प्रश्नचिन्ह बनी बेटी

दिनांक: 10 फरवरी, 2020 स्थान: गांव- मिट्ठौली, थाना- नौहझील, जिला- मथुरा, उत्तर प्रदेश  समय: रात 10 बजे रिटायर्ड फौजी चेतराम उर्फ झगड़ू का घर अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा.

किसी अनहोनी की आशंका से गांव वाले जब फौजी के मकान पर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर सकते में आ गए. रिटायर्ड फौजी चेतराम घर के बाहर खून से लथपथ पड़ा था. फोजी की 17 वर्षीय बेटी अलका हाथ में लोडेड पिस्टल लिए खड़ी थी, उस के कपड़ों पर खून लगा था. गांव वालों को देखते ही अलका ने पिस्टल तानते हुए धमकी दी, ‘‘कोई भी मेरे पास आने की कोशिश न करे. आगे बढ़ा तो गोली मार दूंगी.’’

उस के हाथ में लोडेड पिस्टल देख किसी की भी उस के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई. कुछ देर बाद अलका मकान की ऊपरी मंजिल पर चली गई. वहां उस की मां राजकुमारी उर्फ नेहा लहूलुहान पड़ी थी. इसी बीच किसी ने पुलिस को घटना की जानकारी दे दी.

इस सनसनीखेज घटना की जानकारी मिलते ही नौहझील के थानाप्रभारी विनोद कुमार यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मौकाएवारदात पर पुलिस ने वारदात के बारे में पड़ोसियों से पूछताछ शुरू की.

पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची, तब भी खून से लथपथ फौजी चेतराम घर के बाहर पड़ा था, उस के पास ही पिस्टल पड़ी थी. पुलिस मकान की पहली मंजिल पर पहुंची तो वहां राजकुमारी और बेटी अलका खून से लथपथ पड़ी मिलीं.

मामला एक फौजी परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया. खबर पा कर एसएसपी शलभ माथुर और सीओ मांट आलोक दूबे घटनास्थल पर पहुंच गए. साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

फौजी के घर में पत्नी के अलावा एक बेटी व एक बेटा था. परिवार के 4 सदस्यों में से 3 को गोलियां लगी थीं. इस वीभत्स गोलीकांड का एकमात्र गवाह फौजी का बेटा आदर्श ही था. इस गवाह को खरोंच तक नहीं आई थी. पुलिस ने फौजी, उस की पत्नी और बेटी को उपचार के लिए मथुरा के नयति अस्पताल भिजवा दिया.

नौहझील पुलिस ने अपने स्तर से जानकारी जुटाने के साथ ही ग्रामीणों से भी पूछताछ की. सूचना पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने घर में कारतूस भी तलाशे और दीवारों में फंसी गोलियां भी निकालीं. फोरैंसिक टीम काफी देर तक पूरे घर को खंगालती रही.

टीम ने खून के नमूने और खून आलूदा मिट्टी के नमूने भी लिए. फौजी चेतराम के घर से पिस्टल, 2 खोखे, 3 जिंदा कारतूस, खाली मैगजीन और 4 कारतूसों की एक और मैगजीन बरामद हुई. पुलिस ने पिस्टल को बैलेस्टिक जांच के लिए भेजने हेतु जब्त कर लिया.

इस सनसनीखेज वारदात ने लोगों को हिला कर रख दिया था. गांव वाले चर्चा कर रहे थे कि अलका ने मांबाप को गोली मारने के साथ खुद को भी गोली मार ली. हालांकि यह केवल चर्चा थी. वास्तविकता का किसी को भी पता नहीं था. इस का पता पुलिस को ही लगाना था.

अस्पताल में जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही चेतराम की मौत हो चुकी थी. जबकि घायल मांबेटी की हालत चिंताजनक थी. चेतराम के सीने से और राजकुमारी के सिर से गोली पार हो गई थी, जबकि अलका के पेट में गोली लगी थी. पुलिस ने चेतराम की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय भेज दी.

45 वर्षीय सेवानिवृत्त चेतराम जाट रेजीमेंट में नायक था. 2014 में वह सेवानिवृत्त हो चुका था. उस के परिवार में 17 वर्षीय बेटी अलका, 15 वर्षीय बेटा आदर्श और 38 वर्षीय पत्नी राजकुमारी उर्फ नेहा थे. अपनी नौकरी के दौरान ही चेतराम ने राइफल और पिस्टल का लाइसैंस ले लिया था. चेतराम चाहता था कि उस की बेटी अलका कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे, इस के लिए उस ने दिल्ली में ओला कैब में अपनी गाड़ी लगा रखी थी.

अलका ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई नौहझील के स्कूल में की थी. इस के बाद उस ने बीएसए कालेज, मथुरा में एडमिशन ले लिया था. फिलहाल वह बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा थी और प्रयागराज में कोचिंग ले रही थी. अलका घटना से कुछ दिन पहले ही गांव आई थी. उस का 15 वर्षीय भाई आदर्श मथुरा में ही 9वीं की पढ़ाई कर रहा था.

इस घटना में राजकुमारी के सिर की हड्डी टूट गई थी, चेहरे और आंखों पर भी सूजन थी. उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था. जबकि अलका के पेट में गोली लगने का निशान था.

अलका को सांस लेने में परेशानी हो रही थी. राजकुमारी के सिर की हड्डी गोली से टूटी थी या किसी भारी चीज के प्रहार से, यह स्पष्ट नहीं हो पाया था. वहीं रिटायर्ड फौजी चेतराम को 2 गोलियां लगी थीं. एक सीने में और दूसरी पेट से कुछ ऊपर. यह खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुआ.

फौजी चेतराम का पुलिस की मौजूदगी में अंतिम संस्कार कर दिया गया. मुखाग्नि बेटे आदर्श ने दी. गांव वाले इस घटना को ले कर तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.

मंगलवार 11 फरवरी को चेतराम के छोटे भाई ओमवीर सिंह ने अपनी भतीजी अलका व उस के प्रेमी अंकित के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास और जान से मारने की धमकी देने के आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया. ओमवीर का कहना था कि अलका का गांव के ही युवक अंकित के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था. चेतराम इस का विरोध करता था. इसी के चलते अलका और उस के प्रेमी अंकित ने मिल कर यह कांड कर डाला.

ओमवीर सिंह की तहरीर में यह बात भी शामिल थी कि गोलीकांड के बाद अंकित को उस ने भाई के घर से निकलते देखा था. इस के बाद वह अंदर गए तो अलका ने कहा, ‘‘मेरे और अंकित के बीच में जो भी आएगा, उसे छोड़ूंगी नहीं.’’

आखिर ऐसा क्या हुआ था कि मां और पिता को गोली लगने के साथसाथ बेटी भी घायल हो गई थी. यह बात अभी साफ नहीं थी कि आखिर गोली किस ने चलाई? इस मामले में सभी बिंदुओं की गहन पड़ताल की गई.

पता चला कि घटना वाली रात पतिपत्नी में विवाद हुआ था. पुलिस को गांव वालों से यह भी पता चला कि अलका का गांव के ही अंकित से प्रेम प्रसंग चल रहा था. यह भी स्पष्ट हो गया था कि गोलीबारी की शुरुआत पहली मंजिल पर हुई थी.

पुलिस ने गहनता से जांच कर पूरी जानकारी और साक्ष्य जुटाए गए. तथ्यों पर आधारित इस घटनाक्रम की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अंकित और अलका ने नौहझील के स्कूल में इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई एक साथ पूरी की थी. दोनों में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे.

महत्त्वाकांक्षी अलका देखने में स्मार्ट थी. गठे बदन और अच्छी लंबाई के कारण वह सुंदर दिखती थी. आधुनिक विचारों वाली अलका फैशन के हिसाब से कपड़े पहनती थी.

पुलिस जांच में सामने आया कि 31 दिसंबर, 2019 को अलका अचानक घर से लापता हो गई थी. उस  के पिता चेतराम ने उसे काफी तलाश किया. पता न लग पाने पर वह थाने भी पहुंचा. 5 दिन बाद गांव वालों के हस्तक्षेप के बाद अलका घर लौट आई. मगर यह शूल चेतराम के सीने में चुभता रहा. तभी से घर में क्लेश चल रहा था. विपरीत हालात देख अंकित का पिता नेत्रपाल अपने बेटे, बेटी और पत्नी को साथ ले कर गांव से चला गया था. नेत्रपाल भी सेना में था.

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता चेतराम को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता होने लगती थी. जबकि अलका के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने अंकित की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का चाहने वाला हर पल उस की नजरों के सामने रहे. उस के कदमों को बहकते देख चेतराम ने अलका पर पाबंदियां लगा दीं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. वे दोनों चोरीछिपे मिलने लगे.

बेटी की नादानी के लिए चेतराम अपनी पत्नी राजकुमारी को दोषी मानता था. उस का मानना था कि मां की शह के चलते ही बेटी ने इतना बड़ा कदम उठाया और गांव में उस की इज्जत मिट्टी में मिला दी. बेटी के इस कारनामे के चलते वह गांव में किसी से नजर भी नहीं मिला पा रहा था.

सेवानिवृत्त फौजी चेतराम के परिवार में कई महीने से चल रही कलह की जानकारी गांव के लोगों के साथ ही चेतराम के घर वालों और रिश्तेदारों को भी थी. रिश्तेदारों ने कई बार कलह को निपटाने के लिए चेतराम और उस के परिवार वालों से बात की, लेकिन समाधान कोई नहीं निकला. पिता की हिदायत व रोकटोक से अलका बहुत नाराज थी.

घटना से 4 दिन पहले ही नेत्रपाल अपने परिवार सहित गांव वापस आया था. वह यह सोच कर गांव आया था कि हालात सामान्य हो गए होंगे. अलका भी कुछ दिन पहले ही प्रयागराज से गांव आई थी. बिछड़े हुए प्रेमियों ने इतने दिनों बाद एकदूसरे को देखा तो बिना मिले नहीं रह सके. चेतराम यह सब बरदाश्त नहीं कर सका.

घटना की रात चेतराम ने अलका की हत्या का फैसला किया, लेकिन सामने पड़ गई पत्नी राजकुमारी. उस ने पत्नी पर ही गोली चला दी, जिस से वह घायल हो गई. बाद में उस ने बेटी पर भी गोली चलाई जो उस के पेट में लगी. पत्नी को गोली लगने के बाद चेतराम सुधबुध खो बैठा. इस का फायदा उठा कर अलका ने पिस्टल छीन कर उस पर गोलियां दाग दीं. जान बचाने के लिए वह भागा और घर के बाहर जा कर गिर गया.

एसएसपी शलभ माथुर ने प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि घटना वाली रात पुलिस को सूचना मिली थी कि गांव मिट्ठौली में बेटी ने अपने पिता और मां को गोली मार दी है. इसी सूचना पर पुलिस गांव पहुंची थी. लेकिन जांच में पता चला कि फौजी की बेटी अलका ने सेल्फ डिफेंस में गोली चलाई थी.

अलका ने अपने बयान में बताया कि उस के पिता ने पहले उस पर गोली चलाई थी. इस दौरान गोली बचाव में आई उस की मां राजकुमारी को लग गई. मां के गिरते ही उस ने दूसरी गोली उस पर चलाई जो उस के पेट से रगड़ती हुई निकल गई, जिस से वह घायल हो गई. जब पिता उस के भाई पर गोली चलाना चाहते थे, मैं ने तेजी से झपट्टा मार कर पिता के हाथ से पिस्टल छीन ली और बचाव में उन के ऊपर गोली चला दी. वह हम सब को मारना चाहते थे.

उधर इस गोलीकांड में मृत फौजी की घायल पत्नी राजकुमारी जो वेंटीलेटर पर थी, ने घटना के 29वें दिन 11 मार्च की रात नयति अस्पताल, मथुरा में दम तोड़ दिया. मां की मौत से कुछ दिन पहले ही अलका के ठीक होने पर उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी.

आरोपी अंकित के खिलाफ पुलिस को पर्याप्त सबूत नहीं मिल सके. अलका और उस के भाई आदर्श से पूछताछ में अंकित का कोई जिक्र नहीं आया. जबकि गोली पिता द्वारा चलाए जाने की बात दोनों ने बताई.

बयान लेने के बाद पुलिस ने अलका के घर वालों से उसे सुपुर्दगी में लेने को कहा, लेकिन किसी ने उसे लेने की हामी नहीं भरी. इस पर सिटी मजिस्ट्रेट ने अगले आदेश तक उसे नारी निकेतन भेज दिया.

दुश्मन से जूझने का दमखम रखने वाला चेतराम अपने खून के साथ जीवन की जंग हार गया.

बेटी की नादानी से पिता बुरी तरह टूट गया था. जब बेटी अलका अपने प्रेमी के साथ 5 दिनों तक गायब रही थी, चेतराम ने तभी से खाना छोड़ कर शराब के नशे में डुबो दिया था. वह गहरे सदमे में था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, मई 2020

शीतल का अशांत मन : जिंदगी को किया बरबाद

38वर्षीय संजय भोसले महाराष्ट्र के जनपद सतारा के गांव एक्सल का रहने वाला था. उस के पिता पाडूरंग भोसले की जो थोड़ीबहुत खेती की जमीन थी, उस की उपज से वह परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे.

संजय भोसले एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस की नौकरी भारतीय थल सेना में बतौर ड्राइवर लग गई थी. पुणे में 6 माह की ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग हो गई थी. संजय की नौकरी लग चुकी थी, इसलिए मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

मराठी समाज में जब लड़की शादी योग्य हो जाती है तो लड़की वाले लड़के की तलाश में नहीं जाते, बल्कि लड़के वालों को ही लड़की की तलाश करनी होती है. इसलिए पाडूरंग भोसले भी बेटे संजय के लिए लड़की की तलाश में जुट गए. उन्होंने जब यह बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों में चलाई तो उन के एक रिश्तेदार ने शीतल जगताप का नाम सुझाया.

28 वर्षीय शीतल पुणे शहर के तालुका बारामती, गांव ढाकले के रहने वाले बवन विट्ठल जगताप की बेटी थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वह उच्चशिक्षित भी थी. वह डी.फार्मा कर चुकी थी. पाडूरंग भोसले ने बवन विट्ठल से मुलाकात कर अपने बेटे संजय के लिए उन की बेटी शीतल का हाथ मांगा.

संजय पढ़ालिखा था और सेना में नौकरी कर रहा था, इसलिए विट्ठल ने सहमति दे दी. फिर घरवालों ने शीतल और संजय की मुलाकात कराई. हालांकि संजय शीतल से 10 साल बड़ा था, लेकिन वह सरकारी मुलाजिम था, इसलिए शीतल ने उसे पसंद कर लिया. बाद में सामाजिक रीतिरिवाज से अक्तूबर 2008 में दोनों का विवाह हो गया.

जहां संजय शीतल को पा कर अपने आप को खुशनसीब समझ रहा था, वहीं शीतल भी मजबूत कदकाठी वाले फौजी संजय से शादी कर के गर्व महसूस कर रही थी. लेकिन शीतल का यह वहम शीघ्र ही धराशायी हो गया. शीलत के हाथों की मेंहदी का रंग अभी छूटा भी नहीं था कि संजय की छुट्टियां खत्म हो गईं. अपनी नईनवेली दुलहन शीलत को उस के मायके छोड़ कर संजय को अपनी ड्यूटी पर जाना पड़ा. जबकि शीतल चाहती थी कि संजय उस के पास कुछ दिन और रहे.

एक खतरनाक इलाके में पोस्टिंग होने के कारण संजय को बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐसे में शीतल को ज्यादातर समय अपने मायके और ससुराल में ही बिताना पड़ता था. साल दो साल में जब भी संजय को छुट्टी मिलती तभी वह घर आ पाता था. इस बीच शीतल एक बच्चे की मां बन गई थी.

आज के जमाने में कोई भी पत्नी अपने पति से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन किसी मजबूरी के चलते उसे समझौता करना पड़ता है. यही हाल शीतल का भी था. उसे अपने मन और तन की प्यास को दबाना पड़ा था.

8 साल इसी तरह बीत गए. इस के बाद संजय का ट्रांसफर पुणे के सेना कैंप में हो गया. शीतल के लिए यह खुशी की बात थी. यहां उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी मिल गया था, सो संजय शीतल को पुणे ले आया. पति के संग रह कर शीतल खुश तो जरूर थी. लेकिन वह खुशी अभी भी उसे नहीं मिल रही थी, जो एक औरत के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. यहां भी संजय पत्नी को पूरा समय नहीं दे पाता था.

भटकने लगा शीतल का मन

हालांकि शीतल 10 वर्षीय बच्चे की मां थी. लेकिन हसरतें अभी भी जवान थीं, जो पति के संपर्क के लिए तरस रही थीं. शीतल का दिन तो बच्चे और घर के कामों में गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए पहाड़ सी बन जाती.

एक कहावत है कि नारी सहनशील और बड़े ही धीरज वाली होती है. लेकिन थोड़ी सी सहानुभूति पाने पर वह बहुत जल्दी बहक भी जाती है और उस का फायदा कुछ मनचले लोग उठा लेते हैं. यही हाल शीतल का भी हुआ. उस के कदम बहक गए. जिस का फायदा योगेश कदम ने उठाया. वह उस की निजी जिंदगी में कब आ गया, इस का शीतल को आभास ही नहीं हुआ.

संजय को जो सरकारी क्वार्टर मिला था, किसी वजह से 3 साल बाद उसे वह छोड़ना पड़ा. वह अपनी फैमिली ले कर पुणे के नखाते नगर स्थित अंबर अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल के फ्लैट में आ गया. जिस फ्लैट में संजय भोसले अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर रहने के लिए आया था.

उसी के ठीक सामने वाले फ्लैट में योगेश कदम रहता था. वह एक कैमिकल कंपनी में नौकरी करता था. पड़ोसी होने के नाते पहले ही दिन दोनों का परिचय हो गया. बाद में योगेश का संजय के यहां आनाजाना शुरू हो गया.

अविवाहित योगेश कदम ने जब से शीतल को देखा था, तब से वह उस का दीवाना हो गया था. ऐसा ही हाल शीतल का भी था. जबजब वह योगेश कदम को देखती, उस के मन में एक हूक सी उठती थी. शारीरिक रूप से भी योगेश कदम उस के पति संजय भोसले से ज्यादा मजबूत था. जबजब दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरातीं, दोनों के दिलों में हलचल सी मच जाती थी. उन की नजरों में जो चमक होती थी, उसे अच्छी तरह से महसूस करते थे. यही कारण था कि उन्हें एकदूसरे के करीब आने में समय नहीं लगा.

योगेश कदम यह बात अच्छी तरह से जानता था कि शीतल अकसर घर में अकेली रहती है. बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद और कभीकभी संजय भोसले की नाइट ड्यूटी लग जाने पर योगेश को शीतल से बात करने का मौका मिल जाता था.

बाद में उस ने शीतल के पति संजय से भी दोस्ती बढ़ा ली, जिस के बहाने वह जबतब शीतल के घर आनेजाने लगा. इस तरह शीतल और योगेश के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. जब एक बार मर्यादा की सीमा टूटी तो टूटती ही चली गई. जब भी शीतल और योगेश कदम को मौका मिलता, अपने तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

योगेश कदम से मिलन के बाद शीतल खुश रहने लगी. उस के चेहरे का रंगरूप बदल गया. वह योगेश के प्यार में इतनी दीवानी हो गई थी कि अब वह पति संजय भोसले की उपेक्षा भी करने लगी. पत्नी के इस बदले रंगरूप और व्यवहार को पहले तो संजय समझ नहीं पाया. लेकिन जब तक समझ पाया, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

मामला नाजुक था. लिहाजा एक दिन संजय ने पत्नी को काफी समझाया मानमर्यादा और समाज की दुहाई दी, लेकिन शीतल पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. पहले तो शीतल घर में ही योगेश के साथ रंगरलियां मनाती थी लेकिन जब संजय ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी तो वह प्रेमी के साथ मौल और रेस्टोरेंट वगैरह में आनेजाने लगी. जब यह बात संजय को पता चली तो उस ने पत्नी पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी. तो इस से शीतल बगावत पर उतर आयी. नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

दोनों के बीच अकसर रोजाना ही झगड़ा होता. रोजरोज की कलह से शीतल भी उकता गई. लिहाजा उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली, लेकिन किसी कारणवश यह योजना सफल नहीं हो सकी. पत्नी की हरकतों से तंग आ कर आखिरकार संजय भोसले ने कहीं दूर जा कर रहने का फैसला किया. यह करीब 5 महीने पहले की बात है.

बनने लगी बरबादी की भूमिका

साल 2019 के अक्तूबर माह में एक माह की छुट्टी ले कर संजय भोसले ने अपना घर बदल दिया. वह पत्नी और बच्चे को ले कर पुणे के नखाते कालेबाड़ी स्थित एक सोसाइटी में आ गया. लेकिन उसे यहां भी राहत नहीं मिली. शीतल के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया.

बच्चे के स्कूल और पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शीतल फोन कर योगेश को फ्लैट पर बुला लेती थी. किसी तरह यह जानकारी संजय को मिल जाती थी. पत्नी की हठधर्मिता से वह इस प्रकार टूट गया कि उस ने शराब का सहारा ले लिया. शराब के नशे में वह पत्नी को अकसर मारतापीटता था.

इस के अलावा अब वह कभी भी वक्तबेवक्त घर आने लगा, जिस से शीतल और योगेश के मिलनेजुलने में परेशानियां खड़ी हो गईं. इस से छुटकारा पाने के लिए शीतल ने फिर वही योजना बनाई, जो पहले बनाई थी.

मौका देख कर शीतल ने योगेश कदम से कहा, ‘‘योगेश तुम अगर मुझ से प्यार करते हो और मुझे पूरी तरह अपना बनाना चाहते हो तो तुम्हें संजय के लिए कोई कठोर कदम उठाना होगा, मतलब उसे हम दोनों के बीच से हटाना पड़ेगा.’’ योगेश कदम भी यही चाहता था. वह इस के लिए तुरंत तैयार हो गया.

8 नवंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे शिवपुर पुलिस चौकी पर तैनात एसआई समीर कदम को जो सूचना मिली उसे सुन कर वह चौंके. सूचना देने वाले एंबुलेंस ड्राइवर सूफियान मुश्ताक मुजाहिद, निवासी गांव बेलु, जनपद पुणे ने उन्हें बताया कि शिवपुर टोलनाका क्रौस पुणे सतारा हाइवे पर स्थित होटल गार्गी और कंदील के बीच सर्विस रोड पर एक युवक बुरी तरह घायल पड़ा है.

एसआई समीर कदम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी रायगढ़ थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को दी और अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर एसआई अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े, एसपी संदीप पाटिल और एएसपी अन्नासो जाधव मौकाएवारदात पर आ गए. तब तक वहां पड़ा युवक मर चुका था. उसे देख कर मामला रोड ऐक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर शव पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को घटना से एक मोबाइल फोन, ड्राइविंग लाइसेंस और एक डायरी मिली, जिस से पता चला कि मृतक का नाम संजय भोसले है. पुलिस ने फोन से उस की पत्नी शीतल का फोन नंबर हासिल कर के उसे पुलिस चौकी शिवपुर बुला लिया.

संजय भोसले की पत्नी शीतल ने संजय भोसले के मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान लिया और दहाड़े मारमार कर रोने लगी. पूछताछ में शीतल ने कहा कि उसे नहीं पता है कि संजय घटनास्थल तक कैसे पहुंच गए.

आखिर सच आ ही गया सामने

शीतल ने आगे बताया कि कल रात उन्होंने परिवार के साथ खाना खाया था. रात 10 बजे के करीब उसे और बच्चे को सोने के लिए बेडरूम में भेज कर खुद हाल में सो गए थे. इस के बाद क्या हुआ, वह कुछ नहीं जानती.

मामला काफी उलझा हुआ था. जांच अधिकारी ने उस समय तो शीतल को घर जाने दिया था. लेकिन उन्होंने उसे क्लीन चिट नहीं दी. उन्हें शीतल के घडि़याली आंसुओं पर संदेह था. बाकी की रही सही कसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी.

रिपोर्ट में बताया गया कि मामला दुर्घटना का नहीं है, उसे सल्फास नामक जहरीला पदार्थ दिया गया था, जिस का सेवन तकरीबन 12 घंटे पहले किया गया था. यह जहर कहां से आया, क्यों आया यह जांच का विषय था. पुलिस टीम ने जब गहराई से जांचपड़ताल की और शीतल के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स देखी तो तो वह पुलिस के रडार पर आ गई.

पुलिस ने जब शीतल से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर के प्रेमी योगेश कदम और उस के सहयोगियों का नाम बता दिए. उस ने बताया कि जिस जहरीले पदार्थ से संजय की मौत हुई, वह जहर 7 नवंबर, 2019 को योगेश कदम अपनी कंपनी से लाया था. उस ने वही जहर संजय के खाने में मिला दिया था. जहर खाने से जब उस की मौत हो गई तब उस ने योगेश को वाट्सएप मैसेज भेज कर जानकारी दे दी थी.

अब समस्या संजय के शव को ठिकाने लगाने की थी. योगेश ने अपने 2 दोस्तों मनीष कदम और राहुल काले के साथ मिल कर इस का बंदोबस्त पहले ही कर रखा था. उन्होंने एक कार किराए पर ली, उस कार से योगेश रात 2 बजे के करीब शीतल के घर पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ संजय भोसले के शव को कार में डाल लिया, जिसे ये लोग यह सोच कर पुणे सतारा रोड की सर्विस लेन पर डाल आए कि मामला दुर्घटना का लगेगा, लेकिन इस में वह कामयाब नहीं हो सके.

शीतल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मामले के अन्य अभियुक्तों की धड़पकड़ तेज कर दी और जल्दी ही संजय भोसले हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार शीतल संजय भोसले, योगेश कमलाकर राव कदम, मनीष नारायन कदम और राहुल अशोक काले को थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश किया.

उन्होंने भी आरोपियों से पूछताछ की. इस के बाद उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 109 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर पुणे की नरवदा जेल भेज दिया.

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

 

दिलफेक हसीना : शक्की पति बना कातिल

थाना गोहपारू क्षेत्र में आने वाले गांव खन्नोदी का रहने वाला वृद्ध रामदीन रजक थाने आकर थानाप्रभारी डीएसपी (ट्रेनी) सोनाली गुप्ता से मिला. उस ने बताया कि उस की बेटी प्रीति करीब साल भर पहले अपने पति को छोड़ कर गंजबासोदा, जिला विदिशा निवासी हेमंत विश्वकर्मा के साथ गांव में रहने लगी थी. प्रीति का घर उस के मायके के पास ही था.

रामदीन ने आगे बताया कि बीती रात उस ने प्रीति और हेमंत के लड़नेझगड़ने की बातें सुनी थीं. सुबह को उन के घर में ताला पड़ा देखा तो सोचा कि सुबहसुबह दोनों कहां जा सकते हैं. शक हुआ तो उस ने खिड़की से झांक कर अंदर देखा. शक सही निकला. अंदर प्रीति की लाश पड़ी थी. जबकि हेमंत गायब था. यह देख कर वह थाने चला आया.

मामला वाकई गंभीर था. डीएसपी (ट्रेनी) सोनाली गुप्ता पुलिस ले कर रामदीन के साथ गांव खन्नोदी के लिए रवाना हो गईं. वहां पहुंच कर उन्होंने हेमंत के मकान का ताला तुड़वाया तो अंदर प्रीति की लाश पड़ी मिली. सोनाली ने इस की सूचना एसपी सत्येंद्र शुक्ला और एएसपी प्रतिभा मैथ्यू को दे दी. प्रीति का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने इस केस की जांच के लिए एक टीम गठित कर दी. छानबीन में पता चला कि हेमंत करीब 14-15 महीने पहले प्रीति के साथ खन्नोदी आ कर रहने लगा था.

दोनों में कुछ दिनों तक तो अच्छी बनी, लेकिन बाद में उन के बीच लड़ाईझगड़े आम बात हो गए थे. उन के बीच झगड़ा किस बात को ले कर होता था, इस बारे में लोगों ने साफसाफ तो कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ लोगों ने दबी जुबान में यह बात मानी कि प्रीति की गांव के कुछ लड़कों से दोस्ती थी. संभवत: इसी बात को ले कर हेमंत और उस के बीच विवाद होता था.

पता चला कि 26 फरवरी की रात हेमंत घर में था, लेकिन 27 की सुबह जब प्रीति की लाश देखी गई तब घर के दरवाजे पर बाहर से ताला पड़ा था. हेमंत चूंकि लापता था, इसलिए पुलिस का सीधा शक उसी पर गया. थानाप्रभारी सोनाली गुप्ता के नेतृत्व में बनाई गई टीम में शामिल एएसआई नागेंद्र प्रताप सिंह, हैडकांस्टेबल महेंद्र झा, कांस्टेबल राजेंद्र तिवारी, गिरीश कसाना, आलोक सिंह और सतीश की टीम हेमंत की खोज में जुट गई.

चूंकि हेमंत विदिशा जिले की गंजबासोदा तहसील का रहने वाला था, इस टीम ने गंजबासोदा के अलावा विदिशा, गुना और शहडोल में उस के ठिकानों पर छापेमारी की. लेकिन वह हाथ न आया. अंतत: थानाप्रभारी ने मुखबिरों की मदद से 3 फरवरी को घेराबंदी कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में हेमंत पहले तो प्रीति की हत्या करने से इनकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के साथ सख्ती की तो उस ने मान लिया कि प्रीति की कई लड़कों से दोस्ती के कारण आपस में विवाद होता था.

घटना वाली रात उस ने गुस्से में प्रीति की हत्या कर दी. हत्या के बाद रात में ही वह दरवाजे पर बाहर से ताला लगा कर शहडोल भाग गया था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर शहडोल रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 3 पर लाइनों के नीचे छिपा कर रखी दरवाजे की चाबी भी बरामद कर ली. पुलिस ने आरोपी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

सांवली मगर तीखे नाकनक्श वाली प्रीति अपनी चंचलता के कारण तभी गांव के युवकों की चहेती बन गई थी, जब वह किशोरावस्था के दौर से गुजर रही थी. छोटी उम्र में ही गांव के कई युवकों के साथ उस की दोस्ती हो गई थी. स्थिति यहां तक पहुंची कि उस के चक्कर में कई युवकों में आपस में मारपीट भी हो जाती थी.

जब प्रीति की वजह से गांव में बदनामी होने लगी तो उस के पिता ने जवानी की पहली पायदान पर पहुंचते ही उस की शादी पास के गांव में कर दी.

नासमझी की उम्र में प्रीति को जो चस्का लगा था, वह ससुराल जा कर भी नहीं छूटा. नतीजा यह निकला कि ससुराल में भी कई युवक उस के दीवाने बन गए. करीब 3 साल पहले प्रीति को फेसबुक का शौक लग गया. वह दिनदिन भर फेसबुक पर लगी रह कर नएनए दोस्त बनाने लगी.

इसी दौरान करीब 2 साल पहले फेसबुक पर उस की दोस्ती गंजबासोदा निवासी हेमंत विश्वकर्मा से हुई, जो टेलरिंग का काम करता था.

फेसबुक पर पहली चैटिंग में ही प्रीति ने हेमंत से पूछा, ‘‘क्या करते हो?’’

‘‘लेडीज टेलर हूं.’’ हेमंत ने जवाब दिया.

‘‘अरे वाह, तब तो लड़कियों का नाप भी लेते होगे? खूब मजे होंगे तुम्हारे.’’

‘‘ऐसा नहीं है जैसा समझ रही हो, सब लड़कियां नाप नहीं देतीं.’’

‘‘फिर उन के कपड़े कैसे सिलते हो?’’ प्रीति ने इसी विषय पर बात बढ़ा दी.

‘‘आंखों से नाप ले कर साइज समझ जाता हूं.’’ हेमंत ने भी छलिया की तरह जवाब दिया.

‘‘मेरी फोटो देखी है?’’

‘‘रोज देखता हूं.’’

‘‘तो मेरा साइज बताओ?’’

‘‘एकदम सही या अंदाज से?’’

‘‘सही.’’

‘‘इस के लिए बिना ब्लाउज वाली फोटो भेजो तो एकदम सही नाप बता दूंगा.’’

‘‘नहीं बता पाओगे.’’ प्रीति बात खत्म करना नहीं चाहती थी.

‘‘और बता दिया तो?’’

‘‘तो जो कहोगे, मानूंगी.’’

‘‘तो फोटो भेजो, फिर देखना मेरा कमाल.’’ हेमंत ने बातों में रस भर दिया.

‘‘कल भेजूंगी.’’ कह कर प्रीति ने बात समाप्त कर दी.

पहली ही चैटिंग में प्रीति से इतनी खुल कर बात की थी, जिस से हेमंत समझ गया कि लड़की आसानी से हाथ आ जाएगी. उस की सोच सच ही निकली.

अगले ही दिन वाट्सऐप नंबर ले कर प्रीति ने वैसी फोटो भेज दी, जैसी उस ने मांगी थी. फोटो देख कर हेमंत ने लिख दिया 36 नंबर है. वह प्रीति की फोटो देख कर रोमांचित हो रहा था.

‘‘अरे वाह, एकदम सही. तुम तो कमाल के हो यार. देख कर ही नाप बता दिया.’’ प्रीति ने जवाब में लिखा.

‘‘तुम चीज ही ऐसी हो. सच कहूं तो मैं ने आज तक किसी लड़की की इतनी खूबसूरत बनावट नहीं देखी.’’

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. लेडीज टेलर हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.’’

‘‘सच, हजारों लड़कियों का नाप ले चुका हूं, लेकिन ऐसी सुंदर बौडी नहीं देखी. मन करता है तुम्हारी इस सुंदरता को जी भर कर प्यार करूं.’’

‘‘लेडीज टेलर के साथसाथ रसिया भी हो, लेकिन मैं हाथ आने वालों में नहीं हूं.’’ प्रीति ने हेमंत को छेड़ा.

‘‘अपनी शर्त मत भूलो. याद है, तुम ने कहा था कि अगर मैं शर्त जीत गया तो जो मैं कहूंगा तुम करोगी.’’

‘‘कह दिया तो क्या हुआ, हंसीमजाक में सब चलता है.’’ प्रीति ने जानबूझ कर बात हवा में उड़ानी चाही.

लेकिन हेमंत भी कम नहीं था. उस ने मन ही मन सोच लिया था कि प्रीति के ब्लाउज के पार जा कर ही रहेगा. उस ने बात आगे बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘तुम्हारे दोनों नंबर हैं मेरे पास. वहां तक तो जरूर पहुंचूंगा.’’

‘‘मतलब,’’ प्रीति ने अनजान बनने की कोशिश की.

‘‘मतलब यह कि मेरी शर्त पूरी करो.’’

‘‘ठीक है, किसी दिन आ कर अपनी शर्त पूरी कर लेना.’’ प्रीति ने हेमंत से कहा तो वह फूला नहीं समाया.

इस के 15 दिन बाद हेमंत गंजबासोदा से कई सौ किलोमीटर दूर शहडोल में प्रीति के गांव जा पहुंचा. लेकिन फोन पर बात करने के बावजूद वह प्रीति को केवल देख भर सका. उन्हें मिलने का मौका नहीं मिल पाया.

इस के बाद प्रीति और हेमंत के बीच फोन पर देर रात तक अश्लील बातें होने लगीं. इसी सब के चलते प्रीति हेमंत के प्यार में ऐसी खोई कि उस ने डेढ़ साल पहले पति का घर छोड़ दिया.

यह जान कर हेमंत खन्नौदी पहुंचा, जहां दोनों बिना शादी किए ही साथ रहने लगे. इस के बाद दोनों के दिन सोने के और रातें चांदी की बन कर गुजरने लगीं. हेमंत ने टेलर की दुकान खोल ली, जिस से दोनों का खर्च चलने लगा.

प्रीति को पा कर केवल हेमंत ही खुश नहीं था, गांव के ऐसे कई युवक भी प्रीति के वापस आने से खुश थे, जिन्होंने किशोरावस्था में प्रीति के संग रंगरलियां मनाई थीं.

हेमंत की हो जाने के बाद प्रीति ने कुछ दिनों तक तो पुराने संगीसाथियों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जल्दी ही उसे फिर से पुरानी बातें याद आने लगीं. जल्दी ही फेसबुक पर उसे उन में से युवकों के नंबर मिलने लगे. उन से प्रीति की फेसबुक और फोन पर बात भी होने लगी.

गांव में कुछ युवक ऐसे भी थे, जो किशोर उम्र में प्रीति को पाने के लिए पापड़ बेल चुके थे. लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी, इसलिए जब उन्होंने देखा कि प्रीति अपने पुराने यारों को भी चारा डालने लगी है, तो उन में कुछ युवकों ने बातोंबातों में हेमंत को प्रीति की पुरानी प्रेम कहानियों के बारे में बता दिया.

इस के बाद हेमंत प्रीति पर नजर रखने लगा. उसे जल्द ही यह बात समझ में आ गई कि प्रीति की गांव के कई युवकों से खास किस्म की दोस्ती है. जब उस ने प्रीति पर लगाम कसने की कोशिश की तो दोनों के बीच आए दिन विवाद होने लगा.

हेमंत ने बताया कि घटना की रात जब वह घर आया, तब प्रीति किसी से फोन पर बात कर रही थी. उस ने मुझे देख कर फोन काट दिया. जब मैं ने इस बारे में पूछा तो उस ने कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने अपने फोन को भी हाथ नहीं लगाने दिया. इस बात पर दोनों में विवाद हुआ, जिस के चलते गुस्से में उस ने प्रीति का गला दबा दिया.

हेमंत ने बताया कि वह उस की हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन अनजाने में ही प्रीति की मौत हो गई तो वह बुरी तरह डर गया और दरवाजे में ताला लगा कर वहां से भाग गया.

सौजन्य: सत्यकथा, मई 2020

हक की लड़ाई : बेटे ने मांगा डेढ़ करोड़ का मुआवजा

कहते हैं कि कुछ रिश्ते खून के होते हैं बाकी सब संयोग से बनते हैं, लेकिन खास बात यह भी है कि रिश्तों की यह दुनिया जितनी सुकून देती है, उतनी ही उलझनें भी पैदा करती है. क्योंकि कभी रिश्ते फूलों की तरह महकते हैं तो कभी कांटे बन कर जिंदगी के सुख और चैन ही छीन लेते हैं.

लेकिन संयोग से बने रिश्तों से अलग कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जो बनते नहीं, बल्कि किन्हीं वजहों से बनाए जाते हैं. कुछ रिश्ते जताए जाते हैं तो कुछ सिर्फ दिखाए जाते हैं. ऐसा ही एक रिश्ता है एक मां और एक बेटे के बीच का, जिस का राज जब खुला तो मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया.

आरती महास्कर वह नाम है, जो पिछले कई दिनों से मुंबई में ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है. आरती पर आरोप है कि उन्होंने 38 साल पहले अपने ही बेटे श्रीकांत सबनीस को 2 साल की उम्र में चलती ट्रेन में जानबूझ कर छोड़ दिया और अभिनेत्री बनने के सपने लिए मायानगरी मुंबई आ गईं.

अब ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर की कहानी परदे के पीछे से झांक रही है. इतना ही नहीं, वह इंसानी रिश्तों की अहमियत और उन के बदलते मिजाज को ले कर तमाम सवाल खड़े कर रही है.

उन तमाम सवालों का जवाब क्या होगा? इसे कोई नहीं जानता, लेकिन बेटे ने जो सवाल खड़ा कर दिया, उस का जवाब दे पाना आरती महास्कर नाम की उस मां के लिए शायद बेहद मुश्किल हो गया है. क्या है श्रीकांत सबनीस की कहानी? इसे जानने के लिए हमें उस के अतीत के पन्नों को खंगालना होगा, वह कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

उस रोज जनवरी, 2020 की 6 तारीख थी. मुंबई उच्च न्यायालय परिसर में वादकारियों की चहलकदमी बदस्तूर जारी थी. सौम्य, सजीला, गोरा और गठीले बदन वाला बेहद हैंडसम श्रीकांत सबनीस न्यायाधीश ए.के. मेनन के कक्ष में उन के सामने सावधान की मुद्रा में खड़ा था. उस की उम्र यही कोई 40 वर्ष थी.

काला कोट पहने लगभग श्रीकांत की ही उम्र के एडवोकेट संजय कुमार, जो श्रीकांत के वकील थे, हाथों में फाइल लिए अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में जज के सामने खड़े थे. फाइल के भीतर कुछ जरूरी दस्तावेज थे, उन्हीं दस्तावेजों की एकएक प्रति न्यायाधीश मेनन के सामने डेस्क पर रखी थी, जिन्हें जज साहब पढ़ने में तल्लीन थे.

सफेद रंग के पन्नों पर नीली स्याही से उकेरे गए शब्द जैसेजैसे श्री मेनन पढ़ते गए, आश्चर्य और हैरत के महासागर में डूबतेउतराते गए. शायद यह देश की पहली चौंकाने वाली घटना थी, जिस में याचिकाकर्ता श्रीकांत सबनीस ने अपनी सगी मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर से मानसिक आघात की क्षतिपूर्ति के बदले डेढ़ करोड़ रुपए का मुआवजा मांगा था.

मां से मांगे गए मुआवजे के पीछे रोंगटे खड़े कर देने वाली जो पीड़ा एक कहानी के रूप में परोसी, वाकई वह किसी रोमांचित कर देने वाली फिल्मी पटकथा से कम नहीं थी.

बात करीब 41 साल पहले सन 1978 के आसपास की है. पुणे (महाराष्ट्र) के दीपक सबनीस के साथ खूबसूरत ऊषा सबनीस दांपत्य सूत्र में बंधी तो उस का जीवन चांदनी की भीनी खुशबू की तरह महक उठा. घर में चारों ओर खुशियां छाई थीं. मां के समान दुलारने वाली सास थीं तो पिता की तरह प्यार देने वाले ससुर.

सखी समान राज छिपाने वाली हरदिल अजीज ननद थी तो सच्चे और वफादार दोस्तों के समान देवर, मिलाजुला कर घर के सदस्यों का भरपूर प्यार ऊषा के खाते में आया था.

कुल मिला कर ऊषा सबनीस वहां बहुत खुश थी. इन्हीं खुशियों के बीच वह एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम श्रीकांत सबनीस रखा. उन के जीवन में श्रीकांत के आने से चारों ओर बहार सी छा गई थी.

दीपक सबनीस पत्नी से खुश थे ही, बेटे के जन्म के बाद वह और निहाल हो गए. भौतिक सुखसुविधाओं की तमाम वस्तुएं घर में थीं, इसलिए उन्हें अब किसी और चीज की लालसा नहीं थी. उसी में वह खुशहाल जीवन जी रहे थे.

इस के विपरीत ऊषा की आकांक्षाएं अनंत थीं. बचपन से ही उस की ख्वाहिश रुपहले परदे पर खुद को दिखाने की थी. ऊषा फिल्मी दुनिया में जाना चाहती थी.

वह जब भी कोई फिल्म देखती तो अभिनेत्री के स्थान पर खुद को रख कर देखती थी. ऐसा कर के ऊषा के मन को भरपूर सुकून मिलता था और मन ही मन वह खूब खुश हुआ करती थी. खुली आंखों से देखे गए सपनों को वह पति से शेयर भी करती.

दीपक उस का मन रखने के लिए हां तो कह देता लेकिन सच्चे दिल से उसे पत्नी की ये बातें अच्छी नहीं लगती थीं. वह कभी नहीं चाहता था कि उस की पत्नी फिल्मी दुनिया की ओर रुख करे.

दीपक सबनीस यही चाहता था कि ऊषा एक कुशल गृहिणी की तरह घर में रह कर सासससुर और बच्चे की सेवा करे लेकिन ऊषा की सोच इस के विपरीत थी. उसे तो हीरोइन बनने की सनक सवार थी. इतना ही नहीं, उस ने ठान लिया था कि उसे अपने सपने पूरे करने के लिए राह की हर मुश्किलों को पार कर के आगे बढ़ते जाना है. इस बात को ले कर अकसर उस का पति दीपक से विवाद भी हो जाया करता था.

बात सन 1981 के सितंबर की है. आंखों में अभिनेत्री बनने के सपने लिए ऊषा 2 साल के बेटे श्रीकांत को अपने साथ ले कर पुणे से मुंबई चल दी थी. उस ने कहीं सुना था कि फिल्मी दुनिया में कुंवारियों को हीरोइन के रूप में तरजीह दी जाती है. हालांकि शरीर की कसावट से वह अविवाहित लगती थी, लेकिन वास्तव में उस के पास तो अपना खुद का बेटा था. बेटे को ले कर वह परेशान थी.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने 2 साल के बेटे का क्या करे? मुंबई पहुंच चुकी ऊषा की समझ में जब कुछ नहीं आया तो उस ने अपने दुधमुंहे बेटे श्रीकांत को जानबूझ कर ट्रेन के डिब्बे में किसी निर्मोही की तरह बिलखता छोड़ दिया और सपनों की तलाश में मायानगरी में गुम हो गई.

ट्रेन में 2 साल के रोते बच्चे की आवाज टीटीई के कानों के परदे से टकराई थी. बच्चे की करुण क्रंदन सुन कर टीटीई ने डिब्बे के अंदर झांका तो बच्चे को अकेला रोता देख कर उस का हृदय भर आया था.

ट्रेन में सवार सभी यात्री उस में से उतर कर अपनेअपने गंतव्य स्थान को जा चुके थे. 2 साल का बच्चा ही डिब्बे में अकेला मां की गोद पाने के लिए बिलख रहा था. उस की मां उस के आसपास कहीं नहीं दिख रही थी.

प्लेटफार्म पर मौजूद तमाम यात्रियों से उस ने बच्चे के बारे में पूछताछ की थी, लेकिन किसी ने उस नन्हीं सी जान को नहीं पहचाना. टीटीई की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? अंत में टीटीई ने बच्चे को राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) को सौंप दिया. जीआरपी ने लिखापढ़ी करने के बाद वह बच्चा अनाथाश्रम को सौंप दिया था.

दुधमुंहे श्रीकांत का अपना भरापूरा परिवार था. घर था, प्यार करने वाले दादादादी और पिता थे, फिर भी वह अनाथों की तरह अनाथाश्रम में पहुंच गया था. वहां वह अन्य अनाथ बच्चों की तरह पल रहा था. उन अजनबी चेहरों के बीच नन्हा श्रीकांत अपनों को तलाशता रहता. उन में उस का अपना कोई नहीं था. अनजान और अजनबी चेहरों को देख कर वह अकसर रोता ही रहता था.

अगले दिन स्थानीय अखबारों में नन्हें श्रीकांत के ट्रेन में पाए जाने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की गई थी. समाचारपत्रों के माध्यम से लावारिस श्रीकांत की तसवीर राजस्थान के एक दंपति ने भी देखी. उस दंपति की अपनी कोई औलाद नहीं थी, जिस के बाद उस दंपति ने श्रीकांत को गोद ले लिया.

बाद में यह जानकारी श्रीकांत की नानी को मिली तो वह तड़प कर रह गईं. उन्होंने राजस्थान के उस दंपति से श्रीकांत को मांगा तो उन्होंने बच्चा देने से इनकार कर दिया. तब नानी ने कोर्ट की शरण ली. आखिर उन्होंने 4 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ कर राजस्थानी दंपति से श्रीकांत को हासिल कर लिया. उस समय श्रीकांत करीब 6 साल का हो चुका था. इस के बाद वह अपनी नानी के पास ही पलाबढ़ा.

तकदीर का खेल देखिए, जिस मजबूत वृक्ष के सहारे श्रीकांत को घनी छाया मिल रही थी, वही उस से सदा के लिए छिन गई. सन 1991 में उस की नानी सदा के लिए दुनिया छोड़ गईं. नानी के देहांत के बाद वह अपनी मौसी आशा के साथ रहने लगा. अब तक श्रीकांत की जिंदगी खानाबदोश की जिंदगी हो गई थी.

मौसी आशा से उसे पिछली जिंदगी की सारी सच्चाई पता चली तो श्रीकांत का कलेजा फट गया. मां पर उसे काफी गुस्सा आया लेकिन वह नहीं जानता था कि इस वक्त उस की मां कहां हैं? लेकिन मन ही मन उस ने ठान लिया कि मां को एक न एक दिन जरूर ढूंढ़ निकालेगा. तब उस से अपनी त्रासद जिंदगी के एकएक पल का हिसाब मांगेगा.

नानी के बाद सहारा बनी मौसी आशा ने श्रीकांत को एक नई जिंदगी दी. सन 2006 में उन्होंने श्रीकांत की शादी करा दी. नई जिंदगी की शुरुआत श्रीकांत ने अपने तरीके से की. वह बतौर एक मेकअप आर्टिस्ट अपने पैरों पर मजबूती से खड़ा हो गया और मां की तलाश में पुणे से मुंबई आ गया.

मुंबई के जुहू में किराए का कमरा ले कर पत्नी के साथ रहने लगा. वह जानता था कि उस की मां मुबंई में रहती है. दिनरात वह यही कोशिश करता था कि किसी तरह उस की मां से मुलाकात हो जाए.

आखिर श्रीकांत की यह इच्छा भी पूरी हो गई. सन 2017 में श्रीकांत सबनीस को सोशल मीडिया की मदद से किसी तरह मां का पता चल गया. वह उस तक पहुंचा था. लेकिन मां की सच्चाई जान कर वह हैरान रह गया था. मां ऊषा सबनीस से अब आरती महास्कर बन चुकी थी और किसी धनाढ्य उदय महास्कर से शादी कर के अपना संसार बसा चुकी थी. ऊषा से आरती महास्कर का चोला ओढ़े ऊषा ने पति से अपना अतीत छिपा लिया था.

उस ने यह बात दूसरे पति से कभी नहीं बताई थी कि पुणे के रहने वाले दीपक सबनीस से उस की शादी हुई थी. उस से अपना एक बेटा भी है, जिसे उस ने हीरोइन बनने की लालसा में मुंबई की ट्रेन में लावारिस छोड़ दिया था.

आरती महास्कर उर्फ ऊषा सबनीस ने यह राज अपने सीने में हमेशा के लिए दफन कर लिया था और उदय महास्कर के साथ नई जिंदगी की पारी शुरू कर दी थी. बाद के दिनों में उस से 2 बच्चे भी हुए, जो आज भी हैं.

कहते हैं, ठान लो तो पत्थर के सीने से भी दूध निकाल सकते हैं. श्रीकांत ने ऐसा ही कुछ किया था. मौसी आशा द्वारा बताई अतीत को सच साबित करने के लिए श्रीकांत ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और साथ ही अपने परिचितों से अपनी मां का पता लगाने का आग्रह भी किया. उस की मेहनत रंग लाई. डेढ़ साल बाद यानी सितंबर, 2018 में आखिरकार श्रीकांत ने मां ऊषा उर्फ आरती महास्कर का मोबाइल नंबर ढूंढ ही लिया.

उस ने मां से बात की. लेकिन मां आरती महास्कर ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने मां को याद दिलाने के लिए 38 साल पहले घटी पूरी घटना विस्तार से बताई तब जा कर उस की मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर ने यह तो स्वीकार किया कि वह उसी का बेटा है.

38 सालों से सीने में दबा राज अचानक सामने आया तो आरती महास्कर विचलित सी हो गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि वह इस राज को राज कैसे रखेगी. बच्चों के सामने जब यह सच्चाई खुल कर आएगी तो क्या होगा? यह सोच कर आरती महास्कर कांप गई थी.

इस से पहले कि आरती की सच्चाई खुल कर सब के सामने आती, उस ने पति उदय महास्कर को सारी सच्चाई बता दी. किसी तरह पतिपत्नी ने मामला आपस में फिलहाल सुलझा लिया था. एक दिन आरती और उदय महास्कर ने श्रीकांत को अपने पास बुलाया और उसे समझाया कि यह बात उन के बेटों से कभी नहीं बताएगा कि वह उन्हीं का बेटा है, नहीं तो उन के घर में भूचाल आ जाएगा.

श्रीकांत को मां और सौतेले पिता से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वे उसे अपना बेटा नहीं स्वीकारेंगे. मां के इनकार से उस का कलेजा छलनीछलनी हो गया था. उसी समय उस ने फैसला किया कि वह मां को इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगा.

38 सालों से जिस तरह वह अपनों के होते हुए भी उन के प्यार के लिए तरसा है, अनाथों की तरह यहांवहां जीया है, उन सब का हिसाब उन से जरूर लेगा. उस के बाद श्रीकांत मां के पास से लौट आया और मुंबई हाईकोर्ट की शरण में जा पहुंचा.

6 जनवरी, 2020 को श्रीकांत ने न्यायाधीश ए.के. मेनन की अदालत में एक याचिका दायर की. याचिका में उस ने लिखा था कि 38 साल पहले सन 1981 में मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर ने मुझे मुंबई (तब बंबई) स्टेशन पर ट्रेन में छोड़ दिया था.

मां भी यह मान चुकी थी कि ट्रेन में वह उसे छोड़ गई थी. मां ने यह तो माना कि वह उस का बेटा है. यह भी बताया कि कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के चलते उसे छोड़ना पड़ा था, लेकिन वह अब मिलना नहीं चाहती.

तब मैं ने वहीं जा कर मां और अपने सौतेले पिता उदय महास्कर से मुलाकात की. वहां उन दोनों ने कहा कि वह अपनी सच्चाई उन के बच्चों के सामने नहीं बताए. मैं एक तो पहले से ही परेशान था, लेकिन अपनी मां और सौतेले पिता की यह शर्त सुन कर और ज्यादा परेशान हो गया.

याचिका में श्रीकांत ने कहा कि कोर्ट मां को मुझे अपना बेटा घोषित करने और यह ऐलान करने का आदेश दे कि उस ने 2 साल की उम्र में उसे छोड़ दिया था. मैं ने बरसों तक मानसिक आघात सहा है और असुविधाओं को झेला है.

मां से बिछुड़ने पर जिंदगी दर्दभरी हो गई. मां की ममता को अनाथों की तरह तरसा है. मातापिता के होते हुए भी अनाथों की तरह रहा हूं. तब तक भिखारी की तरह जीना पड़ा, जब तक अपनी नानी के पास नहीं पहुंच गया. जिस ममता के लिए मैं तरसा हूं, मुझे बेटे का दरजा न देने के एवज में डेढ़ करोड़ का मुआवजा दें.

याचिकाकर्ता श्रीकांत सबनीस ने आगे बताया कि मैं अपने अतीत से बेखबर था. मेरी मौसी ने मुझे अतीत की पूरी हकीकत बयान की.

इस के बाद सोशल मीडिया की मदद से किसी तरह मैं अपनी मां ऊषा तक पहुंचा, लेकिन अब मां ऊषा सबनीस से आरती महास्कर बन चुकी थी और अपने दूसरे पति उदय महास्कर के साथ संसार बसा चुकी थी. अपनी पहचान बताने के बावजूद आरती महास्कर ने उसे सब के सामने बेटा स्वीकारने से इनकार कर दिया.

इसी के बाद श्रीकांत ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और पिछले 38 साल तक झेले मानसिक संत्रास के लिए डेढ़ करोड़ रुपए के मुआवजे की भी मांग की.

इस घटना ने देश भर में सनसनी पैदा कर दी थी. इस के बाद श्रीकांत सबनीस और आरती महास्कर के बीच जंग शुरू हो गई थी. यह मामला अभी भी न्यायालय में चल रहा है. कथा लिखे जाने तक मुकदमे में काररवाई जारी थी.

—कथा सोशल मीडिया पर आधारित

दोस्ती पर ग्रहण : दोस्ती बनी दुश्मनी

मंगलवार, 4 जून, 2019 को सूर्योदय हुए अभी कुछ ही समय हुआ था. राजस्थान के बाड़मेर जिले के हाथमा गांव के पास सोढो की ढाणी के पास कुछ लोगों ने सड़क किनारे एक युवक की लाश पड़ी देखी. लाश देखते ही उधर से गुजरने वाले लोग इकट्ठे हो गए. वहां रुके लोग उस युवक को पहचानने की कोशिश करने लगे. यह बात जब आसपास के गांव में फैली तो ग्रामीण भी वहां जुटने लगे.

गांव के किसी शख्स ने मरने वाले व्यक्ति की लाश पहचान ली. मृतक का नाम वीर सिंह था, जो पास के ही सोढो की ढाणी निवासी जोगराज सिंह का बेटा था. किसी ने यह खबर वीर सिंह के घर जा कर दी तो उस के घर में रोनापीटना शुरू हो गया. वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर छाती पीटपीट कर रोने लगी. रोतेबिलखते हुए वह भी उसी जगह पहुंच गई, जहां उस के पति की लाश पड़ी थी.

मौके पर मौजूद लोगों ने आक्रोश में आ कर सड़क जाम कर दी. उसी समय कुछ लोग थाना रामसर पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू को बताया कि साढो की ढाणी (हाथमा) निवासी 40 वर्षीय वीर सिंह कल दोपहर 2 बजे घर से कहीं जाने के लिए निकला था. आज उस का शव सड़क किनारे पड़ा मिला. किसी ने हत्या कर के लाश वहां फेंक दी है. इस घटना को ले कर लोगों में बहुत आक्रोश है इसलिए उन्होंने सड़क पर जाम लगा दिया है.

हत्या और सड़क जाम की खबर सुन कर थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ तुरंत साढो की ढाणी के पास वाली उस जगह पहुंच गए, जहां वीर सिंह की लाश पड़ी थी. पुलिस को देखते ही सड़क जाम कर रहे लोग पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. थानाप्रभारी ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन लोग एसपी को ही मौके पर बुलाने की मांग पर अडे़ रहे.

थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू ने घटनास्थल का निरीक्षण कर बाड़मेर के एसपी राशि डोगरा डूडी एवं एएसपी खींव सिंह भाटी को हालात से अवगत कराया. साथ ही निवेदन भी किया कि लोग एसपी साहब को ही मौके पर बुलाने की मांग कर रहे हैं.

स्थिति की गंभीरता को समझते हुए एएसपी खींव सिंह भाटी तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. एएसपी खींव सिंह भाटी और थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू ने लोगों को समझाया. एएसपी ने लोगों को आश्वस्त किया कि पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर लिया है.

मृतक वीर सिंह के सिर पर कई गहरे घाव थे, जो किसी धारदार हथियार के लग रहे थे. उस का सिर फटा हुआ था. वहां पैरों के या संघर्ष के निशान नहीं थे. शव पर लगा खून सूख चुका था. जिस स्थान पर शव पड़ा था वहां आसपास खून के धब्बे नहीं थे. इस से यही लग रहा था कि उस की हत्या कहीं और करने के बाद उस का शव यहां ला कर डाला गया था.

पुलिस ने मृतक की पत्नी और अन्य लोगों ने प्रारंभिक पूछताछ कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. एएसपी भाटी ने लाश का पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से कराने की मांग की. 3 डाक्टरों के पैनल ने वीर सिंह के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पुलिस को पता चला कि वीर सिंह के सिर पर लाठी व धारदार हथियार से 4 वार किए गए थे. उस के हाथपैरों पर भी चोट के निशान पाए गए. यानी उस की काफी पिटाई की गई थी. हत्या के इस केस को सुलझाने के लिए एसपी राशि डोगरा डूडी ने एक स्पैशल पुलिस टीम बनाई.

पुलिस ने जोरशोर से शुरू की जांच

स्पैशल टीम में विक्रम सिंह सांदू, एएसआई रतनलाल, जेठाराम, कुंभाराम, मुकेश, मोती सिंह, राजेश, पर्वत सिंह के साथ साइबर सेल के एक्सपर्ट को भी शामिल किया गया. इस स्पैशल टीम ने अपने मुखबिरों को भी इस मामले से संबंधित जानकारी जुटाने को कहा.

टीम ने मृतक की पत्नी दक्षा कंवर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 3 जून को दोपहर के समय कहीं गए थे, अगली सुबह सड़क किनारे उन की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. दक्षा ने किसी से रंजिश होने की बात नकार दी.

इस पर पुलिस ने वीर सिंह और उस की पत्नी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. दक्षा की काल डिटेल्स  से पुलिस टीम को पता चला कि उस की एक फोन नंबर पर अकसर बातें होती रहती थीं. जांच में वह फोन नंबर जिला बाड़मेर के गांव आंशू निवासी महेंद्र सिंह का निकला.

उधर मुखबिर से पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि महेंद्र सिंह 3 जून को वीर सिंह के घर के आसपास दिखाई दिया था, लेकिन वारदात के बाद वह न तो वीर सिंह के घर आया और न ही वारदात की जगह दिखाई दिया, जहां वीर सिंह की लाश बरामद हुई थी. जबकि वहां आसपास के गांवों के सैकड़ों लोग मौजूद थे.

इन बातों से पुलिस को महेंद्र पर शक होने लगा. पुलिस ने महेंद्र के फोन की भी काल डिटेल्स निकलवाई. महेंद्र की काल डिटेल्स से इस बात पुष्टि हो गई कि दक्षा और महेंद्र के बीच नजदीकी संबंध थे, पुलिस महेंद्र की तलाश में उस के घर पहुंची तो जानकारी मिली कि 4 जून को वह अपनी नौकरी पर गुजरात चला गया है.

उस के घर से गुजरात का पता लेने के बाद थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम महेंद्र सिंह को तलाशने के लिए गुजरात भेज दी. वहां वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. राजस्थान पुलिस महेंद्र को हिरासत में ले कर थाना रामसर ले आई.

उस से वीर सिंह की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वीर सिंह की हत्या में उस की पत्नी दक्षा कंवर भी शामिल थी. केस का खुलासा होने पर पुलिस ने चैन की सांस ली.

पूछताछ के लिए पुलिस वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर को भी थाने ले आई. थाने में महेंद्र सिंह को देख कर दक्षा के चेहरे का रंग उड़ गया. उस से भी उस के पति की हत्या के बारे में पूछा गया. उस के सामने सच्चाई बताने के अलावा अब कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा उस ने अपने पति वीर सिंह की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने 48 घंटे के अंदर 6 जून, 2019 को केस का खुलासा कर दिया था.

पुलिस ने अगले दिन 7 जून को आरोपी महेंद्र और दक्षा कंवर को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के 3 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में दोनों से वीर सिंह की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

वीर सिंह अपनी बीवी दक्षा कंवर को वह हर खुशी देना चाहता था, जो एक पत्नी चाहती है. वह खेतीकिसानी के अलावा मेहनत का हर काम कर के चार पैसे कमा कर बीवी को खुश रखना चाहता था. इसी वजह से वह अकसर गांव से बाहर रहता था. दिन में वह काम पर जाता और रात तक घर लौट आता था. घर पर पत्नी का प्यार पा कर उस की सारी थकान पल भर में काफूर हो जाती थी.

इस दंपति के दिन ऐसे ही हंसीखुशी से व्यतीत हो रहे थे. इसी दौरान महेंद्र सिंह के प्रवेश से उन दोनों के प्यार में बदलाव आ गया. घर का माहौल भी बदलने लगा. आंशू गांव निवासी महेंद्र सिंह वीर सिंह का हमउम्र दोस्त था. दोनों की अच्छीखासी दोस्ती थी. वीर सिंह महेंद्र को अपने भाई की तरह ही मानता था.

महेंद्र सिंह गुजरात में काम करता था. बाड़मेर ही नहीं, राजस्थान के हजारों लोग गुजरात के बड़ौदा, सूरत, अहमदाबाद, माणावदर, धौलका और अन्य शहरों में जिनिंग फैक्ट्रियों से ले कर कपड़े का कारोबार एवं हीरे की फर्मों में काम करते थे. महेंद्र भी हीरे की एक फर्म में काम करता था. जहां उसे अच्छे पैसे मिलते थे. बन संवर कर रहना महेंद्र का शौक था.

वीर सिंह ने फोन पर पत्नी और दोस्त को मिलाया

करीब डेढ़ साल पहले एक रोज महेंद्र सिंह के पास वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर का फोन आया. दक्षा ने उस से अपना फोन रिचार्ज कराने को कहा.

दरअसल दक्षा को अपना फोन रिचार्ज कराना था. उस ने अपने पति वीर सिंह को फोन किया. वीर सिंह ने उस से कहा कि वह महेद्र को फोन कर के अपना फोन रिचार्ज कराने को कह दे. वह करा देगा. इसी के बाद दक्षा कंवर ने महेंद्र को फोन कर के अपना फोन रिचार्ज कराने को कहा.

महेंद्र ने कुछ ही देर में दक्षा कंवर का मोबाइल फोन रिचार्ज करवा दिया. फोन रिचार्ज कराने के बाद महेंद्र ने फोन कर के दक्षा कंवर से कहा, ‘‘भाभीजी, जब भी आप को फोन रिचार्ज करवाना हो बेझिझक बता देना क्योंकि आप लोग ढाणी में रहते हो और वहां रिचार्ज की दुकान नहीं है. इसलिए आप परेशान हो जाती होंगी. मैं सब समझता हूं. इस के अलावा आप को किसी भी चीज की जरूरत हो तो बताना.’’

‘‘जरूर बताएंगे. आप को हम अपना ही मानते हैं. वैसे मेरी वजह से आप को कष्ट हुआ हो तो क्षमा चाहती हूं.’’ दक्षा कंवर ने कहा.

‘‘कैसी बात कर रही हैं आप भाभीजी. अपने लोगों का काम करने से कष्ट नहीं होता. बल्कि खुशी होती है.’’

इस पहली बातचीत के बाद दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह के बीच मोबाइल पर अकसर बातचीत होने लगी. थोड़े दिनों बाद यह हाल हो गया कि दिन में जब तक दक्षा और महेंद्र की बात नहीं हो जाती, उन्हें अच्छा नहीं लगता था. उन के बीच बातों का सिलसिला बढ़ता गया.

फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब दोनों के बीच प्यार हो गया. प्यार हुआ तो इजहार होना भी स्वाभाविक ही था. जल्दी ही दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर लिया. उस दिन के बाद महेंद्र धोखेबाज यार बन गया, तो दक्षा विश्वासघाती पत्नी. दोनों के बीच अवैध संबंध बन चुके थे. महेंद्र और दक्षा छिपछप कर तनमन से मिलने लगे.

काफी दिनों तक दोनों ने मिलने में सावधानी बरती. लाख कोशिशों के बावजूद उन के प्यार की भनक आखिर दक्षा के पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को पता लग ही गई.

उन औरतों ने वीर सिंह को बता दिया था कि आजकल उस की गैरमौजूदगी में महेंद्र उस की ढाणी आता है और दक्षा कंवर उस के आगेपीछे घूमती है. वीर सिंह समझ गया कि धुआं वहीं से उठता है, जहां आग लगती है, कहीं कुछ तो गड़बड़ है.

एक बार वीर सिंह के मन में शक उभरा तो फिर गहराता चला गया. इस के बाद वीर सिंह ने दोनों पर निगाह रखनी शुरू की. आखिर एक रोज वीर सिंह ने महेंद्र और दक्षा को रंगरलियां मनाते हुए पकड़ ही लिया. तब वीर सिंह ने महेंद्र को खूब खरीखोरी सुनाईं और भविष्य में उस के घर आने पर पाबंदी लगा दी.  महेंद्र के जाने के बाद उस ने पत्नी की पिटाई की.

वीर सिंह को बीवी की बेवफाई से गहरा आघात लगा. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का दोस्त आस्तीन का सांप निकलेगा. वीर सिंह ने पत्नी को चेतावनी दी कि अगर महेंद्र के साथ फिर कभी बात करते देख भी लिया तो वह दोनों को जिंदा नहीं छोडे़गा.

पति की चेतावनी से दक्षा डर गई. उस ने पति से वादा किया कि भविष्य में वह कभी भी महेंद्र से नहीं मिलेगी. दक्षा ने पति से वादा जरूर कर लिया था, लेकिन वह अपने वादे पर कायम नहीं रही. वैसे भी वीर सिंह और दक्षा कंवर के रिश्ते में दरार पड़ चुकी थी, जो वक्त के साथ बढ़ती गई.

दक्षा ने कुछ दिन बाद महेंद्र से फोन पर बातचीत करनी शुरू कर दी. इस बात की जानकारी उस के पति वीर सिंह को मिल गई थी. इस बात को ले कर वीर सिंह अकसर दक्षा की पिटाई कर के उसे सुधारने की कोशिश करता था. पर पति की मारपीट से वह सुधरने के बजाए ढीठ होती गई.

पति की आए दिन की पिटाई से दक्षा परेशान हो गई थी. एक दिन दक्षा ने महेंद्र को सारी बातें बता कर कहा कि वीर सिंह उसे किसी रोज मार डालेगा.

अब वह उसे फूटी आंख नहीं देखना चाहती. इसलिए तय कर लिया है कि घर में पति रहेगा या फिर मैं. उस ने महेंद्र से कहा कि अब वह उसे कहीं दूर ऐसी जगह ले जाए, जहां उन दोनों के अलावा कोई न हो.

‘‘ठीक कह रही हो तुम, जब तक वीर सिंह जिंदा है, तब तक हम चैन से मिल भी नहीं सकते. इस बारे में कोई उपाय तो करना ही पड़ेगा.’’ महेंद्र बोला.

वीर सिंह के चौकस रहने की वजह से दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह को मिलने का मौका नहीं मिल पाता था. आखिर 3 जून को उन्हें यह मौका मिल गया. वीर सिंह उस दिन कहीं गया था. दक्षा ने फोन कर के यह जानकारी महेंद्र को दे दी.

महेंद्र सिंह अपनी प्रेमिका दक्षा कंवर से मिलने उस के घर साढो की ढाणी जा पहुंचा. दोनों कई हफ्ते बाद मिले थे, लिहाजा दोनों बैठ कर बतियाने लगे. वे बातों में इतने मशगूल हो गए कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि वीर सिंह ढाणी में कब आ गया. जैसे ही दक्षा को आभास हुआ कि कोई ढाणी में है तो वह बदहवास सी आंगन में आ खड़ी हुई.

वीर सिंह कमरे की तरफ बढ़ गया. जहां से दक्षा बाहर आई थी. वीर सिंह को देख कर कमरे में मौजूद महेंद्र ने छिपने की कोशिश की, मगर वीर सिंह की नजरों से वह बच न सका.

महेंद्र पर नजर पड़ते ही वीर सिंह गुस्से से लाल हो कर बोला, ‘‘तुझे मैं ने घर आने से मना किया था, मगर तू नहीं माना. मैं आज तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’ कह कर वीर सिंह उस से भिड़ गया.

दोनों गुत्थमगुत्था हो गए तभी दक्षा कंवर  भी वहां आ गई. वह भी प्रेमी का पक्ष लेते हुए पति को पीटने लगी. महेंद्र ने वहां रखा पाइप और दक्षा कंवर ने कुल्हाड़ी उठा ली. दोनों वीर सिंह पर टूट पड़े. वीर सिंह सिर पर कुल्हाड़ी का वार झेल नहीं सका और बेहोश हो कर गिर पड़ा.

इस के बाद भी उन दोनों के हाथ नहीं रुके. कुल्हाड़ी के कई वार होने से वीर सिंह लहूलुहान हो गया और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

वीर सिंह के मरने के बाद दोनों डर गए. उन्होंने शव को घसीट कर अंदर छिपा दिया. फिर खून साफ किया. उस के बाद दोनों शव को छिपाने का उपाय खोजते रहे. आधी रात के बाद उन्होंने वीर सिंह का शव बैलगाड़ी में डाला और ढाणी से करीब एक किलोमीटर दूर सड़क किनारे यह सोच कर फेंक आए कि देखने वालों को लगेगा कि वीर सिंह की एक्सीडेंट में मौत हुई है.

शव फेंक कर महेंद्र और दक्षा वापस ढाणी आए और बैलगाड़ी पर रात में ही वार्निश कर दी ताकि खून के धब्बे दिखाई न दें.

घर में लगे खून को साफ करने के बाद दक्षा ने आंगन गोबर से लीप दिया. दिन निकलने से पहले ही महेंद्र अपने गांव आंशू लौट गया. फिर उसी दिन गांव से गुजरात चला गया.

सुबह होने पर 4 जून को जब लोगों ने सड़क किनारे वीर सिंह की लाश देखी तो लोगों की भीड़ जमा हो गई. इस के बाद पुलिस को खबर दी गई. पुलिस ने महेंद्र और दक्षा कंवर की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी व पाइप भी बरामद कर लिया. साथ ही दोनों के खून सने कपड़े भी बरामद हो गए.

उन दोनों की सोच थी कि वीर सिंह की मौत के बाद उन्हें कोई जुदा नहीं कर पाएगा. दोनों ऐशोआराम से जीवन गुजारेंगे. मगर उन की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह को पुन: बाड़मेर कोर्ट में पेश किया जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.      — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- मनोहर कहानियां, अगस्त 2019