दोस्त की खातिर : प्रेमिका को उतारा मौत के घाट – भाग 3

पता चला कि घटनास्थल से अपूर्वा के गले की सोने की चेन और 2 मोबाइल गायब थे. कमरे में काफी सामान बिखरा हुआ था, जिस से आभास होता था कि मामला लूटपाट में हुई हत्या का हो सकता है. लेकिन टेबल पर रखा पानी का गिलास और चाय का प्याला इस थ्यौरी को झुठला रहे थे. इस का मतलब कोई ऐसा व्यक्ति आया था, जिसे अपूर्वा जानती थी. वह कौन रहा होगा, यह तफ्तीश का विषय था.

घटनास्थल की पूरी छानबीन के बाद इंसपेक्टर अशोक माली और क्राइम ब्रांच की टीम अपनेअपने औफिस लौट आए. इंसपेक्टर माली अपूर्वा के पिता अनंत राव को साथ ले आए थे. उन की ओर से पुलिस ने अज्ञात के विरुद्ध हत्या और लूटपाट का केस दर्ज कर लिया. केस दर्ज होने के बाद स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अपनेअपने ढंग से जांच शुरू कर दी.

मामला चूंकि लातूर के पौश एरिया में हुई हत्या और संभ्रांत समाज से जुड़ा था, इसलिए अधिकारी चाहते थे कि हत्यारा जल्दी से जल्द गिरफ्त में आ जाए. क्योंकि ऐसा न होने पर धरने और विरोध प्रदर्शनों की आशंका थी. इस मामले पर एसपी राजेंद्र माने स्वयं नजर रखे हुए थे. उन्होंने इस केस की तफ्तीश के लिए स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच की 2 टीमें बना कर उन्हें अलगअलग काम सौंपे.

इंसपेक्टर अशोक माली ने अपूर्वा के पिता अनंतराव के संदेह जताने पर अपूर्वा, उस के फ्रैंड मौली घोपल और सार्थक के पिता बालासाहेब को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू की.

दूसरी ओर क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सुनील नागर गोजे अपने सहायक इंसपेक्टर सुनील रेजीतवाड़, नामदेव पाटिल और बालाजी जाघव के साथ अपूर्वा के नए पुराने दोस्तों और उन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर छानबीन कर रहे थे. इस कवायद में उन्हें सफलता भी मिली.

अमर शिंदे आया राडार पर

काल डिटेल्स से अपूर्वा का पुराना दोस्त अमर शिंदे पुलिस के राडार पर आ गया, उस से हत्या के एक घंटा पहले अपूर्वा से फोन पर बात की थी. इंसपेक्टर अशोक माली ने अमर शिंदे को गिरफ्तार कर लिया. इस के साथ ही मौली घोपल और सार्थक के पिता बाला साहेब को क्लीन चिट दे दी गई.

अमर शिंदे से जब क्राइम ब्रांच ने पूछताछ शुरू की तो अपूर्वा मर्डर केस परत दर परत खुलता गया. अमर ने अपूर्वा की हत्या की बात स्वीकार कर ली और यह भी बता दिया कि उसे अपूर्वा की मौत का कोई अफसोस नहीं है. अमर ने बताया कि उस ने अपूर्वा को अपने दोस्त सार्थक की आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए मौत के घाट उतारा था.

अमर श्ंिदे को अपूर्वा के लातूर आने का पता था. वह चूंकि पड़ोस में रहता था और अपूर्वा और उस के घर पर नजर रखे हुए था, इसलिए उसे पता था कि उस के पिता अनंतराव यादव जामखंडी स्थित उस के मैडिकल कालेज गए हैं. वह यह भी जानता था कि अपूर्वा की मां नियत समय पर रोज मंदिर जाती हैं. इसलिए उस ने वही समय चुना.

इस के लिए उस ने एक घंटे पहले अपूर्वा को फोन कर के कहा कि वह उस से मिलना चाहता है. अपूर्वा ने यह सोच कर अमर शिंदे को 12 बजे घर बुलाया कि तब तक मां आ जाएगी. लेकिन अमर शिंदे का इरादा कुछ और ही था, इसलिए वह 11 बजे ही आ गया. वह घर के आसपास खड़ा हो कर अपूर्वा की मां के जाने का इंतजार करने लगा.

साढ़े 11 बजे जब मोहिनी पूजा की थाली ले कर घर से बाहर चली गईं तो अमर ने अपूर्वा के घर की घंटी बजा दी. अमर को वक्त से पहले आया देख अपूर्वा की हालत कुछ ऐसी हो गई कि वह इनकार करने की स्थिति में नहीं रही. वैसे भी अमर उस का बचपन का साथी और पुराना दोस्त था. इसलिए उस ने अंदर बुला लिया.

अपूर्वा नहीं समझ पाई अमर के इरादे को

अपूर्वा ने अमर को सोफे पर बैठाया और पानी का गिलास ले कर आई. थोड़ी देर अपूर्वा और अमर सार्थक की आत्महत्या के मामले पर बात करते रहे. अपूर्वा ने उस की मौत पर अफसोस जताया.

इस बातचीत के बाद अपूर्वा चाय बनाने किचन में चली गई. इसी बीच अमर ने टेबल पर रखा टीवी का रिमोट उठा लिया और टीवी चालू कर दिया. तभी उस ने अपना बैग खोल कर उस में से चाकू निकाला और वहीं अपने पास रख लिया.

जब अपूर्वा चाय ले कर आई तब अमर चैनल बदलबदल कर देख रहा था. अपूर्वा ने टेबल पर चाय रखी तो अमर ने टीवी की आवाज तेज कर दी. साथ ही अपूर्वा के कुछ समझने से पहले ही उसे पकड़ कर चाकू से उस का गला रेत दिया.

अपूर्वा चीख कर फर्श पर गिर गई तो उस ने टीवी की आवाज और तेज कर दी और अपूर्वा के शरीर पर दनादन चाकू के कई वार किए. अपूर्वा चीखी चिल्लाई लेकिन उस की आवाज कमरे में चल रहे टीवी की तेज आवाज में दब कर रह गई.

अपूर्वा की हत्या के बाद अमर ने टीवी की आवाज कम की और उस के गले की चेन और उस के 2 स्मार्ट फोन अपने बैग में डाल लिए. अलमारी का सामान उस ने बाहर निकाल कर डाल दिया ताकि मामला लूटपाट का लगे.

अपना काम कर के अमर शिंदे बाहर वाले दरवाजे की कुंडी लगा कर वहां से निकल गया. जाते वक्त उस ने नफरत से कहा, ‘‘तू सिर्फ सार्थक की हो सकती थी. तू तो नहीं मानी, पर मैं ने तुझे उस के पास भेज दिया. हिम्मत हो तो ऊपर जा कर मिलाना उस से नजरें.’’

अमर शिंदे से विस्तृत पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच ने उसे एमआईडीसी थाने की पुलिस को सौंप दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने इस केस में भादंवि की धारा 201 और 34 और जोड़ दी. उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया गया. यह मामला अपने आप में अनूठा इसलिए था, क्योंकि दोस्त ने दोस्त द्वारा प्रेमिका के लिए आत्महत्या करने से कुपित हो कर उस की एकतरफा प्रेम वाली प्रेमिका को मौत के घाट उतारा था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क के दरिया में पति को बहाया – भाग 1

स्कूल में लंच का टाइम हुआ तो बबीता अपना खाने का टिफिन ले कर स्टोर रूम में आ गई. वहां बंटी एक कुरसी पर मुंह लटकाए बैठा था. उस के चेहरे पर उदासी थी.

बबीता ने उसे हैरानी से देखा, फिर एक कुरसी पर बैठ कर उस ने अपना टिफिन बौक्स खोलते हुए बंटी को टोका, ”आज खाना नहीं खाना है क्या?’’

”मैं खाना नहीं लाया,’’ बंटी गहरी सांस भर कर बोला, ”तुम खाना खा लो बबीता.’’

”क्या आज फिर बीवी से झगड़ा हुआ है तुम्हारा?’’ बबीता ने टिफिन का ढक्कन खोलते हुए पूछा.

”हां.’’ बंटी ने सिर हिलाया, ”आज केवल इस बात पर झगड़ बैठी कि मैं ने चाय में चीनी ज्यादा होने की शिकायत कर दी थी. बात बहुत छोटी थी बबीता, लेकिन लगता है वह मुझ से जलीभुनी बैठी रहती है. उसे कोई पौइंट मिला और लगी झगडऩे. मेरी जिंदगी तो नरक बना कर रख दी है उस ने. मैं आज गुस्से में भूखा ही चला आया हूं.’’

बबीता अपनी जगह से उठी और बंटी की कुरसी के पास आ गई. उस ने बंटी के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ”छोड़ो घर की बात, आओ मेरे साथ खाना खा लो.’’

”नहीं बबीता, अगर मैं ने तुम्हारे टिफिन से खाया तो तुम्हारा पति राकेश भूखा रह जाएगा. तुम राकेश को बुला लाओ और खाना खा लो. मैं अपने लिए कैंटीन से कुछ ले आता हूं.’’ बंटी कुरसी से उठने लगा.

बबीता ने उस की कलाई पकड़ ली, ”राकेश आज ड्यूटी पर नहीं आया है. उसे बुखार था, वैसे भी यदि वह आता तो मैं उसे अपने टिफिन में मुंह नहीं मारने देती.’’

बंटी ने कनखियों से बबीता की ओर देखा, ”ऐसा क्यों बोल रही हो बबीता, वो तुम्हारा पति है. उस का तुम पर और इस खाने पर पूरापूरा हक है.’’

”वह मेरा नाम का पति है बंटी, मुझे अब उस से नफरत होने लगी है.’’

”ऐसा क्यों, क्या मुझे ले कर वह अब भी तुम पर शक करता है?’’

”हां. उस का कहना है कि मैं उसे छोड़ कर तुम्हें चाहने लगी हूं. तुम्हारे साथ मेरा उठना बैठना उसे पसंद नहीं है.’’ बबीता ने कहतेकहते मुंह बिगाड़ा, ”छोड़ो ये बातें. तुम हाथ धो कर आओ. मैं ने आज तुम्हारी पसंद की आलूमटर की सब्जी बनाई है.’’

बंटी के मुंह में पानी आ गया. वह तुरंत बाहर गया और हाथ धो कर आ गया. बबीता के सामने वह बैठ गया तो बबीता ने टिफिन उस के सामने कर दिया. दोनों एक ही टिफिन में खाना खाने लगे.

बंटी 7-8 साल से फरीदाबाद के स्कूल में साफसफाई का काम कर रहा था. 4 साल पहले परेशान हालत में बबीता वहां काम की तलाश में आई तो बंटी ने उसे चपरासी की नौकरी पर रखवा दिया था. पहली ही नजर में बबीता उसे भा गई थी.

बंटी और बबीता में कैसे बनी नजदीकियां

27 साल की गदराए बदन की बबीता का रूपसौंदर्य किसी भी पुरुष को मोहित कर सकता था. शादीशुदा बंटी 2 बेटियों का बाप था, फिर भी बबीता को देख कर उस का मन उसे अपना बनाने के लिए डोल गया था. बबीता को स्कूल में नौकरी दिलवाने के पीछे उस का यही मकसद था कि बबीता उस का अहसान मान कर उस के करीब आ जाए. हुआ भी यही था. बबीता उस के आसपास ही मंडराने लगी थी. वह लंच बंटी के साथ ही बैठ कर करती थी.

यह सिलसिला लंबे समय तक चला, क्योंकि बबीता की परेशानी को भांप कर बंटी ने उस के पति राकेश को भी स्कूल में नौकरी पर लगवा दिया था. राकेश स्कूल बस में कंडक्टरी करने लगा था, इसलिए लंच में अब वह अपनी पत्नी बबीता के साथ लंच करने आ जाता था. बंटी को यह देख कर कुढऩ होती थी, लेकिन वह कर ही क्या सकता था. हां, उस ने यह जरूर महसूस किया था कि बबीता लंच टाइम में अपने पति राकेश की मौजूदगी पसंद नहीं करती थी.

जब कभी राकेश स्कूल के काम से लंच टाइम में बाहर रहता था तो बबीता बंटी को पास बिठा कर अपने ही टिफिन में खाना खिलाती थी. तब वह बहुत खुश नजर आती थी. उस दिन भी राकेश स्कूल में नहीं था. उसे बुखार था, इसलिए वह स्कूल में आया ही नहीं था. बबीता टिफिन में खाना बंटी के लिए बना कर लाई थी, जिस में बंटी के पसंद की आलूमटर की सब्जी थी.

”वाह बबीता! क्या सब्जी बनाई है तुम ने, जी चाहता है तुम रोज मेरे लिए खाना बना कर लाओ और प्यार से मुझे खिलाओ तो मेरी नीरस हो रही जिंदगी में बहार आ जाए.’’ बंटी ने तारीफ करते हुए कहा.

बबीता मुसकरा पड़ी, ”मैं तो तुम्हारी नीरस जिंदगी में सात रंग बिखरने को तैयार हूं बंटी, लेकिन उधर तुम्हारी पत्नी और इधर मेरा पति राकेश. दोनों के रहते हुए यह ख्वाब कभी पूरे नहीं हो सकेंगे.’’

”ख्वाब जरूर पूरे होंगे बबीता,’’ बंटी दूर शून्य में देखता हुआ बोला, ”यदि तुम मेरे साथ हो तो मैं यह ख्वाब भी पूरा कर के दिखाऊंगा.’’

बबीता उसे हैरानी से देख कर मन ही मन अंदाजा लगा रही थी कि अब बंटी उसे सचमुच दिल की गहराई से प्यार करने लगा है. उसे राकेश की दिल के अंदर जगह देने में कोई नुकसान नहीं होगा.

3 अगस्त, 2023 को बबीता फरीदाबाद (हरियाणा) के थाना बीपीटीपी में पहुंची तो उस के चेहरे पर परेशानी के अनेक भाव थे. एसएचओ उस वक्त चायनाश्ता कर के अखबार पढ़ रहे थे.

उन्होंने बबीता की उड़ी हुई रंगत देखी तो अखबार मेज पर रख कर पूछा, ”क्या बात है, तुम बहुत घबराई हुई और परेशान दिखाई दे रही हो.’’

”साहब मेरे पति…’’ कहतेकहते बबीता रोने लगी.

”क्या हुआ तुम्हारे पति को?’’

”वह कल शाम को बाजार गए थे, तब से अब तक घर नहीं आए हैं. मैं ने उन की हर जगह खोजखबर की, वह कहीं भी नहीं मिले हैं.’’ रोते हुए बबीता ने बताया.

”तुम्हारे पति यहां पर कहां रहते हैं?’’

”हम खेड़ीकलां गांव के हैं साहब.’’

”तुम्हारे पति कहीं नौकरी करते होंगे, वहां जा कर पता लगाया तुम ने?’’

”साहब, मैं और मेरे पति राकेश फरीदाबाद के एक स्कूल में नौकरी करते हैं. हम गांव से ही फरीदाबाद अपने काम पर आतेजाते हैं. कल शाम को मैं खाना बना रही थी, तब पति मुझ से बोले कि एक जरूरी काम से बाजार जाना पड़ रहा है. खाना बनाओगी, तब तक लौट आऊंगा. मैं ने खाना बनाया, बच्चों को खिलाया और पति की राह देखने घर के आंगन में बैठ गई. रात गहराने लगी तो मैं ने उन्हें फोन लगाया, लेकिन उन का फोन स्विच औफ आ रहा था.

”10 बजे मेरे सब्र का बांध टूट गया. मैं अपने पासपड़ोस वालों को साथ ले कर बाजार गई. उन्हें हर संभावित जगहों पर तलाश किया, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. मैं घर लौट आई. रात भर सो नहीं पाई. सोचा रात में वह कहीं रुक गए होंगे, सुबह आ जाएंगे, लेकिन अब दिन के 9 बजने को आए हैं, वह अभी तक घर नहीं लौटे हैं.’’

”तुम अपने पति की गुमशुदगी लिखवा दो. पति का फोटो भी दे दो. हम तुम्हारे पति की तलाश करने की हरसंभव कोशिश करेंगे.’’ एसएचओ ने कहा.

एसएचओ ने बबीता को एक सिपाही के साथ गुमशुदगी दर्ज करवाने के लिए भेज दिया. पुलिस ने 35 वर्षीय राकेश कुमार की गुमशुदगी दर्ज कर ली गई. बबीता पति का फोटो साथ लाई थी. उसे जमा कर लिया गया.

अदालत में ऐसे झुकी मूछें – भाग 3

किरन की हत्या और रोहतास के साथ हुए अन्याय को मीडियाकर्मियों ने विभिन्न टीवी चैनलों पर दिखाना शुरू कर दिया. इस खबर के बाद क्षेत्र में हंगामा उठ खड़ा हुआ. कई समाजसेवी और महिला संगठन सड़कों पर उतर आए थे.

किरन के हत्यारे मातापिता और भाई की गिरफ्तारी को ले कर आवाज उठने लगी थीं. हर गली, नुक्कड़ पर इस घटना की चर्चा होने लगी थी. कोई इसे उचित ठहरा रहा था तो कोई अन्याय कह रहा था. पुलिस प्रशासन ने इस मामले से निपटने की पूरी तैयारी कर ली थी.

रोहतास की शिकायत पर 14 फरवरी, 2017 को थाना सदर में किरन के भाई अशोक और अन्य लोगों के खिलाफ किरन की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 201, 506, 34 के तहत दर्ज कर लिया गया. पुलिस उसी रात जुगलना गांव पहुंच गई.

पुलिस ने लोगों से पूछताछ कर किरन के बारे में जानकारी जुटाई. देर रात पुलिस ने रोहतास की सुरक्षा के मद्देनजर उसे एक गनमैन दे दिया था. क्योंकि अशोक ने रोहतास को जान से मारने की धमकी भी दी थी. दूसरे ऐसे गंभीर माहौल में रोहतास की सुरक्षा अति आवश्यक बन गई थी.

पुलिस ने श्मशान से बरामद किए सबूत

अगली सुबह पुलिस ने जुगलना गांव जा कर अशोक को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया था. अशोक की गिरफ्तारी के बाद थाना सदर और सीन औफ क्राइम की टीम ने मृतका किरन के कमरे का बड़ी बारीकी से मुआयना किया और कुछ चीजों को अपने कब्जे में ले लिया था. इस के बाद पुलिस परिवार के लोगों, गांव के प्रमुख लोगों और सरपंच को साथ ले कर श्मशान घाट पहुंची.

अशोक की निशानदेही पर उस जगह की पहचान करवाई गई, जहां किरन का अंतिम संस्कार किया गया था. श्मशान से पुलिस ने हड्डियों और राख के सैंपल लिए और उन्हें लैब में भेजने के बाद डीएनए टेस्ट की तैयारी शुरू कर दी थी.

इसी के साथ ही किरन द्वारा लिखा गया बताया जाने वाला सुसाइड नोट भी टीम ने अपने कब्जे में ले लिया था ताकि लिखाई की जांच की जा सके. क्राइम टीम ने छत पर उस जगह की मिट्टी के सैंपल भी लिए जिस जगह जहरीला पानी पीने के बाद किरन ने उल्टी की थी.

इस काम से फारिग होने के बाद 16 फरवरी को अशोक को अदालत में पेश कर 2 दिन का पुलिस रिमांड लिया, ताकि अभियुक्त से मृतका का मोबाइल फोन व इस केस से जुड़ी अन्य चीजें बरामद की जा सकें. रिमांड अवधि में पुलिस ने कई सबूत जुटाए. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने अशोक को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

पुलिस ने समय पर इस केस की चार्जशीट अदालत में फाइल कर दी थी. यह केस जिला एवं सत्र न्यायालय में एक साल 10 महीने तक चला था. बचाव पक्ष की तरफ से इस केस को ललित गोयल लड़ रहे थे और अभियोजन पक्ष की ओर से इस केस की पैरवी सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट के अधिवक्ता जतिंदर कुश कर रहे थे.

अदालत में डीएनए की रिपोर्ट भी पेश की गई थी जो श्मशान से उठाई गई मृतका की हड्डियों के डीएनए और मृतका के भाई अशोक के डीएनए से मैच कर गई थी. लेकिन पुलिस ने छत से उल्टी के जो सैंपल लिए थे. उन की जांच रिपोर्ट से यह बात साबित नहीं हो सकी कि मृतका को जहर दे कर मारा गया था. जहर की बात रोहतास ने ही पुलिस व अन्य लोगों को अपने बयान में बताई थी.

प्रेमी मुकर गया गवाही से

इस केस में नया मोड़ उस समय आया था, जब मृतका के पति रोहतास ने अदालत में अपनी गवाही देने से मना कर दिया था, जिस प्रेम विवाह की कीमत किरन को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी थी, वही रोहतास बेवफा  निकल गया था.

साथ जीनेमरने की कसमें खा कर शादी के बंधन में बंधने के बाद जब किरन की हत्या कर दी गई तो कानूनी लड़ाई लड़ने के बजाय रोहतास गवाही से ही मुकर गया. उस ने अपने बयान में अदालत को बताया था कि उसे पुलिस से कोई शिकायत नहीं है. उस ने अपने तौर पर पता लगा लिया है कि किरन की मौत प्राकृतिक तरीके से हुई थी.

रोहतास के इस बयान के बाद सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट ने किरन हत्याकांड के मुकदमे की कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली थी. ट्रस्ट के वकील जतिंदर कुश ने 5 सितंबर, 2018 को अदालत में एक पेटीशन दायर कर प्रार्थना की थी कि अभियुक्त अशोक के पिता पुलिस में हैं, जिस की वजह से सदर पुलिस ने सनातन धर्म ट्रस्ट के पदाधिकारियों की न तो गवाही दर्ज की थी और न ही किसी रजिस्टर या दस्तावेज को चैक किया था. जबकि इस केस में उन की गवाही की बड़ी अहमियत है.

ट्रस्ट की प्रार्थना स्वीकार कर अदालत ने 14 सितंबर को ट्रस्ट के उस रजिस्टर को चैक किया, जिस में शादी के बाद अपने हस्ताक्षर करते वक्त किरन ने अपनी हत्या होने की आशंका व्यक्त की थी.

इस के बाद सनातन धर्म ट्रस्ट के चेयरमैन संजय चौहान के बयान भी अदालत में दर्ज किए गए थे. तमाम गवाहियां और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अतिरिक्त सेशन जज डा. पंकज ने अशोक को किरन की हत्या का दोषी ठहराते हुए फैसले की तारीख 5 दिसंबर, 2018 तय कर दी थी.

न्यायाधीश डा. पंकज ने इस केस में अपना फैसला निर्धारित तिथि को दिन के 3 बज कर 58 मिनट पर सुनाया. इस फैसले से ठीक 10 मिनट पहले 3:48 बजे दोषी अशोक के थानेदार पिता सुशील उठ कर अदालत से बाहर चले गए थे. वह शायद पहले से ही जानते थे कि फैसला उन के पक्ष में नहीं होने वाला है.

दोषी अशोक को सजा सुनाने से पहले जज साहब ने इस मामले पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा था, ‘‘जो ऐसी साजिश रचते हैं, वह याद रखें कि फांसी का फंदा उन का इंतजार कर रहा है.’’

अदालत ने सुनाई फांसी की सजा

अदालत इसे रेयरेस्ट औफ रेयर अपराध मानते हुए किरन की हत्या के अपराध में आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दोषी को फांसी की सजा और एक हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. इस के अलावा धारा 201 के तहत 7 साल के कठोर कारावास की सजा का हुक्म भी दिया.

तभी मुजरिम अशोक ने अदालत से कम सजा करने की अपील करते हुए कहा था कि उस की मां को कैंसर है और वह अकसर बीमार रहती हैं. पिता को अपनी नौकरी से समय नहीं मिलता है. ऐसे में मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं है.

पर अदालत ने उस की अपील को खारिज करते हुए कहा था कि ऐसे अपराधी के साथ नरमी नहीं बरती जा सकती. सजा सुनने के बाद अशोक का सिर शर्म और पश्चाताप से नीचे झुक गया था.

किरन की मौत से पहले सन 2017 तक हिसार के गांव जुगलान में थानेदार सुरेश का हंसताखेलता परिवार था. 4 लोगों के इस छोटे से परिवार में बेटी की मौत हो गई और उस की हत्या के अपराध में बेटा जेल चला गया. पत्नी को कैंसर है और सुरेश स्वयं ड्यूटी पर बाहर रहते हैं. कैंसर से पीडि़त पत्नी अब बिना किसी सहारे के घर में अकेली रहेगी.

आखिर क्या मिला ऐसी मूंछ बचा कर. ध्यान से सोचा जाए तो अशोक ही अपने घर को उजाड़ने का कसूरवार निकला. जिस समाज के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया, अब वह समाज और समाज के ठेकेदार कहां हैं.

ईमानदार : क्या फल मिला अनुराग को उसकी ईमानदारी का?

राष्ट्रीय कृषक बैंक के अध्यक्ष जयगोपाल अपने केबिन में बैठे एक पत्र पढ़ रहे थे. आंखों के सामने से गुजरती पंक्तियों के साथ उन के चेहरे का तनाव बढ़ता जा रहा  था.

पत्र पढ़ कर उन्होंने एक ओर रखा और इंटरकौम का बटन दबा कर अपनी सैके्रेटरी नीलिमा से कहा, ‘‘नीलिमा, हमारी श्यामगंज शाखा में कोई अनुराग ठाकुर है. रिकौर्ड देख कर उस की पोजीशन पता करो और बताओ मुझे, जल्दी.’’

थोड़ी देर बाद नीलिमा हाथ में एक फाइल थामे राजगोपाल साहब के सामने खड़ी थी. वह फाइल देख कर बताने लगी, ‘‘सर, अनुराग ठाकुर वैसे तो कैशियर हैं, लेकिन फिलहाल एक्टिंग मैनेजर का काम देख रहे हैं. दरअसल, पूर्व मैनेजर राजेश की मौत के बाद वहां किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है. इसलिए अस्थाई तौर पर मैनेजर का काम उन्हीं को सौंप दिया गया था. वैसे भी वहां कोई ज्यादा काम नहीं है.’’

जयगोपाल साहब ने मेज पर रखा लेटर नीलिमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पढ़ो इसे, है तो गुमनाम, पर श्यामगंज से ही किसी ने भेजा है. हम इस लेटर को इग्नोर नहीं कर सकते.’’

नीलिमा फाइल साहब की मेज पर रख कर पत्र पढ़ने लगी. पत्र अध्यक्ष राजगोपाल के ही नाम आया था. लिखा था, ‘महोदय, हम खेतीबाड़ी कर के अपने खूनपसीने की कमाई आप के बैंक में जमा करते हैं. सुनने में आया है कि बैंक दिवालिया होने वाला है. वैसे भी यहां जो कुछ हो रहा है, उस के बाद यह तो होना ही था. पता चला है कि यहां के कैशियर अनुराग ठाकुर ने पिछले कुछ महीनों में लाखों का गबन किया है और वह गबन की रकम को शहर से बाहर ले जाने वाला है. जब तक इस तरफ आप का ध्यान जाएगा तब तक बैंक का दीवाला निकल चुका होगा.’

पत्र पढ़ कर नीलिमा ने कहा, ‘‘सर, यकीन नहीं होता. लेकिन…’’

‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं, एक लेटर बना कर लाओ, मैं आदेश जारी कर देता हूं. कल ही एक औडिटर को श्यामगंज रवाना करना है. छानबीन के बाद वह सीधे मुझे रिपोर्ट करेगा.’’

नीलिमा चली गई. उस ने बौस के आदेश का पालन किया. लेटर तैयार होते ही आदेश जारी हो गया. अगले दिन एक औडिटर को श्यामगंज भेज दिया गया. क्योंकि मामला अमानत में खयानत का था.

अचानक औडिटर को आया देख अनुराग ठाकुर को आश्चर्य हुआ. थोड़ा गुस्सा भी आया. उन्होंने तल्खी से कहा, ‘‘मेरे रिकौर्ड और लेजर की जांच करनी है? आखिर क्यों? महीने के बीच में ऐसा होता है क्या? न कोई नोटिफिकेशन, न कोई सूचना. यह कानून के खिलाफ है. ऐसी कौन सी आफत आ गई? अधिकारियों को कोई शक है तो मुझे हटा दें, तबादला कर दें.’’

औडिटर ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मिस्टर अनुराग, परेशानी की कोई बात नहीं है. समयसमय पर हम ऐसा करते रहते हैं. पहले भी कई शाखाओं में ऐसा हुआ है. वैसे आप चाहे तो अध्यक्ष का आदेश देख सकते हैं. यह रुटीन की काररवाई है. मुझे ज्यादा से ज्यादा 2 घंटे लगेंगे.’’

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं.’’ अनुराग ठाकुर बोले, ‘‘लेकिन लोगों को पता लगेगा तो मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इस कस्बे की छोटी सी बैंक है ये, मुझे सब लोग जानते हैं. बात फैलते देर नहीं लगेगी. लोग सोचेंगे, जरूर मैं ने कोई हेराफेरी की होगी.’’

‘‘नहीं, किसी को पता नहीं चलेगा.’’ औडिटर ने शांत भाव से कहा, ‘‘बस आप किसी को मत बताना. मैं सब कुछ चुपचाप निपटा दूंगा.’’

औडिटर की विनम्रता देख कर अनुराग ठाकुर ने मूक स्वीकृति दे दी. औडिटर 1 घंटे में अपना काम निपटा कर लौट गया.

अगले दिन उस ने अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष राजगोपाल के सामने रख दी. रिपोर्ट के हिसाब से सब कुछ ठीक था. कहीं भी एक पैसे की हेराफेरी नहीं पाई गई थी. रिपोर्ट देख कर राजगोपाल बोले, ‘‘एक गुमनाम पत्र को हमें इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए थी.’’

बात वहीं खत्म हो गई.

सब कुछ ठीक चल रहा था. एक महीना ठीक से गुजर गया. महीना भर बाद बैंक अध्यक्ष राजगोपाल को फिर एक पत्र मिला. इस बार पत्र किसी दूसरे आदमी ने और दूसरी जगह से लिखा था. इस शिकायती पत्र में भी अनुराग ठाकुर को निशाना बना कर हेराफेरी की बात दोहराई गई थी. पत्र लिखने वाले ने दावा किया था कि बैंक के खातों की जांच ठीक से नहीं की गई थी.

कैशियर ने औडिटर को या तो बेवकूफ बना दिया था या फिर कुछ दे दिला कर संतुष्ट कर दिया था. आप को इस बात का अहसास तब होगा जब तीर कमान से निकल जाएगा. हो सकता है, आप इस अजनबी के खत पर ध्यान न दें. पर एक बार सोचें जरूर कि क्या इस मामले की दोबारा इंक्वायरी करानी चाहिए.

पत्र पढ़ कर राजगोपाल सोच में पड़ गए. वह दोबारा इंक्वायरी के पक्ष में नहीं थे. लेकिन उन के सामने पड़ा पत्र उन्हें बारबार सोचने को मजबूर कर रहा था. उन के मन में आया भी कि श्यामगंज ब्रांच में इंक्वायरी कर के आए औडिटर से पूछताछ करें. लेकिन उन के जहन में सवाल उठा कि उस ने कुछ गलत किया होगा तो वह सच क्यों बोले? यह भी संभव है कि अनुराग ठाकुर चतुर चालाक रहा हो और उस ने औडिटर को हिसाबकिताब में कुछ इस तरह उलझाया हो कि वह उस की चाल को पकड़ ही न पाया हो.

किसी ब्रांच में अगर कोई गड़बड़ी होती, वह भी आगाह करने के बाद तो इस की जिम्मेदारी राजगोपाल की ही बनती थी. अपनी इमेज बचाए रखने और संभावित गड़बड़ी से बचने के लिए दोबारा इंक्वायरी कराने में कोई हर्ज नहीं था. वैसे भी यह इंटरनल इंक्वायरी थी. इसलिए सोचविचार कर उन्होंने इस बार इस मामले को पूरी तरह खत्म करने के लिए 3 जिम्मेदार औडिटरों की टीम से जांच कराने का फैसला किया.

अध्यक्ष राजगोपाल ने उसी वक्त अपनी सेक्रैटरी नीलिमा को बुला कर आदेश का लेटर तैयार कराया और उस पर हस्ताक्षर कर दिए. अगले ही दिन 3 चुनिंदा औडिटरों की टीम श्यामगंज के लिए रवाना हो गई. औडिटरों ने श्यामगंज ब्रांच में पहुंच कर अनुराग ठाकुर को अपने आने का मकसद बताया तो वह नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर मामला क्या है? क्यों मेरी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है?’’

‘‘आप नाराज न हों मिस्टर अनुराग, कोई खास बात नहीं है.’’ एक औडिटर ने उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘‘इस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हम अपना काम कर के चुपचाप चले जाएंगे.’’

अनुराग को गुस्सा तो आ रहा था, लेकिन ऊपरी आदेश था इसलिए चुप होना पड़ा. एक औडिटर अनुराग के साथ बैठ गया और बाकी 2 अपने काम में जुट गए. इस बार एकएक चीज का बारीकी से निरीक्षण किया गया. इस काम में पूरे 7 घंटे लगे. अनुराग चुपचाप देखने के अलावा कुछ न कर सके.

औडिटरों की टीम अपना काम कर के हेड औफिस लौट गई. इस टीम को हिसाबकिताब में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी.

एक सप्ताह बाद राष्ट्रीय कृषक बैंक अध्यक्ष राजगोपाल अपने केबिन में बैठे थे. तभी नीलिमा ने आ कर कहा, ‘‘सर, श्यामगंज ब्रांच से मिस्टर अनुराग ठाकुर आए हैं और आप से मिलना चाहते हैं.’’ राजगोपाल ने नीलिमा से कहा कि उन्हें तुरंत अंदर भेज दें.

अनुराग अंदर आए तो अध्यक्ष राजगोपाल ने अपनी आदत के विपरीत उठ कर उन का स्वागत किया, उन से गर्मजोशी से हाथ मिलाया. लेकिन इस के बावजूद अनुराग ने खुशी का कोई इजहार नहीं किया. उन के चेहरे पर नागवारी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

औपचारिकता के बाद अनुराग ने एक लेटर राजगोपाल की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं अपने पद से इस्तीफा देना चाहता हूं. ये रहा मेरा रिजाइन लेटर.’’

राजगोपाल चौंके. फिर उन्हें बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्यों, इस्तीफा देने की क्या जरूरत पड़ गई. यह फैसला किस लिए?’’

‘‘सर, पिछले डेढ़ महीने से मुझ पर शक किया जा रहा है. मेरी ईमानदारी पर अंगुलियां उठ रही हैं. मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकता. मुझे इस से दिमागी तौर पर बहुत तकलीफ पहुंची है. मेरी साख खत्म हो गई है. बीवीबच्चे तक शक की नजरों से देखने लगे हैं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं.’’ अध्यक्ष राजगोपाल की बातों से गलती का अहसास साफ झलक रहा था. वह कुछ देर तक चुप बैठे गहराई से सोचते रहे. फिर अनुराग के चेहरे पर नजरें जमाते हुए बोले, ‘‘हेड औफिस से जो गलती हुई है, उसे हम सुधार देते हैं. श्यामगंज ब्रांच में मैनेजर का पद अभी खाली पड़ा है. आप उसे स्थाई तौर पर संभाल लीजिए. आप की साख खुद ब खुद बन जाएगी. पद भी बढ़ेगा और वेतन भी. ईमानदार आदमी यूं ही नहीं मिलते. हम आप का इस्तीफा मंजूर नहीं कर सकते मिस्टर अनुराग. फाड़ कर फेंक दीजिए इसे.’’

अनुराग ने मैनेजर के हाथ से इस्तीफा लेते हुए हैरानी से पूछा, ‘‘क्या आप इस मामले में वाकई संजीदा हैं सर?’’

‘‘बिलकुल, मैं अभी सारी काररवाई पूरी करा देता हूं.’’ कह कर राजगोपाल ने इंटरकाम का बटन दबा कर अपनी सैके्रटरी नीलिमा को बुलाया.

मैनेजर बनने की खुशखबरी के साथ अनुराग ठाकुर श्यामगंज लौट आए. घर लौट कर उन्होंने यह खुशखबरी अपनी पत्नी को सुनाई. फिर सोफे पर पसरते हुए बोले, ‘‘पिछले 20 सालों से अपनी ईमानदारी को अपने ही कंधों पर उठाए घूम रहा था. कोई जानता ही नहीं था कि मैं ईमानदार हूं. क्या फायदा ऐसी ईमानदारी का? लेकिन मेरे बारे में अब सब जान गए कि मैं कितना ईमानदार हूं. अध्यक्ष तक को पता लग गया.’’

मिसेज अनुराग का चेहरा खुशी से दमक रहा था. अनुराग पत्नी का हाथ थाम कर बोले, ‘‘कमाल का दिमाग है तुम्हारा. आखिर तुम्हारे लेटर वाले आइडिए ने अपना कमाल दिखा ही दिया.’’

‘‘कमाल ही नहीं दिखाया, आप को मैनेजर भी बनवा दिया. ईमानदार मैनेजर.’’ कह कर मिसेज अनुराग खिलखिला कर हंस पड़ीं.

ऐसी बेटी किसी की न हो – भाग 3

प्रिंस और सोनिया की जुगलबंदी

दरअसल प्रिंस और सोनिया अब एकदूसरे को पसंद करने लगे थे लेकिन सोनिया समझ गई थी कि उसे इतनी कमाई नहीं होती कि वह उस के खर्चे लंबे समय तक उठा सके. लेकिन सोनिया के दिल्ली में मातापिता के पास रहने के दौरान भी प्रिंस अकसर सोनिया से मिलने के लिए दिल्ली आता जाता रहता था. सोनिया ने अपने मातापिता को बताया कि वे जल्द ही शादी करने वाले हैं.

कुछ समय बाद ही प्रिंस को उस के घर आतेजाते ये बात पता चल चुकी थी कि दोनों भाई परिवार से अलग हैं और छोटी बेटी हरजिंदर कौर के सोनिया के पति से संबंध हो जाने के बाद उस के मातापिता के पास केवल सोनिया ही थी, जो उस मकान की हकदार थी. उस 100 वर्गगज के मकान की कीमत लगभग 70-80 लाख रुपए थी. इसलिए प्रिंस ने सोनिया के दिमाग में यह बात डाल दी कि अगर वह अपने मातापिता से इस मकान को अपने नाम करा ले तो वे दोनों शादी कर के दिल्ली में इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल कर आगे की जिंदगी चैन से बसर कर सकते हैं.

सोनिया को भी उस की बात पसंद आई. सोनिया ने अपने मातापिता से घर को उस के नाम पर करने के लिए कहा तो पिता बुरी तरह भड़क गए. कहने लगे क्या हुआ जो मेरे दूसरे बच्चे मेरे साथ नहीं रहते. अरे ये मेरी मेहनत की कमाई से बनाई गई प्रौपर्टी है, इस पर उन सब का भी बराबर का अधिकार है. जब तक मैं जिंदा हूं, इस पर किसी एक का अधिकार नहीं हो सकता.

कई बार बात करने के बाद भी गुरमीत सिंह और जागीर कौर मकान को सोनिया के नाम ट्रांसफर करने के लिए राजी नहीं हुए. अपने सपने में मातापिता को बाधक बनता देख कर सोनिया के दिमाग में उन के लिए खुराफाती खयाल आने लगे.

जब उस ने देख लिया कि पिता प्रौपर्टी उस के नाम नहीं करेंगे तो उस ने सब से पहले पिता के संदूक से उस प्रौपर्टी के पेपर चुरा लिए. बाद में उस ने प्रिंस की मदद से उन दस्तावेजों को जालसाजी कर के अपने नाम करवा लिया. फिर उन दोनों ने तिलकनगर के प्रौपर्टी डीलर बिट्टू से इस प्रौपर्टी को बिकवाने के लिए बात की तो उस ने जल्द ही एक तय रकम में इस प्रौपर्टी को बिकवाने का वादा किया.

इस दौरान प्रिंस के बहकावे में आ कर उस ने तय कर लिया कि अगर उन्हें मातापिता की संपत्ति हथियानी है तो उन की हत्या करनी पड़ेगी. बस यह खयाल आते ही उन्होंने इस की प्लानिंग शुरू कर दी. संयोग से मौका भी जल्द ही मिल गया. अपने पिता की मौत हो जाने के कारण 10 फरवरी, 2019 को जागीर कौर पंजाब के जालंधर स्थित अपने मायके चली गई थीं. पिता गुरमीत सिंह के घर में अकेले होते ही सोनिया ने प्रिंस से बात की और कहा कि पापा घर में अकेले हैं. मौका अच्छा है, तुम जल्दी दिल्ली आ जाओ.

प्रिंस समझ गया कि अकेले यह काम उस के वश का नहीं है. लिहाजा उस ने लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन में रहने वाले 2 परिचितों रिंकू और दिवाकर से बात की. दोनों लूट, चोरी व डकैती करते थे.  प्रिंस ने दोनों को 50 हजार रुपए दिए और साथ देने के लिए राजी कर लिया. जिस के बाद प्रिंस 21 फरवरी को रिंकू व दिवाकर के साथ दिल्ली में सोनिया के घर पहुंच गया.

पहले पिता को लगाया ठिकाने

उस के घर पहुंचने से पहले ही सोनिया ने रात को अपने पिता को दी गई चाय में नींद की गोलियां पिला कर बेसुध कर दिया. फिर प्रिंस ने उन दोनों के साथ मिल कर गुरमीत की गला घोंट कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उस ने उन की लाश घर में रखे एक लाल रंग के सूटकेस में भरी और गुरमीत सिंह की मोटरसाइकिल पर प्रिंस व रिंकू सूटकेस रख कर सैयद नांगलोई नाले में फेंक आए.

सोनिया के लिए अच्छी बात यह थी कि पिता की खैरखबर लेने वाला कोई नहीं था. कई दिन ऐसे ही गुजर गए. इसी बीच जागीर कौर ने सोनिया को फोन कर के बताया कि वह 2 मार्च को दिल्ली लौटेगी.

यह सूचना सोनिया ने अपने प्रेमी प्रिंस को दे दी. जागीर कौर 2 मार्च की रात को दिल्ली लौट आईं. जागीर कौर ने घर आते ही सोनिया से अपने पति गुरमीत सिंह के बारे में पूछा, तो सोनिया ने जवाब दिया कि उन की तबीयत खराब है और वह अस्पताल में भरती हैं.

जागीर कौर ने पूछा कि ऐसा उन्हें क्या हुआ जो अस्पताल में भरती करना पड़ा.

‘‘मम्मी, अचानक उन्हें हार्ट अटैक हुआ था. मैं ने आप को फोन कर के इसलिए खबर नहीं दी कि आप और परेशान हो जाएंगी क्योंकि नानाजी की मौत पर आप पहले से दुखी थीं.’’ सोनिया ने बताया.

‘‘कल मैं अस्पताल चलूंगी.’’ जागीर कौर बोलीं.

‘‘ठीक है मम्मी, कल मैं आप को पापा के पास ले कर चलूंगी.’’ सोनिया ने मां से कहा. इस के बाद सोने से पहले सोनिया ने उन्हें पीने के लिए चाय दी और उस में उसी तरह नशे की गोलियां मिला दीं जैसे पिता को बेसुध करने के लिए चाय में मिलाई थीं.

चाय पीते ही जागीर कौर पर मूर्छा छा गई और वह गहरी नींद सो गईं. 2 मार्च को प्रिंस रिंकू के साथ लखनऊ से दिल्ली आ चुका था. सोनिया द्वारा फोन करने पर प्रिंस रिंकू को ले कर सोनिया के घर पहुंच गया. वहां पहुंच कर प्रिंस और रिंकू ने उसी तरह गला दबा कर जागीर कौर को भी मार दिया जैसे गुरमीत सिंह को मारा था. उन के शव को ये लोग उस दिन घर में ही रखे रहे.

अगले दिन शाम को प्रिंस व रिंकू नांगलोई के बाजार से एक रैक्सीन का बड़ा ब्रीफकेस खरीद लाए और शाम को जागीर कौर का शव उस में भर कर उसी बाइक पर रखा और सैयद नांगलोई नाले तक ले गए. उन्होंने उसी जगह पर जागीर कौर के शव से भरे सूटकेस को भी फेंक दिया, जहां गुरमीत सिंह के शव को फेंका था. बाद में उन्होंने गुरमीत सिंह की मोटरसाइकिल पश्चिम विहार के एक मौल की पार्किंग में खड़ी कर दी. प्रिंस दीक्षित अगली सुबह रिंकू के साथ लखनऊ चला गया.

4 मार्च, 2019 की सुबह गुरमीत की छोटी बेटी ने जब अपनी मां को फोन किया तो उन का फोन बंद मिला. क्योंकि उसे पता था कि मां 2 मार्च की रात को दिल्ली वापस लौटी होंगी, इसलिए वह उन की कुशलता का समाचार लेना चाहती थी.

जब मां का फोन बंद मिला तो हरजिंदर कौर ने सोनिया को फोन कर के मां से बात कराने को कहा. तब सोनिया ने बताया कि मां अभी दिल्ली नहीं पहुंची हैं. यह सुन कर हरजिंदर परेशान हो उठी.

कई दिनों से उस के पिता का फोन भी बंद आ रहा था. हरजिंदर को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. लिहाजा उस से रुका नहीं गया और वह 4 मार्च की दोपहर को पिता के घर निलोठी एक्सटेंशन पहुंच गई. वहां मां और पिता दोनों ही नहीं थे. पूछने पर सोनिया भी कोई सही जवाब नहीं दे सकी कि वे कहां हैं.

जालंधर में ननिहाल फोन करने पर यह बात साफ हो चुकी थी कि मां तो 2 मार्च की सुबह ही वहां से दिल्ली के लिए चली गई थीं. हरजिंदर समझ गई कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि उसे यह भी पता था कि सोनिया मम्मीपापा पर पिछले कुछ महीनों से मकान को अपने नाम पर कराने का दबाव बना रही थी. लिहाजा उस ने 4 मार्च को ही निहाल विहार थाने में अपने मातापिता की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.

हालांकि हरजिंदर कौर ने गुमशुदगी दर्ज कराते समय निहाल विहार थाने की पुलिस से साफ कहा था कि उस के मातापिता की गुम होने के पीछे उस की बहन सोनिया व उस के प्रेमी प्रिंस दीक्षित का हाथ हो सकता है. लेकिन पुलिस ने हरजिंदर की शिकायत पर गंभीरता से न तो जांच की और न ही कोई काररवाई की.

इस दौरान जब मातापिता दोनों की हत्या हो गई तो सोनिया व प्रिंस तिलक नगर के प्रौपर्टी डीलर बिटटू पर मकान को जल्द बिकवाने का दबाव बनाने लगे. वे दोनों हत्या के बाद प्रौपर्टी बेच कर कहीं दूर भागने की फिराक में थे.

जब पुलिस ने नांगलाई के नाले से पहले जागीर कौर फिर उन के पति गुरमीत सिंह  के शव बरामद कर जांचपड़ताल शुरू की और सोनिया व प्रिंस फरार मिले तो उन के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगाया गया.

पुलिस ने इसी आधार पर बिट्टू को थाने ला कर पूछताछ की और पता किया कि वे दोनों उस से किस लिए बातचीत कर रहे थे. तभी पता चला कि दोनों उस से पिता के मकान को बेचने के लिए लगातार बात कर रहे थे. उसी दौरान पुलिस ने सोनिया व प्रिंस को पकड़ने के लिए एक चाल चली.

उस ने सोनिया और प्रिंस को एक साथ एक ही जगह बुलवाने के लिए प्रौपर्टी डीलर बिट्टू से दोनों को फोन करवाया कि प्रौपर्टी को खरीदने का एक ग्राहक मिल गया है, जो उन से मिल कर एक साथ सारी रकम दे कर डील करने में रुचि रखता है.

बस इसी के बाद सोनिया व प्रिंस ने आपस में फोन पर बात की. प्रिंस उस वक्त लखनऊ में था और सोनिया दिल्ली में ही कहीं छिपी थी. दोनों ने बिट्टू को खरीदार के साथ नांगलोई के दिलेर मेहंदी फार्म के पास मिलने का वक्त दे दिया. लखनऊ से दिल्ली आ कर प्रिंस 10 मार्च की रात जैसे ही फार्महाउस के पास पहुंचा तो वहां प्रौपर्टी के खरीदार के रूप में पुलिस पहुंच गई और दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

सोनिया के हाथ में मातापिता की प्रौपर्टी तो नहीं आई, लेकिन वह जेल की सलाखों के पीछे जरूर पहुंच गई और उस ने अपना नाम एक ऐसी बेटी के रूप में दर्ज करवा लिया, जिस ने संपत्ति की खातिर अपने ही जन्मदाताओं को मौत के घाट उतार दिया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

प्रेमी के लिए कातिल बनी रक्षा – भाग 3

रक्षा और सत्येंद्र यादव के प्यार की चर्चा रामप्रसाद के कानों में पड़ी तो वह हैरान रह गए. कालेज से लौटने पर उन्होंने बेटी से सत्येंद्र के बारे में पूछा तो उस ने बिना किसी झिझक के सत्येंद्र से चल रहे अपने प्यार की बात स्वीकार कर ली. साथ ही उस ने यह भी कहा कि वे दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते हैं और जल्दी ही शादी कर लेंगे

रक्षा की बात सुन कर रामप्रसाद हक्केबक्के रह गए. उन्होंने उसी दिन अपने छोटे भाई राजकुमार के घर जा कर रक्षा और सत्येंद्र के बारे में बता कर कहा कि रक्षा कह रही है कि वह सत्येंद्र से शादी करेगी. अगर उस ने ऐसा किया तो घरपरिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.

तब राजकुमार और सुनीता ने गैरजाति के लड़के से शादी का विरोध करते हुए कहा, ‘‘अब घरपरिवार की इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है कि जल्द से जल्द रक्षा की शादी कर दी जाए.’’

‘‘लेकिन मेरे पास अभी इतने पैसे नहीं हैं कि मैं इतनी जल्दी उस की शादी कर सकूं.’’ रामप्रसाद ने अपनी आर्थिक तंगी बता कर हाथ खड़े किए तो सुनीता ने लखनऊ के एक लड़के का पता दे कर कहा, ‘‘आप वहां जा कर शादी तय कीजिए. शादी तो करनी ही है. हम लोग हर तरह से इस शादी में आप की मदद करेंगे.’’

रामप्रसाद लखनऊ पहुंचे और सुनीता द्वारा बताए लड़के को देखा. लड़का भी ठीक था और घरपरिवार भी. इसलिए शादी तय कर दी. चौथे दिन तिलक चढ़ा कर विवाह की तारीख भी तय कर दी गई. जब इस बात की जानकारी रक्षा को हुई तो वह बौखला उठी. उस ने रामप्रसाद से एक बार फिर सत्येंद्र से शादी की जिद की. लेकिन रामप्रसाद ने गैरजाति के लड़के से उस का विवाह करने से साफ मना कर दिया.

रक्षा सत्येंद्र के वियोग में छटपटा रही थी. उस ने उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, इसलिए किसी भी सूरत में वह उस से शादी करना चाहती थी. जब कोई राह नजर नहीं आई तो उस ने सत्येंद्र के साथ भाग कर शादी करने की योजना बनाई. लेकिन भाग कर किसी अनजान शहर में रहनेखाने के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. इतने रुपए न सत्येंद्र के पास थे, न रक्षा के पास. रुपए कहां से आएं, दोनों इस बात पर विचार करने लगे.

अचानक रक्षा के दिमाग में आया कि उस के चाचा राजकुमार गुप्ता के पास बहुत पैसा है. वह हमेशा घर पर 20-25 लाख रुपए रखे रहते हैं. अगर किसी तरह वे रुपए उस के हाथ लग जाएं तो वह आराम से सत्येंद्र के साथ भाग कर अपनी अलग दुनिया बसा सकती है. रक्षा ने जब इस बात पर सत्येंद्र से सुझाव मांगा तो उस ने भी हामी भर दी. इस के बाद दोनों किसी भी तरह राजकुमार के घर से रुपए उड़ाने की कोशिश करने लगे.

जैसेजैसे विवाह की तारीख (24 फरवरी, 2014) नजदीक आती जा रही थी, रक्षा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह किसी भी हाल में सत्येंद्र से जुदा नहीं होना चाहती थी. यही वजह थी कि सत्येंद्र को पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार थी.

उस ने चाचा के घर से लाखों रुपए उड़ाने की जो योजना बना रखी थी, उस के लिए मौका नहीं मिल रहा था. वह चाहती थी कि किसी तरह का खूनखराबा भी न हो और चाचा के घर रखे रुपए भी मिल जाएं. इस के लिए वह लगातार चाचा के घर पर नजर रख रही थी.

राजकुमार अपने एकलौते बेटे हिमांशु की शादी में लगे थे. शादी में शामिल होने के लिए उन की बेटी शिवांगी अपने डेढ़ वर्षीय बेटे शुभम के साथ मायके आई तो मौका देख कर रक्षा ने उस के बेटे का सत्येंद्र द्वारा अपहरण करा दिया और 15 लाख रुपए की फिरौती भी मांगी. लेकिन जब राजकुमार पुलिस के पास पहुंच गए तो डर कर रक्षा ने सत्येंद्र को फोन कर के बच्चे को वापस छोड़ने को कहा. अपहरण के लगभग डेढ़ घंटे बाद सत्येंद्र मोटरसाइकिल से शुभम को गली में छोड़ गया.

इस तरह रक्षा और सत्येंद्र की यह योजना असफल हो गई. इस के बाद रक्षा के इशारे पर सत्येंद्र ने राजकुमार को फोन कर के हिमांशु की हत्या करने की धमकी दे कर 15 लाख रुपए मांगे. लेकिन इस में भी सफलता नहीं मिली. हिमांशु की शादी हो जाने के बाद राजकुमार रक्षा की शादी की तैयारी करने लगे. रक्षा की फोन पर सत्येंद्र से बात होती ही रहती थी. वह उस से जल्दी कुछ करने को कहती रहती थी, क्योंकि वह उस से किसी भी हाल में जुदा नहीं होना चाहती थी.

जैसेजैसे दिन गुजर रहे थे, दोनों की पीड़ा और तनाव बढ़ता जा रहा था. इस स्थिति में जब रक्षा और सत्येंद्र को लगा कि वे राजकुमार के घर रखी नकदी नहीं उड़ा सकते तो उन्होंने लूट की योजना बना डाली.

उसी योजना के मुताबिक रक्षा उस दिन अपना लैपटौप ले कर दोपहर एक बजे अपने चाचा राजकुमार के घर जा पहुंची. उस ने अंदर वाले कमरे में हिमांशु की पत्नी रश्मि को उस के विवाह की वीडियो दिखाने के बहाने उलझा लिया तो सत्येंद्र ने मैसेज भेज कर उसे बता दिया कि वह घर के बाहर आ गया है.

मैसेज देख कर रक्षा ने लैपटौप की आवाज तेज कर दी. जब काम हो जाने का सत्येंद्र का मैसेज आया तो रक्षा 5 बजे के आसपास अपने घर जाने के लिए चाची वाले कमरे से निकली. वहां उन की लाश देख कर वह चीख पड़ी. उस पर किसी को शक न हो, इसलिए उस ने दौड़दौड़ कर यह बात सभी को बताई. रक्षा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी सत्येंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में सत्येंद्र ने बताया कि उस ने यह लूट और हत्या अपने दोस्त विवेक और मनोज के साथ मिल कर की थी. पुलिस ने तुरंत विवेक और मनोज के घर छापा मारा. विवेक तो पुलिस के हाथ लग गया, लेकिन मनोज फरार होने में कामयाब हो गया था.

पूछताछ में रक्षा के प्रेमी सत्येंद्र यादव ने पुलिस को बताया कि वह कोयलानगर के शिवपुरम के रहने वाले अमर सिंह यादव का बेटा है. उस के पिता पीएसी में सिपाही हैं, जो इस समय इलाहाबाद में तैनात हैं. उस का बड़ा भाई जितेंद्र आर्डिनेंस फैक्ट्री में नौकरी करता है. जबकि वह बीएससी कर के नौकरी की तलाश में था. उस ने पुलिस भरती की परीक्षा भी दे रखी थी. उसे उसी परीक्षा के परिणाम का इंतजार था. लेकिन उस के पहले ही उस ने अपनी प्रेमिका रक्षा के लिए अपना भविष्य ही नहीं, जिंदगी भी दांव पर लगा दी.

सत्येंद्र ने पुलिस को बताया था कि वह सिर्फ लूट के लिए आया था. इस के लिए उस ने पहले विवेक और मनोज को भेजा था. दोनों ने अंदर जाते ही धक्का मार कर सुनीता को गिरा दिया और उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, जिस से वह चिल्ला न सकें. उन के हाथों को बांध कर उन्होंने उन्हें वैसे ही छोड़ दिया. लेकिन उन्होंने उसे देख लिया तो अपने बचाव के लिए उसे सुनीता की हत्या करनी पड़ी. क्योंकि वह उसे पहचानती थीं, उस ने उन के मुंह पर तकिया रख कर उन्हें मार दिया था.

इंटरमीडिएट में पढ़ रहा विवेक भी कोयलानगर का रहने वाला था. वह सत्येंद्र का गहरा दोस्त था. सत्येंद्र के कहने पर वह पैसों के लालच में उस के साथ लूट की इस योजना में शामिल हो गया था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सत्येंद्र और विवेक की निशानदेही पर 10 हजार नकद, करीब 10 लाख के गहने और सुनीता का मोबाइल फोन बरामद कर लिया. माल बरामद होने के बाद पुलिस ने 7 जनवरी को दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक मनोज पकड़ा नहीं जा सका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बरसों की साध : क्या प्रशांत अपना वादा निभा पाया? – भाग 2

बचपन में प्रशांत की बड़ी लालसा थी कि उस की भी एक भाभी होती तो कितना अच्छा होता. लेकिन उस का ऐसा दुर्भाग्य था कि उस का अपना कोई सगा बड़ा भाई नहीं था. गांव और परिवार में तमाम भाभियां थीं, लेकिन वे सिर्फ कहने भर को थीं.

संयोग से दिल्ली में रहने वाले प्रशांत के ताऊ यानी बड़े पिताजी के बेटे ईश्वर प्रसाद की पत्नी को विदा कराने का संदेश आया. ताऊजी ही नहीं, ताईजी की भी मौत हो चुकी थी. इसलिए अब वह जिम्मेदारी प्रशांत के पिताजी की थी. मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घर वालों से रिश्ता लगभग तोड़ सा लिया था. फिर भी प्रशांत के पिता को अपना फर्ज तो अदा करना ही था.

ईश्वर प्रसाद प्रशांत के ताऊ का एकलौता बेटा था. उस की शादी ताऊजी ने गांव में तब कर दी थी. जब वह दसवीं में पढ़ता था. तब गांव में बच्चों की शादी लगभग इसी उम्र में हो जाती थी. उस की शादी उस के पिता ने अपने ननिहाली गांव में तभी तय कर दी थी, जब वह गर्भ में था.

देवनाथ के ताऊजी को अपनी नानी से बड़ा लगाव था, इसीलिए मौका मिलते ही वह नानी के यहां भाग जाते थे. ऐसे में ही उन की दोस्ती वहां ईश्वर के ससुर से हो गई थी. अपनी इसी दोस्ती को बनाए रखने के लिए उन्होंने ईश्वर के ससुर से कहा था कि अगर उन्हें बेटा होता है तो वह उस की शादी उन के यहां पैदा होने वाली बेटी से कर लेंगे.

उन्होंने जब यह बात कही थी, उस समय दोनों लोगों की पत्नियां गर्भवती थीं. संयोग से ताऊजी के यहां ईश्वर पैदा हुआ तो दोस्त के यहां बेटी, जिस का नाम उन्होंने रूपमती रखा था.

प्रशांत के ताऊ ने वचन दे रखा था, इसलिए ईश्वर के लाख मना करने पर उन्होंने उस का विवाह रूपमती से उस समय कर दिया, जब वह 10वीं में पढ़ रहा था. उस समय ईश्वर की उम्र कम थी और उस की पत्नी भी छोटी थी. इसलिए विदाई नहीं हुई थी. ईश्वर की शादी हुए सप्ताह भी नहीं बीता था कि उस के ससुर चल बसे थे. इस के बाद जब भी विदाई की बात चलती, ईश्वर पढ़ाई की बात कर के मना कर देता. वह पढ़ने में काफी तेज था. उस का संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रशासनिक नौकरी में चयन हो गया और वह डिप्टी कलेक्टर बन गया. ईश्वर ट्रेनिंग कर रहा था तभी उस के पिता का देहांत हो गया था.

संयोग देखो, उन्हें मरे महीना भी नहीं बीता था कि ईश्वर की मां भी चल बसीं. मांबाप के गुजर जाने के बाद एक बहन बची थी, उस की शादी हो चुकी थी. इसलिए अब उस की सारी जिम्मेदारी प्रशांत के पिता पर आ गई थी.

लेकिन मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घरपरिवार से नाता लगभग खत्म सा कर लिया था. आनेजाने की कौन कहे, कभी कोई चिट्ठीपत्री भी नहीं आती थी. उन दिनों शहरों में भी कम ही लोगों के यहां फोन होते थे. अपना फर्ज निभाने के लिए प्रशांत के पिता ने विदाई की तारीख तय कर के बहन से ईश्वर को संदेश भिजवा दिया था.

जब इस बात की जानकारी प्रशांत को हुई तो वह खुशी से फूला नहीं समाया. विदाई से पहले ईश्वर की बहन को दुलहन के स्वागत के लिए बुला लिया गया था. जिस दिन दुलहन को आना था, सुबह से ही घर में तैयारियां चल रही थीं.

प्रशांत के पिता सुबह 11 बजे वाली टे्रन से दुलहन को ले कर आने वाले थे. रेलवे स्टेशन प्रशांत के घर से 6-7 किलोमीटर दूर था. उन दिनों बैलगाड़ी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं होता था. इसलिए प्रशांत बहन के साथ 2 बैलगाडि़यां ले कर समय से स्टेशन पर पहुंच गया था.

ट्रेन के आतेआते सूरज सिर पर आ गया था. ट्रेन आई तो पहले प्रशांत के पिता सामान के साथ उतरे. उन के पीछे रेशमी साड़ी में लिपटी, पूरा मुंह ढापे मजबूत कदकाठी वाली ईश्वर की पत्नी यानी प्रशांत की भाभी छम्म से उतरीं. दुलहन के उतरते ही बहन ने उस की बांह थाम ली.

दुलहन के साथ जो सामान था, देवनाथ के साथ आए लोगों ने उठा लिया. बैलगाड़ी स्टेशन के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी थी. एक बैलगाड़ी पर सामान रख दिया गया. दूसरी बैलगाड़ी पर दुलहन को बैठाया गया. बैलगाड़ी पर धूप से बचने के लिए चादर तान दी गई थी.

दुलहन को बैलगाड़ी पर बैठा कर बहन ने प्रशांत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह आप का एकलौता देवर और मैं आप की एकलौती ननद.’’

मेहंदी लगे चूडि़यों से भरे गोरेगोरे हाथ ऊपर उठे और कोमल अंगुलियों ने घूंघट का किनारा थाम लिया. पट खुला तो प्रशांत का छोटा सा हृदय आह्लादित हो उठा. क्योंकि उस की भाभी सौंदर्य का भंडार थी.

कजरारी आंखों वाला उस का चंदन के रंग जैसा गोलमटोल मुखड़ा असली सोने जैसा लग रहा था. उस ने दशहरे के मेले में होने वाली रामलीला में उस तरह की औरतें देखी थीं. उस की भाभी तो उन औरतों से भी ज्यादा सुंदर थी.

प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.

इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.

उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’

इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’

दुर्भाग्य के भंवरजाल में फंसी नवोदा के लिए ज्ञानू का यह कथन डूबते को तिनके का सहारा की तरह था. उस ने ज्ञानू से शादी कर ली थी. प्रशांत का भी मन ज्ञानू बनने का हो रहा था. लेकिन अभी वह छोटा था. उस की उम्र महज 13 साल थी. दुलहन को घर में बैठा कर पिया का इंतजार करने के लिए छोड़ दिया गया.

पैसा बना जान का दुश्मन – भाग 3

कहा जाता है कि बेटेबेटी का सुख मांबाप के लिए अमृत है. लेकिन यही अमृत अगर जहर बन जाए तो उन के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही कुछ शकुंतला के साथ हुआ. जब उन्हें पता चला कि मधुमती का पति एक नंबर का शराबी और निकम्मा है तो वह टूट कर बिखर गईं. बेटी के गम में वह बीमार रहने लगीं. उन के इस गम ने उन्हें मौत तक पहुंचा दिया.

शकुंतला की मौत से अगर किसी को खुशी हुई थी तो वह गिरीश था. अब उस फ्लैट में वह जैसे चाहेगा, रह सकेगा. मां की मौत के बाद मधुमती बेटे के साथ अपने फ्लैट में रहने आ गई. फ्लैट में आते ही गिरीश उसे बेचने के चक्कर में रहने लगा. वह उस फ्लैट को बेच कर उस का सारा पैसा अय्याशी मे उड़ा देना चाहता था. इस के लिए वह शातिर चाल भी चलने लगा.

मधुमती से शादी करते समय जिस तरह वह संत बन गया था, फ्लैट बिकवाने के लिए भी उसी तरह एक बार फिर  संत बन गया. मधुमती और बेटे से खूब प्यार करने लगा. मधुमती के दिल में एक अच्छे आदमी की इमेज बनाने के लिए वह नौकरी भी ढूंढ़ने लगा. जब गिरीश को लगा कि मधुमती उस पर विश्वास करने लगी है, तब उस ने अपनी नायाब चाल चली. मजे की बात, मधुमती उस में फंस भी गई.

भोलीभाली मधुमती को विश्वास में ले कर उस ने बिजनैस की योजना बनाई और उस में 50 लाख रुपए लगाने की बात की. इस के बाद मधुमती का फ्लैट 43 लाख रुपए में बेच कर सारा पैसा अपने नाम जमा करा लिया और रहने के लिए भायंदर के नक्षत्र टावर के 14वीं मंजिल पर एक फ्लैट किराए पर ले लिया.

जैसे ही फ्लैट का पैसा गिरीश के पास आया, वह एकदम से बदल गया. उस के पास लाखों रुपए आ गए थे, इसलिए वह लखपतियों की तरह ठाठ से रहने लगा. वह बीयर बारों में जा कर अपने ऊपर तो शराब शबाब पर पैसे लुटाता ही था, अपने साथ दोस्तों को भी ले जाता था. उन का खर्च भी वह स्वयं ही उठाता था. मधुमती जब भी उसे रोकने की कोशिश करती, उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, बल्कि उसे मारतापीटता भी. उसे कतई पसंद नहीं था कि वह उस की मौजमसती में दखल दे.

गिरीश जिस तरह अय्याशी पर पैसे लुटा रहा था, उसे देख कर मधुमती को अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी. उसे लगा कि अगर गिरीश का यही हाल रहा तो उसे भिखारी बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. वैसे भी उस ने उसे घर से बेघर कर दिया था.

पति की हरकतों से परेशान हो कर मधुमती ने तय किया कि वह गिरीश से तलाक ले कर अपने बचे हुए पैसों और बेटे के साथ नानी के पास फ्रांस चली जाएगी.

इस के लिए उस ने नानी से बात भी कर ली. लेकिन जब इस बात की जानकारी श्रीरंग पोटे को हुई तो वह परेशान हो उठे. क्योंकि इस से समाज में उन की काफी बदनामी होती. बेटे ने तो वैसे ही इज्जत बरबाद कर रखी थी. रहीसही इज्जत बहू के साथ जाने वाली थी. वह पत्नी को ले कर भायंदर पहुंचे और बहू को समझाने के साथ गिरीश को काफी खरीखोटी सुनाई. इस के बाद वह पोते को साथ ले कर माहीम चले आए.

पिता की डांटफटकार और मधुमती के फैसले के बारे में जान कर गिरीश का पारा आसमान पर जा पहुंचा. वह यह कतई नहीं चाहता था कि मधुमती उसे छोड़ कर फ्रांस चली जाए. क्योंकि उस के जाते ही वह भिखारी बन जाता. अब इसी बात को ले कर गिरीश अकसर मधुमती से लड़ाईझगड़ा और मारपीट करने लगा.

3 दिसंबर को भी पैसों को ले कर गिरीश और मधुमती के बीच कहासुनी शुरू हुई तो बात मारपीट तक पहुंच गई. गिरीश ने मधुमती को इस कदर मारा कि वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. इस पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने उस का गला दबा दिया. इसी गला दबाने में मधुमती की मौत हो गई.

लेकिन गिरीश को पता नहीं चला कि मधुमती मर चुकी है. उसे लगा कि वह बेहोश होने का नाटक कर रही है, ताकि वह मारना बंद कर दे. वह उसे मारतेमारते थक गया था, इसलिए उसे वैसी ही छोड़ कर गुस्सा शांत करने के लिए बाहर चला गया. काफी देर तक आवारा दोस्तों के साथ रहने के बाद वह घर आया तो उसे यह देख कर हैरानी हुई कि वह मधुमति को जिस स्थिति में छोड़ कर गया था, वह अभी भी उसी स्थिति में पड़ी थी.

गिरीश ने मधुमती को उठाने की कोशिश की तो पता चला कि उस का शरीर ठंडा पड़ कर अकड़ चुका है. उसे समझते देर नहीं लगी कि मधुमती मर चुकी है. उस के होश उड़ गए. वह घबरा गया कि अब क्या करे.

गिरीश बुरी तरह डर गया था. उसे हथकड़ी और जेल के सींखचे नजर आने लगे. इस सब से कैसे बचा जाए, वह तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा. मधुमती की लाश को इस तरह बाहर ले जा कर फेंकना उस के लिए संभव नहीं था. क्योंकि लाश की शिनाख्त होने पर वह पकड़ा जाता. तब उस ने ऐसी योजना बनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

उस ने तय किया कि वह मधुमती के लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के समुद्र में फेंक देगा, जहां समुद्री मछलियां उन्हें खा जाएंगी. इस के बाद मधुमती की लाश ही नहीं मिलेगी तो कानून उस का कुछ नहीं कर पाएगा. अगर कोई मधुमती के बारे में पूछेगा तो वह कह देगा कि मधुमती उस से लड़ाईझगड़ा कर के अपनी नानी के पास फ्रांस चली गई है. इस तरह उस की हत्या का यह राज राज ही रह जाएगा.

लेकिन इस में भी एक समस्या थी. गिरीश मधुमती की लाश के टुकड़े तो कर सकता था, लेकिन उन टुकड़ों को अकेले ले जा कर फेंक नहीं सकता था. उस ने काफी सोचाविचारा तो उसे अपनी बुआ के बेटे नितिन की याद आई. वह उस का दोस्त भी था, इसलिए उस पर विश्वास भी किया जा सकता था. उसे यह भी विश्वास था कि नितिन उस की मदद भी करेगा.

यही सोच कर गिरीश ने नितिन को फोन कर के अपने पास बुलाया और उसे साथ ले कर भायंदर मौल गया. लेकिन जब गिरीश ने नितिन को सच्चाई बताई तो उसे लगा कि अगर उस ने गिरीश की मदद की तो उस के साथ उसे भी जेल जाना होगा. इसलिए वह चुप के से वहां से खिसक गया. इस के बाद उसी की वजह से यह मामला पुलिस तक जा पहुंचा.

नितिन के चले जाने के बाद गिरीश अपने फ्लैट पर पहुंचा और मधुमती की लाश के कई टुकड़े किए. फ्लैट में दुर्गंध न फैले, इस के लिए उस ने उन टुकड़ों की अच्छी तरह पैकिंग कर के कुछ टुकड़े फ्रिज में रख दिए तो कुछ कमरे में बैड के नीचे छिपा दिए. मौका देख कर वह उन्हें ले जा कर फेंक देता. लेकिन उसे इस का मौका ही नहीं मिला, क्योंकि मदद के बहाने नितिन ने फोन कर के उसे बुलाया तो वह शेवारे पार्क में आ गया, जहां से पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने गिरीश को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक गिरीश जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बस एक बेटा चाहिए – भाग 3

संविधा को आघात सा लगा. उस ने उस के दुख और मजबूरी भरे जीवन की अपने शानदार और  ऐशोआराम वाले जीवन से तुलना की, तब उसे लगा कि इस दुनिया में शायद दुख ज्यादा और सुख कम है.

उस ने पूछा, ‘‘आप हर साल एक बच्चा पैदा कर के थकी नहीं?’’

‘‘इस के अलावा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं है.’’ शंकरी ने ठंडी आह भरते हुए जवाब दिया.

‘‘आप बहुत बहादुर हैं. मेरे वश का तो नहीं है.’’

‘‘मेरी मजबूरी है. मेरे पति चाहते हैं कि उन का एक बेटा हो जाए, जिस से उन के परिवार का नाम चलता रहे.’’

‘‘नाम चलता रहे..?’’ संविधा ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा. उस पर उसे तरस भी आया. क्योंकि उस की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उस के जो बच्चे थे, उन्हें ही वह ठीक से पालपोस सकती. जबकि सिर्फ नाम चलाने के लिए वह बच्चे पर बच्चे पैदा करने को तैयार थी.

संविधा को झटका सा लगा था. वह उस से कहना चाहती थी कि आजकल लड़के और लड़कियों में कोई अंतर नहीं रहा. दोनों बराबर हैं. उस की केवल एक ही बेटी है, जिस से वह और उस के पति खुश हैं. लड़कियां लड़कों से ज्यादा बुद्धिमान और प्रतिभाशाली निकल रही हैं. वे मातापिता की बेटों से ज्यादा देखभाल करती हैं. देखो न लड़कियां पहाड़ों पर चढ़ रही हैं, उन के कदम चांद पर पहुंच गए हैं.

लेकिन वह कह नहीं पाई. उस के मन में आया कि वह उस से पूछे कि अगर इस बार भी बेटी पैदा हुई तो..? क्या जब तक बेटा नहीं पैदा होगा, वह इसी तरह बच्चे पैदा करती रहेगी? अगर उसे बेटा पैदा ही नहीं हुआ तो वह क्या करेगी?

इस तरह के कई सवाल संविधा के मन में घूम रहे थे. उस की गरीबी और बेटा पाने की चाहत के बारे में सोचते हुए उसे लगा, अगर यह इसी तरह बच्चे पैदा करती रही तो इस की हालत तो एकदम खराब हो जाएगी. अचानक उस ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पति क्या करते हैं?’’

‘‘वह लोकगीत गाते हैं.’’ शंकरी ने कहा.

‘‘लोकगीतों का कार्यक्रम करते हैं?’’

‘‘नहीं, मेलों या गांवों में घूमघूम कर गाते हैं.’’

संविधा को याद आया कि जब वह मेले में प्रवेश कर रही थी तो कुछ लोग चादर बिछा कर ढोलक और हारमोनियम ले कर बैठे थे. वे लोगों की फरमाइश पर उन्हें लोकगीत और फिल्मी गाने गा कर सुना रहे थे.

संविधा समझ गई कि ये लोग कहीं बाहर से आए हैं. उस ने पूछा, ‘‘लगता है, तुम लोग कहीं बाहर से आए हो? अपना गांवघर छोड़ कर कहीं बाहर जाने में तुम लोगों को बुरा नहीं लगता?’’

‘‘हमारे पास इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है.’’

‘‘क्यों? जहां तुम लोग रहते हो, वहां तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है?’’

‘‘काम और कमाई होती तो हम लोग इस तरह मारे मारे क्यों फिरते?’’

‘‘लेकिन तुम लोग अपने यहां खेती भी तो कर सकते हो?’’ संविधा ने सुझाव दिया.

‘‘कैसे मैडम, हमारी सारी जमीनों पर दबंगों और महाजनों ने कब्जा कर लिया है. क्योंकि हम ने उन से जो कर्ज लिया था और उसे अदा नहीं कर पाए.’’

‘‘तुम लोगों ने अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए संघर्ष क्यों नहीं किया?’’

‘‘मैडम, हम बहुत कमजोर लोग हैं और वे बहुत शक्तिशाली. उन के पास पैसा भी है और ताकत भी. हम उन से दुश्मनी कैसे मोल ले सकते हैं.’’

‘‘लेकिन तुम लोग यह सब सह कैसे लेते हो?’’

‘‘हम बहुत ही असहाय और बेबस लोग हैं.’’ शंकरी ने लंबी सांस ले कर जमीन पर खेल रही बच्ची के मुंह की धूल को साड़ी के पल्लू से साफ करते हुए कहा.

संविधा के दिमाग में तमाम सवाल उठ रहे थे, लेकिन उसे लगा कि बुद्धिमानी इसी में है कि वह उस से उन सवालों को न पूछे. चेहरे से शंकरी अभी जवान लग रही थी, लेकिन हालात की वजह से चेहरा पीला और सूखा हुआ था. शायद ऐसा गरीबी और बच्चे पैदा करने की वजह से था. संविधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारी शादी कितने साल में हुई थी?’’

‘‘मेरी…’’ उस ने अनुमान लगाने की कोशिश की, मगर नाकाम रही.

‘‘तुम यहां कब आई?’’

‘‘जब यह मेला शुरू हुआ.’’

‘‘तुम लोगों के दिन कैसे गुजरते हैं?’’

‘‘सुबह जहां रहते हैं, वहां की साफसफाई करते हैं. दोपहर को ही रात का भी खाना बना लेते हैं, क्योंकि हमारे पास उजाले की व्यवस्था नहीं है. उस के बाद अपने काम में लग जाते हैं. लड़कियां टोलियों में नाचनेगाने का काम करती हैं. शादीशुदा महिलाएं मेरी तरह बायस्कोप दिखाती हैं तो कुछ कठपुतली का नाच दिखाती हैं. कुछ मेहंदी लगाने का भी काम करती हैं.’’

संविधा ने इधरउधर देखा. दूर दूर तक कोई इमारत नहीं थी. मैदान पर मेले में आए दुकानदारों के तंबू लगे थे. मन में जिज्ञासा जागी तो उस से पूछा, ‘‘तुम पूरे दिन इसी तरह बिना आराम के काम करती हो. ऐसे में तुम्हारे बच्चों की देखभाल कौन करता है?’’

‘‘मेरी बड़ी बेटी इन दोनों बेटियों को संभाल लेती है.’’

‘‘इन का खानापीना और नहानाधोना?’’

‘‘बड़ी बेटी छोटी को नहला देती है, बीच वाली खुद ही नहा लेती है.’’

संविधा ने अपनी 8 साल की बेटी पर नजर डाली, उस के बाद शंकरी की एकएक कर के तीनों बेटियों को देखा. छोटी बेटी अभी भी मां के पास चबूतरे पर खेल रही थी. संविधा ने सोचते हुए एक लंबी सांस ली. कुछ देर वह शंकरी और उस की बेटियों को देखती रही. उस का दिल उन के लिए सहानुभूति से भर गया. उस ने पर्स से 10-10 रुपए के 2 नोट निकाले और खेल रही लड़कियों को थमा दिए. इस के बाद वह चलने लगी तो देखा, कुछ बच्चे उधर आ रहे थे. उन्हें आते देख कर शंकरी अपने बायस्कोप के पास जा कर खड़ी हो गई, लेकिन उस की नजरें चबूतरे पर खेल रही बेटी पर ही जमी थीं.

शाम को संविधा घर पहुंची तो उस के दिलोदिमाग में शंकरी और उस की बेटियां ही छाई थीं. वह भी एक औरत थी, इसलिए उस ने प्रार्थना की कि काश! उस के गमों का सिलसिला खत्म हो जाए और उस की इच्छा पूरी हो जाए. इस बार उसे बेटा पैदा हो जाए.

अनुवाद: एम.एस. जरगाम

दोस्त की खातिर : प्रेमिका को उतारा मौत के घाट – भाग 2

सार्थक के सपनों में लगी सेंध

सार्थक ने अपूर्वा को ले कर न जाने क्या सपने देख रखे थे. अपूर्वा की बातें सुन कर उस का दिल टूट गया. वह अच्छी तरह समझ गया था कि वह अपूर्वा के लिए नहीं बना है.

उस ने लौट कर ये बातें अमर शिंदे को बताईं तो शिंदे ने उसे समझाया, ‘‘तू भूल क्यों नहीं जाता अपूर्वा को. ढूंढने निकलेगा तो सैकड़ों लड़कियां मिलेंगी.’’ लेकिन सार्थक ने दो शब्दों में उस की बात पर पानी फेर दिया, ‘‘उन में अपूर्वा तो नहीं होगी न?’’

सार्थक भावुक लड़का था. अपूर्वा की बात उस ने दिल से लगा ली. उस ने अपनी फेसबुक वाल पर अमर को संबोधित कर के लिखा, ‘‘यार, अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी मौत पर कोई रोने वाला भी नहीं होगा.’’

इस के जवाब में अमर शिंदे ने लिखा, ‘‘अगर तुझे कुछ हुआ तो मैं सारी दुनिया को रुलाऊंगा.’’

उस वक्त अमर को इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि उस का दोस्त सार्थक दिल की लगी को दिमाग पर हावी कर लेगा. अपूर्वा ने भी नहीं सोचा था कि सार्थक उस की बातों को इतनी गंभीरता से लेगा. आखिर हुआ वही जो किसी ने नहीं सोचा था. 23 जुलाई, 2018 को सार्थक ने आत्महत्या कर ली.

मामला थाना ढोकी क्षेत्र का था. सार्थक के पिता बालासाहेब ने थाना ढोकी में अपने बेटे सार्थक को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए अपूर्वा और मौली घोपल के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. पुलिस ने भादंवि की धारा 306 के अंतर्गत केस दर्ज कर के अपूर्वा और मौली घोपल को 24 जुलाई, 2018 को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन जल्दी ही दोनों को जमानत मिल गई.

सार्थक के आत्महत्या करने से उस के परिवार को तो गहरा धक्का लगा ही, अमर शिंदे को भी बहुत दुख हुआ. सार्थक उस का जिगरी दोस्त था. अपूर्वा ने उस के दोस्त की भावनाओं से खिलवाड़ किया था, इसलिए अमर को अपूर्वा की शक्ल से नफरत हो गई.

सार्थक की मौत और अपूर्वा के जेल जाने के बाद इस बात को खत्म हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

अक्तूबर, 2018 के दूसरे हफ्ते की बात है. फर्स्ट ईयर के पहले एग्जाम के बाद छुट्टी मिली तो अपूर्वा अपने घर लातूर आई. वह चूंकि अनंतराव यादव और मोहिनी यादव की एकलौती संतान थी, इसलिए उस के आने पर घर में बहार सी आई जाती थी.

अपूर्वा की जिंदगी का आखिरी अध्याय

19 अक्तूबर, 2018 को दशहरा था. उस से पहले नवरात्रि के व्रत चल रहे थे. अपूर्वा की मां मोहिनी भी नवरात्रि के व्रत रख रही थीं. 16 अक्तूबर को मोहिनी को मंदिर जाता था. वह साढ़े 11 बजे मंदिर चली गईं. उस समय अपूर्वा घर में ही थी. लौटने में आधा घंटा लग गया. मोहिनी 12 बजे जब विशालनगर के संदीप अपार्टमेंट स्थित अपने घर पहुंची तो घर के बाहर कुंडी लगी देख चौंकी. वजह अपूर्वा घर में थी, अगर उसे कहीं बाहर जाना होता तो वह इस तरह बाहर से कुंडी लगा कर कभी नहीं जाती.

बात परेशानी की थी. मोहिनी कुंडी खोल कर जल्दी से अंदर गईं. लेकिन वहां का हाल देख उन का रोमरोम कांप उठा. अपूर्वा हौल में लहूलुहान पड़ी थी. बेटी की हालत देख मोहिनी के हाथों से पूजा की थाली छूट कर गिर गई. वह रोतेचिल्लाते हुए बाहर की ओर भागीं. पासपड़ोस के लोगों ने उन की आवाज सुनी तो बाहर निकल आए.

कुछ लोगों ने अंदर जा कर देखा तो उन के भी होश उड़ गए. अपूर्वा के पिता अनंत राव उस दिन अपूर्वा की फीस भरने उस के जामखंडी, कर्नाटक स्थित मैडिकल कालेज गए थे. किसी ने फोन कर के उन्हें भी सूचना दे दी और पुलिस को भी.

अपूर्वा के साथ जो भी हुआ था, उसे हुए ज्यादा देर नहीं हुई थी. कुछ लोगों ने अपूर्वा की मां मोहिनी को संभाला और कुछ लोग खून से लथपथ अपूर्वा को उठा कर पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल ले गए. लेकिन मामला चूंकि गंभीर अपराध से जुड़ा था, इसलिए अस्पताल ने अपूर्वा को सरकारी अस्पताल भेज दिया. सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने देखने के बाद अपूर्वा को मृत घोषित कर दिया.

अस्पताल से इस मामले की सूचना थाना  एमआईडीसी को दी गई. सूचना मिलते ही सीनियर इंसपेक्टर अशोक माली अपनी पुलिस टीम के साथ अस्पताल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों और फोरैंसिक टीम को भी सूचित कर दिया था.

अस्पताल जा कर इंसपेक्टर अशोक माली ने डाक्टरों ने बयान लिए और अपूर्वा की डैडबौडी का परीक्षण किया. अपूर्वा के गले पेट और शरीर के अन्य कई हिस्सों पर गहरे घाव थे. निस्संदेह उस पर किसी तेज धार वाले हथियार से वार किए गए थे. ऐसा लगता था जैसे उस पर वार करने वाले को उस से गहरी नफरत रही हो.

जो लोग पूर्वा को अस्पताल ले कर आए थे, पुलिस ने उन से भी पूछताछ की. इस के बाद उस के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. इस के बाद इंसपेक्टर माली अपनी टीम के साथ अपूर्वा के संदीप अपार्टमेंट स्थित घर (घटनास्थल) पर पहुंचे. तब तक अपूर्वा के पिता अनंत राव यादव भी कर्नाटक जामखंडी से लौट आए थे.

पुलिस के लिए आसान नहीं था, हकीकत को समझना

पुलिस टीम घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि एसपी राजेंद्र माने और क्राइम ब्रांच के डीसीपी काका साहेब डोले भी आ गए. महाराष्ट्र में चूंकि किसी भी बडे़ अपराध में क्राइम ब्रांच समानांतर जांच करती है, इसलिए क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सुनील नागर गोजे भी अपनी टीम के साथ मौकाएवारदात पर आ गए. फोरैंसिक टीम भी आ गई थी.

सभी ने अपनेअपने हिसाब घटनास्थल का मुआयना किया. साथ ही पासपड़ोस के लोगों से भी पूछताछ की. अपूर्वा की मां मोहिनी और पिता अनंतराव यादव से भी पूछताछ की गई.