथ ले गई है.

कीर्ति की यह बात थानाप्रभारी के गले नहीं उतरी क्योंकि जब घर में पहले से सभी कमरों के ताले और उस की 2-2 चाबियां थीं तो मां ने नया ताला क्यों खरीदा. शंका होने पर उन्होंने उस कमरे का ताला तोड़ने के निर्देश साथ आए पुलिसकर्मियों को दिए.

ताला टूटने के बाद पुलिस जैसे ही कमरे में घुसी तो महसूस हुआ कि बदबू इसी कमरे से आ रही है. पुलिस कमरे में वह चीज ढूंढने लगी जहां से वह बदबू आ रही थी. ढूंढतेढूढते पुलिस जैसे ही दीवान के करीब पहुंची तो बदबू और तेज हो गई. मतलब साफ था कि बदबू दीवान के भीतर से आ रही थी. पुलिस ने दीवान को खोला तो भीतर का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं.

दीवान में काफी खून फैला था जो सूख चुका था. वहां एक काले रंग की पौलीथिन थैली और एक प्लास्टिक का बोरा रखा था. उन पर भी खून लगा था जो सूख चुका था. थानाप्रभारी को समझते देर न लगी कि विनोद ने पत्नी की हत्या कर के उस की लाश दीवान में छिपा दी है.

उन्होंने प्लास्टिक का बोरा खुलवाया तो खोलते ही सब के होश उड़ गए. काली पौलीथिन में अन्नू का कटा हुआ सिर और बोरे में धड़ था. उस के हाथों को पीछे की ओर कर के प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया गया था. उस के पैर घुटनों से मोड़ कर पेट से बांध दिए थे. पिछले 2 दिनों से रहस्यमय तरीके से गायब अन्नू पाठक की उस के ही बेडरूम में लाश पाए जाने के बाद रहस्य से परदा उठ गया. मां की लाश मिलते ही तीनों बच्चे दहाड़ें मार कर रोने लगे. उन के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए, बच्चों को ढांढ़स बंधाने लगे. विनोद का अभी कुछ पता नहीं था कि वह कहां है.

अन्नू पाठक की लाश बरामद किए जाने की सूचना थानाप्रभारी ने डीएसपी चंदनवत्स और एसपी अनीश गुप्ता को दे दी. कुछ ही देर बाद एसपी और डीएसपी भी मौके पर पहुंच गए थे. तलाशी के दौरान पुलिस को रसोई घर में रखी डस्टबिन से एक चाकू बरामद हुआ. चाकू के ऊपर खून लगा हुआ था, जो सूख चुका था. लग रहा था कि शायद इसी चाकू से अन्नू की हत्या की गई होगी. पुलिस ने चाकू अपने कब्जे में लिया. अन्नू की हत्या की सूचना उस के मायके वालों को भी दे दी गई थी. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी, 2018 को थानाप्रभारी ने अन्नू के घर पहुंच कर उस की बड़ी बेटी कीर्ति से विस्तार से पूछताछ की. कीर्ति ने कहा कि उस के पापा उसे और मम्मी को पिछले 5 सालों से प्रताडि़त करते चले आ रहे हैं. जिस मंजू ठाकुर नाम की महिला से उन के गलत संबंध हैं वह इसी शहर में पुलिस इंसपेक्टर है. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी अनीश गुप्ता को दे दी.

कीर्ति ने जिस हौसले के साथ अपने पिता के चरित्र पर आरोप लगाया था. वह ऐसे ही नहीं लगाया था. उस के पास प्रत्यक्ष तौर पर कई प्रमाण भी थे. इंसपेक्टर मंजू ठाकुर के उस के पापा विनोद पाठक से वर्ष 2013 से संबंध थे. वह उस के पापा से मिलने अकसर घर आती रहती थी.

यही नहीं कई बार तो अन्नू के रहते हुए मंजू ठाकुर विनोद के साथ उस के बिस्तर पर एक साथ सोए भी थे. इस से नाराज हो कर अन्नू अपने मायके रांची चली जाती थी और महीनों वहीं रुक जाती थी. बच्चों के विरोध करने पर विनोद उन्हें निर्दयतापूर्वक पीटता था. केस में महिला पुलिस इंसपेक्टर मंजू ठाकुर का नाम सामने आने की जानकारी मीडिया वालों को हुई तो मीडिया ने इस मामले को खूब उछाला. इंसपेक्टर मंजू ठाकुर के खिलाफ पुलिस को ठोस सबूत नहीं मिले थे. इसलिए एसपी अनीश गुप्ता ने डीएसपी चंदन वत्स को उस पर नजर रखने के निर्देश दिए.

उधर पुलिस विनोद पाठक को भी सरगर्मी से तलाश रही थी.  6 दिन बीत जाने के बाद भी विनोद पाठक की गिरफ्तारी नहीं हुई और न ही मंजू ठाकुर के खिलाफ पुलिस ने कोई एक्शन लिया था. इस कारण लोग पुलिस का विरोध करने पर उतर आए थे. 4 फरवरी, 2018 की रात हजारीबाग स्टेडियम से झंडा चौक तक एंजेल्स हाईस्कूल, डीपीएस, होली क्रौस वीटीआई, डीएवी पब्लिक स्कूल,संत रोबर्ट बालिका विद्यालय सहित अन्य कई स्कूलों के सैकड़ों छात्रछात्राओं, शिक्षकों ने कैंडल जुलूस निकाला. सदर विधायक मनीष जायसवाल, उपमहापौर आनंद देव, ब्रजकिशोर जायसवाल सहित कई गणमान्य लोग भी जुलूस में शामिल रहे.

6 फरवरी को जदयू के वरिष्ठ नेता बटेश्वर प्रसाद मेहता न्याय दिलाने के लिए एसपी अनीश गुप्ता से मिले. उन्होंने हत्या के आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग की. एसपी से मिले प्रतिनिधिमंडल में जिला सचिव कृष्णा सिंह, नगर महासचिव सतीश कुमार सिन्हा, दीपक कुमार मेहता आदि शामिल थे. घटना के विरोध में स्कूलों के अलावा विभिन्न सामाजिक संगठन भी उतर आए. उन्होंने कैंडल मार्च निकाल कर मृतका को श्रद्धांजलि दी और दोषी को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की.

इस बीच डीएसपी चंदनवत्स और थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद घटना की जांच में जुटे रहे. उधर पुलिस ने मंजू ठाकुर और विनोद ठाकुर के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स की जांच करने पर पता चला कि घटना वाले दिन दोनों के बीच 32 बार बातचीत हुई थी. पुलिस के लिए विनोद या मंजू ठाकुर से पूछताछ करने का यह अच्छा आधार था.

इसी साक्ष्य के आधार पर डीएसपी ने 6 फरवरी को पीटीसी इंसपेक्टर मंजू ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के लिए उसे थाने लाया गया. पूछताछ में पहले तो वह अन्नू की बेटी कीर्ति  द्वारा उस पर लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से नकारती रही. चूंकि मंजू खुद कानून की मंजी हुई खिलाड़ी थी. वह कानून की एकएक बारीकी को अच्छी तरह जानती थी. इसलिए अपने बचाव में वह सभी हथकंडों को इस्तेमाल करती रही.

लेकिन डीएसपी चंदन वत्स भी उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ करते रहे. आखिर वह उन के सवालों के घेरे में फंसती चली गई. अंत में उस ने कानून के आगे घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. फिर उस ने अपने प्रेमसंबंधों से ले कर अन्नू पाठक की हत्या तक की जो कहानी बताई वह बड़ी दिलचस्प निकली. 45 वर्षीय विनोद पाठक मूलरूप से झारखंड राज्य के हजारीबाग का रहने वाला था. वह हजारीबाग के थाना बड़ा बाजार स्थित पौश कलोनी जयप्रभा नगर में एक किराए के मकान में परिवार के साथ रहता था. उस का परिवार खुशहाल था.

परिवार खुशहाल क्यों न हो, विनोद पाठक भारतीय खनन विभाग-कोल विभाग के सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्ट्ीयूट (सीएमपीडीआई) की हजारीबाग जिले की बड़कागांव शाखा में हेड क्लर्क के पद पर नौकरी करता था. वहां उस की अच्छीखासी तनख्वाह थी. खानेपीने और अन्य खर्च के बावजूद वह अपनी तनख्वाह में से प्रति माह अच्छी रकम बचा लेता था. नौकरी करने के साथसाथ वह एक योग संस्था का जिलाध्यक्ष भी था. विनोद जीवन की नैया बड़े मजे से खे रहा था.

बात सन 2013 की है. विनोद पाठक पतंजलि योग पीठ, हरिद्वार गया था. वहीं पर उस की मुलाकात हजारीबाग जिले के पीटीसी की इंसपेक्टर मंजू ठाकुर से हुई. मंजू ठाकुर पतंजलि योग पीठ के काम से वहां गई हुई थी. दरअसल, इंसपेक्टर मंजू ठाकुर बाबा रामदेव के प्रोडक्ट से इतनी प्रभावित थी कि उस ने उस की एजेंसी ले ली थी.

बातचीत के दौरान जब यह पता चला कि दोनों एक ही प्रांत के ही नहीं बल्कि एक ही जिले के रहने वाले हैं तो उन की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. वैसे भी दूर परदेश में अपने इलाके का कोई मिल जाए तो अपनेपन सा लगता है. इतना ही नहीं उस से दिल का रिश्ता जुड़ जाता है. ऐसा ही कुछ उन के साथ भी हुआ था. एक ही मुलाकात और एक ही बातचीत में वे एकदूसरे से घुलमिल गए. उन्होंने अपनेअपने पेशे के बारे में भी बता दिया था. उस के बाद काफी देर तक एकदूसरे से बातचीत करते रहे. पतंजलि योग पीठ से वापस लौटते समय दोनों ने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए थे.

मंजू और विनोद दोनों ही सरकारी पेशे से जुड़े हुए थे और हमउम्र थे. मंजू बात करने में काफी चतुर और मृदुभाषी किस्म की औरत थी. विनोद जब से मंजू से मिला था. उस की ओर आकर्षित हुए जा रहा था. इस बात को वह खुद भी नहीं समझ पा रहा था. जब तक दिन में एक-दो बार उस से बात नहीं कर लेता या उस से मिल नहीं लेता था उस के दिल को चैन नहीं मिलता था.

जबकि विनोद जानता था कि उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बच्चे भी हैं. इतना ही नहीं बेटी भी सयानी हो चुकी है. पत्नी को जब ये बात पता चलेगी तो घर मे वह कितना कोहराम मचाएगी. फिर बच्चे भी उस के बारे में क्या सोचेंगे. यह सोच कर कुछ पल के लिए उस के कदम जड़ गए थे लेकिन दिल की पुकार के आगे वह नतमस्तक हो गया और मंजू को पाने की हसरत में वह अपने बीवीबच्चों को भूल गया.

मंजू का सान्निध्य पाने के लिए विनोद उस का व्यवसाय पार्टनर बन गया और मटवारी में औफिस और दुकान खोल ली. विनोद ने सोचा कि अब उस पर न तो किसी को शक होगा और न ही कोई उंगली उठा पाएगा. मंजू भी विनोद पर मर मिटी थी. जबकि वह भी शादीशुदा थी. उस ने भी विनोद से अपने प्यार का इजहार कर दिया था. उस के बाद दोनों भारत स्वाभिमान ट्रस्ट से जुड़ कर काम करते रहे. मंजू कंपनी की ओर से राजस्थान टूर पर गई थी. तब विनोद भी उस के साथ था.

मंजू का विनोद के दिल के साथसाथ उस के परिवार पर भी दबदबा बन गया था. वह जब चाहे तब बिजनैस के बहाने विनोद के घर आ धमकती थी. उस के साथ घंटों बैठे गप्पें लड़ाती और ठहाके मारती. अन्नू कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं जो  पति की इन हरकतों को न समझती. बात 1-2 दिन की या फिर कभीकभार की होती तो चल सकती थी लेकिन यहां तो लगभग रोज ही वह विनोद के पास चली आती थी.

अन्नू को मंजू का रोजरोज उस के घर आना बरदाश्त से बाहर हो गया था. अब पानी सिर के ऊपर से बह रहा था. जब सब्र का बांध टूट गया तो एक दिन अन्नू पति विनोद से पूछ ही बैठी, ‘‘मैं तुम से एक बात पूछना चाहती हूं पूछ सकती हूं क्या?’’ ‘‘हां…हां… क्यों नहीं, बिलकुल पूछ सकती हो. तुम्हारा तो अधिकार है.’’ विनोद संजीदगी के साथ बोला. ‘‘तो ठीक है ये बताइए कि ये पुलिस वाली मंजू यहां रोजरोज क्यों आती है?’’

‘‘बिजनेस के सिलसिले में और क्या?’’ पति ने बताया. ‘‘लेकिन उस का यहां रोजरोज का आना, मुझे पसंद नहीं है. बड़ी बेटी कीर्ति भी नाराज होती है.’’ अन्नू बोली. ‘‘ये कैसी बेतुकी बातें कर रही हो. तुम?’’ विनोद पत्नी के ऊपर नाराज हुआ, ‘‘वो यहां आती हैं तो बिजनैस के बारे में बात करने के लिए ही आती हैं. कोई गप्पें लड़ाने के लिए नहीं और तुम क्या समझती हो कि मैं उन के साथ बैठे क्या कोई गुलछर्रे उड़ाता हूं. समझी तुम ने उन के बारे में आज तो कह दिया आइंदा फिर ऐसा मत कहना. नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. मैं उन की बेइज्जती बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

झल्लाता हुआ विनोद पत्नी से नजरें चुराते कमरे से बाहर निकल गया. जैसे उस की चोरी पत्नी ने पकड़ ली हो. बाहर निकल कर विनोद ने एक लंबी सांस ली. वह समझ गया कि मंजू को ले कर पत्नी को शक हो गया है. जिस दिन से अन्नू ने मंजू ठाकुर को ले कर पति विनोद को टोका था उस दिन से पतिपत्नी के रिश्तों में थोड़ी खटास आ गई. विनोद को पत्नी की यह बात बुरी लगी थी कि उस ने मंजू के बारे में उस से पूछ ने की हिम्मत कैसे की. यह पूछ कर उस ने बहुत बड़ी भूल की है. इस भूल का उसे दंड जरूर मिलेगा.

उस दिन के बाद विनोद ने रोजाना ही मंजू को घर बुलाना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं अब वह मंजू को अलग कमरे में बुला कर एकांत में बात करता. यह देख कर अन्नू को गुस्सा आता. यह सब उस की बरदाश्त से बाहर होता जा रहा था. अन्नू ने इस का पुरजोर विरोध शुरू कर दिया. नतीजा विनोद पत्नी की पिटाई करने लगा. अपने सिंदूर का बंटवारा होते हुए अन्नू नहीं देख सकती थी इसलिए वह बच्चों को ले कर मायके रांची चली जाती थी.

जब गुस्सा शांत होता तो लौट कर घर आ जाती. इस तरह अन्नू कई बार मायके जा चुकी थी. लेकिन विनोद पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था बल्कि पत्नी के आने के बाद उसे और ज्यादा आजादी मिल जाती थी. वह मंजू के साथ बिना किसी डर के गुलछर्रे उड़ाता. धीरेधीरे विनोद और मंजू के अनैतिक संबंधों की जानकारी अन्नू के पूरे नातेरिश्तेदारों तक फैल गई थी. विनोद की चारों ओर बदनामी हो रही थी. उसे शक हो गया था कि अन्नू ही उस की बदनामी करा रही है. इसलिए अब वह उस पर पहले से ज्यादा सितम ढाने लगा.

पत्नी के साथसाथ वह बच्चों की भी पिटाई करने लगा. वह अपनी बड़ी बेटी कीर्ति को ज्यादा मारता था. क्योंकि कीर्ति भी मंजू का विरोध करती थी. वह अपनी मां का पक्ष लेती थी. बच्चों को बेदर्दी से पिटता देख अन्नू की जैसे जान ही निकल जाती थी. अन्नू ने एक दिन दुखी हो कर मंजू को फोन कर के कहा, ‘‘तुम दोनों अगर शादी करना चाहते हो तो कर लो. मैं कुछ नहीं बोलूंगी. तुम्हारे रास्ते से मैं हमेशा के लिए हट जाऊंगी. लेकिन मेरे बच्चों को मत सताओ.’’

अन्नू की याचना इतनी दर्दभरी थी कि उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. लेकिन मंजू पर उस की याचना का रत्ती भर भी असर नहीं हुआ था. बल्कि वह भी तो यही चाहती थी कि अन्नू उस के रास्ते से हमेशाहमेशा के लिए हट जाए. उसी समय मंजू की दिमाग में एक विचार आया कि क्यों न अन्नू को रास्ते से हटा दिया जाए. एक दिन मंजू ने विनोद को विश्वास में ले कर उकसाया कि अन्नू को रास्ते से हटा दो. ताकि हमें फिर किसी का डर नहीं रहे. प्रेम में अंधे विनोद को प्रेमिका मंजू की बातें जंच गईं. पत्नी को रास्ते से हटाने के लिए वह उपाय सोचने लगा. तब मंजू ने उसे टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले सच्ची घटनाओं पर आधारित क्राइम सीरियल देखने की सलाह दी और कहा कि वहां से नएनए आइडिया मिल जाएंगे.

