प्रेमिका का छलिया प्रेमी से इंतकाम – भाग 3

पुलिस पूछताछ में प्यार, धोखा और प्रतिशोध की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

बिहार के सीवान जिले में एक छोटा सा गांव है-बड़वा खुर्द. इसी गांव में भृगुनाथ सैनी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी भूरी के अलावा एक बेटा और 2 बेटियां मनसा और लालसा थीं. भृगुनाथ सीधासादा किसान था. मेहनत कर वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

भाईबहनों में लालसा सब से छोटी थी. घर के लोग उसे लाली कह कर पुकारते थे. लालसा उर्फ लाली बेहद खूबसूरत थी. उस की सुंदरता सब की निगाहों की केंद्र बन गई थी. गांव की जिस गली से वह गुजरती, लोग उसे देखते रह जाते. गांव के कई लड़के उस की सुंदरता का बखान करते थे. लेकिन लालसा उन को पास न फटकने देती थी.

लालसा उर्फ लाली पढ़ने में तेज थी. उस ने बसंतपुर के कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी और इंटरमीडिएट की पढ़ाई में जुट गई थी. लालसा को मोबाइल का शौक था. वह फेसबुक व इंस्टाग्राम पर अपने वीडियो बना कर डालती थी, जिसे युवक खूब लाइक करते थे. लालसा दूसरों के वीडियो भी देखती और लाइक भी करती थी.

लालसा और देशदीपक की दोस्ती एकदूसरे के वीडियो देख कर ही हुई. दरअसल, देशदीपक को भी फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपने वीडियो डालने का शौक था. दोनों के बीच दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया.

इस के बाद उन की मोबाइल फोन पर बात होने लगी. कभी लालसा देशदीपक को फोन करती तो कभी देशदीपक लालसा को. उन के बीच अब रसभरी बातें भी होने लगी थीं.

प्यारमोहब्बत का दायरा बढ़ा तो दोनों फेस टू फेस मिलने को लालायित हो उठे. देशदीपक ने एक रोज बातचीत के दौरान अपने पास बुलाने का आमंत्रण लालसा को दिया तो वह राजी हो गई.

देशदीपक ने तब उसे बताया कि मैं बिल्हौर (कानपुर) थाने में सिपाही पद पर तैनात हूं और कस्बा के ब्रह्मनगर मोहल्ले में रमेशचंद्र प्रजापति के मकान में किराए पर रहता हूं. तुम कानपुर आ जाओ, मैं तुम्हें कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर मिल जाऊंगा.

‘‘लेकिन मैं तो सीवान (बिहार) की रहने वाली हूं. बसंतपुर थाने का बड़वा खुर्द मेरा गांव है. हम दोनों के बीच दूरी बहुत है. इतनी दूर आना संभव कैसे होगा?’’ लालसा ने मजबूरी जाहिर की.

‘‘जब दिल की दूरियां मिट गईं तो जमीनी दूरी कोई मायने नहीं रखती. तुम ट्रेन से कानपुर आ जाओ. मैं तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं,’’ देशदीपक ने लालसा को समझाया.

इस बातचीत के लगभग एक सप्ताह बाद एक रोज लालसा उर्फ लाली कानपुर आ गई. उस ने फोन पर आने की जानकारी दी तो देशदीपक मोटरसाइकिल से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गया.

लालसा प्रथम श्रेणी वेटिंग रूम में उस का इंतजार कर रही थी. देशदीपक वेटिंगरूम पहुंचा और खूबसूरत लालसा को देखा तो पहली ही नजर में वह उस के दिल में रचबस गई. लालसा भी हैंडसम देशदीपक को देख कर खुश हुई.

उस रोज देशदीपक लालसा को अपने किराए वाले रूम में ले गया. वहां दोनों के बीच खूब प्यारभरी बातें हुईं. देशदीपक ने लालसा से शादी करने का वादा किया और कभी न साथ छोड़ने की कसम खाई. रात में दोनों बंद कमरे में एक ही चारपाई पर लेटे तो वे अपने पर काबू न रख सके और दोनों के बीच शारीरिक रिश्ते बन गए. लालसा 3-4 दिन देशदीपक के साथ रही और दिनरात मस्ती में डूबी रही.

अवैध रिश्ता एक बार कायम हुआ तो समय के साथ बढ़ता ही गया. देशदीपक जब भी लालसा को बुलाता, वह दौड़ी चली आती. शारीरिक मिलन के दौरान लालसा शादी करने की बात कहती तो देशदीपक कोई न कोई बहाना बना देता.

इसी बीच देशदीपक ने मिलन के दौरान की अश्लील फिल्म मोबाइल फोन द्वारा बना ली, जिस की जानकारी लालसा को नहीं हुई. लालसा महीने में एक बार जरूर उस से मिलने बिल्हौर आती थी. फिर 2-3 दिन मौजमस्ती कर चली जाती थी.

लालसा को आनेजाने का खर्चा देशदीपक ही देता था. वह प्रतियोगी परीक्षा का बहाना बना कर घर से निकलती थी. जिस से घरवालों को शक नहीं होता था.

एक रोज शादी को ले कर लालसा और देशदीपक में तूतूमैंमैं हुई तो लालसा ने शारीरिक मिलन से इंकार कर दिया. तब देशदीपक ने उसे धमकाया कि उस के पास उस की अश्लील फिल्म है. मिलन से इंकार करोगी तो अश्लील फिल्म को सार्वजनिक कर देगा.

यह सुन कर लालसा घबरा गई और फिल्म डिलीट करने की मनुहार करने लगी. देशदीपक ने ब्लैकमेलिंग कर लालसा से शारीरिक भूख तो मिटा ली लेकिन अश्लील फिल्म डिलीट नहीं की. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. ब्लैकमेलिंग कर वह लालसा को बुलाता और उस के साथ संबंध बनाता.

इधर 22 अप्रैल, 2022 को घरवालों ने देशदीपक की शादी दिव्या उर्फ अंजलि से कर दी. शादी की जानकारी लालसा को नहीं हुई. उसे तो तब पता चला, जब वह मई के पहले हफ्ते में देशदीपक से मिलने आई.

उसे देशदीपक तो नहीं मिला, लेकिन उस की शादी हो जाने की खबर मिल गई. शादी की जानकारी मिली तो उसे गहरी चोट पहुंची. वह समझ गई कि प्रेमी ने उस के साथ छल किया है. देशदीपक छलिया प्रेमी निकला.

गुस्से से भरी लालसा ने उसी समय देशदीपक से फोन पर बात की, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम ने शादी कर ली है और नईनवेली दुलहन के साथ खुशियों में डूबे हो.’’

‘‘हां लालसा, तुम ने सच सुना है,’’ देशदीपक ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन शादी का वादा तो तुम ने मुझ से किया था,’’ लालसा ने पूछा.

‘‘हां, किया था. लेकिन मजबूरी में शादी करनी पड़ी,’’ देशदीपक ने जवाब दिया.

‘‘कैसी मजबूरी?’’ लालसा ने पूछा.

‘‘घरवालों की. उन्होंने मेरी शादी कर दी. मैं उन्हें मना नहीं कर सका.’’

‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर अच्छा नहीं किया,’’ लालसा गुस्से से उबल पड़ी.

 

दूसरे रोज लालसा अपने गांव लौट आई. अब वह प्यार के प्रतिशोध में रातदिन जलने लगी. आखिर उस ने निश्चय किया कि वह देशदीपक को मिटा कर ही चैन की सांस लेगी. पर इतना बड़ा काम वह अकेले नहीं कर सकती थी. अत: उस ने अभिषेक की मदद लेना उचित समझा.

नाजायज संबंधों से बढ़ रहे अपराध

आम तौर पर समाज में घटित होने वाले अपराधों के तीन कारण होते हैं जर (रूपया-पैसा), जोरू(औरत),और जमीन.मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा अपराधिक घटनाएं नाजायज संबंधों की वजह से हो रही हैं.

समाज में सेक्स को लेकर खुलकर चर्चा न होने से नौजवानों के मन में सेक्स संबंधों को लेकर जिज्ञासा बनी रहती है. सेक्स का मजा लेने के लिए महिला, पुरुषों द्वारा बनाए गए नाजायज संबंध समाज की नजरों में देर तक छुपे नहीं रहते. नाजायज संबंधों के खुलासा होने पर परिवार में कलह और समाज में बदनामी होने लगती है. दोस्ती में विश्वासघात करके बनाये गये नाजायज संबंधों में लोग एक दूसरे के जान के प्यासे तक हो जाते हैं.

दोस्ती के नाम पर विश्वासघात करने का ऐसा ही मामला नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब ५० किमी दूर गोटेगांव थाना क्षेत्र अंतर्गत जामुनपानी गांव  में सामने आया है.

लॉक डाउन की सख्ती के बीच जामुनपानी गांव के पास खेत में 21-22 अप्रैल की दरम्यानी रात दो युवकों की धारदार हथियार से गला काट कर नृशंस हत्या कर दी गई.पिपरिया लाठ गांव निवासी मोहन उम्र 30 साल  और कुंजी यादव  उम्र 18 साल दोनों ही जमीन सिकमी पर लेकर खेती करते थे . 21 अप्रैल को  रात 9 बजे दोनों अपने घरों से खाना खाकर खेत पर गए थे. दूसरे दिन दोपहर तक जब दोनों घर नहीं आए और मोबाइल पर संपर्क नहीं हुआ तो मोहन के पिता हीरालाल ने खेत सोचा कि खेत पर जाकर देखते हैं. खेत पर जाकर हीरालाल ने दोनों के शव रक्त रंजित अवस्था में पड़े देखे तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं .

हीरालाल द्वारा पुलिस चौकी झोतेश्वर में इसकी सूचना देने के पर गोटेगांव से पुलिस टीम  मामले की जांच के लिए पहुंची.  मौका मुआयना के बाद लाश का पंचनामा बनाकर गोटेगांव के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद शवों को उनके परिजनों के सुपुर्द किया गया. पुलिस की उपस्थिति में पिपरिया(लाठगांव) में दोनों की अर्थी एक साथ उठीं. लेकिन गांव के लोगों में मोहन और कुंजी के नाजायज संबंधों की खुसर-पुसर होती रही.

दोनों नौजवानों के नाजायज संबंधों की जानकारी गांव के लोगों के साथ घर परिवार के लोगों को भी थी.मृतक कुंजी यादव की दादी ने तो पुलिस के सामने ही गांव के एक युवक गुड्डा ठाकुर पर दोनों की हत्या का आरोप लगा दिया. पुलिस टीम भी  तफशीश में जुट गई.पुलिस ने 22 अप्रैल की रात खेत में बनी गुड्डन गौड़ की झोपड़ी में दबिश दी तो वह झोपड़ी में नहीं मिला।

23 अप्रैल को तड़के पुलिस ने एक बार फिर झोपड़ी में दबिश दी मगर उसकी झोपड़ी में मौजूद कुत्ता दूर से ही पुलिस को देख कर भौंकने लगा , जिस पर गुड्न गौड बिस्तर से उठा और चड्डी बनियान में ही जंगल की ओर भाग गया .जब पुलिस झोपड़ी में पहुंची तो चूल्हा की आग गरम थी, बिस्तर बिछा हुआ था उसने कपड़े और जूते वहीं पर उतार कर रखे थे. झोपड़ी में पुलिस को गुड्डन की बैंक पास बुक और फोटो मिली थी.

जंगली रास्तों में पुलिस से छिपता फिर रहा गुड्डन

आखिरकर 23 अप्रैल की शाम को झोतेश्वर के हनुमान टेकरी मंदिर के पास पकड़ में आ ही गया.पुलिस पूछताछ में मोहन और कुंजी की हत्या करने का जुर्म कबूल करने के साथ जो कहानी सामने आई , उसमें हत्या का कारण दोस्ती में विश्वासघात कर बनाये गये नाजायज संबंध ही थे.

मोहन और कुंजी , गुड्डा ठाकुर के अच्छे दोस्त थे और इसी वजह से वे गुड्डा के घर आते जाते रहते थे. लेकिन मोहन की नजर गुड्डा की खूबसूरत बीबी रति (परिवर्तित नाम) पर टिकी रहती थी. तीखे नैन-नक्श और गठीले बदन की रति से मोहन हंसी मजाक कर लिया करता था. जब भी गुड्डा ठाकुर घर से बाहर रहता तो मोहन गुड्डा के घर पहुंच जाता. हंसी मज़ाक का सिलसिला धीरे धीरे आगे बढते देख एक दिन मोहन ने रति से कहा – ,” रति भाभी तुम तो मुझे इतनी सुन्दर लगती हो कि जी चाहता है तुम पर सब कुछ लुटा दूं”. रति को भी मोहन की ये अदायें भाने लगी थी तो उसने भी कह दिया-” तुम्हें रोका किसने है”.

फिर क्या था मोहन ने रति को अपनी बाहों में भर लिया और उसके ओंठ चूमने लगा. देखते ही देखते दोनों तरफ से लगी जिस्मानी प्यास तभी बुझी थी, जब तक वे एक उन्हें तृप्ति का एहसास न हो गया.

आखिरकार इन नाजायज संबंधों की जानकारी एक दिन गुड्डा को भी लग गई तो उसने दोनों दोस्तों को समझाने का प्रयास किया,मगर मोहन और कुंजी ने अपनी गल्ती मानने की बजाय उल्टे गुड्डा की मर्दानगी का मजाक बनाना शुरू कर दिया.नाजायज संबंधो की बजह से पति-पत्नी में झगड़े होने लगे और उसकी बीवी अपने मायके जबलपुर के पास चरगवा चली गई.

गुड्डा अपनी घर गृहस्थी उजड़ने से परेशान रहने लगा था .समाज में भी उसकी बदनामी हो गई थी. ऐसे में गुड्डा के दिलों दिमाग में मोहन को  अपने रास्ते से हटाने की योजना बनती रहती थी.

प्रतिशोध की आग में जल रहे गुड्डा ने  निश्चय कर लिया था कि वह मोहन को मौत के घाट उतारकर ही दम लेगा. गुड्डा को पता तो था ही कि मोहन और कुंजी रोज ही खेत पर आते हैं . 21 अप्रैल की रात वह खेत की टपरिया से ही मोहन और कुंजी पर नजर रख रहा था. फसल की गहाई पूरी होने के बाद जब मोहन और कुंजी खेत पर सो गये तो रात 2 बजे के लगभग वह कुल्हाड़ी लेकर खेत पर पहुंच गया और गहरी नींद सो रहे मोहन और कुंजी के सिर पर धड़ाधड़ क‌ई वार करके उन्हें हमेशा के लिए गहरी नींद सुला दिया.उसने कुंजी की हत्या इसलिए की कि कुंजी मोहन और  रति के मिलने में सहायता करता था.

अक्सर ही नाजायज संबंधों का  इसी तरह से दुखद अंत होता है.इस घटना में भी जहां मोहन और कुंजी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तो पत्नी की वजह से हुई बदनामी के कारण गुड्डा ठाकुर को दोहरी हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया.

जब प्यार में आया ट्विस्ट – भाग 2

थाने में जब उस से अरुण के बारे में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने अरुण को जाननेपहचानने से ही इंकार कर दिया. लेकिन जब उस पर सख्ती की गई तो वह टूट गया. उस के बाद अमित उर्फ गुड्डू ने जो कुछ पुलिस को बताया, उसे सुन कर पुलिस चकित रह गई.

अमित ने बताया कि अरुण कुमार अब इस दुनिया में नहीं है. संदीप व उस के भाई पवन ने 16 जुलाई, 2022 की शाम ही गोली मार कर उस की हत्या कर दी और शव को गंगरौली गांव के बाहर नदी किनारे खेत में दफन कर दिया था. किसी को शक न हो इसलिए खेत को ट्रैक्टर से जोत दिया था.

19 जुलाई, 2022 की सुबह 10 बजे एसएचओ अंजन कुमार सिंह पुलिस दल के साथ गंगरौली गांव स्थित उस खेत पर पहुंचे, जहां अरुण के शव को दफनाया गया था. अब तक युवक की हत्या कर शव को दफनाए जाने की खबर सपई व गंगरौली गांव में फैल गई थी, जिस से सैकड़ों लोग वहां आ गए थे. पुलिस की सूचना पर अरुण की पत्नी नीतू, भाई कुलदीप व पिता रामकुमार भी खेत पर मौजूद थे.

लगभग 12 बजे अमित कुमार उर्फ गुड्डू को पुलिस कस्टडी में खेत पर लाया गया. फिर उस की निशानदेही पर मिट्टी हटा कर शव को गड्ढे से बाहर निकाला गया. शव को देख कर कुलदीप व रामकुमार फूटफूट कर रोने लगे.

कुलदीप ने पुलिस को बताया कि शव उस के भाई अरुण कुमार का है. पति का शव देख कर नीतू भी दहाड़ मार कर रोने लगी. पुलिस ने किसी तरह उसे शव से दूर किया.

एसएचओ अंजन कुमार सिंह ने अरुण कुमार की हत्या किए जाने तथा शव को खेत से बरामद करने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एसीपी दिनेश कुमार शुक्ला, डीसीपी (क्राइम) सलमान ताज पाटिल तथा एसपी (कानपुर आउटर) तेजस्वरूप सिंह मौका ए वारदात आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से शव का निरीक्षण किया. अरुण की उम्र 28 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या सीने पर गोली मार कर की गई थी. पुलिस अधिकारियों ने मृतक के घर वालों तथा हत्या के आरोप में पकड़े गए युवक अमित उर्फ गुड्डू से भी हत्या के संबंध में पूछताछ की.

शव निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने एसएचओ अंजन कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भेजें तथा रिपोर्ट दर्ज कर अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करें. गिरफ्तारी में कोई प्रभावशाली व्यक्ति बाधा पहुंचाए तो उसे भी कानून की गिरफ्त में ले लें. किसी कीमत पर उसे बख्शा न जाए.

अधिकारियों का आदेश पाते ही अंजन कुमार सिंह ने शव को पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. इस के बाद थाने वापस आ कर मृतक की पत्नी नीतू की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302/201 के तहत संदीप, अमित कुमार व पवन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

अमित की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ काररवाई कर संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया. संदीप की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया. जिसे उस ने नदी किनारे झाडि़यों में छिपा दिया था. तीसरा आरोपी पवन पुलिस के हाथ नहीं आया.

चूंकि संदीप और अमित कुमार ने अरुण की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और संदीप ने हत्या में इस्तेमाल तमंचा भी बरामद करा दिया था, अत: एसएचओ अंजन कुमार सिंह ने उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया. संदीप और अमित से की गई पूछताछ में त्रिकोण प्रेम की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर एक कस्बा है-चौबेपुर. यह कस्बा गल्ला और पशु व्यवसाय के लिए जाना जाता है. यहां का पशु मेला दूरदराज के गांवों तक मशहूर है.

इसी चौबेपुर कस्बे से 5 किलोमीटर दूर बेला-बिधुना रोड पर एक गांव बसा है पसेन. हरेभरे पेड़ों के बीच बसा यह गांव अपनी अलग ही छटा बिखेरता है. इसी पसेन गांव में रामकुमार कुरील अपने परिवार के साथ रहते थे.

उन के परिवार में पत्नी कमला के अलावा 2 बेटे कुलदीप तथा अरुण थे. रामकुमार कुरील अपने खेत में सब्जियां उगाते थे और कस्बे में ले जा कर बेचते थे. सब्जी के इस व्यवसाय में उन्हें जो आमदनी होती थी, उसी से अपने परिवार का भरणपोषण करते थे.

रामकुमार कुरील चाहते थे कि उन के दोनों बेटे पढ़लिख कर सरकारी नौकरी करें. लेकिन उन की यह तमन्ना पूरी न हो सकी. कारण उन के दोनों बेटों का मन पढ़ाई में नहीं लगा और वे 10वीं कक्षा भी पास नहीं कर पाए.

पढ़ाई बंद करने के बाद कुलदीप तो पिता के काम में हाथ बंटाने लगा, लेकिन अरुण का मन गांव में नहीं लगा. वह गांव छोड़ कर कानपुर शहर आ गया. यहां वह मेहनतमजदूरी करने लगा. एक रोज अरुण की मुलाकात राजमिस्त्री राम अचल से हुई. वह उसी की जाति का था सो दोनों में खूब पटने लगी. राम अचल ने उसे राजमिस्त्री का काम सिखाया और उसे मजदूर से राजमिस्त्री बना दिया.

अरुण तेजतर्रार नौजवान था. उस ने राजमिस्त्री के साथसाथ मकान बनाने के ठेके भी लेने लगा. उस काम में उसे अच्छी आमदनी होने लगी.

कुछ समय बाद अरुण ने अपने भाई कुलदीप को भी गांव से बुला लिया. अब दोनों भाई कानपुर शहर के पनकी कलां मोहल्ले में किराए पर रहने लगे. अरुण ने 8-10 लोगों का एक समूह बना लिया. वे सभी उस के साथ काम करते थे.

अरुण कुमार अच्छा कमाने लगा तो उस का रहनसहन भी बदल गया. अब वह ठाटबाट से रहता और पिता के हाथों पर भी चार पैसा रखता.

अरुण की रिश्तेदारी कानपुर देहात जिले के सपई गांव में थी. वहां उस की बुआ ब्याही थी. बुआ के घर अरुण का आनाजाना लगा रहता था. बुआ उस की खूब आवभगत करती थी, सो वह उन से प्रभावित था.

बुआ के घर आतेजाते एक रोज अरुण की मुलाकात सीमा से हुई. सीमा का घर उस की बुआ के घर से कुछ दूरी पर था. उस के पिता रजोल किसान थे. 3 भाईबहनों में सीमा सब से बड़ी थी.

डर के शिकंजे में : विनीता को क्यों देनी पड़ी जान – भाग 2

महाराष्ट्र की सामाजिक प्रथा के अनुसार लड़के वाले वर ढूंढने नहीं जाते, बल्कि वरपक्ष लड़की की तलाश करता है. ऐसे में जब वनिता के लिए ज्ञानेश्वर चव्हाण का रिश्ता आया तो वनिता के परिवार वालों ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था.

24 वर्षीय ज्ञानेश्वर चव्हाण सेना में था. उस की पोस्टिंग दिल्ली में थी. वह भी वनिता के गृह जनपद बीड़ का रहने वाला था. उस का परिवार संपन्न और संभ्रांत था. किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. ज्ञानेश्वर के पिता गांव के बड़े किसान थे.

सब कुछ तय होने के बाद वनिता के परिवार वालों ने अपने पुश्तैनी गांव पहुंच कर वनिता और ज्ञानेश्वर की सगाई कर जल्द ही शादी भी कर दी.

शादी के बाद जब ज्ञानेश्वर अपनी ड्यूटी पर लौटा तो वह कुछ दिनों के लिए पत्नी वनिता को भी अपने साथ ले गया. शुरुआती दौर का उन का दांपत्य जीवन काफी सुखमय रहा. जिस तरह ज्ञानेश्वर वनिता जैसी सुंदर पत्नी पा कर खुश था, उसी तरह वनिता भी ज्ञानेश्वर से शादी कर के खुद को भाग्यशाली समझ रही थी.

ज्ञानेश्वर सुबह अपनी ड्यूटी पर चला जाता था और वनिता अपने घर के कामों में व्यस्त हो जाती थी. देखतेदेखते 2-3 साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच वनिता एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई.

समय अपनी गति से चल रहा था. दोनों बच्चे धीरेधीरे बड़े हो रहे थे. इस के पहले कि वे अपने बच्चों का दाखिला स्कूल में करवा पाते, अचानक ज्ञानेश्वर का ट्रांसफर हो गया. ज्ञानेश्वर के ट्रांसफर की वजह से वनिता को दिल्ली से मुंबई आना पड़ा.

वनिता मुंबई आ कर अपने भाई और मां के साथ रहने लगी थी. उस ने वहीं पास के एक अच्छे स्कूल में बच्चों का दाखिला करा दिया. समयसमय पर ज्ञानेश्वर वनिता और बच्चों से मिलने मुंबई आता रहता था.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. दोनों अपनी जिंदगी में खुश थे कि अचानक उन की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया जिस ने वनिता और ज्ञानेश्वर के जीवन को तहसनहस कर दिया. वनिता की जिंदगी में रावसाहेब दुसिंग नाम के एक व्यक्ति की एंट्री हो गई. रावसाहेब से वनिता की मुलाकात सन 2010 में हुई थी.

45-46 साल का रावसाहेब दुसिंग आशिकमिजाज रंगीन तबीयत का आदमी था. वह अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ मुंबई के सायन कोलीवाड़ा के प्रतीक्षानगर में रहता था. उस का पुरानी कारों को खरीदनेबेचने का कारोबार था. इस धंधे में उसे अच्छी कमाई होती थी.

अपराधी प्रवृत्ति के रावसाहेब दुसिंग का रहनसहन उस की सारी बुराइयों को दबा कर रखता था. वह ब्रांडेड कपड़ों के साथ हाथ में सोने का मोटा ब्रेसलेट, गले में वजनदार चेन पहने रहता था.

वनिता और रावसाहेब की मुलाकात वनिता की एक सहेली महानंदा के साथ राशन की दुकान पर हुई थी. उसी समय दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. रावसाहेब तो वैसे भी आशिकमिजाज था. पहली मुलाकात में ही उस ने वनिता को अपने दिल में बसा लिया था, इसलिए उस ने नजदीकियां बढ़ाने के लिए वनिता से फोन पर बात करनी शुरू कर दी.

दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो दायरा बढ़ता गया. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे.

एक दिन रावसाहेब ने उस से कहा, ‘‘वनिताजी, अगर आप को सेकेंडहैंड कार की जरूरत हो तो मुझे बता देना, मेरे पास बढि़या पुरानी कारें आती हैं. मैं आप को सस्ते दाम में दे दूंगा.’’

‘‘जी नहीं, मैं सेकेंडहैंड चीजों को यूज नहीं करती. मुझे नई चीजों में मजा आता है.’’ वनिता ने भी उसी के अंदाज में जवाब दिया.

वनिता की बातों के पीछे छिपे व्यंग्य को रावसाहेब अच्छी तरह समझ गया था. वह बोला, ‘‘अरे मैडम, एक बार सेकेंडहैंड को यूज कर के तो देखो. मैं वादा करता हूं कि आप नई चीजों को भूल जाओगी.’’

रावसाहेब की बात ने वनिता के मन को रोमांचित कर दिया. उस ने कहा, ‘‘अगर ऐसी बात है तो मैं उस का ट्रायल लूंगी. बोलो, कब आना है ट्रायल लेने.’’

‘‘जब आप चाहो,’’ रावसाहेब ने हंस कर कहा और मिलने की जगह भी बता दी.

तय समय के अनुसार रावसाहेब अपनी कार ले कर वनिता से मिला. वनिता के साथ कार से वह इधरउधर की सैर करता रहा. हंसीमजाक के साथ उन के 2-3 घंटे कब गुजर गए, पता नहीं चला. फिर वह वनिता को अपने एक दोस्त के खाली पड़े फ्लैट में ले कर गया.

फ्लैट के बैडरूम का माहौल देख कर वनिता को अपनी सुहागरात याद आ गई. वहां के माहौल में वह अपने आप को संभाल नहीं पाई. वैसे भी वह कई महीनों से पति के मिलन से दूर थी.

रावसाहेब तो वैसे ही मंझा हुआ खिलाड़ी था. वनिता उस से इतनी प्रभावित हो चुकी थी कि उस ने उस समय रावसाहेब की किसी बात को नहीं टाला. इस तरह उस दिन दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

उन के बीच एक बार जब मर्यादा की सीमा टूटी तो वह टूटती ही चली गई. इस के बाद तो जब भी मौका मिलता था, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

पति ज्ञानेश्वर चव्हाण की अनुपस्थिति में वनिता और रावसाहेब के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. एक दिन किसी तरह ज्ञानेश्वर चव्हाण को यह जानकारी मिली तो उस ने रावसाहेब को आड़े हाथों लिया और उसे वनिता से दूर रहने की चेतावनी दी.

लेकिन रावसाहेब तो अपराधी प्रवृत्ति का था, इसलिए वह ज्ञानेश्वर की धमकी से नहीं डरा बल्कि ज्ञानेश्वर चव्हाण से उलझ बैठा.

जिस का नतीजा यह हुआ कि मामला थाने तक पहुंच गया. पुलिस ने दोनों को समझाया और चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

इस के बाद भी उन का झगड़ा खत्म नहीं हुआ. कई बार लड़ाईझगड़ा होने के बाद भी रावसाहेब ने वनिता का पीछा नहीं छोड़ा, जबकि पति के समझाने के बाद वनिता ने प्रेमी से दूरी बना ली थी. वह उस से मिलना तो दूर फोन पर बात तक नहीं करती थी. पर रावसाहेब उसे छोड़ना नहीं चाहता था.

करवाचौथ पर मौत का उपहार : प्यार में ये क्या कर बैठा मंजीत

29अक्तूबर, 2018 को सुबह के करीब 8 बजे थे. तभी रोहिणी जिले के थाना बवाना के ड्यूटी अफसर हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार मीणा को सूचना मिली कि दरियापुर-बवाना रोड पर वर्मी कंपोस्ट पोली फार्म के पास एक महिला को किसी ने गोली मार दी है. महिला स्कूटी से जा रही थी.

ड्यूटी अफसर ने इस सूचना से इंसपेक्टर राकेश कुमार को अवगत करा दिया. इंसपेक्टर राकेश कुमार तुरंत एएसआई राजेश कुमार, कांस्टेबल यशपाल, अनिकेत आदि को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल थाने से पश्चिम दिशा में करीब 3 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह जल्द ही वहां पहुंच गए. उन्हें वर्मी कंपोस्ट पोली फार्म के सामने सड़क पर सफेद रंग की स्कूटी नंबर डीएल 11 एसपी 7044 पड़ी मिली, जिस में चाबी लगी हुई थी.

वहीं पर 2 लेडीज बैग, एक हेलमेट और एक जोड़ी जूती पड़ी थी. पास में सड़क पर ही थोड़ा खून भी था और कारतूस का एक खोखा भी पड़ा था. आसपास के लोगों ने बताया कि एक महिला स्कूटी से जा रही थी, तभी किसी ने उसे गोली मार दी. कुछ लोग उसे महर्षि वाल्मीकि अस्पताल ले गए हैं.

कांस्टेबल यशपाल को घटनास्थल पर छोड़ कर इंसपेक्टर राकेश कुमार महर्षि वाल्मीकि अस्पताल चले गए. वहां उन्होंने डाक्टरों से बात की तो पता चला, उस महिला की मौत हो चुकी है. महिला कौन है और कहां रहती है. पुलिस के लिए यह जानना जरूरी था.

इस के लिए पुलिस ने घटनास्थल से मिले बैगों की तलाशी ली तो पता चला मृतका का नाम सुनीता है और वह बवाना के दादा भैया वाली गली के रहने वाले मंजीत की पत्नी है. वह सोनीपत के फिरोजपुर गांव में गवर्नमेंट सीनियर सैकेंडरी गर्ल्स स्कूल में टीचर थीं. मृतका के बारे में जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने बवाना स्थित मृतका के ससुराल वालों को सूचना दे दी.

कुछ ही देर में मृतका का पति मंजीत और घर के अन्य लोग महर्षि वाल्मीकि अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने जब वहां सुनीता की लाश देखी तो फफकफफक कर रोने लगे.

मृतका की शिनाख्त हो जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश कुमार ने इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और कांस्टेबल अनिकेत को अस्पताल में छोड़ कर वह फिर से घटनास्थल पर पहुंच गए.

सबूत जुटाने के लिए उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया. कुछ ही देर में डीसीपी (रोहिणी) रजनीश गुप्ता भी घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के बाद अस्पताल पहुंच कर उन्होंने मृतका  के ससुराल वालों से बात की.

मृतका के पति मंजीत ने बताया कि वह सोनीपत के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. रोजाना की तरह वह आज सुबह करीब 7 बजे अपनी स्कूटी से ड्यूटी के लिए निकली थी. पता नहीं किस ने उसे गोली मार दी. पूछताछ में मंजीत ने बताया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है.

माहौल गमगीन होने की वजह से उस समय उन्होंने मंजीत से ज्यादा पूछताछ करनी जरूरी नहीं समझी, लेकिन इतना तो वह जानते ही थे कि सुनीता की हत्या के पीछे कोई न कोई वजह जरूर रही होगी और वह आज नहीं तो कल जरूर सामने आ जाएगी.

इंसपेक्टर राकेश कुमार को कुछ निर्देश दे कर रजनीश गुप्ता वहां से चले गए. उन के जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश कुमार ने मौके से बरामद सबूत अपने कब्जे में ले लिए और अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी.

राकेश कुमार ने जांच की शुरुआत मृतका सुनीता की ससुराल से ही की. पति मंजीत ने बताया कि घर में वह वह नौर्मल रहती थी. किसी को भी उस से किसी तरह की शिकायत नहीं थी. वह स्कूटी से ही स्कूल आतीजाती थी. पुलिस ने मंजीत से सुनीता के मायके वालों का पता और फोन नंबर ले कर उन लोगों को बवाना थाने बुला लिया.

पुलिस को मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

सुनीता के मातापिता थाना बवाना पहुंच गए. उन्होंने बताया कि मंजीत सुनीता को अकसर परेशान करता रहता था. साथ ही यह भी कि मंजीत का किसी मौडल के साथ चक्कर चल रहा था, जो मुंबई में रहती है. सुनीता इस का विरोध करती थी तो वह सुनीता को प्रताडि़त करता था. इसी के चलते मंजीत सुनीता पर तलाक लेने का दबाव डाल रहा था. ये बातें उस ने मायके वालों को बताई थीं.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. लिहाजा पुलिस ने सुनीता के पति मंजीत के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि मंजीत की मुंबई के किसी फोन नंबर पर अकसर बातें होती थीं. जांच में वह नंबर एंजल गुप्ता का निकला. एंजल गुप्ता कोई आम लड़की नहीं थी बल्कि एक मशहूर मौडल थी और बौलीवुड की कई फिल्मों में काम कर चुकी थी.

काल डिटेल्स से केस की स्थिति साफ हो गई. साथ ही पुलिस को सुनीता के मातापिता के बयानों में भी सच्चाई नजर आने लगी. लिहाजा इंसपेक्टर राकेश कुमार ने मंजीत को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

मंजीत से उस की पत्नी सुनीता के मर्डर के बारे में पूछताछ की गई तो पहले वह इधरउधर की बातें कर के पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध न केवल स्वीकारा बल्कि उस की हत्या में शामिल रहे लोगों के नामों का भी खुलासा कर दिया.

उस से पूछताछ के बाद पता चला कि सुनीता की हत्या के मामले में मंजीत की प्रेमिका एंजल गुप्ता के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता का भी हाथ था.

राजीव ने ही भाड़े के हत्यारों से 10 लाख रुपए में सुनीता की हत्या का सौदा किया था. मंजीत से हुई पूछताछ के बाद सुनीता की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह एक मौडल के प्यार की कहानी थी.

सीधीसादी जिंदगी थी सुनीता की

मूलरूप से हरियाणा की रहने वाली सुनीता का विवाह दिल्ली के बवाना में रहने वाले मंजीत के साथ हुआ था. मंजीत प्रौपर्टी डीलर था. सुनीता पति से ज्यादा पढ़ीलिखी थी, इस के बावजूद उस ने खुद को ससुराल में ढाल लिया था. पति की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी और उस का प्रौपर्टी का काम भी अच्छा चल रहा था. लिहाजा सुनीता को ससुराल में किसी तरह की परेशानी नहीं थी.

धीरेधीरे समय अपनी गति से बीतता रहा. सुनीता एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई. फिलहाल उस की बेटी 16 साल की है और बेटा 12 साल का.

सुनीता सोनीपत के फिरोजपुर गांव स्थित गवर्नमेंट सीनियर सैकेंडरी गर्ल्स स्कूल में पढ़ाती थी. ससुराल बवाना से स्कूल की दूरी लगभग 20 किलोमीटर थी, इसलिए स्कूल आनेजाने के लिए सुनीता ने एक स्कूटी खरीद ली थी. उसी से वह स्कूल के लिए सुबह करीब 7 बजे घर से निकल जाती थी.

सुनीता अपने गृहस्थ जीवन से खुश थी, लेकिन 2 साल पहले उस की खुशियों में ग्रहण लगना शुरू हो गया था. दरअसल, दिल्ली की एक पार्टी में मंजीत की मुलाकात एंजल गुप्ता नाम की एक मौडल से हुई. एंजल गुप्ता बेहद खूबसूरत थी और बौलीवुड की कई फिल्मों में छोटामोटा काम कर चुकी थी.

जसवीर भाटी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘भूरी’ के आइटम सांग ‘ओ मेरा झुमका..मेरा ठुमका बदनाम हो गया’ में भी एंजल गुप्ता ने अपने जलवे बिखेरे थे. वह एक्ट्रैस बनने की दौड़ में थी. एंजल गुप्ता का असली नाम शशिप्रभा था. बताया जाता है कि वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी.

उस की मां दिल्ली में सीपीडब्ल्यूडी में नौकरी करती है और आर.के. पुरम सेक्टर-4 के सरकारी क्वार्टर में रहती है. उस के पिता का देहांत काफी दिनों पहले हो चुका था. मौडलिंग के क्षेत्र में आने के बाद शशिप्रभा एंजल गुप्ता के नाम से जानी जाने लगी थी. एंजल गुप्ता कुछ दिनों तक तो दिल्ली में ही मौडलिंग करती रही, फिर मन में बौलीवुड के हसीन सपने ले कर मुंबई चली गई.

मुंबई जाने के लिए एंजल गुप्ता के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता ने उस की हर तरह से मदद की. मुंबई में एंजल ने जो फ्लैट किराए पर लिया था, उस का हर महीने का किराया 50 हजार रुपए था, जो राजीव ही देता था. मुंबई जा कर एंजल फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष करने लगी. उस की मेहनत रंग लाई और उसे कुछ फिल्मों में काम मिल गया. इस के बाद वह और ऊंचाई पर पहुंचने के सपने देखने लगी.

एंजल के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता दिल्ली रोहिणी सैक्टर-3 में रहते थे. वह एक बिजनैसमैन हैं और दक्षिणी दिल्ली में उन के रेस्तरां और होटल हैं. वह एंजल गुप्ता को हर तरह से सपोर्ट करते थे.

आकर्षक कदकाठी वाला मंजीत पहली मुलाकात में ही एंजल का दीवाना हो गया था. पार्टी में मिलने के बाद से एंजल और मंजीत की फोन पर बातें होने लगीं. धीरेधीरे एंजल का झुकाव भी मंजीत की तरफ हो गया. समयसमय पर दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं, जिस से दोनों और नजदीक आते गए.

धीरेधीरे दोनों के संबंध इस स्थिति तक पहुंच गए कि वह शादी करने की सोचने लगे थे. लेकिन इस में सब से बड़ी समस्या मंजीत की पत्नी सुनीता थी. अपनी ब्याहता के रहते हुए एंजल से शादी नहीं कर सकता था.

सुनीता को पता चली हकीकत

पति पर आंखें मूंद कर विश्वास करने वाली सुनीता इस बात से काफी दिनों तक तो अंजान रही. बाद में जब मंजीत ने उसे मानसिक रूप से परेशान करना शुरू किया तब भी वह कुछ नहीं समझ पाई. उस की समझ नहीं आया कि अचानक मंजीत में यह बदलाव कैसे आ गया. सुनीता ने कई बार मंजीत को फोन पर बात करते देखा. फोन पर हो रही बातचीत सुनने के बाद सुनीता समझ गई कि मंजीत का जरूर किसी लड़की से चक्कर चल रहा है.

अंतत: जैसेतैसे सुनीता यह पता लगाने में सफल हो गई कि मुंबई में रहने वाली एक मौडल से मंजीत के प्रेमिल संबंध हैं. सुनीता ने इस बारे में मंजीत से पूछा तो पहले तो वह इस बात को टालने की कोशिश करता रहा लेकिन फिर बोला, ‘‘अगर तुम्हारे मन में इस तरह का कोई शक हो गया है तो मुझ से तलाक ले लो.’’

‘‘नहीं, मैं न तो तलाक नहीं दूंगी और नहीं लूंगी, तुम्हें उस लड़की से बात भी बंद करनी होगी.’’

सुनीता के इतना कहते ही मंजीत ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. सुनीता समझ नहीं पा रही थी कि अपने घर को कैसे संभाले. विपरीत हालातों में मन को शांत रखने के लिए वह रोजमर्रा की डेली डायरी लिखती थी. तनाव की बातें वह डायरी में लिख देती थी. जब वह ज्यादा परेशान होती तो मायके में बात कर के अपना मन हलका कर लेती थी.

मायके वालों ने भी मंजीत को बहुत समझाया लेकिन वह एंजल गुप्ता के प्यार में अंधा हो चुका था इसलिए किसी के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. नतीजा यह निकला कि मंजीत और उस के ससुराल वालों के बीच छत्तीस का आंकड़ा बन गया.

बताया जाता है कि एंजल मंजीत पर शादी करने का दबाव बना रही थी. इस बारे में उस ने अपने मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता से बात की. राजीव ने उसे भरोसा दिया कि वह उस की शादी मंजीत से कराने में पूरी मदद करेगा.

मई, 2017 में सुनीता और एंजल के बीच फोन पर तीखी नोंकझोंक हुई, जिस में सुनीता ने एंजल को गुस्से में काफी कुछ कह दिया. बताया जाता है कि तब एंजल ने उसे अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी.

एंजल सुनीता द्वारा की गई इस बेइज्जती का बदला लेना चाहती थी, इसलिए उस ने बढ़ाचढ़ा कर यह बात मंजीत को बताई ताकि वह सुनीता पर भड़के. उस ने साफ कह दिया कि वह ऐसा अपमान बरदाश्त नहीं कर सकती. अगर मुझे चाहते हो तो या तो सुनीता को तलाक दो या फिर बेइज्जती का बदला लो.

इस बात को ले कर एंजल, राजीव और मंजीत ने एक मीटिंग की. बताया जाता है कि इस मीटिंग में राजीव ने सुनीता को ठिकाने लगाने में 10 लाख रुपए खर्च करने को कह दिया. मंजीत इस के लिए तैयार हो गया. क्योंकि सुनीता तलाक देने को राजी नहीं थी, उस के पास उसे ठिकाने लगाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

राजीव जानता था कि उस के ड्राइवर दीपक के बदमाशों से संबंध हैं, इसलिए उस ने दीपक से सुनीता की हत्या के बारे में बात की. दीपक 10 लाख रुपए में यह काम कराने को तैयार हो गया. राजीव ने बतौर एडवांस उसे ढाई लाख रुपए दे दिए. दीपक ने मेरठ के रहने वाले शहजाद सैफी उर्फ कालू, धर्मेंद्र और विशाल उर्फ जौनी से बात की.

शूटर पहुंच गए दिल्ली

योजना को अंजाम देने के लिए 25 अक्तूबर, 2018 को राजीव गुप्ता, दीपक, धर्मेंद्र, शहजाद और विशाल बवाना पहुंचे. लेकिन तब तक सुनीता स्कूल के लिए निकल चुकी थी. 27 अक्तूबर को करवाचौथ का त्यौहार था. एकतरफ मंजीत जिस पत्नी की हत्या के तानेबाने बुन रहा था, तो पत्नी इस सब से अनभिज्ञ पति की लंबी आयु की कामना के लिए करवाचौथ का व्रत रखे हुए थी.

किराए के जो बदमाश बाहर से दिल्ली आए हुए थे, वह खाली हाथ अपने घर नहीं लौटना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास किराए का एक कमरा ले लिया. साथ ही सुनीता को स्कूल जाते वक्त उस की हत्या करने की योजना बना ली.

योजना के अनुसार, 29 अक्तूबर को अलसुबह राजीव गुप्ता अपनी डस्टर कार संख्या डीएल8सी जेड4306 से बदमाशों को हजरत निजामुद्दीन से बवाना ले गया. सुनीता किसी भी हालत में न बच पाए, इस के मद्देनजर दीपक और धर्मेंद्र वर्मी कंपोस्ट फार्म, दरियापुर के पास पोजीशन ले कर खड़े हो गए. जबकि शहजाद और विशाल गांव बवाना में राजीव गांधी स्टेडियम के पास बाइक ले कर खडे़ हो गए. उन के हाथों में .315 बोर के तमंचे थे.

सुबह 7 बजे के करीब सुनीता अपनी स्कूटी से जैसे ही स्कूल के लिए निकली तो उस के पति मंजीत ने इंतजार कर रहे बदमाशों को मिस्ड काल दी. यह उन के लिए एक इशारा था. इशारा पाते ही बदमाश सतर्क हो गए. तभी राजीव गुप्ता वहां से चला गया. उधर सुनीता घर से करीब 7 किलोमीटर दूर दरियापुर गांव के नजदीक पहुंची तो वहां घात लगाए बदमाशों ने सुनीता पर फायर कर दिया.

उस समय करीब साढ़े 7 बजे थे. गोलियां लगते ही सुनीता गिर गई. वह सड़क पर तड़प रही थी, तभी उधर से गुजर रहे लोगों ने उसे महर्षि वाल्मीकि अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पता चला कि सुनीता के सीने पर 3 गोलियां मारी गई थीं.

मंजीत से पूछताछ के बाद उस के घर की तलाशी ली गई तो पुलिस को सुनीता की पर्सनल डायरी मिली, जिस में उस ने काफी कुछ लिखा था. मंजीत की निशानदेही पर पुलिस ने प्रेमिका एंजल गुप्ता उर्फ शशिप्रभा व उस के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने एंजल गुप्ता की निशानदेही पर मयूर विहार में रहने वाली उस की मौसी के घर से 2 मोबाइल फोन भी बरामद किए, जिन का इस्तेमाल वारदात में हुआ था. इन तीनों को गिरफ्तार कर पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस के बाद दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने वारदात में शामिल रहे दीपक और शहजाद सैफी उर्फ कालू को गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने भी पुलिस के सामने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने इन दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक धर्मेंद्र और विशाल पुलिस की पकड़ में नहीं आए थे.

  कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खून से सनी नशे की लकीर

मनमोहन गली नंबर-24, बस्ती टोकावली, फिरोजपुर निवासी सुभाष ठाकुर का पुत्र था. मनमोहन की शादी 4 साल पहले बी1-5/6, गली नंबर-3, जनता कालोनी, जालंधर में रहने वाले चानन सिंह राजपूत की बेटी पूजा के साथ हुई थी. दोनों राजपूत परिवारों से थे, दोनों के बीच आपसी प्रेमप्यार था.

पूजा के पिता चानन सिंह आर्मी में थे. उन की 2 ही संतानें थीं, बेटा विनोद और बेटी पूजा. दोनों ही शादीशुदा थे और अपनेअपने परिवारों के साथ खुश थे. पूजा की शादी चानन सिंह ने 4 साल पहले मनमोहन के साथ की थी.

पूजा बीए पास और अच्छे संस्कारों वाली समझदार लड़की थी. ससुराल आ कर उस ने पति ही नहीं, बल्कि सब का मन मोह लिया था. मनमोहन ने एमबीए कर रखा था. कोई अच्छी सरकारी नौकरी न मिलने के कारण वह हिंदुस्तान हाइड्रोलिक कंपनी में नौकरी कर रहा था.

मनमोहन की मां के निधन के बाद वह और उस के पिता जब काम पर चले जाते थे, तो पूजा दिन भर घर में अकेली रहती थी. घर का मुख्यद्वार पूरे दिन बंद रहता था, क्योंकि उन के यहां किसी का आनाजाना नहीं था.

शाम को मनमोहन या उस के पिता के घर लौटने पर ही मुख्यद्वार खोला जाता था. लेकिन उस दिन मनमोहन घर लौटा तो ऐसा नहीं हुआ. मनमोहन के 2-3 बार डोरबैल बजाने के बाद भीतर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उस ने दरवाजा थपथपाया तो दरवाजा हाथ रखते ही खुल गया.

यह देख कर मनमोहन को और अधिक आश्चर्य हुआ. असमंजस की स्थिति में  अपनी पत्नी पूजा को आवाज देते हुए उस ने घर के भीतर जा कर देखा तो कमरे का दृश्य देख उस के होश उड़ गए. भीतर पूरा सामान बिखरा पड़ा था. देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में 2 लोगों का आपस में जबरदस्त संघर्ष हुआ हो.

घर के सभी कमरे खुले हुए थे और उन का सामान बिखरा पड़ा था. घर में ऐसा क्या हुआ, यह जानने के लिए वह पूजा को लगातार आवाज देता रहा, पर पूजा कहीं नहीं दिखी. पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. उस के काम से लौटने पर पूजा होंठों पर मुसकान लिए दरवाजा खोलती थी.

मनमोहन किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा. पागलों की तरह पूजा को आवाज देते हुए वह घर से बाहर निकल आया. उस की पड़ोसन ने बताया कि दोपहर को उन के घर कोई रिश्तेदार आया था और पूजा ने उस के लिए दरवाजा खोला था.

आने वाला कौन था, यह वह नहीं बता सकी. हां, उस ने इतना जरूर बताया कि शाम को उसी ने दरवाजा अंदर की ओर धकेला था, क्योंकि कुत्ते घर के अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे.

पड़ोसन की बात सुन कर मनमोहन को चिंता हुई. उस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि आखिर ऐसा कौन रिश्तेदार था, जिस के घर आने के बाद यह हालत हुई. इस से भी बड़ा सवाल यह था कि पूजा कहां गई?

उस की समझ में यह भी नहीं आ रहा था कि घर बैठ कर पूजा का इंतजार करे या उस की तलाश में कहीं जाए. लेकिन जाए तो कहां जाए. फिर भी मनमोहन ने पड़ोसियों के साथ पूजा की तलाश की, उसे अस्पतालों में भी देखा. पर पूजा का पता नहीं चला.

मनमोहन बदहवासी में कुछ सोचने का प्रयास कर रहा था कि तभी उस के पिता सुभाष भी घर पहुंच गए. वह पिछले एक सप्ताह से संगत के लिए हिमाचल स्थित बाबा बालक नाथ के डेरे पर गए हुए थे.

बेटे को यूं बदहवास देख और पूजा के गायब होने की बात सुन कर उन्हें भी चिंता होने लगी. इस के बाद पूरे मोहल्ले में पूजा के घर से लापता होने की बात फैल गई. सांत्वना और सहयोग के लिए पूरा मोहल्ला उन के घर आ जुटा था.

अचानक एक पड़ोसी की नजर मनमोहन के कमरे में पड़े पर बैड पर गई तो वह चौंका. बंद बैड पर गद्दे के नीचे से किसी औरत की चोटी के बाल बाहर झांक रहे थे. उस के बताने पर वहां मौजूद सभी लोगों ने बैड को देखा.

गद्दे को उठा कर बैड का बौक्स खोला गया तो बौक्स के भीतर का दृश्य देख सभी लोगों के मुंह से चीख निकल गई. बैड के भीतर पूजा की लाश पड़ी थी. एकाएक किसी को भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था.

उस समय मनमोहन की जो हालत थी, उस का अनुमान लगाना मुश्किल था. वह बैड पकड़ कर वहीं फर्श पर बैठ गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि पूजा की हत्या कर के लाश बैड में किस ने छिपाई.

काफी देर बाद लोगों के सांत्वना देने पर जब वह सामान्य हुआ. घर के अंदर के किसी भी सामान को छुए बिना सब से पहले उस ने इस घटना की सूचना थाना कैंट, फिरोजपुर पुलिस को दी. साथ ही उस ने पूजा की हत्या की खबर अपने ससुर चानन सिंह को भी दे दी. यह घटना 27 नवंबर, 2018 की है.

पूजा की हत्या की खबर मिलते ही उस के मातापिता वहां पहुंच गए. पुलिस ने क्राइम टीम सहित वहां पहुंच कर अपनी काररवाई शुरू कर दी. पूरे घर को सील कर दिया गया. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने जगहजगह से अंगुलियों के निशान उठाए.

सबूतों की तलाश में घर की बारीकी से तलाशी ली गई. थाना कैंट एसएचओ इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने बड़ी बारीकी से लाश का मुआयना किया. पूजा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. उस के गले पर दबाव के निशान स्पष्ट नजर आ रहे थे.

इस घटना की सूचना मिलते ही एसपी (डी) बलजीत सिंह सिद्धू, डीएसपी जसपाल सिंह ढिल्लों, सीआईए प्रभारी तरलोचन सिंह ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर मुआयना किया. क्राइम टीम का काम खत्म हो गया तो इंसपेक्टर जसबीर सिंह पूजा के पिता चानन सिंह को थाने ले गए. वहां उन के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 302 के तहत पूजा की हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया. इस के बाद पूजा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

शुरुआती जांच में इंसपेक्टर जसबीर सिंह को मनमोहन के बयानों से पता चला कि उस के घर में किसी बाहरी व्यक्ति का आनाजाना बिलकुल नहीं था. रिश्तेदारों का आनाजाना भी न के बराबर था. इस परिवार की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी.

बापबेटा अपने काम से काम रखने वाले थे. ऐसे में शहर के व्यस्ततम इलाके में दिनदहाड़े किसी के घर में घुस कर उस की हत्या करने जैसी बात न तो पुलिस को हजम हो रही थी और न ही मोहल्ले वालों को.

इंसपेक्टर जसबीर को एक बात शुरू से ही खटक रही थी कि यह काम घर के ही किसी आदमी का हो सकता है. किसी बाहरी व्यक्ति की संभावना कम नजर आ रही थी. बहरहाल, पुलिस ने मनमोहन को शक के दायरे में रख कर जांच शुरू कर दी.

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, घटना के समय मनमोहन और उस के पिता सुभाष भले ही अपने घर के आसपास नहीं थे, पर यह काम पैसे दे कर किसी किराए के हत्यारे से भी करवा सकते थे.

घटना वाले दिन मनमोहन और सुभाष घटनास्थल से दूर थे. उन के फोन रिकौर्ड से भी पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा. मृतका पूजा के फोन रिकौर्ड भी चैक किए गए, सब बेदाग थे. पोस्टमार्टम के अनुसार पूजा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. पोस्टमार्टम के बाद उस की लाश घर वालों के हवाले कर दी गई. उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

पूजा की हत्या की खबर शहर भर में चर्चा का विषय बन गई थी. एसपी साहब खुद पलपल की रिपोर्ट ले रहे थे. लेकिन अभी तक पुलिस के हाथ खाली थे. पूजा का पति मनमोहन शुरू से ही शक के दायरे में था, इसलिए पुलिस ने मनमोहन और उस के पिता से कई बार अलगअलग घुमाफिरा कर पूछताछ की, लेकिन वे लोग निर्दोष लग रहे थे.

पूजा के पति पर शक करने की वजह यह थी कि पूजा संतानहीन थी. शादी के 4 साल बाद भी उस की गोद नहीं भरी थी. पुलिस सोच रही थी कि कहीं संतानहीन पत्नी से पीछा छुड़ाने के लिए मनमोहन ने ही तो पूजा की हत्या नहीं कर दी.

पुलिस ने मनमोहन के अलावा उस के खास दोस्तों और करीबी रिश्तेदारों से भी पूछताछ की. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस केस पर जिले के स्पैशल स्टाफ के अलावा और भी कई टीमें काम कर रही थीं. पुलिस के मुखबिर इस मामले में कोई खास जानकारी नहीं जुटा पाए थे.

इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने इस मामले को लूटपाट के नजरिए से भी देखा और इलाके के छोटेबड़े सभी हिस्ट्रीशीटरों से ले कर चोरों, जेबतराशों और उठाईगीरों को भी राउंडअप किया. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. पूजा की हत्या हुए एक महीने से ऊपर का वक्त गुजर चुका था. धीरेधीरे यह केस ठंडे बस्ते की ओर बढ़ने लगा था.

हालांकि इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने अभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा था. यह अलग बात है कि उन के तमाम प्रयासों के बाद भी कोई ऐसा सूत्र हाथ नहीं लगा था, जिस से इस मामले की कोई भी कड़ी जुड़ती नजर आती.

लोग भी धीरेधीरे इस घटना को भूलने लगे थे. 2 महीने से भी ज्यादा गुजर चुके थे, तभी एक दिन एक ऐसा सूत्र खुद सामने से चल कर आया कि जसबीर सिंह की बांछें खिल गईं. इस सूत्र ने इस केस को एक नई दिशा दे दी थी.

इस घटना के लगभग 2 महीने बाद मनमोहन घर की अलमारी के लौकर में कोई जरूरी कागजात ढूंढ रहा था, तभी अचानक उसे झटका सा लगा. अलमारी के लौकर में रखे कीमती जेवरात गायब थे.

मनमोहन ने इस बात की खबर इंसपेक्टर जसबीर सिंह को दी. जेवरात कैसे गायब हुए, यह तो वह ठीक से नहीं बता पाया, पर यह बात उस ने दावे के साथ कही कि जेवरात पूजा की हत्या से पहले ही गायब हुए थे. क्योंकि उस के और पूजा के अतिरिक्त जेवरातों की जानकारी किसी को नहीं थी.

पूजा मरने के बाद जेवरात अपने साथ नहीं ले जा सकती थी. जाहिर है उस के सामने या उस की हत्या के बाद ही जेवरात गायब हुए होंगे.

यह भी संभव थी कि इन्हीं जेवरातों की वजह से पूजा की हत्या की गई हो. यह जबरदस्त पौइंट इंसपेक्टर जसबीर के सामने था. उन्होंने अपनी जांच का दायरा बदलते हुए शहर के सुनारों, खासकर उन सुनारों की तरफ मोड़ दिया जो चोरी का माल खरीदते थे. इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने उन्हें मनमोहन के घर से गायब सामान की लिस्ट देते हुए सख्त चेतावनी दी कि अगर कोई चोर चोरी का सामान बेचने आए तो उन्हें खबर दें. और फिर एक दिन पुलिस की मेहनत रंग लाई.

20 फरवरी, 2019 को शहर के एक सुनार ने फोन द्वारा इंसपेक्टर जसबीर सिंह को सूचना दी कि अजय पटियाल नाम का एक व्यक्ति उस की दुकान पर मनमोहन के घर से चोरी हुए गहनों से मिलतेजुलते गहने बेचने आया है. इस सूचना पर इंसपेक्टर जसबीर सिंह एएसआई जसपाल सिंह, बलविंदर सिंह, हवलदार गुरतेज सिंह और जसवीर सिंह के साथ सुनार की दुकान पर पहुंचे.

अजय को देख कर सभी चौंके. अजय मनमोहन का ही रिश्तेदार था. वह वीर नगर गली नंबर-1 निवासी उस के मामा का बेटा था. मजे की बात यह कि इंसपेक्टर जसबीर सिंह शक के आधार पर उसे 3 बार पूछताछ के लिए थाने बुला चुके थे, लेकिन ठोस सबूतों के अभाव में उसे छोड़ना पड़ा था. बहरहाल, वे गहनों सहित अजय को गिरफ्तार कर थाने ले आए.

पूछने पर अजय ने बताया कि गहने उस के अपने हैं. फिर बताया कि गहने उस के किसी दोस्त के हैं और उस ने अपनी बीमार मां का इलाज करवाने के लिए उसे बेचने के लिए दिए थे. किस दोस्त ने गहने दिए थे, यह बात वह नहीं बता पाया.

इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने मनमोहन और उस के पिता सहित मृतक पूजा के मातापिता को भी थाने बुलवा कर जब गहनों की शिनाख्त करवाई तो उन्होंने तुरंत गहने पहचान लिए.

अजय से बरामद गहने पूरे नहीं थे, इसलिए इंसपेक्टर जसबीर ने अजय को अदालत में पेश कर उस का 2 दिन का रिमांड ले लिया. रिमांड के दौरान अजय से बाकी गहने भी बरामद कर लिए गए जो उस ने अपने घर में छिपा कर रखे थे.

दरअसल, अजय नशे का आदी था. पूजा की हत्या उस ने नशे की पूर्ति के लिए की थी. इसे इत्तफाक समझा जाए या कुछ और कि घटना वाले दिन वह पूजा की हत्या के इरादे से मनमोहन के घर नहीं गया था. अजय के नशेड़ी होने की वजह से कोई रिश्तेदार उसे पसंद नहीं करता था. न ही कोई उसे अपने घर में घुसने देता था.

पूछताछ के दौरान अजय ने बताया कि उस दिन वह मनमोहन से कुछ रुपए उधार लेने उस के घर गया था. लेकिन मनमोहन अपने काम पर जा चुका था. पूजा घर में अकेली थी.

पूजा ने अजय को इज्जत से बिठाया और उस के लिए चाय बनाने रसोईघर में चली गई. क्योंकि अजय रिश्ते में मनमोहन के मामा का बेटा था, चायपानी के लिए पूछना उस का फर्ज था. जिस समय अजय मनमोहन के घर आया था, उस समय पूजा अलमारी खोल कर उस में कुछ सामान रख रही थी. अजय के आ जाने की वजह से वह अलमारी खुली छोड़ कर चाय बनाने चली गई.

अचानक अजय की नजर खुली अलमारी पर पड़ी तो वह यह सोच कर अलमारी की ओर चला गया कि संभव है उस में रखे कुछ रुपए उस के हाथ लग जाएं. लेकिन अलमारी में रखे जेवर देख कर उस की आंखें चमक उठीं.

गहने देख कर उसे लगा जैसे उस की कई दिन की नशापूर्ति का इंतजाम हो गया हो. उस ने अलमारी में रखे सारे गहने उठा लिए. तभी पूजा ने चाय ले कर कमरे में प्रवेश किया.

अजय को गहने चोरी करते देख वह भौचक्की रह गई. हैरान हो कर उस ने अजय के हाथों से गहने छीनने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘भैयाजी, यह आप क्या कर रहे हैं?’’

अजय के सिर पर तो नशे का भूत सवार था, सो उस ने पूजा को एक ओर धकेलते हुए घर से भाग जाने की कोशिश की. पर पूजा ने उस का रास्ता रोक लिया. वह किसी भी कीमत पर अजय को वहां से गहने ले कर नहीं जाने देना चाहती थी.

पूजा द्वारा विरोध करने पर अजय को ऐसा लगा जैसे वह उस की दुनिया छीन लेना चाहती हो. इसी छीनाझपटी में अजय ने पूजा का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया. पूजा की हत्या करने के बाद अजय घबरा गया. उस ने पूजा की लाश को एक सूटकेस में भरा और सूटकेस बैड में रख कर वहां से चुपचाप निकल आया.

काररवाई और पूछताछ के बाद पुलिस ने 22 फरवरी, 2019 को अजय को अदालत में पेश किया, जहां से अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत का वो अंधेरा मोड़ – भाग 2

इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं रखे जा सकते. यही उन दोनों प्रेमियों के साथ हुआ था. किसी ने गोपी के पति धोलू तक बात पहुंचा दी थी. शांतिप्रिय व खुद में मस्त रहने वाले धोलू के लिए यह खबर विचलित करने वाली साबित हुई.

कोई राह नहीं सूझी तो उस ने अपने बड़े साले इंद्रपाल, जो दबंग प्रवृत्ति का था, के साथ यह बात साझा कर ली. अगले दिन इंद्रपाल माणकथेड़ी पहुंच गया.

उस ने अपनी बहन गोपी को समझाया और राजेंद्र की दुकान पर पहुंच गया. उस ने राजेंद्र को ओछी हरकत से बाज आने व भविष्य में देख लेने की धमकी दे डाली. वहां से लौटते समय इंद्रपाल गोपी का मोबाइल फोन भी छीन ले गया.

दोनों प्रेमियों के बीच कई महीने तक बात होनी तो दूर दर्शन तक दुर्लभ हो गए. होली के दिन रंग में सराबोर हुआ राजेंद्र गोपी तक एक मोबाइल फोन पहुंचाने में सफल हो गया था. अब सावधानी के साथ दोनों प्रेमी 3-4 दिनों के अंतराल से बात करने लगे थे. लेकिन यह बात किसी तरह इंद्रपाल को पता चल गई.

24 जून को इंद्रपाल के ममेरे भाई की शादी थी. बारात में इंद्रपाल, राधेश्याम, मांगीलाल, सोनू आदि दोस्तों की ड्राइवरों के साथ लड़ाई हो गई. उक्त सभी पुलिस से बचने के लिए अपने जीजा धोलू के पास जा पहुंचे. वहां पर बहन और राजेंद्र की हकीकत जान कर इंद्रपाल का खून खौल उठा. पर धोलू ने कोई लफड़ा नहीं करने की हिदायत दे डाली थी.

2 महीने गुजर चुके थे. राजेंद्र की गुस्ताखी उसे अशांत किए हुए थी. पर उसे कोई राह नहीं सूझ रही थी. उस की योजना थी कि राजेंद्र को किसी अज्ञात स्थान पर बुला कर उस की जबरदस्त पिटाई की जाए, पर राजेंद्र को बुलाने की कोई तरकीब नहीं सूझ रही थी.

अगले ही पल उस की आंखें चमक उठीं. संगरिया में उस की एक महिला दोस्त संजू धानक रहती थी. संजू इंद्रपाल के लिए शरीर तो क्या जान देने को भी तैयार रहती थी. उस ने उसी समय संजू को राजेंद्र का मोबाइल नंबर दे कर राजेंद्र को प्रेम जाल में फांसने को कह दिया.

इंद्रपाल ने संजू को यह भी समझा दिया कि वह राजेंद्र को यह विश्वास दिला दे कि गोपी उस की पक्की सहेली है और वह उसी के कहने पर खुद को राजेंद्र को सौंप रही है.

संजू ने उसी समय राजेंद्र को फोन किया. राजेंद्र ने काल रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं? किस से बात करनी है?’’

सामने नारी कंठ की मीठी व आकर्षक आवाज में जवाब मिला, ‘‘प्यारे जीजाजी, घबराओ मत. हम भी आप को चाहने वाले हैं.’’ राजेंद्र की घबराहट भांप कर उस ने खुलासा कर दिया, ‘‘देख यार जीजा, मैं संजू और गोपी 2 बदन एक जान हैं. उसी ने आप का नंबर मुझे दिया है. वह कई दिन आप से संपर्क नहीं कर पाएगी,’’ संजू ने कहा.

‘‘संजू, मैं तो डर गया था. गोपी मेरा कितना खयाल रखती है.’’

‘‘देखो जीजाजी, जब भी आप को महिला बदन की तलब लगे, मुझे घंटी मार देना. लेकिन याद रखना, मैं 10-12 दिन में एक बार ही मिल सकूंगी. मेरी मजबूरी है.’’ संजू ने राजेंद्र को फांसने के लिए पासा फेंक दिया था.

प्रणय निवेदन का पासा फेंकने में संजू वास्तव में गोल्ड मैडलिस्ट थी. हकीकत यह थी कि विवाहिता संजू जो एक बच्चे की मां थी, पति से खटपट होने के कारण 2 साल से संगरिया स्थित पीहर में रह रही थी. गुजरबसर के लिए वह एक कपड़े की दुकान पर सेल्सगर्ल के रूप में काम कर रही थी.

इंद्रपाल के प्लान के मुताबिक, संजू अपने फोन में रिकौर्ड हर बातचीत इंद्रपाल तक पहुंचा देती थी. अब राजेंद्र संजू की सैक्सी बातों से प्रभावित हो कर उस का गुलाम बन चुका था.

इंद्रपाल का प्लान अब सही राह पकड़ चुका था. वह अपनी बहन गोपी का बचाव करने के लिए संजू को मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहा था. 16 जुलाई, 2022 को इंद्रपाल ने अपने दोस्तों राधेश्याम जीतराम, सोनू, मांगीलाल व एक नाबालिग प्रेम को अपनी ढाणी में बुला लिया.

इंद्रपाल ने संजू से कह दिया कि वह राजेंद्र को किसी तरह 17 जुलाई को रावतसर स्थित खेतरपाल मंदिर बुला ले. संजू ने ऐसा ही किया. उस ने 17 जुलाई की सुबह ही राजेंद्र को फोन कर कहा, ‘‘यार, आज मिलन का मूड है. मैं फ्री हूं. दोपहर तक रावतसर के खेतरपाल मंदिर पहुंच जाओ. वहां होटल में मौजमस्ती के लिए कमरा आराम से मिल जाता है.’’

हालांकि उस दिन राजेंद्र की शाम के समय एक समारोह की बुकिंग थी पर संजू से मिलने की चाहत में उस ने हां कर दी.

प्रेमिका का छलिया प्रेमी से इंतकाम – भाग 2

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड टीम तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. थानाप्रभारी के इशारे पर सिपाही रामवीर ने हथौड़े से कमरे का ताला तोड़ा. उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने कमरे में प्रवेश किया.

कमरे में प्रवेश करते ही पुलिस अधिकारी चौंक गए. सिपाही देशदीपक की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. पूरा शव खून से लथपथ चारपाई पर पड़ा था. उस की गरदन पर किसी तेज धार वाले हथियार से कई वार किए गए थे. जिस से उस की गरदन आधे से ज्यादा कट गई थी. किसी नुकीली चीज से भी वार किया गया था.

देखने से ऐसा लग रहा था कि किसी भारी प्रतिशोध के चलते उस की हत्या की गई थी. मृतक की उम्र 28 वर्ष के आसपास थी.

डौग स्क्वायड टीम ने घटनास्थल पर खोजी कुत्ता छोड़ा तो वह शव व अन्य सामान को सूंघ कर भौकता हुआ कमरे से बाहर निकला और बाजार होता हुआ रेलवे पटरी तक गया. टीम ने वहां हत्या से संबंधित सबूत खोजने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली. उस के बाद टीम वापस आ गई.

मौकाएवारदात पर फोरैंसिक टीम भी मौजूद थी. टीम ने कमरे की सघन तलाशी ली तो शराब की एक खाली बोतल, सैक्सवर्द्धक दवाएं, स्प्रे व कंडोम का पैकेट मिला. मृतक का मोबाइल फोन व पर्स गायब था.

टीम ने बिस्तर, चारपाई, दरवाजे की कुंडी व शराब की बोतल से फिंगरप्रिंट लिए तथा बरामद सामान को सुरक्षित कर लिया. सैक्स उपयोगी सामान मिलने से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि सिपाही की हत्या शायद अवैध संबंधों के चलते हुई है.

अब तक सिपाही देशदीपक की निर्मम हत्या की खबर कस्बा बिल्हौर में फैल गई थी. भारी भीड़ घटनास्थल पर उमड़ पड़ी थी. सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस अधिकारियों ने बिल्हौर कस्बा में पुलिस फोर्स की गश्त बढ़ा दी थी.

पुलिस टीमें अभी निरीक्षण कर ही रही थीं कि सूचना पा कर मृतक सिपाही के घर वाले घटनास्थल पर आ गए. इस के बाद तो वहां कोहराम मच गया. प्रमोद कुमार व उन की पत्नी शिवाला देवी बेटे का शव देख कर दहाड़ें मार कर रोने लगे. मृतक की पत्नी दिव्या उर्फ अंजलि भी पति का शव देख कर बिलख पड़ी. साथ आए अन्य परिजनों की आंखों से भी आंसू बहने लगे.

रोतेबिलखते घरवालों को एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह व डीएसपी (बिल्हौर) राजेश कुमार ने धैर्य बंधाया और बड़ी मुश्किल से शव से दूर किया. एडीजी भानु भास्कर ने मृतक सिपाही के मातापिता से वादा किया कि वह जल्द ही हत्या का परदाफाश कर हत्यारों को हथकड़ी पहनाएंगे.

घटनास्थल की प्रारंभिक काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने सिपाही देशदीपक के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल कानपुर भिजवा दिया. 3 डाक्टरों के एक पैनल ने शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद शव को घर वालों को सौंप दिया गया.

घर वाले देशदीपक के शव को पैतृक गांव दयापुर ले कर आए. पुलिस की टुकड़ी शव के साथ आई थी, जिस ने अंतिम संस्कार से पहले सलामी दी.

इधर एडीजी (कानपुर जोन) भानु भास्कर ने सिपाही हत्याकांड को बड़ी गंभीरता से लिया. हत्या के खुलासे के लिए उन्होंने स्वाट, सर्विलांस टीम सहित 6 टीमों का गठन किया और खुलासे की कमान एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह को सौंपी. भानु भास्कर ने हत्या का खुलासा करने वाली टीम को 50 हजार रुपए का ईनाम देने का ऐलान भी किया.

एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह ने पुलिस की 2 टीमों के साथ सब से पहले मकान मालिक रमेशचंद्र प्रजापति तथा उस मकान में रहने वाले अन्य किराएदारों से पूछताछ की.

पूछताछ से पता चला कि सिपाही देशदीपक के कमरे से एक युवक व एक युवती को आतेजाते देखा था. युवती दुपट्टे से मुंह ढंके रहती थी, जबकि युवक अंगौछे से. लेकिन किसी ने उन से टोकाटाकी नहीं की थी.

किराएदारों से पूछताछ के बाद एसपी तेजस्वरूप सिंह ने साइबर सेल को सिपाही देशदीपक के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने का आदेश दिया. साइबर सेल ने तब पिछले 6 महीने की काल डिटेल्स निकलवाई.

सिपाही देशदीपक के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स का अध्ययन पुलिस की 2 टीमों ने किया. एक टीम को बुधवार दोपहर (यानी पहली जून को) 12:26 बजे एक फोन की लोकेशन देशदीपक के घर के पास मिली. इस संदिग्ध नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि यह नंबर सीवान (बिहार) का है. इस नंबर पर देशदीपक की अकसर बात होती रहती थी.

पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई और उस नंबर की लोकेशन ट्रेस की तो लोकेशन सीवान जिले के बसंतपुर (खोड़ी पाकर) की मिली. टीम ने इस की जानकारी एसपी तेजस्वरूप सिंह को दी.

तेजस्वरूप सिंह ने तब एसआई मंसूर अहमद की अगुवाई में एक पुलिस टीम सीवान (बिहार) भेज दी. लगभग साढ़े 5 सौ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद मंसूर अहमद टीम के साथ सीवान जिले के बसंतपुर थाना पहुंचे और थानाप्रभारी मुकेश कुमार को अपने आने का मकसद बताया.

मुकेश कुमार ने उस संदिग्ध नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला यह नंबर लालसा कुमारी पुत्री भृगुनाथ सैनी निवासी बड़वा खुर्द के नाम दर्ज है.

पुख्ता जानकारी मिलने के बाद मंसूर अहमद ने अपनी टीम के साथ थाना बसंतपुर पुलिस के सहयोग से बड़वा खुर्द गांव में भृगुनाथ सैनी के घर छापा मारा और उस की बेटी लालसा कुमारी उर्फ लाली को हिरासत में ले लिया. उस के पास से पुलिस ने मृतक सिपाही देशदीपक का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. उसे थाना बसंतपुर लाया गया.

थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने सिपाही देशदीपक की हत्या करने की बात स्वीकार की और यह भी बताया कि हत्या में उस का साथ भाई के बेटे अभिषेक सैनी ने दिया था.

अभिषेक सैनी सारण जिले के मशरक थाना के दक्षिण टोला का रहने वाला है. यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने दक्षिण टोला (मशरक) से अभिषेक सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया.

4 जून, 2022 को एसआई मंसूर अहमद अपनी टीम के साथ सिपाही के हत्यारों को गिरफ्तार कर थाना बिल्हौर लौट आए और गिरफ्तारी की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह तथा डीएसपी राजेश कुमार भी थाना बिल्हौर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने लालसा कुमारी उर्फ लाली तथा अभिषेक सैनी से पूछताछ की तो दोनों ने सहज ही सिपाही देशदीपक की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, दोनों ने हत्या में प्रयुक्त चाकू, चापड़ तथा खून से सने कपड़े भी खाली पड़े प्लौट से बरामद करा दिए.

हत्या का खुलासा होते ही एसपी तेजस्वरूप सिंह ने प्रैसवार्ता की और आरोपियों को मीडिया के समक्ष सिपाही देशदीपक की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि हत्यारों ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी अरविंद कुमार सिंह ने मृतक के पिता प्रमोद कुमार को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत लालसा कुमारी तथा अभिषेक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.