कातिल हसीना : लांघी रिश्तों की सीमा – भाग 3

राजेश साधारण पढ़ालिखा युवक था. वह दिल्ली में किसी कंपनी में काम करता था. बात तय होने के बाद 8 जून, 2015 को मुनकी का ब्याह राजेश के साथ हो गया.

शादी के बाद मुनकी अपनी ससुराल में रहने लगी. मुनकी ने जैसे पति का सपना संजोया था, राजेश वैसा ही था. वह उसे खूब प्यार करता था और उस की हर ख्वाहिश पूरी करता था.

मुनकी को ससुराल में वैसे तो हर तरह का सुख था, लेकिन पति की कमी उसे खलती थी. क्योंकि राजेश दिल्ली में प्राइवेट कंपनी में काम करता था. उसे महीने 2 महीने  बाद ही छुट्टी मिल पाती थी. फिर कुछ दिन पत्नी के संग रह कर वह वापस चला जाता था. मुनकी ने पति के साथ रहने की इच्छा जताई तो राजेश ने यह कह उसे कर अपने साथ ले जाने से मना कर दिया कि मांबाप की सेवा कौन करेगा.

मुनकी की ससुराल और मायके में चंद खेतों की दूरी थी. अत: मुनकी का मायके आनाजाना लगा रहता था. वह सुबह मायके जाती तो शाम को ससुराल आ जाती थी. मुनकी की शादी हो जरूर गई थी, लेकिन कंधई सिंह उसे भूला नहीं था. वह अब भी एक तरफा प्यार में उस का दीवाना था. जब भी वह मायके आती थी तो कंधई उसे ललचाई नजरों से देखा करता था. कभीकभी वह उस से हंसीमजाक भी कर लेता था.

कंधई सिंह ने जब देखा कि मुनकी उस की किसी बात का बुरा नहीं मानती तो वह उस की ससुराल भी जाने लगा. उस ने मुनकी के सासाससुर से भी मेलजोल बढ़ा लिया था. वह कंधई को इसलिए घर आने से मना नहीं करते थे, क्योंकि वह उन की बहू का मौसेरा भाई था.

हर तरह का मुनकी को ससुराल में आना पसंद नहीं था लेकिन वह इस वजह से उसे मना नहीं कर पाती थी, क्योंकि उसे डर सता रहा था कि कहीं कंधई पुरानी बातों का जिक्र उस के पति और ससुराल वालों से न कर दे.

कंधई सिंह ने मुनकी देवी की ससुराल आना शुरू किया तो उस ने पुरानी हरकत फिर शुरू कर दी. कभी वह उस से प्यार का इजहार करता तो कभी शारीरिक छेड़छाड़. मुनकी उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करती थी. उस ने कई बार सोचा कि वह सासससुर से कहे कि वह कंधई को घर न आने दें, पर वह हिम्मत नहीं जुटा सकी. इस तरह समय बीतता रहा.

4 फरवरी, 2020 की शाम मुनकी घर में अकेली थी. उस की सास पड़ोस में हो रहे कीर्तन में गई थी और ससुर खेत पर सिंचाई करा रहे थे. तभी कंधई सिंह आ गया. उस ने सूना घर देखा तो उसे मुनकी की देह जीतने का यह सुनहरा मौका लगा. उस ने भीतर से दरवाजे की कुंडी बंद कर ली और अंदर के कमरे में जा कर मुनकी को दबोच लिया.

मुनकी भी अस्मत बचाने के लिए कंधई से भिड़ गई. स्वयं को मुक्त कराने के लिए वह कंधई को गालियां भी बक रही थी. और उस पर थप्पड़ भी बरसा रही थी. लेकिन कंधई उसे बेतहाशा चूमचाट रहा था. किसी तरह मुनकी उस के शैतानी चंगुल से छूट गई और कुंडी खोल कर बाहर आ गई.

इस के बाद कंधई भी नहीं रुका और वहां से चला गया. कुछ देर बाद उस की सास भी आ गई. लेकिन उस ने कंधई की हरकतों की जानकारी अपनी सास को नहीं दी.

देर रात मुनकी के सासससुर गहरी नींद में सो गए तब मुनकी ने अपने पति राजेश को फोन मिलाया और कहा, ‘‘आप तुरंत घर आ जाइए. मैं मुसीबत में हूं. न आए तो मैं अपनी जान दे दूंगी.’’

‘‘पर ऐसी क्या बात हो गई, जो तुम जान देने की बात कर रही हो.’’ राजेश ने पत्नी से पूछा.

‘‘हर बात का जवाब फोन पर नहीं दिया जा सकता. कुछ गंभीर बातें होती हैं, जो आमनेसामने बैठ कर ही की जा सकती हैं. इसलिए तुम फौरन घर आ जाओ.’’ मुनकी ने पति को जवाब दिया.

राजेश, अपनी पत्नी को बेहद प्यार करता था. वह जान गया कि मुनकी किसी बात को लेकर बेहद परेशान है. अत: उस ने घर जाने का निश्चय किया और उसी दिन वह दिल्ली से ट्रेन में बैठ कर घर के लिए चल दिया.

पति को बताई व्यथा

18 घंटे के सफर के बाद राजेश घर पहुंचा तो मुनकी उसे देखते ही फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर बाद जब आंसुओं का सैलाब थमा तो उस ने अपनी व्यथा पति को बताई और बदतमीज मौसेरे भाई कंधई सिंह को सबक सिखाने को उकसाया.

पत्नी की आपबीती सुन कर राजेश का खून खौल उठा. उस ने कंधई को सबक सिखाने की ठान ली. राजेश ने अपने ससुर भीखू को घर बुलाया और सारी बात बता कर सहयोग मांगा. भीखू पहले से ही कंधई पर जलाभुना बैठा था. वह राजेश का साथ देने को राजी हो गया. इस के बाद राजेश, भीखू और मुनकी देवी ने सिर से सिर जोड़ कर कंधई सिंह की हत्या की योजना बताई.

इधर 2-3 दिन बीत गए और मुनकी ने कोई शिकवा शिकायत नहीं की तो कंधई सिंह को लगा कि मुनकी दिखावे का विरोध करती है. दिल से वह भी उस से मिलना चाहती है. अत: अब जब भी मौका मिलेगा वह अपनी इच्छा पूरी कर लेगा. भले ही मुनकी विरोध जताती रहे.

7 फरवरी, 2020 की रात 8 बजे एक बार फिर राजेश भीखू और मुनकी ने आपस में मंत्रणा की. फिर तीनों तेंदुआ बरांव गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय के पास पहुंच गए. राजेश अपने साथ लोहे की रौड ले आया था. राजेश और भीखू स्कूल के पूर्वी छोर पर खेत किनारे घात लगा कर बैठ गए.

योजना के अनुसार मुनकी ने रात लगभग 8 बजे कंधई सिंह से मोबाइल फोन पर बात की और देह मिलन के बहाने उसे प्राथमिक विद्यालय के पूर्वी छोर पर बुला लिया.

कंधई सिंह इस के लिए न जाने कब से तड़प रहा था. सो वह मुनकी के झांसे में आ गया. उस ने पत्नी राधा से कहा कि वह जरूरी काम से जा रहा है. कुछ देर में वापस आ जाएगा. फिर वह घर से निकला और प्राथमिक विद्यालय के पूर्वी छोर पर पहुंच गया. मुनकी उस का ही इंतजार कर रही थी. वह मुनकी से बात करने लगा. तभी घात लगाए बैठे राजेश और भीखू ने उस पर हमला कर दिया.

रौड के प्रहार से कंधई सिंह का सिर फट गया और वह रास्ते में ही गिर पड़ा. इस के बाद भीखू और मुनकी ने कई प्रहार कंधई सिंह के सिर व चेहरे पर किए जिस से उस की मौत हो गई. नफरत और घृणा से भरी मुनकी ने कंधई के गुप्तांग पर भी प्रहार कर उसे कुचल दिया. हत्या करने के बाद राजेश ने कंधई का मोबाइल फोन तोड़ कर वहीं फेंक दिया. फिर वह्य तीनों फरार हो गए.

12 फरवरी, 2020 को थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय ने अभियुक्त राजेश, भीखू तथा मुनकी से पूछताछ करने के बाद उन्हें श्रावस्ती की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित  

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 3

भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था.

भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.

अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ.

भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था.

कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.

घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था.

अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.

नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी.

ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’

दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’

नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा.

नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’

उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया.

मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.

नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया.

दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.

साली की चाल में जीजा हलाल – भाग 3

जीजा की इस हरकत पर रामकली तुनक जाती. प्रेमप्रकाश तब उसे यह कह कर मना लेता कि साली तो वैसे भी आधी घरवाली होती है. रामकली का मूड फिर भी ठीक न होता तो वह उसे हजार 5 सौ रुपए दे कर मना लेता.

प्रेमप्रकाश की पत्नी रेखा 4 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस का रंगरूप भी सांवला था और स्वभाव से वह कर्कश थी. जबकि साली रामकली रसीली थी. उस का रंग गोरा और शरीर मांसल था. रामकली के आगे रेखा फीकी थी, इसलिए प्रेमप्रकाश उस पर लट्टू था और उसे हर हाल में अपना बनाना चाहता था.

दूसरी तरफ रामकली भी अपने पति रामप्रकाश से खुश नहीं थी. 4 बीवियों को भोगने वाले रामप्रकाश में अब वह पौरुष नहीं रहा था, जिस की रामकली कामना करती थी. इसलिए जब रिश्ते में जीजा प्रेमप्रकाश ने उस से छेड़छाड़ शुरू की तो उसे भी अच्छा लगने लगा और वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी.

एक शाम प्रेमप्रकाश रामकली के घर पहुंचा तो वह बनसंवर कर सब्जी लेने सब्जी मंडी जाने वाली थी. प्रेमप्रकाश ने एक नजर इधरउधर डाल कर पूछा, ‘‘भाईसाहब नजर नहीं आ रहे. क्या वह कहीं बाहर गए हैं?’’

‘‘नहीं, बाहर तो नहीं गए हैं, लेकिन जाते समय कह गए थे कि देर रात तक आएंगे.’’

रामकली की बात सुन कर प्रेमप्रकाश की बांछें खिल उठीं. उस ने लपक कर घर का दरवाजा बंद किया, फिर साली को बांहों में भर कर बिस्तर पर जा पहुंचा. रामकली ने कुछ देर बनावटी विरोध किया, फिर खुद ही उस का सहयोग करने लगी.

जीजासाली का अवैध रिश्ता कायम हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. पहले प्रेमप्रकाश, रामप्रकाश की मौजूदगी में ही घर आता था, लेकिन अब वह वक्तबेवक्त और उस की गैरहाजिरी में भी आने लगा.

दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे की बांहों में समा जाते. जीजासाली के अवैध रिश्तों की भनक रामप्रकाश को भले ही न लगी, लेकिन पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. जीजासाली की रासलीला के चर्चे पासपड़ोस की महिलाएं करने लगीं.

रामप्रकाश किराए पर ई-रिक्शा चलाता था. 8-10 घंटे में वह जो भी कमाता था, उस से उस के परिवार का खर्च चलता था. कभीकभी कुछ पैसे पत्नी को भी दे देता था. रामप्रकाश पत्नी पर भरोसा करता था, जबकि रामकली उस के भरोसे को तोड़ रही थी. आखिर एक दिन सच सामने आ ही गया.

उस दिन सुबहसुबह रामकली और पड़ोसन के बीच गली में कूड़ा फेंकने को ले कर तूतू मैंमैं होने लगी. लड़तेझगड़ते दोनों एकदूसरे के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगीं.

रामकली ने पड़ोसन को बदचलन कहा तो उस का पारा चढ़ गया, ‘‘अरी जा, बड़ी सतीसावित्री बनती है. मेरा मुंह मत खुलवा, पति के काम पर जाते ही जीजा की बांहों में समा जाती है. खुद बदलचन है और मुझे कह रही है.’’

दोनों महिलाओं का वाकयुद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा था. संयोग से तभी रामप्रकाश आ गया. उस ने अपनी पत्नी रामकली और पड़ोसन को झगड़ते देखा तो रामकली को ही डांटा, ‘‘आपस में झगड़ते तुम्हें शर्म नहीं आती. चलो, घर के अंदर जाओ.’’

रामकली बड़बड़ाती, पैर पटकती घर के अंदर चली गई. इस के बाद रामप्रकाश पड़ोसन से मुखातिब हुआ, ‘‘रामकली तो अनपढ़, गंवार औरत है लेकिन तुम तो पढ़ीलिखी हो. गली में सरेआम ये तमाशा करना अच्छी बात है क्या?’’

पड़ोसन का गुस्सा काबू के बाहर था. वह हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘भाईसाहब, आप रामकली को सीधा समझते हैं, जबकि वह सीधेपन की आड़ में आप को बेवकूफ बना कर गुलछर्रे उड़ाती है.’’

रामप्रकाश की खोपड़ी सांयसांय करने लगी. उसे लगा कि पड़ोसन के सीने में जरूर कोई संगीन राज दफन है, जो गुस्से में बाहर आने को बेताब है. अत: उस ने पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं, साफसाफ कहिए.’’

‘‘भाईसाहब, मैं आप से कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन आप जब जानना ही चाहते हैं तो सुनिए. दरअसल आप की बीवी रामकली ने मोहल्ले में गंदगी फैला रखी है. आप की गैरमौजूदगी में प्रेमप्रकाश नाम का एक आदमी, जिसे रामकली अपना जीजा बताती है, आ जाता है. उस के आते ही दरवाजा अंदर से बंद हो जाता है. फिर आप के आने से कुछ देर पहले ही दरवाजा खुलता है और वह चला जाता है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता है, यह पूरी गली को मालूम है.’’

रामप्रकाश सन्नाटे में आ गया. उस की गैरमौजूदगी में रामकली ऐसा भी कुछ कर सकती है, वह सोच भी नहीं सकता था. अपमानबोध तथा शर्म से रामप्रकाश का सिर झुक गया. वह बुझी सी आवाज में बोला, ‘‘बहुत अच्छा किया आप ने जो सारी बातें मेरी जानकारी में ला दीं.’’

रामप्रकाश की जानकारी में ऐसा बहुत कम हुआ था, जब प्रेमप्रकाश उस की गैरमौजूदगी में आया हो. प्रेमप्रकाश उसे फोन कर के पहले पूछ लेता था कि वह घर में है या नहीं.

उस के बाद ही वह आता था. जबकि उस महिला ने बताया कि प्रेमप्रकाश उस की गैरमौजूदगी में आता है. उस के आते ही रामकली दरवाजा बंद कर लेती है.

इस के बाद रामप्रकाश अपने घर में दाखिल हुआ और रामकली को सीधे सवालों के निशाने पर ले लिया, ‘‘सुना तुम ने, पड़ोसन तुम्हारे बारे में क्या कह रही थी?’’

‘‘हां, उस की भी बात सुनी और तुम्हारी भी सुन ली.’’ रामकली पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘बड़े शरम की बात है कि वो कलमुंही मुझ पर इलजाम लगाती रही और तुम चुपचाप सुनते रहे. तुम्हें तो उस समय उस का मुंह नोंच लेना चाहिए था.’’

रामप्रकाश के सब्र का पैमाना छलक गया. वह दांत किटकिटाते हुए बोला, ‘‘रामकली, यह बताओ तुम पहले से झूठी और बेशर्म थी या मेरे घर आ कर हो गई?’’

रामकली की घबराहट चेहरे पर तैरने लगी. वह बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम सच पर परदा डालने की कोशिश मत करो. बताओ, तुम्हारा और प्रेमप्रकाश का चक्कर कब से चल रहा है?’’

रामकली पति के सवालों का जवाब देने के बजाए खुद को सही साबित करने के लिए इधरउधर की बातें करती रही.

पति का गुस्सा देख कर रामकली समझ गई कि अगर उस ने सच नहीं बताया तो रामप्रकाश पीटपीट कर उस की जान ले लेगा. अत: उस ने जमीन पर बैठ कर हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘अब बस करो, मैं सब बता देती हूं.’’

इस के बाद रामकली का मुंह खुला. उस ने सच्चाई तो बताई लेकिन अपनी चाल का पेंच फंसा दिया. उस ने प्रेमप्रकाश से नाजायज रिश्ता तो मान लिया लेकिन आरोप उसी पर मढ़ दिया कि वह उसे जबरदस्ती अपनी हवस का शिकार बनाता है. उस ने इसलिए मुंह बंद रखा कि उन दोनों की दोस्ती न टूटे.

भाग आंखों में खटका बेटी का प्यार – 2

प्रीति रोज कालेज जाती थी. एक दिन रास्ते में खड़ा हो कर वह प्रीति का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर में प्रीति आती दिखाई दी. उसे देखते ही राहुल के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. जैसे ही उस की नजरें प्रीति से टकराईं, उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. प्रीति ने उसे देख लिया था. वह राहुल के पास आ कर धीरे से मुसकराई और सामने से गुजर गई.

राहुल ने भी प्रीति के पीछे अपने कदम बढ़ा दिए. उस ने आसपास देखा और फि़र आहिस्ता से उसे आवाज दी, ‘‘प्रीतिजी!’’

प्रीति को भी आभास था कि राहुल उस के पीछे आ रहा है. लिहाजा चौंकने के बजाय उस पर नजर पड़ते ही प्रीति बोली, ‘‘त…तुम, मेरा मतलब आप..?’’

‘‘पहला संबोधन ही रहने दो, मुझे वही अच्छा लगता है.’’ राहुल ने उस के बराबर में आते हुए कहा.

‘‘सम्मान में बोलना चाहिए,’’ प्रीति बोली.

‘‘खैर छोडि़ए इन बातों को.’’ राहुल ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा,‘‘आज इतनी देर कैसे हो गई आप को?’’

‘‘रात देर तक जागती रही, इसलिए सुबह देर से आंख खुली.’’ प्रीति ने शोखी से जवाब दिया.

‘‘मैं तो पूरी रात नहीं सो सका, सुबह के वक्त नींद आई.’’

‘‘क्या रात भर पढ़ते रहे?’’

‘‘हां, रात भर मैं तुम्हारे चेहरे की हसीन किताब अपनी आंखों के सामने रख कर पन्ने पलटता रहा.’’ राहुल ने कहा तो प्रीति ने शरमा कर अपना चेहरा झुका लिया. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘इस तरह की बात न करो.’’

‘‘क्यों, क्या मेरी बात अच्छी नहीं लगी?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. आप की बातें रात को मुझे परेशान करेंगी. अब आप जाओ, कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें एक वादा करना होगा.’’

प्रीति चौंकी,‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि कल फिर मिलोगी.’’

‘‘देखूंगी.’’ कह कर प्रीति आगे बढ़ गई. राहुल उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उस दिन राहुल का किसी काम में मन नहीं लगा. रात भी जैसेतैसे गुजरी. अगले दिन वह फिर उसी निर्धारित जगह जा पहुंचा. थोड़ी ही देर में प्रीति वहां आई तो वह भी उस के साथ हो लिया.

‘‘एक बात कहूं प्रीति?’’

‘‘कहो.’’

‘‘किसी से मिलने की चाहत हो या उस की एक झलक पाने की तड़प, बहुत अजीब सा लगता है न?’’ राहुल ने गंभीरता ने कहा तो प्रीति बोली, ‘‘पहेलियां क्यों बुझाते हो? जो कहना है, साफसाफ कहो.’’

‘‘सच कह दूं.’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और…’’ राहुल कुछ और भी कहना चाहता था, लेकिन प्रीति ने अपनी तर्जनी उस के होंठों पर रख कर चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘सड़क पर सब को सुनाओगे क्या?’’ इसी के साथ उस के गालों पर सुर्खी दौड़ गई.

राहुल की खुशी का पारावार न रहा. वह प्रीति से बोला, ‘‘मेरी बात का जवाब नहीं दोगी?’’

‘‘क्या जवाब दूं?’’ प्रीति ने उल्टा प्रश्न किया.

‘‘जो तुम्हें अच्छा लगे.’’ राहुल बोला.

‘‘मुझे तो सभी कुछ अच्छा लगता है.’’

‘‘फिर भी.’’

‘‘इतने नासमझ तो नहीं हो, जो आंखों की भाषा भी न पढ़ सको. जरूरी नहीं कि जुबां से प्यार का इजहार किया जाए.’’

प्रीति की बात सुनते ही राहुल खुशी से झूम उठा. उस ने आसपास देखा, फिर प्रीति की कलाई पकड़ कर उस ने धीरे से दबा दी.

राहुल के ऐसा करने से प्रीति के शरीर में सिहरन दौड़ गई. उस ने जल्दी से अपनी कलाई छुड़ा ली.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो, प्रीति.’’

‘‘देखने वाले की नजर अच्छी हो तो सभी अच्छे लगते हैं.’’

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को हसरत भरी नजरों से देखा और अलगअलग रास्तों पर चले गए. फिर दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. हालांकि दोनों अपने प्रेमसंबंधों को ले कर काफी सावधानी बरतते थे. मगर गांव में उन्हें ले कर कानाफूसी होने लगी थी.

दूसरी तरफ प्रीति ने हिम्मत कर के अपनी मां रमा से राहुल से शादी करने की बात बताई तो वह चीखती हुई बोली, ‘‘करमजली, इसी दिन के लिए तुझे पालपोस कर बड़ा किया था कि तू सरेराह नाक कटवाती घूमे. फिर जिस रिश्ते की कोई मंजिल नहीं, उस के बारे में बात करना ही बेकार है.’’

रमा उसे समझाते हुए बोली, ‘‘बेटी, देख हम तेरे दुश्मन नहीं हैं, इसलिए तुझे अच्छी शिक्षा ही देंगे. मेरी बात मान कर उसे भूल जा. वैसे भी रिश्ते में तू उस की मौसी लगती है, इसलिए तेरा विवाह उस से नहीं हो सकता. अपनी बिरादरी में कोई अच्छा लड़का देख कर तेरी शादी धामधाम से करेंगे.’’

‘‘तो एक बात मेरी भी कान खोल कर सुन लो. अगर हमारे दरवाजे पर राहुल के अलावा कोई और बारात ले कर आया तो इस घर से मेरी अर्थी ही उठेगी.’’ कह कर प्रीति पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गई. उस के बाद वह हिचकियां लेकर रो पड़ी.

इन सब अड़चनों के बीच प्रीति और राहुल काफी चिंताग्रस्त रहने लगे. इन्हीं परेशानियों से घिर कर राहुल ने प्रीति के पिता राजू से जब विवाह की बाबत बात की तो वह एकाएक भड़क उठे, ‘‘अभी तक लोगों से तुम्हारी आवारगी के बारे में ही सुन रखा था, तुम तो चरित्र के भी गिरे निकले. तुम दोनों के बीच ऐसा रिश्ता है कि शादी तो संभव ही नहीं है. कान खोल कर सुन लो, आज के बाद तुम मेरी बेटी से नहीं मिलोगे.’’

राजू जानता था कि लाख चेतावनी के बाद भी दोनों मानेंगे नहीं, मिलेंगे जरूर. इसलिए वह प्रीति को अपने साथ सूरत ले गया. वहां एक निजी स्कूल में उस की अध्यापिका के पद पर नौकरी लगवा दी. राहुल भी दिल्ली चला गया और वहां प्राइवेट नौकरी करने लगा.

राहुल और प्रीति मिल तो नहीं पाते थे लेकिन मोबाइल पर बातें कर लेते थे. इस बातचीत के दौरान ही दोनों ने परिजनों से बिना बताए विवाह करने का फैसला कर लिया.

अक्षम्य अपराध : कृष्णा को बनाया शिकार – भाग 2

उन्होंने गांव वालों की उपस्थिति में मिट्टी हटाई तो अंदर उन के बेटे कृष्णा की ही लाश निकली. लाश देखते ही वे लोग भी आश्चर्य में पड़ गए.

कुछ देर बाद सत्येंद्र ने थाना रसूलपुर पुलिस को अपने लापता बच्चे की लाश पाए जाने की सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय एसआई सविता सेंगर, कांस्टेबल कन्हैयालाल, अक्षय कुमार, वंदना कुमारी व रचना को साथ ले कर गांव बड़ा लालपुर के लिए रवाना हो गए. रवाना होने से पहले उन्होंने इस संबंध में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था.

जिस समय थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय बड़ा लालपुर दुर्गामाता मंदिर के पास पहुंचे, उस समय वहां लोगों की भारी भीड़ जुटी थी. वह उस जगह पहुंचे, जहां मासूम बालक लौकिक उर्फ कृष्णा का शव पड़ा था.

बच्चे का शव देख कर उन्हें आशंका हुई कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या 2 दिन पहले ही कर दी गई थी. यानी जिस दिन कृष्णा का अपहरण किया गया उसी दिन उसे मार दिया गया. शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं थे, जिस से स्पष्ट था कि उस की हत्या तंत्रमंत्र के चलते नहीं की गई थी.

थानाप्रभारी अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी सचींद्र पटेल, एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार, एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह तथा सीओ (सिटी) इंदुप्रभा घटनास्थल पर आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने मृत बच्चे के मातापिता से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया कि जल्द ही हत्यारा पुलिस की गिरफ्त में होगा.

निरीक्षण के दौरान एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने पाया कि जिस जगह बच्चे का शव दफन था, उसी के पास एक 2 मंजिला मकान था. उन के मन में शक पैदा हुआ तो उन्होंने उस मकान के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह मकान कृष्णा के ताऊ महेश कुमार का ही है.

डौग स्क्वायड टीम ने भी जांच शुरू की. खोजी कुतिया को घटनास्थल पर छोड़ा गया तो वह कृष्णा के शव को सूंघ कर महेश के मकान की ओर भागी. मकान की दूसरी मंजिल पर पहुंच कर कुतिया एक कमरे में जा कर भौंकने लगी.

टीम के सदस्यों ने कमरे की जांच की तो वहां उन्हें मानव सड़ांध महसूस हुई. टीम के सदस्यों को समझते देर नहीं लगी कि बालक कृष्णा की हत्या इसी कमरे में की गई फिर जब लाश से बदबू आने लगी तो लाश दफन कर दी गई.

डौग स्क्वायड टीम ने अपनी जांच से पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया तो वे चौंके. एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह व सीओ इंदुप्रभा ने मकान मालिक महेश यादव से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मकान में वह अपनी पत्नी नीतू यादव तथा बेटे भानु के साथ रहता है.

उस की 10 वर्षीय बेटी गार्गी की 3 सितंबर को संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी. बड़ी बेटी रितु हरिद्वार में पढ़ती है. जमालपुर में हमारा शराब ठेका है. उसी ठेके पर हम तीनों भाई काम करते हैं. महेश कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘सर, आप लोग मुझ से यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारे भतीजे कृष्णा की हत्या तुम्हारे मकान में ही की गई थी.’’ एसपी (सिटी) ने कहा.

‘‘सर, यह आप क्या कह रहे हैं?’’ महेश बुरी तरह चौंका.

‘‘हम बिलकुल सही कह रहे हैं, इसलिए तुम्हें और तुम्हारी पत्नी नीतू को थाने चलना होगा. वहां सब स्पष्ट हो जाएगा.’’

इस के बाद पुलिस ने महेश व उस की पत्नी नीतू को हिरासत में ले लिया और महेश के मकान को सील बंद कर दिया ताकि कोई सबूतों से छेड़छाड़ न कर सके.

पुलिस ने कृष्णा के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उपद्रव की आशंका को देखते हुए अधिकारियों ने गांव में फोर्स भी तैनात कर दी.

पुलिस ने महेश तथा उस की पत्नी नीतू से दिन भर पूछताछ की लेकिन दोनों टस से मस नहीं हुए. महेश ने बताया कि कृष्णा उस का भतीजा था. वह उसे बेहद प्यार करता था. उसे कंधों पर बिठा कर खूब घुमाया था. उस की हत्या के बाबत वह सपने में भी नहीं सोच सकता.

मैं उस रोज ठेके पर ही था. साथ में सत्येंद्र और कुलदीप भी थे. आप उन दोनों से ही पूछ लीजिए. कृष्णा के लापता होने की खबर मिलने के बाद हम तीनों घर आ गए थे.

महेश के बयान से पुलिस अधिकारियों को लगा कि यदि वह सच बोल रहा है तो कातिल उस की पत्नी नीतू है. सीओ इंदुप्रभा ने नीतू से सख्ती से पूछताछ की.

कड़ी पूछताछ में नीतू टूट गई और उस ने मासूम बच्चे लौकिक उर्फ कृष्णा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि देवरानी शशि द्वारा ताने मारे जाने से वह गुस्से से भर गई थी, फिर गुस्से में ही उस ने कृष्णा की हत्या कर दी थी. हत्या की जानकारी उस के पति महेश को नहीं थी. नीतू द्वारा जुर्म स्वीकार करने के बाद पुलिस ने महेश को थाने से घर भेज दिया.

नीतू ने जुर्म कबूला तो एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह व सीओ इंद्रप्रभा ने थाना रसूलपुर में संयुक्त प्रैस कौन्फ्रैंस की. पुलिस ने हत्यारोपी नीतू यादव को मीडिया के समक्ष पेश कर मासूम बच्चे लौकिक उर्फ कृष्णा की हत्या का खुलासा कर दिया.

चूंकि नीतू ने लौकिक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने भादंवि की धारा 363, 302, 201 के तहत नीतू यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. पुलिस जांच में विवेकशून्य ताई के अक्षम्य अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना रसूलपुर के क्षेत्र में एक गांव है बड़ा लालपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में महेश कुमार, सत्येंद्र कुमार तथा कुलदीप 3 भाई रहते थे.

भाइयों में सब से बड़ा महेश था. पढ़लिख कर जब वह जवान हुआ तो उस ने घर की माली हालत सुधारने के लिए प्रयास तेज कर दिए. वह तेज दिमाग का था. वह कोई ऐसा धंधा करना चाहता था, जिस में आमदनी अच्छी हो. उस ने इस बारे अपने मित्रों से सलाहमशविरा किया तो उन्होंने शराब ठेका चलाने की सलाह दी.

पर शराब का ठेका मिलना आसान नहीं था. ठेका बोली में अच्छीखासी पूंजी भी लगानी थी. लेकिन महेश ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने ठान लिया कि वह ठेका हासिल कर के ही दम लेगा.

महेश ने एक ओर पूंजी जुटाई तो दूसरी ओर आबकारी विभाग के अधिकारियों से संपर्क बनाया. पूरी गोटियां बिछाने के बाद आखिर नीलामी में उसे शराब का ठेका मिल ही गया.

महेश ने अपने गांव से कुछ दूरी पर जमालपुर में शराब बिक्री का काम शुरू किया. गांव में देशी शराब की बिक्री खूब होती है, अत: महेश के ठेके पर भी खूब बिक्री होने लगी. महेश ने अपने भाई सत्येंद्र व कुलदीप को भी ठेके के काम पर लगा लिया था. सत्येंद्र ठेके पर सेल्समैन के रूप में काम करता था. कुलदीप कभी काउंटर पर बैठता था तो कभी अन्य व्यवस्थाएं देखता था.

प्यार में जहर का इंजेक्शन – भाग 3

सविता अनीश की बीवी से मिली और उसे अपने और अनीश के प्रेमसंबंधों के बारे में बता दिया. यही नहीं, उस ने अनीश के साथ के अपने कुछ फोटो भी उसे दिखा दिए. फोटो देख कर अनीश की पत्नी को बहुत गुस्सा आया. शाम को उस ने अनीश से पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया.

चूंकि वह सविता के साथ उस के फोटो देख चुकी थी, इसलिए वह उस पर भड़क उठी. दोनों के बीच जम कर नोकझोंक हुई. इस का नतीजा यह निकला कि अनीश की नवविवाहिता उसे छोड़ कर मायके चली गई. वह आज तक लौट कर ससुराल नहीं आई है.

अनीश की पत्नी के चली जाने से सविता बहुत खुश हुई, क्योंकि उस के और अनीश के बीच जो दीवार खड़ी हो गई थी, वह गिर चुकी थी. लिहाजा दोनों के बीच फिर पहले की तरह संबंध हो गए. पर ये संबंध ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सके. सविता के पिता की हालत दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी. उन की इच्छा थी कि अपने जीतेजी वह सविता के हाथ पीले कर दें.

किसी रिश्तेदार से उन्हें रवि कुमार के बारे में पता चला. रवि कुमार उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के कुआंगई गांव के रहने वाले प्रमोद कुमार का बेटा था. प्रमोद कुमार सेना से रिटायर होने के बाद कानपुर की किसी कंपनी में नौकरी कर रहे थे. रवि कुमार दिल्ली के सदर बाजार स्थित कोटक महिंद्रा बैंक में कैशियर था.

लड़की लड़का पसंद आने के बाद सुरेशचंद्र और प्रमोद कुमार ने बातचीत कर के 13 जुलाई, 2016 को सामाजिक रीतिरिवाज से उन की शादी कर दी. हालांकि सविता अनीश से ही शादी करना चाहती थी, लेकिन रिश्ता तय होने के बाद पिता की भावनाओं को ठेस पहुंचाना उस ने उचित नहीं समझा. शादी के बाद वह मैनपुरी स्थित अपनी ससुराल चली गई.

शादी के बाद सविता ने अनीश से संबंध खत्म कर लिए और पूरी तरह से ससुराल में रम गई. उस की शादी हो जाने से अनीश जल बिन मछली की तरह तड़पने लगा. सविता की वजह से ही उस की बसीबसाई गृहस्थी उजड़ी थी और अब वही उसे धोखा दे कर चली गई थी. इस का उसे बड़ा दुख हुआ.

अनीश ने सविता से बात की तो उस ने उसे अपनी मजबूरी बता दी. उस ने पति के बारे में सब कुछ बता कर वाट्सएप से उस का फोटो भी भेज दिया. जबकि वह उस की एक भी बात सुनने को तैयार नहीं था. उस ने सविता पर पति से तलाक लेने का दबाव बनाया, लेकिन वह तैयार नहीं हुई. कुल मिला कर किसी भी तरह से वह पति को छोड़ने को तैयार नहीं थी.

अनीश तो सविता के प्यार में जैसे पागल था. उस के बिना हर चीज उसे बेकार लगती थी. उस ने सदर बाजार जा कर एक बार रवि कुमार से मुलाकात भी की. उस ने उसे अपने और सविता के प्यार के बारे में बता भी दिया. इस पर रवि ने उस से कहा कि सविता शादी से पहले क्या करती थी, इस से उसे कोई मतलब नहीं है. वह उस के अतीत को नहीं जानना चाहता, अब वह उस की पत्नी है और अपनी जिम्मेदारियां ठीक से निभा रही है.

अनीश को रवि कुमार की बातों पर हैरानी हुई. वह सोचने लगा कि यह कैसा आदमी है, जो पत्नी की सच्चाई जान कर भी चुप है. बहरहाल निराश हो कर वह घर लौट आया. कहते हैं, जिम करने से ब्रेकअप का दर्द कम हो जाता है, पर अनीश तो खुद जिम टे्रनर था. इस के बावजूद वह सविता से बिछुड़ने की पीड़ा नहीं भुला पा रहा था. वह सविता को पाने के उपाय खोजने लगा.

ऐसे में ही उस के दिमाग में आइडिया आया कि अगर वह रवि की हत्या करा दे तो सविता उसे मिल सकती है. यही उसे उचित लगा. वह रवि को ठिकाने लगाने का ऐसा उपाय खोजने लगा, जिस से उस पर कोई आंच न आए. वह तरीका कौन सा हो सकता है, इस के लिए वह इंटरनेट पर सर्च करने लगा. उस ने तमाम तरीके देखे, पर हर तरीके में बाद में कातिल पकड़ा गया था.

वह ऐसे तरीके की तलाश में था, जिस में कातिल पकड़ा न गया हो. इंटरनेट पर महीनों की सर्च के बाद आखिर उसे वह तरीका मिल गया. लंदन और जर्मनी में 2 हत्याएं हुई थीं, जो पिन चुभो कर की गई थीं. पिन द्वारा जहर उन के शरीर में पहुंचाया गया था और वे मर गए थे. ठीक इसी तरह शीतयुद्ध के दौरान बुल्गारिया के रहने वाले बीबीसी के पत्रकार जर्जेई मर्कोव की हत्या की गई थी.

मर्कोव कम्युनिस्टों की निगाह में था. उन्होंने उसे मारने का फतवा भी जारी किया था. मर्कोव बस में जा रहा था, तभी एक हट्टेकट्टे आदमी ने एक छाता उस के ऊपर गिरा दिया था. इस के लिए उस आदमी ने मर्कोव से सौरी भी कहा था. मर्कोव ने भी सोचा कि छाता गलती से गिर गया होगा. लिहाजा उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया.

मर्कोव की जांघ में कुछ चुभा था, जहां उस ने हाथ से मसला भी था. 3 दिनों बाद उसे बहुत तेज बुखार आया और वह मर गया. यह बात सन 1978 की थी. जेम्स बौंड स्टाइल में उस छाते के पिन में रिसिन जहर लगाया गया था. रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ने इसे ईजाद किया था.

इस मामले में कोई पकड़ा नहीं जा सका था. इटली के जासूस पिकोडिली पर आरोप लगा था, पर कुछ साबित नहीं हो पाया था. मर्कोव खुद भी एक कैमिकल इंजीनियर था. अनीश को यह तरीका सब से अच्छा लगा.

इस के बाद वह ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा, जो उस का यह काम कर सके. वह जहर कहां से लाए, यह भी उस के लिए समस्या थी. इस के लिए वह किसी डाक्टर की तलाश करने लगा, क्योंकि पढ़ाई के दौरान डाक्टरों को जहर के बारे में भी पढ़ाया जाता है. कोई डाक्टर उस का यह काम करने को तैयार हो जाएगा, इस बात का शंशय उस के मन में था. अनीश का एक दोस्त था डा. प्रेम सिंह. वह फिजियोथैरेपिस्ट था. प्रेम सिंह जालौन का रहने वाला था. करीब 4 साल पहले वह दिल्ली आया था. गाजियाबाद के एक इंस्टीट्यूट से फिजियोथैरेपिस्ट का कोर्स करने के बाद द्वारका के पालम विहार में उस ने अपना क्लीनिक खोला था, पर उस का काम ज्यादा अच्छा नहीं चल रहा था.

कातिल बहन की आशिकी : क्या था पूजा का गुनाह – भाग 2

थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने अवध पाल से पूछताछ की तो उस ने पूजा से प्रेम संबंधों को तो स्वीकार कर लिया, पर हत्या व लाश ठिकाने लगाने में शामिल होने से साफ मना कर दिया. अनिल ने भी वारदात में शामिल होने से इनकार किया. उस ने कहा कि अवध पाल उस का दोस्त है. अवध पाल व पूजा की दोस्ती को मजबूत करने में उस ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. लेकिन रचना की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

पूजा के इस कथन पर पुलिस को यकीन तो नहीं हुआ, फिर भी जांच करने के लिए पुलिस पूजा के घर पहुंची. पुलिस ने कमरे में लगे पंखे को देखा, उस पर धूल जमी थी और उस के ब्लेड जैसे के तैसे थे. रस्सी या दुपट्टा भी नहीं मिला. कमरे में पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं था, जिस से साबित होता कि रचना ने फांसी लगाई थी.

पुलिस को लगा कि पूजा बेहद शातिर है. वह पुलिस से झूठ बोल रही है. लिहाजा महिला पुलिसकर्मियों ने पूजा से सख्ती से पूछताछ की तो जल्द ही उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बहन रचना की हत्या कर डेडबौडी खुद ही तालाब में फेंकी थी. पूजा से पूछताछ के बाद उस की छोटी बहन की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में एक गांव है सराय एसर. शहर से नजदीक बसे इसी गांव में श्याम सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सर्वेश कुमारी के अलावा एक बेटा था विवेक तथा 2 बेटियां थीं पूजा और दीपांशी उर्फ रचना. श्याम सिंह यादव शहर के एक प्राइवेट स्कूल में वैन चलाता था. स्कूल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण हो रहा था.
श्याम सिंह के बच्चों में पूजा सब से बड़ी थी. चेहरेमोहरे से वह काफी सुंदर थी. पूजा जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. उस के हुस्न ने बहुतों को दीवाना बना दिया था. अवध पाल भी पूजा का दीवाना था.

अवध पाल ने पूजा पर डाले डोरे

अवध पाल यादव, सरैया चुंगी पर रहता था. उस के भाई वीरपाल की दूध डेयरी थी. अवध पाल भी भाई के साथ दूध डेयरी पर काम करता था. अवध पाल का एक दोस्त अनिल यादव था जो सराय एसर में रहता था. अनिल, पूजा के परिवार का था और पूजा के घर के पास ही रहता था. अवध पाल का अनिल के घर आनाजाना था. उस के यहां आतेजाते ही अवध पाल की नजर पूजा पर पड़ी थी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा था.

अवध पाल भाई के साथ खूब कमाता था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. अवध पाल जिस चाहत के साथ पूजा को देखता था, उसे पूजा भी समझती थी. उस की नजरों से ही वह उस के मन की बात भांप चुकी थी. धीरेधीरे पूजा भी उस की दीवानी होने लगी. उस के मन में भी अवध पाल के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

पूजा पंचशील इंटर कालेज में पढ़ती थी. इसी कालेज में उस की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना भी पढ़ती थी. पूजा इंटरमीडिएट की छात्रा थी जबकि दीपांशी 10वीं में पढ़ रही थी. पूजा घर से पैदल ही स्कूल जाती थी.

अवध पाल ने जब से पूजा को देखा था, तब से उस ने उसे अपने दिल में बसा लिया था. पूजा के स्कूल आनेजाने के समय वह उस के पीछेपीछे स्कूल तक जाता था. पूजा भी उसे कनखियों से देखती रहती थी.

पूजा की इस अदा से अवध पाल समझ गया कि पूजा भी उसे चाहने लगी है. दोनों के दिलों में प्यार की हिलोरें उमड़ने लगीं. प्यार के समंदर को भला कौन बांध कर रख सका है. वैसे भी कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

अवध पाल को पीछे आते देख कर एक दिन पूजा ठिठक कर रुक गई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. पूजा के अचानक रुकने से अवध पाल भी चौंक कर ठिठक गया. आखिर उस से रहा नहीं गया और वह लंबेलंबे डग भरता हुआ पूजा के सामने जा कर खड़ा हो गया.
‘‘तुम आजकल मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’ पूजा ने माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर अवध पाल से पूछा.
‘‘तुम से एक बात कहनी थी पूजा.’’ अवध पाल ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
तभी अवध पाल ने अपनी जेब से कागज की एक परची निकाली और पूजा को थमा कर बोला, ‘‘घर जा कर इसे पढ़ लेना, सब समझ में आ जाएगा.’’
मन ही मन मुसकराते हुए पूजा ने वह कागज ले लिया और बिना कुछ बोले अपने घर चली गई. हालांकि पूजा को इस बात का अहसास था कि उस परची में क्या लिखा होगा, फिर भी वह उसे पढ़ कर अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाहती थी.

घर पहुंच कर पूजा ने अपने कमरे में जा कर अवध पाल का दिया हुआ कागज निकाल कर पढ़ा. उस पर लिखा था, ‘मेरी प्यारी पूजा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हें देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता. इसीलिए अकसर स्कूल तक तुम्हारे पीछे आता हूं. तुम अगर मुझे न मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा अवध पाल सिंह.’

पत्र पढ़ कर पूजा के दिल के तार झनझना उठे. उस की आकांक्षाओं को पंख लग गए. उस दिन पूजा ने उस पत्र को कई बार पढ़ा. पूजा के मन में सतरंगी सपने तैरने लगे थे. उसी दिन रात को पूजा ने अवध पाल के नाम एक पत्र लिखा.

पत्र में उस ने सारी भावनाएं उड़ेल दीं, ‘प्रिय अवध पाल, मैं भी तुम से इतना प्यार करती हूं जितना कभी किसी ने नहीं किया होगा. कह इसलिए नहीं सकी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम्हारे बिना मैं भी जीना नहीं चाहती. मैं तो चाहती हूं कि हर समय तुम्हारी बांहों के घेरे में बंधी रहूं. तुम्हारी पूजा.’

उस दिन मारे खुशी के पूजा को नींद नहीं आई. अगली सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से निकली तो अवध पाल उसे पीछेपीछे आता दिखाई दिया. दोनों की नजरें मिलीं तो वे मुसकरा दिए. पूजा बेहद खुश नजर आ रही थी. सावधानी से पूजा ने अपना लिखा खत जमीन पर गिरा दिया और आगे चली गई.

पीछेपीछे चल रहे अवध पाल ने इधरउधर देखा और उस पत्र को उठा कर दूसरी तरफ चला गया. एकांत में जा कर उस ने पूजा का पत्र पढ़ा तो खुशी से झूम उठा. जो हाल पूजा के दिल का था, वही अवध पाल का भी था. पूजा ने पत्र का जवाब दे कर उस का प्यार स्वीकार कर लिया था.

शुरू हो गई प्रेम कहानी

दोपहर बाद जब कालेज की छुट्टी हुई तो पूजा ने गेट पर अवध पाल को इंतजार करते पाया. एकदूसरे को देख कर दोनों के दिल मचल उठे. वे दोनों एक पार्क में जा पहुंचे.
पार्क के सुनसान कोने में बैठ कर दोनों ने अपने दिल का हाल एकदूसरे को कह सुनाया. पार्क में कुछ देर प्यार की अठखेलियां कर के दोनों घर लौट आए. दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर दोनों अकसर मिलने लगे.

अंजाम ए मोहब्बत : पिता कैसे बने दोषी – भाग 2

इस हत्या की क्या वजह हो सकती है, जानने के लिए पुलिस ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को थाने बुलाया. उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मीनाक्षी की हत्या उस के पिता राजकुमार चौरसिया ने की है, क्योंकि मीनाक्षी ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से लवमैरिज की थी. इस बात से उस के घर वाले नाराज थे.

चूंकि बृजेश ने सीधा आरोप अपने ससुर राजकुमार पर लगाया था, इसलिए पुलिस उसे तलाश करने लगी. लेकिन वह अपने घर से फरार मिला. आखिर राजकुमार चौरसिया के मोबाइल फोन की लोकेशन के सहारे पुलिस उस के पास पहुंच ही गई और उसे उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज में स्थित उस के पैतृक घर से दबोच लिया.

मुंबई ला कर उस से उस की बेटी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो राजकुमार ने अपनी बेटी की हत्या के मामले में अनभिज्ञता जाहिर की लेकिन पुलिस टीम ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह टूट गया और तोते की तरह बोलते हुए अपना गुनाह स्वीकार लिया.

इस के बाद पुलिस ने राजकुमार चौरसिया को कोर्ट में पेश कर 7 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से की गई पूछताछ के बाद मीनाक्षी चौरसिया हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी—

55 वर्षीय राजकुमार चौरसिया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

गांव में उस के परिवार की सिर्फ नाममात्र की काश्तकारी थी. उस का पुश्तैनी काम पान बेचने का था. गांव के बाजारों से जो आमदनी होती थी, उस से ही घर और परिवार की रोजीरोटी चलती थी. इस आमदनी से राजकुमार संतुष्ट नहीं था.

लिहाजा अपनी रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर महानगर मुंबई चला आया. क्योंकि यहां उस के इलाके के और भी लोग काम करते थे. मुंबई शहर के बारे में उस ने यह सुन रखा था कि वह एक ऐसा शहर है, जहां मेहनत करने वाला इंसान कभी भूखा नहीं सोता है.

उन दिनों मुंबई की सूरत आज जैसी नहीं थी. न तो भीड़ थी और न जमीनों की कीमत आसमान छू रही थी. उस समय वहां आदमी को मामूली किराए पर दुकान और घर मिल जाते थे.

राजकुमार चौरसिया ने 2-4 दिन इधरउधर भटकने के बाद घाटकोपर नारायणनगर में अपना पुश्तैनी काम करने के लिए एक खोखा लगा लिया, जो धीरेधीरे एक पान की दुकान में बदल गया था.

कुछ ही दिनों में उस की दुकान चल निकली और उस से अच्छी कमाई होने लगी. जिस से उस ने अपने रहने के लिए दुकान के पास ही अपना एक घर ले लिया. इस के अलावा वह अपनी कमाई से घरपरिवार की भी मदद करने लगा था, जिस से घर की आर्थिक स्थिति भी पटरी पर आने लगी थी.

इस के बाद राजकुमार की शादी भी हो गई. शादी के थोड़े दिनों बाद वह अपनी पत्नी को भी मुंबई बुला लाया. समयसमय पर वह अपने गांव जाता रहता था, जिस से गांव के लोगों से उस का संपर्क बना रहा.

समय अपनी गति से बीतता गया और राजकुमार 3 बच्चों का पिता बन गया. 20 वर्षीय मीनाक्षी राजकुमार की सब से छोटी और लाडली बेटी थी. उस से बड़े उस के 2 बेटे थे. मीनाक्षी पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. वह जवान हुई तो राजकुमार को उस की शादी की चिंता हुई. वह बेटी के योग्य वर की तलाश में लग गया.

जहां एक तरफ राजकुमार मीनाक्षी के लिए वर की तलाश में था, वहीं मीनाक्षी ने अपने लिए बृजेश चौरसिया को चुन लिया था. 27 वर्षीय बृजेश चौरसिया उस की जाति बिरादरी का था. वह भी प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

सन 2016 में जब बृजेश चौरसिया अपना गांव छोड़ कर महानगर मुंबई आया था तो राजकुमार चौरसिया ने उसे अपने यहां सहारा दे कर उस की मदद की थी. उस ने उसे अपनी दुकान पर कुछ दिनों तक काम पर लगाया. राजकुमार और परिवार वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते थे. मीनाक्षी कभीकभी दुकान पर बैठे बृजेश के लिए खाना देने जाती थी.

इसी बीच दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करते और हंसतेहंसाते थे. इस हंसनेहंसाने में दोनों में कब प्यार हो गया, इस बात का उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं आता था.

इस के पहले कि दोनों के संबंधों की भनक राजकुमार चौरसिया और उस के परिवार के कानों में पहुंचती, बृजेश चौरसिया ने राजकुमार की पान की दुकान पर बैठना छोड़ दिया और उसी इलाके में एक दुकान किराए पर ले कर काम शुरू कर दिया.

एक तरफ जहां मीनाक्षी और बृजेश का प्यार मजबूत हो रहा था, वहीं दूसरी ओर राजकुमार जब कभी बृजेश से मिलता था तो बृजेश से मीनाक्षी के लिए किसी योग्य लड़के की तलाश करने को कहता था. बृजेश भी राजकुमार का मन रखने के लिए उसे हां बोल दिया करता था.

बृजेश और मीनाक्षी ने मिलना बंद नहीं किया. वे समय निकाल कर कहीं न कहीं मुलाकात कर ही लेते थे. एक दिन जब उन के संबंधों की जानकारी राजकुमार को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन सरक गई थी.

हुआ यह कि राजकुमार ने जब मीनाक्षी की शादी के लिए मुंबई के विरार में एक लड़का फाइनल किया तो मीनाक्षी ने उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. मीनाक्षी ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह शादी केवल बृजेश से ही करेगी.

तब राजकुमार ने मीनाक्षी को आडे़हाथों लिया था. उसे मारापीटा और धमकाते हुए कहा कि यह कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह उस के ही गांव और उसी की जाति का है. उस ने इस मामले में बृजेश को भी काफी धमकाया.

साली की चाल में जीजा हलाल – भाग 2

थानाप्रभारी ने रेखा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बर्रा 8 में उस के जेठ ज्वाला प्रसाद का साढ़ू रामप्रकाश अपनी पत्नी रामकली के साथ रहता है. उस का 9 साल का एक बेटा भी है. इस जानकारी पर अतुल श्रीवास्तव बर्रा 8 स्थित रामप्रकाश के घर पहुंचे तो वहां ताला लटक रहा था.

रामप्रकाश पर शक गहराया तो पुलिस ने उस की तलाश तेज कर दी. थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने ताबड़तोड़ छापे मार कर रामप्रकाश के कई रिश्तेदारों को उठा लिया. उन में से जिन के पास रामप्रकाश का मोबाइल नंबर था, उन से बात करने को कहा. लेकिन रामप्रकाश ने कोई काल रिसीव ही नहीं की.

लेकिन एक खास रिश्तेदार से उस ने बात की और बताया कि वह महाराजपुर के संदलपुर गांव में है. यह जानकारी प्राप्त होते ही थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव संदलपुर गांव पहुंच गए और वहां से उन्होंने रामप्रकाश को गिरफ्तार कर लिया.

उसे थाना बर्रा लाया गया. थाने पर जब उस से उस की पत्नी रामकली के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि रामकली उस की बहन चंदा के घर नौरंगाबाद में है. उस के साथ उस का बेटा भी है. यह पता चलते ही अतुल श्रीवास्तव ने नौरंगाबाद से रामकली को हिरासत में ले लिया.

थानाप्रभारी ने रामप्रकाश तथा उस की पत्नी रामकली से थाने में प्रेमप्रकाश की हत्या के बारे में पूछताछ की. पूछताछ में दोनों ने इस बात से इनकार किया कि प्रेमप्रकाश की हत्या में उन का कोई हाथ है. जब दोनों से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की गई तो रामकली टूट गई.

उस के टूटते ही रामप्रकाश ने भी हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. रामकली ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड, जिसे उस ने घर में छिपा दिया था, बरामद करा दी. रामप्रकाश ने अपने घर से मृतक का मोबाइल फोन बरामद करा दिया, जिसे उस ने तोड़ कर कूड़ेदान में फेंक दिया था. पुलिस ने दोनों चीजें बरामद कर लीं.

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने प्रेमप्रकाश हत्याकांड के कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को दी. रवीना त्यागी ने आननफानन में अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता की और अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर के घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि अभियुक्तों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने मृतक की पत्नी रेखा को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रामप्रकाश और उस की पत्नी रामकली के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच में साली की चाल में जीजा के हलाल होने की घटना प्रकाश में आई.

बर्रा कानपुर शहर का एक विशाल आबादी वाला क्षेत्र है. बड़ा क्षेत्र होने के कारण इसे 8 भागों में बांटा गया है. इसी बर्रा भाग 7 के जरौली फेस-1 के अंतर्गत नरपत नगर मोहल्ला पड़ता है. प्रेमप्रकाश अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. उस के परिवार में पत्नी रेखा के अलावा 2 बेटे रवि व पंकज तथा 2 बेटियां सोनम और पूनम थीं.

प्रेमप्रकाश मीट का व्यापारी था. घर से कुछ दूरी पर पारकर रोड पर उस की दुकान थी. प्रेमप्रकाश अपनी दुकान तो चलाता ही था, साथ ही छोटे दुकानदारों को भी मीट की सप्लाई करता था. इस के अलावा होटलों में भी वह मीट सप्लाई करता था. मीट व्यापार में प्रेमप्रकाश को अच्छी कमाई होती थी. क्षेत्र में वह प्रेम मीट वाला के नाम से जाना जाता था.

प्रेमप्रकाश कमाता तो अच्छा था, लेकिन उस में कुछ कमियां भी थीं. वह शराब व शबाब का शौकीन था. अपनी आधी कमाई वह शराब और अय्याशी में ही खर्च कर देता था. बाकी बची कमाई से घर का खर्च चलता था. पति की इस कमजोरी से रेखा वाकिफ थी.

जब वह शराब पी कर आता तो रेखा उसे समझाती, लेकिन वह कहता, ‘‘रेखा, जिस तरह तुम मेरी संगिनी हो, उसी तरह यह लाल परी भी मेरी संगिनी है. शाम ढलते ही यह मुझे सताने लगती है, तब मैं बेबस हो जाता हूं.’’

रेखा ने पति को लाख समझाया, पर जब समझातेसमझाते थक गई तो उस ने उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया. वह केवल घर और बच्चों की परवरिश में लगी रहती. बच्चे जब बड़े हुए तो वह प्रेम के साथ दुकान चलाने का गुर सीखने लगे और बेटियां मां के घरेलू काम में हाथ बंटाने लगीं.

प्रेमप्रकाश के बड़े भाई का नाम ज्वाला प्रसाद था. वह उस के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. ज्वाला प्रसाद की पत्नी का नाम शिवकली था. प्रेमप्रकाश शराबी और अय्याश था, इसलिए वह प्रेमप्रकाश को पसंद नहीं करता था. दरअसल, प्रेमप्रकाश व शिवकली का रिश्ता देवरभाभी का था. इस नाते वह शिवकली से हंसीमजाक, छेड़छाड़ कर लेता था. लेकिन ज्वाला को यह सब पसंद नहीं था. उस ने प्रेमप्रकाश के घर आने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

शिवकली की तरह उस की बहन रामकली भी खूबसूरत थी. वह बर्रा-8 निवासी रामप्रकाश से ब्याही थी. रामकली रामप्रकाश की 5वीं पत्नी थी. उस की पहली पत्नी मीरा बर्रा में ही रहती थी. दूसरी और तीसरी पत्नी ने उस का साथ यह कह कर छोड़ दिया था कि वह उम्र में बड़ा है.

चौथी पत्नी सरोज को वह बिहार के दरभंगा से लाया था. लेकिन प्रताड़ना से परेशान हो कर वह भाग गई थी. इस के बाद ही वह रामकली को ब्याह कर लाया था. शादी के 2 साल बाद रामकली एक बच्चे की मां बन गई थी.

एक रोज सीटीआई चौराहा स्थित गुलाब सिंह के शराब ठेके पर बड़े ही नाटकीय ढंग से प्रेमप्रकाश और रामप्रकाश की मुलाकात हुई. उस रोज ठेके पर दोनों शराब पीने आए थे. शराब पीतेपीते बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों का रिश्ता साढ़ू भाई का निकला. इस के बाद तो शराब का नशा दोगुना हो गया. उस रोज खानेपीने का पैसा प्रेमप्रकाश ने ही चुकता किया. यद्यपि रामप्रकाश मना करता रहा.

रामप्रकाश और प्रेमप्रकाश दोनों ही पक्के शराबी थे. उन के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई. रिश्ते ने उन की दोस्ती और गहरी कर दी. पहले दोनों शराब ठेके पर पीते थे, लेकिन अब उन की महफिल रामप्रकाश के घर जमने लगी.

घर आतेजाते प्रेमप्रकाश की नजर रामप्रकाश की खूबसूरत बीवी रामकली पर पड़ी, जो रिश्ते में उस की साली लगती थी. साली का शबाब पाने के लिए प्रेमप्रकाश जोड़जुगत बैठाने लगा.

जब भी प्रेमप्रकाश का मन रामप्रकाश के घर जाने का होता, वह उसे मोबाइल से सूचना देता और फिर शाम ढलते ही मीट की थैली और शराब की बोतल ले कर रामप्रकाश के घर पहुंच जाता. रामकली मीट पकाती और वे दोनों शराब की महफिल सजाते.

कभीकभी तो रामकली ही दोनों को पैग बना कर देती. इस दौरान प्रेमप्रकाश की निगाहें रामकली पर ही टिकी रहतीं. वह उस से शरारत भी कर बैठता था.

चूंकि प्रेमप्रकाश और रामकली का रिश्ता जीजासाली का था. इस नाते प्रेमप्रकाश रामकली से हंसीमजाक और छेड़छाड़ करने लगा. कभी एकांत मिलता तो वह उसे बांहों में भी भर लेता और गालों पर चुंबन जड़ देता.

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 2

पुलिस गोताखोर के साथ पूरा दिन बांध की खाक छानती रही लेकिन न तो भरत का कोई पता चला और न ही नमिता का. उधर पुलिस ने भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद को हिरासत में ले कर पूछताछ जारी रखी थी.

लगातार चली कड़ी पूछताछ के बाद रामसेवक पुलिस के सामने टूट गया. उस ने जुर्म कबूलते हुए पुलिस को बताया कि भरत ने अपनी पत्नी नमिता की हत्या कर दी थी. वे दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर ठिकाने लगाने के लिए बरुआ बांध लाए थे. लाश ठिकाने लगाने में मैं ने उन का साथ दिया. गाड़ी में से लाश निकाल कर हम ने एक बोरे में भर दी. फिर हम ने दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का पत्थर भर कर नमिता की कमर में बांध दिए, ताकि लाश पानी के ऊपर न आ सके और उस की मौत का राज सदा के लिए इसी बांध में दफन हो कर रह जाए.

रामसेवक के बयान से साफ हो गया था कि भरत दिवाकर ने ही अपनी पत्नी नमिता की हत्या की थी और लाश ठिकाने लगाने के चक्कर में वह पानी में गिर कर डूब गया था.

खैर, उस दिन पुलिस की मेहनत का कोई खास परिणाम नहीं निकला. शवों की बरामदगी के लिए एसपी अंकित मित्तल ने इलाहाबाद के स्टेट डिजास्टर रिस्पौंस फंड (एसडीआरएफ) से संपर्क कर मदद मांगी.

अगली सुबह यानी 16 जनवरी, 2020 की सुबह 11 बजे एसडीआरएफ की टीम चित्रकूट पहुंची और अपने काम में जुट गई. बांध काफी बड़ा और गहरा था. टीम को सर्च करते हुए सुबह से शाम हो गई, इस बीच नमिता की लाश तो मिल गई, लेकिन भरत दिवाकर का कहीं पता नहीं चला. बांध से नमिता की लाश मिलने के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि भरत की लाश भी इसी बांध में कहीं फंसी पड़ी होगी.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के नमिता की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पुलिस को नमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

रिपोर्ट में उस का गला दबा कर हत्या करने की पुष्टि हुई. यानी भरत दिवाकर ने नमिता की गला दबा कर हत्या की थी. अब सवाल यह था कि उस ने उस की हत्या क्यों की? इस का जवाब भरत से ही मिल सकता था, जबकि वह अभी भी लापता था. सच्चाई का पता लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी.

आखिरकार नौवें दिन यानी 22 जनवरी को उस समय भरत दिवाकर का चैप्टर बंद हो गया, जब उस की लाश बांध के अंदर पानी में उतराती हुई मिली. इस से लोगों के बीच चल रही तरहतरह की अटकलों पर हमेशा के लिए विराम लग गया.

नमिता हत्याकांड राज बन कर रह गया था. इस राज से परदा उठाना पुलिस के लिए लाजिमी हो गया था.

उधर पुलिस ने नमिता की लाश मिलने के बाद पति भरत दिवाकर और ड्राइवर रामसेवक निषाद के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर रामसेवक को गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भरत दिवाकर के साथ नमिता की लाश ठिकाने लगाने में उस का साथ दिया था. रामसेवक और घर वालों से हुई पूछताछ के बाद नमिता हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व एसआई यशवंत सिंह भरतकूप इलाके में परिवार के साथ रहते हैं. पत्नी विमला देवी और पांचों बच्चों के साथ वह खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे. उन के बच्चों में 4 बेटियां और एक बेटा था. बेटियों में नमिता उर्फ मीनू तीसरे नंबर की थी. बेटा सब से बड़ा था. यशवंत सिंह ने उस की गृहस्थी बसा दी थी.

चारों ननदों में से अर्चना की नमिता से ही अच्छी पटती थी. अर्चना नमिता की भाभी ही नहीं, अच्छी सहेली भी थी. वह अपने दिल की हर बात, हर राज भाभी से शेयर करती थी. भरत दिवाकर से प्रेम वाली बात जब नमिता ने अर्चना से बताई तो वह चौंके बिना नहीं रह सकी.

ननद नमिता को उस ने बड़े प्यार से समझाया कि अपनी और घर की मानमर्यादा का खयाल जरूर रखे. कहीं कोई ऐसा कदम न उठाए जिस से जगहंसाई हो. भाभी को उस ने विश्वास दिलाया कि वह कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप का सिर समाज में झुके. उस के बाद उस ने भाभी से अपने प्यार की कहानी सिलसिलेवार बता दी थी.

बात नमिता के कालेज के दिनों की है. उन्हीं दिनों कालेज में भरत दिवाकर भी पढ़ता था. कालेज में नमिता की खूबसूरती के खूब चर्चे थे. नमिता के दीवानों में भरत दिवाकर भी था, जो उस की खूबसूरती पर फिदा था. कालेज में आने के बाद भरत पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय नमिता के पीछे चक्कर काटता रहता था.

आखिरकार नमिता कुंवारे दिल को कब तक अपने दुपट्टे के पीछे छिपाए रखती. अंतत: उस के दिल के दरवाजे पर भरत दिवाकर के प्यार का ताला लग ही गया.

खूबसूरत नमिता ने भरत की आंखों के रास्ते उस के दिल की गहराई में मुकाम बना लिया था. दिन के उजाले में भरत की आंखों के सामने मानो हर घड़ी नमिता की मोहिनी सूरत थिरकती रहती थी. नमिता के दिल में भी ऐसी ही हलचल मची थी, जैसे किसी शांत सरोवर में किसी ने कंकड़ फेंक कर लहरें पैदा कर दी हों.

भरत दिवाकर और नमिता के दिलों में मोहब्बत की मीठीमीठी लहरें उठने लगीं. दोनों एकदूसरे की सांसों में समा चुके थे. चाहत दोनों ओर थी, सो धीरेधीरे बातें शुरू हुईं और फिर दोनों मिलने भी लगे. इस से चाहत भी बढ़ती गई और नजदीकियां भी. प्यार की इस बुनियाद को पक्का करने के लिए दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

प्यार की राह में नमिता ने कदम आगे बढ़ा तो लिया था, लेकिन उस के अंजाम को सोच कर वह सिहर उठी थी. वह जानती थी कि उस के प्यार पर उस के पिता स्वीकृति की मोहर नहीं लगाएंगे. अपने प्यार को पाने के लिए उसे घर वालों से बगावत करनी होगी. इस के लिए वह मानसिक रूप से तैयार थी.

आखिरकार सन 2014 में नमिता ने घरपरिवार से बगावत कर के प्यार की राह थाम ली और भरत दिवाकर की दुलहन बन गई. भरत और नमिता ने कोर्टमैरिज कर ली. अनमने ढंग से ही सही भरत के घर वालों ने नमिता को स्वीकार कर लिया था.

बेटी द्वारा उठाए कदम से यशवंत सिंह की बरसों की कमाई सामाजिक मानमर्यादा धूमिल हो गई थी. पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का अपना खून अपनों को ही कलंकित कर देगा.

जिस दिन बेटी ने अपनी मरजी से पिता की दहलीज लांघी थी, उसी दिन से उन्होंने सीने पर पत्थर रख कर नमिता से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था.

परिवार से उन्होंने कह दिया था कि आज के बाद नमिता हमारे लिए मर चुकी है. गलती से जिस ने भी उस से रिश्ता जोड़ने की कोशिश की, वह भी मरे के समान होगा. यशवंत सिंह के फैसले से सब डर गए और अपनेअपने दिलों से नमिता की यादों को सदा के लिए निकाल फेंका. उस दिन के बाद यशवंत सिंह के घर में नमिता नाम का चैप्टर बंद हो गया.