जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 3

डाक्टर की बग्घी बहुत शानदार थी. उस में मोटे गद्दे और नरम कुशन लगे थे. बैठने और लेटने के लिए बड़ी आरामदायक जगह बनाई गई थी. एक काला सा आदमी डाक्टर का कोचवान था.

डाक्टर जव्वाद ने मुझ से यह नहीं पूछा कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं. मैं भी चुपचाप आंख बंद कर के लेटा रहा. कुछ देर बाद उस ने मुझे दूध के साथ दवा दी.

दवाई पी कर मैं ने बग्घी से उतरना चाहा तो मुझे एकदम से जोर का चक्कर आ गया. डाक्टर ने मुझे फिर लिटा दिया. कुछ देर बाद उस ने मुझे नाश्ता और कुछ फल खिलाए. फिर कहा, ‘‘अभी तुम लेटे रहो, चलनाफिरना मुश्किल है. तुम्हें बहुत कमजोरी हो गई है.’’

मैं सोचने लगा कि आहन और तूबा ने मुझे जहर क्यों दिया, उन से मेरी कोई दुश्मनी भी नहीं थी. मेरी आंखों में तूबा का खूबसूरत चेहरा घूम गया. मैं सोच भी नही सकता था कि हुस्न भी इतना जहरीला हो सकता है.

बग्घी वहां से रवाना हो गई. मेरा घोड़ा पीछे आ रहा था. एकाएक डाक्टर ने पूछा, ‘‘तुम्हें जहर किस ने दिया?’’

‘‘मैं एक फार्महाउस पर रुका था. वहां रहने वाले एक मियां बीवी के साथ खानापीना हुआ था. उन लोगों ने ही जहर दिया होगा.’’

‘‘उन से तुम्हारी कोई अदावत थी या कोई झगड़ा हुआ था?’’

‘‘न मेरी उन से कोई दुश्मनी थी न झगड़ा हुआ था, पता नहीं उन लोगों ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? वैसे मैं जिन की बात कर रहा हूं उन में मर्द मर्दाना खूबसूरती का नमूना था और औरत बेहद हसीन.’’

‘‘हो सकता है, वे लोग कोई मुजरिम हों और उन्हें तुम से कोई खतरा हो?’’

‘‘नहीं ऐसे तो नहीं लगते थे, खासे अमीर लोग थे.’’ कहते हुए मैं ने डाक्टर से पूछा, ‘‘आप कहां से आ रहे हैं?’’

‘‘मैं इस इलाके के लोगों का इलाज करने के लिए दूरदूर तक जाता हूं. खास कर जहां इलाज और डाक्टर की सहूलियत नहीं है. समझ लो साल के 6 महीने घर से बाहर बीतते हैं.’’

‘‘आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘हां, मेरी बीवी बहुत अच्छी है, मेरी गैरहाजरी में घर अच्छे से संभालती है, फारमिंग वगैरह भी देख लेती है. इस मामले में मैं बहुत खुशनसीब हूं.’’

‘‘डाक्टर साहब, अब मुझे कोई बस्ती देख कर उतार दीजिए. मुझे अपनी मंजिल की तलाश में निकलना चाहिए.’’

‘‘नहीं, नहीं, अभी तुम बहुत कमजोर हो, घुड़सवारी कतई नहीं कर सकते. अगर तुम ने सफर किया तो मेरी सारी मेहनत बेकार जाएगी. अभी तुम्हारे शरीर से जहर का असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. तुम मेरे साथ चलो. 2 दिन मेरे घर पर आराम करना. इलाज के बाद जब पूरी तरह ठीक हो जाओगे फिर जहां चाहो, चले जाना.’’

मैं इनकार करने की सोच ही रहा था कि मेरे दिमाग में एक खयाल बिजली की तरह कौंधा तो मैं ने झट से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, मैं आप का अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा. आप मेरी इतनी परवाह कर रहे हैं तो मैं आप के साथ ही चलूंगा और इलाज पूरा होने के बाद आप की पूरी फीस दे कर जाऊंगा.’’

डा. जव्वाद ने हंस कर कहा, ‘‘मैं इलाज बढि़या करता हूं. इस के लिए फीस भी अच्छी लेता हूं.’’

हम डाक्टर के घर पहुंचे तो मैं चौंका. वह जगह मेरे लिए अपरिचित नहीं थी. जहां गाड़ी रुकी वह वही खूबसूरत फार्महाउस था, जहां मुझे जहर दिया गया था. दरवाजा खोलने वाली वही हसीन औरत थी. वह बड़े प्यार से डाक्टर के गले लग गई. डाक्टर ने पीछे मुड़ कर कहा, ‘‘शमशेर, ये मेरी बीवी ऐना है.’’

उस की नजर मुझ पर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे उस ने कोई भूत देख लिया हो. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. मैं ने झुक कर उसे सलाम किया. गुलाबी साड़ी में उस का हुस्न दमक रहा था.

डाक्टर ने उस से मुखातिब हो कर कहा, ‘‘ऐना इन के लिए ऊपर का कमरा खुलवा दो, ये 2 दिन यहां रुकेंगे. इन्हें किसी जालिम ने जहर दे दिया था, लेकिन मैं वक्त पर पहुंच गया और इन्हें बचा लिया. मैं इन्हें आराम और इलाज के लिए अपने साथ ले आया हूं.’’

मैं सीढि़यों की तरफ बढ़ा. ऐना मेरे पीछे थी. कमरा खोल कर वह एक तरफ हट गई. वह गुस्से से लाल हो रही थी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘वापस क्यों लौट आए?’’ मैं ने मुसकरा कर व्यंग में कहा, ‘‘ये जानने के लिए कि तुम ने मुझे जहर क्यों दिया?’’ लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘मैं भला तुम्हें क्यों जहर देने लगी? तुम्हें गलतफहमी हुई है.’’

‘‘मैं ने तुम्हारे घर के अलावा कहीं और कुछ नहीं खाया पिया था, इसलिए यकीनन जहर तुम ने दिया था.’’

उस ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम ने खुद कोई जहरीली चीज खा ली होगी. मुझे तुम्हें जहर देने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी क्योंकि मैं ने तुम्हें आहन के साथ देख लिया था. तुम्हारे इश्क का गवाह बन गया था मैं.’’

वह बात काट कर बोली, ‘‘मैं किसी आहन को नहीं जानती.’’

‘‘ओह, यानी तुम दोनों ने मुझे अपने नाम गलत बताए थे. खैर, मैं यहां तुम्हारी आशनाई का राजफाश करने नहीं आया हूं. मुझे डाक्टर से अपना पूरा इलाज करवाना है. उन का कहना है कि अगर इलाज पूरा न हो तो ये जहर कुछ दिन बाद फिर असर दिखाता है. इसलिए दवा का 3 दिन का कोर्स पूरा करना जरूरी है.’’

इस पर उस ने तमक कर कहा, ‘‘अगर तुम ने कुछ उलटासीधा करने की कोशिश की तो बहुत बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे, याद रखना.’’

‘‘मैं एक जुआरी हूं, फायदा उठाने के साथसाथ नुकसान उठाने के लिए भी तैयार रहता हूं. यह तुम सोचो कि क्या तुम नुकसान उठा सकती हो?’’

ऐना गुस्से से जाने के लिए पलट गई. मैं ने उसे फिर याद दिलाया, ‘‘ऐना एक बात जहन में रख लो, मैं एक बार धोखा खा सकता हूं, बारबार नहीं.’’

डाक्टर ने मेरा बहुत खयाल रखा. इलाज में भी कोई कोताही नहीं बरती. शाम तक मैं काफी फ्रेश महसूस करने लगा. मैं ने डाक्टर से कहा, ‘‘मैं थोड़ा बाहर घूमना चाहता हूं, आप ठीक समझें तो चला जाऊं?’’

‘‘हां, थोड़ी देर के लिए चले जाओ. पास ही कस्बा अजीरा है, पर ज्यादा नहीं घूमना. थक जाओगे.’’

बाहर निकला तो ऐना को गेट के पास कहीं जाने को तैयार खड़ा देखा. मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं कस्बे जा रहा हूं. आहान को कोई पैगाम देना हो तो बता दो.’’

उस ने गुस्से से दांत पीसे और रुख बदल कर खड़ी हो गई. मैं बाहर निकल गया. थोड़ी दूर चलने के बाद एक शराबखाना नजर आया. मैं ने एक पैग रम का आर्डर दिया, शराब सर्व करने वाला एक 14-15 साल का लड़का था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम बिना किसी मेहनत के 10 रुपए कमाना चाहते हो?’’

वह हैरान सा मुझे देखते हुए बोला, ‘‘क्या काम करना होगा मुझे?’’

‘‘कुछ खास नहीं, मैं तुम्हें एक आदमी का हुलिया बताता हूं, तुम मुझे उस का नाम और पता बता दो बस.’’

हुलिया सुन कर वह डर सा गया, बोला, ‘‘साब, वह बहुत जालिम और खतरनाक आदमी है. बीच में मेरा नाम नहीं आना चाहिए.’’ मैं ने उस का नाम न आने का वादा किया तो उस ने उस का नाम बाबर बताया और उस का पता समझा दिया. मैं उसे 10 रुपए दे कर बाहर आ गया.

किस्तों वाली सुपारी : शादीशुदा का प्यार पड़ा जान पर भारी – भाग 1

आर्किटेक्ट मनदीप बंसल उर्फ मिंटी मशहूर बिल्डर था. वह ठेके पर बड़ीबड़ी बिल्डिंग  बनाने के साथसाथ प्लौट खरीद कर उन पर कोठियां बना कर बेच देता था. इस काम में उसे अच्छाखासा मुनाफा हो जाता था. सिविल इंजीनियर मनदीप को भवन निर्माण का बड़ा तजुर्बा था. लुधियाना शहर में उस की गिनती बड़े बिल्डरों में होती थी. हालांकि उस के पिता सुरिंदर सिंह कपड़े के व्यापारी थे, पर मिंटी ने भवन निर्माण के क्षेत्र में काफी नाम कमाया था.

मनदीप 3 भाईबहन थे. सब से बड़े थे सुरजीत सिंह बंसल, जो कपड़े का व्यापार करते थे. दूसरे नंबर पर मनदीप था और सब से छोटी बहन थी रवनीत कौर. सुरजीत को छोड़ कर मनदीप और रवनीत अभी अविवाहित थे. लगभग 2 साल पहले बंसल परिवार गुरु अंगतदेव नगर में रहता था.

फिर अचानक उन्हें वह घर छोड़ कर खन्ना एन्क्लेव, धांदरा रोड पर किराए की एक कोठी में रहना पड़ा. बंसल परिवार के गुरु अंगतदेव नगर छोड़ने के पीछे की भी एक अहम कहानी है, जिस ने आगे चल कर एक बहुत बड़े अपराध को जन्म दिया था.

बहरहाल, खन्ना एन्क्लेव में रहते हुए बंसल बंधुओं ने लुधियाना के ही शहीद भगत सिंह नगर में एक प्लौट खरीद कर उस पर एक विशाल कोठी का निर्माण करवाया, जो लगभग पूरा हो चुका था. मुहूर्त के अनुसार उन्हें दिनांक 14 अक्तूबर, 2018 को नई कोठी में गृहप्रवेश करना था. इस के लिए सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. उन्होंने घर का सारा सामान भी बांध लिया था.

11 अक्तूबर की सुबह 9 बजे मनदीप बंसल अपनी एक निर्माण साइट दुगरी फेज-1 की कोठी नंबर-196 पर चल रहे काम को देखने गया था. यह कोठी सरदार सुखविंदर सिंह की थी, जिस का निर्माण मनदीप करवा रहा था. निर्माणाधीन कोठी पर मनदीप पूरे एक घंटे तक रुका. इस के बाद उसे दूसरी साइट पर जाना था.

ठीक 10 बज कर 2 मिनट पर मनदीप कोठी से बाहर निकल कर अपनी इंडिका कार के पास आया और कार में बैठने के लिए जैसे ही उस ने ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोलना चाहा, तभी कार के पीछे छिपा एक बाइक सवार अचानक वहां आया और उस ने मनदीप पर रिवौल्वर से अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी.

उस ने मनदीप पर 5 गोलियां दागीं. इस के बाद वह वहां से निकल गया.  गोलियां लगते ही मनदीप कटे पेड़ की तरह लहरा कर जमीन पर गिर गया.

गोलियों की आवाज सुन कर लोग वहां जमा हो गए. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि हत्यारा कौन था और उस ने मनदीप पर गोलियां क्यों चलाईं. निर्माणाधीन कोठी का मालिक सुखदेव सिंह भी दौड़ता हुआ बाहर आ गया. उस ने मनदीप को सहारा दे कर कुरसी पर बिठा कर पानी पिलाने की कोशिश की, पर मनदीप की हालत गंभीर थी, उस ने अस्पताल चलने के लिए कहा.

सुखदेव ने इस घटना की सूचना मनदीप के घर वालों और पुलिस को दे दी और मनदीप को डीएमसी अस्पताल ले गया. पर अस्पताल पहुंचते ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. तब तक मनदीप का बड़ा भाई सुरजीत और पुलिस भी वहां पहुंच गई.

सूचना मिलते ही लुधियाना पुलिस कमिश्नर डा. सुखचैन सिंह गिल, एडीसीपी सुरिंदर लांबा, एसीपी (क्राइम) सुरिंदर मोहन, एसीपी रमनदीप सिंह भुल्लर, सीआइए स्टाफ-2 के इंचार्ज राजेश शर्मा और थाना दुगरी प्रभारी इंसपेक्टर राजेश ठाकुर घटनास्थल पर पहुंच गए.

सुरजीत बंसल की तरफ से अज्ञात के खिलाफ धारा 302, 120 बी और 25,  27,  54, 59 आर्म्स ऐक्ट के तहत दुगरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

घटनास्थल का मुआयना करने पर पुलिस को वहां से खाली कारतूस का कोई खोखा नहीं मिला था, जो हैरानी वाली बात थी. आखिर गोलियों के खाली खोखे कहां गायब हो गए?

पुलिस इसे आंतकवादी हमले से भी जोड़ कर देख रही थी. एडीसीपी डा. सुखचैन सिंह ने मनदीप बंसल हत्याकांड को जल्द सुलझाने के लिए पुलिस की कई टीमें बनाईं. इस वारदात के बाद शहर में दहशत का माहौल था. पुलिस टीमें कई एंगल्स और थ्यौरियों पर काम कर रही थीं.

पुलिस सब से पहले यह पता करने में जुट गई कि क्या मृतक की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. इस दिशा में एक ऐसा नाम उभर कर सामने आया था, जिस पर पुलिस को शक  हुआ. वह नाम था मृतक के पूर्व पड़ोसी बलविंदर सिंह का.

जांच का दायरा जैसेजैसे आगे बढ़ा, वैसे वैसे यह बात भी स्पष्ट होती चली गई कि बलविंदर सिंह ही मनदीप का हत्यारा हो सकता है. इसी के साथ 2 साल पहले बंसल बंधुओं के गुरु अंगतदेव नगर वाली कोठी को छोड़ने की वजह भी स्पष्ट हो गई.

पुलिस ने बलविंदर के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो वारदात के समय उस के फोन की लोकेशन उस के घर न्यू अमर कालोनी की आ रही थी. इस का मतलब साफ था कि शातिर बलविंदर ने यह काम खुद न कर के किराए के किसी हत्यारे से करवाया होगा.

एक पुलिस टीम बलविंदर के घर भेजी गई पर वह अपने घर नहीं मिला, शायद वह फरार हो गया था. दरअसल पुलिस का ध्यान बलविंदर की ओर इस कारण गया था कि जब उन्होंने मृतक के भाई सुरजीत से बात की तो यह पता चला कि आज से 2 साल पहले मृतक और बलविंदर पड़ोसी हुआ करते थे और उन के बीच अच्छाखासा याराना था. दोनों हम प्याला हम निवाला दोस्त थे. इतना ही नहीं, दोनों का एकदूसरे के घर भी काफी आनाजाना था.

बलविंदर का स्पेयर पार्ट्स का बिजनैस था. बलविंदर की पत्नी कर्मजीत कौर बहुत खूबसूरत थी. लोग उस की एक झलक पाने के लिए तरसते थे. उस का झुकाव अविवाहित मनदीप बंसल की ओर हो गया था. बाद में मनदीप और कर्मजीत के बीच अवैध संबंध बन गए थे, जिस का बलविंदर को जल्द ही पता चल गया था.

तब उस ने अपनी पत्नी को समझाने के साथसाथ मनदीप को भी अपने घर आने से रोक दिया था. मोहल्ले दारी देखते हुए एक टाइम तो मनदीप ने अपने आप को रोक लिया था पर कर्मजीत कौर नहीं मानी. वह कोई न कोई बहाना कर मनदीप से मिलने उस के घर पहुंच जाती थी.

बलविंदर अपनी पत्नी कर्मजीत पर नजर रखे हुए था. उसे पत्नी की एकएक हरकत की जानकारी मिल जाती थी. इस बात को ले कर उस के घर हर समय क्लेश रहने लगा था. बलविंदर और कर्मजीत के बीच रिश्ते अब सामान्य नहीं रह गए थे. उन के रिश्तों और शादीशुदा जिंदगी में जहर घुल चुका था.

बरसों की साध : क्या प्रशांत अपना वादा निभा पाया?

सुहागन से पहले विधवा बनी स्नेहा – भाग 3

राहुल ने अप्रत्यक्ष तौर पर अपने घर वालों को बता भी दिया था कि अमर यादव नाम का एक लड़का स्नेहा को बदनाम करने के एवज में उसे परेशान करता रहता है. घर वालों ने इस बात को हल्के में लिया और समझा दिया कि शादी हो जाने के बाद सब ठीक हो जाएगा. नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस के बाद राहुल भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था.

शादी के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे, अमर को प्रेमिका स्नेहा से जुदाई के दिन साफ नजर आ रहे थे. यह सोच कर गुस्से से पागल हो जाता था कि उस के जीते जी कोई उस के प्यार को उड़ा ले जाए, ये कैसे हो सकता है. क्यों न रास्ते के कांटे को ही जड़ से ही उखाड़ दिया जाए. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

जैसे ही उस के दिमाग में यह विचार आया, खुशी से उछल पड़ा. उस ने अपने दोस्तों को रायल गेस्टहाउस बुला लिया. यह गेस्टहाउस टिब्बा थाने के टिब्बा रोड पर स्थित था, गेस्टहाउस एक डीसीपी (पुलिस अधिकारी) का था, जो इन दिनों उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में तैनात है.

नौकर क्यों समझता था खुद को डीसीपी

अमर यादव मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले का रहने वाला था, लेकिन सालों से वह लुधियाना के शेषपुर मोहल्ले में किराए का मकान ले कर रहता था. उस के मांबाप घर रहते थे. उज्जवल भविष्य की कामना ले कर ही वह दरभंगा से लुधियाना चला था. पहले से वहां उस के कई परिचित रहते थे. उन्हीं के सहारे वह यहां रहने आया था.

देखने में तो वह एकदम दुबलापतला मरियल जैसा लगता था, लेकिन था वह अपराधी प्रवृत्ति वाला. बातबात पर हर किसी से झगड़ जाना उस की आदत थी और अपराधियों और नशे का कारोबार करने वालों से उस की खूब बनती थी.

जिस दिन से डीसीपी के गेस्टहाउस पर काम करना शुरू किया था, खुद को ही अमर डीसीपी समझ बैठा. दूसरों पर डीसीपी जैसा रौब झाड़ता था और इसी गेस्टहाउस के तले नशे का कारोबार भी करता था.

कुछ महीनों पहले भी यह गेस्टहाउस खासी चर्चा का विषय बना था. उस के दोस्तों में अभिषेक राय, अनिकेत ऊर्फ गोलू और मनोज खास थे. अमर जब भी कोई जुर्म करता था तो इन्हीं को अपना हमराज बनाता था. इन के मुंह बंद करने के लिए वह इन पर खर्च भी खूब करता था.

बहरहाल, राहुल को रास्ते से हटाने के लिए अमर ने अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को 14 सितंबर, 2023 को रायल गेस्टहाउस बुलाया और चारों ने आपस में बैठ कर मीटिंग की कि राहुल की हत्या कैसे करनी है और फिर लाश को कैसे ठिकाने लगाना है.

सब कुछ तय हो जाने के बाद 15 सितंबर, 2023 को अमर ने बाजार से लोहे का दांत और रौड खरीद लाया और गेस्टहाउस के एक कमरे में छिपा दिए.

15 सितंबर, 2023 की शाम करीब 5 बजे अमर यादव ने राहुल को फोन किया और उसे मिलने के लिए रायल गेस्टहाउस बुलाया. इस पर राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और उस का फोन काट दिया था. इस के बाद उस ने 3 बार और उसे फोन कर के गेस्टहाउस बुलाया, लेकिन राहुल नहीं गया.

किस वजह से राहुल अपने दुश्मन के पास जाने को मजबूर हुआ

16 सितंबर की शाम को अमर यादव ने फिर से राहुल को फोन किया और बताया कि उस के पास स्नेहा के साथ आपत्तिजनक स्थिति का एक वीडियो है, जो उसे देना चाहता है. आ कर ले जा सकता है.

इस पर राहुल ने कहा, ”ठीक है, वह आज मिलने जरूर आएगा.’’

और फिर ड्यूटी से राहुल जल्दी छुट्टी ले कर घर पहुंच आया. ड्यूटी से निकलते हुए राहुल ने गुलशन को भी फोन कर दिया कि अमर ने फोन कर के बताया है कि स्नेहा की कोई खास वीडियो उस के पास है, आ कर ले जाए. मेरे दोस्त, वो वीडियो किसी तरह से हासिल करनी है तो तुम्हें मेरे साथ उस से मिलने टिब्बा रोड रायल गेस्टहाउस चलना होगा.

साढ़े 8 बजे गुलशन गुप्ता जब घर से अपनी बाइक ले कर निकला तो मम्मी को बता दिया था कि वह राहुल से मिलने उस के घर जा रहा है, थोड़ी देर बाद वह लौट आएगा. कौन जानता था इस के बाद वह कभी नहीं आएगा.थोड़ी देर बाद वह राहुल के सामने खड़ा था. दोनों ने चाय की चुस्की ली और अमर से मिलने टिब्बा रोड पहुंच गए.

सनद रहे, गुलशन ने अपनी बाइक राहुल के घर खड़ी कर दी थी और राहुल अपनी एक्टिवा ले कर गया था. आधे घंटे बाद राहुल और गुलशन रायल गेस्टहाउस के बाहर खड़े थे. उस ने अपनी एक्टिवा गेस्टहाउस के बाहर खड़ी कर दी थी.

”अमर…अमर…’’ की आवाज लगाते हुए राहुल गेस्टहाउस के अंदर दाखिल हुआ तो गुलशन भी उसी के पीछे हो लिया था. 2 मिनट बाद एक लड़का बाहर निकला और राहुल के सामने खड़ा हो गया. उसे अपनी बातों में उलझा लिया. तब तक वहां अभिषेक राय और मनोज भी पहुंच गए और स्नेहा को ले कर राहुल से भिड़ गए.

अभी यह सब हो ही रहा था कि तभी अचानक अमर यादव लोहे का दांत लिए बाहर निकला और राहुल की गरदन पर जोरदार तरीके से वार किया. वहां कटे वृक्ष के समान हवा में लहराते हुए धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. उस के बाद अभिषेक उसे लोहे की रौड से मारता गया.

राहुल को देख कर अमर गुस्से से इतना पागल हो गया था कि लोहे के दांत उस के बाईं आंख में घुसेड़ कर आंख बाहर निकाल दी थी. राहुल मर चुका था. उस के सिर से खून बह रहा था. यह देख गुलशन सन्न रह गया और वहां से भागने लगा लेकिन चारों ने उसे घेर लिया और उसे भी मार डाला. अमर यादव उसे नहीं मारना चाहता था. चूंकि पूरी घटना गुलशन की आंखों के सामने घटी थी और हत्या का वह एकमात्र चश्मदीद गवाह था, इसलिए अमर और उस के साथियों ने उसे भी उसी लोहे के दांत से मौत के घाट उतार दिया था.

इस के बाद चारों ने मिल कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट दीं. राहुल की ही एक्टिवा पर दोनों की लाश बारीबारी से सेंट्रल जेल के ताजपुर रोड स्थित कक्का धौला बुड्ढा नाले में फेंक आए.

फिर गेस्टहाउस में फर्श पर फैले खून को पानी से धो कर सारे सबूत मिटा दिए और राहुल की एक्टिवा टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास खड़ी कर दी. स्विच औफ कर के उस के मोबाइल फोन को भी गाड़ी के बगल में गिरा दिया.

अमर वहीं गेस्टहाउस में ही रुका रहा जबकि अभिषेक राय, मनोज और अनिकेत उर्फ गोलू अपने घर शेषपुर निकल गए. घर जाते हुए तीनों ने गुलशन के मोबाइल को वर्धमान कालोनी में स्विच औफ कर के फेंक दिया था.

इश्क की जंग में पागल प्रेमी अमर यादव इस कदर हैवान बन चुका था कि उसे स्नेहा के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था जबकि स्नेहा ने उस से अपना संबंध तोड़ लिया था. वह एक नई जिंदगी बसाने का हसीन ख्वाब देख रही थी, लेकिन सुहागन बनने से पहले ही विधवा बन गई.

खैर, कथा लिखे जाने तक पुलिस चारों आरोपियों अमर यादव, अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी और हत्या में प्रयुक्त लोहे की दांत, रौड, 2 मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे. पुलिस ने अपहरण की धारा को 302, 201, 120बी व 34 आईपीसी में तरमीम कर दिया.

लिवइन पार्टनर का यह कैसा लव – भाग 2

किस ने मारी थी रिया को गोली

थोड़ी देर बाद अमन ने बोझिल मन से दोनों से विदा ली और अपने घर चला गया. उस के जाते ही दोनों फिर उलझ गए. तूतूमैंमैं होने लगी. दोनों एकदूसरे पर आरोप मढऩे लगे कि उन के आपसी झगड़े के बीच अमन को क्यों लाया? इसी बात पर उन दोनों में काफी समय तब बहस होती रही.

वे चीखचीख कर बातें कर रहे थे. उन की आवाजें अपार्टमेंट के दूसरे फ्लैटों में भी जा रही थीं, लेकिन उन के पास कोई भी ऐसा नहीं था, जो उन्हें झगडऩे से रोक सके. उन को शांत कर सके या उन्हें समझाबुझा सके. पड़ोसियों के लिए तो उन के झगड़े आए दिन की बात हो चुकी थी.

कुछ देर बाद उसी फ्लैट से गोली चलने का आवाज आई और अचानक एकदम से शांति छा गई. अपार्टमेंट के लोग भी एकदम से चौंक गए थे. किसी ने अपने घरों की खिड़कियां खोल लीं तो कोई तुरंत बालकनी में आ गए. उन में से कुछ लोग भाग कर उस फ्लैट के दरवाजे पर भी आए, लेकिन वहां उन के पैर ठिठक गए, क्योंकि उन के फ्लैट नंबर 203 पर बाहर से ताला लगा हुआ था.

उन्हें यह समझ में नहीं आया कि थोड़ी देर पहले इस फ्लैट से आवाजें आ रही थीं तो बाहर ताला कैसे लगा है? अंदर गोली चलने की वारदात हुई. उस में कोई जख्मी हो सकता है या किसी की मौत भी हो सकती है? थोड़ी देर पहले तो वहां 3 लोग थे. उन्होंने तुरंत पुलिस को खबर कर दी. जबकि कुछ पड़ोसियों के पास रिया के मायके का मोबाइल नंबर था. उन्होंने तुरंत इस की सूचना उन्हें दे दी.

थोड़े समय में ही पुलिस की टीम पहुंच गई. उन में एसएचओ अतुल कुमार श्रीवास्तव, एसएसआई ज्ञानेंद्र कुमार, एसआई दीपक कुमार पांडेय, नरेंद्र कुमार कनौजिया, संतोष कुमार गौड़ और महिला सिपाही दीपा चौधरी थी.

एसएचओ अतुल कुमार के सामने फ्लैट का ताला तोड़ा गया. पुलिस टीम ड्राइंगरूम होती हुई बेडरूम में चली गई. रिया फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी. चारों ओर खून फैल चुका था. पुलिस की शुरुआती जांच में पता चल गया कि रिया की मौत हो चुकी है. उसे 2 गोलियां मारी गई थीं. एक माथे पर, जबकि दूसरी सीने पर.

ऋषभ क्यों बना प्रेमिका का कातिल

घटनास्थल का मुआयना करने के बाद इंसपेक्टर श्रीवास्तव ने इस की सूचना डीसीपी विनीत जायसवाल और एडीसीपी (दक्षिणी) शशांक सिंह को दे दी. वे फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्हें वहां 4 जिंदा कारतूस और 4 खोखे भी मिले. पुलिस ने रिया के कमरे की गहन खोजबीन की. इसी बीच लखनऊ सदर कैंट निवासी रिया के पापा शिवशक्ति गुप्ता भी पत्नी गीता गुप्ता के साथ वहां पहुंच गए.

उन्होंने पुलिस को बताया कि उन की बेटी रिया विभूतिखंड स्थित एक कंपनी में काम करती थी. वहीं उस की मुलाकात ऋषभ सिंह से हुई थी. वह उसी के साथ रहती थी. उस वक्त फ्लैट में कोई नहीं था. निश्चित तौर पर ऋषभ ही रिया की मौत का गुनहगार हो और उस की हत्या के बाद फरार हो गया हो.

पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इसी के साथ 18 अगस्त, 2023 को भादंवि की धारा 302, आम्र्स एक्ट की धारा 3/25 का मामला दर्ज कर लिया गया.

मामले की विवेचना का कार्य इंसपेक्टर ने संभाल लिया. उन की पहली काररवाई ऋषभ को गिरफ्तार करने की थी. इस में पुलिस को जल्द सफलता मिल गई. वह लुलु मौल के पास पार्क में दबोच लिया गया.

उसे थाने ला कर पूछताछ की तो बगैर किसी विरोध या नाटकीयता के ऋषभ सिंह ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस का कारण उस ने रिया की बेवफाई बताया. इस मामले में ऋषभ के दोस्त अमनजीत का नाम भी शामिल हो गया था.

पूछताछ में उस ने रिया की हत्या की जो कहानी बताई, उस में चरित्रहीनता, लिवइन रिलेशन में रहते हुए जीवन को अपनी मरजी से जीने की जिज्ञासा भी उजागर हो गई. वह इस प्रकार से सामने आई—

क्यों बहके रिया के पैर

रिया लखनऊ कैंट के ओल्ड गोता बाजार स्थित मकान में रहने वाले शिवशक्ति गुप्ता की बेटी थी. गुप्ता का एक छोटा परिवार था. पत्नी के अलावा इकलौती संतान के रूप में रिया ही थी. गुप्ता बीमार रहते थे, जिस से परिवार की जिम्मेदारी पत्नी गीता पर आ गई थी.

मम्मी की देखरेख में रिया ने पढ़ाई की थी, लेकिन वह फैशनपरस्त थी. बिंदास किस्म का आचरण और चालचलन था. कोई भी उस की अदा पर मर मिटने को तत्पर रहता था. बोलचाल से ले कर चलनेफिरने तक से सैक्स अपील का एहसास करवा देती थी.

उस पर सोशल मीडिया का भी चस्का लग चुका था. फेसबुक पर दोस्ती करना, रील बनाना और फैंसी कपड़ों में इंस्टाग्राम पर फोटो और वीडियो पोस्ट करने में माहिर थी.

जबकि उस की मम्मी उसे समाज की मानमर्यादा को ध्यान में रख कर रहने की सलाह दिया करती थीं. मम्मी की हर हिदायत को वह बेवजह की रोकटोक और लड़की पर अंकुश लगाना ही समझती थी. उसे हमेशा लगता था कि मम्मी उस की आजादी में खलल डाल रही हैं.

धीरेधीरे मम्मी भी उस की आदतों से ऊब गई और उसे अपने हाल पर छोड़ दिया. अपनी जिद, पसंद और पारिवारिक परिस्थितियों के चलते रिया काफी स्वच्छंद हो गई थी. खुलेपन की जिंदगी के मजे लेने को आतुर रहती थी. बहुत जल्द ही उसे एक चस्का नए लोगों से संपर्क बनाने और उन से दोस्ती करने का भी लग गया था.

वह कइयों से फोन पर मीठीमीठी बातें करने लगी थी. इसी बीच 2019 में उस की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी लग गई. कुछ दिनों में ही उस ने साथ काम करने वाले कई युवकों को अपना दीवाना बना लिया था. उन्हीं में पुष्पेंद्र सिंह बत्रा भी था. वह सदर कैंट का रहने वाला था.

रिया उस के साथ घुलमिल गई. पुष्पेंद्र उसे अपना दिल दे बैठा. रिया भी उसे बेहद प्यार करने लगी. बहुत जल्द ही उन्होंने शादी करने का फैसला भी कर लिया. उन की लवमैरिज को घर वालों ने भी स्वीकार लिया.

इसे संयोग ही कहें कि उन की शादी के कुछ दिनों बाद ही कोरोना का दौर आ गया और लौकडाउन का असर उन की जिंदगी पर भी पडऩे लगा. वैवाहिक जिंदगी की मिठास में कमी आने लगी. खासकर रिया की आजादी और मौजमस्ती की स्वच्छंद रहने की आदतों पर इस का असर पड़ गया.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 2

फार्महाउस के अहाते पर कांटेदार तार लगा हुआ था. अंदर दो मंजिला खूबसूरत मकान बना था जो बाहर से ही दिख रहा था. मैं बेहिचक गेट खोल कर अंदर दाखिल हो गया. अंदर एक कोने में हैंडपंप लगा था. मैं ने बेताब हो कर पानी निकाला और मुंह हाथ धो कर जीभर के पानी पिया. फिर वहीं रखी एक बाल्टी भर कर घोड़े के आगे रख दी.

फार्महाउस में मक्की की फसल लगी थी. हैंडपंप के पास ही भुट्टे के छिलके और पौधों के तने पड़े थे. मैं ने घोड़े को उस ढेर के पास खड़ा कर दिया ताकि वह पेट भर सके. मैं खुद भी भुट्टा तोड़ कर खाने लगा ताकि कुछ सुकून मिले.

अभी मैं भुट्टा खा ही रहा था कि घोड़े के हिनहिनाने की आवाज सुन मैं ने मुड़ कर देखा. एक हट्टाकट्टा मजबूत जिस्म का व्यक्ति मेरे ऊपर बंदूक ताने खड़ा था मुझे लगा जैसे अभी गोली चलेगी और मेरा काम तमाम हो जाएगा. वह मुझे घूरते हुए बोला, ‘‘कौन हो तुम? बिना इजाजत अंदर कैसे आ गए?’’

मैं ने उसे गौर से देखा, तांबे सा चमकता रंग, भूरे घुंघराले बाल, जो गर्दन तक लटके हुए थे. उस के चेहरे और जिस्म से ऐसी मर्दाना खूबसूरती नुमाया हो रही थी जो औरतों के लिए खास कशिश रखती है.

मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत प्यासा था, पानी की तलाश में यहां आ गया. मैं किसी गलत मकसद से यहां नहीं आया हूं.’’

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, शमशेर.’’

उस ने मुझे घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम कहां से आ रहे हो? जाना कहां है?’’

मैं ने अपने शहर का गलत नाम बता कर कहा, ‘‘मैं काम की तलाश में निकला हूं. अगर आप को मेरा आना नागवार लगा है तो मैं तुरंत वापस चला जाता हूं. आसपास कोई आश्रय ढूंढ़ लूंगा.’’ लेकिन मेरी बात से वह संतुष्ट नहीं हुआ और डपट कर बोला, ‘‘तुम्हारे पास कोई हथियार हो तो चुपचप निकाल कर दे दो.’’

मजबूरी थी, मैं ने अपना कट्टा और चाकू उसे दे दिया. इस के बाद उस के तेवर कुछ नरम पड़े. उस ने बंदूक से इशारा करते हुए कहा, ‘‘अपने घोड़े को इस पेड़ से बांध दो ताकि फसल में न घुसे और अंदर चलो.’’

मैं ने घोड़ा बांधा और उस के साथ मकान के अंदर दाखिल हो गया. मकान अंदर से बहुत अच्छा था, खूबसूरत फर्नीचर से सजा हुआ. पर इस से भी खूबसूरत वह औरत थी जो वहां मौजूद थी. उस ने खुला ढीला सा सुर्ख गाउन पहन रखा था. गुलाबी बेदाग रंगत, चमकती नीली आंखें, सुडौल जिस्म, उस की नीली आंखें बड़ी सर्द सी लगी. औरत और उस व्यक्ति का हुलिया यह बताने के लिए काफी था कि कुछ देर पहले दोनों अंदर किस तरह की स्थिति में रहे होंगे.

औरत ने उस व्यक्ति की तरफ देख कर कहा, ‘‘इसे अंदर लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी जानेमन.’’ उस ने मुसकुरा कर कहा और औरत का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में चला गया. घर की सजावट और रहनसहन से लग रहा था कि वे काफी अमीर लोग हैं.

वह व्यक्ति मेरे हथियार अंदर रख कर बाहर आया तो उस के चेहरे पर मुसकुराहट और संतोष के भाव थे. अब उस का अंदाज ही बदला हुआ था. उस ने नरम लहजे में मुझ से कहा, ‘‘माफ करना शमशेर, हम लोग चूंकि वीराने में रहते हैं इसलिए जल्दी से किसी पर एतबार नहीं करते. कस्बा अजीरा भी यहां से थोड़ी दूरी पर है.’’

उस की बात सुन कर मैं ने इत्मीनान की सांस लेते हुए कहा, ‘‘यानि अब आप को यकीन आ गया कि मैं जरूरतमंद हूं.’’

वह कुछ नहीं बोला तो मैं ने कहा, ‘‘खैर, आप का शुक्रिया. अब अगर आप मेरे हथियार मुझे लौटा दें तो मैं जाना चाहूंगा.’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है? बैठो अभी.’’

इस बीच वह औरत भी ढंग के कपडे़ पहन कर आ गई थी. नीले रंग के सलवार कुर्ते में वह गजब ढा रही थी. इस से ज्यादा हसीन औरत मैं ने पहले कभी नहीं देखी थी. मैं भले ही सब तरह के गुनाहों में डूबा था, पर औरत से दूर रहा था. पर उस औरत को देख कर मेरा दिल अजब से अंदाज में धड़कने लगा था.

औरत ने मुसकुरा कर कहा, ‘‘खाने का वक्त है, मेरे हाथ का खाना तुम्हें पसंद आएगा.’’

मैं भूख से बेहाल था. मैं ने मुसकरा कर उस की पेशकश कुबूल कर ली.’’ वह व्यक्ति बोला. ‘‘मेरा नाम आहन है. ये मेरी बीवी तूबा है.’’

मैं ने खुशदिली से कहा, ‘‘इतना खूबसूरत जोड़ा मैं ने पहली बार देखा है. आप जैसे लोगों की मेहमाननवाजी मेरी खुशनसीबी है.’’

तारीफ सुन कर तूबा के गाल सुर्ख हो गए. वह खाना लगाने अंदर चली गई. इस बीच आहन शराब के 2 पेग बना लाया. शराब बड़ी जायकेदार थी, जल्द ही हम दोनों अच्छे दोस्तों की तररह पीते पीते बातें करने लगे. उस ने बताया कि वह फार्म में मक्की, गेहूं और सब्जियां उगाता है. मैं ने उस से बच्चों के बारे में पूछा तो वह कहकहा लाते हुए बोला, ‘‘फिलहाल हम दोनों अकेले हैं और जिंदगी का आनंद ले रहे हैं. बच्चे तो हो ही जाएंगे, पर ये हसीन पल फिर कहां आएंगे.’’

खाना बेहद मजेदार था, मटन टिक्के बड़े लजीज लगे. मैं ने जी भर खाया. खानेपीने के बाद मैं ने उस से करीबी शहर के बारे में पूछा.

‘‘फाटक के सामने की सड़क पर बाईं तरफ सीधे चले जाओ. रात तक तुम बहादुरगढ़ पहुंच जाओगे. वह एक बड़ा शहर है, वहां काम मिल जाएगा.’’ उस ने मुझे रास्ता बताया.

मैं ने उस से अपने हथियार मांग लिए जिन्हें देने में उस ने कोई आनाकानी नहीं की. मैं ने हथियार और पानी साथ रख लिया. घोड़ा भी खापी कर ताजादम हो चुका था. मैं ने अपना घोड़ा उस के बताए रास्ते पर डाल दिया. सूरज की तपिश कम हो चुकी थी. मैं दोढाई घंटे का सफर तय कर चुका था. अचानक मेरे पेट में तेज दर्द उठा. ऐसा लगा जैसे आंतें फटी जा रही हों. निस्संदेह वह जानलेवा दर्द था. तभी एकाएक मुझे उबकाई के साथ उलटी हो गई. सारा खायापीया बाहर आ गया.

उल्टी में खून देख कर मैं डर गया. उल्टी के बाद थोड़ा आराम जरूर मिला पर कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही थी, सिर चकरा रहा था. घोड़े पर बैठे रहना मुश्किल हो रहा था. दोनों हाथों से घोड़े की गरदन पकड़ कर मैं उस पर गिर सा गया. मेरा वफादार घोड़ा खुद ब खुद आगे बढ़ता रहा. पता नहीं मैं कब होशो हवास से बेगाना हो गया.

‘‘ऐ, होश में आओ.’’ किसी ने मेरे गाल पर थपकी मार कर कहा तो धीरेधीरे मेरी आंखें खुल गईं. मुझे अपने आसपास रोशनी सी महसूस हुई. कुछ देर में मुझे होश आ गया. उस वक्त मैं एक बग्घी में था जिस की छत पर रेशम का कपड़ा मढ़ा हुआ था. जो चेहरा मेरे सामने आया वह किसी अधेड़ उम्र के आदमी का था. हल्की खिचड़ी दाढ़ी, गोरा रंग, नरम चेहरा, सोने के फ्रेम का चश्मा. उस आदमी ने मुझ से बड़े प्यार से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही है. मैं कहां हूं?’’

उस ने जवाब में कहा, ‘‘मैं डा. जव्वाद हूं. तुम्हें किसी ने जहर दिया था. शुक्र है कि मैं वक्त पर पहुंच गया और तुम बच गए. मैं ने ही तुम्हारा इलाज किया है. गनीमत रही कि तुम्हें उल्टी हो गई थी जिस से जहर का असर कम हो गया था और मेरी दवा की खुराक कारगर साबित हुई. बच गए जनाब तुम.’’

मैं ने हैरानी से पूछा, ‘‘मुझे जहर दिया गया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे पेट में जहर था. एक जंगली जहरीली बूटी है जिस का पाउडर जहर का काम करता है. उस का कोई खास स्वाद या गंध नहीं होती. पानी में डालो तो हलका बादामी रंग झलकता है, शराब या किसी शरबत में तो पता भी नहीं चलता. खासियत यह है कि इस जड़ी को खाने के 2 ढाई घंटे बाद असर होता है.’’

मेरा दिमाग आहन द्वारा खाने के समय दी गई शराब की तरफ चला गया. शराब तो हम तीनों ने पी थी पर शायद उस ने मेरे गिलास में जहरीला पाउडर मिला दिया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि मुझे जहर दिया गया है?’’

‘‘ये तुम्हारी खुशनसीबी थी. ये जहरीली बूटी इसी इलाके में ही पाई जाती है और मैं इस के इलाज का एक्सपर्ट हूं. तुम्हारी कमीज पर जो उल्टी गिरी थी उस में खून भी था. उसे देख कर मुझे पता चल गया कि तुम्हें जहर दिया गया है. इसलिए मैं ने फौरन इलाज शुरू कर दिया था.’’

मैं सोचने लगा कि सचमुच यह इत्तेफाक ही है कि इस वीराने में ये रहमदिल डाक्टर मिल गया और उस के इलाज से मेरी जान बच गई. वरना मौत यकीनी थी. डाक्टर ने मुझे सोच में पड़ा देख पूछा, ‘‘तुम जा कहां रहे थे?’’

‘‘बहादुरगढ़.’’

‘‘पर तुम तो बहादुरगढ़ की उल्टी दिशा में सफर कर रहे थे?’’

‘‘या तो मेरा घोड़ा गलत दिशा में निकल आया होगा या फिर बताने वाले ने गलत दिशा बताई होगी.’’

मुझे अपने घोड़े की याद आई तो मैं ने पूछा, ‘‘मेरा घोड़ा कहां है?’’

‘‘वह देखो पीछे बंधा है.’’ उस ने इशारा कर के कहा, ‘‘दाना खा रहा है.’’ अपने घोड़े को देख मुझे बड़ी तसल्ली मिली.

सुहागन से पहले विधवा बनी स्नेहा – भाग 2

पुलिस ने बरामद कीं दोनों दोस्तों की लाशें

फिर देर किस बात की थी. पुलिस रायल गेस्टहाउस पहुंच गई, जो मौके से कुछ ही दूरी पर स्थित था. गेस्टहाउस पहुंच कर इंसपेक्टर सिंह अमर यादव को पूछते हुए सीधे अंदर घुस गए. मैनेजर वाले कमरे में एक 23 वर्षीय सांवले रंग का दुबलापतला गंदलुम कपड़े पहने युवक बैठा मिला. सामने पुलिस को देख उस को पसीना छूट गया.

”अमर यादव तुम हो?’’ गुर्राते हुए इंसपेक्टर सिंह बोले.

”हां जी सर, मैं ही अमर यादव हूं.’’ बेहद सम्मानित तरीके से उस ने जवाब दिया था, ”बात क्या है, क्यों मुझे खोज रहे हैं.’’

”अभी पता चल जाएगा बेटा. राहुल और गुलशन कहां हैं? तुम ने कहां छिपा कर दोनों को रखा है? सीधे तरीके से बता दे वरना…’’

”बताता हूं सर, बताता हूं. दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं,’’ बिना किसी डर के वह आगे कहता गया, ”मैं ने अपने साथियों के साथ मिल कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया है और मैं करता भी क्या. मेरे पास इस के अलावा कोई और रास्ता भी नहीं बचा था.

”राहुल मेरे प्यार को मुझ से छीनने की कोशिश कर रहा था, इसलिए मैं ने अपने रास्ते का कांटा सदा के लिए हटा दिया. यहीं नहीं जो जो भी मेरे प्यार के रास्ते का रोड़ा बनेगा, मैं उसे ऐसे ही मिटाता रहूंगा.’’ और फिर अमर ने पूरी पूरी घटना विस्तार से उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने अमर यादव को गिरफ्तार कर लिया और उसी की निशानदेही पर 3 और आरोपियों अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और नाबालिग मनोज को शेषपुर से गिरफ्तार कर लिया. चारों को हिरासत में ले कर पुलिस ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल के पास बहने वाले कक्का धौला बुड्ढा नाला (भामियां) पास पहुंची, जहां आरोपियों ने हत्या कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट कर बोरे में भर कर फेंकी थीं.

थोड़ी मशक्कत के बाद राहुल और गुलशन गुप्ता की लाशें बरामद कर ली थीं. इस के बाद दोहरे हत्याकांड की घटना पल भर में समूचे लुधियाना में फैल गई थी. घटना से जिले में सनसनी फैल गई थी. लोगबाग कानूनव्यवस्था पर सवाल उठाने लगे थे.

खैर, इस घटना की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू, डीसीपी (ग्रामीण) जसकिरनजीत सिंह तेजा, एडीसीपी (सिटी-2) सुहैल कासिम मीर और एसीपी (इंडस्ट्रियल एरिया-15) संदीप बधेरा मौके पर पहुंच गए थे.

खुशियां कैसे बदलीं मातम में

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया. दोनों में से राहुल की लाश विकृत हो चुकी थी. हत्यारों ने धारदार हथियार से उस की गरदन पर हमला किया था. उसे इतनी बेरहमी से मारा था कि उस की बाईं आंख बाहर निकल गई थी.

मौके पर मौजूद मृतक राहुल के पापा ने दिल पर पत्थर रख कर बेटे की पहचान कर ली थी. 4 महीने बाद उस की शादी होने वाली थी, उस से पहले ही वह दुनिया से विदा हो गया. घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गई थीं. घर वालों का रोरो कर हाल बुरा हुए जा रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए लुधियाना जिला अस्पताल भेज दिया और चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई कड़ी पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी पुलिस के सामने आई, वह मंगेतर के बीच मोहब्बत की जंग पर रची हुई थी.

25 वर्षीय राहुल सिंह मम्मीपापा का इकलौता था. वही मांबाप के आंखों का नूर था और उन के जीने का सहारा भी. वह जवान हो चुका था और एक प्राइवेट कंपनी में एचआर की नौकरी भी करता था. अच्छा खासा कमाता था.

चूंकि राहुल जवान भी हो चुका था और कमा भी रहा था, इसलिए पापा अशोक सिंह ने सोचा कि बेटे की शादी वादी हो जाए. घर में बहू आ जाएगी तो उस की मम्मी को भी सहारा हो जाएगा. यही सोच कर अशोक सिंह ने अपने जानपहचान और रिश्तेदारों के बीच में बेटे की शादी की बात चला दी थी कि कोई अच्छी और पढ़ीलिखी बहू मिले जो घरगृहस्थी संभाल सके.

जल्द ही राहुल के लिए कई रिश्ते आए. उन में से जमालपुर थाना क्षेत्र स्थित मुंडिया कलां के रहने वाले अजय सिंह की बेटी स्नेहा घर वालों को पसंद आ गई. खुद राहुल ने भी उसे पसंद किया था.

स्नेहा पढ़ीलिखी और सुंदर थी. 2 बहनों और एक भाई में वह सब से बड़ी थी. राहुल और स्नेहा की शादी पक्की हो गई और फरवरी 2023 में दोनों की मंगनी भी हो गई और शादी फरवरी 2024 में होने की बात पक्की हुई.

इंस्टाग्राम के किस फोटो को ले कर हुई कलह

अपनी शादी तय होने से राहुल बहुत खुश था. अपने दिल का हर राज अपने खास दोस्तों गुलशन और सूरज के बीच शेयर करता था. मंगनी के दिन राहुल ने स्नेहा को देखा तो अपनी सुधबुध खो दी थी. वह थी ही इतनी सुंदर. उस की सुंदरता पर वह फिदा था.

उस के बाद दोनों के बीच फोन पर अकसर दिल की बातें होती रहती थीं. वह अपने दिल की बात स्नेहा से करता और स्नेहा अपने दिल की बातें मंगेतर से करती. धीरेधीरे दोनों के बीच प्यार हो गया था और वे चाहते थे कि उन का मिलन जल्द से जल्द हो जाए.

लेकिन उन का मिलन होने में अभी 4 महीने बचे थे. जैसे तैसे वे अपने दिल पर काबू किए थे. वह जून-जुलाई, 2023 का महीना रहा होगा, जब राहुल के परिवार पर दुखों के बादल मंडराने लगे थे.

एक दिन की बात थी. इंस्टाग्राम पर गुलशन अपना अकाउंट देख रहा था. अचानक उस की एक नजर ठहर गई और 2 फोटो देख कर वह चौंक गया.फोटो में स्नेहा किसी अमर यादव के साथ गलबहियों में चिपकी पड़ी थी. फिर उस ने फोटो का स्क्रीनशौट ले कर सेव कर लिया और सूरज को दिखाया. फोटो देख कर वह हैरान था, ये तो राहुल की होने वाली पत्नी स्नेहा है. उस के पीठ पीछे क्या गुल खिलाया जा रहा है. दोनों ने राहुल से सारी बातें साफसाफ बता दीं.

फिर राहुल ने समझदारी का परिचय देते हुए इंस्टाग्राम पर स्नेहा का अकाउंट चैक किया तो बात सच साबित हो गई थी. इस के बाद उस ने स्नेहा से बात की.

स्नेहा अपनी ओर से सफाई देती हुई बोली, ”आप ने जिस फोटो को देखा था, वो उस का अतीत था. कभी अमर नाम के लड़के से वह प्यार करती थी, लेकिन शादी पक्की होने के बाद से उस ने उस से अपनी ओर से रिश्ता तोड़ लिया है. वह अब अमर से नहीं मिलती. पुरानी बातों को मुद्दा बना कर वह उसे हर समय परेशान करता रहता है.’’

पूर्व प्रेमी और मंगेतर के बीच बढ़ता गया विवाद

राहुल को अपनी मंगेतर स्नेहा की बातों पर पूरा विश्वास हो गया था कि वह जो कह रही है, सच कह रही है. उस के बाद राहुल ने अमर यादव को सावधान करते हुए पोस्ट लिखा कि स्नेहा उस की होने वाली पत्नी है. आने वाले साल 2024 में हमारी शादी होनी है. तुम उस का पीछा करना छोड़ दो. उसे बदनाम न करो वरना इस का परिणाम बुरा हो सकता है.

इस पर अमर यादव ने भी पलट कर जवाब दिया था, ”स्नेहा उस का प्यार है. उसे वह टूट कर प्यार करता है. तेरे कारण उस ने उस से बात करनी बंद कर दी है और दूरदूर रहती है. मुझ से इस की जुदाई, उस की तन्हाई जीने नहीं देती. मेरे और मेरे प्यार के बीच में जो भी रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, उसे हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूंगा और तू भी समझ ले, अभी वक्त है हम दोनों के बीच से हट जा, उसी में तेरी भलाई है. नहीं तो मैं किस हद तक चला जाऊंगा, मुझे खुद भी नहीं पता.’’

उस दिन के बाद राहुल और अमर यादव के बीच स्नेहा को ले कर वर्चस्व की टेढ़ी लकीर खिंच गई थी. बारबार राहुल इंस्टाग्राम पर फोन कर के स्नेहा से दूर रहने को धमकाता था. वहीं अमर भी स्नेहा से दूर हट जाने को धमकाता था.

लिवइन पार्टनर का यह कैसा लव – भाग 1

ऋषभ सिंह और रिया के बीच 2-4 मुलाकातों में ही प्यार के बीज अंकुरित हो गए. ऋषभ रहने वाला प्रतापगढ़ का था, लेकिन लखनऊ में किराए पर फ्लैट ले कर पढ़ाई कर रहा था. उस के पिता सिंचाई विभाग में क्लर्क थे और बड़ा भाई प्रतापगढ़ में ही एक प्राइवेट स्कूल चलाता था. ऋषभ ने एमएससी तक की पढ़ाई की थी और एसएससी की तैयारी कर रहा था.

रिया और ऋषभ के बीच जैसेजैसे प्यार गहराता गया, वे एकांत में भी मिलने लगे. रिया ऋषभ के कमरे पर भी आनेजाने लगी. उसी दौरान ऋषभ को रिया के शराब पीने की आदत के बारे में भी मालूम हुआ. रिया शराब पीने के लिए क्लब जाती थी. ऋषभ को भी शराब पीने का शौक था, इसलिए ऋषभ ने उस की इस कमजोरी में अपने शौक को शामिल कर दिया. गाहे बगाहे दोनों शराब के लिए साथसाथ क्लब जाने लगे.

दोनों के एक साथ पीने पिलाने का एक असर यह हुआ कि वे एकदूसरे की अच्छाइयों और कमजोरियों से भी वाकिफ हो गए. वे आपस में बेहद प्यार करने लगे थे. रिया ने ऋषभ में एक जिम्मेदार मर्द की खूबियों के अलावा भविष्य में सरकारी नौकरीशुदा मर्द की पत्नी होने के सपने देखे. ऋषभ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए प्रतापगढ़ से लखनऊ आ गया था. वहीं के सुशांत गोल्फ सिटी में स्थित एक फ्लैट में रह रहा था.

बात 17 अगस्त, 2023 की शाम की है. करीब 3 बजे थे. उस दिन उस का मन कुछ उखड़ाउखड़ा था, लेकिन अपने दोस्त अमनजीत को ले कर फ्लैट में आया था. कालबेल दबाने वाला ही था कि उसे ध्यान आया कि वह तो पिछले कई दिनों से खराब है. अचानक उस का एक हाथ हैंडल पर चला गया और दूसरे हाथ से दरवाजे पर थपकी देने लगा. हैंडल के घूमते ही दरवाजा खुल गया. उस ने सोचा कि शायद भीतर की कुंडी ठीक से नहीं लगी होगी.

फ्लैट के अंदर पैर रखते ही उस ने दोस्त को ड्राइंगरूम में बिठा दिया और ‘रिया… रिया’ आवाज लगाई. कुछ सेकेंड तक रिया की आवाज नहीं आई, तब वह बोला, ”रिया! कहां हो तुम? देखो, आज मेरे साथ कौन आया है?’‘

फिर भी रिया की कोई आवाज नहीं आई. तब अमनजीत की ओर मुंह कर धीरे से बोला, ”शायद अपने कमरे में सो रही है…देखता हूं.’‘

इसी के साथ वह सीधा रिया के बेडरूम में चला गया. वहां रिया को बेसुध सोई हुई देख कर उसे नींद से जगाना ठीक नहीं समझा. जबकि सच तो यह था कि वह उसे जगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था.

इस का कारण बीती रात रिया के साथ हुई उस की तीखी नोकझोंक थी. साधारण सी बात पर शुरू हुई नोकझोंक में जितना ऋषभ ने रिया को भलाबुरा कहा था, उस से कहीं अधिक जलीकटी बातें रिया ने सुना दी थीं. एक तरह से रिया ने अपना पूरा गुस्सा उस पर उतार दिया था. इस कारण वह रात को न तो ठीक से खाना खा पाया था और न ही सो पाया था.

सुबह होने पर ऋषभ ने रिया को नाराजगी के मूड में ही पाया. गुमसुम बनी रसोई का काम निपटाने लगी थी. इस दौरान न तो ऋषभ ने रिया से एक भी शब्द बोला और न ही रिया ने अपनी जुबान खोली. उस ने अनमने भाव से नाश्ता किया.

ऋषभ बीती रात से ले कर सुबह तक की यादों से तब बाहर निकला, जब अमन ने आवाज लगाई, ”ऋषभ! क्या हुआ सब ठीक तो है न! रिया कहीं गई है क्या?’‘

”अरे नहीं यार, अभी वह सो रही है, लगता है गहरी नींद में है! किसी को नींद से जगाना ठीक नहीं होता.’‘ ऋषभ वहीं से तेज आवाज में बोला.

”कोई बात नहीं तुम यहां आ जाओ.’‘ अमन बोला और ऋषभ ने बेडरूम का दरवाजा खींच कर बंद कर दिया. संयोग से दरवाजे के हैंडल पर उस का हाथ तेजी से लग गया और दरवाजा खट की तेज आवाज के साथ बंद हो गया. इसी खटाक की आवाज में रिया की नींद भी खुल गई.

रिया और ऋषभ में क्यों होता था झगड़ा

ऋषभ ड्राइंगरूम में अमन के पास आ गया था. कुछ सेकेंड में ही रिया भी आंखें मलती हुई किचन में चली गई थी. किचन में जाते हुए उस की नजर अमनजीत पर भी पड़ गई थी. अमनजीत ने भी उसे देख लिया था और तुरंत बोल पड़ा, ”भाभीजी नमस्ते! कैसी हैं!’‘

थोड़ी देर में ही रिया ने एक ट्रे में पानी भरे 2 गिलास ला कर अमनजीत की ओर बढ़ा दिए थे. अमनजीत ने भी पानी पी कर खाली गिलास ट्रे में रख दिया था.

रिया अमनजीत से परिचित थी और यह भी जानती थी कि वह ऋषभ का जिगरी दोस्त है. इस कारण उस के मानसम्मान में कोई कमी नहीं रखती थी. अमन से औपचारिक बातें करने के बाद दोबारा किचन में चली गई.

कुछ मिनटों में ही रिया अमन और ऋषभ के पास 3 कप चाय ट्रे में ले कर उन के सामने स्टूल पर बैठ गई थी. वास्तव में अमन को ऋषभ के साथ आया देख कर रिया कुछ अच्छा महसूस कर रही थी. वह भी बीती रात से ले कर कुछ समय पहले तक के मानसिक तनाव से उबरना चाह रही थी.

चाय का कप उठा कर मुसकराते हुए अमन की ओर बढ़ा दिया. अमन कप पकड़ता हुआ बोला, ”भाभीजी, आप ठीक तो हैं न! कैसा हाल बना रखा है, लगता है सारी रात ठीक से सो नहीं पाईं?’‘

रिया चुप बनी रही. ऋषभ भी चुप रहा. कुछ सेकेंड बाद रिया धीमी आवाज में बोली, ”यह अपने दोस्त से पूछो, तुम्हारे सामने तो बैठे हैं.’‘

”क्यों भाई ऋषभ,’‘ अमन दोस्त की ओर मुखातिब हो कर बोला.

”अरे, यह क्या बोलेंगे. इन्होंने तो मेरी जिंदगी में भूचाल ला दिया है…अब बाकी बचा ही क्या है. इसे तुम ही समझाओ.’‘ रिया थोड़ी तल्ख आवाज में बोली.

”क्या बात हो गई. तुम दोनों के बीच फिर कुछ तकरार हुई है क्या?’‘ अमनजीत बोला.

”तकरार की बात करते हो, युद्ध हुआ है युद्ध. बातों का युद्ध.’‘ रिया नाराजगी के साथ बोली.

थोड़ी सांस ले कर फिर बोलना शुरू किया, ”कई साल मेरे साथ गुजारने के बाद कहता है कि शादी नहीं कर सकता. इस के चक्कर में मैं ने अपने घर वालों को छोड़ दिया. …और अब यह कह रहा है कि शादी नहीं कर सकता, अब तुम्हीं बताओ कि मैं कहां जाऊं? क्या करूं? जहर खा लूं क्या, इस के नाम का?’‘

”भाभी जी ऐसा नहीं कहते. जान लेनेदेने की बात तो दिमाग में आने ही न दें.’‘ अमन ने रिया को समझाने की कोशिश की.

”यही तो मेरी जिंदगी बन गई है. कहां तो मुझ पर बड़ा प्यार उमड़ता था. कहता था, तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, एक पल भी नहीं गुजार सकता. जल्द शादी कर लेंगे, अपनी नई दुनिया बसाएंगे. कहां गईं वे प्यार की बातें? कहां गए वायदे…जिस के भरोसे मैं बैठी रही.’‘

रिया ने जब अपने मन की भड़ास पूरी तरह से निकाल ली तब अमन ऋषभ सिंह से बोला, ”क्यों भाई ऋषभ, ये क्या सुन रहा हूं? रिया जो कह रही है क्या वह सही है? अगर हां तो तुम्हें इस की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए था.’‘

ऋषभ अपने दोस्त की बातें चुपचाप सुनता रहा. उस की जुबान से एक शब्द नहीं निकल रहा था. उस की चुप्पी देख कर अमन फिर बोलने लगा, ”तुम रिया से शादी क्यों नहीं कर रहे हो? उस की उपेक्षा कर तुम एक औरत की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हो… देखो भलाई इसी में है कि तुम जितनी जल्द हो सके, रिया से शादी कर लो और इसे समाज में सिर उठा कर चलने का मानसम्मान दो.’‘

मानसम्मान की बात सुनते ही ऋषभ बिफर पड़ा. कड़वेपन के साथ बोला, ”तुम किस मान सम्मान की बात कर रहे हो, इस ने आज तक मेरा सम्मान किया है? …भरी पार्टी में शराब पी कर मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ा चुकी है. शादी की बात करते हो! इसे तो शादी के बाद मेरे मम्मीपापा के साथ रहना भी पसंद नहीं है. उस के लिए साफ मना कर चुकी है…तो इस के साथ कैसे शादी कर सकता हूं?’‘

अमन को ऋषभ की बातों में दम नजर आया. वह इस सच्चाई से अनजान था. अजीब दुविधा में फंसा अमन समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वह किस का पक्ष ले और किसे कितना समझाए? फिर भी उस रोज अमन ने दोनों को सही राह पर चलने और जल्द से जल्द किसी सम्मानजनक नतीजे पर पहुंचने की सलाह दी.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 1

मेरा नाम शमशेर है. जो बात मैं बताने जा रहा हूं वह 35-40 साल पुरानी है. मेरा बाप तांगा चलाता था. इस काम में हमारी अच्छे से गुजरबसर  हो जाती थी. जब मैं 11-12 साल का था, मेरा बाप एक एक्सीडेंट में चल बसा. मां ने तांगा घोड़ा किराए पर चलाने को दे दिया. वह बड़ी मेहनती औरत थी और घर में बैठ कर सिलाई का काम करती थी. इस तरह हमारी जिंदगी की गाड़ी चलने लगी.

मां मुझे पढ़ाना चाहती थी. पर मेरा पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. वैसे मुझे अंगरेजी जरूर अच्छी लगती थी. अंगरेजी को मैं बड़े ध्यान से पढ़ता और सीखता था. इसी वजह से 9वीं क्लास में मैं अंगरेजी के अलावा सारे विषयों में फेल हो गया.

फेल होने के बाद स्कूल से मेरा मन एकदम उचाट हो गया था. मैं ने पढ़ाई छोड़ दी. उन्हीं दिनों मेरी दोस्ती गलत किस्म के कुछ युवकों से हो गई. दोस्तों के साथ रह कर मुझे कई तरह के ऐब लग गए. सिगरेट पीना, ताश खेलना, होटलों में जाना मेरी आदतों में शामिल हो गया. इस के लिए पैसे की जरूरत होती थी. पैसे के लिए मैं दोस्तों के साथ मिल कर हाथ की सफाई भी करने लगा.

इस में कोई दो राय नहीं कि बुराई शैतान की आंत की तरह होती है. एक बार शुरू हो जाए तो रुकना आसान नहीं होता. मां ने मुझे फिर से स्कूल भेजने की बहुत कोशिश की पर गुनाह की आदत ने मुझे पीछे नहीं लौटने दिया.

धीरेधीरे मैं जुए में माहिर हो गया. मेरे पास पैसे की रेलपेल होने लगी. ताश के पत्ते मेरे हाथ में आते ही जैसे मेरे गुलाम हो जाते थे. मेरी चालाकी ने मुझे जीतने का हुनर सिखा दिया था. जीतने की कूवत ने मेरी मांग भी बढ़ा दी और शोहरत भी. अब बाहर की पार्टियां भी मुझे बुला कर जुआ खिलवाने लगीं. इस काम में मुझे अच्छाखासा पैसा मिल जाता था. जिंदगी ऐश से गुजर रही थी.

देखतेदेखते मैं 23 साल का गबरू जवान बन गया. मेरी मां से मेरी बरबादी बरदाश्त न हुई और एक दिन वह सारे दुखों से निजात पा गई. मां की मौत के बाद मुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था. जुए की महारत ने जहां कई दोस्त बनाए वहीं बहुत से दुश्मन भी बन गए. दोस्त तो पैसे के यार होते हैं. मैं ने ऐसे ही दोस्तों के साथ छोटा सा एक गिरोह बना लिया ताकि दुश्मनों से निपटा जा सके. हम लोग अपने पास चाकू कट्टे भी रखने लगे.

एक दिन मैं जुआखाने में एक बड़े गिरोह के सूरमा के साथ जुआ खेल रहा था. शुरू में वह जीतता रहा फिर अचानक बाजी पलट गई. मैं लगातार जीतने लगा,  नोटों का ढेर बढ़ता गया. यह देख उस के साथी गाली गलोच पर उतर आए. गुस्से में मैं ने खेल रोक कर जैसे ही नोट समेटने चाहे उन लोगों के हाथों में चाकू और पिस्तौल चमकने लगे. मेरे साथियों ने भी हथियार निकाल लिए. गोलियों चलने लगीं.

उसी दौरान एक गोली मेरे बाजू से रगड़ती हुई निकल गई. इस से मुझ पर जुनून सा तारी हो गया. हम 4 लोग थे और वो 7-8. दोनों तरफ से घमासान शुरू हो गया. 3 लोग जमीन पर गिर कर तड़पने लगे. दूसरे लोग चीखतेचिल्लाते हुए बाहर भागे. मैं और मेरे साथी भी सारे नोट समेट कर वहां से भाग लिए. अंधेरे ने हमारा साथ दिया. पीछे से पकड़ो पकड़ो की आवाजों के साथ गोलियां चल रही थीं. भागते भागते मेरा एक साथी भी चीख कर ढेर हो गया.

मैं ने जल्दी से रास्ता बदला और एक तंग गली से होता हुआ एक टूटीफूटी वीरान बिल्डिंग के जीने के नीचे दुबक गया. मेरे साथी पता नहीं किधर निकल गए. मैं घंटों वहां बैठा रहा. रात का गहरा सन्नाटा फैल चुका था. कहीं कोई आहट नहीं थी. मैं छिपते छिपाते घर पहुंचा और अपना घोड़ा ले कर एक अनजानी दिशा की तरफ बढ़ गया.

मैं मौत के मुंह से निकला था और बुरी तरह घबराया हुआ था. जुए से कमाए पैसे मैं ने घर के अंदर कपड़ों में छिपा कर रख रखे थे. मुझ में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उन पैसों को ले आता. अभी तक मैं ने चोरी, लूट और जुआ जैसी छोटीछोटी वारदातें की थीं. मेरे हाथों कत्ल पहली बार हुआ था. मैं ने अपराध भले ही किए थे, लेकिन अभी तक मेरे अंदर का इंसान मरा नहीं था. मेरे हाथों किसी की जान गई है, यह अहसास मुझे मन ही मन विचलित कर रहा था.

मुझे ये पता नहीं था कि मेरे हाथों से कितने लोग मरे हैं, पर मेरा निशाना चूंकि अच्छा था इसलिए मुझे लग रहा था कि कत्ल मेरे हाथों ही हुआ होगा. एक मरे या दो, गुनाह तो गुनाह है और इस गुनाह की सजा मौत है. अगर मैं पुलिस के हाथ लग जाता तो वह मेरी एक नहीं सुनती क्योंकि पुलिस में भी मेरा रिकौर्ड खराब था.

जुए में जीतने की मेरी शोहरत की वजह से मेरे दुश्मनों की कमी नहीं थी. निस्संदेह वे मेरे खिलाफ गवाही दे कर मेरी मौत का सामान कर देते और अगर मैं इत्तफाक से सूरमा के गिरोह के हाथ लग जाता तो वे लोग मेरे टुकड़ेटुकड़े करने में जरा भी देर नहीं लगाते क्योंकि उन के 3-4 आदमी मरे थे.

मुझे जल्द से जल्द वहां से बहुत दूर चले जाना था इसलिए मैं ने जंगल का सुनसान रास्ता पकड़ा. पता नहीं मैं कब तक घोड़ा दौड़ाता रहा. जब घोड़े ने थक कर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और मैं भी भूखप्यास और थकान से पस्त हो गया तो एक साफ जगह देख कर रुक गया. तब तक दिन का उजाला फैलने लगा था. मैं ने घोड़े को एक पेड़ से बांधा और उसी पेड़ के नीचे लेट गया.

जिस वक्त सूरज की तेज तपिश से मेरी आंखें खुलीं तब तक दिन काफी चढ़ आया था. घोड़ा भी आसपास की घासपत्ती खा कर ताजादम हो गया था.

मैं ने पानी की तलाश में आसपास नजर दौड़ाई, लेकिन दूरदूर तक छितराए पेड़ों और झाडि़यों के अलावा कुछ नजर नहीं आया. वह पूरा इलाका सूखा बंजर सा था. मजबूरन मैं ने फिर से अपना सफर शुरू कर दिया. मैं जानबूझ कर बस्तियों से बच कर चल रहा था इसलिए कोई कस्बा या शहर भी रास्ते में नहीं आया. दोपहर तक भूख ने मेरी हालत खराब कर दी. इस के बावजूद मैं किसी ऐसी जगह पहुंच कर रुकना चाहता था जहां मेरे दुश्मन मुझ तक न पहुंच सकें. अब तक मैं काफी दूर निकल आया था. इसलिए जंगल का रास्ता छोड़ कर मैं सड़क पर आ गया.

भूखप्यास बरदाश्त से बाहर होती जा रही थी. मुझे लग रहा था कि अगर कुछ देर और दानापानी नहीं मिला तो घोड़ा भी नहीं चल पाएगा. मैं ने लस्तपस्त हो कर अपना सिर घोड़े की पीठ पर रख दिया और सोचने लगा कि पता नहीं जिंदगी मिलेगी या मौत. घोड़ा धीमी गति से चलता रहा. कुछ देर बाद मैं ने भूख और धूप से चकराया हुआ अपना सिर उठाया तो सामने एक फार्म हाउस देख कर आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

अदालत में ऐसे झुकी मूछें