
जांच में पता चला कि इस गिरोह के लोग देहरादून में काफी समय से खाली पड़ी जमीनों पर नजर रखते थे. ऐसी जमीनों के जो मालिक विदेशों में होते थे, सब से पहले वह उन्हीं को अपना निशाना बनाते थे. इस के बाद मौका मिलते ही जमीनों के फरजी कागजात तैयार कर लिए जाते थे. उन कागजों को दिखा कर जमीन अन्य लोगों को बेच दिया करते थे.
रजिस्ट्री में फरजीवाड़ा करने के लिए 30 से 50 साल पुराने स्टांप पेपरों का इस्तेमाल किया जाता था. ताकि इन्हें उसी वक्त के बैनामे के तौर पर दर्शाया जा सके.
इस के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय में फरजी व्यक्तियों के नाम पर इन जमीनों को दर्ज किया गया. इस बाबत कोतवाली (नगर) देहरादून में 9 मुकदमे दर्ज किए जा चुके थे. जब इस की जांचपड़ताल हुई, तब 6 अक्तूबर को एक आरोपी अजय मोहन पालीवाल गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बारे में बड़ा खुलासा हुआ.
उस ने बताया कि अजय मोहन फोरैंसिक एक्सपर्ट था. उस ने आरोपी कमल विरमानी, के.पी. सिंह आदि के साथ मिल कर कई बड़े फरजीवाड़े किए थे. जमीनों के फरजी बैनामों में फरजी राइटिंग और सिग्नेचर बनाए गए थे.
इन्होंने ही एनआरआई महिला रक्षा सिन्हा की राजपुर रोड पर स्थित जमीन का फरजी बैनामा तैयार किया था. इस जमीन के कागज को रामरतन शर्मा के नाम से बनाया गया था. पहले भी कई विवादित जमीनों में इस की संलिप्तता रही है.
जांच में जब फरजीवाड़ा सही पाया गया, तब संदीप श्रीवास्तव ने एसआईटी में इस फरजीवाडे का मुकदमा अपराध क्रमांक 281/2023 पर आईपीसी की धाराओं 120बी, 420, 467, 468 व 471 के तहत दर्ज करा दिया था. इस के बाद ही जिले के नए एसएसपी अजय सिंह ने एसआईटी की 4 टीमों का गठन किया था और उन्हें इन भूमाफियाओं को गिरफ्तार करने के लिए लगा दिया था.
संदीप श्रीवास्तव ने एसआईटी को बताया था कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय के कुछ दस्तावेजों पर जो मोहरें व स्याही लगी हुई थी, उन मोहरों का साइज सबरजिस्ट्रार कार्यालय की मोहरों के साइज से मेल नहीं खा रहा था. साथ ही स्याही के रंग में भी काफी अंतर था.
जिलाधिकारी देहरादून के जनता दरबार में भी अकसर सबरजिस्ट्रार कार्यालय में जमीनों के फरजी नाम परिवर्तन की शिकायतें ज्यादा आने के बाद ही एसआईटी ने जमीनों के फरजीवाड़े के मुकदमे दर्ज किए गए थे.
7 अक्तूबर, 2023 को टीम ने आरोपियों संजय शर्मा, ओमवीर तोमर और सतीश को गिरफ्तार किया था. टीम ने जब इन तीनों से इस फरजीवाड़े की बाबत पूछताछ की, तब कुछ फरजी दस्तावेजों पर अजय मोहन पालीवाल द्वारा बनाए गए हस्ताक्षर के बारे में भी जानकारी मिली.
पता चला कि ओमवीर तोमर की जानपहचान सहारनपुर निवासी के.पी. सिंह से थी. उसे के.पी. सिंह से जानकारी मिलती थी कि किस की जमीनें कहां हैं और वे कहां रहते हैं. इस के बाद ये लोग उस जमीन के फरजी कागजात तैयार करते थे. इस काम में एडवोकेट कमल विरमानी द्वारा उन दस्तावेजों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय में भेजा जाता था.
तीनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद एसएसपी अजय सिंह ने इन्हें 8 अक्तूबर, 2023 को मीडिया के सामने पेश कर दिया था. तीनों कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिए गए थे. इन्हें गिरफ्तार करने वाली टीम में एसआईटी के इंसपेक्टर राकेश गुसाईं, एसओजी के इंसपेक्टर नंद किशोर भट्ट, एसएसआई प्रदीप रावत, एसआईटी के थानेदार मनमोहन नेगी, थानेदार हर्ष अरोड़ा, अमित मोहन ममगई और सिपाही किरण, ललित, देवेंद्र, पंकज आदि ने अहम भूमिका निभाई थी.
आरोपियों का आपराधिक इतिहास खंगाले जाने के बाद पाया कि आरोपी ओमवीर तोमर के खिलाफ देहरादून के थाना क्लेमेंटाउन में वर्ष 2014 में धोखाधडी का मुकदमा दर्ज हुआ था. इस के बाद उस के खिलाफ वर्ष 2015 में अपहरण व हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हुआ था तथा वर्ष 2017 में उस के खिलाफ जालसाजी, मारपीट करने व धमकी देने के मुकदमे दर्ज हुए थे.
इस के बाद जांच टीम ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में जा कर भूमाफियाओं और जालसाजों के ठिकानों पर दबिशें देनी शुरू कर दी थीं. इस बारे में प्रशासन और सबरजिस्ट्रार कार्यालय के आला अधिकारियों का कहना था कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय का रिकौर्ड स्थाई किस्म का है तथा वह संपत्ति स्वामित्व का मूल आधार है.
भूमाफियाओं और जालसाजों द्वारा उक्त रिकौर्ड के साथ छेड़छाड़ करना और उन के प्रपत्रों के माध्यम से मूल विलेख को बदलना गंभीर अपराध है. भूमाफियाओं का यह कृत्य भूस्वामियों के अधिकार का तो हनन करता ही है साथ ही यह अनावश्यक विवाद को जन्म भी देता है.
एसआईटी ने इस मामले में जिन्हें गिरफ्तार किया था, उन के नामपते इस प्रकार हैं—
इस फरजीवाड़े की कहानी लिखे जाने तक एसआईटी की जमीनों के घोटाले की लगभग 81 शिकायतें प्राप्त हो चुकी थीं. शिकायतों की जांच उन की प्रकृति के अनुसार की जा रही थी.
टीम का कार्यकाल नवंबर माह तक का था. जबकि यह अनुमान लगाया गया कि शिकायतों की संख्या में और भी बढ़ोत्तरी हो सकती है. फरजीवाड़े के बड़े रूप को देखते हुए टीम आम जनता से सीधे भी शिकायतें प्राप्त करने लगी थी.
स्टांप एवं रजिस्ट्रैशन मुख्यालय स्थित एसआईटी के कार्यालय में एस.एस. रावत जमीनों के फरजीवाड़े की शिकायतें प्राप्त करने के लिए मौजूद होते थे. प्राप्त शिकायतों को उस की प्रकृति और श्रेणी के अनुसार जांच हेतु तहसील अथवा उपजिलाधिकारी कार्यालय भेजा जाता है.
कथा लिखे जाने तक जमीनों के फरजीवाड़े में पकड़े गए 19 आरोपी अभी तक जेल में थे तथा एसआईटी द्वारा जांच जारी थी. एसआईटी द्वारा गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट लगाने के बाद अब एसआईटी उन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट लगाने पर भी विचार कर रही थी.
जांच टीम ने अगले ही पल फरजीवाड़े की जांच शुरू कर दी थी. जांच की शुरुआत जमीनों के दस्तावेज तैयार करने वालों पर नजर रखने से की गई. दस्तावेज में जमीन के नकली मालिक और खरीदारों के नाम आदि की जांच करना, वह भी बगैर किसी सबूत के एक बड़ी चुनौती थी.
एसआईटी जांच में तेजी लाने के लिए एसएसपी ने जिले के सभी थानों के एसएचओ को जमीन से जुड़ी किसी भी तरह की शिकायत की डिटेल्स मांगी थी. जल्द ही टीम को दिल्ली के पंजाबी बाग के रहने वाले दीपांकुर मित्तल की शिकायत भी मिल गई. मित्तल ने अपनी शिकायत 16 मार्च, 2023 को की थी
उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा था, ‘‘नवादा में मेरी एक जमीन है, जो मुझे पिता की 2 साल पहले देहांत के बाद मिल गई थी. यह मेरी पुश्तैनी जमीन है. उस जमीन पर हम खेती करते हैं. हालांकि मेरा उसी जमीन को ले कर ताऊ रवि मित्तल के साथ अदालत में एक विवाद भी चल रहा है.’’
उन्होंने आगे लिखा कि देहरादून तहसील में मेरी उसी जमीन का दाखिल खारिज अपने नाम कराने के लिए सुखदेव सिंह पुत्र बलवीर सिंह ने आवेदन दिया हुआ है. सुखदेव सिंह ने इस के लिए जो कागजात बनाए हैं, वे नकली और मनगढ़ंत हैं. जबकि यह जमीन काफी समय से मेरे परिवार वालों के नाम ही चली आ रही है.
मित्तल ने अपनी शिकायत में यह भी लिखा कि हम में से किसी ने भी सुखदेव को कोई जमीन नहीं बेची है. एक समय में हम ने इस जमीन पर ईंटभट्ठा भी शुरू किया था. इस जमीन पर चल रहे बिजली और पानी के कनेक्शन पहले से ही हमारे परिवार वालों के नाम हैं.
इसी के साथ मित्तल ने आशंका जताते हुए लिखा, ‘‘मुझे लगता है कि देहरादून में सक्रिय कुछ भूमाफियाओं द्वारा हमारी जमीन के फरजी स्टांप बनवा लिए गए हैं और सुखदेव हमारी जमीन हड़पना चाहता है.’’
इसी शिकायत के साथ मित्तल ने एसएचओ से मांग की कि आप मुझे सुरक्षा प्रदान करते हुए मेरी प्राथमिकी दर्ज कर भूमाफियाओं और जालसाजों के खिलाफ काररवाई करने की कृपा करें.
दीपांकुर मित्तल द्वारा कोतवाली (नगर) में आईपीसी की धाराओं 420, 467, 468 व 471 के तहत दर्ज शिकायत की जांच के लिए एसआईटी ने कोतवाल राकेश गुसाईं और थानेदार नवीन जुराल को लगा दिया.
जांच के दौरान मित्तल के बयान के साथसाथ उन से मालिकाना हक के कागजों की फोटोकौपी भी ली गई. टीम ने मित्तल के प्रपत्रों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय और सरकारी वकील को दिखाया. इसी के साथ सुखदेव के मालिकाना कागजों की फोटोकौपी तहसील से हासिल की गई.
जब दोनों दस्तावेजों की जांच की गई, तब टीम ने पाया कि मित्तल के दस्तावेज सही हैं. सुखदेव के दस्तावेज ही संदिग्ध पाए गए. उस के बाद टीम सुखदेव के बारे में अन्य जानकारी मालूम करने में जुट गई. टीम ने पाया कि सुखदेव मूलरूप से पंजाब में लुधियाना स्थित कोटला, अफगान रोड, निहाल फील्ड, साहनेवाल जिले का रहने वाला है. इस के बाद पुलिस सुखदेव की तलाश में जुट गई.
मित्तल की शिकायत और जांच की शुरुआत के बाद एसआईटी ने भूमाफियाओं के फरजीवाड़े पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था. इसी दौरान एक नया मामला एक एनआरआई महिला रक्षा सिन्हा का भी आ गया. उन की देहरादून की राजपुर रोड पर मधुबन होटल के सामने ढाई बीघा जमीन थी.
रक्षा सिन्हा इंगलैंड में रहती हैं, जबकि उन के पिता पी.सी. निश्चल देहरादून में ही रहते थे. उन की मृत्यु हो चुकी है. रक्षा सिन्हा काफी सालों से देहरादून नहीं आई थीं. रक्षा सिन्हा को जब पता चला कि उस की जमीन को कोई अपना बता कर बेचने वाला है, तब वह सतर्क हो गई थीं.
टीम ने उन के जमीन के कागजातों की भी जांच की. साथ ही सबरजिस्ट्रार कार्यालय में भी कागजों की जांच की. रक्षा सिन्हा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, उन की जमीन मुजफ्फरनगर निवासी रामरतन शर्मा के नाम हो गई है. जबकि सबरजिस्ट्रार कार्यालय के रिकौर्ड में भी रक्षा सिन्हा के पिता पी.सी. निश्चल द्वारा वर्ष 1979 में रामरतन शर्मा को बेचने के कागज लगे थे.
इस के बाद एसआईटी को यह जानकारी मिली कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय में ही इन भूमाफियाओं के गुर्गे तैनात हैं और वे यहीं से भूमाफियाओं के लिए काम कर रहे हैं. इस सिलसिले में जब एसआईटी ने रक्षा सिन्हा की जमीन के बारे में जानकारी मालूम की कि कौन उन की जमीन को अपना बता कर बेच रहा है तो 3 जालसाजों के नाम सामने आ गए.
उन में एक नाम संजय पुत्र रामरतन शर्मा निवासी पंचेडा रोड, मुजफ्फरनगर का था. दूसरा नाम ओमवीर तोमर पुत्र ओम प्रकाश, निवासी डिफेंस कालोनी देहरादून का था, जबकि तीसरा नाम सतीश कुमार पुत्र फूल सिंह निवासी जनकपुरी, मुजफ्फरनगर था.
यहां इंगलैंड निवासी एनआरआई महिला की करोड़ों की भूमि के फरजी दस्तावेज बनाए गए थे. आखिरकार पुलिस ने फरजी दस्तावेज बनाने वाले गिरोह का पता लगा ही लिया.
इस सिलसिले में यह कहानी लिखे जाने तक 16 शातिर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरोह के सदस्य ओमवीर सिंह के खिलाफ जमीन धोखाधड़ी के कई मुकदमे पहले से दर्ज थे.
उस का जमीनों के फरजीवाड़े का आपराधिक इतिहास रहा है. पहले भी कई विवादित जमीनों में इस की संलिप्तता पाई गई. इस जांच के बाद ही टीम ने कुछ वैसे जालसाजों को चिह्निïत किया था, जो इस फरजीवाड़े में शामिल थे. 6 अक्तूबर, 2023 को टीम के हत्थे एक जालसाज अजय मोहन पालीवाल चढ़ गया था. वह पहले विधि विज्ञान प्रयोगशाला में फोरैंसिक एक्सपर्ट था.
उस ने एडवोकेट कमल विरमानी, के.पी. सिंह आदि कई जालसाजों के साथ मिल कर कई जमीनों के कूट रचित विलेख फरजी हैंडराइटिंग के आधार पर तैयार किए थे. उन फरजी प्रपत्रों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय के बाइंडर सोनू द्वारा रिकौर्ड में चस्पा कर दिया जाता था.
रजिस्ट्रार कार्यालय के रिकौर्ड में फरजी विलेख लग जाने के कारण रिकौर्ड फरजी भूस्वामियों के नामपते शो करने लगे थे. इस से असली भूस्वामी परदे के पीछे चले गए थे, जबकि फरजी लोग प्रौपर्टी मालिक बन गए थे. इस के बाद इन भूमाफियाओं व जालसाजों ने अब उन जमीनों को आगे बेचना शुरू कर दिया था.
भूमाफियाओं द्वारा सबरजिस्ट्रार कार्यालय में फरजीवाड़ा करने की जानकारी जब एडीएम (वित्त) देहरादून व सहायक महानिरीक्षक निबंधन संदीप श्रीवास्तव को मिली तो सब से पहले उन्होंने ही इस बाबत जांच की थी.
जमीन हड़पने वाले गिरोह के लोग देहरादून में काफी समय से खाली पड़ी जमीनों पर नजर रखते थे. जिन जमीनों के मालिक विदेशों में होते थे, सब से पहले वे उसी जमीन को अपना निशाना बनाते थे. उस के बाद मौका मिलते ही जमीनों के फरजी कागजात तैयार कर लिए जाते थे. उन कागजों को दिखा कर जमीन अन्य लोगों को बेच दिया करते थे.
रजिस्ट्री में फरजीवाड़ा करने के लिए 30 से 50 साल पुराने स्टांप पेपरों का इस्तेमाल किया जाता था, ताकि उन्हें उसी वक्त के बैनामे के तौर पर दर्शाया जा सके. इस के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय में फरजी व्यक्तियों के नाम पर उन जमीनों को दर्ज कर दिया जाता था.
उन्हीं दिनों सालों से पुराने स्टांप इकट्ठा करने वाले एक माफिया के.पी. सिंह से जुड़ा मामला भी उजागर हो गया था. इस धंधे में उस ने करोड़ों रुपए कमाए थे और मालामाल हो गया था. सहारनपुर का एक भूमाफिया इस फरजीवाड़े के लिए लंबे समय से पुराने स्टांप इकट्ठा कर रहा था. वह इन स्टांपों को देहरादून और सहारनपुर के स्टांप वेंडरों से खरीदता था. इस के लिए एक स्टांप के लाखों रुपए तक अदा किए गए थे. इन्हीं के आधार पर पुराने मूल बैनामों की प्रतियां जला कर नष्ट कर दी गई थीं और इन के बदले स्टांप को लगा कर नए दस्तावेज बना लिए गए थे.
उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी सरकार ने 16 जुलाई, 2022 को अचानक एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए देहरादून के डीएम और एसएसपी का तबादला कर दिया था. प्रशासनिक स्तर पर डा. आर. राजेश कुमार की जगह सोनिका को जिला मजिस्ट्रैट बनाए जाने की काफी चर्चा हुई थी. कारण सोनिका अपर सचिव के पद पर तैनात थीं और उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी के तौर पर जिलाधिकारी का कार्यभार सौंपा गया था.
यह कदम अपने आप में बेहद हैरानी भरा इसलिए था, क्योंकि जिला मजिस्ट्रैट की जिम्मेदारियां आमतौर पर एक पूर्णकालिक कार्य माना जाता है और इन्हें अतिरिक्त सचिव जैसी जिम्मेदारियों के साथ मिलाना सामान्य तौर पर नहीं देखा जाता है.
इस चर्चा के बीच सोनिका के सामने चुनौती दोहरी जिम्मेदारी के निर्वहन की आ गई थी, लेकिन तब तक उन्हें शायद ही मालूम हो पाया था कि उन के सामने भूमाफियाओं का मकडज़ाल है और उन के कारनामों से निपटने की भी नई चुनौती आने वाली है.
पद संभालते ही जमीन की खरीदबिक्री में हेराफेरी और फरजीवाड़े की शिकायतें मिलने लगी थीं. कुछ शिकायतें पहले की भी थीं. वे शिकायतें न केवल थानों में दर्ज नई पुरानी एफआईआर की थीं, बल्कि कार्यालय के फोन पर भी पीडि़त मोटी रकम ठगे जाने को ले कर इंसाफ की गुहार करने लगे थे.
शिकायतों में गलत प्लौट बता कर पैसे ठग लेना या फिर एक ही प्लौट को कई लोगों के हाथों बेचने के साथसाथ नकली कागजात बनाने की भी थीं. डीएम सोनिका को यह जान कर आश्चर्य तब हुआ, जब उन्हें मालूम हुआ कि इस धंधे में न केवल भूमाफिया, बल्कि राजस्व अधिकारी, स्टांप वेंडर और दूसरे छोटेबड़े चपरासी से ले कर क्लर्क तक शामिल हैं.
जब उन्होंने पीडि़तों की शिकायतें पढ़ीं, तब वह हैरान रह गईं कि बेची और खरीदी जाने वाली अधिकतर जमीनों के मालिक विदेशों में बसे हुए थे और उन्हें पता ही नहीं था कि उन की पुश्तैनी जमीन भूमाफियाओं के लिए दुधारू गाय बन चुकी है.
साल 2023 के शुरुआत के महीनों में डीएम सोनिका की टेबल पर जमीन से संबंधित शिकायतों का पुलिंदा और भी मोटा हो गया था. इस संबंध में वह कई दफा अपने अधीनस्थ उपजिलाधिकारियों, तहसीलदारों और राजस्व अधिकारियों की बैठकें कर चुकी थीं. उन्हें उन की जिम्मेदारियों से अवगत करवाते हुए आवश्यक निर्देश और जांच के आदेश भी दे चुकी थीं. फिर भी काररवाई के नाम पर कोई नतीजा नहीं आ रहा था.
इसी सिलसिले में डीएम कार्यालय में एक दिन अंकुर शर्मा नाम के व्यक्ति का फोन आया. शर्मा ने अपनी बात डीएम साहिबा से करवाने की जिद की. उस ने कहा कि उस के पास जमीन फरजीवाड़े के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण गोपनीय जानकारियां हैं. डीएम औफिस के कर्मचारी ने उस के आग्रह को गंभीरता से लिया और सीधे डीएम सोनिका से ही बात करवा दी.
शर्मा ने अपना परिचय एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दिया. उन्हें बताया कि रजिस्ट्रार औफिस में फरजीवाड़े का गोरखधंधा काफी समय से चल रहा है. वहां के अधिकारियों और शहर के भूमाफिया की जबरदस्त सांठगांठ बनी हुई है. एक भूमाफिया गिरोह देहरादून में आसपास की खाली पड़ी उन जमीनों पर नजर रखे हुए है, जिन के मालिक शहर से बाहर या विदेशों में रहते हैं.
यह गिरोह सबरजिस्ट्रार कार्यालय में अधिकारियों और दूसरे कर्मचारियों से मिल कर जमीन के दस्तावेज से असली मालिक का नाम ही बदलवा लेता है. उस के बाद उस जमीन को नए ग्राहक के हाथों बेच देते हैं. इस काम में कई ग्राहक ठगे भी जा चुके हैं. उन्हें लाखों का चूना लग चुका है.
इसी के साथ शर्मा ने बताया कि यह धंधा देहरादून को साल 2000 में उत्तराखंड के नए राज्य की राजधानी बनने के बाद ही शुरू हो गया था. तब से गिरोह की जड़ें काफी मजबूत हो चुकी हैं. पहले वे बेशकीमती जमीनों पर कब्जा करने के लिए सबरजिस्ट्रार कार्यालय से किसी भी प्रौपर्टी के मालिकाना हक की सत्यापित नकल निकाल लेते हैं. उसे खरीदार को दिखा कर जमीन बेच देते हैं.
डीएम सोनिका के लिए यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी. उसी दिन उन्होंने अपने आला अधिकारियों और आयुक्त गढ़वाल रेंज से इस बारे में विचारविमर्श किया. काफी विचारविमर्श के बाद फरजीवाडे की जांच और जालसाज भूमाफियाओं को पकडऩे के लिए एसआईटी गठन करने की योजना बनाई गई.
डीएम द्वारा जल्द ही इस के गठन का निर्देश जारी कर दिया गया और उसे एसएसपी दिलीप सिंह कुंवर के दिशानिर्देश पर एसआईटी गठित भी कर दी गई. टीम में सर्वेश पंवार एसपी (ट्रैफिक) प्रभारी बनाया गया, जबकि सीओ नीरज सेमवाल, कोतवाल (नगर) राकेश गुसाईं, एसआई नवीनचंद जुराल, एसआई प्रदीप रावत और एसओजी के एसआई हर्ष अरोड़ा शामिल कर लिए गए.
सुधा का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था उमेश चौधरी. वह हरिद्वार के थाना कनखल के रहने वाले मदनपाल का बेटा था. उस के खिलाफ अलगअलग जिलों में हत्या के 4 मुकदमे दर्ज थे. उमेश की दोस्ती सुधा से भी थी और हरिओम से भी. बात कर के सुधा ने युद्धवीर को खत्म करने के लिए उमेश को 5 लाख रुपए की सुपारी दे दी. रकम काम होने के बाद देना था.
उमेश तैयार हो गया तो सुधा ने कहा, ‘‘तुम्हें हरिओम के साथ ही देहरादून आना है, लेकिन तुम इस बारे में उसे कुछ नहीं बताओगे.’’
‘‘सुपारी ली है मैडम तो बात भी मानूंगा.’’ उमेश ने कहा.
इस के बाद सुधा ने हरिओम को फोन किया, ‘‘1 अगस्त को तुम देहरादून आ जाना. इंतजाम कर के तुम्हारे पैसे दे दूंगी.’’
सुधा की इस बात से खुश हो कर हरिओम ने कहा, ‘‘इस बार मुझे मेरे पूरे पैसे देने होंगे.’’
‘‘ठीक है, हरिओम मैं खुद ही तुम्हारे पैसे दे देना चाहती हूं. लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां हैं. और हां, तुम एक काम करना.’’
‘‘क्या?’’
‘‘आते समय अपने साथ उमेश को भी लेते आना.’’
‘‘ठीक है.’’ इस के बाद फोन काट दिया गया.
1 अगस्त को हरिओम अपनी स्कार्पियो से पहले हरिद्वार पहुंचा और वहां से उमेश को ले कर देहरादून पहुंच गया. वह उमेश के साथ त्यागी रोड स्थित एक होटल में ठहरा. सुधा हरिओम से मिलने आई तो 3-4 दिनों में उस ने रुपए देने की बात कही. इस के बाद भी सुधा की हरिओम से मोबाइल पर तो बात होती ही रहती थी, वह उस से मिलने भी आती रही. वह हरिओम को एकएक दिन कर के टाल रही थी.
8 अगस्त को हरिओम ने हरिद्वार के रहने वाले अपने दोस्त संजीव को फोन कर के बुला लिया. उसी दिन सुधा ने हरिओम को बताया कि उसे युद्धवीर की हत्या करनी है, क्योंकि युद्धवीर को 14 लाख रुपए वापस करने हैं. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस की हत्या करा देगा. इस काम में उसे उस का साथ देना होगा. इस के बाद वह उस के बाकी पैसे वापस कर देगी.
उसी बीच उमेश ने सुधा का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘क्या फर्क पड़ता है यार हरिओम. मुझे इस काम के लिए मैडम ने 5 लाख रुपए देने को कहा है. काम होने पर उस में से मैं आधे तुम्हें दे दूंगा. इस के अलावा तुम्हें अपनी डूबी रकम भी मिल जाएगी. इसलिए तुम्हें मैडम का साथ देना चाहिए.’’
हरिओम इस बात से बेखबर था कि युद्धवीर की हत्या का उमेश से पहले ही सौदा हो चुका है. आखिर कुछ देर की बातचीत के बाद हरिओम साथ देने को तैयार हो गया. सुधा का सोचना था कि युद्धवीर की हत्या के बाद उसे 14 लाख रुपए वापस नहीं करने पड़ेंगे. इस के अलावा अगर युद्धवीर का लाया एडमिशन हो गया तो 60 लाख में से बाकी के 46 लाख रुपए भी उसे मिल जाएंगे. इस के बाद वह हरिओम को भी ब्लैकमेल करतेहुए उस के रुपए देने से मना कर देगी.
8 अगस्त को बलराज अपने पैसे लेने आया तो युद्धवीर ने सुधा को फोन किया. सुधा ने उसे गुरुद्वारा साहिब पहुंचने को कहा. प्रदीप चौहान ने उसे गुरुद्वारा साहिब छोड़ दिया. इस के बाद सुधा ने उसे चकराता रोड आने को कहा. उस ने हरिओम को भी वहीं बुला लिया था. हरिओम अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से था, जबकि सुधा अपनी स्कूटी से आई थी. उस ने हरिओम का परिचय छद्म नाम से कराते हुए युद्धवीर से कहा, ‘‘यह अनिल श्रीवास्तव हैं.यही कालेज के एडमिशन हेड हैं. इन्हीं को मैं ने 14 लाख रुपए दिए थे. हमें राजपुर रोड चलना होगा. वहीं यह हमें पैसे देंगे.’’
युद्धवीर को क्या पता था कि उसे जाल में उलझाया जा रहा है. पैसों के लिए वह साथ चलने को तैयार हो गया. सुधा युद्धवीर को स्कूटी से ले कर आगेआगे चलने लगी तो उस के पीछेपीछे हरिओम भी अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से चल पड़ा. राजपुर रोड पर आ कर सभी रुक गए.
सुधा ने अपनी स्कूटी वहीं खड़ी कर दी और गाड़ी चला रहे हरिओम के बगल वाली सीट पर बैठ गई. युद्धवीर पिछली सीट पर उमेश और संजीव के साथ बैठ गया. स्कार्पियो एक बार फिर चल पड़ी. उन लोगों के मन में क्या है, युद्धवीर को पता नहीं था. चलते हुए ही युद्धवीर ने रुपए लौटाने की बात शुरू की तो सुधा का चेहरा तमतमा उठा.
सुधा के इस अंदाज और अंजान लोगों के साथ होने से युद्धवीर को उस पर शक हुआ तो उस ने भागना चाहा. लेकिन स्कार्पियो के दरवाजे से सिर टकरा जाने की वजह से वह गाड़ी के अंदर ही गिर गया. तभी उमेश ने उस के गले में रस्सी डाल कर एकदम से कस दिया. युद्धवीर जान बचाने के लिए छटपटाया, लेकिन उन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कुछ नहीं कर सका. अंतत: उस की मौत हो गई.
युद्धवीर की हत्या कर के वे उस की लाश को सहस्रधारा नदी की उफनती धारा में फेंकना चाहते थे. युद्धवीर की लाश को उन्होंने बाएं दरवाजे की ओर इस तरह बैठा दिया कि देखने वाले को लगे कि वह सो रहा है. युद्धवीर के मोबाइल फोन जेब से निकाल कर स्विच औफ कर दिए.
रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग कर रही थी, जिसे देख कर हरिओम घबरा गया और आगे जाने से मना कर दिया. सुधा और उमेश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना और गाड़ी घुमा ली. लौटते हुए ही उन्होंने लाश आनंदमयी आश्रम के पास सड़क के किनारे फेंक दी. सुधा अपनी स्कूटी ले कर अपने घर चली गई, जबकि हरिओम, उमेश और संजीव स्कार्पियो से हरिद्वार चले गए.
युद्धवीर की हत्या कर सुधा निश्चिंत हो गई कि अब उसे किसी के पैसे नहीं देने पड़ेंगे. उसे विश्वास था कि अगर उस का नाम सामने आया भी तो अपने प्रभाव से वह छूट जाएगी. लेकिन उस के मंसूबों पर पानी फिर गया. हरिओम और सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद कर ली. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
इस के बाद पुलिस ने उमेश को भी गिरफ्तार कर लिया. जबकि संजीव हरिद्वार में अपने खिलाफ पहले से दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले की जमानत रद्द करवा कर जेल चला गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. सुधा ने महत्त्वाकांक्षाओं में जिंदगी को न उलझाया होता और युद्धवीर ने उस पर विश्वास न किया होता तो शायद यह नौबत न आती.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
मुकेश ने हसन से विकृत तरीके से बनाए समलैंगिक संबंध
घर आने के बाद मुकेश ने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया, क्योंकि उसे पता था कि पत्नी कृष्णा देर रात तक उसे कई बार फोन करेगी और वह नहीं चाहता था कि अपने नए प्रेमी से हो रही पहली मुलाकात में कोई खलल डाले. मुकेश और हसन ने रात को करीब साढ़े 9 बजे तक बियर पी और खाना खाया. दोनों ने मिल कर बियर की बोतल कूड़ेदान में डाल दी और खाने के बरतन साफ कर के रख दिए.
उस के बाद दोनों बेडरूम में आ गए और वहां एकदूसरे के कपड़े उतार कर एकदूसरे के जिस्म से खिलवाड़ करने लगे. मुकेश के मुकाबले हसन शारीरिक बनावट में थोड़ा कमजोर था, जबकि मुकेश का शरीर थोड़ा कद्दावर था. मुकेश समलैंगिक तो था ही लेकिन उस के साथ ही उस में कुछ ऐसी आदतें भी थीं, जो आमतौर पर यौन विकृत लोगों में होती हैं.
मसलन उसे हाथपांव बांध कर प्यार करने में बेहद आनंद आता था. मुकेश ने जब अपनी ख्वाहिश हसन को बताई तो उस को बड़ा अजीब सा लगा. लेकिन थोड़ी नानुकुर के बाद अपने हाथ और पांव बंधवाने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद मुकेश ने हसन के साथ शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन अपने विकृत अप्राकृतिक प्यार के दौरान मुकेश ने हसन को इतनी बुरी यातनाएं दीं कि हसन का दिल दहल गया.
हसन मुकेश से लाख मिन्नतें करता रहा, लेकिन उन्माद में अंधे हो चुके मुकेश के ऊपर उस की चीखों का भी कोई असर नहीं हुआ, बल्कि इस सब से मुकेश को और ज्यादा आनंद की अनुभूति हो रही थी. जिस्मानी संबंध बना कर मुकेश तो जरूर आनंदित हुआ, लेकिन हसन के दिल में उस के लिए अचानक इतना गुस्सा और नफरत भर गई कि उस ने तय कर लिया वह मुकेश को इस की सजा जरूर देगा.
जो दौर मुकेश ने हसन के साथ किया था, वही बारी अब हसन की थी. अब बारी मुकेश के हाथ और पांव बांधने की थी. जिस के बाद हसन ने उसे बिस्तर पर उलटा लिटा दिया. हसन ने भी उस के साथ संबंध बनाए. पानी पीने के बहाने वह किचन की तरफ गया. वहां उसे और तो कुछ नहीं मिला, लेकिन वहां पड़ा लोहे का तवा देख उस ने उसी को उठा लिया.
हसन के मन में भर गई थी नफरत
मुकेश ने हसन के साथ जो भी किया था, उसे ले कर हसन के दिल और दिमाग में इतना गुस्सा भरा हुआ था कि वह बेडरूम में आया और आते ही उस ने तवे से मुकेश के सिर और चेहरे पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. हसन ने करीब 25 से 30 बार मुकेश के सिर और चेहरे पर वार किए. मुकेश कुछ समझता, उस से पहले कुछ ही क्षण में खून से सराबोर हो कर उस का शरीर निढाल हो गया. हाथ और पांव बंधे होने कारण वह कोई बचाव भी नहीं कर सका.
नफरत में उस ने मुकेश के निष्प्राण हो चुके शरीर को बिस्तर से नीचे जमीन पर गिरा दिया और उस के बाद शरीर पर जहां तहां तवे के फिर वार किए. तब कहीं जा कर उस का गुस्सा ठंडा हुआ. कुछ देर तक हसन वहीं बैठ रहा. जब गुस्सा शांत हुआ तो उसे लगा कि उस ने कुछ ज्यादा ही कर दिया. क्योंकि मुकेश की मौत हो चुकी थी.
लेकिन अब कोई चारा नहीं था. देखा उस समय रात के साढ़े 12 बजे थे. इतनी रात को अगर वह घर से निकाल कर जाता तो न ही उसे कोई सवारी मिलनी थी, ऊपर से पकड़े जाने का खतरा भी था. लिहाजा उस ने कुछ घंटे तक वहीं रुकने का फैसला किया. मुकेश की हत्या करने के बाद हसन सुबह करीब 4 बजे तक उसी के बेडरूम में रहा.
इस दौरान उस ने बाथरूम में जा कर अपने शरीर पर लगे खून के धब्बे साफ किए और अपने कपड़े पहन लिए. उस ने रसोई में जा कर चाय बना कर भी पी. सुबह होने से पहले उस ने मुकेश के पैंट में रखे पर्स से कुछ पैसे निकाले और घर से बाहर निकला.
गली में सन्नाटा पसरा था. उस ने घर की कुंडी बाहर से लगा दी और पैदल चहलकदमी करते हुए सडक़ पर आ गया. कुछ दूर जाने के बाद वह एक आटो में बैठ कर बसअड्डे पहुंचा. बसअड्डे से सुबह 6 बजे चलने वाली बस में सवार हो कर मोदीनगरआया.
मुकेश की हत्या के बाद हसन को विश्वास था कि पुलिस उसे पकड़ नहीं पाएगी, क्योंकि मुकेश के साथ उसे किसी ने देखा नहीं था. फिर भी हसन के दिल में एक डर बैठा हुआ था, इसीलिए वह केवल एक बार कुछ देर के लिए अपनी दुकान पर गया था और वहां अपने कपड़े बदलने के बाद वह दुकान बंद कर के चला गया. 3 दिनों तक हसन अपनी जानपहचान वालों के यहां बहाने बना कर समय काटता रहा.
25 सितंबर, 2023 को भी वह हापुड़ केवल इसलिए गया था, ताकि वहां एक दिन रह कर यह पता लगा सके कि पुलिस ने मुकेश की हत्या में अभी तक किसी को गिरफ्तार किया है या नहीं. क्योंकि उसे लग रहा था कि पुलिस उस के पास तक तो पहुंच नहीं पाएगी, इसलिए हत्याकांड का खुलासा करने के लिए वह किसी बेगुनाह को मुकेश की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज देगी.
लेकिन हसन की सोच गलत निकली, पुलिस की कार्यशैली और जांच करने के तरीकों के बारे में उसे पता नहीं था. कत्ल के बाद खुद तक पहुंचने वाले सबूत यानी मोबाइल को तो वह अपने साथ ले कर ही घूम रहा था. उसी के जरिए पुलिस आसानी से उस तक पहुंच गई.
जांच अधिकारी इंसपेक्टर नीरज कुमार ने आरोपी हसन से पूछताछ कर उसे मुकेश की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने हसन से 25 सितंबर, 2023 को अधिकारियों और मुकेश के परिजनों के समक्ष भी पूछताछ की और 26 सितंबर को उसे सक्षम अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
(कथा पुलिस की जांच आरोपी के बयान और परिजनों की शिकायत पर आधारित)
पुलिस को उस पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन की लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि उस के मोबाइल की लोकेशन चकराता रोड और लाश मिलने के स्थान की भी थी. इस के साथ एक और मोबाइल की लोकेशन मिल रही थी, जिस से सुधा की लगातार बात होती रहती थी.
उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर हरिओम वशिष्ठ उर्फ बिट्टू का निकला. वह उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना नौचंदी के शास्त्रीनगर के रहने वाले बृजपाल का बेटा था. उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए निकल पड़ी. आखिर सर्विलांस से मिल रही लोकेशन के आधार पर पुलिस ने सुधा और हरिओम को हिरासत में ले लिया.
पहले तो सुधा ने अपने राजनीतिक संपर्कों की धौंस दिखा कर पुलिस को रौब में लेने कोशिश की थी. लेकिन पुलिस के पास ऐसे सुबूत थे कि उस की यह धौंस जरा भी नहीं चली. फिर तो पूछताछ में उस ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया, सुन कर पुलिस दंग रह गई. दरअसल युद्धवीर की हत्या की साजिश सुधा ने ही रची थी. उस ने शातिर चाल चल कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की थी.
सुधा और हरिओम से की गई पूछताछ में युद्धवीर की हत्या की चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की रहने वाली सुधा का परिवार कई साल पहले मेरठ में आ कर बस गया था. मेरठ आने के बाद सुधा ने देहरादून के रहने वाले देवराज पटवाल से विवाह कर लिया था. देवराज कंप्यूटर इंस्टिट्यूट तो चलाता ही था, साथ ही कंप्यूटर का बिजनेस भी करता था. वह बड़ेबड़े व्यापारिक और सरकारी संस्थानों में कंप्यूटर सप्लाई करता था.
सुधा बेहद महत्त्वाकांक्षी और शातिर दिमाग महिला थी. अंगे्रजी के अलावा फे्रंच पर भी उस की अच्छी पकड़ थी. जिंदगी को जीने का उस का अपना एक अलग ही अंदाज था. उसे रसूख भी पसंद था और ऊंचे ओहदे वाले लोगों से रिश्ता भी. इस के लिए वह कांगे्रस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर के रसूख वाले लोगों से संपर्क बनाने लगी.
पैसे कमाने के लिए सुधा पार्टटाइम प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ छात्रछात्राओं के बड़े कालेजों में एडमिशन कराने लगी. करीब 4 साल पहले सुधा के पति देवराज को लकवा मार गया, जिस से वह चलनेफिरने में लाचार हो गया. इस का असर उस के बिजनेस पर पड़ा. घटतेघटते एक दिन ऐसा आया कि उस का बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया.
पति के बिस्तर पर पड़ने के बाद सुधा आजाद हो गई. दौड़धूप कर के उस ने तमाम छोटेबड़े नेताओं से संबंध बना लिए. इस का उसे लाभ भी मिलने लगा. संपर्कों की ही वजह से उस का दलाली का काम बढि़या चल निकला. अब सब कुछ सुधा के हाथ में था. उस की एक बेटी थी, जो दिल्ली से बीटेक कर रही थी. वह बेटी को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहती थी.
सुधा की पकड़ मोहल्ले से ले कर सत्ता के गलियारों तक हो गई थी. दलाली की कमाई से वह ठाठबाट से रह रही थी. इंदिरानगर की वह जिस कोठी में रहती थी, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था. ऐशोआराम की जिंदगी के लिए वह पैसा पानी की तरह बहाती थी. लोगों पर रौब गांठने के लिए वह नेताओं से अपने संबंधों की धमकी देती थी.
हरक सिंह रावत के यहां भी सुधा का आनाजाना था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात युद्धवीर से हुई तो बातचीत में पता चला कि वह भी एडमिशन कराता है. दोनों की राह एक थी, इसलिए उन में अच्छी पटने लगी. जुलाई में युद्धवीर ने मैडिकल कालेज में एडमिशन कराने की बात की तो उस ने 60 लाख रुपए मांगे.
युद्धवीर ने एडमिशन कराने के लिए 14 लाख रुपए एडवांस के रूप में सुधा को दे दिए. लेकिन दिक्कत तब आई, जब एडमिशन नहीं हुआ. ये 14 लाख रुपए बलराज के थे. वह अपने रुपए वापस मांगने लगा तो युद्धवीर सुधा को टोकने लगा.
सुधा इस पेशे की खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को टरकाना उसे अच्छी तरह आता था. इसी तरह के एक मामले में उस पर थाना पिलखुआ में ठगी का एक मुकदमा भी दर्ज हो चुका था. लौबिस्ट के रूप में उस की पहचान बन चुकी थी, इसलिए तमाम लोग उस के पास एडमिशन के लिए आते रहते थे. ऐसे में इस तरह की बातें उस के लिए आम थीं.
हरिओम वशिष्ठ भी उस का ऐसा ही शिकार था. सुधा से उस की मुलाकात मेरठ में हुई थी. बातचीत में उस ने हरिओम से देहरादून में प्रौपर्टी में पैसा लगाने को कहा. सुधा की बातचीत और ठाठबाट से हरिओम समझ गया कि यह बेहद प्रभावशाली महिला है. कुछ महीने पहले देहरादून के झाझरा इलाके में 4 बीघा जमीन दिलाने के नाम पर सुधा ने हरिओम से 8 लाख रुपए ले लिए.
बाद में जमीन के कागज फर्जी निकले तो हरिओम को अपने ठगे जाने का भान हुआ. उस ने सुधा से रुपए मांगे तो वह उसे टरकाने लगी. लेकिन हरिओम भी कमाजेर नहीं था. वह उस के पीछे पड़ गया. मजबूर हो कर सुधा ने गहने बेच कर उस के 3 लाख रुपए लौटाए, बाकी रुपए देने का वादा कर लिया.
हरिओम को सुधा झेल ही रही थी. अब युद्धवीर वाला मामला भी फंस गया था. दोनों ही पैसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बना रहे थे. हरिओम रकम डूबने से काफी खफा था. वैसे तो इस तरह के मामले सुधा अपने रसूख के बल पर दबा देती थी, लेकिन युद्धवीर और हरिओम का मामला ऐसा था, जिस में उस का रसूख काम नहीं कर रहा था. उस की परेशानी तब और बढ़ गई, जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में हरिओम ने उसे फोन कर के पैसे वापस करने के लिए धमकी दे दी.
हरिओम की धमकी से सुधा की चिंता बढ़ गई. वह समझ गई कि अगर उस ने हरिओम के पैसे नहीं लौटाए तो वह कुछ भी कर सकता है. आदमी के दिमाग में कब क्या आ जाए, कोई नहीं जानता. परेशानी में दिमाग बचाव के लिए तरहतरह के रास्ते खोजता है.
सुधा भी बचाव के लिए दिमाग दौड़ाने लगी. फिर उस के दिमाग में जो आया, उस से उसे लगा कि इस से वह सुकून से रह सकेगी. इंसान की फितरत भी है कि वह अपने हिसाब से सिर्फ अपने पक्ष में ही सोचता है. ऐसे में उसे गलत रास्ता भी सही नजर आता है. सुधा के साथ भी ठीक ऐसा ही हो रहा था.
जांच अधिकारी को मिला सुराग
जांच अधिकारी नीरज को कातिल तक पहुंचने का क्लू तो मिल गया था, लेकिन अभी हसन के बारे में जानकारी जुटाना और हत्या का कारण जानना जरूरी था. आगे की तफ्तीश में पता चला कि हसन और मुकेश करीब एक माह से फेसबुक पर फ्रेंड बने थे और दोनों के बीच अकसर मैसेंजर चैट पर बातचीत होती थी. पुलिस ने जब मैसेंजर चैट को खंगाला तो कुछ ऐसी जानकारी हाथ लगी, जिस से कत्ल की इस वारदात की गुत्थी लगभग सुलझने के करीब पहुंच गई.
इसी बीच कालोनी के सीसीटीवी फुटेज की जांच कर रही पुलिस टीम को पता चला की करीब साढ़े 7 बजे मुकेश एक आदमी के साथ अपने घर में प्रवेश हुआ था और सुबह करीब 4 बजे वह व्यक्ति अकेला घर से बाहर निकला था. पुलिस ने करीब 100 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की थी, तब जा कर यह सफलता मिली. इंसपेक्टर नीरज कुमार ने मोबाइल कंपनी के रिकौर्ड में दर्ज हसन का फोटो हासिल कर लिया.
पुलिस की एक टीम को उसी दिन हसन के मेरठ जिले के गांव धौलड़ी स्थित पते पर भेजा गया, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पुलिस ने हसन के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि वह मोदीनगर के राज चोपला पर जर्राह का काम करता है. हसन ने वहां एक दुकान ले रखी थी. वह दुकान में ही रात को सोता था. सप्ताह में एक बार वह अपने घर जाता था. गांव में उस के मातापिता और पत्नी नसरीन व 3 से 5 साल की उम्र के 2 बच्चे रहते थे.
पुलिस की टीम हसन के घर वालों से उस की मोदीनगर स्थित दुकान का पता ले कर जब मोदीनगर पहुंची तो वहां दुकान पर ताला लगा मिला. आसपड़ोस के दुकानदारों से पूछताछ करने पर पता चला कि पिछले 3 दिनों से हसन ने अपनी जर्राह की दुकान नहीं खोली है. थकहार कर पुलिस टीम वापस हापुड़ लौट गई. इंसपेक्टर नीरज कुमार समझ गए कि अब टेक्निकल सर्विलांस ही हसन तक पहुंचने का इकलौता रास्ता है. उन्होंने हसन के मोबाइल की निगरानी शुरू कर दी. जल्द ही इस का परिणाम भी सामने आया.
हसन चढ़ गया पुलिस के हत्थे
25 सितंबर, 2023 को पुलिस टीम को सर्विलांस की निगरानी से पता चला कि हसन हापुड़ की मोर्चरी रोड पर एक छोलेभटूरे की दुकान पर मौजूद है. इंसपेक्टर नीरज कुमार ने तत्काल अपनी टीम ले कर मोर्चरी रोड की घेराबंदी कर ली और छोले भटूरे की दुकान के बाहर खड़े हसन को उस की फोटो से पहचान कर हिरासत में ले लिया.
खुद को पुलिस के चंगुल में फंसा देख कर हसन के होश उड़ गए और वह उलटे पुलिस से सवाल करने लगा कि एक शरीफ आदमी को उन्होंने क्यों पकड़ा है. जब पुलिस ने उसे बताया कि उसे मुकेश कर्दम की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किया गया है तो वह अनजान बनते हुए उलटा सवाल करने लगा कौन मुकेश कर्दम? वह किसी मुकेश कर्दम को नहीं जानता.
इंसपेक्टर नीरज कुमार को अपने अनुभव से यह बात बखूबी पता थी कि अपराधी इतनी आसानी से अपना गुनाह कबूल नहीं करता. लिहाजा पुलिस की टीम पहले उसे कोतवाली ले कर आई, उस के बाद मामूली सी सख्ती के बाद ही हसन टूट गया और उस ने अपने गुनाह की पूरी कहानी बयां कर दी.
हसन बचपन से ही समलैंगिक संबंधों का शौकीन था. उस के कई दोस्त थे, जिन के साथ उस के शारीरिक संबंध थे. हालांकि वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था, लेकिन इस के बावजूद समलैंगिक संबंधों का उस का शौक कम नहीं हुआ. हसन मोदीनगर स्थित अपनी दुकान में ही सोता था, यदाकदा वहीं पर वह अपने समलैंगिक दोस्तों को बुला कर अपना शौक भी पूरा करता था.
समलैंगिक मुकेश की हसन से फेसबुक पर हुई दोस्ती
मुकेश कर्दम से करीब एक माह पहले फेसबुक के माध्यम से उस की दोस्ती हुई थी. मुकेश के साथ फेसबुक के मैसेंजर पर चैट करते हुए जब उसे पता चला कि वह भी समलैंगिक संबंधों का शौकीन है तो दोनों की दोस्ती और गाढ़ी हो गई. इस के बाद तो अकसर दोनों वाट्सऐप काल और चैट पर भी बात करने लगे.
3 बच्चों का पिता मुकेश कर्दम भी समलैंगिक संबंधों का शौकीन था. हसन और मुकेश की दोस्ती की खास बात यह थी कि दोनों ऐसे समलैंगिक थे, जिन में लडक़े और लडक़ी यानी मर्द व औरत दोनों तरह के रिश्ते बनाने की खूबियां थीं. मुकेश और हसन में बातें तो लगभग रोज ही हो रही थीं, लेकिन दोनों में इस बात की तड़प थी कि वह एक बार मौका पा कर एकदूसरे से प्यार करें. इस के लिए मुकेश को किसी मौके का इंतजार था.
मुकेश को वह मौका मिला 18 सितंबर, 2023 को जब उस की पत्नी बच्चों के साथ बुलंदशहर स्थित अपने मायके गई थी. मुकेश ने हसन को 18 सितंबर की सुबह ही बता दिया था कि आज वह अपने हापुड़ स्थित घर पर रात को अकेला रहेगा. मुकेश ने हसन से पूछा कि क्या वह आज की रात उस की मेहमाननवाजी कबूल करेगा.
हसन ने थोड़ी आनाकानी करते हुए कहा कि उस के काम का बड़ा नुकसान हो जाएगा तो मुकेश ने कहा, ‘‘अरे यार कोई बात नहीं, तुम आ तो जाओ. नुकसान का हरजा खर्चा मैं दे दूंगा.’’
इस के बाद हसन ने मुकेश की मेहमाननवाजी कबूल कर ली और वह शाम को 5 बजे दुकान बंद कर के बस में सवार हो कर हापुड़ पहुंच गया. इस दौरान हसन और मुकेश की कई बार वाट्सऐप पर चैट भी हुई और फोन पर बातचीत भी हुई.
दूसरी तरफ मुकेश भी पत्नी और बच्चों को ससुराल में छोड़ कर दोपहर तक वापस हापुड़ आ गया. उस के बाद मुकेश ने दिनभर अपनी किराने की दुकान पर काम किया. एक नए प्रेमी से मिलने की तड़प में वह दोपहर से ही बेहद उतावला था, इसलिए उस ने शाम को करीब 7 बजे अपनी दुकान बंद कर दी. उस के बाद वह बसअड्ïडे पहुंचा, जहां हसन उस का इंतजार कर रहा था.
फोन और फेसबुक की एक माह पुरानी मुलाकात के बाद 2 चाहने वाले दोस्त एकदूसरे के सामने थे, दोनों के लिए ही यह पल बेहद रोमांच पैदा करने वाला था. काफी देर तक दोनों वहीं इधरउधर की बातें करते रहे. उस के बाद मुकेश ने अपने और हसन के लिए बीयर की बोतलें और कुछ खानेपीने का सामान खरीदा और मुकेश उसे अपने घर ले आया.