उस दिन के बाद से विनोद ड्यूटी से जब भी घर आता, नाश्ता वगैरह कर के टीवी पर क्राइम स्टोरी पर आधारित सीरियल देखने बैठ जाता. सीरियल से वह अपराध की उन बारीकियों को समझने की कोशिश करता था कि कैसे अपराधी अपराध कर के पुलिस के चंगुल से बच निकलने की कोशिश करते हैं. योजना के अनुसार उस ने 20 जनवरी, 2018 को ही अन्नू पाठक को मार कर लाश को ठिकाने लगाने का मन बना लिया था. इस के लिए उस ने 16 जनवरी को पूरी योजना तैयार कर ली.

विनोद ने हत्या के लिए एक चाकू खरीदा और फुटपाथ से काले रंग की एक पोलीथिन थैली व रस्सी. यहां तक कि उस के घर के सभी तालों की 2-2 चाबियां थीं. इस के बावजूद भी उस ने एक नया ताला भी खरीदा. ताकि लाश को कमरे में बंद कर के यह अफवाह उड़ा देगा कि अन्नू नाराज हो कर घर पर ताला बंद करके मायके चली गई.

योजना के अनुसार, विनोद ने अपने तीनों मोबाइल फोन 20 जनवरी को स्विच्ड औफ कर दिए थे. वह नए नंबर से मंजू से बात करता था. ताकि किसी को शक न हो. मंजू से विनोद की आखिरी बात पीसीओ से 2 दिन पहले यानी 27 जनवरी को हुई थी. 28 जनवरी, 2018 को मंजू ठाकुर को ले कर अन्नू और विनोद में जम कर विवाद हुआ. योजनानुसार 29 को विनोद सवा 10 बजे सुबह अपने औफिस में हाजिरी लगा कर वापस घर आ गया. यह उस ने इसलिए किया ताकि 29 जनवरी को उस का औफिस में रहने का सबूत बन जाए.

जब वह घर आया तो उस समय तीनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. तब बिना किसी गलती के उस ने पत्नी को पीटना शुरू कर दिया. पति की बेरहमी पिटाई से अन्नू टूट चुकी थी. वह जान रही थी कि इस समय पति के सिर पर इश्क का ऐसा भूत सवार है कि उन्हें फिलहाल अच्छेबुरे का ज्ञान नहीं रह गया है. पराई औरत के चलते वह अपने ही हाथों घर में आग लगाने पर लगे हैं. ऐसे में उन से कुछ भी कहना बेअसर होगा. लिहाजा वह कुछ नहीं बोली.

पत्नी की पिटाई करने के बाद विनोद कहीं चला गया. करीब सवा 12 बजे वह लौट कर घर आया. उस समय अन्नू मंजू से बात कर रही थी. पति के लौटने का अन्नू को पता नहीं चला. विनोद कान लगा कर पत्नी द्वारा फोन पर की जा रही बातचीत को सुनता रहा. उस बातचीत से वह यह बात समझ गया कि अन्नू इस समय मंजू से बात कर रही है. उस समय अन्नू मंजू से पति की शिकायत कर रही थी. अपनी शिकायत सुन कर विनोद अपना आपा खो बैठा. फिर क्या था उस ने अन्नू के पीछे जा कर एक हाथ से उस का मुंह बंद किया और दूसरे हाथ से तेज धार वाले चाकू से गला रेत दिया.

खून का फव्वारा फूट पड़ा और अन्नू फर्श पर गिर कर तड़पने लगी. कुछ ही देर में वह शांत हो गई. इस के बाद प्रेमिका मंजू ठाकुर को फोन कर विनोद ने पत्नी की हत्या करने की जानकारी दे दी. यह सुन कर मंजू पहले तो घबरा गई फिर बाद में खुश भी हुई कि अब हमारे बीच का अन्नू नाम का कांटा सदा के लिए निकल गया.

मंजू ने उसे सलाह दी कि वह वहां पर कोई भी सबूत न छोड़े. उस का सिर धड़ से काट कर अलग कर दे. सिर और धड़ दोनों को 2 अलगअलग पौलीथिन की थैलियों में भर कर उसे दीवान में छिपा दे. मति के मारे विनोद ने वैसा ही किया. जैसा उस की प्रेमिका इंसपेक्टर मंजू ने करने को कहा. कमरा बंद कर के वह सबूत मिटाने में जुट गया. उसे डर था कि जल्दी से लाश ठिकाने नहीं लगाई और सबूत नहीं मिटाए तो बच्चों के स्कूल से घर आने पर सारा भेद खुल जाएगा.

सबूत मिटाने और लाश ठिकाने लगाने में उसे ढाई घंटे से ज्यादा लगे. सिर और धड़ को अलगअलग कर के पौलीथिन थैली और प्लास्टिक बैग में पैक कर दीवान के बौक्स में डाल दिया. फिर कमरे में नया ताला लगा कर चाबी अपनी जेब में रख कर दोबारा औफिस चला गया. शाम 4 बजे तीनों बच्चे स्कूल से घर लौटे तो कमरे पर ताला बंद देख हैरान रह गए. कीर्ति पड़ोस में आंटी के यहां मां के बारे में पता लगाने गई. लेकिन वहां से कुछ पता नहीं चला.

बच्चे जब स्कूल गए थे तो उन की मां अन्नू घर में ही थी. अचानक कहां चली गई ये सोच कर वे परेशान हो गए. शाम करीब 5 बजे विनोद जब ड्यूटी से घर लौटा तो कीर्ति ने उससे मां के बारे में पूछा, इधरउधर का बहाना बनाते हुए विनोद ने कहा कि बेटा तुम्हारी मां नाराज हो कर अपने मायके चली गई है.

तब कीर्ति ने अपनी ननिहाल फोन किया तो पता चला कि उस की मां वहां आई ही नहीं है. ये सुन कर कीर्ति का माठा ठनक गया. उसे लगने लगा कि कहीं पापा ने मां के साथ कोई अनहोनी घटना तो न कर दी. कीर्ति बारबार पिता से मां के बारे में पूछ ने लगी तो विनोद घबरा गया. उसे लगा कि कहीं भेद न खुल जाए, तभी उस के दिमाग में आया कि क्यों न इसे भी मार दे न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.

ये सोच कर विनोद उसे पकड़ने के लिए उस की ओर लपका. लेकिन पिता की बुरी मंशा भांप कर कीर्ति तेजी से भाग कर पड़ोस वाली आंटी के घर चली गई. जबकि उस के छोटे भाईबहन घर में भीगी बिल्ली बने दुबके रहे. कीर्ति रात को भी अपने घर नहीं आई. विनोद रात में उसी दीवान पर सोया जिस में अन्नू की लाश छिपा रखी थी. बहरहाल, 18 फरवरी, 2018 को पुलिस ने फरार विनोद पाठक को कोडरमा के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. विनोद ने अपने औफिस के सिक्योरिटी सुपरवाइजर को फोन कर के कहा था कि वह अपनी कार से उस के पास आ जाए. उसे अभी डोभी जाना है. तब सुपरवाइजर अपनी इंडिगो कार ले कर विनोद के घर पहुंच गया था.

आरोपी विनोद ने पुलिस को बताया कि हत्या करने के बाद वह अपने ही औफिस के सिक्योरिटी सुपरवाइजर की इंडिगो कार से डोभी तक गया था. इस मामले में सिक्योरिटी सुपरवाइजर और उस की पत्नी से भी पुलिस ने पूछताछ की. विनोद पाठक ने यह भी कबूल किया कि पत्नी की हत्या करने के बाद वह सीधा प्रेमिका मंजू ठाकुर के पास खून से लथपथ पहुंचा था और हत्या के बारे में पूरी जानकारी दी. पुलिसिया पूछताछ में मंजू ने यह भी बताया था कि अन्नू का सिर से धड़ अलग करने का आइडिया उस ने ही दिया था.

मंजू ने विनोद पाठक को हत्या करने के बाद अलगअलग जगहों पर लाश छिपाने का तरीका भी बताया था. घटना के बाद मंजू ठाकुर और विनोद पाठक के बीच 32 बार फोन पर बातचीत हुई थी. मंजू विनोद के कौन्टेक्ट में लगातार रही. वह नए नंबर से मंजू से बात करता था ताकि किसी को शक न हो. मंजू से विनोद की आखिरी बात पीसीओ से 27 जनवरी को हुई थी. पुलिस इस बात की जांच भी कर रही है कि विनोद जिस वक्त अपनी पत्नी की गला रेत कर हत्या कर रहा था, तब किस शख्स ने उस की मदद की.

पुलिस ने आरोपी इंसपेक्टर मंजू ठाकुर और विनोद कुमार को सीजेएम की अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को जेपी केंद्रीय कारागार भेज दिया. कथा लिखे जाने तक आरोपी विनोद पाठक और मंजू ठाकुर जेल सलाखों के पीछे कैद थे. पुलिस सनसनीखेज तरीके से की गई हत्या के दोनों आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. मंजू ठाकुर की ओर से जमानत के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की गई थी, जो न्यायाधीश सत्येंद्र सिंह ने खारिज कर दी थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

10 साल छोटे लड़के के प्यार में दीवानी हो गई कमलप्रीत

कुछ औरतें दिखती सीधी हैं लेकिन शराफत का चोला ओढ़ कर वह अंदर ही अंदर गुल खिलाती रहती हैं. एक बेटे की मां कमलप्रीत भी ऐसी ही थी पर जब तभी उस की सच्चाई सामने आई तो तब तक उस का घर उजड़ चुका था

19मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत कौर अपने पति हरजिंदर सिंह से यह कहते हुए घर से निकली थी कि उस के मायके में किसी की तबीयत खराब है, इसलिए वह राहुल को ले कर वहां जा रही है. पत्नी की यह बात सुन कर हरजिंदर ने कहा, ‘‘ठीक है, हो आओ. ज्यादा परेशानी वाली बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना. मैं भी पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हारी जरूरत हुई तो फोन कर दूंगी और कोई ज्यादा चिंता वाली बात नहीं हुई तो 2 दिन में वापस लौट आऊंगी.’’ कमलप्रीत बोली. मूलरूप से पंजाब के जिला पटियाला के गांव बल्लोपुर की रहने वाली थी कमलप्रीत. करीब 12 साल पहले जब वह 19 बरस की थी, तब उस की शादी हरियाणा के गांव गणौली के रहने वाले हरजिंदर सिंह से हुई थी. यह गांव जिला अंबाला की तहसील नारायणगढ़ के तहत आता है.

शादी के ठीक एक साल बाद कमलप्रीत ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राहुल रखा गया. इन दिनों वह गांव के सरकारी स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था. हरजिंदर का अपना खेतीबाड़ी का काम था, जिस में वह काफी व्यस्त रहता था. कमलप्रीत घर पर रहते हुए चौकेचूल्हे से ले कर सब काम संभाले हुए थी. जो भी था, सब बड़े अच्छे से चल रहा था. पतिपत्नी में खूब प्यार था. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग भी थी. दोनों अपने बच्चों का भी सलीके से ध्यान रखे हुए थे. काफी दिनों से राहुल पिता से कहीं घुमा लाने की जिद कर रहा था तो पिता ने उस से पक्का वादा किया था कि वह उस के इम्तिहान खत्म होने के बाद उसे 2 दिन के लिए घुमाने शिमला ले चलेगा.

मगर पेपर खत्म होने के अगले रोज ही उसे अपनी मां के साथ नानी के यहां जाना पड़ गया. पत्नी के मायके जाने वाली बात पर हरजिंदर को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. पति की निगाह में कमलप्रीत एक सुलझी हुई मेहनती औरत थी, जो ससुराल के साथसाथ अपने मायके वालों का भी पूरा ध्यान रखती थी. 

सुखदुख में वह अपने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी अकेली आयाजाया करती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि हरजिंदर को पत्नी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. इसलिए जब वह 19 मार्च को बेटे के साथ मायके के लिए घर से अकेली निकली तो हरजिंदर ने कोई चिंता नहीं की. उसी रोज शाम के समय हरजिंदर ने पत्नी को यूं ही रूटीन में फोन कर के पूछा, ‘‘हां कमल, पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई? बल्लोपुर पहुंच कर तुम ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘हांहांवो ऐसा है कि अभी मैं बल्लोपुर नहीं पहुंच पाई.’’ कमलप्रीत बोली तो उस की आवाज में हकलाहट थी. पत्नी की ऐसी आवाज सुन कर हरजिंदर को थोड़ी घबराहट होने लगी. उस ने पूछा, ‘‘बल्लोपुर नहीं पहुंची तो फिर कहां हो?’’

‘‘अभी मैं शहजादपुर में हूं. किसी जरूरी काम से मुझे यहां रुकना पड़ गया.’’ कमलप्रीत ने पहले वाले लहजे में ही जवाब दिया. ‘‘शहजादपुर में ऐसा क्या काम पड़ गया तुम्हें? वहां तुम किस के यहां रुकी हो? सब ठीक तो है ? बताओ, कोई परेशानी हो तो मैं भी जाऊं क्या?’’

‘‘सब ठीक है, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अच्छा, मैं फ्री हो कर अभी कुछ देर बाद फोन करती हूं. तब सब कुछ विस्तार से भी बता दूंगी.’’ कहने के साथ ही कमलप्रीत की ओर काल डिसकनेक्ट कर दी गई. लेकिन हरजिंदर की घबराहट बढ़ गई थी. उस ने कमलप्रीत का नंबर फिर से मिला दिया. पर अब उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

अचानक यह सब होने पर हरजिंदर का फिक्रमंद हो जाना लाजिमी था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी समय अपनी ससुराल के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया. यहां से उसे जो जानकारी मिली, उस से उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. ससुराल से उसे बताया गया कि यहां तो घर में कोई बीमार नहीं है और न ही कमलप्रीत के वहां आने की किसी को कोई जानकारी थी.

अब हरजिंदर के लिए एक मिनट भी रुके रहना संभव नहीं था. उस ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और शहजादपुर की ओर रवाना हो गया. रास्ते भर वह कमलप्रीत को फोन भी मिलाता रहा था, पर हर बार उसे फोन के स्विच्ड औफ होने की ही जानकारी मिलती रही. आखिर वह शहजादपुर जा पहुंचा. पत्नी और बच्चे की तलाश में उस ने उस गांव का चप्पाचप्पा छान मारा मगर पत्नी और बेटे राहुल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वहां से वह मोटरसाइकिल से ही अपनी ससुराल बल्लोपुर चला गया. कमलप्रीत को ले कर वहां भी सब परेशान हो रहे थे.

इस के बाद तो हरजिंदर सिंह और उस की ससुराल वालों ने कमलप्रीत राहुल की जैसे युद्धस्तर पर तलाश शुरू कर दी. मगर कहीं भी दोनों मांबेटे के बारे में जानकारी हाथ नहीं लगी

19 मार्च, 2018 का दिन तो गुजर ही गया था, पूरी रात भी निकल गई. 20 मार्च को भी दोपहर तक तलाश करते रहने के बाद सभी निराश हो गए तो हरजिंदर शहजादपुर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को उस ने पत्नी और बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने कमलप्रीत और उस के बेटे राहुल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने अपने स्तर से दोनों मांबेटे को ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी.

देखतेदेखते इस बात को एक सप्ताह गुजर गया, मगर पुलिस भी इस मामले में कुछ कर पाने में असफल रहीबात 26 मार्च, 2018 की थी. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह उस वक्त अपने औफिस में थे. तभी एक अधेड़ उम्र के शख्स ने उन के सामने कर दोनों हाथ जोड़ते हुए दयनीय भाव से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम ओमप्रकाश है और मैं यमुनानगर में रहता हूं.’’

 ‘‘जी हां, कहिए.’’ शैलेंद्र सिंह बोले. ‘‘अब क्या कहूं सर, एक भारी मुसीबत आन पड़ी है हमारे परिवार पर.’’  ‘‘हांहां बताइए, क्या परेशानी है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘सर, मेरा एक भांजा है नीटू. उम्र उस की करीब 21 साल है. किसी बात पर उस का एक औरत से झगड़ा हुआ और हाथापाई में वह औरत मर गई. उस ने उस की लाश को कहीं ले जा कर दफन कर दिया. जब इस की जानकारी मुझे हुई तो हम ने उसे समझाया कि गलती हो जाने पर कानून से आंखमिचौली खेलने के बजाय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही बेहतर होगा.’’ ओमप्रकाश ने बताया.

इस पर एकबारगी तो शैलेंद्र सिंह चौंके. फिर खुद को संभालने का प्रयास करते हुए बोले, ‘‘मतलब यह कि आप के भांजे ने किसी की जान ली, फिर उस की लाश भी ठिकाने लगा दी. अब सरेंडर का प्रस्ताव लेकर आए हो. तो यह भी बता दो कि किन शर्तों पर सरेंडर करवाओगे?’’

‘‘कोई शर्त नहीं सर. लड़का आप के सामने तो अपना अपराध कबूलेगा ही, अदालत में भी ठीक ऐसा ही बयान देगा. भले उसे कितनी भी सजा क्यों हो जाए. बस आप से हमें सिर्फ इतना सहयोग चाहिए कि थाने में उस पर ज्यादा सख्ती हो.’’ ओमप्रकाश ने कहा.

