प्रेमिका का छलिया प्रेमी से इंतकाम – भाग 4

अभिषेक सैनी सारण जिले के मशरक थाना के दक्षिण टोला में रहता था. वह उस के भाई का बेटा था. रिश्ते में भतीजा लगता था. 19 वर्षीय अभिषेक इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. लालसा ने अभिषेक को घर बुलवा लिया. उस ने जब अपने खतरनाक इरादों से उसे अवगत कराया तो अभिषेक कांप उठा. उस ने लालसा को समझाया भी, लेकिन वह नहीं मानी.

उस ने अभिषेक से कहा, ‘‘देशदीपक जैसे नाग को कुचलना ही होगा. उस ने आज मेरी जिंदगी बरबाद की है. कल किसी दूसरी लड़की की कर सकता है. वह किसी तरह की माफी के काबिल हरगिज नहीं है.’’

पक्का इरादा बनाने के बाद लालसा ने बसंतपुर से एक तेजधार वाला चापड़ और एक चाकू खरीदा और उसे छिपा कर बैग में रख लिया.

योजना के तहत पहली जून, 2022 की सुबह 4 बजे लालसा अपने भतीजे अभिषेक के साथ कानपुर आ गई. फिर 40 किलोमीटर का सफर बस द्वारा तय कर बिल्हौर कस्बा पहुंची. देशदीपक अपने कमरे में ही था. वह ड्यूटी पूरी कर एक घंटा पहले ही कमरे में आया था.

लालसा को देख कर वह मन ही मन खुश हुआ. लालसा भी उस से घुलमिल गई और मीठीमीठी बातें करने लगी. लालसा ने देशदीपक को आभास नहीं होने दिया कि वह कितने खतरनाक मंसूबों के साथ उस के पास आई है.

लगभग साढ़े 12 बजे देशदीपक की पत्नी अंजलि का फोन आया तो वह उस से रसीली बातें करने लगा. दोनों की बातों से लालसा का गुस्सा और बढ़ गया.

अभिषेक कमरे के बाहर कुरसी पर बैठा अखबार पढ़ रहा था. कमरे में लालसा और देशदीपक थे. देशदीपक, लालसा से शारीरिक मिलन करना चाहता था, सो वह उस से जबरदस्ती करने लगा.

उस ने जैसे ही लालसा को चारपाई पर खींचा तभी लालसा ने बैग से चाकू निकाल कर देशदीपक की गरदन पर वार कर दिया. इसी समय अभिषेक भी कमरे में आ गया. उस ने बैग से चापड़ निकाला और देशदीपक की गरदन पर प्रहार कर दिया.

गरदन आधी से ज्यादा कट गई और खून की धार बह निकली. इस के बाद तो लालसा ने चंडी का रूप धारण कर लिया और अभिषेक से चापड़ छीन कर कई वार देशदीपक की गरदन पर किए. जिस से उस की गरदन लगभग पूरी कट गई और उस की सांसें थम गईं.

हत्या करने के बाद लालसा और अभिषेक ने खून सने कपड़े बदले फिर खून सना चाकू, चापड़ तथा कपड़े बैग में रख लिए. लालसा ने देशदीपक का पर्स व मोबाइल फोन भी बैग में रख लिया. इस के बाद कमरे में बाहर से ताला लगा कर दोनों भाग निकले.

कुछ दूरी पर एक खाली प्लौट था. इस प्लौट की झाडि़यों में उन दोनों ने चाकू, चापड़ व खून सने कपड़े छिपा दिए और फरार हो गए. देशदीपक का फोन भी उन्होंने बंद कर दिया.

इधर हत्या की जानकारी तब हुई, जब देशदीपक के पिता प्रमोद कुमार ने देशदीपक से मोबाइल फोन पर बात न हो पाने की जानकारी एसआई नीरज बाबू को दी. नीरज बाबू एक सिपाही के साथ देशदीपक के कमरे पर पहुंचे, जहां उस की लाश पड़ी थी.

पुलिस ने आरोपी लालसा कुमारी उर्फ लाली व अभिषेक सैनी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद 5 जून,2022 को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.      द्य

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डर के शिकंजे में : विनीता को क्यों देनी पड़ी जान – भाग 3

ज्ञानेश्वर के ड्यूटी पर जाने के बाद वह वनिता को फोन कर के धमकी देता था कि अगर उस ने उस का कहना नहीं माना तो वह उस के बच्चों, मां और भाई की हत्या करवा देगा.

रावसाहेब की धमकी से वह इतनी घबरा गई थी कि उस के बुलावे पर उस की बताई जगह पर पहुंच जाती. रावसाहेब वनिता को कभी किसी फ्लैट में तो कभी किसी लौज या होटल में बुलाता था. उस के साथ मौजमस्ती कर के वह उसे भेज देता.

करीब 10 सालों तक चले इन संबंधों से वनिता ऊब चुकी थी. समाज और परिवार में उस की खूब थूथू हो रही थी. इस सब से बचने के लिए वनिता ने एक अहम फैसला लिया. उस ने रावसाहेब पर शादी का दबाव बनाना शुरू कर दिया.

जिस तरह से रावसाहेब उसे धमकाता था, वनिता ने भी उसे उसी अंदाज में धमकाना शुरू कर दिया. वनिता ने कहा कि अगर वह उस से शादी नहीं करेगा तो वह उसे कहीं का नहीं छोड़ेगी. वनिता की इस इस धमकी से वह बुरी तरह घबरा गया था.

इस के पहले कि वनिता उस के खिलाफ कोई कदम उठाती, रावसाहेब ने वनिता को ठिकाने लगाने के लिए एक खतरनाक योजना तैयार कर ली. पूरी योजना बनाने के बाद रावसाहेब दुसिंग ने अपनी कार में वनिता की मौत का सामान रखा और किसी बहाने से वनिता को कार में बैठा कर होटल वीरपार्क पहुंच गया.

होटल पहुंच कर पहले रावसाहेब ने वनिता के साथ मौजमस्ती की. फिर शादी की बात को ले कर दोनों में जोरदार तकरार हुई.

रावसाहेब ने अपनी योजना के अनुसार वनिता के साथ मारपीट की. फिर कमरे की कुरसी से वनिता को पीट कर घायल कर दिया. इस के बाद उस का गला घोंट कर हत्या कर दी.

इस के बाद उस की योजना थी कि वह उस की डैडबौडी को कहीं किसी सुनसान जगह पर ले जा कर पैट्रोल और कैमिकल डाल कर जला देगा, जिस से सारे सबूत नष्ट हो जाएंगे.

लेकिन उसे इस का मौका नहीं मिला. तब उस ने वनिता का शव होटल में ही छोड़ देने का फैसला किया.

इस के लिए पहले उस ने वनिता का चेहरा कैमिकल से जला कर खराब कर दिया. वह खुद होटल से निकल जाना चाहता था लेकिन उसे इस का भी मौका नहीं मिला.

रावसाहेब उस समय बहुत डर गया, जब पुलिस, कानून और हथकड़ी उस की आंखों के सामने घूमने लगे. इसी डर की वजह से उस ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

थानाप्रभारी नागेश मोरे के निर्देशन में महिला इंसपेक्टर सुप्रिया फड़तरे ने इस मामले की जांच पूरी की. चूंकि इस प्रकरण में हत्या और आत्महत्या करने वाला कोई भी जीवित नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी ने मामले की फाइल बंद कर दी.

चाहत का वो अंधेरा मोड़ – भाग 3

जेब में नकदी, एटीएम कार्ड, कैमरा आदि ले कर राजेंद्र रावतसर पहुंच गया था. खेतरपाल मंदिर तक पहुंचाने के लिए उस ने अपने ममेरे भाई सुभाष बावरी, जो नजदीकी गांव कणवाणी में रहता था, को फोन कर मोटरसाइकिल सहित रावतसर बुला लिया था.

सुभाष के साथ राजेंद्र बावरी 3 किलोमीटर दूर खेतरपाल मंदिर पहुंच गया था. वहां राजेंद्र व संजू ने फोन के सहारे एकदूसरे को पहचान लिया था. मेकअप से लकदक  व मनमोहक कपड़े पहने संजू राजेंद्र को हूर की परी लग रही थी.

संजू ने साथ में खड़े प्रेम को अपना भाई बताया. संजू ने चायपानी के बाद प्रेम को नजदीक गांव 4 सीवाईएम में छोड़ आने की बात कही थी.

इंद्रपाल की योजना के मुताबिक, प्रेम संजू और राजेंद्र को मोटरसाइकिल पर बिठा कर गांव के लिए चल पड़ा था. तब तक अंधेरा घिर आया था. जैसे ही कच्ची सड़क पर मोटरसाइकिल उतरी, वहीं घात लगाए बैठे पांचों दोस्त राजेंद्र पर टूट पड़े. लाठियां व ठोकरें लगने से घायल हुआ राजेंद्र बेहोश हो गया था. उन्होंने उसे घसीट कर झाडि़यों में डाल दिया. उसी दौरान राजेंद्र ने दम तोड़ दिया था.

सुबह एक अज्ञात राहगीर ने झाडि़यों में शव पड़े होने की सूचना रावतसर थाने में दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रविंद्र नरूका मौके पर पहुंच गए. लोगों ने उस की शिनाख्त गांव बड़ोपल निवासी धर्मपाल बावरी के बेटे फोटोग्राफर राजेंद्र के रूप में की.

पुलिस ने शव बरामद कर उस के घर वालों को सूचना दे दी थी. राजेंद्र के फोन में आखिरी काल संजू की थी. अत: पुलिस ने तुरंत संजू को हिरासत में ले लिया.

सख्ती से की गई पूछताछ में संजू ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. तब पुलिस ने संजू के बताए अनुसार, अन्य मुलजिमों की पहचान कर उन के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 364, 382, 201 व 120बी के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

रावतसर की डीएसपी सुश्री पूनम चौहान के निर्देश पर प्रकरण की जांच थानाप्रभारी रविंद्र नरूका ने अपने हाथ में ले ली थी.

पुलिस ने दबिश दी मगर संजू के अलावा अन्य आरोपी फरार हो गए थे. आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की 8 टीमों ने अथक भागदौड़ कर शेष आरोपियों जीतराम, सोनू, मांगीलाल, इंद्रपाल, राधेश्याम व नाबालिग प्रेम को अलगअलग जगहों से गिरफ्तार कर लिया.

रिमांड अवधि में पुलिस ने लाठियां, मोटरसाइकिल आदि बरामद कर प्रेम के अलावा सभी आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में भिजवा दिया था. प्रेम को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधार गृह भेज दिया. सभी आरोपी बावरी जाति से हैं जबकि संजू पत्नी शिवलाल निवासी संगारिया धानक है.

निर्मम हत्याकांड का चश्मदीद गवाह सुभाष बावरी है, जो अपने ममेरे भाई राजेंद्र को मंदिर छोड़ने पहुंचा था. सुभाष ने संजू व प्रेम के अलावा वहां संदिग्ध लग रहे अन्य आरोपियों को देखा था.

अपनी बहन गोपी के दांपत्य जीवन को बचाने के लिए इंद्रपाल के अविवेकपूर्ण निर्णय ने न केवल अपना बल्कि 6 अन्य नौजवानों का भविष्य भी अंधकारमय कर दिया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में प्रेम परिवर्तित नाम है.

प्यार में हद पार करने का खतरनाक नतीजा

अगस्त, 2016 की सुबह मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के थाना पुरानी छावनी के खेरिया गांव के अटल गेट के पास खेत में 24-25 साल के एक युवक की लाश पड़ी होने की सूचना गांव वालों ने पुलिस को दी तो अधिकारियों को सूचना दे कर थानाप्रभारी प्रीति भार्गव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गईं. वह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रही थीं कि एसपी हरिनारायण चारी मिश्र और एएसपी दिनेश कौशल भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर गांव वालों की भीड़ लगी थी. थानाप्रभारी प्रीति भार्गव ने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका. इस से साफ हो गया कि मृतक वहां का रहने वाला नहीं था. मृतक की जेबों की तलाशी ली गई तो उस की पैंट की जेब से मोटरसाइकिल की चाबी मिली. लाश से थोड़ी दूरी पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. पुलिस ने मृतक की जेब से मिली चाबी उस मोटरसाइकिल में लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. इस से पुलिस को लगा कि इस मोटरसाइकिल से मृतक की शिनाख्त हो सकती है.

पुलिस ने मोटरसाइकिल जब्त कर अन्य तमाम काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन जब पुलिस ने आरटीओ औफिस से मोटरसाइकिल के बारे में पता किया तो पता चला कि वह मोटरसाइकिल विनयनगर, सेक्टर 3, पत्रकार कालोनी के रहने वाले संतोष किरार की थी.

पुलिस ने उस के घर जा कर पता किया तो घरवालों ने बताया कि संतोष एक अगस्त की सुबह अपनी मोटरसाइकिल से निकला है तो अब तक घर लौट कर नहीं आया है. इस से पुलिस को लगा कि खेत में पड़ी लाश संतोष की हो सकती है. लेकिन जब पुलिस ने वह लाश उस के पिता रामकिशोर को दिखाई तो उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे संतोष की नहीं है. इस के बाद पुलिस को लगा कि इस हत्याकांड में संतोष की कोई न कोई भूमिका जरूर है.

प्रीति भार्गव लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश कर रही थीं कि शाम को थाना हजीरा के रहने वाले तुलसीराम पिछली शाम से गायब अपने बेटे की तलाश करतेकरते उन के पास आ पहुंचे. दरअसल, पिछली शाम को घर से निकला उन का बेटा शीतल न लौट कर आया था और न उस का फोन मिला था, तब परेशान हो कर वह थाना हजीरा में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंच गए थे. वहां से जब उन्हें बताया गया कि थाना पुरानी छावनी पुलिस ने एक लड़के की लाश बरामद की है तो वह थाना पुरानी छावनी पहुंच गए थे. थाना पुरानी छावनी पुलिस ने तुलसीराम को बरामद लाश दिखाई तो वह फफकफफक कर रोने लगे. इस के बाद उन्होंने खेतों में मिली लाश की शिनाख्त अपने बेटे शीतल की लाश के रूप में कर दी थी.

प्रीति भार्गव ने हत्यारे का पता लगाने के लिए तुलसीराम से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन की किसी से ऐसी दुश्मनी नहीं थी कि उन के बेटे की इस तरह हत्या कर दी जाती. उन से पत्रकार कालोनी के रहने वाले संतोष के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उस के बारे में जानने से मना कर दिया. तुलसीराम के बताए अनुसार, उन की किराने की दुकान थी. दोपहर को दुकान पर उन का बेटा शीतल बैठता था. इस तरह वह पिता के कारोबार में हाथ बंटाता था.

पुलिस ने हत्याकांड के खुलासे के लिए जितने भी लोगों से पूछताछ की, उन में से कोई भी ऐसी बात नहीं बता सका, जिस से वह हत्यारे तक पहुंच पाती. प्रीति भार्गव की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर शीतल खेरिया गांव क्यों गया? अगर वह संतोष के साथ वहां गया था तो उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि संतोष ने उसे मौत के घाट उतार दिया? यह सब जानने के लिए पुलिस को संतोष की तलाश थी. आखिर आठवें दिन काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वह असलियत छिपा नहीं सका और उस ने शीतल की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने शीतल की हत्या की जो कहानी सुनाई वह हैरान करने वाली तो थी ही, साथ ही आज के युवाओं में स्त्रीसुख की जो लालसा उपजी है, उस की हकीकत बयां करने वाली थी. पत्रकार कालोनी का रहने वाला इलेक्ट्रिशियन संतोष 31 जुलाई, 2016 की शाम घर लौट रहा था तो रेलवे स्टेशन के बाहर सड़क पर खड़े एक युवक ने उसे हाथ दे कर रोक कर कहा, ‘‘भाई साहब, मैं यहां काफी देर से किसी सवारी का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन कोई सवारी मिल नहीं रही है. अगर आप मुझे अपनी मोटरसाइकिल से लिफ्ट दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

संतोष ने उसे मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. इस के बाद उस युवक ने अपना नाम शीतल बताते हुए कहा, ‘‘हजीरा के इंद्रनगर में मेरे पिता की किराने की दुकान है. मैं उसी पर बैठता हूं. लेकिन अब मेरा मन दुकान पर बैठने को नहीं होता, इसलिए मैं नौकरी खोज रहा हूं. इंटरव्यू देने ही मैं झांसी जा रहा था, लेकिन दुर्भाग्य से मेरी ट्रेन छूट गई.’’

‘‘कोई बात नहीं, यार, मैं तुम्हारी नौकरी यहीं लगवा दूंगा.’’ संतोष ने कहा. विजयनगर पहुंचतेपहुंचते दोनों में ऐसी दोस्ती हो गई कि उन्होंने पीनेपिलाने का प्रोग्राम बना डाला. फिर इस नई दोस्ती के नाम पर दोनों में एकदूसरे को शराब पिलाने की होड़ लग गई, जिस में करीब 500 रुपए खर्च हो गए. शराब के नशे ने अपना असर दिखाया तो संतोष ने जाने कितनी बार शीतल को भरोसा दिलाया कि जल्द ही वह उस की नौकरी ग्वालियर में लगवा देगा.

उसे यह शहर छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जाना नहीं पड़ेगा. संतोष शीतल से बातें कर रहा था, तभी उस की प्रेमिका रेखा (बदला हुआ नाम) का उस के मोबाइल पर फोन आ गया. शीतल से उस की दोस्ती हो ही चुकी थी, इसलिए उस से बिना कुछ छिपाए वह रेखा से अश्लील यानी शारीरिक संबंधों की बातें करने लगा. संतोष रेखा से जो बातें कर रहा था, उन्हें सुनसुन कर शीतल उत्तेजित हो उठा. तब उस ने बिना किसी संकोच के संतोष से कहा, ‘‘कल तुम अपनी प्रेमिका से मिलने जा रहे हो न, मुझे भी कल उस से मिलवा दो.’’

‘‘तुम उस से मिल कर क्या करोगे?’’ संतोष ने कहा तो जरा भी झिझके बिना शीतल ने कहा, ‘‘जो तुम करोगे, वही मैं भी करूंगा.’’

इस पर संतोष नाराज होते हुए बोला, ‘‘रेखा ऐसी लड़की नहीं है. वह केवल मुझ से ही बातें करती है और केवल मुझ से उस के शारीरिक संबंध हैं.’’ उस समय तो संतोष ने शीतल को समझाबुझा कर उस के घर भेज दिया. लेकिन सुबह होते ही शीतल संतोष को फोन कर के कहने लगा कि वही उस का सच्चा दोस्त है. सिर्फ एक बार वह अपनी प्रेमिका से उसे भी मौजमजा ले लेने दे. यही नहीं, उस ने यहां तक पूछ लिया कि वह कितनी देर में रेखा को उस के पास भिजवा रहा है.

नए दोस्त के मुंह से सुबहसुबह प्रेमिका के बारे में ऐसी बातें सुन कर संतोष को गुस्सा आ गया. किसी तरह अपने गुस्से पर काबू पाते हुए उस ने कहा, ‘‘एक घंटे के भीतर तू मेरे घर आ जा, आज मैं तुझे रेखा से मिलवा ही देता हूं. तू भी याद करेगा कि कोई दोस्त मिला था.’’ शीतल के आने से पहले संतोष ने तय कर लिया था कि प्रेमिका पर बुरी नजर रखने वाले शीतल को अब वह जिंदा नहीं छोड़ेगा. जैसे ही शीतल उस के घर पहुंचा, वह उसे ले कर निकल पड़ा.

संतोष ने ठेके से शराब की 2 बोतलें खरीदीं और मोटरसाइकिल से शीतल को ले कर पुरानी छावनी की ओर चल पड़ा. वहां एक पेड़ के नीचे बैठ कर दोनों ने शराब पी. अपनी योजना के अनुसार संतोष ने शीतल को कुछ ज्यादा शराब पिला दी थी. शीतल को जैसे ही शराब का नशा चढ़ा, उस ने कहा, ‘‘चलो बुलाओ रेखा को. तुम ने उस के साथ बहुत मजा लिया है, आज मैं उस के साथ ऐसा मजा लूंगा कि वह भी याद करेगी.’’

संतोष रात से ही शीतल की इन बातों से जलाभुना बैठा था. उस ने पैंट की जेब में रखा चाकू निकाला और एक ही झटके में शीतल का गला रेत कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने शराब की बोतल उठा कर एक ही सांस में पूरी शराब पी ली और शीतल की लाश को वहीं अटल गेट के पास एक खेत में छोड़ कर चला आया. मोटरसाइकिल वह इसलिए नहीं ला सका, क्योंकि उस की मोटरसाइकिल रास्ते में शीतल ने चलाने के लिए ले ली थी और उस की चाबी उस ने अपनी जेब में रख ली थी.

इसलिए शीतल की हत्या करने के बाद जब संतोष ने अपनी जेब में मोटरसाइकिल की चाबी देखी. चाबी न पा कर नशे में होने की वजह से उसे लगा कि चाबी कहीं गिर गई है. हड़बड़ाहट में वह गाड़ी वहीं छोड़ कर घर चला और घर से कानपुर चला गया. उसे उम्मीद थी कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. एक सप्ताह तक वह निश्चिंत हो कर कानपुर में रहा. लेकिन शायद उसे पता नहीं था कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया जाए, एक न एक दिन उस का राज खुल ही जाता है. पैसे खत्म होने के बाद संतोष पैसे लेने के लिए जैसे ही घर आया, थानाप्रभारी प्रीति भार्गव ने उसे पकड़ लिया. संतोष से पूछताछ में पता चला कि उस ने शीतल की हत्या जिस खेत में की थी, लाश वहां नहीं मिली थी.

पुलिस ने खेत की रखवाली करने वाले सोनू कुशवाह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने लाश पड़ी देखी तो डर के मारे उस ने अपने रिश्तेदार सैकी कुशवाह की मदद से लाश ले जा कर खेरिया मोड़ पर अटल गेट के पास रमेश शर्मा के खेत में फेंक दी थी. पुलिस ने सोनू और सैकी को हिरासत में ले लिया. इन का दोष यह था कि इन्होंने लाश पड़ी होने की सूचना पुलिस को नहीं दी थी, इस के अलावा सबूत नष्ट किए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भिजवा दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जब प्यार में आया ट्विस्ट – भाग 3

यौवन की दहलीज पर पहुंच चुकी सीमा का गोरा रंग, छरहरी काया और बड़ीबड़ी आंखें लड़कों के लिए आकर्षण का केंद्र थीं. उस के यौवन की चमक से लड़कों की आंखें चौंधिया रही थीं. वे उस के आगेपीछे मंडराने लगे थे. लेकिन सीमा किसी को घास तक नहीं डालती थी.

अरुण पहली ही मुलाकात में सीमा का दीवाना हो गया. इस के बाद वह उस के खयालों में डूबा रहने लगा. सीमा घर से खेतखलिहान जाती तो वह उस का पीछा करता.

कुछ ही दिनों में सीमा को भी एहसास हो गया कि वह उस का पीछा करता है. लेकिन उस ने इस का विरोध नहीं किया. कारण, उसे भी अरुण का प्यारभरी नजरों से निहारना अच्छा लगने लगा था.

सीमा उम्र के नाजुक मुकाम पर थी. इसलिए उस के दिल के दरवाजे पर अरुण ने दस्तक दे दी.

मोहब्बत वह एहसास है, जो बिना लफ्जों के भी अपनी मौजूदगी का अहसास करा देती है. उन के साथ भी ऐसा ही हुआ था. एक दिन मौका पा कर अरुण ने हिम्मत कर के सीमा से सीधे कह दिया, ‘‘सीमा, तुम मुझे अच्छी लगती हो, इसलिए मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूं.’’

अरुण की बात पर सीमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘मैं ने सुना है कि अंजान लोगों से दोस्ती नहीं करनी चाहिए.’’

‘‘मैं अंजान कहां हूं. तुम मेरी बुआ के घर के पास रहती हो. मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूं. रही बात मेरी तो अपने बारे में बताए देता हूं कि मेरा नाम अरुण है और मैं मकान बनवाने का ठेका लेता हूं. लोग मुझे ठेकेदार के नाम से भी जानते हैं,’’ अरुण ने कहा.

उस दिन के बाद दोनों के बीच बातों और मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. दोनों बाहर मुलाकातें करते, घूमतेफिरते और इतने से भी मन नहीं भरता तो रात को फोन पर बतियाते.

बाद में अरुण ने सीमा के घर भी जाना शुरू कर दिया. लेकिन वह उस के घर यदाकदा और ऐसे वक्त पर घर जाता था, जब उस के पिता और भाई घर पर नहीं होते थे.

सीमा और अरुण का प्यार परवान चढ़ा तो दोनों शारीरिक मिलन को लालायित रहने लगे. आखिर जब उन से नहीं रहा गया तो दोनों सामाजिक मर्यादाओं को भूल गए और उन के बीच अवैध रिश्ता बन गया.

अवैध रिश्ता एक बार बना तो इस का दायरा बढ़ता ही गया. उन दोनों को जब भी मौका मिलता, अपनी शारीरिक भूख मिटा लेते.

कुछ समय बाद ही अवैध रिश्तों का अंजाम सामने आ गया. सीमा ने जब गर्भवती होने की जानकारी प्रेमी अरुण को दी तो उस के होश उड़ गए. सीमा ने शादी रचाने की बात अरुण से कही तो उस ने इंकार कर दिया. इस के बाद सीमा ने बदनामी से बचने के लिए अरुण की मदद से गर्भपात करा लिया.

सीमा बदनामी से तो बच गई, लेकिन उस के मन में यह बात घर कर गई कि अरुण उस से सच्चा प्यार नहीं करता. वह छलिया प्रेमी है. सीमा अब अरुण से दूरदूर रहने लगी.

अरुण उस की आर्थिक मदद कर तथा अपनी चिकनीचुपड़ी बातों में कभीकभी फंसा लेता था और उस से शारीरिक मिलन भी कर लेता था. नाराज होने पर अरुण ने सीमा को एक नया मोबाइल फोन भी दिया था.

इन्हीं दिनों अरुण कुमार की दोस्ती सपई गांव के संदीप व पवन कश्यप नाम के 2 सगे भाइयों से हो गई. संदीप कुंवारा था, जबकि पवन विवाहित था. पवन किसान था और उस का ज्यादातर समय खेतों पर ही बीतता था. संदीप बेरोजगार था. उस का खेतों पर भी मन नहीं लगता था.

संदीप और अरुण में दोस्ती हुई तो अरुण ने उसे भी अपने काम में लगा लिया. संदीप क्षेत्र में घूमता और नए बनने वाले मकानों की जानकारी अरुण को देता. अरुण को उस के जरिए जो ठेका मिलता, कमीशन के तौर पर कुछ रुपए वह संदीप को भी दे देता.

साथसाथ काम करने से अरुण और संदीप की गहरी दोस्ती हो गई थी. दोनों शराब के भी शौकीन थे. उन की जब भी शराब की महफिल जमती, पैसे अधिकतर अरुण ही खर्च करता था.

एक दिन संदीप ने अरुण को अपने घर दावत पर बुलाया. यहां अरुण की मुलाकात संदीप की भाभी पूनम से हुई. खूबसूरत पूनम को देख कर अरुण के दिल में हलचल मच गई. वह उसे हासिल करने के सपने संजोने लगा.

अरुण और संदीप साथ लाई बोतल खोल कर बैठ गए. बातें करते हुए अरुण शराब तो संदीप के साथ पी रहा था, लेकिन उस का मन पूनम में उलझा हुआ था. उस की नजरें भी लगातार उसी का पीछा कर रही थीं. अरुण को उस की खूबसूरती भा गई थी. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में पूनम का शबाब नशीला होता गया.

शराब का दौर खत्म हुआ तो पूनम खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर अरुण ने दिल खोल कर पूनम की तारीफ की. पूनम ने भी उस की बातों में खूब रस लिया. खाना खा कर अरुण अपने घर चला गया.

इस के बाद तो आए दिन संदीप के घर महफिल जमने लगी. इस महफिल में अब पूनम का पति पवन व संदीप का दोस्त अमित उर्फ गुड्डू भी शामिल होने लगा था. चूंकि पवन व अमित को मुफ्त में शराब पीने को मिलती थी और बोटी भी खाने को मिलती थी, सो वह अरुण के घर आने पर कोई ऐतराज न जताते थे.

अरुण अब पूनम से चुहलबाजी भी करने लगा था. पूनम भी उस की चुहलबाजी का बराबर जवाब देती थी. उस की आंखों में अरुण  को अपने लिए चाहत नजर आने लगी थी.

दरअसल, पूनम जब ब्याह कर ससुराल आई थी तो पति को देख कर उसे निराशा हाथ लगी थी. क्योंकि वह उस के सपनों का राजकुमार नहीं था.

उस का पति पवन एक सीधासादा इंसान था, जो अपने काम से काम रखता था और अपने परिवार में खुश था. पूनम की तरह वह न तो ऊंचे सपने देखता था और न ही उस की उड़ान ऊंची थी. उसे बनठन कर रहने का भी शौक नहीं था.

पूनम को पति का सीधापन बेहद अखरता था. वह चाहती थी कि उस का पति बनसंवर कर रहे. उसे मेला वगैरह घुमाने ले जाए, जबकि पवन को यह सब करना अच्छा नहीं लगता था. पवन की यह आदत पूनम को पसंद नहीं थी. लिहाजा उस का मन भटकने लगा. वह मौके की तलाश में थी.

तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत ने पहुंचा दिया मौत के पास – भाग 3

अब अड़ोसपड़ोस अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 103 में महिम लगभग रोज आने लगा. वह सधा हुआ खिलाड़ी था, जिस से उसे देख कर औरों की तरह जीभ लपलपाने के बजाय मुकम्मल सब्र से काम लेते हुए उसे फंसाया. चंदन का अंदाजा सही निकला, जल्दी ही तनु और महिम में शारीरिक संबंध बन गए. तनु की मर्द की जरूरत अब महिम पूरी करने लगा.

जब इन दोनों को यकीन हो गया कि तनु अब न नहीं करेगी तो एक दिन उन्होंने उस के सामने अपना ब्लैकमेलिंग वाला राज खोल कर उसे भी इस धंधे में शामिल होने का न्यौता दिया. इस पर तनु भड़क उठी और सीधेसीधे मना कर दिया. जोशजोश में दोनों ने अपने सारे राज उस पर खोल दिए थे कि वे कैसे शिकार को फंसा कर उसे ब्लैकमेल करते हैं.

चूंकि तनु से न की उम्मीद नहीं थी, इसलिए दोनों दिक्कत में पड़ गए. डर इस बात का था कि कहीं ऐसा न हो कि यह नादान लड़की कभी उन का राज दुनिया के सामने उजागर कर दे. फिर भी हिम्मत न हारते हुए चंदन और महिम उसे पटाने की कोशिशें करते रहे और ढेर सारी दौलत का सब्जबाग दिखाते रहे.

लाख मनाने के बाद भी तनु राजी न हुई तो चंदन और महिम ने उसे हमेशा के लिए रास्ते से हटाने का खतरनाक फैसला न केवल ले डाला, बल्कि उस पर इस तरह अमल भी कर डाला कि अगर अनीता सजगता न दिखातीं तो तनु की मौत हमेशा के लिए एक राज बन कर रह जाती.

इंदौर में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. सारे शहर की दुकानें बंद रहती हैं और जगहजगह रंगपंचमी के जुलूस निकलते हैं और लोग तबीयत से रंग का यह त्यौहार मनाते हैं.

17 मार्च को महिम, चंदन और तनु ने रंगपंचमी की पार्टी रखी, जिस में तनु ने छक कर भांग पी. नशा ज्यादा हो जाने से उस की तबीयत बिगड़ने लगी तो चंदन उसे अपने साथ ले गया. अगले 3-4 दिनों तक वह लगातार तनु के फ्लैट पर आता रहा तो एक दिन किसी पड़ोसन ने तनु के बारे में पूछ लिया. चंदन ने उसे बताया कि तनु का इलाज उस के पिता के घर चल रहा है. वह तो यहां दीपक रखने आता है.

सभी की निगाह में चूंकि चंदन तनु का पति था, इसलिए उस की बात पर किसी ने किसी तरह का शक नहीं किया. 25 मार्च को तनु का जन्मदिन था. उस दिन मौसी अनीता उसे बधाई देने के लिए फोन लगाती रहीं, पर उस का फोन लगातार स्विच्ड औफ जा रहा था. लिहाजा उन्होंने खुद उस के घर जा कर उसे बधाई देने का फैसला किया.

25 मार्च की सुबह जब वह तनु के फ्लैट पर पहुंची तो वहां झूलता ताला देख कर हैरान रह गईं, क्योंकि तनु बगैर बताए गायब थी. इस पर उन्होंने पड़ोस में पूछताछ की तो पता चला कि तनु ने ज्यादा भांग पी ली थी, इसलिए उस का पति चंदन उसे पिता के घर ले गया था.

अनीता ने श्याम सिंह को फोन किया तो जवाब मिला कि तनु तो उन के यहां नहीं आई है. वह किसी अनहोनी की आशंका से घबरा गए, साथ ही अनीता के माथे पर भी बल पड़ गए. उन्होंने चंदन को फोन किया तो उस का भी फोन नहीं लगा.

श्याम सिंह भागेभागे अनीता के पास आए और तनु की खोजबीन की. लेकिन वह कहीं नहीं मिली तो उन्होंने थाना तिलकनगर में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. तलाक होने के बाद भी चंदन तनु के पास आताजाता रहता था, यही बात पुलिस को चौंकाने वाली भी थी और सुराग देने वाली भी.

इंदौर के डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्र ने तनु की खोज के लिए एएसपी अमरेंद्र सिंह को नियुक्त कर दिया. उन्होंने पहले उन दोनों की जन्म कुंडलियां खंगाली तो जल्द ही सारा सच सामने आ गया.

पता चला कि चंदन और महिम अव्वल दरजे के ब्लैकमेलर हैं, पर अभी तक किसी ने उन के खिलाफ रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई है. अलबत्ता दोनों अन्नपूर्णा इलाके में सन 2012 में हुई गोलीबारी में भी शामिल थे. इन पर एक और दूसरा आपराधिक मामला इसी साल फरवरी में दर्ज हुआ था.

शक के आधार पर क्राइम ब्रांच ने चंदन और महिम को गिरफ्तार किया, पर पूछताछ में कुछ हासिल नहीं हुआ. दोनों ही पुलिस को गुमराह करने वाले बयान देते रहे. दरअसल, इस में दिक्कत यह थी कि एक पत्रकार था और दूसरा बड़े कांग्रेसी नेता का चेला. ऐसे में अगर इन के साथ जोरजबरदस्ती की जाती तो खासा बवाल मच सकता था.

सब कुछ साफ समझ में आ रहा था, इसलिए अमरेंद्र सिंह ने जोखिम उठाया और चंदन तथा महिम से सख्ती की तो वे टूट गए और सारा सच उगल दिया. सच बड़ा वीभत्स था. दोनों ने 17 मार्च को ही तनु की हत्या उस के फ्लैट में कर दी थी. भांग के नशे में चूर तनु को शायद पता भी नहीं चला था कि उसे किस ने और कैसे मार डाला. चूंकि त्यौहारी सन्नाटा था, इसलिए तनु की हत्या कर उस की लाश ज्यों की त्यों छोड़ कर दोनों अपनेअपने घर चले गए थे.

अगले दिन दोनों फिर फ्लैट पर आए और तनु की लाश के 16 टुकड़े कर उन्हें फ्रिज में ठूंस दिया, जिस से बदबू न आए. 3-4 दिन चंदन अपना डर मिटाने फ्लैट पर आताजाता रहा. चौथे दिन फ्लैट में दाखिल होते ही उसे मांस के टुकड़ों से गंध आती महसूस हुई तो दोनों ने मिल कर लाश के उन टुकड़ों को अलगअलग थैलियों में पैक कर के उन्हें कार में रख कर बड़वाह के जंगल में फेंक आए.

चंदन और महिम के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने के लिए जरूरी था कि तनु की लाश का कोई टुकड़ा मिले. इस बाबत पुलिस वाले लगातार भागादौड़ी करते रहे. पुलिस की आधा दर्जन टीमें जंगलों की खाक छानती रहीं, पर तनु की लाश का कोई टुकड़ा उन्हें नहीं मिला. नदियों में भी तलाशी ली गई, पर उस से भी कुछ हासिल नहीं हुआ. बस एक गुदड़ी ही बरामद हो पाई.

इस बिना पर आईपीसी की धाराओं 302 व 201 के तहत हत्या का मामला दर्ज कर पुलिस ने चंदन राजौरिया और पत्रकार महिम शर्मा को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. इन के बयानों से जो कहानी सामने आई, उसे आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं.

दोनों मुजरिमों ने अपने बयान में जुर्म जरूर स्वीकार कर लिया है, पर अदालत में उसे साबित कर पाना टेढ़ी खीर होगी, क्योंकि तनु की हत्या का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है, उस की लाश भी बरामद नहीं हुई है. इस के अलावा हत्या में प्रयुक्त हथियार भी नहीं मिले हैं. ऐसे में संदेह का लाभ उन्हें मिल सकता है. तय है, बचाव पक्ष का वकील यह दलील भी देगा कि इस से तो यह भी साबित नहीं होता कि वाकई तनु की हत्या हुई है. पुलिस ने जोरजबरदस्ती कर उस के मुवक्किलों से झूठ बुलवा लिया है.

अंजाम कुछ भी हो, पर अपनी इस हालत की एक बड़ी जिम्मेदार तनु खुद भी थी, जो 2 में से एक पति की भी न हुई और एक ऐसे ब्लैकमेलर पर अपना सब कुछ लुटा बैठी, जिस ने अंतत: उस की सांसें छीन लीं. क्योंकि वह गुनाह में उस का साथ देने को तैयार नहीं हो रही थी.

मोहब्बत पर भारी पड़ी सियासत – भाग 3

‘‘जाओ यहां से, मरने का शौक है तो सुसाइड का सामान भेज दूंगी. जो भी करना लाइव करना मैं अपने मायके से देखूंगी तुम्हारा तमाशा.’’ वंदना की बोली गई इस बात से विशाल भीतर से छिल गया. उस रोज चुपचाप घर आ गया, लेकिन दिमाग में खलबली मची रही.

खाना खाने के बाद विशाल अपने कमरे में आ गया था. रोज की तरह कंप्यूटर औन कर लिया था. कुछ समय काम करता रहा, लेकिन मन को एकाग्र नहीं कर पाया. फिर इंटरनेट पर देश दुनिया की खबरें पढ़ने लगा. उस में भी मन नहीं लग रहा था. इसी तरह आधी रात बीत चुकी थी.

अब नींद आने लगी थी. सोने की तैयारी करने लगा. कंप्यूटर शटडाउन करने के दौरान उस का ध्यान उस पौलीथिन में पर गया, जो वंदना का आदमी दे गया था.

उस ने पैकेट खोला. बड़ी मजबूती से पैक किया हुआ था. जैसे ही पैकेट का आखिरी आवरण हटा, वह चौंक गया. उस में रिवौल्वर था. वह भी गोलियों से भरा हुआ. रिवौल्वर देखते ही उस का माथा एक बार फिर भन्ना गया. उसे वंदना की वह बात याद आ गई. उस ने कहा था, ‘‘घर पर लाइसैंसी रिवौल्वर छोड़ कर आई हूं. दम है तो खुदकुशी कर के दिखाओ. मैं मां के घर टीवी के सामने बैठी हूं. सभी के साथ बैठ कर तुम्हारी मौत की खबर देखूंगी.’’

लोडेड रिवौल्वर देखने के बाद विशाल ने बेचैनी के साथ वंदना को कई काल किए. उस वक्त रात के 2 बज रहे थे. वंदना ने कोई काल रिसीव नहीं की. वह और भी बेचैन हो गया.

वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे और क्या नहीं. रिवौल्वर को पौलीथिन में रख कर सोने की कोशिश करने लगा. मन में कई तरह के खयाल आते रहे. एक खयाल सुबहसुबह वंदना के घर जा कर रिवौल्वर लौटाने का था जबकि दूसरा खयाल उस के ताने देने और किसी और के साथ चल रहे अफेयर का था. इन्हीं विचारों में कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

सुबह देर तक सोया रहा. कमरे का दरवाजा भिड़ा हुआ था. कमरे के बाहर चहलपहल शुरू हो चुकी थी. सभी अपनेअपने रोजमर्रा के काम से निपट कर पूजापाठ तक कर चुके थे. रसोई में सुबह का नाश्ता भी बनने लगा था.

मां ने वैशाली से कहा कि विशाल को जगा दे 10 बजने वाले हैं. इस पर वैशाली ने कहा जाग जाएंगे भैया. मां कुछ और बोलने ही वाली थी कि विशाल के कमरे से गोली चलने की आवाज आई.

सभी भागेभागे विशाल के कमरे में गए. उस ने कनपटी से रिवौल्वर सटा कर गोली मार ली थी. पिता अनूपम कुमार सिन्हा, मां शारदा सिन्हा व छोटी बहन वैशाली सिन्हा कमरे का दृश्य देख कर दहल गए. विशाल बैड पर खून से लथपथ पड़ा था. पास में एक रिवौल्वर पड़ी थी.

बुरी तरह से जख्मी विशाल को उस की छोटी बहन वैशाली तुरंत सगुना मोड़ स्थित एक प्राइवेट अस्पताल ले कर गई. उस की गंभीर हालत देख कर वहां के डाक्टर ने राजाबाजार स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान जाने को कहा. वहां देर शाम तक विशाल का इलाज हुआ, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका.

इतने समय में पूरे शहर में पत्रकार विशाल द्वारा गोली मार कर आत्महत्या की खबर फैल गई. खगौल थाने की पुलिस ने मामले की रिपोर्ट दर्ज कर ली. थानाप्रभारी फूलदेव चौधरी ने घटनास्थल का मुआयना किया. विशाल के सभी घर वालों के बयान लिए. उन में बहन वैशाली के बयान को प्रमुखता से रिपोर्ट में दर्ज किया गया.

वैशाली ने बताया कि घटना के बाद उस ने जब अपना मोबाइल देखा तब उस में विशाल का मैसेज था. मैसेज में विशाल ने खुदकुशी करने की बात लिखी थी. वह एक तरह से उस का सुसाइड नोट था.

इस के अलावा थानाप्रभारी फूलदेव चौधरी ने विशाल के कमरे से लाइसैंसी रिवौल्वर और एक मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर कमरे को सील कर दिया. इस से पहले फोरैंसिक जांच टीम ने नमूने इकट्ठा कर जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिए थे.

विशाल का सुसाइड नोट कंप्यूटर के टेबल पर मिला था. उसे ही विशाल ने वैशाली को वाट्सऐप किया था. इस में विशाल ने लिखा था, ‘मुझे सुसाइड के लिए वंदना और उस के बच्चों ने उकसाया है. वंदना ने इस के लिए मुझ से कहा था… दम है तो खुदकुशी कर के दिखाओ. मैं ने वंदना को कई फोन किए, लेकिन उस ने नहीं उठाया.’

विशाल ने सुसाइड नोट में यह भी लिखा कि वंदना और उस ने 2 अक्तूबर, 2020 को शादी कर ली थी.

वैशाली ने पुलिस को दिए बयान में साफतौर पर उस की खुदकुशी का आरोप वंदना पर लगाते हुए कहा कि वह भैया को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताडि़त कर रही थी. शादी को सामाजिक रूप से उजागर नहीं करना चाहती थी.

इस बयान और सुसाइड नोट के आधार पर 32 वर्षीय पत्रकार विशाल कुमार सिन्हा की मौत को ले कर 30 जुलाई, 2022 को खगौल थाने में 4 लोगों के खिलाफ नामजद मामला दर्ज कर लिया गया. इस में वंदना सिंह, उस के भाई मिथिलेश सिंह, अभिषेक सिंह और वंदना के नाबालिग बेटे को घटना का आरोपी बनाया गया. पुलिस इन के खिलाफ भादंवि की धारा 306, 34 आईपीसी, 25 (1-बी)/26/30 आर्म्स ऐक्ट के तहत मामला दर्ज किया.

पुलिस का मानना है कि जिस रिवौल्वर से विशाल ने खुद को गोली मारी थी, वह गैरलाइसेंसी है. घटना के बाद पुलिस ने विशाल के घर पर 9 एमएम का एक पिस्टल, जिस से विशाल ने खुद को गोली मारी थी, के साथ ही एक राइफल व 13 गोलियां भी बरामद कीं.

कथा लिखे जाने तक आरोपी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सके थे. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लए संभावित ठिकानों पर दबिशें डाल रही थी.     द्य