Social Crime Stories : 20 लाख के लिए साले ने किया जीजा के भाई का कत्ल

Social Crime Stories : आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया. थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर को भी दे दी थी. पुलिस इस मामले में तत्परता से लग गई. इमरान के मोबाइल जब बंद हुए थे, तब वे वाटर वर्क्स और रामबाग चौराहे के टावरों की सीमा में थे. काल डिटेल्स में ऐसा कोई भी नंबर नहीं था, जिस पर संदेह किया जाता. जो भी फोन आए थे या किए गए थे, वे अपनों को ही किए गए थे या आए थे. जैसे कि इरफान, पूर्व विधायक के घर के नंबरों व भोलू के नंबरों के थे. एक दिन पहले भी इरफान या भोलू के फोन आए थे या इन्हें ही किए गए थे. चूंकि पुलिस को इन फोनों में कुछ नया या संदेहास्पद नजर नहीं आया, इसलिए पुलिस अन्य बातों पर विचार करने लगी.

इस काल डिटेल्स और लोकेशन की एकएक कौपी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक पवन कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को भी दी गई थी. इन अधिकारियों ने जब काल डिटेल्स और लोकेशन का अध्ययन किया तो उन्हें एक नंबर पर संदेह हुआ. पुलिस ने उस नंबर की लोकेशन निकलवाई तो यह संदेह और बढ़ गया. यह आदमी कोई और नहीं, इरफान का साला भोलू था, जो इमरान के साथ बैंक आता जाता था.

पुलिस ने भोलू को थाने बुलाया तो उस के साथ पूरा परिवार ही चला आया. सभी पुलिस से उस पर शक की वजह पूछने लगे तो क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ ने कहा, ‘‘पुलिस शक के आधार पर ही अभियुक्तों तक पहुंचती है. हम किसी पर भी शक कर सकते हैं. वह सगा हो या पराया. आप लोग निश्चिंत रहें, हम किसी निर्दोष व्यक्ति को कतई नहीं फंसाएंगे.’’

क्षेत्राधिकारी के इस आश्वासन पर सभी को विश्वास हो गया कि भोलू को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है. क्योंकि वही उस के साथ बैंक आताजाता था. पुलिस भोलू से पूछताछ करती रही, जबकि वह स्वयं को निर्दोष बताते हुए पुलिस की इस काररवाई को अपने साथ अन्याय कहता रहा था. इस तरह 4 दिसंबर का दिन भी बीत गया. कोई जानकारी न मिलने से इमरान के घर वालों की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 5 दिसंबर की सुबह आगरा से यही कोई 20 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे से सटे गांव चौगान के पंचमुखी महादेव मंदिर के पुजारी ने एक्सप्रेसवे से सटे एक गड्ढे में एक Social Crime Stories युवक की लाश देखी. चूंकि लाश खून से लथपथ थी, इसलिए उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी ने इस अभागे को मार कर यहां फेंक दिया है.

पुजारी ने इस घटना की सूचना ग्रामप्रधान को दी तो उस ने इस बात की जानकारी थाना एत्मादपुर पुलिस को दे दी. थाना एत्मादपुर पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उन्होंने इस बात की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही उन्होंने मृतक का हुलिया भी बता दिया था. थाना एत्मादपुर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया था, वह 3 दिसंबर की शाम से लापता इमरान से हुबहू मिल रहा था. इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार, समीर सौरभ के अलावा कई थानों का पुलिस बल एवं इमरान के घर वालों को साथ ले कर गांव चौगान पहुंच गए.

शव इमरान का ही था. हत्यारों ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था. उसे गोली तो मारी ही थी, उस का गला भी काट दिया था. पुलिस ने जहां लाश पड़ी थी, वहीं से थोड़ी दूरी पर पड़े चाकू और पिस्टल को भी बरामद कर लिया था. साफ था, इन्हीं से इमरान की हत्या की गई थी. हत्या करने वाले दोनों चीजें वहीं फेंक गए थे. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा मैडिकल कालेज भिजवा दिया. लाश बरामद होने से साफ हो गया कि इमरान की हत्या हो चुकी है. लाश के पास उस की कार और पैसे नहीं मिले थे, इस का मतलब यह हत्या उन्हीं पैसों के लिए की गई थी, जो वह बैंक से ले कर चला था. लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने भोलू से सख्ती से पूछताछ शुरू की. इस की वजह यह थी कि पुलिस के पास उस के खिलाफ अब तक पुख्ता सुबूत मिल चुके थे.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की 3 दिसंबर की लोकेशन निकलवाई तो चौगान की मिली थी. पुलिस ने इसी लोकेशन को आधार बना कर भोलू के साथ सख्ती की तो उसे इमरान की हत्या की बात स्वीकार करनी ही पड़ी. इस के बाद उस ने अपने उस साथी का भी नाम बता दिया, जिस के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था. इमरान की हत्या का राज खुला तो इमरान के घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार और दोस्त यार भी हैरान रह गए. हैरान होने वाली बात ही थी. इमरान की हत्या करने वाला भोलू इमरान के बड़े भाई का साला तो था ही, इमरान का पक्का दोस्त भी था. इस के बावजूद उस ने हत्या कर दी थी. आइए, अब यह जानते हैं कि आखिर भोलू ने ऐसा क्यों किया था?

हाजी सलीमुद्दीन और हाजी मोहम्मद आशिक, दोनों सगे भाई आगरा के ताजगंज के कटरा उमर खां में रहते हैं. हाजी मोहम्मद आशिक के बड़े बेटे मोहम्मद जुल्फिकार अहमद भुट्टो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं. मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो भुट्टो की प्रदेश में खासी इज्जत थी. इस की वजह यह थी कि वह मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खासमखास थे. भुट्टो के विधायक रहते हुए आगरा के कुबेरपुर स्थित उन के स्लाटर हाउस ने खासी तरक्की की. इस की खपत एकाएक बढ़ गई. काम बढ़ा तो वर्कर भी बढ़ गए. तभी उन्होंने अपने चाचा सलीमुद्दीन के बड़े बेटे इरफान को अपने स्लाटर हाउस का हिसाबकिताब देखने के लिए रख लिया. इरफान को यह काम पसंद आ गया तो 2 साल पहले उस ने अपने छोटे भाई इमरान को भी अपनी मदद के लिए स्लाटर हाउस में रख लिया.

20 वर्षीय इमरान मेहनती युवक था. स्लाटर हाउस में नौकरी करने से पहले वह ताजमहल में गाइड का काम करता था. वहां वह ठीकठाक कमाई कर रहा था, लेकिन जब भुट्टो ने उस से इरफान की मदद के लिए स्लाटर हाउस में काम करने को कहा तो उस ने गाइड का काम छोड़ दिया और भाई के स्लाटर हाउस का काम देखने लगा. 5 भाइयों में सब से छोटे Social Crime Stories इमरान ने स्लाटर हाउस में आते ही रुपयों के लेनदेन से ले कर बाहर के सारे काम संभाल लिए. इस तरह इमरान ने आते ही इरफान का बोझ आधा कर दिया.

इरफान की शादी हो चुकी थी. उस का विवाह आगरा शहर के ही वजीरपुरा के रहने वाले अहसान की बेटी सीमा के साथ हुआ था. उस के ससुर दरी के अच्छे कारीगर थे, इसलिए उन का दरियों का कारोबार था. उन के इंतकाल के बाद इस पुश्तैनी काम में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखाई दिया तो उन के सब से छोटे बेटे भोलू ने जूतों के डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. जबकि उस के 3 अन्य भाई और चाचा दरी का पुश्तैनी कारोबार ही करते रहे. भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा. किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा. बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली. 2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा. तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली. भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी. दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

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पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affairs : आशिक मिजाज ससुर की कातिल बहू

Extramarital Affairs : गीता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना बहेड़ी के गांव फरीदपुर के रहने वाले गंगाराम की दूसरे नंबर की बेटी थी. गंगाराम की गिनती गांव के  संपन्न किसानों में होती थी. उन की 3 शादियां हुई थीं. पहली पत्नी रमा की बीमारी से मौत हो गई तो उन्होंने सुधा से शादी की. पारिवारिक कलह की वजह से उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली तो उन्होंने तीसरी शादी रेशमा से की.

रेशमा से ही उन्हें 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी ललिता की उन्होंने उम्र होने पर शादी कर दी थी. उस से छोटी गीता का 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने पढ़ाई छोड़ दी. गीता जिस उम्र में थी, अगर उस उम्र ध्यान न दिया जाए तो बच्चों को बहकते देर नहीं लगती. वे सही गलत के फर्क को समझ नहीं पाते. ऐसा ही कुछ गीता के साथ भी हुआ.

गीता गंगाराम के अन्य बच्चों से थोड़ा अलग हट कर थी. वह जिद्दी थी, इसलिए उस के मन में जो आता था, वह हर हाल में वही करती थी. उसे लड़कों की तरह रहना, उन्हीं की तरह दोस्ती करना और बिंदास घूमते हुए मस्ती करना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था. इसलिए वह लड़कों की तरह कपड़े तो पहनती ही थी, अपने बाल भी लड़कों की ही तरह कटवा रखे थे. वह अकसर गांव के लड़कों के साथ घूमती रहती थी. उम्र के साथ उस के बदन में ही नहीं, सुंदरता में भी निखार आ गया था.

गंगाराम के पास ट्रैक्टर भी था और मोटरसाइकिल भी. गीता दोनों ही चीजें चला लेती थी. इसलिए उस का जब मन होता, वह मोटरसाइकिल ले कर घूमने निकल जाती. उसे लड़कों से कोई परहेज नहीं था, इसलिए गांव के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे. गीता नादान तो थी नहीं कि उन लड़कों की मंशा न समझती, इसलिए अपने बिंदासपन से वह उन्हें अंगुलियों पर नचाती रहती थी. लेकिन उन लड़कों को इस का फायदा भी मिलता था. वे लड़के गीता से जो चाहते थे, वह उन्हें मिला भी.

फिर तो गांव में गीता को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस सब की जानकारी गीता के पिता गंगाराम को हुई तो उस ने गीता पर बंदिशें लगाईं. लेकिन गीता अब काबू में आने वाली कहां थी. कोई न कोई बहाना बना कर वह घर से निकल जाती. कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस डर से गंगाराम गीता के लिए लड़के की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस की यह तलाश खत्म हुई और उसे बरेली के ही थाना नवाबगंज के गांव लावाखेड़ा निवासी परमानंद का बेटा मनोज मिल गया.

परमानंद भी किसान थे. उस के पास भी ठीकठाक खेती थी, जिस की वजह से उस के यहां भी गांवदेहात के हिसाब से किसी चीज की कमी नहीं थी. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे मनोज तथा चैतन्य स्वरूप थे. बेटियों का वह विवाह कर चुका था. अब मनोज का नंबर था. यही वजह थी कि जब गंगाराम उस के यहां अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से रिश्ता ले कर पहुंचा तो बात बन गई. इस के बाद सारे रस्मोरिवाज पूरे कर के मनोज और गीता को शादी के गठबंधन में बांध दिया गया. यह शादी फरवरी, 2009 में हुई थी.

गीता सुंदर तो थी ही, साथ ही उस में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो पुरुषों को दीवाना बना देते हैं. यही वजह थी कि गीता ने अपनी अदाओं से पहली ही रात में मनोज को अपना दीवाना बना दिया था. गीता पहली ही रात में समझ गई कि उसे पति उस के मनमाफिक मिला है. वह जैसा सीधासादा, अंगुलियों पर नाचने वाला पति चाहती थी, मनोज ठीक वैसा ही निकला था.

2-4 दिनों में ही मनोज गीता के हुस्न में इस कदर खो गया कि हर पल, हर जगह उसे गीता ही गीता नजर आने लगी. उस का गीता को छोड़ कर कहीं जाने का मन ही न होता. खेतों पर भी उस का मन न लगता. लेकिन जिम्मेदारी ऐसी चीज है, जो पत्नी तो क्या, मांबाप से भी दूर होने को मजबूर कर देती है. यही हाल मनोज का भी हुआ. साल भर बाद वह एक बेटे का बाप बना तो खर्च बढ़ते ही उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगा.

इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मनोज को कमाना धमाना जरूरी था, जिस के लिए वह ऊधमसिंहनगर चला गया. वहां उसे टाटा मैजिक के लिए पुर्जे बनाने वाली अल्ट्राटेक कंपनी में नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने शांति कालोनी रोड स्थित बधईपुरा में जागरलाल के मकान में किराए पर कमरा ले लिया.

कमाईधमाई के लिए मनोज खुद तो ऊधमसिंहनगर चला गया था, लेकिन घरवालों की देखरेख के लिए गीता को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ गया था. उस ने एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बिना गीता का मन गांव में कैसे लगेगा. शायद उसे लग रहा था कि जिस तरह वह पत्नीबच्चे और परिवार के लिए त्याग कर रहा है, उसी तरह गीता भी कर लेगी.

लेकिन मनोज की यह सोच गलत साबित हुई. क्योंकि गीता को तो शारीरिक संबंधों का चस्का पहले से ही लगा हुआ था. ऐसे में वह बिना पति के कैसे रह सकती थी. उस का दिन तो घर के कामधाम और बच्चे में कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. बेचैनी से वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी. शारीरिक सुख के बिना वह बुझीबुझी सी रहती थी. उस की इस बेचैनी और परेशानी को घर का कोई दूसरा सदस्य भले ही नहीं समझ सका, लेकिन पितातुल्य ससुर परमानंद ने जरूर समझ लिया था.

इस की वजह यह थी कि परमानंद लंगोट का कच्चा था. उस के लिए रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण स्त्री का शरीर था. शायद यही वजह थी कि गीता को उस ने देखते ही पसंद कर लिया था. परमानंद अपनी बहू पर शुरू से ही फिदा था. लेकिन बेटे के रहते वह बहू के करीब नहीं जा पा रहा था. बहू के नजदीक जाने के लिए ही उस ने बेटे को जिम्मेदारी का अहसास दिला कर उसे घर से बाहर भेज दिया था.

मनोज के जाने के बाद गीता की बेचैनी बढ़ी तो परमानंद गीता के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. वह उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ने लगा. गीता उस से बातें करती तो वह अकसर बातें करते करते अपनी सीमाएं लांघ जाता. वह उसे कोई सामान पकड़ाती तो सामान पकड़ने के बहाने वह उसे छूने (Extramarital Affairs) की कोशिश करता. ससुर की इन हरकतों से अनुभवी गीता को समझते देर नहीं लगी कि वह उस से क्या चाहता है. गीता को शक तो पहले से ही था, लेकिन जब निगाहें बदलीं और परमानंद बातबात में हंसीमजाक करने लगा तो उस का शक यकीन में बदल गया.

परमानंद देखने में ही जवान नहीं था, बल्कि शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. इस की वजह यह थी कि वह अपने शरीर और खानपान का विशेष ध्यान रखता था. बच्चे सयाने हो गए हैं, यह कह कर पत्नी उर्मिला उसे पास नहीं फटकने देती थी. जबकि परमानंद अभी खुद को जवान समझता था और स्त्रीसुख की लालसा रखता था.

परमानंद को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि गीता उस की बेटी की उम्र की तो है ही, उस की बहू भी है. वह वासना में इस कदर अंधा हो गया था कि मर्यादा ही नहीं, रिश्ते नाते भी भूल गया. गीता अब उसे सिर्फ एक औरत नजर आ रही थी, जो उस की शारीरिक भूख शांत कर सकती थी. यहां परमानंद ही नहीं, गीता भी अपनी मर्यादा भुला चुकी थी. यही वजह थी कि वह परमानंद की किसी अशोभनीय हरकत का विरोध नहीं कर रही थी, जिस से उस की हिम्मत और हसरतें बढ़ती जा रही थीं. फिर तो एक स्थिति यह आ गई कि परमानंद की रात की नींद गायब हो गई. अब वह मौके की तलाश में रहने लगा.

आखिर उसे एक दिन तब मौका मिल गया, जब पत्नी मायके गई हुई थी. गरमी के दिन होने की वजह से बाकी बच्चे अंदर सो रहे थे. गीता घर के काम निपटा कर बाहर दालान में आई तो ससुर को बेचैन हालत में करवट बदलते देखा. उसे लगा ससुर की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस के पास आ कर पूछा, ‘‘लगता है, आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

परमानंद हसरत भरी निगाहों से गीता को ताकते हुए बोला, ‘‘तुम इतनी दूरदूर रहोगी तो तबीयत ठीक कैसे रहेगी.’’

गीता को परमानंद की बीमारी का पहले से ही पता था. बीमार तो वह खुद भी थी. इसीलिए तो मौका देख कर उस के पास आई थी. उस ने चाहतभरी नजरों से परमानंद को ताकते हुए कहा, ‘‘यह आप का भ्रम है. मैं आप से दूर कहां हूं बाबूजी. आप के आगेपीछे ही तो घूमती रहती हूं.’’

अब गीता इस से ज्यादा क्या कहती. परमानंद ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वह खुद ही उस के ऊपर गिर पड़ी. इस तरह एक बार मर्यादा की दीवार गिरी तो उस पर रोजरोज वासना की इमारत खड़ी होने लगी. गीता का तो मर्यादा से कभी कोई नाता ही नहीं रहा था, उसी में उस ने ससुर को भी शामिल कर लिया. परमानंद की संगत में आ कर वह शराब भी पीने लगी. अब वह शराब पी कर ससुर के साथ आनंद उठाने लगी. कुछ दिनों बाद उस ने अपने चचिया ससुर से भी संबंध बना लिए.

ये ऐसा रिश्ता है, जिसे कितना भी छिपाया जाए, छिपता नहीं है. किसी दिन उर्मिला ने गीता को परमानंद के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. जब घर का मुखिया ही पतन के रास्ते पर चल रहा हो तो घर के अन्य लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उर्मिला भी जब ससुरबहू के इस मिलन को नहीं रोक पाई तो उस ने यह बात अपने बेटे मनोज को बताई.

मनोज जानता था कि उस का बाप और पत्नी बरबादी की राह पर चल रहे हैं, इसलिए वह भाग कर गांव आया. बाप से वह कुछ कह नहीं सकता था, उस ने गीता को समझाने की कोशिश की. लेकिन गीता अब कहां मानने वाली थी. हार कर मनोज उसे अपने साथ ले गया. मनोज का विचार था कि गीता साथ रहेगी तो ठीक रहेगी. लेकिन जिस की आदत बिगड़ चुकी हो, वह कैसे सुधर सकती है. बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ऐसे मामलों में सुधरने के बारे में सोचते हैं.

मनोज के नौकरी पर जाते ही गीता आजाद हो जाती. वह कमरे में ताला डाल कर घूमने निकल जाती. उस ने वहां भी अपने रंगढ़ंग दिखाने शुरू किए तो वहां भी रंगीनमिजाज लोग उस के पीछे पड़ गए. उन्हीं में रुद्रपुर की आदर्श कालोनी का रहने वाला शेखर और जगतपुरा का रहने वाला मनोज भटनागर भी था. गीता के दोनों से ही प्रेमसंबंध बन गए. शेखर ने बातें करने के लिए गीता को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. यही नहीं, दोनों गीता की हर जरूरत पूरी करने को तैयार रहते थे. गीता उन के साथ घूमतीफिरती, सिनेमा देखती, होटलों और रेस्तरांओं में खाना खाती. बदले में वह उन्हें खुश करती और खुद भी खुश रहती.

मनोज जागरलाल के जिस मकान में किराए पर रहता था, उसी में उस के बगल वाले कमरे में रामचंद्र मौर्य रहता था. वह जिला बरेली के थाना मीरगंज के अंतर्गत आने वाले गांव गौनेरा का रहने वाला था. था तो वह शादीशुदा, लेकिन वहां वह अकेला ही रहता था. वह वहां एक फैक्ट्री में ठेकेदारी करता था. अगलबगल रहने की वजह से मनोज और रामचंद्र के बीच परिचय हुआ तो दोनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन में आपस में खास लगाव हो गया था. जल्दी ही रामचंद्र गीता के बारे में सब कुछ जान गया था. मनोज के काम पर जाते ही वह उस के कमरे पर पहुंच जाता और गीता से घंटों बातें करता रहता.

पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर गीता समझ गई कि रामचंद्र उस के कमरे पर क्यों आता है. वह जान गई कि पत्नी से दूर औरत सुख के लिए बेचैन रामचंद्र उसी के लिए उस के आगेपीछे घूमता है. रामचंद्र गीता से दोगुनी उम्र का था. लेकिन गीता के लिए इस का कोई मतलब नहीं था. उसे मतलब था तो सिर्फ देहसुख और पैसों से, जो चाहने वाले उस पर लुटा रहे थे. तरहतरह के मर्दों के साथ मजा लेने वाली गीता को रामचंद्र का आना अच्छा ही लगा. इसलिए गीता उस का मुसकरा कर स्वागत करने लगी.

फिर तो रामचंद्र को उस के करीब आने में देर नहीं लगी. जल्दी ही दोनों के मन ही नहीं, तन भी एक हो गए. लेकिन जितनी जल्दी वे एक हुए, उतनी ही जल्दी उन की पोल भी खुल गई. एक दिन मनोज फैक्ट्री से जल्दी आ गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो गीता ने दरवाजा काफी देर बाद खोला. वह मनोज को देख कर चौंकी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे, इसलिए मनोज को लगा, वह सो रही थी. गीता ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘फैक्ट्री का जनरेटर खराब था, इसलिए काम नहीं हुआ.’’ कह कर मनोज कमरे में दाखिल हुआ तो सामने पलंग पर रामचंद्र को बैठे देख कर उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. मनोज को देख कर वह तेजी बाहर निकल गया. मनोज ने गुस्से से पूछा, ‘‘यह यहां क्या कर रहा था?’’

‘‘पानी पीने आया था.’’ गीता ने हकलाते हुए कहा.

‘‘कमरा बंद कर के पानी पिला रही थी या उस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी?’’

‘‘तुम्हें यह कहते शरम नहीं आती?’’ गीता चीखी.

‘‘शरम तो तुम्हें आनी चाहिए, जो एक के बाद एक गलत हरकतें करती आ रही हो. अपने मर्द के होते हुए पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. तुम्हें तो शरम से डूब मरना चाहिए.’’

‘‘तुम में है ही क्या? तुम न तो पत्नी को संतुष्ट (Extramarital Affairs)  कर सकते हो, न ही उस के खर्चे उठा सकते हो. अगर तुम को इस सब से परेशानी हो रही है तो मुझे छोड़ दो.’’ गीता ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तू तो चाहती ही है कि मैं तुझे छोड़ दूं तो तू घूमघूम कर गुलछर्रे उड़ाए. तुझे तो अपनी इज्जत की पड़ी नहीं है, लेकिन मुझे तो अपनी इज्जत की फिक्र है. इसलिए सामान बांध लो और अब हम गांव चलते हैं.’’

अगले दिन मनोज ने नौकरी छोड़ दी और हिसाबकिताब ले कर गांव आ गया. कुछ दिनों गांव में रह कर मनोज अकेला ही दिल्ली चला गया, जहां किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करने लगा. उस के जाते ही गीता फिर आजाद हो गई. अब वह वही करने लगी, जो उस के मन में आता. शेखर और मनोज उस से मिलने उस की ससुराल भी आने लगे. मनोज के पास मोटरसाइकिल थी, गीता का जब मन होता, मोटरसाइकिल ले कर अकेली ही बरेली से रुद्रपुर चली जाती और अपने प्रेमियों से मिल कर वापस आ जाती.

रामचंद्र से गीता को विशेष लगाव था. वह उसी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताती थी. जब इस सब की जानकारी परमानंद को हुई तो उस ने गीता को रोका. लेकिन वह मानने वाली कहां थी. उस ने एक दिन गीता को रामचंद्र के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने सरेआम रामचंद्र की पिटाई कर दी. रामचंद्र को यह बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था.

गीता को भी ससुर की यह हरकत पसंद नहीं आई. क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे अपनी जागीर समझे और उस की बेलगाम जिंदगी पर अंकुश लगाए. जब उस ने अपने पति मनोज की बात नहीं मानी तो परमानंद की बात कैसे मानती. यही वजह थी कि परमानंद बारबार उस के रास्ते में रोड़ा बनने लगा तो उस ने इस रोड़े को हमेशा के लिए हटाने की तैयारी कर ली. इस के लिए उस ने रामचंद्र को भी राजी कर लिया. वह राजी भी हो गया, क्योंकि वह भी उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था.

गीता ने ससुर को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार 27 जुलाई को वह परमानंद को मोटरसाइकिल से रुद्रपुर रामचंद्र के कमरे पर ले गई. देर रात तक गीता, रामचंद्र और परमानंद बैठ कर शराब पीते रहे. गीता और रामचंद्र ने तो खुद कम पी, जबकि परमानंद को जम कर पिलाई. यही नहीं, उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दी थीं, जिस से कुछ ही देर में वह बेहोश हो कर लुढ़क गया. उस के बाद गीता और रामचंद्र ने उसी के अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद गीता ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की तो रामचंद परमानंद की लाश को बीच में बैठा कर पीछे स्वयं बैठ गया. गीता मोटरसाइकिल ले कर काला डूंगी रोड पर भाखड़ा नदी के किनारे पहुंची, जहां दोनों ने परमानंद की लाश को बोरी में कुछ ईंटों के साथ डाल कर नदी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद गीता रुद्रपुर में ही रामचंद्र के कमरे पर कई दिनों तक रुकी रही.

11 अगस्त को गीता मोटरसाइकिल से अपनी ससुराल लावाखेड़ा पहुंची तो परमानंद के छोटे बेटे चैतन्य स्वरूप ने पिता के बारे में पूछा. तब गीता ने किसी रिश्तेदारी में जाने की बात कह कर बात खत्म कर दी. 2 दिन ससुराल में रह कर गीता फिर चली गई. गीता के जाने के बाद कई दिनों तक परमानंद नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई.

उन्हें गीता पर शक हुआ कि कहीं उस ने अपने प्रेमियों शेखर और मनोज के साथ मिल कर उस की हत्या तो नहीं करा दी. चैतन्य स्वरूप ने कोतवाली नवाबगंज जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दी. उस समय इंसपेक्टर अशोक कुमार के पास कोतवाली का भी चार्ज था. उन्हें लगा कि बहू ससुर को क्यों गायब करेगी? यही सोच कर उन्होंने चैतन्य को लौटा दिया. परमानंद का परिवार उस की तलाश में लगा रहा. उसी बीच 21 अगस्त को इंसपेक्टर अशोक कुमार का तबादला हो गया तो उन की जगह आए इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी. चैतन्य स्वरूप उन से मिला तो उन्होंने उस से तहरीर ले कर शेखर और मनोज भटनागर के खिलाफ अपराध संख्या-827/13 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर गीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

सर्विलांस सेल के पुलिसकर्मियों की गीता से कई बार बात हुई. गीता उन से कभी गुजरात में होने की बात कहती तो कभी हरियाणा में होने की बात बताती, जबकि उस की लोकेशन बरेली के आसपास की ही थी. पुलिस समझ गई कि गीता बहुत ही शातिर है. गीता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह सब से अधिक अपनी बड़ी बहन ललिता से बात करती थी. इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी ने ललिता और उस के पति प्रमोद को थाने ला कर पूछताछ की तो उन्होंने गीता का ठिकाना बता दिया. गीता उस समय बरेली के थाना मीरगंज के सामने राजेंद्र सेठ के मकान में किराए का कमरा ले कर रह रही थी. उसी के साथ रामचंद्र मौर्य भी था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. यह 23 दिसंबर, 2013 की बात है.

पूछताछ में गीता और रामचंद्र ने परमानंद की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बता दी. पुलिस ने दोनों को रुद्रपुर ले जा कर उन की निशानदेही पर भाखड़ा नदी से परमानंद की लाश बरामद करने की कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इस के बाद पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लाश की बरामदगी के लिए एक बार फिर पुलिस दोनों को रिमांड पर लेने का प्रयास कर रही थी. लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों का रिमांड मिला नहीं था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

6 टुकड़े कर महिला को 10 फिट गड्डे में दफनाया

एक ऐसा खोफनाक द्श्य जिस ने पूरे राजस्थान को झकझोर कर दिया है. जिस में एक महिला के 6 टुकड़े कर 10 फिट गहरे गड्डे में दफना दिया जाता है.

घटना राजस्थान के जोधपुर की है. जिस में एक महिला के 6 टुकड़े कर 10 फिट का गड्डा खोदा जाता है और उस महिला को उस में दफना दिया जाता है. इस घटना से गांव वाले और पुलिस वाले भी हैरान हैं.
राजस्थान का एक ऐसा खूबसूरत शहर है जिस में हर साल लाखों लोग को घूमने आते हैं. वह लोगों के लिए एक पर्यटक का स्थल बन चुका है, आज उसी शहर में दर्दनाक घटना हुई है. इस शहर का नाम है जोधपुर जिसे सन सीटी के नाम से भी जाना जाता है. देश और विदेश से लोग यहाँ घूमने आते हैं, लेकिन आज इस शहर में एक ऐसी घटना हुई है जिस ने पूरे देश के लोगों को झकझोर दिया है.

घटना जोधपुर शहर के एक गांव गंगाणा की है. गांव में एक परिवार रहता था. घर के मालिक का नाम था गुलामुद्दीन. गुलामुद्दीन घर के सामने एक जेसीबी को बुला लेता है. गुलामुद्दीन के घर के बाहर जेसीबी को देखने के लिए गांव के बच्चे और बड़े इकठ्ठा हो गए. गुलामुद्दीन जेसीबी के ड्राईवर से गड्ढा खोदने के लिए कह देता है और जेसीबी वाला 10 फूट का गहरा गड्ढा खोद देता है. गांव वाले समझ नहीं पते की आखिर गुलामुद्दीन ने घर के बाहर 10 फूट गहरा गड्ढा क्यों खुदवाया हैं.

