खुद के बिछाए जाल में – भाग 1

पढ़ाई पूरी कर के रोजीरोटी की तलाश में डा. बिस्वास अपने एक दोस्त की मदद से पश्चिम बंगाल से उत्तर प्रदेश के जिला बरेली आ गया था. यहां वह किसी गांव में क्लिनिक खोल कर प्रैक्टिस करना चाहता था. अपने साथ वह पत्नी  और बच्चों को भी ले आया था. डा. बिस्वास का वह दोस्त बरेली के कस्बा मीरगंज मे अपनी क्लिनिक चला रहा था. उसी की मदद से डा. बिस्वास ने मीरगंज से यही कोई 5 किलोमीटर दूर स्थित गांव हुरहुरी में अपना क्लीनिक खोल लिया था.

गांव हुरहुरी में न कोई क्लिनिक थी न कोई डाक्टर. इसलिए बीमार होने पर गांव वालों को इलाज के लिए 5 किलोमीटर दूर भी दोरगंज जाना पड़ता था. इसलिए डा. बिस्वास ने हुरहुरी में अपना क्लिनिक खोला तो गांव वालों ने उस का स्वागत ही नहीं किया, बल्कि क्लीनिक खोलने में उस की हर तरह से मदद भी की. डा. बिस्वास को बवासीर, भगंदर जैसी बीमारियों को ठीक करने में महारत हासिल थी. इसी के साथ वह छोटीमोटी बीमारियों का भी इलाज करता था. सम्मानित पेशे से जुड़ा होने की वजह से गांव वाले उस का बहुत सम्मान करते थे.

इस की एक वजह यह भी थी कि उस ने गांव वालों को एक बड़ी चिंता से मुक्त कर दिया था. गांव वाले किसी भी समय उस के यहां आ कर दवा ले सकते थे. गांव में जाटों की बाहुल्यता थी. धीरेधीरे डा. बिस्वास गांव वालों के बीच इस तरह घुलमिल गया, जैसे वह इसी गांव का रहने वाला हो. गांव वालों ने भी उसे इस तरह अपना लिया था, जैसे वह उन्हीं के गांव में पैदा हो कर पलाबढ़ा हो.

डा. बिस्वास की पत्नी लवली घर के कामकाज निपटा कर उस की मदद के लिए क्लिनिक में आ जाती थी. वह एक नर्स की तरह क्लिनिक में काम करती थी. क्लिनिक में आने वाला हर कोई उसे भाभी कहता था. इस तरह जल्दी ही वह पूरे गांव की भाभी बन गई. वह काफी विनम्र थी, इसलिए गांव के लोग उस से काफी प्रभावित थे.

गांव के लोग अकसर खाली समय में डा. बिस्वास की क्लिनिक में आ कर बैठ जाते और गपशप करते हुए अपना समय पास करते. उन्हीं बैठने वालों में एक सुरेंद्र सिंह भी था. सुरेंद्र हुरहुरी के रहने वाले चौधरी रामचरण सिंह का बेटा था. सुरेंद्र सिंह जाट और संपन्न परिवार का था.

डा. बिस्वास को इस गांव में क्लिनिक खोले लगभग 2 साल हो चुके थे. गांव के लगभग सभी लोगों से उस के मधुर संबंध थे. लेकिन सुरेंद्र सिंह से उस की कुछ ज्यादा ही पटती थी.

इसी का नतीजा था कि सुरेंद्र डा. बिस्वास के घर भी आताजाता था. डा. बिस्वास को कभी शहर से दवा मंगानी होती थी तो वह उसे शहर भी भेज देता था. इस के अलावा भी उसे किसी तरह की मदद की जरूरत होती थी तो वह सुरेंद्र को ही याद करता था. अन्य लोगों की तरह सुरेंद्र भी लवली को भाभी कहता था. कभीकभी सुरेंद्र डाक्टर की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आ जाता तो लवली पति के इस दोस्त की खूब खातिर करती.

सुरेंद्र जवान भी था और अविवाहित भी. शायद यही वजह थी कि डा. बिस्वास के यहां आनेजाने में दोस्ती की सीमाओं को लांघने के विचार उस के मन में आने लगे. खूबसूरत लवली की मुसकान और सेवाभाव का वह गलत अर्थ लगा कर उस के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. जबकि डा. बिस्वास उस पर उसी तरह विश्वास करते रहे. उस के मन में क्या है, यह वह समझ नहीं पाए.

डा. बिस्वास को अपने दोस्त सुरेंद्र पर इतना विश्वास था कि अगर पत्नी को कुछ खरीदने के लिए बरेली जाना होता तो वह उसे उस के साथ भेज देता था. सुरेंद्र के लिए यह बढि़या मौका होता था. उसे अकेले में लवली से बात करने का मौका तो मिलता ही था, उस के साथ घूमनेफिरने का भी मौका मिलता था.

सुरेंद्र और लवली जब भी बरेली जाते बस से जाते थे. ऐसे में वह लवली से सट कर बैठता. बगल में बैठ कर वह लवली से इस तरह हरकतें करता, जैसे वह उस की पत्नी हो. लवली उन की इन हरकतों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी. फिर भी जल्दी ही उसे उस के मन की बात का पता चल गया. सुरेंद्र इतना खराब भी नहीं था कि वह उसे झिड़क देती. उस की शक्लसूरत तो ठीकठाक थी ही, खातेपीते घर का भी था. शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. कुल मिला कर वह इस तरह का था कि कोई औरत उसे पसंद कर लेती.

इन्हीं सब वजहों से लवली को भी सुरेंद्र अच्छा लगता था. इस की एक वजह यह थी कि वह एक प्यार करने वाला लड़का था. उस की हरकतों ने लवली के मन के आकर्षण को और बढ़ा दिया था. इसलिए लवली कभी भी उस की किसी हरकत का विरोध नहीं करती थी. फिर तो सुरेंद्र की हिम्मत बढ़ती गई. इस के बावजूद वह अपने मन की बात लवली से कह नहीं पा रहा था.

एक दिन लवली सुरेंद्र के साथ शौपिंग करने बरेली गई तो जल्दी ही उस का काम खत्म हो गया. फुरसत मिलने पर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘भाभीजी, अभी तो घर जाने में काफी समय है. अगर आप कहें तो चल कर फिल्म ही देख लें.’’

लवली भला क्यों मना करती. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगर तुम्हारा दिल फिल्म देखने को कर रहा है तो मना कर के मैं उसे क्यों तोड़ूं. चलो तुम्हारे साथ मैं भी फिल्म देख लूंगी. वैसे भी यहां आने के बाद हौल में फिल्म देखने का मौका बिलकुल नहीं मिला है.’’

लवली के हां करते ही सुरेंद्र ने टिकटें खरीदीं और उस के साथ फिल्म देखने के लिए अंदर जा बैठा. फिल्म शुरू हुई. फिल्म में प्रेम का दृश्य आया तो अंधेरे में ही सुरेंद्र ने लवली का हाथ पकड़ कर चूम लिया. लवली ने इस का विरोध करने के बजाय उस का हाथ अपने हाथ में ले कर दबा दिया.

फिल्म खत्म हुई. दोनों बाहर आए तो उन के चेहरे खिले हुए थे. अब दोनों ही इस तरह चल रहे थे, जैसे प्रेमी प्रेमिका हों. सुरेंद्र ने लवली को फिल्म तो दिखाई ही, बढि़या रेस्तरां में खाना भी खिलाया. वह उस के लिए कोई बढि़या सा उपहार भी खरीदना चाहता था, लेकिन लवली ने कहा, ‘‘सब कुछ आज ही कर दोगे तो फिर आगे क्या करोगे.’’

दिल की बात जुबान पर आ जाने से लवली भी खुश थी और सुरेंद्र भी. दोनों के ही दिलों से बहुत बड़ा बोझ उतर गया था. लवली डाक्टर के 2 बच्चों की मां थी, लेकिन वह डाक्टर से संतुष्ट नहीं थी. शायद इस की वजह लवली की महत्त्वाकांक्षा थी. वैसे भी वह डा. बिस्वास के साथ ज्यादा खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि डाक्टर की कमाई उतनी नहीं थी, जितनी उस की अपेक्षाएं थीं, शायद इसीलिए उस ने सुरेंद्र का हाथ थाम लिया था.

लवली का मन भटका तो डा. बिस्वास में उसे कमियां ही कमियां नजर आने लगी थीं. दिल पागल होता है तो अच्छाइयां भी बुरी नजर आती हैं. ऐसा ही लवली के साथ भी हुआ था.

सुरेंद्र ने लवली के दिल में अपने लिए जगह तो बना ली थी. लेकिन वह जो चाहता था, वह हासिल नहीं हुआ था. इस के लिए वह मौका तलाश रहा था. लेकिन उसे मौका नहीं मिल रहा था. उसी बीच डा. बिस्वास को सूचना मिली कि गांव में उन की मां की तबीयत खराब है. मां को देखने जाना जरूरी था, इसलिए डा. बिस्वास गांव चला गया. पत्नी और बच्चों को वह इसलिए नहीं ले गया कि उन के जाने से क्लिनिक में ताला लग जाता. इसीलिए लवली को उस ने हुरहुरी में ही छोड़ दिया.

मामी का जानलेवा प्यार

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना

खतरनाक है रिश्तों की मर्यादा तोड़ना – भाग 3

शिवचरन खून का घूंट पी कर रह गया. उस समय उस ने न तो नीलम से कुछ कहा और न ही जगराम सिंह से. लेकिन उस के हावभाव से नीलम समझ गई कि उस के मन में क्या चल रहा है. उस ने अपने भयभीत चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन तनाव में होने की वजह से सफल नहीं हो पाई.

शिवचरन सोच ही रहा था कि वह क्या करे, तभी जगराम जम्हुआई लेते हुए उठा और शिवचरन को देख कर बोला, ‘‘अरे तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए, तबीयत तो ठीक है?’’

शिवचरन ने जगराम सिंह के चेहरे पर नजरें जमा कर दबे स्वर में कहा, ‘‘तबीयत तो ठीक है, लेकिन दिमाग ठीक नहीं है.’’

इतना कह कर ही शिवचरन बाहर चला गया. उस ने जिस तरह यह बात कही थी, उसे सुन कर जगराम ने वहां रुकना उचित नहीं समझा और चुपचाप बाहर निकल गया. उस के जाते ही शिवचरन वापस लौटा और नीलम की चोटी पकड़ कर बोला, ‘‘बदलचन औरत, इस उम्र में तुझे यह सब करते शरम भी नहीं आई? वह भी उस आदमी के साथ जो तेरा भाई लगता है.’’

नीलम की चोरी पकड़ी गई थी, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई. गुस्से में तप रहे शिवचरन ने नीलम को जमीन पर पटक दिया और लात घूसों से पिटाई करने लगा. नीलम चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन शिवचरन ने उसे तभी छोड़ा, जब वह उसे मारते मारते थक गया.

इस के बाद शिवचरन नीलम पर नजर रखने लगा था. उस ने बेटों से भी कह दिया था कि जब भी मामा घर आए, वे उस से बताएं. जिस दिन शिवचरन को पता चलता कि जगराम आया था, उस दिन शिवचरन नीलम पर कहर बन कर टूटता था. अब जगराम और नीलम काफी सावधानी बरतने लगे थे. वह तभी नीलम से मिलने आता था, जब उसे पता चलता था कि घर पर न बेटे हैं और न शिवचरन.

इसी बात की जानकारी के लिए जगराम सिंह ने नीलम को एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. इस से दोनों की रोजाना बातें तो होती ही रहती थीं, इसी से मिलने का समय भी तय होता था. एक दिन शिवचरन ने नीलम को जगराम से बातचीत करते पकड़ लिया तो मोबाइल फोन छीन कर पटक दिया. लेकिन अगले ही दिन जगराम ने उसे दूसरा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया.

काफी प्रयास के बाद भी शिवचरन नीलम और जगराम को अलग नहीं कर सका तो उस ने जगराम के घर जा कर उस की पत्नी लक्ष्मी से सारी बात बता दी. इस के बाद जगराम के घर कलह शुरू हो गई. यह कलह इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लक्ष्मी ने बच्चों के साथ आत्मदाह करने की धमकी दे डाली.

पत्नी की इस धमकी से जगराम डर गया. उस ने पत्नी से वादा किया कि अब वह नीलम से संबंध तोड़ लेगा. उस ने नीलम से मिलना कम कर दिया तो इस से नीलम नाराज हो गई. इधर उस ने पैसों की मांग भी अधिक कर दी थी, जिस से जगराम को परेशानी होने लगी थी.

एक ओर जगराम सिंह अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ नहीं सकता था. दूसरी ओर अब नीलम से भी पीछा छुड़ाना आसान नहीं रह गया था. वह बदनाम करने की धमकी देने लगी थी. उस की धमकी और मांगों से तंग आ कर जगराम सिंह ने नीलम से पीछा छुड़ाने के लिए अपने साले लक्ष्मण के साथ मिल कर उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

संयोग से उसी बीच नीलम ने बच्चों की ड्रेस, फीस, कापीकिताब और घर के खर्च के लिए जगराम से 10 हजार रुपए मांगे. जगराम ने कहा कि पैसों का इंतजाम होने पर वह उसे फोन से बता देगा.

24 जुलाई, 2014 की शाम 4 बजे जगराम सिंह ने नीलम को फोन किया कि पैसों का इंतजाम हो गया है, वह श्यामनगर चौराहे पर आ कर पैसे ले ले. फोन पर बात होने के बाद नीलम ने बेटों से कहा कि वह उन की ड्रेस लेने दर्जी के पास जा रही है और उधर से ही वह घर का सामान भी लेती आएगी.

नीलम श्यामनगर चौराहे पर पहुंची तो जगराम अपने साले लक्ष्मण सिंह के साथ कार में बैठा था. नीलम को भी उस ने कार में बैठा लिया. कार चल पड़ी तो नीलम ने जगराम से पैसे मांगे. लेकिन उस ने पैसे देने से मना कर दिया. तब नीलम नाराज हो कर उसे बदनाम करने की धमकी देने लगी.

नीलम की बातों से जगराम को भी गुस्सा आ गया. वह उस से छुटकारा तो पाना ही चाहता था, इसलिए पैरों के नीचे रखी लोहे की रौड निकाली और नीलम के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. उसी एक वार में नीलम लुढ़क गई. इस के बाद जगराम ने नीलम की साड़ी गले में लपेट कर कस दी. नीलम मर गई तो चाकू से उस के चेहरे को गोद दिया.

जगराम अपना काम करता रहा और लक्ष्मण कार चलाता रहा. चलती कार में नीलम की बेरहमी से हत्या कर के जगराम और लक्ष्मण ने देर रात उस की लाश को नौबस्ता ले जा कर हाईवे के किनारे फेंक दिया और खुद कार ले कर अपने घर चले गए.

पूछताछ के बाद 10 जुलाई, 2014 को थाना नौबस्ता पुलिस ने अभियुक्त सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को कानपुर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. उस का साला लक्ष्मण फरार था. पुलिस उस की तलाश में जगहजगह छापे मार रही थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत – भाग 3

पूरी योजना तैयार कर के इमरान ने 14 सितंबर, शनिवार को बहन से कहा, ‘‘आयशा, मुझे लगता है कि नाजिम तुझे खुश रखेगा. इसलिए तेरा निकाह उस से कर देना ही ठीक है. ऐसा करो, आज रात 9 बजे नाजिम को फोन कर के तुम घर पर बुला लो. निकाह कब और कैसे किया जाए, बात कर लेते हैं.’’

इमरान की बात सुन कर आयशा को यकीन नहीं हुआ. इसलिए उस ने कहा, ‘‘भाईजान, आप यह क्या कह रहे हैं?’’

‘‘मैं सच कह रहा हूं,’’ इमरान ने विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘जब घर के सभी लोग तैयार हैं तो मैं ही तेरी खुशी में टांग क्यों अड़ाऊं?’’

इमरान में बदलाव देख कर आयशा खुश हो उठी. उस ने कहा, ‘‘भाईजान, मैं अभी नाजिम को फोन किए देती हूं. वह काम से लौटते हुए सीधे अपने घर आ जाएगा.’’

इस के बाद आयशा ने अपने मोबाइल फोन से नाजिम को फोन कर के कहा, ‘‘नाजिम, आज काम से लौटते समय तुम सीधे मेरे घर आ जाना. इमरान भाई मान गए हैं. वह तुम से बात कर के निकाह की तारीख पक्की करना चाहते हैं.’’

आयशा ने अपनी यह बात पूरे विश्वास के साथ कही थी, इसलिए नाजिम ने हामी ही नहीं भरी, बल्कि ठीक समय पर वह उस के घर आ गया. इमरान उस से बड़ी आत्मीयता से मिला. नाजिम को उस ने ऊपर के कमरे में ले जा कर बैठा दिया. उस कमरे में पहले से ही उस्मान और सुफियान बैठे थे. नाजिम उन्हें जानता था, इसलिए उन से बातें करने लगा. नाजिम को नाश्ता भी कराया गया. इस के बाद निकाह कब और कैसे किया जाए, इस पर बातचीत होने लगी. रात 11 बजे तक निकाह के बारे में बहुत सी बातें तय हो गईं.

इस के बाद इमरान ने कहा, ‘‘नाजिम, अम्मी तुम्हारे लिए भी खाना बना रही हैं, खाना खा कर जाना.’’

नाजिम को लगा कि अब सब ठीक हो गया है, इसलिए उस ने हामी भर ली. अब तक गांव में सन्नाटा पसर गया था. दिन भर का थकामांदा नाजिम लापरवाह चारपाई पर बैठा था, इसी का फादया उठा कर उस्मान और सुफियान ने अचानक नाजिम के हाथपैर पकड़ लिए तो इमरान ने झपट कर नाजिम का गला पकड़ लिया और दबाने लगा. छटपटा कर नाजिम ने प्राण त्याग दिए. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए उस पर चाकू से भी वार किए गए. इस के बाद रात में ही नाजिम की लाश गांव के बाहर बाजरे के खेत में बीचोबीच फेंक दी गई.

काम हो जाने के बाद सुफियान और उस्मान अपनेअपने घर चले गए. आयशा, उस की अम्मी और अब्बू तथा घर के अन्य लोग नाजिम की हत्या होते देखते रहे, लेकिन डर के मारे कोई विरोध नहीं कर सका. आयशा ने कुछ कहना चाहा तो इमरान चीख कर बोला, ‘‘खबरदार, अगर किसी ने कुछ भी बोलने या कहने की हिम्मत की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. उस का भी वही हाल कर दूंगा, जो मैं ने नाजिम का किया है.’’

घर वालों को धमका कर इमरान उस कमरे में गया, जिस में उस ने नाजिम की हत्या की थी. उस की साफसफाई कर के सुबह से पहले ही घरवालों को बिना कुछ बताए वह भी फरार हो गया.

3 दिनों तक नाजिम के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चला. 18 सितंबर को जब लाश से दुर्गंध आने लगी तो कुछ लोग खेत के भीतर यह देखने के लिए घुसे कि दुर्गंध किस चीज की आ रही है. तब नाजिम की हत्या का पता चला.

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मोहम्मद आरिफ की सूचना पर पुलिस इमरान और साथियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी तो दबाव बनाने के लिए इमरान के अम्मीअब्बू तथा बहन आयशा को थाने ले आई थी. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने इब्राहीम को थाने में रोक कर परवीन बेगम और आयशा को घर भेज दिया.

इमरान को साथियों से पता चल गया था कि आयशा ने नाजिम की हत्या की एकएक बात पुलिस को बता दी है. यही नहीं, वह अदालत में भी यह कहने को तैयार है कि नाजिम की हत्या उस के भाई इमरान ने अपने मौसेरे भाई उस्मान तथा दोस्त सुफियान के साथ मिल कर की है.

आयशा चश्मदीद गवाह थी. अगर वह अदालत में गवाही देती तो इमरान और उस के साथियों को सजा निश्चित थी. इसलिए इमरान को लगा कि किसी भी तरह आयशा को रोका जाए. वह उसी रात छिपतेछिपाते घर आया और आयशा को समझाने लगा कि वह उस के खिलाफ गवाही न दे. लेकिन आयशा अपनी जिद पर अड़ी थी. क्योंकि उस के प्रेमी को मारा गया था.

उस ने कहा, ‘‘दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, मैं अपनी बात से नहीं डिगूंगी. अदालत में मैं वही कहूंगी, जो मैं ने आंखों से देखा है.’’

इस के बाद इमरान को इतना गुस्सा आया कि उस ने तय कर लिया कि इसे मार देना ही ठीक है. उस ने मिट्टी के तेल का डिब्बा उठाया और उस पर तेल डालने लगा. आयशा जान बचाने के लिए चीखते हुए भागी. तब उसे लगा कि अगर उस ने आग लगाई तो यह शोर मचा देगी.

शोरशराबा न हो, यह सोच कर उस ने आयशा को पकड़ा और अपने दोस्त जहीद की मदद से उस का गला दबा कर मार दिया. इस के बाद हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए उस ने आयशा की लाश को रस्सी का फंदा बना कर दरवाजे के ऊपर बने रोशानदान से लटका दिया और अपने साथी जहीद के साथ घर से भाग गया.

कथा लिखे जाने तक नाजिम की हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुफियान तथा आयशा की हत्या में शामिल जहीद को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज

खतरनाक है रिश्तों की मर्यादा तोड़ना – भाग 2

जगराम सिंह ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थाना नौबस्ता पुलिस ने शिवचरन सिंह भदौरिया की ओर से नीलम की हत्या का मुकदमा सबइंसपेक्टर जगराम सिंह और उस के साले लक्ष्मण सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. इस के बाद जगराम सिंह ने नीलम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह जिस्म के नाजायज रिश्तों में जिंदगी लेने वाली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के कस्बा खागा के रहने वाले राम सिंह के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटे पप्पू, बब्बू और बेटी नीलम उर्फ पिंकी थी. राम सिंह पक्का शराबी था. अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा वह शराब में उड़ा देता था. बाप की देखा देखी बड़े बेटे पप्पू को भी शराब का शौक लग गया. जैसा बाप, वैसा बेटा. पप्पू कुछ करता भी नहीं था.

नीलम उर्फ पिंकी राम सिंह की दूसरे नंबर की संतान थी. वह सयानी हुई तो राम सिंह को उस की शादी की चिंता हुई. उस के पास कोई खास जमापूंजी तो थी नहीं, इसलिए वह इस तरह का लड़का चाहता था, जहां ज्यादा दानदहेज न देना पड़े.

उस ने तलाश शुरू की तो जल्दी ही उसे कानपुर शहर के थाना चकेरी के श्यामनगर (रामपुर) में किराए पर रहने वाला शिवचरन सिंह भदौरिया मिल गया. शिवचरन सिंह शहर के मशहूर होटल लिटिल में चीफ वेटर था. राम सिंह को शिवचरन पसंद आ गया. उस के बाद अपनी हैसियत के हिसाब से लेनदेन कर के उस ने नीलम की शादी शिवचरन सिंह के साथ कर दी.

नीलम जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर शिवचरन बेहद खुश था.  से समय गुजरने लगा. समय के साथ नीलम 2 बेटों सचिन और शिवम की मां बनी. बच्चे होने के बाद खर्च तो बढ़ गया, जबकि आमदनी वही रही. शिवचरन को 5 हजार रुपए वेतन मिलता था, जिस में से 2 हजार रुपए किराए के निकल जाते थे, हजार, डेढ़ हजार रुपए नीलम के फैशन पर खर्च हो जाते थे. बाकी बचे रुपयों में घर चलाना मुश्किल हो जाता था. इसलिए घर में हमेशा तंगी बनी रहती थी.

पैसों को ले कर अक्सर शिवचरन और नीलम में लड़ाईझगड़ा होता रहता था. रोजरोज की लड़ाई और अधिक कमाई के चक्कर में शिवचरन ने नीलम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया. पत्नी की किचकिच की वजह से वह तनाव में भी रहने लगा. इस सब से छुटकारा पाने के लिए वह शराब पीने लगा. संयोग से उसी बीच शिवचरन के घर उस के बड़े भाई के चचेरे साले यानी नीलम की जेठानी प्रीति के चचेरे भाई जगराम सिंह का आनाजाना शुरू हुआ.

जगराम सिंह अपने परिवार के साथ बर्रा कालोनी में रहता था. वह हेडकांस्टेबल था, लेकिन इधर प्रमोशन से सबइंस्पेक्टर हो गया था. उस की ड्यूटी लखनऊ में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री सुदीप रंजन सेन के यहां थी.

नीलम जगराम सिंह की मीठीमीठी बातों और अच्छे व्यवहार से काफी प्रभावित थी. एक तरह से नीलम उस की बहन थी, लेकिन 2 बच्चों की मां होने के बावजूद नीलम की देहयष्टि और सुंदरता ऐसी थी कि किसी भी पुरुष की नीयत खराब हो सकती थी. शायद यही वजह थी कि भाई लगने के बावजूद जगराम सिंह की भी नीयत उस पर खराब हो गई थी.

घर आनेजाने से जगराम सिंह को नीलम की परेशानियों का पता चल ही गया था, इसलिए उस तक पहुंचने के लिए वह उस की परेशानियों का फायदा उठाते हुए हर तरह से मदद करने लगा. नीलम जब भी उस से पैसा मांगती, वह बिना नानुकुर किए दे देता. अगर कभी शिवचरन पैसे मांग लेता तो वह उसे भी दे देता.

शिवचरन भले ही जगराम की मन की बात से अंजान था, लेकिन नीलम सब जानती थी. वह जान गई थी कि जगराम उस पर इतना क्यों मेहरबान है. उस की नजरों से उस ने उस के दिल की बात जान ली थी. एक तो नीलम को पति का सुख उस तरह नहीं मिल रहा था, जिस तरह मिलना चाहिए था, दूसरे जगराम अब उस की जरूरत बन गया था.

इसलिए उसे जाल में फंसाए रखने के लिए नीलम उस से हंसी मजाक ही नहीं करने लगी, बल्कि उस के करीब भी आने लगी थी. आसपड़ोस में सभी लोगों को उस ने यही बता रहा था कि यह उस के जेठानी का भाई है. इसलिए नीलम को लगता था कि उस के आने जाने पर कोई शक नहीं करेगा.

नीलम की मौन सहमति पा कर एक दिन उसे घर में अकेली पा कर जगराम सिंह ने उस का हाथ पकड़ लिया. बनावटी नानुकुर के बाद उस ने जगराम को अपना शरीर सौंप दिया. जगराम से उसे जो सुख मिला, उस ने रिश्तों की मर्यादा को भुला दिया.

इस के बाद नीलम और जगराम जब भी मौका पाते, एक हो जाते. नीलम को जगराम सिंह के साथ शारीरिक सुख में कुछ ज्यादा ही आनंद आता था, इसलिए वह उस का भरपूर सहयोग करने लगी थी. कभीकभी तो जगराम से मिलने वाले सुख के लिए वह बच्चों को बहाने से घर के बाहर भी भेज देती थी.

कुछ सालों तक तो उन का यह संबंध लोगों की नजरों से छिपा रहा, लेकिन जगराम सिंह का शिवचरन के घर अक्सर आना और घंटो पड़े रहना, लोगों को खटकने लगा. नीलम और उस के सबइंसपेक्टर भाई के हावभाव और कार्यशैली से लोगों को विश्वास हो गया कि उन के बीच गलत संबंध है.

जगराम सिंह बेहद चालाकी से काम ले रहा था. वह जब भी शिवचरन की मौजूदगी में आता, काफी गंभीर बना रहता. वह इस बात का आभास तक न होने देता कि उस के और नीलम के बीच कुछ चल रहा है. तब वह पूरी तरह से रिश्तेदार बना रहता. लेकिन एकांत मिलते ही वह रिश्तेदार के बजाय नीलम का प्रेमी बन जाता.

जब मामला कुछ ज्यादा ही बढ़ गया तो पड़ोसियों ने शिवचरन के कान भरने शुरू किए. उसने अतीत में झांका तो उसे भी संदेह हुआ. फिर एक दिन जगराम घर आया तो वह होटल जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन आधे घंटे बाद ही वापस आ गया. उस ने देखा कि दोनों बेटे बाहर खेल रहे हैं और कमरे की अंदर से सिटकनी बंद है.

उस ने सचिन से पूछा, ‘‘क्या बात है, कमरे का दरवाजा क्यों बंद है, तुम्हारी मम्मी कहां हैं.?’’

‘‘मम्मी और मामा कमरे में हैं. हम कब से उन्हें बुला रहे हैं, वे दरवाजा खोल ही नहीं रहे हैं.’’ सचिन ने कहा.

शिवचरन को संदेह तो था ही, अब विश्वास हो गया. वह नीलम को आवाज दे कर दरवाजा पीटने लगा. अचानक शिवचरन की आवाज सुन कर दोनों घबरा गए. वे जल्दी से उठे और अपने अपने कपड़े ठीक किए. इस के बाद नीलम ने आ कर दरवाजा खोला. नीलम की हालत देख कर शिवचरन सारा माजरा समझ गया. उसे कुछ कहे बगैर वह कमरे के अंदर आया तो देखा जगराम सोने का नाटक किए चारपाई पर लेटा था.

ये प्यार था या कुछ और था – भाग 4

जिस तरह अचानक आलोक ने रिंकी की मांग भर दी थी, वह हैरान रह गई. एकबारगी उस की समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो गया? पल भर बाद वह गुस्से में बोली, ‘‘यह कैसा बेहूदा मजाक है. मुझे तुम्हारी यह हरकत बिलकुल अच्छी नहीं लगी. तुम ने जो किया, वह ठीक नहीं है.’’

रिंकी को इस तरह नाराज देख कर आलोक उसे मनाते हुए बोला, ‘‘रिंकी, यह बेहूदा मजाक नहीं, सच्चे प्यार की निशानी है. तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं.’’

इस के बाद आलोक न जाने और क्या क्या कहता रहा. आलोक ने रिंकी को अपनी इमोशनली ब्लैकमेलिंग वाली बातों से इस तरह इमोशनल कर दिया कि उसे लगा कि आलोक सचमुच उस का सहारा बन सकता है. उस की बातों का उस ने कोई जवाब नहीं दिया तो आलोक उसे झकझोरते हुए बोला, ‘‘क्या सोच रही हो रिंकी, लगता है तुम्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है? अब तुम्हीं बताओ, तुम्हें भरोसा दिलाने के लिए मैं क्या करूं? अब एक ही उपाय बचा है कि अपने पेट में चाकू घुसेड़ लूं.’’

यह कह कर आलोक एकदम से उठा और रिंकी का सब्जी काटने वाला चाकू उठा कर जैसे ही हाथों को ऊपर उठाया, रिंकी ने उस के हाथ से चाकू छीन कर दूर फेंक दिया और उसे सीने से लग कर बोली, ‘‘आप के बाद इस तरह की बात मुंह से भी मत निकालना.’’

इस के बाद रिंकी ने खाना बनाया तो दोनों ने एक साथ खाना ही नहीं खाया, बल्कि वह रात आलोक ने रिंकी के साथ ही बिताई. इस के बाद तो जैसे रास्ता ही खुल गया. आलोक का जब मन होता, रिंकी से मिलने उस के कमरे पर पहुंच जाता. पैसे की उस के पास कमी नहीं थी, वह रिंकी को शहर में घुमाता, होटल में खाना खिलाता और रात उसी के कमरे पर बिताता. यही नहीं, वह कहीं बाहर जाता तो वहां भी रिंकी को साथ ले जाता. वह जिस होटल में ठहरता, वहां रिंकी को पत्नी के रूप में दर्ज कराता.

रिंकी के अनुसार, आलोक 9 महीने पटना और 3 महीने गया में रहा तो उसे अपने साथ रखा. जब भी कोई आलोक से उस के बारे में पूछता, वह उस का परिचय अपनी पत्नी के रूप में कराता था. गया के बेलागंज स्थित काली मंदिर में आलोक ने देवी के सामने एक बार फिर उस की मांग में सिंदूर भर कर उस के गले में माला डाल कर शादी की थी.

धीरे धीरे दोनों को साथ रहते डेढ़ साल का समय बीत गया. रिंकी आलोक के साथ लिव इन रिलेशन में इस विश्वास के साथ रहती रही कि एक न एक दिन आलोक घरवालों के सामने उसे पत्नी बना कर ले जाएगा. आलोक के साथ जगह जगह घूमना और मौजमस्ती करना उसे भी अच्छा लग रहा था. इस बीच रिंकी 2 बार गर्भवती भी हुई, लेकिन दोनों ही बार आलोक ने उस का गर्भपात करा दिया. पहली बार तो उस ने आसानी से गर्भपात करा दिया था, लेकिन दूसरी बार वह गर्भपात नहीं कराना चाहती थी. तब आलोक ने कसम दिला कर उस का गर्भपात कराया था.

आलोक ने जब रिंकी का दूसरी बार गर्भपात कराया तो रिंकी को लगा कि आलोक उसे बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है. रिंकी की इस सोच के पीछे की मुख्य वजह यह थी कि आलोक उसे अब तक अपने घर नहीं ले गया था. रिंकी जब कभी घर चलने और मांबाप से मिलाने को कहती, वह ऐसा बहाना करता कि उसे चुप हो जाना पड़ता.

रिंकी इसी कशमकश से जूझ रही थी कि अचानक आलोक की जिंदगी में एक नया मोड़ आ गया. संयोग से उसे सीआरपीएफ में क्लर्क की नौकरी मिल गई. टे्रनिंग के बाद उस की पहली पोस्टिंग हरियाणा के गुड़गांव में हुई. आलोक को नौकरी मिलने की खुशी रिंकी को भी थी. उस का सोचना था कि पोस्टिंग होते ही आलोक उसे अपने पास बुला लेगा. लेकिन नौकरी मिलते ही आलोक एकदम से बदल गया. वह रिंकी से कटने लगा. अब वह रिंकी को फोन भी नहीं करता था.

रिंकी को समझते देर नहीं लगी कि आलोक बदल गया है. अब वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता है. पोस्टिंग के बाद आलोक जहानाबाद पहुंचा तो रिंकी ने उस से मिल कर कहा, ‘‘अब तो तुम्हें नौकरी ही नहीं मिल गई, बल्कि सरकारी क्वार्टर भी मिल गया है. इसलिए मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी.’’

आलोक सचमुच उस से पिंड छुड़ाना चाहता था, इसलिए रिंकी को पट्टी पढ़ा कर लापता हो गया. उस के अचानक लापता होने से रिंकी समझ गई कि आलोक उसे बिना बताए गुड़गांव चला गया है. वहां का पता पिंकी के पास था ही, इसलिए उस के पीछेपीछे वह भी गुड़गांव आ गई.

रिंकी के गुड़गांव पहुंचने की जानकारी आलोक को हुई तो वह परेशान हो उठा. वह खुद ही रिंकी से मिला और उसे समझाया कि वह यहां कोई बखेड़ा न खड़ा करे. इस के बाद उस ने रिंकी को ले जा कर एक लौज में यह कह कर ठहरा दिया कि वह व्यवस्था कर के उसे अपने कमरे पर ले जाएगा. लेकिन 2-3 दिन बीत जाने पर भी आलोक उसे अपने कमरे पर नहीं ले गया तो चौथे दिन रिंकी खुद ही सीआरपीएफ कैंप कार्यालय जा कर वरिष्ठ अधिकारी से मिली.

उस ने उस अधिकारी से बताया कि वह यहां औफिस में काम करने वाले आलोक भारती की पत्नी है. उस ने उसे अपने साथ रखने के बजाय एक लौज में ठहरा दिया है. अधिकारी ने आलोक को बुला कर पूछताछ की तो उस ने रिंकी को पहचानने से मना कर दिया.

रिंकी के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. वह वहां से तो चुपचाप चली आई, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. वह गुड़गांव के थाना बादलपुर जा पहुंची. उस ने सारी बात थानाप्रभारी दिलबाग सिंह को बताई तो वह रिंकी को साथ ले कर सीआरपीएफ कैंप कार्यालय पहुंचे और आलोक भारती से थाने चलने को कहा.

खुद को फंसते देख आलोक घबरा गया. उस ने सीआरपीएफ के अधिकारियों और थानाप्रभारी के सामने वादा किया कि वह 1 महीने के अंदर रिंकी से शादी कर लेगा. सीआरपीएफ अधिकारियों ने आलोक को रिंकी से शादी करने के लिए एक महीने की छुट्टी भी दे दी.

आलोक ने रिंकी को समझाबुझा कर जहानाबाद भेज दिया और वादा किया कि 4 दिनों बाद वह घर आ जाएगा. इस के बाद वह वहीं घर वालों से कह कर सब के सामने पूरे रस्मोरिवाज के साथ उस से शादी करेगा.  रिंकी आलोक की बातों पर विश्वास कर के जहानाबाद आ गई. 4 दिनों की कौन कहे, धीरेधीरे एक साल बीत गया, आलोक जहानाबाद नहीं पहुंचा.

रिंकी ने आलोक को पाने के लिए न्याय की शरण ली है. उधर आलोक का कहना है कि वह रिंकी को इसलिए जानता पहचानता है क्योंकि जहानाबाद में जहां उस का घर है, उस के ठीक सामने स्थित नर्सिंगहोम में वह नर्स के रूप में काम किया करती थी.

अकसर घर से निकलते या घर में जाते समय वह दिख जाती थी. दोनों के बीच बातचीत भी होती थी, एकदो बार उस ने मुसीबत के समय उस की आर्थिक मदद भी की थी, इस से ज्यादा उस का उस से कोई संबंध नहीं है. रिंकी उस पर झूठा आरोप लगा कर उसे बदनाम कर रही है. क्योंकि उस ने उसे सरकारी अस्पताल में नर्स के रूप में काम दिलाने की बात कही थी, जो किन्हीं कारणों से पूरा नहीं हो सका.

(प्रस्तुत कथा रिंकी के बयान और मीडिया सूत्रों से प्राप्त जानकारी पर आधारित)

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत – भाग 2

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इमरान और उस्मान ने नाजिम और आयशा की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह प्रेमसंबंध और औनर किलिंग की निकली.

इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के गांव दामूपुर में मोहम्मद आरिफ अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 6 बेटे थे. बेटों में नाजिम सब से छोटा था. वह मकानों में मार्बल लगाने का ठेका लेता था, जिस से वह अच्छीखासी कमाई कर रहा था. जबकि मोहम्मद आरिफ गांव में ही पान की दुकान चलाते थे.

इसी गांव के रहने वाले मोहम्मद इब्राहीम मोटर मैकेनिक थे. जीटी रोड चौफटका पर उस की अपनी दुकान थी. घर में पत्नी परवीन बेगम के अलावा 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. 18 वर्षीया आयशा तीसरे नंबर पर थी. एकहरे बदन की गोरीचिट्टी आयशा देखने में ठीकठाक लगती थी.

आयशा के भाई इमरान की नाजिम से खूब पटती थी. उन की यह दोस्ती बचपन की थी. नाजिम का उस के घर भी आनाजाना था. इसी आनेजाने में आयशा को नाजिम कब पसंद आ गया, उसे खुद ही पता नहीं चला. नाजिम आयशा को 1-2 दिन दिखाई न देता तो वह बेचैन हो उठती. उस की आंखें नाजिम के दीदार को तड़पने लगतीं.

जल्दी ही नाजिम को आयशा की इस तड़प का अहसास हो गया. यही वजह थी कि जिस आग में आयशा जल रही थी, उसी आग मे नाजिम भी जलने लगा. वह जब भी आयशा के घर आता, चाहतभरी नजरों से उसे देखता रहता.

ऐसे में ही किसी दिन आयशा और नाजिम को तनहाई में मिलने का मौका मिला तो दोनों के दिल की तड़प होठों पर आ गई. नाजिम ने आयशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘आयशा, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. जी चाहता है मैं तुम्हें हमेशा देखता रहूं.’’

‘‘नाजिम, मेरा भी यही हाल है.’’ आयशा उस के नजदीक आकर बोली, ‘‘मेरा भी मन करता है कि हर पल तुम्हें ही देखती रहूं, तुम से खूब बातें करूं, तुम्हारे साथ घूमूं. तुम मेरे दिलोदिमाग में रचबस गए हो. दिन में चैन नहीं मिलता तो रातों को नींद नहीं आती. बस, तुम्हारी ही यादों में खोई रहती हूं.’’

आयशा अपनी बात कह ही रही थी कि नाजिम ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. इस के बाद धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. गुपचुप तौर पर दोनों कभी घर में तो कभी घर के बाहर रात के अंधेरों में मिलनेजुलने लगे. आयशा जब भी नाजिम से मिलती, अपने प्यार की दुनिया बसाने का स्वप्न उस के सीने पर सिर रख कर देखती.

आयशा नाजिम पर कुछ इस कदर दीवानी हुई कि एक दिन अपना सबकुछ उस के हवाले कर दिया. इस के बाद नाजिम ने उसे भरोसा दिलाया कि दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, लेकिन वह उसे इधर से उधर नहीं होने देगा. वह उसी से निकाह करेगा. प्यार मोहब्बत कोई छिपने की चीज तो है नहीं, यही वजह थी कि नाजिम और आयशा की मोहब्बत का भी खुलासा हो गया. गांव में उन की मोहब्बत की चर्चाएं होने लगीं.

यह खबर इब्राहीम और उस के बेटे इमरान तक भी पहुंच गई. बहन की इस करतूत से इमरान को आग सी लग गई. वह आयशा पर नजर रखने लगा. उस ने आयशा का घर से निकलना बंद करा दिया.

इस के बाद उस ने नाजिम को भी धमकाया, ‘‘खबरदार, अब कभी आयशा से मिलने की कोशिश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा.’’

लेकिन नाजिम और आयशा की मोहब्बत इतनी गहरी हो चुकी थी कि इमरान की कोई भी कोशिश सफल नहीं हुई. किसी न किसी बहाने आयशा और नाजिम मिल ही लेते थे.

ऐसे ही पलों में एक दिन आयशा ने कहा, ‘‘नाजिम, मेरे भाईजान इमरान को हमारी मोहब्बत पर सख्त ऐतराज है. वह नहीं चाहते कि मैं तुम से मिलूं. उन्होंने मुझ पर इतनी सख्ती कर दी है कि तुम से मिलना मेरे लिए मुश्किल हो गया है. गांव में भी हमारी मोहब्बत के चर्चे आम हो गए हैं. वैसे मेरी अम्मी और अब्बू को हमारी मोहब्बत पर ज्यादा ऐतराज नहीं है. अगर तुम अपने अब्बू को निकाह के लिए मेरे अब्बू के पास भेजो तो बात बन सकती है.

नाजिम को आयशा की बात उचित लगी. उस ने आयशा को आश्वासन दिया कि घर पहुंचते ही वह अम्मीअब्बू से निकाह की बात करेगा. नाजिम ने कहा ही नहीं, बल्कि घर आते ही बात भी की. तब अगले ही दिन उस के अब्बू आयशा के अब्बू इब्राहीम से मिलने उन के कारखाने पर जा पहुंचे. उन्होंने उन से आयशा और नाजिम के निकाह की बात की तो पहले तो इब्राहीम ने मना कर दिया.

लेकिन बाद में कहा, ‘‘देखो आरिफ भाई, मुझे तो इस निकाह से कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि इमरान इस निकाह के लिए तैयार नहीं होगा. फिर भी मैं घर में बात चलाऊंगा.’’

इमरान को जब पता चला कि आयशा के निकाह के लिए नाजिम के अब्बू उस के अब्बू के पास आए थे तो वह स्वयं को रोक नहीं सका और जा कर नाजिम से झगड़ा करने लगा. तब गांव के कुछ लोगों ने उसे समझाबुझा कर शांत किया.

कहीं कुछ उलटासीधा न हो जाए, यह सोच कर गांव के कुछ बुजुर्गों ने इकट्ठा हो कर इमरान को समझाया कि नाजिम खाताकमाता है, आयशा भी बालिग हो चुकी है, इसलिए दोनों का निकाह करने में उसे परेशानी किस बात की है? कोई ऊंचनीच हो, इस से बेहतर है कि दोनों का निकाह कर दिया जाए. बुजुर्गों के सामने तो इमरान कोई विरोध नहीं कर सका, लेकिन दिल से वह इस निकाह के लिए तैयार नहीं हुआ.

आयशा और नाजिम की मोहब्बत की उम्र 2 साल से अधिक हो चुकी थी. लाख कोशिश कर के भी इमरान आयशा और नाजिम को अलग नहीं कर सका. बुजुर्गों के समझाने के बाद नाजिम और आयशा को लगने लगा था कि अब उन का निकाह हो जाएगा. इस की वजह यह थी कि दोनों के अम्मीअब्बू राजी थे. बात सिर्फ इमरान की थी. उन्हें विश्वास था कि एक न एक दिन वह भी मान जाएगा.

postmortam house par imran ke parants

15-20 दिनों तक इमरान ने भी विरोध नहीं किया तो आयशा और नाजिम को लगा कि अब सारी रुकावटें दूर हो गई हैं. जबकि आयशा ने जो किया था, उस से इमरान अंदर ही अंदर सुलग रहा था. वह किसी भी कीमत पर आयशा का निकाह नाजिम से नहीं होने देना चाहता था. इस के लिए जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने गुपचुप तरीके से साजिश रच डाली. इस साजिश में उस ने अपने मौसेरे भाई उस्मान, जो बेगम बाजार, बमरौली का रहने वाला था तथा अपने दोस्त सुफियान को विश्वास में ले कर शामिल कर लिया.