‘‘देखो, अगर वह हमें सहयोग करते हुए सच्चाई बयान करता रहेगा तो हमें क्या जरूरत पड़ी है उस से सख्ती से पेश आने की. जाओ, लड़के को ला कर पेश कर दो. यदि वह सच्चा है तो यहां उस से किसी तरह की ज्यादती नहीं होगी.’’

 ‘‘ठीक है सर, मैं समझ गया. लड़का थाने के बाहर ही खड़ा है. मैं अभी उसे ला कर आप के सामने पेश करता हूं.’’ कहने के साथ ही ओमप्रकाश बाहर गया और थोड़ी ही देर में एक लड़के को ले कर थाने में गया.

 ‘‘यही है मेरा भांजा नीटू, सर.’’ उस ने बताया. जिस वक्त ओमप्रकाश नीटू को ले कर थानाप्रभारी के औफिस में पहुंचा था, पुलिस वाले बगल वाले कमरे में एक अभियुक्त से गहन पूछताछ कर रहे थे. जरा सी देर में वहां से चीखचिल्लाहट की भयावह आवाजें आने लगी थीं

ये आवाजें सुन कर नीटू थरथर कांपने लगा. फिर वह दबी सी आवाज में ओमप्रकाश से बोला, ‘‘मामा, ये लोग मेरा भी क्या ऐसा ही हाल करेंगे?’’

‘‘नहीं करेंगे बेटा, मैं ने एसएचओ साहब से सारी बात कर ली है. फिर जब तुम एकदम सच्चाई बयान कर ही रहे हो तो फिर डर कैसा?’’ ओमप्रकाश ने समझाया. ‘‘यही तो डर है मामा, मैं ने आप को भी पूरी सच्चाई नहीं बताई. दरअसल, मैं ने औरत के साथसाथ उस के बेटे का भी मर्डर कर दिया है और दोनों की लाशें एक साथ दफनाई हैं.’’

नीटू की यह बात थानाप्रभारी के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने नीटू को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मुझे पहले ही से शक था कि तुम्हारे अपराध का संबंध गणौली की कमलप्रीत और उस के बच्चे की गुमशुदगी से हैअब तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि तुम अपने घिनौने अपराध की सच्ची दास्तान अपने मामा को बता दो, वरना दूसरे तरीके से सच्चाई उगलवानी भी आती है.’’

थानाप्रभारी के इतना कहते ही ओमप्रकाश नीटू को ले कर एक दूसरे कमरे में ले गया. इस के बाद नीटू ने अपने अपराध की पूरी कहानी मामा को बता दी. नीटू के बताने के बाद ओमप्रकाश ने सारी कहानी थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी ने ओमप्रकाश के बयान दर्ज करने के बाद उसे घर भेज दिया फिर नीटू को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह सामने आई

करीब एक साल पहले की बात है. अपनी रिश्तेदारी के एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए कमलप्रीत अकेली नारायणगढ़ के बड़ागांव गई थी. वहां जब वह नाचने लगी तो एक लड़के ने भी उस का खूब साथ दिया. उस ने बहुत अच्छा डांस किया था

इस डांस के बाद भी दोनों एक साथ बैठ कर बतियाते रहे. लड़के ने अपना नाम सुमित उर्फ नीटू कहते हुए बताया कि यों तो वह शहजादपुर का रहने वाला है, मगर बड़ागांव में किराए का कमरा ले कर एक कंप्टीशन की तैयारी कर रहा है.

कमलप्रीत उस की बातों से तो प्रभावित हो ही रही थी, उस का सेवाभाव भी उसे खूब पसंद आया. कमलप्रीत तो थकहार कर एक जगह बैठ गई थी, पार्टी में खाने की जिस चीज का भी उस ने जिक्र किया, वह ला कर उसे वहीं बैठी को खिलाता रहाइसी तरह काफी रात गुजर जाने पर कमलप्रीत को नींद सताने लगी. नीटू ने सुझाव दिया कि वह उसे अपने कमरे पर छोड़ आता है, जहां वह बिना किसी शोरशराबे के आराम से सो सकती है. थोड़ी झिझक के बाद वह मान गई. अब तक नीटू को भी नींद आने लगी थी. अत: कमरे में चारपाई पर कमलप्रीत को सुलाने के बाद वह खुद भी जमीन पर दरी बिछा कर सो गया.

आगे का सिलसिला शायद इन के वश में नहीं था. रात के जाने किस पहर में दोनों की एक साथ आंखें खुलीं और बिना आगेपीछे की सोचे, दोनों एकदूसरे में समा गए. कमलप्रीत से नीटू 10 साल छोटा था, अत: उस मिलन के बाद कमलप्रीत उस की दीवानी हो गई. इस के बाद यही सिलसिला चल निकला. दोनों किसी न किसी तरीके से, कहीं न कहीं मौजमस्ती करने का तरीका निकाल लेते.

देखतेदेखते एक बरस गुजर गया. अब कमलप्रीत ने नीटू से यह कहना शुरू कर दिया था कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगी. मौजमस्ती तक तो ठीक था, कमलप्रीत की इस बात ने उसे नीटू को परेशान कर डाला. नीटू ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आखिर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह कमलप्रीत को अच्छी तरह से समझाएगा. फिर भी न मानी तो वह उस का खून कर देगा. इस के लिए उस ने एक चाकू भी खरीद कर रख लिया था.

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत उस के यहां आ धमकी. उस के साथ एक लड़का था, जिसे उस ने अपना बेटा बताया. आते ही उस ने कहा कि वह अपने पति को हमेशा के लिए छोड़ आई है. आगे वह उस से शादी कर के अपने लड़के सहित उसी के साथ रहेगी. नीटू ने उसे समझाने की कोशिश की. लगातार समझातेसमझाते पूरा दिन और सारी रात भी निकल गई. मगर वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो 20 मार्च को नीटू ने चाकू से कमलप्रीत की हत्या कर दी

यह देख कर उस का लड़का राहुल सहम गया. मगर वह इस मर्डर का चश्मदीद गवाह बन सकता था. इसलिए नीटू ने चाकू से उस का भी गला रेत दिया. दोनों लाशों को कमरे में छिपा कर नीटू अमृतसर चला गया. वहां गोल्डन टेंपल में उस ने वाहेगुरु से अपने इस गुनाह की माफी मांगी. रात में वापस कर बड़ागांव के पास से गुजर रही बेगना नदी की तलहटी में दोनों लाशों को दफन कर आया. इस के बाद वह अपने मामा के पास यमुनानगर चला गया, जिन्होंने उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने का सुझाव दिया था.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर केवल चाकू बरामद किया बल्कि दोनों लाशें भी खोज लीं, जो जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर नीटू को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में अंबाला की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फंदे पर लटका मिला खूंखार बाघ

कुछ साल पहले लगता था कि जल्दी ही बाघ लुप्तप्राय वन्य पशुओं में शामिल हो जाएगा. लेकिन सरकार और वन्यजीव प्रेमियों के प्रयासों से ऐसा तो नहीं हुआ, पर बाघों की लगातार होती मौतों को देख कर लगता है कि यह संकट अभी कम नहीं हुआ है… 

सी मार्च महीने के तीसरे सप्ताह में लगे 2 बड़े झटकों ने वन्यजीव प्रेमियों को हिला कर रख दिया. दोनों झटके राजस्थान में केवल 24 घंटे के अंतराल पर लगे. विश्वप्रसिद्ध सरिस्का अभयारण्य में एक बाघ की फंदे में फंसने से मौत हो गई. इस के अगले ही दिन रणथंभौर अभयारण्य का एक बाघ पास के एक गांव में घुस गया. ग्रामीणों की सूचना पर पहुंचे वन  विभाग के कर्मचारियों ने उसे बेहोश कर पकड़ने के लिए ट्रैंकुलाइज किया,

लेकिन बाघ बेहोशी की दवा का असर नहीं झेल सका और उस की मौत हो गई. सरिस्का में फरवरी के चौथे सप्ताह से बाघिन एसटी-5 लापता चल रही थी. इस बाघिन की तलाश में वन विभाग के कर्मचारी दिनरात ट्रैकिंग कर रहे थे. इसी दौरान 19 मार्च, 2018 की रात करीब 9 बजे सरिस्का अभयारण्य की सदर रेंज के इंदौक इलाके में कालामेढ़ा गांव के एक खेत में बाघ का शव पड़ा होने की सूचना मिली.

इस सूचना पर सरिस्का मुख्यालय के अफसर मौके पर पहुंचे और बाघ केशव के शव को कब्जे में ले लिया. उस की गरदन क्लच वायर द्वारा बनाए गए फंदे में फंसी हुई थी. वह 4 साल के जवान नर बाघ एसटी-11 का शव था. इस बाघ की मौत कुछ घंटों पहले ही हुई थी. जिस खेत में उस की लाश मिली थी, वह खेत भगवान सहाय प्रजापति का था. वन अधिकारियों ने खेत मालिक को हिरासत में ले लिया. भगवान सहाय ने वन अधिकारियों को बताया कि फसलों को नीलगायों और दूसरे जंगली जानवरों से बचाने के लिए उस ने खेत में ब्रेक वायर जैसा तार लगा रखा था. खेत की तरफ आने पर बाघ फंदे में उलझ गया होगा और फंदे से निकलने की जद्दोजहद में तार से उस का गला घुट गया होगा, जिस से उस की मौत हो गई.

जिस जगह बाघ एसटी-11 का शव मिला, वह इलाका बाघिन एसटी-3 के लापता होने वाली जगह से कुछ ही दूर है. कुछ दिनों पहले बाघिन एसटी-5 और बाघ एसटी-11 सरिस्का की अकबरपुर रेंज में साथसाथ देखे गए थे. इन के पगमार्क और लोकेशन साथ मिले थे

उस के बाद से बाघिन एसटी-5 लापता हो गई थी, लेकिन बाघ एसटी-11 के रेडियो कौलर के सिगनल लगातार मिल रहे थे. बाघ एसटी-11 सरिस्का अभयारण्य का पहला शावक था. उस का जन्म रणथंभौर से लाई गई बाघिन एसटी-2 से करीब 4 साल पहले हुआ थाबाघ का शव मिलने के दूसरे दिन 20 मार्च को जयपुर से वन विभाग के आला अफसर और देहरादून से भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक सरिस्का पहुंच गए.

सरिस्का प्रशासन और देहरादून से आए वैज्ञानिकों ने कालामेढ़ा पहुंच कर बाघ की मौत से जुड़े साक्ष्य जुटाए. हिरासत में लिए गए खेत मालिक की निशानदेही पर तार का फंदा और बाघ के बाल आदि बरामद किए गए. बाद में सरिस्का मुख्यालय पर बाघ के शव का पोस्टमार्टम कराया गया. इसी दिन अधिकारियों और वन्यजीव प्रेमियों की मौजूदगी में बाघ के शव को जला दिया गया. वन विभाग ने बाघ की मौत के मामले में खेत के मालिक भगवान सहाय प्रजापति को विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

हैरानी की बात यह रही कि राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डा. जी.वी. रेड्डी ने पूरे मामले की जांच से पहले ही आरोपी किसान को बेकसूर बताते हुए कहा कि उस ने खेत में फसल बचाने के लिए फंदा लगाया था, जिस में फंस कर बाघ मारा गया. किसान ने खुद वन विभाग को बाघ के मरने की सूचना दी थी. फिर भी हम इस बात की जांच करेंगे कि क्या वह आदतन फंदा लगाता रहा है.

यह दुखद रहा कि जिस समय सरिस्का में बाघ एसटी-11 के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, उसी समय सरिस्का से करीब 250 किलोमीटर दूर रणथंभौर अभयारण्य में 6 साल के नर बाघ टी-28 की मौत हो गई. वह करीब 13 साल का था. मारा गया जंगल का राजा करीब 6 साल तक इस बाघ का रणथंभौर अभयारण्य के जोन-3 में एकछत्र राज था. जंगल के इस राजा ने साढ़े 4 साल की उम्र में बूढ़े बाघ टी-2 को भिडं़त में हरा कर इस इलाके पर कब्जा जमाया था. उस दौरान दूसरे जवान बाघों ने इस इलाके पर अपना कब्जा करने के लिए टी-28 को चुनौती दी थी लेकिन वह किसी बाघ से नहीं डरा. करीब डेढ़दो साल पहले जवान बाघ टी-57 ने उसे जोन-3 से खदेड़ दिया था. इस के कुछ दिन बाद बाघ टी-86 ने उसे जंगल से बाहर का ही रास्ता दिखा दिया था.

करीब 13 साल से ज्यादा उम्र का होने के कारण बाघ टी-28 अभयारण्य में जवान बाघों का मुकाबला नहीं कर सका. वह इधरउधर भटकने लगा था. कभी जंगल तो कभी खेतों तो कभी नालों में रह कर वह अपनी जिंदगी के दिन काट रहा था. उम्र ज्यादा होने की वजह से अब उस के लिए जंगल में शिकार करना भी मुश्किल हो गया था.

उस दिन यानी 20 मार्च, 2018 को सुबह करीब 9 साढ़े 9 बजे बाघ टी-28 भोजन की तलाश में खंडार रेंज से निकल कर छाण गांव के पास खेतों में गया. बाघ को देख कर आसपास के ग्रामीणों की भीड़ वहां जमा हो गई. लोगों ने उसे घेरने के बाद वन विभाग को सूचना दे दी. इस बीच लगातार भागदौड़ कर रहे इस बाघ के हमले से जैतपुर गांव का अहसर और छाण गांव का लईक जख्मी हो गए. इलाज के लिए उन्हें अस्पताल भेज दिया गया.

लोगों की सूचना पर वन विभाग के अफसर और कर्मचारी छाण गांव में मौके पर पहुंच गए. वन अधिकारियों ने पहचान लिया कि खेत में घुसा हुआ बाघ टी-28 है. अफसरों ने ग्रामीणों को समझाया कि बाघ खुद ही जंगल में चला जाएगा, लेकिन ग्रामीण अधिकारियों पर उस बाघ को पकड़ने का दबाव डाल रहे थे. हालात ऐसे थे कि बाघ चारों ओर से घिरा हुआ था. ऐसे में वह आतंकित होने के साथ खुद के बचाव का रास्ता भी ढूंढ रहा था. इस स्थिति में आक्रामक हो कर वह ग्रामीणों पर हमला भी कर सकता था.

ग्रामीणों के दबाव में वन अफसरों ने बाघ को ट्रैंकुलाइज कर बेहोश करने के लिए सवाई माधोपुर से टीम बुलाई. दोपहर करीब 12 बजे मौके पर पहुंची टीम ने अपनी काररवाई शुरू की. दोपहर करीब पौने एक बजे टीम ने निशाना साध कर एक बार में ही बाघ को ट्रैंकुलाइज कर बेहोश कर दिया.

कुछ देर इंतजार करने के बाद वन अफसरों की टीम बाघ के पास पहुंची तो वह बेहोश मिला. वन विभाग की टीम ने बेहोश बाघ को पिंजरे में डाला. इस के बाद टीम वापस जाने लगी तो ग्रामीणों ने वन विभाग की गाड़ी रोक ली. ग्रामीणों ने बाघ के कारण खेत में हुए नुकसान की भरपाई करने के बाद ही बाघ को वहां से ले जाने देने की बात कही.

इस बात पर विवाद हो गया. वन कर्मचारियों ने पैसा देने में अपनी मजबूरी बताई तो गुस्से में ग्रामीणों ने वन विभाग की टीम पर पथराव शुरू कर दिया. इस बीच वन विभाग के अफसरों ने फोन कर के किसी से उधार पैसे मंगाए और 2 खेत मालिकों को उन की फसल के नुकसान की भरपाई के रूप में 30-30 हजार रुपए नकद दे दिए.

इस के बाद ग्रामीणों ने वन विभाग की टीम को जाने की इजाजत दी. वन कर्मचारियों ने गांव से निकलते समय पिंजरे में बंद बाघ टी-28 की जांच की तो पता चला कि उस की सांसें थम चुकी थीं. बाद में उसी दिन बाघ के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

बाघों की मौत पर सवाल 2 दिन में 2 बाघों की मौत से राजस्थान में बाघों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए. पूरा वन विभाग हिल गया. राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने इन बाघों की मौत पर दुख जताते हुए कहा कि देश में बढ़ती आबादी और जंगलों में अतिक्रमण के कारण बाघों की मौत हो रही है. जंगलों से गांव स्थानांतरित नहीं हो पा रहे हैं.

सरिस्का में बाघ एसटी-11 से कुछ दिन पहले ही देश भर में टाइगर रिजर्व पर नजर रखने वाली बौडी नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी यानी एनटीसीए के चीफ डा. देवब्रत ने सरिस्का का दौरा करने के बाद राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि जब तक सरिस्का टाइगर रिजर्व में अतिक्रमण और अन्य गैरकानूनी गतिविधियां होती रहेंगी तथा पर्याप्त स्टाफ नहीं होगा, तब तक बाघ खतरे में रहेंगे.

रणथंभौर के बाघ टी-28 की मौत के सिलसिले में 21 मार्च को सवाई माधोपुर जिले के खंडार पुलिस थाने में फलौदी रेंजर तुलसीराम ने एक रिपोर्ट दर्ज कराई. 21 लोगों के नामजद और लगभग 100 अन्य लोगों के खिलाफ दर्ज कराई रिपोर्ट में बाघ को टैं्कुलाइज कर लाते समय सरकारी वाहन पर पथराव कर तोड़फोड़ करने और राजकीय कार्य में बाधा डालने का आरोप लगाया गया. उन्होंने रिपोर्ट में कहा कि यदि टैं्रकुलाइज किए बाघ को इतनी देर तक नहीं रोका जाता तो उस की जान बचाई जा सकती थी.

21 मार्च को ही सवाई माधोपुर में पथिक लोक सेवा समिति और कंज्यूमर रिलीफ सोसायटी के कार्यकर्ताओं ने कलेक्टरेट पर प्रदर्शन कर कलेक्टर को प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन दिया. उन्होंने बाघ की मौत की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की. ज्ञापन में वन विभाग पर ट्रैंकुलाइज करने में लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा गया कि वन विभाग के पास बाघों को ट्रैंकुलाइज करने के लिए विशेषज्ञ नहीं हैं. ऐसे में अयोग्य वनकर्मियों से बाघों को ट्रैंकुलाइज कराया जा रहा है.

नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी यानी एनटीसीए ने घटना के 2 दिन बाद ही टी-28 की मौत के संबंध में राज्य के वन विभाग से रिपोर्ट मांग ली. इस में बाघ की उम्र, उस की मौत के कारण, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि सभी तथ्यात्मक जानकारियां मांगी गईं.

दूसरी तरफ सरिस्का में बाघ एसटी-11 की मौत के सिलसिले में की गई जांच में संगठित गिरोह के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है. इस में सरिस्का अभयारण्य  में पर्यटकों को घुमाने वाले जिप्सी चालकों के शामिल होने का भी संदेह है. वन विभाग ने गिरफ्तार भगवान सहाय प्रजापति से पूछताछ के आधार पर लीलूंडा गांव में एक मकान से बंदूक, तलवार व सांभर आदि के सींग भी बरामद किए. 

इस के अलावा अन्य जगहों से भी टोपीदार बंदूकें बरामद की गईं. इन आरोपियों के खिलाफ वन विभाग ने वन्यजीव अधिनियम की धाराओं के तहत काररवाई कर के मालाखेड़ा पुलिस थाने में आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया. पुलिस ने आर्म्स एक्ट में इंदौक गांव के बिल्लूराम मीणा, हरिकिशन मीणा त्रिलोक मीणा और लीलूंडा गांव के रतनलाल गुर्जर को गिरफ्तार किया. हालांकि इन की गिरफ्तारी भगवान सहाय प्रजापति से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर की गई थी. वन विभाग अभी बाघ एसटी-11 की मौत के मामले की जांच कर रहा है

फरवरी के चौथे सप्ताह से लापताबाघिन एसटी-5 के शिकार की भी आशंका जताई जा रही है. बाघिन का कोई सुराग नहीं मिलने पर एनटीसीए ने प्रोटोकोल के अनुसार सरिस्का प्रशासन को आदेश दिए हैं कि इस बाघिन के जीवित या मरने की पुष्टि की जाए. दरअसल, बाघ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. चाहे राजस्थान का रणथंभौर हो या सरिस्का अभयारण्य हो अथवा देश का कोई अन्य अभयारण्य. सभी अभयारण्यों की अपनी समस्या है.

असुरक्षित हैं शरणस्थली राजस्थान में बाघों की शरणस्थली के रूप में मुख्यरूप से 2 अभयारण्य हैं, रणथंभौर और सरिस्का. इन दोनों बाघ परियोजनाओं को स्थापित हुए करीब 4 दशक बीत चुके हैं. सरिस्का सन 2000 तक कार्बेट नेशनल पार्क के बाद बाघों का सब से सुरक्षित अभयारण्य माना जाता था

इस के बावजूद वन विभाग के अफसरों की लापरवाही से सक्रिय हुए शिकारियों ने सरिस्का अभयारण्य से बाघों का सफाया कर दिया. सन 2005 में सरिस्का के बाघ विहीन होने की बात सामने आई. तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निर्देश पर इस मामले की सीबीआई ने भी जांच की थी.

जिला अलवर और जयपुर जिले के कुछ हिस्से तक करीब 1200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सरिस्का टाइगर रिजर्व को तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक और बाद में राजस्थान के हैड औफ फोरेस्ट फोर्स बने आर.एन. मेहरोत्रा के प्रयासों से फिर बाघों से आबाद करने की कार्ययोजना बनाई गई

मेहरोत्रा ने इस काम में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया का सहयोग लिया. डब्ल्यूआईआई और मेहरोत्रा के प्रयासों से 28 जून, 2008 को भारत में बाघ का पहला ट्रांसलोकेशन किया गयाइस में रणथंभौर अभयारण्य से बाघ को ट्रैंकुलाइज कर भारतीय वायुसेना के हेलीकौप्टर से सरिस्का अभयारण्य ला कर छोड़ा गया था. इस के बाद समयसमय पर रणथंभौर से 2 नर और 2 मादा बाघों को ला कर सरिस्का में छोड़ा गया.

इस तरह सरिस्का अभयारण्य में बाघों का पुनर्वास कर वंशवृद्धि की कवायद शुरू की गई. हालांकि भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे आर.एन. मेहरोत्रा के प्रयास फलीभूत होने लग गए थे, लेकिन सब से पहले लाए गए नर बाघ की नवंबर 2010 में पायजनिंग से मौत हो गई. अब बाघ एसटी-11 की संदिग्ध तरीके से मौत हो गई

बाघिन एसटी-5 फरवरी के तीसरे सप्ताह से लापता चल रही थी. फिलहाल सरिस्का में 11 बाघबाघिन हैं. इन में भी 2 किशोर उम्र के शावक हैं. इन के अलावा 7 शावक हैं. सरिस्का अभयारण्य का क्षेत्रफल काफी लंबाचौड़ा होने से यहां बाघ के दर्शन बड़ी मुश्किल से हो पाते हैं. राजकुमार के नाम से जाने जाने वाले सरिस्का के बाघ एसटी-11 की मौत के बाद बाघों की वंशवृद्धि पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है. 

सरिस्का में फिलहाल बाघिनों के मुकाबले बाघों की संख्या कम है. नर बाघों में जवान बाघ 2 ही हैं. अब इन्हीं पर सरिस्का में बाघों की वंशवृद्धि की उम्मीद टिकी हुई है. सरिस्का में पिछले ढाई साल से नया शावक नजर नहीं आया है. सरिस्का में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है. बाघबाघिनों की नई खेप अब अपने लिए नए ठिकाने तलाश रही है. इस के लिए वे आसपास के जंगलों में चले जाते हैं

दूसरी ओर रणथंभौर से निकल कर जवान होते बाघ अपनी विचरणस्थली करौली और दौसा जिले में भी बना रहे हैं. कुछ बाघबाघिन सवाई माधोपुर जिले की सीमाएं पार कर बूंदी और कोटा होते हुए जंगल के कारीडोर से हो कर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश तक पहुंच गए हैं. रणथंभौर से 2-2 बाघबाघिनों को अब सरिस्का और नए बनाए गए मुकंदरा अभयारण्य में स्थानांतरित करने के प्रयास भी चल रहे हैं.

संरक्षण के प्रयासों के बावजूद खतरा ही खतरा राज्य के हैड औफ फोरेस्ट फोर्स से सेवानिवृत्त अधिकारी आर.एन. मेहरोत्रा का कहना है कि रणथंभौर में बाघ की मौत मैनेजमेंट की काररवाई की वजह से हुई. रणथंभौर में 5 साल में सब से ज्यादा व्यवहारिक गतिविधियां बढ़ी हैं. वहां कानून व्यवस्था बिगाड़ने का काम हुआ है. वन कानूनों की खुली धज्जियां उड़ाई जा रही हैं

दूसरी तरफ सरिस्का में विभागीय अधिकारी वन्यजीवों के संरक्षण में जुटे हैं, लेकिन किसान अपनी फसलों को वन्यजीवों से बचाने के लिए कानून के विपरीत फंदे लगा कर जानवरों को फांसने का काम कर रहे हैं. इसे कठोरता से रोकना जरूरी है. सरिस्का में भी अवैध कब्जे बढ़ाने की कोशिशें हो रही हैं, इन्हें सख्ती से नहीं रोका गया तो भविष्य में रणथंभौर जैसी स्थिति हो सकती है.

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया के मुताबिक सन 2004 में हुई गणना में देश भर में 1411 बाघ थे. सरकार के प्रयासों से सन 2011 में बाघों की तादाद बढ़ कर 1706 हो गई. सन 2014 में फोटोग्राफिक डाटा बेस के आधार पर देश भर में 2226 बाघ गिने गए. यह संख्या दुनिया भर के बाघों की संख्या का करीब 70 फीसदी थी. दुनिया भर में बाघों की फिलहाल कुल संख्या लगभग 3890 है.

सन 2017 देश में बाघों के लिए संकट का साल रहा. इस दौरान देश भर में 115 बाघों की मौत हई. नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल देश में 98 बाघों के शव और 17 बाघों के अवशेष बरामद किए गए. इन में से 32 मादा और 28 नर बाघों की पहचान हो सकी. 

बाकी मृत बाघों की पहचान नहीं हो सकी. बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश का नाम पहले नंबर पर आता है. वहां 29 बाघों की मौत हुईइस के अलावा महाराष्ट्र में 21, कर्नाटक में 16, उत्तराखंड में 16 और असम में 16 बाघों की मौत दर्ज की गई. बाघों की मौत के पीछे करंट लगना, शिकार, जहर, आपसी संघर्ष, प्राकृतिक मौत, ट्रेन या सड़क हादसों को कारण बताया गया. पिछले 5 सालों में 414 बाघों की मौत के मामले सामने आए हैं. इन में सन 2013 में 63, सन 2014 में 66, सन 2015 में 70, सन 2016 में 100 और 2017 में 115 मामले शामिल हैं.

बाघों के संरक्षण के लिए सरकार ने सन 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया था. तब से ले कर अब तक देश में 50 टाइगर रिजर्व बनाए गए हैं, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.12 प्रतिशत है. सन 2014 के बाद इस साल फिर देश भर में बाघों की गणना की जाएगीइस बार गणना में परंपरागत तरीकों के अलावा हाईटेक तरीके का भी इस्तेमाल किया जाएगा. इस के लिए वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया ने एक ऐप डेवलप किया है. इसे मौनिटरिंग सिस्टम फौर टाइगर इंटेंसिव प्रोटेक्शन ऐंड इकोलौजिकल स्टेटस या एम स्ट्राइप्स नाम दिया गया है.

बहरहाल, जंगलों में बढ़ते मानवीय दखल, कटाई, चराई, स्वच्छंद विचरण का दायरा घटने से बाघों पर संकट मंडरा रहा है. इन के अलावा सब से बड़ा संकट शिकारियों का है. बेशकीमती खाल और अवशेषों से यौन उत्तेजक दवाएं बनाने वालों की निगाहें हमेशा बाघों पर टिकी रहती हैं. इसी कारण बाघ बेमौत मारे जा रहे हैं.

 

पिकनिक प्वाइंट पर बिस्तर में लिपटी लाश पर सस्पेंस

जयलक्ष्मी ने प्रेमी के साथ मिलकर जिस तरह पति की हत्या कर के लाश को ठिकाने लगाया था, उस से उसे पूरा विश्वास था कि किसी को सच्चाई का पता नहीं चल पाएगा, लेकिन सड़क पर पड़े खून के दाग ने उस की पोल खोल ही दी…    

भीकभी कोई रात आदमी के लिए इतनी भारी हो जाती है कि उसे काटना मुश्किल हो जाता है. जयलक्ष्मी गुरव के लिए भी वह रात ऐसी ही थी. उस पूरी रात वह पलभर के लिए भी नहीं सो सकी थी. कभी वह बिस्तर पर करवटें बदलती तो कभी उठ कर कमरे में टहलने लगती. उस के मन में बेचैनी थी तो आंखों में भय था.

ए कएक पल उसे एकएक साल के बराबर लग रहा था. किसी अनहोनी की आशंका से उस का दिल कांप उठता था. सवेरा होते ही जयलक्ष्मी बेटे के पास पहुंची और उसे झकझोर कर उठाते हुए बोली, ‘‘तुम यहां आराम से सो रहे हो और तुम्हारे पापा रात से गायब हैं. वह रात में गए तो अभी तक लौट कर नहीं आए हैं. वह जब घर से गए थे तो उन के पास काफी पैसे थे, इसलिए मुझे डर लग रहा है कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई?’’

जयलक्ष्मी बेटे को जगा कर यह सब कह रही थी तो उस की बातें सुन कर उस की ननद भी जाग गई, जो बेटे के पास ही सोई थी. वह भी घबरा कर उठ गई. आंखें मलते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, भैया कहां गए थे, जो अभी तक नहीं आए. लगता है, तुम रात में सोई भी नहीं हो?’’

‘‘मैं सोती कैसे, उन की चिंता में नींद ही नहीं आई. उन्हीं के इंतजार में जागती रही. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है.’’ कह कर जयलक्ष्मी रोने लगी. बेटा उठा और पिता की तलाश में जगहजगह फोन करने लगा. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. उस के पिता विजय कुमार गुरव के बारे में भले पता नहीं चला, लेकिन उन के गायब होने की जानकारी उन के सभी नातेरिश्तेदारों को हो गई. इसका नतीजा यह निकला कि ज्यादातर लोग उन के घर गए और सभी उन की तलाश में लग गए.

विजय कुमार गुरव के गायब होने की खबर मोहल्ले में भी फैल गई थी. मोहल्ले वाले भी मदद के लिए गए थे. हर कोई इस बात को लेकर परेशान था कि आखिर विजय कुमार कहां चले गए? इसी के साथ इस बात की भी चिंता सता रही थी कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. क्योंकि वह घर से गए थे तो उन के पास कुछ पैसे भी थे. किसी ने उन पैसों के लिए उनके साथ कुछ गलत कर दिया हो.

38 साल के विजय कुमार महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले की तहसील सावंतवाड़ी के गांव भड़गांव के रहने वाले थे. उन का भरापूरा शिक्षित और संपन्न परिवार था. सीधेसादे और मिलनसार स्वभाव के विजय कुमार गडहिंग्लज के एक कालेज में अध्यापक थे. अध्यापक होने के नाते समाज में उन का काफी मानसम्मान था

गांव में उन का बहुत बड़ा मकान और काफी खेती की जमीन थी. लेकिन नौकरी की वजह से उन्होंने गडहिंग्लज में जमीन खरीद कर काफी बड़ा मकान बनवा कर उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे.

विजय कुमार के परिवार में पत्नी जयलक्ष्मी के अलावा एक बेटा था. पत्नी और बेटे के अलावा उन की एक मंदबुद्धि बहन भी उन्हीं के साथ रहती थी. मंदबुद्धि होने की वजह से उस की शादी नहीं हुई थी. बाकी का परिवार गांव में रहता था. विजय कुमार को सामाजिक कार्यों में तो रुचि थी ही, वह तबला और हारमोनियम बहुत अच्छी बजाते थे. इसी वजह से उन की भजनकीर्तन की अपनी एक मंडली थी. उन की यह मंडली गानेबजाने भी जाती रहती थी.

दिन कालेज और रात गानेबजाने के कार्यक्रम में कटने की वजह से वह घरपरिवार को बहुत कम समय दे पाते थे. उन की कमाई ठीकठाक थी, इसलिए घर में सुखसुविधा का हर साधन मौजूद था. आनेजाने के लिए मोटरसाइकिलों के अलावा उनके पास एक मारुति ओमनी वैन भी थी. इस तरह के आदमी के अचानक गायब होने से घर वाले तो परेशान थे ही, नातेरिश्तेदारों के अलावा उन की जानपहचान वाले भी परेशान थे. सभी उन की तलाश में लगे थे. काफी प्रयास के बाद भी जब उन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो सभी ने एकराय हो कर कहा कि अब इस मामले में पुलिस की मदद लेनी चाहिए

इस के बाद विजय कुमार का बेटा कुछ लोगों के साथ थाना गडहिंग्लज पहुंचा और थानाप्रभारी को पिता के गायब होने की जानकारी दे कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. यह 7 नवंबर, 2017 की बात है. पुलिस ने भी अपने हिसाब से विजय कुमार की तलाश शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की इस कोशिश का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला. पुलिस ने लापता अध्यापक विजय कुमार की पत्नी जयलक्ष्मी से भी विस्तार से पूछताछ की.

जयलक्ष्मी ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार रोज की तरह उस दिन कालेज बंद होने के बाद 7 बजे के आसपास वह घर आए तो नाश्तापानी कर के कमरे में बैठ कर पैसे गिनने लगे. वे पैसे शायद फीस के थे, जिन्हें अगले दिन कालेज में जमा कराने थे. पैसे गिन कर उन्होंने पैंट की जेब में वापस रख दिए और लेट कर टीवी देखने लगे

रात का खाना खा कर साढ़े 11 बजे के करीब विजय कुमार पत्नी के साथ सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. जयलक्ष्मी ने सवालिया निगाहों से पति की ओर देखा तो उन्होंने कहा, ‘‘देखता हूं, कौन है?’’ विजय कुमार ने दरवाजा खोला तो शायद दस्तक देने वाला विजय कुमार का कोई परिचित था, इसलिए वह बाहर निकल गए. थोड़ी देर बाद अंदर आए और कपड़े पहनने लगे तो जयलक्ष्मी ने पूछा, ‘‘कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, थोड़ा काम है. जल्दी ही लौट आऊंगा.’’ कह कर वह बाहर जाने लगे तो जयलक्ष्मी ने हा, ‘‘गाड़ी की चाबी तो ले लो?’’ ‘‘चाबी की जरूरत नहीं है. उन्हीं की गाड़ी से जा रहा हूं.’’ कह कर विजय कुमार चले गए. वह वही कपड़े पहन कर गए थे, जिस में पैसे रखे थे. इस तरह थोड़ी देर के लिए कह कर गए विजय कुमार गुरव लौट कर नहीं आए.

पुलिस ने विजय कुमार के बारे में पता करने के लिए अपने सारे हथकंडे अपना लिए, पर उन की कोई जानकारी नहीं मिली. 3 दिन बीत जाने के बाद भी थाना पुलिस कुछ नहीं कर पाई तो घर वाले कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर एसएसपी दयानंद गवस और एसपी दीक्षित कुमार गेडाम से मिलेइसका नतीजा यह निकला कि थाना पुलिस पर दबाव तो पड़ा ही, इस मामले की जांच में सीआईडी के इंसपेक्टर सुनील धनावड़े को भी लगा दिया गया.

सुनील धनावड़े जांच की भूमिका बना रहे थे कि 11 नवंबर, 2017 को सावंतवाड़ी अंबोली स्थित सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर एक लाश मिलने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही एसपी दीक्षित कुमार गेडाम, एसएसपी दयानंद गवस इंसपेक्टर सुनील धनावड़े पुलिस बल के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. 

यह पिकनिक पौइंट बहुत अच्छी जगह है, इसलिए यहां घूमने वालों की भीड़ लगी रहती है. यहां ऊंचीऊंची पहाडि़यां और हजारों फुट गहरी खाइयां हैं. किसी तरह की अनहोनी हो, इस के लिए पहाडि़यों पर सुरक्षा के लिए लोहे की रेलिंग लगाई गई हैदरअसल, यहां घूमने आए किसी आदमी ने रेलिंग के पास खून के धब्बे देखे तो उस ने यह बात एक दुकानदार को बताई. दुकानदार ने यह बात चौकीदार दशरथ कदम को बताई. उस ने उस जगह का निरीक्षण किया और मामले की जानकारी थाना पुलिस को दे दी.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल के निरीक्षण में सैकड़ों फुट गहरी खाई में एक शव को पड़ा देखा. शव बिस्तर में लिपटा था. वहीं से थोड़ी दूरी पर एक लोहे की रौड पड़ी थी, जिस में खून लगा था. इस से पुलिस को लगा कि हत्या उसी रौड से की गई है. पुलिस ने ध्यान से घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां से कुछ दूरी पर कार के टायर के निशान दिखाई दिए. 

इससे साफ हो गया कि लाश को कहीं बाहर से लाकर यहां फेंका गया था. पुलिस ने रौड और बिस्तर को कब्जे में ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. सीआईडी इंसपेक्टर सुनील धनावड़े विजय कुमार गुरव की गुमशुदगी की जांच कर रहे थे, इसलिए उन्होंने लाश की शिनाख्त के लिए जयलक्ष्मी को सूचना दे कर अस्पताल बुला लिया

लाश की स्थिति ऐसी थी कि उस की शिनाख्त आसान नहीं थी. फिर भी कदकाठी से अंदाजा लगाया गया कि वह लाश विजय कुमार गुरव की हो सकती है. चूंकि उन के घर वालों ने संदेह व्यक्त किया था, इसलिए पुलिस ने लाश की पुख्ता शिनाख्त के लिए डीएनए का सहारा लिया. जिस बिस्तर में शव लिपटा था, उसे जयलक्ष्मी को दिखाया गया तो उस ने उसे अपना मानने से इनकार कर दिया.

भले ही लाश की पुख्ता शिनाख्त नहीं हुई थी, लेकिन पुलिस उसे विजय कुमार की ही लाश मान कर जांच में जुट गईजिस तरह मृतक की हत्या हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या प्रेमसंबंधों में हुई है. पुलिस ने विजय कुमार और उन की पत्नी जयलक्ष्मी के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि विजय कुमार और जयलक्ष्मी के बीच संबंध सामान्य नहीं थे

इस की वजह यह थी कि जयलक्ष्मी का चरित्र संदिग्ध था, जिसे लेकर अकसर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ करता था. जयलक्ष्मी का सामने वाले मकान में रहने वाले सुरेश चोथे से प्रेमसंबंध था, इसलिए घर वालों का मानना था कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ हो सकता है.

यह जानकारी मिलने के बाद सुनील धनावड़े समझ गए कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे उन की पत्नी जयलक्ष्मी और उस के प्रेमी सुरेश का हाथ है. उन्होंने जयलक्ष्मी से एक बार फिर पूछताछ की

वह उस की बातों से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन कोई ठोस सबूत होने की वजह से वह उसे गिरफ्तार नहीं कर सके. उन्होंने सुरेश चोथे को भी थाने बुला कर पूछताछ की. उस ने भी खुद को निर्दोष बताया. उस के भी जवाब से वह संतुष्ट नहीं थे, इस के बावजूद उन्होंने उसे जाने दिया.

उन्हें डीएनए रिपोर्ट का इंतजार था, क्योंकि उस से निश्चित हो जाता कि वह लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस डीएनए रिपोर्ट का इंतजार कर ही रही थी कि पुलिस की सरगर्मी देख कर जयलक्ष्मी अपने सारे गहने और घर में रखी नकदी ले कर सुरेश चोथे के साथ भाग गई. दोनों के इस तरह घर छोड़ कर भाग जाने से पुलिस को शक ही नहीं, बल्कि पूरा यकीन हो गया कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है.

पुलिस सुरेश चोथे और जयलक्ष्मी की तलाश में जुट गई. पुलिस उन की तलाश में जगहजगह छापे तो मार ही रही थी, उन के फोन भी सर्विलांस पर लगा दिए थे. इस से कभी उन के दिल्ली में होने का पता चलता तो कभी कोलकाता में. गुजरात और महाराष्ट्र के शहरों की भी उन की लोकेशन मिली थी. इस तरह लोकेशन मिलने की वजह से पुलिस कई टीमों में बंट कर उन का पीछा करती रही थी

आखिर पुलिस ने मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर जयलक्ष्मी और सुरेश को मुंबई के लोअर परेल लोकल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना गडहिंग्लज लाया गया, जहां एसएसपी दयानंद गवस की उपस्थिति में पूछताछ शुरू हुई

अबडीएनए रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस से साफ हो गया था कि सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर खाई में मिली लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस के पास सारे सबूत थे, इसलिए जयलक्ष्मी और सुरेश ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों के बताए अनुसार, विजय कुमार की हत्या की कहानी इस प्र    कार थी— 34 साल का सुरेश चोथे विजय कुमार गुरव के घर के ठीक सामने रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चों के अलावा मातापिता, एक बड़ा भाई और भाभी थी. वह गांव की पंचसंस्था में मैनेजर के रूप में काम करता था. घर में पत्नी होने के बावजूद वह जब भी जयलक्ष्मी को देखता, उस के मन में उसे पाने की चाहत जाग उठती.

37 साल की जयलक्ष्मी थी ही ऐसी. वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही वाचाल और मिलनसार भी थी. उस से बातचीत कर के हर कोई खुश हो जाता था, इस की वजह यह थी कि वह खुल कर बातें करती थी. ऐसे में हर कोई उस की ओर आकर्षित हो जाता था. पड़ोसी होने के नाते सुरेश से उस की अकसर बातचीत होती रहती थी. बातचीत करतेकरते ही वह उस का दीवाना बन गया था. जयलक्ष्मी का बेटा 18 साल का था, लेकिन उस के रूपयौवन में जरा भी कमी नहीं आई थी. 

शरीर का कसाव और चेहरे के निखार से वह 25 साल से ज्यादा की नहीं लगती थी. उस के इसी यौवन और नशीली आंखों के जादू में सुरेश कुछ इस तरह खोया कि अपनी पत्नी और बच्चों को भूल गया. कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. जयलक्ष्मी तक पहुंचने की राह आखिर सुरेश ने खोज ही ली. विजय कुमार से दोस्ती कर के वह उस के घर के अंदर तक पहुंच गया था. इस के बाद धीरेधीरे उस ने जयलक्ष्मी से करीबी बना ली

भाभी का रिश्ता बना कर वह उस से हंसीमजाक करने लगा. हंसीमजाक में जयलक्ष्मी के रूपसौंदर्य की तारीफ करतेकरते उस ने उसे अपनी ओर इस तरह आकर्षित किया कि उस ने उसे अपना सब कुछ सौंप दिया. विजय कुमार गुरव दिन भर नौकरी पर रहते और रात में गानेबजाने की वजह से अकसर बाहर ही रहते थे. इसी का फायदा जयलक्ष्मी और सुरेश उठा रहे थे. जयलक्ष्मी को अपनी बांहों में पाकर जहां सुरेश के मन की मुराद पूरी हो गई थी, वहीं जयलक्ष्मी भी खुश थी. दोनों विजय कुमार की अनुपस्थिति में मिलते थे, इसलिए उन्हें पता नहीं चल पाता था

लेकिन आसपास वालों ने विजय कुमार के घर में रहने पर सुरेश को अकसर उस के घर आतेजाते देखा तो उन्हें शंका हुई. उन्होंने विजय कुमार को यह बात बता कर शंका जाहिर की तो विजय कुमार हैरान रह गए. उन्हें तो पड़ोसी होने के नाते सुरेश पर पूरा भरोसा था

इस तरह दोनों विजय कुमार के भरोसे का खून कर रहे थे. उन्होंने पत्नी और सुरेश से इस विषय पर बात की तो दोनों कसमें खाने लगे. उन का कहना था कि उन के आपस में संबंध खराब करने के लिए लोग ऐसा कह रहे हैं. भले ही जयलक्ष्मी और सुरेश ने कसमें खा कर सफाई दी थी, लेकिन विजय कुमार जानते थे कि बिना आग के धुआं नहीं उठ सकता. लोग उन से झूठ क्यों बोलेंगे

सच्चाई का पता लगाने के लिए वह पत्नी और सुरेश पर नजर रखने लगे. इस से जयलक्ष्मी और सुरेश को मिलने में परेशानी होने लगी, जिस से दोनों बौखला उठे. इस के अलावा सुरेश को लेकर विजय कुमार अकसर जयलक्ष्मी की पिटाई भी करने लगे थे

इससे जयलक्ष्मी तो परेशान थी ही, प्रेमिका की पिटाई से सुरेश भी दुखी था. वह प्रेमिका की पिटाई सहन नहीं कर पा रहा था. जयलक्ष्मी की पिटाई की बात सुन कर उस का खून खौल उठता था. प्रेमी के इस व्यवहार से जयलक्ष्मी ने एक खतरनाक योजना बना डाली. उस में सुरेश ने उस का हर तरह से साथ देने का वादा किया

योजना के अनुसार, घटना वाले दिन जयलक्ष्मी ने खाने में नींद की गोलियां मिला कर पति, ननद और बेटे को खिला दीं, जिस से सभी गहरी नींद सो गए. रात एक बजे के करीब सुरेश ने धीरे से दरवाजा खटखटाया तो जयलक्ष्मी ने दरवाजा खोल दिया. सुरेश लोहे की रौड लेकर आया था. उसी रौड से उस ने पूरी ताकत से विजय कुमार के सिर पर वार किया. उसी एक वार में उस का सिर फट गया और उस की मौत हो गई.

विजय कुमार की हत्या कर के लाश को दोनों ने बिस्तर में लपेट दिया. इस के बाद जयलक्ष्मी ने लाश को अपनी मारुति वैन में रख कर उसे सुरेश से सावंतवाड़ी के अंबोली सावलेसाद पिकनिक पौइंट की गहरी खाइयों में फेंक आने को कहा.

सुरेश लाश को ठिकाने लगाने चला गया तो जयलक्ष्मी कमरे की सफाई में लग गई. उस के बाद सुरेश लौटा तो जयलक्ष्मी ने वैन की भी ठीक से सफाई कर दी. इस के बाद उस ने विजय कुमार की गुमशुदगी की झूठी कहानी गढ़ डाली. लेकिन उस की झूठी कहानी जल्दी ही सब के सामने गई

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयलक्ष्मी के कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया तो दीवारों पर भी खून के दाग नजर आए. पुलिस ने उन के नमूने उठवा लिए. इस तरह साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.        

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शाहनवाज की खूबसूरती देख हुस्ना का बदन क्यों तिलमिला गया

रशीद हुस्ना को दिलोजान से चाहता था, लेकिन साधारण परिवार की हुस्ना ने उसे तवज्जो नहीं दी. उसने अमीर शाहनवाज से इसलिए शादी की ताकि ऐशोआराम की जिंदगी जी सके. पर शाहनवाज ने उसे ऐसा क्या दिया कि हुस्ना पश्चाताप के आंसू बहाती रह गई…  

शीद वैसे तो हमारे घर अकसर आताजाता रहता था, पर जब से मैं बड़ी हुई थी, उस का आनाजाना बढ़ गया था. मैं स्कूल  से आती तो वह गली में टहलता मिलता था. घर पर इंतजार कर रहा होता. अजीब इंसान था, न कभी बात करता न मेरी तारीफ करता. न नजर भर कर देखता पर उस के अंदाज बताते थे कि वह मुझ से मोहब्बत करता है. मेरे करीब रहने के लिए वह हर जतन करता, कभी बाजार जाकर अम्मा की दवाई लेकर आता, कभी अब्बा का कोई काम करता. कभी मेरी छोटी बहन को घुमा कर लाता, उसे किसी काम से इनकार नहीं था.

रशीद हमारे घर के करीब ही रहता था. उस की मोटर मैकेनिक की दुकान थी, जिस में उस के अलावा 2 कारीगर काम करते थे. आमदनी अच्छी थी. घर में किसी को उस के आनेजाने पर ऐतराज नहीं था. सभी उसे पसंद करते थे. वह बचपन से हमारे घर आता था. देखने में भी अच्छाखासा था. मैं 10वीं में 2 बार फेल हो चुकी थी, उम्र भी 18 हो गई थी. पर देखने में मैं खूबसूरत थी.

मेरे अब्बा एक औफिस में चपरासी थे. आमदनी कम थी, खर्चे ज्यादा थे. मैं एक अच्छे स्कूल में पढ़ती थी लेकिन छोटे भाईबहन सरकारी स्कूल में पढ़ते थे. मेरे स्कूल में बड़े घरों की लड़कियां पढ़ती थीं. उन के बीच रह कर मैं अपने घर की गरीबी भूल जाती और उन की तरह ही रहने की कोशिश करती. उन के घरों में जाती, उन के घरों में ऐशोआराम के सामान देख कर दंग रह जाती और सोचती कि पढ़लिख कर मैं भी किसी अमीर लड़के से शादी करूंगी.

गरीबी आखिर ख्वाब देखने से तो नहीं रोक सकती. मैं ने सोच लिया था कि किसी गरीब या मामूली इंसान से हरगिज शादी नहीं करूंगी. अगर गरीबी में ही दिन काटने हैं तो अपना घर क्या बुरा है. बड़े घर की लड़कियों के बीच रह कर दिमाग भी ऊंचा सोचने लगा था. ऐसे में भला मुझे रशीद कैसे अच्छा लग सकता था.

वह ठीकठाक पैसे कमाता था, पर था अनपढ़. एक सब्जी बेचने वाले का बेटा. काम भी गाड़ी मैकेनिक का करता था. मुझे उस से नफरत तो नहीं थी, पर जिस चाहत से वह देखता था, मुझे बुरा लगता था. लेकिन वह भी अजीब मिट्टी का बना था. कोई शिकायत कोई शिकवा.

मेरी सहेली महताब की शादी थी. वह अकसर अपने मंगेतर की बातें मुझे बताती रहती थी. उस की बातें सुन कर मैं भी ख्वाबों की दुनिया में खो जाती थी. महताब ने बड़े इसरार से हल्दी से लेकर रिसैप्शन तक 4 दिन की दावत दी. मैंने कहा, ‘‘अम्मी से इजाजत मिलना मुश्किल है और फिर मुझे लाएगा कौन?’’

वह रोते हुए बोली, ‘‘देख हुस्ना, शादी के बाद मैं अमेरिका चली जाऊंगी, फिर पता नहीं कब आना हो. अब मैं कल से स्कूल भी नहीं आऊंगी. तुम्हें आना ही पड़ेगा.’’ वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रो पड़ी. उस का लगाव देख कर मुझे आने का वादा करना पड़ा. अब मेरे सामने 2 मसले थे, एक तो घर वालों की इजाजत और दूसरे किस के साथ जाऊंगी

घर कर मैंने अम्मी को बताया, ‘‘अम्मी, मेरी खास सहेली की शादी है. उस की शादी मुझे हर हाल में अटेंड करनी है, फिर वह अमेरिका चली जाएगी.’ ‘‘कहां पर है शादी?’’  ‘‘क्लिफ्टन में कोठी है उस की.’’

 ‘‘बेटा, इतनी दूर कैसे जाओगी? कहीं पास होती तो मैं साथ चली चलती. कोई जरूरत नहीं है जाने की.’’ ‘‘अब्बा से कहें वो साथ चलें.’’  ‘‘नहीं, वो भी नहीं जाएंगे.’’

मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे. उसी वक्त अब्बा और रशीद भी आ गए. पूरी बात सुन कर अब्बा भी यही बोले, ‘‘बेटा, भेजने में कोई हर्ज नहीं है, पर जाओगी कैसे?’’ रशीद के चेहरे पर मुसकान आ गई, वह जल्दी से बोला, ‘‘छोटी सी बात है, मैं छोड़ आऊंगा.’’ अब्बा राजी हो गए पर अम्मा को ऐतराज था. लेकिन उन के ऐतराज ने मेरी जिद के आगे दम तोड़ दिया. दूसरे दिन शाम को रशीद किसी की नई मोटरसाइकिल लेकर आ गया. मैं खूब तैयार हुई थी. ऊपर से एक चादर ओढ़ कर मैं उस के साथ बैठ गई.

महताब के घर जैसे रंग नूर की बारिश हो रही थी. कोठी के आगे बड़ा सा शामियाना लगा था, जहां उबटन का फंक्शन होना था. रशीद मुझे कोठी के बाहर उतार कर चला गया. मैंने उसे 10 बजे आने को कहा. सारी मेहमान लड़कियां अच्छे कपड़ों और जेवरों से सजीधजी थीं. उन्हें देख कर मुझे कौंप्लेक्स हो रहा था 

मैं महताब के पास पहुंची, वह लड़कियों से घिरी बैठी थी. उस ने पीले रंग का हल्दी का जोड़ा पहन रखा था. उसी वक्त फाकिरा गई, जो मेरी दूसरी अच्छी सहेली थी. वह मुझ से लिपट गई. उस ने पूछा, ‘‘हुस्ना, किस के साथ आई हो?’’

 मैंने कहा, ‘‘अपने कजिन के साथ आई थी, उसे वापस भेज दिया.’’ ‘‘अरे, उसे वापस क्यों भेज दिया, इतने मर्द हैं, वह भी शामिल हो जाता.’’ ‘‘10 बजे लेने जाएगा.’’

लड़कियां ढोलक लेकर बैठ गईं. गीत और डांस होने लगा. फाकिरा ने कहा, ‘‘चल नीचे की रौनक देख कर आते हैं.’’ शामियाने में स्टेज सज रहा था. फाकिरा ने एक स्मार्ट से नौजवान से मिलाते हुए कहा, ‘‘ये मेरे कजिन शाहनवाज हैं. और ये मेरी प्यारी दोस्त हुस्ना है.’’ शाहनवाज खूबसूरत लड़का था, उस ने खासे महंगे कपड़े पहन रखे थे. उस ने हाथ मिलाने को हाथ बढ़ाया तो मैं झिझक गई. उस ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ थाम लिया और गर्मजोशी से कहा, ‘‘अरे फाकिरा, तुम्हारी दोस्त इतनी खूबसूरत है. इसे कहां छिपा कर रखा था? मोहतरमा आप से मिल कर दिल खुश हो गया.’’

 मैं क्या कहती. वह फिर बोला, ‘‘गरमी लग रही है, आओ चलो आइसक्रीम खा कर आते हैं.’’ मैं इनकार करती रही. दोनों मुझे हाथ पकड़ कर कार में ले गए. हम ने साथ बैठ कर आइसक्रीम खाई, वह भरपूर नजरों से मुझे देखता रहा. उस की बेतकल्लुफी देख कर मैं हैरान थी. फिर मैं ने सोचा बड़े लोगों में ऐसा ही होता होगा.

हम वहां से लौट कर आए तो मैं ने दूर से रशीद को खड़े देखा. पर मैं उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ गई. शाहनवाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘तुम वापस कैसे जाओगी?’’ मैंने कहा, ‘‘मेरा कजिन लेने आएगा.’’ ‘‘अगर वह न आता तो मैं तुम्हें छोड़ आता. कल जरूर आना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’ उस ने शोखी से कहा. उस लड़के ने मुझ में ऐसा क्या देख लिया कि मुझ पर फिदा हो गया. मेरा दिल भी उस की तरफ खिंच रहा था. उबटन शुरू हो चुका था. हम ने एक रस्म निभाई और खाने की तरफ बढ़ गए. मैं ने फाकिरा से पूछा, ‘‘ये तुम्हारा कजिन कुछ काम करता है या पढ़ता है.’’

‘‘इसे कुछ करने की जरूरत नहीं है. शानदार बंगले में अकेला रहता है. फैमिली अमेरिका में है. इस के खर्चे के लिए इतना भेजते हैं कि दोनों हाथों से लुटाता है, कुछ बिजनैस सेट करने का भी इरादा है.’’ करीब 11 बजे फंक्शन से फारिग हो कर बाहर पहुंची तो रशीद बेचैनी से मेरा इंतजार कर रहा था. मैं ने कहा, ‘‘आप जल्दी गए थे, इसलिए इतना इंतजार करना पड़ा.’’

 ‘‘कोई बात नहीं, आप की राह देखना तो मेरा नसीब है.’’ रास्ते भर वह चुप रहा. मुझे डर था कहीं शाहनवाज के बारे में पूछ बैठे. उतरते वक्त मैं ने शुक्रिया कहा तो उस ने पूछा, ‘‘अब कब जाना है?’’ मैं शाहनवाज के जादू में डूबी हुई थी. फौरन बोली, ‘‘अब रोज ही जाना होगा.’’

 ‘‘अच्छा, कल मैं किसी की कार मांग लाऊंगा.’’ उस के जाने के बाद मैं खयालों में डूब गई. एक तरफ पूरी चमकदमक के साथ शाहनवाज खड़ा था, दूसरी तरफ एक मामूली मैकेनिक. दिल कह रहा था कि मैं रशीद के साथ अन्याय कर रही हूं, मुझे उस के साथ नहीं जाना चाहिए.

दूसरे दिन रशीद कार लेकर गया. मुझे उस के साथ जाना पड़ा. जैसे ही मैं कार से उतरी, शाहनवाज गया. उस ने रशीद को देख कर कहा, ‘‘अच्छा, ये हैं तुम्हारे भाईसाहब.’’ रशीद का चेहरा पीला पड़ गया. मैं ने बात बदली, ‘‘फाकिरा गई?’’

 ‘‘वह आज देर से आएगी.’’ रशीद मुझे वहां छोड़ कर चला गया. मैं महताब के पास चली गई. शाहनवाज मेरे हवासों पर ऐसा छाया था कि मेरा दिल महताब के पास नहीं लगा. मैं उठ कर नीचे गई. शाहनवाज मेरा मुंतजर था. वह मुझे ले कर समंदर किनारे आ गया. उस ने मेरा हाथ थाम कर कहा, ‘‘हुस्ना, ये शादी 2 दिन में खत्म हो जाएगी. फिर हम कैसे मिलेंगे.’’

मैंने उसे छेड़ा, ‘‘मिलना कोई जरूरी नहीं है.’’

उस ने बेताबी से कहा, ‘‘तुम्हें अंदाजा नहीं, तुम ने 2 मुलाकातों में मुझे दीवाना बना दिया है. अब तुम्हारे बिना रहना मुश्किल है.’’ ‘‘आप को मालूम नहीं, मेरी फैमिली कैसी है. मेरा घर से निकलना कितना मुश्किल होता है.’’

‘‘कुछ दिनों की परेशानी है फिर मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना बना लूंगा.’’ ‘‘आप जानते नहीं, मैं एक गरीब घर की लड़की हूं.’’ ‘‘मैं गरीबअमीर के फर्क को नहीं मानता. मैं शुरू से अपने फैसले खुद करता हूं. तुम से शादी के लिए मेरे मांबाप को भी कोई ऐतराज नहीं होगा.’’ काफी देर तक हम वहां घूमते रहे, फिर लौट कर महताब के घर गए. कुछ देर तक महताब के पास बैठ कर मैं नीचे आई, रशीद चुका था. आज वह ज्यादा ही खामोश था, खफा भी लग रहा था. मैं ने कहा, ‘‘रशीद भाई, आप को 2 दिन आना पड़ा, तकलीफ हुई. अब कल मत आना. मुझे महताब बुलवा लेगी, अपने कजिन को भेज कर.’’

 ‘‘उस का कजिन वही है जो आज वहां मिला था?’’ रशीद ने बड़ी मायूसी से कहा. ‘‘हां, वही है शाहनवाज नाम है.’’ ‘‘वह लड़का मुझे कुछ ठीक नहीं लगता, किस बदतमीजी से उस ने तुम्हारे कंधे पर हाथ रखा था.’’  

‘‘बड़े लोगों में ये फैशन है, इसे बुरा नहीं समझा जाता.’’ ‘‘मैं तुम्हें समझाने का हक तो नहीं रखता, पर इतना जरूर कहूंगा कि इस आदमी पर भरोसा मत करना वरना धोखा खाओगी.’’

  ‘‘मुझे मालूम है किस पर भरोसा करना है, किस पर नहीं. मुझे समझाने की कोशिश करें.’’  ‘‘पर मैं तुम्हारा नुकसान बरदाश्त नहीं कर सकता.’’ ‘‘तुम होते कौन हो, मेरा भलाबुरा सोचने वाले?’’

 मुझ पर शाहनवाज का जादू चढ़ गया था. मैं गुस्से में बकती चली गई. उस ने सड़क के किनारे गाड़ी रोकी और मेरे हाथ पर हाथ रख कर कहा, ‘‘हुस्ना, क्या तुम्हें अंदाजा नहीं है कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं. अब तक की सारी जिंदगी तुम्हें सपनों में बसा कर बसर की है. मैं कैसे तुम्हें किसी और का बनता देख सकता हूं और खास कर बरबाद होते कैसे देख सकता हूं्?’’

‘‘मुंह देखा है कभी आईने में? तुम्हारा शाहनवाज का क्या मुकाबला? अब बकवास बंद करते हो या मैं नीचे उतर जाऊं? कल मुझे लेने के लिए आने की जरूरत नहीं है.’’ ‘‘अब मैं तुम से कुछ नहीं कहूंगा. अपनी मोहब्बत से मजबूर हो कर कह गया, पर तुम मुझ से ऐसा सलूक करो.’’

 मैं खामोशी से उतर कर अपने घर चली गई. कपड़े बदल कर अम्मा के पास आई और उन से कहा, ‘‘अम्मा, मैं कल से रशीद के साथ नहीं जाऊंगी, मेरी सहेली का भाई लेने आएगा.’’ दूसरे दिन शाम को चमचमाती कार मेरे दरवाजे पर खड़ी थी. मैं ने शाहनवाज को फोन कर के घर आने को कह दिया था. मैं ने अम्मा से कहा, ‘‘अम्मा, मेरी सहेली का भाई मुझे लेने गया है, मैं जा रही हूं लौटने में मुझे देर हो सकती है.’’ अम्मा बड़बड़ाती रह गई. मैं बाहर निकल गई. जैसे ही हमारी कार बाहर निकली, मैं ने रशीद को एक खंभे के सहारे उदास खड़े देखा.

हम महताब के घर जा कर सीधे समंदर किनारे चले गए. वहां उस की शानदार हट थी. ये मेरे लिए एकदम नई दुनिया थी. रात 12 बजे तक हम वहीं रुके और भविष्य के सपने बुनते रहे. वहां से मैं सीधी घर गई. दूसरे दिन भी यही सिलसिला रहा. मैं महताब की शादी में भी नहीं गई. मेरी बेरुखी के बावजूद रशीद चुपचाप हमारी खिदमत करता रहा. पता नहीं उस ने अब्बा से क्या कहा कि वह अम्मा से कहने लगे, ‘‘रशीद अच्छा लड़का है, देखाभाला. अच्छाखासा कमाता भी है. मैं ने तय किया है कि हुस्ना की शादी रशीद से कर दी जाए. वह सुखी रहेगी और हमारी आंखों के सामने भी.’’

अम्मा ने ऐतराज करना चाहा तो अब्बा बोले, ‘‘इस से अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा. रशीद हुस्ना को पसंद भी करता है. गरीब चपरासी की लड़की के लिए किसी शहजादे का रिश्ता तो आएगा नहीं.’’ मैं ने अब्बा से कहा, ‘‘अब्बा, मैं रशीद से शादी नहीं करना चाहती और वह भी नहीं चाहता.’’ मुझ पर शाहनवाज के इश्क का ऐसा नशा चढ़ा था कि जो दिल में आया, कह दिया. अब्बा उस वक्त खामोश हो गए. दूसरे दिन स्कूल से वापस लौटते हुए मैं रशीद की दुकान पर रुक गई. मैंने उस से रूखेपन से कहा, ‘‘तुम ने अब्बा से यह क्यों कहा कि मुझ से शादी करना चाहते हो?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम से मोहब्बत करता हूं और तुम अपनी सहेली के कजिन से शादी करना चाहती हो पर याद रखना वह फ्रौड है, तुम्हें धोखा देगा.’’

‘‘मैं तुम्हारी नसीहत सुनने नहीं आई हूं. मैं शाहनवाज से मोहब्बत करती हूं और शादी भी उसी से करूंगी. बेहतर यही है कि तुम बीच में से हट जाओ. तुम शादी वाली बात के लिए अब्बा से इनकार कर दो.’’

‘‘मैं तुम से सच्ची मोहब्बत करता हूं, तुम्हारी खुशी के लिए हर कुरबानी दूंगा. अगर तुम यही चाहती हो तो मैं शादी से इनकार कर दूंगा.’’

मुझे इस से कोई सरोकार नहीं था कि उस के दिल पर क्या गुजर रही है. मैं यह सोच कर खुश थी कि वह इनकार कर देगा. दूसरे दिन अब्बा ने रशीद को घर बुला कर मुझ से शादी के बारे में पूछा. उस ने उदासी से कहा, ‘‘चाचा, मैं आप की बड़ी इज्जत करता हूं. ये मेरी खुशनसीबी है कि आप ने मुझे अपना बेटा बनाने की सोची, पर मैं ने हुस्ना को अपनी बहन समझा है. मैं उस से शादी कैसे कर सकता हूं? आप हुस्ना की शादी किसी बड़े घर में करिएगा, जहां पर वह खुश रहे. यह भाई उस की शादी का खर्च उठाने को भी तैयार है.’’

मैं छिप कर सब सुन रही थी. उस ने कहा था, कर दिखाया. पहली बार अहसास हुआ कि उस की मोहब्बत सच्ची है. उन दिनों मैं स्कूल जाती थी, पर रास्ते में शाहनवाज मुझे पिक कर लेता था और हम घूमनेफिरने निकल जाते थे. वह अभी तक मुझे अपने घर ले कर नहीं गया था. इम्तिहान के बाद शाहनवाज के शादी के तकाजे बढ़ गए.

एक दिन वह 2 औरतों के साथ हमारे घर गया. उस ने बताया कि वे दोनों उस की खाला हैं. मैंने अम्मी को बता दिया था कि फाकिरा का कजिन रिश्ता लेकर आएगा. मुझे भी हैरानी हो रही थी कि फाकिरा क्यों नहीं आई, पर मैं चुप रही. मगर अम्मा ने खाला से पूछ ही लिया, ‘‘फाकिरा को साथ आना चाहिए था. वह बीच में है, फिर क्यों नहीं आई?’’

‘‘बहन, क्या बताएं खानदान की बात है, फाकिरा ये समझ रही थी कि शाहनवाज उस से शादी करेगा, पर जब उस ने शादी के लिए हुस्ना का नाम लिया तो वह चिढ़ गई. उस के घर वाले हम से नाराज हैं.’’

अम्मा बोली, ‘‘ कोई बहन मांबाप, हम किस की जिम्मेदारी पर हां कह दें, कोई तो बीच में होता.’’

‘‘बहन, आप फिक्र करें, शाहनवाज के मांबाप ने हमें पूरा अख्तियार दे रखा है. ये लीजिए, आप ये खत पढ़ लें जो उस के मांबाप ने हमें भेजा है. आप समझ जाएंगी.’’ इन औरतों ने एक खत अम्मा को पकड़ा दिया‘‘आप लोग ये खत छोड़ जाएं, मैं हुस्ना के अब्बा को दिखा कर पूछूंगी फिर कुछ जवाब दूंगी.’’

दोनों औरतों ने शाहनवाज के खानदान और उस की दौलत का ऐसा नक्शा खींचा कि अम्मा काफी हद तक राजी हो गईं. शाम को उन्होंने अब्बा को वह खत दिखाया और जोर दिया कि रिश्ता अच्छा है, हां कह दें. अब्बा ने दुनिया देखी थी. इस बात ने उन्हें जरा भी प्रभावित नहीं किया. अब्बा ने बहुत ऐतराज उठाए पर अम्मा और मेरी जिद के आगे उन की एक नहीं चली. अम्मा ने रिश्ता मंजूर कर लिया. 2 दिन बाद फिर वही दोनों खाला आईं, अम्मा ने उन्हें मंजूरी की इत्तिला दी तो उन्होंने मेरे हाथों में 10 हजार रुपए दिए और हीरे की अंगूठी पहनाई. इस तरह से मेरी मंगनी हो गई.

अम्मा को शादी और दहेज की फिक्र सताने लगी. लेकिन शाहनवाज की खालाओं ने कर यह चिंता भी दूर कर दी. उन्होंने कहा कि लड़के के पास सब कुछ है. दहेज के नाम पर कुछ नहीं लिया जाएगा. मेरे मांबाप ने मुझे कुछ चांदी के जेवर और एक सोने की चेन दी. मेरी शादी सादगी से संपन्न हो गई. मैं शाहनवाज के घर आ गई. इतना बड़ा और शानदार घर मैं ने पहले कभी नहीं देखा था. घर में मैं थी और एक बूढ़ी नौकरानी थी. मैं सुहाग सेज पर बैठी शाहनवाज का इंतजार कर रही थी कि नौकरानी ने आ कर कहा, ‘‘बीबीजी, आप सो जाएं, शाहनवाज मियां जब आएंगे, मैं आप को जगा दूंगी.’’

मुझे शाहनवाज पर बहुत गुस्सा रहा था कि सुहाग सेज पर मैं अकेली उस का इंतजार कर रही हूं और वह गायब है. ‘‘बीबीजी, साहब गए.’’ थोड़ी देर बाद नौकरानी ने कर बताया. मैं संभल कर बैठ गई. शाहनवाज अंदर दाखिल हुआ. उस के बैठते ही मुझे अंदाजा हो गया कि वह शराब पी कर आया है.

  ‘‘आप ने शराब पी है?’’ ‘‘हां, पी है तो क्या हुआ? हमारी क्लास में इसे बुरा नहीं समझा जाता. आइंदा इस बारे में कुछ नहीं कहना, पूछताछ करना.’’ मुझे उस से ऐसे जवाब लहजे की उम्मीद नहीं थी, पर मैं चुप रही. दूसरे दिन सुबह मेरा भाई, मेरी बहन और मोहल्ले की एक लड़की मेरे लिए नाश्ता ले कर आए. बहनभाई घर देख कर दंग रह गए. हम सब ने मिल कर नाश्ता किया. फिर मेरी बहन ने पूछा, ‘‘शाहनवाज भाई, अगर आप इजाजत दें तो बाजी को हम साथ ले जाएं?’’

शाहनवाज ने खुशी से इजाजत दे दी. मैं घर पहुंची तो औरतों की भीड़ लग गई. कोई कपड़े देखती तो कोई जेवर देखती. सब तारीफ करती रहीं, अम्मा खुश होती रही. शाम को शाहनवाज को लेने आना था. अम्मा ने रात के खाने का अच्छा इंतजाम किया. रशीद ने सामान लाने का जिम्मा खुद उठा लिया. वह 3-4 आइटम खुद ही बाजार से लेकर गया. उस ने मुझ से कोई बात नहीं की, नजरें झुका कर देखता रहा.

जब शाहनवाज आया तो मोहल्ले के बच्चे उस की गाड़ी घेर कर शोर मचाने लगे. उन के लिए यह बड़ी चीज थी. यह देख कर शाहनवाज को गुस्सा आ गया. वह चीख कर बोला, ‘‘अब कभी इस चिडि़याखाने में नहीं आऊंगा. बडे़ बेहूदा बच्चे हैं, इस मोहल्ले के.’’

उसी वक्त रशीद भी आ गया. उस ने रशीद से हाथ मिलाने के बजाय उस का हाथ झटक दिया. शाहनवाज ने अब्बा से पूछा, ‘‘ये साहब कौन हैं?’’ अब्बा ने कहा, ‘‘बेटा ही समझो, बचपन से घर आताजाता है.’’

‘‘अच्छा, तुम वही हो जो महताब की शादी में हुस्ना को छोड़ने आए थे. उस दिन किस की गाड़ी चुरा कर लाए थे?’’ ‘‘साहब, हम गरीब जरूर हैं पर शरीफ हैं. चोरी नहीं करते. आप बेवजह मुझ पर इलजाम लगा रहे हैं. चोर वो होते हैं जो गरीबों की दौलत समेट कर अमीर बनते हैं.’’

वह तन कर खड़ा हो गया और गुस्से में बोला, ‘‘अब मैं यहां एक मिनट नहीं रुक सकता, जहां बाहर के लोग मेरी बेइज्जती करें, चलो.’’ ऐसा लग रहा था जैसे वह पहले से ही यह सब सोच कर आया था. सब रोकते रह गए. शाहनवाज मेरा हाथ पकड़ कर मुझे घर ले कर गया. घर पहुंच कर मैं ने कहा, ‘‘ये आप को क्या हो गया था? आप ने सब की बेइज्जती कर दी.’’

‘‘बेइज्जती होती है इज्जत वालों की. तुम तो कह रही थीं, रशीद तुम्हारा भाई है.’’ ‘‘हां, हम उसे अपना भाई ही समझते हैं.’’ ‘‘खैर, आज के बाद तुम घर वालों से और रशीद से कोई ताल्लुक नहीं रखोगी. तुम वहां जाओगी, वहां से यहां कोई आएगा.’’ यह छोटी बात नहीं थी. मैं शाहनवाज से खूब लड़ी. बड़ी मुश्किल से वह इस बात पर राजी हुआ कि कभीकभी वह खुद मुझे मां से मिला कर ले आएगा. लेकिन अकेले नहीं जाने देगा.

शाहनवाज मुझे प्यार दे रहा था. इतने नाज उठा रहा था कि मैंने उस की यह शर्त भी मंजूर कर ली. 2 महीने बड़े आराम से गुजरे. वह मुझे एक बार अम्मा से मिला कर ले आया. फिर एक दिन बोला, ‘‘हमें ये कोठी छोड़ कर फ्लैट में जाना है.’’

मुझे पहली बार मालूम हुआ कि ये कोठी किराए की थी. मुझे इतना अच्छा घर छोड़ने का दुख तो हुआ पर फ्लैट भी बहुत शानदार था. वह भी किराए का था. फ्लैट में आकर मुझे शाहनवाज ज्यादा मुतमइन दिख रहा था. वह सारा दिन बाहर मसरूफ रहता था. मैंने एक दिन पूछ लिया, ‘‘आप तो कहते थे, आप कोई काम नहीं करते. फिर सारा दिन कहां गायब रहते हो?’’

वह गुस्से से बोला, ‘‘ये सब बातें तुम्हें जानने की जरूरत नहीं है कि मैं क्या करता हूं?’’ ‘‘मैं तो सिर्फ पूछ रही हूं, रोक नहीं रही.’’ ‘‘मैं तुम पर बहुत पैसे खर्च कर चुका हूं. उसे वसूल करने के जुगाड़ में लगा हूं.’’

उस की बात मेरी समझ में नहीं आई पर मैं चुप रही, ज्यादा पूछो तो चिढ़ जाता था. एक दिन उस ने मुझे तैयार होने को कहा और एक शानदार पार्टी में लेकर गया. शादी के बाद वह मुझे पहली बार कहीं ले कर निकला था. इस पार्टी में बड़ी बेशर्मी बेहूदगी थी. सब शराब पी रहे थे. डांस कर रहे थे. मुझे कुछ ठीक नहीं लगा. मैंने शाहनवाज से कहा, ‘‘यहां से चलिए, मेरा दिल घबरा रहा है.’’

‘‘थोड़ी देर में सब ठीक लगेगा. मेरे साथ रहना है तो ऐसी पार्टियों की आदत डाल लो.’’ मैं डर कर चुप हो गई. मैं रशीद को मनमाना सुना सकती थी, शाहनवाज को नहीं. मैं ने पहले कभी शराब नहीं पी थी, पर उस रात शाहनवाज ने मुझे जिद कर के शराब पिला दी. मेरी हालत खराब हो गई. जब मुझे होश आया तो एक अजनबी मेरे साथ था. घर खाली पड़ा था, मैं घबरा कर उठी और उस से पूछा, ‘‘शाहनवाज कहां है?’’ ‘‘अभी आता ही होगा. पहले तुम फ्रैश हो लो.’’ अजनबी ने बेफिक्री से जवाब दिया.

मैं अपनी तकदीर पर आंसू बहाने लगी. मेरा मुहाफिज ही मेरा लुटेरा बन गया. शाहनवाज आया तो मैं दौड़ कर उस से लिपट गई. ये मेरा भोलापन था, मैं अभी भी उसे अपना मुहाफिज समझ रही थी. ‘‘शाबाश, वेलडन. आओ, चलो घर चलें.’ अपने फ्लैट पर पहुंच कर मैं अपनी बेबसी पर फूटफूट कर रो पड़ी. वह मेरे पास कर बोला, ‘‘रोती क्यों हो, इसे हमारी क्लास में बुरा नहीं समझते.’’ ‘‘ये गलत है.’’

‘‘इस से ताल्लुकात बनते हैं और काम निकाले जाते हैं.’’ मैंने गुस्से से कहा, ‘‘मैं अपने घर जा रही हूं.’’ ‘‘उस घर में जहां रशीद होता है. बेकरार क्यों होती हो, मैं यहीं तुम्हें कई रशीद ला दूंगा.’’ ‘‘मैं देखती हूं, तुम मुझे जाने से कैसे रोकते हो?’’ उस ने मुझे चंद तसवीरें दिखाईं, जिन में मैं उस अजनबी के साथ गंदी हालत में थी. ‘‘अगर तुम ने कदम बाहर निकाला तो सब तसवीरें अखबारों में आ जाएंगी. फिर तुम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी और तुम्हारे मांबाप बेमौत मर जाएंगे. बहन घर बैठी रह जाएगी.’’

 ‘‘बस करो शाहनवाज, रहम करो मुझ पर.’’ ‘‘ठीक है, मैं जो कहता हूं, चुपचाप करती रहो.’’ बदनामी के डर ने मुझे खामोश कर दिया. इस का कारोबार अब मेरी समझ में आया वह गरीब लड़कियों से शादी करता था और उन से दौलत कमाता था. वह अकेला नहीं था, पूरा एक गिरोह था. शाहनवाज उस का एक मेंबर था. ये सब मुझे उस वक्त पता चला, जब वह मुझे इस फ्लैट से दूसरे फ्लैट ले कर गया. वहां मेरे जैसी खूबसूरत 4 लड़कियां और थीं. 

यहां पहुंच कर मालूम हुआ कि उस का ये धंधा बड़े पैमाने पर चलता है. कितने ही बड़े नामवर लोग उस के यहां आते थे. लड़कियां उन के पास जातीं, इन बड़े सरकारी लोगों की उस पर मेहरबानी थी, जिन की वजह से उस का कुछ नहीं होता था.

लड़कियां इस गोरखधंधे में मकड़ी के जाले में मक्खी की तरह फंसी हुई थीं. हम लोगों के कुछ खास फोन नंबर थे, जो हर एक को नहीं बताए जाते थे. कोई कस्टमर फोन करता, किसी खास नाम का हवाला देता, जो शाहनवाज तय करता था. फिर दूसरे फोन से काल कन्फर्म की जाती थी. इस बारे में इलाके के थानेदार को बताया जाता कि लड़की कहां भेजी जा रही है. बहुत ही सावधानी से सारा इंतजाम किया जाता था

इस काम के लिए पुलिस वालों की रकम तय थी. मैंने ऐसेऐसे लोगों को वहां देखा कि नाम ले देती तो जिंदा भी नहीं बचती. इतने असरदार लोगों के पास से भाग निकलना मेरे पूरे घर को मौत की दावत देना था. मैंने इस जिंदगी को नसीब समझ कर कबूल कर लिया. कभीकभी घर चली जाती. मेरे गरीब मांबाप मेरे कपड़े गाड़ी देख कर खूब खुश थे. दिल चाहता पैसों से उन की मदद करूं, मगर ये हराम की कमाई देने को दिल नहीं मानता था

रशीद को देख कर अफसोस होता. वह उदास अकेला उसी तरह मेरे मांबाप की मदद करता रहा. काश! मैं ने रशीद से शादी कर ली होती तो आज कितनी सुखी होती. वह सच कहता था कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती

अब तो अपने आप से शर्म आने लगी थी. मुझे मांबाप को आने की वजह बताने में मुश्किल होने लगी थी. कभीकभी लगता कि सच कह दूं लेकिन हिम्मत नहीं होती. आखिरकार मैं ने घर में मशहूर कर दिया कि मैं अमेरिका जा रही हूं. इस तरह अपने घर वालों की नजरों में हमेशा के लिए अमेरिका चली गई.

कुछ दिनों से शाहनवाज बहुत परेशान नजर रहा था. कई बार फोन पर उसे धमकियां मिलती थीं. गिरोह के लोगों का आनाजाना और मीटिंग बहुत बढ़ गई थी. बड़े लोगों से अकेले में खूब बहस होती. इन बातों से मुझे मालूम हो गया कि मामला बहुत गंभीर है

आखिर एक दिन सच्चाई सामने गई. पता चला कि दूसरे शहर से एक असरदार आदमी ने उस इलाके में कर यही धंधा शुरू कर दिया था. जिन्हें शाहनवाज पैसे भरता था, उन से यह मुहायदा था कि यहां कोई दूसरा यह कारोबार नहीं करेगा. अब जब उस रसूखदार ने धंधा शुरू कर दिया, पैसे खाने वालों ने हाथ खड़े कर दिए, क्योंकि उस आदमी का दबदबा और दहशत बहुत ज्यादा थी. उस का गिरोह भी शातिर था.

मैं 4 सालों से शाहनवाज के साथ थी. इतना तो जानती थी कि गैंगवार के नतीजे क्या हो सकते हैं. एक दिन विरोधी गुट ने हमारे फ्लैट पर हमला कर दिया. यहां भी सब तैयार बैठे थे. दोनों तरफ से खूब गोलियां चलीं. शुक्र है कोई मरा नहीं. केवल 1-2 लोग घायल हुए ‘‘ये तो केवल एक ट्रेलर था, असल जंग तो बाद में शुरू होगी.’’ शाहनवाज के एक साथी ने कहा.

शाहनवाज ने चिंता से कहा, ‘‘फैसला हमारे हक में नहीं होगा. क्योंकि पुलिस और बड़े लोग अब हमारे साथ नहीं हैं.’’ ‘‘तो क्या हम मैदान छोड़ देंगे बौस?’’ ‘‘अक्लमंदी इसी में है, कोई दूसरा मजबूत सहारा मिलने के बाद फिर नए जोश से खड़े होंगे.’’

शाहनवाज का इरादा वह जगह छोड़ देने का था, पर उसी रात को पुलिस का छापा पड़ गया. शाहनवाज और उस के साथी भाग निकले. हम 4 लड़कियां पुलिस के हत्थे चढ़ गईं. अखबार मीडिया को एक रंगीन कहानी मिल गई. हमारी तसवीरें अखबार टीवी का मसाला बन गईं.

हमें थाने ले जाया गया. फिर जेल में डाल दिया गया. वहां भी वही अफसर थे, जो हमारे यहां आते थे. हमें ठीक से रखा गया था. मैं रोरो कर बेहाल थी. ये खबर मेरे घर तक पहुंच गई थी. उन का क्या हाल होगा

मैं यहां से निकल कर कैसे मुंह दिखाऊंगी. खुदकुशी कर लूं तो रुसवाई कम नहीं होगी. हम जैसी लड़कियों से मिलने कौन आता है? लेकिन मुझे हैरत हुई, रशीद मुझ से मिलने आया. मैं ने कहा, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो? मैं तुम्हें मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही.’’

 ‘‘नहीं, ऐसा कहो, यह तो एक हादसा है जो किसी के भी साथ हो सकता है. तुम परेशान हो.’’ ‘‘सब घर वाले क्या कहते हैं, मेरे बारे में?’’ ‘‘कुछ नहीं, बस तुम जल्दी से घर जाओ.’’

  ‘‘मैं यहां से निकल कर घर नहीं सकती.’’ ‘‘पागल मत बनो, जब मैं हूं तो फिक्र करो.’’  ‘‘तुम नहीं जानते, ये लोग कितने खतरनाक हैं. शाहनवाज मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा.’’  ‘‘वह सब बाद में देखा जाएगा. अगर यह मुकदमा अदालत में गया तो अच्छा वकील कर के मैं तुम्हारा केस लड़ूंगा.’’

वकील करने की नौबत नहीं आई. एक महीने बाद हमें बिना कोई मुकदमा चलाए छोड़ दिया गया. उन लोगों में कुछ सांठगांठ हुई थी. मैं जेल से बाहर निकली तो शाहनवाज किसी बहुत इज्जतदार शहरी की तरह हमें लेने आया. मालूम हुआ इस की कोशिशों से रिहा हुई थी.

मैं सोचती रही कि कब शाहनवाज जैसे मुलजिम सजा पाएंगे. वह एक दिन भी जेल में नहीं रहा. उस के आकाओं ने उसे बचा लिया था. हम चारों को वह फिर अपने फ्लैट की तरफ ले जा रहा था. अभी हम ने क्लिफ्टन का पुल पार किया ही था कि चारों तरफ से गाड़ी पर गोलियों की बौछार होने लगी.

मैं होश में आई तो अस्पताल में एडमिट थी. वहां मालूम पड़ा शाहनवाज और 2 लड़कियों ने अस्पताल पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया था. एक गोली मेरे बाजू में लगी थी पर हड्डी सलामत थी. एक बार खबरों टीवी पर हमारी तसवीरें आने लगीं. दुनिया का कानून तो मुझे रिहाई दिला सका, पर कुदरत ने मुझे आजादी दे दी.

रशीद मुझे अस्पताल में देखने आया. एक बार फिर पुलिस मेरा बयान लेने गई. मेरा बयान फोटो फिर चर्चा का विषय बन गया. मैं काफी ठीक थी फिर भी पुलिस डिस्चार्ज करवाने में देर कर रही थी. रशीद की कोशिशों से मैं डिस्चार्ज हो गई. यह मेरी खुशकिस्मती थी कि मेरे घर वालों ने मुझे धिक्कारा नहीं, बल्कि मुझे कबूल कर लिया. नहीं तो मेरे पास खुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नहीं था. मैं ने अपनी इद्दत के दिन मांबाप के प्यार के साए में गुजारे. उस के बाद फिर मेरे घर में रशीद से मेरी शादी का जिक्र छिड़ गया.

मेरे मांबाप की मजबूरी मेरी हालत और अपनी मोहब्बत की खातिर रशीद मुझे सहारा देने को तैयार हो गया. लेकिन अब मैं अपने आप को उस महान आदमी के लायक नहीं समझती थी. कहां वह सीधासच्चा इंसान और कहां मैं गुनाहों के कीचड़ में लिथड़ी हुई एक बदनाम औरत

मैंने इनकार कर दिया. उस के सामने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘रशीद तुम मुझे अपनी ही नजरों में मत गिराओ. मैं कीचड़ में पड़ा मुरझाया, नोचाखसोटा हुआ फूल हूं. मुझे हाथ लगाओगे तो तुम खुद गंदे हो जाओगे. मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं. मैं तुम्हारी नौकरानी बनने के लायक भी नहीं, तुम शायद मेरे नसीब में थे, तभी तो मैं ने हीरा ठुकरा कर पत्थर चुना था. अब मैं ठुकराए जाने के लायक हूं.’’

आज भी रशीद मेरे घर की चौखट पकड़े बैठा है. वह जब भी आता है, मैं उस की नौकरानी की तरह खिदमत करती हूं. उस के आगेपीछे घूमती हूं. दुआ करिए, मैं जिंदगी में उसे वह खुशी दे सकूं, जो उस की दिली तमन्ना है.द्य

 

आग बुझने के बाद पुलिस कोठी में गई तो पैरों के तले जमीन खिसक गई

पंकज शर्मा और नीरज हृष्टपुष्ट युवक थे. वह चाहते तो कोई कामधंधा कर के अपनी जिंदगी चैन से काट सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. एक दिन दोनों ने कनाडा में रहने वाले अपने दोस्त के घर वालों को आस्तीन का सांप बनकर ऐसा डंसा कि…   

मृतसर के जीटी रोड से सटे व्यस्तम इलाके दशमेश एवेन्यू की कोठी नंबर 157 से 4-5 फरवरी की आधी रात के बाद अचानक धुआं उठने लगा. वह कोठी गगनदीप वर्मा की थी. फरवरी का महीना होने के कारण अधिक ठंड भी नहीं थी फिर भी लोग अपनेअपने घरों में घुसे हुए थेकोई राहगीर सड़क से गुजरा भी तो उस ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. कुछ ही देर में कोठी से आग की ऊंची लपटें उठने लगीं, जिन्होंने कोठी को चारों तरफ से घेर लिया था

आग बढ़ने पर मोहल्ले के तमाम लोग अपने घरों से निकल कर गगनदीप वर्मा की कोठी की तरफ दौड़ पड़े. सभी अपनेअपने तरीके से कोठी में लगी आग को बुझाने की कोशिश करने लगे. इस बीच किसी ने फायर ब्रिग्रेड और थाना सुलतानविंड पुलिस को सूचना दे दी थी. घटना की सूचना मिलते ही फायर ब्रिगे्रड के साथ थाना सुलतानविंड के थानाप्रभारी नीरज कुमार, एसआई राजवंत कौर, एएसआई अर्जुन सिंह, दर्शन कुमार, हवलदार लखविंदर कुमार, गुरनाम सिंह, बलविंदर सिंह, गुरमेज सिंह, हरजिंदर सिंह, कांस्टेबल सुनीता के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

आग की लपटें लगातार बढ़ती जा रही थीं. सुरक्षा के लिहाज से थानाप्रभारी ने आसपास के घरों को भी खाली करवा लिया था. फायर ब्रिग्रेड के कर्मचारी लगातार आग बुझाने की कोशिश में लगे रहे, तब कहीं सुबह साढ़े 6 बजे तक आग पर काबू पाया गया. आग बुझने के बाद पड़ोसी पुलिस के साथ जब कोठी के भीतर गए तो सब के पैरों तले से जमीन खिसक गई. भीतर का नजारा डरावना और दिल दहला देने वाला था. कोठी में मालकिन गगनदीप वर्मा और उन की बेटी शिवनैनी की झुलसी हुई लाशें पड़ी थीं. 

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. जिस के बाद अमृतसर के सीपी एस.एस. श्रीवास्तव, एडीसीपी जे.एस. वालिया, एडीसीपी हरजीत सिंह धारीवाल और एसीपी मंजीत सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को भी मौके पर बुलवा लिया.

 पुलिस जांच कर रही थी तभी वहां एक 48 वर्षीय संजीव वर्मा नाम का शख्स आया. वह खुद को गगनदीप वर्मा का भाई बता रहा था. उस ने बताया कि वह 2 भाईबहन थे. उस के पिता रामदेव और मां जीवन रानी की मृत्यु हो चुकी है. वह अपनी पत्नी गीता और बेटे चंदन के साथ जंडियाला गुरु स्थित मकान नंबर 1334 में रहता है. पेशे से वह डाक्टर है और घर के पास ही उस का क्लीनिक है.

पड़ोसियों से पूछताछ करने पर पता चला कि दोनों मांबेटी किसी से कोई संबंध नहीं रखती थीं. यहां तक कि पड़ोसियों के घर भी उन का कम आनाजाना था. शिवनैनी का शव जिस आपत्तिजनक हालत में मिला उस से रेप की आशंका जताई जा रही थी. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थानाप्रभारी को दिशा निर्देश दे कर चले गए. इसके बाद थानाप्रभारी नीरज कुमार ने जरूरी कार्रवाई कर के दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया.

पुलिस कमिश्नर ने थानाप्रभारी नीरज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच के जिला इंचार्ज इंसपेक्टर वविंदर महाराज को भी लगा दिया था. वे सब पुलिस अधिकारी इस दोहरे हत्याकांड की जड़ें खोदने में जुट गए. हत्या की वजह अभी तक सामने नहीं आई थी. लेकिन यह अनुमान लगाया गया कि हत्या में किसी करीबी का हाथ रहा होगा. गगनदीप वर्मा का बेटा रिधम कनाडा में रह रहा था. उसे भी मां और बहन की हत्या की सूचना दे दी गई. ताकि वह जल्द से जल्द इंडिया कर अपनी मां बहन की लाशें देख सके. थानाप्रभारी को इस बात की भी उम्मीद थी कि रिधम के आने के बाद शायद कोई ऐसी बात पता चल सके जिस से हत्यारों तक पहुंचने में मदद मिले.

बहरहाल पुलिस को इसी बात की आशंका थी कि वारदात में ऐसे शख्स का हाथ रहा होगा जिस का उस कोठी में आनाजाना रहा हो. यानी कोई नजदीकी व्यक्ति ही वारदात में शामिल रहा होगा. पुलिस ने मृतका गगनदीप के भाई डा. संजीव वर्मा से एक बार फिर पूछताछ की. उस ने बताया कि 25 साल पहले उस के मांबाप ने अपने जीतेजी गगनदीप वर्मा की शादी नवजोत सिंह के साथ कर दी थी. शादी के बाद एक बेटा रिधम और बेटी शिवनैनी पैदा हुई. दोनों बच्चों की अच्छी परवरिश होने लगी

इसके बाद नवजोत सिंह स्टडी करने कनाडा चला गया. इस के बाद वह वापस नहीं लौटा. मजबूरी में गगनदीप ने जंडियाला के सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल में क्लर्क की नौकरी कर ली. इसी से उन्होंने दोनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया. गगनदीप ने बेटे रिधम को भी अपने एक रिश्तेदार के माध्यम से कनाडा भेज दिया

घर पर केवल मांबेटी ही रह गए थे. ग्रैजुएशन के बाद शिवनैनी इन दिनों बीएड की तैयारी कर रही थी. जिस कोठी में यह दोनों रह रही थीं, वह उन्होंने 4 साल पहले ही बनवाई थी. कोठी क्या यह एक प्रकार का किला था. चारों तरफ से बंद, जहां उन की मरजी के बिना कोई परिंदा भी पर न मार सके. जब उन की कोठी इतनी सुरक्षित थी तो ऐसा कौन आ गया, जिस ने दोनों की हत्या कर दी, पुलिस यह बात नहीं समझ पा रही थी.

पुलिस की जांच की सुई गगनदीप के रिश्तेदारों और पहचान वालों पर कर अटक गई. पुलिस ने मृतका गगनदीप और उन की बेटी के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स खंगालनी शुरू कीं. साथ ही यह भी जांच की कि घटना वाली रात को दशमेश एवेन्यू एरिया में स्थित फोन टावर के संपर्क में कितने फोन नंबर आए थेउन फोन नंबरों की भी पुलिस ने जांच शुरू कर दी. अगले दिन दोनों लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया. पोस्टमार्टम के समय पुलिस ने वीडियोग्राफी भी करवाई. कनाडा से मृतका का बेटा भी पंजाब नहीं लौट सका. उस की गैरमौजूदगी में दोनों लाशों का अंतिम संस्कार किया गया.

साइबर क्राइम सेल फोन नंबरों की जांच में जुटी हुई थी. साइबर सैल ने शिवनैनी की फेसबुक आईडी को भी अच्छी तरह खंगालना शुरू किया. पुलिस ने शक के आधार पर एक दरजन से ज्यादा हिस्ट्रीशीटरों अन्य लोगों को भी पूछताछ के लिए उठाया. लेकिन उन से कोई सफलता नहीं मिली. पुलिस टीम हत्या के इस मामले को कहीं नहीं कहीं अवैध सबंधों से जोड़ कर भी देख रही थी. रिधम ने फोन पर हुई बात में इस हत्याकांड के पीछे अपने किसी रिश्तेदार का हाथ होने की शंका जताई.

पुलिस ने जब तफ्तीश की तो इस मामले में शहर के 2 बडे़ नेताओं के नाम सामने आए. यह नाम मांबेटी के फोन नंबरों की काल डिटेल्स खंगालने के बाद सामने आए थे. इस दोहरे हत्याकांड के 48 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली रहे. उधर रिधम भी कनाडा से नहीं लौट पाया था. गगनदीप और एक पार्षद के बीच फोन पर जो बातचीत होने के सबूत मिले थे, उस ने उन दोनों के संबंधों को भी शक के दायरे में ला कर खड़ा कर दिया था.

थानाप्रभारी नीरज और इंसपेक्टर वविंदर महाराज पूरे मामले की कड़ी से कड़ी जोड़ कर विचारविमर्श कर रहे थे कि अचानक थानाप्रभारी का ध्यान रिधम के खास दोस्तों 21 वर्षीय पंकज शर्मा और 18 वर्षीय नीरज निवासी गुरु गोविंदसिंह नगर की ओर गया. हालांकि यह एक संभावना थी. इस का कोई ठोस सबूत या वजह नहीं थी, फिर भी वह पंकज शर्मा और नीरज से पूछताछ के लिए उन के घर पहुंच गए. वहां पता चला कि पंकज और नीरज दोनों ही गरीब परिवारों से हैं. पंकज के पिता सोफा मरम्मत का काम करते हैं जबकि नीरज ओपन स्कूल से पढ़ाई करता है. दोनों ही दोस्त आवारा किस्म के थे. मौजमस्ती और अपने खर्चे के लिए वह छोटीमोटी चोरी और ठगी भी करते थे. 

पुलिस टीम जब पंकज के घर पहुंची तो पंकज के पिता ने बताया कि पंकज और नीरज 5 फरवरी की रात से गायब हैं. इस के बाद उन दोनों पर पुलिस का शक बढ़ गया. पुलिस उन की तलाश में जुट गईएक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. थाने लाकर जब उन से गगनदीप और उन की बेटी की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही गगनदीप और उन की बेटी की हत्या कर के कोठी में आग लगाई थी. उन्होंने उन की हत्या की जो कहानी बताई वह आस्तीन का सांप बन कर डंसने वाली निकली.

दरअसल पंकज और नीरज की गगनदीप के बेटे रिधम से अच्छी दोस्ती थी. दोस्ती के नाते उन का गगनदीप के यहां आनाजाना था. कुछ दिनों पहले रिधम कनाडा चला गया तो पंकज और नीरज का उन के यहां आनाजाना  बंद हो गया. ये दोनों दोस्त कोई कामधंधा करने के बजाए दिन भर नशा कर के खाली घूमते थे. साथ ही उन्हें अय्याशी का भी शौक लग गया था.

अपने शौक पूरे करने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत पड़ती थी, लिहाजा उन्होंने छोटीमोटी चोरियां करनी शुरू कर दीं. साथ ही कोई लालच दे कर लोगों को ठग लेते. लेकिन अभी तक दोनों कभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़़े थे.

दोनों कोई ऐसा काम करने की सोच रहे थे जिस से उन के हाथ मोटा पैसा लग सके और रोजरोज की छोटीमोटी चोरी करनी पड़े. 4 फरवरी, 2018 को दोनों इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे, तभी पंकज बोला, ‘‘यार मेरे पास एक बिना रिस्क का आसान तरीका है. इस में इतना पैसा मिलेगा कि हम रात दिन ऐश कर सकते हैं और मजे की बात यह है कि हम पर किसी को रत्ती भर भी शक भी नहीं होगा.’’ पंकज ने बताया.

 नीरज ने खुश होते हुए कहा, ‘‘जल्दी भौंक, देर क्यों कर रहा है. और यह भी कि करना क्या है?’’ ‘‘रिधम के घर डकैती.’’ पंकज बोला. ‘अबे तेरा दिमाग तो खराब नहीं है.  जानता नहीं वह हमारा बचपन का दोस्त है. हम साथ खेले और साथ खातेपीते रहे हैं. नहीं, यह गलत काम है.’’ नीरज ने साफ मना कर दिया.

‘‘अबे गधे उन के पास करोड़ों रुपया है और फिर रिधम भी आजकल कनाडा में है. हम पर कौन शक करेगा?’’ पंकज ने समझाया. बाद में पंकज की बात उस की समझ में गई. पंकज नीरज को पता था कि इस समय दोनों मांबेटी घर में अकेली रहती हैं. इसलिए वहां काम को अंजाम देना आसान हो जाएगा. योजना के अनुसार पंकज शर्मा नीरज कुमार ने बाजार से क्लोरोफार्म की शीशी खरीद ली और 4-5 फरवरी की रात सवा 8 बजे गगनदीप वर्मा के घर चले गए. गगनदीप दोनों को अच्छी तरह जानती ही थीं. इसलिए उन्होंने दरवाजा खोल दिया. दोनों हत्यारोपी अंदर जा कर बैठ गए

चाय पीने के बाद पंकज शर्मा ने गगनदीप को क्लोरोफार्म सुंघाई, जिस से वह बेहोश हो कर बिस्तर पर गिर गईं. इस के बाद दोनों ऊपर की मंजिल पर बैठी शिवनैनी के कमरे में दाखिल हुए और उसे भी क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश कर दिया. दोनों आरोपियों ने घर की तलाशी ली और कुछ ज्वैलरी के साथसाथ नकदी भी चुरा ली. नीयत खराब होने पर दोनों ने बेहोशी की हालत में पड़ी शिवनैनी से अश्लील हरकतें भी कीं. 

गगनदीप और उन की बेटी के होश में आने पर उन का भेद खुलना लाजिमी था. इसलिए उन्होंने सुबूत मिटाने के लिए गगनदीप उन की बेटी शिवनैनी की हत्या करने की योजना बनाई. उन्होंने कोठी में आग लगा दी और मौके से फरार हो गए.

पुलिस ने पंकज और नीरज से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें अदालत पर पेश कर के 5 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान दोनों अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने 85 ग्राम सोने, चांदी की ज्वैलरी, एक टेबलेट, कैमरा, लैपटौप अन्य कीमती सामान बरामद कर लिया.

 पुलिस ने रिमांड अवधि समाप्त होने पर अभियुक्त पंकज और नीरज को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.  

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित