4 लाख में खरीदी मौत

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर

साइको डैड : शक के फितूर में की बेटी की हत्या – भाग 1

दोपहर बाद बैंक की छुट्टी होने पर पौने 3 बजे के आसपास यशपाल सिंह जगदीशपुरा स्थित अपने घर पहुंचे तो जेब  से चाबी निकाल कर कमरे का ताला खोला और अंदर जा कर हाथ में लिया सामान टेबल पर रख दिया. इस के बाद उन्होंने बेटी के कमरे की ओर देखा. दरवाजा बंद था, इसलिए वह होठों ही होठों में बड़बड़ाए, ‘‘हरमीत अभी तक सो रही है?’’

हरमीत को आवाज देते हुए उन्होंने दरवाजे को धकेला तो वह खुल गया. कमरे में अंधेरा था. लाइट जलाने के बाद जैसे ही उन की नजर बेड पर पड़ी, भय से उन का शरीर कांप उठा और मुंह से चीख निकल गई. बेड पर उन की 17 वर्षीया बेटी हरमीत कौर की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.

यशपाल सिंह भाग कर बेड के पास पहुंचे और हरमीत की नब्ज टटोली कि शायद वह जिंदा हो लेकिन हरमीत मर चुकी थी. उस की गरदन आधी से ज्यादा कटी हुई थी, बाकी में बीचोबीच एक चाकू घुसा हुआ था. गरदन की कटी नसें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं. किसी ने बड़ी बेरहमी से उस की हत्या कर दी थी.

यशपाल सिंह लाश के पास बैठ कर रोने लगे. काफी देर तक रोने के बाद मन थोड़ा हलका हुआ तो उन्हें लगा कि इस तरह रोने से काम नहीं चलेगा. इस हत्या की सूचना पुलिस को देनी चाहिए. वह उठे और ताला लगा कर थाना कोतवाली पटियाला की ओर चल पड़े.

कोतवाली पहुंच कर यशपाल सिंह ने बेटी की हत्या की सूचना इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा को दी तो वह हैरान रह गए. क्योंकि यशपाल सिंह भीड़भाड़ वाले जिस इलाके में रहते थे, वहां दिनदहाड़े इस तरह घर में घुस कर हत्या करना आसान नहीं था.

बहरहाल, एएसआई प्रीतपाल सिंह और हेडकांस्टेबल कुलदीप सिंह को साथ ले कर इंसपेक्टर जसविंदर सिंह यशपाल सिंह के घर जा पहुंचे. वह एक शानदार कोठी थी. बरामदे में पहुंच कर इंसपेक्टर जसविंदर सिंह ने पूछा, ‘‘लाश कहां है?’’

‘‘जी, उधर कमरे में.’’ कह कर यशपाल ताला खोल कर पुलिस वालों को उस कमरे में ले गए, जहां बेड पर हरमीत कौर की लाश पड़ी थी.

मृतका के सिरहाने बेड पर कापीकिताबों का ढेर लगा था. एक किताब हाथ के पास पड़ी थी. शायद वह पढ़ते पढ़ते सो गई थी. सोते हुए में ही उस की हत्या की गई थी. उस का गला सामने की ओर से काटा गया था. चाकू अभी भी उस की गरदन में घुसा था. पुलिस ने देखा, बेड के आसपास कहीं खून नहीं था. चित्त पड़ी होने की वजह से शायद गरदन से बहा खून कपड़ों में समा गया था.

इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा ने इस हत्या की सूचना पुलिस अधीक्षक हरदयाल सिंह मान, डीएसपी (सिटी) केसर सिंह को देने के साथ क्राइम टीम को फोन कर के घटनास्थल पर बुला लिया था.

लाश का निरीक्षण करते समय इंसपेक्टर जसविंदर सिंह को मृतका की दाईं मुट्ठी में कुछ बाल दिखाई दिए. इस का मतलब मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था. लेकिन बिस्तर पर ऐसे कोई चिह्न नहीं दिखाई दे रहे थे. उन्होंने बेड पर रखी कापीकिताबों के ढेर में से एक नोटबुक उठा कर देखी तो उस के प्रथम पृष्ठ पर लिखा था, ‘लड़ना नहीं, आपस में प्यार से मिल कर रहना.’

इस के बाद उन्होंने अन्य नोटबुक उठा कर देखीं तो यही लाइन लगभग सभी कापी किताबों में लिखी थी. मृतका ने अपनी सभी कापी किताबों में यह लाइन क्यों लिखी थी, यह इंसपेक्टर जसविंदर सिंह की समझ में नहीं आया?

क्राइम टीम ने अपना काम कर लिया तो घटनास्थल की अपनी सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर मृतका हरमीत कौर के पिता यशपाल सिंह की ओर से हत्या का यह मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. यह 22 फरवरी, 2014 की बात है.

पूछताछ में यशपाल सिंह ने घटना के बारे में जो बताया था, पुलिस को उस में तमाम पेंच नजर आ रहे थे. उन्होंने बताया था कि जुलाई, 2008 से उन का अपनी पत्नी परमिंदर कौर से झगड़ा चल रहा था. वह अलग रहती थी. उस ने तलाक ले लिया था. उन की 2 संतानें थीं, 18 वर्षीया बेटी हरमीत कौर, जिस की हत्या हो चुकी थी और 16 वर्षीय बेटा रिपुदमन सिंह. पहले दोनों बच्चे मां के साथ ही रहते थे.

अक्तूबर, 2013 में अदालत के सुझाव पर बेटी हरमीत कौर उन के पास रहने आ गई थी. लेकिन अदालत ने हरमीत को पिता के साथ रहने का कोई लिखित आदेश नहीं दिया था. बस सुझाव दिया था. इसी सुझाव पर मांबाप का झगड़ा खत्म करने की गरज से हरमीत पिता के पास रहने आ गई थी.

यशपाल सिंह मालवा ग्रामीण बैंक बुग्धाकलां में असिस्टेंट मैनेजर थे. उन की पत्नी परमिंदर कौर भी माल रोड, पटियाला में कोऔपरेटिव बैंक में मैनेजर थीं. मृतका हरमीत कौर आईआईटी की तैयारी कर रही थी, इसलिए रातरात भर जाग कर पढ़ती थी.

जगदीशपुरा कालोनी वाली जिस कोठी में यशपाल सिंह बेटी हरमीत कौर के साथ रह रहे थे, वह उन के बहनोई रणजीत सिंह चहल की थी. चूंकि वह परिवार के साथ कनाडा में रहते थे, इसलिए उन्होंने यह कोठी यशपाल सिंह को देखभाल के लिए सौंप रखी थी. पत्नी से मनमुटाव होने के बाद गुरुनानक नगर की टैंक वाली गली की अपनी कोठी छोड़ कर वह इसी कोठी में रहने आ गए थे. जबकि उन की पत्नी परमिंदर कौर उसी गली में किराए पर रह रही थीं.

