खतरनाक है रिश्तों की मर्यादा तोड़ना – भाग 1

मार्निंग वौक पर निकले कुछ लोगों ने हाईवे के किनारे एक महिला की लाश पड़ी देखी तो उन्होंने  इस बात की सूचना थाना नौबस्ता पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां काफी लोग इकट्ठा थे, लेकिन उन में से कोई भी महिला की शिनाख्त नहीं कर सका.

मृतका की उम्र 35 साल के आसपास थी. वह साड़ीब्लाउज और पेटीकोट पहने थी. उस के सिर पर गंभीर चोट लगी थी, चेहरा किसी नुकीली चीज से गोदा गया था. गले में भी साड़ी का फंदा पड़ा था.

लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए कानपुर स्थित लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया. लेकिन घटनास्थल की काररवाई में पुलिस ने काफी समय बरबाद कर दिया था, इसलिए देर हो जाने की वजह से उस दिन लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका. यह 5 जुलाई, 2014 की बात थी.

अगले दिन यानी 6 जुलाई को कानपुर से निकलने वाले समाचार पत्रों में जब एक महिला का शव नौबस्ता में हाईवे पर मिलने का समाचार छपा तो थाना चकेरी के मोहल्ला रामपुर (श्यामनगर) के रहने वाले शिवचरन सिंह भदौरिया को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि उस की पत्नी नीलम उर्फ पिंकी पिछले 2 दिनों से गायब थी. इस बीच उस ने अपने हिसाब से उस की काफी खोजबीन की थी, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला था.

अखबार में समाचार पढ़ने के बाद शिवचरन सिंह अपने दोनों बेटों, सचिन और शिवम को साथ ले कर थाना नौबस्ता पहुंचा और थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह को बताया कि उस की पत्नी परसों से गायब है. वह हाईवे के किनारे मिली महिला की लाश को देखना चाहता है.

चूंकि शव पोस्टमार्टम हाऊस में रखा था, इसलिए थानाप्रभारी ने उन लोगों को एक सिपाही के साथ वहां भेज दिया. शिवचरन सिंह बेटों के साथ वहां पहुंचा तो लाश देखते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा. क्योंकि वह लाश उस की पत्नी नीलम की थी. उस के दोनों बेटे सचिन और शिवम भी मां की लाश देख कर रोने लगे थे.

इस तरह हाईवे के किनारे मिले महिला के शव की शिनाख्त हो गई थी. लाश की शिनाख्त कर शिवचरन सिंह बेटों के साथ थाने आ गए. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने शिवचरन से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी नीलम 4 जुलाई की शाम 4 बजे से गायब है. घर से निकलते समय उस ने बच्चों से कहा था कि वह उन की स्कूली ड्रेस लेने दर्जी के यहां जा रही है. उधर से ही वह घर का सामान भी ले आएगी. लेकिन वह गई तो लौट कर नहीं आई.

आज सुबह उस ने अखबार में महिला के शव मिलने की खबर पढ़ी तो वह थाने आया और पोस्टमार्टम हाउस जा कर देखी तो पता चला कि उस की तो हत्या हो चुकी है.

‘‘हत्या किस ने की होगी, इस बारे में तुम कुछ बता सकते हो?’’ थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, हमें संदेह नहीं, पूरा विश्वास है कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है. वह हमारे बड़े भाई का चचेरा साला है. उस का हमारे घर बहुत ज्यादा आनाजाना था. उस के नीलम से अवैध संबंध थे. पीछा छुड़ाने के लिए उसी ने उस की हत्या की है. वह अपने परिवार के साथ बर्रा में रहता है. इन दिनों उस की तैनाती लखनऊ में है.’’

शिवचरन सिंह ने जैसे ही कहा कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है, थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने उसे डांटा, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है. नीलम की हत्या नहीं हुई है. मुझे लगता है, उस की मौत एक्सीडेंट से हुई है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आएगी तो पता चल जाएगा कि वह कैसे मरी है.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नीलम की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस की मौत सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. उस के चेहरे को चाकू की नोक से गोदा गया था. गला भी साड़ी से कसा गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो गया था कि नीलम की हत्या हुई थी. इस के बावजूद थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस का मतलब था कि जगराम सिंह ने सिफारिश कर दी थी. विभागीय मामला था, इसलिए थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह उस का पक्ष ले रहे थे.

हत्या के इस मामले को दबाने की खबर जब स्थानीय अखबारों में छपी तो आईजी आशुतोष पांडेय ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने इस मामले को ले कर थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह से 2 बार बात की, लेकिन उस ने उन्हें कोई उचित जवाब नहीं दिया. इस के बाद उन्होंने क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश को इस मामले की जांच कर के तुरंत रिपोर्ट देने को कहा.

क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश ने उन्हें जो रिपोर्ट दी, उस में सबइंसपेक्टर जगराम सिंह पर हत्या का संदेह व्यक्त किया गया था. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने जो किया था, उस से पुलिस की छवि धूमिल हुई थी, इसलिए आईजी आशुतोष पांडेय ने उन्हें लाइनहाजिर कर दिया और खुद 10 जुलाई को थाना नौबस्ता जा पहुंचे. उन्होंने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को थाने बुला कर पूछताछ की और उसे साथ ले कर घटनास्थल का निरीक्षण भी किया.

मृतका नीलम और जगराम सिंह के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस में नीलम के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन जगराम सिंह का ही आया था. दोनों के बीच बात भी हुई थी. इस के बाद नीलम का फोन बंद हो गया था. नीलम के मोबाइल फोन की अंतिम लोकेशन थाना चकेरी क्षेत्र के श्यामनगर की थी. काल डिटेल्स से पता चला कि जगराम और नीलम की रोजाना दिन में कई बार बात होती थी. कभीकभी दोनों की घंटों बातें होती थीं.

सारे सुबूत जुटा कर आईजी आशुतोष पांडेय ने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह से नीलम की हत्या के बारे में पूछा तो उसने स्वीकार कर लिया कि साले की मदद से उसी ने नीलम की हत्या की थी और लाश ले जा कर नौबस्ता में हाईवे के किनारे फेंक दी थी.

ये प्यार था या कुछ और था – भाग 3

रिंकी ने भले ही आलोक से दोस्ती के लिए मना कर दिया था, लेकिन आलोक निराश नहीं हुआ था. अब वह रोजाना नर्सिंग होम के गेट पर खड़े हो कर रिंकी का इंतजार करने लगा. लेकिन रिंकी उस की ओर देखे बगैर आगे बढ़ जाती थी. रिंकी की यह बेरुखी उसे काफी पीड़ा पहुंचा रही थी. जब काफी दिन गुजर गए और रिंकी ने उसे लिफ्ट नहीं दी तो रिंकी को अपने जाल में फांसने के लिए उस ने एक योजना बना डाली.

डिलीवरी के केस के चलते एक दिन रिंकी कुमारी नर्सिंग होम से कुछ देर से निकली. देर हो जाने की वजह से उस का खाना बनाने का मन नहीं हो रहा था, इसलिए रास्ते में पड़ने वाले एक होटल में उस ने खाना खाया. इस तरह उसे और देर हो गई. काम की अधिकता की वजह से वह काफी थक गई थी, इसलिए कमरे पर पहुंच कर उस ने कपड़े बदले और आराम करने के लिए लेट गई. लेटते ही उस की आंखें बंद होने लगीं. तभी उस के कानों में दरवाजा थपथपाने की आवाज पड़ी. अर्द्धनिद्रा में वह थी ही, इसलिए उस ने बाहर से किस ने दरवाजा खटाखटाया है, यह पूछे बगैर ही दरवाजा खोल दिया.

रिंकी के दरवाजा खोलते ही गुपचुप तरीके से पीछा कर रहे आलोक ने फुरती से अंदर आ कर इस तरह दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी कि रिंकी समझ ही नहीं पाई. जब तक मामला उस की समझ में आया, आलोेक अंदर आ चुका था. उतनी रात को आलोक को कमरे के अंदर देख कर रिंकी सहम उठी.

उस ने डांटने वाले अंदाज में कहा, ‘‘तुम, यहां क्यों आ गए? तुरंत मेरे कमरे से बाहर निकल जाओ, वरना मैं शोर मचा कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर लूंगी. उस के बाद तुम्हारी क्या गति होगी, तुम कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘यार, तुम बेकार ही गुस्सा करती हो. हम प्यार करने के मूड में आए हैं और तुम मुझे दुत्कार रही हो. प्यार करने वाले से प्यार से बात की जाती है, इस तरह भगाया नहीं जाता.’’ आलोक ने प्यार से कहा.

आलोक के यह कहने पर रिंकी का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने आगे बढ़ कर आलोक का गिरेबान पकड़ कर दरवाजे की ओर धकेलते हुए कहा, ‘‘सीधी तरह से यहां से जाते हो या बुलाऊं पड़ोसियों को?’’

रिंकी के इस गुस्से पर आलोक सहम उठा. उस ने झटके से अपना गिरेबान छुड़ाया और जेब से चाकू निकाल कर बोला, ‘‘अब एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. यह चाकू देख रही हो न, यह किसी के साथ कोई रियायत नहीं करता. तुम्हारे इसी कमरे में यह चाकू अपने पेट में घुसेड़ लूंगा. उस के बाद मेरी हत्या के आरोप में तुम्हें जेल जाना पड़ेगा. तुम लाख सफाई दोगी, लेकिन तुम्हारी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा. तुम्हें तो पता ही है कि मैं तुम्हारे प्यार में पागल हूं. पागल प्रेमी के लिए ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है.’’

रिंकी हाथ जोड़ कर कातर स्वर में बोली, ‘‘मैं तो वैसे ही बेबस और लाचार हूं. क्यों मेरी बेबसी का फायदा उठा रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारी लाचारी का फायदा नहीं उठा रहा. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. मैं तुम से शादी करूंगा रिंकी.’’ आलोक ने कहा.

‘‘यह सब कहने की बातें हैं. आज तुम प्यार की बात कह कर मुझ से शादी करने का वादा कर रहे हो. मुझे पाने के बाद अपना यह वादा भूल जाओगे. तुम्हारे घर वाले मुझ जैसी लाचार मजबूर लड़की से तुम्हारी शादी क्यों करेंगे? ये सब कहने की बातें हैं. प्यार का नाटक कर के मेरा सब लूट लोगे, उस के बाद छोड़ कर चल दोगे.’’

‘‘रिंकी, मैं ने तुम्हारे बारे में सब पता कर लिया है. मुझे तुम्हारी पिछली जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं है. तुम अपने भविष्य के बारे में सोचो. नर्स की इस मामूली सी नौकरी में यह जीवन बीतने वाला नहीं है. अकेली औरत का इस समाज में जीना आसान नहीं है. मेरा अपना मकान है ही, मेरे घर में भी किसी चीज की कमी नहीं है. मेरे पिता भी मेरी खुशियों में आडे़ नहीं आएंगे. मैं अपनी बात कह कर जा रहा हूं. तुम मेरी बातों पर गौर करना. मैं तुम से झूठ नहीं बोल रहा हूं, यह याद रखना.’’

कह कर आलोक ने दरवाजा खोला और निकलने से पहले उस ने रिंकी के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर उस के माथे को चूम कर कहा, ‘‘तुम ठंडे दिमाग से विचार करना. मैं तुम्हें सोचने के लिए पूरे 15 दिन दे रहा हूं. इस के बाद तुम अपना फैसला बता देना. अगर तुम नहीं चाहोगी तो मैं तुम्हारे रास्ते में कभी नहीं आऊंगा.’’

आलोक के जाने के बाद रिंकी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर बैठ गई. अब उस की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी. वह अपनी जिंदगी के बारे में सोचने लगी. आलोक ने उसे ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया था, जहां से उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह किधर जाए. उसे एक मजबूत सहारे की जरूरत तो थी ही. अगर आलोक अपने वादे पर खरा उतरता है तो वह मजबूत सहारा बन सकता है. यही सब सोचते हुए आखिर रिंकी को नींद आ ही गई.

रिंकी सोई भले देर से थी, लेकिन सुबह अपने समय पर ही उठी. घर के सारे काम निपटा कर वह समय से नर्सिंग होम पहुंच गई. लेकिन उस पूरे दिन उस का मन काम में नहीं लगा. उसे आलोक के किए वादे याद आते रहे. इसी सोचविचार में एकएक कर के 15 दिन बीत गए. 16वें दिन नर्सिंग होम की अपनी ड्यूटी समाप्त कर के रिंकी कमरे पर पहुंची. वह खाना बनाने की तैयारी कर रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

रिंकी को समझते देर नहीं लगी कि कौन होगा. उस ने दरवाजा खोला, सचमुच बाहर आलोक खड़ा था. रिंकी कुछ कहती या पूछती, उस के पहले ही वह पूरे अधिकार के साथ अंदर आ गया और दरवाजा बंद कर लिया.

इस के बाद चारपाई पर आराम से बैठ कर बोला, ‘‘मैं आज तुम्हारा जवाब जानने आया हूं. तुम अपना निर्णय सुनाओ, उस के पहले एक बार फिर मैं तुम्हें बता दूं कि मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. तुम्हारे मना करने से मैं तुम्हारे रास्ते से तो हट जाऊंगा, लेकिन शायद जी न पाऊं. इसलिए जो भी जवाब देना, खूब सोचविचार कर देना. क्योंकि अब मेरी यह जिंदगी तुम्हारे इसी निर्णय पर निर्भर है.’’

आलोक रिंकी को पूरी तरह इमोशनली ब्लैकमेल कर रहा था. यह बात रिंकी की समझ में नहीं आई. वह इस सोच में डूबी थी कि उसे क्या जवाब दे. वह नासमझ थी, तभी उस के पिता ने उस का विवाह उम्र में दोगुने आदमी के साथ कर दिया था. वह उस के प्रति समर्पित थी, इस के बावजूद वह उसे ठीक से नहीं रख सका. 22 साल की इस छोटी सी जिंदगी में वह परेशानियां ही परेशानियां उठाती आ रही थी. इस स्थिति में वह आलोक पर कैसे भरोसा करे.

रिंकी ने कोई जवाब नहीं दिया तो आलोक ने उस का एक हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘अभी पढ़ना चाहती हो न? तुम पढ़ो. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. तम्हें शायद पता नहीं है कि मेरा छोटा भाई गूंगाबहरा है. इसलिए मैं अपने मांबाप का लाडला हूं. मैं अपने घर में जो कहता हूं, उसे मान लिया जाता है. मैं ने मास मीडिया की डिग्री ली है, जल्दी ही मुझे कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. अगर मेरे घर वाले तुम्हें नहीं भी अपनाएंगे तो अपने पैरों पर खड़े होने के बाद मैं तुम्हें अपने साथ रखूंगा.’’

इतना कह कर आलोक ने जेब से सिंदूर की डिब्बी निकाली और उस में से एक चुटकी सिंदूर निकाल कर रिंकी की मांग भर दी.

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर अपने कार्यालय  में जैसे ही आ कर बैठे, एक बुजुर्ग उन के सामने आ कर खड़ा हो गया. उन्होंने उस की ओर देखा तो वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मोहम्मद आरिफ है. मैं दामूपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा 26 वर्षीय बेटा नाजिम 14 सितंबर की सुबह 10 बजे घर से काम पर जाने के लिए निकला था.

शाम को वह घर नहीं लौटा तो मैं उस की तलाश करने लगा. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. आज सुबह 5 बजे गांव में शोर मचा कि सुमित पाल के बाजरे के खेत में एक लड़के की लाश पड़ी है. मैं ने वहां जा कर देखा तो वह मेरे बेटे नाजिम की लाश थी. उस में से बदबू आ रही थी. साहब, मैं उसी की रिपोर्ट दर्ज कराने आया हूं.’’

सुबहसुबह हत्या की खबर से थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर का दिमाग चकरा गया. उन्होंने स्वयं को संभाल कर मोहम्मद आरिफ से पूछा, ‘‘बता सकते हो कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘जी मेरे ही गांव के मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान ने यह काम किया है. साहब, मेरा बेटा नाजिम उस की बहन आयशा से प्यार करता था. वह उस से निकाह करना चाहता था. जबकि इमरान को यह पसंद नहीं था.’’

आरिफ की सूचना पर थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने अपराध संख्या-520/2013 पर भादंवि की धारा 302/364/201 के तहत मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान तथा 2 अन्य  लोगों, इमरान के मौसेरे भाई उस्मान और दोस्त सुफियान के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर अपने साथ एसएसआई उमाशंकर यादव, एसआई जीतेंद्र बहादुर सिंह, एसआई (टे्रनिंग) संगीता सिंह तथा कुछ सिपाहियों को ले कर गांव दामूपुर के लिए रवाना हो गए.

at imran home clouds

पुलिस बल के साथ इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर दामूपुर गांव के उस बाजरे के खेत पर जा पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. लाश निर्वस्त्र थी. देखने से ही लग रहा था कि हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद उसे चाकुओं से भी गोदा गया था. यह हत्या भी कहीं दूसरी जगह की गई थी. उस के बाद लाश को यहां ला कर फेंका गया था. लाश से तेज दुर्गंध आ रही थी.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद अभियुक्तों को गिरफ्तार करने दामूपुर गांव जा पहुंचे. लेकिन वहां कोई नहीं मिला.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर अभियुक्त इमरान की बहन आयशा, अम्मी परवीन बेगम तथा अब्बा इब्राहीम को पूछताछ के लिए थाने ले आए. पूछताछ में इब्राहीम और उन की पत्नी ने बताया कि न तो उन्होंने यह हत्या की है और न ही उन्हें हत्यारों के बारे में कुछ पता है.

इस के बाद इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने आयशा को अलग ले जा कर पूछताछ की तो उस ने नाजिम से अपना प्रेम संबंध स्वीकार करते हुए बताया, ‘‘मेरे भाई इमरान ने मेरी मौसी के बेटे उस्मान और दोस्त सुफियान के साथ मिल कर नाजिम की हत्या की है. इमरान ने मुझ से निकाह करने का आश्वासन दे कर नाजिम को शनिवार की रात घर बुलाया. उसी रात तीनों ने नाजिम की गला दबा कर और चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी. आधी रात के बाद गांव में सन्नाटा पसर गया तो वे नाजिम की लाश को गांव के बाहर बाजरे के खेत में फेंक आए थे.’’

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इमरान के पिता इब्राहीम को रोक कर आयशा और उस की मां परवीन बेगम को घर भेज दिया था. यह 16 सितंबर की बात है.

19 सितंबर को सूरज ने अभी पूरी तरह आंखें खोली भी नहीं थी कि इब्राहीम के घर की महिलाओं के चीखचीख कर रोने की आवाज से पूरा गांव जाग गया. गांव वाले इब्राहीम के घर पहुंचे तो पता चला कि उस की बेटी आयशा ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है.

गांव वालों के कहने पर परवीन बेगम ने इस घटना की सूचना थाना धूमनगंज पुलिस को दी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर को परवीन बेगम की बातों पर कतई विश्वास नहीं हुआ. फिर भी उन्होंने उस के बताए अनुसार अपराध संख्या-529/2013 पर भादंवि की धारा 309 के तहत मुकद्दमा दर्ज करा कर साथियों के साथ दामूपुर स्थित इब्राहीम के घर जा पहुंचे.

आयशा की लाश मकान की पहली मंजिल बने कमरे में दरवाजे के ऊपर के रोशनदान से रस्सी के सहारे लटक रही थी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश का निरीक्षण करने के दौरान देखा कि लटक रही लाश के पैर फर्श को छू रहे थे. शरीर पर 2 जगहों पर जले के निशान थे. कपड़ों से मिट्टी के तेल की गंध आ रही थी. वहीं मिट्टी के तेल का डिब्बा भी पड़ा था.

स्थितियों से यही लग रहा था कि पहले उस पर मिट्टी का तेल डाल कर जला कर मारने का प्रयास किया गया था. किसी वजह से इरादा बदल गया तो गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. उस के बाद लाश को रस्सी के सहारे लटका कर आत्महत्या का रूप दे दिया गया. पुलिस ने जब हत्या की शंका व्यक्त की लेकिन घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश को नीचे उतरवा कर आवश्यक काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. अब उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रतीक्षा थी.

पोस्टमार्टम के बाद आयशा की लाश अंतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. इंसपेक्टर रामसूरत को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली तो उन का शक विश्वास में बदल गया, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आयशा की मौत एंटीमार्टम इंजरी स्ट्रांगग्यूलेशन यानी गला दबा कर हत्या करना बता रही थी.

इस बीच इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इस मामले में अपने मुखबिरों से बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर ली थीं. प्राप्त जानकारियों के अनुसार आयशा के भाई को उस रात गांव में देखा गया था. चर्चा थी कि आयशा नाजिम की हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता कर मुख्य गवाह बन गई थी, इसीलिए उसे उस के भाई ने मार दिया था.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए थाना धूमनगंज पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए. परिणामस्वरूप 20 सितंबर को पुलिस ने इमरान के मौसेरे भाई उस्मान को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद 28 सितंबर को आयशा का भाई इमरान भी पुलिस गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के अगले दिन उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

खिल गए खुशियों के गुलाब – भाग 3

दरखशां के दिन भी उदासी से बीत रहे थे. कभी अमीना आ जातीं तो कभी अब्बू या शाहिद जाहिद. कभी कभी वह खुद भी मायके चली जाती. 15 दिनों बाद हम्माद आया तो दरखशां पहले की ही तरह उदास थी. हम्माद ने सोचा कि क्या मेरी कमी इस ने महसूस नहीं की. मेरे आने पर न आंखों में चमक आई न चेहरे पर खुशी. हम्माद भी उदास हो गया.

आम बीवियों की तरह दरखशां खाने का इंतजाम करने लगी. हम्माद ने उस से यह भी नहीं पूछा कि वह कैसी है? न कोई जुदाई के किस्से, न तनहाई की बातें. वह सोच रही थी कि यह कितने कठोर इंसान है. इतने दिनों बाद आए हैं, फिर भी कोई बेचैनी नहीं दिखती. शायद उस के बिना खुश थे. उस ने किचन में अपनी नम आंखें पोंछी. दो दिन रह कर हम्माद चला गया.

अगले हफ्ते दरखशां की सालगिरह थी. उस की जिंदगी का सब से अहम और खूबसूरत दिन. वह परेशान थी कि अपनी सालगिरह कैसे और किस के साथ मनाए. हम्माद के आने में एक सप्ताह बाकी रहेगा. वह अकेली क्या करेगी. यह सोच कर वह रो पड़ी. पिछले साल उस की सालगिरह पर कितना अच्छा इंतजाम किया गया था. सारी सहेलियां आई थीं. घर को खूब सजाया गया था.

यही सब सोचसोच कर दरखशां का सिर दर्द करने लगा. क्या इस बार 5 अप्रैल का दिन यूं ही गुजर जाएगा. वह अपनी सालगिरह नहीं मना पाएगी. बेबसी और बेचैनी से उस का वजूद थर्रा उठा.

सालगिरह वाले दिन जब दरखशां सो कर उठी तो उस का मन काफी खिन्न था. लेकिन मौसम बड़ा खुशगवार था. उस के अब्बू और अम्मी ने उसे फोन कर के मुबारकबाद दे दी थी. दरखशां सिसक कर रह गई. दोपहर 12 बजे नसीर ने एक कुरियर पैकेट ला कर दिया, जो मारिया की ओर से गिफ्ट था. शाहिद और जाहिद ने भी कार्ड भेजे थे.

दरखशां की आंखें बेसाख्ता भर आईं. सब को यह दिन याद रहा, लेकिन हम्माद को..? हम्माद के न होने से उसे बड़ी उदासी लग रही थी. उस ने मारिया द्वारा भेजी गई खूबसूरत ज्वैलरी और परफ्यूम तथा अपने भाइयों द्वारा भेजे गए रंगबिरंगे कार्डों को ले जा कर साफिया बेगम को दिखाए. वह उसे दुआएं देती हुई बोलीं, ‘‘मुबारक हो बेटा, पहले जिक्र किया होता तो मैं भी कुछ ले आती.’’

रुलाई दबा कर दरखशां बोली, ‘‘अम्मी, मैं तो ऐसे ही…’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं. हम्माद आ जाए तो मिल कर सालगिरह मना लेंगे. खुदा तुम्हें सुखी रखे, सदा सुहागन रहो, शादो आबाद रहो.’’ अम्मी ने कहा.

दरखशां अपने कमरे में चली गई. उसे तनहाई और हम्माद की बेवफाई अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. वह रोने ही वाली थी कि मारिया का फोन आ गया. उस ने सालगिरह की मुबारकबाद दी तो उस का दिल भर आया.

वह तड़प कर बोली, ‘‘हुंह, कैसी सालगिरह, कैसा इंतजाम. मारिया, मैं बिलकुल अकेली हूं. उन्हें तो मुझ से ज्यादा मरीजों से प्यार है.’’ इस के बाद सिसकते हुए आगे बोली, ‘‘ये डाक्टर लोग होते ही कठोर हैं. उन्हें मेरी सालगिरह कैसे याद रहेगी. यहां तो वीरानी और तनहाई है. मैं उन से यह भी नहीं कह सकती कि मैं उन के बगैर कितनी अधूरी और उदास हूं. उन से कितनी मोहब्बत करती हूं.’’

काफी देर तक दरखशां मारिया से गिलेशिकवे करती रही. दूसरी ओर से मारिया उसे तसल्ली देती रही. वह अर्थपूर्ण ढंग से हंस भी रही थी, जो दरखशां की समझ से बाहर था. आखिर उस ने ‘खुदा हाफिज’ कह कर फोन रख दिया.

दरखशां फोन मेज पर रख कर मुड़ी तो जैसे पत्थर हो गई. दरवाजे के पास हम्माद खड़ा था. उस के होठों पर बेहद शरारती मुसकराहट थी.

‘‘अ…अ…आप?’’ दरखशां उसे देख कर हैरानी से हिसाब लगाते हुए बोली, ‘‘लेकिन आप तो 6 दिन बाद आने वाले थे.’’ दरखशां के दिल में उथलपुथल मची थी. हम्माद कुछ बोले बगैर अंदर आ गया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. ऐसे में दरखशां का दिल तेजी से धड़कने लगा. दरखशां के करीब आ कर अपने दोनों हाथ उस के कांपते कंधों पर रख कर हम्माद ने दबाव डाला तो वह बेड पर बैठ गई. इस के बाद उस की आंखों में आंखें डाल कर हम्माद ने कहा, ‘‘यह कठोर मुझे ही कहा जा रहा था न?’’

‘‘म…म…मैं…नहीं…वह…’’ दरखशां हकलाई.

‘‘सालगिरह मुबारक हो.’’ हम्माद दरखशां के बगल में बैठ कर अपनी बांहें उस के गले में डाल कर बोला.

हम्माद जिस तरह प्यार से दरखशां से अपनी बातें कह रहा था, वे उस पर बहारों के फूल की तरह गिर रही थीं. प्यार से भरे शब्द सारे गिलेशिकवे धो रहे थे. उदासी के गुबार मिटा रहे थे.

‘‘तुम्हारी सालगिरह भला मुझे क्यों न याद रहती,’’ दरखशां की नाजुक नाक को 2 अंगुलियों से पकड़ कर हिलाते हुए हम्माद ने कहा ‘‘जानम, जिन से मोहब्बत होती है, उन के बारे में हमेशा सजग रहना पड़ता है. तुम ने यह कैसे कह दिया कि मैं मरीजों का हूं, तुम्हारा नहीं.’’

हम्माद अपनी बात कहते हुए अंगुली से दरखशां की ठोढ़ी को उठा कर सवालिया नजरों से देखा. दरखशां ने शरम के मारे आंखें झुका ली थीं. वह उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी. हम्माद ने आगे कहा, ‘‘तुम मेरी जान हो दरखशां. माना कि मैं इजहार में कंजूसी करता हूं. लेकिन अब तुम्हें कोई शिकवा नहीं होना चाहिए. मैं जानता हूं कि तुम कुछ नहीं कहोगी, फिर भी मेरी जुदाई में घुली जा रही हो. तुम मेरे बिना नहीं रह सकती तो मैं भी तुम्हारे बिना अधूरा हूं. अब वादा करो, तुम सारे गिलेशिकवे भुला दोगी.’’

दरखशां ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो हम्माद ने जेब से एक डिबिया निकाल कर उस में से सोने की एक चैन निकाली. उसे दरखशां के गले में डाला तो वह हैरान रह गई. वह हम्माद के सीने से लग गई तो हम्माद को लगा कि उस के दिल का सारा बोझ उतर गया है. उस ने दरखशां को बांहों में समेट कर कहा, ‘‘चलो मेरे साथ, तुमहारे लिए एक और सरप्राइज है.’’

‘‘क्या?’’ दरखशां ने पूछा.

‘‘साथ चलो तो…, कह कर हम्माद उसे लाउज में ले आया. अम्मी वहीं सोफे पर बैठी थीं. तरहतरह की खानेपीने की चीजों के साथ मेज पर केक भी रखा था. तभी दरवाजा खुला और अमीना, राशिद, जाहिद, शाहिद, मारिया और उस की अन्य सहेलियां मुसकराते हुए अंदर आ गईं.

दरखशां का दिल मारे खुशी के उछल पड़ा. उसे लगा कि खुशियों में ढेर सारे गुलाब एक साथ खिल गए हैं. सब ने उसे ‘हैप्पी बर्थ डे’ कहा. अम्मी के कहने पर वह तैयार होने के लिए अपने कमरे की ओर चल पड़ी. हम्माद ने एक आंख दबाते हुए कहा, ‘‘जल्दी आना.’’

दरखशां शरम और खुशी से दोहरी हो गई.

— प्रस्तुति : कलीम आनंद

ये प्यार था या कुछ और था – भाग 2

रिंकी को पता था कि उस के ससुर विघ्नेश्वरदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. अब उन का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा था. इसलिए वह स्वयं ही कुछ करने के बारे में सोचने लगी. पहले तो उस ने दलितों के लिए सरकार से मिलने वाले लाभ के बारे में पता किया. इस के बाद उस ने जहानाबाद के अपने उसी रिश्तेदार की मदद से इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत मिलने वाले आवास के लिए आवेदन किया. महादलित समाज की गरीब महिला होने की वजह से रिंकी को जल्दी ही इंदिरा आवास योजना के तहत एक घर मिल गया.

इंदिरा आवास योजना के तहत रिंकी कुमारी को घर मिलने की जानकारी कोलकाता में रह रहे अशोक को हुई तो यह बात उसे अच्छी नहीं लगी. इस की वजह यह थी कि वह घर रिंकी ने अपने नाम से एलाट कराया था. उस का कहना था कि उसे यह मकान पिता विघ्नेश्वरदास या फिर उस के नाम से एलाट कराना चाहिए था. इस बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार भी हुई. इसी के बाद दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं, जो समय के साथ बढ़ती ही गईं.

फिर एक समय ऐसा भी आ गया कि रिंकी कुमारी पति के साथ एक पल भी रहना नहीं चाहती थी. उस ने तय कर लिया कि अब वह अशोक के साथ कोई संबंध नहीं रखेगी. यह निर्णय लेने के बाद उस ने पंचायत और कुछ खास रिश्तेदारों की मौजूदगी में अशोक से संबंध खत्म कर लिए. इस तरह रिंकी कुमारी अशोक के बंधन से आजाद हो गई.

पति और ससुराल से संबंध खत्म होने के बाद रिंकी कुमारी कभी मायके में तो कभी इंदिरा आवास योजना के तहत मिले अपने घर में रहने लगी. रिंकी के ये संघर्षों भरे दिन थे. उस के इस संघर्ष में जहानाबाद के उस रिश्तेदार ने उस की पूरी मदद की. उसी ने रिंकी को सुझाव दिया कि अगर वह नर्स की टे्रनिंग कर ले तो भविष्य में उसे खर्च की कोई दिक्कत नहीं रहेगी. अपने रिश्तेदार की सलाह पर रिंकी कुमारी ने दौड़धूप की तो जहानाबाद के राजाबाजार के नया टोला की विंध्यवासिनी मार्केट स्थित मंजू सिन्हा के नर्सिंग होम में उसे प्रशिक्षु नर्स की नौकरी मिल गई.

रिंकी कुमारी जिस नर्सिंग होम में काम करती थी, उसी के सामने स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करने वाले सुनील कुमार चौधरी का 2 मंजिला मकान था. उन की नियुक्ति तो अरवल में थी, लेकिन उन का परिवार जहानाबाद के अपने इसी मकान में रहता था. उन के परिवार में श्रीमती रीता देवी के अलावा 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बेटियों में सब से बड़ी बेटी का विवाह हो चुका था. बड़े बेटे 24 वर्षीय आलोक भारती ने ग्रैजुएशन पूरा कर लिया तो सुनील ने उसे बीएचयू से मास कम्युनिकेशन (मास मीडिया) का कोर्स करने के लिए वाराणसी भेज दिया.

आलोक का छोटा भाई मूकबधिर था, इसलिए सुनील कुमार की सारी उम्मीदें आलोक पर ही टिकी थीं. उन पर अभी 3 बेटियों की शादी की भी जिम्मेदारी थी, इसलिए वह चाहते थे कि बेटा पढ़ाई पूरी कर के कहीं नौकरी से लग जाए तो उन की जिम्मेदारी में मदद मिलेगी. लेकिन दुर्भाग्य से आलोक की नौकरी नहीं लग पाई. शायद इस की एक वजह यह भी थी कि वह खुद भी नौकरी के लिए गंभीर नहीं था. बाप के पास पैसा तो था ही, उन पैसे से वह दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा था.

आलोक भारती का घर नर्सिंग होम के ठीक सामने था, इसलिए उस की छत से नर्सिंग होम की सारी गतिविधियां दिखाई देती थीं. आलोक जब भी खाली होता, छत पर जा कर नर्सिंग होम की ओर ताकता रहता. इसी ताकझांक में आलोक ने रिंकी कुमारी में ऐसा न जाने क्या देखा कि वह उस की ओर आकर्षित होने लगा.

जल्दी ही उस की हालत यह हो गई कि दिन भर में जब तक वह उसे 2-4 बार देख नहीं लेता, उसे चैन नहीं मिलता. बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो आलोक ने निर्णय लिया कि छुट्टी के बाद जब रिंकी नर्सिंग होम से घर जाने लगेगी तो उस से मिल कर वह अपने दिल की बात कहेगा.

आलोक ने निर्णय ही नहीं लिया, बल्कि शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर के रिंकी घर जाने के लिए नर्सिंग होम से निकली तो उस ने थोड़ा आगे बढ़ कर जहां एकांत था, रिंकी को रोक कर कहा, ‘‘जहां तक मुझे लगता है कि आप मुझे जरूर पहचानती होंगी, क्योंकि मेरा घर आप के नर्सिंग होम के ठीक सामने है?’’

आलोक का इस तरह बीच रास्ते में रोक कर बातें करना रिंकी कुमारी को अटपटा सा लगा. फिर भी उस ने जवाब में कहा, ‘‘हां, मैं ने आप को सामने वाले घर की छत पर कई बार खड़े देखा है.’’

‘‘मैं आप को पसंद करता हूं, इसलिए आप से दोस्ती करना चाहता हूं. उम्मीद है कि आप को मुझ से दोस्ती करने में ऐतराज नहीं होगा.’’ आलोक ने अपने मन की बात कह दी.

आलोक ने जैसे ही अपनी बात पूरी की, रिंकी कुमारी ने तुरंत जवाब में कहा, ‘‘मुझे यह नहीं पता कि आप मुझ से दोस्ती क्यों करना चाहते हैं? लेकिन मैं आप को बता दूं कि मेरे पास आप से दोस्ती करने का समय बिलकुल नहीं है. नर्सिंग होम की ड्यूटी करने के बाद थकीमांदी अपने कमरे पर पहुंचती हूं तो खाना बनाने में लग जाती हूं. बनाते खाते ही रात 11 बज जाते हैं. उस के बाद सो जाती हूं. सुबह 8 बजे ड्यूटी पर आना होता है, इसलिए जल्दी उठना पड़ता है. क्योंकि सुबह भी नाश्ताखाना बनाना होता है. ऐसे में मेरे पास दोस्ती का समय कहां है?’’

आलोक ने रिंकी कुमारी को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिंकी आलोक के मनसूबों पर पानी फेरते हुए दो टूक जवाब दे कर आगे बढ़ गई. हताश निराश आलोक उसे जाते हुए तब तक देखता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. कोई सुनसान सड़क या गली होती तो शायद आलोक उस का पीछा कर के बात करने की कोशिश करता. लेकिन भीड़भाड़ वाली सड़क होने की वजह से पीछा नहीं कर सका. क्योंकि अगर वह शोर मचा देती तो बेकार ही उसे तमाशा बनना पड़ता.

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 4

विवेक का जब मन होता, वह गंदीगंदी गालियां देते हुए रश्मि की पिटाई करने लगता. जबकि रश्मि को गालियों से बहुत चिढ़ थी. ऐसे में रश्मि विरोध करती तो घर का माहौल बिगड़ जाता. मजबूरन समझदारी का परिचय देते हुए रश्मि को ही चुप होना पड़ता.

मार्च महीने की बात है. रश्मि मायके आई हुई थी. उसी बीच एक दिन उस ने देवर विकास और उस की पत्नी को खाने पर अपने घर बुलाया. रात में विवेक भी आ गया. खाना खा कर विकास तो पत्नी के साथ चला गया, लेकिन विवेक ससुराल में ही रुक गया.

सब के जाने के बाद विवेक सोने के लिए लेटा तो पत्नी से लाइट बंद करने को कहा. काम में व्यस्त होने की वजह से रश्मि सुन नहीं पाई. इसलिए लाइट औफ नहीं की. विवेक गुस्से में उठा तो शराब की खाली पड़ी बोतल उस के पैर से टकरा गई. फिर तो विवेक का गुस्सा इस कदर बढ़ा कि उस ने चप्पल निकाली और रश्मि के घर में ही उस की पिटाई करने लगा, साथ ही गंदीगंदी गालियां भी दे रहा था.

हद तो तब हो गई, जब गिलास में रखी शराब उस ने उस के मुंह पर उड़ेल दी. इस पर रश्मि को भी गुस्सा आ गया. उस ने आवाज दे कर मांबाप को बुला लिया. इस के बाद उस रात विवेक से खूब झगड़ा हुआ. विवेक अकेला था, जबकि रश्मि का पूरा परिवार था. अंत में रश्मि ने ही बीचबचाव कर के मामला शांत कराया. इस के बाद एक बार फिर विवेक के संबंध ससुराल वालों से खराब हो गए. इतना सब होने के बावजूद रश्मि बेटी को ले कर पति के साथ ससुराल आ गई.

3 अप्रैल, 2013 की शाम 4 बजे के आसपास रश्मि ने अभिषेक को फोन कर के बताया कि विवेक ने उसे और श्रद्धा को खाने की चीज में जहर मिला कर खिला दिया है. इस के आगे वह कुछ नहीं कह पाई, क्योंकि दूसरी ओर से फोन कट गया था. शायद किसी ने फोन छीन कर काट दिया था. अभिषेक के पास सोचने का भी समय नहीं था. उस ने जल्दी से गाड़ी निकाली और पिता को साथ ले कर रश्मि की ससुराल जा पहुंचा.

विवेक घर में ही था. लेकिन उस से कोई बात किए बगैर बापबेटे सीधे रश्मि के कमरे में पहुंचे. श्रद्धा और रश्मि बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थीं. बापबेटे ने मिल कर दोनों को गाड़ी में लिटाया और विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंग होम ले गए. दोनों का इलाज शुरू हुआ. इस बीच ससुराल का कोई भी सदस्य उन्हें देखने नहीं आया. रात करीब 11 बजे रश्मि की ननद वंदना जरूर आई. थोड़ी देर रुक कर वह भी चली गई.

श्रद्धा की हालत तो स्थिर रही, लेकिन रश्मि की हालत बिगड़ती गई. तब अर्जुन कुमार और अभिषेक, दोनों को वहां से डिस्चार्ज करा कर डा. मल्ल नर्सिंगहोम ले गए. श्रद्धा तो जैसेतैसे बच गई, लेकिन 2 दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए 5 अप्रैल की शाम 6 बजे रश्मि मौत से हार गई और यह दुनिया छोड़ कर चली गई.

रश्मि की मौत की सूचना पा कर कोतवाली पुलिस अस्पताल पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद श्रद्धा के बताए अनुसार अभिषेक ने कोतवाली पुलिस को जो तहरीर दी, उस के आधार पर कोतवाली पुलिस ने अपराध संख्या 139/2013 पर भादंवि की धारा 302, 307, 498ए के तहत विवेक कुमार लाट के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच कोतवाल प्रभारी इंसपेक्टर बृजेंद्र सिंह ने स्वयं संभाली.

6 अप्रैल, 2013 की सुबह बृजेंद्र सिंह ने विवेक कुमार को आर्यनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद उसी दिन उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. जांच के दौरान इंस्पेक्टर बृजेंद्र सिंह को अभिषेक ने रश्मि के हाथों के लिखी 13 बिंदुओं में 7 पृष्ठों की मर्मस्पर्शी एक चिट्ठी सौंपी. उस चिट्ठी में रश्मि ने पति के हर जुर्म को विस्तार से लिखा था. जांच के दौरान कोतवाली प्रभारी ने उस में लिखा एकएक शब्द सच पाया. इस मामले में पुलिस ने 29 जून, 2013 को विवेक कुमार लाट के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया.

श्रद्धा ने अपने बयान में पुलिस को बताया था कि उस के पापा ने ही उसे और उस की मां को खाने के चीज में जहर मिला कर जबरदस्ती खिलाया था. जिसे खाने के कुछ देर बाद दोनों की हालत बिगड़ने लगी थी. अभिषेक ने पुलिस को बताया था कि उस की बहन बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी. वह निहायत सीधीसादी और परंपराओं में जीने वाली नारी थी. उस की यही बातें विवेक की पसंद नहीं थीं. वह अय्याश था. उस के कई औरतों से नाजायज संबंध थे. रश्मि ने इस का विरोध किया तो वह उस के साथ मारपीट करने लगा. 15 सालों तक वह तिलतिल मरती रही.

अभिषेक बहन की मौत का बदला लेना चाहता था. इसी वजह से वह बहन की हत्या के मामले की पैरवी ठीक से कर रहा था. विवेक के घर वालों ने जब उस की जमानत के लिए अदालत में याचिका दायर की तो अभिषेक की पैरवी की वजह से उस की जमानत याचिका खारिज हो गई. विवेक का मंझला भाई विनय कुमार लाट अभिषेक पर दबाव बना रहा था कि इस मामले से धारा 302 हटवा दे. अभिषेक इस के लिए तैयार नहीं था.

अभिषेक और अर्जुन कुमार रश्मि की ससुराल वालों की धमकियों की परवाह किए बगैर मामले की पैरवी करते रहे. आखिरकार वही हुआ, जिस की उन्होंने परवाह नहीं थी. 18 जून, 2013 को भाड़े के शूटरों से विनय कुमार लाट ने अभिषेक रंजन अग्रवाल की हत्या करवा दी. मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल ने बेटे की हत्या की नामजद रिपोर्ट विवेक, उस के मंझले भाई विनय कुमार और 2 अज्ञात शूटरों के खिलाफ थाना कैंट में दर्ज कराई थी.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव ने जांच के दौरान पाया कि यह हत्या पूर्व में हुए झगड़े की वजह से जेल में बंद एक बाहुबली सफेदपोश अपराधी को सुपारी दे कर कराई गई थी. विनय ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार भी किया था. लेकिन हत्यारे कौन थे, कहां से आए थे? पुलिस इस का पता नहीं लगा सकी.

जबकि इस मामले में नामजद अभियुक्त विनय और विवेक के बड़े भाई और प्रौपर्टी डीलर कमलेश कुमार लाट का कहना था कि रश्मि ने पारिवारिक कारणों से आजिज आ कर खुद ही जहर खा लिया था और श्रद्धा को भी खिलाया था. अस्पताल में उस ने सब के सामने यही कहा भी था. लेकिन अर्जुन कुमार और अभिषेक ने जबरदस्ती उस के निर्दोष भाई को जेल भिजवा दिया. उस की जमानत तक नहीं होने दी. अभिषेक की हत्या में भी उन का कोई हाथ नहीं है.

इस लड़ाई में एकमात्र गवाह 14 वर्षीया श्रद्धा लाट की जान खतरे में है. शूटरों के न पकड़े जाने से अर्जुन कुमार का परिवार दहशत में है. उन की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात है. पुलिस ने विवेक कुमार और विनय कुमार पर 8 नवंबर, 2013 को गैंगस्टर एक्ट भी लगा दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्तों विवेक और विनय की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा परिजनों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

खिल गए खुशियों के गुलाब – भाग 2

3 महीने गुजरते देर कहां लगती है. हम्माद और दरखशां की शादी हो गई. दरखशां रुखसत हो कर पिया के घर आ गई. हम्माद के घर पहंचने पर साफिया बेगम और शहनाज ने उस का स्वागत किया. शहनाज और अन्य औरतें उसे सजा कर सुहाग के कमरे में ले गईं. शहनाज ने उसे बैड पर बैठा दिया. इस के बाद चुहलबाजी करती हुई चली गई.

काफी देर बाद कमरे का दरवाजा खुला. हम्माद अंदर आ कर उस के पास बैठ गया. दरखशां का घूंघट उलट कर बोला, ‘‘माशा अल्लाह, आंखें तो खोलिए.’’

हम्माद की इस आवाज में न बेताबी थी और न दीवानगी न जज्बों की लपक थी और न इंतजार की कशमकश. दरखशां ने पलकें उठाईं तो हम्माद का दिलकश चेहरा सामने था.

‘‘मैं खुशकिस्मत हूं कि तुम मेरी शरीके हयात बन गई हो.’’ हम्माद लापरवाही से बोला.

दरखशां के दिल में खौफ के बजाय अब एक बेनाम सी उदासी थी. वह रात हम्माद ने वादों के साथ बिताई. दरखशां अपने हुस्न के कसीदे सुनने की ख्वाहिशमंद थी, जबकि हम्माद ने संक्षिप्त सी बात कर के इस टौपिक को ही बंद कर दिया था. इस उपेक्षा से उस के दिल पर एक बोझ सा आ पड़ा, जैसे कुछ खो गया हो. एक नईनवेली दुलहन के लिए कुछ तो कहना चाहिए. वह अपना पोर पोर सजा कर इन्हीं के लिए तो आई थी. लेकिन जैसे वह जज्बों से बिलकुल खाली था.

शादी हुए काफी दिन गुजर गए. हम्माद उसे मायके भी ले जाता और घुमाने फिराने भी. होटल और रेस्त्रां में खिलातापिलाता भी, लेकिन कभी प्यार का इजहार नहीं करता था और न ही उस की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता. वह एक प्रैक्टिकल सोच वाला इंसान था. अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार.

हम्माद का घर बेहद खूबसूरत था. घर में एक नौकर नसीर तो था ही, साफसफाई के लिए एक नौकरानी भी रखी हुई थी. घर में कोई अधिक काम नहीं था, इसलिए दरखशां सारा दिन बौखलाई फिरती थी. जब उस का मन घबराता तो वह तेज आवाज में डैक चला कर गाने सुनती या फिर कंप्यूटर से दिल बहलाती.

हम्माद सुबह निकलता था तो रात को ही आता था. ऐसे में कभीकभी दरखशां को अपने मून और पिंकी की याद आती तो वह मारिया को फोन करती. मारिया उस की बात सुन कर बेसाख्ता हंसते हुए कहती, ‘‘अरे पगली, अब तू शादीशुदा है. मून और पिंकी की फिक्र छोड़, कल को तेरे अपने गुड्डे गुडि़यां आ जाएंगे, उन्हीं से खेलना.’’

ऊब कर दरखशां सास साफिया बेगम के पास बैठ जाती तो वह उसे किस्से कहानियां सुनातीं. वह उन की अच्छी तरह देखभाल करती थी, क्योंकि वह जोड़ों के दर्द की मरीज थीं.

हम्माद के आने का समय होता तो वह उसे जबरदस्ती तैयार होने को कहतीं. वह सोचती कि पत्थर दिल बेहिस डाक्टर साहब सारा दिन दवाइयों की गंध सूंघते रहते हैं. ऐसे में उस के सजसंवर कर रहने का उन पर क्या असर होगा. सच भी था, हम्माद को अपने पेशे से काफी लगाव था. घर आने पर वह दरखशां से भी ज्यादा बात नहीं करते थे. सिर्फ मतलब की बात करते, वरना खामोशी, किताबें या फिर कंप्यूटर.

साफिया बेगम की आवाज उस के कानों में पड़ी तो वह यादों से बाहर आ गई. वह साफिया बेगम के कमरे की ओर भागी. अब तक हम्माद सो गया था.

इसी तरह दिन बीत रहे थे. अचानक हम्माद की ड्यूटी रात में लगा दी गई थी. दरखशां ने आह सी भरी तो हम्माद ने कहा, ‘‘अरे भई, यह पेशा ही ऐसा है. कभी रात तो कभी दिन. असल काम तो मरीजों की सेवा करना है.’’

उसी बीच दरखशां मायके गई और कई दिनों बाद वापस आई. संयोग से उसी समय हम्माद भी घर आ गया. वह जूते के बंद खोलते हुए तल्खी से बोला, ‘‘तुम्हारा मन मायके में कुछ ज्यादा ही लगता है.’’

‘‘क्यों न लगे. अपने मांबाप को देखने भी नहीं जा सकती क्या?’’ दरखशां ने कहा.

हम्माद चुप रह गया. दरखशां जब भी मायके जाती, अपने मून और पिंकी को गले लगाती. अपनी अम्मी से खूब बातें करती. मायके से आने लगती तो खूब रोती. शादी हुए एक साल हो रहा था, लेकिन वह खुद को ससुराल में एडजस्ट नहीं कर पा रही थी. वह सोचती थी कि जब वह ससुराल आए तो हम्माद कहे कि तुम्हारे बगैर ये 2 दिन मैं ने कांटों पर गुजारे हैं. रात को तुम मेरे पहलू में नहीं होती तो मैं करवट बदलता रहता हूं. लेकिन उस के मुंह से कभी ऐसे वाक्य नहीं निकलते, जो दरखशां के मोहब्बत के तरसे दिल पर फव्वारा बन कर गिरते.

किचन का ज्यादातर काम दरखशां करती थी, नसीर उस के साथ लगा रहता था. साफिया उसे समझातीं, मगर वह नहीं मानती. दरखशां अब अच्छा खाना बनाने लगी थी. लेकिन हम्माद ने कभी उस के खाने की तारीफ नहीं की. ऐसे में दरखशां झुंझला जाती. साफिया उस की तारीफें करती तो दरखशां कमरे में आ कर रोती.

एक दिन दरखशां ने साफिया बेगम से हम्माद के ऐसे मिजाज के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘‘अरे बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है. जब से उस के अब्बू का इंतकाल हुआ है, तब से यह खामोश और तनहाई पसंद हो गया है. बस पढ़ाई में मगन रहा. लेकिन जब से तुम आई हो, इस में काफी बदलाव आया है.’’

कुछ दिनों बाद हम्माद को पास के एक कस्बे के अस्पताल का इंचार्ज बना कर भेज दिया गया. नया अस्पताल बना था. हम्माद को जूनियर डाक्टरों के साथ इंचार्ज बन कर जाना था.

2 दिनों बाद हम्माद वहां जाने के लिए तैयार था. जाते वक्त उस ने कहा, ‘‘मैं 15 दिनों बाद आऊंगा.’’

हम्माद के अंदाज में न तो उदासी थी और न ही कोई परेशानी. वह बाहर जाने में बड़ा संतुष्ट लग रहा था. अम्मी ने कहा, ‘‘बेटा, दुलहन को भी साथ ले जाते तो अच्छा रहता.’’

‘‘नहीं अम्मी, अभी मुमकिन नहीं है. पहले जगह वगैरह देख लूं. घर तो मिल जाएगा, लेकिन कैसा माहौल है, क्या सहूलियतें हैं, यह सब देखना पड़ेगा.’’

हम्माद की बात सुन कर दरखशां तिलमिला उठी. उस की आंखों में आंसू भर आए.

नई जगह होने की वजह से हम्माद को फुरसत नहीं मिलती थी. सहूलियतें भी काफी कम थीं. मरीजों का दिनरात तांता लगा रहता था. यह पिछड़ा इलाका था. हम्माद दिनभर काम में लगा रहता. रात को कमरे में आता तो दरखशां की याद दिल से लिपट जाती. उस का मासूम, भोलाभाला चेहरा और मंदमंद मुसकराहट उसे बेचैन कर देती.

हालांकि हम्माद रात की भी ड्यूटी करता था, मगर इतने दिनों के लिए वह पहली बार दरखशां से जुदा हुआ था. दरखशां की कमी और दूरी उसे परेशान कर रही थी.

ये प्यार था या कुछ और था – भाग 1

बिहार के जिला अरवल के थाना कुर्था के गांव निगवां के रहने वाले फागूदास की 9 संतानों  में रिंकी कुमारी बचपन से ही अपने बहनभाइयों में सब से अलग थी. देश के कई राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार के ऐसे तमाम ग्रामीण इलाके हैं, जहां आज भी पिछड़ी जातियों में बालविवाह होता है.

इस बालविवाह के पीछे इन रूढि़वादियों का सोचना है कि अगर उन्होंने अपनी कन्या का विवाह (दान) रजस्वला होने से पहले कर दिया तो बहुत बड़ी पुण्य होगी. इसी पुण्य की लालसा में वे अपनी नादान बेटियों का भविष्य यानी जिंदगी दांव पर लगा देते हैं. जबकि उन लड़कियों को सही मायने में शादी का पता भी नहीं होता.

फागूदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी भले नहीं थी, लेकिन इतनी खराब भी नहीं थी कि उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ता. उन का गुजरबसर आराम से हो रहा था. बड़े हो कर बेटे पिता की मदद करने लगे तो फागूदास की आर्थिक स्थिति में और भी सुधार आ गया.

फागूदास जिस जाति के थे, उस जाति में बेटियों की शादी कमउम्र में ही कर दी जाती थी. लड़की की पसंद और नापसंद का कोई मतलब नहीं था. जो कुछ करना होता था, मांबाप अपनी मर्जी से करते थे.

रिंकी कुमारी 10-11 साल की हुई नहीं कि फागूदास ने तय कर लिया कि वह रिंकी की शादी उस के रजस्वला होने से पहले ही कर के पुण्य का लाभ कमा लेंगे. उन्होंने रिंकी के लिए लड़के की तलाश भी शुरू कर दी. थोड़ी भागदौड़ के बाद उन्हें रिंकी के लिए घरवर मिल गया. लड़का पड़ोसी जिला जहानाबाद के प्रखंड शर्कुराबाद के गांव रतनी फरीदपुर के रहने वाले विघ्नेश्वरदास का 23 वर्षीय बेटा अशोकदास था. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. लेकिन शादी की तारीख उन्होंने पूरे एक साल बाद रखी.

रिंकी की शादी तय होने के बाद फागूदास तैयारी में जुट गया. एक एक दिन कर के समय बीत रहा था. रिंकी पूरे 12 साल की हो गई. महीने भर बाद ही उस की शादी होने वाली थी. लेकिन संयोग देखो, जिस पुण्य की लालसा में फागूदास नाबालिग बेटी की शादी दोगुनी उम्र के लड़के से कर रहा था, उस की यह लालसा पूरी नहीं हो सकी.

विवाह के महीना भर पहले रिंकी 12 साल की उम्र में ही रजस्वला हो गई. रिंकी की मां ने जब फागूदास को बेटी के रजस्वला होने की बात बताई तो वह अपने भाग्य को कोसने लगा. लेकिन कुदरत पर इंसान का कोई वश नहीं है, इसलिए फागूदास भी सिर पीट कर रह गया.

बुझे मन से ही सही, फागूदास ने भाग्य को कोसते हुए पहले से तय तारीख पर रिंकी की शादी उस से दोगुनी उम्र के मैट्रिक पास अशोकदास के साथ कर दी. फागूदास ने रिंकी की शादी तो कर दी थी, लेकिन विदा नहीं किया था. इसलिए मांबाप के यहां रहते हुए रिंकी आगे की पढ़ाई करने लगी. वह गांव के ही मिडिल स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शादी के साल भर बाद सन 2000 में वादे के अनुसार फागूदास ने रिंकी को विदा कर दिया. रिंकी कुमारी विदा हो कर ससुराल पहुंची तो उस समय उस की उम्र 14 साल कुछ महीने थी. लगभग महीने भर ससुराल में रह कर रिंकी आ गई. रिंकी की पढ़ाई में रुचि थी, इसलिए शादी के समय ही उस ने कह दिया था कि वह अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ेगी. यही वजह थी कि शादी के बाद भी उस ने पढ़ाई जारी रखी. वह ग्रैजुएशन कर के कुछ करना चाहती थी.

ससुराल वालों की रजामंदी से रिंकी कुमारी ने गांव से इंटरमीडिएट कर के आगे की पढ़ाई के लिए जहानाबाद के अपने एक रिश्तेदार की मदद से जहानाबाद के मुरलीधर उच्च महाविद्यालय में दाखिला ले लिया. रिंकी ने बीए फर्स्ट ईयर की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की. इस के बाद उस का पति अशोक उसे अपने साथ कोलकाता ले कर चला गया. वहां वह किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. 2 सालों तक वह पति के साथ कोलकाता में रही. इस बीच वह 1-2 बार ही जहानाबाद आई.

जिस समय रिंकी कुमारी की शादी अशोकदास से हुई थी, उस समय वह बेरोजगार था. घरगृहस्थी की सारी जिम्मेदारी रिंकी के ससुर विघ्नेश्वरदास के कंधों पर थी. यही वजह थी कि शादी के बाद भी रिंकी ने पढ़ाई जारी रखी थी. उस का सोचना था कि युवा और हट्टाकट्टा हो कर भी उस का पति कुछ नहीं करता तो अपनी जरूरतों के लिए वह कब तक सासससुर और मांबाप का मुंह ताकती रहेगी. यही वजह थी कि रिंकी ने सोच लिया था कि जैसे भी हो, वह पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बनने (अपने पैरों पर खड़े होने) का प्रयास करेगी.

मैट्रिक तक पढ़े उस के पति अशोकदास को सरकारी नौकरी तो मिल नहीं सकती थी. कोई छोटामोटा काम वह करना नहीं चाहता था. इसलिए जब उसे कोलकाता में नौकरी मिली तो उसे वह नौकरी मनमाफिक लगी, जिस से वह वहां चला गया था.

कुछ दिनों बाद उस ने रिंकी को भी वहीं बुला लिया था. लेकिन वहां जा कर जल्दी ही रिंकी को लगने लगा कि जैसा कुछ उस ने सोचा था, वैसा यहां भी नहीं है. उस ने सोचा था कि अब तो पति की नौकरी लग ही गई है, इसलिए अब वह अपनी मनमरजी का खर्च कर सकेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि अभी भी उसे अपनी कुछ खास जरूरतों के लिए दूसरों के सामने ही हाथ फैलाना पड़ रहा है.

दरअसल, रिंकी कुमारी को जब पति की नौकरी के बारे में पता चला था तो उसे लगा था कि अब उसे अपनी छोटीमोटी जरूरतों के लिए मांबाप या सासससुर के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा. लेकिन जल्दी ही रिंकी का यह भ्रम टूट गया. क्योंकि अशोकदास खाने कपड़े के अलावा उस की अन्य जरूरतों के लिए पैसे नहीं देता था.

कभी वह कोई सामान लेने की जिद करती तो अशोक उसे दिलाने के बजाय समझाबुझा कर सामान लेने से मना कर देता. अगर इस पर रिंकी न मानती तो वह डांटफटकार कर या मारपीट कर उसे शांत करा देता. रिंकी ने जब भी अशोक से यह जानना चाहा कि उसे वेतन कितना मिलता है तो बताने के बजाए वह टाल देता. वह उसे यह कह कर चुप करा देता कि पति कितना कमाता है, पत्नी को इस सब से क्या मतलब. उसे अपने खाने कपडे़ से मतलब होना चाहिए. उसे यह सब मिल ही रहा है.

अशोक की इन बातों से रिंकी ने महसूस किया कि नौकरी लगने के बाद उस में काफी बदलाव आ गया है. वह उस के साथ पति जैसा व्यवहार न कर के अपने दायित्वों से भाग रहा है. रिंकी को लगता था कि अशोक उस की उपेक्षा करने के साथ उस का शारीरिक और मानसिक शोषण भी करने लगा है. रिंकी के लिए जब यह सब बरदाश्त से बाहर होने लगा तो अपने पैरों पर खड़ी होने का निर्णय ले कर वह कोलकाता से अपनी ससुराल जहानाबाद आ गई.

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 4

रामकुमार ने अपने बयान में बताया कि 22 नवंबर को कालिंदी उस के घर आ कर उस की पत्नी पूनम से बहस करने लगी तो उसे उस पर बहुत गुस्सा आया. जब उस से बरदाश्त नहीं हुआ तो वह उसे समझाबुझा कर अपनी मोटरसाइकिल पर दुर्ग बस स्टैंड छोड़ आया. जहां से वह अपने मायके चली गई.

अभी घर लौटे उसे डेढ़ घंटा ही हुआ था कि उस के मोबाइल पर कालिंदी का फोन आ गया. उस ने बताया कि वह मायके न जा कर बीच रास्ते में ही बस से उतर गई है और अब रायपुर लौट रही है. इसलिए वह उसे हीरापुर में मिले. कारण पूछने पर उस ने कहा कि उस के मायके वालों को ही नहीं बल्कि रिश्ते नातेदारों तक को हकीकत पता चल गई है. ऐसे में उसे कोई भी घर में नहीं रखेगा.

रामकुमार के अनुसार उसे कालिंदी की इस हरकत पर काफी गुस्सा आया. अगर वह हीरापुर में बताई गई जगह पर नहीं पहुंचता तो कालिंदी उस के घर पहुंच जाती. इसलिए वह उस की बताई जगह पर पहुंच गया. तब तक साढ़े 7 बज चुके थे. वहां से वह कालिंदी को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर गोगांव नाले की ओर निकल गया क्योंकि उस रास्ते पर लोगों का कम ही आनाजाना होता है.

नाले के पास पहुंच कर उस ने अपनी बाइक नाले के किनारे खड़ी कर दी और कालिंदी पर गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘मेरे इतना कहने और समझाने के बावजूद तुम हफ्ते भर अपने मायके में नहीं रह सकीं. अब बताओ मैं तुम्हें कहां रखूं? पूनम तो साथ रहने नहीं देगी.’’

इस पर कालिंदी नाराज होते हुए बोली, ‘‘अब न तो मेरा कोई मायका है और न ससुराल. मैं सब कुछ पीछे छोड़ आई हूं. तुम्हीं बताओ, ऐसे में कहां जाऊं?’’

‘‘जहन्नुम में जाओ, पर मेरा पीछा छोड़ दो.’’ रामकुमार ने कहा तो कालिंदी बिफर उठी और उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गरदन पर रखते हुए गुस्से में बोली, ‘‘मुझे जहन्नुम भेजना चाहते हो तो भेज दो. अभी इसी वक्त जहन्नुम में भेज दो मुझे.’’

रामकुमार के अनुसार वह अपने हाथोें से उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गरदन पर दबाव बनाने लगी. इस पर उस ने कालिंदी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह गुस्से में आग बबूला होती हुई बारबार जहन्नुम भेजने की बात कह कर उसे गुस्सा दिलाने लगी. आखिर उसे गुस्सा आ ही गया और उस का हाथ सचमुच कालिंदी की गरदन पर कसने लगा. फिर देखते ही देखते उस के हलक से गूं…गूं…गूं… की आवाजें निकलने लगीं. फिर कुछ देर में उस का शरीर रामकुमार के कंधे पर लुढ़क गया.

कालिंदी को निष्प्राण हुआ देख वह डर गया. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो वहां दूरदूर तक कोई भी नहीं था. यह देख उस ने राहत की सांस ली और पैंट व अंडरवियर पहने पहने ही कालिंदी के शव को ले कर नाले में उतर गया. किनारे से 2-4 कदम आगे जा कर उस ने उस की लाश को पानी में छोड़ा और फिर किनारे से वजनी पत्थर ला कर उस के ऊपर रख दिया. ताकि वह तुरंत पानी से ऊपर न आ सके. वहां से वह सीधे अपने घर लौट आया.

रामकुमार ने पश्चाताप जाहिर करते हुए कहा, ‘‘काश! कालिंदी बार बार जहन्नुम भेजने की बात कह कर मुझे गुस्सा न दिलाती तो शायद मेरे हाथों इतना बड़ा अनर्थ न होता. दरअसल वह यह नहीं समझ पा रही थी कि मेरी पत्नी और 2 बच्चे हैं और मुझे उन्हें भी देख कर चलना पड़ेगा.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी कालिंदी की मौत की वजह दम घुटना ही बताई गई थी. उस की मौत पानी में दम घुटने से नहीं बल्कि गला दबाने से हुई थी. थानाप्रभारी संजय तिवारी ने कालिंदी की हत्या कर के लाश को छुपाने के आरोप में राकुमार के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 201 का इस्तेमाल किया. जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने रामकुमार को 25 नवंबर को अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में रायपुर जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर

आशिकी में भाई को किया दफन – भाग 3

कोतवाल सिंह ने सेठपाल से उस के पूरे परिवार के सदस्यों के बारे में पूछताछ की. सेठपाल की बातें सुन कर श्री सिंह भी चौंक पड़े, क्योंकि 6 फरवरी की रात से ही कुलवीर के लापता होने की बात बताई गई थी. उन्हें इस के पीछे दाल में काला होने का शक हुआ.

यानी वह समझ गए कि इस मामले में परिवार या पासपड़ोस का ही कोई न कोई शामिल हो सकता है. यह भी सवाल था कि कुलवीर ने ही सब को बेहोश कर दिया हो और खुद भी घर से फरार हो गया हो? लेकिन यह जांच का विषय था कि उस ने आखिर ऐसा क्यों किया होगा? घर में गहने या रुपएपैसे सहीसलामत थे.

उसी तरीख से कुलवीर का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. श्री सिंह ने मामले की जांच करने के लिए एसएसआई अंकुर शर्मा को सेठपाल के साथ उस के गांव भेज दिया.

अंकुर शर्मा ने ढाढेकी ढाणा पहुंच कर सेठपाल के सभी परिजनों से उस की बेहोशी की हालत के बारे में गहन तहकीकात की. इस बाबत पड़ोसियों से भी बात की. इस की सिलसिलेवार जानकारी उन्होंने कोतवाल अमरजीत सिंह को दे दी.

श्री सिंह शर्मा की रिपोर्ट पढ़ कर इस निर्णय पर पहुंचे कि कुलवीर ही अपने घर वालों को बेहोश कर फरार हो गया होगा. सेठपाल की तहरीर पर कुलवीर की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद मामले की विवेचना महिला थानेदार एकता ममगई को सौंप दी गई.

नहीं मिला ठोस सुराग

इस की सूचना सीओ मनोज ठाकुर और एसपी (देहात) स्वप्न किशोर को भी दे दी गई. उन से आगे की जांच और काररवाई के निर्देश के बाद विवेचक एकता ममगई ने कुलवीर के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच शुरू तो हो गई थी, कुलवीर की सरगरमी से तलाश हो रही थी. लेकिन कुलवीर के बारे में कोई ठोस जानकारी हाथ नहीं लगी थी. जबकि उस की फोटो के साथ आसपास के क्षेत्रों में पैंफ्लेट चिपका दिए गए थे.

कुलवीर के कुछ दोस्तों और घर वालों से भी उस के बारे में और उस की आदतों को ले कर पूछताछ की गई थी. यह सब करते हुए 3 सप्ताह से अधिक का समय निकल गया था. पुलिस को कुलवीर के बारे में कोई भी सटीक जानकारी नहीं मिल पाई थी.

अब बारी थी परिवार के सभी सदस्य और गांव के दूसरे लोगों से बारीबारी पूछताछ की. इस पर जब गहनता से काम किया जाने लगा किसी ने दबी जुबान में बताया कि उस की नाबालिग बहन गीता का पड़ोसी राहुल के साथ प्रेम संबंध है.

पुलिस ने गीता से की पूछताछ

इस सूचना के बाद देरी किए बगैर गीता से पूछताछ करने के लिए उसे थाने बुलाया गया. पहले तो गीता ने पुलिस को झूठी बातों में उलझाने की कोशिश की. उस ने बताया था कि कुलवीर पिता सेठपाल से नाराज हो कर घर से चला गया है. लेकिन वह नाराजगी की कोई ठोस वजह नहीं बता पाई.

इस के बाद जब अमरजीत सिंह ने गीता से उस के पड़ोसी शादीशुदा राहुल से चल रहे प्रेम संबंधों के बारे में पूछा तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. थाने में महिला सिपाही की सख्ती के सामने वह अधिक समय तक नहीं टिक पाई.

12 मार्च, 2023 को गीता ने स्वीकार कर लिया कि उसे कुलवीर पीटता रहा है, क्योंकि वह राहुल से प्यार करती है. उस ने उसे राहुल से दूर रहने की सख्त हिदायत दी थी. भाई की धमकी सुन कर वह डर गई थी. उस ने औनर किलिंग के बारे में काफी कुछ सुन रखा था कि कैसे मांबाप, भाई और रिश्तेदार अपनी प्रतिष्ठा की खातिर प्रेमी प्रेमिका को मौत के घाट उतार देते हैं.

इस बारे में उस ने राहुल को बताया, जिस से राहुल भी कुलवीर के खिलाफ आग उगलने लगा. और फिर उस ने गीता के साथ मिल कर एक योजना बनाई. इस से पहले कुलवीर गीता के खिलाफ कोई गंभीर कदम उठाए, उस से पहले क्यों न वही कुलवीर को ही निपटा दे.

इस योजना में उस ने अपने दोस्त कृष्णा को भी 40 हजार रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस योजना को उन्होंने 6 फरवरी, 2023 की रात को अंजाम भी दे दिया.

आशिकी में निपटाया बहन ने भाई को

रात को 11 बजे राहुल ने सेठपाल के दरवाजे पर हल्की सी दस्तक दी थी. गीता ने तुरंत दरवाजा खोल दिया था. उस के साथ एक लड़का कृष्णा भी था. राहुल जब उसे ले कर घर में घुसा, तब बाहर के कमरे में कुलवीर को खाट पर गहरी नींद में सोया पाया.

गीता धीमे से राहुल से बोली, “इसे जल्दी निपटाओ.’’

इस के बाद गीता ने अपने भाई कुलवीर के हाथ पकड़ लिए, जबकि कृष्णा ने कुलवीर के पैर. उस के बाद राहुल ने दोनों हाथों से कुलवीर का गला घोंट दिया.

कुलवीर का शरीर कुछ समय में ही बेजान हो गया. राहुल और कृष्णा ने उस की लाश को एक चादर में बांध लिया. उसे कृष्णा अपने घर में ले आ आया. कृष्णा अपने घर में एक गड्ढा पहले से ही खोद कर रखा था. उस ने कुलवीर की लाश उसी में दबा दी. दूसरी ओर गीता ने कुलवीर का मोबाइल फोन स्विच औफ कर पास के तालाब में फेंक दिया और खुद नींद की गोलियां खा कर घर में ही सो गई.

पुलिस ने गीता से मिली जानकारी के बाद राहुल से भी उसी दिन पूछताछ की. इस के लिए उसे थाने बुलाया. उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया गया. इस से भी बात नहीं बनी तब पुलिस सेवा की धमकी दी गई. इस धमकी से वह टूट गया और उस ने न केवल गीता के साथ अनैतिक संबंध की बात स्वीकार की, बल्कि कुलवीर की हत्या का जुर्म भी स्वीकार कर लिया.

कुलवीर के बारे में गीता और राहुल से वारदात के बारे में मिली जानकारी के बाद सीओ मनोज ठाकुर कोतवाली लक्सर आ गए थे. उन्होंने भी गीता से गहनता से पूछताछ की. इस के बाद एसएसआई अंकुर शर्मा और महिला थानेदार एकता ममगई ने कृष्णा को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया.

गीता, राहुल और कृष्णा के बयान दर्ज कर लिए गए. तीनों के बयानों में एकरूपता थी. गीता और कृष्णा ने भी राहुल के ही बयान का समर्थन किया था. इस के बाद पुलिस ने कुलवीर की गुमशुदगी के मामले में हत्या कर लाश छिपाने की धाराएं जोड़ दीं. इस के बाद पुलिस ने राहुल की निशानदेही पर कृष्णा के घर से कुलवीर का शव भी बरामद कर लिया. उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

अगले दिन पुलिस ने राहुल और कृष्णा को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. गीता की उम्र 18 वर्ष से कम होने के कारण उसे कोर्ट ने बाल संरक्षण गृह भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक कुलवीर हत्याकांड की विवेचना महिला थानेदार एकता ममगई द्वारा की जा रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में गीता नाम परिवर्तित है.