सगे भतीजे की नृशंस हत्या करने वाला चाचा

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में चरगवां पुलिस थाने के अंतर्गत एक छोटा सा गांव है सगड़ा. इस गांव की आबादी बमुश्किल 700-800 होगी. गांव के अधिकांश लोग खेतीबाड़ी का काम करते हैं. सगड़ा गांव में उत्तम गिरि का 6 भाइयों का परिवार रहता है. उत्तम गिरि और सब से बड़े भाई सतमन गिरि एक साथ रहते हैं. जबकि 4 अन्य भाई घर से कुछ दूरी पर बने मकान में रहते हैं. मूलत: किसानी करने वाले इस परिवार के पास लगभग 40 एकड़ खेती की जमीन है.

8 अप्रैल, 2019 की बात है. उत्तम गिरि की पत्नी ममता परिवार के लिए खाना बना रही थी. ममता का 10 साल का बेटा बादल खेलने की बात कह कर घर से बाहर चला गया था, जबकि 5 साल की बेटी मानवी घर पर ही खेल रही थी.

ममता खाना बना कर रसोई के सारे काम निपटा चुकी थी. तब तक दोपहर के 12 बज गए थे. लेकिन उस का बेटा बादल खेल कर नहीं लौटा था. वह बुदबुदाई, ‘‘खेल में इतना डूब जाता है कि खानेपीने का भी खयाल नहीं रहता.’’

उसी समय ममता का पति उत्तम गिरि भी खेत से घर आ गया. जब उसे पता चला कि बादल बाहर खेलने गया है तो उस ने उसे बुलाने के लिए बेटी मानसी को भेजा ताकि वह भी सब के साथ खाना खा ले.

कुछ देर बाद मानसी अकेली ही लौट आई. उस ने बताया कि बादल बाहर नहीं है. यह सुन कर उत्तम गिरि खुद बेटे को खोजने के लिए निकल गया. आसपड़ोस में रहने वाले लोगों ने उत्तम को बताया कि बादल खेलने आया तो था. सुबह साढ़े 10 बजे के आसपास वह मोहल्ले में ही साहबलाल के घर के सामने खेल रहा था.

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              बादल

चूंकि साहबलाल का बेटा भी बादल के साथ स्कूल में पढ़ता था, इसलिए दोनों प्राय: रोज ही साथ खेलते रहते थे. उन्होंने साहबलाल के घर जा कर बेटे के बारे में पूछा तो उस के बेटे ने बताया कि आज वह खेलने के लिए घर से निकला ही नहीं है. इस के बाद बादल की मम्मी, पापा के अलावा उस के बड़े पापा (ताऊ) सतमन गिरि की चिंता बढ़ गई.

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जैसे ही गांव बालों को उत्तम के 10 वर्षीय बेटे बादल के गुम होने की जानकारी मिली तो उत्तम के घर लोगों की भीड़ जुटने लगी. जब शाम तक बादल का पता नहीं चला तो उत्तम गिरि के बड़े भाई सतमन गिरि ने शाम को चरगवां थाने पहुंच कर बादल के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

चूंकि फरवरी माह में मध्य प्रदेश के चित्रकूट में 2 बच्चों के अपहरण के बाद हत्या करने की घटना हो चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने इस मामले को गंभीरता लिया. उन्होंने इस की सूचना पुलिस कप्तान निमिष अग्रवाल को भी दे दी. उन्होंने थानाप्रभारी को इस मामले में त्वरित काररवाई करने के निर्देश दिए.

एसएसपी के निर्देश पर एसपी (ग्रामीण) रायसिंह नरवरिया थाना चरगवां प्रभारी नितिन कमल के साथ सगड़ा गांव पहुंच गए.

पुलिस ने बादल के मातापिता को भरोसा दिया कि पुलिस बहुत जल्द बादल का पता लगा लेगी. लेकिन अगले दिन सोशल मीडिया और स्थानीय अखबारों में घटना की खबर प्रकाशित होते ही पुलिस की नींद उड़ गई.

एसपी के निर्देश पर पुलिस टीम ने 2 दिन और 2 रात गांव सगड़ा में कैंप कर गांव में घर घर जा कर करीब 100 से अधिक महिलाओं, पुरुषों व बादल के हमउम्र बच्चों से सघन पूछताछ की, लेकिन बादल का कहीं कोई सुराग नहीं मिला.

घटना को ले कर गांव में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. कोई कहता कि बादल का अपहरण हो गया है तो कोई नवरात्रि में किसी तांत्रिक क्रिया के लिए देवी मां को बलि चढ़ाने की बात कहता. पुलिस किसी से जाती दुश्मनी और अन्य पहलुओं पर भी छानबीन कर रही थी. उसे यह भी शक था कि कहीं किसी ने बादल के साथ कुकर्म कर हत्या न कर दी हो.

10 अप्रैल की रात गांव में पुलिस बल की मौजूदगी में बादल के परिजनों और गांव के प्रमुख लोगों ने रात 2 बजे तक बादल की खोजबीन की, लेकिन उस का कोई अता पता नहीं लग सका. बादल के गायब होने की गुत्थी पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. इस बीच एसपी साहब ने बादल की सूचना देने वाले को 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा कर दी.

उधर बादल की मां ममता का रोरो कर बुरा हाल था. किसी अज्ञात आशंका के डर से उस का कलेजा रहरह कर कांप उठता.

गुरुवार 11 अप्रैल, 2019 की सुबह साढ़े 8 बजे के लगभग गांव के कुछ लोगों को पास में बने एक खाली मकान से अजीब सी बदबू आती महसूस हुई. जब उत्तम और गांव के लोग उस मकान के अंदर पहुंचे तो उन्हें एक जर्जर कमरे में प्लास्टिक की बोरी नजर आई. तत्काल बोरी खोल कर देखी गई तो उस के अंदर बादल की लाश मिली. उस के दोनों हाथ और पैर तार से बंधे हुए थे. बौडी गल चुकी थी.

जिस मकान में बादल की लाश मिली, वह मकान रामजी नाम के व्यक्ति का था, जो कुछ साल से पास के गांव कमतिया में रह रहा था. उस का यह घर खाली पड़ा रहता था. रामजी के 3 भाइयों का परिवार गांव में रहता था.

कमरे के अंदर गोबर से लिपाई की गई जगह पर एक कोने में पत्थर पर उकेरी गई देवी की मूर्ति रखी थी. मूर्ति के पास ही त्रिशूल, मोर पंख, बुझे हुए दीपक के साथ 2 नारियल भी थे. घर के आंगन और पिछले दरवाजे तक खून के धब्बे मिले. पिछले दरवाजे में बाहर की ओर से ताला लगा हुआ था, लेकिन रामजी और गांव वालों ने बताया कि पिछले दरवाजे में सिर्फ सांकल लगी रहती थी.

गांव वालों ने आशंका प्रकट की कि शायद लाश को छिपाने वाले बाहर से ताला लगा कर गए होंगे. बादल के गायब होने के बाद से उत्तम गिरि के परिवार के लोग रामजी के इस घर में कई बार बच्चे को ढूंढने पहुंचे थे, लेकिन उस समय वहां कुछ नहीं मिला था.

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बादल की लाश मिलते ही उस के परिजनों के साथ गांव के लोग आक्रोशित हो गए. इसलिए रामजी के भाइयों के परिवार को गांव वालों ने घेर लिया. सुबह साढ़े 8 बजे रामजी के भतीजे मुकेश ने फोन पर अपने चाचा रामजी को बताया कि उन के घर में बादल की लाश मिली है, जिस के कारण गोस्वामी परिवार के लोग उन सभी को परेशान कर रहे हैं.

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यह जानकारी मिलते ही रामजी भी सगड़ा पहुंच गया. उधर गोस्वामी परिवार के साथ गांव के कई युवकों ने गांव की घेराबंदी कर रखी थी. इस बीच किसी ने पुलिस को खबर की तो चरगवां थाने की पुलिस वहां पहुंच गई.

गांव में उस समय तनाव जैसा माहौल था. तनाव की स्थिति को देख एसपी निमिष अग्रवाल, एएसपी (ग्रामीण) रायसिंह नरवरिया के साथ पुलिस के सभी अधिकारी भारी फोर्स ले कर गांव पहुंच गए और एफएसएल टीम ने लाश मिलने वाली जगह का निरीक्षण कर सबूत इकट्ठा किए.

एसपी ने मौके पर मौजूद थानाप्रभारी (चरगवां) नितिन कमल, थानाप्रभारी (ओमती) नीरज वर्मा और थानाप्रभारी (शहपुरा) घनश्याम सिंह मर्सकोले एवं एफएसएल, साइबर सेल, क्राइम ब्रांच के साथ जवानों की टीमें बनाईं और गांव के एकएक घर की तलाशी लेने के निर्देश दिए. इस तलाशी अभियान के बाद भी हत्यारों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

चरगवां थानाप्रभारी नितिन कमल द्वारा की गई जांच एवं पूछताछ में एक बात तो तय मानी जा रही थी कि बादल के अपहरण एवं हत्या में किसी करीबी का हाथ है. विवेचना के दौरान गांव की महिलाओं एवं पुरुषों और बच्चों से लगातार सघन पूछताछ की गई. पूछताछ के आधार पर संदेह की सुई मुकेश श्रीपाल के इर्दगिर्द घूमने लगी.

बादल का शव जिस मकान में मिला, उस के मालिक रामजी के भतीजे मुकेश श्रीपाल के बारबार बयान बदलने से पुलिस को संदेह हुआ. पुलिस ने जब मुकेश के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि मुकेश अपने पुराने साथी गुड्डू उर्फ मनोहरलाल तिवारी और अनिल उर्फ अन्नू गोस्वामी के साथ रहता है.

अनिल उर्फ अन्नू गोस्वामी मृतक बादल का ताऊ यानी उस के पिता का बड़ा भाई था. तीनों जुआ खेलने के आदी थे और उन पर लाखों रुपयों का कर्ज था. मुकेश के साथ रहने वाला गुड्डू तिवारी भेड़ाघाट में हुई एक हत्या का आरोपी भी है.

पुलिस टीम ने जब मुकेश से पूछताछ की तो वह इस मामले में खुद पाकसाफ बताता रहा लेकिन पुलिस की सख्ती पर वह टूट गया. मुकेश ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह दिल दहला देने वाली थी. पता चला कि मासूम बादल के अपहरण और हत्या की साजिश में बादल का सगा ताऊ अनिल गोस्वामी उर्फ अन्नू और उस का दोस्त मनोहर तिवारी शामिल थे.

जुए, सट्टे की गलत आदत के चलते लाखों रुपए के कर्ज में डूबे इन दरिंदों ने पैसे के लिए मासूम बादल का कत्ल किया था. मुकेश की निशानदेही पर पुलिस ने अनिल और गुड्डू तिवारी को भी हिरासत में ले कर उन से सघन पूछताछ की.

पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार गांव सगड़ा निवासी मुकेश श्रीपाल, गुड्डू उर्फ मनोहरलाल तिवारी और अनिल गिरि को जुआ खेलने और शराब पीने की लत थी. कुछ दिन पहले ही तीनों नरसिंहपुर जिले की सीमा से सटे नगर गोटेगांव में जुआ खेलने गए थे.

वहां बड़ी रकम हारने के कारण तीनों पर लाखों रुपए का कर्ज हो गया था. जब कर्जदारों ने उन्हें धमकाना शुरू किया तो तीनों परेशान रहने लगे. कर्ज से मुक्ति पाने के लिए तीनों लूट, डकैती और अपहरण की योजना बनाने लगे.

तीनों को जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तो इस के लिए अनिल उर्फ अन्नू ने सुझाव दिया कि उस के छोटे भाई उत्तम के बेटे बादल का अपहरण कर लिया जाए तो 10-12 लाख की फिरौती मिल सकती है. उत्तम कुछ भी कर के रुपए दे देगा. यह सुन कर मुकेश, गुड्डू और अन्नू ने योजना बनानी शुरू कर दी. इस के बाद वे तीनों बादल के अकेले घर से निकलने का इंतजार करने लगे.

8 अप्रैल, 2019 की सुबह लगभग पौने 11 बजे गुड्डू, मुकेश और अन्नू गांव में खाली पड़ी दलान पर जुआ खेल रहे थे. तभी उन की नजर अकेले घर जाते हुए बादल पर पड़ी तो उन्होंने जुआ खेलना बंद कर दिया और अनिल गिरि उर्फ अन्नू बादल के पास पहुंच गया. उस ने बड़े प्यार से बादल से घूमने चलने को कहा तो वह ताऊ की बात नहीं टाल सका.

जैसे ही बादल को ले कर अनिल वहां से जाने लगा तो लोगों से नजर चुरा कर मुकेश और गुड्डू तिवारी भी उस के पीछेपीछे चलने लगे. गांव से बाहर निकलते ही तीनों बादल से मीठीमीठी बातें करने लगे. बादल इन तीनों को पहले से जानता था, इसलिए वह बातें करता रहा.

तीनों बड़ी सफाई और चालाकी से उसे गांव के बाहर खेत में बने सूने मकान में ले गए. यह मकान लखन गौड़ का था, जिस में कोई नहीं रहता था. काफी देर तक वहां रहने के बाद जब बादल ने घर जाने की जिद की तो तीनों ने पास में पड़े बिजली के तार से उस के हाथपैर बांध कर मुंह पर कपड़ा बांध दिया ताकि उस की आवाज न निकल सके.

बादल को वहीं छोड़ कर तीनों गांव आ कर यह योजना बनाने लगे कि उत्तम गिरि से कैसे फिरौती मांगी जाए. गांव में जब पुलिस बादल की तलाश करने पहुंची तो बादल के परिजनों और गांव वालों के साथ तीनों लोग भी बादल की खोज के बहाने पुलिस और परिवार की गतिविधियों पर नजर रखने लगे.

पुलिस के साथ बादल के पिता उत्तम और परिजन बादल की तलाश करने लगे. यह देख कर तीनों अपहर्त्ता डर गए. माहौल देख कर उन्हें लगने लगा कि उत्तम से फिरौती की रकम वसूलना अब मुश्किल है.

तीनों अपहर्त्ता एक बार फिर से खेत में बने मकान में आ गए. उन्हें भय लगा कि अगर बादल को छोड़ दिया तो वे पकड़े जाएंगे. क्योंकि बादल तीनों को पहचानता था. हाथपैर और मुंह बंधा बादल हाथपैर पटक कर छूटने का प्रयास कर रहा था कि उसी समय गुड्डू तिवारी ने बादल की गला दबा कर हत्या कर दी.

गुड्डू शातिर अपराधी था. पहले भी वह एक युवक की हत्या कर के शव को नदी में फेंकने के आरोप में जेल की हवा खा चुका था. गुड्डू ने कहा कि अगर बादल की लाश नहीं मिली तो वे सभी बच जाएंगे. इस के बाद तीनों आरोपियों ने बादल के शव को बोरी में भर कर नर्मदा नदी में फेंकने की योजना बनाई.

8 और 9 अप्रैल को पुलिस और गांव वालों ने बादल को सभी जगह तलाशा, जिस से कारण तीनों को लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला. 10 अप्रैल की रात वे तीनों लखन गौड़ के सूने मकान में पहुंचे और बादल के शव को बोरी में भर कर बाइक से नदी में फेंकने के लिए ले जाने लगे.

तीनों गांव के बाहरी रास्ते से जा रहे थे, तभी खेत की ओर से किसी ने बाइक पर तीनों को जाते देख कर टौर्च जलाई, जिसे देख कर तीनों डर गए और शव को ले कर गांव के अंदर सुनसान जगह में घुस गए. इस के बाद शव वाली बोरी को एक मकान में रख कर बैठ गए. इस दौरान कुछ खून बोरी से इधरउधर टपक गया.

तीनों ने कुछ लोगों को आते देखा तो जल्दबाजी में शव की बोरी को मुकेश श्रीपाल के घर के पास उस के चाचा रामजी के खंडहरनुमा मकान में छिपा दिया. इस के बाद  तीनों वहां से भाग कर अपनेअपने घर आ गए.

गांव के चप्पेचप्पे पर पुलिस बल की मौजूदगी और सर्चिंग के कारण मुकेश लाश की बोरी को ठिकाने नहीं लगा पाया और 11 अप्रैल की सुबह साढ़े 8 बजे रामजी के मकान से बदबू आने के कारण गोस्वामी परिवार को प्लास्टिक की बोरी में बादल का शव मिल गया.

जब पुलिस ने गांव में उत्तम गोस्वामी, सतमन गोस्वामी और उस के अन्य भाइयों को अनिल उर्फ अन्नू गोस्वामी के बारे में बताया तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि उन का भाई बादल का अपहरण और कत्ल कर सकता है. इस के बाद पुलिस ने सभी भाइयों से एक कमरे में अनिल से बातचीत करने के लिए कहा तो बातचीत में अनिल ने हत्या करना स्वीकार कर लिया, जिसे सुन कर उत्तम और अन्य भाई सहम गए.

उत्तम और उस के अन्य भाइयों को यह तो मालूम था कि अनिल कर्ज में डूबा है, जिसे चुकाने के लिए वे सभी उसे रुपए भी दे चुके थे. साथ ही दूसरी फसल पर रुपए देने का वादा किया था, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि कर्ज चुकाने के लिए वह उन के कलेजे के टुकड़े का ही कत्ल कर देगा.

अनिल के जुर्म कबूलने के बाद गोस्वामी परिवार के लोग मायूस हो कर कमरे से बाहर निकल आए और पुलिस से उसे गिरफ्तार कर सख्त काररवाई करने को कहा.

जबलपुर जिले के एसपी निमिष अग्रवाल ने 18 अप्रैल, 2019 को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि चरगवां थाना अंतर्गत 10 वर्षीय बादल की हुई नृशंस हत्या के हत्यारे मोहनलाल उर्फ गुड्डू तिवारी, मुकेश श्रीपाल, अनिल उर्फ अन्नू गोस्वामी को गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर उन के पहने हुए कपड़े मोटरसाइकिल और घटनास्थल से मिले तार के टुकड़ों को जब्त कर लिया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों को भादंवि की धारा 363, 364, 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेटे ने बना दी मम्मी की ममी

भोपाल के बागसेवनिया थाने के अंतर्गत आने वाले विद्यासागर के सेक्टर-सी स्थित फ्लैट रामवीर  सिंह ने 6 लाख रुपए में खरीदा था. रामवीर सिंह शहर के ही नेहरू नगर में निधि नाम का एक रेस्टोरेंट चलाते थे. उन के रेस्टोरेंट को इस इलाके में हर कोई जानता है. वजह यह भी है कि उन का रेस्टोरेंट अच्छाखासा चलता था. मूलत: ग्वालियर के रहने वाले रामवीर सिंह सालों पहले रोजगार की तलाश में भोपाल आए थे और फिर यहीं के हो कर रह गए थे.

रेस्टोरेंट चल निकला और कुछ पैसा भी इकट्ठा हो गया तो उन्होंने उस पैसे को कहीं लगा देने की बात सोची. रामवीर के रेस्टोरेंट पर कभीकभार आने वाला एक ग्राहक अमित श्रीवास्तव भी था. अमित पर उन का ध्यान इसलिए भी गया था कि वह आमतौर पर शांत और गुमसुम सा रहता था.

उस की बोलचाल में रामवीर को ग्वालियर, चंबल का लहजा लगा तो उन के मन में उस के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई. दोनों में बातचीत होने लगी तो रामवीर को पता चला कि अमित ग्वालियर का ही रहने वाला है और विद्यानगर में अपनी बूढ़ी मां विमला देवी के साथ रहता है.

एक दिन यूं ही उन के बीच हुई बातों में रामवीर को पता चला कि अमित अपना फ्लैट बेचना चाहता है. यह बात रामवीर को इसलिए अच्छी लगी क्योंकि अपने रेस्टोरेंट की वजह से वह उसी इलाके में रहने के लिए फ्लैट खरीदना चाहते थे.

दोनों के बीच बात चली तो सौदा भी पट गया. 6 लाख रुपए में एक बड़े रूम, किचन और बालकनी वाला फ्लैट रामवीर को घाटे का सौदा नहीं लगा. लिहाजा उन्होंने अमित से बात पक्की कर ली.

जून 2018 में रामवीर ने फ्लैट देख कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली. इसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि इस संभ्रांत कायस्थ परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. फ्लैट विमला के नाम पर था, जिसे बेचने की सहमति उन्होंने रामवीर को दे दी थी. अमित पहले कहीं नौकरी करता था जो छूट गई थी. उस के घर में उस की बूढ़ी लकवाग्रस्त मां विमला श्रीवास्तव ही थीं, जिन की देखरेख की जिम्मेदारी अमित पर थी.

रजिस्ट्री के वक्त रामवीर ने अमित को ढाई लाख रुपए दिए थे और बाकी रकम भोपाल विकास प्राधिकरण यानी बीडीए में जमा कर दी थी, क्योंकि फ्लैट बीडीए का था. इस तरह अमित का हिसाब किताब बीडीए से चुकता हो गया तो कागजों में फ्लैट पर उन का मालिकाना हक हो गया.

जैसा सोचा था, अमित वैसा नहीं निकला

रजिस्ट्री के पहले ही अमित ने उन से कहा था कि वे मकान खाली करवाने की बाबत जल्दबाजी न करें, कहीं और इंतजाम होते ही वह उस में शिफ्ट हो जाएगा और फ्लैट की चाबी उन्हें सौंप देगा.

चूंकि अमित देखने में उन्हें ठीकठाक और शरीफ लगा था, इसलिए उस की बूढ़ी मां का लिहाज कर के इंसानियत के नाते उन्होंने अमित को कुछ मोहलत दे दी. वैसे आजकल खरीदार रजिस्ट्री तभी करवाता है, जब उसे मकान, दुकान या फ्लैट खाली मिलता है.

उस वक्त रामवीर को जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह मानवता उन्हें कितनी महंगी पड़ने वाली है. या कहें उन्होंने फ्लैट नहीं बल्कि एक आफत मोल ले ली है.

दरअसल, अमित उतना सीधासादा या भोला नहीं था, जितना कि वह देखने में लगता था. चूंकि सौदा बिना किसी अड़चन और दलाल के हो गया था, इसलिए उन्होंने किसी बात पर गौर नहीं किया, सिवाय इस के कि अब रजिस्ट्री तो उन के नाम हो ही चुकी है. जब अमित अपना कोई इंतजाम कर चाबी उन्हें सौंप देगा तो मकान की साफसफाई और रंगाईपुताई करा कर वे उस में रहने लगेंगे.

रजिस्ट्री के बाद भी अकसर अमित उन के रेस्टोरेंट पर आता रहता था और उन्हें आश्वस्त करता रहा था कि वह मकान ढूंढ रहा है और ढंग का मकान मिलते ही फ्लैट छोड़ देगा. जब वह कुछ दिन नहीं आता तो रामवीर उस से मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे.

जून से ले कर अगस्त, 2018 तक तो अमित उन के संपर्क में रहा, लेकिन फिर उस का फोन एकाएक बंद जाने लगा. इस से रामवीर थोड़ा घबराए, क्योंकि अमित ने उन्हें फ्लैट खाली करने की सूचना नहीं दी थी. जब उस का फोन लगातार बंद जाने लगा तो वे फ्लैट पर पहुंचे, लेकिन वहां हर बार उन का स्वागत लटकते ताले से होता.

अड़ोसपड़ोस में पूछताछ करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ. कोई भी यह नहीं बता पाया कि अमित और विमला कहां गए. अलबत्ता रामवीर को यह अंदाजा जरूर लग गया था कि अमित ने वादे के मुताबिक फ्लैट खाली नहीं किया है और उस का सामान भी वहीं रखा है.

कानूनन फ्लैट अब उन का हो चुका था, लेकिन ताला तोड़ कर उस में घुसना उन्हें ठीक नहीं लगा, इसलिए वे इंतजार करते रहे कि आज नहीं तो कल अमित उन से संपर्क करेगा. आखिर कोई इतना सामान तो छोड़ कर जाता नहीं. जब भी वह सामान लेने आएगा तब वे चाबी उस से ले लेंगे. यह सोचसोच कर वे खुद को तसल्ली देते रहे.

जब इंतजार और बेचैनी सब्र की हदें तोड़ने लगे और जनवरी तक अमित का कोई पता नहीं चला तो दिल कड़ा कर रामवीर ने फ्लैट का ताला तोड़ कर उस पर अपना हक लेने का फैसला कर लिया. आखिर उन की खून पसीने की गाड़ी कमाई का 6 लाख रुपया उस में लगा था.

दीवान में निकली लाश

रविवार 3 फरवरी को रामवीर ने डुप्लीकेट चाबी से फ्लैट का ताला खोला और साफसफाई की जिम्मेदारी अपने बेटे धर्मेंद्र और 2 मजदूरों को दे दी. इन लोगों ने जब फ्लैट में पांव रखा तो उस में चारों तरफ से बदबू आ रही थी. चूंकि 8-9 महीने से मकान बंद पड़ा था, इसलिए बदबू आना स्वाभाविक बात थी. बदबू से ध्यान हटा कर उन्होंने सफाई शुरू कर दी. चारों तरफ कचरा फैला था और सामान भी अस्तव्यस्त पड़ा था.

मजदूरों ने कमरे में रखे एक दीवान को बाहर निकालने की कोशिश की तो भारी होने की वजह से वह हिला तक नहीं. इस पर धर्मेंद्र ने मजदूरों से कहा कि पहले प्लाई हटा लो फिर दीवान बाहर रख देना. जब मजदूरों ने दीवान की प्लाई हटाई तो तेज बदबू का ऐसा झोंका आया कि वे लोग बेहोश होते होते बचे. उन्हें लगा कि शायद कोई चूहा दीवान के अंदर सड़ रहा है, इसलिए इतनी बदबू आ रही है.

चूहा ढूंढने के लिए मजदूरों ने दीवान में ठुंसे कपड़े हटाने शुरू किए तो कुछ साडि़यां कंबल और एकएक कर 11 रजाइयां निकलीं. आखिरी कपड़ा हटाते ही तीनों की चीख निकल गई. दीवान के अंदर चूहे की नहीं बल्कि किसी इंसान की लाश थी.

खुद को जैसेतैसे संभाल कर मजदूर आए और पुलिस को खबर दी. उस वक्त दोपहर के 2 बज चुके थे. बागसेवनिया थाने के पुलिसकर्मियों के अलावा मिसरोद थाने के एसडीपीओ दिशेष अग्रवाल भी सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की तो कई रहस्यमय और चौंका देने वाली बातें सामने आईं. फ्लैट विमला श्रीवास्तव के नाम था जो कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में नौकरी करती थीं. पति ब्रजमोहन श्रीवास्तव की मौत के बाद उन्हें उन के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई थी. परिवहन निगम घाटे की वजह से बंद हो गया था. सभी कर्मचारियों की तरह विमला को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी.

विमला इस फ्लैट में साल 2003 से अपने 32 वर्षीय बेटे अमित के साथ रह रही थीं. 60 वर्षीय विमला धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. अपार्टमेंट में हर कोई उन्हें जानता था. वे अकसर शाम को 4 बजे के लगभग कैंपस में बने मंदिर में पूजापाठ करने जाती थीं और रास्ते में जो भी मिलता था, उसे राधेराधे कहना नहीं भूलती थीं. मंदिर में बैठ कर वह सुरीली आवाज में भजन गाती थीं तो अपार्टमेंट के लोग मंत्रमुग्ध हो उठते थे.

अमित हो गया मनोरोगी

कभीकभी भगवान की मूर्ति के सामने बैठेबैठे वे रोने भी लगती थीं. विमला भगवान से अकसर अपने बेटे अमित के लिए सद्बुद्धि मांगा करती थीं और कभीकभी उन के मन की बात होंठों तक इस तरह आ जाती थी कि आसपास के लोग भी उसे सुन लेते थे. लेकिन भगवान कहीं होता तो उन की सुनता और अमित को रास्ते पर लाता.

श्रीवास्तव परिवार का मिलनाजुलना किसी से इतना नहीं था कि उसे पारिवारिक संबंधों के दायरे में कहा जा सके. विमला तो फिर भी कभीकभार अड़ोसी पड़ोसी से बतिया लेती थीं, लेकिन अमित किसी से कोई वास्ता नहीं रखता था. कुछ दिन पहले तक वह कहीं नौकरी पर जाता था, लेकिन कुछ दिनों से नौकरी पर नहीं जा रहा था. घर पर भी वह कम ही रहता था.

पड़ोसियों की मानें तो अमित विक्षिप्त यानी साइको था. उस की हरकतें अजीबोगरीब और असामान्य थीं. वह एक खास तरह की पिनक और सनक में रहता और जीता था, जो पिछले कुछ दिनों से कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. विमला को कुछ महीनों पहले लकवा मार गया था, जिस से वह चलने फिरने से भी मोहताज हो गई थीं. उन्हें किडनी की शिकायत भी रहने लगी थी. अब वह पहले की तरह न मंदिर जाती थीं और न ही किसी को उन के भजन सुनने को मिलते थे. चूंकि अमित किसी से संबंध नहीं रखना चाहता था, इसलिए अपार्टमेंट के लोग भी फटे में टांग अड़ाने से हिचकिचाते थे.

पर यह बात हर किसी को अखरती थी कि कई बार वह अपनी मां को मारने पीटने लगता था. ये आवाजें अब उन के फ्लैट से बाहर आती थीं तो लोग कलयुग है कह कर कान ढंकने की नाकाम कोशिश करने लगते थे. कान ढंकने पर एक मर्तबा आवाज न भी आए, लेकिन आंखें लोग बंद नहीं कर पाते थे. जब अमित विमला को मारता पीटता गैलरी में ला पटकता था तो यह देख कर लोगों का कलेजा फटने लगता था.

राक्षसी प्रवृत्ति का हो गया अमित

पूत कपूत बन चला था, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पाता था तो यह उन की किसी के मामले में दखल देने की आदत कम बल्कि बुजदिली ज्यादा थी. जवान हट्टाकट्टा बेटा उन के सामने ही बूढ़ी अपाहिज मां से मारपीट करता था और लोग तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं करते थे. निस्संदेह ये लोग सभ्य समाज का हिस्सा नहीं थे. हैवानियत और राक्षसी प्रवृत्ति वास्तव में क्या होती है, यह अमित की हरकतों से समझा जा सकता था.

पड़ोसी तो छोडि़ए, अमित ने नाते रिश्तेदारों से भी सबंध नहीं रखे थे. लाश मिलने के बाद यह बात तो एक कागज के जरिए पता चली कि विमला के ससुराल पक्ष के रिश्तेदार ग्वालियर में रहते हैं. बहरहाल, कई दिनों तक जब विमला नहीं दिखीं तो उन की कुछ सहेलियों ने उन की खोजखबर लेने की कोशिश की.

अपार्टमेंट की कुछ बुजुर्ग महिलाएं मई के महीने में उन से मिलने पहुंचीं तो अमित ने उन्हें बेइज्जत किया और दुत्कार कर भगा दिया था. उस दौरान वह अपनी सोती हुई मां का चेहरा कपड़े से ढक कर कह रहा था सो जा मां सो जा…

पुलिस ने जब फ्लैट की तलाशी ली तो उस के हाथ कई अहम सुराग लगे. लेकिन पहली चुनौती लाश की शिनाख्त की थी. लाश बिलकुल सड़ी गली नहीं थी, क्योंकि उसे रजाइयों, कंबल और साडि़यों से ढक कर रखा गया था, जिस से उस का संपर्क हवा से नहीं हो पाया था.

ममी के रूप में मिली लाश

ममी जैसी हालत वाली यह लाश विमला की ही है, इस के लिए पोस्टमार्टम जरूरी था जो एम्स भोपाल में ही कराया गया. पुलिस वालों का शुरुआती अंदाजा यही था कि लाश किसी महिला की ही होनी चाहिए, लेकिन वे दावे से यह बात नहीं कर पा रहे थे.

लाश निकालते वक्त नजारा बहुत वीभत्स था. लाश के पैर दीमक ने कुतर दिए थे और अस्थिपंजर पर मांस बिलकुल भी नहीं था. हड्डियों के ढांचे और ऊपरी परत को देख कर यह नहीं लग रहा था कि उस पर किसी धारदार हथियार का इस्तेमाल किया गया होगा. किसी तरह के चोट के निशान भी लाश पर नहीं थे.

पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो उसे विमला और अमित के आधार कार्ड के अलावा बैंक पासबुक, वोटर आईडी, गैस कनेक्शन के कागजात और बिजली के बिल के अलावा अमित की बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी भोपाल की एक मार्कशीट भी मिली जोकि कटीफटी थी.

सब से हैरान कर देने वाली चीज भांग की गोलियों के रैपर थे, जिन से लगता था कि अमित भांग के नशे का आदी था. अमित की शुरुआती पढ़ाई भोपाल के ही सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी.

विमला की एक सहेली जया एंटनी की मानें तो अमित निहायत ही वाहियात लड़का था, जो मैले कुचैले कपड़े पहने रहता था और कई दिनों तक नहाता भी नहीं था. खुद जया ने जब कई दिनों तक विमला को नहीं देखा था तो उन्होंने घटना के कोई 3 महीने पहले पुलिस को खबर की थी. उन्हें शक था कि कहीं विमला किसी अनहोनी का शिकार न हो गई हो. लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. जया ने यह शिकायत कब और किस से की थी, इस का विवरण वे नहीं दे पाईं.

जैसे ही ममी मिलने की खबर भोपाल से होती हुई देश भर में फैली तो सुनने वाले हैरान रह गए. हर किसी ने यही अंदाजा लगाया कि अमित ने ही अपनी मां विमला की हत्या की होगी. इस के पीछे लोगों की अपनी दलीलें भी थीं. कइयों को भोपाल का उदयन भी याद हो आया, जिस ने रायपुर में अपने मांबाप की हत्या कर उन की कब्र बना कर दफना दिया था. उदयन अब पश्चिम बंगाल की एक जेल में सजा काट रहा है.

विमला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उजागर हुआ कि लाश महिला की ही है और उस की हत्या करीब 3 महीने पहले की गई  थी. एम्स के 3 डाक्टरों की टीम ने मृतका की उम्र 50 साल के लगभग आंकी. पोस्टमार्टम के बाद लाश को विमला की ही मान कर उसे मोर्चरी में रखवा दिया गया. पुलिस की एक टीम अब तक ग्वलियर भी रवाना हो चुकी थी, जिस से विमला के परिजन अगर कोई मिलें तो उन्हें खबर कर दें ताकि वे अंतिम संस्कार कर दें. साथ ही अमित का सुराग ढूंढना भी जरूरी था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लाश के किसी अंग की हड्डी टूटी नहीं पाई गई. चूंकि लाश काफी पुरानी हो चुकी थी, इसलिए डाक्टर मौत की स्पष्ट वजह नहीं बता पाए.

अमित का नहीं लगा सुराग

पुलिस ने तेजी से अमित की खोजबीन शुरू कर दी, जिस से हत्या या मौत पर से परदा हट सके. लेकिन वह ऐसा गायब हुआ था जैसे गधे के सिर से सींग. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमित का कोई अतापता नहीं चला था. पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई, पर उस से भी कुछ खास हाथ नहीं लगा.

5 फरवरी को विमला के जेठ व भतीजा सुरेंद्र श्रीवास्तव ग्वालियर से भोपाल आए लेकिन वे भी कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए. सुरेंद्र का कहना था कि पिछले 25 सालों से विमला या अमित ने उन से कोई संपर्क नहीं रखा है.

उन का मायका भिंड जिले के मडगांव में है लेकिन अमित अपने मामा पक्ष से भी संबंध या संपर्क नहीं रखता था. विमला की 2 बेटियां भी थीं, जिन की काफी पहले मौत हो चुकी थी. सुरेंद्र ने भोपाल के सुभाष नगर विश्राम घाट पर विमला का अंतिम संस्कार किया.

मां की हत्या की हैरान कर देने वाली गुत्थी अब तभी सुलझेगी जब अमित का कुछ पता चलेगा. यह अंदाजा या शक हालांकि बेहद पुख्ता है कि उसी ने ही विमला की हत्या की होगी. लगता ऐसा है कि नशे का आदी हो गया अमित अपनी बीमार और अपाहिज मां के प्रति अवसाद के चलते क्रूर हो गया होगा और उन से छुटकारा पाने की गरज से उस ने इसी सनक में हत्या कर दी होगी.

चूंकि भरेपूरे घने इलाके से लाश ले जा कर कहीं ठिकाने लगाना आसान काम नहीं था, इसलिए अपना जुर्म छिपाने के लिए उस ने लाश को कपड़ों से ढक दिया और घर से भाग गया. लेकिन कहां गया और जिंदा है भी या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम.

पुलिस की इस थ्योरी में दम है कि अमित ने जातेजाते एक मोमबत्ती टीवी के ऊपर जला कर रख दी थी, जिस से घर ही जल जाए और लोग इसे एक हादसा समझें. लेकिन मोमबत्ती से टीवी आधा ही जल पाया और वह आग भी नहीं पकड़ पाया.

बढ़ते शहरीकरण, एकल होते परिवार, बेरोजगारी के अलावा हत्या का यह मामला एक युवा के निकम्मेपन और अहसान फरामोशी का ही जीताजागता उदाहरण है, जो इस कहावत को सच साबित करता प्रतीत होता है कि एक मां कई बच्चों को पाल सकती है लेकिन कई संतानें मिल कर एक मां की देखभाल भी नहीं कर सकतीं.