पूछताछ में यशपाल ने पुलिस को बताया था कि सुबह जब वह बैंक जाने के लिए घर से निकले थे तो हरमीत सो रही थी. सामने वाले दोनों कमरों के बीच एक दरवाजा था. एक कमरे में हरमीत सोती थी और दूसरे में वह खुद सोते थे. हरमीत बाहर वाला दरवाजा अंदर से बंद कर लेती थी. बीच वाला दरवाजा खुला रहता था. सुबह जाते समय यशपाल अपने कमरे के दरवाजे पर ताला लगा देते थे. हरमीत सो कर उठती थी तो अपना दरवाजा खोल कर बरामदे में आ जाती थी और पिता के कमरे का ताला खोल देती थी.

दिन के 11 बजे के बाद साफसफाई वाली आती थी. उस समय तक हरमीत जाग गई होती थी. लेकिन सफाई वाली के अनुसार उस दिन वह काम पर आई तो हरमीत सो कर नहीं उठी थी.

एहसान के बदले मिली मौत

मैनेजमेंट गुरु बना शातिर ठग

इंग्लैंड में रहने वाली एनआरआई महिला निशा करावद्रा भारत आई हुई थीं. घर पर बैठी वह एक दैनिक अखबार पढ़ रही थीं, तभी उन की नजर अखबार में छपे एक विज्ञापन  पर गई. वह विज्ञापन एक कार का था, रेनोल्ट डस्टर नाम की उस एसयूवी कार का नंबर वीआईपी था. निशा को भारत में एक लग्जरी कार की जरूरी थी. उन्हें वीआईपी नंबर की वह कार पसंद आ गई. विज्ञापन में जो फोन नंबर दिया हुआ था, निशा ने उस नंबर पर बात की.

दूसरी तरफ से बोलने वाले व्यक्ति ने अपना नाम लार्ड मुकुल पौल तनेजा बताते हुए खुद को यूके का नामी शख्स बताया. उस ने निशा को बताया, ‘‘मैडम, नई दिल्ली के हौजखास इलाके में अगस्त क्रांति मार्ग पर, मेफेयर गार्डन में बी-20 नंबर का मेरा बंगला है. आप बंगले पर आ कर कार देख सकती हैं.’’

निशा उसी दिन उस बंगले पर पहुंच गईं. उस बंगले में औडी सहित अन्य कई महंगी गाडि़यां खड़ी थीं. यह सब देख कर उन्हें यकीन हो गया कि मुकुल पौल तनेजा ने अपने बारे में उसे जो बताया था, वह सही होगा. निशा ने वह कार वीआईपी नंबर की वजह से खरीदने का मूड बनाया था. उस का नंबर था—यूके07एएक्स-0999. काले रंग की वह कार उन्हें अच्छी कंडीशन में दिखी.

कार को चकाचक हालत में देख कर उन्होंने उसे खरीदने का फैसला कर लिया. उन्होंने मुकुल पौल तनेजा से जब कार खरीदने के बारे में बात की तो साढ़े 10 लाख रुपए में उस का सौदा हो गया. बाद में कुछ फौरमैलिटी पूरी करने के बाद निशा ने मुकुल पौल तनेजा को साढ़े 10 लाख रुपए दे दिए.

अब केवल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) ट्रांसफर करने का काम बचा था. मुकुल पौल तनेजा ने उन्हें आश्वासन दिया कि हफ्ता भर में आरसी ट्रांसफर हो जाने के बाद गाड़ी उन्हें सौंप देगा. हफ्ते भर बाद कार सौंपने की बात पर निशा को भी कोई ऐतराज नहीं था.

निशा ने भी सोचा कि अब केवल आरटीओ औफिस से कागज ट्रांसफर होने रह गए हैं. यह काम होते ही गाड़ी उन्हें मिल जाएगी. हफ्ते भर बाद भी जब उन्हें कार की आरसी नहीं मिली तो उन्होंने मुकुल पौल तनेजा से फोन पर फिर बात की. तब उस ने बताया कि देहरादून आरटीओ औफिस में कागज ट्रांसफर होने की प्रक्रिया चल रही है, जैसे ही यह काम हो जाएगा, गाड़ी उन्हें सौंप देगा.

इसी तरह कई महीने बीत गए, लेकिन न तो उन्हें खरीदी गई कार के कागजात मिले और न ही कार. जब वह कुछ कहतीं तो तनेजा कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता. बार बार टालने पर उन्हें मुकुल की बातों पर शक होने लगा. तब उन्होंने देहरादून के आरटीओ औफिस में संपर्क किया.

वहां से उन्हें पता चला कि जो कार उन्होंने मुकुल पौल से खरीदी है, वह पंजाब नैशनल बैंक, मोतीबाग, नई दिल्ली से फाइनैंस कराई गई थी. फाइनैंस कराने के बाद कार की किस्तें जमा नहीं की गई थीं. इसलिए वह कार लोन चुकाए बिना किसी और के नाम नहीं की जा सकती. यानी बैंक से एनओसी लिए बिना कार की आरसी किसी दूसरे के नाम ट्रांसफर नहीं हो सकती थी.

यह जानकारी मिलते ही निशा के जैसे होश उड़ गए. क्योंकि तनेजा ने उन से यह बात नहीं बताई थी. निशा ने इस बारे में मुकुल पौल से बात की तो उस ने कहा, ‘‘बैंक का जो भी लोन था, मैं ने चुका दिया है. बैंक से एनओसी ले कर मैं अथौरिटी में जमा करा दूंगा. अब तक मैं किसी दूसरे काम में बिजी था, जिस की वजह से लेट हो गया. अब आप चिंता न करें, जल्द ही कागज तैयार करा दूंगा.’’

निशा को लग रहा था कि मुकुल उन्हें बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा है. फिर भी उन्होंने उस पर एक बार फिर से विश्वास कर लिया. काफी दिन बीत जाने के बावजूद भी निशा को आरसी नहीं मिली. अब निशा को लगने लगा कि मुकुल चीटर है. वह बारबार टाल कर उन्हें बेवकूफ बना रहा है. लिहाजा उन्होंने उस से अपने साढ़े 10 लाख रुपए वापस मांगे. तब उस ने पैसे लौटाने से मना कर दिया.

इतनी मोटी रकम भला वह कैसे छोड़ सकती थीं, इसलिए वह सख्त हो गईं. तब मुकुल पौल ने अपने राजनैतिक संबंधों का हवाला देते हुए उन्हें धमकाने की कोशिश की.

निशा चुप रहने वालों में नहीं थीं. उन्होंने ठान लिया कि वह धोखाधड़ी करने वाले इस शख्स को सबक जरूर सिखाएंगी. इंग्लैंड के एक सांसद जिन से निशा के अच्छे संबंध थे, से उन्होंने बात की और अपने साथ हुई धोखाधड़ी के बारे में बताया. उस सांसद ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से बात कर निशा करावद्रा की हेल्प करने की गुजारिश की.

इस के बाद निशा दिल्ली पुलिस कमिश्नर बी.एस. बस्सी से मिलीं और धोखाधड़ी करने वाले लार्ड मुकुल पौल तनेजा के खिलाफ कानूनी काररवाई करने की मांग की. कमिश्नर ने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच से कराने के आदेश दिए.

क्राइम ब्रांच के संयुक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने धोखाधड़ी के इस मामले की जांच के लिए एंटी एक्सटोर्शन सेल के एसीपी होशियार सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर विनय त्यागी, अतुल त्यागी, हेडकांस्टेबल राजकुमार, संजीव, जुगनू त्यागी, नरेश पाल, कांस्टेबल राजीव सहरावत, विपिन कुमार आदि को शामिल किया.

पुलिस टीम आरोपी लार्ड मुकुल पौल तनेजा की तलाश में जुट गई. पुलिस को दिल्ली में हौजखास के अलावा उस के देहरादून स्थित बंगले का पता भी मिल गया. दोनों ही जगहों पर पुलिस ने दबिश डाली. लेकिन वह नहीं मिला. शायद उसे पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी, इसलिए वह इधरउधर घूमता रहा.

अपने सूत्रों से पुलिस ने यह पता लगा लिया था कि मुकुल पौल एक ठग है. इस दौरान वह किसी और को अपना शिकार न बना ले, यह आशंका पुलिस को हो रही थी. उस का सुराग लगाने के लिए टीम ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. इस का नतीजा जल्द ही सामने आ गया. एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने आखिरकार 1 मई, 2014 को उसे दिल्ली की मुनीरका मार्र्केट के पास से हिरासत में ले लिया.

हिरासत में लिए जाने पर मुकुल पौल बौखला कर बोला, ‘‘लगता है, आप लोगों को कोई गलतफहमी हुई है. मैं ने किसी के साथ कोई चीटिंग नहीं की है. मैं एक हाईसोसायटी से हूं. मेरा संबंध राजनीति में रसूख रखने वाले लोगों से है, इसलिए आप लोग मुझे छोड़ दीजिए, वरना परेशानी में पड़ सकते हो.’’

पुलिस धमकी में न आ कर उसे पूछताछ के लिए अपने दफ्तर ले आई. 50 वर्षीय लार्ड मुकुल पौल तनेजा से जब क्राइम ब्रांच औफिस में पूछताछ शुरू हुई तो वह खुद को बेकुसूर बताता रहा. लेकिन पुलिस के पास इस बात के सुबूत थे कि उस ने निशा से साढ़े 10 लाख रुपए हड़प लिए थे. उन सुबूतों के आधार पर जब मुकुल पौल से पूछताछ की गई तो आखिर उसे निशा के साथ चीटिंग करने की बात स्वीकारनी पड़ी.

लार्ड मुकुल पौल तनेजा वास्तव में कोई आम आदमी नहीं था. पता चला कि वह एक उच्चशिक्षित लेखक, मैनेजमेंट गुरु और फिल्म प्रोड्यूसर था. उस से की गई पूछताछ के बाद ठगी का कारनामा करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

मुकुल पौल तनेजा दक्षिणी दिल्ली के हौजखास इलाके में मेफेयर गार्डन के रहने वाले अर्जुन कुमार तनेजा का बेटा था. अर्जुन कुमार एक निजी कंपनी में उच्च पद पर नौकरी करते थे.

मुकुल पौल की मां निर्मल तनेजा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निदेशक थीं, जो 1989 में रिटायर हो चुकी थीं. मुकुल पौल ने सन 1983 में वसंतकुंज के मौडर्न स्कूल से 12वीं कक्षा पास की थी. इस के बाद उस ने दिल्ली के ही शेख सराय स्थित कालेज औफ वोकेशनल स्टडीज से सन 1987 में मार्केटिंग में बीबीए किया.

मुकुल पौल पढ़ाई में बहुत होशियार था. पढ़ाई में अव्वल होने की वजह से उसे स्कौलरशिप मिलती रही. जिस से उस ने विश्व के कई देशों में जा कर पढ़ाई की. सन 1989 में उस ने लंदन के कार्डिफ बिजनैस स्कूल से एमबीए किया और उस के बाद एलएलएम की डिग्री हासिल की.

इस के बाद उस ने भारत और ब्रिटेन के विभिन्न प्रतिष्ठित स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयों में एमबीए में लेक्चर देने शुरू कर दिए. उस के लेक्चर पसंद किए जाने लगे. जिस के बाद उसे मैनेजमेंट गुरु के नाम से जाना जाने लगा.

बताया जाता है कि उस ने मैनेजमेंट पर कई किताबें भी लिखीं. उस की काबिलियत को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उसे लार्ड की उपाधि से सम्मानित किया.

मैनेजमेंट गुरु के रूप में लार्ड मुकुल पौल तनेजा की अब अच्छी पहचान बन चुकी थी. इसी बीच 1992 में वह भारत आ गया. यहां आ कर उसे जयप्रकाश ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई. सन 1992 से 1995 तक उस ने इस ग्रुप में नौकरी की. नौकरी में उसे एक निश्चित पगार मिलती थी, जबकि उस की चाहत उस से कहीं ज्यादा थी. इसलिए उस ने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया.

वह अपना कोई ऐसा बिजनैस करना चाहता था, जिस में उसे अच्छी आमदनी हो. एक साल बाद उस ने गारमेंट्स एक्सपोर्ट के बिजनैस में हाथ आजमाया. एमजीए एक्सपोर्ट नाम से उस ने एक एक्सपोर्ट फर्म खोली. इसी दौरान 1998 में राजस्थान के धौलपुर जिले के एक अमीर घराने की लड़की के साथ उस ने शादी कर ली.

लार्ड मुकुल पौल ने गारमेंट्स एक्सपोर्ट का जो बिजनैस शुरू किया था, उस में जब उसे घाटा होने लगा तो उस ने वह बिजनैस बंद कर दिया. फिर उस ने जम्मूकश्मीर विकास प्राधिकरण के साथ मिल कर होटल और रेस्तरां का बिजनैस शुरू किया. यह उस की बड़ी सोच थी. पूरे भारत में होटल और रेस्तरां खोलने की उस की योजना थी. लेकिन इस धंधे में भी उसे घाटा उठाना पड़ा तो उस ने सन 2001 में यह बिजनैस भी बंद कर दिया.

मुकुल पौल एक हाईक्लास फैमिली से ताल्लुक रखता था, उस का रहनसहन शानोशौकत वाला था. जबकि आमदनी उस की जरूरत से कम थी. बताया जाता है कि होटल का बिजनैस करते समय उसे जब जम्मूकश्मीर में रहना पड़ा तो उसी दौरान उसे आतंकी संगठन जेकेएलएफ की तरफ से धमकियां भी मिली थीं.

इस के बाद मुकुल पौल ने कमोडिटी ट्रेडिंग के क्षेत्र में हाथ आजमाया. उस ने यह धंधा बड़े पैमाने पर शुरू किया. इस के लिए उस ने नई दिल्ली के हौजखास और इंग्लैंड में औफिस खोले.  ब बिजनैस बड़े पैमाने पर शुरू किया तो उसे इस में मोटी रकम भी इनवैस्ट करनी पड़ी. कुछ दिनों बाद इस बिजनैस का भी वही हाल हुआ जो उस के दूसरे बिजनैसों का हुआ था. यानी इस में भी उसे मोटा घाटा हुआ.

लार्ड मुकुल पौल जिस बिजनैस में भी हाथ डाल रहा था, उसी में उसे घाटा उठाना पड़ रहा था. इस की एक वजह शायद यह थी कि काम शुरू करने से पहले उसे उन कामों की नालेज नहीं था. जिस का खामियाजा उसे बिजनैस के घाटे के रूप में देखने को मिल रहा था. लगातार घाटे से उबरने का उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.

बौलीवुड की कई हस्तियों से उस के अच्छे संबंध थे. मोटी कमाई के लिए उस ने बौलीवुड की कई आर्ट फिल्मों में पैसा लगाया. फिल्म फाइनैंस करने के अलावा उस ने फिल्में भी बनाईं, लेकिन फिल्में फ्लौप हो जाने से उसे बहुत इस में भी उठाना पड़ा. जिस से उस ने इस क्षेत्र में बढ़ाए अपने कदम भी खींच लिए. लेकिन अभिनेता शाहिद कपूर की मां नीलिमा अजीम से कानूनी विवाद होने की वजह से मुकुल पौल की फिल्म ‘नवाब नौटंकी’ पूरी नहीं हो सकी. नीलिमा अजीम ने भी मुकुल पौल को ठग बताया.

अपना सामाजिक स्तर बनाए रखने और शानोशौकत दिखाने के लिए मुकुल पौल ने औडी ए-6, सुजुकी किजाशी, फोक्सवैगन पोलो, फोर्ड इको स्पोर्ट्स, स्विफ्ट डिजायर, रेनोल्ट डस्टर आदि कारें खरीद रखी थीं. इन में से अधिकांश कारें विभिन्न बैंकों से लोन पर खरीदी गई थीं.

उस की शानोशौकत देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह कितना कर्जदार है. बल्कि उस के व्यक्तित्व को देख कर उस से पहली बार मिलने वाला व्यक्ति उस से प्रभावित हो जाता था.

गाडि़यों पर ही नहीं, उस ने अपने बंगले पर भी 70 लाख का लोन ले रखा था. उस ने विभिन्न बैंकों से लोन तो ले लिया था, लेकिन आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से वह लोन की किस्तें भी नहीं चुका पा रहा था.

दिल्ली के मोतीबाग स्थित पंजाब नैशनल बैंक की शाखा से उस ने रेनोल्ट डस्टर और सुजुकी किजाशी कारें खरीदने के लिए लगभग 20 लाख रुपए का लोन लिया था. लोन की अदायगी न करने पर बैंक ने लार्ड मुकुल पौल तनेजा को डिफाल्टर घोषित कर कर के  इस का विज्ञापन विभिन्न अखबारों में भी छपवा दिया था.

मुकुल पौल की इनकम बंद थी और उस के खर्चे जस के तस थे. उस ने कई बैंकों से पहले ही मोटा कर्ज ले रखा था, किस्त अदायगी न होने की वजह से पंजाब नैशनल बैंक उसे डिफाल्टर घोषित कर चुकी थी, जिस की वजह से बैंकों से कर्ज लेना उस के लिए अब आसान नहीं था. कोई दूसरा धंधा शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. पैसे कमाने के लिए वह क्या करे, यही सोच कर वह परेशान रहने लगा.

उस के पास जो लग्जरी कारें थीं, वे वीआईपी रजिस्टे्रशन नंबरों की थीं. उस ने उन्हीं लग्जरी कारों के जरिए धोखाधड़ी करने की योजना बनाई. उस ने विभिन्न अखबारों में वीआईपी नंबरों की लग्जरी कारों को बेचने के विज्ञापन देने शुरू कर दिए.  कोई व्यक्ति जब उस से कार खरीदने की बात करता तो वह गाड़ी का सौदा करने के बाद रकम ले लेता और गाड़ी व उस के रजिस्टे्रशन के कागज बाद में देने को कह देता.

कुछ दिनों बाद भी जब रजिस्टे्रशन सर्टिफिकेट उस व्यक्ति के नाम ट्रांसफर नहीं हो पाता तो वह व्यक्ति मुकुल पौल से शिकायत करता. मुकुल पौल उस व्यक्ति को कोई न कोई बहाना बना कर टालता रहता. फिर अंत में परेशान हो कर वह व्यक्ति मुकुल से अपने पैसे लौटाने की बात करता तो वह अपनी ऊंची राजनैतिक पहुंच होने की धमकी दे कर उसे चुप करा देता.

एनआरआई महिला निशा करावद्रा के साथ भी मुकुल पौल ने ऐसा ही किया. लेकिन निशा भी ऊंची पहुंच वाली महिला थीं, इसलिए वह उस की धमकी में नहीं आईं और ऐसे धोखेबाज आदमी को सबक सिखाने के लिए पुलिस का सहारा लिया. इस का नतीजा यह निकला कि लार्ड मुकुल पौल तनेजा पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

लार्ड मुकुल पौल तनेजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की वीआईपी नंबर की रेनोल्ट डस्टर कार भी बरामद कर ली. फिर उसे 2 मई, 2014 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. अब मामले की जांच सबइंसपेक्टर विनय त्यागी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

नफरत की गोली

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 3

तीनों बदमाश उस महिला सिपाही पर हावी नहीं हो पा रहे थे. इस के बाद तीनों ने उसे पकडऩे की कोशिश छोड़ कर उसे पीटना शुरू कर दिया, जिस से सिपाही बेसुध हो गई और ट्रेन के फर्श पर गिर पड़ी. तीनों बदमाशों ने उस के कपड़े फाड़ दिए.

इसी बीच मनकापुर स्टेशन आ गया. तब रात के करीब एक बज चुका था. तीनों को पकड़े जाने का डर हुआ फिर उन्होंने बेहोश महिला सिपाही को सीट के नीचे धकेल दिया. तीनों ने अपने मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिए और वहां से भाग निकले. हैडकांस्टेबल मानसी बेहोश होने के कारण सीट के नीचे पड़ी रही. रात करीब 3 बजे ट्रेन मनकापुर से प्रयागराज के लिए चली. उस समय तक मानसी को होश नहीं आया था.

सुबहसुबह 3 बज कर 40 मिनट पर ट्रेन अयोध्या स्टेशन पहुंची तो पूरा मामला खुला.

बदमाशों में मारा गया 30 वर्षीय अनीस खान और घायल आजाद खान ने नाबालिग हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसा लिया था और उन का धर्मांतरण कर निकाह कर लिया था. दोनों अयोध्या के हैदरगंज थाना क्षेत्र स्थित गांव दशलावन के निवासी हैं, जो अयोध्या शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर सुलतानपुर जिले की सीमा से सटा हुआ है.

अनीस ने दलित लडक़ी और आजाद ने पिछड़े समुदाय की युवती से निकाह किया था. आजाद की शादी हुए 13 साल हो चुके हैं और वह 4 बच्चों का बाप है. कहानी लिखे जाने तक पुलिस आजाद खान और विशंभर दयाल दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित. कथा में मानसी और मनोज परिवर्तित नाम हैं.

अनीस खान और आजाद खान ने हिंदू लड़कियों से किया था निकाह

मृतक अनीस खान और घायल आजाद खान अयोध्या के हैदरगंज थाना क्षेत्र स्थित गांव दशलावन के निवासी थे. अनीस खान ने अपने घर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित मनऊपर गांव की एक दलित समुदाय की युवती से निकाह किया था. निकाह से पूर्व उस युवती का नाम अंतिमा था, जबकि अब वह  बानो के नाम से जानी जाती है. बानो एक बच्ची की मां है.

अनीस खान की पत्नी बानो उर्फ अंतिमा की मां ने मीडिया को रोते हुए बताया कि उन की फूल सी बच्ची अंतिमा के पीछे अनीस खान तब से पड़ा था, जब वह नाबालिग थी. उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल आनेजाने के दौरान अनीस खान ने कक्षा 8 में पढ़ रही अंतिमा को अपने वश में कर लिया था.

अंतिमा की मां ने आगे बताया कि अनीस खान तो पहले नाबालिग उम्र में ही निकाह करना चाहता था, परंतु पुलिस के हस्तक्षेप के कारण वह अपने इरादे में कामयाब नहीं हो पाया था. उस के बाद अनीस खान ने अंतिमा के बालिग होने का इंतजार किया और उस के बालिग होते होते ही उसे अपने साथ ले गया.

अंतिमा की मां ने आगे बताया कि उन की 5 बेटियों और 2 बेटों के साथ पूरी बिरादरी ने इस रिश्ते का विरोध भी किया था. तब मामला पुलिस तक भी गया था और हम ने अनीस खान पर अंतिमा के अपहरण का आरोप लगाया था. हालांकि पुलिस छानबीन और पूछताछ के दौरान अंतिमा ने अपने आप को बालिग बताते हुए अनीस खान के साथ ही रहने की इच्छा जताई थी.

अपनी बेटी अंतिमा के महज 25-26 वर्ष की उम्र में ही विधवा हो जाने की खबर पर रोती हुई उस की मां ने बताया कि अब वह चाह कर भी अपनी विधवा बेटी को अपने परिवार में वापस नहीं ला पाएंगी. इस की वजह उन्होंने खुद को बिरादरी द्वारा बेदखल करने की चेतावनी और खुद के बेटों द्वारा अंतिमा से कोई संबंध न रखने का संकल्प बताया.

अंतिमा की मां ने रोते हुए मीडिया को बताया, “हम हिंदू वो मुसलमान. हमारा और इन का ये कैसा मेल. अपने ही धर्म में शादी की होती तो कुछ न कुछ रास्ता अवश्य निकल सकता था. अंतिमा के एक मुसलिम युवक के साथ निकाह कर लेने के बाद मेरे पति मानसिक रूप से बीमार हो गए और अब पागलों जैसी हरकत करते हैं. अगर हमारी बेटी अंतिमा हमारी नाक नीची न करती तो अनीस अब तक जेल की सजा काट रहा होता.”

अंतिमा की मां का दावा है कि 5 साल पहले निकाह होने के बाद उन्होंने या उन के परिवार ने कभी अपनी अपनी बेटी से बात तक नहीं की. उन को ये भी पता नहीं था कि उन की बेटी अंतिमा का नाम अब बानो हो चुका था.

अंतिमा की मां के अंतिम शब्द यह थे, “मैं ने उसे अपनी कोख से पैदा किया है. बहुत दर्द है अंदर ही अंदर हमें, परंतु अब हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उस घर में वह इतनी लंबी जिंदगी नहीं काट पाएगी, आप लोग ही उसे हिम्मत देना.”

वहीं दूसरी तरफ पुलिस मुठभेड़ में गिरफ्तार किए गए आरोपी आजाद खान ने भी एक ओबीसी समुदाय की हिंदू युवती से निकाह किया था, जो उसी दशलावन गांव की निवासी है. निकाह से पूर्व मुन्ना की बेटी सुमन अब शबाना के नाम से जानी जाती है.

सुमन उर्फ शबाना का आजाद खान से निकाह लगभग 13 साल पहले हुआ था. अब शबाना 4 बच्चों की अम्मी है. दशलावन गांव में अनीस खान और आजाद खान का घर लगभग अगलबगल ही है.

सुमन की मां ने कहा, “मेरी बेटी स्कूल जाती थी, तब से आजाद खान उस के पीछे लगा रहता था. स्कूल आतेजाते ही दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए थे. लगभग 13 साल पहले जब सुमन की उम्र 20 वर्ष की हुई थी तो दोनों ने निकाह कर लिया था. हम ने जब आजाद खान के खिलाफ केस दायर किया और पुलिस से ले कर कोर्ट तक में हम ने केस भी लड़ा था. मगर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो भला कौन क्या कर सकता था.

“सुमन ने खुद ही कोर्ट और पुलिस के आगे अपने बयान में आजाद खान के साथ रहने की इच्छा जताई थी. सुमन के इस बयान के बाद हम ने कभी भी सुमन या उस के घर की तरफ मुंह उठा कर भी नहीं देखा. हम एक ही गांव में रहते थे.”

रेप में फंसा दिल्ली सरकार का अधिकारी – भाग 3

डाक्टर्स उस के साथ हुई हैवानियत से आगबबूला हो गए. एक नाबालिग लडक़ी के साथ दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग का उपनिदेशक ऐसी घिनौनी हरकत करे और आजादी से घूमे, यह बरदाश्त से बाहर की बात थी.

एक डाक्टर ने तुरंत इस मामले की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दी. कंट्रोल रूम ने घटना से संबंधित उत्तरी दिल्ली के थाना बुराड़ी को तुरंत अवगत करा कर सेंट स्टीफन हौस्पिटल जा कर पीडि़ता के बयान दर्ज करने को कहा.

बुराड़ी थाने के एसएचओ राजेंद्र कुमार ने जिले के डीसीपी सागर सिंह कलसी को फोन कर के घटना के विषय में बताया, फिर अपने संग 2 महिला और 2 पुलिस कांस्टेबल को ले कर सेंट स्टीफन अस्पताल के लिए रवाना हो गए.

सेंट स्टीफन में जब एसएचओ राजेंद्र कुमार पहुंचे तब काउंसलिंग एक्सपर्ट और फोन करने वाले डाक्टर वहीं मीनाक्षी के बेड के पास मौजूद थे. इस 14 साल की नाबालिग लडक़ी को देख कर एसएचओ राजेंद्र कुमार ने गहरी सांस ली. वह उस व्यक्ति को कोसने लगे जिस ने इस फूल जैसी बच्ची से अपना मुंह काला किया था.

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मीनाक्षी अभी सो रही थी. एसएचओ राजेंद्र कुमार को काउंसलिंग एक्सपर्ट और डाक्टर ने संक्षिप्त में सारी बातें बता दीं. डीसीपी सागर सिंह कलसी भी वहां आ गए थे. मीनाक्षी का बयान लेने के लिए उसे जगाया गया और सीआरपीसी के सेक्शन 164 के तहत उसका बयान दर्ज किया गया. मीनाक्षी के बयान दर्ज कर के डीसीपी सागर सिंह कलसी और एसएचओ राजेंद्र कुमार लौट गए.

पुलिस ने महिला एवं बाल विकास विभाग के उपनिदेशक प्रमोदय खाका और पत्नी सीमा को पहुंचाया जेल

मामला दिल्ली सरकार के एक प्रतिष्ठित पद पर बैठे अधिकारी का था. उस पर एकदम से हाथ नहीं डाला जा सकता था. पुलिस उस के खिलाफ ठोस सबूत जुटाना चाहती थी. इस के लिए एसएचओ राजेंद्र कुमार ने बुराड़ी के चर्च में जा कर पादरी और वहां हमेशा आने वाले लोगों से प्रमोदय खाका के बारे में जानकारी जुटाई. पता चला कि प्रमोदय खाका वहां रविवार को अवश्य जाता था. वहां उस की दोस्ती मीनाक्षी के मम्मीपापा से हुई. चर्च में आने वाले लोगों ने बताया कि ये तीनों चर्च में आने पर एकदूसरे से हंसतेबोलते थे.

मीनाक्षी के घर भी एसएचओ ने जा कर मीनाक्षी के बारे में पूछताछ की, मीनाक्षी कैसी लडक़ी है, उस की मां का चरित्र कैसा है, यह सब आसपास रहने वाले लोगों से पूछा गया. सभी ने बताया कि मीनाक्षी अच्छी लडक़ी है. उस की मां पति की मौत के बाद एक फैक्ट्री में नौकरी करती है, वह अच्छे चरित्र की महिला है. उन के यहां प्रमोदय खाका आता रहता था. तीनों के बारे में पूछताछ कर के एसएचओ राजेंद्र कुमार वापस आ गए.

मीडिया तक मीनाक्षी के साथ हुए रेप और उस का अबार्शन करवाने की बात पहुंची तो अखबारों में प्रमोदय खाका और उस की पत्नी सीमा के विरुद्ध सुर्खियों में बहुत कुछ लिखा जाने लगा.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने प्रमोदय खाका की गिरफ्तारी की मांग कर डाली. दिल्ली सरकार ने तुरंत ऐक्शन लेते हुए खाका को नौकरी से सस्पेंड कर दिया. चारों ओर से दबाव बना तो पुलिस ने प्रमोदय खाका के बुराड़ी स्थित घर पर दबिश दे कर प्रमोदय की पत्नी सीमा को गिरफ्तार कर लिया. प्रमोदय खाका फरार था. पता चला कि वह अपनी अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट पहुंच गया था.

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पुलिस ने उसे उस की अग्रिम जमानत होने से पहले ही वहां से गिरफ्तार कर लिया. सीमा को कोर्ट में 21 अगस्त, 2023 को पेश कर उसे जेल भेज दिया गया.

22 अगस्त मंगलवार को प्रमोदय खाका की गिरफ्तारी हुई थी. उस पर थाने में भादंवि की धारा 376 (2) (महिला से बलात्कार), 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना), 328 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 313 (महिला की सहमति के बिना उस का गर्भपात करवाना), धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और पोक्सो अधिनियम (यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण का प्रावधान), 506 (आपराधिक धमकी देना) के अंतर्गत केस दर्ज किया गया.

पुलिस को प्रमोदय खाका का पोटेंसी टेस्ट (शुक्राणु की जांच से संबंधित) भी करवाना पड़ा, क्योंकि प्रमोदय खाका के वकील उमाशंकर ने चौंकाने वाला खुलासा किया था कि प्रमोदय खाका ने 2005 में अपनी नसबंदी करवा ली थी. हकीकत क्या है यह जांच रिपोर्ट आने के बाद पता चल सकेगा. कथा लिखने तक प्रमोदय खाका और उस की पत्नी सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मीनाक्षी और सुषमा परिवर्तित नाम हैं.

अवैध संबंधों में बेटी की हत्या

दादी के जिस कमरे में अभिरोज सोया करती थी, उसी कमरे में ज्योति ने पहले तकिए से अभिरोजप्रीत का गला दबा दिया. जब वह मरणासन्न अवस्था में हो गई तो उस ने रसोई से नमक कूटने वाली वजनी चीज से उस के सिर, मुंह, पांव, हाथ और अंगुलियों पर वार किए.

उस ने उस बच्ची के हाथों और दोनों पांवों को भी तोड़ दिया. जब अभिरोज की मृत्यु हो गई तो उस की लाश को बड़ी बाल्टी में डाल कर स्कूल के पास एक वीरान छप्पर के अंदर फेंक आई. हत्या की इस खबर से गांव रामपुराफूल में सनसनी फैल गई.

पंजाब के अमृतसर के गांव रामपुराफूल से 15 मई, 2023 की रात 10 बजे अमृतसर पुलिस को सूचना मिली कि उन के गांव की 7 साल की अभिरोजप्रीत कौर, जो गांव के ही सरकारी स्कूल में कक्षा 2 की छात्रा थी, 15 मई, 2023 की शाम 4 बजे ट्यूशन पढऩे घर से निकली थी, लेकिन वह अपनी ट्यूशन टीचर के पास नहीं पहुंची. वह रास्ते में ही गायब हो गई थी. जब रात के 10 बजे तक भी उस का कोई पता नहीं चला तो उस के घर वालों ने थाने में आ कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

गुमशुदगी दर्ज हो जाने के बाद पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस ने गांव में घरों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की तो उस में एक नया ऐंगल सामने आया. पुलिस को पता चला कि एक आदमी बाइक चला रहा था. बीच में एक बच्ची बैठी थी और बच्ची के पीछे एक औरत थी, जिस ने बच्ची को पकड़ रखा था.

इस बीच पुलिस ने अगवा हुई बच्ची के बारे में और जानकारी जुटानी शुरू की तो पता चला कि अगवा हुई बच्ची अभिरोजप्रीत कौर के पिता का नाम अजीत सिंह था. अजीत सिंह ने 2 विवाह किए थे. उन का पहला विवाह हरजीत कौर से हुआ था. उन की एक बेटी हुई, जिस का नाम अभिजोतप्रीत कौर रखा गया था.

शादी के 2 साल के बाद दोनों में आपस में मनमुटाव होने लगा. दिन प्रतिदिन दोनों के आपसी संबंध बद से बदतर होते जा रहे थे. तब दोनों ने आपसी रजामंदी से संबंध विच्छेद कर दिए. अजीत सिंह ने अपनी पहली पत्नी हरजीत कौर को तलाक दे दिया और बेटी अपने पास रख ली.

उस के बाद अजीत सिंह के घर वालों ने अजीत का दूसरा विवाह ज्योति के साथ कर दिया. सब ने यही सोचा था कि बेटी अभिजोतप्रीत कौर को एक नई मां मिल जाएगी और अजीत सिंह का जीवन पटरी पर आ जाएगा. ज्योति की एक बेटी हुई जो अभी 3 माह की थी.

मां पर हुआ बेटी की हत्या का शक

पुलिस छानबीन में जब सीसीटीवी फुटेज में एक आदमी और औरत के बीच एक छोटी बच्ची दिखाई दी तो सभी का शक अजीत सिंह की पहली पत्नी हरजीत कौर पर गया, क्योंकि अभिजीतप्रीत कौर उस की बेटी थी.

पुलिस पूछताछ में यह सामने आया कि जब से अभिजोतप्रीत कौर घर से गायब हुई थी, इस की खबर उस की सगी मां को मिली थी तो वह भी बहुत चिंतित थी. पुलिस ने हरजीत कौर से पूछताछ की तो वह निर्दोष पाई गई.

इधर 7 वर्षीय अभिजोतप्रीत कौर के अचानक गायब होने के बाद यह मामला सोशल मीडिया में सुर्खियों में छाता जा रहा था. अभिजोतप्रीत कौर की सौतेली मां बार बार मीडिया से अपनी बेटी को खोजने की रोरो कर गुहार लगा रही थी. ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की ओर से पुलिस पर दबाव बनाया जा रहा था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए जाने लगे थे.

इस के बाद पुलिस इस केस में पूरी मुस्तैदी से जुट गई और अपने मुखबिरों को भी काम पर लगा दिया. इधर अभिजोतप्रीत कौर की सौतेली मां ज्योति उस की फोटो मीडिया के सामने प्रस्तुत कर के रोरो कर अपनी बेटी को तलाशने का गुहार लगा रही थी.

सीसीटीवी कैमरे से पुलिस के हाथ लगा एक अहम सुराग

पुलिस ने पूरे गांव को सील कर के घरघर सघन तलाशी का अभियान चलाया. पूरे शहर भर में अभिजोत प्रीत कौर को ढूंढा गया, मगर पुलिस के पास हाथ अब तक कोई भी सुराग नहीं लग पाया था. लेकिन बाद में पुलिस के हाथ एक अहम सुराग लग गया.

ज्योति के घर के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे में सौतेली मां ज्योति एक बाल्टी में बच्ची के शव को ले जाते हुए दिखाई दी. उस के करीब 20 मिनट बाद वह खाली बाल्टी ले कर अपने घर पर आती दिखाई दी. सीसीटीवी फुटेज देखने के के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि अभिजोतप्रीत कौर के गायब होने में उस की सौतेली मां की भूमिका है.

कत्ल का सबूत हाथ में आते ही अमृतसर पुलिस ने हत्यारी मां ज्योति को हिरासत में ले कर उस से कड़ी पूछताछ की तो सारा मामला उजागर हो गया. उस ने अभिजोतप्रीत कौर की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने उस की निशानदेही पर गांव के स्कूल के पास से बच्ची की लाश बरामद कर ली. इस के बाद एसएसपी सतिंदर सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को अभिजोतप्रीत की हत्या का खुलासा कर दिया.

सौतेली मां देती थी यातनाएं

मृतका अभिरोजप्रीत कौर की नृशंस हत्या की खबर जब लोगों के सामने आई तो लोगों के दिल दहल उठे थे. इस संबंध में जानकारी देते हुए मृतका अभिरोजप्रीत कौर की ट्यूशन टीचर जगमोहन कौर ने बताया कि अभिरोजप्रीत कौर 15 मई को उस के पास ट्ïयूशन के लिए नहीं आई थी. वह गांव के सरकारी स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ती थी. पढ़ाई में वह काफी होशियार थी और स्कूल की हर गतिविधि में हमेशा सब से आगे रहती थी.

जगमोहन कौर ने बताया कि अभिरोजप्रीत कौर की सगी मां उसे छोड़ कर चली गई तो उस के पिता अजीत सिंह ने दूसरा विवाह ज्योति के साथ कर लिया था. इस के बाद तो उस मासूम बच्ची के ऊपर दुखों और यातनाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा था.

सौतेली मां ज्योति उसे यातनाएं दिया करती थी. इस के बारे में जब अभिरोजप्रीत कौर की दादी को पता चला तो वह हर रोज उसे स्कूल में छोडऩे और छुट्टी के वक्त घर लाया करती थीं. दादी का उस के प्रति काफी लगाव था. दादी स्कूल में दिन में भी उसे देखने आती रहती थी. उस की हर बात का, उस के हर सामान, कौपीकिताब, ड्रेस, खानेपीने का दादी विशेष ख्याल रखती थीं.

इस बीच दादी की तबीयत काफी खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा. क्योंकि उन के स्टेंट पडऩे थे, इसलिए वह पिछले 10 दिनों से आईसीयू में वेंटिलेटर पर थीं. इसी बात का फायदा उठाते हुए सौतेली मां ज्योति ने अभिरोजप्रीत कौर की हत्या कर डाली.

बेटी की मौत पर गमगीन पिता अजीत सिंह को गहरा सदमा लगा. उन्होंने बताया कि यह सोच कर ज्योति से विवाह किया था कि बेटी को भी एक मां मिल जाएगी, जो उस का सही तरह से लालनपालन कर सकेगी. लेकिन ज्योति ने शुरू से ही अभिरोजप्रीत को सच्चा प्यार नहीं दिया. बातबात पर उस से वह नाराज हो जाया करती थी. हर समय वह उसे डांटतीफटकारती रहती थी, इसलिए मेरी बेटी अपनी दादी के कमरे में ही सोया करती थी. दादी उसे बहुत प्यार करती थीं.

मां अवैध संबंधों पर डालना चाहती थी परदा

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर पता चला कि ज्योति की मौसी की बेटी प्रिया (काल्पनिक नाम) गांव के किसी युवक के साथ प्रेम करती थी. उन दोनों प्रेमियों को अभिरोजप्रीत ने एक दिन आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. तब बहन ने यह बात ज्योति को बता दी थी. इस पर ज्योति अभिरोज को यह बात किसी को न बताने की हर समय चेतावनी देती रहती थी.

बाद में ज्योति ने यह सोचा कि कहीं अभिरोजप्रीत ने अवैध संबंधों की यह बात घर वालों या गांव के किसी व्यक्ति को बता दी तो उस की बहन और उस के परिवार की सारे गांव में बदनामी हो सकती है. इसलिए उस ने अभिरोजप्रीत कौर का मर्डर करने का फैसला कर लिया.

पता चला कि दादी के जिस कमरे में अभिरोज सोया करती थी, उसी कमरे में ज्योति ने पहले तकिए से अभिरोजप्रीत का गला दबा दिया. जब वह मरणासन्न अवस्था में हो गई तो उस ने रसोई से नमक कूटने वाली वजन चीज से उस के सिर, मुंह, पांव, हाथ और अंगुलियों पर वार किए.

उस ने उस बच्ची के हाथों और दोनों पांवों को भी तोड़ दिया. जब अभिरोज की मृत्यु हो गई तो उस की लाश को बड़ी बाल्टी में डाल कर स्कूल के पास एक वीरान छप्पर के अंदर फेंक आई. हत्या की इस खबर से गांव रामपुराफूल में सनसनी फैल गई.

ज्योति से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पश कर जेल भेज दिया. ज्योति की मौसेरी बहन का हत्या में कोई सहयोग था या नहीं, इस बारे में पुलिस की जांच की जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 2

रेलवे पुलिस और एसटीएफ जुटी जांच में

इस बीच सर्विलांस की जांच टीम ने अयोध्या रेलवे स्टेशन पर सीसीटीवी फुटेज निकलवाई. साथ ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस मामले को एसटीएफ को सौंप दिया.एक तरफ फुटेज खंगाले जा रहे थे, जबकि दूसरी तरफ एसटीएफ की टीम अपराधियों तक पहुंचने के लिए लोगों से पूछताछ कर रही थी. इस के लिए एसटीएफ द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी. प्रैस विज्ञप्ति जन साधारण के लिए थी.

अखबारों में छपी विज्ञप्ति में घटनास्थल और घटना के बारे में जानकारी देने के साथसाथ अभियुक्तों के बारे में सूचना देने वालों को एक लाख रुपए इनाम की भी घोषण की गई थी. यह भी कहा गया था कि मामले का मुकदमा अपराध संख्या 29/2023 धारा 333, 353, 354ख, 304 भादंवि पंजीकृत किया गया है. इसी के साथ सूचना देने के लिए उत्तर प्रदेश के एएसपी (एसटीएफ), डीएसपी (एसटीफ) और विवेचक (एसटीएफ) के मोबाइल नंबर भी दिए गए थे.

एक तरफ मानसी अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ रेलवे पुलिस से ले कर यूपी पुलिस की एसटीएफ टीम अपराधियों को दबोचने के अभियान में तेजी ला चुकी थी. हालांकि घटना के 20 दिन से अधिक निकल चुके थे, लेकिन उन्हें कोई बड़ा सुराग हाथ नहीं लगा था. जबकि लोग यह जानने को इच्छुक थे कि आखिर उस रात चलती ट्रेन में मानसी के साथ बदमाशों ने क्या किया? वे बदमाश कौन थे,  जिन्होंने पुलिसकर्मी के साथ यह करने की जुर्रत की? इस घटना को ले कर पूरे इलाके में सनसनी थी.

वारदात के वक्त अयोध्या स्टेशन और मानेसर पर लगे सीसीटीवी फुटेज में 3 युवकों की फुटेज बारबार दिखाई दी थी. पुलिस ने उन तसवीरों के सहारे जांच शुरू कर दी थी. सैंकड़ों लोगों से पूछताछ के अलावा साइंटिफिक सर्विलांस और काल ट्रेसिंग के जरिए आखिर पुलिस आरोपियों तक पहुंच गई.

एनकाउंटर में मारा एक आरोपी

एसटीएफ को सूचना मिली कि मामले के तीनों संदिग्ध बदमाश मनकापुर स्टेशन पर साथसाथ उतरे थे. फिर क्या था, एसटीएफ की ओर से जांच की गति तेज हो गई. घटना की टाइमिंग को ले कर जांच शुरू हुई तो मनकापुर स्टेशन पर एक साथ 3 मोबाइल स्विच औफ होने की जानकारी मिली. इस के बाद सीसीटीवी फुटेज को खंगाला गया. संदिग्धों के स्केच तैयार किए गए. पुलिस ने मोबाइल नंबरों के आधार पर बदमाशों की खोज शुरू की. इसी आधार पर 22 सितंबर, 2023 की सुबहसुबह पुलिस ने बदमाशों को घेर लिया.

यह काररवाई भी कुछ कम नाटकीय तरीके से नहीं हुई. यूपी एसटीएफ आरोपियों के मोबाइल को ट्रैक कर रही थी. इसी क्रम में उन्हें इनपुट मिला कि तीनों इनायत नगर में छिपे हुए हैं. पुलिस ने लोकेशन को लौक करते हुए तीनों को घेर लिया.

पुलिस की घेराबंदी की सूचना मिलते ही तीनों बदमाशों ने पुलिसकर्मियों पर गोलीबारी शुरू कर दी. पुलिस ने भी जवाबी काररवाई की. दोनों तरफ से गोली चलने लगी. कुछ समय में इस एनकाउंटर के दौरान घिरता देख कर एक बदमाश वहां से भाग निकला. जबकि पुलिस ने कुछ देर में ही 2 बदमाशों को काबू में कर लिया. दोनों को गोली लग चुकी थी, इस कारण वे पकड़ में आ गए.

एक बदमाश के भागने पर पुलिस ने पूरे इलाके की नाकेबंदी करा दी. इसी बीच जानकारी आई कि वह बदमाश पुराकलंदर इलाके में छिपा हुआ है. यूपी एसटीएफ ने उसे वहां घेर लिया. उस से सरेंडर करने को कहा गया तो उस ने पुलिस पर\ गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

इस गोलीबारी में पुराकलंदर थाने के एसएचओ रतन शर्मा और 2 सिपाही घायल हो गए. एसएचओ रतन शर्मा के हाथ में गोली लगी. जबकि पुलिस की गोली से बदमाश घायल हो गया. उसे अस्पताल ले जाया गया. लेकिन वहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

अकेली देख बदमाशों ने बनाया शिकार

पकड़े गए बदमाशों ने अपना नाम विशंभर और आजाद बताया, जबकि मारा गया बदमाश अनीस था. पकड़े गए बदमाशों ने पूछताछ में बताया कि उन्होंने महिला हैडकांस्टेबल के साथ किस तरह से दरिंदगी की. कैसे उन्होंने प्रयागराज से अयोध्या जाने वाली सरयू एक्सप्रेस में उसे अपना निशाना बनाया.

दरअसल, अनीस, आजाद और विशंभर पेशे से चोर थे. ट्रेनों में चोरी करते थे. एसटीएफ द्वारा पूछताछ करने पर पता चला कि 30 अगस्त की रात 14234 सरयू एक्सप्रेस के कोच में ये तीनों चोरी करने के इरादे से सवार हुए थे. अयोध्या स्टेशन पर बोगी खाली हो चुकी थी. तीनों सीट पर बैठ कर ब्लू फिल्म देखने लगे.

सामने महिला हैडकांस्टेबल मानसी बैठी हुई थी. मानसी ने अपराधियों के इरादों को भांप लिया और अपनी सीट बदल ली. मानसी जैसे ही दूसरी सीट पर पहुंची तो पीछे से तीनों युवक भी आ गए. अयोध्या स्टेशन पर बचे पैसेंजर भी उतर गए थे. बोगी में उन तीनों के अलावा केवल मानसी ही थी. जैसे ही ट्रेन आगे बढ़ी, तीनों ने मानसी से मारपीट व जोरजबरदस्ती करनी शुरू कर दी.

45 वर्षीया हैडकांस्टेबल मानसी ने उन से अपना बचाव भी किया, किंतु वह तीनों बदमाशों के आगे तब पस्त पड़ गई, जब उन्होंने उस पर वार करना शुरू कर दिया. इसी दौरान एक बदमाश ने उन के चेहरे पर धारदार हथियार से हमला कर दिया. असंतुलित मानसी के सिर को खिडक़ी से टकरा दिया. उस के सिर से खून निकलने लगा था. चेहरा भी जगह जगह कट चुका था. इस के बाद भी वह उन से लड़ रही थी.