जवानी बनी जान की दुश्मन – भाग 1

दोपहर 2 बजे की गई शीला रात होने तक घर नहीं लौटी तो उस के बच्चे परेशान होने लगे. वह  डा. बंगाली से खुजली की दवा लेने शमसाबाद गई थी. उसे घंटे, 2 घंटे में लौट आना चाहिए था. लेकिन घंटे, 2 घंटे की कौन कहे, उसे गए कई घंटे हो गए थे और वह लौट कर नहीं आई थी. अब तक तो डा. बंगाली का क्लिनिक भी बंद हो गया होगा.

शीला का बड़ा बेटा 10 साल का सतीश रात होने की वजह से डर रहा था. वह ताऊ चाचाओं से भी मदद नहीं ले सकता था, क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले ही उस की मां की ताऊ और चाचाओं से खूब लड़ाई हुई थी. उस लड़ाई में ताऊ और चाचाओं ने उस की मां की खूब बेइज्जती की थी.

सतीश के मन में मां को ले कर तरहतरह के सवाल उठ रहे थे. मां के न आने से वह परेशान था ही, उस से भी ज्यादा परेशानी उसे छोटे भाइयों के रोने से हो रही थी. 8 साल के मनोज और 3 साल के हरीश का रोरो कर बुरा हाल था. अब तक उन्हें भूख भी लग गई थी. उस ने उन्हें दुकान से बिस्किट ला कर खिलाया था, लेकिन बच्चे कहीं बिस्किट से मानते हैं. अब तक खाना खाने का समय हो गया था.

सतीश अब तक मां को सैकड़ों बार फोन कर चुका था, लेकिन मां का फोन बंद होने की वजह से उस की बात नहीं हो पाई थी. जब वह हद से ज्यादा परेशान हो गया और उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने अपने मामा श्रीनिवास को फोन कर के मां के बंगाली डाक्टर के यहां जाने और वापस न लौटने की बात बता दी.

दोपहर की गई शीला उतनी देर तक नहीं लौटी, यह जान कर श्रीनिवास परेशान हो गया. वह समझ गया कि मामला कुछ गड़बड़ है. बहन के इस तरह अचानक रहस्यमय ढंग से गायब होने की जानकारी पा कर वह बेचैन हो उठा. उस के भांजे मां को ले कर किस तरह परेशान होंगे, उसे इस बात का पूरा अंदाजा था. उस ने भी शीला को फोन किया, लेकिन जब फोन बंद था तो शीला की भी उस से कैसे बात होती.

बहन से बात नहीं हो सकी तो दोस्त की मोटरसाइकिल ले कर वह तुरंत घर से निकल पड़ा. 8 किलोमीटर का रास्ता तय कर के वह 15-20 मिनट में भांजों के पास आ पहुंचा.

बहन को ले कर उस के मन में तरहतरह के विचार आ रहे थे. जवान बहन के साथ बदनीयती से किसी ने बुरा तो नहीं कर दिया, यह सोचने के पीछे वजह यह थी कि एक तो शीला घर नहीं लौटी थी, दूसरे उस का फोन बंद था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा अचानक क्या हो गया कि बहन का फोन बंद हो गया?

श्रीनिवास ने सब से पहले तो अपने तीनों भांजों के लिए खाने की व्यवस्था की. इस बीच बातचीत में सतीश ने मामा को बताया कि उन्हें स्कूल से ला कर खाना खिलाया. वे अपना होमवर्क करने लगे तो मां तैयार हो कर दवा लेने चली गई. उस ने घंटे, डेढ़ घंटे में लौटने को कहा था. लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि वह लौट कर ही नहीं आई.

सतीश ने बताया था कि शीला शमसाबाद वाले डा. बंगाली से दवा लेने गई थी. सतीश की इस बात से श्रीनिवास को हैरानी हुई, क्योंकि अभी तक तो शीला गांव से थोड़ी दूरी पर अपना क्लिनिक चलाने वाले डा. बंगाली से दवा लेती थी. इस बार वह शमसाबाद क्यों चली गई? शीला का पति यानी श्रीनिवास का बहनोई जयपाल दिल्ली में रहता था. श्रीनिवास ने जयपाल को फोन कर के सारी बात बताई तो उस ने मजबूरी जताते हुए उस समय गांव पहुंचने में असमर्थता व्यक्त करते हुए शीला की खोजबीन करने का अनुरोध किया.

श्रीनिवास ने बहन के इस तरह अचानक गायब होने पर उस के जेठ सहीराम और देवरों गिरिराज, राकेश तथा दिनेश से बात की तो इन लोगों में से किसी ने भी उसे ठीक से जवाब नहीं दिया. उन्होंने शीला और उस के बच्चों से किसी तरह की हमदर्दी या सहानुभूति दिखाने के बजाय साफसाफ कह दिया कि वह खुद ही ढूंढ ले. उस से उन्हें कोई लेनादेना नहीं है.

अपनी बहन के जेठ और देवरों की बातों से श्रीनिवास समझ गया कि पिछले दिनों संपत्ति को ले कर इन लोगों का उस की बहनबहनोई से झगड़ा हुआ था, उसी वजह से ये लोग नाराज हैं. इसलिए इन लोगों से किसी भी तरह की मदद की उम्मीद करना बेकार है. वह तीनों भांजों को ले कर अपने गांव चला गया. बच्चों को अपनी मां के पास छोड़ कर वह बहन की तलाश करने लगा. बेटी के इस तरह अचानक गायब होने से उस की मां भी चिंतित थी.

शीला के जेठ और देवरों ने श्रीनिवास के साथ जैसा व्यवहार किया था, उस से उसे लगा कि उस के गायब होने के पीछे इन लोगों का हाथ तो नहीं है? उस की मां को भी कुछ ऐसा ही लग रहा था. इसलिए मांबेटे ने इस बात पर गहराई से विचार किया. रात काफी हो गई थी, इस के बावजूद श्रीनिवास शमसाबाद चौराहे पर डा. बंगाली की क्लिनिक तक शीला को ढूंढ़ आया था.

उस का सोचना था कि साधन न मिल पाने की वजह से बहन घर न जा पाई हो. लेकिन पूरे रास्ते में उसे एक भी आदमी आताजाता नहीं मिला. रास्ते में ही नहीं, बाजार में भी सन्नाटा पसरा था. विकलांग श्रीनिवास. पूरी रात बहन की तलाश में भटकता रहा.

अगले दिन डा. बंगाली की क्लिनिक खुलने के पहले ही वह शमसाबाद पहुंच गया. डा. सपनदास विश्वास 9 बजे के आसपास क्लिनिक पर पहुंचे तो श्रीनिवास ने उन से बहन के बारे में पूछा. डा. विश्वास ने मरीजों का रजिस्टर देख कर बताया कि कल तो शीला नाम की कोई मरीज उन के यहां नहीं आई थी.

इस से श्रीनिवास को किसी अनहोनी की आशंका हुई. वह सीधे थाना शमसाबाद जा पहुंचा. उस ने शीला के अपहरण और हत्या की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो थानाप्रभारी ने अगले दिन शीला की फोटो ले कर आने को कहा. थानाप्रभारी ने अगले दिन आने को कहा तो श्रीनिवास को लगा पुलिस टाल रही है. इसलिए वह वहां से सीधे जिलाधिकारी के यहां चला गया.

एक विकलांग को अपनी जवान विवाहिता बहन की तलाश में भटकते देख जिलाधिकारी गुहेर बिन सगीर ने उस की व्यथा  ध्यान से सुनी और थाना शमसाबाद पुलिस को आदेश दिया कि तत्काल पीडि़त की रिपोर्ट दर्ज कर के काररवाई की जाए. जिलाधिकारी के आदेश के बाद श्रीनिवास थाना शमसाबाद पहुंचा और शीला का अपहरण कर हत्या करने की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए उस ने शीला के जेठ सहीराम, देवर, गिरिराज, दिनेश, राकेश और देवरानी रामलाली को नामजद करते हुए तहरीर दे दी.

रिपोर्ट दर्ज कर के पुलिस शीला की देवरानी को छोड़ कर चारों नामजद लोगों को हिरासत में ले कर थाने ले आई. थाने में की गई पूछताछ और जांच में पुलिस ने सभी को निर्दोष पाया, लेकिन अपना पीछा छुड़ाने के लिए पुलिस ने कागजी काररवाई कर के उन्हें जेल भेज दिया.

खुद के बिछाए जाल में

फरेबी के प्यार में फंसी बदनसीब कांता – भाग 1

महानगर मुंबई के उपनगर चेंबूर की हेमू कालोनी रोड पर स्थित चरई तालाब घूमने टहलने के लिए ठीक उसी तरह मशहूर है, जिस तरह दक्षिण मुंबई का मरीन ड्राइव यानी समुद्र किनारे की चौपाटी और उत्तर  मुंबई का सांताकुंज-विलेपार्ले का जुहू. ये ऐसे स्थान हैं, जहां आ कर लोग अपना मन बहलाते हैं. इन में प्रेमी युगल भी होते हैं और घर परिवार के लोग भी, जो अपनेअपने बच्चों के साथ इन जगहों पर आते हैं.

26 अक्तूबर, 2013 को रात के यही कोई 10 बज रहे थे. इतनी रात हो जाने के बावजूद चेंबूर के चरई तालाब पर घूमनेफिरने वालों की कमी नहीं थी. थाना चेंबूर के सहायक पुलिस उपनिरीक्षक हनुमंत पाटिल सिपाहियों के साथ क्षेत्र की गश्त करते हुए चरई तालाब के किनारे पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक स्थान पर कुछ लोग इकट्ठा हैं. एक जगह पर उतने लोगों को एकत्र देख कर उन्हें लगा कोई गड़बड़ है. पता लगाने के लिए वह उन लोगों के पास पहुंच गए.

पुलिस वालों को देख कर भीड़ एक किनारे हो गई तो उन्होंने जो देखा, वह स्तब्ध करने वाला था. उस भीड़ के बीच प्लास्टिक की एक थैली में लाल कपड़ों में लिपटा हाथपैर और सिर विहीन एक इंसानी धड़ पड़ा था. देखने में वह किसी महिला का धड़ लग रहा था. हत्या का मामला था, इसलिए सहायक पुलिस उपनिरीक्षक हनुमंत पाटिल ने तालाब से धड़ बरामद होने की सूचना थानाप्रभारी वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर को दे दी.

धड़ मिलने की सूचना मिलते ही वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने मामले की प्राथमिकी दर्ज कराने के साथ ही इस घटना की जानकारी उच्च अधिकारियों और कंट्रोल रूम को दे दी. इस के बाद वह स्वयं पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर, विजय दरेकर, शशिकांत कांबले, सहायक पुलिस निरीक्षक प्रदीप वाली, संजय भावकर, विजय शिंदे, पुलिस उप निरीक्षक वलीराम धंस और रवि मोहिते के साथ मौका ए वारदात पर पहुंच गए.

Suhas khanvilkar-kanta-murder-case

अभी सिर्फ धड़ ही मिला था. उस के हाथपैर और सिर का कुछ पता नहीं था. धड़ के इन अंगों की काफी तलाश की गई, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. इस से पुलिस को लगा कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी चालाक है. उस ने स्वयं को बचाने के लिए सुबूतों को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उस ने मृतक की पहचान छिपाने के लिए उस के शव के टुकड़े कर के इधरउधर फेंक दिए थे.

वहां एकत्र लोगों से की गई पूछताछ में पता चला कि हाथपैर और सिर विहीन उस धड़ को तालाब से वहां घूमने आए एक युवक ने निकाला था. पुलिस ने जब उस युवक से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘मन बहलाने के लिए अकसर मैं यहां आता रहता था. हमेशा की तरह आज मैं यहां आया तो थकान उतारने के लिए तालाब के पानी में जा कर खड़ा हो गया. तभी मुझे लगा कि मेरे पैरों के पास कोई भारी पार्सल जैसी चीज पड़ी है.

‘‘मैं ने ध्यान से देखा तो सचमुच वह प्लास्टिक की थैली में लिपटा एक बड़ा पार्सल था. उत्सुकतावश मैं ने उस पार्सल को पानी से बाहर निकाल कर देखा तो उस में से यह धड़ निकला. डर के मारे मैं चीख पड़ा. मेरी चीख सुन कर वहां टहल रहे लोग मेरे पास आ गए. थोड़ी ही देर में यहां भीड़ लग गई. उस के बाद यहां कुछ पुलिस वाले आ गए.’’

पूछताछ के बाद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने धड़ का पंचनामा तैयार कर उसे डीएनए टेस्ट और पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर के राजावाड़ी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह थाने आ कर साथियों के साथ विचारविमर्श करने लगे कि इस मामले को कैसे सुलझाया जाए. क्योंकि सिर्फ धड़ से लाश की शिनाख्त नहीं हो सकती थी और शिनाख्त के बिना जांच को आगे बढ़ाना संभव नहीं था.

थाना चेंबूर पुलिस इस मामले को ले कर विचारविमर्श कर ही रही थी कि अपर पुलिस आयुक्त कैसर खालिद, पुलिस उपायुक्त लखमी गौतम, सहायक पुलिस आयुक्त मिलिंद भिसे थाने आ पहुंचे. सारी स्थिति जानने के बाद ये अधिकारी वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

उच्च अधिकारियों के दिशानिर्देश के आधार पर वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम गठित की, जिस में पुलिस निरीक्षक विजय दरेकर, शशिकांत कांबले, सहायक पुलिस निरीक्षक प्रदीप वाली, विजय शिंदे, संजय भावकर, पुलिस उपनिरीक्षक वलीराम धंस, रवि मोहिते, सहायक पुलिस उपनिरीक्षक राजाराम ढिंगले, सिपाही अनिल घोरपड़े, नितिन सावंत, धर्मेंद्र ठाकुर और सुनील पाटिल को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर को सौंपा गया.

पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर जांच को आगे बढ़ाने की रूपरेखा तैयार कर ही रहे थे कि मृतक महिला के हाथपैर और सिर भी बरामद हो गया. उस के हाथ और सिर चेंबूर ट्रांबे के जीटी तालाब में मिले थे तो पैर चेंबूर की सेल कालोनी से. पुलिस ने इन्हें भी कब्जे में ले कर अस्पताल भिजवा दिया था. बाद में डाक्टरों ने इस बात की पुष्टि कर दी थी कि ये अंग उसी मृतक महिला के धड़ के थे, जो चरई तालाब से बरामद हुआ था. इस तरह पुलिस का आधा सिर दर्द कम हो गया था.

अब उस मृतक महिला की शिनाख्त कराना था, क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. इसलिए शिनाख्त कराने के लिए पूरी टीम बड़ी सरगरमी से जुट गई. महानगर के उपनगरों के सभी पुलिस थानों से पुलिस टीम ने पता किया कि किसी थाने में किसी महिला के गायब होने की शिकायत तो नहीं दर्ज है. इस के अलावा मुंबई महानगर से निकलने वाले सभी दैनिक अखबारों में मृतक महिला का हुलिया और फोटो छपवा कर शिनाख्त की अपील की गई.

2 दिन बीत गए. इस बीच हत्यारों को पकड़ने की कौन कहे, थाना पुलिस लाश की शिनाख्त तक नहीं करा सकी थी. मुंबई की क्राइम ब्रांच भी इस मामले की जांच कर रही थी. लेकिन क्राइम ब्रांच के हाथ भी अभी तक कुछ नहीं लगा था. मृतका कौन थी, कहां रहती थी, उस का हत्यारा कौन था? यह सब अभी रहस्य के गर्भ में था.

मामले की जांच कर रही पुलिस टीम हत्यारों तक पहुंचने की हर संभव कोशिश कर रही थी. वह महानगर के अस्पतालों, डाक्टरों, कसाइयों और पेशेवर अपराधियों की भी कुंडली खंगाल रही थी. क्योंकि मृतका की हत्या कर के जिस सफाई से उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े किए गए थे, यह हर किसी के वश की बात नहीं थी. पुलिस को लग रहा था कि यह काम किसी पेशेवर का ही हो सकता है.

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 3

फखरू चाचा की बातें सुन कर अमीर का दिल तड़प उठा. वह थके कदमों से अपने बेडरूम मे चला गया. वैसे तो शहरीना को घर छोड़े हुए एक महीने से ज्यादा हो गया था, मगर अमीर को लगता था कि उस का वजूद यहीं है. उस की चूडि़यों की खनक उसे अकसर सोते से जगा देती थी. मगर शहरीना वहां कहां होती थी. वह तड़प कर फिर सोने की कोशिश करने लगता था.

फखरू चाचा की बातों ने जब से उस की सोचों में दरार डाल दी थी, तब से वह शहरीना की याद में खोया रहने लगा था. अब वह औफिस आते जाते खोजती नजरों से भीड़ में उसे तलाशता हुआ उस की एक झलक देखने को बेकरार रहता था.

‘उफ, कहां चली गई हो शेरी, तुम क्यों मुझे तनहा छोड़ गई?’ अमीर ने कार की स्टीयरिंग पर हाथ मारते हुए बेबसी से सोचा. तभी अचानक उस की नजर सड़क किनारे खड़ी शहरीना पर पड़ी. वह गुलाबी कमीज, दुपट्टा और बाटल ग्रीन सलवार में किसी सवारी का इंतजार कर रही थी. कंधे पर लटका बैग और हाथ में पकड़ी फाइल उस के नौकरीपेशा होने की गवाह थी. अमीर तेजी से कार से उतर कर उस के पास जा पहुंचा, ‘‘शेरी…शेरी.’’

‘‘आप…आप यहां?’’ शहरीना उसे अपने सामने देख कर हैरत से सिर्फ इतना ही कह सकी.

‘‘हां मैं. चलो शेरी, मैं तुम्हें लेने आया हूं.’’ अमीर ने हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मुझे आप के साथ नहीं जाना. मुझे आप…’’ शहरीना उस का हाथ झटक कर आगे बढ़ गई.

‘‘मोहतरमा, मैं तुम्हारा शौहर हूं और जबरदस्ती तुम्हें अपने साथ ले जा सकता हूं.’’ कह कर अमीर ने उस की कलाई पकड़ कर कार का दरवाजा खोला और उसे अंदर धकेल दिया. इस के बाद खुद दूसरी तरफ से कार में बैठ कर गाड़ी स्टार्ट कर दी.

थोड़ी ही देर में अमीर अपने घर पहुंच गया और शहरीना का हाथ पकड़ कर घसीटते हुए बेडरूम में ले आया.

शहरीना ने तड़प कर कहा, ‘‘छोड़ो मेरा हाथ, मुझे आप की कोई बात नहीं सुननी.’’

‘‘मगर मुझे अपनी बात तुम्हें सुनानी है. देखो, आई एम वेरी सौरी.’’ अमीर ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं अपने उस दिन के रवैये से बहुत दुखी हूं.’’

‘‘क्या आप के इस तरह सौरी कह देने से सब कुछ ठीक हो जाएगा. आप ने तो मुझे अपनी ही नजरों में गिरा दिया है. आप ने मेरी मोहब्बत की तौहीन की है.’’ शहरीना बुरी तरह सिसक उठी.

‘‘मैं मानता हूं कि मुझ से गलती हुई है. लेकिन मेरे इस रवैये के पीछे जो वजह थी, तुम्हें उस का पता नहीं. मैं कभी औरत जात की बहुत इज्जत करता था. मैं ने एक सफेदपोश घराने में आंख खोली थी, जहां खुशहाली नहीं थी. हमारी छोटी सी उम्र में ही पहले अम्मी का, फिर अब्बू का इंतकाल हो गया. तब मेरे बाबा जान ने हम लोगों की परवरिश की. हमें किसी चीज की कमी नहीं होने दी.

‘‘जब उन की मौत हुई तो मैं 19 का और समीर भाई 21 साल के थे. हम लोगों का न तो कोई ददियाल था और न ही ननिहाल. अत: पेट भरने के लिए समीर भाई ने एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर ली. तब तक वे गे्रजुएशन कर चुके थे. वे नौकरी के साथसाथ पढ़ाई भी कर रहे थे, ताकि अच्छी नौकरी मिल सके.

‘‘जल्दी ही उन्होंने एमबीए कर लिया और उसी कंपनी में जूनियर एग्जीक्यूटिव के पद पर जा पहुंचे. अब तक हम लोग सैटल हो चुके थे. तब पड़ोस की आंटी रहमान के कहने पर समीर भाई शादी के लिए तैयार हो गए. मैं ने सोचा था कि समीर भाई की शादी के बाद घर में जो एक औरत की कमी है, वह दूर हो जाएगी. लेकिन अशमल भाभी शादी के बाद कुछ ही दिनों तक सामान्य रहीं. फिर तो आए दिन समीर भाई और अशमल भाभी में चखचख होने लगी.

‘‘भाभी दौलत को ज्यादा अहमियत देती थीं. भाई को उन की गरीबी के ताने देती थीं. जब वह अपनी सहेलियों की दौलत के किस्से व्यंग्य के साथ सुनाती थीं तो समीर भाई की गैरत पर सीधे तीर की तरह लगता था. वह भाई को रिश्वत लेने के लिए भी उकसाती थीं, मगर उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया. जल्दी ही वह गर्भवती हो गई. फिर भाभी ने सनी की पैदाइश के बाद भाई से तलाक देने को कहा, क्योंकि उन्होंने एक दौलतमंद आसामी को पसंद कर लिया था.

भाभी के इस रवैये से हम दोनों भाई बहुत हर्ट हुए. लेकिन उन की धमकियों और बदनामी के डर से भाई ने उन्हें तलाक दे दिया. वह मासूम सनी को हमारी गोद में डाल कर चली गईं. समीर भाई पत्थर की तरह हो गए. सनी की देखभाल पहले भी फखरू चाचा की बाजी करती थीं, बाद में भी वही करने लगीं. फिर समीर भाई का मन यहां नहीं लगा. वह सनी को हम लोगों के पास छोड़ कर कनाडा चले गए. ये तमाम हालात मेरे अंदर के मर्द को औरत से नफरत करने को मजबूर करते चले गए.’’

अमीर लगातार बोलता जा रहा था. उस की बातें सुन कर शहरीना भी बिखर गई थी. अमीर ने आगे कहा, ‘‘बस शेरी. फिर मैं ने तय कर लिया कि मुझे खूब दौलत कमानी है. मैं ने अपनी पढ़ाई पूरी कर के एक कंपनी में नौकरी कर ली और उस कंपनी के कुछ शेयर भी खरीद लिए. मैं ने अपना मकान बेच कर एक फ्लैट खरीदा और बाकी पैसे से शेयर खरीदे.

फिर एक दिन ऐसा आया कि मैं उस कंपनी के शेयर होल्डरों में सब से ऊपर पहुंच गया और कंपनी मेरे हाथ में आ गई. वक्त गुजरता रहा. फखरू चाचा की बीवी की मौत के बाद सनी को परवरिश का मसला सामने आया तो मैं ने तुम से शादी कर ली. लेकिन अशमल भाभी जैसी औरत को मैं देख चुका था, इसलिए…’’

‘‘इसलिए आप मेरा भी खुदगर्ज और लालची औरतों में शुमार करते रहे.’’ शहरीना की रुआंसी आवाज ने अमीर को तड़पा दिया.

‘‘आई एम सौरी. मैं कह रहा हूं ना कि मैं गलती पर था. लेकिन अगर तुम मेरी जगह होतीं तो तुम भी यही करतीं.’’ अमीर ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘शेरी, फखरू चाचा कह रहे थे कि तुम मुझ से बहुत मोहब्बत करती हो. प्लीज, उस मोहब्बत की खातिर ही मुझे माफ कर दो. मेरा वादा है कि तुम जो भी मांगोगी, वह दूंगा.’’

शहरीना ने तड़प कर कहा, ‘‘मुझे आप से पहले भी कुछ नहीं चाहिए था. सिर्फ एक मुहब्बत की खातिर ही तो…’’ शहरीना की आवाज भर्रा गई.

‘‘सिर्फ एक मोहब्बत?’’ अमीर ने उस की तरफ देखा और पूछा. मगर फिर शहरीना की हैरान, मासूम, हिरनी जैसी आंखों और खामोश लबों को देखते हुए शरारती अंदाज में बोला, ‘‘मैं तुम्हें इतनी मोहब्बत दूंगा कि तुम्हारा दामन तंग पड़ जाएगा.’’ फिर वह उस के करीब जा कर उस पर झुकते हुए बोला, ‘‘लेकिन बदले में तुम्हें एक काम करना होगा.’’

‘‘क्या?’’ इस मोहब्बत पर शहरीना ने धड़कते लहजे में पूछा.

‘‘तुम्हें हमारी फेमिली को पूरा करना होगा. बोलो, मंजूर है.’’ अमीर उस के कान के करीब फुसफुसाते हुए बोला.

यह सुन कर शर्म से सुर्ख चेहरा लिए शहरीना ने अमीर के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. गलतफहमी के बादल छंट गए थे और रास्ते रोशन हो गए थे. अब सब कुछ साफसाफ नजर आ रहा था बहुत दूर तक.

प्रेमिका पर विश्वास का उल्टा नतीजा

पहली ही मुलाकात में रश्मि और मनोज एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए तो चंद दिनों में ही उन के  दिलों में चाहत पैदा हो गई थी. यही वजह थी कि दोस्ती के बीच प्यार के खुशनुमा रंग कब भर गए, उन्हें पता नहीं चला था. मनोज और रश्मि एक ही फैक्ट्री में एकसाथ काम करते थे. दिनभर साथ रहने से भी उन का मन नहीं भरता था, इसलिए फैक्ट्री के बाहर भी दोनों मिलने लगे थे. वैसे तो दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे. लेकिन उन के घरों के बीच काफी दूरी थी, इसलिए रश्मि से मिलने के लिए मनोज को बहाने से उस के घर आना पड़ता था.

मनोज जब भी रश्मि के घर आता, घंटों बैठा बातचीत करता रहता. इसी आनेजाने में मनोज की दोस्ती रश्मि के पति सोनू सोनकर से भी हो गई थी. रश्मि की नजदीकी पाने के लिए मनोज अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा सोनू पर लुटाने लगा था. इसी से सोनू मनोज को अपना अच्छा दोस्त समझने लगा था.

सोनू से दोस्ती होने के बाद मनोज रोज ही रश्मि के घर जाने लगा. देर रात तक दोनों साथ बैठ कर खातेपीते. उस के बाद सोनू मनोज को अपने घर पर ही रुक जाने के लिए कह देता. सोनू मनोज को अपना अच्छा दोस्त मानता था, इसलिए उसे काफी महत्त्व देता था.

मनोज सोनू के साथ उठताबैठता है और खातापीता है, जब इस बात की जानकारी उस के बड़े भाई विनोद को हुई तो उस ने मनोज को रोका. लेकिन मनोज नहीं माना. तब उस ने मनोज को घर से भगा दिया. जब इस बात की जानकारी सोनू और रश्मि को हुई तो सहानुभूति दिखाते हुए सोनू ने उसे अपना छोटा भाई मान कर अपने साथ रख लिया. इस की एक वजह यह भी थी कि मनोज सोनू के लिए दुधारू गाय की तरह था.

मनोज के साथ रहने से रश्मि बहुत खुश हुई थी. फिर तो कुछ ही दिनों में मनोज और रश्मि के बीच शारीरिक संबंध बन गए. रश्मि से शारीरिक सुख पा कर मनोज उस का दीवाना हो गया. हर पल वह रश्मि के आसपास छाया की भांति मंडराता रहता. यही सब देख कर पड़ोसियों को उन पर शक हुआ तो लोग आपस में चर्चा करने लगे.

लोगों की चिंता किए बगैर मनोज और रश्मि एकदूसरे में इस तरह डूबे रहे कि उन्हें जैसे किसी बात की परवाह ही नहीं थी. इस प्रेम कहानी का अंत क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा इस कहानी के पात्रों के बारे में जान लेते हैं.

रश्मि कानपुर के जूही के रतूपुरवा की रहने वाली थी. 18 साल की होते ही वह हवा में उड़ने लगी. इस उम्र की लड़कियों की तरह रश्मि भी भावी जीवन के युवराज के बारे में तरहतरह की कल्पनाएं संजोने लगी. उस का मन करता कि एक सुंदर और जोशीला युवराज उसे पलकों पर बिठा कर अपने घर ले जाए और खूब प्यार करे. इन्हीं कल्पनाओं के बीच कानपुर के ही बादशाही नाका के रहने वाले बेदी सोनकर पर उस की नजर पड़ी.

गठीले बदन का खूबसूरत बेदी उस के पड़ोसी के यहां आताजाता था. इसी आनेजाने में रश्मि की आंख लड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे अपना दिल दे बैठी. वही क्यों, बेदी भी उस पर कुछ इस तरह फिदा हुआ कि वह भी उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर के चक्कर लगाने लगा. चाहत दोनों ओर थी, इसलिए दोनों एकदूसरे की ओर तेजी से बढ़ने लगे.

उस समय रश्मि अल्हड़ उम्र के दौर से गुजर रही थी. इसलिए दिमाग के बजाए दिल की भावनाओं के प्रबल प्रवाह में तेजी से बहती गई. यह भी सच है कि प्यार छिपता नहीं. मोहल्ले में रश्मि और बेदी के प्यार के भी चर्चे होने लगे. जैसे ही इस बात की खबर रश्मि के घर वालों को लगी, उन्होंने उस का घर से निकलना बंद कर दिया. लेकिन वह बेदी के प्यार में पागल हो चुकी थी, इसलिए वह बगावत पर उतर आई और घर वालों के मना करने के बावजूद वह बेदी से मिलतीजुलती रही.

मातापिता ने बहुत समझाया कि बेदी शहर का कुख्यात बदमाश है, इसलिए उस से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. उस की वजह से उस की जिंदगी बरबाद हो सकती है, लेकिन बेदी के प्यार में अंधी रश्मि बेदी से लगातार मिलतीजुलती रही.

बेदी दूसरों के लिए भले ही कितना भी बड़ा बदमाश रहा हो, रश्मि के लिए वह बहुत ही सीधा, सरल और भावुक युवक था. वह देखने में काफी हैंडसम था, इसलिए रश्मि उस पर जान छिड़कती थी. रश्मि को बेकाबू होते देख उस के मातापिता उस के विवाह के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे.

जब इस बात की जानकारी रश्मि और बेदी को हुई तो साथ रहने के लिए उन्होंने एक योजना बना डाली. फिर उसी योजना के तहत एक दिन रश्मि चुपके से मातापिता का घर छोड़ कर बेदी के घर रहने आ गई और बिना विवाह के ही उस के साथ पत्नी की तरह रहने लगी.

बेदी से रश्मि को 2 बच्चे पैदा हुए. दोनों की जिंदगी आराम से कट रही थी. लेकिन सब्जी मंडी में जबरन वसूली के विवाद में 2003 में बेदी की हत्या हो गई. बेदी की मौत के बाद रश्मि की जिंदगी में अंधेरा छा गया. पति की मौत के बाद भी रश्मि अपने दोनों बच्चों के साथ बेदी के मातापिता के साथ रहती रही.

बेदी की मौत के करीब 2 सालों के बाद बेदी का चाचा श्यामप्रकाश उर्फ सोनू उस के घर आया तो वह रश्मि को देख कर उस पर लट्टू हो गया. इस के बाद किसी न किसी बहाने वह उस से मिलने उस के घर आने लगा. सोनू रश्मि के उम्र का ही था और देखने में भी स्वस्थ और सुंदर था, इसलिए रश्मि को भी वह भा गया.

यही वजह थी कि जब सोनू ने उस से अपने प्यार का इजहार किया तो उस के प्यार को स्वीकार कर के रश्मि बेदी के दोनों बचों को छोड़ कर सोनू के साथ आर्य समाज मंदिर में सन् 2008 में शादी कर ली. शादी के बाद कानपुर में ही वह सोनू के साथ रहने लगी. साल भर बाद ही वह सोनू के बेटे की मां बन गई. सोनू के साथ रहते हुए ही रश्मि की मुलाकात साथ काम करने वाले मनोज से हुई तो वह उसे दिल दे बैठी.

मनोज को जब पता चला कि रश्मि उसी की जाति की है तो वह उसे और अधिक प्यार करने लगा. यही नहीं, वह उसे पत्नी का दर्जा देने को भी तैयार हो गया. इस के बाद उस ने यह भी कहा कि जब उस के मातापिता और भाई को पता चलेगा कि उस ने अपने ही जाति के लड़के से शादी कर ली है तो वे भी उसे अपना लेंगे.

मनोज के इस प्रस्ताव पर रश्मि गंभीर हो गई, क्योंकि वह सोनू के साथ खुश नहीं थी. आखिर काफी सोचविचार कर रश्मि एक बार फिर मनोज के साथ भाग कर जिंदगी बसर करने का सपना देखने लगी. इस के बाद वह मनोज का कुछ ज्यादा ही खयाल रखने लगी. जब इस ओर सोनू का ध्यान गया तो उसे रश्मि और मनोज पर शक होने लगा.

सोनू भी अपराधी किस्म का आदमी था. सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने एक योजना बनाई. फिर उसी योजना के तहत एक दिन उस ने रश्मि से कहा कि वह अपने घर सीतापुर जा रहा है. यह कह कर वह 2 बजे दोपहर को घर से निकला, लेकिन वह सीतापुर गया नहीं. शहर में ही इधरउधर घूमता रहा. रात 11 बजे वह वापस आया और अपने कमरे के दरवाजे की झिर्री पर कान लगा कर अंदर की आहट लेने लगा. अंदर से आने वाली आवाजों से उस ने समझ लिया कि उस की योजना सफल हो गई है.

फिर तो वह जोर से चीखा, ‘‘जल्दी दरवाजा खोलो, अंदर क्या हो रहा है, मैं जान गया हूं.’’

सोनू की आवाज सुन कर कमरे के अंदर तेज हलचल हुई. उस के बाद एकदम से सन्नाटा पसर गया. लेकिन दरवाजा नहीं खुला.

सोनू एक बार फिर दरवाजा खुलवाने के लिए चिल्लाया, ‘‘दरवाजा खोल रही है या तोड़ डालूं?’’

रश्मि के दरवाजा खोलते ही सोनू अंदर आ गया. बल्ब जलाने पर दोनों के झुके सिर देख कर वह सारा माजरा समझ गया. उस ने गालियां देते हुए मनोज की लातघूसों से पिटाई शुरू कर दी.

इस के बाद उसे कमरे से भगा कर रश्मि की जम कर पिटाई की. मारपीट कर उस ने रश्मि से मनोज और उस के अवैध संबंधों की सारी सच्चाई उगलवा ली. जब रश्मि ने उसे बताया कि मनोज उसे भगा कर ले जाने वाला था तो सोनू को उस पर इतना गुस्सा आया कि उस ने मनोज की हत्या करने का निश्चय कर लिया.

सोनू ने रश्मि से कहा कि कल रात वह मनोज को यह कह कर बुलाए कि वह शराब के नशे में गुमराह हो गया था. सुबह समझाने पर उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है, इसलिए वह माफी मांग कर पहले की तरह अपने साथ रखना चाहता है. क्योंकि मनोज ने दोस्ती के नाम पर उसे जो धोखा दिया था, उस की हत्या कर के वह उसे उस की सजा देना चाहता था. रश्मि को उस ने धमकाते हुए कहा कि अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो वह उस के प्रेमी मनोज के साथ उस की भी हत्या कर के हमेशा के लिए कानपुर छोड़ कर चला जाएगा.

रश्मि असमंजस में फंस गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

चूंकि रश्मि मनोज को दिल से चाहती थी, इसलिए अगले दिन फैक्ट्री में मनोज उसे मिला तो उस ने उसे सोनू की साजिश के बारे में बता कर कहीं बाहर चले जाने के लिए कह दिया. उस ने मनोज से यह भी कहा था कि सोनू सीतापुर में एक पीएसी कंपनी कमांडर की हत्या कर के यहां छिप कर रह रहा है, इसलिए ऐसे आदमी पर भरोसा नहीं किया जा सकता. वह उसे ढूंढ़ कर निश्चित उस की हत्या कर देगा.

रश्मि की बात सुन कर मनोज डर गया और उसी समय वह कानपुर छोड़ कर जिला फतेहपुर स्थित अपने गांव चला गया. शाम को रश्मि अकेली घर आई तो सोनू ने पूछा, ‘‘मनोज कहां है?’’

‘‘वह उसी रात अपने गांव भाग गया था.’’ रश्मि ने कहा.

रश्मि की बात पर सोनू को विश्वास नहीं हुआ. उस ने रश्मि को गालियां देते हुए कहा, ‘‘वह खुद नहीं भागा, तूने उसे भगाया है. तुझ से रहा नहीं गया होगा. तू ने मेरी योजना के बारे में बता कर उसे भगा दिया होगा.’’

सोनू को रश्मि की इस धोखेबाजी से उस से भी नफरत हो गई. अब वह रोज शराब पी कर उस की पिटाई करने लगा. रश्मि को पिटाई करते हुए वह कहता भी था, ‘‘जब तक तू मनोज को नहीं बुलाती और मैं उस की हत्या नहीं कर देता, तब तक तुझे इसी तरह नियमित मारता पीटता रहूंगा.’’

रोजरोज की मारपीट से तंग आ कर आखिर एक दिन रश्मि ने अपने सहकर्मी के फोन से मनोज को फोन कर के कहा कि सोनू उस पर बहुत अत्याचार कर रहा है. इसलिए अब वह उस के साथ रहना नहीं चाहती और भाग कर उस के पास आ रही है. अब वह उसी के साथ उस की बन कर रहना चाहती है.

मनोज ने रश्मि को समझाते हुए कहा, ‘‘मैं यहां गांव में रह रहा हूं. यहां किसी तरह 2 जून की रोटी मिल जाती है, बाकी यहां कमाई का कोई जरिया नहीं है. इसलिए तुम थोड़ा इंतजार करो. मैं कोई व्यवस्था कर के तुम्हें जल्दी ही यहां बुला लूंगा. उस के बाद तुम्हें अपनी पत्नी बना कर साथ रखूंगा.’’

मनोज की इन बातों से रश्मि का कलेजा बैठ गया. वह जिंदगी के ऐसे मोड़ पर खड़ी थी, जहां उस के लिए चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था. काफी सोचविचार कर उस ने सोनू के साथ ही जिंदगी गुजारने का इरादा बना लिया. फिर उस ने सोनू से माफी मांगी और भविष्य में किसी तरह की कोई गलती न करने की कसम खाई. लेकिन सोनू मनोज की हत्या से कम पर उसे माफ करने को तैयार नहीं था.

जिंदगी और भविष्य के लिए रश्मि को सोनू की जिद के आगे झुकना पड़ा. वह मनोज की हत्या की साजिश में पति का साथ देने को तैयार हो गई. इस के बाद योजना के अनुसार सोनू ने नटवनटोला, किदवईनगर का अपना वह किराए का कमरा खाली कर के जूही गढ़ा में सुरजा के मकान में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. रश्मि मनोज को फोन कर के बुलाने लगी. लेकिन मनोज कानपुर आने को तैयार नहीं था.

रश्मि के बारबार आग्रह पर मनोज को जब रश्मि से मिलने वाले सुख की याद आई तो 29 जनवरी को रश्मि से मिलने के लिए वह कानपुर आ गया. सोनू और रश्मि ने पहले की ही तरह मनोज को हाथोंहाथ लिया. दोनों उस से इस तरह हंसहंस कर बातें कर रहे कि उसे लगा सोनू ने सचमुच उसे माफ कर दिया है.

मनोज रश्मि और सोनू के जाल में पूरी तरह फंस गया. रात 8 बजे के आसपास सोनू उसे शराब के ठेके पर ले गया, जहां दोनों ने थोड़ीथोड़ी शराब पी. इस के बाद 2 बोतल ले कर वह घर आ गया. उस ने रश्मि से कहा, ‘‘आज बढि़या खाना बनाओ, बहुत दिनों बाद मेरा दोस्त आया है. आज देर रात तक हम दोनों की महफिल जमेगी.’’

रश्मि को खाना बनातेबनाते रात के 11 बज गए. इस के बाद उस ने सोनू और मनोज के लिए खाना परोसा. सोनू ने होशियारी से मनोज को बड़ेबड़े पैग बना कर ज्यादा शराब पिला दी थी. ज्यादा नशा होने की वजह से मनोज खाना खा कर अपने लिए लगे बिस्तर पर लेटते ही बेसुध हो कर सो गया.

सोनू को उस के सोने का इंतजार था. रात साढ़े 12 बजे उस ने रश्मि को अपने पास बुला कर मनोज के सिर के ऊपर से रजाई हटाने को कहा. रश्मि ने जैसे ही मनोज के सिर से रजाई हटाई, सोनू गड़ासे से उस के सिर और गरदन पर लगातार वार करने लगा.

मनोज ने अपने ऊपर हुए इस प्राणघातक हमले से बचने की कोशिश तो की, लेकिन रश्मि उस के सिर के बाल पकड़ कर नीचे दबाए थी, इसलिए वह उठ नहीं सका. लगातार वार होने से मनोज की गरदन कट गई तो वह मर गया. उस के मरते ही सोनू ने उस के हाथपैर समेट कर रस्सी से बांध दिए, ताकि वह अकड़ न जाए, क्योंकि अकड़े हुए शव को घर से बाहर ले जाने में काफी परेशानी होती.

मनोज की हत्या कर उस की लाश को ठिकाने लगाने के बारे में पूरी रात सोनू और रश्मि सोचते विचारते रहे. सोनू ने सोचा कि अगर लाश को रजाई में लपेट कर दिन में रिक्शे से बाहर ले जाया जाए तो कोई शक नहीं करेगा.

यही सोच कर उस ने मनोज की लाश को रजाई में लपेटा और रस्सी से बांध कर रजाई भराने की बात कह कर एक रिक्शा बुलाया.  रजाई में बंधी मनोज की लाश उस ने रिक्शे के पायदान पर रखा और रश्मि तथा 5 साल के बेटे के साथ रिक्शे पर बैठ कर वह स्वदेशी कौटन मिल की ओर चल पड़ा.

स्वदेशी कौटन मिल के पास सड़क के किनारे की एक चाय की दुकान पर कुछ लोगों ने रिक्शे पर रखी उस रजाई को देखा तो उन्हें शक हुआ. उन्होंने रिक्शा रोक कर सोनू से उस के बारे में पूछा तो वह सकपका गया.

एकदम से वह जवाब नहीं दे सका. काफी देर बाद उस ने कहा कि इसे वह भरवाने ले जा रहा है. उन लोगों में से किसी ने कहा, ‘‘इस तरह रस्सी से बांध कर रुई तो नहीं ले जाई जाती, इस में जरूर कुछ और है.’’

यह कह कर उस आदमी ने रजाई के अंदर हाथ डाला तो एकदम से चिल्लाया, ‘‘अरे यह रुई नहीं, किसी की लाश है.’’

सभी सोनू को पकड़ कर लातघूसों से पिटाई करने लगे. उसी बीच मौका पा कर रश्मि अपने बेटे को ले कर भाग गई. किसी ने इस बात की सूचना थाना जूही पुलिस को दी तो पुलिस ने मौके पर आ कर लाश और सोनू को कब्जे में ले लिया. थाना जूही पुलिस ने मौके की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए हैलेट अस्पताल भिजवा दी. उस के बाद थाने ला कर सोनू से पूछताछ की गई. सोनू ने मनोज की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए पूरी कहानी पुलिस को सुना दी, जिसे आप पहले ही पढ़ चुके हैं.

पूछताछ के बाद सबइंस्पेक्टर आमोद कुमार ने सोनू की निशानदेही पर उस के कमरे से शराब की 2 खाली बोतलें, खून से सनी साड़ी, वह गड़ासा, जिस से मनोज की हत्या की गई थी और मनोज का मोबाइल फोन बरामद कर लिया. इस के बाद उन्होंने उस के खिलाफ मनोज की हत्या का मुकदमा दर्ज कर 30 जनवरी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अगले दिन पुलिस ने रश्मि को भी उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह कमरे पर अपने और बच्चे के कपड़े लेने आई थी. पूछताछ कर के पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 2

जिस वक्त अमीर कमरे में दाखिल हुआ, शहरीना सोफे से पीठ टिकाए खुद में मुसकरा रही थी. वह अपने खयालों में इतनी खोई थी कि अमीर के आने का पता भी नहीं चला. जब अमीर उस के सामने आ कर खड़ा हो गया तो वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अमीर… आप… आप कब आए?’’

शहरीना के चेहरे पर शर्म की एक लहर आ कर गुजर गई.

‘‘उस वक्त जब तुम किसी खूबसूरत ख्याल में खोई हुई थीं.’’ अमीर ने कोट उतार कर तीखे अंदाज में कहा, ‘‘क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम किस ख्याल में डूबी हुई थीं कि तुम्हें न तो अपनी खबर थी और न मेरे आने की.’’

‘‘वह अमीर, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी हुए एक साल हो गया है और मैं चाहती हूं कि…’’ शहरीना झिझक कर रुक गई, फिर कड़ी हिम्मत कर के बोली, ‘‘मेरा मतलब है कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं और …और चाहती हूं कि… कि… हमें अपनी फेमिली पूरी कर लेनी चाहिए.’’ शर्मिंदगी ओढ़ कर आखिर शहरीना ने अपनी बात कह ही दी.

पहले तो अमीर की कुछ समझ में ही नहीं आया, लेकिन दूसरे ही पल वह उस की बात का मतलब समझ गया. उस के माथे पर लकीरें उभर आईं. वह तीखे लहजे में बोला, ‘‘हमारी फेमिली आफ्टर आल पूरी है.’’

‘‘नहीं अमीर, मेरा मतलब है कि हमारा अपना बच्चा…’’

‘‘आई एम सौरी शेरी. मैं इस बारे में सोच भी नहीं सकता.’’ अमीर उस के चेहरे पर नजरें जमा कर बोला.

‘‘लेकिन अमीर, क्यों… मैं…’’ शहरीना के स्वर में हल्का सा दर्द था.

‘‘वह इसलिए कि मुझ से सनी का दुख बरदाश्त नहीं होगा.’’ अपने सीने पर रखे शहरीना के हाथों को झटक कर अमीर उठ खड़ा हुआ.

‘‘जी… मैं…’’ शहरीना उस की बात को ले कर सोच में पड़ गई.

‘‘शटअप… और आगे इस मसले पर मुझ से बात मत करना.’’ कहते हुए अमीर गुस्से से उबलता बाहर निकल गया.

शहरीना अंदर ही अंदर कुढ़ती बेड पर गिर पड़ी. पिछले कुछ महीने से वह अपनी इस इच्छा को दबाती चली आ रही थी. आज दिल के हाथों मजबूर हो कर कहा भी तो क्या मिला, सिवाय तड़प के.

अमीर के इस व्यवहार ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया. और फिर इसी वजह से छोटेमोटे झगड़े रोज की बात बन गए. दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. उस दिन तो हद ही हो गई. बात बहुत मामूली थी, मगर अमीर ने उसे इतना तूल दिया कि वह लड़ाईझगड़े तक जा पहुंची. शहरीना ने धीरे से कहा, ‘‘अमीर, प्लीज बात को इतना मत बढ़ाएं कि…’’

‘‘कि… क्या कर लोगी तुम? यह घर छोड़ कर चली जाओगी तो चली जाओ. मगर नहीं, तुम जैसी ऐशोआराम पर मरने वाली औरतें इतनी आसानी से ऐसी जिंदगी छोड़ कर कहां जा सकती हैं? तुम भी मुझे छोड़ कर भला कहां जा सकती हो? तुम ने तो इस ऐशोइशरत और दौलत के लिए ही मुझ से शादी की थी.’’ अमीर ने व्यंग्य से कहा.

शहरीना मुंह पर हाथ रखे फटी आंखों से अमीर को ताकते हुए उस की बातें सुनती रही. गुस्से से सुर्ख चेहरा लिए कुछ दूरी पर खड़ा अमीर उसे बदला हुआ लग रहा था. जिसे वह जानती थी, आज वह अमीर नहीं था. एक साल का मोहब्बत भरा साथ देने वाला अमीर उसे ही खुदगर्ज और दौलत का भूखा होने का ताना दे रहा था. जिस के लिए उस का पोरपोर मोहब्बत में डूबा था, वही उस की मोहब्बत की तौहीन कर के चला गया था.

शाम को अमीर जब घर में दाखिल हुआ तो पोर्च से लाउंज और लाउंज से बेडरूम तक पूरा घर खामोशी में डूबा था. अमीर को जहां आश्चर्य हुआ, वहीं उसे सुबह की घटना याद आ गई. कशमकश में डूबा वह अपने बेडरूम में दाखिल हुआ. शहरीना वहां भी नहीं थी. पर हां, उस का लिखा एक खत मेज पर जरूर रखा था. उस ने खत उठा लिया और जल्दी जल्दी पढ़ने लगा, उस में लिखा था—

‘‘अमीर औसाफ,

मैं आप का घर छोड़ कर जा रही हूं. कहां, यह फिलहाल मैं भी नहीं जानती. अपने भाइयों के दरवाजे पर जाना मुझे मंजूर नहीं, क्योंकि उन की नजरों में आप का एक मुकाम है. आप का मुकाम तो मेरे में दिल में भी था, लेकिन आप की बातों ने आप का वह मुकाम मेरी नजरों में गिरा दिया. आप ने यहां तक कह दिया कि तुम भला मुझे छोड़ कर कैसे जा सकती हो और यह कि मैं ने तुम से दौलत की वजह से शादी की थी. मैं पिछले एक साल से आप का तीखा रवैया इसलिए बरदाश्त करती आ रही थी कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं. लेकिन अब बरदाश्त नहीं हुआ तो आप का घर छोड़ने पर मजबूर हो गई.

‘‘कहते हैं कि जब मोहब्बत दोतरफा होती है, तभी अच्छी होती है. एकतरफा मोहब्बत दुख ही देती है. आप अब तक मेरे मोहब्बत भरे रवैये और जज्बे को दौलत की तराजू में तौलते रहे हैं. इस से ज्यादा मेरी मोहब्बत की तौहीन और क्या होगी. मुझे आप की दौलत और ऐशोइशरत से कोई सरोकार नहीं है. इसलिए आप के द्वारा दिए गए सभी तोहफे और जेवर ‘लौकर’ में छोड़ कर जा रही हूं.              फकत-शहरीना’’

खत पढ़ कर अमीर के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई. वह व्यंग्य भरे लहजे में कहने लगा, ‘वक्ती जज्बात में बह कर तुम ऐशोइशरत और आराम छोड़ कर चली तो गईं, मगर देखना, तुम्हें बहुत जल्द वापस लौटना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद वह डाइनिंग टेबल पर बैठा सनी से पूछ रहा था, ‘‘सनी बेटा. तुम ने खाना खा लिया?’’

‘‘नहीं अंकल.’’

‘‘क्यों बेटा, अब तो काफी समय हो गया है? तुम ने अब तक खाना क्यों नहीं खाया?’’ अमीर ने मोहब्बत से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘आंटी आज घर पर नहीं हैं ना. मुझे तो खाना वही खिलाती थीं.’’

‘‘अच्छा ठीक है. चलो, आज आप के अंकल आप को खाना खिलाएंगे.’’

‘‘मगर अंकल, वह आंटी…’’ 8 वर्षीय सनी ने कुछ कहना चाहा.

‘‘आंटी को छोड़ो और तुम खाना खाओ.’’

शहरीना के चले जाने से जहां सनी की देखरेख नहीं हो पा रही थी, वहीं पूरा घर अस्तव्यस्त हो गया था. ठीक से साफसफाई भी नहीं हो रही थी. नौकर नौकरानी टाइम पास करते रहते थे. बेडरूम, बाथरूम, लाउंज आदि अस्तव्यस्त और धूलगर्द से अटे रहते थे. यह सब देख कर अमीर चिल्लाने लगता. सनी की ड्रेस भी मैली रहती थी. कभीकभी वह उसी स्थिति में स्कूल चला जाता था तो उसे डांट खानी पड़ती थी.

यह सब बातें जब अमीर को मालूम पड़तीं तो वह नौकरों को डांटने लगता. लेकिन उन पर कोई भी असर नहीं होता था. एक दिन सनी ने अमीर से कहा, ‘‘अंकल ,मेरी शर्ट नहीं मिल रही है. पता नहीं कहां चली गई. आंटी सारी चीजें संभाल कर रखती थीं. मैं होमवर्क भी नहीं कर पाता हूं और रोज स्कूल भी देर से पहुंचता हूं. अब आप जल्दी से खुद जा कर आंटी को ले आएं, तब मैडम मुझे फिर से अच्छा बच्चा कहने लगेंगी.’’

‘‘हां, अमीर बेटा. सनी ठीक कह रहा है. आप शेरी बेटी को वापस ले आओ. वह बहुत अच्छी बच्ची है.’’ फखरू ने कहा. वह उस वक्त से उस के साथ रह रहे थे, जब अमीर के पिता औसाफ अहमद जिंदा थे. फखरू चाचा नौकर कम, बल्कि घर के सदस्य की तरह थे. औसाफ अहमद की मृत्यु के बाद उन्होंने और उन की बाजी ने अमीर और समीर का हर तरह से खयाल रखा था. यही नहीं, सनी की पैदाइश के बाद जब समीर की बीवी सनी को समीर की गोद में डाल कर खुद चलती बनी थी तो भी फखरू चाचा और उन की बीवी ने उस नन्हे बच्चे की देखभाल की थी.

‘‘लेकिन चाचा…’’ अमीर ने तड़प कर कुछ कहना चाहा.

‘‘नहीं बेटा. गलती तुम्हारी है. हर औरत तुम्हारी भाभी अशमल की तरह नहीं होती. शेरी जैसी नेक लड़की का अशमल से मिलान करना उस की तौहीन है. शेरी आप से बहुत मोहब्बत करती थी. सनी का बहुत खयाल रखती थी. घर में नौकर चाकर होने के बावजूद वह आप का एकएक काम खुद करती थी. बेटा, शेरी बेटी की फितरत मैं अच्छी तरह जानता हूं. उसे दौलत का कोई लालच नहीं है. वह तो बस आप की मोहब्बत के सहारे जीती थी. मगर आप ने उस पर शक कर के अच्छा नहीं किया.’’ फखरू चाचा ने जो कुछ अनुभव किया और देखा था, सचसच कह दिया.

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत

जोरू और जमीन : लालची प्रेमी ने पहुंचाया जेल – भाग 3

प्रीति उर्फ कमलजीत कौर अपने भाई जोगा सिंह से 4 कदम आगे थी. खूबसूरत तो वह इतनी थी कि जिस की भी नजर एक बार उस पर पड़ जाती, हटाने का नाम नहीं लेता था. यही वजह थी कि राह चलते लोगों को पलक झपकते वह अपना दीवाना बना लेती थी. यही वजह थी कि प्रीती के जवान होते ही उस के चाहने वालों की लाइन लग गई थी. लेकिन वह सभी को मय के भरे प्याले की तरह अपनी जवानी को दूर से दिखा कर ललचाती रहती थी, किसी को हाथ नहीं लगाने देती थी.

उसी बीच उस के भाई जोगा सिंह के हाथों एक कत्ल हो गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. माता पिता बहन भाई के कारनामों से वैसे ही दुखी थे, इसलिए उन की ओर से जोगा की पैरवी का सवाल ही नहीं उठता था. इसलिए प्रीति को ही भाई को छुड़ाने की पैरवी करनी पड़ रही थी. वह सप्ताह में 2 बार उस से मिलने करनाल जेल भी जाती थी.

उन्हीं दिनों हरियाणा के जींद का रहने वाला विजय कुमार भी अपने दोस्त नरेश से मिलने सप्ताह में 2 बार करनाल जेल आता था. उसी दौरान प्रीति की मुलाकात विजय से हुई थी. विजय भी हृष्टपुष्ट एवं इस तरह का खूबसूरत युवक था कि कोई भी लड़की उसे देखे तो कम से कम एक बार उसे और देखने का मन हो जाए.

विजय शक्लसूरत और पहनावे से ठीकठाक तो लगता ही था, यह भी लगता था कि उस के पास पैसों की कमी नहीं है. जबकि सच्चाई यह थी कि वह हरियाणा के एक ऐसे अपराधी गिरोह का सदस्य था, जो लूटमार, अपहरण और डकैती आदि से मोटी कमाई कर रहा था.

बहरहाल, जेल में अपने अपने मिलने वालों का नाम लिखवा कर विजय और प्रीति जेल के बाहर बैठ कर मिलाई का इंतजार करते थे. प्रीति सुंदर तो थी ही, विजय खाली समय में उसे ही ताकता रहता था. स्मार्ट विजय प्रीति को भा गया, इसलिए वह भी उस से आंखें मिलाने लगी. परिणामस्वरूप जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई तो वे सब से अलग हट कर एकांत में एक साथ बैठने लगे. जल्दी ही दोनों की यह दोस्ती काफी गहरी हो गई.

विजय अपने दोस्त नरेश की जमानत की कोशिश कर ही रहा था, प्रीति से दोस्ती के बाद उस ने जोगा की जमानत के लिए कोशिश ही नहीं की, बल्कि पैसा भी पानी की तरह बहाया. उसी की कोशिश का नतीजा था कि नरेश के साथ जोगा को भी जमानत मिल गई.

नरेश और जोगा की जमानतें हो गईं तो विजय और प्रीति का करनाल जेल जाना बंद हो गया, लेकिन अब तक दोनों के संबंध इतने गहरे हो चुके थे कि वे कभी हिसार तो कभी जींद तो भी करनाल तो कभी कुरुक्षेत्र में मिलने लगे. विजय ने प्रीति पर जो एहसान किया था, वह उसे कैसे भूल सकती थी. धीरेधीरे वह विजय के इतने करीब आ गई कि घर वालों को बिना बताए ही विजय से कोर्टमैरिज कर ली.

मांबाप से तो वैसे भी कोई मतलब ही नहीं था, लेकिन बहन का यह कदम भाई जोगा सिंह को भी अच्छा नहीं लगा. अत: वह भी उस से नफरत करने लगा, क्योंकि वह विजय की असलियत अच्छी तरह जानता था.

शादी के बाद कुछ दिनों तक प्रीति विजय के साथ करनाल में रही, लेकिन उस के बाद विजय और नरेश उसे ले कर लुधियाना आ गए. लुधियाना के मुंडिया में किराए का मकान ले कर सभी एक साथ रहने लगे. दरअसल विजय का प्रीति से शादी कर के लुधियाना आने की वजह यह थी कि हरियाणा पुलिस, खासकर जींद पुलिस विजय और नरेश के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी. वे कभी भी ऐनकाउंटर में मारे जा सकते थे. इसलिए वे लुधियाना भाग आए थे. प्रीति से शादी उस ने इसलिए की थी कि पत्नी के साथ रहने पर लोगों को संदेह कम होता है और मकान वगैरह भी आसानी से मिल जाता है.

विजय और नरेश आपराधिक गिरोह के सदस्य हैं, यह बात प्रीति को पहले मालूम नहीं थी. लेकिन जब उसे इस बात का पता चला तो भी उस ने बुरा नहीं माना, क्योंकि वह ऐशोआराम से जीने की आदी थी. विजय के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. इस के अलावा उस के पास रुतबा भी था. उस के एक बार कहने पर विजय और नरेश किसी को भी गोली मार सकते थे.

विजय और प्रीति का दांपत्य ठीकठाक चल रहा था. लेकिन इस में दरार तब आ गई, जब विजय को अपने दोस्त नरेश को ले कर प्रीति पर शक हो गया. दरअसल हुआ यह कि एक दिन नरेश जल्दी घर आ गया. खाना खा कर वह प्रीति के पास बैठ कर बातें करने लगा. किसी बात पर दोनों हंस रहे थे कि तभी अचानक विजय आ गया. उस ने नरेश और प्रीति की इस हंसी का कुछ और ही नतीजा निकाल लिया.

अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की सोच कुछ ऐसी होती है. क्योंकि उन्हें जब स्वयं पर ही विश्वास नहीं होता तो वे दूसरे पर भला कैसे विश्वास कर सकते हैं. बस उसी दिन से विजय और प्रीति के बीच क्लेश शुरू हो गया. धीरेधीरे यह क्लेश इतना बढ़ गया कि प्रीति विजय से नफरत करने लगी.

उसी दौरान विजय के घर उस के गिरोह के सरगना सुरजीत का आना जाना शुरू हो गया. सुरजीत, बिट्टू और सोनू डागर का एक ऐसा गिरोह था, जिस का आतंक उन दिनों पूरे हरियाणा में था. इन के हाथ इतने लंबे थे कि जेल में रहते हुए भी ये आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते रहते थे. नरेश और विजय सुरजीत के गिरोह के सक्रिय सदस्य थे.

उसी बीच किसी बैंक को लूटने के चक्कर में सुरजीत कई दिनों तक विजय के घर रुका तो प्रीति की खूबसूरती पर वह रीझ गया. वहां रहते हुए उस ने देखा था कि विजय रोज शराब पी कर उस की पिटाई करता है. प्रीति की परेशानी को देखते हुए एक दिन उस ने कहा, ‘‘प्रीति, अगर तुम विजय को छोड़ दो तो मैं तुम्हें अपनाने को तैयार हूं. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें तो पता ही है कि गिरोह का सरगना मैं हूं. विजय और नरेश मेरे गिरोह के सदस्य हैं. मेरे सामने इन की क्या औकात है. अगर मैं इन्हें अपने गिरोह से निकाल दूं तो इन्हें सड़क पर खड़े हो कर भीख मांगनी पड़ेगी.’’

प्रीति भी महसूस कर रही थी कि सुरजीत उस पर पूरी तरह से फिदा है. उस की बात में दम भी था. गिरोह का सरगना वही था. उस ने देखा भी था कि किसी की भी हिम्मत उस के सामने बोलने की नहीं होती थी. उस के सामने शेर बना रहने वाला विजय सुरजीत के सामने आंख तक नहीं उठाता था.

प्रीति सुरजीत की बात मान कर उस की झोली में जा गिरी. अब समस्या यह थी कि विजय से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अगर सुरजीत चाहता तो अपनी ताकत के बल पर भी प्रीति को अपने साथ भी रख सकता था. लेकिन इस में खतरा था. जोरू के लिए आदमी कुछ भी कर सकता है. सामने से नहीं तो पीछे से विजय वार कर ही सकता था. इसलिए सुरजीत ने सोचा, विजय को खत्म कर दिया जाए. जब वह रहेगा ही नहीं तो वार कौन करेगा.

विजय से शादी की वजह से जोगा सिंह प्रीति से काफी नाराज था. इसी वजह से प्रीति को भी भाई से नफरत हो गई थी. जिस की वजह से वह भाई के बारे में कुछ और ही सोचने लगी थी. जोगा सिंह की पैतृक जमीन की कीमत करोड़ों में थी. उस पर उस का अकेले का कब्जा था. जब इस बात का पता सुरजीत को चला तो उस ने बहन भाई की नफरत को हवा दे कर प्रीति को उकसाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी करोड़ों की जमीन जोगा सिंह हड़पे हुए है. अगर उसे निपटा दिया जाए तो करोड़ों की वह जमीन तुम्हारी हो सकती है.’’

करोड़ों की जमीन के लालच में प्रीति भाई की हत्या कराने के लिए तैयार हो गई. इस के बाद वह सुरजीत को ले कर जींद के सापर गांव में रहने वाली अपनी बड़ी बहन बलजीत कौर के यहां भी गई. उस ने भी हामी भर दी, क्योंकि जोगा सिंह ने उसे भी हिस्सा नहीं दिया था.

इस के बाद सुरजीत ने जो योजना बनाई, उस के अनुसार पहले विजय और नरेश को ठिकाने लगा कर प्रीति को हासिल करना था. प्रीति के साथ आने के बाद उसे जोगा सिंह से प्रीति के हिस्से की जमीन मांगना था. अगर उस ने जमीन दे दी तो ठीक अन्यथा उसे ठिकाने लगा कर पूरी जमीन पर कब्जा कर लेना था. इस के बाद प्रीति को भी ठिकाने लगा कर करोड़ों की उस जमीन पर वह कब्जा कर लेता. इस योजना को अंजाम देने के लिए सुरजीत ने सोनू डागर को साथ मिला लिया.

यहां यह बताना जरूरी है कि सुरजीत और सोनू सजायाफ्ता अपराधी थे. करनाल के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के यहां से सुरजीत को उम्रकैद की सजा हुई थी. 6 साल की सजा काटने के बाद  वह 32 दिनों के पैरोल पर जेल से बाहर आया तो लौट कर गया ही नहीं. इस के बाद अदालत से उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया था.

जिस रात विजय और नरेश की हत्या हुई थी, उस से एक दिन पहले सुरजीत ने विजय को फोन कर के कहा था कि अगर वह लुधियाना में उस के रहने की व्यवस्था कर दे तो कुछ दिनों के लिए वह लुधियाना आ जाए. विजय ने ऊपर वाले जिस कमरे में नरेश रहता था, उसी में सुरजीत के रहने की व्यवस्था कर के उस ने उसे लुधियाना आने के लिए कह दिया था.

फिर उसी दिन शाम को सुरजीत और सोनू डागर समराला चौक पहुंच गए थे. विजय और नरेश वहां खड़े उन का इंतजार कर रहे थे. विजय उन्हें साथ ले कर अपने घर पहुंचा. घर जाते हुए रास्ते में उन्होंने खानेपीने की चीजें खरीद ली थीं. घर पहुंचते ही महफिल जम गई थी. सुरजीत को देख कर प्रीति खुशी से झूम उठी थी, क्योंकि उसे पता था उस दिन उसे विजय से मुक्ति मिल जाएगी.

योजना के अनुसार, सुरजीत ने विजय और नरेश को अधिक शराब पिला दी थी. उन की महफिल देर रात तक जमी रही. रात 11 बजे खाना खा कर सब सो गए. साढ़े 11 बजे के बाद सुरजीत उठा और बगल में सो रहे नरेश को गोली मार दी. नरेश को मार कर दोनों नीचे उतरे. नीचे आ कर सोनू ने सो रहे विजय को गोली मार कर उस का भी खेल खत्म कर दिया. प्रीति खड़ी तमाशा देखती रही.

साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाली प्रीति ने सुख और दौलत के लिए अपनी आंखों के सामने पति की हत्या करवा कर खुद को विधवा करवा लिया. विजय और नरेश की हत्या कर के सुरजीत और सोनू विजय के ही स्कूटर से चले गए. उन के जाने के बाद प्रीती ने अपना नाटक शुरू किया.

पूछताछ के बाद मैं ने प्रीती को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मैं ने सुरजीत और सोनू की तलाश में न जाने कहांकहां छापे मारे, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. मैं ने समय से इस मामले की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी, जिस से मुकदमा चला. हत्या का षड्यंत्र रचने और पुलिस को गुमराह करने के जुर्म में प्रीति को 5 साल की सजा हुई. इस समय वह लुधियाना की जेल में अपनी सजा काट रही है. मजे की बात यह है कि सुरजीत और सोनू का पता आज तक नहीं चला है.

— प्रस्तुति : हरमिंदर खोजी

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 1

दिसंबर की ठिठुरती सर्दी के दिन थे. उतनी रात को हर आदमी बिस्तर में दुबका हुआ था, लेकिन शहरीना इस सर्दी से  बेखबर खिड़की खोले दीवार से टेक लगाए लगातार बाहर की तरफ देख रही थी. इंतजार के पल कितने दर्दनाक होते हैं, यह वही जानती थी. यही इंतजार उस का नसीब बन गया था.

पहले दिन से ही अमीर उसे इंतजार कराने लगा था. हमेशा की तरह आज भी सुबह जाते समय उस ने शाम को तैयार रहने के लिए कहा था, क्योंकि आज उन की शादी की पहली सालगिरह थी, जिस की याद शहरीना ने अमीर को उठते ही दिला दी थी. शहरीना इस अवसर को यादगार बनाना चाहती थी.

शहरीना शाम 7 बजे से तैयार बैठी थी, लेकिन 7 से 8 बजे और 8 से 9, मगर अमीर अभी तक नहीं आया था. किन्हीं अंदेशों के तहत शहरीना ने उस के औफिस में फोन किया तो वहां से जवाब मिला कि साहब मीटिंग में हैं. यह सुन कर वह झुंझला उठी थी. लेकिन वह जानती थी कि अमीर के लिए बिजनेस ही सब कुछ है, इसलिए अकसर वह शहरीना को भूल भी जाता था. लेकिन शहरीना के दिल में मोहब्बत की बेमिसाल महक थी, जो उसे सब्र करने को उकसाती रहती थी.

एक बजने वाला था, तब अमीर की गाड़ी का हौर्न सुनाई दिया. तब तक शहरीना क्षुब्ध हो कर लेट गई थी. अमीर जब कमरे में दाखिल हुआ तो वह कंबल ओढ़े आंख बंद किए लेटी रही. कुछ देर वह उसे देखता रहा, उस के बाद डे्रसिंग रूम की ओर चला गया.

अगली सुबह हमेशा की तरह शहरीना 5 बजे उठ गई और नमाज पढ़ने के बाद 8 साल के सनी को तैयार करने लगी. उसे स्कूल भेजने के बाद वह कमरे में आई ताकि अमीर को उठा सके. रात की नाराजगी या दुख की कोई भी झलक उस के चेहरे पर नहीं थी. उस ने गुस्से का तमाम गुबार सुबह के उजाले में उड़ा दिया था. जब वह कमरे में पहुंची तो अमीर न केवल उठ चुका था, बल्कि नहाधो कर फ्रेश भी हो गया था.

‘‘आई एम सौरी. रात को मैं कुछ लेट हो गया था. एक्चुअली मीटिंग में… खैर, मैं तुम्हारा गिफ्ट लेना नहीं भूला. यह लो अपना गिफ्ट.’’ अमीर औसाफ ने ब्रीफकेस खोल कर मखमली डिब्बा आगे करते हुए माफी मांगने के अंदाज में कहा. लेकिन उस के लहजे में शर्मिंदगी जरा भी नहीं थी.

‘‘कोई बात नहीं.’’ शहरीना ने लापरवाही से कहा.

‘‘मुझे मालूम था कि तुम ने बुरा नहीं माना होगा. अच्छा लो अपना गिफ्ट और देखो कि मैं तुम्हारे लिए कितना कीमती गिफ्ट लाया हूं.’’

‘‘अगर आप यह गिफ्ट कीमत का अंदाजा लगाने के लिए मुझे दे रहे हैं तो यह बिलकुल बेमोल हैं. हां, अगर सिर्फ मोहब्बत के जज्बे से दिया जा रहा है तो दुनिया की हर कीमती चीज से बढ़ कर मेरे लिए कीमती है.’’ शहरीना ने क्षुब्ध हो कर कहा.

‘‘मेरा यह मकसद नहीं था. बहरहाल अगर तुम्हें पसंद आए तो पहन लेना.’’ अमीर ने मखमली डिब्बा बेड के एक कोने में रखते हुए सामान्य स्वर में कहा. अमीर की इन बातों से साफ जाहिर था कि शहरीना की बात उसे अच्छी नहीं लगी.

‘‘सनी बेटे, क्या बात है? आज तुम उदास क्यों हो?’’ अगली सुबह तीनों टीवी लाउंज में बैठे थे तो अमीर ने पूछा.

‘‘अंकल, काफी दिनों से पापा का फोन नहीं आया.’’

‘‘तो क्या हुआ, मैं अपने बेटे की पापा से बात करवा देता हूं. लेकिन मेरी एक शर्त है कि तुम्हें खूब पढ़ाई करनी होगी और हमेशा फर्स्ट आना होगा.’’

‘‘अंकल, वह तो मैं करता ही हूं. आप आंटी से पूछ लें. क्यों आंटी?’’ सनी ने गवाही के लिए शहरीना की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘बिलकुल. सनी रोजाना न सिर्फ होमवर्क करता है, बल्कि रेगुलर स्कूल भी जाता है. इसलिए सनी की फर्स्ट पोजीशन पक्की है.’’ शहरीना ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वाकई, अच्छा तुम बड़े हो कर क्या बनोगे?’’

सनी से कुछ बोलते न बना तो अमीर ने ही कहा, ‘‘मेरा बेटा बड़ा हो कर बिजनेसमैन बनेगा, ताकि इस के पास दौलत की कमी न रहे.’’

शहरीना ने कुछ कहना चाहा तो अमीर ने कहा, ‘‘अगर दौलत की रेलपेल नहीं होगी तो कोई भी औरत तुझे नहीं पूछेगी.’’ यह कहते हुए अमीर एक झटके से उठा और अंदर की तरफ बढ़ गया. शहरीना के चेहरे पर कई रंग आए और चले गए.

अमीर के जाते ही शहरीना की सहेली नाहीद का फोन आ गया. फोन पर शहरीना अपनी सब से प्यारी सहेली की आवाज सुन कर खिल उठी थी. उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो नाहीद?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. तुम अपनी सुनाओ. शादी के बाद तो तुम ने फोन करना ही छोड़ दिया.’’ नाहीद ने शिकायत की.

‘‘बस यार, क्या बताऊं. तुम तो जानती ही हो कि नई जिंदगी में कदम रखते ही सौ झमेले गले लग जाते हैं.’’

‘‘छोड़ो यार, मुझे मालूम है कि तुम्हारी न तो सास है और न ही कोई ननद. अमीर भाई के एकलौते भाई तुम्हारी शादी से बहुत पहले ही कनाडा चले गए हैं. लेदे कर उन का एक छोटा सा बच्चा है, जो तुम्हें क्या कहता होगा. तुम तो अपने घर में ऐश कर रही हो. दौलत की रेलपेल से खुशियों में डूबी होगी.’’ नाहीद नानस्टाप बोलती जा रही थी.

‘‘दौलत खुशियों की जमानत तो नहीं होती.’’ अचानक शहरीना के मुंह से निकल गया.

‘‘क्या बात है शेरी, लगता है तुम अपनी जिंदगी में खुश नहीं हो?’’

‘‘नहीं नाहीद, मेरे कहने का मतलब यह था कि अमीर सुबह ही निकल जाते हैं और देर रात को लौटते हैं. मैं सारा दिन बोर होती रहती हूं. वैसे अमीर मेरा बहुत खयाल रखते हैं.’’ शहरीना ने बातें बनाईं.

‘‘खैर, तुम्हारी बात भी ठीक है, लेकिन तुम्हारी शादी को एक साल हो गया है. हमें खुशखबरी कब दे रही हो?’’ ताहीद के लहजे में हमदर्दी थी.

‘‘अभी तो ऐसी कोई बात नहीं है, फिर सनी तो है ना…’’ नाहीद की बात सुन कर शहरीना गुलजार हो गई थी. जिस बात को वह आज तक महसूस करती आई थी और जुबान तक न ला सकी थी, वही बात आज नाहीद उस से कह रही थी, ‘‘नहीं यार, अपने बच्चे की बात कुछ और ही होती है. तुम किसी लेडी डाक्टर से मिलो. समझी मेरी बात…’’

यह कह कर नाहीद ने फोन काट दिया, ‘‘मैं तुम्हें फिर फोन करूंगी, उजमा के अब्बू आ गए हैं.’’

बहुत देर तक नाहीद की बात शहरीना के कानों में गूंजती रही. वह ख्वाबों की दुनिया में खो गई, ‘मेरा भी एक बच्चा होगा प्यारा, गोलमटोल सा. जो मुझे अम्मी कहेगा और अमीर को…’

ये प्यार था या कुछ और था