जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 1

सुबह के यही कोई 10 बजे पूना के थाना येरवड़ा के सीनियर इंसपेक्टर संजय पाटिल को पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि पूना नगर रोड पर स्थित घोरपड़ी एयर खराड़ी  गांव के पास तेल निकालने वाली मशीन के पीछे एक लाल रंग का बड़ा सा लावारिस बैग पड़ा है. बैग एकदम नया और काफी महंगा है. उस में ताला लगा है. बैग जहां पड़ा है, वह वहां रखा नहीं गया, बल्कि फेंका गया है. उस में लाश है या कोई गैरकानूनी सामान, यह बात खोलने पर ही पता चल सकती है.

मामला गंभीर था, इसलिए सीनियर इंसपेक्टर संजय पाटिल ने ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसर से यह सूचना दर्ज कराई और तुरंत इस की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. इस के बाद वह सहायक इंसपेक्टर विलास सोडे़, असिस्टैंट पुलिस इंसपेक्टर चंद्रकांत जाधव, हेडकांस्टेबल राजाराम धोगरे, कांस्टेबल हरी मोरे, प्रदीप गोलार, तुषार अह्वाण और महेश मोहोल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

चूंकि बैग लावारिश पड़ा था, इसलिए उस में बम होने की भी संभावना थी. इस संभावना को देखते हुए इंसपेक्टर संजय पाटिल ने बम निरोधक दस्ते को भी इस की सूचना दे दी. उन की इसी सूचना पर बम निरोधक दस्ते की टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई.

बम निरोधक दस्ते ने जांच कर के बताया कि बैग में किसी तरह की विस्फोटक सामग्री नहीं है तो सीनियर इंसपेक्टर संजय पाटिल ने ताला तुड़वा कर बैग खुलवाया. बैग खोला गया तो पता चला कि उस में लाश रखी है. लाश किसी लड़की की थी, जिसे बड़ी बेरहमी से बैग में ठूंस कर रखा गया था. उन्होंने फोटोग्राफर से फोटो खिंचवा कर लाश बाहर निकलवाई.

मृतका की उम्र 24-25 साल रही होगी. मृतका काफी खूबसूरत थी. पहनावे और शक्लसूरत से वह ठीकठाक घर की लग रही थी. उस के गले पर बाईं ओर नाखून के गहरे निशान थे, जिस से अंदाजा लगाया गया कि मृतका की हत्या गला दबा कर की गई थी. वह काले रंग का ट्राउजर और हरेसफेद रंग की टीशर्ट पहने थी.

बैग यहां बाहर से ला कर फेंका गया था. इसलिए मृतका की शिनाख्त होनी मुश्किल थी. लेकिन पुलिस को तो अपनी काररवाई करनी ही थी. लाश के फोटो वगैरह कराने के बाद पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से मृतका की शिनाख्त कराने की कोशिश की. आखिर पुलिस का शक सच साबित हुआ, वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस का मतलब था कि मृतका वहां की रहने वाली नहीं थी.

इस से साफ हो गया कि लाश कहीं बाहर से ला कर यहां फेंकी गई थी. लाश के कपड़ों या बैग से भी पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से लाश की शिनाख्त हो पाती. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस आगे की काररवाई करने लगी.

सीनियर इंसपेक्टर संजय पाटिल सहायकों की मदद से लाश का पंचानामा तैयार करवा रहे थे कि एडिशनल पुलिस कमिश्नर मनोज पाटिल, असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर श्याम मोहिते और राजन भोसले भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया.

लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद एडिशनल पुलिस कमिश्नर मनोज पाटिल और असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर श्याम मोहिते, सीनियर इंसपेक्टर राजन भोसले संजय पाटिल को दिशानिर्देश दे कर चले गए. इस के बाद घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए पूना के सरकारी अस्पताल भिजवा दी गई.

थाने लौट कर राजन भोसले हत्या का मामला दर्ज करा दिया और इस मामले की जांच अपने सहायक इंसपेक्टर विलास सोडे को सौंप दी. यह 28 जून  की बात है.

सहायक इंसपेक्टर विलास सोडे़ की जांच तब तक आगे नहीं बढ़ सकती थी, जब तक मृतका की शिनाख्त न हो जाती. इस के लिए उन्होंने मृतका का हुलिया बता कर पूना शहर के सभी थानों को सूचना दे दी कि अगर इस हुलिए की किसी भी लड़की की गुमशुदगी दर्ज हो तो उन्हें तुरंत सूचना दी जाए. इस के अलावा उन्होंने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था.

उन्हें उम्मीद थी कि किसी न किसी थाने से उन्हें मृतका के बारे में कोई न कोई जानकारी मिल ही जाएगी. मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मुखबिरों से भी मृतका के बारे में कुछ पता नहीं चल सका. इस स्थिति में यह मामला उन के लिए सिरदर्द बनने लगा था.

अगला दिन बीत गया और मृतका के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो इंसपेक्टर विलास सोड़े ने पैंफ्लैट और सोशल मीडिया की मदद लेने का विचार किया. उन्होंने मृतका की शिनाख्त के लिए उस की लाश के फोटो के पैंफ्लैट छपवा कर पूना शहर के हर गलीमोहल्ले में तो चस्पा कराए ही, इस के अलावा पूना, मुंबई, अहमदाबाद के रेलवे स्टेशनों और बसअड्डों के साथ ट्रेनों और बसों में भी चस्पा करा दिए.

पैंफ्लैट के अलावा उन्होंने सोशल मीडिया के फेसबुक और वाट्सऐप पर भी मृतका के फोटो डलवा कर लोगों से शिनाख्त की अपील की. उन का मानना था कि वाट्सऐप और फेसबुक पर मृतका की जानपहचान का कोई न कोई जरूर मिल जाएगा. किसी भी तरह उस की शिनाख्त हो जाए तो उन्हें मामले को सुलझाने में देर नहीं लगेगी. और फिर हुआ भी वही. वाट्सऐप के जरिए मृतका की शिनाख्त हो गई तो हत्यारा भी पकड़ में आ गया.

मृतका की पहचान अनुराधा प्रशांत सूर्यवंशी के रूप में हुई. वह पूना के जिस शोरूम में नौकरी करती थी, उसी शोरूम में नौकरी करने वाले किसी कर्मचारी ने जब वाट्सऐप पर अनुराधा की लाश की फोटो देखी तो वह हैरान रह गया. पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि उस के पति ने तो बताया था कि अनुराधा की बहन की तबीयत खराब है, इसलिए वह गांव गई है.

उस कर्मचारी की पत्नी अनुराधा की अच्छी सहेलियों में थी, इसलिए उस ने वह फोटो अपनी पत्नी को दिखाई. जब उस की पत्नी ने कहा कि यह फोटो अनुराधा का ही है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

फोटो के साथ शिनाख्त की अपील की गई थी, इसलिए पतिपत्नी ने देर किए बगैर पूना के थाना लश्कर से संपर्क कर के पुलिस को सारी जानकारी दे दी. इसी जानकारी में उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि अनुराधा का बकाया वेतन लेने के लिए एक आदमी आज शोरूम पर आने वाला है.

पुलिस के लिए यह बहुत अहम जानकारी थी. क्योंकि जो आदमी वेतन लेने आने वाला था, उस से कुछ सुराग मिल सकता था, इसलिए पुलिस उसे पकड़ने के लिए शोरूम पर पहुंच गई. इस के बाद जैसे ही वह आदमी शोरूम पर आया, शोरूम के कर्मचारियों ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया. लश्कर पुलिस ने उसे येरेवड़ा पुलिस के इंसपेक्टर विलास सोड़े को सौंप दिया.

अधेड़ उम्र का खूनी प्यार

नाजायज रिश्ते में पति की बलि

प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल

जी नहीं पाए प्यार करने वाले

आगरा का एक छोटा सा गांव है नगला लालजीत, जिस की आबादी मुश्किल से 5 सौ होगी. इस में कुशवाहा ज्यादा हैं, जबकि ठाकुरों के सिर्फ 4 घर हैं. इन में एक घर है हुकुम सिंह का. उन के परिवार में पत्नी शांति के अलावा 5 बेटे और एक बेटी थी. उन का सब से छोटा बेटा था नरेश, जो किसी मोबाइल कंपनी में सेल्समैन था.

इसी गांव का रहने वाला गिरिराज कुशवाहा शादीब्याह में खाना बनाने का ठेका लेता था. उस के परिवार में पत्नी जलदेवी के अलावा 3 बेटियां सीमा, रोशनी, भारती और 2 बेटे देवेश तथा योगेश थे. सीमा की शादी उस ने देवी रोड निवासी शैलेंद्र के साथ की थी तो उस से छोटी रोशनी की शादी आगरा के रहने वाले बंटू से. तीसरी बेटी भारती का अभी विवाह नहीं हुआ था. यह कहानी गिरिराज की इसी तीसरी बेटी भारती की है.

एक साल पहले तक हुकुम सिंह और गिरिराज कुशवाहा सुखशांति से रह रहे थे. उन के घरों के बीच ज्यादा दूरी नहीं थी. छोटा सा गांव है, इसलिए गांव का हर कोई एकदूसरे को जानता ही नहीं था, बल्कि सभी रिश्ते की डोर से बंधे थे, चाहे वह किसी भी जाति के हों.

भारती मात्र आठवीं तक पढ़ी थी, क्योंकि इस से आगे वह न पढऩा चाहती थी और न ही गिरिराज उसे पढ़ाना चाहता था. लेकिन एक पढ़ाई वह मांबाप से छिपछिप कर जरूर पढ़ रही थी. और वह थी इश्क की. इस पढ़ाई में उस के साथ था हुकुम सिंह का सब से छोटा बेटा नरेश.

किसी दिन नरेश और भारती की नजरें टकराईं तो उन के दिलों की धडक़नें बढ़ गईं. दोनों अलगअलग जाति के थे, लेकिन इश्क करने वाले कहां इस की परवाह करते हैं. प्यार दोनों को करीब ले आया और वे लुकछिप कर मिलने लगे. उन्हें मिलने में परेशानी भी नहीं होती थी, क्योंकि आजकल लगभग सभी के पास मोबाइल फोन है ही. यही मोबाइल फोन उन की भी मिलने में मदद कर रहा था. उन्हें जब मिलना होता, फोन कर के समय और जगह तय करते, उस के बाद तय समय और जगह पर मिल लेते.

भारती और नरेश प्यार ही नहीं कर बैठे, साथ जीने और मरने की कसमें भी खा लीं, लेकिन उन की जाति अलगअलग थी, इसलिए उन्हें पता था कि उन का यह सपना आसानी से पूरा नहीं होगा. इसलिए कभीकभी भारती नरेश से पूछती भी थी कि समाज के डर से कहीं वह उसे छोड़ तो नहीं देगा?

तब नरेश कहता, “भारती, मैं अपने घर वालों को छोड़ सकता हूं, पर तुम्हें नहीं छोड़ सकता.”

नरेश भले ही भारती को हर तरह से साथ देने का आश्वासन देता था, पर वह जानता था कि यह सब इतना आसान नहीं है. गांव में, वह भी दूसरे जाति की लडक़ी से शादी करना बहुत ही मुश्किल काम है. लेकिन उस का प्यार दीवानगी की हद तक पहुंच चुका था, इसलिए उस की अच्छाबुरा सोचने की समझ ही खत्म हो चुकी थी. न उसे घरपरिवार दिखाई दे रहा था और न समाज. उसे परिणाम की भी चिंता नहीं थी.

नरेश और भारती भले ही लुकछिप कर मिल रहे थे, लेकिन उन का यह प्यार गांव वालों की नजरों से छिपा नहीं रह सका. फिर एक दिन वही हुआ, जिस का डर था. भारती फोन पर नरेश से बातें कर रही थी, तभी गिरिराज ने उस की कुछ बातें सुन लीं. उस ने पूछा, “किस से बातें कर रही है?”

जवाब में भारती कुछ कहती, गिरिराज ने उस के हाथ से मोबाइल छीन लिया. उस में नरेश की फोटो लगी देख कर उस ने अपना सिर पीट लिया. उसे समझते देर नहीं लगी कि बेटी आशिकी में फंस गई है.

“यह सब क्या है?” गिरिराज ने फोटो दिखाते हुए पूछा, “तू नरेश से क्यों बातें करती है?”

भारती अंजान बनते हुए बोली, “पापा मैं तो अपनी सहेली से बातें कर रही थी, कभीकभी नेटवर्क की गड़बड़ी की वजह से किसी दूसरे को फोन ही नहीं लग जाता, बल्कि उस का फोटो भी आ जाता है.”

गिरिराज इतना बेवकूफ नहीं था, जितना भारती समझ रही थी. उस ने पूछा, “पहले तो यह बता, नरेश का नंबर तेरे मोबाइल में कैसे आया?”

“पड़ोसी है, अब पड़ोसी का नंबर मोबाइल में नहीं आएगा तो क्या दूसरे गांव वालों का आएगा?” भारती रुआंसी हो कर बोली.

गिरिराज को लगा कि वह बेटी के साथ ज्यादती कर रहा है. जब मोबाइल है तो उस में नंबर तो होंगे ही. रही बात नरेश की तो वह गांव का ही नहीं है, पड़ोसी भी है. मोबाइल का काम भी करता है. इसलिए उस का नंबर भारती के पास है तो बुरा क्या है. वह चुप हो गया.

गिरिराज भले ही चुप हो गया, लेकिन भारती कहां चुप होने वाली थी. वह उसी दिन नरेश से मिली और पूरी बात बता कर बोली, “आज तो किसी तरह बच गई, लेकिन इस तरह कब तक चलेगा. जो कुछ भी करना है, जल्दी करो.”

नरेश ने कहा, “पहले तो हम घर वालों से कहेंगे कि वे हमारी शादी कर दें. नहीं करेंगे तो मैं तुम्हें ले कर कहीं दूर चला जाऊंगा, जहां घर वाले पहुंच ही नहीं पाएंगे.”

भारती को नरेश पर पूरा विश्वास था, वह उस से अलग होना भी नहीं चाहती थी, इसलिए वह उस के साथ भागने को तैयार थी. लेकिन जब एक दिन गिरिराज ने बेटी को नरेश के साथ देख लिया तो उसे ममझते देर नहीं लगी कि बेटी ने उस से झूठ बोला था.

उस ने पत्नी से कहा, “भारती पर नजर रखो, उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दो, वरना यह हमारी नाक कटवाने वाली है.”

इस के बाद भारती पर नजरों के पहरे लग गए. उस का बाहर आनाजाना बंद कर दिया गया. यही नहीं, सोचविचार कर गिरिराज ने बड़े दामाद शैलेंद्र को फोन कर के बुलाया और पूरी बात बता दी. इस पर शैलेंद्र ने कहा, “आप नरेश के पिता से मिलें और उन से कहें कि वह बेटे को समझाएं.”

गिरिराज ने हुकुम सिंह से शिकायत की तो उन्होंने नरेश को समझाने का आश्वासन ही नहीं दिया, बल्कि समझाया भी. लेकिन नरेश को तो जैसे ऐसे ही मौके की तलाश थी. उस ने कहा, “पापा, मैं भारती से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.”

“तुम्हारा दिमाग तो ठीक है,” हुकुम सिंह ने उसे डांटा, “ऐसा कतई नहीं हो सकता. एक तो वह गांव की है, दूसरे दूसरी जाति की है. तुम जानते हो गांव में ठाकुरों के सिर्फ 4 ही घर हैं. कुशवाहा ज्यादा हैं. अगर कुछ उल्टासीधा किया तो इस का खामियाजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ेगा.”

बाप की इस बात से नरेश की समझ में आ गया कि भारती को भगा कर ले जाना ठीक नहीं है. क्योंकि अगर वह उसे भगा कर ले गया तो गांव के कुशवाहा उस के घर वालों का जीना हराम कर देंगे. अब उसे गांव में ही रह कर अपने और भारती के घर वालों को मनाना होगा.

नरेश ने गिरिराज को संदेश भिजवाया कि वह भारती से प्यार करता है और शादी करना चाहता है. वह वादा करता है कि भारती को खुश रखेगा. लेकिन जब यह संदेश गिरिराज को मिला तो वह उबल पड़ा. उस ने नरेश को तो कुछ नहीं कहा, लेकिन भारती की जम कर पिटाई कर दी. उस का कहना था कि उसी की वजह से आज उसे यह दिन देखना पड़ा है.

भारती की बहनों और बहनोइयों ने भी उसे समझाया. लेकिन उस ने साफ कह दिया कि वह शादी करेगी तो नरेश से, वरना पूरी जिंदगी कुंवारी रहेगी. हुकुम सिंह और उन की पत्नी शांति भी नरेश को समझा रहे थे कि वह ऐसा कोई काम न करे, जिस से परिवार को परेशानी हो.

इस आशिकी की वजह से दोनों परिवारों में काफी तनाव था. गांव भी इस आशिकी से अंजान नहीं था. गिरिराज ने बदनामी से बचने के लिए दिसंबर के पहले सप्ताह में गांव की पंचायत बुलाई. पंचायत में दोनों ही बिरादरी के लोग शामिल थे. सभी इस शादी के खिलाफ थे, इसलिए सभी ने नरेश और भारती को समझाया कि वे ऐसा न करें. उन के ऐसा करने से गांव की बदनामी तो होगी ही, आने वाली पीढ़ी पर भी इस का बुरा असर पड़ेगा.

लेकिन नरेश और भारती उन की बातों से सहमत नहीं थे. उन का कहना था कि वे नए जमाने के लोग हैं. वे अपनी खुशी देखते हैं, परंपरा नहीं. इस पर बुजुर्गों ने उन्हें डांट कर चुप करा दिया और कहा कि वे जो चाहते हैं, वैसा कतई संभव नहीं है.

“तो फिर ठीक है, आप सभी हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए. हम अपनीअपनी दुनिया में एकदूसरे की यादों के सहारे जी लेंगे.” भारती ने कहा.

इस पर कुशवाहा नाराज हो गए. उन का कहना था कि बेटी को अविवाहित कैसे रखा जा सकता है. लेकिन भारती का बागी सुर मुखर हो उठा, “कुछ भी हो, मैं नरेश के अलावा किसी और से शादी नहीं कर सकती.”

दोनों की जिद को देखते हुए पंचायत ने फैसला किया कि इन्हें गांव से बाहर रिश्तेदारियों में भेज दिया जाए. गिरिराज को लगा कि बेटी ने उस का सिर झुका दिया है, इसलिए उस ने पंचायत के सामने कहा, “अगर ऐसा कुछ हुआ तो वह दोनों को काट कर रख देगा.”

ठाकुरों ने कोई जवाब नहीं दिया. उन का सोचना था कि कुछ दिन दोनों अलग रहेंगे तो सब ठीक हो जाएगा. उस समय यह किसी ने नहीं सोचा था कि गिरिराज ने जो कहा है, वह सचमुच ही वैसा कर डालेगा.

जो छिपा था, इस पंचायत के बाद पूरी तरह खुल गया. नरेश और भारती जो अब तक लुकछिप कर मिलते थे, वे खुलेआम मिलने लगे. शांति को बेटे की जान खतरे में लगी तो उस ने उसे बेटी के पास दिल्ली भेज दिया.

लेकिन पंचायत में जो हुआ था, उस से गिरिराज को लग रहा था कि उस की मूंछें नीची हो गई हैं. मूंछें उठाने के लिए उसे कुछ करना ही होगा. उस ने अपनी जाति के कुछ लोगों से बात की तो उन्होंने कहा कि बेटी को खत्म कर दो, सारा झंझट खत्म हो जाएगा. इज्जत भी बच जाएगी.

गिरिराज ने भारती को खत्म करने का इरादा तो बना लिया, लेकिन उसे लगा कि भारती की हत्या पर नरेश चुप नहीं बैठेगा. क्योंकि वह उसे जान से ज्यादा प्यार करता है. भारती की मौत का संदेह होते ही वह पुलिस के पास पहुंच जाएगा. जब इस बात पर गहराई से विचार किया गया तो उस के बड़े दामाद शैलेंद्र ने कहा, “दोनों को खत्म कर देते हैं. किसी ठाकुर में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह पुलिस के पास जा कर शिकायत करेगा.”

दामाद की बात गिरिराज को भी उचित लगी. लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था. गांव में कत्ल करने पर वे पकड़े जा सकते थे. इसलिए योजना बनी कि कहीं दूर ले जा कर दोनों को मारा जाए. इस के लिए भारती को विश्वास में लेना जरूरी था. घर वालों ने कोशिश भी शुरू कर दी. लेकिन भारती को विश्वास नहीं हो रहा था. उसे विश्वास तब हुआ, जब जलदेवी उस के लिए शादी का जोड़ा खरीद कर ले आई. इस के बाद भारती को लगा कि उस के घर वाले सचमुच शादी को तैयार हैं.

मां ने ही नहीं, पिता ने भी कहा, “हमारी समझ में आ गया है कि तू सचमुच नरेश को बहुत प्यार करती है. फिर इस में बुराई ही क्या है. नरेश है भी तो ऊंची जाति का. मुझे पहले लगता था कि वह धोखा दे देगा. लेकिन अब हमें उस पर भी विश्वास हो गया है. वह तुझ से शादी कर के तुझे सुखी रखेगा.”

भारती को पिता की बातों पर विश्वास तो नहीं हो रहा था, लेकिन उसे उस की बातों में कोई साजिश भी नजर नहीं आ रही थी. वह कुछ नहीं बोली तो गिरिराज ने कहा, “गांव में तो हम तेरी शादी करा नहीं सकते, क्योंकि गांव वाले यह शादी कतई नहीं होने देंगे. तू ऐसा कर, नरेश को प्रिंस के ढाबे पर बुला ले. हम उसे ले कर ग्वालियर के किसी मंदिर चलते हैं और वहीं तुम दोनों की शादी करा देते हैं.

नगला लालजीत गांव ग्वालियर के लिए जाने वाले हाईवे के किनारे बसा है. भारती जानती थी कि गांव वाले उस की शादी का विरोध कर रहे हैं. इसीलिए मम्मीपापा उस की शादी गांव से बाहर किसी मंदिर में करना चाहते हैं. उस ने नरेश को फोन कर के सारी बात बताई तो वह बहुत खुश हुआ.

किसी को कुछ बताए बगैर वह उसी रात प्रिंस के ढाबे पर पहुंच गया. गिरिराज पत्नी और भारती के साथ वहां पहले से मौजूद था. उस ने उसे गाड़ी में बैठाया और चल पड़ा. भारती और नरेश पिछली सीट पर एक साथ बैठे थे. वे सुनहरे भविष्य की कल्पनाओं में इस तरह खोए थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब गाड़ी मौजपुरा के जंगल में पहुंच गई.

वहां पहुंचते ही नरेश समझ गया कि ये लोग उस की शादी कराने नहीं, उन्हें मारने लाए हैं. क्योंकि पीछे से भारती का बहनोई शैलेंद्र मोटरसाइकिल से भी वहां पहुंच गया था. नरेश तो कुछ नहीं बोला, लेकिन भारती फट पड़ी, “तुम लोग इतने बड़े धोखेबाज निकलोगे, मैं ने सोचा भी नहीं था. इस से अच्छा तो तुम लोगों ने पैदा होते ही मेरा गला घोंट दिया होता. “

नरेश और भारती ने जिंदगी के लिए संघर्ष तो बहुत किया, लेकिन उन लोगों ने नरेश को उस के मफलर तथा भारती को उस की शाल से गला घोंट कर मार दिया. दोनों लाशें वहीं छोड़ कर सभी लौट आए. भारती के पास शिनाख्त लायक वैसे भी कुछ नहीं था, नरेश की जेबों से भी सब कुछ निकाल लिया गया था. सभी यह सोच कर निश्चिन्त थे कि पुलिस उन तक पहुंच नहीं पाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

अगले दिन राजस्थान के जिला धौलपुर के थाना मनियां के थानाप्रभारी रतन सिंह को जंगल में 2 लाशें पड़ी होने की सूचना मिली तो सहयोगियों के साथ वह वहां पहुंच गए. उन्होंने शिनाख्त के लिए दोनों लाशों की तलाशी ली तो लड़की के पास से तो कुछ नहीं मिला, लेकिन लड़के की जेब से परिचय पत्र मिल गया, जिस से पता चला कि वह आगरा के गांव नगला लालजीत का रहने वाला है.

लाशों पर चोटों के निशान के अलावा लड़के के गले पर मफलर और लड़की के गले पर शाल कसा हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि इन्हें गला घोंट कर मारा गया है. हमउम्र लडक़ा-लड़की की लाशें होने की वजह से यह भी अंदाजा लगाया गया कि यह प्रेमी जोड़ा रहा होगा और घर वालों ने ही इन की हत्याएं की हैं.

राजस्थान पुलिस लाशों की खबर ले कर नगला लालजीत स्थित हुकुम सिंह के घर पहुंची तो हडक़ंप मच गया. वहीं पूछताछ में पता चला कि दूसरी लाश गांव के गिरिराज कुशवाहा की बेटी भारती की थी.

गांव में तो किसी ने कुछ नहीं बताया, लेकिन जब हाईवे पर बने टोल प्लाजा पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज चेक की गई तो उस में गिरिराज और जलदेवी के साथ गाड़ी में बैठे नरेश और भारती दिख गए. इसी के आधार पर थाना मनियां पुलिस ने पतिपत्नी को हिरासत में ले लिया. पोस्टमार्टम के बाद दोनों लाशें घर वालों को सौंप दी गई थीं. गांव ला कर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

थाने ला कर गिरिराज और जलदेवी से पूछताछ शुरू हुई. वे कोई पेशेवर अपराधी तो थे नहीं, जल्दी ही उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस जानती थी कि केवल ये दोनों नरेश और भारती की हत्या नहीं कर सकते. इस के बाद पुलिस ने उन से शैलेंद्र का भी नाम उगलवा लिया.

लेकिन शैलेंद्र डर के मारे फरार हो चुका था. पुलिस ने गिरिराज की निशानदेही पर नरेश का सामान, वह गाड़ी, जिस से भारती और नरेश को ले जाया गया था, बरामद कर ली थी. इस के बाद दोनों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया था.

कथा लिखे जाने तक शैलेंद्र को भी गिरफ्तार कर के पुलिस ने जेल भेज दिया था. सभी जेल में बंद थे, किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दूसरी शादी का दुखद अंत

एक क्रूर औरत की काली करतूत

सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां – भाग 5

रात में सभी सो गए, जबकि हरमीत अपने कमरे में जागता रहा. सब के सो जाने के बाद उस ने शराब पी. वह हत्याओं के बारे में सोचने लगा. शराब के नशे के चलते करीब 12 बजे उस की आंख लग गई. दिमाग में चूंकि हत्या का भूत सवार था, इसलिए 3 बजे आंख खुल गई. हरमीत ने एक बार फिर शराब पी और 4 बजे के करीब जय सिंह बाथरूम जाने के लिए उठे तो उसे आहट से पता चल गया.

उस ने ठान लिया कि अब वह एकएक को मार कर ही रहेगा. जय सिंह बाथरूम से वापस आए तो अचानक हरमीत उन के कमरे में पहुंच गया और चाकू से ताबड़तोड़ वार करने लगा.

बेटे का यह रूप देख कर जय सिंह हक्केबक्के रह गए. उन्होंने बचाव के लिए हाथ उठाए तो उस ने हाथों पर भी चाकू मारे. उम्र का तकाजा था, जय सिंह ज्यादा विरोध नहीं कर सके. हरमीत ने पेट से ले कर गर्दन तक कई वार किए तो लहूलुहान हो कर वह दरवाजे के पास गिर गए और दम तोड़ दिया. पिता की हत्या करने के बाद उसे घबराहट होने लगी तो वह अपने कमरे में गया और शराब का एक पैग बना कर पिया.

उस के सिर पर खून सवार था. इस के बाद वह ड्राइंगरूम कम बेडरूम में पहुंचा और वहां सो रही कुलवंत कौर पर हमला बोल दिया. जागने पर वह हरमीत से भिड़ गईं. मामूली संघर्ष के बाद उस ने उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया. उसी बेडरूम में हरजीत भी अपने दोनों बच्चों के साथ सो रही थी. हरमीत ने अगला निशाना उसे बनाया. गर्भवती होने के कारण वह ज्यादा विरोध नहीं कर सकी.

उस की 3 साल की मासूम बेटी सुखमणि को भी उस ने मार दिया. उसी बीच 6 साल के कंवलजीत की आंख खुल गई तो वह बिस्तर से उतर कर रोता हुआ भागा. हरमीत किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने भागते कंवलजीत की पीठ पर 2 वार किए. दोनों ही वार हलके थे. वह 2 सोफों के बीच छिप कर रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘प्लीज मामा, मुझे मत मारो.’’

हरमीत कंवलजीत को प्यार तो करता था, परंतु उस वक्त वह भी उसे अपना दुश्मन नजर आ रहा था. अचानक उसे ख्याल आया कि कंवलजीत को जिंदा छोड़ कर अपने पक्ष में गवाह बनाया जा सकता है कि हत्याएं किसी और ने की हैं. मन में यह ख्याल आते ही उस ने कंवलजीत से गुर्राकर कहा, ‘‘रोना बंद कर और मेरी बात सुन. तुझ से कोई पूछे तो बताना कि 3 नकाबपोश लोगों ने ये हत्याएं की हैं. तू ने सच बताया तो तेरा भी यही हाल करूंगा.’’

कंवलजीत थरथर कांप रहा था, उस ने रोते हुए कहा, ‘‘ठीक है मामा, मैं ऐसा ही कहूंगा. मुझे मत मारो.’’

हरमीत ने उसे छोड़ दिया. लेकिन डर की वजह से वह वहीं छिपा रहा. हरमीत ने सोचा कि सुबह लेगों को बताएगा कि 3 नकाबपोश बदमाशों ने पूरे परिवार की हत्या की है. गवाह के तौर पर वह कंवलजीत को सामने कर देगा. कहानी को सच बनाने के लिए उस ने अपने हाथ पर चाकू मार लिया.

घर में खून का दरिया बहाने वाले का अपना थोड़ा खून बहा तो उस ने हाथ पर रूमाल बांध लिया. अपनी खून सनी कमीज उस ने उतार कर रख दी और चाकू भी फेंक दिया. हरमीत अपने कमरे में गया और एक बार और शराब पी. नशा अधिक होने के चलते हरमीत आगे की कोई प्लानिंग नहीं कर सका. उसे किसी अंजाम की परवाह भी नहीं रही. इसी बीच वह सो गया.

सुबह नौकरानी आई तो वह हड़बड़ा कर उठा और राजो को टालने की कोशिश की. परंतु वह दोबारा आई तो वह सिर पकड़ कर बरामदे में बैठ गया. लोग आए तो कंवलजीत भी बाहर आ गया. लोगों के पूछने पर उस ने कुछ नहीं बताया. पुलिस को भी उस ने हरमीत द्वारा समझाई गई बात ही बताई, लेकिन पिता के आने पर उस का डर कम हुआ तो उस ने सच बता दिया.

इस के बाद निर्दयी हरमीत को हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने उस की मां अनीता और भाई को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की, लेकिन हत्या या षडयंत्र में उन का कोई हाथ नहीं निकला. जांच के लिए हरमीत के फिंगरप्रिंट व खून का नमूना ले कर प्रयोगशाला भिजवा दिया, ताकि घटनास्थल पर मिले सुबूतों से उस का मिलान किया जा सके.

पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को भी हरमीत की कू्ररता चौंका गई. जय सिंह के शरीर पर 24, कुलवंत के शरीर पर 9, हरजीत के शरीर पर 7 और सुखमणि के शरीर पर चाकू के 5 घाव पाए गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार हरजीत के गर्भ में पलने वाला बच्चा लड़का था.

अगले दिन लक्खीबाग श्मशान घाट पर गमगीन माहौल में सभी का अंतिम संस्कार कर दिया गया. हत्याओं के चश्मदीद गवाह मासूम कंवलजीत के बाल मन पर डरावने मंजर का गहरा असर पड़ा था. वह गुमशुम था. हरमीत के प्रति लोगों में गुस्सा था. हर कोई उसे कोस रहा था, जबकि हरमीत को इन हत्याओं का कोई अफसोस नहीं था.

पुलिस ने गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में उस के खिलाफ धारा 316 भी लगा दी थी. पुलिस ने उसे विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया. उसे देखने के लिए अदालत में काफी भीड़ लगी थी. लोगों के गुस्से को देखते हुए सुरक्षा की काफी व्यवस्था थी. इस के बावजूद लोगों ने उसे पीटने का प्रयास किया. अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

अपनी बिगड़ैल प्रवृत्ति, संपत्ति के लालच व नफरत में हरमीत इतना अंधा हो गया कि अपनों का ही हत्यारा बन बैठा. कथा लिखे जाने तक वह सलाखों के पीछे था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 4

जब सुमिक्षा का कहीं पता नहीं चला तो बुद्धिविलास कालोनी वालों के साथ थाना सिकंदरा पहुंचा और थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह से मिल कर सुमिक्षा की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस ने भी सुमिक्षा की तलाश शुरू की. थानाप्रभारी ने अर्चना से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में वह उन के सवालों का जवाब देने के बजाय बेटी को ढूंढ़ कर लाने की बात ज्यादा कर रही थी. वह कालोनी की औरतों के साथ थाने भी गई और वहां धमकी दी कि अगर उस की बेटी नहीं मिलती तो वह कुछ भी कर गुजरेगी.

मामला गंभीर था. पुलिस को सुमिक्षा का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. थानाप्रभारी आशीश कुमार सिंह ने मंदिर और परिसर में बने बुद्धिविलास के घर का भी निरीक्षण किया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि अर्चना गायब बच्ची की सौतेली मां है. इस के अलावा उस की हरकतें भी उन्हें अजीब और संदिग्ध लगी थीं.

थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह को लग रहा था कि लड़की के गायब होने के पीछे उस की सौतेली मां का ही हाथ है. क्योंकि पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया था कि पति के जाने के बाद उस ने खुद गेट बंद कर के ताला लगा दिया था. ऐसे में उतनी छोटी बच्ची ऊंची दीवारें फांद कर बाहर नहीं जा सकती थी.

थानाप्रभारी ने कालोनी वालों से अर्चना के व्यवहार के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि अर्चना सुमिक्षा को बहुत परेशान करती थी. वह नहीं चाहती थी कि सौतेली बेटी उस के साथ रहे. पुलिस को बुद्धिविलास पर भी शक हो रहा था कि पत्नी के साथ वह भी मिला हो सकता है. लेकिन उस की हालत देख कर पुलिस का यह शक जल्दी ही दूर हो गया.

पुलिस को अर्चना पर पूरा शक था. लेकिन सुबूत न होने की वजह से उस पर हाथ नहीं डाल पा रही थी. यह भी निश्चित था कि अगर अर्चना ने सुमिक्षा की हत्या की थी तो लाश घर में ही कहीं छिपा रखी थी. इसलिए पुलिस ने डौग स्क्वायड भी बुलाया. लेकिन डौग स्क्वायड भी सुमिक्षा की लाश का पता नहीं लगा सके.

सुमिक्षा की गुमशुदगी की सूचना पा कर बुद्धिविलास के 2 भतीजे देवेंद्र और विकास भी आ गए थे. उन्होंने भी अर्चना से सुमिक्षा के बारे में पूछा, लेकिन उस ने उन्हें भी कुछ नहीं बताया. इस के बाद उस ने पुलिस को बताया कि एक ज्योतिषी ने उसे बताया है कि सुमिक्षा मथुरा में है. पुलिस की एक टीम मथुरा भी गई, लेकिन सुमिक्षा उन्हें वहां कहां मिलती. अगले दिन उस ने कहा कि उसे सपना आया है कि सुमिक्षा हाथरस में है. पुलिस टीम हाथरस भी गई.

पुलिस को पूरा विश्वास था कि सुमिक्षा को अर्चना ने ही गायब किया है. इसलिए पुलिस उस पर दबाव बनाने लगी. पुलिस के बढ़ते दबाव से डर कर अर्चना ने फोन कर के अपने पिता रमेश मिश्रा को बुला लिया और मौका मिलते ही रात में उन्हें बता दिया कि उस ने सुमिक्षा की हत्या कर दी है और घर के पास गड्ढा खोद कर उसे दफना दिया है.

बेटी के इस खुलासे से रमेश मिश्रा बुरी तरह डर गए. जैसेतैसे रात बिता कर सवेरा होते ही वह बेटे को ले कर राजामंडी रेवले स्टेशन पर पहुंच गए. वह अपने बेटे को इस झंझट से बचाना चाहते थे. उन का बेटे को इस तरह गुपचुप तरीके से ले कर निकल जाना संदेह पैदा कर रहा था.

देवेंद्र और विकास ने राजा मंडी स्टेशन जा कर उन्हें उस समय घेर लिया, जब वह गाड़ी में बैठ चुके थे. वे उन्हें घर ले आए. शिवपूजन से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह तो सो गया था, इसलिए उसे सुमिक्षा के बारे में कुछ नहीं मालूम, लेकिन दीदी ने उस से कहा है कि पहले दिन उस ने पुलिस को जो बताया था, वही बात सब को बताना. वह सब से वही कहेगा.

24 सितंबर को सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह ने बुद्धिविलास से कहा कि वह अर्चना के साथ सख्ती करे और बेटे की कसम दिला कर सचाई बताने को कहे. इस के बाद बुद्धिविलास ने अर्चना को मंदिर में देवी के सामने खड़ी कर के कहा कि वह बेटे के सिर पर हाथ रख कर कहे कि उसे सुमिक्षा के बारे में कुछ नहीं पता तो वह मान लेगा कि वह सच बोल रही है.

बेटे की कसम खाने की बात आई तो अर्चना टूट गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुमिक्षा को बेहोश कर के जीवित ही गड्ढा खोद कर गाड़ दिया है.

सच्चाई जान कर बुद्धिविलास ने सिर पीट लिया. इस के बाद उस ने फोन कर के थाना सिकंदरा को सूचना दे दी. थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह पुलिस बल के साथ तुरंत मंदिर आ पहुंचे. उन्होंने गड्ढा खुदवा कर लाश निकलवाई तो लाश देख कर कालोनी की औरतें ही नहीं, आदमी भी रो पड़े.

मासूम बच्ची की लाश की स्थिति देख कर भीड़ बेकाबू हो गई और बुद्धिविलास सहित घर के सभी लोगों की पिटाई कर दी. पुलिस किसी तरह बचा कर अर्चना को महिला थाने ले आई. अर्चना का मैडिकल बड़े ही गुपचुप रूप से कराया गया. कालोनी की औरतें उसे मारने को तैयार थीं.

25 सितंबर को भारी पुलिस सुरक्षा में अर्चना को स्पेशल सीजेएम कृष्णचंद पांडेय की अदालत में पेश किया गया. उन्होंने उसे जेल भेज दिया. अदालत में मौजूद महिलाओं ने भारी पुलिस व्यवस्था के बावजूद अर्चना के मुंह में स्याही पोत दी.

अजय कौशिक और उन की पत्नी संध्या का कहना है कि अगर उन्हें जरा भी अहसास होता कि सौतेली मां अर्चना हत्यारिन भी हो सकती है तो वह बच्ची सुमिक्षा को अपने पास ही रख लेते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां – भाग 4

इस के बाद हरमीत ने बुलेट मोटरसाइकिल की मांग शुरू कर दी. उस की इच्छा के अनुसार जय सिंह ने उस की मनपसंद की मोटरसाइकिल दिला दी. हरमीत के पास सब कुछ था. पिता पैसा लगा रहे थे और आजादियां भी दे रहे थे. इस से अच्छी किस्मत क्या हो सकती थी. हरमीत को यह सब आसान लग रहा था. उस की ख्वाहिशों को पंख लगते जा रहे थे. अब वह नई कार की मांग करने लगा.

ऐसे में जय सिंह विरोध कर के समझाने की कोशिश करते तो वह एक ही बात कहता, ‘‘मैं सौतेला हूं, इसलिए मेरी बात नहीं मान रहे हैं.’’

जय सिंह उसे प्यार से समझाते, ‘‘ऐसी बात बिल्कुल नहीं है. हरमीत तुम मेरे बेटे हो. तुम अपना आचरण सही कर लोगे तो सारी शिकायतें अपने आप ही दूर हो जाएंगी. प्रौब्लम यह है कि तुम कुछ समझना ही नहीं चाहते.’’

बेटे की जिद पर जय सिंह ने कार भी दिला दी. हरमीत ने जिंदगी में पिता की कमाई का स्वाद ही चखा था, इसलिए चीजों की कद्र कम करता था. कभी शराब का नशा तो कभी लापरवाही के चलते कार दो बार दुर्घटनाग्रस्त हो गई. बेटे की हरकतों से जय सिंह अपने पुराने निर्णयों पर पछता रहे थे.

जय सिंह अनीता से भी बेटे को समझाने के लिए कहते थे. वह भले ही अनीता से अलग रहते थे, परंतु समय समय पर उस की तरहतरह से मदद करते रहते थे. उस के पास रह रहे अपने बेटे पारस और पहले पति के बेटे लक्की को भी उन्होंने महंगी महंगी मोटरसाइकिलें दिलाई थीं. दोनों उन से मिलने भी आया करते थे. जय सिंह दिल के अच्छे आदमी थे. वह चाहते थे कि सब हंसीखुशी से रहें.

बस, हरमीत से ही वह परेशान थे. बिगड़े आचरण ने हरमीत को जिद्दी बना दिया था. शराब के अलावा वह स्मैक जैसे खतरनाक नशे भी करने लगा था. उसे इस लत से निकालने के लिए जय सिंह ने एक नशा मुक्ति केंद्र में भी भर्ती कराया था, परंतु इस का कोई लाभ नहीं हुआ था. उस के आचरण से हर कोई दुखी था. हरमीत हरजीत कौर को फूटी आंख नहीं पसंद करता था. वह जब भी मायके आती थी, वह उस से झगड़ता रहता था.

अक्टूबर के दूसरे सप्ताह की बात थी. जय सिंह को विश्वास हो गया कि बेटा अब किसी भी हाल में सुधरने वाला नहीं है. उसे ले कर वह अक्सर परेशान रहते थे. काफी सोचविचार कर उन्होंने अपनी संपत्ति के बंटवारे का निर्णय कर लिया. उन्होंने सोचा कि बेटे को बढि़या फ्लैट दिला कर उसे घर बसाने के लिए आजाद छोड़ देंगे और बेटी को उस का हिस्सा दे देंगे.

जय सिंह का यह निर्णय हरमीत को पसंद नहीं आया. हरमीत का मानना था कि हरजीत तो गोद ली हुई है, जबकि वह पिता का खून है, ऐसे में हरजीत का हक कैसे हो सकता है. दीपावली का त्यौहार आ रहा था. हरजीत चाहती थी कि उस का प्रसव देहरादून में हो. इसलिए जय सिंह ने उसे अपने पास बुलवा लिया था. सभी चाहते थे कि पूरा परिवार दीपावली भी साथ मना ले और डिलीवरी भी हो जाए.

हरजीत के आने से हरमीत का माथा ठनका. उसे लगा कि हो न हो, अब संपत्ति दो हिस्सों में बंट जाएगी. इस से उस के मन में नफरत और बढ़ गई. उस ने तय कर लिया कि वह अपनी संपत्ति को किसी भी हाल में बंटने नहीं देगा. जबकि जय सिंह के जिंदा रहते यह संभव नहीं था. होता वही, जो जय सिंह चाहते.

हरमीत दिनरात इसी उधेड़बुन में रहने लगा कि पिता की संपत्ति का अकेला मालिक कैसे बना जाए. वह हमेशा घंटों इसी बारे में सोचता रहता. अंत में उस ने सब की हत्या करने का खतरनाक निर्णय ले लिया. उस के पास 10 इंची लंबा रामपुरी चाकू पहले से ही था.

21 अक्टूबर को हरमीत अंसारी मार्ग पर चाकू की धार तेज कराने गया, लेकिन दुकानदार ने मना कर दिया. हरमीत अपनी संपत्ति से जुड़े हर शख्स को निपटाना चाहता था. उस ने अपने जीजा अरविंदर को भी फोन कर के दीपावली पर देहरादून आने को कहा था, लेकिन अरविंदर ने काम की अधिकता होने के चलते आने से मना कर दिया था.

दीपावली से एक दिन पहले हरजीत कौर ने मोबाइल की इच्छा जाहिर की तो जय सिंह ने उसे 25 हजार रुपए का मोबाइल फोन दिला दिया. इस पर हरमीत भड़क उठा और उस ने भी मोबाइल की मांग की, ‘‘मुझे भी इसी तरह का महंगा मोबाइल फोन चाहिए.’’

‘‘तेरी हर मांग तो पूरी की है, उस का नतीजा क्या निकला है, सोचा है कभी तू ने.’’ जय सिंह ने उसे झिड़क दिया.

‘‘जब यह मोबाइल ले सकती है तो मुझे क्यों नहीं दिला सकते. मैं भी बेटा हूं आप का.’’

‘‘बेटा है, लेकिन नालायक. लायक बन जा, मोबाइल क्या पूरी मोबाइल कंपनी दिला दूंगा तुझे.’’ जय सिंह ने कहा.

इस बात को ले कर घर में तनातनी हो गई तो कुलवंत कौर ने पति को समझाया. उस के बाद वह नरम हो कर बोले, ‘‘ठीक है, दीपावली के बाद तुझे भी ऐसा ही मोबाइल दिला दूंगा.’’

बात सिर्फ मोबाइल की नहीं थी. हरमीत के दिमाग में तो पहले ही बहुत कुछ पक चुका था. मोबाइल ने तो आग में घी का काम किया था. उस के दिल में प्रतिशोध की आग दहक रही थी. अपने निकम्मेपन और गलत आचरण की वजह से उसे लगने लगा था कि पिता सब कुछ बेटी को दे कर एक दिन उसे बाहर का रास्ता दिखा देंगे. यह नौबत कभी भी आ सकती थी. इसलिए किसी भी सूरत में वह अपने निर्णय पर अमल करना चाहता था.

हरमीत ने सोचा कि शराब पी कर वारदात करने में आसानी रहेगी. शराब की एक बोतल ला कर उस ने घर में रख दी. 23 अक्टूबर को पूरा शहर दीपावली का त्योहार मना रहा था.

जय सिंह उन लोगों में से थे, जो सभी से बना कर चलते हैं. मोहल्ले में उन की किसी से अनबन नहीं थी. हर कोई उन के व्यवहार का कायल था. उन का सभी के यहां आनाजाना था. दीपावली की शाम को भी वह आसपड़ोस में सब के यहां गए और दीपावली की बधाई दी. रात में नाती और नातिन के साथ पटाखे भी चलाए. हरमीत भी साथ रहा. तब कोई नहीं जानता था कि इस खुशी के बाद सहन न होने वाला दुख आने वाला है.