Family Crime : अवैध संबंधों में ली बेटी की जान

Family Crime : दादी के जिस कमरे में अभिरोज सोया करती थी, उसी कमरे में ज्योति ने पहले तकिए से अभिरोजप्रीत का गला दबा दिया. जब वह मरणासन्न अवस्था में हो गई तो उस ने रसोई से नमक कूटने वाली वजनी चीज से उस के सिर, मुंह, पांव, हाथ और अंगुलियों पर वार किए. उस ने उस बच्ची के हाथों और दोनों पांवों को भी तोड़ दिया. जब अभिरोज की मृत्यु हो गई तो उस की लाश को बड़ी बाल्टी में डाल कर स्कूल के पास एक वीरान छप्पर के अंदर फेंक आई. हत्या की इस खबर से गांव रामपुराफूल में सनसनी फैल गई.

पंजाब के अमृतसर के गांव रामपुराफूल से 15 मई, 2023 की रात 10 बजे अमृतसर पुलिस को सूचना मिली कि उन के गांव की 7 साल की अभिरोजप्रीत कौर, जो गांव के ही सरकारी स्कूल में कक्षा 2 की छात्रा थी, 15 मई, 2023 की शाम 4 बजे ट्यूशन पढऩे घर से निकली थी, लेकिन वह अपनी ट्यूशन टीचर के पास नहीं पहुंची. वह रास्ते में ही गायब हो गई थी. जब रात के 10 बजे तक भी उस का कोई पता नहीं चला तो उस के घर वालों ने थाने में आ कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

गुमशुदगी दर्ज हो जाने के बाद पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस ने गांव में घरों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की तो उस में एक नया ऐंगल सामने आया. पुलिस को पता चला कि एक आदमी बाइक चला रहा था. बीच में एक बच्ची बैठी थी और बच्ची के पीछे एक औरत थी, जिस ने बच्ची को पकड़ रखा था.

इस बीच पुलिस ने अगवा हुई बच्ची के बारे में और जानकारी जुटानी शुरू की तो पता चला कि अगवा हुई बच्ची अभिरोजप्रीत कौर के पिता का नाम अजीत सिंह था. अजीत सिंह ने 2 विवाह किए थे. उन का पहला विवाह हरजीत कौर से हुआ था. उन की एक बेटी हुई, जिस का नाम अभिजोतप्रीत कौर रखा गया था. शादी के 2 साल के बाद दोनों में आपस में मनमुटाव होने लगा. दिन प्रतिदिन दोनों के आपसी संबंध बद से बदतर होते जा रहे थे. तब दोनों ने आपसी रजामंदी से संबंध विच्छेद कर दिए. अजीत सिंह ने अपनी पहली पत्नी हरजीत कौर को तलाक दे दिया और बेटी अपने पास रख ली.

उस के बाद अजीत सिंह के घर वालों ने अजीत का दूसरा विवाह ज्योति के साथ कर दिया. सब ने यही सोचा था कि बेटी अभिजोतप्रीत कौर को एक नई मां मिल जाएगी और अजीत सिंह का जीवन पटरी पर आ जाएगा. ज्योति की एक बेटी हुई जो अभी 3 माह की थी.

मां पर हुआ बेटी की हत्या का शक

पुलिस छानबीन में जब सीसीटीवी फुटेज में एक आदमी और औरत के बीच एक छोटी बच्ची दिखाई दी तो सभी का शक अजीत सिंह की पहली पत्नी हरजीत कौर पर गया, क्योंकि अभिजीतप्रीत कौर उस की बेटी थी. पुलिस पूछताछ में यह सामने आया कि जब से अभिजोतप्रीत कौर घर से गायब हुई थी, इस की खबर उस की सगी मां को मिली थी तो वह भी बहुत चिंतित थी. पुलिस ने हरजीत कौर से पूछताछ की तो वह निर्दोष पाई गई.

इधर 7 वर्षीय अभिजोतप्रीत कौर के अचानक गायब होने के बाद यह मामला सोशल मीडिया में सुर्खियों में छाता जा रहा था. अभिजोतप्रीत कौर की सौतेली मां बार बार मीडिया से अपनी बेटी को खोजने की रोरो कर गुहार लगा रही थी. ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की ओर से पुलिस पर दबाव बनाया जा रहा था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए जाने लगे थे.

इस के बाद पुलिस इस केस में पूरी मुस्तैदी से जुट गई और अपने मुखबिरों को भी काम पर लगा दिया. इधर अभिजोतप्रीत कौर की सौतेली मां ज्योति उस की फोटो मीडिया के सामने प्रस्तुत कर के रोरो कर अपनी बेटी को तलाशने का गुहार लगा रही थी.

सीसीटीवी कैमरे से पुलिस के हाथ लगा एक अहम सुराग

पुलिस ने पूरे गांव को सील कर के घरघर सघन तलाशी का अभियान चलाया. पूरे शहर भर में अभिजोत प्रीत कौर को ढूंढा गया, मगर पुलिस के पास हाथ अब तक कोई भी सुराग नहीं लग पाया था. लेकिन बाद में पुलिस के हाथ एक अहम सुराग लग गया. ज्योति के घर के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे में सौतेली मां ज्योति एक बाल्टी में बच्ची के शव को ले जाते हुए दिखाई दी. उस के करीब 20 मिनट बाद वह खाली बाल्टी ले कर अपने घर पर आती दिखाई दी. सीसीटीवी फुटेज देखने के के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि अभिजोतप्रीत कौर के गायब होने में उस की सौतेली मां की भूमिका है.

कत्ल का सबूत हाथ में आते ही अमृतसर पुलिस ने हत्यारी मां ज्योति को हिरासत में ले कर उस से कड़ी पूछताछ की तो सारा मामला उजागर हो गया. उस ने अभिजोतप्रीत कौर की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने उस की निशानदेही पर गांव के स्कूल के पास से बच्ची की लाश बरामद कर ली. इस के बाद एसएसपी सतिंदर सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को अभिजोतप्रीत की हत्या का खुलासा कर दिया.

सौतेली मां देती थी यातनाएं

मृतका अभिरोजप्रीत कौर की नृशंस हत्या की खबर जब लोगों के सामने आई तो लोगों के दिल दहल उठे थे. इस संबंध में जानकारी देते हुए मृतका अभिरोजप्रीत कौर की ट्यूशन टीचर जगमोहन कौर ने बताया कि अभिरोजप्रीत कौर 15 मई को उस के पास ट्ïयूशन के लिए नहीं आई थी. वह गांव के सरकारी स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ती थी. पढ़ाई में वह काफी होशियार थी और स्कूल की हर गतिविधि में हमेशा सब से आगे रहती थी.

जगमोहन कौर ने बताया कि अभिरोजप्रीत कौर की सगी मां उसे छोड़ कर चली गई तो उस के पिता अजीत सिंह ने दूसरा विवाह ज्योति के साथ कर लिया था. इस के बाद तो उस मासूम बच्ची के ऊपर दुखों और यातनाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा था. सौतेली मां ज्योति उसे यातनाएं दिया करती थी. इस के बारे में जब अभिरोजप्रीत कौर की दादी को पता चला तो वह हर रोज उसे स्कूल में छोडऩे और छुट्टी के वक्त घर लाया करती थीं. दादी का उस के प्रति काफी लगाव था. दादी स्कूल में दिन में भी उसे देखने आती रहती थी. उस की हर बात का, उस के हर सामान, कौपीकिताब, ड्रेस, खानेपीने का दादी विशेष ख्याल रखती थीं.

इस बीच दादी की तबीयत काफी खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा. क्योंकि उन के स्टेंट पडऩे थे, इसलिए वह पिछले 10 दिनों से आईसीयू में वेंटिलेटर पर थीं. इसी बात का फायदा उठाते हुए सौतेली मां ज्योति ने अभिरोजप्रीत कौर की हत्या कर डाली. बेटी की मौत पर गमगीन पिता अजीत सिंह को गहरा सदमा लगा. उन्होंने बताया कि यह सोच कर ज्योति से विवाह किया था कि बेटी को भी एक मां मिल जाएगी, जो उस का सही तरह से लालनपालन कर सकेगी. लेकिन ज्योति ने शुरू से ही अभिरोजप्रीत को सच्चा प्यार नहीं दिया. बातबात पर उस से वह नाराज हो जाया करती थी. हर समय वह उसे डांटतीफटकारती रहती थी, इसलिए मेरी बेटी अपनी दादी के कमरे में ही सोया करती थी. दादी उसे बहुत प्यार करती थीं.

मां अवैध संबंधों पर डालना चाहती थी परदा

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर पता चला कि ज्योति की मौसी की बेटी प्रिया (काल्पनिक नाम) गांव के किसी युवक के साथ प्रेम करती थी. उन दोनों प्रेमियों को अभिरोजप्रीत ने एक दिन आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. तब बहन ने यह बात ज्योति को बता दी थी. इस पर ज्योति अभिरोज को यह बात किसी को न बताने की हर समय चेतावनी देती रहती थी. बाद में ज्योति ने यह सोचा कि कहीं अभिरोजप्रीत ने अवैध संबंधों की यह बात घर वालों या गांव के किसी व्यक्ति को बता दी तो उस की बहन और उस के परिवार की सारे गांव में बदनामी हो सकती है. इसलिए उस ने अभिरोजप्रीत कौर का मर्डर करने का फैसला कर लिया.

पता चला कि दादी के जिस कमरे में अभिरोज सोया करती थी, उसी कमरे में ज्योति ने पहले तकिए से अभिरोजप्रीत का गला दबा दिया. जब वह मरणासन्न अवस्था में हो गई तो उस ने रसोई से नमक कूटने वाली वजन चीज से उस के सिर, मुंह, पांव, हाथ और अंगुलियों पर वार किए. उस ने उस बच्ची के हाथों और दोनों पांवों को भी तोड़ दिया. जब अभिरोज की मृत्यु हो गई तो उस की लाश को बड़ी बाल्टी में डाल कर स्कूल के पास एक वीरान छप्पर के अंदर फेंक आई. हत्या की इस खबर से गांव रामपुराफूल में सनसनी फैल गई.

ज्योति से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पश कर जेल भेज दिया. ज्योति की मौसेरी बहन का हत्या में कोई सहयोग था या नहीं, इस बारे में पुलिस की जांच की जारी थी. Family Crime

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.

Punjab News : मजबूरी ने मां को कातिल बना दिया

Punjab News : पंजाब के जिला तरनतारन के थाना सरहाली का एक गांव है शेरों. इसी गांव की रहने वाली मनजीत  कौर के पति बलवंत सिंह की मृत्यु बहुत पहले हो गई थी. बलवंत सिंह की गांव में खेती की थोड़ी सी जमीन और रहने का अपना मकान था. कुल इतनी जायदाद मनजीत कौर को पति से मिली थी. इस के अलावा वह उसे 2 बेटे और 1 बेटी भी दे गया था.

जब बलवंत सिंह की मौत हुई थी, मनजीत कौर के तीनों बच्चे काफी छोटे थे. पति की मौत के बाद बड़ी मुश्किलों से उस ने तीनों बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया. उस का भविष्य और उम्मीदें इन्हीं बच्चों पर टिकी थीं. उस ने सोचा था कि बच्चे बड़े हो कर उस का सहारा बनेंगे. बच्चे किसी लायक हो जाएंगे तो उस के दिन बदल जाएंगे. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

क्योंकि एक चीज चुपके से खलनायक की तरह मनजीत कौर के घर में दाखिल हो गई, जो उस के घरपरिवार को तबाही के रास्ते पर ले गई. वह चीज कुछ और नहीं, नशा था, हेरोइन, स्मैक और कैप्सूलों का. यह घातक नशा वैसे भी पंजाब के गांवों में कहर बरपा रहा है. मनजीत कौर के दोनों बेटे बड़े हुए तो उन्हें मेहनत और मशक्कत कर के कमाई करने का नशा लगने के बजाय घर को बरबाद करने वाला नशा लग गया.

इसी नशे की वजह से मनजीत कौर का एक बेटा बेवक्त काल के गाल में समा गया. बेटे की बेवक्त मौत ने मनजीत कौर को तोड़ कर रख दिया. एक जवान बेटे की बेवक्त मौत से डरी और घबराई मनजीत कौर को दूसरे बेटे निरमैल सिंह की चिंता सताने लगी. क्योंकि निरमैल सिंह भी नशे का आदी था. चिंतित मनजीत कौर को अचानक खयाल आया कि अगर वह बेटे की शादी कर दे तो शायद उस की नशा करने की आदत छूट जाए.

यह खयाल आते ही मनजीत कौर बेटे की शादी के लिए दौड़धूप करने लगी. उस की दौड़धूप का नतीजा यह निकला कि नशेड़ी निरमैल सिंह की गुरप्रीत कौर से शादी हो गई. शादी के बाद निरमैल सिंह में कुछ सुधार नजर आया तो मनजीत कौर को लगा कि धीरेधीरे बेटा सुधर जाएगा. वह नशे के बजाय अपनी शादीशुदा जिंदगी का आनंद लेता दिखाई दिया.

यह देख कर मनजीत कौर ने काफी राहत महसूस की. मगर इस राहत की उम्र बहुत लंबी नहीं थी. शादी के कुछ दिनों बाद तक बीवी के जिस्म की गर्मी में डूबे रहने के बाद निरमैल सिंह फिर से नशे की ओर मुड़ा तो पहले से भी ज्यादा शिद्दत के साथ. इस से घर में जबरदस्त कलहक्लेश रहने लगा.

