फिल्म ‘स्पैशल 26’ की तर्ज पर बनाया Special 9 और की करोड़ों की ठगी

फिल्म स्पैशल 26’ की तर्ज पर जबलपुर के बैंक अधिकारियों ने स्पैशल 9’ गैंग बनाई. गैंग के सदस्यों का काम फरजी रजिस्ट्रियों के जरिए बैंकों से लाखों रुपए का लोन लेना होता था. आप भी जानिए कि इस गैंग ने फरजी रजिस्ट्रियां कैसे तैयार कीं और उन के जरिए बैंकों को करोड़ों का चूना कैसे लगाया?

गैंग के सदस्यों ने शुरुआत में सरकारी बैंकों को टारगेट किया, लेकिन सफलता नहीं मिली. औनलाइन केवाईसी के सर्च के दौरान बैंक अधिकारियों को पता चल जाता था कि ये डाक्यूमेंट्स सही नहीं हैं और लोन एप्लिकेशन रिजेक्ट हो जाती थी. इस वजह से गैंग ने प्राइवेट बैंकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. मकसद पूरा हो जाने के बाद स्पैशल 9’ गैंग में पैसों का बंटवारा काम के आधार पर होता था. किस का क्या काम है, कितना कठिन है, उस हिसाब से पैसा बांटा जाता था. 

चूंकि प्रवीण पांडे अकाउंट होल्डर था और लोन के लिए फरजी रजिस्ट्री लगाने के बाद जो पैसा खाते में आता था, वह प्रवीण पांडे के नाम पर आता था. खाते में पैसा आने के बाद गिरोह के सभी 9 सदस्य किसी होटल में इकट्ठा होते और फिर अनुभव, संदीप और विकास के इशारे पर रुपयों का बंटवारा होता था. उस दिन अगस्त महीने की 5 तारीख थी और सुमित घर पर खाना खा कर अपने काम से निकलने ही वाला था कि हिंदुजा बैंक के कुछ कर्मचारी उस के घर पहुंचे. परिचय के बाद बैंक कर्मचारियों में से एक कर्मचारी ने सुमित से कहा, ”आप ने अभी तक अपने लोन की एक भी किस्त जमा नहीं की है और न ही बैंक से संपर्क किया. आप ने अपना मोबाइल भी बंद कर रखा है.’’

बैंक कर्मचारी की बात सुन कर सुमित अचरज में पड़ गया, उस ने बैंक कर्मचारियों से कहा, ”आप शायद गलत पते पर आ गए हैं, मैं ने तो बैंक से अभी कोई लोन नहीं लिया है. हां, लोन के लिए प्लौट की रजिस्ट्री की फोटोकापी जरूर एक कर्मचारी को दी थी.’’

देखिए, आप के नाम से हिंदुजा बैंक में 20 लाख रुपए का लोन लिया गया है, जिस की एक भी किस्त आप के द्वारा नहीं भरी गई है. अगर आप किस्त जमा नहीं करेंगे तो आप का यह प्लौट बैंक बंधक रख लेगी.’’ बैंक कर्मचारी ने कहा. सुमित ने बैंक कर्मचारियों को समझाने की लाख कोशिश की, मगर वह सुमित की बात पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे. दूसरे दिन सुमित ने हिंदुजा बैंक जा कर बैंक अधिकारियों से मुलाकात की तो बैंक अधिकारियों ने उसे लोन के सारे कागजात दिखा दिए. सुमित यह देख कर दंग रह गया कि उस के नाम के कागजात जमा कर के किसी ने लोन ले लिया था.

मध्य प्रदेश के शहर जबलपुर के गढ़ा फाटक इलाके में रहने वाले सुमित काले ने इस मामले की शिकायत स्थानीय पुलिस और वरिष्ठ अधिकारियों से की, मगर उसे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला. सुमित ने किसी से सुना था कि स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को जटिल से जटिल मामलों को सुलझाने में महारथ हासिल है. इसलिए सुमित ने 10 अगस्त, 2024 को एसटीएफ का दरवाजा खटखटाया. सुमित अपनी लिखित शिकायत ले कर एसटीएफ के जबलपुर औफिस पहुंचा और एक कमरे के बाहर लगी हुई नेम प्लेट को उस ने ध्यान से पढ़ा. नेम प्लेट पर संतोष तिवारी, डीएसपी, एसटीएफ पढ़ कर उस ने बाहर बैठे अर्दली को बताया कि वह डीएसपी सर से मिलना चाहता है. 

अर्दली ने डीएसपी संतोष तिवारी को जा कर बताया, ”सर, एक युवक किसी काम से आप से मिलना चाहता है.’’ उन्होंने परमिशन देते हुए उसे अंदर भेजने को कह दिया.

अंदर की आवाज सुमित को साफ सुनाई दे रही थी. अर्दली बाहर आ कर उस से कुछ कहता, इस के पहले ही सुमित डीएसपी के केबिन में दाखिल हो गया. सुमित ने उन्हें एक लिखित शिकायत देते हुए कहा, ”सर, मेरा नाम सुमित काले है. मैं एक बिल्डर की कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता हूं. किसी ने मेरे प्लौट की फरजी रजिस्ट्री बैंक में दे कर मेरे नाम से लोन लिया है.’’

”लेकिन यह कैसे संभव है, बैंक में रजिस्ट्री के अलावा दूसरे कागजात भी तो लिए जाते हैं.’’ डीएसपी संतोष तिवारी बोले.

सर, यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मेरे नाम के फरजी आधार कार्ड, पैन कार्ड बना कर हिंदुजा बैंक में किसी और को सुमित काले बना कर खड़ा कर एक प्लौट की रजिस्ट्री जमा कर कैसे लाखों रुपए का लोन लिया गया है,’’ सुमित बोला.

जालसाजी में क्यों शामिल हुए बैंक अधिकारी

सुमित ने डीएसपी संतोष तिवारी को बताया कि उस ने कुछ महीने पहले एक बैंक कर्मचारी को लोन के लिए रजिस्ट्री की फोटोकापी दी थी, लेकिन उस ने लोन नहीं लिया था.सुमित की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए डीएसपी संतोष तिवारी ने सुमित को जांच करने का भरोसा दिलाया. डीएसपी ने इस पूरे मामले की जांच का जिम्मा इंसपेक्टर निकिता शुक्ला को सौंपा. उन्होंने जांच के लिए एसटीएफ टीम को हिंदुजा बैंक भेजा. एसटीएफ टीम ने बैंक पहुंच कर सुमित के लोन पेपर खंगाले तो बैंक में भी हड़कंप मच गया. एसटीएफ टीम ने लोन के लिए जमा रजिस्ट्री को जब्त कर रजिस्ट्री कार्यालय से सत्यापन करवाया तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ. 

रजिस्ट्री औफिस के कर्मचारियों ने बताया कि जमीन की रजिस्ट्री तो सुमित काले की है, लेकिन उस पर फोटो किसी और की लगी थी. पुलिस टीम ने रजिस्ट्री पेपर पर लगी फोटो की तहकीकात की तो जांच में पता चला कि यह फोटो किसी विकास तिवारी की है. एसटीएफ को अब यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि यह काम फरजी रजिस्ट्री के नाम पर बैंक से लोन लेने वाले किसी गिरोह का है. एसटीएफ ने सब से पहले विकास तिवारी को हिरासत में लिया और जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो पूछताछ में विकास ने अपने गिरोह के सभी सदस्यों के नामों को उजागर कर दिया. 

उस ने एसटीएफ को बताया कि इस काम में 9 लोगों की पूरी एक गैंग का हाथ है. इस ‘स्पैशल 9’ गैंग को एक्सिस बैंक का पूर्व मैनेजर अनुभव दुबे और संदीप चौबे लीड करते थे. दोनों ही बैंक के अधिकारी हैं. एसटीएफ के एसपी राजेश सिंह भदौरिया के निर्देश पर डीएसपी संतोष तिवारी और इंसपेक्टर निकिता शुक्ला ने जब इस केस से जुड़े लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि बैंक में फरजी रजिस्ट्री जमा कर लोन लेने वाला यह बड़ा गिरोह है, जिस के तार न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों से भी जुड़े हुए  हैं. गैंग ने अभी तक लोन के नाम पर करीब 6 करोड़ रुपए शहर के अलगअलग बैंकों से ठगे हैं. गिरोह के सदस्यों ने इतनी चालाकी से काम किया कि न तो बैंक अधिकारियों को जानकारी लगी और न ही उस व्यक्ति को, जिस के नाम की फरजी रजिस्ट्री लगा कर लोन लिया गया. 

इस मामले में एसटीएफ में बीएनएस  धारा के तहत अपराध दर्ज किया गया. एसटीएफ ने 22 अगस्त को सभी 9 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और प्रैस कौन्फ्रैंस में मामले का खुलासा किया. स्पैशल 9’ गैंग के लोग बेहद शातिर थे और इस काम के लिए ऐसे निजी बैंकों का चुनाव करते थे, जिन में औनलाइन केवाईसी नहीं होती है. जबलपुर के तिलहरी इलाके में रहने वाला 27 साल का अनुभव दुबे और अनमोल सिटी निवासी 34 साल का संदीप चौबे स्पैशल 9 गैंग के लीडर थे. दोनों ही बैंक में अधिकारी थे और अधिकारी होने की वजह से दोनों जानते थे कि राष्ट्रीयकृत बैंकों में केवाईसी कराने में बहुत परेशानी होती है, इसलिए उन बैंकों को चुना जाए, जहां ईकेवाईसी नहीं होती है.

प्राइवेट बैंकों को ही क्यों बनाया निशाना

एसटीएफ की जांच में पता चला है कि इस शातिर गैंग के सदस्यों द्वारा अभी तक एक्सिस बैंक से करीब 50 लाख रुपए, हिंदुजा बैंक से करीब 3 करोड़ रुपए, जना बैंक से करीब एक करोड़ रुपए और ग्रामीण सहकारी बैंक से करीब 50 लाख रुपए का लोन फरजी रजिस्ट्री लगा कर लिया गया है. जिस तरह तेलगी ने नकली स्टांप छाप कर करोड़ों रुपए का घोटाला किया था, ठीक उसी तर्ज पर इस गैंग ने फरजी रजिस्ट्री बना कर करोड़ों रुपए का गोलमाल कर बैंकों को चूना लगाया है और भोलेभाले लोगों के नाम पर लोन ले कर उन को मुसीबत में डाल दिया है.

एसटीएफ इंसपेक्टर निकिता शुक्ला और उन की टीम ने काफी मशक्कत कर इस गैंग से जुड़े लोगों को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. ‘स्पैशल 9’ गैंग का एक सदस्य 41 साल का प्रवीण पांडे जबलपुर के वीएफजे एस्टेट का रहने वाला है, जो लोन पास होने के बाद अकाउंट होल्डर बनता था. वह अलगअलग नामों से बैंकों में अकाउंट खुलवाता था. प्रवीण ने कभी शेख सलीम तो कभी प्रवीण काले बन कर शहर के एक नहीं बल्कि कई बैंकों में अपने खाते खुलवाए और दूसरे साथियों की मदद से फिर फरजी रजिस्ट्री जमा कर लोन हासिल कर लिया. जबलपुर के एक्सिस बैंक में अनुभव दुबे और हिंदुजा बैंक में संदीप चौबे की मदद से प्रवीण द्वारा अलगअलग नाम की फरजी रजिस्ट्री लगा कर लाखों रुपए के लोन लिए गए.

गिरोह का एक और सदस्य 31 साल का पुनीत उर्फ राहुल पांडे है, जो टीआईटी बिल्डिंग, पुलिस लाइन का निवासी है और जबलपुर के माढोताल इलाके में स्थित जना बैंक का कर्मचारी है. इस की मदद से प्रवीण ने जना बैंक में भी 6 फरजी रजिस्ट्री पेपर लगा कर करीब एक करोड़ रुपए का लोन ले लिया. इस के अलावा प्रवीण ने एक्सिस बैंक, जना बैंक, हिंदुजा बैंक, इंडिया शेल्टर हाउसिंग फाइनैंस से भी अच्छाखासा लोन लिया था. एसटीएफ की जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि स्पैशल 9’ गैंग ने अभी तक करीब 6 करोड़ का लोन ले कर फ्राड किया है. जांच में एसटीएफ को और भी लोगों के शामिल होने की जानकारी मिली है, जिस की जांच अभी चल रही है.

कैसे तैयार करते थे फरजी रजिस्ट्री

गोकुलपुर का रहने वाला 30 साल का विकास तिवारी लोगों से लोन के लिए संपर्क करता था और लोन चाहने वालों से उन की रजिस्ट्री की फोटोकापी ले लिया करता था. इस के बाद अनुभव, पुनीत और संदीप रजिस्ट्री को चैक करने के बाद लालमाटी इलाके में फोटोकापी की दुकान चलाने वाले 34 साल के लकी उर्फ लखन प्रजापति की दुकान में ले कर जाते थे, जहां पर लकी द्वारा फरजी रजिस्ट्री तैयार की जाती थी. लकी इस काम में इतना माहिर था कि रजिस्ट्री में लगाए गए स्टांप भी कलर फोटोकापी मशीन से ऐसे तैयार कर देता था कि वे असली लगते थे.

फरजी रजिस्ट्री तैयार होने के बाद उस में रजिस्ट्रार, सब रजिस्ट्रार के सील, साइन करवाने की जिम्मेदारी अनवर उर्फ अन्नू निभाता था. जबलपुर के मोती नाला में रहने वाला 49 साल का अनवर पिछले 15 सालों से जबलपुर कलेक्ट्रेट में काम कर रहा है. वह अच्छे से जानता था कि रजिस्ट्री में कितने का स्टांप लगता है और किस पेज में कहां पर किस तरह की मुहर लगाई जाती है. अनवर ने इस काम के लिए नकली मुहर भी तैयार कर रखी थी. फरजी रजिस्ट्री तैयार होने के बाद प्रवीण का काम होता था कि वह अलगअलग नामों से बैंकों में जा कर लोन के लिए आवेदन करे. 

इस गैंग में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के शिवपुरी मऊ निवासी 38 साल का मोहम्मद अनीस भी शामिल था. वह कुछ समय पहले से जबलपुर के अनमोल सिटी में रहने लगा था, यहीं उस की पहचान संदीप चौबे से हुई थी. मोहम्मद अनीस का काम होता था कि सभी लोगों से फरजी रजिस्ट्री इकट्ठा कर अपने पास रखे और समय आने पर उस रजिस्ट्री को प्रवीण पांडे को सौंप दे. एसटीएफ ने एक साथ गिरोह के सभी 9 सदस्यों के ठिकानों पर जब छापा मारा तो उन के यहां 50 से ज्यादा फरजी रजिस्ट्री, अलगअलग नामों के पैन और आधार कार्ड, कंप्यूटर, फोटोस्टेट मशीन, मोबाइल और कई इलेक्ट्रौनिक उपकरण भी मौके से बरामद किए गए. एसटीएफ के मुताबिक, ये लोग एक साथ फरजी रजिस्ट्रियां तैयार कर रख लेते थे, फिर जरूरत के हिसाब से शहर के अलगअलग बैंकों में लोन के लिए फाइल लगा देते थे.

कहां से आई बैंक अधिकारी के पास इतनी संपत्ति

2 साल पहले प्लानिंग मैनेजर के रूप में एक्सिस बैंक जौइन करने वाला अनुभव दुबे लक्जरी लाइफ जी रहा था. अनुभव की सैलरी 35 हजार रुपए महीना होने के बावजूद शहर के सब से पौश इलाके नर्मदा एवेन्यू में उस ने 4 फ्लैट ले रखे थे. एसटीएफ टीम को जांच में अभी तक एकएक करोड़ के 2 फ्लैट के दस्तावेज ही मिले हैं. एक फ्लैट में अनुभव अपनी पत्नी के साथ रहता था, जबकि दूसरे फ्लैट में उस की सास रह रही थी. अनुभव के ससुर की गोरखपुर में गैस एजेंसी है. अनुभव अपनी काली कमाई अपनी पत्नी और अन्य रिश्तेदारों के बैंक खातों में ट्रांसफर करता था. इसी पैसे से अलगअलग नामों से उस ने प्रौपर्टी खरीदी.  अनुभव ने 2022 में जबलपुर में ही लव मैरिज की थी. इस के बाद पत्नी और सास के साथ विदेश यात्रा पर घूमने गया था. वहां परिवार के साथ 12 दिन तक रुका था, इस के अलावा वह 2023 में घूमने के लिए दुबई भी गया था.

वह हर 6 महीने में पत्नी और रिश्तेदारों के साथ हौलीडे टूर पर विदेश जाता था. अनुभव और उस की पत्नी को लग्जरी गाडिय़ों का भी शौक है. अनुभव के अलावा उस की पत्नी, सास और ससुर सभी के पास अलगअलग लग्जरी कारें हैं. गोरखपुर के नर्मदा एवेन्यू में रहने वाले अनुभव दुबे ने सितंबर 2023 में सफाई कर्मचारी रवि कुमार के साथ जम कर मारपीट की थी, जिस के बाद अनुभव और उस के ससुर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई थी, तब कोर्ट से उसे जमानत मिल गई थी. अनुभव कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसे कमा कर जल्द अमीर होना चाहता था, इसी वजह से उस ने एक औनलाइन एप्लीकेशन भी तैयार कर रखी थी. इस ऐप के जरिए वह लोगों को अधिक से अधिक पैसा कमाने की औनलाइन ट्रिक बताया करता था. अनुभव एमएमएम एक्स्ट्रा कंपनी से जुड़ा था.

कंपनी का स्लोगन थाएक्स्ट्रा मनी अप 100 प्रतिशत. गैंग में शामिल लोगों ने लोन लेने के लिए मृत लोगों को भी नहीं छोड़ा. गैंग का एक सदस्य राजेश डेहरिया लोगों को लोन दिलाने के नाम पर उन की रजिस्ट्री अपने पास रखता था. राजेश ने जबलपुर के अधारताल में रहने वाले प्रमोद शर्मा का फरजी मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार करा कर उस की जमीन के खसरे से नाम हटाया और राजेश डेहरिया का नाम बदल कर खुद प्रमोद शर्मा का फरजी बेटा राजेश शर्मा बन गया. इस के बाद राजेश ने प्रमोद शर्मा की जमीन का नामांतरण भी इन दस्तावेजों के आधार पर अपने नाम करा लिया. राजेश डेहरिया ने राजेश शर्मा के आधार कार्ड और पैन कार्ड की भी इतनी सफाई से नकल की थी कि सब चकमा खा गए. एसटीएफ भी प्रमोद शर्मा को तलाश रही थी, जिस के नाम का राजेश ने उपयोग किया और जमीन के मार्फत लोन ले लिया. आशंका यह भी जताई जा रही है कि स्पैशल-9’ गैंग ने मिल कर प्रमोद शर्मा को गायब करवा दिया है.

राजेश डेहरिया ने कई लोगों के नाम से फरजी विक्रय पत्र भी बनवाए हैं. उस ने जनवरी 2003 में गुलाम हुसैन पिता खलील अहमद निवासी गाजी नगर, चितरंजन वार्ड, रद्ïदी चौकी की जमीन के कुल रकबे 0.648 हेक्टेयर में से 0.210 हेक्टेयर हिस्सा बेच दिया. जमीन के एक हिस्से को टाटा कैपिटल बैंक में गिरवी रख कर 3 करोड़ का लोन ले लिया. यह लोन कौन चुकाएगा, यह किसी को पता नहीं है. मामले की जांच कर रही एसटीएफ के डीएसपी संतोष तिवारी ने बताया कि 9 आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद 15 फरजी रजिस्ट्रियां बरामद की गई थीं. इन की संख्या अब बढ़ कर 60 से अधिक हो गई है. इस गोरखधंधे में पहले 4 बैंकों से फ्राड का खुलासा हुआ था, अब कुछ और बैंकों के नाम भी सामने आए हैं.

कथा लिखे जाने तक स्पैशल 9’ गैंग के 9 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जबलपुर जेल भेज दिया गया. एसटीएफ का कहना है कि फ्राड के इस गोरखधंधे में शामिल गैंग के सदस्यों की संख्या 10 से 15 हो सकती है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

पंजाबी सिंगर रंजीत बाथ ने किया मैरिड प्रेमिका के पापा का मर्डर

पंजाबी सिंगर रंजीत बाथ को आस्ट्रेलिया में रहने वाली किरणदीप कौर से सोशल मीडिया के द्वारा प्यार हो गया था. दोनों ने शादी करने का भी फैसला कर लिया. इसी दौरान ऐसा क्या हो गया कि रंजीत बाथ ने लुधियाना में रह रहे प्रेमिका के पिता रविंदर पाल सिंह की न सिर्फ हत्या कर दी बल्कि इस की सूचना प्रेमिका को भी दे दी?

पंजाबी सिंगर रणजीत सिंह कहलों उर्फ रंजीत बाथ अपनी प्रेमिका किरणदीप कौर के पिता रविंदर पाल सिंह की हर हाल में हत्या करना चाहता था. वह यही सोचता कि अपनी योजना को किस तरह अंजाम दे. रणजीत सिंह कहलों एक जानामाना सिंगर था, इसलिए वह यही चाहता था कि उस का काम भी हो जाए और किसी को इस का पता भी न चले. हत्या को आसानी से अंजाम देने के लिए उस ने जालंधर के ही नकोदर निवासी अपने भतीजे बलजिंदर सिंह उर्फ गुल्ली उर्फ मोना से बात की. गुल्ली अपने चाचा का साथ देने को तैयार हो गया.

हत्या की योजना बनाने के बाद रणजीत सिंह कहलों 25 अगस्त, 2024 को अपने भतीजे को ले कर लुधियाना में रहने वाले प्रेमिका के पिता रविंदर पाल सिंह के घर पहुंचा. वह वहां अकेले ही रहते थे. उन का बेटा विक्रम सिंह सग्गड़ लुधियाना के ही दुर्गी गांव में रहता था और बेटी किरणदीप कौर आस्ट्रेलिया रहती थी. रविंदर पाल सिंह रंजीत बाथ को पहले से जानते थे, इसलिए रंजीत बाथ ने उन से एक जरूरी बात कहने का बहाना बना कर पार्टी की बात कही. रविंदर पाल उस की बातों में आ गए. उन्होंने अपनी कार निकाली और घर का ताला बंद कर वह उन दोनों के साथ चल दिए. गाड़ी रणजीत कहलों चला रहा था, रणजीत और बलजिंदर अपने साथ एक छोटा थैला भी लाए थे, जिस में रस्सी और चाकू रखा था. 

उस के बाद रणजीत रात को कार को एक सुनसान इलाके की ओर ले गया और फिर रणजीत सिंह और बलजिंदर ने मिल कर रस्सी से 78 वर्षीय रविंदर पाल की हत्या कर दी. बाद में उन के शव को मुल्लांपुर दाखा के पास मैरिज विला रिजौर्ट के पास झाडिय़ों में फेंक दिया. शव ठिकाने लगाने के बाद रणजीत ने उन की कार दुरंगी के पास एक पेट्रोल पंप के सामने खड़ी कर दी. अपनी योजना को अंजाम देने के बाद रणजीत सिंह ने अपने भतीजे बलजिंदर को कुछ दिनों के लिए शहर और गांव से बाहर रहने की हिदायत दी और फिर वे दोनों अलगअलग रास्ते चले गए.

28 अगस्त, 2024 की रात पुलिस को सूचना मिली कि मुल्लांपुर दाखा के पास पंडोरी गांव में जीटी रोड पर किसी बुजुर्ग की लाश पड़ी है. पुलिस मौके पर पहुंची. शिनाख्त न हो पाने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश को लुधियाना के सरकारी अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया. बात 29 अगस्त की है. लुधियाना के एसएसपी (ग्रामीण) नवनीत सिंह बैंस अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी उन के मोबाइल फोन पर एक काल आई. काल किसी अंजान नंबर से आ रही थी.

हैलो, मैं एसएसपी नवनीत सिंह बोल रहा हूं, कहिए मैं आप की क्या सहायता कर सकता हूं?’’ एसएसपी नवनीत ने कहा. 

सर, मेरा नाम विक्रम सग्गड़ है, मैं अभीअभी लुधियाना के सिविल अस्पताल से आ रहा हूं, जो लाश कल रात पंडोरी गांव में जीटी रोड पर मिली थी, वह मेरे पापा की लाश है,’’ कहतेकहते विक्रम रोने लगा.

हां विक्रमजी, हमें कल रात एक लाश मिली थी, शिनाख्त न होने के कारण वह सिविल अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी गई थी. यह सुन कर बड़ा दुख हुआ कि यह लाश आप के पापा की है. आप दुखी न हों, हम इस का पता जरूर लगाएंगे कि आप के पापा के साथ आखिर हुआ क्या था. आप हम पर विश्वास रखें!’’ एसएसपी ने कहा. 

एसएसपी साहब, मुझे यह पता है कि मेरे पापा का मर्डर किस ने किया है? मेरे पास इस बात का पुख्ता सबूत भी है, इसलिए मैं आप से पर्सनली मिलना चाहता हूं.’’ विक्रम ने कहा.

विक्रमजी, आप ने तो बहुत बड़ी और अच्छी बात कह डाली है. आप हमें इस बारे में जरूर बताएं, मगर इस वक्त आप कहां हैं?’’ एसएसपी ने कहा.

सर, मैं आप के औफिस के बाहर ही खड़ा हूं. बस एक ही इंतजार है कि मैं अपनी बात आप से रूबरू कर सकूं, यदि आप की इजाजत हो!’’ विक्रम ने कहा.

ठीक है, आप संतरी को कह कर तुरंत मेरे पास आ सकते हैं.’’ एसएसपी ने कहा.

पिता का मर्डर करने के बाद प्रेमिका को क्यों दी सूचना

अगले 2 मिनट के बाद विक्रम सग्गड़ एसएसपी नवनीत सिंह बैंस के सामने की कुरसी पर बैठा था.

सर! मुझे आप के बारे में पता है कि आप हर केस में पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ काम करते हैं. लुधियाना के सभी लोग आप की बहुत प्रशंसा करते हैं, इसलिए मैं सीधे आप के पास अपने दिल की बात कहने के लिए आया हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि आप मुझे निराश नहीं करेंगे,’’ विक्रम ने एसएसपी का अभिनंदन करते हुए कहा.

आप बेफिक्र हो कर अपनी बात करें, हम आप के साथ हैं.’’ एसएसपी ने कहा.

सर, मेरे पापा का मर्डर किसी और ने नहीं बल्कि रणजीत सिंह कहलों उर्फ रंजीत बाथ ने अपने भतीजे के साथ मिल कर किया है,’’ विक्रम ने कहा.

यह रंजीत बाथ वही है न, जो पंजाबी सिंगर है?’’ एसएसपी ने पूछा.

जी, यह वही मशहूर पंजाबी सिंगर रंजीत बाथ है, जिस ने मेरी बहन का जीना हराम कर रखा है और जिस ने मेरे पापा का मर्डर किया है. सर, आप इस को बिलकुल छोडऩा मत.’’ कहते हुए विक्रम रो पड़ा था. 

देखिए विक्रमजी, किसी के ऊपर आरोप लगाने के लिए हमारे पास पुख्ता सबूतों का होना बहुत जरूरी होता है. क्या आप के पास इस बात के कोई पुख्ता सबूत हैं कि रंजीत बाथ ने ही आप के पिता का मर्डर किया है?’’ एसएसपी ने पूछा.

”जी सर ! मेरे पास पूरे सबूत हैं. यह देखिए, उस ने वाट्सऐप पर मेरी बहन को साफसाफ लिखा कि शादी से इंकार किए जाने पर उस ने मेरे पापा का मर्डर कर दिया है. उस ने यह भी लिखा है कि उस ने मेरे पापा का मर्डर अपने भतीजे बलजिंदर के साथ मिल कर किया है. वे दोनों मेरे पापा को उन की गाड़ी में ले गए और फिर उन की हत्या कर दी. 

रंजीत ने यह भी लिखा है कि मर्डर करने के बाद उन्होंने लाश किस जगह पर फेंकी थी. मेरे पापा की कार इस समय पर कहां है, यह बात भी उस ने मेरी बहन को लिखी है. मर्डर करने के बाद उस ने मेरी बहन से माफी भी मांगी है.’’ 

कहते हुए विक्रम ने अपना मोबाइल फोन एसएसपी को दे दिया, जिस में पूरे वाट्सऐप के स्क्रीन शौट मौजूद थे. एसएसपी नवनीत सिंह बैंस ने मोबाइल के मैसेज पढऩे के बाद तुरंत इस बात की सूचना अपने उच्च अधिकारियों को दे दी और उच्च अधिकारियों के निर्देश मिलने के बाद एक पुलिस टीम गठित कर दी. थोड़ी ही देर में यह खबर आग की तरह पूरे पंजाब में फैल गई कि पंजाब का मशहूर सिंगर रंजीत बाथ अपनी प्रेमिका के पिता की हत्या कर फरार हो गया है. एसएसपी नवनीत सिंह बैंस द्वारा गठित की गई पुलिस टीम में एसपी (डी) परमिंदर सिंह, डीएसपी (मुल्लांपुर दाखा) फतेह सिंह, डीएसपी (डी) संदीप वडेरा, सीआईए स्टाफ के प्रमुख इंसपेक्टर किकर सिंह और थाना मुल्लांपुर दाखा के एसएचओ इंसपेक्टर कुलविंदर सिंह धालीवाल को शामिल किया गया. 

पुलिस टीम ने इस मामले की गहनता से जांच की तो पता चला कि रविंदर पाल सिंह मूलरूप से लुधियाना के दुर्गी गांव के रहने वाले थे. वह एलआईसी के एजेंट थे. उन के 2 ही बच्चे थे. बेटी किरणदीप कौर थी, जो शादीशुदा थी और आस्ट्रेलिया में रहती थी और बेटा विक्रम सिंह सग्गड़ गांव में रहता था. वह अपनी खेती का काम भी संभालता था. कोरोना के दौरान रविंदर पाल की पत्नी की मृत्यु होने के कारण वह अकेले रह गए थे. उन का लुधियाना में भी अपना मकान था. उन्हें अपने मकान से बड़ा लगाव था, इसलिए वह अधिकतर समय लुधियाना में ही रहते थे. कभीकभी वह अपनी बेटी से मिलने उस के पास आस्ट्रेलिया चले जाते थे तो कभी अपने बेटे विक्रम के पास गांव चले जाते थे. एलआईसी से उन्हें अच्छीखासी इनकम हो जाती थी, इसलिए उन की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी.

प्रेमी की सूचना पर किरणदीप क्यों हुई परेशान

26 अगस्त, 2024 की सुबह किरणदीप कौर ने आस्ट्रेलिया से पंजाब में रह रहे अपने छोटे भाई विक्रम को फोन कर के पूछा कि वह कल से पापा को फोन कर रही है, मगर उन का फोन नहीं लग रहा है. किरणदीप रोज दिन में 2 बार आस्ट्रेलिया से अपने पापा के साथ बातचीत करती थी. क्योंकि जब से उस की मम्मी का निधन हो गया था, तब से पापा एकदम अकेले रह गए थे. इसलिए किरणदीप उन से रोज फोन पर बात कर लेती थी. जब किरणदीप का फोन विक्रम के पास आया तो वह तुरंत अपने पापा के घर लुधियाना गया, लेकिन उस के पापा वहां पर नहीं मिले. घर के बाहर ताला लटका हुआ था. यहां तक कि विक्रम को अपने पापा की कार भी घर में कहीं नजर नहीं आई. 

