उधार की बीवी बनी चेयरमैन : रहमत ने नसीम को ठगा – भाग 3

दादू की हालत देख कर नसीम भी समझ गया था कि उस के पैसे किसी भी कीमत पर नहीं मिलने वाले. वह बीच मंझधार में खड़ा था. एक तरफ उस का पैसा था, जो दादू के बेटे की बीमारी पर खर्च हो चुका था. जबकि दूसरी ओर उस की मोहब्बत रहमत जहां थी, जिसे वह दिलोजान से चाहने लगा था. रहमत जहां भी नसीम को दिल से चाहती थी. उसे नसीम के साथ कभी भी कहीं भी जाने से ऐतराज नहीं था.

उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस के पास नवीन अनाज मंडी के सामने हाईवे के किनारे जुतासे की कुछ जमीन थी, जो आर्थिक तंगी के चलते उस ने पहले ही बेच दी. अब उस के पास केवल जुआ खेलने और शराब पीने के अलावा कोई काम नहीं था. ऐसी स्थिति में नसीम ने दादू से अपने पैसों के बदले उस की बेटी का हाथ मांगा तो वह राजी हो गया.

रहमत जहां हो गई नसीम की

दादू जानता था कि नसीम और उस की बेटी एकदूसरे को चाहते हैं. अगर उस ने बेटी की शादी उस की रजामंदी के खिलाफ की तो उस का अंजाम ठीक नहीं होगा. यही सोचते हुए उस ने नसीम से अपनी बेटी रहमत जहां का निकाह कर दिया.

रहमत जहां से निकाह के बाद नसीम उसे अपनी दूसरी बीवी बना कर अपने घर ले आया. इस में रहमत जहां ने ऐतराज नहीं किया. वह उस के घर में दूसरी बीवी की तरह रहने लगी. नसीम अहमद भी काफी दिनों से शराब का आदी था.

शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी जुतासे की सारी जमीन दांव पर लगा दी थी. रहमत जहां के प्यार में पड़ कर उस ने उस से निकाह तो कर लिया था, लेकिन जब 2 बीवियां होने से खर्च बढ़ा तो उस का दिमाग घूमने लगा. वह बहुत परेशान रहने लगा.

शफी उर्फ बाबू का पहले से ही बाबरखेड़ा आनाजाना था. वजह यह कि शफी अहमद की एक बुआ का निकाह बाबरखेड़ा में हुआ था. वह अपनी बुआ के घर आताजाता था. शफी अहमद की बुआ का एक लड़का था याकूब, जो नसीम का अच्छा दोस्त था. याकूब के घर पर ही शफी अहमद की जानपहचान नसीम से हुई.

नसीम शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुका था. जब उसे यह पता चला कि शफी भोजपुर कस्बे का नगर पंचायत चेयरमैन है तो वह खुश हुआ. वैसे भी शफी उस के दोस्त याकूब का ममेरा भाई था. गांव में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए नसीम कई बार उसे अपने घर भी ले गया था. घर आनेजाने के चक्कर में शफी की नजर नसीम की बीवी रहमत जहां पर पड़ी तो वह उस की खूबसूरती पर फिदा हो बैठा.

हालांकि उस वक्त चेयरमैन शफी के घर में पहले से ही एक से बढ़ कर एक 2 खूबसूरत बीवियां थीं. लेकिन रहमत जहां पर उन की नजर पड़ी तो वह अपने पर काबू नहीं रख सके. इसी चक्कर में उन का नसीम के घर आनाजाना और भी बढ़ गया.

कुछ ही दिनों में शफी अहमद के स्वार्थ की नींव पर नसीम से पक्की दोस्ती हो गई. जब कभी शफी अहमद अपने यहां पर कोई प्रोग्राम कराते तो नसीम और उस की बीवी को बुलाना नहीं भूलते थे. इसी आनेजाने के दौरान शफी अहमद और रहमत जहां के बीच प्यार का रिश्ता बन गया.

मोबाइल ने जल्दी ही शफी अहमद और रहमत जहां के बीच की दूरी खत्म कर दी. रहमत जहां शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुकी थी. चेयरमैन के घर में पहले से ही 2 बीवियां मौजूद हैं, यह बात रहमत जहां जानती थी, लेकिन शफी अहमद की ओर से इशारा मिलने पर उस का दिल भी मजबूर हो गया.

शफी अहमद के पास धनदौलत, ऐशोआराम, इज्जत सभी कुछ था. रहमत जहां ने कई बार शफी अहमद से निकाह करने को कहा. लेकिन समाज में अपनी साख खत्म होने की बात कह कर शफी ने मना कर दिया था. इस के बावजूद रहमत जहां अपने दिल को समझा नहीं पा रही थी. नसीम के 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद रहमत जहां शफी के प्यार में पड़ गई थी.

रहमत को शफी अहमद में दिखा भविष्य

इत्तफाक से उसी समय भोजपुर नगर पंचायत का चुनाव आ गया. अब तक नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट शफी अहमद के पास थी, लेकिन चुनाव करीब आने पर पता चला कि इस बार सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. शफी अहमद चूंकि सामान्य जाति में आते थे, इसलिए चेयरमैन की सीट उन के हाथ से निकलने का डर था.

शफी अहमद जानते थे कि नसीम की जाति ओबीसी के तहत आती है. बीवी होने के नाते रहमत जहां भी उसी जाति में आती थी. यह बात मन में आते ही शफी अहमद ने तिकड़मबाजी लगानी शुरू की. उन्हें पता था कि अगर नसीम से इस बारे में बात की जाए तो वह उन की बात नहीं टालेगा.

हालांकि बात बहुत असंभव सी थी, फिर भी शफी अहमद ने बाबरखेड़ा जा कर नसीम और उस की बीवी रहमत जहां के सामने अपनी परेशानी रखते हुए इस बारे में बात की. पर नसीम ने इस मामले में उन का साथ देने से साफ इनकार कर दिया. नसीम अंसारी जानता था कि रहमत जहां को चुनाव लड़ने के लिए शफी की बीवी बन कर भोजपुर में रहना होगा.

भला वह अपनी बीवी को शफी के पास कैसे छोड़ सकता था. नसीम के दो टूक फैसले के बाद शफी अहमद के सपनों पर पानी फिर गया. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन की रहमत जहां से मोबाइल पर बात होती रहती थी.

शफी ने इस मामले में सीधे रहमत जहां से बात की तो उस के मन में लड्डू फूटने लगे. वह पहले से ही शफी के प्यार में पागल थी. यह बात सुन कर तो उस के दिल में खुशियों के फूल महकने लगे. वह जानती थी कि अगर वह भोजपुर की चेयरमैन बन गई तो उस की किस्मत सुधर जाएगी.

शफी अहमद के दिल की बात जान कर उस ने नसीम को प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उस की बीवी किसी और की बन कर रहे. नसीम को यह भी मालूम था कि ऐसे काम इतनी आसानी से नहीं होते. इस के लिए कानूनी काररवाई पूरी करना जरूरी है. फिर भी उस ने अपनी आर्थिक तंगी के चलते शफी अहमद से समझौता कर के अपनी बीवी चुनाव लड़ने के लिए उन्हें दे दी.

नसीम अंसारी के अनुसार आपसी समझौते के तहत शफी अहमद ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद वह उस की बीवी उसे वापस कर देगा. उस के बाद जो भी हुआ करेगा, रहमत जहां भोजपुर जा कर काम निपटा लिया करेगी. यह बात नसीम को भी अच्छी लगी.

समझौते के बाद नसीम ने अपनी बीवी रहमत जहां को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी. शफी अहमद ने रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शाने के लिए उस के साथ कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद रहमत जहां कानूनन शफी अहमद की बीवी बन गई.

रहमत जहां को बीवी का दरजा मिलते ही शफी अहमद ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं. सन 2017 में जब नामांकन किया जा रहा था, शफी अहमद अपनी नई पत्नी रहमत जहां को पिछड़ी जाति की महिला के रूप में सामने ले आए. यह देख विरोधी उम्मीदवार हैरान रह गए. लेकिन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह उन की बीवी है.

रहमत जहां बन गई चेयरमैन

शफी अहमद रहमत जहां को अपनी बीवी बता कर नामांकन कराने कलेक्टरेट पहुंचे तो विपक्षियों में खलबली मच गई. लेकिन शफी ने रहमत जहां के पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर के विपक्षियों की नींद उड़ा दी. निकाह के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं था कि पिछड़ी की रहमत जहां जीत पाएगी. फिर भी शफी अहमद ने हार नहीं मानी. किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने रहमत जहां को निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला किया. इस सीट पर वह पिछले 5 सालों से काबिज थे. उन्हें पूरा यकीन था किजनता उन का साथ देगी.

शफी अहमद ने फिर से चेयरमैन की कुरसी पर कब्जा जमाने के लिए दिनरात मेहनत की. फलस्वरूप वह रहमत जहां के नाम पर चुनाव जीत गए. सन 2017 के लिए नगर पंचायत भोजपुर की चेयरमैन का सेहरा रहमत जहां के सिर पर बंध गया.

अभी इस चुनाव को जीते हुए 8 महीने भी नहीं हो पाए थे कि नसीम अहमद ने अपनी बीवी रहमत जहां को पाने के लिए कोर्ट में दावेदारी ठोक दी. इस से पहले नसीम अंसारीने अपनी बीवी वापस करने के लिए शफी अहमद से दोस्ती के नाते प्यार से बात की थी, लेकिन जब मामला ज्यादा उलझ गया तो उसे अदालत की शरण लेनी पड़ी.

नसीम के प्रार्थनापत्र पर जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट प्रकाश चंद ने थाना कुंडा पुलिस को भोजपुर के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद, उन के बहनोई नईम चौधरी, भाई जिले हसन और साथी मतलूब के खिलाफ रहमत जहां और उस के 2 बच्चों का अपहरण करने और बंधक बना कर जबरन निकाह करने के आरोप में केस दर्ज कर के जांच करने के आदेश दे दिए.

कुंडा पुलिस दर्ज केस के आधार पर जांच में जुट गई. इस मामले में नसीम अंसारी का कहना था कि शफी अहमद ने उस की आर्थिक तंगी का लाभ उठा कर उस से उस के बीवीबच्चों को छीन लिया. वह अपने बीवीबच्चों को हासिल करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ेगा.

कई पेंच हैं मामले में

वहीं दूसरी ओर नसीम अहमद की बीवी रहमत जहां का कहना था कि उस के निकाह के कुछ समय बाद ही नसीम को शराब पीने की लत पड़ गई थी. जिस के चलते उस ने अपनी जुतासे की पुश्तैनी जमीन भी बेच दी थी. उस के बाद उसे अपने 2 बच्चे पालने के लिए भी भुखमरी के दिन देखने पड़े.

रहमत जहां के अनुसार उस ने नसीम को कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. उस ने नसीम के शराब पीने का विरोध किया तो उस ने सन 2010 में उसे तलाक दे दिया था. नसीम के तलाक देने के बाद उस ने अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने पिता दादू के गांव सरबरखेड़ा में जा कर दिन गुजारे.

रहमत जहां का कहना था कि नसीम के तलाक देने के बाद उस ने 2011 में भोजपुर निवासी शफी अहमद से निकाह कर लिया. उस के बाद भी वह काफी दिनों तक अपने मायके में ही रही. बाद में वह चुनाव लड़ कर चेयरमैन बन गई तो नसीम के मन में लालच आ गया.

नसीम अंसारी ने शफी अहमद से अपने खर्च के लिए कुछ रुपयों की मांग की, जिस के न मिलने पर उस ने यह विवाद खड़ा कर दिया. रहमत जहां का कहना था कि उस ने शफी अहमद के साथ निकाह किया है. नसीम उसे पहले ही तलाक दे चुका था. जिस के बाद उस का नसीम के साथ कोई भी संबंध नहीं रह गया था. फिलहाल कुंडा पुलिस मामले की जांच कर रही है. रहमत किस की होगी, यह अभी भविष्य के गर्त में है.

प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत

29 जुलाई, 2017 की रात साहिल उर्फ शुभम वोल्वो बस पकड़ कर लखनऊ से जौनपुर जा रहा था. उस के साथ उस का भाई सनी भी था. रात गहराते ही बस की लगभग सभी सवारियां सो गई थीं. रात 2 बजे फोन की घंटी बजी तो साहिल की आंखें खुल गईं. उस ने मोबाइल स्क्रीन देखी, नंबर उस की भाभी शिवानी का था. उस ने जैसे ही फोन रिसीव कर के कान से लगाया, दूसरी ओर से शिवानी ने रोते हुए कहा, ‘‘साहिल, राहुल अब नहीं रहा. मैं भी उस के बिना नहीं रह सकती.’’

‘‘कैसे, क्या हुआ, कहां है राहुल?’’ साहिल ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘राहुल ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. वह परदे की रस्सी बना कर उसी से लटक गया है.’’ शिवानी ने रोतेरोते कहा.

उस समय साहिल लखनऊ से काफी दूर बस में था. वह खुद कुछ कर नहीं सकता था, इसलिए वह सोचने लगा कि शिवानी की मदद कैसे की जाए. एकाएक उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने कहा, ‘‘भाभी, आप जल्दी से राहुल भैया को उतारिए.’’

‘‘साहिल, मैं हर तरह से कोशिश कर चुकी हूं, पर उतार नहीं पाई. मैं ने घर से बाहर जा कर कालोनी वालों को आवाज भी लगाई, पर कोई भी मेरी मदद के लिए नहीं आया. अब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं. मैं राहुल के बिना कैसे रहूंगी?’’ शिवानी ने रोते हुए साहिल से मदद मांगी.

‘‘भाभी, मैं तो लखनऊ से बहुत दूर हूं. आप एक काम करें, वहीं मेज पर लाइटर रखा होगा, आप उस से परदे की गांठ में आग लगा दीजिए, परदा जल कर टूट जाएगा. आप इतना कीजिए, तब तक मैं मदद के लिए किसी से बात करता हूं.’’

कह कर साहिल ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने अपने कुछ दोस्तों को फोन किए, पर किसी से बात नहीं हो सकी. इस के बाद उस ने लखनऊ पुलिस को फोन किया. उस वक्त रात के करीब ढाई बजे थे. लखनऊ पुलिस को फोन कर के साहिल ने बताया कि उस का भाई राहुल और भाभी शिवानी विनयखंड, गोमतीनगर के मकान नंबर 3/137 में रहते हैं, जो होटल आर्यन के पास है. उस के भाई को कुछ हो गया है. वह जौनपुर से विधायक और एक बार सांसद रह चुके कमला प्रसाद सिंह का पोता है.

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कमला प्रसाद सिंह की जौनपुर में अच्छी साख थी. वह 2 बार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके थे. जमुई में उन का इंटर कालेज भी है. उन के 2 बेटे विनय और अनिल हैं. राहुल अनिल का बड़ा बेटा था. पुलिस को जैसे ही पता चला कि विधायक और सांसद रहे कमला प्रसाद सिंह के घर का मामला है तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

पुलिस की पीआरवी टीम के कमांडर रामनरेश गौतम सबइंसपेक्टर सुशील कुमार और ड्राइवर निहालुद्दीन के साथ विनयखंड पहुंच कर आर्यन होटल के पास मकान नंबर 3/137 खोजने लगे. रात का समय था, कालोनी में सन्नाटा पसरा था, इसलिए मकान मिल नहीं रहा था.  पुलिस को फोन करने के बाद साहिल ने शिवानी को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद हो चुका था. साहिल ने इस बात की जानकारी घर वालों को भी दे दी थी. जैसे ही घर वालों को इस घटना का पता चला, उन्होंने शिवानी को फोन करने शुरू कर दिए. लेकिन तब तक शिवानी का फोन बंद हो चुका था. इस से सब परेशान हो गए.

साहिल ने एक बार फिर पुलिस को फोन किया. पुलिस ने बताया कि वे मकान तलाश रहे हैं, लेकिन मकान मिल नहीं रहा है. इस पर साहिल ने कहा, ‘‘मेरे मकान का दरवाजा खुला होगा, क्योंकि भाभी ने बताया था कि वह दरवाजा खोल कर बाहर आई थीं.’’

जैसे फिल्मों और क्राइम सीरियलों में पुलिस समय पर नहीं पहुंचती, उसी तरह यहां भी हुआ. उधर साहिल से बात करने के बाद शिवानी ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया था. वह लाइटर से परदे को जला रही थी, तभी राहुल की गरदन में फंसा फंदा खुल गया और वह नीचे गिर गया. उस के शरीर में कोई हरकत होती न देख शिवानी परेशान हो गई. उसे समझते देर नहीं लगी कि राहुल मर गया है.

पति को मरा देख कर वह वहां रखी प्लास्टिक की कुरसी पर चढ़ गई और परदे के दूसरे छोर में फंदा बना कर गले में डाला और पैर से कुरसी गिरा दी. इस के बाद वह भी लटक गई. थोड़ी देर पहले जो हाल राहुल का हुआ था, वही हाल शिवानी का भी हुआ. इस तरह पुलिस के पहुंचने से पहले ही उस ने भी मौत को गले से लगा लिया.

आखिरकार पुलिस तलाश करती हुई उस घर तक पहुंच गई, जिस का मेनगेट और दरवाजा खुला था. पुलिस ने खिड़की से झांक कर देखा तो पता चला कि एक औरत रस्सी से लटक रही थी और एक पुरुष की लाश फर्श पर पड़ी थी. पुलिस ने कमरे के दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया.

मामला एक सांसद के परिवार का था. इसलिए मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने तत्काल एएसपी (उत्तरी) अनुराग वत्स, सीओ (गोमतीनगर) दीपक कुमार सिंह, थाना गोमतीनगर के थानाप्रभारी विश्वजीत सिंह को भी इस घटना की सूचना दे दी. उस समय सभी अधिकारी गश्त पर थे, इसलिए सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जल्दी से लाश उतार कर फर्श पर लेटा दी. पुलिस की गाड़ी देख कर कालोनी वाले भी इकट्ठा होने लगे थे. पुलिस को उन से पूछताछ में पता चला कि ज्यादातर यह मकान खाली ही रहता था. कभीकभी ही कोई उस में रहने आता था. इसलिए आसपास रहने वालों से उन लोगों का कोई खास संबंध नहीं था. आमनेसामने पड़ जाने पर दुआसलाम जरूर हो जाती थी.

सांसद के पौत्र और पौत्रवधू की मौत की खबर पा कर पूरी कालोनी में हड़कंप मच गया था. पुलिस ने घर वालों से बातचीत कर के सच्चाई का पता लगाने की कोशिश की. लेकिन कोई ऐसी बात सामने नहीं आई, जिस से आत्महत्या पर शक किया जा सकता. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया था कि मामला आत्महत्या का ही है. पोस्टमार्टम के बाद शिवानी और राहुल की लाशें जौनपुर के लाइनबाजार स्थित कमला प्रसाद सिंह के घर पहुंचीं तो वहां हड़कंप मच गया. घर के सभी लोगों का रोरो कर बुरा हाल था. जौनपुर में ही दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

मामले की जांच के लिए पुलिस ने शिवानी और साहिल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस से भी पहले से दिए गए बयान और हालात मिलते नजर आए. शिवानी और राहुल के बीच दोस्ती कालेज में पढ़ाई के दौरान हुई थी. जल्दी ही यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. उस के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

शिवानी के पिता सेना से रिटायर हो चुके थे. वह लखनऊ के कैंट एरिया में रहते थे. सन 2015 में घर वालों की मरजी से शिवानी और राहुल की शादी हुई थी. राहुल जौनपुर के केराकत इंटर कालेज में क्लर्क था. शादी के बाद राहुल परिवार के साथ जौनपुर में रहता था. वहीं से वह केराकत जा कर अपनी नौकरी करता था.

कभीकभी राहुल लखनऊ भी आता रहता था. लखनऊ में वह जमीन का कारोबार करने लगा था, जिस से उसे अलग से आमदनी होने लगी थी. लखनऊ के विनयखंड स्थित मकान का उपयोग किसी के आनेजाने पर ही होता था. प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2 दिन पहले ही राहुल लखनऊ आया था. जबकि शिवानी पहले से अपने मायके में रह रही थी. क्योंकि कुछ महीनों से राहुल और शिवानी के बीच संबंध ठीक नहीं थे.

पढ़ाई के दौरान एकदूसरे पर जान छिड़कने वाले राहुल और शिवानी के बीच कुछ समय से तनाव रहने लगा था. दोनों को एकदूसरे से दूर रहना गंवारा नहीं था, इसलिए पढ़ाई के बाद कैरियर बनाने के बजाय दोनों ने शादी कर ली थी. शादी के बाद राहुल ने जौनपुर के केराकत स्थित एक इंटर कालेज में नौकरी कर ली थी, जिस की वजह से उसे जौनपुर में रहना पड़ रहा था, जबकि शिवानी को वहां रहना पसंद नहीं था. इस बात को ले कर अकसर दोनों में कहासुनी होती रहती थी.

प्यार के बाद दोनों को ही शादी की हकीकत उतनी प्यारी नहीं लग रही थी, जितनी लगनी चाहिए थी. जौनपुर में मन न लगने से शिवानी लखनऊ में अपने मातापिता के यहां रह रही थी. राहुल जब भी लखनऊ आता, विनयखंड के मकान में ही रुकता था. उस के आने पर शिवानी भी आ जाती थी.

राहुल गुस्सैल स्वभाव का था, इसलिए जराजरा सी बात में दोनों के बीच लड़ाई हो जाती थी. शिवानी राहुल को बहुत प्यार करती थी, जिस की वजह से वह उस के गुस्से के बाद भी उस से अलग नहीं रहना चाहती थी. जबकि शिवानी कभी खुद के बारे में सोचती थी तो उसे लगता था कि अपने कैरियर को ले कर उस ने जो सपने देखे थे, वे सब बिखर गए. इसे ले कर वह भी तनाव में रहती थी.

शिवानी अपनी खुद की पहचान बनाना चाहती थी, पर शादी के बाद इस बात का कोई मतलब नहीं रह गया था. उस का यह द्वंद्व उस के संबंधों पर भारी पड़ रहा था. शिवानी राहुल से कभी कुछ कहती तो आपस में बहस के बाद दोनों में लड़ाई हो जाती थी. ऐसे में तनाव कम होने के बजाय और बढ़ जाता था.

29 जुलाई, 2017 की शाम को साहिल उर्फ शुभम अपने चचेरे भाई सनी के साथ राहुल से मिलने विनयखंड स्थित घर पर आया. भाइयों के आने की खुशी में पार्टी हुई, जिस में शराब भी चली. पुलिस को वहां मेज पर सिगरेट का एक खाली पैकेट, एक भरा पैकेट, शराब और बीयर की खाली बोतलें मिली थीं. बैड का बिस्तर भी बेतरतीब था. साहिल और सनी के जौनपुर चले जाने के बाद भी राहुल संभवत: शराब पीता रहा था.

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यह बात शिवानी को अच्छी नहीं लगी होगी. उस ने रोका होगा तो दोनों में बहस होने लगी होगी. नशे में होने की वजह से राहुल को गुस्सा आ गया होगा. इस के बाद शिवानी अपने कमरे में जा कर सो गई होगी. रात में 2 बजे के करीब जब उस की नींद खुली होगी तो उस ने देखा होगा कि राहुल परदे की रस्सी का फंदा बना कर उस में लटका है. पति को उस हालत में देख कर शिवानी की कुछ समझ में नहीं आया होगा. नशे में गुस्से की वजह से राहुल ने यह कदम उठा लेगा, यह शिवानी ने कभी नहीं सोचा था. वह परेशान हो गई होगी.

बहुत सारी शिकायतों के बाद भी शिवानी राहुल के बिना जिंदगी नहीं गुजार सकती थी. शायद यही वजह थी कि उस ने भी उस के साथ मरने का फैसला कर लिया. परदे से बनी जिस रस्सी के फंदे पर लटक कर राहुल ने अपनी जान दी थी, उसी के दूसरे सिरे पर फंदा बना कर शिवानी ने भी लटक कर जान दे दी. साथ जीनेमरने की कसम खाने वाली शिवानी ने अपना वचन निभा दिया.

राहुल और शिवानी की मौत अपने पीछे तमाम सवाल छोड़ गई है. प्यार करना, उस के बाद शादी करना कोई गुनाह नहीं है. प्यार के बाद शादी के बंधन को निभाने के लिए पतिपत्नी के बीच जिस भरोसे, प्यार और संघर्ष की जरूरत होती है, वह राहुल और शिवानी के बीच नहीं बन पाया. लड़ाईझगड़े में जान देने जैसे फैसले मानसिक उलझन की वजह से होते हैं. अगर राहुल ने नशे में यह फैसला नहीं लिया होता तो वह भी आज जिंदा होता और शिवानी भी.

राहुल की मौत के बाद शिवानी ने भी खुद को खत्म कर लिया. उन दोनों के इस फैसले से उन के परिवार वालों पर क्या गुजरेगी, उन दोनों ने नहीं सोचा. इस तरह की मौत का दर्द परिवार वालों को पूरे जीवन दुख देता रहता है. ऐसे में अगर पतिपत्नी के बीच कोई अनबन होती है तो जल्दबाजी में कोई फैसला लेना ठीक नहीं होता.

2 साल बाद : प्यार कैसे बना सजा – भाग 3

एकदूसरे के मोबाइल नंबर मिलने के बाद दोनों के बीच धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा. जब भी रोहित ज्योति के गांव में आता दोनों चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे की दिल की बात जान लेते.

दोनों ने घरपरिवार का सोचा ही नहीं

दोनों की जातियां भले ही अलगअलग थीं. लेकिन प्यार के दीवानों को इस की परवाह नहीं थी. दोनों का मानना था कि समाज और जाति सब अपनी जगह हैं, लेकिन हमारा प्यार इन सब से ऊपर है. अंतत: दोनों ने एकदूसरे का हमसफर बनने का निर्णय ले लिया था.

इश्क की खुशबू कभी छिपती नहीं है. ज्योति के घर वालों को जब दोनों के बीच चल रहे प्रेमप्रसंग का पता चला तो उन्होंने ज्योति को कड़ी चेतावनी दी और रोहित से न मिलने को कहा. लेकिन रोहित की प्रेम दीवानी ज्योति पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ. उस ने घर वालों से बगावत कर दी और एक दिन मौका मिलते ही ज्योति रोहित के साथ घर से भाग गई.

इस की जानकारी होने पर ज्योति के घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. उन के न मिलने पर उन्होंने रोहित के खिलाफ कोतवाली मैनपुरी में ज्योति को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

17 सितंबर, 2018 को दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना प्रयागराज में कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के बाद रोहित और ज्योति कुछ दिन दिल्ली जा कर रहे. बाद में गांव बृजपुरा आ गए थे.

ज्योति के घर वालों ने यह जानकारी  पुलिस को दे दी. तब पुलिस ने ज्योति और रोहित को हिरासत में ले लिया. जब पुलिस ज्योति को न्यायालय में बयान दर्ज कराने के लिए ले जा रही थी, तब ज्योति के घर वालों ने उस से कहा कि कोर्ट में वह अपने घर जाने की बात कहे.

इस बात के लिए ज्योति ने हामी तो भर दी थी, लेकिन जब कोर्ट में ज्योति के बयान दर्ज हुए तो उस ने पति रोहित के साथ ही जाने की इच्छा जताई. लिहाजा ज्योति को उस के पति रोहित के साथ भेज दिया गया. बेटी के इस फैसले के बाद वृद्ध पिता ब्रजेश मिश्रा व मां चुपचाप घर चले गए. उस समय उन्होंने खुदको बहुत अपमानित महसूस किया था.

अंतरजातीय प्रेम विवाह ज्योति के घर वालों को मंजूर नहीं था. खासकर ज्योति के भाई गुलशन व चचेरे भाइयों राघवेंद्र व रघुराई को. इस वजह से वह ज्योति और रोहित से रंजिश मानने लगे थे. वे लोग दोनों की हत्या करना चाहते थे, लेकिन घर के बड़ेबुजुर्गों ने उन्हें समझाया कि हत्या करने से गई हुई इज्जत वापस नहीं आ जाएगी. यदि तुम लोग हत्या करोगे तो पुलिस का शक तुम्हीं लोगों पर जाएगा और पकड़े जाओगे.

उस समय तो वे लोग खून का घूंट पी कर रह गए थे. लगभग 2 साल बीतने के बाद घर वाले भी यह मान बैठे थे कि अब ये लड़के ऐसावैसा कुछ नहीं करेंगे.

ज्योति के गैर जाति में शादी कर लेने की वजह से गांव में भी लोग आए दिन घर वालों पर छींटाकशी करते रहते थे. इस के साथ ही अविवाहित चचेरे भाई राघवेंद्र की शादी के लिए रिश्ते तो आते थे, लेकिन जब उन्हें इस बात की जानकारी होती, तो वे शादी से इनकार कर देते थे. चचेरी बहन के यादव जाति में शादी कर लेने से राघवेंद्र की शादी भी नहीं हो पा रही थी.

इस से राघवेंद्र परेशान रहने लगा था. एक बार राघवेंद्र अकेला ज्योति की ससुराल जा पहुंचा और उस ने ज्योति पर घर चलने के लिए दवाब डाला. लेकिन ज्योति ने साफ मना कर दिया. इस पर राघवेंद्र मुंह लटका कर घर लौट आया.

यह बात गुलशन व रघुराई को नागवार लगी. इस घटना के बाद एक बार उन्होंने 50 हजार में भाड़े के एक शूटर से ज्योति व रोहित की हत्या कराने की योजना भी बनाई, लेकिन वे सफल नहीं हुए थे. समय बीतने के साथ ही तीनों आरोपियों के मन में ज्योति के प्रति नफरत बढ़ती गई. इन्हें डर था कि कहीं ज्योति मां बन गई तो इस रिश्ते की डोर और भी मजबूत हो जाएगी.

तैयार की हत्या की योजना

सब तरफ से हताश होने के बाद गुलशन और उस के चचेरे भाइयों ने दोनों की हत्या करने की प्लानिंग की. वे पिछले एक महीने से इस की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने तय कर लिया था कि ज्योति और रोहित जिस दिन एक साथ मिलेंगे, उन की हत्या कर देंगे. इसी वजह से इन लोगों ने घर वालों को अंधेरे में रख कर हत्या की योजना बनाई थी.

इन भाइयों ने असलहों का इंतजाम भी कर लिया था. फिर तीनों ने ज्योति और रोहित की रेकी करने का काम शुरू कर दिया.

7 जुलाई, 2020 को उन्हें मौका मिल गया. उस दिन राघवेंद्र ने शाम के समय रोहित और ज्योति को मोटरसाइकिल पर जाते देख लिया था. उस ने गुलशन और रघुराई को बताया कि आज दोनों को निपटा देने का अच्छा मौका है.

इन लोगों ने उसी समय योजना को अंजाम देने की ठान ली थी. तीनों ने तमंचों व कारतूसों का इंतजाम पहले ही कर लिया था. वे मोटरसाइकिलों से सिंहपुर नहर पुल के बंबे के पास जा कर दोनों क ा इंतजार करने लगे. रात सवा 8 बजे जैसे ही उन्हें रोहित की मोटरसाइकिल आती दिखी, दोनों पर घात लगा कर ताबड़तोड़ फायरिंग  कर दी.

घटना के दौरान गुलशन मार्ग से आनेजाने वाले लोगों पर नजर रख रहा था, जबकि ज्योति को 6 गोलियां राघवेंद्र व रघुराई ने मारीं थीं, जिस से उस के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. इन की योजना थी कि रोहित के घुटने में गोली मार कर उसे जिंदगी भर के लिए अपाहिज कर देंगे, ताकि वह सारी जिंदगी अपने किए पर पछताता रहे. इसीलिए उन्होंने रोहित को एक गोली मारी. लेकिन हड़बड़ी में गोली रोहित के घुटने के बजाय पेट में जा लगी.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद सारे आरोपी घटनास्थल से फरार हो गए थे.

रिपोर्ट 5 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इन में 3 नामजदों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था. जबकि पिता बृजेश मिश्रा के खिलाफ जांच में कोई सबूत नहीं मिला था. इसी तरह पांचवें आरोपी की लोकेशन घटना के समय पुलिस को पुणे में मिली थी.

आरोपियों ने हत्या के लिए 2 तमंचे व 10 कारतूसों का इंतजाम किया था. कारतूस व तमंचा कहां से जुटाए गए थे, पुलिस इस की भी जांच की, ताकि दोषियों के विरुद्ध काररवाई की जा सके.

इस हत्याकांड के खुलासे में एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय, इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह, सर्विलांस सेल प्रभारी जोगिंदर सिंह, स्वाट टीम प्रभारी रामनरेश यादव का विशेष सहयोग रहा.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को 18 जुलाई, 2020 को ही न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की जांच इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह कर रहे थे.

दिल के टुकड़ों का रिसना – भाग 3

कुछ महीने बाद दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. लगभग एक हफ्ते पहले उस ने मुझे मऊ के होटल अवधपुरी में बुलाया था. वहां उस ने शारीरिक संबंध बनाए और कहा कि उस की नौकरी लग गई है, उसे ट्रेनिंग पर जाना है. इसलिए आज के बाद फोन मत करना. हमारीतुम्हारी दोस्ती खत्म. मैं ने भी गुस्से में कह दिया कि ठीक है, काल नहीं करूंगी.

लेकिन 2 दिन बाद मैं ने उसे काल कर के कहा कि जब तुम्हें बात ही नहीं करना है तो तुम ने जो गिफ्ट (घड़ी और फोटो) दिया है, उसे वापस ले लो. इस पर उस ने कहा कि ठीक है, मंगलवार को वापस कर देना. मैं पहसा आ कर तुम्हारे कालेज के बाहर से ले लूंगा.

लेकिन वह गिफ्ट वापस लेने नहीं आया. तब 27 अगस्त को मैं सोनम के साथ उस के गांव गई, लेकिन वह नहीं मिला. मैं वापस लौट रही थी तो जग्गा पीछे से आ गया और मुझे बुलाने लगा. लेकिन मैं रुकी नहीं और एक युवक से लिफ्ट ले कर मऊ आ गई थी. मुझे

नहीं मालूम कि जग्गा की हत्या किस ने की है.

‘‘अगर जग्गा की हत्या तुम ने नहीं की तो किस ने की?’’ अखिलेश कुमार ने स्वीटी को टेढ़ी नजरों से देखते हुए पूछा.

‘‘सर, जग्गा की हत्या किस ने की, यह पता लगाना पुलिस का काम है.’’

‘‘देखो स्वीटी, पुलिस ने सब पता कर लिया है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सच्चाई कबूल कर लो. वरना सच उगलवाने के लिए ये दोनों सिपाही तुम्हारे लिए तैयार खड़ी हैं.’’ मिश्रा ने महिला कांस्टेबल अंजलि व सुमन की ओर इशारा किया.

स्वीटी उर्फ प्रतिमा चौहान समझ गई कि सच्चाई बतानी ही पड़ेगी. वह बोली, ‘‘सर, मुझ से गलती हो गई. प्यार में धोखा खाया तो जघन्य अपराध हो गया. मैं ने ही जग्गा के पेट में चाकू घोंपा था. मैं अपना जुर्म कबूल करती हूं.’’

हत्या की बात स्वीकार करने के बाद स्वीटी ने आलाकत्ल चाकू, स्कूल बैग और मृतक जग्गा की फोटो बरामद करा दी. स्वीटी ने जुर्म कबूला तो उस की सहेली सोनम यादव भी टूट गई. उस ने भी जुर्म कबूल लिया.

थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्र ने अशोक उर्फ जग्गा की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिल युवतियों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी.

यह खबर मिलते ही एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव थाना हलधरपुर आ गए. उन्होंने कातिल युवतियों स्वीटी व सोनम से विस्तृत पूछताछ की. फिर प्रैसवार्ता कर दोनों युवतियों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि स्वीटी उर्फ प्रतिमा चौहान और सोनम यादव ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए हलधरपुर थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा ने मृतक के पिता दीपचंद को वादी बना कर स्वीटी उर्फ प्रतिमा श्रीवास्तव व सोनम यादव के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस के साथ ही दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच में पता चला कि प्यार में धोखा खाई एक युवती ने कैसे और क्यों इस सनसनीखेज घटना को अंजाम दिया.

तमसा नदी के किनारे बसा मऊ शहर पूर्वांचल के बाहुबलियों का गढ़ माना जाता है. मऊ पहले गोरखपुर जिले का एक संभाग था, लेकिन बाद में गोरखपुर और आजमगढ़ संभाग को जोड़ कर मऊ को जिला बनाया गया.

इसी मऊ जिले के हलधरपुर थाना क्षेत्र में एक यादव बाहुल्य गांव है मरूखा मझौली. दीपचंद यादव का परिवार इसी गांव में रह रहा था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे अर्जुन और अशोक उर्फ जग्गा थे. दीपचंद के पास 5 एकड़ जमीन थी.

इसी जमीन पर इस परिवार का भरणपोषण होता था. दीपचंद यादव की अपनी बिरादरी में अच्छी पैठ थी. बिरादरी के लोग उन का सम्मान करते थे.

दीपचंद यादव का बड़ा बेटा अर्जुन शरीर से हृष्टपुष्ट और मृदुभाषी था. अर्जुन पढ़लिख कर जब खेतीकिसानी में हाथ बंटाने लगा तो दीपचंद ने उस का विवाह कुसुम से कर दिया. कुसुम अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां बखूबी निभाती थी.

अर्जुन का छोटा भाई अशोक उर्फ जग्गा तेजतर्रार व स्मार्ट युवक था. वह अच्छे कपड़े पहनता था और बनसंवर कर रहता था. गांव के अन्य लड़कों की अपेक्षा अशोक पढ़नेलिखने में भी तेज था. इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद उस ने स्नातक की डिग्री हासिल कर ली थी.

अशोक की तमन्ना सरकारी नौकरी में जाने की थी, इसलिए वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगा रहता था. साथ ही नौकरी के लिए आवेदन भी करता रहता था.

अशोक की तमन्ना पूरी करने के लिए दीपचंद ने भी मुट्ठी खोल दी थी. वह उस की हर जरूरत पूरी करते थे. उन्होंने अशोक को यह तक कह दिया था कि सरकारी नौकरी मिलने में रुपया बाधक नहीं बनेगा. इस के लिए भले ही 2-4 बीघा जमीन ही क्यों न बेचनी पड़े. दरअसल, दीपचंद जानता था कि बिना घूस के नौकरी मिलना नामुमकिन है.

अशोक यादव की हिंदी के अलावा अंगरेजी पर भी अच्छी पकड़ थी. वह फर्राटेदार अंगरेजी तो बोलता ही था, उसे कंप्यूटर का भी अच्छा ज्ञान था. फुरसत में वह सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर नए मित्र बनाता और उन से चैटिंग करता था. जो युवकयुवतियां मन को भाते, उन से वह मोबाइल फोन के नंबर दे ले कर बातें करता रहता था.

चैटिंग के दौरान ही फेसबुक पर अशोक उर्फ जग्गा का परिचय स्वीटी उर्फ प्रतिमा चौहान से हुआ. अशोक ने उस की प्रोफाइल देखी तो पता चला कि उस की उम्र 29 साल है और वह मऊ जिले के थाना सराय लखंसी के गांव अलीनगर की चौहान बस्ती की रहने वाली है.

उस के पिता रामप्यारे चौहान किसान थे. प्रतिमा पहसा स्थित कालेज में बीटीसी की छात्रा थी. स्वीटी पढ़ीलिखी युवती थी. प्रोफाइल देख कर अशोक का रुझान उस की ओर हो गया.

शराबी की विनाश लीला – भाग 3

समय के साथ श्यामा की बेटियां साल दर साल बड़ी होती गईं. सन 2015 में एक बार फिर श्यामा के जीवन में ग्रहण लगना शुरू हो गया. इस ग्रहण ने उस के जीवन में ही नहीं, बल्कि बेटियों के जीवन में भी अंधेरा कर दिया.

हुआ यह कि जिस गैराज में रामभरोसे कमानी मरम्मत का काम करता था, उसी में एक युवक विपिन काम करता था. साथसाथ काम करते हुए विपिन और रामभरोसे में दोस्ती हो गई. दोस्ती गहरी हुई तो दोनों साथ खानेपीने लगे. दोस्ती के नाते एक रोज रामभरोसे विपिन को अपनेघर ले आया.

घर पर पीनेखाने के दौरान विपिन की नजर रामभरोसे की खूबसूरत बीवी श्यामा पर पड़ी. श्यामा 4 बेटियों की मां जरूर थी, लेकिन उस में यौनाकर्षण बरकरार था. पहली ही नजर में श्यामा विपिन के दिलोदिमाग पर छा गई. वह श्यामा को अपनी अंकशायिनी बनाने के सपने संजोने लगा.

विपिन जानता था कि श्यामा के बिस्तर तक पहुंचने का रास्ता रामभरोसे से हो कर जाता है, इसलिए उस ने रामभरोसे से और भी गाढ़ी दोस्ती कर ली. वह उसे मुफ्त में शराब और मीट खिलाने लगा. यही नहीं, वह गाहेबगाहे उस की आर्थिक मदद भी करता था. विपिन ने जब देखा कि रामभरोसे पूर्णरूप से उस के अहसान तले दब चुका है, तब उस ने कहा, ‘‘रामभरोसे, ठेके पर पीने से मजा किरकिरा हो जाता है. घर में बैठ कर पीने का मजा ही कुछ और है. भाभी के हाथ का पका गोश्त मजा और भी दूना कर देगा.’’

मुफ्त की शराब और गोश्त के लालच में रामभरोसे ने विपिन की बात मान ली. इस के बाद वह मीट की थैली और शराब की बोतल ले कर रामभरोसे के घर पहुंचने लगा. श्यामा मीट पकाती और वे दोनों बैठ कर शराब पीते. फिर साथ बैठ कर ही खाना खाते.

विपिन इस बीच श्यामा को ललचाई नजरों से देखता और उस की खूब तारीफ करता. बच्चों को ललचाने के लिए वह टौफीबिस्कुट लाता था. कभीकभी बच्चों को नकद रुपए भी थमा देता था. यहीं नहीं, वह श्यामा को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उसे भी 5 सौ का नोट थमा देता था.

कहते हैं औरत को मर्द की निगाह की अच्छी परख होती है. श्यामा ने भी विपिन की नजर परख ली थी. वह जान गई थी कि विपिन की नजर उस के जिस्म पर है. उस ने उसे पापकुंड डुबोने के लिए पति का सहारा लिया है.

उस के मन में पाप है, अगर इस पाप में वह भागीदार बन गई तो वह बेटियों को भी नहीं छोड़ेगा. श्यामा उस के बढ़ते कदमों को रोकना चाहती थी.

एक दिन शाम को जब विपिन और रामभरोसे आए तो श्यामा दीवार बन कर दरवाजे पर खड़ी हो गई. उस ने साफ कह दिया, ‘‘विपिन, रोजरोज घर पर पीने का तमाशा नहीं चलेगा. पीना है तो ठेके पर जाओ. घर में हमारी बेटियां हैं. मैं उन के सामने तुम्हें शराब नहीं पीने दूंगी.’’

‘‘भाभीजी, आज आप को क्या हो गया जो खानेपीने को मना कर रही हो?’’ विपिन असहज सा हुआ तो वह तीखे स्वर में बोली, ‘‘विपिन, मैं कोई बच्ची नहीं हूं. सब जानती हूं, तुम मेरे घर में पैर क्यों पसार रहे हो. क्यों मेरे पति को गुमराह कर रहे हो, क्यों मेरी आर्थिक मदद करते हो. इन सब बातों का जवाब जानना चाहते हो तो सुनो, क्योंकि तुम्हारी निगाह मेरे जिस्म पर है.’’

कड़वी सच्चाई सुन कर विपिन की बोलती बंद हो गई. वह वापस लौट गया. ठेके पर पीने के दौरान विपिन ने श्यामा के खिलाफ रामभरोसे के खूब कान भरे, बेइज्जत करने का इलजाम लगाया.

देर रात नशे में धुत हो कर रामभरोसे घर आया तो विपिन को घर से बेइज्जत कर भगाने को ले कर श्यामा से भिड़ गया. श्यामा ने पति को समझाने का प्रयास किया, लेकिन उस की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने श्यामा को जम कर पीटा. बड़ी बेटी पिंकी मां को बचाने आई तो उस ने उस की भी पिटाई कर दी.

विपिन की चाहत पूरी नहीं हुई तो उस ने श्यामा के जीवन को बरबाद करने का निश्चय कर लिया. शाम होते ही विपिन रामभरोसे को ठेके पर ले जाता. उसे जम कर शराब पिलाता, फिर श्यामा के खिलाफ भड़काता.

इस के बाद रामभरोसे नशे में धुत हो कर घर पहुंचने लगा. वह बातबेबात श्यामा से उलझता, फिर उसे जानवरों की तरह पीटता. बेटियां बचाने आतीं तो उन्हें गला दबा कर मारने की धमकी देता. पासपड़ोस के लोग चीखपुकार सुन कर श्यामा को बचने आते तो वह उन से भी भिड़ जाता. उन्हें भद्दीभद्दी गालियां देता और वापस जाने को कहता.

रामभरोसे जब रातदिन नशे में धुत रहने लगा तो गैराज मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया. विपिन ने भी अब उसे मुफ्त में शराब पिलाना बंद कर दिया था. वह शराब के जुगाड़ के लिए कभी रिक्शा चलाता तो कभी ढाबों पर जा कर बर्तन मांजता. शराब पीने के बाद कभी वह घर आता तो कभी ढाबे पर ही सो जाता. उसे अब न पत्नी की चिंता थी और न बेटियों की.

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या – भाग 3

डब्लू के लिए किसी की जान लेना मुश्किल काम नहीं था. सुषमा के कहने के बाद वह विवेक की हत्या की योजना बनाने लगा. सुषमा भी योजना में शामिल थी. दोनों विवेक की हत्या इस तरह करना चाहते थे कि उन का काम भी हो जाए और उन का बाल भी बांका न हो. यानी वे पकड़े न जाएं. वे विवेक की हत्या को एक्सीडेंट दिखाना चाहते थे. इस के लिए डब्लू ने टाटा सफारी कार की व्यवस्था कर ली थी. यह कार उस के पिता की थी. इस के बाद वे घटना को अंजाम देने का मौका तलाशने लगे.

22-23 मई, 2017 की रात सुषमा सिंह ने योजना के तहत डब्लू को बुला लिया. डब्लू टाटा सफारी कार यूपी52ए के5990 से अपने 3 साथियों राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य और सुनील तेली के साथ विशुनपुरा पहुंच गया. उन्होंने कार घर से कुछ दूरी पर स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस के सामने खड़ी कर दी. कार का ड्राइवर अशोक उसी में बैठा था.

डब्लू अपने साथियों के साथ विवेक के घर पहुंचा तो सुषमा दरवाजा खोल कर सभी को बैडरूम में ले गई. बैड पर विवेक बेटे के साथ सो रहा था. विवेक की हत्या के लिए सुषमा ने एक ईंट पहले से ही ला कर कमरे में रख ली थी. कमरे में पहुंचते ही डब्लू ने विवेक का गला दबोच लिया. विवेक छटपटाया तो उस के साथियों ने उसे काबू कर लिया. उन्हीं में से किसी ने सुषमा द्वारा रखी ईंट से सिर पर प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया.

धक्कामुक्की और छीनाझपटी में पिता के बगल में सो रहे आयुष की आंखें खुल गईं. उस ने देखा कि कुछ लोग उस के पापा को पकड़े हैं तो वह चिल्ला उठा. उस के चीखने पर सब डर गए. डब्लू ने उसे डांटा तो उस की आवाज गले में फंस कर रह गई. इस के बाद वह आंखें मूंद कर लेट गया. एक बार सभी ने विवेक को हिलाडुला कर देखा, जब उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो सब समझ गए कि यह मर चुका है.

इस के बाद उन्होंने लाश उठाई और ऊपर से ही नीचे फेंक दी. फिर दबेपांव सीढ़ी से नीचे आ गए. डब्लू ने बरामदे में खड़ी विवेक की मोटरसाइकिल निकाली और खुद चलाने के लिए बैठ गया. जबकि राधेश्याम विवेक की लाश को ले कर इस तरह बैठ गया, जैसे वह बीच में बैठा है. बाकी के उस के 2 साथी अनिल और सुनील पैदल ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस की ओर चल पड़े. क्योंकि  उन की कार वहीं खड़ी थी.

लेकिन जब वे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पहुंचे तो कार वहां नहीं थी. सभी परेशान हो उठे. दरअसल हुआ यह था कि उन के जाने के कुछ ही देर बाद गश्त करते हुए 2 सिपाही वहां आ पहुंचे थे. उन्होंने आधी रात को कार खड़ी देखी तो ड्राइवर अशोक से पूछताछ करने लगे. घबरा कर ड्राइवर अशोक कार ले कर भाग गया. ड्राइवर डब्लू को फोन करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई.

डब्लू के आने पर वहां कार नहीं मिली तो उसे चिंता हुई. वह ड्राइवर को फोन करने ही जा रहा था कि पुलिस चौकी रामगढ़ताल के 2 सिपाही वहां आ पहुंचे. उन्होंने उन से पूछताछ शुरू की तो वे सही जवाब नहीं दे सके. सिपाहियों ने थाना कैंट फोन कर के थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेयी को इस की सूचना दे दी.

ओमहरि वाजपेयी मौके पर पहुंचे तो उन्हें मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने बीच में बैठे विवेक को हिलाडुला कर देखा तो पता चला कि वह तो लाश है. डब्लू और राधेश्याम से सख्ती से पूछताछ की गई तो विवेक की हत्या का राज खुल गया.

दूसरी ओर जब सभी विवेक की लाश ले कर चले गए तो सुषमा कमरे में फैला खून साफ करने लगी. उस ने जल्दी से चादर और तकिए भी बदल दिए थे. उस ने सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की थी. तब शायद उसे पता नहीं था कि उस ने जो किया है, उस का राज तुरंत ही खुलने वाला है.

आयुष अपने पापा विवेक प्रताप सिंह की हत्या का चश्मदीद गवाह है. उस ने पुलिस को बताया कि जब अंकल लोग उस के पापा को पकड़े हुए थे तो वह चीखा था. तब एक अंकल ने उस का मुंह दबा कर डांट दिया था. उन लोगों ने पापा का गला तो दबाया ही, उन्हें ईंट से भी मारा था.

वे पापा को ले कर चले गए तो मम्मी कमरे में फैला खून साफ करने लगी थीं. वे उसे भी मारना चाहते थे, तब मम्मी ने एक अंकल से कहा था, ‘यह तो तुम्हारा ही बेटा है, इसे मत मारो.’ इस के बाद अंकल ने उसे छोड़ दिया था.

विवेक की लाश उस की मोटरसाइकिल से इसलिए ला रहे थे, ताकि उसे सड़क पर उस की मोटरसाइकिल सहित कहीं फेंक कर यह दिखाया जा सके कि उस की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है.

पुलिस ने अनिल और सुनील को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन ड्राइवर अशोक अभी पकड़ा नहीं जा सका है. टाटा सफारी कार बरामद हो चुकी है. पुलिस ने विवेक की हत्या में प्रयुक्त खून से सनी ईंट, खून सने कपड़े आदि भी बरामद कर लिए थे. विवेक की मोटरसाइकिल तो पहले ही बरामद हो चुकी थी.

सारी बरामदगी के बाद पुलिस ने अदालत में सभी को पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मजे की बात यह है कि सुषमा को पति की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं है. वह जेल से बाहर आने के बाद अब भी अपने प्रेमी डब्लू के साथ जीवन बिताने के सपने देख रही है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम – भाग 2

उधर मनीष, नीलेश के प्रति अपने व्यवहार के लिए स्वयं को धिक्कार रहा था. पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई प्रोग्राम बनने से पूर्व ही अधर में लटक गया था पर वह करता भी तो क्या करता. नीलेश की बातें सुन कर उस के दिल में  शक का कीड़ा कुलबुला कर नागफनी की तरह डंक मारते हुए उसे दंशित करने लगा था.

वह जानता था कि उसे महीने में 10-12 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है. ऐसे में हो सकता है सुलेखा की किसी के साथ घनिष्ठता हो गई हो. इस में  कुछ बुरा भी नहीं है पर उसे यही विचार परेशान कर रहा था कि सुलेखा ने उस सुयश नामक व्यक्ति से उसे क्यों नहीं मिलवाया, जबकि नीलेश के अनुसार वह उस से मिलती रहती है. और तो और उस ने उस का नीलेश से अपना ममेरा भाई बता कर परिचय भी करवाया…जबकि उस की जानकारी में उस का कोई ममेरा भाई है ही नहीं…उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे पर सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी पर दोषारोपण करना उचित भी तो नहीं है.

एक दिन जब सुलेखा बाथरूम में थी तो वह उस का सैलफोन सर्च करने लगा. एक नंबर  उसे संशय में डालने लगा क्योंकि उसे बारबार डायल किया गया था. नाम था सुश…सुश. नीलेश की जानकारी में सुलेखा का कोई दोस्त नहीं है फिर उस से बारबार बातें क्यों किया करती है और अगर उस का कोई दोस्त है तो उस ने उसे बताया क्यों नहीं. मन ही मन मनीष ने सोचा तो उस के अंतर्मन ने कहा कि यह तो कोई बात नहीं कि वह हर बात तुम्हें बताए या अपने हर मित्र से तुम्हें मिलवाए.

पर जीवन में पारदर्शिता होना, सफल वैवाहिक जीवन का मूलमंत्र है. अपने अंदर उठे सवाल का वह खुद जवाब देता है कि वह तुम्हारा हर तरह से तो खयाल रखती है, फिर मन में शंका क्यों?

‘शायद जिसे हम हद से ज्यादा प्यार करते हैं, उसे खो देने का विचार ही मन में असुरक्षा  पैदा कर देता है.’

‘अगर ऐसा है तो पता लगा सकते हो, पर कैसे?’

मन तर्कवितर्क में उलझा हुआ था. अचानक सुश और सुयश में उसे कुछ संबंध नजर आने लगा और उस ने वही नंबर डायल कर दिया.

‘‘बोलो सुलेखा,’’ उधर से किसी पुरुष की आवाज आई.

पुरुष स्वर सुन कर उसे लगा कि कहीं गलत नंबर तो नहीं लग गया अत: आफ कर के पुन: लगाया, पुन: वही आवाज आई…

‘‘बोलो सुलेखा…पहले फोन क्यों काट दिया, कुछ गड़बड़ है क्या?’’

उसे लगा नीलेश ठीक ही कह रहा था. सुलेखा उस से जरूर कुछ छिपा रही है… पर क्यों, कहीं सच में तो उस के पीछे उन दोनों में… अभी वह यह सोच ही रहा था कि सुलेखा नहा कर आ गई. उस के हाथ में अपना मोबाइल देख कर बोली, ‘‘कितनी बार कहा है, मेरा मोबाइल मत छूआ करो.’’

‘‘मेरे मोबाइल से कुछ नंबर डिलीट हो गए थे, उन्हीं को तुम्हारे मोबाइल से अपने में फीड कर रहा था,’’ न जाने कैसे ये शब्द उस की जबान से फिसल गए.

अपनी बात को सिद्ध करने के लिए वह ऐसा ही करने लगा जैसा उस ने कहा था. इसी बीच उस ने 2 आउटगोइंग काल, जो सुश को करे थे उन्हें भी डिलीट कर दिया, जिस से अगर वह सर्च करे तो उसे पता न चले.

अब संदेह बढ़ गया था पर जब तक सचाई की तह में नहीं पहुंच जाए तब तक वह उस से कुछ भी कह कर संबंध बिगाड़ना नहीं चाहता था. उस की पत्नी का किसी के साथ गलत संबंध है तथा वह उस से चोरीछिपे मिला करती है, यह बात भी वह सह नहीं पा रहा था. न जाने उसे ऐसा क्यों लगने लगा कि वह नामर्द तो नहीं, तभी उस की पत्नी को उस के अलावा भी किसी अन्य के साथ की आवश्यकता पड़ने लगी है.

‘तुम इतने दिन बाहर टूर पर रहते हो, अपने एकाकीपन को भरने के लिए सुलेखा किसी के साथ की चाह करने लगे तो इस में क्या बुराई है?’ अंतर्मन ने पुन: प्रश्न किया.

‘बुराई, संबंध बनाने में नहीं बल्कि छिपाने में है, अगर संबंध पाकसाफ है तो छिपाना क्यों और किस लिए?’

‘शायद इसलिए कि तुम ऐसे संबंध को स्वीकार न कर पाओ…सदा संदेह से देखते रहो.’

‘क्या मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं…नए जमाने का हूं…स्वस्थ दोस्ती में कोई बुराई नहीं है.’

‘सब कहने की बात है, अगर ऐसा होता तो तुम इतने परेशान न होते… सीधेसीधे उस से पूछ नहीं लेते?’

‘पूछने पर मन का शक सच निकल गया तो सह नहीं पाऊंगा और अगर गलत निकला तो क्या मैं उस की नजरों में गिर नहीं जाऊंगा.’

‘जल्दबाजी क्यों करते हो, शायद समय के साथ कोई रास्ता निकल ही आए.’

‘हां, यही ठीक रहेगा.’

इस सोच ने तर्कवितर्क में डूबे मन को ढाढ़स बंधाया…उन के विवाह को 10 महीने हो चले थे. वह अपने पी.एफ. में उसे नामिनी बनाना चाहता था, उस के लिए सारी औपचारिकता पूरी कर ली थी. बस, सुलेखा के साइन करवाने बाकी थे. एक एल.आई.सी. भी खुलवाने वाला था, पर इस एपीसोड ने उसे बुरी तरह हिला कर रख दिया. अब उस ने सोचसमझ कर कदम उठाने का फैसला कर लिया.

यद्यपि सुलेखा पहले की तरह सहज, सरल थी पर मनीष के मन में पिछली घटनाओं के कारण हलचल मची हुई थी. एक बार सोचा कि किसी प्राइवेट डिटेक्टर को तैनात कर सुलेखा की जासूसी करवाए, जिस से पता चल सके कि वह कहां, कब और किस से मिलती है पर जितना वह इस के बारे में सोचता, बारबार उसे यही लगता कि ऐसा कर के वह अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक कर देगा…आखिर ऐसी संदेहास्पद जिंदगी कोई कब तक बिता सकता है. अत: पता तो लगाना ही पड़ेगा, पर कैसे, समझ नहीं पा रहा था.

हफ्ते भर में ही ऐसा लगने लगा कि वह न जाने कितने दिनों से बीमार है. सुलेखा पूछती तो कह देता कि काम की अधिकता के कारण तबीयत ढीली हो रही है…वैसे भी सुलेखा का उस की चिंता करना दिखावा लगने लगा था. आखिर, जो स्त्री उस से छिप कर अपने मित्र से मिलती रही है वह भला उस के लिए चिंता क्यों करेगी?

उस दिन मनीष का मन बेहद अशांत था. आफिस से छुट्टी ले ली थी. सुलेखा ने पूछा तो कह दिया, ‘‘तबीयत ठीक नहीं लग रही है, अत: छुट्टी ले ली.’’

सुलेखा ने डाक्टर को दिखाने की बात कही तो वह टाल गया. आखिर बीमारी मन की थी, तन की नहीं, डाक्टर भी भला क्या कर पाएगा. रात का खाना भी नहीं खाया. सुलेखा के पूछने पर कह दिया कि बस, एक गिलास दूध दे दो, खाने का मन नहीं है. सुलेखा दूध लेने चली गई. उस के कदमों की आहट सुन कर उसे न जाने क्या सूझा कि अचानक अपनी छाती को कस कर दबा लिया तथा दर्द से कराहने लगा.

मौज मजे की ममता : गजेंद्र और ममता ने मिल कर कैसी साजिश रची

4 अप्रैल, 2018 की बात है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के मुरार थाना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा होने की वजह से चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था. कर्फ्यू की वजह यह थी कि 2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट के संशोधन के विरोध में दलित आंदोलन के दौरान 2 लोगों की मौत हो गई थी. हालात बिगड़ने पर प्रशासन ने इलाके में कर्फ्यू लगा रखा था.

इसी दौरान घटी एक अन्य घटना ने माहौल में अचानक ही गरमाहट पैदा कर दी. घटना भी ऐसी कि पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. खबर यह फैली कि बुधवार की सुबह भारत बंद के दौरान उपद्रव करने वाले लोगों ने तिकोनिया इलाके में एक युवक की हत्या और कर दी है. मरने वाला युवक तिकोनिया पार्क का उमेश कुशवाह है.

यह खबर जंगल की आग की तरह इतनी तेजी से फैली कि थोड़ी ही देर में मृतक उमेश कुशवाह के घर के बाहर भीड़ लग गई. भीड़ में राजनैतिक दलों के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से ले कर सामाजिक संगठनों के लोग भी शामिल थे. सभी में इस घटना को ले कर काफी आक्रोश था. लोग हत्यारों के तत्काल पकड़े जाने की मांग कर होहल्ला मचा रहे थे.

सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंचे सीएसपी रत्नेश तोमर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए विभाग के आला अधिकारियों को अवगत करा दिया. संवेदनशील इलाके में हत्या की एक और घटना घटने की सूचना पर आईजी अंशुमान यादव, डीआईजी मनोहर वर्मा, एसपी डा. आशीष भी मौका ए वारदात पर जल्द पहुंच गए.

भीड़ ने उन सभी पुलिस अधिकारियों को घेर लिया. इस से तिकोनिया इलाके का माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया. ऐसी हालत में किसी भी अनहोनी से बचने के लिए रैपिड एक्शन फोर्स को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों को भरोसा दिया कि इस केस का जल्द परदाफाश कर के हत्यारों को गिरफ्तार कर लेंगे. उन के आश्वासन के बाद भीड़ किसी तरह शांत हुई. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मौका ए वारदात का अवलोकन किया.

पुलिस जानती थी कि अफवाहें चिंगारी बन कर आग लगाने का काम करती हैं और उन्हें रोकना कठिन होता है. वे इतनी तेजी से फैलती हैं कि माहौल बहुत जल्द बिगड़ जाता है, इसलिए पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनजर सख्त कदम उठाते हुए इंटरनेट प्रसारण पर रोक लगा दी.

पुलिस अफसरों के रवाना होते ही डौग स्क्वायड और फोरैंसिक एक्सपर्ट्स की टीमें भी घटनास्थल पर पहुंच गईं. सीएसपी रत्नेश तोमर और थानाप्रभारी अजय पवार ने घटनास्थल का मुआयना किया तो देखा कि खून से लथपथ उमेश कुशवाह की लाश मकान के बाहरी हिस्से में बने कमरे में फर्श पर पड़ी थी.

देख कर लग रहा था, जैसे किसी धारदार चीज से उस के सिर पर प्रहार किया गया था. उस का सिर फटा हुआ था. मौके पर इधरउधर खून फैला हुआ था. लाश बिस्तर पर नहीं थी, इस से लगता था कि मरने से पहले उमेश ने शायद हत्यारे से संघर्ष किया होगा. जिस कमरे में उमेश कुशवाह की लाश पड़ी थी, वहीं पर उस का मोबाइल फोन भी पड़ा हुआ था.

घटनास्थल से सारे सबूत इकट्ठे करने के बाद पुलिस ने अलगअलग कोणों से लाश की फोटोग्राफी कराई. घटनास्थल से कुछ दूरी पर पुलिस टीम को एक हंसिया पड़ा मिला. उस हंसिए पर खून लगा हुआ था. इस से पुलिस को आशंका हुई कि हो न हो इस हंसिया से ही हत्यारों ने इस वारदात को अंजाम दिया हो. फोरैंसिक टीम ने हंसिए से फिंगरप्रिंट उठा लिए. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस ने वहां मौजूद उमेश की पत्नी ममता से प्रारंभिक पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘मेरे पति सूरत में नौकरी करते हैं. वह 30 मार्च को ही सूरत से लौट कर घर आए थे. शहर में 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान उपद्रव हो जाने के बाद समूचे मुरार क्षेत्र में कर्फ्यू और धारा 144 लग जाने की वजह से वह सूरत नहीं लौट सके.

‘‘रोजाना की तरह वह खाना खा कर अपने कमरे में सो रहे थे. आज तड़के 4 बजे के करीब मैं बाथरूम गई. जब वहां से लौट कर आई तो पति को खून से लथपथ फर्श पर पड़ा देख कर भौचक्की रह गई. मैं रोती हुई अपने फुफेरे देवर गजेंद्र के पास गई और उसे जगा कर यह बात बताई. मेरी बात सुन कर गजेंद्र तुरंत मेरे घर आया. लाश देख कर वह समझ नहीं सका कि यह सब कैसे हो गया. इस के बाद मैं ने साहस बटोर कर मोबाइल से अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को जानकारी दे दी. पड़ोसी महेश ने इस की सूचना पुलिस को दी.’’

पुलिस ने ममता से कमरे में उमेश के अकेले सोने की वजह मालूम की तो उस ने बताया कि हमारे दोनों बेटे 2 दिन पहले सिकंदर कंपू स्थित अपने मामा के घर एक कार्यक्रम में गए थे. वे रात को लौटने वाले थे, इसलिए वह दरवाजा खुला छोड़ कर सो रहे थे. उमेश के चीखने की आवाज न तो ममता ने सुनी थी और न ही गजेंद्र ने.

पुलिस अधिकारियों ने क्राइम सीन को पुन: समझा. जांच में 3 बातें स्पष्ट हुईं, एक तो यह कि सिर पर किसी धारदार चीज से प्रहार किया गया था. दूसरा यह कि मामला साफतौर पर हत्या का था न कि लूटपाट में हुई हत्या का.

तीसरी बात यह थी कि वारदात में किसी ऐसे नजदीकी व्यक्ति का हाथ होने की संभावना लग रही थी, जो घर की स्थिति को भलीभांति जानता था. वह व्यक्ति यह भी जानता था कि उमेश के दोनों बेटे आज घर पर नहीं हैं. घर पर सिर्फ पत्नी ममता ही है.

बहरहाल, कातिल जो भी था उस ने गुनाह को छिपाने की हरसंभव कोशिश की थी. पुलिस ने पड़ताल के दौरान जो हंसिया बरामद किया था, ममता ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. घटनास्थल की जांच के बाद एसपी डा. आशीष ने इस मामले के खुलासे के लिए सीएसपी रत्नेश तोमर के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. टीम का निर्देशन एसपी साहब स्वयं कर रहे थे.

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह सिर पर धारदार चीज का प्रहार बताया गया था. जबकि मौत का समय रात 1 बजे से 3 बजे के बीच बताया गया, इसलिए पुलिस ने तिकोनिया इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों की रात 12 बजे से ले कर 3 बजे तक की फुटेज देखी. लेकिन इस से इस घटना का कोई सुराग नहीं मिला.

इलाके में कर्फ्यू लगा होने की वजह से फुटेज में पुलिस के अलावा कोई भी शख्स आताजाता दिखाई नहीं दिया. पुलिस ने ममता से उमेश की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह पुलिस पर हावी होते हुए बोली, ‘‘साहब, मेरे ही पति की हत्या हुई और आप मुझ से ही इस तरह पूछ रहे हैं जैसे मैं ने ही उन्हें मारा हो. जिस ने उन्हें मारा उसे तो आप पकड़ नहीं पा रहे. आप ही बताइए, भला मैं अपने पति को क्यों मारूंगी. आप मुझे ज्यादा परेशान करेंगे तो मैं एसपी साहब से आप की शिकायत कर दूंगी.’’

‘‘देखो ममता, तुम जिस से चाहो मेरी शिकायत कर देना. मुझे तो इस केस की जांच करनी है.’’ सीएसपी रत्नेश तोमर ने कहा, ‘‘अब तुम यह बताओ कि तुम्हारी गजेंद्र से मोबाइल पर इतनी बातें क्यों होती हैं, इस से तुम्हारा क्या नाता है?’’

‘‘साहब, गजेंद्र मेरा फुफेरा देवर है. मैं जिस किराए के मकान में रहती हूं, उसी मकान में वह भी रहता है. अगर मैं गजेंद्र से बात कर लेती हूं तो कोई गुनाह करती हूं क्या?’’ ममता बोली.

‘‘तुम्हारा गजेंद्र से बात करना कोई गुनाह नहीं है. लेकिन तुम्हें यह तो बताना ही पड़ेगा कि पति की हत्या से पहले और बाद में उस से क्या बातें हुई थीं?’’

हत्या का सच जानने के लिए पुलिस को काफी प्रयास करने पड़े. ऐसा होता भी क्यों न, चालाक ममता और गजेंद्र सीएसपी रत्नेश तोमर को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. सीएसपी ने ममता से कहा, ‘‘ममता, तुम झूठ मत बोलो. तुम ने ही अपने प्रेमी के साथ मिल कर प्रेम प्रसंग में रोड़ा बन रहे पति को रास्ते से हटाने का षडयंत्र रचा था.’’

इतना सुनते ही ममता के चेहरे का रंग उड़ गया, वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहीं, मेरी गजेंद्र से कोई बात नहीं हुई थी. किसी ने आप को गलत जानकारी दी है.’’

‘‘ममता, हमें गलत जानकारी नहीं दी. यह देखो तुम ने कबकब और कितनी देर तक गजेंद्र से बातें की थीं. इस कागज में पूरी डिटेल्स है.’’ सीएसपी ने काल डिटेल्स उस के हाथ में थमाते हुए कहा.

ममता अब झूठ नहीं बोल सकती थी, क्योंकि काल डिटेल्स का कड़वा सच उस के हाथ में था. ममता की चुप्पी से सीएसपी तोमर समझ गए कि उन की पड़ताल सही दिशा में जा रही है. इस के बाद उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और पति की हत्या की पूरी कहानी सुना दी.

उमेश कुशवाह मूलरूप से बिजौली के रशीदपुर गांव का रहने वाला था. 15 साल पहले रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर सूरत चला गया था. उमेश जवान हुआ तो उस के बड़े भाई मान सिंह ने सिकंदर कंपू इलाके की रहने वाली ममता से शादी कर दी.

शादी के कुछ साल बाद ही ममता 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चे पढ़ने लायक हुए तो उमेश ने दोनों बच्चों को ग्वालियर शिफ्ट कर दिया. यहां वह मुरार के तिकोनिया इलाके में किराए का मकान ले कर रहने लगे. इसी मकान के दूसरे कमरे में उमेश का फुफेरा भाई गजेंद्र भी रहता था.

कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. ममता के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. बच्चों का हालचाल पूछने के बहाने गजेंद्र ममता के पास आने लगा. ममता बच्ची नहीं थी, वह गजेंद्र के मन की बात को अच्छी तरह से समझ रही थी. गजेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देख वह भी उस की ओर खिंचती चली गई.

दोनों के दिलों में प्यार का अंकुर फूटा तो जल्द ही वह समय आ गया, जब दोनों का एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि ममता को उमेश की बांहों की अपेक्षा गजेंद्र की बांहें ज्यादा अच्छी लगने लगीं. जो सुख उसे गजेंद्र की बांहों में मिलता था, वह उमेश की बांहों में नहीं था. यही वजह थी कि उन दोनों को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते.

ममता ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन एक दिन गजेंद्र ने कहा, ‘‘ममता, अब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

इस पर ममता ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता गजेंद्र, मैं शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं है. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

गजेंद्र बोला, ‘‘तुम्हारे लिए मुझे यदि उमेश की हत्या भी करनी पड़े तो मैं कर दूंगा.’’

‘‘तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे.’’ ममता ने कहा, ‘‘उमेश, मुझ से और बच्चों से बहुत प्यार करता है. हम दोनों को जो चाहिए, वह मिल ही रहा है फिर हम कोई गलत काम क्यों करें.’’ ममता ने गजेंद्र को समझाया.

लेकिन ममता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वह ममता को हमेशा के लिए पाना चाहता था. गजेंद्र ने ममता पर ज्यादा दबाव डाला तो वह परेशान हो कर बोली, ‘‘तुम्हें जो करना है करो. इस मामले में मैं कुछ नहीं जानती.’’

ममता के प्यार में पागल गजेंद्र ने ममता की इस बात को सहमति मान कर उमेश की हत्या करने की योजना बना डाली और हत्या करने के लिए मौके की ताक में रहने लगा. फिर योजना में ममता को भी शामिल कर लिया.

4 अप्रैल, 2018 को उसे वह मौका तब मिल गया, जब उसे पता चला कि उमेश के दोनों बेटे मामा के घर से नहीं लौट पाए हैं. घर पर सिर्फ ममता और उमेश ही हैं. ममता ने बातोंबातों में फोन पर गजेंद्र को बता दिया कि उमेश खाना खाने के बाद गहरी नींद में सो गया है.

इस पर गजेंद्र उमेश को ठिकाने लगाने के इरादे से उमेश के कमरे पर पहुंच गया. उस ने ममता के साथ बैठ कर योजना बनाई कि तुम सब से पहले मौका देख कर उमेश के सिर पर हंसिए का वार करना. ममता ने ऐसा ही किया. इस के बाद गजेंद्र ने ममता के हाथ से हंसिया ले कर उमेश के सिर को बड़ी बेरहमी से वार कर के फाड़ दिया. थोड़ी देर छटपटाने के बाद उमेश शांत हो गया.

इश्क की राह में बने रोड़े को मौत के घाट उतारने के बाद घर आ कर गजेंद्र ने इत्मीनान के साथ हाथपैर धोए और फिर कपड़े बदल कर सो गया. ममता और गजेंद्र को उम्मीद थी कि उमेश की हत्या पहेली बन कर रह जाएगी और वे कभी नहीं पकड़े जाएंगे.

उधर सुबह घटनास्थल पर पुलिस के आने के बाद ममता और गजेंद्र पूरी तरह से अंजान बने रहने का नाटक करते रहे. पुलिस के सवालों का भी उन दोनों ने बड़ी चालाकी के साथ सामना किया. इन दोनों ने अपने जुर्म को छिपाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने आखिरकार सच उगलवा ही लिया.

ममता और गजेंद्र ने जब अपना गुनाह स्वीकार कर लिया तो पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

मर्यादा की हद से आगे – भाग 2

मृतक पवन पाल के दोस्त कल्लू के संबंध में क्लू मिला तो अजय प्रताप सिंह ने रमाशंकर उर्फ कल्लू की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने कच्ची बस्ती जा कर कल्लू पल्लेदार के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह नहर किनारे अपनी मां और बहन के साथ रहता है. अजय प्रताप सिंह उस के घर पहुंचे तो पता चला कि कल्लू एक हफ्ते से घर में ताला लगा कर कहीं चला गया है.

दोस्त की हत्या के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू का घर में ताला लगा कर गायब हो जाना, संदेह पैदा कर रहा था. अजय प्रताप सिंह समझ गए कि पवन की हत्या का राज उस के दोस्त कल्लू के पेट में ही छिपा है.

कल्लू शक के घेरे में आया तो उन्होंने उस की तलाश में कई संभावित स्थानों पर छापे मारे, लेकिन वह उन की पकड़ में नहीं आया. हताश हो कर उन्होंने उस की टोह में अपने खास मुखबिर लगा दिए.

10 जुलाई को शाम 4 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह को बताया कि मृतक पवन पाल का दोस्त कल्लू पल्लेदार इस समय पनकी इंडस्ट्रियल एरिया के नहर पुल पर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना महत्त्वपूर्ण थी. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने एसआई दयाशंकर त्रिपाठी, उमेश कुमार, हैडकांस्टेबल रामकुमार और सिपाही गंगाराम को साथ लिया और जीप से नहर पुल पर जा पहुंचे.

जीप रुकते ही एक व्यक्ति तेजी से रेलवे लाइन की तरफ भागा. लेकिन पुलिस टीम ने उसे कुछ ही दूरी पर दबोच लिया. पकड़े गए व्यक्ति ने अपना नाम रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद बताया. पुलिस उसे थाना पनकी ले आई.

थाने पर जब रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पवन पाल की हत्या के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा, ‘‘पवन पाल मेरा जिगरी दोस्त था. दोनों साथ काम करते थे और खातेपीते थे. भला मैं अपने दोस्त की हत्या क्यों करूंगा? मुझे झूठा फंसाया जा रहा है.’’

लेकिन पुलिस ने उस की बात पर यकीन नहीं किया और उस से सख्ती से पूछताछ की. कल्लू पुलिस की सख्ती ज्यादा देर बरदाश्त नहीं कर सका. उस ने अपने दोस्त पवन पाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

यही नहीं, कल्लू ने हत्या में इस्तेमाल लोहे का वह हुक (बोरा उठाने वाला) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर के अंदर छिपा दिया था. मृतक के मोबाइल को कल्लू ने कूंच कर नहर में फेंक दिया था, जिसे पुलिस बरामद नहीं कर सकी.

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने ब्लाइंड मर्डर का रहस्य उजागर करने तथा कातिल को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजीत कुमार सिंह थाना पनकी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने भी रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पूछताछ की. उस ने बताया कि पवन ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. उस ने उसे बहुत समझाया, हाथ तक जोड़े लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे मौत की नींद सुला दिया.

रमाशंकर उर्फ कल्लू ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने मृतक पवन के बड़े भाई जगत पाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच तथा अभियुक्त के बयानों के आधार पर दोस्त द्वारा दोस्त की हत्या करने की सनसनीखेज घटना इस तरह सामने आई.

फैजाबाद शहर के थाना कैंट के अंतर्गत एक मोहल्ला है रतिया निहावा. रामप्रसाद निषाद इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा 2 बेटे दयाशंकर, रमाशंकर उर्फ कल्लू तथा 2 बेटियां रजनी व मानसी थीं. रामप्रसाद निषाद सरयू नदी में नाव चला कर अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

रामप्रसाद का बड़ा बेटा दयाशंकर पढ़ालिखा था. वह बिजली विभाग में नौकरी करता था. उस की शादी जगदीशपुर निवासी झुनकू की बेटी वंदना से हुई थी. वंदना तेजतर्रार युवती थी.

ससुराल में वह कुछ साल तक सासससुर के साथ ठीक से रही, उस के बाद वह कलह करने लगी. कलह की सब से बड़ी वजह थी वंदना का देवर रमाशंकर उर्फ कल्लू.

कल्लू का मन न पढ़नेलिखने में लगता था और न ही किसी काम में. वह मोहल्ले के कुछ आवारा लड़कों के साथ घूमने लगा, जिस की वजह से वह नशे का आदी हो गया. शराब पी कर लोगों से गालीगलौज और मारपीट करना उस की दिनचर्या बन गई. आए दिन घर में कल्लू की शिकायतें आने लगीं.

वंदना भी कल्लू की हरकतों से परेशान थी. उसे यह कतई बरदाश्त नहीं था कि उस का पति कमा कर लाए और देवर मुफ्त की रोटी खाए. कलह का दूसरा कारण था, संयुक्त परिवार में रहना.

वंदना को दिन भर काम में व्यस्त रहना पड़ता था. इस सब से वह ऊब गई थी और संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती थी. वह कलह तो करती ही थी साथ ही पति दयाशंकर पर अलग रहने का दबाव  भी बनाती थी.

रामप्रसाद भी छोटे बेटे कल्लू की नशाखोरी से परेशान था. वह उसे समझाने की कोशिश करता तो वह बाप से ही भिड़ जाता था. घर की कलह और बेटे की नशाखोरी की वजह से रामप्रसाद बीमार पड़ गया. बड़े बेटे दयाशंकर ने रामप्रसाद का इलाज कराया. लेकिन वह उसे नहीं सका.

पिता की मौत पर कल्लू ने खूब ड्रामा किया. शराब पी कर उस ने भैयाभाभी को खूब खरीखोटी सुनाई. साथ ही ठीक से इलाज न कराने का इलजाम भी लगाया.

पिता की मौत के बाद मां व बहन का बोझ दयाशंकर के कंधों पर आ गया. उस की आमदनी सीमित थी और खर्चे बढ़ते जा रहे थे. ससुर की मौत के बाद वंदना ने भी कलह तेज कर दी थी. वह पति का तो खयाल रखती थी, लेकिन अन्य लोगों के खानेपीने में भेदभाव बरतती थी. सास लक्ष्मी कुछ कहती तो वंदना गुस्से से भर उठती, ‘‘मांजी, गनीमत है जो तुम्हारा बेटा तुम्हें रोटी दे रहा है. वरना तुम सब को मंदिर के बाहर भीख मांग कर पेट भरना पड़ता.’’

बहू की जलीकटी बातें सुन कर लक्ष्मी खून का घूंट पी कर रह जाती, क्योंकि वह मजबूर थी. छोटी बेटी मानसी भी जवानी की दहलीज पर खड़ी थी. उसे ले कर वह कहां जाती.

लक्ष्मी ने छोटे बेटे रमाशंकर उर्फ कल्लू को समझाया कि अब तो सुधर जाए. कुछ काम करे और चार पैसे कमा कर लाए. किसी दिन वंदना ने खानापानी बंद कर दिया तो हम सब भूखे मरेंगे. लेकिन कल्लू पर मां की बात का कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी ही मस्ती में मस्त रहा.

उन्हीं दिनों एक रोज रमाशंकर देर शाम शराब पी कर घर आया. आते ही उस ने खाना मांगा. इस पर वंदना गुस्से से बोली, ‘‘कमा कर रख गए थे, जो खाना लगाने का हुक्म दे रहे हो. आज तुम्हें खाना नहीं मिलेगा. एक बात कान खोल कर सुन लो. इस घर में अब तुम्हें खाना तभी मिलेगा, जब कमा कर लाओगे.’’