खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की – भाग 3

जीतो के बयान और नरेश तथा कुलदीप की गवाही के आधार पर पुलिस राज के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भिजवा देगी, क्योंकि जीतो के मैडिकल में इस बात की पुष्टि हो जाती कि उस के साथ शारीरिक संबंध बनाया गया है. छेड़छाड़ के आरोप में तुरंत दोनों की जमानत हो जाती, जबकि दुष्कर्म के आरोप में राज को जेल भेज दिया जाता.

इस काम के लिए सुरजीत ने नरेश और कुलदीप को 5-5 हजार रुपए तथा जीतो को 10 हजार रुपए एडवांस भी दिए थे. इतने ही रुपए उन्हें तब और मिलने थे, जब वे रिपोर्ट की कौपी सुरजीत को देते. यह सारी कारगुजारी सुरजीत की बनाई थी.

बहरहाल, मैं ने परमजीत सिंह से उन तीनों के बयान दर्ज कर के जीतो को अस्पताल ले जा कर मैडिकल कराने को कहा. इस के बाद मैं ने थाना मानावाला से हवलदार जसबीर को बुलवा कर पूछा, “यह राज वाला क्या मामला है?”

उस ने सब कुछ सचसच बता दिया. उस ने कहा कि वह न राज को जानता है और न ही उसे उस के द्वारा की गई किसी छेड़छाड़ की बात मालूम है. सुरजीत ने उसे रुपए दे कर राज पर झूठा मुकदमा दर्ज कराने के लिए कहा था. लेकिन बीच में राज के पत्रकार पिता के आ जाने से वह राज पर कोई कार्यवाई नहीं कर सका था.

जसबीर ने यह भी बताया था कि उस के बाद भी सुरजीत उस के पास आया था और कह रहा था कि वह चाहे जितने रुपए ले ले, लेकिन राज पर दुष्कर्म का केस बना कर उसे जेल भिजवा दे. लेकिन उस ने उसे साफ मना कर दिया था. शायद इसीलिए वह उस का थानाक्षेत्र छोड़ कर अपने मंसूबे को पूरे करने के मेरे थानाक्षेत्र में आया था.

मैं ने जसबीर की मुलाकात राज और अमन सिंह से भी कराई और उसे पूरी कहानी बताई. इस के बाद मैं ने उस से कहा कि सुरजीत ने राज के खिलाफ अपनी बहन से छेड़छाड़ की जो झूठी रिपोर्ट दी थी, उस पर वह उस के खिलाफ कार्यवाई करे. जसबीर इस के लिए तैयार हो गया.

अब तक परमजीत सिंह जीतो का मैडिकल करवा कर लौट आए थे. इस के बाद मैं ने नरेश, कुलदीप और जीतो से पूछा, “इस के बाद सुरजीत ने तुम लोगों से क्या करने को कहा था?”

“उस ने कहा था कि रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मैं उसे फोन करूं. इस के बाद वह आता और रिपोर्ट की कापी ले कर मेरे बाकी रुपए देता.” जीतो ने कहा.

“ठीक है, तुम उसे फोन कर के बताओ कि रिपोर्ट दर्ज हो गई है. पुलिस राज को पकड़ने उस के औफिस गई है.”

मेरे कहने पर जीतो ने सुरजीत को फोन कर के वही सब कहा, जो मैं ने उसे समझाया था. सुरजीत ने जीतो से आधे घंटे बाद मेन बाईपास चौक पर मिलने को कहा. मैं ने परमजीत सिंह और जसबीर के नेतृत्व में एक टीम तैयार की और जीतो के साथ सुरजीत को पकड़ने के लिए भेज दी.

दरअसल, मुझे सुरजीत पर बहुत गुस्सा आ रहा था. इसलिए नहीं कि राज मेरे दोस्त अमन सिंह का बेटा था, गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि बहन की गलती मान कर उसे समझाने के बजाय वह एक निर्दोष को सजा दिलवाना चाहता था, वह भी सिर्फ अपने अहं और झूठी शान के लिए. इस तरह के लोग एक तरह से समाज पर कलंक हैं और घृणा के पात्र बन जाते हैं.

बहरहाल, सुरजीत को पकड़ने गई टीम खाली हाथ लौट आई. वह बाईपास पर नहीं आया. पुलिस टीम उस के घर भी गई, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. जीतो ने कई बार फोन कर के उस से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. शायद उसे पुलिसिया कार्यवाई की भनक लग गई थी. वह फरार हो गया था.

बहरहाल, जीतो, नरेश और कुलदीप के खिलाफ मैं ने कार्यवाई करनी शुरू कर दी. नरेश पर मैं ने जीतो से दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करना चाहा तो जीतो और नरेश मेरे पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगे.

नरेश ने जीतो के साथ शारीरिक संबंध तो बनाए ही थे, जो मैडिकल रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गए थे. लेकिन जीतो ने कहा, “साहब, हम से गलती हो गई है, हमें माफ कर दें. यह संबंध मेरी मरजी से बने थे.”

जीतो के इस नए बयान पर मैं ने नरेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करने के बजाय इम्मोरल ट्रैफिकिंग एक्ट (देह व्यापार) का मुकदमा दर्ज कर उन्हें हिरासत में ले लिया. कुलदीप के खिलाफ मैं ने जीतो से छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज किया. अगले दिन तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जमानत मिल गई.

यह संयोग की ही बात थी कि राज मेरे पत्रकार दोस्त का बेटा था, वरना सुरजीत अपनी घिनौनी योजना को अंजाम दे कर एक भले लडक़े को जेल भिजवा कर उस पर एक ऐसा कलंक का टीका लगा देता, जो पूरी जिंदगी न छूटता. इस से उस का जीवन भी अंधकारमय हो जाता.

प्रस्तुति:

—कथा सत्य घटना पर आधारित, पात्रों के नाम बदले गए हैं.

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 3

रईस मंसूरी ने बाद में इनवर्टर का काम शुरू कर दिया. उस ने एकएक कर के 4 शादियां कीं. 3 बीवियों को वह तलाक दे चुका था, अब चौथी बीवी नुसरतजहां के साथ रह रहा था. पति के मरने के बाद तसलीमा को आर्थिक परेशानी हुई तो रईस ने उस की काफी मदद की. इस वजह से वह रईस की एहसानमंद हो गई.

तसलीमा की बेटियां जवान हो चुकी थीं. रईस की नीयत उस की बड़ी बेटी पर खराब हो गई. वह उसे फंसाने की कोशिश करने लगा. उसे इस बात की भी शर्म नहीं आई कि वह उस के लंगोटिया यार की बेटी है. एक तरह से वह उस की बेटी की तरह है. लेकिन उस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

उसे फंसाने के लिए वह उस की पसंद की चीजें खरीद कर देने लगा. आखिर एक दिन वह अपनी योजना में सफल हो गया. नाजायज संबंध बने तो यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. उस ने उस के अंतरंग संबंधों की मोबाइल से फिल्म भी बना ली थी.

तसलीमा के घर वालों को रईस मंसूरी पर इतना विश्वास था कि कोई उस के बारे में कुछ गलत सोच भी नहीं सकता था. इसी की आड़ में वह अपने मंसूबे पूरे कर रहा था. कुछ दिनों बाद तसलीमा की बेटी ने महसूस किया कि रईस से संबंध बना कर उस ने ठीक नहीं किया, क्योंकि वह उस की पिता की उम्र का है. उस से वह शादी भी नहीं कर सकती.

यह अहसास होने के बाद वह उस से दूरियां बनाने लगी. लेकिन रईस उस का पीछा छोडऩे को तैयार नहीं था. उस ने जो वीडियो बना रखी थी, उसी के बल पर वह उसे ब्लैकमेल करने लगा. रईस ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को इंटरनेट पर डाल देगा. इस धमकी से वह डर गई. इस तरह रईस उस का शारीरिक व मानसिक शोषण करने लगा.

तसलीमा का बेटा आलम अब जवान हो चुका था. वह दुनियादारी समझने लगा था. अपने घर आने वाले रईस की गतिविधियां उसे अच्छी नहीं लगती थीं. क्योंकि वह जब भी उस के घर आता था, उस की बहन के आगेपीछे मंडराता रहता था. वह रईस से तो कुछ कह नहीं कहा, क्योंकि वह उस के मरहूम पिता की उम्र का था. उस की अम्मी भी उस की बड़ी इज्जत करती थी. इसलिए उस ने बहन को ही डांटा कि वह रईस ज्यादा बातें न किया करे.

आलम को पता नहीं था कि बात तो उस की बहन भी नहीं करना चाहती, पर रईस ने वीडियो फिल्म का ऐसा खौफ उस के दिल में बैठा दिया है कि ना चाहते हुए भी वह रईस की हर बात मानती है. एक दिन आलम के एक दोस्त ने अपने मोबाइल में उसे एक वीडियो दिखाई. वह वीडियो देख कर आलम का खून खौल उठा. उस वीडियो में उस की बहन रईस के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. उस के दोस्त को वह फिल्म रईस ने ही दी थी.

इस के बाद रईस आलम का दुश्मन बन गया. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह उसे उस के किए की सजा जरूर देगा. अपने दिल में उठ रहे गुस्से के सैलाब को उस ने जाहिर नहीं होने दिया और रईस को ठिकाने लगाने का उपाय खोजने लगा. आखिर उस ने एक खौफनाक योजना बना ही ली.

आलम को अपने घर में इनवर्टर लगवाना था. चूंकि रईस इनवर्टर का काम करता था, इसलिए उस ने रईस को इनवर्टर लगाने के लिए 5 हजार रुपए दे दिए. रईस के पास काम ज्यादा था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे टाइम मिलेगा, वह आलम के यहां जा कर इनवर्टर लगा देगा.

आलम ने रईस को फोन किया तो उस ने आलम से कह दिया कि 15 दिसंबर की शाम को वह उस के यहां इनवर्टर लगा देगा. आलम ने उसी दिन रईस को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस काम में उस ने अपने एक दोस्त शोएब को भी शामिल कर लिया.

उस दिन शाम को वह रईस के आने का इंतजार करने लगा. शाम साढ़े 7 बजे तक रईस उस के यहां नहीं पहुंचा तो उस ने उसे फोन किया. फोन पर बात करने के कुछ देर बाद रईस अपनी स्कूटी से आलम के यहां पहुंच गया.

योजना के अनुसार, आलम ने शराब की एक बोतल पहले से ही खरीद कर रख ली थी. रईस ने जब उस के यहां इनवर्टर लगा दिया तो वह रईस को एक कमरे में ले गया. उस कमरे में मेज पर शराब की बोतल और नमकीन पहले से ही रखी थी.

आलम ने कहा, “इनवर्टर लगने की खुशी में मैं ने छोटी सी पार्टी रखी है.”

रईस मना नहीं कर सका और आलम तथा शोएब के साथ शराब पीने बैठ गया. आलम ने तेज आवाज में डेक बजा दिया. जैसे ही उन का पीनेपिलाने का दौर खत्म हुआ, आलम अपनी जगह से उठा और कमरे में पहले से रखे हथौड़े से रईस के सिर पर जोरदार वार कर दिया. एक ही वार में रईस बिना कोई आवाज किए नीचे गिर गया. सिर से खून बहने लगा. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या के बाद उन के सामने समस्या लाश ठिकाने लगाने की थी. नाराज आलम ने उस की गरदन काट दी. इस के बाद उस ने लाश के टुकड़े कर के 4 बोरों में भर दिए और आधी रात को उन बोरों को एकएक कर के रामगंगा नदी के किनारे फेंक आया. कमरे में जमीन पर जो खून फैला था, उसे भी उस ने मिट्टी सहित कुरच कर एक बोरे में भर दिया और उसे भी जामा मस्जिद के नाले में डाल आया. उस की स्कूटी को उस ने रामगंगा नदी के पार मजार के पास बने कुंड में फेंक दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आलम के साथी शोएब को भी गिरफ्तार कर लिया. आलम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू, आरी के ब्लेड, मृतक का मोबाइल फोन और स्कूटी बरामद कर ली. इस के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों व अभियुक्त आलम के बयान पर आधारित. कथा में तसलीमा परिवर्तित नाम है)

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 3

7 नवंबर को भी प्रियंका ने सुरेंद्र को नींद की गोलियों वाला दूध पीने को दिया. लेकिन उस रात सुरेंद्र कुछ नशे में था, इसलिए उस ने दूध पीने के बजाय चारपाई के नीचे रख दिया. सुरेंद्र खर्राटे भरने लगा तो प्रियंका ने समझा कि नींद की गोलियों का असर है. फलस्वरूप उस ने अपने प्रेमी करन को बुला लिया और उस के साथ दूसरे कमरे में चली गई.

आधी रात में लघुशंका के लिए सुरेंद्र की नींद खुली तो प्रियंका बैड पर नहीं थी. वह कमरे से बाहर आया तो पास वाले कमरे का दरवाजा बंद था और भीतर से चूडिय़ों के खनकने और मस्ती की दबीदबी आवाजें गूंज रही थी. कमरे में हलकी रोशनी वाला बल्ब जल रहा था. दरवाजे में झिर्री थी.

सुरेंद्र ने झिर्री से आंख लगा कर देखा तो प्रियंका और करन एकदूसरे में समाए थे. सुरेंद्र का खून खौल उठा. उस ने दरवाजे को जोर से धकेला तो वह खुल गया. सुरेंद्र को अचानक अंदर आया देख प्रियंका और करन हक्केबक्के रह गए. दोनों कपड़े ठीक कर पाते, उस के पहले ही सुरेंद्र प्रियंका को जानवरों की तरह पीटने लगा.

करन से न रहा गया तो उस ने पिटाई का विरोध किया. इस पर सुरेंद्र और करन में गालीगलौज व मारपीट होने लगी. उसी समय प्रियंका ने प्रेमी करन को उकसाया, “आज इस बाधा को खत्म कर दो. न रहेगा बांस, न बजेबी बांसुरी.”

प्रियंका के उकसाने पर करन ने सुरेंद्र को जमीन पर पटक दिया और दोनों ने मिल कर सुरेंद्र का गला घोंट दिया. इस के बाद उन्होंने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सुरेंद्र के दाहिने हाथ में उस का नाम लिखा था. उसे मिटाने के लिए करन ने कुल्हाड़ी से उस का दाहिना हाथ काट डाला. इस के बाद वह हाथ और खून सनी कुल्हाड़ी गांव के किनारे से बहने वाली सेंगुर नदी में फेंक आया. लौट कर उस ने प्रियंका के साथ मिल कर लाश को चादर में लपेटा और कमरे में ही बंद कर दिया.

सुबह प्रियंका ने पड़ोसियों और अपने जेठ रघुराज को बताया कि कल सुरेंद्र मूसानगर कस्बा कुछ सामान लेने गया था, लेकिन वापस नहीं आया. रघुराज ने उस की खोज शुरू की. लेकिन कहीं उस का कुछ पता नहीं चला. उस का मोबाइल भी बंद था.  प्रियंका भी पति के लिए बेचैन थी. वह बारबार घर वालों पर दबाव डाल रही थी कि जैसे भी हो, वे लोग उन की खोज करें. जबकि सुरेंद्र की लाश घर के अंदर ही कमरे में पड़ी थी. प्रियंका और करन को उसे ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला था.

2 दिनों तक सुरेंद्र की लाश घर में पड़ी रही, जिस के कारण दुर्गंध फैलने लगी. यह देख कर दोनों ने गड्ढा खोद कर उसे दफनाने का फैसला किया. 9 नवंबर की रात 11 बजे जब गांव के लोग सो गए तो करन और प्रियंका ने सुरेंद्र की लाश को घर से बाहर निकाला और साइकिल पर रख कर खेतों की ओर चल दिए.

उन के गांव के बाहर पहुंचते ही कुत्ते तेज आवाज में भौंकने लगे. इस से दोनों घबरा गए. लोग जाग जाते तो उन के पकड़े जाने का डर था. इसलिए वे लाश को खेत की मेड़ पर फेंक कर घर लौट आए. 10 नवंबर की सुबह गांव के लोग दिशामैदान गए तो उन्होंने खेत की मेड़ पर हाथ कटी लाश देखी. इस से गांव भर में हडक़ंप मच गया.

रघुराज भी लाश देखने गया. लाश देखते ही वह रो पड़ा, क्योंकि लाश उस के छोटे भाई सुरेंद्र की थी. खबर पा कर प्रियंका भी पहुंची और त्रियाचरित्र दिखाते हुए बिलखबिलख कर रोने लगी.

रघुराज ने थाना मूसानगर पुलिस को सूचना दे दी. खबर मिलते ही थानाप्रभारी जितेंद्र कुमार सिंह और सीओ नरेशचंद्र वर्मा पुलिस बल के साथ आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि हत्या 2 दिन पूर्व कहीं दूसरी जगह की गई थी और शिनाख्त मिटाने के लिए हाथ काट कर कहीं और फेंका गया था. यह अनुमान इसलिए लगाया गया, क्योंकि रघुराज के अनुसार, सुरेंद्र के हाथ पर नाम लिखा था.

चूंकि लाश की शिनाख्त हो गई थी, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र की लाश को पोस्टमार्टम के लिए माती भेज दिया. सीओ नरेशचंद्र वर्मा ने मृतक के भाई रघुराज और पत्नी प्रियंका से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि मृतक सुरेंद्र सूरत में नौकरी करता था और करवाचौथ पर घर आया था. वह घर का सामान लेने मूसानगर गया था. लेकिन लौट कर नहीं आया. उन्होंने यह भी बताया कि मृतक की गांव में न तो किसी से रंजिश थी और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा. पता नहीं उसे किस ने मार डाला.

नरेशचंद्र वर्मा ने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा कर के हत्यारों को गिरफ्तार करें. तेजतर्रार इंसपेक्टर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपनी जांच की शुरुआत प्रियंका से शुरू की. लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली.

उन्होंने कई अपराधियों को भी पकड़ कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा न हो सका. धीरेधीरे डेढ़ महीने बीत गए, लेकिन हत्यारे के बारे में कुछ भी पता न चल सका. निराश हो कर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

29 दिसंबर  को एक मुखबिर थाना मूसानगर पहुंचा और उस ने जितेंद्र कुमार सिंह को बताया कि वह यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन सुरेंद्र की हत्या का राज उस के घर में ही छिपा है. अगर उस की पत्नी प्रियंका और उस के भतीजे करन से पूछताछ की जाए तो हत्या का रहस्य खुल सकता है. क्योंकि करन और प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है.

मुखबिर की बात पर विश्वास कर के जितेंद्र कुमार सिंह ने प्रियंका और करन को हिरासत में ले लिया. थाना पहुंचते ही प्रियंका का चेहरा पीला पड़ गया. थोड़ी सी सख्ती में प्रियंका टूट गई और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रियंका के टूटते ही करन ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

करन की निशानदेही पर पुलिस ने सेंगुर नदी से हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी बरामद कर ली. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी सुरेंद्र का कटा हाथ बरामद नहीं हो सका. प्रियंका ने बताया कि उस के पति सुरेंद्र ने उसे करन के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया था, इसलिए दोनों ने मिल कर उसे मौत के घाट उतार दिया था.

चूंकि प्रियंका व करन ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मृतक के भाई रघुराज को वादी बना कर सुरेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर प्रियंका व करन को विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

30 दिसंबर को दोनों को माती की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. आलोक अपने नाना के घर रह रहा है, जबकि मासूम अंशिका मां के साथ जेल में है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

दूसरी शादी का दुखद अंत – भाग 3

शैफी मोहम्मद उर्फ शैफिया अपने 2 भाइयों अकबर, छोटा और 2 बहनों अकबरी तथा अन्ना के साथ रहता था. उस के बहन भाई सयाने हुए तो एकएक कर के उस ने सभी की शादियां कर दीं. पिता का इंतकाल हो चुका था, इसलिए यह जिम्मेदारी उसे ही निभानी पड़ी थी. उस की पत्नी रेशमा 3 बच्चों को जन्म दे कर चल बसी थी. बच्चे छोटे थे, इसलिए घर वालों के कहने पर उस ने दूसरी शादी कर ली.

दूसरी शादी उस ने एटा के थाना जलेसर के गांव ताज खेरिया के रहने वाले इमरान हुसैन की बड़ी बेटी जरीना से की थी. वह कुंवारी थी, इसलिए वह अपने ही जैसे किसी लड़के से शादी करना चाहती थी. लेकिन पिता की हैसियत उस के इस सपने का रोड़ा बन गई. शैफी का परिवार आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा संपन्न था, इसीलिए इमरान हुसैन ने उम्र में बड़े और 3 बच्चों के बाद शैफी से उस का निकाह कर दिया था.

शैफी अधेड़ था, जबकि जरीना लड़की. जरीना के जवान होतेहोते शैफी बूढ़ा हो गया. एक बूढ़ा आदमी किसी जवान की इच्छा कैसे पूरी कर सकता है. ऐसा ही कुछ जरीना के साथ भी था. शैफी कभी भी जरीना की इच्छा पूरी नहीं कर सका. अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही जरीना वकील के साथ भाग निकली थी.

दिन, महीने और साल गुजर गए. धीरेधीरे ढाई साल बीत गए. शैफी के घर वाले जरीना को भूलने लगे थे कि तभी उन्हें उस का सुराग मिल गया था.

इसलामनगर की ही रहने वाली सबीना की शादी हाथरस में हुई थी. एक दिन हाथरस की साप्ताहिक हाट में खरीदारी करती हुई जरीना पर उस की नजर पड़ गई थी. उस समय वकील भी उस के साथ था. जरीना को देख कर सबीना चौंकी. क्योंकि इसलामनगर वालों को लगने लगा था कि जरीना शायद मर गई है. वह छिपछिप कर जरीना का पीछा करते हुए उस के कमरे तक जा पहुंची.

सबीना ने यह बात इसलामनगर में रहने वाले अपने भाइयों को बताई तो उन्होंने जरीना के हाथरस में होने की बात शैफी तक पहुंचा दी. शैफी मोहम्मद को जब पता चला कि जरीना वकील के साथ हाथरस में है तो वह सीधे थाना एत्माद्दौला जा पहुंचा. इस के बाद पुलिस को ले कर वकील के कमरे पर गया. शैफी ने वकील की जम कर पिटाई की और जरीना से अपने साथ चलने को कहा.

लेकिन जरीना ने शैफी के साथ आगरा जाने से मना कर दिया तो सभी को हैरानी हुई. पुलिस ने जबरदस्ती करनी चाही तो जरीना ने अपने और वकील के कोर्टमैरिज का प्रमाणपत्र दिखा दिया. थाना पुलिस चुपचाप लौट आई. शैफी बौखला उठा. शैफी ने जरीना को धमकी दी कि वह ऐसे हालात कर देगा कि वह वकील की भी नहीं रहेगी.

हाथरस से लौट कर शैफी ने भाई फुर्रा और पहली पत्नी के बेटे शमशेर के साथ मिल कर जरीना को सबक सिखाने की योजना बना डाली. फुर्रा और शैफी इस बात से बेहद क्षुब्ध थे कि एक अदना सा लौंडा उन के जैसे प्रभावशाली आदमी के घर की औरत को भगा ले गया. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

इस के बाद योजना पर काम शुरू हो गया. सब से पहले शैफी ने अपनी बड़ी बेटी हसीना को फोन कर के जरीना के बारे में बता कर उस के पास आने जाने को कहा. इस के बाद हसीना शौहर के साथ जरीना के पास आने जाने ही नहीं लगी, बल्कि उस के यहां कईकई दिनों तक रुकने भी लगी.

हसीना ही नहीं, शमशेर और जरीना के अपने बच्चे भी उस के पास हाथरस आनेजाने लगे. इसी आनेजाने में वकील और शमशेर की अच्छी पटने लगी. इधर वकील की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी थी. इसलिए उस ने शमशेर से कहीं अच्छी जगह काम दिलाने को कहा. वकील अच्छा मोटर मैकेनिक था, लेकिन जहां वह काम करता था, वहां ज्यादा काम नहीं आता था, इसलिए उस की ढंग की कमाई नहीं हो पाती थी.

शमशेर को ऐसे ही मौके की तलाश थी. वकील तो पुरानी बातें भूल चुका था, लेकिन शैफी, शमशेर और फुर्रा को उस समय का इंतजार था, जब वह वकील को ठिकाने लगा कर बदनामी का बदला ले सकें.

जुलाई में हसीना के बच्चे की मौत होने की वजह से जरीना उस के यहां चली गई तो घर में वकील अकेला ही रह गया. 25 जुलाई की सुबह शमशेर ने वकील को फोन किया कि अगर वह शाम को कोटला रोड आ जाए तो वह उस की मुलाकात एक वर्कशौप के मैनेजर से करा दे.

वकील को ठीकठाक काम की तलाश थी, इसलिए वह रात 8 बजे के आसपास कोटला रोड पहुंच गया. वकील से बातचीत होने के बाद शमशेर, पिता और चाचा को साथ ले कर हाथरस के लिए रवाना हो गया. 7 बजे के आसपास सभी कोटला रोड पहुंच कर वकील का इंतजार करने लगे. जै

से ही वकील वहां पहुंचा, शमशेर ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं शराब की बोतल ले कर आया हूं. आओ पहले मूड बना लेते हैं, उस के बाद मैनेजर से मिलने चलते हैं.’’

शराब की बोतल देख कर वकील से भी नहीं रहा गया और वह शमशेर के पीछेपीछे चल पड़ा. नजदीक ही घना जंगल था. जंगल में अंदर जाने के बजाय वहीं पत्थर पर दोनों बैठ गए. अंधेरा हो ही चुका था. शमशेर ने 2 पैग बनाए. वकील ने गिलास उठा कर जैसे ही मुंह से लगाया, शैफी ने पीछे से आ कर उस के सिर पर भारी पत्थर पटक दिया. पत्थर इतना भारी था कि उसी एक वार में वकील की मौत हो गई.

वकील की मौत के बाद उस की जेब का सारा सामान निकाल कर उसे वहीं बंबे के पास फेंक दिया. उस की शिनाख्त न हो सके, इसलिए उस के चेहरे को उसी पत्थर से कुचल दिया. नफरत की आग में जल रहे शैफी ने उस के पुरुषांग पर जूते से कई ठोकरें मारीं, जिस से वह क्षतिग्रस्त हो गया.

अब तक रात के 9 बज गए थे. तीनों वकील के शव को घसीट कर बंबे के पानी में फेंक देना चाहते थे, लेकिन तभी उन्हें किसी वाहन के आने की आवाज सुनाई दी तो वे लाश को वहीं छोड़ कर भाग निकले. शैफी ने वकील का मोबाइल और रुपए वहीं बंबे में फेंक दिया था.

काल डिटेल्स और लोकेशन से पता चला कि जरीना इस मामले में शामिल नहीं थी. क्योंकि उस के मोबाइल की लोकेशन मथुरा के मांट की ही थी. जरीना की लगभग एक सप्ताह से शमशेर, फुर्रा और शैफी से बात भी नहीं हुई थी. इस से पुलिस ने उसे छोड़ दिया. बाकी अभियुक्तों को पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल – भाग 3

25 वर्षीया शानू हुस्न की साक्षात मूर्ति थी. दिलफेंक स्वभाव का जसवीर उस दिन के बाद किसी न किसी बहाने उस के घर जाने लगा. शानू को समझते देर नहीं लगी कि जसवीर उस की खूबसूरती का दीवाना हो चुका है और वह उस से नजदीकियां बढ़ाने को बेताब है.

बातों ही बातों में शानू जान गई कि जसवीर मोटा असामी है. उसे लगा कि अगर किसी तरह वह उस की बातों में आ गया तो वह उस के पैसों पर न केवल पूरी जिंदगी ऐश करेगी, बल्कि उस की जायदाद की मालकिन भी बन सकती है. यह सोच कर उस ने जसवीर की उम्र की परवाह न कर के उस से प्रेम में डूबी मीठीमीठी बातें करने लगी.

शानू ने निकटता बढ़ाने के लिए अपना मोबाइल नंबर जसवीर को दे दिया. फिर जसवीर शानू से फोन पर लंबीलंबी बातें करने लगा. कुछ ही दिनों में दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन के बीच अंतरंग संबंध बन गए.

जसवीर ने सूखा छावनी में हरिओम के घर में एक कमरा किराए पर ले रखा था. वहां उस का एक दोस्त पिंकू रहता था. पिंकू के साथ वह प्रौपर्टी डीङ्क्षलग का धंधा करता था. शानू से मिलने के लिए यह जगह एकदम सुरक्षित थी. जसवीर जब भी बरेली आता, शानू को फोन कर के वहीं बुला लेता.

जब शानू को विश्वास हो गया कि जसवीर पूरी तरह उस के प्यार की गिरफ्त में आ चुका है और अब वह उस से हर जायजनाजायज मांगे पूरी करवा सकती है तो एक दिन प्यार के हसीन पलों के बीच उस ने जसवीर के आगे शादी का प्रस्ताव रख दिया. जसवीर को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई. उस ने शानू को आगोश में लेते हुए शादी के लिए हां कर दी. लेकिन उस ने यह भी कहा कि शादी के पहले उसे अपनी पत्नी गुरप्रीत को रास्ते से हटाना होगा.

शानू जसवीर के मुंह से पत्नी की हत्या के बाद शादी की बात सुन कर खुश हो गई. इस के बाद वह जब भी जसवीर से मिलती, उस के ऊपर शादी के लिए दबाव जरूर डालती.

सितंबर में किसी तरह गुरप्रीत को पता चल गया कि जसवीर का संबंध बरेली की किसी लडक़ी से है तो वह उस पर उस लडक़ी से संबंध तोडऩे के लिए दबाव डालने लगी. लेकिन जसवीर तो उसे ही रास्ते से हटाना चाहता था. इसलिए उस ने गुरप्रीत की हत्या की तैयारी कर ली. वह पिंकू उर्फ महेंद्र के साथ शानू से मिलने जौहरपुर गया. पिंकू जसवीर की हर बात का राजदार था.

शानू को ले कर वे सीबीगंज के परसाखेड़ा इंडस्ट्रियल एरिया पहुंचे, जहां तीनों ने गुरप्रीत को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. वहां से घर लौट कर जसवीर मौके की तलाश में लग गया. गुरप्रीत को विश्वास में लेने के लिए अब वह उस से प्यार से पेश आने लगा. जसवीर का बदला व्यवहार देख कर मासूम गुरप्रीत को लगा कि शायद जसवीर की अक्ल ठिकाने आ गई है. वह उस की बातों पर विश्वास करने लगी.

21 नवंबर को जसवीर ने गुरप्रीत से बच्चों से मिलने के लिए शहर चलने को कहा तो बच्चों से मिलने के लिए लालायित गुरप्रीत उस के साथ चलने को तैयार हो गई. इस के बाद जसवीर ने पिंकू को फोन कर के बता दिया कि वह कल गुरप्रीत को ले कर शहर आएगा, इसलिए वह उस की हत्या की पूरी तैयारी कर ले.

22 नवंबर को भी जसवीर ने सुबह पिंकू को फोन किया. इस के बाद अपनी योजना के अनुसार, वह सुबह 10 बजे गुरप्रीत को ले कर घर से निकला और फतेहगंज पश्चिमी होता हुआ मिलक पहुंचा. वहां जसवीर की मामी रहती थीं. कुछ देर वहां रुक कर वह फतेहगंज और सीबीगंज होता हुआ अपने बच्चों के पास छावनी हार्डमैन पहुंचा.

गुरप्रीत को बच्चों के पास छोड़ कर वह सूखा छावनी में पिंकू से मिला और उस से कहा कि वह शाम 6 बजे गुरप्रीत को अपनी मोटरसाइकिल से ले कर सोहरा होता हुआ घर की ओर जाएगा, वह नत्थू मुखिया के खेतों के पास उस से मिले. उसी सुनसान जगह पर गुरप्रीत की हत्या करनी है.

पिंकू को गुरप्रीत की हत्या की योजना समझा कर जसवीर बच्चों के पास लौट आया. शाम 6 बजे वह गुरप्रीत के साथ वापस घर जाने के लिए निकला तो रास्ते में फतेहगंज पश्चिमी चौराहे पर रुका. वहां उस ने कृष्णा से गन्ने के रुपए लिए. उसी बीच पिंकू पहले से तय योजना के अनुसार, अगरास जाने वाले रास्ते से कैथोला बेनीराम गांव के बाहर नत्थू मुखिया के खेतों के पास पहुंच गया और जसवीर के आने का इंतजार करने लगा.

जसवीर वहां पहुंचा तो पिंकू ने उसे हाथ दे कर रोक लिया. जसवीर ने गुरप्रीत को मोटरसाइकिल से उतरने के लिए कहा. अपनी हत्या से अनजान गुरप्रीत मोटरसाइकिल से उतर कर खड़ी हो गई. इस के बाद जसवीर ने अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और कमर में खोंसा तमंचा निकाल कर उस की कनपटी से सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही गुरप्रीत गिर कर तड़पने लगी. इस के बाद पिंकू ने तमंचा निकाला और गुरप्रीत के सीने में गोली मार दी.

इस के बाद पहले से तय योजना के अनुसार, पिंकू ने अपने तमंचे में दोबारा गोली भरी और जसवीर के कान के पास लगा कर गोली चला दी, ताकि पुलिस के सामने वह खुद को निर्दोष बता कर गुरप्रीत की हत्या का आरोप अपने पुराने दुश्मन नबी बख्श पर लगा सके. इस के लिए उस ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की. जब पुलिस ने नबी बख्श को नहीं पकड़ा तो उस ने पेट के पास तमंचा सटा कर गोली मारी और थाने पहुंच गया. लेकिन पुलिस के सामने उस की यह चालाकी भी काम नहीं आई और वह पकड़ा गया.

अनिल कुमार सिरोही ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस का तमंचा नत्थू मुखिया के खेत के पास से बरामद कर लिया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने मुकदमे में पिंकू और शानू का नाम भी जोड़ दिया है. शानू को धारा 120बी का अभियुक्त बनाया गया है.

कथा लिखे जाने तक पुलिस पिंकू और शानू को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी. इस बीच अनिल कुमार सिरोही का तबादला हो गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक और युग का अंत – भाग 3

राजेश की ऊपर की कमाई तो पहले ही बंद हो चुकी थी, अब नौकरी भी चली गई. दूसरी नौकरी के लिए उस ने बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं जुगाड़ नहीं बन सका. कहीं कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही थी. मौजमजे की जिंदगी जी रहा राजेश दवरे एक एक पैसे के लिए मोहताज हो गया. उस का अपना और घर का खर्च कैसे चले, इस बात को ले कर वह परेशान रहने लगा.

अपनी इस स्थिति के लिए राजेश डा. मुकेश चांडक और उन के बेटे युग को जिम्मेदार मान रहा था. उसे लगता था कि यह सब युग की वजह से हुआ है. वह इस बात को हजम नहीं कर पा रहा था. उसे डा. मुकेश चांडक और युग से पहले ही नफरत थी. कहीं कामधाम न मिलने की वजह से धीरेधीरे वह बढ़ती ही गई और हालात यह हो गए कि वह डा. मुकेश चांडक से अपमान का बदला लेने और युग को उस के किए की कठोर से कठोर सजा देने के बारे में सोचने लगा.

इसी सोचनेविचारने में उस के दिमाग में युग के अपहरण की बात आ गई. उस ने सोचा कि युग का अपहरण कर के वह उसे खत्म कर देगा. उस के बाद फिरौती के रूप में डाक्टर से मोटी रकम वसूल करेगा. इस से बाप बेटे दोनों को सबक मिल जाएगा.

राजेश दवरे की यह योजना खतरनाक तो थी ही, उस के अकेले के वश की भी नहीं थी. इस के लिए उसे एक साथी की जरूरत थी. उस ने साथी की तलाश शुरू की तो उस की नजर अपने दोस्त अरविंद सिंह पर टिक गई. उस ने उसे अपनी योजना समझा कर मोटी रकम का लालच दिया तो वह उस का साथ देने को तैयार हो गया.

राजेश दवरे ने अरविंद से कहा था कि युग का अपहरण कर के वह डा. मुकेश चांडक से 15 करोड़ रुपए फिरौती में वसूल करेगा. इस से उस का बदला भी पूरा हो जाएगा और मिली हुई रकम से दोनों पार्टनशिप में एक अच्छा सा होटल खरीदेंगे, जिस में बीयर बार खोल कर दोनों मौजमस्ती करेंगे.

25 वर्षीय अरविंद सिंह राजेश दवरे के पड़ोस में ही रहता था. उस का परिवार काफी संपन्न था, लेकिन आवारा दोस्तों के साथ रहने की वजह से वह बिगड़ गया था. राजेश के साथ रहते हुए उसे भी मौजमस्ती का शौक लग गया था. इसीलिए वह राजेश के बहकावे में आ गया था. राजेश को डा. मुकेश चांडक के बारे में सब पता था. वह जानता था कि डा. चांडक अपने लाडले बेटे युग के लिए आसानी से 10-15 करोड़ रुपए दे देगा.

अरविंद तैयार हो गया तो युग को उठाने की जिम्मेदारी राजेश ने उसे ही सौंपी. क्योंकि उसे युग और सोसायटी के गार्ड पहचानते थे. वह यह भी जानता था कि युग उस के साथ कभी नहीं जाएगा. इसलिए उस ने अरविंद को युग के बारे में सब कुछ समझा कर उसे धोखा देने के लिए अपनी वह शर्ट दे दी, जो उसे क्लिनिक में काम करते समय पहनने को दी गई थी.

1 सितंबर को अरविंद सिंह पूरी तैयारी कर के अपनी स्कूटी से उस सोसायटी में जा पहुंचा, जिस में डा. चांडक परिवार के साथ रहते थे. उस समय दिन के पौने 4 बज रहे थे. उस ने सोसायटी के गार्ड से युग के बारे में पूछा. तब तक युग स्कूल से आया नहीं था. अरविंद की यही गलती गिरफ्तारी की वजह बनी. गार्ड ने उसे बताया था कि युग 4 बजे आएगा. 4 बजे युग की स्कूल बस आई तो वह स्कूटी ले कर उस के पास जा पहुंचा.

बस से उतर कर युग घर की ओर बढ़ा तो अरविंद ने उस के सामने आ कर कहा, ‘‘युग जल्दी चलो, तुम्हारे पापा ने तुम्हें बुलाया है.’’

चूंकि अरविंद डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक में पहनी जाने वाली शर्ट पहने था, इसलिए युग को उस पर सहज ही विश्वास हो गया. उस ने अपना स्कूल बैग सिक्योरिटी गार्ड की खाली पड़ी कुर्सी पर फेंका और अरविंद सिंह की स्कूटी पर कूद कर बैठ गया. अरविंद उसे ले कर सोसायटी के बाहर रास्ते में खड़े राजेश के पास जा पहुंचा. युग कुछ समझ पाता, उस के पहले ही राजेश दवरे ने क्लोरोफार्म में भीगी रूमाल उस की नाक पर रख दी, जिस से वह बेहोश हो गया. इस के बाद वह पीछे बैठ गया.

राजेश दवरे और अरविंद सिंह ने युग का अपहरण तो आसानी से कर लिया, लेकिन अब उसे वे छिपा कर रखे कहां, इस की उन के पास कोई व्यवस्था नहीं थी. इसलिए उन्होंने उसे तुरंत ठिकाने लगाने यानी खत्म करने की योजना बना डाली. वे उस की हत्या करने के इरादे से उसे शहर से बाहर खापरघेड़ा की ओर ले कर चल पड़े.

शहर से 20 किलोमीटर दूर लोणखेरी पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. उन्हें इस बात का भी डर सता रहा था कि अगर युग को होश आ गया तो संभालना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए वे जल्द से जल्द युग को ठिकाने लगा देना चाहते थे.

लोणखेरी के पास सड़क पर उन्हें एक पुल दिखाई दिया तो उन्होंने स्कूटी रोक दी. वह स्थान सुनसान था. युग को उठा कर दोनों पुल के नीचे ले गए. अब तक युग को होश आ गया था. वह समझ गया कि वे उसे वहां क्यों ले आए हैं. वह रोते हुए प्राणों की भीख मांगने लगा. लेकिन नफरत की आग में जल रहे राजेश दवरे को उस मासूम पर बिलकुल दया नहीं आई और गला दबा कर उस ने उसे मार डाला.

युग को मौत के घाट उतार कर उन्होंने स्कूटी में रखे पेचकस से एक गड्ढा खोदा और शव को उसी में रख कर ढंक दिया. युग की हत्या करने के बाद उन्होंने डा. चांडक को फोन कर के 15 करोड़ की फिरौती मांगी, लेकिन वे रकम लेने की जगह तय कर पाते, उस के पहले ही पकड़ लिए गए.

पूछताछ में उन्होंने पुलिस को बताया कि फिल्म इनकार में जिस तरह फिरौती की रकम ली गई थी, उसी तरह वे फिरौती की रकम लेना चाहते थे. फिल्म में फिरौती की रकम बैग में भर कर चलती ट्रेन से फेंकने की बात दिखाई गई थी. पुलिस ने दोनों को साथ ले जा कर पुल के नीचे से युग का शव बरामद कर लिया था, जिसे पोस्टमार्टम के बाद घर वालों की सौंप दिया गया था.

पूछताछ के बाद इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार ने राजेश दवरे और अरविंद सिंह को थाना लकड़गंज पुलिस के हवाले कर दिया. थाना लकड़गंज के थानाप्रभारी एस.के. जैसवाल ने वह स्कूटी भी बरामद कर ली थी, जिस से उन्होंने युग का अपहरण किया था.

इस के बाद दोनों के खिलाफ अपहरण और हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. नागपुर के पुलिस कमिश्नर ने थाना गणेशपेढ की पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का नकद इनाम दे कर सम्मानित किया था, क्योंकि इस टीम ने मात्र 12 घंटे में इस मामले को सुलझा लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 3

स्कूल में छुट्टी होने की वजह से गवेंद्र पत्नी से मिलने आगरा पहुंच गया. उस का वहां आना प्रेमलता को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन वह उसे भगा भी नहीं सकती थी. रात का खाना खा कर वह सो गया.

अचानक उस की आंख खुली तो उस ने प्रेमलता को मोबाइल पर किसी से हंसहंस कर बात करते पाया. उस की बातचीत सुन कर पता चला कि वह किसी बबलू से बातें कर रही थी. उस ने फोन काटा तो गवेंद्र ने पूछा, “यह बबलू कौन है, जिस से तुम इतनी रात को बातें कर रही थी?”

“यहीं पड़ोस में रहता है. उस से किसी काम के लिए कहा था, उसी के बारे में बात कर रही थी.”

“उस के बारे में तुम सुबह भी तो पूछ सकती थी.”

“अभी पूछ लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.” प्रेमलता ने तमक कर कहा.

इस के बाद गवेंद्र को नींद नहीं आई. सुबह दोनों में बबलू को ले कर खूब झगड़ा हुआ. बबलू को पता नहीं था कि गवेंद्र अभी गया नहीं है, इसलिए जब दोनों में झगड़ा हो रहा था तो वह प्रेमलता के कमरे पर आ पहुंचा. उसे देख कर गवेंद्र ने पूछा, “तो तुम्हीं बबलू हो?”

गवेंद्र के इस सवाल पर बबलू सिटपिटा गया. घबराहट में बोला, “जी, हम ही बबलू हैं. पिंकी दीदी से कुछ काम था, इसलिए आ गया. जरूरत पडऩे पर कुछ मदद कर देता हूं.”

“कोई अपनी दीदी से देर रात को बातें नहीं करता. बबलू यह सब ठीक नहीं है. मेरे खयाल से तुम्हारा यहां आनाजाना ठीक नहीं है. इन की मदद के लिए मैं हूं न.”

गवेंद्र ने बबलू को दरवाजे से वापस कर दिया. प्रेमलता को यह बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. इसलिए उस ने तय कर लिया कि अब उसे किसी भी तरह गवेंद्र से छुटकारा पाना है. दूसरी ओर गवेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह प्रेमलता के बारे में पिता को बताए या न बताए. उसे लगा कि यह पतिपत्नी के बीच मामला है, इस में पिता को बता कर परेशान करना ठीक नहीं है.

इस तरह रामसेवक को कुछ पता नहीं चला. बच्चों की छुट्टियां पड़ गईं तो गवेंद्र ने बच्चों को आगरा पहुंचा दिया. इस बीच बबलू के साथसाथ उस के दोस्तों विनयकांत और सर्वेंद्र का भी प्रेमलता के यहां आनाजाना हो गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उसी कालेज से बीएमएस कर रहे थे. वहां रहते हुए उमंग और तमन्ना भी बबलू से हिलमिल गए थे.

एक दिन सभी ताजमहल देखने गए, जहां बबलू ने प्रेमलता के साथ फोटो खिंचवाए. इस तरह उन के प्यार का एक प्रमाण भी हो गया. इस के बाद तय हुआ कि गवेंद्र को रास्ते से हटा कर दोनों शादी कर लेंगे. यही नहीं, उस ने पूरी तैयारी भी कर ली. अब उसे मौके की तलाश थी.

30 नवंबर को प्रेमलता ने गवेंद्र को फोन किया तो पता चला कि रामसेवक वोट डालने गांव गए हैं. खेतों की बुवाई भी करानी है, इसलिए वह खेतों की बुवाई कराने तक गांव में ही रहेंगे. प्रेमलता ने बबलू से कहा कि गवेंद्र को निबटाने का यह अच्छा मौका है. बबलू ने अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत को दोस्ती के नाम पर साथ देने के लिए राजी कर लिया. इस तरह गवेंद्र की हत्या की पूरी तैयारी हो गई.

31 दिसंबर, 2015 को प्रेमलता बच्चों के साथ कीरतपुर आ गई. उसे देख कर गवेंद्र ने कहा, “फोन कर देती तो मैं बच्चों को लेने आ जाता.”

“मैं ने फोन इसलिए नहीं किया कि यहां आ कर घर भी देख लूंगी और तुम से भी मिल लूंगी.” प्रेमलता ने कहा.

योजना के अनुसार, 4 दिसंबर, 2015 को बबलू अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ मैनपुरी आ गया. कीरतपुर में ही उस का एक दोस्त रहता था, वे उसी के घर ठहर गए. उन का खाना प्रेमलता ने ही उमंग के हाथों भिजवाया था.

5 दिसंबर को गवेंद्र अपनी स्कूल की ड्यूटी कर के घर आया तो प्रेमलता उसे काफी बेचैन लगी. गवेंद्र ने पूछा तो प्रेमलता ने कहा, “मैं आगरा में रहती हूं तो तुम्हारी और बच्चों की चिंता लगी रहती है.”

गवेंद्र ने कहा, “कुछ दिनों की ही तो बात है. पढ़ाई पूरी होने पर मैनपुरी के आसपास नौकरी की कोशिश की जाएगी.”

प्रेमलता की इन बातों से गवेंद्र का मन साफ हो गया. उसे क्या पता था कि अब उस की जिंदगी कुछ ही घंटों की बची है. रात का खाना बना कर प्रेमलता ने सब को खिलाया. गवेंद्र को खाना खातेखाते ही नींद आने लगी. वह बिस्तर पर जा कर सो गया. प्रेमलता ने बच्चों को भी सुला दिया. जब मोहल्ले में सन्नाटा पसर गया तो उस ने बबलू को फोन कर के आने को कहा.

बबलू तो तैयार ही बैठा था. वह अपने दोनों साथियों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ आ पहुंचा. प्रेमलता उन्हें उस कमरे में ले गई, जहां गवेंद्र सो रहा था. प्रेमलता ने गवेंद्र को खाने में नींद की गोलियां दे कर सुला दिया था, इसलिए सभी उस की ओर से निङ्क्षश्चत थे.

बबलू गवेंद्र का गला दबाने लगा तो वह जाग गया. उस के विरोध में हुए शोर से दूसरे कमरे में सो रहे उमंग की नींद टूट गई. शोर क्यों हो रहा है, यह जानने के लिए वह उस कमरे में आया तो देखा 4 लोग उस के पापा को दबोचे हुए थे. लेकिन तब तक गवेंद्र मर चुका था.

उमंग को देख कर सभी के होश उड़ गए. जो जहां था, वहीं खड़ा रह गया. अबब की नजरें उमंग पर टिकी थीं. बबलू एकदम से बोला, “यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई, इस ने जो देखा है, किसी से भी बता सकता है. अब इसे भी खत्म करना होगा.”

“नहीं, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता. तुम लोग लाश को इसी तरह पड़ी रहने दो. मैं इसे भी संभाल लूंगी और लाश को भी संभाल लूंगी. आगे क्या करना है, यह तुम मुझ पर छोड़ दो.” प्रेमलता ने कहा.

इस के बाद बबलू, सर्वेंद्र और विनयकांत चले गए. उन के जाने के बाद प्रेमलता बेटे को डराती रही कि वह किसी से कुछ नहीं बताएगा. अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो वह उसे भी मार देगी. सवेरा होने पर प्रेमलता ने रोरो कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर के बताया कि गवेंद्र ने आत्महत्या कर ली है. इस के बाद खुद ही थाने जा कर पति की आत्महत्या की सूचना दे दी.

बबलू को उमंग से तो खतरा था ही, ताजमहल में उस ने प्रेमलता के साथ जो फोटो ङ्क्षखचवाए थे, उन से भी वह पकड़ा जा सकता था. इसीलिए वह उन के बारे में पता करने थाने आ गया और पकड़ा गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उमंग से डर रहे थे, इसलिए उन्होंने उस का अपहरण करना चाहा, लेकिन रामसेवक को इस की भनक लग गई तो उन्होंने इस बात की जानकारी थाना विछवां के थानाप्रभारी जी.पी. गौतम को दे दी. जी.पी. गौतम ने उसे पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी.

पूछताछ के बाद बबलू और प्रेमलता को जेल भेज दिया गया है. फरार सर्वेंद्र और विनयकांत की पुलिस तलाश कर रही है.

मनोहर सिंह यादव ने इस मामले का खुलासा मात्र 9 दिनों में कर दिया. इस से खुश हो कर एसएसपी ने उन्हें 5 हजार रुपए ईनाम दिया है. रेनू और मंसूर अहमद ने जिस तरह सूझबूझ से पकड़वाया, इस के लिए उन्हें भी ढाईढाई हजार रुपए ईनाम दिया गया है.

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 3

चंद्रप्रकाश और उन के साथियों ने अनुज और सोनम के मामले में हुई काररवाई पर रोष व्यक्त करते हुए पुलिस से उन का पोस्टमार्टम दोबारा कराने की अपील की. इस सिलसिले में वे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से भी मिले. संदिग्ध हालात में हुई नवदंपति की हत्या की स्थितियों को देखते हुए पुलिस अधिकारी दोबारा पोस्टमार्टम कराने के लिए तैयार हो गए.

3 डाक्टरों के पैनल से जब अनुज और सोनम की लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया तो पता चला कि उन की मौत शरीर में कोई तीक्ष्ण जहर जाने के बाद पानी में डूबने से हुई थी. यह तथ्य प्रकाश में आते ही गोवा पुलिस ने अनुज और सोनम की मौत के मामले को अपहरण, लूट, हत्या और धोखाधड़ी के तहत दर्ज कर के तेजी से जांच शुरू कर दी.

प्राथमिक जांच में पता चला कि अनुज और सोनम को 3 दिन पहले दोपहर बाद और रात को एक ऐसे खूबसूरत जोड़े के साथ देखा गया था जिन के पास सफेद रंग की आल्टो कार थी. इस मामले की जांच कर रहे सहायक पुलिस आयुक्त विनायक ने होटल के कर्मचारियों, अंजुना बीच के एक रेस्तरां के मालिक और कुछ पर्यटकों से पूछताछ की.

उन्हें पता चला कि अनुज और सोनम ने 3 दिन पहले दोपहर को एक युवा जोड़े के साथ अंजुना बीच के एक रेस्तरां में खाना खाया था. रेस्तरां के कर्मचारियों के अनुसार खाना खाते समय अनुज और सोनम के साथ जो जोड़ा था, वह देखने में पतिपत्नी लगते थे और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात कर रहे थे. आचारव्यवहार से वे किसी संपन्न घराने के लगते थे. अनुज और सोनम को दोपहर को भी उसी जोड़े के साथ देखा गया था और रात को भी. इस से पुलिस को शक हुआ कि उन के साथ जो भी हुआ, उस का जिम्मेदार वही जोड़ा रहा होगा.

सहायक पुलिस आयुक्त विनायक ने होटल के कर्मचारियों, अंजुना बीच के रेस्तरां मालिक और कुछ पर्यटकों से पूछताछ के बाद अनुज और सोनम के साथ देखे गए युवा जोड़े का पूरा हुलिया एकत्र कर के कंप्यूटर स्केच तैयार करवाया. जिन लोगों ने उस जोड़े को अनुज और सोनम के साथ देखा था, उन के अनुसार कंप्यूटर स्केच और उस जोड़े की शक्ल काफी मिलतीजुलती थी.

इस पर जांच अधिकारी विनायक ने उस जोड़े के चित्रों वाला स्केच गोवा पर्यटन से जुड़े तमाम लोगों को दिखाया. इस छानबीन में विनायक को जानकारी मिली कि उस हुलिए के एक जोड़े को अकसर महंगे होटलों, नाइट क्लबों, डिस्कोथेक, शराबखानों और समुद्र तटों पर कितनी ही बार देखा गया था. कभी वह जोड़ा देशी पर्यटकों के साथ होता था तो कभी विदेशी पर्यटकों के साथ.

केस भी दर्ज हो गया था और जांच भी शुरू हो चुकी थी. रोतेबिलखते चंद्रप्रकाश बेटे और पुत्रवधू के शवों को ले कर अपने साथियों के साथ दिल्ली लौट आए. यह मामला चंद्रप्रकाश के परिवार और सोनम के मायके वालों के लिए दिल दहला देने वाला था. उन लोगों ने एक माह पूर्व जिस युवा जोड़े को बड़े अरमानों के साथ शादी के बंधन में बांधा था, उसी की लाशें उन के सामने पड़ी थीं.

बहरहाल, सोनम और अनुज का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. अनुज और सोनम की क्रिया आदि से निपटने के बाद चंद्रप्रकाश पुन: गोवा पहुंचे. इस बीच गोवा पुलिस ने अपनी छानबीन से यह पता लगा लिया था कि अंतिम दिन अनुज और सोनम के साथ जिस जोड़े को देखा गया था, उन के नाम महेंद्र सागर और कामिनी सागर थे.

प्राप्त जानकारी के अनुसार पतिपत्नी का ये स्मार्ट और खूबसूरत जोड़ा संपन्न परिवार के सदस्यों की तरह रहता था और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात करता था. अपनी वाकपटुता से महेंद्र और कामिनी किसी भी पर्यटक को अपने जाल में फंसाने में सक्षम थे. गोवा के विभिन्न थानों में उन दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी के दर्जनों मामले दर्ज थे. पुलिस रिकौर्ड में सागर दंपति का चित्र उपलब्ध था.

अनुज व सोनम की हत्या और लूटपाट के बाद सागर दंपति ने गोवा छोड़ दिया होगा, यह सोचते हुए गोवा पुलिस ने विवरण सहित उन के चित्र देश भर के पुलिस मुख्यालयों में भिजवा दिए.

गोवा पुलिस को पक्का विश्वास हो गया था कि नकद रकम और लाखों रुपए के जेवरात लूटने के लिए अनुज और सोनम की हत्या महेंद्र और कामिनी ने ही की थी. ये पतिपत्नी चूंकि बड़ेबड़े होटलों, नाइटक्लबों और डिस्कोथेक में अकसर जाते रहते थे इसलिए गोवा पुलिस ने ऐसे स्थानों पर भी इन दोनों के बारे में जानकारियां एकत्र कीं.

इस छानबीन में पता चला कि यह दंपति गोवा में जिस मकान में रहता था, उसी में छोटी सी एक लौज भी चलाता था. सागर दंपति के घर और लौज में पुलिस को कोई विशेष सामान नहीं मिला. पुलिस ने उन के मकान और लौज सील कर दिए. महेंद्र और कामिनी के जहांजहां मिलने की संभावनाएं थीं, गोवा पुलिस ने वहांवहां छापे मारे. लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लगे.

जब महेंद्र और कामिनी को पकड़ने में किसी तरह की सफलता नहीं मिली तो गोवा पुलिस थकहार कर बैठ गई. इस बीच कई महीने गुजर चुके थे. पुलिस ने भले ही हार मान ली थी, लेकिन अनुज के पिता चंद्रप्रकाश ने हार नहीं मानी. उन्हें महेंद्र और कामिनी के बारे में जहां भी जरा सी जानकारी मिलती, वे वहीं पहुंच जाते.

उन की कोशिशें रंग लाईं और किसी से उन्हें महेंद्र सागर के पिता का नामपता मिल गया. वह हरियाणा के रहने वाले थे. लेकिन महेंद्र चूंकि अपने हिस्से की सारी जमीनजायदाद बेच चुका था इसलिए गांव से उस का कोई संबंध नहीं था. उस की पत्नी कामिनी के बारे में चंद्रप्रकाश को पता चला कि उच्च शिक्षा प्राप्त कामिनी दिल्ली की ही रहने वाली है.

घटना के 11 महीने बाद चंद्रप्रकाश को जानकारी मिली कि महेंद्र सागर का एक काफी करीबी रह चुका विनीत नाम का एक युवक जोधपुर में कहीं रहता है. चंद्रप्रकाश के पास हालांकि विनीत के बारे में आधीअधूरी जानकारी थी फिर भी वह जोधपुर गए और हफ्तों की भागदौड़ के बाद उसे ढूंढ निकाला.

चंद्रप्रकाश के साथ उन के 2-3 घर वाले भी थे. खुद को कई लोगों से घिरा देख विनीत घबरा गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि वह महेंद्र सागर का सहयोगी रह चुका है और उस ने ठगी के कई मामलों में उस की मदद की थी. लेकिन विनीत को अनुज और सोनम की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की – भाग 2

किशोरीलाल की एक जवान बेटी थी सुधा, जो ग्रैजुएशन कर के उन दिनों घर में बैठी थी. वह पोस्टग्रैजुएशन करना चाहती थी, लेकिन एडमिशन में देरी थी. किशोरीलाल ने सोचा कि सुधा पूरे दिन घर में बैठी बोर होती रहती है, क्यों न इस बीच अस्थाई रूप से उसे अपनी कंपनी में लगवा दे. मन भी बहलता रहेगा, 4 पैसे कमा कर भी लाएगी.

उस ने इस विषय पर राज से बात की तो उसे भला क्या ऐतराज होता. जहां 40-50 लडक़ेलड़कियां काम कर रहे थे, वहां एक और सही. सुधा ने फाइनैंस कंपनी जौइन कर ली. वह खुले विचारों वाली आधुनिक युवती थी. बातचीत में किसी से भी जल्दी घुलमिल जाना और दोस्ती कर लेना उस की फितरत थी.

स्कूल में पढ़ते समय से ही उस की कई लडक़ों से दोस्ती थी. उन में से किसी एक ने उसे धोखा भी दिया था. बहरहाल राज को देखते ही वह उस की ओर आकर्षित हो गई थी, क्योंकि राज के खूबसूरत होने के साथसाथ कंपनी में भी उस की बड़ी इज्जत थी. कोई न कोई बहाना बना कर सुधा राज के नजदीक जाने की कोशिश करने लगी.

इस कोशिश में उस ने घुमाफिरा कर कई बार उस से प्यार करने का इशारा किया. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह एक लडक़े से प्यार करती थी, लेकिन उस ने उसे धोखा दे दिया था. अब मांबाप उस की शादी करना चाहते हैं, लेकिन वह अभी शादी नहीं करना चाहती.

राज ने उस की कोशिश को नाकाम करते हुए उसे समझाया कि उसे इन बातों पर ध्यान न दे कर अपने काम पर ध्यान देना चाहिए. फिर अभी उसे आगे की पढ़ाई भी करनी है. उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी उस का पूरा जीवन पड़ा है. उसे इस तरह की फिजूल की बातें दिमाग में नहीं लाना चाहिए.

राज की बातों पर गौर किए बगैर सुधा सुधरने के बजाय मैसेज करने लगी. उन संदेशों में वह राज से सलाह मांगती कि अब उसे क्या करना चाहिए, साथ ही बीचबीच में प्यार के इजहार वाले मैसेज भी कर देती थी. सुधा के इन संदेशों से परेशान हो कर राज ने उसे संदेश भेजा कि वह उस का समय बरबाद न करे, जैसा उस ने उसे समझाया है, वह वैसा ही करे.

संयोग से किसी दिन सुधा का फोन उस के भाई सुरजीत के हाथ लग गया. उस ने मैसेज बौक्स में बहन के भेजे मैसेज देखे तो गुस्से से पागल हो उठा. उस ने बहन को समझाने के बजाय राज को सबक सिखाने का इरादा बना लिया. जबकि राज का इस मामले में कोई दोष नहीं था. बहन से उस ने कुछ कहना इसलिए उचित नहीं समझा, क्योंकि वह उस की फितरत को जानता था. उस ने मैसेज वाली बात मांबाप को भी बता दी थी.

यह सब सुन कर किशोरीलाल तो इतना शर्मिंदा हुए कि उन्होंने नौकरी पर जाना ही बंद कर दिया. सुधा की भी नौकरी छुड़वा दी गई. सुरजीत ने राज को सबक सिखाने के लिए थाने के अपने एक परिचित हवलदार को कुछ रुपए दे कर कहा कि राज उस की बहन से छेड़छाड़ कर के उसे परेशान करता है. वह उसे किसी झूठे मुकदमे में फंसा कर जेल भिजवा दे.

हवलदार, जिस का नाम जसबीर था, ने फोन कर के राज को थाने बुलाया. फोन पर उस ने राज को धमकाते हुए कहा था कि थाने में उस के खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज है. अगर वह थाने नहीं आया तो वह उसे उस के औफिस से गिरफ्तार कर लेगा.

समझदारी दिखाते हुए राज ने यह बात अपने पत्रकार पिता अमन सिंह को बता दी, साथ ही सुधा द्वारा भेजे गए संदेशों के बारे में भी बता दिया. अमन इस बारे में मेरे पास सलाह लेने आया. मेरे पास आने से पहले उस ने हवलदार जसबीर सिंह को फोन कर के अपना परिचय दे कर पूछा था कि उस के बेटे राज से उसे ऐसा क्या काम है, जो वह उसे थाने बुला रहा है.

पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने भी फोन कर के हवलदार जसबीर सिंह से यही बात पूछी तो उस दिन के बाद उस ने राज को कभी फोन नहीं किया. इस के बाद अमन सिंह इस मामले को सुलझाने के लिए राज की कंपनी के मैनेजर से मिले. उन्होंने किशोरीलाल को औफिस में बुलवाया, जिस से आमनेसामने बैठ कर बातचीत हो सके और जो भी गलतफहमी हो दूर की जा सके.

तय समय पर राज, अमन सिंह और किशोरीलाल मैनेजर की केबिन में इकट्ठा हुए. किशोरीलाल के साथ उस की पत्नी और बेटा सुरजीत भी आया था. सुरजीत के बारे में जैसा मुझे पता चला था, उस के हिसाब से वह अपनी मां के लाड़प्यार में बिगड़ा आवारा किस्म का लडक़ा था. वह दिन भर गुंडागर्दी और आवारागर्दी किया करता था. वह खुद को किसी तीसमार खां से कम नहीं समझता था.

बातचीत शुरू हुई तो सुरजीत और उस की मां किशोरीलाल को चुप करा कर जोरजोर से बोल कर राज पर झूठे आरोप लगाने लगे. बात यहीं तक सीमित नहीं रही, वे उसे सजा दिलाने की बात कर रहे थे. अंत में मैनेजर साहब को हस्तक्षेप करना पड़ा.

उन्होंने कहा, “मैं राज को 5 सालों से जानता हूं. वह कैसा है, यह तुम लोगों को बताने की जरूरत नहीं है. रही बात सुधा की तो उसे भी 10 दिनों में जान लिया. फायदा इसी में है कि बात को यहीं खत्म कर दिया जाए.”

उस दिन समझौता तो हो गया, लेकिन जातेजाते सुरजीत ने राज को धमकाते हुए कहा, “मैं तुम्हें देख लूंगा.”

यह बात भी यहीं खत्म हो गई. उस दिन जो समझौता हुआ था, सुरजीत उस से बिलकुल खुश नहीं था. वह राज को सजा दिलाना चाहता था. सजा भी ऐसी कि वह मुंह दिखाने लायक न रहे.

2 महीने तक शांत रहने के बाद सुरजीत ने राज को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई. उस योजना में उस ने कालगर्ल जीतो और 2 आवारा लडक़ों नरेश तथा कुलदीप को शामिल किया. उस ने उन से कहा कि योजना सफल होने पर वह उन्हें मोटी रकम देगा.

उस की योजना के अनुसार, नरेश को किसी सुनसान जगह पर जीतो के साथ शारीरिक संबंध बनाना था. उस के बाद जीतो थाने जा कर शिकायत दर्ज कराती कि उस के साथ दुष्कर्म हुआ है. जीतो पुलिस को उस जगह ले जाती, जहां दुष्कर्म हुआ था. नरेश और कुलदीप वहीं छिपे रहेंगे, जिन्हें पुलिस दुष्कर्म का साथी मान कर थाने ले आती.

थाने आ कर जीतो बताती कि इन दोनों ने दुष्कर्म नहीं किया, इन्होंने केवल छेड़छाड़ की थी. दुष्कर्म इन के दोस्त ने किया था, जो भाग गया है. पुलिस जब नरेश और कुलदीप से उन के दोस्त का नाम पूछती तो वे उस का नाम राज बता कर उस का मोबाइल नंबर देते हुए उस के बारे में पूरी जानकारी दे देते.