फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 3

तुषार ने 4-5 दिनों में पेपर तैयार कर के दीपिका को दिए तो वह धर्मसंकट में पड़ गई कि सिग्नेचर करूं या न करूं. इसी उधेड़बुन में 3 दिन बीत गए तो घर में झाड़ूपोंछा लगाने वाली सरोजनी अचानक उस से बोली, ‘‘मेमसाहब, सुना है कि आप बैंक से लोन ले कर तुषार बाबू को देंगी?’’

‘‘तुम्हें किस ने बताया?’’ दीपिका ने हैरत से पूछा.

‘‘कल आप के घर से काम कर के जा रही थी तो बरामदे में तुषार बाबू और उस की मां के बीच हुई बात सुनी थी. तुषार बाबू कह रहे थे, ‘चिंता मत करो मां. लोन ले कर दीपिका रुपए मुझे दे देगी तो उसे घर में रहने नहीं दूंगा. उस पर तरहतरह के इल्जाम लगा कर घर से बाहर कर दूंगा.’’

सरोजनी चुप हो गई तो दीपिका को लगा उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी. पर जल्दी ही उस ने अपने आप को संभाल लिया. सरोजनी को डांटते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो.’’

सरोजनी डांट खा कर पल दो पल तो चुप रही. फिर बोली, ‘‘कुछ दिन पहले मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हुई थी तो आप ने रुपए से मेरी बहुत मदद की थी. इसीलिए मैं ने कल जो कुछ भी सुना था, आप को बता दिया.’’

वह फिर बोली, ‘‘मेमसाहब, तुषार बाबू से सावधान रहिएगा. वह अच्छे इंसान नहीं हैं. उन की नजर हमेशा अमीर लड़कियों पर रहती थी. उन्होंने आप से शादी क्यों की, मेरी समझ से बाहर की बात है. इस में भी जरूर उन का कोई न कोई मकसद होगा.’’

शक घर कर गया तो दीपिका ने अपने मौसेरे भाई सुधीर से तुषार की सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया. सुधीर पुलिस इंसपेक्टर था. सुधीर ने 10 दिन में ही तुषार की जन्मकुंडली खंगाल कर दीपिका के सामने रख दी.

पता चला कि तुषार आवारा किस्म का था. प्राइवेट जौब से वह जो कुछ कमाता था, अपने कपड़ों और शौक पर खर्च कर देता था. वह आकर्षक तो था ही, खुद को ग्रैजुएट बताता था. अमीर घर की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर उन से पैसे ऐंठना वह अच्छी तरह जानता था.

दीपिका को यह भी पता चल चुका था कि उस से 50 लाख रुपए ऐंठने का प्लान तुषार ने अपनी मां के साथ मिल कर बनाया था.  मां ऐसी लालची थी कि पैसों के लिए कुछ भी कर सकती थी. उस ने तुषार को दीपिका से शादी करने की इजाजत इसलिए दी थी कि तुषार ने उसे 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. विवाह के एक साल बाद तुषार ने अपना वादा पूरा भी कर दिया था.

तुषार पर दीपिका से किसी भी तरह से रुपए लेने का जुनून सवार था. रुपए के लिए वह उस के साथ कुछ भी कर सकता था.  तुषार की सच्चाई पता लगने पर दीपिका को अपना अस्तित्व समाप्त होता सा लगा. अस्तित्व बचाने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए दीपिका ने तुषार को कह दिया कि वह बैंक से किसी भी तरह का लोन नहीं लेगी.

तुषार को बहुत गुस्सा आया, पर कुछ सोच कर अपने आप को काबू में कर लिया. उस ने सिर्फ  इतना कहा, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’

कुछ दिन खामोशी से बीत गए. तुषार और उस की मां ने दीपिका से बात करनी बंद कर दी.

दीपिका को लग रहा था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. पर क्या, समझ नहीं पा रही थी.

एक दिन सास तुषार से कह रही थी, ‘‘दीपिका को कब घर से निकालोगे? उस ने तो लोन लेने से भी मना कर दिया है. फिर उसे बरदाश्त क्यों कर रहे हो?’’

‘‘उस से तो 50 लाख ले कर ही रहूंगा मां.’’ तुषार ने कहा.

‘‘पर कैसे?’’

‘‘उस का कत्ल कर के.’’

उस की मां चौंक गई, ‘‘मतलब?’’

‘‘मुझे पता था कि फरजी कागजात पर वह लोन नहीं लेगी. इसलिए 7 महीने पहले ही मैं ने योजना बना ली थी.’’

‘‘कैसी योजना?’’

‘‘दीपिका का 50 लाख रुपए का जीवन बीमा करा चुका हूं. उस का प्रीमियम बराबर दे रहा हूं. उस की हत्या करा दूंगा तो रुपए मुझे मिल जाएंगे, क्योंकि नौमिनी मैं ही हूं.’’

तुषार की योजना पर मां खुश हो गई. कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘अगर पुलिस की पकड़ में आ जाओगे तो सारी की सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा मां. दीपिका की हत्या कुछ इस तरह से कराऊंगा कि वह रोड एक्सीडेंट लगेगा. पुलिस मुझे कभी नहीं पकड़ पाएगी. बाद में गौरांग का भी कत्ल करा दूंगा.’’

कुछ देर चुप रह कर तुषार ने फिर कहा, ‘‘दीपिका की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर बैंक में मुझे नौकरी भी मिल जाएगी. फिर किसी अमीर लड़की से शादी करने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

दीपिका ने दोनों की बात मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. मांबेटे के षडयंत्र का पता चल गया था. अब उस का वहां रहना खतरे से खाली नहीं था.

इसलिए एक दिन वह बेटे गौरांग को ले कर किसी बहाने से मायके चली गई. सारा घटनाक्रम मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने तुषार से तलाक लेने की सलाह दी. दीपिका तुषार को सिर्फ तलाक दे कर नहीं छोड़ना चाहती थी. बल्कि वह उसे जेल की हवा खिलाना चाहती थी. यदि उसे यूं छोड़ देती तो वह फिर से किसी न किसी लड़की की जिंदगी बरबाद कर देता.

फिर थाने जा कर दीपिका ने तुषार के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. सबूत में मोबाइल में रिकौर्ड की गई बातें पुलिस को सुना दीं. तब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर तुषार को गिरफ्तार कर लिया. कुछ महीनों बाद ही दीपिका ने तुषार से तलाक ले लिया. इस के बाद पापा ने उसे फिर से शादी करने का सुझाव दिया.

शादी के नाम का कोई ठप्पा अब दीपिका नहीं लगाना चाहती थी. पापा को समझाते हुए बोली, ‘‘मुझे किस्मत से जो मिलना था, मिल चुका है. फिलहाल जिंदगी से बहुत खुश भी हूं. फिर शादी क्यों करूं. आप ही बताइए पापा कि इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? खुशी और संतुष्टि, यही न? बेटे की परवरिश करने से जो खुशी मिलेगी, वही मेरी उपलब्धि होगी. फिर मैं बारबार किस्मत आजमाने क्यों जाऊं?’’

पापा को लगा कि दीपिका सही रास्ते पर है. फिर वह चुप हो गए.

प्रेमिका की कब्र पर आम का पेड़

अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 2

पुलिस सुनील से यह जानने में जुटी हुई थी कि घटना वाली रात साढ़े 4 बजे वह किस रास्ते से और कहां तक टहलने गया था? आनेजाने में उसे कुल कितना समय लगा था? इन सवालों की बौछार से सुनील के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. वह सकपका गया और दाएंबाएं देखने लगा. पुलिस ने उस के चेहरे की हवाइयों को पहचान लिया कि वह वास्तव में जरूर कुछ छिपा रहा है.

सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस सीसीटीवी कैमरे की तलाश में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई. सुनील के घर से करीब 500 मीटर दूर कालोनी के ही सूरजकुंड ओवरब्रिज के पास एक सीसीटीवी कैमरा लगा मिल गया.

पुलिस ने उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज खंगाली तो खुद सुनील हाथ में एक झोला लिए कहीं जाता हुआ दिखा. झोले में कुछ वजनदार चीज प्रतीत हो रही थी. थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उस के हाथ में झोला नहीं था. हाथ खाली था. सुनील जिन 3 संदिग्यों के होने का दावा कर रहा था, उस घटना वाली रात कैमरे में वह नहीं दिखे.

अब सीसीटीवी कैमरे से तसवीर साफ हो चुकी थी. यानी सुनील झूठ बोल रहा था. पुलिस के शक के दायरे में सुनील आ चुका था.

14 सितंबर की सुबह पत्नी के दाह संस्कार के वक्त पुलिस राजघाट श्मशान पहुंच गई और क्रियाकर्म हो जाने के बाद पुलिस ने सुनील को हिरासत में ले लिया. थाने पहुंचने पर पुलिस ने सुनील से गहनतापूर्वक पूछताछ की. पुलिस के सवालों के आगे वह एकदम टूट गया और पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया, ‘‘सर मैं उसे मारना नहीं चाहता था. पर उस ने मेरी जिंदगी एकदम से नरक से भी बदतर बना दी थी. बातबात पर अपने इंसपेक्टर भाई की धौंस देती थी, जेल भेजवाने की धमकी तो उस की जबान पर हर समय रहती थी. इस के चलते मेरा कामकाज सब ठप्प पड़ गया था. उस की हरकतों की वजह से मैं इतना मजबूर हो गया था कि मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा. इस बात का दुख मुझे भी है और जीवन भर रहेगा.’’ इतना कह कर सुनील रोने लगा.

आखिर सुनील किस बात को ले कर मजबूर हुआ कि उसे ऐसा खतरनाक कदम उठाना पड़ा. पूछताछ करने पर इस की जो वजह सामने आई, इस प्रकार निकली.

45 वर्षीय सुनील सिंह मूलत: संतकबीर नगर जिले के धनघटा के मटौली गांव का रहने वाला था. उस के पिता कालिका सिंह को गोरखुपर के गोला क्षेत्र के नेवास गांव में नेवासा मिला हुआ था. सासससुर और संपत्ति की देखभाल के लिए पत्नी और बच्चों के साथ कालिका सिंह ससुराल में जा कर बस गए थे. गांव में रह कर बच्चे पले और बड़े हुए और उन्होंने उसी इलाके के विद्यालयों से पढ़ाई की.

कालिका सिंह मिलनसार स्वभाव के थे. अपने बच्चों को भी वह अच्छी शिक्षा और अच्छी सीख दिया करते थे. सुनील खुली आंखों से सरकारी अफसर बनने के सपने देखा करता था. इस के लिए वह दिन रात जीतोड़ मेहनत करता था. लेकिन वह कोशिश करने के बाद भी सरकारी मुलाजिम नहीं बन सका.

भाग्य और किस्मत के 2 पाटों के बीच में पिसे सुनील ने सरकारी नौकरी का ख्वाब देखना छोड़ दिया और उस ने खुद का कोई कारोबार करने की योजना बनाई. इसी बीच उस के जीवन में एक नई कहानी ने जन्म लिया. खूबसूरत रेनू सिंह के साथ वह दांपत्य जीवन में बंध गया. कुछ सालों बाद सुनील एक बेटे शिवम का बाप बन गया.

खुद्दार और मेहनतकश सुनील मांबाप के सिर पर कब तक बोझ बन कर जीता. अब वह अकेला नहीं बल्कि परिवार वाला हो चुका था. जीवन की गाड़ी चलाने के लिए उस ने कुछ न कुछ करने का फैसला ले लिया. सन 2008 में सुनील परिवार को ले कर गोरखपुर आ गया. सूरजकुंड कालोनी में उस का साला अजीत सिंह रहता था. अजीत ने ही सुनील को कालोनी में एक किराए का कमरा दिलवा दिया.

शहर में रहना तो आसान होता है लेकिन खर्चे संभालना आसान नहीं होता. वह भी तब जब कमाई का कोई जरिया न हो. ऐसा ही हाल कुछ सुनील का भी था. शुरुआत में सुनील के पिता ने उसे आर्थिक सहयोग किया.

बेटे का स्कूल में दाखिला कराने के बाद सुनील ने पिता के सहयोग से भाड़े पे चलाने के लिए 2 टैंपो खरीद लिए. टैंपो उस ने भाड़े पर चलवा दिए. टैंपो से उस की अच्छी कमाई होने लगी. दोनों ड्राइवरों को दैनिक मजदूरी देने के बाद सुनील के पास अच्छी बचत हो जाती थी.

पैसा आने लगा तो उस की जरूरतें भी बढ़ने लगीं. धीरेधीरे शिवम भी स्कूल जाने लायक हो चुका था. शिवम उस का इकलौता बेटा था. उसे वह अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता था. इसलिए सुनील ने बाद में शहर के अच्छे स्कूल में उस का दाखिला करा दिया.

सुनील और रेनू दोनों ने मिल कर तय किया कि जब शहर में ही रहना है तो भाड़े के मकान में कब तक सिर छिपाएंगे. थोड़ा पैसा इकट्ठा कर के मकान बनवा कर आराम से रहेंगे और कमाएंगे खाएंगे.

यह बात रेनू ने अपने बड़े भाई अजीत से कही तो उस ने बहन की बातों को काफी गंभीरता से लिया और अपने मकान से थोड़ी दूरी पर उसे एक प्लौट खरीदवा दिया. इस के बाद सुनील ने इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस प्लौट पर मकान बनवा लिया. फिर वह अपने मकान में रहने लगा.

पति की आमदनी से रेनू खुश नहीं थी. वह जान रही थी कि टैंपो की कमाई स्थाई नहीं है. आज सड़क पर दौड़ रहा है तो पैसे आ रहे हैं, यदि कल को वह खराब हो जाए तो क्या होगा? फिर पैसे कहां से आएंगे. कहां तक घर वालों के सामने हाथ फैलाए खडे़ रहेंगे.

रेनू ने सोचा कि वह भी कुछ ऐसा काम करे जिस से 2 पैसे घर में आएं तो अच्छा ही होगा. वह पढ़ीलिखी तो थी ही अपनी शिक्षा और व्यक्तित्व के अनुरूप ही काम करना चाहती थी.

बहुत सोचनेविचारने के बाद उसे ब्यूटीपार्लर का काम अच्छा लगा. पति से सलाह ले कर ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर लिया फिर घर में ही ब्यूटीपार्लर की दुकान खोल ली. मोहल्ले में होने के नाते उस का पार्लर चल निकला. दोनों की कमाई से बड़े मजे से परिवार की गाड़ी चल रही थी. कुछ दिनों बाद ही पता नहीं किस की नजर लगी कि परिवार से जैसे खुशियां ही रूठ गईं.

प्रेमियों के लिए मचलने वाली विवाहिता – भाग 2

दशरथ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर रीना कहां गई होगी? वह कुणाल के साथ जब भी कहीं जाती थी, तब उसे इस बारे में बता जरूर बता देती थी.

आखिरकार दशरथ पत्नी एक फोटो ले कर पावई थाने गया. उस ने एसएचओ राजेंद्र सिंह परिहार को पूरी बात बताई और पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एसएचओ ने उसी वक्त से रीना की तलाश शुरू कर दी. मामला शादीशुदा महिला की गुमशुदगी का था, इसे देखते हुए पहले भदौरिया परिवार के सभी सदस्यों समेत रीना का मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स का अध्ययन करने के बाद पता चला कि रीना की बीते दिनों एक अनजान फोन नंबर पर अधिक समय तक बातचीत हुई. वह नंबर कुणाल पांडे का था. इस के बाद दशरथ समझ गया कि जरूर वह कुणाल के पास ही गई होगी.

यह जानकारी मिलते ही दशरथ आटो स्टैंड पर पहुंचा और वहां मौजूद आटो चालकों को जब रीना का फोटो दिखाया तो वहां मौजूद हरिओम नाम के ड्राइवर ने रीना को पहचान लिया. उस ने बताया कि वह महिला उस के आटो में बैठ कर बसस्टैंड तक गई थी, लेकिन वहां से वह कहां के लिए गई होगी, इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

इस जानकारी के बाद दशरथ ने बस कंडक्टरों को रीना की फोटो दिखा कर पूछताछ की. उन्हीं में से ग्वालियर से बनमौर रूट पर चलने वाली एक बस के कंडक्टर ने बताया कि वह महिला बनमौर तक उस की बस में सवार हो कर गई थी.

दशरथ ने थाने जा कर एसएचओ को सारी बात बताई. पवई पुलिस ने बनमौर बसस्टैंड से संबंधित थाने को इस की सूचना और रीना का फोटो भेज कर वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज की जानकारी मांगी. जल्द ही एक फुटेज में रीना एक बाइक पर सवार दिख गई, जिसे एक नवयुवक ले जाता दिखाई दिया.

बाइक का नंबर और युवक का चेहरा भी दिख गया था. दशरथ ने उस की पहचान कुणाल के रूप में की. बाइक के नंबर की मदद से पुलिस दशरथ को ले कर कुणाल के पास पहुंच गई.

वहां कुणाल और रीना मिल गए. दशरथ ने रीना को साथ चलने के लिए कहा, लेकिन उस ने उस के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहां उन से की गई पूछताछ में रीना ने बताया कि वह अपनी मरजी से कुणाल के साथ आई है और आगे भी उसी के साथ रहना चाहती है.

पति दशरथ भदौरिया के हाथ क्यों रह गए खाली

दशरथ ने उसे बच्चों का हवाला देते हुए साथ चलने की विनती की, लेकिन रीना अपनी जिद पर अड़ी रही. पुलिस ने कागजी काररवाई कर रीना और उस के प्रेमी को छोड़ दिया. दशरथ को इस मामले में अदालती काररवाई की सलाह दी. मायूस दशरथ अपने घर लौट आया.

दशरथ का दिल टूट गया और भारी मन से रीना को उस के प्रेमी के भरोसे छोड़ दिया. तीनों बच्चों को कुछ दिनों के लिए उन के ननिहाल भेज दिया.

रीना भदौरिया और कुणाल के लिए अच्छी बात यह हुई कि दशरथ के रूप में उन के प्यार की बाधा खत्म हो गई थी. कुणाल बनमौर में नौकरी करता था. उस ने अपनी आमदनी से रीना को खुशहाल जिंदगी देने का वादा किया, लेकिन उस ने विवाह की औपचारिकता पूरी नहीं की. न तो उस के साथ मंदिर में जा कर उस के गले में वरमाला डाली और न ही कोर्टमैरिज के लिए कोई पहल की. दोनों का दांपत्य जीवन लिवइन रिलेशन की बुनियाद पर टिक गया.

सब कुछ रीना की महत्त्वाकांक्षा के अनुरूप चलने लगा. रीना ने महसूस किया कि जैसे उसे खुशियों और आजादी के पंख लग गए हों. वह अपनी मनमरजी का जीवन गुजारने लगी थी. लेकिन कहते हैं न कि सुख की समय सीमा बहुत जल्द कम होने लगती है. ऐसा ही रीना के साथ भी हुआ.

कुणाल जब रोजीरोटी के लिए नौकरी और ड्यूटी को प्राथमिकता देने लगा, तब रीना ने कुछ अच्छा महसूस नहीं किया. उसे लगा कि जैसे उस की खुशियां कम हो रही हैं.

कुणाल के साथ रहते हुए उसे कई बार बोरियत भी महसूस होने लगी. कारण कुणाल सुबह 10 बजे खाना खा कर अपनी ड्यूटी पर चला जाता था और रात 8 बजे कमरे पर लौटता था. रीना का घर पर अकेले मन नहीं लगता था. वह खुले विचारों वाली थी. घूमनाफिरना, होटल में खाना खाना, पार्क, मौल आदि में जाने की आदत लगी हुई थी. उस में कमी आने से वह उदास रहने लगी थी.

कुणाल अब छोटीछोटी बातों और घरेलू खर्च को ले कर रीना को जिम्मेदार ठहराने लगा था. रोजाना किसी न किसी बात को ले कर उन के बीच कहासुनी होने लगी थी.

घरेलू क्लेश से रीना दिन भर कमरे में अकेली पड़ी परेशान होती रहती थी. वह विचलित हो जाती थी कि आखिर अपनी पीड़ा किसे सुनाए. वहां कोई भी उस का हमदर्द नहीं था, जिसे अपने गम की बात सुनाए. दिल का दुखड़ा बताए. ऐसे में रीना को अपने लिए गए फैसले पर पछतावा होने लगा. अपने बच्चों और पति की याद भी उसे सताने लगी, लेकिन अब इतना सब हो जाने के बाद पति के पास वापस लौटना संभव नहीं था.

अपनी बदली हुई जिंदगी से निराश रीना की मुलाकात मार्केट में एक दिन सुरेंद्र धाकड़ नाम के युवक से हो गई. वह टैंपो चलाता था. उस की लच्छेदार और मीठी बातों ने रीना का मन मोह लिया था. अंत में रीना ने अपनी आदत के मुताबिक अपना नाम बताया और मोबाइल नंबर भी दे दिया. खुशमिजाज टैंपो वाले ने रीना का कुछ समय की यात्रा में ही दिल जीत लिया था.

कौन बना रीना का अगला प्रेमी

सुरेंद्र ठंडी हवा के झोंके की तरह रीना भदौरिया को छू कर चला गया था. उसे कई दिनों तक उस की बातें याद आती रहीं. एक रोज उस ने उसे फोन कर दिया. रीना उसे बसस्टैंड के मार्केट में आने के लिए बोली. सुरेंद्र तुरंत सौरी बोलता हुआ बोला, ”मैडम, मैं अभी ग्वालियर अपने कमरे पर हूं. आज में अपनी सेवा नहीं दे सकता. माफी चाहता हूं.’’

एक टैंपो चालक द्वारा इस तरह तमीज से बातें करना रीना के दिल को छू गया. 2 दिनों बाद सुरेंद्र एक बार फिर रीना को मार्केट में टकरा गया. कुछ घरेलू सामान के साथ रीना बाजार में सड़क के किनारे बैठी थी. वह खोई खोई थी. तभी सुरेंद्र ने अचानक उस के सामने टैंपो रोक दिया था. एक बार फिर उस रोज के लिए सौरी बोला और हालचाल पूछ बैठा.

रीना अचानक सुरेंद्र को देख कर चौंक पड़ी. कुछ बोलने से पहले ही सुरेंद्र बोला, ”देवी मंदिर चलना है मैडम! आज वहां मेला लगता है. चलिए वहां घुमा लाता हूं. ज्यादा किराया नहीं लूंगा. वैसे भी खाली जा रहा हूं.’’

रीना से जिस मंदिर के बारे में पूछा, संयोग से वह उस के घर के रास्ते में ही आगे कुछ दूरी पर था. तुरंत ही वह सुरेंद्र के साथ जाने के लिए तैयार हो गई.

उस दिन रीना ने महसूस किया कि उस के दिल की बात सुरेंद्र सुन सकता है. उस रोज नहीं चाहते हुए भी रीना मंदिर में कुछ समय सुरेंद्र के साथ रही. उस के साथ पूजा में हिस्सा लिया और पास के एक ढाबे में चायनाश्ता भी किया. यह सब सुरेंद्र को भी अच्छा लगा था.

रीना उस के साथ फोन पर भी बातें करने लगी. अपनी समस्याएं बताने लगी थी, जिस का सुरेंद्र दार्शनिक अंदाज में जवाब देने लगा था. एक दिन सुरेंद्र उसे ग्वालियर अपने कमरे पर ले गया. रीना के कदम पहले से ही बहके हुए थे.

उसे हमेशा महसूस होता था कि वह प्यार की भूखी है. थोड़ी सी हमदर्दी मिलते ही उस ओर मुड़ जाती थी. प्यार पाने की यही लालसा उसे कुणाल तक खींच लाई थी. जब कुणाल से जी ऊबने लगा, तब वह सुरेंद्र में अपना प्यार तलाशने लगी. एक मर्द से दूसरे मर्द की बाहों में जाने के बाद मिलने वाली उपेक्षा और असफलता का उसे कोई मलाल नहीं होता था.

इश्क के दरिया में पति को बहाया – भाग 3

पत्नी क्यों बनी पति की जान की दुश्मन

पुलिस ने स्कूल से बंटी का एड्रेस ले कर उस के गांव अडिंग में जा कर उसे तलाश किया गया तो मालूम हुआ कि बंटी कई दिनों से गांव में नहीं आया है. गांव में उस का पिता शोभाराम, बंटी की पत्नी और बच्चे रह रहे थे.

बंटी के बारे में शोभाराम ने बताया कि बंटी अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा घर में पत्नी को भेजता है, बाकी अपने खानेपीने के लिए रख लेता है. उसे अब अपनी बीवी और बच्चों से कोई मोह नहीं रह गया है. वह फरीदाबाद में ही किराए का कमरा ले कर रहता है. वहां पर कहां रहता है, यह उस ने कभी नहीं बताया.

इन बातों का अर्थ यह निकाला गया कि बंटी ने अपना घरपरिवार बबीता के साथ आशनाई में छोड़ दिया है. वह बबीता को प्यार करता है. दीपक कुमार ने बंटी के फरीदाबाद वाले किराए के घर को तलाश कर लिया, लेकिन बंटी उस घर में भी नहीं था. वह 2-3 दिन से उस घर में नहीं आया था.

बंटी अब पूरी तरह पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. उस को पकडऩे के लिए एसीपी अमन यादव ने मुखबिर लगा दिए.

इस का नतीजा भी सार्थक निकला. 17 अगस्त, 2023 की सुबह उसे मथुरा के गांव बुढ़ैना स्थित चंदीला चौक से गिरफ्तार कर लिया गया. उसी दिन उसे कोर्ट में पेश कर के 25 अगस्त तक के लिए रिमांड पर ले लिया गया.

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क्राइम ब्रांच डीएलएफ के रिमांड रूम में बंटी को लाया गया तो एसीपी अमन यादव के तेवर देख कर वह कांपने लगा. एसीपी भांप गए कि यह बगैर सख्ती के अपना मुंह खोल देगा.

उसे अपने सामने बिठा कर उन्होंने उस के चेहरे पर नजरें जमा दीं, ”बंटी, तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा कि जो कुछ हम पूछें, तुम सहीसही उत्तर दोगे. यदि झूठ बोलने या बरगलाने की कोशिश करोगे तो तुम्हें उलटा लटका दिया जाएगा और फिर…’’

”म… मैं कुछ भी नहीं छिपाऊंगा साहब,’’ बंटी जल्दी से बोला, ”आप पूछिए, क्या पूछना है?’’

”राकेश तुम्हारे साथ ही स्कूल में नौकरी करता था, अब वह 15 दिन से लापता है. बताओ, वह कहां है..’’ अमन यादव ने पूछा.

”मैं ने उसे मार दिया है साहब.’’ बंटी ने रुआंसे स्वर में कहा.

”मार दिया क्यों?’’ पास बैठे प्रभारी दीपक कुमार ने चौंक कर पूछा, ”उस ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?’’

”कुछ भी नहीं साहब, वह तो सीधासादा आदमी था. गलती मेरी थी, मैं उस की पत्नी बबीता के साथ फंस गया. उस के रूपजाल ने मुझे ऐसा मोहित किया कि मैं अपने बीवी बच्चों तक को भूल गया. बबीता के कहने पर मैं ने राकेश की हत्या कर डाली. मुझ से बहुत बड़ा गुनाह हो गया साहब. मुझे माफ कर दो.’’ कहते कहते बंटी रोने लगा.

”तुम से अपने पति का खून करने के लिए बबीता ने कहा था?’’ प्रभारी दीपक कुमार ने पूछा.

”जी हां,’’ बंटी अपने आंसू पोंछते हुए बोला, ”साहब, परेशान हाल में काम की तलाश करने आई बबीता के यौवन पर फिदा हो कर मैं ने उसे स्कूल में चपरासी की पोस्ट पर लगवा दिया. बबीता दिलफेंक थी. वह जल्दी ही मेरी तरफ आकर्षित हो गई. मैं ने बहुत जल्दी बबीता को अपनी सेज पर सजा लिया.

”मेरे प्यार और जोश पर बबीता इस कदर फिदा हो गई कि उसे अपना पति बेकार लगने लगा. जबकि पहले उसी के कहने पर मैं ने स्कूल में राकेश को भी बस की कंडक्टरी का काम दिलवा दिया था. वह स्कूल में रोज आता था, लेकिन सुबह दोपहर में वह स्कूल बस के साथ बच्चों को लाने छोडऩे के लिए बाहर रहता था. इस बीच बबीता और मैं अपने दिल की मुरादें पूरी कर लेते थे.

”धीरेधीरे राकेश को हम पर शक होने लगा तो उस ने बबीता को मुझ से दूर करने की कोशिश की, लेकिन बबीता ने उस की परवाह नहीं की. वह मेरे नजदीक बनी रही. राकेश घर जा कर बबीता को उल्टीसीधी सुनाता. दोनों में क्लेश होता, लेकिन बबीता ने मेरा साथ नहीं छोड़ा.

”एक दिन बबीता ने मुझ से कहा कि मैं राकेश को रास्ते से हटा दूं, वह उस से रोज क्लेश करता है, गालियां देता है, अब हाथ भी उठाने लगा है. मैं ने बबीता की बात मान ली. राकेश का कांटा निकल जाने से बबीता मुझ से खुल कर अय्याशी करती, मैं उसे फरीदाबाद में पत्नी बना कर रखता.

”मैं ने एक योजना बनाई. 2 अगस्त, 2023 को मैं ने राकेश को शराब पीने की पार्टी दी, वह इस के लिए मान गया. मैं उसे शाम को ठेके पर ले गया.

”उसे दूर कर के मैं ने शराब की बोतल खरीदी और राकेश को ले कर आगरा कैनाल नहर के पास आ गया. वहां दूर तक सन्नाटा था. मैं ने शराब की बोतल खोली और राकेश को पैग बना कर दिया. मैं ने भी पैग बनाया.

”मैं धीरेधीरे अपना गिलास खाली करता, जबकि राकेश पानी की तरह शराब गटक रहा था. मैं ने उसे ज्यादा पिलाई. वह थोड़ी देर में नशे में झूमने लगा तो मौका देख कर मैं ने वहां पड़ी ईंट उठा कर उस के सिर पर वार कर दिया, वह चीख कर गिरा तो मैं ने उसे घसीट कर नहर में धकेल दिया.

”यह खबर मैं ने फोन द्वारा उसी रात बबीता को दे दी तो वह बहुत खुश हुई. फिर 3 अगस्त, 2023 को योजना के तहत उस ने थाना बीपीटीपी में अपने पति राकेश की गुमशुदगी की सूचना लिखवा दी.’’

कैसे बरामद हुई राकेश की लाश

बंटी के द्वारा राकेश की हत्या का जुर्म कुबूल कर लेने के बाद इस जुर्म में शामिल राकेश की पत्नी बबीता को क्राइम ब्रांच टीम ने खेड़ी कलां में उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

क्राइम ब्रांच के औफिस में अपने प्रेमी बंटी को सिर झुका कर बैठा देखते ही वह समझ गई कि पति की हत्या का भेद खुल गया है. इसलिए उस ने भी चुपचाप अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

बीपीटीपी थाने में दर्ज अपराध संख्या 200/ 23 पर भादंवि की धारा 302 लगा कर दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. फिर दोनों आरोपियों की निशानदेही पर राकेश की डैड बौडी की तलाश शुरू की गई.

19 अगस्त, 2023 को पलवल के गांव छज्जूपुर के पास आगरा कैनाल से एसडीआरएफ की टीम ने राकेश की लाश बरामद कर पाने में सफलता पा ली. पुख्ता सबूत हासिल करने के बाद क्राइम ब्रांच की टीम ने हत्यारोपी बंटी और उस की प्रेमिका बबीता को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

बंटी और बबीता को अपने किए की सजा दिलवाने के लिए एसएचओ तैयारी में लग गए. राकेश की लाश उस के परिजनों को सौंप दी गई थी, जिन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 2

5 दिन बाद दीपिका जब कुछ सामान्य हुई तो मां ने उसे समझाते हुए गर्भपात करा कर दूसरी शादी करने की सलाह दी.

कुछ सोच कर दीपिका बोली, ‘‘मम्मी, गलती मैं ने की है तो बच्चे को सजा क्यों दूं. मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं बच्चे को जन्म दूंगी. उस के बाद ही भविष्य की चिंता करूंगी.’’

दीपिका को ससुराल आए 20 दिन हो चुके थे तो अचानक तुषार आया. वह बोला, ‘‘मुझे विश्वास है कि तुम बदचलन नहीं हो. तुम्हारे पेट में मेरे भाई का ही अंश है.’’

‘‘जब तुम यह बात समझ रहे थे तो उस दिन अपना मुंह क्यों बंद कर लिया था, जब सभी मुझे बदचलन बता रहे थे?’’ दीपिका ने गुस्से में कहा.

‘‘उस दिन मैं तुम्हारे भविष्य को ले कर चिंतित हो गया था. फिर यह फैसला नहीं कर पाया था कि क्या करना चाहिए.’’ तुषार बोला.

दीपिका अपने गुस्से पर काबू करते हुए बोली, ‘‘अब क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम से शादी कर के तुम्हारा भविष्य संवारना चाहता हूं. तुम्हारे होने वाले बच्चे को अपना नाम देना चाहता हूं. इस के लिए मैं ने मम्मीपापा को राजी कर लिया है.’’

औफिस और मोहल्ले में वह बुरी तरह बदनाम हो चुकी थी. सभी उसे दुष्चरित्र समझते थे. ऐसी स्थिति में आसानी से किसी दूसरी जगह उस की शादी होने वाली नहीं थी, इसलिए आत्ममंथन के बाद वह उस से शादी के लिए तैयार हो गई.

दीपिका बच्चे की डिलीवरी के बाद शादी करना चाहती थी, लेकिन तुषार ने कहा कि वह डिलीवरी से पहले शादी कर के बच्चे को अपना नाम देना चाहता है. ऐसा ही हुआ. डिलीवरी से पहले उन दोनों की शादी हो गई.

जिस घर से दीपिका बेइज्जत हो कर निकली थी, उसी घर में पूरे सम्मान से तुषार के कारण लौट आई थी. फलस्वरूप दीपिका ने तुषार को दिल में बसा कर प्यार से नहला दिया और पलकों पर बिठा लिया. तुषार भी उस का पूरा खयाल रखता था. घर का कोई काम उसे नहीं करने देता था. काम के लिए उस ने नौकरी रख दी थी. तुषार का भरपूर प्यार पा कर दीपिका इतनी गदगद थी कि उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

डिलीवरी का समय हुआ तो बातोंबातों में तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘तुम अपने बैंक की डिटेल्स दे दो. डिलीवरी के समय अगर मेरे एकाउंट में रुपए कम पड़ जाएंगे तो तुम्हारे एकाउंट से ले लूंगा.’’

दीपिका को उस की बात अच्छी लगी. बैंक की पासबुक, डेबिट कार्ड और ब्लैंक चैक्स पर दस्तखत कर के पूरी की पूरी चैकबुक उसे दे दी.

नौरमल डिलीवरी से बेटा हुआ तो उस का नाम गौरांग रखा गया. 6 महीने बाद तुषार ने हनीमून पर शिमला जाने का प्रोग्राम बनाया तो दीपिका ने मना नहीं किया.  वहां से लौट कर आई तो बहुत खुश थी. तुषार का अथाह प्यार पा कर वह विक्रम को भूल गई थी.

गौरांग एक साल का हो गया था. फिर भी दीपिका ने तुषार से डेबिट कार्ड और दस्तखत किए हुए चैक्स वापस नहीं लिए थे. इस की कभी जरूरत महसूस नहीं की थी. तुषार ने उस के अंधकारमय जीवन को रोशनी से नहला दिया था. ऐसे में भला वह उस पर अविश्वास कैसे कर सकती थी.

जरूरत तब पड़ी, जब एक दिन दीपिका के पिता को बिजनैस में कुछ नुकसान हुआ और उन्होंने उस से 3 लाख रुपए मांगे. तब दीपिका ने पिता का एकाउंट नंबर तुषार को देते हुए कहा, ‘‘तुषार, मेरे एकाउंट से पापा के एकाउंट में 3 लाख रुपए ट्रांसफर कर देना.’’

इतना सुनते ही तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘डार्लिंग, तुम्हारे एकाउंट में रुपए हैं कहां. मुश्किल से 2-4 सौ रुपए होंगे.’’

दीपिका को झटका लगा. क्योंकि उस के एकाउंट में तो 12 लाख रुपए से अधिक थे. आखिर वे पैसे गए कहां.

उस ने तुषार से पूछा, ‘‘मेरे एकाउंट में उस समय 12 लाख रुपए से अधिक थे. इस के अलावा हर महीने 40 हजार रुपए सैलरी के भी आ रहे थे. सारे के सारे पैसे कहां खर्च हो गए?’’

तुषार झुंझलाते हुए बोला, ‘‘कुछ तुम्हारी डिलीवरी में खर्च हुए, कुछ हनीमून पर खर्च हो गए. बाकी रुपए घर की जरूरतों पर खर्च हो गए. तुम्हारे पैसों से ही तो घर चल रहा है. मेरी सैलरी और पापा की पेंशन के पैसे तो शिखा की शादी के लिए जमा हो रहे हैं.’’

तुषार का जवाब सुन कर दीपिका खामोश हो गई. पर उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस के साथ कहीं कुछ न कुछ गलत हो रहा है.  डिलीवरी के समय उसे छोटे से नर्सिंगहोम में दाखिल किया गया था. उस का बिल मात्र 30 हजार रुपए आया था. हनीमून पर भी अधिक खर्च नहीं हुआ था. जिस होटल में ठहरे थे, वह बिलकुल साधारण सा था. उन का खानापीना भी सामान्य हुआ था.

जो होना था, वह हो चुका था. उस पर बहस करती तो रिश्ते में खटास आ जाती. लिहाजा उस ने भविष्य में सावधान रहने की ठान ली.

तुषार से अपनी बैंक पास बुक, चैकबुक और डेबिट कार्ड ले कर उस ने कह दिया कि वह घर खर्च के लिए महीने में सिर्फ 10 हजार रुपए देगी. सैलरी के बाकी पैसे गौरांग के भविष्य के लिए जमा करेगी और शिखा की शादी में 2 लाख रुपए दे देगी.  दीपिका के निर्णय से तुषार को दुख हुआ, लेकिन वह उस समय कुछ बोला नहीं.

अगले दिन ही दीपिका ने बैंक से ओवरड्राफ्ट के जरिए पैसे ले कर अपने पिता को दे दिए. पर उन्हें यह नहीं बताया कि तुषार ने उस के सारे रुपए खर्च कर दिए हैं.

कुछ दिनों तक सब कुछ सामान्य रहा. उस के बाद अचानक तुषार ने उस से कहा, ‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘क्यों?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘बिजनैस करना चाहता हूं. इस के लिए तैयारी कर ली है, पर तुम्हारी मदद के बिना नहीं कर सकता.’’

‘‘तुम्हारी मदद हर तरह से करूंगी. बताओ, मुझे क्या करना होगा?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘तुम्हें अपने नाम से 50 लाख रुपए का लोन बैंक से लेना है. उसी रुपए से बिजनैस करूंगा. मेरा कुछ इस तरह का बिजनैस होगा कि लोन 5 साल में चुकता हो जाएगा.’’

‘‘इतने रुपए का लोन मुझे नहीं मिलेगा. अभी नौकरी लगे 5 साल ही तो हुए हैं.’’

‘‘मैं ने पता कर लिया है. होम लोन मिल जाएगा.’’

‘‘होम लोन लोगे तो बिजनैस कैसे करोगे. इस लोन में फ्लैट या कोई मकान लेना ही होगा.’’ दीपिका ने बताया.

‘‘इस की चिंता तुम मत करो. मैं ने सारी व्यवस्था कर ली है. तुम्हें सिर्फ होम लोन के पेपर्स पर दस्तखत कर बैंक में जमा करने हैं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, तुम करना क्या चाहते हो. ठीक से बताओ.’’

तुषार ने अपनी योजना दीपिका को बताई तो वह सकते में आ गई. दरअसल तुषार ब्रोकर के माध्यम से फरजी कागजात पर होम लोन लेना चाहता था. इस में उसे 3 महीने बाद पूरे रुपए कैश में मिल जाता. बाद में ब्रोकर अपना कमीशन लेता. दीपिका ने इस काम के लिए मना किया तो तुषार ने उसे अपनी कसम दे कर कर अंतत: मना लिया.

अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के थाना तिवारीपुर के एसओ रामभवन यादव रात्रि गश्त से लौट कर अपने आवास पर पहुंचे ही थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उस समय सुबह के 5 बजे थे. बेपरवाही से उन्होंने फोन स्क्रीन पर नजर डाली. काल किसी बिना पहचान वाले नंबर से आई थी. उन्होंने काल रिसीव कर जैसे ही हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई. मैं एसओ साहब से बात करना चाहता हूं.

‘‘जी बताइए, मैं एसओ तिवारीपुर बोल रहा हूं.’’ रामभवन यादव ने कहा, ‘‘बताइए क्या बात है, आप इतना घबराए हुए क्यों हैं?’’

‘‘सर, मैं सुनील सिंह बोल रहा हूं और सूर्य विहार कालोनी में रहता हूं.’’ फोन करने वाले व्यक्ति ने आगे कहा, ‘‘सर, गजब हो गया. कुछ बदमाश मेरे घर में घुस कर मेरी पत्नी रेनू सिंह की हत्या कर के फरार हो गए.’’ इतना कह कर सुनील सिंह फफकफफक कर रोने लगा. इस के बाद उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

सुबहसुबह हत्या की खबर सुन कर एसओ रामभवन यादव चौंक गए.  मामला गंभीर था. इसलिए वह फटाफट टीम को साथ ले कर सूर्य विहार कालोनी की तरफ रवाना हो गए. इसी बीच गोरखपुर जीआरपी थाने के इंसपेक्टर अजीत सिंह का फोन भी उन के पास आ चुका था. उन से बात कर के पता चला कि मृतका रेनू सिंह अजीत सिंह की सगी बहन थी.

यहां बात विभाग की आ गई. एसओ रामभवन यादव ने इंसपेक्टर अजीत सिंह को भरोसा दिया कि उन के साथ पूरा न्याय होगा. अपराधी चाहे जो भी हो उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी. उधर इंसपेक्टर अजीत सिंह ने भी केस के खुलासे में अपनी तरफ से पूरी मदद करने को कहा.

तिवारीपुर थाने से घटनास्थल करीब 2 किलोमीटर दूर था इसलिए एसओ यादव 10-15 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए. पुलिस के पहुंचने के बाद ही कालोनी के लोगों को जानकारी हुई कि बदमाशों ने सुनील के यहां लूटपाट कर उस की पत्नी की हत्या कर दी है.

इस के बाद तो सुनील के घर के सामने कालोनी के लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई. एसओ रामभवन यादव जब सुनील के घर में गए तो उस की पत्नी रेनू सिंह की खून से सनी लाश बेड पर पड़ी हुई थी. लग रहा था कि बदमाशों ने उस के सिर के पीछे कोई भारी चीज मार कर घायल किया था.

वार से सिर की हड्डी भी भीतर की तरफ धंसी हुई थी. सिर पर चोट के अलावा रेनू के शरीर पर चोट का और कोई निशान नहीं था. कमरे में रखी लोहे की अलमारी खुली हुई थी और उस का सामान फर्श पर बिखरा पड़ा था.

कमरे में फर्श पर कान का एक झुमका गिरा पड़ा था. शायद लूटपाट के बाद बदमाशों के वहां से भागते समय लूटे गए गहनों में से झुमका गिर गया था. एसओ ने उस झुमके के बारे में सुनील से पूछा तो सुनील झुमका देखते ही रोते हुए कहने लगा कि यह झुमका उस की पत्नी रेनू का ही है.

इस बीच एसओ रामभवन यादव ने फोन कर के एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह, एसपी (क्राइम), सीओ (क्राइम) प्रवीण सिंह को सूचित कर दिया था. सूचना मिलने के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे.

इन अधिकारियों के अलावा सीओ (बांसगांव) वीवी सिंह, सीओ (कोतवाली), एसओ (सहजनवां) सत्य प्रकाश सिंह, स्वाट टीम के इंचार्ज वीरेंद्र राय, एसआई मनोज दुबे, क्राइम ब्रांच के सिपाही वीपेंद्र मल्ल, राजमंगल सिंह, शशिकांत राय, राशिद अख्तर खां, शिवानंद उपाध्याय, कुतुबउद्दीन, राकेश, विजय प्रकाश के अलावा फोरैंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई.

चूंकि यह मामला पुलिस विभाग से जुड़ चुका था, इसलिए पुलिस वर्क आउट करने में कोई चूक नहीं करना चाहती थी. अधिकारियों ने मौके का गहनता से निरीक्षण किया. कमरे की हालत देख कर पहली नजर में यह मामला लूट का लग रहा था.

फोरैंसिक टीम मौके से सबूत जुटा रही थी. फोरैंसिक टीम ने कमरे में रखी लोहे की अलमारी की जांच की तो अलमारी का लौक कहीं से टूटा हुआ नजर नहीं आया. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने अलमारी को चाबी से खोला हो. ये देख कर फोरैंसिक टीम हैरान रह गई.

सुनील ने पुलिस को बताया था कि बदमाशों ने अलमारी तोड़ कर जेवर गहने लूटे थे. जबकि घटनास्थल पर इस तरह के कोई निशान नहीं मिले. ये मामला पूरी तरह संदिग्ध लगने लगा और शक के दायरे में कोई अपना ही नजर आने लगा. इसे पुलिस पूरी तरह गोपनीय रखे रही. पुलिस ने उस समय सुनील से कुछ नहीं कहा.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर रेनू की लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेजवा दी. सुनील की तहरीर पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ लूट के लिए हत्या करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. यह बात 12 सितंबर, 2018 की है.

अगले दिन 13 सितंबर को रेनू सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. रिपोर्ट में रेनू सिंह की मौत हेड इंजरी के कारण बताई गई. यही नहीं उस की मौत का जो समय बताया गया था वह सुनील के दिए गए बयान से कतई मेल नहीं खा रहा था.

पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची थी तो उस समय रेनू की डैडबौडी अकड़ चुकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अमूमन इस तरह के लक्षण किसी बौडी में मौत के करीब 4 घंटे बाद देखने को मिलते हैं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रेनू की मौत 11-12 सितंबर की रात के 12 बजे के करीब हो चुकी थी. जबकि सुनील ने बयान दिया था कि उस ने भोर के साढ़े 4 बजे के करीब 3 संदिग्धों को घर की तरफ से जाते हुए देखा था. उन्हीं तीनों ने घटना को अंजाम दिया था.

सुनील के बयान और मौके के हालात तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट आपस में कहीं भी मेल नहीं खा रहे थे. इस का मतलब साफ हो चुका था कि सुनील घटना में शामिल  था या फिर वह पुलिस से कुछ छिपा रहा है. सुनील के बयान को तसदीक करने के लिए पुलिस टीम उन तीनों संदिग्धों की तलाश में जुट गई, जिन पर सुनील को शक था.

प्रेमियों के लिए मचलने वाली विवाहिता – भाग 1

थोड़ी देर में रीना बस से बनमौर के लिए निकल चुकी थी. उधर उस का प्रेमी कुणाल वहां उस के इंतजार में था. रीना के बनमौर पहुंचने पर उसे बस स्टैंड पर ही कुणाल बाइक लिए खड़ा मिल गया. उसे देख कर रीना के चेहरे पर चमक आ गई. कुणाल ने सहजता से पूछा, ”कोई परेशानी तो नहीं हुई? किसी ने देखा तो नहीं?’’

रीना ने कुछ बोले बगैर कुणाल को अपना बैग पकड़ा दिया. कुणाल ने उसे अपनी गोद में रख कर दोनों हाथों से बाइक का हैंडल पकड़ कर बोला, ”बैठो, दुपट्टा संभाल लेना.’’

इसी के साथ रीना तुरंत बाइक पर बैठ गई. दोनों ने घर पहुंचने से पहले रास्ते में एक ढाबे पर खाना खाया और फिर कुणाल ने उस रात अपनी हसरतें पूरी कीं. रीना भी कुणाल का साथ पा कर निहाल हो गई. दोनों ने बिनब्याह के सुहागरात मनाई.

रीना मध्य प्रदेश के भिंड जिले के इंगुरी गांव के रहने वाले साधारण किसान दशरथ भदौरिया की पत्नी थी. कजरारी आंखों वाली सुंदर पत्नी को पा कर दशरथ बेहद खुश था. रीना की इस खूबसूरती का दीवाना उस के पति दशरथ के अलावा एक और युवक कुणाल पांडे भी था.

वह इंगुरी का नहीं था, लेकिन रीना और दशरथ के पड़ोस में रहने वाले शुक्ला परिवार में उस का अकसर आनाजाना लगा रहता था. एक दिन उस की भी नजर रीना पर पड़ गई. तभी से वह उस का दीवाना हो गया था.

शादीशुदा होने के बावजूद क्यों बहकी रीना

पहली बार में ही दोनों के दिलोदिमाग में खलबली मच गई थी. उन्होंने एकदूसरे के प्रति खिंचाव महसूस किया था. कुणाल कुंवारा था, उस ने कुंवारेपन की कसक के साथ रीना की सुंदरता और कमसिन अदाओं को महसूस किया था.

कुणाल के बांकपन और बलिष्ठ देह को देख कर रीना के दिमाग के तार भी झनझना उठे थे. दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं. गुदगुदी होने लगी थी. उस से मिलने को बेचैन हो गई थी, जबकि वह 7 साल की ब्याहता थी, 3 बच्चे थे. उस की कुछ हसरतें थीं, जो पूरी नहीं हो रही थीं. वह खुद को खूंटे से बंधी गाय ही समझती थी.

ऐसा लगता था जैसे उस के सारे मंसूबे धरे के धरे रह जाएंगे. जवानी यूं ही सरकती चली जाएगी. मनचाही खुशियां नहीं मिल पाएंगी. एक दिन कुणाल से मिलने के बाद तो उस का मन और भी बेचैन हो गया था. रीना और कुणाल के बीच पनपे प्यार के बढऩे का यह शुरुआती दौर था, किंतु जल्द ही दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. यहां तक कि कुणाल उसे अपनी बाइक से जबतब पास के शहर ले कर जाने लगा. इस में उस के पति दशरथ की सहमति थी.

वह कुणाल को सिर्फ पड़ोसी शुक्लाजी का रिश्तेदार और अपना हमदर्द समझता था. इस वजह से वह कुणाल पर भरोसा करता था. जब भी रीना कुछ खरीदारी करने के लिए शहर जाने की बात कहती थी, तब वह उसे कुणाल के साथ जाने की अनुमति दे देता था. किंतु उसे इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि रीना क्या गुल खिला रही है.

कुणाल और रीना एकदूसरे को बेहद चाहने लगे थे. रीना अपना दिल पूरी तरह से कुणाल को सौंप चुकी थी. दूसरी तरफ दशरथ के साथ उस की जिंदगी उबाऊ बनती जा रही थी. घर में छोटीछोटी बातों को ले कर चिकचिक होने लगी थी.

रीना जब कभी कुणाल के साथ किसी रेस्टोरेंट में एक साथ कोई पसंदीदा डिश खा रही होती, तब चम्मच से निवाले के साथसाथ अपनी सारी समस्याएं भी उस से साझा कर लेती थी. कुणाल उस के इसी प्रेम का दीवाना बन चुका था और उस के साथ अपनी हसरतें पूरी करने का हसीन सपना देखने लगा था. उस पर पैसा खर्च करने में जरा भी कंजूसी नहीं करता था.

कुणाल मध्य प्रदेश के औद्योगिक इलाके बनमौर में रहता था. वह वहीं एक कंपनी में काम करता था. रीना का गांव बनमौर से करीब 400 किलोमीटर दूर था. इस कारण उन का मिलनाजुलना महीने 2 महीने में ही हो पाता था, लेकिन वे फोन से अपने दिल की बातें करते रहते थे.

कुणाल एक बार करीब 3 महीने बाद रीना से मिला था. तब बातोंबातों में रीना ने लंबे समय बाद मिलने के शिकायती लहजे में साथ रहने की बात रखी. कुणाल भी चुप रहने वाला नहीं था, झट से बोल पड़ा था, ”मैं तो हमेशा तैयार हूं. मेरे पास बनमौर आने का फैसला तुम्हें लेना है.’’

”पति को क्या कहूं?’’ रीना मासूमियत के साथ बोली.

”दशरथ को साफसाफ हमारे तुम्हारे प्रेम के बारे में बता दो.’’ कुणाल ने समझाया.

”लेकिन मैं कैसे कहूं उस से. कहने पर बच्चों का हवाला दे कर रोक देगा.’’ रीना बोली.

”तो फिर एक ही उपाय है,’’ कुणाल ने कहा.

”वह क्या?’’ रीना ने सवाल किया.

”उसे बिना बताए मेरे पास चली आओ… जब वह हम लोगों से मिलेगा, तब उसे हाथ जोड़ कर समझा देंगे.’’ कुणाल ने समझाया. उस के बाद वह बनमौर लौट गया.

रीना कई दिनों तक उलझी रही. कभी बच्चे का विचार सामने आ जाता था तो कभी पति के साथ गुजर रही रूखी जिंदगी. वह काफी उलझन में थी. उसे डर लगने लगा था कि घर छोड़ कर कुणाल के पास जाना कहीं भविष्य में उस के लिए कोई खतरा न बन जाए.

काफी सोचविचार करने के बाद रीना ने एक रोज कुणाल को फोन कर कहा, ”आज दोपहर मैं ने घर की देहरी लांघने का फैसला कर लिया है.’’

रीना भदौरिया के इस फैसले पर कुणाल ने उसी वक्त आगे की योजना समझा दी. अगले रोज दोपहर के समय रीना तेजी से घरेलू काम निपटाने में लगी हुई थी. घर में कोई नहीं था. पति खेत पर गया हुआ था और बच्चे स्कूल जा चुके थे. वह बरतनों को साफ करने और करीने से रखने के बाद फटाफट अपने बैग में कपड़े ठूंसने लगी. पति की नजरों से बचा कर रखे गए कुछ पैसे भी बैग में संभाल कर रख लिए. फिर वह बस पकड़ कर प्रेमी कुणाल के पास पहुंच गई.

उधर दशरथ अपने बच्चे के साथ बेचैन था. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रीना अचानक बिना कुछ बताए कहां चली गई. दशरथ रीना को बारबार फोन मिला रहा था, वह स्विच्ड औफ आ रहा था. दशरथ ने इटावा में रीना के मायके से संपर्क किया. वहां रीना के नहीं पहुंचने की जानकारी से वह बेचैन हो गया कि अखिर वह कहां चली गई? उस का फोन क्यों बंद आ रहा है?

दशरथ आसपास के लोगों से भी पत्नी के बारे में पूछताछ कर चुका था. ससुराल में कई बार फोन करने पर हर बार निराशा ही हाथ लगी थी. यहां तक कि शुक्लाजी के यहां जा कर कुणाल के आने के बारे में भी पूछा था. उन से मालूम हुआ था कि वह महीनों से उन के पास नहीं आया है.

इश्क के दरिया में पति को बहाया – भाग 2

एसएचओ से आश्वासन पा कर बबीता वापस घर लौट आई. एसएचओ ने राकेश कुमार की गुमशुदगी का मामला संजीदगी से लिया. वह टीम के साथ राकेश की खोज में खेड़ी कलां के बाजार में गए. राकेश का फोटो दिखा कर वहां के दुकानदारों, चायपान के ठेलों पर उस के विषय में पूछा गया, लेकिन कहीं से भी उन्हें राकेश के यहां बाजार में आने की सूचना नहीं मिली.

थाने लौट कर उन्होंने एसपी को सूचना से अवगत कराया तो उन्होंने यह केस क्राइम ब्रांच शाखा डीएलएफ को ट्रांसपर कर दिया. क्राइम ब्रांच के डीसीपी मुकेश मल्होत्रा ने एसीपी अमन यादव के सुपरविजन में टीम को यह जिम्मेदारी सौंप दी कि वह जल्द से जल्द राकेश के लापता होने की गंभीरता से जांच करें.

उन्होंने राकेश के फोटो भी आसपास के थानों में भिजवा कर सोशल मीडिया पर भी शेयर करा दिए. क्राइम ब्रांच के प्रभारी दीपक और एसीपी अमन यादव ने जांच शुरू करने के लिए एक मीटिंग की.

”क्या कहते हैं आप, राकेश शाम को पत्नी को बता कर बाजार गया और लौट कर वापस नहीं आया.’’ एसीपी अमन यादव ने अपनी बात कह कर दीपक कुमार की ओर देखा.

”सर, इस के पीछे 2 बातें हो सकती हैं, राकेश का किसी ने अपहरण कर लिया है या फिर उस ने खुद अपना घर छोड़ दिया है. अगर उस का अपहरण किया गया होता तो अभी तक उस की फिरौती मांगने के लिए उस के उस के घर वालों के पास फोन आ जाता. रही बात दूसरी तो यदि राकेश अपनी मरजी से कहीं चला गया हो तो इस की संभावना न के बराबर है.’’

”वह कैसे?’’

”जनाब, पति घर तभी छोड़ेगा जब वह घर से परेशान हो जाएगा. परेशानी घरेलू कलह से शुरू होती है. अधिकतर घरों में पतिपत्नी के बीच अनबन रहती है. परेशान हालत में ही अनेक हादसे होते देखे गए हैं. यहां राकेश की पत्नी बबीता अपने पति के लिए चिंतित है, उसे पति की फिक्र है तो इसी से समझा जा सकता है कि दोनों पतिपत्नी में गहरा जुड़ाव रहा है.’’

”एक संभावना और है.’’

”वह क्या है सर?’’

”राकेश को गायब करवाया जा सकता है.’’

”हां.’’ प्रभारी दीपक कुमार ने सिर हिलाया, ”और यह काम एक ही सूरत में होगा, यदि पत्नी का चरित्र ठीक नहीं है. वह पति के अलावा किसी और को प्यार करती है. ऐसी पत्नी खुद अपने पति को गुम करवा सकती है या जान से मरवा सकती है. हमें गुप्त रूप से बबीता के चरित्र की जांचपड़ताल करनी पड़ेगी.’’

”बेशक. यदि बबीता को भनक लगी तो वह सावधान हो जाएगी.’’ प्रभारी अपनी कुरसी छोड़ते हुए बोले. एसीपी अमन यादव भी कुरसी से उठ गए.

कुछ ही देर में उन की जीप खेड़ी कलां में रहने वाले राकेश के घर की तरफ दौड़ रही थी. रास्ते में एसीपी अमन यादव ने साथ चल रही क्राइम ब्रांच की टीम को समझा दिया कि उन्हें किस तरह बबीता के पड़ोसियों से उस के चरित्र की टोह लेनी है.

राकेश के घर का पता पूछते हुए क्राइम ब्रांच की जीप राकेश के घर से पहले ही रुक गई. क्राइम ब्रांच की टीम के लोग जीप से उतर गए. वे सब सादे कपड़ों में थे. वह राकेश के घर के आसपास बबीता के चरित्र की जांच करने के लिए सक्रिय हो गए.

ड्राइवर से क्या खास जानकारी मिली पुलिस को

एसीपी अमन यादव और प्रभारी दीपक कुमार राकेश के दरवाजे पर पहुंच गए. बबीता उन्हें वहां बाहर ही मिल गई. दोनों अधिकारियों को सामने देख कर उस ने तुरंत सिर पर पल्ला ले लिया और आंखों में आंसू भर कर भर्राए स्वर में पूछा, ”कुछ मालूम हुआ साहब, मेरे पति की कोई खबर मिली?’’

”नहीं, अभी तो नहीं. लेकिन हमें विश्वास है कि हम जल्दी राकेश को तलाश कर लेंगे.’’ प्रभारी दीपक कुमार ने बबीता के चेहरे पर नजरें जमा कर गंभीर स्वर में कहा.

”हम यह मालूम करने आए हैं…’’ इस बार एसीपी अमन यादव बोले, ”क्या राकेश की किसी से कोई दुश्मनी थी या उस का गांव में किसी के साथ कभी झगड़ा हुआ था?’’

”नहीं साहब, मेरे पति झगड़ालू नहीं हैं. वह बहुत सीधे और अपने काम से काम रखने वाले हैं.’’ बबीता ने बताया.

”वह बाजार अकेला गया था या कोई और उस के साथ में था?’’

”अकेले ही गए थे साहब.’’

एसीपी अमन यादव और प्रभारी दीपक कुमार ने कुछ और जरूरी सवाल बबीता से किए. राकेश और वह फरीदाबाद में किस स्कूल में नौकरी करते हैं, यह जानकारी ली और जीप में आ कर जीप उन्होंने आगे बढ़ा कर रोक दी. उन के साथ आई क्राइम ब्रांच की टीम के चारों सदस्य भी कुछ ही देर में जीप में आ गए.

”कुछ मालूम हुआ बबीता के बारे में?’’ प्रभारी दीपक ने उन से पूछा.

”बबीता का किसी से अफेयर चल रहा हो, ऐसी तो जानकारी नहीं मिली सर, लेकिन यह जरूर मालूम हुआ है कि राकेश और बबीता के बीच अकसर किसी बात पर झगड़ा होता रहता था. वे किस बात पर झगड़ते थे, यह कोई नहीं जानता.’’ एक सदस्य ने बताया.

”यही मालूम करना होगा, तभी हमें आगे की राह मिलेगी.’’ प्रभारी दीपक कुमार ने गंभीर स्वर में कहा.

”कल स्कूल में चलते हैं, वहां से कुछ जानकारी मिल सकती है.’’ एसीपी अमन यादव ने कहा और सीट के साथ सट कर आंखें बंद कर लीं.

चौबीस घंटे से ऊपर हो गए थे, लेकिन राकेश कुमार का कोई सुराग नहीं लगा था. वह घर वापस नहीं लौटा था. उस का अपहरण किया गया हो, यह बात भी गलत साबित हुई, क्योंकि अपहरण करने वाले की ओर से कोई फिरौती का फोन नहीं आया था.

तीसरे दिन प्रभारी दीपक कुमार और एसीपी अमन यादव ने उस स्कूल में जा कर जानकारी जुटाई, जहां राकेश और बबीता काम करते थे. वहां से एक चौंकाने वाली बात का पता चला. एक स्कूल कर्मचारी ने बताया कि स्कूल में बबीता और बंटी में नजदीकियां थीं. दोनों स्कूल में साथसाथ ही रहते थे, खाना भी वे दोनों एक साथ खाते थे.

चूंकि राकेश स्कूल बस में कंडक्टरी करता था, इसलिए एसीपी अमन यादव ने स्कूल बस के ड्राइवर से बात कर के राकेश के बारे में बहुत कुछ मालूम कर लिया. स्कूल बस का ड्राइवर और राकेश अधिकांश समय साथसाथ ही रहते थे, इसलिए ड्राइवर से राकेश अपने दिल की गोपनीय बातें भी शेयर कर लेता था.

ड्राइवर ने पुलिस को बताया कि राकेश अपनी पत्नी बबीता से इस बात से खफा था कि वह बंटी के साथ हंसहंस कर बातें करती है और उस के आगेपीछे मंडराती रहती है. राकेश बबीता को बंटी के साथ मेलजोल न रखने को कहता था, लेकिन बबीता उस की बात नहीं मानती थी.

ड्राइवर ने बताया कि राकेश बंटी से बहुत खफा था. उस ने एक बार कहा था कि बंटी यदि नहीं माना तो वह उस का खून कर देगा. यह बहुत गहरी बात थी, ऐसा कोई आदमी तभी कह सकता था, जब उसे अपनी पत्नी के बदचलन होने का संदेह हो. पत्नी उस के सामने किसी और के साथ हंसतीबोलती हो.

बंटी को टटोलना अब बहुत जरूरी हो गया था. स्कूल में उस के बारे में पूछा गया तो मालूम हुआ, वह 2-3 दिन से ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. यह क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के संदेह को पुख्ता करने वाली बात थी.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 1

विक्रम से शादी कर दीपिका ससुराल आई तो खुशी से झूम उठी. यहां उस का इतना भव्य  स्वागत होगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.  सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक ससुराल में रस्में चलती रहीं. इस के बाद वह कमरे में आराम करने लगी.

शाम करीब 4 बजे कमरे में विक्रम आया और दीपिका से बोला, ‘‘मेरा एक दोस्त बहुत दिनों से कैंसर से जूझ रहा था. उस के घर वालों ने फोन पर अभी मुझे बताया है कि उस का देहांत हो गया है. इसलिए मुझे उस के घर जाना होगा.’’

दीपिका का ससुराल में पहला दिन था, इसलिए उस ने पति को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन विक्रम उसे यह समझा कर चला गया, ‘‘तुम चिंता मत करो, देर रात तक वापस आ जाऊंगा.’’

विक्रम के जाने के बाद उस की छोटी बहन शिखा दीपिका के पास आ गई और उस से कई घंटे तक इधरउधर की बातें करती रही. रात के 9 बजे दीपिका को खाना खिलाने के बाद शिखा उस से यह कह कर चली गई कि भाभी अब थोड़ी देर सो लीजिए. भैया आ जाएंगे तो फिर आप सो नहीं पाएंगी.

ननद शिखा के जाने के बाद दीपिका अपने सुखद भविष्य की कल्पना करतेकरते कब सो गई, उसे पता ही नहीं चला.

दीपिका अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. उस से 3 साल छोटा उस का भाई शेखर था. वह 12वीं कक्षा में पढ़ता था. पिता की कपड़े की दुकान थी. ग्रैजुएशन के बाद दीपिका ने नौकरी की तैयारी की तो 10 महीने बाद ही एक बैंक में उस की नौकरी लग गई थी.

2 साल नौकरी करने के बाद पिता ने विक्रम नाम के युवक से उस की शादी कर दी. विक्रम की 3 साल पहले ही रेलवे में नौकरी लगी थी. उस के पिता रिटायर्ड शिक्षक थे और मां हाउसवाइफ थीं.  विक्रम से 3 साल छोटा उस का भाई तुषार था, जो 10वीं तक पढ़ने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा था. तुषार से 4 साल छोटी शिखा थी, जो 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

पति के जाने के कुछ देर बाद दीपिका गहरी नींद सो रही थी, तभी ननद शिखा उस के कमरे में आई. उस ने दीपिका को झकझोर कर उठाया. शिखा रो रही थी. रोतेरोते ही वह बोली, ‘‘भाभी, अनर्थ हो गया. विक्रम भैया दोस्त के घर से लौट कर आ रहे थे कि रास्ते में उन की बाइक ट्रक से टकरा गई. घटनास्थल पर उन की मृत्यु हो गई. पापा को थोड़ी देर पहले ही पुलिस से सूचना मिली है.’’

यह खबर सुनते ही दीपिका के होश उड़ गए. उस समय रात के 2 बज रहे थे. क्या से क्या हो गया था. पति की मौत का दीपिका को ऐसा गम हुआ कि वह उसी समय बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद उसे होश आया तो अपने आप को उस ने घर के लोगों से घिरा पाया. पड़ोस के लोग भी थे. सभी उस के बारे में तरहतरह की बातें कर रहे थे. कोई डायन कह रहा था, कोई अभागन तो कोई उस का पूर्वजन्म का पाप बता रहा था.  रोने के सिवाय दीपिका कर ही क्या सकती थी. कुछ घंटे पहले वह सुहागिन थी और कुछ देर में ही विधवा हो गई थी. खबर पा कर दीपिका के पिता भी वहां पहुंच गए थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने विक्रम का शव घर वालों को सौंप दिया था. तेरहवीं के बाद दीपिका मायके जाने की तैयारी कर रही थी कि अचानक सिर चकराया और वह फर्श पर गिर कर बेहोश हो गई. ससुराल वालों ने उठा कर उसे बिस्तर पर लिटाया. मेहमान भी वहां आ गए.

डाक्टर को बुलाया गया. चैकअप के बाद डाक्टर ने बताया कि दीपिका 2 महीने की प्रैग्नेंट है. पर वह बेहोश कमजोरी के कारण हुई थी.

2 सप्ताह पहले ही तो दीपिका बहू बन कर इस घर में आई थी तो 2 महीने की प्रैग्नेंट कैसे हो गई. सोच कर सभी लोग परेशान थे. दीपिका के पिता भी वहीं थे. वह सकते में आ गए.

दीपिका को होश आया तो सास दहाड़ उठी, ‘‘बता, तेरे पेट में किस का पाप है? जब तू पहले से इधरउधर मुंह मारती फिर रही थी तो मेरे बेटे से शादी क्यों की?’’

दीपिका कुछ न बोली. पर उसे याद आया कि रोका के 2 दिन बाद ही विक्रम ने उसे फोन कर के मिलने के लिए कहा था. उस ने विक्रम से मिलने के लिए मना करते हुए कहा, ‘‘मेरे खानदान की परंपरा है कि रोका के बाद लड़की अपने होने वाले दूल्हे से शादी के दिन ही मिल सकती है. मां ने आप से मिलने से मना कर रखा है.’’

विक्रम ने उस की बात नहीं मानी थी. वह हर हाल में उस से मिलने की जिद कर रहा था. तो वह उस से मिलने के लिए राजी हो गई.

शाम को छुट्टी हुई तो दीपिका ने मां को फोन कर के झूठ बोल दिया कि आज औफिस में बहुत काम है. रात के 8 बजे के बाद ही घर आ पाऊंगी. फिर वह उस से मिलने के लिए एक रेस्टोरेंट में चली गई. उस दिन के बाद भी उन के मिलनेजुलने का कार्यक्रम चलता रहा. विक्रम अपनी कसम दे दे कर उसे मिलने के लिए मजबूर कर देता था. वह इतना अवश्य ध्यान रखती थी कि घर वालों को यह भनक न लगे.

एक दिन विक्रम उसे बहलाफुसला कर एक होटल में ले गया. कमरे का दरवाजा बंद कर उसे बांहों में भरा तो वह उस का इरादा समझ गई. दीपिका ने शादी से पहले सीमा लांघने से मना किया लेकिन विक्रम नहीं माना. मजबूर हो कर उस ने आत्मसमर्पण कर दिया.

गलती का परिणाम अगले महीने ही आ गया. जांच करने पर पता चला कि वह प्रैग्नेंट हो गई है. विक्रम का अंश उस की कोख में आ चुका था. वह घबरा गई और उस ने विक्रम से जल्दी शादी करने की बात कही.

‘‘देखो दीपिका, सारी तैयारियां हो चुकी हैं. बैंक्वेट हाल, बैंड वाले, बग्गी आदि सब कुछ तय हो चुके हैं. एक महीना ही तो बचा है. घर वालों को सच्चाई बता दूंगा तो तुम ही बदनाम होगी. तुम चिंता मत करो. शादी के बाद मैं सब संभाल लूंगा.’’

जब सास उसे तरहतरह के ताने देने लगी तो दीपिका ने आखिर चुप्पी तोड़ दी. उस ने सभी के सामने सच्चाई बता दी. पर उस का सच किसी ने स्वीकार नहीं किया. सभी ने उस की कहानी मनगढ़ंत बताई.

आखिर अपने सिर बदचलनी का इलजाम ले कर दीपिका मातापिता के साथ मायके आ गई.  वह समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करे. भविष्य अंधकारमय लग रहा था. होने वाले बच्चे की चिंता उसे अधिक सता रही थी.