15 शादियां करने वाला लुटेरा दूल्हा – भाग 1

बेंगलुरु की एक कंपनी में नौकरी करने वाली सौफ्टवेयर इंजीनियर निशा की उम्र 45 साल हो गई थी. लेकिन करिअर बनाने के चक्कर में अभी तक उन का विवाह नहीं हो पाया था. पहले पढ़ाई, फिर नौकरी और व्यवस्थित होने के चक्कर में वह विवाह के बारे में सोच ही नहीं पाईं. जब सोचा, तब तक इतनी उम्र हो चुकी थी कि लडक़ा मिलना आसान नहीं था.

घर वाले तो पहले ही हथियार डाल चुके थे. क्योंकि जब वह विवाह के लिए कह रहे थे, तब निशा करिअर का हवाला दे कर मना करती रही. अब इस उम्र में वे उस के लिए कहां लडक़ा ढूंढते. इसलिए उन्होंने तो पहले कह दिया था कि जब तुम्हारी इच्छा हो, तब विवाह कर लेना.

अब निशा को विवाह के बारे में खुद ही फैसला लेना था. वह अपने लिए कहां लडक़ा खोजने जाती. इसलिए उस ने अपना बायोडाटा और फोटो मैट्रीमोनियल साइट शादी डौट कौम पर डाल दिया था, साथ ही वह खुद भी शादी डौट कौम की साइट खोल कर लडक़ों की प्रोफाइल देखा करती थी कि शायद उस के लायक कोई लडक़ा मिल ही जाए.

निशा को महेश लगा कुछ खास

एक दिन उस की नजर एक प्रोफाइल पर पड़ी, जो उसे जम गई. लडक़ा डाक्टर था हड्डी रोग विशेषज्ञ, नाम था महेश केबी नायक. उम्र 35 साल, देखने में भी काफी स्मार्ट था. मैसूर का रहने वाला महेश उसे जम गया. लडक़ा उसे पसंद आया तो साइट के जरिए निशा ने उस से संपर्क किया. यह अगस्त, 2022 की बात है.

इस के बाद दोनों में बातें होने लगीं. बातचीत से निशा को लगा कि लडक़ा ठीकठाक है. जब वह मानसिक रूप से पूरी तरह संतुष्ट हो गई तो उस ने महेश नायक से शादी की बात की. दूसरी ओर महेश नायक भी विवाह के लिए तैयार था. जब दोनों को लगा कि सब ठीक है तो उन्होंने मिलने की बात की.

तब डाक्टर साहब ने कहा, “मेरा घर मैसूर में है, मैं यहीं रहता हूं. मेरी क्लीनिक भी यहीं है. मैं तो क्लीनिक बंद कर के आ नहीं सकता. क्या आप मैसूर आ सकती हैं?”

“क्यों नहीं, विवाह करना है तो मैसूर तो क्या, जहां आप बुलाओगे, वहां आना होगा. मैं बिलकुल मैसूर आ सकती हूं. आप से मुलाकात भी हो जाएगी और इसी बहाने मैसूर भी घूम लूंगी.” निशा ने कहा.

इस के बाद निशा मैसूर पहुंच गई. महेश ने उस की खूब आवभगत की. दोनों खूब घूमे, खूब बातें कीं. महेश ने निशा को मैसूर के पर्यटक स्थलों और प्रसिद्ध स्थानों को दिखाया. उसे अपना घर भी दिखाया, जो किराए का था. पर महेश ने उस घर को अपना बताया था. इस के बाद रिश्ता पक्का हो गया. यह 28 दिसंबर, 2022 की बात है.

निशा बेंगलुरु लौट आई. उस ने यह बात अपने घर वालों को बताई तो घर वाले भी खुश हुए और बेटी की शादी की तैयारी में लग गए. उधर महेश भी विवाह की तैयारी में लग गया. निशा विशाखापट्टनम की रहने वाली थी और बेंगलुरु में नौकरी करती थी. इसलिए विवाह विशाखापट्टनम से ही होने वाला था. दूसरी ओर महेश ने निशा को पहले ही बता दिया था कि उस के मांबाप नहीं है. केवल एक बड़ा भाई और कजिन हैं.

शादी के बाद महेश ने मांगे 70 लाख रुपए

विवाह के कार्ड वगैरह छप गए. विवाह की तारीख थी 28 जनवरी, 2023 तय हो गई. तब डा. महेश केबी नायक अपने बड़े भाई, कजिन और रिश्तेदारों के अलावा कुछ दोस्तों के साथ 28 जनवरी को विशाखापट्टनम पहुंच गया. विशाखापट्टनम के शानदार होटल में डाक्टर साहब और निशा की शादी होनी थी.

निशा के परिवार वाले, रिश्तेदार और दोस्तों की भीड़ थी, जबकि महेश की तरफ से गिनेचुने लोग ही बाराती के रूप में थे. यह बात डा. महेश ने पहले ही बता दी थी, इसलिए किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया. अगर दिया भी तो किसी और को इस से क्या मतलब था? विवाह में आया, खायापिया और जो उपहार देना था, दे कर चला गया.

अगले दिन 29 जनवरी को विदा हो कर निशा पति के घर यानी ससुराल आ गई. महेश निशा को अपार्टमेंट के उसी फ्लैट में ले आया था, जिसे उस ने अपना बताया था. जबकि अपने पुश्तैनी मकान के बारे में उस का कहना था कि उस के पुश्तैनी मकान को ले कर भाइयों में झगड़ा चल रहा है. इसलिए जब तक फैसला नहीं हो जाता, तब तक उन्हें इसी फ्लैट में रहना होगा. निशा को भला क्या ऐतराज होता. पति जहां रखेगा, वह वहीं रहेगी. फिर उस फ्लैट में कोई खराबी भी नहीं थी, जो निशा ऐतराज जताती. बहुत लोग फ्लैटों में रहते हैं.

वह पति के साथ आराम से रहने लगी और शादी एंजौय करने लगी.  ही बीते थे कि महेश कहने लगा कि उसे अपना खुद का क्लीनिक बनवाना है. इस के लिए वह उसे 70 लाख रुपए उधार दे दे. पर निशा ने पैसे देने से मना करते हुए कहा कि उस के पास इतने पैसे नहीं है. इसलिए वह उसे पैसे नहीं दे सकती. क्लीनिक ही बनवाना है तो बाद में बनवा लेना.

जब महेश को निशा से पैसे नहीं मिले तो वह कहने लगा कि उस के पास पैसे नहीं हैं तो अपने घर वालों से मांग ले. इस के लिए वह उस पर दबाव भी डालने लगा. पर निशा मायके वालों से भी पैसे लाने को तैयार नहीं हुई. इस से महेश को गुस्सा आ गया और उस ने निशा को धमकी दी. निशा का कहना था कि घर वालों ने शादी में पैसे खर्च किए, इतना दहेज दिया, फिर भी वह पैसे मांग रहा है.

यह सब चल ही रहा था कि एक दिन डाक्टर साहब ने कहा, “एक बहुत जरूरी सर्जरी के लिए मुझे मुंबई जाना है.”

“ठीक है, आप जाइए, पर लौटेंगे कब?”

“काम होते ही मैं लौट आऊंगा. पर एक बात का खयाल रखना. अगर कोई ढूढने आए या मेरे बारे पूछने आए तो उसे कुछ बताना मत कि मैं कहां गया हूं. क्योंकि जानती ही हो कि प्रौपर्टी को ले कर भाइयों में झगड़ा चल रहा है. करोड़ों की प्रौपर्टी का मामला है, कुछ भी हो सकता है. क्या पता क्या हो जाए.

“आज के समय में किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, भले ही वह भाई ही क्यों न हो. और हां, पुलिस भी आ सकती है, क्योंकि मुकदमा तो चल ही रहा है, लोग पुलिस से भी पकड़वा कर जेल भिजवा सकते हैं. इसलिए अगर पुलिस आए तो उस से भी मेरे बारे में कुछ मत बताना.”

निशा पढ़ी लिखी समझदार थी. उस ने कहा, “ठीक है, आप निश्चिंत हो कर जाइए, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी.”

“एक बात और, मैं डाक्टर हूं. पता नहीं किस समय कहां रहूं. हो सकता है, सर्जरी में रहूं, इसलिए तुम मुझे फोन मत करना. क्योंकि काम के समय मैं किसी का फोन अटेंड नहीं करता. जब मैं खाली रहूंगा, खुद ही फोन कर लूंगा.”

यह सब पत्नी को समझा कर डा. महेश चला गया. एक दिन बीत गया, महेश का फोन नहीं आया. दूसरा दिन भी बीत गया और तीसरा भी. जब महेश का फोन नहीं आया तो निशा को चिंता हुई. अभी नईनई शादी थी. नईनई शादी में लोग घंटे भर अकेले नहीं रह पाते, यहां तो 3 दिन बीत गए थे और पति का फोन नहीं आया तो चिंता होगी ही.

  कहां गायब हो गया था महेश? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग….                                                                                                                     

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या – भाग 3

आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एसपी राय सिंह नरवरिया ने एक पुलिस टीम बनाई. टीम में कोतवाली प्रभारी योगेंद्र सिंह, एसएचओ (महुआ) ऋषिकेश शर्मा, एसएचओ (दिमनी) मंंगल सिंह, एसएचओ (रामपुर), पवन भदौरिया, एसएचओ (सिहोरिया) रूबी तोमर को शामिल किया गया. आपसी रंजिश के चलते बदला लेने की जंग के 6 आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है.

पुलिस एनकाउंटर के बाद 9 मई को मुख्य आरोपी अजीत और उस के चचेरे भाई भूपेंद्र से पूछताछ में सामने आया कि पिछले एक दशक से वे बदले की आग में जल रहे थे. उस के परिवार ने इस नरसंहार की व्यूह रचना काफी समय पहले से तैयार कर रखी थी, लेकिन उन्होंने अपने इस खतरनाक इरादे को कभी जाहिर नहीं होने दिया. बस उन्हें बेसब्री से मौके का इंतजार था.

रिश्तेदारों के अनुरोध पर 3 मई को गजेंद्र सिंह तोमर का परिवार अहमदाबाद से मुरैना आ गय था, यहां वे थके मांदे होने की वजह से अपने रिश्तेदार के यहां ठहरे और 5 मई, 2023 की सुबह लोडिंग वाहनों में गृहस्थी के सामान सहित लेपा गांव पहुंचे.

अहमदाबाद से गजेंद्र सिंह के साथ उन की पत्नी कुसुमा देवी, बेटा वीरेंद्र उस की पत्नी केश कुमारी, नरेंद्र और उस की पत्नी बबली, संजू साधना, राकेश व सीमा, सुनील व मधु, सत्यप्रकाश सहित रंजना, सचिन, अनामिका, इशू, परी, आकाश, शिवा, खुशबू, सान्या, नातीनातिन तथा रघुराज सिंह और उन की पत्नी सरोज आए थे.

इन सभी को साथ ले कर गजेंद्र सिंह तोमर अपनी 10 साल से सूनी पड़ी खानदानी हवेली का ताला खोलने से पहले हवेली की देहरी पूजने के लिए शगुन का नारियल फोड़ा ही था, तभी विरोधी पक्ष के भूरे और जगराम लाठी, फरसा ले कर आ धमके और कहने लगे तुम लोग लेपा कैसे आ गए.

विरोधी पक्ष का यह व्यवहार देख कर गजेंद्र सिंह और उस का परिवार दंग रह गया. विरोधी पक्ष के अजीत सिंह, भूपेंद्र सिंह श्यामू ने चुन चुन कर गजेंद्र सिंह तोमर (64) और उस के 2 बेटे संजू सिंह (45), सत्यप्रकाश (38) और 3 बहुओं केश कुमारी (46), बबली (36) सहित मधु (30) को गोलियों से छलनी कर दिया गया.

जिस देहरी को छोड़ कर गजेंद्र सिंह का परिवार अहमदाबाद चला गया था, 10 साल बाद उसी हवेली की देहरी पर पहुंचते ही परिवार के आधा दरजन लोगों को मौत मिली.

आईजी जोन ने डाला गांव में डेरा

गजेंद्र सिंह तोमर परिवार के 6 सदस्यों की हत्या की सूचना मिलते ही सिहोनिया थाने की एसएचओ रूबी तोमर ने घटना की गंभीरता से पुलिस के आला अधिकारियों को अवगत करा दिया था. इसी सूचना पर पुलिस आईजी (चंबल जोन) सुशांत सक्सेना, डीएम अंकित अस्थाना, एसपी रायसिंह नरवरिया, एसडीएम एल.के. पांडेय लेपा पहुंच गए थे.

घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के बाद घायलों को अस्पताल पहुंचाने के साथ ही तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए पुलिस फोर्स तैनात कर दी थी. पुलिस अधिकारियों ने अपराधियों को जल्द पकडऩे का वादा कर किसी तरह हंगामा कर रहे गजेंद्र के परिजनों और रिश्तेदारों को शांत किया. घटनास्थल से अधिकारियों के जाते ही एसएचओ ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

हालांकि घटना वाले दिन से ही मृतकों के परिजन अंतिम संस्कार नहीं करने की हठ पर अड़े हुए थे, उन की मांग थी कि उन्हें शस्त्र लाइसेंस स्वीकृति करने के साथ ही परिवार को पुलिस सुरक्षा एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए. आरोपियों के मकान ध्वस्त किए जाएं.

पीडि़त परिवार ने अंतिम संस्कार करने से किया इंकार

मुरैना में पोस्टमार्टम के बाद एंबुलैंस से जैसे ही आधा दरजन शव गजेंद्र सिंह की पैतृक हवेली के सामने पहुंचे, गजेंद्र के बेटे राकेश सिंह और नरेंद्र सिंह तोमर सहित परिवार की महिलाओं ने पुलिस को शवों को एंबुलेंस से नहीं उतरने दिया.

देर रात तक जिला प्रशासन और एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान के काफी समझाने के बावजूद परिजन शवों को अंतिम संस्कार करने के लिए लेने को तैयार नहीं हुए तो रात गहराने पर पुलिस ने शवों को एंबुलेंस में ही रखा रहने दिया और एंबुलेंस को भारी पुलिस बल की मौजदूगी में लेपा के शासकीय स्कूल में खड़ा करवा दिया.

अगले दिन सुबह एक बार फिर जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों और रिश्तेदारों से मुलाकात की और उन्हें भरोसा दिलाया कि उन की सभी मांगों को मान लिया गया है, तब कहीं जा कर परिजन और रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए तैयार हुए.

पुलिस 3 एंबुलेंस में सभी शवों को ले कर आसन नदी के किनारे बने श्मशान घाट पहुंची, जहां सभी का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. पुलिस ने इस बहुचर्चित मामले में मुख्य आरोपी अजीत सिंह तोमर व भूपेंद्र सिंह तोमर को गिरफ्तार करने के साथ ही फरार 10 आरोपियों में से अब तक 6 आरोपियों को दबोच लिया है. वहीं भूमिगत आरोपियों पर पुलिस आईजी (चंबल जोन) सुशांत सक्सेना ने 30-30 हजार का इनाम घोषित कर दिया है.

इस कथा के लिखे जाने तक पुलिस धीर सिंह और रज्जो देवी को लेपा गांव से मुख्य आरोपी अजीत को पिता की हत्या का बदला लेने के लिए अपने बेटे के साथ में बंदूक थाम कर धिक्कारने वाली पुष्पा को इटावा से और सोनू तोमर को सीकर से, अजीत और भूपेंद्र तोमर को उसैद घाट से गिरफ्तार कर व्यापक पूछताछ के बाद भूपेंद्र तोमर की निशानदेही पर सिहोनिया पुलिस ने लेपा गांव में गजेंद्र सिंह तोमर परिवार की हत्या में प्रयुक्त की गई अवैध राइफल को गिरवी रखे मकान में भूसे में छिपा कर रखी बंदूक को भी जब्त कर चुकी हैं.

वहीं सोनू तोमर से भी पुलिस ने उस के बताए हुए स्थान से 315 बोर का एक कट्टा बरामद कर लिया है. रिमांड अवधि पूरी होने पर लेपा हत्याकांड के आधा दरजन आरोपियों को अंबाह कोर्ट में पेश कर जेल भेज चुकी है.

पुलिस भूमिगत हो गए 4 अन्य आरोपी धीर सिंह तोमर के तीनों बेटे रामू, श्याम सिंह, मोनू सिंह सहित मुंशी सिंह के भाई सूर्यभान की सरगरमी से तलाश कर रही थी. साथ ही साल 2013 में वीरभान तोमर व सोबरन तोमर की हत्या के मामले फरियादी पक्ष व गवाहों द्वारा गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार से मोटी रकम व मकान ले कर राजीनामा कर न्यायिक काररवाई को प्रभावित करने वाले लोगों को कोर्ट से सजा दिलवाने के केस को रीओपन करने की प्रक्रिया में लग गई है.

हालांकि जो औरतें विधवा हो गईं, बच्चे अनाथ हो गए, वे जब तक जिंदा रहेंगे उन का खून खौलता रहेगा. लेपा में एक ही परिवार के आधा दरजन लोगों की हत्या का जो लाइव वीडियो बना है, वह पीडि़त परिवार को कभी ये भूलने नहीं देगा. यह सोच कर दिल घबराता है कि ये सब देख कर गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के बच्चे बड़े होंगे तो क्या करेंगे?

पबजी गेम की आड़ में की मां की हत्या – भाग 2

बैठक में सब सामान्य था. वहां सामने 2 कमरों के दरवाजे नजर आ रहे थे. इंसपेक्टर धर्मपाल ने बाईं ओर के दरवाजे की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह बैडरूम था. इंसपेक्टर धर्मपाल ने जैसे ही कमरे में कदम रखा. तेज बदबू का झोंका उन की नाक से टकराया. रुमाल नाक पर होने के बावजूद इंसपेक्टर धर्मपाल का दिमाग झनझना उठा. उन्होंने रुमाल को नाक पर लगभग दबा ही लिया. उन की नजर बैड पर पड़ी तो वह पूरी तरह हिल गए.

बैड पर एक महिला का शव पड़ा हुआ था, जो काफी हद तक सड़ चुकी थी. नजदीक आ कर इंसपेक्टर धर्मपाल ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. महिला के माथे पर गहरा सुराख नजर आ रहा था, जिस के आसपास खून जम कर काला पड़ गया था. लाश सड़ जाने के कारण चेहरा काफी बिगड़ गया था और उस की पहचान कर पाना मुश्किल था.

लाश के पास ही एक रिवौल्वर रखा हुआ था. स्पष्ट था इसी रिवौल्वर से महिला के सिर में गोली मारी गई थी, जिस से इस की मौत हो गई है. उन के इशारे पर एक पुलिसकर्मी ने रिवौल्वर पर रुमाल डाला और उसे अपने कब्जे में ले लिया.

लाश 2-3 दिन पुरानी लग रही थी. उस में से असहनीय बदबू उठ रही थी. घटनास्थल की बारीकी से जांच कर लेने के बाद इंसपेक्टर धर्मपाल कमरे से बाहर आ गए.

‘‘यह लाश किस की है?’’ उन्होंने बैठक में खड़े दक्ष से सवाल किया.

‘‘यह मेरी मौम की लाश है.’’ दक्ष ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘इन्हें मैं ने गोली मारी है.’’

इंसपेक्टर धर्मपाल ने हैरानी से दक्ष की तरफ देखा. उन्हें विश्वास नहीं हुआ, 16 साल का यह लडक़ा बड़ी सरलता से अपनी मां को गोली मार देने की बात स्वीकार कर रहा है, क्या यह सच बोल रहा है?

‘‘तुम ने अपनी मां को गोली मारी है?’’ इंसपेक्टर हैरानी से बोले, ‘‘क्या तुम ठीक कह रहे हो?’’

‘‘मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं सर. मैं ने ही अपनी मौम को गोली मारी है.’’ दक्ष बेहिचक बोला.

‘‘तुम ने अपनी मां को गोली क्यों मारी और यह रिवौल्वर तुम कहां से लाए हो?’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने रुमाल में बंधा रिवौल्वर दिखा कर पूछा.

‘‘रिवाल्वर मेरे डैड का है सर. इस का लाइसेंस है डैड के पास. यह रिवौल्वर उन्होंने सुरक्षा के लिए घर में ही रखा हुआ था. मौम मुझे पबजी गेम खेलने से मना करती थी. बातबात पर मुझे पीटती रहती थी. मैं कब तक सहन करता सर… इसलिए शनिवार और रविवार की रात को मौम को गोली मार दी थी.’’

‘‘यानी 3 जून और 4 जून, 2023 की रात को तुम ने अपनी मां की गोली मार कर हत्या कर दी. हत्या किए हुए कई दिन हो गए, क्या तुम इतने समय तक इसी घर में मां की लाश के साथ रहे?’’

‘‘और कहां जाते सर. मैं और मेरी बहन प्रियांशी हत्या के बाद से घर में ही हैं.’’

इंसपेक्टर धर्मपाल को दक्ष की बेबाकी और हिम्मत दिखाने पर हैरानी हो रही थी. मां की हत्या कर के यह लडक़ा अपनी बहन के साथ सड़ती जा रही लाश के साथ बड़ी बेफिक्री से अपने घर में ही जमा रहा है, यह हैरानी की ही बात है. यदि पड़ोसी इस असहनीय बदबू की सूचना पुलिस को नहीं देते तो न जाने कब तक दोनों भाई बहन लाश के साथ घर में ही रहते.

इंसपेक्टर धर्मपाल घर से बाहर आ गए. बाहर आसपास के लोग एकत्र हो कर नवीन कुमार सिंह के घर में आई पुलिस के बाहर आने का बेचैनी से इंतजार कर रहे थे. वे लोग यह जानने को उत्सुक थे कि नवीन कुमार सिंह के घर में ऐसी कौन सी चीज सड़ रही है, जिस की बदबू ने सभी को परेशान करके रख छोड़ा है.

‘‘क्या इस बदबू का राज मालूम हुआ सर?’’ शर्माजी ने आगे बढ़ कर इंसपेक्टर धर्मपाल से पूछा.

‘‘हां, दक्ष ने अपनी मां की गोली मार कर 3 दिन पहले हत्या कर दी है. लाश सड़ गई है, यही यहां फैल रही बदबू का कारण है.’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने बताया.

उन की बात सुन कर सभी हैरान रह गए.

‘‘दक्ष की मां का नाम बताएंगे आप?’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने शर्माजी से पूछा.

‘‘साधना सिंह था दक्ष की मां का नाम.’’ शर्माजी बोले.

‘‘आप इन के पति का फोन नंबर जानते हैं तो मेरी बात करवाइए शर्माजी.’’

‘‘ठीक है सर.’’ कहने के बाद शर्माजी ने नवीन कुमार सिंह का मोबाइल नंबर अपने मोबाइल से निकाल कर मिलाया. घंटी बजते ही दूसरी तरफ से नवीन कुमार सिंह ने काल रिसीव कर ली, ‘‘हैलो शर्माजी… मेरी पत्नी साधना आप को नजर आ गई हो तो.. मेरी बात करवाइए प्लीज.’’ नवीन कुमार सिंह के स्वर में बहुत उतावलापन था.

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं रही नवीनजी. मैं ने पुलिस को इनफौर्म कर दिया है. लीजिए इंसपेक्टर साहब से बात कीजिए.’’ शर्माजी ने मोबाइल इंसपेक्टर धर्मपाल की तरफ बढ़ा दिया.

‘‘मिस्टर नवीन कुमार सिंह, मैं इंसपेक्टर धर्मपाल बोल रहा हूं. आप के लिए बड़ी बुरी खबर है, आप के बेटे दक्ष ने आप की पत्नी साधना सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

‘‘मेरे बेटे दक्ष ने…ओह!’’ दूसरी तरफ से नवीन कुमार सिंह का घबराया हुआ स्वर उभरा, ‘‘मुझे ऐसा ही लग रहा था सर..यह दक्ष किसी दिन ऐसा कदम उठा सकता है… मेरा तो सब कुछ उजड़ गया.’’

‘‘आप यहां आ जाइए नवीनजी…’’ इंसपेक्टर धर्मपाल गंभीर हो गए, ‘‘मुझे आप के बेटे को पुलिस कस्टडी में लेना पड़ेगा. वह अपना गुनाह कुबूल कर रहा है.’’

‘‘जैसा आप उचित समझें इंसपेक्टर, मैं लखनऊ आ रहा हूं.’’ नवीन सिंह ने आहत स्वर में कहा और संपर्क काट दिया.

इंसपेक्टर धर्मपाल अपने उच्चाधिकारी को इस घटना की जानकारी देने के लिए अपने मोबाइल से नंबर मिलाने लगे थे. साधना सिंह की लाश को फोरैंसिक जांच करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया था.

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या – भाग 2

शादी के घर में बिछ गईं 6 लाशें

रंजना ने पुलिस को भी बताया कि उस के बाबा गजेंद्र सिंह तोमर काफी समझदार थे. 2013 में हुई वीरभान तोमर और सोबरन सिंह तोमर की हत्या के बाद आंसुओं में डूबे मृतक वीरभान और सोबरन के परिजन बदले की आग में परिवार के साथ किसी तरह की हैवानियत न कर दें, इसलिए बाबा ने अपने परिवार सहित पैतृक गांव को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था और वे अपने बेटेबहुओं और नातीनातिन को साथ ले कर अहमदाबाद के नारोलकोट में रहने लगे थे.

अहमदाबाद में बड़ा बेटा वीरेंद्र सिंह तोमर प्राइवेट नौकरी कर के किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करने लगा था, लेकिन असल मुश्किल वक्त तब आया, जब 20 अक्टूबर 2013 को लेपा में हुई सोबरन और वीरभान की हत्या के मामले में 23 जनवरी, 2020 को वीरेंद्र सिंह तोमर को जेल जाना पड़ा, तब वीरेंद्र के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा.

उस वक्त वीरेंद्र सिंह की दूसरे नंबर की बेटी रंजना सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी. वीरेंद्र के जेल जाते ही उस की पत्नी केश कुमारी और रंजना के कंधों पर परिवार को चलाने की जिम्मेदारी आ गई. पैसे की तंगी के चलते वीरेंद्र सिंह की बड़ी बेटी वंदना को भी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ी. वैसे भी वंदना का रिश्ता वीरेंद्र ने जेल जाने से पहले तय कर दिया था. इस वजह से वह अपनी मां, छोटी बहन और मौसी बबली के साथ काम पर भी नहीं जा सकती थी.

ऐसी विषम परिस्थितियों में वीरेंद्र की पत्नी केश कुमारी और छोटी बेटी रंजना धागे की एक फैक्ट्री में काम करने जाने लगे थे, लेकिन दुर्भाग्यवश कोरोना के दौरान धागा फैक्ट्री बंद हो गई. 2021 में वीरेंद्र ने महज 8 दिन के पैरोल पर आ कर जैसे तैसे बड़ी बेटी के हाथ पीले करने की रस्म अदा की और वापस जेल लौट गया.

वीरेंद्र जिन दिनों जेल में बंद था, उस दौरान रंजना से छोटी बहन शैलेंद्री को भी स्कूल जाना बंद करना पड़ा था. वक्त अपनी गति से बढ़ता रहा. दरअसल, अहमदाबाद में ही रह रहे नरेंद्र और उस की पत्नी बबली ने अपनी दोनों बेटियों संध्या और शिवानी का रिश्ता तय करने के साथ ही विवाह की तारीख भी तय कर दी थी, लेकिन ऐसा कोई नहीं जानता था कि इस तरह बेटियों की शादी करने से पहले ही बबली इस तरह दुनिया छोड़ कर चली जाएगी.

वैसे भी नरेंद्र एक पैर से अपाहिज होने के कारण कोई काम नहीं कर पाते थे, इसलिए बबली ही अहमदाबाद में अपनी बहन के साथ काम पर जा कर किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करती थी. मां के मारे जाने का गम बबली की दोनों बेटियों के चेहरे पर साफ झलकता है.

जून में होने वाली अपनी शादी को ले कर दोनों बहनों में किसी तरह का उत्साह नहीं रह गया है. वे दोनों यह सोच कर परेशान हैं कि अगले महीने शादी के बाद हम दोनों अपनीअपनी ससुराल चली जाएंगी तो दिव्यांग पिता और छोटे भाई की देखभाल कौन करेगा?

पूरी प्लानिंग से हुआ हमला

5 मई, 2023 की सुबह ताबड़तोड़ फायरिंग हुई, जिस में एक के बाद एक 6 लाशें बिछ गईं. दरअसल, एक पखवाड़े पहले ही दोनों पक्षों में कोथर में रहने वाले नरेंद्र सिंह के घर पर धीर सिंह और वीरेंद्र में सुलह हो गई थी. वीरेंद्र से 7 लाख रुपए और मकान ले कर धीर सिंह तोमर ने सुलह के कागजात में स्पष्ट तौर पर लिखा था कि 2013 में हुई हत्या में आप लोग शामिल नहीं थे. हमारे दोनों गवाह कोर्ट में आप के पक्ष में बयान देंगे.

10 साल पहले पैतृक गांव छोड़ चुका गजेंद्र सिंह तोमर का परिवार पुराने झगड़े में विरोधी पक्ष से सुलह हो जाने के बाद धीर सिंह तोमर की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपने दिव्यांग बेटे नरेंद्र की दोनों बेटियों संध्या और शिवानी की शादी अपनी पैतृक हवेली से करने के लिए परिवार सहित लेपा लौटा था. गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार को कतई अंदेशा नहीं था कि विरोधी पक्ष के धीर सिंह तोमर ने सोचीसमझी योजना के तहत ही मोटी रकम और मकान ले कर समझौता किया है.

हैरानी वाली बात यह है कि 2013 में रंजीत सिंह तोमर के हाथों मारे गए मृतकों के बेटों ने अपने पिता की मौत का बदला गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 3 पुरुष और 3 महिलाओं को फिल्मी अंदाज में मौत के घाट उतार कर ले लिया. अजीत और भूपेंद्र की योजना इसी परिवार के रंजीत सिंह तोमर को भी मारने की थी, लेकिन घटना वाले दिन गजेंद्र सिंह के मना करने की वजह से रंजीत लेपा नहीं आया था.

हैवान बने अजीत सिंह ने नरेंद्र सिंह तोमर पुत्र गजेंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह पुत्र गजेंद्र सिंह तोमर, विनोद सिंह पुत्र सुरेश सिंह तोमर को गोली मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया.

गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार में कुल 29 सदस्य थे. उन के 6 बेटे थे वीरेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह, संजू सिंह, राकेश सिंह, सुनील सिंह और सत्यप्रकाश सिंह. अब इन में से 6 लोगों की हत्या कर दी गई है. परिवार में अब 23 सदस्य शेष बचे हैं.

10 लोगों के खिलाफ लिखाई नामजद रिपोर्ट

इस हत्याकांड का एक और दुखदाई पहलू यह है कि शुक्रवार की मनहूस सुबह गोलियों से भून डाली गई सुनील सिंह की पत्नी मधु तोमर 7 महीने की गर्भवती थी. हत्या का आरोप जिस पर लगा है, वह मुंशी सिंह तोमर का परिवार है. अब मुंशी सिंह तोमर के परिवार के सदस्यों के बारे में भी जान लेते हैं, इस के बाद समझेंगे कि इस नरसंहार में किस की, क्या भूमिका है.

मुंशी सिंह के 5 बेटे थे, रामवीर सिंह तोमर, सोबरन सिंह तोमर, धीर सिंह तोमर, शिवचरन सिंह तोमर और वीरभान सिंह तोमर. सब से बड़े बेटे रामवीर सिंह के 3 बेटे हैं, लेकिन इन का परिवार लेपा गांव से 3 किलोमीटर दूर मकान बना कर रहता है. इन का एक बेटा फौज में है, 2 प्राइवेट नौकरी करते हैं.

शुक्रवार को घटी घटना से इन का कोई लेनादेना नहीं है. दूसरे नंबर का बेटा सोबरन सिंह तोमर है, जिस की हत्या 2013 में गोबर डालने को ले कर हुए विवाद के चलते हो गई थी. सोबरन के 4 बेटे जगराम सिंह, राधेश्याम सिंह तोमर, बलराम सिंह तोमर, भूपेंद्र सिंह तोमर उर्फ भूरा हैं.

मुंशी सिंह के तीसरे बेटे धीर सिंह तोमर के 3 बेटे हैं. चौथे नंबर का बेटा शिवचरन दिव्यांग है. इस की अभी शादी नहीं हुई है, सब से छोटे वीरभान सिंह के 2 बेटे हैं. गजेंद्र सिंह परिवार के हत्याकांड में मुंशी सिंह के भाई सूरजभान का बेटा गौरव सिंह तोमर भी आरोपी बना है.

गजेंद्र सिंह के परिवार के साथ घटी घटना के बाद मृतक गजेंद्र सिंह तोमर के बेटे सुनील सिंह तोमर की तहरीर के आधार पर सिहोनिया थाने में भादंवि की धारा 302, 307, 323, 294, 506, 147, 148, 149 के तहत 10 आरोपयों भूपेंद्र सिंह, अजीत सिंह, सोनू तोमर, श्यामू, मोनू, रामू, गौरव, रज्जो, धीर सिंह और पुष्पा के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.

खतरनाक साजिश का सूत्रधार

सुरेंद्र सिंह अच्छा ट्रैक्टर मैकेनिक था और अमृतसर के बसअड्डे के पास उस का अपना वर्कशौप था. उस का कामधाम भी ठीक था और कमाई भी बढि़या थी. वर्कशाप से  इतनी आमदनी हो जाती थी कि वह अपने परिवार का गुजरबसर आराम से कर रहा था. लेकिन वह अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं था.

दरअसल, सुरेंद्र सिंह शातिर और खुराफाती दिमाग वाला था. यही वजह थी कि वह ढेर सारी दौलत हासिल कर के बहुत जल्दी अमीर बनने के सपने देखता था. अपनी इस लालसा को पूरी करने के लिए शातिर दिमाग वाला सुरेंद्र सिंह कुछ भी करने को तैयार था. वह जानता था कि वर्कशौप की कमाई से वह कभी भी अमीर नहीं बन सकता. क्योंकि वह जो कमाता था, वह सारा का सारा खर्च हो जाता था. इसीलिए वह अमीर बनने के लिए कोई शार्टकट रास्ता ढूंढ़ने लगा था.

सुरेंद्र सिंह के 3 बेटे थे. बड़े बेटे सुखचैन सिंह की शादी हो चुकी थी. वह उस के साथ ही रहता था. बाकी के 2 बेटे मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह विदेश में रहते थे. समयसमय पर वे परिवार से मिलने भारत आते रहते थे.  मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह जब भी घर आते, वहां के बहुत से किस्से सुनाते. अमीर बनने का सपना देखने वाला सुरेंद्र सिंह उन्हीं किस्सों को सुन कर अमीर बनने के लिए तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा.

मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह ने एक बार बातचीत में बताया था कि अमेरिका और इंग्लैंड में शातिर और चालाक किस्म के लोग खुद को मरा साबित कर के बीमा कंपनियों से मोटी रकम ऐंठ लेते हैं और पूरी उम्र ऐश करते हैं.

बेटों ने तो मजा लेने के लिए यह किस्सा सुनाया था. लेकिन उन की कही बात सुरेंद्र सिंह के शैतानी दिमाग में गहरे तक बैठ गई थी. वह सोचने लगा कि जब अमेरिका और इंग्लैंड में बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठा जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं? उसे लगा कि बीमा कंपनियां उस के अमीर बनने का जरिया बन सकती हैं.

इस के बाद सुरेंद्र सिंह का शैतानी दिमाग बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठने की योजना बनाने लगा. जल्दी ही योजना का पूरा खाका तैयार कर के वह उस पर काम करने लगा. उस ने जो योजना बनाई थी, उस में परिवार के बाकी सदस्यों का सहयोग जरूरी था.

सुरेंद्र सिंह ने पूरी योजना घर वालों को तो बताई ही, विदेश में रहने वाले दोनों बेटों को भी समझा दी. वह बीमा कंपनियों को धोखा दे कर लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों रुपए ऐंठना चाहता था. उस के इरादे पर बीमा कंपनियों को शक न हो, इस के लिए उस ने अपने एक बहुत ही करीबी साहब सिंह को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

साहब सिंह उस की इस योजना में शामिल तो नहीं होना चाहता था, लेकिन मजबूरीवश शामिल हो गया था. क्योंकि उस की 2 बेटियां थीं और उस की माली हालत ठीक नहीं थी. पैसों की सख्त जरूरत होने की वजह से वह सुरेंद्र सिंह की योजना में शामिल हो गया था. सुरेंद्र सिंह ने साहब सिंह को भरोसा दिलाया था कि योजना के सफल होने पर बीमा कंपनियों से जो पैसे मिलेंगे, उस में से एक बड़ा हिस्सा वह उसे भी देगा.

अपने परिवार और साहब सिंह को योजना में शामिल करने के बाद सुरेंद्र सिंह ने अलगअलग बीमा कंपनियों में अपने और साहब सिंह के नाम से लगभग डेढ़ करोड़ रुपए का बीमा करवा डाला. उस ने साहब सिंह का जो बीमा करवाया था, उस की किश्तें भी उसी ने अपने पास से जमा कराई थीं.

सुरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को तो अपनी योजना के बारे में बता दिया था, लेकिन साहब सिंह ने ऐसा कुछ नहीं किया था. उसे आशंका थी कि उस की पत्नी सुनंदा इस गलत काम में उस का साथ नहीं देगी. इसलिए इस योजना को उस ने अपने तक ही सीमित रखा था.

सुरेंद्र सिंह बीमा पालिसियों की किश्तें सही समय पर चुकाने के साथ अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी भी करता रहा.

जब सुरेंद्र सिंह ने देखा कि अब योजना को अंजाम देने का समय आ गया है तो उस ने एक नई कार खरीद ली. 21 जनवरी, 2014 को वह उसी कार से साहब सिंह के साथ निकला. वह क्या करने जा रहा है, यह उस ने साहब सिंह को भी नहीं बताया था. लेकिन जब साहब सिंह बारबार पूछने लगा तो उस ने खतरनाक मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘हमें अपनी योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 2 शिकार ढूंढने हैं.’’

‘‘शिकार का मतलब?’’ साहब सिंह ने पूछा.

‘‘शिकार का मतलब है, ऐसे 2 आदमी जो हमें बीमा कंपनियों से करोड़ों रुपए दिलाएंगे.’’

बात साहब सिंह की समझ में आ गई. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘इस का मतलब रुपयों के लिए हमें 2 बेगुनाहों की हत्या करनी पड़ेगी?’’

‘‘इस के अलावा हमारे पास कोई दूसरा उपाय भी नहीं है. अगर करोड़ों रुपए पाने हैं तो पहले हम दोनों को मरना पडे़गा. लेकिन हम सचमुच में मरने नहीं जा रहे हैं. हम दोनों जिंदा ही रहेंगे, हमारी जगह किसी दूसरे को मरना होगा. हम उन्हीं की तलाश में चल रहे हैं.’’

सुरेंद्र सिंह ने कुछ आगे जा कर अमृतसर की सब्जीमंडी के पास एक जगह अपनी कार रोक दी. सुबह का समय था, इसलिए दिहाड़ी पर काम करने वाले कुछ आप्रवासी मजदूर काम की तलाश में सड़क के किनारे खड़े थे. कार में से उतर कर सुरेंद्र सिंह मजदूरों के पास पहुंचा तो कुछ मजदूरों ने उसे घेर लिया.

कुछ ही देर में 2 मजदूरों को साथ ले कर सुरेंद्र सिंह वापस आ गया. काम मिलने की वजह से दोनों मजदूर काफी खुश नजर आ रहे थे. उन्हें कार में बैठा कर सुरेंद्र सिंह अपने वर्कशौप पर पहुंचा. काम का तो बहाना था. दोनों मजदूरों को शाम तक रोकना था, इसलिए वह उन से छोटेमोटे काम कराता रहा.

शाम को मजदूरों के जाने का समय हुआ तो सुरेंद्र सिंह ने शराब की बोतल खोल दी. साहब सिंह साथ ही था. शराब देख कर मजदूरों के मन में लालच आ गया. सुरेंद्र सिंह ने इस बात को भांप लिया. उस ने उन से भी शराब पीने को कहा. सुरेंद्र सिंह के इरादों से बेखबर दोनों मजदूर पीने बैठ गए.

दोनों मजदूरों ने शराब पीनी शुरू की तो पीते ही चले गए. सुरेंद्र सिंह उन्हें ज्यादा से ज्यादा शराब पिलाना चाहता था. इसलिए बोतल खत्म हुई तो उस ने दूसरी मंगा ली. क्योंकि यही शराब उस के काम को आसान बना सकती थी.

मजदूर शराब पीते गए और सुरेंद्र सिंह उन्हें पिलाता गया. शराब पीतेपीते मजदूर इस हालत में पहुंच गए कि उन का खुद पर नियंत्रण नहीं रह गया. एक तरह से वे बेहोशी वाली हालत में पहुंच गए. जब सुरेंद्र सिंह ने देखा कि अब मजदूर विरोध करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं तो उस ने साहब सिंह के साथ मिल कर उन की गला दबा कर हत्या कर दी.

उन की हत्या करने के बाद सुरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को इस बात की सूचना दे कर समझाया कि अब आगे वह क्या करेगा और उस के बाद उन लोगों को क्या करना है.

आधी रात के बाद सुरेंद्र सिंह ने साहब सिंह के साथ मिल कर दोनों मजदूरों की लाशों को कार में डाला और जालंधर जाने वाले राजमार्ग पर चल पड़ा. दोनों लाशों को ज्यादा दूर ले जाना ठीक नहीं था. क्योंकि अगर कहीं पुलिस चैकिंग मिल जाती तो वे पकड़े जा सकते थे.

लगभग 8-10 किलामीटर दूर जा कर सुरेंद्र ने कस्बा मानावालां के पास एक सुनसान जगह पर कार रोक दी. उस समय हलकीहलकी बरसात हो रही थी. सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह ने अपने शरीर से कुछ चीजें उतार कर मजदूरों को पहना दीं, जिस से शिनाख्त में पता चले कि वे लाशें सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की थीं. इस के बाद कार की डिकी से मिट्टी के तेल से भरा डिब्बा निकाल कर दोनों ने कार के अंदर और बाहर डाल कर आग लगा दी.

कार के साथसाथ 2 बेगुनाहों की लाशें धूधू कर के जलने लगीं. उस समय हो रही बरसात को देख कर यही लग रहा था कि सुरेंद्र और साहिब सिंह के इस गुनाह पर आसमान रो रहा है.

22 जनवरी की सुबह कुछ लोगों ने मानावालां कस्बे के पास सड़क किनारे एक कार को जली हुई हालत में देखा तो इस की जानकारी पुलिस को दी. सूचना मिलने पर पुलिस वहां पहुंची तो देखा, कार लगभग पूरी तरह से जल चुकी थी. गौर से देखने पर पता चला, कार के साथ 2 आदमी भी जल गए थे.

बड़ा ही खौफनाक मंजर था. कार भले ही पूरी तरह जल गई थी, लेकिन उस की नंबर प्लेट काफी हद तक सुरक्षित थी. कार के नंबर से पुलिस ने जली कार के मालिक का पता लगा लिया. पुलिस को पता चल गया कि कार बसअड्डे के पास ट्रैक्टर का वर्कशौप चलाने वाले सुरेंद्र सिंह की थी.

पुलिस ने तत्काल इस की सूचना सुरेंद्र सिंह के घर वालों को दी. इस के बाद पहले से लिखी गई स्क्रिप्ट के अनुसार नाटक शुरू हुआ. जली हुई कार और उस के साथ जले लोगों की शिनाख्त के लिए सुरेंद्र सिंह का भाई अवतार सिंह, अपने भांजे रंजीत सिंह के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया. जली हुई कार और लाशें देख कर दोनों फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाशों की शिनाख्त सुरेंद्र सिंह और उस के साथी साहब सिंह के रूप में कर दी.

इस के बाद मृतक सुरेंद्र सिंह के भाई अवतार सिंह ने पुलिस को बताया कि सुरेंद्र सिंह पिछले कुछ दिनों से बीमार रहता था. उस ने स्थानीय डाक्टरों से काफी इलाज कराया, लेकिन यहां के डाक्टर उस की बीमारी को समझ नहीं सके. इसलिए चंडीगढ़ स्थित पीजीआई में दिखाने के लिए वह 22 जनवरी की सुबह 4 बजे के करीब अपने दोस्त साहब सिंह के साथ घर से निकला था.

अवतार सिंह ने पुलिस को यह भी बताया था कि सुरेंद्र सिंह ने जो नई कार खरीदी थी, उस में ईंधन रिस रहा था. कई बार डीलर से इस की शिकायत भी की गई थी. यह बताने का उन का मकसद था कि पुलिस इस हादसे को कार की तकनीकी खराबी की वजह से हुआ हादसा समझे.

कार से बरामद लाशों की हालत इतनी बुरी थी कि किसी भी हालत में पहचाना नहीं जा सकता था, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र सिंह के भाई और भांजे की बात मान ली. पुलिस ने तकनीकी खराबी की वजह से कार में आग लगने और उस में सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के जल कर मरने की बात को हादसा मानते हुए रिपोर्ट तैयार कर के फाइल बंद कर दी.

दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के घर वालों ने सब के सामने ऐसा नाटक किया, जैसे दोनों सचमुच मर गए हैं. उन के मरने के बाद की सारी रस्में पूरी की गईं. उन की आत्मा की शांति के लिए अखंड पाठ करवा कर भोग भी डाला गया. यह सब होने के बाद सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की मौत को ले कर किसी भी तरह के शक की गुंजाइश नहीं रह गई.

दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह अपना हुलिया बदल कर अलगअलग ठिकानों पर छिप कर रहे रहे थे. सुरेंद्र सिंह लगातार घर वालों के संपर्क में था. वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी बीमा की रकम घर वालों को मिल जाए तो वह हमेशा के लिए अमृतसर छोड़ कर किसी दूसरे शहर में बस जाए. बीमा की रकम 2 करोड़ के आसपास थी.

2 हत्याएं करने के बाद भी सुरेंद्र सिंह पूरी तरह निश्चिंत था. अब उसे केवल बीमा कंपनियों से मिलने वाले पैसे की चिंता थी. उस का दुस्साहस ही था कि जिस शहर (अमृतसर) के लोगों की नजरों में वह और उस का साथी साहब सिंह मर चुका था, उसी शहर के शराबखानों में बैठ कर दोनों शराब पीते थे. बदले हुलिए की वजह से उन्हें भ्रम था कि कोई भी उन्हें पहचान नहीं पाएगा.

लेकिन ऐसा नहीं था. कुछ लोगों ने बदले हुए हुलिए के बावजूद सुरेंद्र सिंह को पहचान लिया था. सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के कार में जल कर मरने की कहानी उन लोगों को पता थी. जब उन लोगों ने दोनों को जिंदा देखा तो उन्हें हैरानी हुई. धीरेधीरे उन के जिंदा होने की अफवाह फैलने लगी. जबकि दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह छिप कर अपने घर वालों के माध्यम से बीमा कंपनियों से रुपए ऐंठने की कागजी काररवाई करवाने में लगा था.

साहब सिंह के प्रति भी सुरेंद्र सिंह की नीयत ठीक नहीं थी. उस ने उस का जो बीमा करवाया था, उस रकम को वह पूरा का पूरा हड़प जाना चाहता था. साहब सिंह के नाम से 40 लाख की पालिसी थी. कायदे से साहब सिंह के मरने के बाद वह रकम उस की पत्नी सुनंदा को मिलनी चाहिए थी. जबकि सुनंदा को इस बात की कोई जानकारी ही नहीं थी.

यही वजह थी कि साहब सिंह के नाम जो 40 लाख की पालिसी थी, उस रकम को लेने के लिए सुरेंद्र सिंह के घर वालों ने किसी दूसरी औरत को सुनंदा बना कर बीमा कंपनी के अधिकारियों के सामने पेश कर दिया. बाद में उस की यह धोखेबाजी उसी के लिए घातक साबित हुई.

40 लाख की रकम कोई मामूली रकम तो थी नहीं, इसलिए बीमा कंपनी रकम अदा करने से पहले हर तरह का संदेह दूर कर लेना चाहती थी. इस की जांच के लिए बीमा कंपनी की एक टीम मुंबई से अमृतसर आई. जब यह टीम साहब सिंह के घर पहुंची और सुनंदा से बात की तो पता चला कि उसे तो इस बीमा पालिसी के बारे में कुछ पता ही नहीं था.

साहब सिंह की पत्नी सुनंदा ने जब इस मामले में अनभिज्ञता जाहिर की तो जांच करने आए बीमा कंपनी के अधिकारियों को लगा कि किसी साजिश के तहत बीमा कंपनी से ठगी की कोशिश की जा रही थी. इस के बाद उन्होंने इस मामले की जानकारी पुलिस को देने का फैसला किया.

दूसरी ओर अब तक सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के जिंदा होने की खबरें काफी जोर पकड़ चुकी थीं. किसी ने यह जानकारी पंजाब ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष अजीत सिंह बैंस, जो पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस भी रह चुके थे, को दी तो उन्हें यह सारा मामला रहस्यमय लगा. उन्होंने आर्गेनाइजेशन के मुख्य जांच अधिकारी सरबजीत सिंह को सच्चाई का पता लगाने को कहा.

सरबजीत सिंह कई लोगों से तो मिले ही, साथ ही सुरेंद्र सिंह के घर वालों की गतिविधियों पर भी नजर रखनी शुरू कर दी. इस से जल्दी ही उन्हें पता चल गया कि सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह मरे नहीं, जिंदा हैं. जब उन्होंने यह बात अजीत सिंह बैंस को बताई तो उन्हें यह मामला काफी गंभीर लगा, क्योंकि अगर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह जिंदा थे तो कार में जल कर मरने वाले 2 लोग कौन थे?

अब इस मामले की जानकारी पुलिस को देनी जरूरी था. कार मानावालां कस्बे के पास जली थी. यह इलाका अमृतसर देहात के अंतर्गत आता था. अजीत सिंह बैंस ने इस पूरे मामले की जानकारी अमृतसर (देहात) के एसएसपी गुरप्रीत सिंह गिल को दी तो उन्हें यह मामला सनसनीखेज और बेहद संगीन लगा. उन्होंने तत्काल इस की जांच कराने की जिम्मेदारी एसपी (डिटेक्टिव) राजेश्वर सिंह को सौंप दी.

एसपी राजेश्वर सिंह ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रछपाल सिंह को सौंपी. उन्होंने जांच शुरू की तो साजिश की परतें एकएक कर के खुलने लगीं. जांच शुरू करते ही उन्हें पता चल गया कि इस खौफनाक साजिश में कई लोग शामिल थे, लेकिन पुलिस पहले इस साजिश के सूत्रधार सुरेंद्र सिंह और उस के साथी साहब सिंह को दबोचना चाहती थी, जो मर कर भी जिंदा घूम रहे थे.

इंसपेक्टर रछपाल सिंह ने सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मारने शुरू कर दिए. इस से सुरेंद्र सिंह को पुलिस काररवाई की भनक लग गई. पुलिस उस तक पहुंचती, उस के पहले ही वह गायब हो गया. लेकिन साहब सिंह पुलिस के हाथ लग गया. पुलिस ने उसे गग्गोबुआ गांव से उस के भांजे रंजीत सिंह के घर से पकड़ा था.

साहब सिंह को थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने रोंगटे खड़े कर देने वाली खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने भादंवि की धाराओं 302, 364, 420, 436, 115, 120बी और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर के सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के अलावा अन्य लोगों को नामजद किया. ये लोग थे सुरेंद्र सिंह की पत्नी जसबीर कौर, तीनों बेटे मुख्तयार सिंह, सुखचैन सिंह और सुखवंत सिंह, बहू सरबजीत कौर, भाई अवतार सिंह, भांजा रंजीत सिंह और सुरेंद्र सिंह का साला सुरेंद्र सिंह.

सुरेंद्र सिंह की पत्नी जसबीर कौर, बेटे सुखचैन सिंह और सरबजीत कौर को पुलिस ने 16 मार्च को ही गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह को पनाह देने वाले निशान सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया.

कथा लिखे जाने तक नामजद लोगों में से 7 लोग गिरफ्तार हो चुके थे. मुख्य अभियुक्त सुरेंद्र सिंह अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर था. साजिश में शामिल सुरेंद्र सिंह के 2 बेटे मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह आस्ट्रेलिया में थे. पुलिस ने उन्हें भारत लाने की कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

पुलिस को उम्मीद है कि एक न एक दिन सभी अभियुक्त पकड़े जाएंगे. लेकिन उन के पकड़े जाने पर भी उन दोनों बेगुनाहों के बारे में पता नहीं चल पाएगा कि वे कौन थे और कहां से आए थे, जो बेमौत मारे गए. जबकि उन के घर वाले उन के आने की राह देख रहे होंगे.

पबजी गेम की आड़ में की मां की हत्या – भाग 1

साधना सिंह बहुत बदहवास नजर आ रही थी. 3 बार उस ने अपने बैडरूम में रखी अलमारी का लौकर और ड्राअर का सामान उलटपलट कर के अच्छे से चैक कर डाला था. रात को ही उस ने 10 हजार रुपए अलमारी में रखे थे, वे गायब थे.

‘कहां गए 10 हजार रुपए?’ वह बड़बड़ाई, ‘सारा दिन तो वह घर में ही थी, कोई आयागया भी नहीं. फिर रुपए कहां चले गए? कहीं दक्ष ने वे रुपए चुरा कर पबजी गेम में तो नहीं उड़ा दिए?’

‘यकीनन रुपए दक्ष ने ही चुराए हैं.’ साधना सिंह के मन में दृढ़ विचार कौंधा.

गुस्से में तनी साधना सिंह बेटे दक्ष को ढूंढती हुई उस के स्टडी रूम आई तो वहां दक्ष कुरसी पर बैठा दिखाई दे गया. उस के सामने की टेबल पर एक किताब उलटी पड़ी थी. दक्ष के हाथ में मोबाइल फोन था, उस का पूरा ध्यान मोबाइल की स्क्रीन पर था.

साधना सिंह के तनबदन में आग लग गई. गुस्से में तो वह पहले ही थी. उस ने दक्ष के हाथ से मोबाइल छीन कर टेबल पर पटक दिया और दक्ष को बालों से पकड़ कर चीखी, ‘‘ठहर, मैं खिलवाती हूं तुझे पबजी गेम.’’

साधना सिंह बेरहमी से उसे पीटने लगी. दक्ष रोने लगा, रोते हुए ही बोला, ‘‘मैं गेम नहीं खेल रहा था मौम, मैं औनलाइन पढ़ाई कर रहा था.’’

‘‘झूठ बोलता है नालायक,’’ साधना सिंह उस के गाल पर जोर से थप्पड़ मारते हुए चीखी, ‘‘मेरी अलमारी से 10 हजार रुपए गायब हैं. बता वे रुपए तूने क्या किए हैं?’’

‘‘मैं ने आप के रुपए नहीं लिए हैं मौम, डैड की कसम ले लो…’’

‘‘डैड के बच्चे… तू मोबाइल में गेम्स खेल खेल कर चोर और निकम्मा बन गया है. रुपए चोरी कर के गेम्स में उड़ाने लगा है.’’ साधना सिंह गुस्से से उस के बाल पकड़ कर हिलाने लगी.

‘‘नहीं मौम, मैं चोरी नहीं करता… मैं अब गेम भी नहीं खेलता हूं,’’ दर्द से तड़पते हुए दक्ष बोला, ‘‘आप प्लीज, मेरे बाल छोड़ दो. मुझे मत मारो.’’

‘‘मेरे 10 हजार रुपए चोरी गए हैं, जब तक तू उन रुपयों के बारे में नहीं बताएगा, मैं तुझे पीटना बंद नहीं करूंगी.’’

दक्ष को साधना सिंह पीटती रही. दक्ष रोता गिड़गिड़ाता मार खाता रहा, लेकिन साधना सिंह के हाथ नहीं रुके. दक्ष मार से जब बेहाल हो गया तो वह उसे घसीटती हुई स्टोर रूम में ले आई और उस में बंद करती हुई गुस्से से चीखी, ‘‘तू अब इसी में बंद रहेगा, तुझे खाना भी नहीं मिलेगा. यदि तूने 10 हजार रुपए के बारे में नहीं बताया तो मैं कल तुझ पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दूंगी.’’

मार से दक्ष बेहोश सा हो गया था. होश खोने के बाद भी उस के होंठों से मद्धिम स्वर निकल रहे थे, ‘‘मैं ने रुपए नहीं चुराए हैं मौम. मैं.. निर्दोष हूं.’’

उत्तर प्रदेश के महानगर लखनऊ की यमुनापुरम कालोनी में 7 जून, 2023 की सुबह असहनीय बदबू से लोग परेशान हो उठे. यह बदबू नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही थी. लग रहा था इस घर में कोई चीज सड़ रही है.

नवीन कुमार सिंह सेना में जूनियर कमीशंड अधिकारी के पद पर तैनात थे, उन की पोस्टिंग बंगाल के आसनसोल में थी. घर में उन की पत्नी साधना सिंह 50 वर्ष, बेटी प्रियांशी 10 वर्ष और बेटा दक्ष 16 वर्ष रहते थे. उन के सामने वाले घर में शर्मा दंपति रहते थे. उन्हें कल ही आसनसोल से नवीन कुमार सिंह का फोन आया. उन्होंने शर्माजी से कहा था कि वह उन के घर जा कर देखें. उन की पत्नी साधना उन का फोन नहीं उठा रही है, वह साधना से उन की बात करवा दें.

शर्माजी ने अपनी पत्नी को नवीन कुमार सिंह के घर भेजा था. वह घर के दरवाजे तक पहुंची थी तो उन्हें वहां तेज स्मैल महसूस हुई. दरवाजे पर ही उन्हें नवीन कुमार का बेटा दक्ष मिल गया था. साधना के विषय में पूछने पर उस ने बताया था कि मौम बिजली का बिल जमा करवाने गई हैं. शर्माजी की पत्नी वापस लौट आई थी. यह बात नवीन सिंह को शर्माजी ने बता दी थी.

आज नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही बदबू बढ़ती जा रही थी. इस से शर्माजी का माथा ठनका. वह अपनी पत्नी से बोले,

‘‘मुझे लग रहा है, नवीनजी के घर में कुछ गड़बड़ हुई है. इस असहनीय बदबू से सांस लेना दूभर हो रहा है. मैं पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना दे देता हूं. पुलिस आ कर देख लेगी कि माजरा क्या है.’’

‘‘असहनीय बदबू है जी. आप पुलिस कंट्रोल रूम में फोन लगाइए.’’ पत्नी ने भी कह दिया.

शर्माजी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही असहनीय बदबू के विषय में बता दिया.

यमुनापुरम क्षेत्र का थाना कोतवाली पीजीआई पड़ता था. आधा घंटा में ही कंट्रोल रूम से सूचना पा कर कोतवाली पीजीआई थाना पुलिस यमुनापुरम आ गई. एसएचओ धर्मपाल नवीन कुमार सिंह के घर के सामने पहुंचे तो घर से आ रही बदबू के कारण उन्हें रुमाल निकाल कर नाक पर रखना पड़ा. साथ में आए पुलिस वालों ने भी ऐसा ही किया.

इंसपेक्टर धर्मपाल ने घर के दरवाजे की कालबेल बजाई. दरवाजा दक्ष ने खोला. पुलिस को देख कर वह एक क्षण को विचलित हुआ, फिर तुरंत संभल गया.

‘‘आप को किस से मिलना है?’’ उस ने सामान्य तौर पर पूछा.

‘‘तुम्हारे पापा हैं घर में?’’

‘‘नहीं सर. वह आसनसोल में ड्यूटी पर हैं. मेरे पापा सेना में हैं.’’

‘‘ओह.’’ इंसपेक्टर ने होंठ सिकोड़े, ‘‘इस घर से बहुत तेज बदबू आ रही है. मुझे अंदर तलाशी लेनी है.’’

दक्ष एक तरफ हट गया. इंसपेक्टर धर्मपाल ने अंदर बैठक में कदम रखा. वहां सोफे पर 10 साल की प्रियांशी बैठी अपने स्कूल का काम कर रही थी. पुलिस को देख कर वह सहम गई और उठ कर अपने भाई दक्ष के पीछे आ कर खड़ी हो गई.

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या – भाग 1

चंबल में पहली बार ऐसा हुआ, जब बदले की आग में किसी परिवार की महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. उन्हें भी बिना किसी हिचकिचाहट के गोलियों से भून दिया गया. बदले की आग में खून का प्यासा इंसान कितना हैवान हो सकता है, वह पीडि़त परिवार से ले कर गांव वालों ने अपनी आंखों से देखा.

दहशत का आलम यह था कि सारा गांव इस बर्बरता को मूकदर्शक बना देखता रहा, किसी ने भी लाइसेंसी हथियार होने के बाबजूद इस परिवार के बचाव में गोली नहीं चलाई. वैसे भी चंबल में कहावत है इंसान बूढ़ा हो सकता है, मगर दुश्मनी नहीं.

ग्वालियर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर आसन नदी के पास बसे मुरैना जिले के सिहोनिया थानांतर्गत आने वाला लेपा गांव बहुचर्चित दस्यु पान सिंह तोमर के भिडौसा गांव से सटा हुआ है. इसी गांव के रहने वाले गजेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ 10 साल बाद अपने घर लौटे थे, तभी विरोधी पक्ष के भूपेंद्र सिंह और उस के परिवार के लोगों ने इन पर जानलेवा हमला कर दिया, जिस में 6 लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए.

janch karti police

जब लेखक लेपा गांव में पहुंचा तो वहां मातमी पसरी हुई थी. लोग सहमे सहमे से और दहशतजदा नजर आ रहे थे. लगता था कि वे अभी भी ठीक बुद्ध पूर्णिमा के दिन गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के साथ घटी सामूहिक नरसंहार की घटना को भुला नहीं पाए हैं.

हालांकि आपसी प्रतिशोध के जुनून में परिजनों के साथ घटी रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना की चश्मदीद गवाह 16 वर्षीय रंजन तोमर मिली. इस खूनखराबे के दौरान उस के सीने पर गोलियों के छर्रे लगे, लेकिन इस के बावजूद भी वह हत्यारों के खिलाफ पुख्ता सबूत के लिए बेझिझक वीडियो बनाती रही.

अधिकारियों, नेताओं और पत्रकारों के सवालों से आहत हो चुकी रंजना तोमर कहने लगी कि किस तरह मैं सब को बताऊं कि शुक्रवार की सुबह 10 साल बाद अहमदाबाद, मुरैना और ग्वालियर से अपने पैतृक गांव लौटे मेरे घर वालों के साथ क्याक्या घटा था, बारबार मुझे उन्हीं बातों को दोहराना पड़ता है.

काफी दबाव डालने पर तमतमा कर रंजना ने बताया कि हमारा परिवार लेपा का संपन्न परिवार था. परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था. रंजना तोमर ने बताया कि 5 मई की घटना में अपने पति, 2 बेटों सहित 3 बहुओं को हमेशा के लिए खो देने वाली मेरी दादी कुसुम तोमर हम लोगों को बताया करती है कि हमारे परिवार और गांव वालों द्वारा स्कूल के लिए दान में दी गई 16 बिस्वा जमीन पर सरकारी स्कूल बन रहा था, लेकिन स्कूल की जमीन के दाहिने भाग पर गांव के ही मुंशी सिंह के परिवार की महिलाओं ने गोबर का कचरा डालना शुरू कर दिया था.

स्कूल की भूमि पर कब्जा करने के मकसद से गोबर का कचरा डालने का तब मुन्नी सिंह के बेटे रंजीत सिंह ने खुल कर विरोध किया था. दुर्भाग्यवश मुंशी सिंह तोमर और मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं में कचरा डालने को ले कर आपस में कहासुनी से शुरू हुई नोंकझोंक हाथापाई से होते हुए इतनी बढ़ गई कि मुंशी सिंह के बेटों ने गुस्से में आ कर मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं के साथ मारपीट कर दी.

10 साल पहले शुरू हुई थी दुश्मनी

इस घटना ने माहौल में गरमाहट पैदा कर दी. 20 अक्टूबर, 2013 को मुंशी सिंह के परिवार के लोग लाठी, बंदूक ले कर गजेंद्र सिंह तोमर के दरवाजे पर चढ़ आए. इस विवाद में हुए खूनी संघर्ष में सोबरन सिंह और उस के बेटे वीरभान सिंह को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. वहीं सोबरन सिंह का बेटा राधे और भिडौसा गांव का गुही नाई घायल हो गए थे.

मुंशी सिंह के 2 बेटों को ललकारते हुए गुस्से में रंजीत सिंह ने उन के हाथ से बंदूक छीन कर गजेंद्र सिंह तोमर की हवेली के घर के सामने ही गोली चला दी थी. हालांकि इस दोहरी हत्या के बाद गोली चलने की आवाज सुन कर भूपेंद्र और अजीत सिंह अपने घर से बाहर निकल कर आए.

जिस वक्त अजीत सिंह के पिता की गोली मार कर हत्या की गई. उस वक्त अजीत सिंह की उम्र महज 12 साल थी. रंजीत ने उसे भी दौड़ा लिया था. अजीत अपनी जान बचाने के लिए भागा. अजीत ने अपनी आंखों से अपने पिता को रंजीत सिंह द्वारा गोली मारते देखा था, हालांकि अजीत सिंह के चाचा शिवचरण ने हिम्मत कर के रंजीत को समझाने का भरसक प्रयास किया तो रंजीत सिंह तोमर गुट के बड़े लला उर्फ हिम्मत ने उन के कंधे पर डंडे से वार कर दिया.

इतना ही नहीं, घटनास्थल से भागने से पहले मुंशी सिंह के परिवार वालों ने अपने बचाव के लिए मुन्नी सिंह तोमर के दाहिने पैर पर गोली मार दी थी. इस घटना के बाद मुन्नी सिंह तोमर का बेटा रंजीत अपने परिवार को ले कर लेपा गांव से भिंड भाग गया था. रंजीत सिंह के भागते ही मुंशी सिंह के बेटों ने रंजीत के घर में जम कर लूटपाट करने के साथ ही उस की 100 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था.

उधर मुंशी के दोनों बेटों सोबरन और वीरभान की हत्या के जुर्म में सुनील सिंह तोमर के बड़े भाई वीरेंद्र तोमर और चाचा मुन्नी सिंह का बेटा रंजीत सिंह तोमर, अविनाश बड़े लाला उर्फ हिम्मत को सलाखों के पीछे जाना पड़ गया था. वहीं शाति रदिमाग मुंशी सिंह ने अपने नाती श्याम सिंह तोमर से (गजेंद्र सिंह) के बड़े बेटे वीरेंद्र तोमर का नाम भी अपने दोनों बेटों की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट में लिखवा दिया था. जबकि हकीकत में वीरेंद्र बेकसूर थे.

ग्रामीणों के मुताबिक घटना वाले दिन वीरेंद्र घटनास्थल पर मौजूद नहीं था. 5 मई, 2023 को जिन आधा दरजन लोगों की गोलियों से भून कर हत्या की गई, वो सभी गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के सदस्य थे. दरअसल, 5 मई 2023 को लेपा में हुए खूनखराबे की नींव 20 अक्टूबर, 2013 में ही मुंशी सिंह के बेटों की हत्या के दिन ही पड़ गई थी.

5 मई को हुए खूनखराबे की असल वजह एक दशक पुरानी रंजिश थी. आरोपी पक्ष ने अपने परिवार के 2 सदस्यों की हत्या का बदला 10 साल बाद गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 6 सदस्यों को बड़े ही सुनियोजित ढंग से मौत के घाट उतार कर ले लिया.

रोशन न हो सका चोरी का चिराग

हरिद्वार में बेलवाला पुलिस चौकी के फोन की घंटी कुछकुछ देर बाद बज रही थी. 3 बार पहले भी लंबी रिंग के बाद बंद हो चुकी थी. तभी चौकी इंचार्ज प्रवीण रावत वहां पहुंच गए. पास खड़े सिपाही ने उन्हें सैल्यूट मारा. अपनी कुरसी पर बैठने से पहले रावत नाराज होते हुए बोले, “इतनी देर से फोन की घंटी बज रही है, उठाते क्यों नहीं हो?

“उसी का फोन है साहब जी…! सिपाही तुरंत खीजता हुआ बोला.

“किसका? रावत ने पूछा.

“जी साहब जी, उसी लेडी रेखा का! जिस का बच्चा 9 दिनों से लापता है! सिपाही बोला.

“रेखा का है, तो क्या हुआ? उसे जवाब नहीं देना है क्या? तब तक फोन की घंटी बंद हो चुकी थी.

“साहब जी, वह सुबह से दरजनों बार फोन कर चुकी है…मैं उसे जवाब देतेदेते तंग आ गया हूं…बारबार वही रट लगाए रहती है-मेरा बाबू कब मिलेगा… भूखा होगा…मेरा दूध कब पिएगा बाबू!

“अरे, वह मेरे मोबाइल पर भी कई बार कौल कर चुकी है….मैं ने उसे बात कर समझा दिया है. बोल दिया है कि उस का बच्चा जल्द उसे मिल जाएगा.’’ यह कहते हुए रावत अपनी कुरसी पर बैठ गए. वह अपने बगल में रखी फाइल के पन्ने पलटने लगे. तभी फिर फोन पर रिंग होने लगा. इस बार रावत ने ही फोन का रिसीवर उठाया.

“हैलो! बोलो…तुम्हें तो मैं ने आधा घंटा पहले ही बता दिया था न!… तुम्हारे बच्चे की तलाशी के लिए हम ने पुलिस की 4 टीमें लगा दी हैं…अभी मैं उन की ही रिपोर्ट देख रहा हूं. मैं मानता हूं कि बच्चे के बिना आप बेचैन हैं लेकिन बारबार फोन करने से बच्चा तो मिलेगा नहीं. तुम परेशान मत हो, जल्द तुम्हारा बच्चा मिल जाएगा…पुलिस पर भरोसा रखो और अपना भी ख्याल रखो…रोना-बिलखना बंद करो….!’’ यह कहते हुए रावत ने फोन कट कर दिया.

फोन पर रेखा को आश्वसन देने के बाद चौकी इंचार्ज ने पास रखे गिलास का पानी पी लिया और सिपाही से चाय मंगवाने के लिए कहा. सिपाही ने तुरंत औफिस अटेंडेंट को चाय के लिए आवाज लगा दी और रावत  फाइल देखने लगे. कुछ समय में चाय भी आ गई. चाय पर नजर डालते हुए रावत बोले,”अरे, बिस्कुट नहीं मंगवाया’’

“जी सर’’ कह कर सिपाही चुपचाप वहीं खड़ा रहा. रावत बोले “एक पैकेट कोई बिस्कुट ले आओ, और हां, दरोगाजी को यहां आने के लिए बोलते जाना.’’

“जी सर!’’ कहता हुआ सिपाही चला गया.

थोड़ी देर में रावत अपने सामने बैठे एसआई को फाइल के पन्ने पलटते हुए कुछ समझाने लगे. दरअसल, वह फाइल फोन करने वाली लेडी रेखा के बच्चे के लापता होने से संबंधित थी.

हर की पौड़ी से हुआ बच्चा चोरी

रेखा का बच्चा 17 जून, 2023 की आधी रात से ही गायब था. इस की जानकारी उसे 18 जून की सुबह 5 बजे तब हुई, जब वह सो कर उठी. गरमी का मौसम होने के कारण 38 वर्षीया रेखा अपने 6 माह के बेटे अभिजीत के साथ घर के बाहर सोई हुई थी. सुबह उस की नींद खुली तब उस ने पाया कि बेटा पास में नहीं था.

बच्चे को नहीं पा कर उस ने बगल में ही सो रहे अपने पति शिव सिंह को जगाया. रेखा का देवर भोटानी भी उस से कुछ दूरी पर ही सोया हुआ था. बच्चे अभिजीत के लापता होने के कारण तीनों घबरा गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि बच्चा आखिर गया कहां?

वह घुटने और हाथ के बल ही चल पाता था. उसे रेखा ने अपने और पति के बीच में सुलाया था. बिछावन भी जमीन से ऊंचाई पर था. वहां से वह खुद नहीं उतर सकता था. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उन का बच्चा किसी ने चुरा लिया है.

यह घटना उत्तराखंड में हरिद्वार स्थित हर की पौडी के निकट ऊर्जा निगम कार्यालय के परिसर की है. धार्मिक स्थान होने के कारण उस समय स्थानीय लोग हर की पौड़ी के निकट पूजाअर्चना और गंगा आरती देखने में व्यस्त थे. चारों ओर लाउडस्पीकरों से भजन और मंदिरों से घंटे घड़ियाल की तेज आवाज आ रही थी. यह स्थान हरिद्वार नगर कोतवाली की रोडी बेलवाला पुलिस चौकी के अंतर्गत आता है.

रेखा अपने पति शिव सिंह और देवर भोटानी के साथ आसपास के क्षेत्र में बच्चे की तलाश करने लगी. वे एकदम बदहवास से हो गए थे. रेखा काफी बदहवास थी. बारबार दुपट्टे से आंखों से आंसू पोछे जा रही थी. जब भी उन्हें आसपास कोई छोटा बच्चा दिखता उसे गौर से देखने लगती.

हर की पौड़ी के निकट वे एक घाट से दूसरे घाट पर घूमघूम कर बच्चे को तलाश करते रहे, मगर उन्हें उन का बच्चा नहीं मिला. उस बारे में कोई जानकारी भी नहीं मिली. जबकि वह सैकड़ों रहागीरों से अपने बच्चे के बारे में पूछ चुकी थी.

इसी प्रकार 3 घंटे बीत चुके थे. अंत में वे तीनों थक हार कर रोडी बेलवाला पुलिस चौकी गए. वहां पर चौकी प्रभारी प्रवीण रावत से मिल कर अपनी परेशानी बताई. उन्होंने प्रवीण रावत को बच्चा चोरी होने की शिकायत दर्ज कर उस की तलाशी की गुहार लगाई.

अपने इलाके से बच्चा चोरी होने की बात सुन कर प्रवीण रावत चौंक पड़े. उन से बच्चे के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद रावत ने उस स्थान पर जा कर मुआयना किया जहां तीनों रात में सोए थे. इस के बाद रावत ने वहां पर आसपास रहने वाले लोगों से बच्चे के बारे में पूछताछ की. रावत ने रेखा के मोबाइल से बच्चे की कई तस्वीरें अपने मोबाइल में वाट्सएप करवा लीं.

बच्चे को तलाशने में जुटी पूरे जिले की पुलिस

जब प्रवीण रावत को लापता बच्चे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली, तब उन्होंने इस मामले की जानकारी कोतवाल हरिद्वार भावना कैंथोला को भी दी. भावना कैंथोला ने सब से पहले बच्चे अभिजीत के चोरी होने की जानकारी सीओ (सिटी) जूही मनराल, एसपी सिटी स्वतन्त्र कुमार तथा एसएसपी अजय सिंह को भी दे दी. रावत ने इस मामले में उन का काररवाई से संबंधित आदेश और दिशानिर्देश भी मांगा.

अजय सिंह के निर्देश पर भावना कैंथोला ने बच्चा चोरी की घटना का बच्चे के हुलिए सहित प्रसारण हरिद्वार पुलिस कंट्रोल के वायरलैस द्वारा करवा दिया. इस के बाद कैंथोला ने कुछ पुलिसकर्मियों को बच्चे की तलाश में रेलवे स्टेशन तथा स्थानीय बस अड्डों पर भी भेज दिया.

बच्चे के परिजन तथा पुलिस वाले शाम तक बच्चे की तलाश करते रहे, मगर शाम तक पूरा हरिद्वार छान लेने के बाद भी पुलिस को लापता बच्चे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. हालांकि हरिद्वार पुलिस पिछले 6 माह में लापता 3 बच्चों को सकुशल बरामद कर उन के परिजनों को सौंप चुकी थी. रेखा का लापता बेटे की उम्र मात्र 6 माह ही थी. इसे देखते हुए एसएसपी अजय सिंह ने उस की सकुशल बरामदगी करने के लिए मेला नियंत्रण कक्ष में अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की एक मीटिंग बुलाई.

इस मीटिंग में एसपी (सिटी) स्वतंत्र कुमार, सीओ जूही मनराल, कोतवाल नगर भावना कैंथोला, एसपी (क्राइम) रेखा यादव, सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर तथा एसएसपी के जन संपर्क अधिकारी विपिन चंद पाठक शामिल हुए थे. बैठक में ही गहन विचार विमर्श हुआ कि बच्चे की तलाशी किस प्रकार से की जाय. इसी के साथ एकमत से एक निर्णय लिया गया.

साथ ही अजय सिंह ने सीआईयू प्रभारी को सब से पहले ऊर्जा निगम की कालोनी से ले कर रेलवे स्टेशन व बस अड्डे जाने वाले मार्ग पर लगे सीसीटीवी कैमरे चेक करने का निर्देश दिया. इस के बाद उन्हें वहां पर बच्चे के लापता होने वाले स्थान का साइट से डाटा जुटाने के निर्देश दिए.

कोतवाल भावना कैंथोला ने रेखा के देवर भोटानी पुत्र धर्म सिंह निवासी अंबेडकर नगर, थाना विजय नगर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश की तहरीर पर बालक अभिजीत के चोरी होने का मुकदमा भादंवि धारा 363 के अंतर्गत अज्ञात चोरों के खिलाफ दर्ज कर लिया.

इस प्रकरण की विवेचना थानेदार सुनील रावत को सौंपी गई थी. भोटानी ने पुलिस को बताया कि वह अपने भाई शिव सिंह, भाभी रेखा तथा अपने 6 माह के भतीजे अभिजीत के साथ गत 15 जून, 2023 को हरिद्वार घूमने के लिए आया था. इसी दौरान 17 व 18 जून 2023 की मध्य रात्रि में उस का भतीजा चोरी हो गया.

तकनीकी जांच के सहारे आगे बढ़ती रही जांच इस तरह तमाम जानकारी के बाद सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर, सीआईयू के सिपाहियों सतीश नौटियाल और निर्मल बच्चा चोरी वाली जगह पर इस्तेमाल किए गए मोबाइल नंबरों की जानकारी जुटाने में लग गए.

इस के साथ ही भावना कैंथोला ने घटनास्थल से ले कर रेलवे स्टेशन व रोडवेज बस स्टैंड तक लगे लगभग डेढ़ सौ सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को चेक किया. हरिद्वार में चूंकि बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन आमनेसामने ही हैं. अत: वहां पर लगे कैमरों की फुटेज को पुलिस चेक करने में जुट गई.

इस तरह से की गई गहन छानबीन के तहत तोमर ने संदिग्ध मोबाइल नंबरों को चेक किया. उन्होंने पाया कि कुछ मोबाइल नंबर ऐसे भी थे, जो घटनास्थल के पास भी चले थे और हरिद्वार रोडवेज बस स्टैंड के पास भी उन नंबरों से बातचीत हुई थी. इस के अलावा हर की पौड़ी के निकट कुछ लोग बाद में रेलवे स्टेशन से व बसों द्वारा वापस जाते दिखाई दिए.

वापस जा रहे इन लोगों की छानबीन करने के लिए पुलिस की 4 टीमों का गठन किया था. इन टीमों को संदिग्ध लोगों के मोबाइल की जानकारी करने के लिए लगाया गया था. इस के अलावा पुलिस ने कुछ मुखबिरों को भी लगा दिया था. हरिद्वार जिले की आधी से ज्यादा पुलिस फोर्स बच्चे की तलाश में जीजान से जुट गई थी. फिर भी एक सप्ताह बीत जाने पर भी कोई सुराग नहीं मिल पाया था.

इधर बच्चे के लापता होने के गम में रेखा का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. वह बारबार पुलिस को फोन कर बच्चे के बारे में पूछती रहती थी. उस की स्थिति विक्षिप्तों जैसी हो गई थी. पति और देवर भी बारबार थाने का के चक्कर लगा रहे थे. वे अपने स्तर से भी बच्चे की तलाशी के लिए हर की पौड़ी, रेलवे स्टेशन, बाजार, बस स्टैंड आदि जगहों पर दिन में कई बार चक्कर काट चुके थे. यहां तक कि लक्ष्मण झूला तक जा चुके थे.

जांचपड़ताल से मिली जानकारियों के आधार पर तैयार हो चुकी मोटी फाइल का अध्ययन करते हुए रावत को कुछ मोबाइल नंबरों पर संदेह हुआ. वे नंबर शक के दायरे में इसलिए आ गए थे, क्योंकि घटना के दिन कुछ समय बाद ही वह स्विच्ड औफ हो गए थे. पुलिस की 2 टीमें उन मोबाइल नंबरों की जानकारी जुटाने में लगी हुई थी.

वह 29 जून, 2023 का दिन था. सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर और कोतवाल भावना कैंथोला को भी बच्चा चोरी के मामले में एक मोबाइल नंबर पर शक हो रहा था. उन्होंने उस मोबाइल नंबर के बारे में पूरी जानकारी जुटाने की योजना बनाई.

वह मोबाइल नंबर दिल्ली के थाना छावला निवासी प्रसून कुमार पुत्र प्रमोद कुमार का निकला. उन के बारे में आगे की जानकारी लेने के लिए पुलिस की 2 टीमें दिल्ली जा पहुंचीं. जल्द ही उन का पता मालूम हो गया.

स्थानीय लोगों ने हरिद्वार पुलिस को बताया कि प्रसून कुमार दिल्ली में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करता है. उस की बीवी प्रीति काफी अरसे से दिल्ली के कुतुब विहार क्षेत्र में एक ब्यूटी पार्लर चलाती है. इस के अलावा हरिद्वार पुलिस को यह भी जानकारी मिली थी कि कुछ दिन पहले प्रीति ने एक पुत्र को जन्म दिया था.

हरिद्वार पुलिस पहुंची दिल्ली

यह जानकारी मिलते ही हरिद्वार पुलिस दिल्ली के दंपति प्रसून और प्रीति के घर जा धमकी. इस से पहले उन्होंने उन के मोबाइल नंबर की लोकेशन का विश्लेषण किया. उस से पता चला कि वे बच्चा गायब होने वाले दिन हरिद्वार में थे.

इस बारे में हरिद्वार पुलिस टीम ने एसएसपी अजय सिंह से विचार विमर्श किया. इस के बाद अजय सिंह ने उन्हें आगे की छानबीन के निर्देश दिए. हरिद्वार पुलिस प्रसून के मोबाइल नंबर की लोकेशन के आधार पर दिल्ली के मकान नं. 422, कुतुब विहार, गोयल डेरी जा धमकी और उसे गिरफ्तार कर लिया.

प्रसून से जब पुलिस ने बच्चा चुराने की बाबत सख्ती से पूछताछ की, तब उस ने जल्द ही अपना अपराध स्वीकार लिया. साथ ही इस में अपनी पत्नी का हाथ होना बताया.

इस के बाद हरिद्वार पुलिस ने प्रसून की निशानदेही पर उस के घर में सोए बच्चे अभिजीत को बरामद कर लिया. साथ ही दूसरी आरोपी प्रसून की पत्नी प्रीति को महिला सिपाही गुरप्रीत ने हिरासत में ले लिया. बच्चा समेत बच्चा चोर दंपति को जांच टीम हरिद्वार ले आई.

इस तरह से हरिद्वार पुलिस ने बच्चा चोरी की गुत्थी को सुलझा लिया था. बच्चे के लापता होने के 14वें दिन रेखा व शिव सिंह को उन का बच्चा सौंप दिया.

हरिद्वार में आने के बाद प्रसून व प्रीति से एसएसपी अजय सिंह ने बच्चा चुराने की सिलसिलेवार जानकारी ली. इस पूछताछ में प्रीति ने पुलिस से कुछ भी नहीं छिपाया और बच्चा चुराने की घटना को पुलिस के सामने सचसच ब्यान कर दिया. प्रीति ने हरिद्वार पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है-

सास के तानों से परेशान हो कर चुराया बच्चा

प्रीति चौडा गांव, जिला संभल, उत्तर प्रदेश की रहने वाली है. प्रसून उस का दूसरा पति है. इस से 16 साल पहले उस की शादी दिल्ली निवासी प्रवीण कुमार से हो चुकी थी. प्रवीण से उस के 2 बच्चे हुए. कुछ दिन बाद प्रवीण से प्रीति का मनमुटाव हो गया और उन के बीच तलाक हो गया. पहले पति से तलाक होने के बाद प्रीति ने भविष्य में संतान नहीं होने के लिए औपरेशन भी करा लिया था.

जब प्रसून से उस की दूसरी शादी हुई तब 2 साल बाद उसे ससुराल में ताने मिलने लगे. सास ने उस की नाक में दम कर दिया. प्रीति ने सास को अपने औपरेशन के बारे में जानकारी नहीं दी थी. परिवार के वारिस न होने के कारण सास के ताने दिनप्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे. एक दिन तो सास ने बच्चा नहीं होने के कारण उसे घर से ही निकाल दिया.

बच्चे की लालसा में प्रीति अकसर परेशान रहने लगी थी. उस का 12 जून, 2023 को अपने पति प्रसून के साथ दिल्ली से हरिद्वार जाना हुआ. उस ने हरिद्वार में रह कर कोई छोटा बच्चा चुराने की योजना बना रखी थी.

17 जून, 2023 की आधी रात को उसे तब मौका मिल गया जब उस ने ऊर्जा निगम परिसर में एक महिला को अपने बच्चे के साथ बेसुध अवस्था में सोते हुए देखा. मौका मिलते ही प्रीति ने चुपचाप बच्चे को गोद में उठा लिया और अपने पति के साथ बस द्वारा दिल्ली चली गई.

इतनी बात बताते बताते प्रीति भावुक हो गई. इस के बाद इस घटना के विवेचक सुनील रावत ने प्रीति के यह बयान रिकौर्ड कर लिए. बाद में पुलिस ने प्रीति के कब्जे से वह मोबाइल फोन जिस में बच्चा चोरी से संबंधित बातचीत रिकौर्ड हुई थी, बरामद कर लिया.

एसएसपी अजय सिंह ने मेला नियंत्रण कक्ष में एक प्रैसवार्ता आयोजित कर बच्चे अभिजीत की चोरी की घटना के खुलासे की जानकारी सार्वजनिक कर दी. अगले दिन पहली जुलाई, 2023 को पुलिस ने प्रसून व प्रीति को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत

मां और बेटियां खतरनाक सीरियल किलर

महाराष्ट्र के कोल्हापुर की सीरियल किलर बहनों के नाम से कुख्यात सीरियल किलर्स रेणुका शिंदे और सीमा गावित अपनी मां अंजनाबाई गावित के कहने पर अपराध करती थीं. मां ही अपनी बेटियों से मासूम बच्चों का अपहरण कर उन से अपराध करवाती थी. वह दोनों बेटियों को अपनी सुरक्षा के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करती थी. जब मकसद पूरा हो जाता था, तब बच्चों की बेरहमी से हत्या कर देती थीं. उन 3 सीरियल किलर मां बेटियों ने कोई 2-4 नहीं, बल्कि कुल 42 मासूम बच्चों को तड़पा तड़पा कर मार डाला.

सनसनीखेज हत्याओं की शृंखला ने कोल्हापुर और आसपास के इलाकों को सालों तक आतंकित रखा. लोगों ने अपने बच्चों को शाम के बाद अकेले बाहर निकलने से पूरी तरह से रोक दिया था.

उन का भयानक कृत्य 3 दशक के बाद एक बार फिर लोगों के सामने आया. 3 दशक पहले भी यह केस बहुत चर्चा का विषय बना था. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार दोनों बहनों ने 13 बच्चों का किडनैप किया, 9 बच्चों की हत्या कर दी. वे बेरहमी से बच्चों को मारने के बाद बच्चों के शव पर डिजाइन बनातीं, फिर जश्न मनाती थीं. इन सीरियल किलर बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर हैवानियत की हद पार कर दी थी.

आइए बताते हैं कि इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर किस तरह अपने आपराधिक जीवन की शुरुआत छोटे अपराधों से कर बच्चों का अपहरण कर उन की हत्या तक के रास्ते को तय किया.

कोल्हापुर निवासी अंजनाबाई एक ड्राइवर शिंदे के प्यार में पड़ गई और अपने घर से निकल गई. उस ने ड्राइवर से शादी कर ली. उस से 1973 में एक बेटी रेणुका शिंदे हुई. बेटी पैदा होने के बाद ड्राइवर पति ने अंजनाबाई को छोड़ दिया. तब वह अपनी बेटी को ले कर पुणे आ गई. यहां उस ने पूर्व सैनिक मोहन गावित से दूसरी शादी कर ली. अंजनाबाई को उस से 1975 में दूसरी बेटी सीमा गावित पैदा हुई, लेकिन दूसरे पति मोहन ने भी अंजनाबाई को छोड़ दिया.

ऐसे हुई अपराध की शुरुआत

मोहन ने प्रतिमा नाम की दूसरी महिला से शादी कर ली. अब अंजनाबाई के सामने अपना व बेटियों के पेट भरने की समस्या सामने आ गई. अपनी आजीविका चलाने के लिए उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा. इस में उस ने दोनों बेटियों और बड़ी बेटी रेणुका के पति किरण को भी शामिल कर लिया. रेणुका के एक बेटा सुधीर हुआ.

Mother Anjnabai (File Photo)

एक दिन रेणुका ने मंदिर में चोरी की और जब पकड़ी गई तो बेटे को आगे कर उस पर सारा इलजाम डाल दिया. लोगों ने रहम कर बेटे और मां को छोड़ दिया. यहीं से रेणुका और उस की मां व बहन को बच्चों के सहारे अपराध करने का आइडिया मिला. तब अंजनाबाई अपनी दोनों बेटियों के साथ मिल कर चोरियां और झपटमारी करने लगी.

ये लोग भीड़भाड़ वाले स्थानों, मंदिरों से 5 साल से कम उम्र के बच्चों को चुरा लिया करतीं और फिर इन्हीं बच्चों को गोद में ले कर चोरी और झपटमारी के काम में निकल जाती थीं, लेकिन जैसे ही कोई इन्हें ऐसा करते रंगे हाथों पकड़ता, ये फौरन अपने पास मौजूद बच्चे को जमीन पर पूरी ताकत से पटक देतीं.

इस से लोगों का ध्यान चोरी से हट कर बच्चे पर चला जाता और बस उसी समय मौके का फायदा उठा कर ये भीड़ के चंगुल से बच निकलती थीं. ये इसी तरह बच्चों के सहारे छोटीमोटी चोरी, पाकेट काटना, चेन स्नैचिंग जैसी घटनाओं को अंजाम देती थीं.

ये सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा. ये तीनों इसी तरह बच्चों के सहारे गुनाहों को अंजाम देतीं और मौका मिलते ही उन्हें मौत की नींद सुला देती थीं. ये तीनों बच्चों को मारने और उन पर जुल्म ढाने के मामले में इतनी आगे निकल गईं कि अच्छेअच्छों का दिल कांप जाए.

रेणुका शिंदे और सीमा गावित इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर जून, 1990 से अक्तूबर 1996 के बीच इन 6 सालों में पुणे, ठाणे, कोल्हापुर, नासिक जैसे शहरों सेे दरजन भर बच्चों का अपहरण किया. वे 5 साल से छोटे बच्चों का अपहरण करती थीं. बच्चों के अपहरण के बाद उन्हें भीड़भाड़ वाली जगहों पर ले जाती थीं, जहां तीनों में से कोई एक लोगों का सामान चुराने की कोशिश करती, अगर चोरी के समय पकड़ी जाती तो वे या तो बच्चे के माध्यम से सहानुभूति जगाने की कोशिश करतीं या बच्चे को चोट पहुंचा कर लोगों का ध्यान भटका देती थीं.

ये अपहृत किए बच्चों से भी चोरी करवाती थीं. जब बच्चा इन के काम का नहीं रहता तो अपहृत बच्चे की बाद में नृशंस तरीके से हत्या कर देती थीं. इन में से 9 बच्चों को दोनों बहनों व उन की मां ने रोंगटे खड़ी कर देने वाली दर्दनाक मौत की नींद सुलाया. उन्होंने मारने के ऐसे तरीके अपनाए, जिन्हें सुन कर ही दिल दहल जाए.

125 आपराधिक मामले थे दर्ज

मां और बेटियों पर करीब 125 आपराधिक मामले दर्ज थे. इन में छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाएं तो शामिल थीं, लेकिन ये इन महिलाओं की खौफनाक कहानी का बहुत छोटा सा हिस्सा था. 90 के दशक में इन्होंने चोरी से हत्या की दुनिया में कदम रखा. तब बड़ी बेटी रेणुका की उम्र 17 साल और छोटी बेटी सीमा की उम्र 15 साल थी, जब इन्होंने अपनी मां के साथ मिल कर पहले बच्चे की हत्या की थी.

दूसरे पति की बेटी को भी बनाया निशाना

पति मोहन की दूसरी पत्नी प्रतिमा से 2 बेटियां थीं. अंजनाबाई प्रतिमा से दिल ही दिल बेहद नफरत करती थी. लेकिन अपना मकसद पूरा करने के लिए अंजनाबाई व दोनों बहनों ने उस से दोस्ती का नाटक कर उस के घर में घुसपैठ कर ली. इस के चलते उस ने प्रतिभा की 9 साल की बेटी क्रांति को निशाना बनाया. उन्होंने उस का अपहरण कर हत्या कर दी और लाश गन्ने के एक खेत में दबा दी. इस का शक प्रतिमा को अंजनाबाई और उस की दोनों बेटियों पर था, इसलिए उस ने तीनों के खिलाफ पुलिस में बेटी के किडनैपिंग की शिकायत दर्ज कराई.

इन तीनों महिलाओं का इरादा प्रतिमा की दूसरी बेटी का अपहरण करना भी था, लेकिन पुलिस ने इन के मनसूबों को नाकाम कर दिया. ये महिलाएं 14वें बच्चे को अपना शिकार बनातीं, इस से पहले ही पुलिस इन तक पहुंच गई थी.

पुलिस ने नवंबर, 1996 में तीनों महिलाओं को एक बच्चे के अपहरण के आरोप में नासिक से गिरफ्तार कर लिया. उन के घर पर छापे मारे गए तो कई बच्चों के कपड़े और खिलौने मिले. इस के बाद ही कोल्हापुर पुलिस ने इन हत्यारिनों के घिनौने खेल का परदाफाश कर दिया. पूरे 6 साल तक महाराष्ट्र और गुजरात में घूमघूम कर ये बच्चों को मारती रहीं. अनगिनत मासूमों के मांबाप अपने कलेजे के टुकड़ों के लापता होने पर रोते रहे.

अपहरण के बाद हत्या

पकड़े जाने के बाद जब छानबीन शुरू की तो पुलिस के सामने रोंगटे खड़ी करने वाली जानकारी के साथ ही हैरतअंगेज कारनामे सामने आए. दोनों बहनों ने जब राज उगलने शुरू किए तो हर कोई दंग रह गया. इन महिलाओं ने बताया कि उन्होंने कई शहरों से 13 बच्चों का अपहरण किया था, जिन में से 9 की निर्मम हत्या कर दी गई थी. जबकि छोटी बहन सीमा ने पुलिस को पूरी सच्चाई बताई कि उन्होंने अब तक 42 बच्चों की हत्या की है.

गरीब बच्चों के मांबाप ने बच्चा गायब होने पर पुलिस से शिकायत नहीं की थी, इस के चलते इन पर केवल 13 बच्चों का अपहरण और 9 की हत्या का आरोप लगा. दोनों बहनों के गिरफ्त में आने के बाद रेणुका के पति किरण शिंदे ने सरकारी गवाह बन कर पुलिस की मदद की. वह इन लोगों के क्राइम में शामिल नहीं था, लेकिन इन की हकीकत भलीभांति जानता था. बाद में पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

मुंबई के अलगअलग हिस्सों से बच्चों के अपहरण व हत्या के मामले में दोनों बहनों समेत मां अंजनाबाई को मास्टरमाइंड बताया गया था.

क्रूरता की हुई इंतहा

महाराष्ट्र में 90 के दशक में दोनों बहनें रेणुका व सीमा अपनी मां अंजनाबाई के साथ मिल कर मासूम बच्चों का अपहरण करती थीं. फिर उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दिया जाता था. इन बच्चों से भीख मंगवाने, चोरी कराने जैसे काम कराती थीं. मकसद पूरा हो जाने, अपराध की दुनिया में पुराने हो जाने और लोग जब उन बच्चों को पहचानने लगते थे तो ये महिलाएं उन की हत्या कर देती थीं. 13 बच्चों के अपहरण व उन की हत्या करने का आरोप इन पर लगा था.

बच्चों की हत्या की दर्दनाक कहानी

इन महिलाओं ने 2 साल के एक बच्चे का अपहरण कर के पहले तो कई दिनों तक उसे भूखा रखा. मासूम अपनी मां को याद कर बहुत रोता था. इस के चलते उस बच्चे को इतना पीटा कि उस की मौत हो गई.

संतोष नाम के एक बच्चे का भी इन्होंने अपहरण कर लिया. वह मात्र डेढ़ साल का था. एक शाम जब ये महिलाएं कहीं जा रही थीं तब बच्चा रोने लगा. बच्चे के रोने से लोगों का ध्यान उन पर जाएगा, इस डर से उन्होंने बच्चे का सिर जमीन और लोहे की रौड पर तब तक पटका, जब तक कि बच्चे ने उन की गोद में ही दम नहीं तोड़ दिया. इस के बाद बच्चे के शव को सुनसान जगह में फेंक दिया.

ऐसे ही 18 महीने के एक बच्चे की भी इन महिलाओं ने बेरहमी से हत्या की थी. पहले बच्चे का गला घोंट दिया गया. उस के शव को एक पर्स में ठूंसा और उस पर्स को एक सिनेमाहाल के टायलेट की शेल्फ में छोड़ दिया. इतना ही नहीं हत्या के बाद इन बहनों ने भेलपूरी खाते हुए मूवी का आनंद भी लिया.

अपहरण किया गया 3 साल का पंकज नाम का एक बच्चा इन महिलाओं के साथ रह रहा था. पंकज घर के आसपास के लोगों से बात करने की हिम्मत करने लगा था, ताकि वह उन महिलाओं के चंगुल से बाहर निकल सके. इस बात की जानकारी होते ही इन्होंने पंकज को पंखे से उलटा लटका दिया और दीवार में तब तक उस का सिर पटका, जब तक उस की मौत नहीं हो गई.

ये महिलाएं गरीबों के बच्चों की आड़ में चोरी को अंजाम देतीं और पकड़े जाने पर इमोशनल तरीका अपना कर बच जाती थीं.

जेल में हुई मां की मौत

नवंबर 1996 में पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. तीनों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. रेणुका का पति किरण इन मामलों में मुख्य गवाह बन गया तो उस के खिलाफ सारे मामले हटा दिए गए. गिरफ्तारी के एक साल बाद ही दिसंबर 1997 में अंजनीबाई की जेल में ही मौत हो गई.

156 गवाह कोर्ट में हुए पेश

मांबेटियों को काननू की नजर में गुनहगार ठहराया जाना पुलिस के लिए कोई आसान काम नहीं था. इस के लिए सीआईडी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. उस ने कई अहम परिस्थितिजन्य साक्ष्य एकत्र ही नहीं किए बल्कि 156 गवाह अदालत के समक्ष पेश किए. इन गवाहों में सब से अहम गवाह एक मासूम भी था, जो इन के चंगुल से भागने में सफल हो गया था.

पुलिस ने इन के खिलाफ 12 मामलों में ही एफआईआर दर्ज की थी. लिहाजा इतने ही मामलों में उन के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की गई.

राज्यपाल ने 2013 में खारिज की दया याचिका

कोल्हापुर के सत्र न्यायालय ने 2001 में दोनों बहनों शिंदे और गावित को मौत की सजा सुनाई थी. बौंबे हाईकोर्ट ने 2004 में और सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त, 2006 में सजा बरकरार रखी. दोनों बहनों ने 2008 में महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल को दया याचिका भेजी, जो 2012-13 में खारिज हो गई. फिर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के सामने दया की गुहार लगाई. राष्ट्रपति ने भी 2014 में इन की दया की अरजी ठुकरा दी.

सरकार की देरी से मौलिक अधिकार का हनन

साल 1996 से पुणे की यरवडा जेल में बंद दोनों बहनों रेणुका और सीमा ने बौंबे हाईकोर्ट में फांसी देने की सजा पर देरी से अमल होने पर एक अपील दायर की थी, जिस में दोनों बहनों ने दया याचिकाओं के निपटान में बिना वजह देरी किया जाना जीवन के मूल अधिकार का उल्लंघन बताया. वे 25 सालों से कस्टडी में हैं और लगातार मौत के भय में जी रही हैं. ऐसी देरी जीवन जीने के मौलिक अधिकार का हनन करती है.

हाईकोर्ट के मौत की सजा पर मुहर लगाने के बाद हम 13 सालों से भी ज्यादा समय से पलपल मौत के डर में जी रही हैं. इतना लंबा समय जेल की सलाखों के पीछे बिताना उम्रकैद काटने जैसा है. लिहाजा अदालत हमारी रिहाई का आदेश दे.

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फाइल को खिसकने में लगे 7 साल

कोर्ट ने कहा कि एक ओर केस फाइलें इलैक्ट्रौनिक माध्यमों से भेजी जा रही हैं, लेकिन इस मामले में दया याचिका की फाइल राज्य से केंद्र तक पहुंचने में 7 साल लग गए. कानूनन अगर दया याचिका पर बिना कारण देरी की जाती है तो मौत की सजा कम की जा सकती है. अपराधियों के मूल अधिकारों का उल्लंघन तो किया ही, इन के अपराधों से पीडि़तों के साथ भी अन्याय हुआ.

केंद्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उस की ओर से देरी नहीं हुई. राज्य सरकार से मिली दया याचिका को बिना देरी किए राष्ट्रपति के पास निर्णय के लिए भेज दिया था. राष्ट्रपति ने इस दया याचिका को 10 महीने में खारिज कर दिया था.

फांसी की सजा बदली उम्रकैद में

18 जनवरी, 2022 को उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया. जस्टिस नितिन जामदार व जस्टिस सारंग कोटवाल ने अपने निर्णय में कहा कि राष्ट्रपति ने भी दया याचिका 2014 में नकार दी थी. फिर भी उन्हें 7 साल तक फांसी पर न चढ़ाना शर्मनाक और सरकारी मशीनरी का अपने कर्तव्य का परित्याग करने समान है. व्यवस्था लापरवाही से भरी रही है. इसीलिए हमें फांसी को उम्रकैद में बदलना पड़ रहा है.

2 जजों की बेंच ने इन दोनों बहनों की रिहाई का फैसला महाराष्ट्र सरकार पर छोड़ दिया है. कहा है कि 25 साल से वे जेल में बंद हैं. इन दोनों बहनों को छोड़ दिया जाए या नहीं, इस पर राज्य सरकार फैसला ले. सरकार व अधिकारी अपना कर्तव्य नहीं निभा सके. ढीला व धीमा सिस्टम पीडि़तों को पूरा न्याय नहीं दिला पाया.

ऐसी महिलाओं को फांसी की सजा मिलने पर भी फांसी के फंदे पर न लटकाया जाना उन गरीबों की बदकिस्मती ही कहेंगे, जिन के बच्चों को इन महिलाओं ने दर्दनाक मौत दी.

यदि दिल दहलाने वाली इन सीरियल किलर बहनों को साल 2001 में कोर्ट ने जब फांसी की सजा दी थी. इस फांसी की सजा को साल 2014 में राष्ट्रपति ने माफी देने से इंकार कर दिया था. इस के बावजूद महाराष्ट्र राज्य व केंद्र सरकार ने इन कलयुगी पूतनाओं को फांसी पर नहीं चढ़ाया. यदि सजा के बाद फंदे पर लटका दिया जाता तो भारतीय इतिहास में पहला अवसर होता जब किसी महिला को फांसी पर लटकाया गया होता.

सीरियल किलिंग का यह केस भारत ही नहीं, दुनिया के सब से खतरनाक एवं दर्दनाक मामलों में एक था. इस समय दोनों बहनें रेणुका और सीमा पुणे की यरवदा जेल में बंद हैं.