गड्ढा खोदने के बाद तीन दिन बाद एक ऐसा खौफनाक मामला सामने आता है जिस में गांव वाले और पुलिस भी अचंभित हो जाती हैं. जिस में जोधपुर शहर की रहने वाली 50 साल की महिला अनिता अचानक गायब हो जाती है. यह महिला जोधपुर में एक ब्यूटीपार्लर चलाया करती थी, लेकिन 26 अक्टूबर को महिला ब्यूटीपार्लर आई तो थी, लेकिन अचानक गायब हो जाती है. महिला को गायब हुए 5 दिन हो चुके थे और गड्ढे को बंद करे हुए 8 दिन हुए थे. लेकिन पुलिस को भी नहीं पता था कि अनिता कहाँ अचानक गायब हो गई.

पुलिस को अनीता का कोई भी सुराग नहीं मिल पा रहा था. 31 अक्टूबर को अचानक जोधपुर पुलिस ने गुलामुद्दीन के घर के बाहर दबिश दी. पुलिस भी अपने साथ जेसीबी लेकर आई थी. जिस गड्ढे को गुलामुद्दीन ने 8 दिन पहले बंद करवाया था अब पुलिस उसे खुदवाना शुरू कर दिया.
जब गड्ढा दोबारा खुदना शुरू हुए तो उस में अनीता की लाश निकलती है जिसे देख सभी लोग अचंभित हो जाते हैं

जानते है कौन है अनीता चौधरी अनीता चौधरी शादीशुदा महिला थी, जिस की उम्र 50 साल है जिसका एक बेटा भी है. जोधपुर में अग्रवाल टॉवर के अन्दर सनशाइन ब्यूटीपार्लर है. इस ब्यूटीपार्लर को अनीता चौधरी चलाती थी. रोज की तरह 26 अक्टूबर को अनीता चौधरी सुबह घर से ब्यूटीपार्लर पहुंचती है अचानक वह से कुछ देर बाद अनीता वहां से निकल जाती है. काफी देर तक महिला स्टाफ ने अनिता चौधरी का इंतजार किया लेकिन वह वापस नहीं आई. साथ की महिला ने कई बार अनीता को फोन किया लेकिन फोन बंद आता है. बाद में साथ काम करने वाली महिला द्वारा अनीता के पति को फोन करके इस बात की जानकारी दी जाती है. महिला अनीता के पति को यह बताती है तो पति अपनी पत्नी को ढूंढने लग जाता है.

पति लगातार अपनी पत्नी को काल करता रहता है लेकिन उस का फोन बंद मिलता है तो पति 27 अक्टूबर को पुलिस को अपनी पत्नी की गुमशुदी रिपोर्ट दर्ज करा देता है. पुलिस भी अनीता की खोज में लग जाती है. 4 दिन बाद भी पुलिस को अनीता का कोई सुराग नहीं मिलता है. इसी बीच अनीता की दोस्त सुमन का काल आ जाता है. सुमन अनीता के पति मनमोहन सिंह से कहती है कि मुझे शक है कि तैय्यब अंसारी नाम के प्रॉपर्टी डीलर ने शायद अनीता का किडनैप कर लिया है. सुमन कहती है कि अनिता के पास ऐसा कुछ तो था जिस से तैय्यब अंसारी ने अनीता को किडनैप करवाया होगा. सुमन की इस बात को मनमोहन सिंह रिकॉर्ड कर लेता है और इस बात की सुचना पुलिस को देता है. इस जानकारी के आधार पर पुलिस तैय्यब अंसारी से संपर्क करती है, लेकिन इस से कुछ कोई फायदा नहीं होता है.

इस के बाद भी पुलिस को अनीता का कोई भी सुराग नहीं मिला तो पुलिस सीसीटीवी फुटेज देखीं जिसमे अनिता सड़क के किनारे ब्यूटीपार्लर के बाहर दिखाई देती है. सीसीटीवी में देखा जाता है कि अनिता अपनी मर्जी से एक ऑटो में बैठ जाती है. जब पुलिस के ऑटो वाले की तलाश की तो ऑटो वाला पुलिस को मिल जाता है और पुलिस उस ऑटो वाले से पूछताछ करती है ऑटो वाला कहता है कि मैंने अनिता को गंगाणा में ड्रॉप किया था.

अब पुलिस भी जांच में लग जाती है कि अनिता का गंगाणा में कौन जानकार रहता है जिस से मिलने के लिए अनीता गई थी. इसके बाद पुलिस अनिता के रिश्तेदारों और परिवारों से पूछताछ करती है तो एक नई कहानी सामने आती है जिस में कहा जाता है कि अनिता के ब्यूटीपार्लर के सामने ड्राई क्लिन की दुकान है और उस का मालिक गुलामुद्दीन है और गुलामुद्दीन गंगाणा का रहने वाला है. इस जानकारी को पाते की जोधपुर पुलिस गंगाणा में रहने वाले ग़ुलमुद्दीन के घर पहुंचती है तो पता चला कि वो 2 दिन से गायब है.
इस के बाद पुलिस गुलामुद्दीन की तलाश में लग जाती है. पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से गुलामुद्दीन का पता करने लग जाती है.

इसी दौरान गुलामुद्दीन एक सीसीटीवी कैमरे में दिखाई देता है. पुलिस समझ जाती है कि गुलामुद्दीन का अचानक गायब हुआ है तो इस ने ही अनीता को किडनैप किया होगा. इस के बाद पुलिस गुलामुद्दीन की पत्नी आबिदा से पूछताछ करती है तो उस की पत्नी कुछ बताने से मना कर देती है, लेकिन थोड़ी बात घुमाने के बाद जो सच उस की पत्नी ने बताया वह उस 10 फूट गहरे गड्ढे से जुड़ा हुआ था. आबिदा पुलिस को घर के बाहर खोदे गए 10 फूट गहरे गड्ढे के बारे में जानकारी देती हैं. जेसीबी मंगा कर जब गड्ढा खोदा जाता है तो पुलिस और आसपास इकठ्ठा हुए लोग चकित हो जाते हैं. जिस अनीता की तलाश में पुलिस दरदर भटक रही थी वो इस गड्ढे में दफ़न पाई गई थी. आबिदा ने अनिता का सच पुलिस को बता दिया था लेकिन अभी तक आबिदा का पति पुलिस की पकड़ से बाहर था.

इसके बाद पुलिस आबिदा से इस पूरी कहानी की पूछताछ करने लग जाती है, जो कहानी आई वह इस प्रकार हैं आबिदा कहती है कि जब अनीता ऑटो में बैठकर आई थी तब गुलामुद्दीन के घर गंगाणा में आई थी. अनीता को गुलामुद्दीन ने ही अपने घर बुलाया था. आबिदा कहती है जब अनीता हमारे घर आई तो हम ने उसे शरबत में बेहोशी की दवा मिला कर बेहोश कर दिया था. बेहोशी की हालत में मेरे शौहर ने चाकू मार कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद मेरे पति ने अनीता ने 6 टुकड़े कर दिए थे और उन्हें पॉलीथिन के बैग में भर कर रख दिया था. हम दोनों ने प्लान के मुताबिक जेसीबी मंगा कर दिन में ही गड्ढा खुदवा लिया था. जैसे ही रात होने जाती है अब दोनों मियां बीवी ने अनीता के दुकड़ों वाले बैग एक एक कर के गड्ढे में डाल दिए. उस के चारों और इत्र की दर्जनों शिशियां भी ढक्कन खोल के डाल दी. ताकि किसी को कोई दुर्गन्ध न महसूस हो.

इसके बाद हम दोनों ने इस गड्ढे को भर दिया. आसपड़ोस में रहने वाले लोगों को इस की भनक भी नहीं हुई हम ने इस गड्ढे में क्या किया है. पुलिस का कहना है कि कत्ल का कारण यह था कि गुलामुद्दीन को जुए की लत लग चुकी थी और उस पर 12 लाख का कर्ज था, और अनीता को सोने के गहने पहनने का शोक था. जब भी अनीता ब्यूटीपार्लर को आती थी तो सोने के गहने पहन कर आया करती थी. इसी कारण गुलामुद्दीन की नजर अनीता के सोने पर पड़ गई थी. इस के बाद गुलामुद्दीन के मन में विचार आता है कि अनिता के जेवर को लुट लिया जाए तो लाखों रुपए मिल जाएंगे.

पुलिस को अभी भी संदेह है कि गुलामुद्दीन को जेवर ही लूटने थे तो अनीता का कत्ल क्यों किया. खबर लिखे जाने तक गुलामुद्दीन फरार था. पुलिस अभी भी पूरा मामला समझ नहीं पाई है. गुलामुद्दीन की पत्नी भी अंजान है क्योंकि उसे भी नहीं पता है कि मेरे पति ने कत्ल क्यों किया है.

पूरी कहानी का तब पता चलेगा जब पुलिस गुलामुद्दीन को पकड़ लेगी. पुलिस टीम राजस्थान में कई इलाकों में दबिश दे रही है और गुलामुद्दीन का पता लगा रही है. अनीता के क़त्ल की सही वजह तभी पता चलेगी जब गुलामुद्दीन पकड़ा जायेगा

फूफा क्यों बनाना चाहता था भतीजी से अवैध संबंध

किसी से बात करना, उस के साथ घूमना रजनी का अधिकार था. उस के फूफा गंगासागर ने उसे और उस के प्रेमी को साथ देखा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. इस का नतीजा यह निकला कि गंगासागर तो जान से गया ही रजनी और उस का प्रेमी कमल भी…  

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करतीमिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था. ‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोलाइस के बाद रजनी अपने घर गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी. ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग 38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी. उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’ रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात कहेंयह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की. ‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है. रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था. बह होते ही उस का फोन गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी. अपने आप बुलाई मौत 18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है. गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित बच सकेपुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी. उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी. गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया. दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं.

पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.                        

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

कालगर्ल रैकट की सरगना निकली मास्टरमाइंड

साधारण परिवार में पैदा हुई रिंकी शहजादियों वाला जीवन जीना चाहती थी. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. रेखा ने इसी का फायदा उठाया और उसे ही नहीं, उस के 3 साल के बेटे को भी बेच दिया. लेकिन बाद में जो हुआ, वह कतई ठीक नहीं थी. रात साढ़े 9 बजे के आसपास कुसुम्ही जंगल के वन दरोगा राकेश कुमार गश्त करते हुए बुढि़या माई दुर्गा मंदिर रोड पर मंदिर से थोड़ा आगे बढ़े थे कि वहां लगे खड़ंजे पर उन्हें एक लाश पड़ी दिखाई दी. उन्होंने टार्च की रोशनी में देखा, लाश महिला की थी. वह हरा सूट पहने थी. उस के दोनों पैरों में चांदी की पाजेब थी. लाश के पास ही एक पीले रंग की शौल पड़ी थी.

सिर पर पीछे की ओर किसी धारदार हथियार से वार किया गया था. वहां बने घाव से अभी भी खून बह रहा था. इस से उन्हें लगा कि यह हत्या अभी जल्दी ही की गई है. राकेश कुमार ने फोन द्वारा थाना खोराबार के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव को लाश पड़ी होने की सूचना दी. वह गायघाट मर्डर केस को ले कर वैसे ही परेशान थे, इस लाश ने उन की परेशानी और बढ़ा दी. बहरहाल उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव, एसपी (सिटी) परेश पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतका के सिर से बह रहे खून से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्या एकाध घंटे के अंदर हुई है. मृतका की उम्र 24-25 साल थी. घटनास्थल पर संघर्ष के निशान थे. खड़ंजे से कुछ दूरी पर जूते और  दुपहिया वाहन के टायरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. इस का मतलब हत्यारे मोटरसाइकिल से आए थे. मृतका की छाती पर भी जूते के निशान मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे मृतका से नफरत करते रहे होंगे. लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की दाहिनी हथेली पर पुलिस को एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. पुलिस ने वह मोबाइल नंबर नोट कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मृतका के पास से मिला सामान कब्जे में ले लिया था, ताकि उस की शिनाख्त कराने में मदद मिल सके. यह 21 दिसंबर की रात की बात थी. 22 दिसंबर की सुबह उन्होंने मृतका की हथेली से मिले मोबाइल नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन उठाने वाले नेहैलोकहने के साथ ही उन के बारे में भी पूछ लिया.

‘‘मैं गोरखपुर के थाना खोराबार का थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव बोल रहा हूं.’’ उन्होंने अपना परिचय देते हुए पूछा, ‘‘यह नंबर आप का ही है. आप कहां से और कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘साहब मैं अजय गिरि बोल रहा हूं. यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक महिला की हथेली पर लिखा था, जिस की हत्या हो चुकी है.’’

‘‘उस का हुलिया कैसा था?’’ अजय गिरि ने पूछा.

थानाप्रभारी ने हुलिया बताया तो अजय ने छूटते ही कहा, ‘‘साहब, यह हुलिया तो मेरी पत्नी रिंकी का है. क्या उस की हत्या हो चुकी है? दिसंबर, 2013 को छोटे बेटे सुंदरम को ले कर घर से निकली थी. तब से उस का कुछ पता नहीं चला. उसी की तलाश में मैं बड़े भाई की ससुराल मधुबनी आया था.’’

‘‘ऐसा करो, तुम थाना खोराबार जाओ. मरने वाली तुम्हारी पत्नी है या कोई और यह तो यहीं कर पता चलेगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘लेकिन मृतका के पास से हमें कोई बच्चा नहीं मिला है. भगवान तुम्हारे साथ अच्छा ही करे.’’ अजय ने पत्नी के साथ बच्चे के होने की बात की थी, जबकि महिला की लाश के पास से कोई बच्चा नहीं मिला था. इस से थानाप्रभारी थोड़ा पसोपेश में पड़ गए कि उस का बच्चा कहां गया

बच्चे की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हत्यारों ने बच्चे को कहीं दूसरी जगह ले जा कर ठिकाने लगा दिया हो. गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गई थी. अब यह अजय के आने पर ही सुलझ सकती थी. उसी दिन शाम होतेहोते अजय थाना खोराबार पहुंचा. थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मेज की दराज से कुछ फोटो और लाश से बरामद सामान निकाल कर उस के सामने रखा तो सामान और फोटो देख कर वह रो पड़ा. थानाप्रभारी समझ गए कि मृतका इस की पत्नी रिंकी थी. इस के बाद मैडिकल कालेज ले जा कर उसे शव भी दिखाया गया. अजय ने उस शव की भी शिनाख्त अपनी पत्नी रिंकी के रूप में कर दी. अब सवाल यह था कि उस के साथ जो बच्चा था, वह कहां गया?

