फितरती औरत की साजिश : सुधा पटवाल – भाग 1

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से पहाड़ों की रानी मंसूरी जाने वाले राजपुर रोड पर आनंदमयी आश्रम के पास पड़ी लाश पर सुबहसुबह किसी की नजर पड़ी तो धीरेधीरे  वहां भीड़ लग गई. एकदूसरे को देख कर उत्सुकतावश लोग वहां रुकने लगे थे. लाश देख कर सभी के चेहरों पर दहशत थी.

इस की  वजह यह थी कि लाश देख कर ही लग रहा था कि उस की हत्या की गई थी. किसी ने लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजपुर को दी तो थानाप्रभारी अमरजीत सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. मृतक की उम्र 50 साल के आसपास थी. उस के गले पर दबाए जाने का निशान साफ झलक रहा था. इस का मतलब था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस की कनपटी पर भी चोट का निशान था.

मामला हत्या का था और यह भी साफ था कि हत्यारों ने कहीं और हत्या कर के शव को यहां ला कर फेंका था. क्योंकि वहां संघर्ष का कोई निशान नहीं था. फिर उस व्यस्त मार्ग पर किसी की हत्या करना भी आसान नहीं था.

कब कौन सा मामला पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण बन जाए, इस बात को खुद पुलिस भी नहीं जानती. हत्या की वारदात में जांच को आगे बढ़ाने के लिए मृतक की पहचान जरूरी होती है. इसलिए सब से पहले पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन जब कोई उस की पहचान नहीं कर सका तो पुलिस ने इस आशय से उस की जेबों की तलाशी ली कि शायद ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

पुलिस की यह युक्ति काम कर गई. तलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड और कुछ कागजात के साथ 5 लाख रुपए का एक डिमांड ड्राफ्ट मिला. इस सब से मृतक की पहचान हुई तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया, क्योंकि मृतक राज्य के रसूखदार कृषि मंत्री हरक सिंह रावत का निजी सचिव रहा था. वैसे तो वह जिला रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लाक का रहने वाला था, लेकिन देहरादून में वह यमुना कालोनी स्थित हरक सिंह रावत के सरकारी आवास में रहता था.

घटना की सूचना पा कर एसएसपी केवल खुराना, एसपी (सिटी) डा. जगदीशचंद्र और सीओ (मंसूरी) जया बलूनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल से पुलिस को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक का नाम युद्धवीर था. चूंकि वह एक मंत्री से जुड़ा था, इसलिए राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैल गई. यह 1 अगस्त, 2013 की घटना थी.

मामला राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा था, इसलिए पुलिस की जवाबदेही बढ़ गई थी. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू और आईजी (कानून व्यवस्था) राम सिंह मीणा ने इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. डीआईजी अमित कुमार सिन्हा ने अधीनस्थ अधिकारियों से बातचीत कर के जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए स्पेशल औपरेशन गु्रप के प्रभारी रवि सैना को भी टीम के साथ लगा दिया था. सूचना पा कर मृतक युद्धवीर का भाई प्रदीप रावत देहरादून आ गया था. जिस की ओर से थाना राजपुर में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

अब तक की जांच में पता चला था कि युद्धवीर 2 मोबाइल नंबरों का उपयोग करता था. ये दोनों ही नंबर  ड्यूअल सिम वाले मोबाइल में उपयोग में लाए जाते थे. पुलिस ने दोनों ही नंबरों की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा ली. पूछताछ में पता चला था कि 9 अगस्त को वह सुबह ही घर से निकल गए थे. चलते समय उन्होंने कोठी के माली का मोबाइल फोन मांग लिया था. ऐसा उन्होंने पहली बार किया था.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू की, जिन की युद्धवीर से 8 अगस्त को बात हुई थी. उन्हीं में से एक बलराज था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में बलराज ने पुलिस को बताया था कि उस ने एसजीआरआर मैडिकल कालेज में अपनी भांजी का एडमिशन कराने के लिए युद्धवीर से बात की थी. इस के लिए उस ने उस से 60 लाख रुपए मांगे थे. उस ने उन्हें 5 लाख रुपए का ड्राफ्ट और 14 लाख रुपए नकद दे भी दिए थे. बाकी रकम एडमिशन होने के बाद देनी थी. लेकिन एडमिशन नहीं हुआ तो वह अपने 14 लाख रुपए वापस मांगने लगा था.

उन्हीं पैसों के लिए बलराज भी सुबह उस के पास गया था. तब उस ने उस से कहा था कि वह उस का इंतजार करे. आज वह एडमिशन करा कर आएगा या फिर पैसे वापस ले कर आएगा. कई घंटे तक वह उस का इंतजार करता रहा. जब वह नहीं आया तो उस ने उसे कई बार फोन किया. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. तब वह लौट गया था. रात में उस के मोबाइल फोन का स्विच औफ हो गया था.

आवास पर रहने वाले अन्य लोगों ने भी पुलिस को बताया था कि बलराज वहां आया था. उन्हीं लोगों से पूछताछ में पता चला था कि युद्धवीर दोपहर 2 बजे तक कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के पीएसओ प्रदीप चौहान के साथ था. उस ने कहीं जाने की बात कही थी तो प्रदीप चौहान ने उसे 3 बजे के आसपास दरबार साहिब पर छोड़ा था. अंतिम लोकेशन और पूछताछ से पता चला था कि युद्धवीर शाम 6 बजे चकराता रोड स्थित नटराज सिनेमा के बाहर दिखाई दिया था.

मृतक राजनीतिक आदमी से तो जुड़ा ही था, उस का अपना भी राजनीतिक वजूद था. वह रुद्रप्रयाग के अगस्त्य मुनि क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य और जखोली ब्लाक का ज्येष्ठ प्रमुख भी रह चुका था. मंत्री हरक सिंह रावत ने भी उस के परिजनों को सांत्वना दे कर घटना का शीघ्र से शीघ्र खुलासे का आश्वासन दिया था. हत्या को ले कर रंजिश, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और प्रेमप्रसंग को ले कर चर्चाएं हो रही थीं. पुलिस को लूटपाट की भी संभावना लग रही थी. लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि वह माली का मोबाइल फोन मांग कर क्यों ले गया था.

पुलिस ने अपना सारा ध्यान इसी बात पर केंद्रित कर दिया. जांच में यह भी पता चला था कि युद्धवीर छात्र छात्राओं के एडमिशन कराने का काम करता था. ऐसे में यह भी संभावना थी कि एडमिशन न होने से खफा हो कर किसी व्यक्ति ने उस की हत्या कर दी हो. तरहतरह के सवाल उठ रहे थे, जिन का माकूल जवाब पुलिस के पास नहीं था.

जांच कर रही पुलिस टीम के हाथ एक सुबूत यह लगा था कि युद्धवीर को चकराता रोड पर जब अंतिम बार देखा गया था, तब उस के साथ एक महिला थी. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वह महिला कौन थी? पुलिस ने काल डिटेल्स की बारीकी से जांच की तो उस में देहरादून के ही पौश इलाके इंदिरानगर की रहने वाली सुधा पटवाल का नंबर सामने आया.

पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो मिली जानकारी चौंकाने वाली थी. सुधा प्रौपर्टी डीलिंग से ले कर मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन कराने वाली शहर की जानीमानी रसूखदार लौबिस्ट थी. कई राजनैतिक लोगों से भी उस के घनिष्ठ रिश्ते थे.

अच्छा नहीं होता दिल लगाना

दिल भी क्या अजीब चीज है, किसी पर आने से पहले यह भी नहीं सोचता कि जिस पर आ रहा है, उस पर आना भी चाहिए या नहीं? उसे तो जो भा गया, उसी पर आ गया. तब वह न तो यह देखता है कि उस से उस का रिश्ता क्या है और न ही यह देखता है कि बाद में परेशानी कितनी होगी.

ऐसा ही कुछ मथुरा के थाना वृंदावन के गांव कौथर के रहने वाले वीरेंद्र सिंह के बेटे सुभाष के साथ हुआ था. पढ़लिख कर वह मगोरा के स्कूल में पढ़ाने लगा था. उसी दौरान उस का दिल उसी स्कूल में पढ़ने वाली हेमलता पर आ गया था. हेमलता मगौरा के ही रहने वाले राधेश्याम की बेटी थी.

हेमलता उस की शिष्या थी. शिष्या और गुरु का संबंध बापबेटी की तरह होता है. लेकिन दिल ही तो है. अगर किसी पर आ गया तो न रिश्ता देखता है न अच्छाबुरा. हेमलता दिल को भायी तो सुभाष का दिल भी इस पवित्र रिश्ते से बगावत कर बैठा और शिष्या को चाहतभरी नजरों से देखने लगा. लेकिन दिल की बात हेमलता तक पहुंचाना सुभाष के लिए आसान नहीं था. इस के बावजूद दिल के हाथों मजबूर हो कर वह चाहतभरी नजरों से उस की ओर ताकने लगा. उस की इन्हीं हरकतों की वजह से जल्दी ही हेमलता उस के दिल की बात जान गई.

सुभाष ठीकठाक घर का तो था ही, देखने में भी सुंदर था ही कुंवारा भी था. इस के अलावा नौकरी भी कर रहा था. इसलिए सुभाष के दिल में उस के लिए जो है, यह जान कर हेमलता को अच्छा ही लगा. सुभाष को जैसे ही आभास हुआ कि हेमलता उस के दिल की बात का बुरा नहीं मान रही है, इस के बाद वह अपने दिल की बात को अपने दिल में नहीं रख सका.

एक दिन हेमलता अकेली ही घर जा रही थी तो सुभाष ने उसे रास्ते में रोक लिया. उस समय हेमलता भले ही अकेली थी, लेकिन रास्ता सुनसान नहीं था. इसलिए वहां दिल की बात नहीं कही जा सकती थी. मिनट, 2 मिनट बात करने पर भले ही कोई संदेह न करता, लेकिन दिल की बात कहने में समय जरूर लगता.

फिर एक बात यह भी थी कि जब दिल का गुबार निकलता है तो चेहरे के हावभाव से ही देखने वालों को पता चल जाता है कि क्या बातें हो रही हैं. यही वजह थी कि उस समय दिल की बात कहने के बजाय सुभाष ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘हेमलता, क्या आज शाम 7 बजे तुम मुझ से मिलने स्कूल के पास आ सकती हो?’’

हेमलता कुछ कहती, उस के पहले ही सुभाष ने एक बार फिर कहा, ‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

इस के बाद हेमलता का जवाब सुने बगैर सुभाष चला गया. हेमलता हैरानी से उसे जाते तब तक देखती रही, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गया. वह जानती थी कि सुभाष ने उसे क्यों बुलाया है? अब सवाल यह था कि वह उस से मिलने आए या न आए, यही सोचते हुए वह घर पहुंच गई.

घर पहुंच कर भी हेमलता का मन बेचैन रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह कितना भी बेचैन रही, लेकिन शाम को सुभाष से मिलने जाने से खुद को रोक नहीं सकी. सहेली के घर जाने का बहाना बना कर वह स्कूल के पास पहुंची तो सुभाष मोटरसाइकिल पर बैठा उस का इंतजार कर रहा था.

उसे देख कर सुभाष ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘सर, यह अच्छी बात है कि आप का विश्वास नहीं टूटा. अब यह बताइए कि मुझे क्यों बुलाया है?’’

‘‘पहली बात तो यह कि अब तुम मुझे ‘सर’ नहीं कहोगी, दूसरी बात मैं ने तुम्हें यह बताने के लिए बुलाया है कि मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

सुभाष की इस बात पर हेमलता को कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि उसे पहले से ही पता था कि सुभाष ने यही कहने के लिए एकांत में बुलाया है. फिर भी बनावटी हैरानी व्यक्त करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप यह क्या कह रहे हैं सर?’’

‘‘हेमा, मेरे दिल में जो था, वह मैं ने कह दिया, बाकी तुम जानो. यह बात सच है कि मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं.’’

सुभाष की इन बातों से हेमलता के दिल की धड़कन एकदम से बढ़ गई. सुभाष उसे अच्छा लगता ही था. वह उसे चाहने भी लगी थी, इसलिए उस ने सुभाष को चाहतभरी नजरों से देखते हुए बड़ी ही धीमी आवाज में कहा, ‘‘प्यार तो मैं भी आप से करती हूं, लेकिन डर लगता है.’’

सुभाष ने हेमलता का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘डर किस बात का हेमा, मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर तो मैं तुम्हारा साथ आखिरी सांस तक निभाऊंगी.’’ अपना दूसरा हाथ सुभाष के हाथ पर रखते हुए हेमलता ने कहा.

इस तरह इजहार हो गया तो हेमलता और सुभाष की दुनिया ही बदल गई थी. अब अकसर दोनों क्लास में तो मिलते ही थे, चोरीछिपे बाहर भी मिलने लगे थे. एकांत में बैठ कर दोनों भविष्य के सपने बुनते. जबकि उन्हें पता था कि वे जो सोच रहे हैं, वह उतना आसान नहीं है.

जिला मथुरा के थाना वृंदावन के गांव मगोरा के रहने वाले राधेश्याम की 3 संतानों में हेमलता उस की सब से बड़ी बेटी थी. बच्चों में सब से बड़ी होने की वजह से राधेश्याम उसे पढ़ालिखा कर किसी काबिल बनाना चाहता था. लेकिन पढ़ाई के दौरान ही पड़ोसी गांव कौथरा के रहने वाले वीरेंद्र सिंह के बेटे सुभाष से उसे प्यार हो गया.

कौथरा निवासी वीरेंद्र सिंह के 2 बेटे थे, बड़ा अरविंद और छोटा सुभाष. अरविंद उस के साथ खेती कराता था, जबकि सुभाष इंटर कालेज में जूनियर कक्षाओं में पढ़ाने वाला अध्यापक था.

मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई जाने लगीं. हालांकि दोनों की जाति अलगअलग थी, इसलिए यह इतना आसान नहीं था. फिर भी दोनों ने तय कर लिया था कि कुछ भी हो, वे अपनी दुनिया बसा कर ही रहेंगे.

प्यारमोहब्बत ज्यादा दिनों तक छिपने वाली चीज तो है नहीं, इसलिए कुछ दिनों बाद राधेश्याम को भी शुभचिंतकों से पता चल गया कि बेटी गलत राह पर चल पड़ी है. पतिपत्नी ने बेटी को डांटाफटकारा भी और प्यार से समझाया भी. इस के बावजूद भी उन्हें बेटी पर विश्वास नहीं हुआ. उन्हें लगा कि जवानी की दहलीज पर खड़ी हेमलता गलत कदम उठा सकती है, इसलिए उन्होंने उस की शादी करने का विचार बना लिया.

शादी के बारे में हेमलता को पता चला तो वह घबरा गई. क्योंकि उस ने तो पहले से ही तय कर रखा था कि कुछ भी हो, वह शादी सुभाष से ही करेगी. अगले दिन उस ने यह बात सुभाष को बताई तो उस ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘तुम इतना परेशान क्यों हो? मैं हर हाल में तुम्हारे साथ हूं. तुम्हें कोई भी किसी भी हालत में मुझ से अलग नहीं कर सकता.’’

मांबाप की सख्ती के बावजूद हेमलता छिपछिप कर सुभाष से मिलती रही. जब किसी ने यह बात राधेश्याम को बताई तो बेटी के इस दुस्साहस से वह हैरान रह गया. उस ने सारी बात पत्नी निर्मला को बताई तो उस ने उसी समय हेमलता को बुला कर डांटा, ‘‘तुझे तो अपनी इज्जत की परवाह है नहीं, कम से कम हम लोगों की इज्जत का खयाल किया होता. मना करने के बावजूद तू उस से मिलती है. अब आज से तेरा स्कूल जाना बंद.’’

‘‘अगर मैं सुभाष से मिलती हूं तो इस से तुम लोगों की इज्जत कैसे बरबाद हो रही है.’’ हेमलता ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘वह पढ़ालिखा और समझदार है. ठीकठाक घर का होने के साथ नौकरी भी करता है. फिर मैं उस से प्यार करती हूं. एक लड़की को जैसा लड़का चाहिए, उस में वे सारे गुण हैं. जीवनसाथी के रूप में उसे पा कर मैं खुश रहूंगी. इसलिए मैं उस से शादी करना चाहती हूं.’’

‘‘तेरा यह सपना कभी पूरा नहीं होगा,’’ निर्मला गुस्से से बोली, ‘‘उस से फिर कभी शादी की बात की तो काट के रख देंगे.’’

‘‘सुभाष के बिना तो मैं वैसे भी नहीं जी सकती. कहीं और शादी करने के बजाय आप लोग मुझे मार दें, मेरे लिए यही अच्छा रहेगा.’’ हेमलता ने कहा.

हेमलता ने देखा कि घर वाले नहीं मान रहे हैं तो उस ने सुभाष को फोन कर के कहा, ‘‘सुभाष जल्दी कुछ करो, वरना मेरी शादी कहीं और कर दी जाएगी. जबकि तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती.’’

सुभाष हेमलता को सच्चा प्यार करता था, इसलिए उस ने उसे साथ भाग चलने के लिए कहा ही नहीं, बल्कि 22 जनवरी, 2014 की रात को सचमुच भगा ले गया. निर्मला और राधेश्याम को जब हेमलता के भाग जाने का पता चला तो वे सन्न रह गए. सुभाष भी घर से गायब था, इसलिए साफ हो गया कि हेमलता उसी के साथ भागी है. राधेश्याम ने जब यह बात वीरेंद्र सिंह को बताई तो वह भी परेशान हो गया. उस ने राधेश्याम को आश्वासन दिया कि वह किसी भी हालत में दोनों को ढूंढ़ कर उस की बेटी को उस के हवाले कर देगा.

लेकिन राधेश्याम को अब किसी पर भरोसा नहीं रहा था, इसलिए उस ने थाने में बेटी के भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. थानाप्रभारी अरविंद सिंह ने हेमलता को बरामद करने की कोशिश शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने वीरेंद्र सिंह पर दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन उसे खुद ही बेटे के बारे में कुछ पता नहीं था, इसलिए वह मजबूर था. जबकि पुलिस उस पर लगातार दबाव बनाए हुए थी.

उसी बीच 28 जनवरी को वृंदावन के एक नाले की सफाई के दौरान एक लाश मिली. लाश का एक हाथ कटा हुआ था और उस का चेहरा बुरी तरह जलाया गया था. शायद ऐसा शिनाख्त मिटाने के लिए किया गया था. घटनास्थल पर उस की शिनाख्त नहीं हो सकी. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और थाने लौट कर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

इस बात की जानकारी वीरेंद्र सिंह को हुई तो वह थाना वृंदावन जा पहुंचा. उस ने लाश देखने की इच्छा व्यक्त की तो उसे मोर्चरी भेजा गया, जहां लाश देख कर उस ने कहा कि यह उस के बेटे सुभाष की लाश है. इस का हाथ इसलिए काट दिया गया है, क्योंकि उस हाथ पर उस का नाम गुदा हुआ था.

इस के बाद वीरेंद्र सिंह ने राधेश्याम और उस के रिश्तेदारों पर सुभाष की हत्या का आरोप लगाते हुए थाना वृंदावन में कुल 5 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

थाना वृंदावन पुलिस ने वीरेंद्र सिंह की ओर से रिपोर्ट भले ही दर्ज कर ली थी, लेकिन पुलिस को विश्वास नहीं हो रहा था कि नाले से मिली लाश सुभाष की है. इसलिए पुलिस ने उस का डीएनए टेस्ट कराने के लिए नमूना ले कर विधि अनुसंधान प्रयोगशाला, लखनऊ भेज दिया. क्योंकि अगर लाश सुभाष की थी तो हेमलता कहां गई? मुखबिरों ने भी पुलिस को बताया था कि वह लाश सुभाष की नहीं थी.

पुलिस को भले ही वीरेंद्र सिंह के दावे पर संदेह था, फिर भी पोस्टमार्टम के बाद लाश उसे सौंप दी गई थी. इस के बाद पूरे विधिविधान से उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.

राधेश्याम को तो पता ही था कि वह लाश सुभाष की नहीं थी. वह जिंदा है. वीरेंद्र सिंह ने सभी को बेवकूफ बनाने के लिए उस अंजान की लाश को सुभाष की लाश बता कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया था. यही वजह थी कि राधेश्याम ने गांव वालों की पंचायत इकट्ठा की और वीरेंद्र सिंह, उस के भाई राजेंद्र सिंह तथा बेटे अरविंद को भी उस पंचायत में बुलाया.

पहले तो वीरेंद्र सिंह नानुकुर करता रहा, लेकिन जब राधेश्याम ने सुभाष के जीवित होने के सुबूत पेश किए तो वीरेंद्र को मानना पड़ा कि वह जीवित है. दरअसल सब से बड़ा सुबूत तो यही था कि हेमलता का कुछ पता नहीं था. तब राधेश्याम ने पंचायत की मदद से वीरेंद्र सिंह और उस के भाई राजेंद्र सिंह को बंधक बना कर अरविंद से कहा कि वह हेमलता को ले कर आए, तभी उस के पिता और चाचा को छोड़ा जाएगा.

आखिर काफी मिन्नतों और इस वादे के बाद उन दोनों को छोड़ दिया गया कि वे जल्दी ही हेमलता को ढूंढ़ कर उस के हवाले कर देंगे.

वीरेंद्र सिंह ने पंचायत के सामने भले ही वादा कर लिया था कि वह हेमलता को ढूंढ़ कर राधेश्याम के हवाले कर देगा, लेकिन घर के आने के बाद वह अपने उस वादे को भूल गए.

इस मामले ने तब तूल पकड़ा, जब मई में डीएनए रिपोर्ट आई. डीएनए रिपोर्ट से पता चला कि नाले में मिला शव सुभाष का नहीं था. इस बीच पुलिस को पता चल गया था कि सुभाष जीवित है और दिल्ली में कहीं रह रहा है. लेकिन ठोस सुबूत न होने की वजह से पुलिस उस के घर वालों पर दबाव नहीं बना पा रही थी. लेकिन डीएनए रिपोर्ट आते ही पुलिस के हाथ ठोस सुबूत लग गया तो पुलिस ने उस के घर वालों पर दबाव बनाना शुरू किया.

पुलिस ने वीरेंद्र सिंह के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा कर पता कर लिया था कि उस के फोन से दिल्ली से फोन आता है. इस तरह पुलिस को सुभाष का नंबर ही नहीं मिल गया था, बल्कि उस के लोकेशन का भी पता चल गया था. इस के बाद पुलिस ने वीरेंद्र सिंह पर दबाव बनाया तो वह परेशान हो उठा. वीरेंद्र सिंह कुछ करता, उस के पहले ही पुलिस ने मोबाइल की मदद से जून के पहले सप्ताह में सुभाष और हेमलता को वृंदावन के बसअड्डे से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस सुभाष और हेमलता को थाने ले आई. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां मजिस्ट्रेट के सामने दोनों ने स्वीकार किया कि वे एकदूसरे से प्यार करते हैं और उन्होंने दिल्ली में शादी भी कर ली है. वे बालिग हैं, इसलिए उन्हें उन की मर्जी से साथ रहने दिया जाए.

मजिस्ट्रेट के आदेश पर जहां सुभाष को जेल भेज दिया गया, वहीं हेमलता को इस आदेश के साथ नारी निकेतन भेज दिया गया कि अगली तारीख पर उस की मैडिकल जांच करा कर रिपोर्ट के साथ अदालत में पेश किया जाए.

अगली पेशी पर पुलिस ने मैडिकल रिपोर्ट के साथ हेमलता और सुभाष को अदालत में पेश किया तो मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार हेमलता बालिग थी. वह 3 माह की गर्भवती भी थी.

हेमलता ने अपने बयान में साफ कहा था कि वह अपनी मर्जी से सुभाष के साथ गई थी और शादी भी की थी. अब वह उसी के साथ रहना भी चाहती है.

जबकि राधेश्याम हेमलता को अपनी अभिरक्षा में लेना चाहता था. वह अदालत से गुहार लगाता रहा, लेकिन अदालत ने उस की एक नहीं सुनी और हेमलता को उस की मर्जी के अनुसार सुभाष के साथ भेज दिया. सुभाष हेमा को ले कर अपने घर आ गया.

अब सवाल यह था कि नाले में मिली लाश सुभाष की नहीं थी तो फिर किस की थी. सुभाष के घर वालों को पता था कि वह लाश सुभाष की नहीं है, फिर भी उन्होंने उस की शिनाख्त ही नहीं की, बल्कि उस का अंतिम संस्कार भी किया. उन्होंने ऐसा क्यों किया?

यह जानने के लिए पुलिस ने वीरेंद्र सिंह से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘साहब, हेमलता दूसरी जाति की तो थी ही, उस के घर वाले भी काफी दबंग थे. हेमलता के घर वाले तो दबाव डाल ही रहे थे, पंचायत का भी उस पर काफी दबाव था. इस के अलावा पुलिस भी परेशान कर रही थी. जबकि उस समय सुभाष के बारे में मुझे कुछ पता नहीं था.

‘‘उसी बीच जब मुझे नाले में लाश मिलने की सूचना मिली तो मुझे लगा कि अगर मैं उस लाश की शिनाख्त सुभाष की लाश के रूप में कर देता हूं तो एक तो पुलिस के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी, दूसरे सुभाष की हत्या का आरोप लड़की के घर वालों पर लगा दूंगा तो वे दबाव बनाने के बजाय खुद दबाव में आ जाएंगे.’’

लेकिन वीरेंद्र सिंह ने अपने बचाव के लिए जो चाल चली थी,्र इस का राधेश्याम को पता चल गया था. उसी ने पुलिस को बताया था कि नाले में मिली लाश वीरेंद्र सिंह के बेटे सुभाष की नहीं थी. क्योंकि अगर सुभाष मारा गया था तो फिर हेमलता कहां थी. उसी की बात पर पुलिस ने लाश का डीएनए टेस्ट कराया था. क्योंकि स्थितियों से पुलिस को भी आभाष हो गया था कि वीरेंद्र सिंह झूठ बोल रहा है.

दूसरी ओर दिल्ली में हेमलता के साथ रह रहे सुभाष को जब पता चला कि घर वालों ने उसे मृत घोषित कर दिया है तो वह घबरा गया. उसे लगा कि अगर उसे मृत मान लिया गया तो वह खुद को कभी जीवित साबित नहीं कर पाएगा. उस अवस्था में कहीं का नहीं रहेगा. नौकरी तो जाएगी ही, घर की प्रौपर्टी में भी वह हिस्सा नहीं ले पाएगा. यही सब सोच कर वह हेमलता को ले कर वापस आ गया था. पुलिस उस की ताक में थी ही, आते ही उसे पकड़ लिया था.

पुलिस ने वीरेंद्र सिंह के खिलाफ पुलिस को गुमराह करने का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक हेमलता ससुराल में रह रही थी. वीरेंद्र सिंह की जमानत हो गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

समलैंगिक फेसबुक फ्रेंड दे गया मौत – भाग 2

हत्यारे की घर में हुई फ्रेंडली एंट्री

एक दूसरी बात प्राथमिक जांच में साफ हो रही थी, वह यह थी कि कातिल मुकेश का परिचित था. क्योंकि घर में किसी तरह की जोरजबरदस्ती से प्रवेश के कोई निशान नहीं मिले थे. इतना ही नहीं कातिल वारदात को अंजाम देने के बाद घर के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद करके चला गया था. दूसरी बात जो एकदम साफ थी वो यह कि घर के अंदर से कोई भी कीमती सामान गायब नहीं हुआ था. यानी कत्ल करने वाले का मकसद चोरी या लूट करने का नहीं था, बल्कि मुकेश की हत्या करना ही था.

हत्यारे ने जिस बेरहमी से मुकेश का कत्ल किया था, उस से लग रहा था कि वह बेहद गुस्से में रहा होगा, क्योंकि उस ने तवे से मुकेश पर ताबड़तोड़ वार किए थे. फोरैंसिक टीम ने अपना काम खत्म कर लिया था, लिहाजा एसपी अभिषेक वर्मा ने एसएचओ नीरज कुमार को शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का आदेश दिया. जिस के बाद शव का पंचनामा तैयार किया गया और उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

इंसपेक्टर नीरज कुमार ने मृतक मुकेश के साले की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ 21 सिंतबर को भादंसं की धारा 302 (हत्या) और 201 (सबूत नष्ट करने की धारा) में मुकदमा दर्ज कर जांच का काम अपने हाथों में ले लिया. उच्चाधिकारियों के आदेश पर उन की मदद के लिए एक टीम का गठन कर दिया गया, जिस में एसआई राकेश कुमार, हैडकांस्टेबल अजीत सिंह, रविंद्र सिंह, दीपक कुमार, दिनेश कुमार और विष्णु के साथ कांस्टेबल सुनील कुमार को जांच दल में शामिल किया गया.

पोस्टर्माटम के बाद शव परिजनों को सौंपा जा चुका था. परिवार के लोग जब अंतिम संस्कार के काम से फारिग हो गए और माहौल थोड़ा शांत हो गया तो जांच अधिकारी नीरज कुमार ने सब से पहले मृतक मुकेश की पत्नी कृष्णा से यह जानना जरूरी समझा कि उन्हें अपने पति की हत्या में किसी पर शक तो नहीं है.

लेकिन कृष्णा ने जो कुछ बताया, उसे जान कर इंसपेक्टर नीरज कुमार का दिमाग ही घूम गया. कृष्णा ने बताया कि उस के पति मुकेश का अपने दोनों भाइयों राकेश और विनोद से पैतृक संपत्ति को ले कर मनमुटाव चल रहा था. उसे शक था कि उन दोनों ने ही मुकेश की या तो खुद हत्या की है या उन्होंने किसी से करवाई है.

जब तक कातिल पुलिस के हाथ में न आ जाए, तब तक पुलिस की नजर में हर शख्स कातिल ही लगता है. चूंकि मुकेश की पत्नी कृष्णा ने दोनों जेठों पर सीधे आरोप लगाया था. लिहाजा पहले जांच इसी बिंदु से शुरू हुई. पुलिस ने दोनों भाइयों को सब से पहले हिरासत में ले लिया.

उन के बारे परिवार के दूसरे सदस्यों से जानकारी ली गई तो पता चला कि दोनों बड़े भाइयों का मुकेश से एक पैतृक प्लौट को ले कर विवाद जरूर था, लेकिन विवाद ऐसा नहीं था कि दोनों भाई अपने छोटे भाई की हत्या कर दें. दोनों भाई मुकेश से बेहद प्यार करते थे. उल्टा मुकेश ही यदाकदा बड़े भाइयों से लड़ जाता, लेकिन वे नजरअंदाज कर देते थे.

पुलिस ने सच का पता लगाने के लिए मुकेश के दोनों भाइयों के मोबाइल नंबरां की काल डिटेल्स, उन की लोकेशन और वाट्सऐप चैट निकलवाई तो पता चला कि दोनों भाइयों की वारदात वाले दिन या इस के आसपास मुकेश के घर के आसपास लोकेशन भी नहीं थी. यानी उन के खिलाफ आरोप सिर्फ शक की वजह से थे, लेकिन उन के पीछे ठोस सबूत नहीं था.

हालांकि इंसपेक्टर नीरज कुमार ने मुकेश के दोनों भाइयों को अभी शक के दायरे से बाहर नहीं किया था, लेकिन उन्होंने दोनों को हिरासत से रिहा कर दिया और अपने 2 हैडकांस्टेबल को दोनों की निगरानी और कुछ अन्य जानकारियां एकत्र करने के काम पर लगा दिया.

अलगअलग टीमें जुटी जांच में

जांच अधिकारी नीरज कुमार ने अब हत्याकांड के दूसरे पहलुओं पर जांच शुरू कर दी. पुलिस की नौकरी के दौरान नीरज कुमार ने अपने अनुभव से एक बात सीखी थी कि जिस आदमी के साथ अपराध घटित होता है, उस का कारण भी उसी इंसान के इर्दगिर्द होता है. नीरज कुमार समझ गए कि हो न हो, मुकेश की हत्या का राज उसी से जुड़ा हुआ है. कातिल तक पहुंचने के लिए उन्होंने सब से पहले मुकेश कर्दम की छानबीन करने का फैसला किया.

उन्होंने अपनी टीम को 2 भागों में बांट दिया. एक टीम को मुकेश के मोबाइल की काल डिटेल्स, उस की लोकेशन और वाट्सऐप से जुड़ी सारी चैट निकालने के काम पर लगाया और साथ ही मुकेश के फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म का पता लगा कर उन की छानबीन करने का काम शुरू कर दिया. पुलिस की एक टीम मुकेश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की छानबीन करने लगी.

24 घंटे के भीतर इस जांच के परिणाम सामने दिखने लगे. मोबाइल की काल डिटेल्स से पता चला कि जिस रात मुकेश की हत्या हुई थी, उस से पहले दिन में और शाम को एक मोबाइल नंबर पर मुकेश की कई बार बातचीत हुई थी. मुकेश के मोबाइल में आखिरी काल भी इस नंबर पर की गई थी और उस के बाद मुकेश का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया. यह करीब शाम साढ़े 7 बजे की बात है.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर नीरज कुमार के लिए अब यह जानना बहुत जरूरी हो गया था कि वह नंबर आखिर किस का था. उस नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि वह किसी हसन नाम के व्यक्ति के नाम पर पंजीकृत था. हसन का पता मेरठ जिले के धोलड़ी गांव का था.

काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि मुकेश और हसन के बीच पिछले एक महीने से बातचीत का सिलसिला चल रहा था. जब हसन की लोकेशन चेक की गई तो पता चला दिन में उस की लोकेशन मोदीनगर के राज चोपड़ा के आसपास थी, जबकि शाम साढ़े 7 बजे के बाद से 19 सितंबर की सुबह 4 बजे तक उस के मोबाइल की लोकेशन मुकेश के घर के आसपास ही थी.

इस का मतलब साफ था कि हसन वारदात वाली रात को मुकेश के घर पर था. यह जानकारी बेहद काम की थी, लेकिन हत्या की गुत्थी सुलझाने और कातिल तक पहुंचने के लिए अभी कई सवालों के जवाब ढूंढे जाने बाकी थे.

समलैंगिक फेसबुक फ्रेंड दे गया मौत – भाग 1

मुकेश समलैंगिक तो था ही लेकिन उस के साथ ही उस में कुछ ऐसी आदतें भी थीं, जो आमतौर पर यौन विकृत लोगों में होती हैं. मसलन उसे हाथपांव बांध कर प्यार करने में बेहद आनंद आता था. मुकेश ने जब अपनी ख्वाहिश हसन को बताई तो उस को बड़ा अजीब सा लगा. लेकिन थोड़ी नानुकुर के बाद अपने हाथ और पांव बंधवाने के लिए तैयार हो गया.

इस के बाद मुकेश ने हसन के साथ शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन अपने विकृत अप्राकृतिक प्यार के दौरान मुकेश ने हसन को इतनी बुरी यातनाएं दीं कि हसन का दिल दहल गया.हसन मुकेश से लाख मिन्नतें करता रहा, लेकिन उन्माद में अंधे हो चुके मुकेश के ऊपर उस की चीखों का भी कोई असर नहीं हुआ, बल्कि इस सब से मुकेश को और ज्यादा आनंद की अनुभूति हो रही थी.

जो दौर मुकेश ने हसन के साथ किया था, वही बारी अब हसन की थी. अब बारी मुकेश के हाथ और पांव बांधने की थी. जिस के बाद हसन ने उसे बिस्तर पर उलटा लिटा दिया. हसन ने भी उस के साथ संबंध बनाए. इस के बाद हसन अपने घर लौट गया.

दिल्ली की सीमा से करीब 70 किलोमीटर दूर हापुड़ के मोहल्ला लज्जापुरी की गली नंबर 8 में रहने वाला 35 वर्षीय मुकेश कर्दम अपनी पत्नी कृष्णा और 3 बच्चों के साथ रहता था. 18 सितंबर, 2023 की ही तो बात है. मुकेश अपनी पत्नी और तीनों बच्चों को बुलंदशहर के गांव इस्माइलपुर स्थित अपनी ससुराल छोड़ आया था. वह बेहद खुश था और शाम को सकुशल हापुड़ वापस आ गया था.

दरअसल, 35 साल के मुकेश का हापुड़ में टेंट हाउस का कारोबार था. घर के पास ही उस की एक किराने की दुकान भी थी. ससुराल से वापस आने के बाद वह कुछ समय तक अपनी किराने की दुकान पर रहा. बाद में वह अपने घर आ गया. उसी रात से मुकेश का फोन स्विच औफ हो गया. ससुराल पक्ष के लोग लगातार मुकेश से संपर्क करने का प्रयास करते रहे. लेकिन फोन बंद होने के कारण उस से संपर्क नहीं हो पाया.

19 और 20 सितंबर को मुकेश की पत्नी कृष्णा लगातार अपने पति को फोन करती रही, लेकिन फोन लगातार स्विच औफ जाता रहा, इसलिए उस की चिंता बढ़ गई. फिर 21 सितंबर की सुबह करीब साढ़े 10 बजे वह अपने भाई को ले कर हापुड़ पहुंची तो यह देख कर कृष्णा को आश्चर्य हुआ कि मकान की बाहर से कुंडी लगी थी.

उसे शक हुआ, दरवाजे के नजदीक जाने पर घर के भीतर से काफी ज्यादा बदबू आने का भी अहसास हुआ. तब कृष्णा अपने भाई के साथ बाहर की कुंडी खोल कर मकान के भीतर घुसी तो अपने बैडरूम में पहुंचते ही उस के हलक से चीख निकल गई.

मुकेश की खून से लथपथ लाश जमीन पर पड़ी थी, जिस के हाथ बंधे हुए थे, मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था. शरीर पर केवल अंडरवियर था. सिर से बहा खून जम कर काला पड़ चुका था. मुकेश के साले ने हापुड़ में ही रहने वाले मुकेश के दोनों भाइयों राकेश, विनोद और मां को फोन कर मुकेश की हत्या होने की बात बता दी.

मुकेश के दोनों भाई भी हापुड़ में पास की कालोनी में रहते थे. लिहाजा आधा घंटे में वे अपने परिवारों के साथ वहां पहुंच गए. इधर पति की मौत ने कृष्णा को भी बुरी तरह तोड़ कर रख दिया. वह रोते हुए बारबार बेहोश हो रही थी. पति के शव से लिपट कर विलाप कर रही कृष्णा बस यही कह रही थी कि वह अब जीवित रह कर क्या करेगी.

बच्चों के सिर पर पिता का साया नहीं रहा तो वह कैसे 3-3 बच्चों की परवरिश करेगी. उस के दर्द व आंखों से बहते आंसुओं को देख लोगों की आंखें नम हो गईं. हर कोई उसे सांत्वना दे कर शांत करने का प्रयास कर रहा था, लेकिन वह बारबार बेसुध हो रही थी.

अजीब हालत में मिली थी मुकेश की लहूलुहान लाश

मुकेश अपने परिवार में सब से छोटा होने के कारण सभी का चहेता था. 3 साल पहले ही मुकेश के पिता खजान सिंह का देहांत हो गया था. इस सदमे से मुकेश की मां माया अभी ठीक से उबरी भी नहीं थी कि अब जवान और सब से छोटे बेटे की भी मौत हो गई. छाती पीटपीट कर माया देवी बस एक ही बात बोल रही थीं कि इस से तो अच्छा यही होता कि बेटे की जगह उन्हें मौत आ जाती.

साफ था कि मुकेश की मौत से मां को गहरा सदमा लगा है. बेटे की खून से लथपथ लाश देख कर माया का रोरो कर बुरा हाल था. वैसे भी जवान बेटे की मौत किसी मां के लिए कितना बड़ा सदमा होती है, यह सिर्फ उस का दिल ही बता सकता है.

अगले 2 घंटे में मुकेश के घर के बाहर उन के रिश्तेदारों के अलावा आसपास के लोगों की बेतहाशा भीड़ जमा हो चुकी थी. इसी बीच मुकेश के सब से बड़े भाई राकेश ने हापुड़ कोतवाली को फोन कर के इस मामले की सूचना दे दी थी. कोतवाल नीरज कुमार अपने मातहतों के साथ तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटना की संवेदनशीलता को देखते हुए उन्होंने एसपी अभिषेक वर्मा और सीओ (कोतवाली) को वारदात की सूचना दे दी. सूचना मिलने के बाद क्राइम इनवैस्टीगेशन व फोरैंसिक की टीमें भी मौके पर पहुंच गई, जिन्होंने वारदात वाली जगह से फिंगरप्रिंट और कातिल तक पहुंचने के सुराग एकत्र करने शुरू कर दिए.

थोड़ी देर में ही एसपी अभिषेक वर्मा घटनास्थल पर पहुंच गए. इलाके के लोगों के साथ घर वालों और व्यापारियों ने उन से हत्याकांड का खुलासा जल्द करने की मांग की. एसपी अभिषेक वर्मा ने पीडि़त परिवार के साथ सभी शुभचिंतकों को भरोसा देते हुए कहा कि वह जल्द से जल्द कातिल तक पहुंच जाएंगे, बस पुलिस को जांच में सहयोग करें.

पुलिस टीम ने जांच कार्य शुरू करते ही एक खास बात नोट की. मुकेश का शव लहूलुहान हालत में में फर्श पर पड़ा मिला था. लाश के पास ही खून से सना लोहे का एक तवा पड़ा मिला था. साफ लग रहा था कि उसी तवे से मुकेश के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर के उस की हत्या की गई थी.

एक तरह से तवे के वार से मुकेश का सिर बुरी तरह कुचला गया था. इतना ही नहीं, शरीर पर भी कई जगह घाव थे. चारों तरफ खून फैला हुआ था. मुकेश के मुंह में भी कपड़ा ठूंसा गया था. शरीर से बह रहा खून काला पडऩे के बाद एक बात साफ थी कि उस की मौत को कम से कम 48 घंटे बीत चुके थे.

मसानी बाबा निकला बलात्कारी

मंगलवार का दिन था. द्वारका के एक घर में दोपहर बाद दरबार लग चुका था. दोमंजिला मकान के एक बड़े कमरे में लाल रंग के सिंगल भव्य सोफे पर आध्यात्मिक गुरु आ कर बैठ चुका था. उसे लोग मसानी बाबा या फिर दुल्हनिया बाबा के नाम से जानते थे.

उस का दरबार शनिवार और मंगलवार को 5 से 6 घंटे के लिए आयोजित किया जाता था. बीते शनिवार को लगे दरबार की तुलना में उस रोज कुछ ज्यादा ही अनुयाई जमीन पर बैठे थे. उन में अधिकतर औरतें थीं. वे फुसफुसाती हुईं आपस में बातें कर रही थीं.

कमरे में उन की बातचीत का मिलाजुला और मद्धिम शोर गूंज रहा था. कोने में एक कैमरामैन बाबा के अलावा अनुयायियों की ओर भी कैमरे को घुमा कर वीडियो शूट कर रहा था. वैसे दरबार में मोबाइल से किसी भी तरह की फोटो या वीडियो बनाने की सख्त मनाही थी.

दरबार में अंदर जाने के लिए प्रवेश द्वार पर एक व्यक्ति मुस्तैदी से तैनात था. उस की अनुमति के बगैर कोई भी कमरे में नहीं जा सकता था. जबकि एक अन्य व्यक्ति दरबार में प्रसाद बांट रहा था. थोड़ी देर पहले ही वहीं बने छोटे से मंदिर में आरती खत्म हुई थी. शोरगुल प्रसाद को ले कर भी था.

बाबा ठीक अपने आगे बैठी एक महिला को कुछ समझा रहा था. महिला का एक हाथ बाबा के सजेसंवरे चरण पर था, जबकि दूसरे हाथ से वह अपने साथ लाई मिठाई का डिब्बा खोल रही थी. बाबा बोले, “कोई बात नहीं, दोनों हाथों से डिब्बा खोल लो. चुन्नी सिर पर रख लो. अगली बार लाल चुन्नी में आना, तभी पूरा आशीर्वाद मिल पाएगा.”

सिर झुकाए महिला ने कुछ बोले बगैर मिठाई का डिब्बा खोल लिया. मिठाई के अलावा महिला ने साथ लाए सेब और केले रख दिए. दोनों हाथों से डिब्बे को बाबा के सामने कर दिया. बाबा उस पर अपना हाथ फिराते हुए बोला, “इसे मंदिर में रख दो.”

“गुरुजी, मेरी समस्या का समाधान हो जाएगा न?” जिज्ञासा के साथ महिला ने पूछा.

“यह भी पूछने की बात है. मुझ पर प्रभु की कृपा है, मैं तुम्हारे सारे दुखदर्द दूर कर दूंगा, लेकिन!”

“लेकिन क्या गुरुजी?” महिला ने आश्चर्य से पूछा.

“तुम्हें मैं ने जो उपाय बताए हैं, वह कल ही करने होंगे.” बाबा बोला.

“कल तो बुधवार है?” महिला बोली.

“तो क्या हुआ तुम्हें गुरुधारण करनी होगी. यह गुरु सेवा का पहला चरण होगा. उस पर आने वाला खर्च आज ही जमा करवाना होगा,” बाबा बोला.

“गुरुजी, मैं तो पहले ही आप को बहुत रुपया दे चुकी हूं.” महिला बोली.

“यह मसानी चौकी का दरबार है, यहां मोलतोल नहीं होता. माता रानी रूठ जाएंगी. शुद्ध घी के दिए कैसे जलेंगे? 7 दिनों के दुग्ध स्नान पर भी खर्च आएगा. कई पकवानों का भंडारा कैसे होगा? 2-ढाई सौ लोग तो आएंगे ही…” बाबा ने खर्च गिनवाने शुरू कर दिए थे.

इस बीच शोरगुल कुछ अधिक होने लगा था. बाबा ने अचानक भक्त महिलाओं की ओर नजर उठाई. डपटते हुए बोला, “क्या तुम लोगों ने इसे मछली बाजार बना रखा है. चलो, शांत हो जाओ…आगे आओ, अब किस की बारी है?”

दरबार में महिलाओं की लगती थी भीड़

कुछ देर में बाबा के चरणों के पास दूसरी महिला आ कर बैठ गई थी. वह लाल चुन्नी ओढ़े थी. बाबा ने उस की चुन्नी ले कर खुद ओढ़ ली. बोला, “मैं दुल्हन से कम सुंदर नहीं हूं…मसानी बाबा हुआ तो क्या हुआ…मेरी जीभ पर सत्य का वास है. मैं जो बोलता हूं वही होता है. मेरे आशीर्वाद से भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं…”

कैमरापरसन बाबा और भक्त के बीच चल रही गतिविधियों को काफी अच्छी तरह से कैमरे में कैद कर रहा था. कैमरे का फोकस कभी बाबा के चमकते क्रीम कलर के कुरते और चूड़ीदार पाजामे पर होता था तो कभी चौड़ी पट्टियों के मोतियों की माला और उस के साथ चमकते लौकेट को जूम कर दिया जाता था.

ऐसा करते हुए उस ने कुछ सेकेंड के लिए बाबा के पैरों को भी फोकस कर दिया था. पैरों में नवविवाहिता की तरह आलता लगाया था और पायल भी. नीचे से कैमरा जब सीधा चेहरे पर फोकस हुआ, तब उन की आंखों में लगा काजल भी कुछ सेकेंड के लिए रिकौर्ड हो गया.

वीडियो बनाते वक्त कैमरापरसन इस बात का खास ध्यान रखे हुए था कि साथ वाली महिला का चेहरा स्पष्ट नहीं दिखने पाए. दरअसल, वह बाबा के यूट्यूब चैनल के लिए वीडियो बना रहा था. बाबा एक यूट्यूबर भी था, जिस पर 900 के करीब वीडियो थे. उन के फालोअर्स की संख्या भी हजारों में थी. वीडियो देख कर ही हजारों की संख्या में उस के भक्त बन गए थे.

यह सब इसी साल के अगस्त माह के अंतिम सप्ताह की बात है. बाबा के मसानी ‘दरबार’ में मंगलवार और शनिवार को छोड़ कर दूसरे दिन भी भक्त आते थे. उन दिनों में खासखास भक्तों की समस्याओं के समाधान के लिए अनुष्ठान आदि के कार्य होते थे. भक्त महिलाएं परिवार समेत या फिर अकेले अनुष्ठान में भाग लेती थीं. यह सिलसिला बीते कई सालों से चल रहा था.

बाबा के दरबार में अधिकतर भक्त अपने मन की पीड़ा को दूर करने के लिए आते थे. कुछ अपने स्वास्थ्य की समस्याएं भी बताते थे, जिन का इलाज अस्पतालों में चल रहा होता था. बाबा उन्हें स्वस्थ रहने के कुछ घरेलू उपाय बता देता था, फिर समस्या को समूल नष्ट करने के लिए उन से अनुष्ठान करवाने को कहता था. वे उपाय खर्चीले होते थे. खर्च भक्त को वहन करना हाता था. बाबा का कहना था कि संकटग्रस्त काफी लोगों को उस के आशीर्वाद से लाभ मिला है.

पुलिस ने दबोचा ढोंगी बाबा को

अक्तूबर की 10 तारीख को भी मंगलवार ही था. बाबा के दरबार की तैयारी सफाई के साथ शुरू हो चुकी थी. सुबहसुबह एक सफाईकर्मी आ गया था. वह मकान के बाहरी हिस्से में झाड़ू लगा रहा था. इसी बीच द्वारका (नार्थ) थाने की एसआई रश्मि धारीवाल और एसआई धर्मेश एसएचओ संजीव पाहवा के साथ ककरोला गांव में बाबा के मकान पर आ धमके थे. इतनी सुबह 3-3 पुलिस अधिकारियों को देख कर वह हड़बड़ा गया.

घबराहट के साथ बोला, “जी…जी…किस से मिलना है? अभी दरबार नहीं लगा है.”

एसआई रश्मि तीखेपन के साथ सामने सीढिय़ों की तरफ इशारा करते हुए बोली, “ऊपर कौन है? दरवाजा खोलो.”

“जी…जी…मैडम!”

इसी बीच 2 पुलिसकर्मी दरवाजा खोल कर धड़धड़ाते हुए ऊपरी मंजिल पर जा पहुंचे. देखते ही देखते एक कमरे से बाबा को घरेलू कपड़े में ही थाने चलने को कहा. जब बाबा और वहां मौजूद उन के सहयोगी ने ऐसा करने का कारण पूछा, तब एसआई रश्मि गुस्से में बोली, “इस के खिलाफ रेप की शिकायत है.”

“यह क्या कह रही हो तुम? जानती नहीं मैं कौन हूं?” बाबा बोला.

“तू कुछ भी ना है, तेरे खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट है, तुझे जो कुछ कहना है कोर्ट में कहियो…” एसआई डपटते हुए बोले.

दिल्ली में द्वारका (नार्थ) के एक थाने में चर्चित स्वयंभू बाबा बने विनोद कश्यप के खिलाफ 2 महिलाओं ने सितंबर में ही यौन शोषण और ठगी का आरोप लगाया था. उन के द्वारा दर्ज एफआईआर में दोनों महिलाओं में से एक की शिकायत थी, “मैं अपने पति और 2 बच्चों के साथ रहती हूं. अपने परिवार के लिए शांति और अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए बाबा विनोद कश्यप के दरबार में गई थी, जहां मुझे बताया गया कि अगर मैं बाबा द्वारा बताए गए कुछ समाधानों का पालन नहीं करूंगी तो मेरे घर में कई समस्याएं होंगी.”

बाबा पर रेप का लगा आरोप

एक अन्य महिला ने आरोप लगाया था, “मैं ने और मेरे पति ने सब कुछ किया, तब कश्यप ने हमें बताया कि हमें ‘गुरुधारणा’ करनी है, जिस के लिए उन्होंने मुझ से 5 लाख रुपए की मांग करनी शुरू कर दी. मैं ने मना कर दिया. फिर उस ने मुझे 2 सितंबर को सेवा करने के लिए बुलाया. कश्यप अपने कमरे में बैठा था और उस ने मुझे अंदर बुलाया. वह मुझे गलत तरीके से छूने लगा, जिस का मैं ने विरोध किया. फिर उस ने मुझे प्रसाद दिया जिस से मैं बेहोश हो गई, उस के बाद उस ने मेरे साथ बलात्कार किया.”

पुलिस उस तथाकथित मसानी बाबा को थाने ले आई

थाने में हुई पूछताछ से पता चला कि बाबा का असली नाम विनोद कश्यप है. वह एक समय में दिल्ली के एक हौस्पिटल में नर्स की नौकरी करता था. वेतन 25 हजार रुपए था. अचानक उस ने यूट्यूबर बनने की सोची.

मन में नए तरह का वीडियो बनाने का विचार आया. इस के लिए उस ने पहले सैंकड़ों तरह के यूट्यूब देखे. उस ने यह मालूम किया कि लोगों को किस तरह के वीडियो देखने में अधिक दिलचस्पी है और किस में अधिक सब्सक्राइबर बन जाते हैं. इस तरह यूट्यूब की छानबीन करने के सिलसिले में पता चला कि लोग आध्यात्मिक वीडियो खूब देखते हैं और उस से अच्छी कमाई भी होती है. फिर या था उस ने भी आध्यात्मिक गुरु का नकली चोला पहन कर वीडियो बनाने शुरू कर दिए.

कुछ नया करने के लिए बाबा का एक चमत्कारी रूप धारण किया. अद्र्धनारीश्वर बन कर महिलाओं की निजी समस्याएं खत्म करने के दावे के वीडियो बना कर अपलोड करने लगा. वीडियो को अपने अजीबोगरीब हरकतों से नाटकीय रूप दिया. कभी भक्तिभाव का प्रवचन तो कभी विभिन्न तरह की समस्याओं में लाइलाज रोगों का बखान कर उन के शर्तिया समाधान की भी बात कही.

मसानी बाबा के नाम से हो गया मशहूर

जल्द ही 33 वर्षीय विनोद कश्यप मसानी बाबा के नाम से एक चर्चित यूट्यूबर बन गया. जल्द ही उस के 34.5 हजार फालोअर्स हो गए. उन में हजारों की संख्या में सब्सक्राइबर थे. वे बाबा के नए वीडियो का इंतजार करते रहते थे. अपनी इस सफलता से उस ने अस्पताल की नौकरी छोड़ दी. स्वयंभू बाबा की आध्यात्मिकता अपनाने के बाद द्वारका क्षेत्र के ककरोला गांव में अपने दोमंजिला घर में ‘दरबार’ लगाना शुरू कर दिया.

उस ने दावा किया कि लोगों की व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने के लिए उसे ‘प्रभु का आशीर्वाद’ प्राप्त है. जल्द ही वह लोकप्रिय हो गया. उस के अनुयाई लगातार बढऩे लगे. सप्ताह भर में लगभग 400 ‘संकटग्रस्त’ लोग आशीर्वाद लेने के लिए उस के घर आने लगे. उसी बाबा पर यौन शोषण और ठगी का आरोप लगा था.

डीसीपी (द्वारका) हर्षवर्धन के अनुसार, विनोद कश्यप को उस के दरबार में 2 महिला भक्तों की शिकायतों के आधार पर यौन उत्पीडऩ के 2 मामलों में गिरफ्तार किया गया. दोनों आरोपियों के मामलों में विनोद कश्यप पर यह आरोप लगाया गया कि उस ने महिला भक्तों को समस्याओं में मदद करने के बहाने बुलाया और उन से कहा कि उन्हें ‘गुरु सेवा’ की जानी चाहिए. फिर उस ने महिलाओं का यौन उत्पीडऩ किया और उन्हें घटना का खुलासा न करने की धमकी दी.

महिलाएं जब इस के पास अपनी समस्याएं ले कर आती थीं, तब वह और धीरेधीरे उन का हमदर्द बन कर दोस्ती कर लेता था और फिर इस की आड़ में गंदा खेल खेलता था. उन्हें शिकार बनाने के लिए मिठाई आदि में नशीली दवा मिला कर खिला देता था. फिर रेप करता और ब्लैकमेल करता था. महिलाएं डर जाती थीं.

पुलिस ने भादंवि की धाराओं 326 और 506 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर पाखंडी बाबा विनोद कश्यप को कोर्ट में पेश कर 3 दिन की कस्टडी रिमांड पर ले लिया. उस पर आरोप लगाने वाली महिलाओं में से एक ने मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दिया. जिस में विनोद के खिलाफ आरोप दोहराए गए. पुलिस की जांच में पाया गया कि वह शादीशुदा है और शादी 2015 में हुई थी. उस के 3 बच्चे भी हैं.

एल्विश यादव : जहर भी, ड्रग्स भी, सांप भी, लड़कियां भी – भाग 3

एल्विश के खिलाफ नोएडा सेक्टर-49 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 9, 39, 48ए, 49, 50, 51 और भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 120बी (अपराध की साजिश में शामिल) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. एफआईआर में कहा गया है कि उस के द्वारा रेव पार्टी में जहरीले सांपों को लाया जाता था, साथ ही विदेशी लड़कियां भी इस पार्टी में शामिल होती थीं.

आईपीसी की धारा 120बी की बात की जाए तो इस के तहत 6 महीने की सजा या जुरमाना या दोनों हो सकते हैं. वहीं वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की अलगअलग धाराओं के तहत दर्ज मामलों की बात करें तो इस में 3 साल तक की सजा हो सकती है और 10 हजार रुपए तक का जुरमाना लग सकता है. इस के अलावा आरोपी दूसरी बार भी ऐसा ही अपराध करेगा तो उसे 7 साल तक की सजा और 25 हजार रुपए तक जुरमाना लगाया जा सकता है.

पुलिस की भूमिका रही संदिग्ध

इस मामले को ले कर पुलिस की भूमिका भी कुछ कम संदिग्ध नहीं रही. उस की गिरफ्तारी को ले कर 3 राज्यों की पुलिस सक्रिय रही जरूर, लेकिन एल्विश भी अपनी पहुंच का फायदा उठा कर अपने बचाव के रास्ते निकालता रहा.

आखिर में यूपी और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को इस मामले में दखल देनी पड़ी. उस के बाद एल्विश को नोएडा पुलिस के सामने पेश किया जा सका. उस से 8 नवंबर की आधी रात को 3 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ हुई.

आधी रात के करीब 2 बजे एल्विश यादव कोतवाली सेक्टर 20 पहुंचा था और वहां उस से पुलिस की टीम ने पूछताछ की. इस दौरान सांपों का जहर सप्लाई करने के मामले में कई सवाल पूछे गए. उसे 7 नवंबर को नोएडा पुलिस ने पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया था.

दोबारा पूछताछ करने की बात कह कर उसे छोड़ दिया गया, लेकिन गिरफ्तार आरोपी राहुल की रिमांड मिलने के बाद पुलिस एल्विश को उस के सामने बिठा कर पूछताछ करना चाहती है. इस मामले में गिरफ्तार पांचों आरोपियों की पुलिस कस्टडी रिमांड की सुनवाई कोर्ट में जारी की है और इस की पुलिस टीम जांच में जुटी हुई है.

नोएडा पुलिस ने जिन 5 सपेरों को 9 सांपों के साथ गिरफ्तार किया था. इन के पास सांप रखने का कोई लाइसेंस भी नहीं मिला था. वन विभाग की तरफ से कुछ सांपों के लिए लाइसेंस भी दिया जाता है. पुलिस अब इस मामले में विधिक राय ले कर आगे की कार्यवाई कर रही है और इस के बाद ही अलग धाराएं जोड़ी जा सकती हैं.

सांप के जहर का नशा और असर

नशे के आदी हो चुके लोगों के बीच सांप के जहर वाली नशीली दवा का चलन अब तेजी से बढ़ा है. रेव पार्टियों में सांपों के जहर का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है. इसे नशेड़ी मार्फीन और कोकीन जैसे ड्रग्स की तरह ही इसे इस्तेमाल करते हैं. हालांकि स्नेक वेनम ड्रग का इस्तेमाल आम लोगों की जानकारी से परे रहा है.

नैशनल इंस्टीट्यूट औफ हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक लोग मनोरंजन के लिए और अन्य नशीले पदार्थों के विकल्प के रूप में सांप और बिच्छू जैसे सरीसृपों के जहर का उपयोग करते रहे हैं. नैशनल लाइब्रेरी औफ मैडिसिन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में ऐसे कई ड्रग्स का चलन बढ़ रहा है, जो अल्कोहल एडिक्शन को बढ़ाते हैं. सांप का जहर भी इसी कैटेगरी में आता है. इन्हें सायकोएक्टिव पदार्थ कहते हैं. गांवों से लेकर शहरों तक इन का इस्तेमाल किया जा रहा है.

कुछ साल पहले भारत में एक ऐसा भी मामला सामने आया था, जिस में 28 साल के एक युवा ने सांप का जहर पी लिया था. इस की शुरुआत अल्कोहल में सांप का जहर मिलाने से हुई थी. पहले उस ने शराब और जहर को मिला कर पीना शुरू किया, फिर एडिक्शन इतना बढ़ा कि उस ने सांप का जहर ही पी लिया.

जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, इस के लिए सांपों की कुछ खास प्रजातियों का इस्तेमाल किया जाता है. इस में नाजानाजा (कोबरा), औफियोड्रायस वर्नेलिस (ग्रीन स्नेक) और बंगेकरस केरिलियुस (क्रामन करैत) शामिल हैं. मुंबई और मंगलुरू समेत देश के कई शहरों में सांप के जहर के एडिक्शन के मामले सामने आ चुके हैं.

इंडियन जर्नल औफ फिजियोलौजी ऐंड फार्मेकोलौजी की रिपोर्ट के अनुसार कांटेदार पूंछ वाली छिपकलियों, जहरीले शहद, स्पैनिश मक्खियों और कैंथराइड्स की जली हुई लाशों का इस्तेमाल रेव पार्टियों में डोपिंग उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है.

ज्यादातर लोग लंबे समय तक नशे में रहने के लिए रेव पार्टियों में सांप के जहर का सेवन करते हैं. सांप के जहर का नशा करने के लिए लोग आमतौर पर सांप को अपने होंठों के पास रख कर खुद को डसवाते हैं. लोग अपनी जीभ या कान के निचले हिस्से पर भी सांप से डसवाते हैं.

रेव पार्टियों में सामान्य ड्रग्स की एक गोली की कीमत 2 से 5 हजार के बीच होती है, वहीं सांप के जहर से बनी एक गोली की कीमत 25 हजार से भी ज्यादा होती है. जो लोग सांप के जहर का सेवन करते हैं वे पहले से ही विभिन्न मनोदैहिक पदार्थों का उपयोग कर रहे होते हैं.

अधिकांश लोग हर समय नशे में रहने के लिए सांप के जहर को पसंद करते हैं. जब जहर व्यक्ति के रक्त में मिल जाता है तो यह सेरोटोनिन, ब्रैडीकाइनिन, पेप्टाइड्स और प्रोस्टाग्लैंडिंस छोड़ता है, जिन का शामक प्रभाव होता है.

हालांकि सांप के जहर का मानव शरीर और मस्तिष्क पर कोई न्यूरोटौक्सिक प्रभाव नहीं होने का कोई स्पष्ठीकरण नहीं दिया गया है. सांप के काटने के बाद होने वाला मनोदैहिक प्रभाव हर व्यक्ति में अलगअलग होता है, लेकिन इस का प्रभाव मार्फीन के समान होता है. सांप के काटने के बाद लक्षणों में सुस्ती, धुंधली दृष्टि, चक्कर आना, उनींदापन, तीव्र निरंतर उत्तेजना और घबराहट आदि शामिल हैं.

सांप के जहर को सायकोएक्टिव ड्रग की कैटेगरी में रखा गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक, सायकोएक्टिव ड्रग सीधे दिमाग पर असर छोड़ते हैं. अल्कोहल और निकोटिन भी इसी कैटेगरी में आते हैं. कानूनी तौर पर इन का इस्तेमाल दवा निर्माण और रिसर्च के क्षेत्र में किया जाता है. बिना डाक्टरी सलाह या प्रिस्क्रिप्शन के इसे खरीदना या किसी को देना कई देशों में अपराध के दायरे में आता है.

इस तरह के ड्रग का इस्तेमाल सीधे तौर पर मौत का खतरा बढ़ाता है. डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह के ड्रग का इस्तेमाल मौत की वजह बनता है. 15 से 64 आयुवर्ग की दुनिया की 5.5 फीसदी (27 करोड़) आबादी ने पिछले साल ऐसे सायकोएक्टिव ड्रग का इस्तेमाल किया. इस में सालाना 5 लाख लोगों की मौत हो गई, जिस में साढ़े 3 लाख पुरुष और डेढ़ लाख महिलाएं थीं.

एल्विश यादव : जहर भी, ड्रग्स भी, सांप भी, लड़कियां भी – भाग 2

कौन हैं एल्विश यादव

यूट्यूबर से प्रसिद्धि पा कर बिगबौस ओटीटी बिगबौस-2 के विजेता बने एल्विश यादव कोई अपरिचित नाम नहीं है. उस की एक विशेष पहचान यूट्यूबर के साथसाथ एक वीडियोग्राफर या मनोरंजनकर्ता के रूप में भी है.

मूलरूप से हरियाणा के गुरुग्राम का रहने वाला एल्विश यादव 26 साल का (जन्म की तारीख 14 सितंबर, 1997) है. वह एक मशहूर स्ट्रीमर और गायक है. हालांकि उस के साथ कई विवाद भी जुड़े हुए हैं. उस के संबंध मनोरंजन जगत से ले कर राजनीतिक जगत से भी है.

अमीरजादे की जिंदगी जीने वाले स्टाइलिश एल्विश यादव की आमदनी यूट्यूब के अलावा दूसरे कई स्रोतों से भी होती है. कक्षा 1 से पहले उस का नाम सिद्धार्थ था, लेकिन उस की बड़ी बहन ने अनुरोध किया था कि उस का नाम एल्विश रखा जाए. अपनी बहन के अचानक निधन के बाद उस ने उस की इच्छा का सम्मान करने के लिए अपना नाम बदल कर एल्विश रख लिया.

एल्विश यादव के सितारे अचानक तब बुलंद हो गए थे, जब उस ने बिगबौस ओटीटी 2 में वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट के तौर पर एंट्री की थी. अभिषेक मल्हान, मनीषा रानी, बेबिका धुर्वे और पूजा भट्ट के साथ 5 प्रतियोगियों में एक था. शो में आते ही वह छा गया था. घर घर में फेमस हो गया था. विनर बन कर तो उस ने इतिहास रच दिया था.

एल्विश ने 2016 में अपना यूट्यूब चैनल बनाया था और तब से वह फेमस होता चला गया. उस के देश भर में डेढ़ करोड़ से ज्यादा फालोअर्स हैं. उस के यूट्यूब पर 14 मिलियन से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. वह लगभग 7.5 मिलियन सब्सक्राइबर्स के साथ एक और चैनल, एल्विश यादव व्लौग्स चलाता है. 16 मिलियन से ज्यादा फालोअर्स के साथ यादव की इंस्टाग्राम पर भी फैन फालोइंग है. एल्विश सेलेब्स की रोस्टिंग वीडियो बना कर सब से ज्यादा फेमस हुआ था.

करोड़ों के मालिक एल्विश के पास हरियाणा के गुरुग्राम में 14 करोड़ की कीमत का चारमंजिला आलीशान घर है. उस के पास तमाम लग्जरी कारें हैं जिन में पोर्श, हुंडई और फौर्च्युनर जैसी अनेक गाड़ियां शामिल हैं. हाल ही में एल्विश ने दुबई में भी करोड़ों का घर खरीदा है. यूट्यूबर ने अपने दुबई के घर का होम टूर भी कराया था.

एक अनुमान के मुताबिक उस की मासिक कमाई करीब 10-15 लाख रुपए और नेटवर्थ करीब 40 करोड़ रुपए बताई जाती है. उस के 2 यूट्यूब चैनल हैं. इन के अलावा वह कपड़ों के ब्रांड सिस्टम क्लोदिंग का मालिक है. वह अपने पापा राम अवतार सिंह यादव और मम्मी सुषमा यादव के साथ गुरुग्राम में ही रहता है.

विवादों में रहे हैं एल्विश यादव

वन्य जीव अधिनियम के तहत केस दर्ज होने के बाद उस पर सांपों की तस्करी, उन का जहर सप्लाई करने और गैरकानूनी रेव पार्टी का नया विवाद जुड़ गया है. हालांकि इन आरोपों को एल्विश यादव ने निराधार बताया है. इस से पहले भी उस का नाम कई विवादों में शामिल रहा है.

गमला चोरी केस से ले कर उस का नाम अभिनेता सलमान खान को रोस्ट करने तक के मामले को ले कर विवाद में आ चुका है. इतना ही नहीं, उस पर कई बार सोशल मीडिया के जरिए सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप लग चुके हैं.

सोशल मीडिया पर 2023 मार्च की शुरुआत में एक वीडियो खूब वायरल हुआ था, जिस में एक एसयूवी कार से कुछ लोग जी20 के लिए लगाए गए गमलों को दिल्लीगुड़गांव हाईवे के शंकर चौक से चुराते हुए दिखे थे. इस कार पर वीआईपी नंबर प्लेट लगी हुई थी, जिस के बाद सोशल मीडिया पर इस वीडियो को शेयर करते हुए दावा किया जाने लगा कि जिस कार से गमले चोरी किए गए, वह एल्विश यादव की थी या एल्विश उसे इस्तेमाल करता था.

एल्विश ने इन आरोपों से साफ इंकार कर दिया था, जिस के बाद हरियाणा पुलिस ने इस मामले में मनमोहन यादव नाम के शख्स को गिरफ्तार किया था.

साल 2019 में एल्विश ने सलमान खान पर एक बड़ा रोस्ट वीडियो बनाया था, जिस में उस ने कहा था कि पूरी बौलीवुड इंडस्ट्री सलमान खान से डरती है. जब उस ने विवेक ओबेराय का करिअर खा लिया तो कोई सपोर्ट में नहीं आया. सलमान ने इंडस्ट्री में सिर्फ महिलाओं को लांच किया है. वह जरूरतमंदों की मदद करने वाला अभिनेता है और उन पर अपनी कार भी चढ़ाता है. उस पर हिट ऐंड रन और काले हिरण का केस चल रहा है और वह अभी भी खुलेआम घूम रहा है. वह सूरज पंचोली जैसे अन्य अपराधियों की भी मदद करता है.

इस के साथ उस ने यह भी दावा किया था कि उसे साल 2019 में बिगबौस का औफर मिला था, लेकिन औडिशन राउंड पास करने के बावजूद उस ने इसे नहीं किया. हालांकि, बिगबौस ओटीटी 2 में सलमान खान ने एल्विश को अच्छे से लताड़ लगाई थी. एल्विश यादव की तरह ध्रुव राठी भी यूट्यूबर है. ट्विटर (अब एक्स) पर अपनीअपनी आइडियोलौजी को ले कर दोनों के बीच जम कर विवाद हो चुका है.

एल्विश यादव ने ध्रुव राठी को एक्सपोज करते हुए एक वीडियो शेयर किया था, जिस में उस ने ध्रुव को सरकार के खिलाफ उस की क्रिटिकल अप्रोच को ले कर फटकार लगाई थी. इस के साथ उस ने ध्रुव राठी पर उस के फालोअर्स को बरगलाने का भी आरोप लगाया था.

अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने एल्विश यादव के खिलाफ 2021 में एफआईआर दर्ज कराई थी. शिकायत में स्वरा ने यूट्यूबर पर उस की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था. स्वरा का कहना था कि यूट्यूबर ने न सिर्फ फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ के सीन को ले कर उन की इमेज खराब करने की कोशिश की, बल्कि सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ आपत्तिजनक हैशटैग भी ट्रेंड कराए.

यहां पर आप को बता दें कि एक समय पर एल्विश यादव ने लक्ष्य चौधरी के साथ मिल कर कुशा कपिला और अन्य फेमस यूट्यूबर को रोस्ट किया था.

स्नेक वेनम ड्रग सप्लाई का आरोप

रेव पार्टीज में स्नेक वेनम ड्रग इस्तेमाल को ले कर बुरे फंसे एल्विश पर लगातार शिकंजा कसता चला गया. उस पर और उस के 5 साथियों पर सांप की तस्करी के आरोप लगे हैं. उस के गैंग से 20 मिलीलीटर सांप का जहर, 9 जहरीले सांप बरामद हुए हैं. आरोप है कि इन का इस्लेमाल रेव पार्टी के दौरान एल्विश ने किया है. एफआईआर के मुताबिक उन के पास से 5 कोबरा, एक अजगर और एक दोमुंहा सांप, एक रैट स्नेक बरामद किया गया.

एल्विश यादव के खिलाफ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत केस दर्ज किए गए हैं. वन्य जीवन कानून के अनुसार किंग कोबरा, मोनोकल्ड कोबरा, स्पेक्टैकल्ड कोबरा और रसेल वाइपर जैसे जहरीले सांप वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 2 में रखे गए हैं.

ऐसे सांपों को पालना या उन का जहर निकालना, उन के खिलाफ क्रूरता है, जिस के लिए कठिन से कठिन सजा मिल सकती है. ऐसे सांपों से छेड़छाड़ करने पर अधिकतम 3 से 7 साल की कैद हो सकती है. आर्थिक दंड भी एक हजार रुपए तक लगाया जा सकता है. यह राशि बढ़ाई भी जा सकती है.

रैट स्नेक और चेकर्ड कीलबैक और औलिव कीलबैक जैसे पानी वाले सांपों को भी अनुसूची 2 के तहत वर्गीकृत किया गया है. अगर इन्हें पाला जाता है, चोट पहुंचाई जाती है या इन्हें खतरे में डाला जाता है तो 10 हजार रुपए का जुरमाना या 7 साल तक की कैद हो सकती है.

एल्विश यादव : जहर भी, ड्रग्स भी, सांप भी, लड़कियां भी – भाग 1

पिछले दिनों सोशल मीडिया में प्रतिबंधित सांप के साथ एक वीडियो वायरल हो गया था. वीडियो में हरियाणा का बहुचर्चित रैपर एल्विश यादव नजर आ रहा था. वह ओटीटी बिगबौस 2 का विजेता रहा है. उस के गानों को ले कर लोकप्रियता युवाओं में जबरदस्त बनी हुई है. साथ ही वह सिनेमा और टेलीविजन के सितारों को ले कर अकसर विवादों में भी रहा है. इस की खबर ज्यों ही पीपुल्स फार एनिमल्स (पीएफए) को मिली, उस के कान खड़े हो गई. संस्था की टीम चौकन्नी हो गई.

दरअसल, संस्था को इस की संस्थापक पूर्व भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री रह चुकीं मेनका गांधी की सख्त हिदायत रही है कि किसी भी एनिमल पर अत्याचार या अनैतिक ढंग से इस्तेमाल करने की कहीं से भी कोई शिकायत मिले, इसे रोकने की पहल के साथसाथ स्थानीय थाने में इस की तुरंत शिकायत की जानी चाहिए.

प्रतिबंधित एनिमल सांप के दुरुपयोग की सूचना मिलते ही पीएफए की टीम ने 15 अक्तूबर, 2023 को गुरुग्राम पुलिस के आयुक्त से शहर के मशहूर रैपर एल्विश समेत अन्य लोगों के खिलाफ शिकायत कर दी.

शिकायत में पीएफए के अधिकारी सौरभ गुप्ता ने बताया कि एल्विश यादव ने अपने साथियों के साथ मिल कर गुरुग्राम में 25 मिनट का एक वीडियो बनाया है. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है. इसे उन के 16 मिलियन से अधिक फालोअर देख चुके हैं. इस शिकायत के बावजूद 2 हफ्ते से अधिक दिनों तक पुलिस द्वारा कोई ऐक्शन नहीं लिया गया. इस संदर्भ में किसी भी तरह की कार्यवाई नहीं की गई. इसे देखते हुए पीएफए ने नए सिरे से पहल की.

सौरभ गुप्ता ने एक बार फिर नोएडा सेक्टर-49 थाने की पुलिस से संपर्क किया. इस शिकायत के साथ एफआईआर दर्ज करवाई कि उसे यूट्यूबर एल्विश यादव और उस के साथियों के द्वारा जिंदा सांपों के साथ दिल्ली एनसीआर के फार्महाउस में वीडियो शूट करवाने की सूचना मिली है.

वह गैरकानूनी रूप से पार्टियों में इन सांपों और उन के जहर का भी इस्तेमाल करता है. गुप्ता ने पुलिस को यह भी जानकारी दी कि एल्विश यादव की रेव पटियां होती थीं, जिस में विदेशी लड़कियों की भी भरमार रहती थी. इन पार्टियों में विदेशी लड़कियों को बुला कर स्नेक वेनम और दूसरे ड्रग्स का सेवन किया जाता था.

बताया जाता है कि यह शिकायत एनजीओ पीएफए ने जुटाए गए तथ्यों के आधार पर की थी. उस के एक मुखबिर ने एल्विश यादव से संपर्क कर नोएडा में रेव पार्टी करने व सांपों और कोबरा वेनम का इंतजाम करने के लिए कहा था. जिस पर उस ने अपने एजेंट का नाम बताया था. उस का मोबाइल नंबर देते हुए कहा था कि इस से उस का नाम ले कर बात कर लें.

मुखबिर ने उस कथित एजेंट से एल्विश यादव का नाम लेकर बात की तो वह पार्टी करने को तैयार हो गया. उस ने कहा कि आप जहां कहें, मैं सांपों के साथ अपने साथियों को ले कर आ जाऊंगा. इस तरह से एल्विश नोएडा 51 के सेवरोन बैंक्विट हौल में आने को तैयार हो गया.

इस जानकारी के आधार पर ही इस की सूचना नोएडा के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) को दी गई. नोएडा पुलिस ने वन विभाग के सहयोग से जाल बिछा दिया. पहले से तय समय के मुताबिक 3 नवंबर, 2023 को सांपों के साथ सपेरे सेवरोन बैंक्वेट हाल पहुंच गए. वहां पहले से मौजूद ग्राहकों ने सांपों को देखने की इच्छा जताई. सपेरों ने जैसे ही सांप दिखाए, वैसे ही वहां पुलिस भी पहुंच गई और उन्हें सबूत के साथ रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया गया.

उन की पहचान दिल्ली के टीटूनाथ, राहुल, जयकरन, नारायण और रविनाथ के रूप में हुई. उन्होंने ही पूछताछ में एल्विश यादव का नाम लिया और आरोप लगा दिया कि वह उस के कहने पर ही रेव पार्टी में सांप और सांप का जहर लाते थे.

पुलिस को मिला एक महत्त्वपूर्ण औडियो

उस के बाद ही नोएडा पुलिस ने एनजीओ की शिकायत पर सांप मामले में एल्विश यादव को भी आरोपी बना लिया. साथ ही एल्विश यादव के खिलाफ इस आधार पर नामजद एफआईआर कर दी गई. बाद में इस मामले को नोएडा के सेक्टर-20 थाने में ट्रांसफर कर दिया गया. इस की जांच इंसपेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी को सौंप दी गई.

गिरफ्तारों में दिल्ली के मोलड़बंद के रहने वाले राहुल ने दावा किया कि वह एल्विश यादव के कहने पर सांपों की सप्लाई करता था. पुलिस को जांच में उस के कई आडियो भी मिले, जिस में राहुल और किसी एनजीओ कर्मी से फोन पर बातचीत थी. यह बातचीत राहुल यादव और पीएफए टीम के मेंबर के बीच हुई थी. पीएफए ने कई सवाल किए थे, जिन के जवाब से पुलिस ने अनुमान लगाया कि एल्विश यादव की पार्टी में आखिर क्या होता था? बातचीत कुछ इस तरह हुई थी

“;…आप मुझे न, 1-2 वीडियो एल्विश भाई के भी भेज देना, जो शो किया होगा उस के. आप ने वो शो तो बहुत बढ़िया किया होगा.”

पीएफए मेंबर की रिक्वेस्ट पर राहुल यादव बोला, “;वो प्रोग्राम तो मैं ने किया था, लेकिन मैं बंदों को छोड़ कर वापस आ गया था. वहां पर विदेशी ही थे सारे. वो किसी विदेशी की बर्थडे पार्टी थी.”

“;नोएडा में पार्टी थी या दिल्ली में?” पीएफए मेंबर ने सवाल किया.

“;नहीं, नहीं… छतरपुर फार्महाउस में पार्टी थी, दिल्ली में.” राहुल बोला.

“;नोएडा में भी तो हुई थी पार्टी, वो क्या कहते हैं रेव पार्टी…” पीएफए मेंबर ने पार्टी के बारे में और अधिक बातें जाननी चाही.

“;हांहां, वो क्या है न कि प्रोग्राम करने वाले लड़के छोड़ कर आया था, मैं वीडियो नहीं बना पाया था. इस टाइप का प्रोग्राम मेरे से ऊपर कोई करता नहीं है.” राहुल बोला.

“;हूं..” पीएफए मेंबर धीमी आवाज में बोला.

“;दिल्ली में बहुत चैकिंग होती है, इसलिए थोड़ा संभल कर रहना होता है. हमारे पास हर तरह का सांप है. सब का जहर निकाल दिया है, खतरे की कोई बात नहीं है. हमारे पास अजगर, ब्लैक कोबरा, स्माल कोबरा, घोड़ा पछाड़ होगा, पदम नाग होगा.” राहुल बोला.

“;तुम जो एल्विश के यहां करते हो वहां कैसे ले जाते हो?” पीएफए मेंबर ने सवाल किया.

“;वहां पर क्या है, उन का प्रोग्राम रहता है विदेशियों वाला, जो उन का बुक करता है. उन का कौंटेक्ट भी तो कितना बड़ा है. उन के (एल्विश) वहां तो पुलिस वाले भी नहीं आते न. जब हम प्रोग्राम करने जाते हैं छतरपुर में, वहां सब को पता होता है कि उन के फार्महाउस में प्रोग्राम हो रहा है. लेकिन हां, ज्यादा देर नहीं होता, सिर्फ आधा घंटा. उस के बाद सब से पहले हमारी टीम को वो वहां से निकालते हैं. इन चीजों का रिस्क वो भी नहीं पालते हैं.” राहुल ने हिदायत के साथसाथ पार्टी के बारे में संक्षिप्त जानकारी भी दे दी थी.

इसी जानकारी को सबूत बना कर पीएफए ने एल्विश यादव के खिलाफ कार्यवाई की थी.

दुश्मन प्यार के

राजू को पड़ोस में रहने वाली सर्वेश से प्यार हुआ तो हर वक्त वह उस की एक झलक पाने की फिराक में रहने लगा. पूरा पूरा दिन वह उसे देखने के लिए दरवाजे पर चारपाई डाले पड़ा रहता. वह उस से मिल कर अपने दिल की बात कहना चाहता था. मौके तो उसे तमाम मिले, लेकिन उन मौकों पर वह उस से दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं कर सका.

राजू जिला कांशी रामनगर की कोतवाली खोरो के गांव दतलाना के रहने वाले रामवीर के 2 बेटों में छोटा बेटा था. बड़े बेटे अमर की शादी हो गई थी. शादी के बाद वह खेती के कामों में पिता की मदद करने लगा था. राजू ने हाईस्कूल कर के भले पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन घर का लाडला होने की वजह से घर का कोई काम नहीं करता था. घर का कोई आदमी उस से किसी काम के लिए कहता भी नहीं था.

मांबाप के लिए वह अभी भी बच्चा था, इसलिए वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला उन की आंखों से ओझल हो, इसलिए राजू ने दिल्ली जा कर नौकरी करने की इच्छा जताई तो उन्होंने उसे वहां भी नहीं जाने दिया. क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला बेटा अभी से किसी की गुलामी करे. इसलिए कोई कामधाम न होने की वजह से राजू दिनभर इधरउधर भटकता रहता था.

चारपाई पर पड़ेपड़े ही उस की नजर सर्वेश पर पड़ी थी तो कोई कामधाम न होने की वजह से उस की ओर आकर्षित हो गया था. कोई कामधाम न होने की ही वजह से हुआ था. जबकि सर्वेश को वह बचपन से ही देखता आया था. पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

सर्वेश राजू के पड़ोस में ही रहने वाले सुरेश की बेटी थी. वह कासगंज में किसी मशीनरी स्टोर पर नौकरी करता था, इसलिए सुबह टे्रन से कासगंज चला जाता था तो रात को ही लौटता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी सर्वेश तथा एक बेटा नीरज था. अपने इस छोटे से परिवार को सुखी रखने के लिए वह रातदिन मेहनत करता था.

पड़ोसी होने के नाते सर्वेश और राजू का आमनासामना होता ही रहता था. लेकिन जब से उस के लिए राजू के मन में आकर्षण पैदा हुआ, तब से सर्वेश के सामने पड़ने पर उस का दिल तेजी से धड़कने लगता. राजू अब सर्वेश के लिए बेचैन रहने लगा था. बेचैनी बरदाश्त से बाहर होने लगी तो एक दिन सर्वेश जब अपने दरवाजे पर खड़ी थी तो उस के पास जा कर राजू ने कहा, ‘‘सर्वेश, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं. अगर आज शाम को तुम प्राइमरी स्कूल में आ जाओ तो मैं वह बात कह कर अपने दिल का बोझ हलका कर लूं.’’

‘‘जो बात कहनी है, यहीं कह दो. अंधेरे में वहां जाने की क्या जरूरत है?’’ सर्वेश ने बोली.

‘‘नहीं, वह बात यहां नहीं कही जा सकती. शाम को स्कूल में मिलना.’’ कह कर राजू चला गया.

सर्वेश इतनी भी बेवकूफ नहीं थी कि वह स्कूल में बुलाने का मकसद न समझती. वह सोच में पड़ गई कि उस का वहां जाना ठीक रहेगा या नहीं? वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. उस के मन में भी लालसा उठ रही थी कि वह स्कूल जा कर देखे तो राजू उस से क्या कहता है? वहां जाने में हर्ज ही क्या है? शाम होतेहोते उस ने स्कूल जा कर राजू से मिलने जाने का निर्णय कर लिया.

शाम को वह प्राइमरी स्कूल पहुंची तो राजू उसे वहां इंतजार करता मिल गया. राजू ने उस के पास आ कर कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘लेकिन अब बताओ तो सही कि तुम ने मुझे यहां बुलाया क्यों है?’’

राजू ने उस का हाथ पकड़ कह कहा, ‘‘सर्वेश, मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

सर्वेश को पता था कि राजू कुछ ऐसी ही बात कहेगा. लेकिन अभी वह इस के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘यह अच्छी बात नहीं है. अगर यह बात मेरे पापा को पता चल गई तो वह दोनों को ही मार डालेंगे.’’

‘‘अब प्यार हो गया है तो मरने से कौन डरता है. तुम भले ही मुझ से प्यार न करो, लेकिन मैं तुम से प्यार करता रहूंगा.’’ राजू ने कहा.

राजू की इस दीवानगी पर सर्वेश ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो? मुझे मरवाना चाहते हो क्या?’’

‘‘प्यार में आदमी पागल ही हो जाता है. सर्वेश सचमुच मैं पागल हो गया हूं. अगर तुम ने मना किया तो मैं मर जाऊंगा.’’ राजू रुआंसा सा हो कर बोला.

प्यार सचमुच दीवाना होता है. इस का नशा दिल और दिमाग में चढ़ने में देर कहां लगती है. राजू ने सर्वेश की जवान उमंगों को हवा दी तो उस पर भी प्यार का सुरूर चढ़ने लगा. उसे राजू की बात भा गई. प्रेमी के रूप में वह उसे अच्छा लगने लगा. लेकिन उसे मांबाप का भी डर लग रहा था. इस के बावजूद उस ने अपना हाथ राजू की ओर बढ़ा दिया.

उसी दिन के बाद यह प्रेमी युगल जिंदगी के रंगीन सपने देखने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते. इन मुलाकातों में दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. लेकिन एक बात का डर तो था ही कि वे कसमें चाहे जितनी खाते, यह इतना आसान नहीं था. मुलाकातों में दोनों इतने करीब आ गए कि उन के शारीरिक संबंध भी बन गए.

सर्वेश जानती थी कि उस के मांबाप उस की शादी किसी अच्छे परिवार के कमाने वाले लड़के से करना चाहते हैं. जबकि राजू कोई कामधाम नहीं करता था. वह ज्यादा पढ़ालिखा भी नहीं था. इसलिए किसी दिन एकांत में मिलने पर उस ने राजू से कहा, ‘‘राजू, अगर तुम मुझे पाना चाहते हो तो अपने पिता की खेती संभालो या फिर कोई नौकरी कर लो. तभी हमारे घर वाले मेरा हाथ तुम्हें दे सकते हैं.’’

गांव में कोई नौकरी तो थी नहीं, खेती वह कर नहीं सकता था. इसलिए उस ने कहा, ‘‘सर्वेश, मैं तुम से दूर जाने की सोच भी नहीं सकता. खेती मुझ से हो नहीं सकती. लेकिन तुम कह रही हो तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा.’’

राजू और सर्वेश अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचा पाते, उस के पहले ही लोगों की नजर उन पर पड़ गई. गांव के किसी आदमी ने दोनों को एकांत में मिलते देख लिया. उस ने यह बात सुरेश को बताई तो घर आ कर उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने पत्नी को भी डांटा और सर्वेश को भी.

उस ने सर्वेश को चेतावनी भी दे दी, ‘‘अब तुम अकेली कहीं नहीं जाओगी.’’

सुरेश जानता था कि बेटी इतनी आसानी से नहीं मानेगी. इसलिए खाना खा कर वह पत्नी मोहिनी के पास लेटा तो चिंतित स्वर में बोला, ‘‘मुझे लगता है, अब हमें सर्वेश की शादी कर देनी चाहिए. क्योंकि अगर कोई ऊंचनीच हो गई तो हम गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रह पाएंगे.’’

‘‘मैं भी यही सोच रही हूं. आप लड़का देख कर उस की शादी कर दीजिए. सारा झंझट अपने आप खत्म हो जाएगा.’’ मोहिनी ने कहा.

सुरेश ने रामवीर से भी कहा था कि वह राजू को सर्वेश से मिलने से रोके. गांव का मामला था, इसलिए रामवीर को राजू को डांटाफटकारा ही नहीं, गांव के लड़कों के साथ दिल्ली भेज दिया. वे लड़के पहले से ही दिल्ली में रहते थे. उन्होंने राजू को भी दिल्ली में नौकरी दिलवा दी.

राजू दिल्ली चला गया तो सुरेश को थोड़ी राहत महसूस हुई. उस ने सोचा कि राजू के वापस आने से पहले वह अगर सर्वेश की शादी कर दे तो ठीक रहेगा. किसी रिश्तेदार की मदद से उस ने अलीगढ़ के थाना दादों के गांव बरतोलिया के रहने वाले डोरीलाल के बेटे भूरा से सर्वेश की शादी तय कर दी.

डोरीलाल का खातापीता परिवार था. बेटा भूरा गुजरात में रहता था. सुरेश का सोचना था कि शादी के बाद भूरा सर्वेश को ले कर गुजरात चला जाएगा तो वह पूरी तरह से निश्चिंत हो जाएगा. यही सब सोच कर सुरेश ने सर्वेश की शादी भूरा से कर दी.

सर्वेश की शादी की जानकारी राजू को हुई तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ. सर्वेश ने कसम तो उस के साथ जीनेमरने की खाई थी, फिर उस ने दूसरे से शादी क्यों कर ली. प्रेमिका की बेवफाई पर उसे बहुत गुस्सा आया. इस के बाद उस का मन नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ कर गांव आ गया.

राजू का आना मांबाप को बहुत अच्छा लगा. अब उन्हें चिंता भी नहीं थी, क्योंकि सर्वेश की शादी हो गई थी. लेकिन राजू काफी तनाव में था. वह सर्वेश से मिलना चाहता था, लेकिन वह ससुराल में थी. इसलिए तनाव कम करने के लिए उस ने शराब का सहारा लिया.

कुछ दिनों बाद भूरा अपनी नौकरी पर गुजरात चला गया तो सुरेश सर्वेश को लिवा लाया. राजू को सर्वेश के आने का पता चला तो वह उस से मिलने की कोशिश करने लगा. चाह को राह मिल ही जाती है, राजू को भी सर्वेश मिल गई. सुरेश अपनी नौकरी पर कासगंज चला गया था तो मोहिनी दवा लेने डाक्टर के पास गई थी. उसी बीच सर्वेश ने राजू को गली में जाते देखा तो घर के अंदर बुला लिया. अंदर आते ही राजू ने कहा, ‘‘तुम बेवफा कैसे हो गई सर्वेश?’’

‘‘मैं बेवफा कहां हुई. बेवफा होती तो तुम्हें क्यों बुलाती. मेरी मजबूरी थी. किस के भरोसे मैं विरोध करती. तुम दिल्ली में थे और तुम्हें संदेश देने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था. भूरा से शादी कर के मैं बिलकुल खुश नहीं हूं. तुम कुछ करो वरना मैं मर जाऊंगी.’’

‘‘अभी तुम्हें थोड़ा इंतजार करना होगा. पहले मैं कामधाम की व्यवस्था कर लूं. उस के बाद तुम्हें अपने साथ दिल्ली ले चलूंगा.’’ राजू ने कहा.

सर्वेश को राजू पर पूरा भरोसा था. इसलिए उस ने उस की यह बात भी मान ली और मौका निकाल कर उस से मिलने लगी. उन के इस तरह एकांत में मिलने की जानकारी सुरेश को हुई तो वह परेशान हो उठा. शादीशुदा बेटी पर वह हाथ भी नहीं उठा सकता था. क्योंकि बात खुल जाती तो उसी की बदनामी होती. दामाद गुजरात में था. वह चाहता था कि दामाद सर्वेश को अपने साथ ले जाए.

उस ने यह बात भूरा से कही भी. तब भूरा ने कहा, ‘‘बाबूजी, मेरी इतनी कमाई नहीं है कि मैं पत्नी को अपने साथ रख सकूं. इसलिए सर्वेश को अभी वहीं रहने दो.’’

सुरेश दामाद को असली बात बता भी नहीं सकता था. बहरहाल इज्जत बचाने के लिए वह सर्वेश को उस की ससुराल पहुंचा आया. लेकिन इस से भी उस की परेशानी दूर नहीं हुई, क्योंकि राजू सर्वेश से मिलने उस की ससुराल भी जाने लगा.

ससुराल में पति नहीं था, इसलिए सर्वेश का जब मन होता, मायके आ जाती. मायके आने पर सुरेश सर्वेश पर नजर तो रखता था, लेकिन वह राजू से मिल ही लेती थी. इसी का नतीजा था कि एक रात सुरेश ने छत पर सर्वेश को राजू के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया.

सुरेश को देख कर राजू तो भाग गया, लेकिन सर्वेश पकड़ी गई. वह उसे खींचता हुआ नीचे लाया और फिर उस की जम कर पिटाई की. सुरेश की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपनी बेटी को राजू से मिलने से रोके. उस ने उस की शादी भी कर दी थी. इस के बावजूद सर्वेश ने उस से मिलना बंद नहीं किया था.

काफी सोचविचार कर सुरेश भूरा के आने का इंतजार करने लगा. वह जानता था कि एक न एक दिन दामाद को बेटी की करतूतों का पता चल ही जाएगा. तब वह सर्वेश को छोड़ भी सकता था. ऐसे में सर्वेश की जिंदगी तो बरबाद होती ही, बदनामी भी होती. इसलिए उस ने सोचा कि वह खुद ही दामाद को सब कुछ बता कर कोई उचित राय मांगे. इस के बाद भूरा गांव आया तो उस ने कहा, ‘‘बेटा भूरा, गांव का ही राजू सर्वेश के पीछे पड़ा है. मैं ने कई बार उसे समझाया, लेकिन वह मानता ही नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मैं उस से बात करता हूं.’’ भूरा ने कहा.

‘‘इस तरह बात करने से काम नहीं चलेगा. इस से हमारी ही बदनामी होगी. मैं इस कांटे को जड़ से ही खत्म कर देना चाहता हूं, जिस से सर्वेश और तुम चैन से जिंदगी जी सको.’’ सुरेश ने कहा.

भूरा को भी ससुर की बात उचित लगी. फिर दोनों ने राजू को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत भूरा सर्वेश को लिवा कर अपने यहां चला गया.

इस के सप्ताह भर बाद ही थाना खोरों के थानाप्रभारी रामअवतार कर्णवाल को उठेर बांध के पास एक कंकाल के पड़े होने की सूचना मिली. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. नरकंकाल सिरविहीन था. कंकाल के पास एक बनियान और पैंट पड़ी थी.

उन्हें याद आया कि 7 दिनों पहले दतलाना के रहने वाले रामवीर के भाई फूल सिंह ने भतीजे राजू की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. उन्होंने सूचना दे कर फूल सिंह को वहीं बुला लिया. कंकाल से तो कुछ पता चल नहीं सकता था, उस के पास पड़े पैंट को देख कर फूल सिंह ने बताया कि यह पैंट उस के भतीजे राजू की है.

फूल सिंह ने राजू की हत्या का संदेह सुरेश पर व्यक्त किया था. उस ने पुलिस को वजह भी बता दी थी कि राजू के संबंध उस की बेटी सर्वेश से थे. थानाप्रभारी ने सुरेश को बुलाने के लिए सिपाही भेजा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. वह दामाद के साथ गुजरात चला गया था. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि राजू की हत्या कर के सुरेश गुजरात भाग गया था.

कपड़ों के अनुसार कंकाल राजू का ही हो सकता था, लेकिन पक्के सुबूत के लिए उस की डीएनए जांच जरूरी थी. डीएनए जांच के लिए हड्डियां विधि विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ भेज दी गईं. रिपोर्ट आने से पहले रामअवतार कर्णवाल का तबादला हो गया. उन की जगह पर आए सुरेश कुमार.

जनवरी महीने में डीएनए रिपोर्ट आई तो पता चला कि वह कंकाल रामवीर के बेटे राजू का ही था. पुलिस को सुरेश पर ही नहीं, उस के दामाद भूरा, गंगा सिंह और रूप सिंह पर भी संदेह था. क्योंकि ये सभी उसी समय से गायब थे. संयोग से उसी बीच गंगा सिंह गांव आया तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने राजू की हत्या का सारा राज उगल दिया.

गंगाराम ने बताया था कि 1 अक्तूबर की शाम को भूरा ने राजू को शराब और मुर्गे की दावत के लिए बुलाया. उस दावत में राजू को इतनी शराब पिला दी गई कि उसे होश ही नहीं रहा. इस के बाद उस की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उठेर बांध पर ले जाया गया, जहां उस के सिर को धड़ से अलग कर दिया गया. सिर को नहर में फेंक दिया गया, जबकि धड़ को बांध के पास ही छोड़ दिया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने गंगा सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने मोहिनी से फोन करा कर सुरेश को बहाने से गांव बुलवाया और उसे भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी राजू की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का कहना था कि इज्जत और बेटी की जिंदगी बचाने की खातिर उस ने यह कदम उठाया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक भूरा और रूप सिंह पकड़े नहीं जा सके थे. शायद उन्हें गंगा सिंह और सुरेश के पकड़े जाने की जानकारी हो गई थी, इसलिए पुलिस के बहाने से लाख बुलाने पर भी वे गांव नहीं आए. दोनों गुजरात में कहीं छिपे हैं.

सुरेश ने जिस इज्जत को बचाने के लिए यह कू्रर कदम उठाया, राज खुलने पर इज्जत तो गई ही, सब के सब जेल भी पहुंच गए. बेटी की भी जिंदगी बरबाद हुई. एक तरह इसे नासमझी ही कहा जाएगा. अगर वह चाहता तो किसी और तरीके से इस मामले को सुलझा सकता था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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