विक्रम सिंह ने पापा को फोन करने की कोशिश की, मगर उन का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. पूरे दिन और पूरी रात विक्रम पापा को तलाश करता रहा, परंतु वे कहीं नहीं मिले. 27 अगस्त, 2024 की सुबह से विक्रम ने फिर से अपने दोस्त विनोद कुमार के साथ फिर अपने पिता की तलाश शुरू की तो उन्हें दुरंगी में पेट्रोल पंप के पास पापा की कार लावारिस हालत में मिली. विक्रम ने उसी दिन 27 अगस्त को थाना मुल्लांपुर दाखा में पापा की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. अगले दिन पुलिस को पंडोरी गांव में जीटी रोड पर एक व्यक्ति की लाश मिली, जिस की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. तब पुलिस ने लाश अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी थी. अगले दिन एसएचओ कुलविंदर सिंह ने फोन कर के विक्रम को अस्पताल बुला लिया, क्योंकि एक दिन पहले ही विक्रम ने पापा की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

विक्रम अपने दोस्त विनोद के साथ सरकारी अस्पताल पहुंच गया और उस ने लाश की पहचान अपने पापा रविंदर पाल सिंह के रूप में की. फिर विक्रम ने इस सब की जानकारी अपनी बड़ी बहन किरणदीप को आस्ट्रेलिया में फोन कर के दे दी. उस के बाद किरणदीप ने भाई को बताया कि इस बात की पूरी जानकारी तो सिंगर रणजीत कहलों उर्फ रंजीत बाथ ने उसे वाट्सऐप मैसेज कर के पहले ही दे दी थी. लेकिन किरणदीप ने विक्रम को बताया कि पहले तो उस ने इसे मजाक समझा था कि रणजीत शायद उस को डरा रहा है, परंतु जब उस ने पापाजी से बात करने की कोशिश की तो उन का फोन ही नहीं लग पा रहा था. इस के बाद उस ने उस से पापा को ढूंढने के लिए कहा था. 

किरणदीप कौर आस्ट्रेलिया में जौब करती थी और मनोरंजन के लिए वह कभीकभी टिकटौक पर अपने वीडियो भी अपलोड करती रहती थी. किरणदीप अपने पति से काफी लंबे समय से अलग रह रही थी, क्योंकि दोनों के विचार आपस में बिलकुल भी नहीं मिलते थे. किरणदीप का एक बेटा था, जो 13-14 साल का था. पति अपनी दुनिया में मस्त था तो किरणदीप अपनी दुनिया में मस्त थी. बस बेटे के कारण महीने-2 महीने में पतिपत्नी की केवल मुलाकात हो जाया करती थी.

किरणदीप का एक टिकटौक वीडियो काफी पौपुलर हो गया था, उस में एक दिन रंजीत बाथ नाम से एक कमेंट किरणदीप ने देखा, जिस में किरणदीप की काफी तारीफें लिखी हुई थीं. कमेंट भेजने वाले ने अपना परिचय पंजाबी सिंगर के रूप में दिया था और अपने कुछ वीडियो भी भेजे थे. किरणदीप ने जब रणजीत उर्फ रंजीत बाथ के गाने के वीडियो देखे तो उस ने भी अपने कमेंट में उस की तारीफों के पुल बांध दिए थे. 

किरणदीप और रंजीत बाथ की इस तरह बढ़ीं नजदीकियां

इस के बाद धीरेधीरे दोनों में अकसर वीडियो काल भी होने लगी थी. ऐसे ही एक दिन एक टिकटौक वीडियो को देख कर रणजीत ने लिख दिया, ”किरणदीपजी, मैं तो आप की आवाज और आप की सुंदरता का कायल हो गया हूं. आप जो भी वीडियो डालती हैं, वह सब से अलग और दिल को अंदर तक प्रभावित करने वाला होता है. सुंदरता और प्रतिभा का ऐसा मेल बहुत ही कम देखने को मिलता है.’’

प्रशंसा तो एक ऐसी चीज है, जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती है. स्त्री को तो प्रशंसा एकदम से लुभा देती है. रणजीत के कमेंट्स किरणदीप को अब काफी अच्छे लगने लगे थे, लिहाजा अब दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी आपस में एक्सचेंज कर लिए थे. धीरेधीरे दोनों में खुल कर बातें भी होने लगी थीं. रणजीत की बातों में न जाने कैसी अजीब सी कशिश थी कि वह बहुत तेजी से किरणदीप के मनमस्तिष्क पर छाने लगी थी. सोतेजागते, चलतेफिरते, खातेपीते किरणदीप अब रणजीत के खयालों में ही गुम रहने लगी थी. एक दिन रंजीत बाथ ने उस से अपने दिल की बात कह ही डाली, ”किरणदीप ऊपर वाले ने आप को चांद सा हसीन चेहरा दिया है. जाहिर है, आप के भीतर भी इतना ही खूबसूरत चांदनी की तरह जिस्म भी और दिल भी बेदाग होगा. मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं.’’ 

रंजीतजी, आप एक अच्छेभले सिंगर हैं. समाज में आप की प्रतिष्ठा और शोहरत भी है. मगर मैं आप के ख्वाबों की तरह बेदाग नहीं हूं. मैं एक विवाहित महिला हूं और मेरा एक बेटा भी है, इसलिए अच्छा यही रहेगा कि आप मुझे भूल कर कोई ऐसी दिलरुबा ढूंढ लें, जो बेदाग हो,’’ किरणदीप ने भी अपनी हकीकत बयां कर दी थी.

”किरणदीपजी, यह प्यार भी एक बड़ी अजीब चीज होती है, यह प्यार जब एक बार किसी से हो जाता है तो फिर इस के लिए किसी भी हद तक आगे बढ़ा जा सकता है. देखिए, यदि आप का आप के पति से तलाक हो चुका है तो यह अच्छी बात है. अगर तलाक नहीं हुआ है तो आप पति से तलाक ले सकती हैं. मैं आप को तो तहेदिल से स्वीकार करूंगा ही, साथ ही आप के बेटे को भी मैं पिता का प्यार दूंगा.’’ रंजीत ने वादा किया.

अपने दिल की पूरी बात खोलते हुए रंजीत ने आगे कहा, ”अब तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह सकता. मैं तुम्हें अब जल्द से जल्द पा कर अपनी जिंदगी में शामिल कर लेना चाहता हूं. तुम्हारे बगैर तो अब मैं एक पल भी अपनी जिंदगी नहीं जी सकता. मैं ने तो तुम्हें कब से अपना बना लिया है. मैं अब अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे नाम कर चुका हूं.’’

रंजीतजी, मैं आप की भावनाओं की कद्र करती हूं, लेकिन मैं एक बार धोखा खा चुकी हूं, इसलिए मैं अब भावनाओं में बहती नहीं, वैसे यदि आप मुझे पसंद करते हैं तो मैं यही चाहूंगी कि एक बार आप मुझ से यहां आस्ट्रेलिया आ कर मिल लें. जब हम दोनों कुछ दिन एकदूसरे के आसपास रहेंगे तो हमें एकदूसरे को समझने में काफी आसानी रहेगी. 

यदि हमें ऐसा लगेगा कि हम दोनों इस शादी से खुश रह सकते हैं तो फिर हम आगे का प्लान बना सकते हैं. मेरा तो यही विचार है कि मैं शादी करने से पहले आप को अच्छी तरह से समझ लूं. बाकी अब आगे आप की मरजी, आप जैसा सोचें.’’ किरणदीप ने भी अपने दिल की भावनाएं रंजीत के सामने रख दीं.

रणजीत कहलों उर्फ रंजीत बाथ तो किरणदीप की खूबसूरती पर मर मिटा था, उस का पासपोर्ट तो पहले से ही बना था. क्योंकि वह अकसर स्टेज शो करने के लिए विदेश आताजाता रहता था. उस ने अपना आस्ट्रेलिया का वीजा तुरंत बनवा लिया और 4 मार्च, 2024 को किरणदीप के पास आस्ट्रेलिया पहुंच गया.  वहां पर किरणदीप ने उस के ठहरने की व्यवस्था किसी दूसरी जगह पर की थी, क्योंकि वह पहले उसे अच्छी तरह से परखना चाहती थी. उस के बाद अपने पापा व भाई के साथ इस बारे मैं सलाहमशविरा करने के बाद ही रंजीत से शादी करना चाहती थी.

भाई और पापा क्यों हुए शादी के खिलाफ

किरणदीप कौर ने यह बात सब से पहले अपने भाई विक्रम सग्गड़ को बताई तो विक्रम बहन के इस फैसले पर सहमत नहीं हुआ. उस ने बहन को उस के फैसले पर बहुत बुराभला भी कहा. उस के बाद विक्रम ने रणजीत कहलो उर्फ रंजीत बाथ के बारे में जब जानकारियां मालूम करनी शुरू कीं तो उसे पता चला कि रंजीत बाथ अच्छे चरित्र का इंसान नहीं है. इस के अलावा पता चला कि वह शराबी है और कहीं भी किसी से भी गालीगलौज व मारपीट भी करने लगता है. फिर विक्रम ने अपने पापा रविंदर पाल को बहन किरणदीप के फैसले के बारे में सारी बातें बता दीं और इस के साथ ही उस ने पापा को किरणदीप के पास आस्ट्रेलिया भेज दिया ताकि वह उसे रंजीत के साथ शादी करने से रोक सकें

रविंदर पाल ने भी अपनी बेटी किरणदीप को आस्ट्रेलिया जा कर रंजीत बाथ के बारे में सारी सच्चाई बता कर उसे रंजीत से दूर रहने की सलाह दी. पहले तो किरणदीप कुछ दिन रंजीत की बातों से प्रभावित रही, मगर फिर धीरेधीरे रंजीत की हकीकत जब उस के सामने आने लगी तो उस ने उस से दूरी बनाने का फैसला कर लिया. रंजीत तो किरणदीप पर अब अपना अधिकार ही जताने लगा था. वह अब उस से मिलने जब आता तो शराब के नशे में होता था और अकसर उस के साथ गालीगलौज भी करने लगा था. उस की इन हरकतों से अब किरणदीप भी काफी परेशान हो चुकी थी.

एक दिन जब रंजीत उस से शराब के नशे में धुत हो कर मिलने आया तो किरणदीप ने उस से साफसाफ कह दिया, ”रंजीत, तुम्हारे साथ दोस्ती करना मेरी एक बहुत बड़ी भूल थी. अच्छा होगा कि तुम अब मेरी जिंदगी से दूर चले जाओ, मैं तुम्हारे साथ किसी भी हालत में शादी नहीं कर सकती. इस के बाद तुम मुझ से न तो कभी मिलना और न ही कभी बात करने की कोशिश भी करना.’’ किरणदीप के पिता रविंदर पाल ने भी रंजीत को खूब खरीखोटी सुनाई और उस से अपनी बेटी की जिंदगी से दूर रहने को कहा. इतना ही नहीं, उन्होंने रंजीत बाथ को वहां से भगा दिया. 

किरणदीप ने सोचा था कि रंजीत अब उस की जिंदगी से चला जाएगा, मगर उस का अंदेशा गलत निकला और अगले ही दिन शाम को रंजीत नशे में धुत हो कर मेलबर्न के पश्चिमी उपनगर स्थित किरणदीप के घर के बाहर गालीगलौज व हंगामा करने लगा. नशे में धुत हो कर उस ने किरणदीप को चेतावनी देते हुए कहा कि वह जल्द से जल्द अपने पति से तलाक ले कर उस से शादी कर ले. यदि उस ने ऐसा नहीं किया तो वह उसे व उस के परिवार को जान से मार डालेगा. किरणदीप ने इस की शिकायत तुरंत मेलबर्न की विक्टोरिया पुलिस से कर दी, जिस के फलस्वरूप विक्टोरिया पुलिस ने रणजीत कहलों उर्फ रंजीत बाथ को गिरफ्तार कर लिया और जून 2024 के प्रथम सप्ताह में उसे आस्ट्रेलिया से निर्वासित कर भारत वापस भेज दिया.

जब रंजीत बाथ भारत वापस आया तो वह अकसर फोन पर किरणदीप को धमकी देता रहता था. रंजीत बाथ अगस्त के दूसरे सप्ताह में एक बार फिर किरणदीप से मिलने आस्ट्रेलिया गया, लेकिन उस के ऊपर गंभीर केस दर्ज होने के कारण उसे मेलबर्न हवाई अड्ïडे से ही वापस भेज दिया गया. उस के बाद रंजीत एक घायल शेर की तरह हिंसक हो गया और उस ने अपने भतीजे बलजिंदर सिंह के साथ रविंदर पाल की हत्या कर डाली. दरअसल, रणजीत किरणदीप के ऊपर उस से शादी के लिए दबाव बना रहा था कि यदि किरणदीप ने अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी नहीं करेगी तो वह किरणदीप के परिवार वालों को मार डालेगा. किरणदीप ने इसे कोरी धमकी समझा और रणजीत की बात को कोई तवज्जो नहीं दी, लेकिन रणजीत ने अपने भतीजे के साथ मिल कर रविंदर पाल की गला घोंट कर हत्या कर दी और फिर वाट्सऐप पर किरणदीप को मैसेज भेज कर मर्डर की बात कुबूली और उस से माफी भी मांगी. 

किरणदीप ने अपने भाई विक्रम को बताया कि उस ने आस्ट्रेलिया में भी रणजीत के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया है. उस ने विक्रम को वाट्सऐप के रणजीत के सभी मैसेज के स्क्रीन शौट भेज दिए थे और रणजीत के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा. इस के बाद विक्रम 29 अगस्त, 2024 को लुधियाना के एसएसपी (ग्रामीण) नवनीत सिंह बैंस से पर्सनली मिला था और फिर रणजीत सिंह कहलों उर्फ रंजीत बाथ और उस के भतीजे बलजिंदर सिंह के खिलाफ मुल्लांपुर दाखा में हत्या का मामला 120 बीएनएस की धारा 103 (1), 3 (5) के तहत दर्ज करा दिया.

रविंदर पाल की हत्या का मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस हत्यारों की तलाश में लगातार छापेमारी करने में लग गई थी. जिस के फलस्वरूप मुकदमा दर्ज होने के 24 घंटे के अंदर ही 30 अगस्त, 2024 को पंजाब पुलिस ने रविंदर पाल की हत्या में शामिल पंजाबी सिंगर रंजीत बाथ के भतीजे बलजिंदर सिंह उर्फ गुल्ली उर्फ मोना को उस की स्कोडा कार सहित गिरफ्तार कर लिया. लेकिन रंजीत बाथ फरार हो चुका था.

कहानी लिखे जाने तक पंजाब पुलिस हत्या के आरोपी रणजीत सिंह कहलों उर्फ रंजीत बाथ को सरगर्मी से तलाश कर रही थी. दाखा मुल्लांपुर पुलिस पंजाबी सिंगर के कई ठिकानों पर छापेमारी भी कर चुकी थी, मगर आरोपी पुलिस के हाथ नहीं आ पाया. यह शक भी जताया जा रहा है कि रंजीत बाथ कहीं विदेश तो नहीं भाग गया.

कहानी पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

 

मंडप से पहले श्मशान पहुंची काजल

ब्यूटी पार्लर में मेकअप करा रही 22 वर्षीय काजल अहिरवार के दिलोदिमाग में तरहतरह के विचार घूम रहे थे, क्योंकि कुछ घंटों बाद उस की शादी होने जा रही थी. दुलहन की पोशाक में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. इसी दौरान ब्यूटी पार्लर में पहुंचे एक युवक ने काजल की गोली मार कर हत्या कर दी. इस के बाद तो मंडप स्थल पर मातम छा गया. आखिर गोली मारने वाला वह युवक कौन था और उस ने काजल को गोली क्यों मारी?

जैसेजैसे 22 वर्षीय काजल के विवाह की तारीख नजदीक आ रही थी, दीपक अहिरवार की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे. दीपक की बेचैनी को उस के घर वाले भी समझ रहे थे, इसलिए उन्होंने दीपक को बहुत समझाने की कोशिश की, परंतु दीपक पर उन की समझाइश का कोई असर नहीं हुआ. काफी सोचविचार के बाद दीपक ने एक फैसला कर लिया. उस ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए कहीं से .315 बोर के एक तमंचा व गोलियों का इंतजाम कर लिया.

23 जून, 2024 को काजल की बारात आने वाली थी. झांसी के खोडन में स्थित निशा गार्डन में विवाह की सारी तैयारियां चल रही थीं. भव्य समारोह स्थल पर मेहमानों का आना जारी थी. वधू पक्ष के लोग सारी व्यवस्थाओं में जुटे हुए थे. शादी के मंडप में खूब चहलपहल थी. लोग खानेपीने और नाचगाने में लगे थे. उसी दिन शाम 5 बजे काजल अपनी चचेरी बहनों नेहा, मुसकान, वंदना और अनुष्का के साथ विवाहस्थल से करीब 200 मीटर दूर स्थित वेलनैस ब्यूटी पार्लर में मेहंदी लगवाने और मेकअप कराने के लिए गई थी. दीपक को इस बात की जानकारी थी कि काजल मेकअप के लिए वेलनैस ब्यूटी पार्लर जा चुकी है. वह भी रात करीब 10 बजे वहां पहुंच गया. उस समय वह बहुत गुस्से में था.

वह पार्लर का दरवाजा खोल कर सीधे अंदर आ गया, जहां पर काजल का मेकअप हो रहा था. कमरे के अंदर घुसते ही उस ने काजल को अपने साथ चलने के लिए कहा, मगर जब काजल ने उस के साथ जाने से साफसाफ इंकार कर दिया तो वह काजल के साथ बहस करने लगा. तभी वहां पर मौजूद ब्यूटी पार्लर की संचालिका जाह्नïवी और काजल की बहनों ने दीपक को यह कहते हुए ब्यूटी पार्लर से बाहर कर दिया कि यहां पर मर्दों का आना मना है. उस के बाद दीपक बाहर चला गया.

पार्लर से निकलने के बाद दीपक अहिरवार कुछ देर तक बाहर खड़ा रहा. फिर उसे न जाने कैसा जुनून सा सवार हो गया कि उस ने अपने मुंह पर रुमाल बांधा और बाहर से ब्यूटी पार्लर का दरवाजा जोर से खींचा और दनदनाते हुए एक बार फिर पार्लर के उसी कमरे में पहुंच गया, जहां पर काजल का मेकअप हो रहा था. इस बार उस ने अपने दिमाग में एक खूनी मंसूबा बना लिया था. वहां पहुंच कर उस ने चीखते हुए सुर्ख जोड़े में दुलहन बनी काजल से कहा, ”काजल, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. तुम ने मेरे साथ कुछ भी ठीक नहीं किया है.’’ 

उस के बाद उस ने धमकी देते हुए कहा, ”काजल, तुम मेरी आखिरी बात ध्यान से सुन लो, यदि तुम अभी भी मेरे साथ नहीं चलोगी तो तुम्हें किसी और का भी नहीं होने दूंगा.’’ इस धमकी के बावजूद भी जब काजल उस के साथ जाने को तैयार नहीं हुई तो उस ने अचानक अपनी कमर से तमंचा निकाला और काजल की छाती से सटा कर गोली मार दी. गोली लगते ही काजल जमीन पर गिर कर वहीं ढेर हो गई. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग भी दौड़े, लेकिन तब तक पलक झपकते ही दीपक तमंचा लहराता हुआ वहां से भाग गया था.

घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दे दी गई. सूचना मिलते ही झांसी के एसएसपी राजेश एस., एसपी (सिटी) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह शिप्री बाजार थाने के एसएचओ  घटनास्थल पर पहुंच गए.

और मंडप में छा गया मातम

दुलहन काजल को गोली मारने की खबर जैसे ही शादी के हाल में पहुंची तो वहां पर सब अचंभित हो कर रह गए थे. घर वाले तुरंत ब्यूटी पार्लर पहुंचे. पता चला कि उसे मैडिकल कालेज ले जाया गया है तो वह भी वहां पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें काजल की मौत की जानकारी मिली. घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराया, फिर शव को घर वालों को सौंप दिया. जिस दुलहन की शादी होने वाली थी, उस की अब अर्थी सज रही थी. राज जाटव नाम का जो युवक बाजेबारातियों के साथ आया था, उसे भी मायूस हो कर बिना दुलहन के लौटना पड़ा. पूछताछ में पुलिस को यह जानकारी मिल चुकी थी कि आरोपी दीपक मृतका काजल के पड़ोस में ही रहता था.

बेटी की मौत की खबर मिलते ही काजल की मां रानी का रोरो कर बेहाल हो गया था. पुलिस ने इस मामले की जांच की तो पता चला कि दतिया जिले के बरगांव के रहने वाले राजकुमार अहिरवार के परिवार में पत्नी रानी के अलावा 2 बेटे विकास व विशाल और बेटी काजल थी. 5 सदस्यों के इस परिवार की जिंदगी हंसीखुशी से गुजर रही थी. राजकुमार खेतीकिसानी कर के परिवार का गुजरबसर कर रहा था.

राजकुमार के पड़ोस में ही धनीराम अहिरवार रहता था. पड़ोसी होने की वजह से धनीराम की पत्नी ऊषा अहिरवार और बच्चों का भी राजकुमार के घर आनाजाना था. धनीराम का बेटा दीपक अहिरवार बहुत होनहार था. उसे सब लोग किताबी कीड़ा कहते थे. उस का सपना संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर के आईएएस अफसर बनना था. दीपक अहिरवार और काजल अहिरवार हमउम्र थे. दोनों में अच्छी दोस्ती थी. समय के अनुसार यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. फिर उन्होंने जनमजनम तक साथ निभाने की कसमें भी खा लीं. दोनों बालिग थे, इसलिए उन्होंने अपने घर वालों को प्यार का हवाला देते हुए शादी करने की इच्छा जताई.

बताते हैं कि दोनों की शादी के लिए काजल के पापा राजकुमार के अलावा सभी की सहमति बन गई, लेकिन राजकुमार तैयार नहीं हो रहा था. फिर दीपक ग्वालियर में रह कर सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी के लिए चला गया. वह वहां कई साल रहा, लेकिन उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह वापस घर लौट आया. दीपक और काजल का प्यार पहले की तरह ही मजबूत था. वे प्यार की खातिर कुछ भी करने को तैयार थे. अपने रिश्ते को ले कर दोनों ही गंभीर थे.

योजना बना कर 9 जून, 2024 को दीपक और काजल घर से चले गए थे. काजल ने अपने घर वालों के लिए घर छोड़ते समय एक चिट्ठी भी छोड़ी थी, जिस में लिखा था, ‘मम्मीपापा, आप की बेटी काजल अपनी मरजी से दीपक के संग जा रही है. आप से मेरी बस एक विनती है कि आप की पसंद मेरी पसंद नहीं हो सकती, इसलिए मुझे, मेरे होने वाले पति दीपक और उस के घरवालों को परेशान नहीं करना. क्योंकि मेरी खुशी दीपक में है और किसी में नहीं.’

उस ने आगे यह भी लिखा था, ‘मैं और दीपक अपनी मरजी से शादी करेंगे. आप कृपा कर के हमें खुश रहने दो, नहीं तो हम दोनों आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाएंगे. आप मुझे और मेरे होने वाले पति दीपक को माफ कर देना.’ काजल 22 साल की थी. दोनों बालिग होने के कारण कोर्ट मैरिज करने ग्वालियर पहुंचे थे, लेकिन उस दिन रविवार होने के कारण छुट्टी थी, इसलिए वे दोनों शादी नहीं कर पाए थे. उस के बाद काजल के पापा पुलिस की मदद से उसे ग्वालियर से अपने साथ घर ले आया.

आननफानन में क्यों हो रही थी काजल की शादी

राजकुमार अहिरवार उस समय काजल को अपने गांव ले कर नहीं गया. किसी तरह काजल को राजी कर के वह झांसी में रहने वाले काजल के मामा के घर ले गया. जिस लड़के राज जाटव से झांसी में काजल की शादी हो रही थी, वह झांसी के चिरगांव थाना क्षेत्र के सिमथरी गांव का निवासी था. राज जाटव से साल भर पहले काजल की सगाई तय हो चुकी थी. 

काजल दीपक को पसंद करती थी, चाहती थी, इसलिए काजल ने राज जाटव से शादी करने के लिए साफ मना कर दिया था. इस कारण काजल के घर वालों को उस समय रिश्ते को तोड़ देना पड़ा था. राजकुमार को लग रहा था कि काजल दीपक का साथ नहीं छोड़ेगी, इसलिए उस ने उसी लड़के राज जाटव से काजल की बात चलाई और आननफानन में शादी की तारीख भी निकाल दी और शादी के कार्ड भी छपवा दिए.  काजल की शादी की बात का पता जब दीपक को लगा तो वह बुरी तरह से टूट गया था. उसी दिन से उस ने खानापीना भी छोड़ दिया. वह हमेशा गुमसुम सा रहने लगा था. वह काजल को चाह कर भी भुला नहीं पा रहा था.  दीपक ने मम्मी ऊषा से कहा कि मम्मीजी भले ही काजल के पापा उस की शादी किसी से भी करा दें, लेकिन मैं उसे किसी और की नहीं होने दूंगा. 

इस बारे में ऊषा ने भी उसे काफी समझाया और उसे काजल को भूल जाने की सलाह भी दी, लाख समझाने के बाद भी वह काजल को भूलने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था. केवल दीपक ही नहीं बल्कि काजल भी दीपक से बहुत प्यार करती थी. वह अकसर कहती थी कि न मैं दीपक के बगैर रह सकती हूं, न वह मेरे बगैर जीवित रह सकता है.

काजल ने मंगेतर से साझा किया अपना दर्द

काजल ने अपनी हत्या से 24 घंटे पहले अपने मंगेतर राज जाटव से फोन पर अपना दर्द साझा किया था. राज जाटव ने पुलिस को बताया कि बारात से एक दिन पहले काजल ने उसे फोन कर के बताया था कि उस के पड़ोस में रहने वाला दीपक उसे और उस के घर वालों को धमका रहा है. उस की धमकी के कारण ही वे लोग झांसी आ कर शादी कर रहे हैं. राज जाटव के मुताबिक काजल के पिता राजकुमार अहिरवार ने आखिर तक यह असली बात मुझ से और मेरे घर वालों से छिपाए रखी. 

राजकुमार अहिरवार ने सिर्फ पड़ोसी से विवाद की बात हमें बताई थी, लेकिन किस बात को ले कर विवाद था, यह बात हमें कभी भी नहीं बताई गई. झांसी के पीतांबरा पीठ में राज और काजल के परिजनों ने मिलने के बाद आननफानन में शादी की तारीख भी तय कर दी थी. इस के बाद काजल अपने गांव नहीं गई. उसे सीधे उस के मामा के घर झांसी भेज दिया गया था. 

काजल की शादी की बात उस के पापा राजकुमार ने अपने गांव में किसी को नहीं बताई थी. लेकिन किसी तरह काजल की शादी की भनक उस के प्रेमी दीपक को लग चुकी थी. 21 जून को राजकुमार ने फलदान किया था. 22 जून, 2024 को सिमथरी में वरपक्ष की ओर से खाना चल रहा था. उसी दौरान काजल ने मंगेतर राज जाटव को फोन पर पूरी बात बताई थी. सगाई तय होने के बाद राजकुमार अहिरवार ने अपना खेत बेच अपने होने वाले दामाद को कार दी थी. यह बात दीपक को नागवार गुजरी और वह अपने अंतिम फैसले के साथ शादी वाले दिन झांसी पहुंच गया और उस ने काजल की हत्या कर दी.

अब पुलिस काजल की हत्या के आरोपी दीपक अहिरवार की खोज में जुट गई. एसएसपी (झांसी) राजेश एस. ने आननफानन में 5 पुलिस टीमों का गठन कर दिया. पुलिस ने ब्यूटीपार्लर के आसपास गली के सीसीटीवी कैमरे खंगाले, उन में दीपक नजर आ रहा था. उस के साथ 2 युवक भी दिखाई दिए, हालांकि यह साफ नहीं हुआ कि इन 2 युवकों को वह अपने साथ ले कर आया था अथवा ये दोनों युवक झांसी के ही रहने वाले थे. पुलिस टीम हत्यारे के साथ दिखे युवकों को भी तलाशने में जुट गई थी.

उत्तर प्रदेश पुलिस की 2 पुलिस टीमें दीपक को गिरफ्तार करने के लिए दतिया (मध्य प्रदेश) भेज दी गई थीं. पुलिस की एक टीम हत्या वाले दिन से ही सीसीटीवी कैमरे खंगालने में जुट गई थी. कैमरों की मदद से हत्यारे को ट्रैस करने की कोशिश की जा रही थी. इस के अतिरिक्त पुलिस इस बात का भी पता लगाने में जुटी थी कि इस वारदात में हत्यारे दीपक के साथ कौनकौन लोग शामिल थे. सोमवार 24 जून, 2024 को पुलिस की टीमें फरार हत्यारे की तलाश में दबिश देने में जुटी रहीं. दीपक की तलाश में सोमवार देर रात पुलिस ने दतिया स्थित उस के गांव में दबिश दी. लेकिन उस का सुराग नहीं लग सका. उस के घर वाले भी घर में ताला बंद कर के भाग निकले थे. घर वालों के मोबाइल नंबर भी बंद आ रहे थे.

इधर झांसी में रहने वाले दीपक के रिश्तेदारों के घरों पर भी पुलिस ने दबिश दी लेकिन रिश्तेदार इस बारे में कुछ नहीं बता पाए. इस संबंध में पुलिस ने 5 लोगों को हिरासत में भी ले लिया था. 23 जून रविवार के दिन दीपक ने अपनी प्रेमिका काजल की गोली मार कर हत्या कर दी थी और वहां से फरार हो गया था. सोमवार पूरा दिन वह कहां रहा, यह किसी को पता नहीं चला. उस के बाद दीपक 25 जून मंगलवार की सुबह ही मुरैना पहुंचा. 

सुबह 5 बज कर 30 मिनट पर उस ने मुरैना के स्टेशन रोड स्थित स्टेट बैंक औफइंडिया के एटीएम से 1000 रुपए निकाले. एटीएम से रुपए निकालते ही पुलिस को उस की लोकेशन मिल गई. उत्तर प्रदेश की 2 पुलिस टीमें अभी दतिया जिले में ही उस की खोज कर रही थीं. उत्तर प्रदेश पुलिस की टीम ने इस संबंध में मध्य प्रदेश पुलिस से संपर्क कर आरोपी की डिटेल्स और लोकेशन मध्य प्रदेश पुलिस के साथ साझा की और यूपी पुलिस की दोनों टीमें अब दतिया से मुरैना की ओर चल पड़ी थीं.

एटीएम से रुपए निकालने के बाद दीपक मुरैना में स्टेशन के पास काशीबाई धर्मशाला में पहुंचा. वहां पर उस ने अपना आधार कार्ड और मोबाइल नंबर दे कर एक कमरा बुक करा लिया. कमरा लेते वक्त उस ने धर्मशाला के मैनेजर को बताया कि वह आगरा से ग्वालियर जा रहा है, लेकिन सफर के दौरान वह काफी थक गया, इसलिए अब मुरैना में आराम करेगा. धर्मशाला में रुकने के लिए दीपक ने 600 रुपए एडवांस भी जमा किए थे. दीपक को पहले रूम नं. 7 अलौट किया गया, मगर उसे एसी वाला रूम चाहिए था, इसलिए उस का रूम बदल कर उसे फिर एसी वाला रूम नंबर 5 अलौट कर दिया गया.

कमरे में जाने के बाद दीपक अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था. कमरे से दोपहर के खाने का और्डर नहीं आया तो धर्मशाला के कर्मचारियों ने उस के कमरे का दरवाजा बाहर से खटखटाया. काफी देर तक जब दरवाजा खटखटाने के बाद भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो धर्मशाला के कर्मचारियों ने कमरे के पीछे की खिड़की से झांक कर देखा तो दीपक पंखे से लटका हुआ था. दीपक ने पंखे पर गमछे से फंदा बनाया था. धर्मशाला के कर्मचारियों ने तुरंत मुरैना पुलिस को फोन किया. इस बीच आरोपी का पता लगाते हुए झांसी पुलिस की टीम भी काशीबाई धर्मशाला पहुंच चुकी थी. झांसी पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस को इस संबंध में सूचना दी. 

दोनों पुलिस टीमों ने जब मृत व्यक्ति की शिनाख्त की तो वह शव दीपक अहिरवार का ही निकला. दीपक के शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया गया. इस की जानकारी एसपी (मुरैना) डा. अरविंद ठाकुर ने पत्रकारों को दी. 26 जून, 2024 को दीपक अहिरवार का शव पोस्टमार्टम के बाद दतिया जिले के अंतर्गत बरगांव पहुंचा तो अपने बेटे का शव देख मां ऊषा अहिरवार का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. हत्या और फिर आत्महत्या के इस सनसनीखेज केस के बारे में झांसी के एसपी (सिटी) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि हत्यारे दीपक के आत्महत्या कर लेने के बाद यह केस एक तरह से क्लोज ही हो गया है. अब तक की जांच में सामने आया है कि दीपक उस रात अकेले ही ब्यूटी पार्लर गया था, दीपक के सुसाइड के बाद हत्या में प्रयुक्त हथियार को खोजना अब काफी मुश्किल काम है. हालांकि जांचपड़ताल अभी भी चल रही है. 

लोगों के गले से एक बात नहीं उतर रही है कि काजल की हत्या के बाद हत्यारा दीपक अहिरवार उत्तर प्रदेश पुलिस से बच कर दिल्ली तक भाग गया था, लेकिन फिर रात में ही वह वापस मुरैना आ गया. पुलिस को अब तक भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया कि आखिर सुसाइड करने के लिए उस ने मुरैना को ही क्यों चुनासंभावना जताई जा रही है कि किसी भावनात्मक लगाव की वजह से दीपक ने मुरैना आ कर अपनी जान दी. 

पुलिस को अब तक इस बात का भी जबाब नहीं मिला कि काजल के ब्यूटी पार्लर जाने की सटीक जानकारी दीपक को आखिर किस ने दी? हत्या में इस्तेमाल किया गया तमंचा भी पुलिस बरामद करने में कामयाब नहीं हो सकी. इस सनसनीखेज वारदात में एक इश्क ने न केवल एक युवती की जान ले ली बल्कि युवक भी जान की बाजी खुद भी हार गया. साथ ही दूल्हा राज जाटव, जिस ने काजल के साथ जिंदगी गुजारने की आस में, बारात ले कर आया था और शादी के सुनहरे सपने पाल रखे थे, वह भी केवल खाली हाथ मलता रह गया. 

जिस दुलहन (काजल) के ऊपर फूलमालाओं की बरसात होने वाली थी, जिसे लोग आशीर्वाद और बधाइयां देने वाले थे. बस इस के पहले ही सारा खेल खराब हो गया. इस सनकी आशिक ने 2 परिवारों की खुशियां उजाड़ीं और वहां से फरार हो गया. इस से भी ज्यादा हैरानी की बात तो यह थी कि उस ने खुद अपनी भी जीवनलीला समाप्त कर दी. यानी कि एक सनकी आशिक ने 3 घरों को पूरी तरह से बरबाद कर दिया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

संगीत सुनाकर वैज्ञानिक करता था मर्डर

डा. सैम फ्रांसिस अपनी साउंडप्रूफ लैबोरेटरी में किसी भी व्यक्ति को इतनी तेज आवाज में म्यूजिक सुनाता था कि उस व्यक्ति की हार्टअटैक से मौत हो जाती थी. एकएक कर वह लोगों को अपना शिकार बनाता जा रहा था. वैज्ञानिक होने के बावजूद आखिर वह ऐसा क्यों कर रहा था?

पुलिस कप्तान ए.के. समीर अपने कार्यालय में बैचेनी से चहलकदमी कर रहे थे. उन की बेचैनी का कारण अखबार में छपी एक खबर थी. हालांकि अखबार स्थानीय स्तर का ही था और आसानी से दबाया भी जा सकता था, मगर फिर भी कप्तान साहब पूरी चौकसी रखना चाहते थे. इसी कारण उन्होंने संबंधित क्षेत्र के डीएसपी आशीष चौबे और एसएचओ अविनाश मलिक को तुरंत अपने औफिस में तलब किया. संबंधित दोनों अधिकारी कप्तान साहब का आदेश पाते ही उन के औफिस में पहुंच गए.

क्या आप को पता है कि मैं ने आप दोनों को यहां क्यों बुलाया है?’’ एसपी साहब ने दोनों से प्रश्न किया.

मेरे विचार से किसी लीडर के आकस्मिक आने की सूचना आदरणीय कलेक्टर साहब ने दी होगी और उन की सुरक्षा के लिए प्रोटोकाल ड्यूटी की व्यवस्था करनी होगी. आजकल नेता लोग इतने भड़काऊ भाषण जो दे रहे हैं.’’ डीएसपी चौबे ने अनुमान लगाया.

आजकल सड़क पर कोई कुत्ता भी मर जाए तो लोग समझते हैं कि उस की मौत की जांच करवाने के लिए चक्का जाम कर देंगे.’’ इंसपेक्टर मलिक थोड़े जोश में बोले.

मैं ने कोई फिक्शन या कहानी बताने के लिए नहीं बुलाया है. और हां, यहां मौत एक कुत्ते की नहीं बल्कि 3 आदमियों की हुई है.’’ एसपी साहब बोले.

”3 आदमी?’’ दोनों अधिकारी चौंक कर बोले.

मगर अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है सर,’’ एसएचओ बोले. 

परसों आप के क्षेत्र में उस हैंडपंप के पास पीपल के पेड़ के नीचे एक आदमी की लाश मिली थी. उस के बारे में क्या खबर है?’’ एसपी साहब ने पूछा. उन के स्वर में गंभीरता थी.

जी सर, उस की रिपोर्ट मैं ने आप को भेजी थी. उस लाश के बारे में स्पष्ट उल्लेख है कि उस आदमी की मौत हार्ट अटैक से स्वाभाविक परिस्थितियों में हुई थी. इस संदर्भ में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला भी दिया गया था.’’ इंसपेक्टर मलिक ने अपना स्पष्टीकरण दिया.

हां और उस रिपोर्ट के आधार पर ही मैं ने केस को खत्म करने की अनुशंसा भी की थी,’’ डीएसपी चौबे ने अपना पक्ष रखा.

”आप लोग नया केस आने के बाद पुराने केस को भूल जाते हो क्या?’’ एसपी साहब ने पूछा.

”बिलकुल नहीं सर,’’ इंसपेक्टर ने कहा.

क्या मरा हुआ व्यक्ति हमारे विभाग से संबंधित था? हमारे पास उस मृतक से संबंधित कोई सूचना है क्या?’’ डीएसपी चौबे ने पूछा. 

मेरे सामने यह स्थानीय अखबार योद्धारखा है, इसे पढ़ा आप लोगों ने?’’ एसपी साहब ने पूछा.

अरे सर, यह तो 2 कौड़ी का अखबार है. इसे तो वैसे भी कोई नहीं पढ़ता.’’ इंसपेक्टर ने मुसकराते हुए कहा.

सर, इस पेपर को तो रद्ïदी वाले भी नहीं खरीदते हैं. ऐसी क्या खबर छाप दी उस ने कि आप इतने गंभीर हो गए?’’ डीएसपी आशीष चौबे बोले.

”खबर छोटी, मगर महत्त्वपूर्ण है. पुलिस की नजर ऐसी ही छोटीछोटी खबरों पर होनी चाहिए. इस अखबार ने छापा है कि उस पीपल के पेड़ के नीचे पिछले 6 महीनों में यह तीसरी मौत है, जो हार्टअटैक से हुई है. उस ने प्रश्न उठाया है कि क्या उस पेड़ के नीचे कोई भूत रहता है जो राहगीरों की जान ले लेता है?’’ एसपी साहब ने पेपर में छपी खबर का विवरण दिया.

लेकिन सर, अगर कोई स्वाभाविक मौत मरता है तो हम क्या कर सकते हैं? ‘‘ इंसपेक्टर ने कहा. 

एसपी ए.के. समीर ने कहा, ”एक जगह पर 6 महीनों में 3 लोगों की स्वाभाविक मौत एक ही बिंदु पर होती है तो वह अस्वाभाविक जरूर हो जाती है और फिर पुलिस का काम ही शक करना है. एक बात और है, सभी मौतें उस समय पर हुई हैं, जब लोग मौर्निंग वाक के लिए निकलते हैं. इसलिए शक लाजिमी है.’’ 

यह एक संयोग भी हो सकता है सर.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”अगर यह कोई प्राकृतिक संयोग है तब तो ठीक है, लेकिन लगातार इस तरह की घटनाएं होने से लोगों में भूतप्रेत के प्रति अंधविश्वास बढ़ सकता है, जिस की आड़ में असामाजिक तत्त्व अपनी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं. इसलिए जांच जरूरी है.’’  एसपी साहब निर्णयात्मक स्वर में बोले.

ठीक है सर, मैं उस इलाके में अपने मुखबिर छोड़ देता हूं.’’ इंसपेक्टर मलिक बोले. 

देखो, जो भी मुखबिर छोड़ो, वह पूरी तरह विश्वसनीय होना चाहिए. क्योंकि एक ही स्थान पर 3 एक जैसी मौतें किसी बड़े षडयंत्र का हिस्सा भी हो सकती हैं. और अगर यह षडयंत्र है तो इस के पीछे जरूर किसी मास्टरमाइंड का दिमाग होगा. साधारण हत्यारे इस तरह सफाई से अपने काम को अंजाम नहीं देते.’’ एसपी साहब अपना अंतिम निर्देश देते हुए बोले.

जी, मैं किसी खास मुखबिर को ही वहां पर तैनात करूंगा.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया.

क्या था 3 मौतों का राज

इंसपेक्टर मलिक ने कप्तान साहब के आदेशों का पालन किया और एक खास मुखबिर को काम पर लगा दिया. इस घटना को 3 महीने गुजर चुके थे, मगर वहां कोई घटना नहीं हुई, न ही कोई संदेहास्पद व्यक्ति दिखाई दिया.

सर, मुखबिर को काम पर लगाए 3 महीने हो चुके हैं. अभी तक कोई ऐसी घटना न ही कोई व्यक्ति दिखाई पड़ा, जिस पर शक किया जा सके. क्या हम अपने मुखबिर को वहां से हटा लें?’’ इंसपेक्टर मलिक ने एसपी साहब से पूछा.

नहीं, अभी नहीं. अगर ये घटनाएं किसी अपराध के तहत हुई हैं तो अपराधी एक बार फिर उस जगह जरूर आएगा, यह पुलिस की क्राइम साइकोलौजी कहती है. हमें उस समय तक इंतजार करना चाहिए.’’ एसपी साहब बोले.

जैसा आप का आदेश सर.’’ कह कर इंसपेक्टर बाहर निकल गए. कुछ समय गुजर जाने के बाद एक दिन. 

”सर, उस स्थान पर पिछले 2 घंटे से एक कार 3 चक्कर काट चुकी है और हर बार कुछ पलों के लिए रुकी भी है.’’ मुखबिर ने फोन लगा कर इंसपेक्टर को सूचना दी.

”मामला कुछ गड़बड़ लगता है. उस कार का नंबर नोट करो और उस की गतिविधियों पर नजर रखो.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

सर, गाड़ी का नंबर एससी 02 बीबी 2222 है.’’ मुखबिर ने बताया 

इंसपेक्टर मलिक की दिलचस्पी बढ़ गई. वह बोले, ”ठीक है, तुम वहीं रहो मैं एसपी साहब को सूचित कर वहां पहुंचता हूं.’’ कह कर इंसपेक्टर ने अपने स्टाफ को गाड़ी के नंबर की जानकारी निकालने के आदेश दे दिए और एसपी साहब को फोन लगाया. 

हां, कहिए इंसपेक्टर मलिक,’’ एसपी साहब ने फोन उठाते ही कहा.

सर, एक सस्पेक्टेड गाड़ी उस इलाके में देखी गई है.’’ इंसपेक्टर ने कहा. 

आप ने गाड़ी के नंबर की जानकारी निकलवाई? किस की है वो गाड़ी? क्या एक्टिविटी है गाड़ी के ड्राइवर की?’’ एसपी साहब ने प्रश्नों की बौछार लगा दी.

इंसपेक्टर मलिक ने पूरा विवरण देते हुए कहा, ”जी सर, गाड़ी का नंबर साइंटिस्ट प्रोफेसर सैम फ्रांसिस का है. स्वयं सैम फ्रांसिस 3 बार गाड़ी उस स्थान पर ला कर मुआयना कर चुका है. गाड़ी की रफ्तार उस स्थान पर आ कर बहुत ही कम हो जाती है. शक करने का एक कारण और भी है कि ड्राइवर के होने के बावजूद सैम फ्रांसिस खुद गाड़ी ड्राइव कर रहा है.’’

ओह! मुझे पहले से ही शक था कि यह काम किसी प्रोफेशनल किलर का न हो कर किसी पढ़ेलिखे व्यक्ति का हो सकता है. आप तुरंत सर्च वारंट जारी करवाइए और सैम फ्रांसिस के घरदफ्तर की जांच कीजिए.’’ एसपी साहब ने आदेश दिया. 

यस सर,’’ कह कर इंसपेक्टर मलिक आदेश को तामील करने के लिए निकल पड़े. 

वैज्ञानिक ने क्यों की थीं 3 हत्याएं

कुछ ही देर में पुलिस पार्टी सैम फ्रांसिस के घर व दफ्तर में थी, जोकि मुख्य शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर सड़क से 200 मीटर अंदर की तरफ था. सैम फ्रांसिस का घर क्या था, वह तो एक किलेनुमा रचना थी.  यह किला काफी बड़े इलाके में फैला हुआ था और सुरक्षा की दृष्टिकोण से चारों तरफ से चौड़ी बाउंड्री वाल से घिरा हुआ था. बाहर नेमप्लेट लगी हुई थी— ‘डा. सैम फ्रांसिसऔर नीचे छोटेछोटे अक्षरों में लिखा था— ‘न्यू एक्सपेरिमेंटल लैब’. मतलब सैम फ्रांसिस का घर और दफ्तर एक ही जगह पर है. मन ही मन इंसपेक्टर ने सोचा.

सर, सैम फ्रांसिस के दादाजी अंगरेजों के जमाने में बहुत बड़े अधिकारी थे. ब्रिटेन से भारत नियुक्त होने पर उन्हें इस स्थान की आबोहवा इतनी पसंद आई कि इन्होंने कभी ब्रिटेन वापस जाने के बारे में सोचा ही नहीं. अपने प्रभाव से अपने पुत्र मतलब सैम फ्रांसिस के पिताजी को भी भारत सरकार में ऊंचे ओहदे पर नौकरी लगवा दी.

यह सब जमीनजायदाद उसी समय खरीदी हुई है. सैम भी पढऩे में बहुत अच्छा था और उस ने उच्च शिक्षा ग्रहण की है. अभी सैम गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कालेज में प्रोफेसर है और खाली समय में कुछकुछ प्रयोग भी करता रहता है. इसी कारण घर में एक प्रयोगशाला भी खोली हुई है.’’ एक स्थानीय सिपाही ने जानकारी दी.

किस तरह के प्रयोग करता है डा. सैम फ्रांसिस?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

सर, इस के बारे में जानकारी तो अंदर काम करने वाले लोग ही दे सकते हैं.’’ सिपाही  ने जवाब दिया. 10 मीटर के अंतराल से लगे 2 सिक्युरिटी गेट से गुजरने के बाद पुलिस पार्टी की गाड़ी सैम फ्रांसिस के पोर्टिको में खड़ी थी. 

आइए इंसपेक्टर.’’ पोर्टिको में स्वागत करने के लिए खुद सैम फ्रांसिस खड़ा था. 

जी, डा. फ्रांसिस, आप से ही मिलना था.’’ इंसपेक्टर अविनाश मलिक ने सीधेसीधे विषय पर आते हुए कहा.

मैं जानता हूं इंसपेक्टर, आप मुझ से मिलना और बहुत कुछ जानना चाहते हैं.’’ डा. फ्रांसिस मुसकराते हुए बोला. 

फिर तो आप यह भी जानते होंगे कि मैं आप से क्यों मिलना चाहता हूं?’’ इंसपेक्टर ने कहा. 

बेशक मैं जानता हूं कि आप उन 3 नैचुरल डेथ के बारे में जानना चाहते हैं, जिन की मौतें उस पीपल के पेड़ के नीचे हुई हैं. वैसे आप के डिपार्टमेंट का शक सही है. वे सभी मौतें नैचुरल नहीं, बल्कि इंड्यूस्ड हैं.’’ डा. सैम फ्रांसिस ने बताया.

जी हां डा. सैम, हम यह जानना चाहते हैं कि ये हत्याएं प्राकृतिक मौत में तब्दील कैसे हुईं?’’ इंसपेक्टर मलिक ने पूछा. 

हत्या? हां साहब, वह सौ प्रतिशत हत्याएं ही थीं और उन हत्याओं को मैं ने प्राकृतिक रूप में कैसे बदला, यह जानना हो तो आप को मेरी लैब में चलना होगा. वैसे कुल कितने लोग हैं इस पुलिस टीम मेंïï?’’ डा. सैम फ्रांसिस ने पूछा.

ड्राइवर समेत हम कुल 9 लोग हैं.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया. डा. फ्रांसिस बोला, ”लैब यहां से 200 मीटर पीछे इसी बाउंड्री में है. ड्राइवर सहित आप सभी उस लैब में पहुंचिए. चूंकि विज्ञान की बातें है, अत: यदि एक को समझ में नहीं आए तो दूसरा समझा दे.’’ 

जी नहीं, मेरी पार्टी जीप से वहां जाएगी, मगर मैं आप के साथ ही वहां जाऊंगा. मैं आप को अकेला भागने के लिए नहीं छोड़ सकता.’’ इंसपेक्टर ने दृढ़ता से कहा. 

यह भी ठीक है. यदि मुझे भागना ही होता तो मैं कब का भाग चुका होता.’’ डा. फ्रांसिस बोला. 

बातें करते हुए दोनों सैम फ्रांसिस की प्रयोगशाला में पहुंच गए. वैसे इंसपेक्टर मलिक डा. फ्रांसिस के ज्ञान के आगे अपने आप को बौद्धिक रूप से बौना समझ रहे थे तथा डा. फ्रांसिस के ज्ञान का सम्मान करते हुए सम्मोहित रूप से उस का अनुसरण कर रहे थे. 

म्यूजिक के साथ मौत का क्या था कनेक्शन

डा. सैम फ्रांसिस की प्रयोगशाला किसी आडिटोरियम से कम नहीं थी. एक बहुत बड़ा हाल था, जिस में बैठने के लिए लगभग 50 आरामदायक कुरसियां लगी हुई थीं. एक छोटा सा स्टेजनुमा प्लेटफार्म बना हुआ था, जिस के पीछे एक ब्लैकबोर्डनुमा बोर्ड लगा हुआ था.

डा. फ्रांसिस लेक्चर देगा क्या हम लोगों को?’’ एक सिपाही ने पूछा. 

पता नहीं?’’ दूसरा बोला. 

सुनिए, आप लोग ध्यान से,’’ सैम फ्रांसिस स्टेज पर चढ़ कर बोला, ”मैं आप को अपने नए प्रयोगों के बारे में कुछ बताऊंगा और शायद आप भी साक्षी बनें इस लैबोरेटरी में होने वाले पहले एक्सपेरिमेंट का. जी हां, आज इस लैबोरेटरी का उद्ïघाटन आप लोगों के द्वारा ही होगा.

”प्रयोग शुरू करने से पहले मैं आप लोगों को इस हाल की रचना के बारे में बता दूं. यह हाल पूरी तरह से साउंडप्रूफ है. इस हाल को बनाने के लिए 2 परतों वाली दीवार बनाई गई है और इन दोनों परतों के बीच का गैप 2 इंच का रखा गया है. इस गैप को भरने के लिए 6 एमएम मोटी ग्लास फाइबर की शीट तथा थर्मोकोल डाला गया है.’’

सैम फ्रांसिस ने आगे बताया, ”पूरी तरह से साउंडप्रूफ बनाने के लिए सौ प्रतिशत सुरक्षा बरती गई है. इसी कारण इस हाल के अंदर और बाहर विशेष तरह के मटीरियल का प्लास्टर किया गया है, जो चावल की भूसी से बना होता है और एक बेहतरीन साउंडप्रूफ एजेंट का काम करता है.

”अब अगर इस प्रयोगशाला में 10 डीजे भी एक साथ बजाए जाएं तो रत्ती भर भी आवाज इस हाल के बाहर नहीं जाएगी. साउंड के वाइब्रेशन से इस बिल्डिंग को नुकसान न पहुंचे, इसलिए हाल की छत को डोमनुमा बनाया गया है और एक 12 इंच डक्ट निकालते हुए उसे जमीन में ले जा कर गाड़ दिया गया. इस से यहां ध्वनि से पैदा की गई छोटी से  छोटी तरंग जमीन में समाहित हो जाएगी और बिल्डिंग सुरक्षित रहेगी.’’

लेकिन यह सब आप हमें क्यों बता रहे हैं? इस का हमारे केस से क्या संबंध है?’’ इंसपेक्टर मलिक ने सैम फ्रांसिस को बीच में टोकते हुए कहा. 

इंसपेक्टर साहब, इन सब बातों का सीधा और गहरा संबंध है इस केस से. मैं प्रयोग कर रहा था कि आदमी को कैसे मारा जाए कि उस की मौत प्राकृतिक लगे, जबकि वह हो सुनियोजित हत्या. और सब से बड़ी बात उस तकनीक को मास यानी कई लोगों पर एक साथ आजमाया जा सके.

जिस तरह निर्जीव रबर एक सीमा तक ही तनाव सह सकती है, उस के बाद टूट जाती है. उसी प्रकार आदमी भी एक स्तर तक ही तनाव सह सकता है, उस के बाद उस के शारीरिक अवयव जैसे दिमाग और दिल इसे सहने की क्षमता खो देते हैं और परिणामस्वरूप या तो उसे ब्रेन हैमरेज हो जाता है फिर सिवियर हार्ट अटैक आ जाता है. 

अपनी स्टडी के दौरान मैं ने पाया कि एक स्वस्थ आदमी 60 डेसिबल तक का साउंड आसानी से सह सकता है. उस के बाद का साउंड कुछ सीमा तक असहनीय होने लगता है और शरीर पर प्रतिकूल असर डालने लगता है. 

यद्यपि कुछ म्यूजिक कांसट्र्स में साउंड 120 डेसिबल तक का होता है. इसे इंसान का शरीर इसलिए सहन करता है, क्योंकि यह उस की पसंद का होता है तथा सब से बड़ी बात यह खुले आसमान के नीचे कुछ सीमित समय के लिए ही होता है. अत: इस का हानिकारक प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम होता है.

मधुर लगने वाले और पेड़ पौधों तक को जीवन देने वाले संगीत को मैं मौत के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता था. इसी कारण मैं ने इस लैबोरेटरी का निर्माण किया.’’ डा. सैम फ्रांसिस कह रहा था. सस्पेंस बढऩे पर इंसपेक्टर मलिक ने पूछा, ”मगर तुम तो कह रहे थे कि आज इस लैब का उद्ïघाटन है तो इस से पहले जिन 3 आदमियों पर तुम ने प्रयोग किए, वह कैसे और कहां पर किए?’’

”वो यहीं मेरे घर के ऊपरी मंजिल वाले हाल में किए थे. पहला आदमी बेचारा कई दिनों से भूखा इधरउधर घूम रहा था. मुझे अपने प्रयोग के परीक्षण के लिए आदमी की जरूरत थी. मैं ने नौकरी का झांसा दे कर अपने पास रख लिया. 2 दिन भर पेट खाने के बाद वह स्वस्थ हो गया. फिर उसे तेज संगीत सुना कर मार डाला.’’ सैम फ्रांसिस ने बताया.

लेकिन उस ने इतनी आसानी से मौत को गले लगाना स्वीकार कैसे कर लिया?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

”आसानी से कहां? उसे तो पता ही नहीं था कि वह मरने जा रहा है. मैं ने उसे समझाया कि मैं संगीत के जरिए ऐसा प्रयोग करने जा रहा हूं, जिस से आदमी अपनी शक्ति बिना खोए और बिना खायपिए एक बरस तक जिंदा रह सकता हैं.’’ सैम ने बताया.

”क्या ऐसा संभव है?’’ उस आदमी ने पूछा. 

बिलकुल संभव है और मुझे खुशी है कि मैं ने अपने इस प्रयोग को पूरा करने के लिए पहले आदमी के रूप में तुम्हें चुना है.’’ सैम बोला, ”मैं जानता था कि खुले हाल में इतना तेज संगीत लगातार नहीं बजाया जा सकता है, अत: मैं ने उस के कानों में उच्च तकनीकी क्षमता वाले ईयर फोंस लगा दिए.

”इतना निश्चित था कि ध्वनि की तीव्रता बढऩे पर वह उन ईयर फोंस को निकाल कर फेंक देता. अत: मैं ने उसे समझाया कि एक साल के लिए शक्ति संचय करने के लिए उस का निश्चल रहना जरूरी है और यह तभी संभव होगा जबकि शक्ति संचय के लिए उस के शरीर को अच्छे से बांध दिया जाए. 

”बांधने का कोई निशान नहीं आए, इस के लिए पहले उसे मोटी बैडशीट में रैप किया गया, फिर ऊपर से एक ब्लैंकेट से लपेटा गया और सब से आखिर में चौड़े पैकिंग टेप से कस कर इस तरह से पैक किया गया कि वह हिलडुल भी न सके. 

”अब उस के ईयरफोन को एक डीजे से कनेक्ट कर दिया. यह डीजे से 150 डेसिबल का शोर उत्पन्न कर सकता था. उस की इच्छा थी कि उसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ सुनाया जाए.

”उस के ईयरफोन में वाल्यूम बढऩे के साथ ही वह तड़पने लगा और छोड़ देने की विनती करने लगा. मगर मैं अपने प्रयोग को अधूरा कैसे छोड़ सकता था. मैं ने साउंड को फुल वाल्यूम तक बढ़ाया.

”लगभग 6 घंटे बाद बाद वह बेहोश हो गया और जैसे ही होश आने को हुआ मैं ने उसे मौत का संगीत उसी तीव्रता के साथ फिर से सुनाना शुरू कर दिया. बेचारा 2 घंटों में ही मौत की नींद सो गया. यह एक प्लांड मर्डर था, जिसे मैं ने स्वाभाविक मौत का जामा पहना दिया था. मैडिकल की भाषा में इसे इंड्यूस्ड हार्ट अटैक कहते हैं.

इसी तरह मैं ने दूसरे और तीसरे प्रयोग भी किए, जो सफल रहे. अब इस प्रयोग को मैं एकएक आदमी पर अलगअलग करना नहीं चाहता. इसीलिए मैं जानबूझ कर उस पेड़ के सामने रुका था. वह तो शिकार को फंसाने के लिए फेंका चारा था, जिस में 9 बकरियां फंस गईं.

बताइए इंसपेक्टर, आप कौन सा संगीत सुनते हुए मरना पसंद करेंगे?’’ सैम फ्रांसिस ने पूछा.

देखिए डाक्टर साहब, आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं. मैं ने अपने मोबाइल पर आप के बयान रिकौर्ड कर लिए हैं. मैं अभी इसे अपने सीनियर्स को फारवर्ड कर देता हूं.’’ इंसपेक्टर यह कह कर अपनी कुरसी से उठने लगे.

लेकिन वह कुरसी से उठ नहीं पाए, क्योंकि उन की कलाइयां और बाहें किसी नर्म कुशन वाले रबर की बेल्ट से बंध गई थीं. सभी 9 पुलिसकर्मी अपनीअपनी कुरसियों से बंध गए थे.

”हाहाहा…’’ हंसते हुए सैम फ्रांसिस बोला, ”इतना मूर्ख समझते हो क्या साइंटिस्ट को? मैं इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकता था इंसपेक्टर? तुम ने इस हाल में घुसने से पहले अपने मोबाइल की रिकौर्डिंग औन जरूर की थी, मगर इस में घुसते ही मैं ने अपने फ्रीक्वेंसी कंट्रोलर से सभी के मोबाइल आटो औफ मोड में डाल दिए हैं. अब किसी को तुम्हारी लोकेशन की भनक तक नहीं लगेगी.

कुरसियों पर जो बेल्ट बंधी हैं, उन के अंदर एक विशेष तरह के फोम का कुशन लगा हुआ है. इस से आप लोगों को किसी तरह की तकलीफ नहीं  होगी और आप लोगों के शरीर पर किसी तरह का निशान तक नहीं आएगा. और यह लीजिए, मैं आप लोगों को कमर के ऊपर के हिस्से को भी जकड़ देता हूं. अब आप लोग चैन की मौत मर सकते हैं. एंजौय द म्यूजिकल डेथ. हाहाहा…’’ सैम फ्रांसिस ने कुटिलता से हंसते हुए पूछा, ”कोई आखिरी इच्छा?’’

आखिर तुम यह सब क्यों कर रहे हो? क्या उद्ïदेश्य  है तुम्हारा?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

मरते दम तक भी अपनी कर्तव्यनिष्ठा नहीं छोड़ रहे हो इंसपेक्टर.’’ सैम फ्रांसिस शब्दों को चबा कर बोला, ”ठीक कहते हो इंसपेक्टर, हर काम के पीछे एक मोटिव होना तो जरूरी है और मेरा मोटिव है बदला सिर्फ बदला.’’ 

अगर बदला लेना ही मोटिव है तो उन 3 लोगों के बारे में तो पता नहीं, मगर हम 9 लोगों में से तो किसी ने भी तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया. फिर बदला किस बात का?’’ इंसपेक्टर ने बात को लंबा करने के लिहाज से पूछा.

बदला… बदला तो मुझे भारत में रहने वाले हर व्यक्ति से लेना है. सोच रहे होगे क्यों? मैं बताता हूं. हम अंगरेज तो कुछ घूमने कुछ ढूंढने के मकसद से यहां आए थे. मगर तुम्हारे पूर्वजों की मूर्खता के कारण हमें यहां अपने पर शासन करने का अवसर दिया. 

अच्छा बताओ अंगरेजों के आने से पहले तुम क्या थे? अनपढ़, जाहिल और गंवार न? हम अंगरेजों ने तुम्हें सभ्य लोगों की तरह रहना, बोलना, पढऩा और व्यवहार करना सिखाया.

मगर उन सब बातों का अहसान न मानते हुए तुम लोगों ने हमारे ही खिलाफ विद्रोह कर दिया. मेरे दादाजी पता नहीं क्या सोच  कर यहीं रुक गए. उन के इस निर्णय से हम न तो भारतीय हो पाए और न ही अपने देश के हो पाए. लेकिन मेरी रगों में अभी भी ब्रिटिश हुकूमत दौड़ रही है.

इसी कारण सम्मेलनों में, साहित्य में या फिल्मों में जब किसी अंगरेज का अपमान किया जाता है तो मेरा खून खौल उठता है और मैं हर भारतीय से बदला लेने को बेचैन हो जाता हूं. 

बहुत अहिंसा…अहिंसा का पाठ पढ़ते हो न? इसी कारण बदला लेने के लिए यह अहिंसात्मक हत्याएं करता हूं. इस में न कोई हथियार उठता है और न कोई खूनखराबा होता है. कोई सबूत भी नहीं रहता है तो कोई मुझ पर आरोप नहीं लगा सकता. न ही कोई शक कर सकता है.

आज तुम 9 लोग अपनी मौत की ध्वनि सुनोगे. इस के बाद इस प्रयोगशाला में 50 ऐसे लोग आएंगे, जो लकी ड्रा के माध्यम से बुलाए जाएंगे. मरने के बाद लाशों को यहां से बहुत दूर अलगअलग जगहों पर फेंका जाएगा. अगर मैं हजार पांच सौ को मारने के बाद पकड़ा भी जाऊं तो मैं समझूंगा कि मेरा बदला पूरा हो गया.’’

देखो डाक्टर, ऐसा मत करो. हम ने कई अंगरेज विद्वानों का सम्मान भी किया है. अगर तुम्हारी नजर में हम ने कुछ गलती की भी है तो उसे माफ कर देने में तुम्हारा बड़प्पन ही दिखाई देगा.’’ इंसपेक्टर ने एक बार फिर अनुरोध किया.

चलो बातें बहुत हो गईं. अब इस प्रयोग को शुरू करते हैं. इस में संगीत की आवृत्ति धीरेधीरे बढ़ते हुए अपने चरम पर जाएगी और तुम लोगों को मौत की नींद सुलाएगी. फाइनली गुडबाय टू एवरीवन. इट्स टाइम टू प्ले म्यूजिक फौर मर्डर. हैव अ नाइस जर्नी टू हेवन.’’ कहता हुआ सैम फ्रांसिस म्यूजिक चालू कर के लैबोरेटरी से बाहर निकल गया.

एसपी ने कैसे बचाई 9 पुलिसकर्मियों की जान

उधर पुलिस मुख्यालय में एसपी ए.के. समीर ने डीएसपी आशीष चौबे को फोन किया, ”हैलो डीएसपी चौबे?’’

यस सर, बोल रहा हूं.’’ डीएसपी ने जवाब दिया.

इंसपेक्टर को सैम फ्रांसिस के यहां गए 3 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके हैं, मगर कोई फीडबैक नहीं मिला. आप के पास कोई सूचना है क्या?’’ एसपी ने पूछा.

नहीं सर, अभी तक कोई नहीं.’’ उधर से जवाब आया. 

”तुरंत दूसरी टीम तैयार करो, हमें अभी वहां के लिए निकलना पड़ेगा, शायद वे लोग किसी परेशानी में हों.’’ एसपी समीर ने कहा. 

कुछ ही देर में लगभग 15 लोगों की दूसरी टीम सैम फ्रांसिस के घर पर थी. एसपी ए.के. समीर ने सैम फ्रांसिस से सीधे और कड़क लहजे में पूछा, ”इंसपेक्टर सहित हमारी पुलिस पार्टी कहां है?’’ 

वे लोग तो काफी समय पहले ही यहां से निकल चुके हैं.’’ सैम को पुलिस पार्टी से इतनी त्वरित प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी, अत: उस ने झूठ बोला, जबकि उस की घबराहट चेहरे से झलक रही थी.

यह झूठ बोल रहा है, इसे पुलिस की भाषा में अच्छा सबक सिखाओ. शायद इंसपेक्टर मलिक कुछ नरमी कर गया, इसी कारण मुसीबत में फंस गया लगता है.’’ एसपी साहब ने साथ आए जवानों को आदेश दिया.

कप्तान साहब का आदेश मिलते ही पुलिसकर्मियों ने डा. सैम फ्रांसिस को हिरासत में ले लिया. पुलिस की थोड़ी सी पिटाई के बाद सैम ने पीछे वाली लैब का पता बता दिया. फिर एसपी टीम के साथ वहां पहुंचे तो लैबोरेटरी में इंसपेक्टर सहित पूरी पुलिस पार्टी लगभग बेहोशी की अवस्था में मिली. सभी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 2-3 घंटे बाद इंसपेक्टर मलिक और अन्य पुलिसकर्मी होश में आ गए. फिर इंसपेक्टर मलिक ने सारी बात एसपी साहब को बता दी. इस के बाद पुलिस ने सैम फ्रांसिस को कई धाराओं के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

काश! इस वैज्ञानिक ने अपने ज्ञान का प्रयोग जन उपयोगी कार्यों के लिए किया होता तो समाज का कितना भला होता.’’ घटना सुनाने वाला हर शख्स यही कह रहा था.

 

5 हजार लोगों से कोऔपरेटिव सोसाइटी के नाम पर ठगा 250 करोड़

अनूप चौधरी ने अपने गैंग के साथ मिल कर कोई एकदो नहीं बल्कि 5 राज्यों के करीब 5 हजार लोगों के साथ कई सौ करोड़ रुपए का फ्राड किया था. आप भी जानें कि आखिर गैंग के सदस्य किस तरह लोगों को अपने जाल में फांसते थे?

जेकेवी मल्टीस्टेट क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी द्वारा जारी किए गए ब्रोशर और पैंफ्लेट में यह दावा किया गया था कि वह भारतीय रिजर्व बेंक (आरबीआई) के नियमों के मुताबिक न केवल पैसा फिक्स या आरडी के जरिए निवेश करती है, बल्कि एलआईसी की तरह इंश्योरेंस की सेवा भी देती है. उन के निवेश किए गए पैसों का दूसरा लाभ उन्हें सोसायटी द्वारा बनाए जाने वाले मकान का मिल सकता है. सोसाइटी का पहला साइन बोर्ड साल 2012 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के फैजाबाद रोड स्थित सहारा शौपिंग सेंटर में लग चुका था, हालांकि उस के रजिस्टर्ड औफिस का पता वह नहीं था.

बड़े बोर्ड पर बना लोगो एलआईसी से मिलताजुलता बनाया गया था. ठीक उस जैसा ही. फर्क सिर्फ इतना था कि 2 हथेलियों से सुरक्षा देने वाले दीपक की जगह मकान की झलक देने वाली रेखांकन में बनाई तसवीर की थी. उस डिजाइन के साथ मल्टीस्टेट लिख दिया गया था. इस के जरिए कंपनी का मकसद यह बताने की कोशिश थी कि वह मकान के लिए निवेश का काम करती है और बदले में रकम दोगुनीतिगुनी भी कर देती है. सोसाइटी का जबरदस्त प्रचारप्रसार किया जाने लगा. इंटरनेट मीडिया, छोटेबड़े होर्डिंग, हैंडबिल, पोस्टर, स्थानीय अखबारों में विज्ञापन और खबरों आदि से ले कर जस्ट डायल तक में सोसाइटी को प्रचारित कर दिया गया.

इसी क्रम में एजेंट नियुक्त कर दिए गए और छोटेछोटे शहरों में ब्रांच औफिस खोल दिए गए. साल 2014 में ही उत्तराखंड के जनपद ऊधमसिंह नगर स्थित काशीपुर में भी एक ब्रांच खोली गई. उस में स्थानीय व्यक्ति सलेम अहमद को डायरेक्टर बना दिया गया. अहमद ने कंपनी द्वारा बनाए गए नियमों के मुताबिक स्थानीय लोगों को निवेश के लिए प्रेरित किया. उस के प्रचारप्रसार के तरीके, वाकपटुता, इलाके में पहचान और कम समय में ही रकम दोगुनी होने के वादे से आरडी और फिक्स डिपौजिट स्कीम परवान चढऩे लगीं. 

कुछ ही दिनों में गांव के 400 लोगों से कंपनी में एक करोड़ 50 लाख रुपए जमा हो गए. इस से मिली कमीशन की मोटी रकम से सलीम की लाइफस्टाइल बदल गई. वह बड़ी गाड़ी में घूमने लगा. शानोशौकत की जिंदगी गुजारने लगा. कुछ निवेशकों ने 5 साल पूरे होने पर अहमद से पौलिसी का भुगतान मांगा. संयोग से उन दिनों कोरोना वायरस को ले कर लौकडाउन के हालात बनने लगे थे. निवेशक जब अपनी पौलिसी के भुगतान के लिए अहमद पर दबाव बनाने लगे, तब उस ने निर्धारित समय पर भुगतान का आश्वासन देते हुए उन के पौलिसी बौंड जमा करवा लिए. लौकडाउन के नियमों के तहत सोसाइटी के औफिस में भी ताला लगा दिया गया और फिर अहमद से भी निवेशकों का संपर्क टूट गया. 

इन 5 सालों में सोसाइटी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान में पांव फैला लिए थे. इन राज्यों के तमाम छोटेबड़े शहरों में अपना ब्रांच औफिस खोल लिया था. सभी जगह सोसायटी ने दूसरे बैंकों से अधिक ब्याज देने और जमा रकम की एवज में मकान दिए जाने का वादा किया था. इस का लोगों पर जबरदस्त असर हुआ और सोसाइटी के एजेंटों के निवेश करवाने में सफलता मिलती चली गई.

अलगअलग थानों में दर्ज होने लगीं रिपोर्ट

इस तरह निवेशकों की संख्या हजारों में हो गई. उन्हीं में एक निवेशक नरेश भी था, जिस ने उत्तर प्रदेश के संभल जिले में संचालित सोसाइटी की ब्रांच में अच्छीखासी रकम जमा की थी. उस ने भी पौलिसी के पैसे की मांग की. सोसाइटी के ब्रांच से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. इस बारे में उस ने ब्रांच के कई चक्कर लगाए. सोसाइटी के कई अधिकारियों से मुलाकात की. जब हर जगह शिकायत अनसुनी हो गई, तब उस ने प्रिंट मीडिया को मेल लिख कर अपनी पीड़ा सुनाई और सोसाइटी द्वारा धोखाधड़ी की शिकायत की.

नरेश ने अपने बारे में बताया कि उस ने अलगअलग तारीखों में कुल 11,92,428 रुपए जमा किए थे, जिन में 5 वर्षों के लिए आरडी में 31,428 रुपए, 3 वर्षों के लिए एफडी में 3,70,000 रुपए और साढ़े 5 वर्षों के लिए एफडी में 7,91,000 रुपए जमा किए थे. नरेश के सामने समस्या तब पैदा हो गई, जब उस ने अपनी पौलिसी के मैच्योर यानी परिपक्वता की रकम लेने के लिए आवेदन किया. सोसाइटी द्वारा उस के आवेदन को अनसुना कर दिया गया. इस पर भी बात बनती नजर नहीं आई, तब नरेश ने गुन्नौर थाने में आईपीसी की धारा 420 के तहत सोसाइटी के अधिकारियों खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी.

इस रिपोर्ट और विभिन्न लिखित शिकायतों का असर इतना भर हुआ कि सोसाइटी ने उस के कुछ पैसे वापस किए. इस के बाद भी मोटी रकम बची रही. इसी के साथ नरेश ने मेल में अपना पूरा पता नरेश पाल सिंह पुत्र स्व. चक्खन लाल और फर्टिलाइजर प्राइवेट लिमिटेड/टीसीएल टाउनशिप, बबराला निवासी बताया. नरेश पाल की इस शिकायत पर गुन्नौर थाने के इंसपेक्टर रविंद्र प्रताप सिंह ने भादंवि की धारा 420, 468 और 120बी के तहत सोसाइटी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. इस की सूचना संभल के तत्कालीन एसपी आर.एम. भारद्वाज को दे दी. इस शिकायत को भारद्वाज ने गंभीरता से लेते हुए आवश्यक काररवाई के लिए दिशानिर्देश जारी कर दिए.

एक तरफ सोसाइटी के खिलाफ शिकायतों की जांच होने लगी तो दूसरी तरफ मीडिया में भी पीडि़तों की शिकायतों की खबरें प्रसारित होने लगीं. इस का असर सोसाइटी के दूसरे शहरों में खुली शाखाओं पर भी हुआ. वहां पौलिसी मैच्योर होने पर निवेशकों की कतार लगने लगी. लोग अपना पैसा वापस मांगने लगे. जबकि ब्रांच के अधिकारी उन से जैसेतैसे कर अपना पिंड छुड़ाने की कोशिश करते. उत्तराखंड के हल्द्वानी में भी सैकड़ों निवेशकों की पौलिसी मैच्योर हो चुकी थी. वे लोग भी सोसाइटी की ब्रांच का चक्कर काट रहे थे. मार्च 2020 में हल्द्वानी स्थित सोसाइटी का कार्यालय बंद हो चुका था. कारण कोरोना का लौकडाउन बताया गया था, लेकिन 2 साल बाद भी ब्रांच औफिस नहीं खुला था. 

उस ब्रांच में साल 2014 से निवेश का काम शुरू हो गया था, जो 2015 में तेजी से बढ़ गया था. साल 2017 में कुछ निवेशकों की जमा अवधि पूरी होने पर भुगतान समय पर हो गया, किंतु 2018 में सैकड़ों निवेशकों की जमा राशि वापस नहीं मिल पाई. साल 2020 आतेआते भुगतान मांगने वाले निवेशकों की संख्या काफी बढ़ गई. ब्रांच में उन का तांता लग गया. वे गुहार करने लगे और ब्रांच मैनेजर के खिलाफ नारेबाजी भी करने लगे. हल्द्वानी के कुछ निवेशकों ने 27 अप्रैल, 2022 को कोतवाली में सोसाइटी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई. शिकायत करवाने वाले निवेशक वार्ड नंबर 15 निवासी थे विनय कुमार राठौर, हेमंत अधिकारी, नीलम अधिकारी, नूतन बिष्ट, चंद्रकला, राधा और शिल्पी.

हल्द्वानी कोतवाल ने इस तहरीर के आधार पर जांचपड़ताल शुरू की. इस क्रम में लखनऊ निवासी ज्ञानेश पाठक, बागेश मिश्र, डी.सी. मिश्रा, प्रबल कौशिक, अनूप चौधरी, शिवानी गुप्ता, हाफिज सलीम, हाजी अली मोहम्मद और अर्चना पाठक के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. ये सभी सोसाइटी के डायरेक्टर और मैनेजर थे. सोसाइटी के खिलाफ मुकदमों का सिलसिला यहीं नहीं थमा, बल्कि एक अन्य मुकदमा उत्तर प्रदेश में बरेली के इज्जतनगर थाने में दर्ज किया गया. शिकायत करने वाले मोहम्मद सलीम ने भी सोसाइटी से जुड़े 11 लोगों पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए. उन पर निवेश के नाम पर पैसे दोगुना करने और उतनी ही रकम का प्लौट देने का झांसा दिया. 

इस झांसे में आने वाले बरेली के कई लोग थे. इन आरोपियों में भी ज्ञानेश पाठक और सलीम अहमद थे. इन के अलावा अनूप कुमार चौधरी, समीर कुमार श्रीवास्तव, शिवकांत त्रिपाठी, प्रबल कौशिक, विनोद कुमार, विकास नाथ त्रिपाठी, सुरेंद्र सिंह, दिनेश चंद्र शर्मा और आशुतोष थे. इन पर लगे ठगी के आरोप के बाद ब्रांच में ताला लग गया और वे फरार हो गए. इस बारे में मोहम्मद सलीम ने पुलिस को बताया कि जब वह कंपनी के औफिस गए, तब उन की कई और पीडि़तों से मुलाकात हुई. उन में मोहम्मद इरफान, वलीउद्ïदीन, मनोज कुमार, चोखेलाल, सुरेंद्र सिंह रावत, मोहम्मद मुश्ताक समेत सैकड़ों लोग थे.

इन की शिकायत से पहले एक ही गांव के 400 लोगों ने सोसाइटी पर पहली अगस्त, 2022 को भी धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवाई थी. मुरादाबाद जिले के मलकपुर गांव के लोगों ने जिला मुख्यालय जा कर अपनी शिकायत दर्ज करवाई थी. उन की शिकायत पर मुरादाबाद के एसएसपी हेमंत कुटियाल ने डिलारी पुलिस को मामले की जांच सौंपी. सोसाइटी के खिलाफ कई शिकायतों में उत्तराखंड पुलिस को पहली सफलता तब मिली, जब वहां के डीजीपी ने प्रदेश में ठगी और जालसाजी के बढ़ते मामले को ले कर एक विशेष अभियान चलाया. जगहजगह छापेमारी की जाने लगी. राज्य के सभी पुलिस थाने इस मामले को ले कर सतर्क हो गए.

सब से पहले हुई सलीम की गिरफ्तारी

6 मई, 2023 को खटीमा पुलिस को एक बड़ी सफलता मिली. पुलिस ने सलीम अहमद को काशीपुर से गिरफ्तार कर लिया. वह काफी समय से फरार चल रहा था. सलीम पर क्षेत्र के 956 लोगों से ठगी कर एक करोड़ 27 लाख रुपए वसूलने का मुकदमा दर्ज किया गया. उस से पूछताछ के बाद अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह सोसाइटी द्वारा जालसाजी के खिलाफ फ्राड करने वालों के खिलाफ पहली बड़ी काररवाई थी. उस के बाद जल्द ही दूसरे आरोपी सचिन कुमार द्विवेदी का नंबर आ गया. वह खटीमा ब्रांच में प्रधान लेखाकार था. पुलिस की विशेष जांच टीम ने उसे 31 अगस्त, 2023 को बिजनौर के शारदा नगर से गिरफ्तार कर लिया.

उस के खिलाफ 23 दिसंबर, 2021 को ही महीपाल गिरि द्वारा नौगांवा थाने में शिकायत दर्ज कराई गई थी. उस के बाद से वह फरार चल रहा था, जबकि उस पर 15 हजार रुपए का इनाम भी घोषित था. आरोपियों में एक नाम अनूप चौधरी का भी था. उस के बारे में निवेशकों ने तरहतरह के किस्से सुन रखे थे. जैसे वह कंपनी का एक वीआईपी अधिकारी था. उसे सुरक्षा में सरकारी गनर मिला हुआ था. इस के लिए उस ने खुद को रेल मंत्रालय का सलाहकार सदस्य बताया था. अनूप चौधरी की गिरफ्तारी एसटीएफ द्वारा 25 अक्तूबर, 2023 को हुई थी. उस पर कंपनी की जालसाजी में शामिल होने से ले कर कई फरजी प्रोटोकाल की धौंस दिखाने का भी आरोप लगाया गया. वह मीडिया में खुद को बीजेपी नेता बन कर इंटरव्यू देता था, जबकि उस के खिलाफ उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में 10 से अधिक मामले दर्ज थे.

उस की गिरफ्तारी नाटकीय ढंग से तब हुई, जब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों को जनजन तक पहुंचाने के कार्यक्रमों में लगा हुआ था. एसटीएफ को मिली सूचना के अनुसार वह पीएम कार्यक्रमों के नाम पर लोगों से सरकारी काम करवाने के नाम पर पैसे की उगाही करता था. इसी दरम्यान उस के बारे में यह सूचना मिली थी वह खुद को रेल मंत्रालय का सलाहकार समिति का सदस्य बता कर लोगों से ठगी कर रहा है. इस के लिए उस ने अपने लिए बाकायदा एक विशेष कार्य अधिकारी यानी ओएसडी नियुक्त कर रखा है. उसे गाजियाबाद पुलिस से एक गनर मिला हुआ था. 

उस के खिलाफ एसटीएफ के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार वर्मा द्वारा 25 अक्तूबर, 2023 को एफआईआर दर्ज करवाई गई थी. उस पर तथाकथित वीआईपी नेता बन कर प्रोटोकाल हासिल करने का आरोप लगा था. उस ने एक पत्र भेज कर अयोध्या सर्किट हाउस बुक किया था. इस की सूचना एसटीएफ को मिल गई थी.  उस के वहां पहुंचते ही एसटीएफ की टीम ने अयोध्या के कैंट थाना क्षेत्र में सर्किट हाउस के पास खड़ी सफेद स्कौर्पियो के ड्राइवर से पूछताछ की. उस ने अपना नाम अनूप चौधरी बताया. धौंस के साथ वह खुद को क्षेत्रीय रेल उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति उत्तर रेलवे एवं भारतीय खाद्य निगम लखनऊ का सदस्य बताया.

उस से जब सदस्य होने के नाते उस के अधिकार क्षेत्र और गाड़ी के कागजात की बात की गई, तब उन का जवाब देने में लडख़ड़ा गया और पुलिस की गिरफ्त में आने से नहीं बच पाया. उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की. उस ने खुद को पिलखुआ निवासी बताया. उस ने अपने सारे कारनामों का भेद परत दर परत खोल दिया. उस ने बताया कि किस तरह से उस ने अपने वाहन चालक का फरजी आधार कार्ड बनवाया और गाजियाबाद से गनर पवन कुमार को अपने साथ ले लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि अपने फरजी ओएसडी श्रीनिवास नारला के माध्यम से प्रोटोकाल हासिल किया था. 

इस के लिए उस ने कई फरजीवाड़े कर सरकारी प्रारूप पर पत्र और ईमेल अधिकारियों को भिजवाए थे. सरकारी अधिकारी को एक कंपनी बना कर अयोध्या समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर हेलीकौप्टर सेवा के जरिए घुमाने का झांसा दिया था. चौधरी के इस कबूलनामे के बाद यूपी एसटीएफ ने अयोध्या के कैंट थाने में उस के खिलाफ धोखाधड़ी, कूटचाल चलने और साजिश रचने की धाराओं का मामला दर्ज कर लिया गया. साथ ही उस के पास से वाहन, 5 मोबाइल फोन, एक टैबलेट, 3 चैकबुक, विभिन्न बैंकों के 20 चैक, 3 आधार कार्ड और 2200 रुपए कैश जमा बरामद कर लिए. उस ने अपना मौजूदा पता गाजियाबाद में वैशाली अपार्टमेंट का बताया, जबकि उस के साथ वाहन चालक फिरोज आलम ऊधमसिंह नगर का रहने वाला था.

राकेश से हुई अलग तरह से ठगी

दोनों पर 5 फरवरी, 2024 को अयोध्या पुलिस ने गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई शुरू कर दी. कई केंद्रीय सरकारी एजेंसियों और विभागों का सदस्य होने का सबूत देने वाले अनूप चौधरी के खिलाफ दर्ज कई मामलों में सीबीआई की एंटी करप्शन शाखा जयपुर की भी थी. यह एफआईआर एक्सपोर्ट कारोबारी राकेश कुमार खंडेलवाल ने दर्ज करवाई थी, जिस में बिजनैस के लिए 3 प्रतिशत सालाना ब्याज दर पर 5 साल के लिए 25 करोड़ रुपए लोन दिलवाने का वादा किया था. इस एवज में 6 प्रतिशत सर्विस चार्ज और एक प्रतिशत एडवांस कमीशन के रूप में मांगा गया था. बात बनने के बाद अनूप को 25 लाख रुपए खाते में ट्रांसफर करवा दिए गए थे. इस के बाद खंडेलवाल ने 58 लाख रुपए दिए थे. इतनी रकम चुकाने के बावजूद अनूप चौधरी ने लोन नहीं दिलाया.

5 हजार लोगों से ठगे 250 करोड़

कंपनी से जुड़े अनूप चौधरी की गिरफ्तारी भले ही एक बड़े फरजीवाड़े की थी, लेकिन कंपनी के डायरेक्टर आशुतोष चतुर्वेदी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाया था. वह भी एक इनामी आरोपी था, जिस के खिलाफ रिपोर्ट नैनीताल में दर्ज की गई थी. उस पर भादंवि की धाराएं 420, 406, 120बी लगाई गई थीं. उस की गिरफ्तारी 25 जून, 2024 को उत्तराखंड की एसटीएफ द्वारा संभव हो पाई थी, जो सीओ आर.बी. चमोला के द्वारा इंसपेक्टर एम.पी. सिंह के नेतृत्व में गठित की गई थी. काशीपुर में वार्ड नंबर 4 के मूल निवासी आशुतोष चतुर्वेदी को एसटीएफ ने रुद्रपुर से गिरफ्तार किया था. उस पर संगठित अपराध की शिकायत थी, जिस ने अंतरराज्यीय फ्राड किया था.

इस तरह से पुलिस की काररवाई के क्रम में मास्टरमाइंड ज्ञानेश पाठक भी निशाने पर था. उस पर बरेली से 25 हजार और उत्तराखंड से 50 हजार रुपए का इनाम घोषित था. उसी ने कुल 5 राज्यों में सोसाइटी का कारोबार फैलाया था. सोसाइटी के खिलाफ पुलिस की छानबीन और दर्ज रिपोर्टों से 5 हजार लोगों के साथ 250 करोड़ से अधिक की रकम ठगी का एक बड़ा मामला सामने आ चुका था. इस मामले में 5 राज्यों की पुलिस उसे 5 सालों से तलाश रही थी. जून 2024 में यूपी एसटीएफ को उस के मुंबई में होने का सुराग मिला था. पुलिस वहां गई, वह वहां से जा चुका था. उस की गिरफ्तारी नागपुर के हड़केश्वर इलाके में घेराबंदी के बाद 11 जुलाई को हो पाई. उस का नागपुर कोर्ट से 72 घंटे का ट्रांजिट रिमांड लिया गया. 

पुलिस टीम उसी रात उसे बरेली के किला थाने ले आई, जहां अगले रोज 12 जुलाई को किला थाने में पुलिस ने अपने मुकदमों के सिलसिले में ज्ञानेश से पूछताछ की. उस के बारे में बताया जाता है कि वह पुलिस को चकमा देने में माहिर था. ठगी करने वालों का एक तरह से सरदार था. एसटीएफ के अुनसार उस पर कई शहरों सिद्धार्थ नगर, हाथरस, बरेली, बाराबंकी, अमरोहा, बिजनौर, सहारनपुर, शामली, एटा, आगरा, बस्ती, संभल और मुरादाबाद जिले के थानों के अलावा उत्तराखंड के नैनीताल, हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंह नगर, राजस्थान के करावली, गुमानपुरा, मध्य प्रदेश के अमाहिया, मुरैना, जबलपुर समेत कई अन्य जिले में कुल 39 केस दर्ज थे.

एसटीएफ इंसपेक्टर जे.पी. राय ने उस से पूछताछ की. पूछताछ में उस ने धोखाधड़ी की पूरी कहानी बयां की. ज्ञानेश ने बताया कि उस ने वर्ष 2012 में अपने 8 साथियों के साथ मिल कर जेकेवी मल्टीस्टेट क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी लिमिटेड और जेकेवी रियल एस्टेट डेवलपर लिमिटेड का पंजीकरण कराया था. 

लखनऊ से शुरू हुई थी फ्राड की शुरुआत

इस सोसाइटी का मुख्य कार्यालय लखनऊ में खोला गया था, जिस का अध्यक्ष ज्ञानेश बना था. इस के बाद वह अपने सहयोगियों के साथ धन दोगुना करने का झांसा दे कर आम लोगों से पैसा जमा करवाने लगा. धीरेधीरे कर उस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार में सोसाइटी की 100 से अधिक शाखाएं खोल लीं. वर्ष 2018-19 में उस ने सोसाइटी में पैसा जमा करने वाले लोगों को करीब 20 से 25 करोड़ रुपए का भुगतान किया, लेकिन बाकी रकम का गबन कर लिया. पैसा मांगने वालों को सोसाइटी से जुड़े लोग झूठा आश्वासन देते रहे, लेकिन किसी का पैसा वापस नहीं मिला.

धोखाधड़ी के शिकार लोगों ने अलगअलग पुलिस थानों में रिपोर्ट दर्ज कराईं तो मुकदमा पंजीकृत होने के बाद ज्ञानेश यूपी छोड़ कर महाराष्ट्र भाग गया था. उस के बारे में एसटीएफ को सुराग मिलने पर एसआई रणेंद्र कुमार सिंह, सिपाही अमित शर्मा, संतोष कुमार, किशन व अखंड प्रताप की टीम मुंबई भेजी गई. ज्ञानेश ने बताया कि उस ने वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई की थी. इस के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई की. फिर वह यमुनापार के कुछ लोगों के संपर्क में आया और सोसाइटी बना कर धोखाधड़ी शुरू कर दी थी.

उस के आकर्षक ब्याज और मकान देने के बिछाए जाल में गरीब, मध्य, अमीर सभी वर्ग के लोग फंसते चले गए. उन्होंने अच्छाखासा निवेश कर दिया. कुछ सालों में ही उस ने एक गिरोह बना लिया. उस की गिरफ्तारी के कुछ सदस्य पहले ही गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके थे. पुलिस को ज्ञानेश के मोबाइल से उस के कई साथियों की जानकारी मिली. इज्जतनगर के परतापुर चौधरी निवासी सलीम ज्ञानेश पाठक का खास गुर्गा बना हुआ था. पुलिस को उस की तलाश जारी थी. 

करीब 250 करोड़ के इस फ्राड में शामिल ज्ञानेश के अन्य साथी मुरादाबाद निवासी मोहम्मद सलीम, लखनऊ के प्रबल कौशिक, विकासनाथ, दिल्ली के मनीष कौशल काशीपुर के रविंद्र चौहान और गाजियाबाद के बागेश मिश्रा को भी एसटीएफ कथा लिखने तक तलाश रही थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

हत्या के बाद दोस्त की पहचान मिटाने के लिए लपेटा नमक में

बड़े मार्बल कारोबारी बनवारीलाल का एकलौता बेटा विशाल कोटा के एक पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. उस के 3 दोस्तों की आंखों पर लालच की ऐसी पट्टी बंधी कि उन्होंने उस की हत्या कर के मोटी फिरौती वसूलनी चाही, लेकिन वे ऐसा कर पाते इस से पहले ही…    

बुधवार 2 मई की रात के लगभग 9 बजे कोटा के पुलिस अधिकारियों की बैठक चल रही थी. मुख्य मुद्दा था मार्बल व्यवसाई परिवार के बेटे विशाल मेवाड़ा के अपहरण और फिरौती का. कोटा में नित नए अपराधों से सकपकाई पुलिस के लिए यह गंभीर चुनौती थीदरअसल, वाकया कुछ ऐसा था जो ढाई साल पहले घटित रुद्राक्ष हांडा कांड के अंदेशों को बल दे रहा था, जिस में फिरौती के लिए किए गए अपहरण में बच्चे की हत्या भी कर दी गई थी. पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने एक पल अपने अधीनस्थ अफसरों पर सरसरी नजर दौड़ाने के बाद कहना शुरू किया, ‘‘आप के सामने फिर एक नया इम्तिहान है. हमें एकएक कदम बहुत सोचसमझ कर उठाना होगा.’’

बुधवार 2 मई की शाम करीब 7 बजे बोरखेड़ा के थानाप्रभारी महावीर सिंह जिस समय अपने थाने में बैठे थे, तभी लगभग 45-46 साल की रुआंसी औरत कमरे में दाखिल हुई. कुलीन और संपन्न परिवार की लगने वाली उस महिला के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. महावीर सिंह ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, आप कौन हैं और इस तरह परेशान और घबराई हुई क्यों हैं?’’

‘‘परेशानी की तो बात यह है थानेदार साहब, मेरा बेटा गायब है, उस का अपहरण कर लिया गया है.’’ महिला ने अपनी बात सिलसिलेवार बतानी शुरू की, ‘‘साहब, मेरा नाम भूलीबाई है. मैं मार्बल कारोबारी बनवारी लाल मेवाड़ा की पत्नी हूं. मेरा 19 साल का बेटा विशाल मेवाड़ा कोटा के योगीराज पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. वह वहां से गायब हो गया.’’ महावीर सिंह ने उन्हें पानी का गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘आप निश्चिंत हो कर पूरी बात बताइए.’’

एक ही बार में पानी का गिलास खाली कर के महिला ने कहना शुरू किया, ‘‘हम खैराबाद कस्बे में रहते हैं. मेरा बेटा विशाल कोटा में रह कर पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. पति बनवारीलाल कारोबार के सिलसिले में सूरत गए हुए हैं. अपहर्त्ताओं ने मंगलवार पहली मई को मेरे पति को मोबाइल पर फोन कर के 15 लाख की फिरौती मांगी है.’’ पलभर रुकने के बाद भूलीबाई ने कहना शुरू किया, ‘‘पति को मोबाइल पर पहला फोन दोपहर बाद 4 बजे आया, जिस में एक आदमी ने विशाल के अपहरण करने की इत्तिला देते हुए 15 लाख की रकम का इंतजाम करने को कहा और इस के साथ ही फोन काट दिया. करीब 15 मिनट बाद फिर उसी आवाज में धमकी भरा फोन आया कि पुलिस को खबर की तो विशाल को जान से मार दिया जाएगा. इस के साथ ही फोन बंद हो गया.’’

‘‘फिर उस के बाद कोई फोन आया?’’ थानाप्रभारी महावीर सिंह के स्वर में हैरानी का भाव स्पष्ट था.

‘‘रात 11 सवा 11 बजे मेरे पति का फोन आया. उन्होंने बताया कि 11 बज कर 1 मिनट पर उन के पास आए फोन काल में कहा गया था कि रकम कहां ले कर आना है, इस बाबत अगले दिन शाम 4 बजे बताएंगे और इस के साथ ही फोन बंद कर दिया.’’

 ‘‘आप के पति ने उन्हें क्या जवाब दिया?’’

‘‘क्या कहते,’’ भूलीबाई ने सुबकते हुए कहा, ‘‘मेरे पति ने तो बड़ी आजिजी के साथ कहा कि तुम को जो रकम चाहिए, हम देंगे. बस हमारे बेटे को कुछ नहीं होना चाहिए.’’ लेकिन अगले ही पल भूलीबाई ने जो कहा, वह चौंकाने वाला था. उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पति इस बात को ले कर हैरान थे कि फोन करने वाला जो कोई भी था, हमारे बेटे के मोबाइल से ही फोन कर रहा था.’’ इस के साथ ही भूलीबाई फूटफूट कर रोने लगी. गहरी सांस लेते हुए महावीर सिंह ने कहा, ‘‘कोई और बात जो आप कहना चाहें.’’

‘‘हां साहब,’’ भूलीबाई ने जैसे याद करते हुए कहा, ‘‘साहब, मुझे फोन करने से पहले मेरे पति ने विशाल के मामा को फोन कर के विशाल के अपहरण की खबर देने के साथ उस के कमरे पर जा कर उसे तलाश करने को कहा था. उस का मामा दिनेश कोटा में ही रहता है. दिनेश ने विशाल के कमरे पर जा कर देखा तो वह वहां नहीं मिला. दिनेश ने मेरे पति को तो यह बात बताई ही, मुझे भी फोन कर के कोटा आने को कहा.’’ बोरखेड़ा थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज करने के साथ ही फौरन इस घटना और घटनाक्रम के बारे में पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया को जानकारी दी. इस के बाद तत्काल पुलिस सक्रिय हो गई. आननफानन में पुलिस अधिकारियों की बुलाई गई बैठक की वजह यही थी

भोमिया साहब को मालूम था कि इतने संपन्न परिवार के बेटे के अपहरण की बाबत जब लोगों को पता चलेगा तो लोग पुलिस को आड़े हाथों लेने से पीछे नहीं हटेंगे. अपहरण के इस मामले में किसी बड़े गिरोह का हाथ हो सकता है, यह सोच कर पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने क्षेत्राधिकारी नरसीलाल मीणा और राजेश मेश्राम के अलावा सर्किल इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह, महावीर सिंह, आनंद यादव, मुनींद्र सिंह, लोकेंद्र पालीवाल, विजय शंकर शर्मा और एसआई महेश कुमार, एएसआई दिनेश त्यागी, कमल सिंह और प्रताप सिंह के नेतृत्व में 7 टीमों का गठन किया और विशाल के अपहर्त्ताओं का पता लगाने की जिम्मेदारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार को सौंप दी.

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ ने बड़ी संख्या में लोगों से गहनता से पूछताछ की. करीब 100 से अधिक टीवी फुटेज निकाले, लेकिन कोई काम की बात मालूम नहीं हो सकीपुलिस को तब हैरानी हुई, जब विशाल के कुछ दोस्तों ने बताया कि उन के पास विशाल का फोन आया था. उस ने हम से 2-3 सौ रुपए की जरूरत बताते हुए पैसों की मांग की थी. लेकिन इस से पहले कि उस से इतनी छोटी रकम मांगने की वजह पूछते, उस का फोन संपर्क टूट गया. पुलिस ने अंडरवर्ल्ड को भी खंगाला लेकिन लाख सिर पटकने के बावजूद पुलिस ऐसे किसी शातिर गिरोह का पता नहीं लगा सकी, जिस से इस मामले में कोई जानकारी मिल पाती. इस मामले में पुलिस ने फिरौती के लिए कुख्यात गिरोहों का पुलिस रिकौर्ड भी टटोला.

तमाम पुलिस रिकौर्ड जांचने के बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार इस नतीजे पर पहुंचे कि विशाल के अपहरण में कम से कम किसी नामी गिरोह का हाथ नहीं है. पौलीटेक्निक की पढ़ाई करते हुए विशाल बोरखेड़ा के इलाके की आकाश नगर कालोनी में उसी कालेज में पढ़ने वाले मनोज मीणा के साथ किराए के कमरे में रहता था. पुलिस ने मनोज की गतिविधियों को पूरी तरह टटोला, लेकिन कहीं कोई संदिग्ध बात नजर नहीं आई. जिस समय पुलिस विशाल के रूम पार्टनर मनोज मीणा समेत अन्य दोस्तों से गहनता से पूछताछ कर रही थी, तभी इस बात का पता चला कि विशाल के दोस्ताना रिश्ते विक्रांत उर्फ हिमांशु, प्रदीप और विजेंद्र भाटी उर्फ लकी से कुछ ज्यादा ही गहरे थे. 

विशाल के मकान मालिक के मुताबिक इन तीनों लड़कों का विशाल के पास वक्तबेवक्त कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. यह सूचना मिलते ही पुलिस ने उन्हें पूछताछ के घेरे में ले लिया, लेकिन हर सवाल पर तीनों पुलिस को छकाते रहे. पुलिस को लगा भी कि कहीं यह उस का भ्रम तो नहीं, फिर भी पुलिस ने अपनी जांच की दिशा नहीं बदली. अब तक विशाल के पिता बनवारी लाल मेवाड़ा सूरत से कोटा लौट आए थे. उन्होंने पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए बताया कि उन्हें मंगलवार को दोपहर बाद 4 बजे, फिर सवा 4 बजे तथा बाद में रात को 11 बज कर एक मिनट पर फोन आए थे

रात को आने वाले फोन काल में अपहर्त्ताओं का कहना था कि फिरौती की रकम ले कर उन्हें दरा के निकट रेलवे क्रौसिंग पर पहुंचना होगा. कब, यह बाद में बताएंगे. अपहर्त्ता का यह भी कहना था कि रकम मिलने के एक घंटे बाद ही विशाल को छोड़ दिया जाएगा. बनवारी लाल ने यह सब बताते हुए पुलिस से यह शंका भी जाहिर की कि फोन काल जब विशाल के मोबाइल से की जा रही थीं तो क्या उसे सुरक्षित मान लिया जाना चाहिए. गुरुवार 3 मई की सुबह जब पुलिस इसी मुद्दे पर मंथन कर रही थी, तभी एक ग्रामीण की सूचना ने अधिकारियों को स्तब्ध कर दिया. सूचना बोरखेड़ा से करीब 20 किलोमीटर दूर नोताड़ा और मानस गांव के वन क्षेत्र के बीच बहने वाली नदी की कराइयों में एक लाश पड़ी होने की थी. 

हजार अंदेशों में घिरी पुलिस के लिए यह सूचना चौंकाने वाली थी. पुलिस टीम तुरंत वहां के लिए रवाना हो गई. पुलिस के साथ विशाल के पिता बनवारीलाल भी थे. चंद्रलोई नदी का यह तटीय क्षेत्र हालांकि कुदरती रूप से मनोहारी था, जहां शहरी कोलाहल से ऊबे लोगों या फिर सैलानियों का आनाजाना था. क्षेत्राधिकारी राजेश मेश्राम चंद्रलोई नदी की कराइयों के पास जीप रुकवा कर अपनी टीम के साथ नीचे उतर गए. तभी उन की नजर 3-4 फुट ऊंची झाडि़यों की कतार की तरफ चली गई. वहां पर एक युवक औंधा पड़ा नजर आया. पुलिस के जवानों ने शव को सीधा किया तो बनवारीलाल वहीं पछाड़ खा कर गिर गए. शव विशाल का ही था. उस का चेहरा कुचल दिया गया था. लाश नमक की परत में लिपटी हुई थी. राजेश मेश्राम लाश पड़ी होने की स्थिति देख कर एक पल में ही भांप गए कि हत्या कहीं और की गई थी, लेकिन पुलिस को भटकाने के लिए लाश को यहां ला कर फेंका गया होगा.

विशाल की हत्या बहुत ही निर्ममतापूर्वक की गई थी. उस की गरदन किसी तेजधार हथियार से रेती गई थी. संघर्ष का कोई चिह्न नहीं था. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद राजेश मेश्राम ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के पिता को सौंप दी गई. यह अजीब इत्तफाक था कि अभी शव के पंचनामे की काररवाई हो ही रही थी कि राजेश मेश्राम को एएसपी से सूचना मिली कि पूछताछ में अपराधी टूट गए हैं और उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है. अपराध का यह तानाबाना 3 सनकी और खुराफाती लड़कों ने बुना था. आईटीआई डिप्लोमा कर चुका विक्रांत उर्फ हिमांशु बोरखेड़ा का ही रहने वाला था. आईटीआई में डिप्लोमा कर चुका विक्रांत इस हद तक सनकी था कि सनक में वह अपनी कलाइयों में ब्लेड मार कर खुद ही कई जगह अपने हाथों को जख्मी कर चुका था.

बृजेंद्र सिंह भाटी उर्फ लकी कोटा के नजदीकी कस्बे कैथून का रहने वाला था. वह औटोमोबाइल से जुड़ी एक कंपनी में काम करता था और बोरखेड़ा में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था. तीसरा साथी प्रदीप उर्फ बिन्नी रोजीरोजगार के लिए गोलगप्पों का ठेला लगाता था. बिन्नी भिंड का बाशिंदा था और कोटा की मन्ना कालोनी में रह रहा था. सनक में तीनों एक से बढ़ कर एक थे. तीनों लगभग 18 से 20 साल की उम्र के थे. पूछताछ में पता चला कि तीनों की हसरतों के पखेरू आसमानी उड़ान भरते रहे, नतीजतन मौजमस्ती और अय्याशी के शौक के लिए जितना भी कमाते थे, पूरा नहीं पड़ता था. तीनों की इस मंडली में विशाल शामिल हुआ तो बोरखेड़ा में ही रहने वाले विक्रांत उर्फ हिमांशु की बदौलत. 

दारूबाजी के महंगे शौक में संपन्न बाप का बेटा विशाल उन के लिए काफी काम का था. विक्रांत, बृजेंद्र और प्रदीप की साझा ख्वाहिश थी तो एक ही कि कोई ऐसा शख्स हाथ चढ़ जाए, जिस से इतना पैसा मिल सके कि मौजममस्ती के लिए तरसना पड़े. नशे के सुरूर में एक दिन विशाल का काल ही उस की जुबान पर बैठ गया और वह कह बैठा, ‘‘आज की पार्टी मेरी तरफ से.’’

‘‘किस खुशी में?’’ पूछने पर विशाल ने कह दिया, ‘‘आज ही मेरे पिता को एक बड़े सौदे में भारीभरकम रकम मिली है. इसलिए जश्न होना चाहिए.’’ फिर क्या था, तीनों की आंखों में लालच चमक उठा. पार्टी खत्म होने के बाद तीनों सनकी सिर जोड़ कर बैठे तो बदनीयती जुबान पर गई. तीनों की जुबान पर एक ही बात थी, ‘अगर यह बड़ी रकम हमारे हाथ जाए तो मजे ही मजे हैं.’ लेकिन सवाल था कि कैसे? कैसे का आइडिया भी अनायास ही मिल गया. उन के लिए संयोग था और विशाल के लिए दुर्भाग्य कि इत्तफाक से तीनों आपराधिक घटना पर आधारित क्राइम पैट्रोल सीरियल देखते थे. एक कहानी ऐसी ही एक घटना पर आधारित थी, जिस में पैसों की खातिर 3 सिरफिरे अपने दोस्त से ही दगा करते हैं और उस की हत्या कर देते हैं.

फिरौती की घटना पर बुनी गई इस कहानी ने इन तीन तिलंगों को भी दगाबाजी की राह दिखा दी. योजना बनाई गई कि शराब की पार्टी में विशाल को इतनी पिला दी जाए कि वह होश खो बैठे. फिर उसे काबू में कर के उस के पिता से 15 लाख की फिरौती मांगी जाए. तीनों का मानना था कि एकलौती औलाद के लिए एक दौलतमंद बाप 15 लाख क्या 15 करोड़ भी दे सकता है. सवाल था कि विशाल बुलाने पर तयशुदा ठिकाने पर आ भी जाए और अपना मोबाइल भी इस्तेमाल न करना पड़े. यह योजना मंगलवार को कामयाब भी हो गई.  इन लोगों ने सुबह 10 बजे बोरखेड़ा पहुंच कर एक सब्जी वाले के मोबाइल से फोन कर के विशाल को बुलाया और वहां से उसे बृजेंद्र के रामराजपुरा स्थित खेत पर ले गए. 

सब्जी वाले को यह कह कर विश्वास में लिया कि भैया, हमारे मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई है, इसलिए एक जरूरी फोन कर लेने दो. सब्जी वाला झांसे में गया. दोपहर 12 बजे रामराजपुरा पहुंच कर दारू का दौर चला तो विशाल को जम कर दारू पिलाई गई, ताकि वह होश खो बैठे. ऐसा ही हुआ भी. नशे में बेसुध विशाल के मोबाइल से बृजेंद्र ने पहले विशाल को अपने कब्जे में होने की बात की, फिर 15 लाख की मांग करते हुए धमकी दी कि पुलिस को इत्तला दी तो बेटा जिंदा नहीं बचेगा. असहाय पिता बनवारीलाल ने सहमति जता दी तो उसे पैसे पहुंचाने का निर्धारित स्थान भी बता दिया गया.

एसपी भोमिया साहब ने पूछा, ‘‘जब बाप ने फिरौती की रकम देने का भरोसा दे दिया था तो बेटे को क्यों मारा?’’ एसपी ने आंखें तरेरते हुए हड़काया तो विक्रांत ने उगल दिया, ‘‘हमें डर था कि रकम देने के बाद विशाल हमारा भेद खोलने से नहीं चूकेगा. इसलिए उसे मारना पड़ा.’’

‘‘कैसे और कब?’’ एसपी ने पूछा, ‘‘दरिंदे बन गए तुम लोग? कैसे मारा?’’

‘‘हत्या तो हम ने चाकुओं से कर दी थी. बाद में पहचान मिटाने के लिए उस पर नमक भी लपेट दिया. लेकिन…’’ उस ने बिन्नी और लक्की की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘ये दोनों संतुष्ट नहीं थे, इसलिए लोहे की रौड से उस के चेहरे पर इतने वार किए कि लाश पहचान में न आ सके. साहब, विशाल की हत्या तो हम ने 2 बजे ही कर दी थी.’’

‘‘फिर?’’ 

‘‘फिर…’’ अटकते हुए विक्रांत ने बताया, ‘‘इस के बाद लाश को बोरे में भरा और बाइक पर लाद कर नार्दर्न बाईपास के पास चंद्रलोई नदी की कराइयों में डाल आए और घर कर सो गए.’’

‘‘नींद गई तुम्हें?’’ एसपी भोमिया उन्हें नफरत भरी नजर से देखते हुए बुरी तरह बरस पड़े, ‘‘तुम ने तो शैतान को भी मात दे दी. लानत है तुम पर.’’ एसपी भोमिया ने मामले का रहस्योद्घाटन करते हुए मीडिया से कहा, ‘‘कैसी विचित्र बात है, ऐसे सीरियल से लोग जागरूक कम होते हैं लेकिन अपराधियों को अपराध के नए तरीके सीखने का मौका मिल जाता है.’’

  कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

परिवार के चार लोगों का कातिल निकला प्रेमी

रोशनलाल ने रुपए दे कर रमित की मदद की थी लेकिन रुपए पाते ही वह रोशनलाल का ही नहीं, पूरे परिवार का दुश्मन बन बैठा और एकएक कर के सब को ठिकाने लगा दिया. 22अगस्त, 2010 की सुबह 10 बजे पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि हैबोवाल की दुर्गापुरी कालोनी की गली नंबर 5 के मकान नंबर– 7187/1 में 2 लोगों की हत्या हो गई है. सूचना मिलते ही थाना सलेम टाबरी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर निर्मल सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह, इंसपेक्टर दविंद्र कुमार, एसएचओ डिवीजन नंबर 4 तथा दुर्गापुरी पुलिसचौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार मेरे पहुंचने से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. जिस मकान में हत्याएं हुई थीं, उस के बाहर लोगों की काफी भीड़ लगी थी

पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने सुबह लगभग साढ़े 9 बजे मकान के भीतर तेज चीखों की आवाजें सुनी थीं. चूंकि उस वक्त अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा था, इसलिए यह समझना मुश्किल था कि आवाजें टीवी की थीं या मकान में रहने वालों की. मकान का दरवाजा अंदर से बंद था. थोड़ी देर बाद जब पड़ोसियों को लगा कि चीखें टीवी की नहीं, बल्कि उस में रहने वालों की थीं तो उन्होंने मुख्य द्वार तोड़ कर भीतर जा कर देखाअंदर अलगअलग कमरों में 2 लाशें पड़ी थीं. इस के बाद घटना की सूचना पुलिस को दी गई थी. मैं ने मकान के भीतर जा कर देखा. एक कमरे में अधेड़ उम्र की महिला की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर तेजधार हथियार के कई घाव थे, जिस में से खून रिस रहा था.

दूसरे कमरे में लगभग 40 वर्षीय एक व्यक्ति की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर भी तेजधार हथियार के घाव थे. वह विकलांग था. उस की व्हीलचेयर वहीं पास में उलटी पड़ी थी. देखने से ही लग रहा था कि विकलांग होने के बावजूद उस ने हत्यारों का विरोध किया था. दोनों को ही बड़ी बेरहमी से मारा गया था. मैं ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में रखा टीवी अभी भी चल रहा था. मेरे इशारे पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने टीवी बंद कर दिया. क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी बुलाया गया था, साथ ही डौग स्क्वायड को भी. जासूस कुत्ते लाश को सूंघ कर मकान के पिछवाड़े जा कर रुक गए. संभवत: हत्यारे वहां से किसी सवारी में बैठ कर गए थे. 

मकान की अच्छी तरह छानबीन की गई. लूटपाट के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे. हत्याएं शायद आपसी रंजिश के कारण हुई थीं. टीवी के पास खून सना एक खंजरनुमा चाकू पड़ा था. मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को उसे संभाल कर रखने के लिए कहा. हत्याएं शायद चाकू से की गई थीं. मैं पुलिस टीम के साथ मुआयना कर रहा था कि पड़ोसियों से पता चला कि यहां सिर्फ हत्याएं ही नहीं हुई थीं, बल्कि इस परिवार के 2 अन्य लोग लापता भी थे. इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने पूछताछ के आधार पर मुझे बताया कि इस परिवार के मुखिया का नाम रोशनलाल था और वह रेलवे से रिटायर्ड था. इस के पहले यह परिवार चंद्रनगर में रहता था. रोशनलाल की पत्नी का नाम शकुंतला था. दोनों की 4 संतानें थीं, जिन में सब से बड़ी 47 वर्षीया बेटी स्वीटी शादीशुदा थी और इंग्लैंड में रहती थी. दूसरे नंबर का बेटा राजेश कुमार उर्फ राजू अपाहिज था, लेकिन घर में काम कर के लगभग 10 हजार रुपए महीना कमा लेता था

तीसरे नंबर की बेटी सीमा भी शादीशुदा थी, लेकिन 3 साल पहले पीलिया से उस की मृत्यु हो चुकी थी. सब से छोटी 36 वर्षीया निशा थी. बीए पास निशा किसी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थी. लगभग 2 महीने पहले इन लोगों ने अपना चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेचा था. लगभग डेढ़ महीने पहले ही यह परिवार इस मकान में रहने आया था. यह मकान उन्होंने 40 लाख रुपए में खरीदा था. कत्ल शकुंतला और राजेश कुमार उर्फ राजू का हुआ था. जबकि रोशनलाल और निशा गायब थे. मैं ने इंसपेक्टर निर्मल सिंह को आदेश दिया कि लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दें. साथ ही इंसपेक्टर हरपाल सिंह से कहा कि पड़ोसियों से पूछताछ कर के बापबेटी की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारें.

जबकि सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार को मैं ने अस्पतालों, बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन पर बापबेटी की तलाश करवाने तथा जिले के अन्य सभी थानों में उन का हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज भिजवाने की जिम्मेदारी सौंपी. चूंकि यह केस पुलिस कमिश्नर की नजर में गया था, इसलिए इन कामों से फारिग हो कर उन्हें रिपोर्ट देने मैं उन के औफिस पहुंच गया. मैं ने अपनी परेशानी बता कर उन से कहा, ‘‘सर, समस्या यह है कि यह परिवार मोहल्ले में नया है. पड़ोसियों को इन के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है.’’

‘‘ठीक है, जैसा भी हो हर नजरिए से जांच करो. इस के लिए कई टीमें बना कर लगाओ. और हां, सब से जरूरी है बापबेटी का पता लगाना.’’

कमिश्नर साहब के पास से लौट कर मैं ने एक बार फिर घटनास्थल पर जा कर पड़ोसियों से पूछताछ की. काफी लंबी छानबीन के बाद काम की एक बात पता चली. मैं ने जब रोशनलाल के घर पर आनेजाने वाले लोगों की लिस्ट बनाई तो पता चला कि रमित कुमार भंडारी उर्फ रिकी नाम का एक युवक रोशनलाल के घर कुछ ज्यादा ही आताजाता था. मैं ने हरपाल सिंह से रमित के बारे पता लगाने को कहा. हरपाल सिंह ने पता लगा कर बताया कि रमित कुमार भंडारी जस्स्यिं रोड, तरसेम कालोनी के मकान नंबर बी34/6614 में रहता था. वह रमित का मोबाइल नंबर भी ले आए थे. मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने रमित को फोन किया, पर उस ने फोन नहीं उठाया. जब उसे कई बार फोन किया गया तो उधर से कंप्यूटराइज्ड आवाज आने लगी कि यह नंबर पहुंच के बाहर है.

काफी कोशिशों के बावजूद हमें तफ्तीश को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था. कह सकते हैं कि हम अंधेरे में तीर मार रहे थे. ऐसे में जांच आगे बढ़ाने के लिए हमें केवल रमित भंडारी ही एकमात्र सहारा नजर रहा था. हमारी सारी उम्मीदें उसी पर टिकी थीं. इसलिए हम उस का नंबर मिलाते रहेआखिर उस ने फोन उठा लिया. सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार ने उसे मेरे औफिस आने को कहा. उस ने बताया था कि उस समय वह जालंधर में है और आधे घंटे में हाजिर हो जाएगा. मैं अपने औफिस में बैठा उस का इंतजार करता रहा.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने कहीं से मृतका शकुंतला के मायके का पता ढूंढ़ निकाला था. उस के पिता जगतराम की फगवाड़ा में टेलरिंग की दुकान थी. पता मिल गया तो इस घटना की सूचना मृतका के भाइयों अशोक, सुखविंदर और जसविंदर को दे दी गई थीपोस्टमार्टम रिपोर्ट भी गई थी, जिस के अनुसार मौत का कारण अधिक खून बह जाना था. फगवाड़ा से शकुंतला के मायके वाले गए थे. पोस्टमार्टम के बाद लाशें उन्हें सौंप दी गई थीं. मृतका के भाइयों ने दोनों लाशों का अंतिम संस्कार कर दिया था. मैं ने उन से भी पूछताछ की. उन्होंने केवल इतना ही बताया था कि रोशनलाल ने रिटायर होने के बाद चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख में बेचा था. नया मकान उन्होंने 35-40  लाख रुपए में खरीदा था

कुछ पैसा उन्हें रिटायर होने पर मिला था. कुल मिला कर उन के पास करीब 35 लाख रुपए थे. रुपए उन्होंने कहां रखे थे या किसी को दिए थे, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. फलस्वरूप बात वहीं की वहीं रह गई. मैं ने सोचा था कि शायद मृतका के मायके वालों से काम की कोई बात पता चल जाएगी, पर मायूस ही होना पड़ा. घूमफिर कर हमारी नजर फिर रमित भंडारी पर ही जा कर टिक गई थी. रमित ने आधा घंटे बाद आने को कहा था. मैं ने घड़ी देखी. अब तक पौन घंटा हो चुका था. मैं ने सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार से कहा कि वह रमित को फोन कर के पूछे. बिट्टन कुमार ने बताया कि उस ने 10 मिनट में आने को कहा है, लेकिन वह दस मिनट बाद भी नहीं आया. इस प्रकार 10-10 मिनट करतेकरते उस ने 2 घंटे बरबाद कर दिए. उधर पुलिस के सिर पर उच्च अधिकारियों की तलवार लटक रही थी

मेरी टीम की जान सांसत में थी. मुझे रमित भंडारी पर गुस्सा रहा था. जब बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो मैं ने भंडारी से मोबाइल पर खुद बात की. मैं ने उसे डांटते हुए कहा कि वह तुरंत मेरे औफिस पहुंचे. उस ने मुझ से भी 10 मिनट का समय मांगा. जब वह 10 मिनट तक नहीं आया तो मैं ने फिर फोन किया. लेकिन इस बार उस के फोन का स्विच बंद मिला. इस के बाद उस के फोन का स्विच हमेशा के लिए बंद हो गया. रमित के इस व्यवहार से मुझे उस पर संदेह हुआ. मैं समझ गया कि वह जानबूझ कर पूछताछ से बचना चाहता था. मैं ने हरपाल सिंह से उस के फोन की लोकेशन पता करने को कहा. इंसपेक्टर हरपाल ने रमित के फोन की लोकेशन चैक करवाई तो उस की लोकेशन जस्सियां रोड, लुधियाना की मिली. इस से यह बात साफ हो गई कि वह हम से झूठ बोल रहा था. इस से उस पर हमारा संदेह और बढ़ गया.

अभी मैं और हरपाल सिंह इस मुद्दे पर बातें कर ही रहे थे कि सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने कर बताया कि रमित भंडारी अपनी मौसी की फैक्ट्री नैना क्वायर प्रोडक्ट्स में कहने को तो मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव था, लेकिन एक तरह से उस गद्दा फैक्ट्री का सर्वेसर्वा वही था. बिट्टन कुमार ने यह भी बताया कि रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की छोटी बेटी निशा से उस के मधुर संबंध थे. वह उस के घर खूब आताजाता था. रोशनलाल ने उसे अपना बेटा बना रखा था. मेरे लिए यह जानकारी काफी थी. इस से मुझे पक्का यकीन हो गया था कि वह इस दोहरे हत्याकांड का रहस्य जरूर जानता होगा. इसीलिए पुलिस के सामने आने से कतरा रहा था. मुझे समय बेकार करना उचित नहीं लगा. इसलिए मैं ने इंसपेक्टर हरपाल सिंह को तुरंत पुलिस टीम के साथ घाघरा रोड पहुंचने को कहा

एक टीम मैं ने एसीपी परमजीत सिंह पन्नू की अगुवाई में तैयार करवाई. रमित भंडारी हमें फैक्ट्री के पास ही मिल गया. उस से वहीं पूछताछ की गई. वह हमें बहकाने की कोशिश करने लगा. वह हर सवाल का जवाब घुमाफिरा कर दे रहा था. उस के चेहरे पर काफी उलझन और घबराहट के मिलेजुले भाव थे. बात करते हुए वह हकला भी रहा थातभी अचानक मेरा ध्यान उस के हाथ की ओर चला गया. उस के हाथ पर ताजी पट्टी बंधी थी. मैं ने इस बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘ऐसे ही मामूली सी खरोंच गई थी. सावधानी के तौर पर मैं ने पट्टी बंधवा ली.’’ 

खरोंच कैसे और किस चीज से आई, यह वह नहीं बता सका. इस बातचीत के बाद मेरा शक विश्वास में बदलने लगा. मैं ने उसे अपने औफिस चलने को कहा. औफिस कर इंसपेक्टर हरपाल सिंह और बिट्टन कुमार ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शकुंतला और राजेश की हत्या की बात स्वीकार कर ली. मैं ने कारण पूछा तो उस ने कोई कारण नहीं बताया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि रिटार्यड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की बेटी निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. उस के अनुसार निशा के साथ उस के तीन सालों से अवैध संबंध थे. वह शादीशुदा था, जबकि निशा तलाकशुदा थी.

निशा बहुत ही खूबसूरत थी. पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे पर फिदा हो गए थे. दोनों के संबंध इतनी तेजी से परवान चढ़े कि रमित आए दिन उस के घर आनेजाने लगा. परिवार के लोगों को भी उस का आनाजाना अच्छा लगता था. शकुंतला तो उसे बेटाबेटा कहते नहीं थकती थी. निशा के साथ रमित के संबंधों की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. वे लोग अपने घर के छोटे से ले कर बडे़ कामों तक में रमित की सलाह लेने लगे थेरमित के अनुसार पिछले कुछ समय से निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. वह कई बार उस की मांग पूरी भी कर चुका था. उस के घर वाले भी इस बात का फायदा उठा रहे थे. कुछ ही दिनों पहले निशा ने उस से 50 हजार रुपए की मांग की थी, लेकिन उस ने इतना पैसा देने से मना कर दिया था. शनिवार को निशा ने रमित की मां को फोन कर के कहा था कि वह उन्हें कुछ राज बताना चाहती है.

उसी दिन निशा ने फोन पर रमित को भी धमकी दी थी कि उस ने दोनों के निजी संबंधों की सीडी बनवा रखी है. अगर उस ने 50 हजार रुपए नहीं दिए तो वह उस सीडी को उस की मां और पत्नी को दे देगी. इसी बात से गुस्से में उस ने निशा से बदला लेने के लिए उस की मां और भाई की हत्या कर दी थी. रमित की यह बात हमारे गले नहीं उतर रही थी. इस में कई ऐसे पेंच थे, जो समझ से बाहर थे. मैं ने रमित से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि इस वक्त निशा कहां है?’’  मेरे सवाल पर वह बौखला उठा और झल्ला कर बोला, ‘‘मैं क्या जानूं, भाग गई होगी अपने किसी यार के साथ.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ मैं ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘जनाब ऐसी औरतें यही तो करती हैं. एक से दिल भर गया तो दूसरे के पास और दूसरे से भर गया तो तीसरे के पास.’’

‘‘वाह रमित कुमार.’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं ने तो तुम से केवल निशा के बारे में पूछा था और तुम ने पूरी रामायण सुना दी. खैर छोड़ो, यह बताओ कि तुम्हें ब्लैकमेल तो निशा कर रही थी, फिर तुम ने उस की मां और भाई की हत्या क्यों की?’’ मेरे इस सवाल पर वह बगले झांकने लगा. मैं ने उसे चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘देखो, हमें सब पता है. अच्छा यही है कि तुम हमें पूरी बात सचसच बता दो, वरना तुम्हें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकता.’’

मेरी बात सुन कर उस ने गर्दन झुका ली. मैं इंसपेक्टर हरपाल सिंह, निर्मल सिंह और बिट्टन कुमार को साथ ले कर उस की मौसी की फैक्ट्री पहुंचा. वहां रमित की कार बाहर ही खड़ी थी. कार का बारीकी से मुआयना किया गया तो उस में कई जगह खून के धब्बे दिखाई दिए. ठीक वैसे ही खून के धब्बे फैक्ट्री के औफिस में भी मिले. फैक्ट्री की अच्छी तरह तलाशी लेने पर हमें एक लेडीज सैंडिल भी मिली. फैक्ट्री में 2 कर्मचारी मिले, जिन के नाम विजय प्रसाद और कुमार थे. विजय प्रसाद गहरी कोठी, थाना नोतन, जिला पश्चिमी चंपारण (बिहार) का रहने वाला था तो कुमार गांव मुकार, जिला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था

दोनों से पूछताछ करने पर इस दोहरे हत्याकांड के साथसाथ रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल और उस की बेटी निशा की गुमशुदगी का रहस्य भी खुल गया. मेरे आदेश पर इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने विजय प्रसाद और कुमार को पुलिस हिरासत में ले लिया. रमित भंडारी को हम ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. अब तक की तफ्तीश, रमित भंडारी और फैक्ट्री से दबोचे गए दोनों कर्मचारियों से की गई पूछताछ के बाद इस जघन्य हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह स्वार्थ के रिश्तों और विश्वास की नींव पर झूठ का महल खड़ा करने जैसी थी.

36 वर्षीया निशा काफी खूबसूरत, मिलनसार हंसमुख स्वभाव की युवती थी. संभवत: उस का यही स्वभाव उस की और उस के परिवार की हत्या का कारण बना था. सीधीसादी निशा की बीए पास करने के बाद शादी हो गई थी. लेकिन पति से उस की नहीं बनी, जिस से जल्दी ही उस का तलाक हो गया था. निशा ने इसे भाग्य मान कर चुपचाप स्वीकार कर लिया और मन ही मन तय कर लिया कि अब वह कभी शादी नहीं करेगी. गुजरबसर के लिए उस ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली.

सन 2008 में जब निशा का परिवार चंद्रनगर, सुंदरनगर में रहता था, तभी अचानक एक दिन निशा की मुलाकात रमित भंडारी से हुई. रमित महत्त्वाकांक्षी, चतुरचालाक युवक था. उस ने शादीशुदा होते हुए भी अपनी शादी की बात निशा से छिपा ली थी. हालांकि निशा ने कभी शादी न करने का फैसला किया था. लेकिन रमित ने उस की सोई कामनाओं को जगा कर उस से शादी करने का वादा कर लिया. न चाहते हुए भी निशा धीरेधीरे रमित के आकर्षण में बंधती चली गई. जल्दी ही दोनों के बीच आंतरिक संबंध बन गए. एक दिन निशा ने रमित को अपने घर ले जा कर उस का परिचय अपने मातापिता से करवा दिया.

रोशनलाल के परिवार की समस्या यह थी कि उस के परिवार में कोई भी युवा पुरुष नहीं था. बेटा राजेश था भी तो अपाहिज था. इसीलिए पूरा परिवार रमित से खुश रहता था और उसे बेटे की तरह मानता था. निशा का भी सोचना था कि उस की अन्य बहनें दूर रहती थीं, अगर शादी के बाद रमित उस के मातापिता और अपाहिज भाई का खयाल रखेगा तो इस से अच्छा और क्या हो सकता थासमय के साथ निशा और रमित के आपसी संबंध बन गए थे. सन् 2009 के अंत में रोशनलाल स्टेशन मास्टर से रिटायर हो गए थे. उन्हें रिटायरमेंट पर काफी रुपए मिले थे. कुछ दिनों बाद उन्होंने चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेच दिया था. नया मकान लेने के बाद भी उन के पास 35-40 लाख रुपया बच गया था.

एक दिन जब रमित रोशनलाल के घर आया तो बहुत परेशान था. पूरे परिवार ने उस की परेशानी का कारण पूछा, पर उस ने कुछ नहीं बताया. बाद में उस ने निशा को अलग ले जा कर बताया, ‘‘निशा, मुझे बिजनैस में बहुत बड़ा घाटा हो गया है. बाजार का लाखों रुपया देना है. अगर मैं ने रुपए नहीं दिए तो मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हें कितने रुपए चाहिए?’’ निशा ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘यही कोई 40-45 लाख…’’

रमित की बात सुन कर निशा हतप्रभ रह गई. पल भर बाद वह कुछ सोच कर बोली, ‘‘रमित, पापा के पास 30-35 लाख रुपए होंगे, वे तुम्हें इनकार नहीं करेंगे. जब तुम्हारा बिजनैस ठीक हो जाए तो पापा के पैसे लौटा देना.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, पर मैं तुम्हारे पापा से रुपए नहीं मांगूगा. मुझे शर्म आती है.’’ रमित ने अभिनय करते हुए कहा तो निशा बोली, ‘‘ठीक है, तुम रुपए मत मांगना. रुपए मैं मांग लूंगी, पर तुम साथ तो चलो.’’

निशा के समझाने पर रमित उस के साथ चलने को तैयार हो गया. निशा ने जब अपने पिता रोशनलाल को रमित की परेशानी का कारण बताया तो वे हंसते हुए बोले, ‘‘तुम भी कमाल करते हो बेटा, यह घर तुम्हारा है. यहां की हर चीज पर तुम्हारा अधिकार है. रुपए मेरे पास बढ़ तो रहे नहीं हैं. तुम अपना काम निपटा लो. जब जाएं तो मुझे लौटा देना.’’

अगले दिन ही रोशनलाल ने रमित को 35 लाख रुपए कैश दे दिए. रुपए लेते समय उस ने वादा किया था कि वह एक महीने में रुपए लौटा देगा. लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी जब उस ने तो पैसे लौटाए और कभी इस विषय में बात की तो रोशनलाल और निशा को चिंता होने लगी. उसी बीच कहीं से निशा को पता चल गया कि रमित शादीशुदा है. उस ने उस से झूठ बोला थाइस बात से निशा के दिल को बहुत ठेस पहुंची. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि पिता का पैसा वापस मिलने के बाद वह रमित से संबंध तोड़ लेगी. यह बात उस ने रमित से कह भी दी थी, लेकिन समस्या यह थी कि रमित पैसा लौटाने का नाम नहीं ले रहा था. इस पर निशा ने उसे धमकी देते हुए कहा कि अगर उस ने शराफत से उस के पिता का पैसा नहीं लौटाया तो वह अपने और उस के संबंधों की बात उस की मां और पत्नी को बता देगी.

इस से रमित बुरी तरह डर गया. उस ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए निशा के पिता को चैक काट कर दे दिए. उस ने चैक तो दे दिए, लेकिन चैक देने के बाद वह परेशान रहने लगा. क्योंकि उस के खाते में पैसे नहीं थे. उसे पता था कि अगर चेक बाउंस हो गए तो एक और नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. इसलिए उस ने इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने के लिए एक भयानक योजना बना डाली. रोशनलाल के परिवार में गहरी पैठ होने की वजह से रमित उन के परिवार की हर गतिविधियों को जानता था. वह यह भी जानता था कि हर रविवार की सुबह रोशनलाल और निशा हैबोवाल स्थित राधास्वामी सत्संग भवन में सत्संग सुनने जाते हैं. रविवार को साप्ताहिक अवकाश होने की वजह से लुधियाना के सारे बाजार और उद्योग बंद रहते हैं.

रमित की फैक्ट्री भी उस दिन बंद थी. इन्हीं बातों के मद्देनजर रमित ने शनिवार शाम यानी 21 अगस्त को रोशनलाल को फोन कर के कहा, ‘‘पापा, मैं कल सुबह एटीएम से रुपए निकाल कर आप को दे दूंगा. आप चैक बैंक में मत डालना.’’ अगले दिन सुबह जब रोशनलाल और निशा सत्संग के लिए जा रहे थे तो रास्ते में ही रमित ने उन्हें अपनी कार में बिठा लिया. हालांकि रोशनलाल ने बहुत कहा कि रुपए निकालने ही तो हैं, सत्संग के बाद निकाल लेंगे. लेकिन रमित ने यह कह कर उन्हें खामोश कर दिया कि वह पैसे दे देगा तो उस के सिर से बोझ उतर जाएगा. रमित की गाड़ी दुगड़ी स्थित एटीएम पर रुकी. उस ने यह कह कर रोशनलाल को वहीं उतार दिया कि वह 10 मिनट वहीं रुकें, एटीएम कार्ड वह घर भूल आया है. झूठ बोल कर वह निशा को साथ ले कर सीधा फैक्ट्री पहुंचा. फैक्ट्री ले जा कर उस ने निशा को केबिन में बिठा दिया और पहले से खरीद कर रखा चाकू निकाल कर उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उस की हत्या कर दी

निशा की हत्या कर के उस ने अपने 2 कर्मचारियों विजय व कुमार की मदद से निशा की लाश प्लास्टिक के एक बोरे में भरी और उन्हीं की मदद से वह बोरा कार की डिग्गी में रख कर जस्सियां के एक खाली प्लाट में फेंक आया. इस के बाद वह दुगड़ी स्थित एटीएम पर पहुंचा, जहां रोशनलाल खड़ा था. वह उसे भी कार में बैठा कर फैक्ट्री ले आया. निशा की तरह उस ने उस की भी हत्या कर दी और उस की लाश भी प्लास्टिक के बोरे में भर कर दोराहा नहर में फेंक दी.

बापबेटी की हत्या करने के बाद रमित कार से सीधा रोशनलाल के घर पहुंचा. कार उस ने मकान के पीछे वाली गली में खड़ी कर दी. इस के बाद वह मकान के भीतर गया. पहले वाले कमरे में शकुंतला बैठी थी. रमित ने चाकू निकाल कर उस पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. वह ढेर हो गई. इस के बाद वह भीतर वाले कमरे में पहुंचा, जहां राजेश टीवी देख रहा था. कमरे में पहुंचते ही उस ने सब से पहले टीवी की आवाज तेज की और फिर राजेश पर अचानक हमला बोल दिया. अचानक हमला हुआ था, फिर भी अपाहिज राजेश चीखाचिल्लाया. उस ने रमित का विरोध करते हुए आखिरी क्षणों तक उस के साथ संघर्ष किया.

राजेश की हत्या करने के बाद रमित बाथरूम में हाथमुंह धोना चाहता था, लेकिन उसी समय मोहल्ले वालों ने बाहर का दरवाजा तोड़ना शुरू कर दिया. हड़बड़ाहट में वह चाकू वहीं छोड़ कर मकान के पिछले दरवाजे से भाग निकला. पूरे परिवार की हत्या करने के बाद वह पुन: फैक्ट्री आया, जहां उस ने हाथमुंह धोया. चार लोगों की हत्याएं करने में चाकू की कुछ खरोंचे उस के हाथ पर भी लग गई थीं. उस ने दुगड़ी की एक डिस्पेंसरी में जा कर हाथ पर पट्टी करवाई और फिर आगे के बारे में सोचने लगा. पर वह कुछ सोचता या करता, इस से पहले ही वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

पुलिस ने रमित भंडारी के साथ उस के दोनों कर्मचारियों को भी हिरासत में ले कर अगले दिन मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट परमिंदर कौर की अदालत में पेश कर के 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में रमित की निशानदेही पर जस्सियां से निशा की तथा दोराहा नहर के किनारे से रोशनलाल की लाश बरामद कर ली. पुलिस ने रमित की 2 कारें भी जब्त कर लीं. पुलिस ने 7-7 लाख रुपए के वे 2 चैक भी बरामद किए, जो रमित ने रोशनलाल को दिए थे. तलाशी लेने पर निशा के पर्स से डेढ़ लाख कैश भी मिला था. इस तरह यह हत्याकांड पुलिस कमिश्नर ईश्वर सिंह की देखरेख में एसीपी नरेंद्र रूबी अन्य अधिकारियों की सूझबूझ से 24 घंटे के भीतर ही सुलझा लिया गया. एक तरह से इस में रुपए दे कर दुश्मन बनाने वाली बात हुई थी. रोशनलाल रमित को रुपए दे कर उस की सहायता करता और ही उस का परिवार यूं बेमौत मारा जाता. शायद सांप को दूध पिलाने का यही अंजाम होता है.

  

अचानक थाने में क्यों मरा दारोगा

दरोगा पच्चालाल गौतम ने किरन से दूसरी शादी कर के अपनी जिंदगी में पत्नी की कमी तो पूरी कर ली थी, लेकिन वह यह भूल गए कि अधेड़ उम्र में 20-22 साल की लड़की को पत्नी बनाना खरतनाक होता है…   

3 जुलाई, 2018 की बात है. शाम 6 बजे थाना सजेती का मुंशी अजय पाल रजिस्टर पर दस्तखत कराने थाना परिसर स्थित दरोगा पच्चालाल गौतम के आवास पर पहुंचा. दरोगाजी के कमरे का दरवाजा बंद था, लेकिन कूलर चल रहा था. अजय पाल ने सोचा कि दरोगाजी शायद सो रहे होंगे. यही सोचते हुए उस ने बाहर से ही आवाज लगाई, ‘‘दरोगाजीदरोगाजी.’’

अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उस ने दरवाजे को अंदर की ओर धकेला. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, हलके दबाव से ही खुल गया. अजय पाल ने कमरे के अंदर पैर रखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर दरोगा पच्चालाल की लाश पड़ी थी. किसी ने उन की हत्या कर दी थी. बदहवास सा मुंशी अजय पाल थाना कार्यालय में आया और उस ने यह जानकारी अन्य पुलिसकर्मियों को दी. यह खबर सुनते ही थाना सजेती में हड़कंप मच गया. घबराए अजय पाल की सांसें दुरुस्त हुईं तो उस ने वायरलैस पर दरोगा पच्चालाल गौतम की थाना परिसर में हत्या किए जाने की जानकारी कंट्रोल रूम को और वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

सूचना पाते ही एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह, एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव, सीओ आर.के. चतुर्वेदी, इंसपेक्टर दिलीप बिंद तथा देवेंद्र कुमार दुबे थाना सजेती पहुंच गए. पुलिस अधिकारी पच्चालाल के कमरे में पहुंचे तो वहां का दृश्य देख सिहर उठेकमरे के अंदर फर्श पर 58 वर्षीय दरोगा पच्चालाल गौतम की खून से सनी लाश पड़ी थी. अंडरवियर के अलावा उन के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था. खून से सना चाकू लाश के पास पड़ा था. खून से सना एक तौलिया बैड पर पड़ा था. हत्यारों ने दरोगा पच्चालाल का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था. पच्चालाल की गरदन, सिर, छाती व पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए गए थे. आंतों के टुकड़े कमरे में फैले थे और दीवारों पर खून के छींटे थे. दरोगा पच्चालाल के शरीर के घाव बता रहे थे कि हत्यारों के मन में उन के प्रति गहरी नफरत थी और वह दरोगा की मौत को ले कर आश्वस्त हो जाना चाहते थे. बैड से ले कर कमरे तक खून ही खून फैला था. 

छींटों के अलावा दीवार पर खून से सने हाथों के पंजे के निशान भी थे. इन निशानों में अंगूठे का निशान नहीं था. घटनास्थल को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे दरोगा पच्चालाल गौतम ने हत्यारों से अंतिम सांस तक संघर्ष किया हो. पुलिस अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अखिलेश कुमार भी थाना सजेती गए. वह अपने साथ फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को लाए थे. दोनों पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन के माथे पर बल पड़ गएबेरहमी से किए गए इस कत्ल को अधिकारियों ने गंभीरता से लिया. फोरैंसिक टीम ने चाकू और कमरे की दीवार से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड ने घटनास्थल पर डौग को छोड़ा. डौग लाश कमरे की कई जगहों को सूंघ कर हाइवे तक गया और वापस लौट आया. वह ऐसी कोई हेल्प नहीं कर सका, जिस से हत्यारे का कोई सूत्र मिलता.

कारण नहीं मिल रहा था बेरहमी से किए गए कत्ल का मृतक पच्चालाल के आवास की तलाशी ली गई तो पता चला, हत्यारे उन का पर्स, घड़ी मोबाइल साथ ले गए थे. किचन में रखे फ्रिज में अंडे सब्जी रखी थी. कमरे में शराब ग्लास आदि नहीं मिले, जिस से स्पष्ट हुआ कि हत्या से पहले कमरे में बैठ कर शराब नहीं पी गई थीअनुमान लगाया गया कि हत्यारा दरोगा पच्चालाल का बेहद करीबी रहा होगा, जिस से वह आसानी से आवास में दाखिल हो गया और बाद में उस ने अपने साथियों को भी बुला लिया. आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अखिलेश कुमार यह सोच कर चकित थे कि थाना कार्यालय से महज 20 मीटर की दूरी पर दरोगा पच्चालाल का आवास था. कमरे में चाकू से गोद कर उन की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई और उन की चीखें थाने के किसी पुलिसकर्मी ने नहीं सुनीं, इस से पुलिसकर्मी भी संदेह के घेरे में थे.

लेकिन इस में यह बात भी शामिल थी कि दरोगा पच्चालाल गौतम के आवास में 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा थाना परिसर की ओर खुलता था, जबकि दूसरा हाइवे के निकट के खेतों की ओर खुलता था. पता चला कि पच्चालाल के करीबी लोगों का आनाजाना हाइवे की तरफ खुलने वाले दरवाजे से ज्यादा होता था. हाइवे पर ट्रकों की धमाचौकड़ी मची रहती थी, जिस की तेज आवाज कमरे में भी गूंजती थी. संभव है, दरोगा की चीखें ट्रकों और कूलर की आवाज में दब कर रह गई हो और किसी पुलिसकर्मी को सुनाई दी हो. एसएसपी अखिलेश कुमार ने थाना सजेती के पुलिसकर्मियों से पूछताछ की तो पता चला कि दरोगा पच्चालाल गौतम मूलरूप से सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के रामकुंड के रहने वाले थे

उन्होंने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी कुंती की मौत के बाद उन्होंने किरन नाम की युवती से प्रेम विवाह किया था. पहली पत्नी के बच्चे रामकुंड में रहते थे, जबकि दूसरी पत्नी किरन कानपुर शहर में सूर्यविहार (नवाबगंज) में अपने बच्चों के साथ रहती थी. पारिवारिक जानकारी मिलते ही एसएसपी अखिलेश कुमार ने दरोगा पच्चालाल की हत्या की खबर उन के घर वालों को भिजवा दी. खबर मिलते ही दरोगा की पत्नी किरन थाना सजेती पहुंच गई. पति की क्षतविक्षत लाश देख कर वह दहाड़ मार कर रोने लगी. महिला पुलिसकर्मियों ने उसे सांत्वना दे कर शव से अलग किया. 

कुछ देर बाद दरोगा के बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र कमल भी गए. पिता का शव देख कर वे भी रोने लगे. पुलिसकर्मियों ने उन्हें धैर्य बंधाया और पंचनामा भर कर शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दिया. आलाकत्ल चाकू को परीक्षण हेतु सील कर के रख लिया गया. 4 जुलाई, 2018 को मृतक पच्चालाल के शव का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद शव को पुलिस लाइन लाया गया, जहां एसएसपी अखिलेश कुमार, एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिह अन्य पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सलामी दे कर अंतिम विदाई दी

इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार, दिलीप बिंद सजेती थाने के पुलिसकर्मियों ने पच्चालाल के शव को कंधा दिया. इस के बाद पच्चालाल के चारों बेटे शव को अपने पैतृक गांव  रामकुंड, सीतापुर ले गए, जहां बड़े बेटे सत्येंद्र ने पिता की चिता को मुखाग्नि दे कर अंतिम संस्कार किया. अंतिम संस्कार में किरन उस के बच्चे शामिल नहीं हुए. दरोगा पच्चालाल की हत्या की खबर कानपुर से लखनऊ तक फैल गई थी. यह बात एडीजे अविनाश चंद्र के संज्ञान में भी थी. इसी के मद्देनजर एसएसपी अखिलेश कुमार ने दरोगा हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया और इस के खुलासे के लिए एक विशेष पुलिस टीम गठित की.

जांच के लिए बनी स्पैशल टीम इस टीम में उन्होंने क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सेल तथा एसएसपी की स्वान टीम के तेजतर्रार भरोसेमंद पुलिसकर्मियों को शामिल किया. क्राइम ब्रांच से सुनील लांबा तथा एसओजी से राजेश कुमार रावत, सर्विलांस सेल से शिवराम सिंह, राहुल पांडे, सिपाही बृजेश कुमार, मोहम्मद आरिफ, हरिशंकर और सीमा देवी तथा एसएसपी स्वान टीम से संदीप कुमार, राजेश रावत तथा प्रदीप कुमार को शामिल किया गयाइस के अलावा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के बेहतरीन जासूस कहे जाने वाले 3 इंसपेक्टरों देवेंद्र कुमार दुबे, दिलीप बिंद, मनोज रघुवंशी तथा सीओ (घाटमपुर) आर.के. चतुर्वेदी को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. रिपोर्ट में पच्चालाल के शरीर पर 19 गहरे जख्म बताए गए थे जो सिर, गरदन, छाती, पेट हाथों पर थे. इस टीम ने उन मामलों को भी खंगाला, जिन की जांच पच्चालाल ने की थी. लेकिन ऐसा कोई मामला नहीं मिला, जिस से इस हत्या को जोड़ा जा सकता. इस से साफ हो गया कि क्षेत्र के किसी अपराधी ने उन की हत्या नहीं की थी. पुलिस टीम ने थाना सजेती में लगे सीसीटीवी फुटेज भी देखे, मगर उस में दरोगा के आवास में कोई भी आतेजाते नहीं दिखा. इस का मतलब हत्यारे पिछले दरवाजे से ही आए थे और हत्या को अंजाम दे कर उसी दरवाजे से चले गए

टीम ने कुछ दुकानदारों से पूछताछ की तो शराब के ठेके के पास नमकीन बेचने वाले दुकानदार अवधेश ने बताया कि 2 जुलाई को देर शाम उस ने दरोगा पच्चालाल के साथ सांवले रंग के एक युवक को देखा था. उस युवक के साथ दरोगाजी ने ठेके से अंगरेजी शराब की बोतल खरीदी थी. साथ ही उस की दुकान से नमकीन का पैकेट भी लिया था. पैसे दरोगाजी ने ही दिए थे. अवधेश ने बताया कि ऐसा पहली बार हुआ था, जब दरोगाजी ने पैसे दिए थे. इस के पहले दरोगाजी के साथ वाला व्यक्ति ही पैसे देता था. युवक की बातचीत से लगता था कि वह दरोगाजी का बेहद करीबी है. 

दुकानदार अवधेश ने जो बताया, उस से साफ हो गया कि दरोगा पच्चालाल के साथ जो युवक था, वह उन का काफी करीबी था. इस जानकारी के बाद टीम ने दरोगा के खास करीबियों पर ध्यान केंद्रित किया. इस में उस की पत्नी किरन, दरोगा के 4 बेटे और कुछ अन्य लोग शामिल थे. पच्चालाल के बेटों से पूछताछ करने पुलिस टीम रामकुंड, सीतापुर पहुंचीपूछताछ में सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र कमल ने बताया कि उन के पिता का तो किसी से विवाद था और ही जमीनजायदाद का कोई झगड़ा था. सौतेली मां किरन से भी जमीन या मकान के बंटवारे पर कोई विवाद नहीं था. सौतेली मां किरन अपने बच्चों के साथ कानपुर में रहती थी.

पच्चालाल दोनों परिवारों का अच्छी तरह पालनपोषण कर रहे थे. चारों बेटों को उन्होंने कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी थी. सत्येंद्र ने यह भी बताया कि 6 महीने पहले पिता ने उस की शादी धूमधाम से की थीशादी में सौतेली मां किरन भी खुशीखुशी शामिल हुई थीं. शादीबारात की सारी जिम्मेदारी उन्होंने ही उठाई थी. शादी में बहू के जेवर, कपड़ा अन्य सामान पिता के सहयोग से उन्होंने ही खरीदा था. किरन से उन लोगों का कोई विवाद नहीं था. जितेंद्र और किरन आए संदेह के घेरे में मृतक दरोगा पच्चालाल के बेटों से पूछताछ कर पुलिस टीम कानपुर लौट आई. इस के बाद यह टीम थाना नवाबगंज के सूर्यविहार पहुंची, जहां दरोगा की दूसरी पत्नी किरन किराए के मकान में रहती थी. पुलिस को देख कर किरन रोनेपीटने लगी. पुलिस ने उसे सांत्वना दी. बाद में उस ने बताया कि दरोगा पच्चालाल ने उस से तब प्रेम विवाह किया था, जब वह बेनीगंज थाने में तैनात थे. दरोगा से किरन को 3 संतानें हुई थीं, एक बेटा व 2 बेटियां.

किरन रो जरूर रही थी, लेकिन उस की आंखों से एक भी आंसू नहीं टपक रहा था. उस के रंग, ढंग और पहनावे से ऐसा नहीं लगता था कि उस के पति की हत्या हो गई है. घर में किसी खास के आनेजाने के संबंध में पूछने पर वह साफ मुकर गई. लेकिन पुलिस टीम ने जब किरन के बच्चों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि जितेंद्र अंकल घर आतेजाते हैं, जो पापा के दोस्त हैं. पुलिस टीम ने जब किरन से जितेंद्र उर्फ महेंद्र यादव के बारे में पूछताछ की तो उस का चेहरा मुरझा गया. उस ने घबराते हुए बताया कि जितेंद्र उस के दरोगा पति का दोस्त था. वह रोडवेज बस चालक है और रोडवेज कालोनी में रहता है. पूछताछ के दौरान पुलिस टीम ने बहाने से किरन का मोबाइल ले लिया.

पुलिस टीम में शामिल सर्विलांस सेल के प्रभारी शिवराम सिंह ने किरन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि दरोगा की हत्या के पहले बाद में किरन की एक नंबर पर बात हुई थीउस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला वह नंबर जितेंद्र उर्फ महेंद्र का था. पच्चालाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स में भी जितेंद्र का नंबर था. दूसरी पत्नी बनी हत्या की वजह जितेंद्र शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने देर रात उसे रोडवेज कालोनी स्थित उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना सजेती ले आई. उस से दरोगा पच्चालाल की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने हत्या से संबंधित कोई जानकारी होने से इनकार कर दिया

हां, उस ने दोस्ती और दरोगा के घर आनेजाने की बात जरूर स्वीकार की. जब पुलिस ने अपने अंदाज में पूछताछ की तो जितेंद्र ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया और उस ने दरोगा पच्चालाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. जितेंद्र उर्फ महेंद्र यादव ने बताया कि किरन से उस के नाजायज संबंध बन गए थे. दरोगा पच्चालाल को जानकारी हुई तो वह किरन को प्रताडि़त करने लगा. पच्चालाल प्यार में बाधक बना तो उस ने और किरन ने मिल कर उस की हत्या की योजना बनाई. योजना बनाने के बाद उन्होंने एक लाख रुपए में दरोगा की हत्या की सुपारी निजाम अली को दे दी, जो विधूना का रहने वाला है. निजाम अली ने उसे पसहा, विधूना निवासी राघवेंद्र उर्फ मुन्ना से मिलवाया. इस के बाद तीनों ने मिल कर 2 जुलाई की रात दरोगा की हत्या कर दी और फरार हो गए.

पुलिस टीम ने जितेंद्र की निशानदेही पर विधूना से निजाम अली तथा पसहा गांव से राघवेंद्र उर्फ मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को थाना सजेती की हवालात में डाल दिया गया. इस के बाद पुलिस टीम सूर्यविहार, नवाबगंज पहुंची और यह कह कर किरन को साथ ले आई कि दरोगा पच्चालाल के हत्यारे पकड़े गए हैंकिरन थाना सजेती पहुंची तो उस ने अपने प्रेमी जितेंद्र तथा उस के साथियों को हवालात में बंद देखा. उन्हें देखते ही वह सब कुछ समझ गई. अब उस के लिए पुलिस को गुमराह करना मुमकिन नहीं था. उस ने पति की हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल कर लिया. जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल का लूटा गया पर्स, घड़ी मोबाइल भी बरामद करा दिए, जिन्हें उस ने घर में छिपा कर रखा था.

चूंकि दरोगा पच्चालाल के हत्यारों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मुंशी अजयपाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 394 तथा 120बी के तहत जितेंद्र उर्फ महेंद्र, निजाम अली, राघवेंद्र उर्फ मुन्ना तथा किरन के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. 7 जुलाई को एसएसपी अखिलेश कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस की, जिस में उन्होंने हत्या का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपए देने की घोषणा की. उन्होंने गिरफ्तार किए गए दरोगा के हत्यारों को पत्रकारों के सामने भी पेश किया, जहां हत्यारों ने अवैध रिश्तों में हुई हत्या का खुलासा किया.

पच्चालाल गौतम सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के गांव रामकुंड के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी कुंती देवी के अलावा 4 बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र कमल थे. पच्चालाल पुलिस विभाग में दरोगा के पद पर तो तैनात थे ही, उन के पास खेती की जमीन भी थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. पच्चालाल की पत्नी कुंती देवी घरेलू महिला थीं. वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थीं, लेकिन स्वभाव से मिलनसार थीं. कुंती पति के साथसाथ बच्चों का भी ठीक से खयाल रखती थीं. पच्चालाल भी कुंती को बेहद चाहते थे, उन की हर जरूरत को पूरा करते थे. लेकिन बीतते समय में इस खुशहाल परिवार पर ऐसी गाज गिरी कि सब कुछ बिखर गया.

सन 2001 में कुंती देवी बीमार पड़ गईं. पच्चालाल ने पत्नी का इलाज पहले सीतापुर, लखनऊ कानपुर में अच्छे डाक्टरों से कराया. पत्नी के इलाज में दरोगा ने पानी की तरह पैसा बहाया, लेकिन काल के क्रूर हाथों से वह पत्नी को नहीं बचा सके. पत्नी की मौत से पच्चालाल खुद भी टूट गए और बीमार रहने लगे. जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे पत्नी की मौत का गम कम होता गया. पच्चालाल ड्यूटी और बच्चों के पालनपोषण पर पूरा ध्यान देने लगे. पच्चालाल का दिन तो सरकारी कामकाज में कट जाता था, लेकिन रात में पत्नी की कमी खलने लगती थी. पत्नी के बिना वह तनहा जिंदगी जी रहे थे. अब उन्हें अहसास हो गया था कि पत्नी के बिना आदमी का जीवन कितना अधूरा होता है.

सन 2002 में दरोगा पच्चालाल को हरदोई जिले के थाना बेनीगंज की कल्याणमल चौकी में तैनाती मिली. इस चौकी का चार्ज संभाले अभी 2 महीने ही बीते थे कि पच्चालाल की मुलाकात एक खूबसूरत युवती किरन से हुई. किरन अपने पति नरेश की प्रताड़ना की शिकायत ले कर चौकी आई थी. किरन के गोरे गालों पर बह रहे आंसू, दरोगा पच्चालाल के दिल में हलचल मचाने लगे. उन्होंने सांत्वना दे कर किरन को चुप कराया तो उस ने बताया कि उस का पति नरेश, शराबी व जुआरी है. नशे में वह उसे जानवरों की तरह पीटता है. वह पति की प्रताड़ना से निजात चाहती है. खूबसूरत किरन पहली ही नजर में दरोगा पच्चालाल के दिलोदिमाग पर छा गई. उन्होंने किरन के पति नरेश को चौकी बुलवा लिया और किरन के सामने ही उस की पिटाई कर के हिदायत दी कि अब वह किरन को प्रताडि़त नहीं करेगा. दरोगा की पिटाई और जेल भेजने की धमकी से नरेश डर गया और किरन से माफी मांग ली.

इस के बाद दरोगा पच्चालाल हालचाल जानने के बहाने अकसर किरन के घर आनेजाने लगे. वह किरन से मीठीमीठी बातें करते थे. किरन भी उन की रसीली बातों में आनंद का अनुभव करने लगी थी. किरन का पति नरेश घर आने पर ऐतराज करे, यह सोच कर पच्चालाल ने उस से दोस्ती गांठ ली. दोनों की नरेश के घर पर ही शराब की महफिल जमने लगी. पच्चालाल उस की आर्थिक मदद भी करने लगे. घर आतेजाते पच्चालाल ने किरन को अपने प्रेम जाल में फंसा कर उस से नाजायज संबंध भी बना लिए. बाद में पच्चालाल ने किरन को ऐसे सब्जबाग दिखाए कि वह उस की पत्नी बनने को राजी हो गई. किरन राजी हुई तो पच्चालाल ने मंदिर में जा कर उस से प्रेम विवाह कर लिया. विवाह के समय किरन 20-22 साल की थी, जबकि पच्चालाल 43 साल के. नरेश को किरन की बेवफाई का पता चला तो उस ने माथा पीट लिया. शराबी और जुआरी नरेश इतना सक्षम नहीं था कि दरोगा का मुकाबला कर पाता, लिहाजा वह चुप हो कर बैठ गया.

प्रेम विवाह करने के बाद किरन पच्चालाल की पत्नी बन कर हरदोई में रहने लगी. कुछ समय बाद दरोगा पच्चालाल का ट्रांसफर कानपुर हो गया. कानपुर में पच्चालाल ने नवाबगंज थाना क्षेत्र के सूर्यविहार में किराए पर एक मकान ले लिया और किरन के साथ रहने लगे. बाद में दरोगा पच्चालाल और किरन एक बेटे अमन तथा 2 बेटियों अर्चना पारुल के मातापिता बने. कुंती के चारों बेटों ने पिता द्वारा किरन से प्रेम विवाह करने का कोई विरोध नहीं किया था. इस की वजह यह भी थी कि पिता के अलावा उन्हें संरक्षण देने वाला कोई नहीं था. इस तरह दरोगा पच्चालाल 2 परिवारों का पालनपोषण करने लगे. पहली पत्नी के बच्चे गांव में तथा दूसरी पत्नी किरन और उस के बच्चे कानपुर शहर में रहते रहे. पच्चालाल को जब छुट्टी मिलती तो गांव चले जाते और बच्चों से मिल कर लौट आते.

किरन 3 बच्चों की मां जरूर बन गई थी, लेकिन अब भी यौवन से भरपूर थी. वह हर रात पति का संसर्ग चाहती थी, लेकिन इस से वंचित थी. दरोगा पच्चालाल अब तक 50 की उम्र पार कर चुके थे. उन की सैक्स में रुचि भी कम हो गई थी. पहल करने पर भी वह किरन से देह संबंध नहीं बनाते थे. दरअसल, ड्यूटी करने के बाद पच्चालाल इतने थक जाते थे कि पीने और खाना खाने के बाद बैड पकड़ लेते थे. किरन रात भर तड़पती रहती थी. उन्हीं दिनों किरन की निगाह जितेंद्र यादव पर पड़ी. जितेंद्र यादव औरैया जिले के सहायल थाना क्षेत्र में आने वाले पुरवा अहिरमा का रहने वाला था. कानपुर में वह नवाबगंज की रोडवेज कालोनी में रहता था और रोडवेज की बस का ड्राइवर था. पच्चालाल और जितेंद्र यादव गहरे दोस्त थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. दोनों की महफिल एकदूसरे के घरों में अकसर जमती रहती थी.

किरन की निगाह थी जितेंद्र पर जितेंद्र यादव शरीर से हृष्टपुष्ट और किरन का हमउम्र था. किरन को लगा कि वह उस की अधूरी ख्वाहिशों को पूरा कर सकता है. अत: उस ने जितेंद्र को लिफ्ट देनी शुरू कर दी. दोनों के बीच देवरभाभी का नाता थाजबतब दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. किरन अपने सुघड़ अंगों का प्रदर्शन कर के जितेंद्र को ललचाने लगी. किरन के हावभाव से जितेंद्र समझ गया कि किरन सैक्स की भूखी है, पहल की जाए तो जल्द ही उस की बांहों में समा जाएगी. जितेंद्र यादव जब भी किरन के घर आता, बच्चों के लिए फल, मिठाई ले कर जाता. किरन से वह मीठीमीठी बातें करते हुए उसे ललचाई हुई नजरों से देखता. ऐसे ही एक रोज जितेंद्र आया, तो किरन को घर में अकेली देख कर उस से पूछा, ‘‘दरोगा भैया अभी तक नहीं आए?’

किरन ने बेफिक्री से कहा, ‘‘सरकारी काम से बाहर गए हैं, 1-2 रोज बाद लौटेंगे.’’

जितेंद्र की बांछें खिल गईं. उस ने किरन के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए शरारत की, ‘‘भाभी, आप की रात कैसे कटेगी?’’

‘‘तुम जो हो.’’ किरन ने भी उसी अंदाज में जवाब दे दिया. किरन के खुले आमंत्रण से जितेंद्र का हौसला बढ़ गया. वह बोला, ‘‘तो मैं रात को आऊं?’’

 ‘‘मैं ने कब मना किया है.’’ किरन ने मादक अंगड़ाई ली. रात गहराई तो जितेंद्र किरन के दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजा धकेला तो खुल गया. अंदर नाइट बल्ब जल रहा था. किरन पलंग पर लेटी थी. वह फुसफुसाई, ‘‘दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दो.’’

जितेंद्र ने ऐसा ही किया और पलंग पर आ कर बैठ गया. दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो तभी थमा जब दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उस दिन किरन और जितेंद्र के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. किरन और जितेंद्र एक बार देह के दलदल में समाए तो समाते ही चले गए. दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में सिमट जाते. एक रोज पच्चालाल ड्यूटी के लिए घर से निकले ही थे कि जितेंद्र गया. आते ही उस ने किरन को बांहों में भर लिया. दोनों अभी एकदूसरे से लिपटे ही थे कि पच्चालाल की आवाज सुन कर घबरा गए. किरन ने कपड़े दुरुस्त कर के दरवाजा खोल दिया. घर के अंदर जितेंद्र मौजूद था. बिस्तर कुछ पल पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. पच्चालाल सब समझ गए. उन्होंने किरन को धुनना शुरू किया तो जितेंद्र चुपके से खिसक लिया.

इस घटना के बाद किरन और जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल से माफी मांग ली और आइंदा गलती करने का वादा किया. पच्चालाल ने दोनों को माफ तो कर दिया, लेकिन जितेंद्र के साथ शराब पीनी बंद कर दी. उस के घर आने पर भी पाबंदी लगा दी. लेकिन देह की लगी ने पाबंदियों को नहीं माना. कुछ दिन दोनों दूरदूर रहे, फिर चोरीछिपे शारीरिक रूप से मिलने लगे. जितेंद्र बना पच्चालाल की मौत का परवाना जनवरी, 2018 में दरोगा पच्चालाल का ट्रांसफर कानपुर देहात के थाना सजेती में हो गया. सजेती थाना कानपुर से 50 किलोमीटर दूर है. वहां से रोज घर आनाजाना संभव नहीं था. दरोगा पच्चालाल को थाना परिसर में ही आवास मिल गया. अब वह हफ्ता 10 दिन में ही किरन से मिलने घर जा पाते थे.

पच्चालाल जब भी घर आते थे, किरन से गालीगलौज और मारपीट जरूर करते थे. दरअसल उन्हें शक था कि जितेंद्र के अलावा भी किरन के किसी से नाजायज संबंध हैं. जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर में कलह और प्रताड़ना बढ़ती जा रही थी. पति की प्रताड़ना से आजिज कर किरन ने अपने प्रेमी जितेंद्र की मदद से पच्चालाल को रास्ते से हटाने की योजना बनाईजितेंद्र ने किरन को पच्चालाल की हत्या से फायदे भी बताए. जितेंद्र ने कहा कि पति की हत्या के बाद तुम्हारे बेटे अमन को मृतक आश्रित कोटे से सरकारी नौकरी मिल जाएगी और तुम्हें पेंशन मिलने लगेगी. इस के अलावा प्रेम संबंध का रोड़ा भी हट जाएगा.

किरन और जितेंद्र ने पच्चालाल की हत्या के लिए रुपयों का इंतजाम किया. फिर जितेंद्र ने विधूना निवासी टेलर निजाम अली से बातचीत की. एक लाख रुपए में सौदा तय हुआ. जितेंद्र ने एक लाख रुपया निजाम अली के खाते में ट्रांसफर कर दियाइस के बाद निजाम अली ने जितेंद्र को पसहा (विधूना) निवासी राघवेंद्र उर्फ मुन्ना से मिलवाया. राघवेंद्र रिटायर दरोगा हरिदत्त सिंह का अपराधी प्रवृत्ति का बेटा था. निजाम अली ने 20 हजार रुपए एडवांस दे कर उसे इस योजना में शामिल कर लिया. 2 जुलाई, 2018 की देर शाम जितेंद्र यादव राघवेंद्र और निजाम अली को साथ ले कर सजेती पहुंचा और हाइवे से दरोगा के आवास की पहचान कराई. इस के बाद जितेंद्र यादव बाजार गया, जहां उस की मुलाकात दरोगा पच्चालाल से हो गई. जितेंद्र ने झुक कर दरोगा के पैर छुए. पच्चालाल ने उसे रात को वहीं रुक जाने को कहा

थोड़ी देर की बातचीत के बाद दरोगा पच्चालाल ने अंगरेजी शराब की बोतल और नमकीन खरीदी. दुकानदार को नमकीन के पैसे पच्चालाल ने ही दिए. इस के बाद होटल पर बैठ कर दोनों ने शराब पी और खाना खाया. इस के बाद दोनों पच्चालाल के आवास पर गए. दरोगा पच्चालाल ने कपड़े उतारे और कूलर चला कर पलंग पर पसर गए. कुछ देर बाद जब पच्चालाल सो गए तो जितेंद्र ने आवास का पीछे का दरवाजा खोल कर निजाम अली राघवेंद्र को अंदर बुला लिया, जो कुछ दूर हाइवे किनारे बैठे थे. साथियों के आते ही जितेंद्र ने पच्चालाल को दबोच लिया. दरोगाजी की आंखें खुलीं तो प्राण संकट में देख वह संघर्ष करने लगे. लेकिन नफरत से भरे जितेंद्र ने पच्चालाल के शरीर को चाकू से गोदना शुरू किया तो गोदता ही चला गया.

हत्या के दौरान खून के छींटे हाथ के पंजे का निशान एक दीवार पर भी पड़ गया. हत्या के बाद जितेंद्र उस के साथी दरोगा का मोबाइल, पर्स घड़ी लूट कर फरार हो गए. जितेंद्र ने मोबाइल से फोन कर के पच्चालाल की हत्या की जानकारी किरन को दे दी थी3 जुलाई की शाम 6 बजे मुंशी अजयपाल जब रजिस्टर पर दस्तखत कराने दरोगा पच्चालाल के आवास पर पहुंचा तो हत्या की जानकारी हुई. 7 जुलाई, 2018 को पुलिस ने हत्यारोपी किरन, जितेंद्र, निजाम अली राघवेंद्र को कानपुर देहात की माती अदालत में रिमांड पर मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   

पितापत्नी के अनैतिक संबंध से मजबूर होकर बेटा गया परदेस

सुबोध पिता, पत्नी और छोटी सी बेटी को छोड़ कर एक लड़की के साथ विदेश चला गया था, कभी आने के लिए. ऐसे में मां आरती और पोती अनुराधा के सशक्त सहारा बने विश्वंभर प्रसाद यानी उस के दादाजी, लेकिन एक दिन जब एक्सीडेंट ने उन की जान ले ली तो… 

राधना, जिसे घर में सभी प्यार से अरू कहते थे. सुबह जल्दी सो कर उठती या देर से, कौफी बालकनी  में ही पीती थी. आराधना कौफी का कप ले कर बालकनी में खड़ी हो जाती और सुबह की ठंडीठंडी हवा का आनंद लेते हुए कौफी पीती. इस तरह कौफी पीने में उसे बड़ा आनंद आता था. उस समय कोठी के सामने से गुजरने वाली सड़क लगभग खाली होती थी. इक्कादुक्का जो आनेजाने वाले होते थे, उन में ज्यादातर सुबह की सैर करने वाले होते थे. ऐसे लोगों को आतेजाते देखना उसे बहुत अच्छा लगता था. वह अपने दादाजी से कहती भी, ‘आई एम डेटिंग रोड. यह मेरी सुबह की अपाइंटमेंट है.’

उस दिन सुबह आराधाना थोड़ा देर से उठी थी. दादाजी अपने फिक्स समय पर उठ कर मौर्निग वाक पर चले गए थे. आराधना के उठने तक उन के वापस आने का समय हो गया था. आरती उन के लिए अनार का जूस तैयार कर के आमलेट की तैयारी कर रही थी. कौफी पी कर आराधना नाश्ते के लिए मेज पर प्लेट लगाते हुए बोली, ‘‘मम्मी, मैं ने आप से जो सवाल पूछा था, आप ने अभी तक उस का जवाब नहीं दिया.’’

‘‘कौन सा सवाल?’’ आरती ने पूछा.

‘‘वही, जो द्रौपदी के बारे में पूछा था.’’

फ्रिज से अंडे निकाल कर किचन के प्लेटफौर्म पर रखते हुए आरती ने कहा, ‘‘मुझे नाश्ते की चिंता हो रही है और तुझे अपने सवाल के जवाब की लगी है. दादाजी का फोन गया है, वह क्लब से निकल चुके हैं. बस पहुंचने वाले हैं. उन्हीं से पूछ लेना अपना सवाल. तेरे सवालों के जवाब उन्हीं के पास होते हैं.’’

आरती की बात पूरी होतेहोते डोरबेल बज गई. आराधना ने लपक कर दरवाजा खोला. सामने दादाजी खड़े थे. आराधना दोनों बांहें दादाजी के गले में डाल कर सीने से लगते हुए लगभग चिल्ला कर बोली, ‘‘वेलकम दादाजी.’’ आराधना 4 साल की थी, तब से लगभग रोज ऐसा ही होता था. जबकि आरती के लिए रोजाना घटने वाला यह दृश्य सामान्य नहीं था. ऐसा पहली बार तब हुआ था, जब अचानक सुबोध घरपरिवार और कारोबार छोड़ कर एक लड़की के साथ अमेरिका चला गया था. उस के बाद सुबोध के पिता ने बहू और पोती को अपनी छत्रछाया में ले लिया था.

आरती ने देखा, उस के ससुर यानी आराधना के दादाजी ने उस का माथा चूमा, प्यार किया और फिर उस का हाथ पकड़ कर नाश्ते के लिए मेज पर कर बैठ गए. उस दिन सुबोध को गए पूरे 16 साल हो गए थे.   जाने से पहले उस ने औफिस से फोन कर के कहा था, ‘‘आरती, मैं हमेशा के लिए जा रहा हूं. सारे कागज तैयार करा दिए हैं, जो एडवोकेट शर्मा के पास हैं. कोठी तुम्हारे और आराधना के नाम कर दी है. सब कुछ तुम्हें दे कर जा रहा हूं. पापा से कुछ कहने की हिम्मत नहीं है. माफी मांगने का भी अधिकार खो दिया है मैं ने. फिर कह रहा हूं कि सब लोग मुझे माफ कर देना. इसी के साथ मुझे भूल जाना. मुझे पता है कि यह कहना आसान है, लेकिन सचमुच में भूलना बहुत मुश्किल होगा. फिर भी समझ लेना, मैं तुम्हारे लिए मर चुका हूं.’’

आरती कुछ कहती, उस के पहले ही सुबोध ने अपनी बात कह कर फोन रख दिया था. आरती को पता था कि फोन कट चुका है. फिर भी वह रिसीवर कान से सटाए स्तब्ध खड़ी थी. यह विदाई मौत से भी बदतर थी. सुबोध बसाबसाया घर अचानक उजाड़ कर चला गया था. दादा और पोती हंसहंस कर बातें कर रहे थे. आरती को अच्छी तरह याद था कि उस दिन सुबोध के बारे में ससुर को बताते हुए वह बेहोश हो कर गिर गई थी. तब ससुर ने अपनी शक्तिशाली बांहों से उसे इस तरह संभाल लिया था, जैसे बेटे के घरसंसार का बोझ आसानी से अपने कंधों पर उठा लिया हो. ‘‘आरती, तुम ने अपना जूस नहीं पिया. आज लंच में क्या दे रही हो?’’ आरती के ससुर विश्वंभर प्रसाद ने पूछा.

‘‘पापा, आज आप की फेवरिट डिश पनीर टिक्का है.’’ आरती ने हंसते हुए कहा.

‘‘वाह! आरती बेटा, तुम सचमुच अन्नपूर्णा हो. तुम्हें पता है अरू बेटा, जब पांडवों के साथ द्रौपदी वनवास भोग रही थी, तभी एक दिन सब ने भोजन कर लिया तो…’’

‘‘बसबस दादाजी, यह बात बाद में. मेरे बर्थडे पर आप ने मुझे जो टेल्स औफ महाभारत पुस्तक गिफ्ट में दी थी, कल रात मैं उसे पढ़ रही थी, क्योंकि मैं ने आप को वचन दिया था. दादाजी उस में द्रौपदी की एक बात समझ में नहीं आई. उसी से मुझे उस पर गुस्सा भी आया.’’

‘‘द्रौपदी ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया था बेटा, जो तुम्हें उस पर गुस्सा गया?’’

‘‘अपने बेटे के हत्यारे को उन्होंने माफ कर दिया था. अब आप ही बताइए दादाजी, इतने बड़े अपराध को भी भला कोई माफ करता है?’’

‘‘अश्वत्थामा का सिर तो झुक गया था ?’’

‘‘व्हाट नानसैंस, जिंदा तो छोड़ दिया ? बेटे के हत्यारे को क्षमा, वह भी मां हो कर.’’ आराधना चिढ़ कर बोली.

‘‘बेटा, वह मां थी , इसलिए माफ कर दिया कि जिस तरह मैं बेटे के विरह में जी रही हूं, उस तरह का दुख किसी दूसरी मां को उठाना पड़े. बेटा, इस तरह एक मां ही सोच सकती है.’’ आराधना उठ कर बेसिन पर हाथ धोते हुए बोली, ‘‘महाभारत में बदला लेने की कितनी ही घटनाएं हैं. द्रौपदी ने भी तो किसी से बदला लेने की प्रतिज्ञा ली थी?’’  प्लेट ले कर रसोई में जाते हुए आरती ने कहा, ‘‘दुशासन से.’’

‘‘एग्जैक्टली, थैंक्स मौम. द्रौपदी ने प्रतिज्ञा ली थी कि अब वह अपने बाल दुशासन के खून से धोने के बाद ही बांधेगी. इस के बावजूद भी क्षमा कर दिया था. क्या बेटे की मौत की अपेक्षा लाज लुटने का दुख अधिक होता है? यह बात मेरे गले नहीं उतर रही दादाजी.’’ उसी समय विश्वंभर प्रसाद के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो वह फोन ले कर अंदर कमरे की ओर जाते हुए बोले, ‘‘बेटा, द्रौपदी अद्भुत औरत थी. भरी सभा में उस ने बड़ों से चीखचीख कर सवाल पूछे थे. हैलो प्लीजहोल्ड अप पर बेटा वह मां थी , मां से बढ़ कर इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है.’’

इतना कह कर विश्वंभर प्रसाद ने एक नजर आरती पर डाली, उस के बाद कमरे में चले गए. दोनों की नजरें मिलीं, आरती ने तुरंत मुंह फेर लिया. आराधना ने हंसते हुए कहा, ‘‘लो दादाजी ने पलभर में पूरी बात खत्म कर दी.’’ इस के बाद वह बड़बड़ाती हुई भागी, ‘‘बाप रे बाप, कालेज के लिए देर हो रही है.’’

आराधना और विश्वंभर चले गए. दोपहर को ड्राइवर कर लंच ले गया. आरती ने थोड़ा देर से खाना खाया और जा कर बैडरूम में टीवी चला कर लेट गई. थोड़ी देर टीवी देख कर उस ने जैसे ही आंखें बंद कीं, जिंदगी के एक के बाद एक दृश्य उभरने लगे. सांसें लंबीलंबी चलने लगीं. हांफते हुए वह उठ कर बैठ गई. घड़ी पर नजर गई. सवा 3 बज रहे थे. 16 साल पहले आज ही के दिन इसी पलंग पर वह फफकफफक कर रो रही थी. डाक्टर सिन्हा सामने बैठे थे. दूसरी ओर सिरहाने ससुर विश्वंभर प्रसाद खड़े थे. वह सिर पर हाथ फेरते हुए कह रहे थे, ‘‘आरती, तुम्हें आज जितना रोना हो रो लो.

आज के बाद फिर कभी उस कुल कलंक का नाम ले कर तुम्हें रोने नहीं दूंगा. डाक्टर साहब, मुझे पता नहीं चला कि यह सब कब से चल रहा था. पता नहीं वह कौन थी, जिस ने मेरा घर बरबाद कर दिया. उस ने तो लड़ने का भी संबंध नहीं रखा.’’ आरती टुकुरटुकुर ससुर का मुंह ताक रही थी. आखिर सुबोध के बिना वह कैसे जिएगी. अभी तक वह उस से लिपटी बेल की तरह जी रही थी. अब वह आधार के बिना जमीन पर बिखर गई थी. अब कौन सहारा देगा. बिना किसी वजह के पति उसे बेसहारा छोड़ कर चला गया था. पता नहीं कौन उन के बीच गई थी. वह कैसी औरत थी, जो उस के पति को अपने मोहपाश में बांध कर चली गई थी. छोटी सी बिटिया, पिता जैसे ससुर, फैला कारोबार, जीवन अब एक तपती दोपहर की तरह हो गया था. नंगे पैर चलना होगा, आराम छाया.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ससुर विश्वंभर प्रसाद ने सहजता से घरसंसार का बोझ अपने कंधों पर उठा लिया था. उस के जीवनरथ का जो पहिया टूटा था, उस की जगह वह खुद पहिया बन गए थे, जिस से आरती के जीवन का रथ फिर से चलने ही नहीं लगा था, बल्कि दौड़ पड़ा था. विश्वंभर प्रसाद सुबह जल्दी उठ कर नजदीक के क्रिकेट क्लब के मैदान में चले जाते, नियमित टेनिस खेलते. छोटीमोटी बीमारी को तो वह कुछ समझते ही नहीं थे. उन्होंने समय के घूमते चक्र को जैसे मजबूत हाथों से थाम लिया था. वह जवानी के जोश में गए थे. सुबोध था तो वह रिटायर हो कर सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे थे. औफिस जाते भी थे तो थोड़े समय के लिए. लेकिन अब पूरा कारोबार वही संभालने लगे थे.

उन की भागदौड़ को देखते हुए एक दिन आरती ने कहा, ‘‘पापा, आप इतनी मेहनत करते हैं, यह मुझे अच्छा नहीं लगता. हम 3 लोग ही तो हैं. इतना बड़ा घर और कारोबार बेच कर छोटा सा घर ले लेते हैं. बाकी रकम ब्याज पर उठा देते हैं. आप इस उम्र में…’’

‘‘इस उम्र में क्या आरतीदेखो ब्याज खाना मुझे पसंद नहीं है. आराधना बड़ी हो रही है. हमें उस का जीवन उल्लास से भर देना है. वह बूढ़े दादा और अकेली मां की छाया में दिन काटे, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

विश्वंभर ने बाल रंगवा लिए, पहनने के लिए लेटेस्ट कपड़े ले लिए. वह फिल्म्स, पिकनिक सभी जगह आराधना के साथ जाते, जिस से उसे बाप की कमी खले. सब कुछ ठीकठाक चलने लगा था कि अचानक एक दिन आरती के मांबाप पहुंचे. वे आरती और आराधना को ले जाने आए थे. उन का कहना था कि विधुर ससुर के साथ बिना पति के बहू के रहने पर लोग तरहतरह की बातें करते हैंलोग तो यहां तक कह रहे हैं कि ससुर और बहू का पहले से ही संबंध था, इसीलिए सुबोध घर छोड़ कर चला गया. दोनों ही परिवारों की बदनामी हो रही है, इसलिए आरती को उन के साथ जाना ही होगा. उन के खर्च के लिए रुपए उस के ससुर भेजते रहेंगे.

मांबाप की बातें सुन कर आरती स्तब्ध रह गई. उस पर जैसे आसमान टूट पड़ा हो. फिर ऐसा कुछ घटा, जिस के आघात से वह मूढ़ बन गई. आरती के मांबाप की बातें सुन कर विश्वंभर प्रसाद ने तुरंत कहा था, ‘‘मैं इस बारे में कुछ भी नहीं कह सकता, जो भी निर्णय करना है, आरती को करना है. अगर वह जाना चाहती है तो खुशी से अरू को ले कर जा सकती है.’’ बस, इतना कह कर अपराधी की तरह उन्होंने सिर झुका लिया था. आराधना उस समय उन्हीं की गोद में थी. नानानानी ने उसे लेने की बहुत कोशिश की थी. पर वह उन के पास नहीं गई थी. उस ने दोनों हाथों से कस कर दादाजी की गरदन पकड़ ली थी

आराधना के पास न आने से आरती की मां ने नाराज हो कर कहा था, ‘‘आंख खोल कर देख आरती, तेरा यह ससुर कितना चालाक है. आराधना को इस ने इस तरह वश में कर रखा है कि हमारे लाख जतन करने पर भी वह हमारे पास नहीं आ रही है. देखो न ऐसा व्यवहार कर रही है, जैसे हम इस के कुछ हैं ही नहीं.’’ इतना कह कर आरती की मां उठीं और विश्वंभर प्रसाद की गोद में बैठी आराधना को खींचने लगीं. आराधना चीखी. बेटे के घर छोड़ कर जाने पर भी न रोने वाले विश्वंभर प्रसाद की आंखें छलक आईं. ससुर की हालत देख कर आरती झटके से उठी और अपनी मां के दोनों हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मम्मी, मैं और आराधना यहीं पापा के पास ही रहेंगे.’’

‘‘कुछ पता है, तू ये क्या कह रही है. तू जो पाप कर रही है, ऊपर वाला तुझे कभी माफ नहीं करेगा और इस विश्वंभर के तो रोएंरोएं में कीड़े पड़ेंगे.’’

‘‘तुम भले मेरी मां हो, पर मैं अपने पिता जैसे ससुर का अपमान नहीं सह सकती, इसलिए अब आप लोग यहां से जाइए, यही हम सब के लिए अच्छा होगा.’’

‘‘अपने ही मांबाप का अपमान…’’ आरती के पिता गुस्से में बोले, ‘‘तुझे इस नरक में सड़ना है तो सड़, पर आराधना पर मैं कुसंस्कार नहीं पड़ने दूंगा. इसलिए इसे मैं अपने साथ ले जाऊंगा.’’

आराधना जोरजोर से रो रही थी. आरती के मांबाप उसे और विश्वंभर प्रसाद को कोस रहे थे. आरती दोनों कानों को हथेलियों से दबाए आंखें बंद किए बैठी थी. अंत में वे गुस्से में पैर पटकते हुए यह कह कर चले गए कि आज से उन का उस से कोई नातारिश्ता नहीं रहा. मांबाप के जाने के बाद आरती उठी. ससुर के आंसू भरे चेहरे को देखते हुए उन के सिर पर हाथ रखा और आराधना को गले लगाया. इस के बाद अंदर जा कर बालकनी में खड़ी हो गई. उतरती दोपहर की तेज किरणें धरती पर अपना कमाल दिखा रही थीं. गरमी से त्रस्त लोग सड़क पर तेजी से चल रहे थे.

विश्वंभर प्रसाद ने जो वचन दिया था, उसे निभाया. उजड़ चुके घर को फिर से संभाल कर सजाया. आराधना को फूल की तरह खिलने दिया. पौधे को खाद, पानी और हवा मिलती रहे, उस का सही पालनपोषण होता है. आराधना बड़ी होती गई. समझदार हो गई तो एक दिन विश्वंभर प्रसाद ने उसे सामने बैठा कर कहा, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारा दादा हूं, पर उस के पहले मित्र हूं. इसलिए मैं तुम से कुछ भी नहीं छिपाऊंगा. हम सभी के जीवन में क्याक्या घटा है, यह जानने का तुम्हें पूरा हक है.’’

आराधना दादाजी के सीने से लग कर बोली, ‘‘दादाजी, यू आर ग्रेट. आप न होते तो हमारा न जाने क्या होता.’’

‘‘अरे पगली, तुम मांबेटी न होती तो शायद मैं इस जिंदगी को इस तरह न जी पाता. इस जिंदगी पर सीनियर सिटिजन का ठप्पा लगाए निराशावादी जीवन जी रहा होता. तुम लोगों को मैं ने नहीं गढ़ा है, बल्कि तुम लोगों ने मुझे गढ़ा है. तुम्हारे कौशल का नटखट मेरी आंखों में बस गया है बेटा.’’

आरती ने तृप्ति की लंबी सांस ली. वह पिता जैसा प्यार देने वाले ससुर थे, उन्हीं के सहारे वह जी रही थी. अगर उन का सहारा होता तो मांबेटी मांबाप के यहां आश्रित बन कर बेचारी की तरह जी रही होतीं. इन्हीं की वजह से आज वे सिर ऊंचा कर के जी रही थीं वरना नदी के टापू की तरह कणकण बिखर गई होतीं. उगते सूरज की किरणों के बीच आराधना बालकनी में खड़ी हो कर कौफी पीती. विश्वंभर प्रसाद मौर्निंग वाक से वापस आते तो आराधना दरवाजा खोल कर उन के सीने से लग जाती, ‘‘गुड मौर्निंग दादू.’’

विश्वंभर प्रसाद दोनों हाथों से आराधना को गोद में उठा लेते. 80 साल के होने के बावजूद उन में अभी जवानों वाली ताकत थी. आराधना झटपट गोद से उतर कर सख्त लहजे में कहती, ‘‘दादादी, बिहैव योर एज.’’

अभी तो मैं जवान हूं. कालेज के दिनों में क्रिकेट खेलता था, मेरा हाइयेस्ट सिक्सर्स का रेकार्ड है.’’

ऐसा ही लगभग रोज होता था. सुबह जल्दी उठ कर विश्वंभर प्रसाद मौर्निंग वाक के लिए निकल जाते थे. पौने 7 बजे के फोन की घंटी बजती, जिस का मतलब था वह 10 मिनट के अंदर आने वाले हैं. आरती कहती, ‘‘अरू, जल्दी कर दादाजी के आने का समय हो गया है. जूस तैयार कर के टेबल पर प्लेट लगा.’’

आराधना जल्दी से कौफी खत्म कर के फ्रिज से संतरा, मौसमी या अनार निकाल कर जूस निकालने की तैयारी करने लगती. दूसरी ओर आरती किचन में नाश्ते की तैयारी करती. इस के बाद डोरबेल बजती तो आराधना दरवाजा खोल कर दादाजी के गले लग जाती. उस दिन किचन में नाश्ते की तैयारी कर रही आरती चिल्लाई, ‘‘आराधना जल्दी जूस निकाल कर मेज पर प्लेट लगा, 8 बज गए दादाजी आते ही होंगे. लेकिन आज उन का फोन तो आया ही नहीं.’’

आराधना जूस के गिलास मेज पर रख कर प्लेट लगाने लगी. अंदर से आरती ने कहा, ‘‘आज उठने में मुझे थोड़ी देर हो गई. लेकिन पापाजी की टाइमिंग परफेक्ट है, वह आते ही होंगे.’’ 8 से सवा 8 बज गए. न फोन आया न डोरबेल बजी. आराधना चिढ़ कर बोली, ‘‘मम्मी, दादाजी तो दिनप्रतिदिन बच्चे होते जा रहे हैं. खेलने लगते हैं तो समय का ध्यान ही नहीं रहता. आज आते हैं तो बताती हूं.’’

साढ़े 8 बज गए. दरवाजा खोले मांबेटी एकदूसरे का मुंह ताक रही थीं. मौर्निंग वाक करने वालों की तरह घड़ी का कांटा भाग रहा था. कांटा पौने 9 पर पहुंचा तो आराधना ने दादाजी के मोबाइल पर फोन किया. घंटी बजती रही, पर फोन नहीं उठा. आराधना के लिए यह हैरानी की बात थी. आरती ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कोई पुराना दोस्त मिल गया होगा फारेनवारेन का. बहुत दिनों बाद मिला होगा इसलिए बातों में लग गए होंगे.’’

‘‘आप भी क्या बात करती हैं मम्मी. एक घंटा होने को रहा है. नो वेदादाजी इतने लापरवाह नहीं हैं. कम से कम फोन तो उठाते या खुद फोन करते.’’ आराधना बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि उस का फोन बजा. नंबर देख कर बोली, ‘‘ये लो गया दादाजी का फोन.’’

फोन रिसीव कर के आराधना धमकाते हुए बोली, ‘‘यह क्याइतनी देरमेरे का क्या…’’

‘‘एक मिनट मैडम, यह फोन आप के फैमिली मेंबर का है?’’

‘‘जी, यह फोन मेरे ग्रांडफादर का है. आप के पास कैसे आया?’’

‘‘मैडम, मुझे तो यह सड़क पर पड़ा मिला है.’’

हैरानपरेशान आरती बगल में खड़ी थी. उस ने पूछा, ‘‘अरू, कौन बात कर रहा है? पापा का फोन उसे कहां मिला, वह कहां हैं?’’

‘‘फोन ढूंढ रहे होंगे. एक तो गंवा दिया.’’

दूसरी ओर से अधीरता से कहा गया, ‘‘हैलोहैलो मैडम.’’

‘‘जी सौरी भाईसाहब, वह क्या है कि मेरे ग्रांडफादर वाक पर गए थे. उन का फोन गिर गया होगा. आप कहां हैं? मैं लेने…’’

‘‘आप मेरी बात सुनेंगी या खुद ही बकबक करती रहेंगी.’’ फोन करने वाले ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘यह फोन आप के ग्रांडफादर का है , उन का एक्सीडेंट हो चुका है. मैं यह फोन पुलिस वाले को दे रहा हूं.’’

पुलिस वाले ने बताया कि यह फोन जिस का भी है, उन का एक्सीडेंट हो चुका है. आप जल्दी आ जाइए. 

फोन कटते ही आराधना ने मां का हाथ पकड़ा और गेट की ओर भागी, ‘‘मम्मी, जल्दी चलो, दादाजी का एक्सीडेंट हो गया है.’’ एक जगह भीड़ देख कर आराधना रुक गई. आंसू पोंछते हुए भर्राई आवाज में बोली, ‘‘प्लीज मम्मी, मैं वहां नहीं जा सकती. दादाजी को उस हालत में नहीं देख सकती.’’

‘‘कलेजा कड़ा कर अरू, रोने के लिए अभी समय पड़ा है. अब जो कुछ भी करना है, हम दोनों को ही करना है.’’ आराधना का हाथ थामे आरती भीड़ के बीच पहुंची तो सड़क पर खून से लथपथ पड़ी देह आराधना के प्यारे दादाजी विश्वंभर प्रसाद की थी. आराधना के मुंह से निकली चीख वहां खड़े लोगों के कलेजे को बेध गई. वह लाश पर गिरती, उस के पहले ही क्लब के विश्वंभर प्रसाद के साथियों ने उसे संभाल लिया. आरती बारबार बेहोश हुए जा रही थी. अगलबगल की इमारतें जैसे उस के ऊपर टूट पड़ी हों और वह उस के मलबे से निकलने की कोशिश कर रही हो, इस तरह हांफ रही थी. उस में यह पूछने की भी हिम्मत नहीं थी कि यह सब कैसे हुआ. वहीं थोड़ी दूरी पर 2 कारें आपस में टकराई खड़ी थीं. कांप रहे 2 लड़कों को इंसपेक्टर डांट रहा था.

बाद के दिन इस तरह धुंध भरे रहे, जैसे पहाड़ी इलाके में कोहरा छाया हो. आरती की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे. सूरज उगता, कब रक्तबिंदु बन कर डूब जाता, पता ही चलता. विश्वंभर प्रसाद का अंतिम संस्कार, शांतिपाठ सब हो गया था. चाहे बेटा समझो या पोती, जो कुछ भी थी, अरू ही थी. यह सब जो हुआ था, बाद में पता चला कि 17 साल के निनाद को कार चलाने का चस्का लग चुका था. मांबाप घर में नहीं थे, इसलिए मौका पा कर दोस्त के साथ कार ले कर निकल पड़ा था. तेज ड्राइविंग का मजा लेने के लिए वह तेज गति से कार चला रहा था. सुबह का समय था, सड़क खाली थी इसलिए वह लापरवाह भी था. अचानक सामने से कुत्ता आ गया. उस ने एकदम से ब्रेक लगाई, सड़क के किनारेकिनारे विश्वंभर प्रसाद आ रहे थे, निनाद स्टीयरिंग पर काबू नहीं रख पाया और…

यह जान कर आराधना का खून खौल उठा था. अपने मजे के लिए निनाद ने उस के दादाजी की जान ले ली थी. उस की आंखों के आगे से दादाजी की खून से लथपथ देह हट ही नहीं रही थी. उस की दुनिया जिस दादाजी के नाम के मजबूत स्तंभ पर टिकी थी, वह स्तंभ एकदम से टूट गया था, जिस से उस की हंसतीखेलती दुनिया उजड़ गई थी. आरती जानती थी कि अगर वह टूट गई तो आराधना को संभालना मुश्किल हो जाएगा. सुबोध जब उसे छोड़ कर गया था, उस की गृहस्थी के रथ का दूसरा पहिया ससुर विश्वंभर प्रसाद बन गए थे, जिस से जीवन की गाड़ी अच्छे से चल पड़ी थी. लेकिन उन के अचानक इस तरह चले जाने से अब आराधना के जीवन की डोर उस के हाथों में थी.

‘‘मम्मी, मैं प्रैस जा रही हूं. आप भी चलेंगी?’’

‘‘क्यों?’’ आरती ने पूछा.

‘‘मैं मीडिया के जरिए सब को यह बताना चाहती हूं कि एक गैरजिम्मेदार जिस लड़के की वजह से मेरा घर बरबाद हो गया, मेरे सिर का साया उठ गया, उसे थाने से ही जमानत मिल गई. इस का मतलब मेरे दादाजी के जीवन की कीमत कुछ नहीं थी. मैं उस के घर जाना चाहती हूं, उस के मांबाप से लड़ना चाहती हूं कि कैसा है उन का पुत्ररत्न? मैं उसे छोड़ूंगी नहीं, हाईकोर्ट जाऊंगी. आखिर मांबाप ने उसे कार दी ही क्यों?’’

‘‘कल मैं उस के घर गई थी अरू, उस की मां मिली थी.’’ आरती ने धीरे से कहा.

‘‘व्हाट?’’

‘‘तुम्हारी तरह मैं भी उस की मां से लड़ना चाहती थी, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘मैं ने उस की मां को देखा. एक ही बेटा है, जो जवानी की दहलीज पर खड़ा है. नादान और गैरजिम्मेदार है, लेकिन वही उन का सहारा है. उसी पर उन की सारी उम्मीदें टिकी हैं. सर्वस्व लुट जाने का दुख मैं जानती हूं बेटाइस समय उस के मांबाप कितना दुखी, परेशान और डरे हुए हैं, यह मैं देख आई हूं. ऐसे में आग में घी डालने वाले शब्दों से उन के मन को और दुखी करना या उन्हें परेशान करने से क्या होगा अरू. मैं ने उन्हें माफ कर दिया बेटा. निनाद को भी माफ कर दिया.’’

 ‘‘मेरे दादाजी के हत्यारे को आप ने माफ कर दिया मम्मी?’’

‘‘क्या करूं बेटा, मां हूं .’’ कह कर आरती अंदर चली गई. आराधना को एक बार फिर महाभारत की द्रौपदी की याद गई.

   

    

कैटामाइन इंजेक्शन लगाकर की आईबी अधिकारी पति की हत्या

जिस तरह आईबी औफिसर चेतन प्रकाश की हत्या की गई थी, उस से हत्यारों को लगा था कि वे पकड़े नहीं जाएंगे. लेकिन पुलिस ने जब परत दर परत केस को खोलना शुरू किया तो चेतन प्रकाश की पत्नी अनीता और उस का प्रेमी प्रवीण दोनों बेनकाब हो गए…    

भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो यानी आईबी के सहायक तकनीकी सूचना अधिकारी चेतन प्रकाश गलाना बीती 14 फरवरी को 2 दिन की छुट्टी पर दिल्ली से अपने घर कोटा जिले की रामगंज मंडी आए थे. दिल्ली में वह अकेले रहते थे. उन के मातापिता रामगंज मंडी में और पत्नी अनीता 2 छोटे बेटों के साथ झालावाड़ में रहती थी. चेतन आमतौर पर महीने में 1-2 बार छुट्टी पर घर जाते थे. जब भी वह घर आते तो रामगंज मंडी में रहने वाले मातापिता से मिलने जरूर जाते थे. उस दिन भी वह रामगंज मंडी में अपने घर वालों से मिल कर शाम 6 बजे की ट्रेन से झालावाड़ के लिए रवाना हुए थे. उन्हें करीब एक घंटे में झालावाड़ पहुंच जाना चाहिए था. जब रात 8 बजे तक चेतन घर नहीं पहुंचे तो उन की पत्नी अनीता ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के चेतन के बारे में बताया.

अनीता के कहने पर झालावाड़ की गायत्री कालोनी में रहने वाले रिश्तेदार मनमोहन मीणा ने चेतन की तलाश शुरू की. इसी खोजबीन में रात करीब साढ़े 8 बजे चेतन झालरापाटन-भवानी मंडी मार्ग पर रेलवे की रलायता पुलिया के पास बेहोश पड़े मिले. मनमोहन मीणा ने अनीता को चेतन के अचेत पड़े होने की सूचना दी. इस के बाद रिश्तेदार बेहोश चेतन को एआरजी अस्पताल ले गए. जांच के बाद डाक्टरों ने चेतन को मृत घोषित कर दिया.

संदिग्ध मौत का मामला होने की वजह से अस्पताल से पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर शव का निरीक्षण किया, लेकिन शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं मिला. पुलिस ने रलायता पुलिया के पास उस जगह का भी मौका मुआयना किया, जहां चेतन अचेत पड़े मिले थे. लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से पता चलता कि चेतन की मौत कैसे हुई. रिश्तेदारों की सूचना पर रामगंज मंडी से चेतन के मातापिता और अन्य घर वाले भी झालावाड़ गए. पिता को था बेटे की हत्या का संदेह चेतन के पिता महादेव मीणा ने झालावाड़ के थाना सदर में बेटे की संदिग्ध मौत का मामला दर्ज करा दिया. पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 में मामला दर्ज कर जांच शुरू की. पुलिस ने 15 फरवरी को चेतन के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद चेतन का विसरा जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया.

खुफिया अधिकारी की मौत का मामला होने के कारण पुलिस हर एंगल से जांच कर रही थी. इन में 3 मुख्य बिंदु थे, पहला हार्ट अटैक, दूसरा आत्महत्या और तीसरा हत्या. चेतन के शरीर पर चोट या हाथापाई के कोई निशान नहीं मिले थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया, जिस से मौत का रहस्य खुलता. अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि चेतन जब ट्रेन से झालावाड़ रहे थे तो वह रलायता पुलिया कैसे पहुंचे और उन की मौत कैसे हुई? पुलिस कई दिनों तक इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करती रही, लेकिन कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं मिली, जिस से चेतन की मौत के कारणों का पता चल पाता.

इस बीच, चेतन के पिता महादेव मीणा ने अदालत में इस्तगासा दायर कर दिया. इस्तगासे में कहा गया कि चेतन की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई है. इस पर अदालत ने पुलिस को चेतन की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. तब तक चेतन की हत्या को 3 महीने हो चुके थे. अप्रैल के दूसरे सप्ताह में झालावाड़ के सदर थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईबी औफिसर चेतन प्रकाश गलाना की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. एसपी आनंद शर्मा ने चेतन की हत्या के मामले का खुलासा करने के लिए एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में सदर थानाप्रभारी संजय मीणा, एएसआई अजीत मोगा, हैडकांस्टेबल मदन गुर्जर, कुंदर राठौड़, महेंद्र सिंह, हेमंत शर्मा और कुछ कांस्टेबलों की टीम गठित की.

पत्नी को किया गिरफ्तार पुलिस की इस टीम ने चेतन प्रकाश की दिनचर्या के बारे में पता लगाया. इस के बाद उन के दोस्तों, परिचितों और दुश्मनी रखने वालों को चिह्नित कर के उन से पूछताछ की. इंटेलीजेंस ब्यूरो के दिल्ली कार्यालय में चेतन प्रकाश के साथी कर्मचारियों से भी पूछताछ की गई. पुलिस टीम ने रामगंज मंडी, झालावाड़ रेलवे स्टेशन और रलायता पुलिया के आसपास घटनास्थल का कई बार दौरा कर के तथ्यों का पता लगाने का प्रयास किया. साइबर टीम ने कई जगह के मोबाइल टावरों का रिकौर्ड निकलवाया. साथ ही चेतन के घरपरिवार की पूरी जानकारी प्राप्त कर के घर वालों से भी पूछताछ की गई.

जांचपड़ताल में यह बात सामने आई कि चेतन के अपनी पत्नी अनीता के साथ संबंध अच्छे नहीं थे. इस के बाद पुलिस ने तकनीकी जांच और मुखबिरों की मदद से चेतन की मौत की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं. लंबी चली जांचपड़ताल के बाद 25 जून को पुलिस ने आईबी औफिसर चेतन प्रकाश की हत्या के मामले में उन की पत्नी अनीता को गिरफ्तार कर लिया. अनीता से की गई पूछताछ में चेतन की हत्या की पूरी तसवीर सामने गई. जांच में पता चला कि चेतन की हत्या पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के साथ मिल कर सुनियोजित तरीके से की थी. चेतन की पत्नी अनीता भी पति की हत्या में शामिल थी. कांस्टेबल प्रवीण के चेतन की पत्नी अनीता से अवैध संबंध थे. इन संबंधों को ले कर चेतन का अपनी पत्नी अनीता से कई बार विवाद भी हुआ था. 

चेतन को शक था कि छोटा बेटा उस का नहीं, बल्कि प्रवीण का है. चेतन ने छोटे बेटे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता और प्रवीण को अपने अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था. इसी वजह से उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया. कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के सहयोग से चेतन को मौत के घाट उतारने के लिए 5 प्रयास किए थे. 3 बार की असफलता के बाद चौथी बार चेतन को दिल्ली में उन के घर पर मारने की योजना बनाई गई, लेकिन उस में भी कामयाबी नहीं मिली. अंतत: 5वीं बार वे चेतन को मौत की नींद सुलाने में कामयाब हो गए.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ पहले झालावाड़ पुलिस की स्पैशल टीम में तैनात था. बाद में वह प्रतिनियुक्ति पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी में चला गया. एसीबी में भी वह झालावाड़ में ही तैनात रहा. पुलिस कांस्टेबल होने के कारण प्रवीण को आपराधिक पैंतरों की अच्छी जानकारी थी कि हत्या के मामले को साधारण मौत में कैसे दर्शाया जाए, वह अच्छी तरह जानता था. इस के लिए उस ने चेतन का अपहरण किया और उसे कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुला दिया. कैटामाइन इंजेक्शन प्रतिबंधित नशीली दवा है. यह बाजार में खुले तौर पर नहीं मिलती. कैटामाइन इंजेक्शन अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में ही काम आता है. खास बात यह कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस इंजेक्शन के बारे में पता नहीं चल पाता.

पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद चेतन की हत्या के मामले में उस की पत्नी अनीता के साथसाथ अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों से की गई पूछताछ और पुलिस की जांच में चेतन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह है. झालावाड़ में मंगलपुरा रोड पर रहने वाले रमेशचंद का बेटा प्रवीण राठौड़ जब पढ़ता था, तभी से अनीता उसे जानती थीबचपन के प्यार ने हिलोरें मारे तो बन गई हत्या की योजनाअनीता भी झालावाड़ में रहती थी. पढ़नेलिखने की उम्र में दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. सन 2008 में अनीता का चयन अध्यापिका के पद पर हो गया. उसी साल प्रवीण राठौड़ की नौकरी भी राजस्थान पुलिस में लग गई.

सरकारी नौकरी मिल जाने पर प्रवीण का बचपन का प्यार हिलोरें मारने लगा. उस ने अनीता के सामने अपने प्यार का इजहार करते हुए शादी का प्रस्ताव रखा, लेकिन परिस्थितियां ऐसी रहीं कि घर वालों की रजामंदी मिलने से दोनों की शादी नहीं हो सकी. अनीता से शादी हो पाने से प्रवीण की हसरत मन में ही रह गई. अपनी अधूरी हसरतों को मन में लिए प्रवीण पुलिस की नौकरी करता रहा और अनीता सरकारी स्कूल में शिक्षिका की. बाद में जनवरी 2011 में अनीता की शादी चेतन प्रकाश गलाना से हो गई. अनीता सुंदर भी थी और पढ़ीलिखी भी. वह झालावाड़ के पास असनावर गांव के स्कूल में नियुक्त थी. परेशानी यह थी कि चेतन की नियुक्ति दिल्ली में थी और अनीता की घर के पास ही. इसलिए दोनों को अलगअलग रहना पड़ रहा था. उन के बीच झालावाड़ से दिल्ली की लंबी दूरी थी

चेतन छुट्टी मिलने पर 15-20 दिन बाद 1-2 दिन के लिए घर आते थे, तभी वह अनीता से मिल पाते थे. नईनई शादी और इतने दिनों का अंतराल दोनों को बहुत खलता था. लेकिन दोनों की ही अपनीअपनी नौकरी की मजबूरियां थीं. उन का गृहस्थ जीवन ठीकठाक चल रहा था. शादी के कुछ महीने बाद ही अनीता के पैर भारी हो गए. चेतन को पता चला तो वह बहुत खुश हुए. सन 2012 में अनीता ने बेटे को जन्म दिया. पहली संतान के रूप में बेटा पा कर चेतन का पूरा परिवार खुश था. बेटे का नाम क्षितिज रखा गया. क्षितिज समय के साथ बड़ा होने लगा.

इस बीच 2011 में ही प्रवीण राठौड़ की भी शादी हो गई. प्रवीण की पत्नी भी पढ़ीलिखी थी. दिसंबर 2014 में प्रवीण की पत्नी का भी सरकारी अध्यापिका के पद पर चयन हो गया. उस की नियुक्ति भी असनावर के उसी स्कूल में हुई, जहां अनीता नियुक्त थी. प्रवीण कई बार पत्नी को स्कूल छोड़ने या स्कूल से वापस लाने चला जाता था. उसी स्कूल में अनीता भी नियुक्त थी. फलस्वरूप अनीता और प्रवीण की फिर से मुलाकातें होने लगीं. इन मुलाकातों का असर यह हुआ कि उन का बचपन और जवानी का प्यार फिर से अपने पंख फैलाने लगा. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के निकट आ गए.

अनीता को डर था कि उसे प्रवीण के साथ देख कर कहीं उस की पत्नी और दूसरे लोग गलत न सोचने लगें, इसलिए अगस्त 2015 में रक्षाबंधन पर अनीता ने प्रवीण को राखी बांधी और पति चेतन प्रकाश से उस का परिचय धर्मभाई के रूप में कराया. मिलने के लिए बनाया नया आशियाना प्रवीण की पत्नी और अनीता के एक ही स्कूल में अध्यापिका के पद पर तैनात होने से चेतन को किसी तरह का कोई संदेह नहीं हुआ. वह पहले की तरह ही अनीता पर भरोसा करते रहे. अपनी नौकरी की वजह से चेतन झालावाड़ में नहीं रह सकते थे. प्रवीण ने चेतन की इस मजबूरी का फायदा उठाया. 

अनीता और प्रवीण की मुलाकातें गुल खिलाने लगीं. उन दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. जनवरी, 2017 के बाद वे लगभग रोजाना ही एकदूसरे से मिलने लगे. उस समय अनीता गायत्री कालोनी, झालावाड़ स्थित अपने मातापिता के घर रह रही थी. जून, 2017 में प्रवीण ने अनीता को झालावाड़ के हाउसिंग बोर्ड में 35 लाख रुपए का नया मकान दिलवा दिया. मकान के पैसे अनीता ने दिए. चर्चा है कि प्रवीण ने अनीता को मकान दिलवाने में दलाली के 10 लाख रुपए खुद रख लिए थे. अनीता हाउसिंग बोर्ड के नए मकान में रहने लगी. प्रवीण इस मकान में बेरोकटोक आनेजाने लगा. वहां उसे रोकने वाला कोई नहीं था. बेटा 5-साढ़े 5 साल का था. चेतन प्रकाश महीने में एकदो बार ही आते थे

कभीकभार चेतन के मातापिता भी बहू के पास जाते थे. वे भी एकदो दिन रुक कर चले जाते थे. प्रवीण ने अनीता से बातें करने के लिए उसे एक मोबाइल और सिम अलग से दिलवा रखी थी, प्रवीण से वह इसी फोन पर बात करती थी. इसी दौरान अनीता गर्भवती हो गई. अकेली रह रही बहू के घर में प्रवीण का बेरोकटोक आनाजाना चेतन के मातापिता को अच्छा नहीं लगता था. उन्होंने प्रवीण को साफ कह दिया कि वह तभी आया करे, जब चेतन घर में हो. उन्होंने यह बात चेतन को भी बताई. चेतन ने भी अनीता को प्रवीण के घर आनेजाने और उस से रिश्ता रखने के लिए मना कर दिया. इस बात को ले कर चेतन और अनीता के बीच झगड़ा होने लगा.

अक्तूबर 2017 में अनीता ने एक निजी अस्पताल में बेटे को जन्म दिया. इस दौरान प्रवीण भी अस्पताल में मौजूद रहा. चेतन और उस के घर वालों को ज्यादा शक तब हुआ, जब प्रवीण ने नवजात के नैपकिन बदले. इस पर चेतन के घर वालों ने प्रवीण को फिर टोका, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. प्रसव के बाद अनीता अपने घर गई. लेकिन प्रवीण को ले कर उन के घर में आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे. रोजाना की कलह के कारण अनीता ने 7 नवंबर, 2017 को आत्महत्या करने का प्रयास किया, लेकिन उसे बचा लिया गया. अनीता के घर में होने वाली कलह को ले कर चेतन प्रवीण की आंखों में खटकने लगे. फलस्वरूप उस ने चेतन को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. प्रवीण की दोस्ती वाहनों की खरीदफरोख्त करने और आरटीओ एजेंट का काम करने वाले शाहरुख से थी. शाहरुख झालावाड़ के तोपखाना मोहल्ले का रहने वाला था

प्रवीण ने दिसंबर 2017 में शाहरुख को बताया कि उस की रिश्ते की बहन को उस का पति मारतापीटता है. वह दिल्ली में कंप्यूटर पर काम करता है, उस की हत्या करनी है. इस के लिए प्रवीण ने शाहरुख को 3 लाख रुपए की सुपारी दी. प्रवीण ने शाहरुख को चेतन की शक्ल भी दिखा दी. शाहरुख ने चेतन की हत्या की जिम्मेदारी ले कर इस काम के लिए अपने कुछ साथियों को शामिल कर लिया. 4 बार हत्या के प्रयास रहे विफल प्रवीण और शाहरुख ने चेतन की हत्या के प्रयास शुरू कर दिए. प्रवीण ने अनीता के जरिए पता कर लिया था कि 25 दिसंबर, 2017 को चेतन छुट्टी बिता कर ट्रेन से दिल्ली जाएंगे. यह जान कर हत्यारों ने ट्रेन में चेतन का पीछा किया, लेकिन सर्दी का मौसम होने के कारण चेतन ने मुंह पर मफलर लपेट रखा था, जिस से वे उन्हें पहचान नहीं पाए और दिल्ली जा कर वापस लौट आए

इस के बाद 4 जनवरी, 2018 को चेतन छुट्टी ले कर झालावाड़ आए तो उन्हें ट्रक से कुचल कर मारने की योजना बनाई गई. इस के लिए बदमाशों ने झालावाड़ा के नला मोहल्ला निवासी ट्रक चालक शाकिर को 20 हजार रुपए दिए थे. योजना के मुताबिक शाकिर को प्रवीण राठौड़ द्वारा उपलब्ध कराए गए ट्रक से चेतन की स्कूटी को रामगंज मंडी से झालावाड़ आते समय रास्ते में टक्कर मारनी थी, लेकिन उस दिन ट्रक पीछे ही रह गया जबकि स्कूटी आगे निकल गई. यह प्रयास विफल होने पर तय किया गया कि 5 जनवरी को चेतन जब झालावाड़ से स्कूटी से रामगंज मंडी जाएंगे, तब उन्हें ट्रक से टक्कर मार कर कुचल दिया जाएगा. 

उस दिन शाकिर ने पीछा कर के झरनिया घाटी के पास ट्रक से स्कूटी को टक्कर मार कर चेतन को कुचलने का प्रयास किया, लेकिन इस हादसे में चेतन गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद बच गए, अलबत्ता उन की स्कूटी जरूर क्षतिग्रस्त हो गई थी. 3 प्रयास विफल होने पर चेतन को दिल्ली में उन के घर में मारने की योजना बनाई गई. इस योजना के तहत झालावाड़ से आए बदमाश दिल्ली की निरंकारी कालोनी गुरु तेगबहादुर नगर स्थित चेतन के मकान पर पहुंच गए, लेकिन वहां पर कैमरे लगे होने के कारण वे वारदात को अंजाम दिए बगैर झालावाड़ वापस लौट आए.

प्रवीण को अनीता से चेतन प्रकाश के आने और जाने की सारी जानकारियां मिलती रहती थीं. अंतिम बार भी प्रवीण को पता चल गया था कि चेतन 14 फरवरी की शाम को ट्रेन से रामगंज मंडी से झालावाड़ आएंगे. उस दिन पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों शाहरुख, फरहान और एक नाबालिग किशोर के साथ मिल कर योजना बना ली. योजना के अनुसार चेतन का झालावाड़ रेलवे स्टेशन से अपहरण करना था, फिर उन्हें कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुलानी थी.

योजना को ऐसे दिया अंजाम योजना के तहत नाबालिग किशोर शाहरुख को बाइक से सुकेत छोड़ आया. सुकेत से शाहरुख रामगंज मंडी पहुंचा और ट्रेन से ही चेतन का पीछा करने लगा. ट्रेन के पहुंचने से कुछ समय पहले ही उस ने मोबाइल पर प्रवीण को झालावाड़ पहुंचने के बारे में बता दिया था. इस पर प्रवीण अपनी कार में फरहान और नाबालिग किशोर को साथ ले कर रेलवे स्टेशन पहुंच गया. स्टेशन पर उन्हें शाहरुख मिल गयाचेतन स्टेशन से पैदल घर जा रहे थे. हाउसिंग बोर्ड के सुनसान रास्ते में चेतन को रोक कर प्रवीण ने अपने तीनों साथियों की मदद से जबरन कार की पीछे वाली सीट पर बैठा लिया. वे लोग चेतन को कार से आकाशवाणी के पीछे की तरफ हल्दीघाटी रोड पर ले गए. वहां प्रवीण और चेतन की अनीता को ले कर नोकझोंक हुई.

प्रवीण ने कहा कि तुम अपनी प्रौपर्टी अनीता के नाम क्यों नहीं करते. उस ने यह भी कहा कि तुम यह क्यों कहते हो कि छोटा बेटा मेरा है. इस पर चेतन ने कहा कि छोटा लड़का तो तुम्हारा ही है. चेतन के यह कहते ही प्रवीण ने अपने साथियों को इशारा किया. उन्होंने चेतन के दोनों हाथ पकड़ लिएप्रवीण ने जेब से कैटामाइन के इंजेक्शन निकाले और सिरिंज में हैवी डोज भर कर चेतन की दोनों जांघों में लगा दी. इस के बाद उस ने चेतन की नाक भी दबा दी. इंजेक्शन लगने और नाक दबाए जाने से कुछ ही मिनटों में उन के प्राण निकल गए.

चेतन को मौत की नींद सुलाने के बाद प्रवीण ने उन की जेब से मोबाइल निकाला और पुलिस को गुमराह करने के लिए अनीता को मैसेज किया कि वह औटोरिक्शा से पाटन हो कर घर आ रहे हैं. इस के बाद प्रवीण और उस के साथी चेतन का शव रलायता पुलिया के पास फेंक कर वापस चले गए. रलायता रेलवे पुलिया के पास चेतन के अचेत पड़े मिलने की कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं. एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल की तो सब से पहले पुलिस शाहरुख तक पहुंची. पुलिस ने उसे 20 जून को गिरफ्तार कर लिया. शाहरुख से पूछताछ में चेतन की हत्या का राज खुल गया. दूसरे ही दिन 21 जून को पुलिस ने उस ट्रक चालक शाकिर को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस ने 5 जनवरी को चेतन को ट्रक से कुचलने का प्रयास किया था.

22 जून को पुलिस ने एक निजी अस्पताल के औपरेशन थिएटर इंचार्ज संतोष निर्मल को गिरफ्तार कर लिया. वह पहले अस्थाई रूप से राजकीय हीराकुंवर महिला अस्पताल और एक अन्य निजी अस्पताल में मेल नर्स का काम कर चुका था. उसे औपरेशन प्रक्रिया में काम आने वाली निश्चेतक दवाओं की अच्छी जानकारी थी. कांस्टेबल प्रवीण के साथ जिम जाने और क्रिकेट खेलने की वजह से दोनों में दोस्ती थी. प्रवीण ने पिछले साल 31 दिसंबर को रेव पार्टी में नशा करने के लिए संतोष निर्मल से कैटामाइन इंजेक्शन मांगा था. संतोष ने दोस्ती के नाम पर उसे अस्पताल के औपरेशन थिएटर के स्टोर से चोरी कर के 500 मिलीग्राम के 2 इंजेक्शन दे दिए थे. ये इंजेक्शन प्रवीण ने संभाल कर रखे और चेतन की हत्या के लिए इन का उपयोग किया. इस इंजेक्शन के सबूत फोरैंसिक जांच में भी नहीं मिलते हैं.

परत दर परत खुलते गए राज इस के बाद पुलिस ने 24 जून को चेतन की हत्या में शामिल एक नाबालिग किशोर को पकड़ा. उस से वारदात में इस्तेमाल की गई बाइक और मोबाइल बरामद किए गए. यह किशोर शाहरुख की आरटीओ एजेंट की दुकान पर काम करता था. चालाक कांस्टेबल प्रवीण ने वारदात के दिन खुद का मोबाइल साथ नहीं रखा था. उस ने शाहरुख से बात करने के लिए उस किशोर के मोबाइल का उपयोग किया था. यह किशोर चेतन की हत्या की योजना में 25 दिसंबर से 14 फरवरी तक शामिल रहा. शाहरुख पहले इस किशोर को 50 रुपए रोजाना देता था, लेकिन चेतन की हत्या के बाद उसे डेढ़ सौ रुपए रोजाना देने लगा था. पुलिस ने इस किशोर को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर के बाल सुधार गृह भेज दिया.

चेतन की हत्या में पत्नी अनीता की भूमिका सामने आने पर पुलिस ने 25 जून को उसे भी गिरफ्तार कर लिया. चेतन को दिल्ली से कब किस ट्रेन से आनाजाना है और दिल्ली में उस का पताठिकाना कहां है, प्रवीण को यह जानकारी अनीता ने ही दी थी. झालावाड़ से रामगंज मंडी आनेजाने की जानकारी भी अनीता ने ही प्रवीण को दी थीपुलिस ने अनीता के मोबाइल की जांच की तो उस में चेतन और अनीता के तनावपूर्ण दांपत्य जीवन के बारे में कई वाट्सऐप मैसेज मिले. प्रवीण के कहने पर अनीता ने मोबाइल फौरमेट करवा कर पूरा डेटा नष्ट कर दिया था. चेतन की हत्या के बाद प्रवीण ने अनीता को दी हुई सिम भी वापस ले ली थी.

अनीता से पूछताछ में पता चला कि प्रवीण उस के प्यार में इतना डूब गया था कि चेतन से बेइंतहा नफरत करने लगा था. वह नहीं चाहता था कि अनीता किसी और से बात करे या संबंध रखे. उस ने अनीता से कह कर उस के पति के साथ फेसबुक पर पोस्ट किए हुए फोटो भी हटवा दिए थे. वह अनीता से कहता था कि अगर उस ने उस का साथ नहीं दिया तो वह आत्महत्या कर लेगा. ऐसे में अनीता सहीगलत का फैसला नहीं कर पाती थी और प्रवीण के कहे मुताबिक उस का साथ देती थी. चेतन की हत्या के बाद भी अनीता व प्रवीण के संबंध पहले जैसे ही बने रहे. प्रवीण उसे कहता रहा कि पोस्टमार्टम और विसरा की जांच में कुछ नहीं आएगा. इस दौरान दोनों ने कुछ कानूनविदों से भी मशविरा किया था.

अनीता ने पुलिस को बताया कि उस के पति चेतन को छोटे बेटे रिवान पर शक था कि वह उस की पैदाइश नहीं है. इस बात पर घर में कई बार लड़ाई हुई. इस पर चेतन व उस के परिजनों ने बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता व प्रवीण के अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था, इसलिए उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया. पुलिस ने 28 जून को झालावाड़ निवासी फरहान को भी गिरफ्तार कर लिया. वह वारदात के बाद से फरार चल रहा था. फरहान भी चेतन की हत्या के मामले में प्रवीण व शाहरुख के साथ था. बहुत कुछ खोया अनीता और प्रवीण ने जांच में प्रवीण के अलावा झालावाड़ के 2 अन्य पुलिस कांस्टेबलों पर भी शक की सुई घूमती रही. ये दोनों प्रवीण के करीबी थे और चेतन की हत्या में इन की भूमिका संदिग्ध थी.

इस पर एसपी आनंद शर्मा ने दोनों कांस्टेबलों रवि दुबे और आवेश मोहम्मद को 28 जून को निलंबित कर दिया. ये दोनों कांस्टेबल पुलिस की गोपनीय शाखा में कार्यरत थे. प्रवीण भी एसीबी में प्रतिनियुक्ति से पहले इसी शाखा में रहा था, इसलिए दोनों उस के करीबी थे. इन दोनों कांस्टेबलों के खिलाफ जांच की जा रही है. कथा लिखे जाने तक पुलिस चेतन की हत्या के मुख्य सूत्रधार कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ की तलाश में जुटी थी. वह 14 जून को सरकारी काम से अजमेर जाने की बात कह कर फरार हो गया था. हत्या के मामले में आरोपी होने पर एसीबी ने उस की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर दी. एसपी ने एक जुलाई को उसे निलंबित कर दिया था. पुलिस ने सरकारी अध्यापिका अनीता के दुराचरण की रिपोर्ट शिक्षा विभाग को भेज कर विभागीय काररवाई के लिए भी लिख दिया है. चेतन की हत्या में गिरफ्तार आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में थे.

यह अनीता का त्रियाचरित्र ही था कि उस ने अपनी हंसतीखेलती दुनिया अपने ही हाथों से उजाड़ ली. चेतन की मौत से महादेव के बुढ़ापे की लाठी टूट गई. चेतन प्रकाश के 6 साल के बड़े बेटे क्षितिज के सिर से पिता का साया उठ गया. 8 महीने का छोटा बेटा रिवान भी मां के साथ जेल में हैविद्यार्थियों को अच्छा नागरिक बनने की सीख देने वाली अनीता के हाथ पति के खून से रंगे होते तो वह जल्दी ही स्कूल की प्रिंसिपल की कुरसी पर बैठी होती, क्योंकि उस की पदोन्नति हो गई थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित