बेवफाई की लाश – भाग 2

इन्हीं दिनों संतोष खेतों की देखभाल के लिए एक सप्ताह की छुट्टी ले कर अपने गांव चला गया. गुडि़या को यह मौका अच्छा लगा तो उस ने एक रोज रात में राजू को अपने कमरे पर रोक लिया. खाना खाने के बाद एक चारपाई पर राजू लेट गया और दूसरी पर गुडि़या.

राजू सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. उस का मन भाभी गुडि़या की तरफ ही लगा हुआ था. तभी आधी रात के बाद गुडि़या अपनी चारपाई से उठ कर उस के पास आ लेटी. इस के बाद तो राजू की खुशी का ठिकाना न रहा. वह गुडि़या से बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी?’’

‘‘डर लग रहा था, इसलिए तुम्हारे पास चली आई.’’ गुडि़या ने उस से सटते हुए कहा.

‘‘डर लग रहा है तो लाइट जला दूं क्या?’’ राजू ने पूछा.

‘‘नहीं, लाइट जलाने की अब कोई जरूरत नहीं है. क्योंकि अब तुम मेरे पास हो.’’ कहते हुए वह उस से लिपट गई.

राजू गुडि़या की मंशा समझ चुका था. वह भी जवान था. गुडि़या के स्पर्श से उस के शरीर में भी सरसराहट दौड़ गई थी. फिर जब गुडि़या ने उसे उकसाया तो ऐसे में भला वह कैसे शांत रह सकता था. नतीजतन दोनों ने ही उस रात अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस दिन के बाद राजू और गुडि़या अकसर कामलीला रचाने लगे. राजू अपनी अधिकांश कमाई गुडि़या व उस के बच्चों पर खर्च करने लगा. उस के घर आने का विरोध संतोष न करे, इसलिए वह उस की भी आर्थिक मदद करने लगा.

इस के अलावा संतोष जब भी शराब पीने की इच्छा जताता तो राजू उसे ठेके पर ले जाता और शराब पिलाता. इतना ही नहीं, राजू अब गुडि़या के घरेलू काम में भी हाथ बंटाने लगा. राशन लाना, बच्चों को स्कूल छोड़ना तथा शाम को सब्जी लाना उस की दिनचर्या बन गई थी.

संतोष जब गांव चला जाता तो राजू रात में उस के घर रुकता और फिर दोनों रात भर रंगरलियां मनाते. राजू जब संतोष के साथ उस के घर आता तब तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उस की गैरमौजूदगी में जब वह अकसर उस के घर पड़ा रहने लगा तो पड़ोसियों के मन में शंका पैदा होने लगी. धीरेधीरे मोहल्ले में गुडि़या और राजू के संबंधों की चर्चा फैल गई.

एक दिन संतोष को उस के पड़ोसी रामसिंह भदौरिया ने अपने पास बुला कर कहा, ‘‘संतोष, तुम रातदिन काम में व्यस्त रहते हो और घर आ कर नशे में डूब जाते हो. कभी अपने घर की तरफ भी ध्यान दिया करो कि तुम्हारे यहां कौन आता है कौन जाता है. तुम्हें कुछ पता भी है?’’

‘‘चाचा, मेरे घर में तो सब ठीक चल रहा है. अगर कोई गड़बड़ है तो बताओ. हमें आप की बात पर पूरा भरोसा है.’’ संतोष ने पूछा.

‘‘वह जो तुम्हारा दोस्त राजू है न, वह ठीक नहीं है. तुम घर पर नहीं होते तब वह तुम्हारे घर आता है. बच्चों को पैसे दे कर घर के बाहर भेज देता है. फिर तुम्हारे घर का दरवाजा बंद हो जाता है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारी बीवी और राजू के नाजायज संबंधों की चर्चा हो रही है और तुम कान बंद किए बैठे हो.’’ राम सिंह ने बताया.

संतोष निषाद को जब यह बात पता चली तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व राजू से बात की तो दोनों ने साफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. गुडि़या ने कहा कि राजू उस की मदद करता है, इसलिए पड़ोसी जलते हैं. घर में झगड़ा कराने के लिए वे तुम्हारे कान भर रहे हैं.

संतोष ने उस समय तो पत्नी की बात पर विश्वास कर लिया और फिर कुछ दिनों के लिए जरूरी काम से अपने गांव चला गया. लगभग एक सप्ताह बाद जब वह गांव से लौटा तो घर में राजू मौजूद था. उस समय राजू और गुडि़या हंसीठिठोली और शारीरिक छेड़छाड़ कर रहे थे.

अब उसे विश्वास हो गया कि राम सिंह चाचा ने जो बात उसे बताई थी, वह सच थी. यह देख कर संतोष का पारा चढ़ गया. उसी समय उस ने गुडि़या की जम कर पिटाई कर दी. मौका पा कर राजू वहां से खिसक गया.

अगले दिन संतोष जब अपनी ड्यूटी पर पहुंचा तो कंपनी में उसे राजू मिल गया. संतोष ने राजू को वहीं पर खूब फटकारा. राजू ने उस समय उस से माफी मांग ली, पर बाद में राजू और गुडि़या पहले की तरह मिलते रहे. किसी न किसी तरह संतोष को इस की जानकारी मिलती रही.

पत्नी की इस बेवफाई से संतोष टूट गया था. वह शराब तो पहले भी पीता था लेकिन अब और ज्यादा पीने लगा. उसे गुडि़या से इतनी अधिक नफरत हो गई थी कि उस ने उस से बातचीत तक करनी बंद कर दी.

लेकिन जिस दिन राजू घर के पास दिख जाता था, उस दिन गुस्से से संतोष का खून खौल जाता था. राजू को ले कर गुडि़या से उस की तकरार होती थी. नौबत मारपीट तक आ जाती थी. पूरा मोहल्ला जान गया था कि झगड़े की जड़ राजू और गुडि़या के अवैध संबंध हैं.

इस के बाद तो खुल्लमखुल्ला पूरे मोहल्ले में दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी. इस से संतोष की खूब बदनामी हो रही थी. तब संतोष ने राजू के घर आने पर प्रतिबंध लगा दिया. गुडि़या अपने से 10 साल छोटे प्रेमी राजू की दीवानी थी. वह किसी भी हाल में उस से अलग नहीं होना चाहती थी.

पति के चौकस हो जाने पर गुडि़या भी सतर्क हो गई. गुडि़या को जब भी मौका मिलता था, वह फोन कर के राजू को बुला लेती थी. पड़ोसियों को भनक न लगे, इस के लिए वह राजू को कमरे के पीछे खुलने वाली खिड़की से अंदर बुलाती थी, फिर शारीरिक मिलन के बाद वह उसी खिड़की से चला जाता था.

लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रोज पड़ोसन रेखा निषाद ने राजू को खिड़की के रास्ते गुडि़या के घर में जाते देख लिया. उस ने यह बात संतोष को बताई तो उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने गुडि़या की जम कर पिटाई की और दूसरे दिन बच्चों सहित गुडि़या को अपने गांव वाले घर भेज दिया. गुडि़या ने गांव पहुंचने की जानकारी राजू को दे दी.

गुडि़या के गांव जाने पर राजू परेशान रहने लगा. अब दोनों की बात मोबाइल पर ही हो पाती थी. राजू गुडि़या पर दबाव बनाने लगा कि वह किसी न किसी बहाने से वापस आ जाए. उस के बिना उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा. गुडि़या राजू को आश्वासन देती कि अभी उचित समय नहीं है. संतोष का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तब वह उस से बात कर के आ जाएगी.

अपने ही सुहाग का किया सौदा

नीरज को घर से गए 24 घंटे से भी ज्यादा हो गए और उस का कुछ पता नहीं चला तो उस की पत्नी रूबी ने थाना पंतनगर जा कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद उस के घर से गायब होने की जानकारी अपने सभी नातेरिश्तेदारों को देने के साथसाथ ससुराल वालों को भी दे दी थी.

नीरज के इस तरह अचानक गायब हो जाने की सूचना से उस के घर में कोहराम मच गया. नीरज के गायब होने की जानकारी उस के मामा को हुई तो वह भी परेशान हो उठे. उस समय वह गांव में थे. उन्होंने अपने बहनोई यानी नीरज के पिता रघुनाथ ठाकुर एवं उस के बड़े भाई को साथ लिया और महानगर मुंबई आ गए.

नीरज की पत्नी रूबी ने उन लोगों को बताया कि उस दिन वह घर से 250 रुपए ले कर निकले तो लौट कर नहीं आए. जब उन्हें गए 24 घंटे से भी ज्यादा हो गए तो उस का धैर्य जवाब देने लगा. उस ने थाना पंतनगर जा कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी और सभी को उन के घर न आने की जानकारी दे दी.

नीरज के इस तरह अचानक गायब हो जाने से उस के पिता रघुनाथ ठाकुर, बड़ा भाई और मामा रमाशंकर चौधरी परेशान हो उठे. सभी लोग मिल कर अपने तरीके से नीरज की तलाश करने लगे.

वे मुंबई में रहने वाले अपने सभी नातेरिश्तेदारों के यहां तो गए ही, उन अस्पतालों में भी गए, जहां ऐक्सीडैंट के बाद लोगों को इलाज के लिए ले जाया जाता है. आसपास के पुलिस थानों में भी पता किया, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर नीरज बिना कुछ बताए क्यों और कहां चला गया.

बेटे के अचानक गायब होने की चिंता और भागदौड़ में पिता रघुनाथ ठाकुर बीमार पड़ गए. एक दिन सभी लोग नीरज के बारे में ही चर्चा कर रहे थे, तभी रूबी ने अपने मामा ससुर रमाशंकर चौधरी से कहा, ‘‘परसों आधी रात को जब मैं शौचालय गई थी तो मुझे लगा कि वह शौचालय के गड्ढे से कह रहे हैं कि ‘रूबी मैं यहां हूं…’ उन की आवाज सुन कर मैं चौंकी.’’

मैं शौचालय के गड्ढे के पास यह सोच कर गई कि शायद वह आवाज दोबारा आए. लेकिन आवाज दोबारा नहीं आई. थोड़ी देर मैं वहां खड़ी रही, उस के बाद मुझे लगा कि शायद मुझे वहम हुआ है. मैं कमरे में आ गई.’’

अंधविश्वासों पर विश्वास करने वाले नीरज के मामा रमाशंकर चौधरी ने अपनी मौत का सच बताने वाली तमाम प्रेत आत्माओं के किस्से सुन रखे थे, इसलिए उन्हें लगा कि अपनी मौत का सच बताने के लिए नीरज की आत्मा भटक रही है. कहीं वह शौचालय के गड्ढे में तो गिर कर नहीं मर गया.

सुबह उठ कर वह शौचालय के गड्ढे के ऊपर रखे ढक्कन को देख रहे थे, तभी शौचालय की साफ सफाई करने वाला प्रशांत उर्फ ननकी फिनायल की बोतल ले कर आया और उस के आसपास फिनायल डालने लगा. उन्होंने पूछा, ‘‘भई यहां फिनायल क्यों डाल रहा है?’’

‘‘आज यहां से कुछ अजीब सी बदबू आ रही है. इसलिए सोचा कि फिनायल डाल दूंगा तो बदबू खत्म हो जाएगी.’’ प्रशांत ने कहा.

प्रशांत की इस बात से रमाशंकर को लगा कि कहीं सचमुच तो नहीं नीरज इस गड्ढे में गिर गया. शायद इसी वजह से बदबू आ रही है. वह तुरंत शौचालय के गड्ढे के ढक्कन के पास पहुंच गए. उसे हटाने के लिए उन्होंने उस पर जोर से लात मारी तो संयोग से वह टूट गया.

ढक्कन के टूटते ही उस में से इतनी तेज दुर्गंध आई कि रमाशंकर चौधरी को चक्कर सा आ गया. 5 मिनट के बाद उन्होंने अपनी नाक पर कपड़ा रख कर उस गड्ढे के अंदर झांका तो उन्हें सफेद कपड़े में लिपटी कोई भारी चीज दिखाई दी. उसे देख कर उन्हें यही लगा, यह भारी चीज किसी की लाश है. उन्होंने यह बात रूबी को बताने के साथसाथ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी को भी बता दी. यह 27 मार्च, 2014 की बात थी.

इस के बाद रमाशंकर चौधरी सीधे थाना पंतनगर जा पहुंचे. उन्होंने पूरी बात ड्यूटी पर तैनात सबइंसपेक्टर देवेंद्र ओव्हाल को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी अपने अधिकारियों को दे दी.

इस के बाद वह अपने साथ हेडकांस्टेबल चंद्रकांत गोरे, किशनराव नावडकर, प्रशांत शिर्के, कांस्टेबल संतोष गुरुव और पंकज भोसले को साथ ले कर सहकारनगर मार्केट स्थित न्यू सुविधा सुलभ शौचालय पहुंच गए.

पुलिस टीम के घटनास्थल तक पहुंचने तक वहां काफी भीड़ लग चुकी थी. सबइंस्पेक्टर देवेंद्र ओव्हाल ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्हें भी लगा कि गड्ढे में पड़ी चीज लाश ही है तो उन्होंने उसे निकलवाले के लिए फायरब्रिगेड के कर्मचारियों को बुला लिया.

फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने जब सफेद चादर में लिपटी उस चीज को निकाला तो वह सचमुच लाश थी. लाश इस तरह सड़ चुकी थी कि उस की शिनाख्त नहीं हो सकती थी.

लेकिन लाश के हाथ में जो घड़ी बंधी थी, उसे देख कर रमाशंकर चौधरी और रूबी ने बताया कि यह घड़ी तो नीरज ठाकुर की है. नीरज कई दिनों से गायब था, इस से साफ हो गया कि वह लाश नीरज की ही थी.

सबइंस्पेक्टर देवेंद्र ओव्हाल अपने साथी पुलिसकर्मियों के साथ लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि शौचालय के गड्ढे में लाश मिलने की सूचना पा कर परिमंडल-6 के एडिशनल पुलिस कमिश्नर महेश धुर्ये, असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर विलास पाटिल, सीनियर इंसपेक्टर निर्मल, इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर, असिस्टैंट इंसपेक्टर सकपाल और प्रदीप दुपट्टे भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने सरसरी नजर से घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर के घटना की जांच की जिम्मेदारी सीनियर इंसपेक्टर निर्मल को सौंप दी.

सीनियर इंसपेक्टर निर्मल ने सहकर्मियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर स्थित राजावाड़ी अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने लौट कर सीनियर इंसपेक्टर निर्मल ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को सौंप दी. इस के बाद जितेंद्र आगरकर ने उन के निर्देशन में जांच की जो रूपरेखा तैयार की, उसी के अनुरूप जांच शुरू कर दी गई.

सब से पहले तो उन्होंने मृतक नीरज ठाकुर के घर वालों के साथसाथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी को भी पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

नीरज के घर वालों तथा न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी ने जो बताया, जांच अधिकारी इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को मृतक की पत्नी रूबी पर संदेह हुआ. उन्होंने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी. उन्होंने देखा कि पति की मौत के बाद किसी औरत के चेहरे पर जो दुख और परेशानी दिखाई देती है, रूबी के चेहरे पर वैसा कुछ भी नहीं था.

इसी से उन्हें आशंका हुई कि किसी न किसी रूप में रूबी अपने पति की हत्या के मामले में जरूर जुड़ी है. लेकिन इतने भर से उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था. इसलिए वह उस के खिलाफ ठोस सुबूत जुटाने लगे.

सुबूत जुटाने के लिए उन्होंने रूबी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के आसपास रहने वालों से गुपचुप तरीके से पूछताछ की तो उन्हें रूबी के खिलाफ ऐसे तमाम सुबूत मिल गए, जो उसे थाने तक ले जाने के लिए पर्याप्त थे.

लोगों ने बताया था कि रूबी और नीरज के बीच अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहता था. यह लड़ाई झगड़ा शौचालय पर ही काम करने वाले संतोष झा को ले कर होता था. क्योंकि रूबी के उस से अवैध संबंध थे.

इस के बाद इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर ने न्यू सुविधा सुलभ शौचालय पर काम करने वाले प्रशांत कुमार चौधरी और मृतक नीरज ठाकुर की पत्नी रूबी को एक बार फिर पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

इस बार दोनों काफी डरे हुए थे, इसलिए थाने आते ही उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. रूबी ने बताया कि उसी ने प्रेमी संतोष झा के साथ मिल कर नीरज की हत्या की थी. हत्या में प्रशांत ने भी उस की मदद की थी. इस के बाद रूबी और प्रशांत ने नीरज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

35 वर्षीय नीरज ठाकुर मूलरूप से बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के थाना सफरा का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता, एक बड़ा भाई और एक बहन थी. उम्र होने पर सभी बहनभाइयों की शादी हो गई. नीरज 3 बच्चों का पिता भी बन गया. इस परिवार का गुजरबसर खेती से होता था.

जमीन ज्यादा नहीं थी, इसलिए परिवार बढ़ा तो गुजरबसर में परेशानी होने लगी. बड़ा भाई पिता रघुनाथ ठाकुर के साथ खेती कराता था, इसलिए नीरज ने सोचा कि वह घर छोड़ कर किसी शहर चला जाए, जहां वह चार पैसे कमा सके.

घर वालों को भला इस बात पर क्या ऐतराज हो सकता था. उन्होंने हामी भर दी तो 5 साल पहले घर वालों का आशीर्वाद ले कर नीरज नौकरी की तलाश में महानगर मुंबई पहुंच गया. वहां सांताक्रुज ईस्ट गोलीवार में उस के मामा रमाशंकर चौधरी रहते थे. उन का अपना स्वयं का व्यवसाय था. वह मामा के साथ रह कर छोटेमोटे काम करने लगा.

कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी से हुई तो घाटकोपर, थाना पंतनगर के सहकार नगर मार्केट स्थित न्यू सुविधा सुलभ शौचालय की उन्होंने जिम्मेदारी उसे सौंप दी. आधुनिक रूप से बना यह शौचालय काफी बड़ा था. उसी के टैरेस पर कर्मचारियों के रहने के लिए कई कमरे बने थे, उन्हीं में से एक कमरा नीरज ठाकुर को भी मिल गया.

न्यू सुविधा सुलभ शौचालय से नीरज को ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. जब उसे लगा कि वह शौचालय की आमदनी से परिवार की जिम्मेदारी उठा सकता है तो गांव जा कर वह पत्नी रूबी और बच्चों को भी ले आया. क्योंकि वह बच्चों को पढ़ालिखा कर उन का भविष्य सुधारना चाहता था.

नीरज परिवार के साथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के टैरेस पर बने कमरे में आराम से रह रहा था. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. लेकिन जैसे ही उस की जिंदगी में उस का दोस्त संतोष झा दाखिल हुआ, उस की सारी खुशियों में ग्रहण लग गया.

संतोष झा उसी के गांव का रहने वाला उस का बचपन का दोस्त था. वह मुंबई आया तो उस ने उसे अपने पास ही रख लिया. गांव का और दोस्त होने की वजह से संतोष नीरज के कमरे पर भी आताजाता था. वह उस की पत्नी रूबी को भाभी कहता था. इसी रिश्ते की वजह से दोनों में हंसीमजाक भी होता रहता था.

इसी हंसीमजाक में पत्नी बच्चों से दूर रह रहा संतोष धीरे धीरे रूबी की ओर आकर्षित होने लगा. मन की बात उस के हावभाव से जाहिर होने लगी तो रूबी को भांपते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. उसे अपनी ओर आकर्षित होते देख रूबी भी उस की ओर खिंचने लगी. इस से संतोष का साहस बढ़ा और वह कुछ ज्यादा ही रूबी के कमरे पर आनेजाने लगा.

घंटों बैठा संतोष रूबी से मीठीमीठी बातें करता रहता. रूबी को उस के मन की बात पता ही थी, इसलिए वह उस से बातें भी वैसी ही करती थी.

संतोष की ओर रूबी के आकर्षित होने की सब से बड़ी वजह यह थी कि नीरज जब से उसे मुंबई लाया था, उसी छोटे से कमरे में कैद कर दिया था. उस की दुनिया उसी छोटे से कमरे में कैद हो कर रह गई थी.

नीरज अपने काम में ही व्यस्त रहता था, ऐसे में उस का कोई मिलने जुलने वाला था तो सिर्फ संतोष. वही उस के सुखदुख का भी खयाल रखता था और जरूरतें भी पूरी करता था. क्योंकि नीरज के पास उस के लिए समय ही नहीं होता था. संतोष ही उस के बेचैन मन को थोड़ा सुकून पहुंचाता था.

संतोष शादीशुदा ही नहीं था, बल्कि उस के बच्चे भी थे. उसे नारी मन की अच्छी खासी जानकारी थी. अपनी इसी जानकारी का फायदा उठाते हुए वह जल्दी ही रूबी के बेचैन मन को सुकून पहुंचाते पहुंचाते तन को भी सुकून पहुंचाने लगा.

रूबी को उस ने जो प्यार दिया, वह उस की दीवानी हो गई. अब उसे नीरज के बजाय संतोष से ज्यादा सुख और आनंद मिलने लगा, इसलिए वह नीरज को भूलती चली गई.

मर्यादा की कडि़यां बिखर चुकी थीं. दोनों को जब भी मौका मिलता, अपने अपने अरमान पूरे कर लेते. इस तरह नीरज की पीठ पीछे दोनों मौजमस्ती करते रहे. लेकिन पाप का घड़ा भरता है तो छलक ही उठता है. उसी तरह जब संतोष और रूबी ने हदें पार कर दीं तो एक दिन नीरज की नजर उन पर पड़ गई. उस ने दोनों को रंगरलियां मनाते अपनी आंखों से देख लिया.

नीरज ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सात जन्मों तक रिश्ता निभाने का वादा करने वाली पत्नी एक जन्म भी रिश्ता नहीं निभा पाएगी. संतोष तो निकल भागा था, रूबी फंस गई. नीरज ने उस की जम कर पिटाई की. पत्नी की इस बेवफाई से वह अंदर तक टूट गया. बेवफा पत्नी से उसे नफरत हो गई.

इस के बाद घर में कलह रहने लगी. नीरज ने रूबी का जीना मुहाल कर दिया. रोजरोज की मारपीट और लड़ाई झगड़े से तो रूबी परेशान थी ही, आसपड़ोस में उस की बदनामी भी हो रही थी. वह इस सब से तंग आ गई तो इस से निजात पाने के बारे में सोचने लगी. उसे लगा, इस सब से उसे तभी निजात मिलेगी, जब नीरज न रहे. फिर क्या था, ठिकाने लगाने की उस ने साजिश रच डाली.

अपनी इस साजिश में रूबी ने अपने ही शौचालय पर काम करने वाले प्रशांत चौधरी को यह कह कर शामिल कर लिया कि नीरज ठाकुर के न रहने पर वह न्यू सुविधा सुलभ शौचालय को चलाने की जिम्मेदारी उसे दिलवा देगी. इस के अलावा वह उसे 50 हजार रुपए नकद भी देगी.

न्यू सुविधा सुलभ शौचालय चलाने की जिम्मेदारी  और 50 हजार रुपए के लालच में प्रशांत नीरज की हत्या में साथ देने को तैयार हो गया. इस तरह रूबी ने अपने सुहाग का सौदा कर डाला.

10 मार्च, 2014 की शाम नीरज ठाकुर ढाई सौ रुपए ले कर किसी काम से 2 दिनों के लिए बाहर चला गया. 12 मार्च की रात में लौटा तो पहले से रची गई साजिश के अनुसार शौचालय के टैरेस पर गहरी नींद सो रहे नीरज के दोनों पैरों को प्रशांत ने कस कर पकड़ लिया तो संतोष उस की छाती पर बैठ गया.

नीरज अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही रूबी ने सब्जी काटने वाले चाकू से उस का गला रेत दिया. कुछ देर छटपटा कर नीरज मर गया तो तीनों ने उस की लाश को सफेद चादर में पलेट कर टैरेस से नीचे फेंक दिया. इस के बाद तीनों नीचे आए और शौचालय के गड्ढे का ढक्कन खोल कर लाश उसी में डाल दी. इस के बाद ढक्कन को फिर से बंद कर दिया गया.

नीरज की हत्या कर के संतोष डोभीवली चला गया तो प्रशांत और रूबी अपने अपने कमरे पर चले गए. रूबी ने अपना अपराध छिपाने के लिए अगले दिन थाना पंतनगर जा कर पति की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी. लेकिन पुलिस की पैनी नजरों से वह बच नहीं सकी और पकड़ी गई.

रूबी से नीरज की हत्या की पूरी कहानी सुनने के बाद इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर संतोष झा को गिरफ्तार करने पहुंचे तो पता चला वह अपने गांव भाग गया है. एक पुलिस टीम तुरंत उस के गांव के लिए रवाना हो गई. संयोग से वह गांव में मिल गया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के मुंबई ले आई. मुंबई आने पर उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर ने रूबी, संतोष झा और प्रशांत चौधरी से पूछताछ के बाद भादंवि की धारा 302, 202 के तहत मुकदमा दर्ज कर तीनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेवफाई की लाश – भाग 1

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सिंगरा थाना क्षेत्र में एक गांव है बड़गांव. कल्लू निषाद अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे रमेश, दिनेश, संतोष के अलावा एक बेटी थी उमा. कल्लू किसान था. खेती की आय से परिवार चलता था.

समय बीतते कल्लू ने अपने सभी बच्चों की शादियां कर दीं. तीनों भाइयों ने पिता के रहते ही घर और खेती की जमीन का बंटवारा भी कर लिया. भाईबहनों में संतोष सब से छोटा था. उस का विवाह गुडि़या से हुआ था. गुडि़या के पिता रघुवीर निषाद गाजीपुर जिले के सुहावल गांव के रहने वाले थे. गुडि़या से शादी कर के संतोष बहुत खुश था.

बंटवारे के बाद संतोष के पास खेती की इतनी जमीन नहीं बची थी जिस से परिवार का गुजारा हो सके. फिर भी सालों तक हालात से उबरने की जद्दोजहद चलती रही.

धीरेधीरे वक्त गुजरता गया और इस गुजरते वक्त के साथ गुडि़या एक बेटे कृष्णा और 2 बेटियों की मां बन गई. गुडि़या 3 बच्चों की मां भले ही बन गई थी, लेकिन उस की देहयष्टि से ऐसा लगता नहीं था.

वह पति को अकसर खेती के अलावा कोई और काम करने की सलाह देती थी. लेकिन संतोष खेतीकिसानी में ही खुश था. बाहर जा कर नौकरी करने की बात न मानने पर संतोष का पत्नी के साथ झगड़ा होता रहता था.

संतोष अपनी जमीन पर खेती करने के साथसाथ दूसरों की जमीन भी बंटाई पर लेता था. तब कहीं जा कर परिवार का भरणपोषण हो पाता था. अगर बाढ़ या सूखे से फसल चौपट हो जाती तो उस के पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचता था. इस सब के चलते जब संतोष पर कर्ज हो गया तो उस ने गांव छोड़ दिया.

संतोष ने अपने गांव के कुछ लोगों से सुन रखा था कि कानपुर उद्योग नगरी है और वहां नौकरी आसानी से मिल जाती है. संतोष भी नौकरी की तलाश में कानपुर शहर पहुंच गया. वहां कई दिनों तक भागदौड़ करने के बाद संतोष को पनकी स्थित एक रिक्शा कंपनी में काम मिल गया. वह रिक्शा कंपनी किराए पर रिक्शा भी चलवाती थी.

संतोष मेहनती व ईमानदार था. जल्द ही उस ने वहां अपनी अच्छी छवि बना ली, उस की लगन और मेहनत को देख कर मालिक ने उसे किराए पर चलने वाले रिक्शों के चालकों से किराया वसूलने की जिम्मेदारी सौंप दी. इस के साथ ही वह किराए के रिक्शों की भी मरम्मत भी करता था. ज्यादा कमाने के चक्कर में संतोष नौकरी के बाद खुद भी रिक्शा चला लेता था.

संतोष महीने-2 महीने में कानपुर से घर लौटता था और 2-3 दिन घर रुक कर कानपुर चला जाता था. गुडि़या उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा जरूरत होती है. एक बार संतोष घर आया तो गुडि़या ने उस से कहा कि बच्चों की अब पढ़ने की उम्र है. गांव में रह कर पढ़ नहीं पाएंगे, अत: उसे व बच्चों को साथ ले चले.

संतोष को गुडि़या की बात सही लगी. उस ने पत्नी को आश्वासन दिया कि जब वह अगली बार आएगा, तो उसे व बच्चों को अपने साथ ले जाएगा. संतोष कानपुर पहुंच कर कमरे की खोज में जुट गया. काफी कोशिश के बाद उसे अरमापुर में किराए पर कमरा मिल गया.

कमरा मिल जाने के बाद वह पत्नी व बच्चों को कानपुर शहर ले आया. बच्चों का दाखिला उस ने अरमापुर के सरकारी स्कूल में करा दिया. गुडि़या शहर आई तो उस के रंगढंग ही बदल गए. वह खूब सजसंवर कर रहने लगी. अपने व्यवहार की वजह से उस ने आसपड़ोस की महिलाओं से भी अच्छे संबंध बना लिए थे.

संतोष जिस रिक्शा कंपनी में काम करता था, उसी में राजू नाम का युवक भी काम करता था. हालांकि राजू संतोष से कई साल छोटा था, फिर भी दोनों में खूब पटती थी. दोनों साथसाथ लंच करते थे. जरूरत पड़ने पर राजू संतोष की आर्थिक मदद भी कर देता था.

राजू पनकी स्थित रतनपुर कालोनी में अकेला रहता था. वैसे वह मूलरूप से इटावा जिले के अजीतमल गांव का रहने वाला था. उस के मातापिता की मृत्यु हो चुकी थी और भाइयों से उस की पटती नहीं थी. इसलिए कानपुर आ कर रिक्शा कंपनी में काम करने लगा था.

एक दिन संतोष ने राजू को बताया कि आज उस के बेटे कृष्णा का जन्मदिन है. उस ने किसी और को तो नहीं बुलाया लेकिन उसे जरूर आना है. अपनेपन की इस बात से राजू खुश हुआ. उस ने कहा, ‘‘संतोष भैया, मैं शाम को जरूर आऊंगा. शाम की पार्टी भी मेरी तरफ से रहेगी.’’

राजू दिन भर काम में व्यस्त रहा. शाम होते ही वह अपने घर पहुंचा और अच्छे कपड़े पहने. फिर सजसंवर कर संतोष के घर पहुंच गया. राजू के पहुंचने पर संतोष बहुत खुश हुआ. उस ने राजू का अपनी पत्नी से परिचय कराते हुए कहा कि यह मेरा अच्छा दोस्त और हमदर्द है.

गुडि़या ने मुसकरा कर राजू का स्वागत किया और बोली, ‘‘यह आप के बारे में बताते रहते हैं और बहुत तारीफ करते हैं.’’

गुडि़या ने राजू की आवभगत की. राजू भी गुडि़या की खूबसूरती में खो गया. कुल मिला कर गुडि़या पहली ही नजर में राजू के दिलोदिमाग पर छा गई.

इस के बाद वह किसी न किसी बहाने संतोष के साथ उस के घर जाने लगा. वह जब भी घर जाता, बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें जरूर ले कर आता. बच्चों को उन की मनपसंद चीजें मिलने लगीं तो वह ‘चाचा चाचा’ कह कर उस से घुलमिल गए.

जल्दी ही राजू ने संतोष के घर में अपनी पैठ बना ली. राजू का घर आना बच्चों को ही नहीं, बल्कि गुडि़या को भी अच्छा लगता था. राजू की लच्छेदार बातें उसे खूब भाती थीं. धीरेधीरे गुडि़या के मन में भी राजू के प्रति चाहत बढ़ गई.

एक रोज गुडि़या कमरे के बाहर खड़ी धूप में बाल सुखा रही थी, तभी अचानक राजू उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. गुडि़या ने उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछा, ‘‘अरे तुम, इस तरह अचानक, क्या ड्यूटी नहीं गए?’’

‘‘ड्यूटी गया तो था भाभी, पर तुम्हारी याद आई तो चला आया.’’ राजू ने मुसकरा कर जवाब दिया. उस दिन राजू को गुडि़या बहुत ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें गुडि़या के चेहरे पर जम गईं. यही हाल गुडि़या का भी था. राजू को इस तरह देखते हुए गुडि़या बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुझे? क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस सोच में डूबे हो?’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो देख रहा था कि खुले बालों में आप कितनी सुंदर लग रही हैं. वैसे एक बात कहूं, आप के अलावा पासपडोस में और भी हैं, पर आप जैसी सुंदर कोई नहीं है.’’

‘‘बस…बस रहने दो. बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे भैया तो कभी तारीफ नहीं करते. काम के बोझ से इतने थके होते हैं कि खाना खा कर बिस्तर पर लुढ़क जाते हैं और अगर उन से कुछ कहो तो किसी न किसी बात को ले कर झगड़ने लगते हैं.’’

‘‘अरे भाभी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. भैया तो लापरवाह हैं. शराब में डूबे रहते हैं, इसलिए तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’ राजू बोला.

‘‘तू तो मेरी बहुत कद्र करता है? हफ्ते बीत जाते हैं, झांकने तक नहीं आता. जा बहुत देखे हैं तेरे जैसे बातें बनाने वाले.’’ गुडि़या उसे उकसाते हुए बोली.

‘‘मुझे सचमुच आप की बहुत फिक्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं आप की खैरखबर लेने जल्दीजल्दी आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, मैं करूंगा.’’ राजू ने गुडि़या की चिरौरी सी की.

राजू की यह बात सुन कर गुडि़या खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तू आराम से चारपाई पर बैठ. मैं तेरे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में गुडि़या 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट व नमकीन ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के ही दिलोदिमाग में हलचल मची हुई थी. सच तो यह था कि गुडि़या गबरू जवान राजू पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, राजू भी मतवाली भाभी का दीवाना बन गया था.

दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद राजू अकसर गुडि़या से मिलने आने लगा. गुडि़या को उस का आना अच्छा लगता था. जल्द ही वह एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा.

बेटे ने बना दी मम्मी की ममी

भोपाल के बागसेवनिया थाने के अंतर्गत आने वाले विद्यासागर के सेक्टर-सी स्थित फ्लैट रामवीर  सिंह ने 6 लाख रुपए में खरीदा था. रामवीर सिंह शहर के ही नेहरू नगर में निधि नाम का एक रेस्टोरेंट चलाते थे. उन के रेस्टोरेंट को इस इलाके में हर कोई जानता है. वजह यह भी है कि उन का रेस्टोरेंट अच्छाखासा चलता था. मूलत: ग्वालियर के रहने वाले रामवीर सिंह सालों पहले रोजगार की तलाश में भोपाल आए थे और फिर यहीं के हो कर रह गए थे.

रेस्टोरेंट चल निकला और कुछ पैसा भी इकट्ठा हो गया तो उन्होंने उस पैसे को कहीं लगा देने की बात सोची. रामवीर के रेस्टोरेंट पर कभीकभार आने वाला एक ग्राहक अमित श्रीवास्तव भी था. अमित पर उन का ध्यान इसलिए भी गया था कि वह आमतौर पर शांत और गुमसुम सा रहता था.

उस की बोलचाल में रामवीर को ग्वालियर, चंबल का लहजा लगा तो उन के मन में उस के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई. दोनों में बातचीत होने लगी तो रामवीर को पता चला कि अमित ग्वालियर का ही रहने वाला है और विद्यानगर में अपनी बूढ़ी मां विमला देवी के साथ रहता है.

एक दिन यूं ही उन के बीच हुई बातों में रामवीर को पता चला कि अमित अपना फ्लैट बेचना चाहता है. यह बात रामवीर को इसलिए अच्छी लगी क्योंकि अपने रेस्टोरेंट की वजह से वह उसी इलाके में रहने के लिए फ्लैट खरीदना चाहते थे.

दोनों के बीच बात चली तो सौदा भी पट गया. 6 लाख रुपए में एक बड़े रूम, किचन और बालकनी वाला फ्लैट रामवीर को घाटे का सौदा नहीं लगा. लिहाजा उन्होंने अमित से बात पक्की कर ली.

जून 2018 में रामवीर ने फ्लैट देख कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली. इसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि इस संभ्रांत कायस्थ परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. फ्लैट विमला के नाम पर था, जिसे बेचने की सहमति उन्होंने रामवीर को दे दी थी. अमित पहले कहीं नौकरी करता था जो छूट गई थी. उस के घर में उस की बूढ़ी लकवाग्रस्त मां विमला श्रीवास्तव ही थीं, जिन की देखरेख की जिम्मेदारी अमित पर थी.

रजिस्ट्री के वक्त रामवीर ने अमित को ढाई लाख रुपए दिए थे और बाकी रकम भोपाल विकास प्राधिकरण यानी बीडीए में जमा कर दी थी, क्योंकि फ्लैट बीडीए का था. इस तरह अमित का हिसाब किताब बीडीए से चुकता हो गया तो कागजों में फ्लैट पर उन का मालिकाना हक हो गया.

जैसा सोचा था, अमित वैसा नहीं निकला

रजिस्ट्री के पहले ही अमित ने उन से कहा था कि वे मकान खाली करवाने की बाबत जल्दबाजी न करें, कहीं और इंतजाम होते ही वह उस में शिफ्ट हो जाएगा और फ्लैट की चाबी उन्हें सौंप देगा.

चूंकि अमित देखने में उन्हें ठीकठाक और शरीफ लगा था, इसलिए उस की बूढ़ी मां का लिहाज कर के इंसानियत के नाते उन्होंने अमित को कुछ मोहलत दे दी. वैसे आजकल खरीदार रजिस्ट्री तभी करवाता है, जब उसे मकान, दुकान या फ्लैट खाली मिलता है.

उस वक्त रामवीर को जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह मानवता उन्हें कितनी महंगी पड़ने वाली है. या कहें उन्होंने फ्लैट नहीं बल्कि एक आफत मोल ले ली है.

दरअसल, अमित उतना सीधासादा या भोला नहीं था, जितना कि वह देखने में लगता था. चूंकि सौदा बिना किसी अड़चन और दलाल के हो गया था, इसलिए उन्होंने किसी बात पर गौर नहीं किया, सिवाय इस के कि अब रजिस्ट्री तो उन के नाम हो ही चुकी है. जब अमित अपना कोई इंतजाम कर चाबी उन्हें सौंप देगा तो मकान की साफसफाई और रंगाईपुताई करा कर वे उस में रहने लगेंगे.

रजिस्ट्री के बाद भी अकसर अमित उन के रेस्टोरेंट पर आता रहता था और उन्हें आश्वस्त करता रहा था कि वह मकान ढूंढ रहा है और ढंग का मकान मिलते ही फ्लैट छोड़ देगा. जब वह कुछ दिन नहीं आता तो रामवीर उस से मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे.

जून से ले कर अगस्त, 2018 तक तो अमित उन के संपर्क में रहा, लेकिन फिर उस का फोन एकाएक बंद जाने लगा. इस से रामवीर थोड़ा घबराए, क्योंकि अमित ने उन्हें फ्लैट खाली करने की सूचना नहीं दी थी. जब उस का फोन लगातार बंद जाने लगा तो वे फ्लैट पर पहुंचे, लेकिन वहां हर बार उन का स्वागत लटकते ताले से होता.

अड़ोसपड़ोस में पूछताछ करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ. कोई भी यह नहीं बता पाया कि अमित और विमला कहां गए. अलबत्ता रामवीर को यह अंदाजा जरूर लग गया था कि अमित ने वादे के मुताबिक फ्लैट खाली नहीं किया है और उस का सामान भी वहीं रखा है.

कानूनन फ्लैट अब उन का हो चुका था, लेकिन ताला तोड़ कर उस में घुसना उन्हें ठीक नहीं लगा, इसलिए वे इंतजार करते रहे कि आज नहीं तो कल अमित उन से संपर्क करेगा. आखिर कोई इतना सामान तो छोड़ कर जाता नहीं. जब भी वह सामान लेने आएगा तब वे चाबी उस से ले लेंगे. यह सोचसोच कर वे खुद को तसल्ली देते रहे.

जब इंतजार और बेचैनी सब्र की हदें तोड़ने लगे और जनवरी तक अमित का कोई पता नहीं चला तो दिल कड़ा कर रामवीर ने फ्लैट का ताला तोड़ कर उस पर अपना हक लेने का फैसला कर लिया. आखिर उन की खून पसीने की गाड़ी कमाई का 6 लाख रुपया उस में लगा था.

दीवान में निकली लाश

रविवार 3 फरवरी को रामवीर ने डुप्लीकेट चाबी से फ्लैट का ताला खोला और साफसफाई की जिम्मेदारी अपने बेटे धर्मेंद्र और 2 मजदूरों को दे दी. इन लोगों ने जब फ्लैट में पांव रखा तो उस में चारों तरफ से बदबू आ रही थी. चूंकि 8-9 महीने से मकान बंद पड़ा था, इसलिए बदबू आना स्वाभाविक बात थी. बदबू से ध्यान हटा कर उन्होंने सफाई शुरू कर दी. चारों तरफ कचरा फैला था और सामान भी अस्तव्यस्त पड़ा था.

मजदूरों ने कमरे में रखे एक दीवान को बाहर निकालने की कोशिश की तो भारी होने की वजह से वह हिला तक नहीं. इस पर धर्मेंद्र ने मजदूरों से कहा कि पहले प्लाई हटा लो फिर दीवान बाहर रख देना. जब मजदूरों ने दीवान की प्लाई हटाई तो तेज बदबू का ऐसा झोंका आया कि वे लोग बेहोश होते होते बचे. उन्हें लगा कि शायद कोई चूहा दीवान के अंदर सड़ रहा है, इसलिए इतनी बदबू आ रही है.

चूहा ढूंढने के लिए मजदूरों ने दीवान में ठुंसे कपड़े हटाने शुरू किए तो कुछ साडि़यां कंबल और एकएक कर 11 रजाइयां निकलीं. आखिरी कपड़ा हटाते ही तीनों की चीख निकल गई. दीवान के अंदर चूहे की नहीं बल्कि किसी इंसान की लाश थी.

खुद को जैसेतैसे संभाल कर मजदूर आए और पुलिस को खबर दी. उस वक्त दोपहर के 2 बज चुके थे. बागसेवनिया थाने के पुलिसकर्मियों के अलावा मिसरोद थाने के एसडीपीओ दिशेष अग्रवाल भी सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की तो कई रहस्यमय और चौंका देने वाली बातें सामने आईं. फ्लैट विमला श्रीवास्तव के नाम था जो कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में नौकरी करती थीं. पति ब्रजमोहन श्रीवास्तव की मौत के बाद उन्हें उन के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई थी. परिवहन निगम घाटे की वजह से बंद हो गया था. सभी कर्मचारियों की तरह विमला को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी.

विमला इस फ्लैट में साल 2003 से अपने 32 वर्षीय बेटे अमित के साथ रह रही थीं. 60 वर्षीय विमला धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. अपार्टमेंट में हर कोई उन्हें जानता था. वे अकसर शाम को 4 बजे के लगभग कैंपस में बने मंदिर में पूजापाठ करने जाती थीं और रास्ते में जो भी मिलता था, उसे राधेराधे कहना नहीं भूलती थीं. मंदिर में बैठ कर वह सुरीली आवाज में भजन गाती थीं तो अपार्टमेंट के लोग मंत्रमुग्ध हो उठते थे.

अमित हो गया मनोरोगी

कभीकभी भगवान की मूर्ति के सामने बैठेबैठे वे रोने भी लगती थीं. विमला भगवान से अकसर अपने बेटे अमित के लिए सद्बुद्धि मांगा करती थीं और कभीकभी उन के मन की बात होंठों तक इस तरह आ जाती थी कि आसपास के लोग भी उसे सुन लेते थे. लेकिन भगवान कहीं होता तो उन की सुनता और अमित को रास्ते पर लाता.

श्रीवास्तव परिवार का मिलनाजुलना किसी से इतना नहीं था कि उसे पारिवारिक संबंधों के दायरे में कहा जा सके. विमला तो फिर भी कभीकभार अड़ोसी पड़ोसी से बतिया लेती थीं, लेकिन अमित किसी से कोई वास्ता नहीं रखता था. कुछ दिन पहले तक वह कहीं नौकरी पर जाता था, लेकिन कुछ दिनों से नौकरी पर नहीं जा रहा था. घर पर भी वह कम ही रहता था.

पड़ोसियों की मानें तो अमित विक्षिप्त यानी साइको था. उस की हरकतें अजीबोगरीब और असामान्य थीं. वह एक खास तरह की पिनक और सनक में रहता और जीता था, जो पिछले कुछ दिनों से कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. विमला को कुछ महीनों पहले लकवा मार गया था, जिस से वह चलने फिरने से भी मोहताज हो गई थीं. उन्हें किडनी की शिकायत भी रहने लगी थी. अब वह पहले की तरह न मंदिर जाती थीं और न ही किसी को उन के भजन सुनने को मिलते थे. चूंकि अमित किसी से संबंध नहीं रखना चाहता था, इसलिए अपार्टमेंट के लोग भी फटे में टांग अड़ाने से हिचकिचाते थे.

पर यह बात हर किसी को अखरती थी कि कई बार वह अपनी मां को मारने पीटने लगता था. ये आवाजें अब उन के फ्लैट से बाहर आती थीं तो लोग कलयुग है कह कर कान ढंकने की नाकाम कोशिश करने लगते थे. कान ढंकने पर एक मर्तबा आवाज न भी आए, लेकिन आंखें लोग बंद नहीं कर पाते थे. जब अमित विमला को मारता पीटता गैलरी में ला पटकता था तो यह देख कर लोगों का कलेजा फटने लगता था.

राक्षसी प्रवृत्ति का हो गया अमित

पूत कपूत बन चला था, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पाता था तो यह उन की किसी के मामले में दखल देने की आदत कम बल्कि बुजदिली ज्यादा थी. जवान हट्टाकट्टा बेटा उन के सामने ही बूढ़ी अपाहिज मां से मारपीट करता था और लोग तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं करते थे. निस्संदेह ये लोग सभ्य समाज का हिस्सा नहीं थे. हैवानियत और राक्षसी प्रवृत्ति वास्तव में क्या होती है, यह अमित की हरकतों से समझा जा सकता था.

पड़ोसी तो छोडि़ए, अमित ने नाते रिश्तेदारों से भी सबंध नहीं रखे थे. लाश मिलने के बाद यह बात तो एक कागज के जरिए पता चली कि विमला के ससुराल पक्ष के रिश्तेदार ग्वालियर में रहते हैं. बहरहाल, कई दिनों तक जब विमला नहीं दिखीं तो उन की कुछ सहेलियों ने उन की खोजखबर लेने की कोशिश की.

अपार्टमेंट की कुछ बुजुर्ग महिलाएं मई के महीने में उन से मिलने पहुंचीं तो अमित ने उन्हें बेइज्जत किया और दुत्कार कर भगा दिया था. उस दौरान वह अपनी सोती हुई मां का चेहरा कपड़े से ढक कर कह रहा था सो जा मां सो जा…

पुलिस ने जब फ्लैट की तलाशी ली तो उस के हाथ कई अहम सुराग लगे. लेकिन पहली चुनौती लाश की शिनाख्त की थी. लाश बिलकुल सड़ी गली नहीं थी, क्योंकि उसे रजाइयों, कंबल और साडि़यों से ढक कर रखा गया था, जिस से उस का संपर्क हवा से नहीं हो पाया था.

ममी के रूप में मिली लाश

ममी जैसी हालत वाली यह लाश विमला की ही है, इस के लिए पोस्टमार्टम जरूरी था जो एम्स भोपाल में ही कराया गया. पुलिस वालों का शुरुआती अंदाजा यही था कि लाश किसी महिला की ही होनी चाहिए, लेकिन वे दावे से यह बात नहीं कर पा रहे थे.

लाश निकालते वक्त नजारा बहुत वीभत्स था. लाश के पैर दीमक ने कुतर दिए थे और अस्थिपंजर पर मांस बिलकुल भी नहीं था. हड्डियों के ढांचे और ऊपरी परत को देख कर यह नहीं लग रहा था कि उस पर किसी धारदार हथियार का इस्तेमाल किया गया होगा. किसी तरह के चोट के निशान भी लाश पर नहीं थे.

पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो उसे विमला और अमित के आधार कार्ड के अलावा बैंक पासबुक, वोटर आईडी, गैस कनेक्शन के कागजात और बिजली के बिल के अलावा अमित की बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी भोपाल की एक मार्कशीट भी मिली जोकि कटीफटी थी.

सब से हैरान कर देने वाली चीज भांग की गोलियों के रैपर थे, जिन से लगता था कि अमित भांग के नशे का आदी था. अमित की शुरुआती पढ़ाई भोपाल के ही सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी.

विमला की एक सहेली जया एंटनी की मानें तो अमित निहायत ही वाहियात लड़का था, जो मैले कुचैले कपड़े पहने रहता था और कई दिनों तक नहाता भी नहीं था. खुद जया ने जब कई दिनों तक विमला को नहीं देखा था तो उन्होंने घटना के कोई 3 महीने पहले पुलिस को खबर की थी. उन्हें शक था कि कहीं विमला किसी अनहोनी का शिकार न हो गई हो. लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. जया ने यह शिकायत कब और किस से की थी, इस का विवरण वे नहीं दे पाईं.

जैसे ही ममी मिलने की खबर भोपाल से होती हुई देश भर में फैली तो सुनने वाले हैरान रह गए. हर किसी ने यही अंदाजा लगाया कि अमित ने ही अपनी मां विमला की हत्या की होगी. इस के पीछे लोगों की अपनी दलीलें भी थीं. कइयों को भोपाल का उदयन भी याद हो आया, जिस ने रायपुर में अपने मांबाप की हत्या कर उन की कब्र बना कर दफना दिया था. उदयन अब पश्चिम बंगाल की एक जेल में सजा काट रहा है.

विमला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उजागर हुआ कि लाश महिला की ही है और उस की हत्या करीब 3 महीने पहले की गई  थी. एम्स के 3 डाक्टरों की टीम ने मृतका की उम्र 50 साल के लगभग आंकी. पोस्टमार्टम के बाद लाश को विमला की ही मान कर उसे मोर्चरी में रखवा दिया गया. पुलिस की एक टीम अब तक ग्वलियर भी रवाना हो चुकी थी, जिस से विमला के परिजन अगर कोई मिलें तो उन्हें खबर कर दें ताकि वे अंतिम संस्कार कर दें. साथ ही अमित का सुराग ढूंढना भी जरूरी था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लाश के किसी अंग की हड्डी टूटी नहीं पाई गई. चूंकि लाश काफी पुरानी हो चुकी थी, इसलिए डाक्टर मौत की स्पष्ट वजह नहीं बता पाए.

अमित का नहीं लगा सुराग

पुलिस ने तेजी से अमित की खोजबीन शुरू कर दी, जिस से हत्या या मौत पर से परदा हट सके. लेकिन वह ऐसा गायब हुआ था जैसे गधे के सिर से सींग. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमित का कोई अतापता नहीं चला था. पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई, पर उस से भी कुछ खास हाथ नहीं लगा.

5 फरवरी को विमला के जेठ व भतीजा सुरेंद्र श्रीवास्तव ग्वालियर से भोपाल आए लेकिन वे भी कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए. सुरेंद्र का कहना था कि पिछले 25 सालों से विमला या अमित ने उन से कोई संपर्क नहीं रखा है.

उन का मायका भिंड जिले के मडगांव में है लेकिन अमित अपने मामा पक्ष से भी संबंध या संपर्क नहीं रखता था. विमला की 2 बेटियां भी थीं, जिन की काफी पहले मौत हो चुकी थी. सुरेंद्र ने भोपाल के सुभाष नगर विश्राम घाट पर विमला का अंतिम संस्कार किया.

मां की हत्या की हैरान कर देने वाली गुत्थी अब तभी सुलझेगी जब अमित का कुछ पता चलेगा. यह अंदाजा या शक हालांकि बेहद पुख्ता है कि उसी ने ही विमला की हत्या की होगी. लगता ऐसा है कि नशे का आदी हो गया अमित अपनी बीमार और अपाहिज मां के प्रति अवसाद के चलते क्रूर हो गया होगा और उन से छुटकारा पाने की गरज से उस ने इसी सनक में हत्या कर दी होगी.

चूंकि भरेपूरे घने इलाके से लाश ले जा कर कहीं ठिकाने लगाना आसान काम नहीं था, इसलिए अपना जुर्म छिपाने के लिए उस ने लाश को कपड़ों से ढक दिया और घर से भाग गया. लेकिन कहां गया और जिंदा है भी या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम.

पुलिस की इस थ्योरी में दम है कि अमित ने जातेजाते एक मोमबत्ती टीवी के ऊपर जला कर रख दी थी, जिस से घर ही जल जाए और लोग इसे एक हादसा समझें. लेकिन मोमबत्ती से टीवी आधा ही जल पाया और वह आग भी नहीं पकड़ पाया.

बढ़ते शहरीकरण, एकल होते परिवार, बेरोजगारी के अलावा हत्या का यह मामला एक युवा के निकम्मेपन और अहसान फरामोशी का ही जीताजागता उदाहरण है, जो इस कहावत को सच साबित करता प्रतीत होता है कि एक मां कई बच्चों को पाल सकती है लेकिन कई संतानें मिल कर एक मां की देखभाल भी नहीं कर सकतीं.

शक और कुंठा की शिकार बनी कौमुदी

दैविक ट्यूशन पढ़ रहा था तभी शाम 5 बजे उस के मोबाइल पर उस के पापा हेमंत चतुर्वेदी का फोन आया, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी नाराज हो कर कहीं चली गई हैं. मैं उन्हें ढूंढने जा रहा हूं. ट्यूशन के बाद तुम घर पर ही रहना. मैं भी कुछ देर में घर आ जाऊंगा.’’

दैविक के मम्मीपापा के बीच रोजाना झगड़ा होना आम बात थी इसलिए पापा की इस बात पर उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ और वह ट्यूशन के काम में बिजी हो गया.

ट्यूशन पढ़ने के बाद 13 साल का दैविक जब घर लौटा तो दरवाजे पर ताला बंद मिला. वह घर का पुराना ताला नहीं था बल्कि हाल ही में खरीदा हुआ एकदम नया दिख रहा था. घर के ताले की एक चाबी उस के पास रहती थी. लेकिन नया ताला लगा होने की वजह से वह उस चाबी से नहीं खुल सकता था.

मम्मीपापा कितनी देर में घर लौटेंगे, यह जानने के लिए दैविक ने सब से पहले मम्मी कौमुदी को फोन लगाया तो उन का फोन बंद मिला. इस के बाद उस ने पापा को फोन किया. उन का फोन लग गया.

दैविक ने जब उन से पूछा कि उन्हें घर लौटने में कितनी देर लगेगी. इस पर हेमंत ने कहा कि उन्हें घर आने में अभी टाइम लग सकता है. हेमंत ने कहा कि इस समय वह सेक्टर-18 रोहिणी में रेडलाइट के पास खड़ा है. फ्लैट की चाबी लेने के लिए उस ने दैविक से रोहिणी सैक्टर-18 पहुंचने को कहा.

दैविक उस समय रोहिणी सेक्टर-23 स्थित अपने फ्लैट के बाहर था. पापा से बात होने के बाद वह सेक्टर-18 पहुंच गया लेकिन निर्धारित जगह पर उसे पापा नहीं मिले तो उस ने फिर से फोन लगाया. तब हेमंत का फोन स्विच्ड औफ मिला. उस ने कई बार फोन मिलाया, हर बार स्विच्ड औफ ही मिला. परेशान हो कर दैविक फ्लैट पर लौट आया और मम्मीपापा के लौटने का इंतजार करने लगा.

काफी देर बाद तक जब उन में से कोई भी नहीं आया तो उस ने फिर दोनों के नंबर मिलाए. उन के फोन स्विच्ड औफ ही मिले. दैविक परेशान हो रहा था कि अब क्या करे? दैविक के मामा विपुल नौटियाल अंगरेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में उपसंपादक हैं. उस ने परेशानी की इस हालत में विपुल मामा को फोन किया और उन से जल्द आने को कहा.

विपुल उस समय दिल्ली के कस्तूरबा गांधी रोड पर स्थित अपने औफिस में थे. अपनी बहन बहनोई के बीच रोज रोज होने वाले झगड़े से 48 वर्षीय विपुल वाकिफ थे इसलिए भांजे की बात सुनने के बाद वह औफिस से छुट्टी ले कर उस के पास रोहिणी चले गए. वहां उन्हें दैविक रोता हुआ मिला. विपुल ने उसे चुप कराया और उन्होंने भी अपनी बहन और जीजा को फोन मिलाया. दोनों के फोन अब भी स्विच्ड औफ मिले.

पेशे से पत्रकार विपुल नौटियाल का माथा ठनका. उन्होंने सोचा कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. इसलिए उन्होंने उसी समय पुलिस कंट्रोलरूम के 100 नंबर पर फोन कर दिया. काल करने के कुछ समय बाद थाना बेगमपुर के थानाप्रभारी राजेश कुमार सहरावत एसआई मनदीप सिंह, कांस्टेबल विनोद कुमार आदि को ले कर रोहिणी सेक्टर-23 स्थित सप्तऋषि अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 110 पर पहुंच गए.

पुलिस ने दैविक और विपुल नौटियाल से बात की. उन से बात करने के बाद थानाप्रभारी को भी मामला संदिग्ध लगा. पुलिस ने सब से पहले फ्लैट से छानबीन शुरू करने के लिए दरवाजे पर लगे ताले को तोड़ा.

दरवाजा खोल कर पुलिस फ्लैट में गई तो डबलबेड पर कंबल ओढ़े कोई सोता हुआ दिखा. विपुल ने जैसे ही कंबल हटाया, उन की चीख निकल गई. वहां उन की छोटी बहन कौमुदी की लाश पड़ी थी. कौमुदी का गला कटा हुआ था और सिर भी फटा हुआ था.

बिस्तर भी खून से सना हुआ था. किसी ने कौमुदी का कत्ल करने के बाद उस की लाश को तसल्ली से ढक दिया था. चूंकि कौमुदी का पति हेमंत चतुर्वेदी फरार था और उस का फोन भी बंद आ रहा था, इसलिए विपुल ने अंदेशा जताया कि हेमंत ने ही वारदात को अंजाम दिया होगा.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और जिले के आला अधिकारियों को सूचना देने के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. पता चला कि हत्यारे का मकसद केवल कौमुदी की हत्या करना ही था क्योंकि घर के कीमती सामान अपनीअपनी जगह रखे हुए थे.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम ने भी मौके पर पहुंच कर कई सुबूत कब्जे में लिए. मौके की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद थानाप्रभारी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. यह बात 25 फरवरी, 2014 की है.

चूंकि मामला एक वरिष्ठ पत्रकार के परिवार से था इसलिए रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मामले की जांच थानाप्रभारी राजेश कुमार सहरावत ने करनी शुरू कर दी. इस के अलावा क्राइम ब्रांच भी संभावित हत्यारे हेमंत चतुर्वेदी की खोज में जुट गई.

क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त अशोक चांद ने स्पैशल यूनिट के एसीपी के.पी.एस. मल्होत्रा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में इंसपेक्टर पवन कुमार, सबइंसपेक्टर मनदीप सांगवान, हेडकांस्टेबल पृथ्वी सिंह, मुरलीधर, कांस्टेबल रोहित सोलंकी, विनोद कुमार, संजीव, अंकित, प्रदीप, राजेश आदि को शामिल किया गया.

क्राइम ब्रांच और थाना पुलिस की टीम हेमंत चतुर्वेदी को सरगर्मी से तलाशने लगीं. पुलिस अपने स्तर से उसे ढूंढती रही लेकिन उस का पता नहीं चला. इसी तरह दो-ढाई महीने बीत गए, दिल्ली में उस का कहीं सुराग नहीं मिला.

क्राइम ब्रांच के एसआई मनदीप सांगवान के दिमाग में विचार आया कि हेमंत चतुर्वेदी जब दिल्ली में नहीं मिल रहा तो वह कहीं अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड में तो नहीं छिप गया है. क्योंकि वह मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला था.

मनदीप सांगवान और कांस्टेबल विनोद कुमार ने उत्तराखंड में मौजूद अपने सूत्रों और उत्तराखंड पुलिस के सहयोग से हेमंत को खोजना शुरू किया. उन की यह कोशिश रंग लाई. पता चला कि वह कोटद्वार में वेश बदल कर रह रहा है.

इस खुफिया खबर के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने 24 मई, 2014 को कोटद्वार, उत्तराखंड पहुंच कर हेमंत चतुर्वेदी को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तो उस के बदले हुए रूप को देख कर वह खुद अचंभित रह गई. स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर उसे दिल्ली ले आई.

हेमंत से उस की पत्नी कौमुदी की हत्या की बाबत पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि पत्नी की हत्या उस ने खुद की थी. उस की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह दिमाग में पैदा हुए शक से उपजी हुई निकली.

कौमुदी मूलरूप से उत्तराखंड के गढ़वाल के रहने वाले बी.पी. नौटियाल की बेटी थी. बी.पी. नौटियाल बिक्रीकर विभाग में अधिकारी थे. उन की पोस्टिंग दिल्ली में थी. इसलिए दिल्ली के गुलाबी बाग स्थित मंदाकिनी अपार्टमेंट में परिवार के साथ रहते थे. यह सरकारी फ्लैट उन्हें सरकार की ओर से मिला हुआ था. बेटी कौमुदी के अलावा उन का एक बड़ा बेटा था विपुल नौटियाल.

बी.पी. नौटियाल एक अधिकारी थे, इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई. कौमुदी की इच्छा टीचर बनने की थी. उस ने सन 1997 में ग्रैजुएशन करने के बाद टीचिंग कोर्स किया. कोर्स करने के बाद उसे रोहिणी सैक्टर-25 स्थित रेयान इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. एक बड़े स्कूल में टीचर बनने के बाद वह बहुत खुश थी. वहां उसे 35 हजार रुपए प्रति महीना सैलरी मिलती थी.

बेटी सयानी होने के बाद अपने पैरों पर खड़ी हो गई तो पिता उस के लिए उपयुक्त लड़का खोजने लगे. किसी परिचित ने उन्हें हेमंत चतुर्वेदी के बारे में बताया. हेमंत चतुर्वेदी उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के बगौली गांव के रहने वाले जगदीश चतुर्वेदी का बेटा था जिन की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी.

हेमंत नोएडा स्थित एक प्राइवेट कंपनी में सेल्समैन था. उसे 15 हजार रुपए प्रति महीना सैलरी मिलती थी. वह अपने भाईबहनों, मां के साथ दिल्ली के पीतमपुरा में मंदाकिनी इन्क्लेव में रहता था.

बी.पी. नौटियाल ने जब हेमंत व उस का परिवार देखा तो उन्हें लड़का पसंद आ गया. हेमंत की सैलरी भले ही कौमुदी की सैलरी से आधी से भी कम थी, इस के बावजूद भी उन्होंने हेमंत को पसंद कर लिया.

कौमुदी को जब इस का पता चला कि जिस लड़के के साथ उस की शादी की बात चल रही है, उस की सैलरी कम है. इस के बावजूद भी उस ने शादी का विरोध नहीं किया. कौमुदी को विश्वास था कि उस के पिता ने जो फैसला लिया है वह किसी न किसी रूप में सही ही होगा.

दोनों तरफ से बात होने के बाद 30 जनवरी, 1998 को कौमुदी का विवाह हेमंत के साथ कर दिया गया. शादी के बाद कौमुदी चतुर्वेदियों के परिवार में रहने लगी. उन के साथ रहने के कुछ दिनों बाद ही उसे महसूस हो गया कि जिस हेमंत से उस की शादी हुई है, वह उस के लायक नहीं है. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. उसे जिंदगी उसी के साथ बितानी थी. लिहाजा वह खुद को वहां एडजस्ट करने की कोशिश करने लगी.

हेमंत की एक सब से बड़ी कमी यह थी कि वह रोज शराब पीता और कौमुदी से झगड़ता था. कौमुदी ने उस से शराब पीने को मना किया लेकिन हेमंत ने उस की एक नहीं सुनी. इस का नतीजा यह निकला कि इसी बात पर उन दोनों के बीच रोजरोज कलह होने लगी. हेमंत संयुक्त परिवार में रहता था. घर के और लोगों ने भी हेमंत को समझाने की कोशिश की लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

हेमंत के दोस्त यह बात जानते थे कि उस की पत्नी की सैलरी उस की सैलरी से दोगुने से भी ज्यादा है. वे उसे उलाहना देते कि वह पत्नी का गुलाम बन कर रहता होगा. और तो और रात को बीवी के पैर भी दबाने पड़ते होंगे. दोस्तों की ये बातें हेमंत के दिल में तीर की तरह चुभती चली जाती थीं. तब वह घर जा कर सारा गुस्सा कौमुदी पर उतारता था.

इसी बीच कौमुदी ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम दैविक रखा. बेटा पैदा होने के बाद वह उसी के पालनपोषण में व्यस्त रहने लगी. उस ने हेमंत द्वारा दी जाने वाली टेंशन को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया. उस की इस सहनशीलता को हेमंत ने गलत समझा. इसी का फायदा उठाते हुए उस ने कौमुदी को और ज्यादा टेंशन देनी शुरू कर दी.

हेमंत का एक चचेरा भाई था उमेश. वह कुछ दिनों तक तो यह सोच कर चुप रहा कि हेमंत अपने आप सुधर जाएगा लेकिन हेमंत ने परिवार में जब ज्यादा ही कलह करनी शुरू कर दी तो बड़ा भाई होने के नाते उस ने एक दिन हेमंत को समझाया और गृहस्थी में शांति बनाए रखने की बात कही. वह जानता था कि उन दोनों के बीच झगड़े की मुख्य वजह शराब है, इसलिए उस से शराब छोड़ने को कहा.

उमेश के समझाने के 2-4 दिन बाद तक तो हेमंत ठीक रहा, बाद में वह अपने पुराने ढर्रे पर आ गया. उमेश ने उसे फिर से समझाया. हेमंत भी बड़ा ढीठ निकला. उस ने उस की बातों को हवा में उड़ाना शुरू कर दिया बल्कि वह कौमुदी को और ज्यादा मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताडि़त करने लगा. यह बात उमेश से देखी नहीं जाती थी इसलिए वह हेमंत को डांट देता.

हेमंत शक्की किस्म का था. उमेश के ज्यादा दखल देने पर उसे शक हो गया कि कौमुदी का उमेश के साथ कोई चक्कर है तभी तो वह उस का ज्यादा पक्ष ले रहा है. अब हेमंत ने उमेश की बात माननी तो दूर उस का लिहाज करना भी बंद कर दिया. इस बात को ले कर हेमंत पत्नी को ताने भी देता.

उमेश ने कभी भी कौमुदी को गलत नजरों से नहीं देखा. कौमुदी भी उमेश को बड़ा भाई मानती थी इसलिए हेमंत के तानों ने दोनों के दिलों को ठेस पहुंचाई. इस आरोप ने उमेश को इतना आहत कर दिया कि वह अपने संयुक्त परिवार को छोड़ कर रोहिणी के ही सेक्टर-16 में किराए पर रहने लगा.

ससुराल में कौमुदी का पक्ष लेने वाला एक ही व्यक्ति था, वह भी वहां से चला गया तो कौमुदी की आंखों में आंसू भर आए. तब हमदर्दी का फाहा रखने के बजाय हेमंत ने शब्दों की छुरी से उस का जिगर छील दिया. जब बात बरदाश्त से बाहर होने लगी तो कौमुदी ने सारी बातें मायके वालों से कहीं.

पिता बी.पी. नौटियाल बहुत शरीफ थे. उन्होंने सोचा कि घरगृहस्थी में छोटीमोटी बातें चलती ही रहती हैं, वह कुछ दिनों में सामान्य हो जाएंगी. बेटी की गृहस्थी में उन्होंने दखल देना उचित नहीं समझा.

पहले तो हेमंत ही पत्नी पर चरित्रहीनता का आरोप लगाता था, बाद में उस के परिवार वाले भी उस पर कलंक लगाने की मुहिम में शामिल हो गए. घर वालों का साथ मिलने पर हेमंत के हौसले बुलंद हो गए. कौमुदी के पिता ने शादी में 6 लाख रुपए से अधिक खर्च किए थे. वैसे तो उन्होंने जरूरत का सभी सामान दिया था, लेकिन कार नहीं दी थी.

हेमंत और उस के घर वाले अब कौमुदी से कार की डिमांड करने लगे. कौमुदी ने यह बात पिता से कही. बी.पी. नौटियाल चाहते थे कि किसी भी तरह उन की बेटी खुश रहे. उन के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह दामाद को नई कार खरीद कर दे सकें. पुरानी कार खरीदने के लिए उन्होंने 50 हजार रुपए जैसेतैसे इकट्ठे कर के हेमंत को दे दिए.

हेमंत ने उन पैसों से कार नहीं खरीदी बल्कि उन से वह अपने दूसरे शौक पूरे करने लगा. इस के बाद भी हेमंत का पत्नी के प्रति व्यवहार नहीं बदला. वह पहले की तरह उसे ताने देता रहा. इतना ही नहीं, उस ने सन 2003 में कौमुदी को मारपीट कर घर से निकाल दिया और कहा कि यदि उसे यहां रहना है तो मायके से 5 लाख रुपए नकद लाए.

कौमुदी बेटे को ले कर मायके चली गई. इस के बाद कौमुदी ने ठान लिया था कि जिस घर में उस के लिए इज्जत नहीं, वहां रहने से क्या फायदा. वह अब ससुराल नहीं जाएगी लेकिन अत्याचार करने वालों को वह सबक सिखा कर रहेगी.

मायके वालों से मशविरा करने के बाद वह 16 दिसंबर, 2003 को उत्तरी दिल्ली के थाना सराय रोहिल्ला पहुंच गई और हेमंत व उस के घर वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज करा दिया. उस की प्राथमिकी पर पुलिस ने काररवाई नहीं की बल्कि नामजद आरोपियों ने कोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली.

पुलिस से कौमुदी को जो उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हो सकी थी. उस पर जुल्म करने वाले अब खुलेआम सीना चौड़ा कर के घूम रहे थे. उस ने ससुराल पक्ष के नामजद लोगों के खिलाफ कोर्ट में दहेज उत्पीड़न का वाद प्रस्तुत कर दिया.

कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ एक्शन लेते हुए सम्मन जारी कर दिए और मुकदमे की काररवाई शुरू हो गई. इसी दौरान इस पूरे मामले में एक नया मोड़ आ गया. हेमंत ने भी कोर्ट में एक मामला दायर कर दिया. उस ने बताया कि नोएडा की जिस कंपनी में वह नौकरी करता था, वहां से उस की नौकरी छूट गई है. अब वह बेरोजगार है. आजीविका चलाने के लिए उस के पास कोई साधन नहीं है. उस ने कोर्ट से दरख्वास्त की कि पत्नी से उसे गुजारा भत्ता दिलाया जाए.

कई साल तक मुकदमा चलने के बाद जीत हेमंत की ही हुई. कोर्ट ने हेमंत चतुर्वेदी को बेरोजगार मानते हुए 30 अक्तूबर, 2012 को फैसला सुनाया कि कौमुदी पति को 15 हजार रुपए प्रतिमाह देगी. कोर्ट के आदेश पर कौमुदी कर भी क्या सकती थी. उसे अपनी लगभग आधी सैलरी निकम्मे पति को देनी पड़ती. वह परेशान थी कि क्या करे. 15 हजार रुपए बचाने के लिए कौमुदी ने हेमंत से समझौता करना मुनासिब समझा.

उसे पति से समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद हेमंत पत्नी और बेटे के साथ रोहिणी सेक्टर-23 में सप्तऋषि अपार्टमेंट में रहने लगा. उधर कौमुदी के बड़े भाई विपुल नौटियाल दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अंगरेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में उपसंपादक हो गए थे. पिता बी.पी. नौटियाल भी रिटायर हो चुके थे जिस से उन्हें अपना सरकारी आवास छोड़ना पड़ा. विपुल ने वसुंधरा इनक्लेव में फ्लैट ले लिया था. वह बेटे के साथ ही रहने लगे.

हेमंत कुछ दिनों तो ठीक रहा. इस के बाद उस ने पुराना रवैया अख्तियार कर लिया. उस ने कौमुदी और उमेश के संबंधों को ले कर फिर से अंगुली उठानी शुरू कर दी. यानी उन के बीच फिर से कलह शुरू हो गई. 25 फरवरी, 2014 को भी इसी मुद्दे पर दोनों के बीच बहस छिड़ गई. हेमंत गुस्से में आगबबूला हो गया और उस ने पास में पड़ा हथौड़ा उठा कर कौमुदी के सिर पर दे मारा.

एक ही वार में कौमुदी का सिर फट गया. वह बेड पर गिर गई और सिर से तेजी से खून निकलने लगा. यह देख कर हेमंत घबरा गया. उसे लगा यदि पत्नी को इस हाल में छोड़ देगा तो जीवित बचने पर वह उसे जेल भिजवा देगी. खुद को बचाने के लिए वह किचन में गया और वहां से तेज धार वाला चाकू ले आया.

कौमुदी बेड पर बेहोश सी पड़ी थी. तभी हेमंत ने उस का गला काट दिया. इस के बाद उस की मौत हो गई. हेमंत का इरादा लाश को ठिकाने लगाना था. लिहाजा वह अंधेरा होने का इंतजार करने लगा. तब तक फ्लैट में कोई न आए, इसलिए वह बाजार से नया ताला खरीद लाया और दरवाजे पर लगा कर वहां से चला गया.

घर का पुराना ताला उस ने इसलिए नहीं लगाया क्योंकि पुराने ताले की एक चाबी बेटे दैविक के पास थी. उस ने बेटे को कौमुदी के कहीं चले जाने का इसलिए फोन किया था कि वह फ्लैट पर देर से आए. लेकिन वह ट्यूशन पढ़ कर शाम 6 बजे के करीब ही फ्लैट पर पहुंच गया था और बाद में भेद खुल गया.

हेमंत चतुर्वेदी से पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच ने उसे थाना बेगमपुर पुलिस के हवाले कर दिया क्योंकि मामला उसी थाने का था. थाना पुलिस ने भी हेमंत चतुर्वेदी से विस्तार से पूछताछ की और उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक हेमंत चतुर्वेदी जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

देवर को बचाने के लिए ननद की हत्या

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गैनी गांव में छोटेलाल कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में उन की पत्नी रामवती के अलावा 2 बेटे नरेश व तालेवर, 2 बेटियां सुनीता व विनीता थीं. छोटेलाल खेती किसानी का काम करते थे. इसी की आमदनी से उन्होंने बच्चों की परवरिश की. बच्चे शादी लायक हो गए तो उन्होंने बड़े बेटे नरेश का विवाह नन्ही देवी नाम की युवती से करा दिया.

कालांतर में नन्ही ने एक बेटे शिवम व एक बेटी सीमा को जन्म दिया. बाद में उन्होंने बड़ी बेटी सुनीता का भी विवाह कर दिया. अब 2 बच्चे शादी के लिए रह गए थे. छोटेलाल उन दोनों की शादी की भी तैयारी कर रहे थे.

इसी बीच दूसरे बेटे तालेवर ने ऐसा काम कर दिया, जिस से उन की गांव में बहुत बदनामी हुई. तालेवर ने सन 2014 में अपने ही पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ रेप कर दिया था. जिस के आरोप में उस को जेल जाना पड़ा था.

उधर छोटेलाल की छोटी बेटी विनीता भी 20 साल की हो चुकी थी. यौवन की चमक से उस का रूपरंग दमकने लगा था. वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, पर उसे फिल्म देखना, फैशन के अनुसार कपड़े पहनना अच्छा लगता था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे ही विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो फिल्मों की और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही होती थी. यह उम्र का तकाजा भी था.

विनीता के खयालों में भी एक अपने दीवाने की तसवीर थी, लेकिन यह तसवीर कुछ धुंधली सी थी. खयालों की तसवीर के दीवाने को उस की आंखें हरदम तलाशती थीं. वैसे उस के आगेपीछे चक्कर लगाने वाले युवक कम नहीं थे, लेकिन उन में से एक भी ऐसा न था, जो उस के खयालों की तसवीर में फिट बैठता हो.

बात करीब 2 साल पहले की है. विनीता अपने पिता के साथ एक रिश्तेदारी में बरेली के कस्बा आंवला गई, जो उस के यहां से करीब 13 किलोमीटर दूर था. वहां से वापसी में वह आंवला बसअड्डे पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी तभी एक नवयुवक जोकि वेंडर था, पानी की बोतल बेचते हुए उस के पास से गुजरा.

उस युवक को देख कर विनीता का दिल एकाएक तेजी से धड़कने लगा. निगाहें तो जैसे उस पर ही टिक कर रह गई थीं. उस के दिल से यही आवाज आई कि विनीता यही है तेरा दीवाना, जिसे तू तलाश रही थी. उस युवक को देखते ही उस के खयालों में बनी धुंधली तसवीर बिलकुल साफ हो गई.

वह उसे एकटक निहारती रही. उसे इस तरह निहारता देख कर वह युवक भी बारबार उसी पर नजर टिका देता. जब उन की निगाहें आपस में मिल जातीं तो दोनों के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगती.

उसी समय बस आ गई और विनीता अपने पिता के साथ बस में बैठ गई. वह पिता के साथ बस में बैठ जरूर गई थी, पर पूरे रास्ते उस की आंखों के सामने उस युवक का चेहरा ही घूमता रहा. विनीता उस युवक के बारे में पता कर के उस से संपर्क करने का मन बना चुकी थी.

अगले ही दिन सहेली के यहां जाने का बहाना बना कर विनीता आंवला के लिए निकल गई. बसअड्डे पर खड़े हो कर उस की आंखें उसे तलाशने लगीं. कुछ ही देर में वह युवक विनीता को दिख गया. पर उस युवक ने विनीता को नहीं देखा था.

विनीता उस पर नजर रख कर उस का पीछा कर के उस के बारे में जानने की कोशिश में लग गई. कुछ देर में ही उस ने उस युवक के बारे में किसी से जानकारी हासिल कर उस का नाम व मोबाइल नंबर पता कर लिया. उस युवक का नाम हरि था और वह अपने परिवार के साथ आंवला में ही रहता था.

एक दिन हरि सुबह के समय अपनी छत पर बैठा था, तभी उस का मोबाइल बज उठा. हरि ने स्क्रीन पर बिना नंबर देखे ही काल रिसीव करते हुए हैलो बोला.

‘‘जी, आप कौन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी युवती की मधुर आवाज सुनाई दी तो हरि चौंक पड़ा.

वह बोला, ‘‘आप कौन बोल रही हैं और आप को किस से बात करनी है?’’

‘‘मैं विनीता बोल रही हूं. मुझे अपनी दोस्त से बात करनी थी, लेकिन लगता है नंबर गलत डायल हो गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा होगा तो दोबारा गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘जी नहीं, आम आदमी हूं.’’

‘‘किसी के लिए तो खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है, मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी थी हरि की. वह जोर से हंसा, फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’ हरि ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल विनीता को हरि का मोबाइल नंबर तो मिल गया था. लेकिन विनीता के पास खुद का मोबाइल नहीं था, इसलिए उस ने अपनी सहेली का मोबाइल फोन ले कर बात की थी. पहली ही बातचीत में दोनों काफी घुलमिल गए थे. दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों एकदूसरे के प्रति अपनापन महसूस करने लगे.

फिर उन के बीच बराबर बातें होने लगीं.  विनीता ने हरि को बता दिया था कि उस दिन अनजाने में उस के पास काल नहीं लगी थी बल्कि उस ने खुद उस का नंबर हासिल कर के उसे काल की थी और उन की मुलाकात भी हो चुकी है.

जब हरि ने मुलाकात के बारे में पूछा तो विनीता ने आंवला बसअड्डे पर हुई मुलाकात का जिक्र कर दिया. हरि यह जान कर बहुत खुश हुआ क्योंकि उस दिन विनीता का खूबसूरत चेहरा आंखों के जरिए उस के दिल में उतर गया था.

इस के बाद दोनों एकदूसरे से रूबरू मिलने लगे. इसी बीच एक मुलाकात में दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. दिनप्रतिदिन उन का प्यार प्रगाढ़ होता जा रहा था. विनीता तो दीवानगी की हद तक दिल की गहराइयों से हरि को चाहने लगी थी.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. प्रेम दीवानों के प्यार की खुशबू जब जमाने को लगती है तो वह उन दीवानों पर तरहतरह की बंदिशें लगाने लगता है. यही विनीता के परिजनों ने किया. विनीता के घर वालों को पता चल गया कि वह जिस लड़के से मिलती है, वह बदमाश टाइप का है.

इसलिए उन्होंने विनीता पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए. लेकिन तमाम बंदिशों के बाद भी विनीता हरि से मिलने का मौका निकाल ही लेती थी.

धीरेधीरे दोनों के इश्क के चर्चे गांव में होने लगे. गांव के लोगों ने कई बार विनीता को हरि के साथ देखा. इस पर वह तरहतरह की बातें बनाने लगे. गांव वालों के बीच विनीता के इश्क के चर्चे होने लगे. इस से छोटेलाल की गांव में बदनामी हो रही थी.

घरपरिवार के सभी लोगों ने विनीता को खूब समझाया लेकिन प्यार में आकंठ डूबी विनीता पर इस का कोई असर नहीं हुआ. पूरा परिवार गांव में हो रही बदनामी से परेशान था. रोज घर में कलह होती लेकिन हो कुछ नहीं पाता था.

29 सितंबर की सुबह करीब 8 बजे विनीता अपनी भाभी नन्ही देवी के साथ दिशामैदान के लिए खेतों की तरफ गई थी. कुछ समय बाद नन्ही देवी घर लौटी तो विनीता उस के साथ नहीं थी. घर वालों ने उस से विनीता के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जब वह दिशामैदान के बाद बाजरे के खेत से बाहर निकली तो उसे विनीता नहीं दिखी.

उस ने सोचा कि विनीता शायद अकेली घर चली गई होगी. लेकिन यहां आ कर पता चला कि वह यहां पहुंची ही नहीं है. नन्ही ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विनीता अपनी किसी सहेली के यहां चली गई हो.

कुछ ही देर में गांव के एक किसान चंद्रपाल ने विनीता के घर पहुंच कर बताया कि रामानंद शर्मा के बाजरे के खेत में विनीता की लाश पड़ी है. उस समय छोटेलाल पत्नी के साथ डाक्टर के पास दवा लेने गए थे. छोटेलाल के धान के खेत के बराबर में ही रामानंद का बाजरे का खेत था.

यह खबर सुन कर सभी घर वाले लगभग दौड़ते हुए घटनास्थल पर पहुंचे. विनीता की लाश देख कर सब बिलखबिलख कर रोने लगे. इसी बीच वहां गांव के काफी लोग पहुंच गए थे. ग्रामप्रधान भी मौके पर थे. उन्होंने घटना की सूचना स्थानीय थाना अलीगंज को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. विनीता के पेट में गोली लगने के निशान थे. निशान देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी ने काफी नजदीक से गोली मारी है. इस का मतलब था कि हत्यारे को विनीता काफी अच्छी तरह से जानती थी. इसी बीच रोतेबिलखते छोटेलाल और उन की पत्नी भी वहां पहुंच गए.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही और बाकी घर वालों से आवश्यक पूछताछ की. फिर विनीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर उन्होंने छोटेलाल कश्यप की लिखित तहरीर पर गांव के ही इंद्रपाल, हरपाल, उमाशंकर और धनपाल के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. तहरीर में हत्या का कारण इन लोगों से रंजिश बताया गया था.

थानाप्रभारी सिंह ने केस की जांच शुरू की तो पता चला कि विनीता का भाई तालेवर अपने मकान के पीछे रहने वाली युवती से दुष्कर्म के मामले में 2014 से जेल में बंद है. पुलिस को पता चला कि जिस युवती ने रेप का आरोप लगाया था, छोटेलाल ने उस युवती के पिता को भी विनीता की हत्या में आरोपी बनाया गया था.

साथ ही विनीता के किसी हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात पता चली. बेटी की इस हरकत से घर वाले काफी परेशान थे. इस से पुलिस का शक विनीता के परिवार पर केंद्रित हो गया.

थानाप्रभारी ने सोचा कि कहीं एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश तो नहीं की गई. विनीता से छुटकारा तो मिलता ही साथ ही तालेवर को जेल भेजने वाले को भी जेल की चारदीवारी में कैद कराने में सफल हो जाते.

पूरी घटना की जांच में यही निष्कर्ष निकला कि परिवार का ही कोई सदस्य इस घटना में शामिल है. लेकिन मांबाप तो थे नहीं, उन का बेटा नरेश गांव में नहीं था. बची बेटे की पत्नी नन्ही जो विनीता के साथ ही गई थी और अकेली वापस लौटी थी. नन्ही पर ही हत्या का शक गहराया. थानाप्रभारी ने गांव के लोगों से पूछताछ की तो ऐसे में एक व्यक्ति ऐसा मिल गया, जिस ने ऐसा कुछ बताया कि थानप्रभारी की आंखों में चमक आ गई.

इस के बाद 2 अक्तूबर को उन्होंने नन्ही देवी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. जब महिला आरक्षी की उपस्थिति में नन्ही से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई. उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम के साथ मिल कर किए जाने की बात स्वीकार कर ली और पूरी कहानी बयान कर दी.

विनीता के हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात से घर का हर कोई नाराज था. समझाने के बावजूद भी विनीता नहीं मान रही थी. गांव में हो रही बदनामी से घर वालों का जीना मुहाल हो गया था.

नन्ही अपनी ननद विनीता की कारगुजारियों से कुछ ज्यादा ही खफा थी. वह अपने परिवार को बदनामी से बचाना चाहती थी. इसलिए उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम से कराने का फैसला कर लिया.

इस हत्या में उस इंसान को भी फंसा कर  जेल भेजने की योजना बना ली, जिस की बेटी से दुष्कर्म के मामले में उस का देवर तालेवर जेल में बंद था. उस इंसान के जेल जाने पर उस से समझौते का दबाव बना कर वह देवर तालेवर को जेल से छुड़ा सकती थी. घर में एक .315 बोर का तमंचा पहले से ही रखा हुआ था. नन्ही ने शिवम के साथ मिल कर विनीता की हत्या की पूरी योजना बना ली.

29 सितंबर की सुबह 8 बजे नन्ही ने बेटे शिवम को तमंचा ले कर घर से पहले ही भेज दिया. फिर विनीता को साथ ले कर दिशामैदान के लिए खुद घर से निकल पड़ी. विनीता को ले कर नन्ही अपने धान के खेत के बराबर में बाजरे के खेत में पहुंची. शिवम वहां पहले से मौजूद था.

विनीता के वहां पहुंचने पर शिवम ने तमंचे से विनीता पर फायर कर दिया. गोली सीधे विनीता के पेट में जा कर लगी. विनीता जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पी, फिर शांत हो गई.

विनीता की लीला समाप्त करने के बाद शिवम ने अपने धान के खेत में तमंचा छिपाया और वहां से छिपते हुए निकल गया. नन्ही भी वहां से घर लौट गई. लेकिन पुलिस के शिकंजे से वह न अपने आप को बचा सकी और न ही अपने बेटे को.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही को मुकदमे में 120बी का अभियुक्त बना दिया. शिवम की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

आवश्यक लिखापढ़ी के बाद नन्ही को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया, और शिवम को बाल सुधार गृह.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में शिवम नाम परिवर्तित है.

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या

मौसी के हुस्न का शिकारी

नय अपने दोस्त पिंटू के साथ होटल खोलना चाहता था, इसलिए उसे 15 हजार रुपयों की सख्त जरूरत थी. उस ने पिंटू को पूरा भरोसा दिलाया था कि रुपयों  की व्यवस्था कर लेगा. क्योंकि उसे विश्वास था कि उस की मौसी इंद्रा उसे रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने तो रुपए देने से साफ मना कर दिया था. यह बात विनय को बड़ी नागवार लगी थी, क्योंकि मौसी के इस तरह मना कर देने से दोस्त के सामने उस की बड़ी बेइज्जती हुई थी.

इस बात को ले कर पिंटू अकसर उस की हंसी उड़ाने लगा था. मजबूरी में विनय खून का घूंट पी कर रह जाता था. तब उसे मौसी पर बहुत गुस्सा आता था. धीरेधीरे उस का यह गुस्सा इस कदर बढ़ता गया कि उस ने धोखा देने वाली मौसी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. वह उस की हत्या कर के उस के घर में रखी नकदी और गहने लूट लेना चाहता था.

हमेशा की तरह 27 जनवरी को जब पिंटू ने विनय को चिढ़ाने के लिए रुपयों के बारे में पूछा तो उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘चिंता मत करो दोस्त, अब बहुत जल्द रुपयों की व्यवस्था हो जाएगी.’’

‘‘वह कैसे, मौसी रुपए देने को तैयार हो गई क्या? पहले तो उस ने मना कर दिया था, अब कैसे राजी हो गई?’’ पिंटू ने उसे जलाने के लिए मुसकराते हुए कहा.

‘‘भई सीधी अंगुली से घी न निकले तो अंगुली टेढ़ी कर देनी चाहिए. मौसी सीधे रुपए नहीं दे रही न, देखो अब मैं कैसे उस से रुपए लेता हूं.’’ विनय ने कहा.

‘‘भई, जरा हमें भी तो बता मौसी से कैसे रुपए लेगा?’’ पिंटू ने हैरानी से पूछा.

‘‘मौसी के पास काफी गहने हैं. घर खर्च के लिए 10-5 हजार रुपए हमेशा घर में रखे ही रहते हैं. इस के अलावा आलोक भैया बिजनैस करते हैं, उन के भी कुछ न कुछ रुपए रखे ही रहते होंगे. मैं सोच रहा हूं मौसी की हत्या कर के उन के गहने और रुपए हथिया लूं.’’ विनय ने कहा, ‘‘अब तू बता, तेरा क्या इरादा है? इस मामले में तू मेरा साथ देगा या नहीं?’’

‘‘यार जिंदगी का सवाल है. इसलिए मैं तेरा साथ देने को तैयरा हूं. लेकिन पकड़े गए तो जिंदगी बनने के बजाय बिगड़ जाएगी.’’ पिंटू ने चिंता व्यक्त की.

‘‘मैं ने ऐसी योजना बना रखी है कि किसी को पता ही नहीं चलेगा. फिर मौसी पूरे दिन घर में अकेली ही रहती हैं. हम अपना काम कर के आराम से चुपचाप चले जाएंगे. बस इतना ध्यान रखना होगा कि कोई पड़ोसी न देखने पाए.’’ विनय ने कहा.

पिंटू ने हामी भर दी तो विनय ने उसे अपनी योजना समझा कर अगले दिन यानी 28 जनवरी को ही उसे अंजाम देने की तैयारी कर ली. अगले दिन सुबह ही पिंटू विनय के घर पहुंच गया. दोनों ट्रक से उन्नाव के लिए रवाना हो गए. विनय की मौसी का घर उन्नाव बाईपास के पूरननगर में था. इसलिए दोनों बाईपास पर ही उतर गए. वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े.

जिस समय विनय पिंटू के साथ अपनी मौसी इंद्रा के घर पहुंचा, उस के मौसा प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव अपनी ड्यूटी पर राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय जा चुके थे तो मौसेरा भाई आलोक लुकइयाखेड़ा स्थित अपनी कंप्यूटर की दुकान पर. इंद्रा घर में अकेली ही थी. विनय ने घंटी बजाई तो उन्होंने झट दरवाजा खोल दिया.

विनय और पिंटू को देख कर इंद्रा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. आज बहुत दिनों बाद आए हो?’’

‘‘हां, आप से मिले बहुत दिन हो गए थे, इसीलिए सोचा कि चलो आज मौसी से मिल आते हैं.’’ कहते हुए विनय अंदर आ गया.

‘‘बहुत अच्छा किया. इधर कई दिनों से तुम्हारी याद आ रही थी.’’ इंद्रा ने विनय के कंधे पर हाथ रख कर सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर इंद्रा रसोई में चाय बनाने चली गई तो विनय और पिंटू अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. विनय ने टीवी की आवाज तेज कर दी, जिस से हत्या करते समय मौसी चीखे भी तो उस की आवाज उसी में दब जाए. इंद्रा ने चाय और नमकीन ला कर रखी तो सभी खानेपीने लगे.

चाय पीते हुए विनय ने कहा, ‘‘मौसी, मैं आप से होटल खोलने के लिए 15 हजार रुपए कब से मांग रहा हूं. लेकिन आप दे नहीं रहीं हैं. आप के अलावा कोई दूसरा मेरी मदद नहीं कर सकता, इसलिए आप कैसे भी रुपयों की व्यवस्था कर दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें न जाने कितने रुपए दे चुकी हूं, इस का तुम्हारे पास कोई हिसाब है. जब देखो, तब तुम रुपए लेने आ जाते हो,’’ इंद्रा ने नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आदत पड़ गई है, मुझ से रुपए ऐंठने की. लेकिन अब मैं तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी. अगर तुम ने ज्यादा परेशान किया तो तुम्हारी शिकायत तुम्हारे मौसा से कर दूंगी.’’

मौसी की बातें सुन कर विनय गुस्से से पागल हो उठा. वह तो पिंटू के साथ उस की हत्या की योजना बना कर ही आया था, इसलिए फुरती से उठा और सामने बैठी मौसी को दबोच कर बोला, ‘‘तू मौसा से मेरी शिकायत करेगी, शिकायत तो तब करेगी, जब जिंदा रहेगी. मैं अभी तुझे जान से मारे देता हूं.’’

कह कर विनय ने अपने गले में लिपटा मफलर निकाला और मौसी के गले में लपेट कर कसने लगा. दबाव से इंद्रा की सांस रुकने लगी तो वह छटपटाने लगी. उस ने बचाव के लिए हाथपैर बहुत मारे, लेकिन गुस्से में पागल विनय फंदे को कसता गया. कुछ देर छटपटाने के बाद इंद्रा का शरीर शिथिल पड़ गया.

विनय को लगा कि मौसी का खेल खत्म हो गया है तो उस ने मफलर छोड़ दिया. उस के मफलर छोड़ते ही इंद्रा लुढ़क गई. विनय के साथ आए पिंटू को लगा कि अगर इंद्रा जिंदा रह गई तो उन का भेद खुल जाएगा. उस के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह सोच कर पिंटू ने घर में रखी सिल उठा कर इंद्रा के सिर पर पटक दिया, जिस से उस का सिर फट गया.

इंद्रा की हत्या करने के बाद विनय और पिंटू अलमारी की चाबी ढूंढ़ने लगे. जल्दी ही उन्हें चाबी मिल गई. विनय ने अलमारी खोल कर उस के लौकर में रखे सोने के एक जोड़ी झुमके, सोने की एक जंजीर, अंगूठी, 1 जोड़ी चांदी की पायल निकाल लिए. विनय को अलमारी में उतने रुपए नहीं मिले, जितने कि उसे उम्मीद थी. अलमारी से उसे मात्र 15 सौ रुपए ही मिले. चलते समय उस ने मौसी का मोबाइल भी ले लिया था. घर से निकल कर उन्होंने बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग गए. घर से बाहर आते ही विनय ने मौसी के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया था.

दोपहर को आलोक को कोई काम पड़ा तो उस ने अपनी मम्मी इंद्रा को फोन किया. लेकिन मम्मी के फोन का स्विच औफ था. काफी देर यही हाल रहा तो परेशान हो कर वह घर आ गया. उस ने दरवाजे पर बाहर से कुंडी लगी देखी तो सकते में आ गया. उसे लगा कि शायद मम्मी घर पर नहीं हैं. दरवाजा खोल कर वह घर के अंदर दाखिल हुआ तो खून से सनी मम्मी की लाश देख कर वह चीखने लगा. उस का चीखना सुन कर आसपड़ोस वाले आ गए.

इंद्रा की खून से सनी लाश देख कर पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि कोई उस की हत्या कर गया है. सूचना पा कर प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव भी आ गए. अलमारी खुली थी और उस में रखे गहने, नकदी और उन की पत्नी का मोबाइल गायब था. लूट और हत्या के इस मामले की जानकारी थाना कोतवाली को दी गई.

एक महिला की हत्या और लूट की सूचना मिलते ही प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया था. सारी काररवाई निपटाने के बाद कोतवाली प्रभारी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी मृतका इंद्रा के बेटे आलोक कुमार श्रीवास्तव को साथ ले कर कोतवाली आ गए, जहां उस की तहरीर पर हत्या और लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

अभियुक्तों तक पहुंचने का पुलिस के पास एक ही सूत्र था, मृतका का मोबाइल. पुलिस ने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. लेकिन मोबाइल का स्विच औफ था, इसलिए उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. पुलिस ने इंद्रा के हत्यारों तक पहुंचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

इस मामले का खुलासा न होते देख पुलिस अधीक्षक रतन कुमार श्रीवास्तव ने अपर पुलिस अधीक्षक रामकिशन यादव और क्षेत्राधिकारी (सदर) मनोज अवस्थी की देखरेख में एक पुलिस टीम गठित की, जिस का नेतृत्व प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी को ही सौंपा गया.

टीम का गठन होते ही संयोग से घटना के लगभग महीने भर बाद इंद्रा के मोबाइल की लोकेशन कानपुर के नौबस्ता की मिल गई. उस नंबर का भी पता चल गया, जो नंबर उस में उपयोग में लाया जा रहा था.

पुलिस टीम ने लोकेशन और नंबर के आधार पर उस आदमी को पकड़ लिया, जिस के पास वह मोबाइल फोन था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह मोबाइल फोन उस ने सपई गांव के रहने वाले पिंटू सिंह चंदेल से खरीदा था.

पुलिस को उस आदमी से पिंटू का पता मिल गया था. छापा मार कर पुलिस ने 3 मार्च को पिंटू सिंह चंदेल को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने कोतवाली ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के स्वीकार कर लिया कि मृतका की बहन के बेटे विनय के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था.

पिंटू से पूछताछ के बाद पुलिस ने विनय की तलाश में उस के घर छापा मारा. लेकिन वह नहीं मिला. तब पुलिस ने पिंटू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस विनय श्रीवातस्तव की तलाश में पूरे जोरशोर से लग गई थी, लेकिन पुलिस से बचने के लिए वह छिप गया था. आखिर 13 मार्च को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विनय को भी गिरफ्तार कर लिया.

जब उस का दोस्त पकड़ा जा चुका था तो विनय के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं था. इसलिए उस ने मौसी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस पूछताछ में उस ने जो कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. क्योंकि विनय के अपनी मां समान ही नहीं, उम्र में दोगुनी से भी ज्यादा मौसी से अवैध संबंध थे. इस तरह अवैध संबंधों की नींव पर टिकी लूट और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना कोतवाली के मोहल्ला पूरननगर में रहते थे प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव. वह राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय में वार्डब्वाय थे. उन के परिवार में पत्नी इंद्रा के अलावा बेटा आलोक और बेटी ज्योति थी. पढ़ाई पूरी कर के आलोक ने लुकइयाखेड़ा में कंप्यूटर की दुकान खोल ली थी. ज्योति की भी पढ़ाई पूरी हो गई तो प्रकाशचंद्र ने उस की शादी कर दी थी.

इंद्रा की बड़ी बहन मंजूलता की शादी कानपुर के थाना नौबस्ता के सरस्वतीनगर के रहने वाले अरुणकुमार श्रीवास्तव के साथ हुई थी. अरुण कुमार लोहिया फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के कुल 3 बेटे थे, विकास, विनय और विनीत. पढ़ाई पूरी होने के बाद विकास ने लिटिल स्टार एंजल स्कूल में नौकरी कर ली थी, तो बीकौम करने के बाद विनय जूते का काम करने लगा था. सब से छोटे विनीत ने बीकौम कर के लैपटौप रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया था. 6 साल पहले अरुण कुमार की मौत हो गई तो घर की सारी जिम्मेदारी मंजूलता पर आ गई थी.

विनय का मन जूते के काम में कम, क्रिकेट खेलने में ज्यादा लगता था. मैच खेलने के चक्कर में ही वह इधरउधर घूमता रहता था. खाली होने की वजह से वह अकसर अपनी मौसी इंद्रा के घर भी चला जाता था, जहां वह कईकई दिनों तक रुका रहता था. इंद्रा उस का बहुत खयाल रखती थी.

एक तो प्रकाशचंद्र की उम्र हो गई थी, दूसरे बच्चे सयाने हो गए थे, इसलिए वह पत्नी में कम ही रुचि लेते थे जबकि इंद्रा चाहती थी कि पति रोजाना उस के पास आए और उसे संतुष्ट करे. पति से इच्छा पूरी न होने से इंद्रा का मन भटकने लगा तो वह, किसी युवक की तलाश में रहने लगी. लेकिन उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि किसी युवक से संबंध बनाने पर अगर बात खुल गई तो बड़ी बदनामी होगी.

तब वह किसी ऐसे युवक की तलाश में लग गई, जिस से संबंध बनाने पर किसी को पता न चल सके. ऐसा युवक वही हो सकता था, जिस से उस के घरेलू संबंध हों यानी जिस के घर आनेजाने पर किसी को संदेह न हो. इस बारे में उस ने काफी सोचाविचारा तो उस की नजर अपनी बहन के बेटे विनय पर टिक गई. क्योंकि विनय उस के घर में ही रहता था. दूसरे बहन का बेटा होने की वजह से जल्दी उस पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था.

विनय उस उम्र में था, जिस उम्र में स्त्री देह कुछ ज्यादा ही आकर्षित करती है. तब रिश्तेनाते का भी खयाल नहीं रहता. विनय की शादी भी नहीं हुई थी. ऐसे में इंद्रा ने रिश्ते नाते, लाजशरम त्याग कर अपनी देह को उस के सामने परोसा तो जवानी की दहलीज पर खड़े विनय को फिसलते देर नहीं लगी. मौसी की देह तो उस के लिए अंधे सियार को पीपल ही मेवा की तरह लगा. वह निश्चिंत हो कर मौसी के साथ मौज करने लगा.

इंद्रा ने विनय को हिदायत दे रखी थी कि यह बात वह अपने दोस्तों तक को भी नहीं बताएगा. इसलिए विनय ने यह बात कभी किसी को नहीं बताई. उस का जब भी मन होता, वह मौसी के यहां आ जाता और जितने दिन मन होता, आराम से रहता. मौसा और मौसेरे भाई के जाने के बाद वही दोनों घर पर रह जाते थे, इसलिए उन का जो मन होता, आराम से करते.

इंद्रा विनय को न सिर्फ शारीरिक सुख देती थी, बल्कि उसे अपने आकर्षण में बांधे रहने के लिए उस की छोटीमोटी जरूरतें भी पूरी करती थी. वह उसे जेब खर्च के लिए रुपए भी देती थी. विनय को दोहरा लाभ था, इसलिए वह मौसी से खूब खुश रहता था.

क्रिकेट खेलने में ही विनय की दोस्ती कानपुर के थाना बिधनू के गांव सपई के रहने वाले वीरेंद्र सिंह चंदेल के बेटे पिंटू से हो गई थी. पिंटू नौबस्ता में चाय की दुकान चलाता था. विनय का जूते के काम में मन नहीं लगता था, इसलिए उस ने पिंटू के साथ होटल खोलने की योजना बनाई. होटल खोलने के लिए उसे 15 हजार रुपयों की जरूरत थी.

विनय को पूरा यकीन था कि मौसी इंद्रा उसे ये रुपए दे देंगी. इसीलिए उस ने बड़े ही विश्वास के साथ पिंटू से कह दिया था कि उस की मौसी एक बार मांगने पर रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने रुपए नहीं दिए. उसी का नतीजा था कि नाराज हो कर विनय ने पिंटू के साथ मिल कर उन के यहां लूट के इरादे से उन की हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने विनय को पत्रकारों के सामने भी पेश किया. प्रेसवार्त्ता करा कर उन्होंने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विनय और पिंटू की जमानत नहीं हुई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई?

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या – भाग 3

एक दिन जब इलियास अचानक घर आया तो नसीमा किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी. इलियास को आया देख कर उस ने फोन काट दिया.

इस बात पर दोनों के बीच तीखी तकरार हो गई. एक बार तकरार का यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह आए दिन की बात हो गई. कुछ दिनों बाद नसीमा की तबीयत खराब रहने लगी. इलाज के लिए वह दिल्ली के गुरु तेग बहादुर सरकारी अस्पताल जाने लगी.

यह बात भी इलियास को परेशान करने लगी. उस के मन में यह बात घर कर गई कि नसीमा बहाने से किसी से मिलने जाती है. एक दिन जब इलियास दिल्ली में था तो नसीमा ने उसे फोन कर के बताया कि उस के पेट में तकलीफ है और उसे इलाज के लिए गुरु तेगबहादुर अस्पताल शाहदरा जाना है.’’

‘‘मुझे पहले ही पता था कि तुम वहीं जाने की बात करोगी. यार तो वहीं मिलते होंगे. तुम बागपत में भी तो दिखा सकती हो.’’ इलियास ने छूटते ही कहा.

‘‘खुदा के वास्ते सोचसमझ कर मुंह खोला करो इलियास. वहां अच्छी डाक्टर हैं, इसलिए जाती हूं.’’ नसीमा ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ समझने को तैयार ही नहीं था. उस ने दो टूक अपना फैसला सुना दिया, ‘‘तुम्हें दवा लेने के लिए वहां जाने की जरूरत नहीं है.’’

इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब बहस हुई. नसीमा पति की आदत से बहुत परेशान थी. उस ने उस की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. इलियास के मना करने के बावजूद वह शाहदरा गई. यह बात इलियास को पता चली तो अगले ही दिन वह गांव आ गया और उस ने नसीमा के साथ जमकर मारपीट की.

इलियास की मारपीट से क्षुब्ध हो कर नसीमा ने अगले दिन पुलिस चौकी टटीरी में शिकायत दर्ज करा दी. पुलिस ने इलियास को बुला कर डांटाफटकारा. उस ने अपनी गलती मान ली तो पुलिस ने दोनों का समझौता करा दिया.

जरूरत से ज्यादा बंदिशें बगावत को जन्म देती हैं. नसीमा के साथ भी यही हुआ. इस के बाद उस ने इलियास से पूछना ही बंद कर दिया. उस का जब मन करता, शाहदरा चली जाती. इस का भेद तब खुला, जब एक दिन इलियास दिन के वक्त घर आ गया. बच्चे घर पर थे.

बच्चों से जब यह पता चला कि नसीमा शाहदरा गई है तो इलियास का पारा सांतवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने नसीमा का मोबाइल मिलाया. उस का गुस्सा तब और भी ज्यादा भड़क उठा, जब उस का मोबाइल बंद मिला.

शाम को नसीमा घर आई. उस के पास दवाइयां भी थीं. लेकिन इलियास कुछ सुनने को तैयार नहीं था. उस ने फिर उस के साथ मारपीट की. मोबाइल की बाबत पूछने पर नसीमा ने बताया कि उस की बैटरी खत्म हो गई थी, जिस की वजह से वह बंद हो गया था. वह सच बोल रही थी, पर इलियास को यकीन नहीं हुआ. वह कुछ भी सुनना या समझना नहीं चाहता था.

उस दिन के बाद इलियास बीवी पर शक को ले कर परेशान रहने लगा. शक उस के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी हो चुका था कि उस की रातों की नींद उड़ गई. सोतेजागते, उठतेबैठते उस के दिमाग में एक ही बात चलती रहती थी कि नसीमा के किसी के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं.

वह जबजब दिल्ली जाती थी, इलियास का दिमाग घूम जाता था. उसे यही लगता था कि वह किसी से मिलने जाती है. हालांकि इन बातों का उस के पास कोई सुबूत नहीं था, लेकिन यह सच है कि शक करने वाला सुबूत पर नहीं सिर्फ अपने शक पर यकीन करता है. इलियास के साथ भी ऐसा ही था.

आखिर अपने शक की वजह से उस ने मन ही मन नसीमा को रास्ते से हटाने का एक खतरनाक निर्णय ले लिया. एक दिन उस ने ममेरे भाई साजिद, दोस्त परवेज व भांजे सलीम को अपने पास बुलवाया. ये सभी बागपत में ही रहते थे. इलियास ने अपनी परेशानी और शक के बारे में उन्हें बता कर कहा कि वह नसीमा को रास्ते से हटाना चाहता है. पहले तो ये लोग डरे, लेकिन इलियास के समझाने पर मान गए.

उस दिन चारों ने नसीमा की हत्या की योजना बना ली. योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इलियास ने सब से पहले नसीमा से नाराजगी दूर कर के उस के साथ मधुर रिश्ते बनाने शुरू कर दिए. जब वह इस में कामयाब हो गया तो उचित मौके की तलाश में रहने लगा.

जल्द ही उसे यह मौका मिला गया. 6 फरवरी, 2014 को नसीमा ने इलियास को फोन कर के बताया कि उसे अल्ट्रासाउंड के लिए शाहदरा जाना है.

‘‘ठीक है कल आ जाना, मैं साथ चलूंगा.’’ इलियास ने खुश हो कर कहा. उस के लिए यह अच्छा मौका था. उस ने इस बाबत अपने साथियों को भी फोन कर के बता दिया. इस बीच इलियास ने एक चाकू का इंतजाम कर के अपने पास रख लिया.

हालांकि उसी शाम इलियास खुद भी घर आ गया था, लेकिन 7 फरवरी की सुबह 7 बजे वह नसीमा से यह कह कर निकल गया कि दिल्ली आ कर वह उसे फोन कर ले. अगले दिन दोपहर के वक्त नसीमा बच्चों को ले कर इलियास के पास पहुंच गई. इलियास बच्चों को उस के साथ देख कर चौंका. उस ने नसीमा से पूछा, ‘‘इन्हें साथ लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘मैं ने सोचा इन्हें कपड़े दिला देंगे. इसलिए साथ ले आई.’’

इलियास को लगा था कि वह अकेली ही आएगी. उस ने उस का भविष्य भी तय कर दिया था. साजिद, परवेज व सलीम को वह कह चुका था कि वे लोग तैयार रहें, जब वह फोन करे तो आ जाएं.

इलियास ने पहले नसीमा को अस्पताल में दिखाया. फिर शाम को बच्चों को बाजार घुमाया, लेकिन यह कह कर कपड़े नहीं दिलाए कि फिर कभी दिला देगा. शाम ढले इलियास के तीनों साथी भी आ गए.

रात में टे्रन में सवार हो कर वह सवा 9 बजे अहेड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां इक्कादुक्का लोग ही थे. जब यात्री चले गए तो इलियास नसीमा के साथ पैदल ही गांव की तरफ चल दिया. साजिद, परवेज व सलीम उस के पीछे थे. रास्ता सुनसान था. इलियास ने पीछे घूम कर इशारा किया तो सलीम आगे आया और उस ने तमंचा निकाल कर फायर कर दिया. लेकिन उस का निशाना चूक गया.

सकते में आई नसीमा को अपने सामने मौत नाचती नजर आई. वह समझ गई कि वे लोग उसे खत्म कर देना चाहते हैं. दहशत के मारे वह जमीन पर गिर गई. वह गिड़गिड़ाई, ‘‘खुदा के वास्ते मुझे मत मारो इलियास.’’

‘‘तू रहम के काबिल नहीं है नसीमा.’’ गुस्से में दांत पीसते हुए इलियास ने चाकू निकाला और नसीमा को खींच कर किनारे ले गया और चाकू से उस की गरदन पर वार कर दिया. उस का वार चूकने की वजह से चाकू माथे पर लगा. इलियास ने दोबारा वार किया. इस बार नसीमा की गरदन से खून की धार फूट पड़ी. वह बचाव के लिए छटपटाई तो सलीम व साजिद ने उस के पैर जकड़ लिए.

मां को लहूलुहान देख कर बच्चों की चीख निकल गई. वह बुरी तरह सहम गए. नसीमा तड़प रही थी. तीनों बच्चे इलियास से लिपट कर रोने लगे. लेकिन शैतान बने इलियास ने उन्हें खूंखार नजरों से घूरते हुए अपने से दूर झटक दिया.

जरा सी देर में नसीमा ने दम तोड़ दिया. यह देख उस का 7 वर्षीय बेटा नाजिम बहन का हाथ पकड़ कर चिल्लाया, ‘‘नाजिया. भाग, अब्बू ने अम्मी को मार दिया है. यह हमें भी मार डालेंगे. अकरम का भी हाथ पकड़ ले.’’ दहशतजदा तीनों बच्चे गेंहू के खेत की तरफ भागने लगे.

लेकिन उन लोगों ने दौड़ कर तीनों बच्चों को पकड़ लिया. इलियास के सिर पर खून सवार था. वह हैवान बन चुका था. बच्चे मौत के डर से कांप रहे थे. लेकिन इलियास को जरा भी दया नहीं आई. उस ने सब से पहले 4 साल के अकरम की गरदन काट दी. यह देख नाजिम व नाजिया रोते रहे, ‘‘अब्बू हमें मत मारो, अब्बू…’’

इलियास को रहम नहीं आया और उस ने नाजिया व नाजिम का भी गला काट दिया. बच्चों ने छटपटा कर दम तोड़ दिया. इस के बाद इन लोगों ने नसीमा का मोबाइल स्विच औफ कर के वहीं डाल दिया. इलियास ने चाकू परवेज के हवाले कर दिया और चुपचाप घर आ गया.

रात में उस ने नसीमा के जो चंद फोटो घर में थे, सब जला दिए. इस के पीछे उस की सोच थी कि उस के फोटो दिखा कर पुलिस ट्रेन या अस्पताल में पूछताछ न कर सके. क्योंकि नसीमा के साथ वह भी था. इस के बाद वह सो गया. उस के तीनों साथी अपनेअपने घर चले गए.

अगली सुबह दिन निकलते ही इलियास ने नाटक शुरू कर दिया. लियाकत को यह जताने की कोशिश की कि नसीमा नहीं आई है, इसलिए वह परेशान है. उस का मकसद लियाकत को गवाह बनाना था. बाद में हत्या की बात सामने आने पर खूब ड्रामा किया. यही वजह थी कि एकाएक पुलिस को उस पर शक नहीं हुआ था.

इलियास को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस उसे पकड़ लेगी. उस ने सोचा था कि कोई यकीन भी नहीं करेगा कि कोई इस तरह अपने बच्चों और पत्नी को मार सकता है. पुलिस गिरफ्त में इलियास को देख कर कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था कि वह ऐसा भी कर सकता है.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया. वहां इलियास को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. अदालत ने सभी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. बाद में पुलिस ने सलीम को भी मुखबिर की सूचना के आधार पर गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

अपराध चूंकि सनसनीखेज था, इसलिए पुलिस ने बाद में सभी आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत भी काररवाई की. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.

अगर इलियास ने शक को तवज्जो न दे कर खतरनाक निर्णय न लिया होता तो न सिर्फ नसीमा और उस के बच्चे जिंदा होते, बल्कि उस का घर भी उजड़ने से बच जाता.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित