बेवफाई की लाश

कालेज फीस के लिए बने अपराधी

”काय बोले? डाक्टर साहेब चा मुलगा मिलता नाही है?’’ शकुनबाई ने आश्चर्य से अपनी पड़ोसन से पूछा.

”हां, शकुनबाई. पर तुम तो उन्हीं के घर पर काम करती हो. तुम्हें अभी तक नहीं पता?’’ पड़ोसन भी आश्चर्य से शकुनबाई की तरफ देखते हुए बोली.

”हां पाम, मेरा काम तो 12 बजे ही खतम हो गया था तो मैं मैडम को बोल कर आ गई थी. उस बखत मैडम नहाने को गई थी और बाबा सो गया था. मैं ने बाबा को आधा घंटा पहले ही दालभात खिला दिया था.’’ शकुनबाई ने पड़ोसन को बताया.

”हां, मगर अब तो 4 बज रहे हैं. 2 साल का बच्चा इतनी देर में कहां जा सकता है?’’ पड़ोसन के स्वर में दुख झलक रहा था.

”देवाची शप्पथ बहुत सुंदर और नाजुक बच्चा है. मैं अभी डाक्टर के घर को जाती.’’ शकुनबाई बोली.

डा. ईनामदार अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित डाक्टर थे. वह प्राइवेट प्रैक्टिस ही करते थे. शिशु रोग विशेषज्ञ होने के कारण उन के ज्यादातर पेशेंट बच्चे ही थे.

अब तक आसपास के क्षेत्र में यह बात आग की तरह फैल चुकी थी कि डाक्टर साहब का 2 साल का बच्चा अचानक गायब हो गया है. शकुनबाई जब तक डाक्टर के घर पहुंचती, तब तक पुलिस आ चुकी थी.

”ओ देवा ई काय झाला रे.’’ शकुन घर के अंदर घुसते समय रो रही थी. वह डाक्टर साहब की पत्नी के सीने से चिपक गई. यह काफी स्वाभाविक भी था, क्योंकि बच्चे के जन्म के समय से ही वह उसे संभालती आई है. कई बार तो बच्चा अपनी मां के पास न जा कर शकुनबाई के साथ ही रहता था.

”यह कौन है?’’ पुलिस इंसपेक्टर दिवाकर शर्मा ने डाक्टर से पूछा.

”यह हमारी सर्वेंट है और मेरी शादी के काफी पहले से हमारे यहां ही काम कर रही है.’’ डा. ईनामदार ने बताया.

”आप के घर और कितने सर्वेंट्स हैं?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

”क्लीनिक पर कंपाउंडर और रिसैप्शनिस्ट सहित कुल 3 और घर पर शकुनबाई के अलावा एक माली है, जो हफ्ते में 2 बार आता है.’’ डाक्टर ने बताया, ”शकुनबाई सुबह 8 बजे आ जाती है और दोपहर को 12 बजे तक अपना काम खत्म कर के चली जाती है. शाम को 5 बजे आ जाती है और 7-8 बजे तक काम कर के चली जाती है.’’

”क्या आज माली आया था?’’ इंसपेक्टर ने फिर पूछा.

”नहीं साहब, माली नहीं आया था.’’ डा. ईनामदार ने जवाब दिया.

”हूं.’’ इंसपेक्टर ने हुंकार भरी, ”तुम्हारा नाम क्या है और तुम्हारे घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर शकुनबाई की तरफ मुखातिब हो कर बोला.

”अपन चा नाव शकुनबाई है और मेरा मरद इधरइच एक फैक्ट्री में काम करता है. हमारे 3 बेटे हैं और तीनों ही अभी पढाई करते हैं. बड़ा लड़का अभी 17 बरस का है. वो जब 3 महीने का था, मैं तभी से इधरीच नौकरी कर रही हूं. इस लड़के ने अभी बड़ी परीक्षा पास करी है, कालेज में जाने के वास्ते.’’ शकुन बाई बोल रही थी.

”बड़ी क्लास मतलब?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”जी, इस के बेटे का अभीअभी एंट्रेंस एग्जाम के थ्रू इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन हुआ है. यह उसी के एडमिशन की बात कर रही है.’’ डा. ईनामदार ने बताया.

”अच्छा अच्छा. और बाकी के दोनों लड़के क्या करते हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”मंझला वाला अभी 8 किलास में पढ़ता है और सब से छोटा वाला 5वीं किलास में है.’’ शकुनबाई बोली.

”तुम हनी को कब और कैसे छोड़ कर गई थी?’’ इंसपेक्टर ने फिर पूछा.

पुलिस को शकुनबाई पर क्यों हुआ शक

”मैडम ने हनी बाबा को नहलाने के बाद मुझे दे दिया और कहा कि इसे दालभात खिला दो. मैं ने हनी बाबा को दालभात खिला दिया, उस के बाद बाबा को नींद आने लगी तो मैं ने उसे सुला दिया.

”2 बजे मेरा मरद फैक्टरी से खाना खाने आता है, इसी कारन मई चली गई. उस समय मैडम नहा रही थी.’’ शकुन बाई ने बताया, ”मैं रोज ऐसा ही करती हूं.’’

”तुम्हारा घर कहां है?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”ये रोड पार करने के बाद अगली रोड के पास जो चाल है, मैं उधरिच रहती हूं.’’ शकुन बाई ने बताया.

”मैडम की और इस बाई की कभी आपस में कुछ कहासुनी हुई है क्या?’’ इंसपेक्टर ने डाक्टर से पूछा.

”नहीं साहब, इस पर शक करना बेकार है. ये लोग काफी समय से रह रहे हैं यहां. इस के तीनों लड़के भी दोपहर से ही हनी को ढूंढ रहे हैं.’’ डाक्टर ने बताया.

”आप तीनों लड़कों को बुलवा दीजिए.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”साहब ये रहे तीनों लड़के.’’ एक सिपाही तीनों लड़कों को कुछ ही देर में ले कर आ गया.

”क्या नाम है तुम्हारा और तुम्हारे छोटे भाइयों का?’’ इंसपेक्टर ने सब से बड़े लड़के से पूछा.

”जी, मेरा नाम श्याम राव है. यह मंझले वाले का गोपाल राव और सब से छोटे वाले का नाम कृष्णा राव है.’’ लड़के ने जवाब दिया.

”तुम्हारा ही एडमिशन पौलिटेक्निक में हुआ है न?’’ इंसपेक्टर ने श्याम राव से पूछा.

”जी, इंजीनियरिंग में.’’ श्याम राव ने जवाब दिया.

”तुम ने हनी को कहां कहां पर खोजा था?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”जी, हम ने सभी संभावित दिशाओं में लगभग एकएक किलोमीटर तक खोजा था.’’ श्याम राव ने जवाब दिया.

”ठीक से याद कर लो, तुम ने हनी को कहांकहां खोजा था, वरना मुझे याद दिलाने के लिए तुम्हारी 2-4 हड्डियाँ तोडऩी पड़ेंगी.’’ अब तक शांत बैठा इंसपेक्टर एकदम गुस्से में आ गया और वह कड़क और रौबीली आवाज में बोला.

”इंसपेक्टर साहब, कृपया मेरे घर में मारपीट न करें. मेरी पत्नी की हालत वैसे ही खराब हो रही है.’’ डाक्टर विनती करते हुए बोला.

”ठीक है डाक्टर साहब, मैं सब से छोटे लड़के से पूछता हूं. अगर सही जवाब नहीं मिला तो मैं इन सब को थाने ले जाऊंगा. वैसे भी इस सस्पेंस कहानी में सिर्फ 3 ही पात्र हैं. इसलिए मुझे लगता है कि मेरा जवाब यहीं पर मिल जाएगा.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”हां, बेटे छोटू, क्या नाम है तुम्हारा?’’

”मेरा नाम कृष्णा राव है साहब.’’ छोटा लड़का बोला.

”तुम्हें तुम्हारी उम्र पता है छोटू?’’ इंसपेक्टर ने नरमी से पूछा.

”है साहब, 9 साल.’’ कृष्णा राव बोला.

”तुम्हारा बड़ा भाई बोल रहा था कि तुम ने हनी बाबा को सभी जगह पर देख लिया है.’’ इंसपेक्टर अपनी नरमी कायम रखते हुए बोला.

”जी साहब, सभी जगह देख लिया है.’’ कृष्णा राव ने जवाब दिया.

”तुम्हारे हिसाब से ऐसी कौन सी जगह है, जहां पर तुम लोगों ने नहीं देखा?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न पूछने का अपना अंदाज बदल कर पूछा. इंसपेक्टर को पूरा भरोसा था कि कृष्णा राव इस ढंग से पूछे प्रश्न के जाल में फंस जाएगा.

”साहब, थिएटर के पीछे जो सेफ्टी टैंक है, उस में किसी ने नहीं देखा.’’ कृष्णा राव सचमुच उस जाल में फंस कर बोला.

”तीनों लड़कों को गाड़ी में बिठाओ और चलो थिएटर.’’ इंसपेक्टर बोला, ”आप भी चलिए, डाक्टर साहब.’’

सेफ्टी टैंक में मिली हनी की लाश

डाक्टर के घर से लगभग 800 मीटर दूर एक चौराहा पार करने के बाद एक थिएटर था. जल्दी सब लोग वहां पर पहुंच गए. वहां पर 3 सेफ्टी टैंक थे. बीच वाले सेफ्टी टैंक के ऊपर की फर्श ताजीताजी हटी हुई लग रही थी. इंसपेक्टर ने तुरंत ही उस के अंदर आदमी उतारे. कुछ ही देर में हनी की लाश उन के हाथों में थी.

”हां, तो श्याम राव, बताओ तुम ने यह काम कैसे और क्यों किया? इतने सालों का विश्वास क्यों तोड़ा?’’ इंसपेक्टर श्याम राव की तरफ मुखातिब हो कर बोला.

”मगर इंसपेक्टर साहब, आप को कैसे मालूम हुआ कि यह काम श्याम राव ने ही किया है.’’ डा. ईनामदार बच्चे की लाश को छाती से चिपकाते हुए रोतेरोते बोले.

”डाक्टर साहब, इस कहानी में जैसा कि मैं ने पहले भी बोला था कि सिर्फ 3 ही किरदार थे आप, आप की पत्नी और शकुनबाई. हम चाहते तो शकुनबाई को उसी समय गिरफ्तार कर लेते. मगर ऐसा करने पर हम असली कातिल और उस के मोटिव तक कभी नहीं पहुंच पाते. फिर दिल को छूने वाली मनोरंजक कहानी सामने नहीं आ पाती. क्योंकि कोई भी मां अपने बच्चों को मुसीबत में डालना नहीं चाहेगी.

”यही कारण था कि हम ने पहले श्याम राव से पूछताछ की तथा मंझले लड़के को छोड़ कर सब से छोटे लड़के से पूछताछ की. अगर हम मंझले लड़के से भी पूछताछ करते तो शायद छोटा लड़का सतर्क हो जाता. और वह भी सीखे सिखाए जवाब ही देता.’’ इंसपेक्टर डाक्टर को समझाता हुआ बोला.

”मुझे कितना विश्वास था शकुनबाई के परिवार पर. वह पिछले 17 सालों से हमारे यहां परिवार के सदस्य की तरह काम कर रही है.’’ डा. ईनामदार के स्वर में नफरत झलक रही थी.

”खैर. हां, तो श्याम राव तू कुछ बोलेगा या इन सिपाहियों को बोलूं यहीं पर सबक सिखाने को?’’ इंसपेक्टर अपने लहजे में बोला.

”साहब, मेरा एडमिशन इंजीनियरिंग कालेज में हुआ है. दाखिले के लिए शुरू में ही 25 हजार रुपए देने थे. इतने पैसे हमारे पास नहीं थे. पिताजी ने अपनी फैक्ट्री में बात की तो उन्होंने 10 हजार रुपए देने की स्वीकृति दे दी थी.

”मां ने डाक्टर साहब से बात की तो डाक्टर साहब ने यह कहते हुए मना कर दिया कि जब इतनी बड़ी फैक्ट्री वाले 10 हजार दे रहे हैं तो वह उसे 15 हजार कैसे दे सकते हैं. वह अधिकतम 5 हजार रुपयों की ही मदद कर सकते हैं.

”रुपयों के कारण मेरे भविष्य का सपना चौपट हो जाता. इसी कारण मैं ने मां के साथ मिल कर यह प्लान बनाया. इस प्लान के बारे में मेरे पिताजी तक को मालूम नहीं था.

”मेरे दोनों भाइयों को इस योजना में शामिल करना बहुत जरूरी था, क्योंकि हनी इन दोनों के साथ हंसता खेलता था. मां ने मुझे बता दिया था कि मैडम 11-साढ़े 11 बजे तक नहाती है. इस के बाद आधे घंटे तक पूजा करती है.

”इसी दौरान मां हनी को खाना खिला कर सुला देती है और वापस घर आ जाती है. हनी रोजाना करीब 3 से 4 घंटे सोता था. इन्हीं 4 घंटों में हम अपनी योजना पूरी कर सकते थे.’’ श्याम राव बता रहा था.

क्यों की गई हनी की हत्या

”यहां तक तो ठीक है. तुम्हारी योजना हनी के अपहरण करने की थी, मगर यह हत्या तो तुम्हारी योजना का हिस्सा नहीं रही होगी?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”हां साहब, हत्या की बात तो हमारी योजना में शामिल नहीं थी, लेकिन मैं ने अब तक आप को जो बताया, वह योजना का एक हिस्सा ही था. दूसरे हिस्से में इस में एक व्यक्ति और शामिल था. उस का नाम है सरस खान.’’

”सरस खान? कौन है यह सरस खान?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”थिएटर का प्रोजेक्टर औपरेटर.’’ श्याम राव  ने  बताया, ”वह मेरा मित्र है और उस की ड्यूटी रात के 12 बजे तक रहती है. उसे भी बाजार का कुछ पैसा चुकाना था. इसी कारण उस ने यह आइडिया दिया था. दोपहर 12 बजे का शो चालू होने के बाद वहां रखना भी बहुत आसान था.

”मैडम से इतना तो पता चल ही गया था कि हनी बाबा पिक्चर बहुत शांत हो कर देखता है. योजना के अनुसार सोते हुए हनी बाबा को ले कर प्रोजेक्टर रूम में जाना था. वहां पर गोपाल राव और कृष्णा राव रहते थे, जो उसे बहलाते रहते.

”इस बीच मैं घर आ कर मां के हाथों से बाबा के अपहरण की एक चिट्टी डाक्टर साहब के पास पहुंचा देता. हम सिर्फ 17 हजार रुपयों की ही मांग करते.

”इतनी कम मांग के लिए डाक्टर साहब पुलिस में नहीं जाते और हमारा काम भी बिना किसी शक के हो जाता. यह पैसा उन्हें कृष्णा राव के हाथ शाम 6 बजे का शो खत्म होने के बाद पहुंचाना था. शो खत्म हो जाने की भीड़ में यह सब काम आसानी से पूरा हो जाता. इन 17 हजार में से 15 हजार मुझे और 2 हजार सरस खान को रखने थे.’’ श्याम राव ने बताया.

”अभी भी यह नहीं बताया कि हत्या क्यों और कैसे की.’’ इंसपेक्टर ने बोला.

थिएटर तक क्यों नहीं पहुंचा हनी

”रोजाना जब मां डाक्टर साहब के घर का काम खत्म कर के निकलती थी, उस समय अमूमन मैडम या तो नहा रही होती थी या पूजा कर रही होती थी. ऐसे में मां बाहरी दरवाजे को सिर्फ अटका कर निकल जाती थी.

”उस दिन मैं घर के आसपास ही था. मां ने बाहर निकलते समय मुझे इशारा कर दिया था. मैं तुरंत ही हनी बाबा के कमरे में घुस कर पलंग के पीछे छिप गया.

”मैडम नहा कर निकली और हनी बाबा के कमरे में आई. हनी बाबा को सोता देख निश्चिंत हो कर पूजा करने चली गई. अब हम पर शक करने की संभावना भी समाप्त हो गई थी.

”मौका देख कर मैं सोते हुए हनी बाबा को ले कर घर से बाहर आ गया. हमारे प्लान का सब से खास हिस्सा पूरा हो चुका था. योजना के अगले हिस्से के तहत मुझे सोते हुए हनी बाबा को ले कर थिएटर के प्रोजेक्टर रूम में जाना था.

”मगर थिएटर के पिछवाड़े में पहुंचते ही या तो तेज धूप के कारण या पैदल चलने के कारण लग रहे झटकों से हनी बाबा जाग गया और वह मचल कर जोरजोर से रोने लगा. ऐसी अवस्था में उसे प्रोजेक्टर रूम में ले जाने पर थिएटर के मैनेजर और गेटकीपर जैसे लोगों को पता चल जाता.

”इसी कारण हम उसे वहीं पर सेफ्टी टैंक के ऊपर बैठ कर चुप कराने लगे, मगर वह लगातार रोए ही जा रहा था. तब तक गोपाल राव और कृष्णा राव भी वहां पर आ गए. थिएटर का पीछे वाला इलाका सुनसान ही रहता है.

”हनी बाबा के इस तरह जोरजोर से रोने के कारण हम तीनों घबरा गए. उसे डराने के मकसद से कृष्णा राव ने फर्शी का एक बड़ा सा टुकड़ा उठा लिया. मगर हनी बाबा चुप ही नहीं हो रहा था.

”तब गुस्से में आ कर कृष्णा राव ने उस पर फर्शी के उस टुकड़े से वार कर दिया. यह वार हनी बाबा की कनपटी पर लगा. कुछ देर तड़पने के बाद वह शांत हो गया. शायद वह बेहोश हो गया था.

”यह देख कर हम तीनों घबरा गए और सेफ्टी टैंक के कवर वाली फर्शी हटा कर उसे उस में फेंक दिया. इस के बाद टैंक को फिर से ढंक दिया.’’ श्याम राव ने विस्तार से पूरी घटना बता दी.

यह कहानी सुनने के बाद इंसपेक्टर दिवाकर शर्मा ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

बेवफाई का बवंडर – भाग 3

लगभग साल भर बाद अबू फैजल काठमांडू से वापस घर आया तो पड़ोसियों ने शाहरुख और रुखसार की शिकायत उस से की तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बारे में पत्नी से बात की.

उस ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘रुखसार एक बात पूछूं?’’

‘‘एक नहीं, चार पूछो.’’ वह बोली.

‘‘मुझे तुम्हारे और किसी अजनबी के बारे में जो बातें सुनने को मिली हैं. क्या वह सच हैं?’’

‘‘क्या बात?’’

‘‘यही कि तुम्हारे किसी शख्स के साथ नाजायज संबंध हैं.’’

‘‘कहने वालों के मुंह में कीड़े पड़ें. मैं बताती हूं कि वह शख्स शाहरुख है. वह नौबस्ता में रहता है. बाजार में उस से मुलाकात हुई थी. शाहरुख हमारी मदद करता है, अपने रिजवान को प्यार करता है और बुरी नजर रखने वालों से हमें बचाता है, इसलिए लोग हम से जलते हैं और वे तुम्हारे कान भर रहे हैं.’’

अबू फैजल ने उस समय सहज ही अपनी बीवी पर भरोसा कर लिया, लेकिन उस के मन में शक का कीड़ा रह जरूर गया था. इस शक की वजह से उस ने दोबारा काठमांडू जाने का विचार त्याग दिया और जाजमऊ की उसी जूता फैक्ट्री में फिर से काम करने लगा, जिस में पहले करता था.

पति के नेपाल नहीं जाने पर रुखसार भी सतर्क हो गई और उस ने अपने प्रेमी शाहरुख को भी सतर्क कर दिया. अब दोनों सतर्कता के साथ मिलते.

लेकिन होशियारी के बावजूद एक रोज अबू फैजल ने अपने ही घर में शाहरुख और रुखसार को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया. उस रोज शाहरुख तो भाग गया, लेकिन रुखसार भाग कर कहां जाती. अबू फैजल ने उस की जम कर पिटाई की. रंगेहाथ पकड़े जाने के बावजूद रुखसार ने माफी नहीं मांगी, बल्कि उस ने घर में कलह करनी शुरू कर दी.

वह चीख चीख कर उस से बात कर रही थी. कलह से परेशान अबू फैजल ने रुखसार को समझाया और शाहरुख से संबंध तोड़ने की सलाह दी. उस समय तो रुखसार चुप हो गई. अबू फैजल ने सोचा कि पत्नी ने उस की बात मान ली है लेकिन उस ने बाद में प्रेमी से मिलना जारी रखा.

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अबू फैजल अपने स्तर से पत्नी को सही राह पर लाने में सफल नहीं हुआ तब उस ने सास को सारी बातें बता कर मदद मांगी. सास शमशाद बेगम ने भी हर तरह से रुखसार को समझाया, मगर जिस राह पर वह चल पड़ी थी उस से कदम पीछे खींचने को वह तैयार न थी.

रुखसार की हठधर्मी और मनमानी के चलते अबू फैजल से उस के मतभेद बढ़ते गए. फिर घर में झगड़े भी शुरू हो गए. रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर एक दिन रुखसार ने शौहर का घर छोड़ दिया और मायके जा कर रहने लगी. यह 20 जनवरी, 2019 की बात है.

29 जनवरी, 2019 को अबू फैजल ससुराल पहुंचा तो उसे पता चला कि रुखसार अपने प्रेमी शाहरुख के साथ यहां से भाग गई है. अबू फैजल अपनी सास और साले के साथ रुखसार को खोजने लगा. वह उसे ढूंढते हुए गल्लामंडी स्थित शाहरुख के घर पहुंचे. रुखसार वहां मौजूद थी.

शमशाद बेगम बेटी को समझाबुझा कर घर ले आई. अबू फैजल गुस्से से लाल था. वह रुखसार पर हाथ उठाता, उस के पहले ही सास ने उसे रोक दिया. अबू फैजल पत्नी को अपने साथ घर ले जाना चाहता था, लेकिन रुखसार जाने को राजी नहीं हुई.

पहली फरवरी, 2019 की सुबह करीब 8 बजे अबू फैजल अपनी फैक्ट्री चला गया. उस रोज शमशाद बेगम की छोटी बेटी की तबीयत कुछ खराब थी. अत: दोपहर बाद वह बेटी को ले कर दवा लेने चली गई. उधर अबू फैजल फैक्ट्री गया जरूर लेकिन उस का मन काम में नहीं लगा और लंच के बाद वह घर की ओर निकल पड़ा.

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शाम लगभग 3 बजे अबू फैजल ससुराल पहुंचा. उस समय घर पर उस की बीवी रुखसार व बेटा रिजवान था. उस ने रिजवान को 10 रुपए दिए और घर के बाहर भेज कर दरवाजा भीतर से बंद कर दिया. रुखसार घर में सजीसंवरी बैठी थी. अबू फैजल को शक हुआ तो वह गुस्से से ताना कसते हुए बोला, ‘‘सजसंवर कर क्या अपने यार से मिलने जा रही हो?’’

‘‘हां,जा रही हूं. रोज जाऊंगी, तुम से देखते बने तो देखो, वरना आंखें फोड़ लो.’’ रुखसार भी गुस्से से बोली.

‘‘बदचलन, बदजात एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी.’’ कहते हुए अबू फैजल पत्नी को पीटने लगा.

इसी दौरान उस की नजर सामने रखे सिलबट्टे पर पड़ी. लपक कर उस ने सिल का पत्थर उठाया और रुखसार के सिर और चेहरे पर वार करने लगा. दर्द से रुखसार चीखने चिल्लाने लगी.

इसी समय शमशाद बेगम बेटी शबनम के साथ दवा ले कर वापस घर आ गई. उस ने घर का दरवाजा बंद पाया और अंदर से चीख सुनी तो उस ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया.

अबू फैजल ने दरवाजे पर दस्तक तो सुनी, लेकिन उस के हाथ थमे नहीं. उस के हाथ तभी थमे, जब रुखसार खून से लथपथ हो कर जमीन पर पसर गई और उस की सांसें थम गईं.

बीवी की हत्या करने के बाद अबू फैजल ने खून सना पत्थर शव के पास फेंका और दरवाजा खोला. सामने सास को देख कर वह बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारी बेटी को मार डाला है. अब तुम चाहो तो मुझे भी मार डालो.’’

कहते हुए वह तेजी से भाग गया और थाने पहुंच गया. थाने पहुंच कर कार्यवाहक एसओ रविशंकर पांडेय को उस ने सारी बात बता दी.

हत्यारोपी अबू फैजल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 2 फरवरी, 2019 को उसे कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मासूम रिजवान अपनी नानी शमशाद बेगम के संरक्षण में था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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बेवफाई का बवंडर – भाग 2

रुखसार और अबू फैजल के दिन मजे से बीतने लगे. अबू फैजल बीवी की हर ख्वाहिश पूरी करता. जिस दिन उस की फैक्ट्री में छुट्टी होती, वह उसे घुमाने के लिए शहर में ले जाता था. उस दिन वह किसी रेस्तरां में खाना खाते थे.

इस तरह हंसीखुशी से रहते हुए 3 साल कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इस दौरान उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रिजवान रखा. बेटे के जन्म के बाद घर में खुशियां और बढ़ गईं.

इस के बाद रुखसार ने अपनी अम्मी से फोन पर बात करनी शुरू कर दी. तब शमशाद बेगम ने भी उसे माफ कर दिया. फिर रुखसार ने अपने मायके जाना भी शुरू कर दिया था.

रिजवान के जन्म के बाद घर का खर्च बढ़ा तो अबू फैजल पहले से अधिक मेहनत करने लगा. वह जूता फैक्ट्री में ओवरटाइम करने लगा था. ज्यादा कमाई के लिए अब उस का ज्यादातर समय फैक्ट्री में बीतता था. वह पत्नी को पहले की तरह दिलोजान से चाहता था. मगर पहले की तरह वह उस के लिए समय नहीं निकाल पा रहा था. इस कमी को रुखसार महसूस करती थी.

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रुखसार खुद तो ज्यादा पढ़ीलिखी न थी, लेकिन वह अपने बेटे रिजवान को अच्छी तालीम दिलाना चाहती थी. इसी मकसद से उस ने बेटे का दाखिला एक कौन्वेंट स्कूल में करा दिया था.

यद्यपि अबू फैजल अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते बेटे का दाखिला मदरसे में कराना चाहता था. लेकिन बीवी के आगे उस की एक न चली. दाखिले को ले कर मियांबीवी में कुछ बहस भी हुई थी.

गृहस्थी का खर्च, मकान का किराया और बच्चे की पढ़ाई का खर्च बढ़ा तो अबू फैजल की आर्थिक स्थिति खराब हो गई. इस का परिणाम यह हुआ कि मियांबीवी में झगड़ा शुरू हो गया. रुखसार शौहर पर दबाव डालने लगी कि वह कमाई का जरिया बढ़ाए, लेकिन अबू फैजल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह आमदनी कैसे बढ़ाए.

उन्हीं दिनों अबू फैजल की मुलाकात मोहम्मद आलम से हुई. वह भी जूता फैक्ट्री में कारीगर था और उसी के साथ काम करता था. लेकिन उस ने नौकरी छोड़ दी थी और काठमांडू चला गया था. वहां भी वह जूता फैक्ट्री में काम करता था और अच्छा पैसा कमा रहा था.

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अबू फैजल ने उस से अपनी आर्थिक स्थिति का रोना रोया तो मोहम्मद आलम ने उसे सलाह दी कि वह भी उस के साथ काठमांडू चले. दोनों मिल कर वहां अच्छा पैसा कमाएंगे.

इस बारे में अबू फैजल ने अपनी बीवी से विचारविमर्श किया. रुखसार ने पहले तो नानुकुर की लेकिन बाद में इजाजत दे दी. इस के बाद अबू फैजल दोस्त के साथ काठमांडू चला गया.

इस के बाद वह हर माह रुखसार को पैसा भेज देता. इस पैसे से रुखसार घर का खर्च चलाती. अबू फैजल रुखसार को बहुत चाहता था. अत: हर दूसरे तीसरे रोज वह मोबाइल से उस से बातचीत कर लेता था. रिजवान भी अपने अब्बू से फोन पर बतिया लेता था और जल्दी वापस आने की जिद करता था.

अबू फैजल के काठमांडू जाने के बाद रुखसार को उस की याद सताने लगी. उस का दिन तो जैसेतैसे कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. रात भर वह करवटें बदलती रहती थी. पति के सान्निध्य के लिए वह अब बेचैन रहने लगी थी. उस दौरान उस की नजरें किसी ऐसे मर्द को तलाशने लगीं जो उसे शारीरिक सुख के साथ उस की आर्थिक मदद भी कर सके.

एक रोज रुखसार गल्लामंडी में घरेलू सामान खरीदने गई तो उस की मुलाकात शाहरुख नाम के युवक से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए. दोनों में कुछ औपचारिक बातें हुईं. उसी दौरान उन्होंने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. इस के बाद दोनों में मोबाइल पर हंसीमजाक और बातचीत होने लगी. रात की तनहाइयों में रुखसार शाहरुख से घंटों तक बतियाती थी.

25 वर्षीय अविवाहित शाहरुख नौबस्ता में रहता था और गल्लामंडी में काम करता था. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. लेकिन उस की अपने परिवार वालों से पटती नहीं थी. इसलिए वह परिवार से अलग रहता था. वह जो कमाता था, अपने ऊपर ही खर्च करता था. वह उस से नजदीकियां बढ़ाने और अपना बनाने के लिए प्रयत्न करने लगा.

शाहरुख को पता चल गया था कि उस का शौहर नेपाल में काम करता है, इसलिए अब वह रुखसार के घर जाने लगा. रुखसार और उस के बेटे रिजवान के लिए वह खानेपीने का सामान ले जाता था. वह कभीकभी आइसक्रीम खिलाने के बहाने रिजवान को बाहर भी ले जाता.

घर आतेजाते शाहरुख और रुखसार की नजदीकियां बढ़ीं तो दोनों एकदूसरे का सान्निध्य पाने के लिए बेचैन रहने लगे. आग और घी पास हो तो घी पिघल ही जाता है. शाहरुख और रुखसार की निकटता भी कुछ ऐसा ही रंग लाई. फिर एक दिन दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

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नाजायज रिश्ता एक बार कायम हुआ फिर तो इस का सिलसिला ही चल पड़ा. जब भी मौका मिलता, शाहरुख रुखसार के यहां चला जाता और उस के बच्चे रिजवान को पैसे दे कर बाहर भेज देता, फिर दोनों देह की दरिया में गोते लगाने लगते. कभीकभी शाहरुख रुखसार को अपने कमरे पर भी ले जाता था. शाहरुख अब अपनी सारी कमाई रुखसार पर खर्च करने लगा.

लेकिन शाहरुख और रुखसार के नाजायज संबंध ज्यादा दिनों तक पासपड़ोस में रहने वाले लोगों से छिपे नहीं रहे. लोग उन्हें शक की निगाह से देखने लगे.

बेवफाई का बवंडर – भाग 1

पहली फरवरी, 2019 की बात है. शाम के 5 बजे थे. कानपुर के थाना नौबस्ता के कार्यवाहक एसओ रविशंकर पांडेय अपने औफिस में बैठे थे. तभी एक आदमी ने दरवाजे का परदा हटा कर उन के औफिस में प्रवेश किया. एसओ रविशंकर पांडेय ने नजर उठा कर उस आदमी की तरफ देखा तो उस के चेहरे पर हड़बड़ाहट और भय साफ दिख रहा था.

उन्होंने उसे अंदर आने का इशारा किया. वह आदमी उन के सामने जा कर हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मैं ने एक बड़ा गुनाह कर दिया है.’’

इतना सुनते ही एसओ उस की तरफ गौर से देखते हुए बोले, ‘‘तुम ने क्या कर दिया और तुम कौन से गांव से आए हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम अबू फैजल है और मैं ईदगाह मछरिया में रहता हूं. मेरी ससुराल भी राजीव नगर मछरिया में है. मैं अपनी ससुराल आया हुआ था. यहीं पर मैं ने अपनी बीवी को मार डाला है. और उस की लाश घर में पड़ी है. काफी दिन से मैं तिलतिल कर मर रहा था. मगर आज मेरा दिमाग खराब हो गया और मैं ने पत्नी रुखसार को मार डाला. साहब, मुझे गिरफ्तार कर लीजिए.’’

एसओ रविशंकर पांडेय ने बड़े गौर से अबू फैजल को देखा फिर सिपाहियों को बुला कर अबू फैजल को हिरासत में लेने के आदेश दिए. इस के बाद एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ आर.के. चतुर्वेदी को जानकारी दे कर वह आवश्यक पुलिस बल के साथ आरोपी अबू फैजल को ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो उस समय घर में कोहराम मचा था. कमरे के अंदर फर्श पर रुखसार का शव पड़ा था. उस के जिस्म से निकला खून उस के चारों ओर फैला हुआ था. लाश के पास सिलवट्टे का पत्थर भी पड़ा हुआ था. उस पर भी खून लगा था.

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लाश के पास मृतका की मां शमशाद बेगम व बहनें बिलखबिलख कर रो रही थीं. गांव की और भी तमाम औरतें व आदमी वहां जमा थे. रविशंकर पांडेय ने मृतका की मां शमशाद बेगम को सांत्वना दी फिर शव से अलग ले जा कर उस से पूछताछ की.

शमशाद बेगम ने बताया कि आज उस की छोटी बेटी की तबीयत खराब थी. वह उसे ले कर डाक्टर के पास गई थी. दवा ले कर वापस आई तो घर का दरवाजा अंदर से बंद मिला. दरवाजा खटखटाया तो बेटी रुखसार ने दरवाजा नहीं खोला.

दरवाजा पीटने व चीखने पर पड़ोस के लोग भी आ गए. फिर से दरवाजा पीटना शुरू किया तो दामाद अबू फैजल ने दरवाजा खोला और फिर बोला, ‘‘मैं ने रुखसार को मार डाला है. अब तुम मुझे भी मार डालो.’’ कहते हुए वह तेजी से भाग गया. उस के बाद जब मैं घर के अंदर गई तो कमरे में रुखसार मरी पड़ी थी. अबू फैजल ने उसे मार डाला.

पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी.

चूंकि अबू फैजल बीवी की हत्या का जुर्म कबूल कर चुका था, इसलिए पुलिस ने मृतका की मां शमशाद बेगम की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत अबू फैजल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

अबू फैजल से पूछताछ करने के बाद रुखसार की हत्या की जो कहानी सामने आई वह अवैध संबंधों पर रचीबसी निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नौबस्ता थाने के अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र मछरिया पड़ता है. इसी मछरिया क्षेत्र के राजीव नगर मोहल्ले में शमशाद बेगम नफीस के मकान में किराए पर रहती थी. नफीस बाबूपुरवा में रहता था. शमशाद बेगम के शौहर अब्दुल हामिद का इंतकाल हो चुका था.

शमशाद बेगम की 3 बेटियां और एक बेटा था. वह एक मेहनतकश महिला थी. पति के गुजर जाने के बाद वह किसी प्रकार अपने परिवार का पालनपोषण करती थी. वह अपनी बड़ी बेटी की शादी कर चुकी थी.

मंझली बेटी रुखसार जब जवान हुई तो उस की शादी की चिंता होने लगी. रुखसार खूबसूरत थी. वह बनठन कर जब घर से निकलती तो तमाम लड़के उस पर डोरे डालने की कोशिश में लगे रहते थे. लेकिन वह किसी को लिफ्ट नहीं देती. उस के इन्हीं चाहने वालों में एक था अबू फैजल. रुखसार और अबू फैजल मदरसे में 8वीं कक्षा तक साथ पढ़े थे.

अबू फैजल मछरिया (नौबस्ता) में ईदगाह के पास रहता था. उस के 2 अन्य भाई भी थे, जो उस से अलग अपनी घरगृहस्थी बसा कर रह रहे थे. अबू फैजल जाजमऊ स्थित एक जूता फैक्ट्री में नौकरी करता था. वह अच्छा कमाता था और ठाटबाट से रहता था.

अबू फैजल जब काम पर जाता तो रुखसार के घर के सामने से गुजरता था. तब अकसर दोनों की आंखें चार हो जाती थीं. हकीकत यह थी कि वह रुखसार को चाहता था. वह उस के दिल में समा चुकी थी. रातदिन वह उसी के ख्वाब देखता रहता था. रुखसार भी कोई नादान बच्ची नहीं थी. वह भी उस की आंखों की भाषा अच्छी तरह समझती थी. लेकिन शरमोहया की दीवार तोड़ने का वह साहस नहीं कर पाती थी.

एक दिन रुखसार नौबस्ता बाजार जा रही थी, तभी अबू फैजल उसे रास्ते में मिल गया. उस ने एकांत देख कर अनायास ही रुखसार का हाथ थाम लिया और बोला, ‘‘रुखसार, मैं तुम से एक बात कहना चाहता था, लेकिन कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी.’’

रुखसार उस की बातों का मतलब समझ तो गई थी, लेकिन वह अनभिज्ञ होते हुए बोली, ‘‘बताओ, क्या कहना चाहते थे?’’

‘‘रुखसार, बात यह है कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं. दिलोजान से चाहता हूं मैं तुम्हें.’’ एक ही सांस में अबू फैजल ने बात कह दी.

रुखसार नजरें नीचे किए मंदमंद मुसकराने लगी. यह देख कर अबू फैजल समझ गया कि रुखसार ने उस की मोहब्बत कबूल कर ली. वह बहुत खुश हुआ. उचित मौका देख कर अबू फैजल रुखसार को कुछ दूरी पर स्थित अंबेडकर पार्क में ले गया. वहां एकांत में उस ने रुखसार से कहा, ‘‘रुखसार, वादा करता हूं कि मैं तुम्हें हर तरह से खुश रखने की कोशिश करूंगा और ताउम्र तुम्हारा साथ निभाऊंगा.’’

रुखसार ने आंखें फाड़ कर अबू फैजल को देखा और मुसकराते हुए बोली, ‘‘फैजल, आज तुम यह कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो? बीच रास्ते में इस तरह किसी लड़की का हाथ पकड़ना और एकांत में पार्क लाना अच्छे लोगों का काम नहीं. भला ऐसे लड़के से कौन लड़की मोहब्बत करेगी.’’

रुखसार सिर्फ दिखावे के लिए ऐसा कह रही थी. यह बात अबू फैजल उस की मुसकराहट से जान गया था. उस का आत्मविश्वास बढ़ा तो उस ने आगे बढ़ कर रुखसार को अपनी बांहों में समेट लिया.

तभी रुखसार बोली, ‘‘फैजल, मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘कैसा डर?’’

‘‘यही कि तुम मुझे मंझधार में तो नहीं छोड़ दोगे? यदि ऐसा हुआ तो मैं जीते जी मर जाऊंगी.’’ रुखसार ने अपनी शंका जाहिर की.

‘‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो? मैं तुम से वादा करता हूं कि मरते दम तक तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूंगा.’’ अबू फैजल ने विश्वास दिलाया.

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, अबू.’’ कह कर रुखसार उस के सीने से लिपट गई.

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इस के बाद रुखसार और अबू फैजल का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा. दोनों के प्यार की भनक जब शमशाद बेगम को लगी तो उसे अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. उस ने बेटी को डांटाफटकारा और उस के प्यार पर पहरा बैठा दिया, पर रुखसार नहीं मानी. उस ने घर वालों से बगावत कर दी और एक रोज घर से भाग कर अपने प्रेमी अबू फैजल से लव मैरिज कर ली. उस के बाद वह फैजल के साथ ईदगाह मछरिया वाले घर में रहने लगी. कुछ समय बाद शमशाद बेगम ने भी यह रिश्ता मंजूर कर लिया.

अंग्रेज अफसर ने दी चोर को जानलेवा चुनौती

यह कहानी बंटवारे से पहले अंगरेजी राज की है. उस समय लोगों के स्वास्थ्य बहुत अच्छे हुआ करते थे. बीड़ी सिगरेट, वनस्पति घी का प्रयोग नहीं हुआ करता था. उस जमाने के लोग बहुत निडर होते थे. हत्या, डकैती की कोई घटना हो जाती थी तो पुलिस और जनता उस में रुचि लिया करती थी. गांवों में पुलिस आ जाती तो पूरे गांव में खबर फैल जाती कि थाना आया हुआ है.

एक अंगरेज डिप्टी कमिश्नर इंग्लैंड से रावलपिंडी स्थानांतरित हो कर आया था. जब भी कोई नया अंगरेज अधिकारी आता तो उसे उस इलाके की पूरी जानकारी कराई जाती थी, जिस से वह अच्छा कार्य कर के अपनी सरकार का नाम ऊंचा कर सके. उस अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को बताया गया कि भारत में अनोखी घटनाएं होती हैं, जिन में डाके और चोरियां शामिल हैं. अपराधियों की खोज करना बहुत कठिन होता है. कई घटनाएं ऐसी होती हैं कि सुन कर हैरानी होती है.

नए अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने एसपी से कहा कि मेरे बंगले पर 24 घंटे पुलिस की गारद रहती है साथ ही 2 खूंखार कुत्ते भी. इस के अलावा मेरे इलाके में पुलिस भी रहती है. रात भर लाइट जलती है, क्या ऐसी हालत में भी चोर मेरे घर में चोरी कर सकता है?

एसपी ने जवाब दिया कि ऐसे में भी चोरी की संभावना हो सकती है. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने कहा, ‘‘मैं इस बात को नहीं मानता, इतनी सावधानी के बावजूद कोई चोरी कैसे कर सकता है?’’

एसपी ने कहा, ‘‘अगर आप आजमाना चाहते हैं तो एक काम करें. एक इश्तहार निकलवा दें, जिस में यह लिखा जाए कि अंगरेज डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर अगर कोई चोरी कर के निकल जाए, तो उसे 500 रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा. अगर वह पुलिस या कुत्तों द्वारा मारा जाता है तो अपनी मौत का वह स्वयं जिम्मेदार होगा. अगर वह मौके पर पकड़ा या मारा नहीं गया तो पेश हो कर अपना ईनाम ले सकता है. उसे गिरफ्तार भी नहीं किया जाएगा और न ही कोई सजा दी जाएगी.’’

डिप्टी कमिश्नर ने एसपी की बात मान ली. इश्तहार छपा कर पूरे शहर में लगा दिए गए. इश्तहार निकलने के 2 महीने बाद यह बात उड़ते उड़ते चकवाल गांव भी पहुंची. उस जमाने में गांवों के लोग शाम को चौपालों पर एकत्र हो कर गपशप किया करते थे. चकवाल की एक ऐसी चौपाल पर अमीर नाम का आदमी बैठा हुआ था, जो 10 नंबरी था.

उस ने वहीं डिप्टी कमिश्नर के इश्तहार वाली बात सुनी. उस ने लोगों से पूछा कि 2 महीने बीतने पर भी वहां चोरी करने कोई नहीं आया क्या? एक आदमी ने उसे बताया कि पिंडी से आए एक आदमी ने बताया था कि उस बंगले में किसी की हिम्मत नहीं है जो चोरी कर सके. वहां चोरी करने का मतलब है अपनी मौत का न्यौता देना.

अमीर ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह उस बंगले में चोरी जरूर करेगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को वह ऐसा सबक सिखाएगा कि वह पूरी जिंदगी याद रखेगा. उस ने अपनी योजना के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

कुत्तों के लिए उस ने बैलों के 2 सींग लिए और देशी घी की रोटियों का चूरमा बना कर उन सींगों में इस तरह से भर दिया कि कुत्ते कितनी भी कोशिश करें, रोटी न निकल सकें. उस जमाने में रेल के अलावा सवारी का कोई साधन नहीं था. गांव के लोग 30-40 मील तक की यात्रा पैदल ही कर लिया करते थे.

चूंकि अमीर 10 नंबरी था  इसलिए कहीं बाहर जाने से पहले इलाके के नंबरदार से मिलता था. इसलिए अमीर सुबह जा कर उस से मिला, जिस से उसे लगे कि अमीर गांव में ही है. चकवाल से रावलपिंडी का रास्ता ज्यादा लंबा नहीं था. अमीर दिन में ही पैदल चल कर डिप्टी कमिश्नर की कोठी के पास पहुंच गया.

उस ने संतरियों को कोठी के पास ड्यूटी करते हुए देखा. बंगले के बाहर की दीवार आदमी की कमर के बराबर ऊंची थी. बंगले के अंदर संतरों के पेड़ थे, और बड़ी संख्या में फूलों के पौधे भी थे.

बंगले के चारों ओर लंबे लंबे बरामदे थे, बरामदे के 4-4 फुट चौड़े पिलर थे. अमीर को अंदर जा कर कोई भी चीज चुरानी थी और यह साबित करना था कि भारत में एक ऐसी भी जाति है, जो बहुत दिलेर है और जान की चिंता किए बिना हर चैलेंज कबूल करने के लिए तैयार रहती है.

जब आधी रात हो गई तो वह बंगले की दीवार से लग कर बैठ गया और संतरियों की गतिविधि देखने लगा. जिन सींगों में घी लगी रोटियों का चूरमा भरा था, उस ने वे सींग बड़ी सावधानी से अंदर की ओर रख दिए. वह खुद दीवार से 10-12 गज दूर सरक कर बैठ गया. कुत्तों को घी की सुगंध आई तो वे सींगों में से चूरमा निकालने में लग गए. फिर दोनों कुत्ते सींगों को घसीटते हुए काफी दूर अंदर ले गए.

अब अमीर ने संतरियों को देखा, वे 4 थे. बरामदे में इधर से उधर घूमते हुए थोड़ी थोड़ी देर के बाद एकदूसरे को क्रौस करते थे. संतरी रायफल लिए हुए थे और उन्हें ऐसा लग रहा था कि 2 महीने से भी ज्यादा बीत चुके हैं. अब किसी में यहां आने की हिम्मत नहीं है. वैसे भी वह थके हुए लग रहे थे.

अमीर दीवार फांद कर पौधों की आड़ में बैठ गया. वह ऐसे मौके की तलाश में था जब संतरियों का ध्यान हटे और वह बरामदे से हो कर अंदर चला जाए. उसे यह मौका जल्दी ही मिल गया. क्रौस करने के बाद जब संतरियों की पीठ एकदूसरे के विपरीत थी, अमीर जल्दी से कूद कर बरामदे के पिलर की आड़ में खड़ा हो गया.

अमीर फुर्तीला था. दौड़ता हुआ ऐसा लगता था, मानो जहाज उड़ा रहा हो. उसे यकीन था कि काम हो जाने के बाद अगर वह बंगले के बाहर निकल गया तो संतरियों का बाप भी उसे पकड़ नहीं पाएगा.

दूसरा अवसर मिलते ही वह कमरे का जाली वाला दरवाजा खोल कर कमरे में पहुंच गया. लकड़ी का दरवाजा खुला हुआ था. चारों ओर देख कर वह बंगले के बीचों बीच वाले कमरे के अंदर पहुंचा. उस ने देखा कमरे के बीच में बहुत बड़ा पलंग था. उस पर एक ओर साहब सोया हुआ था और दूसरी ओर उस की मेम सो रही थी. मध्यम लाइट जल रही थी.

कमरे में लकड़ी की 2-3 अलमारियां थीं, चमड़े के सूटकेस भी थे. उस ने एक सूटकेस खोला, उस में चांदी के सिक्के थे. उस ने एकएक कर के सिक्के अपनी अंटी में भरने शुरू कर दिए. जब अंटी भर गई तो उस ने मजबूती से गांठ बांध ली. वह निकलने का इरादा कर ही रहा था कि उस की नजर सोई हुई मेम के गले की ओर गई, जिस में मोतियों की माला पड़ी थी.

मध्यम रोशनी में भी मोती चमक रहे थे. उस ने सोचा अगर यह माला उतारने में सफल हो गया तो चैलेंज का जवाब हो जाएगा. मेम  और साहब गहरी नींद में सोए हुए थे. उस ने देखा कि माला का हुक मेम की गरदन के दाईं ओर था. उस ने चुपके से हुक खोलने की कोशिश की. हुक तो खुल गया, लेकिन मेम ने सोती हुई हालत में अपना हाथ गरदन पर फेरा और साथ ही करवट बदल कर दूसरी ओर हो गई.

अब माला खुल कर उस की गरदन और कंधे के बीच बिस्तर पर पड़ी थी, अमीर तुरंत पलंग के नीचे हो गया. 5 मिनट बाद उसे लगा कि अब मेम फिर गहरी नींद में सो गई. उस ने पलंग के नीचे से निकल कर धीरेधीरे माला को खींचना शुरू कर दिया. माला निकल गई. उस ने माला अपनी लुंगी की दूसरी ओर अंटी में बांध ली.

अमीर जाली वाले दरवाजे की ओट में देखता रहा कि संतरी कब इधरउधर होते हैं. उसे जल्दी ही मौका मिल गया. वह जल्दी से खंभे की ओट में खड़ा हो कर बाहर निकलने का मौका देखने लगा. कुत्ते अभी तक सींग में से रोटी निकालने में लगे हुए थे.

उसे जैसे ही मौका मिला, वह दीवार फांद कर बाहर की ओर कूद कर भागा. संतरी होशियार हो गए और जल्दबाजी में अंटशंट गोलियां चलाने लगे. लेकिन उन की गोली अमीर का कुछ नहीं बिगाड़ सकीं. वह छोटे रास्ते से पगडंडियों पर दौड़ता हुआ रात भर चल कर अपने घर पहुंच गया.

बाद में अमिर को पता लगा कि गोलियों की आवाज सुन कर मेम और साहब जाग गए थे. जागते ही उन्होंने कमरे में चारों ओर देखा. सिक्कों की चोरी को उन्होंने मामूली घटना समझा. लेकिन जब मेम साहब ने अपनी माला देखी तो उस ने शोर मचा दिया. वह कोई साधारण माला नहीं थी, बल्कि अमूल्य थी.

एसपी साहब और नगर के सभी अधिकारी एकत्र हो गए. उन्होंने नगर का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन चोर का पता नहीं लगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर हैरान था कि इतनी सिक्योरिटी के होते हुए चोरी कैसे हो गई. उस ने कहा कि चोर हमारी माला वापस कर दे और अपनी 5 सौ रुपए के इनाम की रकम ले जाए. साथ में उसे एक प्रमाणपत्र भी मिलेगा.

इश्तहार लगाए गए, अखबारों में खबर छपाई गई लेकिन 6 माह गुजरने के बाद भी चोर सामने नहीं आया. दूसरी तरफ मेमसाहब तंग कर रही थी कि उसे हर हालत में अपनी माला चाहिए. माला की फोटो हर थाने में भिजवा दी गई. साथ ही कह दिया गया कि चोर को पकड़ने वाले को ईनाम दिया जाएगा.

उधर अमीर चोरी के पैसों से अपने घर का खर्च चलाता रहा, उस समय चांदी का एक रुपया आज के 2-3 सौ से ज्यादा कीमत का था. अमीर के घर में पत्नी और एक बेटी थी, बिना काम किए अमीर को घर बैठे आराम से खाना मिल रहा था. उस ने सोचा, पेश हो कर अपने लिए क्यों झंझट पैदा करे, हो सकता है उसे जेल में डाल दिया जाए.

उस की पत्नी ने माला को साधारण समझ कर एक मिट्टी की डोली में डाल रखा था. एक दिन उस ने उस माला के 2 मोती निकाले और पास के एक सुनार के पास गई. उस ने सुनार से कहा कि उस की बेटी के लिए 2 बालियां बना दे और उन में एक मोती डाल दे. सुनार ने उन मोतियों को देख कर अमीर की पत्नी से कहा, ‘‘यह मोती तो बहुत कीमती हैं. तुम्हें ये कहां से मिले?’’

उस ने झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मेरा पति गांव के तालाब की मिटटी खोद रहा था, ये मोती मिट्टी में निकले हैं. मैं ने सोचा बेटी के लिए बालियां बनवा कर उस में ये मोती डाल दूं, इसलिए तुम्हारे पास आई हूं.’’ सुनार ने उस की बातों पर यकीन कर के बालियां बना दीं. उस ने अपनी बेटी के कानों में बालियां पहना दीं.

दुर्भाग्य से एक दिन अमीर की बेटी अपने घर के पास बैठी रो रही थी. तभी एक सिपाही जो किसी केस की तफ्तीश के लिए नंबरदार के पास जा रहा था, उस ने रास्ते में अमीर के घर के सामने लड़की को रोते हुए देखा. देख कर ही वह समझ गया कि किसी गरीब की बच्ची है, मां इधरउधर गई होगी. इसलिए रो रही होगी.

लेकिन जब उस की नजर बच्ची के कानों पर पड़ी तो चौंका. उस की बालियों में मोती चमक रहे थे. उसे लगा कि वे साधारण मोती नहीं हैं. उस ने नंबरदार से पूछा कि यह किस की लड़की है. उस ने बता दिया कि वह अमीर की लड़की है, जो दस नंबरी है.

हवलदार को कुछ शक हुआ. उस ने पास जा कर मोतियों को देखा तो वे मोती फोटो वाली उस माला से मिल रहे थे. जो थाने में आया था.

उस ने अमीर को बुलवा कर कहा कि वह बच्ची की बालियां थाने ले जा रहा है, जल्दी ही वापस कर लौटा देगा.  थाने ले जा कर उस ने चैक किया तो वे मोती मेम साहब की माला के निकले. अमीर पहले से ही संदिग्ध था, नंबरी भी. उसे थाने बुलवा कर पूछा गया कि ऊपर से 10 मोती उसे कहां से मिले. सब सचसच बता दे, नहीं तो मारमार कर हड्डी पसली एक कर दी जाएगी.

पहले तो अमीर थानेदार को इधरउधर की बातों से उलझाता रहा, लेकिन जब उसे लगा कि बिना बताए छुटकारा नहीं मिलेगा तो उस ने पूरी सचाई उगल दी. उस के घर से माला भी बरामद कर ली गई.

थानेदार बहुत खुश था कि उस ने बहुत बड़ा केस सुलझा लिया है, अब उस की पदोन्नति भी होगी और ईनाम भी मिलेगा. अमीर को एसपी रावलपिंडी के सामने पेश किया गया. साथ ही डिप्टी कमिश्नर को सूचना दी गई कि मेम साहब की माला मिल गई है.

डीसी और मेम साहब ने उन्हें तलब कर लिया. मेम साहब ने माला को देख कर कहा कि माला उन्हीं की है. डिप्टी कमिश्नर ने अमीर के हुलिए को देख कर कहा कि यह चोर वह नहीं हो सकता, जिस ने उन के बंगले पर चोरी की है. क्योंकि उस जैसे आदमी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती कि माला गले से उतार कर ले जाए.

एसपी ने अमीर से कहा कि अपने मुंह से साहब को पूरी कहानी सुनाए. अमीर ने पूरी कहानी सुनाई और बीचबीच में सवालों के जवाब भी देता रहा. उस ने यह भी बताया कि सोते में मेम साहब ने अपनी गरदन पर हाथ भी फेरा था. डिप्टी कमिश्नर ने उस की कहानी सुन कर यकीन कर लिया, साथ ही हैरत भी हुई.

उन्होंने कहा, ‘‘तुम ने हमें बहुत परेशान किया है, अगर तुम उसी समय हमारे पास आ जाते तो हमें बहुत खुशी होती, लेकिन हम चूंकि वादा कर चुके हैं, इसलिए तुम्हें तंग नहीं किया जाएगा. हम तुम्हें सलाह देते हैं कि बाकी की जिंदगी शरीफों की तरह गुजारो.’’

अमीर ने वादा किया कि अब वह कभी चोरी नहीं करेगा. वह एक साधू का चेला बन गया और उस की बात पर अमल करने लगा. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से नहीं जाता. वह छोटी मोटी चोरी फिर भी करता रहा. धीरेधीरे उस में शराफत आती गई.

सहेली : क्या शालू अपने पिता की जगह किसी और को दे पाएगी?

पापा की मौत के साल भर बाद मम्मी ने खुद को काफी हद तक संभाल लिया था, लेकिन शालू पिता की मौत के सदमे से नहीं उबर सकी थी. मम्मी खुद को इसलिए संभालने में सफल हो गई थीं, क्योंकि पापा की तेरहवीं की रस्म के पूरा होते ही उन्हें अपनी नौकरी पर जाना पड़ा था.

जिम्मेदारी का बोझ, काम की व्यस्तता और जिंदगी की भागदौड़ ही मम्मी को गम से उबारने में सहायक साबित हुई थी. लेकिन पिता की असमय और अचानक मौत की वजह से अंदर ही अंदर बुरी तरह टूट गई शालू के हालात अलग थे.

मम्मी के काम पर जाने के बाद घर में अकेले पड़े पड़े शालू को पापा की याद बहुत सताती थी, जिस की वजह से वह रोती रहती थी. मम्मी को मालूम था कि उस की गैरमौजूदगी में शालू रोती रहती है. उस की लाललाल आंखें देख कर मम्मी को सब पता चल जाता था.

मम्मी शालू को समझाने की कोशिश करती थीं कि रोने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है. हमें सब कुछ भुला कर ही जीने की आदत डालनी होगी. सबकुछ भुलाने का बेहतर तरीका यही है कि तुम भी मेरी तरह खुद को बिजी कर लो. आगे पढ़ने का इरादा हो तो ठीक है, वरना कोई नौकरी कर लो.

मम्मी की बात शालू को ठीक लगती थी. पापा जिंदा रहते तो शालू जरूर आगे की महंगी उच्च शिक्षा के बारे में सोचती. लेकिन वह जानती थी कि मम्मी अपनी नौकरी से इतना खर्च नहीं उठा पाएंगी. वह चूंकि मम्मी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए उस ने नौकरी करने का फैसला कर लिया. नौकरी के लिए मन बन गया तो उस ने अखबार में नौकरी वाले कालम देखने शुरू कर दिए.

मम्मी ने खुद को बेशक संभाल लिया था और अपने दर्द को जाहिर नहीं करती थीं, मगर शालू उन के दर्द को अभी भी महसूस कर रही थी. रात को कई बार अचानक शालू की नींद खुल जाती तो वह अपने साथ सोई मम्मी को जागते हुए पाती. आधी रात को बिस्तर पर बैठी वह पता नहीं क्या सोचती रहती थीं. पूछने पर वह कुछ बताती भी नहीं थी.

वैसे भी मम्मी अभी देखने में ज्यादा उम्र की नहीं लगती थीं. बराबर में खड़ी होतीं तो वह शालू की मां कम और बड़ी बहन अधिक लगती थीं. यह बात पापा भी मानते थे. शालू को याद आया कि वह संडे की छुट्टी का दिन था. वह मम्मी के साथ नाश्ते की टेबल पर बैठी पापा का इंतजार कर रही थी.

पापा तैयार हो कर जब नाश्ते की टेबल पर आए तो काफी अच्छे मूड में थे. मांबेटी को साथ बैठे देख वह बरबस कह उठे थे, ‘‘मेरी नजर न लगे, सच कहता हूं तुम दोनों मांबेटी कम, बहनें ज्यादा लगती हो.’’

पापा की बात पर मम्मी तो केवल हलके से मुसकरा कर रह गई थीं, लेकिन मम्मी के गले में प्यार से बांहें डाल कर शालू ने कहा था, ‘‘मेरी मम्मी दुनिया की बेस्ट मम्मी हैं पापा. आई एम श्योर, यह देख कर लोग मुझ से जरूर जलते होंगे. सच बोलूं पापा, मम्मी मेरी मम्मी नहीं, सहेली हैं.’’

इस के एक महीने बाद ही हार्टअटैक आने से पापा की मौत हो गई थी.

पापा की मौत के बाद मम्मी कुम्हला सी गई थीं. यह स्वाभाविक ही था. लेकिन जौब में होने और खानपान में सतर्कता बरतने की वजह से उन के शरीर पर कोई खास असर नहीं पड़ा था.

बड़ी बहन जैसी मम्मी के साथ चलते हुए शालू को अकसर गर्व महसूस होता था. कभीकभी शालू इस खयाल से बहुत बेचैन हो जाती कि शादी कर के जब वह घर से विदा हो जाएगी तो अकेली मम्मी क्या करेंगी? इस खयाल से शालू के अंदर द्वंद वाली स्थिति बन जाती और वह कमजोर पड़ने लगती.

शालू चाहती थी कि मम्मी को जीवन के लंबे सफर में कोई हमसफर मिल जाए, लेकिन उस के सामने यह सवाल खड़ा हो जाता कि क्या वह अपने पापा की जगह किसी दूसरे इंसान को देख सकेगी? आखिर में यह सवाल एक ऐसा चक्रव्यूह बन जाता, जिस में फंसी शालू निकल नहीं पाती थी.

कई बार शालू को लगता कि मम्मी के अंदर किसी बात को ले कर कशमकश चल रही है. वह कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन कहते कहते रुक जाती थीं. उन के सहेलियों जैसे संबंध इस मामले में मांबेटी के संबंधों में बदल जाते थे.

एक दिन काम से लौट कर मम्मी ने शालू से कहा कि उन्होंने उस के लिए एक नौकरी ढूंढ ली है और उसे कल ही नौकरी जौइन करनी है.

उन्होंने कहा, ‘‘अच्छी कंपनी है. कंपनी का मैनेजर किसी समय मेरी कंपनी में मेरे साथ ही काम करता था. सैलरी भी अच्छी मिलेगी और आगे चल कर तरक्की की भी गुंजाइश है.’’

अगले ही दिन शालू ने मम्मी द्वारा ढूंढी गई नौकरी जौइन कर ली. मम्मी खुद शालू को साथ ले कर वहां गई थीं. इलैक्ट्रिक आयरन, गीजर और हीटर बनाने वाली ग्लोब नाम की उस कंपनी का दफ्तर ज्यादा बड़ा तो नहीं था, लेकिन था शानदार.

मम्मी ने कंपनी के जिस जानकार मैनेजर का जिक्र किया था, उस की उम्र 50-55 के आसपास थी. वह आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक था. स्वभाव से भी खुशमिजाज और मिलनसार लगता था. नाम था शीतल साहनी.

शीतल साहनी चूंकि कभी मम्मी के साथ उन्हीं की कंपनी में काम कर चुका था, इसलिए वह मम्मी के साथ बड़े दोस्ताना और खुले अंदाज में पेश आया.

मम्मी को शालू को साथ ले कर आने की वजह शीतल साहनी को मालूम थी. शायद सब कुछ पहले से ही तय था, इसलिए नौकरी के लिए पूछे जाने वाले सवालों का सामना शालू को नहीं करना पड़ा. शालू से उसी वक्त नौकरी संबंधी एप्लीकेशन ले ली गई और कुछ ही देर में उस का अप्वाइंटमेंट लैटर उस के हाथ में थमा दिया गया.

अप्वाइंटमेंट लैटर शालू के हाथ में देते हुए शीतल साहनी ने कहा, ‘‘तुम इसी समय से अपनी नौकरी जौइन कर रही हो, मेरी सेके्रट्री तुम्हें तुम्हारे बैठने की जगह बता कर काम समझा देगी. मन लगा कर काम करना.’’

‘‘थैंक्यू सर.’’

‘‘थैंक्यू मेरा नहीं, अपनी मम्मी का करो.’’ शीतल साहनी ने मम्मी की तरफ देखते हुए कहा.

जवाब भी मम्मी ने ही दिया, ‘‘थैंक्स, थैंक्यू सो मच साहनी, शालू को ले कर मैं बहुत परेशान थी. तुम ने मेरी बहुत बड़ी चिंता दूर कर दी.’’

‘‘अगर ऐसा है तो हमें इस खुशी को चाय के साथ सेलीबे्रट करना चाहिए.’’ शीतल साहनी ने इंटरकौम का रिसीवर उठाते हुए कहा.

मम्मी ने भी मुसकराकर अपनी सहमति दे दी. इंटरकौम पर 3 कप चाय के लिए कहने के बाद शीतल साहनी ने हलकीफुलकी बातचीत शुरू कर दी. थोड़ी देर में चाय आ गई. मम्मी चाय पी कर चली गईं.

शालू का पहला दिन अपना काम समझने में ही बीत गया. बीचबीच में 2-3 बार शीतल साहनी ने संदेश भेज कर उसे अपने कमरे में बुलाया और उस से पूछा कि उसे अपना काम समझने में कोई मुश्किल तो पेश नहीं आ रही है.

शालू ने पूरी शालीनता से इनकार कर दिया. बेशक शीतल साहनी यह सब उस के प्रति अपनापन दिखाने के लिए कर रहा था. लेकिन शालू को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था.

नौकरी दे कर शीतल साहनी ने एक तरह से एहसान किया था, लेकिन शालू को यह बिलकुल पसंद नहीं था कि अपने एहसान के बदले वह उस से अधिक आत्मीयता दर्शाने की कोशिश करे.

शालू की नजरों में शीतल साहनी ने उस पर नहीं, मम्मी पर एहसान किया था. पहले दिन की नौकरी के बाद शालू घर लौटी तो काफी खुश दिख रही मम्मी ने एक के बाद एक उस पर सवालों की बौछार सी कर दी.

वह जानना चाहती थीं कि नौकरी पर उस का पहला दिन कैसा बीता? उसे अपना काम पसंद आया कि नहीं?

अपने सवालों में मम्मी ने शालू से शीतल साहनी के बारे में भी काफी कुरेदकुरेद कर पूछा, जो शालू को ज्यादा अच्छा नहीं लगा. ऐसा लग रहा था, जैसे वह शीतल साहनी के प्रति शालू के विचारों को जानना चाहती हों.

लेकिन शालू ने शीतल साहनी को ले कर अपने निजी विचार व्यक्त करने के बजाय मम्मी से सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मुझे नौकरी दे कर उन्होंने हम पर जो एहसान किया है, उस के एवज में उन्हें एक अच्छा इंसान ही कहा जा सकता है.’’

शालू के इस जवाब से मम्मी संतुष्ट और खुश नजर नहीं आईं. वह शायद नौकरी के अलावा शीतल साहनी के बारे में कुछ और सुनने की उम्मीद कर रही थीं.

पता नहीं क्यों शालू को पापा के अलावा किसी दूसरे मर्द की तारीफ मम्मी की जुबान से कतई अच्छी नहीं लग रही थी. शालू को ऐसा लग रहा था, जैसे कोई उस के और मम्मी के बीच में आने की कोशिश कर रहा है. यह शालू को बरदाश्त नहीं था.

शालू ने नौकरी कर के मानो एक अप्रत्याशित तनाव मोल ले लिया था. एक ऐसा तनाव, जिस की साफ वजह भी उसे मालूम नहीं थी.

शालू काम पर जाती तो उसे लगता कि उस का बौस शीतल साहनी न केवल उस के प्रति नरमी बरतता है, बल्कि उसे दूसरे लोगों से ज्यादा महत्त्व देता है. शालू को यह बात चुभती थी.

वह जानती थी कि यह सब मम्मी की वजह से हो रहा है. शालू खुद को उस समय सब से अधिक असहज महसूस करती, जब शीतल साहनी उस की मम्मी के बारे में मम्मी का नाम ले कर पूछता.

शालू की मम्मी का नाम सोनिया था. पापा अक्सर मम्मी को सोनिया कह कर ही बुलाते थे. लेकिन शीतल साहनी का मम्मी को उन के नाम से बुलाना शालू को एकदम अच्छा नहीं लगता था.

दूसरी ओर मम्मी भी शीतल साहनी के बारे में कुछ ज्यादा ही बातें करने लगी थीं. कभीकभी तो वह शालू से मिलने के बहाने उस के दफ्तर में आ जातीं और काफी देर तक शीतल के कमरे में बैठी रहतीं. मम्मी का ऐसा करना शालू को बहुत अखरता था.

शालू देख रही थी कि इधर कुछ दिनों में मम्मी में काफी बदलाव आ रहा है. पापा की मौत के बाद एकदम बुझ सी गईं मम्मी में जैसे एक बार फिर से जीने की उमंग भर गई थी.

शालू सोचती थी कि कहीं मम्मी में आए इस बदलाव का मतलब यह तो नहीं कि वह पापा की जगह किसी दूसरे मर्द को देने का मन बना रही थीं? यह दूसरा मर्द शीतल साहनी ही हो सकता था. शालू को ऐसा लगने लगा था, जैसे जिस मम्मी को वह अपनी सहेली मानती रही थी, वह अजनबी बन कर अचानक उस से दूर हो रही थीं. करीब होते हुए भी कोई अदृष्य सी दीवार उन के बीच खड़ी हो रही थी.

यह खयाल शालू के लिए बड़ा ही तकलीफदेह था कि इतना बड़ा फैसला मम्मी ने उस से कोई बात किए बगैर अकेले ही कर लिया था.

यही सोच कर शालू का मन महीना भर पुरानी नौकरी से उचाट होने लगा. वह किसी भी तरह शीतल साहनी का सामना करने से बचना चाहती थी, जबकि नौकरी में रहते हुए ऐसा मुमकिन नहीं था. शीतल साहनी अचानक ही शालू को अपनी जिंदगी का खलनायक नजर आने लगा था.

काफी कशमकश के बाद एक दिन शालू ने मम्मी से नौकरी छोड़ने की बात कह दी. उस की बात सुन कर मम्मी का चौंकना स्वाभाविक ही था.

‘‘मगर क्यों?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘मैं इस सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझती.’’

शालू का बेरुखा जवाब सुन कर मम्मी आहत नजर आईं. उन की आंखों में दर्द भी तैरता साफ नजर आया.

‘‘इस जवाब से मैं यह समझूं कि मेरी बेटी मुझ से अपने दिल की बात करने वाली मेरी सहेली नहीं रही?’’ मम्मी ने कहा तो शालू तुनक कर बोली, ‘‘यह सवाल मैं तुम से भी पूछ सकती हूं मम्मी, तुम में भी अब पहले वाली सहेलियों जैसी बात कहां रही है.’’

‘‘ऐसा लगता है जैसे तुम मुझे ताना मार रही हो.’’ मम्मी ने शालू की आंखों में झांकने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘मैं सिर्फ बात कह रही हूं मम्मी, अब तुम इसे ताना समझो तो यह अलग बात है. और हां, अगर अपनी जिंदगी के बारे में तुम ने अकेले ही कोई फैसला कर लिया है तो मैं उस फैसले में रुकावट नहीं बनूंगी. पर इतना जरूर साफ कर देना चाहती हूं कि मैं पापा की जगह तुम्हारी किसी पसंद को स्वीकार नहीं करूंगी.’’

शालू अपनी बात कह कर मम्मी को ड्राइंगरूम में छोड़ कर बाहर आ गई. उस वक्त उस की आंखों में आंसू थे. वह जानती थी कि उस के कठोर शब्दों से मम्मी को कितनी चोट पहुंची होगी.

आवेग कम हुआ तो शालू ने महसूस किया कि वह मम्मी को कुछ ज्यादा ही कह गई है. अपनी कही बातों पर उसे पश्चाताप होने लगा. रात को खाने की टेबल पर शालू ने देखा कि मम्मी की आंखें लाल थीं. लगता था, वह बहुत रोई थीं.

यह देख कर शालू के मन में अपराधबोध की टीस उठी. वह मम्मी के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘आई एम सौरी मम्मी, मैं ने तुम से जो कहा है, वह मुझे नहीं कहना चाहिए था.’’

‘‘मुझे तुम से कोई गिला नहीं है शालू. मैं जानती हूं, तुम अपने पापा से कितना प्यार करती थी. मैं भी तुम्हारे पापा को बेहद चाहती थी. वह नहीं रहे. तुम अपनी जगह ठीक हो. जिंदगी के बारे में तुम ने एक बेटी के रूप में सोचा है. मैं ने भी तुम्हारे पापा की मौत के बाद सारी जिंदगी को सिर्फ एक मां के नजरिए से ही देखा था.

‘‘मेरे अंदर की औरत एक मां के फर्ज में कहीं गुम हो गई थी. आज तुम मेरे साथ हो, लेकिन जिस दिन तुम इस घर से चली जाओगी, मैं सिर्फ एक औरत रह जाऊंगी, सिर्फ औरत, जिसे समाज में जीने के लिए किसी सहारे की जरूरत होगी.

‘‘अगर जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर मैं ने किसी दूसरे मर्द के बारे में सोचा है तो क्या कोई गुनाह किया है? क्या मुझे अपने आने वाले कल के लिए सोचने का भी हक नहीं है? तुम ने सिर्फ बेटी बन कर ही सोचा, मम्मी की सहेली बन कर नहीं.’’

उदासी में डूबी मम्मी की आवाज में एक शिकायत, एक गिला थी.

कुछ कहने के लिए शालू के पास जैसे शब्द ही नहीं रहे थे. जो बात मम्मी कभी कहते कहते रुक जाया करती थीं, आज वही बात उन्होंने बड़ी साफगोई से कह दी थी. मम्मी ने जो भी कहा था, सच ही कहा था. शालू ने उन्हें सहेली कहा जरूर था, मगर सहेली की तरह उन की भावनाओं को समझ नहीं सकी थी.

शालू को खामोश देख कर मम्मी ने सामने रखे मोबाइल फोन को उठाते हुए कहा, ‘‘मैं साहनी को फोन कर के बोल देती हूं कि तुम कल से नौकरी पर नहीं आ रही हो.’’

लेकिन वह मोबाइल का स्विच औन करतीं, उस के पहले ही शालू ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मैं कल नौकरी पर जा रही हूं. तुम सही सोच रही हो, शीतल साहनी वाकई एक अच्छे इंसान हैं. अगर वह मेरे साथ पापा की तरह पेश आ सकते हैं तो मैं भी उन्हें पापा की जगह स्वीकार करने को तैयार हूं.’’

शालू का इतना कहना था कि मम्मी की आंखें छलक पड़ीं और एकाएक वह फफक कर रोते हुए बेटी से लिपट गईं.

जान पर भारी पड़ा मजाक

मुंबई के उपनगर मुलुंड (पूर्व) के नवघर पुलिस थाने के इंसपेक्टर संपत मुंडे थाने के चार्जरूम में तैनात सबइंसपेक्टर मांजरे के पास बैठे किसी पुराने मामले पर विचारविमर्श कर रहे थे, तभी मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के एक अधिकारी अपने कुछ कर्मचारियों के साथ थाने आ कर उन से मिले.

उन्होंने बताया कि ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे के किनारे बने बीएमसी के डंपिंग ग्राउंड में प्लास्टिक की सफेद रंग की एक बड़ी सी थैली मिली है, जिस में से किसी औरत के लंबे बाल बाहर निकले हुए हैं. लगता है, थैली में किसी महिला की लाश है.

बीएमसी कर्मचारियों की बात को संपत मुंडे ने बड़ी गंभीरता से लिया. उन्होंने सब इंसपेक्टर मांजरे को इस मामले की प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कहा और यह बात अपने सीनियर इंसपेक्टर गणेश गायकवाड़ व उच्च अधिकारियों को बताने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी सूचना दे दी. इस के बाद वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. यह 14 सितंबर, 2014 की शाम 7-8 बजे के बीच की बात थी.

घटनास्थल पुलिस थाने से अधिक दूर नहीं था, इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में मुश्किल से 10-15 मिनट लगे. पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची तो वहां बीएमसी के कुछ कर्मचारी और बेगारी मजदूर मौजूद थे. फौरी तौर पर घटनास्थल का निरीक्षण कर के पुलिस टीम उस थैले को डंपिंग ग्राउंड से बाहर निकलवा कर लाई. थैले का मुंह खोला गया तो उस के अंदर का दृश्य देख कर पुलिस दल के साथसाथ बीएमसी कर्मचारियों का भी मुंह खुला रह गया.

उस छोटे से थैले में एक महिला के शव को 2 चादरों के बीच लपेट कर ठूंस कर भरा गया था. महिला की उम्र 25-26 साल के आसपास थी. उस के शरीर पर पेटीकोट और ब्लाउज के अलावा कोई कपड़ा नहीं था.

महिला का शव थैली से बाहर निकलवाने के बाद संपत मुंडे ने उस की लाश का निरीक्षण किया. उन्होंने और सबइंसपेक्टर मांजरे ने मृतका की शिनाख्त के लिए वहां मौजूद बीएमसी कर्मचारियों और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान पाया.

इस का मतलब वह मृतका उस इलाके की रहने वाली नहीं थी. परेशानी की बात यह थी कि लाश के कपड़ों और प्लास्टिक की थैली में ऐसी कोई चीज भी नहीं मिली, जिस के सहारे उस के बारे में पता लगाया जा सकता.

इस घटना की सूचना पा कर मुंबई के एडिशनल सीपी डा. विनय कुमार राठौर, एसीपी मारुति अह्वाड़, नवघर पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर गणेश गायकवाड़, इंसपेक्टर सुनील काले, प्रेस फोटोग्राफर और फ्रिगरप्रिंट ब्यूरो के अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

साथ ही क्राइम ब्रांच सीआईडी भी हरकत में आ गई थी. क्राइम ब्रांच सीआईडी प्रमुख सदानंद दाते, अपर पुलिस कमिश्नर के. प्रसन्ना, डीसीपी मोहन कुमार दहिकर, एसीपी प्रफुल्ल भोसले ने विचारविमर्श के बाद इस मामले की तफ्तीश की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच यूनिट-7 के सीनियर इंसपेक्टर शंकर पाटिल को सौंप दी.

घटनास्थल पर आए प्रेस फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट ब्यूरो का काम खत्म हो जाने के बाद इंसपेक्टर गणेश गायकवाड़ ने सारी औपचारिकताएं पूरी कर के मृतका की लाश पोस्टमार्टम के लिए मुलुंड के शताब्दी अस्पताल भेज दी.

पुलिस की परेशानी यह थी कि बीएमसी के जिस डंपिंग ग्राउंड में महिला की लाश मिली थी, वह बहुत बड़ा था और वहां मुंबई के कई क्षेत्रों का हजारों टन कूड़ा फेंका जाता था. यह तो तय था कि मृतका की लाश कूड़े के साथ वहां तक पहुंची थी, लेकिन लाश किस क्षेत्र से आई थी, यह पता लगाना आसान नहीं था.

बहरहाल, तफ्तीश को आगे बढ़ाने के लिए नवघर पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुनील काले और इंसपेक्टर संपत मुंडे मृतका की शिनाख्त के लिए जीजान से जुट गए. इस के लिए उन्होंने उस के हुलिए सहित सारी जानकारी मुंबई के सभी थानों को भेज दी. अखबारों का भी सहारा लिया गया, इस के साथ कुछ मुखबिरों को भी लगाया गया.

इंसपेक्टर मुंडे को उम्मीद थी कि कहीं से कोई न कोई जानकारी जरूर मिल जाएगी, लेकिन उन का यह प्रयास सफल नहीं रहा. दूसरी तरफ क्राइम ब्रांच यूनिट-7  के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटिल और उन के सहायकों का भी यही हाल था. मामले में जैसेजैसे देरी हो रही थी, वैसेवैसे उन की परेशानी बढ़ती जा रही थी.

आखिर निराश हो कर सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटिल ने अपनी तफ्तीश की दिशा बदल दी. उन्होंने अपने सहायकों के साथ एक बार फिर घटनास्थल का दौरा किया. बीएमसी कर्मचारियों से पूछताछ कर के उन्होंने वहां कूड़ा ले कर आने वाली गाडि़यों की एंट्री डायरी चेक की तो पता चला कि उस दिन 2575 नंबर की गाड़ी कचरा लेकर काफी देर से डंपिंग ग्राउंड में आई थी.

उस गाड़ी के जाने के बाद ही बीएमसी कर्मचारियों को वह थैला नजर आया था, जिस में लाश थी. वह गाड़ी उस दिन किसकिस इलाके का कचरा उठा कर लाई थी, जब इस की जांच की गई तो मालूम पड़ा कि उस दिन वह गाड़ी सायन, धारावी और माहिम इलाके का कचरा ले कर आई थी.

इस का मतलब था कि उस महिला का शव इन्हीं में से किसी क्षेत्र से आया था. इस से जांच अधिकारियों को तफ्तीश का रास्ता तो मिल गया था, लेकिन मंजिल अभी भी दूर थी. माहिम-सायन और धारावी का इलाका इतना छोटा नहीं था कि आसानी से मृतका का सुराग मिल जाता. लेकिन क्राइम ब्रांच के जांच अधिकारी इस से निराश नहीं हुए, बल्कि दोगुने उत्साह से तफ्तीश में जुट गए.

पुलिस टीम मृतका का फोटो ले कर माहिम, सायन और धारावी क्षेत्र में आने वाले शाहूनगर पुलिस थाने से ले कर धारावी काला किला, पीला बंगला, केमकर चौक, नेताजी नगर, लक्ष्मीबाग, नाइक नगर जैसी बस्तियों में छानबीन में जुट गई.

इसी छानबीन के दौरान नवरात्र मंडल के एक कार्यकर्ता ने मृतका का फोटो देख कर असिस्टेंट इंसपेक्टर अनिल ढोले को बताया कि मृतका अपने पति के साथ राजीव गांधी नगर में रहती थी. लेकिन वह पिछले कई दिनों से लापता है. उस कार्यकर्ता के साथ अनिल ढोले जब राजीव गांधी नगर गए तो उन्हें पता चला कि मृतका का नाम रेखा गौतम था. लेकिन उस के घर के बाहर ताला लगा हुआ था.

पड़ोसियों ने बताया कि रेखा के पति का नाम संजय गौतम है. घटना वाले दिन रेखा अपने पति के साथ विरार स्थित जीवदानी माता का दर्शन करने गई थी. लेकिन रास्ते में वह अपने पति से बिछुड़ गई थी. उस के पति ने उसे बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली. संजय के बारे में पूछताछ करने पर उस के एक पड़ोसी ने बताया कि वह अपने रिश्तेदार के घर चला गया है.

जांच अधिकारी ने यह जानकारी सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटिल को दे दी. पाटिल के निर्देशन में इंसपेक्टर संजय सुर्वे और असिस्टेंट इंसपेक्टर अनिल ढोले ने पुलिस टीम के साथ संजय के उस रिश्तेदार के घर छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के लिए संजय को सीआईडी औफिस लाया गया.

पूछताछ में संजय कुमार गौतम ने खुद को बेगुनाह बताया. उस के अनुसार जिस दिन वह अपनी पत्नी रेखा को जीवदानी देवी के मंदिर ले कर निकला था, उस दिन लोकल ट्रेन में बहुत भीड़ थी. भीड़ की वजह से वह रेखा को महिला डिब्बे में चढ़ने के लिए कह कर खुद जेंट्स कंपार्टमेंट में चढ़ गया था.

विरार रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर जब वह रेखा के डिब्बे के पास गया तो वह वहां नहीं थी. उसे रेलवे प्लेटफार्म पर तलाश करने के बाद थकहार कर वह विरार पुलिस थाने पहुंचा, ताकि पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा सके. लेकिन वहां के अधिकारियों ने उसे यह कह कर वापस लौटा दिया कि वह बांद्रा रेलवे स्टेशन पुलिस में जा कर अपनी शिकायत दर्ज करवाए.

जब वह बांद्रा रेलवे स्टेशन पुलिस के पास गया तो वहां के पुलिस वालों ने यह कह कर मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया कि वह पहले अपने नातेरिश्तेदारों के यहां पता करे.

संजय गौतम ने अपनी पत्नी रेखा के गायब होने के बारे में जो कुछ बताया था, वह इंसपेक्टर संजय सुर्वे के गले नहीं उतरा. उस के चेहरे के हावभावों को देख कर उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था. उन्होंने जब संजय गौतम के साथ थोड़ी सी सख्ती बरती तो उन्हें पूरी की पूरी दाल ही काली नजर आई. संजय गौतम पुलिस के सवालों के सामने टूट गया. उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया. पूछताछ के दौरान संजय गौतम ने अपनी पत्नी की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी.

28 वर्षीय संजय गौतम उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के गांव लालगंज का रहने वाला था. उस के पिता रघुनाथ प्रसाद गौतम गांव में टेलरिंग का काम करते थे. उन के व्यवहार की वजह से गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे. संजय गौतम उन का एकलौता बेटा था. वह बीए पास था. इस के साथ ही वह टेलरिंग का काम भी जानता था और इस काम में पिता की मदद किया करता था.

रघुनाथ प्रसाद गौतम ने 3 फरवरी, 2014 को संजय की शादी पड़ोस के गांव की रेखा से कर दी. वह सुंदर सुशील लड़की थी. शादी के बाद रेखा ससुराल आ गई. संजय की तरह रेखा भी बीए पास थी. पतिपत्नी दोनों ही पढ़ेलिखे थे और महत्त्वाकांक्षी भी. इसलिए चाहते थे कि कहीं बाहर जा कर किसी बड़े शहर में रहें, जहां खूब पैसा कमा सकें. वैसे भी गांव में रह कर तो बस गुजरबसर ही हो सकता था.

शादी के कुछ दिनों बाद रेखा ने संजय को समझाया कि वह टेलरिंग का अच्छा कारीगर है. गांव में रह कर वह अपना टैलेंट बरबाद कर रहा है. अगर वह शहर में रह कर यही काम करे तो अच्छी आय हो सकती है. यह उन दोनों के भविष्य के लिए भी ठीक रहेगा और घरपरिवार के लिए भी. संजय को रेखा की यह बात ठीक लगी और वह इस बारे में गंभीरता से सोचने लगा.

सोचनेविचारने के बाद संजय जुलाई, 2014 में अपनी पत्नी रेखा को ले कर मुंबई आ गया. मुंबई के धारावी इलाके में संजय के गांव के कई लोग रहते थे, जिन की मदद से वह राजीव गांधी नगर की विश्वकर्मा चाल में किराए का एक कमरा ले कर पत्नी के साथ रहने लगा. उसी इलाके की एक टेलरिंग शौप में उसे नौकरी भी मिल गई.

मुंबई आने के बाद पतिपत्नी दोनों ही बहुत खुश थे. रेखा अपनी गृहस्थी संवारने में लगी थी. लेकिन इस दंपति की खुशी उस समय कलह में बदल गई जब एक दिन रेखा ने संजय गौतम को जलाने के लिए मजाक में कह दिया कि कालेज की पढ़ाई के दौरान उस का एक बौयफ्रैंड था, जिसे वह बहुत प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी.

यह मजाक रेखा को बहुत महंगा पड़ा. उस के इस मजाक ने संजय के दिमाग में संदेह का बीज बो दिया. धीरेधीरे इस बीज ने अंकुरित हो कर वृक्ष का रूप ले लिया.

उन दोनों के प्यार के बीच दरार पड़नी शुरू हो गई. संजय गौतम की दिनचर्या बदल गई. जहां वह रेखा पर प्यार के फूल बरसाता था, वहीं अब कांटा बन कर चुभने लगा था. बातबात में रेखा की उपेक्षा और उस से मारपीट करना उस के लिए आम बात हो गई थी. रेखा ने अपनी बात को मजाक बता कर उस से कई बार माफी भी मांगी, सफाई भी दी, लेकिन वह संजय गौतम के संदेह का समाधान नहीं कर पाई.

समय के साथसाथ रेखा के प्रति संजय गौतम का संदेह कम होने के बजाय दिनबदिन बढ़ता ही गया. इस का नतीजा यह हुआ कि पतिपत्नी के बीच वैमनस्य बढ़ता गया. अब संजय रेखा की हर बात पर नजर रखने लगा था. वह उसे फोन पर किसी से बात करते देखता तो उस से सैकड़ों सवाल कर डालता. यहां तक कि कई बार तो उस की पिटाई भी कर देता. उस के दिमाग में शक का कीड़ा इस तरह घर कर गया था कि पत्नी के प्रेम संबंध का पता लगाने के लिए वह अपने गांव और ससुराल भी गया.

वहां उस ने अपने परिचितों और कालेज के कुछ दोस्तों से मिल कर रेखा के बारे में जानकारी ली. लेकिन उसे ऐसी कोई बात पता नहीं चली और वह खाली हाथ मुंबई लौट आया. इस के बावजूद संजय गौतम के दिमाग से संदेह का भूत नहीं उतरा.

कहावत है कि पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास के धरातल पर टिका होता है, अगर विश्वास टूट जाए तो घरगृहस्थी को बिखरते देर नहीं लगती. ऐसा ही कुछ इस मामले में भी हुआ.

जब संजय के विश्वास की टूटन बढ़ती गई तो उस ने रेखा को अपनी जिंदगी से निकाल फेंकने का फैसला कर लिया. इस के लिए वह मन ही मन योजना भी बनाने लगा. इसी योजना के तहत उस ने रेखा की प्रताड़ना बढ़ा दी.

अपनी योजना के अनुसार, घटना के दिन संजय गौतम ने रेखा के चरित्र को ले कर उसे काफी मारापीटा. इतना ही नहीं, बाजार जा कर वह चूहे मारने की दवा ले आया और रात को साढ़े 8 बजे उसे जबरन वह दवा खिला दी.

दवा खाने के बाद जब रेखा की तबीयत खराब होने लगी तो संजय घर से बाहर चला गया. उधर रेखा को कई उल्टियां हुईं और छटपटाते छटपटाते उस ने दम तोड़ दिया.

कई घंटों के बाद जब संजय गौतम घर लौटा तो रेखा मर चुकी थी. अब संजय के सामने रेखा की लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी. सुबह होने के पहले अगर वह रेखा की लाश को ठिकाने नहीं लगाता तो इलाके में बात फैल जाने का डर था.

कुछ देर सोचने के बाद उस ने रेखा की लाश को 2 चादरों के बीच लपेट कर घर में पड़ी प्लास्टिक की छोटी बोरी में भर कर उस का मुंह बांध दिया. इस के बाद वह सुबह साढ़े 3 बजे लाश को कंधे पर रख कर बोरी को ओएनजीसी कार्यालय के सामने रखे बीएमसी के कचरे के डिब्बे में डाल आया.

सुबह जब कचरे का डिब्बा उठाने वाली बीएमसी की गाड़ी आई तो वह कचरा के साथ उस बोरी को भी उठा ले गई. इस तरह रेखा के शव वाली बोरी मुलुंड स्थित डंपिंग ग्राउंड में पहुंच गई.

दूसरी ओर रेखा की लाश को ठिकाने लगाने के बाद संजय गौतम ने अपने आसपास रहने वालों के बीच यह बात फैला दी कि जीवदानी देवी का दर्शन करने विरार जाते समय उस की पत्नी रेखा उस से बिछड़ गई है.

पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच यूनिट-7 के अफसरों ने उसे गिरफ्तार कर नवघर पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर गणेश गायकवाड़ और जांच अधिकारी इंसपेक्टर सुनील काले को सौंप दिया.

इंसपेक्टर सुनील काले ने अभियुक्त संजय गौतम से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत केस दर्ज किया और उसे महानगर मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक अभियुक्त संजय गौतम न्यायिक हिरासत में था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

संदेह के सांप का जहर : ग्रंथि ने की विधवा भाभी की हत्या

परमिंदर कौर जालंधर के पृथ्वीनगर के मकान नंबर एन-ए-28 में रहती थी. उस के पति इकबाल सिंह दुबई के बहरीन में रहते थे. वहां वह किसी विदेशी कंपनी में नौकरी करते थे. उस की 2 बेटियां थीं, बड़ी 30 वर्षीया कमलप्रीत कौर और छोटी 26 वर्षीया रंजीत कौर. बड़ी बेटी कमलप्रीत कौर की शादी उस ने सन् 2001 में न्यूबलदेवनगर के मकान नंबर 197 में रहने वाले सुरजीत सिंह के सब से छोटे बेटे गुरमीत सिंह के साथ कर दी थी.

रंजीत कौर की अभी शादी नहीं हुई थी. वह जालंधर के पटेल अस्पताल में स्टाफ नर्स थी और मां के साथ रहती थी. कमलप्रीत कौर के पति की मौत हो चुकी थी. वह अपनी 2 बेटियों, 12 वर्षीया खुशप्रीत कौर और 10 वर्षीया राजवीर कौर के साथ ससुराल में रहती थी.

4 मार्च, 2014 की दोपहर 2 बजे के लगभग कमलप्रीत कौर अपनी मैरून कलर की एक्टिवा स्कूटर से गई तो लौट कर नहीं आई. जब इस बात की जानकारी परमिंदर को हुई तो उस ने बेटी को फोन किया. कमलप्रीत के पास 2 फोन थे. दोनों ही फोनों की घंटी बजती रही, लेकिन फोन उठा नहीं. इस के बाद रात को दोनों फोन बंद हो गए.

अगले दिन सवेरा होते ही परमिंदर कौर बेटी की तलाश में निकल पड़ी. उस ने नातेरिश्तेदार, जानपहचान वालों के यहां ही नहीं, हर उन संभावित जगहों पर बेटी को तलाशा, जहां उस के मिलने की संभावना थी. लेकिन कमलप्रीत का कहीं पता नहीं चला.

कमलप्रीत का कहीं कुछ पता नहीं चला तो परमिंदर कौर ने जालंधर के थाना डिवीजन नंबर 8 में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. कमलप्रीत के ढूंढ़ने की जिम्मेदारी ड्यूटी पर तैनात एएसआई अजमेर सिंह को सौंपी गई. यह 4-5 अप्रैल, 2014 के मध्यरात्रि की बात है.

एएसआई अजमेर सिंह ने लापता कमलप्रीत कौर का हुलिया और उस की स्कूटर का नंबर वायरलेस द्वारा प्रसारित करवा दिया. इस के अलावा जिले के सभी थानों को सूचना दे कर कमलप्रीत कौर की तलाश में मदद मांगी. अगले दिन मुखबिरों को भी कमलप्रीत कौर के फोटो दे कर उस के बारे में पता लगाने को कहा गया.

लेकिन इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला. चूंकि बीती रात से ही कमलप्रीत के दोनों फोन बंद थे, इसलिए एएसआई अजमेर सिंह ने कमलप्रीत के दोनों फोनों के नंबर एक सिपाही को दे कर ड्यूटी लगा दी थी कि वह लगातार दोनों नंबरों पर फोन करता रहे. उस सिपाही की मेहनत रंग लाई और शाम को कमलप्रीत के एक फोन की घंटी बज उठी.

उस ने यह बात एएसआई अजमेर सिंह को बताई तो उन्होंने अपने मोबाइल से कमलप्रीत के उस नंबर पर फोन मिला दिया तो इस बार फोन रिसीव कर लिया गया. फोन रिसीव करने वाले का नाम सुरेंद्र था. उस से कमलप्रीत कौर के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा, ‘‘मैं किसी कमलप्रीत कौर को नहीं जानता. यह फोन भी मेरा नहीं है. मैं बस से जालंधर से फगवाड़ा जा रहा था तो बस में सीट के नीचे से मुझे यह फोन मिला था.’’

कमलप्रीत का फोन लावारिस हालत में बस में मिला, यह बात एएसआई अजमेर सिंह की समझ में नहीं आई. अपना परिचय देते हुए उन्होंने सुरेंद्र को फोन के साथ थाने बुला लिया. थाने आ कर भी सुरेंद्र ने वही सब बताया, जो उस ने फोन पर बताया था. अजमेर सिंह ने सुरेंद्र से फोन ले कर जमा कर लिया. पूछताछ में उन्हें लगा कि सुरेंद्र सच बोल रहा है तो उन्होंने उसे जाने दिया.

शाम को सारी बातें अजमेर सिंह ने थानाप्रभारी इंसपेक्टर विमलकांत को बताईं तो उन्होंने उन की मदद के लिए उन के नेतृत्व में एक टीम बना दी. यह पुलिस टीम लगातार दो दिनों तक कमलप्रीत कौर की तलाश करती रही, लेकिन कहीं से भी कोई सुराग नहीं मिला.

6 मार्च को कमलप्रीत की बहन रंजीत कौर ने थानाप्रभारी विमलकांत को फोन कर के बताया, ‘‘सर, मुझे संदेह है कि मेरी बहन कमलप्रीत कौर के गायब होने के पीछे उस के जेठ महेंद्र सिंह का हाथ हैं. क्योंकि वह मेरी बहन से दुश्मनी रखता था. मुझे पूरा विश्वास है कि उसी ने मेरी बहन को अगवा कर कहीं छिपा दिया है या फिर उस की हत्या कर दी है.’’

इस के बाद थानाप्रभारी ने रंजीत कौर को थाने बुला कर उस से एक तहरीर ले कर कमलप्रीत कौर के अपहरण का मुकदमा उस के जेठ महेंद्र सिंह के खिलाफ दर्ज करा दिया. महेंद्र सिंह गांव बलीना, दोआबा के गुरुद्वारा भगतराम में मुख्य ग्रंथी था. यह गुरुद्वारा साहिब गांव वालों के अधीन था. गांव वाले उसे पाठ अरदास व गुरुद्वारा की सेवा के लिए 4 हजार रुपए मासिक वेतन देते थे.

महेंद्र सिंह के रहने और खाने की भी व्यवस्था गुरुद्वारा साहिब की ओर से थी. इंसपेक्टर विमलकांत सीधे उस पर हाथ नहीं डालना चाहते थे. इसलिए वह उस के बारे में पूरी जानकारी जुटाने लगे. इस छानबीन में पता चला कि 4 भाइयों में महेंद्र सिंह दूसरे नंबर पर था, जबकि कमलप्रीत का पति गुरमीत सिंह चौथे नंबर पर सब से छोटा था.

लगभग 25 साल पहले महेंद्र सिंह का विवाह हुआ था. उस के 3 बच्चों में 2 बेटे और 1 बेटी थी. लगभग 10 साल पहले किन्हीं कारणों से उस की पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी. अब तक उस के बडे़ बेटे और बेटी की शादी हो चुकी थी. शादी के बाद उस का बेटा उस से अलग रहने लगा था. इस समय सिर्फ छोटा बेटा 14 वर्षीय गगनदीप सिंह ही उस के साथ रहता था.

थानाप्रभारी विमलकांत ने कमलप्रीत कौर की दोनों बेटियों, खुशप्रीत कौर और राजवीर कौर से भी पूछताछ की थी. उन्होंने बताया था कि उस दिन उन की मां दोपहर 2 बजे के आसपास ताऊ महेंद्र सिंह के बेटे गगनदीप के साथ अपनी स्कूटर से गई थीं. जाते समय उन्होंने कहा था कि वह ताऊ से पैसे लेने जा रही हैं.

थानाप्रभारी विमलकांत ने गगनदीप को बुला कर कमलप्रीत के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘चाची मेरे साथ आई जरूर थीं, लेकिन पठानकोट रोड पर फ्लाईओवर पर उन्होंने मुझ से कहा था कि तुम चलो, मैं थोड़ी देर में आ रही हूं.’’

थानाप्रभारी विमलकांत गगनदीप से पूछताछ कर ही रहे थे कि रंजीत कौर ने थाने आ कर अपना फोन दिखाते हुए कहा, ‘‘सर, 4 मार्च को मेरे फोन पर कमलप्रीत का यह मैसेज आया था, जिसे मैं ने आज पढ़ा है. देखिए सर, इस में उस ने क्या लिखा है?’’

थानाप्रभारी विमलकांत ने रंजीत का फोन ले कर वह मैसेज पढ़ा. वह 4 मार्च को 1 बज कर 20 मिनट पर आया था. मैसेज था, ‘‘मैं अपने जेठ के साथ जा रही हूं. मुझे कोई प्रौब्लम आए तो फौरन फोन उठा लेना.’’

अब तक की तफ्तीश से महेंद्र सिंह वैसे ही शक के घेरे में आ गया था, इस मैसेज से स्पष्ट हो गया कि कमलप्रीत कौर के लापता होने के पीछे किसी न किसी रूप में ग्रंथी महेंद्र सिंह का ही हाथ है. अब समय बेकार करना ठीक नहीं था, इसलिए थानाप्रभारी ने तुरंत उस के घर छापा मार दिया. लेकिन वह घर पर नहीं मिला.

थानाप्रभारी ने महेंद्र सिंह के पीछे मुखबिरों को लगा दिया इस के बाद उन्हीं की सूचना पर 7 मार्च को पठानकोट रोड चौक पर नाका लगा कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई तो उस ने जल्दी ही स्वीकार कर लिया कि उसी ने कमलप्रीत की हत्या कर दी है.

लाश के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि कमलप्रीत की लाश को उस ने गुरुद्वारा साहिब के सीवर में फेंक दी है. महेंद्र के अपना अपराध स्वीकार कर लेने के बाद इंसपेक्टर विमलकांत ने तुरंत इस बात की सूचना एडीसीपी (प्रथम) नरेश डोगरा तथा एसीपी सतीश मल्होत्रा को दे दी थी.

अधिकारियों की उपस्थिति में अभियुक्त ग्रंथी महेंद्र सिंह की निशानदेही पर गुरुद्वारा भगतराम के सीवर पाइप से मृतका कमलप्रीत कौर की लाश बरामद कर ली गई. लाश केवल अंदर के कपड़ों यानी ब्रा पैंटी में थी. इस से लोगों को लगा कि हत्या से पहले मृतका के साथ दुष्कर्म किया गया था.

इंसपेक्टर विमलकांत ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया और थाने आ कर कमलप्रीत के अपहरण के मुकदमे के साथ हत्या और लाश को खुर्द बुर्द करने की धाराएं जोड़ दीं.

अगले दिन यानी 8 मार्च को जेएमआईसी सिमरन सिंह की अदालत में महेंद्र सिंह को पेश कर के पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में  महेंद्र ने जो बताया, वह इस प्रकार था.

महेंद्र सिंह ने पुलिस को बताया था कि उस ने छोटे भाई की पत्नी कमलप्रीत की हत्या इसलिए की है, क्येंकि उस ने उस के भाई गुरमीत सिंह की हत्या की थी. उस के प्रिंस और सत्ती से अवैध संबंध थे. इसी वजह से उस ने गुरमीत को जहर दे कर मार दिया था.

महेंद्र सिंह के बताए अनुसार, गुरमीत तनदुरुस्त और अच्छाखासा नौजवान था. उसे कोई बीमारी भी नहीं थी, इसलिए जिस दिन वह मरा था, उसी दिन उसे शक हो गया था कि उस के भाई गुरमीत की मौत स्वाभाविक नहीं थी. उसे साजिश रच कर मारा गया था. इस के बाद वह पता लगाने लगा. तब उसे पता चला कि गुरमीत की पत्नी कमलप्रीत के प्रिंस और सत्ती से अवैध संबंध थे.

इस के बाद महेंद्र सिंह कमलप्रीत पर नजर रखने लगा. इसी साल जनवरी के दूसरे सप्ताह में एक रात उस ने एक सपना देखा. सपने में गुरमीत ने आ कर उस से कहा था कि उसे जहर दे कर मारा गया था. यह काम कमलप्रीत ने अपने हाथों से किया था.

बस इसी के बाद से अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए महेंद्र मौके की तलाश में लग गया था. वह प्रिंस, सत्ती और कमलप्रीत की हत्या कर के अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था. लेकिन 3-3 हत्याएं करना उस के वश की बात नहीं थी.

कमलप्रीत के मृतक पति गुरमीत सिंह की लाम्मा पिंड चौक के पास ‘राजा भांगड़ा ग्रुप’ के नाम से भांगड़ा पार्टी थी. वह शादीब्याह एवं अन्य अवसरों पर गाना व भांगड़ा करता था. उस का यह काम बहुत बढि़या चल रहा था. अपने इस काम से उस ने खूब पैसा कमाया, जिसे उस ने ब्याज पर उठा दिया था. 23 अक्टूबर को ज्यादा शराब पीने की वजह से उस की मौत हो गई थी. उस ने जो पैसा उठा रखा था, उस की मौत के बाद तमाम लोगों ने वापस नहीं किया था.

गुरमीत का पैसा बहुत लोगों ने दबा रखा है, यह महेंद्र सिंह को पता था. कमलप्रीत की हत्या करने से कुछ दिनों पहले उस ने कमलप्रीत को फोन किया कि गुरमीत ने बुलारा गांव के एक आदमी को डेढ़ लाख रुपए दे रखे थे. वह आदमी 3 किश्तों में वे रुपए लौटाना चाहता है.

कमलप्रीत जेठ की बात पर विश्वास कर के उस आदमी से मिलने को तैयार हो गई. तब महेंद्र ने रुपए दिलवाने के एवज में उस से 3 हजार रुपए कमीशन के तौर पर मांगे. कमलप्रीत ने उस की यह शर्त स्वीकार कर ली. इस के बाद महेंद्र ने बातचीत करने के लिए उसे गुरुद्वारा के अपने कमरे पर बुलाया. उस दिन बातचीत कर के कमलप्रीत घर लौट गई.

4 मार्च, 2014 को सुबह महेंद्र ने कमलप्रीत को फोन कर के अपने कमरे पर बुलाया. कमलप्रीत ने अकेली आने में असमर्थता व्यक्त की तो उस ने अपने बेटे गगनदीप को भेज दिया. कमलप्रीत गगनदीप के साथ किशनपुरा उस की बताई जगह पर एक्टिवा स्कूटर से पहुंची.

ग्रंथी महेंद्र सिंह वहां पहले से ही मौजूद था. वह उसे अपने साथ अपने कमरे पर ले गया. वहां कमरे में बंद कर के महेंद्र उस से अपने भाई गुरमीत की मौत के बारे में पूछने लगा. सपने की बात बता कर उस ने कहा कि उसी ने अपने अवैध संबंधों की वजह से गुरमीत को जहर दे कर मारा था.

कमलप्रीत ने रोते हुए कहा, ‘‘यह सब झूठ है. न तो मेरा किसी से अवैध संबंध है और न मैं ने तुम्हारे भाई की हत्या की है. जरा सोचो, मैं अपने पति की हत्या कर के स्वयं को क्यों विधवा बनाऊंगी. एक विधवा की जिंदगी क्या होती है, यह मुझ से ज्यादा और कौन जान सकता है. जिस प्रिंस और सत्ती पर तुम आरोप लगा रहे हो, वह मुझे अपनी बहन मानते हैं.’’

कमलप्रीत के रोने को महेंद्र सिंह ने ढोंग समझा. उस ने उसे डांटते हुए जान से मारने की धमकी दी तो कमलप्रीत डर गई और पति की हत्या की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद उस ने एक कागज दे कर गुरमीत को जहर दे कर मारने की बात लिखने को कहा.

कमलप्रीत ने सोचा, लिख कर देने से वह उस का पीछा छोड़ देगा, इसलिए उस ने लिख दिया, ‘प्रिंस, सत्ती और मैं ने गुरमीत को शराब में सल्फास की गोलियां मिला कर पिला दी थीं, जिस से उस की मौत हो गई थी.’ दरअसल उस समय महेंद्र के सिर पर खून सवार था. उस की आंखों में हैवानियत नाचती देख कमलप्रीत डर गई थी और उस ने वह सब लिख दिया था, जो वह चाहता था.

कमलप्रीत द्वारा लिखी बात पढ़ कर महेंद्र की आंखों में खून उतर आया. उस ने बैड पर बैठी कमलप्रीत का गला पकड़ा और पूरी ताकत से दबा दिया. कमलप्रीत बैड पर गिर पड़ी. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए उस ने उस के गले में पड़ी चुन्नी को लपेट कर पूरी ताकत से कस दिया. इस के बाद लाश को वहीं कमरे में बंद कर के उस के दोनों फोन ले कर वह रामा मंडी, जालंधरअमृतसर रोड पर गया और लुधियाना जाने वाली बस की सीट के नीचे रख कर वापस आ गया.

इस के बाद कमलप्रीत का स्कूटर ले जा कर उस ने जालंधर कैंट के रेलवे स्टेशन की पार्किंग में खड़ा कर दिया. स्टेशन से लौटतेलौटते रात के 8 बज चुके थे. अब उसे लाश को ठिकाने लगाना था. लाश को ठिकाने लगाने से पहले उस ने कमलप्रीत की सलवार कमीज को कैंची से काट कर शरीर से अलग कर दिया.

उन कपड़ों को जला कर उस ने उस की राख को ले जा कर जेहला गांव के निकट गुरुद्वारे के पास खेतों में फेंक दिया, ताकि कोई सुबूत न रहे. उस के कमरे पर आतेआते गांव में सन्नाटा पसर चुका था. उस ने कमलप्रीत की लाश उठाई और गुरुद्वारा में बने सीवर में डाल दिया. इस तरह से कमलप्रीत की हत्या कर के उस ने सारे सुबूत मिटा दिए. लेकिन उस ने कुछ ऐसी गलतियां कर दी थीं, जिस की वजह से वह पुलिस गिरफ्त में आ गया था.

महेंद्र से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर विमलकांत ने प्रिंस और सत्ती को थाने बुला कर पूछताछ की. उन का कहना था कि वे कमलप्रीत को अपनी बहन मानते थे और भाई की तरह उस के छोटे मोटे काम कर दिया करते थे. मृतका कमलप्रीत की मां और बहन तथा पड़ोसियों ने भी उन की बात को सच बताया.

थानाप्रभारी ने एक बार फिर महेंद्र से पूछताछ की तो इस बार उस ने कमलप्रीत की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ और ही निकली.

दरअसल, मृतक गुरमीत का कामधंधा बहुत अच्छा चल रहा था, जिस से महेंद्र उस से जलता था. गुरमीत का पृथ्वीनगर में एक मकान था, जो काफी कीमती था. महेंद्र उसे हथियाना चाहता था. इसीलिए उस ने कमलप्रीत के प्रिंस और सत्ती से अवैध संबंधों की बात फैला कर कमलप्रीत की हत्या कर दी, ताकि उस मकान को वह हासिल कर सके.

इंसपेक्टर विमलकांत ने महेंद्र की निशानदेही पर कमलप्रीत की एक्टिवा स्कूटर, मोबाइल फोन और वह कैंची भी बरामद कर ली थी, जिस से उस ने उस के कपड़े काटे थे. तमाम पुलिस काररवाई पूरी कर के महेंद्र सिंह को एक बार फिर 10 मार्च, 2014 को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मृतका कमलप्रीत कौर की दोनों बेटियां खुशप्रीत कौर और राजवीर कौर अपनी मौसी रंजीत कौर के पास रह रही थीं.

– कथा पुलिस सूत्रों व मृतका के परिजनों द्वारा बातचीत पर आधारित