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव द्वारा की गई पूछताछ में अजय ने बताया, ‘‘रिंकी अपने 3 वर्षीय छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर ननद पुष्पा की ससुराल कुबेरस्थान जाने की बात कह कर घर से निकली थी. वहां जाने के लिए मैं ने ही उसे जीप में बैठाया था. उस ने 2 दिन बाद लौट कर आने को कहा था. 2 दिनों बाद जब वह घर नहीं लौटी तो मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस के मोबाइल का स्विच औफ था. बाद में पता चला कि वह कुबेरस्थान जा कर सीधे गोरखपुर में रहने वाले मेरे बहनोई तेजप्रताप गिरि के यहां चली गई थी. इस के बाद मैं ने उन से रिंकी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के यहां आई तो थी, लेकिन दूसरे ही दिन चली गई थी. उस के बाद उस का कुछ पता नहीं चला.’’

अजय के अनुसार उस का बहनोई तेजप्रताप गिरि शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए पर परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने उसी रात उस के घर से उसे पकड़ लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. तेजप्रताप गिरि कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. वह काफी देर तक पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. जब पुलिस को लगा कि यह झूठ बोल रहा है, तब पुलिस ने अपने ढंग से उस से सच्चाई उगलवाई. तेजप्रताप ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर पुलिस ने बबलू और संदीप पाल को गिरफ्तार कर लिया. जबकि मनोज फरार होने में कामयाब हो गया. बबलू और संदीप से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकी की हत्या के मामले में 2 महिलाएं रंभा उर्फ रेखा पाल और इशरावती भी शामिल थीं.

उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.

25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था. नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई

गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी. पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.

पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.

रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी. तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.

तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया. एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.

रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा. मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी.

 उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे. रेखा ने रिंकी को पहली बार तेजप्रताप गिरि के यहां देखा था, तभी से वह भांप गई थी कि यह औरत उस के काम की साबित हो सकती है. उस ने तेजप्रताप से रिंकी का मोबाइल नंबर ले कर उस से बातचीत शुरू कर दी थी. बातचीत के दौरान उसे पता चल गया कि रिंकी पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह उसे पैसे कमाने का रास्ता बताने लगी. फिर जल्दी ही रिंकी उस के जाल में फंस भी गई.

रिंकी जब भी गोरखपुर आती, रेखा से मिलने उस के घर जरूर जाती थी. इसी आनेजाने में अपनी उम्र से छोटे बबलू, संदीप और मनोज से उस के संबंध बन गए. इन लड़कों से संबंध बनाने में उसे बहुत मजा आता था. रेखा का एक पुराना ग्राहक था सरदार रकम सिंह, जो सहारनपुर का रहने वाला था. उस ने रेखा से एक कमसिन, खूबसूरत और कुंवारी लड़की की व्यवस्था के लिए कहा था, जिस से वह शादी कर सके. रेखा को तुरंत रिंकी की याद आ गई. रिंकी भले ही शादीशुदा और 2 बच्चों की मां थी, लेकिन देखने में वह कमसिन लगती थी. कैसे और क्या करना है, उस ने तुरंत योजना बना डाली.

अब तक रिंकी की बातचीत से रेखा को पता चल गया था कि वह अपने सीधेसादे पति से खुश नहीं है. उसे भौतिक सुखों की चाहत थी, जो उस के पास नहीं था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. 1 दिसंबर, 2013 को रिंकी छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर गोरखपुर आई. संयोग से उसी दिन किरन किसी बात पर पति से लड़झगड़ कर बड़ी बहन पुष्पा के यहां कुबेरस्थान (कुशीनगर) चली गई. रिंकी ने वह रात तेजप्रताप के साथ आराम से बिताई. अगले दिन सुबह तेजप्रताप ने रिंकी को उस की ससुराल वापस पटहेरवा भेज दिया. इस के 2 दिनों बाद रेखा ने रिंकी को फोन किया. हालचाल पूछने के बाद उस ने कहा, ‘‘रिंकी मैं ने तुम्हारे लिए एक बहुत ही खानदानी घरवर ढूंढा है. अगर तुम अपने पति को छोड़ कर उस के साथ शादी करना चाहो तो बताओ.’’

रिंकी ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूं.’’

‘‘ठीक है, कब और कहां आना है, मैं तुम्हें फिर फोन कर के बताऊंगी.’’ कह कर रेखा ने फोन काट दिया.

8 दिसंबर, 2013 को फोन कर के रेखा ने रिंकी से 11 दिसंबर को गोरखपुर आने को कहा. तय तारीख पर रिंकी अजय से बड़ी ननद पुष्पा के यहां जाने की बात कह कर घर से निकली. शाम होतेहोते वह रेखा के यहां पहुंच गई. उस ने इस की जानकारी तेजप्रताप को नहीं होने दी. रात रिंकी ने रेखा के यहां बिताई. 12 दिसंबर को रेखा ने भतीजे बबलू और भांजे मनोज के साथ उसे सहारनपुर सरदार रकम सिंह के पास भेज दिया और उस के बेटे को अपने पास रख लिया. रिंकी को सिर्फ इतना पता था कि उस की दूसरी शादी हो रही है, जबकि रेखा ने उसे सरदार रकम सिंह के हाथों 45 हजार रुपए में बेच दिया था. रिंकी को वहां भेज कर उस ने उस के बेटे को बेलीपार की रहने वाली भाजपा नेता इशरावती के हाथों 30 हजार रुपए में बेच दिया था. बच्चा लेते समय इशरावती ने उसे 21 हजार दिए थे, बाकी 9 हजार रुपए बाद में देने को कहा था.

दूसरी ओर 2 दिनों तक रिंकी का फोन नहीं आया तो अजय को चिंता हुई. उस ने खुद फोन किया तो फोन बंद मिला. इस से वह परेशान हो उठा. उस ने पुष्पा को फोन किया तो उस ने बताया कि रिंकी तो उस के यहां आई ही नहीं थी. अब उस की परेशानी और बढ़ गई. वह अपने अन्य रिश्तेदारों को फोन कर के पत्नी के बारे में पूछने लगा. जब उस के बारे में कहीं से कुछ पता नहीं चला तो वह उस की तलाश में निकल पड़ा. रिंकी का रकम सिंह के हाथों सौदा कर के रेखा निश्चिंत हो गई थी. लेकिन सप्ताह भर बाद उसे बच्चों की याद आने लगी तो वह रकम सिंह से गोरखपुर जाने की जिद करने लगी. तभी सरदार रकम सिंह को रिंकी के ब्याहता होने की जानकारी हो गई. चूंकि रिंकी खुद भी जाने की जिद कर रही थी, इसलिए उस ने रेखा को फोन कर के पैसे वापस कर के रिंकी को ले जाने को कहा.

अब रेखा और मनोज की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि रिंकी आते ही अपने बेटे को मांगती. जबकि वे उस के बेटे को पैसे ले कर किसी और को सौंप चुके थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. रिंकी के वापस आने से उन का भेद भी खुल सकता था. इसलिए पैसा और अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने उसे खत्म करने की योजना बना डाली. 21 दिसंबर, 2013 को बबलू और मनोज सहारनपुर पहुंचे. रकम सिंह के पैसे लौटा कर वे रिंकी को साथ ले कर टे्रन से गोरखपुर के लिए चल पड़े. रात 7 बजे वे गोरखपुर पहुंचे. स्टेशन से उन्होंने रेखा को फोन कर के एक मोटरसाइकिल मंगाई. संदीप उन्हें मोटरसाइकिल दे कर अपने गांव चौरीचौरा गौनर चला गया.

आगे रिंकी के साथ क्या करना है, यह रेखा ने मनोज को पहले ही समझा दिया था. मनोज, बबलू रिंकी को ले कर कुसुम्ही जंगल पहुंचे. मनोज ने उस से कहा था कि वह कुसुम्ही के बुढि़या माई मंदिर में उस से शादी कर लेगा. मंदिर से पहले ही मोड़ पर उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तीनों नीचे उतरे तो मनोज ने बबलू को मोटरसाइकिल के पास रुकने को कहा और खुद रिंकी को ले कर आगे बढ़ाशायद रिंकी मनोज के इरादे को समझ गई थी, इसलिए उस ने भागना चाहा. लेकिन वह भाग पाती, उस के पहले ही मनोज ने उसे पकड़ कर कमर में खोंसा 315 बोर का कट्टा निकाल कर बट से उस के सिर के पीछे वाले हिस्से पर इतने जोर से वार किया कि उसी एक वार में वह गिर पड़ी.

घायल हो कर रिंकी खडं़जे पर गिर कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाते देख मनोज ने अपना पैर उस के सीने पर रख कर दबा दिया. जब वह मर गई तो उस की लाश को ठीक कर के दोनों मोटरसाइकिल से घर आ गए. बाद में इस बात की जानकारी तेजप्रताप को हो गई थी, लेकिन उस ने यह बात अपने साले अजय को नहीं बताई थी. कथा लिखे जाने तक रिंकी हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त मनोज कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. सरदार रकम सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. वह भी फरार था. बाकी सभी अभियुक्तों को पुलिस ने जेल भेज दिया थाइस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार ने 5 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है.

कथा पारिवारिक और पुलिस सूत्रों पर आधारित.

मौर्डन बेटी की पिता और चाचा ने की हत्या

सोनी आधुनिक सोच वाली लड़की थी. उस की यह सोच उस के घर वालों को पसंद नहीं थी. फिर घर में एक दिन ऐसी घटना घटी कि सोनी को तो अपनी जान से हाथ धोना ही पड़ा, साथ ही घर वालों को भी…     

त्तर प्रदेश के जिला वाराणसी का एक गांव है बर्थरा कलां. 11 मार्च, 2018 को इसी गांव के प्रधान सत्येंद्र विक्रम सिंह अपनी मोटर साइकिल से शहर जा रहे थे. वह अभी गांव के बाहर पुलिया के पास पहुंचे ही थे कि उन की निगाह पुलिया के पास पानी पर चली गई, जिस में एक लाश तैर रही थी. उन्होंने मोटरसाइकिल वहीं रोक दी और लाश को देखने लगे. लाश किसी महिला की लग रही थी. चूंकि वह गांव के प्रधान थे, इसलिए उन्होंने उसी समय यह सूचना थाना चौबेपुर के थानाप्रभारी ओमनारायण सिंह को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ गांव बर्थरा कलां की पुलिया के पास पहुंच गए. तब तक वहां पर काफी लोग जमा हो गए थे. ग्राम प्रधान सत्येंद्र विक्रम सिंह वहीं पर मौजूद थे. ग्राम प्रधान से बातचीत करने के बाद थानाप्रभारी ने पानी पर तैर रही लाश बाहर निकलवाई. मृतका सलवारसूट पहने थी. वहां मौजूद कोई भी व्यक्ति मृत युवती की लाश को नहीं पहचान सका. ओमनारायण सिंह ने काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद थानाप्रभारी ने ग्राम प्रधान की सूचना पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मामला जटिल दिख रहा था क्योंकि अभी तक लाश की शिनाख्त तक नहीं हुई थी. मामले को उलझा देख एसएसपी आर.के. भारद्वाज ने एसपी (ग्रामीण) अमित कुमार के निर्देशन सीओ (पिंडरा) के नेतृत्व में एक टीम गठित की. पुलिस टीम मामले की जांच में लग गई. अखबार में एक अज्ञात युवती की लाश मिलने की खबर छपने के बाद थाना चोलापुर के गांव भोपापुर का रहने वाला राजेंद्र कुमार थाना चौबेपुर पहुंचा. उस ने थानाप्रभारी से कहा कि अखबार में लाश का जो फोटो छपा है वह कुछ जानापहचाना सा लग रहा है

थानाप्रभारी राजेंद्र कुमार को मोर्चरी ले गए. मोर्चरी में रखी युवती की लाश देखते ही वह उस ने बताया कि यह लाश उस की साली सोनी है, जो भंदाहा गांव की रहने वाली है. उस के पिता का नाम दीनानाथ है. युवती की शिनाख्त हो जाने के बाद उस की लाश का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम में सोनी के शरीर पर चोट के कई निशान पाए गए. इस के अलावा रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि उस की मौत पानी में डूबने की वजह से हुई थी. मृतका की शिनाख्त हो जाने पर पुलिस की सिरदर्दी काफी हद तक कम हो गई थी. साथ ही इस केस के खुलासे के लिए आगे बढ़ने का रास्ता भी दिखने लगा था, सो पुलिस टीम ने अपना जाल बिछाने के साथ मुखबिरों को भी लगा दिया. पुलिस को पता चला कि सोनी के पिता और दोनों चाचा घर से फरार हैं

पुलिस को शक हुआ कि सोनी की हत्या के बाद से उस के घर वाले आखिर क्यों फरार हैं? लिहाजा पुलिस उन्हें खोजने में जुट गई. इसी बीच थानाप्रभारी को उन के एक खास मुखबिर ने 23 अप्रैल, 2018 को सूचना दी कि सोनी की हत्या के लिए जिस क्वालिस गाड़ी का उपयोग किया गया था, उस का ड्राइवर मनोज कुमार पास के ही मुनारी पैट्रोल पंप पर मौजूद है. थानाप्रभारी के लिए यह सूचना काफी अहम थी सो वह बिना समय गंवाए टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए गए पैट्रोल पंप पर पहुंच गए. मनोज वहीं मौजूद था. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई

मनोज वाराणसी के ही थाना चोलापुर के गांव भवानीवारी का रहने वाला था. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह उन के पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘साहब, मुझे मत मारिए, मैं सब कुछ सचसच बतारहा हूं. इस में मेरी कोई गलती नहीं है और ही मैं कुछ जानता था. उन लोगों ने मुझे धोखे में रख कर मेरी गाड़ी ली थी.’’ उस ने बता दिया कि सोनी की हत्या उस के घर वालों ने ही की है. यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम सोनी के घर पहुंची. लेकिन वहां केवल महिलाएं ही मिलीं, सो पुलिस टीम लौट आई. थानाप्रभारी ने अपने खास मुखबिरों को गांव में लगा दिया था.

दूसरे ही दिन पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर सोनी के पिता दीनानाथ, चाचा कन्हैया रोशन को मुनारी के पास से तब गिरफ्तार कर लिया, जब ये लोग कहीं भागने की फिराक में थे. उन लोगों को थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों ने सोनी की हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह केवल हैरान कर देने वाली थी बल्कि एक बेटी की आधुनिक सोच को कुचलने वाली भी थीवाराणसी जनपद के थाना चौबेपुर के अंतर्गत आने वाला एक गांव है भंदाहा, यहीं पर दीनानाथ अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 3 बेटियों के अलावा एक बेटा था. उस ने बड़ी बेटी का विवाह वाराणसी के एक गांव में कर दिया था, जो अपने घरपरिवार वाली थी

दीनानाथ की शेष 2 बेटियों मोनी और सोनी के विवाह की चिंता भी सताने लगी थी. दोनों की उम्र में हालांकि डेढ़दो साल का फासला था लेकिन देखने से दोनों बहनें हमउम्र दिखाई देती थीं. सोनी आधुनिक खयालों की थी. वह मोनी के साथ इस तरह बात करती थी जैसे वह उस की छोटी बहन हो कर सहेली हो. उस की बेबाक बातों और आधुनिक सोच का असर मोनी पर भी पड़ रहा था. दीनानाथ पुराने खयालों का था, इसलिए वह सोनी को व्यवहार बदलने के लिए समझाता रहता था. जमाने को देखते हुए वह यह भी चाहता था कि दोनों के लिए लड़के मिल जाएं तो वह दोनों की शादी एक साथ कर के चिंता से मुक्त हो जाए.

दोनों के एक ही साथ हाथ पीले करने की गरज से दीनानाथ ने नातेरिश्तेदारों से चर्चा चलाई तो एक रिश्ता पसंद गया. इस रिश्ते के लिए उस ने हामी भर दी और मौका देख लड़के को भी देख आया था. लड़के वाले घटना से एक दिन पूर्व 10 मार्च को दीनानाथ के घर मोनी को देखने के लिए लड़के वाले रहे थे. दीनानाथ ने मेहमानों की खातिरदारी के सारे इंतजाम कर लिए थे. उस ने मुंहफट सोनी को भी समझा दिया था कि वह मेहमानों के सामने कोई ऐसीवैसी बात कहे जो उन्हें बुरी लगे. सोनी जिंदगी को अपने ढंग से जीना चाहती थी, इसलिए उस की इच्छा थी कि वह और उस की बहन मोनी अपनी पसंद के लड़के से शादी करें. यह बात सोनी ने अपने घर वालों को बता भी दी थी. दीनानाथ को चिंता थी कि कहीं सोनी की आधुनिक सोच मोनी की शादी में रोड़ा बन जाए

उस दिन जब लड़के वाले आए भी लेकिन सोनी की किसी बात से नाराज हो कर चले गए. दीनानाथ को लगा कि सोनी की वजह से लड़के वालों  ने मोनी से शादी के लिए इनकार कर दियाइस से उस के परिवार के लोग काफी नाराज हो गए थे. उन्होंने सोनी को जम कर खरीखोटी सुनाते हुए उसे खूब मारापीटा. इसी दरम्यान दीनानाथ ने आक्रोश में कर घर के एक कोने में पड़े डंडे से सोनी के सिर पर तेज प्रहार किया. डंडा लगते ही सोनी निढाल हो कर जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई. जब वह बेहोश हो गई तो दीनानाथ ने पास में ही खड़े अपने भाइयों कन्हैया और रेशम से आंखों ही आंखों में कुछ इशारा किया. इस के बाद वे उसे एक आटो में कहीं ले गए और थोड़ी देर बाद घर लौट आए

फिर शाम के समय दीनानाथ मनोज कुमार वर्मा के पास पहुंचा और उस से झूठ कहा कि उस की बेटी बीमार है, उसे इलाज के लिए ले जाना है. यह कह कर उस ने उस की क्वालिस कार संख्या यूपी32  किराए पर ले ली. उसे एक हजार रुपए तेल भरवाने के लिए भी दिए गए. गाड़ी आने पर दीनानाथ और उस के भाइयों ने मिल कर सोनी को उस में डाल दिया और उसे ले कर गांव से बाहर निकल आए. रास्ते में दीनानाथ ने बर्थरा कलां नाले की पुलिया के पास पहुंच कर आसपास नजरें दौड़ा कर देखा और सुनसान जगह देख कर टौयलेट का बहाना कर के मनोज से कार रुकवा दी. फिर सभी नीचे उतर गए

दीनानाथ और उस के भाइयों को नीचे उतरा देख मनोज भी गाड़ी से उतर कर कुछ दूरी पर पेशाब करने के लिए चला गया. उस के गाड़ी से दूर जाते ही दीनानाथ और उस के भाइयों ने मौका देख बेहोश सोनी को गाड़ी से निकाल कर पुलिया के पानी में फेंक दिया. वह बेहोश थी, जिस से बचाव के लिए तो वह चीख सकी और ही हाथपैर चला सकी. फलस्वरूप पानी में डूब कर उस की मौत हो गई. इन लोगों द्वारा सोनी को पानी में फेंकने से तेज छपाक की आवाज आई तो मनोज का ध्यान उधर गया. उसे लगा कि या तो नाले के पानी में कोई कूदा है या कोई वजनी सामान फेंका गया है. अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए उस ने जब दीनानाथ से सवाल किया, तो उस के भाइयों ने मनोज को जान से मारने की धमकी देते हुए उसे चुप रहने की चेतावनी दी

इस तरह डराधमका कर उन्होंने उस का मुंह बंद कर दिया. उन्होंने उसे चेताया कि अगर यह राज खुला तो अंजाम बुरा होगा. डर के मारे उस ने चुप्पी साध ली. सोनी की हत्या के बाद परिजन दोपहर से ही भूमिका बनाने में जुट गए थे. उन्होंने गांव में यह प्रचारित कर दिया था कि सोनी ने कोई जहरीला पदार्थ खा लिया है. इस के लिए उसे पहले आटो से अस्पताल ले जाने का नाटक किया गया. वह अस्पताल जाने के बजाए आटो से कुछ दूर घूमटहल कर घर लौट आए थेसोनी उस समय भी बेहोश थी लेकिन लोगों को उन्होंने यह बताया कि वह मर गई है. चूंकि सोनी अविवाहित थी इसलिए उस के शव को नदी में प्रवाहित करना था, इसलिए घर वाले शाम ढलने के बाद सोनी को क्वालिस कार से ले कर निकले और नाले में फेंक आए.

उन्होंने गांव वालों से कह दिया कि बेटी की लाश नदी में प्रवाहित कर आए. लेकिन तीसरे दिन अखबार में फोटो छपी तो गांव वाले भी दंग रह गए पर दीनानाथ और उस के भाइयों की दबंगई के कारण कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं थामजे की बात यह है कि सोनी के बहनोई राजेंद्र ने चौबेपुर थाने कर उस के शव की शिनाख्त कर दी थी, लेकिन घर वालों ने थाने में तो सूचना देने या रिपोर्ट दर्ज कराने की जहमत उठाई थी और ही उस के शव की शिनाख्त करने की कोशिश की थी, जिस से मामला पूरी तरह से संदिग्ध हो गया था और घर वाले पुलिस की निगाहों में गए थे.

घटना का खुलासा हो जाने के बाद पुलिस ने मनोज कुमार, दीनानाथ और उस के दोनों भाइयों को हिरासत में ले कर क्वालिस कार को भी बरामद कर लिया. इस के बाद चारों अभियुक्तों मनोज, कन्हैया, रोशन और दीनानाथ को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कहानी लिखे जाने तक किसी की भी जमानत नहीं हो पाई थी.

विवाहिता के इश्क में जान गंवा बैठा शादाब

मरजीना पति को छोड़ कर प्रेमी शादाब के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी. फिर उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि मरजीना ने ही प्रेमी की जान ले ली…

सुबह के 10 बज रहे थे. बरसात का मौसम होने के कारण उस दिन सुबह से ही उमस भरी गरमी पड़ रही थी. अफजाल उस समय अपने ड्राईंगरूम में बैठा चाय पी रहा था. जैसे ही उस ने चाय का प्याला खाली कर के रखा तो अचानक उस के घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी थी.

कौन है?’’ अफजाल ने पूछा

मैं हूं भाईजान, सावेज.’’ बाहर से आवाज आई.

अरे सावेज, तुम? अंदर आ जाओ.’’ यह कहते हुए अफजाल ने दरवाजा खोल दिया था.

इस के बाद सावेज अंदर आ कर अफजाल के पास बैठ गया था. सावेज अफजाल का छोटा भाई था. अफजाल की बीवी मरजीना ने जब सावेज को आया देखा था तो वह उस के लिए चाय बनाने किचन में चली गई थी. इस के बाद अफजाल व सावेज एकदूसरे का हालचाल पूछने लगे थे और आपस में बातें भी करने लगे थे.

अचानक सावेज बोला, ”भाई, तुम ने भाभी मरजीना के बारे में कुछ सुना है?’’

हां सावेज, रिश्तेदारी और मोहल्ले में जो बातें फैल रही हैं, मैं उस से बाकायदा वाकिफ हूं. पड़ोसी कस्बे मंगलौर के रहने वाले शादाब द्वारा समाज व रिश्तेदारी में हमें बदनाम किया जा रहा है, जिस से हम समाज में सिर उठा कर जी न सकें.’’ अफजाल बोला. 

मगर यह बात भी भाभी मरजीना द्वारा ही शुरू की गई थी. भाभी को रील बनाने की और उसे फेसबुक पर लोड करने की आदत थी तथा वह अपनी आदत के चलते पड़ोस के युवक शादाब से दिल लगा बैठी थी. इस के बाद भाभी उस के साथ लिवइन में रहने लगी थी.’’ सावेज बोला.

तेरी भाभी के शादाब के साथ लिवइन में रहने के कारण हमें कस्बा मंगलौर छोडऩा पड़ा था. इसी कारण हमें वहां से 10 किलोमीटर दूर यहां रुड़की में आ कर रहना पड़ रहा है. मैं जानता हूं कि तेरी भाभी पहले रंगीली तबियत की थी, मगर अब तो शादाब हमें लगातार बदनाम करने में लगा है. अब हम कैसे अपनी इज्जत बचाएं?’’ अफजाल बोला.

तुम इस की चिंता मत करो भाईजान, मैं ने इस का रास्ता ढूंढ लिया है. हमें शादाब को जल्दी से जल्दी रास्ते से हटाना पड़ेगा. भाभी मरजीना से कहेंगे कि वह फोन कर के शादाब को अपने घर बुला ले. इस के बाद हम उसे घेर लेंगे. फिर हम तीनों उस की गला दबा कर हत्या कर देंगे. फिर यह मामला खुद ही शांत हो जाएगा.’’ सावेज बोला.

मगर शादाब की हत्या के बाद उस की लाश को हम लोग कहां छिपाएंगे? ”अफजाल ने पूछा.

तुम उस की चिंता मत करो. यह काम मुझ पर छोड़ दो भाईजान. शादाब की लाश को हम बोरे में डाल कर पास में बह रही गंगनहर में रात में ही फेंक देंगे. इस के बाद किसी को भी पता नहीं चलेगा कि शादाब कहां चला गया.’’

कैसे रची मौत की साजिश

सावेज की इस योजना पर अफजाल व मरजीना ने अपनी मुहर लगा दी थी और वे तीनों अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने की फिराक में लग गए थे. शादाब के साथ लिवइन में पहले तो मरजीना रहती थी, मगर मंगलौर में अपनी हो रही बदनामी की वजह से वह रुड़की रेलवे स्टेशन के पास की कालोनी तेलीवाला में अपने पति व देवर के साथ आ कर रहने लगी थी. मरजीना का शौहर बिजली मैकेनिक था.

वह 23 अगस्त, 2024 की सुबह थी. उस वक्त सुबह के 11 बज रहे थे. कोतवाली मंगलौर के कोतवाल शांति कुमार उस वक्त अपने औफिस में बैठे फाइलों पर हस्ताक्षर कर रहे थे. उस वक्त मंगलौर के मोहल्ला मलकपुरा निवासी 55 वर्षीय मुस्तकीम कोतवाल से मिलने पहुंचा था. उस वक्त मुस्तकीम के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं और वह घबराया हुआ सा लग रहा था. मुस्तकीम ने कोतवाल को बताया कि उस का 24 वर्षीय बेटा शादाब आसपास के क्षेत्र में फेरी लगाकर कपड़े बेचता है. गत दिवस वह किसी से मिलने के लिए घर से निकला था, मगर आज तक वह वापस घर नहीं लौटा है. उस का मोबाइल नंबर भी स्विचऔफ चल रहा है.

जब कोतवाल शांति कुमार ने मुस्तकीम से पूछा कि शादाब की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी तो मुस्तकीम ने बताया कि शादाब का सभी से अच्छा व्यवहार था. मुझे उस के अपहरण की भी आशंका नहीं है. मुझे शक है कि शादाब किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो गया. इस के बाद शांति कुमार ने मुस्तकीम को शादाब की गुमशुदगी की तहरीर लिख कर उस का फोटो ले कर कोतवाली आने को कहा था. 

मलकपुरा मोहल्ला एसआई रफत अली के हलके में आता था, अत: शांति कुमार ने शादाब की गुमशुदगी का मामला रफत अली को ही सौंप दिया था. शादाब की गुमशुदगी का मामला हाथ में आते ही रफत अली सक्रिय हो गए. सब से पहले उन्होंने कांस्टेबल मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप को मोहल्ला मलकपुरा में भेजा तथा उन से शादाब के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने को कहा. इस के बाद रफत अली ने एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह से संपर्क कर के उन से इस मामले में उन का निर्देशन मांगा.

स्वप्न किशोर सिंह ने तत्काल गुमशुदा शादाब के मोबाइल की काल डिटेल्स एसओजी से निकलवाने के निर्देश रफत अली को दिए. अगले दिन पुलिस को शादाब की काल डिटेल्स भी मिल गई थी. शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल पर एसआई रफत अली के शक की सूई अटक गई थी. उधर सिपाही मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप ने शादाब के बारे में जो जानकारी हासिल की तो वह चौंकाने वाली थी. पता चला कि शादाब की कई महीनों से मरजीना नामक महिला से दोस्ती थी. मरजीना शादीशुदा थी, लेकिन वह शादाब के साथ लिवइन में रहती थी. शादाब उस पर रुपए उड़ाता था. शादाब के घर वालों ने उसे काफी समझाया, लेकिन वह उस का साथ छोडऩे को तैयार नहीं था.

घर बुला कर क्यों की हत्या

अपने शौहर की बदनामी की वजह से मरजीना ने मंगलौर कस्बा छोड़ दिया था और रुड़की के रेलवे स्टेशन से सटी कालोनी तेलीवाला में आ कर रहने लगी थी. दोनों सिपाहियों ने एसआई रफत अली को बताया कि शादाब के लापता होने में मरजीना का हाथ हो सकता है. यह जानकारी पा कर रफत अली ने मरजीना से पूछताछ करने का विचार बनाया. यह भी पता चला कि शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल भी मरजीना के ही फोन से की गई थी.

वह 26 अगस्त, 2024 का दिन था. रफत अली ने शादाब के लापता होने के बारे में पूछताछ करने के लिए मरजीना व उस के पति अफजाल को कोतवाली मंगलौर में बुलाया था. शाम को जब मरजीना अपने शौहर अफजाल के साथ कोतवाली पहुंची तो उस समय वहां पर सीओ (मंगलौर) विवेक कुमार भी मौजूद थे. सीओ विवेक कुमार ने शादाब के बारे में मरजीना से पूछताछ की तो मरजीना व अफजाल के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया. पहले तो दोनों ने पुलिस को गच्चा देने का प्रयास किया था, मगर वे दोनों सीओ विवेक कुमार के प्रश्नों के जवाब में ही उलझ गए थे. 

अंत में मरजीना ने पुलिस के सामने शादाब की हत्या की बात कुबूल कर ली थी. मरजीना ने पुलिस को बताया कि गत 22 अगस्त, 2024 को मैं ने ही शादाब को फोन कर के अपने घर पर बुलाया था. शादाब द्वारा हमारे परिवार को बदनाम करने के कारण हम उस से बदला लेना चाहते थे. जब शादाब मरजीना के घर पर पहुंचा तो मरजीना और उस के पति अफजाल ने शादाब के हाथ व पैर पकड़ लिए थे. इस के बाद सावेज ने शादाब का गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. रात को 2 बजे तीनों ने शादाब के शव को एक बोरे में डाल लिया. फिर उस बोरे को बाइक पर ले जा कर अफजाल व सावेज ने शव गंगनहर में डाल दिया था.

पुलिस ने मरजीना के ये बयान रिकौर्ड कर लिए थे. इस के बाद सावेज को भी हिरासत में ले लिया गया. सावेज की निशानदेही पर शादाब का मोबाइल फोन व उस की चप्पलें भी बरामद कर ली गईं. अफजाल व सावेज ने मरजीना के दिए बयानों का समर्थन किया था. फिर एसएसपी प्रमेंद्र डोवाल ने मंगलौर कोतवाली पहुंच कर शादाब हत्याकांड का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने इन तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया था.

कथा लिखे जाने तक मंगलौर पुलिस व जल पुलिस द्वारा गंगनहर के अथाह जल में शादाब के शव को तलाश किया जा रहा था. मरजीना, अफजाल व सावेज रुड़की जेल में बंद थे. शादाब हत्याकांड की विवेचना थानेदार रफत अली द्वारा की जा रही थी. रफत अली शीघ्र ही आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य जुटा कर चार्जशीट अदालत में भेजे जाने की तैयारी कर रहे थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

प्रेमी का सिर काट कर क्यों ले गई मेहनाज

20 वर्षीय मेहनाज ने गन्ने के खेत में ले जा कर अपने 22 वर्षीय प्रेमी सोनू के पैर रस्सी से बांध दिए. इस के बाद मेहनाज के भाई सद्दाम अंसारी ने छुरी से सोनू की गरदन काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर दोनों भाईबहन उस का सिर थैले में रख कर ले गए. आखिर मेहनाज क्यों बनी प्रेमी की कातिल?

सद्दाम ने अपनी बहन मेहनाज को भरोसे में ले लिया था और वह भी उस के हर फैसले को मानने के लिए तैयार हो गई थी. अब सद्दाम के सामने बड़ा सवाल था कि सोनू और उस की बहन मेहनाज के बीच जो प्रेम संबंध हैं, उन्हें कैसे तोड़ा जाए. ऐसा वह क्या करे कि मेहनाज और सोनू हमेशा के लिए अलग हो जाएं?

इस बारे में सद्दाम ने मेहनाज से बात की तो उस ने वादा कर लिया कि वह भविष्य में सोनू से कोई वासता नहीं रखेगी. लेकिन सोनू ने अपने रिश्तेदारों आदि को मेहनाज का फोटो दिखाते हुए यह बात फैला दी थी कि वह मेहनाज से शादी करने वाला है. यह बात सद्दाम को काफी परेशान कर रही थी. मेहनाज पूरी तरह से भाई का साथ देने को तैयार हो गई थी. इस उधेड़बुन में दोनों भाईबहन काफी ऊहापोह की स्थिति में आ गए थे. उन्हें सब से आसान तरीका यह समझ में आया कि क्यों न सोनू को परिवार और गांवसमाज का हवाला देते हुए यह समझाया जाए कि ननिहाल की लड़की से शादी करना किसी के लिए भी ठीक नहीं होगा. इस का भविष्य में उस के परिवार पर बुरा असर पड़ेगा और गांव के लोगों से संबंध हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.

भाईबहन के बीच इस के लिए सोनू से बातचीत करने पर सहमति बन गई. उसे किसी एकांत जगह में बुलाने का कार्यक्रम तय कर लिया गया. सद्दाम ने मेहनाज को सोनू से बातचीत कर समझाने की सलाह दी. 3 दिनों के बाद मौका देख कर 9 सितंबर, 2024 को मेहनाज ने सोनू को फोन किया. वह खुश हो गया था, क्योंकि कई दिनों से उस की मेहनाज से बात नहीं हुई थी. सोनू ने खुशी से पूछा, ”तो तुम साथ घूमने चलने के लिए तैयार हो?’’

बेरुआ पुल पर मिलोगे तब सब कुछ बताऊंगी. कुछ देर वहां बैठ कर शांति से दिल की बातें तो कर लें हम लोग.’’ मेहनाज प्यार से बोली.

ठीक है, मैं शाम को 7 बजे से पहले वहां पहुंच जाऊंगा…हमारे गांव सैफनी से ज्यादा दूर नहीं है.’’ सोनू खुश हो कर बोला.

मेहनाज पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार शाम को बरुआ पुल पर पहुंच गई. मेहनाज की तरह सद्दाम भी अपने पड़ोस के एक दोस्त रिजवान को ले कर वहां पहुंच गया था. इस की जानकारी मेहनाज को पहले से थी. हालांकि सोनू समय से 15 मिनट बाद पुल पर पहुंचा था, जहां मेहनाज अकेली उस का इंतजार करती दिखी. उस के आते ही मेहनाज ने देर करने की शिकायत कर दी. सोनू ने उसे गले लगाना चाहा, लेकिन मेहनाज ने सामने से मछुआरों को आता देख इशारे से मना कर दिया और एक ओर जा कर बैठ गई.

सद्दाम अपने दोस्त रिजवान के साथ पास में ही थोड़ी आड़ लिए छिपा हुआ था. पुल के आसपास नदी से मछली पकडऩे वाले लोग अपनेअपने घरों को जा रहे थे. हलकी रोशनी थी. पुल के आसपास का इलाका जंगली है. रात के अंधेरे ने अभी जंगल को अपनी आगोश में नहीं लिया था. मेहनाज सोनू के साथ पुल के पास से कच्चे रास्ते से होते हुए थोड़ा आगे चल कर नीचे उतर कर गन्ने के खेत में चली गई. पीछेपीछे सद्दाम और रिजवान भी उन की नजरों से बचते हुए गन्ने के खेत में पहुंच गए. तुरंत दोनों ने मिल कर सोनू को पीछे से दबोच लिया. वह वहीं जमीन पर गन्ने के खेत में गिर गया.

प्रेमिका ने बांधे प्रेमी के पैर, भाई ने काटा सिर

उस के गिरते ही साथ चल रही मेहनाज ने तुरंत सोनू के दोनों पैर कस कर पकड़ लिए. तब तक सद्दाम ने साथ लाई रस्सी मेहनाज को दे दी, जिस से उस के पैर बांध दिए. सोनू गिड़गिड़ाने लगा, ”मेहनाज, यह क्या कर रही हो? मुझे छोड़ दो… जो तुम कहोगी, मैं वही करूंगा.’’ सोनू की बातों को अनसुना कर मेहनाज ने उस के दोनों पैर रस्सी से बांध दिए. गिड़गिड़ाता सोनू बोलता रहा, ”मेहनाज, मैं तुम्हारी फोटो डिलीट कर दूंगा…और तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा. मैं तुम्हें सदा के लिए भुला दूंगा. मुझे बचा लो, प्लीज…’’ 

मेहनाज कुछ नहीं बोली. सिर्फ अपनी नम आंखों से भाई सद्दाम की तरफ देखा. वह आक्रोश से भरा हुआ था. उस ने दूसरी रस्सी से सोनू के हाथों को भी बांध दिया था. सोनू बेबस था. वह मेहनाज को देखे जा रहा था. तभी रिजवान और मेहनाज ने मिल कर सोनू को दबोच लिया. सद्दाम ने उस की गरदन पकड़ ली और अंटी में लगी छुरी निकाल कर सोनू की गरदन पर चला दी. खून के फव्वारे फूट पड़े. रिजवान और मेहनाज के साथ सद्दाम के कपड़े भी खून से तरबतर हो गए. उसी चाकू से उस के सिर को गरदन से अलग कर दिया था.

थोड़ी देर तड़पने के बाद सोनू निढाल हो गया. उस के शरीर से जान निकल चुकी थी. मेहनाज दूर खड़ी अपने प्रेमी की मौत देख रही थी. सद्दाम के कहने पर दोस्त रिजवान ने सोनू की लाश के कपड़े उतार दिए, ताकि उस की पहचान न हो सके. उस की चप्पलें और मोबाइल ले लिया. चप्पलें वहीं फेंक दीं और उस के मोबाइल को भी तोड़ कर उस के पुर्जे रास्ते में ही फेंक दिए. सोनू की बाइक वहीं पर पुल के पास चाबी के साथ खड़ी छोड़ दी. उस के बाद सद्दाम, रिजवान और मेहनाज सोनू के कटे सिर, उस की एक चप्पल, टूटा मोबाइल, चाकू और मेहनाज का मोबाइल एक प्लास्टिक के थैले में रख कर जंगल के रास्ते पर हो लिए. सब कुछ ऐसे हो रहा था, जैसे तीनों ने इस घटना को अंजाम देने के लिए पहले से ही पूरी तरह योजना बना रखी हो.

जंगल चलते करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर डंपिंग ग्राउंड सैफनी में उन्होंने सोनू की गरदन फेंक दी. सद्दाम नगर पंचायत सैफनी में संविदा पर ट्रैक्टर चलाता है, इस कारण ही उस ने सोचा था कि सुबह जब वह नगर पंचायत सैफनी की कूड़े से भरी ट्रैक्टर ट्रौली यहां कूड़ा डालने आएगा तो सोनू की गरदन उस कूड़े के ढेर में दफन हो जाएगी. कभी किसी को गरदन का कोई सुराग नहीं लगेगा. तीनों हर सबूत को नष्ट कर देना चाहते थे. एक चप्पल और टूटे मोबाइलों की थैली भी उन्होंने डंपिंग साइट पर ही फेंक दी. तीनों ने जंगल की आड़ में अपनेअपने कपड़े बदल लिए और खून सने कपड़ों को वहीं पैट्रोल छिड़क कर जला डाला. उस के बाद वे अपने घर आ गए.

अगले रोज यानी 10 सितंबर की सुबहसुबह उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के थाना सैफनी एसएचओ महेंद्रपाल सिंह को जंगल में सिर कटी लाश पड़ी होने की सूचना मिली तो एसएचओ मय फोर्स के वहां पहुंच गए. उन्होंने तत्काल घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दी. सिरकटे शव की पहचान के लिए कोशिश के साथसाथ उस के सिर की तलाश भी की गई, लेकिन नहीं मिल सका. पुलिस के सामने समस्या थी उस की पहचान की. इस के लिए आसपास के थानों को अज्ञात शव की सूचना भेज दी गई. नग्न सिरकटी लाश मिलने की खबर आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी. उसे देखने के लिए सैकड़ों की तादाद में लोग जुटे थे.

उन में सेफनी गांव के लोग भी थे. उन्हीं में से एक व्यक्ति ने लाश की पहचान कर ली. उस ने पुलिस को बताया कि लाश के अंगूठे को वह अच्छी तरह पहचानता है, जो मोटा और दबा हुआ था. वह देखते ही बोल पड़ा, ”साहब, यह तो हमारा सोनू है. यहां कब आया? उसे किस ने मारा? वह भी गरदन काट कर!’’

तुम इसे पहचानते हो? कैसे जानते हो इसे? कौन है?’’ पुलिस के कई सवालों से वह घबरा गया, तुरंत रोने लगा. रोता हुआ बोला, ”जी… जी हुजूर! यह तो हमारा सोनू है. बिलारी में रहता है, लेकिन यहां कैसे?’’

तुम कौन हो, जो इतने दावे से कह रहे हो, सोनू है!’’ पुलिस तहकीकात के अंदाज में बोली.

मैं उस के ननिहाल का रिश्तेदार हूं. सोनू  मुरादाबाद से 25 किलोमीटर दूर कोतवाली बिलारी के गांव रुस्तमनगर सहसपुर का रहने वाला है.’’ वह बोला.

इसी बीच पुलिस को बिलारी थाने से सोनू नाम के युवक के गुमशुदा होने की सूचना मिली, जो उस के पिता साबिर ने बीती रात दर्ज करवाई थी.

साबिर ने पुलिस को बताई प्रेम प्रसंग की बात

साबिर ने गुमशुदगी की सूचना में लिखवाया था कि उन का बेटा सोनू 9 सितंबर, 2024 की शाम 7 बजे से ही लापता है. लाश की पूरी पहचान की पुष्टि के लिए साबिर को बुलाया गया. उस ने भी नग्न लाश के चपटे अंगूठे से बेटे की पहचान कर ली. उस के बाद 11 सितंबर को साबिर की तहरीर पर थाना बिलारी में बीएनएस की धारा 103(1)/238 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस सनसनीखेज मामले में बहुत कुछ खुलासा होना बाकी था. खासकर उस के सिर का मिलना पहली प्राथमिकता थी. अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जानी थी. इस के लिए एसएसपी (मुरादाबाद) सतपाल अंतिल ने एसपी (ग्रामीण) व सीओ (बिलारी) के नेतृत्व में एक टीम गठित की गई. टीम की कमान बिलारी के कोतवाल लखपत सिंह को सौंपी गई.

सोनू के पिता साबिर ने मामले को प्रेमप्रसंग का बताया. उस ने पुलिस को बताया कि सोनू रुस्तमनगर सहसपुर गांव में बड़ी मसजिद के निकट आलिम के कारखाने में जींस की सिलाई का काम करता था. वह परिवार में बड़ा बेटा था. उस के अलावा उस की अम्मी अनीशा, छोटा भाई शाने अली हैं. साबिर सहसपुर के ही एक ईंट भट्ठे पर ईंटों को पाथने का काम करता है. उस के बेटे की ननिहाल में अपने ही समाज की लड़की से प्रेम चल रहा था. साबिर ने बेटे की ननिहाल में रहने वाले एक परिवार पर ही हत्या का आरोप मढ़ दिया.

उस की शिकायत के आधार पर बिलारी पुलिस ने सद्दाम अंसारी पर मुकदमा दर्ज कर लिया. वह थाना सेफनी (रामपुर) के मोहल्ला मजरा का निवासी है. पुलिस बगैर देर किए उसे गिरफ्तार कर पूछताछ के लिए थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब उस ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पूरी घटना विस्तार से बता दी. उस की निशाहदेही पर पुलिस ने सोनू की हत्या में प्रयुक्त एक छुरी एवं मृतक की चप्पल, टूटा हुआ मोबाइल फोन समेट लाश से करीब 2 किलोमीटर दूर कटा हुआ सिर डंपिंग ग्राउंड सैफनी से बरामद कर लिया.

पूछताछ में सद्दाम ने अपनी बहन मेहनाज और रिजवान का नाम भी लिया. उस ने बताया कि हत्याकांड में उन दोनों की भी भागीदारी थी. पुलिस ने मेहनाज और रिजवान से भी अलगअलग पूछताछ की और हत्याकांड के बारे में विस्तार से बयान लिए. बिलारी कोतवाली की महिला पुलिस जब मेहनाज से पूछताछ करने लगी, तब वह रोने लगी. उसे ढांढस बंधाती हुई महिला पुलिस ने सब कुछ सचसच बताने को कहा. कलपती हुई मेहनाज बोली, ”मैडम, मैं ने भी आप की तरह ही पुलिस में भरती की परीक्षा दे रखी है. अब तो लगता है मेरा करिअर ही खराब हो गया. पुलिस की नौकरी तो दूर की बात है…’’

चलो जो हुआ, उस के बारे में बताओ… तुम सोनू को कब से जानती थी?’’

सोनू का नाम आते ही मेहनाज शून्य की ओर देखने लगी…वैसी यादों में खो गई, जो उस की आंखों के आगे घूम रही थीं. कुछ पल शांत रहने के बाद बोलने लगी…

शादी समारोह में सोनू और मेहनाज के लड़े थे नैना

एक साल पहले गांव रुस्तमनगर सहसपुर निवासी सोनू सेफनी में स्थित अपनी ननिहाल आया हुआ था. उस के घर के पास ही एक परिवार में शादी का माहौल था. मुसलिम समाज की परंपरा के अनुसार इस क्षेत्र में होने वाले विवाह समारोह में एक अंतिम रस्म सलामीका आयोजन चल रहा था. इस में दूल्हा और उस के यारदोस्त लड़की पक्ष के समारोह से एक अलग स्थान पर पहुंच गए थे. दूल्हे को कुरसी पर बैठा दिया गया था. बाकी साथ के लोग दूल्हे के इर्दगिर्द खड़े हो गए थे. वहां पर लड़की की मां और बहनों सहित सहेलियां और रिश्तेदार लड़कियां भी थीं. गजब का खुशनुमा माहौल बना हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो लड़कियों और लड़कों की 2 अलगअलग टीमें आपस में किसी मुकाबले के लिए तैयार हों. 

लड़की पक्ष के लोग दूल्हे को शगुन भेंट करने लगे थे. शगुन की राशि या उपहार मिलते ही दूल्हा उन को सलाम कर देता था. उस के बाद उन से परिचय भी होता था. इस दौरान हंसीमजाक का दौर भी चलने लगा था. लड़कों का मनचलापन और लड़कियों की ठिठोली का सिलसिला पूरे शबाब पर था.
उन्हीं में करीब 20-22 साल का युवक सोनू भी था. उस के चेहरे पर मासूमियत थी. सपनों से भरी गहरी आंखें, चेहरा गुलाब की तरह ताजगी लिए हुए था, मधुर मुसकान, चमकती आंखें, मेहनत का संकेत देती सुडौल भुजाएं, हवा में लहराते बाल. इन सब से वह अधिकांश लड़कियों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ था. वह दूल्हे के बहुत करीब खड़ा था. मौजूद लड़कियों को ऐसे देख रहा था, जैसे उस ने किसी को देखा नहीं हो.

इतने में ही मेहनाज दूल्हे को पुरस्कार देने के लिए नजदीक आई. सोनू की उस से आंखें चार हुईं. दोनों एकदूसरे को देखते रहे और उस के हाथ से शगुन की राशि का लिफाफा नीचे गिर गया, दूल्हे के हाथों तक नहीं पहुंच पाया. दोनों आंखों के जरिए एकदूसरे के दिल में उतर गए. इसे दूसरे लोगों ने भी महसूस किया. 

मेहनाज इस पर मजाकिया लहजे में बोल पड़ी, ”दिखता नहीं है!’’  खूबसूरत मेहनाज की तरह उस की आवाज में भी मधुरता थी. खूबसूरत चेहरे पर गुलाब की पंखुड़ी की तरह सुर्ख होंठ, मुसकान, उस की आंखों में सपनों का संसार छिपा था. उस के इकहरा बदन आकर्षक था. कुछ समय तक दोनों इस महफिल का केंद्रबिंदु बने रहे.

तोहफा देने कोई और आगे आया तो मेहनाज पीछे हट गई. उस का गिरा हुआ गिफ्ट पैक दूल्हे के यारदोस्तों ने उठा लिया. रस्म पूरी हुई. दूल्हे और उस के साथी मंडप में आ गए. विदाई की तैयारी होने लगी, लेकिन सोनू की निगाह में मेहनाज का चेहरा घूम रहा था.विदाई का समय आ गया. दुलहन को कार में बैठाने कुछ लड़कियां आईं, उन में मेहनाज भी थी. सोनू भी कार के पास ही खड़ा हो गया था. उस ने सब की नजरों से बचा कर एक कागज मेहनाज के हाथ में पकड़ा दिया. 

मेहनाज ने उसे मुट्ठी में ही दबोचे रखा. बाद में उसे खोल कर देखा तो उस में एक मोबाइल नंबर लिखा था. इस तरह सोनू और मेहनाज की मुलाकात का सिलसिला फोन से शुरू हुआ. उन के बीच पहले जानपहचान और फिर मिलनेजुलने की शुरुआत हो गई. सोनू को उस ने बताया कि गांव रुस्तमनगर सहसपुर के पास थांवला रोड पर स्थित आईटीआई स्कूल में वह पढ़ती है. फिर उन की मुलाकात सहसपुर बिलारी के बीच हाईवे पर ही नीलबाग के एक इंगलिश मीडियम स्कूल के पास हुई. 

करिअर और पढ़ाई को ले कर जितनी गंभीर मेहनाज थी, उतनी ही चिंता उस के भाई सद्दाम अंसारी और परिवार के दूसरे लोगों को भी थी. वह जितनी सुंदर, उतनी ही चंचल और पढ़ाई में तेज थी. उस का एडमिशन रूस्तमनगर सहसपुर में स्थित आईटीआई में हो गया था. उस की सुंदरता और मोहकता पर कोई भी पहली ही नजर में फिदा हो जाता था. उम्र के जिस मोड़ पर वह खड़ी थी, वहां से कदम बहकते देर नहीं लगती. ऐसा ही कुछ उस के साथ भी हो चुका था. वह सोनू के प्यार में पड़ चुकी थी.

इस की जानकारी जब सद्दाम को हुई तब वह बेचैन हो गया, किंतु मानसिक तनाव की घड़ी में भी एक अच्छी बात यह थी कि उस ने भावावेश में तुरंत कोई कदम नहीं उठाया, बल्कि जमाने के बदले हुए मिजाज और प्यारमोहब्बत की बातें आम होने की बात को देखते हुए उस ने समझदारी भरा कदम उठाया. पहले उस ने इस बारे में पूरी तहकीकात की और बहन के प्रेम संबंध की होने वाली चर्चा के तह में जा कर पता लगाया. बात की पुष्टि हो जाने के बाद समाधान के लिए फिर उस ने अपने खास दोस्तों से बात की.

उस ने उन से सलाहमशविरा कर राय मांगी कि इस मामले में अब क्या करना चाहिए. उस के दोस्तों के अलगअलग मशविरे थे. सब की बातें सुन कर उस ने उस पर गहन मंथन किया. सोचविचार के बाद वह अंतिम निर्णय पर पहुंचा कि उसे आगे जो कुछ करना है, उसे पहले अपनी बहन के साथ बात कर लेनी चाहिए. हो सकता है बातचीत से ही समाधान हो जाए. शाम का समय था. सद्दाम अंसारी के परिवार के सब लोग घर पर ही थे. अपने कमरे में सिर पकड़े बैठे सद्दाम ने दरवाजे के सामने बरामदे से गुजरती बहन मेहनाज को देखा. उस ने आवाज लगाई, ”मेहनाज!’’

जी भाई!’’ मेहनाज बोली.

सिर भारीभारी लग रहा है… एक कप चाय पिला दोगी…’’ थकी आवाज में सद्दाम बोला.

अभी बना देती हूं… बोलो तो अदरक और इलायची भी डाल दूं…’’

हांहां, पत्ती तेज रखना!’’

जी, भाईजान.’’

कुछ समय में ही मेहनाज एक प्याला चाय ले कर आ गई. प्याला देती हुई बोली, ”कुछ खाने को भी नमकीनबिसकुट ला दूं?’’

नहींनहीं! कुछ नहीं… यहीं बैठो, तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’ सद्दाम बोला और चाय पीने लगा. उस समय कमरे में सिर्फ सद्दाम था. मेहनाज थोड़ी दूर पड़ी एक फोल्डिंग कुरसी को खोला और चुन्नी संभालती हुई बैठ गई.

हां भाई, बोलो न, क्या जरूरी बात है?’’

तुम्हारे बारे में मोहल्ले के लड़के कई तरह की बातें करते हैं. मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता!’’ चाय के कुछ घूंट पी कर सद्दाम बोला.

अरे भाईजान, मोहल्ले के लड़कों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं.’’ मेहनाज ने कहा.

बात कुछ भी बोलने की नहीं है, उन का कहना है कि तुझे वे अकसर किसी लड़के के साथ देखते हैं… इस से बदनामी हो रही है.’’

उन को छोड़ दो, वे तो हैं ही नकारा किस्म के लड़के…लेकिन उन की बातों का असर मोहल्ले में दूसरों पर तो होता है न. हम लोग अपने मोहल्ले और परिवारसमाज में इज्जतदार लोग हैं.’’ सद्दाम समझाने के लहजे में बोला.

भाईजान, ऐसी कोई बात नहीं है, जिस से आप का और घर वालों का सिर नीचा होगा…’’

कौन है वह?’’

नानी के घर सेफनी में शादी में गई थी, वहीं सोनू से जानपहचान हो गई थी. उस के बाद यहां मिलने के लिए 2-3 बार आया था और कोई बात नहीं है. उस का ननिहाल अपने गांव में ही है.’’ मेहनाज सफाई में बोली.

फिर कभी मिले तो साफसाफ मना कर देना. देखो, तुम्हें अपनी पढ़ाई पर फोकस करना है. बड़ी मुश्किल से मैं ने घर के लोगों से लड़झगड़ कर तुम्हारा आईटीआई में नाम लिखवाया है. हमारे समाज की लड़कियों के लिए यह बड़ी बात है.’’ सद्दाम बोला. सद्दाम ने सोनू के घर वालों का भी हवाला देते हुए कहा, ”तुम्हीं देखो न, कहां कपड़ों की सिलाई कर गुजरबसर करने वाला उस का परिवार और कहां सिलाई का काम करने वाला सोनू…’’

जी भाईजान, आप की बदौलत ही मैं आईटीआई की पढ़ाई कर रही हूं. मैं उस से कभी नहीं मिलूंगी, लेकिन…’’ मेहनाज बोलतेबोलते अचानक रुक गई.

लेकिन क्या?’’ 

भाई, वह बहुत ही जिद्दी है, मैं उस से पीछा छुड़ाना चाहती हूं, उसे मना कर चुकी हूं. फिर भी वह पीछा नहीं छोड़ता.’’

भाई ने क्यों रची खौफनाक साजिश

मेहनाज अपने बड़े भाई से कुछ भी नहीं छिपाती थी. भाई को भी उस पर भरोसा था. वह पढ़ाई में अव्वल थी और भाई का हर कहा मानती थी. उस ने बातों ही बातों में यह स्वीकार लिया कि वह सोनू से प्यार करती है. उस के बगैर वह नहीं रह सकती है. किंतु जब भाई ने उस के प्रेम संबंध को ले कर घरपरिवार में होने वाली बदनामी और करिअर खराब हो जाने का हवाला दिया तब वह सहम गई. सोनू गांव रूस्तमनगर सहसपुर का रहने वाला था. उस की ननिहाल जिला रामपुर के कस्बा सैफनी के मझरा मोहल्ले में है. मेहनाज का घर भी सोनू की ननिहाल के पड़ोस में है. 

दोनों के बीच जानपहचान होने के बाद सोनू ने अपनी ननिहाल में ज्यादा आनाजाना शुरू कर दिया था. वह मेहनाज से उस के आईटीआई आतेजाते वक्त भी मिल लेता था. एक दिन उस ने मेहनाज को अपने पास बैठा कर उस के कुछ फोटो खींच लिए थे. तब मेहनाज ने उस से फोटो को सोशल साइट पर लगाने से सख्त मना कर दिया था. हालांकि मेहनाज की हिदायत का ध्यान रखते हुए सोनू ने वह फोटो सोशल मीडिया पर शेयर नहीं किए थे, लेकिन अपने ननिहाल आ कर कुछ रिश्तेदारों को उस ने वे फोटो दिखाए थे. उस ने रिश्तेदारों से कहा था कि वह मेहनाज से शादी करना चाहता है. इस के लिए उस ने उन से मदद मांगी थी. 

यह बात पूरे सैफनी में फैल गई थी, इस की जानकारी मेहनाज के भाई सद्दाम को हुई तो वह बेचैन हो गया था. उसे बदनामी का डर सताने लगा था. वह सोचता था कि सोनू से उस की बहन के संबंध ठीक नहीं हैं. इस से उस के परिवार के मानसम्मान को गहरा धक्का लगेगा. सद्दाम ने इसी चिंता में जब मेहनाज से पूछताछ की तो वह रोने लगी. इस के बाद उस ने सोनू के साथ प्रेम संबंध के बारे में पूरी आपबीती बताई. यह भी वादा किया कि वह सोनू से भविष्य में कोई संबंध नहीं रखेगी.

मेहनाज, सद्दाम अंसारी और रिजवान से पूछताछ के बाद सोनू हत्याकांड का खुलासा हो गया था. उन्होंने सोनू के कटे सिर को बरामद करने में पुलिस की मदद की. तीनों सोनू हत्याकांड में नामजद थे और अपना जुर्म कुबूल कर चुके थे, इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

लौरेंस विश्नोई : आखिर क्यों कनाडा ने लगाए भारत सरकार पर गंभीर आरोप

भारत और कनाडा के बीच काफी समय से टकराव चल ही रहा था कि इस बार दोनों देशों के बीच एक नया कूटनीतिक टकराव ने मोड़ ले लिया है. इस टकराव के बाद भारत ने अपने राजनयिकों को सोमवार तक वापस बुलाने का फैसला लिया और कनाडा के राजनयिकों को साफसाफ कह दिया है कि वह 19 अक्तूबर, 2024 तक भारत छोड़ दे.

कनाडा का आरोप

कनाडा ने आरोप लगाया है कि भारत अपने ऐजैंट्स के माध्यम से कनाडा में रहने वाले खालिस्तानी समर्थकों को निशाना बना रहा है, जिस में लौरेंस विश्नोई गैंग की सहायता ली जा रही है. कनाडा की रौयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) ने एक प्रैस कान्फ्रैंस का आयोजन किया. इस प्रेस कान्फ्रैंस में आरसीएमपी ने आरोप लगाया कि भारत सरकार के ऐजैंट्स कनाडा में सिख समुदाय और खालिस्तान समर्थक तत्त्वों को अपना निशाना बना रहे हैं.

सच क्या झूठ क्या

इस प्रैस कान्फ्रैंस के दौरान दावा किया गया है कि कनाडा में खालिस्तानी नेता निज्जर की हत्या पिछले साल हुई थी, जिसे भारत सरकार के ऐजैंट ने करवाई. आरसीएमपी ने यह भी कहा कि भारत सरकार विभिन्न संस्थाओं और व्यक्तियों का उपयोग कर जानकारी जुटा रहा है और दक्षिण एशियाई समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाया जा रहा है. इन आरोपों को इसलिए देखा जा रहा है कि गुजरात के साबरमती जेल में विश्नोई बंद है.

बाबा सिद्दीकी

मुंबई में एनसीपी के नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद इस मामले ने अब तुल पकड़ लिया है. भारत सरकार की विश्नोई गैंग की गतिविधियों को ले कर चिंता बढ़ती जा रही है क्योंकि विश्नोई गैंग उत्तर भारत के सभी हिस्सों में सक्रिय हो गया है. हालांकि भारत सरकार ने कनाडा के इन सभी आरोपों का विरोध किया और इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है.

वोट बैंक की राजनीति

भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कनाडा सरकार को कई बार साफसाफ दोटूक में कहा है कि खालिस्तानी आतंकवादी निज्जर की हत्या में भारत सरकार का हाथ है तो कोई सुबूत पेश करें, लेकिन कनाडा सरकार अभी तक कोई ठोस सुबूत पेश नहीं कर पाई है.

भारत सरकार ने कहा है कि यह सब कनाडा में होने वाले चुनाव के कारण राजनीतिक मुद्दा फैलाया जा रहा है क्योंकि जस्टिन ट्रूडो इस मुद्दे का फायदा उठा कर सिक्खों को अपनी और कर अपनी जीत हासिल करना चाहते हैं. कनाडा सरकार सिर्फ वोट पाने के लिए वोट बैंक की राजनीति कर रही है.

तांत्रिक ने चढ़ाई बीमार बेटे की मां की बलि

कलावती गुप्ता अपने बेटे की बीमारी ठीक कराने के लिए तांत्रिक सर्वजीत कहार के पास जाती थी. उसे क्या पता था कि तांत्रिक और उस के पास आने वाले लोग एक दिन उसी की बलि चढ़ा देंगे. ठाणे जिले के अंतर्गत आता है वसई का धानीव बाग गांव. 17 नवंबर, 2013 को यहां से सोपारा फाटा की तरफ जानेवाले रास्ते के किनारे झाडि़यों में एक अंजान महिला की लाश पड़ी मिली. इस सिरविहीन लाश के पास एक गाउन और एक गद्दी पड़ी हुई थी. धानीव गांव के लोगों को जब झाडि़यों में बिना सिर वाली लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो तमाम गांव वाले वहां पहुंच गए. गांव वालों ने यह जानकारी मुखिया अविनाश पाटिल को दी तो वह भी वहां गए.

गांव का मुखिया होने के नाते अविनाश पाटिल ने फोन कर के महिला की लाश मिलने की जानकारी थाना वालीव पुलिस को दे दी. सुबहसुबह खबर मिलते ही वालीव के वरिष्ठ पुलिस इंसपेक्टर राजेंद्र मोहिते पुलिस टीम के साथ मुखिया द्वारा बताई उस जगह पर पहुंच गए, जिस जगह पर लाश पड़ी थी. राजेंद्र मोहिते ने वहां का बारीकी से निरीक्षण किया तो वहां काफी मात्रा में खून फैला हुआ था, जो सूख कर काला पड़ चुका था. वहीं पर एक चौकी के पास पूजा का कुछ सामान भी रखा था. इस से उन्होंने अनुमान लगाया कि किसी तांत्रिक वगैरह ने सिद्धि साधना या अन्य काम के लिए महिला की बलि चढ़ाई होगी.

हिला की गरदन को उन्होंने आसपास काफी तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली. मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने अपर पुलिस अधिक्षक संग्राम सिंह निशाणदार और उपविभागीय अधिकारी प्रशांत देशपांडे को फोन द्वारा इस की जानकारी दी. उक्त दोनों अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गएचूंकि मृतका का सिर नहीं मिल पा रहा था, इसलिए घटनास्थल पर मौजूद लोगों में से कोई भी उस अधेड़ उम्र की शिनाख्त नहीं कर सका. बहरहाल, पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को जे.जे. अस्पताल की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया और उच्चाधिकारियों के निर्देश पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और अन्य धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

महिला की हत्या क्यों और किस ने की, यह पता लगाने के लिए उस की शिनाख्त होनी जरूरी थी. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में सहायक पुलिस इंसपेक्टर आव्हाड तायडे, सहायक सबइंसपेक्टर प्रकाश सावंत, हवलदार सुभाष गोइलकर, पुलिस नायक अशोक चव्हाण, कांस्टेबल अनवर, मनोज चव्हाण, शिवा पाटिल, 2 महिला कांस्टेबल फड और पाटिल को शामिल किया गया

पुलिस टीम लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश में लग गई. सब से पहले टीम ने सिरविहीन महिला की लाश के फोटो मुंबई के समस्त थानों में भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी थाने में इस कदकाठी की महिला की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. इस के अलावा उन्होंने पूरे जिले में सार्वजनिक जगहों पर महिला की शिनाख्त के संबंध में पैंफ्लेट भी चिपकवा दिए. पुलिस टीम को इस केस पर काम करते हुए करीब 3 हफ्ते बीत गए, लेकिन लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी.

8 दिसंबर, 2013 को उदय गुप्ता नाम का एक व्यक्ति भिवंडी के शांतीनगर थाने पहुंचा. उस ने बताया कि उस की मां कलावती गुप्ता पिछले महीने की 17 तारीख से लापता है. शांति नगर थाने के नोटिस बोर्ड पर वालीव थाना क्षेत्र में मिली एक अज्ञात महिला की सिरविहीन लाश की फोटो लगी हुई थी. इसलिए थानाप्रभारी ने उदय गुप्ता से कहा, ‘‘पिछले महीने वालीव थाना क्षेत्र में एक अज्ञात महिला की लाश मिली थी, जिस का फोटो नोटिस बोर्ड पर लगा हुआ है. आप उस फोटो को देख लीजिए.’’

उदय गुप्ता तुरंत नोटिस बोर्ड के पास गया और वहां लगे फोटो को देखने लगा. उन में एक फोटो पर उस की नजर पड़ी. उस फोटो को देख कर उदय गुप्ता रुआंसा हो गया. क्योंकि उस की मां फोटो में दिखाई दे रही महिला की कद काठी से मिलतीजुलती थी और वैसे ही कपड़े पहने हुए थी. उस तसवीर के नीचे वालीव थाने का फोन नंबर लिखा था. उदय गुप्ता तुरंत वालीव थाने जा कर वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते से मिला और अपनी मां के गायब होने की बात बताई. राजेंद्र मोहिते उदय गुप्ता को जे.जे. अस्पताल ले गए

मोर्चरी में रखी लाश और उस के कपड़े जब उदय गुप्ता को दिखाए गए तो वह फूटफूट कर रोने लगा. उस ने लाश की पहचान अपनी मां कलावती गुप्ता के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. उदय गुप्ता ने यह सूचना अपने पिता रामआसरे गुप्ता को दे दी थी. खबर मिलते ही वह वालीव थाने पहुंच गए थे. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते ने घर वालों से पूछा कि कलावती गुप्ता जब घर से निकली थी तो उस के साथ कौन था. उदय ने बताया, ‘‘उस दिन मां एक परिचित रामधनी यादव के साथ गई थी. उस के बाद वह वापस नहीं लौटी. हम ने रामधनी से पूछा भी था, लेकिन उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था.’’

रामधनी यादव सांताकु्रज क्षेत्र स्थित गांव देवी में रहता था. पुलिस टीम ने पूछताछ के लिए रामधनी यादव को उठा लिया. उस से कलावती गुप्ता की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि कलावती गुप्ता की बलि चढ़ाई गई थी और इस में कई और लोग शामिल थे. उस से की गई पूछताछ में कलावती गुप्ता की बलि चढ़ाए जाने की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. 55 वर्षीया कलावती गुप्ता मुंबई के सांताकु्रज (पूर्व) के वाकोला पाइप लाइन के पास गांवदेवी में रहती थी. उस के 2 बेटे थे उदय गुप्ता और राधेश्याम गुप्ता. राधेश्याम विकलांग था और अकसर बीमार रहता था. बेटे की वजह से कलावती काफी चिंतित रहती थी. एक दिन पास के ही रहने वाले रामधनी ने उसे सांताकु्रज की एअर इंडिया कालोनी क्षेत्र के कालिना में रहने वाले ओझा सर्वजीत कहार के बारे में बताया.

बेटा ठीक हो जाए, इसलिए वह रामधनी के साथ ओझा के पास गई. इस के बाद तो वह हर मंगलवार और रविवार को रामधनी के साथ उस तांत्रिक के पास जाने लगी. सिर्फ कलावती का बेटा ही नहीं, बल्कि रामधनी की बीवी भी बीमार रहती थी. रामधनी उसे भी उस तांत्रिक के पास ले जाता था. रामधनी का एक भाई था गुलाब शंकर यादव. गुलाब की बीवी बहुत तेजतर्रार थी. वह किसी किसी बात को ले कर अकसर उस से झगड़ती रहती थी. जिस से घर में क्लेश रहता था. घर का क्लेश किसी तरह खत्म हो जाए, इस के लिए गुलाब भी उस तांत्रिक के पास जाता था.

एक दिन तांत्रिक सर्वजीत कहार ने रामधनी और गुलाब को सलाह दी कि अगर वह किसी इंसान की बलि चढ़ा देंगे तो सारी मुसीबतें हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी. दोनों भाई अपने घर में सुखशांति चाहते थे, लेकिन बलि किस की चढ़ाएं, यह बात उन की समझ में नहीं रही थी. इसी बीच उन के दिमाग में विचार आया कि कलावती की ही बलि क्यों चढ़ा दी जाए. कलावती सीधीसादी औरत थी, साथ ही वह खुद भी तांत्रिक के पास जाती थी. इसलिए वह उन्हें आसान शिकार लगी. यह बात उन लोगों ने तांत्रिक से बताई. चूंकि बलि देना तांत्रिक के बस की बात नहीं थी, इसलिए उस ने अपने फुफेरे भाई सत्यनारायण, उस के बेटे पंकज नारायण और श्यामसुंदर से बात की तो वे यह काम करने के लिए तैयार हो गए.

15 नवंबर, 2013 को सांताकु्रज के वाकोला इलाके में रहने वाले गुलाब शंकर यादव के घर तांत्रिक सर्वजीत कहार, श्यामसुंदर, सत्यनारायण, पंकज और रामधनी ने एक मीटिंग कर के योजना बनाई कि कलावती की कब और कहां बलि देनी है. उन्होंने बलि चढ़ाने के लिए मुंबई से काफी दूर नालासोपारा के वसई इलाके में स्थित मातामंदिर को चुना. इसी के साथ तांत्रिक ने रामधनी को पूजा के सामान की लिस्ट भी बनवा दी.

अगले दिन 16 नवंबर, 2013 को रामधनी कलावती गुप्ता के घर पहुंच गया. उस ने उस से कहा कि अगर उसे अपने बेटे की तबीयत हमेशा के लिए ठीक करनी है तो आज नालासोपारा स्थित माता के मंदिर में होने वाली पूजा में शामिल होना पड़ेगा. यह पूजा तांत्रिक सर्वजीत ही कर रहे हैं. बेटे की खातिर कलावती तुरंत रामधनी के साथ चलने को तैयार हो गई. रामधनी कलावती को ले कर पहले अपने भाई गुलाब यादव के घर गया.

वहां योजना में शामिल अन्य लोग भी बैठे थे. कलावती को देख कर वे लोग खुश हो गए और पूजा का सामान और कलावती को ले कर सीधे नालासोपारा स्थित मंदिर पहुंच गए. वहां पहुंच कर ओझा ने एक गद्दी डाल कर उस पर पूजा का सारा सामान रख कर मां काली की पूजा करनी शुरू कर दी. उस ने कलावती के हाथ में भी एक सुलगती हुई अगरबत्ती दे दी तो वह भी पूजा करने लगीथोड़ी देर में तांत्रिक इस तरह से नाटक करने लगा, जैसे उस के अंदर देवी का आगमन हो गया हो. वहां मौजूद अन्य लोग तांत्रिक के सामने हाथ जोड़ कर अपनीअपनी तकलीफें दूर करने को कहने लगे. रामधनी ने कलावती से कहा कि वह भी सिर झुका कर देवी से अपनी परेशानी दूर करने को कहे. भोलीभाली कलावती को क्या पता था कि सिर झुकाने के बहाने उस की बलि चढ़ाई जाएगी

उस ने जैसे ही तांत्रिक के चरणों में सिर झुकाया, श्यामसुंदर गुप्ता ने पीछे से उस के बाल कस कर पकड़ते हुए चाकू से उस की गरदन पर वार कर दिया. चाकू लगते ही कलावती खून से लथपथ हो कर तड़पने लगी. वहां मौजूद अन्य लोगों ने उसे कस कर दबोच लिया और उसी चाकू से उस की गरदन काट कर धड़ से अलग कर दी. कलावती की बलि चढ़ा कर रामधनी और उस का भाई खुश हो रहे थे कि अब उन के यहां की सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी. वे कलावती की कटी गरदन को वहां से दूर डालना चाहते थे, ताकि उस की लाश की शिनाख्त हो सके. उन लोगों ने उस की गरदन को अपने साथ लाई गई काले रंग की प्लास्टिक की थैली में रख लिया. तत्पश्चात वह थैली मुंबई अहमदाबाद राजमार्ग पर स्थित वासाडया ब्रिज से नीचे पानी में फेंक दी.

रामधनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने कलावती गुप्ता की हत्या में शामिल रहे अन्य अभियुक्तों, तांत्रिक सर्वजीत कहार, श्यामसुंदर जवाहर गुप्ता, सत्यनारायण और पंकज को भी गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर कलावती का सिर, हत्या में प्रयुक्त चाकू और अन्य सुबूत बरामद कर लिए. पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. ढोंगी तांत्रिक, पाखंडी आए दिन लोगों को अपने चंगुल में फांसते रहते हैं. इन के चंगुल में फंस कर अनेक परिवार बर्बाद हो चुके हैं. ऐसे तांत्रिकों, पाखंडियों पर शिकंजा कसने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने जादूटोना प्रतिबंध विधेयक पारित किया था

यह विधेयक पिछले 18 सालों से विवादों से घिरा हुआ था. लेकिन इस बिल को पारित हुए एक दिन भी नहीं बीता था कि 55 वर्षीय कलावती गुप्ता की बलि चढ़ा दी गई. सरकार को चाहिए कि इस बिल को सख्ती के साथ अमल में लाए, ताकि तांत्रिकों, पाखंडियों पर अंकुश लग सके.