25 मई, 2023 को डीसीपी सी.एच. रूपेश ने पुलिस लाइंस में प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की और 8 दिनों से रहस्य बनी सिर कटी लाश का परदाफाश करते हुए आरोपी चंद्रमोहन को पेश किया. आरोपी बी. चंद्रमोहन ने पत्रकारों के सामने भी अपना जुर्म कुबूल किया. उस के बाद पुलिस ने उसे अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया. जेल जाते समय बी. चंद्रमोहन को अपने किए पर जरा भी पछतावा नहीं था.
पुलिस पूछताछ में अनुराधा रेड्डी हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—
55 वर्षीय यारम अनुराधा रेड्डी मूलरूप से तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के दिलखुश नगर की रहने वाली थी. 4 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी, उस से छोटे 2 भाई और एक बहन थी, पिता किसान थे तो मां एक कुशल गृहिणी थीं. पिता ने अपनी सामथ्र्य के अनुसार चारों बच्चों को पढ़ाया और समयानुसार उन की शादियां कर के अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए थे. बेटियां अपनी ससुराल चली गईं तो बहू के पायल की मधुर छमछम से घरआंगन गूंज उठा था.
यारम अनुराधा रेड्डी बचपन से ही बड़ी जिद्दी थी. जिस काम को करने की ठान लेती थी तो उसे पूरा कर के ही दम भरती थी. इस के पीछे चाहे उस का बड़े से बड़ा नुकसान क्यों न हो जाए, परवाह नहीं करती थी. बस, उसे हासिल करना है तो करना है. यही उस का उद्देश्य होता था.
रमन रेड्डी के साथ पिता ने बेटी अनुराधा रेड्डी की गृहस्थी बसाई थी. हंसीखुशी दोनों की गृहस्थी चल रही थी. एक साल बाद अनुराधा ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के घर में आ जाने से पतिपत्नी दोनों का जीवन खुशियों से खिल उठा था. फिर न जाने उन की खुशियों को किस की बुरी नजर लगी कि अनुराधा रेड्डी का हंसताखेलता परिवार तिनका तिनका बिखर गया.
बेटी जब एक साल की थी तभी रमन रेड्डी की दिल का दौरा पडऩे से मौत हो गई थी. पति का साथ छूट जाने के बाद अनुराधा एकदम अकेली पड़ गई थी, ऊपर से दुधमुंही बच्ची की परवरिश की जिम्मेदारी थी, सो अलग.
ऐसा नहीं था कि अनुराधा रेड्डी के सासससुर या मांबाप नहीं थे, बल्कि उस का पूरा घर भरा था नातेरिश्तेदारों से. लेकिन खुद्दार किस्म की वह किसी और से मदद लेना नहीं चाहती थी. वह अपने पैरों पर खड़ी हो कर बच्ची की परवरिश करना चाहती थी.
पति के दोस्त ने की थी काफी मदद
वह पढ़ीलिखी तो थी ही, काफी समझदार और खूबसूरत भी थी. उस ने एक प्राइवेट नर्सिंगहोम में नर्स की नौकरी कर ली. वह अपने काम से इतना कमा लेती थी कि खुद की और बेटी की जरूरतों को पूरा कर के अच्छी रकम बचा लेती थी. लेकिन यहीं से उस की जिंदगी की कांटों भरी राह शुरू हो चुकी थी. संघर्ष की दीवानी अनुराधा ने कभी हार नहीं मानी. बल्कि संघर्ष की आग में तप कर कुंदन बनती रही.
अनुराधा रेड्डी के पति रमन रेड्डी के बचपन का दोस्त बी. चंद्रमोहन था, जो चैतन्यपुर मोहल्ले में अपनी मां के साथ अकेला ही रहता था. वह अपने मांबाप की इकलौती संतान था. इकलौता होने के नाते वह मांबाप का लाडला भी था.
रमन और चंद्रमोहन के बीच में गहरी दोस्ती थी. गहरी दोस्ती ऐसी जैसे धडक़न बिना दिल नहीं, सांस बिना जिस्म नहीं और चकई बिना चकवा नहीं. इतना गहरा याराना था दोनों के बीच में. रमन की मौत पर वह सब से ज्यादा दुखी हुआ. दोस्ती की डोर जब टूटी थी तब चंद्रमोहन बहुत रोया था, कई दिनों तक उस के हलक से निवाला नीचे नहीं उतरा था. उस की हालत देख कर खुद अनुराधा भी हैरान थी.
उस वक्त चंद्रमोहन ने अनुराधा की कदम कदम पर मदद की थी. सिर्फ चंद्रमोहन की ही उस ने मदद ली थी उस समय, बाकी किसी की भी मदद लेने से उस ने इनकार कर दिया था. चंद्रमोहन के एहसानों तले अनुराधा दबी हुई थी. धीरेधीरे इन एहसानों ने दोनों के बीच में दोस्ती का रूप ले लिया था. दोनों एकदूसरे पर अटूट विश्वास और भरोसा करने लगे थे. अनुराधा विधवा थी तो क्या हुआ, वह जवान और सुंदर थी. चंद्रमोहन भी कुंवारा था.
चंद्रमोहन के दिल के एक कोने में अनुराधा के लिए एक सौफ्ट कौर्नर तैयार था. वह उस के और बेटी के लिए हर घड़ी फिक्रमंद रहने लगा था और समय आने पर अपने दिल की बात उस के सामने कहना चाहता था. जबकि अनुराधा सिर्फ और सिर्फ उस से दोस्ती का ही रिश्ता बनाए रखी थी. उसे यह कतई आभास नहीं था कि चंद्रमोहन उस की दोस्ती को प्यार समझ बैठा है.
अनुराधा ने बेटी को पढऩे भेजा आस्ट्रेलिया
धीरेधीरे वक्त समय के रथ पर सवार हो कर बढ़ता रहा. अनुराधा की बेटी भी करीब 20-25 साल की हो चुकी थी और अनुराधा नर्स की नौकरी छोड़ कर एलआईसी में बीमा एजेंट बन गई थी. इस से उस ने अपने मेहनत की बदौलत अच्छी कमाई की और बेटी को पढऩे आस्ट्रेलिया भेज दिया.
बेटी के विदेश चले जाने के बाद वह अपना मकान बेच कर चंद्रमोहन के घर लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी. यह घटना से करीब 15 साल पहले की बात है. चैतन्यपुर में बी. चंद्रमोहन का अपना डबल स्टोरी मकान था. अपनी बूढ़ी मां के साथ वह ग्राउंड फ्लोर पर रहता था जबकि उस ने अनुराधा को रहने के लिए फस्र्ट फ्लोर दे दिया था.
यहां आने के बाद उन की दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. चंद्रमोदन की बूढ़ी मां को उन के रिश्ते से या उन के साथ रहने से कोई ऐतराज नहीं था. वह तो चाहती थी कि जब दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं तो कोर्टमैरिज कर लें, लेकिन वह दोनों अभी कोर्टमैरिज नहीं करना चाहते थे. वे जैसे अपनी जिंदगी जी रहे थे, वैसे ही जीना चाहते थे.
जब से अनुराधा रेड्डी नर्स की नौकरी छोड़ कर एलआईसी एजेंट बनी थी, उस की किस्मत के सितारे बुलंदियों पर थे. एलआईसी से अकूत पैसा कमाया. यहीं से अनुराधा के जीवन की कुंडली में यमराज कुंडली मार कर बैठ गए थे. पैसा ही उस के जीवन के लिए काल बन गया था.
हुआ कुछ यूं था कि अनुराधा रेड्डी के पास जब खूब पैसे जमा हुए तो वह सूद पर पैसे बांटने लगी. उस ने बाजार में लाखों रुपए सूद पर बांट रखे थे. यह बात चंद्रमोहन भी जानता था. चूंकि चंद्रमोहन एक कौन्ट्रैक्टर था, ठेका लेना उस का पेशा था. एक बार बिजनैस में उस को बड़ा घाटा हुआ और लाखों रुपए डूब चुके थे.
बिजनैस को खड़ा करने के लिए उसे लाखों रुपए फिर से चाहिए थे. उस ने इस बारे में अपनी प्रेमिका अनुराधा से बात की कि उसे बिजनैस संभालने के लिए 7 लाख रुपए चाहिए. बिजनैस जैसे ही फिर से स्टैंड हो जाएगा तो वो सारे रुपए उसे लौटा देगा. ये बात साल 2018 की थी.
प्रेमी चंद्रमोहन का अनुराधा रेड्डी पर काफी एहसान था, उस के एहसान का बदला चुकाने का वक्त आ चुका था. फिर क्या था उस ने चंद्रमोहन को 7 लाख रुपए दे दिए.