Haryana News: दोस्त के घर गई युवती की मिट्टी के ढेर में मिली लाश

Haryana News: एक ऐसी चौंकाने वाली वारदात सामने आई है, जिस ने पूरे गुरुग्राम को झकझोर कर रख दिया है. यह युवती अपनी फ्रेंड को फोन कर कहती है कि ‘2 घंटे में लौटती हूं.’ फिर इस युवती के साथ ऐसा क्या हुआ कि वह मिट्टी के ढेर में दफन पाई गई. आखिर क्या था इस हत्या का पूरा राज. चलिए जानते हैं इस क्राइम की स्टोरी को विस्तार से जो आप को इस घटना से अवगत कराएगी और होने वाले अपराध से भी सचेत करेगी.

यह दर्दनाक घटना हरियाणा के गुरुग्राम से सामने आई है. यहां एक हिंदू प्रेमी संजय ने असम की रहने वाली मुसलिम प्रेमिका जाबेदा खान का कत्ल कर दिया. जाबेदा खान ने फोन कर दोस्त को सूचित किया था कि वह 2 घंटे में वापस आ रही है. वह अपने प्रेमी संजय से मिलने गई हुई थी. फिर दोनों के बीच विवाद हुआ तो संजय ने जाबेदा की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद उस ने उस की लाश को मिट्टी में दबा दिया.

11 दिन बाद मिली सूचना ने पुलिस को भी हैरान कर दिया. इस के बाद आरोपी संजय को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है. उस ने पुलिस को बताया कि वह पहले जाबेदा को सुशांत लोक में अपने कमरे में ले कर गया था. वहां जा कर दोनों ने शारीरिक संबंध बनाए फिर दोनों के बीच किसी बात को ले कर विवाद हो गया. जब जाबेदा घर जाने लगी तो संजय उसे सुनसान जगह ले गया और वहां उस का गला दबा कर मार डाला तथा शव को मिट्टी में दबाकर फरार हो गया.

इस के बाद उस का फोन बंद था और 11 दिनों तक उस का कोई सुराग नहीं मिला. 10 दिसंबर, 2025 को पुलिस को जाबेदा की लाश मिली. इस के बाद पुलिस ने 24 घंटे के अंदर आरोपी संजय को अरेस्ट कर लिया. उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुलिस के अनुसार, जाबेदा के फ्रेंड ने पहली दिसंबर को गुरुग्राम के सेक्टर 17/18 थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. उस ने बताया था कि 27 नवंबर को उस की फ्रेंड जाबेदा खान ने कहा था कि वह 2 घंटे में वापस आएगी. लेकिन बाद में उस का फोन बंद हो गया. इस शिकायत के बाद ही पुलिस से काररवाई शुरू की थी.

अब पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. वह एसी रिपेयर का काम करता है. संजय अपने ताऊ के साथ सुशांत लोक, गुरुग्राम में रहता था. पुलिस उस से घटना के बारे में विस्तार से पूछताछ कर रही है. Haryana News

Family Crime: चरित्रहीन मां का गैरतमंद बेटा

Family Crime: भुलऊराम ने जो  हरकत की थी, कोई  भी गैरतमंद बेटा   बरदाश्त नहीं कर सकता था तो समयलाल कैसे बरदाश्त करता. आखिर मां की चरित्रहीनता ने उसे कातिल बना दिया. लंबी बीमारी के बाद ढेलाराम की जब मौत हुई तो पत्नी सुरजाबाई के लिए वह संपत्ति के नाम पर 6 बच्चे और एक छोटा सा मकान छोड़ गया था. गनीमत यह थी कि उस समय तक उस का बड़ा बेटा समयलाल 25 साल का हो चुका था. लड़का कमाने लायक हो गया था, इसलिए पति की मौत से सुरजाबाई को दिक्कतों का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ा.

सुरजाबाई जवान थी, इसलिए खुद तो मजदूरी करती ही थी, समयलाल ने भी बलौदा बाजार मंडी के सामने साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली थी. मांबेटे की कमाई से किसी तरह खींचखांच कर गुजरबसर होने लगा था. इस की वजह यह थी कि कमाई के साथसाथ बच्चे बड़े हो रहे थे, जिस से खर्च बढ़ता जा रहा था. सुरजाबाई गांव के ही राजमिस्त्री भुलऊराम के साथ मजदूरी करने बलौदा बाजार जाती थी. उस के साथ आनेजाने में उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह अपनी साइकिल से उसे साथ ले जाता और ले आता था.

सुरजाबाई अभी अधेड़ थी, इसलिए उसे मर्द की जरूरत महसूस होती थी. दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन रातें तनहाई में बेचैन करती थीं. तब जिस्मानी भूख उसे व्याकुल करती तो वह मन ही मन किसी ऐसे मर्द की कल्पना करती थी, जो उस की जिस्मानी भूख को शांत करता. उस की इस कल्पना में सब से पहले जिस का चेहरा आंखों के सामने आया, वह था भुलऊराम का, जिस के साथ वह पूरा दिन रहती थी. लोकलाज के भय से किसी तरह वह अपनी इस भूख को 2 सालों तक दबाए रही. लेकिन किसी भी चीज को आखिर कब तक दबाया जा सकता है. सुरजाबाई भी अपनी इस भूख को नहीं दबा सकी.

भुलऊराम ही सुरजाबाई के सब से करीब था. वह सुबह उस की साइकिल पर बैठ कर घर से निकलती थी तो सूर्यास्त के बाद ही घर लौटती थी. भुलऊराम था भी उस के जोड़ का. एक तो दोनों का हमउम्र होना, दूसरे पूरे दिन साथ रहने का नतीजा यह निकला कि वे एकदूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे.

एक दिन काम करते हुए भुलऊराम ने कहा, ‘‘सुरजा, काम तो तुम मेरे साथ करती हो, जबकि मैं देखता हूं तुम्हारा मन कहीं और रहता है.’’

‘‘भुलऊ, तुम ठीक कह रहे हो. दिन तो तुम्हारे साथ गुजर जाता है, लेकिन रात गुजारे नहीं गुजरती. ऐसे में मन तो भटकेगा ही.’’ भुलऊराम को घूरते हुए सुरजाबाई ने कहा.

भुलऊराम ने जानबूझ कर यह बात कही थी. सुरजाबाई ने जवाब भी उसी तरह दिया था. वह कुछ कहता, उस के पहले ही सुरजाबाई बोली, ‘‘भुलऊ, तुम्हारी पत्नी कुछ दिनों के लिए मायके चली जाती है तो तुम्हें कैसा लगता है?’’

भुलऊराम ने सहज भाव से कहा, ‘‘मैं तो 10 दिनों में ही बेचैन हो जाता हूं. नहीं रहा जाता तो ससुराल जा कर ले आता हूं.’’

‘‘तुम 10 दिनों में ही बेचैन हो जाते हो, यहां तो मेरे पति को मरे 2 साल हो गए हैं. मेरी क्या हालत होती होगी, कभी सोचा है?’’ सुरजाबाई ने बेचैन नजरों से ताकते हुए कहा.

भुलऊराम इतना भोला नहीं था, जो सुरजाबाई के मन की बात न समझता. लेकिन वहां और भी तमाम लोग थे, इसलिए दोनों मन मसोस कर रह गए. दोनों ने उस दिन समय से पहले ही काम निपटा दिया और घर की ओर चल पड़े. सावन का महीना था, आसमान में घने काले बादल छाए थे. दोनों आधे रास्ते पहुंचे थे कि हवा के साथ बरसात शुरू हो गई. भुलऊराम ने एक पेड़ के नीचे साइकिल रोक दी. बरसात की वजह से रास्ता सूना हो गया था. दोनों भीग गए  थे, इसलिए उन के शरीर के उभार झलकने लगे थे. उस मौसम में रहा नहीं गया तो भुलऊराम ने सुरजा का हाथ थाम लिया. सुरजा ने उस की आंखों में झांका तो उस ने कहा, ‘‘सुरजा, तुम्हारा बदन तो तप रहा है. तुम्हें बुखार है क्या?’’

सुरजा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘भुलऊ, यह बुखार की तपन नहीं, यह तपन दिल में जो आग जल रही है, उस की है. आज तुम ने इस आग को और भड़का दिया है. अब तुम्हीं इस आग को बुझा सकते हो. आज रात को मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. दरवाजा खुला रहेगा और मैं दहलीज में ही लेटूंगी.’’

भुलऊराम ने चाहतभरी नजरों से सुरजा को ताका और फिर साइकिल पर सवार हुआ तो पीछे कैरियर पर सुरजा बैठ गई. गांव आते ही सुरजा अपने घर चली गई तो भुलऊ अपने घर चला गया. कपड़े बदल कर उस ने खाना खाया और सब के सोने का इंतजार करने लगा. गांवों में तो वैसे भी लोग जल्दी सो जाते हैं. भुलऊराम के गांव वाले भी सो गए तो वह सुरजाबाई के घर की ओर चल पड़ा. बरसात होने की वजह से मौसम ठंडा था. बरसाती मेढक टर्रटर्र कर रहे थे तो झींगुरों की तीखी आवाज सन्नाटे को तोड़ रही थी. 5 मिनट बाद वह सुरजाबाई के घर के सामने खड़ा था. उस ने हलके हाथ से दरवाजा ठेला तो वह खुल गया. उस ने धीरे से आवाज दी, ‘‘सुरजा… ओ सुरजा.’’

सुरजा जाग रही थी. इसलिए उस के आवाज देते ही वह उस के सामने आ कर खड़ी हो गई. उस का हाथ थाम कर धीरे से फुसफुसाई, ‘‘बड़ी देर कर दी.’’

‘‘घर वाले जाग रहे थे. जब सब सो गए, तभी निकला. इसी चक्कर में देर हो गई.’’ भुलऊराम ने कहा.

सुरजा भुलऊराम का हाथ पकड़ कर कमरे में ले आई. उसे चारपाई पर बैठा कर खुद भी सट कर बैठ गई. तन की आंखों से भले ही वे एकदूसरे को नहीं देख रहे थे, लेकिन मन की आंखों से वे एकदूसरे का तनमन सब देख रहे थे.

सुरजाबाई ने भुलऊराम का हाथ थाम कर कहा, ‘‘तुम एकदम चुप हो. कुछ सोच रहे हो क्या?’’

भुलऊराम विचारों के भंवर से निकल कर बोला, ‘‘कल की सुरजा में और आज की सुरजा में कितना अंतर है.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रहे हो, मैं समझी नहीं?’’ सुरजा ने पूछा.

‘‘सुरजा थोड़ा ही सही, लेकिन तुम ने खुद को बदला है, यह अच्छी बात है. इंसान के मन को जो अच्छा लगे, वही करना चाहिए.’’

इस के बाद सुरजाबाई का मिजाज बदलने लगा. उसने भुलऊराम के कंधे पर हाथ रखा तो उस के सोए हुए अरमान जाग उठे. उस की पत्नी 15 दिनों से मायके गई हुई थी, इसलिए वह औरत की नजदीकी पाने के लिए बेचैन था. सुरजाबाई तो सालों से प्यासी थी. भुलऊराम पर टूट पड़ी. इस तरह भुलऊराम और सुरजाबाई के बीच नए संबंध बन गए. इस के बाद घरबाहर जहां भी मौका मिलता, दोनों संबंध बना लेते. वैसे भी दोनों दिन भर साथ ही रहते थे. आतेजाते भी साथ थे, इसलिए उन्हें न मिलने में दिक्कत थी, न संबंध बनाने में. इस के अलावा दोनों अपनी मर्जी के ही नहीं, घर के भी मालिक थे, इसलिए उन्हें कोई रोकटोक भी नहीं सकता था.

लेकिन जब दोनों का मिलनाजुलना खुलेआम होने लगा तो उन के संबंधों की चर्चा गांव में होने लगी. इस के बाद सुरजाबाई को बिरादरी वालों ने बाहर कर दिया. दूसरी ओर भुलऊराम की पत्नी भी इस संबंध का विरोध करने लगी. बिरादरी से बाहर किए जाने के बाद सुरजाबाई का बड़ा बेटा समयलाल भी मां के इस संबंध का विरोध करने लगा. इस की एक वजह यह भी थी कि गांव में सब समयलाल का मजाक उड़ाते थे. इसलिए पहले उस ने मां को समझाया. इस पर भी वह नहीं मानी तो उस ने सख्ती की. लेकिन अब तक वह भुलऊराम के साथ संबंधों की आदी हो चुकी थी, इसलिए बेटे के रोकने पर उस ने कहा,

‘‘किस के लिए मैं दिनरात मेहनत करती हूं, तुम्हीं लोगों के लिए न? इतनी मेहनत कर के अगर मुझे किसी के साथ 2 पल की खुशी मिलती है तो तुम लोगों को परेशानी क्यों हो रही है?’’

‘‘तुम जिस तरह मुझे बहका रही हो, मैं सब जानता हूं. इस दुनिया में ऐसी तमाम औरतें हैं, जिन के पति मर चुके हैं, क्या वे सभी तुम्हारी तरह नाक कटाती घूम रही हैं. अपना नहीं तो कम से कम बच्चों का खयाल करो. तुम मां के नाम पर कलंक हो.’’ समयलाल गुस्से में बोला.

‘‘आज तू मुझे सिखा रहा है. कभी सोचा है मैं ने किन परिस्थितियों से गुजर कर तुम लोगों को पाला है. तुम्हारा बाप क्या छोड़ कर गया था? सिर्फ बच्चे पैदा कर के मर गया था. आज जो बकरबकर बोल रहा है, मुझे कुलटा कह रहा है, इस लायक मैं ने ही अपना खून जला कर बनाया है.’’ सुरजा गुस्से में बोली, ‘‘गनीमत है कि मैं तुम लोगों के साथ हूं. अगर छोड़ कर चली गई होती, तो…?’’

‘‘छोड़ कर चली गई होती, तभी अच्छा रहता. लोग आज हमारी हंसी तो न उड़ाते.’’

‘‘मुझे तुम से कोई सीख नहीं लेनी. मैं जैसी हूं, वैसी ही रहने दे. तुझ से नहीं देखासुना जाता तो तू घर छोड़ कर चला जा. और सुन, आज के बाद इस मामले में मुझ से कोई बात भी मत करना.’’ सुरजा ने साफ कह दिया कि कुछ भी हो, वह उन लोगों को छोड़ सकती है, पर भुलऊराम को नहीं छोड़ सकती.

इसी तरह दिन महीने बीतते रहे. न तो भुलऊराम ने अनीति का रास्ता छोड़ा और न ही सुरजाबाई ने. धीरेधीरे 3 साल बीत गए. इस बीच समयलाल ने मां को न जाने कितनी बार समझाया, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आई. समयलाल खून का घूंट पी कर समय से तालमेल बिठाने की कोशिश करता रहा, लेकिन लाख प्रयास के बावजूद वह इस बदनामी को झेल नहीं सका, क्योंकि पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. उस दिन यानी 3 अप्रैल को तो हद हो गई. अभी तक जो चोरीछिपे होता था, उस दिन सब के सामने ही भुलऊराम सुरजा से मिलने आ धमका. हुआ यह कि शाम को बलौदा बाजार से लौटते समय सुरजाबाई और भुलऊराम ने रास्ते में गोश्त और शराब खरीद लिया था.

घर आ कर सुरजा गोश्त बना रही थी कि कपड़े बदल कर भुलऊराम आ गया. इस के बाद दोनों शराब पीने लगे. खाना खातेखाते दोनों ने इतनी पी ली कि भुलऊराम को जहां सुरजाबाई के अलावा कुछ और नहीं दिखाई दे रहा था, सुरजा का भी कुछ वैसा ही हाल था. दोनों की हरकतों से तंग आ कर समयलाल ने भुलऊराम के पास जा कर कहा, ‘‘रात काफी हो गई है, अब तुम अपने घर जाओ. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘मैं घर जाऊं या यहां सोऊं, तुम मुझ से कहने वाले कौन होते हो?’’ भुलऊराम ने कहा.

समयलाल को गुस्सा आ गया. वह अंदर से चारपाई का पाया उठा लाया और उसी से भुलऊराम पर हमला कर दिया. उस ने पूरी ताकत से पाया भुलऊराम के सिर पर मारा तो उस की खोपड़ी पहली ही बार में फट गई. फिर तो उस ने उसे तभी छोड़ा, जब वह मर गया. उसे मार कर वह घर से गायब हो गया. सुबह गांव वाले दिशामैदान के लिए गांव से बाहर निकले तो बाठी में उन्हें एक लाश दिखाई दी. पल भर में इस की चर्चा पूरे गांव में फैल गई. लाश औंधे मुंह पड़ी थी, उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था, इस के बावजूद गांव वालों को उसे पहचानने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. लाश भुलऊराम की थी. भुलऊराम के भाई पुनीतराम ने बलौदा बाजार के थाना सिटी जा कर भाई की हत्या की सूचना दी.

हत्या का मामला था, इसलिए थानाप्रभारी डी.के. मरकाम ने घटनास्थल पर जाने से पहले घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. जिस से उन के घटनास्थल पर पहुंचतेपहुंचते आईएसपी अभिषेक सांडिल्य, एसडीएपी सी.पी. राजभानु भी घटनास्थल पहुंच गए थे. लाश की स्थिति से ही पता चल रहा था कि हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी गई थी. लाश वहां घसीट कर लाई गई थी. पुलिस जब लाश घसीट कर लाने के निशान की ओर बढ़ी तो वह निशान सुरजाबाई के घर जा कर खत्म हो गया था.

मृतक भुलऊराम की साइकिल वहां से 2 सौ मीटर की दूरी पर खड़ी मिली. पूछताछ में पता चला कि वह उसी के यहां गया था और सुरजाबाई से उस के संबंध थे तो पुलिस के लिए आशंका की कोई बात नहीं रही. पुलिस ने सुरजाबाई और उस के बड़े बेटे समयलाल को हिरासत में ले लिया. इस तरह पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने से पहले ही अभियुक्तों को पकड़ लिया था. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मांबेटे को ले कर थाने आ गई.

थाने आ कर पहले मृतक के भाई पुनीतराम की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज किया, उस के बाद समयलाल से पूछताछ शुरू की. सख्ती के डर से उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर के भुलऊराम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी. भुलऊराम के उस की मां से संबंध हैं, यह वह जानता ही था. सब कुछ जान कर भी वह चुप था. लेकिन उस दिन तो भुलऊराम ने हद ही कर दी. उस के यहां शराब पी कर खाना खाया. खाना खाने के बाद उस के सामने ही वह उस की मां से अश्लील हरकतें करने लगा. उस ने मना किया तो उस ने अपने सारे कपड़े उतार कर कहा, ‘‘मैं यहीं तेरे सामने ही तेरी मां से संबंध बनाऊंगा, देखता हूं तू क्या करता है.’’

भुलऊराम ने जो कहा था, और जो करने जा रहा था, समयलाल की जगह कोई भी गैरतमंद बेटा होता, बरदाश्त नहीं कर सकता था. उस से भी नहीं बरदाश्त हुआ. उस ने इधरउधर देखा, चारपाई का एक पाया पड़ा दिखाई दिया. उस ने उसे उठाया और भुलऊराम पर पिल पड़ा. इस के बाद तो वहां खून ही खून नजर आने लगा. भुलऊराम खून में डूबता गया. भुलऊराम की हत्या कर के समयलाल अपने दोस्त के यहां चला गया. सुबह जब वह घर पहुंचा तो लाश वहां नहीं थी. लाश बाठी तक कैसे पहुंची, उसे मालूम नहीं.

इस के बाद पुलिस ने सुरजाबाई से पूछताछ की तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं दरवाजे के पास खड़ी सब देख रही थी. मैं पतिता ही सही, पर इस की मां हूं. साहब मेरी वजह से आज यह हत्यारा हो गया है. इसे बचाने के लिए मैं लाश को घसीट कर बाठी में डाल आई और सुबह होने से पहले गोबर से लिपाई कर के खून साफ कर दिया.’’

इस के बाद समयलाल की निशानदेही पर पुलिस ने चारपाई का पाया, खून से सने उस के कपड़े बरामद कर लिए. सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने समयलाल और उस की मां सुरजाबाई को कोर्ट में पेश किया, जहां से उस की मां को रायपुर की महिला जेल तो समयलाल को बलौदा बाजार जेल भेज दिया गया. Family Crime

Hindi Crime Stories: ममता को दी मौत

Hindi Crime Stories: पैसों के लिए जितेंद्र मां से झोपड़ी बचेने को कह रहा था जबकि मां झोपड़ी बेचना नहीं चाहती थी. जितेंद्र ने झोपड़ी तो बेच दी लेकिन ममता का कत्ल कर के. जितेंद्र को पैसों की सख्त जरूरत थी, लेकिन कहीं से जुगाड़ नहीं बन रहा था. क्योंकि उसे जितने पैसों की जरूरत थी, उतने कोई उधार नहीं दे सकता था. उस के पास इतनी प्रौपर्टी भी नहीं थी कि किसी बैंक से कर्ज मिल जाता. उस के पास कोई ऐसी जमापूंजी भी नहीं थी कि उसी से काम चला लेता. मजदूरी कर के भी वह उतने पैसे इकट्ठा नहीं कर सकता था.

बाप मनीराम पहले ही किसी दूसरी औरत के चक्कर में उसे और उस की मां को छोड़ कर चला गया था. गांव में औरतों को न तो ठीक से काम मिलता था और अगर काम मिलता भी था तो ठीक से मजदूरी नहीं मिलती थी, इसलिए फिरतीन बाई एकलौते बेटे जितेंद्र को गांव में छोड़ कर बिलासपुर आ गई थी, जहां उसे ठीकठाक काम के साथ अच्छी मजदूरी भी मिल रही थी, जिस से उस का गुजर तो आराम से हो ही रहा था, 4 पैसे बच भी रहे थे. जो पैसे बचते थे, महीने में एक बार वह गांव जा कर बेटे की मदद कर देती थी.

बिलासपुर में रहने के लिए फिरतीन बाई ने सरकारी जमीन पर एक झोपड़ी बना रखी थी. यह बात जितेंद्र को पता थी. उसे यह भी पता था कि वह झोपड़ी आराम से 60-70 हजार में बिक सकती है. इसलिए जब जितेंद्र को पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने मां से झोपड़ी बेचने को कहा. लेकिन फिरतीन बाई इस के लिए राजी नहीं हुई. क्योंकि उसे पता था कि जब तक उस के हाथपैर चल रहे हैं, वह इस झोपड़ी में रह कर कमाखा रही है. जो 4 पैसे बचते हैं, उस से बेटे की मदद कर देती है.

बुढ़ापे के लिए उस का हाथ खाली था. उस की जो जमापूंजी थी, वही झोपड़ी थी. कल को हाथपैर नहीं चलेगा तो इस झोपड़ी को बेच कर किसी तरह वह गांव में गुजरबसर कर लेगी. अगर वह अभी झोपड़ी बेच देती है तो सारे पैसे बेटा ले लेगा. उस के बाद वह खाली हाथ हो जाएगी. बेटे पर उसे भरोसा नहीं था कि बुढ़ापे में वह उस की सेवा करेगा. फिरतीन अपने बारे में सोच रही थी तो जितेंद्र अपने बारे में. उसे किसी भी तरह रुपए चाहिए थे. पहले तो जब मां गांव आती थी, तभी वह उस से झोपड़ी बेचने को कहता था.

लेकिन जब मां ने साफ मना कर दिया तो वह मां को मनाने शहर भी जाने लगा, क्योंकि उस की मंशा भांप कर मां ने गांव आना बंद कर दिया था. एकदो बार तो वह अकेला ही गया, लेकिन जब मां ने हामी नहीं भरी तो दबाव डालने के लिए वह रिश्तेदारों को ले कर जाने लगा. काफी कोशिशों के बाद भी फिरतीन बाई झोपड़ी बेचने को राजी नहीं हुई तो अंत में जितेंद्र मां को समझाने के लिए अपने ससुर तिहारूराम को ले कर मां की झोपड़ी पर पहुंचा. समधी पहली बार फिरतीन बाई की झोपड़ी पर आया था, इसलिए उस ने उस की अपनी हैसियत के हिसाब से आवभगत की. नाश्तापानी के बाद झोपड़ी बेचने की बात चली तो तिहारूराम दामाद का पक्ष ले कर फिरतीन बाई को समझाने लगा.

समधी के समझाने पर भी जब फिरतीन बाई झोपड़ी बेचने को राजी नहीं हुई तो जितेंद्र को गुस्सा आ गया. वह उठा और मां के पास जा कर बोला, ‘‘मां, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए झोपड़ी तो तुम्हें बेचनी ही पड़ेगी. सीधे नहीं बेचोगी तो…’’

जितेंद्र की बात पूरी होती, उस के पहले ही फिरतीन बाई बोली, ‘‘तो क्या तू जबरदस्ती मेरी झोपड़ी बिकवा देगा. झोपड़ी मेरी है, जब मैं चाहूंगी तभी बेचूंगी, नहीं चाहूंगी तो नहीं बेचूंगी. तू कौन होता है मेरी झोपड़ी बिकवाने वाला.’’

‘‘मां, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. अगर सीधेसीधे बेच दे तो अच्छा रहेगा, वरना…’’

‘‘वरना क्या…मैं झोपड़ी कतई नहीं बेचूंगी, तुझे जो करना हो कर ले.’’ फिरतीन बाई चीखी.

‘‘देख, मैं क्या कर सकता हूं…’’ कह कर जितेंद्र ने मां के बाल पकड़े और जमीन पर पटक दिया. फिरतीन बाई ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है. इसलिए बेटे की इस हरकत पर वह हक्काबक्का रह गई. वह कुछ कहती या करती, जितेंद्र ने अपना दाहिना पैर उठाया और मां के गले पर रख दिया.

फिरतीन बाई ने गला छुड़ाने के लिए दोनों हाथों से जितेंद्र का पैर पकड़ कर हटाना चाहा, लेकिन तब तक तो वह अपना पैर गले पर इस तरह जमा चुका था कि वह टस से मस नहीं कर पाई. गले पर दबाव पड़ा तो वह छटपटाई. लेकिन वह ठीक से छटपटा भी नहीं सकी, क्योंकि जितेंद्र के ससुर तिहारूराम ने उस के दोनों पैर पकड़ लिए थे. पलभर में जितेंद्र ने ससुर की मदद से मां का खेल खत्म कर दिया. अब उन के सामने फिरतीन बाई की लाश पड़ी थी. लाश छोड़ कर वे जा नहीं सकते थे. अगर वहां लाश पड़ी रहती तो झोपड़ी बिक नहीं सकती थी. बाद में लोग उसे लेने से कतराते. अगर कोई लेता भी तो औनेपौने दाम में लेता, इसलिए ससुरदामाद लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे.

जितेंद्र ने टीवी पर आने वाले सीरियल सीआईडी में देखा था कि कोई लाश 2 थानों या 2 जिलों की सीमा पर मिलती है तो मामला सीमा विवाद में उलझ कर रह जाता है. इसलिए उस ने मां की लाश को 2 जिलों की सीमा पर फेंकने का विचार किया. उस का सोचना था कि सीमा पर लाश फेंकने पर मामला सीमा विवाद में तो उलझेगा ही, लाश की शिनाख्त भी जल्दी नहीं हो पाएगी. तब पुलिस किसी भी सूरत में उस तक नहीं पहुंच पाएगी. यही सब सोच कर उस ने ससुर से बात की और लाश को बोरे में भर कर उसे ठिकाने लगाने के लिए मोटरसाइकिल से बलौदा बाजार सीमा की ओर चल पड़ा.

बिलासपुर के थाना पचपेड़ी के अंतर्गत बलौदा बाजार और बिलासपुर जिलों की सीमा पर स्थित गांव नयापारा रहटाटोर के पास शिवनाथ नदी पर बने बांध में उन्होंने लाश फेंक दी और अपनेअपने घर चले गए. इस के बाद जितेंद्र ने बिलासपुर जा कर मां की झोपड़ी यह कह कर 67 हजार रुपए में बेच दी कि उस की मां अब गांव में ही रहेगी. इस तरह जितेंद्र ने मां की हत्या कर के झोपड़ी बेच दी. उसे पूरा विश्वास था कि पुलिस उस तक कतई नहीं पहुंच पाएगी. इस की वजह यह थी कि उन्होंने लाश दूसरे जिले यानी बलौदा बाजार जिले में फेंकी थी, जबकि वह रहती बिलासपुर जिले में थी.

हुआ भी वही. 3 मार्च को बलौदा बाजार पुलिस को बांध में लाश पड़ी होने की सूचना मिली. लेकिन बलौदा बाजार पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुंची. तब जिला बिलासपुर के घटनास्थल के नजदीकी थाना पचपेड़ी पुलिस ने जा कर लाश कब्जे में ली और घटनास्थल की काररवाई निपटा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. घटनास्थल पर लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर पता चला कि महिला की गला दबा कर हत्या की गई थी, इसलिए थाना पचपेड़ी पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज करा दिया. थाना पचपेड़ी पुलिस को पूरा विश्वास था कि लाश जहां पड़ी थी, वह स्थान बलौदा बाजार जिले के अंतर्गत आता है, इसलिए उन्होंने मामले की फाइल बलौदा बाजार पुलिस को भेज दी.

लेकिन जब बलौदा बाजार के एसपी ने नापजोख कराई तो पता चला कि जिस स्थान पर लाश पड़ी थी, वह स्थान जिला बिलासपुर के अंतर्गत ही आता है तो उन्होंने फाइल बिलासपुर के एसपी को भिजवा दी. बिलासपुर के एसपी बद्रीनारायण मीणा ने कत्ल के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया और थाना पचपेड़ी पुलिस को निर्देश दे कर फाइल सौंप दी. कत्ल के इस मामले की जांच चौकीप्रभारी वाई.एन. शर्मा को सौंपी गई. इस मामले में सब से मुश्किल काम था लाश की शिनाख्त कराना. श्री शर्मा ने मृतका की शिनाख्त के लिए बिलासपुर के ही नहीं, बलौदा बाजार के भी सभी थानों से पता किया कि इस तरह की महिला की कहीं कोई गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

उन की यह कोशिश असफल रही. क्योंकि इस तरह की महिला की गुमशुदगी किसी थाने में दर्ज नहीं थी. इस के बाद एसपी श्री मीणा ने लाश के फोटो के पैंफ्लेट छपवा कर घटनास्थल से 30 किलोमीटर की रेंज में चस्पा कराने का आदेश दिया. लाश के फोटो वाले पैंफ्लेट गांवगांव चस्पा कराए गए. इस का परिणाम यह निकला कि जिला बलौदा बाजार की पुलिस चौकी लवन के अंतर्गत आने वाले गांव चिचिरदा के रहने वाले फागुलाल ने मृतका की पहचान अपनी बहन फिरतीन बाई के रूप में कर दी. इस के बाद वाई.एन. शर्मा ने जांच आगे बढ़ाई तो संदेह के घेरे में मृतका का बेटा जितेंद्र आ गया. इस की वजह यह थी कि उस ने थाने में मां की गुमशुदगी नहीं दर्ज कराई थी. झोपड़ी बेचते समय उस ने सभी को यही बताया था कि मां अब गांव में रहेगी. लेकिन वह गांव में भी नहीं थी.

पुलिस जितेंद्र को पकड़ कर थाना पचपेड़ी ले आई. पूछताछ में पहले तो उस ने मां की हत्या से इनकार किया. लेकिन जब पुलिस ने उस के साथ सख्ती की तो मजबूर हो कर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि मां के झोपड़ी बेचने से मना करने पर उसी ने अपने ससुर तिहारूराम के साथ मिल कर मां की हत्या की थी. इस के बाद जितेंद्र की निशानदेही पर वाई.एन. शर्मा ने उस के ससुर तिहारूराम को गिरफ्तार कर के वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जिस से उन्होंने लाश को ठिकाने लगाया था. सारे साक्ष्य जुटा कर पुलिस ने 28 वर्षीय जितेंद्र और 60 वर्षीय तिहारूराम को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

जितेंद्र से पूछताछ में पता चला कि फिरतीन बाई और उस के भाई के खिलाफ 1991 में बलवा और हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह डेढ़ साल तक जेल में रही थी. Hindi Crime Stories

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Illicit Affair: मामी की मोहब्बत में

Illicit Affair: राहुल और संतोष को जब नर्मदा ने नशे में अपने और सुनीता के संबंधों के बारे में बताया तो दोनों का खून खौल उठा. इस के बाद तो उन्होंने न संबंधों का खयाल रखा और न दोस्ती का. न र्मदा प्रसाद ने 36 वर्षीया मुंहबोली मामी सुनीता के साथ पहली बार शारीरिक संबंध बनाए तो खुद को जांबाज मर्द समझने लगा. बेरोजगारी की वजह से नर्मदा पहले न किसी से प्यार कर पाया था और न किसी से शारीरिक संबंध बनाए थे. इस तरह का खेल उस ने अपने दोस्तों के मोबाइल पर जरूर देखा था. तब उसे लगा था कि यह खेल सचमुच में खेला जाए तो जरूर बड़ा मजा आएगा.

सुनीता के साथ उसी की पहल पर जब पहली बार जिंदगी के इस हसीन सुख से रूबरू हुआ तो सुख के इस समुद्र में डूबतातैरता हुआ वह समझ नहीं पाया कि इस में उस की खुद की कोई खूबी नहीं, बल्कि सुनीता मामी की हिदायतें और सीखें ज्यादा थीं. सुनीता को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह एकदो नहीं, बल्कि 3 बच्चों की मां है.

36 की उम्र में भी उस का अंगअंग सांचे में ढला लगता था. यह कुदरत की ही मेहरबानी थी. क्योंकि वह फिटनैस के लिए रईस औरतों की तरह न किसी फिटनैस सेंटर या जिम में जाती थी, न ही सुंदर दिखने के लिए किसी ब्यूटीपौर्लर में. हां, घर के कामकाज जरूर उसे अपने हाथों से करने पड़ते थे, क्योंकि पति की इतनी आमदनी नहीं थी कि वह कामवाली रख लेती. लेकिन पति की कमाई इतनी कम भी नहीं थी कि फांके मारना पड़ता या किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ता. भोपाल से सटे औद्योगिक इलाके मंडीदीप में फैक्ट्रियों की भरमार है, जहां आसपास या मध्य प्रदेश के ही नहीं, देश भर के लोग काम की तलाश में आते हैं. नौकरी मिल जाने पर ज्यादातर लोग यहीं बस गए हैं. देश की जिन नामी कंपनियों ने यहां फैक्ट्रियां लगा रखी हैं, उन में एक बड़ा नाम दवा बनाने वाली कंपनी ल्यूपिन का भी है, जिस में हजारों मजदूर काम करते हैं.

उन्हीं हजारों लोगों में एक 37 वर्षीय कुंवर सिंह तोमर भी है, जो फैक्ट्री में नौकरी करते हुए जानता था कि अगर बच्चों और साथ रह रहे भाई राहुल को कुछ बनाना है तो उन्हें बेहतर पढ़ाई मुहैया कराना जरूरी है. लिहाजा वह लगन और मेहनत से नौकरी तो करता ही था, साथ ही शाम को ड्यूटी खत्म होने के बाद पानीपूरी का ठेला भी लगाता था. इस से उसे 3-4 सौ रुपए रोज की ऊपर की आमदनी हो जाती थी. सालों पहले जब कुंवर सिंह हरदा जिले के नीमगांव से मंडीदीप आया था तो अन्य लोगों की तरह खाली हाथ था. लेकिन धीरेधीरे घरगृहस्थी की जरूरत की सारी जरूरी चीजें जमा हो गई थीं. पास में कुछ पैसे भी हो जाएं, इस के लिए वह शाम को पानीपूरी का ठेला लगाने लगा था.

इस काम में उसे न शरम आती थी, न ही हिचक महसूस होती थी. मिलनसार होने की वजह उस का यह धंधा बढि़या चल निकला था. मंडीदीप में हर कोई उसे जानने भी लगा था. फैक्ट्री में अपनी ड्यूटी करने के बाद वह देर रात तक पानीपूरी बेच कर इतना थक जाता था कि घर आते ही खाना खा कर बिस्तर पर लुढ़क कर खर्राटे भरने लगता. यह बात कई बार सुनीता को बेहद नागवार गुजरती, लेकिन वह कुछ कह नहीं पाती थी. क्योंकि कुंवर सिंह बच्चों और घरगृहस्थी की बेहतरी के लिए ही अपना खूनपसीना एक कर रहा था. पति की इस मजबूरी की वजह से सुनीता बिस्तर पर करवटें बदलते हुए आहें भरती रहती. ऐसे में 12 साल पहले हुई शादी के बाद के दिनों को याद कर के सोने की कोशिश में वासना की आग बुझने के बजाय और भड़क उठती.

किसी तरह उसे नींद आती तो सुबह जल्दी उठ कर घर के कामकाज और बच्चों की तीमारदारी में लग जाना होता. मन ही मन घुट रही सुनीता की समझ में आने लगा था कि अब कुछ नहीं हो सकता. कुंवर सिंह उस के जज्बातों को समझ नहीं सकता. उसे रोज इसी तरह मछली की तरह तड़पना होगा. सुनीता के मन में बारबार यही खयाल आता कि पति को वह कैसे समझाए कि 3 बच्चों की मां बन जाने से औरत की शारीरिक सुख की लालसा कम नहीं हो जाती, बल्कि और बढ़ जाती है. लेकिन यह बात वह कहतेकहते रह जाती. ज्यादा बच्चे न हों, पति के कहने पर उस ने नसबंदी करा ली थी. इस पूरी कशमकश में अच्छी बात यह थी कि अभी तक उस के मन में पराए मर्द का खयाल नहीं आया था. शायद आता भी न, अगर नर्मदा प्रसाद का इस तरह उस के घर आनाजाना न होता.

यह नए साल यानी 2015 की शुरुआत की बात थी, जब एक दिन कुंवर सिंह ने सुनीता से कहा कि होशंगाबाद से भांजा नर्मदा प्रसाद काम की तलाश में उन के घर आने वाला है. नर्मदा को कभी सुनीता ने देखा नहीं था, लेकिन अपने पति की मुंहबोली बहन को वह अच्छी तरह जानती थी, जो कभीकभार उस के यहां राखी बांधने आती थी. और अगर नहीं आ पाती थी तो डाक से भेज देती थी. नर्मदा की मां और उस के पति ने एक ही गुरु से दीक्षा ली थी, इस नाते वह भाईबहन हो गए थे. वे इस रिश्ते का पूरी तरह सम्मान करते थे और हैसियत के मुताबिक निभाते भी थे.

नर्मदा प्रसाद जब मंडीदीप आया तो कुंवर सिंह ने उस की हर तरह से मदद की. पहले तो सिफारिश कर के उसे एक ग्लास फैक्ट्री में नौकरी दिलवाई. इस के बाद मंडीदीप मोहल्ला वार्ड नंबर 2 में अपने घर के सामने ही किराए पर कमरा दिलवा कर रहने की व्यवस्था कर दी. कुंवर सिंह उसे एकदम सगे भांजे की तरह मानता था. यह बात सचमुच मिसाल थी, क्योंकि वजहें कुछ भी हों, आजकल लोग सगे रिश्तों को भी इस तरह नहीं निभा पाते. इधर मुद्दत से काम की तलाश में भटक रहे बेटे को नौकरी मिली तो होशंगाबाद में रह रही उस की मां को भी तसल्ली हुई कि अब बेटे की जिंदगी पटरी पर आ जाएगी.

रायसेन में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे नर्मदा प्रसाद के पिता लक्ष्मीनारायण ने भी बेटे की नौकरी लगने पर बेफिक्री की सांस ली और मन ही मन सोचने लगे कि साल, 2 साल नर्मदा नौकरी कर ले तो अच्छी सी लड़की देख कर उस की शादी कर के गृहस्थी बसाने की जिम्मेदारी पूरी कर देंगे. होशंगाबाद से हो कर बहती नर्मदा नदी की वजह से उसी का प्रसाद मान कर लक्ष्मीनारायण ने बेटे का नाम नर्मदा प्रसाद रखा था. तब उन्हें शायद इस बात का अहसास नहीं था कि मंडीदीप जा कर उस की जिंदगी की नदी एकदम उलटी बह कर अनर्थ कर डालेगी.

नर्मदा जब मंडीदीप में रहने लगा तो स्वाभाविक रूप से मामा के घर उस का जानाआना होता रहा. शुरुआत में तो सुनीता ने उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि पहले से ही उस के काफी रिश्तेदार और जानपहचान वाले मंडीदीप में रहते थे. ऐसे में पति ने इस मुंहबोले भांजे को ला कर उस का सिरदर्द और बढ़ा दिया था. लेकिन उस के लगातार आनेजाने से जल्दी ही वह खुद को फिर से जवान समझने लगी थी. वजह थी नर्मदा की उस के हसीन जिस्म को भेदती नजरें. हट्टाकट्टा और खूबसूरत नर्मदा जब अपनी इस मुंहबोली मामी को देखता तो लाख कोशिश के बाद भी वह मन में उठ रहे वासना के तूफान को चेहरे पर आने से रोक नहीं पाता.

भांजे के मन की बात का अहसास होते ही सुनीता का दिल उछलने लगा था कि नर्मदा चोरीछिपे उस के जिस्म को नापतातौलता रहता है. अकसर उस की निगाहें उस के उभारों पर आ कर ठहर जातीं. यह जानने के बाद उस ने नर्मदा को बातों और हरकतों से शह देना शुरू कर दिया. अब वह सीने को पल्लू से ढंकने के बजाय अकसर गिरा देती और उसी तरह गिरा रहने देती, जिस से नर्मदा उस से नजरें बचा कर अपनी मुराद पूरी कर सके. इस के बाद दोनों में बातें तो खूब होने ही लगीं, मजाक भी होने लगा. धीरेधीरे उन के मजाक में दोअर्थी शब्द भी आने लगे. सुनीता की शारीरिक सुख की कामना अंगड़ाईयां लेने लगीं. सामने बैठा मर्द क्या सोच रहा है, यह एक औरत ही बेहतर समझ सकती है. अब यह उस की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह उसे पहली सीढ़ी पर ही रोक दे या फिर छत तक जाने दे.

सुनीता ने तो अपनी तरफ से पूरा दरवाजा ही खोल दिया था, लेकिन यह नर्मदा के मन की हिचकिचाहट और डर था कि आंखों के सामने मिठाई रखे होने के बाद भी वह उसे उठा कर खाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. लेकिन आंखों से देखने से पेट तो भर नहीं सकता था. यही हालत सुनीता की भी थी और नर्मदा की भी. इस का मतलब आग दोनों तरफ बराबर लगी थी, बस भड़कने का इंतजार था कि पहल कौन करे. नर्मदा अपने दिल की बात इशारों से कहता तो सुनीता खुश होने के साथसाथ झल्ला भी उठती थी कि कैसा बेवकूफ लड़का है, सारी छूट दे रखी है, इस के बावजूद यह सिर्फ आग सुलगा कर चला जाता है. आखिरकार एक दिन सुनीता के सब्र का बांध टूट गया और उस ने पूछ लिया, ‘‘यूं चोरीछिपे देखते ही रहोगे कि मुंह से कहोगे भी कि तुम चाहते क्या हो?’’

नर्मदा इतना नादान और बेवकूफ भी नहीं था कि इतने पर भी चुप रहता. सुनीता की इस पहल पर उस ने वही किया, जो कोई भी युवक करता. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था, इसलिए उस ने सुनीता को बांहों में उठाया और बिस्तर पर ला पटका. इस के बाद वह उस पर छा गया. अब कहनेसुनने को कुछ नहीं रह गया था. वासना एक तेज तूफान आया और एक नौसिखिया तथा एक तजुर्बेकार तैराक अपनेअपने तरीके से उस में गोते लगाने लगे. सुनीता को मुद्दत बाद मर्द का सुख मिला था, इसलिए वह उस पर निहाल हो उठी. दूसरी ओर नर्मदा भी अपने कमरे में आ कर निढाल सा बिस्तर पर पड़ कर कुछ देर पहले भोगे सुख को याद कर के रोमांचित होने लगा.

उस ने शारीरिक सुख के बारे में जो सुना और पढ़ा था, उस का असली सुख तो उस से कहीं ज्यादा था. इस के बाद यह लगभग रोज की बात हो गई. नर्मदा फैक्ट्री से आता तो सीधे सुनीता के पहलू में जा समाता. मौके की कमी नहीं थी, उस समय बच्चे खेलने गए होते थे और राहुल अपने दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाने में मशगूल रहता था. उन दोनों के इस नाजायज रिश्ते के बारे में कोई शक भी नहीं करता था. इस की वजह कुंवर सिंह का व्यवहार और इन दोनों की सतर्कता थी. उम्र में अपने से कुछ छोटे राहुल को भी नर्मदा ने इस तरह पटा लिया था कि वह भी इस बारे में सोच नहीं सकता था.

धीरेधीरे सुनीता और नर्मदा के शारीरिक संबंध प्यार में बदल गए और दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. यही नहीं, उन का यह प्यार इस हद तक परवान चढ़ा कि दोनों अपना बच्चा पैदा करने के बारे में सोचने लगे. इस के लिए सुनीता नसबंदी का औपरेशन खुलवाने को भी तैयार हो गई. चूंकि मंडीदीप में रहते दोनों शादी नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने भाग कर शादी करने का फैसला कर लिया. सुनीता भूल गई कि वह 3 बच्चों की मां और गरीब ही सही, पर एक इज्जतदार आदमी की पत्नी है, जिस का समाज और रिश्तेदारी में अपना अलग रसूख है.

नर्मदा भी मामा का एहसान भूल गया कि इस शख्स ने भागदौड़ कर किस तरह नौकरी दिलाई और मंडीदीप में जमने में मदद की. शायद उतनी सहायता तो सगा मामा भी नहीं करता और उस ने एवज में क्या किया, इस मुंहबोले मामा की पीठ में छुरा घोंप दिया. नर्मदा और सुनीता सारी दुनियादारी और जिम्मेदारियां भूल कर नई दुनिया बसाने की तैयारी में जुट गए थे. मई के पहले सप्ताह में चिलचिलाती गरमी में नर्मदा, राहुल और सुनीता की बहन के लड़के संतोष को शराब की पार्टी देने होशंगाबाद ले गया. मंडीदीप और होशंगाबाद के बीच औबेदुल्लागंज में रुक कर तीनों ने छक कर शराब पी. नर्मदा आदतन शराबी था, लेकिन उस दिन ज्यादा पी लेने की वजह से उस का दिमाग काबू से बाहर होने लगा. राहुल और संतोष को काफी दिनों बाद मनमाफिक पीने की मिली थी, वह भी मुफ्त में, इसलिए वे दोनों भी धुत होते जा रहे थे.

शराब का नशा क्यों नुकसानदेह कहा जाता है, यह जल्दी ही सामने आ गया. नशे की झोंक में डींगे हांकते हुए नर्मदा ने राहुल और संतोष को हमदर्द समझते हुए उन के सामने सुनीता के साथ के अपने संबंध उजागर कर दिए. उस ने दिल की बात जिस तरह कही, वह सुन कर राहुल का खून खौल उठा. लेकिन उस समय उस ने खामोश रहना ही बेहतर समझा, क्योंकि नशे की हालत में वह कुछ नहीं कर सकता था. दूसरे नर्मदा कितना सच और कितना झूठ बोल रहा था, इस का भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था. नर्मदा के मुंह से यह सुन कर कि जल्दी ही भाग कर दोनों शादी करने वाले हैं, उसे लगा कि दाल में जरूर कुछ काला ही नहीं है, बल्कि पूरी दाल ही काली है.

अपनी भाभी को मां की तरह चाहने और इज्जत देने वाले राहुल का नशा उड़ चुका था. वह बदले की आग में जल रहा था. तीनों पार्टी खत्म कर के मंडीदीप वापस आ गए और सो गए. अगले दिन राहुल ने जिस अंदाज में सुनीता और नर्मदा को बातें करते देखा, उस से उसे ताड़ते देर नहीं लगी कि बीती रात नशे में ही सही, नर्मदा ने जो कहा था, वह गलत नहीं था. अब राहुल की दिमागी स्थिति गड़बड़ाने लगी. कल तक जो नर्मदा उसे पक्का दोस्त लगता था, वह दुश्मन नंबर एक लगने लगा. उसी के साथ मां समान लगने वाली भाभी कुलटा लग रही थी, जो देवता समान पति की धोखा देने में तनिक भी नहीं हिचकिचा रही थी.

क्या किया जाए, यह सवाल राहुल को मथे डाल रहा था. भाई से कहता तो तय था कि वह उस की बात पर यकीन नहीं करते और बेवजह बात का बतंगड़ बनाते. मुमकिन है, भाभी भी उस पर ही उलटासीधा इलजाम लगा देती. हैरानपरेशान राहुल ने संतोष से बात की, जो खुद पिछली रात से तनाव में था कि उस की मौसी ऐसी है. दोनों ने मिल कर तय किया कि अब नर्मदा की हत्या के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है. इस के लिए दोनों ने तुरंत योजना भी बना डाली. शाम के वक्त नर्मदा उन्हें मिला तो दोनों ने ऐसी ऐक्टिंग की, मानों बीती रात क्या हुआ था, उसे वे भूल चुके थे या फिर उस से उन्हें कोई सरोकार नहीं था. इतराते हुए उन्होंने नर्मदा से फिर शराब पिलाने को कहा तो नर्मदा खुशीखुशी तैयार हो गया.

तय हुआ कि आज कलियासोत बांध पर चल कर पी जाए. तीनों बांध पर पहुंचे और पीनी शुरू कर दी. फर्क इतना था कि आज राहुल और संतोष दिखावे के लिए घूंटघूंट पी रहे थे, जबकि नर्मदा को ज्यादा से ज्यादा पिलाने की कोशिश कर रहे थे. नशा चढ़ा तो नर्मदा ने फिर अपने और सुनीता के संबंधों के बारे में बताना शुरू कर दिया. ये बातें राहुल और संतोष के कानों में पिघले शीशे की तरह उतर रही थीं. सुनतेसुनते जब यकीन हो गया कि नर्मदा को इतना नशा चढ़ गया है कि वह कुछ नहीं कर सकता तो दोनों ने एकदूसरे को इशारा किया.

इस के बाद वे उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार करने लगे. नर्मदा के शरीर को चाकुओं से गोद कर उस के चेहरे पर एक भारी पत्थर पटका. जब उन्हें तसल्ली हो गई कि यह मर चुका है तो उन्होंने लाश को वहीं कचरे के ढेर में छिपा दिया और मंडीदीप वापस आ गए. दूसरे दिन 8 मई को थाना मिसरोद के थानाप्रभारी के.एस. मुकाती को किसी अज्ञात आदमी ने फोन द्वारा सूचना दी कि कलियासोत नदी के पुल के नीचे एक नौजवान की सिर कुचली लाश पड़ी है तो वह फौरन पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश देख कर ही पुलिस समझ गई कि मामला हत्या का है. मृतक की पहचान के लिए जब उस की तलाशी ली गई तो जेब से मिली परची पर लिखे फोन नंबर से उस की पहचान नर्मदा प्रसाद के रूप में हो गई.

शुरुआती जांच में पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ. राहुल और संतोष से भी पूछताछ हुई, लेकिन उन्होंने इस तरह इत्मीनान से जवाब दिए कि पुलिस का शक उन पर नहीं गया. उन्होंने कहा था कि नर्मदा की किसी से कोई रंजिश नहीं थी, इसलिए उसे कोई क्यों मारेगा. नर्मदा की मौत शायद रहस्य बन कर रह जाती, अगर उस की मां के बयान न लिए जाते. उस ने अपने बयान में सीधे तो नहीं, लेकिन इशारों में बता दिया था कि नर्मदा के अपनी मुंहबोली मामी सुनीता से नाजायज ताल्लुकात थे. इस के बाद पुलिस के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं रह गया. अपने बयान में राहुल और संतोष यह बात छिपा गए थे कि पिछली रात वे नर्मदा के साथ कलियासोत नदी पर गए थे. पुलिस ने दोनों के हलक में अंगुली डाली तो सारी कहानी बाहर आ गई.

दोनों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. लेकिन सुनीता पर कोई आरोप नहीं लगा, जो इस कत्ल की वजह थी. हैरत की और सोचने की बात यह है कि जो औरत फसाद की जड़ थी, वह कानूनी शिकंजे से बाहर है. उस के पाप की सजा अब उस का जवान देवर और भांजा भुगतेंगे. Illicit Affair

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime News: उम्र के भंवरजाल में फंसी औरत

Crime News: 2 बच्चों की मां नीरू जब जवान हुई तो उस का पति बूढ़ा हो गया. इस स्थिति में उस के कदम बहक गए. इस का दुखद अंत यह हुआ कि बीवी के कत्ल में आज पति जेल में है.

रात के 12 बज रहे थे. अभी तक नीरू उर्फ नीलम घर नहीं लौटी थी. बीते 3 दिनों से यही क्रम चल रहा था. महावीर अग्रवाल ने पत्नी की गैरहाजिरी में खाना बना कर बेटी कोमल और बेटे हर्षित को खिला कर सुला दिया था. खुद खा कर पत्नी नीरू का खाना फ्रिज में रख दिया था. 4 लोगों के इस परिवार में बीते कई सालों से यही सिलसिला चला आ रहा था. महावीर के चेहरे पर कभी शिकन तक नहीं आई थी.

घर और कपड़ों की साफसफाई से ले कर चौकाचूल्हा तक के काम में वह पत्नी की मदद करता था. नीरू की गैरहाजिरी में वह अपने दोनों बच्चों को पिता के साथसाथ मां के स्नेह से भी सराबोर कर रहा था. दोनों बच्चों के चेहरे देख कर और उन्हें लाड़प्यार कर के वह दिन भर की दौड़धूप और घर के कामकाज की थकावट को भूल जाता था. राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर के मोहल्ला प्रेमनगर के बने एक साधारण से घर में टीवी के सामने बैठा महावीर अग्रवाल पत्नी का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. रात एक बजे के करीब नीरू घर में दाखिल हुई.

अस्तव्यस्त कपड़े, बिखरे बाल और पस्त बदन देख कर महावीर का माथा ठनका. वह कुछ कहता, उस से पहले ही नीरू बोल पड़ी, ‘‘क्या करूं यार, आज 3 जगहों के और्डर थे और एक दुलहन तो पौर्लर पर ही आ गई थी. अब 4-4 दुलहनों को सजाने में देर तो हो ही जाएगी.’’

नीरू ने देर होने की वजह बता दी. महावीर ने उस की इस सफाई पर ध्यान दिए बगैर कहा, ‘‘सुबह बात करेंगे. खाना फ्रिज में रखा है, मन हो तो खा लेना.’’

इतना कह कर महावीर अपने बिस्तर पर जा कर लेट तो गया, लेकिन उस की नींद आंखों से कोसों दूर थी. दोनों बच्चों के भविष्य, खस्ताहाल दुकानदारी और नीरू के संदिग्ध चालचलन को ले कर उस के दिमाग में तूफान चल रहा था. नीरू कपड़े बदल कर दूसरे कमरे में जा कर अपने बिस्तर पर लेट गई. उस ने खाना नहीं खाया था. महावीर को लगा, संभवत: वह किसी के यहां से मनपसंद खाना खा कर आई होगी. सुबह महावीर की आंख लगी तो वह देर से सो कर उठा. कोमल और हर्षित स्कूल जा चुके थे. नाश्ता कोमल ने बनाया था.

धूप चढ़े नीरू उठी तो महावीर ने 2 कप चाय बनाई. बिस्तर पर बैठी नीरू को चाय का कप पकड़ा कर महावीर उस के सामने पड़ी कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘देखो नीरू, तुम्हारा रवैया दिनबदिन असहनीय होता जा रहा है. तुम मेरी उपेक्षा कर रही हो, इस की मुझे रत्ती भर चिंता नहीं है. लेकिन बच्चों के लिए तो सोचो.’’

‘‘मैं ने क्या कर दिया भई. ब्यूटीपौर्लर चलता हूं. इन दिनों लगनें चल रही हैं. मैं ने तो आप को रात में ही बता दिया था कि 4 दुलहनों को तैयार करना है, घर आने में देर हो जाएगी.’’ नीरू ने कहा.

महावीर को पता था कि उस दिन शादियां नहीं थीं, नीरू रटारटाया बहाना बना कर झूठ बोल रही है. वह नहीं चाहता था कि नीरू बात का बतंगड़ बना कर झगड़ा करने लगे, इसलिए उस ने बड़े धैर्य से उसे समझाने की कोशिश की. महावीर ने कहा, ‘‘देखो नीरू, मुझे पता है कि दुकानदारी से जो कमाई हो रही है, उस से घर के खर्चे पूरे नहीं हो रहे हैं. दोनों बच्चों को अच्छा खिलाड़ी बनाने के लिए कोचिंग करानी है. ठीक से आमदनी न होने की वजह से मैं काफी परेशान रहता हूं. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं. तुम मेरी सहनशीलता की परीक्षा लेना बंद कर दो. किसी भी समय मेरे सब्र का बांध टूट सकता है. जिस दिन ऐसा हुआ, अनर्थ हो जाएगा.’’

महावीर ने ये बातें जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए कही थीं, कोई भी समझदार औरत होती तो सिर ऊपर न उठाती. लेकिन नीरू उस की बात समझने के बजाय गुस्से में बोली, ‘‘यह गीदड़ भभकी किसी और  को देना. तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का खर्च पूरा करने के लिए ही तो मैं रातदिन खटती हूं. इस बात का एहसान मानने के बजाय तुम मुझे धमकी दे रहे हो. अपने मांबाप की तरह तुम भी मुझ पर शक करते हो. तुम जैसे निखट्टू के पल्ले बंध कर मेरा तो जीवन नरक हो गया है.’’

नीरू की इन जहरबुझी बातों से महावीर को भी गुस्सा आ गया. अपने 16 साल के वैवाहिक जीवन में महावीर पहली बार आपा खो बैठा. उस ने चाय का कप लिए नीरू के गालों पर तड़ातड़ 2 थप्पड़ रसीद कर दिए. नीरू तिलमिला उठी. भद्दी सी गाली देते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम ने मेरे ऊपर हाथ उठाया है. अब देखो, मैं तुम्हें कैसा मजा चखाती हूं. मैं अभी मम्मी को फोन कर के बुलाती हूं. तुम्हारे शरीर में भूसा न भरवा दिया तो मेरा भी नाम नीरू नहीं.’’

नीरू इसी तरह बड़बड़ाती रही और महावीर घर से निकल गया. मोहल्ले के पार्क में पेड़ के नीचे लेटा महावीर भविष्य के तानेबाने बुनता रहा. उस के मोबाइल पर कई बार उस की सास चंपा देवी का फोन आया, लेकिन उस ने फोन रिसीव नहीं किया. उस की नजर में यह पतिपत्नी के बीच घटी एक मामूली घटना थी. नीरू ने नमकमिर्च लगा कर मां से शिकायत कर दी होगी. इसलिए वह उसे खरीखोटी सुनाने के लिए फोन कर रही होगी.

महावीर की सास चंपा देवी नीरू से भी ज्यादा तीखी थी. नीरू ने उन से कहा था कि उस से ब्याह कर के उस का जीवन नरक हो गया है, जबकि यह सरासर झूठ था. सही बात तो यह थी कि नीरू मजे लूट रही थी और उस की वजह से उसी की नहीं, पूरे परिवार का जीवन नरक हो चुका था. अंधेरा घिरने तक महावीर पार्क में ही पड़ा रहा. अब तक उस की सास ने न जाने कितनी बार फोन कर दिया था, पर उस ने फोन रिसीव नहीं किया था. रात 10 बजे वह घर पहुंचे तो दोनों बच्चे खापी कर सो चुके थे. किचन में मिला खाना खा कर महावीर लेट गया. नीरू अभी पौर्लर से नहीं लौटी थी.

