जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 4

प्रशांत रेलवे स्टेशन से उस के लिए माजा की बोतल ले आया. प्रशांत भागभाग कर सामान लाता रहा और वह बैठी फोन पर बातें करती रही. माजा पीने के बाद अनुराधा ने प्रशांत से बड़ी सौंफ लाने को कहा. इस पर प्रशांत को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन घर का माहौल खराब न हो, इसलिए वह बड़ी सौंफ लाने के लिए पूना रेलवे स्टेशन चला गया.

तब तक रात के साढ़े 12 बज गए थे. प्रशांत जब बड़ी सौंफ ले कर लौटा, तब भी अनुराधा फोन पर बातें कर रही थी. इस बार प्रशांत सीधे घर के अंदर आने के बजाय दरवाजे की ओट में खड़ा हो कर उस की बातें सुनने लगा कि वह किस से क्या बातें कर रही है. अनुराधा फोन पर कह रही थी, ‘‘ठीक है, कल सुबह हम निकल चलेंगे.’’

इस के बाद अनुराधा चुप हो गई, शायद वह सामने वाले का जवाब सुन रही थी. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है. प्रशांत को मैं संभाल लूंगी. अगर उस ने कोई नौटंकी की तो उस के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दूंगी. कहूंगी कि 3 सालों से मुझे बंधक बना कर मेरे साथ बलात्कार कर रहा है. उस के बाद उसे जेल जाने से कोई नहीं रोक पाएगा. वह वहीं पड़ा सड़ता रहेगा, क्योंकि यहां उसे कोई छुड़ाने वाला भी नहीं है.’’

अनुराधा की ये बातें सुन कर प्रशांत हैरान रह गया. जिसे उस ने तनमन से प्यार किया, जिस के लिए घरपरिवार छोड़ा, जिस की सुखसुविधा का हर तरह से खयाल रखा, आज वही न जाने किस के साथ उसे छोड़ कर भाग जाना चाहती थी और झूठी शिकायत कर के उसे जेल तक भिजवाने को तैयार थी. अनुराधा की इन बातों से उसे बहुत दुख हुआ.

अंदर आ कर उस ने कहा, ‘‘इतनी देर से तुम किस से बातें कर रही थी? कौन है वह, जिस के लिए तुम मुझे जेल भिजवा रही हो?’’

प्रशांत के सवालों का जवाब देने के बजाय अनुराधा आपा खो बैठी. उस ने कहा, ‘‘मैं किस से क्या बातें कर रही हूं, तुम से क्या मतलब? तुम अपना देखो, यह देखने की कोई जरूरत नहीं है कि मैं क्या कर रही हूं.’’

‘‘क्यों जरूरत नहीं है. तुम मेरी पत्नी हो, इसलिए मेरा हक बनता है तुम से पूछने का.’’ प्रशांत ने कहा तो अनुराधा गुस्से में उस का कौलर पकड़ झकझोरते हुए चिल्लाने लगी, ‘‘हक की बात करते हो, कभी शीशे में अपनी शक्ल देखी है. तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और अब हक जमा रहे हो. तुम्हें प्यार कर के मैं ने बहुत बड़ी गलती की. तुम्हारी वजह से मां को छोड़ा. लेकिन अब मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी. तुम मेरे लायक नहीं हो.’’

अनुराधा ने प्रशांत के कौलर को इस तरह पकड़ रखा था कि वह छुड़ाने से भी नहीं छोड़ रही थी. काफी कोशिश के बाद भी जब अनुराधा ने प्रशांत का कौलर नहीं छोड़ा तो उसे भी गुस्सा आ गया. वह अनुराधा का गला पकड़ कर दबाने लगा, ताकि वह वह उस का कौलर छोड़ दे. लेकिन दबाव बढ़ने की वजह से अनुराधा की सांसें रुक गईं और उस के प्राणपखेरू उड़ गए.

जब प्रशांत को पता चला कि अनुराधा मर गई है तो उस के होश उड़ गए. वह सिर थाम कर बैठ गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस तरह हत्यारा बन जाएगा. कुछ देर तक वह उसी तरह बैठा रहा. इस के बाद वह बाहर आ कर अनुराधा की लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. इसी चक्कर में वह उस पूरी रात सो नहीं सका.

सुबह उस ने अनुराधा के गले से सोने की चैन उतारी और 8 बजे के आसपास आटोस्टैंड हड़पसर पहुंचा, जहां उस की मुलाकात उस के दोस्त महेश रंगोजी से हुई. उस के साथ चायनाश्ता कर के वह उसे ले कर वीटी कवडे रोड स्थित धनलक्ष्मी ज्वैलर्स के यहां गया, जहां उस ने वह चैन 16,900 रुपए में यह कह कर बेच दी कि उस की पत्नी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. इस समय वह लातूर स्थित उस के गांव में है. उस के इलाज के लिए उसे पैसों की सख्त जरूरत है.

चैन बेचने के बाद महेश रंगोजी तो चला गया, प्रशांत ने वहीं बाजार से लाल रंग का एक बड़ा सा बैग खरीदा और घर आ गया. उस ने अनुराधा की लाश को उसी में ठूंस कर भरा और आटोरिक्शा से ले जा कर खराड़ी गांव के पास फेंक आया.

प्रशांत को विश्वास था कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी. लेकिन जब पुलिस ने तेजी से जांच शुरू की तो वह डर गया. उस ने सोचा कि अब उस का पूना में रहना ठीक नहीं है. पुलिस कभी भी उस तक पहुंच सकती, इसलिए वह अपना समान और पैसे समेटने लगा.

2 जुलाई को प्रशांत ने अपने मकान मालिक दीपक जाधव से कहा कि उस की पत्नी गांव चली गई है, अब वह भी हमेशा के लिए गांव जाना चाहता है. इसलिए वह एक महीने का किराया काट कर उस का डिपाजिट वापस कर दें. मकान मालिक से बात करने के बाद उस ने अपना सारा सामान अपने दोस्त पिंटू के यहां पहुंचा दिया.

उसी बीच अनुराधा शोरूम पर नहीं गई तो प्रशांत के पास फोन आया. प्रशांत ने उन्हें बताया कि अनुराधा की बहन की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, इसलिए वह गांव चली गई है. अब उस का काम करने का कोई इरादा नहीं है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वे उस का बकाया वेतन दे दें तो बड़ी कृपा होगी.

शोरूम की ओर से पैसे देने के लिए कहा गया तो प्रशांत ने अपने दोस्त पिंटू को फोन किया. लेकिन पिंटू उस समय बारामती में था, इसलिए अनुराधा का वेतन लाने के लिए उस ने महेश रंगोजी को फोन किया.

महेश जा कर अनुराधा का बकाया वेतन ले आता, उस के पहले ही वाट्स ऐप पर अनुराधा की लाश का फोटो आ जाने से शोरूम वालों को सच्चाई का पता चल गया और उन्होंने महेश को पकड़ कर लश्कर पुलिस के हवाले कर दिया, जिस की वजह से पत्नी की हत्या करने वाला प्रशांत भी पकड़ा गया.

प्रशांत सूर्यवंशी के बयान के आधार पर अनुराधा की हत्या का मुकदमा उस के खिलाफ दर्ज कर के अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. महेश निर्दोष था, इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज – भाग 2

चुटला मुथु की तलाश में केरल पुलिस तमिलनाडु भी गई थी. वहां से भी उसे निराश हो कर ही लौटना पड़ा था. पुलिस अपना काम कर रही थी, पर सफलता न मिलने से लोगों को यही लग रहा था कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है. जबकि पुलिस अधिकारी हत्या के इस केस को हल करने के लिए नईनई टीमें बना कर नए जांच अधिकारी नियुक्त कर किसी भी तरह से हत्यारे को गिरफ्तार करना चाहते थे. लेकिन कोई भी हत्यारे तक पहुंच नहीं सका.

इस के बाद जनार्दन नायर ने अधिकारियों से मांग की कि जब थाना पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है तो इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच से कराई जाए. इस के बाद यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. क्राइम ब्रांच ने भी इस मामले में अपने नजरिए से जांच शुरू की. पर वह भी कुछ नहीं कर पाई.

इस की वजह यह थी कि सभी उसी मजदूर को कातिल मान रहे थे और उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. जो भी नया अधिकारी आता, फाइल देखता, दोचार दिन इधरउधर करता, उस के बाद रमादेवी मर्डर केस की फाइल फिर नीचे दब जाती. इसी तरह समय बीतता गया. गांव वालों का धरनाप्रदर्शन और घेराव भी कुछ नहीं कर पाया था.

जनार्दन नायर पहुंचे हाईकोर्ट

साल बीततेबीतते कुछ लोगों को शक होने लगा था कि रमादेवी की हत्या उस के पति जनार्दन नायर ने तो नहीं की है. दबी जुबान से लोग यह बात कहने भी लगे थे. यह नायर साहब के लिए परेशान करने वाली और अपमानित करने वाली बात थी.

ऐसे में ही अचानक इस मामले में एक नया मोड़ आ गया. साल 2007 में हत्या में मारी गई रमादेवी के पति जनार्दन नायर केरल हाईकोर्ट पहुंच गए. उन्होंने हाईकोर्ट से अपील की कि उन की पत्नी की हत्या के मामले में कातिल का पता लगाने के लिए जांच में तेजी लाई जाए. इस मामले में थाना पुलिस की तो छोड़ो, स्पैशल क्राइम ब्रांच भी कुछ नहीं कर सकी. एक साल बीत जाने के बाद भी न तो कोई सुराग मिला है और न कातिल का पता चल सका.

इस के बाद हाईकोर्ट ने क्राइम ब्रांच को फटकार लगाई. क्राइम ब्रांच ने जांच में तेजी लाई. पर फिर बात उसी मजदूर पर जा कर अटक गई थी, क्योंकि उस के बारे में कुछ पता ही नहीं चल रहा था. जब भी नया अफसर आता, अनसुलझे मामलों की फाइल निकलवाता तो उस में रमादेवी हत्याकांड की भी फाइल निकलती. फाइल पढ़ता, अपने शागिर्दों को इधरउधर दौड़ाता और महीने, 2 महीने बाद शांत हो जाता. इसी तरह एकएक कर के 17 साल बीत गए.

इन 17 सालों में रमादेवी हत्याकांड मामले की जांच क्राइम ब्रांच की 15 टीमों ने की. ये सभी टीमें रमादेवी की हत्या के लिए उसी मजदूर को जिम्मेदार मान रही थीं और उसी को खोज रही थीं. जबकि उस मजदूर का कुछ पता नहीं चल रह रहा था. जबकि उस की तलाश में ये टीमें तमिलनाडु, बिहार और उत्तर प्रदेश तक जा चुकी थीं.

रमादेवी हत्याकांड की फाइल कभी खुलती तो कभी धूल खाती पड़ी रहती. कोई पुलिस अधिकारी थोड़ी बहुत कोशिश कर लेता तो कोई उसे देख कर ऐसे ही रख देता. इसी तरह समय बीतता रहा. इस फाइल को धक्के खाते पूरे 17 साल बीत गए.

17 साल में बदल गए 15 जांच अधिकारी

इसी साल जुलाई में क्राइम ब्रांच में एक नए अधिकारी आए इंसपेक्टर सुनील राज. उन्होंने जब पुरानी फाइलें ले कर देखना शुरू किया तो उन्हें रमादेवी हत्याकांड की फाइल में कुछ ज्यादा ही रुचि जागी. उन्होंने पूरी फाइल को ध्यान से पढ़ा. उन्होंने देखा कि इस पर हाईकोर्ट का भी और्डर है, पर अभी तक इस में कुछ हुआ नहीं है.

जिन जिन अधिकारियों ने इस मामले की जांच की थी, उन सब की टिप्पणियां पढ़ीं. सभी ने उसी मजदूर चुटला मुथु को दोषी मान कर उसी की तलाश की बात की थी. पर उस का कुछ पता नहीं चला था. इंसपेक्टर सुनील राज ने तय किया कि वह इस मामले की जांच अपने हिसाब से करेंगे.

उन्होंने हत्या के इस मामले को अपने नजरिए से देखा और इस की जांच शुरू से करने का विचार किया. उन्हें लगा कि रमादेवी का हत्यारा वह मजदूर नहीं, कोई और ही है. क्योंकि दरवाजा अंदर से बंद था तो मजदूर ने हत्या कैसे की थी?

हत्या करने के बाद मजदूर जब बाहर आ गया तो उसे अंदर से दरवाजा बंद करने की क्या जरूरत पड़ी? कोई भी हत्या करने के बाद घटनास्थल से जल्दी से जल्दी भागना चाहेगा न कि बाहर खड़े हो कर अंदर से दरवाजा बंद करने की कोशिश करेगा?

इंसपेक्टर सुनील ने लीक से हट कर की जांच

सुनील राज पहले अफसर थे, जिन्होंने मजदूर को बाहर कर के इस मामले में सोचना शुरू किया. क्योंकि उन्हें लगा कि वह मजदूर इस घटना के बाद दोबारा दिखाई नहीं दिया. इस तरह की कोई दूसरी घटना भी नहीं घटी. जब उन्होंने सोचा कि हम यह मान कर चलें कि मजदूर कातिल नहीं है, कातिल कोई और भी सकता है तो इस के लिए सब से पहले उन्हें यह साबित करने के लिए सबूत की जरूरत थी.

यही सब सोच कर उन्होंने इस घटना की जांच हत्या होने वाले दिन से शुरू करने का निश्चय किया. उन्होंने सब से पहले उन बयानों का ध्यान से अध्ययन किया, जो पहले दिन जनार्दन नायर और उन के पड़ोसियों ने दिए थे. फिर मुखबिरों की खोज के बारे में अध्ययन किया.

सारे बयानों को पढऩे के बाद सुनील राज का ध्यान जनार्दन नायर के बयान पर गया, जिस में उन्होंने कहा था कि उस दिन वह पूरा दिन औफिस में थे. शाम को घर लौटे तो घर की कुंडी अंदर से बंद थी. कई बार आवाज देने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो उन्हें लगा कि पत्नी को कुछ हो तो नहीं गया. तब दरवाजे के ऊपर लगी जाली से हाथ डाल कर उन्होंने अंदर लगी कुंडी खोली और दरवाजा खोल कर अंदर गए तो अंदर पत्नी की लाश पड़ी थी.

उन्हें जनार्दन नायर के बयान में ही कुछ झोल नजर आया. उन के मन में आया कि वह जा कर उस जाली और दरवाजे को देखें कि क्या जाली से हाथ डाल कर अंदर से कुंडी खोल कर दरवाजा खोला जा सकता है? लेकिन जब वह पोलाद गांव स्थित जनार्दन के घर पहुंचे तो पता चला कि वहां तो वह पुराना घर गिरवा कर नया घर बन गया है.

यह उन के लिए एक खराब अनुभव था. क्योंकि जब दरवाजा और वह जाली ही नहीं है तो वह यह कैसे पता करें कि जाली से हाथ डाल कर दरवाजा खुल सकता था या नहीं? उन्हें गहरा धक्का लगा कि यह क्या मामला है. वह वापस आ गए और फाइल में लगी क्राइम सीन की सारी तसवीरें निकलवाईं.

अलगअलग ऐंगल से ली गई एकएक तसवीर को वह ध्यान से देखने लगे. उन्होंने दरवाजे और जाली वाली तसवीरों पर कुछ ज्यादा ही गौर किया. दरवाजे की ऊंचाई और उस के ऊपर लगी जाली को ध्यान से देखा. इस के बाद नायर साहब के पड़ोसियों को बुला कर दरवाजे, जाली और घर के बारे में विस्तार से चर्चा की.

इस के बाद उन्होंने पुलिस वालों से कहा कि एक बिलकुल इसी तरह का दरवाजा, जाली और दीवार तैयार कराओ, जिस की लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई वैसी ही होनी चाहिए, जैसी जनार्दन नायर के घर में लगे दरवाजे, जाली और दीवार की थी. साहब का आदेश होते ही पुलिस वाले काम पर लग गए.

एक खाली प्लौट पर वैसी ही दीवार बनाई गई, जिस में ठीक उतना ही लंबा, चौड़ा और ऊंचा लकड़ी का दरवाजा लगवाया गया, जैसा नायर साहब के घर में लगा था. फोटो से देख कर वैसी ही, उतनी ऊंचाई पर जाली भी लगवाई गई. फोटो में कुंडी भी थी. दरवाजे में ठीक वैसी ही और उसी जगह कुंडी भी लगवाई गई, जहां फोटो में लगी थी.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 2

पुलिस की शुरुआती जांच में शक ये उठा कि आखिर अंजलि अपने घर से चल कर मंदिर पर पहुंची लेकिन जंगल में क्यों गईं?

इस की जांच के लिए पुलिस ने उन के फोन की वाट्सएप चैट निकाली. इस से पता चला कि अंजलि की बेटी के फोन से ही मैसेज आया था. जिस में लिखा था कि वो अपने दोस्त के साथ ककरैठा जंगल में महादेव मंदिर के पास है. इस कारण अंजलि कंचन की तलाश में उस जंगल में चली गई थीं. अब पुलिस को यहीं से शक हो गया कि अंजलि मर्डर केस में उन की ही बेटी का कुछ न कुछ हाथ तो जरूर है या फिर उसे ब्लैकमेल किया जा रहा था.

मां को 47 बार काल किया था कंचन ने

पुलिस ने जब बेटी व मां के मोबाइलों की काल डिटेल्स निकाली, तब जांच से पता चला कि घटना वाले दिन 7 जून को कंचन ने अपनी मां अंजलि व एक अन्य नंबर पर दोपहर 2.20 बजे से 3.56 बजे तक 47 बार फोन किया. पुलिस यह जान गई थी कि कुछ तो है, जो कंचन छिपाना चाहती है. एसएचओ आनंद कुमार शाही का ऐसा अनुमान था कि कंचन ने ही अपनी मां को हत्यारोपियों के सामने तक भेजा था.

शीलू के मोबाइल में चला रहा था इंस्टाग्राम व वाट्सऐप

पुलिस ने प्रखर गुप्ता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस यह देखना चाहती थी कि प्रखर 7 जून को कहां था. रिपोर्ट से पता चला कि घटना वाले दिन यानी 7 जून को दोपहर 12 बजे तक प्रखर आगरा में ही था. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था.

पुलिस को जांच में पता चला कि अंजलि पति के साथ जब मंदिर पर पहुंची थीं और गायब हुई थीं, इस समयावधि में प्रखर गुप्ता का तो नहीं लेकिन एक अन्य मोबाइल नंबर उस समय वनखंडी महादेव मंदिर के पास मौैजूद था. यानी वारदात के समय मृतका अंजलि और उस गुमनाम मोबाइल की लोकेशन एक ही जगह पर थी. दोनों ही फोन एक ही टावर से जुड़े थे.

पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि यह नंबर कासगंज के गंजडुंडवारा के रहने वाले शीलू का था. पता चला कि वह प्रखर गुप्ता का दोस्त है. शीलू के मोबाइल में प्रखर गुप्ता का इंस्टाग्राम अकाउंट व कंचन का वाट्सऐप एकाउंट चल रहा था. कंचन ने अपने प्रेमी प्रखर को अपना वाट्सऐप एक्सेस दे कर उस से लोकेशन भी शेयर करा दी. वह मां अंजलि को लोकेशन भेज कर अपने पास बुलाता गया, जबकि अंजलि समझ रही थी कि बेटी अपनी लोकेशन भेज रही है. इसी झांसे में वह हत्यारों के पास पहुंच गई. पुलिस ने शीलू के घर पर दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

केदारनाथ की कह कर निकला था घर से

प्रारंभिक जांच के बाद पुलिस ने कंचन के प्रेमी प्रखर गुप्ता की तलाश शुरू की. वह घर से फरार मिला. पुलिस शुक्रवार 9 जून, 2023 की रात को उस के घर पहुंची थी. मां से प्रखर के बारे में पूछा. उस ने बताया कि बेटा तो 3 दिन से बाहर है. केदारनाथ जाने की कह कर घर से निकला था.

यह सुन कर पुलिस का शक और गहरा गया. जबकि उस की लोकेशन बुधवार 7 जून दोपहर 12 बजे तक शहर में ही थी. इस खुलासे के बाद पुलिस ने प्रखर की तलाश में सर्विलांस की मदद ली. सुराग मिलने पर टीम उत्तराखंड और दिल्ली भेजी गईं.

अंजलि के लापता होने से हत्या तक की घटना सस्पेंस फिल्म की पटकथा जैसी है. शातिर प्रखर गुप्ता ने हत्या से पहले पूरी तरह शोध कार्य किया था कि पुलिस कैसे पकड़ती है? पुलिस से कैसे बचना है? गहन मंथन करने के बाद हाईटेक साजिश रची गई थी. फोटो में बाइक के नंबर से पुलिस को प्रखर के बारे में पूरी जानकारी व उस का पता मिल गया था. उस के बाद कडिय़ां आपस में जुड़ती चली गईं. पुलिस ने तब दबिश देनी शुरू कर दी.

गिरफ्तारी के बाद भी डरा नहीं प्रखर

पुलिस को इस मर्डर केस की साजिश का परत दर परत खुलासा करने में 3 दिन लगे. 11 जून को खंदारी के पास से पुलिस ने 21 वर्षीय प्रखर गुप्ता को गिरफतार कर लिया. पुलिस ने प्रखर से पूछताछ शुरू की तो उस ने कहा पुलिस तो रस्सी का सांप बना देती है. निर्दोष को फंसाती है. कोर्ट तो सबूत मांगता है. हत्यारोपी के मुंह से ये बातें सुन कर पुलिस सन्न रह गई.

पुलिस से डरने के बजाए हत्यारोपी प्रखर पुलिस पर हावी था. उस ने झूठीसच्ची कहानी गढ़ कर पुलिस को घंटों घुमाया. फिल्मों, वेब सीरीज, सीरियलों को देख कर प्रखर ने जो सीखा था, वह पूरा ज्ञान पुलिस पर उड़ेल दिया. कोर्ट में बात करेंगे.

वह टूट नहीं रहा था. कहने लगा, कहां हैं उस के फिंगरप्रिंट, लोकेशन और आला कत्ल, अंजलि का मोबाइल? सबूत हों तो दिखाओ. वह पुलिस के सामने फिल्म ‘दृश्यम’ का अजय देवगन बन गया था.

इस के बाद पुलिस ने भी पैंतरा बदला और प्रखर के सामने उस की मां व छोटे भाई को ले कर आई. कहा कि तुम्हारे साथ मां और भाई भी जेल जाएंगे. इतना सुनते ही प्रखर टूट गया. उस ने कहा कि अंजलि को शीलू ने मार दिया, उस ने कुछ नहीं किया. उस ने तो बात करने के लिए बुलाया था. वह घटना के समय शीलू के साथ था.

कंचन भी प्रखर को निर्दोष बताने लगी. उस ने भी कहा कि मां को शीलू ने ही मारा है. इस पर शीलू ने कहा कि वह प्रखर को जानता है. वह गांव से उसे बहाने से बुला कर लाया था. हम दोनों ने मिल कर हत्या की है. इस में कंचन का भी हाथ है. प्रखर और उस की प्रेमिका दोनों झूठ बोल रहे हैं. पुलिस द्वारा सबूत दिखाने पर आखिर प्रखर ने अंजलि की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

प्यार में कराई मां की हत्या

प्रखर बोला, “हां, उस ने अंजलि बजाज को मारा है. क्या करता, उस का प्यार उस से छिन रहा था. उस के सपने चूरचूर हो रहे थे. उन्हें पता चल गया था कि कंचन से उस का करीबी रिश्ता जुड़ चुका है. वह अंजलि बजाज को नहीं मारता तो वह उसे पोक्सो एक्ट में जेल भिजवा देती.

“कंचन भले ही कोर्ट में कहती रहती कि वह उस से प्यार करती है, तब भी उसे जेल जाना पड़ता क्योंकि नाबालिग की बात कोई मायने नहीं रखती.”

उस ने पुलिस को बताया कि हत्या में उस ने अपने गांव के दोस्त शीलू की मदद ली थी. हत्या से पहले उस ने व शीलू ने शराब भी पी थी ताकि अंदर से हिम्मत आ जाए.

सीधे-साधे पति की शातिर पत्नी – भाग 2

अरुण पिंकी को खोज ही रहा था कि उस के मोबाइल पर उस के साले दिनेश ने फोन कर के कहा कि वह पिंकी से उस की बात कराए. जब अरुण ने उसे बताया कि पिंकी ट्रेन से गायब हो गई है तो पहले दिनेश ने उसे खूब गंदीगंदी गालियां दीं, उस के बाद उस पर सीधे आरोप लगाया कि उस ने पिंकी को ट्रेन के नीचे फेंक कर मार दिया है.

अरुण लाख सफाई देता रहा, लेकिन दिनेश ने उस की एक नहीं सुनी. उसे गालियां देते हुए दिनेश एक ही बात कहता रहा कि उस ने पिंकी को मार डाला है, इसलिए उसे इस करनी का फल भोगना ही होगा. अरुण वैसे ही परेशान था, साले की इस धमकी ने उस की परेशानी और बढ़ा दी.

अरुण बिलासपुर में पिंकी को खोज ही रहा था कि दूसरी ओर उस के ससुर केदार राणा ने थाना घनावर जा कर तत्कालीन थानाप्रभारी महेंद्र प्रसाद सिंह से मिल कर पिंकी को ट्रेन से फेंक कर मार डालने की रिपोर्ट अरुण, उस के पिता नूनूराम, मां रामनी, भाई परमेश्वर और भाभी गुडि़या के खिलाफ दर्ज करा दी.

मुकदमा दर्ज होते ही थाना घनावर पुलिस ने नामजद लोगों को गिरफ्तार करने के लिए छापा मारा. नूनूराम को रिपोर्ट दर्ज होने का पता चल गया था, इसलिए पुलिस से बचने के लिए वह परिवार सहित छिप गया था. लेकिन वे लोग कितने दिनों तक रिश्तेदारों के यहां छिपे रह सकते थे, इसलिए धीरेधीरे सभी ने आत्मसमर्पण कर दिया. अरुण तो पहले ही पकड़ा जा चुका था. इस तरह नूनूराम का पूरा परिवार पिंकी की हत्या के आरोप में जेल चला गया.

नूनूराम, परमेश्वर, रामनी और गुडि़या की तो जमानतें हो गईं, पर अरुण की जमानत नहीं हो सकी. नूनूराम के जमानत पर जेल से बाहर आने के कुछ दिनों बाद पिंकी का बाप केदार राणा उन से मिलने आया. इस मुलाकात में उस ने नूनूराम से कहा कि अगर वह चाहें तो इस मामले में वह समझौता कर सकता है. लेकिन इस के लिए उन्हें उसे 8 लाख रुपए देने होंगे.

समधी की इन बातों से नूनूराम का माथा ठनका. वह इस बात पर गौर करने लगा कि जिस आदमी ने बेटी की हत्या के आरोप में उस के पूरे परिवार को जेल भिजवाया हो, वह पैसे ले कर समझौता करने को क्यों तैयार है? जरूर इस में कोई राज है.

उस ने केदार राणा से कहा, ‘‘जिस अपराध को हमारे परिवार ने किया ही नहीं, उस के लिए समझौता करने की बात कहां से आ गई. हम तो वैसे भी जेल हो आए हैं, तुम 8 लाख की बात कर रहे हो, हम फ्री में भी समझौता नहीं करेेंगे.’’

इस के बाद नूनूराम ने एक वकील से सलाह कर के गिरिडीह की अदालत में 10 दिसंबर, 2012 को पिंकी की हत्या के मामले में अपने परिवार को निर्दोष बताते हुए एक परिवाद दाखिल किया. यही नहीं, अपने समधी की बातों से उन्हें पूरा यकीन हो गया था कि इस मामले में उन के परिवार को फंसाया गया है.

यही सोच कर उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह असलियत का पता लगा कर रहेंगे. पिंकी जिंदा है, लेकिन कहां है, इस का पता उन्हें लगाना था.

नूनूराम को पता था कि आदमी कैसा भी हो, उस का कोई न कोई दुश्मन होता ही है. उन्हीं दुश्मनों से मिल कर नूनूराम सच्चाई का पता लगाने लगे. इसी खोजबीन में उन्हें पता चला कि कुबरी के जिस स्कूल में पिंकी पढ़ती थी, उसी स्कूल के प्रिंसिपल चंद्रभानु राय का बेटा नितेश कुमार भी पिंकी के साथ पढ़ रहा था. पढ़ाई के दौरान ही दोनों में प्यार हो गया था.

नितेश के घर वालों को तो पिंकी को बहू बनाने में कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन जब इस बात की जानकारी पिंकी के घर वालों को हुई तो उन लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया. इस की वजह यह थी कि नितेश उन की जाति का नहीं था.

नितेश और पिंकी का प्यार अब तक इस स्थिति तक पहुंच चुका था कि वे अलग होने के बारे में सोच कर ही डर जाते थे. इसलिए पिंकी ने नितेश के साथ भाग कर अपनी अलग दुनिया बसाने का निर्णय कर लिया था. इस के लिए नितेश भी तैयार था. अब वे मौके की तलाश में थे.

लेकिन घर वालों ने पिंकी को घर में कैद कर दिया था, इसलिए उसे मौका ही नहीं मिल रहा था. उसे मौका मिलता, उस के पहले ही केदार राणा ने नूनूराम के बेटे अरुण के साथ उस की शादी कर दी. अरुण बीए तक पढ़ा भी था और उस का फर्नीचर का काम भी बढि़या चल रहा था.

पिंकी दुलहन बन कर अरुण के घर आ तो गई, लेकिन वह अपने प्रेमी नितेश को दिल से निकाल नहीं पाई. ऐसे में ही जब कहीं से नितेश ने उस का नंबर ले कर उसे फोन किया तो वह यह भूल गई कि अब वह किसी और की अमानत हो चुकी है. फिर तो दोनों में लगातार बाते होने लगीं. इन्हीं बातों में यह बातें भी होती थीं कि वह किस तरह उस के पास पहुंचे. क्योंकि नितेश अभी भी उसे अपनाने को तैयार था.

शादी होने पर अरुण पत्नी को कहीं घुमाने नहीं ले गया था. इसलिए उस ने पिंकी के साथ नागपुर घूमने जाने का कार्यक्रम बनाया. उस ने टिकट भी करा लिया था. पिंकी ने यह बात अपने प्रेमी नितेश को बताई तो उस के लिए आतुर शातिर दिमाग नितेश ने उसे पाने की योजना बना डाली. उस ने पिंकी से कहा, ‘‘अगर तुम मेरे साथ भागना चाहो तो मैं तुम्हें उपाय बताऊं?’’

‘‘मैं तो तुम्हारे साथ भागने को कब से तैयार हूं, तुम उपाय बताओ.’’ पिंकी ने कहा.

‘‘जब तुम नागपुर जाने लगोगी, मैं तुम्हें बिलासपुर में मिलूंगा. तुम वहीं ट्रेन से उतर जाना.’’ नितेश ने उपाय बताया तो पिंकी बोली, ‘‘ठीक है, मैं पूरी तैयारी कर के आऊंगी. लेकिन तुम समय से पहुंच जाना.’’

इस के बाद नितेश ने पिंकी से कोच और सीट नंबर पूछ लिया.

1 जून, 2011 को अरुण पिंकी के साथ राउरकेला से नागपुर जा रहा था तो रात में जब ट्रेन बिलासपुर में रुकी तो योजनानुसार नितेश वहां मिल गया. पिंकी चुपके से उस के साथ ट्रेन से उतर गई. नितेश वहां से उसे ले कर दिल्ली चला गया.

पिंकी के ट्रेनन से उतरते ही उस के भाई दिनेश ने अरुण को फोन किया कि वह पिंकी से उस की बात कराए. जब अरुण ने बताया कि पिंकी ट्रेन से लापता हो गई है तो दिनेश ने आरोप लगाया कि उस ने पिंकी को मार दिया है और ट्रेन से गायब होने का नाटक कर रहा है. यही नहीं, पिंकी के पिता केदार राणा ने अगले दिन यानी 2 जून, 2011 को थाना घनावर में अरुण और उस के घर वालों के खिलाफ बेटी की हत्या की रिपोर्ट भी दर्ज कर दी थी.

नूनूराम को जब पिंकी और प्रिंसिपल चंद्रभानु राय के बेटे नितेश कुमार के प्रेमसंबंधों के बारे में पता चला तो उस ने नितेश के बारे में पता किया. पता चला, नितेश भी तब से गांव में नहीं दिखाई दिया है, जब से पिंकी गायब है. वह समझ गया कि इस का मतलब पिंकी जहां कहीं भी है, नितेश के साथ ही है. यही नहीं, पिंकी के जिंदा होने और निलेश के साथ होने की जानकारी पिंकी के घर वालों को भी है. साफ था केदार राणा के घर वालों ने पूरा षडयंत्र रच कर उस के घर वालों को फंसाया था.

जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 3

अनुराधा गर्भवती हुई तो प्रशांत बहुत खुश हुआ. लेकिन अनुराधा इस बात से परेशान हो उठी. वह बच्चे को जन्म देने के बजाय गर्भपात करना चाहती थी. प्रशांत ने उसे बहुत समझाया कि यह उन के प्रेम की निशानी है, लेकिन अनुराधा नहीं मानी. वह बच्चा पैदा कर के उसे पालनेपोसने के झंझट में नहीं फंसना चाहती थी. उसे बच्चा बोझ लगता था. उसे यह भी लगता था कि बच्चा हो जाने के बाद उस का क्रेज खत्म हो जाएगा.

यही सब सोच कर अनुराधा ने बच्चे के पालनपोषण और घर खर्च का हवाला दे कर प्रशांत पर ऐसा दबाव बनाया कि उसे झुकना पड़ा. इस तरह पति को राजी कर के अनुराधा ने गर्भपात करवा दिया.

समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. गर्भपात करवा कर अनुराधा बहुत खुश थी. वह बच्चे के झंझट में फंस कर अपने सपनों को बिखरने नहीं देना चाहती थी. वह अपनी बौडी और सुंदरता को कायम रख कर उस की बदौलत ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहती थी. स्वयं को स्मार्ट दिखाने के लिए वह अपना पूरा वेतन अपने शरीर पर खर्च कर रही थी.

यही नहीं बाजार में इलेक्ट्रौनिक का जो भी नया सामान आता था, वह उस से इस तरह प्रभावित होती थी कि उसे खरीद कर लाने के लिए घर में रखा अच्छे से अच्छा सामान बदल देती थी. खासकर मोबाइल और टेलीविजन. प्रशांत उस की इस आदत से काफी परेशान था. लेकिन वह अनुराधा को इतना प्यार करता था कि कुछ नहीं कह पाता था.

प्रशांत अनुराधा को अपने आटो से उस के शोरूम पर सुबह पहुंचाने जाता था और शाम को ले आता था. वह अपनी सारी कमाई भी उसी के हाथों पर रख देता था. उस के बाद यह भी नहीं पूछता था कि उस ने पैसे कहां खर्च कर दिए.

प्रशांत के इस प्यार की नींव तब हिल गई, जब दूसरी बार गर्भवती होने पर अनुराधा ने बच्चे को जन्म देने से मना कर दिया. जबकि प्रशांत चाहता था कि इस बार अनुराधा बच्चे को जन्म दे. लेकिन प्रशांत के चाहने से क्या होता, बच्चा तो अनुराधा को पैदा करना था और वह इस के लिए तैयार नहीं थी. अंतत: चली भी अनुराधा की. इस बार भी उस ने गर्भपात करा दिया. अनुराधा के दोबारा गर्भपात कराने से प्रशांत का मन अशांत रहने लगा. अब वह अनुराधा से थोड़ा खिंचाखिंचा सा रहने लगा था.

अनुराधा का व्यवहार भी अब प्रशांत के प्रति काफी बदल गया था. वह प्रशांत का खयाल रखने के बजाय हमेशा उसे खरीखोटी सुनाती रहती थी. साथ ही प्रशांत से बातचीत करने के बजाय हरदम मोबाइल पर लगी रहती. अगर प्रशांत मना करता तो वह उस पर विफर उठती. वह यहां तक कह देती कि, ‘फोन मेरा है, पैसा भी मेरा खर्च हो रहा है, तुम्हें इस से क्या मतलब? मेरा जब तक मन करेगा, बातें करूंगी.’

इधर अनुराधा छोटीछोटी बातों में प्रशांत से उलझने लगी थी. पत्नी के इस व्यवहार से प्रशांत काफी परेशान रहने लगा था. दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ने लगी थीं. अनुराधा की बेरुखी की वजह से प्रशांत का विश्वास डगमगाने लगा था. उसे अनुराधा के चरित्र पर भी संदेह होने लगा था. क्योंकि उस का स्वभाव काफी बदल गया था. छुट्टी के दिन भी वह घर पर नहीं रहती थी.

प्रशांत को लगता था कि अनुराधा का उस से मन भर गया है. इसीलिए वह उस से छल कर रही है. पूना आने के बाद अनुराधा में जिस तरह बदलाव आया था, प्रशांत स्वयं को उस तरह नहीं बदल सका था.

25 जून को अनुराधा ने प्रशांत से अपने लिए एक नई सोने की चेन बनवाने को कहा. प्रशांत ने यह कह कर मना कर दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. लेकिन अनुराधा जिद पर अड़ गई. उस ने कहा कि वह पैसे के लिए अपना मंगलसूत्र गिरवी रख देगी. प्रशांत को पत्नी की यह बात अच्छी नहीं लगी. लेकिन उस की जिद के आगे वह हार गया और उस के साथ गहनों की दुकान पर जाना पड़ा.

अनुराधा ने दुकान पर मंगलसूत्र गिरवी रख कर चेन खरीद ली. उस की इस हरकत से प्रशांत को बहुत दुख हुआ, क्योंकि वह उस की बात को न समझती थी न महत्त्व देती थी. मंगलसूत्र जिसे सुहागिनें हमेशा गले से लगाए रहती हैं, चेन के लिए उसे गिरवी रख दिया था. प्रशांत अपमान का घूंट पी कर रह गया. अनुराधा से उस ने कुछ इसलिए नहीं कहा क्योंकि इस से घर का माहौल खराब होता.

प्रशांत 2 सौ रुपए प्रति शिफ्ट किराए पर ले कर आटो चलाता था. अगले दिन 10 बजे उस ने अनुराधा को शोरूम पहुंचाया और रात 10 बजे घर ले आया. अनुराधा के व्यवहार से पेरशान प्रशांत उस दिन ठीक से कमाई नहीं कर सका, जिस की वजह से आटो का किराया नहीं दे पाया. किराया जमा न होने की वजह से अगले दिन मालिक ने उसे आटो चलाने के लिए नहीं दिया.

अगले दिन रात साढ़े 8 बजे अनुराधा ने प्रशांत को फोन किया कि वह अरोरा टावर के पास खड़ी है आटो ले कर आ जाए. प्रशांत को उस दिन आटो मिला ही नहीं था. इस के बावजूद उस ने कुछ नहीं कहा और अपने एक दोस्त पिंटू के आटो से अनुराधा को लेने जा पहुंचा.

प्रशांत को पिंटू के साथ देख कर अनुराधा भड़क उठी, ‘‘तुम्हारा आटो कहां है, जो तुम दूसरे का आटो ले कर आए हो?’’

प्रशांत तो कुछ नहीं बोला, लेकिन पिंटू ने कहा, ‘‘धंधा न होने की वजह से प्रशांत आटो का किराया नहीं जमा कर पाया, इसलिए मालिक ने आटो नहीं दिया है.’’

लेकिन अनुराधा को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ और उस ने प्रशांत को खूब खरीखोटी सुनाई. प्रशांत ने अनुराधा से काफी मिन्नतें कीं कि वह झगड़ा न करे, लेकिन अनुराधा ने उस की एक नहीं सुनी. वह पूरे रास्ते प्रशांत को उस के दोस्त पिंटू के सामने ही अपमानित करती रही.

प्रशांत ने अनुराधा को घर छोड़ा और पिंटू के साथ वीटी कवड़े रोड स्थित कमला शंकर होटल गया और वहां से अपने तथा अनुराधा के लिए खाना ले आया. खाना खाने के बाद अनुराधा फोन पर बातें करने लगी. उस समय रात के 11 बज रहे थे. फोन पर बातें करतेकरते उस ने प्रशांत से आइसक्रीम लाने को कहा. लेकिन आइसक्रीम की दुकान बंद थी. तब अनुराधा ने उसे कोल्डड्रिंक लाने के लिए पूना रेलवे स्टेशन भेजा.

मां के प्रेम का जब खुला राज

17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज – भाग 1

यह कहानी आज से 17 साल पुरानी साल 2006 की है. केरल का एक जिला पथानाममथिट्टा. इसी जिले का एक गांव है पोलाद. इसी गांव में एक परिवार रहा करता था, जिस के मुखिया थे जनार्दन नायर. उन की पत्नी थी रमादेवी. उन्हीं के साथ वह रहते थे. उन की कोई औलाद नहीं थी यानी इस परिवार में केवल 2 ही लोग थे. नायर साहब डाक तार विभाग यानी पोस्टल डिपार्टमेंट में सीनियर एकाउंटेंट थे. दोनों की जिंदगी आराम से कट रही थी.

जनार्दन नायर रिटायर होने वाले थे. 26 मई, 2006 की शाम को जनार्दन नायर औफिस की छुट्टी होने पर अपने घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि घर का दरवाजा अंदर से बंद है. शाम के समय ऐसा होता नहीं था. चूंकि दरवाजा बाहर से बंद होता तो वह समझते कि पत्नी कहीं बाहर गई हैं, लेकिन दरवाजा अंदर से बंद था, इस का मतलब यह था पत्नी को अंदर ही होना चाहिए.

दरवाजे के ऊपर जाली लगी थी. उसी से उन्होंने पत्नी को कई आवाजे दीं, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. वह खीझे कि एक ओर वह चिल्ला रहे हैं और घर के अंदर पत्नी किस में व्यस्त है कि दरवाजा नहीं खोल रही है. उन्होंने दरवाजा खुलवाने की काफी कोशिश की, पर जब दरवाजा नहीं खुला. तब उन्होंने ऊपर लगी जाली से अंदर हाथ डाल कर खुद ही अंदर लगी कुंडी खोल कर दरवाजा खोला.

दरवाजा खोल कर जैसे ही जनार्दन नायर अंदर घुसे, चीखते हुए तुरंत बाहर आ गए. घर के अंदर उन की 50 साल की पत्नी रमादेवी की खून से सनी लाश पड़ी थी. पत्नी की लाश देख कर वह चीखनेचिल्लाने लगे. उन की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए.

रमादेवी के मर्डर की बात सुन कर पड़ोसी भी हैरानपरेशान हो गए. दिनदहाड़े किसी के घर में घुस कर इस तरह हत्या कर देने वाली बात हैरान करने वाली तो थी ही, डराने वाली भी थी. सभी लोग सहम उठे थे. महिलाएं कुछ ज्यादा ही डरी हुई थीं. क्योंकि दिन में वही घर में अकेली रहती हैं.

जनार्दन नायर के पड़ोसियों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दी. फोरैंसिक टीम के साथ थाना पुलिस ने आ कर अपनी औपचारिक काररवाई की और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. रमादेवी की हत्या चाकू से गोद कर की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी आ कर सारे साक्ष्य जुटाए थे, जिन्हें जांच के लिए भिजवा दिया गया था.

इस के बाद पूछताछ शुरू हुई. सब से पहले जनार्दन नायर का बयान लिया गया. क्योंकि सब से पहले उन्हें ही हत्या की जानकारी हुई थी. नायर साहब ने वह सब बता दिया, जिस तरह औफिस से आने के बाद उन्हें पत्नी की हत्या का पता चला था. उस के बाद पड़ोसियों से पूछताछ हुई.

चूंकि शाम का समय था, इसलिए उस समय ज्यादातर लोग घरों के अंदर थे, पर नायर साहब के बिलकुल पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने पुलिस को बताया कि जिस समय यह घटना घटी थी यानी नायर साहब के आने से थोड़ी देर पहले उस ने नायर साहब के घर के सामने एक आदमी को टहलते देखा था. टहलते हुए वह इधरउधर देख रहा था. वह कुछ बेचैन सा भी लग रहा था.

उस महिला ने आगे बताया कि उस ने उस से पूछना चाहा कि वह यहां क्यों इस तरह टहल रहा है? लेकिन वह उस से यह बात पूछ पाती, उस से पहले ही वह यहां से चला गया था.

मजदूर पर क्यों हुआ शक?

पुलिस ने जब पूछा कि वह आदमी कौन था? तब उस महिला ने बताया कि वह सामने जो बिल्डिंग बन रही है, वह आदमी शायद उसी में काम करता था. महिला द्वारा दिए गए बयान के अनुसार वह आदमी शक के दायरे में आ गया था, इसलिए पुलिस उस आदमी के बारे में पता करने वहां जा पहुंची, जहां बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा था.

पुलिस उस महिला को भी साथ ले गई थी, जिस से वह उस आदमी को पहचान सके. लेकिन जब वह आदमी वहां नहीं दिखाई दिया तो पुलिस ने उस आदमी का हुलिया बता कर उस के बारे में पूछा.

वहां काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि वह आदमी यहां काम करता जरूर था, लेकिन वह बिना कुछ बताए ही आज सुबह ही यहां से चला गया है. इस के बाद पुलिस को उस आदमी पर शक और गहरा गया. क्योंकि घटना के अगले दिन ही वह बिना बताए गायब हो गया था.

पुलिस ने जब वहां काम करने वाले मजदूरों और ठेकेदार से उस का पता यानी वह कहां का रहने वाला था, यह जानना चाहा तो वे सिर्फ इतना ही बता सके कि वह कहीं बाहर से यहां काम करने आया था. वह कहां का रहने वाला था, यह निश्चित रूप से किसी को पता नहीं था. उस का नाम जरूर पता चल गया था. उस का नाम था चुटला मुथु. इसी के साथ पुलिस को उस की पत्नी का पता जरूर मिल गया था.

उस मजदूर के इस तरह अचानक गायब हो जाने से पुलिस को अब यही लगने लगा था कि हो न हो, यह हत्या उसी ने की होगी. क्योंकि जैसे ही लोगों ने उस पर शक जाहिर किया था, वह गायब हो गया था. अब पुलिस उस की खोज में लग गई.

पुलिस उस पते पर पहुंची, जहां उस की पत्नी रहती थी. लेकिन पत्नी ने कहा कि अब उस का उस आदमी से कोई संबंध नहीं. दोनों में पटी नहीं, इसलिए वह उस से अलग रहने लगी. उसे यह भी पता नहीं है कि इस समय वह कहां है. लेकिन उस महिला ने यह जरूर कह दिया कि वह आदमी ठीक है.

पुलिस चुटला मुथु की तलाश में दिनरात एक किए हुए थी, पर उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. धीरेधीरे एक साल बीत गया. अब जनार्दन नायर और लोगों का धैर्य जवाब देने लगा. एक साल हो गया और कातिल पकड़ा नहीं गया.

केरल के लोग पढ़ेलिखे हैं और अपने अधिकारों के प्रति सजग भी हैं. उन्हें लगा कि पुलिस इस मामले में लापरवाही कर रही है, इसीलिए कातिल पकड़ा नहीं जा रहा है. पुलिस अपनी काररवाई में तेजी लाए, इस के लिए रमादेवी के हत्यारे को कैसे भी गिरफ्तार किया जाए, इस के लिए सभी ने मिल कर आंदोलन किया, रैली निकाली. इतना ही नहीं, तत्कालीन मुख्यमंत्री और अधिकारियों से लिखित शिकायतें भी की गईं, पर इस का भी कोई नतीजा निकला.

पुलिस के खिलाफ धरनाप्रदर्शन का दौर शुरू

अब तक रमादेवी हत्याकांड को एक साल बीत चुका था. फिर भी पुलिस को अब तक कातिल का कोई सुराग नहीं मिला था. इस बीच कातिल को गिरफ्तार करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा रैली भी निकाली जा चुकी थी और धरनाप्रदर्शन भी हो चुका था यानी आंदोलन हो चुके थे, लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर सकी थी. जिस मजदूर पर लोगों को ही नहीं, पुलिस को भी शक था, वह फरार था. उस का कहीं अतापता नहीं चला.

इस बीच पुलिस को पता चला कि उसी तरह का एक मजदूर कानपुर में देखा गया है. केरल पुलिस कानपुर पहुंची, लेकिन वह मजदूर पुलिस को वहां भी नहीं मिला. केरल पुलिस उस की तलाश में बिहार भी गई. क्योंकि कुछ लोगों का कहना था कि वह बिहार से आया था. लेकिन उस के नाम से ही पता चलता था कि वह बिहार का रहने वाला नहीं था. क्योंकि बिहार में ऐसे नाम नहीं रखे जाते. इस के बावजूद केरल पुलिस बिहार गई और खाली हाथ लौट आई.

सीधे-साधे पति की शातिर पत्नी – भाग 1

वाराणसी के थाना कैंट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय अपने औफिस में बैठे सहयोगियों से किसी मामले पर चर्चा कर रहे थे कि तभी उन के सीयूजी मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने फोन उठा कर देखा, नंबर बिहार का था. उन्होंने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘जयहिंद सर, मैं झारखंड के जिला गिरिडीह से सिपाही रामकुमार बोल रहा हूं. हमारे एसपी साहब आप से बात करना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है, बात कराएं.’’ इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा.

इस के तुरंत बाद फोन एसपी साहब को स्थानांतरित किया गया तो इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा, ‘‘जयहिंद सर, मैं वाराणसी के थाना कैंट का थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय, आदेश दें सर.’’

‘‘विपिनजी, मेरे जिले के थाना घनावर की एक टीम कुछ अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए कल वाराणसी जा रही है. चूंकि अभियुक्तों का हालमुकाम पांडेपुर है, जो थाना कैंट के अंतर्गत आता है, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप उन की हर संभव मदद करें.’’

‘‘सर, उन की हर संभव मदद की जाएगी.’’ इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा तो दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. यह 20 दिसंबर, 2013 की बात है.

अगले दिन 21 दिसंबर, 2013 की दोपहर को थाना घनावर की पुलिस टीम थाना कैंट आ पहुंची, जिस में एक सबइंस्पेक्टर, एक हेडकांस्टेबल और 2 महिला सिपाही थीं. सबइंसपेक्टर ने इंसपेक्टर विपिन राय के औफिस में जा कर कहा, ‘‘सर, मैं गिरिडीह के थाना घनावर का सबइंस्पेक्टर पशुपतिनाथ राय. कल आप की हमारे एसपी साहब से बात हुई थी न?’’

‘‘बैठिए, पहले चाय वगैरह पी लीजिए, उस के बाद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए चलते हैं.’’

इस के बाद थानाप्रभारी विपिन राय ने मुंशी को आवाज दे कर चाय और नाश्ता भिजवाने को कहा. इसी के साथ उन्होंने छापा मारने के लिए ड्राइवर को भी तैयार होने के लिए कह दिया. चायनाश्ता आता, उस से पहले इंसपेक्टर विपिन राय ने पूछा, ‘‘मामला क्या, जिस में आप गिरफ्तारी के लिए यहां आए हैं?’’

‘‘सर, हमारे थानाक्षेत्र की एक शादीशुदा लड़की पिंकी 2 जून, 2011 को राउरकेला से नागपुर जाते समय बिलासपुर से रहस्यमय परिस्थितियों में गायब हो गई थी. मायके वालों का कहना था कि ससुराल वालों ने उस की हत्या कर दी है. उस की हत्या के आरोप में पति समेत ससुराल के 5 लोगों को जेल भेज दिया गया था, जिन में से सब की जमानतें तो हो गई थीं, लेकिन उस का पति अरुण अभी भी जेल में बंद है. जबकि हमें पता चला है कि पिंकी अपने प्रेमी नितेश के साथ आप के थानाक्षेत्र के पांडेपुर में किराए का कमरा ले कर 2 सालों से छिप कर मजे से रह रही है.’’

चायनाश्ता करा कर थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय गिरिडीह से आई पुलिस टीम को साथ ले कर पांडेपुर के लिए रवाना हो गए. जिस मकान में पिंकी और नितेश के किराए पर रहने की सूचना मिली थी, उस पर छापा मारा गया तो दोनों जिस कमरे में रहते थे, उस में ताला बंद मिला.

पूछने पर मकान मालिक ने बताया, ‘‘मेरे मकान में गिरिडीह का रहने वाला नितेश अपनी पत्नी पिंकी और बेटे के साथ लगभग 2 सालों से रह रहा था. लेकिन आज सुबह ही वह गिरिडीह चला गया है. दोनों निकले भी बड़ी हड़बड़ी में हैं. शायद उन्हें आप लोगों के आने का आभास हो गया था.’’

सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय ने मकान मालिक से उन के मोबाइल नंबर के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘सर, मोबाइल फोन तो दोनों के पास अलगअलग थे, लेकिन हमें कभी उन के नंबरों की जरूरत ही नहीं पड़ी, इसलिए मैं ने उन के नंबर लिए ही नहीं. हर महीने समय पर वे हमारा किराया दे देते थे, बाकी हम से कोई ज्यादा मतलब नहीं था.’’

आसपड़ोस वालों से भी नितेश और पिंकी का मोबाइल नंबर पूछा गया. सभी ने कहा कि उन से उन के संबंध तो अच्छे थे, लेकिन उन का नंबर उन के पास नहीं है. सभी हैरान भी थे कि आखिर उन्होंने ऐसा कौन सा अपराध किया है कि गिरिडीह से पुलिस उन की तलाश में इतनी दूर आई है. पुलिस ने कुछ बताया नहीं. इसलिए सभी ने यही अंदाजा लगाया कि दोनों घर से भागे होंगे.

थानाप्रभारी विपिन राय गिरिडीह से आई पुलिस टीम के साथ वापस थाने आ गए. थाने आ कर उन्होंने सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय को आश्वसन दे कर वापस भेज दिया कि नितेश और पिंकी के यहां आते ही वह उन्हें गिरफ्तार कर के सूचना देंगे.

इतना कुछ जानने के बाद मन में यह उत्सुकता तो पैदा ही होती है कि मामला क्या था, जो गिरिडीह पुलिस को नितेश और पिंकी की गिरफ्तारी के लिए वाराणसी आना पड़ा. यह जानने के लिए हमें गिरिडीह ही चलना होगा.

झारखंड के जिला गिरिडीह के थाना घनावर के गांव ओरखार के रहने वाले नूनूराम खेतीबाड़ी तो करते ही थे, वह लकड़ी के फर्नीचर के कारीगर भी बहुत अच्छे थे. उन के 2 बेटों में परमेश्वर बड़ा था तो अरुण छोटा. खेती और फर्नीचर बनाने के काम से उन्हें अच्छी आमदनी हो रही थी, इसलिए उन की जिंदगी आराम से कट रही थी.

नूनूराम विश्वकर्मा भले ही ज्याद पढ़ेलिखे नहीं थे, लेकिन वह बेटों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते थे. उन के लाख चाहने पर भी बड़ा बेटा परमेश्वर हाईस्कूल से ज्यादा नहीं पढ़ सका. उस का मन पढ़ने में नहीं लगा तो उन्होंने उसे भी अपने काम में लगा लिया. परंतु छोटा बेटा अरुण पढ़ने में ठीकठाक था, इसलिए वह उस के मनोबल को बढ़ाते हुए आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करे रहे.

परमेश्वर अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो नूनूराम ने कोडरमा के रहने वाले अपने एक रिश्तेदार की ममेरी साली की बेटी गुडि़या के साथ उस का विवाह करा दिया. तब तक अरुण भी बीए कर चुका था. अब वह पढ़ाई के साथसाथ पिता के काम में उन की मदद करने लगा था.

नूनूराम का अपना ही काम इतना फैला हुआ था कि उन्हें बेटों से नौकरी कराने की जरूरत नहीं थी. इसलिए अरुण शादी लायक हुआ तो वह उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ने लगे. संयोग से अरुण के लिए उन्हें गांव के नजदीक ही अलग देशियो कुबरी गांव में बढि़या रिश्ता मिल गया. केदार राणा की बेटी पिंकी हाईस्कूल तक पढ़ी थी.   नूनूराम को वह बेटे के लिए पहली ही नजर में पसंद आ गई. इस के बाद 26 मई, 2010 को अरुण और पिंकी की शादी हो गई.

पिंकी ने ससुराल आ कर अपने बात व्यवहार से ससुराल वालों का मन मोह लिया था. अरुण तो उसे पा कर बहुत खुश था. वह रहने वाली भले गांव की थी, लेकिन उस का रहनसहन शहर की लड़कियों जैसा था. अरुण और पिंकी के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. दिनभर का थकामांदा अरुण पत्नी के पास आता तो उस की एक झलक पा कर सारी थकान भूल जाता.

आदमी कामधंधे से लगा हो तो उसे समय का कहां पता चलता है. अरुण की शादी के भी 11 महीने बीत गए, उसे पता नहीं चला. अचानक उस ने पिंकी के साथ कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया. वह नागपुर जाना चाहता था, जिस के लिए उस ने पहले ही ट्रेन में सीट रिजर्व करा ली. 1 जून, 2011 को पिंकी अरुण के साथ ट्रेन से नागपुर जा रही थी तो जब ट्रेन बिलासपुर में रुकी तो वह अचानक गायब हो गई. यह 1 जून, 2011 की बात थी.

पिंकी के एकाएक गायब होने से अरुण परेशान हो उठा. जब तक ट्रेन स्टेशन पर रुकी रही, वह उसे ट्रेन में ढूंढता रहा. ट्रेन चली गई तो उस ने स्टेशन का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन पिंकी का कुछ पता नहीं चला.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 1

आगरा के शास्त्रीपुरम के ए ब्लौक स्थित भावना एरोमा कालोनी निवासी कारोबारी उदित बजाज 7 जून, 2023 की रात 9 बजे थाना सिकंदरा पहुंचे. वे बहुत घबराए हुए थे. उन्होंने एसएचओ आनंद कुमार शाही को पत्नी के लापता होने की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि उन की 40 वर्षीय पत्नी अंजलि बजाज अपराह्नï 3 बजे यमुना किनारे ककरैठा में वनखंडी महादेव मंदिर में पूजा कर ने गई थीं. लेकिन अब तक वापस नहीं आई हैं. उन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ जा रहा है.

सूचना पर पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर ली. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने रात में ही अंजलि की तलाश शुरू कर दी. एसएचओ आनंद कुमार शाही पुलिस टीम के साथ वनखंडी महादेव मंदिर जा पहुंचे. उन्होंने मंदिर के चप्पेचप्पे में अंजलि को तलाश किया, लेकिन अंजलि बजाज का कोई सुराग नहीं मिला.

उदित बजाज का आगरा में जूते के धागे का काम है. संजय पैलेस में उन की दुकान है. परिवार में इकलौती 15 वर्षीय बेटी कंचन के अलावा उदित के वृद्ध मातापिता साथ रहते हैं. दूसरे दिन पुलिस ने पति उदित बजाज से पूछताछ की. कारोबारी उदित ने बताया कि वह पत्नी के साथ मंदिर कार से गए थे. कंचन भी घर से कहीं चली गई थी. उस का फोन आया, उस ने बताया, पापा वह सिकंदरा में हाईवे पर अमर उजाला के पास खड़ी हैं, आप मुझे ले जाओ. पत्नी को मंदिर पर छोड़ कर वह बेटी को लेने पहुंचे.

रास्ते में कंचन का फोन आ गया कि वह घर पहुंच गई है. अब आने की जरूरत नहीं है. उस ने अपनी दादी से भी बात करा दी. उदित एक बार झुंझलाए भी फिर वे पत्नी को लेने के लिए वापस मंदिर पहुंचे लेकिन वहां पत्नी नहीं मिली. उदित को लगा कि पत्नी अकेले घर चली गई होंगी.

वह घर आए तो वहां पत्नी नहीं थीं. पत्नी का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ आ रहा था. वह एक बार फिर मंदिर पहुंचे, अंजलि को काफी तलाश किया, लेकिन वह नहीं मिलीं. परिचितों व रिश्तेदारों के यहां भी पता किया लेकिन कोई सुराग नहीं लगा. पत्नी के न मिलने पर वह घबरा गए. शाम तक इंतजार किया इस के बाद ही वे रात में थाने पहुंचे थे.

वनखंडी के जंगल में मिली अंजलि की लाश

पत्नी के लापता होने के दूसरे दिन यानी 8 जून को एक व्यक्ति का पुलिस के पास फोन आया. उस ने बताया कि वनखंडी मंदिर के पास जंगल में एक महिला की लाश पड़ी है. सूचना पर पुलिस वनखंडी महादेव मंदिर पहुंची. ये मंदिर यमुना किनारे स्थित है. मंदिर से यमुना करीब 700 मीटर की दूरी पर है. मंदिर के आसपास जंगल है.

वनखंडी महादेव मंदिर से करीब 900 मीटर दूर ककरैठा के जंगल में रास्ते के बराबर में बने गड्ढे में नाले के पास एक महिला की लाश पड़ी थी. उदित बजाज ने गुमशुदी दर्ज कराते समय अपनी पत्नी की फोटो भी पुलिस को दी थी. पुलिस ने फोटो से मिलान किया तो वह लाश अंजलि बजाज की ही निकली.

अंजलि की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. गरदन और पेट पर गहरे घाव थे. पुलिस ने आशंका व्यक्त की कि अंजलि की चाकू से गोद कर हत्या की गई थी. देखने से लग रहा था कि हत्या के बाद लाश को घसीट कर नाले के पास गड्ढे में फेंक कर हत्यारा मृतका का मोबाइल ले कर फरार हो गया.

सूचना पर डीसीपी विकास कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम को बुलाया गया. शव को घसीटने के निशान व मृतका की एक चप्पल भी घटनास्थल पर मिली थी. लाश मिलने पर पति उदित बजाज को सूचना दी गई. उदित ने घटनास्थल पर पहुंच गए लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी अंजलि बजाज के रूप में की. पत्नी का शव देखते ही वे फूटफूट कर रोने लगे. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को मोर्चरी भेज दिया.

अब अंजलि की गुमशुदगी का मामला कत्ल के मामले में भादंवि की धारा 302/34/120बी में तब्दील हो चुका था. अंजलि बजाज हत्याकांड के खुलासे के लिए डीसीपी विकास कुमार के निर्देशन में पुलिस की 6 टीमें बनाईं. टीम में एसओजी (सिकंदरा) आनंद कुमार शाही, एसआई सत्येंद्र सिंह, जितेंद्र प्रताप सिंह, सर्विलांस प्रभारी सचिन धामा, सर्विलांस प्रभारी (नगर जोन) अंकुर मलिक के अलावा एसओजी और स्वाट टीम को भी शामिल किया गया.

पुलिस ने कारोबारी उदित बजाज के निवास शास्त्रीपुरम और वनखंडी मंदिर के बीच 9 किलोमीटर के फासले में लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच का काम शुरू कर दिया. मंदिर के पास से जिस रहस्यमय तरीके से अंजलि गायब हुई थी और जिस तरह से उन की हत्या की गई थी, उस से साफ था कि किसी ने यह काम पूरी तैयारी से किया है. आखिर वो हत्यारा कौन हो सकता है?

पुलिस को लगा कि अंजलि की हत्या कारोबारी दुश्मनी के चलते तो नहीं की गई, लेकिन इस के लिए पुलिस को पुख्ता सबूतों की जरूरत थी. पुलिस ने पति उदित बजाज के मोबाइल काल की जांच की, लेकिन उन्हें कोई शक वाली बात नजर नहीं आई.

घूमफिर कर कंचन पर जा रहा था शक

पुलिस को शक हो रहा था कि कहीं उदित बजाज ने ही पत्नी की हत्या कर ये सब नाटक नहीं किया. पुलिस ने उदित से सवालजवाब भी किए. उन्होंने पुलिस को सच्चाई बता दी. उन की बात सुन कर पुलिस को उन की बेटी कंचन पर शक हुआ. बेटी कभी मंदिर तो कभी हाईवे पर मां और पिता को क्यों बुला रही थी? कारोबारी उदित बजाज की 15 वर्षीय बेटी कंचन इस समय 11वीं कक्षा में पढ़ रही है.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह घबरा गई और फूटफूट कर रोने लगी. घर वालों व पुलिस ने किसी तरह किशोरी को शांत कराया. उस ने बताया कि मां की हत्या के बारे में उसे कुछ नहीं पता. पुलिस ने कंचन का मोबाइल चैक किया. सोशल मीडिया प्रोफाइल और गैलरी में एक युवक के साथ फोटो मिले. कंचन से पूछा गया, “ये कौन है?”

उस ने कहा, “यह प्रखर गुप्ता है.”

पुलिस ने उस के फोन की गैलरी में एकएक फोटो को खंगाला. एक फोटो में कंचन युवक के साथ बाइक पर बैठी थी, बाइक का नंबर दिखाई दे रहा था. पुलिस ने उस नंबर को चैक किया. प्रखर गुप्ता निवासी दयालबाग, आगरा का नाम और पता निकल कर आ गया.

तब पुलिस को कुछ आशंका हुई. पूछा, “यह तुम्हारा ब्यायफ्रैंड है?”

इस पर कंचन ने मना कर दिया. प्रखर के साथ उस के तमाम फोटो देख कर पुलिस को शक तो होने लगा था, लेकिन पुलिस ने बड़ी खामोशी से प्रखर गुप्ता के बारे में जानकारी करनी शुरू कर दी. इस के बाद पुलिस इस हत्याकांड की कडियां जोडने में जुट गई.

वाट्सएप चैट में छिपा हत्या का राज

कंचन का मोबाइल पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. मोबाइल से कंचन ने चैट्स और काल हिस्ट्री डिलीट कर दी थी. पुलिस उन्हें रिकवर कर रही थी. पूछताछ के लिए पुलिस कंचन को थाने ले गई. जब पुलिस की जांच आगे बढऩे लगी तो सभी के होश उडऩे लगे.

घटना की जानकारी होने पर उदित के बुजुर्ग मातापिता भी हिल गए. बाबा दादी को नातिनी की चिंता सताने लगी. परिजनों की खुशहाल जिंदगी में अचानक भूचाल आ गया था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. सभी प्रार्थना कर रहे थे कि काश! कंचन घिनौनी साजिश का हिस्सा न निकले. यदि ऐसा हुआ तो उन का बेटा उदित अकेला रह जाएगा. पतिपत्नी ने बेटी को ले कर बड़ेबड़े सपने संजो कर रखे थे.

कारोबारी उदित बजाज की पत्नी अंजलि की मौत अत्यधिक खून बह जाने के कारण हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अंजलि की छाती और पेट पर चाकू से प्रहार किए गए थे. इस से यह अनुमान लगाया गया कि अंजलि ने हत्यारे से अपने बचाव का प्रयास किया इसी दौरान उसे चोट लगी थी.

जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 2

पूछताछ में उस आदमी ने अपना नाम महेश बताया. वह अनुराधा के पति प्रशांत सूर्यवंशी रंगोजी का दोस्त था. प्रशांत ने ही उसे अनुराधा का बकाया वेतन लेने के लिए वहां भेजा था. पुलिस को उस से प्रशांत का पता और फोन नंबर मिल गया. लेकिन जब पुलिस महेश को ले कर प्रशांत के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

दरअसल, प्रशांत को महेश के पकड़े जाने की जानकारी हो गई थी. वह समझ गया कि अब पुलिस उसे भी पकड़ लेगी. इसलिए वह पुलिस से बचने का रास्ता खोजने लगा. उस का एक रिश्तेदार ट्रक चलाता था. वह ट्रक ले कर अन्य शहरों में आताजाता रहता था. प्रशांत अपने उसी रिश्तेदार के यहां पहुंचा तो उसे पता चला कि उस का वह रिश्तेदार ट्रक ले कर गुजरात के बड़ौदा शहर जा रहा है.

पुलिस से बचने के लिए प्रशांत घूमने के बहाने उस के ट्रक पर सवार हो गया और उस के साथ बड़ौदा चला गया. इंसपेक्टर विलास सोड़े ने महेश रंगोजी को साथ ले कर प्रशांत की तलाश शुरू की तो उन्हें रिश्तेदार के साथ ट्रक पर उस के बड़ौदा जाने की जानकारी मिल गई.

पता करते हुए विलास सोड़े उस ट्रांसपोर्ट कंपनी पहुंच गए, जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी का वह ट्रक था. वहां से उन्हें पता चला कि जिस ट्रक से प्रशांत बड़ौदा जा रहा है, वह ट्रक नासिक से आगे निकल चुका है. पुलिस ट्रक का नंबर और वहां का पता ले कर चल पड़ी, जहां बड़ौदा में उस ट्रक को माल पहुंचाना था. 6 जुलाई को बड़ौदा में जब ट्रक से माल उतारा जा रहा था, तभी इंसपेक्टर विलास सोड़े अपने सहायकों के साथ वहां पहुंच गए और प्रशांत सूर्यवंशी को गिरफ्तार कर लिया.

प्रशांत को पूना के थाना येरवड़ा ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने अनुराधा की हत्या का अपराध बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया. प्रशांत ने उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह एक पत्नी की महत्वाकांक्षाओं और जिद से दुखी पति के हत्यारे बनने की थी.

मराठा समाज का 23 वर्षीय प्रशांत सूर्यवंशी महाराष्ट्र के जिला लातूर की तहसील निलंगा के गांव माकड़ीपोर के रहने वाले जीवन सूर्यवंशी का बेटा था. पिता गांव के सीधेसाधे किसान थे. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. इसी वजह से वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सका. सरकारी स्कूल से किसी तरह हायर सेकेंडरी कर के पैसा कमाने के लिए वह तहसील निलंगा आ कर टाटा डोकोमो कंपनी के औफिस के सामने एक गुमटी ले कर चाऊमीन वगैरह बना कर बेचने लगा.

यहीं प्रशांत की मुलाकात अनुराधा कुलकर्णी से हुई. अनुराधा टाटा डोकोमो कंपनी के औफिस में काम करती थी. प्रशांत वहां मोबाइल के लिए सिम खरीदने गया तो उस की नजर सुंदरसलोनी अनुराधा पर पड़ी. पहली ही नजर में उस का दिल अनुराधा पर आ गया.

अनुराधा जितनी खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा तेजतर्रार और व्यवहारकुशल थी. आंखें नचाने के साथसाथ कंधे उचकाउचका कर उस का बातें करना किसी भी पुरुष को आकर्षित कर सकता था. प्रशांत उस की इसी अदा पर मर मिटा था. इस के बाद वह उस की एक झलक पाने के लिए किसी न किसी बहाने टाटा डोकोमो कंपनी के औफिस में आनेजाने लगा.

22 वर्षीया अनुराधा कुलकर्णी निलंगा कस्बे की ही रहने वाली थी. उस के पिता अनिल कुलकर्णी की मौत हो चुकी थी. जिस की वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. घर की सारी जिम्मेदारी मां के कंधे पर थी. परिवार में मां के अलावा एक बड़ी बहन थी. गरीबी की वजह से मात्र नौवीं पास कर के अनुराधा टाटा डोकोमो कंपनी के इस औफिस में नौकरी करने लगी थी.

अनुराधा भले ही छोटे घर की थी, लेकिन उस के सपने बहुत बड़े थे. यही वजह थी कि जब उस ने प्रशांत की आंखों में अपने लिए चाहत देखी तो उस का भी झुकाव उस की ओर हो गया. इस तरह चाहत दोनों ओर जाग उठी थी. प्रशांत उसे देखने के लिए उस के औफिस आता ही रहता था. अब अनुराधा भी जब तक उसे देख नहीं लेती थी, उसे चैन नहीं मिलता था. प्रशांत का गठा शरीर, चौड़ा सीना और आकर्षक चेहरा उसे भा गया था.

यही वजह थी कि अनुराधा भी स्वयं को रोक नहीं पाई और समय निकाल कर प्रशांत की गुमटी पर आनेजाने लगी. इसी आनेजाने और मिलनेजुलने में उन के प्यार का इजहार भी हो गया था. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों शादी के बारे में सोचने लगे.

लेकिन प्रशांत ने अनुराधा की मां और बहन से शादी की बात की तो अलगअलग जाति होने की वजह से दोनों ने ही अनुराधा की शादी उस से करने से मना कर दिया. उन का कहना था कि वे ब्राह्मण हैं, इसलिए अपनी बेटी की शादी किसी गैर जाति में नहीं कर सकतीं. प्रशांत के घर वाले भी इस शादी के लिए राजी नहीं थे.

दोनों के परिवारों के विरोध के बावजूद अनुराधा और प्रशांत शादी की जिद पर अड़े थे, इसलिए दोनों ने अपनाअपना घरपरिवार छोड़ कर सिद्धेश्वर मंदिर में एकदूसरे के गले में जयमाल डाल कर शादी कर ली. उन की इस शादी से घर में ही नहीं, पूरे समाज में बवाल मच सकता था, इसलिए दोनों ने तय किया कि अब वे गांव में न रह कर पूना जा कर रहेंगे.

अनुराधा और प्रशांत पूना आ गए और हंसीखुशी से अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत की. उन के इस कदम से जातिबिरादरी पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन अनुराधा की मां यह सदमा बरदाश्त नहीं कर सकी और इस तरह बीमार हुई कि 6 महीने बीततेबीतते उस की मौत हो गई.

पूना के घोरपड़ी जाधव बस्ती में प्रशांत का दूर का एक रिश्तेदार रहता था. उस की मदद से प्रशांत को जाधव बस्ती के जनाई निवास में किराए का एक मकान मिल गया था. उसी रिश्तेदार ने उसे नौकरी भी दिला दी थी. नौकरी भले ही टैंपरेरी थी, लेकिन एक सहारा तो मिल ही गया था. नौकरी भरोसेमंद नहीं थी, इसलिए समय निकाल कर प्रशांत आटो चलाना सीखने लगा.

आटो चलाना सीख कर प्रशांत ने ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लिया तो नौकरी छोड़ दी और किराए का आटो ले कर चलाने लगा. आटो की कमाई से घर चलाने में दिक्कत होने लगी तो अनुराधा ने भी नौकरी करने की इच्छा जाहिर की. दरअसल इस की वजह यह थी कि जब प्रशांत की कमाई से घर के खर्च ही नहीं पूरे हो रहे थे तो अनुराधा के शौक कैसे पूरे होते. अपने शौक पूरे करने के लिए ही अनुराधा नौकरी करना चाहती थी.

प्रशांत को अनुराधा के नौकरी करने पर कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि शादी से पहले वह नौकरी कर ही रही थी. थोड़ी कोशिश के बाद अनुराधा को पूना कैंप के पास एक कपड़े की दुकान में सेल्सगर्ल्स की नौकरी मिल गई. लेकिन कुछ दिनों बाद उस ने यह नौकरी छोड़ दी. क्योंकि उसे क्लोजर सेंटर कैंप में बौडी टौक के शोरूम में ज्यादा वेतन और ज्यादा सुविधा की नौकरी मिल गई थी.

प्रशांत ने सोचा था कि अनुराधा कमाएगी तो थोड़ी मदद मिलेगी, लेकिन वह अपनी कमाई का एक भी पैसा घर खर्च में नहीं खर्च करती थी. वह प्रशांत की कमाई से घर चलाती थी और अपनी कमाई सिर्फ अपने ऊपर खर्च करती थी. खैर, प्रशांत ने कभी उस से कुछ मांगा भी नहीं था.