मनजीत कौर की जान आफत में पड़ गई. पहले तो वह अकेली किसी तरह नशेड़ी बेटे से निपट लेती थी, लेकिन घर में बहू के आने से वह कुछ कमजोर सी पड़ गई थी. घर का खर्चा वैसे ही बढ़ गया था, इस के बावजूद अपनी जिम्मेदारियों से लापरवाह निरमैल सिंह जो भी कमाता था, अपने नशे में उड़ा देता था. इस से घर में अशांति और कलह का माहौल बनना स्वाभाविक था. घर के लगातार बिगड़ते माहौल से परेशान मनजीत कौर ने किसी तरह अपनी एकलौती बेटी राज कौर के हाथ पीले कर के उसे विदा कर दिया.

राज कौर की शादी से घर के हालात सुधरने के बजाय और खराब हो गए. उसी बीच नशेड़ी निरमैल एकएक कर के 2 बच्चों का बाप बन गया. बच्चों की जिम्मेदारी कंधों पर आने के बाद भी निरमैल में कोई बदलाव नहीं आया. उस की नशा करने की आदत वैसी की वैसी ही बनी रही. ऐसी हालत में घर का खर्चा कैसे चल सकता था?

घर को आर्थिक तंगी से उबारने के लिए चिंतित मनजीत कौर ने घर के एक हिस्से को रविंद्र सिंह को किराए दे दिया.

मां का यह कदम नशेड़ी निरमैल को बिलकुल पसंद नहीं आया. नाराज हो कर उस ने घर में जबरदस्त क्लेश किया. लेकिन जब मनजीत कौर ने किराएदार रखने का अपना फैसला नहीं बदला तो वह खामोश हो गया. अब उस की गिद्धदृष्टि किराए की रकम पर जम गई. किराए से आने वाले पैसे जहां मनजीत कौर का सहारा बन गए थे, वहीं यह बात निरमैल को बरदाश्त नहीं हो रही थी.

वह किराएदार रविंद्र सिंह से भी इस बात को ले कर झगड़ा करने लगा. वह किराया खुद लेना चाहता था, जबकि रविंद्र किराया मनजीत कौर को देता था. निरमैल की नशे की लत से वाकिफ रविंद्र सिंह किसी भी कीमत पर किराया उसे देने को तैयार नहीं था.

दूसरी ओर नशे में डूबे रहने वाले निरमैल का दिमाग इस तरह खराब रहने लगा था कि वह रिश्तों की मर्यादा तक भूल गया था. वह खीझ और हताशा में किराएदार रविंद्र सिंह और अपनी मां को ले कर उन के चरित्र पर अंगुली उठाने लगा था. मनजीत कौर के लिए यह जीतेजी मरने वाली बात थी. वह एक विधवा औरत थी और उस की उम्र 60 साल के ऊपर हो गई थी. अब इस उम्र में अगर मनजीत कौर के चरित्र पर उस की कोख से जन्मा बेटा ही अंगुली उठाए तो उस के लिए मरने वाली बात थी.

बेटे द्वारा चरित्र पर अंगुली उठाने से मनजीत कौर इतनी आहत हुई कि उस ने गुस्से में कहा, ‘‘दुनिया से डर बेटा, इतना भी हद से मत गुजर कि एक दिन मैं यह भी भूल जाऊं कि मैं तेरी मां हूं.’’

मनजीत कौर की इस चेतावनी को निरमैल समझ नहीं सका. नशे ने निरमैल को पूरी तरह नकारा बना दिया था. उस ने कामधंधा करना लगभग बंद कर दिया था. उसे नशे की तलब लगती तो उस की हालत पागलों जैसी हो जाती. वह नशे के लिए मां और पत्नी से पैसे मांगता. पैसे न मिलते तो वह उन दोनों से झगड़ा और मारपीट करता. यही नहीं, अंत में वह घर का कोई कीमती सामान उठा ले जाता और बाजार में बेच कर नशे का सामान खरीद लेता. इस हालत में मनजीत कौर के दिल से बेटे के लिए बददुआएं ही निकलतीं.

निरमैल के साथ रहना मनजीत कौर की मजबूरी थी. वह न तो अपना घर छोड़ सकती थी और न अपने नशेड़ी बेटे को. उस से घर से निकलने के लिए जरूर कहती थी. जबकि निरमैल से 2 बच्चों की मां बन चुकी गुरप्रीत कौर के लिए ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी. नशेड़ी और निखट्टू पति के दुर्व्यवहार और मारपीट से परेशान हो कर गुरप्रीत कौर एक दिन दोनों बच्चों को ले कर मायके चली गई.

मनजीत कौर ने बहू को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. उस ने कहा, ‘‘आप का बेटा इंसान नहीं, जानवर है. मुझे अपने बच्चों के भविष्य को देखना है. इस नरक में एक जानवर की बीवी बन कर रहने से कहीं अच्छा होगा कि मैं खुद को बेवा मान कर मायके में ही रहूं.’’

गुरप्रीत कौर चली गई. उस के बाद घर में रह गई मनजीत कौर, निरमैल सिंह और किराएदार रविंद्र सिंह. पत्नी और बच्चों के घर छोड़ कर चले जाने की हताशा में नशेड़ी निरमैल सिंह हिंसक हो उठा. अब उस के निशाने पर सीधे मनजीत कौर और रविंद्र सिंह थे.

मनजीत कौर के चरित्र पर एक बार फिर अंगुली उठा कर निरमैल सिंह किराएदार रविंद्र सिंह को घर से निकालने के लिए कहने लगा. इस पर मनजीत कौर ने बेटे को खरीखोटी सुनाते हुए कहा, ‘‘तुझ जैसे निखट्टू और ऐबी को जोरू तो पहले ही छोड़ कर चली गई. अब किराएदार को भी निकाल दिया तो गुजारा कैसे होगा? 2 वक्त की रूखीसूखी रोटी से भी जाएंगे.’’

‘‘अगर किरादार को नहीं निकालना तो जमीन बेच दो.’’ निरमैल ने कहा.

निरमैल की बात सुन कर मनजीत कौर के शरीर में जैसे आग लग गई. उस ने कहा, ‘‘पुरखों की मेहनत से बनाई गई जमीन तेरे नशे के लिए बेच दूं? ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं होगा. अब कभी मुझ से जमीन के बारे में बात मत करना. मैं तुझे बेच दूंगी, पर जमीन नहीं बेचूंगी’’

‘‘लगता है, यह जमीन अपने किराएदार यार के लिए रखेगी.’’ निरमैल ने कहा.

बेटे के मुंह से निकले इन शब्दों से मां का कलेजा छलनी हो गया. वह एक तरह से इंत्तहा थी. जिस हृदय में बेटे के लिए लबालब ममता होती है, मां के उसी हृदय में भयानक नफरत पैदा हो गई. ऐसी भयानक नफरत, जिस के चलते मां वह सब सोचने को मजबूर हो गई, शायद ही कोई विरली जन्म देने वाली मां सोचती है. बेटे के प्रति नफरत से भरी मनजीत कौर के मन में जो सोच पैदा हुई, उसे परिपक्व हो कर इरादे में बदलने में थोड़ा समय लगा. इस बीच वह खुद से ही लड़ती रही. वह जो कुछ करने की सोच रही थी, एक मां के लिए वैसा करना असान नहीं था.

दूसरी ओर मां के अंदर चल रहे अंतर्द्वंद्व से अनजान निरमैल उसे सताने से बाज नहीं आ रहा था. मां पर हाथ उठाना और उसे गालियां देना उस के लिए आम बात हो गई थी. घर की ऐसी कोई चीज नहीं बची थी, जिसे निरमैल ने अपनी नशे की भट्ठी में स्वाहा नहीं कर दिया था. निरमैल की कोशिश अब यही थी कि किसी भी तरह मनजीत कौर गांव में मौजूद पुरखों की जमीन बेच दे. ऐसा करने के लिए वह उसे मजबूर भी कर रहा था. इस के लिए वह कुछ भी करने को अमादा दिखता था. मनजीत कौर को लगने लगा कि जमीन की खातिर किसी दिन नशेड़ी बेटा उस का गला घोंट देगा.

ऐसा खयाल आते ही वह सोच उस पर हावी होने लगी, जिस से वह पिछले काफी दिनों से लड़ रही थी. रिश्ते का मोह टूटते ही मनजीत कौर का दिमाग एक अपराधी की तरह काम करने लगा. जब उस के दिमाग में योजना का एक अस्पष्ट खाका तैयार हो गया तो उस ने अपनी उस योजना में शामिल करने के लिए बेटी राज कौर और दामाद किशन सिंह को अपने घर बुला लिया.

अपने भयानक इरादे से बेटी और दामाद को अवगत करा कर मनजीत कौर ने कहा, ‘‘मेरी कोख ही मेरी सब से बड़ी दुश्मन बन गई है. इस ने न केवल मुझे सताया है, बल्कि मेरी ममता को भी जलील किया है. नशे ने इसे इंसान से हैवान बना दिया है. लगता है नशे की ही वजह से यह किसी दिन मेरी जान लेने से भी परहेज नहीं करेगा.

लेकिन मैं इस के हाथों से मरना नहीं चाहती. जबकि मैं इस की नौबत ही नहीं आने देना चाहती. ऐसे बेटे के होने और न होने से क्या फर्क पड़ता है. मैं ने तुम लोगों को इसलिए  बुलाया है कि अगर मेरा इंसान से हैवान बना बेटा नहीं रहेगा तो मेरे बाद मेरी जमीन और घर के मालिक तुम लोग होगे. अब तुम लोगों को इस बात पर विचार करना है कि मैं जो करने जा रही हूं, उस में मेरा साथ देना है या नहीं?’’

मनजीत कौर क्या चाहती है, यह बेटी और दामाद को समझते देर नहीं लगी. उन्होंने मनजीत कौर का साथ देने की हामी भर दी. बेटे को खत्म करने की अपनी योजना में मनजीत कौर ने बेटी और दामाद को ही नहीं, किराएदार रविंद्र सिंह को भी शामिल कर लिया. इस के बाद में निरमैल को खत्म करने की पूरी योजना बन गई.

हमेशा की तरह 5 सितंबर की रात निरमैल सिंह नशे में डूबा घर आया और रोज की तरह मां से झगड़ा करने के घर के बाहर खुले आंगन में बेसुध सो गया. जब मनजीत कौर को यकीन हो गया कि निरमैल सिंह गहरी नींद सो गया है तो उस ने बड़ी ही खामोशी से बेटी राज कौर, दामाद किशन सिंह और किराएदार रविंद्र सिंह की मदद से गला घोंट कर अपने ही बेटे की हत्या कर दी. अपने इस बेटे से वह इस तरह परेशान और दुखी थी कि उसे मारते हुए उस के हाथ बिलकुल नहीं कांपे.

निरमैल की हत्या कर सब ने आंगन की कच्ची जमीन में गड्ढा खोद कर उसी में उस की लाश को गाड़ दिया.

जब कई दिनों तक निरमैल सिंह दिखाई नहीं दिया तो गांव वाले उस के बारे में पूछने लगे. इस तरह निरमैल सिंह का एकाएक गायब हो जाना गांव में चर्चा का विषय बन गया. जितने मुंह उतनी बातें होने लगीं. कोई कहता था कि निरमैल मां से झगड़ा कर के घर छोड़ चला गया है तो कोई कहता कि वह कामधंधे के सिलसिले में कहीं बाहर गया है. लेकिन कुछ लोग दबी जुबान से कुछ दूसरा ही कह रहे थे.

जब निरमैल के बारे में कोई सही बात सामने नहीं आई तो गांव के ही किसी मुखबिर ने थाना सरहाली पुलिस को खबर कर दी कि निरमैल का कत्ल हो चुका है और उस के कत्ल में किसी बाहरी व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस के घर वालों का ही हाथ है.

मुखबिर की इस खबर पर थाना सरहाली के थानाप्रभारी सर्वजीत सिंह मामले की तफ्तीश में जुट गए. तफ्तीश की शुरुआत में ही उन्हें लगा कि मुखबिर की खबर में दम है. उन्होंने शक के आधार पर 7 सितंबर को मनजीत कौर को हिरासत में ले लिया और थाने ला कर पूछताछ शुरू कर दी.

पहले तो मनजीत कौर झूठ बोल कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही, लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सी सख्ती की तो उस ने अपने बेटे के कत्ल की बात स्वीकार कर ली. उस ने कहा, ‘‘हां, मैं ने ही अपने बेटे को मारा है और मुझे इस का जरा भी अफसोस नहीं है. क्या करती, नशे ने उसे आदमी से हैवान बना दिया था. उस का मर जाना ही बेहतर था.’’

इस के बाद मनजीत कौर ने निरमैल की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. पूरी कहानी सुनने के बाद पुलिस ने मजिस्ट्रेट सुखदेव सिंह की मौजूदगी में आंगन की खुदाई कर के निरमैल सिंह की लाश बरामद कर के पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. हत्या में सहयोग करने वाली राज कौर, उस के पति किशन सिंह, किराएदार रविंद्र सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने सभी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Punjab News

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Ki Kahani : औलाद की खातिर किया सास ससुर का कत्ल

Crime Ki Kahani :  सूरज की गरमी के बढ़ने के साथ ही गांव धनुहावासियों की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि लल्लूराम और उन की पत्नी सुशीला देवी अभी तक सो कर क्यों नहीं उठे. जबकि गांव में वही दोनों सब से पहले उठते थे. बालबच्चे थे नहीं,

इसलिए दोनों रात को जल्दी सो जाते थे. यही वजह थी कि वे सुबह जल्दी उठ भी जाते थे. लेकिन उस दिन सुबह दोनों में से कोई दिखाई नहीं दिया तो पड़ोस में रहने वाले उन के बड़े भाई जमुना प्रसाद पता लगाने के लिए उन के घर जा पहुंचे. वह यह देख कर हैरान रह गए कि बाहर ताला लगा है.

इस की वजह यह थी कि लल्लूराम कभी बाहर दरवाजे में ताला लगाते ही नहीं थे. वैसे तो वह जल्दी कहीं आतेजाते नहीं थे. अगर कभी किसी के शादीब्याह में जाना भी होता था तो घरद्वार सब भाई को ही सौंप कर जाते थे. अब तक 9 बज चुके थे. बिना बताए कहीं बाहर जाने का सवाल ही नहीं था. अगर गांव या खेतों की ओर कहीं गए होते तो अब तक आ गए होते. यह खबर सुन कर पूरा गांव लल्लूराम के घर के सामने इकट्ठा हो गया था.

दरवाजे पर जो ताला लगा था, वह एकदम नया था, इसलिए लोगों को किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी. लल्लूराम का घर सड़क के किनारे था. लोगों ने विचार किया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि रात में डकैतों ने इन के घर धावा बोल कर लूटपाट करने के साथ दोनों को खत्म कर दिया हो. यही सोच कर कुछ बुजुर्गों ने वहां खड़े लड़कों से कहा कि दरवाजे पर चढ़ कर ऊपर लगी जाली से देखो तो अंदर कोई दिखाई दे रहा है या नहीं?

बुजुर्गों के कहने पर 2 लड़कों ने दरवाजे पर चढ़ कर अंदर झांका तो उन के मुंह से चीख निकल गई. लल्लूराम और उन की पत्नी सुशीला देवी की रक्तरंजित लाशें अलगअलग चारपाइयों पर पड़ी थीं. तुरंत क्षेत्रीय थाना नैनी को फोन द्वारा इस घटना की सूचना दी गई.

सूचना मिलने के लगभग आधा घंटे बाद थाना नैनी के थानाप्रभारी रामदरश यादव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर आ पहुंचे. पुलिस ने ताला तोड़वा कर दरवाजा खोलवाया. अंदर जाने पर पता चला कि बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी.

थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दे कर लाश तथा घटनास्थल का निरीक्षण शुरू कर दिया. थोड़ी देर में डीआईजी एन.रवींद्र और एसएसपी मोहित अग्रवाल, एसपी यमुनापार लल्लन राय डाग स्क्वायड और फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट टीम के साथ वहां पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंचे फोरेंसिक एक्सपर्ट प्रेम कुमार भारती ने खून के धब्बों का नमूना उठाने के साथ वहां पड़े 2 पत्थरों से अंगुलियों के निशान उठाए. उन पत्थरों पर खून लगा था. पुलिस का अंदाजा था कि पत्थरों से बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या की गई थी. सारी औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. यह 14 जून, 2013 की बात है.

काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतक लल्लूराम के बड़े भाई जमुना प्रसाद से पूछताछ शुरू की तो उन्होंने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार लल्लूराम निस्संतान थे. वह अपने काम से काम रखते थे. भाइयों में भी आपस में कोई झगड़ाझंझट नहीं था. हां, उन के पास रुपए पैसे की कोई कमी नहीं थी. इसलिए लगता यही है कि लूट के लिए पतिपत्नी को मारा गया है.

लल्लूराम के परिवार वालों के अनुसार, उन का मकान ही लगभग 20 लाख रुपए के आसपास था. इस के अलावा उन के पास कई बीघा जमीन थी, जो करोड़ों रुपए की थी. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने अपना एक बीघा खेत 15 लाख रुपए में बेचा था. उन के पास लाखों के गहने भी थे. जबकि उन की करोड़ों की इस संपत्ति का कोई वारिस नहीं था. उन के बड़े भाई जमुना प्रसाद का बेटा रवि जरूर उन की तथा उन के खेतों की देखभाल के लिए उन्हीं के घर ज्यादा रहता था. दोनों भाइयों के घर अगलबगल ही थे, इसलिए रवि को चाचाचाची की देखभाल में कोई परेशानी नहीं होती थी.

लेकिन रवि एक नंबर का नशेड़ी था. वह हमेशा स्मैक के नशे में डूबा रहता था. उस की शादी भी हो चुकी थी और वह 3 बच्चों का बाप था. ये तीनों बच्चे उस की दूसरी पत्नी रेखा तिवारी से थे. उस की पहली पत्नी ने उस के नशेड़ीपने की वजह से ही तलाक ले लिया था. उस के बाद लल्लूराम की पत्नी यानी रवि की चाची सुशीला देवी ने उस की शादी अपनी बहन की बेटी रेखा से करा दी थी.

रेखा भी रवि के नशे से आजिज आ चुकी थी. यही वजह थी कि इधर वह बच्चों को ले कर करछना में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के यहां रह रही थी.

एक तो रवि नशेड़ी था, दूसरे करता धरता भी कुछ नहीं था. इस के अलावा लल्लूराम के यहां रहने की वजह से उसे उन के घर के बारे में पूरी जानकारी थी, इसलिए पुलिस को पहले उसी पर संदेह हुआ. पुलिस ने उसे थाने ला कर हर तरह से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में रवि निर्दोष साबित हुआ. हत्याएं लूटपाट के इरादे से की गई थीं. लेकिन घर का कोई सामान गायब हुआ हो ऐसा लग नहीं रहा था.

अगर कुछ गायब हुआ भी था तो इस की जानकारी रवि की पत्नी रेखा से ही मिल सकती थी. क्योंकि लल्लूराम और सुशीला देवी के अलावा उस घर के बारे में सब से ज्यादा जानकारी रेखा को ही थी. पुलिस रेखा से पूछताछ करना चाहती थी, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आ रही थी. वह सिर्फ क्रियाकर्म वाले दिन ही दिखाई दी थी. उस के बाद गायब हो गई थी.

मामले के खुलासे के लिए एसपी यमुनापार लल्लन राय ने सीओ राधेश्याम राम के नेतृत्व में इंस्पेक्टर नैनी रामदरश यादव, एसआई वी.पी. तिवारी, हेडकांस्टेबल शशिकांत यादव, कांस्टेबल मोहम्मद खालिद, शिवबाबू आदि को ले कर एक टीम बनाई. इस टीम ने पहले तो अपने मुखबिरों को सक्रिय किया.

अपने इन्हीं मुखबिरों से पुलिस को पता चला कि नशेड़ी पति के अत्याचार से परेशान रेखा के संबंध धनुहा के ही रहने वाले बब्बू पांडेय से बन गए थे.

रेखा इस समय कहां है, पुलिस टीम ने यह पता किया तो जानकारी मिली कि उस का मंझला बेटा लक्ष्य काफी बीमार है, जिसे उस ने इलाहाबाद के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कर रखा है. उस के इलाज का सारा खर्च करछना का रहने वाला बब्बू पांडे का दोस्त रामबाबू पाल उठा रहा है.

पुलिस का माथा ठनका. रेखा के बेटे का इलाज एक गैर आदमी क्यों करा रहा है? पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार पति की प्रताड़ना और ससुराल वालों की उपेक्षा से रेखा पति और ससुराल वालों से दूर होती चली गई थी. उसी बीच गांव के ही रहने वाले बब्बू पांडेय और उस के दोस्त रामबाबू पाल ने उस से सहानुभूति दिखाई तो दोनों से ही उस के घनिष्ठ संबंध बन गए थे.

इन बातों से पुलिस को लगा कि इस हत्याकांड में कहीं रेखा और उस से सहानुभूति दिखाने वालों का हाथ तो नहीं है. यह बात दिमाग में आते ही थाना नैनी पुलिस ने 18 जून की रात छापा मार कर बब्बू पांडेय और रामबाबू पाल को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की जाने लगी. पहले तो दोनों कहते रहे कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया.

लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि लल्लूराम तिवारी और उन की पत्नी सुशीला देवी की हत्या उन्हीं लोगों ने रेखा की मदद से की थी. रामबाबू पाल ने रेखा से अपने अवैध संबंध होने की बात भी स्वीकार कर ली. लेकिन बब्बू ने ऐसी कोई बात नहीं स्वीकार की. जबकि रेखा से उस के भी संबंध थे, क्योंकि उसी की वजह से रामबाबू पाल रेखा तक पहुंचा था.

रेखा को रामबाबू पाल और बब्बू पांडेय की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो वह बच्चों को ले कर फरार हो गई. मगर जल्दी ही पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से की गई पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार यह कहानी कुछ इस प्रकार है.

मध्यप्रदेश के जिला रीवां के चाकघाट के गांव मरवरा की रहने वाली रेखा का विवाह सन 2010 में उस की सगी मौसी सुशीला देवी ने अपने जेठ जमुना प्रसाद के बेटे रवि से करा दिया था. रेखा विदा हो कर ससुराल आई तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि उस का पति हद दर्जे का नशेड़ी है.  इस की वजह यह थी कि निस्संतान सुशीला देवी को रवि से सहानुभूति थी. इसीलिए वह उसे ज्यादातर अपने साथ रखती थीं.

रवि भी उन लोगों की हर तरह से देखभाल करता था. सुशीला देवी ने रेखा की शादी उस से यह सोच कर कराई थी कि रेखा अपनी है, इसलिए वह बुढ़ापे में उन की देखभाल ठीक से करेगी. लेकिन शादी के बाद मौसी को कोसने और अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाने के अलावा रेखा के पास कोई उपाय नहीं था.

समय धीरेधीरे बीतता रहा और रेखा अंश, लक्ष्य और सुख, 3 बेटों की मां बनी. 3 बेटों का बाप बनने के बाद भी रवि की नशे की आदत छूटने के बजाय बढ़ती ही गई. रेखा मना करती तो वह उसे जानवरों की तरह पीटता.

रेखा के लिए एक परेशानी यह थी कि रवि उस के पास के पैसे भी छीन लेता था. शादी में मिले गहने तो उस ने पहले ही नशे की भेंट चढ़ा दिए थे. पति के उत्पातों से आजिज आ कर रेखा कभीकभी करछना में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के यहां चली जाती थी. वक्त जरूरत मौसी सुशीला भी मदद कर देती थी. लेकिन जिस तरह की मदद की उम्मीद रेखा उन से करती थी, वह भी नहीं करती थी.

सासससुर ने तो पहले ही हाथ खींच लिए थे. इस तरह रेखा और उस के बच्चे उपेक्षित सा जीवन जी रहे थे. इस के लिए वह अपनी मौसी सुशीला को ही दोषी मानती थी.

पति और ससुराल वालों से त्रस्त रेखा अकसर करछना में रहने वाली अपनी बहन के यहां आतीजाती रहती थी. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात उस के बहनोई राजू पांडेय तथा गांव के बब्बू पांडेय के दोस्त रामबाबू पाल से हुई. रामबाबू पाल से रेखा ने अपनी परेशानी बताई तो वह रेखा से सहानुभूति दिखाने के साथसाथ वक्तजरूरत उस की मदद भी करने लगा. इसी का नतीजा था कि दोनों के बीच संबंध बन गए.

बब्बू की वजह से रेखा के संबंध रामबाबू पाल से बन गए, बब्बू रामबाबू का पक्का दोस्त था. यही नहीं, गांव का होने की वजह से बब्बू रेखा के घर भी आताजाता था और रवि का दोस्त होने की वजह से रेखा को भाभी कहता था. भले ही रेखा ने दोनों से मजबूरी में शारीरिक संबंध बनाए थे, लेकिन संबंध तो बन ही गए थे.

मई के अंतिम सप्ताह में रेखा का मंझला बेटा 7 साल का लक्ष्य अचानक बीमार पड़ा. रेखा ने मौसा लल्लूराम और मौसी सुशीला देवी से बच्चे की बीमारी के बारे में बताया. लेकिन किसी ने खास ध्यान नहीं दिया. झोलाछाप डाक्टर से दवा ला कर उसे दी जाती रही. फायदा होने के बजाए धीरेधीरे उस की बीमारी बढ़ती गई. रवि को बेटे की बीमारी से कोई मतलब नहीं था. वह स्मैक पिए पड़ा रहता था.

रेखा ने देखा कि लक्ष्य की बीमारी को ससुराल में कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है तो वह बेटों को ले कर अपनी बहन के यहां करछना चली गई. वहां उस ने बेटे की बीमारी के बारे में रामबाबू को बताया तो एक पल गंवाए बगैर वह उसे सीधे इलाहाबाद ले गया और एक प्राइवेट अस्पताल में भरती करा दिया.  जांचपड़ताल के बाद डाक्टरों ने लक्ष्य को जो बीमारी बताई, उस के इलाज पर लंबा खर्च आने वाला था.

डाक्टर की बात सुन कर रेखा रोने लगी. उसे रोता देख रामबाबू ने तड़प

कर कहा, ‘‘रेखा, तुम रो क्यों रही हो? मैं हूं न. मेरे रहते तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. चाहे जैसे भी होगा, मैं लक्ष्य का इलाज कराऊंगा.’’

रेखा जानती थी कि रामबाबू के पास भी उतने पैसे नहीं हैं, जितने लक्ष्य के इलाज के लिए जरूरत है. रामबाबू की करछना बाजार में चाय की एक छोटी सी दुकान थी. उसी की कमाई से किसी तरह घर का खर्च चलता था. यही सब सोच कर रेखा ने कहा, ‘‘कहां से लाओगे इतने रुपए. यहां 10-20 हजार रुपए की बात नहीं है, डाक्टर ने लाख रुपए से ऊपर का खर्च बताया है. सासससुर के पास इतना पैसा है नहीं. पति बेकार ही है. जिन के पास पैसा है, उन से किसी तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती.’’

‘‘रेखा, मन छोटा मत करो. मेरे खयाल से एक बार अपने मौसा मौसी से बात कर लो. पोते का मामला है, शायद वे इलाज के लिए पैसे दे ही दें.’’

‘‘वे लोग बहुत कंजूस है, फूटी कौड़ी नहीं देंगे,’’ रेखा ने कहा, ‘‘फिर भी तुम कह रहे हो तो गांव जा कर जरूर कहूंगी, बेटे के लिए उन के पैरों पर गिर कर रोऊंगीगिड़गिड़ाऊंगी. इस पर भी उन का दिल न पसीजा तो क्या होगा?’’

‘‘उस के बाद देखा जाएगा. कोई न कोई रास्ता तो निकालूंगा ही. वैसे भी तुम्हारी मौसी के पास पैसों की कमी नहीं है. करोड़ों की संपत्ति है उन के पास. कोई खाने वाला भी नहीं है. मुझे पूरा विश्वास है कि वह मना नहीं करेंगी.’’ रामबाबू ने कहा.

रामबाबू के कहने पर रेखा धनुहा जा कर लल्लूराम से मिली. उस ने रोते हुए उन से बेटे की बीमारी और इलाज पर आने वाले खर्च के बारे में बताया तो उन्होंने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम मेरे पास नहीं है. तुम अपने ससुर से क्यों नहीं कहती.’’

सुशीला देवी ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया.

रेखा को पता था कि उस के ससुर जमुना प्रसाद की माली हालत जर्जर है. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. रेखा क्या करती, इलाहाबाद वापस आ गई. रेखा का उतरा चेहरा देख कर ही रामबाबू समझ गया कि उस के वहां जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. उस ने कहा, ‘‘मैं ने वहां भेज कर तुम्हें बेकार ही परेशान किया.’’

रामबाबू की बात सुन कर रेखा रोते हुए बोली, ‘‘मेरे मौसा और मौसी कंजूस ही नहीं, बेरहम भी हैं. इतना पैसा जोड़ कर रखे हैं, न जाने किसे देंगे. कल को मर जाएंगे, सब यहीं रह जाएगा. उन की कोई औलाद तो है नहीं, वे औलाद का दर्द क्या जानें.’’

‘‘पैसा उन का है. नहीं दे रहे हैं तो कोई कर ही क्या सकता है.’’ रामबाबू ने कहा.

‘‘कर क्यों नहीं सकता. अगर तुम मेरा साथ दो तो उन की सारी दौलत हमारी हो सकती है. लक्ष्य का इलाज भी हो जाएगा और मैं उस नशेड़ी को तलाक दे कर हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी.’’ रेखा ने कहा.

‘‘इस के लिए करना क्या होगा?’’

‘‘हत्या, उन दोनों बूढ़ों की हत्या करनी होगी. आज नहीं तो कल, उन्हें वैसे भी मरना है. क्यों न यह शुभ काम हम लोग ही कर दें. बोलो, तुम मेरा साथ दे सकते हो?’’

‘‘तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं ही क्या, इस नेक काम में बब्बू भी हमारा साथ दे सकता है. इस के एवज में उसे भी कुछ दे दिया जाएगा.’’

‘‘ठीक है, बब्बू से बात कर लो. अब यह नेक काम हमें जल्द ही कर लेना चाहिए. ऐसे लोगों का ज्यादा दिनों तक जीना ठीक नहीं है. इस तरह के लोग इसी लायक होते हैं.’’ रेखा ने कहा.

रामबाबू ने फोन कर के बब्बू को भी वहीं बुला लिया. इस के बाद तीनों ने बैठ कर लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या कर के उन के यहां लूटपाट की योजना बना डाली.

उसी योजना के तहत रेखा अपनी ससुराल जा पहुंची. रात में खापी कर लल्लूराम और सुशीला गहरी नींद सो गए तो उस ने फोन कर के रामबाबू और बब्बू को बुला लिया. दरवाजा उस ने पहले ही खोल दिया था.

दोनों सावधानीपूर्वक अंदर पहुंचे और गहरी नींद सो रहे वृद्ध दंपत्ति के ऊपर भारीभरकम पत्थर पटक कर उन की जीवनलीला समाप्त कर दी. इस के बाद तीनों ने रुपए और गहने की तलाश में कमरों का एकएक सामान खंगाल डाला. लेकिन उन के हाथ कुछ भी नहीं लगा. रामबाबू और बब्बू लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या का पछतावा करते हुए भाग निकले.

अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने रेखा, रामबाबू पाल और बब्बू पांडेय के खिलाफ लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के 21, जून को इलाहाबाद की अदालत में पेश किया. जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में नैनी जेल भेज दिया गया. इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी मोहित अग्रवाल ने 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. Crime Ki Kahani

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affairs : आशिक मिजाज ससुर की कातिल बहू

Extramarital Affairs : गीता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना बहेड़ी के गांव फरीदपुर के रहने वाले गंगाराम की दूसरे नंबर की बेटी थी. गंगाराम की गिनती गांव के  संपन्न किसानों में होती थी. उन की 3 शादियां हुई थीं. पहली पत्नी रमा की बीमारी से मौत हो गई तो उन्होंने सुधा से शादी की. पारिवारिक कलह की वजह से उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली तो उन्होंने तीसरी शादी रेशमा से की.

रेशमा से ही उन्हें 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी ललिता की उन्होंने उम्र होने पर शादी कर दी थी. उस से छोटी गीता का 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने पढ़ाई छोड़ दी. गीता जिस उम्र में थी, अगर उस उम्र ध्यान न दिया जाए तो बच्चों को बहकते देर नहीं लगती. वे सही गलत के फर्क को समझ नहीं पाते. ऐसा ही कुछ गीता के साथ भी हुआ.

गीता गंगाराम के अन्य बच्चों से थोड़ा अलग हट कर थी. वह जिद्दी थी, इसलिए उस के मन में जो आता था, वह हर हाल में वही करती थी. उसे लड़कों की तरह रहना, उन्हीं की तरह दोस्ती करना और बिंदास घूमते हुए मस्ती करना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था. इसलिए वह लड़कों की तरह कपड़े तो पहनती ही थी, अपने बाल भी लड़कों की ही तरह कटवा रखे थे. वह अकसर गांव के लड़कों के साथ घूमती रहती थी. उम्र के साथ उस के बदन में ही नहीं, सुंदरता में भी निखार आ गया था.

गंगाराम के पास ट्रैक्टर भी था और मोटरसाइकिल भी. गीता दोनों ही चीजें चला लेती थी. इसलिए उस का जब मन होता, वह मोटरसाइकिल ले कर घूमने निकल जाती. उसे लड़कों से कोई परहेज नहीं था, इसलिए गांव के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे. गीता नादान तो थी नहीं कि उन लड़कों की मंशा न समझती, इसलिए अपने बिंदासपन से वह उन्हें अंगुलियों पर नचाती रहती थी. लेकिन उन लड़कों को इस का फायदा भी मिलता था. वे लड़के गीता से जो चाहते थे, वह उन्हें मिला भी.

फिर तो गांव में गीता को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस सब की जानकारी गीता के पिता गंगाराम को हुई तो उस ने गीता पर बंदिशें लगाईं. लेकिन गीता अब काबू में आने वाली कहां थी. कोई न कोई बहाना बना कर वह घर से निकल जाती. कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस डर से गंगाराम गीता के लिए लड़के की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस की यह तलाश खत्म हुई और उसे बरेली के ही थाना नवाबगंज के गांव लावाखेड़ा निवासी परमानंद का बेटा मनोज मिल गया.

परमानंद भी किसान थे. उस के पास भी ठीकठाक खेती थी, जिस की वजह से उस के यहां भी गांवदेहात के हिसाब से किसी चीज की कमी नहीं थी. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे मनोज तथा चैतन्य स्वरूप थे. बेटियों का वह विवाह कर चुका था. अब मनोज का नंबर था. यही वजह थी कि जब गंगाराम उस के यहां अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से रिश्ता ले कर पहुंचा तो बात बन गई. इस के बाद सारे रस्मोरिवाज पूरे कर के मनोज और गीता को शादी के गठबंधन में बांध दिया गया. यह शादी फरवरी, 2009 में हुई थी.

गीता सुंदर तो थी ही, साथ ही उस में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो पुरुषों को दीवाना बना देते हैं. यही वजह थी कि गीता ने अपनी अदाओं से पहली ही रात में मनोज को अपना दीवाना बना दिया था. गीता पहली ही रात में समझ गई कि उसे पति उस के मनमाफिक मिला है. वह जैसा सीधासादा, अंगुलियों पर नाचने वाला पति चाहती थी, मनोज ठीक वैसा ही निकला था.

2-4 दिनों में ही मनोज गीता के हुस्न में इस कदर खो गया कि हर पल, हर जगह उसे गीता ही गीता नजर आने लगी. उस का गीता को छोड़ कर कहीं जाने का मन ही न होता. खेतों पर भी उस का मन न लगता. लेकिन जिम्मेदारी ऐसी चीज है, जो पत्नी तो क्या, मांबाप से भी दूर होने को मजबूर कर देती है. यही हाल मनोज का भी हुआ. साल भर बाद वह एक बेटे का बाप बना तो खर्च बढ़ते ही उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगा.

इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मनोज को कमाना धमाना जरूरी था, जिस के लिए वह ऊधमसिंहनगर चला गया. वहां उसे टाटा मैजिक के लिए पुर्जे बनाने वाली अल्ट्राटेक कंपनी में नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने शांति कालोनी रोड स्थित बधईपुरा में जागरलाल के मकान में किराए पर कमरा ले लिया.

कमाईधमाई के लिए मनोज खुद तो ऊधमसिंहनगर चला गया था, लेकिन घरवालों की देखरेख के लिए गीता को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ गया था. उस ने एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बिना गीता का मन गांव में कैसे लगेगा. शायद उसे लग रहा था कि जिस तरह वह पत्नीबच्चे और परिवार के लिए त्याग कर रहा है, उसी तरह गीता भी कर लेगी.

लेकिन मनोज की यह सोच गलत साबित हुई. क्योंकि गीता को तो शारीरिक संबंधों का चस्का पहले से ही लगा हुआ था. ऐसे में वह बिना पति के कैसे रह सकती थी. उस का दिन तो घर के कामधाम और बच्चे में कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. बेचैनी से वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी. शारीरिक सुख के बिना वह बुझीबुझी सी रहती थी. उस की इस बेचैनी और परेशानी को घर का कोई दूसरा सदस्य भले ही नहीं समझ सका, लेकिन पितातुल्य ससुर परमानंद ने जरूर समझ लिया था.

इस की वजह यह थी कि परमानंद लंगोट का कच्चा था. उस के लिए रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण स्त्री का शरीर था. शायद यही वजह थी कि गीता को उस ने देखते ही पसंद कर लिया था. परमानंद अपनी बहू पर शुरू से ही फिदा था. लेकिन बेटे के रहते वह बहू के करीब नहीं जा पा रहा था. बहू के नजदीक जाने के लिए ही उस ने बेटे को जिम्मेदारी का अहसास दिला कर उसे घर से बाहर भेज दिया था.

मनोज के जाने के बाद गीता की बेचैनी बढ़ी तो परमानंद गीता के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. वह उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ने लगा. गीता उस से बातें करती तो वह अकसर बातें करते करते अपनी सीमाएं लांघ जाता. वह उसे कोई सामान पकड़ाती तो सामान पकड़ने के बहाने वह उसे छूने (Extramarital Affairs) की कोशिश करता. ससुर की इन हरकतों से अनुभवी गीता को समझते देर नहीं लगी कि वह उस से क्या चाहता है. गीता को शक तो पहले से ही था, लेकिन जब निगाहें बदलीं और परमानंद बातबात में हंसीमजाक करने लगा तो उस का शक यकीन में बदल गया.

परमानंद देखने में ही जवान नहीं था, बल्कि शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. इस की वजह यह थी कि वह अपने शरीर और खानपान का विशेष ध्यान रखता था. बच्चे सयाने हो गए हैं, यह कह कर पत्नी उर्मिला उसे पास नहीं फटकने देती थी. जबकि परमानंद अभी खुद को जवान समझता था और स्त्रीसुख की लालसा रखता था.

परमानंद को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि गीता उस की बेटी की उम्र की तो है ही, उस की बहू भी है. वह वासना में इस कदर अंधा हो गया था कि मर्यादा ही नहीं, रिश्ते नाते भी भूल गया. गीता अब उसे सिर्फ एक औरत नजर आ रही थी, जो उस की शारीरिक भूख शांत कर सकती थी. यहां परमानंद ही नहीं, गीता भी अपनी मर्यादा भुला चुकी थी. यही वजह थी कि वह परमानंद की किसी अशोभनीय हरकत का विरोध नहीं कर रही थी, जिस से उस की हिम्मत और हसरतें बढ़ती जा रही थीं. फिर तो एक स्थिति यह आ गई कि परमानंद की रात की नींद गायब हो गई. अब वह मौके की तलाश में रहने लगा.

आखिर उसे एक दिन तब मौका मिल गया, जब पत्नी मायके गई हुई थी. गरमी के दिन होने की वजह से बाकी बच्चे अंदर सो रहे थे. गीता घर के काम निपटा कर बाहर दालान में आई तो ससुर को बेचैन हालत में करवट बदलते देखा. उसे लगा ससुर की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस के पास आ कर पूछा, ‘‘लगता है, आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

परमानंद हसरत भरी निगाहों से गीता को ताकते हुए बोला, ‘‘तुम इतनी दूरदूर रहोगी तो तबीयत ठीक कैसे रहेगी.’’

गीता को परमानंद की बीमारी का पहले से ही पता था. बीमार तो वह खुद भी थी. इसीलिए तो मौका देख कर उस के पास आई थी. उस ने चाहतभरी नजरों से परमानंद को ताकते हुए कहा, ‘‘यह आप का भ्रम है. मैं आप से दूर कहां हूं बाबूजी. आप के आगेपीछे ही तो घूमती रहती हूं.’’

अब गीता इस से ज्यादा क्या कहती. परमानंद ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वह खुद ही उस के ऊपर गिर पड़ी. इस तरह एक बार मर्यादा की दीवार गिरी तो उस पर रोजरोज वासना की इमारत खड़ी होने लगी. गीता का तो मर्यादा से कभी कोई नाता ही नहीं रहा था, उसी में उस ने ससुर को भी शामिल कर लिया. परमानंद की संगत में आ कर वह शराब भी पीने लगी. अब वह शराब पी कर ससुर के साथ आनंद उठाने लगी. कुछ दिनों बाद उस ने अपने चचिया ससुर से भी संबंध बना लिए.

ये ऐसा रिश्ता है, जिसे कितना भी छिपाया जाए, छिपता नहीं है. किसी दिन उर्मिला ने गीता को परमानंद के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. जब घर का मुखिया ही पतन के रास्ते पर चल रहा हो तो घर के अन्य लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उर्मिला भी जब ससुरबहू के इस मिलन को नहीं रोक पाई तो उस ने यह बात अपने बेटे मनोज को बताई.

मनोज जानता था कि उस का बाप और पत्नी बरबादी की राह पर चल रहे हैं, इसलिए वह भाग कर गांव आया. बाप से वह कुछ कह नहीं सकता था, उस ने गीता को समझाने की कोशिश की. लेकिन गीता अब कहां मानने वाली थी. हार कर मनोज उसे अपने साथ ले गया. मनोज का विचार था कि गीता साथ रहेगी तो ठीक रहेगी. लेकिन जिस की आदत बिगड़ चुकी हो, वह कैसे सुधर सकती है. बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ऐसे मामलों में सुधरने के बारे में सोचते हैं.

मनोज के नौकरी पर जाते ही गीता आजाद हो जाती. वह कमरे में ताला डाल कर घूमने निकल जाती. उस ने वहां भी अपने रंगढ़ंग दिखाने शुरू किए तो वहां भी रंगीनमिजाज लोग उस के पीछे पड़ गए. उन्हीं में रुद्रपुर की आदर्श कालोनी का रहने वाला शेखर और जगतपुरा का रहने वाला मनोज भटनागर भी था. गीता के दोनों से ही प्रेमसंबंध बन गए. शेखर ने बातें करने के लिए गीता को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. यही नहीं, दोनों गीता की हर जरूरत पूरी करने को तैयार रहते थे. गीता उन के साथ घूमतीफिरती, सिनेमा देखती, होटलों और रेस्तरांओं में खाना खाती. बदले में वह उन्हें खुश करती और खुद भी खुश रहती.

मनोज जागरलाल के जिस मकान में किराए पर रहता था, उसी में उस के बगल वाले कमरे में रामचंद्र मौर्य रहता था. वह जिला बरेली के थाना मीरगंज के अंतर्गत आने वाले गांव गौनेरा का रहने वाला था. था तो वह शादीशुदा, लेकिन वहां वह अकेला ही रहता था. वह वहां एक फैक्ट्री में ठेकेदारी करता था. अगलबगल रहने की वजह से मनोज और रामचंद्र के बीच परिचय हुआ तो दोनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन में आपस में खास लगाव हो गया था. जल्दी ही रामचंद्र गीता के बारे में सब कुछ जान गया था. मनोज के काम पर जाते ही वह उस के कमरे पर पहुंच जाता और गीता से घंटों बातें करता रहता.

पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर गीता समझ गई कि रामचंद्र उस के कमरे पर क्यों आता है. वह जान गई कि पत्नी से दूर औरत सुख के लिए बेचैन रामचंद्र उसी के लिए उस के आगेपीछे घूमता है. रामचंद्र गीता से दोगुनी उम्र का था. लेकिन गीता के लिए इस का कोई मतलब नहीं था. उसे मतलब था तो सिर्फ देहसुख और पैसों से, जो चाहने वाले उस पर लुटा रहे थे. तरहतरह के मर्दों के साथ मजा लेने वाली गीता को रामचंद्र का आना अच्छा ही लगा. इसलिए गीता उस का मुसकरा कर स्वागत करने लगी.

फिर तो रामचंद्र को उस के करीब आने में देर नहीं लगी. जल्दी ही दोनों के मन ही नहीं, तन भी एक हो गए. लेकिन जितनी जल्दी वे एक हुए, उतनी ही जल्दी उन की पोल भी खुल गई. एक दिन मनोज फैक्ट्री से जल्दी आ गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो गीता ने दरवाजा काफी देर बाद खोला. वह मनोज को देख कर चौंकी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे, इसलिए मनोज को लगा, वह सो रही थी. गीता ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘फैक्ट्री का जनरेटर खराब था, इसलिए काम नहीं हुआ.’’ कह कर मनोज कमरे में दाखिल हुआ तो सामने पलंग पर रामचंद्र को बैठे देख कर उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. मनोज को देख कर वह तेजी बाहर निकल गया. मनोज ने गुस्से से पूछा, ‘‘यह यहां क्या कर रहा था?’’

‘‘पानी पीने आया था.’’ गीता ने हकलाते हुए कहा.

‘‘कमरा बंद कर के पानी पिला रही थी या उस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी?’’

‘‘तुम्हें यह कहते शरम नहीं आती?’’ गीता चीखी.

‘‘शरम तो तुम्हें आनी चाहिए, जो एक के बाद एक गलत हरकतें करती आ रही हो. अपने मर्द के होते हुए पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. तुम्हें तो शरम से डूब मरना चाहिए.’’

‘‘तुम में है ही क्या? तुम न तो पत्नी को संतुष्ट (Extramarital Affairs)  कर सकते हो, न ही उस के खर्चे उठा सकते हो. अगर तुम को इस सब से परेशानी हो रही है तो मुझे छोड़ दो.’’ गीता ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तू तो चाहती ही है कि मैं तुझे छोड़ दूं तो तू घूमघूम कर गुलछर्रे उड़ाए. तुझे तो अपनी इज्जत की पड़ी नहीं है, लेकिन मुझे तो अपनी इज्जत की फिक्र है. इसलिए सामान बांध लो और अब हम गांव चलते हैं.’’

अगले दिन मनोज ने नौकरी छोड़ दी और हिसाबकिताब ले कर गांव आ गया. कुछ दिनों गांव में रह कर मनोज अकेला ही दिल्ली चला गया, जहां किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करने लगा. उस के जाते ही गीता फिर आजाद हो गई. अब वह वही करने लगी, जो उस के मन में आता. शेखर और मनोज उस से मिलने उस की ससुराल भी आने लगे. मनोज के पास मोटरसाइकिल थी, गीता का जब मन होता, मोटरसाइकिल ले कर अकेली ही बरेली से रुद्रपुर चली जाती और अपने प्रेमियों से मिल कर वापस आ जाती.

रामचंद्र से गीता को विशेष लगाव था. वह उसी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताती थी. जब इस सब की जानकारी परमानंद को हुई तो उस ने गीता को रोका. लेकिन वह मानने वाली कहां थी. उस ने एक दिन गीता को रामचंद्र के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने सरेआम रामचंद्र की पिटाई कर दी. रामचंद्र को यह बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था.

गीता को भी ससुर की यह हरकत पसंद नहीं आई. क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे अपनी जागीर समझे और उस की बेलगाम जिंदगी पर अंकुश लगाए. जब उस ने अपने पति मनोज की बात नहीं मानी तो परमानंद की बात कैसे मानती. यही वजह थी कि परमानंद बारबार उस के रास्ते में रोड़ा बनने लगा तो उस ने इस रोड़े को हमेशा के लिए हटाने की तैयारी कर ली. इस के लिए उस ने रामचंद्र को भी राजी कर लिया. वह राजी भी हो गया, क्योंकि वह भी उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था.

गीता ने ससुर को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार 27 जुलाई को वह परमानंद को मोटरसाइकिल से रुद्रपुर रामचंद्र के कमरे पर ले गई. देर रात तक गीता, रामचंद्र और परमानंद बैठ कर शराब पीते रहे. गीता और रामचंद्र ने तो खुद कम पी, जबकि परमानंद को जम कर पिलाई. यही नहीं, उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दी थीं, जिस से कुछ ही देर में वह बेहोश हो कर लुढ़क गया. उस के बाद गीता और रामचंद्र ने उसी के अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद गीता ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की तो रामचंद परमानंद की लाश को बीच में बैठा कर पीछे स्वयं बैठ गया. गीता मोटरसाइकिल ले कर काला डूंगी रोड पर भाखड़ा नदी के किनारे पहुंची, जहां दोनों ने परमानंद की लाश को बोरी में कुछ ईंटों के साथ डाल कर नदी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद गीता रुद्रपुर में ही रामचंद्र के कमरे पर कई दिनों तक रुकी रही.

11 अगस्त को गीता मोटरसाइकिल से अपनी ससुराल लावाखेड़ा पहुंची तो परमानंद के छोटे बेटे चैतन्य स्वरूप ने पिता के बारे में पूछा. तब गीता ने किसी रिश्तेदारी में जाने की बात कह कर बात खत्म कर दी. 2 दिन ससुराल में रह कर गीता फिर चली गई. गीता के जाने के बाद कई दिनों तक परमानंद नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई.

उन्हें गीता पर शक हुआ कि कहीं उस ने अपने प्रेमियों शेखर और मनोज के साथ मिल कर उस की हत्या तो नहीं करा दी. चैतन्य स्वरूप ने कोतवाली नवाबगंज जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दी. उस समय इंसपेक्टर अशोक कुमार के पास कोतवाली का भी चार्ज था. उन्हें लगा कि बहू ससुर को क्यों गायब करेगी? यही सोच कर उन्होंने चैतन्य को लौटा दिया. परमानंद का परिवार उस की तलाश में लगा रहा. उसी बीच 21 अगस्त को इंसपेक्टर अशोक कुमार का तबादला हो गया तो उन की जगह आए इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी. चैतन्य स्वरूप उन से मिला तो उन्होंने उस से तहरीर ले कर शेखर और मनोज भटनागर के खिलाफ अपराध संख्या-827/13 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर गीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

सर्विलांस सेल के पुलिसकर्मियों की गीता से कई बार बात हुई. गीता उन से कभी गुजरात में होने की बात कहती तो कभी हरियाणा में होने की बात बताती, जबकि उस की लोकेशन बरेली के आसपास की ही थी. पुलिस समझ गई कि गीता बहुत ही शातिर है. गीता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह सब से अधिक अपनी बड़ी बहन ललिता से बात करती थी. इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी ने ललिता और उस के पति प्रमोद को थाने ला कर पूछताछ की तो उन्होंने गीता का ठिकाना बता दिया. गीता उस समय बरेली के थाना मीरगंज के सामने राजेंद्र सेठ के मकान में किराए का कमरा ले कर रह रही थी. उसी के साथ रामचंद्र मौर्य भी था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. यह 23 दिसंबर, 2013 की बात है.

पूछताछ में गीता और रामचंद्र ने परमानंद की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बता दी. पुलिस ने दोनों को रुद्रपुर ले जा कर उन की निशानदेही पर भाखड़ा नदी से परमानंद की लाश बरामद करने की कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इस के बाद पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लाश की बरामदगी के लिए एक बार फिर पुलिस दोनों को रिमांड पर लेने का प्रयास कर रही थी. लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों का रिमांड मिला नहीं था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या

मौसी के हुस्न का शिकारी

नय अपने दोस्त पिंटू के साथ होटल खोलना चाहता था, इसलिए उसे 15 हजार रुपयों की सख्त जरूरत थी. उस ने पिंटू को पूरा भरोसा दिलाया था कि रुपयों  की व्यवस्था कर लेगा. क्योंकि उसे विश्वास था कि उस की मौसी इंद्रा उसे रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने तो रुपए देने से साफ मना कर दिया था. यह बात विनय को बड़ी नागवार लगी थी, क्योंकि मौसी के इस तरह मना कर देने से दोस्त के सामने उस की बड़ी बेइज्जती हुई थी.

इस बात को ले कर पिंटू अकसर उस की हंसी उड़ाने लगा था. मजबूरी में विनय खून का घूंट पी कर रह जाता था. तब उसे मौसी पर बहुत गुस्सा आता था. धीरेधीरे उस का यह गुस्सा इस कदर बढ़ता गया कि उस ने धोखा देने वाली मौसी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. वह उस की हत्या कर के उस के घर में रखी नकदी और गहने लूट लेना चाहता था.

हमेशा की तरह 27 जनवरी को जब पिंटू ने विनय को चिढ़ाने के लिए रुपयों के बारे में पूछा तो उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘चिंता मत करो दोस्त, अब बहुत जल्द रुपयों की व्यवस्था हो जाएगी.’’

‘‘वह कैसे, मौसी रुपए देने को तैयार हो गई क्या? पहले तो उस ने मना कर दिया था, अब कैसे राजी हो गई?’’ पिंटू ने उसे जलाने के लिए मुसकराते हुए कहा.

‘‘भई सीधी अंगुली से घी न निकले तो अंगुली टेढ़ी कर देनी चाहिए. मौसी सीधे रुपए नहीं दे रही न, देखो अब मैं कैसे उस से रुपए लेता हूं.’’ विनय ने कहा.

‘‘भई, जरा हमें भी तो बता मौसी से कैसे रुपए लेगा?’’ पिंटू ने हैरानी से पूछा.

‘‘मौसी के पास काफी गहने हैं. घर खर्च के लिए 10-5 हजार रुपए हमेशा घर में रखे ही रहते हैं. इस के अलावा आलोक भैया बिजनैस करते हैं, उन के भी कुछ न कुछ रुपए रखे ही रहते होंगे. मैं सोच रहा हूं मौसी की हत्या कर के उन के गहने और रुपए हथिया लूं.’’ विनय ने कहा, ‘‘अब तू बता, तेरा क्या इरादा है? इस मामले में तू मेरा साथ देगा या नहीं?’’

‘‘यार जिंदगी का सवाल है. इसलिए मैं तेरा साथ देने को तैयरा हूं. लेकिन पकड़े गए तो जिंदगी बनने के बजाय बिगड़ जाएगी.’’ पिंटू ने चिंता व्यक्त की.

‘‘मैं ने ऐसी योजना बना रखी है कि किसी को पता ही नहीं चलेगा. फिर मौसी पूरे दिन घर में अकेली ही रहती हैं. हम अपना काम कर के आराम से चुपचाप चले जाएंगे. बस इतना ध्यान रखना होगा कि कोई पड़ोसी न देखने पाए.’’ विनय ने कहा.

पिंटू ने हामी भर दी तो विनय ने उसे अपनी योजना समझा कर अगले दिन यानी 28 जनवरी को ही उसे अंजाम देने की तैयारी कर ली. अगले दिन सुबह ही पिंटू विनय के घर पहुंच गया. दोनों ट्रक से उन्नाव के लिए रवाना हो गए. विनय की मौसी का घर उन्नाव बाईपास के पूरननगर में था. इसलिए दोनों बाईपास पर ही उतर गए. वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े.

जिस समय विनय पिंटू के साथ अपनी मौसी इंद्रा के घर पहुंचा, उस के मौसा प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव अपनी ड्यूटी पर राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय जा चुके थे तो मौसेरा भाई आलोक लुकइयाखेड़ा स्थित अपनी कंप्यूटर की दुकान पर. इंद्रा घर में अकेली ही थी. विनय ने घंटी बजाई तो उन्होंने झट दरवाजा खोल दिया.

विनय और पिंटू को देख कर इंद्रा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. आज बहुत दिनों बाद आए हो?’’

‘‘हां, आप से मिले बहुत दिन हो गए थे, इसीलिए सोचा कि चलो आज मौसी से मिल आते हैं.’’ कहते हुए विनय अंदर आ गया.

‘‘बहुत अच्छा किया. इधर कई दिनों से तुम्हारी याद आ रही थी.’’ इंद्रा ने विनय के कंधे पर हाथ रख कर सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर इंद्रा रसोई में चाय बनाने चली गई तो विनय और पिंटू अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. विनय ने टीवी की आवाज तेज कर दी, जिस से हत्या करते समय मौसी चीखे भी तो उस की आवाज उसी में दब जाए. इंद्रा ने चाय और नमकीन ला कर रखी तो सभी खानेपीने लगे.

चाय पीते हुए विनय ने कहा, ‘‘मौसी, मैं आप से होटल खोलने के लिए 15 हजार रुपए कब से मांग रहा हूं. लेकिन आप दे नहीं रहीं हैं. आप के अलावा कोई दूसरा मेरी मदद नहीं कर सकता, इसलिए आप कैसे भी रुपयों की व्यवस्था कर दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें न जाने कितने रुपए दे चुकी हूं, इस का तुम्हारे पास कोई हिसाब है. जब देखो, तब तुम रुपए लेने आ जाते हो,’’ इंद्रा ने नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आदत पड़ गई है, मुझ से रुपए ऐंठने की. लेकिन अब मैं तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी. अगर तुम ने ज्यादा परेशान किया तो तुम्हारी शिकायत तुम्हारे मौसा से कर दूंगी.’’

मौसी की बातें सुन कर विनय गुस्से से पागल हो उठा. वह तो पिंटू के साथ उस की हत्या की योजना बना कर ही आया था, इसलिए फुरती से उठा और सामने बैठी मौसी को दबोच कर बोला, ‘‘तू मौसा से मेरी शिकायत करेगी, शिकायत तो तब करेगी, जब जिंदा रहेगी. मैं अभी तुझे जान से मारे देता हूं.’’

कह कर विनय ने अपने गले में लिपटा मफलर निकाला और मौसी के गले में लपेट कर कसने लगा. दबाव से इंद्रा की सांस रुकने लगी तो वह छटपटाने लगी. उस ने बचाव के लिए हाथपैर बहुत मारे, लेकिन गुस्से में पागल विनय फंदे को कसता गया. कुछ देर छटपटाने के बाद इंद्रा का शरीर शिथिल पड़ गया.

विनय को लगा कि मौसी का खेल खत्म हो गया है तो उस ने मफलर छोड़ दिया. उस के मफलर छोड़ते ही इंद्रा लुढ़क गई. विनय के साथ आए पिंटू को लगा कि अगर इंद्रा जिंदा रह गई तो उन का भेद खुल जाएगा. उस के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह सोच कर पिंटू ने घर में रखी सिल उठा कर इंद्रा के सिर पर पटक दिया, जिस से उस का सिर फट गया.

इंद्रा की हत्या करने के बाद विनय और पिंटू अलमारी की चाबी ढूंढ़ने लगे. जल्दी ही उन्हें चाबी मिल गई. विनय ने अलमारी खोल कर उस के लौकर में रखे सोने के एक जोड़ी झुमके, सोने की एक जंजीर, अंगूठी, 1 जोड़ी चांदी की पायल निकाल लिए. विनय को अलमारी में उतने रुपए नहीं मिले, जितने कि उसे उम्मीद थी. अलमारी से उसे मात्र 15 सौ रुपए ही मिले. चलते समय उस ने मौसी का मोबाइल भी ले लिया था. घर से निकल कर उन्होंने बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग गए. घर से बाहर आते ही विनय ने मौसी के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया था.

दोपहर को आलोक को कोई काम पड़ा तो उस ने अपनी मम्मी इंद्रा को फोन किया. लेकिन मम्मी के फोन का स्विच औफ था. काफी देर यही हाल रहा तो परेशान हो कर वह घर आ गया. उस ने दरवाजे पर बाहर से कुंडी लगी देखी तो सकते में आ गया. उसे लगा कि शायद मम्मी घर पर नहीं हैं. दरवाजा खोल कर वह घर के अंदर दाखिल हुआ तो खून से सनी मम्मी की लाश देख कर वह चीखने लगा. उस का चीखना सुन कर आसपड़ोस वाले आ गए.

इंद्रा की खून से सनी लाश देख कर पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि कोई उस की हत्या कर गया है. सूचना पा कर प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव भी आ गए. अलमारी खुली थी और उस में रखे गहने, नकदी और उन की पत्नी का मोबाइल गायब था. लूट और हत्या के इस मामले की जानकारी थाना कोतवाली को दी गई.

एक महिला की हत्या और लूट की सूचना मिलते ही प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया था. सारी काररवाई निपटाने के बाद कोतवाली प्रभारी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी मृतका इंद्रा के बेटे आलोक कुमार श्रीवास्तव को साथ ले कर कोतवाली आ गए, जहां उस की तहरीर पर हत्या और लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

अभियुक्तों तक पहुंचने का पुलिस के पास एक ही सूत्र था, मृतका का मोबाइल. पुलिस ने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. लेकिन मोबाइल का स्विच औफ था, इसलिए उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. पुलिस ने इंद्रा के हत्यारों तक पहुंचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

इस मामले का खुलासा न होते देख पुलिस अधीक्षक रतन कुमार श्रीवास्तव ने अपर पुलिस अधीक्षक रामकिशन यादव और क्षेत्राधिकारी (सदर) मनोज अवस्थी की देखरेख में एक पुलिस टीम गठित की, जिस का नेतृत्व प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी को ही सौंपा गया.

टीम का गठन होते ही संयोग से घटना के लगभग महीने भर बाद इंद्रा के मोबाइल की लोकेशन कानपुर के नौबस्ता की मिल गई. उस नंबर का भी पता चल गया, जो नंबर उस में उपयोग में लाया जा रहा था.

पुलिस टीम ने लोकेशन और नंबर के आधार पर उस आदमी को पकड़ लिया, जिस के पास वह मोबाइल फोन था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह मोबाइल फोन उस ने सपई गांव के रहने वाले पिंटू सिंह चंदेल से खरीदा था.

पुलिस को उस आदमी से पिंटू का पता मिल गया था. छापा मार कर पुलिस ने 3 मार्च को पिंटू सिंह चंदेल को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने कोतवाली ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के स्वीकार कर लिया कि मृतका की बहन के बेटे विनय के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था.

पिंटू से पूछताछ के बाद पुलिस ने विनय की तलाश में उस के घर छापा मारा. लेकिन वह नहीं मिला. तब पुलिस ने पिंटू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस विनय श्रीवातस्तव की तलाश में पूरे जोरशोर से लग गई थी, लेकिन पुलिस से बचने के लिए वह छिप गया था. आखिर 13 मार्च को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विनय को भी गिरफ्तार कर लिया.

जब उस का दोस्त पकड़ा जा चुका था तो विनय के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं था. इसलिए उस ने मौसी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस पूछताछ में उस ने जो कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. क्योंकि विनय के अपनी मां समान ही नहीं, उम्र में दोगुनी से भी ज्यादा मौसी से अवैध संबंध थे. इस तरह अवैध संबंधों की नींव पर टिकी लूट और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना कोतवाली के मोहल्ला पूरननगर में रहते थे प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव. वह राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय में वार्डब्वाय थे. उन के परिवार में पत्नी इंद्रा के अलावा बेटा आलोक और बेटी ज्योति थी. पढ़ाई पूरी कर के आलोक ने लुकइयाखेड़ा में कंप्यूटर की दुकान खोल ली थी. ज्योति की भी पढ़ाई पूरी हो गई तो प्रकाशचंद्र ने उस की शादी कर दी थी.

इंद्रा की बड़ी बहन मंजूलता की शादी कानपुर के थाना नौबस्ता के सरस्वतीनगर के रहने वाले अरुणकुमार श्रीवास्तव के साथ हुई थी. अरुण कुमार लोहिया फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के कुल 3 बेटे थे, विकास, विनय और विनीत. पढ़ाई पूरी होने के बाद विकास ने लिटिल स्टार एंजल स्कूल में नौकरी कर ली थी, तो बीकौम करने के बाद विनय जूते का काम करने लगा था. सब से छोटे विनीत ने बीकौम कर के लैपटौप रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया था. 6 साल पहले अरुण कुमार की मौत हो गई तो घर की सारी जिम्मेदारी मंजूलता पर आ गई थी.

विनय का मन जूते के काम में कम, क्रिकेट खेलने में ज्यादा लगता था. मैच खेलने के चक्कर में ही वह इधरउधर घूमता रहता था. खाली होने की वजह से वह अकसर अपनी मौसी इंद्रा के घर भी चला जाता था, जहां वह कईकई दिनों तक रुका रहता था. इंद्रा उस का बहुत खयाल रखती थी.

एक तो प्रकाशचंद्र की उम्र हो गई थी, दूसरे बच्चे सयाने हो गए थे, इसलिए वह पत्नी में कम ही रुचि लेते थे जबकि इंद्रा चाहती थी कि पति रोजाना उस के पास आए और उसे संतुष्ट करे. पति से इच्छा पूरी न होने से इंद्रा का मन भटकने लगा तो वह, किसी युवक की तलाश में रहने लगी. लेकिन उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि किसी युवक से संबंध बनाने पर अगर बात खुल गई तो बड़ी बदनामी होगी.

तब वह किसी ऐसे युवक की तलाश में लग गई, जिस से संबंध बनाने पर किसी को पता न चल सके. ऐसा युवक वही हो सकता था, जिस से उस के घरेलू संबंध हों यानी जिस के घर आनेजाने पर किसी को संदेह न हो. इस बारे में उस ने काफी सोचाविचारा तो उस की नजर अपनी बहन के बेटे विनय पर टिक गई. क्योंकि विनय उस के घर में ही रहता था. दूसरे बहन का बेटा होने की वजह से जल्दी उस पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था.

विनय उस उम्र में था, जिस उम्र में स्त्री देह कुछ ज्यादा ही आकर्षित करती है. तब रिश्तेनाते का भी खयाल नहीं रहता. विनय की शादी भी नहीं हुई थी. ऐसे में इंद्रा ने रिश्ते नाते, लाजशरम त्याग कर अपनी देह को उस के सामने परोसा तो जवानी की दहलीज पर खड़े विनय को फिसलते देर नहीं लगी. मौसी की देह तो उस के लिए अंधे सियार को पीपल ही मेवा की तरह लगा. वह निश्चिंत हो कर मौसी के साथ मौज करने लगा.

इंद्रा ने विनय को हिदायत दे रखी थी कि यह बात वह अपने दोस्तों तक को भी नहीं बताएगा. इसलिए विनय ने यह बात कभी किसी को नहीं बताई. उस का जब भी मन होता, वह मौसी के यहां आ जाता और जितने दिन मन होता, आराम से रहता. मौसा और मौसेरे भाई के जाने के बाद वही दोनों घर पर रह जाते थे, इसलिए उन का जो मन होता, आराम से करते.

इंद्रा विनय को न सिर्फ शारीरिक सुख देती थी, बल्कि उसे अपने आकर्षण में बांधे रहने के लिए उस की छोटीमोटी जरूरतें भी पूरी करती थी. वह उसे जेब खर्च के लिए रुपए भी देती थी. विनय को दोहरा लाभ था, इसलिए वह मौसी से खूब खुश रहता था.

क्रिकेट खेलने में ही विनय की दोस्ती कानपुर के थाना बिधनू के गांव सपई के रहने वाले वीरेंद्र सिंह चंदेल के बेटे पिंटू से हो गई थी. पिंटू नौबस्ता में चाय की दुकान चलाता था. विनय का जूते के काम में मन नहीं लगता था, इसलिए उस ने पिंटू के साथ होटल खोलने की योजना बनाई. होटल खोलने के लिए उसे 15 हजार रुपयों की जरूरत थी.

विनय को पूरा यकीन था कि मौसी इंद्रा उसे ये रुपए दे देंगी. इसीलिए उस ने बड़े ही विश्वास के साथ पिंटू से कह दिया था कि उस की मौसी एक बार मांगने पर रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने रुपए नहीं दिए. उसी का नतीजा था कि नाराज हो कर विनय ने पिंटू के साथ मिल कर उन के यहां लूट के इरादे से उन की हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने विनय को पत्रकारों के सामने भी पेश किया. प्रेसवार्त्ता करा कर उन्होंने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विनय और पिंटू की जमानत नहीं हुई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई?

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या – भाग 3

एक दिन जब इलियास अचानक घर आया तो नसीमा किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी. इलियास को आया देख कर उस ने फोन काट दिया.

इस बात पर दोनों के बीच तीखी तकरार हो गई. एक बार तकरार का यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह आए दिन की बात हो गई. कुछ दिनों बाद नसीमा की तबीयत खराब रहने लगी. इलाज के लिए वह दिल्ली के गुरु तेग बहादुर सरकारी अस्पताल जाने लगी.

यह बात भी इलियास को परेशान करने लगी. उस के मन में यह बात घर कर गई कि नसीमा बहाने से किसी से मिलने जाती है. एक दिन जब इलियास दिल्ली में था तो नसीमा ने उसे फोन कर के बताया कि उस के पेट में तकलीफ है और उसे इलाज के लिए गुरु तेगबहादुर अस्पताल शाहदरा जाना है.’’

‘‘मुझे पहले ही पता था कि तुम वहीं जाने की बात करोगी. यार तो वहीं मिलते होंगे. तुम बागपत में भी तो दिखा सकती हो.’’ इलियास ने छूटते ही कहा.

‘‘खुदा के वास्ते सोचसमझ कर मुंह खोला करो इलियास. वहां अच्छी डाक्टर हैं, इसलिए जाती हूं.’’ नसीमा ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ समझने को तैयार ही नहीं था. उस ने दो टूक अपना फैसला सुना दिया, ‘‘तुम्हें दवा लेने के लिए वहां जाने की जरूरत नहीं है.’’

इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब बहस हुई. नसीमा पति की आदत से बहुत परेशान थी. उस ने उस की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. इलियास के मना करने के बावजूद वह शाहदरा गई. यह बात इलियास को पता चली तो अगले ही दिन वह गांव आ गया और उस ने नसीमा के साथ जमकर मारपीट की.

इलियास की मारपीट से क्षुब्ध हो कर नसीमा ने अगले दिन पुलिस चौकी टटीरी में शिकायत दर्ज करा दी. पुलिस ने इलियास को बुला कर डांटाफटकारा. उस ने अपनी गलती मान ली तो पुलिस ने दोनों का समझौता करा दिया.

जरूरत से ज्यादा बंदिशें बगावत को जन्म देती हैं. नसीमा के साथ भी यही हुआ. इस के बाद उस ने इलियास से पूछना ही बंद कर दिया. उस का जब मन करता, शाहदरा चली जाती. इस का भेद तब खुला, जब एक दिन इलियास दिन के वक्त घर आ गया. बच्चे घर पर थे.

बच्चों से जब यह पता चला कि नसीमा शाहदरा गई है तो इलियास का पारा सांतवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने नसीमा का मोबाइल मिलाया. उस का गुस्सा तब और भी ज्यादा भड़क उठा, जब उस का मोबाइल बंद मिला.

शाम को नसीमा घर आई. उस के पास दवाइयां भी थीं. लेकिन इलियास कुछ सुनने को तैयार नहीं था. उस ने फिर उस के साथ मारपीट की. मोबाइल की बाबत पूछने पर नसीमा ने बताया कि उस की बैटरी खत्म हो गई थी, जिस की वजह से वह बंद हो गया था. वह सच बोल रही थी, पर इलियास को यकीन नहीं हुआ. वह कुछ भी सुनना या समझना नहीं चाहता था.

उस दिन के बाद इलियास बीवी पर शक को ले कर परेशान रहने लगा. शक उस के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी हो चुका था कि उस की रातों की नींद उड़ गई. सोतेजागते, उठतेबैठते उस के दिमाग में एक ही बात चलती रहती थी कि नसीमा के किसी के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं.

वह जबजब दिल्ली जाती थी, इलियास का दिमाग घूम जाता था. उसे यही लगता था कि वह किसी से मिलने जाती है. हालांकि इन बातों का उस के पास कोई सुबूत नहीं था, लेकिन यह सच है कि शक करने वाला सुबूत पर नहीं सिर्फ अपने शक पर यकीन करता है. इलियास के साथ भी ऐसा ही था.

आखिर अपने शक की वजह से उस ने मन ही मन नसीमा को रास्ते से हटाने का एक खतरनाक निर्णय ले लिया. एक दिन उस ने ममेरे भाई साजिद, दोस्त परवेज व भांजे सलीम को अपने पास बुलवाया. ये सभी बागपत में ही रहते थे. इलियास ने अपनी परेशानी और शक के बारे में उन्हें बता कर कहा कि वह नसीमा को रास्ते से हटाना चाहता है. पहले तो ये लोग डरे, लेकिन इलियास के समझाने पर मान गए.

उस दिन चारों ने नसीमा की हत्या की योजना बना ली. योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इलियास ने सब से पहले नसीमा से नाराजगी दूर कर के उस के साथ मधुर रिश्ते बनाने शुरू कर दिए. जब वह इस में कामयाब हो गया तो उचित मौके की तलाश में रहने लगा.

जल्द ही उसे यह मौका मिला गया. 6 फरवरी, 2014 को नसीमा ने इलियास को फोन कर के बताया कि उसे अल्ट्रासाउंड के लिए शाहदरा जाना है.

‘‘ठीक है कल आ जाना, मैं साथ चलूंगा.’’ इलियास ने खुश हो कर कहा. उस के लिए यह अच्छा मौका था. उस ने इस बाबत अपने साथियों को भी फोन कर के बता दिया. इस बीच इलियास ने एक चाकू का इंतजाम कर के अपने पास रख लिया.

हालांकि उसी शाम इलियास खुद भी घर आ गया था, लेकिन 7 फरवरी की सुबह 7 बजे वह नसीमा से यह कह कर निकल गया कि दिल्ली आ कर वह उसे फोन कर ले. अगले दिन दोपहर के वक्त नसीमा बच्चों को ले कर इलियास के पास पहुंच गई. इलियास बच्चों को उस के साथ देख कर चौंका. उस ने नसीमा से पूछा, ‘‘इन्हें साथ लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘मैं ने सोचा इन्हें कपड़े दिला देंगे. इसलिए साथ ले आई.’’

इलियास को लगा था कि वह अकेली ही आएगी. उस ने उस का भविष्य भी तय कर दिया था. साजिद, परवेज व सलीम को वह कह चुका था कि वे लोग तैयार रहें, जब वह फोन करे तो आ जाएं.

इलियास ने पहले नसीमा को अस्पताल में दिखाया. फिर शाम को बच्चों को बाजार घुमाया, लेकिन यह कह कर कपड़े नहीं दिलाए कि फिर कभी दिला देगा. शाम ढले इलियास के तीनों साथी भी आ गए.

रात में टे्रन में सवार हो कर वह सवा 9 बजे अहेड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां इक्कादुक्का लोग ही थे. जब यात्री चले गए तो इलियास नसीमा के साथ पैदल ही गांव की तरफ चल दिया. साजिद, परवेज व सलीम उस के पीछे थे. रास्ता सुनसान था. इलियास ने पीछे घूम कर इशारा किया तो सलीम आगे आया और उस ने तमंचा निकाल कर फायर कर दिया. लेकिन उस का निशाना चूक गया.

सकते में आई नसीमा को अपने सामने मौत नाचती नजर आई. वह समझ गई कि वे लोग उसे खत्म कर देना चाहते हैं. दहशत के मारे वह जमीन पर गिर गई. वह गिड़गिड़ाई, ‘‘खुदा के वास्ते मुझे मत मारो इलियास.’’

‘‘तू रहम के काबिल नहीं है नसीमा.’’ गुस्से में दांत पीसते हुए इलियास ने चाकू निकाला और नसीमा को खींच कर किनारे ले गया और चाकू से उस की गरदन पर वार कर दिया. उस का वार चूकने की वजह से चाकू माथे पर लगा. इलियास ने दोबारा वार किया. इस बार नसीमा की गरदन से खून की धार फूट पड़ी. वह बचाव के लिए छटपटाई तो सलीम व साजिद ने उस के पैर जकड़ लिए.

मां को लहूलुहान देख कर बच्चों की चीख निकल गई. वह बुरी तरह सहम गए. नसीमा तड़प रही थी. तीनों बच्चे इलियास से लिपट कर रोने लगे. लेकिन शैतान बने इलियास ने उन्हें खूंखार नजरों से घूरते हुए अपने से दूर झटक दिया.

जरा सी देर में नसीमा ने दम तोड़ दिया. यह देख उस का 7 वर्षीय बेटा नाजिम बहन का हाथ पकड़ कर चिल्लाया, ‘‘नाजिया. भाग, अब्बू ने अम्मी को मार दिया है. यह हमें भी मार डालेंगे. अकरम का भी हाथ पकड़ ले.’’ दहशतजदा तीनों बच्चे गेंहू के खेत की तरफ भागने लगे.

लेकिन उन लोगों ने दौड़ कर तीनों बच्चों को पकड़ लिया. इलियास के सिर पर खून सवार था. वह हैवान बन चुका था. बच्चे मौत के डर से कांप रहे थे. लेकिन इलियास को जरा भी दया नहीं आई. उस ने सब से पहले 4 साल के अकरम की गरदन काट दी. यह देख नाजिम व नाजिया रोते रहे, ‘‘अब्बू हमें मत मारो, अब्बू…’’

इलियास को रहम नहीं आया और उस ने नाजिया व नाजिम का भी गला काट दिया. बच्चों ने छटपटा कर दम तोड़ दिया. इस के बाद इन लोगों ने नसीमा का मोबाइल स्विच औफ कर के वहीं डाल दिया. इलियास ने चाकू परवेज के हवाले कर दिया और चुपचाप घर आ गया.

रात में उस ने नसीमा के जो चंद फोटो घर में थे, सब जला दिए. इस के पीछे उस की सोच थी कि उस के फोटो दिखा कर पुलिस ट्रेन या अस्पताल में पूछताछ न कर सके. क्योंकि नसीमा के साथ वह भी था. इस के बाद वह सो गया. उस के तीनों साथी अपनेअपने घर चले गए.

अगली सुबह दिन निकलते ही इलियास ने नाटक शुरू कर दिया. लियाकत को यह जताने की कोशिश की कि नसीमा नहीं आई है, इसलिए वह परेशान है. उस का मकसद लियाकत को गवाह बनाना था. बाद में हत्या की बात सामने आने पर खूब ड्रामा किया. यही वजह थी कि एकाएक पुलिस को उस पर शक नहीं हुआ था.

इलियास को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस उसे पकड़ लेगी. उस ने सोचा था कि कोई यकीन भी नहीं करेगा कि कोई इस तरह अपने बच्चों और पत्नी को मार सकता है. पुलिस गिरफ्त में इलियास को देख कर कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था कि वह ऐसा भी कर सकता है.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया. वहां इलियास को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. अदालत ने सभी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. बाद में पुलिस ने सलीम को भी मुखबिर की सूचना के आधार पर गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

अपराध चूंकि सनसनीखेज था, इसलिए पुलिस ने बाद में सभी आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत भी काररवाई की. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.

अगर इलियास ने शक को तवज्जो न दे कर खतरनाक निर्णय न लिया होता तो न सिर्फ नसीमा और उस के बच्चे जिंदा होते, बल्कि उस का घर भी उजड़ने से बच जाता.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या – भाग 2

पूछताछ के दौरान इलियास ने पुलिस को बताया कि नसीमा के सिर व पेट में दर्द रहता था. उस का दिल्ली के सरकारी अस्पताल से इलाज चल रहा था. 7 फरवरी को उस का अल्ट्रासाउंड होना था. उस ने फोन पर यह बात इलियास को बता कर अस्पताल जाने के लिए कहा था. इलियास ने उसे जाने को कह दिया और उस शाम खुद गांव आ गया.

उसे हैरानी तब हुई, जब नसीमा देर रात तक घर नहीं आई. इलियास के अनुसार उस ने नसीमा से संपर्क करने की बहुत कोशिशें की. लेकिन नसीमा का मोबाइल बंद था. अगली सुबह जब उसे नसीमा की हत्या की खबर मिली तो वह हतप्रभ रह गया.

‘‘तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी?’’ एन.पी. सिंह ने पूछा तो वह बोला, ‘‘नहीं साहब, मैं तो सीधासादा आदमी हूं. मेरा तो कभी किसी से झगड़ा तक नहीं हुआ. कमाना और खाना, बस इसी में जिंदगी बीत रही है. पता नहीं मेरे परिवार को किस मनहूस की नजर लग गई.’’

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि जब इलियास और नसीमा की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी तो फिर नसीमा को कोई क्यों मारेगा? साथ ही यह भी कि उस के बच्चों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? यह बात साफ थी कि हत्यारे नसीमा या उस के बच्चों को जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.

ऐसे में नसीमा का मोबाइल इस मामले के खुलासे में महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता था. इस बीच मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई थी. नसीमा की गरदन व माथे पर तो 3 घाव थे, जबकि बच्चों के भी गले काटे गए थे. सभी की मृत्यु की एकमात्र वजह सांस की नली का कटना और अधिक रक्तस्राव होना थी.

अगले दिन पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से भी पूछताछ की. पुलिस को इलियास की पहली बीवी के बेटे आबिद पर भी शक हुआ. दरअसल कई बार युवा लड़के प्रौपर्टी और मनमुटाव के चलते सौतेली मां के हत्यारे बन जाते हैं. लेकिन जांचपड़ताल में पता चला कि नसीमा का आबिद से कोई मनमुटाव नहीं था. कभी किसी ने उन्हें लड़तेझगड़ते भी नहीं देखा था.

नसीमा व उस के बच्चों की हत्याएं साफ इशारा कर रही थीं कि यह वारदात लूटपाट के लिए नहीं, बल्कि किसी अपने ने की थी. नसीमा की मौत से चूंकि आबिद को ही कोई फायदा हो सकता था, इसलिए शक की सूई उसी पर ठहर गई. सौतेली मां की मौत की खबर पा कर वह भी गांव आ गया था.

सीओ एन.पी. सिंह और इंसपेक्टर अनिल कपरवाल ने आबिद से घुमाफिरा कर पूछताछ की. उस ने बताया कि घटना वाली रात वह दिल्ली में था. पुलिस ने उस के बयानों की न सिर्फ तसदीक कराई, बल्कि उस के मोबाइल की लोकेशन की भी पड़ताल कराई.

शाम तक इस बात की पुष्टि हो गई कि आबिद सच बोल रहा है. वह इस तरह का युवक नहीं था कि हत्या या कोई षड्यंत्र कर सके. पुलिस ने उस के छोटे भाई शाहिद से भी पूछताछ की. लेकिन पुलिस को कोई दिशा नहीं मिल सकी.

पुलिस असमंजस में थी. जो शक के दायरे में आया था वह कातिल नहीं निकला और जो कातिल थे उन का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. यह निश्चित था कि नसीमा की हत्या रात के वक्त की गई थी.

अनुमान था कि वह 1 बजे पैसेंजर ट्रेन से अहेड़ा स्टेशन पर उतर कर गांव की तरफ चली होगी. ऐसा भी कोई शख्स नहीं मिला जो बता सके कि उस ने नसीमा या उस के बच्चों को स्टेशन पर उतरते देखा था. घटना को 2 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी.

कोई और रास्ता न देख पुलिस ने नसीमा की काल डिटेल्स और फोन की लोकेशन निकलवाई. नसीमा की घटना वाले दिन इलियास से बात हुई थी. उस की लोकेशन शाहदरा के गुरु तेगबहादुर अस्पताल के अलावा, लोनी व अहेड़ा रेलवे स्टेशन पर पाई गई थी.

इस का मतलब उस का मोबाइल हत्या के बाद बंद किया गया था. लेकिन इस से किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. इस बीच पुलिस को पता चला कि 2 महीने पहले नसीमा ने इलियास के खिलाफ टटीरी पुलिस चौकी पर मारपीट करने की शिकायत दर्ज कराई थी. हालांकि इस विवाद को पुलिस ने सुलझा दिया था.

इलियास के कमजोर शरीर को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वह इतना बड़ा कांड कर सकता है. लेकिन जब इस मामले पर दूसरे नजरिए से सोचा गया तो यह बात निकल कर सामने आई कि अपराध की पृष्ठभूमि में शरीर से नहीं दिमाग से काम लिया जाता है.

जो लोग ज्यादा शातिर होते हैं वे जाहिर तक नहीं होने देते कि उन के मन में क्या चल रहा है. पुलिस को लगा कि हो न हो इलियास के मामले में भी ऐसा ही हो. पुलिस ने उसे शक के दायरे में ले कर उस के मोबाइल की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई.

पता चला दोपहर से ले कर रात तक उस के और नसीमा के मोबाइल की लोकेशन एक ही थी. इस का मतलब वे दोनों साथसाथ थे. जबकि उस ने पुलिस को बताया था कि वह शाम को घर आ गया था. जाहिर है वह झूठ बोल रहा था. लेकिन पुलिस इस संवेदनशील मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी, क्योंकि इलियास कोई ड्रामा भी खड़ा कर सकता था.

अपने पक्ष को और पुख्ता बनाने के लिए पुलिस ने उस की आउटगोइंग काल्स की जांच की. घटना वाले दिन उस की नसीमा के अलावा 3 और नंबरों पर बातें हुई थीं. पुलिस ने उन नंबरों का पता किया तो वे तीनों नंबर साजिद, परवेज व सलीम के नाम थे.

पुलिस को पता चला कि साजिद इलियास का ममेरा भाई, परवेज दोस्त व सलीम भांजा था. इस के बाद शक की सुई पूरी तरह इलियास पर ठहर गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि उन तीनों के मोबाइल की लोकेशन भी घटना वाली रात अहेड़ा स्टेशन के आसपास थी.

पुलिस ने सब से पहले उन्हीं तीनों पर शिकंजा कसने का फैसला किया. 12 फरवरी की शाम पुलिस ने एक सूचना के आधार पर परवेज व साजिद को गौरीपुर मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो जल्दी ही दोनों ने ऐसी बात बताई, जिसे सुन कर पुलिसकर्मी हैरान रह गए.

पता चला कि इस हत्याकांड का षड्यंत्र इलियास ने ही रचा था. उसी ने इन लोगों के साथ मिल कर वारदात को अंजाम दिया था. यह पता चलते ही पुलिस ने बिना समय गंवाए इलियास को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में पहले तो उस ने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन जब साजिद व परवेज को उस के सामने खड़ा किया गया तो वह टूट गया. उस से विस्तृत पूछताछ में चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई. बात कोई खास नहीं थी, बस इलियास के शक्की स्वभाव ने उसे कातिल बना दिया था.

इलियास शक्की स्वभाव का था. नसीमा से विवाह के बाद उस की जिंदगी आराम से बीत रही थी. नसीमा हंसमुख स्वभाव की थी. किसी से भी हंसबोल लेना उस का स्वभाव था. इलियास चूंकि दिल्ली में काम करता था, इसलिए कभी दिलशाद गार्डन में रुक जाता था तो कभी गांव आ जाता था.

करीब एक साल पहले उस ने नसीमा को मोबाइल ले कर दे दिया, ताकि वक्त जरूरत पर वह उसे फोन कर सके. इस से यह सुविधा हो गई थी कि इलियास घर फोन कर के न सिर्फ खैर खबर ले लिया करता था, बल्कि नसीमा अपने मायके भी बात कर लेती थी.

इसी के चलते कई बार ऐसा हुआ कि जब इलियास ने घर वाला नंबर मिलाया तो वह व्यस्त मिला. पूछने पर नसीमा ने बताया भी कि वह बिहार बात कर रही थी. इस के बावजूद इलियास ने उसे कई बार डांटा. वह शक्की तो था ही, उसे लगता था कि नसीमा किसी पुरुष से बात करती है.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 3

कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा. घर वालों का रागिनी से धीरेधीरे ध्यान हटने लगा था. फिर मौका देख कर रागिनी अपने प्रेमी राकेश से मिलने लगी. उस ने राकेश से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वह उसे यहां से कहीं दूर ले चले, जहां हमारे सिवाय कोई और न हो. राकेश ने उसे भरोसा दिया कि वह परेशान न हो, जल्द ही वह कोई बीच का रास्ता निकाल लेगा.

रागिनी इस बात से पूरी तरह मुतमईन थी कि अब तो घर वाले भी उस की ओर से बेपरवाह हो चुके हैं. लिहाजा वह पहले की तरह ही चोरीछिपे प्रेमी राकेश से मिलने लगी. यह रागिनी की सब से बड़ी भूल थी. उसे यह पता नहीं था कि घर वाले केवल दिखावे के तौर पर उस की तरफ से बेपरवाह हुए थे. लेकिन उन की नजरें हर घड़ी उसी पर जमी रहती थीं.

सिकंदर को पता चल गया था रागिनी फिर से राकेश से मिलने लगी है. इस बार सिकंदर ने रागिनी को राकेश के साथ बतियाते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया था. फिर क्या था, वह उसे वहीं से पकड़ कर घर ले आया और उस की खूब पिटाई की. इस बार पारसनाथ ने बेटे को पिटाई करने से नहीं रोका, बल्कि उस ने बेटी को सुधारने के लिए बेटे को पूरी आजादी दे दी थी.

पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. डांट या मार का रागिनी पर अब कोई असर नहीं होता. रागिनी की करतूतों से घर वालों की इज्जत तारतार हो रही थी. बहन के चलते परिवार की हो रही बदनामी को देख सिकंदर भी ऊब गया, इसलिए उस ने रागिनी की हत्या करने की ठान ली. इस बाबत उस के मांबाप में से किसी को कुछ भी नहीं बताया.

सिकंदर का एक जिगरी दोस्त था कामदेव सिंह. वह शाहपुर थानाक्षेत्र के व्यासनगर जंगल में रहता था. उस पर कई आपराधिक केस भी चल रहे थे. सिकंदर जानता था यह काम कामदेव आसानी से कर सकता है. दोस्त होने के नाते वह उस की बात कभी नहीं टालेगा. वैसे सिकंदर खुद भी इस काम को अकेला कर सकता था लेकिन वह खून के मजबूत रिश्तों की डोर से बंधा हुआ था. ऐसा करते हुए उस के हाथ कांप सकते थे.

सिकंदर ने कामदेव को रागिनी की करतूतें बता कर उसे रास्ते से हटाने की बात कही तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. दोनों ने दीपावली के दिन रागिनी की हत्या करने की योजना बना ली ताकि पटाखों के शोर में रागिनी की मौत की आवाज दब कर रह जाए.

लेकिन दोनों को दीपावली के दिन किसी वजह से यह मौका नहीं मिला. तब कामदेव ने सिकंदर को भरोसा दिया कि वह अकेला ही इस काम को अंजाम दे देगा. 20 नवंबर, 2018 की शाम रागिनी घर से साइकिल से कहीं जा रही थी. घर से थोड़ी दूर पर रास्ते में उसे कामदेव मिल गया.

कामदेव ने रागिनी को अपनी बातों में उलझा लिया और उसे प्रेमी राकेश से मिलाने की बात कह कर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. घंटों तक वह उसे इधरउधर घुमाता रहा. रागिनी के कुछ भी पूछने पर वह गोलमोल उत्तर दे कर उसे बहलाता रहा. रात करीब 10 बजे वह उसे चिलुआताल थाने से कुछ दूर उमरपुर गांव के बाग की ओर ले गया. तब तक चारों ओर गहरा सन्नाटा पसर गया था.

उस ने मोटरसाइकिल बाग में रोक दी और वे दोनों बाइक से नीचे उतर गए. रागिनी ने उस से फिर पूछा कि राकेश कहां है? तो कामदेव ने कहा, ‘‘बस कुछ देर और ठहर जाओ. वह आता ही होगा.’’ इतना कहते ही कामदेव ने कमर में खोंसा हुआ पिस्टल निकाला. पिस्टल देख कर रागिनी के होश उड़ गए.

अब वह समझ गई कि कामदेव ने उस के साथ बड़ा धोखा किया है. वह कुछ कह पाती, उस से पहले ही कामदेव ने उस के शरीर में पिस्टल से 5 गोलियां उतार दीं. गोलियां लगते ही रागिनी ने मौके पर दम तोड़ दिया. कहीं वह जीवित न रह जाए, इसलिए कामदेव ने साथ लाए पेचकस से उस के शरीर को गोद डाला.

उसे ठिकाने लगा कर वह वहां से इत्मीनान से घर चला गया. फिर सिकंदर को फोन कर के काम हो जाने की जानकारी दे दी. जिस पिस्टल से उस ने रागिनी की हत्या की थी, वह उस ने अपने कमरे की अलमारी में छिपा दी.

अगले दिन सिकंदर ने अफवाह फैला दी कि रागिनी फिर से अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई. 2 दिनों बाद पारसनाथ को सच्चाई का पता चल गया था. सच जान कर उस ने चुप्पी साध ली थी लेकिन उस की दोनों बेटियों ने राज से परदा उठा कर उन्हें बेनकाब कर दिया. नहीं तो सिकंदर और कामदेव ने मिल कर जो खतरनाक योजना बनाई थी, शायद पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाती.

मामले का खुलासा हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने पारसनाथ और उस की पत्नी को बेकसूर मानते हुए घर भेज दिया. पुलिस ने अभियुक्त सिकंदर और उस के दोस्त कामदेव को गिरफ्तार कर लिया. 7 दिसंबर, 2018 को एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को केस के खुलासे की जानकारी दी. दोनों हत्याभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित