UP Crime News : प्यार की वो आखिरी रात

UP Crime News :  25 मई, 2022 की रात करीब 3-साढ़े 3 बजे प्रयागराज में यमुनापार इलाके के चकहीरानंद मोहल्ले में पुलिस की कई गाडि़यां हूटर बजाते हुए एक के बाद एक देखते ही देखते प्रवेश करती गईं. गरमी की उमस से बेहाल मोहल्ले वालों को सुबह में गरमी से थोड़ी राहत मिली थी. सभी सोने का प्रयास कर रहे थे कि हूटर बजाती गाडि़यों से लोगों की नींद टूट गई. सभी गाडि़यां सुनील मिश्रा के घर के पास कर रुक गईं.

लोगों की नींद में खलल पड़ चुकी थी. सभी आश्चर्यचकित थे. अचरज से अपनेअपने मकानों की छतों पर खड़े हो कर एकदूसरे से आंखों ही आंखों में इशारे से मानो पूछ रहे हों, ‘‘आखिर इतनी सुबह भारी पुलिस फोर्स हमारे मोहल्ले में क्यों आई है? क्या कोई आतंकी सुनील मिश्रा के मकान में घुसा है? आखिर माजरा क्या है? अभी तो रात के 3-साढ़े 3 बजे हैं. लेकिन इतनी रात पुलिस की दस्तक क्यों?’’

इस तरह के तमाम विचार चकहीरानंद मोहल्ले में रहने वालों के मन में उमड़घुमड़ रहे थे. चूंकि इस समय गंगापार के हालात सही नहीं चल रहे थे. सामूहिक हत्याओं, नरसंहार से पूरा प्रयागराज जिला थर्रा उठा था, सो मोहल्ले वालों का यह सोचना लाजिमी था. बहरहाल, कुछ देर में ही इस सवाल का जवाब भी मिल गया. खुद सुनील मिश्रा ने पहले पुलिस की हेल्पलाइन नंबर 112 पर डायल कर के सूचना दी थी कि उस के घर में चोर घुस आया है, जिसे उस की बेटी अमायरा ने गोली मार दी है और मौके पर ही उस की मौत हो गई है. बेटी अमायरा भी बुरी तरह से घायल फर्श पर पड़ी तड़प रही है.

यह सूचना मिलते ही आननफानन में पुलिस नैनी थानाक्षेत्र में स्थित घटनास्थल पर पहुंची थी. जब पुलिस के जवानों ने सुनील मिश्रा के मकान में प्रवेश किया तो घटनास्थल का सीन देख कर सब सन्न रह गए.
छत की सीढि़यों के नीचे स्लैब पर सुनील मिश्रा की बेटी अमायरा घायल अवस्था में पड़ी तड़प रही थी. उस के हाथ और पेट में गोली लगी थी. रिवौल्वर भी उस की हथेली में था. छत पर 22-23 साल के एक नौजवान की लाश पड़ी थी. पुलिस अफसरों को देखते ही मकान मालिक सुनील मिश्रा और उस के घर के सदस्य गला फाड़फाड़ कर रोने लगे.

एसएसपी अजय कुमार एसपी सौरभ दीक्षित ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. बहरहाल, घटनास्थल का क्राइम सीन कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहा था और सुनील मिश्रा का कथन कुछ और. फिलहाल प्रारंभिक काररवाई करते हुए सुनील मिश्रा की घायल बेटी मृत युवक, जिस का नाम अरनव था, की डैडबौडी को फौरन जिला अस्पताल एसआरएन पहुंचाया गया. क्योंकि अमायरा की जान खतरे में थी और वह बुरी तरह से पेट पकड़ कर फर्श पर तड़प रही थी. एक गोली उस की हथेली में लगी थी तो दूसरी उस के पेट में फंसी हुई थी. अरनव की डैडबौडी का पोस्टमार्टम होना जरूरी था और अमायरा का प्राथमिक उपचार.

अब तक घटना की सूचना पा कर अरनव के परिजन भी चुके थे. जवान बेटे की लाश को जब पुलिस वाले पोस्टमार्टम के लिए भेज रहे थे तो उस के मातापिता, भाईबहन का रोरो कर बुरा हाल था. अरनव का घर सुनील मिश्रा के मकान से महज एक किलोमीटर की दूरी पर था. उपरोक्त घटना की सूचना जंगल की आग की तरह पूरे नैनी क्षेत्र और सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे शहर में फैल चुकी थी. खैर, आगे की काररवाई करते हुए सब से पहले पुलिस को सूचना देने वाले अमायरा के पिता सुनील मिश्रा को ही थाने ला कर पूछताछ शुरू की गई.

सुनील मिश्रा के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. वह फूटफूट कर अधिकारियों के सामने बस रोए जा रहा था. उसे ढांढस बंधाते हुए एसएसपी अजय कुमार ने कहा, ‘‘देखिए मिश्राजी, इस तरह रोनेधोने से काम नहीं चलेगा. आप की बेटी को गोली लगी है और वह जीवनमौत के बीच संघर्ष कर रही है. ईश्वर ने चाहा तो उस की जिंदगी बच जाएगी और सच्चाई भी सामने जाएगी.

‘‘पहले हमें आप यह बताइए कि आप ने क्या देखा था मृतक युवक कौन है? क्योंकि आप ही ने सब से पहले इस वारदात की सूचना पुलिस को मोबाइल से दी थी, इसलिए आप ने जो कुछ भी देखा हो उसे बता दीजिए ताकि हम अपराधियों तक पहुंच सकें.’’

अधिकारियों की बात सुन कर सुनील मिश्रा थोड़ा शांत हुआ और बोला, ‘‘साहब, मुझे नहीं मालूम कि मृत कौन है? यह किस का बेटा है और कहां का रहने वाला है. मेरे खयाल से यह लड़का चोरीचकारी की नीयत से मेरे घर में घुसा होगा, जिसे मेरी बेटी ने देख लिया होगा. वह किसी घटना को अंजाम देने में कामयाब हो पाता उस से पहले बेटी अमायरा ने मेरी रिवौल्वर से उस पर फायर कर दिया होगा. अपने बचाव के लिए मरने से पहले उस ने अमायरा से रिवौल्वर छीन कर उसे भी गोली मार दी.

‘‘उमस बहुत ज्यादा हो रही थी. मैं पानी पीने के लिए उठा था और गरमी से राहत के लिए ऊपर एसी वाले कमरे में जा रहा था, जहां घर के बाकी सदस्य सो रहे थे. तभी मैं ने देखा कि मेरी बेटी खून से लथपथ पड़ी फर्श पर तड़प रही थी. मैं भागते हुए छत पर गया तो देखा उस लड़के की लाश पड़ी थी. उस लड़के को मैं नहीं जानता. उसे मोहल्ले में भी कभी नहीं देखा.’’

पुलिस के लिए बड़ा ही दिलचस्प और संगीन मामला था. एसएसपी की दूरदृष्टि और पुलिसिया नजरिया कुछ और ही कह रही थी तथा सुनील मिश्रा का बयान कुछ और. कारण, अगर सुनील की बातों पर यकीन कर भी लिया जाए तो उस की बेटी अमायरा ने पहले ही किसी भी नीयत से उस के मकान में दाखिल युवक को अपने पिता की रिवौल्वर से जान से मार डाला था तो फिर उस के बाद अपने पेट और हथेली पर गोली मारने की क्या जरूरत थी. अब कातिल उन की निगाहों के सामने था, जो पूरे घटनाक्रम को छिपाने की साजिश बड़ी ही होशियारी से कर रहा था.

उस के परिवार के अन्य सदस्यों से भी पूछताछ की गई. सभी का कहना था कि उस समय सब लोग गहरी नींद में थे. फायरिंग सुनील मिश्रा की चीखपुकार सुन कर जागे थे.
सुनील मिश्रा से अधिकारियों ने दोबारा घुमाफिरा कर सवालों की झड़ी लगा दी तो वह पुलिस के सामने टूट गया और फूटफूट कर रोने लगा. भर्राए गले से बताया कि वह युवक उस की बेटी का प्रेमी अरनव है. उस की हत्या का जुर्म और बेटी पर गोली चलाने की बात सुनील मिश्रा ने स्वीकार कर ली.
शर्म और ग्लानि से भरे सुनील मिश्रा ने औनर किलिंग की जो कहानी पुलिस अधिकारियों को सुनाई, वह इस प्रकार निकली.

पेशे से ढाबा चलाने वाला सुनील मिश्रा अधिकतर घर से बाहर ही रहता था. उस का घूरपुर रोड परमिश्रा फैमिली रेस्टोरेंट ढाबाहै. परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और एक बेटी अमायरा. सुनील का अपने घर चकहीरानंद में महीने में एक बार ही आना होता था.

कथा में आगे बढ़ने से पहले अरनव के परिवार के बारे में संक्षिप्त जानकारी जरूरी है.

असमय ही प्रेम में फना हुए अरनव के पिता सत्यप्रकाश एलआईसी एजेंट हैं. पत्नी संध्या के अलावा 2 बेटे अरनव और विकास (बदला हुआ नाम) थे, जिन में अरनव की मौत हो चुकी है.
अरनव सिंह इस साल 12वीं कक्षा में नैनी के महर्षि विद्या मंदिर इंटर कालेज रामनगर में पढ़ता था. उस का घर पीएसी कालोनी स्थित नैनी क्षेत्र में है. अरनव के पिता मूलरूप से सुलतानपुर जिले के रहने वाले हैं. वह काफी सालों से इलाहाबाद यमुनापार इलाके में पूरे परिवार के साथ रह रहे थे.

दोनों के परिवार वाले अमायरा और अरनव की प्रेम कहानी से अनभिज्ञ थे. अरनव और अमायरा दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे. किताबों के लेनदेन से उन का प्रेम परवान चढ़ा था. जिस के चलते अरनव को अपने प्राण गंवाने पड़े. सुनील मिश्रा का समय अकसर परिवार से दूर बाहर ही बीतता था. परिवार के भरणपोषण के लिए ढाबा चलाता था. काफी दिनों के बाद वह एक दिन पहले ही अपने घर आया था.
रात को मंगलवार का व्रत खोलने के बाद वह पत्नी के साथ बिना एसी वाले कमरे में सो रहा था. बच्चे एसी वाले कमरे में थे. उस रात गरमी बहुत ज्यादा थी.

गरमी से बेहाल पतिपत्नी एसी वाले कमरे में सोने के लिए गए तो देखा सभी बच्चे तो कमरे में सो रहे थे लेकिन अमायरा वहां नहीं थी. आखिर कहां गई होगी वह? सुनील बस यही सोच रहा था कि उसी समय कुछ खटपट की आवाज सुनाई दी.

बदहवास हालत में अमायरा कमरे में आई. उस की मां ने पूछा तो उस ने जवाब दिया कि पेट में हलका दर्द हो रहा है. इतना कहने के बाद वह फिर से पानी पीने जाने की बात कह कर कमरे से बाहर निकली.
अब तक सुनील मिश्रा को अमायरा पर शक हो चला था. आखिर वह उस का बाप था. जमाने के रंगढंग देख रहा था. उस ने एक बात गौर की थी, जब पतिपत्नी बच्चों के कमरे में सोने गए थे तो उस समय बेटी सीढि़यों से उतर कर कमरे में आई थी. आखिर इतनी रात गए वह छत पर क्या कर रही थी?

यह सवाल उस के जहन में बारबार घूम रही थी. जब वह पानी पीने का बहाना कर के कमरे से दोबारा निकली तो उस का रुख फिर से छत की ओर था. सुनील मिश्रा भी उस के पीछेपीछे छत की तरफ बढ़ा.
अमायरा को पिता के पीछेपीछे आने का अहसास हुआ तो उस ने पैर पकड़ लिए, ‘‘पापा, कहां जा रहे हैं?’’
उस समय वह बेहद घबराई हुई थी.

‘‘पर कोई नहीं है. चलिए, चल कर सोते हैं. आप थकेमांदे इतने दिनों बाद आए हैं चलिए कमरे में.’’

सुनील मिश्रा ने रोते हुए बताया, ‘‘साहब, मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बेटी जिसे मैं बहुत प्यार करता था, वह मेरी इज्जत खाक में मिला देगी. हकीकत तो यह है कि जब वह छत पर गई तो कुछ देर बाद मैं भी दबेपांव वहां गया. वह अपने प्रेमी के साथ आलिंगनबद्ध थी.

‘‘मुझे सारा माजरा समझ गया. क्योंकि मैं ने उसे रंगेहाथों आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. मैं वह सीन देख करअब क्या बताऊं एक जवान बेटी का पिता क्या कर सकता है. अपनी बेटी को आपत्तिजनक अवस्था में देख कर आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं.

‘‘मेरा शरीर गुस्से से थरथर कांपने लगा. खून खौल उठा था मेरा. मैं नीचे कमरे में आया और अपनी रिवौल्वर उठा ली. अमायरा ने मुझे रोकने की बहुत कोशिश की. लेकिन मैं उसे धकियाते हुए छत पर पहुंचा तो देखा वह लड़का छत पर उकड़ूं बैठा हुआ था.

‘‘मैं ने क्रोध में कर उस पर रिवौल्वर तानी तो बेटी ने फिर मेरे पैर पकड़ लिए. उस ने अरनव के जान की भीख मांगी तो मुझे और भी ज्यादा गुस्सा गया. गुस्से में मैं ने पहली गोली अमायरा पर ही चला दी. गोली उस के हाथों को छूते हुए निकल गई. वह गिर पड़ी. उस के बाद उस के प्रेमी अरनव को 2 गोलियां मारीं. फिर घूमा और एक गोली अमायरा पर दोबारा चलाई जो सीधे उस के पेट में जा कर लगी.

‘‘गोली चलने की आवाज से घर वाले भी जाग गए थे. वे बदहवास भागे आए. अब तक मैं ने खुद को भी खत्म करने का निर्णय ले लिया था. मैं ने रिवौल्वर अपनी कनपटी पर सटाई और ट्रिगर दबा दिया लेकिन बुलेट फंस गई. दोबारा ट्रिगर दबाना चाहा तब तक घर वालों ने मुझे पकड़ लिया.’’

बयान देते हुए वह फिर से फूटफूट कर रोने लगा क्योंकि वह अपनी बेटी अमायरा को बेटों से ज्यादा चाहता था. बड़ी मन्नतों से वह पैदा हुई थी. अमायरा सीए बनना चाहती थी, जिस के लिए उस ने कौमर्स विषय चुना था. वह उसे हर खुशी देना चाहता था. उस के सीए बनने के सपने को भी पूरा करना चाहता था. एक ओर जहां सुनील मिश्रा बेटी को बहुत प्यार करता था तो वहीं दूसरी ओर बेटी के पैर बहक गए. वह पिता की

गैरमौजूदगी में अपने प्रेमी अरनव से रोज मिलती थी और उस के मिलन में सहायक थी उस की बुआ की बेटी. वही घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर कर दोनों का मिलन करवाती थी. बहरहाल, बेटी के विश्वासघात ने जहां उस के प्रेमी अरनव की जिंदगी छीन ली तो दूसरी ओर पिता का साया और विश्वास भी. अमायरा के नसीब में अब प्रेमी का प्यार है और ही पिता की सरपरस्ती. पुलिस ने कानूनी काररवाई करते हुए रिपोर्ट दर्ज कर सुनील मिश्रा को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया है. द्य
कथा में अमायरा परिवर्तित नाम है. UP Crime News

Love Crime : प्रेमी को पति बनाने की जिद ने ली जान

Love Crime : 15 जुलाई, 2022 की सुबह थी. मोहल्ले में अब तक अधिकांश लोग जाग चुके थे. घर के सभी सदस्य उठ गए थे. लेकिन नगीना को अपनी बड़ी बेटी रुचि नहीं दिखाई दी तो उस ने आंगन में बैठे पति मनोज से पूछा, ‘‘रुचि बिटिया कहां है?’’

इस पर मनोज ने बताया कि ऊपर कमरे में सो रही है. अब तक नीचे नहीं उतरी है. उसे जगाने के लिए मां नगीना ने आवाज दी. लेकिन उस ने कोई जबाव नहीं दिया. इस पर मां जीना चढ़ कर पहली मंजिल पर बने कमरे में गई. दरवाजा धकेल कर जैसे ही कमरे में घुसी, उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे में खून फैला हुआ था. वहां रुचि मरी पड़ी थी. उस के ऊपर बोरी पड़ी हुई थी. रुचि की मौत की बात सुनते ही घर में कोहराम मच गया. चीखपुकार का शोर सुन कर आसपास के लोग भी आ गए. मनोज की जवान बेटी की अचानक मौत होने से मोहल्ले में सनसनी फैल गई. रुचि की लाश देख उस की मां और भाईबहन बिलखबिलख कर रो रहे थे. मोहल्ले की महिलाओं ने उन्हें किसी तरह संभाला.

पड़ोसियों ने हत्या की सूचना पुलिस को दे दी. घटना की जानकारी होते ही थानाप्रभारी नरेंद्र शर्मा, सीओ (सिटी) अभिषेक श्रीवास्तव पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और घटनास्थल का निरीक्षण किया. सूचना दिए जाने पर एसपी (ग्रामीण) डा. अखिलेश नारायण सिंह भी आ गए. फोरैंसिक टीम को भी वहां बुला लिया गया.

पूछताछ में पिता मनोज राठौर ने बताया कि रुचि ने अपने हाथ की नस काट कर आत्महत्या कर ली है. उस ने बताया कि वह उस की शादी के लिए लड़का तलाश रहा था. जबकि वह दूसरी जाति के युवक से प्रेम करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. हम लोगों ने गैरबिरादरी के लड़के के साथ शादी करने से मना कर दिया था. इस बात से वह नाराज हो गई और उस ने हाथ की नस काट कर आत्महत्या कर ली.

इस पर एसपी (ग्रामीण) ने ऊपर बने कमरे में जा कर लाश का निरीक्षण किया. कमरे में लाश बोरे से ढकी थी. हालात कुछ संदिग्ध लगे. बोरा हटाया तो रुचि के गले के पास भी खून दिखाई दिया. गौर से देखने पर पता चला कि उस का गला भी कटा हुआ है. इस से स्पष्ट हो गया कि रुचि की हत्या की गई है. पिता की बातों से शक होने पर पुलिस ने बिना देर किए उसे हिरासत में ले लिया और उसे थाने ले गई. मनोज ही अपनी बेटी का हत्यारा था. इस बात पर किसी को भरोसा नहीं हो रहा था कि सीधासादा दिखने वाला मनोज इतनी बेरहमी से बेटी की हत्या कर सकता है. पड़ोसियों के साथ ही रिश्तेदार भी उसे कोस रहे थे.

इस बीच  फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. पुलिस ने थाने पर ले जा कर मनोज से पूछताछ की. कुछ देर तो वह रुचि द्वारा अपने हाथ की नस काट कर आत्महत्या की बात पर टिका रहा, लेकिन पुलिस की सख्ती पर उस ने बेटी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. अपनी बेटी की हत्या का उसे कोई पछतावा नहीं था. बेटी के कत्ल के पीछे जो कहानी निकली, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश में कांच की नगरी के नाम से प्रसिद्ध फिरोजाबाद जनपद के थाना उत्तर के तिलक नगर इलाके में रहने वाला मनोज कुमार राठौर एक चूड़ी कारखाने में काम करता था. घर में पत्नी नगीना के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. वैसे मनोज मूलरूप से मक्खनपुर थाना क्षेत्र के गांव अंगदपुर का रहने वाला है. उस के मातापिता और भाई गांव में ही रहते हैं. कुछ साल से वह तिलक नगर में अपना मकान बना कर परिवार के साथ रह रहा था.

मनोज का बायां हाथ लगभग 10 साल पहले थे्रशर मशीन में आ जाने से कट गया था. एक हाथ कटने के बाद भी मनोज परिवार के भरणपोषण के लिए चूड़ी कारखाने में काम करने लगा. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए अब घर पर ही चूड़ी जुड़ाई का काम उस की पत्नी नगीना करने लगी थी. बड़ी बेटी रुचि 9वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस की पढ़ाई बंद करा कर उसे भी इसी काम में लगा दिया. वह चूडि़यों पर नग लगाने का काम करती थी. रुचि इस काम से अपना खर्चा भी निकाल लेती थी.

घटना से 6 महीने पहले की बात है. अपनी सहेली के जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने रुचि उस के घर पहुंची थी. जन्मदिन में थाना एटा के ग्राम पिलुआ निवासी फोटोग्राफर सुधीर पचौरी फोटो खींच रहा था. रुचि ने भी उस से अपनी सहेली के साथ तरहतरह के पोजों में फोटो खिंचवाए. सुधीर उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. रुचि को भी एहसास हो गया कि सुधीर उसे कैमरे की आंख से देख रहा है. जवानी की दलहीज पर पहुंची रुचि का दिल तेजी से धड़कने लगा था. इसी बीच फोटोग्राफर सुधीर और रुचि के बीच परिचय हो गया. घर आते समय रुचि ने सुधीर को अपना मोबाइल नंबर देने के साथ ही उस का नंबर भी ले लिया.

रुचि सोशल मीडिया पर भी थी. वे दोनों फेसबुक पर एकदूसरे से जुड़ कर बात करने लगे. सुधीर रहने वाला तो एटा क्षेत्र का था, लेकिन काम के संबंध में वह फिरोजाबाद में कमरा ले कर रहने लगा था. सोशल मीडिया के जरिए रुचि और सुधीर की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, इस का दोनों को ही पता नहीं चला. इस बीच रुचि और सुधीर आपस में मिल भी लेते थे और अपने दिल का हाल भी एकदूसरे को बता देते थे. धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. यहां तक कि दोनों ने शादी करने का फैसला तक ले लिया.

अब दोनों चोरीछिपे अकसर मिलने लगे थे. जब भी रुचि और सुधीर अकेले में मिलते, दोनों भविष्य के सपने संजोते. एक दिन रुचि ने सुधीर का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘सुधीर, तुम मुझे कितना प्यार करते हो?’’

इस पर सुधीर ने कहा, ‘‘यह भी कोई पूछने की बात है. प्यार का कोई पैमाना तो होता नहीं है, जिस से मैं बता सकूं. लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रही हो?’’

रुचि राठौर समाज की थी जबकि सुधीर ब्राह्मण समाज से था. रुचि ने कहा, ‘‘सुधीर समाज से डर कर तुम मुझे भूल तो न जाओगे?’’

रुचि ने सुधीर से साफसाफ कह दिया कि वह जातपांत में विश्वास नहीं करती है, शादी करेगी तो उसी से अन्यथा अपनी जान दे देगी. इस पर सुधीर ने उस के होंठों पर हाथ रख उसे चुप कराते हुए कहा, ‘‘2 सच्चे प्रेमियों को मिलने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं और तुम्हारे ही साथ शादी करूंगा.’’

हालांकि दोनों की जाति (बिरादरी) अलगअलग थी. इस के बावजूद उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. प्रेमी युगल अपने भविष्य के सुखद सपने संजोते हैं, दिल कुछ और चाहता है और किस्मत कुछ और. रुचि और सुधीर भी सपने संजोने लगे. बेटी किसी लड़के के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है, इस की जानकारी रुचि के घर वालों को नहीं थी. बल्कि इन सब बातों से बेखबर मनोज को जवान होती बेटी रुचि की शादी की चिंता सता रही थी. वह उस के लिए लड़का देखने लगा.

उस ने दिल्ली में एक लड़का देखा था. उस के परिवार से बात चल रही थी. इस की भनक जैसे ही रुचि को लगी तो उस ने पिता से कहा, ‘‘एक लड़का जो फोटोग्राफर है और अच्छा कमाता है, वह अपनी जाति का है. उस से मेरी शादी करा दो.’’

तब मनोज ने पत्नी नगीना से बात की. इस पर सभी लोग सुधीर से रुचि की शादी कराने को तैयार हो गए. निर्णय लिया कि शादी से पहले लड़का परिवार के अन्य सदस्यों को भी दिखा दिया जाए. करीब 2 महीने पहले मनोज और नगीना सुधीर को साथ ले कर परिवार के अन्य सदस्यों को दिखाने के लिए गांव अंगदपुर पहुंचे. यहां सभी को लड़का पसंद आ गया. बातचीत के दौरान सुधीर की अन्य जगह रिश्तेदारियों के संबंध में पूछने पर वह सही से बता नहीं सका. इस दौरान पता चला कि सुधीर उन की जाति का नहीं है. जबकि मनोज बेटी की शादी सजातीय लड़के से करना चाहता था, क्योंकि अभी रुचि से छोटी 2 बेटियां और थीं.

युवक के गैरबिरादरी का होने से रुचि के घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं हुए. रुचि ने पिता से सुधीर की जाति छिपाई थी. जाति छिपाने वाली बात से मनोज बेटी से नाराज हो गया और गुस्से में आ गया था. फिर भी उस ने पहले बेटी को समझाने की कोशिश की. यहां तक कि उस का दिल्ली में रिश्ता भी तय कर दिया. इस बात से रुचि चिढ़ गई. रुचि ने पिता द्वारा तय की गई शादी करने से इंकार कर दिया. रुचि पिता की इच्छा के खिलाफ अपने प्रेमी से मिलती और उस के साथ घूमने जाती रही. इसी बीच 11 जुलाई, 2022 को रुचि ने सुधीर को घर बुलाया. कुछ समय घर पर रहने के बाद वह दोस्त के घर जाने की बात कह कर चला गया. देर शाम सुधीर फिर से घर आया और रात को घर पर ही रुक गया.

देर रात रुचि और सुधीर को मनोज ने एक कमरे में बांहों में बांहें डाले बातचीत करते देख लिया. रात के समय एकांत में बैठ कर दोनों का बातचीत करना उसे अखर गया. उस ने इस बात का विरोध किया. रुचि को यह सब नागवार गुजरा. वह जिद पर अड़ गई. उस ने अपने पिता से कह दिया कि वह शादी करेगी तो सुधीर से और यदि आप ने विरोध किया तो वह सुधीर के साथ कोर्ट मैरिज कर लेगी. इस बात से परिवार में कलह रहने लगी.

बेटी की यह हरकत उसे नागवार गुजरी.  इस बात ने आग में घी का काम किया. 2 दिन से मनोज सो नहीं सका था. बेटी की हरकत  उस की आंखों के सामने बारबार घूम रही थी. उसे समाज में अपनी बदनामी का डर सता रहा था. तब उस ने एक खौफनाक निर्णय ले लिया. वह बाजार से एक आरी खरीद कर लाया और उसे घर में छिपा कर रख दिया. मनोज की योजना की भनक तक नगीना और घर के अन्य सदस्यों को भी नहीं लगी.

घर के निचले तल पर 3 कमरे और किचन है, वहीं ऊपरी मंजिल पर 2 कमरे हैं. गुरुवार 14 जुलाई, 2022 की रात को मनोज के परिवार के सभी सदस्य सो गए थे. नगीना दोनों बेटियों व बेटे के साथ कमरे में सो गई. उस ने रुचि को भी अपने साथ सोने को बुलाया था, लेकिन वह ऊपरी मंजिल पर बने अपने कमरे में सोने चली गई. जबकि मनोज जीने के सामने चारपाई पर लेट गया, लेकिन मनोज की आंखों से तो नींद उड़ चुकी थी. आधी रात के बाद मनोज दबे पांव अपनी चारपाई से उठा. उस समय कूलर चलने के कारण कमरे में सो रही पत्नी नगीना को कुछ पता नहीं चला. मनोज ने लाई हुई आरी उठाई और सीढि़यां चढ़ कर रुचि के कमरे में पहुंचा. उस समय वह गहरी नींद में सो रही थी.

मनोज ने सो रही रुचि के सिर पर पहले डंडे से प्रहार किया, जिस से वह अचेत हो गई. इस के बाद आरी से उस का गला रेत कर हत्या कर दी. हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए मनोज ने रुचि की कलाई की नस भी काट दी. बेहोशी के कारण न तो रुचि चीख सकी और न अपना बचाव कर पाई. हत्या के बाद उस ने शव को बोरे से ढंक दिया. मनोज ने बेटी की हत्या करने के बाद खून से सने हाथों को धोया. बेटी का गला रेत कर सुकून की नींद सोता रहा. फिर सुबह के समय वह अपने गांव अंगदपुर गया और वहां रुचि के मोबाइल को रख कर वापस घर आ गया था.

यह जानकारी जब नगीना और मोहल्ले के अन्य लोगों को हुई तो सभी आश्चर्यचकित रह गए कि मनोज ने बेटी का कितनी चालाकी से कत्ल कर दिया और किसी को इस का अहसास तक नहीं हुआ कि एक बाप ऐसा कर सकता है. नगीना ने पति मनोज के खिलाफ बेटी की हत्या करने की रिपोर्ट दर्ज कराई. 15 जुलाई, 2022 को पुलिस ने मनोज की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त आरी बरामद कर ली. शनिवार 16 जुलाई को उसे न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

प्रेम विवाह के प्रति आज भी परिवार और समाज का दृष्टिकोण बदला नहीं है. खासकर 2 अलगअलग जातियों के पे्रमियों का मिलना तो और दुश्वार कर दिया जाता है. यही इस घटना में भी हुआ.Love Crime

Love Crime : सांप सीढ़ी वाले प्यार का भयानक अंजाम

Love Crime : उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के थाना हाईवे क्षेत्र स्थित नगला बोहरा में रिटायर्ड फौजी तेजवीर सिंह का घर है. वे फरीदाबाद में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. शाम लगभग 5 बजे उन के घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया. बोला शादी का कार्ड देना है. दरवाजा तेजवीर सिंह की बड़ी बेटी सोनम ने खोला. युवक शादी का कार्ड देने की बात कहता हुआ घर के अंदर आ गया. कार्ड के साथ मिठाई का डिब्बा भी था.

अनजान युवक को देख कर मां उस से कुछ पूछती, तब तक युवक ने तेजवीर सिंह की बेटी सोनम पर शादी के कार्ड में छिपा कर लाए चाकू से ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. जब बेटी को बचाने मां सुनीता बीच में आईं तो युवक ने उन पर भी चाकू से वार किए. घर में घुसते ही युवक ने खूनी होली खेली. शोर सुन कर आसपास के लोग जैसे ही घर की ओर दौड़े, युवक ने खुद के सीने व पेट पर भी कई चाकू मारे. इस से वह जख्मी हो गया और वहीं गिर गया. यह घटना 19 जून, 2022 की है.

घर में हुए इस खूनखराबे को देख कर सोनम की छोटी बहन और छोटे भाई की बुरी हालत हो गई. घर में चारों तरफ खून ही खून देख कर वे डर से कांपने लगे. सोनम की तो मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि मां सुनीता गंभीर रूप से घायल पड़ी थीं. फर्श पर युवती की लाश और पास में पड़े खून के धब्बे. ये वो तसवीर थी, जिस ने कृष्ण की नगरी मथुरा के मोहब्बत जैसे खूबसूरत शब्दों को उलट कर रख दिया था. इसी बीच जुटी भीड़ में से किसी ने थाना हाईवे पुलिस को घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अजय कौशल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने आननफानन में ग्रामीणों की मदद से घायल सुनीता और युवक को उपचार के लिए अस्पताल भिजवाया. घायल सुनीता को सिटी हौस्पिटल व आरोपी को जिला हौस्पिटल  में भरती कराया गया. बाद में युवक को आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज रैफर कर दिया गया. दोनों की हालत नाजुक थी. एसपी (सिटी) मार्तंड प्रकाश सिंह ने घटना के बाद जानकारी दी कि हमलावर युवक व मृतका की मां सुनीता की हालत गंभीर है. इसलिए दोनों से पूछताछ नहीं की जा सकी है. युवक की बैग में उस का आधार कार्ड मिला था.

इस बीच घटना की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी ने उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया. जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) मार्तंड प्रकाश सिंह, सीओ (रिफाइनरी) धर्मेंद्र चौहान घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. पुलिस और फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से चाकू, मिठाई का डिब्बा और एक बैग बरामद किया. बैग में ट्रेन की टिकट, आईडी मिली. पुलिस ने इन सभी चीजों को अपनी कस्टडी में ले लिया. मौके की काररवाई निपटा कर पुलिस ने सोनम के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इस सनसनीखेज वारदात ने सभी को हिला कर रख दिया था. ग्रामीण तरहतरह की चर्चा कर रहे थे कि युवक कौन है? और उस की फौजी के परिवार से क्या दुश्मनी थी? यह केवल चर्चा थी. वास्तविक हकीकत किसी को नहीं पता थी. इस का पता हाईवे थाना पुलिस ही लगा सकती थी. घटना की सूचना पर फरीदाबाद  से फौजी तेजवीर सिंह मथुरा आ गए. उन की तहरीर पर थाना हाईवे पुलिस ने युवक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस बीच पुलिस ने अपने स्तर से जानकारी जुटाने के साथ ही परिजनों व अन्य से पूछताछ शुरू की. शुरुआती जांच में पता चला कि युवक की सोनम से फेसबुक पर दोस्ती हुई थी. आशंका व्यक्त की गई कि इकतरफा प्यार में युवक ने घटना को अंजाम दिया है. घायल युवक की पहचान उस के पास से मिले आधार कार्ड से हुई. 23 वर्षीय युवक शिवम कश्यप मुजफ्फरनगर के थाना नई मंडी के गांव ककुड़ा का रहने वाला था. पुलिस ने शिवम के घर वालों को भी घटना की जानकारी दी. इस पर शिवम के घर वाले भी देर रात आगरा के अस्पताल पहुंच गए.

रिटायर्ड फौजी तेजवीर सिंह के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटियां व एक बेटा है. इन में सब से बड़ी बेटी सोनम की उम्र 17 साल और छोटी की 16 साल थी. उन दोनों से छोटा बेटा था. सोनम रतनलाल फूल कटोरी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 9वीं कक्षा की छात्रा थी. तेजवीर सिंह चाहते थे कि उन की बेटी जिंदगी में कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे. पुलिस ने मृतका की छोटी बहन व अन्य से गहनता से पूछताछ की. पुलिस की जांच और पूछताछ के बाद घटना के पीछे सोनम के कत्ल की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली निकली. लूडो ऐप पर औनलाइन लूडो खेली जाती है. 3 साल पहले इस खेल में मुजफ्फरनगर के शिवम कश्यप उर्फ अवि की पहचान मथुरा निवासी 17 वर्षीय सोनम से हुई थी. खेलखेल में दोनों में दोस्ती हो गई.

दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं तो नोएडा में 2 बार सोनम और शिवम की मुलाकात भी हुई. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर भी दे दिए. अब अकसर दोनों में बातें होने लगीं. छोटी बहन को अपनी बड़ी बहन सोनम की युवक से दोस्ती की बात पता थी. जब 2 युवा दिल मिलते हैं तो दिलों में मोहब्बत के तराने गूंजने लगते हैं. उन्हें खानापीना कुछ भी अच्छा नहीं लगता. बस दिल चाहता है कि वह अपने प्यार को हर पल सामने पाए. किशोरवय के इस प्यार में दोनों ही बह गए. बिना कुछ सोचेसमझे दोनों भविष्य के सपने संजोने लगे.

सोनम और युवक के बीच चल रहे मोहब्बत के इस खेल की जानकारी जब घर वालों को हुई तो मां सुनीता ने बचपन को पीछे छोड़ कर जवानी की दलहीज पर कदम रख चुकी बेटी सोनम को डांटते हुए युवक से बातचीत करने पर अंकुश लगा दिया. सोनम ने शिवम को हकीकत बताते हुए फिलहाल फोन न करने की बात कही.     मछली जैसे बिना पानी के तड़पती है, ऐसे ही सोनम और उस का प्रेमी शिवम उर्फ अवि तड़पने लगे. सोनम की मां द्वारा अपने प्यार पर बंदिश लगाने से वह भड़क गया. प्रेमी शादी का दबाव डाल रहा था. घर वालों के मना करने पर उस ने सोनम के घर वालों से बातचीत करने का निर्णय लिया.

अवि मुजफ्फरनगर के श्रीराम कालेज में बीसीए अंतिम वर्ष का छात्र है. उस के पिता दुकान करते हैं. घाटा होने से दुकान बंद हो गई. अवि के एक भाई और एक बहन भी है. उस ने अपने घर वालों को बताया कि वह एक नौकरी के संबंध में इंटरव्यू के लिए जा रहा है. शिवम सोनम की मां सुनीता से मिलने के लिए 19 जून, 2022 को मुजफ्फरनगर से सुबह साढ़े 8 बजे ट्रेन में सवार हो कर मथुरा के लिए चला था. उस ने चाकू मुजफ्फरनगर  से ही खरीद लिया था. वह शाम 5 बजे मथुरा पहुंचा और मथुरा के गोवर्धन चौराहे से उस ने मिठाई खरीदी थी.

शाम 6 बजे वह सोनम के घर पहुंचा था. अवि सोनम की मां से इस बारे में बातचीत करने और समझाने आया था. इसी बीच बहसबाजी में उस ने सोनम पर चाकू से वार किया. सोनम ने जब उसे रोकने का प्रयास किया तो अवि ने गुस्से में उस पर भी चाकू से वार कर दिया. जब सुनीता सोनम को बचाने आगे आईं तो उस ने चाकुओं से वार कर के सोनम व सुनीता को बुरी तरह से घायल कर सनसनीखेज वारदात को अंजाम दिया था. पकड़े जाने के डर से उस ने अपने आप को भी चाकू मार कर घायल कर लिया था.

सुनीता की कमर व पीठ पर 2 वार तथा सोनम की पीठ पर 3 वार चाकू से किए जो आरपार हो गए थे, जिस से सोनम का दिल व फेफड़े पूरी तरह फट गए. सोनम की मौत का कारण भी ताकत से किए गए चाकू के वार ही बने. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. शिवम अपने घर से नौकरी का इंटरव्यू देने के बहाने निकला था. लेकिन उस के मन में क्या चल रहा है, कोई नहीं जानता था. घटना की जानकारी के बाद उस के घर वाले आगरा पहुंच गए. पुलिस कस्टडी में अवि का इलाज चल रहा था.

मथुरा में हुई इस सनसनीखेज घटना ने प्रेम के ढाई अक्षरों को ही दफन करदिया. कहते हैं कि इश्क अच्छोंअच्छों का दिमाग खराब कर देता है. दिल दहलाने वाली इस घटना ने कृष्ण की नगरी मथुरा के गांव बोहरा में खौफ पैदा कर दिया था. मृतका की छोटी बहन ने बताया कि फेसबुक के माध्यम से दोनों के बीच दोस्ती हुई थी, लेकिन घर वालों ने सोनम पर अंकुश लगा दिया था. इस के चलते सोनम ने प्रेमी अवि से बात करने से इंकार कर दिया. इसी से नाराज हो कर वह सोनम की हत्या कर खुदकुशी किए जाने के इरादे से शादी के कार्ड में चाकू छिपा कर कार्ड देने के बहाने घर में घुसा और हमला कर दिया. बीच में मां के आने पर उन्हें भी घायल कर दिया.

आजकल कई औनलाइन गेम्स खेलने वाली यह युवा पीढ़ी किस तरफ जा रही है, इस का ध्यान परिजनों को रखना चाहिए. औनलाइन गेम खेलने वालों की हरकतों में बदलाव दिख जाता है. युवा पीढ़ी की हरकतों पर परिवार को पैनी नजर रखनी चाहिए.घर का बच्चा कहां जा रहा है और क्या कर रहा है, सावधान रहते हुए कड़ी नजर रखी जाएगी तभी ऐसी सनसनीखेज घटनाओं से बचा जा सकता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Uttar Pradesh : नर्स का दगाबाज प्रेमी

Uttar Pradesh : नर्स विनीता को बाजार गए हुए काफी समय हो गया था. लेकिन अब तक वह वापस घर नहीं आई थी. पति विजय यादव को विनीता की चिंता होने लगी थी. उस ने फोन लगाया, लेकिन विनीता का मोबाइल स्विच्ड औफ आने पर उस की चिंता और बढ़ गई. उस ने सोचा कि वह शायद किसी सहेली या परिचित के घर चली गई होगी या उस के मोबाइल की चार्जिंग खत्म हो गई होगी. इसलिए फोन स्विच्ड औफ हो गया होगा.

धीरेधीरे समय बीतता गया और अब शाम का अंधेरा भी घिरने लगा था. यदि वह किसी जानने वाले के यहां गई होती तो उस के मोबाइल से अपने बारे में जानकारी तो दे ही सकती थी. यह सोचसोच कर विजय अब परेशान हो गया. उस ने कई जानकार लोगों के यहां फोन मिलाया लेकिन हर जगह से यही जवाब मिला कि विनीता उन के यहां नहीं आई है.

तब विजय ने आसपास स्थित बाजार जा कर भी पत्नी को तलाशा, लेकिन उसे निराशा ही मिली. सब तरफ से निराश होने के बाद विजय बिना देर किए आगरा के थाना एत्माद्दौला जा पहुंचा. यह बात 26 सितंबर, 2022 की है.

थाने पहुंच कर विजय ने एसएचओ विनोद कुमार से पत्नी विनीता यादव के गायब होने की बात बताई. विजय की शिकायत पर एसएचओ ने विनीता की गुमशुदगी दर्ज करा ली.

अगले दिन 27 सितंबर, 2022 को विजय के पास थाना एत्माद्दौला से फोन आया. विजय को तुरंत थाने आने के लिए कहा गया. विजय बिना देर किए थाने पहुंच गया.

वहां पहुंचने पर विजय को बताया गया कि बीती रात यमुनापार स्थित मंडी समिति ट्रांस यमुना कालोनी की सर्विस रोड पर एक घायल युवती मिली थी. उसे इलाज के लिए अस्पताल में भरती कराया गया, जहां उस की मौत हो गई. उस की लाश अस्पताल में है. उस युवती की शिनाख्त अभी नहीं हो पाई है. आप भी उसे एक बार जा कर देख लो.

यह सुन कर विजय घबरा गया और अस्पताल जा पहुंचा. उस ने जैसे ही शव को देखा तो वह फूटफूट कर रोने लगा.

उस ने पुलिस को बताया कि वह शव उस की पत्नी विनीता का है. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई निपटाई और शव का पोस्टमार्टम कराया. मृतका के शरीर पर चोटें एक्सीडेंट की निकलीं.

पोस्टमार्टम के बाद विनीता के शव को पति विजय ने अपनी सुपुर्दगी में ले कर उसी दिन उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

कई दिनों से घर वालों की विनीता से बात नहीं हो पा रही थी, क्योंकि उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ जा रहा था.

बात न होने पर उन्होंने उस के नर्सिंग होम में साथ काम करने वाले साथियों से बात की. तब उन्हें पता चला कि विनीता की सड़क दुघर्टना में मौत हो गई है. पति विजय ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया है.

जब विनीता की मौत की जानकारी उस के घर वालों को हुई तो वे सन्न रह गए. पिता नवीन चंद्र घर के कुछ लोगों को ले कर पहली अक्तूबर को सिरसागंज से आगरा आ गए.

उन्होंने थाना एत्माद्दौला के एसएचओ विनोद कुमार से मुलाकात कर बताया कि उन की बेटी विनीता एक नर्सिंग होम में नर्स थी और नुनिहाई में किराए पर रहती थी. फिरोजाबाद जिले के नगला मोहन गांव के रहने वाले विजय यादव ने उसे अपने प्रेम जाल में फंसा लिया था. विनीता अविवाहित थी. वह विजय से शादी करना चाहती थी. उन्हें शक है कि विजय ने ही साजिश के तहत उन की बेटी की हत्या की है.

पुलिस इसे एक हादसा मान रही थी लेकिन घर वालों की शिकायत पर पुलिस को भी दाल में कुछ काला दिखाई दिया. सीओ (छत्ता) सुकन्या शर्मा के निर्देश पर एसएचओ विनोद कुमार ने शक के आधार पर घटना की जांच शुरू कर दी.

पुलिस ने विजय की काल डिटेल्स चैक की तो पाया कि वह जिस समय विनीता के गायब होने की बात कर रहा था, उस समय उस की मोबाइल पर विनीता से बात हुई थी. दोनों की फोन लोकेशन भी एक ही मिली.

यही नहीं, पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे खंगाले. घटनास्थल के पास कोई कैमरा नहीं था. उस से पहले और बाद में लगे कैमरों में एक बोलेरो दिखाई दी. नंबर प्लेट से बोलेरो के मालिक का पता चला. मालिक का मोबाइल नंबर निकाला गया. उस नंबर की काल डिटेल्स चैक की गई तो उस में विजय यादव का नंबर मिला.

विजय ने जांच के दौरान जो बयान पुलिस को दिए थे, वे गलत निकले. गाड़ी और विजय की लोकेशन एक ही दिशा में थी, जिस से पुलिस को अहम सुराग मिला. छानबीन की गई तो विनीता के घर वालों के आरोप में सच्चाई नजर आई.

बोलेरो के नंबर और मालिक का पता चलने के बाद पुलिस को सारी सच्चाई का पता चल गया. पुलिस ने नर्स विनीता की हत्या का सनसनीखेज परदाफाश कर उस के शादीशुदा प्रेमी 28 वर्षीय विजय को 3 अक्तूबर को झरना नाला क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने आरोपी विजय से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विनीता यादव की हत्या करने का जुर्म कुबूल करते हुए सारा राज उगल दिया. उस ने बताया कि इस वारदात में उस का दोस्त अंशुल भी शामिल था. उसी की बोलेरो से घटना को अंजाम दिया गया.

25 वर्षीय विनीता यादव मूलरूप से उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के सिरसागंज क्षेत्र की रहने वाली थी. वह आगरा के थाना हरिपर्वत स्थित दिल्ली गेट के एक नर्सिंग होम में नर्स थी. वह नुनिहाई में किराए पर रहती थी. वहीं फिरोजाबाद जिले के नगला मोहन क्षेत्र का रहने वाला 28 वर्षीय विजय यादव भी एक दूसरे अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ था.

चूंकि विनीता और विजय एक ही कार्यक्षेत्र में जुड़े थे, एक दिन काम के दौरान दोनों की जानपहचान हो गई. साथसाथ काम करते रहने से दोनों में दोस्ती हो गई, जो प्यार में बदल गई. इस के बाद दोनों एकदूसरे से खुल कर मिलने लगे. मगर इस बात की खबर दोनों के घर वालों को नहीं लग सकी.

पिछले डेढ़ साल से विजय और विनीता लिवइन रिलेशन में रह रहे थे. विनीता ने अपने मकान मालिक को बता रखा था कि विजय उस का पति है. इस तरह विजय का जब मन होता, वह विनीता से मिलने उस के कमरे पर पहुंच जाता और 1-2 दिन रुक कर चला जाता था.

पहले विनीता का व्यवहार ठीक था. मगर कुछ महीनों से वह किसी और से फोन पर काफी लंबी बातें करने लगी. इस बात पर विजय को आपत्ति थी. मना करने पर वह झगड़ा करती थी और उसे जेल भिजवाने की धमकी देती थी.

विनीता शादी करने का उस पर लगातार दबाव भी बना रही थी. जबकि विजय पहले से ही शादीशुदा था. यह बात उस ने विनीता से छिपाई थी. उसे शक था कि विनीता उस से दूरी बना रही है. किसी और को पसंद करने लगी है. इसलिए उस ने विनीता को रास्ते से हटाने की साजिश दोस्त अंशुल के साथ रची.

विजय ने 26 सितंबर, 2022 को योजना को अमलीजामा देने के लिए अपने दोस्त अंशुल को फोन कर अपनी बोलेरो ले कर आने को कहा. इस के बाद विनीता को फोन कर मंडी समिति ट्रांस यमुना कालोनी की सर्विस रोड पर मिलने के बहाने से बुलाया.

विनीता पैदल वहां पहुंची थी. उस समय अंधेरा हो गया था. विजय और अंशुल बोलेरो में बैठे थे. विनीता को देखते ही वह पहचान गया.

उस के सड़क पर आते ही विजय ने अंशुल को इशारा किया. इशारा मिलते ही अंशुल ने बोलेरो से उसे तेज टक्कर मार दी ताकि किसी को शक न हो और लोगों को यह हादसा लगे. विनीता को कुचल कर विजय और उस का दोस्त अंशुल तेजी से बोलेरो को घटनास्थल से भगा ले गए.

लिवइन रिलेशन में रहने वाली नर्स प्रेमिका विनीता की हत्या के बाद विजय थाना एत्माद्दौला में उस की गुमशुदगी भी दर्ज कराने पहुंच गया था. इतना ही नहीं, अगले दिन शव की शिनाख्त अपनी पत्नी विनीता के रूप में कर उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

26 सितंबर, 2022 की देर रात किसी राहगीर ने पुलिस को सर्विस रोड पर लहूलुहान हालत में एक युवती के पड़े होने की सूचना दी. पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचने के बाद उसे अस्पताल में भरती कराया. कुछ देर बाद ही युवती की मौत हो गई. पुलिस ने इसे सड़क हादसा माना था.

शातिर विजय यादव ने चालाकी दिखाते हुए 26 सितंबर को ही थाना एत्माद्दौला में विनीता की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. उस ने नर्स प्रेमिका की मौत को हादसा दर्शाने की भरपूर कोशिश की और किसी हद तक वह अपने मंसूबे में सफल भी हो गया था.

गुमशुदगी में विजय ने विनीता को अपनी पत्नी बताया था. दूसरी ओर पुलिस मृतका की शिनाख्त कराने का प्रयास कर रही थी. तभी पुलिस को पता चला कि विजय यादव नाम के युवक ने अपनी पत्नी की गुमशुदगी दर्ज कराई है.

तब पुलिस ने विजय को मृतक युवती की शिनाख्त करने के लिए थाने बुलाया. विजय का गुमशुदगी दर्ज कराना, विनीता को अपनी पत्नी बताना ही उस के गले की फांस बन गया और उस की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई.

वहीं विनीता के घर वालों का आरोप था कि विजय अब भी झूठ बोल रहा है. विजय शादीशुदा है, उस ने झूठ बोल कर विनीता को अपने प्रेम जाल में फंसा लिया था. वह उसे शादी का झांसा दे कर उस की तनख्वाह भी रख लेता था. विनीता ने जब शादी के लिए विजय पर दबाव बनाया तो उस ने उस की हत्या कर दी.

कहानी लिखे जाने तक अंशुल की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी. पुलिस उस की सरगर्मी से तलाश कर रही है. विनीता की जिस बोलेरो से कुचल कर हत्या की गई थी, पुलिस ने उसे बरामद कर लिया.

पुलिस ने हत्यारे प्रेमी विजय यादव को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अपने इश्क को खूनी अंजाम तक पहुंचाने वाला विजय अब सलाखों के पीछे कैद है.

नर्स विनीता की सनसनीखेज हत्या का पुलिस ने परदाफाश करने के बाद एसपी (सिटी) विकास कुमार ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर पूरी घटना की जानकारी दी.

विजय और अंशुल का जुर्म की दुनिया से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन दोनों ने पेशेवर हत्यारों को भी मात दे दी थी. दोनों ने फूलप्रूफ मर्डर की प्लानिंग बड़ी होशियारी से की थी.

विजय यादव ने शातिरदिमाग से पुलिस को चकमा दे दिया था. लेकिन मृतका के घर वालों के शक जताने पर पुलिस ने मामले की छानबीन कर हत्यारे को दबोच लिया. इस तरह हत्या का राजफाश हो गया. Uttar Pradesh

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Delhi News : बुढ़ापे का इश्क – चंपा ने पूरी की मदन की इच्छा

Delhi News : संजय वर्मा का परिवार दिल्ली के हुमायूंपुर में रहता था, लेकिन उस के पिता मदनमोहन वर्मा रिटायरमेंट  के बाद उत्तरपूर्वी दिल्ली के भजनपुरा में अकेले ही रहते थे. पिता और पुत्र अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे. 22 जुलाई, 2017 की सुबह भजनपुरा में मदनमोहन के पड़ोस में रहने वाले विजय ने संजय वर्मा को फोन कर के बताया, ‘‘आप के पिता के कमरे का कल सुबह से ताला बंद है. उन के कमरे से तेज बदबू आ रही है.’’

विजय की बात सुन कर संजय वर्मा को पिता की चिंता हुई. उन्होंने उसी समय पिता का नंबर मिलाया, तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. फोन बंद मिलने पर उन की चिंता और बढ़ गई. इस के बाद वह भजनपुरा के सी ब्लौक स्थित अपने पिता के तीसरी मंजिल स्थित कमरे पर पहुंच गए. संजय को भी पिता के कमरे से तेज दुर्गंध आती महसूस हुई. उस के मन में तरहतरह की आशंकाएं आने लगीं. कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई, यह सोच कर उस ने अपने मोबाइल फोन से दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को फोन कर के पिता के बंद कमरे से आ रही बदबू की सूचना दे दी. यह क्षेत्र थाना भजनपुरा के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोलरूम से यह सूचना थाना भजनपुरा को प्रेषित कर दी गई.

सूचना पा कर एएसआई हरकेश कुमार हैडकांस्टेबल सतेंदर कुमार को अपने साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जैसे ही वह भजनपुरा के सी ब्लौक स्थित मकान नंबर 412 की तीसरी मंजिल पर पहुंचे, वहां बालकनी पर कुछ लोगों की भीड़ लगी दिखाई दी. उन्हीं के बीच संजय परेशान हालत में मिला.

एएसआई हरकेश कुमार को अपना परिचय देते हुए संजय ने बताया, ‘‘सर, मैं ने ही पीसीआर को फोन किया था.’’

जिस कमरे से बदबू आ रही थी, उस के बाहर ताला लगा था. इस से उन्होंने सहज ही अनुमान लगा लिया कि जरूर कोई अप्रिय घटना घटी है. इसलिए उन्होंने इस की जानकारी थानाप्रभारी अरुण कुमार को दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी अन्य स्टाफ के साथ वहां आ पहुंचे. कमरे के बाहर लटके ताले की चाबी संजय के पास नहीं थी, इसलिए पुलिस ने ताला तोड़ दिया. दरवाजा खुलते ही दुर्गंध का झोंका आया. पुलिस कमरे में दाखिल हुई तो पूरब दिशा की ओर की दीवार से सटे दीवान के अंदर एक अधेड़ आदमी की सड़ीगली लाश एक कार्टून में बंद मिली.

लाश देख कर संजय रोने लगा, क्योंकि वह लाश उस के पिता मदनमोहन वर्मा की थी. अरुण कुमार ने मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम का काम निपट गया तो पुलिस लाश का निरीक्षण करने लगी. मृतक के सिर के पीछे चोट का गहरा निशान था. दीवान के बौक्स में और उस के नीचे कमरे के फर्श पर खून फैला था, जो सूख चुका था. इस से अनुमान लगाया कि यह हत्या 2-3 दिन पहले की गई थी. कमरे में मौजूद सारा सामान अपनी जगह मौजूद था. इस से इस बात की पुष्टि हो गई कि हत्यारे का मकसद लूटपाट नहीं था.

हत्या क्यों की गई, यह जांच के बाद ही पता चल सकता था. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेज दिया. इस के बाद थाने आ कर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी राजीव रंजन को सौंपी.

इंसपेक्टर राजीव रंजन ने इस हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए संभावित सुराग की तलाश में दोबारा घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने मृतक के बेटे संजय वर्मा और वहां रहने वाले पड़ोसियों से काफी देर तक पूछताछ की. पड़ोसी विजय ने बताया कि उन्होंने आखिरी बार मदनमोहन वर्मा को 20 जुलाई की रात साढ़े 10 बजे कमरे के बाहर देखा था.

संजय ने उन्हें बताया था कि उस के पिता शुरू से ही अलग मिजाज के व्यक्ति थे. घर के लोगों में वह ज्यादा रुचि नहीं लेते थे. रिटायरमेंट के बाद बेटे और बहुओं के होते हुए भी वह यहां भजनपुरा में अलग रहते थे. उन की देखभाल करने नौकरानी चंपा आती थी. वह घर की साफसफाई, खाना बनाने के साथ उन के कपड़े भी धोती थी.

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नौकरानी चंपा का जिक्र आते ही इंसपेक्टर राजीव रंजन उस में रुचि लेने लगे. उन्होंने विजय को थाने में बुला कर पुन: पूछताछ की. उन्होंने नौकरानी के स्वभाव और उस के मदनमोहन के यहां आने और घर जाने के समय के बारे में पूछा. विजय ने बताया कि चंपा मदनमोहन वर्मा के काफी करीब थी. जिस दिन से उन के दरवाजे के बाहर ताला लगा था, पिछली रात को नौकरानी चंपा के जवान बेटे प्रेमनाथ को एक अन्य लड़के के साथ मकान के नीचे टहलते देखा था.

इंसपेक्टर राजीव रंजन विजय से चंपा का पता हासिल कर वह करावलनगर स्थित उस के घर पहुंच गए. चंपा और उस का पति कल्लन घर पर ही मिल गए. इंसपेक्टर राजीव रंजन ने चंपा से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘कल सुबह मदनमोहन वर्मा के यहां काम करने गई थी, लेकिन कमरे का दरवाजा बंद होने के कारण लौट आई थी.’’

उस वक्त चंपा का बेटा प्रेमनाथ घर पर मौजूद नहीं था. राजीव रंजन चंपा से उस के बेटे का मोबाइल नंबर ले कर थाने आ गए. अगले दिन जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि मदनमोहन का पहले गला घोंटा गया था, उस के बाद में सिर पर घातक चोट पहुंचाई गई थी. इस से इंसपेक्टर राजीव रंजन सोचने लगे कि ऐसी क्रूर हरकत तो कोई दुश्मन ही कर सकता है. यह दुश्मन कौन हो सकता है?

जांच में पुलिस को पता चला था कि सरकारी नौकरी के रिटायर होने के बाद का सारा पैसा मदनमोहन के बैंक एकाउंट में जमा था. वह किसी से पैसा न तो उधार लेते थे और न ही किसी को देते थे. और तो और, बेटों को भी उन्होंने उस में से कोई रकम नहीं दी थी. राजीव रंजन ने चंपा के बेटे प्रेमनाथ का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस से उन्हें उस पर शक हुआ. उस का नंबर सर्विलांस पर लगाने और काल डिटेल्स रिपोर्ट निकलवाने पर पता चला कि घटना वाली रात उस के फोन की लोकेशन उसी इलाके की थी, जहां मदनमोहन वर्मा रहते थे.

फिलहाल उस की लोकेशन उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर की थी. प्रेमनाथ के बारे में गुप्तरूप से पता किया गया तो जानकारी मिली कि वह नशेड़ी होने के साथसाथ एक बार जेल भी जा चुका था. भजनपुरा थाने की एक पुलिस टीम प्रेमनाथ की तलाश में मथुरा भेजी गई. पुलिस टीम मथुरा पहुंची तो खबर मिली कि प्रेमनाथ दिल्ली चला गया है. पुलिस ने 24 जुलाई को मुखबिर की सूचना पर प्रेमनाथ को करावलनगर, दिल्ली के कजरी चौक से हिरासत में ले लिया.

थाने में जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर मदनमोहन वर्मा की हत्या की थी. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी— मदनमोहन वर्मा सपरिवार दिल्ली के सफदरजंग एनक्लेव के पास हुमायूंपुर में रहते थे. उन का भरापूरा परिवार था. उन के परिवार में पत्नी यशोधरा के अलावा 3 बेटे और एक बेटी थी. बड़ा बेटा संजय वर्मा है, जो दिल्ली की एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता है.

मदनमोहन वर्मा मिंटो रोड स्थित गवर्नमेंट प्रैस में नौकरी करते थे. अच्छे पद पर होने की वजह से उन के घर की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी. घर में सब कुछ होने के बावजूद वह परिवार के सदस्यों में कम रुचि लेते थे. पत्नी यशोधरा से भी उन का रिश्ता बहुत अच्छा नहीं था. दांपत्य जीवन में पति की बेरुखी यशोधरा को हमेशा परेशान करती रही. वह चाहती थीं कि पति घरपरिवार की जरूरतों को समझें. बेटों के सुखदुख के मौके पर उन का साथ दें. पर उन की यह ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो सकी. आखिरकार पति की बेजा हरकतों और दांपत्य जीवन की कड़वाहट से तंग आ कर 4 साल पहले उन्होंने अपने कमरे में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

उन की मौत के बाद मदनमोहन वर्मा ने घरेलू कामकाज के लिए नौकरानी चंपा को 9 हजार रुपए वेतन पर रख लिया. गोरे रंग और भरे बदन की चंपा की उम्र करीब 35 साल थी. वह सुबह 9 बजे उन के घर आती और सारा काम निपटा कर शाम को अपने घर चली जाती. चंपा के काम से घर के सारे सदस्य संतुष्ट थे. कभीकभार चंपा को रुपएपैसों की जरूरत होती तो मनमोहन उस की मदद कर देते थे. बाद में वह चंपा पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गए. वह उस से कुछ ज्यादा ही हमदर्दी जताने लगे. चंपा भी अपने मालिक के दयालु स्वभाव से खुश थी.

जिस दिन मदनमोहन औफिस से जल्दी घर आ जाते या उन की छुट्टी होती तो चंपा बहुत खुश रहती. वह पूरे दिन उन के आसपास ही मंडराती रहती. घर के सदस्यों को चंपा की ये हरकतें नागवार गुजरने लगीं. संजय ने चंपा से साफ कह दिया कि वह पापा के कमरे में ज्यादा न जाया करे. चंपा को नौकरी करनी थी, इसलिए उस ने संजय की बात मानते हुए उन के कमरे में आनाजाना कम कर दिया. मदनमोहन को इस बात का पता नहीं था कि चंपा को उन के  कमरे में आने के लिए रोक दिया गया है.

जब मदनमोहन को महसूस हुआ कि चंपा उन से दूर रहने लगी है तो एक दिन उन्होंने उस से पूछ लिया. तब चंपा ने बताया, ‘‘आप के बेटे और बहुओं की नाराजगी की वजह से मैं ने यह दूरी बनाई है.’’

चंपा की बात सुन कर मदनमोहन वर्मा को अपने परिवार वालों पर गुस्सा बहुत आया. वह अपने घर वालों के प्रति और कठोर हो गए. करीब 1 साल पहले जब वह रिटायर हुए तो उन्होंने घर में यह कह कर सब को चौंका दिया कि अब वह उन लोगों से अलग भजनपुरा में अकेले ही रहेंगे. उन्होंने भजनपुरा में किराए पर कमरा ले भी लिया. रिटायरमेंट के बाद उन्हें करीब 20 लाख रुपए मिले थे. इस में से उन्होंने अपने बेटों को कुछ भी नहीं दिया, जबकि तीनों बेटों और बहुओं को उम्मीद थी कि ससुर के रिटायरमेंट के बाद जो पैसे मिलेंगे, उस में से कुछ उन्हें भी मिलेंगे.

मदनमोहन का तुगलकी फैसला सुन कर बेटों ने उन्हें समझाने की कोशिश की, पर उन के दिमाग में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. दरअसल, उन के दिमाग में चंपा का यौवन मचल रहा था. अब वह अपनी बाकी की जिंदगी चंपा के साथ गुजारना चाहते थे. चंपा की खातिर उन्होंने खून के सभी रिश्तेनातों को दूर कर दिया. इस उम्र में मदनमोहन के इस फैसले से उन के बेटों की कितनी बदनामी होगी, इस बात की भी उन्हें परवाह नहीं थी. उन्होंने किसी की एक नहीं सुनी और बेटों का साथ छोड़ कर भजनपुरा के सी-ब्लौक में कमरा ले कर अकेले रहने लगे.

चंपा भजनपुरा के पास स्थित करावलनगर में रहती थी. उस के परिवार में पति कल्लन के अलावा बेटे भी थे. मूलरूप से मथुरा का रहने वाला कल्लन कामचोर प्रवृत्ति का था. हरामखोर कल्लन बीवी की कमाई पर ऐश कर रहा था. जब कभी उसे पैसों की जरूरत होती, वह चंपा को ही मालिक से कर्ज मांगने के लिए उकसाता था. अब चंपा रोज सुबह मदनमोहन के भजनपुरा स्थित कमरे पर आती और सारा दिन वहां का काम निपटा कर शाम को घर जाती थी. कुछ दिनों तक तो ऐसे ही चला, पर जब वह रात में भी वह मदनमोहन के कमरे में रुकने लगी तो आसपड़ोस के लोगों के बीच उन के रिश्तों को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं.

कुछ लोगों ने उस के पति कल्लन को भी उस की हरकतों की जानकारी दी, पर कल्लन को तो पहले से ही सब कुछ पता था. इसलिए उस ने लोगों की बातों को अनसुना कर दिया. इस तरह चंपा और मदनमोहन मौजमस्ती करते रहे. धीरेधीरे चंपा के पड़ोसियों को भी पता चल गया कि चंपा ने किसी बुड्ढे को फांस लिया है. इस के बाद चंपा और मदनमोहन की चर्चा चंपा के मोहल्ले में होने लगी. चंपा का बेटा प्रेमनाथ 21 साल का हो चुका था. वह अब कोई बच्चा नहीं था, जो मोहल्ले के लोगों की बातों को न समझता.

कोईकोई तो उसे यह तक कह देता कि तेरे 2-2 बाप हैं. प्रेमनाथ कुछ करताधरता नहीं था. साथियों के साथ गांजा और कई अन्य नशे करता था. वह अपनी मां के मदनमोहन वर्मा की रखैल होने के ताने सुनसुन कर परेशान रहने लगा था. धीरेधीरे बात बरदाश्त से बाहर होती जा रही थी. एक दिन तो एक दोस्त ने उस पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘अरे तुझे कामधंधे की क्या चिंता है, तेरे तो 2-2 बाप हैं. तुझे भला किस बात की कमी है?’’

दोस्त की यह बात प्रेमनाथ के कलेजे में नश्तर की तरह चुभी. जवानी का खून उबाल मारने लगा. उस ने अपने एक नाबालिग दोस्त सुमित (बदला हुआ नाम) को अपना सारा दर्द बताते हुए कहा, ‘‘सारे फसाद की जड़ बुड्ढा मदनमोहन वर्मा है. उसी के कारण लोग मुझे ताना देते हैं. अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं आज ही उसे ठिकाने लगा दूं. इस उम्र की दोस्ती बड़ी खतरनाक होती है. दोस्त का दुख अपना दुख होता है. प्रेमनाथ की बात सुन कर सुमित उस का साथ देने को तैयार हो गया. 20 जुलाई, 2017 की रात दोनों दोस्त पूर्व नियोजित योजना के अनुसार, मदनमोहन के घर के आसपास तब तक चक्कर लगाते रहे जब तक कि वहां लोगों की लाइटें बंद नहीं हो गईं.

सड़क से मदनमोहन का कमरा साफ दिखाई देता था. जब मदनमोहन के पड़ोसी कमरा बंद कर के सोने चले गए तो दोनों नशा कर के सीढि़यों से तीसरी मंजिल स्थित मदनमोहन के कमरे के सामने पहुंच गए. उस रात अत्याधिक गरमी होने के कारण मदनमोहन ने कमरे का दरवाजा खोल दिया था. वह सोने की तैयारी में थे. वह प्रेमनाथ को जानते थे, क्योंकि 2-3 बार वह मां के साथ उन के कमरे पर आ चुका था. इतनी रात को प्रेमनाथ को अपने कमरे के बाहर देख कर मदनमोहन कांप उठे. हिम्मत जुटा कर उन्होंने उसे बाहर जाने के लिए को कहा. लेकिन प्रेमनाथ और सुमित ने 61 साल के मदनमोहन वर्मा को संभलने का मौका दिए बगैर साथ लाया अंगौछा उस की गरदन में लपेट कर दोनों ने पूरी ताकत से कस दिया.

मदनमोहन ने बचने के लिए हाथपांव मारे, लेकिन उन की कोशिश नाकाम रही. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई. वह जीवित न बच जाएं, इसलिए प्रेमनाथ ने वहां पड़ा डंडा उठा कर उन के सिर पर मारा, जिस से सिर से खून बहने लगा. इतना करने के बाद उन्होंने लाश को कमरे में रखे एक कार्टून में बंद कर के उसे दीवान के बौक्स में रख दिया और बाहर आ गए. प्रेमनाथ ने दरवाजे में ताला लगाया और नीचे उतर कर दोनों फरार हो गए.

अतिरिक्त थानाप्रभारी राजीव रंजन ने पूछताछ के बाद प्रेमनाथ को 25 जुलाई को अदालत में पेश कर एक दिन के रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से वह अंगौछा भी बरामद कर लिया गया, जिस से मदनमोहन वर्मा का गला घोंटा गया था. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. अगले दिन पुलिस ने उस के साथी सुमित को भी गिरफ्तार कर उसे बाल न्यायालय में पेश कर उसे बाल सुधार गृह भेज दिया. Delhi News

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime : अकाउंटेंट पर फेंका प्यार का जाल

Love Crime : मध्य प्रदेश के धार जिले में एक औद्योगिक इलाका है पीथमपुर. वहां हजारों की संख्या में छोटीबड़ी कंपनियां और फैक्ट्रियां हैं. उन में एमएसएमई की 1100 इकाइयों में करीब 40 हजार लोग काम करते हैं. इस कारण इलाके में काफी गहमागहमी बनी रहती है.

रोजगार के लिए दूसरे जिलों से आए हुए लोग भी वहां काम करते हैं. फाइनैंस कंपनियां भी हैं. यहीं पर स्थित एक बड़ी फाइनैंस कंपनी में काम करने वाला युवक रूपेश बिरला भी था. वह खरगोन के सेलदा गांव का निवासी था, लेकिन पीथमपुर में अपने परिवार के साथ रह रहा था. उस के 11 अक्तूबर, 2022 को शाम तक वापस घर नहीं लौटने पर घर वाले चिंतित हो गए थे. जब वह देर रात तक नहीं आया, तब उस के पिता पीथमपुर के सेक्टर-1 थाने गए.

उन्होंने उस वक्त थाने में मौजूद टीआई लोकेंद्र सिंह भदौरिया से बेटे के गायब होने की शिकायत की. टीआई भदौरिया ने उन से सुबह तक इंतजार करने को कहा, जबकि रूपेश के पिता ने अगवा कर उस की हत्या की आशंका जताई. भदौरिया ने उस वक्त रूपेश के पिता की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि इस तरह की शिकायतें वहां के लिए कोई नई नहीं थीं. उन्होंने किसी दोस्त के यहां उस के रात में ठहर जाने की बात कह कर पिता को थाने से भेज दिया.

उन के थाने से जाने के बाद भदौरिया सोच में पड़ गए कि आखिर उस के पिता ने रूपेश की हत्या की बात क्यों कही? उस के अपहरण के बारे में जिक्र क्यों किया? रूपेश एक बड़ी फाइनैंस कंपनी में वसूली का काम करता था, उस सिलसिले में कहीं उसे पहले से कोई धमकी वगैरह तो नहीं मिली. इन्हीं सवालों में उलझते हुए उस बारे में उन्होंने सुबह काररवाई करने का मन बना लिया. 12 अक्तूबर की सुबह कोई साढ़े 6 बजे का समय था.

भदौरिया अपने सहकर्मी को रात की शिकायत के बारे में कुछ आवश्यक निर्देश दे रहे थे, तभी एक युवती वहां आई. उसे देखते ही भदौरिया पहचान गए बोले,‘‘तुम तो वही हो न! क्या नाम बताया था?’’

‘‘जी राजी,’’ युवती बोली.

‘‘हां, तुम 2 दिन पहले भी आई थी. तुम्हारा केस तो दर्ज हो गया है. उस पर जल्द काररवाई भी शुरू होने वाली है. अब देखो, जिस के खिलाफ तुम ने छेड़छाड़ की शिकायत की है, वह कांग्रेस पार्टी का एक स्थानीय नेता है. इलाके का दबंग है. …और तुम उसी की कंपनी में अकाउंटेंट भी हो.’’ भदौरिया बोले.

‘‘हां सर, लेकिन आज मैं उस बारे में नहीं, बल्कि अपने प्रेमी को लापता किए जाने की शिकायत ले कर आई हूं.’’ राजी बोली.

‘‘प्रेमी? कभी तुम छेड़छाड़ की बात करती हो और अब तुम्हारा प्रेमी निकल आया?’’ भदौरिया ने सवाल किया.

‘‘जी सर, उसी प्रेमी के चलते तो मैं छेड़छाड़ की शिकार हुई. मुझे परेशान करने वाले मालिक आशिक पटेल को मालूम हो गया था कि मैं रूपेश बिरला से प्रेम करती हूं. तब उस ने मुझे नौकरी से भी निकाल दिया है. अब कहां वह मुझ से दुगनी से भी अधिक उम्र का शादीशुदा आदमी और कहां मेरा 25-26 साल का रूपेश,’’ राजी बोली.

‘‘क्या नाम बताया तुम ने, रूपेश बिरला?’’ भदौरिया ने पूछा.

‘‘हां, रूपेश बिरला. क्यों कोई बात है क्या?’’ राजी ने भी आश्चर्य से पूछा.

‘‘इस के लापता होने की शिकायत ले कर बीती रात उस के पिता आए थे. बताया कि वह एक फाइनैंस कंपनी में काम करता है?’’ भदौरिया बोले.

‘‘हांहां, वह फाइनैंस कंपनी में काम करता है. हम दोनों 3 साल से प्यार करते हैं. इसी साल शादी भी करने वाले हैं. लेकिन सर!’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘रूपेश को मेरे मालिक आशिक ने अगवा कर उस की हत्या करवा दी है.’’ राजी दावे के साथ बोली.

‘‘यह तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकती हो?’’ टीआई भदौरिया ने सवाल किया.

‘‘उस का मेरे पास यह सबूत है. देखिए मेरे मोबाइल में औडियो रिकौर्ड है, आप भी सुनिए.’’ यह कहती हुई राजी ने अपने मोबाइल की गैलरी से कुछ सेकेंड का औडियो प्ले कर दिया. औडियो सुन कर भदौरिया दंग रह गए. उस में आशिक पटेल की आवाज थी. वह राजी को धमकी देता हुआ बोल रहा था कि रूपेश से संबंध तोड़ ले, वरना वह उस के साथसाथ परिवार को भी खत्म कर देगा.’’

यह सुनने के बाद उन्होंने तुरंत आशिक के खिलाफ काररवाई करने की तैयारी शुरू कर दी. वह इतना तो समझ ही गए थे कि एक काररवाई से ही रात की शिकायत का भी समाधान निकल आएगा. उन्होंने राजी को किए गए काल की रिकौर्डिंग के हवाले से मामले को गंभीरता से लिया. उन्होंने इस की पूरी जानकारी धार के एसपी आदित्य प्रताप सिंह, एएसपी देवेंद्र पाटीदार एवं सीएसपी तरुणेंद्र बघेल को देने के बाद आरोपी आशिक पटेल को पूछताछ के लिए थाने बुलवाया. वास्तव में आशिक पटेल पर पुलिस के लिए हाथ डालना आसान नहीं था, लेकिन भदौरिया के पास पूछताछ के लिए एक छोटा सा सबूत मिल चुका था.

आशिक पटेल कांग्रेस का नेता था. उस के पिता अल्लानूर पटेल पूर्व में धन्नड़ के सरपंच भी रह चुके हैं. खुद आशिक भी मध्य प्रदेश असंगठित कामगार एवं कर्मचारी संघ का उपाध्यक्ष था. आशिक ने अपनी राजनीतिक पहचान का फायदा उठा कर सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण कर रखा था. उस पर तिमंजिला इमारत बना रखी थी, जिस में 250 कमरे थे, जो उस ने किराए पर दे रखे थे. अधिकतर किराएदार मजदूर वर्ग और कंपनियों में काम करने वाले छोटे कर्मचारी ही थे. उन पर वह अपना दबदबा बनाए रखता था.

किराए से उस की लाखों की कमाई होती थी और वहां रहने वालों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल कर राजनीतिक रुतबा बना रखा था. इन किराएदारों के दम पर नगर पालिका चुनावों में पार्षद की जीतहार तय करना उस के लिए आसान काम था. उस ने करीब 35 हजार वर्गफीट सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा था. आशिक पटेल की कंपनी में राजी नाम की एक युवती अकाउंटेंट का काम करती थी. वह बहुत सुंदर और होशियार थी. आशिक उस से प्यार करने लगा. हालांकि यह उस का एकतरफा प्यार ही था. कारण, राजी उस के बेटे की उम्र की थी और वह रूपेश बिरला से प्यार करती थी.

जब इस की जानकारी आशिक पटेल को हुई तब वह गुस्से से भर गया. भीतर ही भीतर जलभुन गया. रूपेश को तो कुछ कह नहीं सकता था, लेकिन राजी पर उस से संबंध खत्म करने के लिए दबाव जरूर बना सकता था. उस ने ऐसा ही किया. पहले उस ने राजी को बातों से समझाया, उस का वेतन दोगुना करने तक का लालच दिया. फिर भी राजी जब नहीं मानी, तब उस ने उसे धमकियां देनी शुरू कर दीं. ऊब कर राजी ने नौकरी छोड़ दी. उस के बाद तो आशिक और भी बौखला गया. एक दिन उस ने राजी को फोन किया. पहले तो उस ने राजी को प्यार से समझाने की कोशिश की. राजी ने सिरे से इंकार कर दिया. उस ने दोटूक जवाब दे दिया कि वह किसी भी सूरत में अपने प्रेमी को धोखा नहीं दे सकती.

यह सुनते ही आशिक गुस्से में आ गया और अपनी ताकत का हवाला देते हुए रूपेश को मरवा देने की धमकी दे डाली. संयोग से राजी ने मोबाइल में इस काल की रिकौर्डिंग कर ली थी. उसी काल के आधार पर पुलिस ने आशिक पटेल से सख्ती से पूछताछ की. जब पुलिस ने उसे रिकौर्डिंग सुनाई, तब उस ने रूपेश की हत्या करवाने की बात कुबूल कर ली. उस ने हत्याकांड को कैसे अंजाम दिया, इस की भी जानकारी दी. आशिक ने बताया कि रूपेश की हत्या में उस के 5 दोस्त भी शामिल थे.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने उन पांचों आरोपियों को थाने ला कर पूछताछ की. आरोपियों ने बताया कि उन्होंने रूपेश के शव को कालोनी में नाले के किनारे दफना दिया था. शव जल्दी गल कर नष्ट हो जाए, इस के लिए लाश के ऊपर 15 किलोग्राम नमक डाला, मिट्टी और घासफूस डाल कर उस जगह को सीमेंट कंक्रीट से पक्का कर दिया था. मामले की तहकीकात पूरी होने के बाद एसपी आदित्य प्रताप सिंह ने सभी 6 आरोपियों अखिलेश मिश्रा, अंकुश दुबे, सुरेंद्र सिंह ठाकुर, कालू उर्फ दीपक मंडल, रवि मंडल, आशिक पटेल को गिरफ्तार कर उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

जैसे ही पुलिस और प्रशासन को मालूम हुआ कि आशिक पटेल रूपेश बिरला हत्याकांड का मास्टरमाइंड है, वैसे ही उस के ठिकाने पर प्रशासनिक काररवाई शुरू कर दी गई. इस सिलसिले में अवैध कब्जे की जमीन पर बनी बिल्डिंग पर बुलडोजर चला दिया गया. कुल 250 कमरे वाले 3 मंजिला इमारत को जमींदोज करने में 2 दिन लगे. प्रशासन ने नगर निगम से 10 जेसीबी और बड़ी पोकलेन मशीनें मंगवा कर अतिक्रमण तोड़ा. आशिक द्वारा कब्जाई जमीन की कीमत लगभग 10 करोड़ रुपए आंकी गई. बिल्डिंग तोड़े जाने से पहले सभी परिवारों को शिफ्ट किया गया. यह जिले की सब से बड़ी काररवाई थी.

मुख्य आरोपी आशिक पटेल के साम्राज्य को ध्वस्त करने के दरम्यान एक अन्य आरोपी अखिलेश मिश्रा की गुमटी को भी हटा दिया गया. पुलिस रिकौर्ड में आशिक पटेल के खिलाफ पहले भी एक हत्या समेत 5 अन्य मामले दर्ज थे. इस मामले की 2 दिनों के भीतर ही जांच पूरी होने पर एसपी आदित्य प्रताप सिंह ने सीएसपी तरुणेंद्र सिंह बघेल और टीआई लोकेश सिंह भदौरिया सहित पूरी टीम के काम की तारीफ की. Love Crime

Hindi Story : श्वेता और इंद्रनील की दोस्ती में रिश्ते का क्या हुआ आखिर अंजाम

Hindi Story : औफिस में लंच के समय श्वेता ने व्हाट्सऐप संदेश देखा ‘‘आज शाम 6 बजे,’’ श्वेता ने तुरंत उत्तर दे दिया. ‘‘ठीक है,’’ औफिस से 6 बजे श्वेता नीचे उतरी, इंद्रनील उस का इंतजार कर रहा था. दोनों पैदल समीप के मौल की ओर बातें करते हुए चल दिए जहां कौफीहाउस में एक कोने की सीट पर बैठ कर कौफी पीने लगे. इंद्रनील आज चुप था, वह श्वेता की ओर न देख कर विपरीत दिशा में देख रहा था.

‘‘क्या बात है इंद्रनील, उधर क्या देख रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही.’’

‘‘चुप भी हो?’’

श्वेता के पूछने पर इंद्रनील चुप रहा.

‘‘कौफी भी नहीं पी रहे हो. टकटकी लगा कर उधर देखे जा रहे हो. कौन है वहां?’’

इंद्रनील ने अब श्वेता की ओर देखा और धीरे से कहा ‘‘श्वेता अब विदा होने का समय आ गया है.’’

‘‘समझी नहीं?’’

‘‘मैं दिल्ली छोड़ कर वापस कोलकाता जा रहा हूं,’’ इंद्रनील ने श्वेता की ओर पहली बार देखते हुए कहा.

‘‘क्या सदा के लिए?’’ श्वेता कुछ उदास हो गई.

‘‘हां तभी तुम से कह रहा हूं. शायद आज अंतिम बार मिलना हो, मैं कुल सुबह कोलकाता रवाना हो रहा हूं.’’

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां सब अचानक से हो गया और निर्णय भी तुरंत ही लेना पड़ा.’’

‘‘श्वेता मैं ने नौकरी छोड़ दी है. आज मेरा अंतिम दिन था. सब को अलविदा कहा. बिना तुम से मिले कैसे जा सकता हूं. एक तुम ही तो हो जिस के साथ हर सुख और दुख सांझा किया है.’’

‘‘पहले बता देते?’’ श्वेता के इस प्रश्न पर इंद्रनील भावुक हो गया.

‘‘बस 10-12 दिनों में घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि तुम से बात नहीं कर सका.’’

‘‘कुछ बताओ, दिल पर पड़ा बोझ हलका हो जाएगा,’’ श्वेत ने इंद्रनील से कहा.

‘‘श्वेता पिछले महीने श्यामली की मृत्यु हो गई.’’

‘‘तुम ने बताया ही नहीं?’’

‘‘मुझे भी नहीं मालूम था. कोई 12 दिन पहले श्यामली की चाची ने अस्पताल में दोनों बच्चों सुब्रता और सांवली को मेरी मां के हवाले कर दिया. बच्चों की खातिर ही दिल्ली छोड़ कोलकाता जा रहा हूं,’’ कह कर इंद्रनील चुप हो गया.

इंद्रनील और श्वेता कौफी के घूंट पीते हुए अतीत में चले गए… श्वेता और इंद्रनील पिछले लगभग 10 वर्षों से मित्र हैं. दोनों की उम्र लगभग 40 के आसपास है. श्वेता 10 वर्ष पहले जब औफिस में काम करने पहली बार आईर् थी तब इंद्रनील के साथ वाली सीट पर बैठ कर काम करना आरंभ किया. साथसाथ बैठ कर काम करतेकरते दोनों घनिष्ठ मित्र बन गए. दोनों में एक बात समान थी कि दोनों उस समय तलाकशुदा थे.

श्वेता का एक 4 वर्ष का पुत्र जिस का नाम शौर्य था और अपने मातापिता के संग रह रही थी. इंद्रनील कोलकाता का रहने वाला था और वह भी तलाकशुदा था उस के 2 बच्चे थे 4 वर्षीय पुत्र सुब्रता और 2 वर्षीय पुत्री सांवली. तलाक के समय छोटे बच्चों की परवरिश मां को मिली. इंद्रनील कोलकाता से दिल्ली आ गया.

कभीकभी जब कोलकाता जाता तब बच्चों से मिलता. शुरूशुरू में बच्चों से मिलना लगा रहा फिर बच्चे भी कभीकभी मिलने वाले पिता से घुलमिल नहीं सके और इंद्रनील ने बच्चों से मिलना छोड़ दिया.

कुछ यही हाल श्वेता का भी था. वह शौर्य को अपने पिता के साए से दूर रखना चाहती थी और 2 वर्ष बाद दूर हो ही गया. श्वेता की समस्या उस का पुत्र था जिस कारण उस का दूसरा विवाह नहीं हुआ. उस के मातापिता तो दूसरा विवाह चाहते थे, लेकिन सामाजिक बेडि़यों ने एक बच्चे वाली मां का दूसरा विवाह नहीं होने दिया. इंद्रनील ने एक बार दूसरा विवाह करने की सोची, लेकिन पुराने कटु अनुभव ने उसे रोक लिया.

10 मिनट बाद पुरानी यादों के चलते नम आंखों के साथ वर्तमान में आ गए और  कौफीहाउस से बाहर मौल में चहलकदमी करने लगे. एक दुकान के अंदर श्वेता इंद्रनील के लिए शर्ट पसंद करने लगी और इंद्रनील श्वेता के लिए साड़ी पसंद करने लगा. एकदूसरे के लिए शायद अंतिम उपहार उन दोनों ने खरीदा था. आज कोई बात नहीं हो रही थी सिर्फ एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर दिल की बात कह और सुन रहे थे. मौल से बाहर आने पर श्वेता ने शर्ट का पैकेट इंद्रनील को दिया, ‘‘इंद्र फिर कब मिलना होगा?’’

इंद्रनील ने साड़ी का पैकेट श्वेता को देते हुए जवाब दिया, ‘‘मुझे स्वयं नहीं मालूम… फोन करूंगा.’’

बाय कह कर इंद्रनील और श्वेता अपनेअपने घर की ओर चल दिए. इंद्रनील ने सुबह की गाड़ी पकड़नी थी, इसलिए उस ने सारा सामान पैक कर रखा था, लेकिन उस की आंखों से नींद नदारद थी… 10 वर्ष से उस की श्वेता से पहचान है. श्वेता से वह औफिस में ही मिलता था और औफिस से बाहर सिनेमा भी देखते थे, मौल भी घूमते थे और अकसर इंडिया गेट के लौन या पुराना किला के अंदर दीवार के साथ बैठ कर बातें करते थे.

इंद्रनील किराए के कमरे में रहता था और कभी भी श्वेता को अपने कमरे में ले कर नहीं गया. वह श्वेता पर किसी भी तरह का लांछन नहीं लगने देना चाहता था उस का मकान मालिक या पड़ोसी श्वेता और उस के रिश्ते पर कोई उंगली उठाए. ठीक उसी तरह वह कभी भी श्वेता के घर नहीं गया कि कहीं श्वेता का परिवार, रिश्तेदार, पड़ोसी उन की मित्रता को गलत समझें.

इन 10 वर्षों में उन दोनों का रिश्ता सिर्फ भावनात्मक ही रहा. वे दोनों कभी भी नहीं बहके और लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघे. औफिस में उन की नजदीकियों पर सहकर्मी उपहास करते थे, लेकिन यह अधिक समय नहीं रहा क्योंकि 1 वर्र्ष बाद इंद्रनील ने नौकरी बदल ली और औफिस के बाद या अवकाश के समय ही मिलते थे. 10 वर्षों में इंद्रनील और श्वेता ने कई नौकरियां बदलीं, लेकिन एक अनोखा भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता गया.

श्वेता की भी नींद नदारद थी. वह इंद्रनील के बारे में सोचती रही कि दोनों एकदूसरे के नजदीक होते हुए भी दूर रहे. एक खयालात, एक सोच लेकिन एक नहीं हुए. पिछले 10 वर्षों से वे दोनों कहें तो दोहरी जिंदगी जी रहे थे.

इंद्रनील कोलकाता चला गया और श्वेता औफिस के बाद उदास रहने  लगी. पुत्र शौर्य अब 14 वर्ष का हो गया है और पढ़ाई के साथ खेल में व्यस्त रहने लगा है. श्वेता रात को इंद्रनील के बारे में ही सोचती रहती और इंद्रनील श्वेता के बारे में सोचता रहता. इंद्रनील का पुत्र सुब्रता भी अब 14 वर्ष और पुत्री सांवली 12 की हो गई. इंद्रनील कई वर्षों से बच्चों से नहीं मिला था. तलाक के बाद श्यामली अपने मातापिता के संग रह रही थी, लेकिन वे श्यामली से पहले ही दुनिया से कूच कर चुके थे.

श्मामली की मृत्यु पर दोनों बच्चे अकेले रह गए. सड़क दुर्घटना के बाद अस्पताल में श्यामली ने अपने सासससुर को संदेश भिजवाया और बच्चों को अस्पताल में दादादादी को सुपुर्द कर के दुनिया छोड़ गई. मातापिता से सूचना मिलने पर इंद्रनील कोलकाता चला गया. अंतिम समय में श्यामली की आर्थिक स्थिति दयनीय थी और बहुत मुश्किल से गुजरबसर हो रहा था. स्कूल की फीस भी नहीं भरी थी.

इंद्रनील सोचने लगा कि  10 वर्ष पूर्व श्यामली ने तलाक पर एक मुश्त 10 लाख रुपए की रकम ली थी, यदि वह उस रकम को बैंक में फिक्स्ड डिपौजिट पर रखती तब आज इतनी दयनीय स्थिति नहीं होती.

इंद्रनील की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. बच्चे उस के पास थे, लेकिन सहमे हुए क्योंकि वर्षों बाद अपने पिता से मिल रहे थे जिस की उन के मानसपटल पर कोई स्मृति शेष नहीं थी. इंद्रनील ने सब से पहले बच्चों की स्कूल फीस भरी और उन को स्कूल भेजना शुरू किया. श्यामली ने सड़क दुर्घटना के पश्चात अस्पताल में बच्चों को उन के पिता के बारे में बताया और दादादादी के सुपुर्द किया.

कोलकाता आए इंद्रनील को  1 महीना हो  गया. इस 1 महीने में श्वेता और इंद्रनील के बीच कोई बात नहीं हुई. श्वेता ने फोन करने की सोची, लेकिन संयम रखते हुए अपने हाथ खींच लिए. अब उस ने अपना समय पुत्र शौर्य के संग बिताना आरंभ किया. इंद्रनील अपने जीवन में तालमेल नहीं बैठा सका और एक दिन श्वेता को फोन कर ही दिया.

‘‘श्वेता कैसी हो?’’

‘‘तुम बताओ?’’

‘‘चलो एकदूसरे को अपना हाल बता देते हैं.’’

‘‘यह ठीक है इंद्रनील, जीवन का नया पड़ाव कैसा लग रहा है?’’

‘‘श्वेता इन परिस्थितियों के बारे में कभी सोचा नहीं था इसलिए हालात से समन्वय नहीं बन पा रहा है.’’

‘‘इंद्रनील जीवन अनिश्चिता से भरपूर है. भविष्य एक रहस्य है कि कल क्या होगा. हम ने विवाह किया तब यह नहीं सोचा था कि हमारा तलाक होगा लेकिन हुआ. जब हम ने उन परिस्थितियों को जीया तब अब भी जी सकते हैं. थोड़ा समय दिक्कत होती है फिर हम सब नई परिस्थितियों के आदी हो जाते हैं.’’

‘‘श्वेता तुम्हारी दार्शनिक बातें सुन कर मन का बोझ हलका हुआ कि हालात से समझौता करना ही पड़ता है.’’

‘‘इंद्रनील जीवन अपनेआप में ही समझौता है. हर पल समझौता करना होता है. अगर हम यह बात पहले समझ जाते तब हो सकता है कि तलाक ही नहीं होता लेकिन हुआ क्योंकि कहीं न कहीं हमारा अहम टकरा गया और हम पीछे नहीं हटे. जीवन के अनुभवों से ही हम सीखते हैं.’’

‘‘श्वेता मेरी समस्या बच्चों के साथ तालमेल की है. आज वर्षों बाद बच्चे साथ हैं, समझ नहीं आ रहा कि मैं उन के साथ कैसा व्यवहार करूं.’’

‘‘इंद्रनील बच्चे तो तुम्हारे अपने हैं बस अंतर सिर्फ इतना है कि तुम वर्षों बाद बच्चों से मिल रहे हो. समझ लो कि विदेश में रहते थे. अब वापस अपने घर आए हो.’’

‘‘श्वेता तुम तो उदाहरण भी ऐसे देती हो कि मेरे पास कोई उत्तर ही नहीं सिवा इस के कि तुम्हारे सुझाव पर अमल करूं.’’

‘‘इंद्रनील यह महिला दिमाग का कमाल है जो पुरुष दिमाग से सदा आगे रहता है.’’

फोन पर बात समाप्त होने पर शौर्य ने मां श्वेता से पूछा, ‘‘मम्मी किस के साथ बात कर रही थीं? बहुत लंबी बात हो गई?’’

‘‘शौर्य में इंद्रनील से बात कर रही थी. मेरे साथ औफिस में काम करते थे आजकल कोलकाता में रहते हैं. कई बार बात होती रहती है. इन का लड़का भी तुम्हारे जितना बड़ा है 14 वर्ष का.’’

‘‘इंद्रनील अंकल कभी घर नहीं आए… कभी देखा नहीं?’’

पुत्र के इस प्रश्न पर श्वेता को आश्चर्य हुआ कि आज  पहली बार शौर्य उस से ऐसा प्रश्न कर रहा है. अब वह बड़ा हो गया है और दुनिया की ऊंचनीच भी समझने लगा है. फिर चुटकी में अपने भावों को नियंत्रित करते हुए श्वेता ने शौर्य को समझाया कि हमारे औफिस में बहुत कर्मचारी हैं और मैं ने 4 कंपनियों में काम किया, वहां अनेक के साथ मेरी मित्रता रही, लेकिन मैं किसी के घर नहीं जाती थी क्योंकि तुम छोटे थे और औफिस के बाद तुम्हारे साथ समय बिताना मेरी प्राथमिकता रही है इसी कारण मैं किसी को अपने घर भी नहीं बुलाती थी क्योंकि तुम्हें मालूम है कि मेरा और तुम्हारे पापा का 10 वर्ष पूर्व तलाक हुआ था.

‘‘मैं ने तुम्हारी परवरिश को सब से बेहतर रखने की कोशिश की ताकि तुम्हें पिता की कमी महसूस न हो. अब तुम बड़े हो गए हो तुम चाहोगे तब मैं अपने मित्रों को भी घर बुलाऊंगी.’’

‘‘मम्मी मैं तो सिर्फ इसलिए पूछ रहा था क मेरे मित्र घर आते हैं तब आप के क्यों नहीं आते हैं?’’

‘‘वह इसलिए कि तुम मित्रों के संग पढ़ते हो, मेरे मित्र आएंगे तब सिर्फ गपशप होगी और तुम्हारी पढ़ाई में खलल होगा.’’

‘‘कभीकभी तो बुला सकती हो?’’

‘‘अब तुम चाहते हो तब इसी रविवार को अपने मित्रों के संग महफिल सजा दूंगी,’’ श्वेता ने मुसकराते हुए शौर्य से कहा तो शौर्य भी मुसकरा दिया.

खैर शौर्य की मंशा श्वेता समझ गई कि बच्चा अब स्याना हो गया है और रिश्तों के साथ मित्रता की भी अहमियत समझने लगा है. श्वेता ने अपनी तरफ से इंद्रनील को फोन नहीं किया. उसे शायद डर था कि शौर्य उस के इंद्रनील के साथ पवित्र रिश्ते को कहीं गलत न समझ ले कि उस की मां दोहरी जिंदगी जी रही है. उस ने रिश्ते पर पूर्णविराम लगा दिया. इंद्रनील कभीकभी श्वेता से फोन पर बात कर लिया करता था, वह सिर्फ अपने बच्चों से जुड़ने पर ही विमर्श करता था.

इंद्रनील ने कोलकाता में नौकरी कर ली और छुट्टी वाले दिन बच्चों के साथ रहता और उन के साथ घूमने जाता. श्वेता ने इंद्रनील को सलाह दी कि वह बच्चों को आर्थिक संरक्षण प्रदान करने के साथसाथ उन से भावनात्मक रूप से भी जुड़े. इंद्रनील छुट्टी वाले दिन बच्चों के साथ घूमने जाता. धीरेधीरे बच्चे इंद्रनील से जुड़ने लगे. इंद्रनील के बच्चों से जुड़ाव के बाद श्वेता ने इंद्रनील से फोन पर बात भी बंद कर दी.

1 वर्ष बाद सर्दियों की ठंड में श्वेता बालकनी में बैठ कर धूप सेंक रही थी. शौर्य की 10वीं की बोर्ड परीक्षा नजदीक थी. वह भी धूप में श्वेता के नजदीक बैठ कर पढ़ रहा था तभी डोरबैल बजी.

‘‘शौर्य जरा दरवाजा खोलना.’’

‘‘मम्मी मैं पढ़ रहा हूं, आप खोलिए.’’

श्वेता ने दरवाजा खोला, दरवाजे पर इंद्रनील अपने बच्चों सुब्रता और सांवली के संग खड़ा था. वह इंद्रनील को अचानक घर पर बिना किसी सूचना के अपने सामने देख कर अचंभित हो गई. उस का मुख खुला का खुला रह गया.

इंद्रनील ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘श्वेता इन से मिलो, सुब्रता और सांवली.’’

‘‘आओ इंद्रनील,’’ श्वेता ने सब को बैठक में बैठा कर शौर्य को आवाज दी, ‘‘शौर्य देखो कौन आया है.’’

‘‘कौन है मम्मी?’’ शौर्य ने बालकनी से ही श्वेता से पूछा.

‘‘इंद्रनील अंकल.’’

इंद्रनील सुनते ही शौर्य बैठक में आ कर बड़ी आत्मीयता से सब से मिला.

सुब्रता और सांवली के एक प्रश्न पर श्वेता चुप रह गई, ‘‘आंटी आप ने पापा से फोन पर बात करना क्यों छोड़ दिया है?’’

श्वेता को इस प्रश्न का उत्तर मालूम था, लेकिन बच्चों को किस तरह से अपने मन की बात समझाए, उस की जबान पर शब्द नहीं आ रहे थे.

‘‘हां मम्मी आप इंद्रनील अंकल को अपने विचारों से अवगत कराती थीं और सुझावों से अंकल को बच्चों से एक कराया फिर क्या हुआ जो आप ने अंकल से बात करनी बंद कर दी?’’

शौर्य की बात का समर्थन करते हुए सुब्रता और सांवली ने भी श्वेता से प्रश्न पूछा, ‘‘आंटी आप के सुझाव और मार्गदर्शन से हम पापा से जुड़ सके और आप ही पापा से जुदा हो गईं. पापा हमारे सामने आप से फोन पर बात करते थे, इसलिए हमारे अनुरोध पर पापा हमें आप से मिलवाने दिल्ली आए हैं.’’

श्वेता ने बात बदलते हुए इंद्रनील से पूछा ‘‘कहां रुके हो?’’

‘‘कंपनी के गैस्टहाउस में रुका हूं. थोड़ा कंपनी का काम भी कर लूंगा और बच्चों के साथ दिल्ली भी घूम लूंगा.’’

बात को दूसरी तरफ घूमता देख सुब्रता और सांवली ने श्वेता को टोका, ‘‘आंटी आप

ने हमारे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया.’’

‘‘हां मम्मी मैं भी इस प्रश्न का उत्तर चाहता हूं,’’ शौर्य ने भी मां से पूछा.

‘‘श्वेता मैं भी उत्तर चाहता हूं,’’ इंद्रनील ने भी श्वेता से पूछा.

2 मिनट तक श्वेता चुप रही फिर बोली, ‘‘इंद्रनील तुम तो उत्तर जानते हो. हम और तुम सिर्फ मित्र रहे, एक अच्छे मित्र की भांति हम ने आपस में सुख और दुख साझा किए. हमारी मित्रता इसलिए मजबूत रही क्योंकि हम दोनों तलाकशुदा थे और हमारे बच्चों की उम्र भी एकजैसी थी. जब मैं पहली बार औफिस में इंद्रनील से मिली तब इंद्रनील सुब्रता और सांवली से मिलते रहते थे और उसी तरह शौर्य अपने पिता से. छोटे बच्चों की अच्छी परवरिश हो और उन के मानसपटल पर हमारे तलाक का धब्बा न लगे यही हम दोनों का मुख्य उद्देश्य था.

‘‘श्यामली की मृत्यु के पश्चात जब सुब्रता और सांवली इंद्रनील के जीवन में वापस आए तब तुम किशोरावस्था में पदार्पण कर चुके थे और दुनिया की ऊंचनीच को समझने लगे थे. इस से पहले कि शौर्य मुझे गलत समझे मैं ने दूरी बनानी उचित समझी.’’

श्वेता का उत्तर इंद्रनील को मालूम था कि यही होगा, लेकिन तीनों बच्चे एकसाथ बोले, ‘‘आप मित्र बन कर रहो. मित्रता क्यों तोड़ते हो?’’

‘‘हमने कभी लक्ष्मणरेखा नहीं लांघी है.’’

‘‘हम लक्ष्मण रेख लांघने को नहीं कह रहे हैं. पुरानी मित्रता को कायम रखो.’’

शौर्य ने श्वेता का हाथ पकड़ कर इंद्रनील की ओर बढ़ाया तो सुब्रता ने इंद्रनील का हाथ श्वेता की ओर बढ़ाया.

‘‘सच्ची मित्रता कभी नहीं टूटती है,’’ सांवली ने श्वेता और इंद्रनील का हाथ एक करते हुए कहा.

Crime News : खूबसूरती की जलन का तेजाबी हमला

Crime News : 5 नवंबर, 2016 की शाम के यही कोई साढ़े 6-7 बजे थे. उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के गंगापार स्थित थाना बहरिया के गांव रामगढ़ कोठारी के रहने वाले श्यामलोदत्त मिश्रा की बेटी रेखा अपनी चचेरी बहनों राधा और श्रेया के साथ खेतों से लौट रही थी. तीनों बहनें गांव के करीब पहुंची थीं कि उन के पास एक पल्सर मोटरसाइकिल आ कर रुकी. उस पर 2 लोग सवार थे.

उनके पहनावे और कदकाठी से लग रहा था कि उनकी उम्र ज्यादा नहीं थी.  पास में मोटरसाइकिल रुकने से तीनों बहनें ठिठक कर रुक गईं. मोटरसाइकिल सवार गांव के नहीं थे, इसलिए उन्हें लगा कि शायद वे उन से किसी के घर का रास्ता पूछेंगे. लेकिन रास्ता पूछने के बजाय मोटरसाइकिल पर पीछे बैठा युवक फुरती से उतरा. उस के हाथ में एक बोतल थी. तीनों बहनें कुछ समझ पातीं, उस के पहले ही उस ने बोतल का ढक्कन खोला और उस में जो भरा था, उसे तीनों बहनों की ओर उछाल दिया. बोतल का तरल जैसे ही उन के चेहरों पर पड़ा, जलन से तीनों बिलबिला उठीं.

मोटरसाइकिल स्टार्ट ही थी. युवक अपना काम कर के मोटरसाइकिल पर जैसे ही बैठा, मोटरसाइकिल एकदम से चल पड़ी. तीनों लड़कियां जलन से चीखनेचिल्लाने लगीं, क्योंकि उन के चेहरों पर फेंका तरल पदार्थ तेजाब था. उन की चीखपुकार पर पूरा गांव इकट्ठा हो गया और टार्च की रोशनी में जब उन के चेहरों को देखा गया तो देखने वालों के रोंगटे खडे़ हो गए.

लड़कियों की स्थिति काफी गंभीर थी. तुरंत सौ नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना दी गई. सूचना मिलते ही थाना बहरिया पुलिस के अलावा पुलिस अधिकारी भी एंबुलैंस के साथ गांव कोठारी आ पहुंचे. थानाप्रभारी अश्विनी कुमार सिंह भदौरिया ने तुरंत तीनों लड़कियों को अस्पताल भिजवाया.

घटना की सूचना पा कर आईजी के.एस. प्रताप कुमार, डीआईजी विजय यादव, एसएसपी शलभ माथुर भी तीनों लड़कियों का हालचाल लेने अस्पताल पहुंच गए थे.

अधिकारियों ने पीडि़त बहनों के चेहरों पर नजर डाली तो यह देख कर आश्वस्त हुए कि उन की आंखें सलीसलामत थीं. उन के शरीर पर जहांजहां तेजाब पड़ा था, वहां की त्वचा झुलस गई थी. तीनों बहनों ने जो शाल ओढ़ रखी थी, तेजाब पड़ने से उन में जगहजगह छेद हो गए थे. अगर वे शाल न ओढे होतीं तो शायद और ज्यादा जल सकती थीं.

पुलिस अधिकारियों ने पीडि़त लड़कियों के घर वालों से पूछताछ की, ताकि हमलावरों के बारे में कुछ पता चल सके. इस पूछताछ में पता चला कि श्यामलोदत्त का अपने पड़ोसी से रास्ते को ले कर विवाद चल रहा था. इसी के साथ यह भी पता चला कि तेजाबी हमले से झुलसी श्रेया का पड़ोस की रहने वाली पिंकी मिश्रा से किसी बात को ले कर विवाद हो गया था. श्रेया, पिंकी और रेखा एक ही कालेज में पढ़ती थीं.

आईजी के निर्देश पर इन दोनों बिंदुओं पर जांच आगे बढ़ाई गई तो दोनों का ही इस घटना से कोई संबंध नहीं निकला. पुलिस अधिकारियों के जेहन में एक ही सवाल कौंध रहा था कि गांव में कोई तो ऐसा होगा, जो इन लड़कियों की हर गतिविधियों पर गिद्धदृष्टि जमाए था.

वही पलपल की जानकारी हमला करने वालों को देता रहा होगा. जिसजिस पर पुलिस को शक हुआ, उस से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस को सफलता नहीं मिली. एसएसपी शलभ माथुर ने मामले को सुलझाने में इंटेलीजेंस विंग के तेजतर्रार इंसपेक्टर अनिरुद्ध कुमार सिंह और एसआई नागेश कुमार सिंह को भी आवश्यक दिशानिर्देश दे कर लगा दिया.

अनिरुद्ध कुमार सिंह ने अस्पताल पहुंच कर तीनों बहनों से एक बार फिर पूछताछ की. श्रेया ने बताया कि उन के ऊपर तेजाब फेंकने के बाद एक हमलावर ने किसी को फोन कर के कहा था कि ‘काम हो गया है.’

इस पूछताछ के बाद उन्होंने अपनी टीम के तेजतर्रार हैडकांस्टेबल इंद्रप्रताप सिंह, जितेंद्र पाल सिंह, कांस्टेबल पवन सिंह, अभय कुमार सिंह, रविसेन सिंह बिसेन व स्वाट टीम प्रभारी नागेश कुमार सिंह, पंकज त्रिपाठी, हेमू पटेल, अनुराग, विजय यादव, दीपक कुमार आदि से इस विषय में गहन मंत्रणा कर सभी को सामान्य कपड़ों में कोठारी गांव के इर्दगिर्द लगा दिया. मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था.

इस के अलावा थाना बहरिया के थानाप्रभारी अश्विनी कुमार भदौरिया भी इस मामले का खुलासा करने में अपनी टीम के साथ लगे हुए थे. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि कहीं यह हमला प्रेमप्रसंग को ले कर तो नहीं हुआ. हमलावर एक लड़की को निशाना बनाने आए होंगे, बाकी दोनों लड़कियां साथ होने की वजह से चपेट में आ गई होंगी.

यहां एक बात गौर करने वाली यह थी कि इन में से राधा अपनी ससुराल महेपुरा से कुछ दिनों पहले ही मायके आई थी. इसी साल 11 जुलाई, 2016 को उस का विवाह हुआ था.

इंसपेक्टर अनिरुद्ध कुमार सिंह की सोच यहीं आ कर टिक गई. उन्हें लगा कि हमलावर इन लड़कियों के आसपास रहते होंगे या जिस के इशारे पर यह वारदात की गई है, वह इन के आसपास रहता होगा. क्योंकि उस आदमी को इन बहनों की एकएक पल की जानकारी थी. और उचित मौका देख कर हमलावरों को मोबाइल द्वारा सटीक सूचना दे कर उन पर एसिड अटैक करवा दिया गया था.

इस दिशा में जांच की गई तो पता चला कि श्यामलोदत्त मिश्रा के पड़ोसी रामचंद्र मिश्रा की बेटी पिंकी की शादी सन 2012 में थाना बहरिया के गांव महेपुरा के योगेश तिवारी के साथ हुई थी. उसी गांव में राधा की ससुराल थी. सन 2014 में योगेश ने पिंकी पर बदचलनी और गहनों की चोरी का आरोप लगा कर उसे छोड़ दिया था. तब से वह मायके में ही रह रही थी.

पिंकी नहीं चाहती थी कि उस की ससुराल वाले गांव में राधा की शादी हो. शादी रोकने के लिए उस ने तरहतरह की बातें कहीं, पर उस की सारी कोशिश उस समय बेकार हो गई, जब राधा दुल्हन बन कर उसी गांव में पहुंच गई. पिंकी इस से जलभुन गई. शादी वाले दिन ही पिंकी ने उस से झगड़ा किया था.

इन बातों से पिंकी पुलिस के शक के दायरे में आ गई. पुलिस ने उसे थाने बुला कर पूछताछ शुरू की. पुलिस के सामने अपना दुखड़ा रोते हुए उस ने कहा कि वह तो खुद ही परेशान है. पति ने छोड़ रखा है, जिस का मुकदमा कोर्ट में चल रहा है. पुलिस ने उस की बातों पर विश्वास कर के उसे छोड़ दिया. मगर उस पर पुलिस की पैनी निगाह बराबर जमी रही. क्योंकि वह अभी भी शक के दायरे में थी.

अब तक की जांच में पुलिस को एक नई बात यह पता चली कि शादीशुदा होने के बावजूद पिंकी का थाना बहरिया के गांव राजेपुरा निवासी नफीस अहमद उर्फ जया से प्रेमसंबंध था. यह संबंध पिंकी की शादी से पहले से चला आ रहा था. इस बारे में उस के ससुराल वालों को पता चल गया था.

इस के बाद ही उस के पति योगेश तिवारी ने उस पर बदचलनी और गहनों की चोरी का आरोप लगा कर सन 2014 में उसे छोड़ दिया था. इस के बाद पिंकी के घर वालों ने योगेश और उस के घर वालों पर दहेज एक्ट और उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दिया था, जो माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में मिडिएशन पर चल रहा है. इस के बावजूद पिंकी और उस के घर वाले गांव के ही जगतनारायण मिश्रा, जिन्होंने पिंकी और योगेश की शादी कराई थी, पर बराबर दबाव बनाए हुए थे कि किसी प्रकार से दोनों पक्षों में समझौता करा दें. जगतनारायण मिश्रा समझौता तो नहीं करा सके, पर उन्होंने पिंकी की ससुराल वाले गांव में राधा का ब्याह जरूर करा दिया था.

यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर अनिरुद्ध कुमार सिंह बिना समय गंवाए पिंकी के प्रेमी नफीस उर्फ जया को उस के घर पर छापा मार कर हिरासत में ले लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं निर्दोष हूं. मेरा इस मामले में कोई लेनादेना नहीं है. मेरे पास बोलेरो गाड़ी है और पिंकी के पिता के पास अरमादा की मार्शल, जिन्हें मैं ही किराए पर चलवाता हूं, इसी वजह से मेरा उन के यहां आनाजाना लगा रहता है. पिंकी से मेरा कोई लेनादेना नहीं है.’’

अनिरुद्ध कुमार सिंह को लग रहा था कि यह झूठ बोल रहा है, इसलिए उन्होंने उस के और पिंकी के फोन नंबरों की जो काल डिटेल्स निकलवाई थी, उसे उस के सामने रखा तो वह सकपका गया. इस से साफ था कि घटना वाले दिन 5 नवंबर, 2016 की शाम साढ़े 7 बजे पिंकी और उस की एसिड अटैक से पहले और बाद में बातें हुई थीं.

इस के बाद नफीस ने अपना गुनाह कबूल करते हुए बताया कि उसी ने अपने साथी के साथ मिल कर तीनों बहनों पर तेजाब फेंका था. इस के बाद उस ने एसिड अटैक के पीछे की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

पिंकी और नफीस के बीच कालेज समय यानी सन 2008 से ही प्रेमसंबंध चले आ रहे थे. पिंकी ने नफीस पर शादी के लिए कई बार दबाव डाला था, लेकिन नफीस तैयार नहीं हुआ था. वह जानता था कि यह गांवदेहात का मामला है, इसलिए शादी के बाद बवाल हो सकता है.

योगेश से शादी हो जाने के बाद भी पिंकी प्रेमी नफीस से संबंध बनाए रही. इस का नतीजा यह निकला कि ससुराल वालों को उस के प्रेमसंबंधों का पता चल गया और पति ने उसे छोड़ दिया. उस की ससुराल वाले गांव में ब्याही राधा जब भी मायके आती, अपनी चचेरी बहनों से खूब हंसहंस कर बातें करती.

इस से पिंकी को लगता कि तीनों बहनें उसी के बारे में बातें कर के हंस रही हैं और उस का मजाक उड़ा रही हैं. पिंकी के मन में यह बात इस तरह बैठ गई कि वह राधा, रेखा तथा श्रेया को दुश्मन मान बैठी और उन्हें सबक सिखाने के बारे में सोचने लगी. वह उन्हें ऐसा कर देना चाहती थी कि लोग उन के चेहरे को देख कर नफरत करें.

उसी बीच रेखा की शादी प्रतापगढ़ के रानीगंज में तय गई. 2 दिनों बाद लड़के वाले उसे देखने के लिए आने वाले थे. पिंकी किसी भी हाल में तीनों बहनों को खुश नहीं देखना चाहती थी. वह अपने प्रेमी नफीस से मिली और उस के कंधे पर अपना सिर रख कर रोते हुए बोली, ‘‘नफीस, मैं तुम से कितनी बार कह चुकी हूं कि मेरी पड़ोसन दुश्मन उन तीनों बहनों पर तेजाब फेंक कर उन का चेहरा ऐसा कर दो कि जिस तरह मैं विरह की आग में झुलस रही हूं, वही हाल उन का भी हो.’’

‘‘मैं तुम्हारी पीड़ा को अच्छी तरह समझ रहा हूं. लेकिन तुम राधा और उस की बहनों के प्रति जो सोच रही हो, वह गलत है. मैं इस तरह का गलत काम नहीं कर सकता.’’ नफीस ने कहा.

‘‘नफीस, अगर तुम मुझ से सच्ची मोहब्बत करते हो तो तुम्हें मेरा यह काम करना ही पड़ेगा. मेरी खुशी के लिए तुम मेरा यह छोटा सा काम नहीं कर सकते? तुम कैसे मर्द हो, पिछले 8 सालों से मैं तुम्हें अपना सब कुछ सौंपती आ रही हूं और तुम मेरा इतना सा काम कर नहीं कर सकते तो क्या खाक प्यार करते हो?’’ कह कर वह अपनी आंखों में छलके आंसुओं को हथेली से पोंछने लगी.

‘‘नही, ऐसी बात नहीं है पिंकी. मैं तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ नफीस ने कहा.

प्रेमी के मुंह से यह सुन कर पिंकी के चेहरे पर मुसकान आ गई, वह चहकते हुए बोली, ‘‘यह हुई न मर्दों वाली बात. सुनो, इस समय राधा मायके में ही है. रेखा की शादी होने से पहले तुम मेरा काम कर दो, जिस से उस की शादी न हो सके. जिस दिन तुम्हें यह काम करना हो, मुझे बता देना. मैं तुम्हें पलपल की सूचना देती रहूंगी.’’

पूरी योजना तैयार कर के नफीस ने तेजाब खरीद लिया. इस के बाद उस ने राजेपुरा के रहने वाले अपने दोस्त शफीक (परिवर्तित नाम) को अपनी योजना में शामिल कर लिया. शफीक नाबालिग था.

5 नवंबर, 2016 को वह पिंकी के फोन का इंतजार करने लगा. शाम साढ़े 7 बजे पिंकी ने उसे बताया कि रेखा, राधा और श्रेया खेतों की तरफ जा रही हैं. फिर क्या था, नफीस शफीक को मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा और तीनों बहनों के चेहरों पर तेजाब डाल कर लौट आया.

नफीस की निशानदेही पर पुलिस ने पिंकी, शफीक और तेजाब बेचने वाले दुकानदार रमाकांत यादव को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने शफीक को बाल न्यायालय में पेश कर बालसुधार गृह भेज दिया, जबकि पिंकी और नफीस को भादंवि की धारा 326ए, 120बी के तहत अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. Crime News

– कथा मीडिया व पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime : प्यार के खेल में उजड़ा अंशिका का सुहाग

Love Crime : मेवाराम यादव 8 जून, 2018 को अपनी बेटी ममता की ससुराल थाना सिरसागंज के गांव इंदरगढ़ गए थे. वहां के किसी वैद्य से उन्हें अपनी दवा लेनी थी. दवा ले कर उन्हें अगले दिन ही दोपहर तक घर लौटना था. लेकिन इस से पहले ही 9 जून की सुबह करीब 5 बजे उन के मोबाइल पर उन के बेटे सुनील की बहू अंशिका का फोन आया.

उस समय वह बहुत घबराई हुई थी. उस ने कहा, ‘‘पापा आप जल्दी से घर आ जाओ, सूर्यांश के पापा सुबह 3 बजे घर से दिशा मैदान के लिए गए थे, लेकिन 2 घंटे हो गए अब तक नहीं लौटे हैं. वह अपना मोबाइल भी घर पर छोड़ गए थे.’’

बहू की बात सुन कर मेवाराम घबरा गए. उन्होंने बहू से कहा कि वह चिंता न करे, वे अभी गांव आ रहे हैं. बात बेटे के लापता होने की थी, इसलिए उन्होंने बेटी के ससुर यानी अपने समधी दिगंबर सिंह को यह बात बताई और अपनी बाइक उठा कर वापस अपने गांव नगला जलुआ के लिए चल दिए. इंद्रगढ़ से उन के गांव की दूरी बाइक से मात्र 30 मिनट की थी. रास्ते भर उन के दिमाग में यही बात घूम रही थी कि आखिर उन का बेटा सुनील चला कहां गया.

घर पहुंच कर उन्होंने अपनी बहू अंशिका से पूरी जानकारी ली. अंशिका ने बताया कि वह सुबह 3 बजे के करीब दिशा मैदान गए थे. उस समय वह केवल अंडरवियर और बनियान पहने हुए थे. जब वह काफी देर बाद भी वापस नहीं आए तब मुझे चिंता हुई और मैं ने घर से बाहर जा कर उन्हें खेतों की ओर तलाशा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दिए.

सुनील मेवाराम का 28 साल का बेटा था. उन्होंने करीब 5 साल पहले उस की शादी अंशिका से की थी. वह भी सुनील को खोजने के लिए जंगल की तरफ चल दिए. उन के साथ गांव के कुछ लोग भी थे. उन्होंने बेटे को संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन पता नहीं लगा.जब वह वापस घर की तरफ आ रहे थे तभी रास्ते में मिले कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि रेलवे लाइन के किनारे झाडि़यों में एक बोरी पड़ी है. देखने से लग रहा है कि उस में कोई लाश है. खून भी रिस रहा है.

इतना सुनते ही मेवाराम गांव वालों के साथ रेलवे लाइन की तरफ चल दिए. लाइन गांव से लगभग 200 मीटर दूर दक्षिण दिशा में थी. सभी लोग वहां पहुंचे तो लाइन के पास की झाडि़यों में एक बोरा पड़ा था, बोरे से जो खून रिस रहा था उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं. लोगों ने जब गौर से देखा तो खून की बूंदें थीं. ऐसा लग रहा था कि बोरी को कुछ समय पहले ही ला कर फेंका गया है.

वैसे तो वह बोरी पुलिस की मौजूदगी में ही खोली जानी चाहिए थी. लेकिन बोरी देख कर मेवाराम की धड़कनें बढ़ गई थीं. बोरी के अंदर क्या है, यह देखने की उन की उत्सुकता बढ़ गई थी. इसलिए उन्होंने गांव वालों के सामने जब बोरी खुलवाई तो उस में उन के बेटे सुनील की ही लाश निकली. बेटे की लाश देखते ही मेवाराम गश खा कर जमीन पर बैठ गए और रोने लगे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उन के बेटे की हत्या किस ने और क्यों की. इस के बाद तो यह खबर जल्द ही आसपास के गांवों में भी फैल गई. जिस से वहां तमाम लोग इकट्ठा हो गए. सभी आपस में तरहतरह के कयास लगा रहे थे.

गांव के ही किसी व्यक्ति ने पुलिस को घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर और शरीर पर तेज धारदार हथियार के घाव थे. इस के अलावा उस की नाक भी कटी हुई थी. सारे घावों से जो खून निकला था, उसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या कुछ घंटों पहले ही की गई थी. रास्ते में जो खून के निशान थे उन का पीछा किया गया तो वह भी गांव के पास तक मिले. उस के बाद उन का पता नहीं चला. इन सब बातों से पुलिस को इतना तो विश्वास हो गया कि सुनील की हत्या गांव में ही करने के बाद उस की लाश यहां डाली गई थी.

थानाप्रभारी ने मृतक के पिता मेवाराम से बात की तो उन्होंने किसी व्यक्ति पर कोई शक नहीं जताया. तब थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. मेवाराम उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के गांव नगला जलुआ में रहते थे. वह गांव में ही टेलरिंग का काम करते थे. उन के 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के पास खेती की 3 बीघा जमीन थी जो बंटाई पर दे रखी थी. टेलरिंग की कमाई से ही वह अपने 4 बच्चों का विवाह कर चुके थे. केवल छोटा बेटा सनी ही शादी के लिए बचा था.

मेवाराम की पत्नी मुन्नी देवी की 3 साल पहले मौत हो चुकी थी. सब से बड़ा सुनील पिछले 4 साल से दक्षिणी दिल्ली के फतेहपुर बेरी स्थित एक फैक्ट्री में सिलाई का काम करता था. यह फैक्ट्री रेडीमेड कपड़े एक्सपोर्ट करती थी. सुनील के दोनों छोटे भाई संजय व सनी भी उसी के साथ रह कर ड्राइवरी करते थे. फतेहपुर बेरी में ही सुनील की बहन पिंकी की सुसराल थी. वहीं पास में ही उन्होंने किराए पर मकान ले लिया था.

मेवाराम ने सुनील की शादी 5 साल पहले फिरोजाबाद के गांव ढोलपुरा निवासी वीरेंद्र यादव की बेटी अंशिका उर्फ अनुष्का के साथ की थी. सुनील का डेढ़ साल का बेटा सूर्यांश था. जबकि संजय का अभी कोई बच्चा नहीं था. सुनील और संजय कुछ दिनों के लिए बारीबारी से अपनी पत्नी को गांव से दिल्ली लाते थे. अंशिका जब दिल्ली से अपनी ससुराल नगला जलुआ लौटती थी तो वहां से जल्द ही अपने मायके ढोलपुरा चली जाती थी. मई 2018 के शुरू में सुनील अंशिका के साथ दिल्ली से अपने गांव आया, कुछ दिन गांव में रहने के बाद वह पत्नी व बेटे सूर्यांश को ढोलपुरा छोड़ कर वापस दिल्ली चला गया.

उस के बाद 28 मई को दिल्ली से सुनील पत्नी को लेने आया. वह अपनी ससुराल से पत्नी व बेटे को अपने गांव नगला जलुआ ले आया. उस ने अंशिका से कह दिया था कि 10 जून को दिल्ली चलेंगे. लेकिन दिल्ली लौटने से पहले ही सुनील की हत्या हो गई. थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम मेवाराम से बात करने के लिए उन के घर पहुंच गए. पूछताछ में मेवाराम ने बताया कि सुनील सुबह 3 बजे दिशा मैदान के लिए कभी नहीं गया, और न ही वह केवल अंडरवीयर में जाता था. उन्होंने बताया कि उन्हें शक है कि सुनील की पत्नी अंशिका उस से कुछ छिपा रही है. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुनील के कमरे का निरीक्षण किया तो उन्हें सड़क की ओर के दरवाजे पर खून लगा दिखाई दिया.

खून देख कर थानाप्रभारी समझ गए कि सुनील की हत्या इसी घर में करने के बाद उस के शव को रेलवे लाइन के पास फेंका गया था. पुलिस ने अंशिका से सुनील की हत्या के बारे में पूछताछ की तो अंशिका ने रट्टू तोते की तरह ससुर को सुनाई कहानी दोहरा दी. थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि सुनील नंगे पैर गया था या चप्पलें पहन कर. इस पर वह कोई जवाब नहीं दे सकी. पुलिस ने घर में छानबीन की तो अंदर के कमरे के फर्श पर खून के निशान दिखाई दिए, जिसे साफ किया गया था. इस के साथ ही उस कमरे के दवाजे पर भी खून के छींटे साफ दिखाई दे रहे थे. जो सुनील की हत्या उसी कमरे में होने की गवाही दे रहे थे. पुलिस को घर में ही अंशिका की साड़ी व पेटीकोट सूखता मिला, जिसे धोने के बाद भी उस पर खून के धब्बे दिख रहे थे.

पुलिस ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम को भी मौके पर बुला लिया. जिस ने जमीन तथा दरवाजे से खून के नमूने एकत्र किए. अधिकारियों को घटना की जानकारी देने पर एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह क्षेत्राधिकारी अभिषेक कुमार राहुल तथा महिला कांस्टेबल बीना यादव को साथ ले कर गांव पहुंच गए. सबूतों के आधार पर पुलिस ने अंशिका को हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस घटनास्थल की काररवाई निपटा कर अंशिका और उस के ससुर मेवाराम को थाने ले आई.

थाने ले जा कर महिला पुलिस ने जब अंशिका से उस के पति सुनील की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपने पति की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई वह इस प्रकार थी—

अंशिका ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने दिल्ली के प्रेमी राजा और उस के साथी रोहित के साथ मिल कर पति की हत्या की थी. उस ने आगे बताया कि करीब ढाई साल पहले वह दिल्ली के फतेहपुर बेरी में अपने पति व देवरों के साथ रहती थी. वहीं सामने के कमरे में उत्तर प्रदेश के बरेली शहर निवासी राजा रहता था. राजा हलवाई का काम करता था. उसी समय राजा की दोस्ती सुनील व उस के देवरों से हो गई थी.

राजा का उन के घर भी आनाजाना था. उसी दौरान उस के व राजा के प्रेम संबंध हो गए. इस की किसी को कोई भनक तक नहीं लगी. अंशिका शादी के बाद से ही अपने पति सुनील को पसंद नहीं करती थी. उस ने दिल्ली से अपने प्रेमी राजा को 8 जून की रात को ही गांव बुला लिया था. राजा अपने दोस्त रोहित के साथ गांव पहुंचा था. उस ने मकान के सड़क की ओर वाले दरवाजे से दोनों को अंदर बुला कर कमरे में छिपा दिया था. उस समय सुनील मकान के मुख्य दरवाजे पर बैठ कर गांव के लोगों से बात कर रहा था.

रात 12 बजे सुनील खाना खा कर जब बीच वाले कमरे में पलंग पर गहरी नींद में सो गया, तभी उस ने करीब 2 बजे प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर सुनील को सोते समय दबोच लिया और उस का मुंह बंद कर के अंदर वाली कोठरी में ले गए, जहां कैंची व डंडों से उस की हत्या कर दी गई. इस बीच अंशिका सुनील के हाथ पकडे़ रही. सुनील की हत्या के बाद उस की लाश को एक बोरे में भर कर राजा व उस का दोस्त रेलवे ट्रैक के पास झाडि़यों में फेंक कर दिल्ली वापस चले गए. अंशिका ने बताया कि इस के बाद उस ने बरामदे में पडे़ खून को पानी से धो दिया.

उस के कपड़ों पर भी खून लग गया था, इसलिए उस ने कपड़े धो कर डाल दिए. अंशिका से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के और उस के दिल्ली निवासी प्रेमी राजा तथा उस के साथी रोहित के खिलाफ हत्या व साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मुकदमा दर्ज होते ही अपनी काररवाई शुरू कर दी. दिल्ली में रह रहे सुनील के भाई संजय और सनी व बहन को जब सुनील की हत्या की जानकारी मिली तो वह भी दिल्ली से अपने गांव आ गए. संजय और सनी को जब पता चला कि अंशिका सुनील के कत्ल में राजा और रोहित के शामिल होने की बात कह रही है तो वे चौंके, क्योंकि 8 जून, 2018 की रात 11 बजे राजा उन के साथ था.

9 जून की सुबह 6 बजे भी उन्होंने राजा को दिल्ली में देखा था. मेवाराम ने यह बात थाने जा कर थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम को बता दी. इस पर पुलिस ने एक बार फिर अंशिका से सख्ती से पूछताछ की. इस के बाद उस ने पुलिस को वास्तविक कहानी बताई, जो इस प्रकार थी—

अंशिका की एक बुआ गांव कटौरा बुजुर्ग में रहती थी. शादी से पहले अंशिका का अपनी बुआ के यहां आनाजाना लगा रहता था. बुआ के मकान के पास ही शमी उर्फ शिम्मी नाम का युवक रहता था. इसी दौरान शमी और अंशिका के बीच प्यार का चक्कर चल पड़ा. दोनों एकदूसरे को बेहद पसंद करने लगे. बाद में दोनों ने शादी की इच्छा जताई. लेकिन अंशिका की नानी को यह रिश्ता पसंद नहीं आया, क्योंकि शमी कुछ कमाता नहीं था. इस के अलावा उस के पास खेती की जमीन भी नहीं थी.

करीब 5 साल पहले अंशिका की शादी सुनील से हो जरूर गई थी, लेकिन वह सुनील को पसंद नहीं करती थी. शादी के बाद भी उस के और शमी के संबंध जारी रहे, वह चाह कर भी उसे भुला नहीं सकी. सुनील शादी के बाद जब भी अंशिका को दिल्ली ले जाता तो कुछ दिन रहने के बाद वह गांव जाने की जिद करने लगती थी, गांव आने के बाद वह वहां से अपने मायके चली जाती थी.

मायके से वह अपनी बुआ के गांव जा कर प्रेमी शमी से मिलती थी. सुनील को अंशिका की गतिविधियों पर शक होने लगा था. दोनों में इसी बात को ले कर झगड़ा भी होता था. शमी और अंशिका ने अपने प्यार के बीच कांटा बने सुनील को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. शमी ने अंशिका को एक मोबाइल दे रखा था, जिसे वह अपने संदूक में कपड़ों के बीच छिपा कर रखती थी. मौका मिलते ही वह शमी से बात कर लेती थी.

8 जून की शाम को जब अंशिका के ससुर इंदरगढ़ में रहने वाली अपनी बेटी के यहां चले गए तो घर पर अंशिका और सुनील ही रह गए थे. अच्छा मौका देख कर शमी द्वारा दिए गए मोबाइल, जिसे वह सायलेंट मोड पर रखती थी, से शमी को फोन कर के गांव बुला लिया. शमी अपने दोस्त के साथ आया था. अंशिका की मोबाइल पर उस से रात साढ़े 8 बजे, 9 बजे व रात 12 बजे बातचीत हुई.

शमी ने गांव पहुंच कर अंशिका को अपने आने की जानकारी दे दी. रात 12 बजे के बाद अंशिका सुनील से कह कर शौच के बहाने घर से निकली. उस ने खेत में छिपे अपने प्रेमी शमी से कहा कि वह सड़क की तरफ वाले दरवाजे की कुंडी नहीं लगाएगी. जब फोन करूं तभी चुपके से उसी दरवाजे से आ जाना. रात को सुनील खाना खा कर गहरी नींद सो गया. अंशिका ने प्रेमी व उस के साथी को घर में बुला कर अंदर के कमरे में छिपा दिया. रात 12 बजे शमी व उस के साथी ने सोते समय सुनील को दबोच लिया और उस का मुंह बंद कर के अंदर के कमरे में ले गए, जहां कैंची व डंडों से उस की हत्या कर दी. हत्यारों ने कैंची से सुनील की नाक भी काट दी.

सुनील की हत्या होने की भनक गांव वालों को नहीं लगी. हत्या के बाद शव को बोरे में बंद कर रेलवे ट्रैक पर डालने की योजना थी ताकि सुबह 4 बजे फर्रुखाबाद की ओर से आने वाली कालिंदी एक्सप्रेस से शव के परखच्चे उड़ जाएं और मामला दुर्घटना जैसा लगे, लेकिन बोरा वहां लगे तारों में उलझने की वजह से रेलवे लाइन तक नहीं पहुंच सका. वे लोग बोरे को झाडि़यों में फेंक कर भाग गए.

इस के बाद मेवाराम ने थाने में नई तहरीर दे कर सुनील की हत्या के लिए अंशिका उस के प्रेमी शमी तथा उस के अज्ञात साथी को दोषी बताया. दूसरे दिन पुलिस ने अंशिका को पति की हत्या, साक्ष्य मिटाने के आरोप में जेल भेज दिया. पुलिस ने हत्या के बाद उस के प्रेमी शमी की गिरफ्तारी के लिए उस के गांव व अन्य ठिकानों पर दबिश दी, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.

अंतत: 18 जून, 2018 को शमी ने न्यायालय में सरेंडर कर दिया. न्यायालय द्वारा उसे जेल भेज दिया गया. दूसरे दिन थानाप्रभारी ने जिला जेल पहुंच कर शमी से सुनील की हत्या के बारे में पूछताछ की. शमी पुलिस को गुमराह करता रहा, इस के बाद 24 जून को पुलिस ने शमी को न्यायालय से 4 घंटे के रिमांड पर ले लिया. शमी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल कैंची गांव के बाहर झाडि़यों से बरामद कर ली.

पुलिस के अनुसार हत्या के पीछे शमी और अंशिका के अवैध संबंध थे. कथा लिखे जाने तक शमी के साथी की पुलिस तलाश कर रही थी. बेटे की हत्या से व्यथित पिता मेवाराम ने कहा कि अगर बहू को मेरा बेटा पसंद नहीं था तो उसे छोड़ देती, उस की हत्या करने की क्या जरूरत थी. अंशिका के जेल जाने के बाद उस का अबोध बेटा दिल्ली में अपने चाचाओं के साथ रह रहा था. Love Crime

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Emotional Story : घुटन – मीतू ने क्यों अपनी खुशियों का दरवाजा बंद किया था

Emotional Story : “आशा है कि आप और आप का परिवार स्वस्थ होगा, और आप के सभी प्रियजन सुरक्षित और स्वस्थ होंगे, उम्मीद करते हैं कि हम सभी मौजूदा स्थिति से मजबूती से और अच्छे स्वास्थ्य के साथ उभरें, कृपया अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें.” घर पर रहें और सुरक्षित रहें मीतू ने व्हाट्सऐप पर नीलिमा का भेजा यह मैसेज पढ़ा और एक ठंडी सांस भरी क्या सुरक्षित रहे. पता नहीं कैसी मुसीबत आ गई है. कितनी अच्छीखासी लाइफ चल रही थी. कहां से यह कोरोना आ गया. दुनिया भर में त्राहित्राहि मच गई है. खुद मेरी जिंदगी क्या कम उलझ कर रह गई है. सोचते हुए दोनों हाथों से सिर को पकड़ते हुए वह धप से सोफे पर बैठ गई.

मीतू का ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर गया. 2 बज रहे थे दोपहर के खाने का वक्त हो गया था. रिषभ को अभी भी हलका बुखार था. खांसी तो रहरह कर आ ही रही है. रिषभ उस का पति. बहुत प्यार करती है वह उस से लव मैरिज हुई थी दोनों की. कालेज टाइम में ही दोनों का अफेयर हो गया था. रिषभ तो जैसे मर मिटा था उस पर. एकदूसरे के प्यार में डूबे कालेज के तीन साल कैसे गुजर गए थे, पता ही नहीं चला दोनों को. बीबीए करने के बाद एमबीए कर के रिषभ एक अच्छी जौब चाहता था ताकि लाइफ ऐशोआराम से गुजरे. मीतू से शादी कर के वह एक रोमांटिक मैरिड लाइफ गुजारना चाहता था. रिषभ ने जैसा सोचा था बिलकुल वैसा ही हुआ.

वह उन में से था जो, जो सोचते हैं वहीं पाते हैं. अभी उस की एमबीए कंपलीट भी नहीं हुई थी उस का सलेक्शन टौप मोस्ट कंपनी में हो गया. सीधे ही उसे अपनी काबिलियत के बूते पर बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर की पोस्ट मिल गई. दिल्ली एनसीआर नोएड़ा में कंपनी थी उस की. मीतू को अच्छी तरह याद है वह दिन जब पहले दिन रिषभ ने कंपनी ज्वाइन की थी. जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे थे उस के. लंच ब्रेक में जब उसे मोबाइल मिलाया था तब उस की आवाज में खुशी, जोश को अच्छी तरह महसूस किया था उस ने.

‘मीतू तुम सीधा मैट्रो पकड़ कर नोएडा सेक्टर 132 पहुंच जाना शाम को. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. आज तुम्हें मेरी तरफ से बढ़िया सा डिनर, तुम्हारी पसंद का.’ कितना इंजौय किया था दोनों ने वह दिन. सब कितना अच्छा. भविष्य के कितने सुनहरे सपने दोनों ने एकदूसरे का हाथ थाम कर बुने थे. रिषभ की खुशी, उस का उज्जवल भविष्य देख बहुत खुश थी वह. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया था कि रिषभ को वह हर खुशी देने की कोशिश करेंगी. बचपन में ही अपने मातापिता को एक हादसे में खो दिया था उस ने. लेकिन बूआ ने खूब प्यार लेकिन अनुशासन से पाला था रिषभ को, क्योंकि उन की खुद की कोई औलाद न थी. मीतू रिषभ की जिंदगी में प्यार की जो कमी रह गई थी, वह पूरी करना चाहती थी.

क्या हुआ उस वादे का, कहां गया वह प्यार. ‘ओफ रिषभ मैं यह सब नहीं करना चाहती तुम्हारे साथ.’ सोचते हुए मीतू को वह दिन फिर से आंखों के आगे तैर गया, जिस दिन रिषभ देर रात गए औफिस से घर वापस आया था. 4 दिन बाद होली आने वाली थी. साहिर मीतू और रिषभ की आंखों का तारा. 5 साल का हो गया था. शाम से होली खेलने के लिए पिचकाारी और गुब्बारे लेने की जिद कर रहा था. ‘नहीं बेटा कोई पिचकारी और गुब्बारे नहीं लेने. कोई बच्चा नहीं ले रहा. देखो टीवी में यह अंकल क्या बोल रहे हैं. इस बार होली नहीं खेलनी है.’

मीतू ने साहिर को मना तो लिया लेकिन उस का दिल भीतर से कहीं डर गया. टीवी के हर चैनल पर कोरोना वायरस की खबरेें आ रही थी. मानव से मानव में फैलने वाला यह वायरस चीन से फैलता हुआ पूरे विश्व में तेजी से फैल रहा है. लोगों की हालत खराब है. रिषभ रोज मैट्रो से आताजाता है.  कितनी भीड़ होती है. राजीव चैक मेट्रो स्टेशन पर तो कई बार इतना बुरा हाल होता है कि लोग एकदूसरे पर चढ़ रहे होते हैं. टेलीविजन पर लोगों को एतियात बरतने के लिए बोला जा रहा है. मीतू उठी और रिमोट से टेलीविजन की वैल्यूम कम की और झट रिषभ का मोबाइल मिलाया. ‘कितने बजे घर आओगे, रिषभ.’

‘यार मीतू, बौस एक जरूरी असाइनमैंट आ गया है. रात 10 बजे से पहले तो क्या ही घर पहुंचुगा.’

‘सुनो भीड़भाड़ से जरा दूर ही रहना. इंटरनेट पर देख रहे हो न. क्या मुसीबत सब के सिर पर मंडरा रही है,‘ मीतू के जेहन में चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं.

‘डोंट वरी डियर, मुझे कुछ नहीं होने वाला. बहुत मोटी चमड़ी का हूं. तुम्हे तो पता ही है क्यों…’ रिषभ ने बात को दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘बसबस, ज्यादा मत बोलो, जल्दी घर आने की कोशिश करो, कह कर मीतू ने मोबाइल काट दिया लेकिन पता नहीं क्यों मन बैचेन सा था.

उस रात रिषभ देर से घर आया. काफी थका सा था. खाना खा कर सीधा बैडरूम में सोने चला गया.

अगले दिन मीतू ने सुबह दो कप चाय बनाई और रिषभ को नींद से जगाया.

‘मीतू इतनी देर से चाय क्यों लाई. औफिस को लेट हो जाऊंगा,‘ रिषभ जल्दीजल्दी चाय पीने लगा.

‘अरेअरे… आराम से ऐसा भी क्या है. मैं ने सोचा रात देर से आए हो तो जरा सोने दूं. कोई बात नहीं थोड़ा लेट चले जाना औफिस,‘ मीतू ने बोलते हुए रिषभ के गाल को हाथ लगाया, ‘रिषभ तुम गरम लग रहे हो. तबीयत तो ठीक है,‘ मीतू ने रिषभ का माथा छूते हुए कहा.

‘यार, बिलकुल ठीक हूं. बस थोड़ा गले में खराश सी महसूस हो रही है. चाय पी है थोड़ा बैटर लगा है,‘ और बोलता हुआ वाशरूम चला गया.

लेकिन मीतू गहरी चिंता में डूब गई. कल ही तो व्हाट्सऐप पर उस ने कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के लक्षण के बारे में पढ़ा है. खांसी, बुखार, गले में खराश, सांस लेने में दिक्कत…

‘ओह…नो… रिषभ को कहीं… नहींनहीं, यह मैं क्या सोच रही हूं. लेकिन अगर सच में कहीं…’

मीतू के सोचते हुए ही पसीने छूट गए.

तब तक रिषभ वौशरूम से बाहर आ गया. मीतू को बैठा देख बोला, ‘किस सोच में डूबी हो,’ फिर उस का हाथ अपने हाथ से लेता हुआ अपना चेहरा उस के चेहरे के करीब ले आया और एक प्यार भरी किस उस के होंठो पर करना ही चाहता था कि मीतू एकदम पीछे हट गई.

‘अब औफिस के लिए देर नहीं हो रही,’ और झट से चाय के कप उठा कर कमरे से चली गई.

रिषभ मीतू के इस व्यवहार से हैरान हो गया. ऐसा तो मीतू कभी नहीं करती. उलटा उसे तो इंतजार रहता है कि रिषभ पहले प्यार की शुरूआत करे फिर मीतू अपनी तरफ से कमी नहीं छोड़ती थी लेकिन आज मीतू का पीछे हटना, कुछ अजीब लगा रिषभ को. खैर ज्यादा सोचने का टाइम नहीं था रिषभ के पास. औफिस जाना था. झटपट से तैयार हो गया. नाश्ता करने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठ गया. मीतू ने नाश्ता रिषभ के आगे रखा और जाने लगी तो वह बोला, ‘अरे, तुम्हारा नाश्ता कहां है. रोज तो साथ ही कर लेती हो मेरे साथ. आज क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं तुम कर लो. मैं बाद में करूंगी. कुछ मन नहीं कर रहा.’ मीतू दूर से ही खड़े हो कर बोली.

‘क्या बात है तुम्हारी तबीयत तो ठीक है.’

‘हां सब ठीक है.‘ मीतू साहिर के खिलौने समेटते हुए बोली.

‘साहिर के स्कूल बंद हो गए हैं कोराना वायरस के चलते. चलो अब तुम्हें उसे सुबहसुबह स्कूल के लिए तैयार नहीं करना पड़ेगा. चलो कुछ दिन का आराम हो गया,‘ रिषभ ने मीतू को हंसाने की कोशिश की.

‘खाक आराम हो गया. यह आराम भी क्या आराम है. चारों तरफ खतरा मंडरा रहा है और तुम्हे मजाक सूझ रहा है,‘ मीतू नाराज होते हुए बोली.

‘अरे…अरे, मुझ पर क्यों गुस्सा निकाल रही हो. मेरा क्या कसूर है. मैं फैला रहा हूं क्या वायरस,‘ रिषभ ने बात खत्म करने की कोशिश की, ‘देखो ज्यादा पेनिक होने की जरूरत नहीं.’

‘मैं पेनिक नहीं हो रही बल्कि तुम ज्यादा लाइटली ले रहे हो सब.’

‘ओह, तो यह बात है. कहीं तुम्हें यह तो नहीं लग रहा कि मुझे कोरोना हो गया है. तुम ही दूरदूर रह रही हो. बेबी, आए एम फिट एंड फाइन. ओके शाम को मिलते हैं. औफिस चलता हूं. बाय डियर, ‘बोलता हुआ रिषभ घर से निकल गया. मीतू के दिमाग में अब रातदिन कोरोना का भय व्याप्त हो गया था. होली आई और चली गई, उन की सोसाइटी में पहले ही नोटिस लग गया था कि कोई इस बार होली नहीं खेलेगा. मीतू अब जैसे ही रिषभ औफिस से आता उसे सीधे बाथरूम जाने के लिए कहती और कपड़े वही रखी बाल्टी में रख्ने को कहती. फिर शौवर ले कर, कपड़े चेज करने के बाद ही कमरे में जाने देती.

हालात दिन पर दिन बिगड़ ही रहे थे. टेलीविजन पर लगातार आ रही खबरें, व्हाट्सऐप पर एकएक बाद एक मैसेज, कोरोना पर हो रही चर्चाएं मीतू के दिमाग को गड़बड़ा रही थीं. दूसरी तरफ रिषभ मीतू के बदलते व्यवहार से परेशान हो रहा था. न जाने कहां चला गया था उस का प्यार. बहाने बनाबना कर उस से दूर रहती. साहिर का बहाना बना कर उस के कमरे में सोने लगी थी. साहिर को भी उस से दूर रखती थी. अपने ही घर में वह अछूत बन गया था.

रिषभ का पता है और मीतू भी इस बात से अनजान नहीं थी कि बदलते मौसम में अकसर उसे सर्दीजुकाम, खांसी, बुखार हो जाता है. लेकिन कोरोना के लक्षण भी तो कुछ इसी तरह के हैं. मीतू पता नहीं क्यों टेलीविजन, व्हाट्सऐप के मैसेज पढ़पढ़ कर उन में इतनी उलझ गई है कि रिषभ को शक की निगाहों से देखने लगी है. आज तो हद ही हो गई. सरकार ने जनता कफ्यू का ऐलान कर दिया था. रिषभ को रह रह कर  खांसी उठ रही थी. हलका बुखार भी था. रिषभ का मन कर रहा था कि मीतू पहले ही तरह उस के सिरहाने बैठे. उस के बालों में अपनी उंगलियां फेरे.

दिल से, प्यार से उस की देखभाल करे. आधी तबीयत तो उस की मीतू की प्यारी मुसकान देख कर ही दूर हो जाती थी. लेकिन अचानक जैसे सब बदल गया था.­ मीतू न तो उस का टैस्ट करवाना चाहती है. रिषभ अच्छी तरह समझ रहा था कि मीतू नहीं चाहती कि आसपड़ोस में किसी को पता चले कि वह रिषभ को कोरोना टैस्ट के लिए ले गई है और लोगों को यह बात पता चले और उन से दूर रहे. खुद को सोशली बायकोट होते वह नहीं देख सकती थी. मीतू का अपेक्षित व्यवहार रिषभ को और बीमार बना रहा था. उधर मीतू ने आज जब रिषभ सो गया तो उस के कमरे का दरवाजा बंद कर बाहर ताला लगा दिया.

रिषभ दवाई खा कर सो गया था. दोपहर हो गई थी और खाने का वक्त हो रहा था. मीतू अपनी सोच से बाहर निकल चुकी थी. रिषभ की नींद खुली. थोड़ी गरमी महसूस हुई. दवा खाई थी इसलिए शायद पसीना आ गया था. सोचा, थोड़ी देर बाहर लिविंग रूप में बैठा जाए. पैरों में चप्पल पहनी और चल कर दरवाजे तक पहुंच कर हैंडल घुमाया. लेकिन यह क्या दरवाजा खुला ही नहीं. दरवाजा लौक्ड था

“मीतूमीतू, दरवाजा लौक्ड है. देखो तो जरा कैसे हो गया यह.” रिषभ दरवाजा पीटते हुए बोला.

“मैं ने लौक लगाया है,” मीतू ने सपाट सा जवाब दिया.

“दिमाग तो सही है तुम्हारा. चुपचाप दरवाजा खोला.”

‘नहीं तुम 14 दिन तक इस कमरे में ही रहोगे. खानेपीने की चिंता मत करो, वो तुम्हें टाइम से मिल जाएगा,‘ मीतू ने जवाब दिया.

‘मीतू तुम यह सब बहुत गलत कर रही हो.‘

‘कुछ गलत नहीं कर रही. मुझे अपने बच्चे की फिक्र है.‘

‘तो क्या मुझे साहिर की फिक्र नहीं है,‘ रिषभ लगभग रो पड़ा था बोलते हुए.

लेकिन मीतू तो जैसे पत्थर की बन गई थी. आज रिषभ का रोना सुन कर भी उस का दिल पिघला नहीं. कहां रिषभ की हलकी सी एक खरोंच भी उस का दिल दुखा देती थी. रिषभ दरवाजा पीटतेपीटते थक गया तो वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. यह क्या डाला था मीतू ने. बीमारी का भय, मौत के डर ने पतिपत्नी के रिश्ते खत्म कर दिया था. 14 दिन कैसे बीते यह रिषभ ही जानता है. मीतू की उपेक्षा को झेलना किसी दंश से कम न था उस के लिए. मीतू उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगी, वह सोच भी नहीं सकता था. मौत का डर इंसान को क्या ऐसा बना देता है. जबकि अभी तो यह भी नहीं पूरी तौर से पता नहीं कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है भी या नहीं.

मीतू चाहे बेशक सब एहतियात के तौर पर कर रही हो लेकिन पतिपत्नी के बीच विश्वास, प्यार को एक तरफ रख कर उपेक्षा का जो रवैया अपनाया था, उस ने पतिपत्नी के प्यार को खत्म कर दिया था. रिषभ कोरोना नेगेटिव निकला पर उन के रिश्ते पर जो नेगेटिविटी आ गई थी उस का क्या. मीतू दोबारा से रिषभ के करीब आने की कोशिश करती लेकिन रिषभ उस से दूर ही रहता. कोरोना ने उन की जिंदगी को अचानक क्या से क्या बना दिया था. मीतू ने उस दिन दरवाजा लौक नहीं किया था, जिंदगीभर की दोनों की खुशियों को लौक कर दिया था. Emotional Story