
आखिर एक दिन राजकुमारी ने तय किया कि वह पति को प्यार से समझाने की कोशिश करेगी. उस दिन उस ने अपने पति की पसंद का खाना बनाया. शाम को जब देशराज घर लौटा तो उस ने कहा, ‘‘हाथमुंह धो लो और खाना खा लो. आज मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’’
देशराज गुसलखाने में घुस गया. नहाधो कर बाहर आते ही बोला, ‘‘मैं आज खाना नहीं खाऊंगा. मुझे कहीं जाना है.’’
‘‘लेकिन तुम ने यह बात मुझे सुबह तो बताई नहीं. मैं ने जब खाना बना लिया तो तुम खाने से मना कर रहे हो.’’
‘‘बनाया है तो तुम्हीं खा लो.’’ कह कर देशराज घर से बाहर निकल गया. पति की इस उपेक्षा ने राजकुमारी को तोड़ कर रख दिया. वह देर तक रोती रही.
देशराज रात भर घर से बाहर रहा. राजकुमारी चारपाई पर पड़ी करवटें बदतली रही और रोती रही. उसे अपनी बेचारगी का अहसास भी हो रहा था. उसी दौरान दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने कुंडी खोली तो सामने पति खड़ा था. उसे देखते ही वह बोली, ‘‘रात भर भाभी के पास रहे होगे?’’
‘‘हां, मैं वहीं था. अब बता तू क्या कर लेगी मेरा.’’ देशराज ने गुस्से में कहा.
कड़वा सच सुन कर राजकुमारी कुछ न बोली, क्योंकि अगर वह कुछ कहती तो देशराज उस की पिटाई कर देता. दोपहर के समय वह बड़ी जेठानी अविता के घर गई तो उसे पता चला कि दोनों जेठ अवधेश और शिवराज पड़ोस के किसी गांव गए हुए थे.
राजकुमारी की समझ में आ गया कि भाई की गैरमौजूदगी में देशराज रात भर भाभी के साथ रहा होगा. यह जान कर उस का खून खौलने लगा. तभी उसे एक झटका और लगा, जब अविता ने बताया कि प्रियंका गर्भवती है.
राजकुमारी को अब पक्का यकीन हो गया कि प्रियंका के गर्भ में देशराज का ही बच्चा है. यह बात उसे बरछी की तरह चुभी. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि अब उसे कुछ नहीं सहना, चाहे इस के लिए उसे कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े और मन ही मन उस ने एक योजना बना ली.
अपनी योजना को साकार करने के लिए प्रियंका का विश्वास हासिल करना जरूरी था. अत: एक दिन वह प्रियंका के घर जा पहुंची. उसे देख कर प्रियंका चौंकी. उस ने पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे?’’
‘‘अरे दीदी मुझे पता चला कि तुम्हें बच्चा होने वाला है तो सोचा कि तुम्हारी कुछ मदद कर दिया करूं.’’
प्रियंका को राजकुमारी के इस व्यवहार पर हैरानी हुई. वह बोली, ‘‘तुम परेशान मत हो. सब ठीक है, तुम मेरी छोटी बहन की तरह हो. मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम्हें गुस्सा नहीं करना चाहिए.’’
‘‘हां दीदी, मैं ही गलत थी. बेकार ही अलग हो गई. हम साथसाथ रहते तो अच्छा होता. खैर अब अलग तो हो ही गए हैं, पर आपस में मिलजुल कर रहने में हर्ज ही क्या है.’’ कह कर राजकुमारी ने खूनी नजरों से प्रियंका को देखा. राजकुमारी वहां थोड़ी देर बैठ कर चली गई.
10 जुलाई को गांव में एक गमी हो गई. अवधेश और शिवराज वहीं गए हुए थे. देशराज काम पर गया हुआ था. उसी समय राजकुमारी प्रियंका के घर गई और बातों ही बातों में वह उसे अपने घर बुला लाई. वह प्रियंका से बातें करने लगी. प्रियंका राजकुमारी के मन से अनजान थी. उसे मौत की दस्तक भी सुनाई नहीं दी. बातें करतेकरते उस ने पास रखी कुल्हाड़ी उठाई और प्रियंका के सिर पर दे मारी.
सिर पर कुल्हाड़ी का वार होते ही प्रियंका लुढ़क गई. सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. कुछ देर तड़पने के बाद प्रियंका का शरीर शांत हो गया. राजकुमारी को जब विश्वास हो गया कि वह मर चुकी है तो उसे तसल्ली हुई. फिर सारे कमरे को लीप कर खून के निशान मिटा दिए.
शाम के समय देशराज घर लौटा तो उस ने कहा, ‘‘बेटा ऊपर है, उसे जगाओ मैं खाना वहीं लाती हूं. देशराज चुपचाप ऊपर चला गया. राजकुमारी भी वहीं खाना ले कर पहुंच गई. खाना खाने के बाद वह सोने की तैयारी करने लगे, तभी शिवराज ने आवाज दी. राजकुमारी ने दरवाजा खोला. शिवराज ने पूछा, ‘‘यहां प्रियंका आई है क्या?’’
‘‘नहीं, वह तो शाम को थैले में कपड़े डाल कर कहीं जा रही थीं.’’ राजकुमारी की बात सुन कर शिवराज परेशान हो गया कि बेटी को घर में छोड़ कर वह कहां चली गई? ऐसे तो कहीं नहीं जाती थी. उस ने उसी समय अपनी ससुराल फोन किया. पता चला कि वहां भी नहीं पहुंची थी.
रात में कुछ नहीं हो सकता, यह सोच कर शिवराज घर चला गया. पूरी रात चिंता में कटी. लेकिन सुबह उठते ही गांव में होहल्ला हो गया. शिवराज के घर से कुछ दूरी पर गड्ढे में एक औरत के पैर दिखाई दे रहे थे. शिवराज का दिल धड़कने लगा, कहीं प्रियंका तो नहीं… देशराज भी वहां पहुंचा. तब तक किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था.
कुछ ही देर में थाना किशनी के थानाप्रभारी भूपेंद्र शर्मा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. कुछ ही देर में पुलिस क्षेत्राधिकारी रामानंद कुशवाहा भी वहां पहुंच गए. पुलिस के आदेश पर गड्ढे की मिट्टी हटाई गई तो उस में प्रियंका की लाश निकली. बीवी की लाश देख कर शिवराज दहाड़े मार कर रोने लगा और देशराज डरा सहमा एक ओर जा खड़ा हुआ.
देशराज ने कुछ सोचा और घर की तरफ गया. लेकिन घर से राजकुमारी गायब थी. अब उस की समझ में सब कुछ आ गया. वह वापस शिवराज के पास आ गया और उसे बताया कि राजकुमारी गायब है. पुलिस ने शिवराज से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी की हत्या उस के छोटे भाई की बीवी राजकुमारी ने की है और वह फरार हो गई है.
पुलिस देशराज के घर पहुंची. वहां ताला लगा हुआ था. वहां खून के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. लाश की शिनाख्त हो चुकी थी. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. दोनों भाइयों को पुलिस पूछताछ के लिए थाने ले आई. इस बीच प्रियंका का पिता वीरेंद्र भी थाने आ पहुंचा. उस ने भादंवि की धारा 302, 316, 201 के तहत राजकुमारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.
पुलिस ने तफ्तीश की तो पता चला कि देशराज और प्रियंका के बीच लंबे समय से अवैध संबंध थे. लेकिन यह बात गले नहीं उतर रही थी कि अकेली औरत हत्या कर के प्रियंका को गड्ढे तक कैसे ले आई और उस ने अकेले ही कैसे दफना दिया? पुलिस की एक टीम राजकुमारी की तलाश में उस के मायके के लिए रवाना हुई. लेकिन राजकुमारी रास्ते में ही मिल गई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आई.
पूछताछ के दौरान राजकुमारी ने कुबूल किया कि प्रियंका की हत्या उस ने ही की थी. प्रियंका ने उस के वैवाहिक जीवन को उजाड़ कर रख दिया था. इसी मजबूरी के चलते उस ने इस खतरनाक योजना को अंजाम दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि प्रियंका 7 माह की गर्भवती थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने राजकुमारी को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
पति के मुंह से देवर की शादी की बात सुन कर प्रियंका को कुछ खटका सा हुआ. लेकिन वह बोली कुछ नहीं. उधर शिवराज ने पत्नी से कुछ कहने के बजाए नजर रखने लगा. प्रियंका को इस बात का अहसास हो गया तो उस ने भी देवर से मिलने में एहतियात बरतनी शुरू कर दी.
रात को पति के सो जाने के बाद वह देशराज के पास आ जाती और मौजमस्ती करती. देशराज अपनी सारी कमाई प्रियंका के हाथ पर ही रखता था. शिवराज भाई के लिए अच्छा रिश्ता देखने लगा.
एक दिन प्रियंका ने देशराज से कहा, ‘‘जल्दी ही तुम्हारी शादी हो जाएगी, तब तुम मुझे भूल जाओगे?’’
‘‘यह कैसी बातें कर रही हो भाभी? मेरी शादी भले ही हो जाए, लेकिन तुम से मैं वादा करता हूं कि मैं हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’’
उसी बीच देशराज की शादी के लिए जिला मैनपुरी के गांव चितायन से एक रिश्ता आया. चितायन के रहने वाले रामअवतार ने अपनी सब से छोटी बेटी राजकुमारी की शादी देशराज से करने की बात शिवराज से की. राजकुमारी हाईस्कूल पास कर चुकी थी. शिवराज को रिश्ता पसंद आया और दोनों तरफ से बात होने के बाद निश्चित तिथि पर राजकुमारी और देशराज की शादी हो गई.
शादी के बाद राजकुमारी ससुराल आ गई, लेकिन सुहागरात को खुशी की बजाय उस की आंखों से आंसू ही बहे. हुआ यह कि सुहागसेज पर बैठी राजकुमारी पति के कमरे में आने का इंतजार करती रही, लेकिन देशराज अपनी नईनवेली दुलहन के पास पहुंचा नहीं. सुबह 4-5 बजे राजकुमारी की नींद टूटी तो भी उसे कमरे में पति दिखाई न दिया. उसी दौरान उसे जेठानी के कमरे से पति और जेठानी की हंसीठिठोली की आवाज सुनाई दी.
राजकुमारी भी कोई नादान नहीं थी. वह समझ गई कि पति का भाभी के साथ चक्कर है. तभी तो सुहागरात को भी पत्नी के बजाय वह भाभी के साथ मौजमस्ती कर रहा है. थोड़ी देर बाद देशराज जब अपने कमरे में पहुंचा तो उस ने पत्नी को सुबकते हुए देखा. वह बोला, ‘‘तुम रो रही हो? क्या हुआ?’’
‘‘तुम यह बताओ कि रात भर कहां थे?’’ राजकुमारी ने पूछा.
‘‘मैं यहीं भाभी से बातें कर रहा था. जब मैं कमरे में आया तो तुम सो रही थी. मैं ने सोचा कि तुम थक गई होगी, इसलिए जगाया नहीं.’’ कह कर देशराज ने तौलिया उठाई और गुसलखाने में घुस गया.
राजकुमारी को पति का रवैया कुछ अजीब सा लगा. वह पति से बहस कर के बात को बढ़ाना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने खुद को समझाया और मन को शांत किया. दिन धीरेधीरे गुजरा. घर पर जो नजदीकी मेहमान थे, वे भी घर से विदा हो गए.
शाम का खाना खा कर राजकुमारी अपने कमरे में थी, तभी प्रियंका और देशराज भी वहां पहुंच गए. प्रियंका देर तक राजकुमारी के पास बैठी रही. आखिर तंग आ कर राजकुमारी ने कहा, ‘‘भाभी मुझे नींद आ रही है.’’
राजकुमारी 4 दिनों तक ससुराल में रही. इन 4 दिनों में उस ने महसूस किया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. फिर पिता उसे विदा करा कर ले गए.
मायके आने पर उस ने मां को जब सारी बात बताई तो मां ने कहा, ‘‘बेटा, तुझे कुछ वहम हो गया है. देवरभाभी में प्यार होना कोई हैरानी की बात नहीं है. तू एक समझदार और पढ़ीलिखी लड़की है. अपने परिवार को बिखरने न देना.’’
कुछ दिनों बाद वह पति के साथ फिर ससुराल आ गई. इस बार उस ने तय किया कि वह सच्चाई का पता लगा कर रहेगी. इसलिए उस ने पति और जेठानी पर नजर रखनी शुरू कर दी. काम से आने के बाद देशराज सीधा भाभी के कमरे में जाता और सारी कमाई उस के हाथ पर रख देता था.
राजकुमारी को यह सब अच्छा नहीं लगा. उस ने पति से कहा, ‘‘तुम्हारी कमाई पर मेरा हक है, किसी और का नहीं. अब जो भी कमा कर लाओगे मुझे देना, किसी और को नहीं.’’
प्रियंका ने देवरानी की यह बात सुन ली थी. लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई.
‘‘लेकिन भाभी क्या सोचेंगी?’’ देशराज ने कहा.
‘‘वह जो भी सोचती हैं, सोचती रहें. हमारा परिवार बढ़ेगा, खर्चे बढ़ेंगे तो हम किस से मांगेंगे?’’
प्रियंका समझ गई कि राजकुमारी तेज दिमाग की है. उस के सामने उस की दाल अब नहीं गलेगी. इसलिए उस ने देशराज को समझा दिया कि अब मिलने में होशियारी बरती जाए.
राजकुमारी अब काफी सतर्क हो गई थी. जिस से देशराज और प्रियंका परेशान से रहने लगे. घर में भी तनाव रहने लगा. देशराज गुस्से में कभीकभी राजकुमारी की पिटाई करने लगा.
राजकुमारी गर्भवती हो गई तो देशराज और प्रियंका को मिलने का मौका मिल गया. लेकिन राजकुमारी ने पति और जेठानी को रंगेहाथों पकड़ लिया. पोल खुलने पर देशराज और प्रियंका के होश उड़ गए. देशराज ने पत्नी से माफी मांगी और उसे भरोसा दिलाया कि आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.
प्रियंका ने भी उस से अनुरोध किया कि यह बात वह किसी को न बताए. राजकुमारी का शक सही साबित हुआ. उस समय समझदारी दिखाते हुए उस ने कोई शोरशराबा नहीं किया, शाम को शिवराज घर लौटा तो उस ने उस से कहा, ‘‘जेठजी, मैं अब इस घर में नहीं रह सकती. आप हमें अलग कर दें.’’
‘‘यह क्या कह रही हो तुम, यहां तुम्हें कोई परेशानी है?’’ शिवराज ने कहा तो राजकुमारी बोली, ‘‘आप को तो पता नहीं कि घर में क्या हो रहा है? पर जो मैं देख रही हूं, उस का अंजाम अच्छा नहीं हो सकता. इसलिए मैं अलग होना चाहती हूं.’’
शिवराज राजकुमारी का इशारा समझ गया. इस के बाद उस ने घर का बंटवारा कर दिया. राजकुमारी ने राहत की सांस ली. उस ने सोचा कि अब देशराज का भाभी के पास आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के पेट में पल रहा बच्चा 8 महीने का हो चुका था. ऐसे में राजकुमारी को देखभाल की ज्यादा जरूरत थी, लेकिन ससुराल में अब वह अकेली थी. घर के काम करने में उसे परेशानी हुई तो वह मायके चली गई. उस ने पति और जेठानी के अवैध संबंधों की बात मां से भी बता दी.
मां ने उसे फिर समझाया कि वह देशराज को समझाए. लेकिन राजकुमारी के मन में जेठानी के प्रति नफरत भर चुकी थी.
राजकुमारी ने मायके में ही बेटे को जन्म दिया. वहां कुछ दिन रहने के बाद वह ससुराल चली आई. वह बड़ी जेठानी अविता से मिली और उन्हें प्रियंका की बदचलनी की बात बताई. अविता ने भी प्रियंका को काफी समझाया, लेकिन उस ने देशराज से मिलना बंद नहीं किया.
राजकुमारी धीरेधीरे निराश होने लगी. अपने वैवाहिक जीवन में उस ने जिस सुख की कल्पना की थी, वह पति और जेठानी की वासना की ज्वालामुखी में खाक हो चुका था. न तो उसे अपने मायके से कोई राहत मिल रही थी और न ही ससुराल से. देशराज भाभी के खिलाफ एक शब्द सुनने को तैयार नहीं था. नतीजतन आए दिन घर में झगड़ा होने लगा. रोजाना के झगड़े को देख कर मोहल्ले के लोग यही सोचने लगे कि राजकुमारी एक तेजतर्रार और लड़ाकू औरत है.
लवली पति से अलग अकेली रहने लगी तो उस के दोस्तों की संख्या लगातार बढ़ने लगी. पत्नी की इन हरकतों से सुरेंद्र परेशान रहने लगा था. लेकिन अपने दिल का दर्द किसी से कह नहीं सकता था. घर वालों ने भी कह दिया था कि उस ने जैसा किया है, वही भोगे. यह भी सच है कि जो औरत एक बार पति और बच्चों को छोड़ सकती है, परिस्थिति बनने पर उसे दूसरे पति और बच्चों को छोड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी.
सुरेंद्र तनाव में रहने लगा था, क्योंकि उस की परेशानी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थी. इस की एक वजह यह भी थी कि लवली के पास जिन लोगों का आनाजाना था, वे रसूखदार लोग थे. अब सुरेंद्र लवली से डरने लगा था. इसी चिंता में वह शराब पीने लगा. सुरेंद्र जब भी लवली से मिलने मीरगंज जाता. दोनों का झगड़ा जरूर होता. तब बच्चे मां का ही पक्ष लेते.
पत्नी और बच्चों की इन हरकतों से वह महसूस करता कि सब कुछ होते हुए भी उस के पास कुछ नहीं है. उसे चिंता बच्चों की थी. उसे लगता था कि अगर यही हाल रहा तो उस के बच्चे बरबाद हो जाएंगे. इसलिए बच्चों का हवाला दे कर भी उस ने लवली को समझाने की कोशिश की थी, इस पर भी वह नहीं मानी थी.
लवली मीरगंज में रहती थी, जबकि सुरेंद्र गांव में रहता था. सुरेंद्र के भाइयों ने उसे सलाह दी कि अगर उसे अपनी पत्नी और बच्चों पर कंट्रोल रखना है तो वह उन के साथ रहे. घर वालों की यह सलाह सुरेंद्र को उचित लगी. उस ने तय किया कि वह जमीन बेच कर मीरगंज में मकान बनवा ले और उसी में पत्नी और बच्चों के साथ रहे.
उसी बीच लवली की दोस्ती मुगरा मोहल्ले से जुड़े मोहल्ला शिवपुरी के रहने वाले 20 वर्षीय शिब्बू उर्फ शिवम से हो गई. शिवम के पिता की मौत हो चुकी थी, जो तहसील मिलक के सरकारी अस्पताल में नौकरी करते थे. पिता की मौत के बाद मृतक आश्रित कोटे में उसे वार्डब्याय की नौकरी मिल गई थी.
लवली नर्स थी, जबकि शिवम वार्डब्वाय इसी आधार पर दोनों की जानपहचान हो गई थी. उन का मिलनाजुलना होने लगा तो एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. घर आनेजाने में ही दोनों में नाजायज संबंध बन गए. जबकि दोनों की उम्र में जमीन आसमान का अंतर था. लवली 40 साल की थी तो शिवम 20 साल का.
सुरेंद्र ने अपनी एक जमीन 13 लाख रुपए में बेच कर मीरगंज की टीचर कालोनी में 7 लाख रुपए में एक प्लौट खरीद कर बाकी बचे पैसों से मकान बनवाना शुरू कर दिया. लवली समझ गई कि मकान बन जाने के बाद उसे सुरेंद्र के साथ ही रहना पड़ेगा. तब उसे शिवम से मिलने में परेशानी होगी. जबकि लवली अब शिवम के बिना नहीं रह सकती थी.
सुरेंद्र को लवली के नए दोस्त शिवम के बारे में पता नहीं था. लेकिन मकान बनवाने के दौरान उस ने शिवम को लवली के कमरे पर आतेजाते देखा तो उस के बारे में पूछा. लवली ने ऐसे ही कह दिया, ‘‘लड़का ही तो है. आ जाता है तो इस में परेशानी क्या है?’’
सुरेंद्र को लगा कि जब सभी एक साथ रहने लगेंगे तो सब ठीक हो जाएगा, लेकिन यह सुरेंद्र की भूल थी, क्योंकि लवली कुछ और ही सोच रही थी. एक बार फिर बहक चुकी लवली अब किसी भी कीमत पर पति की बंदिशों में नहीं रहना चाहती थी. लेकिन उसे यह भी पता था कि सुरेंद्र के पैसे और मकान पर उसे तभी हक मिलेगा, जब वह उस के साथ रहे.
फिर तो जल्दी ही वह यह सोचने लगी कि अगर सुरेंद्र नाम का यह कांटा निकल जाए तो वह आजाद भी हो जाएगी और इस की सारी प्रौपर्टी भी उस की हो जाएगी. इस के बाद उस ने अपने नए प्रेमी शिवम से बात कर के सुरेंद्र को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसे पैसे का लालच तो दिया ही था, साथ ही यह भी कहा था कि सुरेंद्र के न रहने पर वे दोनों चैन से एक साथ रह सकेंगे.
सुरेंद्र को ठिकाने लगाना शिवम के अकेले के वश का नहीं था. मदद के लिए उस ने अपने दोस्तों ललित और सनी से बात की. दोस्ती की खातिर वे दोनों भी उस की मदद के लिए तैयार हो गए. ललित मीरगंज के ही रहने वाले धाकनलाल का बेटा था तो सनी मिलक के रहने वाले छतरपाल का.
सुरेंद्र अपने बन रहे नए मकान पर ही रहता था. ऐसे में उसे ठिकाने लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था. वह रोजाना शराब पीता ही था. इसलिए उसे मारना और आसान था. सुरेंद्र ने सपने में भी नहीं सोचा था कि लवली उस की हत्या भी करवा सकती है, इसलिए वह निश्चिंत था. 25 अक्तूबर की रात उस का खाना ले कर लवली आई. सुरेंद्र ने शराब पी कर खाना खाया. लवली ने भी उस के साथ ही खाना खाया था. काफी रात तक वह उस के साथ बातें करती रही. सुरेंद्र को नींद आने लगी तो वह कमरे पर आ गई.
सुबह सुरेंद्र के मकान पर काम करने वाले मिस्त्री और मजदूर आए तो पता चला कि सुरेंद्र की मौत हो गई. किसी ने पुलिस को खबर कर दी तो थोड़ी ही देर में चौकी इंचार्ज राजू राव आ पहुंचे. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. उस के गले पर दबाए जाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. इस का मतलब था कि उस की गला घोंट कर हत्या की गई थी.
चौकीइंचार्ज राजू राव ने घटना की सूचना थानाप्रभारी जितेंद्र कौशल को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जितेंद्र कौशल भी क्षेत्राधिकारी धर्म सिंह के साथ आ पहुंचे. सुरेंद्र की हत्या की सूचना पत्नी और भाइयों को भी मिल चुकी थी. भाइयों ने आते ही कहा था कि उस के भाई की हत्या उस की पत्नी लवली ने ही कराई है.
लवली भी वहां मौजूद थी. उस के हावभाव से साफ लग रहा था कि उसे पति की हत्या का कोई गम नहीं है. उस की आंखों में आंसू भी नहीं थे. यह सब देख कर पुलिस को मृतक सुरेंद्र के भाइयों की बात सच लगी. पुलिस ने सुरेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी और लवली को साथ ले कर थाने आ गई.
पूछताछ में लवली यही कहती रही कि उसे कुछ नहीं पता. रात में वह उसे खाना खिला कर अच्छाभला छोड़ कर आई थी. सुरेंद्र के भाई हरपाल सिंह द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर पुलिस ने अपराध संख्या 655/2013 पर सुरेंद्र की हत्या का मुकदमा लवली और उस के अज्ञात साथियों के खिलाफ दर्ज कर लिया था.
हत्या के इस मामले की जांच चौकी इंचार्ज राजू राव को सौंपी गई. उन्हें अपने मुखबिरों से पता चला कि इधर कुछ दिनों से शिवपुरी का रहने वाला शिवम का लवली के यहां कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. इस के बाद लवली के मोबाइल की काल डिटेल्स चैक की गई तो उस में आखिरी फोन शिवम का था. यह फोन उसी रात किया गया था, जिस रात सुरेंद्र की हत्या हुई थी.
लवली से शिवम के बारे में पूछा गया तो उस ने उस के बारे में भी कुछ नहीं बताया. तब पुलिस ने शिवम को उस के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर 26 अक्तूबर को बरेली के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. शिवम को गिरफ्तार कर के थाने लाया गया तो वहां लवली को देख कर वह समझ गया कि अब सारा खेल खत्म हो चुका है. इसलिए बिना किसी हीलाहवाली के उस ने लवली के साथ के अपने अवैध संबंधों को स्वीकार करते हुए सुरेंद्र की हत्या की पूरी कहानी बता दी.
शिवम ने कहा, ‘‘लवली के कहने पर ही मैं ने अपने दोस्तों ललित और सनी की मदद से गला दबा कर सुरेंद्र की हत्या की थी. पुलिस ने शिवम की निशानदेही पर ललित और सनी के घरों पर छापा मार कर गिरफ्तार करना चाहा. लेकिन वे फरार हो चुके थे. इस के बाद पुलिस ने लवली और शिवम को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. थाना मीरगंज पुलिस ललित और सनी की तलाश कर रही है. कथा लिखे जाने तक दोनों पुलिस के हाथ नहीं लगे थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के रहने वाले शिवराज सिंह और देशराज सिंह में काफी प्यार था. दोनों भाई मकान बनवाने का ठेका लेते थे. उन का संयुक्त परिवार था. देशराज अविवाहित और शिवराज शादीशुदा. शादी के बाद शिवराज की पत्नी प्रियंका ने एक बेटी को जन्म दिया. जिस का नाम सुजाता रखा गया.
देशराज की अपनी भाभी प्रियंका से खूब पटती थी. देवरभाभी में हलकी फुलकी मजाक भी होती रहती थी. भाभी होने के नाते प्रियंका उस की बातों का बुरा भी नहीं मानती थी. शिवराज सीधासादा था, जबकि देशराज तेजतर्रार और दबंग था. वह बनठन कर रहता था, इसलिए प्रियंका को अच्छा लगता था. प्रियंका को जब कभी बाजार या और कहीं जाना होता तो वह अपने साथ देशराज को ही ले जाती थी.
देवर भाभी के इस तरह साथ रहने से कभीकभी शिवराज को शक होता तो मजाकिया लहजे में वह कह देती, ‘‘बड़े ईर्ष्यालु हो तुम. छोटे भाई की खुशी बरदाश्त नहीं होती? अरे, जैसे वह तुम्हारा छोटा भाई है, वैसे ही मेरा भी छोटा भाई है.’’
शिवराज सोचता कि शायद प्रियंका सही कह रही है. उसे क्या पता था कि उस का यह विश्वास आगे चल कर कोई बड़ी मुसीबत बन जाएगा.
देशराज का भाभी के प्रति झुकाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. इस बात को प्रियंका महसूस कर रही थी. भाभी को लुभाने के लिए देशराज आए दिन उस की पसंद की खानेपीने की चीजें और उपहार भी लाने लगा.
प्रियंका ने मना किया तो देशराज ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘भाभी ये तो मामूली बातें हैं, मैं तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकता हूं. किसी दिन कह कर तो देखो.’’
इस पर प्रियंका ने उसे चौंक कर देखा. तभी देशराज ने ठंडी आह भरते हुए कहा, ‘‘भाभी क्या कहूं, तुम तो मेरी ओर ध्यान ही नहीं देती हो.’’
‘‘अरे मेरे ऊपर तुम यह कैसा इलजाम लगा रहे हो. देखो मैं तुम्हें खाना बना कर देती हूं, तुम्हारे कपड़े धोती हूं, अब और क्या चाहिए तुम्हें.’’
देशराज ने प्रियंका के पास आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस के द्वारा अकेले में हाथ पकड़ने से प्रियंका सिहर उठी. वह अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो? क्या चाहते हो?’’
‘‘भाभी, तुम्हारी चंचलता और खूबसूरती ने मुझे बेचैन कर रखा है. मैं तुम्हारे करीब आना चाहता हूं.’’
‘‘देखो देशराज, अब तुम जाओ. मुझे घर के और भी काम करने हैं.’’
‘‘मैं जा तो रहा हूं लेकिन सीधेसीधे पूछना चाहता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो या नहीं?’’
देशराज वहां से चला तो गया, लेकिन उस की बातों और अहसासों ने प्रियंका को सोचने के लिए मजबूर कर दिया. देशराज ने भी जज्बातों में आ कर प्रियंका को अपने प्यार का अहसास करा दिया था, लेकिन बाद में उसे इस बात का डर लगा था कि कहीं भाभी यह बात भैया से न कह दे.
रात को प्रियंका और देशराज अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए लेकिन दोनों की ही आंखों में नींद नहीं थी. देशराज को डर सता रहा था तो प्रियंका के दिमाग में देवर की कही बातें घूम रही थीं. लेटे ही लेटे वह पति की तुलना देवर से करने लगी. उस का पति शिवराज काम से थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर जल्दी ही खर्राटे लेने लगता. उस की तरफ अब वह पहले की तरह बहुत ध्यान नहीं दे रहा था.
अकसर भाभी से चुहलबाजी करने वाला देशराज अगले दिन उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. इस बात को प्रियंका महसूस भी कर रही थी. शिवराज के जाने के बाद देशराज भी जाने लगा तो प्रियंका ने कहा, ‘‘तुम रुको देशराज, आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है, तुम मेरे साथ डाक्टर के यहां चलना.’’
‘‘भाभी, आज मुझे भी जल्दी जाना है, इसलिए तुम अकेली ही चली जाओ,’’ कह कर देशराज जब घर से निकलने लगा तो प्रियंका उस का हाथ पकड़ कर कमरे में ले आई. देशराज डर रहा था कि भाभी अकेले में अब उसे डांटेगी. उस ने अपना चेहरा नीचे कर रखा था. प्रियंका बोली, ‘‘कल तुम बड़ीबड़ी बातें कर रहे थे, लेकिन तुम तो बहुत डरपोक निकले. प्यार करने वाले अंजाम की चिंता नहीं करते.’’
यह सुन कर देशराज का डर थोड़ा कम हुआ. वह अचंभे से भाभी की तरफ देखने लगा. प्रियंका आगे बोली, ‘‘देशराज, तुम्हारी बातों ने मेरे ऊपर ऐसा असर किया है कि रात भर मैं तुम्हारे ही खयालों में बेचैन रही. मुझे भी तुम से प्यार हो गया है. लेकिन मेरे सामने एक समस्या है. मैं शादीशुदा हूं, इसलिए इस बात से डर रही हूं कि अगर तुम्हारे भैया को पता चल गया तो क्या होगा? वह तो मुझे घर से ही निकाल देंगे.’’
‘‘भाभी, मैं हूं न. मेरे होते हुए तुम्हें कोई कुछ नहीं कह सकता.’’ देशराज ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा तो प्रियंका ने उस के भरेपूरे जिस्म को गौर से देखा और सीने से लग गई. देशराज ने भी उसे अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. उन के कदम गुनाह की तरफ बढ़ गए और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.
उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया. शिवराज के काम पर जाने के बाद देशराज किसी न किसी बहाने घर पर रुक जाता और भाभी के साथ मौजमस्ती करता. देशराज अकसर घर में भाभी के साथ रहने लगा तो पड़ोसियों को शक होने लगा. सब सोचने लगे कि दाल में कुछ काला जरूर है.
गलत काम की खबरें जल्दी फैलती हैं, इसलिए मोहल्ले भर में यह खबर फैल गई कि प्रियंका का अपने देवर के साथ चक्कर चल रहा है. मगर शिवराज को इस बात की भनक तक न लगी. वह तो कमाई में ही लगा रहता था.
एक दिन एक शुभचिंतक ने शिवराज से कहा, ‘‘शिवराज, तुम कभी अपने घर की तरफ भी ध्यान दे दिया करो. तुम्हें पता नहीं कि तुम्हारे घर में क्या चल रहा है? अब बेहतर यही होगा कि तुम देशराज की शादी कर दो.’’
यह सुन कर शिवराज सन्न रह गया. वह अपने भाई को सीधासादा समझता था. और तो और देशराज उस के सामने ऊंची आवाज में बात तक नहीं करता था. एक बार तो उसे भाई के बारे में कही बात पर विश्वास नहीं हुआ.
वह घर पहुंचा तो देशराज घर पर ही मिला. छूटते ही उस ने कहा, ‘‘दिनभर घर में चारपाई तोड़ना अच्छा लगता है क्या? कल से मेरे साथ ही काम पर चलना. चार पैसे कमाएगा तो तेरी शादी में ही काम आएंगे. मैं तेरी जल्दी ही शादी कराना चाहता हूं.’’
सुरेंद्र के लिए यह सुनहरा मौका था. घर में लवली अकेली रह गई थी. अब वह उस से कुछ भी कह सकता था और उस की इच्छा होने पर उस के साथ कुछ भी कर सकता था. गांव में सुरेंद्र को ही डा. बिस्वास अपना सब से करीबी मानता था, इसलिए पत्नी और बच्चों की जिम्मेदारी उसे ही सौंप गया था.
इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए सुरेंद्र ने लवली के पास आ कर कहा था, ‘‘किसी भी चीज की जरूरत हो, बेझिझक कहना.’’
लवली ने एक आंख दबा कर कहा, ‘‘डा. साहब तो गांव जा रहे हैं. अब हमें अपनी सभी जरूरतें तुम्हें ही बतानी पड़ेंगी.’’
सुबह सुरेंद्र ने क्लिनिक खुलवाई तो रात को बंद भी उसी ने करवाई. क्लिनिक बंद करा कर वह जाने लगा तो लवली ने कहा, ‘‘रुको, खाना खा कर जाना. वैसे भी अकेली बोर हो रही हूं.’’
बच्चे खा कर जल्दी ही सो गए थे. उस के बाद लवली और सुरेंद्र ने खाना खाया. इस बीच दोनों दुनिया जहान की बातें करते रहे. कामों से फुरसत हो कर लवली सुरेंद्र के पास आई तो उस ने उसे बांहों में भर लिया. तब लवली ने कहा, ‘‘सुरेंद्र, तुम तो जानते ही हो कि मैं शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों की मां भी हूं. तुम्हारा यह प्यार मेरे शरीर तक तो ही सीमित नहीं रहेगा?’’
‘‘मैं तुम्हारे शरीर से नहीं, तुम से प्यार करता हूं. मैं तुम्हें वही इज्जत दूंगा, जो एक पत्नी को मिलती है. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें तो पता ही है कि मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है.’’ सुरेंद्र ने कहा.
‘‘क्या तुम मुझ से विवाह करोगे?’’
‘‘क्यों नहीं. मैं ने तुम से प्यार किया है तो विवाह भी करूंगा.’’ कह कर सुरेंद्र ने अपने प्यार की मुहर लवली के कपोलों पर लगा दी. सुरेंद्र की मजबूत बांहों में लवली पिघलने लगी थी. वह भी उस से लिपट गई. तब उस ने न पति के बारे में सोचा, न बच्चों के बारे में.
डा. विश्वास के वापस आतेआते उस की गृहस्थी में सेंध लग चुकी थी. दोस्त और पत्नी ने डा. बिस्वास के विश्वास को खत्म कर दिया था. डाक्टर तो अपने काम में लगा रहता था, ऐसे में लवली को प्रेमी से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. दोनों दिन में न मिल पाते तो रात में डाक्टर के सो जाने के बाद मिल लेते थे.
सुरेंद्र और लवली का यह संबंध ज्यादा दिनों तक न तो गांव वालों से छिपा रह सका न डा. बिस्वास से. पत्नी के बेवफा हो जाने से डाक्टर हैरान तो हुआ ही, परेशान भी हो उठा. उसे पत्नी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. जब गांव के कई लोगों ने उसे टोका तो एक दिन उस ने लवली से पूछा, ‘‘मैं जो सुन रहा हूं क्या वह सच है?’’
‘‘तुम क्या सुन रहे हो. मुझे कैसे पता चलेगा. इसलिए मैं क्या बताऊं कि तुम ने जो सुना है, वह सच है या झूठ?’’
‘‘तुम जानती हो कि तुम्हें और सुरेंद्र को ले कर गांव में खूब चर्चा हो रही है. मेरे खयाल से यह ठीक नहीं है. अगर तुम अपनी सीमा में रहो तो तुम्हारे लिए भी ठीक रहेगा और मेरे लिए भी.’’ डा. बिस्वास ने चेताया.
‘‘यह झूठ है. गांव वालों की बातों में आ कर मुझ पर शक करने लगे. मैं तुम्हारी सगी हूं या गांव वाले?’’ लवली बोली.
लवली ने भले ही अपने ऊपर लगे आरोप को नकार दिया था, लेकिन डा. बिस्वास को उस की बात पर विश्वास नहीं हुआ. फलस्वरूप वह तनाव में रहने लगा. सब से ज्यादा चिंता उसे अपने बच्चों की थी. अब अकसर पतिपत्नी में लड़ाईझगड़ा और मारपीट होने लगी. इस के बावजूद लवली ने सुरेंद्र से मिलना बंद नहीं किया. इस की एक वजह यह भी थी कि सुरेंद्र उसे शादी का भरोसा दे रहा था. शायद इसीलिए उसे न पति की परवाह रह गई थी, न ही बच्चों की. अब उसे सिर्फ अपने सुख की परवाह रह गई थी.
हालात बेकाबू होते देख डा. बिस्वास गांव लौटने की सोचने लगा. जहां उस का घर था और अपने लोग भी थे. लेकिन लवली वापस जाने के लिए तैयर नहीं थी. इसलिए उस ने सुरेंद्र से साफ कह दिया, ‘‘जो कुछ भी करना है जल्दी कर लो, वरना डाक्टर मुझे जबरदस्ती कोलकाता ले कर चला जाएगा. तब मैं उसे मना भी नहीं कर पाऊंगी. क्योंकि बिना विवाह के मैं तुम्हारे साथ रह भी नहीं सकती.’’
लवली के दबाव डालने पर सुरेंद्र लवली को ले कर बरेली में रहने ही नहीं लगा, बल्कि कोर्टमैरिज भी कर ली. पत्नी और दोस्त के विश्वासघात से डा. बिस्वास टूट गया. वह गांव वालों के सामने फूटफूट कर रो पड़ा. गांव वालों को उस से सहानुभूति तो थी, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाया. सुरेंद्र के पिता रामचरण सिंह और भाई महेंद्र को भी उस की यह हरकत पसंद नहीं आई, लेकिन उस की दबंगई के आगे उन की भी एक न चली.
डा. बिस्वास की दुनिया लुट चुकी थी. जिसे सुख देने के लिए वह घरपरिवार छोड़ कर इतनी दूर आया था, जब वही छोड़ कर चली गई तो उस के लिए यहां रहना मुश्किल हो गया. वह अपने बच्चों को ले कर अपने गांव लौट गया. यह करीब 17 साल पहले की बात है.
डा. बिस्वास गांव छोड़ कर चला गया तो सुरेंद्र लवली को ले कर गांव आ गया. लेकिन घर वालों ने उसे साथ नहीं रखा. उस के हिस्से की जमीन दे कर उसे अलग कर दिया. सुरेंद्र ने लवली के साथ अपनी गृहस्थी अलग बसा ली और आराम से रहने लगा.
लवली अब सुरेंद्र की प्रेमिका नहीं, पत्नी थी. इसलिए सुरेंद्र अब उसे अपने हिसाब से रखना चाहता था, जबकि लवली सीमाओं में बंध कर नहीं रहना चाहती थी. लवली सुरेंद्र के 2 बच्चों, वीरेंद्र और तृप्ति की मां बन गई थी. इस के बावजूद वह जिस तरह रहती आई थी, उसी तरह रहना चाहती थी. सुरेंद्र लवली को अपने हिसाब से रखने लगा तो उसे लगा कि उस की आजादी खत्म हो रही है. वह बंदिशों में रहने वाली नहीं थी. डा. बिस्वास ने कभी उसे बंदिशों में रखा भी नहीं था, इसलिए सुरेंद्र की ये बंदिशें उसे खल रही थीं.
अब लवली को अपना यह यार अखरने लगा था. उसे ज्यादा परेशानी हुई तो एक दिन उस ने सुरेंद्र से कह भी दिया, ‘‘मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं कि जो तुम कहोगे, मैं वही करूंगी. मैं उन औरतों में नहीं हूं, जो पति की अंगुली पकड़ कर चलती हैं. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं. मैं अपने हिसाब से जीना चाहती हूं.’’
लवली की ये बातें सुरेंद्र को बिलकुल अच्छी नहीं लगीं. अब उसे लगा कि दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी बना कर उस ने बड़ी गलती की है. लेकिन उसे अपनी मर्दानगी पर विश्वास था, इसलिए उसे लगता था कि वह जिस तरह चाहेगा, पत्नी को रखेगा. लेकिन उस का यह विश्वास तब टूट गया, जब लवली ने उस की मरजी के खिलाफ मीरगंज के एक निजी अस्पताल में नर्स की नौकरी कर ली.
लवली ने घर के बाहर कदम रखा तो उस की लोगों से जानपहचान बढ़ने लगी. उन में से कुछ लोगों से उस की दोस्ती भी हो गई, तो वे उस से मिलने हुरहुरी तक आने लगे. सुरेंद्र और उस के भाइयों ने इस का विरोध किया. लेकिन लवली अब खुद अपने पैरों पर खड़ी थी, इसलिए उस ने किसी की एक नहीं सुनी.
सुरेंद्र ने लवली को समझाया भी और धमकाया भी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. वह उस की कोई भी बात मानने को तैयार नहीं थी. सुरेंद्र और उस के भाइयों ने ज्यादा रोकटोक की तो लवली ने मीरगंज के मोहल्ला मुगरा में एक कमरा किराए पर लिया और उसी में बच्चों के साथ रहने लगी. बच्चे भी अब तक काफी बड़े हो गए थे. बेटा वीरेंद्र 16 साल का था तो बेटी तृप्ति 14 साल की.