अगले दिन सुबह महावीर थोड़ी देर से उठा. दोनों बच्चे स्कूल चले गए थे. नीरू अपने कमरे में घोड़े बेच कर सो रही थी. घर के थोड़ेबहुत काम निपटा कर महावीर पार्क में जा पहुंचा. नीरू परिवार की ही नहीं, अपने दोनों मासूम बच्चों की भी अनदेखी कर रही थी. उसे उन की जरा भी चिंता नहीं थी. यही सब सोचसोच कर उसे नीरू से नफरत सी होती जा रही थी. उस की सहनशीलता अंतिम पड़ाव पर जा पहुंची थी. तभी उस की सास चंपा देवी का फोन आ गया. महावीर ने जैसे ही फोन रिसीव किया, दूसरी ओर से चंपा देवी उसे डांटने लगी. अंत में उस ने उसे जेल भिजवाने तक की धमकी दे डाली. महावीर जवाब में तो कुछ नहीं बोला, लेकिन जेल भिजवाने की धमकी उस के दिमाग में बैठ गई.

महावीर के दिमाग में आया, वह तो वैसे भी जेल से बदतर जीवन जी रहा है. वही क्यों, उस के दोनों बच्चे, बूढ़े मांबाप भी एक तरह से जेल से भी गयागुजरा जीवन जीने को मजबूर हैं. उस समय महावीर जिन स्थितियों से गुजर रहा था, उस में सकारात्मक सोच मिलने पर वह संत बन सकता था और नकारात्मक सोच में शैतान. महावीर और उस के परिवार का दुर्भाग्य था कि उस समय उस के दिमग पर नकारात्मक सोच भारी हो गई. अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया. उस का सोचना था कि अब उसे जेल जाना ही है, सास भिजवाए या वह स्वयं चला जाए. अंत में उस ने खुद जेल जाने का निर्णय कर लिया.

खतरनाक निर्णय लेने के बाद महावीर ने खुद को काफी हलका महसूस किया. शायद उस का दिलोदिमाग विवेकहीन हो गया था. वह पार्क से उठा और सीधा घर पहुंचा. नहाधो कर 3 दिनों से बंद पड़ी अपनी स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर पहुंचा. उसे अब दुकानदारी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. शाम होने से पहले ही वह घर लौट आया. दोनों बच्चे घर पर ही थे. बच्चों की मनपसंद का खाना बना कर उन्हें प्यार से खिलाया और सुला दिया. इस के बाद खुद टीवी देखते हुए नीरू का इंतजार करने लगा.

देर रात नीरू घर लौटी तो महावीर ने उसे मुख्य द्वार पर ही रोक लिया. बरामदे में 2 कुरसी उस ने पहले से रख दी थी. उस ने नीरू का हाथ पकड़ कर एक कुरसी पर बिठा दिया और खुद सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया. इस के बाद उस के गाल पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘नीरू जो हो गया, अब उसे भूल जाओ. मैं अपनी गलती के लिए माफी मांगता हूं. अब इस परिवार को बचाना तुम्हारे हाथ में है. मैं तुम्हारा हर आदेश मानने को तैयार हूं. तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूंगा. बस तुम गलत आदतें छोड़ दो.’’

महावीर की इन बातों पर गंभीर होने के बजाय नीरू खिलखिला कर हंस पड़ी. इस के बाद व्यंग्य से बोली, ‘‘इस तरह की फालतू बातें मैं सुनने की आदी नहीं.’’

नीरू इतना ही कह पाई थी कि महावीर के सब्र का बांध टूट गया. वह उस पर एकदम से पिल पड़ा. उस ने नीरू के गले में पड़े दुपट्टे को लपेट कर कसना शुरू किया तो फिर तभी छोड़ा, जब वह मर कर कुर्सी से लुढ़क गई. पत्नी को मार कर महावीर ने उस की लाश को उठा कर बरामदे के कोने में बने स्टोर रूम में ले जा कर रख दिया और अपने बिस्तर पर जा कर सो गया. अगले दिन सुबह महावीर बच्चों से पहले उठ गया. बच्चों ने मम्मी के बारे में पूछा तो कहा कि वह ब्यूटीपौर्लर का सामान लेने बाहर गई है. उसी समय सास चंपा देवी का फोन आया तो उन से भी कह दिया कि वह बाहर गई है. बच्चे स्कूल चले गए तो महावीर बाजार गया और लोहा काटने की एक आरी खरीद लाया. मुख्य दरवाजा बंद कर के वह स्टोर रूम में घुस गया.

महावरी ने उस के दोनों पैर आरी से काट कर धड़ से अलग कर दिए. इस के बाद दोनों हाथों के पंजे काटे. दब्बू पति से जल्लाद बना महावीर अब तक थक गया था. उस के दिल में नीरू के प्रति पैदा नफरत बढ़ती जा रही थी. अब वह उस की लाश से बदला ले रहा था. इस के बाद उस ने कमरे में ताला बंद कर दिया और अगले दिन तक बच्चों के साथ सामान्य ढंग से रहता रहा. दोनों बच्चे रोज की तरह स्कूल चले गए. बच्चों के जाने के बाद महावीर कमरे में घुसा तो दोनों हाथ काट कर धड़ से अलग किए. इस के बाद उस ने सिर काट कर अलग किया. इस तरह नीरू की लाश 8 टुकड़ों में बंट गई. जबकि महावीर के चेहरे पर किसी तरह की शिकन या प्रायश्चित नहीं था.

इस बीच चंपा देवी ने महावीर को कई बार फोन कर के नीरू या बच्चों से बात करवाने के लिए कह चुकी थी. लेकिन हर बार उस ने नीरू के न लौटने और बच्चों के बाहर होने की बात कह कर सास को टरका दिया था. अब तक चंपा देवी को किसी अनहोनी की आशंका हो गई थी. इसलिए उस ने श्रीगंगानगर में ही रह रहे अपने दूसरे दामाद धर्मेंद्र अग्रवाल को फोन कर के नीरू के बारे में पता लगाने को कहा. महावीर ने उसे भी टरका दिया था. थकहार कर चंपा देवी ने फाजिल्का में रह रहे अपने भाई अमित को नीरू के बारे में पता लगाने के लिए श्रीगंगानगर भेजा, इसी के साथ वह खुद भी श्रीगंगानगर के लिए रवाना हो गई.

अमित अग्रवाल श्रीगंगानगर पहुंचे तो महावीर ने उन्हें भी गोलमोल जवाब दिया. हर्षित और कोमल घर में ताला बंद होने की वजह से पड़ोसी के यहां बैठे थे. अमित तुरंत सेतिया कालोनी स्थित पुलिस चौकी पहुंचे और अपनी भांजी नीरू के संदिग्ध परिस्थितियों में लापता होने की सूचना दी, लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. तब अमित ने अपने कुछ रिश्तेदारों और परिचितों को इस मामले के बारे में बता कर मदद मांगी. जब सभी लोग महावीर के घर पहुंचे तो वहां से आने वाली असहनीय दुर्गंध से उन्हें आशंका हुई. अमित के साथ आए लोगों ने तुरंत कोतवाली पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी विष्णु खत्री दलबल के साथ महावीर के घर पहुंच गए.

उन्होंने इस बात की सूचना अधिकारियों को दी तो उन की सूचना पर एएसपी (शहर) शशि डोगरा, प्रशिक्षु आईपीएस चूनाराम भी घटनास्थल पहुंच गए. महावीर के पहुंचने पर कमरा खुलवाया गया तो पुलिस अधिकारी भी नफरत की वजह से मानवीय संवेदनाओं का वहशीपन भरा हश्र देख कर भौचक्के रह गए. पुलिस अधिकारियों ने नीरू की 8 टुकड़ों में बंटी लाश को कब्जे में ले लिया. महावीर ने अपना जुर्म कबूल लिया था, इसलिए पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. पुलिस घटनास्थल की काररवाई निपटा रही थी, तभी नीरू की मां चंपा देवी भी वहां पहुंच गई थीं.

कोतवाली पुलिस ने चंपा देवी की ओर से नीरू की हत्या का मुकदमा महावीर अग्रवाल के खिलाफ दर्ज कर लिया. यह 6 अप्रैल, 2015 की बात थी. चंपा देवी के बताए अनुसार, नीरू की हत्या 2 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब की गई थी. उस ने तो हत्या के इस मामले में महावीर के पूरे परिवार को नामजद करा दिया था, लेकिन जांच में पता चला कि परिवार के बाकी लोगों से इन लोगों का बहुत पहले ही संबंध खत्म हो चुका था, इसलिए पुलिस ने बाकी लोगों को निर्दोष मान लिया. पुलिस पूछताछ में नीरू की हत्या की जो कहानी सामने आई थी, वह इस प्रकार थी—

पंजाब प्रदेश का एक जिला है फतेहगढ़ साहिब. इसी जिले की एक प्रमुख व्यावसायिक मंडी है गोविंदगढ़. यहीं आयरन मंडी में रहते थे शिवदयाल अग्रवाल. उन की बेटी नीलम उर्फ नीरू विवाह लायक हुई तो रिश्तेदारों के बताने पर उन्होंने अबोहर निवासी खुशीराम के बेटे महावीर से नीरू का विवाह कर दिया था. खुशीराम काफी संपन्न आदमी थे. महावीर भी खूब मेहनती और मिट्टी में सोना निकालने वाला था. लेकिन नीरू और महावीर की उम्र के बीच का फासला काफी लंबा था. नीरू 18 साल की थी, जबकि महावीर 35 साल का. लेकिन धनदौलत और वैभवशाली परिवार की चकाचौंध में दोगुनी उम्र का अंतर गौण हो गया था.

महावीर और नीरू के शुरुआती दिन बड़े अच्छे गुजरे. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उन के दांपत्य में खटास आने लगी. उसी बीच खुशीराम को व्यापार में घाटा हुआ तो वह परिवार के साथ अबोहर से श्रीगंगानगर आ गए. शादी के 2 सालों बाद नीरू ने बेटी कोमल और उस के बाद बेटे हर्षित को जन्म दिया. महत्वाकांक्षी और स्वछंद विचारों वाली नीरू को संयुक्त परिवार में घुटन सी होती थी. इसलिए अलग रहने के लिए उस ने क्लेश शुरू कर दिया. महावीर ने किराए पर अलग मकान ले लिया और कमाई के लिए स्पेयर पार्ट्स का खुदरा व्यवसाय शुरू कर दिया. संजनेसंवरने का शौक रखने वाली नीरू ने अपने इस शौक को व्यावसायिक उपयोग करने की गरज से ब्यूटीपौर्लर खोल लिया.

नीरू का ब्यूटीपौर्लर चल निकला. पतिपत्नी, दोनों के कमाने से परिवार में बरकत होने लगी. नीरू और महावीर की उम्र में अंतर तो था ही, अब उन के विचारों में भी जमीनआसमान का अंतर आ गया था. स्वच्छंद जीवन जीने वाली नीरू को रोकटोक बहुत कस्टदायक लगता था. जबकि महावीर को इस तरह की आजादी बिलकुल पसंद नहीं थी. इस तरह विचारों के टकराव की वजह से पतिपत्नी में कलह रहने लगी. कहा जाता है कि श्रीगंगानगर में आने के बाद खुशीराम और उन की पत्नी मनोरीदेवी ने नीरू की आजादी से नाराज हो कर उस से पूरी तरह रिश्ता खत्म कर लिया था.

खुदगर्जी का जीवन जीने वाली नीरू अपने पति और बच्चों से अलगअलग होती गई. मांबाप के बीच होने वाली कलह और खींचतान से बच्चे भी परेशान रहते थे. उन्होंने अपने ढंग से दोनों को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन नीरू और महावीर के अपनेअपने जो अहम थे, उस की वजह से बात बन नहीं पाई और बात हत्या तक पहुंच गई. हत्या के इस मामले की जांच कोतवाली प्रभारी विष्णु खत्री ने स्वयं संभाली. पूछताछ में महावीर ने बताया कि नीरू की बदचलनी की वजह से वह परेशान हो चुका था. उस की सास चंपा देवी उसे जेल भिजवाने की धमकी देती रहती थी.

अगले दिन पुलिस ने महावीर को न्यायालय में पेश कर के पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने वह आरी बरामद कर ली, जिस से नीरू की लाश के टुकड़े किए गए थे. इस के बाद अन्य औपचारिकताएं पूरी कर के महावरी को पुन: न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. लोगों का कहना है कि इस हत्या की मुख्य वजह मियांबीवी के बीच की उम्र का अंतर था. शादी के समय नीरू 18 साल की थी, जबकि महावीर 35 साल का. नीरू जब पूरी तरह जवान हुई तो महावीर को बुढ़ापा आ गया, जिस की वजह से नीरूके कदम बहके तो बहकते ही चले गए. परिणामस्वरूप उसे असमय ही मरना पड़ा.

महावीर की बेटी कोमल और बेटा हर्षित पढ़ने में तो अच्छे हैं ही, बैडमिंटन और टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी हैं. अब मां का कत्ल हो गया और पापा मां के कत्ल के आरोप में जेल चले गए. दोनों बच्चों के लिए दुख की बात यह है कि उन्होंने दादादादी को मां की मौत और पिता के जेल जाने के बाद पहली बार देखा था. वहीं ननिहाल पक्ष वालों ने उन्हें अपने साथ ले जाने से साफ मना कर दिया था. ऐसे में इन होनहार बच्चों का क्या होगा?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime News: दहेज हत्या – 6 महीने की शादी और मौत का फंदा

Crime News: एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिस ने समाज को झकझोर कर रख दिया है. शादी के मात्र 6 महीने बाद ही एक नवविवाहिता को फांसी पर लटका दिया गया. सवाल वही कि आखिर कब तक महिलाएं दहेज की आग में जलती रहेंगी? यह दर्दनाक क्राइम केस न सिर्फ इंसानियत को शर्मसार करता है, बल्कि हमें आने वाले अपराधों के प्रति सचेत भी करता है.

यह भयानक घटना उत्तर प्रदेश के लखी गांव की है, जहां 24 वर्षीय संध्या की मौत को उस के ससुराल वालों ने आत्महत्या बताया. पिता की शिकायत पर हसनपुर थाना पुलिस ने पति सहित कई ससुरालियों पर दहेज हत्या का केस दर्ज कर लिया है.

पिता मलखान सिंह के मुताबिक उन की बेटी संध्या  की शादी 24 मई, 2025 को गौरव से हुई थी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद बेटी पर दहेज का दबाव शुरू हो गया था.

शिकायत में मलखान सिंह ने बताया कि पति गौरव, भाभी कमलेश, ससुर रमेशचंद, देवर मनीष और अन्य परिजन संध्या से लगातार कार की मांग कर रहे थे. संध्या आए दिन परेशान रहती थी और मायके वालों को दहेजी प्रताड़ना की बातें बताती थी.

30 नवंबर की रात करीब 9 बजे उस ने रोते हुए मलखान सिंह को फोन कर कहा था कि ससुराल वाले उसे जान से मार देंगे. फोन पर हुई इस बातचीत के मात्र ढाई घंटे बाद ही रात साढ़े 11 बजे ससुराल वालों का फोन आया कि संध्या ने फांसी लगा ली है.

मायके वालों का आरोप है कि संध्या को पहले बेरहमी से पीटा गया और फिर हत्या कर उसे फंदे पर लटका कर आत्महत्या का रूप दिया गया. पुलिस ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर आगे की काररवाई होगी. Crime News

Hindi Romantic Story: जीना सिर्फ तेरे लिए

Hindi Romantic Story: गुजरात के बादशाह महमूद शाह ने कंवल को अपनी बनाने के लिए क्या नहीं किया. इस के बावजूद उन के आधीन छोटे से जागीरदार केहर सिंह को प्यार करने वाली कंवल उन की क्यों नहीं बन सकी?

गुजरात के बादशाह महमूद शाह का दिल मारवाड़ से आई वेश्या जवाहर बाई की बेटी कंवल की खूबसूरती पर आ गया था. गोरे रंग की कंवल की काया कंचन सी थी तो नयन हिरणी से, उस के गुलाबी अधर और सुतवां नाक उस की सुंदरता में चार चांद लगा रही थी. कंवल पतली कमर लचका कर चलती तो देखने वालों के कलेजे धक से रह जाते. उस की मोहक मुसकान पर दुश्मन भी रीझ जाते. ऐसी सुंदर कंवल पर बादशाह की नजर पड़ी तो वह उसे पाने को आतुर हो उठे. उन्होंने कंवल को संदेश भिजवाया कि वह उस के पास आ जाए, वह उसे 2 लाख रुपए सालाना की जागीर देंगे. इतना ही नहीं, वह हीरेजवाहरात से उस का घर भर देंगे. लेकिन कंवल इस पर भी नहीं मानी. एक महफिल में बादशाह ने उसे हीरों का जो हार दिया तो खुश होने के बजाय कंवल गुस्से में उसे तोड़ कर चली गई थी.

कंवल की मां जवाहर बाई वेश्या थी. बादशाह का गुस्सा क्या कर सकता है, वह अच्छे से जानती थी. इसलिए उस ने बेटी की नागवार गुजरने वाली हरकत के लिए बादशाह से माफी मांगी. मां ने कंवल को बहुत समझाया कि वह बादशाह की बात मान ले और उस के पास चली जाए. उस ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, बादशाह के पास जा कर तू सारे गुजरात पर राज करेगी.’’

मगर कंवल ने बादशाह के पास जाने से साफ मना कर दिया. उस ने कहा, ‘‘मां, मैं केहर सिंह से प्रेम करती हूं, इसलिए दुनिय का कोई भी बादशाह, राजा या राजकुमार मेरे काम का नहीं. मैं मरते दम तक उन्हीं की रहूंगी.’’

कुंवर केहर सिंह चौहान महमूद शाह के आधीन एक छोटी सी जागीर बारिया के जागीरदार थे. उन्हीं केहर सिंह को कंवल प्यार करती थी. बेटी को जवाहर बाई ने समझया कि वह एक वेश्या की बेटी है, इसलिए कभी किसी एक की पत्नी बन कर नहीं रह सकती. लेकिन कंवल ने मां से साफ कहा, ‘‘केहर सिंह जैसे शेर के गले में बांहें डालने वाली उस गीदड़ महमूद के गले से कैसे लग सकती है.’’

इस बात की जानकारी बादशाह को हुई तो उस का खून खौल उठा. उस ने कंवल को कैद करा लिया और ऐलान करा दिया कि जो भी केहर को कैद कर के लाएगा, केहर की जागीर जब्त कर के उसे दी जाएगी. लेकिन केहर सिंह जैसा राजपूत योद्धा किसी के जाल में जल्दी फंसने वाला कहां था. उसे कोई टक्कर देने वाला नहीं था. वह इतना बहादर था कि उस से टक्कर लेने की किसी की हिम्मत नहीं थी. लेकिन यहां भी बात इज्जत की थी. इसलिए दरबार में उपस्थित बादशाह के सामंतों में से जलाल उठ खड़ा हुआ. वह एक छोटी सी जागीर का जागीरदार था. अपनी जागीर बढ़ाने के लिए वह केहर की जागीर के लालच में आ गया.

उस ने बीड़ा उठा लिया कि वह केहर को कैद कर के ले आएगा. होली खेलने के बहाने उस ने केहर सिंह को अपने महल में बुलाया और साजिश रच कर केहर को कैद कर लिया गया कि कंवल अपने प्रेमी की दयनीय हालत देख कर दुखी होती रहे और बादशाह के आगे समर्पित हो जाए. इस के लिए कैदखाने में कैद केहर सिंह को खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी गई थी. कंवल रोज प्रेमी को खाना पहुंचाने जाती. एक दिन कंवल खाना के साथ छिपा कर एक कटारी और एक छोटी आरी ले गई, जिसे उस ने केहर को दे दिया. इस के बाद केहर की दासी टुन्ना ने वहां सुरक्षा में तैनात फालूदा खां को जहर मिली भांग पिला कर बेहोश कर दिया. वह होश में आए, उस के पहले ही केहर सिंह सलाखों को काट कर फरार हो गया. बाहर उस के साथी उस का इंतजार कर रहे थे.

उस की जागीर जब्त हो चुकी थी, इसलिए वह अपने साथियों के साथ मेवाड़ के एक सीमावर्ती गांव के मुखिया गंगा भील के यहां जा पहुंचा. केहर सिंह ने गंगा भील से अपनी परेशानी बताई तो उस ने अपने आधीन गांवों के भीलों का पूरा समर्थन केहर को देने का वादा कर लिया. केहर के भाग जाने की खबर बादशाह को मिली तो वह तिलमिला उठा. उस ने केहर को खत्म करने के लिए अपने तमाम योद्धा भेजे, लेकिन वे सभी मारे गए. उसी बीच बादशाह को सूचना मिली कि केहर सिंह ने जलाल के टुकड़ेटुकडे़ कर दिए हैं. कंवल अपने प्रियतम केहर सिंह की बहादुरी के किस्से सुनसुन कर खुश हो रही थी. उसे खुश देख कर बादशाह का खून खौल रहा था. लेकिन वह उस पर आसक्त होने की वजह से बेबस था.

केहर सिंह को पकड़ने या मारने की हिम्मत बादशाह के किसी भी सामंत या योद्धा में नहीं थी, इसलिए बादशाह केहर को मात देने की कोई दूसरी योजना बनाने लगा. छगन नाई की बहन कंवल की सेवा में थी. एक दिन कंवल ने केहर के लिए एक पत्र लिखा, ‘मारवाड़ के सेठ मुंदड़ा की बारात अजमेर से अहमदाबाद आ रही है, आप रास्ते में उसे लूटने के बजाय उसी के साथ भेष बदल कर अहमदाबाद आ जाएं. अहमदाबाद पहुंचने पर आप को दूसरा संदेश भेजूंगी.’ केहर सिंह ने योजना बना ली कि उसे क्या करना है. अजमेर से अहमदाबाद जाते समय केहर अपने 4 साथियों के साथ मुंदड़ा सेठ की बारात में जा मिला. उस ने और उस के साथियों ने जोगी का रूप धारण कर लिया था. सभी ने अपने हथियार कपड़ों के अंदर छिपा रखे थे.

कंवल ने न चाहते हुए भी बादशाह के प्रति अपना रवैया बदल लिया था, लेकिन वह महमूद शाह को अपना शरीर छूने नहीं दे रही थी. उस ने अपनी खासमखास दासी और सखी को बारात देखने के बहाने भेज कर केहर को सारी योजना की जानकारी भिजवा दी थी. बारात के पहुंचने से पहले कंवल ने बादशाह से कहा, ‘‘केहर सिंह का तो कुछ अतापता नहीं है. लगता है, वह आप से बच नहीं पाया. उस का इंतजार करतेकरते अब मैं थक चुकी हूं. इसलिए अब मैं आप की हो कर रहना चाहती हूं. लेकिन अगर आप मुझे दिल से चाहते हैं तो आप को मुझ से विवाह करना पड़ेगा. लेकिन विवाह के लिए भी मेरी कुछ शर्तें हैं.’’

कंवल की खूबसूरती पर पागल महमूद शाह ने उस की सभी शर्तें मान लीं, क्योंकि उसे तो इस पल का न जाने कब से इंतजार था कि कंवल कब उस की अंकशायिनी बने. शादी वाले दिन सांझ ढले कंवल की दासी टुन्ना पालकी ले कर जवाहर पातुर को लेने उस के डेरे पर पहुंची, जहां केहर सिंह हथियारों से लैस पहले से ही मौजूद था. टुन्ना ने पालकी के कहारों को किसी बहाने इधरउधर कर दिया और उस में चुपके से केहर सिंह को बैठा दिया. पालकी बुलंद गुंबद पहुंची. केहर सिंह कंवल के कमरे में छिप कर बैठ गया. थोड़ी देर बाद बादशाह हाथी पर सवाल हो कर बुलंद गुबंद पहुंचा. उस के वहां पहुंचते ही ढोलनगाड़े बजने लगे. आतिशबाजी होने लगी.

बादशाह के महल में आते ही केहर सिंह ने बाहर आ कर ललकारा, ‘‘आज देखता हूं कि शेर कौन है और गीदड़ कौन? तू ने मेरे साथ बहुत छलकपट किया है, आज तुझे मार कर मैं अपना वचन पूरा करूंगा.’’ दोनों योद्धा आपस में भिड़ गए. उन के बीच भयंकर युद्ध हुआ. हथियार टूट गए तो मल्लयुद्ध होने लगा. उन के पैरों की धमक से बुलंद गुंबद थरथरा रहा था, लेकिन बाहर हो रही आतिशबाजी और ढोलनगाड़ों की गूंज से अंदर क्या हो रहा है, किसी को पता नहीं चला. केहर सिंह मल्लयुद्ध में भी प्रवीण था, थोड़ी ही देर में उस ने बादशाह को अपने मजबूत घुटनों से कुचल दिया. बादशाह के मुंह से खून का फव्वारा फूट पड़ा और उन की मौत हो गई.

दासी टुन्ना ने केहर सिंह और कंवल को पालकी में बैठा कर कहारों और सैनिकों को हुकुम दिया कि वे जवाहर बाई को उस के डेरे पर पहुंचा दें, क्योंकि बादशाह आज की रात यहीं कंवल के साथ गुजरेंगे. सैनिक पालकी ले कर जवाहर बाई के डेरे पर पहुंचे. वहां केहर सिंह के साथी घोड़े तैयार किए खड़े थे. केहर सिंह ने कंवल और टुन्ना दासी को घोड़ों पर बिठाया और भाग खड़े हुए. पालकी ले कर आए कहार और शाही सैनिक एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. Hindi Romantic Story

 

Hindi True Crime: जुर्म बोलता है

Hindi True Crime: पत्नी की मौत के बाद डा. अशोक सिंघल अपनी दोस्त रीना से अपने मन की बात कर लेते थे, लेकिन डा. अशोक के एकलौते बेटे अंकित को पिता की यह दोस्ती पसंद नहीं थी. फिर वह ऐसा जुर्म कर बैठा कि…

डा. अशोक सिंघल लंबीचौड़ी जिस आलीशान कोठी में रहते थे, उस कोठी के सामने 21 मई की सुबह पुलिस की कई गाडि़यां आ कर रुकीं. उन की कोठी के सामने अचानक आई पुलिस को देख कर आसपड़ोस के लोग चौंके कि आखिर ऐसी क्या बात हो गई जो सुबहसुबह इतनी पुलिस आई है. पुलिस की गाडि़यों के आते ही कोठी के अंदर से विलाप करने की आवाज भी आने लगी. माजरा समझ में न आने पर लोग आपस में कानाफूसी करने लगे. पुलिस के पीछेपीछे कुछ लोग कोठी में पहुंचे तो पता चला कि किसी ने डा. अशोक सिंघल की हत्या कर दी है.

उन की हत्या की बात सुन कर लोग हैरत में पड़ गए. क्योंकि वह निहायत सज्जन इंसान थे. उसी दौरान डौग स्क्वायड और फोरेंसिक एक्सपर्ट्स की टीमें भी वहां पहुंच गई थीं. यह वारदात उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ की पौश कालोनी शास्त्री नगर के एच ब्लौक में घटी थी. थानाप्रभारी हरशरण शर्मा ने कोठी का मुआयना किया तो देखा कि डा. अशोक सिंघल का खून से लथपथ शव कोठी के बाहरी हिस्से में बने बैडरूम में फर्श पर पड़ा था. देख कर लग रहा था जैसे किसी भारी चीज से उन के सिर पर प्रहार किया गया है. उन का सिर फटा हुआ था. मौके पर इधरउधर खून बिखरा हुआ था.

लाश बिस्तर पर नहीं थी, इस से लगता था कि मरने से पहले उन्होंने हत्यारे से संघर्ष किया था. बैडरूम के अलावा साथ लगे कमरे का सामान भी बिखरा पड़ा था. कमरे में रखी अलमारी के कपड़े बाहर पड़े थे तथा लौकर भी खुला था. अलमारी वाले कमरे से ही लगा हुआ उन के बेटे अंकित का कमरा था, लेकिन बदमाशों ने उसे खोला तक नहीं था. जिस कमरे में लाश पड़ी थी, वहीं पर डा. अशोक सिंघल का मोबाइल फोन व लैपटौप रखा था. वहीं पर खून से सनी एक अंगूठी भी पड़ी थी. सारे सबूतों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. क्राइम सीन देख कर पहली नजर में लग रहा था कि उन की हत्या लूटपाट की खातिर की गई थी.

मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना अधिकारियों को भी दे दी थी. सूचना मिलने पर एसएसपी डी.सी. दुबे, एसपी (सिटी) ओमप्रकाश सिंह और सीओ (सिविल लाइंस) विनीत भटनागर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मौके पर पहुंचा खोजी कुत्ता कोठी के दरवाजे से बाहर सड़क तक जा कर वापस आ गया और कोठी में ही घूमता रहा. उस ने 3 बार ऐसा किया. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम ने लौकर समेत अन्य स्थानों से सावधानीपूर्वक प्रिंट एकत्र कर लिए. दरवाजे के पीछे एक बेसबौल बैट रखा था. हो सकता है, उस से वारदात को अंजाम दिया गया हो, यह सोच कर टीम ने उस के ऊपर से भी फिंगरप्रिंट उठा लिए.

इस कोठी में 58 वर्षीय डा. अशोक सिंघल अपने बेटे अंकित, पुत्रवधू दीप्ति व उस की 4 महीने की बेटी ओजस्वी के साथ रहते थे. अशोक सिंघल आयुर्वेद के डाक्टर थे. साथ ही उन का दवाओं का भी कारोबार था. जिस की सप्लाई मेरठ के आसपास के जिलों में होती थी. एमबीए पास उन का बेटा भी उन के साथ कारोबार से जुड़ा था. अशोक की एक बेटी आस्था थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. वारदात की सूचना पर वह भी वहां आ गई थी. वह शहर में ही रहती थी. पुलिस ने वहां मौजूद बेटे अंकित से प्रारंभिक पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘पापा बैडरूम में सोते थे, जबकि मैं दीप्ति के साथ कोठी के ऊपरी हिस्से में बने कमरे में सोता था.

आज तड़के करीब साढ़े 4 बजे दीप्ति बेटी के लिए दूध गरम करने नीचे आई, क्योंकि किचन नीचे ही है. जब वह बैडरूम की तरफ पहुंची तो लकड़ी का दरवाजा खुला हुआ था, लेकिन बैडरूम में अंधेरा था.

‘‘उस ने कई आवाजें दीं, लेकिन बैडरूम से कोई आवाज नहीं आई. तब दीप्ति ने बिजली बोर्ड से लाइट का स्विच औन किया. कमरे में रौशनी होते ही उस की नजर बैड से होते हुए फर्श पर गई तो वह भौचक्की रह गई. वहां पर पापा खून से लथपथ पड़े थे.

‘‘वह रोती हुई ऊपर आई और मुझे जगा कर यह बात बताई. पत्नी की बात सुन कर मेरे होश उड़ गए. मैं तुरंत तेज कदमों से नीचे आया तो वास्तव में बैडरूम में पापा की लाश पड़ी थी. पापा की हत्या की जानकारी मैं ने फोन द्वारा अपने रिश्तेदारों को दी, उस के बाद पुलिस को फोन किया?’’

पुलिस ने ऊपर के कमरे में सोने की वजह मालूम की तो उस ने बताया, ‘‘दरअसल, पापा को सिगरेट पीने की आदत थी. वह अकसर रात में कई बार सिगरेट पीते थे. इस से मुझे और मेरी पत्नी को परेशानी होती थी. इसलिए रात का खाना वगैरह खा कर हम दोनों ऊपर के कमरे में सोने के लिए चले जाते थे.’’

उस ने यह भी बताया कि पापा ड्राइंगरूम का दरवाजा खुला रख कर सोते थे और कोठी का मुख्य दरवाजा भी अंदर से बंद रहता था, परंतु पत्नी के मुंह से पापा की हत्या की बात सुनने के बाद जब वह नीचे आया तो देखा कि मुख्य दरवाजा बंद तो था, लेकिन उस का कुंडा नहीं लगा था. उन के चीखने की आवाज भी किसी ने नहीं सुनी थी. पुलिस अधिकारियों ने क्राइम सीन को पुन: समझा. जांच में 3 बातें स्पष्ट हुईं. एक तो यह कि सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. दूसरा यह कि मामला हत्या का ज्यादा लग रहा था, न कि लूटपाट में हुई हत्या का. हालांकि अंकित लौकर से करीब एक लाख रुपए की नकदी गायब होने की बात कह रहा था, जबकि महंगा मोबाइल फोन व लैपटौप कमरे में ही रखे थे. आमतौर पर बदमाश ऐसी चीजें नहीं छोड़ते. इस के अलावा लूटपाट करने वालों ने अंकित के कमरे को खोला तक नहीं था, जबकि उस के दरवाजे पर ताला नहीं था.

तीसरी बात यह कि वारदात में किसी एक ऐसे नजदीकी व्यक्ति का हाथ होने की संभावना लग रही थी, जो घर की स्थिति को जानता था. वह व्यक्ति यह बात तक जानता था कि डा. अशोक दरवाजा खुला रख कर सोते हैं. बहरहाल, कातिल जो भी था, उस ने जुर्म को छिपाने की हर संभव कोशिश की थी. पुलिस ने मौके से जो अंगूठी बरामद की थी, वह भी डा. अशोक की नहीं थी. अंकित ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. पुलिस को लगा कि वह शायद हत्यारे की होगी. घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद डा. अशोक की लाश को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

इस के साथ ही अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. मामला संगीन था, इसलिए एसएसपी डी.सी. दुबे ने केस के खुलासे के लिए थानाप्रभारी हरशरण शर्मा की अध्यक्षता में एक टीम का गठन कर दिया. टीम का निर्देशन एसपी ओमप्रकाश सिंह कह रहे थे. अपराध शाखा भी टीम को जांच में सहयोग कर रही थी. अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह सिर पर घातक प्रहार बताया गया था. मौत का समय रात 10 बजे से 2 बजे के बीच का था. इसलिए पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की रात 10 बजे से ले कर 3 बजे तक की फुटेज देखी. लेकिन इस से कोई सुराग नहीं मिला. फुटेज में कोई भी शख्स आताजाता दिखाई नहीं दिया.

पुलिस ने अंकित से पूछताछ की, लेकिन वह गमजदा था और बीमार भी, इसलिए वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका. पुलिस को लग रहा था कि डाक्टर की हत्या किसी नजदीकी व्यक्ति ने ही की है, इसलिए पुलिस ने उन के पड़ोसियों, रिश्तेदारों के अलावा परिचितों से भी पूछताछ कर के जानना चाहा कि उन के यहां किनकिन लोगों का ज्यादा आनाजाना था. इस पूछताछ में पुलिस को यह पता चला कि उन के पास कभीकभी एक महिला आया करती थी. वह महिला कौन थी, इस बारे में पता नहीं चल सका. देखतेदेखते 2 दिन गुजर गए, लेकिन उस महिला का पता न लगा. उधर मामले का खुलासा न होने पर कुछ संभ्रांत लोगों ने एसएसपी डी.सी. दुबे से मुलाकात की और हत्या का जल्द खुलासा करने की मांग की. इस के बाद पुलिस टीम ने पारिवारिक बिंदु पर जांच केंद्रित कर दी.

पुलिस ने परिजनों के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाईं. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि डा. अशोक एक नंबर पर सब से ज्यादा बातें किया करते थे. उस नंबर की जांच हुई तो वह उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर की रहने वाली एक महिला रीना का निकला. रिश्तेदारों और पड़ोसियों से भी पता चला कि डा. अशोक के पास एक महिला आती थी. कहीं वह महिला वही तो नहीं है, जिस से वह फोन पर ज्यादा बातें करते थे, जानने के लिए पुलिस टीम बिजनौर में रीना के घर गई और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. कई तरह से की गई पूछताछ के बाद पुलिस को यह जानकारी मिली कि रीना से डा. अशोक की दोस्ती तो थी लेकिन उन की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं था. रीना ने यह भी बताया कि इस मित्रता को ले कर डा. अशोक से अपने बेटे अंकित का विवाद भी होता रहता था. यह बात डा. अशोक ने उस से बताई थी.

रीना द्वारा दी गई यह जानकारी बड़े काम की थी. पुलिस का शक अब परिवार के इर्दगिर्द ही घूमने लगा, यह भी संभव था कि बेटा ही पिता का कातिल बन गया हो, लेकिन पुलिस को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई बेटा ऐसा कांड कैसे कर सकता है. एक और अहम बात यह थी कि अंकित ने हत्या की खबर अपने पड़ोसियों तक को नहीं दी थी. पुलिस के पहुंचने पर ही पड़ोसियों को हत्या का पता चला था. पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर एक बार फिर अंकित से पूछताछ की. उस ने बिना डरे सफाई से सभी सवालों के जवाब दिए. पिता से एक महिला की मित्रता के विरोध की बात तो उस ने स्वीकार की, लेकिन उन की हत्या करने की बात नकार दी. थानाप्रभारी हरशरण शर्मा ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिता की किसी से कोई ऐसी रंजिश थी, जो हत्या की वजह बनी हो?’’

‘‘मेरी जानकारी में उन का कोई विवाद नहीं था. यदि होता तो वह मुझे जरूर बताते.’’ अंकित ने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर हत्या कौन कर सकता है?’’

‘‘सर, मैं कह रहा हूं, यह काम लुटेरों का है. घर में यदि लुटेरे नहीं आए तो फिर लौकर से रुपए कैसे गायब हुए. वे पैसे मैं ने ही उस शाम को लौकर में रखे थे.’’ अंकित ने जवाब दिया.

अंकित अपनी जगह ठीक हो सकता था, लेकिन सीसीटीवी फुटेज के आधार पर इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता था. जब कोठी में कोई आया ही नहीं तो लूट कैसे हो गई. पुलिस को अंकित के खिलाफ ऐसे कोई मजबूत सबूत नहीं मिल रहे थे, जिन के आधार पर उसे थाने ले जा कर सख्ती से पूछताछ की जा सके. पुलिस टीम जांच में उलझ गई. पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज एक बार ध्यान से फिर देखी. इस का नतीजा पहले जैसा ही निकला. उस में कोई भी मृतक की कोठी की तरफ आताजाता नहीं दिखा. इंस्पेक्टर हरशरण शर्मा ने एसपी ओमप्रकाश सिंह व सीओ विनीत भटनागर को जांच से अवगत कराया.

पुलिस अधिकारियों ने विचारविमर्श किया. सीसीटीवी कैमरे की इस सच्चाई को किसी भी सूरत में झुठलाया नहीं जा सकता था. अब सब से बड़ा सवाल यह था कि जब उन की कोठी में कोई बाहरी व्यक्ति आया ही नहीं तो डा. अशोक की हत्या किस ने की? पुलिस ने अंकित को ही शक के दायरे में रख कर जांच में परिवर्तन किया. इस बार पुलिस ने अंकित के मोबाइल फोन की लोकेशन हासिल कर ली. पता चला कि 21 मई की तड़के करीब साढ़े 4 बजे उस के मोबाइल की लोकेशन कोठी से दूर पाई गई. यह बेहद चौंकाने वाली बात थी. साफ था कि अंकित तड़के कोठी से बाहर गया था. वह क्यों गया था, इस का जवाब उस से पूछताछ के बाद ही मिल सकता था. जबकि उस ने बताया था कि पत्नी के जगाने पर उसे पिता की हत्या का पता चला था.

मोबाइल की लोकेशन को पुख्ता करने के लिए पुलिस टीम ने इस बार रात 3 बजे के बाद की सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस फुटेज से पता चला कि अंकित सुबह 4 बजे के बाद अपनी कार ले कर कोठी से गया था और आधे घंटे बाद ही वापस आ गया था. उस के झूठ की पोल खुल गई थी. अब उस के खिलाफ पुलिस को पुख्ता सबूत मिल गए थे. शक व सबूतों के जाल में वह पूरी तरह फंस चुका था. बिना देर किए 26 मई, 2015 को पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे हिरासत में ले लिया और थाने ले आई. पुलिस ने इस बार सबूतों के आधार पर उस से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की. वह पुलिस की बात को झुठला नहीं सका. आखिर सच बोलते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, अपने पिता को अकेले मैं ने ही मारा है. मुझे बहुत गुस्सा आ गया था.’’

उस से गहराई से पूछताछ की गई तो इस हत्याकांड के पीछे दरकते रिश्तों की चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई. सरल स्वभाव के डा. अशोक सिंघल आयुर्वेदिक दवाओं का कारोबार करते थे. उन के 2 बच्चे थे, एक बेटा अंकित और दूसरी बेटी आस्था. कुछ सालों पहले वह बेटी का विवाह कर चुके थे. अंकित भी पिता के काम में हाथ बंटाता था. कुछ दर्द ऐसे होते हैं, जिन की भरपाई कभी नहीं होती. इंसान बाहर से तो खुश नजर आता है, लेकिन अंदर से वह परेशान रहता है. अशोक सिंघल के साथ भी कुछ ऐसा ही था. डा. अशोक की जिंदगी दिखावे के तौर पर यूं तो खुशहाल थी, लेकिन उन की जिंदगी में एक ऐसा गम था, जो उन्हें अकसर परेशान किया करता था. दरअसल उन की पत्नी मीनाक्षी की कई सालों पहले मृत्यु हो गई थी. इस के बाद वह अकेले से हो गए थे. किसी तरह उन की जिंदगी बीत रही थी.

2 साल पहले उन्होंने अंकित का विवाह दीप्ति से कर दिया. दीप्ति एमबीए की पढ़ाई कर रही थी. अंकित को शराब पीने की लत थी. पिता ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह नहीं सुधरा तो उन्होंने इसे नियति मान लिया. डा. अशोक अपनी दवाओं की सप्लाई के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के अलावा उत्तराखंड भी जाया करते थे. इसी दौरान जनवरी, 2015 में उन की मुलाकात बिजनौर की एक महिला रीना से हुई. रीना एक हर्बल कंपनी में दवाओं की सप्लाई का काम करती थी. अशोक की जिंदगी में पत्नी के गुजर जाने के बाद नीरसता छाने लगी थी.

रीना से उन्हें भावनात्मक लगाव हो गया. रीना भी उन से स्नेह करती थी. दोनों के बीच अकसर मोबाइल पर भी बातें होने लगी थीं. वक्त के साथ दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. इस से डा. अशोक के जीवन में खुशी जरूर आ गई थी. रीना चूंकि कंपनी के काम से बाहर जाती रहती थी और डा. अशोक का काम भी बाहर घूमने का था, इसलिए दोनों साथसाथ घूमते थे. इस दौरान वे एकसाथ होटल में ही रुकते थे. जिन जगहों पर डा. अशोक दवा सप्लाई करते थे, वहां के लोगों से अंकित का भी संपर्क था. उन्हीं लोगों से अंकित को यह बात पता चल गई कि उस के पिता की किसी महिला से दोस्ती हो गई है और दोनों साथसाथ घूमते हैं.

अंकित को यह बात बरदाश्त नहीं हुई. उस ने पिता से इस मुद्दे पर एक दिन बात की. तब उन्होंने अंकित को समझाते हुए कहा, ‘‘तुम काम पर ध्यान दो अंकित. क्या बात अच्छी है क्या बुरी, यह मैं तुम से ज्यादा समझता हूं.’’ पिता के इस जवाब से वह चुप तो हो गया, लेकिन अंदर ही अंदर कुढ़ गया. क्योंकि वह उन का कर भी क्या सकता था. इस के बाद उसे जैसेजैसे पिता की रीना से मेलमुलाकातों का पता चलता गया, वैसेवैसे उस का अपने पिता से मनमुटाव बढ़ता गया. रीना से संबंधों को ले कर दोनों के बीच कई बार विवाद भी हुआ. इसी तनाव में उस ने ज्यादा शराब पीनी शुरू कर दी. इसी बीच वह पीलिया की बीमारी से ग्रस्त हो गया. बीमारी बढ़ गई तो डा. अशोक ने उसे शहर के एक नामी अस्पताल में भरती करा दिया. अस्पताल में एक महीने रहने के बाद वह ठीक हो सका.

जिस समय वह अस्पताल में भरती था, उस दौरान रीना उस के पिता के साथ कोठी में भी रुकी थी. अंकित को यह पता चला तो उसे नागवार लगा. अंकित को इस बात का डर था कि उस के पिता रीना के साथ कहीं शादी न कर लें. यदि उन्होंने ऐसा कर लिया तो वह उन की दौलत की हकदार हो जाएगी. मई के पहले सप्ताह में अंकित अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आ गया. अशोक को सिगरेट पीने की आदत थी. वह रात को भी जाग कर कई दफा सिगरेट पीने बैठ जाते थे. इस से अंकित और उस की पत्नी परेशान हो जाते थे. इसलिए अंकित व दीप्ति ऊपर वाले कमरे में जा कर सो जाया करते थे.

रीना को ले कर पितापुत्र में तकरार इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने एकदूसरे से बात करनी छोड़ दी थी. कुछ दिनों बाद डा. अशोक बाहर गए. अंकित को पता चल गया कि उन के साथ रीना भी गई थी. अब की बार अंकित ने तय कर लिया कि पिता के लौटने पर वह उन से दो टूक बात करेगा. डा. अशोक अपने बिजनेस टूर से वापस आए तो 19 मई की शाम को अंकित ने उन से दो टूक कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि उस महिला से आप दूर हो जाएं.’’

यह सुन कर डा. अशोक आगबबूला होते हुए बोले, ‘‘तुम मेरे बेटे हो, इसलिए अपनी हद में रहो, वरना घर से बाहर का रास्ता दिखा दूंगा.’’

‘‘बेटा होने के नाते ही कह रहा हूं कि आप को यह बात शोभा नहीं देती. आप अपनी मर्यादा का ध्यान रखें.’’ अंकित ने तेवर दिखाए. बेटे के तेवर देख कर अशोक को भी ताव आ गया. उन्होंने अंकित के गाल पर थप्पड़ रसीद करते हुए चेतावनी दी, ‘‘खबरदार, आज के बाद इस मुद्दे पर बात मत करना और सुबह होते ही बीवीबच्चों को ले कर घर से निकल जाना. अब मैं तुझे अपने साथ नहीं रख सकता.’’

पिता के इस व्यवहार पर अंकित खून का घूंट पी कर ऊपर चला गया. उस के पिता द्वारा घर से निकालने की चेतावनी ने उस के होश उड़ा दिए. उस ने ऊपर जा कर शराब पी. वह पिता की आदत से वाकिफ था कि उन्होंने उस से जो कहा है, वह कर भी देंगे. यही बात सोच कर उसे उस रात ठीक से नींद नहीं आई. करीब 3 बजे आंख खुली तो वह पिता से फाइनल बात करने नीचे आ गया. बैडरूम का दरवाजा खुला था. उधर बेटे के रवैये से अशोक भी परेशान थे. शायद उन्हें भी नींद नहीं आ रही थी. वह बैठे सिगरेट पर सिगरेट पिए जा रहे थे.

अंकित ने एक बार फिर रीना के मुद्दे पर उन से बात शुरू की. लेकिन इस बार उन के बीच बात इतनी बढ़ गई कि दोनों के बीच मारपीट हो गई. उसी दौरान अंकित ने कमरे में रखा बेसबौल बैट उठा कर पिता के सिर पर कई वार कर दिए. उन के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. अशोक ने अपने बचाव के लिए संघर्ष भी किया. आखिर उन्होंने तड़प कर दम तोड़ दिया. इस दौरान अंकित की अंगूठी वहीं गिर गई. गुस्से में अंकित ने पिता की हत्या तो कर दी. लेकिन हत्या का इल्जाम उस के ऊपर न आए, इस के लिए उस ने लूट का ड्रामा रचने की प्लानिंग की. सोचविचार के बाद उस ने कमरे में लूटपाट दिखाने के लिए सामान फैला दिया. लौकर से रुपए भी निकाल लिए.

हत्या के वक्त उस के कपड़े खून से सन गए थे. उस ने बाथरूम में हाथपांव धोए. फ्रेश हो कर उस ने अपने कपड़े बदले और खून से सने कपड़े एक पौलीथिन में रख लिए. उस ने बेसबौल बैट भी साफ किया और उसे घर में ही छिपा कर रख दिया. वह कार निकाल कर कपड़ों वाली पौलीथिन फेंकने चला गया. इत्तफाक से उस समय किसी सिक्योरिटी गार्ड ने उसे नहीं देखा. कार से वह सूरजकुंड इलाके में पहुंचा और पौलीथिन नाले में फेंक कर वापस आ गया. उस ने वापस आ कर लौकर से निकाले रुपए भी कोठी में कहीं छिपा दिए. फिर ऊपर जा कर आंखें बंद कर के चुपचाप लेट गया. इतना कुछ हो गया था, लेकिन नींद में होने की वजह से दीप्ति को कुछ पता नहीं चल सका.

तड़के बच्ची का दूध गरम करने के लिए दीप्ति नीचे आई तो अपने ससुर की लाश देख कर वह चीखती हुई वापस अपने कमरे में पहुंची. पत्नी के रोने पर वह जागा. पुलिस केवल उस से ही ज्यादा पूछताछ न करे, इसलिए उस ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के सब से पहले बुलाया, फिर दीप्ति के मोबाइल से पुलिस को सूचना दी. इस के पीछे उस की सोच यह थी कि वह नहीं चाहता था कि उस का मोबाइल नंबर पुलिस को पता चले. पुलिस के आने के बाद वह घटना से पूरी तरह अंजान बना रहा. लूट के लिए हत्या होने की बात पर जोर देता रहा. पुलिस के सवालों का भी उस ने चालाकी से आत्मविश्वास के साथ सामना किया. उस ने अपने जुर्म को छिपाने की लाख कोशिश की, लेकिन पकड़ में आ ही गया.

अंकित ने जब अपना अपराध स्वीकार कर लिया, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बेसबौल बैट व खून सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अंकित ने पिता को प्यार से समझाने में नातेरिश्तेदारों की मदद ले कर विवेक का परिचय दिया होता तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती. अंकित का कहना था कि उसे पिता की हत्या करने का पछतावा है, वह जोश में होश खो कर एक बड़ा अपराध कर बैठा. कथा लिखे जाने तक वह जेल में था. उस की जमानत नहीं हो सकी थी. Hindi True Crime

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, रीना परिवर्तित नाम है.)

 

Delhi Crime Story: कंबल में लपेट दिया अपना रिलेशन

Delhi Crime Story: पति की हत्या के आरोप में जेल गई अनीता, जमानत पर छूटने के बाद अपनी सहेली पुष्पा के भाई शिवनंदन के साथ ही लिवइन रिलेशन में रहने लगी. इसी दौरान उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ कि शिवनंदन ने लिवइन रिलेशन को कंबल में लपेट कर रख दिया.

बात पहली जून, 2015 की है. सुबह करीब साढ़े 8 बजे दिल्ली के उत्तर पश्चिमी जिले के थाना आदर्श नगर के ड्यूटी औफिसर को पुलिस नियंत्रण कक्ष द्वारा सूचना मिली कि मजलिस पार्क के मकान नंबर ए/308 से दुर्गंध आ रही है और दरवाजे पर ताला लगा है. ड्यूटी औफिसर ने इस काल के बारे में थानाप्रभारी संजय कुमार को अवगत करा दिया. बंद मकान से बदबू आने की बात सुन कर ही थानाप्रभारी समझ गए कि वहां कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि इस तरह की जो भी काल आती हैं, उन में से ज्यादातर मामले हत्या के ही निकलते हैं. यानी कोई किसी की हत्या कर के लाश को कमरे में छिपा कर दरवाजा बंद कर के फरार हो जाता है.

बहरहाल थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ मजलिस पार्क की तरफ निकल गए. जहां से बदबू आने की बात कही गई थी, वह पहली मंजिल पर था. पुलिस ने भी उस मकान से आती हुई दुर्गंध को महसूस किया. वहीं पर करीब 20 साल का एक युवक नीरज भी था. वह उस मकान में रहने वाले शिवनंदन का सौतेला बेटा था. नीरज ने पुलिस को बताया कि मकान की चाबी उस के पिता के पास है और वह पता नहीं कहां चले गए. तभी आसपास रहने वाले लोग भी वहां आ गए. उन्होंने भी दुर्गंध वाली बात उन्हें बताई. वहां मौजूद लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने दरवाजे पर लगा ताला तोड़ कर जैसे ही किवाड़ खोले तो बदबू और बढ़ गई. नाक पर रुमाल रख कर पुलिस घर में घुसी और यह खोजने लगी कि यह बदबू आ कहां से रही है.

दरवाजे के पास ही एक बरामदा था. फिर एक कमरा बना था. उस के बराबर में किचन थी. किचन के पास बाथरूम था. फिर उस के बराबर में एक कमरा था. कमरे के पीछे बालकनी थी. पुलिस ने कमरे और बाथरूम को छान मारा लेकिन वहां कुछ नहीं मिला. इस के बाद पुलिस किचन में पहुंची तो वहां 2 चूहे मरे मिले. उन चूहों से तेज बदबू आ रही थी इसलिए पुलिस ने नीरज से उन चूहों को फिकवा दिया. पुलिस तो बदबू के दूसरे ही मायने लगा रही थी, लेकिन वहां मामला दूसरा ही निकला. लिहाजा थानाप्रभारी राहत की सांस ले कर वहां से चले गए. करीब साढ़े 9 बजे थानाप्रभारी के मोबाइल पर नीरज का फोन आया. उस ने उन्हें बताया कि मकान से बदबू अभी भी आ रही है. मकान का कोनाकोना छान मारा. लेकिन अब कोई मरा हुआ चूहा भी नहीं मिला. फिर भी पता नहीं बदबू कहां से आ रही है.

थानाप्रभारी एसआई प्रवीण कुमार के साथ एक बार फिर मजलिस पार्क में उसी मकान पर पहुंच गए. इस बार वहां नीरज के साथ उस का सौतेला पिता शिवनंदन भी मिल गया. बदबू महसूस होने पर पुलिस ने एक बार फिर से खोजबीन शुरू कर दी. इस बार भी बदबू किचन की तरफ से ही आ रही थी. पुलिस ने सोचा कि पहले की तरह कोई चूहा ही मरा पड़ा होगा. वह किचन में खोजबीन करने लगी. लेकिन वहां कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. तभी पुलिस की नजर ऊपर की तरफ स्लैब पर बने लकड़ी के रैक पर गई. उस रैक को जैसे ही खोला तो बदबूदार भभका आया.  रैक में एक कंबल दिखाई दिया. देखने पर लग रहा था जैसे उस कंबल में कोई इंसान लिपटा हुआ हो.

पुलिस ने वह कंबल उतार कर खोला तो उस में एक युवती की लाश निकली उस की उम्र करीब 40 साल थी. वह महिला क्रीम कलर का सूट पहने हुए थी. जिस पर ब्राउन कलर के फूल थे. जामुनी रंग की चुन्नी भी उस के गले में थी. लाश को देखते ही नीरज चीखते हुए बोला कि यह तो मेरी मां अनीता है. शिवनंदन भी रो रहा था क्योंकि वह उसी के साथ पत्नी बन कर लिवइन रिलेशन में रह रही थी. शिवनंदन और उस के सौतेले बेटे से पुलिस ने अनीता की हत्या के बारे में पूछा तो दोनों ने बताया कि अनीता की हत्या किस ने की, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं है. गम के माहौल में पुलिस ने उन दोनों से ज्यादा पूछताछ तो नहीं की लेकिन पुलिस के शक की सुई दोनों बापबेटों पर ही टिकी थी.

मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को बुला कर पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी की और लाश को पोस्टमार्टम के लिए जहांगीरपुरी के बाबू जगजीवनराम मेमोरियल अस्पताल भिजवा दिया. हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी संजय कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर राकेश कुमार, एसआई प्रवीण कुमार, हेडकांस्टेबल बालकिशन, राजेंद्र सिंह, अंगद सिंह, कांस्टेबल नवीन कुमार, गजेंद्र, विकास, मनोज आदि को शामिल किया गया. जिस मकान में अनीता की लाश मिली थी, उस में शिवनंदन और अनीता का बेटा नीरज भी रहता था. उन दोनोें के होते हुए कोई मकान में वारदात कर के चला जाए और इस बात की भनक उन्हें न लगे, ऐसी संभावना बहुत कम थी.

दोनों में से कोई न कोई हत्या का राज जरूर जानता होगा. ऐसा पुलिस का मानना था. लिहाजा उन दोनों से पूछताछ करने के लिए पुलिस ने उन्हें थाने बुला लिया. पूछताछ में शिवनंदन ने बताया कि वह आजादपुर मंडी में काम करता है. रोजाना सुबह जल्दी घर से निकलने के बाद देर रात को घर लौटता है. नीरज भी सब्जीमंडी में दूसरी जगह काम करता था. वह भी सुबह घर से जाने के बाद शाम को घर लौटता है.

‘‘जब तुम लोग घर से निकल जाते थे तो घर पर अनीता ही रह जाती होगी?’’ थानाप्रभारी ने उन से पूछा.

‘‘हां, घर पर वही रहती थी.’’ शिवनंदन बोला.

‘‘तो कौन से दिन वह घर पर नहीं मिली?’’ थानाप्रभारी ने जानना चाहा.

‘‘29 मई को जब हम शाम को घर आए तो वह घर से गायब मिली.’’ शिवनंदन ने बताया.

‘‘फिर तुम ने उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं, पुलिस में खबर इस वजह से नहीं की क्योंकि वह कईकई दिनों के लिए घर से गायब हो जाती थी. यही सोचा कि वह 2-4 दिनों में आ जाएगी.’’ शिवंनदन ने कहा.

‘‘बाहर…बाहर कहां और क्यों जाती थी?’’ थानाप्रभारी चौंके.

‘‘सर, पता नहीं कहां जाती थी. मगर इतना पता है कि एक बार वह जिस्मफरोशी के आरोप में चंडीगढ़ पुलिस द्वारा और नशीले पदार्थ की तस्करी के आरोप में पंचकुला पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई थी.’’ शिवनंदन ने बताया.

यह सुन कर पुलिस समझ गई कि अनीता जरूर आवारा और आपराधिक प्रवृत्ति की रही होगी. चाहे वह जैसी भी रही हो, उस का मर्डर तो हुआ ही था. एक बात तो तय थी कि उस का मर्डर बड़ी तसल्ली से उस घर में ही किया गया था. यह काम घर का कोई नजदीकी व्यक्ति ही कर सकता है. वह व्यक्ति कौन हो सकता है, जानने के लिए थानाप्रभारी ने शिवनंदन से पूछा कि उन के घर में और कौनकौन आता था?  जब शिवनंदन ने बताया कि कोई नहीं आता था तो पुलिस को शिवनंदन पर शक गहरा गया. उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि अनीता की हत्या उस ने ही की थी.

अनीता ने उस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे जिस की वजह से उसे यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा था. उस ने अनीता की हत्या करने के पीछे की जो कहानी बताई वह बड़ी दिलचस्प निकली. शिवनंदन मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के अथर गांव के रहने वाले गयाप्रसाद का बेटा था. शिवनंदन के अलावा गया प्रसाद के एक बेटा और 5 बेटियां थीं. गयाप्रसाद खेतीबाड़ी कर के अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए वह उन की शादी करते गए. उन्होंने मंझली बेटी पुष्पा की शादी उत्तर पश्चिमी दिल्ली के मजलिस पार्क में रहने वाले रमेश चंद से की थी. रमेश आजादपुर सब्जी मंडी में काम करता था.

रमेश का काम अच्छा चल रहा था. 10 साल की उम्र में शिवनंदन भी अपने बहनोई रमेश के पास दिल्ली आ गया. रमेश ने उसे पढ़ाना चाहा लेकिन उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो रमेश उसे अपने साथ ही काम पर सब्जीमंडी में ले जाने लगा. कुछ दिनों में ही वह मंडी का काम समझ गया. इस तरह वह 14-15 साल की उम्र में ही पैसे कमाने लगा था. वह जो पैसे कमाता उन्हें अपने पिता के पास भेज देता था. इस बीच अनीता 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई थी. बताया जाता है कि शिवनंदन की बहन पुष्पा के अपने भतीजे से ही नाजायज संबंध हो गए थे. इस बात की जानकारी रमेश को हुई तो उस ने पत्नी पुष्पा को समझाया.

पुष्पा को जब लगा कि उस के अवैध संबंधों में पति बाधक है तो उस ने सन 2004 में पति की हत्या कर दी. पति की हत्या के आरोप में पुष्पा को जेल जाना पड़ा. तब शिवनंदन ने ही अपने दोनों भांजों और भांजी की परवरिश की. एक साल बाद जेल में ही पुष्पा की मुलाकात अनीता से हुई. अनीता मूलरूप से बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की रहने वाली थी. उस की शादी दिल्ली के खजूरी खास क्षेत्र के रहने वाले देवेंद्र सिंह से हुई थी. बताया जाता है कि सन 2005 में उस ने भी अपने पति की हत्या कर दी थी. पति की हत्या के आरोप में उसे जेल जाना पड़ा था. अनीता के 2 बेटे थे नीरज और सूरज. उस के जेल जाने के बाद बच्चों को लक्ष्मीनगर में रहने वाली उन की मौसी ले गई थी.

पुष्पा और अनीता हमउम्र थीं इसलिए जेल में वे दोनों अच्छी दोस्त बन गई थीं. शिवनंदन जेल में अपनी बहन से मिलने जाता ही था. वहीं पर बहन ने उस की मुलाकात अनीता से कराई थी. अविवाहित शिवनंदन अनीता से मिल कर बहुत प्रभावित हुआ. वह उसे मन ही मन चाहने लगा. अनीता की वजह से वह जल्दजल्द बहन से मिलने जाने लगा. इसी बीच पुष्पा को सजा हो गई तो वह सजा पूरी कर के घर आ गई. कई साल पहले अनीता के मांबाप की मौत हो चुकी हो चुकी थी. दिल्ली के लक्ष्मीनगर में जो उस की बहन रह रही थी, वह भी ऐसी नहीं थी जो उस की जमानत करा सके. उस की जमानत कराने वाला कोई नहीं था जिस से वह जेल में ही बंद थी.

पुष्पा चाहती थी कि किसी तरह अनीता भी जेल से बाहर आ जाए. इसलिए एक दिन उस ने शिवनंदन से उस की जमानत कराने को कहा. शिवनंदन भी यही चाहता था, इसलिए उस ने सन 2010 में किसी तरह अनीता की जमानत करा दी. जमानत के बाद अनीता को पुष्पा ने अपने घर ही रख लिया. शिवनंदन की कमाई से ही घर का खर्चा चल रहा था. एक ही घर में रहने की वजह से शिवनंदन और अनीता एकदूसरे के बेहद नजदीक आ गए. पुष्पा को उन के संबंधों की भनक लग चुकी थी. उन से इस बारे में कुछ कहने के बजाय उस ने मुंह फेर लिया.

इतना ही नहीं, पुष्पा का उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र में एक मकान और था. वह अपने तीनों बच्चों को ले कर बुराड़ी चली गई. मजलिस पार्क वाले मकान में शिवनंदन ही रहने लगा, मगर वह इस के बदले बहन को किराया दे देता था. शिवनंदन और अनीता ने जब महसूस किया कि उन के संबंधों पर पुष्पा को कोई आपत्ति नहीं है तो उन की हिम्मत और बढ़ गई. इस के बाद वे बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह रहने लगे. हालांकि अनीता उस से उम्र में 15 साल बड़ी थी, इस के बाद भी दोनों के इस तरह रहने पर पुष्पा भी खुश थी. अनीता ने अपने दोनों बेटों को भी अपने पास बुला लिया. बड़ा बेटा सूरज अपने किसी जानकार के साथ नौकरी के लिए मुंबई चला गया. तब से वह मुंबई में ही है. जबकि छोटा 20 साल का नीरज मां के साथ ही रह रहा था. नीर को शिवनंदन ने आजादपुर सब्जी-मंडी में काम पर लगवा दिया.

शिवनंदन तो सुबह ही घर से मंडी के लिए निकल कर देर शाम को ही घर लौटता था. इस दौरान अनीता अकेली ही घूमने के लिए निकल जाती थी. वह कहां जाती और किस के साथ घूमती थी, यह बात वह पुष्पा को भी नहीं बताती थी. शिवनंदन को जब अनीता की इस हरकत की जानकारी मिली तो उस ने उसे समझाया लेकिन वह नहीं मानी. इस के बाद तो उस की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वह कईकई दिनों तक घर से बाहर रहने लगी. इस दौरान वह अपना फोन भी स्विच्ड औफ कर लेती थी. अनीता जब अपनी मनमरजी करने लगी तो शिवनंदन ने भी उस से कहनासुनना बंद कर दिया.

शिवनंदन को पता नहीं था कि वह गलत धंधा भी करने लगी है. वह गलत धंधा क्या है इस का पता उसे तब लगा जब वह 3 साल पहले नशीले पदार्थ के साथ पंचकुला पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई. ड्रग की खेप वह दिल्ली से पंजाब पहुंचाने जा रही थी. पुष्पा को अनीता के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली तो वह हैरान रह गई. उसे लगा कि अनीता शायद गलत तरह के लोगों के बीच फंस गई है और वे लोग उस से ड्रग सप्लाई करा रहे हैं. वह उस से बात कर के सच्चाई जानना चाहती थी. इसलिए वह उस से जेल में मिलने पहुंच गई. पुष्पा को देखते ही अनीता फूटफूट कर रोई. अनीता ने उसे बताया कि ड्रग सप्लाई का काम वह किसी के दबाव में कर रही थी. यानी पुष्पा जैसा सोच रही थी, बात वही निकली.

बहरहाल पुष्पा को अनीता पर दया आ गई. और उस ने भाई से कह कर उस की जमानत करा ली. वह फिर से शिवनंदन के साथ ही रहने लगी. कुछ दिनों तक तो अनीता वहां ठीक रही, बाद में वह अपने पुराने ढर्रे पर उतर आई. बिना बताए घर से निकल कर देर रात घर लौटना जैसे उस का रोज का नियम बन गया था. शिवनंदन उसे डांटता तो वह 2-4 दिन तो ठीक रहती उस के बाद वही उस का घूमनाफिरना शुरू हो जाता था. पुष्पा को कभीकभी गुस्सा आता कि वह उसे घर से निकाल दे लेकिन यह सोच कर खयाल भी आ जाता था कि इस के मांबाप तो हैं नहीं. यहां के बाद ये जाएगी कहां. इसलिए वह बारबार अनीता को समझाती ही रहती थी.

शिवनंदन को कोई परेशानी न हो इसलिए उस ने अपने घर के दरवाजे पर लगने वाले ताले की दूसरी चाबी अपने पास रख ली. करीब एक साल पहले वह अचानक घर से फिर गायब हो गई. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. शिवनंदन और पुष्पा ने उसे संभावित जगहों पर तलाशा लेकिन वह कहीं नहीं मिली. फिर 4-5 दिनों बाद पुष्पा के मोबाइल पर चंडीगढ़ पुलिस का फोन आया. पुलिस ने बताया कि अनीता वेश्यावृत्ति के आरोप में गिरफ्तार की गई है. यह खबर मिलते ही पुष्पा चौंक गई. इस के बाद वह समझ गई कि अनीता कईकई दिनों तक बाहर क्यों रहती है. उस ने यह बात शिवनंदन को बताई तो वह भी हैरान रह गया.

अब की बार शिवनंदन ने तय कर लिया कि वह अनीता से न तो जेल में मिलने जाएगा और न ही उस की जमानत कराएगा लेकिन पुष्पा के मन में तो अब भी उस के लिए दया थी. आखिर उस ने शिवनंदन को चंडीगढ़ जाने के लिए तैयार कर लिया. दोनों ने उस से जेल में मुलाकात की. अनीता ने इस बार भी लाख सफाई दी कि उसे झूठे आरोप में फंसाया गया है, वह बेकुसूर है. लेकिन शिवनंदन को उस पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वह उस का विश्वास पहले ही तोड़ चुकी थी. अनीता पुष्पा से इस बार और माफ करने के लिए गिड़गिड़ाने लगी. उस के आंसू देख कर पुष्पा का दिल फिर से पसीज गया. लिहाजा भाई से कहसुन कर उस ने अनीता की फिर से जमानत करा ली.

इस बार उस ने अनीता को हिदायत दी कि वह अब कोई ऐसावैसा काम न करे जिस से उन्हें परेशानी हो. अनीता ने वादा तो कर लिया लेकिन उसे निभा नहीं पाई. फिलहाल उस ने घर से बाहर निकलना तो बंद कर दिया था, पर वह घर पर ही अपने फोन से पता नहीं किसकिस से बतियाती रहती थी. शिवनंदन उस के आचरण को जान ही चुका था. इसलिए उसे इस बात का शक था कि वह अपने किसी यार से ही बात करती होगी. उस ने इस बारे में अनीता से पूछा भी पर अनीता यही कह देती कि अपनी सहेलियों से बातें करती है. 29 मई, 2015 को अनीता का बेटा नीरज सब्जीमंडी गया हुआ था. शिवनंदन घर पर ही था. अनीता उस दिन भी अपने फोन पर काफी देर से किसी से बातें कर रही थी. शिवनंदन मन ही मन कसमसा रहा था. जैसे ही अनीता की बात खत्म हुई तो शिवनंदन ने पूछा, ‘‘किस का फोन था जो इतनी लंबी बात चली?’’

‘‘तुम्हें क्यों बताऊं किस का फोन था. जब तुम किसी से बातें करते हो तो मैं क्या तुम से पूछती हूं?’’ अनीता बोली.

‘‘मैं इतनी देर तक किसी से बात भी तो नहीं करता. और यदि तुम्हारे पूछने पर मैं नहीं बताता तो कहती.’’ उस ने कहा.

‘‘देखोजी, मैं किसी से बात करूं या ना करूं इस से तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए.’’ अनीता तुनक कर बोली.

इसी बात पर अनीता और शिवनंदन के बीच कहासुनी हो गई. अनीता ने शिवनंदन पर हाथ छोड़ दिया. शिवनंदन भी आपा खो बैठा उस ने दोनों हाथों से अनीता का गला दबा दिया. कुछ ही देर में अनीता का दम घुट गया. उस के मरते ही शिवनंदन घबरा गया. उस ने गुस्से में अनीता को मार तो दिया, लेकिन अब उस के सामने समस्या यह थी कि वह उस की लाश को ठिकाने कहां लगाए. अगर वह उसे कहीं बाहर ले जाए तो उस के पकड़े जाने की संभावना थी. लिहाजा वह उसी घर में उसे ठिकाने लगाने की सोचने लगा. काफी सोचनेविचारने के बाद उस ने एक कंबल में उस की लाश लपेट ली. फिर उसे किचन के ऊपर के स्लैब पर बनी लकड़ी की रैक में छिपा दिया. इस के बाद वह मकान के दरवाजे पर ताला लगा कर सब्जीमंडी चला गया.

शाम को शिवनंदन और नीरज सब्जीमंडी से लौटे तो नीरज ने घर में मां को नहीं देखा तो वह चौंका. तब शिवनंदन ने कह दिया कि वह पहले की तरह कहीं गई होगी. अनीता कईकई दिनों के लिए अचानक घर से गायब हो जाती थी, इसलिए वह कुछ नहीं बोला. उसे पता नहीं था कि उस की मां अब इस दुनिया में नहीं है. 2-3 दिनों बाद लाश सड़ने लगी तो शिवनंदन ने किचन में खाना बनाना बंद कर दिया ताकि नीरज को कोई शक न हो. वह बाजार से ही खाना मंगाने लगा. उधर अनीता की लाश से बदबू वाला तरल पदार्थ रिसने लगा. उस तरल पदार्थ को शायद किचन में गए चूहों ने पीया होगा, जिस से उन की मौत हो गई. शिवनंदन और नीरज रोजाना ही उसी घर में सोते थे. बदबू बढ़ने पर नीरज ने उस से पूछा भी लेकिन शिवनंदन ने कोई चूहा मरने की बात कह कर उस की बात टाल दी.

पहली जून को शिवनंदन और नीरज अपने काम पर निकल गए. नीरज किसी काम से घर आया तो उस से पड़ोसियों ने बदबू आने वाली बात बताई. उसी दौरान किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. फोन काल पर पुलिस वहां आई और मरे हुए चूहे निकलवा कर चली गई. एकडेढ़ घंटे बाद शिवनंदन भी वहां आ गया. उसे जब पता चला कि किचन में जाने के बावजूद भी पुलिस लाश का पता नहीं लगा पाई तो वह बहुत खुश हुआ. उस ने सोचा कि अब वह पकड़ा नहीं जाएगा. लेकिन उस की यह खुशी केवल कुछ देर तक ही रही. क्योंकि उसी दौरान बदबू आने की शिकायत पुलिस से दोबारा जो कर दी गई थी. दूसरी बार पहुंची पुलिस ने बदबू की वजह ढूंढ ही निकाली.

शिवनंदन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे हत्या और लाश ठिकाने लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर के जिला एवं सत्र न्यायालय रोहिणी के महानगर दंडाधिकारी कपिल कुमार के समक्ष पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. शिवनंदन और पुष्पा ने अनीता को सुधरने के कई मौके दिए थे लेकिन अनीता अपनी बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं के चलते गलत पर गलत काम करती रही. यदि वह सही रास्ते पर चलती तो शायद शिवनंदन के हाथों नहीं मारी जाती. बहरहाल, अनीता का बेटा सूरज मां की मौत के बाद भी मुंबई से नहीं आया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर राकेश कुमार कर रहे हैं. Delhi Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

Hindi Stories: कातिल दरोगा

Hindi stories: फरियाद ले कर पुलिस चौकी पहुंची खूबसूरत ईशा को देख कर दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह इतना प्रभावित हुआ कि शादीशुदा होते हुए भी वह उसे चाहने लगा. इतना ही नहीं, खुद को अविवाहित बता कर उस ने ईशा से शादी भी कर ली. बाद में यही झूठ ऐसा जी का जंजाल बना कि वह एक खौफनाक अपराध कर बैठा. कानपुर के थाना काकादेव क्षेत्र में एक मोहल्ला है नवीन नगर. कौशलेश सचान अपनेपरिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विनीता के अलावा एक बेटा ऐश्वर्य राज, 2 बेटियां ईशा व प्रगति थीं. कौशलेश साधन संपन्न व्यक्ति थे. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

कौशलेश सचान की बड़ी बेटी का नाम वैसे तो ईशा था लेकिन घर में सब लोग उसे ईशू कहते थे. गोरी, तीखे नाकनक्श और बड़ीबड़ी आंखों वाली ईशा सुशील और विनम्र स्वभाव की थी. ईशा तनमन से जितनी खूबसूरत थी, पढ़नेलिखने में भी उतनी ही तेज थी. उस ने कानपुर के सरस्वती बालिका इंटर कालेज से प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट और एएनडी कालेज में बीए पास किया. ईशा की इच्छा थी कि वह आईएएस बने. इसलिए प्रथम श्रेणी में बीए पास करने के बाद उस ने आईएएस की तैयारी के लिए कोचिंग शुरू कर दी थी. लेकिन लगातार 3 साल तक परीक्षा देने के बाद भी वह सिविल सर्विस में न निकल सकी.

एक दिन ईशा अपनी मां विनीता के साथ जेके मंदिर गई. दर्शन करने के बाद जब वह गेट के बाहर निकली, तो एक झपटमार ने उस के गले की सोने की चेन खींच ली और साथ ही उस का पर्स भी छीन कर भाग निकला. बदहवास मांबेटी थाना नजीराबाद पहुंचीं. उस इलाके के चौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह पटेल उस समय थाने में ही थे. ईशा ने ज्ञानेंद्र सिंह को लूट की पूरी घटना बताई तो उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कर के लुटेरे की तलाश शुरू कर दी. 3-4 दिन बाद ही ज्ञानेंद्र ने छोटे यादव नाम के लुटेरे को पकड़ लिया. दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह की इस त्वरित काररवाई से ईशा काफी प्रभावित हुई.

बयान दर्ज कराने, लुटेरे और सामान की शिनाख्त करने के लिए ईशा को कई बार थाना नजीराबाद आनाजाना पड़ा. इसी आनेजाने में ईशा और दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. ज्ञानेंद्र सिंह जहां ईशा की खूबसूरती पर फिदा था, वहीं ईशा भी शरीर से हृष्टपुस्ट व स्मार्ट दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को देख कर उस की ओर आकर्षित हो गई थी. दोनों को एक अनजाना आकर्षण एकदूसरे की तरफ खींचने लगा था. दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को ईशा कुछ ज्यादा ही पसंद आ गई थी, इसलिए उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया था. वह जब तब ईशा से बातें करने लगा. ईशा को भी उस की रसभरी बातों में प्यार झलकता था. वह भी उस से खूब बातें करने लगी. धीरेधीरे दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं. बात आगे बढ़ी तो दोनों साथसाथ सैरसपाटे के लिए भी जाने लगे. ज्ञानेंद्र ईशा को फिल्म भी दिखाता और रेस्तरां में खाना भी खिलाता.

सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह पटेल मूल रूप से चित्रकूट जिले के मऊ थाना अंतर्गत आने वाले गांव छिवलहा का रहने वाला था. उस का सलेक्शन 2007 के बैच में हुआ था. उस की पहली पोस्टिंग कानपुर के किदवई नगर थाने की साकेत नगर पुलिस चौकी में हुई थी. इस के बाद वह कानपुर शहर और देहात के कई थानों में तैनात रहा. कुछ समय वह क्राइम ब्रांच में भी रहा. ज्ञानेंद्र सिंह नौकरी के अलावा प्लौटिंग का भी काम करता था. इस काम में उस ने खूब पैसा कमाया. उस के पास 4-5 लग्जरी कारें थीं, जिन्हें उस ने एक ट्रैवलिंग एजेंसी में लगवा रखा था. ज्ञानेंद्र सिंह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. उस की शादी मध्य प्रदेश स्थित सतना जिले की बछरांवा निवासी नीलम के साथ हुई थी.

पत्नी और बच्चों के साथ वह साकेत नगर, कानपुर में रह रहा था. जबकि ईशा से उस ने खुद को अविवाहित बताया था. एक रोज ज्ञानेंद्र सिंह ईशा के घर पहुंचा, तो उस वक्त वह घर में अकेली थी. उस के मातापिता किसी काम से माल रोड गए हुए थे, और भाईबहन कालेज में थे. ज्ञानेंद्र सिंह और ईशा कमरे में बैठ कर बातचीत करने लगे. बातोंबातों में ज्ञानेंद्र ने ईशा की खूबसूरती के कसीदे काढ़ने शुरू कर दिए. यह देख उस ने ज्ञानेंद्र की बेचैन आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘ज्ञानेंद्र, क्या सचमुच मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं? कहीं तुम मुझे खुश करने के लिए मेरी झूठी तारीफ तो नहीं कर रहे?’’

ज्ञानेंद्र सिंह ने ईशा को चाहत भरी नजरों से देखा, वह उसे ही अपलक निहार रही थी. ज्ञानेंद्र ने महसूस किया कि दिल की बात कहने का ऐसा मौका मुश्किल से ही मिलेगा. इसलिए वह ईशा की कलाई थामते हुए बोला, ‘‘ईशा, मुझे तुम से प्यार हो गया है. तुम्हारे बगैर सबकुछ सूनासूना सा लगता है. मुझे लगता है कि तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए ऐसी ही फीलिंग्स हैं. अगर ऐसा है तो प्लीज मेरा प्यार स्वीकार कर लो.’’

‘‘ज्ञानेंद्र, तुम नहीं जानते कि मैं तुम्हारे मुंह से ये शब्द सुनने के लिए कितनी बेकरार थी. कितनी देर लगा दी तुम ने अपने दिल की बात कहने में. मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं कि मैं तुम से कितना प्यार करती हूं. आई लव यू ज्ञानेंद्र.’’

उस दिन दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर दिया, इस के बाद जैसे दोनों की दुनिया ही बदल गई. समय के साथ उन की मोहब्बत दिन दूनी रात चौगुनी परवान चढ़ती गई. ज्ञानेंद्र जब ड्यूटी पर होता तो ईशा से मोबाइल पर बातें करता और जब समय मिलता तो उस के साथ घूमताफिरता. इस तरह दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ गए कि उन्हें लगने लगा, अब एकदूसरे के बिना नहीं रहा जा सकता. अंतत: शुरुआत ईशा ने की. उस ने अपने दिल की बात घरवालों को बता कर ज्ञानेंद्र सिंह से शादी करने की इच्छा जाहिर की.

ईशा की बात सुन कर पहले तो उस की मां विनीता और पिता कौशलेश चौंके, लेकिन बाद में बेटी की खुशी के लिए राजी हो गए. दरअसल ईशा ने उन्हें समझाया था कि दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह उन की ही जातिबिरादरी का है. अच्छा कमाता है और पुलिस विभाग में अच्छे पद पर तैनात है. बेटी की मरजी जान कर वे लोग ईशा की शादी ज्ञानेंद्र से करने को राजी हो गए. सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र से बात की गई तो उस ने बताया कि कुछ कारणों से उस ने अपने घर वालों से संबंध विच्छेद कर रखा है इसलिए उस के परिवार का कोई सदस्य शादी में शामिल नहीं हो पाएगा.

बहरहाल, बातचीत के बाद कौशलेश ने 10 मार्च, 2013 को अपनी बेटी ईशा का विवाह ज्ञानेंद्र सिंह के साथ कर दिया. शादी के बाद ज्ञानेंद्र उसे साकेत नगर स्थित अपने घर ले गया. उस वक्त उस की पत्नी नीलम मायके गई हुई थी. इस के बाद ईशा ज्यादातर मायके में ही रही. वह उसे अपने घर तभी ले जाता था, जब नीलम मायके गई होती थी. बहरहाल, हंसीखुशी से एक वर्ष कब बीत गया, पता ही न चला. इसी बीच ईशा ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने सान्या रखा. सान्या के जन्म से जहां ईशा के जीवन में बहार आ गई थी, वहीं ज्ञानेंद्र खोयाखोया सा रहने लगा था. दिखावे के तौर पर तो वह उसे प्यार करता था, लेकिन अंदर ही अंदर परेशान रहता था.

ईशा और ज्ञानेंद्र में पहली बार तकरार तब शुरू हुई जब वह अपनी बेटी सान्या का बर्थडे सर्टिफिकेट बनवाने नगर निगम पहुंची. दरअसल, ज्ञानेंद ने सर्टिफिकेट में पिता की जगह अपना नाम लिखवाने से मना कर दिया था. इस बात को ले कर ईशा और ज्ञानेंद्र में काफी विवाद हुआ. यहीं से ईशा को ज्ञानेंद्र पर शक हुआ. जब ईशा ने गुप्त रूप से ज्ञानेंद्र के संबंध में जानकारी हासिल की तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे पता चला कि ज्ञानेंद्र शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता है. वह अपनी पत्नी नीलम और बच्चों के साथ कानपुर में ही रहता है. वह उसे तभी अपने घर ले जाता है, जब नीलम मायके गई होती है.

उस दिन देर रात ज्ञानेंद्र सिंह घर आया तो ईशा ने उस से पूछा, ‘‘मैं कौन हूं तुम्हारी. पत्नी, प्रेमिका या रखैल?’’

‘‘यह तुम कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो? तुम पत्नी हो मेरी.’’ ज्ञानेंद्र ने जवाब दिया.

‘‘झूठ बोल रहे हो, तुम शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता हो. तुम्हारी पत्नी का नाम नीलम है, जिस के साथ तुम वैवाहिक जीवन बिता रहे हो. तुम फरेबी और धोखेबाज हो. प्यार का नाटक कर के तुम ने मुझे धोखा दिया और मुझ से शादी कर ली. लेकिन अब मैं चुप नहीं बैठूंगी. तुम्हारे खिलाफ लड़ाई लड़ूंगी. जरूरत पड़ी तो रिपोर्ट भी दर्ज कराऊंगी.’’

ज्ञानेंद्र सिंह समझ गया कि ईशा को असलियत का पता चल गया है, इसलिए उस ने माफी मांग ली. फिर बोला, ‘‘ईशा तुम मेरी दूसरी पत्नी बन कर रह सकती हो. मैं तुम्हें पूरा सम्मान दूंगा. कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा. चाहो तो अपने और बेटी के नाम पर जितना चाहे पैसा जमा करा सकती हो. मैं खुशीखुशी जमा कर दूंगा.’’

‘‘मिस्टर ज्ञानेंद्र, पत्नी दूसरी पहली नहीं होती. पत्नी सिर्फ पत्नी होती है. अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो अपनी पत्नी नीलम को तलाक दे दो.’’

‘‘उसे तलाक देना आसान नहीं है.’’ ज्ञानेंद्र ने मजबूरी जाहिर की तो ईशा बोली, ‘‘मेरा क्या होगा. यह सोचा है तुम ने? अपनी पत्नी और बच्चों की चिंता थी तो मेरे साथ प्यार का स्वांग कर के धोखे से शादी क्यों की? अगर तुम ने नीलम को तलाक नहीं दिया तो इस का अंजाम अच्छा नहीं होगा. मैं जहर खा कर जान दे दूंगी या फिर तुम्हारे खिलाफ धोखाधड़ी से शादी रचाने और शारीरिक शोषण करने की रिपोर्ट दर्ज कराऊंगी.’’

ईशा की धमकी सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह अंदर तक कांप गया.वह तनाव में रहने लगा. ऐसी स्थिति में दोनों के बीच दूरियां बढ़ना स्वभाविक था. फलस्वरूप दोनों में आएदिन झगड़ा होने लगा. लड़झगड़ कर ईशा मायके आ गई. आखिरकार इस गंभीर समस्या के निदान के लिए दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह ने ईशा के कत्ल की योजना बना डाली. अपनी इस योजना में उस ने अपने साथी मनीष कठेरिया, उस के भाई बच्चा और मनीष के साथी अर्जुन व उस की प्रेमिका अवंतिका को शामिल कर लिया. मनीष कठेरिया किदवई नगर में रहता था. वह दबंग किस्म का आदमी था. साकेत नगर में उस की ‘टेलीकाम विला’ नाम से मोबाइल शौप तथा ‘बालाजी ट्रैवल्स’ के नाम से ट्रैवलिंग एजेंसी थी. इस के अलावा वह कमेटी भी चलाता था. पुलिस से दोस्ती करना उस का शौक था.

दर्जनों थानेदारों से उस के दोस्ताना संबंध थे. जिन्हें वह मुफ्त में मोबाइल फोन और आनेजाने के लिए लग्जरी गाडि़यां मुहैया कराता था. इस सेवा के एवज में वह अपने काम निकलवाता था. ज्ञानेंद्र सिंह जब साकेत नगर चौकी इंचार्ज था, तभी उस की दोस्ती मनीष से हुई थी. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती बढ़ती गई. अर्जुन जूही बारादेवी में रहता था और मनीष कठेरिया का दोस्त था. वह मनीष की ट्रैवलिंग एजेंसी में लग्जरी कार चलाता था. अर्जुन की प्रेमिका अवंतिका किदवई नगर में रहती थी. दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था. मनीष कठेरिया ने ही अर्जुन और अवंतिका का परिचय दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह से कराया था. मनीष का भाई बच्चा गोविंद नगर में रहता था.

आर्थिक मदद के लिए वह मनीष के पास आता था. मनीष के कहने पर बच्चा हर काम करने के लिए तत्पर रहता था. मनीष की कमेटी का पैसा बच्चा ही वसूल किया करता था. वह हमेशा मारपीट पर आमादा रहता था. इसी बीच ज्ञानेंद्र सिंह का तबादला प्रतापगढ़ हो गया था. वहां वह आंसपुर (देवसरा) थाने में तैनात रहा. बाद में काम में लापरवाही बरतने के कारण उसे लाइन हाजिर कर दिया गया था. लाइन हाजिर होने के बाद वह पुलिस लाइन में ड्यूटी कर रहा था. ईशा की धमकी ने उस का दिन का चैन और रात की नींद हराम कर दी थी. उसे पता था कि ईशा ने रिपोर्ट दर्ज करा दी तो उस की नौकरी तो जाएगी ही उसे जेल की हवा भी खानी पड़ेगी. इसलिए वह जल्द से जल्द ईशा का काम तमाम करना चाहता था. इस के लिए वह बराबर अपने दोस्तों से संपर्क बनाए हुए था. उस ने उन से मिल कर ईशा की हत्या की योजना बना ली थी.

अपनी योजना के तहत दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह 17 मई, 2015 को ईशा के घर नवीन नगर, काकादेव पहुंचा. वहां उस ने ईशा की मां, मौसी, मामा व अन्य घरवालों से माफी मांगी और वादा किया कि वह ईशा को शारीरिक या मानसिक पीड़ा नहीं पहुंचाएगा और जैसा वह कहेगी, वैसा ही करेगा. उस के कहने पर पहली पत्नी नीलम को तलाक भी दे देगा. उस ने यह भी कहा कि अगर किसी वजह से वह नीलम को तलाक न दे सका तो ईशा व उस की बेटी के भरणपोषण के लिए मोटी रकम देगा. ईशा के घरवालों ने इस समझौते को स्वीकार कर लिया. 18 मई, 2015 की शाम 4 बजे दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह अपने साथी मनीष कठेरिया के साथ लग्जरी कार से ईशा के घर पहुंचा और उस की मां विनीता के पैर छू कर बोला, ‘‘मांजी, हम ईशा को कुष्मांडा देवी के दर्शन कराने ले जाना चाहते हैं. हमें आप की इजाजत चाहिए.’’

ईशा ज्ञानेंद्र की पत्नी थी, सो उन्हें क्या ऐतराज हो सकता था. लिहाजा उन्होंने ईशा को ज्ञानेंद्र के साथ जाने की इजाजत दे दी. ईशा व ज्ञानेंद्र को रात 8 बजे तक मंदिर से वापस आ जाना चाहिए था. लेकिन जब दोनों रात 10 बजे तक वापस नहीं आए तो ईशा की मां विनीता सचान को चिंता हुई. उन्होंने ईशा और ज्ञानेंद्र से मोबाइल पर बात करनी चाही, लेकिन दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ थे. रात भर विनीता बेटी के आने का इंतजार करती रहीं, लेकिन वह वापस नहीं लौटी. सुबह को परेशानहाल विनीता सचान थाना काकादेव पहुंचीं. थाने पर उस समय थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव मौजूद थे. उन्होंने सारी बात बताते हुए रिपोर्ट दर्ज करने की गुहार लगई. लेकिन विभाग का मामला होने की वजह से पुलिस ने उन्हें टरका दिया. इस पर विनीता सचान डीआईजी आशुतोष पांडेय से मिलीं और शक जताते हुए रिपोर्ट दर्ज कराने की विनती की.

डीआईजी आशुतोष पांडेय को मामला गंभीर लगा. अत: उन्होंने थानाप्रभारी उदय प्रताप को तत्काल रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दे दिया. आदेश मिलते ही उदय प्रताप ने विनीता सचान की ओर से भादंवि की धारा 364 के तहत दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. 20 मई को काकादेव थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव को कौशांबी के थाना महेवाघाट द्वारा एक युवती की सिर विहीन लाश मिलने की सूचना दी गई. शक के आधार पर थानाप्रभारी विनीता सचान, उन के पुत्र ऐश्वर्य राज व अन्य घरवालों के साथ महेवाघाट थाना पहुंचे. पुलिस ने लाश मोर्चरी में रखवा दी थी. विनीता सचान ने जब उस लाश को देखा तो वह फफक कर रो पड़ीं. यह लाश उन की बेटी ईशा की ही थी. विनीता ने लाश की पहचान ईशा के हाथ में बंधी कलाई घड़ी तथा बांह पर गुदे लव आकार के टैटू से की थी.

लाश की शिनाख्त होने पर महेवाघाट थाना पुलिस ने अपने यहां दर्ज हत्या के मामले को थाना काकादेव, कानपुर ट्रांसफर कर दिया. चूंकि ईशा की लाश की शिनाख्त हो चुकी थी, इसलिए काकादेव पुलिस ने अपहरण के इस मामले में धारा 302/201/120बी और जोड़ दी. साथ ही विनीता के बयान के आधार पर ज्ञानेंद्र सिंह के साथसाथ बच्चा, मनीष कठेरिया, अर्जुन और उस की कथित पत्नी अवंतिका को भी आरोपी बना दिया. चूंकि यह मामला पुलिस के एक दरोगा से जुड़ा था इसलिए डीआईजी आशुतोष पांडेय ने ईशा के हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने, कत्ल में प्रयुक्त हथियार और सिर बरामद करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम बनाई. इस टीम में सीओ स्वरूप नगर आतिश कुमार, क्राइम ब्रांच के सीओ अमित कुमार राय, प्रभारी आर.के. सक्सेना तथा काकादेव थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने ज्ञानेंद्र, बच्चा, मनीष कठेरिया तथा उस के साथी अर्जुन के ठिकानों पर ताबड़तोउ़ छापे मारे. लेकिन सभी आरोपी फरार थे. पुलिस टीम ने उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही करीब एक दर्जन लोगों को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की. निर्दोष पाए जाने पर बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. पुलिस टीम को ईशा के मोबाइल की लोकेशन आगरा में मिली. पुलिस टीम आगरा गई और हाइवे के एक ढाबे के कर्मचारी से ईशा का मोबाइल बरामद कर लिया. उस कर्मचारी ने बताया कि कुछ लोग यह मोबाइल खाना खाने के बाद मेज पर छोड़ गए थे. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि हत्यारोपियों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए ऐसा किया होगा.

25 मई, 2015 को पुलिस टीम ने हत्यारोपी अर्जुन व उस की प्रेमिका अवंतिका को छपेड़ा पुलिया, काकादेव से कार सहित गिरफ्तार कर लिया. अर्जुन अपनी प्रेमिका को स्विफ्ट डिजायर कार से घुमाने बिठूर जा रहा था. यह कार मनीष कठेरिया की थी. अर्जुन और अवंतिका के पास से ईशा का एक कंगन भी बरामद हुआ. पूछताछ में अर्जुन ने बताया कि घटना वाले दिन शाम 4 बजे ज्ञानेंद्र सिंह स्विफ्ट कार से ईशा के घर पहुंचा था. उस वक्त कार में मनीष और उस का भाई बच्चा भी मौजूद था. ईशा को साथ ले कर तीनों नौबस्ता आए. मनीष ने उसे व अवंतिका को फोन कर के वहीं बुला लिया.

सभी 6 लोग 2 गाडि़यों के साथ विधनू, घाटमपुर, फतेहपुर होते हुए कौशांबी की ओर बढ़े. रास्ते में एक सुनसान जगह पर ज्ञानेंद्र ने गाड़ी रोक दी. उसी वक्त मनीष ने ईशा को दबोच लिया और ज्ञानेंद्र ने तेज धार वाले चाकू से ईशा का सिर धड़ से अलग कर दिया. धड़ से खून का फव्वारा छूटा तो मनीष ने अपनी शर्ट उतार कर सिर को धड़ से बांध दिया. फिर ईशा के शरीर से कपड़े और जेवर उतार कर सिर को यमुना नदी में तथा धड़ को महेवाघाट यमुना पुल के पास फेंक दिया. तत्पश्चात गाड़ी की अदलाबदली कर के तथा कंगन दे कर उसे वापस भेज दिया गया. मनीष, बच्चा व दरोगा ज्ञानेंद्र दूसरी गाड़ी से कहीं चले गए. अर्जुन व अवंतिका का बयान दर्ज करने के बाद काकादेव पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया.

अब पुलिस टीम ने शातिर दिमाग ज्ञानेंद्र सिंह, उस के साथी मनीष कठेरिया व बच्चा को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया. इस से घबरा कर 30 मई को मनीष कठेरिया ने सीजेएमएम मीना श्रीवास्तव की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने उसे 3 दिनों की रिमांड पर ले लिया. मनीष से कोहना व किदवई नगर थाने में कड़ाई से पूछताछ की गई, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने उस की मां उषा को थाने बुलवा लिया. दोनों को आमनेसामने बैठा कर पुलिस टीम ने पूछताछ शुरू की. जबान न खुलने पर पुलिस ने उस की मां उषा को जेल भेजने की धमकी दी. इस धमकी से मनीष टूट गया और उस ने जबान खोल दी.

वह पुलिस टीम को महेवाघाट थाना क्षेत्र ले गया. वहां उस ने एक गड्ढे से मृतक ईशा का पर्स व सोने का एक कंगन बरामद करा दिया. पर्स में कुछ नकदी व जरूरी कागजात थे. पुलिस टीम ने यहीं से मनीष की खून से सनी शर्ट भी बरामद कर ली, जिसे उस ने हत्या के बाद खून रोकने के लिए इस्तेमाल किया था. बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने मनीष को अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. मनीष को जेल भेजने के बाद पुलिस टीम ने ईशा की हत्या के मुख्य आरोपी दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को पकड़ने की कवायद शुरू की. एसएसपी शलभ माथुर ने उसे पकड़ने के लिए 12 हजार का ईनाम घोषित कर दिया था. लेकिन दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह पुलिस की हर युक्ति को धता बता कर 8 जून को कोर्ट में हाजिर हो गया. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम हाथ मलती रह गई.

दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह द्वारा आत्मसमर्पण की बात कानपुर कोर्ट में फैली तो वकीलों का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. वे झुंड बना कर सीजेएमएम कोर्ट जा पहुंचे. पुलिस जब ज्ञानेंद्र को ले जाने लगी तो वकील उस पर टूट पड़े और उसे लातघूंसों से जम कर पीटा, उन्होंने उस के कपड़े फाड़ दिए और मुंह पर थूका. बड़ी मसक्कत के बाद पुलिस उसे जेल ले जा सकी. कत्ल में इस्तेमाल हथियार और मृतका का सिर बरामद करने के लिए पुलिस टीम ने दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को 17 जून को 2 दिनों के रिमांड पर लिया. काफी जद्दोजहद के बाद ज्ञानेंद्र सिंह ने मुंह खोला. वह पुलिस टीम को महेवाघाट, कौशांबी में यमुना नदी के दूसरी तरफ ले गया, जहां उस ने जमीन में गड़े सर्जिकल चाकू, ईशा का मंगलसूत्र, चेन और अंगूठी बरामद कराई. ईशा के सिर के संबंध में पूछने पर ज्ञानेंद्र ने बताया कि उसे यमुना नदी की तेज धारा में फेंक दिया गया था.

सिर को बरामद करने के लिए पुलिस ने यमुना नदी में जाल डलवाया, लेकिन सिर बरामद नहीं हो सका था. पुलिस पूछताछ में ज्ञानेंद्र ने बताया कि ईशा उस पर पहली पत्नी नीलम को तलाक देने का दबाव बना रही थी. जिस से परेशान हो कर उस ने उसे ठिकाने लगा दिया. वह उसे मंदिर दर्शन कराने के बहाने ले गया था. रास्ते में कार के भीतर ही उस का काम तमाम कर दिया गया. फिर धड़ को महेवाघाट थाने के पास यमुना नदी के पास फेंक दिया गया और सिर यमुना नदी में. वारदात के वक्त मनीष कठेरिया, उस का भाई बच्चा, अर्जुन तथा उस की प्रेमिका अवंतिका उस के साथ थे.

19 जून, 2015 को काकादेव पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर अभियुक्त ज्ञानेंद्र सिंह को सीजेएमएम मीना श्रीवास्तव की कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी. अभियुक्त बच्चा फरार था. Hindi stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित