औलाद की खातिर

सूरज की गरमी के बढ़ने के साथ ही गांव धनुहावासियों की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि लल्लूराम और उन की पत्नी सुशीला देवी अभी तक सो कर क्यों नहीं उठे. जबकि गांव में वही दोनों सब से पहले उठते थे. बालबच्चे थे नहीं,

इसलिए दोनों रात को जल्दी सो जाते थे. यही वजह थी कि वे सुबह जल्दी उठ भी जाते थे. लेकिन उस दिन सुबह दोनों में से कोई दिखाई नहीं दिया तो पड़ोस में रहने वाले उन के बड़े भाई जमुना प्रसाद पता लगाने के लिए उन के घर जा पहुंचे. वह यह देख कर हैरान रह गए कि बाहर ताला लगा है.

इस की वजह यह थी कि लल्लूराम कभी बाहर दरवाजे में ताला लगाते ही नहीं थे. वैसे तो वह जल्दी कहीं आतेजाते नहीं थे. अगर कभी किसी के शादीब्याह में जाना भी होता था तो घरद्वार सब भाई को ही सौंप कर जाते थे. अब तक 9 बज चुके थे. बिना बताए कहीं बाहर जाने का सवाल ही नहीं था. अगर गांव या खेतों की ओर कहीं गए होते तो अब तक आ गए होते. यह खबर सुन कर पूरा गांव लल्लूराम के घर के सामने इकट्ठा हो गया था.

दरवाजे पर जो ताला लगा था, वह एकदम नया था, इसलिए लोगों को किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी. लल्लूराम का घर सड़क के किनारे था. लोगों ने विचार किया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि रात में डकैतों ने इन के घर धावा बोल कर लूटपाट करने के साथ दोनों को खत्म कर दिया हो. यही सोच कर कुछ बुजुर्गों ने वहां खड़े लड़कों से कहा कि दरवाजे पर चढ़ कर ऊपर लगी जाली से देखो तो अंदर कोई दिखाई दे रहा है या नहीं?

बुजुर्गों के कहने पर 2 लड़कों ने दरवाजे पर चढ़ कर अंदर झांका तो उन के मुंह से चीख निकल गई. लल्लूराम और उन की पत्नी सुशीला देवी की रक्तरंजित लाशें अलगअलग चारपाइयों पर पड़ी थीं. तुरंत क्षेत्रीय थाना नैनी को फोन द्वारा इस घटना की सूचना दी गई.

सूचना मिलने के लगभग आधा घंटे बाद थाना नैनी के थानाप्रभारी रामदरश यादव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर आ पहुंचे. पुलिस ने ताला तोड़वा कर दरवाजा खोलवाया. अंदर जाने पर पता चला कि बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी.

थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दे कर लाश तथा घटनास्थल का निरीक्षण शुरू कर दिया. थोड़ी देर में डीआईजी एन.रवींद्र और एसएसपी मोहित अग्रवाल, एसपी यमुनापार लल्लन राय डाग स्क्वायड और फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट टीम के साथ वहां पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंचे फोरेंसिक एक्सपर्ट प्रेम कुमार भारती ने खून के धब्बों का नमूना उठाने के साथ वहां पड़े 2 पत्थरों से अंगुलियों के निशान उठाए. उन पत्थरों पर खून लगा था. पुलिस का अंदाजा था कि पत्थरों से बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या की गई थी. सारी औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. यह 14 जून, 2013 की बात है.

काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतक लल्लूराम के बड़े भाई जमुना प्रसाद से पूछताछ शुरू की तो उन्होंने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार लल्लूराम निस्संतान थे. वह अपने काम से काम रखते थे. भाइयों में भी आपस में कोई झगड़ाझंझट नहीं था. हां, उन के पास रुपए पैसे की कोई कमी नहीं थी. इसलिए लगता यही है कि लूट के लिए पतिपत्नी को मारा गया है.

लल्लूराम के परिवार वालों के अनुसार, उन का मकान ही लगभग 20 लाख रुपए के आसपास था. इस के अलावा उन के पास कई बीघा जमीन थी, जो करोड़ों रुपए की थी. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने अपना एक बीघा खेत 15 लाख रुपए में बेचा था. उन के पास लाखों के गहने भी थे. जबकि उन की करोड़ों की इस संपत्ति का कोई वारिस नहीं था. उन के बड़े भाई जमुना प्रसाद का बेटा रवि जरूर उन की तथा उन के खेतों की देखभाल के लिए उन्हीं के घर ज्यादा रहता था. दोनों भाइयों के घर अगलबगल ही थे, इसलिए रवि को चाचाचाची की देखभाल में कोई परेशानी नहीं होती थी.

लेकिन रवि एक नंबर का नशेड़ी था. वह हमेशा स्मैक के नशे में डूबा रहता था. उस की शादी भी हो चुकी थी और वह 3 बच्चों का बाप था. ये तीनों बच्चे उस की दूसरी पत्नी रेखा तिवारी से थे. उस की पहली पत्नी ने उस के नशेड़ीपने की वजह से ही तलाक ले लिया था. उस के बाद लल्लूराम की पत्नी यानी रवि की चाची सुशीला देवी ने उस की शादी अपनी बहन की बेटी रेखा से करा दी थी.

रेखा भी रवि के नशे से आजिज आ चुकी थी. यही वजह थी कि इधर वह बच्चों को ले कर करछना में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के यहां रह रही थी.

एक तो रवि नशेड़ी था, दूसरे करता धरता भी कुछ नहीं था. इस के अलावा लल्लूराम के यहां रहने की वजह से उसे उन के घर के बारे में पूरी जानकारी थी, इसलिए पुलिस को पहले उसी पर संदेह हुआ. पुलिस ने उसे थाने ला कर हर तरह से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में रवि निर्दोष साबित हुआ. हत्याएं लूटपाट के इरादे से की गई थीं. लेकिन घर का कोई सामान गायब हुआ हो ऐसा लग नहीं रहा था.

अगर कुछ गायब हुआ भी था तो इस की जानकारी रवि की पत्नी रेखा से ही मिल सकती थी. क्योंकि लल्लूराम और सुशीला देवी के अलावा उस घर के बारे में सब से ज्यादा जानकारी रेखा को ही थी. पुलिस रेखा से पूछताछ करना चाहती थी, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आ रही थी. वह सिर्फ क्रियाकर्म वाले दिन ही दिखाई दी थी. उस के बाद गायब हो गई थी.

मामले के खुलासे के लिए एसपी यमुनापार लल्लन राय ने सीओ राधेश्याम राम के नेतृत्व में इंस्पेक्टर नैनी रामदरश यादव, एसआई वी.पी. तिवारी, हेडकांस्टेबल शशिकांत यादव, कांस्टेबल मोहम्मद खालिद, शिवबाबू आदि को ले कर एक टीम बनाई. इस टीम ने पहले तो अपने मुखबिरों को सक्रिय किया.

अपने इन्हीं मुखबिरों से पुलिस को पता चला कि नशेड़ी पति के अत्याचार से परेशान रेखा के संबंध धनुहा के ही रहने वाले बब्बू पांडेय से बन गए थे.

रेखा इस समय कहां है, पुलिस टीम ने यह पता किया तो जानकारी मिली कि उस का मंझला बेटा लक्ष्य काफी बीमार है, जिसे उस ने इलाहाबाद के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कर रखा है. उस के इलाज का सारा खर्च करछना का रहने वाला बब्बू पांडे का दोस्त रामबाबू पाल उठा रहा है.

पुलिस का माथा ठनका. रेखा के बेटे का इलाज एक गैर आदमी क्यों करा रहा है? पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार पति की प्रताड़ना और ससुराल वालों की उपेक्षा से रेखा पति और ससुराल वालों से दूर होती चली गई थी. उसी बीच गांव के ही रहने वाले बब्बू पांडेय और उस के दोस्त रामबाबू पाल ने उस से सहानुभूति दिखाई तो दोनों से ही उस के घनिष्ठ संबंध बन गए थे.

इन बातों से पुलिस को लगा कि इस हत्याकांड में कहीं रेखा और उस से सहानुभूति दिखाने वालों का हाथ तो नहीं है. यह बात दिमाग में आते ही थाना नैनी पुलिस ने 18 जून की रात छापा मार कर बब्बू पांडेय और रामबाबू पाल को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की जाने लगी. पहले तो दोनों कहते रहे कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया.

लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि लल्लूराम तिवारी और उन की पत्नी सुशीला देवी की हत्या उन्हीं लोगों ने रेखा की मदद से की थी. रामबाबू पाल ने रेखा से अपने अवैध संबंध होने की बात भी स्वीकार कर ली. लेकिन बब्बू ने ऐसी कोई बात नहीं स्वीकार की. जबकि रेखा से उस के भी संबंध थे, क्योंकि उसी की वजह से रामबाबू पाल रेखा तक पहुंचा था.

रेखा को रामबाबू पाल और बब्बू पांडेय की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो वह बच्चों को ले कर फरार हो गई. मगर जल्दी ही पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से की गई पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार यह कहानी कुछ इस प्रकार है.

मध्यप्रदेश के जिला रीवां के चाकघाट के गांव मरवरा की रहने वाली रेखा का विवाह सन 2010 में उस की सगी मौसी सुशीला देवी ने अपने जेठ जमुना प्रसाद के बेटे रवि से करा दिया था. रेखा विदा हो कर ससुराल आई तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि उस का पति हद दर्जे का नशेड़ी है.  इस की वजह यह थी कि निस्संतान सुशीला देवी को रवि से सहानुभूति थी. इसीलिए वह उसे ज्यादातर अपने साथ रखती थीं.

रवि भी उन लोगों की हर तरह से देखभाल करता था. सुशीला देवी ने रेखा की शादी उस से यह सोच कर कराई थी कि रेखा अपनी है, इसलिए वह बुढ़ापे में उन की देखभाल ठीक से करेगी. लेकिन शादी के बाद मौसी को कोसने और अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाने के अलावा रेखा के पास कोई उपाय नहीं था.

समय धीरेधीरे बीतता रहा और रेखा अंश, लक्ष्य और सुख, 3 बेटों की मां बनी. 3 बेटों का बाप बनने के बाद भी रवि की नशे की आदत छूटने के बजाय बढ़ती ही गई. रेखा मना करती तो वह उसे जानवरों की तरह पीटता.

रेखा के लिए एक परेशानी यह थी कि रवि उस के पास के पैसे भी छीन लेता था. शादी में मिले गहने तो उस ने पहले ही नशे की भेंट चढ़ा दिए थे. पति के उत्पातों से आजिज आ कर रेखा कभीकभी करछना में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के यहां चली जाती थी. वक्त जरूरत मौसी सुशीला भी मदद कर देती थी. लेकिन जिस तरह की मदद की उम्मीद रेखा उन से करती थी, वह भी नहीं करती थी.

सासससुर ने तो पहले ही हाथ खींच लिए थे. इस तरह रेखा और उस के बच्चे उपेक्षित सा जीवन जी रहे थे. इस के लिए वह अपनी मौसी सुशीला को ही दोषी मानती थी.

पति और ससुराल वालों से त्रस्त रेखा अकसर करछना में रहने वाली अपनी बहन के यहां आतीजाती रहती थी. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात उस के बहनोई राजू पांडेय तथा गांव के बब्बू पांडेय के दोस्त रामबाबू पाल से हुई. रामबाबू पाल से रेखा ने अपनी परेशानी बताई तो वह रेखा से सहानुभूति दिखाने के साथसाथ वक्तजरूरत उस की मदद भी करने लगा. इसी का नतीजा था कि दोनों के बीच संबंध बन गए.

बब्बू की वजह से रेखा के संबंध रामबाबू पाल से बन गए, बब्बू रामबाबू का पक्का दोस्त था. यही नहीं, गांव का होने की वजह से बब्बू रेखा के घर भी आताजाता था और रवि का दोस्त होने की वजह से रेखा को भाभी कहता था. भले ही रेखा ने दोनों से मजबूरी में शारीरिक संबंध बनाए थे, लेकिन संबंध तो बन ही गए थे.

मई के अंतिम सप्ताह में रेखा का मंझला बेटा 7 साल का लक्ष्य अचानक बीमार पड़ा. रेखा ने मौसा लल्लूराम और मौसी सुशीला देवी से बच्चे की बीमारी के बारे में बताया. लेकिन किसी ने खास ध्यान नहीं दिया. झोलाछाप डाक्टर से दवा ला कर उसे दी जाती रही. फायदा होने के बजाए धीरेधीरे उस की बीमारी बढ़ती गई. रवि को बेटे की बीमारी से कोई मतलब नहीं था. वह स्मैक पिए पड़ा रहता था.

रेखा ने देखा कि लक्ष्य की बीमारी को ससुराल में कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है तो वह बेटों को ले कर अपनी बहन के यहां करछना चली गई. वहां उस ने बेटे की बीमारी के बारे में रामबाबू को बताया तो एक पल गंवाए बगैर वह उसे सीधे इलाहाबाद ले गया और एक प्राइवेट अस्पताल में भरती करा दिया.  जांचपड़ताल के बाद डाक्टरों ने लक्ष्य को जो बीमारी बताई, उस के इलाज पर लंबा खर्च आने वाला था.

डाक्टर की बात सुन कर रेखा रोने लगी. उसे रोता देख रामबाबू ने तड़प

कर कहा, ‘‘रेखा, तुम रो क्यों रही हो? मैं हूं न. मेरे रहते तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. चाहे जैसे भी होगा, मैं लक्ष्य का इलाज कराऊंगा.’’

रेखा जानती थी कि रामबाबू के पास भी उतने पैसे नहीं हैं, जितने लक्ष्य के इलाज के लिए जरूरत है. रामबाबू की करछना बाजार में चाय की एक छोटी सी दुकान थी. उसी की कमाई से किसी तरह घर का खर्च चलता था. यही सब सोच कर रेखा ने कहा, ‘‘कहां से लाओगे इतने रुपए. यहां 10-20 हजार रुपए की बात नहीं है, डाक्टर ने लाख रुपए से ऊपर का खर्च बताया है. सासससुर के पास इतना पैसा है नहीं. पति बेकार ही है. जिन के पास पैसा है, उन से किसी तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती.’’

‘‘रेखा, मन छोटा मत करो. मेरे खयाल से एक बार अपने मौसा मौसी से बात कर लो. पोते का मामला है, शायद वे इलाज के लिए पैसे दे ही दें.’’

‘‘वे लोग बहुत कंजूस है, फूटी कौड़ी नहीं देंगे,’’ रेखा ने कहा, ‘‘फिर भी तुम कह रहे हो तो गांव जा कर जरूर कहूंगी, बेटे के लिए उन के पैरों पर गिर कर रोऊंगीगिड़गिड़ाऊंगी. इस पर भी उन का दिल न पसीजा तो क्या होगा?’’

‘‘उस के बाद देखा जाएगा. कोई न कोई रास्ता तो निकालूंगा ही. वैसे भी तुम्हारी मौसी के पास पैसों की कमी नहीं है. करोड़ों की संपत्ति है उन के पास. कोई खाने वाला भी नहीं है. मुझे पूरा विश्वास है कि वह मना नहीं करेंगी.’’ रामबाबू ने कहा.

रामबाबू के कहने पर रेखा धनुहा जा कर लल्लूराम से मिली. उस ने रोते हुए उन से बेटे की बीमारी और इलाज पर आने वाले खर्च के बारे में बताया तो उन्होंने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम मेरे पास नहीं है. तुम अपने ससुर से क्यों नहीं कहती.’’

सुशीला देवी ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया.

रेखा को पता था कि उस के ससुर जमुना प्रसाद की माली हालत जर्जर है. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. रेखा क्या करती, इलाहाबाद वापस आ गई. रेखा का उतरा चेहरा देख कर ही रामबाबू समझ गया कि उस के वहां जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. उस ने कहा, ‘‘मैं ने वहां भेज कर तुम्हें बेकार ही परेशान किया.’’

रामबाबू की बात सुन कर रेखा रोते हुए बोली, ‘‘मेरे मौसा और मौसी कंजूस ही नहीं, बेरहम भी हैं. इतना पैसा जोड़ कर रखे हैं, न जाने किसे देंगे. कल को मर जाएंगे, सब यहीं रह जाएगा. उन की कोई औलाद तो है नहीं, वे औलाद का दर्द क्या जानें.’’

‘‘पैसा उन का है. नहीं दे रहे हैं तो कोई कर ही क्या सकता है.’’ रामबाबू ने कहा.

‘‘कर क्यों नहीं सकता. अगर तुम मेरा साथ दो तो उन की सारी दौलत हमारी हो सकती है. लक्ष्य का इलाज भी हो जाएगा और मैं उस नशेड़ी को तलाक दे कर हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी.’’ रेखा ने कहा.

‘‘इस के लिए करना क्या होगा?’’

‘‘हत्या, उन दोनों बूढ़ों की हत्या करनी होगी. आज नहीं तो कल, उन्हें वैसे भी मरना है. क्यों न यह शुभ काम हम लोग ही कर दें. बोलो, तुम मेरा साथ दे सकते हो?’’

‘‘तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं ही क्या, इस नेक काम में बब्बू भी हमारा साथ दे सकता है. इस के एवज में उसे भी कुछ दे दिया जाएगा.’’

‘‘ठीक है, बब्बू से बात कर लो. अब यह नेक काम हमें जल्द ही कर लेना चाहिए. ऐसे लोगों का ज्यादा दिनों तक जीना ठीक नहीं है. इस तरह के लोग इसी लायक होते हैं.’’ रेखा ने कहा.

रामबाबू ने फोन कर के बब्बू को भी वहीं बुला लिया. इस के बाद तीनों ने बैठ कर लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या कर के उन के यहां लूटपाट की योजना बना डाली.

उसी योजना के तहत रेखा अपनी ससुराल जा पहुंची. रात में खापी कर लल्लूराम और सुशीला गहरी नींद सो गए तो उस ने फोन कर के रामबाबू और बब्बू को बुला लिया. दरवाजा उस ने पहले ही खोल दिया था.

दोनों सावधानीपूर्वक अंदर पहुंचे और गहरी नींद सो रहे वृद्ध दंपत्ति के ऊपर भारीभरकम पत्थर पटक कर उन की जीवनलीला समाप्त कर दी. इस के बाद तीनों ने रुपए और गहने की तलाश में कमरों का एकएक सामान खंगाल डाला. लेकिन उन के हाथ कुछ भी नहीं लगा. रामबाबू और बब्बू लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या का पछतावा करते हुए भाग निकले.

अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने रेखा, रामबाबू पाल और बब्बू पांडेय के खिलाफ लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के 21, जून को इलाहाबाद की अदालत में पेश किया. जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में नैनी जेल भेज दिया गया. इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी मोहित अग्रवाल ने 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका पर विश्वास का उल्टा नतीजा

पहली ही मुलाकात में रश्मि और मनोज एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए तो चंद दिनों में ही उन के  दिलों में चाहत पैदा हो गई थी. यही वजह थी कि दोस्ती के बीच प्यार के खुशनुमा रंग कब भर गए, उन्हें पता नहीं चला था. मनोज और रश्मि एक ही फैक्ट्री में एकसाथ काम करते थे. दिनभर साथ रहने से भी उन का मन नहीं भरता था, इसलिए फैक्ट्री के बाहर भी दोनों मिलने लगे थे. वैसे तो दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे. लेकिन उन के घरों के बीच काफी दूरी थी, इसलिए रश्मि से मिलने के लिए मनोज को बहाने से उस के घर आना पड़ता था.

मनोज जब भी रश्मि के घर आता, घंटों बैठा बातचीत करता रहता. इसी आनेजाने में मनोज की दोस्ती रश्मि के पति सोनू सोनकर से भी हो गई थी. रश्मि की नजदीकी पाने के लिए मनोज अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा सोनू पर लुटाने लगा था. इसी से सोनू मनोज को अपना अच्छा दोस्त समझने लगा था.

सोनू से दोस्ती होने के बाद मनोज रोज ही रश्मि के घर जाने लगा. देर रात तक दोनों साथ बैठ कर खातेपीते. उस के बाद सोनू मनोज को अपने घर पर ही रुक जाने के लिए कह देता. सोनू मनोज को अपना अच्छा दोस्त मानता था, इसलिए उसे काफी महत्त्व देता था.

मनोज सोनू के साथ उठताबैठता है और खातापीता है, जब इस बात की जानकारी उस के बड़े भाई विनोद को हुई तो उस ने मनोज को रोका. लेकिन मनोज नहीं माना. तब उस ने मनोज को घर से भगा दिया. जब इस बात की जानकारी सोनू और रश्मि को हुई तो सहानुभूति दिखाते हुए सोनू ने उसे अपना छोटा भाई मान कर अपने साथ रख लिया. इस की एक वजह यह भी थी कि मनोज सोनू के लिए दुधारू गाय की तरह था.

मनोज के साथ रहने से रश्मि बहुत खुश हुई थी. फिर तो कुछ ही दिनों में मनोज और रश्मि के बीच शारीरिक संबंध बन गए. रश्मि से शारीरिक सुख पा कर मनोज उस का दीवाना हो गया. हर पल वह रश्मि के आसपास छाया की भांति मंडराता रहता. यही सब देख कर पड़ोसियों को उन पर शक हुआ तो लोग आपस में चर्चा करने लगे.

लोगों की चिंता किए बगैर मनोज और रश्मि एकदूसरे में इस तरह डूबे रहे कि उन्हें जैसे किसी बात की परवाह ही नहीं थी. इस प्रेम कहानी का अंत क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा इस कहानी के पात्रों के बारे में जान लेते हैं.

रश्मि कानपुर के जूही के रतूपुरवा की रहने वाली थी. 18 साल की होते ही वह हवा में उड़ने लगी. इस उम्र की लड़कियों की तरह रश्मि भी भावी जीवन के युवराज के बारे में तरहतरह की कल्पनाएं संजोने लगी. उस का मन करता कि एक सुंदर और जोशीला युवराज उसे पलकों पर बिठा कर अपने घर ले जाए और खूब प्यार करे. इन्हीं कल्पनाओं के बीच कानपुर के ही बादशाही नाका के रहने वाले बेदी सोनकर पर उस की नजर पड़ी.

गठीले बदन का खूबसूरत बेदी उस के पड़ोसी के यहां आताजाता था. इसी आनेजाने में रश्मि की आंख लड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे अपना दिल दे बैठी. वही क्यों, बेदी भी उस पर कुछ इस तरह फिदा हुआ कि वह भी उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर के चक्कर लगाने लगा. चाहत दोनों ओर थी, इसलिए दोनों एकदूसरे की ओर तेजी से बढ़ने लगे.

उस समय रश्मि अल्हड़ उम्र के दौर से गुजर रही थी. इसलिए दिमाग के बजाए दिल की भावनाओं के प्रबल प्रवाह में तेजी से बहती गई. यह भी सच है कि प्यार छिपता नहीं. मोहल्ले में रश्मि और बेदी के प्यार के भी चर्चे होने लगे. जैसे ही इस बात की खबर रश्मि के घर वालों को लगी, उन्होंने उस का घर से निकलना बंद कर दिया. लेकिन वह बेदी के प्यार में पागल हो चुकी थी, इसलिए वह बगावत पर उतर आई और घर वालों के मना करने के बावजूद वह बेदी से मिलतीजुलती रही.

मातापिता ने बहुत समझाया कि बेदी शहर का कुख्यात बदमाश है, इसलिए उस से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. उस की वजह से उस की जिंदगी बरबाद हो सकती है, लेकिन बेदी के प्यार में अंधी रश्मि बेदी से लगातार मिलतीजुलती रही.

बेदी दूसरों के लिए भले ही कितना भी बड़ा बदमाश रहा हो, रश्मि के लिए वह बहुत ही सीधा, सरल और भावुक युवक था. वह देखने में काफी हैंडसम था, इसलिए रश्मि उस पर जान छिड़कती थी. रश्मि को बेकाबू होते देख उस के मातापिता उस के विवाह के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे.

जब इस बात की जानकारी रश्मि और बेदी को हुई तो साथ रहने के लिए उन्होंने एक योजना बना डाली. फिर उसी योजना के तहत एक दिन रश्मि चुपके से मातापिता का घर छोड़ कर बेदी के घर रहने आ गई और बिना विवाह के ही उस के साथ पत्नी की तरह रहने लगी.

बेदी से रश्मि को 2 बच्चे पैदा हुए. दोनों की जिंदगी आराम से कट रही थी. लेकिन सब्जी मंडी में जबरन वसूली के विवाद में 2003 में बेदी की हत्या हो गई. बेदी की मौत के बाद रश्मि की जिंदगी में अंधेरा छा गया. पति की मौत के बाद भी रश्मि अपने दोनों बच्चों के साथ बेदी के मातापिता के साथ रहती रही.

बेदी की मौत के करीब 2 सालों के बाद बेदी का चाचा श्यामप्रकाश उर्फ सोनू उस के घर आया तो वह रश्मि को देख कर उस पर लट्टू हो गया. इस के बाद किसी न किसी बहाने वह उस से मिलने उस के घर आने लगा. सोनू रश्मि के उम्र का ही था और देखने में भी स्वस्थ और सुंदर था, इसलिए रश्मि को भी वह भा गया.

यही वजह थी कि जब सोनू ने उस से अपने प्यार का इजहार किया तो उस के प्यार को स्वीकार कर के रश्मि बेदी के दोनों बचों को छोड़ कर सोनू के साथ आर्य समाज मंदिर में सन् 2008 में शादी कर ली. शादी के बाद कानपुर में ही वह सोनू के साथ रहने लगी. साल भर बाद ही वह सोनू के बेटे की मां बन गई. सोनू के साथ रहते हुए ही रश्मि की मुलाकात साथ काम करने वाले मनोज से हुई तो वह उसे दिल दे बैठी.

मनोज को जब पता चला कि रश्मि उसी की जाति की है तो वह उसे और अधिक प्यार करने लगा. यही नहीं, वह उसे पत्नी का दर्जा देने को भी तैयार हो गया. इस के बाद उस ने यह भी कहा कि जब उस के मातापिता और भाई को पता चलेगा कि उस ने अपने ही जाति के लड़के से शादी कर ली है तो वे भी उसे अपना लेंगे.

मनोज के इस प्रस्ताव पर रश्मि गंभीर हो गई, क्योंकि वह सोनू के साथ खुश नहीं थी. आखिर काफी सोचविचार कर रश्मि एक बार फिर मनोज के साथ भाग कर जिंदगी बसर करने का सपना देखने लगी. इस के बाद वह मनोज का कुछ ज्यादा ही खयाल रखने लगी. जब इस ओर सोनू का ध्यान गया तो उसे रश्मि और मनोज पर शक होने लगा.

सोनू भी अपराधी किस्म का आदमी था. सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने एक योजना बनाई. फिर उसी योजना के तहत एक दिन उस ने रश्मि से कहा कि वह अपने घर सीतापुर जा रहा है. यह कह कर वह 2 बजे दोपहर को घर से निकला, लेकिन वह सीतापुर गया नहीं. शहर में ही इधरउधर घूमता रहा. रात 11 बजे वह वापस आया और अपने कमरे के दरवाजे की झिर्री पर कान लगा कर अंदर की आहट लेने लगा. अंदर से आने वाली आवाजों से उस ने समझ लिया कि उस की योजना सफल हो गई है.

फिर तो वह जोर से चीखा, ‘‘जल्दी दरवाजा खोलो, अंदर क्या हो रहा है, मैं जान गया हूं.’’

सोनू की आवाज सुन कर कमरे के अंदर तेज हलचल हुई. उस के बाद एकदम से सन्नाटा पसर गया. लेकिन दरवाजा नहीं खुला.

सोनू एक बार फिर दरवाजा खुलवाने के लिए चिल्लाया, ‘‘दरवाजा खोल रही है या तोड़ डालूं?’’

रश्मि के दरवाजा खोलते ही सोनू अंदर आ गया. बल्ब जलाने पर दोनों के झुके सिर देख कर वह सारा माजरा समझ गया. उस ने गालियां देते हुए मनोज की लातघूसों से पिटाई शुरू कर दी.

इस के बाद उसे कमरे से भगा कर रश्मि की जम कर पिटाई की. मारपीट कर उस ने रश्मि से मनोज और उस के अवैध संबंधों की सारी सच्चाई उगलवा ली. जब रश्मि ने उसे बताया कि मनोज उसे भगा कर ले जाने वाला था तो सोनू को उस पर इतना गुस्सा आया कि उस ने मनोज की हत्या करने का निश्चय कर लिया.

सोनू ने रश्मि से कहा कि कल रात वह मनोज को यह कह कर बुलाए कि वह शराब के नशे में गुमराह हो गया था. सुबह समझाने पर उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है, इसलिए वह माफी मांग कर पहले की तरह अपने साथ रखना चाहता है. क्योंकि मनोज ने दोस्ती के नाम पर उसे जो धोखा दिया था, उस की हत्या कर के वह उसे उस की सजा देना चाहता था. रश्मि को उस ने धमकाते हुए कहा कि अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो वह उस के प्रेमी मनोज के साथ उस की भी हत्या कर के हमेशा के लिए कानपुर छोड़ कर चला जाएगा.

रश्मि असमंजस में फंस गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

चूंकि रश्मि मनोज को दिल से चाहती थी, इसलिए अगले दिन फैक्ट्री में मनोज उसे मिला तो उस ने उसे सोनू की साजिश के बारे में बता कर कहीं बाहर चले जाने के लिए कह दिया. उस ने मनोज से यह भी कहा था कि सोनू सीतापुर में एक पीएसी कंपनी कमांडर की हत्या कर के यहां छिप कर रह रहा है, इसलिए ऐसे आदमी पर भरोसा नहीं किया जा सकता. वह उसे ढूंढ़ कर निश्चित उस की हत्या कर देगा.

रश्मि की बात सुन कर मनोज डर गया और उसी समय वह कानपुर छोड़ कर जिला फतेहपुर स्थित अपने गांव चला गया. शाम को रश्मि अकेली घर आई तो सोनू ने पूछा, ‘‘मनोज कहां है?’’

‘‘वह उसी रात अपने गांव भाग गया था.’’ रश्मि ने कहा.

रश्मि की बात पर सोनू को विश्वास नहीं हुआ. उस ने रश्मि को गालियां देते हुए कहा, ‘‘वह खुद नहीं भागा, तूने उसे भगाया है. तुझ से रहा नहीं गया होगा. तू ने मेरी योजना के बारे में बता कर उसे भगा दिया होगा.’’

सोनू को रश्मि की इस धोखेबाजी से उस से भी नफरत हो गई. अब वह रोज शराब पी कर उस की पिटाई करने लगा. रश्मि को पिटाई करते हुए वह कहता भी था, ‘‘जब तक तू मनोज को नहीं बुलाती और मैं उस की हत्या नहीं कर देता, तब तक तुझे इसी तरह नियमित मारता पीटता रहूंगा.’’

रोजरोज की मारपीट से तंग आ कर आखिर एक दिन रश्मि ने अपने सहकर्मी के फोन से मनोज को फोन कर के कहा कि सोनू उस पर बहुत अत्याचार कर रहा है. इसलिए अब वह उस के साथ रहना नहीं चाहती और भाग कर उस के पास आ रही है. अब वह उसी के साथ उस की बन कर रहना चाहती है.

मनोज ने रश्मि को समझाते हुए कहा, ‘‘मैं यहां गांव में रह रहा हूं. यहां किसी तरह 2 जून की रोटी मिल जाती है, बाकी यहां कमाई का कोई जरिया नहीं है. इसलिए तुम थोड़ा इंतजार करो. मैं कोई व्यवस्था कर के तुम्हें जल्दी ही यहां बुला लूंगा. उस के बाद तुम्हें अपनी पत्नी बना कर साथ रखूंगा.’’

मनोज की इन बातों से रश्मि का कलेजा बैठ गया. वह जिंदगी के ऐसे मोड़ पर खड़ी थी, जहां उस के लिए चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था. काफी सोचविचार कर उस ने सोनू के साथ ही जिंदगी गुजारने का इरादा बना लिया. फिर उस ने सोनू से माफी मांगी और भविष्य में किसी तरह की कोई गलती न करने की कसम खाई. लेकिन सोनू मनोज की हत्या से कम पर उसे माफ करने को तैयार नहीं था.

जिंदगी और भविष्य के लिए रश्मि को सोनू की जिद के आगे झुकना पड़ा. वह मनोज की हत्या की साजिश में पति का साथ देने को तैयार हो गई. इस के बाद योजना के अनुसार सोनू ने नटवनटोला, किदवईनगर का अपना वह किराए का कमरा खाली कर के जूही गढ़ा में सुरजा के मकान में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. रश्मि मनोज को फोन कर के बुलाने लगी. लेकिन मनोज कानपुर आने को तैयार नहीं था.

रश्मि के बारबार आग्रह पर मनोज को जब रश्मि से मिलने वाले सुख की याद आई तो 29 जनवरी को रश्मि से मिलने के लिए वह कानपुर आ गया. सोनू और रश्मि ने पहले की ही तरह मनोज को हाथोंहाथ लिया. दोनों उस से इस तरह हंसहंस कर बातें कर रहे कि उसे लगा सोनू ने सचमुच उसे माफ कर दिया है.

मनोज रश्मि और सोनू के जाल में पूरी तरह फंस गया. रात 8 बजे के आसपास सोनू उसे शराब के ठेके पर ले गया, जहां दोनों ने थोड़ीथोड़ी शराब पी. इस के बाद 2 बोतल ले कर वह घर आ गया. उस ने रश्मि से कहा, ‘‘आज बढि़या खाना बनाओ, बहुत दिनों बाद मेरा दोस्त आया है. आज देर रात तक हम दोनों की महफिल जमेगी.’’

रश्मि को खाना बनातेबनाते रात के 11 बज गए. इस के बाद उस ने सोनू और मनोज के लिए खाना परोसा. सोनू ने होशियारी से मनोज को बड़ेबड़े पैग बना कर ज्यादा शराब पिला दी थी. ज्यादा नशा होने की वजह से मनोज खाना खा कर अपने लिए लगे बिस्तर पर लेटते ही बेसुध हो कर सो गया.

सोनू को उस के सोने का इंतजार था. रात साढ़े 12 बजे उस ने रश्मि को अपने पास बुला कर मनोज के सिर के ऊपर से रजाई हटाने को कहा. रश्मि ने जैसे ही मनोज के सिर से रजाई हटाई, सोनू गड़ासे से उस के सिर और गरदन पर लगातार वार करने लगा.

मनोज ने अपने ऊपर हुए इस प्राणघातक हमले से बचने की कोशिश तो की, लेकिन रश्मि उस के सिर के बाल पकड़ कर नीचे दबाए थी, इसलिए वह उठ नहीं सका. लगातार वार होने से मनोज की गरदन कट गई तो वह मर गया. उस के मरते ही सोनू ने उस के हाथपैर समेट कर रस्सी से बांध दिए, ताकि वह अकड़ न जाए, क्योंकि अकड़े हुए शव को घर से बाहर ले जाने में काफी परेशानी होती.

मनोज की हत्या कर उस की लाश को ठिकाने लगाने के बारे में पूरी रात सोनू और रश्मि सोचते विचारते रहे. सोनू ने सोचा कि अगर लाश को रजाई में लपेट कर दिन में रिक्शे से बाहर ले जाया जाए तो कोई शक नहीं करेगा.

यही सोच कर उस ने मनोज की लाश को रजाई में लपेटा और रस्सी से बांध कर रजाई भराने की बात कह कर एक रिक्शा बुलाया.  रजाई में बंधी मनोज की लाश उस ने रिक्शे के पायदान पर रखा और रश्मि तथा 5 साल के बेटे के साथ रिक्शे पर बैठ कर वह स्वदेशी कौटन मिल की ओर चल पड़ा.

स्वदेशी कौटन मिल के पास सड़क के किनारे की एक चाय की दुकान पर कुछ लोगों ने रिक्शे पर रखी उस रजाई को देखा तो उन्हें शक हुआ. उन्होंने रिक्शा रोक कर सोनू से उस के बारे में पूछा तो वह सकपका गया.

एकदम से वह जवाब नहीं दे सका. काफी देर बाद उस ने कहा कि इसे वह भरवाने ले जा रहा है. उन लोगों में से किसी ने कहा, ‘‘इस तरह रस्सी से बांध कर रुई तो नहीं ले जाई जाती, इस में जरूर कुछ और है.’’

यह कह कर उस आदमी ने रजाई के अंदर हाथ डाला तो एकदम से चिल्लाया, ‘‘अरे यह रुई नहीं, किसी की लाश है.’’

सभी सोनू को पकड़ कर लातघूसों से पिटाई करने लगे. उसी बीच मौका पा कर रश्मि अपने बेटे को ले कर भाग गई. किसी ने इस बात की सूचना थाना जूही पुलिस को दी तो पुलिस ने मौके पर आ कर लाश और सोनू को कब्जे में ले लिया. थाना जूही पुलिस ने मौके की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए हैलेट अस्पताल भिजवा दी. उस के बाद थाने ला कर सोनू से पूछताछ की गई. सोनू ने मनोज की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए पूरी कहानी पुलिस को सुना दी, जिसे आप पहले ही पढ़ चुके हैं.

पूछताछ के बाद सबइंस्पेक्टर आमोद कुमार ने सोनू की निशानदेही पर उस के कमरे से शराब की 2 खाली बोतलें, खून से सनी साड़ी, वह गड़ासा, जिस से मनोज की हत्या की गई थी और मनोज का मोबाइल फोन बरामद कर लिया. इस के बाद उन्होंने उस के खिलाफ मनोज की हत्या का मुकदमा दर्ज कर 30 जनवरी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अगले दिन पुलिस ने रश्मि को भी उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह कमरे पर अपने और बच्चे के कपड़े लेने आई थी. पूछताछ कर के पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 2

जिस वक्त अमीर कमरे में दाखिल हुआ, शहरीना सोफे से पीठ टिकाए खुद में मुसकरा रही थी. वह अपने खयालों में इतनी खोई थी कि अमीर के आने का पता भी नहीं चला. जब अमीर उस के सामने आ कर खड़ा हो गया तो वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अमीर… आप… आप कब आए?’’

शहरीना के चेहरे पर शर्म की एक लहर आ कर गुजर गई.

‘‘उस वक्त जब तुम किसी खूबसूरत ख्याल में खोई हुई थीं.’’ अमीर ने कोट उतार कर तीखे अंदाज में कहा, ‘‘क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम किस ख्याल में डूबी हुई थीं कि तुम्हें न तो अपनी खबर थी और न मेरे आने की.’’

‘‘वह अमीर, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी हुए एक साल हो गया है और मैं चाहती हूं कि…’’ शहरीना झिझक कर रुक गई, फिर कड़ी हिम्मत कर के बोली, ‘‘मेरा मतलब है कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं और …और चाहती हूं कि… कि… हमें अपनी फेमिली पूरी कर लेनी चाहिए.’’ शर्मिंदगी ओढ़ कर आखिर शहरीना ने अपनी बात कह ही दी.

पहले तो अमीर की कुछ समझ में ही नहीं आया, लेकिन दूसरे ही पल वह उस की बात का मतलब समझ गया. उस के माथे पर लकीरें उभर आईं. वह तीखे लहजे में बोला, ‘‘हमारी फेमिली आफ्टर आल पूरी है.’’

‘‘नहीं अमीर, मेरा मतलब है कि हमारा अपना बच्चा…’’

‘‘आई एम सौरी शेरी. मैं इस बारे में सोच भी नहीं सकता.’’ अमीर उस के चेहरे पर नजरें जमा कर बोला.

‘‘लेकिन अमीर, क्यों… मैं…’’ शहरीना के स्वर में हल्का सा दर्द था.

‘‘वह इसलिए कि मुझ से सनी का दुख बरदाश्त नहीं होगा.’’ अपने सीने पर रखे शहरीना के हाथों को झटक कर अमीर उठ खड़ा हुआ.

‘‘जी… मैं…’’ शहरीना उस की बात को ले कर सोच में पड़ गई.

‘‘शटअप… और आगे इस मसले पर मुझ से बात मत करना.’’ कहते हुए अमीर गुस्से से उबलता बाहर निकल गया.

शहरीना अंदर ही अंदर कुढ़ती बेड पर गिर पड़ी. पिछले कुछ महीने से वह अपनी इस इच्छा को दबाती चली आ रही थी. आज दिल के हाथों मजबूर हो कर कहा भी तो क्या मिला, सिवाय तड़प के.

अमीर के इस व्यवहार ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया. और फिर इसी वजह से छोटेमोटे झगड़े रोज की बात बन गए. दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. उस दिन तो हद ही हो गई. बात बहुत मामूली थी, मगर अमीर ने उसे इतना तूल दिया कि वह लड़ाईझगड़े तक जा पहुंची. शहरीना ने धीरे से कहा, ‘‘अमीर, प्लीज बात को इतना मत बढ़ाएं कि…’’

‘‘कि… क्या कर लोगी तुम? यह घर छोड़ कर चली जाओगी तो चली जाओ. मगर नहीं, तुम जैसी ऐशोआराम पर मरने वाली औरतें इतनी आसानी से ऐसी जिंदगी छोड़ कर कहां जा सकती हैं? तुम भी मुझे छोड़ कर भला कहां जा सकती हो? तुम ने तो इस ऐशोइशरत और दौलत के लिए ही मुझ से शादी की थी.’’ अमीर ने व्यंग्य से कहा.

शहरीना मुंह पर हाथ रखे फटी आंखों से अमीर को ताकते हुए उस की बातें सुनती रही. गुस्से से सुर्ख चेहरा लिए कुछ दूरी पर खड़ा अमीर उसे बदला हुआ लग रहा था. जिसे वह जानती थी, आज वह अमीर नहीं था. एक साल का मोहब्बत भरा साथ देने वाला अमीर उसे ही खुदगर्ज और दौलत का भूखा होने का ताना दे रहा था. जिस के लिए उस का पोरपोर मोहब्बत में डूबा था, वही उस की मोहब्बत की तौहीन कर के चला गया था.

शाम को अमीर जब घर में दाखिल हुआ तो पोर्च से लाउंज और लाउंज से बेडरूम तक पूरा घर खामोशी में डूबा था. अमीर को जहां आश्चर्य हुआ, वहीं उसे सुबह की घटना याद आ गई. कशमकश में डूबा वह अपने बेडरूम में दाखिल हुआ. शहरीना वहां भी नहीं थी. पर हां, उस का लिखा एक खत मेज पर जरूर रखा था. उस ने खत उठा लिया और जल्दी जल्दी पढ़ने लगा, उस में लिखा था—

‘‘अमीर औसाफ,

मैं आप का घर छोड़ कर जा रही हूं. कहां, यह फिलहाल मैं भी नहीं जानती. अपने भाइयों के दरवाजे पर जाना मुझे मंजूर नहीं, क्योंकि उन की नजरों में आप का एक मुकाम है. आप का मुकाम तो मेरे में दिल में भी था, लेकिन आप की बातों ने आप का वह मुकाम मेरी नजरों में गिरा दिया. आप ने यहां तक कह दिया कि तुम भला मुझे छोड़ कर कैसे जा सकती हो और यह कि मैं ने तुम से दौलत की वजह से शादी की थी. मैं पिछले एक साल से आप का तीखा रवैया इसलिए बरदाश्त करती आ रही थी कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं. लेकिन अब बरदाश्त नहीं हुआ तो आप का घर छोड़ने पर मजबूर हो गई.

‘‘कहते हैं कि जब मोहब्बत दोतरफा होती है, तभी अच्छी होती है. एकतरफा मोहब्बत दुख ही देती है. आप अब तक मेरे मोहब्बत भरे रवैये और जज्बे को दौलत की तराजू में तौलते रहे हैं. इस से ज्यादा मेरी मोहब्बत की तौहीन और क्या होगी. मुझे आप की दौलत और ऐशोइशरत से कोई सरोकार नहीं है. इसलिए आप के द्वारा दिए गए सभी तोहफे और जेवर ‘लौकर’ में छोड़ कर जा रही हूं.              फकत-शहरीना’’

खत पढ़ कर अमीर के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई. वह व्यंग्य भरे लहजे में कहने लगा, ‘वक्ती जज्बात में बह कर तुम ऐशोइशरत और आराम छोड़ कर चली तो गईं, मगर देखना, तुम्हें बहुत जल्द वापस लौटना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद वह डाइनिंग टेबल पर बैठा सनी से पूछ रहा था, ‘‘सनी बेटा. तुम ने खाना खा लिया?’’

‘‘नहीं अंकल.’’

‘‘क्यों बेटा, अब तो काफी समय हो गया है? तुम ने अब तक खाना क्यों नहीं खाया?’’ अमीर ने मोहब्बत से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘आंटी आज घर पर नहीं हैं ना. मुझे तो खाना वही खिलाती थीं.’’

‘‘अच्छा ठीक है. चलो, आज आप के अंकल आप को खाना खिलाएंगे.’’

‘‘मगर अंकल, वह आंटी…’’ 8 वर्षीय सनी ने कुछ कहना चाहा.

‘‘आंटी को छोड़ो और तुम खाना खाओ.’’

शहरीना के चले जाने से जहां सनी की देखरेख नहीं हो पा रही थी, वहीं पूरा घर अस्तव्यस्त हो गया था. ठीक से साफसफाई भी नहीं हो रही थी. नौकर नौकरानी टाइम पास करते रहते थे. बेडरूम, बाथरूम, लाउंज आदि अस्तव्यस्त और धूलगर्द से अटे रहते थे. यह सब देख कर अमीर चिल्लाने लगता. सनी की ड्रेस भी मैली रहती थी. कभीकभी वह उसी स्थिति में स्कूल चला जाता था तो उसे डांट खानी पड़ती थी.

यह सब बातें जब अमीर को मालूम पड़तीं तो वह नौकरों को डांटने लगता. लेकिन उन पर कोई भी असर नहीं होता था. एक दिन सनी ने अमीर से कहा, ‘‘अंकल ,मेरी शर्ट नहीं मिल रही है. पता नहीं कहां चली गई. आंटी सारी चीजें संभाल कर रखती थीं. मैं होमवर्क भी नहीं कर पाता हूं और रोज स्कूल भी देर से पहुंचता हूं. अब आप जल्दी से खुद जा कर आंटी को ले आएं, तब मैडम मुझे फिर से अच्छा बच्चा कहने लगेंगी.’’

‘‘हां, अमीर बेटा. सनी ठीक कह रहा है. आप शेरी बेटी को वापस ले आओ. वह बहुत अच्छी बच्ची है.’’ फखरू ने कहा. वह उस वक्त से उस के साथ रह रहे थे, जब अमीर के पिता औसाफ अहमद जिंदा थे. फखरू चाचा नौकर कम, बल्कि घर के सदस्य की तरह थे. औसाफ अहमद की मृत्यु के बाद उन्होंने और उन की बाजी ने अमीर और समीर का हर तरह से खयाल रखा था. यही नहीं, सनी की पैदाइश के बाद जब समीर की बीवी सनी को समीर की गोद में डाल कर खुद चलती बनी थी तो भी फखरू चाचा और उन की बीवी ने उस नन्हे बच्चे की देखभाल की थी.

‘‘लेकिन चाचा…’’ अमीर ने तड़प कर कुछ कहना चाहा.

‘‘नहीं बेटा. गलती तुम्हारी है. हर औरत तुम्हारी भाभी अशमल की तरह नहीं होती. शेरी जैसी नेक लड़की का अशमल से मिलान करना उस की तौहीन है. शेरी आप से बहुत मोहब्बत करती थी. सनी का बहुत खयाल रखती थी. घर में नौकर चाकर होने के बावजूद वह आप का एकएक काम खुद करती थी. बेटा, शेरी बेटी की फितरत मैं अच्छी तरह जानता हूं. उसे दौलत का कोई लालच नहीं है. वह तो बस आप की मोहब्बत के सहारे जीती थी. मगर आप ने उस पर शक कर के अच्छा नहीं किया.’’ फखरू चाचा ने जो कुछ अनुभव किया और देखा था, सचसच कह दिया.

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत

जोरू और जमीन : लालची प्रेमी ने पहुंचाया जेल – भाग 3

प्रीति उर्फ कमलजीत कौर अपने भाई जोगा सिंह से 4 कदम आगे थी. खूबसूरत तो वह इतनी थी कि जिस की भी नजर एक बार उस पर पड़ जाती, हटाने का नाम नहीं लेता था. यही वजह थी कि राह चलते लोगों को पलक झपकते वह अपना दीवाना बना लेती थी. यही वजह थी कि प्रीती के जवान होते ही उस के चाहने वालों की लाइन लग गई थी. लेकिन वह सभी को मय के भरे प्याले की तरह अपनी जवानी को दूर से दिखा कर ललचाती रहती थी, किसी को हाथ नहीं लगाने देती थी.

उसी बीच उस के भाई जोगा सिंह के हाथों एक कत्ल हो गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. माता पिता बहन भाई के कारनामों से वैसे ही दुखी थे, इसलिए उन की ओर से जोगा की पैरवी का सवाल ही नहीं उठता था. इसलिए प्रीति को ही भाई को छुड़ाने की पैरवी करनी पड़ रही थी. वह सप्ताह में 2 बार उस से मिलने करनाल जेल भी जाती थी.

उन्हीं दिनों हरियाणा के जींद का रहने वाला विजय कुमार भी अपने दोस्त नरेश से मिलने सप्ताह में 2 बार करनाल जेल आता था. उसी दौरान प्रीति की मुलाकात विजय से हुई थी. विजय भी हृष्टपुष्ट एवं इस तरह का खूबसूरत युवक था कि कोई भी लड़की उसे देखे तो कम से कम एक बार उसे और देखने का मन हो जाए.

विजय शक्लसूरत और पहनावे से ठीकठाक तो लगता ही था, यह भी लगता था कि उस के पास पैसों की कमी नहीं है. जबकि सच्चाई यह थी कि वह हरियाणा के एक ऐसे अपराधी गिरोह का सदस्य था, जो लूटमार, अपहरण और डकैती आदि से मोटी कमाई कर रहा था.

बहरहाल, जेल में अपने अपने मिलने वालों का नाम लिखवा कर विजय और प्रीति जेल के बाहर बैठ कर मिलाई का इंतजार करते थे. प्रीति सुंदर तो थी ही, विजय खाली समय में उसे ही ताकता रहता था. स्मार्ट विजय प्रीति को भा गया, इसलिए वह भी उस से आंखें मिलाने लगी. परिणामस्वरूप जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई तो वे सब से अलग हट कर एकांत में एक साथ बैठने लगे. जल्दी ही दोनों की यह दोस्ती काफी गहरी हो गई.

विजय अपने दोस्त नरेश की जमानत की कोशिश कर ही रहा था, प्रीति से दोस्ती के बाद उस ने जोगा की जमानत के लिए कोशिश ही नहीं की, बल्कि पैसा भी पानी की तरह बहाया. उसी की कोशिश का नतीजा था कि नरेश के साथ जोगा को भी जमानत मिल गई.

नरेश और जोगा की जमानतें हो गईं तो विजय और प्रीति का करनाल जेल जाना बंद हो गया, लेकिन अब तक दोनों के संबंध इतने गहरे हो चुके थे कि वे कभी हिसार तो कभी जींद तो भी करनाल तो कभी कुरुक्षेत्र में मिलने लगे. विजय ने प्रीति पर जो एहसान किया था, वह उसे कैसे भूल सकती थी. धीरेधीरे वह विजय के इतने करीब आ गई कि घर वालों को बिना बताए ही विजय से कोर्टमैरिज कर ली.

मांबाप से तो वैसे भी कोई मतलब ही नहीं था, लेकिन बहन का यह कदम भाई जोगा सिंह को भी अच्छा नहीं लगा. अत: वह भी उस से नफरत करने लगा, क्योंकि वह विजय की असलियत अच्छी तरह जानता था.

शादी के बाद कुछ दिनों तक प्रीति विजय के साथ करनाल में रही, लेकिन उस के बाद विजय और नरेश उसे ले कर लुधियाना आ गए. लुधियाना के मुंडिया में किराए का मकान ले कर सभी एक साथ रहने लगे. दरअसल विजय का प्रीति से शादी कर के लुधियाना आने की वजह यह थी कि हरियाणा पुलिस, खासकर जींद पुलिस विजय और नरेश के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी. वे कभी भी ऐनकाउंटर में मारे जा सकते थे. इसलिए वे लुधियाना भाग आए थे. प्रीति से शादी उस ने इसलिए की थी कि पत्नी के साथ रहने पर लोगों को संदेह कम होता है और मकान वगैरह भी आसानी से मिल जाता है.

विजय और नरेश आपराधिक गिरोह के सदस्य हैं, यह बात प्रीति को पहले मालूम नहीं थी. लेकिन जब उसे इस बात का पता चला तो भी उस ने बुरा नहीं माना, क्योंकि वह ऐशोआराम से जीने की आदी थी. विजय के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. इस के अलावा उस के पास रुतबा भी था. उस के एक बार कहने पर विजय और नरेश किसी को भी गोली मार सकते थे.

विजय और प्रीति का दांपत्य ठीकठाक चल रहा था. लेकिन इस में दरार तब आ गई, जब विजय को अपने दोस्त नरेश को ले कर प्रीति पर शक हो गया. दरअसल हुआ यह कि एक दिन नरेश जल्दी घर आ गया. खाना खा कर वह प्रीति के पास बैठ कर बातें करने लगा. किसी बात पर दोनों हंस रहे थे कि तभी अचानक विजय आ गया. उस ने नरेश और प्रीति की इस हंसी का कुछ और ही नतीजा निकाल लिया.

अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की सोच कुछ ऐसी होती है. क्योंकि उन्हें जब स्वयं पर ही विश्वास नहीं होता तो वे दूसरे पर भला कैसे विश्वास कर सकते हैं. बस उसी दिन से विजय और प्रीति के बीच क्लेश शुरू हो गया. धीरेधीरे यह क्लेश इतना बढ़ गया कि प्रीति विजय से नफरत करने लगी.

उसी दौरान विजय के घर उस के गिरोह के सरगना सुरजीत का आना जाना शुरू हो गया. सुरजीत, बिट्टू और सोनू डागर का एक ऐसा गिरोह था, जिस का आतंक उन दिनों पूरे हरियाणा में था. इन के हाथ इतने लंबे थे कि जेल में रहते हुए भी ये आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते रहते थे. नरेश और विजय सुरजीत के गिरोह के सक्रिय सदस्य थे.

उसी बीच किसी बैंक को लूटने के चक्कर में सुरजीत कई दिनों तक विजय के घर रुका तो प्रीति की खूबसूरती पर वह रीझ गया. वहां रहते हुए उस ने देखा था कि विजय रोज शराब पी कर उस की पिटाई करता है. प्रीति की परेशानी को देखते हुए एक दिन उस ने कहा, ‘‘प्रीति, अगर तुम विजय को छोड़ दो तो मैं तुम्हें अपनाने को तैयार हूं. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें तो पता ही है कि गिरोह का सरगना मैं हूं. विजय और नरेश मेरे गिरोह के सदस्य हैं. मेरे सामने इन की क्या औकात है. अगर मैं इन्हें अपने गिरोह से निकाल दूं तो इन्हें सड़क पर खड़े हो कर भीख मांगनी पड़ेगी.’’

प्रीति भी महसूस कर रही थी कि सुरजीत उस पर पूरी तरह से फिदा है. उस की बात में दम भी था. गिरोह का सरगना वही था. उस ने देखा भी था कि किसी की भी हिम्मत उस के सामने बोलने की नहीं होती थी. उस के सामने शेर बना रहने वाला विजय सुरजीत के सामने आंख तक नहीं उठाता था.

प्रीति सुरजीत की बात मान कर उस की झोली में जा गिरी. अब समस्या यह थी कि विजय से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अगर सुरजीत चाहता तो अपनी ताकत के बल पर भी प्रीति को अपने साथ भी रख सकता था. लेकिन इस में खतरा था. जोरू के लिए आदमी कुछ भी कर सकता है. सामने से नहीं तो पीछे से विजय वार कर ही सकता था. इसलिए सुरजीत ने सोचा, विजय को खत्म कर दिया जाए. जब वह रहेगा ही नहीं तो वार कौन करेगा.

विजय से शादी की वजह से जोगा सिंह प्रीति से काफी नाराज था. इसी वजह से प्रीति को भी भाई से नफरत हो गई थी. जिस की वजह से वह भाई के बारे में कुछ और ही सोचने लगी थी. जोगा सिंह की पैतृक जमीन की कीमत करोड़ों में थी. उस पर उस का अकेले का कब्जा था. जब इस बात का पता सुरजीत को चला तो उस ने बहन भाई की नफरत को हवा दे कर प्रीति को उकसाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी करोड़ों की जमीन जोगा सिंह हड़पे हुए है. अगर उसे निपटा दिया जाए तो करोड़ों की वह जमीन तुम्हारी हो सकती है.’’

करोड़ों की जमीन के लालच में प्रीति भाई की हत्या कराने के लिए तैयार हो गई. इस के बाद वह सुरजीत को ले कर जींद के सापर गांव में रहने वाली अपनी बड़ी बहन बलजीत कौर के यहां भी गई. उस ने भी हामी भर दी, क्योंकि जोगा सिंह ने उसे भी हिस्सा नहीं दिया था.

इस के बाद सुरजीत ने जो योजना बनाई, उस के अनुसार पहले विजय और नरेश को ठिकाने लगा कर प्रीति को हासिल करना था. प्रीति के साथ आने के बाद उसे जोगा सिंह से प्रीति के हिस्से की जमीन मांगना था. अगर उस ने जमीन दे दी तो ठीक अन्यथा उसे ठिकाने लगा कर पूरी जमीन पर कब्जा कर लेना था. इस के बाद प्रीति को भी ठिकाने लगा कर करोड़ों की उस जमीन पर वह कब्जा कर लेता. इस योजना को अंजाम देने के लिए सुरजीत ने सोनू डागर को साथ मिला लिया.

यहां यह बताना जरूरी है कि सुरजीत और सोनू सजायाफ्ता अपराधी थे. करनाल के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के यहां से सुरजीत को उम्रकैद की सजा हुई थी. 6 साल की सजा काटने के बाद  वह 32 दिनों के पैरोल पर जेल से बाहर आया तो लौट कर गया ही नहीं. इस के बाद अदालत से उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया था.

जिस रात विजय और नरेश की हत्या हुई थी, उस से एक दिन पहले सुरजीत ने विजय को फोन कर के कहा था कि अगर वह लुधियाना में उस के रहने की व्यवस्था कर दे तो कुछ दिनों के लिए वह लुधियाना आ जाए. विजय ने ऊपर वाले जिस कमरे में नरेश रहता था, उसी में सुरजीत के रहने की व्यवस्था कर के उस ने उसे लुधियाना आने के लिए कह दिया था.

फिर उसी दिन शाम को सुरजीत और सोनू डागर समराला चौक पहुंच गए थे. विजय और नरेश वहां खड़े उन का इंतजार कर रहे थे. विजय उन्हें साथ ले कर अपने घर पहुंचा. घर जाते हुए रास्ते में उन्होंने खानेपीने की चीजें खरीद ली थीं. घर पहुंचते ही महफिल जम गई थी. सुरजीत को देख कर प्रीति खुशी से झूम उठी थी, क्योंकि उसे पता था उस दिन उसे विजय से मुक्ति मिल जाएगी.

योजना के अनुसार, सुरजीत ने विजय और नरेश को अधिक शराब पिला दी थी. उन की महफिल देर रात तक जमी रही. रात 11 बजे खाना खा कर सब सो गए. साढ़े 11 बजे के बाद सुरजीत उठा और बगल में सो रहे नरेश को गोली मार दी. नरेश को मार कर दोनों नीचे उतरे. नीचे आ कर सोनू ने सो रहे विजय को गोली मार कर उस का भी खेल खत्म कर दिया. प्रीति खड़ी तमाशा देखती रही.

साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाली प्रीति ने सुख और दौलत के लिए अपनी आंखों के सामने पति की हत्या करवा कर खुद को विधवा करवा लिया. विजय और नरेश की हत्या कर के सुरजीत और सोनू विजय के ही स्कूटर से चले गए. उन के जाने के बाद प्रीती ने अपना नाटक शुरू किया.

पूछताछ के बाद मैं ने प्रीती को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मैं ने सुरजीत और सोनू की तलाश में न जाने कहांकहां छापे मारे, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. मैं ने समय से इस मामले की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी, जिस से मुकदमा चला. हत्या का षड्यंत्र रचने और पुलिस को गुमराह करने के जुर्म में प्रीति को 5 साल की सजा हुई. इस समय वह लुधियाना की जेल में अपनी सजा काट रही है. मजे की बात यह है कि सुरजीत और सोनू का पता आज तक नहीं चला है.

— प्रस्तुति : हरमिंदर खोजी

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 1

दिसंबर की ठिठुरती सर्दी के दिन थे. उतनी रात को हर आदमी बिस्तर में दुबका हुआ था, लेकिन शहरीना इस सर्दी से  बेखबर खिड़की खोले दीवार से टेक लगाए लगातार बाहर की तरफ देख रही थी. इंतजार के पल कितने दर्दनाक होते हैं, यह वही जानती थी. यही इंतजार उस का नसीब बन गया था.

पहले दिन से ही अमीर उसे इंतजार कराने लगा था. हमेशा की तरह आज भी सुबह जाते समय उस ने शाम को तैयार रहने के लिए कहा था, क्योंकि आज उन की शादी की पहली सालगिरह थी, जिस की याद शहरीना ने अमीर को उठते ही दिला दी थी. शहरीना इस अवसर को यादगार बनाना चाहती थी.

शहरीना शाम 7 बजे से तैयार बैठी थी, लेकिन 7 से 8 बजे और 8 से 9, मगर अमीर अभी तक नहीं आया था. किन्हीं अंदेशों के तहत शहरीना ने उस के औफिस में फोन किया तो वहां से जवाब मिला कि साहब मीटिंग में हैं. यह सुन कर वह झुंझला उठी थी. लेकिन वह जानती थी कि अमीर के लिए बिजनेस ही सब कुछ है, इसलिए अकसर वह शहरीना को भूल भी जाता था. लेकिन शहरीना के दिल में मोहब्बत की बेमिसाल महक थी, जो उसे सब्र करने को उकसाती रहती थी.

एक बजने वाला था, तब अमीर की गाड़ी का हौर्न सुनाई दिया. तब तक शहरीना क्षुब्ध हो कर लेट गई थी. अमीर जब कमरे में दाखिल हुआ तो वह कंबल ओढ़े आंख बंद किए लेटी रही. कुछ देर वह उसे देखता रहा, उस के बाद डे्रसिंग रूम की ओर चला गया.

अगली सुबह हमेशा की तरह शहरीना 5 बजे उठ गई और नमाज पढ़ने के बाद 8 साल के सनी को तैयार करने लगी. उसे स्कूल भेजने के बाद वह कमरे में आई ताकि अमीर को उठा सके. रात की नाराजगी या दुख की कोई भी झलक उस के चेहरे पर नहीं थी. उस ने गुस्से का तमाम गुबार सुबह के उजाले में उड़ा दिया था. जब वह कमरे में पहुंची तो अमीर न केवल उठ चुका था, बल्कि नहाधो कर फ्रेश भी हो गया था.

‘‘आई एम सौरी. रात को मैं कुछ लेट हो गया था. एक्चुअली मीटिंग में… खैर, मैं तुम्हारा गिफ्ट लेना नहीं भूला. यह लो अपना गिफ्ट.’’ अमीर औसाफ ने ब्रीफकेस खोल कर मखमली डिब्बा आगे करते हुए माफी मांगने के अंदाज में कहा. लेकिन उस के लहजे में शर्मिंदगी जरा भी नहीं थी.

‘‘कोई बात नहीं.’’ शहरीना ने लापरवाही से कहा.

‘‘मुझे मालूम था कि तुम ने बुरा नहीं माना होगा. अच्छा लो अपना गिफ्ट और देखो कि मैं तुम्हारे लिए कितना कीमती गिफ्ट लाया हूं.’’

‘‘अगर आप यह गिफ्ट कीमत का अंदाजा लगाने के लिए मुझे दे रहे हैं तो यह बिलकुल बेमोल हैं. हां, अगर सिर्फ मोहब्बत के जज्बे से दिया जा रहा है तो दुनिया की हर कीमती चीज से बढ़ कर मेरे लिए कीमती है.’’ शहरीना ने क्षुब्ध हो कर कहा.

‘‘मेरा यह मकसद नहीं था. बहरहाल अगर तुम्हें पसंद आए तो पहन लेना.’’ अमीर ने मखमली डिब्बा बेड के एक कोने में रखते हुए सामान्य स्वर में कहा. अमीर की इन बातों से साफ जाहिर था कि शहरीना की बात उसे अच्छी नहीं लगी.

‘‘सनी बेटे, क्या बात है? आज तुम उदास क्यों हो?’’ अगली सुबह तीनों टीवी लाउंज में बैठे थे तो अमीर ने पूछा.

‘‘अंकल, काफी दिनों से पापा का फोन नहीं आया.’’

‘‘तो क्या हुआ, मैं अपने बेटे की पापा से बात करवा देता हूं. लेकिन मेरी एक शर्त है कि तुम्हें खूब पढ़ाई करनी होगी और हमेशा फर्स्ट आना होगा.’’

‘‘अंकल, वह तो मैं करता ही हूं. आप आंटी से पूछ लें. क्यों आंटी?’’ सनी ने गवाही के लिए शहरीना की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘बिलकुल. सनी रोजाना न सिर्फ होमवर्क करता है, बल्कि रेगुलर स्कूल भी जाता है. इसलिए सनी की फर्स्ट पोजीशन पक्की है.’’ शहरीना ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वाकई, अच्छा तुम बड़े हो कर क्या बनोगे?’’

सनी से कुछ बोलते न बना तो अमीर ने ही कहा, ‘‘मेरा बेटा बड़ा हो कर बिजनेसमैन बनेगा, ताकि इस के पास दौलत की कमी न रहे.’’

शहरीना ने कुछ कहना चाहा तो अमीर ने कहा, ‘‘अगर दौलत की रेलपेल नहीं होगी तो कोई भी औरत तुझे नहीं पूछेगी.’’ यह कहते हुए अमीर एक झटके से उठा और अंदर की तरफ बढ़ गया. शहरीना के चेहरे पर कई रंग आए और चले गए.

अमीर के जाते ही शहरीना की सहेली नाहीद का फोन आ गया. फोन पर शहरीना अपनी सब से प्यारी सहेली की आवाज सुन कर खिल उठी थी. उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो नाहीद?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. तुम अपनी सुनाओ. शादी के बाद तो तुम ने फोन करना ही छोड़ दिया.’’ नाहीद ने शिकायत की.

‘‘बस यार, क्या बताऊं. तुम तो जानती ही हो कि नई जिंदगी में कदम रखते ही सौ झमेले गले लग जाते हैं.’’

‘‘छोड़ो यार, मुझे मालूम है कि तुम्हारी न तो सास है और न ही कोई ननद. अमीर भाई के एकलौते भाई तुम्हारी शादी से बहुत पहले ही कनाडा चले गए हैं. लेदे कर उन का एक छोटा सा बच्चा है, जो तुम्हें क्या कहता होगा. तुम तो अपने घर में ऐश कर रही हो. दौलत की रेलपेल से खुशियों में डूबी होगी.’’ नाहीद नानस्टाप बोलती जा रही थी.

‘‘दौलत खुशियों की जमानत तो नहीं होती.’’ अचानक शहरीना के मुंह से निकल गया.

‘‘क्या बात है शेरी, लगता है तुम अपनी जिंदगी में खुश नहीं हो?’’

‘‘नहीं नाहीद, मेरे कहने का मतलब यह था कि अमीर सुबह ही निकल जाते हैं और देर रात को लौटते हैं. मैं सारा दिन बोर होती रहती हूं. वैसे अमीर मेरा बहुत खयाल रखते हैं.’’ शहरीना ने बातें बनाईं.

‘‘खैर, तुम्हारी बात भी ठीक है, लेकिन तुम्हारी शादी को एक साल हो गया है. हमें खुशखबरी कब दे रही हो?’’ ताहीद के लहजे में हमदर्दी थी.

‘‘अभी तो ऐसी कोई बात नहीं है, फिर सनी तो है ना…’’ नाहीद की बात सुन कर शहरीना गुलजार हो गई थी. जिस बात को वह आज तक महसूस करती आई थी और जुबान तक न ला सकी थी, वही बात आज नाहीद उस से कह रही थी, ‘‘नहीं यार, अपने बच्चे की बात कुछ और ही होती है. तुम किसी लेडी डाक्टर से मिलो. समझी मेरी बात…’’

यह कह कर नाहीद ने फोन काट दिया, ‘‘मैं तुम्हें फिर फोन करूंगी, उजमा के अब्बू आ गए हैं.’’

बहुत देर तक नाहीद की बात शहरीना के कानों में गूंजती रही. वह ख्वाबों की दुनिया में खो गई, ‘मेरा भी एक बच्चा होगा प्यारा, गोलमटोल सा. जो मुझे अम्मी कहेगा और अमीर को…’

ये प्यार था या कुछ और था

खतरनाक है रिश्तों की मर्यादा तोड़ना

जोरू और जमीन : लालची प्रेमी ने पहुंचाया जेल – भाग 2

विजय के साथी ने आंखों से कोई इशारा किया तो विजय ने प्रीति की ओर देखते हुए कहा, ‘‘प्रीति, तुम थोड़ी देर के लिए बाहर चली जाओ. हमें एक जरूरी बात करनी है.’’

विजय की इस बात पर प्रीति हैरान रह गई. उस की समझ में नहीं आया कि ऐसी कौन सी बात है, जो आधी रात को होनी है, सुबह नहीं हो सकती. बात करने का यह भी कोई समय है.

प्रीति उतनी रात को बाहर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन विजय जिद पर अड़ गया. आधी रात को कोई तमाशा न खड़ा हो, यह सोच कर प्रीति गुस्से से पैर पटकती हुई बाहर निकल गई. प्रीति कमरे से बाहर निकली ही थी कि एक धमाका हुआ. वह गोली चलने की आवाज थी. गोली चलने की आवाज सुन कर वह तुरंत लौट पड़ी. वह कमरे के दरवाजे पर ही पहुंची थी कि अंदर से वह लड़का तेजी से प्रीति को धक्का दे कर निकल गया. उस के हाथ में पिस्तौल थी. पिस्तौल देख कर ही वह सारा मामला समझ गई.

तभी एक धमाका ऊपर हुआ. उस ने ऊपर की ओर देखा तो सीढि़यों से उस का दूसरा साथी उतर रहा था. दोनों लड़के नीचे मिले और बाहर गली में खड़े उस के स्कूटर को स्टार्ट किया. पीछे वाले लड़के ने प्रीति को पिस्तौल दिखा कर कहा, ‘‘हम लोगों के जाने तक चुप रहना. अगर शोर मचाया तो तुझे भी गोली मार दूंगा.’’

दोनों लड़के उसी के स्कूटर से चले गए. प्रीति असमंजस की स्थिति में किसी बुत की तरह खड़ी यह सब देखती रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. लड़कों के जाने के बाद वह भाग कर कमरे में गई. अंदर की हालत देख कर उस की सांस थम सी गई. बेड पर उस के पति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. उस के सीने से खून बह रहा था. यह देख कर उस के होश उड़ गए.

प्रीति चीखती चिल्लाती हुई मदद के लिए ऊपर के कमरे की ओर भागी. हड़बड़ाहट में उसे खयाल ही नहीं रहा कि ऊपर भी एक धमाका हुआ था. बेड पर पड़ी नरेश की लाश देख कर उसे उस धमाके की याद आ गई. नरेश की लाश उसी तरह पड़ी थी, जिस तरह विजय की लाश पड़ी थी. 2-2 लाशें देख कर प्रीति पागलों की तरह मदद के लिए चीखने लगी.

प्रीति का चीखनाचिल्लाना सुन कर आसपास वाले अपनेअपने घरों से बाहर आ गए, लेकिन हत्यारे तो कब के भाग चुके थे. पड़ोसी प्रीति को सांत्वना देने लगे.

इतनी जानकारी मिलने के बाद मैं ने प्रीति से हत्यारों का हुलिया जानना चाहा तो उस ने बताया, ‘‘दोनों की उम्र 30 साल के आसपास रही होगी. उन की लंबाई ठीकठाक थी. उन के सिर के बाल छोटेछोटे थे. एक ने जींस पर शर्ट पहन रखी थी तो दूसरे ने टीशर्ट.’’

प्रीती से पूछताछ के बाद एक बार फिर मैं ने प्रीति के पड़ोसियों से पूछताछ की. पड़ोसियों ने बताया था कि आधी रात को गोलियों के चलने की आवाज से उन की आंखें खुल गई थीं. उस के बाद स्कूटर स्टार्ट होने की आवाज आई थी. स्कूटर के चले जाने के कुछ देर बाद प्रीति के चीखनेचिल्लाने की आवाज आई तो सभी घर से बाहर आ कर उस की ओर दौड़ पड़े थे.

लुधियाना का मुंडियां कलां अभी नया बस रहा मोहल्ला था. इसलिए वहां के ज्यादातर प्लौट खाली पड़े थे. लेकिन यह मोहल्ला सुनसान भी नहीं था. प्रीति जिस गली नंबर 3 के मकान में रहती थी, उस गली में कोई भी प्लौट खाली नहीं था. मैं ने इंचार्ज सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह और हेडकांस्टेबल हरभजन सिंह को गुप्तरूप से इस मामले की जांच करने का आदेश दिया.

अब तक की जांच से यह पता चल गया था कि हत्यारे मारे गए लोगों की जानपहचान के थे. लेकिन बाद में जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली थीं. पड़ोसियों ने बताया था कि प्रीति का असली नाम कमलजीत कौर था. पतिपत्नी में लगभग रोज ही झगड़ा होता था. लेकिन वे इस झगड़े की वजह नहीं बता सके थे. मैं ने अंदाजा लगाया कि झगड़े की वजह नरेश भी हो सकता था, क्योंकि वह शुरू से ही उन दोनों के साथ रह रहा था.

पड़ोसियों ने यह भी बताया था कि विजय और नरेश कोई खास कामधंधा नहीं करते थे. इस के बावजूद उन के खर्च शाही थे. इस का अंदाजा तो उन के घर को देख कर भी लगाया जा सकता था. क्येंकि घर में सुखसुविधा का हर सामान मौजूद था. इस का मतलब यह हुआ कि कहने को वे डोरविंडो फिटिंग का काम करते थे, लेकिन उन का असली काम कुछ और ही था. उन का रहनसहन, खानपान, पहनावा और खर्च देख कर कहीं से भी नहीं लगता था कि वे मेहनतमजदूरी करने वाले साधारण लोग थे.

बहरहाल, अब तक मेरी और सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह की जांच एवं पड़ोसियों से मिली जानकारी से यही नतीजा निकल रहा था कि इस दोहरे हत्याकांड की वजह कहीं न कहीं से अवैध संबंध हैं, क्योंकि अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि ये हत्याएं लूटपाट या आपसी रंजिश की वजह से नहीं हुई थीं. अगर ये हत्याएं रंजिश की वजह से हुई होतीं तो हत्यारे प्रीति को भी जिंदा न छोड़ते.

क्योंकि कोई भी अपराधी यह कभी नहीं चाहेगा कि उस के किए अपराध का कोई चश्मदीद गवाह जिंदा रहे. यह सोचने वाली बात थी कि घर के 2 लोगों की हत्या कर के हत्यारे प्रीति को जिंदा क्यों छोड़ गए? यह पता लगाना जरूरी था. क्योंकि इसी के पीछे विजय और नरेश की हत्या का रहस्य छिपा था. इसी बात को ध्यान में रख कर मैं ने अपनी जांच आगे बढ़ाई.

मैं ने कुछ विश्वसनीय और तेजतर्रार पुलिस वालों की एक टीम बना कर प्रीति के बारे में पता लगाने के साथ अपने कुछ मुखबिरों की भी मदद ली. टीम को मैं ने मारे गए विजय और नरेश के कामधंधे एवं उन के चरित्र के बारे में भी पता करने को कहा था. आखिर मेहनत रंग लाई और कुछ ही दिनों में जो नतीजा सामने आया, वह चौंकाने वाला था. मजे की बात यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड की साजिश रचने वाली खुद प्रीति उर्फ कमलजीत कौर ही थी.

मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह प्रीति को थाने ले आए. मैं ने उस से पूछताछ शुरू की तो वह उस हर बात से मना करती रही, जो मैं ने अपने सूत्रों से पता किया था. मैं ने उस पर दबाव बनाने की कोशिश की तो वह पुलिस को बुराभला कहते हुए बोली, ‘‘मेरे ही पति की हत्या हुई है. आप लोग हत्यारों को ढूंढ़ने के बजाय मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

जब मुझे लगा कि सीधी अंगुली से घी निकलने वाला नहीं है तो मैं ने पुलिसिया दांव आजमाने का मन बनाया. मैं ने उसे महिला पुलिस जसबीर कौर और सिमरन कौर के हवाले कर दिया. फिर तो थोड़ी ही देर में प्रीति अपना अपराध स्वीकार कर के इस दोहरे हत्याकांड की सच्चाई बताने को तैयार हो गई. इस के बाद उस ने विजय और नरेश की हत्याओं के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी:

प्रीति उर्फ कमलजीत कौर मूलरूप से हरियाणा के करनाल की रहने वाली थी. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई जोगा सिंह था. मातापिता का नाम बताना इसलिए उचित नहीं है, क्योंकि वे शरीफ, सज्जन और इज्जतदार लोग हैं. जोगा सिंह और प्रीति, दोनों बचपन से उच्च महत्त्वाकांक्षी और स्वच्छंद प्रवृत्ति के थे. मौजमस्ती में डूबे रहने की वजह से दोनों ही ज्यादा पढ़लिख नहीं सके तो अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अपराधियों से संबंध बना लिए और अपहरण, लूटपाट, डकैती और हत्याओं जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगे.