Kanpur crime : देवर को मोहरा बनाकर कराया बड़ी बहन का मर्डर

Kanpur crime : कभीकभी इंसान इश्क में इतना अंधा हो जाता है कि वह अच्छेबुरे का फर्क भी नहीं समझता. बबीता ने बड़ी बहन बबली के सुहाग पर डाका डाल कर उसे अपने कब्जे में कर लिया था. इस का अंजाम इतना खतरनाक निकला कि…   

11 सितंबर, 2018 की सुबह करीब 8 बजे कानपुर शहर के थाना कैंट के थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी थाने में पहुंचे ही थे कि उसी समय एक व्यक्ति बदहवास हालत में उन के पास पहुंचा. उस ने थानाप्रभारी को सैल्यूट किया फिर बताया, ‘‘सर, मेरा नाम दिलीप कुमार है. मैं सिपाही पद पर पुलिस लाइन में तैनात हूं और कैंट थाने के पुलिस आवास ब्लौक 3, कालोनी नंबर 29 में रहता हूं. बीती रात मेरी दूसरी पत्नी बबीता ने पंखे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. आप को सूचना देने थाने आया हूं.’’

चूंकि विभागीय मामला था. अत: थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी ने दिलीप की सूचना से अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया फिर सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस टीम जब दिलीप के आवास पर पहुंची तो बबीता का शव पलंग पर पड़ा था. उस की उम्र करीब 23 साल थी. उस के गले में खरोंच का निशान था. वहां एक दुपट्टा भी पड़ा था. शायद उस ने दुपट्टे से फांसी का फंदा बनाया था. थानाप्रभारी अभी जांच कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी राजेश कुमार यादव तथा सीओ (कैंट) अजीत प्रताप सिंह फोरैंसिक टीम के साथ वहां गए. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर सिपाही दिलीप कुमार उस की पत्नी बबली से पूछताछ की.

 दिलीप ने बताया कि उस की ब्याहता पत्नी बबली है. बाद में उस ने साली बबीता से दूसरा ब्याह रचा लिया था. दोनों पत्नियां साथ रहती थीं. बीती रात बबीता ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली जबकि बबली ने बताया कि बबीता को मिरगी का दौरा पड़ता था. वह बीमार रहती थी, जिस से परेशान हो कर उस ने आत्महत्या कर ली. पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ के बाद मृतका के परिवार वालों को भी सूचना भिजवा दी. फोरैंसिक टीम ने जांच की तो पंखे, छत के कुंडे रौड पर धूल लगी थी. अगर पंखे से लटक कर बबीता ने जान दी होती तो धूल हटनी चाहिए थी. मौके से बरामद दुपट्टे पर भी किसी तरह की धूल नहीं लगी थी

गले पर मिला निशान भी फांसी के फंदे जैसा नहीं था. टीम को यह मामला आत्महत्या जैसा नहीं लगा. फोरैंसिक टीम ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अपने शक से अवगत कराया और शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल से कराने का अनुरोध किया. इस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दी. एसएसपी अनंत देव ने तब मृतका बबीता के शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल से कराने को कहा. डाक्टरों के पैनल ने बबीता का पोस्टमार्टम किया और अपनी रिपोर्ट पुलिस अधिकारियों को भेज दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट को पढ़ कर थानाप्रभारी चौंक पड़े, क्योंकि उस में साफ कहा गया था कि बबीता की मौत गला दबा कर हुई थी. यानी वह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या का मामला निकला. श्री त्रिपाठी ने अपने अधिकारियों को भी बबीता की हत्या के बारे में अवगत करा दिया. फिर उन के आदेश पर सिपाही दिलीप कुमार को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. अब तक मृतका बबीता के मातापिता भी कानपुर गए थे. आते ही बबीता के पिता डा. बृजपाल सिंह ने थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी सीओ अजीत प्रताप सिंह चौहान से मुलाकात की. उन्होंने आरोप लगाया कि सिपाही दिलीप उस के परिवार वालों ने दहेज के लिए उन की बेटी बबीता को मार डाला. उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कर आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि बबीता की मौत गला घोंटने से हुई थी और सिपाही दिलीप कुमार शक के घेरे में था. अत: थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी ने मृतका के पिता डा. बृजपाल सिंह की तहरीर पर सिपाही दिलीप कुमार उस के पिता सोनेलाल मां मालती के खिलाफ दहेज उत्पीड़न गैर इरादतन हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. बबीता की मौत की बारीकी से जांच शुरू की तो उन्होंने सब से पहले हिरासत में लिए गए सिपाही दिलीप कुमार से पूछताछ की. दिलीप कुमार ने हत्या से साफ इनकार कर दिया. उस की ब्याहता बबली से पूछताछ की गई तो वह भी साफ मुकर गई. पासपड़ोस के लोगों से भी जानकारी जुटाई गई, पर हत्या का कोई क्लू नहीं मिला.

सिपाही दिलीप के पिता सोनेलाल भी यूपी पुलिस में एसआई हैं. वह पुलिस लाइन कानपुर में तैनात हैं. सोनेलाल भी इस केस में आरोपी थे. फिर भी उन्होंने पुलिस अधिकारियों से मुलाकात की और बताया कि बबीता की हत्या उन के बेटे दिलीप ने नहीं की है. उन्होंने कहा कि बबीता के पिता बृजपाल ने झूठा आरोप लगा कर पूरे परिवार को फंसाया है. पुलिस जिस तरह चाहे जांच कर ले, वह जांच में पूरा सहयोग करने को तैयार हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि यदि जांच में मेरा बेटा और मैं दोषी पाया जाऊं तो कतई बख्शा जाए. एसपी राजेश कुमार यादव सीओ प्रताप सिंह भी चाहते थे कि हत्या जैसे गंभीर मामले में कोई निर्दोष व्यक्ति जेल जाए, अत: उन्होंने एसआई सोनेलाल की बात को गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी को आदेश दिया कि वह निष्पक्ष जांच कर जल्द से जल्द हत्या का खुलासा कर दोषी के खिलाफ काररवाई करें.

अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी ने केस की सिरे से जांच शुरू की. उन्होंने मामले का क्राइम सीन दोहराया. इस से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि बबीता का हत्यारा कोई अपना ही है. क्योंकि घर में उस रात 4 सदस्य थे. सिपाही दिलीप कुमार, उस की ब्याहता बबली, 3 वर्षीय बेटा और दूसरी पत्नी बबीता. अब रात में बबीता की हत्या या तो दिलीप ने की या फिर बबली ने या फिर दोनों ने मिल कर की या किसी को सुपारी दे कर कराई. दिलीप कुमार बबीता की हत्या से साफ मुकर रहा था. उस का दरोगा पिता सोनेलाल भी उस की बात का समर्थन कर रहा था. यदि दिलीप ने हत्या नहीं की तो बबली जरूर हत्या के राज से वाकिफ होगी. अब तक कई राउंड में पुलिस अधिकारी दिलीप तथा उस की ब्याहता बबली से पूछताछ कर चुके थे. पर किसी ने मुंह नहीं खोला था.

इस पूछताछ में बबली शक के घेरे में रही थी. पुष्टि करने के लिए पुलिस ने बबली के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उस ने घटना वाली शाम को अपने देवर शिवम से बात की थी. अत: 14 सितंबर को बबली को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लियामहिला पुलिसकर्मियों ने जब उस से उस की छोटी बहन बबीता की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन मनोवैज्ञानिक तरीके से की गई पूछताछ से बबली टूट गई. उस ने बबीता की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. बबली ने बताया कि उस की सगी छोटी बहन बबीता उस की सौतन बन गई थी. पति बबीता के चक्कर में उस की उपेक्षा करने लगा था. इतना ही नहीं, वह शारीरिक और मानसिक रूप से भी उसे प्रताडि़त करता था. पति की उपेक्षा से उस का झुकाव सगे देवर शिवम की तरफ हो गया. फिर शिवम की मदद से ही रात में बबीता की रस्सी से गला कस कर हत्या कर दी.

बबली के बयानों के आधार पर पुलिस ने शिवम को चकेरी से गिरफ्तार कर लिया. शिवम चकेरी में कमरा ले कर रह रहा था और पढ़ाई तथा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. थाने में भाभी बबली को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. फिर उस ने भी हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. शिवम ने बताया कि बबली भाभी उस के बीच प्रेम संबंध थे. भाभी उस से मिलने चकेरी आती थी. किसी तरह बबीता को यह बात पता लग गई थी तो वह शिकायत दिलीप भैया से कर देती थी. फिर दिलीप भैया हम दोनों को पीटते थे. इसी खुन्नस में हम दोनों ने गला घोट कर बबीता को मार डाला. शिवम ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी पुलिस को बरामद करा दी जो उस ने झाडि़यों में फेंक दी थी.

चूंकि बबीता की हत्या की वजह साफ हो गई थी, इसलिए थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी ने दहेज हत्या की रिपोर्ट को खारिज कर बबली शिवम के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली और दोनों को गिरफ्तार कर सिपाही दिलीप उस के मातापिता को क्लीन चिट दे दी. पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपियों के बयानों और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर नाजायज रिश्तों एवं सौतिया डाह की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का एक छोटा सा गांव है रूपापुर. इसी गांव में डा. बृजपाल सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां बबली और बबीता थीं. बृजपाल सिंह गांव के सम्मानित व्यक्ति थे. वह डाक्टरी पेशे से जुड़े थे. उन के पास उपजाऊ जमीन भी थी. कुल मिला कर वह हर तरह से साधनसंपन्न और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन्होंने बड़ी बेटी बबली की शादी फर्रुखाबाद जिले के गंज (फतेहगढ़) निवासी सोनेलाल के बेटे दिलीप कुमार के साथ तय कर दी. दिलीप कुमार उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही था. सोनेलाल भी उत्तर प्रदेश पुलिस में एसआई थे. उन का छोटा बेटा शिवम पढ़ रहा था. सोनेलाल का परिवार भी खुशहाल था.

दोनों ही परिवार पढ़ेलिखे थे, इसलिए सगाई से पहले ही परिजनों ने एकांत में बबली और दिलीप की मुलाकात करा दी थी. क्योंकि जिंदगी भर दोनों को साथ रहना है तो वे पहले ही एकदूसरे को देखसमझ लें. दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया तो 11 दिसंबर, 2012 को सामाजिक रीतिरिवाज से दोनों की शादी हो गई. शादी के बाद बबली कुछ महीने ससुराल में रही फिर दिलीप को कानपुर के कैंट थाने में क्वार्टर मिल गया. क्वार्टर आवंटित होने के बाद दिलीप अपनी पत्नी को भी गांव से ले आया. वहां दोनों हंसीखुशी से जिंदगी व्यतीत करने लगे.

दिलीप जब ससुराल जाता तो उस की निगाहें अपनी खूबसूरत साली बबीता पर ही टिकी रहती थीं. वह महसूस करने लगा कि बबली से शादी कर के उस ने गलती की. उस की शादी तो बबीता से होनी चाहिए थी. ऐसा नहीं था कि बबली में किसी तरह की कमी थी. वह सुंदर, सुशील के साथ घर के सभी कामों में दक्ष थी. लेकिन बबीता अपनी बड़ी बहन से ज्यादा सुंदर और चंचल थी, इसलिए दिलीप का मन साली पर इतना डोल गया कि उस ने फैसला कर लिया कि वह बबीता को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उस से दूसरा विवाह करने की कोशिश करेगा.

रिश्ता जीजासाली का था सो दिलीप और बबीता के बीच हंसीमजाक होता रहता था. एक दिन दिलीप ससुराल में सोफे पर बैठा था तभी बबीता उसी के पास सोफे पर बैठ कर उस की शादी का एलबम देखने लगी. दोनों के बीच बातों के साथ हंसीमजाक हो रहा था. अचानक दिलीप ने एलबम में लगे एक फोटो की ओर संकेत किया, ‘‘देखो बबीता, मेरे बुरे वक्त में कितने लोग साथ खड़े हैं.’’

बबीता ने गौर से उस फोटो को देखा, जिस में दिलीप दूल्हा बना हुआ था और कई लोग उस के साथ खड़े थे. फिर वह खिलखिला कर हंसने लगी, ‘‘शादी और आप का बुरा वक्त. जीजाजी, बहुत अच्छा मजाक कर लेते हैं आप.’’

‘‘बबीता, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं सच बोल रहा हूं.’’ चौंकन्नी निगाहों से इधरउधर देखने के बाद दिलीप फुसफुसा कर बोला, ‘‘बबली से शादी कर के मैं तो फंस गया यार.’’

‘‘पापा ने दहेज में कोई कसर छोड़ी है और दीदी में किसी तरह की कमी है.’’ हंसतेहंसते बबीता गंभीर हो गई, ‘‘फिर आप दिल दुखाने वाली ऐसी बात क्यों कर रहे हैं.’’

‘‘बबली को जीवनसाथी चुन कर मैं ने गलती की थी.’’ कह कर दिलीप बबीता की आंखों में देखने लगा फिर बोला, ‘‘सच कहूं, मेरी पत्नी के काबिल तो तुम थी.’’

गंभीरता का मुखौटा उतार कर बबीता फिर खिलखिलाने लगी, ‘‘जीजाजी, आप भी खूब हैं.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ. अगर बबली से मेरा रिश्ता हुआ होता और मैं तुम्हें प्रपोज करता तो क्या तुम मुझ से शादी करने को राजी हो जाती.’’ कह कर दिलीप ने उस के मन की टोह लेनी चाही.

बबीता से कोई जवाब देते बना, वह गहरी सोच में डूब गई.

‘‘सच बोलूं?’’ बबीता ने कहा, ‘‘आप बुरा तो नहीं मानेंगे.’’

दिलीप का दिल डूबने सा लगा, ‘‘बिलकुल नहीं, लेकिन सच बोलना.’’

‘‘सच ही बोलूंगी जीजाजी,’’ शर्म से बबीता के गालों पर गुलाबी छा गई, ‘‘और सच यह है कि मैं आप से शादी करने को फौरन राजी हो जाती.’’

यह सुन कर दिलीप का दिल बल्लियों उछलने लगा किंतु मन में एक संशय भी था, सो उस ने तुरंत पूछ लिया, ‘‘कहीं मेरा मन रखने के लिए तो तुम यह जवाब नहीं दे रही.’’

‘‘हरगिज नहीं, बहुत सोचसमझ कर ही मैं ने आप को यह जवाब दिया है.’’ बबीता आहिस्ता से निगाहें उठा कर बोली, ‘‘आप हैं ही इतने हैंडसम और स्मार्ट कि किसी भी लड़की के आइडियल हो सकते हैं.’’

दिलीप ने अपनी आंखें उस की आंखों में डाल दीं, ‘‘तुम्हारा भी…’’

‘‘मैं कैसे शामिल हो सकती हूं.’’ बबीता बौखलाई सी थी, ‘‘आप तो मेरे जीजाजी हैं.’’

बबीता ने मुंह खोला ही था कि तभी उस की मां ममता वहां गईं. अत: दोनों की बातों पर वहीं विराम लग गया. दिलीप से हुई बातों को बबीता ने सामान्य रूप से लिया, मगर दिलीप का दिमाग दूसरी ही दिशा में सोच रहा था. उसे विश्वास हो गया कि बबीता भी उस पर फिदा है. लिहाजा वह बबीता पर डोरे डालने लगा. शादी के ढाई साल बाद बबली गर्भवती हुई तो उस की खुशी का ठिकाना रहा. दिलीप को भी बाप बनने की खुशी थी. एक रोज बबली ने पति से कहा कि उसे अब घरेलू काम खाना बनाने में दिक्कत होने लगी है. अत: वह बबीता को घर की देखरेख के लिए लिवा लाए. कम से कम वह घर का काम तो कर लिया करेगी.

पत्नी की बात सुन कर दिलीप खुशी से झूम उठा. उस ने बबली से कहा कि वह अपने मातापिता से बबीता को भेजने की बात कर ले. कहीं ऐसा हो कि वह उसे भेजने से इनकार कर देंबबली ने मां से बात की तो वह बबीता को दिलीप के साथ भेजने को राजी हो गईं. इस के बाद दिलीप ससुराल गया और बबीता को साथ ले आया. बबीता ने आते ही घर का कामकाज संभाल लिया. साली घर गई तो दिलीप के जीवन में भी बहार गई. वह उसे रिझाने के लिए उस पर डोरे डालने लगा. पहले दोनों में मौखिक छेड़छाड़ शुरू हुई. फिर धीरेधीरे मगर चालाकी से दिलीप ने उस से शारीरिक छेड़छाड़ भी शुरू कर दी.

उन दिनों बबीता की उम्र 19-20 साल थी. उस के तनमन में यौवन का हाहाकारी सैलाब थमा हुआ था. दिलीप की कामुक हरकतों से उसे भी आनंद की अनुभूति होने लगी. दिलीप को छेड़ने पर वह उस का विरोध करने के बजाय मुसकरा देती. इस से दिलीप का हौसला बढ़ता गया. बबीता भी दिलीप में रुचि लेने लगी. फिर एक दिन मौका मिलने पर दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. साली के शरीर को पा कर जहां दिलीप की प्रसन्नता का पारावार था, वहीं बबीता को प्रसन्नता के साथ ग्लानि भी थी. उस ने कहा, ‘‘जीजाजी, यह अच्छा नहीं हुआ. तुम्हारे साथ मैं भी बहक गई.’’

‘‘तो इस में बुरा क्या है?’’

‘‘बुरा यह है कि मैं ने बड़ी बहन के हक पर अपना हक जमा लिया. यह पाप है.’’ वह बोली.

‘‘प्यार में पापपुण्य नहीं देखा जाता. भूल जाओ कि तुम ने कुछ गलत किया है. बबली का जो हक है, वह उसे मिलता रहेगा.’’ कहते हुए दिलीप ने बबीता को फिर से बांहों में समेटा तो वह भी अच्छाबुरा भूल कर उस से लिपट गईउसी दिन से दोनों के पतन की राह खुल गई. देर रात जब बबली सो जाती तो बबीता दिलीप के बिस्तर पर पहुंच जाती फिर दोनों हसरतें पूरी करते. बबली ने बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशी छा गई. पति के अलावा सासससुर सभी खुश थे. कुछ समय बाद बबली ने महसूस किया कि छोटी बहन बबीता उस के पति से कुछ ज्यादा ही नजदीकियां बढ़ा रही है. उस ने उस पर नजर रखनी शुरू की तो सच सामने गया

उस ने नाजायज रिश्तों का विरोध किया तो दिलीप बबीता दोनों ही उस पर हावी हो गए. तब बबली ने बबीता को घर वापस भेजने का प्रयास किया लेकिन दिलीप ने उसे नहीं जाने दिया. एक रात जब बबली ने पति को छोटी बहन के साथ बिस्तर पर रंगेहाथ पकड़ा तो दिलीप बोला कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और जल्द ही शादी भी कर लेंगे. यदि उस ने विरोध किया तो वह उसे घर से निकाल देगाइस धमकी से बबली डर गई. अब वह डरसहमी रहने लगी. बबली का विरोध कम हुआ तो दिलीप और बबीता खुल्लमखुल्ला रासलीला रचाने लगे. इसी बीच चोरीछिपे दिलीप ने बबीता के साथ आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली और उसे पत्नी का दरजा दे दिया.

डा. बृजलाल सिंह को जब दामाद की इस नापाक हरकत का पता चला तो वह किसी तरह बबीता को घर ले आए. घर पर मां ने उसे समझाया और बहन का घर उजाड़ने की नसीहत दी. लेकिन बबीता जीजा के प्यार में इस कदर डूब चुकी थी कि उसे मां की नसीहत अच्छी नहीं लगी. उस ने मां से साफ कह दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह दिलीप का साथ नहीं छोड़ेगी. डा. बृजपाल सिंह ने बड़ी बेटी बबली का घर टूटने से बचाने के लिए पुलिस में दिलीप की शिकायत की. जांच के दौरान पुलिस ने बबीता का बयान दर्ज किया

बबीता ने तब हलफनामा दे कर कहा कि उस ने दिलीप से आर्यसमाज में शादी कर ली है. अब वह उस की पत्नी है और उसी के साथ रहना चाहती है. मांबाप उसे बंधक बनाए हैं. बबीता के इस बयान के बाद डा. बृजपाल मायूस हो गए. इस के बाद बबीता दिलीप के साथ चली गई. दिलीप ने अब बबीता को पत्नी का दरजा दे दिया था और उसे सुखपूर्वक रखने लगा था. बबली और बबीता दोनों सगी बहनें अब एक ही छत के नीचे रहने लगी थींबबीता ने बहन के सुहाग पर कब्जा भले ही कर लिया था लेकिन बबली ने मन से बबीता को स्वीकार नहीं किया था. बल्कि यह उस की मजबूरी थी. दोनों एकदूसरे से मन ही मन जलती थीं लेकिन दिखावे में साथ रहती थीं और हंसतीबतियाती थीं.

बबीता सौतन बन कर घर में रहने लगी तो दिलीप बबली की उपेक्षा करने लगा. वह बबीता की हर बात सुनता था, जबकि बबली को झिड़क देता था. ब्याहता की उपेक्षा कर वह बबीता के साथ घूमने और शौपिंग के लिए जाता. कभीकभी किसी बात को ले कर दोनों बहनों में झगड़ा हो जाता तो दिलीप बबीता का पक्ष ले कर बबली को ही बेइज्जत कर देता. बिस्तर पर भी बबीता ही दिलीप के साथ होती, जबकि बबली रात भर करवटें बदलती रहती थी. बबली का एक देवर था शिवम. शिवम चकेरी में रहता था और पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. शिवम बबली भाभी से मिलने आताजाता रहता था. शिवम को बबली से तो लगाव था लेकिन बबीता उसे फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी

उस का मानना था कि बबीता ने दिलीप से शादी कर के अपनी बड़ी बहन के हक को छीन लिया है. उसे बहन की सौतन बन कर नहीं आना चाहिए था. बबली की उपेक्षा जब घर में होने लगी तो उस की नजर अपने देवर शिवम पर पड़ी. उस ने अपने हावभाव से शिवम से दोस्ती कर ली. दोस्ती प्यार में बदली और फिर उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. बबली अकसर देवर शिवम से मिलने जाने लगी. देवरभाभी के मिलन की शिकायत बबीता ने बढ़ाचढ़ा कर दिलीप से कर दीदिलीप ने निगरानी शुरू की तो बबली को छोटे भाई शिवम के साथ घूमते पकड़ लिया. इस के बाद उस ने बीच सड़क पर गिरा कर शिवम को पीटा तथा बबली की पिटाई घर पहुंच कर की. फिर तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. बबीता की शिकायत पर बबली शिवम की जबतब पिटाई होती रहती थी.

देवरभाभी के मिलन में बबीता बाधक बनने लगी तो बबली ने शिवम के साथ मिल कर उसे रास्ते से हटाने का फैसला ले लिया. बबली जानती थी कि जब तक बबीता जिंदा है, वह उस की छाती पर मूंग दलती रहेगी और तब तक उसे तो घर में इज्जत मिलेगी और ही पति का प्यार.  उसे यह भी शक था कि बबीता ने उस से उस का पति तो छीन ही लिया है, अब वह धन और गहने भी छीन लेगी इसलिए उस ने शिवम को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों के जाल में उलझा कर ऐसा उकसाया कि वह बबीता की हत्या करने को राजी हो गया. 10 सितंबर, 2018 की शाम बबली बबीता में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ. इस झगड़े ने बबली के मन में नफरत की आग भड़का दी.

उस ने एकांत में जा कर शिवम से बात की और उसे घर बुला लिया. शिवम घर आया तो बबली ने उसे बाहर वाले कमरे में पलंग के नीचे छिपने को कहा. शिवम तब पलंग के नीचे छिप गया. बबीता को शिवम के आने की भनक नहीं लगी. देर शाम दिलीप जब घर आया तो बबीता ने उस के साथ खाना खाया फिर दोनों कमरे में कूलर चला कर पलंग पर लेट गए. आधी रात के बाद बबीता लघुशंका के लिए कमरे से निकली तभी घात लगाए बैठे शिवम बबली ने उसे दबोच लिया और घसीट कर वह उसे कमरे में ले आए इस के बाद शिवम ने बबीता का मुंह दबोच लिया ताकि वह चिल्ला सके और बबली ने रस्सी से उस का गला घोट दिया. हत्या करने के बाद शिवम रस्सी का टुकड़ा ले कर भाग गया और बबली अपने मासूम बच्चे के साथ कर कमरे में लेट गई.

इधर सुबह को दिलीप की आंखें खुलीं तो बिस्तर पर बबीता को पा कर कमरे से बाहर निकला. दूसरे कमरे में बबली बच्चे के साथ पलंग पर लेटी थी. बबीता को खोजते हुए दिलीप जब बाहर वाले कमरे में पहुंचा तो पलंग पर बबीता की लाश पड़ी थी. लाश देख कर दिलीप चीखा तो बबली भी कमरे से बाहर गई. बबीता की लाश देख कर बबली रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग गए. फिर तो पुलिस कालोनी में हड़कंप मच गया. इसी बीच दिलीप कुमार थाने पहुंचा और पुलिस को पत्नी बबीता द्वारा आत्महत्या करने की सूचना दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी पुलिस बल के साथ पहुंचे और फिर आगे की काररवाई हुई.

15 सितंबर, 2018 को पुलिस ने अभियुक्त शिवम और बबली को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.   

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Rajasthan Crime : चमत्कारी संदूक के लालच में गंवाए 40 लाख

Rajasthan Crime : अजमेर जिले का केकड़ी उपखंड. यहां ब्यावर रोड देवगांव गेट के बाहर स्थित दीदार नाथ आश्रम में पूर्णिमा होने की वजह से श्रद्धालुओं की काफी भीड़ थी. इसी भीड़ में अशोक मीणा भी था. अशोक मीणा शिक्षक था. वह धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था. वह बगैर नागा किए दीदार नाथ आश्रम में आता था. यहां पूजाअर्चना करता, कुछ वक्त बड़े चबूतरे पर बैठ कर ध्यान लगाता और फिर परिवार के सुख की कामना करते हुए अपने घर लौट आता.

रोज की भांति दीदार नाथ आश्रम में आने के बाद अशोक मीणा ने देवस्थल में पूजा की. वह चबूतरे पर आ कर ध्यान लगाने के लिए अभी बैठा ही था कि भगवा धोतीकुरता पहने एक व्यक्ति ने उस के हाथ में बताशों का प्रसाद दे कर बहुत कोमल स्वर मे कहा, ‘‘अशोक मीणा, यह आखिरी 2 बताशे तुम्हारे ही भाग्य के बचे थे. इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लो.’’

अशोक मीणा ने उस व्यक्ति को हैरानी से देखा. गोरे रंग के उस व्यक्ति की उम्र 50-55 के आसपास थी. उस के सिर के बीच के बाल उड़ चुके थे. माथे पर लाल चंदन का तिलक लगा हुआ था. उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. अशोक मीणा इस बात पर हैरान था कि वह व्यक्ति उस का नाम जानता था, कैसे? यही जिज्ञासा लिए अशोक ने पूछ लिया, ‘‘मैं आप से पहले कभी नहीं मिला हूं, फिर आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं अशोक,’’ वह व्यक्ति मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम यहां सरकारी स्कूल में टीचर हो. यह बताओ, क्या मैं ने गलत कहा है?’’

अशोक मीणा अपने बारे में यह सब सुन कर उस व्यक्ति का चेहरा देखने लगा. कुछ क्षणों तक वह कुछ बोल नहीं पाया, फिर खुद को संयत करते हुए उस ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं, अपना परिचय देंगे मुझे?’’

‘‘मेरा नाम जयप्रकाश है. पंडित हूं इसलिए अपने नाम के पीछे शर्मा लगाता हूं. तुम मुझे पंडितजी कह सकते हो.’’

‘‘आप बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति हैं पंडितजी… मैं सौभाग्यशाली हूं, जो मुझे आप के दर्शन हुए हैं.’’ अशोक मीणा ने बहुत आदर भाव से कहा.

पंडित जयप्रकाश मुसकराया, ‘‘खुद को सौभाग्यशाली यूं भी समझ सकते हो अशोक कि मैं तुम से टकरा गया हूं. मैं तुम्हारे मस्तिष्क की रेखाएं पढ़ रहा हूं. तुम्हारा भविष्य इन्हीं रेखाओं में छिपा हुआ है, जिसे मैं अपनी दिव्य दृष्टि से साफसाफ देख रहा हूं.’’

अशोक मीणा अहसानमंद सा हो कर जयप्रकाश शर्मा के पैरों पर झुक गया, ‘‘मैं आप से अपना भविष्य जानने को आतुर हो उठा हूं महाराज. मेरे विषय में जो देख रहे हैं, मुझे बताइए.’’

‘‘अशोक!’’ जयप्रकाश पंडित एकाएक गंभीर हो गया, ‘‘तुम बहुत नादान और भोले हो.’’

‘‘वह क्यों महाराज?’’ अशोक ने पलकें झपकाईं.

‘‘तुम सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास कर रहे हो कि मैं ने तुम्हारा नाम और थोड़ी सी नौकरी संबंधित बातें बताई हैं.’’

‘‘आप ने गलत तो कुछ भी नहीं बताया महाराज.’’

‘‘लेकिन जो बताया, वह मुझे किसी दूसरे के द्वारा भी तो ज्ञात हो सकता है. ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे घर के आसपास रहता हो या तुम्हारा घनिष्ठ मित्र हो और उसी ने मुझे आ कर तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया हो.’’

‘‘जी.’’ अशोक मीणा ने सिर खुजाया, ‘‘हां, ऐसा तो हो सकता है. किसी मेरे पहचान वाले से सुन कर आप ऐसी सटीक जानकारी दे सकते हैं.’’

‘‘तभी कहता हूं, तुम भोले और नादान हो. तुरंत किसी पर विश्वास कर लेना भोले लोगों की कमजोरी होती है. पहले सामने वाले को अच्छी तरह टटोल लेना चाहिए, फिर विश्वास करना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं महाराज,’’ अशोक ने सिर हिलाया, ‘‘अब आप ही बता दीजिए, आप को मैं कैसे टटोलूं?’’

‘‘मैं अपना परिचय खुद दूंगा,’’ जयप्रकाश हंस कर बोला, ‘‘तुम कुछ ही देर में मुझ पर आंख बंद कर के विश्वास करने लगोगे.’’

अशोक मीणा ने गहरी सांस ली, ‘‘आप की बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया है.’’

‘‘नहीं उलझोगे.’’ जयप्रकाश मुसकराया, फिर उस ने पूछा, ‘‘चमत्कार पर विश्वास करते हो?’’

‘‘बहुत अधिक महाराज.’’

‘‘तंत्रमंत्र को भी मानते हो?’’

‘‘हां,’’ अशोक मीणा ने सिर हिलाया, ‘‘तंत्रमंत्र की शक्ति आदिकाल से चली आ रही है. ऋषिमुनि इन तंत्रमंत्र के द्वारा कायाकल्प कर लेते थे. रूप बदलने, किसी को वश में करने और युद्ध के दौरान अस्त्रशस्त्रों को एकदूसरे पर छोड़ने में तंत्रमंत्र शक्ति का ही प्रयोग होता था.’’

‘‘ठीक कह रहे हो.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया, ‘‘मैं भी तुम्हें तंत्रमंत्र के चमत्कार दिखाता हूं.’’

कहने के बाद जयप्रकाश ने आंखें बंद कीं और उस के होंठ यूं फड़फड़ाने लगे जैसे वह कोई मंत्र बुदबुदा रहा हो. कुछ ही क्षणों बाद उस ने अपना दायां हाथ हवा में लहरा कर कुछ पकड़ा.

अशोक हैरानी से आंखें झपकाने लगा. जयप्रकाश शर्मा के हाथ में मोतीचूर का लड्डू था.

लड्डू जयप्रकाश शर्मा ने अशोक मीणा को दे कर आदेश दिया, ‘‘यह तुम्हें ही खाना है अशोक.’’

‘‘यह… यह आप ने हवा में कहां से पकड़ा है?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

जयप्रकाश शर्मा कुछ नहीं बोला, उस ने फिर से आंखें बंद कीं और मंत्र बुदबुदाने लगा. उस ने एक बार फिर हवा में हाथ घुमाया. इस बार उस की मुट्ठी में कुछ दबा हुआ था.

उस ने अशोक मीणा के सामने मुट्ठी खोली. उस की मुट्ठी में एक पीतल का ताबीज था.

‘‘लो अशोक, यह ताबीज गले में पहन लो. तुम्हारे ऊपर कोई दुष्ट आत्मा कभी अटैक नहीं करेगी, न तुम्हारा अनिष्ट करेगी.’’

‘‘चमत्कार है महाराज.’’ हैरत से अशोक की आंखें फैल गईं, ‘‘आप साधारण इंसान नहीं, कोई सिद्ध पुरुष हैं.’’

‘‘अब तुम मुझ पर विश्वास या अविश्वास कर सकते हो.’’ जयप्रकाश ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अविश्वास करने वाली बात ही नहीं है महाराज, आप ने मेरी आंखों के सामने यह चीजें तंत्रमंत्र शक्ति से प्रकट की हैं. मैं अब कह सकता हूं कि आप ने अपने दिव्य ज्ञान से ही मेरा नाम और नौकरी के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त की है. आप सच्चे इंसान हैं, पूजनीय इंसान हैं.’’

‘‘आओ, अब बैठ कर बात करते हैं.’’ जयप्रकाश ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर अशोक मीणा का हाथ पकड़ा और एक ओर चल पड़ा. अशोक मीणा मंत्रमुग्ध सा उस के पीछेपीछे जा रहा था.

जयप्रकाश शर्मा केकड़ी उपखंड में सब्जी मंडी क्षेत्र में रहता था. यहां उस का जो निवास स्थान था, वह किसी तांत्रिक के साधनास्थल सा दिखाई देता था. कमरे में यज्ञकुंड था, उस के अंदर हर वक्त लकडि़यां जलती रहतीं, कमरा धुएं से काला स्याह और अजीब महक वाला बन गया था.

सुगंधित धूप अगरबत्तियां जगहजगह खोंस कर जलाई जाती रही होंगी, उन के अधजले टुकड़ों के ढेर लगे हुए थे, जाने कभी वहां सफाई की जाती थी या नहीं. कमरे के बीच में बने यज्ञकुंड की धूनी के सामने जयप्रकाश का आसन बिछा रहता.

जयप्रकाश शर्मा वहीं बैठ कर अपनी तंत्रमंत्र साधना की कथित दुकान चलाता था.

प्रेम वशीकरण, टोनाटोटका, बिछुड़ों को मिलाना, गड़े धन की जानकारी, सौतन से छुटकारा जैसे काम करने का जयप्रकाश शर्मा के पास जैसे ठेका था. केकड़ी उपखंड में वह तांत्रिक जय शर्मा के नाम से विख्यात हो गया था. उस के साधनास्थल पर परेशान, किसी समस्या से त्रस्त पुरुषों, औरतों का जमावड़ा लगा रहता था.

जयप्रकाश के द्वारा वह अपनी समस्या का समाधान करवाने आते थे, उन्हें कितना फायदा होता था, यह वह खुद नहीं जानते थे. वह जयप्रकाश शर्मा से तंत्र क्रिया करवाते और मोटा चढ़ावा चढ़ा कर लौट जाते. वह कभी शिकायत ले कर जयप्रकाश या किसी अन्य के पास नहीं गए कि उन्हें लाभ नहीं हुआ है, ऐसी बातों के लिए उन्हें पुलिस से फटकार मिलने का डर बना रहता और लोगों से जगहंसाई का.

अंधविश्वास भरी इन बातों का आज 21वीं सदी में कोई स्थान नहीं था. फिर भी अंधविश्वासियों की वजह से जयप्रकाश शर्मा की दुकान चल रही थी. वह दोनों हाथों से पैसे बटोर रहा था.

लोग यह समझते थे कि जयप्रकाश के पास हवा में ताबीज पकड़ने, लड्डू या 5-5 सौ के नोट पैदा करने जैसे चमत्कारी गुण हैं. वह यह सब किस विधि से करता है, कोई नहीं जानता था. लोग बेवकूफ बन रहे थे और वह बना रहा था. जयप्रकाश शर्मा की नजर में अब मोटा मुरगा चढ़ गया था. वह मुरगा था अशोक मीणा.

जयप्रकाश ने अशोक मीणा को पूर्णिमा के दिन अपने हाथ की सफाई दिखा कर प्रभावित कर दिया था. अशोक मीणा चमत्कृत था. वह जयप्रकाश को कोई सिद्ध पुरुष मानने लगा था. अशोक मीणा नियमित रूप से ब्यावर के दीदारनाथ आश्रम में जाता था, जयप्रकाश शर्मा भी उस के पीछे दीदारनाथ आश्रम पहुंचने लगा.

जयप्रकाश अशोक मीणा को रोज नएनए चमत्कार दिखा कर प्रभावित करता. अशोक उस के चमत्कार देख कर हैरत में पड़ जाता था. उस का झुकाव अब जयप्रकाश शर्मा की तरफ हो गया था. वह जयप्रकाश का आदर करने लगा. एक दिन मौका देख कर जयप्रकाश ने उसे अपने साधनास्थल पर बुला लिया.

अपने सामने उसे बैठने को आसन दिया. अशोक मीणा उस के साधनास्थल को हैरत से देख रहा था.

‘‘इस साधनास्थल पर सब कुछ अलौकिक है अशोक मीणा, मैं ने कठोर परिश्रम कर के कुछ सिद्धियां प्राप्त की हैं. लेकिन मैं अभी गुरु शिवनाथ के मुकाबले बौना ही हूं.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘यह गुरु शिवनाथ कौन है?’’

‘‘यह विश्व के महान तंत्रमंत्र ज्ञाता हैं, अपनी कठोर साधना से मेरे गुरु शिवनाथ ने अनेक जिन्न, खबीश, प्रेत और चंडाल अपने वश में कर लिए हैं. वह उन से हर प्रकार का काम लेते हैं. किसी की कैसी भी समस्या हो, उन को वह चुटकी में हल कर देते हैं.’’ जयप्रकाश ने बता कर अशोक मीणा की तरफ देखा, ‘‘मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताने जा रहा हूं, जो मेरे और गुरु शिवनाथ के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति नहीं जानता, चूंकि तुम मेरे खास बन गए हो, इसलिए सिर्फ तुम्हें बता रहा हूं. थोड़ा आगे सरक आओ.’’

अशोक मीणा अपनी जगह से आगे सरका. उस के मन में वह खास बात जान लेने की जिज्ञासा थी.

‘‘अशोक, मेरे गुरु शिवनाथ ने अपने जिन्नों की मदद से रानी हलीमा का वह चमत्कारी बक्सा हासिल कर लिया है, जिस में से सोना, चांदी और नोट निकलते हैं.’’

‘‘भला बक्सा नोट, सोनाचांदी कैसे निकाल सकता है? क्या उस में पहले यह सब डालना पड़ता है?’’ अशोक ने आतुरता से पूछा.

‘‘नहीं अशोक. उस बक्से से अपनी इच्छा से जो मांगो, वह निकल आता है.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है.’’

जयप्रकाश हंसा, ‘‘तांत्रिक की किसी चमत्कार और शक्ति को नकारा नहीं जा सकता अशोक. मैं तुम्हें अपने गुरु शिवनाथ के पास ले कर चलूंगा, तुम अपनी आंखों से उस बक्से का चमत्कार देख लेना.’’

‘‘कब चलेंगे आप?’’ अशोक मीणा ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘जब तुम चाहोगे.’’

‘‘मैं तो आज ही चलना चाहता हूं.’’

जयप्रकाश उस का उतावलापन देख कर मुसकराया फिर वह किसी गहरी सोच में डूब गया.

कक्ष में गहरी खामोशी छा गई.

कुछ देर बाद जयप्रकाश ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘अशोक, मैं सोच रहा हूं कि बक्सा अपने गुरु से तुम्हें दिलवा दूं.’’

‘‘क्या वह बक्सा दे देंगे?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं कहूंगा तो वह इंकार नहीं कर सकेंगे.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया.

‘‘सोचो, यदि वह बक्सा तुम्हें मिल गया तो तुम दुनिया के सब से धनी व्यक्ति बन जाओगे.’’

अशोक मीणा की आंखों में तीखी चमक उभरी, ‘‘काश! ऐसा हो जाए.’’

‘‘हो जाएगा. मैं तुम्हारा भला चाहता हूं इसलिए हर सूरत में मैं वह बक्सा तुम्हें दिलवाऊंगा, लेकिन…’’ अपनी बात अधूरी छोड़ी जयप्रकाश ने.

‘‘लेकिन क्या महाराज, कोई अड़चन हो तो मुझे निस्संकोच बताइए.’’

‘‘तुम्हें कुछ खर्चा करना पड़ेगा.’’

‘‘कर दूंगा. बताइए, कितना खर्च करना होगा?’’

‘‘तुम एक लाख रुपया मेरे एकाउंट में जमा करवा दो, ये रुपए एक सिक्योरिटी के रूप में मेरे पास रहेंगे. तुम्हें मैं वह बक्सा दिलवा रहा हूं, जिस में से तुम रोज लाखों रुपए, सोनाचांदी प्राप्त कर सकोगे. समझ रहे हो न मेरी बात?’’

‘‘मैं एक लाख रुपया आज ही आप के एकाउंट में डाल देता हूं.’’ अशोक मीणा ने बगैर किसी हिचक के कहा, ‘‘आप तो अपने गुरु के पास मुझे ले चलिए.’’

‘‘मेरे गुरु महाराष्ट्र में शाहपुरा (ठाणे) में रहते हैं, वहां चलने में जो खर्चा होगा, वह तुम्हें ही करना होगा.’’

‘‘ठीक है महाराज. सारा खर्च मैं ही करूंगा, आप आज ही टिकट का रिजर्वेशन करवा लीजिए. मैं आप के बैंक एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए डाल देता हूं. आप अपना एकाउंट नंबर मुझे दे दीजिए.’’

जयप्रकाश ने उसे अपना एकाउंट नंबर लिख कर दे दिया. अशोक मीणा वह नंबर ले कर उस साधनास्थल से बाहर निकला तो उस के मन में बेहद उत्साह और चेहरे पर खुशी थी.

अशोक मीणा ने एक घंटे बाद ही जयप्रकाश शर्मा के एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए जमा करवा दिए.

तीसरे दिन जयप्रकाश शर्मा अपने साथ अशोक मीना को ले कर ठाणे के शाहपुरा में अपने गुरु शिवनाथ के यहां पहुंच गया.

शिवनाथ तांत्रिक का वह कमरा, जहां वह तंत्रसाधना करता था, बहुत रहस्यमयी था. कमरे में काली की आदमकद मिट्टी की मूर्ति रखी थी, उस के गले में हड्डियों की माला पड़ी हुई थी.

कमरे के बीच में धूनी जली हुई थी, जिस में से इंसानी या किसी जानवर के मांस के जलने की सड़ांध आ रही थी. धूनी के पास एक आसन बिछा हुआ था, जिस के करीब पानी का एक कटोरा, कमंडल और हड्डी रखी हुई थी. घूनी के धुएं से कमरा काला पड़ चुका था.

कमरे में लाल रंग की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था, जिस की मद्धिम रोशनी ने कमरे को रहस्यमयी बना दिया था.

शिवनाथ दुबलापतला, सांवली रंगत वाला इंसान था. उस के लंबे बाल कंधे तक झूल रहे थे, वह लाल रंग का कुरतापायजामा पहने हुए था. उस ने हाथों की अंगुलियों में राशिनग वाली अंगूठियां और दाएं हाथ में मोटा कड़ा पहना हुआ था. चेहरे से वह बहुत चालाक इंसान लग रहा था.

उस कक्ष में शिवनाथ के सामने बेहद खूबसूरत, छरहरे बदन वाली युवती बैठी हुई थी. वहां तंत्र क्रिया हो रही थी.

शिवनाथ उन दोनों को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसे हो जयप्रकाश?’’

‘‘अच्छा हूं गुरुजी.’’ जयप्रकाश ने शिवनाथ के चरण छू कर कहा, ‘‘और तुम अशोक मीणा, यहां तक आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई तुम्हें?’’ शिवनाथ ने अशोक की तरफ देखा.

शिवनाथ के मुंह से अपना परिचय सुन कर इस बार अशोक को कोई हैरानी नहीं हुई.

तांत्रिक शक्ति का यह चमत्कार वह जयप्रकाश द्वारा पहले भी देख चुका था. उस ने श्रद्धा से शिवनाथ के चरण स्पर्श कर के कहा, ‘‘हम आराम से यहां तक पहुंच गए हैं गुरुजी. रास्ते में कोई कष्ट नहीं हुआ.’’

‘‘बैठ जाओ. मैं इस पीडि़ता की क्रिया से निपटने के बाद तुम दोनों से बात करूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा.

दोनों आसन ले कर बैठ गए.

‘‘बेटी, कल मैं ने तुम्हें कुछ चावल के दाने रुमाल में बांध कर दिए थे, वह साथ लाई हो तुम?’’ शिवनाथ ने युवती से पूछा.

‘‘हां महाराज.’’ युवती ने अपने सूट के गले में हाथ डाल कर एक सफेद रंग का रुमाल निकाल कर शिवनाथ के सामने रख दिया.

‘‘इसे खोल कर देखो, चावल सफेद हैं या उन का रंग बदल गया है?’’ शिवनाथ ने आदेश देते हुए कहा.

युवती ने रुमाल की गांठ खोली तो उस के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उमड़ आए. रुमाल में रखे चावलों का रंग सुर्ख लाल हो गया था.

‘‘यह तो लाल रंग के हो गए महाराज.’’ युवती हैरत से बोली.

शिवनाथ गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हारा प्रेमी गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला पुरुष है, वह तुम से प्यार का ढोंग कर रहा है, उस के अन्य युवतियों से भी प्रेमिल संबंध हैं.’’

‘‘मुझे पहले ही शक था महाराज. योगेश मुझे बेवकूफ बना रहा है, वह मुझे मिलने का समय दे कर नहीं आता…’’

‘‘कैसे आएगा, दूसरी युवती का भूत जो उस के सिर पर सवार रहता है.’’ शिवनाथ ने कहने के बाद कंधे झटके, ‘‘चिंता मत करो. मेरे जिन्न उस का भूत उतार देंगे. बोलो, तुम्हें अपना प्रेमी चाहिए या इसे सबक सिखा कर छोड़ना पसंद करोगी?’’

‘‘मैं योगेश से बहुत प्यार करती हूं महाराज, उस के बगैर जिंदा नहीं रह सकती. आप तो उस का दिमाग ठीक कर दीजिए, योगेश हमेशा मेरा रहे, मैं यही चाहती हूं.’’ युवती ने भावुक स्वर में कहा.

शिवनाथ ने हवा में हाथ लहराया तो उस के हाथ में गुलाब का लाल फूल आ गया. फूल को उस ने युवती की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘लो, यह फूल पानी में घोल कर योगेश को पिला देना, वह तुम्हें छोड़ कर किसी दूसरी लड़की के पास नहीं जाएगा. जाओ मौज करो.’’

‘‘आप की दक्षिणा देनी है महाराज, क्या सेवा करूं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मैं ने यह काम तुम्हारे लिए फ्री किया है, जब कभी आवश्यकता पड़ेगी दक्षिणा ले लूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा तो युवती उस के चरणस्पर्श कर वहां से चली गई.

अशोक मीणा शिवनाथ के द्वारा हवा में हाथ लहरा कर फूल पकड़ लेने की क्रिया से हैरान था. हवा में गुलाब का फूल कहां से आया, उस की समझ में नहीं आया था. वह सोच में डूबा था कि शिवनाथ की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘कहो जयप्रकाश शर्मा, तुम्हारा कार्य कैसा चल रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा चल रहा है गुरुदेव.’’

‘‘कैसे आने का कष्ट किया तुम ने?’’

‘‘मैं अपने लिए नहीं आया हूं, मैं अशोक के लिए आप की शरण में आया हूं. मैं एकांत में आप से बात करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ, हम भीतर के कक्ष में चल कर बात करते हैं.’’ शिवनाथ ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.

वह जयप्रकाश को साथ ले कर अंदर चला गया. अशोक वहीं बैठा उन के बाहर आने का इंतजार करता रहा. काफी देर बाद अंदर से जयप्रकाश बाहर आया. उस ने अशोक के कंधे पर हाथ रख कर आत्मीयता से पूछा, ‘‘बोर तो नहीं हुए अशोक?’’

‘‘नहीं महाराज.’’

‘‘मैं तुम्हारे ही काम के लिए गुरुजी को अंदर ले गया था. गुरुजी वह चमत्कारी बक्सा तुम्हें देने को मान गए हैं. लेकिन तुम्हें इस के लिए 3 लाख रुपए की दक्षिणा देनी होगी.’’

‘‘दे दूंगा महाराज, लेकिन वह चमत्कारी बक्सा मुझे गुरुजी दे तो देंगे न?’’ कुछ शंकित सा स्वर था अशोक का.

‘‘जब जयप्रकाश ने कह दिया तो मैं इस की बात कैसे काट दूं.’’ अंदर से शिवनाथ हाथ में एक लकड़ी का बक्सा ले कर आते हुए बोला. उस ने पास आ कर वह बक्सा अशोक को दे दिया.

यह एक वर्गफुट का चौकोर नक्काशीदार बक्सा था. देखने में वह काफी पुराना लगता था, लेकिन उस की मजबूती अभी भी बरकरार थी.

‘‘देखो अशोक, तुम्हें रोज सुबह स्नान कर के बक्से के आगे धूप जलानी होगी, फिर हाथ जोड़ कर कहना होगा, ‘अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से.’ यह तुम्हें जो देगा, चुपचाप रख लेना. इस का जिक्र बाहरी व्यक्ति से कभी मत करना. करोगे तो तुम्हारे मन की मुराद पूरी नहीं होगी.’’ शिवनाथ ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब तुम जयप्रकाश के साथ अजमेर लौट जाओ. 3 लाख रुपए तुम इस के खाते में अजमेर पहुंच कर डाल देना.’’

‘‘ठीक है गुरुदेव,’’ अशोक ने खुशी से बक्सा अपने बैग में रखते हुए शिवनाथ के चरण स्पर्श किए और जयप्रकाश के साथ स्टेशन के लिए निकल पड़ा. उसी रात वे अजमेर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए.

अशोक मीणा को शिवनाथ तांत्रिक द्वारा जो बक्सा दिया गया था, उस ने 6 दिन तक पूरा चमत्कार दिखाया. उस में से 10 हजार रुपए 6 दिनों तक निकले. इस के बाद उस बक्से से रुपए निकलने बंद हो गए.

अशोक मीणा पूरी श्रद्धा से नहाधो कर बक्से के सामने धूप आदि जला कर ‘मुझे अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से’, कहता लेकिन बक्सा खाली रहता.

उस ने नोट देना अब बंद कर दिया था. अशोक मीणा ने परेशान हो कर यह बात जयप्रकाश शर्मा को बताई तो उस ने अशोक से कहा कि वह जा कर शिवनाथ से मिले, वही बताएंगे कि बक्से से नोट क्यों नहीं निकल रहे हैं.

अशोक मीणा को अकेले मुंबई में शाहपुरा जाना पड़ा. तांत्रिक शिवनाथ भी मिला. जब उसे चमत्कारी बक्से के काम न करने की बात अशोक ने बताई तो वह हैरानी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए अशोक, अगर ऐसा हो रहा है तो देखना पड़ेगा. चूंकि अभी कोरोना काल चल रहा है, इस वजह से सभी देवालय बंद पडे़ हैं. ये खुलेंगे तो मैं इस को दुरुस्त कर के दे दूंगा. कोरोना संक्रमण फैल रहा है, इसलिए तुम अजमेर लौट आओ.’’

अशोक मीणा बक्सा शिवनाथ के पास छोड़ कर अजमेर आ गया.

यह मार्च 2020 की बात है. अशोक दीदारनाथ आश्रम में रोज हाजिरी देता और पंडित जयप्रकाश शर्मा से मिलता. एक दिन उस ने अशोक मीणा को बताया कि जमीन में (Rajasthan Crime) एक जगह करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. यदि तुम एक लाख रुपया दोगे तो मैं तुम्हें 5 प्रतिशत का हिस्सेदार बना दूंगा. चूंकि मैं तुम्हारा हितैषी हूं, इसलिए यह औफर तुम्हें दे रहा हूं. सोच कर जबाब देना.

अशोक मीणा को लालच आ गया. उस ने उस के कहने पर तुरंत उस के एकाउंट में एक लाख रुपए जमा कर दिए.

अशोक मीणा के लालची मन को टटोल कर जयप्रकाश ने उस से सोने के हिस्से में सहभागी बनाने का लालच दे कर 14 लाख 95 हजार 255 रुपए अपने एकाउंट में जमा करवा लिए. 6 लाख 50 हजार जयप्रकाश ने अशोक से नकद ले लिए. यह रकम जमीन से सोना निकालने में मजदूरों की मेहनत और पूजापाठ के नाम पर ली थी.

अशोक मीणा मार्च 2019 से अक्तूबर 2022 तक जयप्रकाश को 41 लाख 45 हजार 235 रुपए दे चुका था. अब उसे अहसास होने लगा था कि वह जयप्रकाश और शिवनाथ तांत्रिक द्वारा ठगा गया है.

उस ने जयप्रकाश से अपना रुपया वापस मांगना शुरू किया तो जयप्रकाश टालमटोल करने लगा और फिर एक दिन वह केकड़ी से गायब हो गया.

14 जनवरी, 2023 को अशोक मीणा रोते हुए सिटी थाने में पहुंच गया. एसएचओ राजवीर सिंह को अशोक ने अपने ठगे जाने की पूरी कहानी बता कर जयप्रकाश शर्मा और शाहपुरा (ठाणे) के तांत्रिक शिवनाथ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

एसएचओ राजवीर सिंह ने धूर्त तांत्रिकों के लिए छापेमारी शुरू करवा दी. शाहपुरा (ठाणे) में शिवनाथ तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए मुंबई पुलिस से मदद मांगी गई, लेकिन वहां से बताया गया कि तांत्रिक शिवनाथ यहां से लापता हो गया है.

इन धूर्त तांत्रिकों ने केवल अशोक मीणा को ही ठगा होगा, यह बात एसएचओ राजवीर सिंह मानने को तैयार नहीं थे. दोनों तांत्रिकों ने और भी अनेक लोगों को चूना लगाया होगा, किंतु ये लोग जगहंसाई के डर से सामने नहीं आना चाहते थे.

जयप्रकाश तंत्र विघ्न से संबंधित एक यूट्यूब चैनल भी चलाता था.

आध्यात्मिक चमत्कारों और देवीदेवताओं में गहरी आस्था होने के कारण ये लोग चालाक मक्कार लोगों द्वारा ठग लिए जाते हैं. पीडि़त व्यक्ति जगहंसाई और शरम के कारण पुलिस के पास नहीं जाते, यह बात ठग तांत्रिक भलीभांति जानते हैं. इसी वजह से ये ठग कानून के शिंकजे में नहीं फंसते. ये ठग लोग धर्म की आड़ में भोलेभाले लोगों को आज भी ठग रहे हैं.

कथा लिखने तक पुलिस तथाकथित तांत्रिकों शिवनाथ और जयप्रकाश को उन के ठिकानों पर तलाश रही थी, लेकिन वे पुलिस को मिल नहीं सके.

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त से की गई बातचीत पर आधारित

Murder story : कविता ने लिखी खूनी कविता

Murder story : एक दिन कविता पटेल मोबाइल के कौंटैक्ट नंबर देख रही थी, तभी उसे शादी से पहले के प्रेमी बृजेश का नंबर दिखा. नंबर देखते ही उसे पुराने दिन याद आने लगे. वह बृजेश से बात करने की कोशिश तो करती, लेकिन कुछ सोच कर रुक जाती थी.

आखिरकार एक दिन उस ने बृजेश से बात करने की गरज से फोन किया तो बृजेश बर्मन ने काल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो कौन?’’

“बृजेश, पहचाना नहीं मुझे. तुम तो बहुत जल्दी बदल गए, अब तो मेरी आवाज भी भूल गए.’’ कविता ने शिकायती लहजे में कहा.

“जानेमन तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. इस अननोन नंबर से काल आई तो पहचान नहीं सका.’’ बृजेश सफाई देते हुए बोला.

“तुम ने तो मेरी शादी के बाद कभी काल भी नहीं की,’’ कविता बोली.

“कविता, मैं तुम्हें दिल से चाहता था, इसलिए मैं तुम्हारा बसा हुआ घर नहीं उजाड़ना चाहता था. मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारी खुशियों की खातिर समझौता कर लिया था,’’ बृजेश बोला.

“सचमुच इतना प्यार करते हो तो मुझ से मिलने दमोह आ जाओ, मुझ से तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’ कविता ने फिर से उस के प्रति चाहत दिखाते हुए कहा.

इतना सुनते ही बृजेश का दिल बागबाग हो गया. फिर एक दिन वह कविता से मिलने उस की ससुराल पहुंच गया. कई महीने बाद बृजेश और कविता ने अपने दिल की बातें कीं तो उन का पुराना प्यार जाग गया. उस के बाद दोनों की मेलमुलाकात का सिलसिला चल निकला. बृजेश से जब कविता का दोबारा संपर्क हुआ तो उस समय वह टेंट हाउस में काम करने लगा था. कविता से उस की मुलाकात अकसर कालेज जाते समय होती थी.

प्रेमी को बताती थी मुंहबोला भाई

जब बृजेश कविता की ससुराल भी आने लगा तो कविता ने अपने ससुर और पति से उस का परिचय मुंहबोले भाई के तौर पर कराया. वैसे तो कविता को दीपचंद जैसा नेक पति मिल गया था, परंतु पति के शादी के बाद नौकरी के लिए चले जाने से कविता का पुराना प्यार जाग गया था. दीपचंद को जब कविता और बृजेश के प्रेम संबंधों का पता चला तो हंसते खेलते परिवार में कलह होते देर न लगी. लाख समझाने के बाद भी जब कविता नहीं मानी तो दीपचंद ने कविता पर सख्त पहरा लगा दिया. इस का अंजाम यह हुआ कि कविता के कहने पर बृजेश ने कविता की मांग का सिंदूर मिटा दिया.

22 जुलाई, 2023 दोपहर के करीब 2 बज रहे थे. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के दमोह जिले के गैसाबाद थाने में टीआई विकास सिंह चौहान अपने कक्ष में बैठे कुछ जरूरी फाइल देख रहे थे. तभी अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति ने उन के कक्ष के बाहर से आवाज लगाई, “साब, क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

टीआई चौहान ने एक नजर सामने खड़े उस व्यक्ति पर डालते हुए कहा, “हां, आ जाइए. बैठिए.’’

जब वह व्यक्ति कुरसी पर बैठ गया तो उन्होंने पूछा, “बताइए, क्या काम है?’’

“साहब, मेरा नाम हाकम पटेल है और मैं खैरा गांव का रहने वाला हूं. मेरा बेटा पिछले 3 दिनों से लापता है.’’

टीआई विकास सिंह चौहान ने एक कर्मचारी को पानी लाने का इशारा करते हुए हाकम पटेल से कहा, “आप इत्मीनान से मुझे पूरी बात विस्तार से बताइए.’’

“जी साहब, 19 जुलाई, 2023 की शाम 7 बजे मेरा 26 साल का इकलौता बेटा दीपचंद पटेल घर से निकला था. तब से उस का कुछ पता नहीं चल रहा है. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा है.’’ यह कहते हुए हाकम ने कर्मचारी के हाथ से पानी का गिलास ले लिया.

“शादी हो गई बेटे की?’’ टीआई चौहान ने पूछा.

“हां साहब, 2021 में उस की शादी हो गई. बेटेबहू में किसी तरह का कोई मनमुटाव भी नहीं था.’’ गटागट पानी पीने के बाद हाकम ने बताया.

“किसी पर शक है तुम्हें, किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’

“नहीं साहब, हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी, इसलिए किसी पर शक भी नहीं है.’’

दीपचंद की गुमशुदगी दर्ज कराते हुए टीआई चौहान ने हाकम को भरोसा दिलाया कि पुलिस जल्द ही उस के बेटे दीपचंद को खोज निकालेगी. दीपचंद के लापता होने की खबर उस के ससुराल दमोह से सटे हुए पन्ना तक पहुंची तो दीपचंद के ससुर और साले के साथ कुछ नातेरिश्तेदार भी दमोह पहुंच गए. वे हाकम के साथ मिल कर दामाद की तलाश में जुट गए. जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, टीआई विकास सिंह चौहान को दीपचंद के बिना वजह लापता होने की बात खटक रही थी. दमोह जिले के एसपी सुनील तिवारी के निर्देश पर एसडीओपी (हटा) नितिन पटेल ने दीपचंद की खोजबीन के लिए एक पुलिस टीम गठित कर टीआई चौहान को पतासाजी करने के निर्देश दिए.

हाकम पटेल अपनी करीब 8-10 एकड़ जमीन पर खेतीबाड़ी करते हैं. हाकम ने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी से कोई बच्चा नहीं हुआ और कुछ समय बाद बीमारी के चलते उस की मौत हो गई तो हाकम ने दूसरी शादी कर ली तो दूसरी पत्नी से दीपचंद पैदा हुआ. दीपचंद जब छोटा ही था कि उस की मां घर छोड़ कर किसी दूसरे मर्द के साथ चली गई. पिता हाकम ने दीपचंद को लाड़प्यार से पालापोसा. दीपचंद केवल 12वीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाया था. जवान होते ही दीपचंद की शादी पन्ना जिले के सुनवानी गांव की कविता से कर दी गई.

कविता के कदम दीपचंद के घर में पड़ते ही बाप बेटे काफी खुश थे, क्योंकि लंबे अरसे बाद घर में कोई महिला आई थी. दोनों चूल्हा फूंकफूंक कर थक चुके थे, ऐसे में कविता ने जब इस घर की दहलीज पर कदम रखा तो जल्द ही वह दोनों की आंखों का तारा हो गई. ससुर हाकम उसे बेटी की तरह दुलारते तो दीपचंद भी उस की हर ख्वाहिश पूरी करता. पुलिस के लिए दीपचंद की गुमशुदगी एक पहेली बनी हुई थी. दीपचंद की न तो किसी से रंजिश थी और न ही कोई दुश्मनी. गांव में पूछताछ के दौरान भी कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा, जिस से दीपचंद का पता चल सके. पुलिस की आखिरी उम्मीद दीपचंद की काल डिटेल्स रिपोर्ट पर टिकी हुई थी.

पुलिस ने जब दीपचंद के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि दीपचंद की 19 जुलाई की शाम आखिरी बार पन्ना के लोहरा गांव में रहने वाले बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू से बात हुई थी. इस के बाद पुलिस ने बृजेश बर्मन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि बृजेश की सब से ज्यादा बात चिकला निवासी गणेश विश्वकर्मा से हुई थी. दीपचंद समेत तीनों के फोन नंबर भी टावर लोकेशन में एक साथ खैरा गांव में मिले. इस से साफ हो गया था कि घर से दीपचंद इन दोनों के साथ ही निकला था.

दीपचंद का मोबाइल बंद होने से पहले की आखिरी टावर लोकेशन गांव वर्धा की थी. इसी टावर लोकेशन में गणेश विश्वकर्मा व बृजेश बर्मन के मोबाइल फोन भी बंद हो गए थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम को पूरा भरोसा हो गया कि दीपचंद के लापता होने के बारे में इन दोनों को जरूर कुछ पता होगा. पुलिस टीम के लिए एक चौंकाने वाली बात यह पता चली कि बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू की काल डिटेल्स में दीपचंद की पत्नी कविता का नंबर भी मिला. 19 जुलाई, 2023 को भी बृजेश और कविता के बीच बातचीत हुई थी. इस के पहले भी दोनों के बीच लगातार बात होने की पुष्टि हुई.

पुलिस ने बृजेश बर्मन और फिर गणेश विश्वकर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. पहले तो बृजेश ने यह कह कर पुलिस को बरगलाने की कोशिश की कि वह कविता को बहुत पहले से जानता है वह उस के मायके में किराए पर रह चुका है. इसी जानपहचान के चलते कविता से बात करता रहता था. पुलिस को उस की बात पर भरोसा नहीं हुआ. पुलिस के संदेह की सुई बृजेश के इर्दगिर्द घूम रही थी. पुलिस ने तुक्का मारते हुए बृजेश से कहा, “कविता ने सब कुछ बता दिया है, अब तुम्हारी बारी है. सच बताओगे तो ठीक नहीं तो दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

आखिरकार, तीर निशाने पर लगा और पुलिस की सख्ती के आगे बृजेश बर्मन टूट गया. बृजेश ने दीपचंद की हत्या की पूरी साजिश और हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पुराने प्रेम संबंधों की कहानी निकली, जिस में अपने प्रेमी के लिए कविता ने अपनी मांग का सिंदूर ही मिटा दिया. बहू की यह करतूत जान कर दीपचंद के पिता हाकम पटेल के पैरों से तो जैसे जमीन ही खिसक गई.

शादी के पहले के प्रेमी से जोड़े संबंध

शादी के बाद दीपचंद जैसा पति और हाकम जैसा नेकदिल ससुर पा कर कविता भी काफी खुश थी, उस ने ससुराल को ही अपना घर मान लिया था. कविता के मम्मीपापा राजस्थान के जोधपुर में एक सीमेंट फैक्टी में काम करते थे. दीपचंद का मन खेतीबाड़ी में नहीं लगता था. इस वजह से वह उन दिनों काम की तलाश कर रहा था. जब कविता के पिता ने उसे जोधपुर में काम दिलाने की बात की तो वह शादी के कुछ महीनों बाद ही राजस्थान पहुंच गया. दीपचंद तब राजस्थान की एक सीमेंट फैक्ट्री में नौकरी पर चला गया.

घर में अकेली कविता को तन्हाई ने डस लिया. उस के मन के एक कोने में अब भी अपने बचपन के प्यार बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू की यादें थीं. जब अकेलापन भारी पड़ने लगा तो उस ने बृजेश से फिर तार जोड़ लिए. कविता का मायका सुनवानी पन्ना में था, वह पहले शराब कंपनी में काम करता था. तब कविता के पापा के घर में ही किराए पर रहता था. कविता ने बीएससी तक की पढ़ाई की थी और वह शुरू से ही सपनों की दुनिया में सैर करने वाली लड़की थी. बृजेश तब शराब कंपनी में काम कर के अच्छे पैसे कमा रहा था. उसे कविता पहली ही नजर में पसंद आ गई थी. वह आतेजाते कविता से बात करने के बहाने ढूंढता. उस समय कविता की उम्र महज 19 साल थी.

एक दिन बृजेश शाम को जल्दी अपने रूम पर आ गया. उस समय कविता की मां मंदिर गई थीं और पिता किसी काम से बाहर गए हुए थे. बृजेश ने मौका देखते ही अपने प्यार का इजहार करते हुए कहा, “कविता, तुम बहुत खूबसूरत हो. आई लव यू कविता.’’

कविता भी मन ही मन बृजेश को चाहने लगी थी, मगर डर के मारे यह बात दिल में दबाए बैठी थी. जब बृजेश ने प्यार का इजहार किया तो उस ने भी कह दिया, “आई लव यू टू बृजेश.’’

कविता की स्वीकृति मिलते ही बृजेश ने उस का हाथ पकड़ा और गालों पर चुंबन लेते हुए कहा, “कविता, मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’

कविता का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया, उस ने जल्दी से अपना हाथ छुड़ाया और अपने कमरे की तरफ भाग गई. धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती और फिर प्यार परवान चढ़ने लगा. बृजेश अकसर कविता के लिए महंगे गिफ्ट भी ला कर देने लगा. कविता पटेल और बृजेश बर्मन अलगअलग जाति के थे. दोनों शादी के लिए राजी थे, मगर सामाजिक रीतिरिवाजों में इस की इजाजत नहीं थी. बृजेश उसे घर से भगा कर शादी करना चाहता था, लेकिन कविता घर से भाग कर शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. आखिर में मई, 2021 में कविता की शादी उस के घर वालों ने दमोह जिले के खैरा गांव निवासी दीपचंद से कर दी.

किराएदार से हुआ था प्यार

23 साल की कविता की शादी दीपचंद पटेल से हुई थी. उस समय कविता हायर सेकेंडरी तक पढ़ी थी. जब उस ने अपने ससुर से आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो उन्होंने उस का एडमिशन पन्ना के अमानगंज कालेज में करवा दिया. शादी से पहले कविता का उस के मकान में रहने वाले किराएदार बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू से अफेयर जरूर था, मगर दोनों की जाति अलग होने की वजह से उन की शादी नहीं हो पाई. शादी के बाद सब ठीकठाक चल रहा था. कविता के ससुर उसे बेटी की तरह प्रेम करते थे. शादी के बाद कविता अपने प्रेमी बृजेश को भी भुला चुकी थी. कविता के पति की नौकरी राजस्थान की सीमेंट फैक्ट्री में थी. शादी के कुछ दिन बाद दीपचंद वापस नौकरी पर लौट गया तो कविता को खाली घर काटने लगा.

एक दिन वह मोबाइल के कौंटैक्ट नंबर देख रही थी, तभी उसे बृजेश का नंबर दिखा. उसे पुराने दिन याद आने लगे. वह बृजेश से बात करने की कोशिश तो करती, लेकिन कुछ सोच कर रुक जाती थी. आखिरकार एक दिन उस ने बृजेश से बात करने की गरज से फोन किया तो बृजेश ने काल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो कौन?’’

“बृजेश, पहचाना नहीं मुझे. तुम तो बहुत बदल गए, अब तो मेरी आवाज भी भूल गए.’’ कविता ने शिकायत की.

“जानेमन तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. इस अननोन नंबर से काल आई तो पहचान नहीं सका.’’ बृजेश सफाई देते हुए बोला.

“तुम ने तो मेरी शादी के बाद कभी काल भी नहीं की,’’ कविता बोली.

“कविता, मैं तुम्हें दिल से चाहता था, इसलिए मैं तुम्हारा बसा हुआ घर नहीं उजाड़ना चाहता था. मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारी खुशियों की खातिर समझौता कर लिया था,’’ बृजेश बोला.

“सच में इतना प्यार करते हो तो मुझ से मिलने दमोह आ जाओ, तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’ कविता ने फिर से उस के प्रति चाहत दिखाते हुए कहा.

कई महीने बाद बृजेश और कविता ने अपने दिल की बातें कीं तो उन का पुराना प्यार जाग गया. उस के बाद दोनों की मेल मुलाकात का सिलसिला चल निकला. बृजेश से जब कविता का दोबारा संपर्क हुआ तो उस समय वह टेंट हाउस में काम करने लगा था. कविता से उस की मुलाकात अकसर कालेज जाते समय होती थी. जब बृजेश कविता की ससुराल भी आने लगा तो कविता ने अपने ससुर और पति से उस का परिचय मुंहबोले भाई के तौर पर कराया.

बृजेश ने दीपचंद से भी दोस्ती कर ली थी. दीपचंद खाने पीने का शौकीन था, इसलिए अकसर ही दीपचंद की बैठक बृजेश के साथ होने लगी. दीपचंद और उस के पिता हाकम को यह शक तक नहीं हुआ कि वह यहां कविता के लिए आता है. दीपचंद को उस की गैरमौजूदगी में जब बृजेश के कुछ अधिक ही घर आने की खबर मिलने लगी तो उसे संदेह हुआ. फिर दीपचंद राजस्थान से नौकरी छोड़ कर लौट आया. वह पन्ना की सीमेंट फैक्ट्री में काम पर लग गया. वह अपने गांव खैरा के घर से ही ड्यूटी आनेजाने लगा. दीपचंद के लौटने के बाद दोनों का मिलना मुश्किल हो गया था.

धीरेधीरे दीपचंद को पत्नी कविता और बृजेश के संबंधों की भनक लग चुकी थी. हालांकि दोनों ने अपने संबंधों को दीपचंद के सामने स्वीकार नहीं किया. कविता हमेशा बृजेश को मुंहबोला भाई ही बताती रही. शादी के 2 साल बाद भी उन के संतान नहीं हुई थी. कविता अकसर दीपचंद को अपने से दूर रखती थी. इस से दीपचंद का संदेह और पुख्ता हो गया था. वह कविता पर दबाव बनाने लगा कि वह बृजेश से मेलजोल बंद कर दे और न ही उस से फोन पर बात करे. बृजेश को ले कर उस का कविता से विवाद भी होने लगा था. इस कहासुनी में वह कभीकभी कविता की पिटाई भी कर देता था. यहां तक कि दीपचंद ने पत्नी कविता को खर्च के लिए पैसे देने भी बंद कर दिए तो कविता को समझ आ गया था कि अब पति के जिंदा रहते वह बृजेश से अपने संबंधों को जारी नहीं रख पाएगी.

बृजेश भी कविता के प्यार में इतना पागल हो चुका था कि उसे कविता से मिले बगैर चैन नहीं मिलता. कविता के मन में हरदम यही विचार आता था कि वह पति को रास्ते से हटा दे और उस के बाद बृजेश के साथ इसी तरह नाजायज संबंध बनाए रखेगी. इस से उस के ससुर की जमीनजायदाद में भी उस का हिस्सा बना रहेगा और प्रेमी की बाहों का झूला भी उसे मिलता रहेगा. यहीं से कविता ने बृजेश के साथ मिल कर पति को रास्ते से हटाने की साजिश रची.

प्रेमी के लिए मिटाया सिंदूर

जब कविता पति की हत्या के लिए तैयार हो गई तो बृजेश ने अपने साथ टेंटहाउस में साथ काम करने वाले दोस्त गणेश विश्वकर्मा को साजिश में शामिल कर लिया. उस ने गणेश को दोस्ती का वास्ता दे कर रुपए देने का लालच दिया. योजना के मुताबिक कविता इस बीच मायके चली गई, जिस से दीपचंद के अचानक लापता होने पर संदेह न हो. हत्या के लिए 19 जुलाई, 2023 की तारीख तय की गई. उस दिन दीपचंद ने काम से छुट्टी ले रखी थी, यह बात कविता ने दीपचंद को फोन कर के तसल्ली भी कर ली थी कि वह घर पर ही है. इस के बाद उस ने बृजेश को फोन कर दीपचंद की लोकेशन बता दी.

बृजेश ने पन्ना जिले के अमानगंज निवासी बिट्टू दुबे की चार पहिया गाड़ी एमपी20 सीई 6749 किराए पर ले ली. इस के बाद वह सुनवानी से गणेश विश्वकर्मा को साथ ले कर खैरा गांव पहुंचा. वहां दीपचंद को फोन कर घर के बाहर मिलने बुलाया. फिर पार्टी के बहाने दीपचंद को साथ ले कर वर्धा होते हुए खजरूट स्थित पेट्रोल पंप के पास पहुंचे. वहां एक गुमटी से सिगरेट, पानी और नमकीन के पैकेट लिए. बृजेश ने शराब पहले ही खरीद ली थी. रास्ते में एक जगह रुक कर तीनों ने शराब पी.

बृजेश और गणेश ने दीपचंद को ज्यादा शराब पिलाई. दीपचंद जल्दी ही शराब के नशे में धुत हो गया. इस के बाद बृजेश ने गाड़ी पंडवन पुल के पास बने मंदिर की ओर मोड़ दी. कल्लू ने मंदिर के पास गाड़ी रोक कर दीपचंद को गाड़ी से उतारा. इस के बाद गणेश और बृजेश ने दीपचंद को जमीन पर पटक दिया और उस का गला दबा दिया. इस से दीपचंद बेहोश हो गया. दीपचंद के बेहोश होने के बाद बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू ने गाड़ी में रखी लाठी उठाई और सिर पर तब तक वार किए, जब तक वह मर नहीं गया. इस के बाद उस के लोअर से मोबाइल और पर्स निकाल लिए. पर्स में करीब 700 रुपए थे, जो बृजेश ने रख लिए और पर्स और चप्पलें झाड़ी में फेंक दीं.

पुलिस ने बरामद किए अहम सबूत

इस के बाद बृजेश बर्मन और गणेश विश्वकर्मा ने दीपचंद की लाश को गाड़ी नंबर एमपी20 सीई6749 में डाल कर पंडवन की केन नदी में ले जा कर बहा दिया. दीपचंद का मोबाइल और घटना में प्रयुक्त खून से सना डंडा भी नदी में फेंक दिया. तब तक रात के साढ़े 10 बज चुके थे. दोनों ने गाड़ी में लगे खून को साफ किया और रात में ही गाड़ी उस के मालिक बिट्टू दुबे को सौंप कर अपने अपने घर आ गए. 3 दिन बाद जब दीपचंद के लापता होने की खबर फैली तो बृजेश भी दिलासा देने उस के घर गया, जिस से किसी को उस पर शक न हो.

आरोपियों ने खजरूट की जिस दुकान से शराब व सिगरेट खरीदी थी, पुलिस ने उस दुकान मालिक वीरभान सिंह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस दिन बृजेश बर्मन व गणेश विश्वकर्मा गाड़ी से आए थे और शराब व सिगरेट खरीदी थी. वीरभान ने यह भी बताया कि ड्राइवर वाली सीट पर बृजेश बर्मन बैठा था, बगल वाली सीट पर दीपचंद बैठा था. बृजेश बर्मन और गणेश विश्वकर्मा पन्ना के सुनवानी के जिस टेंटहाउस में काम करते थे, उस के मालिक कमलेश विश्वकर्मा से भी पुलिस टीम ने पूछताछ की तो कमलेश ने बताया कि 21 अगस्त को जब गैसाबाद की पुलिस जांच करने सुनवानी आई थी, उस रात गणेश ने शराब के नशे में बृजेश बर्मन के साथ मिल कर दीपचंद की हत्या की बात बताई थी.

टीआई विकास सिंह चौहान ने बृजेश और गणेश की निशानदेही पर झाड़ियों में छिपाई चप्पलें और खाली पर्स जब्त कर लिया. इस के अलावा घटना में प्रयुक्त बिट्टू दुबे की गाड़ी भी जब्त कर ली. जहां दीपचंद का शव फेंका गया, वह जगह पन्ना जिले में आती है. केन नदी पन्ना जिले की सब से बड़ी नदी है और इस में बड़ी संख्या में मगरमच्छ भी रहते हैं. इस से यह आशंका भी व्यक्त की जा रही थी कि नदी में बहाए गए शव को मगरमच्छों ने अपना ग्रास न बना लिया हो. स्थानीय पुलिस और एसडीआरएफ के सहयोग से केन नदी में दीपचंद की लाश की सर्चिंग करवाई, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी.

25 अगस्त, 2023 को गैसाबाद पुलिस ने हत्या, साक्ष्य छिपाने और साजिश रचने का मामला दर्ज कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें दमोह जेल भेज दिया गया. दीपचंद की हत्या को एक माह से अधिक समय हो गया था, मगर दीपचंद का शव बरामद नहीं हुआ था. इसे ले कर दीपचंद के परिवार और रिश्तेदारों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था. एसडीआरएफ की टीमें केन नदी में लगातार शव तलाश रही थीं, परंतु सफलता नहीं मिल रही थी. एक माह के दौरान नदी में बाढ़ भी आ चुकी थी, इस से यह अनुमान लगाया जा रहा था कि शव कहीं दूर निकल गया हो. दमोह जिले के एसपी और एसडीओपी नितिन पटेल लगातार पुलिस टीमों को खोजबीन के लिए भेज रहे थे.

30 अगस्त, 2023 को गैसाबाद पुलिस को सूचना मिली कि अमानगंज थाने के जिज गांव के नाले के पास एक क्षतविक्षत शव के अवशेष पड़े हुए हैं. सूचना पर पहुंची पुलिस टीम को केन नदी और एक नाले के बीच बने टापू पर देर रात शव के अवशेष बरामद हुए. शिनाख्त के लिए एसडीओपी (हटा) नीतेश पटेल के निर्देश पर गैसाबाद थाना पुलिस टीम मौके पर दीपचंद के पिता हाकम को ले कर पहुंची. हाकम ने हाथ में बंधे रक्षासूत्र और उस के पहने हुए कपड़ों से उस की शिनाख्त अपने बेटे दीपचंद पटेल के रूप में की.

पुलिस ने शव को बरामद कर पंचनामा और पोस्टमार्टम की काररवाई कर शव के अवशेष डीएनए टेस्ट के लिए सुरक्षित करने के बाद वह परिजनों के सुपुर्द कर दिया.

एसपी सुनील तिवारी ने शव की खोजबीन में लगे पुलिसकर्मियों और एसडीआरएफ टीम के प्रयासों की सराहना की. कविता पटेल ने एक गलती से अपनी मांग का सिंदूर पोंछ कर अपनी बसी बसाई घरगृहस्थी उजाड़ ली और जेल की हवा खानी पड़ी.

Crime story : लूटे हुए लाखों रुपए को घर की ही जमीन में गाड़ा

Crime story : राजामहाराजाओं का बसाया हुआ जयपुर शहर सैकड़ों साल पुराना है. कभी इस शहर के चारों ओर परकोटा हुआ करता था. अब ये परकोटे टूट चुके हैं. फिर भी पुराने शहर को परकोटा ही कहते हैं. इसी परकोटे में किशनपोल बाजार है. इस बाजार में एक खूंटेटों का रास्ता है. खूंटेटों का रास्ता की एक संकरी गली में भूतल पर केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी का औफिस है. इसे कंपनी का औफिस भले ही कह लें, लेकिन यह पुराने शहर के एक मकान का कमरा है. कमरे में 2-4 कुर्सियां और एक काउंटर आदि रखे हैं. दरअसल, यह एक

हवाला कंपनी का औफिस है. आजकल हवाला कंपनी को मनी ट्रांसफर कंपनी भी कहते हैं. इस औफिस में न तो बिक्री लायक कोई सामान है और न ही यहां ग्राहक आते हैं. दिनभर में यहां 10-20 लोग आते हैं. वे कोई पर्ची या मोबाइल में सबूत दिखाते हैं और औफिस में काम करने वाले कर्मचारी उस की पहचान कर पर्ची या मोबाइल में मौजूद सबूत के आधार पर रकम गिन कर दे देते हैं. हवाला का कामकाज ऐसे ही चलता है. हवाला का काम सभी बड़े शहरों में होता है. यह काम बैंकों जैसा ही है. फर्क बस इतना है कि बैंकों में लिखापढ़ी और नियमकानून हैं. जबकि हवाला में कोई नियमकानून नहीं है. हवाला को आप घरेलू बैंक भी कह सकते हैं. इस के जरिए मामूली कमीशन पर एक से दूसरी जगह पैसे भेजे जाते हैं.

एक पर्ची पर रकम लिख कर दे दी जाती है. यह पर्ची दिखाने पर जहां रकम भेजी जाती है, वहां से ली जा सकती है. हवाला के जरिए कितनी भी रकम भेजी जा सकती है. 10-20 हजार से लेकर 10-20 लाख और 10-20 करोड़ रुपए तक. कानून की नजर में यह काम अवैध है, फिर भी यह धंधा बहुत सालों से चल रहा है. केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी. बात इसी 10 मार्च की है. केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी के 2 कर्मचारी प्रियांशु उर्फ बंटी और पार्थ औफिस में बैठे थे. दोनों के पास कोई खास काम तो था नहीं, इसलिए मोबाइल पर वाट्सऐप चैटिंग कर रहे थे. दोपहर के तकरीबन साढ़े 12 बज चुके थे. उन्हें भूख लगने लगी थी.

कंपनी के इस औफिस में कोई लंच ब्रेक नहीं होता. इसलिए भूख लगने पर वे एक ही मेज पर टिफिन खोल कर घर से लाया भोजन कर लेते थे. कभी कुछ खाने या किसी दूसरी चीज की जरूरत होती, तो उन में से एक कर्मचारी बाजार जा कर जरूरत की चीज ले आता था. प्रियांशु और पार्थ लंच बौक्स लाए थे. वे लंच करने के लिए आपस में बात कर रहे थे, तभी एक युवक सीढि़यां चढ़ कर औफिस में आया. उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. सफेद रंग की शर्ट और जींस के अलावा उस के पैरों में स्पोर्ट्स शूज थे. सिर पर हेलमेट लगा होने के कारण उस का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था. युवक के कंधे पर एक बैग लटक रहा था.

पार्थ और प्रियांशु ने युवक को आया देख सोचा कि वह रकम लेने आया होगा. वे दोनों उस से कुछ कहते या पूछते, इस से पहले ही उस ने फुरती से अपने बैग से एक पिस्तौल निकाली और दोनों को धमकाते हुए कहा, ‘‘चिल्लाना मत, वरना ठोक दूंगा.’’

पिस्तौल देख और युवक की धमकी सुन कर दोनों कर्मचारी सहम गए. दोनों को धमकाते हुए युवक ने उन के मुंह पर सेलो टेप चिपका दी ताकि वे शोर ना मचा सकें. सेलो टेप वह अपनी जेब में डाल कर लाया था. उसी सेलो टेप से उस ने दोनों कर्मचारियों के हाथ भी बांध दिए. हाथ बांधने के बाद युवक ने उन से पूछा कि रकम कहां रखी है? पार्थ और प्रियांशु के मुंह पर टेप चिपकी थी, वे कैसे बोलते? दोनों चुप रहे, तो युवक ने खुद ही काउंटर की दराजें खोल कर देखी. एक दराज में रुपयों से भरा बैग था. उस बैग में 45 लाख रुपए थे. वह बैग युवक ने अपने बैग में डाला और दोनों कर्मचारियों को धमकाते हुए चला गया.

3 मिनट में 45 लाख रुपए लूट की वारदात कर वह युवक वापस चला गया. उस गली और औफिस में इक्कादुक्का लोगों की आवाजाही रहती है. इसलिए न तो किसी ने उसे आते देखा और न ही जाते हुए. लुटेरे के जाने के काफी देर बाद तक पार्थ और प्रियांशु डर के मारे चुपचाप बैठे रहे. बाद में उन्होंने अपने हाथों और मुंह पर बंधी चिपकी टेप हटाई. फिर मकान मालिक राधावल्लभ शर्मा को वारदात के बारे में बताया, शोर मचाया. आसपास के लोगों ने इधरउधर देखा भी, लेकिन लुटेरे का कुछ पता नहीं चला.

बाद में कर्मचारियों ने कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा को वारदात के बारे में बताया. रोहित ने औफिस पहुंच कर दोनों से लूट के बारे में पूछा. वारदात के करीब ढाई घंटे बाद दोपहर करीब 3 बजे पुलिस को सूचना दी गई. जयपुर के प्रमुख बाजार से दिनदहाड़े हवाला कंपनी के औफिस से 45 लाख रुपए लूटे जाने की वारदात की बात सुन कर पुलिस अफसर भी हैरान रह गए.

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सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नरेट और नौर्थ पुलिस जिले के अधिकारी मौके पर पहुंचे. पुलिस ने हवाला कंपनी के दोनों कर्मचारियों पार्थ और प्रियांशु से पूछताछ की. डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद ने भी मौके पर पहुंच कर उन दोनों से पूछताछ की. पुलिस अधिकारियों ने आसपास के सीसीटीवी फुटेज दिखवाए. इन में हेलमेट लगाए हुए एक युवक पैदल आ कर हवाला औफिस में जाता हुआ दिखा. युवक ने हेलमेट के नीचे मुंह पर मास्क भी लगाया हुआ था. हाथों में दस्ताने पहन रखे थे. वारदात के बाद लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता दिखा.

पूछताछ में पता चला कि गुजरात के पाटन जिले के रहने वाले रोहित कुमार शर्मा ने एक महीने पहले ही राधावल्लभ के मकान में यह औफिस किराए पर लिया था. फरवरी में बसंत पंचमी पर औफिस का मुहूर्त किया गया था. औफिस में पार्थ और प्रियांशु ही काम करते थे. यही औफिस खोलते और लेनदेन करते थे. रोहित इस कंपनी का मैनेजर था. रोहित की कंपनी के देश के विभिन्न शहरों में करीब 15 औफिस हैं. इन सभी औफिसों में मनी ट्रांसफर का ही काम होता है.

मौके के हालात और पूछताछ में मिली जानकारियों से पुलिस अधिकारियों के गले कई बातें नहीं उतर रही थीं. सब से बड़ी बात यह थी कि 45 लाख की लूट होने के बावजूद दोनों कर्मचारी न तो चिल्लाए और न ही लुटेरे का पीछा किया. पुलिस को 3 घंटे देरी से सूचना देने के बारे में भी वे लोग संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. पुलिस अधिकारियों को शुरुआती जांच में यह अहसास हो गया कि वारदात में किसी नजदीकी आदमी का हाथ हो सकता है. इस का कारण यह था कि इस औफिस को खुले एक महीना भी नहीं हुआ था. इसलिए कोई बाहरी आदमी इतनी आसानी से वारदात नहीं कर सकता था.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर लुटेरे की तलाश शुरू कर दी. फुटेज में लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता हुआ दिखाई दिया. इस के बाद उस के फुटेज नहीं मिले. इस से अनुमान लगाया गया कि वह आगे किसी वाहन से भागा होगा. पुलिस ने हुलिए के आधार पर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और जयपुर से बाहर जाने वाले रास्तों पर नाकेबंदी करा दी, लेकिन शाम तक कोई सुराग नहीं मिला. इस बीच, गुजरात के पाटन जिले के हारिज बोरतवाड़ा निवासी हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा ने जयपुर नौर्थ पुलिस जिले के कोतवाली थाने में इस लूट का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मुकदमा आईपीसी की धारा 392 के तहत दर्ज कर लिया.

पुलिस के सामने हेलमेट से चेहरा छिपाए हुए लुटेरे को तलाश करना बड़ा चुनौती भरा काम था. इस का कारण यह था कि सीसीटीवी फुटेज में लुटेरे का चेहरा हेलमेट और मास्क लगा होने के कारण नजर नहीं आ रहा था. केवल उस की कदकाठी का ही अनुमान लग रहा था. हवाला कंपनी के कर्मचारियों और आसपास के लोगों से पूछताछ में भी कोई ऐसा क्लू नहीं मिला, जिस से लुटेरे का पता चलता. लुटेरे का पता लगाने के लिए पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर (प्रथम) अजयपाल लांबा के निर्देश पर 3 टीमों का गठन किया गया. एक टीम में एडिशनल डीसीपी धर्मेंद्र सागर और प्रशिक्षु एसीपी कल्पना वर्मा के सुपरविजन में कोतवाली थानाप्रभारी विक्रम सिंह चारण और नाहरगढ़ थानाप्रभारी मुकेश कुमार को रखा गया.

दूसरी टीम में डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद के सुपरविजन में एडिशनल डीसीपी सुलेश चौधरी और सीएसटी प्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह को शामिल किया गया. तीसरी टीम में डीएसटी नौर्थ प्रभारी जयप्रकाश पूनिया के नेतृत्व में डीएसटी टीम को लिया गया. इन तीनों टीमों में 50 से ज्यादा Crime story पुलिसवाले शामिल किए गए. तीनों पुलिस टीमों ने वारदातस्थल खूंटेटों का रास्ता से किशनपोल बाजार, अजमेरी गेट, अहिंसा सर्किल, गवर्नमेंट प्रेस चौराहा, विशाल मेगामार्ट, अजमेर पुलिया और 2 सौ फुट बाइपास तक सैकड़ों सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इन मार्गों पर चलने वाले आटो चालकों, मिनी व लो फ्लोर बस चालकों और कंडक्टरों से पूछताछ की गई.

दूसरे दिन फुटेज देखने से पता चला कि लुटेरा किशनपोल बाजार से आटो में सवार हो कर अहिंसा सर्किल तक गया. तीसरे दिन देखी गई फुटेज से पता चला कि लुटेरा अहिंसा सर्किल से मिनी बस में सवार हो कर पुलिस कमिश्नरेट तक गया. वहां से दूसरी बस में बैठ कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा. हेलमेट, मास्क व दस्ताने पहन कर वारदात करने और इस के बाद बारबार वाहन बदलने से पुलिस को यह अहसास जरूर हो गया कि लुटेरा बहुत शातिर है. चौथे दिन पुलिस को कुछ और सुराग मिले. इस बीच, पुलिस अधिकारी हवाला औफिस के दोनों कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु को रोजाना थाने बुला कर पूछताछ करते रहे.

आखिर पुलिस ने 14 मार्च को हवाला कंपनी के औफिस से हुई 45 लाख रुपए की लूट का खुलासा कर 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके के कंबोई गांव का रहने वाला प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी, उस का भाई रवि शर्मा, इन की मां हंसा शर्मा उर्फ पूजा के अलावा गुजरात के पाटन जिले के चंद्रूमाणा गांव के रहने वाले पार्थ व्यास, जयपुर के भांकरोटा इलाके में केशुपुरा का रहने वाला हनुमान सहाय बुनकर और जयपुर के चित्रकूट इलाके में गोविंद नगर डीसीएम का रहने वाला मोहित कुमावत शामिल थे.

इनमें प्रियांशु अपनी मां हंसा उर्फ पूजा और भाई रवि शर्मा के साथ आजकल जयपुर में चित्रकूट थाना इलाके के वैशाली नगर में सेल बी हौस्पिटल के पास रहता था. प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी इसी हवाला कंपनी में करता था. लुटेरे ने प्रियांशु और दूसरे कर्मचारी पार्थ को धमका कर टेप से उन के मुंह बंद कर दिए और हाथ बांध दिए थे. आरोपी पार्थ व्यास को गुजरात के पाटन और बाकी 5 अपराधियों को जयपुर से पकड़ा गया. पुलिस ने इन आरोपियों से लूट की पूरी 45 लाख रुपए की रकम बरामद कर ली.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों से पुलिस की पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह रिश्तों में विश्वासघात का किस्सा था. गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके में आने वाले गांव कंबोई की रहने वाली हंसा देवी शर्मा उर्फ पूजा का पति कैलाश चंद शर्मा लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम करता था. मार्च, 2020 में कोरोना के कारण हुए लौकडाउन के दौरान उस का काम ठप हो गया. मजदूर अपने गांव चले गए. लौकडाउन खुलने के बाद भी वह परेशानी से नहीं उबर पाया. उसे लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम मिलना कम हो गया. इस से कैलाश के परिवार को आर्थिक परेशानी होने लगी.

इस से पहले कैलाश और हंसा ने मिल कर जयपुर की वैशाली नगर कालोनी में लोन पर एक फ्लैट ले लिया था. पहले लौकडाउन और फिर आई आर्थिक परेशानी के कारण उन के सामने फ्लैट के लोन की किश्तें चुकाना मुश्किल हो गया था. फ्लैट की कुर्की की नौबत आने लगी थी. उन पर बाजार का कर्ज भी चढ़ गया था. हंसा देवी के 2 बेटे हैं. एक रवि और दूसरा प्रियांशु. इन में रवि शर्मा प्राइवेट नौकरी कर रहा था, लेकिन उसे तनख्वाह कम मिलती थी. दूसरा बेटा प्रियांशु कोई काम नहीं कर रहा था. परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था.

परेशानी की इस हालत में हंसा को पता चला कि गुजरात के पाटन का रहने वाला रोहित शर्मा जयपुर में हवाला कंपनी केडीएम एंटरप्राइजेज का मैनेजर है. रोहित शर्मा दूरदराज के रिश्ते में हंसा का भाई लगता था. उस ने रोहित से रिश्तेदारी निकाल कर फरवरी में बेटे प्रियांशु को उस की हवाला कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया. गुजरात के ही रहने वाले पार्थ व्यास ने जयपुर की ही एक हवाला फर्म में नौकरी की थी. करीब एकडेढ़ साल पहले उसे किसी बात पर नौकरी से हटा दिया गया था. पार्थ व्यास भी रिश्ते में प्रियांशु का मामा और हंसादेवी का भाई लगता था.

पार्थ व्यास नौकरी से हटाए जाने से खफा था. उसे शक था कि केडीएम एंटरप्राइजेज के मालिक और उस के रिश्तेदार रोहित तथा दूसरे लोगों के कहने से ही उसे हवाला कंपनी से नौकरी से हटाया गया था. वह इस का बदला लेना चाहता था. जब उसे पता चला कि उस के भांजे प्रियांशु ने रोहित की हवाला फर्म में नौकरी कर ली है, तो वह अपनी बहन हंसा के जरिए इस फर्म को लूटने की योजना बनाने लगा. पार्थ व्यास को हवाला कारोबार के बारे में सब कुछ जानकारी थी. कब और कैसे रकम आती है. कंपनी का क्या काम है? कैसे रुपयों का लेनदेन होता है. रकम की क्या सुरक्षा व्यवस्था है? कंपनी के औफिस में कौनकौन लोग काम करते हैं? पार्थ व्यास को इन सब बातों का पता था. भांजे प्रियांशु के इसी फर्म में नौकरी पर लग जाने से उसे ताजा जानकारियां भी मिल गईं.

इस के बाद हंसा, पार्थ व्यास और प्रियांशु मिल कर इस हवाला कंपनी से रकम लूटने की योजना बनाने लगे. ये लोग फोन पर बात कर योजना बनाते. बीच में एकदो बार पार्थ व्यास Crime story गुजरात से जयपुर भी आया था. आखिर इन्होंने रकम लूटने का फैसला कर लिया.

तय योजना के अनुसार, पार्थ व्यास अहमदाबाद से 10 मार्च को सुबह 6 बजे जयपुर पहुंच गया. वह सुबह करीब 8 बजे वैशाली नगर में बहन के घर गया. वहां उसे बहन हंसा, भांजे प्रियांशु और रवि मिले. इन्होंने मिल कर योजना बनाई कि किस तरह वारदात करनी और कैसे भागना है. सारी बातें तय हो जाने पर प्रियांशु उर्फ बंटी सुबह 9 बजे अपनी नौकरी पर खूंटेटों का रास्ता स्थित हवाला कंपनी चला गया. कंपनी का दूसरा कर्मचारी पार्थ भी अपने तय समय पर औफिस आ गया. पार्थ वैसे तो हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित का साला था, लेकिन कर्मचारी के रूप में काम करता था. बाद में पार्थ व्यास ओला बाइक बुक कर वैशाली नगर से किशनपोल बाजार पहुंचा. इस दौरान उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. बाद में उस ने चेहरे पर मास्क लगाया और हाथों में दस्ताने पहने और सिर पर हेलमेट लगा कर वह पैदल चल कर हवाला कंपनी के औफिस पहुंचा और 45 लाख रुपए से भरा बैग लूट कर चला गया. यह कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं.

पार्थ व्यास पैदल ही किशनपोल बाजार पहुंचा. वहां से आटो फिर 2 बसें बदल कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा, यह फुटेज पुलिस को तीसरे दिन मिल गए थे. अजमेर पुलिया पर प्रियांशु की मां हंसा शर्मा, दोस्त मोहित और ड्राइवर हनुमान सहाय बुन कर उसे लेने के लिए आए थे. शातिर पार्थ व्यास पुलिस को गुमराह करने के लिए वारदात के समय 2 शर्ट पहन कर आया था. हंसा के साथ कार में बैठने के दौरान अजमेर पुलिया के पास उस ने एक शर्ट उतार कर रेल की पटरियों पर फेंक दी.

पार्थ व्यास हंसा व मोहित के साथ कार से प्रियांशु के घर पहुंचा. वहां पार्थ व्यास और प्रियांशु की मां हंसा ने लूटी गई रकम का आधाआधा बंटवारा किया. हंसा ने साढ़े 22 लाख रुपए खुद रख लिए और साढ़े 22 लाख रुपए पार्थ व्यास को दे दिए. पार्थ व्यास उसी दिन 2 सौ फुट बाइपास से बस में सवार हो कर गुजरात चला गया. उस ने गुजरात पहुंच कर लूट की रकम अपने घर में जमीन में गाड़ कर छिपा दी थी. जबकि हंसा शर्मा ने लूट की रकम में से 50 हजार रुपए अपने घर में बने मंदिर में चढ़ा दिए थे.

सीसीटीवी फुटेज के सहारे पुलिस हंसा के मकान के आसपास तक पहुंच गई. इस बीच, हवाला कंपनी के कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु से पुलिस लगातार पूछताछ करती रही. चौथे दिन प्रियांशु ने लूट की वारदात की सारी कहानी बता दी. पुलिस को प्रियांशु पर पहले से शक था. उसी ने अपने साथी कर्मचारी और हवाला कंपनी मैनेजर रोहित के साले पार्थ को पुलिस को सूचना देने से रोका था. पुलिस जब हंसा के मकान पर पहुंची, तो वह परिवार के साथ गुजरात भागने की तैयारी में थी, लेकिन पालतू कुत्ते के कारण फंस गई थी. वारदात के बाद से ही वह अपने पालतू कुत्ते को किसी के यहां छोड़ कर जाने की सोच रही थी, लेकिन ऐसे किसी परिवार का इंतजाम नहीं हो सका, जो कुछ दिनों के लिए उन के कुत्ते को रख लेता.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने पार्थ व्यास की निशानदेही पर अजमेर पुलिया के पास रेल की पटरियों से उस की फेंकी हुई शर्ट बरामद की. हंसा के घर में बने मंदिर से 50 हजार रुपए भी बरामद हो गए. हंसा के पास राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक एवं मानवाधिकार संस्था के Crime story फरजी आईकार्ड भी मिले. इन में उसे स्टेट सेक्रेटरी बताया गया था. बहरहाल, रिश्तों के विश्वासघात ने मां और 2 बेटों सहित 6 आरोपियों को जेल पहुंचा दिया. पार्थ व्यास ने बदला लेने और प्रियांशु ने लालच में अपने मामा के भरोसे को तोड़ दिया था. इस वारदात से रिश्तों के साथ मालिक और कर्मचारी के भरोसे की दीवार भी दरक गई.

हांथपैर बांधा और बालूरेती स्प्रे चलाकर कर दिया Best Friend का कत्ल

Best Friend : जंगल में मिली युवक की लाश इतनी डरावनी हालत में थी कि उसे देखते ही एक सिपाही बेहोश हो कर गिर गया था. लाश की खाल और सिर के बाल गायब थे. आखिर कौन था वह मृतक युवक और किस ने की थी इतने वीभत्स तरीके से उस की हत्या?

आज मौसम बड़ा बेईमान है. आज मौसम…गुनगुनाता हुआ सबइंसपेक्टर किशोर थाने में घुसा तो देखते ही इंसपेक्टर राज मुसकराते हुए बोले, ”क्या बात है किशोर, ऐसा लगता है आजकल तुम्हें आराम काफी अच्छा मिल रहा है, इसीलिए इस भीषण गरमी में भी तुम को मौसम बेईमान लग रहा है.’’

जय हिंद सर! आप ने सच कहा पुलिस की नौकरी में सुकून कहां? पर पिछले एक महीने से चोरी, जेबकतरी जैसे छोटेमोटे मामले ही आ रहे हैं. लग ही नहीं रहा है कि हम पुलिस विभाग में काम कर रहे हैं.’’ किशोर कुरसी पर बैठते हुए बोला.

सच है, जब तक कोई बड़ा केस न सुलझा लिया जाए, तब तक ऐसा लगता है कि खाना पच ही नहीं रहा है.’’ इंसपेक्टर राज भी सहमत होते हुए बोले.

दोनों बातें कर ही रहे थे कि उसी दौरान एक मुखबर आया. उस ने कहा, ”सर, जंगल के इलाके में एक लाश पड़ी हुई है.’’

क्या? कहां पर?’’ राज ने चौंकते हुए पूछा.

लीजिए सर, बड़ा केस आ गया.’’ किशोर इंसपेक्टर साहब की तरफ देखते हुए बोला .

कौन है वह? आदमी या औरत? शिनाख्त हुई क्या?’’ इंसपेक्टर राज ने मुखबिर से ही कई प्रश्न एक साथ पूछ डाले.

सर, लाश तो किसी आदमी की ही लगती है. मगर शिनाख्त करने की स्थिति में बिलकुल भी नहीं है.’’ मुखबिर ने बताया.

ऐंऽऽ इस तरह से मारा है क्या कि शिनाख्त ही संभव नहीं हैï?’’ इंसपेक्टर ने हैरानी से पूछा.

सर, मैं ने अपनी जिंदगी में इस तरह की  लाश पहली बार देखी है. इस कारण मैं उस सीन को बयां नहीं कर सकता.’’ मुखबिर घबराहट में अपना थूक गटकते हुए बोला.

किशोर, तुरंत फोटोग्राफर और बाकी स्टाफ को बुलवाओ. हमें जल्दी ही वहां पर पहुंचना है.’’ इंसपेक्टर राज निर्देश देते हुए बोले.

जी सर, एक महीने की छुट्टी खत्म और पुलिस की ड्यूटी शुरू.’’ अपनी अधूरी बात को पूरा करते हुए किशोर बोला.

लाश के पास किसी को छोड़ा है न?’’ इंसपेक्टर ने मुखबिर से पूछा.

जी और तो कोई मिला नहीं, इसी कारण एक चरवाहे को बोल कर आया हूं, जानपहचान वाला ही है.’’ मुखबिर ने जवाब दिया.

कुछ ही देर में इंसपेक्टर अपने दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

देखिए सर, लाश उधर पड़ी है,’’ मुखबिर घटनास्थल की तरफ इशारा करते हुए बोला. यह जंगल शहर से करीब 7-8 किलोमीटर दूर है.

जंगल तो बहुत ही घना और सुनसान है. अकेला आदमी तो इधर आने में भी डरे.’’ एक सिपाही बोला.

ऐसी वारदातें अकसर सुनसान जगहों पर ही होती हैं.’’ दूसरा सिपाही बोला.

सर, यह रहा वह चरवाहा, जिसे मैं छोड़ कर गया था.’’ मुखबिर इशारा करते हुए बोला.

इन के जाने के बाद कोई यहां आया तो नहीं था.’’ इंसपेक्टर ने उस व्यक्ति से पूछा.

जी नहीं. लाश वहां दूर पड़ी है.’’ चरवाहा बोला.

ओह माय गौड. व्हाट ए बैड एंड होरिबल डैड बौडी.’’ लाश देख कर इंसपेक्टर की आंखें चौड़ी हो गईं.

सर, लाश की ऐसी हालत देख कर एक सिपाही को चक्कर आ गया है. वह गिर पड़ा है.’’ एसआई ने सूचना दी.

हां, लाश है ही इतनी वीभत्स. कमजोर दिल वाला तो बेहोश हो ही जाएगा न.’’ इंसपेक्टर बोले.

जी हां, मैं ने भी कई लाशें देखी हैं, मगर यह लाश उन सब से बिलकुल अलग, अनोखी और डरावनी है. समझ में ही नहीं आ रहा है कि तसवीरें कहां से और किस एंगल से लें.’’ फोटोग्राफर बोला.

सच में ऐसा लग रहा है, जैसे किसी तेजधार हथियार से इस के शरीर से सारी स्किन निकाल ली गई है.’’ एक अन्य सिपाही नाक पर रुमाल रखते हुए बोला.

शरीर और सिर पर बालों का नामोनिशान तक नहीं है. खुले हुए मांस पर उस की खुली हुई आंखें लाश को और भी अधिक डरावना बना रही हैं. कान के ऊपर की परत भी गायब है.’’ एसआई किशोर बोला.

यह बताना भी बहुत मुश्किल होगा कि यह किस धर्म को मानने वाला था.’’ फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट भी बौडी की तरफ देखते हुए बोला.

ऐसा लगता है कि इस का मर्डर अभी 5-7 घंटे पहले ही हुआ है. क्योंकि अभी Best Friend  बौडी का डीकंपोजिशन चालू नहीं हुआ है और लाश के चारों ओर चीटियां भी ज्यादा संख्या में जमा नहीं हुई हैं.’’ एक अन्य एक्सपर्ट ने अपने विचार रखे.

देखिए मिस्टर फोटोग्राफर, यहां किसी गाड़ी के टायर के निशान दिख रहे हैं.’’ इंसपेक्टर राज फोटोग्राफर से बोले.

जी हां सर, यह किसी हैवी गाड़ी के टायरों के निशान हैं. संभव है, ये 10 टायरों वाला लोडिंग व्हीकल हो.’’ फोटोग्राफर ने जवाब दिया.

मतलब इसे मारा कहीं और गया है और ला कर यहां फेंका गया है.’’ इंसपेक्टर बोले.

एसआई किशोर बोला, ”सर, हो सकता है कि यह सोच कर यहां पर फेंका गया हो कि इस हालत में इसे कुत्तेबिल्ली तुरंत खा कर समाप्त कर देंगे. मगर यह जंगल बस्ती से इतनी दूर है कि यहां पर जानवर भी नहीं हैं.’’

यहां पर सवाल यह भी है कि इस व्यक्ति को इतनी बुरी तरह से क्यों और किस ने मारा? इस कत्ल का मोटिव क्या है?’’ इंसपेक्टर राज ने अपने स्टाफ की तरफ देखते हुए कहा.

सर, हो सकता है कि यह किसी अवैध संबंध का परिणाम हो और धार्मिक पहचान छिपाने के मकसद से इस तरह से मारा हो.’’ सबइंसपेक्टर किशोर ने शंका व्यक्त की.

यह किसी आपसी रंजिश के कारण भी हो सकता है.’’ फोटोग्राफर बोला.

सर, क्राइम का कारण कुछ भी रहा हो, मगर इतना तो निश्चित है कि मृतक सिविल कंस्ट्रक्शन के बिजनैस से रिलेटेड रहा हो, क्योंकि लाश के आसपास बिखरी हुई बालू और रेती इस तरफ इशारा कर रही है,’’ इंसपेक्टर ने कहा, ”एनीवे इस केस का रिजल्ट तो तफ्तीश के बाद ही मिलेगा. अभी तो आप लोग आसपास से सभी संभावित सबूत इकट्ठा कर लें, फोटोग्राफ लें और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो.’’

फिर सभी अपनेअपने कामों में जुट गए.

सर, इस लाश के दोनों हाथ कमर के नीचे हैं, इन का फोटो लेने के लिए लाश को पलटना होगा.’’ फोटोग्राफर बोला.

हां, एंबुलैंस भी आ चुकी है. किसी लकड़ी या छड़ी की मदद से लाश को पलट कर स्ट्रेचर पर रख लीजिए और आगे की काररवाई कर लीजिए.’’ इंसपेक्टर बोले.

फोटोग्राफर ने कहा, ”सर, लाश को पलटने के बाद देखिए तो मांस पर कुछ निशान दिखाई दे रहे हैं. ऐसा लगता है कि मारने से पहले इस के दोनों हाथ कमर के पीछे ले जा कर बांध दिए गए थे.’’ 

हां और इस ने जान बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाई होगी, इसी कारण मांस तक में इतने गहरे निशान आ गए हैं.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया.

सर, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई है.’’ एसआई किशोर लगभग 2 दिनों के बाद इंसपेक्टर राज को बता रहा था.

दिखाना जरा, रिपोर्ट में क्या है?’’ इंसपेक्टर बोले.

सर, इस रिपोर्ट के हिसाब से मौत शरीर के विभिन्न हिस्सों पर गहरे आघात की वजह से हुई है.’’ किशोर ने कहा.

वह तो दिख ही रहा था और कुछ विशेष?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्नवाचक निगाहों से देखते हुए पूछा.

हां, आप का अनुमान सही था. लाश के मांस में काफी मात्रा में बालूरेती गहराई तक घुसी हुई मिली है. इस से लगता है कि मृतक सिविल कंस्ट्रक्शन काम से संबंधित था.’’ एसआई बोला.

शहर में चल रही सभी सिविल साइट्स पर जा कर तफ्तीश करो और सभी थानों से गुमशुदा व्यक्तियों के बारे में जानकारी लो.’’ इंसपेक्टर ने निर्देश दिया.

यस सर.’’ एसआई बोला.

हां, मैं उन से संपर्क स्थापित कर चुका हूं, वह भी आज ही आने वाला है.’’ इंसपेक्टर ने बताया.

यह मर्डर तो सचमुच आश्चर्यजनक है.’’ फोरैंसिक औफिसर रिपोर्ट और फोटोग्राफ्स देखते हुए बोला.

हां, हम भी इसे देख कर हैरान हैं.’’ इंसपेक्टर बोला.

मैं ने गरम पानी या गरम तेल से कुछ मर्डर्स देखे हैं, जिन में बौडी से स्किन निकल जाती है, मगर यह मामला उस सब से बिलकुल अलग है. आप किस दिशा में कार्य कर रहे हैं? मेरा मतलब है आप का लाइन औफ ऐक्शन क्या है?’’ फोरैंसिक औफिसर ने पूछा.

आसपास के सभी थानों से गुमशुदगी रिपोर्ट के बारे में जानकारी मांगी है, मगर अभी तक कोई जानकारी निकल कर नहीं आई है.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया.

अब आप अपनी जांच का दायरा बढ़ाइए. इन फोटोग्राफ्स Best Friend को ध्यान से देखिए. यह देखिए, गाड़ी के टायर के निशान क्लिनर साइड के 2 टायरों का रबर एक जैसे टुकड़ों में कटा हुआ है, जबकि फोटो में इंप्रैशन से ऐसा लग रहा है कि शायद नए ही हैं. ऐसा किसी पथरीली सतह पर ट्रक के चलने के कारण हुए निश्चित तौर उस तरफ की कोई सतह भारी और नुकीली रही होगी.

अब आप अपनी टीम लगा कर ऐसे ट्रक की जानकारी निकलवाइए. यह काम किसी लोकल गाड़ी से ही हुआ है, क्योंकि ज्यादा दूर से कोई इस तरह की लाश को इस दशा में ला नहीं सकता.’’ फोरैंसिक औफिसर ने अपना विचार दिया.

जी, बहुत अच्छा क्लू दिया आप ने,’’ इंसपेक्टर धन्यवाद देता हुआ बोला.

लगभग 2 दिन बाद एक सिपाही ने बताया कि ऐसा ट्रक मिल गया है, जिस का मालिक रामसिंह है. चूंकि रामसिंह घर पर नहीं था, इसीलिए उसे थाने में रिपोर्ट करने की सूचना उस के घर पर दे दी गई है और एक मुखबिर को वहां तैनात कर दिया गया है. लगभग 2 घंटे ही गुजरे होंगे कि एक सिपाही आ कर इंसपेक्टर से बोला, ”सर, रामसिंह नाम का एक आदमी आया है, वह आप से मिलना चाहता है. उस का कहना है वह उस ब्लाइंड मर्डर के बारे में कुछ सुराग दे सकता है.’’

भेजो उसे तुरंत.’’ इंसपेक्टर जल्दी से बोले.

नमस्कार सर.’’ अंदर आते ही वह आदमी हाथ जोड़ कर बोला.

आओ रामसिंह, बैठो. बताओ, उस ब्लाइंड मर्डर के बारे में तुम हमारी क्या मदद कर सकते हो?’’ इंसपेक्टर उस के चेहरे की तरफ नजरें गड़ा कर बोले.

सर, मैं ने उस मर्डर को अपनी आंखों से होते हुए देखा है.’’ रामसिंह बोला .

क्या? तुम ने इतने वीभत्स मर्डर को किया कैसे? मरने वाला व्यक्ति कौन था? तुम उसे कैसे जानते थे?’’ इंसपेक्टर ने कई सारे प्रश्न एक साथ पूछ डाले.

सर, मैं ने मर्डर नहीं किया, मैं तो उस का चश्मदीद गवाह हूं. मैं उस ट्रक का ड्राइवर हूं, जिस में इस घटना को अंजाम दिया गया था.’’

यह दिलचस्प कहानी है 3 दोस्तों की, जो मेहनतमजदूरी करने के लिए अपने घर बिहार से हजारों किलोमीटर दूर आए थे. शुरुआत में ये लोग घरों में रंगाईपुताई का काम किया करते थे. इसी दौरान काम करते समय एक उद्योगपति ने इन्हें अपनी फैक्ट्री में स्ट्रक्चर पेंटिंग का काम दिया.

स्ट्रक्चर पेंटिंग का यह काम उन लोगों को अच्छा और ज्यादा कमाई देने वाला लगा. जल्दी ही उन्हें और फैक्ट्रियों में भी काम मिलने लगा. ऊंचेऊंचे स्ट्रक्चरों पर चढ़ कर सफाई करने में समय भी बहुत लग जाता था और मनचाही सफाई भी नहीं आती थी .’’

रुको रामसिंह, सब से पहले मुझे इन दोस्तों के बारे में बताओ. मतलब नाम, काम, गाम.’’ इंसपेक्टर रामसिंह को रोकते हुए बोले.

रामसिंह ने बताया, ”सर, इन तीनों के नाम धनेश, रमेश और जयेश थे. ये लोग बिहार के गोपालगंज गांव के रहने वाले थे. ये लोग वहां पर भी एक ही मोहल्ले में रहते थे. इन में से धनेश सब से ज्यादा पढ़ालिखा और समझदार था. धनेश के पिता काफी समय पहले ही गुजर गए थे और 2 साल पहले ही उस की माताजी भी शांत हो गई थी. वह किसी अनबन के चलते अपनी पत्नी से अलग हो चुका था. उस की पत्नी ने अब दूसरी शादी भी कर ली है. उस के और कोई भाईबहन भी नहीं है.

रमेश और जयेश का पूरा परिवार है तथा बिहार में ही रहता है. ये लोग पिछले करीब 7-8 सालों से यहां पर काम कर रहे हैं. मेरा खुद का अपना एक ट्रक है और इन लोगों ने अपनी सैंड ब्लास्टिंग मशीन मेरे ही ट्रक पर लगा रखी है. बारबार कस्टमर न खोजना पड़े और एक स्थाई इनकम हो जाए, यही सोच कर मैं ने अपने ट्रक को इन के साथ लगा कर इन से पार्टनरशिप कर ली थी.

जब स्ट्रक्चर सफाई में इन्हें ज्यादा परेशानी आने लगी तो इन्होंने किसी के सहयोग से एक सैंड ब्लास्टिंग मशीन मेरे ट्रक पर लगवा ली. यह करीब 2 साल पहले की बात है.’’

यह सैंड ब्लास्टिंग मशीन किस बला का नाम है और यह कैसे काम करती है?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

आसान भाषा में कहें तो यह एक मशीन है, जो 5-6 किलो प्रेशर पर बालूरेती का फव्वारा साफ करने वाली सतह पर फेंकती है. इस से लोहे की सतह पर लगा जंग कीट आदि मिनटों में निकल जाता है और फिर सतह पर अच्छी तरह से पेंटिंग की जा सकती है. काम भी काफी आसानी से हो जाता है.’’ रामसिंह ने समझाया.

जब सब कुछ इतने अच्छे से चल रहा था तो मर्डर की जरूरत क्यों आन पड़ी?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

चूंकि धनेश सब से ज्यादा पढ़ालिखा था, इसीलिए वह कौन्ट्रैक्ट लेने और फाइनल करने अकेले ही जाया करता था. उस ने हम लोगों से पूछे बिना ही हिस्सेदारी में भी परिवर्तन कर दिया था.

कौन्ट्रैक्ट में मिले कुल पैसों का 25 परसेंट हिस्सा वह पहले ही अपने पास रख लिया करता था और बाकी बचे हुए 75 परसेंट में से 4 हिस्से कर बंटवारा करता था. यही बात हम सभी को नागवार गुजरती थी.’’ रामसिंह बोल रहा था.

फिर उस का मर्डर कैसे किया?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

उसे मारने का प्लान लगभग 15 दिन पहले ही बन गया था. इस जंगल से हम कई बार गुजर चुके थे तथा यह जानते थे कि यह इतना घना और सुनसान है कि यहां दूरदूर तक हमारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है.

घटना वाले दिन भी हम इसी रस्ते से गुजर रहे थे. साइट पर सुबह जल्दी पहुंचना होता है, इसी कारण हम मुंह अंधेरे निकल गए थे. धनेश हमेशा की तरह मशीन के पास ट्रक के पिछले हिस्से में सो रहा था.

रमेश और जयेश ने मौका देख कर उस के हाथ और पांव बांध दिए और कंप्रेसर चला कर ब्लास्टिंग नोजल से उस पर 7 किलो प्रेशर से बालूरेती का स्प्रे चालू कर दिया. कुछ ही देर में धनेश की जान निकल गई. उस की पहचान छिपाने के लिए बाद में पूरे शरीर पर ब्लास्टिंग कर दी.’’

बाप रे! यहां तो 50 ग्राम का पत्थर लगने पर चक्कर आ जाते हैं और तुम ने उस पर Best Friend 7 किलो का प्रेशर डाल कर सैंड ब्लास्टिंग कर दी. इसी कारण उस के सिर की हड्डियां तक टूट गईं और सारे शरीर की चमड़ी तक निकल गई.’’ इंसपेक्टर गुस्से से बोले, ”तुम खुद चल कर यहां क्यों आए? बाकी  दोनों कहां हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

मर्डर के बाद दोनों ब्लास्टर घबरा कर बिहार भाग गए. पिछले दिनों काम पर न जाने के कारण फैमिली वालों के दबाव डालने पर मैं ने सारी बातें उन्हें बता दी. फैमिली वालों के कहने पर ही मैं यहां पर आया हूं.’’ रामसिंह बोला, ”साहब, सरकारी गवाह बनने पर कुछ फायदा मिलता है ना?’’

वह तो कोर्ट ही निर्धारित करेगा. पहले तो बिहार चल कर दोनों मास्टर ब्लास्टर्स की खबर लेते हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा. 

 

 

Extra marital affair : छुटकारा पाने के लिए पत्नी ने सब्जी में मिलाया जहर लेकिन बच गया पति

Extra marital affair : बबली परिवार की बजाए अपनी शारीरिक जरूरतों को ज्यादा महत्त्व देती थी तभी तो 3 बच्चों की मां बनने के बावजूद कई युवकों से उस के अवैध संबंध हो गए. अपने एक प्रेमी के साथ हमेशा के लिए रहने को उस ने ऐसी चाल चली कि…

खुशबू और अंशिका रोज की तरह 5 दिसंबर, 2013 को भी स्कूल गई थीं. वैसे वे दोपहर 2 बजे तब स्कूल से घर लौट आती थीं लेकिन जब ढाई बजे तक घर नहीं पहुंचीं तो मां बबली बेचैन हो गई. उस के बच्चों की क्लास में मोहल्ले के कुछ और बच्चे भी पढ़ते थे. उस ने उन बच्चों के घर पहुंच कर अपने बच्चों के बारे में पूछा तो बच्चों ने बताया कि खुशबू और अंशिका आज स्कूल आई ही नहीं थीं. बच्चों की बात सुन कर बबली हैरान रह गई क्योंकि उस ने दोनों बेटियों को स्कूल भेजा था तो वे कहां चली गईं. बदहवास बबली ने अपने पिता गुलाबचंद और भाइयों को सारी बात बताते हुए जल्दी से बेटियों का पता लगाने को कह कर रोनेबिलखने लगी.

उस के पिता और भाई भी नहीं समझ पा रहे थे कि जब दोनों बहनें स्कूल गई थीं तो वे स्कूल न पहुंच कर कहां चली गईं? बबली को सांत्वना दे कर वे सब अपने स्तर से दोनों बच्चियों को ढूंढ़ने में जुट गए. काफी खोजबीन के बाद भी उन का पता नहीं लग सका. दोनों बच्चे रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गए, इस बात से पूरा परिवार परेशान था. मोहल्ले के कुछ लोग कहने लगे कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने फिरौती के लिए बच्चों का अपहरण कर लिया हो. लेकिन इस की उम्मीद कम थी क्योंकि बबली या उस के घर वालों की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे कोई फिरौती दे सकें.

बबली की अपने पति जितेंद्र से कुछ अनबन चल रही थी, तभी तो वह तीनों बेटियों के साथ मायके में रह रही थी. घर वालों को इसी बात का शक हो रहा था कि बच्चियों को उन का पिता जितेंद्र या फिर दादा बृजनारायण पांडेय ही फुसला कर अपने साथ ले गए होंगे. संभावित स्थानों पर तलाश के बाद जब खुशबू और अंशिका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के नाना गुलाबचंद थाना नगरा पहुंचे और थानाप्रभारी एस.पी. चौधरी से मिल कर बच्चियों के गायब होने की बात बताई. उन्होंने अपने दामाद जितेंद्र और समधी बृजनारायण पर बच्चियों को गायब करने का अंदेशा जाहिर किया.

गुलाबचंद की तहरीर पर 5 दिसंबर, 2013 को अपहरण का मुकदमा दर्ज करवा कर मामले की विवेचना सबइंसपेक्टर उमेशचंद्र यादव को करने के निर्देश दिए. साथ ही उन्होंने दोनों बच्चियों के गायब होने की सूचना से अपर पुलिस अधीक्षक के.सी. गोस्वामी और पुलिस अधीक्षक अरविंद सेन को अवगत करा दिया.  सबइंसपेक्टर उमेशचंद्र यादव मामले की छानबीन करने में जुट गए. चूंकि गुलाबचंद ने अपने दामाद और समधी पर बच्चियों को गायब करने का शक जाहिर किया था. लिहाजा पुलिस बलिया के सिकंदरपुर थाने के गांव उचवार में रहने वाले जितेंद्र के घर पहुंच गई और वहां से उसे व उस के 80 वर्षीय बुजुर्ग पिता बृजनारायण पांडेय को पूछताछ के लिए थाने ले आई.

उन्होंने दोनों से अलगअलग तरीके से पूछताछ की. उन की बातों से जांच अधिकारी को लगा कि बच्चों के गायब होने में उन का कोई हाथ नहीं है. बल्कि अपने दोनों बच्चों के गायब होने की जानकारी पा कर जितेंद्र परेशान हो गया था. इन दोनों से पूछताछ के दौरान उन्हें यह पता चल गया था कि बबली एक बदचलन औरत है. एसआई उमेशचंद्र यादव के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. उन्होंने जितेंद्र और उस के पिता को घर भेज दिया और खुद गोपनीय रूप से यह पता लगाने में जुट गए कि बबली के संबंध किन लोगों से हैं.  इस काम में उन्हें सफलता मिल गई और पता चला कि उस के संबंध औरैया जिले के हीरनगर गांव के रहने वाले कुलदीप से हैं और वह दिल्ली में नौकरी करता है.

एसआई उमेशचंद्र ने इस जानकारी से थानाप्रभारी को अवगत करा दिया. इस के बाद उन्होंने कुलदीप की तलाश शुरू कर दी और उस का पता लगाने के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया. उधर खुद पर बच्चों के अपहरण का आरोप लगने पर जितेंद्र को बहुत दुख हुआ. उस ने अपहरण के आरोप लगाए जाने पर अपने बचने के लिए एसपी अरविंद सेन को तहरीर दे कर कहा कि उसे और उस के पिता को झूठा फंसाया जा रहा है. न्याय की गुहार लगाते हुए उस ने बच्चों को जल्द तलाशने की मांग की. 13 दिसंबर, 2013 की शाम को एसआई उमेशचंद्र को मुखबिर ने एक खास सूचना दी. जानकारी मिलते ही वह महिला कांस्टेबल निकुंबला, कांस्टेबल रामबहादुर यादव आदि के साथ बिल्थरा रोड रेलवे स्टेशन पहुंच गए. अपने साथ वह जितेंद्र को भी ले गए थे ताकि वह अपनी बेटियों को पहचान सके.

मुखबिर ने जिस व्यक्ति के बारे में उन्हें सूचना दी थी वह उसे इधरउधर तलाशने लगे. कुछ देर बाद उन्हें प्लेटफार्म पर एक युवक आता दिखाई दिया. उस के साथ 2 बच्चियां भी थीं. जितेंद्र ने बच्चियों को पहचानते हुए कहा, ‘‘सर, यही मेरी बेटियां हैं.’’

उधर उस युवक ने स्टेशन पर पुलिस को देखा तो वह तेज कदमों से दूसरी ओर चल दिया. लेकिन पुलिस ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया और बच्चियों को भी अपने कब्जे में ले लिया. बच्चियों को सकुशल बरामद कर पुलिस खुश थी. जिस युवक को पुलिस ने हिरासत में लिया था उस ने अपना नाम कुलदीप बताया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने आ गई. पूछताछ करने पर उस ने बताया कि वह बबली से प्यार करता है और बच्चों का अपहरण उस ने उसी के कहने पर ही किया था. उस की बात सुन कर पुलिस भी चौंक गई कि क्या एक मां ही अपने बच्चों का अपहरण करा सकती है. लेकिन कुलदीप ने खुशबू और अंशिका के अपहरण के पीछे की जो कहानी बताई, सभी को चौंका देने वाली निकली.

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित और बिहार प्रांत से सटा एक जिला है बलिया. इस जिले के नगरा थाना क्षेत्र के देवरहीं गांव के रहने वाले गुलाबचंद के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 3 बेटे थे. बबली उन की दूसरे नंबर की बेटी थी. वह बहुत खूबसूरत थी. लेकिन जब उस ने लड़कपन के पड़ाव को पार कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में Extra marital affair और भी निखार आ गया. वह जवान हुई तो घर वालों को उस की शादी की चिंता सताने लगी. वे उस के लिए सही लड़का तलाशने लगे. जल्द ही उन की मेहनत रंग लाई और बलिया जिले के ही सिकंदरपुर थाना क्षेत्र के उचवार गांव में रहने वाले बृजनारायण पांडेय के बेटे जितेंद्र से उस की शादी तय कर दी और सामाजिक रीतिरिवाज से 2003 में दोनों का विवाह हो गया.

बबली जब अपनी ससुराल पहुंची तो अपने व्यवहार और काम से उस ने सभी का दिल जीत लिया. ससुराल में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. परिवार भी बड़ा नहीं था. इसलिए गृहस्थी की गाड़ी ठीक तरह से चल पड़ी. शादी के साल भर बाद बबली ने एक बेटी को जन्म दिया. उस का नाम रखा गया खुशबू. परिवार बढ़ा तो घर का खर्च भी बढ़ गया. जितेंद्र अपने बीवीबच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखना चाहता था. लिहाजा वह काम की तलाश में दिल्ली चला गया. जल्द ही दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में उस की नौकरी लग गई. उन की जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर आ गई. इस दौरान जितेंद्र साल में 1-2 बार ही बीवीबच्चों से मिलने अपने गांव आ पाता और कुछ दिन घर रहने के बाद दिल्ली चला जाता था.

वक्त यूं ही हंसीखुशी से गुजरता रहा. 3 साल बाद बबली एक और बच्ची की मां बन गई. उस का नाम अंशिका रखा. ज्यादा दिनों तक पति से दूर रहने की कमी बबली को खलने लगी थी. उस ने 1-2 बार पति से कहा भी कि वह हर महीने घर आ जाया करें. यदि हर महीने न भी आ सकेंतो 2 महीने में तो आ ही जाया करें, बच्चे बहुत याद करते हैं. लेकिन कुलदीप ने बारबार आने पर किराए में पैसे खर्च होने की बात बताई. जल्दजल्द घर आने में उस ने असमर्थता जता दी. लिहाजा अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बबली ने पड़ोस के एक युवक से नजदीकियां बढ़ा लीं. फिर दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. इस दौरान बबली एक और बेटी की मां बन गई.

बबली ने घरवालों और जमाने से अपनी मोहब्बत की कहानी को छिपाने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सकी और जल्दी ही उन के प्रेमप्रसंग Extra marital affair की खबर घर वालों को लग गई. फिर क्या था परिवार में खलबली सी मच गई और बबली को अपने प्रेमी से मिलने पर रोक लगा दी गई. इस के बाद तो उस की हालत पिंजरे में उस बंद पंछी की तरह हो कर रह गई जो सिर्फ फड़फड़ा सकता है लेकिन कोशिश करने पर भी उड़ नहीं सकता. अपनी आजादी पर घर वालों द्वारा पहरे लगाए जाने से बबली चिढ़ गई. लगभग 2 साल पहले एक दिन अपने पिता की तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वह मायके आ गई. वहीं पड़ोस में एक लड़का रहता था, जो दिल्ली में नौकरी करता था.

वह जितेंद्र को जानता था और उसे यह भी पता था कि जितेंद्र कहां रहता है. बबली को पति के बिना सब सूनासूना सा लग रहा था. इसलिए वह उस लड़के के साथ पति के पास दिल्ली चली गई. पत्नी के अचानक दिल्ली आ जाने पर जितेंद्र चौंक गया. पत्नी के साथ रहना उसे अच्छा तो लग रहा था लेकिन पत्नी और बच्चों के आने पर उस का खर्च बढ़ गया जिस से घर चलाने में परेशानी होने लगी. परेशानी देखते हुए बबली ने भी कोई काम कर घर के खर्चे में हाथ बंटाने की बात कही तो जितेंद्र मान गया. फिर वह अपने आसपास रहने वाली महिलाओं के सहयोग से काम तलाशने लगी. कुछ दिनों बाद उसे एक प्राइवेट कंपनी में काम मिल गया. जब दोनों ही काम करने लगे तो घर का खर्च ठीक से चलने लगा. बबली खुले विचारों की थी.

रूपयौवन से परिपूर्ण बबली की देहयष्टि इतनी आकर्षक थी कि किसी को भी पहली नजर में लुभा लेती थी. फिर अलग काम करने से उसे मनमानी करने का पूरा मौका भी मिल रहा था. इस मौके का लाभ उठा कर बबली ने अपने साथ काम करने वाले कुलदीप से अवैध संबंध बना लिए. मूलरूप से औरैया जिले के फफूंद थाना क्षेत्र के हीरनगर गांव के निवासी रविशंकर का बेटा कुलदीप दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता था. कुलदीप से एक बार संबंध बने तो बबली जैसे उस की दीवानी हो गई. फिर तो उन का वासना का खेल चलने लगा. लेकिन एक दिन वह कुलदीप के साथ अपने कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में थी तभी मकान मालिक की नजर उस पर पड़ी. उस ने उस समय तो उस से कुछ नहीं कहा, लेकिन जितेंद्र को बात बताते हुए उस से कमरा खाली करा लिया.

फिर जितेंद्र ने पास में ही दूसरा कमरा किराए पर ले लिया. जितेंद्र बहुत ही शांत स्वभाव का था. पत्नी की करतूत का पता चल जाने के बावजूद भी उस ने उस से कोई सख्ती नहीं की बल्कि समझाने के बाद उस ने पत्नी को चेतावनी दे दी थी. लेकिन बबली ने उस की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. बबली ने पास में ही रहने वाले एक और युवक से अवैध संबंध बना लिए. दोनों चोरीछिपे रंगरलियां मनाने लगे. उसी समय जितेंद्र ने पत्नी की नौकरी छुड़वा दी. कुछ समय तक सब कुछ गुपचुप चलता रहा. लेकिन धीरेधीरे लोगों को उन दोनों के संबंधों के बारे में पता चल गया. फिर बात जितेंद्र के कानों तक भी पहुंची. पत्नी को सही रास्ते पर लाने के लिए उस ने उसे डांटा. बबली ने इस का विरोध किया. फिर क्या था इसी बात को ले कर उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. एक दिन झगड़ा इतना बढ़ा कि बबली ने पुलिस से शिकायत कर पति को पिटवा दिया.

पत्नी के बदले हुए रुख से जितेंद्र डर गया. उस ने तय कर लिया कि पत्नी चाहे कुछ भी करे, उस के काम में वह दखल नहीं करेगा. यानी उस ने एकदम से अपना मुंह बंद कर लिया. फिर तो बबली ने कुलदीप को भी अपने साथ रख लिया और खुल कर उस के साथ रंगरलियां मनाने लगी. सब कुछ देखते हुए भी डर के कारण जितेंद्र चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता था. बल्कि उसे बबली से अपनी जान का भी खतरा महसूस होने लगा था. इस का कारण यह था कि एक दिन बबली ने जितेंद्र के खाने में छिपकली मार कर डाल दी थी. संयोग से उस दिन जितेंद्र ने लंच कंपनी की कैंटीन में कर लिया था. बाद में जब उस ने लंच में पत्नी द्वारा दी गई आलू की भुजिया देखी तो उस का रंग बदला हुआ था.

उसे लगा कि इस में जहर है तो उस ने सब्जी फेंक दी. घर आ कर जब उस ने पत्नी से इस बारे में पूछा तो उस ने बहाना बनाते हुए कह दिया कि खाना बनाते हुए कुछ गिर गया होगा. हादसे से जितेंद्र एकदम से डर गया था. जान का खतरा महसूस होने पर जितेंद्र 13 जुलाई, 2013 को बबली और बच्चों को दिल्ली में ही छोड़ कर बलिया चला आया और उस ने वाराणसी में ही काम तलाश लिया. पति के वापस गांव चले जाने पर बबली आजाद हो गई और खुल कर कुलदीप के साथ मौजमस्ती करने लगी. कुलदीप बबली के साथ उस के बच्चों को भी बहुत प्यार करता था. कुल मिला कर दोनों का समय हंसीखुशी बीतने लगा.

इधर बबली के मायके वालों को जब पता चला कि झगड़ा होने के बाद जितेंद्र बबली को दिल्ली में छोड़ कर वापस आ गया है तो उस के पिता गुलाबचंद दिल्ली पहुंच गए और बबली तथा उस के बच्चों को घर लिवा लाए. तब से वह मायके में रहने लगी. बबली ने भी पिता से कह दिया था कि अब वह जितेंद्र के यहां नहीं जाएगी. तब गुलाबचंद ने बच्चों का नाम गांव के ही स्कूल में लिखवा दिया. ननिहाल में बच्चे तो खुश थे लेकिन बबली का मन अपने आशिक कुलदीप के बिना नहीं लगता था. वह मोबाइल से कुलदीप से बात कर अपना मन बहला लेती थी, लेकिन जब Extra marital affair कुलदीप की जुदाई उसे अधिक खलने लगी तो मायके वालों को बिना कुछ बताए वह एक दिन अकेले ही दिल्ली चली गई और कुलदीप के साथ रहने लगी. मायके वालों को जब पता लगा कि वह दिल्ली चली गई है तो उन्हें बहुत बुरा लगा. तब बबली का भाई प्रीतम दिल्ली जा कर उसे वापस ले आया.

वक्त गुजरता रहा. बबली पति जितेंद्र को भूल चुकी थी. उस ने तय कर लिया था कि जीवन भर कुलदीप के साथ ही रहेगी. इसलिए वह कुलदीप को हमेशा के लिए पाने के बारे में सोचने लगी. उसे कुलदीप के बिना एक पल भी गुजार पाना नामुमकिन लगने लगा तो उस ने उस के पास जाने के लिए एक प्लान बनाया. प्लान के अनुसार 4 दिसंबर, 13 को बबली ने दिल्ली फोन कर के कुलदीप को अपने गांव के पास परसिया चट्टी पर बुलाया. तय समय के अनुसार कुलदीप परसिया चट्टी पहुंच गया. इधर रोज की तरह 8 वर्षीय खुशबू और 6 वर्षीय अंशिका स्कूल जाने के लिए घर से निकलीं तो रास्ते में बबली मिली. वह दोनों बच्चों को ले कर परसिया चट्टी पहुंची.

चूंकि कुलदीप उन्हें खूब प्यार करता था इसलिए उसे देख कर दोनों बच्चियां खुश हो गईं. बबली ने खुशबू और अंशिका को यह समझाते हुए उस के साथ दिल्ली भेज दिया कि 10 दिन के अंदर वह भी दिल्ली आ जाएगी. मां के कहने पर दोनों बहनें कुलदीप के साथ दिल्ली चली गईं. इस प्लान के पीछे बबली की यह सोच थी कि जब बेटियों के लापता होने पर घर के लोगों का सारा ध्यान उस ओर चला जाएगा तो वह आसानी से अपनी 3 साल की छोटी बेटी साक्षी को ले कर कुलदीप के पास चली जाएगी. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई.

कुलदीप से पूछताछ के बाद पुलिस ने इस केस की नायिका बबली को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों अभियुक्तों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने कुलदीप को अपहरण और बबली को साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर के अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया तथा दोनों बच्चियों को उस के पिता जितेंद्र के संरक्षण में दे दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Story : 17 महीने तक लाश को जीवीत मानकर सफाई की

Family Story : कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं, जिन पर विश्वास कर पाना बहुत ही कठिन होता है. ऐसी अविश्वसनीय घटनाएं या तो अंधविश्वास में घटित होती हैं या फिर मनोरोग विकार में. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भी ऐसी ही एक अविश्वसनीय घटना घटित हुई, जिस ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया.

कानपुर शहर का एक मिश्रित आबादी वाला मोहल्ला रोशन नगर है. इसी मोहल्ले के कृष्णापुरी के मकान नं. 7/401 में रामऔतार गौतम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 3 बेटे दिनेश, सुनील व विमलेश थे. रामऔतार गौतम फील्डगन फैक्ट्री में मशीनिष्ट के पद पर कार्यरत थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का अपना तीनमंजिला मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं मौजूद थीं.

रामऔतार गौतम के तीनों बेटे होनहार थे. बड़ा बेटा दिनेश सिंचाई विभाग में है और वह कानपुर के फूलबाग कार्यालय में तैनात है. जबकि सुनील बिजली उपकरणों की ठेकेदारी करता है. दिनेश व सुनील शादीशुदा हैं. दिनेश की शादी अर्चना से तथा सुनील की गुडि़या से हुई थी. दिनेश व सुनील अपने परिवार के साथ पिता के मकान में ही रहते हैं. रामऔतार गौतम का सब से छोटा बेटा विमलेश कुमार था. वह अपने अन्य भाइयों से ज्यादा तेज दिमाग का था. विमलेश ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई रामलला स्कूल से की, फिर बीकौम व एमकौम की पढ़ाई छत्रपति शाहूजी महाराज महाविद्यालय से पूरी की.

उस के बाद विमलेश की नौकरी आयकर विभाग में लग गई. वर्तमान में वह अहमदाबाद में आयकर विभाग में असिस्टेंट एकाउंट औफिसर के पद पर कार्यरत था. विमलेश कुमार की शादी मिताली दीक्षित के साथ हुई थी. यह अंतरजातीय प्रेम विवाह था. विमलेश अनुसूचित जाति के थे, जबकि मिताली दीक्षित ब्राह्मण थी. दरअसल, विमलेश कुमार मिताली को उन के किदवई नगर स्थित घर पर ट्यूशन पढ़ाने जाते थे. ट्यूशन पढ़ाने के दौरान ही दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए और उन के बीच प्यार पनपने लगा.

मोहब्बत परवान चढ़ी तो दोनों ने शादी का निश्चय किया. विमलेश के घरवाले शादी को राजी थे, लेकिन मिताली के घर वाले राजी नहीं थे. लेकिन घरवालों के विरोध के बावजूद मिताली दीक्षित ने वर्ष 2015 में विमलेश कुमार के साथ विवाह रचा लिया और विमलेश की दुलहन बन कर रोशन नगर स्थित ससुराल आ गई. ससुराल में मिताली को सासससुर व पति का भरपूर प्यार मिला, जिस से वह अपने भाग्य पर इतरा उठी. शादी के 2 साल बाद मिताली ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने संभव रखा. संभव के जन्म से परिवार की खुशियां और बढ़ गईं. मिताली संयुक्त परिवार में जरूर रहती थी, लेकिन कभी उसे किसी तरह की परेशानी नहीं हुई.

मिताली दीक्षित पढ़ीलिखी सभ्य महिला थी. वह किदवई नगर स्थित कोऔपरेटिव बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत थी. सुबह वह सास व जेठानियों के साथ घर का काम निपटाती फिर बैंक जाती. बैंक से वापस आ कर वह फिर घरेलू काम निपटाती. यही उन की दिनचर्या बन गई थी. वह हर तरह से खुशहाल थी. वर्ष 2019 में विमलेश का ट्रांसफर अहमदाबाद (गुजरात) हो गया. पति के बाहर जाने से मिताली विचलित नहीं हुई और अपने कर्तव्य का पालन करती रही. पति का आनाजाना लगा रहता था. वह अपने बेटे संभव से बहुत प्यार करते थे. बेटे के अलावा उन्हें अपने मातापिता व भाइयों से भी बेहद लगाव था. मां से उन्हें कुछ ज्यादा ही लगाव था.

इस बीच मिताली दोबारा गर्भवती हुई और उस ने मार्च 2021 में एक बेटी कोे जन्म दिया. इस का नाम उस ने दृष्टि रखा. नवजात की देखभाल हेतु मिताली ने 6 महीने की छुट्टी बैंक से ले ली.

22 अप्रैल, 2021 को हुई थी मौत

इधर आयकर अधिकारी विमलेश कुमार गौतम 16 अप्रैल, 2021 को विभागीय कार्य हेतु अहमदाबाद स्थित आयकर कार्यालय से निकले तो वह बीमार हो गए. उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी. उन दिनों कोरोना काल की दूसरी भयंकर लहर चल रही थी और लोग कीड़ेमकोड़ों की तरह मर रहे थे. अत: घबरा कर विमलेश कुमार ने अहमदाबाद से लखनऊ की फ्लाइट पकड़ी, फिर Family Story लखनऊ से अपने घर कानपुर आ गए.

19 अप्रैल, 2021 को घर वालों ने विमलेश कुमार को बिरहाना रोड के मोती हौस्पिटल में भरती करा दिया. अस्पताल में विमलेश का महंगा इलाज शुरू हुआ. लेकिन डाक्टर काल के हाथों से विमलेश कुमार को बचा न सके. 22 अप्रैल, 2021 की सुबह 4 बजे विमलेश ने दम तोड़ दिया. विमलेश के शव को निजी वाहन से रोशन नगर स्थित घर लाया गया. अस्पताल में लगभग 9 लाख रुपया खर्च हुआ तथा अस्पताल की तरफ से घर वालों को मौत का सर्टिफिकेट भी थमा दिया. आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत से गौतम परिवार में हाहाकार मच गया. नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा शुरू हो गया. मातापिता जहां बेटे की मौत पर आंसू बहा रहे थे, वहीं मिताली की आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. भाई सुनील व दिनेश भी बेहाल थे.

इसी बीच एक रिश्तेदार महिला ने रोते हुए विमलेश के सीने पर सिर रखा तो उसे विमलेश के सीने से धड़कन महसूस हुई. वह आंसू पोंछते हुए रामदुलारी से बोली, ‘‘बहना, तुम्हारा बिटवा जीवित है.’’

फिर तो बारीबारी से रामदुलारी व दिनेश ने भी धड़कन महसूस की. इस के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी रोक दी गई और पड़ोस में रहने वाले एक डाक्टर को बुलाया गया. उस ने विमलेश की मृत देह की अंगुली में पल्स औक्सीमीटर लगाया तो औक्सीजन 77 और पल्स 62 आने लगी. उसे देख मौत का सर्टिफिकेट हाथ में थामने के बावजूद घर वालों ने विमलेश को जीवित मान लिया. इस के बाद सभी अपने घरों को चले गए.

जीवित मान कर शव की करते रहे साफसफाई

परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी, इसलिए परिवार के लोग विमलेश कुमार को तुरंत पनेशिया, केएमसी, फार्च्यून व सिटी हौस्पिटल ले गए. लेकिन सभी आरटीपीसीआर रिपोर्ट मांग रहे थे. रिपोर्ट उन के पास नहीं थी. इसलिए शहर के किसी भी अस्पताल ने विमलेश को भरती नहीं किया. घर वालों को लाश में आस नजर आ रही थी. इसलिए उन्होंने अपने घर को ही अस्पताल बना दिया. उन्होंने विमलेश को घर के एसी रूम में तख्त पर लिटा दिया और इलाज शुरू कर दिया. इस इलाज पर उन्होंने करीब 30 लाख रुपए भी खर्च कर दिए. विमलेश की मां रामदुलारी गंगाजल छिड़क कर उस के शरीर को पोछतीं फिर साफसुथरे कपड़े पहनातीं. इस काम में उन का पति रामऔतार भी मदद करते. रामदुलारी चम्मच से 2-4 बूंद गंगाजल उस के मुंह में भी डालतीं.

किसी तरह की बदबू न आए. इस के लिए कमरे में सुगंधित अगरबत्ती, धूपबत्ती भी जलाई जाती. गुप्तरूप से झोलाछाप डाक्टर व कथित तांत्रिक भी आते व पूजापाठ व तंत्रमंत्र करते. अब तक रामदुलारी व उन का पूरा परिवार अंधविश्वास व मनोरोग विकार का शिकार बन गया था. सभी मानने लगे थे कि विमलेश कुमार कोमा में है और एक दिन जीवित हो जाएगा. पढ़ीलिखी तथा बैंक मैनेजर मिताली दीक्षित भी मनोरोगी बन गई थी. उसने भी मान लिया था कि पति कोमा में है और एक दिन वह जीवित हो जाएंगे.

वह रोज बैंक जाने से पहले पति का माथा छू कर बतियाती थी. सिरहाने बैठ कर उसे निहारती थी, उन के सिर पर हाथ फेरती थी और उसे बोल कर जाती थी कि जल्दी ही औफिस से लौट कर मिलती हूं. भाई दिनेश व सुनील जब काम से लौटते थे तो विमलेश से उस का हालचाल पूछते थे. विमलेश की खामोशी के बावजूद वे उन्हें जीवित मान रहे थे.

मिताली को कचोट रही थी आत्मा

मिताली दीक्षित परिवार के प्रभाव में थी. इसलिए वह उन की हां में हां मिला रही थी. लेकिन उस की अंतरात्मा उसे कचोट रही थी. यही कारण था कि उस ने पति की मौत के 5 दिन बाद ही एक पत्र अहमदाबाद स्थित आयकर विभाग को भेज दिया था. पत्र में उस ने लिखा था कि विमलेश कुमार की मौत कोरोना से हो गई है. पेंशन संबंधी औपचारिकताओं का जल्दी से जल्दी निपटारा किया जाए.

आयकर विभाग ने पत्र के आधार पर प्रक्रिया शुरू कर दी थी कि तभी मिताली का एक और पत्र अहमदाबाद आयकर विभाग को प्राप्त हुआ. उस में लिखा था कि औक्सीमीटर से जांच में पति विमलेश की पल्स चलती हुई पाई गई है और वह जीवित है. इसलिए पेंशन व फंड भुगतान की प्रक्रिया को रोक दिया जाए. विभाग ने तब विमलेश की पेंशन, फंड समेत अन्य भुगतान की प्रक्रिया रोक दी. इस के बाद आयकर विभाग ने विमलेश कुमार के मैडिकल बिल और सैलरी भुगतान संबंधी 7 पत्र पत्नी मिताली को भेजे. लेकिन मिताली ने कोई जवाब नहीं दिया.

दरअसल, जैसेजैसे समय बीतता गया वैसेवैसे विमलेश का शरीर काला पड़ता गया. शरीर जब पूरी तरह से सूख गया तो मिताली को यकीन हो गया कि अब शरीर में कुछ नहीं बचा. मिताली ने सासससुर को समझाने का प्रयास किया तो वे उस से झगड़ने लगे. परेशान हो कर मिताली ने एक गुमनाम पत्र अहमदाबाद स्थित आयकर औफिस को भेजा, जिस में उस ने विमलेश की लाश घर पर होने की सनसनीखेज जानकारी दी. इस पत्र के मिलने के बाद आयकर विभाग में खलबली मच गई.

इस के बाद अहमदाबाद से जोनल एकाउंट्स की एक टीम विमलेश के कानपुर स्थित घर पहुंची. लेकिन परिजनों ने टीम को घर के अंदर घुसने नहीं दिया और न ही टीम को कोई जानकारी दी. अहमदाबाद से आई टीम वापस लौट गई और फिर कानपुर आयकर विभाग को पत्र लिख कर शक जताया कि आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत हो चुकी है. कानपुर सीएमओ के जरिए इस की Family Story पुष्टि कराएं और जांच रिपोर्ट अहमदाबाद औफिस भिजवाएं.

इस पत्र के बाद कानपुर के आयकर अधिकारियों ने डीएम विशाख जी को सारी जानकारी दी और सीएमओ से विमलेश की जांच कराने का अनुरोध किया. चूंकि मामला पेचीदा था, सो डीएम ने सीएमओ को जांच का आदेश दिया.

डीएम के आदेश पर सीएमओ ने कराई जांच

कानपुर के सीएमओ आलोक रंजन ने तब 3 डाक्टरों की एक टीम जांच हेतु बनाई. इस टीम में डा. ए.वी. गौतम, डा. आशीष तथा डा. अविनाश को शामिल किया गया. सीएमओ ने टीम को निर्देशित किया कि विमलेश कुमार के जीवित या मृत्यु होने की जांच हैलट अस्पताल में ही होगी. अत: उन्हें अस्पताल ही लाया जाए. 23 सितंबर, 2022 की सुबह 11 बजे डाक्टरों की टीम विमलेश कुमार गौतम के घर पहुंची. टीम की मुलाकात विमलेश की मां रामदुलारी व पिता रामऔतार गौतम से हुई. लेकिन उन्होंने जांच कराने से साफ मना कर दिया और कहा कि उन के बेटे विमलेश की धड़कनें चल रही हैं. वह जिंदा है. इसी के साथ उन्होंने मिताली को भी सूचित कर दिया तो वह भी बैंक से घर आ गई.

डाक्टरों की टीम को जब विमलेश के घरवालों ने रोका तो उन्होंने जानकारी सीएमओ आलोक रंजन को दी. आलोक रंजन ने तब पुलिस कमिश्नर वी.पी. जोगदंड को जानकारी दी. उस के बाद जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी, एडिशनल सीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव तथा प्रभारी निरीक्षक संजय शुक्ला विमलेश के आवास पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घर के मुखिया रामऔतार गौतम तथा उन की पत्नी रामदुलारी से बात की और बेटे विमलेश का स्वास्थ परीक्षण कराने को कहा.

विमलेश की पत्नी मिताली तो पति का स्वास्थ परीक्षण कराने को राजी थी, लेकिन बाकी सदस्य टालमटोल कर रहे थे. काफी कहासुनी व पुलिस से झड़प के बाद सभी राजी हो गए. पुलिस के साथ डाक्टरों की टीम ने उस कमरे में प्रवेश किया, जहां विमलेश तख्त पर लेटा था. विमलेश को देख कर पुलिस अफसर व डाक्टर हैरान रह गए. विमलेश का शरीर पूरी तरह से सूख चुका था और काला पड़ गया था. मांस हड्डियों में चिपक गया था. लेकिन डाक्टर व पुलिस अफसर इस बात से हैरान थे कि कमरे से किसी प्रकार की बदबू नहीं आ रही थी और न ही उस के शव से.

डाक्टरों ने कर दिया मृत घोषित

डाक्टरों की टीम ने जांच कर घर वालों को बताया कि विमलेश की मौत हो चुकी है. वह भ्रम न पालें कि वह जिंदा है. इस पर परिवार वाले डाक्टरों से भिड़ गए और जांच को गलत ठहराने लगे. उस के बाद विमलेश कुमार के शव को हैलट अस्पताल लाया गया और परिवार वालों के सामने ईसीजी किया गया. रिपोर्ट में सीधी लकीर दिख रही थी, फिर भी परिवार के लोग संदेह जताते रहे. परिवार के लोग विमलेश के शव का पोस्टमार्टम नहीं कराना चाहते थे. उन्होंने लिख कर भी दे दिया. पुलिस भी बला टालना चाहती थी. और वैसे भी कोई आपराधिक मामला नहीं बनता था सो पुलिस ने लिखित में ले कर घर वालों को शव सौंप दिया. इस के बाद घर वालों ने शव का अंतिम संस्कार भैरवघाट पर कर दिया.

17 माह तक घर में अफसर बेटे का शव रखने का मामला अखबारों में प्रकाशित हुआ तो लोग अवाक रह गए. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि मृत व्यक्ति का शव इतने दिनों तक रखा जा सकता है. टीवी चैनलों के माध्यम से यह मामला देशदुनिया में कई दिनों तक सुर्खियां बटोरता रहा. कानपुर पुलिस भी हैरान थी कि ऐसी क्या वजह थी कि शव 17 महीने तक घर में रखा रहा. कहीं परिवार किसी तांत्रिक के चक्कर में तो नहीं फंसा था. कहीं अफसर का वेतन तो परिवार वाले नहीं हड़पना चाहते थे. कहीं पूरा परिवार अंधविश्वास या मनोरोग का शिकार तो नहीं हो गया था.

इन्हीं सब बिंदुओं की जांच के लिए जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी ने जांच एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव को सौंपी. लाखन सिंह यादव ने इस प्रकरण की बड़ी बारीकी से जांच की और परिवार के मुख्य सदस्यों से अलगअलग बात की. जांच में यही तथ्य निकला कि मां के अंधविश्वास में 17 माह तक विमलेश का शव घर में रखा रहा.

खराब औक्सीमीटर से हुई थी गलतफहमी

मातापिता के इस अंधविश्वास को पूरे घर ने अपना विश्वास बना लिया और उसी तरह से विमलेश की सेवा करने लगे. श्री यादव ने घर के सामान की जांच की पर कोई लेप नहीं मिला. औक्सीजन सिलेंडर तथा तख्त की भी जांच की. जांच में यह बात सामने आई कि जो औक्सीमीटर विमलेश को लगाया गया था, वह खराब था. खराबी के कारण ही वह गलत रीडिंग बता रहा था. जांच से यह भी पता चला कि परिवार ने विमलेश का वेतन नहीं लिया था.

एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव ने मृतक विमलेश के मातापिता से पूछताछ की और कई सवाल दागे. इन सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी कोई कैमिकल विमलेश की बौडी पर नहीं लगाया. वह गंगाजल के पानी से उस का शरीर पोछते थे और कपड़ा बदलते थे. सफाई का विशेष ध्यान रखते थे. उन्होंने बताया कि वह तो अंतिम क्रिया की तैयारी कर रहे थे लेकिन एक रिश्तेदार महिला ने धड़कन महसूस की, तब पता चला कि बेटा जिंदा है. पुलिस अफसर लाखन सिंह यादव ने मृतक विमलेश कुमार की पत्नी मिताली से भी पूछताछ की तो उस का दर्द उभर पड़ा. उस ने हर सवाल का जवाब बड़ी तत्परता से दिया.

मृतक विमलेश के घर वालों की मनोदशा समझने के लिए एडीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव ने जीएसवीएम मैडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर गणेश शंकर से बातचीत की. उन्होंने कहा कि यह अपने आप में एक अनोखा मामला है. इस तरह के बहुत कम मामले देखे गए हैं. प्रथमदृष्टया यह मामला शेयर्ड डिलीवरी डिसऔर्डर नाम की बीमारी का प्रतीत होता है. यह एक ऐसी बीमारी है, जो बहुत कम लोगों को होती है. इस बीमारी में एक व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति से नियंत्रण खो देता है. वह अन्य लोगों को भी इस के प्रभाव में ले लेता है, जिस से वे लोग भी उसी बात पर भरोसा कर लेते हैं, जिस का सच्चाई से दूरदूर तक नाता नहीं होता है. उन का मानना है कि मृतक विमलेश का परिवार भी इसी बीमारी से ग्रसित था.

बहरहाल कथा संकलन तक एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) ने अपनी जांच रिपोर्ट जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी को सौंप दी थी. इस के अलावा सीएमओ आलोक रंजन ने भी विमलेश की मौत हो जाने की जांच रिपोर्ट अहमदाबाद के आयकर विभाग को भेज दी. मृतक विमलेश के परिवार वालों ने भी सच्चाई को स्वीकार कर लिया है. फिर भी स्वास्थ विभाग की टीम परिवार की निगरानी में जुटी है.

 

 

Wife murder story : सिर कटी लाश का रहस्य छिपाने के लिए काट डाला बीवी के होंठ का तिल 

Wife murder story  : मुंबई के पास वसई थाना क्षेत्र के भुईगांव समुद्र तट पर झाडि़यों के बीच एक लावारिस काले रंग का बड़ा सा ट्रौली बैग देख लोगों ने पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही वसई पुलिस मौकाएवारदात पर पहुंच गई. पुलिस को पहली ही नजर में मामला संदिग्ध नजर आया. क्योंकि एक सुनसान समुद्र किनारे पर किसी सूटकेस के पड़े होने का और कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा है.

फिलहाल पुलिस ने उस ट्रौली बैग को अपने कब्जे में ले लिया और उसे खोला. जैसी आशंका थी, वही हुआ. सूटकेस खोलते ही पुलिस की आंखें फटी रह गईं. बैग से एक सिर कटी लाश बरामद हुई थी. कदकाठी आदि देख कर लग रहा था कि उस युवती की उम्र 26-27 की होगी. लग रहा था कि हत्यारे ने शातिर तरीके से लाश ठिकाने लगाने की कोशिश की थी. सिर कटी लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर सिर कटी लाश यानी धड़ को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पुलिस ने उस के कटे सिर को ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी कटा सिर बरामद नहीं हो सका. यह बात 26 जुलाई, 2021 की थी.

चूंकि पहली ही नजर में यह बात साफ हो गई थी कि हत्यारा बेहद चालाक और शातिर है. वसई पुलिस ने बिना देर किए आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत हत्या का मामला अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया. मृतका की शिनाख्त के लिए पुलिस ने उस के कपड़ों, सूटकेस के विभिन्न एंगिल से फोटो खिंचवा कर उस के 200 बड़े बैनर और पोस्टर बनवा लिए. फिर वह पूरे महाराष्ट्र के साथ ही आसपास के राज्यों में लगवा दिए ताकि कहीं से भी अगर कोई इन तसवीरों को देख कर पुलिस से संपर्क करे तो आगे जांच की जा सके. जिस के बाद हत्यारों को पकड़ा जा सके.

इतना ही नहीं पुलिस ने पड़ोसी राज्य के बौर्डर के थानों में संपर्क किया, आसपास के थानों में फोन घुमाए. इस के अलावा क्राइम ऐंड क्रिमिनल ट्रैकिंग ऐंड मिसप्स पर भारत भर में हजारों गुमशुदा शिकायतों की जांच की गई, लेकिन वहां भी कोई सुराग नहीं मिला.

एक साल बाद भी नहीं मिला सुराग

पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने के साथ ही लाश का डीएनए सैंपल सुरक्षित रखवा दिया. इस के बाद पुलिस मामले में कोई सुराग मिलने का इंतजार करने लगी. पुलिस ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए लाश की शिनाख्त के लिए पूरी ताकत लगा दी.  जोनल डीसीपी संजय कुमार पाटिल ने 6 टीमों का गठन किया, जिस में इंसपेक्टर ऋषिकेश पावल, इंसपेक्टर (क्राइम) अब्दुल हक, एपीआई राम सुरवासे, सुनील पवार, सागर चव्हाण, एसआई विष्णु वघानी, कांस्टेबल सुनील मालवकर, विनोद पाटिल, मिलिंद घरत, शरद पाटिल, विनायक कचरे शामिल थे.

इस के साथ ही सीसीटीवी कैमरों की जांच भी की गई. लेकिन इतने प्रयास के बाद भी पुलिस को कोई क्लू नहीं मिला. दिन गया रात आई, रात गई दिन आया और धीरेधीरे दिन, महीने इस तरह पूरा एक साल गुजर गया. लेकिन इस बीच पुलिस को इस सिर कटी युवती की लाश के सिलसिले में कहीं से कोई सूचना नहीं मिली. कर्नाटक के बेलगाम में रहने वाले जावेद शेख पिछले एक साल से अपनी 25 वर्षीय बेटी सान्या उर्फ सानिया शेख से बात करने के लिए परेशान थे. जब भी वह फोन मिलाते, बेटी का मोबाइल स्विच्ड औफ मिलता था. जबकि उस के पति के नंबर पर फोन मिलाने पर रौंग नंबर कह कर फोन काट दिया जाता था. अपनी बेटी से बात करने के लिए पूरा परिवार तरस गया था. उस की कोई खोजखबर भी नहीं मिल रही थी.

जावेद इस बात से बहुत परेशान थे. अपनी बेटी से उन की आखिरी बार बात 8 जुलाई, 2021 को हुई थी. बेटी की ससुराल मुंबई के नालासोपारा में थी. उन दिनों कोविड के चलते यात्रा करना व कहीं आनाजाना मुश्किल हो रहा था.

बेटी की तलाश में पहुंचे मुंबई

आखिर काफी सोचविचार के बाद जावेद और उन के घर वालों ने मुंबई जा कर सानिया शेख के बारे में पता करने का निर्णय लिया. जावेद शेख अपने बेटों व कुछ परिचितों के साथ 27 अगस्त, 2022 को मुंबई के लिए रवाना हुए. मुंबई पहुंच कर जावेद नालासोपारा स्थित सानिया की ससुराल पहुंचे. वहां पहुंच कर उन्हें जो जानकारी मिली, उस से उन के पैरों तले की जमीन जैसे खिसक गई. यह जान कर वह हैरान रह गए कि जिस फ्लैट में सानिया के ससुराल वाले रहते थे, एक साल पहले बेच कर वे लोग यहां से चले गए थे. ससुराल वाले कहां चले गए, इस की वहां किसी को जानकारी नहीं थी.

अब सानिया के घर वालों को दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगी थी. क्योंकि ससुराल वालों के फ्लैट बेचने की जानकारी उन्हें मुंबई आने के बाद ही हुई थी. इस संबंध में उन्हें किसी ने कोई बात नहीं बताई थी. इधर सानिया से पिछले एक Wife murder story साल से बात नहीं हो पाना, फ्लैट को बेच देना, ये बातें किसी साजिश की ओर इशारा कर रही थीं. तब जावेद शेख 29 अगस्त, 2022 को बिना देर किए नालासोपारा के अचोले थाने पहुंच गए. उन्होंने पुलिस को बताया कि सानिया के मातापिता की मौत उस के बचपन में ही हो गई थी. भतीजी सानिया को उन्होंने अपनी बेटी मान कर पालापोसा था.

5 साल पहले 2017 में उस की शादी मुंबई के ठाणे जिले के नालासोपारा इलाके के रश्मि रीजेंसी अपार्टमेंट निवासी आसिफ शेख के साथ कर दी. आसिफ मुंबई के अंधेरी इलाके में एक लौजिस्टिक कंपनी में काम करता था. 2 बैडरूम वाले फ्लैट में आसिफ के मातापिता और उस का भाई अपने परिवार के साथ रहते थे. जावेद शेख ने बताया कि पिछले एक साल से वह सानिया से बात करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन दामाद आसिफ हर बार रौंग नंबर बता कर काट देता था. पुलिस ने जावेद से कहा कि वह अपने फोन में ससुराल वालों के अन्य नंबरों को तलाश कर उन पर फोन करें.

एक साल से नहीं हो पा रही थी बात

इत्तफाक से जावेद को फोन बुक में आसिफ की मां का मोबाइल नंबर मिल गया. उन्होंने उन्हें फोन लगाया. उस समय जावेद सानिया की सास से बात करने में कामयाब हो गए. बातचीत के दौरान आसिफ की मां ने धोखे में आ कर उन्हें ये बता दिया कि अब वे लोग नालासोपारा की प्रौपर्टी बेच कर मुंब्रा शिफ्ट हो गए हैं और मुंब्रा में मैरिज होम के पास रहते हैं. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने जावेद से मुंब्रा जा कर ससुराल वालों से मिलने की बात कही. इस पर जावेद परिचितों के साथ मुंब्रा स्थित आसिफ के घर जा पहुंचे. वहां उन्होंने सानिया और आसिफ की 4 साल की बेटी अमायरा को तो घर में देखा, लेकिन सानिया उन्हें कहीं नजर नहीं आई.

जब जावेद ने बेटी सानिया के बारे में उस के पति आसिफ से पूछा तो उस ने टका सा जवाब दे दिया. कहा, ‘‘शादी के बाद भी सानिया किसी से प्यार करती थी. उस के किसी से रिश्ते भी थे. एक साल पहले वह अपनी बेटी को छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई.

‘‘सानिया फरार होने से पहले एक पत्र लिख कर छोड़ गई थी. पत्र में लिखा था कि मैं अपनी मरजी से अपने प्रेमी के साथ जा रही हूं. मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना.’’

जावेद ने आसिफ से पूछा, ‘‘तब आप ने पुलिस में शिकायत तो की होगी?’’

इस पर आसिफ ने कहा कि बदनामी के डर से हम ने पुलिस में कोई शिकायत नहीं की और न आप लोगों को इस बारे में बताए. यहां तक कि बदनामी के डर से हमें अपना फ्लैट तक बेचने को मजबूर होना पड़ा. उस की यह बात जावेद और अन्य के गले नहीं उतरी. उन्होंने पुलिस को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. पुलिस ने इस संबंध में सानिया की गुमशुदगी दर्ज कर नए सिरे से मामले की जांच शुरू कर दी.

फोटो से की शिनाख्त

अचोले पुलिस ने साल भर पहले वसई भुईगांव बीच से मिली सिर कटी युवती की लाश की फोटो सानिया के पति आसिफ और अन्य ससुराल वालों को दिखाई तो उन्होंने लाश को पहचानने से ही इंकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने वह फोटो बेलगाम से आए सानिया के घर वालों को दिखाए तो उन्होंने देखते ही पहचान लिया कि ये उन की बेटी की लाश है. घर वालों ने Wife murder story लाश के साथ मिले कपड़ों वगैरह की भी पहचान कर ली. इस तरह पुलिस अब साल भर पहले सूटकेस में बंद मिली युवती की सिर कटी लाश की पहचान कर चुकी थी. लेकिन पुलिस को अब यह पता करना बाकी था कि आखिर सानिया की हत्या किस ने और क्यों की? क्या उस के प्रेमी ने सानिया के साथ यह हैवानियत की थी?

अब प्रश्न यह था कि क्या सानिया के प्रेमी को ससुराल वाले जानते थे? लिहाजा पुलिस ने मायके वालों की शिकायत पर सब से पहले सानिया के ससुराल वालों को ही पूछताछ के लिए बुला लिया. ससुराल वालों ने पुलिस के सामने भी सानिया के अपने प्रेमी के साथ घर से भाग जाने की वही कहानी दोहराते हुए उस के कत्ल पर हैरानी जताई. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे सानिया के प्रेमी के बारे में कुछ नहीं जानते. जबकि मायके वालों ने किसी से सानिया के अफेयर की बात को सिरे से खारिज कर दिया.

ससुराल वालों के हावभाव देख कर व उन की बातों से सानिया के मायके वालों के अलावा पुलिस को भी लगने लगा था कि हो ना हो सानिया के कत्ल में ससुराल वालों का ही हाथ है. लेकिन पुलिस के पास कोई सबूत न होने के चलते उस ने किसी को भी गिरफ्तार करने से पहले पूरे मामले को समझ लेना ठीक समझा. इस के लिए पुलिस ने मृतका के पति आसिफ शेख और उस की बेटी अमायरा के डीएनए सैंपल एकत्र कर लिए. जबकि सानिया की लाश का डीएनए सैंपल पहले ही लिया जा चुका था. पुलिस ने तीनों सैंपल को मैचिंग के लिए कलीना फोरैंसिक लैब भेजा. इसी लैब में सानिया का डीएनए सैंपल पिछले एक साल से सुरक्षित रखा था.

पति आसिफ, बेटी अमायरा तथा सानिया के डीएनए सैंपल का मिलान करने पर लैब ने अपनी जो रिपोर्ट दी, उस के अनुसार सिर कटी लाश किसी और की नहीं, आसिफ की पत्नी सानिया शेख की ही थी.

डीएनए से हुई लाश की शिनाख्त

इस पर बिना देर किए पुलिस ने 14 सितंबर, 2022 को सानिया की हत्या के आरोप में उस के 30 वर्षीय पति आसिफ शेख को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ की गई. आसिफ वही रटीरटाई कहानी फिर से दोहराने लगा. उस ने वह लैटर भी पुलिस को दिखाया, जो सानिया जाते समय छोड़ गई थी. मृतका के चाचा ने बताया कि जो लैटर की लिखावट है वह सानिया की नहीं है. शक यकीन में तब्दील हो गया. तब पुलिस ने अपने तरीके से आसिफ से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के सामने आसिफ टूट गया और उस ने सच उगल दिया. आसिफ ने अपने घर वालों के साथ सानिया की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

पता चला कि आसिफ की सानिया के साथ दूसरी शादी थी. आसिफ ने अफेयर के शक के चलते पहली बीवी को तलाक दे दिया था. पुलिस ने आसिफ के साथ ही उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ तथा बहनोई यूसुफ को भी गिरफ्तार कर लिया. सवाल यह था कि एक परिवार ने अपने ही परिवार की बहू की हत्या आखिर क्यों की?

उस सिर कटी लाश का खौफनाक राज खुला तो सब के होश उड़ गए. आरोपियों ने सानिया के कत्ल की वजह के बारे में जो बताया, उसे सुन कर मृतका के घर वालों के साथ ही पुलिस भी हैरान रह गई. सानिया शेख अपने पति और ससुराल वालों के निशाने पर उस वक्त आ गई, जब वे लोग सानिया की बेटी अमायरा को सानिया की निस्संतान ननद को सौंपना चाहते थे. सानिया अपने कलेजे के टुकड़े को किसी भी हाल में गोद देने को तैयार नहीं थी. उस ने साफ इंकार कर दिया. बेटी के लिए मां के दिल में उमड़ी ममता थी, जो उस की मौत का सबब बनी.

21 जुलाई, 2021 को बकरीद का दिन था. सुनियोजित तरीके से आरोपियों ने सानिया के हाथपैर बांध दिए. फिर उसे पानी से भरे एक बड़े टब में डुबो दिया. कुछ देर बाद ही पानी में डूबने से सानिया की मौत हो गई. इस के बाद उन के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी. हनीफ ने किया सानिया का सर धड़ से अलग इस के लिए शुरुआत में पति आसिफ ने उस का गला काटना शुरू किया. लेकिन कुछ मिनटों के बाद ही उस के हाथ थम गए, उस ने हार मान ली. तब आसिफ के पिता हनीफ ने आगे का काम किया और सानिया का सिर धड़ से अलग कर दिया.

उस की पहचान छिपाने के लिए कातिल हैवानियत की हदों से आगे निकल गए. उन्होंने उस के सिर के लंबे बालों को काटने के लिए इलैक्ट्रिक ट्रिमर का इस्तेमाल किया और सिर से बालों का पूरी तरह से सफाया कर दिया. इतना ही नहीं, हत्यारों ने सोचा कि अगर फिर भी सिर पुलिस को मिल गया तो कहीं वे पकड़े न जाएं, इसलिए मृतका के ऊपरी होंठ पर जो तिल था उसे चाकू से हटा दिया. ऐसी गिरी हुई हरकत ससुराल वालों ने सानिया की बच्ची को जबरन गोद लेने के लिए की.

अब हत्यारे पूरी तरह निश्चिंत थे कि यदि सिर पुलिस को मिल भी जाएगा तो वे 7 जन्मों तक इस की पहचान नहीं कर पाएंगे. आसिफ ने सिर को एक पौलीथिन की थैली में पैक कर दिया. इस के बाद वह सिर को कपड़े में छिपा कर अपने बड़े भाई यासीन के साथ बाइक पर बैठ कर साथ ले गया और सिर को मुंबई अहमदाबाद हाईवे पर खानीवाडे क्रीक में फेंक कर घर लौट आए.

लाश ठिकाने लगा कर मनाई बकरीद

अब उन्हें सानिया के धड़ को निपटाना था. इस के लिए उस के धड़ को चादर में लपेट कर एक बड़े काले रंग के ट्रौली बैग में भर दिया. आसिफ ने मुंब्रा में ही रहने वाले कैब चलाने वाले अपने बहनोई यूसुफ को फोन किया कि वह अपनी गाड़ी ले कर घर आ जाए ताकि शव को आसानी से ठिकाने लगाया जा सके. इस पर यूसुफ कार ले कर कुछ ही देर में घर आ गया. इस के बाद आसिफ ने कार में ट्रौली बैग रखा और यूसुफ के साथ जा कर उसे मुंबई के वसई के भुईगांव समुद्र तट पर फेंक आए.

आरोपियों ने खून से सने फर्श की सफाई करने के साथ ही अपनेअपने कपड़े बदले. सभी ने शाम को बकरीद का त्यौहार मनाया. क्योंकि विवाद की मुख्य वजह ही अब समाप्त हो गई थी. यूसुफ भी खुश था कि अब उसे सानिया की बेटी अमायरा मिल जाएगी. इसलिए उस ने लाश को ठिकाने लगाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. सानिया की हत्या करने के 3 महीने बाद आसिफ और उस के परिवार ने वह घर बेच दिया और परिवार मुंब्रा इलाके में रहने लगा.

वसई थाने के सीनियर इंसपेक्टर कल्याणराव ए. कर्पे ने बताया कि यह एक सुनियोजित हत्या थी, क्योंकि जिस दिन सानिया की हत्या की गई, उस दिन ससुराल वालों ने मृतका की बेटी अमायरा को बकरीद का त्यौहार मनाने के बहाने यूसुफ की पत्नी के साथ उस के घर भेज दिया था. जावेद शेख ने बताया, ‘‘अमायरा के जन्म के बाद सानिया के ससुराल वाले इस बात पर जोर देते थे कि सानिया अपनी ननद को अपनी बेटी अमायरा को गोद दे दे. वे हमेशा उस पर दबाव डालते थे और उस की बच्ची को छीनने की कोशिश करते थे.

‘‘कोविड के दौरान जब आसिफ दुबई में फंसा था तो ससुर हनीफ ने नालासोपारा में इस बात को ले कर सानिया के साथ मारपीट भी की थी. इस पर सानिया ने अचोल थाने में भी शिकायत की थी. लेकिन रिश्तेदारों की दखलअंदाजी के बाद कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था.’’

पुलिस को पति आसिफ ने सानिया के घर से जाते समय का जो लैटर दिया वह फरजी निकला. पुलिस ने पति आसिफ, उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ, बहनोई यूसुफ  को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

सानिया की हत्या के 6 दिन बाद ही उस की सिर कटी लाश पुलिस को मिल गई थी. लेकिन साल भर का वक्त सिर कटी लाश के रहस्य से परदा उठने में लग गया. पुलिस नहीं जानती थी कि सिर कटी लाश के कातिल घर में ही बैठे हुए हैं. परदाफाश भी एक शख्स (चाचा) के प्रयासों से संभव हो सका, जो अपनी बेटी को तलाशते हुए एक साल बाद मुंबई पहुंचे थे. वहीं वसई पुलिस की भी समझदारी भी काम आई, जो उस ने लाश के कपड़ों, बैग आदि के फोटो कराने के साथ ही डीएनए सैंपल सुरक्षित रखा.

इसी डीएनए सैंपल ने अनसुलझे हत्या का राज खोल दिया. सानिया के मायके वालों को 13 महीने के लंबे इंतजार के बाद सानिया के बारे में खबर तो जरूर मिली, लेकिन बेटी की मौत की. यह बात साफ है कि जुर्म करने वाला अपराधी किसी भी क्राइम को अंजाम देने से पहले खुद के बच निकलने का हर रास्ता अपनी समझ से पूरी तरह तैयार रखता है. होशियारी बरतने के बाद भी जानेअनजाने या हड़बड़ी में ही सही, वह ऐसा कोई न कोई सबूत छोड़ जाता है जिस पर पहुंच कर जांच करने वाली एजेंसी की नजर पड़ ही जाती है.

लिहाजा शातिर से शातिर अपराधी भी अपने द्वारा भूल से भी छोड़े गए अपने मूक गवाह की चाल में फंस कर कानून के शिकंजे में अपनी गरदन खुद ही फंसा बैठता है. सानिया के जीवन में दुख और गम के सिवाए कुछ नहीं था. बचपन में ही Wife murder story मांबाप के गुजरने के बाद वह अकेली रह गई थी. तब उस के चाचाचाची ने उसे अपनी बेटी की तरह पालपोस कर बड़ा किया और पढ़ाया. कहते हैं कि जब किसी की किस्मत खराब होती है तो उसे कहीं भी सुकून नहीं मिलता. साल 2017 में जब सानिया 20 साल की थी, चाचा ने उस की शादी आसिफ के साथ कर दी थी.

बेटी पैदा होने के बाद ससुरालीजन उस की जान के प्यासे बन गए. मां की ममता सानिया की जिंदगी पर भारी पड़ गई. चाचा को सपने में भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि बच्ची के लिए ससुरालीजन सानिया की जान ले लेंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Suicide : 77 पन्नों के सुसाइड नोट में लिखी मां को मारने की डिटेल

Suicide story in Hindi : रविवार 4 सितंबर, 2022 को रात 8-साढ़े 8 बजे का वक्त था. दिल्ली के रोहिणी स्थित बुद्ध विहार थाने के प्रभारी विपिन यादव अपने मातहतों के साथ दिन भर के कार्यों की समीक्षा में व्यस्त थे. तभी उन्हें सूचना मिली कि उन के इलाके के एक घर का दरवाजा लाख खटखटाए जाने के बावजूद नहीं खुल रहा है और भीतर से उठ रही सड़ांध से मोहल्ले के लोग परेशान हैं. थानाप्रभारी विपिन यादव इस सूचना की भयावहता को तुरंत भांप गए और तुरंत अपनी टीम ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

सूचना के अनुसार रोहिणी सेक्टर-24 के पौकेट 18 में वह जिस घर के बंद दरवाजे पर पहुंचे, वह श्रीनिवास पाल का 3 मंजिला मकान था. बिजली विभाग में कार्यरत रहे श्रीनिवास पाल को गुजरे तो 10 साल हो चुके थे. इस घर में उन की विधवा मिथिलेश पाल अपने इकलौते बेटे क्षितिज उर्फ सोनू के साथ रहती थीं. मगर मोहल्ले के लोगों ने कई दिनों से दोनों को देखा नहीं था. घर के चारों ओर अजीब सी बदबू फैली हुई थी. यह बदबू किसी अनहोनी को बयां कर रही थी. विपिन यादव ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई, मगर दरवाजा नहीं खुला. वे काफी देर तक घंटी बजाते रहे, मगर भीतर से कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली.

हार कर उन्होंने ऊपर की ओर देखा. मकान की पहली मंजिल कोई बहुत ज्यादा ऊंची नहीं थी. उन्होंने अपने सिपाही को घर की पहली मंजिल की बालकनी पर चढ़ने का आदेश दिया. सिपाही बालकनी के रास्ते तुरंत ऊपर चढ़ गया. उस ने पहली मंजिल से नीचे जाने वाली सीढि़यों का दरवाजा तोड़ा और नीचे उतर कर मेन गेट खोल दिया. थानाप्रभारी विपिन यादव अपने सहयोगी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह और अन्य सिपाहियों के साथ जैसे ही अंदर पहुंचे, मारे बदबू के उन का सिर घूम गया. पूरे घर में सड़ांध भरी हुई थी. सामने के दरवाजे पर एक कागज चिपका था, जिस पर लिखा था, ‘मेरी मां का शव इस दरवाजे के पीछे बाथरूम में है.’

थानाप्रभारी विपिन यादव तेजी से बाथरूम में घुसे. वहां का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. जमीन पर सड़ीगली हालत में घर की मालकिन मिथिलेश पाल का शव पड़ा था. उन के शरीर पर कीड़े रेंग रहे थे. गरदन पर तेज धार वाली किसी वस्तु से काटे जाने का निशान था और शरीर का सारा खून बह कर बाथरूम के फर्श पर जम चुका था. विपिन यादव के साथ आए सिपाही अन्य कमरों की पड़ताल करने लगे. दूसरे कमरे में उन्हें मिथिलेश पाल के 25 वर्षीय बेटे क्षितिज की लाश बैड पर पड़ी मिली. पुलिस यह देख कर हैरान रह गई कि बैड के दोनों तरफ पानी से भरी 2 बाल्टियां रखी थीं, जिन से क्षितिज ने अपने पैरों के अंगूठे बांधे हुए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और पूरा पलंग उस के खून से सना हुआ था.

क्षितिज के सिरहाने की तरफ 2 मोबाइल फोन पड़े थे और बिजली के स्विच से कनेक्ट किया हुआ एक इलैक्ट्रिक कटर खून से सना हुआ नीचे जमीन पर पड़ा था. वहीं पास में एक बड़े साइज (250 पेज) का रजिस्टर भी मिला, जिस के शुरुआती पेजों पर कार्बन पेंसिल से अध्यात्म की बातें लिखी थीं. गंधर्व विवाह और देव विवाह जैसी बातें भी उस में लिखी हुई थीं और उस के बाद के 77 पेजों में एक लंबाचौड़ा सुसाइड नोट था. यह सुसाइड नोट क्षितिज पाल द्वारा लिखा गया था. थानाप्रभारी विपिन यादव को यह देख कर हैरत हुई कि ये पूरा रजिस्टर किसी पेन के बजाय कार्बन पेंसिल से लिखा गया था, जो आमतौर पर कम ही इस्तेमाल होती हैं. हालांकि 77 पेज के सुसाइड नोट के आखिर में क्षितिज ने स्याही से अपने दोनों हाथ के अंगूठे के निशान लगाए थे.

थानाप्रभारी विपिन यादव को यह समझते देर नहीं लगी कि पूरा मामला हत्या और Suicide story in Hindi आत्महत्या का है. क्षितिज ने पहले अपनी 60 वर्षीय मां मिथिलेश को मारा और फिर खुद आत्महत्या कर ली. लेकिन इलैक्ट्रिक कटर से हत्या और आत्महत्या का जो तरीका उस ने अपनाया, वह बेहद खौफनाक था. विपिन यादव ने तुरंत फोरैंसिक जांच के लिए क्राइम टीम और एफएसएल टीम को बुलाया. आसपास के लोगों से पूछताछ में पता चला कि इस घर में मिथिलेश अपने इकलौते बेटे क्षितिज के साथ रहती थीं. अन्य कोई रिश्तेदार नहीं था, बस झांसी में मिथिलेश की छोटी बहन और जीजा थे, जो कभीकभार यहां आतेजाते थे.

लोगों ने यह भी बताया कि क्षितिज की मां बड़ी धार्मिक थीं और हर हफ्ते सत्संग भी जाया करती थीं. वहीं क्षितिज अकसर घर पर ही रहता था. मोहल्ले में उस का कोई दोस्तयार नहीं था और वह बहुत कम लोगों से मिलता था. लोग यह जान कर आश्चर्यचकित थे कि क्षितिज ने अपनी मां की हत्या कर खुद आत्महत्या कर ली. आखिर क्षितिज ने ऐसा क्यों किया? अपनी उस मां को क्यों मार दिया, जिस से वह बेहद प्यार करता था? हत्या में इलैक्ट्रिक कटर का इस्तेमाल भी अचरज में डालने वाला था. लोगों को यह सवाल भी परेशान कर रहा था कि खुद की गरदन इलैक्ट्रिक कटर से काटने से पहले क्षितिज ने पानी से भरी बाल्टियों से अपने पैर के अंगूठे क्यों बांधे?

लेकिन इन सभी सवालों के जवाब सामने आए क्षितिज के 77 पेज के सुसाइड नोट से. उस रजिस्टर में क्षितिज ने न सिर्फ पूरी घटना के एकएक पल का ब्यौरा लिखा था, बल्कि अपनी पूरी जिंदगी की दास्तान उस में दर्ज कर दी थी. पुलिस के मुताबिक क्षितिज 2 साल से खुद को मारने की उधेड़बुन में लगा था. हत्या और आत्महत्या के लिए क्या उपाय अपनाए जाएं, ये सब वह लंबे समय से गूगल पर सर्च कर रहा था. यह वारदात भागतीदौड़ती दिल्ली के एक घर की चारदीवारी में घिरे अकेले पुरुष के अवसाद की कहानी है. क्षितिज, जिसे अपने नाम की तरह बचपन से ही क्षितिज को छूने की चाह थी, मगर उस के अकेलेपन ने उसे ऐसी मानसिक स्थिति में धकेल दिया कि वह जिंदगी की जेल से आजाद होने के लिए बेचैन हो उठा.

उसे अपने चारों ओर उदासी और नकारात्मकता ही दिखाई देने लगी. वह खुद को अकेला और हताश महसूस करने लगा और आखिर में जो कदम उठाया, उसे देख कर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए. रजिस्टर के 77 पेज में जो लिखा गया, वह हत्या और आत्महत्या की खतरनाक कहानी है. यह सुसाइड नोट दिल दहला देने वाला है. यह बताता है कि युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन यानी अवसाद और हताशा के लक्षणों को नजरंदाज करने का अंजाम कितना खतरनाक हो सकता है. क्षितिज की मां मिथिलेश उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की रहने वाली थीं. उन की शादी दिल्ली के श्रीनिवास पाल से हुई, जो बिजली विभाग में कार्यरत थे. शादी के बाद मिथिलेश अपने पति के पास दिल्ली आ गईं. उन की एक बहन भी हैं, जो झांसी में अपने पति और बच्चों के साथ रहती हैं.

शादी के 14 साल बाद जब मिथिलेश की गोद भरी तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बेटे क्षितिज को पा कर पतिपत्नी बहुत खुश थे. वे प्यार से उसे सोनू कह कर पुकारते थे. श्रीनिवास ने बेटे की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. बहुत प्यार दिया. अच्छे नामचीन स्कूल में पढ़ाया और उस से बहुत सारी उम्मीदें बांधी. मगर अफसोस कि वे अपनी उम्मीदों को पूरा होते नहीं देख सके. 10 साल पहले बीमारी के चलते उन की मौत हो गई. पति का यूं अचानक चले जाना मिथिलेश पर गाज बन कर टूटा. वह बुरी तरह टूट गईं. हताशा और अकेलेपन ने उन्हें घेरा तो वह सत्संग और मंदिरों में सहारा तलाशने लगीं. वहीं श्रीनिवास का लाडला बेटा क्षितिज उर्फ सोनू पिता की अचानक मौत से सहम सा गया. 15 साल की नाजुक उम्र में जब उसे पिता के प्यार और मार्गदर्शन की सब से ज्यादा जरूरत थी, वह उसे छोड़ कर चले गए.

इस घटना ने क्षितिज को डरा दिया. वह सब से कटाकटा सा रहने लगा. स्कूल में भी वह अकेला और अन्य बच्चों से अलग रहता. उस का कोई दोस्त नहीं था. इस अकेलेपन ने उसे मानसिक रूप से तोड़ दिया, उसे दब्बू और डरपोक बना दिया. वह टीचर के सवालों से डरने लगा. वह दोस्तों के हंसीमजाक से डरने लगा. यहां तक कि अपनी स्कूल बस में चढ़नेउतरने में भी उस के पांव कांपने लगे. वह न तो खेलों में हिस्सा लेता और न ही किसी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में. बस अपने आप में ही गुमसुम रहता. धीरेधीरे सब उस से कटने लगे. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. इस बात का जिक्र क्षितिज ने अपने सुसाइड नोट में किया है.

दरअसल, क्षितिज साइकोलौजिकल डिसऔर्डर का शिकार हो चुका था. अपने हालात की वजह से डिप्रेशन में जा रहा था, मगर उस के इन लक्षणों को न उस के स्कूल के टीचर भांप सके और न घर में उस की मां. उस ने लिखा, ‘मेरी मां मेरी उम्मीद थीं. पापा के जाने के बाद मां और मैं अकेले पड़ गए. मेरे पापा हम सब को ऐसे समय में छोड़ कर चले गए जब हमें सब से ज्यादा जरूरत थी. 10वीं कक्षा में था मैं उस समय, जब पापा की मौत हो गई.

‘बाद में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसओएल में एडमिशन लिया. लेकिन किस्मत धोखा दे गई. 2 बार फिसल गया. डिप्रेशन रहता है. एक रात, 2 रात, 3 रात, 5 रात तक जगा रहता हूं. कई बार बेहोश सा पड़ा रहता हूं. बीमारियां मेरे अंदर भरती जा रही हैं. मां कई बार टोकती थीं. मां भी हाई ब्लडप्रेशर से परेशान रहती थीं.’

क्षितिज पढ़ाई में पिछड़ने लगा. लगातार फेल होता रहा और अंत में उस ने पढ़ाई छोड़ दी. वह ज्यादा समय घर पर अपने कमरे में बंद रहने लगा. उस की मां उस से बारबार कोई काम करने या पढ़ाई करने को कहतीं, लेकिन अवसाद का शिकार क्षितिज मां की कोई बात पूरी नहीं कर पा रहा था. Suicide story in Hindi सुसाइड नोट में उस ने लिखा है, ‘मेरी अच्छी परवरिश के लिए मां ने सिलाई भी की. मां कहती थी कुछ ट्यूशन कर लो. छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दो. सुन कर मैं डर गया था.’

क्षितिज अपने पापा को अपना हीरो समझता था. उन के जाने का घाव उस के दिल पर गहरा हुआ था. मां का अकेलापन और पिता के लिए उन का रोना उस से देखा नहीं जाता था. वह मां से भी बहुत प्यार करता था. पिता की पेंशन से दोनों का गुजारा किसी तरह चल रहा था, लेकिन उस की मां चिंताओं के कारण बीमार सी रहने लगी थीं. उन की आंखों से कम दिखने लगा था. कभीकभी वह क्षितिज पर झुंझलाने लगतीं तो कभी बहुत प्यार लुटाती थीं. मगर एकदूसरे के दिलदिमाग में क्या चल रहा था, इस से दोनों ही अनभिज्ञ थे. दोनों अपनेअपने दुख के साथ अकेले थे.

क्षितिज ने तय कर लिया कि अब जीना नहीं है. वह मां को इस दुनिया में अकेला नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए उस ने उन की भी हत्या करने का प्रण कर लिया. पहली सितंबर को उस ने बाइक बांधने वाली डोरी निकाली और पलंग पर बैठी मां के पीछे से आ कर उन के गले में डोरी लपेट कर कस दी. मिथिलेश छटपटाईं मगर अपना गला नहीं छुड़ा पाईं. कुछ ही देर में वह बेसुध हो कर एक ओर लुढ़क गईं. क्षितिज ने तुरंत मां का सिर अपनी गोद में रख कर उन का मुंह दबा लिया. चंद सेकेंड में मिथिलेश के प्राणपखेरू उड़ गए.

मां को मारने के बाद क्षितिज ने भागने या बचने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि वह आत्महत्या के उपाय सोचने लगा. मां के सिवा उस का कोई भी नहीं था. दरअसल, वह खुद मरना चाहता था मगर मां को दुनिया में अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था. अपने 77 पेज के सुसाइड नोट में क्षितिज ने लिखा, ‘2 साल से मरना चाह रहा था. मैं मरने से पहले अपनी मां को उस दुख से आजाद करना चाहता हूं. हर इतवार को मां सत्संग में जाती थीं. इस बार भी (पिछले हफ्ते) मां जब आईं, थोड़ी हंसी भी हुई थी. मां की आंखों में जाला आ गया है, लगता है मोतियाबिंद है. अब तो मैं मर जाना चाहता हूं. गुरुवार है आज. बाइक की डोरी से मां का गला इसलिए घोटा ताकि मां को मरने से पीड़ा न हो.’

मां का गला घोटने के बाद क्षितिज ने रजिस्टर उठा लिया और लिखा, ‘जैसे ही मैं ने मां के गले में डोरी कसी, मां 4 से 5 सेकेंड में निढाल हो कर गिर गईं. मुझे पता था दिमाग में औक्सीजन नहीं पहुंचने पर मौत हो जाती है. मां के गिरते ही मैं ने उन का सिर गोद में रख लिया. 8-10 मिनट तक गला दबा कर रखा. मैं मुंह दबा कर रोए जा रहा था. गुरुवार दिन भर और पूरी रात रोता रहा हूं. मुझे पापा की बहुत याद आ रही है. मरने के बाद भी मां की आंखें खुली थीं. मैं ने बंद करने की कोशिश की, मगर हो न सकीं.

‘शुक्रवार है आज. मां के शव को देखा नहीं जा रहा. मैं ने अपनी मां के चेहरे को गंगाजल से नहलाया है. उन के पास बैठ कर भगवत गीता का 18वां अध्याय पढ़ा. पूरी भगवत गीता नहीं पढ़ सका. मैं ने फिर गीता मां के सीने पर रख दी.’

मां की हत्या करने के बाद क्षितिज खुद को मारने के रास्ते ढूंढने लगा. वह मां के शव को कमरे में बंद कर के बाजार गया और एक इलैक्ट्रिक कटर खरीद कर लाया. कई दुकानें तलाशने के बाद आखिरकार एक दुकान पर उसे कटर और ब्लेड मिल गया. घर आ कर उस ने सब से पहले अपनी मृत मां के गले पर कटर चलाया. ऐसा शायद उस ने ट्रायल के तौर पर किया था. ताकि जब खुद की गरदन उड़ानी हो तो कटर ठीक से चला सके शायद इसलिए.

उस ने लिखा, ‘पहले मैं ने पिस्टल खरीदने की कोशिश की. नहीं मिली. फिर इलैक्ट्रिक कटर का विचार आया है. इलैक्ट्रिक कटर ले कर रात को घर लौटा था. मां के शव के पास खूब रोया हूं.’

उस ने रजिस्टर में आगे लिखा, ‘मां की मौत को आज 71 घंटे हो चुके हैं. बदबू आने लगी है. मां की गरदन कटर से काट दी है. शरीर से अलग नहीं की है.

‘शुक्रवार शाम से शव में बदबू आने लगी थी. मां के शव को बाथरूम में घसीट कर ले गया. दरवाजा बंद कर दिया है ताकि बदबू न आए. मैं बस सुसाइड नोट पूरा करना चाहता हूं. बदबू घर में भर चुकी है. अब बारी है मेरे सुसाइड करने की.’

मरने से पहले क्षितिज अपने जीवन के एकएक पल को जैसे उस रजिस्टर में कैद कर देना चाहता था. कभी मुंह पर कपड़ा रख कर तो कभी अगरबत्ती सुलगा कर वह किसी तरह बदबू से बचता हुआ लगातार लिखे ही जा रहा था.

‘आज शनिवार है. 3 दिन से खाली पेट हूं. कुछ खाया ही नहीं. मुझे याद आया रसोई में मैं ने गर्म पानी पीने को रखा है. कमरे में बदबू नहीं रुक रही. इस से मेरी भी तबीयत बिगड़ने लगी है. मैं ने पेंसिल के बुरादे को जलाया है. धूपबत्ती जलाई है. घर में एक जायफल रखा था, उसे भी जलाया है. सारा डियो भी छिड़क दिया. फिर भी बदबू नहीं रुक रही है. लेकिन मैं मास्क लगा कर सुसाइड नोट पूरा करूंगा.’

इस बीच क्षितिज के घर पर कई लोग आए. उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो वापस चले गए. क्षितिज की मां मिथिलेश हर इतवार पड़ोस में रहने वाली एक सहेली के साथ सत्संग जाती थी. मगर उस दिन जब वह नहीं आई तो उन की सहेली ने कई फोन मिथिलेश के फोन पर किए. फोन नहीं उठा तो उन्होंने क्षितिज का फोन मिलाया. 2-3 घंटियां बजने के बाद आखिरकार क्षितिज ने फोन उठा लिया. उधर से आवाज आई, ‘आज मिथिलेश सत्संग में नहीं आई. फोन भी नहीं उठा रही है. मेरी जरा उस से बात करा दो.’

क्षितिज पहले तो घबरा गया, लेकिन फिर कड़ाई से बोला, ‘मां मर चुकी हैं. 4 दिन पहले मैं ने उन्हें मार दिया. अब मैं भी मरने की तैयारी कर रहा हूं.’

मिथिलेश की सहेली ने तुरंत फोन काट दिया. शायद वह क्षितिज की बात सुन कर डर गई. उस ने यह बात किसी को नहीं बताई. अगर वह उसी वक्त शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा कर लेती और अपनी सहेली का घर खुलवा लेती या पुलिस को फोन कर देती तो शायद क्षितिज पुलिस को जीवित मिल जाता. लेकिन दूसरे के पचड़े में कौन पड़े, यह सोच उस महिला पर हावी हो गई और वह चुप मार गई. फिर उस ने आगे लिखा, ‘आज रविवार है. इस समय दोपहर के 2 बज रहे हैं. 3 दिन से प्रौपर्टी डीलर फ्लोर किराए पर दिखाने के लिए 3 बार किराएदारों के साथ आ चुका है. मैं ने दरवाजा नहीं खोला. आज हर हालत में नोट पूरा कर लूंगा. यह सब देखना बहुत डरावना लगता है.

‘पापा के जाने के बाद मां के जीजा ने हमारी पिता की तरह देखभाल की. इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरी बाइक उन के नाम होगी. मेरी इच्छा है कि मां का अंतिम संस्कार मेरी मौसी करें.’

सुसाइड नोट पूरा करने के बाद क्षितिज ने बाथरूम में जा कर मां के शव पर नजर डाली. बदबू के मारे वह उस के पास नहीं बैठा. अब वह जल्द से जल्द खुद को खत्म कर लेना चाहता था. उस ने बाथरूम में रखी दोनों बाल्टियों में पानी भरा और उन्हें अपने बैडरूम में ले आया. उस ने इलैक्ट्रिक कटर को स्विच बोर्ड में लगाया. चला कर देखा और पलंग पर रख दिया. इस के बाद उस ने पानी भरी बाल्टियों से अपने दोनों पैरों के अंगूठे बांध लिए ताकि जब वह इलैक्ट्रिक कटर अपने गले पर चलाए और दर्द से छटपटाए तो बैड से नीचे न गिरे.

शायद उसे इस बात का अंदेशा था कि कहीं ऐसा न हो कि छटपटाहट के कारण गला पूरा न कट पाए या कटर उस के हाथों से छूट जाए. ऐसे में जो पीड़ा होगी, वह असहनीय होगी. इसलिए वह पूरी तैयारी कर के बिस्तर पर लेटा. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह भी कहते हैं कि पैरों को बाल्टी से बांधने के पीछे क्षितिज का मकसद रहा होगा कि मौत के समय छटपटाहट हो तो पैर बंधे रहें. खुद को मारने के लिए इतनी हिम्मत जुटाना यह साबित करता है कि अब क्षितिज किसी भी कीमत पर इस दुनिया में नहीं रहना चाहता था. वह अपनी मां से बहुत प्रेम करता था और उन के बगैर अपने जीवन की कल्पना वह नहीं कर सका था.

बुद्ध विहार थाने में इस घटना की एफआईआर हत्या की धाराओं में दर्ज हुई है. हालांकि मरने वाला और मारने वाला दोनों ही नहीं हैं, मगर पुलिस को तो अपनी जांच करनी ही है. दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के बाद मिथिलेश की बहन और जीजा के सुपुर्द कर दिया गया, जिन्होंने उन का अंतिम संस्कार किया. मिथिलेश के घर को पुलिस ने फिलहाल सील कर दिया है. डिप्रेशन एक खतरनाक बीमारी है. इस का शिकार व्यक्ति आम व्यक्ति की तरह ही नजर आता है. इस से ग्रसित व्यक्ति को कई बार स्वयं को भी इस का पता नहीं चल पाता. बाहर के लोग तो समझ ही नहीं पाते कि उस की मानसिक हालत कैसी है और वह कब क्या कदम उठा ले, लेकिन साथ रहने वाले उस के बदलते व्यवहार को पकड़ सकते हैं और बातचीत के जरिए उस की मानसिक स्थिति का पता लगा सकते हैं.

यदि समय रहते इस का इलाज हो जाए तो इस के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है तथा संपूर्ण मुक्ति भी पाई जा सकती है. इस के 2 मुख्य परिणाम भयावह हैं— एक तो आत्महत्या जो हम आए दिन अखबारों और मीडिया के माध्यम से देखसुन रहे हैं, दूसरा है मानसिक संतुलन खो देना यानी पागलपन. जब दिमाग दबाव को झेल नहीं पाता तो यही स्थिति आती है. अन्य शारीरिक जटिलताएं और बीमारियां भी शरीर में इस अवस्था के कारण पैदा हो सकती हैं जो अनगिनत हैं. आज के समय में इस के मुख्य कारणों में से एक है करीबी लोगों से निकटता का अभाव.

लोग एक घर में रहते हुए भी एकदूसरे से कोसों दूर हो गए हैं. जरूरत से ज्यादा मोबाइल या आभासी दुनिया में डूबे रहना भी इस का कारण और लक्षण दोनों हो सकते हैं. आज के समय में भागमभाग ज्यादा है, भावनात्मक जुड़ाव मंद पड़ गए हैं, वे चाहे मातापिता के बच्चों से हों या बच्चों के उन से या अन्य परिवारजनों, रिश्तेदारों के परस्पर हों. मित्रता भी स्वार्थपरायण हो रही है. आसपड़ोस से बातचीत निजता में खलल की परिभाषा में हो गया है. पुस्तकें पढ़ने और सृजनात्मक कार्यों में आम लोगों की रुचि कम हुई है. कला और संस्कृति से बहुत कम लोग जुड़े हैं. सेवा, देखभाल, आत्मीयता सब घरपरिवारों से गायब सा दिख रहा है. ईर्ष्या और द्वेष संतोष और प्रसन्नता पर भारी पड़ रहे हैं. अकेलापन बढ़ रहा है. काफी लोग परिवार की खिचखिच की वजह से अलग व अकेले भी रहने लगे हैं.

व्यावसायिक कारणों से भी बहुत लोग अकेले रहते हैं तथा व्यावसायिक जीवन के दबाव से भी परेशान रहते हैं. विद्यार्थी और युवा वर्ग अनिश्चितताओं के चलते घर या सामाजिक दबाव के कारण भी अवसादग्रस्त हो रहे हैं. विचलित करने वाली खबरें, महामारी में डर का माहौल आदि आग में घी का काम करता है. दिखावे का जीवन और अनावश्यक स्पर्धा का माहौल तन और मन दोनों को भटकाए रखता है.

यह सच है कि ऊपर से सामान्य सी लगने वाली अवसाद की इस समस्या ने बहुत नुकसान किया है, परंतु इस का मतलब यह भी नहीं कि यह लाइलाज है. इस में घर से ले कर समाज के लिए यह एक जिम्मेदारी का काम हो जाए तो क्षितिज और मिथिलेश जैसे अनेक जीवन बचाए जा सकते हैं.

Rajasthan stories : राजा के महल में जिंदा लाश बनकर रह गई थी मौली

Rajasthan stories : मनचाहा शिकार तो मिल गया, लेकिन शिकारी थक कर चूर हो चुका था. एक तो थकान, दूसरे ढलती सांझ और तीसरे 10 मील  का सफर. उस में भी 3 मील पहाड़ी चढ़ाई, फिर उतनी ही ढलान. समर सिंह ने पहाड़ी के पीछे डूबते सूरज पर निगाह डाल कर घोड़े की गरदन पर हाथ फेरा. फिर घोड़े की लगाम थामे खड़े सरदार जुझार सिंह की ओर देखा. उन की निगाह डूबते सूरज पर जमी थी.

समर सिंह उन्हें टोकते हुए थके से स्वर में बोले, ‘‘अंगअंग दुख रहा है, सरदार. ऊपर से सूरज भी पीठ दिखा गया. धुंधलका घिरने वाला है. अंधेरे में कैसे पार करेंगे इस पहाड़ी को?’’

जुझार सिंह थके योद्धा की तरह सामने सीना ताने खड़ी पहाड़ी पर नजर डालते हुए बोले, ‘‘थक तो हम सभी गए हैं हुकुम. सफर जारी रखा तो और भी बुरा हाल हो जाएगा. अंधेरे में रास्ता भटक गए तो अलग मुसीबत. मेरे खयाल से तो…’’ जुझार सिंह सरदार की बात का आशय समझते हुए बोले, ‘‘लेकिन इस बियाबान जंगल में कैसे रात कटेगी? हम लोगों के पास तो कोई साधन भी नहीं है. ऊपर से जंगली जानवरों का अलग भय.’’

पीछे खड़े सैनिक समर सिंह और जुझार सिंह की बातें सुन रहे थे. उन दोनों को चिंतित देख एक सैनिक अपने घोड़े से उतर कर सरदार के पास खड़ा हो गया. सरदार समझ गए, सैनिक कुछ कहना चाहता है. उन्होंने पूछा तो सैनिक उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘सरदार, अगर रात इधर ही गुजारनी है तो सारा बंदोबस्त हो सकता है. आप हुक्म करें.’’

‘‘क्या बंदोबस्त हो सकता है, मोहकम सिंह?’’ जुझार सिंह ने सवाल किया तो सैनिक दाईं ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘ये छोटी सी पहाड़ी है. इस के पार मेरा गांव है. बड़ी खूबसूरत और रमणीक जगह है उस पार. इस पहाड़ी को पार करने के लिए हमें सिर्फ एक 2 मील चलना पड़ेगा. 1 मील की चढ़ाई और 1 मील उस ओर की ढलान. रास्ता बिलकुल साफ है. अंधेरा घिरने से पहले हम गांव पहुंच जाएंगे. मेरे गांव में हुकुम को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

जुझार सिंह ने प्रश्नसूचक नजरों से समर सिंह की ओर देखा. वह शांत भाव से घोड़े की पीठ पर बैठे थे. उन्हें चुप देख सरदार ने कहा, ‘‘सैनिक की सलाह बुरी नहीं है हुकुम. रात भी चैन से बीत जाएगी और इस बहाने आप अपनी प्रजा से भी मिल लेंगे. जो लोग आप के दर्शन को तरसते हैं, आप को सामने देख पलकें बिछा देंगे.’’

और ऐसा ही हुआ भी. मोहकम सिंह का प्रस्ताव स्वीकार कर के जब समर सिंह अपने साथियों के साथ उस के गांव पहुंचे तो गांव वालों ने उन के आगे सचमुच पलकें बिछा दीं. छोटा सा पहाड़ी गांव था राखावास. साधन विहीन. फिर भी वहां के लोगों ने अपने राजा के लिए ऐसे ऐसे इंतजाम किए, जिन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. हुकुम के आने से मोहकम सिंह को तो जैसे पर लग गए थे. उस ने गांव के युवकों को एकत्र कर के सूखी मुलायम घास का आरामदेह आसन लगवाया. उस पर सफेद चादर बिछवाई. सरदार के लिए अलग आसन का प्रबंध किया और सैनिकों के लिए अलग. चांदनी रात थी, फिर भी लकडि़यां जला कर रोशनी की गई.

आननफानन सारा इंतजाम कराने के बाद गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को शिकार भूनने और बनाने की जिम्मेदारी सौंप कर मोहकम सिंह घोड़ा दौड़ाता हुआ 3 मील दूर समालखा गांव गया और वहां से वीरन देवल से 4 बोतल संतूरी ले आया. 36 साल बाद पाकिस्तान से घर लौटा पति की बेहतरीन शराब जो केवल राजामहाराजाओं के लिए बनाई जाती थी. अदना सा एक (Rajasthan stories) सिपाही कितने काम का साबित हो सकता है, यह बात समर सिंह को तब पता चली, जब अपने हाथों मारे गए शिकार के जायकेदार गोश्त और संतूरी का लुत्फ लेते हुए उन की नजर घुंघरू छनका कर मस्त अदाओं के साथ नाचती मौली पर पड़ी.

ऐसा रूपलावण्य, ऐसा अछूता सौंदर्य, ऐसा मदमाता यौवन और अंगअंग में ऐसी लोच समर सिंह ने पहली बार देखा था. उन के महल तक में नहीं थी ऐसी अनिंद्य सुंदरी. ऊपर से फिजाओं में रंग बिखेरती मौली का सधा हुआ स्वर और एक ही लय में बजते घुंघरुओं की रुनझुन. रहीसही कसर मानू की ढोलक की थाप पूरी कर रही थी. घुंघरुओं की रुनझुन और ढोलक की थाप को सुन लगता था, जैसे दोनों एकदूसरे के पूरक हों. पूरक थे भी. मौली का सधा स्वर, घुंघरुओं की रुनझुन और मानू की ढोलक की थाप ही नहीं, बल्कि वे दोनों भी. यह अलग बात थी कि इस बात को गांव वाले जानते थे, पर समर सिंह और उस के साथी नहीं.

मौली और मानू खूब खुश थे. उन्हें यह सोच कर खुशी हो रही थी कि अपने राजा का मनोरंजन कर रहे हैं. इस के लिए उन दोनों ने अपनी ओर से भरपूर कोशिश भी की. लेकिन उन की सोच, उन के उत्साह, उन के समर्पण भाव और कला पर पहली बिजली तब गिरी, जब शराब के नशे में झूमते राजा समर सिंह ने मौली को पास बुला कर उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आज हम ने अपने जीवन में सब से बड़ा शिकार किया है. हमारी शिकार यात्रा सफल रही. ये रात कभी नहीं भूलेगी.’’

इस तरह मौली का हाथ कभी किसी ने नहीं पकड़ा था. मानू ने भी नहीं. मानू के हाथों का स्पर्श उसे अच्छा लगता था. लेकिन उस ने उस के पैरों के अलावा कभी किसी अंग को नहीं छुआ था. मौली के पैरों में भी उस के हाथों का स्पर्श तब होता था, जब वह अपने हाथों से उस के पैरों में घुंघरू बांधता था. मौली को राजा द्वारा यूं हाथ पकड़ना अच्छा नहीं लगा. उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो समर सिंह उस की कलाई पर दबाव बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आज के बाद तुम सिर्फ हमारे लिए नाचोगी, हमारे महल में. हम मालामाल कर देंगे तुम्हें. तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को ही नहीं, इस गांव को भी.’’

घुंघरुओं की रुनझुन भी थम चुकी थी और ढोलक की थाप भी. सब लोग विस्मय से राजा की ओर देख रहे थे. कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. मानू भी अवाक बैठा था. मौली राजा से हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘मौली रास्ते की धूल है हुकुम…और धूल उन्हीं रास्तों पर अच्छी लगती है, जो उस की गगनचुंबी उड़ानों के बाद भी उसे अपने सीने में समेट लेते हैं. इस खयाल को मन से निकाल दीजिए हुकुम. मैं इस काबिल नहीं हूं.’’

समर सिंह Raja Ki Kahani ने लोकलाज की वजह से मौली का हाथ तो छोड़ दिया, लेकिन उन्हें मौली की यह बात अच्छी नहीं लगी. रात बड़े ऐशोआराम से गुजरी. मोहकम सिंह और गांव वालों ने हुकुम तथा उन के साथियों की खातिरतवज्जो में कोई कसर न उठा रखी थी. सुबह जब सूरज की किरणों ने पहाड़ से उतर कर राखावास की मिट्टी को छुआ तो वहां का कणकण निखर गया. राजा समर सिंह ने उस गांव का प्राकृतिक सौंदर्य देखा तो लगा जैसे स्वर्ग के मुहाने पर बैठे हों. मौली की तरह ही खूबसूरत था उस का गांव. चारों ओर खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा, नीलमणि से जलवाली आधा मील लंबी झील के किनारे स्थित. पहाड़ों से उतर कर आने वाले बरसाती पानी का करिश्मा थी वह झील.

रवाना होने से पहले समर सिंह ने मौली के मांबाप को तलब किया. दोनों हाथ जोड़े आ खड़े हुए तो समर सिंह बोले, ‘‘तुम्हारी बेटी महल की शोभा बनेगी. उसे ले कर महल आ जाना. हम तुम्हें मालामाल कर देंगे.’’

‘‘मौली को हम महल ले आएंगे हुकुम,’’ मौली के मांबाप डरते सहमते बोले, ‘‘नाचनागाना हमारा पेशा है, पर मौली के साथ मानू को भी आप को अपनी शरण में लेना पड़ेगा. उस के बिना तो मौली का पैर तक नहीं उठ सकता.’’

‘‘हम समझे नहीं.’’ समर सिंह ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा तो मौली के पिता बोले, ‘‘मौली और मानू बचपन के साथी हैं. नाचगाना भी दोनों ने साथसाथ सीखा. बहुत प्यार है दोनों में. मौली तभी नाचती है, जब मानू खुद अपने हाथों उस के पांव में घुंघरू बांध कर ढोलक पर थाप देता है. आप लाख साजिंदे बैठा दें मौली नहीं नाचेगी हुकुम…इस बात को सारा इलाका जानता है.’’

‘‘हमारे लिए भी नहीं?’’ समर सिंह ने अपमान का सा घूंट पीते हुए गुस्से में कहा तो मौली के पिता बोले, ‘‘आप के लिए नाचेगी हुकुम…जरूर नाचेगी. लेकिन उस के साथ मानू का होना जरूरी है. सारा गांव जानता है, मौली और मानू दो जिस्म एक जान हैं. अलग कर के सिर्फ दो लाशें रह जाएंगी. उन्हें अलग करना संभव नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे मुंह से बगावत की बू आ रही है…और हमें बागी बिलकुल पसंद नहीं.’’ समर सिंह गुस्से में बोले, ‘‘मौली को खुद महल ले कर आते तो हम मालामाल कर देते तुम्हें, लेकिन अब हम खुद उसे साथ ले कर जाएंगे. जा कर तैयार करो उसे. यह हमारा हुक्म है.’’

अच्छा तो किसी को नहीं लगा, लेकिन राजा की जिद के सामने किस की चलती? वही हुआ, जो समर सिंह चाहते थे. रोतीबिलखती मौली को उन के साथ जाने को तैयार कर दिया गया. विदा बेला में मौली ने पहली बार मानू का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मौली तेरी है मानू, तेरी ही रहेगी. राजा इस लाश से कुछ हासिल नहीं कर पाएगा.’’

मानू के होंठों से जैसे शब्द रूठ गए थे. वह पलकों में आंसू समेटे चुपचाप देखता रहा. आंसू और भी कई आंखों में थे, लेकिन राजा के भय ने उन्हें पलकों से बाहर नहीं आने दिया. अंतत: मौली राखावास से राजा के साथ विदा हो गई. राखावास में देवल, राठौर, नाड़ीबट्ट और नट आदि कई जातियों के लोग रहते थे. मौली और मानू दोनों ही नट जाति के थे. दोनों साथसाथ खेलतेकूदते बड़े हुए थे. दोनों के परिवारों का एक ही पेशा था—नाचगाना और भेड़बकरियां पालना.

मानू के पिता की झील में डूबने से मौत हो गई थी. घर में मां के अलावा कोई नहीं था. जब यह हादसा हुआ, मानू कुल 9 साल का था. पिता की मौत के बाद मां ने कसम खा ली कि वह अब जिंदगी भर न नाचेगी, न गाएगी. घर में 10-12 भेड़बकरियों के अलावा आमदनी का कोई साधन नहीं था. भेड़बकरियां मांबेटे का पेट कैसे भरतीं? फलस्वरूप घर में रोटियों के लाले पड़ने लगे. मानू को कई बार जंगली झरबेरियों के बेर खा कर दिन भर भेड़बकरियों के पीछे घूमना पड़ता.

मौली बचपन से मानू के साथ रही थी. वह उस का दर्द समझती थी. उसे मालूम था, मानू कितना चाहता है उसे. कैसे अपने बदन को जख्मी कर के झरबेरियों से कुर्ते की झोली भरभर लाल लाल बेर लाता था उस के लिए और बकरियों के पीछे भागतेदौड़ते उस के पांव में कांटा भी चुभ जाता था तो कैसे तड़प उठता था वह. खून और दर्द रोकने के लिए उस के गंदे पांवों के घाव पर मुंह तक रखने से परहेज नहीं करता था वह. कोई अमीर परिवार मौली का भी नहीं था. बस, जैसेतैसे रोजीरोटी चल रही थी. मौली को जो भी घर में खाने को मिलता, उसे वह अकेली कभी नहीं खाती. बहाना बना कर भेड़बकरियों के पीछे साथ ले जाती. फिर किसी बड़े पत्थर पर बैठ कर अपने हाथों से मानू को खिलाती. मानू कभी कहता, ‘‘मेरे नसीब में भूख लिखी है. मेरे लिए तू क्यों भूखी रहती है?’’

तो मौली उस के कंधे पर हाथ रख कर, उस की आंखों में झांकते हुए कहती, ‘‘मेरी आधी भूख तुझे देख कर भाग जाती है और आधी रोटी खा कर. मैं भूखी कहां रहती हूं मानू.’’

इसी तरह भेड़बकरियां चराते, पहाड़ी ढलानों पर उछलकूद मचाते मानू 14 साल का हो गया था और मौली 12 साल की. दुनियादारी को थोड़ाबहुत समझने लगे थे दोनों. इस बीच मानू की मां उस के पिता की मौत के गम को भूल चुकी थी. उस ने गांव के ही एक दूसरे आदमी का हाथ थाम कर अपनी दुनिया आबाद कर ली थी. सौतेला बाप मानू को भी साथ रखने को तैयार था, लेकिन उस ने इनकार कर दिया.

मानू और मौली जानते थे, नाचगाना उन का खानदानी पेशा है. थोड़ा और बड़ा होने पर उन्हें यही पेशा अपनाना पड़ेगा. उन्हें यह भी मालूम था कि उन के यहां जो अच्छे नाचनेगाने वाले होते हैं, उन्हें राज दरबार में जगह मिल जाती है. ऐसे लोगों को धनधान्य की कमी नहीं रहती. हकीकतों से अनभिज्ञ वे दोनों सोचते, बड़े हो कर वे भी कोशिश करेंगे कि उन्हें राज दरबार में जगह मिल जाए. एक दिन बकरियों के पीछे दौड़ते, पत्थर से टकरा कर मौली का पांव बुरी तरह घायल हो गया. मानू ने खून बहते देखा तो कलेजा धक से रह गया. उस ने झट से अपना कुरता उतार कर खून पोंछा. लेकिन खून था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था. मानू का पूरा कुरता खून से तर हो गया, पर खून नहीं रुका. चोट मौली के पैर में लगी थी, पर दर्द मानू के चेहरे पर झलक रहा था.

उसे परेशान देख मौली बोली, ‘‘कुरता खून में रंग दिया, अब पहनेगा क्या?’’

हमेशा की तरह मानू के चेहरे पर दर्द भरी मुसकान तैर आई. वह खून रोकने का प्रयास करते हुए दुखी स्वर में बोला, ‘‘कुरता तेरे पांव से कीमती नहीं है. 10-5 दिन नंगा रह लूंगा तो मर नहीं जाऊंगा.’’

काफी कोशिशों के बाद भी खून बंद नहीं हुआ तो मानू मौली को कंधे पर डाल कर झील के किनारे ले गया. मौली को पत्थर पर बैठा कर उस ने झील के पानी से उस का पैर धोया. आसपास झील का पानी सुर्ख हो गया, पर खून था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. कुछ नहीं सूझा तो मानू ने अपने खून सने कुरते को पानी में भिगो कर उसे फाड़ा और पट्टियां बदलबदल कर घाव पर रखने लगा. उस की यह युक्ति कारगर रही. थोड़ी देर में मौली के घाव से खून बहना बंद हो गया. उस दिन मौली को पहली बार पता चला कि मानू उसे कितना चाहता है. मानू मौली का पांव अपनी गोद में रखे धीरेधीरे उस के घाव को सहला रहा था, ताकि दर्द कम हो जाए. तभी मौली ने उसे टोका, ‘‘खून बंद हो चुका है, मानू. दर्द भी कम हो गया. तेरे शरीर पर, धवले (लुंगी) पर खून के दाग लगे हैं. नहा कर साफ कर ले.’’

मौली का पैर थामे बैठा मानू कुछ देर शांत भाव से झील को निहारता रहा. फिर उस की ओर देख कर उद्वेलित स्वर में बोला, ‘‘झील के इस पानी में तेरा खून मिला है मौली. मैं इस झील में कभी नहीं नहाऊंगा…कभी नहीं.’’

थोड़ी देर शांत रहने के बाद मानू उस के पैर को सहलाते हुए गंभीर स्वर में बोला, ‘‘अपने ये पैर जिंदगी भर के लिए मुझे दे दे मौली. मैं इन्हें अपने हाथों से सजाऊंगा संवारूंगा.’’

‘‘मेरा सब कुछ तेरा है मानू,’’ मौली उस के कंधे पर हाथ रख कर उस की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘सब कुछ. अपनी चीज को कोई खुद से मांगता है क्या?’’

पलभर के लिए मानू अवाक रह गया. उसे वही जवाब मिला था जो वह चाहता था. वह मौली की ओर देख कर बोला, ‘‘मौली, अब हम दोनों बड़े हो चुके हैं. अब और ज्यादा दिन इस तरह साथसाथ नहीं रह पाएंगे. लोग देखेंगे तो उल्टीसीधी बातें करेंगे. जबकि मैं तेरे बिना नहीं रह सकता. हमें ऐसा कुछ करना होगा, जिस से जिंदगी भर साथ न छूटे.’’

‘‘ऐसा क्या हो सकता है?’’ मौली ने परेशान से स्वर में पूछा तो मानू सोचते हुए बोला, ‘‘नाचनागाना हमारा खानदानी पेशा है न. हम वही सीखेंगे. तू नाचेगी गाएगी, मैं ढोलक बजाऊंगा. हम दोनों इस काम में ऐसी महारत हासिल करेंगे कि दो जिस्म एक जान बन जाएं. कोई हमें अलग करने की सोच भी न सके.’’

मौली खुद भी यही चाहती थी. वह मानू की बात सुन कर खुश हो गई.

मौली का पांव ठीक होने में एक पखवाड़ा लगा और मानू को दूसरा कुरता मिलने में भी. इस बीच वह पूरे समय नंगा घूमता रहा. आंधी, धूप या बरसात तक की चिंता नहीं की उस ने. उसे खुशी थी कि उस का कुरता मौली के काम तो आया. मानू के पिता की ढफ घर में सही सलामत रखी थी. कभी उदासी और एकांत के क्षणों में बजाया करता था वह उसे. मौली का पैर ठीक हो गया तो एक दिन मानू उसी ढफ को झाड़पोंछ कर ले गया जंगल. मौली अपने घर से घुंघरू ले कर आई थी.

मानू ने एक विशाल शिला को चुन कर अपना साधनास्थल बनाया और मौली के पैरों में अपने हाथ से घुंघरू बांधे. उसी दिन से मानू की ढफ की ताल पर मौली की नृत्य साधना शुरू हुई जो अगले 2 सालों तक निर्बाध चलती रही. इस बीच ढफ और ढोलक पर मानू ने नएनए ताल ईजाद किए और मौली ने नृत्य एवं गायन की नईनई कलाएं. अपनी अपनी कलाओं में पारंगत होने के बाद मौली और मानू ने होली के मौके पर गांव वालों के सामने अपनीअपनी कलाओं का पहला प्रदर्शन किया तो लोग हतप्रभ रह गए. उन्होंने इस से पहले न ऐसा ढोलक बजाने वाला देखा था, न ऐसी अनोखी अदाओं के  साथ नृत्य करने वाली.

कई गांव वालों ने उसी दिन भविष्यवाणी कर दी थी कि मौली और मानू की जोड़ी एक दिन राजदरबार में जा कर इस गांव का मान बढ़ाएगी. समय के साथ मानू और मौली का भेड़बकरियां चराना छूट गया और नृत्यगायन पेशा बन गया. कुछ ही दिनों में इलाके भर में उन की धूम मच गई. आसपास के गांवों के लोग अब उन दोनों को तीजत्योहार और विवाह शादियों के अवसर पर बुलाने लगे. इस के बदले उन्हें धनधान्य भी काफी मिल जाता. मानू ने अपनी कमाई के पैसे जोड़ कर सब से पहले मौली के लिए चांदी के घुंघरू बनवाए. वह घुंघरू मौली को सौंपते हुए बोला, ‘‘ये मेरे प्यार की पहली निशानी है. इन्हें संभाल कर रखना. लोग घुंघरुओं को नाचने वाली के पैरों की जंजीर कहते हैं, लेकिन मेरे विचार से किसी नृत्यांगना के लिए इस से बढि़या कोई तोहफा नहीं हो सकता. तुम इन्हें जंजीर मत समझना. इन घुंघरुओं को तुम्हारे पैरों में बाधूंगा भी मैं, और खोलूंगा भी मैं.’’

मौली को मानू की बात भी अच्छी लगी और तोहफा भी. उस दिन के बाद से वही हुआ जो मानू ने कहा था. मौली को जहां भी नृत्यकला का प्रदर्शन करना होता, मानू खुद उस के पैरों में घुंघरू बांध कर ढोलक पर ताल देता. ताल के साथ ही मौली के पैर थिरकने लगते. जब तक मौली नाचती, मानू की निगाह उस के पैरों पर ही जमी रहती. प्रदर्शन के बाद वही अपने हाथों से मौली के पैरों के घुंघरू खोलता. प्यार क्या होता है, यह न मौली जानती थी, न मानू. वे तो केवल इतना जानते थे कि दोनों बने ही एकदूसरे के लिए हैं. मरेंगे तो साथ, जिएंगे तो साथ. मौली और मानू अपने प्यार की परिभाषा भले ही न जानते रहे हों, पर गांव वाले उन के अगाध प्रेम को देख जरूर जान गए थे कि वे दोनों एकदूसरे के पूरक हैं. उन्हें उन के इस प्यार पर नाज भी था. किसी ने उन के प्यार में बाधा बनने की कोशिश भी नहीं की. मौली के मातापिता तक ने नहीं.

एक बार एक पहुंचे हुए साधु घूमते घामते राखावास आए तो गांव के कुछ युवकयुवतियां उन से अपना अपना भविष्य पूछने लगे. उन में मौली भी शामिल थी. साधु बाबा उस के हाथ की लकीरें देखते ही बोले, ‘‘तेरी किस्मत में राजयोग लिखा है. किसी राजा की चहेती बनेगी तू.’’

मौली ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, मानू से बिछड़ने की. उस के लिए वह राजयोग तो क्या, सारी दुनिया को ठोकर मार सकती थी. उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘मेरी किस्मत में राजयोग लिखा है, तो मानू का क्या होगा बाबा? …वह तो मेरे बिना…’’

साधु बाबा पलभर आंखें बंद किए बैठे रहे. फिर आंखें खोल कर सामने की झील की ओर निहारते हुए बोले, ‘‘वह इस झील में डूब कर मरेगा.’’

मौली सन्न रह गई. लगा, जैसे धरती आकाश एक साथ हिल रहे हों. न चाहते हुए भी उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. मुझे मानू से कोई अलग नहीं कर सकता.’’

उस की बात सुन कर साधु बाबा ठहाका लगा कर हंसे. थोड़ी देर हंसने के बाद शांत स्वर में बोले, ‘‘होनी को कौन टाल सकता है बालिके.’’

बाबा अपनी राह चले गए. मौली को लगा, जैसे उस के सीने पर सैकड़ों मन वजन का पत्थर रख गए हों. यह बात सोचसोच कर वह पागल हुई जा रही थी कि बाबा की भविष्यवाणी सच निकली, तो क्या होगा. उस दिन जब मानू मिला तो मौली उसे खींचते हुए झील किनारे ले गई और उस का हाथ अपने सिर पर रख कर बोली, ‘‘मेरी कसम खा मानू, तू आज के बाद जिंदगी भर कभी इस झील में कदम तक नहीं रखेगा.’’

मानू को मौली की यह बात बड़ी अजीब लगी. वह उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘यह कसम तो मैं ने उसी दिन खा ली थी, जब तेरा खून इस झील के पानी में मिल गया था. फिर भी तू कहती है तो एक बार फिर कसम खा लेता हूं… पर बात क्या है? इतनी घबराई क्यों है?’’

मानू के कसम खा लेने के बाद मौली ने बाबा की बात उसे बताई तो मानू हंसते हुए बोला, ‘‘तू इतना डरती क्यों है? जब मैं झील के पानी में कभी उतरूंगा ही नहीं तो डूबूंगा कैसे? कोई जरूरी तो नहीं कि बाबा की भविष्यवाणी सच ही हो.’’

साधु की भविष्यवाणी को सालों बीत चुके थे. इस बीच मौली 17 साल की हो गई थी और मानू 19 का. दोनों ही बाबा की बात भूल चुके थे.

…और तभी शिकार से लौटते राजा समर सिंह राखावास में रुके थे.

तो क्या साधु महाराज की भविष्यवाणी सच होने वाली थी? 

समर सिंह मौली को अपने साथ क्या ले गए, राखावास के प्राकृतिक दृश्यों की शोभा चली गई, गांव वालों का अभिमान चला गया और मानू की जान. पागल सा हो गया मानू. बस झील किनारे बैठा उस राह को निहारता रहता, जिस राह राजा के साथ मौली गई थी. खानेपीने का होश ही नहीं था उसे. लगता, जैसे राजा उस की जान निकाल ले गया हो. बात तब की है, जब हिंदुस्तान में मुगलिया सल्तनत का पराभव हो चुका था और ईस्ट इंडिया कंपनी का परचम पूरे देश में फहराने के प्रयास किए जा रहे थे. देश के कितने ही राजारजवाड़े विलायती झंडे के नीचे आ चुके थे और कितने भरपूर संघर्षों के बाद भी आने को मजबूर थे.

उन्हीं दिनों अरावली (Rajasthan stories) पर्वतमाला की घाटियों में बसी एक छोटी सी रियासत थी चंदनगढ़. इस रियासत के राजा समर सिंह थे तो अंगरेज विरोधी, पर शक्तिहीनता की वजह से उन्हें भी ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे तले आना पड़ा था. अंगरेजों का उन पर इतना प्रभाव था कि उन्हें अपने घोड़े गोरा का नाम बदल कर गोरू करना पड़ा था. समर सिंह उन राजाओं में थे, जो रासरंग में डूबे रहने के कारण राजकाज और प्रजा का ठीक से ध्यान नहीं रख पाते थे. राजा समर सिंह को 2 ही शौक थे—पहला शिकार का और दूसरा नाचगाने, मौजमस्ती का. मौली को भी उन्होंने इसी उद्देश्य से चुना था. लेकिन यह उन की भूल थी. वह नहीं जानते थे कि मौली दौलत की नहीं, प्यार की दीवानी है.

राजा समर सिंह मौली के रूपलावण्य, मदमाते यौवन और उस की नृत्यकला से प्रभावित हो कर उसे साथ जरूर ले आए थे, लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी भान नहीं था कि यह सौदा उन्हें सस्ता नहीं पड़ेगा. राजमहल में पहुंच कर मौली का रंग ही बदल गया. राजा ने उस की सेवा के लिए दासियां भेजीं, नएनए वस्त्र, आभूषण और शृंगार प्रसाधन भेजे, लेकिन मौली ने किसी भी चीज की ओर आंख उठा कर नहीं देखा. वह जिंदा लाश सी शांत बैठी रही. किसी से बोली तक नहीं, मानो गूंगी हो गई हो. दासियों ने समझाया, पड़दायतों ने मनुहार की, पर कोई फायदा नहीं.

राजा समर सिंह को पता चला तो स्वयं मौली के पास पहुंचे. उन्होंने उसे पहले प्यार से समझाने की कोशिश की, फिर भी मौली कुछ नहीं बोली तो राजा गुस्से में बोले, ‘‘तुम्हें महल ला कर हम ने जो इज्जत बख्शी है, वह किसी को नहीं मिलती, और एक तुम हो जो इस सब को ठोकर मारने पर तुली हो. यह जानते हुए भी कि अब तुम्हारी लाश भी राखावास नहीं लौट सकती. हां, तुम अगर चाहो तो हम तुम्हारे वजन के बराबर धनदौलत तुम्हारे मातापिता को भेज सकते हैं. लेकिन अब तुम्हें हर हाल में हमारी बन कर हमारे लिए जीना होगा.’’

मौली को मौत का डर नहीं था. डर था तो मानू का. वह जानती थी, मानू उस के विरह में सिर पटकपटक कर जान दे देगा. उसे यह भी मालूम था कि उस की वापसी संभव नहीं है. काफी सोचविचार के बाद उस ने राजा समर सिंह के सामने प्रस्ताव रखा, ‘‘अगर आप चाहते हैं कि मौली आप के महल की शोभा बन कर रहे तो इस के लिए पहाड़ों के बीच वाली उसी झील के किनारे महल बनवा दीजिए, जिस के उस पार मेरा गांव है.’’

अपने इस प्रस्ताव में मौली ने 2 शर्तें भी जोड़ीं. एक यह कि जब तक महल बन कर तैयार नहीं हो जाता, राजा उसे छुएंगे तक नहीं और दूसरी यह कि महल में एक ऐसा परकोटा बनवाया जाएगा, जहां वह हर रोज अपनी चुनरी लहरा कर मानू को बता सके कि वह जिंदा है. मानू उसी के सहारे जीता रहेगा. मौली मानू को जान से ज्यादा चाहती है, यह बात समर सिंह को अच्छी नहीं लगी थी. कहां एक नंगाभूखा लड़का और कहां राजमहल के सुख. लेकिन उस की जिद के आगे वह कर भी क्या सकते थे. कुछ करते तो मौली जान दे देती. मजबूर हो कर उन्होंने उस की शर्तें स्वीकार कर लीं.

राखावास के ठीक सामने झील के उस पार वाली पहाड़ी पर राजा ने महल बनवाना शुरू किया. बुनियाद कुछ इस तरह रखी गई कि झील का पानी महल की दीवार छूता रहे. झील के तीन ओर बड़ीबड़ी पहाडि़यां थीं. चौथी ओर वाली छोटी पहाड़ी की ढलान पर राखावास था. महल से राखावास या राखावास से महल तक आधा मील लंबी झील को पार किए बिना किसी तरह जाना संभव नहीं था. उन दिनों आज की तरह न साधनसुविधाएं थीं, न मार्ग. ऐसी स्थिति में चंदनगढ़ से 10 मील दूर पहाड़ों के बीच महल बनने में समय लगना स्वाभाविक ही था. मौली इस बात को समझती थी कि यह काम एक साल से पहले पूरा नहीं हो पाएगा और इस एक साल में मानू उस के बिना सिर पटकपटक कर जान दे देगा. लेकिन वह कर भी क्या सकती थी, राजा ने उस की सारी शर्तें पहले ही मान ली थीं.

लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. मोहब्बत कहीं न कहीं अपना रंग दिखा कर ही रहती है. मौली के जाने के बाद मानू सचमुच पागल हो गया था. उस का वही पागलपन उसे चंदनगढ़ खींच ले गया. मौली के घुंघरू जेब में डाले वह भूखाप्यासा, फटेहाल महीनों तक चंदनगढ़ की गलियों में घूमता रहा. जब भी उसे मौली की याद आती, जेब से घुंघरू निकाल कर आंखों से लगाता और जारजार रोने लगता. लोग उसे पागल समझ कर उस का दर्द पूछते तो उस के मुंह से बस एक ही शब्द निकलता-मौली.

मानू चंदनगढ़ आ चुका है, मौली भी इस तथ्य से अनभिज्ञ थी और समर सिंह भी. उधर मानू ने राजमहल की दीवारों से लाख सिर टकराया, पर वह मौली की एक झलक नहीं देख सका. महीनों यूं ही गुजर गए. राजा समर सिंह जिस लड़की को राजनर्तकी बनाने के लिए राखावास से चंदनगढ़ लाए हैं, उस का नाम मौली है, यह बात किसी को मालूम नहीं थी. राजा स्वयं उसे मालेश्वरी कह कर पुकारते थे, अत: दासदासियां और पड़दायतें तक उसे मालेश्वरी ही कहती थीं.

राजा ने मौली के लिए अपने महल के एक एकांत कक्ष में रहने की व्यवस्था की थी, जहां उसे रानियों जैसी सुविधाएं उपलब्ध थीं. उस की सेवा में कई दासियां रहती थीं. एक दिन उन्हीं में से एक दासी ने बताया, ‘‘नगर में एक दीवाना मौली मौली पुकारता घूमता है. पता नहीं कौन है मौली, उस की मां, बहन या प्रेमिका. बेचारा पागल हो गया है उस के गम में. न खाने की सुध, न कपड़ों की. एक दिन महल के द्वार तक चला आया था, पहरेदारों ने धक्के दे कर भगा दिया. कहता था, इन्हीं दीवारों में कैद है मेरी मौली.’’

मौली ने सुना तो कलेजा धक से रह गया. प्राण गले में अटक गए. लगा, जैसे बेहोश हो कर गिर पड़ेगी. वह संज्ञाशून्य सी पलंग पर बैठ कर शून्य में ताकने लगी. दासी ने उस की ऐसी स्थिति देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, आप मेरी बात सुन कर परेशान क्यों हो गईं? आप को क्या, होगा कोई दीवाना. मैं ने तो जो सुना था, आप को यूं ही बता दिया.’’

मौली ने अपने आप को लाख संभालना चाहा, लेकिन आंसू पलकों तक आ ही गए. दासी पलभर में समझ गई, जरूर कोई बात है. उस ने मौली को कुरेदना शुरू किया तो वह न चाहते हुए भी उस से दिल का हाल कह बैठी. दासी सहृदय थी. मौली और मानू की प्रेम कहानी सुनने और उन के जुदा होने की बात सुन उस का हृदय पसीज उठा.

क्या मानू मौली से मिल सकेगा या राजा के महलों में कैद होकर रह जायेगा? 

मौली ने उस से निवेदन किया कि वह किसी तरह मानू तक यह संदेश पहुंचा दे कि वह उस से मिले बिना न मरेगी, न नाचेगी. वह वक्त का इंतजार करे. एक न एक दिन उन का मिलन होगा जरूर. जब तक मिलन नहीं होता, तब तक वह अपने आप को संभाले. प्यार में पागल बनने से कुछ नहीं मिलेगा. दासी ने जैसे तैसे मौली का संदेश मानू तक पहुंचाया भी, लेकिन उस पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उन्हीं दिनों एक अंगरेज अधिकारी को चंदनगढ़ आना था. राजा समर सिंह ने अधिकारी को खुश करने के लिए उस की खातिर का पूरा इंतजाम किया. महल को विशेष रूप से सजाया गया. नाचगाने का भी प्रबंध किया गया. राजा समर सिंह चाहते थे कि मौली अपनी नृत्यकला से अंगरेज रेजीडेंट का दिल जीते.

उन्होंने इस के लिए मौली से मानमनुहार की तो उस ने शर्त बता दी, ‘‘मानू नगर में मौजूद है, उसे बुलाना पड़ेगा. वह आ कर मेरे पैरों में घुंघरू बांध देगा तो मैं नाचूंगी.’’

समर सिंह जानते थे कि जो बात मौली की नृत्यकला में है, वह किसी दूसरी नर्तकी में नहीं. अंगरेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. राजा ने मौली की शर्त स्वीकार कर ली. मानू को ढुंढवाया गया. उस का हुलिया बदला गया. अगले दिन जब रेजीडेंट आया तो पूरी तैयारी के बाद मौली को सभा में लाया गया. सभा में मौजूद सब लोगों की निगाहें मौली पर जमी थीं और उस की निगाहें उन सब से अनभिज्ञ मानू को खोज रही थीं. मानू सभा में आया तो उसे देख मौली की आंखें बरस पड़ीं. मन हुआ, आगे बढ़ कर उस से लिपट जाए, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा नहीं कर सकी. करती तो दोनों के प्राण संकट में पड़ जाते. उस ने लोगों की नजर बचा कर आंसू पोंछ लिए.

आंसू मानू की आंखों में भी थे, लेकिन उस ने उन्हें बाहर नहीं आने दिया. खुद को संभाल कर वह ढोलक के साथ अपने लिए नियत स्थान पर जा बैठा. मौली धीरेधीरे कदम बढ़ा कर उस के पास पहुंची तो मानू थोड़ी देर अपलक उस के पैरों को निहारता रहा. फिर उस ने जेब से घुंघरू निकाल कर माथे से लगाए और मोली के पैरों में बांध दिए. इस बीच मौली उसे ही निहारती रही. घुंघरू बांधते वक्त मानू के आंसू पैरों पर गिरे तो मौली की तंद्रा टूटी. मानू के दर्द का एहसास कर उस के दिल से आह भी निकली, पर उस ने उसे जैसे तैसे जज्ब कर लिया.

इधर ढोलक पर मानू की थाप पड़ी और उधर मौली के पैर थिरके. पलभर में समां बंध गया. मौली उस दिन ऐसा नाची, जैसे वह उस का अंतिम नाच हो. लोगों के दिल धड़क धड़क उठे. अंगरेज रेजीडेंट बहुत खुश हुआ. उस ने नृत्य, गायन और वादन का ऐसा अनूठा समन्वय पहली बार देखा था. राजा समर सिंह का जो मकसद था, पूरा हुआ. महफिल समाप्त हुई तो मौली ने मानू से हमेशा की तरह घुंघरू खोलवाने चाहे, लेकिन राजा ने इस की इजाजत नहीं दी. अंगरेज अधिकारी वापस चला गया तो मानू को महल के बाहर कर दिया गया. मौली अपने कक्ष में चली गई. उस ने कसम खा ली कि उस के पैरों से घुंघरू खुलेंगे तो मानू के हाथ से ही.

झील वाला महल तैयार होने में एक साल लगा. छोटे से इस महल में राजा समर सिंह ने मौली के लिए सारी सुविधाएं जुटाई थीं. मौली की इच्छानुसार एक परकोटा भी बनवाया गया था, जहां खड़ी हो कर वह झील के उस पार स्थित अपने गांव को निहार सके. राजा समर सिंह जानते थे कि मौली और मानू एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं. प्यार में वे दोनों किसी भी हद तक जा सकते थे. इसी बात को ध्यान में रख कर राजा समर सिंह ने महल से सौ गज दूर झील के पानी में एक ऐसी अदृश्य दीवार बनवाई, जिस के आरपार पानी तो जा सके लेकिन जीवों का आनाजाना संभव न हो. दीवार के इस पार उन्होंने पानी में 2 मगरमच्छ छुड़वा दिए. यह सब उन्होंने इसलिए किया था ताकि मानू झील में तैर कर इस पार न आ सके, आए तो मगरमच्छों का शिकार हो जाए.

पूरी तैयारी हो गई तो मौली को झील किनारे नवनिर्मित महल में भेज दिया गया. जिस दिन मौली को महल में ले जाया गया, उस दिन महल को खूब सजाया गया था. राजा समर सिंह की उस दिन वर्ष भर पुरानी आरजू पूरी होनी थी. वादे के अनुसार मौली ने राजा के सामने स्वयं को समर्पित कर दिया. उस दिन उस ने अपना शृंगार खुद किया था. बेहद खूबसूरत लग रही थी वह. समर सिंह की बांहों में सिमटते हुए उस ने सिर्फ इतना कहा था, ‘‘आज से मेरा तन आप का है पर मन को आप कभी छू नहीं पाएंगे. मन पर मानू का ही अधिकार रहेगा.’’

राजा को मौली के मन से क्या लेनादेना था. उन की जिद भी पूरी हो गई और हवस भी. उस दिन के बाद मौली स्थाई रूप से उसी महल में रहने लगी. सेवा में दासदासियां और सुरक्षा के लिए पहरेदार सैनिकों की व्यवस्था थी ही. महीने में 6-7 दिन मौली के साथ गुजारने के लिए राजा समर सिंह झील वाले महल में आते रहते थे. वहीं रह कर वह पास वाले जंगल में शिकार भी खेलते थे. मौली का रोज का नियम था. हर शाम वह महल के परकोटे पर खड़े हो कर अपनी वही चुनरी हवा में लहराती जो गांव से ओढ़ कर आई थी. मानू को मालूम था कि मौली झील वाले महल में आ चुकी है. वह हर रोज झील के किनारे बैठा मौली की चुनरी को देखा करता. इस से उस के मन को काफी तसल्ली मिलती. कई बार उस का दिल करता भी कि वह झील को पार कर के मौली के पास जा पहुंचे, लेकिन मौली की कसम उस के पैर बांध देती थी.

देखतेदेखते एक साल और गुजर गया. मौली को गांव छोड़े 2 साल होने को थे. तभी एक दिन राजा समर सिंह को अंगरेज रेजीडेंट का संदेश मिला कि वह उन की रियासत के मुआयने पर आ रहे हैं और उसी नर्तकी का नृत्य देखना चाहते हैं, जो पिछली यात्रा में उन के सामने पेश की गई थी. राजा समर सिंह ने जब यह बात मौली को बताई तो उस ने अपनी शर्त रखते हुए कहा, ‘‘यह तभी संभव है, जब मानू मेरे साथ हो. उस के बिना नृत्य का कोई भी आयोजन मेरे बूते में नहीं है.’’

समर सिंह ने मौली को समझाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. अंगरेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. फलस्वरूप राजा समर सिंह को झुकना पड़ा. मौली ने राजा से कहा कि वह चंदनगढ़ जाने के बजाय उसी महल में नृत्य करेगी और मानू को भी वहीं बुलाना होगा.

क्या मानू और मौली का महामिलान हो पायेगा? या दो प्रेमी फिर एक दूसरे से हमेशा के लिए बिछड़ जायेंगे? 

राजा समर सिंह नहीं चाहते थे कि मानू किसी भी रूप में मौली के सामने आए जबकि अंगरेज रेजीडेंट को खुश करना भी उन की मजबूरी थी. सोचविचार कर राजा ने झील में बनी अदृश्य दीवार पर ठीक महल के परकोट के सामने पत्थरों का एक बड़ा सा गोल चबूतरा बनवा कर उस पर प्रकाश स्तंभ स्थापित कराया. इस चबूतरे और महल के बीच ही वह कुंड था, जिस में मगरमच्छ रहते थे. मगरमच्छों का भोजन चूंकि उसी कुंड में डाला जाता था, अत: वे वहीं मंडराते रहते थे. महल के परकोटे से 2 मजबूत रस्सियां इस प्रकार प्रकाश स्तंभ में बांधी गईं कि आदमी एक रस्सी के द्वारा स्तंभ तक जा सके और दूसरी से आ सके.

अंगरेज रेजीडेंट के आने का दिन तय हो चुका था. उसी हिसाब से राजा ने झील वाले महल में मेहमाननवाजी की तैयारियां कराईं. जिस दिन रेजीडेंट को आना था, उस दिन 2 सैनिक इस आदेश के साथ राखावास भेजे गए कि वे झील के रास्ते मानू को प्रकाश स्तंभ तक भेजेंगे. मौली ने मानू को झील में न उतरने की कसम दे रखी थी, यह बात समर सिंह नहीं जानते थे. तयशुदा दिन जब अंगरेज रेजीडेंट चंदनगढ़ पहुंचा, राजा समर सिंह यह कह कर उसे झील वाले महल में ले गए कि उन्होंने इस बार उन के मनोरंजन की व्यवस्था प्रकृति की गोद में की है. राजा का झील वाला महल अंगरेज रेजीडेंट को खूब पसंद आया.

मौली भी उस दिन खूब खुश थी. मानू से मिलने की खुशी उस के चेहरे से फूटी पड़ रही थी. उसे क्या मालूम था कि मानू को उस के सामने झील वाले रास्ते से लाया जाएगा और वह ठीक से उस की सूरत भी नहीं देख पाएगी. जब सारी तैयारियां हो गईं और अंगरेज रेजीडेंट भी आ गया तो महल के परकोटे से मौली की चुनरी से राखावास की ओर मौजूद सैनिकों को इशारा किया गया. सैनिकों ने मानू से झील के रास्ते प्रकाश स्तंभ तक तैर कर जाने को कहा तो उस ने इनकार कर दिया कि वह मौली की कसम नहीं तोड़ सकता. इस पर सैनिकों ने उस से झूठ बोला कि मौली ने अपनी कसम तोड़ दी है, वही अपनी चुनरी लहरा कर उसे बुला रही है. मानू ने महल के परकोटे पर चुनरी लहराते देखी तो उसे सैनिकों की बात सच लगी. उस ने बिना सोचेसमझे मौली के नाम पर झील में छलांग लगा दी.

जिस समय मानू झील को पार कर प्रकाश स्तंभ तक पहुंचा, तब तक राजा समर सिंह का एक कारिंदा ढोलक ले कर रस्सी के सहारे वहां जा पहुंचा था. उसी ने मानू को बताया कि महल और प्रकाश स्तंभ के बीच मगरमच्छ हैं. उसे उसी स्थान पर बैठ कर ढोलक बजानी होगी और मौली उसी धुन पर परकोटे पर नाचेगी. कारिंदा राजा का हुक्म सुना कर दूसरी रस्सी के सहारे वापस लौट आया. मौली को जब राजा की इस चाल का पता चला तो वह मन ही मन खूब कुढ़ी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि आज वह अंतिम बार राजा की महफिल में नाचेगी और नाचते नाचते ही हमेशा हमेशा के लिए अपने मानू से जा मिलेगी.

राजा की महफिल छत पर सजी थी. प्रकाश स्तंभ और महल की छत पर विशेष प्रकाश व्यवस्था कराई गई थी. जब अंधेरा घिर आया और चारों ओर निस्तब्धता छा गई तो मौली को महफिल में बुलाया गया. उस समय उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. सजीधजी मौली घुंघरू खनकाती महफिल में पहुंची तो लोगों के दिल धड़क उठे. मौली ने परकोटे पर खड़े हो कर श्वेत ज्योत्सना में नहाई झील को देखा. प्रकाश स्तंभ के पास सिकुड़े सिमटे बैठे मानू को देखा और फिर आकाश के माथे पर टिकुली की तरह चमकते चांद को निहारते हुए बुदबुदाई, ‘‘हे मालिक, तुझ से कभी कुछ नहीं मांगा, पर आज मांगती हूं. इस नाचीज को एक बार, सिर्फ एक बार उस के प्यार के गले जरूर लग जाने देना.’’

मन की मुराद मांग कर मौली ने एक बार जोर से पुकारा, ‘‘मानू…’’

मौली की आवाज के साथ ही मानू के हाथ ढोलक पर चलने लगे. ढोलक की आवाज वादियों में गूंजने लगी और उस के साथ ही मौली के पैरों के घुंघरू भी. पलभर में समां बंध गया. सभा में मौजूद लोग दिल थामे मौली की कला का आनंद लेने लगे. अभी महफिल जमे ज्यादा देर नहीं हुई थी. मौली का पहला नृत्य पूरा होने वाला था. लोग वाहवाह कर रहे थे. तभी मौली तेजी से पीछे पलटी और कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही मानू का नाम ले कर चीखते हुए परकोटे से प्रकाश सतंभ तक जाने वाले रस्से को पकड़ कर झूल गई. मौली का यह दुस्साहसिक रूप देख पूरी सभा सन्न रह गई.

महल के परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक आनेजाने वाले कारिंदे रस्सों में विशेष प्रकार के कुंडे में बंधा झूला डाल कर आतेजाते थे. काम के बाद कुंडे और झूला निकाल कर रख दिए जाते थे. मौली चूंकि रस्से को यूं ही पकड़ कर झूल गई थी और रस्सा नीचे की ओर आ गया था. फलस्वरूप रस्से की रगड़ से उस के हाथ बुरी तरह घायल हो गए थे. वह ज्यादा देर अपने आप को संभाल नहीं पाई और झटके के साथ कुंड में जा गिरी.

हतप्रभ मानू यह दृश्य देख रहा था. मौली के गिरने से छपाक की आवाज उभरी तो मानू ने भी कुंड में छलांग लगा दी. अंगरेज रेजीडेंट, राजा और उस की महफिल इस भयावह दृश्य को देखती रह गई. कुछ देर मानू और मौली पानी में डूबते उतराते दिखाई दिए भी, लेकिन थोड़ी ही देर में वे आंखों से ओझल हो गए हमेशा के लिए. दोनों ही मगरमच्छों का शिकार बन चुके थे.