Superstition : तांत्रिक के कहने पर कलेजा निकाल खा गया कपल

Superstition : शादी के 10 साल बाद भी जब परशुराम और सुनयना के कोई बच्चा नहीं हुआ तो सुनयना तांत्रिकों के चक्कर लगाने लगी. एक तांत्रिक ने सुनयना को एक बच्ची की बलि दे कर कलेजा खाने की सलाह दी. संतान प्राप्ति के लिए सुनयना और उस के पति ने ऐसा किया भी लेकिन…

उस दिन नवंबर, 2020 की 15 तारीख थी. सुबह के यही कोई 8 बज रहे थे. तभी थाना घाटमपुर प्रभारी इंसपेक्टर राजीव सिंह को नरबलि की खबर मिली. यह खबर भदरस गांव के किसी व्यक्ति ने उन के मोबाइल फोन पर दी थी. उस ने बताया कि दीपावली की रात गांव के करन कुरील की 7 वर्षीय बेटी श्रेया उर्फ भूरी की बलि दी गई है. उस की लाश भद्रकाली मंदिर के पास पड़ी है. खबर पाते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ भदरस गांव पहुंच गए. भद्रकाली मंदिर गांव के बाहर था. वहां भारी भीड़ जुटी थी. दरअसल मासूम बच्ची की बलि चढ़ाए जाने की बात भदरस ही नहीं, बल्कि अड़ोसपड़ोस के गांवों तक फैल गई थी. अत: सैंकड़ों लोगों की भीड़ वहां जमा थी.

भीड़ देख कर राजीव सिंह के हाथपांव फूल गए. क्योंकि वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी था. लोगों ने साफ कह दिया था कि जब तक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह बच्ची के शव को नहीं उठने देंगे. थानाप्रभारी राजीव सिंह ने यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी फिर जांच में जुट गए. श्रेया उर्फ भूरी की नग्न लाश भद्रकाली मंदिर के समीप नीम के पेड़ के नीचे गन्नू तिवारी के खेत में पड़ी थी. शव के पास मृत बच्ची का पिता करन कुरील बदहवास खड़ा था और उस की पत्नी माया कुरील दहाड़े मार कर रो रही थी. घर की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं.

मासूम का पेट किसी नुकीले व धारवाले औजार से चीरा गया था और पेट के अंदर के अंग दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें तथा किडनी गायब थीं. मासूम श्रेया के गुप्तांग पर चोट के निशान थे. माथे पर तिलक लगा था और पैर लाल रंग से रंगे थे. देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नरपिशाचों ने बलि देने से पहले मासूम के साथ दुराचार भी किया था. शव के पास ही मृतका की चप्पल, जींस तथा अन्य कपड़े पड़े थे. नमकीन का एक खाली पैकेट भी वहां पड़ा मिला. थानाप्रभारी सिंह ने वहां पड़ी चीजों को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. उसी दौरान एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव तथा सीओ (घाटमपुर) रवि कुमार सिंह भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा कई थानों की फोर्स बुलवा ली. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित भीड़ को आश्वासन दिया कि जिन्होंने भी इस वीभत्स कांड को अंजाम दिया है, वह जल्द ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी. अधिकारियों के इस आश्वासन पर लोग नरम पड़ गए. उस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मासूम बालिका का शव देख कर पुलिस अधिकारी भी सिहर उठे. एसएसपी के बुलावे पर डौग स्क्वायड टीम भी घटनास्थल पर पहुंची. डौग स्क्वायड प्रभारी अवधेश सिंह ने जांच शुरू की. उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे पड़ी मासूम के खून के अंश व उस की चप्पल खोजी कुतिया को सुंघाई. उसे सूंघने के बाद यामिनी खेत की पगडंडी से होते हुए गांव की ओर दौड़ पड़ी.

कई जगह रुकने के बाद वह सीधे मृतक बच्ची के घर पहुंची. यहां से बगल के घर से होते हुए गली के सामने बने एक घर पर पहुंची. 4 घरों में जाने के बाद गली के कोने में स्थित एक मंदिर पर जा कर रुक गई. टीम ने पड़ताल की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. इस के बाद यामिनी गांव का चक्कर लगा कर घटनास्थल पर वापस वह आ गई. यामिनी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका श्रेया के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. मोर्चरी के बाहर भी भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया गया. उधर नरबलि की खबर न्यूज चैनलों तथा इंटरनेट मीडिया पर वायरल होते ही कानपुर से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं इस दुस्साहसिक वारदात को संज्ञान में लिया. मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त, डीएम व एसएसपी प्रीतिंदर सिंह से वार्ता की और तुरंत आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई करने का आदेश दिया. उन्होंने दुखी परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और 5 लाख रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ‘सरकार इस प्रकरण की फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई करा कर अपराधियों को जल्द सजा दिलाएगी.’

मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तो प्रशासन एक पैर पर दौड़ने लगा. आननफानन में 3 डाक्टरों का पैनल गठित किया गया और शव का पोस्टमार्टम कराया गया. मासूम के शव का परीक्षण करते समय पोस्टमार्टम करने वाली टीम के हाथ भी कांप उठे थे. मासूम के पेट के अंदर कोई अंग था ही नहीं. दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें, किडनी, स्पलीन और इन अंगों को आपस में जोड़े रखने वाली मेंब्रेन तक गायब थी. मासूम के निजी अंगों में चोट के निशान थे, जिस से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी. मासूम के पेट में कुछ था या नहीं, आंतें गायब होने से इस की पुष्टि नहीं हो सकी. पोस्टमार्टम के बाद श्रेया का शव उस के पिता करन कुरील को सौंप दिया गया.

इधर रात 10 बजे एसडीएम (नर्वल) रिजवाना शाहीद के साथ नवनिर्वाचित विधायक (घाटमपुर क्षेत्र) उपेंद्र पासवान भदरस गांव पहुंचे और मृतका श्रेया के पिता करन कुरील को 5 लाख रुपए का चैक सौंपा. उन्हें 2 बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिलाने का भी भरोसा दिया गया. चैक लेते समय करन व उन की पत्नी माया की आंखों में आंसू थे. उन्होंने नर पिशाचों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को वर्क आउट करने में देरी पर नाराजगी जताई थी, इसलिए एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने थाना घाटमपुर में डेरा डाल दिया और डीएसपी रवि कुमार सिंह के निर्देशन में खुलासे के लिए पुलिस टीम गठित कर दी.

इस टीम ने भदरस गांव पहुंच कर अनेक लोगों से गहन पूछताछ की. गांव के एक झोलाछाप डाक्टर ने गांव के गोंगा के मझले बेटे अंकुल कुरील पर शक जताया. पड़ोसी परिवार की एक बच्ची ने भी बताया कि शाम को उस ने श्रेया को अंकुल के साथ जाते हुए देखा था. अंकुल कुरील पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस टीम ने उसे घर से उठा लिया. उस समय वह ज्यादा नशे में था. उसे थाना घाटमपुर लाया गया. उस से कई घंटे तक पूछताछ की लेकिन अंकुल नहीं टूटा. आधी रात के बाद जब नशा कम हुआ तब उस से सख्ती के साथ दूसरे राउंड की पूछताछ की गई. इस बार वह पुलिस की सख्ती से टूट गया और मासूम श्रेया की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

अंकुल ने जो बताया उस से पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े हो गए और मामला ही पलट गया. अंकुल ने बताया कि उस के चाचा परशुराम व चाची सुनयना ने 1500 रुपए में मासूम बच्ची का कलेजा लाने की सुपारी दी थी. उस के बाद उस ने अपने दोस्त वीरन के साथ मिल कर करन की बेटी श्रेया को पटाखा देने के बहाने फुसलाया. उसे वह गांव से एक किलोमीटर दूर भद्रकाली मंदिर के पास ले गए. वहां दोनों ने उस के साथ दुराचार किया फिर अंगौछे से उस का गला घोंट दिया. उस के बाद चाकू से उस का पेट चीर कर अंगों को निकाल लिया गया. उस ने कलेजा पौलीथिन में रख कर चाची सुनयना को ला कर दिया. सुनयना और परशुराम ने कलेजे के 2 टुकड़े किए और कच्चा ही खा गए. ऐसा उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए किया था.

इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए, फिर हम लोग घर चले गए. 16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था. उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही श्रेया की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निसंतानों के बच्चे हो जाते हैं. वह भी निसंतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था. चूंकि सभी ने जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. अत: थानाप्रभारी राजीव सिंह ने मृतका के पिता करन कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया. पुलिस जांच में एक ऐसे दंपति की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने अंधविश्वास में पड़ कर संतान पाने की चाह में एक मासूम के कलेजे की सुपारी दी और उसे खा भी लिया. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. परशुराम कुरील इसी दलित बाहुल्य इस गांव में रहता था. लगभग 10 साल पहले उस की शादी सुनयना के साथ हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था.

वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था. भदरस और उस के आसपास के गांव में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है. जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है. बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुर्गे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं. इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.

परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या दो बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था. दरअसल, सुनयना की शादी को 10 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया. लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों व मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी. तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए. लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी रही.

सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक काम में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी. क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था. परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के जन्मदिन, मुंडन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे सामाजिक पीड़ा होती थी. सामाजिक अवहेलना से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. 10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बा के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई.

तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह उपाय कर सके.

‘‘कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’

‘‘ठीक है बाबा. मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा. उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक पुस्तक हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था. परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ‘‘विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’

अब परशुराम और सुनयना के मन में यह अंधविश्वास घर कर गया कि मासूम बालिका का कच्चा कलेजा खाने से उन को संतान हो सकती है. इस पर उन्होंने गंभीरता से सोचना शुरू किया तो उन्हें लगा अंकुल उन की मदद कर सकता है. अंकुल, परशुराम के बड़े भाई गोंगा कुरील का बेटा था. 3 भाइयों में वह मंझला था. वह नशेबाज और निर्दयी था, गंजेड़ी भी. अपने भाईबहनों के साथ मारपीट और हंगामा भी करता रहता था. अपने स्वार्थ के लिए परशुराम ने भतीजे अंकुल को मोहरा बनाया. अब वह उसे घर बुलाने लगा और मुफ्त में शराब पिलाने लगा. गांजा फूंकने को पैसे भी देता. अंकुल जब हां में हां मिलाने लगा तब एक रोज सुनयना ने उस से कहा, ‘‘अंकुल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास बच्चा नहीं है. लेकिन तुम चाहो तो मैं मां बन सकती हूं.’’

‘‘वह कैसे चाची?’’

‘‘इस के लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. आने वाली दीपावली की रात तुम्हें किसी बच्ची का कलेजा ला कर देना होगा. देखो ‘न’ मत करना. यदि तुम मेरा काम कर दोगे तो हमारे घर में खुशी आ सकती है.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं तुम्हारे लिए यह काम कर दूंगा.’’

अंकुल राजी हो गया तो उन लोगों ने मासूम बच्ची पर मंथन किया. मंथन करतेकरते उन के सामने भूरी का चेहरा आ गया. श्रेया उर्फ भूरी करन कुरील की बेटी थी. उस की उम्र 7 साल थी. करन परशुराम के घर के समीप रहता था. उस की 3 बेटियों में श्रेया दूसरे नंबर की थी. वह कक्षा 2 में पढ़ती थी. करन किसान था. उसी से जीविका चलाता था. वीरन कुरील अंकुल का दोस्त था. पारिवारिक रिश्ते में वह उस का भाई था. वीरन भी नशेड़ी था, सो उस की अंकुल से खूब पटती थी. अंकुल ने वीरन को सारी बात बताई और अपने साथ मिला लिया था. अब अंकुल के साथ वीरन भी परशुराम के घर जाने लगा और नशेबाजी करने लगा.

14 नवंबर, 2020 को दीपावली थी. अंकुल और वीरन शाम 5 बजे परशुराम के घर पहुंच गए. परशुराम ने दोनों को खूब शराब पिलाई. सुनयना ने दोनों को कलेजा लाने की एवज में 1500 रुपए देने का भरोसा दिया. इस के बाद उस ने अंकुल व वीरन को गोश्त काटने वाले 2 चाकू दिए. इन चाकुओं को पत्थर पर घिस कर दोनों ने धार बनाई. सुनयना ने लाल रंग से भरी एक डब्बी अंकुल को दी और कुछ आवश्यक निर्देश दिए. शाम 6 बजे अंकुल और वीरन, परशुराम के घर से निकले. तब तक अंधेरा घिर चुका था. वे दोनों जब करन के घर के सामने आए तो उन की निगाह मासूम श्रेया पर पड़ी. वह नए कपड़े पहने पेड़ के नीचे एक बच्ची के साथ खेल रही थी. अंकुल ने भूरी को बुलाया और पटाखों का लालच दिया.

भूरी पर मौत का साया मंडरा रहा था. वह मान गई और अंकुल के साथ चल दी. दोनों भूरी को ले कर गांव के बाहर आए और फिर भद्रकाली मंदिर की ओर चल पड़े. श्रेया को आशंका हुई तो उस ने पूछा, ‘‘भैया, कहां ले जा रहे हो?’’ यह सुनते ही अंकुल ने उस का मुंह दबा दिया और वीरन ने चाकू चुभो कर उसे डराया, जिस से उस की घिग्घी बंध गई. फिर वे दोनों भूरी को भद्रकाली मंदिर के पास ले गए और नीम के पेड़ के नीचे पटक दिया. उन दोनों ने श्रेया उर्फ भूरी के शरीर से कपड़े अलग किए तो उन के अंदर का शैतान जाग उठा. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ दुराचार किया. इस बीच मासूम चीखी तो उन्होंने अंगौछे से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद सुनयना के निर्देशानुसार अंकुल ने श्रेया के पैरों में लाल रंग लगाया तथा माथे पर टीका किया. फिर चाकू से उस का पेट चीर डाला. अंदर से अंग काट कर निकाल लिए और कलेजा पौलीथिन में रख कर वहां से निकल लिए. रास्ते में पानी भरे एक गड्ढे में बाकी अंग फेंक दिए और कलेजा ला कर परशुराम को दे दिया. परशुराम ने कलेजे को शराब से धोया फिर चाकू से उस के 2 टुकड़े किए. उस ने एक टुकड़ा स्वयं खा लिया तथा दूसरा टुकड़ा पत्नी सुनयना को खिला दिया. सुनयना ने खुश हो कर 500 रुपए अंकुल को और 1000 रुपए वीरन को दिए. उस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर दीया जलाते समय करन को श्रेया नहीं दिखी तो उस ने खोज शुरू की. करन व उस की पत्नी माया रात भर बेटी की खोज करते रहे. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे बेटी की हत्या की जानकारी दी. तब वह वहां पहुंचा. इसी बीच किसी ने घटना की जानकारी थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी. 17 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Rajasthan Crime News : शादी से पहले बैंक मैनेजर ने बैंक में कराई 1 करोड़ 13 लाख की डकैती

Rajasthan Crime News : बैंक मैनेजर सुशील कुमार की 10 नवंबर को शादी होनी थी. कार उस ने खरीद  ली थी. लोन ले कर आलीशान मकान भी बनवा लिया था. वह शानोशौकत से शादी करना चाहता था. इस के लिए उस ने अपने ममेरे भाई नितेश, उस के 2 दोस्तों सतपाल व सुखविंद्र के साथ मिल कर साजिश रची और अपने ही बैंक में 1 करोड़ 13 लाख की डकैती करा दी, लेकिन…

‘हैं डसअप’. मुख्य गेट का शटर डाल कर अंदर घुसे तीनों युवकों ने बैंक भवन के अंदर मेज पर रखी रखी फाइलों में उलझे बैंक प्रबंधक सुशील कुमार व केशिय परमपाल सिंह को हथियारों की नोक पर लेते हुए कर्कश आवाज में कहा था. आगंतुकों के चेहरे के हावभाव व आंखों से उगलती आग दर्शा रही थी कि विरोध करने पर वे किसी भी हद तक जा सकते थे. अचानक आई आफत को देख दोनों बैंककर्मियों की घिग्घी बंध गई. हाथों में हथियार व 2 युवकों के कंधे पर लटकते पिट्ठू बैग देख उन को आभास हो गया था कि वे लोग बैंक लूटने आए हैं. दो पगड़ीधारी युवकों के हाथों में पिस्टल व तीसरे के हाथ में लंबे फल वाला का चाकू था.

दोनों बैंककर्मियों ने कोई प्रतिरोध न कर के आत्मसमर्पण कर दिया. तीनों लुटेरे केशियर व बैंक मैंनेजर को धकिया कर बैंक के स्ट्रांग रूम में ले गए. वहां तीनों ने तिजोरी में रखी 2 हजार, 5 सौ व एक सौ रुपयों की गड्डियां दोनों बैगों में ठूंसठूंस कर भर ली. दोनों बैंक अफसरों के मोबाइल पहले ही छीन लिए गए थे. मैनेजर व कैशियर को स्ट्रांगरूम में बंद कर ताला लगा दिया गया. एक लुटेरे ने मैनेजर की मेज पर रखी कार की चाबी उठा ली थी. स्ट्रांग रूप की चाबी लुटेरों ने स्ट्रांग रूम के सामने ही फेंक दी. नकदी भरे बैग उठाए तीनों युवक फुर्ती से बाहर निकल गए. जाते समय मुख्य गेट का शटर बंद कर तीनों लुटेरे बैंक मैनेजर की बाहर खड़ी गाड़ी आई10 नंबर आरजे 13 सीसी 1283 में भाग निकले.

आधा घंटा बाद स्ट्रौगरूम में बंद मैनेजर व कैशियर कुछ सहज हुए. दोनों ने मिल कर स्ट्रौंगरूम में लगी प्लास्टिक की एक पाइप को उखाड़ा और जैसेतैसे स्ट्रांगरूम से बाहर निकले. लूट की इस बड़ी बारदात को महज 7 मिनट में अंजाम दे दिया गया था. बैंक गार्ड आधा घंटा पहले ही छुट्टी कर घर चला गया था. लूट की यह सनसनीखेज घटना 17 सितंबर, 2020 को राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की प्रमुख मंडी संगरिया की धान मंडी स्थित एक्सिस बैंक शाख में रात तकरीबन 8 बजे हुई थी. बैंक प्रबंधन की सूचना मिलते ही संगरिया थाना के टीआई इंद्र कुमार ने मौकामुआयना कर अविलंब उच्च अधिकारियों को सूचना प्रेषित कर दी.

बैंक मैनेजर ने हथियारों की नोक पर एक करोड़ 13 लाख रुपए लूट ले जाने के आरोप में 3 अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज कर दिया. पुलिस ने मुकदमा आईपीसी 292 व 34 के तहत दर्ज कर लिया. संयोग से सवा करोड़ की लूट की यह वारदात संभवत: मंडी सांगरिया की पहली घटना थी. सूचना मिलते ही बीकानेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक प्रफुल्ल कुमार जिला पुलिस अधीक्षक राशि डोगरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने घटना स्थल पर पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया. पुलिस अधिकारियों को बताया गया कि कई दिनों से बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरा सिस्टम गड़बड़ था. पुलिस जांच में यह तथ्य भले ही परेशानी साबित हो सकता था पर एसपी राशि डोगरा ने कैमरों के गड़बड़झाले को जांच में एक अहम क्लू माना. आईजी प्रफुल्ल कुमार ने इस लूट प्रकरण को जल्दी से ट्रेस आउट करने का आदेश दे दिया.

एसपी राशि डोगरा ने एकएक बिंदु को देखा, परखा जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर घटित बैंक लूट की इस घटना को युवा आईपीएस राशि डोगरा ने एक चैलेंज के रूप में लिया. एसपी डोगरा ने एएसपी जस्साराम बोस और स्वयं के सुपरविजन में जिला क्षेत्र के सीओ दिनेश एजोश, सीओ प्रशांत कौशिक, सीओ नारायण सिंह, सर्किल इंस्पेक्टर इंद्रकुमार, एसआई फूल सिंह और राजाराम व सुरेश के नेतृत्व में दर्जनभर हैड कांस्टेबलों को लगाया. इस के तहत 8 टीमों का गठन कर जांच में लगा दिया गया. साइबर व सीसीटीवी कैमरा एक्सपर्ट भी लगाए गए.

अपराधी कितना भी शातिर हो, अनजाने में कोई न कोई भूल कर घटनास्थल पर कोई न कोई क्लू जरूर छोड़ जाता है. इसी तथ्य को स्वीकारकर राशि डोगरा ने अपने अनुभव इस वारदात को खोलने में लगा दिए. शुरुआती जांच व बैंक के नजदीक स्थित दुकानों पर लगे कैमरों से यह साबित हो गया था कि जाते समय लुटेरे मैनेजर की कार में भागे थे. लेकिन आते समय बैंक तक पैदल ही आए थे. पुलिस की आठो टीम पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, मध्य प्रदेश सहित हनुमानगढ़ व श्री गंगानगर जिला क्षेत्र में उतर गई थीं. 15 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. एक दुकान के बाहर लगे कैमरों में तीनों लुटेरों की कदकाठी नजर आ रही थी पर पगड़ी के पल्लु व कैप लगी होने के कारण तीनों में से एक का भी चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था.

सीसीटीवी कैमरा एक्सपर्ट ने जांच कर खुलासा कर दिया था कि बैंक के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरों में हाल ही में छेड़छाड़ की गई थी. जांचपड़ताल में मिल रहे मामूली क्लू बैंक प्रबंधन के खिलाफ जा रहे थे. पर पुख्ता साक्ष्य के अभाव में पुलिस प्रमुख राशि डोगरा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थीं. बड़ी रकम का मामला था. अन्य प्रदेशों व स्थलों पर गई टीमों के भी हाथ खाली थे. बैंक मैनेजर सुशील व कैशियर परमपाल सिंह से अलगअलग व संयुक्त रूप से कई दौर में पूछताछ की गई पर नतीजा शून्य रहा. दूसरे दिन मैनेजर सुशील की कार संगरिया से 30 किलोमीटर दूर हरियाणा के डबवाली शहर में लावारिस हालात में मिल गई.

पूछताछ में पता चला कि 2 दिन पहले कार की जगह एक मोटर साइकिल कई घंटे खड़ी रही थी. राशि डोगरा की नजर में बैंक मैनेजर सुशील कुमार चढ़ चुका था. उन्होंने सुशील की जन्म कुंडली खंगालना शुरू कर दी. उन्हें बताया गया कि सुशील को कुछ अरसा पहले ही बैंक परीक्षा पास करने पर मैनेजर की नौकरी मिली थी. इसी 10 नवंबर को सुशील की शादी होनी थी. उन का रिहायशी आलीशान बंगला बिना कर्ज लिए बनना मुश्किल था. सुशील की ननिहाल पंजाब के जनखुआ (राजपुरा) में है. एसपी डोगरा ने संगरिया के तेजतर्रार सर्किल इंस्पेक्टर इंद्रकुमार को टीम के साथ जनसुआ भेज दिया. हाईकमान के आदेशानुसार 4 सदस्यीय टीम ने यूनिफार्म की जगह ग्रामीणों के वेश धर लिए.

खुद इंद्रकुमार ने शरीर पर सफेद कुरता और व लुंगी पहना. पैरों में चमड़े की जूती व सिर पर चैकदार साफा. सीआई ने टीम के साथ सुशील के ननिहाल में रैकी शुरू कर दी थी. वहीं 3 अन्य पुलिसकर्मी शराब ठेकों व बाजार की रैकी में लग गए थे. इस पुलिस टीम का टारगेट था एक्सिस बैंक संगरिया के नजदीक सीसीटीवी कैमरों में दर्ज हुए लुटेरों की चालढाल व कदकाठी वाले युवकों की तलाशना. टीम ने 2 लोगों की कदकाठी व चाल को पहचान लिया. एक तो सुशील के नाना के घर आजा रहा था. दूसरे को शराब ठेके पर शराब की महंगी बोतल खरीदते समय पहचाना गया. सीओ इंद्रकुमार ने डेली रिपोर्ट के रूप में इस प्रोगेस को एसपी राशि डोगरा से साझा किया. एसपी के आदेश पर इंद्रकुमार की टीम संगरिया लौट आई.

टीम की मेहनत रंग लाई इंद्रकुमार की टीम ने दोनों संदिग्धों के चोरीछिपे विडियो मोबाइल कैमरे में कैद कर लिए थे. कैमरों व वीडियो में कैद फोटोज लुटेरों से मिल रहे थे. शक की गुंजाइश नहीं थी. बैंक मैनेजर वारदात के बाद से लगातार ड्यूटी पर आ रहा था. 21 अक्तूबर को पुलिस ने अपराधियों को एक साथ उठाने का निर्णय लिया. सब से पहले जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने मैनेजर सुशील को पूछताछ के बहाने पुलिस थाने बुलाया. एक मुस्तैद सिपाही जो डंडा लिए था की तरफ इशारा करते हुए सीओ ने कहा, ‘मैनेजर साहब, आप  बिना लागलपेटे सारा कुछ सचसच उगल दो. वरना इन डंडे वालों को संभालना मुश्किल हो जाएगा.’’

‘‘सर, मैं सब कुछ सचसच बता दूंगा,’’ सुशील ने कहा.

बिना लागलपेट सुशील कुमार ने बयां किया, ‘‘बैंक परीक्षा पास करने के बाद मुझे बैंक में नौकरी मिल गई थी. मैं ने कर्जा उठा कर भव्य मकान बनवा लिया. अब 10 नवंबर को मेरी शादी होनी थी. शानोशौकत की चाह भावी दांपत्य जीवन को मनमोहक बना देती है. इसी इच्छा के चलते बैंक की तिजौरी में रखी नोटों की गड्डियों ने मेरा इमान डोला दिया. मैं ने अपने ममेरे भाई नितेश को बुला कर उस से गुफ्तगू की. मेरी रजामंदी के चलते नितेश ने अपने 2 दोस्तों सतपाल व सुखविंद्र को शामिल कर लिया. कुछ दिन पहले नितेश अपने दोस्तों के साथ बैंक आया था. तीनों ने गहनता से बैंक भवन व आसपास का जायाजा लिया था.

वारदात के दिन तीनों दोस्त मोटरसाइकिल से डबवाली पहुंचे. डबवाली के बाजार से एक काली व एक रंगीन पगड़ी खरीदी गई. पिट्ठू बैग भी यहीं से खरीदे गए थे. दो जनों ने पगड़ी इसलिए बांधी कि पुलिस भ्रमित हो जाए. मोटरसाइकिल डबवाली में रोड़ पर खड़ी कर तीनों बस से 6 बजे शाम संगरिया पहुंच गए थे. निर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक गार्ड को छुट्टी दे दी गई थी. बैंक में लगे कैमरे कई दिन पहले ही डिस्टर्ब कर दिए थे. दोनों बैंककर्मियों को स्टं्रागरूम में बंद कर चाबी वहीं डाल दी गई थी ताकि स्ट्रांगरूम का दरवाजा तोड़ने की नौबत न आ जाए. मैनेजर की कार प्लानिंग के अनुसार ली गई थी. तीनों सहयोगियों की पहचान भी सुशील ने जाहिर कर दी थी.

सुशील के बताए अनुसार तीनों लोग उसी दिन नकदी के साथ कुल्लू-मनाली पहुंच गए. तीनों ने वहां महंगे होटलों व शराबखोरी में दोतीन दिनों में 3 लाख रुपए उड़ा दिए. पुलिस सांगरिया में साजिशकर्ता सुशील निवासी भूना जिला फतेहाबाद से पूछताछ कर रही थी. वहीं 2 टीमें जनसुआ तहसील राजपुरा में अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी में जुटी थीं. जनसुआ से पुलिस ने सुशील के ममेरे भाई नितेश जो 8वीं तक पढ़ा और अविवाहित है, अंबाला का सुखविंद्र एमए तक शिक्षित व 2 बेटों का पिता है. सतपाल 5वीं तक पढ़ा था, वह जनसुआ में हैयर ड्रैसिंग का काम करता था, गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने चारों से अलगअलग व आमनेसामने बिठा कर पूछताछ शुरू की.

पर चारों रिकवरी के बिंदु पर पुलिस को गच्चा देते रहे. जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर ले लिया. दोबारा पूछताछ में चारों ने अपने घरों में छिपा कर रखी एक करोड़ 5 लाख रुपयों की बरामदगी करवा दी थी. अदालत में दोबारा पेश करने पर अदालत ने तीनों को जेल भिजवा दिया. मुख्य साजिशकर्ता सुशील को पुलिस ने रिकवरी के लिए दोबारा 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया था. इस अवधि में सुशील ने अपने घर से 5 लाख रुपए और बरामद करवाए. पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, कार व अन्य साक्ष्य जुटा लिए. आईजी बीकानेर ने एसपी साहित अन्य अधकारियों की दिल खोल कर हौसलाअफजाई की. एसपी राशि डोगरा ने सीआई इंद्रकुमार की विशेष सराहना की.

चारों आरोपियों ने रूपयों की खनकदमक के आगे पहली बार अपराध किया था ताकि उन का व उन के परिवार का भविष्य संवर जाए. पर हकीकत में चारों ने न केवल खुद को बल्कि परिवार को भी अंधेरे की गहराइयों में धकेल दिया है.

 

Rajasthan News : राजनीति की आड़ में चल रहा था सैक्स रैकेट

Rajasthan News : सुनीता वर्मा और पूजा उर्फ पूनम चौधरी भाजपा और कांग्रेस पार्टी की नेता थीं. क्षेत्र में उन का मानसम्मान था, साथ ही अच्छीखासी पहचान भी. लेकिन राजनीति की आड़ में दोनों महिला नेता ऐसा घिनौना काम कर रही थीं, जिस के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. जब सच्चाई सामने आई तो…

राजस्थान में बलात्कार के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. मासूम बच्चियों से ले कर विवाहित महिलाएं तक शिकार बन रही हैं. बढ़ती वारदातों से ऐसा लगता है जैसे अपराधियों को न तो खाकी वर्दी का डर है और न ही सरकार का. घटना के बाद विपक्षी पार्टियों के लोग हायतौबा मचाते हैं और फिर थोड़े दिन बाद मामला शांत हो जाता है. पिछले दिनों राजस्थान के सवाई माधोपुर शहर में एक ऐसा मामला सामने आया जो राजस्थान में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में चर्चित हो गया. ताज्जुब की बात यह कि इस सनसनीखेज अपराध में सत्तापक्ष और विपक्ष की जिलास्तर की महिला नेता शामिल थीं.

जिन महिलाओं की हम बात कर रहे हैं, वे दोनों सवाई माधोपुर में रहती थीं. उन में सुनीता वर्मा भारतीय जनता पार्टी (महिला मोर्चा) की जिलाध्यक्ष थी तो दूसरी पूजा उर्फ पूनम चौधरी कांग्रेस सेवा दल (महिला प्रकोष्ठ) की पूर्व जिलाध्यक्ष थी. चूंकि दोनों ही जिला स्तर की नेता थीं, इसलिए उन की क्षेत्र में अच्छी साख थी. पूजा और सुनीता वर्मा लोगों के सरकारी काम कराने में मदद करती थीं. लोग उन पर भरोसा करते थे और दोनों को गरीबों की मसीहा मानते थे. अलगअलग राष्ट्रीय पार्टियों की जिलाध्यक्ष थीं, इसलिए जिले के सरकारी महकमों में उन की अच्छी जानपहचान थी. एक दिन कांग्रेस सेवादल (महिला प्रकोष्ठ) की पूर्व जिलाध्यक्ष पूनम चौधरी नेम सिंह के घर पहुंची.

दरअसल, नेम सिंह पूनम से कई बार कह चुका था कि उसे किसी बैंक से लोन दिला देंगी तो वह कोई व्यवसाय शुरू कर देगा. पूनम ने नेम सिंह को भरोसा दिया था कि वह उस का लोन करा देगी. नेम सिंह की एक 16 वर्षीय बेटी थी उर्मिला. वह गरीब परिवार में जन्मी जरूर थी, लेकिन थी गोरीचिट्टी और खूबसूरत. पूनम ने नेम सिंह से कहा, ‘‘तुम्हारी बेटी उर्मिला दिन भर घर में पड़ी क्या करती है. इसे हमारे साथ भेज दो. साथ रहने पर दुनियादारी सीख जाएगी. देखना, इस की जिंदगी ही बदल जाएगी.’’

नेम सिंह पूनम को बड़ी नेता समझता था. उस ने सोचा कि संभव है अपनी ऊंची पहुंच के चलते पूनम उर्मिला की कहीं नौकरी लगवा दें. इसलिए उस ने बिना किसी झिझक के उर्मिला को पूनम के साथ भेज दिया. पूनम उर्मिला को भाजपा की नेता सुनीता वर्मा के पास ले कर पहुंची और कहा कि इस लड़की का नाम उर्मिला है. यह बहुत अच्छी लड़की है. आप इसे अपने पास रखो और इस की जिंदगी बना दो. उर्मिला बन गई सुनीता की हुंडी उर्मिला को देख कर सुनीता की आंखों में चमक आ गई क्योंकि वह खूबसूरत थी. सुनीता वर्मा ने मन ही मन सोचा कि लड़की काम की है. सुनीता उसे प्यार से रखने लगी. शहर में वह जहां भी जाती, उर्मिला साथ होती थी. जिला उद्योग केंद्र, कलेक्ट्रेट और बैंक वगैरह भी सुनीता उर्मिला को साथ ले जाती.

सुनीता वर्मा के घर पर एफसीआई का कर्मचारी हीरालाल मीणा आता रहता था. वह उस का जानकार था. साल 2013 में सुनीता वर्मा ने बतौर निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़ा था. हीरालाल ने उस वक्त उस का तनमनधन से साथ दिया था. सुनीता वर्मा वह चुनाव तो नहीं जीत पाई, मगर उस की जानपहचान का दायरा बढ़ गया था. चुनाव हारने के बाद भी हीरालाल का सुनीता के घर बदस्तूर आनाजाना जारी रहा. हीरालाल ने जब सुनीता के साथ एक किशोर युवती को देखा तो उस के बारे में पूछा. तब सुनीता ने बताया कि इस का नाम उर्मिला है और अब यह उस के साथ ही रहेगी.

हीरालाल का अधेड़ मन उर्मिला का सामीप्य पाने को लालायित हो उठा. अपने मन की बात उस ने सुनीता को बता दी. साथ ही यह भी कहा कि वह इस के लिए कुछ भी करने को तैयार है. लालची सुनीता तैयार हो गई और उस  ने एक दिन उर्मिला को हीरालाल मीणा के साथ एक कमरे में बंद कर दिया. हीरालाल ने उस मासूम से बलात्कार किया. सुनीता ने उस का वीडियो बना लिया और फोटो भी खींच लिए. इज्जत लुटने के बाद उर्मिला रोने लगी. तब सुनीता ने उसे वीडियो एवं अश्लील फोटो दिखा कर कहा, ‘‘अगर किसी से इस घटना की चर्चा की तो यह वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कर दूंगी. तब तुम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी. रोनाधोना बंद कर और भूल जा इस घटना को. यही तेरे लिए बेहतर होगा.’’

उर्मिला अपनी ब्लू फिल्म व अश्लील फोटो देख कर अंदर तक कांप गई. वह इतनी नादान नहीं थी कि कुछ समझती न हो. वह समझ गई कि अगर उस ने घर पर किसी को बताया तो यह अश्लील वीडियो और फोटो वायरल कर देगी. तब वह और उस का परिवार किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. सुनीता वर्मा अब उर्मिला का भरपूर लाभ उठाना चाहती थी. लिहाजा उस ने डराधमका कर उसे और भी कई सरकारी मुलाजिमों के सामने पेश कर उन से अपने काम निकलवाए. उर्मिला उस के हाथ की ऐसी कठपुतली बन गई थी, जो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी.

एक दिन सुनीता ने डराधमका कर उर्मिला को घर भेज दिया. वह डरीसहमी घर चली गई. उस का मन तो कर रहा था कि अपनी मम्मी को सब कुछ बता दे. मगर वीडियो और फोटो वायरल होने की बात ध्यान में आते ही उस ने चुप रहने में ही भलाई समझी. उर्मिला चुप रहने लगी. एक दिन उस की मम्मी ने वजह पूछा तो कह दिया, ‘‘दिन भर इधरउधर घूमने से थक गई हूं. थोड़ी कमजोरी है, ठीक हो जाएगी.’’

‘‘ठीक है बेटी, अगर लोन मिल जाएगा तो हमारे दिन फिर जाएंगे. तुम सुनीता दीदी के साथ रहो. वह काम करवा देंगी, अच्छी इंसान हैं?’’ मम्मी ने कहा तो उर्मिला मन ही मन सोचने लगी कि सुनीता औरत के नाम पर वह कलंक है जो अपनी बेटी की उम्र की लड़की को लोगों के साथ सोने को मजबूर करती है, अश्लील वीडियो, फोटो बनवा कर ब्लैकमेल करती है. धमकाती है. सुनीता वर्मा ने अगले रोज उर्मिला को अपने घर बुला कर एकांत में कहा, ‘‘तूने अपने साथ घटी घटना के बारे में घर पर किसी को बताया तो नहीं है?’’

‘‘नहीं, मैं ने किसी को नहीं बताया.’’ उर्मिला ने कांपते स्वर में कहा.

‘‘वेरी गुड. मुझे तुम से यही उम्मीद थी. कभी भी भूल कर भी किसी को भी नहीं बताना. वर्ना यह वीडियो और फोटो…’’ सुनीता ने धमकाया.

‘‘मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’ उर्मिला बोली.

‘‘जब तक तुम मेरा कहना मानोगी तब तक इन्हें वायरल नहीं करूंगी. ठीक है. तुम चिंता न करो?’’ सुनीता ने कहा तो उर्मिला की जान में जान आई. सुनीता वर्मा के पास कई लड़कियां आती थीं. वे सब भी उर्मिला की तरह सुनीता के इशारों पर नाच रही थीं. हीरालाल ने उर्मिला को कई लोगों के साथ भेजा. जिन्होंने उस के साथ बलात्कार किया. 5 हजार का उधार चुकाने को सुनीता ने इलैक्ट्रिशियन से किया सौदा सुनीता वर्मा के घर पर राजूराम रेगर नाम का इलैक्ट्रिशियन आता था. उस ने सुनीता के घर बिजली का कोई काम किया था, जिस का सुनीता को 5 हजार का भुगतान करना था. मगर सुनीता ने उसे रुपए नहीं दिए. कह दिया कि दोचार दिन में दे दूंगी.

राजू अपने पैसे मांगने सुनीता के घर आने लगा. तब सुनीता ने राजू रेगर से कहा कि मेरे साथ जो लड़की रहती है उस के तन का स्वाद चखा देती हूं 5 हजार रुपए वसूल हो जाएंगे. राजू रेगर ने उर्मिला को देखा था. वह सुंदर, खिलती कली थी. सुनीता ने उर्मिला को धमका कर राजू के साथ भेजा. राजू उर्मिला को होटल स्वागत में ले गया और उस के साथ मौजमस्ती की. सुनीता वर्मा की तरह पूनम उर्फ पूजा चौधरी भी नाबालिग उर्मिला को डराधमका कर अपने साथ ले गई और एक व्यक्ति के आगे परोस दिया. उस व्यक्ति ने पीडि़ता से रेप किया.

कई ऐसे सरकारी कर्मचारी थे, जो सुनीता और पूनम का काम करते थे. कुछ ऐसे लोग थे जिन से पैसा ले कर सुनीता व पूनम पीडि़ता को उन के हवाले कर देती थीं. वे लोग उर्मिला को किसी होटल या कमरे पर ले जा कर उस के साथ यौन संबंध बनाते और फिर उसे  सुनीता या पूनम चौधरी के पास छोड़ देते थे. उर्मिला करीब 8-10 लोगों के साथ भेजी गई थी. घर वालों ने लिखाई रिपोर्ट उर्मिला पिछले काफी महीनों से यह सब सह रही थी. मगर हर चीज एक हद होती है. जब वह नाबालिग लड़की थक गई तो घर पर मां के पास रोने लगी. मां ने पूछा तो उस ने सुनीता व पूनम की काली करतूत के बारे में सारी बातें बता दीं. मां ने बेटी की पीड़ा सुनी तो उस का दिल दहल गया.

बेटी के साथ इतना कुछ घटित हो गया और उसे पता तक नहीं चला. इस के बाद मां ने तय कर लिया कि उस की नाबालिग बेटी की जिंदगी को नरक बनाने वालों को सजा दिला कर रहेगी. उर्मिला की मां ने अपने पति वगैरह को सारी बात बताई. इस के बाद घर वाले 22 सितंबर, 2020 को नाबालिग उर्मिला को ले कर महिला थाना सवाई माधोपुर गए और सुनीता वर्मा उर्फ संपति बाई, हीरालाल मीणा, पूनम उर्फ पूजा चौधरी और अन्य लोगों के खिलाफ यौनशोषण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच शुरू की. सवाई माधोपुर के एसपी ओम प्रकाश सोलंकी ने महिला थाने में दर्ज रिपोर्ट का अध्ययन किया और अपने नेतृत्व में एक टीम गठित कर जांच शुरू की. पुलिस ने साक्ष्य एकत्रित किए, पीडि़ता द्वारा बताए गए होटल में जा कर रिकौर्ड चैक किया.

इस के बाद भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष सुनीता वर्मा उर्फ संपति बाई, सहयोगी हीरालाल मीणा को गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों को कोर्ट में पेश कर रिमांड पर ले कर पूछताछ की गई. पूछताछ में सामने आया कि राजू रेगर निवासी खड्डा कालोनी, सवाई माधोपुर ने सुनीता से बिजली फिटिंग के रुपए मांगने पर नाबालिग लड़की को साथ भेज दिया था,जिसे होटल में ले जा कर उस ने रेप किया था. पुलिस ने राजू रेगर को भी गिरफ्तार कर लिया. सुनीता और हीरालाल ने 2 सरकारी कर्मचारियों के नाम भी बताए. उन में से एक जिला उद्योग केंद्र का क्लर्क संदीप शर्मा और दूसरा कलेक्टर कार्यालय का चपरासी श्योराज मीणा था. पुलिस ने इन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया.

पूनम उर्फ पूजा चौधरी को अपने खिलाफ मुकदमा दर्ज होने की जानकारी मिली तो वह घर से फरार हो गई थी. पुलिस को पता चला कि पूनम चौधरी बिहार की रहने वाली है. इसलिए अनुमान लगाया गया कि शायद वह बिहार भाग गई है. लोगों ने 30 सितंबर, 2020 तक पूनम चौधरी को सवाई माधोपुर में देखा गया था. तब पुलिस ने उसे क्यों नहीं गिरफ्तार किया? लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी कि कहीं पुलिस के ऊपर सत्तासीन लोगों का दबाब तो नहीं था?

निचले स्तर के सरकारी कर्मचारियों से थे रिश्ते जांच में पुलिस को यह भी पता चला कि पूनम चौधरी को अप्रैल, 2020 में उस की निष्क्रियता को देख कर पार्टी हाईकमान ने जिलाध्यक्ष के पद से हटा दिया था. पूनम की सवाई माधोपुर में सीमेंट की फैक्ट्री भी है. पूनम ने उर्मिला को उस फैक्ट्री के पास ले जा कर अपनी पहचान के आदमी के साथ भेज कर दुष्कर्म कराया था. सरकारी कर्मचारियों संदीप शर्मा और श्योराज मीणा ने पुलिस को बताया कि सुनीता वर्मा उन के पास कामकाज के लिए आती रहती थी. इसी से उन की जानपहचान थी. वह जिला उद्योग केंद्र व श्रम विभाग में लोन, सब्सिडी, श्रम डायरी सहित विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाने का काम करती थी.

आरोपी संदीप शर्मा ने इसी का फायदा उठा कर राज नगर स्थित नर्सिंग होम के पास अपने मकान में उर्मिला के साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया था. सुनीता वर्मा कलेक्टर कार्यालय में ज्ञापन वगैरह देने जाती रहती थी. चपरासी श्योराज मीणा सुनीता वर्मा को कलेक्टर से मुलाकात के लिए भेजता था. इसी दौरान दोनों की जानपहचान हो गई थी. श्योराज मीणा लौकडाउन के दौरान सुनीता वर्मा के साथ लोगों को मास्क व सेनेटाइजर भी वितरित करता था. श्योराज मीणा ने लौकडाउन के समय सुनीता वर्मा के औफिस में ही नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया था. पीडि़त उर्मिला ने दूसरे कई लोगों द्वारा भी देह शोषण के आरोप लगाए. लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद जब यह खबर मीडिया की हाईलाइट बनी तो वे लोग फरार हो गए.

अगर पीडि़त के घर से रुपए गायब नहीं हुए होते तो शायद यह मामला अभी प्रकाश में नहीं आता. दरअसल, हुआ यह कि नेमसिंह के घर से कुछ रुपए गायब हो गए थे. इस बारे में उन्होंने बेटी उर्मिला से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रुपए उस ने चोरी किए थे. उर्मिला ने पिता से कहा कि ये रुपए सुनीता वर्मा ने मंगाए थे. रुपए क्यों मंगाए थे, यह पूछने पर बालिका ने सारा राज फाश कर दिया कि किस तरह उसे जिंदगी बनाने और अच्छे घर में शादी का प्रलोभन दे कर कई लोगों के साथ सोने पर मजबूर किया गया. ब्लैकमेलिंग के लिए उन्होंने उस की अश्लील वीडियो बना ली थी और उसे आधार बना कर उसे ब्लैकमेल कर रही थीं. सुनीता ने ही उसे घर से पैसे लाने के लिए मजबूर किया था.

पीडि़त बालिका और उस की मां ने बताया कि सुनीता और पूनम के पास करीब 30-35 लड़कियां हैं, जो उन के इशारों पर शहर से बाहर भी जाती हैं. इन लड़कियों को सरकारी कर्मचारी, अधिकारी और सफेदपोश लोगों के पास भेजा जाता है, जहां उन का देह शोषण किया जाता है. पीडि़ता ने दावा किया कि कई बड़े सफेदपोश राजनेता और अधिकारी भी इस सैक्स रैकेट में शामिल हैं. सूत्रों के मुताबिक यह धंधा सुनीता वर्मा और पूनम चौधरी मिल कर करती थीं. चर्चा तो यह भी रही कि लड़कियों के साथ गलत काम करने वाले पुरुषों को भी ये दोनों महिला नेता अश्लील वीडियो व फोटो के माध्यम से ब्लैकमेल करती थीं.

बदनामी के डर से वे लोग रुपए दे कर पीछा छुड़ाते थे, क्योंकि पुलिस के पास जा कर बेइज्जती के अलावा कुछ नहीं मिलना था. दोनों ब्लैकमेलर नेत्रियां मौज की जिंदगी जीती थीं. उन्होंने अच्छीखासी प्रौपर्टी बना ली थी. जब इस घटना की खबरें अखबारों में प्रकाशित हुई तो लोग हैरान रह गए. 2 राजनैतिक पार्टियों की जिलाध्यक्ष वह भी महिलाएं ऐसा काम कर रही थीं, जिस के बारे में किसी ने कभी सोचा तक नहीं था. पूछताछ पूरी होने के बाद पुलिस ने सुनीता वर्मा, हीरालाल मीणा, संदीप शर्मा, श्योराज मीणा और राजूलाल रेगर को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. पूजा उर्फ पूनम चौधरी और अन्य आरोपी भी पकड़े जाएंगे.

पीडि़ता के परिवार का कहना है कि उन्होंने सभी दुष्कर्मियों के बारे में पुलिस को बता दिया था, इस के बावजूद पुलिस ने सिर्फ 5 लोगों को गिरफ्तार किया. इस घटना के प्रकाश में आने के बाद कयास लगाया जा रहा है कि अन्य पीडि़त युवतियां रिपोर्ट दर्ज करा कर अपने परिवार की रहीबची इज्जत दांव पर नहीं लगाना चाहतीं, इसलिए चुप हैं. सैक्स रैकेट की पड़ताल में जुटी पुलिस को पता चला कि अब तक वह जिस पूजा को खोज रही थी, हकीकत में वह कांगे्रस सेवादल महिला प्रकोष्ठ की पूर्व जिलाध्यक्ष पूनम चौधरी है. पूनम ने इस खेल को पूजा के रूप में अपनी छद्म पहचान बना कर अंजाम दिया था.

पुलिस को यह जानकारी भी मिली कि इस सैक्स रैकेट गिरोह ने नाबालिग उर्मिला को जयपुर में बेचने का सौदा कर लिया था. इस के लिए उसे जयपुर भेजने की तैयारी थी. हीरालाल उसे सवाई माधोपुर बस स्टैंड तक छोड़ने गया, लेकिन पीडि़ता जैसेतैसे उस से बच निकली. पुलिस अब यह पता लगाने में जुटी है कि जयपुर में किन लोगों से बालिका का सौदा किया गया था. पीडि़त उर्मिला कक्षा 9 में पढ़ती थी. कोराना काल में स्कूल बंद थे. ऐसे में वह अपनी जिंदगी बनाने इन के लिए महिला नेत्रियों की शरण में गई थी. लेकिन उन्होंने उस की जिंदगी तबाह कर डाली.

 

Social Crime : झाड़फूंक के बहाने काले कपड़े वाला बाबा करता था महिलाओं से छेड़छाड़

Social Crime : देश में शिक्षा का प्रचारप्रसार चाहे कितना भी बढ़ गया हो लेकिन लोगों के मन से अंधविश्वास अभी भी नहीं गया है. एक मजार के बाबा अंसार हुसैन ने तो महिलाओं की समस्याएं दूर करने का ऐसा तरीका बना रखा था कि…

हर इंसान दुनिया में किसी न किसी परेशानी या समस्या से घिरा रहता है. लेकिन ऐसी कोई समस्या नहीं, जिस का हल न हो. कुछ समझदार लोग बड़ी से बड़ी समस्या का हल अपनी सूझबूझ से निकाल लेते हैं, लेकिन कुछ मूढ़मति भटक कर रह जाते हैं. निस्संदेह भटकने वाले लोगों का फायदा गलत किस्म के इंसान उठाते हैं. ढोंगी बाबाओं, तांत्रिकों और झाड़फूंक करने वाले कथित पीर बाबाओं मौलानाओं की दुकानदारियां ऐसे ही लोगों से चलती हैं. जिन के चक्कर में पड़ कर अपनी जिंदगी तो खराब करते ही हैं, आर्थिक नुकसान भी उठाते हैं.

गंभीर रोगों पर किसी प्रकार की शारीरिक समस्या अथवा निस्संतान होने पर महिलाएं अच्छे डाक्टर के बजाय इन बाबाओं के चक्कर में पड़ जाती हैं. मातृत्व की प्राप्ति के बिना नारीत्व सार्थक नहीं होता. निस्संतान महिला ससुराल में उपेक्षा की पात्र बन कर रह जाती है. दूसरे लोग भी उस पर टीकाटिप्पणी करने से बाज नहीं आते. ऐसे में कोई उसे बांझ कह दे तो महिला के दिल को गहरी चोट लगती है. ऐसी उपेक्षित महिला के लिए बांझ कोई शब्द नहीं, बल्कि गाली होती है. ऐसी गाली सुन कर उस पर क्या बीतती है, केवल वही समझ सकती है, जो इस दर्द से गुजरी हो.

ऐसी ही एक निस्संतान महिला थी सलमा (परिवर्तित नाम) जोकि लखनऊ के सआदतगंज इलाके में रहती थी. उस के निकाह को 10 साल हो चुके थे, मगर उस की गोद सूनी थी. संतानोत्पत्ति के लिए सलमा जो कर सकती थी, सब किया लेकिन उस की मुराद पूरी नहीं हुई. सलमा ने भी मान लिया था कि उस की किस्मत में संतान नहीं है. संतान न होने का गम उठा कर भी सलमा घुटघुट कर जी लेती, लेकिन अचानक उस के शौहर ने उस का जीना हराम कर दिया. वही शौहर जो कभी उस पर जान छिड़कता था. अचानक उसे दुश्मन की नजर से देखने लगा. दोष सलमा का था जो पति को उस का वारिस नहीं दे सकी थी, इसलिए वह चुप रह कर उस की गालियां भी सुन लेती और पिट भी लेती. सलमा की खामोशी ने उस के शौहर के जुल्म बढ़ा दिए थे.

सलमा ने शौहर में अचानक आए बदलाव का कारण पता किया तो उस के जैसे होश उड़ गए. पता चला कि उस का दूसरे मोहल्ले में रहने वाली एक युवती से इश्क चल रहा था. शौहर अपनी प्रेमिका को अपनी बेगम बना कर घर लाना चाहता था. सलमा अपनी छाती पर भला सौतन को कैसे बरदाश्त कर सकती थी. इसलिए उस ने इस का विरोध किया तो शौहर ने उस की पिटाई कर दी. उधर शौहर की माशूका उस से निकाह करने को राजी थी. लेकिन उस ने साफ कह दिया था कि पहले वह अपनी बेगम सलमा को घर से दफा करे, उस के बाद वह उस से निकाह करेगी.

यही कारण था कि शौहर सलमा पर जुल्मों के पहाड़ ढा रहा था. उस की मंशा थी कि सलमा हमेशा के लिए अपने मायके चली जाए और प्रेमिका से उस का निकाह करने का रास्ता साफ हो जाए. एक या कुछ दिन की बात होती तो सलमा सह लेती. यहां तो हर सुबह उसे गालियों का नाश्ता मिलता और पिटाई का डिनर करती फिर पूरी रात चुपकेचुपके रोती रहती. एक दिन तो गजब हो गया. सलमा के शौहर को बेड टी लेने की आदत थी. वह चाय की चुस्कियां लेने के बाद ही बिस्तर से उठता था. उस सुबह सलमा चाय ले कर शौहर को जगाने गई, ‘‘उठिए, चाय पी लीजिए.’’

शौहर पहले से जाग रहा था. सुबहसुबह सलमा को पीटने का मन भी बनाए हुए था. बस, उसे एक बहाना चाहिए था. सलमा ने जैसे ही उसे आवाज दी तो वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘साली बांझ, मेरी आंखों के सामने आ कर क्यों खड़ी हो गई. तूने मेरा पूरा दिन बरबाद कर दिया.’’

उस के बाद उस ने सलमा के सीने पर लात मारी. सलमा दीवार से टकराई, उस पर गरम चाय गिर गई. एक तो चोट, दूसरे चाय से जलन की पीड़ा. सलमा बिलबिला कर रो पड़ी. मगर उस के शौहर को कहां तरस आने वाला था. सलमा को चोट पहुंचाने के लिए ही तो उस ने उस के सीने पर लात मारी थी. सलमा बिलबिला कर रोने लगी तो शौहर का पारा हाई हो गया. वह बैड से उतरा और जमीन पर गिरी सलमा को लातों से कुचलने लगा, ‘‘बांझ औरत, मैं तेरा मनहूस चेहरा नहीं देखना चाहता. जीना चाहती है तो शराफत से मायके चली जा और लौट कर यहां कभी मत आना. और नहीं गई तो मैं पीटपीट कर तेरी जान ले लूंगा.’’

रोनेसिसकने के अलावा सलमा कर भी क्या सकती थी. सलमा को अधमरा करने के बाद शौहर फ्रैश हुआ और कपडे़ बदल कर घर से चला गया. चोटें सहलाते हुए सलमा अपनी फूटी किस्मत पर आंसू बहाती रही.  दिमाग बहुत कुछ सोच रहा था. अब सलमा को अपना जीवन निरर्थक लग रहा था. सोच यही थी कि जलालत और दुखों से भरी ऐसी जिंदगी जीने से क्या लाभ. इन हालातों से कभी छुटकारा नहीं मिलने वाला. ऐसे जीवन से तो मौत भली. इस के बाद सलमा के जेहन में मौत को गले लगाने का विचार हावी होता चला गया. वह उठी और मुंह पर पानी के छींटें मार कर चेहरा दुरुस्त किया, फिर दरवाजे पर ताला लगा कर चाबी पड़ोसन को दे दी और कहा कि उस का शौहर आए तो चाभी दे देना. इस के बाद सलमा के जिस ओर कदम उठे, वह चल पड़ी.

मन में विचार आ रहा था कि कैसे मरे. इसी बीच सड़क पर उस की एक खास परिचित महिला मिली. उस ने सलमा को परेशान देखा तो उसे रोक कर पूछा कि कहां जा रही है. सलमा ने उसे दुखी मन से बोल दिया कि वह मरने जा रही है. यह सुन कर वह महिला चौंकी. वह सलमा को लेकर एक जगह बैठ गई. उस की परेशानी पूछी तो सलमा ने रोते हुए उसे पूरी आपबीती सुना दी. महिला को उस की स्थिति पर तरस आया. उस ने उसे उस की समस्या को दूर करने का रास्ता बताने का वादा किया. शर्त यह रखी कि वह मरने का इरादा छोड़ दे तो वह बताएगी. सलमा ने वादा किया कि उस की शर्त मानने को तैयार है. उस की समस्या दूर हो जाएगी तो उसे मरने की जरूरत ही नहीं पडे़गी.

महिला ने उसे वह रास्ता बताया तो जैसे सलमा को ऐसे लगा जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया. आस जगी तो वह घर वापस लौट गई. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ठाकुरगंज थानाक्षेत्र के हुसैनाबाद में रईस मंजिल के पास सैयद अहमद शाह उर्फ पिन्नी वाले बाबा की मजार थी. मजार पर रोज काफी लोग मत्था टेकने आते थे और अपने लिए दुआएं मांगते थे. आने वालों में महिलाएं अधिक होती थीं.  मजार पर 65 वर्षीय मौलाना अंसार हुसैन उर्फ काला बाबा झाड़फूंक का काम करता था. अंसार हुसैन हमेशा काले कपड़े पहनता और काली टोपी लगाता था. इसीलिए लोग उसे काला बाबा कहने लगे थे. मजार के पास ही एक कमरा बना था. काला बाबा झाड़फूंक का काम उसी कमरे में करता था.

वह निस्संतानता, सफेद दाग और कई प्रकार के रोगों और परेशानियों को दूर करने का दावा करता था. उस का एक सहयोगी असलम था, जो कि बाबा का राजदार था और उस के हर काम में सहयोग करता था. परिचित महिला ने सलमा को इसी काला बाबा के बारे में बताया था. सलमा अपना दुख ले कर काला बाबा के पास पहुंची और अपना दुख उस के सामने जाहिर किया. काला बाबा ने उस पर ऊपरी साया होने की बात बताई जो कि उस की कोख हरी नहीं होने दे रहा. वह साया उस की कोख में अपनी जगह बनाए हुए था. इसलिए पूरे जतन करने के बाद भी वह मां नहीं बन पा रही थी. काला बाबा की बात सुन कर सलमा सहम गई. उस ने काला बाबा से उस का उपाय करने को कहा. बाबा ने उसे हर बुधवार को मजार पर पास आने को कहा. बाबा ने उस से कहा कि वह उस दिन नहा कर साफ कपड़े पहन कर आए. बाबा का मानना था कि बुधवार को ही कोई काम शुद्ध होता है.

उस दिन भी बुधवार था. काला बाबा उसे कमरे में ले गया और मोर पंखों की झाड़ू उस के सिर पर मार कर उस के ऊपरी साए को भगाने का जतन करने लगा. साथ ही कुछ बुदबुदाते हुए उस के ऊपर फूंक भी रहा था. कुछ देर तक ऐसा करने के बाद काला बाबा ने सलमा से कहा कि ऊपरी साए को दूर करने के लिए उसे अपने शरीर पर भभूत लगवानी होगी. सलमा कुछ झिझकी तो बाबा ने कहा कि जो तुम्हारी समस्या को दूर कर रहा हो, उस के सामने शरमाना और हिचकना नहीं चाहिए. सलमा वैसे ही परेशान थी और हर हाल में अपना दुख दूर करना चाहती थी. इसलिए वह काला बाबा की बात मानने को तैयार हो गई.

कमरे के आधे हिस्से को एक चादर से कवर किया गया था. वहां जमीन पर एक चादर भी बिछी थी. काला बाबा ने सलमा को वहां भेज दिया. सलमा ने अपने सारे कपडे़ उतार दिए और जमीन पर बिछी चादर पर लेट गई. काला बाबा उस के पास पहुंचा और उस के बदन पर साथ लाई भभूत को मलने लगा, साथ ही वह कुछ बुदबुदा भी रहा था. वह काफी देर तक भभूत लगाता रहा. सलमा मजबूरी में लेटी थी लेकिन बाबा का स्पर्श करना उसे भी अच्छा लग रहा था. उस दिन के बाद सलमा हर बुधवार बाबा के पास जाने लगी. बाबा के पास आने वाली महिलाओं में सलमा ही नहीं थी, उस जैसी कई महिलाएं थीं, काला बाबा जिन का इसी तरह इलाज करता था. किसी को भभूत लगाता तो किसी को लेप लगाता था.

इलाज के बहाने वह महिलाओं के शरीर से छेड़छाड़ करता, उन की अस्मत से खेलता था. कभी उस की तबियत खराब होती या चेले असलम का मन होता तो काला बाबा उसे महिलाओं से खेलने का मौका दे देता था. असलम अपने गुरु से भी चार हाथ आगे निकल गया. वह महिलाओं की इज्जत से तो खेलता ही था, साथ ही वह उन की वीडियो भी बना लेता था. वीडियो के सहारे बाद में वह उन महिलाओं को ब्लैकमेल करता था. बाबा और उस के चेले का यह गोरखधंधा कई सालों से चल रहा था. मजार पर महिलाएं जरूरत से ज्यादा आने लगीं तो आसपास के लोगों का माथा ठनका. उन्होंने काला बाबा और उस के चेले पर नजर रखनी शुरू कर दी.

वह काला बाबा से कुछ पूछते या टोकते तो बाबा और उस के घर वाले लोगों से लड़ने को तैयार हो जाते थे. परिवार वाले बाबा का ही साथ देते थे. सआदतगंज क्षेत्र की एक महिला अपने शरीर पर पड़े सफेद दागों को दूर कराने के लिए एक साल से काला बाबा के पास आ रही थी. काला बाबा उस के सफेद दाग दूर करने के बहाने उस के नग्न बदन पर लेप लगाता था. 21 अक्तूबर, 2020 की शाम को भी वह महिला काला बाबा के पास लेप लगवाने आई. बाबा की तबियत ठीक नहीं थी. इसलिए उस ने अपने चेले असलम को लेप लगाने के लिए बोल दिया. असलम उस महिला को कमरे में ले जा कर लेप लगाने लगा. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था. काला बाबा दरवाजे के बाहर ही तैनात था.

तभी मोहल्ले वाले कमरे के अंदर किसी महिला के होने की जानकारी मिलते ही वहां पहुंच गए. वे लोग कमरे के अंदर क्या हो रहा है, काला बाबा से इस की जानकारी मांगने लगे. बाबा उन पर नाराज हो गया तो लोग उस से हाथापाई करने लगे. कुछ लोग इस सब का मोबाइल से वीडियो बना रहे थे, तभी शोर सुन कर कमरे के अंदर मौजूद असलम ने दरवाजा खोल कर बाहर देखना चाहा तो मोहल्ले के लोग कमरे के अंदर घुस गए. वहां परदे के पीछे एक नग्न महिला लेटी हुई थी. लोग वहां पहुंच गए और उस से सवालजवाब करने लगे. महिला कपड़े पहनते हुए सफाई देने लगी कि वह तो मजार पर मत्था टेकने आई थी. वह एक साल से मजार पर आ रही थी. लोगों ने वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिए.

बाबा की घिनौनी करतूत को जिस ने देखा उस ने बाबा को कोसा. मोहल्ले के लोगों ने ठाकुरगंज थाने में सूचना दे दी. सूचना पर इंसपेक्टर राजकुमार अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मोहल्ले के लोगों ने काला बाबा की करतूतों के बारे में उन्हें बताया. पूरे मामले की बनाई गई वीडियो भी उन को दे दी. इस बीच काला बाबा का चेला असलम भाग गया था. इंसपेक्टर राजकुमार काला बाबा और उस महिला को साथ ले कर थाने आ गए. महिला ने बाबा के विरुद्ध थाने में शिकायत दर्ज कराने से मना कर दिया. तब पुलिस ने महिला को पूछताछ के बाद थाने से घर भेज दिया.

इस के बाद थाने के दरोगा ओमप्रकाश यादव की ओर से काला बाबा और उस के चेले असलम के खिलाफ अश्लील हरकत करने और धोखाधड़ी समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद काला बाबा को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस असलम की तलाश में लगी हुई थी.

Maharashtra News : सैक्स रैकेट और अवैध धंधों से वसूली करने वाली प्रीति की हैरान करने वाली दास्तां

Maharashtra News : खिलाड़ी औरतों के लिए हनीट्रैप कमाई का सब से अच्छा माध्यम है. लेकिन यह जरूरी नहीं कि इस में कामयाबी मिलेगी ही, क्योंकि पुलिस भी अपराधों की गंध सूंघती रहती है. प्रीति ने नेताओं और पुलिस के कंधों पर हाथ रख कर करोड़ों कमाए, लेकिन…

लौकडाउन से अनलौक की ओर कदम बढ़ते ही महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में यूं तो अपराध की जबरदस्त ताक धिना धिन सुनी जा रही थी. हत्याओं का सिलसिला सा बन गया था. राज्य के गृहमंत्री के गृहनगर की इस हालत पर राजनीतिक तीरतलवार चलाने वाले तरकश कसने लगे थे. पुलिस और प्रशासन पर तोहमत लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. कोरोना योद्धा के तौर पर शाबासी लूट चुकी शहर पुलिस ऐसी किसी तोहमत को तवज्जो नहीं देना चाहती थी. दावा यही कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की न जरूरत थी न ही होनी चाहिए.

शहर पुलिस ने बड़ेबड़े अपराधियों के अपराध के आशियानों को कुछ समय में ही बड़े स्तर पर ध्वस्त कर दिया था. ऐसे में एक मामला अचानक चर्चा में हौट हुआ. यह मामला चार सौ बीसी के खेल में पकड़ी गई प्रीति का. राजनीति के गलियारे में चहलकदमी के साथ समाजसेवा का नया मौडल बनी घूमती उस महिला के बारे में बड़ी चर्चा ये थी कि कई पुलिस वाले साहब उस के दबेल यानी उस के दबाव में थे. लिहाजा उस ने शहर व शहर के आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दबावतंत्र बना कर कइयों की जिंदगी में जहर घोल दिया. पुलिस कभी उस का सत्कार करती थी तो कभी उस से सत्कार कराती थी.

समाजसेवा के चोले में हनी ट्रैपर घटना 5 जून, 2020 की है. एक शिकायतकर्ता पांचपावली पुलिस स्टेशन में बेबस मुद्रा में मदद की याचना ले कर पहुंचा. शिकायतकर्ता का नाम था उमेश उर्फ गुड्डू तिवारी. पांचपावली क्षेत्र में ही रहने वाले गुड्डू ने बताया कि उस का जीवन एकदम सामान्य था. वह एक स्कूल का कर्मचारी है. हर माह मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का हंसीखुशी गुजारा हो रहा था. लेकिन जब से वह प्रीति की सोहबत में आया, उस की दुनिया लुटने लगी. उमेश उर्फ गुड्डू ने उस वक्त को कोसा है, जब वह फेसबुक पर प्रीति से जुड़ा था.

प्रीति का आकर्षक फोटो देख गुड्डू ने उस पर सहज कमेंट किया था. उस कमेंट के जवाब में प्रीति ने फेसबुक पर ही गुड्डू को पर्सनल मैसेज भेज कर मोबाइल फोन नंबर का आदानप्रदान कर लिया. गुड्डू इस बात को ले कर भी खुद को दोष देता है कि एकदो बार फोन पर बात के बाद वह उस अनजानी महिला के सामने पूरी तरह से खुल गया. उस ने अपने घरपरिवार की बातें साझा कर दीं. यहां तक कि वैवाहिक जीवन में भी उस ने अरमानों के सूखे कंठ की वेदना को स्वर दे दिया. प्रीति ने गुड्डू को बताया कि नागपुर के जिस इलाके में वह रहता है, उस के पास ही वह भी रहती है. उस ने अपनी पहचान के दायरे के ट्रेलर के तौर पर कुछ लोगों के नाम गिनाए.

कुछ दिनों बाद दोनों के मिलने का सिलसिला मोहब्बत की परवाज भरने लगा. कभी प्रीति मिलने पहुंचती तो कभी गुड्डू को बुला लेती थी. एक दिन प्रीति ने गुड्डू से साफ कह दिया कि वह उस के साथ जीवन गुजारने को तैयार है. बशर्ते उसे अपनी पत्नी को तलाक देना होगा. भविष्य की योजना भी उस ने गुड्डू से साझा की. 50 वर्षीय गुड्डू जिंदगी के नए सफर पर चलने के लिए न केवल राजी हुआ बल्कि अति उत्साहित भी था. माल मिलते ही बदला रंग गुड्डू की शिकायत का लब्बोलुआब यह था कि प्रीति मनचाहा धन मिलते ही तेवर बदलने लगती थी. बतौर गुड्डू प्रीति ने उस से फ्लैट खरीदने के लिए रुपयों की मांग की थी. उस का कहना था कि जब तक गुड्डू की पत्नी का तलाक नहीं हो जाता, तब तक दोनों उस फ्लैट में मिलतेजुलते रहेंगे.

गुड्डू ने अग्रिम के तौर पर प्रीति को फ्लैट के लिए 2.60 लाख रुपए दे दिए. तय समय पर फ्लैट नहीं लिया गया तो गुड्डू ने रुपए वापस मांगे. बस यहीं से गुड्डू पर दबाव का नया सिलसिला चल पड़ा. फ्लैट के नाम पर लिए गए रुपए वापस लौटाना तो दूर प्रीति ने रुपयों की नई पेशकश रख दी. उस ने कहा कि सोशल मीडिया पर जितनी भी हौट बातें हुई हैं और फोन पर लाइव चैटिंग हुई है, उन का सारा हिसाब उस के पास है. अगर वह उस रिकौर्डिंग को पुलिस को सौंप दे तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. प्रीति की सीधी धमकी यह भी थी कि ज्यादा चूंचपड़ मत करना. मेरे हाथ काफी लंबे हैं. चुटकी बजा कर ऐसी जगह पर घुसेड़वा दूंगी, जहां से जीवन भर नहीं निकल पाएगा. और हां, अपनी इज्जत बचानी हो तो 5 लाख रुपए तैयार रखना.

प्रीति के ठग अंदाज का जिक्र करते हुए गुड्डू ने बताया कि उस ने डर के मारे प्रीति को 2.42 लाख रुपए और दिए, जिस से वह कहीं मुंह न खोले. लेकिन माल पाने के बाद तो वह और भी रंग बदलने लगी. रुपए और गिफ्ट ले कर यहांवहां बुलाने लगी. उस से दूर होने का प्रयास किया तो वह घर में आ कर पिटवा देने की धमकी देने लगी. कुछ ही दिनों में उस ने नकदी और गिफ्ट के रूप में 14.87 लाख रुपए ऐंठ लिए. आखिरकार उसे अपने बचाव में पुलिस की शरण लेनी पड़ी. पुलिस ने उस की शिकायत की शुरुआती पड़ताल करने के बाद प्रीति के खिलाफ भादंवि की धारा 420 व धारा 384 हफ्तावसूली के तहत केस दर्ज कर लिया.

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने प्रीति के कामठी रोड स्थित प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट के घर पर छापेमारी की. प्रीति वहां से चंपत हो गई थी. पुलिस ने उस के घर से काफी सामान और दस्तावेज बरामद किए. खुला भेद तो पुलिस भी रह गई दंग जिस पांचपावली पुलिस स्टेशन में प्रीति का आनाजाना लगा रहता था, उसी थाने की पुलिस उस के कारनामों की फेहरिस्त देख कर दंग रह गई. रिकौर्ड खंगालने पर पता चला कि प्रीति धोखाधड़ी के मामले में जेल की यात्रा कर चुकी है. उस के आपराधिक क्षेत्र के छोटेबड़े लोगों से भी करीबी संबंध है. उस के खिलाफ शहर के सीताबर्डी पुलिस स्टेशन में भादंवि की धारा 420, 406, 468, 467, 506, 507, 34 के  तहत प्रकरण दर्ज है.

धोखाधड़ी का वह प्रकरण शहर में काफी चर्चित हुआ था. इस के अलावा भंडारा के पुलिस स्टेशन में भी भादंवि की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज था. शहर पुलिस के बड़े अधिकारियों के लिए यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी कि जिस महिला को वे केवल सामाजिक कार्यकर्ता समझ रहे थे वह ब्लैकमैलर है. यही नहीं वह पुलिस से संबंधों का नाजायज फायदा उठाती रहती है. शहर पुलिस की ओर से प्रीति के अपराधों की जानकारी जुटानी शुरू कर दी गई. बाकायदा प्रैस नोट जारी कर आह्वान किया गया कि इस महिला ने किसी से धोखाधड़ी की हो, तो तत्काल पुलिस से संपर्क करे.

इस बीच प्रीति फरार हो गई थी. पुलिस उसे ढूंढती रही. करीब हफ्ते भर प्रीति बचाव का रास्ता खोजती रही. उस ने वकील के माध्यम से जिला सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. कोशिश यही थी कि पुलिस गिरफ्तारी से बचते हुए उसे न्यायालय से जमानत मिल जाए. लेकिन उस की कोशिशों पर पानी फिर गया. न्यायालय ने उस की अरजी खारिज कर दी. लिहाजा उस ने 13 जून को पांचपावली पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण किया. उसे पुलिस तक पहुंचाने वालों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अलावा पुलिस के कुछ नुमाइंदे भी शामिल थे.

गिरफ्तारी के बाद प्रीति को पुलिस रिमांड पर लिया गया. उस के खिलाफ पुलिस ने सबूत जुटाने शुरू किए. जांच में जुटी पुलिस यह जान कर दंग रह गई कि कुछ समय पहले तक मामूली मोपेड पर घूमने वाली प्रीति अब करोड़पति हो गई है. वह महंगी कारों से घूमती है. उस ने अपने करीबियों व रिश्तेदारों के नाम पर बेनामी संपत्ति खरीद रखी है. बंगला, खेती की जमीन के अलावा वह एक कंपनी की भी संचालक भी थी. अवैध वसूली के लिए उस ने बाकायदा एक संस्था रजिस्टर्ड करा रखी थी. लिहाजा पुलिस ने धर्मदाय आयुक्तालय, विजिलैंस विभाग के अलावा अन्य विभागों को पत्र लिख कर उस के बारे में आवश्यक जानकारी मांगी.

घर में हुआ अपमान तो कर लिया सुसाइड प्रीति के कारनामों की जानकारी जुटाई ही जा रही थी कि पुलिस अधिकारियों तक एक गुहार और पहुंची. गुहार यह कि एक व्यक्ति ने प्रीति और उस के साथियों के डर से सुसाइड कर लिया था. मृतक के परिवार को न्याय दिलाने के लिए यह शिकायत जूनी मंगलवारी निवासी वैशाली पौनीकर की थी. शिकायत के अनुसार वैशाली के पति सुनील पौनीकर ने अक्तूबर 2019 में सतीश सोनकुसरे से कुछ रकम कर्ज ली थी. सुनील पौनीकर मेस संचालक था. काम में घाटे के कारण उसे कर्ज लेना पड़ा था. सतीश सोनकुसरे ने कर्ज वापसी के लिए सुनील पर दबाव बनाया. लेकिन समय पर रुपए नहीं लौटा पाने पर उस ने प्रीति की मदद ली.

प्रीति यह भी दावा करती थी कि वह कर्ज वसूली का काम भी करती है. शहर के सारे बड़े पुलिस अफसर व नेता उस के पहचान के हैं. बतौर वैशाली पौनीकर, प्रीति ने सतीश सोनकुसरे से कर्ज वसूली की सुपारी ली थी. वह कुछ पुलिस कर्मचारियों की मदद से सुनील को प्रताडि़त करती थी. प्रीति की धमकी से किया सुसाइड एक दिन प्रीति सतीश सोनकुसरे और मंगेश पौनीकर को साथ ले कर सुनील के घर पर पहुंच गई. प्रीति ने सुनील को कर्ज नहीं लौटाने पर धमकी दी. उस के साथ कुछ पुलिस वाले भी थे, जो घर में आ कर मांबहन की गालियां दे गए. यहीं नहीं, वह बस्ती में नंगा घुमाने की धमकी दे रहे थे. धमकी और घिनौनी बातों से सुनील बुरी तरह आहत हुआ.

लिहाजा उस ने 27 नवंबर, 2019 की दोपहर ढाई बजे लकड़गंज थाना क्षेत्र के बाबुलवन प्राथमिक शाला के मैदान में जहर पी लिया. मेयो अस्पताल में उपचार के दौरान 30 नवंबर, 2019 को सुनील ने दम तोड़ दिया था. पुलिस ने आकस्मिक मौत का मामला दर्ज कर जांच जारी रखी. अब वैशाली पौनीकर की शिकायत पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर लकड़गंज थाने की पुलिस ने प्रीति व उस के साथियों के खिलाफ सुनील आत्महत्या मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण दर्ज कर तलाश शुरू कर दी. मेस संचालक को आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण लकड़गंज थाने में दर्ज हो ही रहा था कि जरीपटका थाने में एक और शिकायत पहुंची.

शिकायत यह थी कि आरोपी प्रीति ने धौंस दिखा कर 25 हजार रुपए ऐंठ लिए. शिकायतकर्ता पूर्णाबाई सडमाके का बेटा नीतेश वायुसेना में लिपिक था. 8 मार्च, 2019 को उस की प्रणिता से शादी हुई थी. शादी के 2 माह बाद ही प्रणिता की अपनी सास पूर्णाबाई से अनबन होने लगी. प्रणिता अपना सामान ले कर मायके चली गई. समझाने पर भी वह नहीं मानी. उस ने पुलिस के भरोसा सेल में पूर्णाबाई की शिकायत दर्ज करा दी. भरोसा सेल में पूर्णाबाई की प्रीति से भेंट हुई. प्रीति भरोसा सेल की एजेंट बन कर घूमती थी. उस ने विवाद निपटाने का झांसा दे कर पूर्णाबाई से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए नहीं देने पर उस के बेटे की नौकरी जाने का भय बताया. लिहाजा 17 अक्तूबर, 2019 को पूर्णाबाई ने प्रीति को 25 हजार रुपए दे दिए.

पूर्णाबाई ने प्रीति को फोन कर पूछताछ की. प्रीति ने बताया कि तुम्हारे बेटे का काम हो गया है. मैं ने मैडम को पैसे दे दिए हैं. बेटे से जुड़े मामले को ले कर एक बार पूर्णाबाई को भरोसा सेल की इंचार्ज इंसपेक्टर शुभदा शंखे ने पूछताछ के लिए बुलाया. उस दौरान पूर्णाबाई ने इंसपेक्टर शुभदा से सहज ही कह दिया कि मैं ने तो आप को 25 हजार रुपए दिए थे, फिर आप मुझ से इस तरह घुमावदार सवाल क्यों कर रही हो.  इंसपेक्टर शुभदा चौंकी. वह यह जान कर हैरान थी कि जिस प्रीति दास को वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सम्मान देती रही, वह तो उस के नाम पर ही अवैध वसूलियां करने लगी है. लिहाजा, इंसपेक्टर शंखे ने पूर्णाबाई को शहर पुलिस के जोन-5 के उपायुक्त नीलोत्पल के पास भेजा.

पूर्णाबाई की शिकायत पर जरीपटका पुलिस ने आरोपी प्रीति के खिलाफ हफ्ता वसूली का मामला दर्ज कर लिया. 2 दिन बाद शहर पुलिस के पास एक और शिकायत पहुंची. शिकायतकर्ता युवती उच्चशिक्षित थी. उस के अनुसार उस के साथ एक युवक ने विवाह का झांसा दे कर दुष्कर्म किया था. प्रीति दास ने युवती को यह कह कर मदद का आश्वासन दिया था कि उस की पुलिस के बड़े अधिकारियों से खासी पहचान है. वह दुष्कर्म के आरोपी को सजा दिलाएगी. इस कार्य के लिए उस ने युवती से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए मिलने के बाद प्रीति उस युवती से मिलती भी नहीं थी. ऐसे में एक रोज युवती ने प्रीति से तल्खी के साथ सवाल किया तो वह उसे धमकाने लगी. साथ ही यह औफर देने लगी कि उस की गैंग में शामिल हो जाए.

उस युवती का आरोप था कि प्रीति अकसर खूबसूरत युवतियों की मजबूरियों का फायदा उठाती है. युवतियों को पेश कर के वह रसूखदारों से मनचाहा माल वसूलती रहती है. 2 से 3 पुलिस कर्मचारी व अधिकारी को हनीट्रैप में फंसा देने का डर दिखा कर उसने कथित तौर पर लाखों की वसूली की है. उस ने यह भी बताया कि नागपुर में पश्चिम महाराष्ट्र के कई पुलिस अधिकारी बैचलर रहते हैं. उन का परिवार उन के गांव या शहर में है. लिहाजा उन्हें रात रंगीन कराने के एवज में प्रीति लगातार ब्लैकमेल करती रही है.

भंडारा पुलिस थाने में प्रीति के विरुद्ध दर्ज धोखाधड़ी के मामले में बताया गया कि वह नागपुर के बाहर के जिलों में खुद को बैंकर के तौर पर प्रचारित करती रही है. जरूरतमंदों को आसानी से लाखों का कर्ज दिलाने का झांसा देती रही है. उस के इस चक्रव्यूह में कुछ बैंक कर्मचारी व अधिकारी भी शामिल रहे हैं. दीवाने ही दीवाने प्रीति अपना पूरा नाम प्रीति ज्योतिर्मय दास लिखती है. 40 की उम्र की हो चली इस महिला के चेहरे से ही सादगी व शिष्टता झलकती है. लेकिन उस के शिकायतकर्ताओं की मानें, तो वह जैसी दिखती है वैसी है नहीं. उस की मित्रमंडली की फेहरिस्त में दीवाने ही दीवाने हैं.

उस के कारनामों के तराने न जाने कहांकहां गूंज रहे हैं. शिकायतकर्ता गुड्डू तिवारी की सुनें तो प्रीति कपड़ों की तरह रिश्ते बदलती है. लिबास ही नहीं, जरूरत हो तो वह जाति और धर्म भी बदल लेती है. कभी वह मसजिदों के इर्दगिर्द नजर आती है तो कभी गुरुद्वारे के आसपास. फर्राटेदार अंगरेजी तो बोलती ही है , मराठी और हिंदी में भी उस के तेवर तने रहते हैं. उस के जीवन में 4 लोगों के नाम प्रमुखता से जुड़े हैं. इन में एक मराठी, दूसरे कारोबारी हैं तो 2 मुसलिम हैं. चर्चा है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए उस ने संदीप दुधे, महेश गुप्ता, रफीक अहमद व मकसूद शेख से अलगअलग शादी रचाई. फिर उन को उस ने छोड़ दिया.

शिकायतकर्ता गुड्डू की शिकायत में इन नामों का जिक्र है. फिलहाल यह साफ नहीं हो पाया है कि प्रीति अपने पति से क्यों और कैसे दूर हुई. परिवार में उस की बुजुर्ग मां व बेटा है. खबर है कि प्रीति के पिता सेना में थे. पिता की मृत्यु के बाद उस की मां को अब पेंशन मिलती है. घर में अनुशासन व शिष्टाचार का पाठ तो मिलता रहा, लेकिन कहा जाता है कि प्रीति की हसरतों ने उसे नई राह पर ला दिया. उस की सोशल मीडिया पर साझा की गई एक तसवीर पर लिखा है, ‘मेरी सादगी ही गुमनाम रखती है मुझे, जरा सा बिगड़ जाऊं तो मशहूर हो जाऊं.’

उसे करीब से जानने वालों का कहना है कि वह आपराधिक प्रवृत्ति की नहीं थी. लेकिन शोहरत और दौलत पाने का जुनून कुछ ऐसा सवार है कि वह हर हद से गुजर जाने का दंभ भरती है. वह अपनी सोशल इमेज चमकाने का निरंतर प्रयास करती रही. हालत यह है कि अब भी कुछ लोग उसे धोखेबाज मानने को तैयार नहीं है. प्रीति एक भाजपा पार्षद की सामाजिक संस्था से भी जुड़ी थी. लौकडाउन में जरूरतमंदों को राहत सामग्री देने के अभियान में वह पूरी ताकत के साथ जुटी रही. लिहाजा उस संस्था से जुड़े नेता ने तो उसे निर्दोष ठहराने का अभियान ही शुरू कर दिया है. दावे के साथ सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है— हमारी ताई को फंसाया जा रहा है. उस ने कोई अपराध नहीं किया है.

यह भी सुना जा रहा है कि प्रीति स्वयं को बैंकर बताती रही है. वह खुद को एक राजनीतिक दल के पदाधिकारियों द्वारा संचालित एक बैंक की संचालक के रूप में भी प्रचारित करती रही है. सदर क्षेत्र में उस बैंक के कार्यालय में उस के कारनामों के किस्से हैं. बैंक का मैनेजर भी सिर पर हाथ धरे रहता है. बैंक अधिकारी बताते हुए सीज किए हुए वाहन सस्ते में दिलाने के दावे के साथ धोखाधड़ी करने के उस के किस्से भी सुने जा रहे हैं. खास बात है कि प्रीति अकसर सादे लिबास में रहती है. उस का बर्ताव उच्चशिक्षित सा आकर्षक है.

हमपेशेवर सहेलियों ने की चुगली यह चर्चा भी जोरों पर है कि प्रीति के कारनामों की चुगली उस की हमपेशेवर सहेलियों ने की. राजनीति से ले कर सामाजिक कार्यों में ऐसी कई नईपुरानी कार्यकर्ता हैं, जिन की पहचान वसूली एजेंट के तौर पर है. अब सब के काम और सोच के तरीके अलगअलग हो गए हैं. इन में से कुछ को केवल यह बात खटक रही है कि प्रीति कम समय में बहुतों की चहेती बन गई. नेता, पुलिस से ले कर अन्य क्षेत्र के बड़े लोग भी उस के साथ उठनेबैठने लगे. प्रीति का सोशल मीडिया पर इमेज चमकाने का तरीका भी कइयों की आंखों में चुभने लगा था.

लिहाजा प्रीति की चुगली भी होने लगी थी. कभी वह इंसपेक्टर स्तर के अफसर के साथ बदनाम होती तो कभी नेता के घर उस के नाम पर पारिवारिक झगड़ा होता था. बताते हैं कि चुगली के चक्कर में एक पुलिस वाले ने प्रीति से कुछ बातों को ले कर सवाल किए थे, जिस पर वह थाने में ही भड़क गई थी. उस ने उस अफसर को भी खरीखोटी सुनाते हुए ज्यादा चूंचपड़ नहीं करने को कहा था. थाने में सिपाहियों के सामने हुए उस अपमान को अफसर भूल नहीं पाया. शहर में हनीट्रैप के कारनामों में लिप्त कुछ महिलाओं के लिए भी प्रीति आंख का कांटा बनी है. उन्हें लगता है कि यह कल की आई महिला सब को पीछे छोड़ कर काफी आगे निकल चुकी है.

सैक्स रैकेट, भोजनालयों, अवैध धंधों के अड्डों से पुलिस के नाम पर वसूली कर गुजारा करने वालों के लिए यह बात और भी खटकने वाली है कि प्रीति तो सीधे पुलिस अफसरों की गाडि़यों में ही घूमने लगी. आइडियाज क्वीन प्रीति को पहचानने वाले उसे अवैध वसूली की आइडियाज क्वीन भी कहते हैं. अपनी सोशल इमेज बनाते हुए वह सत्कार कार्यक्रम का आयोजन करती रही है. चर्चा के अनुसार वह सत्कार के लिए ऐसे लोगों की तलाश करती रहती है जो कार्यक्रम में  शौल, श्रीफल मिलने के बदले 10 से 20 हजार रुपए खर्च कर सकें.

कार्यक्रम आयोजन के नाम पर सहयोग के तौर पर वह हजारों रुपए जमा कर लेती है. उन कार्यक्रमों में पुलिस के बड़े अधिकारी या अन्य क्षेत्र के सम्मानित लोगों को आमंत्रित करती रही है. सत्कार कराने के इस खेल में भी वह मोटी रकम बटोरती है. बड़े पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी कर के भी वह अपने स्वार्थ साधती रही है. इस के अलावा विविध मामलों को ले कर वह अफसरों व नेता, मंत्री को निवेदन सौंपने में भी आगे रही है. पुलिस मित्र के तौर पर शहर के सभी 33 पुलिस थानों में उस की खास पहचान है. अफसरों की निजी पार्टी के अलावा नेताओं की पर्सनल बैठकों में वह शामिल होती रही है.

खुशियों के मौकों पर मनपा के बड़े नेता भी उस के साथ ठुमके लगाते दिखे. लिहाजा कइयों को यही लगता है कि प्रीति की प्रीत केवल उस से है. उसे होनहार कार्यकर्ता मानने वालों की भी कमी नहीं है. सत्कार करनेकराने का दौर कुछ ऐसा चला है कि शहर में जिम्मेदार वर्ग कहलाने वाले सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठितों के साथ वह मंच साझा कर चुकी है. नगर सेवक, महापौर, विधायक स्तर के जनप्रतिनिधि उस की खास मित्रमंडली में शामिल हैं. वह सब से पहले अपने शिकार के बारे में जानकारी लेती है. मनचाही खुशियों का दाना फेंक कर शिकार फांसने का गुर वह जान चुकी है.

हनीट्रैप के मामलों में उत्तर नागपुर में ही एक गिरोह चर्चा में रहा है. प्रीति का नाम आते ही वह हवा हो गया था. इस के अलावा कुछ आपराधिक मामलों में उस का नाम थानों तक पहुंचा, लेकिन पुलिस के रिकौर्ड में दर्ज नहीं हो पाया. बहरहाल कहा जा रहा है कि प्रीति के चक्कर में दास बने लोगों की लंबी कतार है. इन में कई सफेदपोश लोग भी हैं. उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही सारी हकीकत सामने आने लगेगी.

 

सैनिटरी पैड विवाद : प्रिंसिपल ने 68 लड़कियों के उतरवाए कपड़े

Social Crime : महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को ले कर केंद्र और गुजरात सरकार भले ही लाख दावे करे लेकिन स्थिति इस के एकदम उलट है. गुजरात सरकार लड़कियों के मामले में कितनी संजीदगी दिखाती है, इस की एक झलक वहां के कच्छ शहर में स्थित एक इंस्टीट्यूट में घटी घटना से साफ झलकती है. इंस्टीट्यूट की प्रिंसपल ने जांच के नाम पर 68 छात्राओं के कपड़े उतरवा दिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहराज्य गुजरात के कच्छ शहर में स्वामी नारायण संप्रदाय का सहजानंद गर्ल्स इंस्टीट्यूट है.

इस इंस्टीट्यूट का नियम यह है कि जिस छात्रा को पीरियड आता है वह हौस्टल के कमरे के बजाय बेसमेंट में रहती है. पीरियड के खत्म हो जाने के बाद ही वह हौस्टल के कमरे में आती है. इतना ही नहीं पीरियड के दिनों में उसे पूजा करने की इजाजत भी नहीं होती और वह रसोईघर में भी नहीं घुस सकती. इतना ही नहीं ऐसी लड़कियों को उन दिनों क्लास में भी अंतिम बेंच पर बैठना पड़ता है और वह किसी लड़की को छू भी नहीं सकती. लेकिन फरवरी 2020 के दूसरे सप्ताह में इस इंस्टीट्यूट में घटी एक घटना ने 68 लड़कियों को अपने कपड़े उतारने के लिए मजबूर होना पड़ा.

हुआ यह कि इंस्टीट्यूट के गार्डन में प्रयोग किया हुआ सैनेटरी पैड मिला. वार्डन की निगाह जब उस पैड पर पहुंची तो उस ने सोचा कि यह पैड किसी लड़की ने टायलेट की खिड़की से गार्डन में फेंका होगा. तब वार्डन ने इंस्टीट्यूट की छात्राओं से इस बारे में पूछताछ की, लेकिन किसी भी छात्रा ने वह पैड फेंकने की बात नहीं स्वीकारी. यह बात वहां की प्रिंसपल के कानों तक पहुंची तो उन्हें यह बात बुरी लगी. इंस्टीट्यूट की प्रिंसपल ने सच जानने के लिए 13 फरवरी को 68 छात्राओं के कपड़े उतरवा कर के कच्छे चैक किए कि किनकिन छात्राओं को पीरियड हो रहे हैं और वह छात्रा कौन सी है जिस ने उसी तरह का पैड लगाया हुआ है जो गार्डन में मिला था.

यह जानकारी कच्छ यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक अधिकारियों को पता चली तो शर्मसार (Social Crime) कर देने वाली इस घटना को उन्होंने गंभीरता से लिया. इस के बाद तो सहजानंद गर्ल्स इंस्टीट्यूट में हड़कंप मच गया.  यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इस मामले की जांच के लिए 5 सदस्यों की एक कमेटी बनाई. इस कमेटी में शामिल वाइस चांसलर और 3 अन्य महिला प्रोफेसर ने सहजानंद गर्ल्स इंस्टीट्यूट का दौरा कर अपनी जांच शुरू कर दी. इस जांच कमेटी ने छात्राओं आदि से पूछताछ करने के बाद अपनी जांच रिपोर्ट यूनिवर्सिटी प्रशासन को सौंप दी. रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन ने इंस्टीट्यूट की प्रिंसपल सहित हौस्टल वार्डन और 2 हौस्टल असिसटैंट को दोषी ठहराते हुए उन्हें सस्पेंड कर दिया गया.

ज्ञात रहे कि स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायी ने सन 2012 में लड़कियों के लिए एक कालेज की स्थापना की थी. जिस में लड़कियां को बीएससी, बीकौम, बीए की पढ़ाई की व्यवस्था की गई थी. बाद में सन 2014 में यह कालेज स्वामीनारायण कैंपस में शिफ्ट हो गया था. जिस में 12वीं कक्षा तक की लड़कियां पहले से ही पढ़ रही थीं. कालेज में करीब 1500 लड़कियां पढ़ती हैं. इस कैंपस में उच्च शिक्षा पाने वाली लड़कियों के लिए अलग हौस्टल की व्यवस्था नहीं है. कालेज की 68 छात्राएं भी कैंपस में पढ़ने वाली अन्य लड़कियों के साथ ही हौस्टल में रहती हैं.

क्योंकि यह इंस्टीट्यूट धार्मिक संप्रदाय का है इसलिए वहां रहने वाली लड़कियों के लिए जो नियम बनाए हैं उन का पालन करना सभी के लिए जरूरी है. लेकिन इस इंस्टीट्यूट की प्रिंसपल द्वारा 13 फरवरी, 2020 को की गई शर्मशार हरकत ने इस इंस्टीट्यूट को चर्चा के घेरे में खड़ा कर दिया. जिस का खामियाजा प्रिंसपल, हौस्टल वार्डन् और 2 हौस्टल असिसटेंट को भुगतना पड़ा.

 

Family Crime Stories : पत्नी के टुकड़े कर पानी में उबाले

Family Crime Stories : पुट्टा गुरुमूर्ति ने पत्नी वेंकट माधवी की हत्या करने के बाद लाश के टुकड़े कर उन्हें न सिर्फ उबाला, बल्कि उस की हड्डियों को मिक्सी में पीस कर ठिकाने लगा दिया. आखिर ऐसी क्या वजह रही, जो गुरुमूर्ति इतना क्रूर बन गया…

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के मीरपेट थाने के जिल्लेलागुड़ा की न्यू वेंकटेश्वर कालोनी में किराए पर कमरा ले कर रहने वाले पुट्टा गुरुमूर्ति (39) और वेंकट माधवी (35) की शादी को 13 साल बीत चुके थे. दोनों इतना लंबा समय खट्टेमीठे अनुभवों के साथ गुजारते आए थे. गुरुमूर्ति की जब 2013 में शादी हुई थी, तब वह सेना में नायब सूबेदार था और ठीकठाक कमाता था, इसलिए माधवी गुरुमूर्ति से विवाह कर के खुश थी. लेकिन गुरुमूर्ति में कमी यह थी कि वह माधवी को अपने साथ नौकरी वाले शहर में नहीं ले जाता था. जबकि माधवी को शुरुआत में सासससुर के साथ रहना कतई अच्छा नहीं लगता था. वह पति के साथ उस के नौकरी वाले शहर में रहना चाहती थी, लेकिन गुरुमूर्ति इस के लिए तैयार नहीं था.

ऐसी स्थिति में पति के दबाव के चलते माधवी अपने सासससुर के साथ आंध्र प्रदेश के प्रकाशम में रह कर घरपरिवार को संभालने में जुट गई थी. सासससुर को कैसे खुश रखा जाए, गृहस्थी की जरूरतें कैसे पूरी हों, परिवार के अन्य सदस्यों के साथसाथ सामाजिक मानमर्यादा का खयाल किस तरह से रखा जाए? इस बात का खयाल माधवी खासतौर से रखती थी. एक तरह से उस ने अपना एक संतुलित परिवार बना लिया था. वह एक बेटा और बेटी की मां बन गई, उस के दोनों ही बच्चे एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढऩे जाते थे.

5 साल पहले पति के भारतीय सेना की नौकरी से रिटायर हो जाने के बाद वह पति और दोनों बच्चों के साथ हैदराबाद के उपनगर जिल्लेलागुडा की न्यू वेंकटेश्वर कालोनी में रहने लगी थी. किराए का मकान और गृहस्थी के बढ़ते खर्च, बेटेबेटी की बेहतर पढ़ाईलिखाई को ले कर माधवी काफी परेशान रहने लगी थी. बच्चों के भविष्य को ले कर उसे काफी फिक्र रहती थी. उधर गुरुमूर्ति की माधवी के मातापिता से किसी बात को ले कर खटपट हो गई थी. गुरुमूर्ति ने अपने सासससुर से बोलचाल बंद करने के साथ ही माधवी का मायके जाना बंद कर दिया था.

दामाद से बात कर परेशान क्यों हुईं सुब्बम्मा

गृहस्थी ठीकठाक पहले की तरह चल सके, इसलिए गुरुमूर्ति ने 2020 से कंचन बाग में स्थित डीआरडीओ कार्यालय में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करनी शुरू कर दी थी. लेकिन बीते कुछ दिनों से गुरुमूर्ति को अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह होने लगा था. गुरुमूर्ति को शक था कि माधवी उस की गैरमौजूदगी में अपने रिश्तेदार को बुला कर उस के साथ रंगरलियां मनाती है. हालांकि कुछ दिनों तक तो माधवी की समझ में ही नहीं आया कि पति ऐसा सलूक उस के साथ क्यों करने लगा गया है?

उधर गुरुमूर्ति के मन में पत्नी के चालचलन को ले कर नफरत बढ़ती जा रही थी. उस ने पत्नी से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने साफ कह दिया कि उस का किसी के साथ कोई चक्कर वगैरह कुछ नहीं है. लेकिन गुरुमूर्ति को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उसे लगा कि माधवी झूठ बोल रही है, इसलिए उस ने पत्नी को ठिकाने लगाने का प्लान बना लिया.

फिर प्लान के अनुसार, 15 जनवरी, 2025 को अपने बच्चों और पत्नी को अपनी बहन सुजाता के घर मेलमिलाप के बहाने ले गया. दोनों बच्चों को बहन के घर पर ही छोड़ कर पत्नी के साथ उसी रात को घर पर लौट आया था. 16 जनवरी की सुबह माधवी ने अपने पति से कहा कि मैं पोंगल के लिए अपने मायके नंदयाल जाना चाहती हूं, लेकिन अपने सासससुर से खफा गुरुमूर्ति ने दोटूक शब्दों में माधवी को वहां जाने से मना कर दिया. इस बात को ले कर दोनों में तूतूमैंमैं होने लगी. उसी दिन गुरुमूर्ति ने अपनी सास उप्पला सुब्बम्मा के मोबाइल पर काल कर दिया, ”हैलो सासू मां, आप मेरी बात सुन रही हैं?’’

”हांहां बोलो, दामादजी, तुम्हारी आवाज  मुझे बिलकुल स्पष्ट सुनाई दे रही है. बोलो न, क्या बता रहे थे मेरी बेटी के बारे में? आप को क्या शिकायत है माधवी से, मुझे साफसाफ बताओ, मैं बात करूंगी माधवी से इस बारे में.’’

”पिछले कुछ महीनों से माधवी के चालचलन में काफी बदलाव आ गया है. वह बेहया हो गई है. आप वक्त निकाल कर उसे जरा समझा देना, वरना मेरे हाथों से किसी दिन अनर्थ हो जाएगा.’’ गुरुमूर्ति ने एक तरह से धमकी भरे अंदाज में कहा और फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

दरअसल, उप्पला सुब्बम्मा अपने दामाद की बातों को पूरी तरह से समझ नहीं पाई थी. फिर भी उस ने अपने दामाद के कहने पर माधवी से बात कर लेना उचित समझा, अत: बिना किसी हिचकिचाहट के उस के नंबर पर काल कर दिया, ”हैलो माधवी, तू कैसी है? तेरे दोनों बच्चे कैसे हैं?’’

”अम्मा, मैं ठीक हूं, दोनों बच्चे तो अपनी बुआ के यहां  गए हुए हैं. आप और बापू कैसे हैं? घर पर सब खैरियत तो है न?’’

”अरे माधवी, दामादजी का फोन आया था. कुछ देर पहले तुम्हारे बारे में ही ही बोल रहे थे कि तुम्हारा चालचलन ठीक नहीं है और बड़ी बेहया हो गई हो? कोई इस तरह की बात है क्या?’’ सुब्बम्मा बोली.

”अरे नहीं अम्मा, आप उन की बातों को कोई अहमियत न दो, यह मेरे और गुरुमूर्ति के बीच की बात है.’’ माधवी ने अपनी मां को फोन पर समझाया.

”तेरे बच्चों की पढ़ाईलिखाई ठीकठाक चली है न. उन दोनों से मुलाकात किए 7 साल हो गए. छुट्टी वाले दिन उन्हें ले आना.’’ उप्पला सुब्बम्मा ने कहा.

उस दिन तो बात आईगई हो गई न तो माधवी ने अपने पति के साथ आए दिन होने वाली तकरार के बारे में अपनी अम्मा को कुछ बताया और न ही सुब्बम्मा ने बेटी की निजी जिंदगी में दखल देने की कोशिश की. लेकिन यह क्या? कुछ ही देर बाद गुरुमूर्ति ने अपनी सास को फिर से फोन कर वही बात दुहराई. कहने लगा, ”अपनी बेटी को संभाल लो, वरना मेरे हाथों अनर्थ हो जाएगा.’’

उस ने बिना किसी हिचकिचाहट के सीधे आरोप लगा दिया कि माधवी का एक करीबी रिश्तेदार के साथ चक्कर चल रहा है. एक तरह से गुरुमूर्ति ने उस दिन माधवी पर बदचलन होने और रिश्तेदार के साथ नाजायज संबंध होने का सीधेसीधे आरोप लगा दिया था. बेटी के बारे में दामाद से यह सब सुन कर सुब्बम्मा ने बेटी को फोन कर काफी डांट लगाई. उन्होंने गुस्से में बेटी से दोटूक कह दिया कि वह सिर्फ अपने पति और बच्चों पर ध्यान दे और अपने दोनों बच्चों का उज्जवल भविष्य बनाए, गलत रास्ते पर कतई न जाए, यदि दोबारा तुम्हारे बारे में दामादजी की शिकायत आई तो तुम्हारे लिए मायके के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे.

दूसरी तरफ सुब्बम्मा ने गुरुमूर्ति को भरोसा दिलाया कि वह कल सुबह तुम्हारे ड्यूटी पर निकलने से पहले घर पर आ कर माधवी को समझा देगी, लेकिन उस के लिए वह दिन नहीं आया. उसे अपनी बेटी को उस बारे में आमनेसामने बैठ कर बातें करने का मौका ही नहीं मिला.

सुब्बम्मा पति के साथ क्यों गई बेटी की ससुराल

शाम के 7 बजे के करीब सुब्बम्मा बेटी और उस के बच्चों के लिए बाजार से कुछ सामान लेने जाने के लिए तैयार हो रही थी. तभी अचानक गुरुमूर्ति का फोन आ गया. मोबाइल के डिसप्ले पर दामाद का नंबर देख कर सुब्बम्मा चौंक गई. कुछ क्षण के लिए वह यह सोचने लगा गई कि जब सुबह 2 बार बात हो चुकी है तो शाम के वक्त दामाद ने फोन क्यों किया है? जरूर कोई खास बात होगी. सुब्बम्मा दामाद का फोन रिसीव करते हुए बोली, ”हां दामादजी, बोलो क्या बात हो गई, जो शाम के वक्त फोन किया?’’

दूसरी तरफ से दामाद की घबराहट भरी आवाज सुन कर उप्पला सुब्बम्मा किसी अनहोनी से आशंकित हो गई. उस ने पूछा, ”क्या बात है दामादजी, तुम्हारी आवाज में मुझे घबराहट क्यों लग रही है. तुम मुझे काफी परेशान से लग रहे हो, घर में सब खैरियत तो है न?’’

”अरे सासू मां, कतई खैरियत नहीं है. तुम्हारी बेटी मुझ से लड़झगड़ कर दोपहर बाद से कहीं चली गई, उस के बारे में कुछ भी पता नहीं चल रहा है.’’

इतना सुनते ही चौंकते हुए सुब्बम्मा ने गुरुमूर्ति से माधवी को ले कर तमाम सारे सवाल कर डाले, ”अरे, आप फोन पर ही मुझ से सवाल पर सवाल कर के वक्त जाया करती रहोगी या फिर अपनी बेटी को ढूंढने का प्रयास भी करोगी.’’

”चलो दामादजी, मैं फोन रखती हूं और माधवी के बारे में रिश्तेदारों और परिचितों के यहां पता करती हूं.’’

इस के बाद सुब्बम्मा ने बेटी के बारे में जानकारी लेने के लिए रिश्तेदारों से ले कर परिचितों को फोन लगा कर मालूमात की, लेकिन उस के बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका. माधवी को गायब हुए 48 घंटे से अधिक का समय गुजर चुका था. न तो उस का मोबाइल फोन लग रहा था और न ही उस के बारे में कोई जानकारी मिल पा रही थी. अत: अपने पति को साथ ले कर उप्पला सुब्बम्मा ने अपने दामाद के घर जाने का फैसला लिया.

आटोरिक्शा पकड़ कर वह पति के बाद साथ न्यू वेंकटेश्वर कालोनी पहुंच गई. आटोरिक्शा चालक को भाड़ा चुकाने के बाद उप्पला सुब्बम्मा ने गुरुमूर्ति के आसपड़ोस में रहने वाले लोगों के घरों में जा कर बेटी माधवी के बारे में पूछताछ की. पड़ोसियों ने बताया कि उन्हें तो 16 जनवरी की सुबह 7 बजे के बाद से माधवी नहीं दिखी.

पति ने लाश के टुकड़े क्यों उबाले

आखिरकार माधवी के मम्मीपापा ने निर्णय लिया कि थाने में माधवी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए, इसलिए मीरपेट थाने में उप्पला सुब्बम्मा ने अपने पति के साथ जा कर बेटी माधवी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी. उसी वक्त गुरुमूर्ति की बहन और बहनोई को भी इस घटनाक्रम की जानकारी दे दी गई. बुआ से मम्मी के अचानक घर से लापता होने की जानकारी मिलते ही माधवी के बच्चे भी बुआ के घर से अपने घर पर वापस लौटने के लिए हठ करने लगे. बुआ के घर का माहौल काफी बोझिल हो गया.

गुरुमूर्ति के चाचा ने उस से घुमाफिरा कर माधवी के लापता होने के बारे में पूछा. चाचा के पूछने पर आखिरकार गुरुमूर्ति को सच बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस ने बताया, ”माधवी, इस बात को ले कर काफी नाराज थी कि मेरी मां को फोन कर मेरे रिश्तेदार से संबंध होने की बात क्यों बताई. इसी बात को ले कर हम दोनों में जम कर तूतूमैंमैं हुई. इस के बाद वह अपने मायके जाने की हठ करने लगी. तभी मैं ने माधवी को जोर से थप्पड़ मार दिया. माधवी दीवार के पास खड़ी थी, गुस्से में मैं ने उस का सिर जोर से दीवार पर 4-5 बार दे मारा. मेरे द्वारा ऐसा करने से सिर में चोट लगने से माधवी बेहोश हो गई.’’

उस ने आगे बताया कि माधवी को बेहोश देख कर मैं बुरी तरह घबरा गया. मुझे लगा कि माधवी मर गई है. मैं ने उस की नब्ज टटोली, जो चल रही थी. मुझे लगा कि होश में आने के बाद माधवी अपनी मम्मी के साथ मीरपेट थाने में जा कर उस की शिकायत कर देगी तो मुझे मारपीट करने के केस में जेल जाना पड़ेगा, इसलिए मैं ने फैसला किया कि माधवी के होश में आने से पहले ही उस की गला दबा कर हत्या कर दी जाए और फिर उस की लाश को बड़ी सफाई के साथ ठिकाने लगा दिया जाए. यह 16 जनवरी, 2025 की बात है.

गुरुमूर्ति ने गुस्से में आ कर माधवी की हत्या तो कर दी, लेकिन अब वह इस सोच में पड़ गया कि लाश को किस तरह ठिकाने लगाया जाए कि वह पुलिस की पकड़ में न आ सके. वह काफी देर तक इस बारे में सोचता रहा. फिर उसे ध्यान में आया कि माधवी की लाश को ठिकाने लगाने का आइडिया क्यों न ओटीटी प्लेटफार्म पर कोई क्राइम थिलर देख कर ले लिया जाए. गुरुमूर्ति को लाश को ठिकाने लगाने और सारे सबूत मिटाने के लिए क्राइम थ्रिलर का आइडिया सब से ज्यादा पसंद आया, इसेिलए वह सुबह करीब 10 बजे माधवी की लाश को घसीट कर वाशरूम में ले गया और तेज धार वाले चाकू से उस की लाश के 4 टुकड़े कर दिए.

सब से पहले दोनों हाथ फिर पैर काटे. उस के बाद शरीर के शेष हिस्सों के छोटे छोटेटुकड़े करने के बाद सबूत मिटाने की मंशा से सभी टुकड़ों को घर में रखी पेंट की खाली बाल्टी में डाल कर पानी गर्म करने वाली रौड की मदद से पानी में उबाल कर मांस और हड्डियों को अलग किया. उस ने एक बार फिर से मांस के टुकड़ों को उबाला. रसोई गैस के बर्नर पर माधवी के शरीर की हड्डियों को भी काफी देर तक प्रेशर कुकर में पकाया. इस के बाद मांस से अलग हुई हड्डियों को मिक्सी में डाल कर पाउडर बना दिया. पके हुए मांस के टुकड़ों और पाउडर को अलगअलग पौलीथिन की थैलियों में बंद कर घर के करीब स्थित चंंदन झील में मछलियों को खाने के लिए फेंक आया.

माधवी के शव के टुकड़ों को ठिकाने लगाने के बाद गुरुमूर्ति ने घर लौट कर बाथरूम, पेंट की खाली बाल्टी, चाकू, मिक्सी, इमरसन रौड व जमीन पर फैले खून को वाशिंग पाउडर और फिनाइल डाल कर अच्छी तरह रगडऱगड़ कर साफ किया. बड़ी होशियारी से हत्या के सारे सबूत उस ने नष्ट कर दिए. गुरुमूर्ति ने अपने चाचा के द्वारा माधवी के बारे में बारबार पूछने पर उन्हें  माधवी की हत्या के बारे में सब कुछ बता दिया था. गुरुमूर्ति की बात सुन कर चाचा के पैरों तले जमीन खिसक गई. चाचा ने गुरुमूर्ति से कहा कि यह तुम क्या बक रहे हो.

गुरुमूर्ति ने कहा कि चाचा मेरी सहनशक्ति की सीमा खत्म हो गई तो मैं ने माधवी को मौत के घाट उतार दिया. भतीजे के मुंह से माधवी की हत्या करने की बात सुन कर चाचा बुरी तरह घबरा गए. उन्हें लगा कि भतीजे के साथ पुलिस उन्हें बात छिपाने के आरोप में गिरफ्तार न कर ले, इसलिए चाचा ने बिना देरी किए मीरपेट थाने पहुंच कर उस की हैवानियत के बारे में सब कुछ टीआई को बता दिया. उधर गुरुमूर्ति की सास थाने में अपनी बेटी माधवी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा चुकी थी, इसलिए टीआई ने गुरुमूर्ति को हिरासत में ले कर पूछताछ की.

गुरुमूर्ति को पता नहीं था कि उस के चाचा ने टीआई को उस के द्वारा माधवी की हत्या किए जाने और लाश ठिकाने लगाने की सूचना दे दी है, इसलिए वह तरहतरह की कहानियां बता कर पुलिस को उलझाता रहा. आखिरकार वह घुमावदार बातों में खुद उलझ गया तो उस ने सच्चाई उगल दी. फिर उस ने माधवी की हत्या करने की सारी कहानी पुलिस को बता दी. हत्या का गुनाह कुबूल करने पर पुलिस ने गुरुमूर्ति को 28 जनवरी, 2025 की सुबह विधिवत अपनी हिरासत में ले लिया.

गुरुमूर्ति के इस कबूलनामे के आधार पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 103(1) हत्या 238 (अपराध के सबूत को गायब करना) और 85 (महिला के प्रति क्रूरता के तहत मामला दर्ज कर लिया है). चौंकाने वाली बात यह थी कि गुरुमूर्ति का जुर्म की दुनिया से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन उस ने पेशेवर हत्यारे को भी मात दे दी थी. उस ने अपनी पत्नी की हत्या और सबूत मिटाने की योजना को बड़ी होशियारी से अंजाम दिया.

राचकोंडा के पुलिस आयुक्त जी. सुधीर बाबू का कहना है कि हत्या के इस मामले की गुत्थी को सुलझाने और इस मामले से जुड़े सभी सबूत जुटाने के लिए देश भर के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञों  की मदद ली गई थी. इस के लिए दिल्ली और गुजरात के फोरैंसिक विशेषज्ञों को घटनास्थल और चंदन झील का मौकामुआयना कराया था और उन के द्वारा सबूत इकट्ठे करने का भरसक प्रयास किया गया. इसी का परिणाम है कि पुलिस के हाथ चंदन झील के किनारे माधवी के शव के टुकड़ों में एक मांस का टुकड़ा बतौर सबूत हाथ लग गया. सबूत हाथ लगते ही पुलिस ने माधवी के मम्मीपापा का डीएनए ले कर चंदन झील से बरामद इंसान के मांस के टुकड़े का डीएनए टेस्ट करवाया. जांच के बाद दोनों का डीएनए मैच कर गया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस गुरुमूर्ति की निशानदेही पर घर के भीतर से हत्या के सबूत मिटाने में प्रयुक्त किया गया गैस बर्नर, पेंट की खाली बाल्टी, चाकू और पानी गर्म करने वाली रौड, मिक्सी सहित खून से लथपथ कपड़ों को बरामद कर पुट्टा गुरुमूर्ति के घर को सील कर चुकी थी. उधर माधवी की हत्या के बाद से उस के माइनर बेटाबेटी को उन के नानानानी अपने साथ ले गए. सनसनीखेज तरीके से पति द्वारा की गई हत्या हैदराबाद से ले कर समूचे भारत में चर्चा का विषय बन गई है. आम और खास लोग अब यह जानने को उत्सुक हैं कि कोर्ट गुरुमूर्ति को क्या दंड देता है?

 

 

Haryana News : शक के चलते पति ने खाना बनाती भाजपा नेता पत्नी को मारी गोली

Haryana News : मुनेश गोदारा ने मेहनत और काबिलियत से भारतीय जनता पार्टी में खास मुकाम हासिल कर लिया था. लेकिन उस के पति सुनील गोदारा को शक था कि उस की पत्नी के एक नेता से अवैध संबंध हैं, इसलिए वह पत्नी से राजनीति छोड़ने को कहता था. मुनेश राजनीति में एक शख्सियत बन चुकी थी, सो उस ने राजनीति छोड़ने से साफ मना कर दिया. फिर एक दिन सुनील जानबूझ कर ऐसा अपराध कर बैठा कि…

हरियाणा प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा की प्रदेश महामंत्री 35 वर्षीय मुनेश गोदारा उभरती हुई एक राजनेत्री थी. इतने बड़े पद पर रहते हुए भी वह अपना काम स्वयं करने में यकीन रखती थी. चाहे वह घरेलू काम हो अथवा रसोई के, जब तक वह खुद से नहीं करती थी उसे चैन नहीं आता और बच्चे भी अधीर रहते थे. गुरुग्राम (हरियाणा) के सेक्टर-10ए, स्पेस सोसाइटी के 8वीं मंजिल पर रहने वाली मुनेश गोदारा कुछ ही देर पहले बड़े भाई सुनील कुमार जाखड़ के घर से हो कर आई थी. दरअसल, छोटे भाई के बेटे की तबीयत खराब थी, उसे ही देखने मुनेश अकेली मायके आई थी. उस के मायके वाले सेक्टर-83 में रहते थे जो कि उस के फ्लैट से थोड़ी दूरी पर स्थित था.

उस समय रात के लगभग 8 बज रहे थे. रात गहराती चली गई तो बड़े भाई सुनील जाखड़ ने मुनेश से कहा भी था कि आज रात वह वहीं रुक जाए और सुबह होते ही वह उसे घर पहुंचा देंगे. लेकिन मुनेश वहां रुकने के लिए तैयार नहीं हुई थी. उस ने बड़े भाई से कहा, ‘‘भैया, भतीजे को देखने आई थी, सो देख लिया. तुम तो मेरी दोनों बेटियों की आदत को जानते ही हो, घर नहीं पहुंची तो दोनों सिर पर पहाड़ उठा कर तांडव करने लगेंगी और बगैर कुछ खाएपीए भूखे ही सो जाएंगी. इसलिए मुझे जाना ही पड़ेगा. फिर कल सुबह मोंटी के दाखिला के लिए आर्मी स्कूल जाना होगा. तुम तो जानते हो भैया, आर्मी स्कूल है, वहां का नियमकानून बहुत सख्त होता है. जरा सी लापरवाही हुई तो बेटी का दाखिला होने से रुक भी सकता है और फिर भैया, आप ही बताओ किस लड़की को अपना मायका प्यारा नहीं होता.

अपना मायका सभी लड़कियों को प्यारा होता है. उन का बस चले तो जीवन भर यहीं रुक जाएं. इसलिए आज मत रोको. लेकिन मैं जल्दी ही आऊंगी तुम से मिलने, समझे.’’

बहन की शरारत भरी बातों को सुन कर सुनील खिलखिला कर हंस पड़े तो मुनेश से भी अपनी हंसी नहीं रोकी जा सकी. वह भी ठहाका मार कर हंसने लगी. फिर वहां से उठी और निजी वाहन से सेक्टर-93 स्थित अपने घर लौट आई. मायके से घर पहुंचने में मुश्किल से 20 मिनट का समय लगा था. उस समय रात के 9 बज रहे थे. मुनेश की दोनों बेटियां अपने कमरे में बैठी पढ़ रही थीं. फटाफट कपड़े बदल कर मुनेश सीधे रसोई में जा पहुंची और खाना पकाने में जुट गई थी. वह जान रही थी कि बेटियों के पेट में चूहों ने अपना करतब दिखाना शुरू कर दिया होगा. जरा सी और देर हुई तो उन दोनों से भूख सहन नहीं होगी.

उस समय तक उस का पति सुनील गोदारा अपनी ड्यूटी से लौटा नहीं था. वह एक सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी करता था. यहां एक बात साफ कर देना चाहता हूं मुनेश के पति और उस के भाई दोनों का ही नाम सुनील था. फर्क सिर्फ इतना कि मुनेश के पति के नाम के आगे गोदारा लगा हुआ था जबकि भाई के नाम के आगे जाखड़ था. मुनेश ने रोटियां बना ली थीं. गैस के दूसरे चूल्हे पर कड़ाही चढ़ा सब्जी के लिए तड़का लगाने जा रही थी. तभी उस के फोन की घंटी बजी. मुनेश ने स्क्रीन पर नजर डाली तो वह वीडियो काल थी. उस की छोटी बहन मनीषा ने काल की थी. मुनेश गैस बंद कर बहन से बात करने में मशगूल हो गई थी. उसी समय पति सुनील गोदारा ड्यूटी से घर लौट आया.

करीब 16 साल सेना में नौकरी करने के बाद वह वहां से रिटायर हो गया था. रिटायर होने के बाद से वह सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी कर रहा था. खैर, कमरे में घुसते ही सुनील गोदारा ने बेटियों से उन की मां के बारे में पूछा तो बड़ी बेटी प्रीति ने बता दिया मां रसोई में है, खाना पका रही है. बेटी का जवाब सुन कर सुनील जिस हालत में था, उसी हालत में रसोई की ओर बढ़ गया. सुनील का मजबूत जिस्म हवा में लहरा रहा था. उस के पांव यहांवहां पड़ रहे थे. उस ने रोज की तरह उस दिन भी जम कर शराब पी रखी थी. किचन के दरवाजे के पास पहुंचा तो देखा कि पत्नी दरवाजे की ओर अपनी पीठ कर के फोन पर किसी से हंसहंस कर बातें करने में व्यस्त थी. उसे पति के आने का आभास भी नहीं हुआ. ये देख कर सुनील का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

सुनील ने बीवी को एक भद्दी सी गाली दी. गाली की आवाज कान के पर्दों से टकराते ही मुनेश बुरी तरह से चौंक गई. उस के हाथ से फोन गिरतेगिरते बचा. फिर उस ने पलट कर देखा सामने पति सुनील खड़ा था. उस ने रोजाना की तरह आज भी जम कर शराब पी रखी थी. उस के पैर डगमगा रहे थे. मुनेश कुछ कहती इस के पहले ही सुनील उस पर चीखा, ‘‘हरामजादी, कुतिया… हजार बार मैं ने तुझे मना किया था कि तू अपनी आदत सुधार ले. उस कमीने से अपने रिश्ते तोड़ ले और अपनी घरगृहस्थी और बच्चों को संभालने में लग, लेकिन तू है कि तेरी मोटी बुद्धि में मेरी कोई बात आसानी से घुसती ही नहीं. लाख समझाता हूं, तेरे भेजे में घुसता ही नहीं. तेरे कारण मैं ने जिंदगी नर्क बना ली है.

तुझ से मैं तंग आ चुका हूं. रोजरोज की किचकिच से आज मैं किस्सा ही मिटा देता हूं. कहते ही नशे में चूर सुनील गोदारा ने होलेस्टर से अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाली और 2 गोलियां बीवी के पेट और सीने में दाग दीं. गोली लगते ही मुनेश हाथ में फोन लिए फर्श पर धड़ाम से गिर गई और उस के मुंह से आखिरी शब्द निकला, ‘‘बहन… तेरे जीजा सुनील ने गोली मार दी है.’’ इतना कहते ही मुनेश की सांसें थम गईं. गोली की आवाज सुनते ही प्रीति और मोंटी दौड़ीभागी रसोई में पहुंची तो देखा मां चित अवस्था में फर्श पर पड़ी अपने ही खून में सनी दम तोड़ चुकी हैं. उस के पापा सुनील गोदारा वहां नहीं थे. दोनों को समझते देर न लगी कि पापा ने मम्मी की गोली मार कर हत्या कर दी और फरार हो गए. प्रीति और मोंटी को कुछ सूझ नहीं रहा था कि ऐसे में वे क्या करें? मां की लाश के पास दोनों खड़ी जोरजोर से चीखचिल्ला रही थीं.

अचानक गोदारा के घर से रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी वहां जमा हो गए थे. हंसमुख मुनेश की हत्या की खबर सुन कर सभी हतप्रभ रह गए थे. इधर तब तक मनीषा ने बहन की हत्या की खबर बड़े भाई सुनील कुमार जाखड़ को दे दी थी. बहन की हत्या की खबर सुनते ही उन्हें जैसे काठ मार गया हो, ऐसे हो गए थे. सुनील आननफानन में अपने निजी वाहन से मुनेश के घर सेक्टर-93, स्पेस सोसाइटी पहुंच गए. इस बीच प्रीति अपने बाबा चंद्रभान गोदारा को मां की हत्या की खबर फोन से दे चुकी थी. वो चरखी दादरी में दादी के साथ रहते थे. बहू की हत्या की खबर सुनते ही पिता की बूढ़ी आंखे पथरा सी गईं. उन के पांव लड़खड़ा से गए और वो बिस्तर पर जा गिरे. उन्हें बेटे की घिनौनी करतूत पर घिन आ रही थी.

खैर, होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है वो तो हो कर रहता है. बहू की हत्या की जानकारी होते ही ससुर चंद्रभान गोदारा आननफानन में सेक्टर-93 पहुंचे. अब तक यह खबर जंगल में आग की तरह समूचे गुरुग्राम में फैल चुकी थी. मुनेश कोई छोटीमोटी हस्ती नहीं थी. वह भाजपा किसान मोर्चा की प्रदेश महामंत्री थी. हरियाणा राज्य में तेजी से उभरती हुई राजनेत्री थी. राजनीति में उस ने अपना अच्छा मुकाम बना लिया था. बड़ेबड़े नेताओं से उस के अच्छे संबंध थे. इन्हीं के बल पर वह मजलूमों और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ती थी. प्रदेश महामंत्री मुनेश गोदारा की हत्या की खबर मिलते ही सेक्टर-93 में धीरेधीरे भाजपा कार्यकर्ताओं और उस के शुभचिंतकों का जमावड़ा होने लगा था. ससुर चंद्रभान ने थाना सेक्टर-10 ए के थानेदार संजय कुमार को फोन कर के घटना की जानकारी दी.

घटना की सूचना मिलते ही थानेदार संजय कुमार आननफानन में फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय रात के 11 बज रहे थे. मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए थानेदार संजय ने घटना की सूचना कमिश्नर मोहम्मद आकिल, डीसीपी (ईस्ट) चंद्र मोहन, डीसीपी (वेस्ट) सुमेर सिंह और एसीपी (सिटी) राजिंदर सिंह को दे दी थी. इधर भाजपा कार्यकर्ता हत्यारे पति सुनील गोदारा को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. घटना की सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे. मौके पर नारेबाजी कर रहे भाजपा कार्यकर्ताओं को उन्होंने समझाबुझा कर शांत किया और उन्हें भरोसा दिया कि जल्द से जल्द हत्यारा पकड़ लिया जाएगा. कानून को अपना काम करने दें. पुलिस अधिकारियों के आश्वासन के बाद वे शांत हुए.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. लाश चित अवस्था में थी. मृतका के हाथ में मोबाइल फोन था. पुलिस ने सब से पहले मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया. फिर किचन की तलाशी ली. तलाशी के दौरान मौके से कारतूस के 2 खोखे बरामद हुए. पुलिस ने मृतका मुनेश की दोनों बेटियों प्रीति और मोंटी से हत्या के बारे में पूछताछ की. दोनों ने पिता के ऊपर आरोप लगाते हुए मां को गोली मारने की बात कही थी. मतलब साफ था कि पति सुनील गोदारा ने ही मुनेश की गोली मार कर हत्या की थी. घटना को अंजाम देने के बाद वह मौके से अपनी एसेंट कार में बैठ कर फरार हुआ था.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दी. मृतका के ससुर चंद्रभान गोदारा ने बहू की हत्या के लिए अपने बेटे सुनील गोदारा और भाजपा नेता बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु गुर्जर के खिलाफ लिखित शिकायत थानेदार संजय कुमार को दी. उन की तहरीर पर पुलिस ने तीनों आरोपियों सुनील गोदारा, बंटी गुर्जर और अनु गुर्जर के खिलाफ  भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर के उन की तलाश शुरू कर दी. ये बात 8 फरवरी, 2020 की है. अगले दिन आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने सड़क जाम कर दी थी. वह पुलिस के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. मामला तूल पकड़ने लगा था. पुलिस बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु को गिरफ्तार करने उस के घर कादरपुर गई तो दोनों पतिपत्नी मौके से फरार थे. आरोपियों को पकड़ना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी.

जांचपड़ताल में पुलिस को इतना पता चला था कि सुनील गोदारा और उस की बीवी मुनेश गोदारा के बीच रिश्ते काफी समय से खराब चल रहे थे. पत्नी मुनेश के भाजपा नेता बंटी गुर्जर से मधुर संबंध थे. यह बात बंटी गुर्जर की बीवी अनु को भी पता थी. लेकिन पति सुनील ये बात पसंद नहीं करता था. इसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच आए दिन विवाद होता रहता था. ये बात किसी से छिपी नहीं थी. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि मुनेश की हत्या प्रेम संबंधों की वजह से हुई है. मुनेश की कालडिटेल्स में बंटी के साथ लंबीलंबी बातचीत करना पाया गया था. यही हत्या की मूल वजह मान कर पुलिस ने अपनी जांच की दिशा आगे बढ़ाई.

आरोपी सुनील गोदारा को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस उस के संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन वह पुलिस की पकड़ से बहुत दूर था. ऐसा नहीं था कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई थी. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल भी बिछा रखा था. सुनील की खोजबीन में मुखबिर जुट गए थे. बात 15 फरवरी, 2020 की है. दोपहर का वक्त था. थानेदार संजय कुमार थाने में मौजूद थे. तभी एक चौंका देने वाली खबर उन के खास मुखबिर ने दी. उस ने बताया कि मुनेश का हत्यारा सुनील गोदारा हयातपुर चौक पर घूमता हुआ देखा गया है. जल्दी करें तो पकड़ा जा सकता है. फिर क्या था? संजय कुमार मुखबिर की सूचना पर उस के द्वारा बताई गई जगह पर आवश्यक पुलिस बल के साथ पहुंच गए.

उन्होंने चौक को चारों ओर से घेर लिया ताकि आरोपी मौके से भाग न सके. सभी पुलिस वाले सादा पोशाक में थे, ताकि आरोपी उन्हें आसानी से पहचान न सके और हुआ भी यही. सुनील गोदारा गिरफ्तार कर लिया गया. उसे पुलिस थाना सेक्टर-10 ए पूछताछ के लिए ले कर आई. हत्यारे पति सुनील गोदारा के गिरफ्तार होने की सूचना थानेदार संजय कुमार ने पुलिस अधिकारियों को दे दी. तब एसीपी (सिटी) राजिंदर सिंह सूचना पा कर थाना सेक्टर- 10ए पूछताछ के लिए पहुंच चुके थे. उन्होंने सुनील से पूछताछ करनी शुरू की तो उस ने बिना हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर किया कि उसी ने बीवी की हत्या की थी.

हत्या की वजह उस ने बीवी का नैतिक पतन बताई थी. उस ने उन्हें बताया कि उस के लाख मना करने के बाद भी वह अपने आशिक से नैनमटक्का करने से बाज नहीं आ रही थी. जिस के कारण परिवार टूट रहा था, इस के बाद उस ने घटना की पूरी कहानी पुलिस को बता दी. पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया. वहां से जेल भेज दिया गया. सुनील के अलावा दोनों आरोपी बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु अभी भी पुलिस की पकड़ से दूर थे. मुनेश गोदारा हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

35 वर्षीय मुनेश गोदारा मूल रूप से  हरियाणा की रहने वाली थी. उस के घर में मांबाप और 4 भाई बहनें थीं. सब से बड़ा भाई सुनील कुमार जाखड़, उस के बाद खुद मुनेश, उस से छोटा विमलेश और छोटी बहन मनीषा थी. बचपन से ही मुनेश कुशाग्र और प्रखर बुद्धि की थी. पढ़नेलिखने से ले कर बातचीत के कौशल तक सब कुछ अलग था. जिस काम को करने की एक बार वह ठान लेती थी अपनी हिम्मत और साहस के बदौलत उसे कर के ही दम लेती थी. समय के साथ जवान हुई मुनेश की शादी साल 2001 में चरखी दादरी (हरियाणा) के चंपापुरी में रहने वाले पूर्व फौजी चंद्रभान गोदारा के इकलौते बेटे सुनील गोदारा से हुई थी.

चंद्रभान की इलाके में बड़ी पहचान थी. नियम और उसूल के पक्के चंद्रभान ने सालों तक आर्मी में नौकरी करते हुए शराब को पीना तो दूर की बात, कभी हाथ तक नहीं लगाया था. न ही ऐसे लोगों को वह पसंद करते थे. वह इकलौते बेटे सुनील को भी अपनी तरह देखना चाहते थे. उन्होंने बेटे को अच्छी तालीम दिलाई और सीख भी दी कि जीवन में आगे बढ़ना है तो कभी शराब मत पीना. अपने को उस का गुलाम कभी मत बनने देना. यदि एक शराब ने अपना गुलाम बना लिया तो जीवन भर उस की गुलामी करते रहोगे. पिता की नसीहत को गांठ बांध कर सुनील ने अपने दिमाग में बैठा ली थी.

तब सुनील आर्मी में जाने की तैयारी कर रहा था. उसी दौरान बहू के रूप में मुनेश गोदारा परिवार में साक्षात लक्ष्मी बन कर आई थी. बीवी के आने के बाद सुनील के बंद भाग्य के दरवाजे खुल गए थे. उस की आर्मी की नौकरी पक्की हो गई थी. ससुर चंद्रभान बहू मुनेश को साक्षात लक्ष्मी मानते थे. उस के शुभ कदमों से घर में खुशियों ने अपने पांव पसार दिए थे. इसीलिए चंद्रभान उसे बहू कम बेटी ज्यादा मानते थे. रही बात सुनील की, तो वह परिवार से मिलने बीचबीच में घर आता रहता था. इस बीच मुनेश ने 2 बेटियों प्रीति और मोंटी को जन्म दिया. बाद के दिनों में चंद्रभान गोदारा रिटायर हो कर घर आ गए.

रिटायर आर्मी चंद्रभान गोदारा का घरसंसार बड़े हंसीखुशी से चल रहा था. पैसों की घर में कोई कमी नहीं थी. बेटा कमा रहा था, ससुर की अच्छीखासी पेंशन थी और क्या चाहिए था. प्रीति और मोंटी बड़ी हो रही थीं. बेटियां बड़ी और समझदार हुईं तो मुनेश गृहस्थ आश्रम से बाहर निकल कर समाज के लिए कुछ करने के लिए लालायित होने लगी थी. मुनेश की सहेली अनु गुर्जर भारतीय जनता पार्टी में काफी दिनों से जुड़ी हुई थी. उस के पति बंटी गुर्जर भाजपा के पुराने सिपाही थे. सहेली को देख कर ही मुनेश के मन में खयाल आया था कि वह भी राजनीति में कदम रखे और गरीब तथा बेसहारों के लिए एक मजबूत कदम बने. उन की बुलंद आवाज बने.

लेकिन यह मुनेश के लिए आसान नहीं था. वह यही सोच रही थी कि पता नहीं पति इस के लिए तैयार होंगे या नहीं. उन का साथ मिलेगा या नहीं. पति की मरजी के बिना राजनीति में कदम रखा तो घर में तूफान खड़ा हो सकता है. क्या करे? किस से सलाह मशविरा ले? उसी समय उस के मन में एक विचार कौंधा और उस की आंखों के सामने ससुर का चेहरा तैरने लगा. उसे विश्वास था कि ससुरजी उस की बातों को कभी नहीं टाल सकते. वह जरूर उस की भावनाओं को समझेंगे. एक दिन समय और अवसर देख कर मुनेश ने ससुरजी के सामने अपने मन के भाव प्रकट कर दिए. उस ने कहा कि उस की इच्छा है वह राजनीति में जाना चाहती है. इस के लिए आप की इजाजत और आशीर्वाद दोनों की जरूरत है. अगर आप इजाजत दें तो मैं अपने कदम आगे बढ़ाऊं.

ससुर चंद्रभान बहू की बात सुन कर असमंजस में पड़ गए. उन्होंने बहू की बातों पर विचार किया. काफी सोचने और समझने के बाद उन्होंने बहू को राजनीति में जाने की हरी झंडी दिखा दी. ससुर की ओर से मिली हरी झंडी से मुनेश के हौसले बुलंद हुए और उस ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. ये सब उस की सहेली अनु और उस के पति बंटी गुर्जर के द्वारा संभव हुआ था. इसलिए वह दोनों की अहसानमंद थी. ये बात साल 2013 की है. यहीं से मुनेश गोदारा के बुरे दिन शुरू हो गए. जिस के चलते उस के जीवन में उठापटक होने लगी. मुनेश ने कभी सोचा नहीं था कि जिस राजनीति की चकाचौंध में उस के पांव बढ़ते जा रहे हैं, इसी राजनीति के कारण एक दिन उस का हंसताखेलता घर तिनकातिनका बिखर जाएगा और उस की सांसों की डोर उस के जिस्म से जुदा हो जाएगी.

अपनी मेहनत और लगन की बदौलत मुनेश गोदारा ने कम समय में राजनीति के महारथियों के बीच अच्छीखासी जगह बना ली थी. जल्द ही उसे चरखी दादरी की जिलाध्यक्ष बना दिया गया. ये सब बंटी गुर्जर की मेहरबानियों की बदौलत संभव हुआ था. बंटी गुर्जर पार्टी का बड़ा नेता माना जाता था. पार्टी में उस की ऊंची पकड़ थी. बड़ेबड़े नेताओं से अच्छे संबंध थे. जिस दिन से बंटी गुर्जर ने मुनेश गोदारा को देखा था उसी दिन से उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. बंटी गुर्जर के दिल में उस के लिए एक साफ्ट कार्नर बन गया था. जबकि इस के विपरीत मुनेश उस का दिल से सम्मान करती थी क्योंकि उसी की बदौलत उसे राजनीति में बड़ा कद और पद मिला था.

उस के इसी सम्मान को वह अपने लिए प्यार समझने की भूल कर बैठा था. बंटी को मुनेश से जब भी बात करने की तलब होती थी, वह कर लेता था. पार्टी में धीरेधीरे ये बात फैल गई थी कि नेताजी बंटी गुर्जर और जिलाध्यक्ष मुनेश गोदारा के बीच मोहब्बत की मीठी आंच पर प्यार की खिचड़ी पक रही है. उन के बीच में ईलूईलू चल रहा है. मुनेश अभी भी इस बात से अंजान थी कि नेताजी के मन में उसे ले कर क्या खिचड़ी पक रही है. फिजाओं में तैरती हुई मोहब्बत का यह पैगाम मुनेश के शौहर सुनील गोदारा तक जब पहुंचा तो वह आगबबूला हो गया था.

पहली बात तो यह थी कि उसे बीवी का राजनीति में जाना गवारा नहीं था. दूसरे जब उस ने सुना कि उस का अफेयर किसी नेता के साथ चल रहा है तो उस के तनबदन में आग लग गई. बीवी को उस ने समझाया था कि वह अपना ध्यान घरगृहस्थी और बच्चों के बीच में लगाए. ये राजनीति की दुनिया शरीफों के लिए नहीं है, उस का चक्कर छोड़ दे. राजनीति के जिस मुकाम तक मुनेश पहुंच चुकी थी वहां से वापस लौटना शायद उस के लिए उतना आसान नहीं था जितना आसान उस का पति समझता था. सालों का लंबा सफर तय कर के वह जिलाध्यक्ष से प्रदेश महिला मोर्चा की महामंत्री बन चुकी थी. यही नहीं, वह एक स्टार प्रचारक के रूप में विख्यात हो चुकी थी. दिल्ली विधानसभा के चुनाव में मुनेश ने कई प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया था. अपनी असीम महत्त्वाकांक्षा की वजह से ही वह राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के निकट तक पहुंच चुकी थी. इसी के बाद उसे भाजपा किसान मोर्चा का प्रदेश महामंत्री बना दिया गया था.

राजनीति की ऊंचाई पर पहुंची मुनेश ने पति से दो टूक कह दिया था कि राजनीति से वापस लौटना उस के लिए आसान नहीं होगा. वह सियासत में रह कर ही अपना घरसंसार और बच्चों की देखभाल अच्छी तरह से कर सकती है. लेकिन राजनीति से अलग होने के लिए उस पर दबाव न डाले. दोनों के बीच में यहीं से विवाद की नींव पड़ी थी. सुनील गोदारा एक सैनिक था. उस के रगों में भी एक आर्मी पिता का खून दौड़ रहा था. भला वो बीवी के इंकार को कैसे सहन कर सकता था. उस ने बीवी को समझाया कि अभी भी समय है, कुछ नहीं बिगड़ा है, वापस घर लौट आओ. सब कुछ ठीक हो जाएगा. मुनेश ने साफ मना कर दिया कि वह सियासत के बिना नहीं रह सकती.

इस दौरान मुनेश ने अपने नाम पर भिवानी के बाढड़ा इलाके में 2 फ्लैट खरीदे थे. पति को इस की जानकारी दे दी थी. पतिपत्नी के बीच बंटी गुर्जर के प्रेमसंबंधों को ले कर तूफान खड़ा हो चुका था. मुनेश ने पति को सफाई भी दी थी कि उन के बीच ऐसा कोई नाजायज रिश्ता नहीं है जिस से समाज में उन की हंसाई हो. उन के बीच के रिश्ते गंगा जल की तरह पवित्र हैं लेकिन सुनील इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं था कि बीवी जो कह रही है वो सच है. उस के मन में दोनों के बीच अनैतिक संबंधों को ले कर शक का बीज अंकुरित हो चुका था. मुनेश और सुनील के शांत और सुखद जीवन में बंटी को ले कर तूफान आ चुका था. बातबात पर पतिपत्नी दोनों के बीच तूतू, मैंमैं होती रहती थी. स्वर्ग जैसा घर नरक का अखाड़ा बन चुका था. इस बीच मुनेश ने समझदारी का परिचय दिया.

उस ने ससुर की सहमति पर चरखी दादरी वाला घर छोड़ दिया और परिवार सहित गुरुग्राम में स्पेस सोसाइटी के सैक्टर-93 में फ्लैट ले कर किराए पर रहने लगी. सासससुर चरखी दादरी में ही रहते थे. उन का जब बच्चों से मिलने का मन होता था, वे बच्चों के पास सेक्टर-93 आ जाते थे और उन से मिल कर वापस चरखी दादरी चले जाते थे. बात सन 2018 की है. सुनील गोदारा रिटायर हो कर घर आ गया था. रिटायर के बाद खाली बचे समय में उस ने एक सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी जौइन कर ली थी ताकि उस का समय अच्छे से बीते और 2 पैसों के लिए मोहताज न रहे. वैसे भी पतिपत्नी के बीच सालों से अनबन चलती चली आ रही थी.

उन के बीच मतभेद पराकाष्ठा पर थे. दोनों के प्यार के बीच नफरत ने जगह ले ली थी. ऐसे में उन के बीच एक और सर्पकाल कुंडली मार कर बैठ गया था जिस की आग में सुनील भड़क उठा था. दरअसल, मुनेश अपने नाम से भिवानी में लिए गए दोनों फ्लैट को बेच कर एक क्रेटा कार खरीदना चाहती थी, जिस से वह पार्टियों में शिरकत कर सके. हालांकि पति सुनील के पास उस की अपनी खुद की एसेंट कार थी लेकिन खराब रिश्तों के कारण मुनेश पति की कार में न तो बैठती थी और न ही उस कार को ले कर कहीं जाती थी.

भिवानी के बाढड़ा वाले फ्लैट बेचने को ले कर दोनों के बीच झगड़े होने लगे. पति सुनील कीमती फ्लैट बेचने को तैयार नहीं था जबकि मुनेश अपनी ही जिद पर अड़ी हुई थी कि वो फ्लैट बेच कर क्रेटा कार खरीदेगी तो खरीदेगी. उसे कार खरीदने से कोई नहीं रोक सकता. मुनेश की इस जिद ने सुनील के गुस्से को और भड़का दिया. उस ने भी बीवी से कह दिया कि देखता हूं तुम कैसे फ्लैट बेचती हो. इस बात को ले कर घर में पतिपत्नी के बीच महासंग्राम छिड़ गया था. सुनील की जिंदगी कड़वाहट से भर गई थी. एक तो बीवी के अफेयर को ले कर वह पहले से परेशान था. दूसरे करोड़ों रुपए के फ्लैट बीवी औनेपौने दामों में बेचने जा रही थी. बीवी की करतूतों से सुनील बुरी तरह से आजिज आ चुका था. जिंदगी को थोड़ा सूकून देने के लिए उस ने शराब को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया था. वह शराब पीने लगा था.

इसी शराब के नशे में धुत हो कर 8 फरवरी, 2020 की रात 9 बजे के करीब सुनील घर लौटा तो कमरे में पत्नी को न पा कर उस ने दोनों बेटियों से उस के बारे में पूछा. बड़ी बेटी प्रीति ने पापा से कहा, ‘‘मां रसोई में खाना पका रही हैं.’’ बेटी का जवाब सुन कर सुनील लड़खड़ाता हुआ किचन की ओर हो लिया. उस समय मुनेश वीडियो कौल पर अपनी छोटी बहन मनीषा से हंसहंस कर बातें कर रही थी. सुनील समझा कि वह अपने प्रेमी बंटी गुर्जर से हंसहंस कर बातें कर रही है. फिर क्या था? सुनील शक की आग में धधक उठा. उस ने आपा खो दिया और ईर्ष्या की आग में जलते हुए अपनी सर्विस रिवाल्वर से 2 गोलियां मुनेश के पेट और सीने में दाग दीं.

गोली लगते ही मुनेश फोन को हाथ में पकड़े हुए फर्श पर जा गिरी और बहन से आखिरी बार कहा, ‘‘बहन…तेरे जीजा ने गोली मार दी है.’’ उस के बाद मुनेश का गरम जिस्म आहिस्ताआहिस्ता ठंडा पड़ने लगा. उस के प्राण पखेरू उड़ चुके थे. सुनील पुलिस से बचने के लिए अपनी एसेंट कार में सवार हो कर अपने एक दोस्त के घर जा कर छिप गया था. अगली सुबह 9 फरवरी को जब मुनेश गोदारा हत्याकांड ने तूल पकड़ा तो सुनील वहां से भी कार ले कर फरार हो गया था और कई दिनों तक यहांवहां छिपता रहा. आखिरकार 7 दिनों की लुकाछिपी के बाद यानी 15 फरवरी, 2020 को पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया.

बहरहाल, गिरफ्तारी के बाद सुनील गोदारा ने बीवी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सुनील की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर भी बरामद कर लिया गया. बीवी की हत्या कर उस ने रिवौल्वर अपनी कार में छिपा कर रखी थी. उसे बीवी की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं था. उस ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा था, ‘‘बीवी का अफेयर बंटी गुर्जर के साथ चल रहा था. मैं ने उसे समझाने की बारबार कोशिश भी की थी लेकिन वह नहीं मानी तो मजबूर हो कर मुझे यह कदम उठाना पड़ा. मुझे बीवी की हत्या का कोई अफसोस नहीं है.’’

कथा लिखे जाने तक पुलिस फरार चल रहे आरोपी बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. मृतका के ससुर चंद्रभान ने बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु के खिलाफ इस लिए मुकदमा दर्ज कराया था कि इन्हीं दोनों की वजह से उन की होनहार बहू असमय काल के गाल में जा समाई थी. तीनों आरोपी सुनील गोदारा, बंटी गुर्जर और अनु गुर्जर जेल की सलाखों के पीछे सजा काट रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

Andhra Pradesh Crime : कोल्डड्रिंक वाली सीरियल किलर महिलाएं

Andhra Pradesh Crime : कंबोडिया से लौटने के बाद 32 वर्षीय मडियाला वेंकटेश्वरी ने ऐसी महिलाओं का गैंग बना लिया, जो उस के साथ क्राइम कर सकें. इस के बाद यह गैंग सायनाइड से एक के बाद एक हत्याएं करता गया. हत्याओं के पीछे गैंग का क्या मकसद था? पढ़ें, सायनाइड सीरियल किलर गैंग की दिल दहला देने वाली कहानी.

आंध्र प्रदेश के जिला गुंटूर के गांव तेनाली की रहने वाली मडियाला वेंकटेश्वरी उर्फ बुज्जी की फेमिली में 3 बहनें और 2 भाई थे. उन के पास थोड़ी सी खेती थी, उसी में परिवार का गुजारा होता था. गांव के सरकारी स्कूल से वेंकटेश्वरी ने 12वीं की परीक्षा अच्छे अकों में पास कर ली थी. वेंकटेश्वरी बचपन से ही बहुत महत्त्वाकांक्षी थी, वह थोड़े ही समय में काफी सारे पैसे कमा लेना चाहती थी. उसे ऐश करने और नएनए कपड़े पहनने का बहुत शौक था. उस की आदतें और व्यवहार परिवार के अन्य सदस्यों से काफी उलटा था.

वह स्वार्थी और रूखे स्वभाव की थी, इसलिए घर के सभी सदस्यों को उस की आदतें पसंद नहीं थीं. वेंकटेश्वरी को घर, पढ़ाई करने के साथसाथ खेती का काम भी करना पड़ता था. इस बीच वेंकटेश्वरी कंप्यूटर का कोर्स भी करने लगी थी. वेंकटेश्वरी घर और खेतीबाड़ी का काम करती तो थी, लेकिन बुझे मन से. उस का इन सब कामों में मन नहीं लगता था. इसलिए जैसे ही उस का कंप्यूटर का कोर्स पूरा हो गया, उसे एक एनजीओ में नौकरी मिल गई. वहां पर उस ने 4 साल तक काम किया.

वेंकटेश्वरी की कई सहेलियां अपनी बहनों के साथ कंबोडिया में जा कर पैसा कमा रही थीं. वह उन सभी के संपर्क में रहती थी. वह उन को बराबर फोन करती रहती थी. 4 साल पहले अप्रैल, 2018 में वेंकटेश्वरी ने अपना पासपोर्ट और वीजा कंबोडिया जाने के लिए एक एजेंट के माध्यम से बनवा लिया और फिर एजेंट ने उसे कंबोडिया भेज दिया. वेंकटेश्वरी के फेमिली वाले नहीं चाहते थे कि वह कंबोडिया जाए, मगर उस ने किसी की भी नहीं सुनी और उस ने अब तक इतने पैसे तो जमा कर ही लिए थे, इसलिए उसे अपने फेमिली वालों से भी पैसे लेने की जरूरत नहीं हुई.

कंबोडिया जाने के बाद तो जैसे वेंकटेश्वरी ने अपने फेमिली वालों को भुला ही दिया था. फेमिली वाले भी उस के व्यवहार और आदतों से काफी दुखी रहते थे, इसलिए उन्होंने भी वेंकटेश्वरी से कोई संपर्क करने की जरूरत नहीं समझी. 2 साल तक तो वेंकटेश्वरी अपने जानपहचान वाली युवतियों के संपर्क में व उन के साथसाथ ही रहती थी. धीरेधीरे उस का संपर्क कंबोडिया की ऐसी युवतियों के साथ भी होने लगा, जो काफी शानोशौकत के साथ रहा करती थीं.

वेंकटेश्वरी ने उन से धीरेधीरे जानपहचान बढ़ाने के साथसाथ उन से नजदीकियां बढ़ानी भी शुरू कर दी थी. उन कंबोडियन युवतियों को जब वेंकटेश्वरी काम की लगी तो उन्होंने उसे अपने पास रहने के लिए बुलवा लिया. फिर धीरेधीरे वेंकटेश्वरी को पता चलने लगा था कि इन कंबोडियन युवतियों का काम क्या था. इतने सारे पैसे कमा कर वह कैसे ऐश से रहा करती थीं. दरअसल, वे कंबोडियन युवतियां लोगों को बहलाफुसला कर कहीं एकांत में ले जाया करती थीं और उस के बाद उन को सायनाइड मिला ड्रिंक मिला कर पिला देती थीं, जिस से कुछ समय बाद उस की मौत हो जाती थी और वे युवतियां उस युवक या युवती से सारा माल लूट लिया करती थीं.

 

वेंकटेश्वरी भी अब उन के ग्रुप में शामिल हो कर लोगों से लूट करने लगी थी. कंबोडियन युवतियों के गिरोह में कुल 8 सदस्य थे. लूट का पैसा आपस में बंट जाता था. 2 साल तक वेंकटेश्वरी उन के ग्रुप में काम करती रही. फिर उस ने सोचा कि यदि वह ऐसा काम अपने देश में जा कर करेगी तो उसे इस से ज्यादा फायदा मिल सकेगा. अपना सारा सामान बेच कर वेंकटेश्वरी 10 जनवरी, 2022 को भारत लौट आई. उसे अपने फेमिली वालों से न तो लगाव था और न ही उस के फेमिली वाले उस से मिलने के इच्छुक थे, इसलिए वेंकटेश्वरी अपने घर नहीं गई और उस ने एक कस्बे में किराए के 2 कमरे ले लिए और उस के पास अब तक कई लाख रुपए भी इकट्ठा हो चुके थे.

वह अपने इन लाखों रुपयों को करोड़ों में तब्दील करना चाहती थी. अब वेंकटेश्वरी अपने ग्रुप के लिए ऐसी महिलाओं की तलाश करने में जुट गई, जिन पर विश्वास किया जा सके. इस के अलावा वह निर्दयी प्रवृत्ति की हों और जल्द से जल्द ढेर सारा पैसा कमाना चाहती हों. वेंकटेश्वरी की तलाश मुनगप्पा रजनी और गुलरा रामनम्मा पर जा कर खत्म हो गई. मुनगप्पा रजनी की उम्र 40 वर्ष की थी और वह विधवा थी, जबकि गुलरा रामनम्मा की उम्र 60 वर्ष थी, जो मुनगप्पा रजनी की मम्मी थी. अपने पति की मृत्यु के बाद मुनगप्पा रजनी अपनी मम्मी गुलरा रामनम्मा के साथ अपने मायके में रहने लगी थी.

दोनों मांबेटी को अच्छे से शीशे में उतारने के बाद वेंकटेश्वरी ने उन दोनों मांबेटी को ऐसे लोगों की तलाश करने में लगा दिया, जिन के पास काफी मात्रा में ज्वेलरी व नकदी रहती हो. उस के बाद वेंकटेश्वरी ने उन को प्लान बताया कि ऐसे लोगो को चिह्निïत करने के बाद उन लोगों से दोस्ती कैसे बढ़ानी है और फिर उन्हें अकेले बुला कर उन को सायनाइड मिला कोल्डड्रिंक पिला दिया जाएगा, जिस से उन की मौत हो जाएगी और हम आसानी से ज्वैलरी और नकदी लूट सकेंगे.

मुनगप्पा रजनी अपनी ससुराल भी कभीकभी इसलिए जाया करती थी कि उस की शादी के समय जो गहने उसे दिए गए थे, उन गहनों को उस की सास सुब्बालक्ष्मी उसे वापस नहीं दे रही थी. उस ने यह बात जब वेंकटेश्वरी यानी कि अपनी गैंग लीडर को बताई तो वेंकटेश्वरी ने उस से कहा कि अब वह बराबर अपनी सास से मिलने अपनी ससुराल जाया करे और हर बार कुछ न कुछ उपहार अपनी सास को देती रहे और उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करे.

अब रजनी ने धीरेधीरे अपनी सास सुब्बालक्ष्मी का दिल जीतना शुरू कर दिया था, जिस से वह अकसर रात को भी उस के घर ही रुकने लगी थी. एक रात जब घर वाले किसी फंक्शन में गए थे तो वह रात को चुपचाप अपनी सास के घर गई. घर पर उस समय कोई नहीं था और उस ने दूध में सायनाइड मिला कर अपनी सास को पिला दिया, जिस के कारण उस की तत्काल मृत्यु हो गई. उस के बाद मुनगप्पा रजनी अपनी सास के सारे गहने ले कर चुपचाप अपने घर पर आ गई. सुबह जब लोगों ने सुब्बालक्ष्मी को घर पर मृत पड़े देखा तो इसे स्वाभाविक मौत समझ कर दाह संस्कार कर दिया.

नवंबर 2022 में नगमा नाम की एक महिला, जोकि मुनगप्पा रजनी की पड़ोसी थी, उस ने रजनी को काफी समय पहले 20 हजार रुपए उधार दे रखे थे और नगमा बारबार रुपयों का तकादा कर रही थी. कई बार तो वह लोगों के सामने भी रजनी की बेइज्जती कर देती थी. रजनी ने उस के साथ भी दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी. एक शाम रजनी ने उसे पास के शहर में सिनेमा देखने को राजी किया. वहीं रास्ते में रजनी की मां गुलरा रामनम्मा और वेंकटेश्वरी भी मिल गए. वे तीनों नगमा को एक सुनसान जगह पर ले गए और फिर उसे कोल्डड्रिंक में सायनाइड मिला कर पिला दिया, जिस के कारण उस की मृत्यु हो गई.

उस के बाद तीनों ने उस के सारे गहने निकाल लिए और उस की लाश को झाडिय़ों में फेंक दिया. तेनाली निवासियों ने इस मौत को भी स्वाभाविक समझा और नगमा का अंतिम संस्कार कर दिया गया. अगस्त 2023 में तेनाली निवासी 60 वर्षीय नागप्पा से इस गैंग ने दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी. रजनी ने नागप्पा का परिचय वेंकटेश्वरी से कराया और बताया कि वह कई साल कंबोडिया में भी रह चुकी है.  रजनी ने नागप्पा को यह भी बताया कि वेंकटेश्वरी का कारोबार अभी भी कंबोडिया और भारत के बड़ेबड़े शहरों में फैला हुआ है. यदि उसे रकम या गहने दिए जाएं तो व डेढ़ साल के बाद दोगुना कर लौटा देती है.

नागप्पा फिर वेंकटेश्वरी से अकसर मिलने लगा. वेंकटेश्वरी ने उसे समझाया कि आप रजनी की जानपहचान वाले हो, इसलिए वह उन का काम कर देगी, परंतु उसे यह बात घर पर किसी को भी नहीं बतानी होगी. क्योंकि इस से सभी मोहल्ले वाले और अन्य लोग भी उस के पीछे पड़ जाएंगे. वह किसीकिसी का ही काम करती है. नागप्पा उस के बहकावे में आ गया. उस के पास गहने व पैसे ले कर वेंकटेश्वरी ने उसे एक सुनसान इलाके में बुलवाया और फिर कोल्डड्रिंक्स में सायनाइड मिला कर उस की हत्या कर दी और उस के सारे गहने और पैसे लूट लिए. उस के बाद तीनों ने उसे सुनसान सड़क के किनारे डाल दिया. यहां पर भी नागप्पा की मृत्यु को स्वाभाविक मृत्यु मान कर उस का दाह संस्कार कर दिया गया.

आसामी के अनुसार लेती थी सुपारी

अप्रैल 2024 में तेनाली निवासी पीसू उर्फ मोशे जोकि एक सरकारी नौकरी से रिटायर हो कर पेंशन ले रहा था, उस की पत्नी का नाम भूदेवी था. पीसू उर्फ मोशे लगभग हर दिन रात को शराब पी कर अपनी पत्नी से जम कर मारपीट करता था और दिन भर उस के साथ गालीगलौज करता रहता था. भूदेवी का एक ही बेटा था, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ कुवैत में ही परमानेंट रूप से रहने लगा था. भूदेवी की अपनी भी कुछ ख्वाहिशें थीं कि वह अच्छेअच्छे कपड़े पहने, अपने लिए खूब सारे गहने बनवाए और अच्छा खानापीना करे, परंतु उस का पति अपने दोस्तों के साथ शराब की पार्टियां करता रहता था और अपने आप में ही मस्त रहने वाला इंसान था. वह औरत को बस अपने पांव की जूती से अधिक नहीं समझता था और तरहतरह से भूदेवी को प्रताडि़त करता रहता था.

मुनगप्पा रजनी भूदेवी की इस स्थिति को काफी अच्छी तरह से जान चुकी थी, इसलिए उस ने धीरेधीरे भूदेवी से बातचीत कर उस से घर की बातें उगलवानी शुरू कर दीं. रोतेरोते भूदेवी रोज अपने ऊपर हुए जुल्मों की दास्तान अब रजनी को बताने लगी थी. एक दिन रजनी ने भूदेवी को समझाया कि यदि हम मिल कर तुम्हारे पति को ही तुम्हारे रास्ते से हटा देंगे तो हमें क्या मिलेगा. इस पर भूदेवी ने रजनी से पूछा, ”रजनी, वैसे तो मैं यही चाहती हूं कि मेरा पति मोशे मर जाए. पर इस से मेरा क्या फायदा होगा. यदि मुझे कुछ फायदा होगा, तभी न मैं बता पाऊंगा कि मैं तुम्हें क्या दे सकती हूं. इस समय तो मेरे हाथ में फूटी कौड़ी तक नहीं है.’’

”अच्छा अम्मा, ये बताओ कि तुम्हारे पति ने कितने रुपए का बीमा करा रखा है?’’ रजनी ने पूछा.

”उस के 2 बीमे हैं. एक 25 लाख का और दूसरा 30 लाख का है,’’ भूदेवी ने कहा.

”आप के पति ने कितने रुपए की एफडी करा रखी है?’’ रजनी ने पूछा.

”एफडी भी 3 हैं. एक 10 लाख की, दूसरी 25 लाख की और एक तीसरी एफडी भी है जो 15 लाख की है.’’ भूदेवी ने सोचते हुए बताया.

”अरे अम्मा, फिर तो अंकल के मरते ही आप करोड़पति हो जाएंगी. एक करोड़ 5 लाख रुपए मिलेंगे तुम्हें और पेंशन भी तुम्हारे नाम पर हो जाएगी. तब ऐश से रहना. न तुम्हें गालियों की चिंता रहेगी और न ही मारपीट का का डर रहेगा. देखो, हम इतनी साफसफाई से मर्डर का प्लान करेंगे कि किसी को कभी भी हम पर शक तक नहीं हो पाएगा.’’ रजनी ने कहा.

उस के बाद रजनी ने 20 लाख रुपए में सौदा कर लिया और उस ने भूदेवी को उस शराब में सायनाइड मिलाने को दे दिया और आगे का सारा प्लान समझा दिया. भूदेवी यह सब अकेले करने में डर रही थी, इसलिए शाम को जब मोशे बाजार से शराब लाने गया था तो मुनगप्पा रजनी अंधेरे में चुपचाप सब की नजर बचा कर भूदेवी के कमरे में छिप गई. फिर रजनी ने भूदेवी को खुद शराब का गिलास ले कर उस के पति पीसू उर्फ मोशे के पास जाने को कहा. उस दिन पीसू उर्फ मोशे भी अपनी पत्नी की दयालुता और सेवाभाव का कायल हो गया था. उस ने यह कहा भी था, ”अरे भूदेवी, आज सूरज क्या पश्चिम से निकला है, जो तुम आज मेरे ऊपर इतनी मेहरबान हो गई हो.’’

”देखिए जी, मैं आप को हर रोज कुछ न कुछ कह कर आप का पूरा दिन खराब कर दिया करती थी. आज आप के दोस्त भी नहीं आए हैं, इसलिए मैं ने सोचा कि क्यों न अपने हाथों से आप को शराब का जाम दे दूं. आज मैं ने आप के लिए मछली के पकौड़े भी तले हैं.’’ भूदेवी ने मछली के पकौड़ों की ट्रे उस के सामने रखते हुए कहा. अपनी पत्नी भूदेवी के इस कायाकल्प से तो मोशे आज बहुत ही अधिक खुश हो गया था. वह सोचने लगा था कि उस की पत्नी भूदेवी उस का कितना खयाल रखती है, उस से कितना प्यार करती है. वह सचमुच कितना बेवकूफ था, जो अपनी पत्नी को रोजरोज प्रताडि़त करता रहता था.

उस के बाद अगला जाम जो भूदेवी अपने पति के लिए ले कर जा रही थी, उस में रजनी ने सायनाइड मिला दिया और जब वह गिलास भूदेवी ने मोशे को दिया तो अगले चंद सेकेंडों के बाद ही अपनी कुरसी से नीचे गिर गया. रजनी समझ चुकी थी कि मोशे अब मर चुका है, इसलिए उस ने भूदेवी के साथ मिल कर मोशे के मृत शरीर को उस की चारपाई पर डाल दिया और ऊपर से चादर ओढ़ा दी. उस के बाद रजनी ने भूदेवी के कान में समझाते हुए कुछ कहा और वह चुपचाप लोगों की नजर से बचती हुई अकेली के घर से निकल गई.

सुबहसुबह 5 बजे भूदेवी के विलाप से पूरी तेनाली कालोनी के लोग चौंक गए. कुछ ही देर के बाद भूदेवी के घर पर आसपड़ोस के बहुत से लोग आ गए थे. भूदेवी ने लोगों को बताया कि सुबह जब मैं अपने पति को बैड टी देने के लिए कमरे में गई तो उन्होंने कोई हरकत ही नहीं की. लोगों ने जब वहां पर देखा तो शराब के गिलास और खाली बोतलें पड़ी हुई थीं. सब ने यही अनुमान लगाया कि रात को मोशे ने रोज की तरह ही ज्यादा शराब पी ली होगी और फिर सोते हुए उसे साइलेंट अटैक आया होगा, जिस के कारण उस की मौत हो गई होगी. पड़ोसियों ने इसे भी स्वाभाविक मौत समझा और उस के बाद गांव वालों ने मिल कर पीसू उर्फ मोशे का अंतिम संस्कार कर दिया.

28 जून, 2024 को चेब्रोल पुलिस को जानकारी मिली कि वडलामुडी गांव के बाहरी इलाके में एक महिला का क्षतविक्षत अवस्था में शव पड़ा हुआ है. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो पुलिस को वडलामुडी गांव के बाहरी इलाके में एक 35 से 40 साल की उम्र की एक महिला का शव सड़ीगली अवस्था में मिला. पुलिस ने आसपास शव की शिनाख्त करने की कोशिश की, परंतु गांव के आसपास के लोग शव की शिनाख्त नहीं कर सके. वडलामुडी गांव के राजस्व अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर चेब्रोल थाने के एसआई पी. महेश ने अज्ञात मौत और अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया और अज्ञात महिला की डैडबौडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस ब्लाइंड मर्डर केस की जांच के लिए गुंटूर रेंज आईजी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी ने गुंटूर जिला एसपी सतीश कुमार के निर्देशन में 2 टीमें गठित की गईं. टीम में तेनाली डीएसपी बी. जनार्दन राव, पोन्नुरु ग्रामीण सीआई वाई. कोटेश्वर राव और चेब्रोल एसआई डी. वेंकट कृष्णा को शामिल किया गया.

आटो ड्राइवर के एक क्लू से खुला केस

आंध्र प्रदेश की 2 विशेष पुलिस टीमें अब इस ब्लाइंड मर्डर की तह तक जाने की कोशिशों में जुट गई थीं. जांच के दौरान पुलिस ने मृतका की पहचान गुंटूर जिले के तेनाली के यहला लिंगैया कालोनी निवासी शेख नागूर बी (48 वर्ष) के रूप में की. मृतका शेख नागूर बी के बेटे शेख तमीज ने अपनी मम्मी की मौत पर संदेह जताया. शेख तमीज ने पुलिस को बताया कि घर से निकलने से पहले उस की मम्मी शेख नागूर बी ने मुनगप्पा रजनी और मडियाला वेंकटेश्वरी उर्फ बुज्जी से काफी लंबी बातचीत की थी.

तकनीकी सर्विलांस का उपयोग करते हुए पुलिस ने आसपास के सभी सीसीटीवी फुटेज का गहनता से अध्ययन किया तो उस में एक आटो सामने आया, जिस के ड्राइवर का नाम महेश था. पुलिस द्वारा आटो चालक महेश को थाने बुला कर सीसीटीवी फुटेज दिखा कर उस से पूछताछ की गई. आटो ड्राइवर ने खुलासा किया कि 5 जून, 2024 को एक महिला ने तेनाली शहर के सोमसुंदरपालम स्थान में एक पुल पर उस का आटो किराए पर लिया था.

कुछ ही देर के बाद 2 अन्य महिलाएं भी उस के साथ आ गईं और तीनों महिलाएं आटो पर सवार हो गईं, जबकि एक अन्य महिला स्कूटी पर सवार हो कर उस के आटो के पीछेपीछे चलने लगी. आटो में सवार एक महिला ने उसे वडलामुडी जंक्शन तक ले जाने को कहा और उसे किराए के लिए 500 रुपए देने का वादा किया. रास्ते में एक जगह पर एक महिला ने आटो रुकवाया और सामने शराब की दुकान से एक बोतल शराब लाने को कहा. शराब की बोतल की कीमत 500 रुपए थी, जो महेश ने ला कर उन्हें दे दी थी.

आटो चालक महेश ने आगे बताया कि उस ने 3 महिलाओं को अपने आटो से वडलामुडी के बाहरी इलाके में खदानों के पास छोड़ा था, जिन में से एक महिला जिस ने मेरा आटो बुक किया था, उस ने फोनपे के जरिए उस का 500 रुपए का किराया चुकाया. काल रिकौर्ड और डंप डाटा से पुलिस को इस बात की पुष्टि हो गई थी कि आटो चालक महेश, मृतका शेख नागूर बी और 3 संदिग्ध लोगों की 5 जून, 2024 की लोकेशन अपराध स्थल की ही थी. जब उन तीनों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकाली गई तो वे तीनों फोन नंबर मुनगप्पा रजनी (40 वर्ष), गुलरा रामनम्मा (60 वर्ष) और मडियाला वेंकटेश्वरी उर्फ बुज्जी (32 वर्ष) के थे.

पुलिस ने जब तीनों महिलाओं से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ शुरू की तो तीनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस बीच पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ चुकी थी, जिस में मौत का कारण शराब में सायनाइड मिलना बताया गया था. पूछताछ के दौरान तीनों आरोपियों ने कुबूल किया कि पैसे दुगना करने का लालच दे कर उन्होंने पैसे और सोना चुराने के इरादे से शेख नागूर बी को बहलाफुसला कर सुनसान इलाके में बुलाया और फिर उसे सायनाइड मिली शराब पिला कर मार डाला. उस की मौत के बाद उन्होंने उस की ज्वेलरी और नकदी लूट ली और उस के शव को झाडिय़ों में फेंक दिया था.

तीनों आरोपियों ने इस हत्या से पहले और अन्य 4 हत्याओं की बात भी कुबूल कर ली. आगे की पूछताछ में तीनों आरोपियों ने यह भी कुबूल किया कि उन्होंने 3 अन्य महिलाओं अन्नपूर्णा, वरलक्ष्मी और मीराबी को भी मारने का प्रयास किया था, लेकिन ऐन वक्त पर जब हम उन्हें सायनाइड युक्त शराब और कोल्ड ड्रिंक पिलाने ही वाले थे कि तभी उन तीनों के परिचितों, रिश्तेदारों के फोन उसी समय उन के मोबाइल पर आ गए थे, जिस में उन्होंने हमारे साथ पार्टी करने की बात कही तो राज खुलने के डर से हम ने उस समय उन की हत्या नहीं की.

पुलिस पूछताछ में तीनों आरोपियों ने बताया कि उन्होंने सायनाइड कृष्णा नाम के एक शख्स से 4 हजार रुपए में 2 बार खरीदा था. कृष्णा तेनाली गांव में ही एक ज्वेलरी शाप में काम करता था. कहानी लिखे जाने तक पुलिस तीनों आरोपियों को जेल भेज चुकी थी, जबकि कृष्णा और भूदेवी फरार थीं, जिन की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

 

Gujarat News : 3 गुने का लालच दे कर ले उड़े 6 हजार करोड़

Gujarat News : 30 वर्षीय भूपेंद्र सिंह झाला ने बीजेड कंपनी में 11 हजार लोगों से 6 हजार करोड़ रुपए जमा कर के ठगी की. आखिर हजारों लोग किस तरह फंसते गए इस शातिर के जाल में? पढ़ें, कई हजार करोड़ के स्कैम की यह चौंकाने वाली कहानी…

नवंबर के दूसरे सप्ताह में गुजरात की सीआईडी पुलिस को जानकारी मिली कि हिम्मतनगर, अरवल्ली, मेहसाणा, गांधीनगर बड़ौदा आदि जिलों में बीजेड नाम की संस्था द्वारा पोंजी स्कीम चला कर लोगों को बेवकूफ बना कर उन से पैसा जमा कराया जा रहा है. इस के बाद सीआईडी के एडिशनल डीजीपी राजकुमार पांडियन के निर्देश पर सीआईडी टीम ने 26 नवंबर, 2024 को उक्त 5 जिलों में छापा मारा, जिस में बीजेड ग्रुप के औफिसों से पोंजी स्कीम के डाक्यूमेंट और वहां काम करने वाले कुछ लोग मिले. इसी के साथ रुपए जमा कराने वाला एक एजेंट आनंद दरजी भी मिला. छापे के दौरान टीम ने 16 लाख रुपए नकद, कंप्यूटर, फोन, डाक्यूमेंट आदि जब्त किए.

इन सभी लोगों से पूछताछ में पता चला कि यह पोंजी स्कीम साल 2020-21 से चलाई जा रही थी. इस का मुख्य सूत्रधार यानी कर्ताधर्ता भूपेंद्र सिंह झाला है, जिस का मेन औफिस गुजरात के जिला साबरकांठा की तहसील तालोद के रणासण में है. इस संस्था के औफिस हर जिले में हैं. यह भी पता चला कि इस के टारगेट अध्यापक और रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी रहते हैं.

 

ऐसे लोगों को मौखिक रूप से लालच दिया जाता था कि उन के यहां इनवेस्टमेंट करने पर उन्हें एक साल बाद 36 प्रतिशत रिटर्न दिया जाएगा. जबकि एग्रीमेंट में 7 प्रतिशत ही बताया जाता था. इस के अलावा इनवेस्ट करने वालों को गिफ्ट में मोबाइल फोन, टीवी आदि भी दिए जाते थे. साथ ही रुपए इनवेस्ट कराने वाले एजेंटों को भी अच्छा इंसेटिव 5 प्रतिशत से ले कर 25 प्रतिशत तक दिया जाता था.

बीजेड ग्रुप का सीईओ भूपेंद्र सिंह झाला और बाकी के तमाम कर्मचारी फरार हो गए थे. सीआईडी ने बीजेड के औफिसों से जो डाक्यूमेंट जब्त किए थे, उन की जांच से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. पता चला कि भूपेंद्र सिंह झाला की इन स्कीमों में लोगों का थोड़ा पैसा नहीं लगा, बल्कि लगभग 6 हजार करोड़ रुपए लगे हैं यानी यह बहुत बड़ी ठगी थी. लोगों को उल्लू बना कर भूपेंद्र सिंह ने उन के 6 हजार करोड़ रुपयों की ऐसीतैसी कर दी थी. लोगों को लालच दे कर उन के जीवन भर की कमाई हड़प कर वह खुद मजे की जिंदगी जी रहा था.

ऐसे गिरफ्त में आया मास्टरमाइंड

तब सीआईडी की टीम उसे गिरफ्तार करने के लिए छापे मारने लगी. लगभग डेढ़ महीने की दौड़भाग के बाद सीआईडी के डीसीपी चैतन्य मांडलिक की टीम भूपेंद्र सिंह के भाई रणजीत झाला का पीछा करते हुए हिम्मतनगर के ग्रोमोर गांव पहुंची. वहां जा कर पता चला कि भूपेंद्र सिंह झाला मेहसाणा भाग गया है. इस के बाद सीआईडी टीम को सूचना मिली कि भूपेंद्र सिंह मेहसाणा के दवाडा गांव में छिपा है. इस सूचना पर सीआईडी की टीम दवाडा गांव पहुंच गई, पर टीम को यह पता नहीं था कि भूपेंद्र सिंह किस के यहां छिपा है. तब कई टीमों ने सर्च औपरेशन शुरू किया. पर वह गांव में नहीं मिला.

पुलिस को पक्की खबर मिली थी कि भूपेंद्र सिंह दवाडा गांव में ही छिपा है, इसलिए पुलिस ने उसे खेतों में भी तलाशना शुरू किया. आखिर एक फार्महाउस में भूपेंद्र सिंह झाला मिल गया. सीआईडी की टीमों ने उसे घेर कर हिरासत में ले लिया.

राजनीति की डगर पर क्यों रखा कदम

भूपेंद्र सिंह झाला को हिरासत में लेने के बाद उसे स्पैशल कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे 7 दिनों की रिमांड पर ले लिया. सरकारी वकील ने अदालत को बताया था कि बीजेड कंपनी की अलगअलग 18 शाखाओं में रुपए जमा कराए गए थे. उन रुपयों से कौनकौन सी संपत्ति किस के नाम खरीदी गई, इस की जांच करनी है. इस के अलावा भूपेंद्र सिंह ने जो 8 कंपनियां बनाई थीं, उन का हिसाब करना है. एक शाखा से 52 करोड़ रुपए का हिसाब मिला, वे रुपए रिकवर करने हैं.

भूपेंद्र सिंह झाला के पास 10 करोड़ रुपयों का कारों का काफिला है, इन कारों को खरीदने का पैसा कहां से आया, कारें किस के नाम से खरीदी गई हैं, इस की जांच करनी है. वकील ने यह भी बताया कि भूपेंद्र सिंह झाला एक महीने से फरार था, इस बीच वह कहांकहां रहा, उस की किसकिस ने मदद की, इस की भी जांच करनी है. भूपेंद्र सिंह ने एक साल में 17 संपत्तियां खरीदी हैं. इस के अलावा गुजरात के बाहर कितनी संपत्ति खरीदी गई है, यह भी पता करना है. सरकारी वकील की इन्हीं बातों को सुन कर कोर्ट ने उस की 7 दिनों की रिमांड मंजूर की थी.

भूपेंद्र सिंह झाला के खिलाफ सीआईडी ने जीपीआईडी (गुजरात प्रोटेक्शन इंटरेस्ट औफ डिपौजिटर्स) के अंतर्गत मामला दर्ज किया था. इस के अंतर्गत 5 साल तक की कैद और 10 लाख रुपए तक के जुरमाने का प्रावधान है. यहां सोचने वाली बात यह है कि लोगों का करोड़ों रुपए हजम कर जाने वाले को 5 साल ही जेल में रहना होगा. जिस ने लोगों के करोड़ों रुपए ले लिए हों, उस के लिए 10 लाख रुपए के जुरमाने की क्या अहमियत है.

गुजरात और राजस्थान में पोंजी स्कीम से करीब 6 हजार करोड़ रुपए की ठगी करने वाले मुख्य आरोपी भूपेंद्र सिंह झाला से पुलिस ने पूछताछ की तो जानकारी मिली कि भूपेंद्र सिंह झाला भाजपा से जुड़ा हुआ है. गुजरात और राजस्थान में पोंजी स्कीम चला कर हजारों करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा करने वाले भूपेंद्र सिंह ने जीरो से 6 हजार करोड़ का साम्राज्य आखिर कैसे स्थापित किया?

गुजरात के जिला साबरकांठा की तहसील हिम्मतनगर के रायगढ़, झालानगर का रहने वाले 30 वर्षीय भूपेंद्र सिंह झाला ने बीएससी, एमएड करने के बाद वकालत की पढ़ाई की और फिर वह फोरेक्स ट्रेडिंग की एक प्राइवेट कंपनी के औफिस में नौकरी करने लगा. तब वह अलगअलग लोगों से अलगअलग तरह से पैसे जमा कराता था. बाद में वह खुद भी अन्य लोगों से क्रिप्टो करेंसी में रुपए इनवैस्ट कराने लगा. उस ने अलगअलग लोगों से रुपए उधार ले कर करीब 9 करोड़ रुपए क्रिप्टो करेंसी में लगा दिए.

4 कंपनियां, 5 बैंक और 20 अकाउंट

भूपेंद्र सिंह झाला ने ये 9 करोड़ रुपए वाईएफआई कोइन में लगाए थे, जिस के प्रौफिट के रूप में उसे 9 करोड़ रुपए मिले थे. इस रकम से उस ने उधार लिए गए 9 करोड़ रुपए लौटा दिए. सभी के रुपए अदा करने के बाद उसे करीब करोड़ों रुपए का प्रौफिट हुआ था, इसलिए उसे यह धंधा फायदे का नजर आया.

इतना मोटा प्रौफिट होने के बाद भूपेंद्र सिंह ने नौकरी छोड़ दी और अपना अलग धंधा शुरू किया. अपना धंधा करने के लिए उस ने साल 2020 में 4 अलगअलग नामों से कंपनियां खोलीं. उन कंपनियों का नाम रखा बीजेड फाइनेंस, बीजेड प्रौफिट प्लस, बीजेड मल्टी ट्रेड ब्रोकिंग और बीजेड इंटरनैशनल प्राइवेट लिमिटेड. चारों कंपनियों में पहली 2 कंपनियों का मालिक वह खुद था, जबकि तीसरी और चौथी कंपनी के रजिस्ट्रैशन उस ने पार्टनरशिप में कराया था.

कंपनी शुरू होने बाद अब लोगों से रुपए जमा कराने थे. उस रुपए का ट्रांजेक्शन हो सके, इस के लिए उस ने एक बैंक में कंपनी के नाम से 4 अकाउंट खुलवाए. इतना ही नहीं, इसी तरह उस ने 5 प्राइवेट बैंकों में कुल 20 अकाउंट खुलवाए. इस तरह भूपेंद्र सिंह झाला ने एक तरह से चेन मार्केटिंग जैसी मोडस आपरेंडी अपनाई. भूपेंद्र सिंह झाला ने लोगों से पैसा वसूलने के लिए अलगअलग लेयर बना रखे थे. लेयर के अनुसार रुपए जमा कराने वालों को कमीशन दिया जाता था. 5 लेयर में रुपए जमा करने की पूरी चेन चलती थी. 5 लेयर पूरी होने के बाद सब से पहले रुपए जमा कराने वाले को मिलने वाला कमीशन बंद हो जाता था.

अगर पहली बार रुपए जमा कराने वाले को अपना कमीशन चालू रखना होता था तो उसे फिर से नए लोगों से रुपए जमा कराने होते. पांचवें व्यक्ति तक यह चेन चलती रहती थी. जमा कराया गया रुपया जब तक वापस नहीं हो जाता था, यानी जब तक उस का समय पूरा नहीं हो जाता था, तब तक कमीशन की रकम मिलती रहती थी. धंधे की शुरुआत करने से पहले ही भूपेंद्र सिंह झाला ने 5 प्राइवेट बैंकों में 20 अकाउंट खुलवा रखे थे. यह था उस का मनी सर्कुलेशन का फार्मूला. इसी फार्मूले के आधार पर वह रुपए जमा कराने वालों को मोटी रकम ब्याज से देता था. अनेक गिफ्ट भी देता था और खुद भी रईसों वाली जिंदगी जी रहा था.

भूपेंद्र सिंह झाला पहली बैंक के अकाउंट में एक करोड़ रुपए पूरे एक महीने के लिए जमा कराता था. उस खाते में एक महीने बाद जो ब्याज आता था, उसे निकाल कर एक करोड़ रुपए को उसी बैंक के दूसरे अकाउंट में जमा करा देता था. एक महीने बाद दूसरे अकाउंट में जमा कराई रकम का एक करोड़ का एक महीने का ब्याज वह निकाल कर उस एक करोड़ की रकम को तीसरे अकाउंट में जमा करा देता था. इस तरह 5 बैंकों के 20 अकाउंटों में हमेशा एक करोड़ की रकम घूमती रहती थी. इस पद्धति को मनी सर्कुलेशन भी कहा जाता है.

मनी सर्कुलेशन का खेल अच्छी तरह से जान लेने के बाद भूपेंद्र सिंह झाला अलगअलग 20 स्टेप में अलगअलग बैंकों में मनी सर्कुलेशन करता रहता. इस ट्रांजेक्शन से मिलने वाले ब्याज की रकम वह रुपया जमा कराने अपने इनवैस्टर्स को अच्छा ब्याज और महंगे गिफ्ट के रूप में देता था. जो लोग बड़ी रकम जमा कराते थे, उन्हें वह 3 प्रतिशत महीना

की दर से ब्याज देता था और छोटी रकम वालों को डेढ़ प्रतिशत महीना की दर से ब्याज देता था. भूपेंद्र सिंह झाला जिस तरह लोगों से कैश में रुपए लेता था, उसी तरह ब्याज भी कैश में देता था. इस कैश का किसी के पास कोई हिसाब न रहे अथवा किसी कानूनी काररवाई में न फंस जाए, इस के लिए वह जरूरत पडऩे पर अपने स्कूल के स्टाफ के अकाउंट में रुपए जमा कर के उन से कैश ले लेता था. स्टाफ के बैंक अकाउंट में जो रकम जमा कराता था, उस का टीडीएस झाला अदा कर देता था.

भूपेंद्र सिंह झाला की गिरफ्तारी होने के साथ ही सीआईडी के इकोनौमिक सेल में लोगों की चहलपहल बढ़ गई थी. औफिस में ज्यादातर भीड़ ऐसे लोगों की देखने को मिल रही थी, जो भूपेंद्र सिंह झाला की ठगी का शिकार हुए थे.

आम लोगों से ले कर खास तक ऐसे फंसे उस के जाल में

जांच में यह भी सामने आया है कि केवल आम लोग और टीचर ही इस घोटाले का शिकार नहीं हुए, बल्कि 3 क्रिकेटर भी भूपेंद्र सिंह झाला की इस ठगी का शिकार हुए 2 क्रिकेटरों ने क्रमश: 10 और 25 लाख रुपए भूपेंद्र सिंह झाला की स्कीम में जमा कराए थे तो तीसरे क्रिकेटर शुभमन गिल ने एक करोड़ से अधिक की रकम जमा कराई थी. ये क्रिकेटर एजेंट द्वारा फंसाए गए थे. पुलिस उन एजेंटों की तलाश में जुट गई.

भूपेंद्र सिंह झाला ने अपनी कंपनी में इनवैस्ट करने के लिए साल 2020 में सब से पहले एक टीचर को अपने जाल में फंसाया था. मोडासा के एक स्कूल में नौकरी करने वाले उस टीचर को उस ने एक साल में पूरी होने वाली 10 लाख रुपए की एक स्कीम बताई. 10 लाख रुपए की उस स्कीम में हर महीने 3 प्रतिशत ब्याज देने की बात बताई. एक साल तक लगातार ब्याज देने के बाद भूपेंद्र सिंह ने उस अध्यापक के 10 लाख रुपए वापस कर दिए थे. इस के अलावा बढ़ा हुआ ब्याज भी दिया था.

इस तरह अध्यापक को अपनी मूल रकम के साथ ब्याज तथा एक साल बढ़ा हुआ ब्याज मिला तो उसे भूपेंद्र सिंह झाला पर विश्वास हो गया. तब उसने अन्य अध्यापकों को भी उस की स्कीम में रुपए जमा कराने की सलाह दी. इस तरह धीरेधीरे भूपेंद्र सिंह झाला का धंधा बढऩे लगा. पुलिस ने उस अध्यापक का भी बयान दर्ज किया है, जिस ने सब से पहले भूपेंद्र सिंह झाला की कंपनी में रुपए जमा कराए थे और अन्य अध्यापकों को रुपए जमा करने की सलाह दी थी. सीआईडी जब भूपेंद्र सिंह झाला के औफिस में जांच करने पहुंची थी, झाला ने उस के पहले ही अपनी वेबसाइट बंद करने के साथ सारा डाटा डिलीट कर दिया था. पुलिस अब उस डाटा को रिकवर करने का प्रोसेस कर रही है.

फिर भी जानकारी मिली है कि भूपेंद्र सिंह झाला की स्कीम में सब से अधिक साल 2021 में 6.5 करोड़ रुपए जमा हुए थे. भूपेंद्र सिंह झाला की इस स्कीम में रुपए जमा करने वाले लगभग 11,200 लोग शामिल हो गए थे. मात्र 30 साल का अविवाहित भूपेंद्र सिंह झाला तब लोगों के बीच चर्चा में आया था, जब उस ने पिछले (2024) लोकसभा चुनाव में साबरकांठा से भाजपा से टिकट न मिलने पर निर्दलीय पर्चा भर दिया था. लेकिन फिर अपना नौमिनेशन वापस ले लिया था. तब भाजपा के एक बड़े नेता ने मोडासा की एक सभा में कहा था कि भूपेंद्र सिंह झाला ने उन के कहने पर अपना नाम वापस लिया था.

भूपेंद्र सिंह झाला ने नौमिनेशन के समय जो एफिडेविट दिया था, उस के अनुसार परिवार में पिता परबत सिंह और मां मधुबेन हैं. घोटाले का खुलासा होने के बाद उस के फरार होने से रायगढ़ के झालानगर में स्थित उस की राजमहल जैसी कोठी सुनसान थी. कोठी के सामने लग्जरीयस कारें खड़ी थीं. शपथपत्र के अनुसार लोकसभा के चुनाव तक उस के खिलाफ किसी भी तरह का कोई मुकदमा दर्ज नहीं था.

भूपेंद्र दुबई में क्यों बनाना चाहता था ठगी का अड्डा

बीजेड समूह की ब्रांचों में पुलिस द्वारा छापा मारने से गुजरात के ऐसे राजनेताओं में खलबली फैल गई है, जिन का भूपेंद्र के बीजेड समूह से सीधा संबंध था. एक का डबल करने की बात कह कर अभी तक ठगी करने की बात सामने आती रही है, पर भूपेंद्र सिंह झाला की स्कीम में एक का 3 करने की बात कही जा रही थी. इस स्कीम में रिटायर्ड कर्मचारियों और टीचर्स को लालच दे कर उन से रुपए जमा कराए जा रहे थे. पर यह आधा सच है. भूपेंद्र सिंह की स्कीम में तमाम नेता और पुलिस अफसर अपनी काली कमाई जमा करा रहे थे. सुनने में तो यह भी आया कि झाला की स्कीम में कुछ डाक्टरों ने भी रुपए इनवैस्ट कराए थे.

ग्रुप से जुड़े लोगों का कहना था कि झाला को ब्याज से अधिक कमाई क्रिप्टो करेंसी से होती थी. उस का धंधा इतना अधिक फूलाफला था कि कुछ समय पहले आणंद में ब्राच खोलने के साथ ही वह दुबई में औफिस खोलने की सोच रहा था. भूपेंद्र के साथ उस के कुछ पार्टनर भी थे, जो जमा रकम को व्यवस्थित करते थे. जमा रकम क्रिप्टो करेंसी में ट्रांसफर होती थी. भूपेंद्र सिंह दुबई में इसलिए शिफ्ट होना चाहता था, क्योंकि दुबई में यह काम गैरकानूनी नहीं माना जाता.

बीजेड समूह के सीईओ भूपेंद्र सिंह झाला को मुंबई में आयोजित बीआईएए बौलीवुड कार्यक्रम में बौलीवुड अभिनेता सोनू सूद ने अवार्ड दे कर सम्मानित भी किया था. जबकि भूपेंद्र सिंह झाला ने सोनू सूद को हाथ की बनी उन की तसवीर भेंट की थी. गुजरात में बायड के विधायक धवल सिंह का एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिस में वह एक तरह से भूपेंद्र सिंह झाला की स्कीम का प्रचार करते हुए कह रहे हैं कि किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है. जिसे रुपए डबल करना आता है, वह सब कुछ कर सकता है.

भूपेंद्र सिंह झाला के गिरफ्तार होने से पहले सीआईडी ने बीजेड पोंजी स्कीम में जिन 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया था, अहमदाबाद की ग्रामीण कोर्ट ने उन की जमानत की अरजी को कैंसिल करते हुए सभी को जेल भेज दिया था. सरकारी वकील ने उन की जमानत देने के खिलाफ दलील दी थी कि यह कुल 6 हजार करोड़ का स्कैम है, जिस में पता चला है कि शुरुआत में 1.09 करोड़ रुपए एजेंट मयूर दरजी ने वसूल किया है. वर्तमान जांच में 360 करोड़ रुपए के लेनदेन का पता चला है. हिम्मतनगर के औफिस की डायरी में 52 करोड़ रुपए के लेनदेन का पता चला है.

ठगी की रकम से खरीदी प्रौपर्टी

इस मामले में आरोपियों के वकील का कहना था कि आरोपी बीजेड कंपनी में काम करने वाले चपरासी या औफिस बौय हैं. उन का इस ठगी से कोई लेनादेना नहीं है. पुलिस मुख्य आरोपी को नहीं पकड़ सकी थी, इसलिए इन्हें पकड़ लिया था. जबकि सरकारी वकील का कहना था कि बीजेड कंपनी में आरोपी राहुल राठौर 10 हजार रुपए महीने के वेतन पर नौकरी करता था तो उस के बैंक खाते में 10,91,472 रुपए का बैलेंस और 17.40 लाख रुपए के लेनदेन की हिस्ट्री क्यों मिली है?

आरोपी विशाल झाला को 12,500 रुपए सैलरी मिलती थी, लेकिन इस के अकाउंट में भी 19, 77,676 रुपए जमा मिले. 19 करोड़ से अधिक का लेनदेन हुआ था. साथ ही एक करोड़ 85 लाख ट्रांसफर भी हुए थे. आरोपी रणबीर चौहाण 12 हजार रुपए महीने की सैलरी पर नौकरी करता था. उस के खाते से 13,35,000 रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ था. आरोपी संजय परमार 7 हजार रुपए मासिक वेतन पर सफाई का काम करता था. उस के खाते में 4,54,000 रुपए जमा थे. इस के अलावा 1.56 करोड़ रुपए का लेनदेन तथा 60 लाख रुपए ट्रांसफर किए गए थे.

आरोपी दिलीप सोलंकी 10 हजार महीने की सैलरी पर नौकरी करता था. उस के अकाउंट में 10,072 मिले और 1.20 करोड़ रुपए का लेनदेन मिला. आरोपी आशिक भरथरी 7 हजार रुपए पर सफाई का काम करता था. उस के अकाउंट में 8,400 रुपए मिले और 44.98 लाख का हेरफेर तथा 8,04,620 रुपए का ट्रांजैक्शन मिला. सरकारी वकील की इन्हीं दलीलों पर अदालत ने सभी आरोपियों को जमानत देने से मना कर दिया था.

बीजेड कंपनी की आमदनी से खरीदी गई संपत्ति में मोडासा में 10 बीघा जमीन, साकरिया गांव में 10 बीघा जमीन, लिंभोई गांव में 3 बीघा जमीन, हिम्मतनगर के रायगढ़ में 5 दुकानों का एक कौंप्लेक्स, हडियोल गांव में 10 दुकानें, ग्रोमोर कैंपस के पीछे 4 बीघा जमीन हिम्मतनगर के अडपोदरा गांव में 5 बीघा जमीन, तालोद के रणासण गांव में 4 दुकानें, मोडासा चौराहे पर एक दुकान, मालपुरा में एक दुकान की जानकारी मिली.

ठगी से जुटाई गई रकम वापस करने के लिए पुलिस ने तमाम संपत्ति जब्त करने की काररवाई शुरू कर दी है. यह काररवाई पूरी हो जाने के बाद सरकार के आदेश पर जब्त की गई संपत्ति नीलाम कर के लोगों का पैसा वापस किया जाएगा. सीआईडी कथा लिखने तक बीजेड के औफिसों से जब्त किए गए 250 करोड़ रुपए लोगों को दे चुकी थी. अभी 172 करोड़ रुपए और देने हैं, जो नीलामी की रकम से दिए जाएंगे.